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________________ जैन औपदेशिक. नाम. .श्लोक. का . क्यां छ? यघोषिजय hi सोमतिलक विनयप्रम १२५ A.S. नगीनदास. बप्पभट्टिखूरि सोमप्रभ समीनपार्श्वस्तोत्र सर्वजिनस्तुति सर्वचस्तव सर्वशस्तोत्र A १९५ सर्वतीर्थावलिस्तवन B १९६सरस्वतीस्तव (महामंत्रगर्मित) १९७ सरस्वतीस्तोत्र साधारणजिनस्तव अवचूरि साधारणजिनस्तव भवचूरि सार्वशाष्टक सारस्वतोद्धारस्तोत्र सिद्धचक्रस्तवन (प्रा.) सिद्धांतस्तव अवचूरि जयानंद पा.१ नंदिरनशिष्य | नगीनदास. पा.४ जिनप्रम सोमोदय विशालराजायली . A. B आ बन्ने स्तोत्रो पण जेसलमेरनी हीरालाले करेली नोधमाज छे. C लींबडीना भंडारनी टीपमा सिद्धांतस्तवनी अवचरि आदिगुप्तना शिष्ये करेली छे जणाव्युं छे. पण ते टीप करनारे सखत भूल खाधी छे. एम प्रशस्ति लेख उपरथी मालम पढे छे.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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