Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवंगसुत्ताणि [ खण्ड २] , चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, निस्यावलियाओ, कप्पवाडिसिया, पुप्फयाओं, पु FOREENEEEEE वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी वहिदाओ संपादक युवाचार्य महाप्रज्ञ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापर्व वर्ष के उपलक्ष्य में निग्गंथं पावयणं उवंगसुत्ताणि (खण्ड २) पण्णवण्णा • जंबुद्दीवपण्णत्ती • चंदपण्णत्ती. सूरपण्णत्ती • उवंगा निरयावलियाओ • कप्पडिसियाओ • पुफियाओ. पुफिचूलियाओ • वहिदसाओ वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी सम्पादक युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं [राजस्थान Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक : जैन विश्व भारती लाडनूं [ राजस्थान ] प्रबन्ध-सम्पादक : श्रीचंद रामपुरिया अर्थ सौजन्य : श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम सम्वत् २०४५ ( मर्यादा महोत्सव ) ईस्वी सन् १९८६ पृष्ठांक ११७० : जैन विश्व भारती मूल्य ६००/ मुद्रक : मित्र परिषद्, कलकत्ता के आर्थिक सौजन्य से स्थापित जैन विश्व भारती प्रेस, लाडनूं (राजस्थान) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ On the occasion of Pragyapray Year Niggantham Pāvayanam UVANGA SUTTĀNI IV (PART II) PAŅŅAVAŅĀ . JAMBUDDĪVAPAŅŅATTI. CANDAPANNATTT . SURAPAŅŅATTI. NIRAYĀVALIYO, KAPPAVADIMSIYÃO, PUPPHIYAO. PUPPHACŪLIYÃO. VANHIDASÃO (Original Text Critically Edited) Vâcana-pramukha : ĀCĀRYA TULSI Editor! YUVĀCĀRYA MAHĀPRAJNA Publisher : JAIN VISHVA BHARATI LADNUN (RAJASTHAN) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Publisher : JAIN VISHVA BHARATI. Ladnun-341 306 Managing Editor : Shrichand Rampuria, By Munificence : Shri Ramlal Hansraj Golchha Viratnagar (Nepal) Year of Publication : Vikram Samvat 2045 (Maryada Mahotsava) 1989 A.D. Pages : 1170 जैन विश्व भारती TĘOOM Printers : JAIN VISHVA BHARATI PRESS, [Established through the financial co-operation of Mitra Parishad, Calcutta) Ladnun (Rajasthan) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुमनिकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोधपूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अत: मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहें हैं ! संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार हैसंपादक : युवाचार्य महाप्रज्ञ पाठ-संशोधन सहयोगी : मुनि सुदर्शन ___ मुनि हीरालाल शब्दकोश ___ मुनि श्रीचन्द्र 'कमल' संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता है कि उनका भविष्य इस महान् कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणपुव्वं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु; होकर भी आगम-प्रधान था । सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से ।। विलोडियं आगमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय-सज्झाण-रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स पणिहाणपुव्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत-सद्ध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समत्थे मम माणसे वि। जो हेउभूओ स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुव्वं । जिसने श्रुत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में। हेतुभूत श्रुत-सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तुत ग्रन्थ उवांगसुत्ताणि ४ का द्वितीय खण्ड है । इस में नौ आगम समाहित हैं- १. पण्णवणा २. जंबुद्दीवपण्णत्ती ३. चंदपण्णत्ती ४. सूरपण्णत्ती ५. निरयावलियाओ ६. कप्पवाडसियाओ ७ पुष्फियाओ ८ पुष्कचूलियाओ है वहिदसाओ । आगम संपादन एवं प्रकाशन की योजना इस प्रकार है १. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला - मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुती करण । २. आगम - अनुसंधान ग्रन्थमाला -- मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण ! ३. आगम-अनुशीलन ग्रंथमाला --- आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला --- आगमों से संबंधित कथाओं का संकलन और अनुवाद | ५. वर्गीकृत आगम ग्रन्थमाला - आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । ६. आगमों के केवल हिंदी अनुवाद के संस्करण । प्रकाशकीय प्रथम आगम-सुत्त ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं' ( १ ) अंगसुत्ताणि ( १ ) - इसमें आयारो, सुयगडो, ठाणं, समवाओ ये चार अंग समाहित हैं । ( २ ) अंगसुताणि ( २ ) - इसमें पंचम अंग भगवई प्रकाशित है । (३) अंगसुत्ताणि ( ३ ) - इसमें नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुथं-ये ६ अंग हैं । (४) उवंगसुत्ताणि ( ४ ) ( खं० १ ) ) – इसमें (१) ओवाइयं ( २ ) रायपसेणियं और ( ३ ) जीवाजीवाभिगमे ये तीन आगम ग्रन्थ हैं । (५) उवंगसुत्ताणि ( ४ ) ( खण्ड २ ) - प्रस्तुत ग्रन्थ । इसमें पण्णवणा, जंबुद्दीवपण्णत्ती, चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, निरयावलियाओ, कप्पवडिसियाओ तुफियाओ, पुप्फचूलियाओ, साओ प्रकाशित हो रहे हैं । (६) नवसुत्ताणि ( ५ ) - इसमें आवस्सयं, दसवेआलियं, उत्तरज्भयपाणि, नंदी, अणुओगदाराई, दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहज्भयणं-ये नौ आगम ग्रन्थ हैं। द्वितीय आगम अनुसंधान ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं— (१) दसवेलियं - १. इस ग्रंथमाला के अर्न्तगत ( १ ) दसवेआलियं सह उत्तरज्भयणाणि, (२) आयरो तह आयारचूला, (३) निसीहज्झणं, (४) ओवाइयं, (५) समवाओ ये ग्रंथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा भी प्रकाशित हुए थे । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और २) (३) ठाणं (४) समवाओ (५) सुयगडो (भाग १ और भाग २) उक्त में से द्वितीय ग्रंथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुआ है। तीसरी आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला में निम्न दो ग्रन्थ निकल चुके हैं..... (१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन । (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । चौथी आगम-कथा ग्रन्थमाला में अभी तक कोई ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हो पाया है। पांचवीं वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला में दो ग्रन्थ निकल चुके हैं। (१) दसवैकालिक वर्गीकृत (धर्म प्रज्ञत्ति खं०१) (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० २) छठी केवल आगम हिंदी अनुवाद ग्रन्थमाला में एक 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ है। उक्त प्रकाशनों के अतिरिक्त दसर्वकालिक एवं उत्तराध्ययन (मूल पाठ मात्र) गुटकों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं। उक्त विवरण से पाठकों को विदित होगा कि भूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित ३२ आगम ग्रंथ आगमसुत्त ग्रंथमाला के अर्न्तगत प्रकाशित हो चुके हैं। ३२ आगमों का इस प्रकार का आलोचनात्मक प्रकाशन आगम प्रकाशन के इतिहास में प्रथम बार ही सम्मुख आया है। आगम प्रकाशन कार्य की योजना में निम्न महानुभावों का सहयोग रहा --- (१) सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविदालालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी)। (२) रामलालजी हंसराजजी गोलछा, विराटनगर । (३) स्व० जयचंदलालजी गोठी, सरदारशहर। (४) रामपुरिया चेरिटेबल ट्रस्ट, कलकत्ता। (५) बेगराज भंवरलाल चोरडिया चेरिटेबल ट्रस्ट । यह ग्रन्थ जैन विश्व भारती के निजी मुद्रणालय में मुद्रित होकर प्रकाशित हो रहा है । मुद्रणालय के स्थापना में मित्र-परिषद्, कलकत्ता के आर्थिक सहयोग का सौजन्य रहा, जिसके लिए उक्त संस्था को अनेक धन्यवाद । आगम-संपादन के विविध आयामों के वाचना-प्रमुख हैं आचार्य श्री तुलसी और प्रधान संपादक तथा विवेचक हैं यूवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी। इस कार्य में अनेक साधु-साध्वी सहयोगी रहे हैं। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ इस तरह अथक परिश्रम के द्वारा प्रस्तुत इस ग्रन्थ के प्रकाशन का सुयोग पाकर जैन विश्व भारती अत्यंत कृतज्ञ है। जैन विश्व भारती २६-६-८७ लाडनूं (राज.) श्रीचंद रामपुरिया कुलपति Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रस्तुत ग्रन्थ में नौ उपांग हैं-- १. पण्णवणा २. जंबुद्दीवपण्णत्ती ३. चंदपण्णत्ती ४. सूरपण्णत्ती ५. निरयावलियाओ ६. कप्पडिसियाओ ७. पुफियाओ ८. पुष्फचलियाओ ६. वण्हिदसाओ। उपांग बारह हैं । उवंगसुत्ताणि भाग ४ खण्ड १ में तीन उपांग प्रकाशित हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में शेष नौ उपांगों का मूल-पाठ पाठान्तरसहित सम्मिलित है। अंगसुत्ताणि की शब्दसूची एक स्वतन्त्र पुस्तक (आगम शब्दकोश) में मुद्रित है। पाठक और शोधकर्ताओं की सुविधा की दृष्टि से इस खण्ड में उपर्युक्त नौ आगमों की संयुक्त शब्दसूची संलग्न है। प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन के साथ बत्तीस आगमों के प्रकाशन का कार्य सम्पन्न हो जाता है। इस आगम सुत्त ग्रन्थमाला के सात ग्रन्थ सम्पन्न हो रहे हैं:१. अंगसुत्ताणि भाग-१ आयारो, सूयगडो, ठाणं, समवाओ। २. अंगसुत्ताणि भाग-२ भगवई। ३. अंगसुत्ताणि भाग-३ नायाधम्मकहाओ, उवासमदसाओ, अंतगडदसाओ, अणत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुयं । ४. उवंगसुत्ताणि भाग-४, खण्ड १ ओदाइयं, रायपसेणियं, जीवाजीवाभिगमे । ५. उवंगसुत्ताणि भाग-४, खण्ड २ पण्णवणा, जंबुद्दीवपण्णत्ती, चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, निरियावलियाओ, कप्पवडिसियाओ, पुफियाओ, पुप्फचूलियाओ, वहिदसाओ । ६. नवसुत्ताणि भाग-५ आवस्सयं, दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, नंदी, अणुओगदाराइं, दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहझयणं । ७. आगम शब्दकोश (अंगसुत्ताणि शब्दसूची) इस मूलपाठ की ग्रन्थमाला के अन्तर्गत अन्य ग्रन्धों के सम्पादन का कार्य अभी चल रहा है। उनमें प्रकीर्णक, नियुक्ति और भाष्य सम्भावित हैं। विक्रम संवत् २०१२ (सन् १९५५) महावीर जयन्ती के दिन आचार्य श्री ने आगम-सम्पादन की घोषणा की। सम्पादन का कार्य उसी वर्ष चतुर्मास में प्रारम्भ हुआ । शुद्ध पाठ के बिना सम्पादनकार्य में अवरोध आए । तब पाठ-शोधन की ओर ध्यान गया। पाठ-शोधन का कार्य वि० सं० Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१४ (सन् १९५७) में प्रारम्भ हुआ। यह कार्य वि० सं० २०३७ (सन् १९८०) में सम्पन्न हुआ। इसका विवरण इस प्रकार है: .... दसवेआलियं उत्तरज्झयणाणि नंदी, अनुओगदाराई ओवाइय, रायपसेणियं ठाणं समवाओ सूयगडो नायाधम्मकहाओ आयारो, आयारचूला उवासगदसाओ, अंतगडदसामो अनुत्तरोववाइयदसाओ विपाक पण्हावागरणाई निरयावलियाओ भगवई पपणवणा दसाओ, पज्जोसवणाकप्पो कप्पो ववहारो जीवाजीवाभिगमे जंबूद्दीवपण्णत्ती निसीहज्झयणं चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती वि० सं० २०१४ वि० सं० २०१६ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१६ वि० सं० २०२० वि० सं० २०२२ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०२८ वि० सं० २०२८ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०३० वि० सं० २०३१ वि० सं० २०३२ वि० सं० २०३३ वि० सं० २०३३ वि० सं० २०३४ वि० सं० २०३५ वि० सं० २०३५ वि० सं० २०३७ सम्पादन का कार्य सरल नहीं है-यह उन्हें सुविदित है, जिन्होंने इस दिशा में कोई प्रयत्न किया है । दो-ढाई हजार वर्ष पुराने ग्रन्थों के सम्पादन का कार्य और भी जटिल है, जिनकी भाषा और भाव-धारा आज की भाषा और भाव-धारा से बहुत व्यवधान पा चुकी है। इतिहास की यह अपवाद-शून्य गति है कि जो विचार या आचार जिस आकार में आरब्ध होता है, वह उसी आकार में स्थिर नहीं रहता। या तो वह बड़ा हो जाता है या छोटा । यह ह्रास और विकास की कहानी ही परिवर्तन की कहानी है। और कोई भी आकार ऐसा नहीं है, जो कृत है और परिवर्तनशील नहीं है । परिवर्तनशील घटनाओं, तथ्यों, विचारों और आचारों के प्रति अपरिवर्तनशीलता का आग्रह मनुष्य को असत्य की ओर ले जाता है। सत्य का केन्द्र-बिन्दु यह है कि जो कृत है, वह सब परिवर्तनशील है । कृत या शाश्वत भी ऐसा क्या है जहां परिवर्तन का स्पर्श न हो। इस विश्व में जो है, वह वही है जिसकी सत्ता शाश्वत और परिवर्तन की धारा से सर्वथा विभक्त नहीं है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ शब्द की परिधि में बंधने वाला कोई भी सत्य क्या ऐसा हो सकता है जो तीनों कालों में समान रूप से प्रकाशित रह सके ? शब्द के अर्थ का उत्कर्ष या अपकर्ष होता है भाषा-शास्त्र के इस नियम को जानने वाला यह आग्रह नहीं रख सकता कि दो हजार वर्ष पुराने शब्द का आज वही अर्थ सही है, जो आज प्रचलित है । 'पाषण्ड' शब्द का जो अर्थ आगम-ग्रंथों और अशोक के शिलालेखों में है, वह आज के श्रमण-साहित्य में नहीं है । आज उसका अपकर्ष हो चुका है । आगम साहित्य के सैकड़ों शब्दों की यही कहानी है कि वे आज अपने मौलिक अर्थ का प्रकाश नहीं दे रहे हैं। इस स्थिति में हर चिन्तनशील व्यक्ति अनुभव कर सकता है कि प्राचीन साहित्य के सम्पादन का काम कितना दुरूह है। मनुष्य अपनी शक्ति में विश्वास करता है और अपने पौरुष से खेलता है, अत: वह किसी भी कार्य को इसलिए नहीं छोड़ देता कि वह दुरूह है। यदि यह पलायन की प्रवृत्ति होती तो प्राप्य की सम्भावना नष्ट ही नहीं हो जाती किन्तु आज जो प्राप्त है, वह अतीत के किसी भी क्षण में विलुप्त हो जाता। आज से हजार वर्ष पहले नवांगी टीकाकार (अभयदेव सूरि) के सामने अनेक कठिनाइयां थीं। उन्होंने उनकी चर्चा करते हुए लिखा है : ---- १. सत् सम्प्रदाय (अर्थ बोध की सम्यक् गुरु-परम्परा) प्राप्त नहीं है। २. सत् ऊह (अर्थ की आलोचनात्मक कृति या स्थिति) प्राप्त नहीं है। ३. अनेक वाचनाएं (आगमिक अध्यापन की पद्धतियां) हैं। ४. पुस्तकें अशुद्ध हैं। ५. कृतियां सूत्रात्मक होने के कारण बहुत गंभीर है। ६. अर्थ विषयक मतभेद भी हैं । इन सारी कठिनाइयों के उपरान्त भी उन्होंने अपना प्रयत्न नहीं छोडा और वे कुछ कर गए। कठिनाइयां आज भी कम नहीं हैं । किन्तु उनके होते हुए भी आचार्यश्री तुलसी ने आगम-सम्पादन के कार्य को अपने हाथों में ले लिया। उनके शक्तिशाली हाथों का स्पर्श पाकर निष्प्राण भी प्राणवान बन जाता है तो भला आगम-साहित्य जो स्वयं प्राणवान् है, उसमें प्राण-संचार करना क्या बड़ी बात है ? बड़ी बात यह है कि आचार्य श्री ने उसमें प्राण-संचार मेरी और मेरे सहयोगी साधु-साध्वियों की असमर्थ अंगुलियों द्वारा कराने का प्रयत्न किया है। संपादन कार्य में हमें आचार्यश्री का आशीर्वाद ही प्राप्त नहीं है किन्तु मार्ग-दर्शन और सक्रिय योग भी प्राप्त है। आचार्यवर ने इस कार्य को प्राथमिकता दी है और इसकी परिपूर्णता के लिए अपना पर्याप्त समय दिया है। उनके मार्ग-दर्शन, चिन्तन और प्रोत्साहन का संबल पा हम अनेक दुस्तर धाराओं का पार पाने में समर्थ हुए हैं। पाठ सम्पादन-पद्धति पण्णवणा प्रज्ञापना के पाठ-शोधन में चार हस्त-लिखित आदर्श काम में लिए गए । आचार्य मलयगिरि की वत्ति का भी उसमें उपयोग किया गया। मुनि पूण्यविजयजी द्वारा सम्पादित प्रज्ञापना भी हमारे सामने रही। किन्तु हम किसी एक प्रति को आधार मानकर नहीं चलते। टीका की व्याख्या, अन्य आगम तथा शब्दों का अर्थ-ये सब पाठ-शोधन के महत्त्वपूर्ण आधार-बिन्दु रहे हैं। इसलिए हमारे सम्पादन में पाठ-शुद्धि के अनेक विशेष विमर्श उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए गण्ठी शब्द प्रस्तुत है : ."वत्थुल कच्छुल सेवाल गण्ठी"। यहां 'गण्ठी' पद अशुद्ध है । शुद्ध पाठ है 'गत्यी । पाठ-शोधन Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ में प्रयुक्त हस्तलिखित आदर्शों तथा मुनिश्री पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित आगमों में 'गण्ठी' पाठ ही उपलब्ध है। इस पाठ का शोधन जीवीजीवाभिगम और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के आधार पर किया गया है। इसके लिए प्रस्तुत आगम का ११३८ का पाद-टिप्पण द्रष्टव्य है। दुसरा उदाहरण है-.-'तिट्टाणवडिते' । इसके स्थान पर कुछ आदशों में 'चउट्ठाणवडिते' पाठ मिलता है। मुनिश्री पुण्यविजयजी ने भी 'चउट्ठाणवडिते' पाठ स्वीकार किया है। किन्तु हमने 'तिट्ठाणवडिते' पाठ वृत्ति के आधार पर मान्य किया है। इसका समर्थन पण्णवणा ५११५, ११६, की वृत्ति से होता है। प्रज्ञापनावृत्ति पत्र १९५-१९६ तथा पण्णवणा ५॥११५ का पाद-टिप्पण द्रष्टव्य है। जम्बद्वीपप्रज्ञप्ति इसके पाठ-शोधन में सात प्रतियों और तीन टीकाओं का उपयोग किया गया है। उपाध्याय शान्तिचन्द्र की वृत्ति तथा हीरविजय वृत्ति में अनेक पाठान्तर और उनकी टिषणियां मिलती हैं । देखें ---४११५६ का पाद-टिप्पण। यह पाठान्तर-बहुल आगम है। उपाध्याय शान्तिचन्द्र ने वाचना-भेद की विस्तृत चर्चा की है। उदाहरण के लिए ११२ का पाद-टिप्पण द्रष्टव्य हैं। कहीं-कहीं अशुद्ध पाठ के कारण व्याख्या भी अशुद्ध हुई है। देखें---४।४६ का पाद-टिप्पण । चन्द्रप्राप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति इनके पाठ-शोधन में पांच हस्तलिखित आदशों तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति की वृत्तियों का उपयोग किया गया है। एक आदर्श का क्वचित् प्रयोग किया गया है। चन्द्रप्रज्ञप्ति का पूर्ण रूप उपलब्ध नहीं है। उसका सूर्यप्रज्ञप्ति से जो भेद है वह एक परिशिष्ट में दिया गया है। कुछ हस्तलिखित आदर्श चन्द्रप्रज्ञप्ति के नाम से उपलब्ध हैं। उनके पाठ-भेद सूर्यप्रज्ञप्ति के पाद-टिप्पण में दिए हुए हैं। निरयावलिका निरयावलिका आदि पांच वर्गों के पाठ-शोधन में तीन हस्तलिखित आदशों तथा श्रीचन्द्रसूरिकृत वृत्ति का प्रयोग किया गया है। १. शान्तिचन्द्रीयवृत्ति पत्र ६७ : पाठान्तरं-वाचनाभेदस्तगतपरिमाणान्तरमाह-मूले द्वादश योजनानि विष्कम्भेन मध्येऽष्ट योजनानि विष्कम्भेन उपरि चत्वारि योजनानि विष्कम्भेन, अत्रापि विष्कम्भायामतः साधिकत्रिगुणं मूलमध्यान्तपरिधिमानं सूत्रोक्तं सुबोधं । अत्राह परः- एकस्य वस्तुनो विष्कम्भाविपरिमाणे द्वैरुप्यासम्भवेन प्रस्तुतग्रन्थस्य च सातिशयस्थविरप्रणीतत्वेन कथं नान्यतरनिर्णयः ? यदेव स्यापि ऋषभकटपर्वतस्य मूलादावष्टादियोजनविस्तृतत्वादि पुनस्तत्रैवास्य द्वादशादियोजनविस्तृतत्वादीति, सत्यं, जिनभट्टारकरणां सर्वेषां क्षायिकज्ञानवतामेकमेव मतं मूलतः पश्चात्तु कालान्तरेण विस्मृत्यादिनाऽयं वाचनाभेदः, यदुक्तं श्रीमलयगिरिसूरिभिज्योतिष्करण्डकवृत्तौ - "इह स्कन्दिलाचार्य प्रवृ (तिप) तौ दुषमानुभावतो दुभिक्षप्रवृत्त्या साधूनां पठनगुणनादिकं सर्वमप्यनेशत्, ततो दुभिक्षातिकमे सुभिक्षप्रवृत्तौ द्वयोः संघमेलापकोऽभवत्, तद्यथा---एको वलभ्यामेको मथुरायां, तत्र च सूत्रार्थसंघटने परस्परं वाचनाभेदो जातः, विस्मृतयोहि सूत्रार्थयोः स्मृत्वा संघटने भवत्यवश्यं वाचनाभेद" इत्यादि, ततोऽत्रापि दुष्करोऽन्यतरनिर्णयः द्वयोः पक्षयोरुपस्थितयोरनतिशायिज्ञानिभिरनभिनिविष्ट मतिभिः प्रवचनाशातनाभीरुभिः पुण्यपुरुरिति न काचिदनुपपत्तिः । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ । १४ १११४ ११२३ ११२६ ११३५ ११३८ ११४८१४७ १६३१४ २१० २११३ २४० ३।१ ३/७ ३।१०२ ३।१२७ ३।१७४ ३।१८२ ३।१८३ ४। २५५ ४/२७५ ५।५ ५।५ ५५ _५:७ ५१०१ ५१७६ ५।२४२ ६।४६ दाद १११६ ११।२१ ११।२५ ११।३० ११/३७ बेंद्रिय तेंदिय ओसा वायमंडलिया अंकोल्ल कोरंटय बलिमोडओ वीइभयं पडीण तडागेसु चो विसेसाहिया दाहिणे विभंगणाणीण अहेलोए अस्साता जहा सकसाई एगुणवीसं पणुवीसं जदि महुर अम्भहिए 'afडिए मणुस्से वढिज्जति एएणेणं अभिलावो ओसण्ण 'अणमणी १७ शब्दान्तर और रूपान्तर वगे सयण सरीरपवा वोयड अश्वोयडा पण्णवणा बेइन्दिय तेइन्दिय उस्सा वाउ मंडलिया अंकुल्ल कोरिय ( क ); कोरेंट पलिमोडओ वीयभयं पयोण ( क ) ; पण तलागेसु चो विसेसाधिया दक्खिणं विहंगणाणीण अहोलोए ( ग ) ; अधेलोए असाता जधा सकसादी एकूणवीसं (क, घ); एक्कूणवीस पंचवीस ( खघ); पणवीसं जइ ( ख, ग, घ ) ; जति मधुर अभइए ( क ) ; अब्भतिए "पडिए मणूसे वुड्ढज्जति एट्ठेणं अहिलावो उस्सण्ण 'आणवणी बिगे सतणं सरीरप्पभवा बोगड अव्बोगडा (क,स्व) (ख) (क,ग) (क) (क, घ) (क, घ) ( ख, ग, घ ) (क) (क) (घ, पु) (क, ख, घ) (क,ग,ध) (घ) ( ख, ग ) (ख, घ) (क) (ख) (14) ( क, ख ) (पु) (क) (क, ख, घ) (क,ग,घ) ( क, ख ) (ख, घ) (क) ( ख, ग, घ ) (क, ख, ग, घ ) (क) (क, ख, ग, घ ) (55) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ११३७ ११२७२ ११७५ १८४ ११५८८ ११३८८ १२२७ १२१७ १५१३५ आणमणी परिवड्ढमाणाई कदलीथं भाण णिसरति बिति भासज्जायं बद्धेल्लया मुक्केल्लया ओसप्पिणीहि अणागारो णग्गोह सादी पेहमाणे पेहति 'थिम्गले °ओवचए अहवेगे पच्चथिमिल्लं आयरियं सेयंसि माउलंगाण तिदुयाण इणछे समभिलोएमाणे PEO. १५१५० १५।