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________________ १९६ जैन औपदेशिक नाम. नाम. श्लोक. कर्ता. ज्या क्या छ ? /१०/ पिटसन रि.५ | जेसलमेर. पीटर्सन रिपोर्ट ५ मा. आत्मबोधकुलक A आत्मशुद्धिकुलक मात्मसंबोधकुलक B मात्महितकुलक आत्मानुशासन (प्रा.)। आराधनाकुलक । E (बी ) १६ आराधनाविधिकुलक वृत्ति मालोचनाकुलक F मा. ८६ मभयदेव D नगीनदास. पा. ३ नगीनदास पिटर्सन रि.५ पा.२ पा. २ जेसलमेर १८ इरियावहीकुलक अ. १ A एना आद्यमां " संसारमि असारे नस्थिसुई, वाहिवेपणापउरे " आवी रीते पिटर्सन रिपोर्ट पांचमांना पेज १११ मां नोध करी छे. | Bएजें आदिपद " उवसग्गा कह हुता ॥ एवं छे. C आ आत्मानुशासन प्राकृतमा रचायलं खंबातना शेठ नगीनवासना भंडारमा छ, पण ते स्या अपूर्ण स्थितिमा छे. D आ अभयदेवसूरि ते जिनेश्वरसूरि शिष्य नांगी टीकाकार अभयदेवधरि छ, E एर्नु आदिपद " संघभंते । एवं छे. F मा कुलक जैसलमेरनी हंसविजयजी महाराजनी टीपमा नभ्यु के.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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