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________________ १६४ जैन विज्ञान. नाम. नंबर, वर्ग ५ मो. कल्पना ग्रंथो. अकालदंतकल्प (प्रा.) आसुरीकल्प २ उलूककल्प गर्षिद A पत्र १ जेलल. उलूककल्प (सं.) कल्परत्नावली B वृत्ति काकरुततथाकाकनिलय घंटाकर्णकला - जेसल. रि.६ पा. ३ A.S - - - धातुकल्प -- नानाकल्प पत्र५८ नालघरावतविधि पद्मावतीकल्प ३२ जीतनशिष्य मलिषण A आ गोविंद कोण हता ते जाणवामां आव्यु नथी पण प्राये ते अन्यभति होवा जोइये. B आ ग्रंथ तेनी वृत्ति साथै जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोंधल होवाथी तेना माटे । खवो पडे छे. C आ नाम सामान्य छे. अने ते अमदावादना डेलानी टीपमां नौघेल होवायी इहां नोध्यु, एमां लगभग बैंतालीस कल्पो छ एम अमारा जाणवामां आव्युं छे, पण तेना शुं शं विशिष्टनामो छ। .तेनी प्रत नजरे जोया वगर जाणवू मुश्केल छे.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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