५३ १५१५८ १६३१५ १६३३४ याणमणी परिवड्ढे माणाई (ख,घ) कदलीखंभाण णिस्सरति (ख); णिस्सिरति (ग); निसरति (घ) बीयं भासजाय बद्धिल्लया मुक्किल्लया (क,ख,ग,घ) अवसप्पिणीहि (म) अणायारो णिग्गोह साती पेहेमाणे पेहेति "थिग्गिले ओवचते (ख,ष) अहवेते पच्छिमिल्लं आयरितं से इंसि (क,ग) मातुलिंगाण तिडुयाण इणमढे (क); तिणठे (ख,घ) समभिलोतेमाणे (क,ध) हलहर (क,ग,घ) कयरसारए (ख,ग); कतरसारए बालेंदगोये बलाहते अपक्काणं (क,ख,घ) आगारभावमायाए (क,ग) वेए (क,ग); देते वयजोगी (ख,घ,पु) सकसादी (क); सकसाती सवणयाते (क,घ) धणुहपुहत्तं समाति (क,घ); सयाई (ग) (ग) कण्ह १६१५१ १६३५४ १६१५५ १६.५५ १७।२४ १७।१०६ १७१११६ १७।१२४ १७११२५ १७११२६ १७१२८ १७११३२ १७११५० १८१ १८.५६ १८१६४ २०१२८ २१२५ २११४७ २११६२ हलधर काइरसारे बालिदगोवे 'बलाहए अपिक्काणं आगारभावमाताए वेदे वइजोगी सकसाई सवणताए धणुपुहत्तं सगाई Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३/३ २३|१३ २३२२ २३।१६१ २८ ।४४ ३३।१ ३३।१७ ३४।१ ३४६ ३४।१५ ११८ १1१८ ११२३ ११२६ ११२८ ११४८ २४ २४ २१४ २।१५ २१२० २२० २/३२ २१७० २२७८ २।१३१ २।१३३ २१३३ २/१३३ ३१३ ३।११ ३।११ ३।११ णियच्छति कडस्स णीयागोयस खचए अफासा इज्ज अपडिवाई सगाई परियाइयण्या जागति सपरियारा विच्छिण्णा 'णउय घणुपट्ठ 'पडोयारे पासि दुहा हट्ठस्स उन पडोयारे मेइणि वेइया इत्थ कहग हास वाकरेमाणा हाहाभूए वली विगय टोलाकिति सीह जूव पउसियाओ बब्बरी बहलि १६ निगच्छति ( कध) निग्गच्छति कतस्स (क,घ ) ; कयस्स गीता गोतस खमए अप्फासा इज्ज अपfsवादी सताई (क, घ) साति परियादिणया ( ख ) ; परियायणया या ंति सपरिचारा जंबुद्दीवपण्णत्ती विस्थिण्णा ओत धणुवट्ठे ( अ ); धणुपुट्ठ पडोगरे परिसं दुधा हिस्स उडू (त्रि); उऊ 'पडोकारे मेतिणि वेइगा यस्थ ( अ, ब ) ; एस्थ कधक हस्स वागरमाणाणं हाहाभूते पलीविगय डोला कति ( अ ) ; डोलागिति टोलागित्ति (त्रि, स ) ; टोला गति सीय उन्ह जूय वउसीयाओ पप्पी पहलि (क) ( ख, ग ) (क,घ) (ख) (क,घ) (क, घ) (ख) (क,ग) ( क,ख,ग,घ) ( ख, ग ) ( अ, ख) ( अ, क, ब) (ख) (त्रि,ब) ( अ, त्रि, ब) (ख,स) ( क, ख ) (प) (ब) (त्रि,ब) ( अ, ब ) (क, ख,स) ( अ, ख, ब ) ( अ, ख, ब) ( प ) ( अ, क, ख, ब, स ) (अ) (क, ख ) (प) ( क,ख, त्रि,ब,स) ( क, ख, प, स ) (क, ख, प, स ) ( अ, ब ) ( अ, ब ) Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३।११ ३१२० ३२० ३१२१ ३२२ ३।२३ ३२४ ३।२६ ३/३५ ३।३५ ३।३५ ३१३५ ३।३५ ३/३५ ३१७७ ३११७ ३।११७ ३।१३८ ३११७८ ३।१९४ ३।२११ ३।२१४ ३२२० ३।२२१ ३।२२३ ४१३६ ૪૫૪ ४१५५ ४।७७ ४१८५ ४१८६ ४1८७ ४१६१ ४/६३ 'कडच्छु य० दुरुहइ बंभयारी दुरूटे बोल 'बालचंद 'तुंडं अंतवाले संगहिय खिखिणी अयोजकं सोयामणि गा वीसुतं 'चिघपट्टे 'मिरोई° उऊण ह्रिदय "निहिओ अभिसेयपीढ गंथिम तिसोवाण कागणि पुण्वक हापोह बावट्ठ ह्रस्सतराए दक्खिणं हरिवास संखतल बायाले णिसहस्स सोतोदा विउत्तरे २० 'कडच्छ्य' (ख); 'कडेच्छु द्रुहइ पम्हचारी रूढे (अ); द्रुढे पोल 'बालयंद 'तोंड अंतपाले ( अ, त्रि, ब ) ; अंतेवाले संगहिय किणी अजो ( अ, ब ) ; अओभ aratri सोतामणि ( क ) ; सोदामणि ●पकासं विस्सुतं विट्टे 'मरीई उण ( अ, ख, ब); रिण हिय ( अ, त्रि, पब ); 'हितय' "हृदय" पुण्वकड ईहापूह ( अ, क, ख, स); ईहावूह बासट्ठि हस्सतराए दाहिणं हरिवस्सं संखदल पायाले ( अ, ब ) बायालीसे freअस्स ( अ, ब, स ) ( अ,ब ) ( अ, त्रि, ब ) (a) ( अ, ब ) (स) निहितो ( अ, त्रिब); 'निहओ अभिसेयपेढं गंठिम तिसोमाण ( अ, ब ) काकिणि ( अ ); कागिणि' (व) ; काकणि° ( स ) (क,प,स) (क, ख ) ( अ, ब ) (क, ख, स) (क, ख,प,स); (त्रि) (खस) ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) (क, स ) (ब) (त्रि) (क,स) (क, स ) ; (ख) (खस) ( अ, ब ) (त्रिप) सीओता ( अ, ब ) ; सीओदा (त्रि); सीओओ पिउत्तरे (क,स) (पुवृ) (4) (प) (त्रि) ( अ, प, ब ) ( प, शाद, पुवृपा ) (त्रि) ( अ, ब ) ( प ) (ब) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ ४।१०२ णिसढ हेमवय-हेरण्णवय दह ४११०३ ४।१०६ ४।१४० ४११४० ४११४२ ४११५७ ४।१८० ४२१० ४॥२३१ श२५ णीलवंतस्स सणिच्चारी उववायसभाए जमगाओ दस णियया परुप्परति सयज्जल पलासो घंटापडेसुया णिसभ° (अ,ब); णिसह (क,ख,स) हेमवएरण्णवय (क,ख,ब,स); हेमवय एरण्णवय (त्रि) णेलवंतस्स (अ,क,ख,ब,स) सणिच्चारी ओतावसभाए (क) जवगाओ (अ,ब); जमिगाओ (अ,क,ख,ब,स) णितिया (अ,क,ख,त्रि,ब,स) परोप्परति (अ,त्रि,ब) सयंजल (त्रि) वलास घंटापर्डेसुका (अ,ब); घंटापडिसुका (क,ख); घंटापडिस्सुया (त्रि); घंटापडंसुया गत्ताई (क,ख); गताई (ब) जाणु उड्ढंमुह (अ,ब); उद्धीमुह (क,ख,प) भावियाया अभिजिदाइया (अ,ब); अभिजादिया (क,स); अभिजादीया समणे (अ,ब) मगसिर अभिती (अ,ब,स); अभिवी (क,ख) पहस्सती (अ,ब); वहप्फई कत्तिकी (अ); कित्तिकी (ख,ब); कित्तिगी (स) आसिणी लांगूलाणं १५८ १५८ ७.३१ ७.१२२ ७:१२६ गायाई जण्णु उड्ढीमुह भावियप्पा अभिजियाइया ७।१२८ ७.१२८ ७।१२६ ७/१३० ७:१५५ ७।१५६ ७.१७८ सवणो मियसर अभिई वहस्सई कत्तिगी अस्सिणी गंगूला सूरपण्णतो (ग,घ) (ट) इहगतस्स चउरुत्तरे पिहला पोग्गला ओयसंठिती ओयाए रयणिखेत्तस्स इदगतस्स चउत्तरे पिधुला (क); पुहुलो पुग्गला तोतसंठिती ओताए रतणिखेत्तस्स (क,ग,प); रातिखेत्तस्स (ट,व) (ट) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१ १३ १०२ १०१५ १०१७ १०/१० १०१७७ १०७८ १०१७६ १०/८७ १०८६ १०।१३६ १०११४७ १०/१७३ १४:२ १५।३१ १८३४ २०११ २०/२ ११४२ १।६६ ११७२ ११६१ १६७ ११६७ १।११७ १।१२७ ३।११५ ३११३४ ४१६ ४२१ ५।६ ५।१० सदा वयं.... वदामो सवणे सायं आसोई असोइण्णं आदिच्चेहि बम्ह सवणे बितिया " दुविहा तिही पातो उवाइणावेत्ता सयावि कहं अहिय मेहुणवत्त अहे वइयरिए अण्णया जणवदं ऊसए पिइसोएर्ण पट्टे अंदोलावेइ निच्छुहावेद लेच्छइ सुन्याओ जुयलं इट्ठा "बाओसिया सव्वोउय आहेवच्च २२ सता वतं....वतामो समणो सागं अस्सोती अस्सोदिण्णं आतिच्चेहि बंभ समणे बिदिया" दुविधा तिधी पादो अण्णा (क); अण्णता जणवयं ऊसवे पितसोएण प्पिट्ठे (क); पुट्ठे अंदोडावेइ निच्छुभावेइ लेच्छती सुब्वदाओ जुवलं (ख); जुगलं तिट्ठा उदिता (क, ग, घ ) ; उदातिणावेत्ता सतावि (क, ग, घ, व ) ; सदावि कथं अधियं (क,ग,घ); अहितं मेधुणवत्तियं अधो वतिचरिए निरयावलियाओ पाओसिया सव्वोय आधेवच्चं ( ग, घ, ट, ब ) (व) (ग,घ) (व) (ब) (ग,घ) (व) (क, ग, घ ) (ट,व) ( क, घ) (क) (क, घ, व ) (ट,व) (ग) (क, ग, घ ) (ट) (क,ग,घ) (क) (ट) (ख) (ख) (ख) (ग) (क) (क) (क) (क) (ग) (क) (क.ग ) (क,ग) (ख) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ पण्णवणा प्रति- परिचय क) पण्णवणा मूलपाठ (हस्तलिखित ) यह प्रति पूनमचन्दजी बुधमलजी दूघोड़िया 'छापर' के संग्रहालय की है। इसकी पत्र संख्या ३०२ है | इसकी लम्बाई १०१ इन्च व चौड़ाई ४ || इन्च है । लगभग प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३३ से ४१ अक्षर हैं। प्रति सुन्दरतम व शुद्ध है । यह प्रति लगभग १५ वीं शताब्दी की लिखी हुई है। प्रति के अन्त में केवल प्रस्थान ७७८७ लिखा हुआ है। (ख) पण्णवणा टम्बा (हस्तलिखित) यह प्रति जैन विश्वभारती हस्तलिखित ग्रंथालय, लाडनूं की है । इसमें मूल पाठ तथा स्तबक लिखा हुआ है । इसकी पत्र संख्या ४६५ है । इसकी लम्बाई 8 || इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है । प्रत्येक पत्र में भूल पाठ की पंक्तियां ७ व प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ३९ अक्षर हैं। प्रति अति सुन्दर लिखी हुई है। प्रति के अन्त में 'प्रत्यक्षरगणनया अनुष्ठपच्छंदः समानमिदं ग्रन्थाग्रं ७७८७ प्रमाणं' लिखा हुआ है। आगे स्तबककर के ६ श्लोक हैं संवत् १७७८ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिचौ रविवारे पंडित ईश्वरेण लिपी चक्रे श्री वेन्नातट नगर मध्ये..... श्री रस्तु कल्याणमस्तुः शुभं भूयास्लेषक पाठकयो: । । (ग) पण्णवणा त्रिपाठी (हस्तलिखित) मूलपाठ सहित वृत्ति यह प्रति हमारे संघीय हस्तलिखित ग्रंथ भंडार लाडनूं' की है। इसमें मध्य में नूल पाठ व ऊपर नीचे वृत्ति लिखी हुई है। इसकी पत्र संख्या ४४८ है इसकी लम्बाई ६ ||| इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है । प्रत्येक पत्र में मूल पाठ की पंक्तियां १ से १६ तक है । कुछ पत्रों में केवल वृत्ति ही है । प्रत्येक पंक्ति में ३७ से ४५ तक अक्षर हैं । ग्रंथाग्र मूल पाठ ७७८७ तथा वृत्ति का ग्रन्थाय १६००० । प्रति सुन्दर व शुद्ध है । लगभग १७ वीं शताब्दी की प्रति होनी चाहिए । (घ) पण्णवणा मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्दजी गणेशदासजी वर्धया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। इसकी पत्र संख्या १३८ है । इसकी लम्बाई १३|| इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। प्रत्येक पत्र में बीच में तथा हासिए के बाहर चित्र सा किया हुआ है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ के लगभग अक्षर हैं । प्रति सुन्दर तथा शुद्ध है । यह १६ वीं शताब्दी की लिखी हुई प्रतीत होती है । ग्रंथाग्रं ७७८७ के सिवाय अन्त में कुछ लिखा हुआ नहीं है । ( गव्) 'ग' संकेतित प्रति में लिखित वृत्ति के पाठान्तर (वृ) हस्तलिखित वृत्ति I यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गया सरदारशहर' की है। इसकी पत्र संख्या १५९ लिपि संवत् १५७७ । वैशाख शुक्ला १० । (मवृ) मलयगिरि वृत्ति -- प्रकाशक आगमोदय समिति (मवृपा ) मलयगिरि द्वारा गृहीत पाठान्तर ( हव) श्री हरिभद्र सूरि सूत्रित प्रदेश व्याख्या संकलितं प्रकाशक श्री ऋषभदेव केशरीमलजी रतलाम पूर्व भाग पर ११ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जंबुद्दीपण्णत्ती प्रति- परिचय (अ) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जेसलमेर मंडार की ताडपत्रीय ( फोटोप्रिंट) मदनचन्द जी गोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र १६४ और पृष्ठ ३२८ हैं । प्रत्येक पत्र में २ से ६ तक पंक्तियां हैं। कहीं-कहीं पंक्तियां अधूरी लिखी हुई हैं। प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३० से ३५ तक हैं । अन्त में ग्रंथास ४१४६ इतना ही लिखा हुआ है। इसके साथवाली प्रति के आधार पर यह प्रति १४ वीं शती की होनी चाहिए । (ब) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित ) यह प्रति जेसलमेर भंडार ताडपत्रीय ( फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र ६७ व पृष्ठ १६४ हैं । प्रत्येक पत्र में २ से ६ तक पंक्तियां हैं । प्रत्येक पंक्ति में ४७ से ५० तक अक्षर हैं। लिपि सं० १३७८ लिखा हुआ है । ( स ) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जैसलमेर मंडार पत्राकार ( फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र ४६ व पृ. ९२ हैं । प्रत्येक पत्र में २० पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ७० से ७४ तक अक्षर हैं । लिपि सं. १६४६ लिखा हुआ है। प्रति बहुत महीन लिखी हुई है। (क) जंबुद्दीवपण्णत्तो मूलपाठ (हस्तलिखित) पत्र संख्या ७३ श्रीचंद गणेशदास गर्धया संग्रहालय ( सरदारशहर ) (ख) जंबुद्दीवपण्णत्तो मूलपाठ (हस्तलिखित ) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रंथालय 'लाडनूं' की है। इसके पत्र १०१ व पृष्ठ २०२ हैं ! प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर हैं। प्रति प्राचीन व सुंदर लिखी हुई है । लिपि संवत् नहीं है । (ग) जंबुद्दोवपण्णत्ती त्रिपाठी, मूलपाठ व वृत्ति (हस्तलिखित ) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय 'लाडनूं' की है। इसके पत्र ३५८ व पृष्ठ ७१६ है । प्रति के मध्य में मूलपाठ व ऊपर नीचे टीका लिखी हुई है । लिपि संवत् १९१३ अंकित है । प्रति सुंदर लिखी हुई है । इसके ६६-७० दो पत्र प्राप्त नहीं हैं । (होवृ ) हीरविजयसूरि विरचित वृत्ति त्रिपाठी (हस्तलिखित) ( होवृपा ) हीरविजय सूरि द्वारा गृहीत पाठान्तर यह प्रति शासन ग्रंथ भंडार 'लाडनूं' की है। इसकी पत्र संख्या ५८२ है । बीच में मूलपाठ व ऊपर नीचे वृत्ति लिखी हुई है । लिपि संवत् १६१६ (ga) खरतरगच्छीय जिनहंसगणि शिष्य महोपाध्याय पुण्यसागर विरचित वृत्ति (हस्तलिखित) (पुवृषा) पुण्यसागर द्वारा गृहीत पाठान्तर यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र २४३ व पृष्ठ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ ४८६ हैं । लिपि सं. १५७५ । प्रति सुन्दर लिखी हुई है। ( शावृ) तपागच्छीय होरविजयसूरि परशिष्य शान्त्याचार्य विरचित वृत्ति (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। लिपि सं. १५५१ ( शावृपा ) शान्त्याचार्य द्वारा गृहीत पाठान्तर सूरपण्णत्ती प्रति परिचय (क) सूरपण्णत्ती मूल यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदाबाद' की है। इसकी क्रमांक डा. २ ५७ है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई १२ ।। x ५ इंच है । इसकी पत्र संख्या ६२ है । प्रथम पत्र नहीं है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्ति व प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ७० तक अक्षर हैं। प्रति सुन्दर व सुवाच्य है। प्रति के बीच में हरी व लाल स्याही से चित्र चित्रण परन्तु प्रति प्राचीन है लगभग १७ वीं शताब्दी की होनी श्लोक प्राकृत में लिखे हुए हैं । किया हुआ है । लिपि संवत् नहीं दिया है । चाहिए। प्रति के अन्त में प्रशस्ति के २५ (ग) सूरपण्णत्ती मूल नंबर ६० (हस्तलिखित ) यह प्रति भी पूर्व उल्लिखित 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ८७ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १० X ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां हैं । प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३३ से ४१ तक है । प्रति की लिपि सुन्दर है पर अशुद्धि बहुल प्रति है । लिपि सं. १५७० ॥ (घ) सूरपण्णसी मूल नम्बर ६०७ ( हस्तलिखित ) यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ६६ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १० x ४ इंच है । प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां है। प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३४ से ४२ तक हैं । प्रति की लिपि सुंदर पर अशुद्धि बहुल है । लिपि सं. १६७३ है । उपर्युक्त तीनों प्रतियों के बीच में बावड़ी है । ( सूवृ) सूरपण्णत्तो टोका नं. ४८ यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, 'अहमदावाद' की है। इसकी लम्बाई चौडाई १२।१ x ५ इंच है। पत्र संख्या २२४ है । प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४४-६० अक्षर हैं । प्रति सुन्दर व स्पष्ट लिखी हुई है। लिपि संम्वत् १५७४ है । चन्द्रप्रज्ञप्ति प्रति-परिचय (क) चंदपण्णत्ती मूल नं. ६०० ( हस्तलिखित ) यह प्रति भी लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ६८ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १० x ४ । इंच है। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ४१ तक अक्षर है । यह प्रति भी सुन्दर है पर अशुद्धि बहुल है। इसमें पत्र के बीच में बावडी है । लिपि संवत् १५७० है । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ (चंव) चंदपण्णत्ती टोका (हस्तलिखित) यह प्रति हमारे संघीय हस्तलिखित भण्डार 'लाडन' की है इसकी पत्र संख्या १७६ है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई १०४४॥ इच की है। प्रत्येक पत्र में पंक्ति ६ व प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ५० करीब है। प्रति सुन्दर है । लिपि संवत् १७६२ । (2) चंदपण्णत्ती टब्बा (हस्तलिखित) जैन विश्व भारती लाडनूं हस्तलिखित ग्रंथालय ! पत्र ५७ । निरयावलियाओ प्रति-परिचय (क) निरयावलियाओ मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जेसलमेर भंडार की ताडपत्रीय (फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र २५ व पृष्ठ ५० हैं। फोटो प्रिंट के पत्र है । एक पत्र में ६ पृष्ठों के फोटो है। किसी में न्यूनाधिक भी है । प्रत्येक पत्र १२ इंच लम्बा व ३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की पांच पंक्तियां हैं, किसी पत्र में दो-दो तीन-तीन पंक्तियां भी हैं। कहीं-कहीं पंक्तियां अधूरी भी हैं । प्रत्येक पंक्ति में करीब ४५ से ५० तक अक्षर है। प्रति के अंत में प्रशस्ति नहीं है। (ख) निरयावलियाओ मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र १६ तथा पृष्ठ ३८ हैं । प्रति १३३ इंच लम्बी व ५ इंच चौड़ी है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ७१ से ७५ तक अक्षर हैं । प्रति काली स्याही से लिखी हुई है। प्रति के मध्य भाग में बावड़ी व उसके बीच में लाल स्याही का टीका लगा हुआ है। लेखन संवत् नहीं है। परन्तु उसके साथ की प्रति के आधार पर अनुमानित १६ वीं शताब्दी की है। प्रति सुंदर, स्पष्ट तया शुद्ध लिखी हुई है। (ग) निरयावलियाओ टब्बा (हस्तलिखित) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय, लाडनूं की है। इसके पत्र ६३ तथा पृष्ठ १२६ है। प्रत्येक पत्र में पाठ की ७ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में अक्षर करीब ३५ से ४५ तक हैं। यह प्रति १०३ इंच लम्बी तथा ४३ इंच चौड़ी है । लिपि सं० १८३३ । (ब) निरयावलियाओ वृत्ति (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र हैं। यह १३३ इंच लंबी ५ इंच चौड़ी है । लिपि संम्वत् १५७५ है । (मव) मुद्रित वृत्ति ____ए. एस. गोपाणी एण्ड वी. जे. चोकसी। प्रकाशित-शंभूभाईजगसीशाह, गुर्जर ग्रन्थरल कार्यालय, गांधी रोड़ अहमदाबाद प्रकाशन १९३४ । सहयोगानुभूति जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ की चार वाचनाएं हो चुकी हैं । देवद्धि गणि के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। अनेक वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। आचार्य श्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक बाचना के लिए प्रयत्न भी किया था। परंतु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्तत हम उसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसंधानपूर्ण, गवेषणापूर्ण, तटस्थ दृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगमवाचना का कार्य आरंभ हुआ। हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्य श्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन कर्म के अनेक अंग हैं .. पाठ का अनुसंधान, भाषान्तर, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में हमें आचार्य श्री का सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा गुरुतर कार्य में प्रवृत होने का शक्ति-बीज है । मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर भार मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं । प्रस्तुत पुस्तक के अन्तर्गत नौ उपांगो के पाठ-शोधन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी, का पर्याप्त योग रहा है। पण्णवणा में मुनि बालचंदजी, निरयावलियाओ में मुनि मधुकरजी का भी योग रहा है। प्रतिलिपि शोधन में स्व. मन्नालालाजी बोरड़ भी इसमें सहयोगी रहे हैं। पष्णवणा की शब्दसूची मुनि श्रीचन्द जी, जंबुद्दीवपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, चंदपण्णत्ती की मुनि सुदर्शन जी तथा निरयावलियाओ की मुनि हीरालालजी ने तैयार की है। इस ग्रन्थ के प्रथम परिशिष्ट व इसका ग्रन्थ परिमाण मुनि हीरालाल जी ने तैयार किया है। पण्णवणा व जंबुद्दीवपण्णत्ती की शब्दसूची में क्रमश: साध्वी जिनप्रभाजी व साध्वी चन्दनबालाजी का भी योग रहा है। प्रूफ निरीक्षण में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी. मुनि दुलहराजजी तथा समणी कुसुमप्रज्ञा संलग्न रही है। कहीं मुनि विमलकुमारजी, मुनि सम्पतमलजी भी सहयोगी रहे हैं । पाठ के पुननिरीक्षण के समय मुनि हीरालालजी विशेषतः संलग्न रहे हैं । __ आगम बत्तीसी के पाठ-सम्पादन कार्य में नामोल्लेख के अतिरिक्त जिनका यत्किञ्चित् योग रहा है, उन सबके प्रति हम कृतज्ञता वा भाव व्यक्त करते हैं। सम्पादन कार्य में संघीयभंडार के अतिरिक्त एल० डी० इन्स्टीट्यूट अहमदाबाद, श्रीचंद गणेशदास गधैया पुस्तक भंडार सरदाशहर, तेरापंथी सभा सरदारशहर, पूनमचंद बुद्ध मल दूधोडिया छापर, घेवर पुस्तकालय सुजानगढ़, जैन विश्व भारती ग्रंथालय लाडनूं , जेसलमेर भंडार, इन सब संस्थानों से प्राप्त हस्तलिखित आदर्शों का हमने प्रयोग किया। मुनिश्री पुण्यविजयजी ने 'नन्दी' की संशोषित प्रति भी हमें उपलब्ध कराई थी। इन सबका योग हमारे कार्य में मूल्यवान बना। आचार्य श्री के वाचना-प्रमुखत्व में आगम-वाचना का जो कार्य प्रारंभ हुआ था उसका एक पर्व संशोधित पाठयुक्त आगम बत्तीसी के साथ सम्पन्न हो रहा है । बत्तीस आगमों का संशोधित पाठ पहली बार विद्वान् पाठकों के लिए सुलभ हो रहा है । यह हमारे लिए उल्लास का विषय है। