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________________ जैन फिलॉसोफि. नाम. श्लोक. कर्ता. नव्या क्या छ ? २९५८ मुनिशेखर A गुणरत्न कमलसंयम चंद्रषिमहत्तर अभयदेव पा. ५-६ १४५९ जेसलमेर. अवचूरि अपचूरि B कर्मस्तधविवरण | १५० (५) सत्तरि c गा. ९१ भाष्य D चर्णि पत्र९३२ वृत्ति (प्रा.)E | २३०० वृत्ति | ३७८० वृत्ति | ४१५० टिप्पनक गा.५४७ अषचूरि F वृ.पा.४ वृ.अ. २ जेसल.. धृ.पा. २.३.४.५. चंद्रर्षिमहतर मलयगिरि मुनिशेखर खरतर रामदेव भावनगर. वृ. जेसलमेर. गुणरत्न पा.५-६ A मुनिशेखरसूरिए पनप्रभसूरिकत पार्श्वस्तव उपर अवचरि रचेल छे. एटली हकीकत जाणवामां आवी छे. माटे तेमना संबंधे वधु इतिहास जाणवा माटे आ ग्रंथनो प्रशस्ति लेख जोवानी __B आ अवचरिनी श्लोकसंख्या पाच कर्मग्रंथ तथा छठी सत्तरिनी अवचूार मेळवीने नोंधी छे. Cसत्तरि ए प्राकृत नाम छे. संस्कृतमां सप्ततिका नाम छे, एने साये गणतीमा लईए तो छ जूना कर्मग्रंथ थाय छे, अने नवा साथे पण तेज चालु रोल होवाथी नवा कर्मग्रंय पण छ गणाई शके. तेथी सत्तरिने छछो कर्मग्रंथ गणे छे. D पाटणनी टीपमा आ माध्यमा कर्चा अमयदेव नोध्या छ तो ते कया अभयदेव छे ते जाणवी माटे तेनी प्रत जोवी जोईये. E आ वृत्ति टिप्पनिकाा नोंधी छे पण ते क्या पण उपलब्ध थती नथी, माटे भावा राचीन ग्रंथनो शोध करवा माटे देरेक जैने ध्यान आप घटे छे. ___F अवचूरिनी लोकसंख्या नवा कर्मग्रंथनी अवचूरिना साये गणाई छ.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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