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जैनन्याय.
नाम.
श्लोक
का.
च्या
क्यां छ?
७१२
८०४
प्रमाणसंग्रह A प्रमाणसुंदर B
प्रमालक्ष्यालक्षण २२/ प्रमेयरत्नकोश
३३०० | १६८०
पद्मसुंदर C बुद्धिसागर । चंद्रप्रभF
पा. ४, अ.२ पा. ५. जेसलमेर. वृ पा.१-४-५अ.१
A आ ग्रंथनु नाम फक्त वृहटिप्पनिकामाथी मल्यु छे. एनामाटे त्यां आवो उल्लेख छे:
" प्रमाणसंग्रह प्रकरणं ९ प्रस्तावं जैनं ७१२"
आ उल्लेखपरथी देखाय छे के आ ग्रंथ पण घणो सरस होवो जोईये. तो आवा अपूर्व ग्रंथ माटे विशेष शोध खोल करवा आपणा मुनिमंडळने स्मस विनंति करवामां आवे छे.
B आ ग्रंथ जैनन्यायनो छे के परमतना न्यायपर जैनकृत व्याख्या ग्रंथ छे ए संबंधे निर्णय ते ग्रंथ जोयाथी थइ' शकशे.
Cपद्मसुंदरगाणि नागपुरीय तपागच्छमां थएला छे. तेओ सं. १६१२ थी १६६१ सूची अकबरनी सभामा विद्यमान रहेला छे. तेमना रचेला बीजा ग्रंथ आप्रमाणे छे.. तेमणे सं. १६१५ मां रायमल्लाभ्युदय महाकाव्य रचेल छे. तथा सं. १६२५ मां पार्श्वनाथकाव्य रचेल छे. तथा प्राकृतभाषामा तेमणे जंबूस्वामिकथानक रचेल छ, एम पीटर्सनना चोथा रिपार्टमां तेमना नाम साथे नोंध करी छे.
D आ ग्रंथ पण खास उतारवा योग्य छे. ते जेसलमेरनी बन्ने टीपमा नोंघायल छे.
बुद्धिसागरसरि नवांगवृत्तिकार अभयदेवसरिना गुरु जिनेश्वरसूरिना समकालीन हता, एमणे बुद्धिसागर व्याकरण विक्रम सं. १०८० मां रचेल छे.
F चंद्रप्रभसरि बे थया छे. एक प्रद्युम्नसूरिना शिष्य अने धनेश्वरसूरिना गुरु चंद्रप्रभसूरि थया छ एम उपदेशकंदलिना प्रशस्ति लेखपरथी जणाय छे. अने बीजा जयसिंहसूरिना शिष्य चंद्रप्रभसूरि थया छे के जेमणे सं. ११५८ मां पूर्णिमागच्छनी स्थापना करी. आ बीजा चंद्रप्रभसूरिए दर्शनशुद्धि प्रकरण रच्युं छे. आ प्रमेयरनकोश कया चंद्रप्रभसूरिए रच्यो हशे ते ए ग्रंथनो प्रशस्ति लेख जोयाथी मालम पड़ी शके तेम छे.