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ " वि. सं. २०१२ उज्जैन में आगम सम्पादन का कार्य प्रारंभ हुआ । उसी वर्ष प्रायः बत्तीस आगमों की शब्द सूचियां तैयार हो गईं। इस कार्य में अनेक साधु और साध्वियां संलग्न हुए । चारचार या तीन-तीन साधु-साध्वियों के वर्ग बने और उन्होंने इस कार्य को शीघ्रता से सम्पन्न किया। मुनि चौथमलजी, सोहनलालजी (चूरू) जैसे प्रोड़ सन्त इस कार्य में लगे वहां उनके सहयोगी के रूप में छोटे-छोटे साधु भी जुट गए एक अभियान जैसा कार्य चला और सब में एक नयी भावना जागृत हो गई। पहले पाठ-शोधन नहीं हुआ था इसलिए उनका पूरा उपयोग नहीं हो सका। शब्द-सूचियां फिर से बनानी पड़ी, किन्तु जो काम हुआ वह अत्यंत श्लाघनीय है । इस सम्पादन की एक उल्लेखनीय बात यह है कि यह सारा कार्य साधु-साध्वियों के द्वारा ही सम्पादित हुआ, किसी मुहस्य विद्वान् का इसमें योग नहीं रहा । आचार्यश्री का नेतृत्व और तेरापंथ धर्मसंघ का संगठन ही इसके लिए श्रेयोभागी बनता है । आगमविद और संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचंदजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता । यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता । आगम के प्रबन्ध सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया (कुलपति जैन विश्व भारती) प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालात कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर वे अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। जैन विश्व भारती के अध्यक्ष खेमचंदजी सेठिया और मंत्री श्रीचंद बेगानी का भी इस कार्य में योग रहा है। संपादकीय और भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद डा. नथमल टांटिया ने तैयार किया है। एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की सम प्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारप्रति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है । अणुव्रत भवन (दिल्ली) २२ अक्टूबर, १९८७ युवाचार्य महाप्रज्ञ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका पण्णवणा नाम-बोध प्रस्तुत ग्रन्थ में नौ उपांग हैं। उसमें पहला है पण्णवणा (प्रज्ञापना)। इसमें जीव और अजीव इन दो तत्त्वों का विस्तार से प्रज्ञापन किया गया है। इसके प्रथम पद का नाम प्रज्ञापना है। संभवतः इस आदि पद के कारण ही इसका नाम प्रज्ञापना रखा गया है। प्रज्ञापना का एक कार्य प्रश्नोत्तर के माध्यम से तत्त्व का प्रतिपादन करना है। प्रस्तुत आगम में प्रश्नोत्तर के द्वारा तत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। इसलिए भी इसका नाम प्रज्ञापना हो सकता है। प्रारंभिक गाथाओं में इस आगम को "अध्ययन" भी कहा गया है। इससे प्रतीत होता है कि इसका एक नाम 'अध्ययन" रहा है। इसका संबंध दृष्टिवाद (बारहवें अंग) से है इसलिए इसे दृष्टिवाद का नि:स्यन्द या सार कहा गया है। विषयवस्तु प्रस्तुत आगम के ३६ पद हैं। उनमें जीव और अजीव के विभिन्न पर्यायों का प्रतिपादन किया गया है । यह तत्त्व-विद्या का अर्णव-ग्रन्थ है । इसके अध्ययन से भारतीय तत्त्व-विद्या के गहन स्वरूप को समझा जा सकता है । प्रथम पद में वनस्पति जीवों के दो वर्गीकरण उपलब्ध हैं:--प्रत्येकशरीरी और साधारणशरीरी ।' साधारणशरीरी का चित्र समाजवाद का ऐसा अनूठा चित्र है जिसकी मनुष्यसमाज में कल्पना नहीं की जा सकती। इसमें आर्य और म्लेच्छ का विशद वर्णन है।। प्रस्तुत आगम तत्त्व-ज्ञान का आकर-ग्रन्थ है। भगवती अंगप्रविष्ट आगम है और यह उपांग कोटि का आगम है। ये दोनों तत्त्व-ज्ञान की दृष्टि से परस्पर जुड़े हुए हैं। देवधिगणी ने भगवती में प्रज्ञापना के अधिकांश भाग का समावेश किया है। वहां बार-बार "जहा पण्णवणाए" का उल्लेख है। प्रस्तुत आगम के प्रत्येक पद में गूढ़ तत्त्वों की एक व्यूह-रचना सी उपलब्ध है। इसमें लेश्या और कर्म के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण सूत्र मिलते हैं। नन्दीसूत्र में आगमों के दो वर्गीकरण किए गए हैं ...अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य । अंगबाह्य के दो प्रकार हैं .- आवश्यक और आवश्यकव्यतिरिक्त । आवश्यकव्यतिरिक्त के फिर दो प्रकार बतलाए गए है -कालिक और उत्कालिक । प्रस्तुत आगम अंगबाह्य, आवश्यकव्यतिरिक्त और उत्कालिक है।' नंदी में अंग और अंगबाह्य के संबंध की कोई चर्चा नहीं है । आगम-व्यवस्था के उत्तरकाल में अंग और १. पण्णवणा, गा०२ २. वही, , ३ ३. वही, ११३२ ४. नन्दी, ७३-७७ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० अंगबाह्य की संबंध-योजना निर्धारित की गई। उसके अनुसार प्रज्ञापना समवायांग का उपांग है। यह सम्बन्ध-योजना किस आधार पर की गई, यह अन्वेषण का विषय है । यदि प्रज्ञापना को "भगवती" का उपांग माना जाता तो अधिक बुद्धिगम्य होता। रचनाकार और रचनाकाल प्रस्तुत आगम "दृष्टिवाद" का निःस्यन्द है, इस उक्ति से यह अनुमान किया जा सकता है कि इसका विषय "दृष्टिवाद" से संग्रहीत किया गया है। इसके रचनाकार आर्य श्याम हैं। वे सुधर्मास्वामी के तेवीसवें पद्रधर थे। वे वाचकवंश की परंपरा के शक्तिशाली वाचक थे। उनका अस्तित्वकाल वीर-निर्वाण की चौथी शताब्दी है। प्रस्तुत आगम का रचनाकाल वीर-निर्वाण के ३३५ से ३७५ के बीच का संभव है। नंदी में महाप्रज्ञापना का उल्लेख किया गया है । वह अभी अनुपलब्ध है। महाप्रज्ञापना और प्रज्ञापना दोनों स्वतंत्र हैं। प्रज्ञापना महाप्रज्ञापना का अवतरण है अथवा इसमें कोई नया विषय है, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता । बारह उपांगों में प्रज्ञापना का एक विशिष्ट स्थान है। इससे प्रतीत होता है कि इसका रचनाकाल वह है जब पूर्वो की विस्मति हो रही थी और उसके अवशिष्ट अंशों को स्मति शेष थी। वैसे ही समय में “षट्खण्डागम" की रचना हुई थी। शेष उपांग प्रज्ञापना की रचना के उत्तरकाल में लिखे गए थे। उनकी विषयवस्तु के आधार पर यह संभावना की जा सकती है। उमास्वाति का अस्तित्व-काल वीर निर्वाण की पांचवी शताब्दी है । उन्होंने तत्वार्थसूत्र में "आर्या म्लेच्छाश्च" सूत्र लिया है। उसका आधार प्रज्ञापना का पहला पद हो सकता है। वहां जो आर्य और म्लेच्छ की स्पष्ट अवधारणा एवं परिभाषा है वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। इस आधार पर इसका रचनाकाल उमास्वाति से पूर्ववर्ती है। व्याख्या-ग्रंथ प्रस्तुत आगम के व्याख्या-ग्रंथ अनेक हैं। सबसे पहला ग्रन्थ हरिभद्रसूरि का है ! व्याख्या-ग्रन्थ की तालिका इस प्रकार है:व्याख्या-ग्रंथ ग्रन्थान ग्रन्थकर्ता समय (वि० सं०) १. प्रदेशव्याख्या ३७२८ हरिभद्रसूरि ८ वीं शताब्दी २. तृतीय पद संग्रहणी १३३ अभयदेवसूरि १२ वीं शताब्दी का पूर्वाध ३. विवृति १४५०० मलयगिरि १३ वीं शताब्दी ४. अभयदेवसूरि कृत तृतीयपद कुलमण्डनगणी १८ वीं शताब्दी संग्रहणी अवचूणि ५. बृत्ति সকান १. प्रज्ञापना, वृ०प० ४७-१. आर्यश्यामो यदेव ग्रन्थान्तरेष आसालिगा प्रतिपादकं गौतमप्रश्न भगवन्निर्वचनरूपं सूत्रमस्ति तदेवागम बहुमानतः पठति । प्रज्ञापना, ३० प०७२–भगवान् आर्यश्यामोऽपि इत्थमेव सूत्रं रचयति ।" २. तस्वार्थ सूत्र ३।३६ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ ६. वनस्पति सप्ततिका अथवा मुनिचन्द्र १२ वीं शताब्दी वनस्पति विचार ७. अवचूरी पद्मसूरि ८. बालावबोध धनविमल अनुमानित १७ वीं शताब्दी १. बालावबोध जीवविजय १७८४ १०. स्तबक परमानन्द १८७६ ११. पण्णवणानी जोड़ जयाचार्य १८७८ इनके अतिरिक्त प्रज्ञापना से संबद्ध कुछ लघुकाय ग्रन्थों का विवरण मिलता है। मुनि पुण्यविजयजी ने हर्ष कूलगणी द्वारा विरचित "बीजक" का उल्लेख किया है। मुनिपुण्यविजयजी द्वारा लिखित प्रज्ञापना की प्रस्तावना तथा "जिन रत्नकोश" में "पर्याय" का भी उल्लेख मिलता है। "जिनरत्नकोश" में 'प्रज्ञापना सूत्र सारोद्धार' का भी उल्लेख मिलता है। ____ आचार्य मलयगिरि ने अपनी विवति में णि और 'वृद्धव्याख्या' का उल्लेख किया है। चणि अभी अनुपलब्ध है। उपलब्ध व्याख्याओं में सबसे बड़ी व्याख्या आचार्य मलयगिरि की है। मौलिक और आधारभूत व्याख्या आचार्य हरिभद्रसूरि की है। जंबुद्दीवपण्णत्ती नाम-बोध प्रस्तुत आगम का नाम जंबुद्दीवपण्णत्ती (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) है। प्राप्ति का अर्थ है व्याकरण, उत्तर या निरूपण । इसमें जम्बूद्वीप का व्याकरण है इसलिए इसका नाम जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति है। स्थानांग में चार अंगबाह्य प्रज्ञप्तियों का उल्लेख है, १. चन्द्रप्रज्ञप्ति, २. सूरमज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ४. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ।' 'कसायपाहुड' में प्रज्ञप्तियों को 'दृष्टिवाद' के प्रथम भेद 'परिकम' के पांच अर्थाधिकार माना गया है----१. चन्द्रप्रज्ञप्ति, २. सूरप्रज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ४. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति। नंदी में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को कालिक आगम के वर्गीकरण में रखा गया है।" १. पण्णवणा सुतं, भाग २, प्रस्तावना पृ० १५८ २. वृत्ति प० २६६ -आह च चूणिकृत् । वृ०प० २७१ - आह च चूणिकृतोऽपि । वृ० प० २७२ - यत आह चूणिकृत् । वृ०प० २७७ -- आह च चूणिकृत् । व० ५० ५१७ -'प्रज्ञापनायाश्चूणौ। वृ०प०६००-तत्रैवं वृद्धव्याख्या। ३. ठाणं, ४११८६ ४. कसायपाहड़, प्रथम अधिकार —पेज्जदोसविहत्ती, पृ० १३७---- "परियम्मे पंच अस्थाहियारा-चंदपण्णत्ती सुरपण्णत्ती जंबुद्दीवपण्णत्ती दीवसायरपण्णत्ती वियाहपण्णत्ती चेदि।" ५. नन्वी, ७८ . Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ विषय-वस्तु - इसका मुख्य प्रतिपाद्य जम्बुद्वीप है। पारिपार्श्विक विषयों की सूची बहत लंबी है। भगवान ऋषभ, कुलकर, भरत चक्रवर्ती, कालचक्र, सौरमण्डल आदि अनेक विषय इसमें प्रतिपादित हैं। इनमें भरत चक्रवर्ती का वर्णन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। चक्रवर्ती के चौदह रत्नों और नौ निधियों का वर्णन बहुत ही सजीव है। कालचक्र के वर्णन में वर्तमान अवसर्पिणी के छठे अर का जो वर्णन है वह बहुत रोमाञ्चक है । प्रलय की जितनी भविष्य वाणियां उपलब्ध हैं, उनमें यह सर्वाधिक ध्यानाकर्षण करने वाली है। इसे पढ़ते-पढ़ते अणुयुद्ध की विभीषिका सामने आ जाती है। भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर में बहुत एकरूपता रही है। भगवान् ऋषभ को आदिकाश्यप और भगवान् महावीर को अन्त्यकाश्यप कहा जाता है। भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर दोनों ने पंच महाव्रत धर्म का प्रतिपादन किया था। भगवान महावीर की भांति भगवान् ऋषभ भी एक वर्ष से कुछ अधिक समय तब सवस्त्र रहे. फिर अचेल हो गए। भरत चक्रवर्ती काच के महल में बैठे थे। वे काच में अपना प्रतिबिंब देख रहे थे । देखते-देखते उन्हें कैवल्य प्राप्त हो गया। उत्तरवर्ती ग्रन्थों में इस कथा का विकास हुआ है। अंगुली की अंगूठी गिर जाने पर सौन्दर्य की कमी का अनुभव हुआ और उस चितन की गहराई में गए, अन्तत: केवली हो गए। योगलिक व्यवस्था की समाप्ति, समाज और राज्य-व्यवस्था के प्रारंभ का सुन्दर चित्र प्रस्तुत आगम में उपलब्ध है। भगवान् ऋषभ के सर्वतोमुखी व्यक्तित्व को समझने के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका "श्रीमद्भागवत" में वणित ऋषभ के साथ तुलनात्मक अध्ययन करना बहुत महत्त्वपूर्ण प्रस्तुत आगम सात अध्यायों में विभक्त है । इन अध्यायों को "वक्खारो" या "वक्षस्कार" कहा गया है। उनके विषय इस प्रकार हैं---- १. जम्बूद्वीप २. कालचक्र और ऋषभ-चरित ३. भरत-चरित १. जंबुद्दीवपण्णत्ती, २११३०-१३७ २. धनञ्जय नाममाला, ११४, पृ० ५७ वर्षीयान् वृषभो ज्यायान् पुनराधः प्रजापतिः । ऐक्ष्वाकुः काश्यपो ब्रह्मा गौतमो नाभिजोऽग्रजः ॥ धनञ्जय नाम माला, ११५, पृ० ५८ सन्मतिमहती:रो महावीरोऽन्त्यकाश्यपः । नाथान्वयो वर्षमानो यत्तीर्थमिह साम्प्रतम् ।। ३. जंबुद्दीवपण्णत्ती, २१६६ ४. वही, ३१२१२, २२२ ५. आवश्यक चूणि, पृ० २२७ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ ४. जम्बूद्वीप का विस्तृत वर्णन ५. तीर्थकर का जन्माभिषेक ६. जम्बूद्वीप की भौगोलिक स्थिति ७. ज्योतिश्चक्र रचनाकार और रचनाकाल प्रस्तुत आगम उपांग के वर्गीकरण का ग्रन्थ है। इससे यह स्पष्ट है कि इसकी रचना भगवान् महावीर के निर्वाणोत्तर काल में हुई है । इसके रचनाकार कोई स्थविर थे । उनका नाम अज्ञात है। रचना का काल भी ज्ञात नहीं है। जीवाजीवाभिगम स्थविरों द्वारा कृत है। उसमें कल्पवृक्षों का विस्तृत वर्णन है। इसमें उनका संक्षिप्त रूप उपलब्ध है । विस्तार की सूचना 'जाव' पद के द्वारा दी गई है। ____ इससे प्रतीत होता है कि यह जीवाजीवाभिगम के उत्तरकाल की रचना है। संभवतः श्वेताम्बर और दिगम्बर का स्पष्ट भेद होने के पूर्व काल की रचना है । जंबुद्वीप के विषय में दोनों परंपराओं में प्रायः ऐकमत्य है। इस आधार पर इसका रचनाकाल वीर निर्वाण की चौथी-पांच वीं शताब्दी के आस-पास अनुमित किया जा सकता है। व्याख्या-ग्रन्थ प्रस्तुत आगम पर नो व्याख्याएं उपलब्ध हैं। उनमें केवल शांतिचन्द्रीयवृत्ति मुद्रित है, शेष अप्रकाशित हैं । शान्तिचन्द्र ने यह उल्लेख किया है कि मलयगिरि की टीका काल-दोष से विच्छिन्न हो गई है। किन्तु आधुनिक विद्वानों ने उसे खोज निकाला है। वह जैसलमेर के भण्डार में उपलब्ध है। शान्तिचन्द्रीय और पुण्यसागरीय वृत्ति में चणि का भी उल्लेख है।' इन व्याख्या-ग्रन्थों की तालिका इस प्रकार है-- ग्रन्थ সথায় कर्ता रचनाकाल १. चूणि अज्ञातकर्तृक २. टीका (प्राकृतभाषा) हरिभद्रसूरि ३. टीका मलयगिरि ४. वृत्ति १४२५२ हीरविजयसूरि वि० सं० १६३६ ५. वृत्ति १३२७५ पुण्यसागर ६. टीका (प्रमेयरत्नमञ्जूषा) १८००० शान्तिचन्द्र १. शान्ति चन्द्रोया वृत्ति पत्र २ --तत्र प्रस्तुतोपाङ्गस्य वृत्तिः श्रीमलयगिरिकृताऽपि संप्रति काल दोषेण व्यवच्छिन्ना। २. द्रष्टव्य, जैन रत्नकोश, पृ० १३० ३. शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्र १६, परिध्यानयनोपायस्त्वयं चणिकारोक्तः । वृ० ५० ५३, २५२, २७८ । पुण्यसागरीयवृत्ति, पत्र १२२-.-."एतच्चू! च।" Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. टीका ८. वृत्ति ६. वृत्ति अज्ञातकर्तृक गुजराती भाषा में धर्मसीमुनि ने इस पर स्तबक (टब्बा या बालावबोध) भी लिखा है। इन व्याख्या-ग्रन्थों की अधिकता से प्रतीत होता है कि प्रस्तुत आगम बहुत पठनीय रहा है। चन्दपण्णत्ती और सूरपण्णत्ती १५००० १८३५२ १. ठाणं, ४११८६ २. कापा ३. नंदी, ७७, ७८ ३४ ब्रहामुनि धर्मसागर और वानरऋषि नाम बोध स्थानांग में चार अंगबाह्य प्रज्ञप्तियां बतलाई गई हैं । उनमें प्रथम प्रज्ञप्ति का नाम चन्द्रप्रज्ञप्ति और दूसरी का सूरप्रज्ञप्ति है। कषायपाड में भी इसी क्रम से नामोल्लेख मिलता है।' प्रथम प्रज्ञप्ति में चन्द्र की वक्तम्यता है, इसलिए उसका नाम चन्द्रप्रज्ञप्ति है और द्वितीय प्रज्ञप्ति में सूर्य की वक्तव्यता है, इसलिए उसका नाम सूरप्रज्ञप्ति है। विषय-वस्तु आगम की प्राचीन सूचियों से पता चलता है कि चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूरज्ञप्ति दो आगम हैं। 'नन्दी' की आगम सूची में चन्द्रप्रज्ञप्ति को कालिक और सूरप्रज्ञप्ति को उत्कालिक बतलाया गया है ।" इस भेद का हेतु क्या है, यह अभी अन्वेषणीय है। चन्द्रप्रज्ञप्ति वर्तमान में प्रायः उपलब्ध नहीं है। उसका थोड़ा-सा प्रारंभिक भाग मिलता है । यद्यपि कुछ हस्तलिखित आदर्श 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' के नाम से उपलब्ध होते हैं और कुछ आदर्श सूर्यप्रज्ञप्ति के नाम से मिलते हैं, किन्तु प्रारंभिक सूत्र को छोड़कर इनका पाठ एक जैसा है । आचार्य मलयगिरि ने इन दोनों की व्याख्याएं लिखी हैं, उनमें भी प्रायः समानता है। वर्तमान धारणा के अनुसार चन्द्रप्रज्ञप्ति आज उपलब्ध नहीं है जो उपलब्ध है, वह सूरप्रज्ञप्ति है। डा० वाल्टर शुब्रिंग ने एक प्रकल्पना प्रस्तुत की है-- सूरप्रज्ञप्ति के १० वें पाहुड़ से आगे सूर्य की अपेक्षा चन्द्र और ताराओं को अधिक महत्व दिया गया है अतः हम यह अनुमान करते हैं कि दसवे 'पाहुड़' से चन्द्रप्रज्ञप्ति का प्रारम्भ हुआ है। किन्तु चन्द्रप्रज्ञप्ति की समग्र विषयवस्तु की जानकारी के अभाव में शुद्र के निष्कर्ष को सहसा निर्णायक नहीं माना जा सकता। फिर भी उसमें विचार के लिए अवकाश है । 1 व्याख्या ग्रंथ चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूरप्रज्ञप्ति दोनों पर मलयगिरि-कृत टीकाएं उपलब्ध हैं। दोनों टीकाएं प्राय: समान हैं। उनमें जो अन्तर है, वह परिशिष्ट में दिया हुआ है। 'जिनरत्नकोश' के अनुसार चन्द्रप्रज्ञप्ति की टीका का ग्रन्थाग्र ६५०० तथा सूरप्रज्ञप्ति को टीका का ग्रन्थाग्र ६००० है । भद्रबाहु कृत Y. Doctrine of the Jains P. 102 ५. जिनरत्नकोश, पृ० ११८ ६. वही पृ० ४५२ प्रथम अधिकार, पेज्जदोसविहती, पृ० १३७ १६३६ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियुक्तियों में सूरप्रज्ञप्ति की नियुक्ति का उल्लेख है। किन्तु वह मलयगिरि के समय में अनुपलब्ध थी। उन्होंने अपनी टीका में पूर्वाचार्यों के मत का भी उल्लेख किया है।' निरयावलियाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम एक श्रुतस्कन्ध है । इस का प्राचीनतम नाम उपांग प्रतीत होता है । जम्बूस्वामी ने उपांग का क्या अर्थ है, यह प्रश्न पूछा । सुधर्मा स्वामी ने इसके उत्तर में कहा-उपांग के पांच वर्ग हैं -निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा ।। 'उपांग' शब्द का बहुवचन में प्रयोग किया गया है। उपांग पांच वर्गों का एक श्रुतस्कन्ध है। इसलिए संभवत: बहुवचन का प्रयोग किया गया है। इसका मूल अंग कौन-सा है, इसके बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है । वर्तमान में प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध के लिए "उपांग' शब्द प्रचलित नहीं है। अभी 'उपांग' शब्द के द्वारा बारह आगमों का संग्रहण है। 'नन्दी' सूत्र की आगमसूची में 'उपांग' शब्द का उल्लेख नहीं है। वहां 'निरयावलिया' आदि पांचों स्वतंत्र आगम के रूप में उल्लिखित हैं । अनुमान किया जा सकता है कि 'नन्दी' सूत्र की रचना के उत्तरकाल में पांचों आगमों की एक श्रुतस्कन्ध के रूप में व्यवस्था की गई और श्रुतस्कन्ध का नाम 'उपांग' रखा गया। प्रो. विन्टरनित्ज के अनुसार ये पांचों आगम निरयावलिका के नाम से प्रसिद्ध थे। अंग और उपांग की व्यवस्था के समय से वे अलग-अलग गिने जाने लगे। 'निरयावलिया' का दूसरा नाम ‘कल्पिका' मिलता है। नंदी के कुछ आदर्शों में वह उपलब्ध है । आचार्य हरिभद्रसूरि और आचार्य मलयगिरि ने नंदी की वृत्ति में 'कल्पिका' का ही उल्लेख किया है।' यह संभावना की जा सकती है कि 'उदंगा' के प्रथम वर्ग का नाम 'कल्पिका' था, किन्तु नरक-परिणाम वाले कमों का वर्णन होने के कारण इसका दूसरा नाम 'निरयावलिका' रख दिया गया । इस प्रकार प्रथम वर्ग के दो नाम हो गए--निरयावलिका और कल्पिका। विषय-वस्तु निरयावलिका श्रुतस्कन्ध का प्रतिपाद्य विषय है—शुभ-अशुभ आचरण, शुभ-अशुभ कर्म और उनका विपाक । १. आवश्यक नियुक्ति, गाथा ८५ २. सूर्यप्रज्ञप्ति, वृत्ति पत्र, १, गाथा ५ अस्या नियुक्तिरभूत् पूर्व श्रीभद्रबाहुसूरिकृता। कलिदोषात् साऽनेशद्, व्याचक्षे केवलं सूत्रम् ॥ ३. सूर्यप्रज्ञप्ति, व. प०१६८.-."