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जैनागम लिस्ट.
नंबर..
रच्यानो
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
संवत्
१००
११७३
पार्श्वदेव प्रद्यमशिष्य
De.p.471
निशीथ विशोद्देशक वृत्ति* अपचूर्णि पर्याय भाष्यविवेक.
ine..116
रत्नप्रमशिष्य
बृहत्कल्प.
मुळ
४७३ भद्रबाहुस्वामि
बृहद्भाग्य
१२०००
७६००
लघुभाष्य चूर्णिx
* आ वृत्ति बृहट्टिप्पनिकामां नोंधेली छे, पण ते कोई भंडारमा देखवामां आवी नथी, तेथी होवाथी अम अनुमान बंधाय छे के कदाच बहटिप्पनिकामां ते भूलथी नोंघाइ होवी जोहये. सिवाय सहाय करी छे तो ते प्रमाणे आ व्याख्यामां पण तेमनी सहायता संबंधे कई लखेलु हशे ते परथी
। अवचूणि डेक्कन कॉलेजमा ताइपत्रपर लखेली छे. तेना की प्रद्युम्नसूरिना शिष्य लखेल छे पण
अना कर्ता रत्नप्रभसूरिशिष्य लखेल छे पण ते कोण छे ते नक्की करवान छ,
$ डेकन कॉलेजना रिपोर्टमां पेज ८६ मा बृहत्भाष्यना श्लोक ८६०० आपेला छे.
* देक्कन कॉलेजना पेज ४९मा लत्युं छे के बृहत्कल्पनी चूर्णिना कर्ता प्रलंबसूरि छे. अने भाष्य
१ आ श्लोक संख्या एवी रीते छे के श्लो. ११७०० नी सामान्यचूर्णि छे अने श्लोक पनी एक टीप श्लो. १४७८० नो आंक मल्यो छे ते परथी ते संख्या कायम राखी छे. छतां