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________________ नंबर. नाम. शतक A (श्रीजुं) अवचूरी ११ धनदत्रिशती B ११२ ध्यानशतक. वृत्ति ११३ नागराज शतक १४ पद्मानंदशरक १५ पर्वविशतिशतक १६ भर्तृहरिशतकत्रय वृत्ति वृति (बीजी) C tel भावशतक जैन औपदेशिक. श्लोक, पत्र ३८ कर्ता. नरेंद्रसूरि धनदराज ( संघपति ) पद्मानंद ; भर्तृहरि २३०० धनसार ५०० | जिनसमुद्र १०१ समय सुंदर पत्र ८ हेमवियज D |रच्यानो सं. १६४१ क्यां छे १ रिपोर्ट ६ रिपोर्ट ६ पा. १-५. अ. १ अ. १ अ. १ पा. ५ भाव. २०९ अ. २. सुद्रित. A.S. जेसल - बे. खंबात. डेक्कन, पेज. १९१ जेसल. भावातक (बीजुं) भावशतक E (प्रा.)(त्रीजुं) A आ त्रिजा दृष्टांत शतकने छट्टा रिपोर्टमां अवचूरि साथे नोंच्युं छे, पण कर्त्ताना नाम परथी शक रहे छे के वखते आ शतककार नरेंद्रसूरि ते कोइ दिगम्बराचार्य तो होय नहीं माटे तेना प्रांतनो (प्रशस्ति लेख तपाशी जोवानी जरूर रहे छे. B एमां धनदराज कविए रचेलां शृंगार, वैराग्य अने नीतिपर ऋण शतको छे, अने ते भर्तृहरिना शतको जेवा बहु सरस छे. C आवृत्ति जेसलमेरनी बन्ने टीपोमां नोंधेली छे. पण अन्यस्थळे उपलब्ध थई नथी. D डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां आ हेमविजयसूरिने दिगम्बरकृत ग्रंथोनी नोंध लेतां तेमने दिगम्बर तरीके जणान्या छे, तो ते दिगम्बर हता के श्वेतांचरज छे ते बाबत निर्णय करवा डेक्कन कॉलेजमांनी प्रत नजरे तपासवी जोइये. E आ भावशतक जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले ते प्राकृतमां नाम अन्यदर्शनी जेवुं लागे छे. माटे तेनी प्रत फरांथी तपासवानी जरूर छे एम जणान्युं छे पण टीकाकारनु,
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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