तदेवं यथा पूर्वाचायरिदमेव पर्वसूत्रमवलम्ब्य पर्वविषयं व्याख्यानं कृतं तथा मया विनेयजनानुग्रहाय स्वमत्यनुसारेणोपदशितम ।" ४. निरयावलियाओ १४, ५ ५. History of Indian Literature, Second edition, Vol II PP. 457-458 ६. नन्दी, सूत्र ७८ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम वर्ग में चेटक और कोणिक के भयंकर युद्ध का वर्णन है। इसका उल्लेख भगवती और आवश्यक चणि' में भी मिलता है। बौद्ध साहित्य में भी इस युद्ध का उल्लेख मिलता है। यह आश्चर्य का विषय है कि इतिहास में इस युद्ध का कोई उल्लेख नहीं है। युद्ध आत्मरक्षा से लिए अनिवार्य हो सकता है ! उस हिंसा को एक गृहस्थ के लिए आवश्यक कहा जा सकता है। फिर भी हिंसा हिंसा है, उसे अहिंसा नहीं माना जा सकता । प्रस्तुत वर्ग में यह युद्धविरोधी स्वर उभरकर सामने आया है और वह युद्ध को धार्मिक रूप देने के प्रतिपक्ष में एक सशक्त उद्घोष है। दूसरे वर्ग में धर्म की आराधना करने वाले श्रेणिक के दस पौत्रों की सद्गति का वर्णन है। तीसरे वर्ग में संयम और सम्यक्त्व की आराधना और विराधना का प्रतिपादन है। चौथे वर्ग में पार्श्वनाथ की दश शिष्याओं का निरूपण है। पांचवें वर्ग में वृष्णि-वंश के बारह राजकुमारों की चारित्र-आराधना और 'सर्वार्थसिद्धि' में उत्पत्ति का निरूपण है। इस प्रकार इस लघुकाय उपांग या निरयावलिका श्रुतस्कन्ध में अनेक रुचिपूर्ण एवं महत्त्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन हुआ है। रचनाकार और रचनाकाल प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध के रचनाकार और रचनाकाल के बारे में कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है। यह अंगबाह्य श्रुतस्कन्ध है। इससे यह निश्चित है कि यह किसी स्थविर की रचना है। इसमें भगवती, ज्ञाता, उपासकदशा, औपपातिक और राजप्रश्नीय से संबंधित विषयों की चर्चा मिलती है। किन्तु इस आधार पर रचनाकाल का निर्णय नहीं किया जा सकता। आगमसूत्रों के व्यवस्थाकाल में पूर्ववर्ती आगमों में उत्तरवर्ती आगमों के नाम उल्लिखित किए गए हैं, अतः वे रचनाकाल के पौर्वापर्य के निर्णायक नहीं बनते । व्याख्या-ग्रन्थ प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध पर एक संस्कृत व्याख्या उपलब्ध है । विक्रम संवत् १२२८ में श्री चन्द्र सूरि ने इसकी व्याख्या लिखी थी। वह बहत संक्षिप्त है। मुनि धर्मसी (धर्मसिंह) ने इस पर गुजराती में एक टब्बा (स्तबक) लिखा था। कार्य-संपूर्ति प्रस्तुत ग्रन्थ के संपादन का बहुत कुछ श्रेय युवाचार्य महाप्रज्ञ को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य संपन्न हो सका है, अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता । इनकी वृत्ति मूलत: योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रमपरायणता, और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण-भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है। इनकी कार्यक्षमता और कर्तव्यपरता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। १. भगवती, ७.१७३, २१० २. आवश्यकचूणि, भाग २, पृ० १७४ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बलबूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया था। प्रस्तुत आगमों के पाठ संसोधन में अनेक मुनियों का योग रहा। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं कि उनकी कार्येजा शक्ति और अधिक विकसित हो । यह बृहत् कार्य सम्यत् रूप से सम्पन्न हो सका, इसका मुझे परम हर्ष है। अणुव्रत भवन (नई दिल्ली) २२ अक्टूबर १९८७ -आचार्य तुलसी Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Editorial The present volume consists of nine āgamas :- 1. Pappavanā, 2. Jambuddivapannatti, 3. Candapannatti, 4. Sūrapannatti, 5. Nirayāyaliyão, 6. Kappavadim. siyão. 7. Pupphiyao, 8. Pupphacūliyão, and 9. Vanhidasão. The upäřgas are twelve in number. Three upāngas have already been included in the 'Uvangasuttăņi', Part 4, Volume 1. The original text of the remaining nine upangas, with variant readings, has been incorporated in the present volume. "The word index of Angasuttani has already been published as a separate book (Agama śabda-kośa). To provide convenience to readers as well as the research scholars a joint word index of the above-mentioned nine āgamas is appended in this volume. With the publication of this volume, the publication work of all the 32 canons is now over. This Agama-sūtra series at present contains seven volumes as under :-- 1. Angasutiāni, Part I: Āyāro, Süyagado, Thāṇam, Samavão. 2. Angasultāņi, Part II : Bhagaval. 3. Angasultäni, Part III : Näyādhammakahão, Uvasagadasão, Antagadadasão, Anuttarovaväiyadasão, Pannāvāgaraņāim, Vivāgasuyam. 4. Uvařgasuttaņi, Part IV, Volume I: Ovāiyam, Räyapaseniyam, Jiväjiväbhigame. 5. Uvangasuttani, Part IV, Volume II : Pannavaņā, Jambuddivapaņņatti, Candapannatti, Särapannatti, Niraya. valiyão, Kappavadimsiyão, Pupphiyão, Pupphacūliyão, Vanhidasão. 6. Nayasuttăni, Part V: Avassayam, Dasaveāliyam, Uttarajjhayaņāņi, Nandi, Aņuogadārāim, Dasão, Kappo, Vavahāro, Nisihajjhayanam. 7. Agama Sabda Kosa (Angasuttāņi Sabdasüci). Under this series of original texts, the work of editing the other canons too is in progress. They are likely to contain prakirnaka, niryukti and bhâsya. On Mahāvīra Jayanti of 2012 Vikram Samvat (1955 A.D.), Acāryasri Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ declared his intention to edit the agamas, and the assignment was taken up in the caturmasa of the same year. Many obstacles were faced in the work of editing for want of the correct versions. Consequently we thought of correcting the text to begin with. The work was actually started in 2014 V.S. (1957 A D.) and brought to completion in 2037 V.S. (1980 A D.) as follows: Vikram Samvat Dasave liyam Uttarajjhayapāņ! Nandi, Apuogadáráim Ovaiyam, Rayapaseniyam Thanam Samavão Süyagado Näyädhammakahão Ayaro, Ayāracula Uvasagadasão, Antagadadasão Anuttarovaväiyadação Vipäka Panhavägaraṇāim Nirayavaliyão Bhagavai Pannavaṇā Dasão, Pajjosavapäkappo Kappo Vavaharo JIvājlvabhigame Jambuddiva pannattl Nisthajjhayapam Candapappatti, Surapappatti 33 33 19 23 97 "3 37 33 35 33 53 39 33 33 2014 2016 2018 2018 2018 2018 2019 2020 2022 2026 2026 2028 2028 2029 2030 2031 2032 2033 2033 2034 2035 It is well known to all working in this field that editing is the most difficult job, specially when the texts to be edited are separated by a gap of several millennia in respect of language, style and thought. It is unexceptionally true that a thought or a custom does not continue in its original shape through the ages. It invariably expands or contracts. The story of expansion and contraction is the story of change. 'What is made up' is necessarily amenable to change. The insistence on the eternality of events, facts, thoughts and customs that are subject to change leads one to untruth and false imagination. The truth is 'what is made up' is necessarily transient. Whether 'made up' or 'eternal', it must needs be susceptible of change. Whatever there is must be of a nature that is not absolutely divorced from the stream of eternity and change. It is possible that an idea or truth expressed by a particular word is capable 2035 2037 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ of being expressed with its original connotation at all times? The semantic change is a necessary phenomenon and so no one with a knowledge of linguistics will insist that a word continues to have the same connotation through a period of two thousand years. For example, the expression păşanda has not the same meaning in modern śrumanic literature as it had in the times of the Agamas and Ashoka's inscriptions. It has acquired a derogatory nuance. Hundreds of words in the ancient Agama literature have shared the same fate. Under the circumstances, any thoughtful person will appreciate the difficulties in the task of an editor of ancient literature. Self confidence is an innate virtue of human beings who take great pride in the exercise of their courage, and do not shirk from responsibility however ardous. Were escapism a human virtue, not only the achievement of any enduring value would have been impossible, but whatever had been achieved in the past would have been lost at any time. About a millennium ago, Abhayadevasūri, the great commentator of the nine Angas was confronted with a great many obstacles which he had detailed as follows: (i) Absence of authentic tradition (sampradāya, about the meaning of the texts). (ii) Lack of authentic ratiocination (üha). (iii) Conflictiog modes of recitation (vācana). (iv) Vitiated manuscripts. (v) Unfathomable depth of the sutras. (vi) Differences of opinion (about the readings and the meaning). In spite of all these difficulties and hurdles, he did not draw back from the Herculean task, but on the contrary achieved something that was of a permanent value. Even today the difficulties are not fewer, but as the work of editing has been taken up by Acaryasri Tulsī himself, the task has acquired a new dimension. Any programme that is undertaken by him opens up new vistas, what to speak of the editing of the canonical literature which is by itself full of new possibilities. What is most conspicuous is that Ācāryasri has infused life in the programme through me and my colleagues, monks and puns, who were quite tyros in the field. Not only are his inarticulate blessings with us but also his concrete guidance and active co-operation are always available to us. He has given priority to the work and devoted plenty of time to it. Under his direction, deliberative counsel and encouragement, we could solve the problemas, however formidable, that cropped up from time to time in the course of our dificult enterprise. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Procedure adopted in editing the text Pannavana In editing the text of Prajñāpana, four Ms. ādarśas were consulted, Ācārya Malayagiri's Vitti was also used for this purpose. Muni Punyavijaya's edition was also before us. But we do not take for granted a single particular edition or manuscript for our work. The important basic points for us are the critical exposition of the commentary, other parallel ägamic texts and the meanings of words. Accordingly, the reader will find many a deliberation in our edition for the purpose of arriving at correct readings. For example, take the word "ganthi" in 'vatthula kacchula sevāla ganthi'. Here 'ganthi' is incorrect. The correct version should be 'gatthi'. We have come across the reading 'ganthi' alone in all the available manuscripts as also in the agamas edited by Muni Punyavjjayaji. This reading has been revised on the basis of Jivājivābhigama and Jambūdvipaprajñapti. Please refer to the footnote of 1/38 of this ăgama. Another instance is 'titthāpavadite', in place of which some adarśas contain the reading as "cau(thānavadite", and Muni Punyavijayaji too has accepted the latter reading. But on the basis of the Vstti, we have preferred 'titthāņavaçite', which is endorsed by the vsiti of Paņpavaņā, 5/115,116. Please refer to Prajñāpanā Vịtti patra 195-196 as also the footnote of Pannavaņā, 5/115. Jambūdvipaprajñapti Seven different texts and three commentaries were consulted in the revision of the text. We find many variant readings and notes thereon in the vșttis of Upadhyāya Sānticandra and Hiravijaya. Please refer to the footnote of 4/159. This agama abounds in variant readings. Upadhyāya Sänticandra has described in detail the variant readings, as is evident from the footnote of 2/12. At other 1. Sánticandi iyavşti, patra 87: Variation of text-vacanābbedastadgatapariņāmāptaramāha--müe dvadasa yojanāni viskambhena madhye'stayojanāni viskambheda upari catvári yojanādi viskambhepa, atrāpi viskambhāyāmatan sădhikatriguņam mūlamadhyāntaparidhimādam sūtroktam subodham. atráha parah-ekasya vastuno viskambhādiparimāne dvairupyāsambhavena prastutagranthasya ca sàtisayasthavirapranitatvena katham Dânyataranirnayah ? yadekasyäpi Isabhakütaparvatarya müladavaştādiyojaoavistftatvadi punastraivāsya dvădaśädiyojanaviststatvaditi, satyam jidabhattarakanām sarvesäm ksāyikajnänavatāmekameva matam mülatah paścăttu käläotarena vismftyādida'ya vāca ābhedah, yaduktam śrimalayagirisüribhirjyotiskarandakavsttau--"'ha skandilācārya pravi (tipa tau dussamădubhávato durbhikṣapravsityā sādhūnām pathanagunanadikam sarvamapyanesat, tato durbhiksātikrame subhiksapravsttau dvayoh sanghamelåpako' bhavat, ladyatha-eko valabhyameko mathurāyām, tatra ca sütrarthasamghatane parasparero vācanăbhedo jätab, vismstayorhi sūtrarthayoh smrtvà sanghagane bhavatyavaśyam väcană. bheda" ityădi, tato trapi duşkaro'ayataranis payah dvayoh pakşayorupasthitayoranatisãy jõāpibhiranabbiniviştamatibhih pravacanăśátanābhirubhiḥ punyapuruşairiti na kācidanupa. pattih. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ places we come across incorrect explanation due to faulty text, as is given in footnote 4:49. Cundraprajñapti and Suryaprajñapri In order to revise the text, we consulted five manuscripts and the vșttis of these agamas. We rarely depended on a particular ādarśa. The complete text of Candraprajñapti is not available. Its variation from Suryaprajñapti has been given in an Appendix. We come across some manuscripts which have passed for Candraprajñapti. Their variant readings are contained in the footnotes of Süryaprajñapti. Nirayavalikā Three manuscripts and the Vitti by Sricandra sūri have been consulted in revising the text of the five chapters of Nirayávaliki. Transformation of Words and Metamorphosis PAŅŅAVAŅĀ 1/14 bendiya beindiya (ka, kha) 1/14 tendiyao teindiya (kha) 1/23 os ussa (ka, ga) 1/29 vāyamandaliya vāumandaliya (ka) 1/35 aikolla aokulla (gha) 1/38 koranțaya korinţaya (ka) korenţa (gha) 1/48/47 balimodao palimodao (ka, gha) 11934 viibhayari viyabhayam (ka, gha) 2/10 padiņa payīņa (ka) paina (kha, ga, gha) 2/13 tadāgesu talāgesu (ka) covathin cosatthim visesahiya visesadhiya (gha, pu) 317 dāhinena dakkhipenam (ka, kha, gha) 3102 vibhangaạånina vibanganāņiņa (ka, ga, gha) 3/127 aheloe aholoe (ga) adheioe (gha) 31174 asātā (kha, ga) 3/182 jaha jadhā (kha, gha) 3/183 sakasai sakasādi (ka) 4255 egunavisam ekūņavisam (ka, gha) ekkūnavisam (kha) 4/275 panuvīsam pancavisam (kha, gha) 2/40 3/1 assātā Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5/5 panavisam jai jadi gati 5/5 315 mahurao abbhanie 5/7 5/101 3/179 5/242 6/46 818 11/6 11/21 11/25 11/30 11/37 11/37 11/72 11/75 11/84 ovadie matusse vaddhijjanti eenatthenam abhilāvo osanna Panamani vage sayanam sarirapahavā voyada avvoyadā anamani parivaddhamāņāim kadalithambhana Disarati madhuro abbhaie abbhatie padie maņuse vuddhijjanti enasthenam ahilão ussanna Pāņavani vige satanam satirappabhavā vogada avvogadā yānamaņi parivado hemāņāim kadalikhambhāpa pissarati nissirati nisarati biyam bhāsajāya baddhillayā mukkillaya (ga) (kha, ga, gha) (pu) (ka, kha) (ka) (pu) (ka) (ka, kha, gha) (ka, ga, gha) (ka, kha) (kha, gha) (ka) (kha, ga, gha) (ka, kha, ga, gha) (ka) (ka, kha, ga, gha) (ka) (gha) (kha, gha) (ga) (kha) (ga) (gha) (ka, ga) 11/88 11/88 12/7 (ga) (ka, kha, ga, gha) 12/7 1318 15/35 15/35 15/50 15/53 15,58 16/15 16/34 16/51 16/54 16/55 16/55 1724 bitiyam bhāsajjāyam baddhellaya mukkellayā osappiņīhi aņāgaroo paggohao sadi pehamăge pehati othiggale ovacaye ahavege paccatthimillam ayariyam seyansi māulungāņa tinduyāna inatthe avasappinihi aņāyāroo Diggohao sāti pehemāne peheti 'thiggile ovacate ahavete pacchimillam ayaritam seinsi mātulingana tiņduyāna . ipamatthe (ga) (ka, kba) (ga) (pu) (ga) (kha) (kha, gha) (ka, kha) (pu) (ka) (ka, ga) (ga) (ga) (ka) Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17/106 17/119 17/124 17/125 17/126 17/128 17/132 17/150 18/1 18/56 18/64 suio 20/28 21/25 21/47 21/92 (kha, gha) (ka) (ka, gha) (ka, ga, gha) (kha, ga) (gha) (ga) (gha) (ka, kha, gha) (ka, ga) (ka, ga) (kha, gha) (kha, gha, pu) (ka) (gha) (kha) (ka, gha) (kha) (ka, gha) (ga) (ka, gha) (ka) (ka, gha) (kha, ga) (ka, gha) (kha) (ka, gha) (ka, gha) (ka, gha) (kha) (kha) (ka, ga) (ka, kha, ga, gha) (kha, ga) tinaţthe samabhiloemäņe samabhilotemäße kisha kapha haladharao halahara kairasāre kayarasārae katarasärae bālindagove bålendagope balāhae "balahate apikkānam apakkāņam agarabhāvamätze āgārabhävamayac vede vee vete vaijogi vayajogi sakasai saka sādi sakasāti savanate savapayāte sūyio dhapupuhattam dhanuha puhattam sagāim sagāti sayāim niyacchati nigacchati niggacchati kadassa katassa kayassa niyāgoyassa nitāgotassa khavae khamae aphāsāijja apphāsäijja apadivai apadivādi sagāim sataim sayātim pariyāiyanayā pariyādiņayā pariyâyanaya jāņanti yāṇanti sapariyātā saparicārā JAMBUDDIVAPAŅŅATTI vicchinnä vitthiņņā onauya naotao dhapupaţtham dhapuvattham dhanuputtham 'padoyāre 'padogāre pāsim passim duhā dudhā 2313 23/13 23/22 23/191 28/44 33/1 33/17 34/1 3416 34/15 1/8 1/18 1/23 (a, kha) (a, ka, ba) (a) (kha) (tri, ba) (a, tri, ba) (kha, sa) 1/26 1/28 1/48 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2/4 2/4 2/14 2/15 2/20 2/32 2/70 2/78 2/131 2/133 2/133 2/133 3/3 3/11 3/11 3/11 3/11 3/20 3/20 3/21 3/22 3/23 3/24 3/26 3/35 3/35 3/35 3/35 3/35 3/35 hatthassa udú *padoyare meini ittha kahaga "hasa vākaremāņāṇam hāhābhüe vallvigaya tolakiti slunha java pausiyão babbarl bahali "kaducchuya" duruhai bambhayari durüḍhe bola "balacanda "tundam antaväle *paṭṭasangahiya "khinkhipl ayojjham soyamani "ppagasam visutam * hitthassa udů ūu *padokāre metini yattha ettha kadhaka hassa vāgaramāṇāṇam hāhābbhüte pallvigaya dolakiti dolägiti tolägitti tolagati siyaunha jaya vausiyão pappar! pahali "kadicchuya" "kadecchuya druhai parhhacarl Tüdhe drudhe pola "balayanda °tondam antapäle anteväle "vaṭṭasangahiya