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________________ उपसंहार. आपणामां पिस्तालीश आगम कहेवाय छे तेना बदले उपला लिस्टमा ४६ नम्बर थया छे, ते सम्बन्धे जणाक्वान ए छे के, पिस्तालीश आगमनी गणतरीमा पिंडनियुक्ति अथवा ओघनियुक्ति ए बेमाथी गमे ते एक लईने गणाय छे, पण अमे आ लिस्टमां ते बन्ने गणी छे, तेथी एक नम्बर वध्यो छे. परंतु आपणा पिस्तालीश आगमो माहेलू एक सूत्र नामे पंचकल्प आजकाल उपलब्ध थतुं न होवाथी ते एक सूत्र ऊणुं पडे छे, एटले तेनी ऊणाइना बदलामा अहीं एक नम्बर वधतो देखाय छे ते पूरो थइ रहेता आपणी पिस्तालीश आगम हाल विद्यमान होवानी मान्यता कायम राखी शकाय एम छे. माटे आ लिस्टमां आपेला ४६ नम्बरोने ४५ तरीकेज गणवा एवी अमारी नम्र सूचना छे. आ रीते अहीलगण आपणा पवित्र पिस्तालीश आगम तेमनी पंचांगी साथे हालमा जे प्रमाणे उपलब्ध थया छे, ते प्रमाणे नोंध्या छे. प्रसिद्धकतो.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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