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________________ २३२ जैन औपदेशिक. नंबर. नाम. श्लोक रच्यानोसं. क्या छ ? वसुदेवहिंड A ( प्र. खंड) १७००० , B (द्वि. खंड) | ११०. ७५ विक्रमचरित्र | ६.२० वृ. पा.१-४-६.१ वृ.पा. १-५-६ अ.१ १४९० पा.३ ख. संघदास धर्मसेन रामचंद्र देवमूर्ति वीरदेव आमसूरिक ७६ विजयचंद्रकेवलिचरित्र ___ , (बीजं) १०५० पत्र ६० ११८७ वृ. पा. ३-५ राधनपुर. ___A, B वसुदेवहिंडि माटे वृहटिप्पनिकामां वसुदेवहिंडि प्रथमखंड संघदासवाचककृत ११००० वसु. द्वितीयखंडं अपराचार्यकृतं ६६०० वसु. मध्यमखंडं संग्रहणीकं ९००० आ रीते नोध छे." आ नोधमां द्वितीयखंड पछी मध्यमखंड नोंधेल होवाथी आ नोधमा नोंच्या शिवायना बोजा खंडो होय तेम संभव थाय छे. पण ते वृहटिप्पनिकाकारने पण उपलब्ध यया नयी एम मालम पढे छे. वृहत्टिप्पनिकाकारे द्वितीयखंड पछी मध्यमखंड नोंध्यु छे, त्यारे पाटण, अमदावाद आदिनी टीपोमां प्रथमखंड, मध्यमखंड अने द्वितीयखंड आवी रीते मध्यमखंडने प्रथमखंड साथे नोध्यु छे. पिटसने वसुदेवाहिनी नोंध लेतां पोताना त्रीजा रिपोर्टना पेज १९६ मां तेना प्रथमखंड, द्वितीयखंड अने तृतीयखंड एम ऋण स्त्रंडो जणाव्या छे. द्वितीयखंडने शरुआतमा द्वितीयखंड तरीके नोंधीने प्रतिमां मध्यमखंडना नामे ओळ. खावी प्रथम तथा द्वितीयखंडनी श्लोकसंख्या १७८.. जणाधी छे. तेमज तृतीयखंडना प्रारंभमां तृतीयखंड तरीके नोधी प्रांतमा मध्यमखंडनुं नाम आप्युं छे. श्लोकसंख्या नापी नथी. आ रीते जुदा जुदा नोंघो उपरथी वसुदेवहिंडिना चोकस खंड तथा तेनी श्लोकसंख्या माटे जबर शक रहे छ. अमारा धारवा मुजब एना एकोत्तर लंभको छे. तेमाथी चुमालीस लभकोमा प्रथमखंड अने द्वितीयखंड (मध्यमखंड ) समाप्त थाय छे. आ बन्ने श्लोक १७... प्रमाणना छे. आ प्रथम अने मध्यमखंडने प्रथमखंड तरीकेज मानीए तो मानी शकाय तेम छे. पिटर्सने जेनी ततीयखंड तरीके मान्यता करी छे ते ततीयखंड नहि पण श्लोक ११००० बाळु धर्मसेनगणि महसरे रचेलं द्वितीयखंड होवु जोइये. अने जो तेमज होय तो अमदावादना डलाना भंडारमा बन्ने खंडो मोजुद छे तो त्यांनी प्रत नजरे तपासी जोयाथी चोकस खुलासो थह शके तेम छे. छतां आ बाबत सुज्ञ मुनिवर्ग महाशयोने विनंति करवामां आवे छे के जे महाशय पासे आ संपूर्ण ग्रंथ मोजुद होय अगर जेमने आ संबंधी नोकस माहिती जाणवामां आवी होय तेओभीए ते अमोने लखी जणाक्वा कृपा करवी एवी अमारी तेमने नम्र प्रार्थना छे. C आ नाम शक पडतुं लागे छ, कारण के आ नामना कोइ आचार्य यया जाणवामां आव्या नथी. वखते महापुरुषचरित्रना करनार आम्रसूरिए आ चरित्र रच्युं होय तो होय, छतां चोकस निर्णय राधनपुरना भंडारमांनी तेनी प्रत जोया वगर थई शके तेम नथी.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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