kinkini ajojjham aojjham avojjham sotāmani sodāmati "ppakasam vissuttam (ka, kha) (tri) (pa) (ba) (tri, ba) (a, ba) (ka, kha, sa) (a, kha, ba) (a, kha, ba) (pa) (a, ka, kha, ba, sa) (a) (a) (ka, kha) (tri, sa) (pa) (ka, kha, tri, ba, sa) (ka, kha, pa, sa) (ka, kha, pa, sa) (a, ba) (a, ba) (kha) (a, ba, sa) (a, ba) (a, tri, ba) (a) (ba) (a, ba) (sa) (ka, pa, sa) (a, tri, ba) (ka, kha) (a, ba) (ka, kha, sa) (a, ba) (ka, kha, pa, sa) (tri) (ka) (kha, sa) (a, ka, kha, tri, ba, sa) (ka, sa) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3/77 3/117 3/117 3/138 3/178 3/194 3/211 3/214 3/220 3/221 3/223 4/36 4/54 4155 4177 4185 4/86 cindhapatte cindhavatte (ba) mirii omariio (tri) uupa udūņa (a, kha, ba) riduna (ka, sa) "hidayao "hiyaya (a, tri, pa, ba) "hitaya (ka, sa) "hadaya (kha) nihic onihito (a, tri, ba) Onihao (kha, sa) abhiseyapidham abhiseyapedham (a, ba) ganthim ganthim (tri, pa) tisována tisomāna (a, ba) kāgani kákinio (a) käginio (b) kākanio (sa) puvvakaya puvvakaçao (ka, sa) ihāpoha ihăpüha (a, ka, kha, sa) ihāvūha (pu, vī) bāvafthim băsatthim (pa) hrassatarãe hassatare (pa) dakkhinenam dähinepam (tri) harivåsam harivassam (a, pa, ba) sankhatalao sankhadalao (pa, śāvs, puvspā) bāyale pāyāle (a, ba) bāyālise (tri) pisahassa nisaassa (a, ba) sitodā slotā (a, ba) (tri) sioa (pa) viuttare piuttare (ba) nisadbao nisabha (a, ba) nisahao (ka, kha, sa) hemavaya-herannavaya hemavaerannavaya (ka, kha, ba, sa) hemavaya era pavaya (tri) silavantassa nelavantassa (a, ka, kha, ba, sa) saniccari saņímccări (pa) uvavayasabhãe otāvasabhãe jamagão javagão (a, ba) jamigão (kha) dasa daha (a, ka, kha, ba, sa) niyaya pitiya (a, ka, kha, tri, ba, sa) 4187 4191 siodā 4/93 4196 4/102 4/103 4/109 4/140 4/140 (ka) 4/142 4/157 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 85 4/180 4/210 4/231 5/25 (a, tri, ba) (tri) (ba) (a, ba) (ka, kha) (tri) (sa) 5/58 5/58 7/31 7/122 7/126 (ka, kha) (ba) (tri) (a, ba) (ka, kha, pa) (kha) (a, ba) (ka, sa) (kha) (a, ba) (ba) (a, ba, sa) (ka, kha) (a, ba) (tri) (a) (kha, ba) 7/128 8/128 71129 parupparanti paropparanti sayajjala sayañjala palaso valāsa ghanţāpadensuyão ghanţăpadensukā ghanțāpačinsukao ghantāpadissuyā ghanţāpadaysuyao gāyāim gattâm gatäim janpu° jāņuo uddhimuha uddhammuha uddhimuhao bhāviyappa bhāviyāyā abhijiyāiyā abhijidāiya abhijādiya abhijadiya savano samane miyasara magasirao abhii abhiti abivi vahassai pahassati vahapphal kattigi kattiki kittiki kittigi assiņi asini nangulāņam lâögūlānam SURAPANNATTI ihagatassa idagatassa cauruttare caut tare pihula pidhulā puhulo poggala puggalā oyasanthiti totasanthiti oyãe otāe rayanikhettassa ratapikhettassa rātikhettassa sada sata vayam...vadāmo vatam... vatāmo savane samaño sāyam sagam 7/130 7/155 (sa) 7/159 7/178 (ba) (pa) 2/3 2/3 4/3 611 (ga, gha) (ta) (ka) (ta) (ka, ga, gha) (ta, va) (ta) (ka, ga, gha) 6/1 611 811 9/3 10/2 1015 (ga, gha, ţa, va) (va) (ga, gha) (va) Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ (ka) sadāvi 10/7 ãsoi assoti (va) 10/10 asoinnam assodinnam (ga, gha) 10/77 ādiccehim àticcehim (va) 10178 bambao bambhao (ka, ga, gha) 10/79 savage samane (ta, va) 10/87 bitiya bidiya (ka, gha) 10,89 duvihā tihi duvidhā tidhi 10/136 pāto pădo (ka, gha, va) 10/147 uvaiņāvetta uvādināvettā (ka, ga, gha) uvätiņāvettä (ta, ba) 10/173 sayāvi satāvi (ka, ga, gha, va) (ga) 1412 kaham kadham (ka, ga, gha) 15/31 ahiyam adhiyam (ka, ga, gha) ahitam (ta) 18/34 mehu avattiyam medhunavattiyam (ka, ga, gha) 20/1 ahe adho (ka) 2012 vaiyarie vaticarie (ta) NIRAYAVALIYAO 1/42 arpayā annada (ka) annatä (kha) 1/66 janavadam janavayam (kha) 1/72 usae üsave (kha) 1/91 piisoenam pitasoepam (kha) 1/97 patthe ppitthe (ka) putthe (ga) 1/97 andolāvei andodāvei (ka) 1/117 nicchuhāvei nicchubhāvei 1/127 lecchai lecchati 3/115 suvvayão suvvadão 3/134 juyalam juvalam (kha) jugalam (ga) 4/19 ittha (ka) 4/21 bãosiya opāosiyā (ka, ga) 516 savvouya savvoduya (ka, ga) 5/10 åhevaccam adhevaccam (kha) DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS PAŅŅAVAŅĀ (5) PAŅNAVAŅĀ Text (manuscript) Place Punamchand Budhmal Dudhoria, Chhāpar. (ka) (ka) (ka) itthā Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Size 101 x 41 No. of folios 302 patras Lines per page 11 No. of letters per line 33 to 41 Script Most beautiful and correct. Special information It belongs to 15th century approximately. It ends only with the mention of granthā. gra 7787. PANNAVANA Tabbā (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun. Size 94" x 4" No. of folios 465 patras Lines per page No. of letters per line 35 to 39 Script Beautiful Colophon "Pratyakaşaragañanaya anusthapacchandah samānamida granthāgram 7787 pramanam". Six verses of stabaka :-- "Samvat 1778 varșe phālguna mase suklapakse pratipadā tithau ravivāre pandita īśvareņa lipi cakre éri vennātața nagara madhye"-śrirastu kalyanamastu : Subham bhūyallekhakapāthakayoh.” Special Information It contains the text and stabaka. Ms. PANNAVAŅĀ TRIPATHI with Text and Vstti Place Order's Ms. Grantha Bhandara, Ladnun, Size 9% x 411 No. of folios 448 patras Lipes per page 1 to 16 No. of letters per line 37 to 45 Special Information Text is given in the middle, with vịtti up and down. Some pages have vitti alone. Granthägra of text is 7787 and that of vštti is 16000. The Ms. is beautiful and faultless. It must belong to 17th cen. approximately. PANNAVAŅĀ Text (Manuscript) Place Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. 131" x 5" (c) Size Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( गव् ) (1) (A) (4) No. of folios Lines per page No. of letters per line Script Special Information No. of folios Special Information Variations of Vrtti written in Ms. bearing sign. Vrtti (Manuscript) Place (a) Variation as approved by Malayagiri. हवृ) (1) Compliled with 'Pradeśa' commentary by Harlbhadra sūri". Publisher-Shri Rṣabhadeva Kefarimal, Ratlam, Part I; verses 11 JAMBUDDIVAPANNATTI Place ५१ No. of folios & pages Lines per page No. of letters per line Special Information 138 patras. 15 60 to 65 Beautiful and correct. Place Every patra is illustrated in the middle and out of the margin too. It appears to belong to 16th cen. Nothing else is mentioned at the end except 'granthagram 7787'. Jambuddivapappatti Text (Mauuscript) No. of folios & pages Lines per page Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. 159 patras. Manuscript, Scribing year 1577, VaiSakha Sukla 10 Jambuddivapappatti Text (Manuscript) Palm-leaf (photoprint) Ms. of Jaisalmer. Bhandara, belonging to Madanchand Gauti, Sardarshahar. 164, 328 2 to 6 30 to 35 Some of the lines are incomplete. The Ms. ends only with the mention of Granthagra 4146. It must be belonging to 14th century in view of its accompanying ms. Palm-leaf (Photoprint) Ms. belonging to Madanchand Gauti, Sardarshahar. 97 and 194 2 to 6 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ Letters per line 47 to 50 Script year Samvat 1378 Jambuddivapaņpatti Text (Manuscript) Place Paim-leaf (Photoprint) of Jaisalmer Bhandāra, belonging to Madanchand Gauti, Sardarshahar. No. of folios & pages 46 & 92 Lines per page 20 Letters per lines 70 to 74 Script year Samvat 1646 Special Information The size of letters is very small. Jambuddivapanpatti Text (Manuscript) Place Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. No. of patras 73 Jambuddïvapanpatti Text (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun No. of folios & pages 101 & 202 Lines per page 13 Letters per line 50 to 55 Special Information Ms. is antiquated and beautifully scribed. Script year is not mentioned. Jambuddivapanpatti Tripathi, Text and Vftti (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun. No. of folios & pages 358 & 716 Pages 69-70 missing. Scribing year Samvat 1913 Special Information Original text scribed in the middle, with commentary at top and bottom margin. Script beautifully written. (a ) Vrtti Tripățhi by Hiravijaya Sūri (Manuscript) (tag) Variant readings as approved by Hiravijaya Sūri Place Order's Library, Ladnun. No. of patras 582 Scribing year Samvat 1919 Sepecial Information Original text scribed in the middle and Vịtti at top and bottom margin (a) Vrtti by Mahopädbyāya Punyasāgara, the disciple of Jinahansagani of Kharataragaccha (Manuscript). Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Place (999) Variant readings as approved by Punyasāgara. Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. No. of folios & pages 243 and 486 Scribing year Samvat 1575 Special Information Beautifully scribed. ( a) Vrtti by Säntyācārya, the disciple of Hiravijaya Sūri of 'Tapāgaccha Order (Manuscript). Place Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library Sardarshanar. Scribing year Sarvat 1551 (straf) Variant readings as approved by Santyacārya. SORAPANNATTI 13 Ink sūrapanpatti Text Place L D. Institute of Indology, Ahmedabad. Serial No. of Ms. Dā 2/57 Size 121" x 50 No. of folios 62 [The first leaf is missing). Lines in each page Letters in each line 48 to 70 Picture drawing in Green and Red ink in the centre of each page. Scribing year Not mentioned. Special Information It is beautiful and easily legible. It is a very antiquated Ms. belonging to about 17th century. It ends with 25 verses in Prakrit language. Sūrapannatti, Original, No. 60 (Manuscript) Place L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. Size 101" x 4.1 No. of patras 87 Line in each page Letters in each line 33 to 41 Scribing year Samvat 1570 Special Information Script is beautiful, but abounds in mis takes. Sūrapannatti, Original, No. 607 (Manuscript) Place L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. Size 10" x 4" No. of patras (T) 66 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Place 11 Lines per page 13 Letters per line 34 to 42 Scribing year Samvat 1673 Special Information Beautiful script but abounds in mistakes. (9) Sürapannatti, Commentary, No. 48. L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. Size 125" x 5 No. of patras 224 Lines per page 13 Letters per line 44 to 60 Scribing year Samvat 1574 Special Information Script beautiful and distinct. CANDRAPRAJN APTI Candapannatti Original No. 600 (Manuscript) Place L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. Size 101" x 17" No. of patras 68 Lines per page Letters per line 32 to 41 Scribing year Samvat 1570 Special Information Beautiful script, but abounds in errors. A bävadi in the middle of the page. (a) Candapannatti Commentary (Manuscript) Place Order's Ms. Library, Ladnun. Size 10" X 4' No. of patras 179 Lines per page Letters per line about 50 Scribing year Samvat 1762 Special Information Script beautiful Caadapannatti Țabbá (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnu. No. of patras NIRAYĀVALIYÃO Nirayāvaliyão Text (Manuscript) Place Palin-leaf (Photoprint) copy of Jaisalmer Bhandara, belonging to Madanchand Gauti, Sardarshanar. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 No. of folios & pages 25 & 50. Nine patras are photoprinted. Each page contains photos of six pages. Somewhere it is less or more. Size 12 x Lines per page 5 lines of the text. Some patra contains 2 or 3 lines also. Some lines are even incomplete. Letters per line 45 to 50 Special Information No colophon at the end. Nirayāyaliyão Text (Manuscript) Place Srichand Ganesh dass Gadhaiya Library, Sardarshahar. Size 131x 5' No. of folios & pages 19 & 38 Lines per page 15 Letters per line 71 to 75 Ink Black colour. A bävadi in the middle portion and a thojn Red ink in its centre. Scribing year Not mentioned Special Information It should belong to 16th cen. approximately on the basis of the copy accompanying Nirayāvaliyão Tabbá (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun. No. of folios & pages 63 and 126 Lines per page Letters per line 35 to 45 Size 103" x 41 Scribing year Samvat 1833 Nirayāvaliyão Vịtti (Manuscript) Place Srichand Ganesbdass Gadhaiya Library, Sardarshahar No. of patras Size 13}" x 5" Soribing year Samvat 1575 Printed Vitti Editors A.S. Gopani & V.J. Choksi Publisher Shambubhai J. Shah, Gurjar Granthratna Karyalaya, Gandhi Road, Ahmedabad. Year of publication 1934 A.D. (2) Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acknowledgement of Collaboration The tradition of councils in Jainism is very old. As many as four councils had been held before the period that ended ere a millennium and a half from now. After the time of Devardhigani no well-organised council was held. The Agamas committed to writing in his time were disorganised to a very great extent in this long interval. A fresh council was therefore a desideratum. Ācārya Sri Tulsi made an attempt at holding a Comprehensive Consentaneous Council, but could not succeed. Ultimately we arrived at the view that our Council will serve the same purpose, if it was based on impartial research and complete dedication to the cause of truth. We started our work in accordance with this resolution. The chief inspiration to this council is the Acarya Sri. The council is a deliberative assembly headed by an eminent personality who combines in him. self a variety of functions, the chief among them being teaching and instruction, translation, investigation, critical study, sorting out correct reading and so on. We enjoyed the active cooperation, guidance and encouragement in all these activities from the Acārya Sri. This indeed was our strength and support for undertaking such an arduous task Instead of feeling relieved of the burden by expressing my gratitude to the Acārya Sri, it would be better for me to feel more burdened by the support of his blessing for the future work and responsibility. In editing the text of the nine upãngas in the present volume I received sufficient cooperation from Muni Sudarshanji and Muni Hiralalji. In the work of ascertaining the readings in Pannavanā and Nirayāvaliyão, Muni Balchandji and Muni Madhukarji respectively offered assistance. In preparing the press copy, Late Mannala lji Borad also proved helpful. The work index of Pannavaņā has been prepared by Muni Srichandji, of Jambuddivapannatti, Sūrapannaiti and Candapannatti by Muni Sudarshanji and of Nirayāvaliyão by Muni Hiralalji. The first Appendix and the extent of the text was determined by Muni Hiralalji. In preparing the word indexes of Pannavanā and Jambuddivapaņgatti, Sadhvi Jinaprabhā and Sadhvi Chandanbālā respectively contributed a lot. In proof-reading Muni Sudarshanji, Muni Hiralalji, Muni Dulaharajji and Samaņi Kusumprajña actively cooperated. At certain stages Muni Vimalkumarji and Muni Sampatmalji also proved helpful. Muni Hiralalji was specially engaged in revising the text again. I express sentiments of gratitude for all those, in addition to the names already mentioned, who contributed whatever little they could in editing the text of the 32 agamas. In this task we utilised the muss. belonging to the institutions such as L. D. Institute of Indology, Ahmedabad, Shrichand Ganeshdass Gadhaiya Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pustak Bhandara, Sardarshahar, Terapantha Sabha, Sardarshahar, Punamchand Buddhamal Dudhoriya, Chhapar, Ghewar Pustakalaya, Sujangarh, Jain Vishva Bharti, Ladnun and Jaisalmer Bhandāra, in addition to Order's Bhandāra. The text of Nandi revised by Muni Punyavijayaji was also made available to us. All this provei a valuable assistance to us. An important stage of the publication of the revised text of 32 āgamas, which began under the able stewardship of Ācārya Si Tulsi as Vācanā-pramukha, is completing today. For the first time the revised and authorised version of the 32 āgamas is being made available to the scholars. It is a matter of ineffable joy for us. The work of the editing of agamas first started in V.S. 2012 at Ujjain. In that year the word indexes of almost all the 32 agamas had been prepared. Several monks and nuns were actively engaged in it. Groups, each containing three or four monks or nuns, were formed and they finished the assignment without any loss of time. On the one hand the aged monks like Muni Chauthmalji, Muni Sohanlalji (Churu) etc. were actively engaged in it while on the other hand the younger monks too devoted themselves wholeheartedly to this job, which was like a campaign and every participant was full of the awakening of a new spirit. The text was unrevised so far, so it could not be utilised fully weli. Word-indexes had got to be prepared anew, but whatever line of action was chalked out, was quite commendable. One special and worth-mentioning characteristic of this editing is that everything was done by the monks themselves and no external help from any scholar-householder was required. The whole credit goes to the leadership of Acărya Sri as also to the Terapanth Religious Order. I cannot afford to forget on this occasion the services rendered by the late Madanchandji Gothi who had a very sound knowledge of agamas and was exceedingly helpful in revising the text of agamas. Had he been alive, he would have felt satisfied on the publication of this volume. The Managing Director of the Agama series, Sri Srichand Rampuria (Vice-Chancellor, Jain Vishva Bharti) has been taking interest in this work since its inception. He is ever devoted to the task of popularising the Agamic lore. After retiring completely from his well-established profession, he has been devot. ing a major part of his time to the service of Agama literature. Sri Khemchand Sethia and Sri Srichand Bengani, the President and the Secretary respectively of Jain Vishva Bhart i have cooperated a lot towards the successful completion of this task. The English rendering of 'Editorial' and 'Introduction' has been made by Dr. Nathmal Tatia. The mention of the cooperation of the co-workers in a common enterprise is only a formality. In fact it was a sacred duty of all of us and that we have fulfilled. Anuvrata Bhawan, Delhi. Yuvācārya Mahaprajña 22nd Oct., 1987. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The present volume consists of nine agamas -uvangas-Pantavaņā, Jambuddivapagbatt, Candapappatti, Sarapannatti, Nirayavaliyão (five in number). PANNAVANA The canon under review is Paṛṇavaṇā (Prajñāpanā). It treats extensively the two substances-sentient being (jiva) and insentient being (ajiva). The term used in the beginning is prajñāpana', hence the whole canon bears the name 'Prajñāpanā". One of its aims is to interpret the Reality through QuestionAnswer method, and the same thing has been done in this canonical text. That also justifies its nomenclature as Prajñāpona. In the opening gathās, this agama has been named as 'Adhyayana' which shows that one of its names is 'Adhyayana" also. It relates to Drstivada, the twelfth anga, so it has been called as the essence or niḥsyanda of Drstivada. Subject-Matter It contains 36 topics (padas) which discuss the various aspects (paryayas) of soul (jiva) and non-soul (ajiva). It is like an ocean of the Science of Reality (tativa vidya) through which the deeper meaning of Indian Science of Reality can be appreciated. The first topic (pada) provides two classifications of vegetable-bodied beings-the individual-bodied (pratyekaśarlrl) and commonbodied (sadharanasariri). The common-bodied presents such a unique picture of Socialism which cannot even be imagined in human society. It deals in greater details with the dryas and the mlecchas. This canon is the source book of the Science of Truth (tattvajñāna). Whereas the Bhagavar is an anga-pravista canon, the Pannavana is an Upanga. Both these Agamas are inter-related on account of their common theme of the Science of Truth. Most of the Prajñāpana has been included in Bhagavat! by Devarddhigani, as is evident from the use of Jaha pannavande time and again. Its every pada is like the embodiment of abstruse metaphysical problems. It contains various important sutras about lesya and karma. Nandisutra gives us the two classifications of Agamas-angapravista and 1. Pannavana, gatha 2 21 2. 3 3. 1/32 Introduction " " " Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ angabāhya. The former is again twofold- Āvasyaka and Avasyaka-yyatirikta. 'The latter is again classificd as kálika and utkalika. Thus Pannavanā is Angabahya, Āvaśyaka-vyatirikta and Utkāliku. Nandi does not contain any reference to Ariga and Angubahya. In the latter part of the Agama age the interrelation between Ariga and Angabahya was determined. Accordingly, Prajñāpanā turns to be the upanga of Samayāyanga. On what basis this interrelationship was determined is a matter of research. It would have been all the more intelligible if Prajñāpanā had been recognised as Upanga of Bhagavati. Autbor and the Period of Composition Pannavaņā is the sum and substance (nihsyanda) of Drslivada. We can thus infer that its subject matter has been derived from Drspivāda. Its author is Arya Syāma ? l!e was the 23rd in lineage from Acārya Sudharmásvámi He was a powerful våcaka in the tradition of the lineage of vacakas. He flourished in the 4th century of Vira-nirvana. The date of composition of Pannavanā is probably between the year 335 and 375 of Vira-nirvana. Nandi mentions the 'Maháprajñāpanâ' which is now extinct. Both Mahaprajñāpanā and Prajñāpană are independent works. It cannot be said definitely whether the former is the progenitor of the latter or the latter contains any new topic. Among the twelve upângas, Prajñāpanā holds a unique position. We can guess from this that it was composed at the period when the Purvas were passing into oblivion and their remaining portions alone were in memory Satkhaņdāgama too came into existence at such a period. The remaining upāngas were composed in the period subsequent to the composition of Prajñāpanā. All this conjecture has been made on the basis of their subjectmatter. Umāsvāti flourished in 5th century of Vira-nirvana. His Tattvärthasutra mentions the sūtra "äryä mlecchāśca", 3 which must be based on the first 'pada' of Prajñāpanā. The clearcut idea and definition of 'arya' and 'mleccha' appearing there is not to be found elsewhere. On this basis Pannavaņā precedes the period of Umāsvāti. Commentaries Many commentaries of Pannavaņā are available. They are as follows :Commentaries Granthāgra Autbor Date 1. Pradeśa-commentary 3728 Haribhadrasūri 8th Cen. 2 Trriya-pada-Sangrahani 133 Abhayadevasúti First half of 12th Cen. gautama. 1. Nandi, 73-77 2. Prajñāpana Vr. patra, 47/1, aryašvāmo yadeva granthàntareşu asaligă pratipadakam praśnabhagavannirvacanarūpam sūtramasri taderāgama bahumängtah pathati. Prajnåpana Vr. Patra, 72; bhagavān dryasyamo'pi itthameya satram racayati. 3. Tattvärthasútra, 3/36 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Tavāna 3. Vivsti 14500 Malayagiri 13th Cen. 4. Abhayadeva's Titium-pada-sangrahoni avacūmi Kulamandariagani 15th Cen. 5. Vyti Anonymous 6. Vanaspoti-siplikā or Vanaspati.' icara Municandra 1/?th Ce: 7 Avucuri Padmasuri S. Bulanabodha . Dhanavimala 17th Cen Jivavijaya Year 1785 10. Stahaka Parmānanda ► 1876 11. Pannuruna ni Joda 550 Jayācārya 1978 In additioa to this, we also find some smaller commentaries of Pannavana. Muni Punyavijaya has meitioned the commentary named “Bījaka' by Harsakulagani'.! In Muni Punyavijaya's "Introduction to Prajñāpana" and in Jinaratnakośa' we find mention of 'puryāya'. "Prajñāpanā-sútra-sároddhara" is also mentioned in Jiniratnakośa'. Acarya Malayagiri mentio:as cūrņi and Vyddhayrakhya in his Vrtti? Cúrņi is untraceable at present. Malayagiri's commentary is the most elaborate among all the available commentariesĀcārya Haribhadra Sūri's commentary is the most origiual and basic too. JAMBUDDIYAPANNATTI Nomenclature This canon is known as Jambuddivapannatti (Jambūdvipaprajñapri). Prajñāpti means exposition, information or treatment. It contains the cxposition of Jambūdvīpa, hence it is called Jambūdvipap ajñapti. Sthānanga sutra mentions four ungabāhya prajñapris---(1) Candraprajñupti, (2) Süryaprajñapti, (3) Jumbidvípaprajñapti, and (4) Drīpasāgaraprajñupti.' In Kasāyopõhudu, projñaptis have been classified as the five arthadhikaras of 'parikarma' which is the first division of Drsțivada-(i) Candraprajñapti, (2) Suryaprajñapti, (3) Jambūdvipuprajñapti, (4) Dvipasāgara prajñapti and (5) Vyākhyāprujñapti.* In Nandi, Jumbūdvipaprujñapti 1. Pannavana Sattam, Part II, Introduction, p. 158 1. Vrati patra, 269: aha ca cürnikt. * 271 : äha ca cürnikrlo'pi. " " 272: yadah cūrniks!. > " 277: aha ca cürnikri. " S7:prajiāpanāyāốcũrno. ” ” 600 : tatrāivam vrddhavyakhya. 1. Thanam, 4/189 2. Kasayepähudla, Adhikara I, pejjadosavihalti, p. 137; parivamme pañca atthähirarā-randapannalla sarapannalli jamhuddivapannatti divasāyarapannarri viyahapannatti cedi. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ has been categorised as Kālika āgama. Subject matter Its main theme is Jambūdvipa. The list of peripheral and incidental topics is very long. Lord Rşabha, Kulakara, Bharata Cakravarti, Kālacakra, Sauramandala, and many others are the subjects dealt with in it. The description about Bharata Cakravarti's fourteen jewels and nine treasures has been described here in a lively manner. Under the 'wheel of eternity' (kalacakra), thrilling account has been given about the sixth spoke of the present descending cycle. Of all the available forecasts about the universal annihilation, it invites our attention most effect ively. By going through it one is confronted with the horrors of the atomic warfare. Both Lord Rşabha and Lord Mahavira have similarity in various respects. The former is called Adi Kāśyapa while the latter is called Antyakāśyapa. Both propounded the path of five Great Vows. Like Lord Mahavira, Lord Rşabha also put on garment for more than a year, followed by absolute nudity.. Bharata Cakravarti was seated in his palace of glass. While he was looking at his reflection in the mirror, he attained liberation. In later literature this incident is developed in a number of ways. At the loss of his finger-ring he felt the diminution of his beauty, which led him to deeper thought culminating into the attainment of a kevalihood. The canon gives us a beautiful picture of the termination of the 'yaugalika' state, and the beginning of social life and political administration, It is a very important document to get a clear idea of the multifaceted personality of Lord Rşabha. A comparative study of the delineation of Rşabha in the present text with that in the Srimadbhagavata is bound to be very fruitful. The canon is divided into seven chapters which are called 'vakkhäro' or ‘vakşaskāra'. Some of the topics are :-- 1. Jambůdvipa 2. Kālacakra & Rşabha-carita 3. Bharata-Carita 4. Jambūdvipa : detailed description 1. Nandi, 78 2. Jambuddivapannatli, 2/130-137 3. Dhananjaya-namamala, 114, page 57 : vharsiyan vrşabho jyäyän punaradyah prajapatih / aik svakuh kasyapo brahma gautamo nabhijo'grajah // Ibid, 115, p. 58: sarmalirmahatirviro mahaviro'ntyakaśyapah/ nathanvayo vardhamano yatirthamika sampratam // 4. Jambuddivapannatti, 2/66 5. Ibid, 3/221,222 6. Avasyakacūrni, p. 227 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 Birth Celebration of Tirtharkara 6. Geographical condition of 7. Syotiścakra. Jambūdvipa Author and Date This canon has been categorised as Upanga which shows that it was composed at a later period after Lord Mahavira's nirvana. Its author must be some anonymous elderly monk. The date of composition too is unknown. Jivājīvābhigame, containing detailed accounts of the Kalpavrkşas, was also composed by the elders. Jambúdvipaprojñupti gives only a brief account of them indicating the details through jāva'. This shows that Jambūdvīpaprajñapti was composed at a later period than that of Jivājīvābhigume. Possibly we may ascribe it to an earlier date than the emergence of a clear-cut distinction between Svetāmbara and Digambara schools which are mostly unanimous about the contents of Jambūdvīpaprajnapti. On this basis we can guess it to belong to the 4th-5th century of Vīranirvana. Commentaries About nine commentaries are available on this canon. Out of them, the V i by Sānticandra alone, has been printed; the remaining ones are unpublished. Sānticandra has mentioned that Malayagiri's commentary was lost with the passage of time, but noderii scholars have traced it out in the Jaisalmer Bhandāra. The Vrttis by Sánticandra and Punyasagara bear the mention of Cūrni. These Commentaries are as follows:--- SN. Canon Granthāgra Author Date 1. Cūrni Anonymous 2. Țikā (in Prakrit) Haribhadrasuri 3. Malayagiri - 4. Vrati 14252 Hiravijayasuri 1639 (Vikram Sam, 5. Vrati 13275 Punyasagara 1645 6. Tika 18000 Sánticandra 1660 (Prumeyaratnamañjūşa) 7. Țikā I 5000 Brahma Muni 8. Vrtti 18352 Dharmasagara and 1639 Vānara Rşi 9. Vriti Anonymous 1. Sänticandra : Vrtti patra 2: "latra prastuto'pārgasya vittih frimalayagirikytapi sampratikāla doseņu vyavacchinna." 2 Sce, Jinaratnakośa, p. 130. 3. (a) Sänticandra. Vrtti patra, 19 : "paridhyānayanopayastyayam cürnikaroktah." (b) Vr. p. 53,252,278. (c) Punyasagari vrtti, patra, 122: "etaccūrno ca." Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Muni Dharmasi has composed stubaka (labbā or bālavabodha) on it ul Gujarati. The abundance of commentaries reveals that this ca.101 was síudied very frequently CANDAPANNATTI AND SŪRAPANNATTI Nomenclature Shānanga mentions four angababya prajñaptis, of which the first is Candraprajñapri and the second is Súrraprujnapti. Kusayapähuda also mentions them in the same order. As the name comiotes, the first prajñapti deals with the moon while the second one deals with the sun, so they are named as Candruprajiapti and Sūryoprajñupti respectively, Subject Matter The list of ūgumes contains both these águmas--Candraprajñupti and Süryaprajñpti. Nandi's Agama-list too tells of Candraprajñapri as Kalika and Süryapruji-pri as Uikalika.“ 'The cause of this distinction demands investigation. The former is not available at prese it but for a very small portion of its beginning. We come across some manuscripts entitled Candrup ajñapri and Süryoprojñapti but their text throughout is identical except the initial sutra. Acārya Maluyagiri has composed cominentaries on both of them did they are almost identical "The general impressio, prevailing at present is that Cundruprujñopri is not at all available these days. Whatever is available is Süryaprajñupti alonc. Dr. Walter Schubring has put forward a conjectureSuryaprajñapti, from its 71 puhuda Ojiwards, ascribes more importance to the moon and ihe stars, so we imagine thui! Candraprajñupri begins from the 10th pāludu.' But in the absence of the whole subject matter of Candruprojiupti, Schubring's conclusions cannot be taken as authoritative outright. Even then there is much toom for consideration. Commentaries Malayagiri's commentaries are availabic On boin-Cund aprajñopli and Süty prujñopii. The commentaries are identical and whatever iheir difference is has been noted in the Appendix. According to Jinaratnak ośu, the granthägra of the commentaries of these agamus is 9300 and 9000% respectively. Bhadrabāhu's Nirvukiis mention the Niryukti on Sú paprajñop i,? which was, liowever, 1101 1. Thunani, 41189. 2 Kasayapāhida, Chapter 1-"pejjuulosa rihatti". p. 137 3. Nandi, 77,78 4. Schutring : The Doctrine of the Juina, p. 102 5. Jinaratnakosa, p. 118 6 Ibid, P 452 7. Avasyaka-niryukti, gatha, 85 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ traceable in Malayagiri's period. He has mentioned the views of his foregoing ācāryas also in his commentary. NIRAYAVALIYO Nomenclature This agama is a śrutaskandha- Its oldest name seems to be upanga Jambūsvāmi enquired of Sudharmāsvāmi the meaning of upanga, whereon the latter repliců—“Upānga is fivefold-Nirayávalika, Kalpavatamśikā, Puspikā, Puspacūlika, Vrsnidaśa. The term 'upānga' is here used in plural number. It is a frutaskundha consisting of five sections. The plural number is probably used on this reason. We do not know about its original anga. The term 'upangu' is not in vogue at present for the text. Upānga stands for the 'collection of twelve agamas.' Nandi's list of canons does not mention the term 'upanga', but only Nirayāvaliyão' etc. are mentioned as five independent äganas. It may be supposed that the five canons were regarded as a śrutaskundha in later times after the composition of the Nuindi, and the śrutaskandha was named as upanga. According to Prof. Winternitz, these five agamas were earlier known as 'Niravavalika'. They were regarded as separate entities when the contents of angas and upangas were determined. Nirayávaliyao is also known as kalpikā, as we find this in some manuscripts of Nandi. The same term has been used in the writi of Nundi by Acārya Haribhajrasürj and Ācārya Maiayagiri : It is just possible that the first group of the 'uvarigā' was namel as 'kalpika', but as it related to the karmas leading to heli, it was given the second name Nirāyāva lika. In this way, the two names viz. Nirayāvalika' and 'kalpika' originated. Subject-matier The main theme of the Niruyávalikā śrutaskandha is the auspicious and inauspicious conduct and karma and their vipāku. In the first section we find the description of fierce battle between Cetaka 1. Vitti p. 1, gatha 5 usya niryuklirabhüpürvam śribhadrubahusürikria / kaluloso sa nesada yvacak şe kevalam sitram !! 2. Sir yaprajnapti, Vrtip 168: tallevam yuthi purvācâr yairidunieva pūrvasātrumavalanıbya piirvuvisayum vyakhyanam krtam tarha moyi vineyajananugrahüy'u s umat yanusareitopadaršitam // 3. Nirayuvaliyão, 1/4,5 4. listory of Indian Literature, II Edn, Vol. II, pp. 457-458 5. Nandi, 78 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ and Srenika, which has been referred to not only in the Bhagavarii and the Avaśyaka cūrņi", but in the Buddhist literature too. It is surprising that history does not record this battle. Battle may be indispensable for self-protection, and the consequent violence may be regarded as inevitable for a householder. Even then none can deny that violence is, for all purposes, but violence and it can never masquerade as nonviolence. In the section under review, this anti-war attitude has come to the forefront, and it is a spiritual edict against the religious justification of holy wars. The second section contains the description of the salvation of Sreņika's ten grandchildren, who adopted the path of religious austerities. The third section propounds the obscrvance and non-observance of restraint and equanimity. The fourth section contains the description of the ten nuns (disciples) of Parśvanātha. We find the description of the observance of conduct by the twelve princes of Vţşņi dynasty and their birth in 'Survärthasiddhi' in the fifth section. Thus various interesting and important topics have been propounded in this small-sized upanga, that is, Nirayavalikā śrutaskandha. Author and Date of Composition No definite information is available about the author and the date of composition of this angahāhya śrutaskandha. It is, however, certain that some elderly monk composed it. It deals with the topics related with Bhagavari, jñātā, Upāsakudasā, Aupapātiku and Rajapraśniya, but this is 110t a sufficient ground to determine the date of its composition. When the Āgamas were analysed, it was found that thc earlier agamas contain the names of the later āgamas, so they cannot determine which agamas were composed carlier and which at a later date. Commentaries A Sanskrit commentary is available on this śrutuskandha. Sricandrasuri wrote its commentary, a very abridged piece of composition, in the Vikram era 1228. A fabbá (stabaka) was composed on it in Gujarati by Muni Dharmasi (Dharmasingh). Completion of the Assignment The overall credit of its editing goes to Yuväcărya Mahaprajña. The work has come to successful completion due to the single-mindedness with which he applied himself to the task day and night, without which this gigantic task would have been insurmountable Being a yogi basically, he is able to ever maintain concentration of mind. Engaged as he has been in the cditing of the agamas for a 1. Bhagavati, 7/173,210 2. Avašyaka cúrni, part II, p. 174 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ very long period, he is eminently endowed with the power to penetrate into the deeper mysteries of the canonical texts. Modesty, perseverance and complete dedication to the guru have contributed to the development of these merits in him. Such merits were inherent in him since childhood. Since the time he came to me, I have found gradual intensification of these merits. I have derived utmost satisfaction from his capability and wholehearted devotion to duty. Many other mo: ks also contributed towards the editing of the text of these canons 1 bless them all with the wish that their working capacity may be all the more developed. I had embarked upon this Herculean work of agamas, having complete faith in my disciples--the monks and nuts of the Order. I feel highly satisfied that this gigantic task has been accomplished successfully in a right way. Anuvrata Bhawan, New Delhi, - Acharya Tulsi 22nd October, 1987 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वक्खारो बीओ वक्खारो तइओ वक्खारो चउत्थो वक्खारी पंचमो वक्खारो छट्टो वक्खारो सत्तमो वक्खारो जंबुद्दीवपण्णत्ती सू० १ से ५१ सू० १ से १६४ सू० १ से २२६ सू० १ से २७७ सू०१ से ७४ सू० १ से २६ सू. १ से २१४ पृ० ३५९ से ३७० पृ० ३७१ से ४०३ पृ० ४०४ से ४६७ पृ० ४६८ से ५२४ पृ० ५२५ से ५४८ ६ से ५५१ पृ० ५५२ से ५८८ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबद्दीवपण्णत्ती Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती पढमो वक्खारो १. णमो अरहंताणं' ॥ २. तेणं' कालेणं तेणं समएणं मिहिला णामं णयरी होत्था-रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धा, वण्णओ॥ ३. तीसे णं मिहिलाए णयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं माणिभद्दे णामं चेइए होत्था, वण्णओ' | जियसत्तू राया, धारिणी देवी, वण्णओ ॥ ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढो, परिसा णिग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूई णाम अणगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए 'वज्जरिसभनारायसंघयणे कणगपुलगनिघसपागोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबह्मचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाती सभणस्स भगवओ महावीस्स अदूरसामते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्टोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ ६. तते णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नको उहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोउहल्ले उठाए उठेति, उठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागछित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं १. अरिहंताणं (त्रि, प); क्वचिन् नमो अरि- ३. ओ० सू० १। हताण नमो अरुहंताण चेति पाठान्तरं दृश्यते ४. ओ० सू० २-१३ । (हीवृ); अरिहंताणति पाठान्तरं, अरुह- ५. ओ० सू० १४, १५ । ताणं इत्यादि पाठान्तरम् (पुत्र)। ६. गोयम (त्रि)। २. 'ते' इति प्राकृत शैलीवशात्तस्मिन्निति द्रष्टव्यम् ७. सं० पा०—ममच उरसे जाव आदाहिण 'ण' मिति वाक्यालंकारे, अथवा सप्तम्यर्थे पयाहिणं करेइ जाव वंदति वंदिता जाव तुतीया आर्षत्वात् (पुत्र, शाव, ही)। एवं। ........._ _ . ३५६ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जंबुद्दीपण्णत्ती करेइ, करेता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पच्चासन्ने गातिदूरे सुस्सुसमाणे णमंसमाणे अभिमु विणणं पंजलियडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी७. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ? केमहालए णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ? किंसंठिए णं भंते! जंबुदीवे दीवे ? किमागारभावपडोयारे' णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे पण्णत्ते ? गोमा ! अयणं जंबुद्दीवे दीवे सब्वदीवसमुद्दाणं सव्वभितरए सव्वखुड्डाए बट्टे तेल्लाप्यसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्क वालसंठाणसंठिए बट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंद संठाणसंठिए एवं जोयणसयसहस्सं आयाम विक्खभेणं, तिष्णि जोयणसयसहस्साई सोलस सहस्साइं दोणि य सत्तावीसे जोयणसए तिणि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई अद्धंगुलं च किचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते । से णं एगए वइरामईए जगईए सव्व समंता संपरिक्खित्ते || ८. साणं जगई अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले वारस जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे अटु जोयणाई विवखंभेणं, उवरिं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, मूले विच्छिण्णा', मज्झे संखित्ता, उवरिं' तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा लव्हा घट्टा मट्ठा णीया शिमला णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया' सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ ६. साणं जगई एगेणं महंतगवक्खकडणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता । सेणं गवक्खकडए* अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिवे || १०. तोसे गं जगईए उपि बहुमज्ज्ञदेसभाए, एत्थ णं महई' एगा पउमवरवेइया पण्णत्ता-अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं, जगईसमिया परिक्खेवेणं सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ११. तीसे णं पउमत्ररवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा- वइरामया मा' एवं जहा " जीवाभिगमे जाव अट्ठो जाव धुवा नियया सासया" "अक्खया अन्वया अवट्टिया णिच्चा ॥ १२. तीसे णं जगईए उप्पि 'पउमवरवेइयाए बाहि" एत्थ णं महं एगे वणसंडे १. किमागारपडोयारे (क, ख ) २. सभंतरए ( प ) ३. वित्थण्णा ( अ, ख ) । ४. उप्प ( अ ) - ५. सपिरीया (क, त्रि); समरीइया ( प ) ; सस्सिरीय' त्ति सुश्रीका बहिर्विनिर्गतकिरणजालेनापि श्रेष्ठा जीवाभिगमे तु समरीइत्ति पाठ: (होवृ ) । ६. ॰गवक्खजालकडएणं ( अ, त्रि, पुवृ) ; गवक्खजालवाडएणं ( ख ) ; गवक्खकडणं ( पुवृपा); जालकडएणं ( जी० ३।२६२ ) । ( ख ) ; जालकडए (जी० ७. गवक्खवाडए ३।२६२) । ८.महं ( अ, क, ख, त्रि, स ) 1 ६. णिम्म (त्रि); पेम्मा ( प ) | १० जी० ३।२६४-२७२ । ११. सं० पा० - सासया जाव णिच्चा । १२. बाहि परमवरवेश्याए ( अ, क, ख, त्रि, पस)। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वक्खारी पणत्ते-देसूणाई दो जोयणाइं विक्खंभेणं', जगईसमए परिक्खेवेणं, वणसंडवण्णओ णेयव्वो॥ १३. तस्स णं वणसंडस्स अंतो वहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामएआलिंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविहपंचवणेहि मणीहि य तणेहि य उवसोभिए, तं जहाकिण्हेहिं 'जाव सुक्किलेहि"। एवं वण्णो गंधो फासो सद्दो पुक्खरिणीओ पन्वयगा घरगा मंडवगा पुढविसिलावट्टया य णेयव्वा । तत्थ गं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति सयंति' चिट्ठति णिसीयंति तुयद॒ति रमंति ललंति कीलंति मोहंति, पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्ताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फल वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ १४. तीसे णं जगईए उप्पि 'पउमवरवेइयाए अंतो" एत्थ णं महं एगे वणसंडे पण्णत्ते-देसूणाई दो जोयणाइं विक्खंभेणं, वेदियासमए परिक्खेवेणं किण्हे जाव'तण विहणे" यव्वे ।। १५. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा--विजए वेजयंते जयंते अपराजिते । १६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साई वीइवइत्ता जंबुद्दीवे दीवे पुरथिमपेरंते लवणसमुद्दपुरथिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीआए महाणईए उप्पि, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते-अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेए वरकणगथूभियाए जाव दारस्स वण्णओ जाव" रायहाणी । एवं चत्तारिवि दारा सरायहाणिया भाणियव्वा ।। १. चकवालविक्वंभेणं (जी० ३।२७३) । ८. द्रष्टव्यम्-जीवाजीवाभिगमस्य ३।२६६ सूत्रस्य २. जी० ३।२७३, २७४ ! पाद टिप्पणम् । ३. जी० ३।२७५। ६. जं० २१२,१३ । ४.४ (अ, क, ख, त्रि, प, स); पुण्यसागरवृत्तौ १०. शान्त्याचार्येण 'तणविहणे' इति पाठो व्याख्यात: लिखितपाठानुसारी पाठोसौ गृहीतः जीवाजीवा- नवरं तृणविहीणो ज्ञातव्य: अत्र तृणजन्यः शब्दो भिगमेपि (३१२७५) एवमेव पाठो दृश्यते । पि तुणशब्देनाभिधीयते उपचारादतस्तुणशब्द५. जी० ३२७६-२६५ । विहीनो ज्ञातव्यः उपलक्षणत्वादस्य मणिशब्द६. 'प' प्रति विहाय अन्येवादशेषु अतः परवत्ति- विहीनोपि, पद्मवरवेदिकान्तरिततया तथाविधः पाठो नैव लिखितो दृश्यते, वत्तित्रयेपि व्याख्या- वाताभावतो मणीनां तुणानां चाचलनेन परस्पर तोस्ति, पुण्यसागरमहोपाध्यायेन इति टिप्पणी संघर्षाभावात् शब्दाभावः उपपन्नश्चायमर्थः कृतास्ति-सूत्रैकदेशग्रहणात् सम्पूर्ण सूत्रमेव जीवाभिगमसूत्रवत्योस्तथैव दर्शनादिति। हीरज्ञातव्यम् । प्रमेय रत्नमञ्जूषायामपि एवमस्ति विजयवृत्तावपि एवमेवास्ति । पुण्यसागरमहो-चिठ्ठती' त्यादिक: पाठो जीवाभिगमोक्तो पाध्ययेन तणसद्दविहणे' इति पाठो व्याख्यातः। लिखितोस्ति। ११. जी० ३।२६८-५६३ । ७. अंतो पउभवरवेइयाए (अ,क,ख,प,त्रिस)। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीव पण्णत्तो १७. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्स य केवइए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! अउणासीइं जोयणसहस्साइं बावण्णं च जोयणाई देसूणं च अद्धजोयणं दारस य दारस य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते || संग्रहणीगाहा - ३६२ अणासी सहस्सा, बावण्णं चेव जोयणा हुति । ऊणं च अद्धजोयण, दारंतर जंबुद्दीवस्स ॥१॥ १८. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! चुल्लहिमवंतस्स वासहपव्त्रयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, गुरत्थि मलवण समुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थि मलवणसमुहस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे णामं वासे पण्णत्ते-खाणुवहुले कंटकबहुले विसमबहुले दुग्गबहुले पव्ययबहुले पवायबहुले उज्झरवहुले णिज्झर बहुले खड्डाहुले' दरिबहुले णदीवहुले दहबहुले रुक्खवहुले गुच्छबहुले गुम्मबहुले याहुले वल्लीवहुले अडवीबहुले सावयवहुले तेणवहुले तक्करबहुले डिवबहुले डमरबहुले भिक्खवहुले दुक्काल बहुले पासंडबहुले किवणवहुले वणीमगबहुले ईतिवहुले मारिबहुले कुबुट्टिबहुले अणावुद्विवहुले रायबहुले रोगवहुले संकिलेसवहुले अभिक्खणं अभिक्खणं संखोहबहुले पादणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे उत्तरओ पलियंकसं ठाणसंठिए दाहिणओ धणुपट्टसंट्ठिए तिधा लवणसमुद्द पुट्ठे गंगासिंधूहिं महाणईहिं' वेयड्ढेण य पण छभागपविभत्ते जंबुद्दीवदीवणउयसयभागे पंचछब्वी से जोयणसए छच्च एगूणवीसभाए जोयणस्स विक्खंभेणं || १६ भरहस्य णं वासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं वेयड्ढे गामं पचाए' जेणं भरहं वासं दुहा विभयमाणे- विभयमाणे चिट्ठई, तं जहा - - दाहिणड्डूभरहं च उत्तरड्डभरहं च ॥ २०. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे भरहे णामं वासे पण्णत्ते ? गोमा ! वेस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवण समुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्यिम लवणसमुद्दस्स पच्चस्थिमेणं, पच्त्रत्थि मलवणसमुहस्स पुरत्थमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धभर हे णामं वासे पण्णत्ते -- पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे अद्धचंदसंठाणसंठिए तिहा लवणसमुदं पुट्ठे, गंगासिंधूहि महाणईहि तिभागपविभत्ते दोण्णि अट्ठतीसे जोयणसए तिणिय एगूणवीसइभागे जोयणस्स विक्खभेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुद्द पुट्ठा --- पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, णव जोयणसहस्साइं सत्त य अडयाले जोयणसए दुवालस य एगूणवीसभाए जोयणस्स आयामेणं, तीसे धणुपट्ठे दाहिणेणं णव जोयणसहस्साई १. गहुबहुले (क, ख ); खड्डा बहुले गडुवहुले (त्रि ) । २. लवणं ( अ, त्रि, ब ) । ३. × ( अ, ब ) । ४. ओतसयभागे ( अ, क, ब) 1 ५. पव पण्णत्ते (क, ख, त्रि,प,स,पुवृ, शावृ, ही वृ); एतत्पदं ताडपत्रीयादर्शयोर्नास्ति, अर्वाचीनादषु वर्तते अतएव वृत्तित्रयेपि व्याख्यातास्ति, अग्रे 'यत्' पदस्य प्रयोगोस्ति तेन नापेक्षितोप्यस्ति । ६. भारहं (क, ख,स) । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वक्खारो सत्तछावठे जोयणसए इक्कं च एगूणवीसइभागे जोयणस्स किंचिविसेसाहियं परिक्खेवणं पण्णत्ते ॥ २१. दाहिणड्डभरहस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए--आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' 'णाणाविहपंचवण्णेहि मणीहि तणेहि य" उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहि चेव अकित्तिमेहि चेव ॥ २२. दाहिणभरहे णं भंते ! वासे मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणुया बहुसंधयणा बहुसंठाणा बहुउच्चत्तपज्जवा बहुआउपज्जवा वहुई वासाइं आउं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मण्यगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिग्वंति' सव्वदुक्खाणमंतं करेति ।। २३. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे णामं पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! उत्तरद्धभरहवासस्स दाहिणणं, दाहिणड्डभरहवासस्स उत्तरेणं, 'पुरथिमलवणसमूहस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं", एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे' वासे वेयड्ढे णामं पव्वए पण्णत्ते-पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे दुहा लवणसमुदं पुछेपुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्ल लवणसमुदं पुठे, पच्च थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुळे, पणवीसं जोयणाई उद्धं उच्चसेणं, छस्सकोसाई जोयणाई उन्हेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरस्थिम-पच्चत्थिमेणं चत्तारि अद्रासीए जोयणसए सोलस य एगूणवीसइभागे जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं पण्णत्ता । तस्स जीवा उत्तरेणं पाइणपडीणायया' दुहा लवणसमुदं पुट्ठा-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, पच्चस्थिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुदं पटा, दस जोयणसहस्साई सत्त य वीसे जोयणसए दुवालस य एगूणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं । तीसे धणपट्टे दाहिणणं दस जोयणसहस्साइं सत्त य तेयाले जोयणसए पण्णरस य एगणवीसइभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुयगसंठाणसंठिए सव्वरययामए" अच्छे सण्हे लण्हे १. जी. ३।२७५। २.जाणामणिपंचवह तणेहि मणीहि य (अ, क.ख.वि.ब); नानाप्रकारपञ्चवणमणिभिश्- चोपशोभितः (पुत्र); यत्तु क्वचिद् 'नाणामणिवणेहि' तिपाठः स चाशुद्धः सम्भाव्यते, जीवाभिगमादौ व्याख्यातपाठस्यैव दर्शनात् (ही)। ३. कत्तिमेहिं (त्रि)। ४. परिनिबायंति (क,ख,त्रि.प); 'परिनिर्वान्ति' वृत्तित्रयेपि स्वीकृतपाठस्य संस्कृतरूपं दृश्यते । ५. 'प' प्रति विहाय शेषादर्शषु 'लवणपच्चत्थिमेणं लवणपुरस्थिमेणं' इति संक्षिप्त रूपं विद्यते। ६. भारहे (अ,क,ख,त्रि,स) । ७. पातीणपडियायते (अ,त्रि)! ८. छच्च कोसाई (प)। ६. पाईणपडियायता (अ,त्रि)। १०. धणुवट्ठ (अ); धणुपुढें (ख) । ११. सव्वरयणामए (अ,ख,त्रि); एष पाठोशुद्धः प्रतिभाति वृत्तित्रयेपि 'रजतमयः' इति व्याख्यातत्वात्। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ जंबुद्दीवपणवत्ती घट्टे मछे णीरए णिम्मले णिप्पं के णिक्कंकडच्छाए सप्पभे समिरीए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे । उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। ताओ णं पउमवरवेश्याओ अद्धजोयणं उद्धं उच्चत्तेणं, पंचधणुसयाई विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं । वण्णओ भाणियव्वों । ते णं वणसंडा देसूणाई दो जोयणाई विक्खंभेणं, पउम्वरवेइयासमगा आयामेणं, किण्हा किण्होभासा जाव वण्णओ ॥ २४. वेयड्डस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं दो गुहाओ पण्णत्ताओ-उत्तरदाहिणाययाओ पाईणपडीणवित्थिण्णाओ पण्णासं जोयणाई आयामेणं, दुवालस जोयणाई विक्खंभेणं, अट्र जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं, वइरामयकवाडोहाडिआओ'जमलजुयलकवाडघणदुप्पवेसाओ णिच्चंधयारति मिस्साओ ववगयगहचंदसूरणक्खत्तजोइसपहाओ जाव पडिरूवाओ, तं जहा--तिमिसगुहा चेव, खंडप्पवायगुहा चेव । तत्थ गं दो देवा महिड्डीया महज्जुईया महाबला' महायसा महासोक्खा महाणुभागा पलिओवमट्टिईया परिवसंति, तं जहा- कयमालए'चेव, णट्टमालए चेव ॥ २५. तेसि णं वणसंडाणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेयड्डस्स पन्वयस्स उभओ पासिं दस-दस जोयणाई उड्ढे उप्पइत्ता, एत्थ णं दुवे विज्जाहरसेढीओ पण्णत्ताओपाईणपडोणाययाओ" उदीपदाहिणविच्छिण्णाओ दस-दस जोयणाई विक्खंभेणं, पन्वयसमियाओ आयामेणं, उभओ पासिं" दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ताओ । ताओ णं पउमवरवेइयाओ अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं, वयसामयाओ आयामेण, वण्णओं गयव्वो"। वणसडावि पउमवरवेइयासमगा आया मेण, वण्णओ" ॥ २६. विज्जाहरसेढीणं भंते ! भूमीणं केरिसए आगारभावपडोयारे" पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए–आलिंगपुक्खरेइ वा जाव ‘णाणाविहपंचवणेहि मणोहिं तणेहि य"" उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहि १. ससिरिए (अत्रि); ससिरीए (क,ख); ८. महेसक्का (अ); महेसक्खा (स, जी० सस्सिरिए (प)। ३१३४८)। २. जी० ३।२६३-२७२। ९. कतमालए (क,ख,स,)। ३. जी० ३१२७३-२६५ ।। १०. पाईणपडियायताओ (अ,त्रि) । ४. वइरामयगवाडो' (अ)। ११. पस्सिं (अ,त्रि)। ५. यावच्छब्दाद् वैताढयस्य अवयवरूपत्वेन वैता- १२. जी० ३१२६३-२७२। ढयवत अनयोरपि सब्वरययामयाओ अच्छाओ १३. जी. ३।२७३-२६५ । सण्डाओ' इति विशेषणानि वक्तव्यानि (ही)। १४. पडोगारे (त्रि,ब) । ६. खंडगरवायगुहा (अ, क, ख, त्रि, ब, स, ठाणं १५. गाणामणिचवण्णेहि २।२७६); वृतित्रयेपि खंडप्रात' रूपं शान्त्याच:यणामि अत्र वृतो टिप्पणीकृतास्तिव्याख्यातमिति तन्मूलेगृहीतम् । अत्र बहुध्वादशेषु 'नाणामणिचवणेहि मणीहि' ७. महब्बला (क,ख,त्रि,स)। इति पाठो दृश्यते, परं राजप्रश्नीयसूत्रवृत्त्यो Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढ़मो वक्खारो ३६५ चेव । तत्थ णं दविखणिल्लाए' विज्जाहरसेढीए गगणवल्लभपामोक्खापण्णासं विज्जाहरणगरावासा पग्णत्ता, उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए रहनेउरचक्कवालपामोक्खा सळिं विज्जाहरणगरावासा पण्णत्ता ! एवामेव सपुव्वावरेणं' दाहिणिल्लाए उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए एग दसुत्तरं 'विज्जाहरणगरावाससयं भवतीतिमक्खायं । ते विज्जाहरणगरा रिद्ध-त्थि मिय. समिद्धा पमुइयजण-जाणवया जाव पडिरूवा । तेसु णं विज्जाहरणगरेसु विज्जाहररायाणो परिवसंति -- महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारा, रायवण्णओ भाणियव्वों । २७. विज्जाहरसेढीणं भंते ! मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणुया बहुसंघयणा बहुसंठाणा बहुउच्चत्तपज्जवा बहुउपज्जवा जाव' सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।। २८. तासि णं विज्जाहरसेढीणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेयडस्स पव्वयस्स उभओ पासि दस-दस जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं दुवे आभिओग्गसेढीओ पण्णत्ताओ- पाईणपडीणाययाओ" उदीणदाहिण वित्थिण्णाओ दस-दस जोयणाइं विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, उभओ पासिं" दोहिं पउमवरवेइया हि दोहि य वणसंडेहि संपरिविखत्ताओ, वणओ" दोण्हवि, पव्वयसमियाओ आयामेणं । २६. आभिओरगसेढीण" भंते ! केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव तणेहिं उवसोभिए, वण्णाइ जाव" तणाणं सहोत्ति ॥ ३०. तासि णं आभिओग्गसेढीणं तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं जाव" वाणमंतरा देवा य देवीयो अ आसयंति सयंति" चिट्ठति णिसीयंति तुयटुंति रमंति ललंति कीडंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाण° फल वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरति । ३१. तासु णं आभिओग्गसेढीसु सक्कस्स देविदस्स देवरणो सोम-जम वरुणवेसमणकाइयाण आभिओग्गाणं देवाणं बहवे भवणा पण्णत्ता । ते णं भवणा वाहिं वट्टा अंतो चउरसा वण्णओ जाव" अच्छरगण-संघ-संविकिण्णा" 'दिव्वतुडितसद्दसंपणादिता सव्व ईष्टत्वात् सङ्गतत्वाचच 'नाणामणिपंचवण्णेहि ६. पस्सि (अ,त्रि,न)। मणीहि तहिं' इति पाठो लिखितोस्तीति १०. पाईणपडियायताओ (अ,त्रि,ब)। बोध्यम्। ११. पस्सि (अत्रि,ब)। १. दाहिणिल्लाए (प)। १२. जी० ३१२६३-२६५ । २. उवरिल्लाए (अ,क) । १३. आभिओगसेढीणं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ३. पुवावरेणं (अ,क,ख,ब,स, हीवृ)। १४. जी० ३१२७५-२८३ । ४. ओ०सू० १३ १५. जी० ३१२८४-२६५ । ५. विज्जाहरणगरसयं तेसु बहवे (अ,ब)। १६. सं०पा०.-सयंति जाव फलवित्तिविसेसं । ६. ओ०सू० १४॥ १७. यम (ब)। १८. पण्ण० २।३०। ७. पडोगारे (ब)। १६. विकिष्णा (अ,क,ख,त्रि,प,ब); संपा०८. जं० २२२। अच्छरगणसंघसंविकिण्णा जाव पडिरूवा। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ जंबुद्दीवपण्णत्ती रयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्टा णोरया णिम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पहा सस्सिरीया समिरीया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोम-जम-वरुण-वेसमणकाइया बहवे आभिओग्गा देवा महिड्डीया महज्जुईया' 'महाबला महायसा महासोक्खा महाणुभागा पलिओवमट्टिईया परिवति ॥ ३२. तासि णं आभिओग्गसेढीणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेयड्डस्स पव्वयस्स उभओ पासिं पंच-पंच जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं वेयड्डस्स पव्वयस्स सिहरतले पण्णत्ते-पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे दस जोयणाई विक्खंभेणं, पव्वयसमगे आयामेणं । से णं एक्काए पउमवरवेइयाए एक्केण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । पमाणं वण्णगो' दोण्हपि ॥ ३३. वेयडस्स णं भंते ! पव्वयस्स सिहरतलस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए-आलिंगपुक्ख रेइ वा जाव णाणाविहपंचवणे हि मणीहिं तणेहि य उवसोभिए जाव वावीओ पुक्खरिणीओ जाव' वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति' 'सयंति चिठंति णिसीयंति तुयद्वृति रमंति ललंति कीडंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं° भुंजमाणा विहरति ।। ३४. जंबुद्दीवे गं भंते ! दीवे भारहे वासे वेयड्पव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! णव कूडा पण्णता, तं जहा-सिद्वायतणकूडे दाहिणड्डभरहकूडे खंडप्पवायगुहाकडे माणिभद्दकडे वेयडकूडे पुण्णभद्दकूडे तिमिसगुहाकडे उत्तरभरहकडे वेसमणकडे ॥ ३५. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्डपव्वए सिद्धायतणकूडे णाम कुडे पण्णत्ते ? गोयमा ! पुरस्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं दाहिणड्डभरहकडस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्डपव्वए सिद्धायतणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते, छ सक्कोसाइं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले छ सक्कोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे देसूणाई पंच जोयणाई विक्खंभेणं, उवरि साइरेगाइं तिणि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले देसूणाई वीसं जोयणाइं परिक्खे वेणं, मज्झे देसूणाई पण्णरस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरि साइरेगाइं णव जोयणाइं परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णे मज्झं संखित्ते उप्पि तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे सण्हे जाव' पडिरूवे। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिखित्ते, पमाणं वणओ' दोण्हंपि॥ ३६. सिद्धायतणकूडस्स णं उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए ---आलिंगपुक्खरेइ वा जाव वाणमंतरा देवा य' 'देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठति १. सं०पा०-~-महज्जुईया जाव महासोक्खा! ६. जं० १८ २. पाईणपडियायए (अ,त्रि,प)। १७. जी. ३१२६३-२६५ । ३. जी० ३.२६३-२६५। ८. जी० ३।२७५-२६५ ॥ ४. जी० ३१२७५-२६५। ६. सं० पा०-देवा य जाव विहरति । ५. संपा०—आसयंति जाव भुजमाणा। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वक्खारो णिसीयंति तुयद॒ति रमंति ललंति कीलंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फल वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ ३७. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स वहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महं एगे सिद्धायतणे पण्णत्ते--कोसं आया मेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूर्ण कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अणगखंभसयसन्निविट्ठे खंभग्गयसुकयवइरवेइयातोरण-वररइयसालभंजिय-सुसिलिट्ठविसिट्ट-लट्ट-संठिय-पसत्थवेरुलियविमलखंभे णाणामणिरयणखचिय-उज्जलवहुसमसुविभत्तभूमिभागे ईहामिग - उसभ तुरग-णर-मगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजरवणलय-पउमलय-भत्तिचित्ते कंचणमणिरयणथभियाए णाणाविहपंचवण्णघंटापडागपरिमंडियग्गसिहरे धवले मरीइकवयं' विणिम्मुयंते लाउल्लोइयमहिए जाव' झया। ३८. तस्स णं सिद्धायतणस्स तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता। ते ण दाग पंच धणसयाई उड्डं उच्चत्तेणं, अड्डाइज्जाई धणुसयाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं सेया वरकणगथुभियागा, दारवण्णओ जाव वणमाला।। ३६. तस्स णं सिद्धायतणस्स अंतो वहुसमरसणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए -~-आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' ४०. तस्स णं सिद्धायतणस्स वहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स वहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे देवच्छंदए" पण्णत्ते—पंचधणुसयाई आयामविक्खं भेणं, साइरेगाइं पंच धणुसयाइं उड्ढे उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए, एत्थ णं अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहप्पमाणमेत्ताणं संनिक्खितं चिट्ठइ । एवं जावधूवकडुच्छुगा ॥ ४१. कहिणं भंते ! वेयड्डपव्वए दाहिणड्डभरहकूडे णाम कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! १. 'चवले' त्यादि चपलं चञ्चलं चिकचिकाय- ५. जी० ३.२६८.३०४ । मानत्वात् (ही)। ६. जी० ३३७५ । २. मिरीयियकवयं (ब)। ७. अत्रानुक्तापि आयामविष्कम्भाभ्यां देवच्छन्द३ 'जाव झया' इति समर्पणपदात् पूर्णोपिपाठः कसमाना उच्चस्त्वेन तु तदर्द्धमाना मणिसरितो भवति । द्रष्टव्यं जीवाजीवाभि- पीठिका सम्भाव्यने, अन्यत्र राजप्रश्नीयादिषु गमस्य प्रतिपत्तेः ३१४१०.४१८ । शान्तिचन्द्र- देवच्छन्दकाधिकार तथाविधमणिपीठिकाया सूरिणापि एतस्मिन् विषये एका टिप्पणी दर्शनात् यथासूर्याभविमाने तस्स णं सिद्धायतकृतास्ति– 'जाव झया' इति अत्र यावरकर- पस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगा णात् वक्ष्यमाणयमिकाराजधानीप्रकरणगत- मणिपेढिया पण्णत्ता सोलसजोयणाई आयामसिद्धायतनवर्णके तिदिष्ट: सुधर्मासभागमो विक्खंभेणं अट्ठ जोयणाई उच्चत्तेणं' ति, तथा वाच्यो, यावत्सिद्धायतनोपरि ध्वना उपणिता विजयाराजधान्यामपि तस्स णं सिद्धाययणस्स भवन्ति, यद्यत्र यावत्पदग्राह्य द्वारवर्णकप्रतिमा बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिवर्ण धूपकडुच्छादिकं सर्वमन्तर्भवति तथापि पढिया पण्णत्ता दो जोयणाई आधामविक्खस्थानाशून्यतार्थ किञ्चित् सूत्रे दर्शयति - मेण जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमया अच्छा 'तस्स णं सिद्धायतणस्स' इत्यादि । जाव पडिरूवा' इति (शा)। ४. सया (अ,ब)। ८. जी० ३.४१३.४१७। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ जंबुद्दीपणती खंडप्पवाय कूडस्स पुरत्थिमेणं सिद्धायतणकूडस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं वेयपव्व दाहिणड्डूभरहकडे णाम कूडे पण्णत्ते, सिद्धायतणकूडप्पमाणसरिसे जाव' – ४२ तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंस पण्णत्ते - कोसं उड्ढे उच्चत्तेणं, अद्धकोसं विवखंभेणं अब्भुग्गय मूसिय पहसिए जाव' पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे || ४३. तस्स णं पासायवडेंसगस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता - पंच धणुसयाई आयामविवखभेणं, अड्डाइज्जाहिं धणुसयाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई' ।। ४४. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि सीहासणे पण्णत्ते, सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं ॥ ४५. से केणट्ठेणं भंते! एवं बच्चइ - दाहिणड्डूभरहकूडे दाहिणड्डूभरहकूडे ? गोमा ! दाहिणड्डूभरहकूडे णं दाहिणड्ढभरहे णामं देवे महिड्डीए जाव' पलिओवमट्ठिईए परिवसइ । से णं तत्थ चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिष्हं परिमाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाहिवईणं सोलसण्हं आयरक्खदेव साहस्सीणं दाहिणड्डूभरहकूडस्स दाहिणड्ढाए रायहाणीए, अण्णेसि च वहूणं देवाण य देवीण य' • आहेवच्चं पोरेवच्च सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा - ईसर - सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्ट- गीय-वाइय-तंती - तल-ताल-तुडिय घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरई' || ४६. कहि णं भंते ! दाहिणड्डूभ रहकूडस्स देवस्स दाहिणड्डा णामं रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वतस्स दक्खिणेणं तिरियमसंखेज्जदीवसमुद्दे वीईवइत्ता 'अण्णं जंबुद्दीवं दीवं"" दक्खिणं वारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणड्डूभर ह कूडस्स देवस्स दाहिणड्डूभरहा णामं रायहाणी भाणिअव्वा, जहा" विजयस्स देवस्स । एवं सव्व कूडा गेयव्वा जव" वेसमणकूडे परोप्परं पुरत्थिम- पच्चत्थिमेणं, इमेसि वष्णावासे गाहा- मझे वेयड्स्स उ, कणयमया तिण्णि होंति कूडा उ । सेसा पव्वयकूडा, सव्वे रयणामया होंति ॥ १ ॥ १. जं० ११३५, ३६ ॥ २. जं० ४।४८ । ३. सर्वात्मना रत्नमयी अच्छेत्यादि प्राग्वत् (पुवृ ) । ४. X ( क, ख, त्रि, प, स ) । ५. जी० ३।३०६-३११, ३३७-३४३ । ६. जं० ११२४ ॥ ७. दक्षिणार्द्धया इति पदैकदेशे पदसमुदायोपचारात् पाठान्तरानुसाराद् वा दक्षिणार्द्ध भरताया राज धान्या इति ( शावृ ) । ८. सं० पा० देवीण य जाव विहरइ ! ६. अत्र सूत्रेऽदृश्यमानमपि 'से तेणट्ठेण' मित्यादि सूत्रं स्वयं ज्ञेयम् (शावृ ) । १०. अण्णं जंबुद्दीवे दीवे ( अ, क,ख, ब, स ); अयणं जंबुद्दीवं दीवं (त्रि); अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे ( जी० ३,३४९ ) | ११. जी० ३।३४९-५६३ । १२. जं० ११३४ | Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वक्खारो ३६ माणिभद्दकूडे वेयड्ढकूडे पुण्णभद्दकूडे - एए तिणि कणगामया सेसा छप्पि रयणामया । 'छहं सरिणामया देवा, दोन्हं कयमालए चेव णट्टमालए चेव" । गाहा जामयाय कूडा, तन्नामा खलु हवंति ते देवा । पलिओवमट्टिईया, हवं ति पत्तेय पत्तेयं ||१|| रायहाणीओ ? जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं तिरियं असंखेज्जदीवसमुद्दे atest अण्णंम जंबुद्दीवे दीदे वारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं रायहाणीओ भाणियव्वाओ विजयरायहाणी सरिसियाओ || ४७. से केणट्ठेणं भंते! एवं बुच्चइ - वेयड्ढे पव्वए वेयड्ड पव्वए ? गोयमा ! वेयड्ढे णं पव्व भरहं वासं दुहा विभयमाणे- विभयमाणे चिट्ठइ, तं जहा दाहिणड्डूभरहं च उत्तरड्डभरहं च । वेयङ्कगिरिकुमारे य एत्थ देवे महिड्डीए जाव' पलिओवमईए परिवसइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - वेयड्ढे पव्वए वेयड्ढे पव्वए । अदुत्तरं च णं गोयमा ! वेयड्डुस्स पव्वयस्स सासए गामधेज्जे पण्णत्ते -- जंण कयाइ ण आणि कयाइ अस्थि, ण कयाइ ण भविस्सर, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे यिए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए निच्चे || ४८. कहि णं भंते ! जंबुद्दी वे दीवे उत्तरडभरहे णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! चुल्ल हिमवंतरस वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, वेयड्डस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थमलवण - मुद्दस्स पच्चत्थि मेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरडभरहे णामं वासे पण्णत्ते - पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे पलियंकसंठिए दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे – पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए' कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठे, गंगासिंधूहि महाणहि · १ दोन्हं वि सरिसणा मया देवा कयमालए चेव पट्टमालए चेव, सेसाणं छह सरिसणामया ( प ) ; हीरविजयवृत्तौ शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ च एष पाठो व्यत्ययेन व्याख्यातोस्ति- दोन्ह मित्यादि नवानां कूटानां मध्ये प्रथमस्य सिद्धायतनकूटस्य स्वामी अर्हन्नेव नापरो देव इत्यष्टानां तु मध्ये द्वयोः खण्डप्रपाततमित्राभिधानयोः कूटयो। विसदृशनामको देवी तद्यथा - कृतमालकश्च नृत्तमालकश्च चकारवकारी समुन्वयावधारणार्थी सेसाणं छण्हं ति शेषाणां दक्षिणार्द्ध भरतकूट १ मणिभद्रकूट २ वैताढ्यकूट ३ पूर्णभद्रकूट ४ उत्तरभरतार्द्धकूट ५ वैश्रमणकूट ६ नाम्नां कूटानां सदृशनामकाः सदृशं कूटेन समानं नाम येषां ते सदृशनामका देवा अधिपतयो भवन्ति अथोक्तमेवार्थव्यक्ती कुर्वन् स्थिति प्रतिपादयितुं गाथामाह ( ही ) ; द्वयोः कूटयोविसदृशनामकौ देवौ स्वामिनी, तद्यथा— कृतमालकश्चैव नृत्तमालकश्चैव तमिस्रगुहाकूटस्य कृतमालः स्वामी खण्डप्रपातगुहाकूटस्य नृत्तमाल: स्वामी, शेषाणां वण्णां कूटानां सदृक —— कूटनामसदृशं नाम येषां ते सद्गुनामका देवा: स्वामिन: ( शावृ ) । २. 'रायहाणीओ' त्ति एतेषां राजधान्यः क्व सन्तीति प्रश्नवाक्यं सूचितम् (पुवृ ) | ३. जी० ३।३४६-५६३ । ४. जं० ११२४ । ५. पडीयाय (त्रि,ब) 1 ६. सं० पा० – पच्चत्थिमिल्लाए जाव पुट्ठे । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती तिभागपविभत्ते दोणि अद्वतीसे जोयणसए तिण्णि य एगणवीस इभागे जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स वाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं अट्ठारस बाणउए जोयणसए सत्त य एगणवीसइभागे जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणप'डीणायया' दुहा' लवणसमुई पुट्ठा तहेव जाव चोद्दस जोयणसहस्साइं चत्तारि य एक्कहत्तरे जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसूणे आयामेणं पण्णत्ता ! तीसे धणुपट्टे दाहिणेणं चोद्दस जोयणसहस्साइं पंच अट्ठावीसे जोयणसए एक्कारस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं ॥ ४६. उत्तरड्डभरहस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! वहुसमरमणिज्जें भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि तणेहि य उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहि चेव ।। ५०. उत्तरड्डभरहे णं भंते ! वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणुया बहुसंघयणा' 'बहुसंठाणा वहुउच्चत्तपज्जवा बहुआउपज्जवा बहूई वासाइं आउं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी अप्पेग इया तिरियगामी अप्पेगइया मणुयगामी अप्पेगइया देवगामी अप्पेगइया सिझंति' 'बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति° सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ॥ ५१. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरडभरहे वासे उसभकूडे णामं पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! गंगाकुंडस्स पच्चत्थिमेणं, सिंधुकुंडस्स पुरथिमेणं, चुल्ल हिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभ रहे वासे उसह कूडे णामं पव्वए पण्णत्ते--अट्ट जोयणाई उड्डू उच्चत्तेणं, दो जोयणाई उन्वेहेणं, मूले अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे छ जोयणाई विक्खंभेणं, उवरि चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, मूले साइरेगाई पणवीसं जोयणाई परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं अट्ठारस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरि साइरेगाइ दुवालस जोयणाई परिक्खेवेणं, [पाठांतरं'-मूले वारस जोयणाई विक्खंभेण, मज्झे अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, उप्पि चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, मूले साइरेगाई सत्तत्तीसं जोयणाई परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं पणवीसं जोयणाई परिक्खेवेणं, उप्पि साइरेगाईबारस जोयणाई परिक्खेवेणं] मूले विच्छिण्णे मज्झे संक्खित्ते उपि तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वजंबूणयामए अच्छे सण्हे जाव पडिरूवे। से णं एगाए पउमवरवेइयाए तहेव जाव' भवणं कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूर्ण कोसं उड्डू उच्चत्तेणं । अट्ठो तहेव, उप्पलाणि पउमाणि जाव" उसभे य एत्थ देवे महिड्डीए जाव" दाहिणणं रायहाणी तहेव मंदरस्स पव्वयस्स जहा विजयस्स अविसेसियं ।। १. पडीयायता (त्रि,ब)। विद्यते, न तु आदर्शगतः।। २. दुधा (ख,स)। ८. जं० १।८। ३. एक्कसत्तरे (अ)। ६. ०११३५,३६,४२-४४ । ४. जी०३२७५ । १०. एतत्पदं से केणट्ठणं भंते !' इति पदस्य ५. सं० पा०-बहुसंधयणा जाव अप्पेगइया। सूचकमस्ति । ६. सं० पा०–सिज्झंति जाव सव्वदुक्खाणमंतं। ११. जी. ३१६३५ । ७. अयं वाचमाभेदः आगमसङ्कलनकालीन एव १२. जी० ३।३४८-५६३ 1 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वखारो कालचक्क-पदं १. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पण्णत्ते ? गोयमा? दुविहे काले पण्णत्ते, तं जहा-ओसप्पिणिकाले य उस्सप्पिणिकाले य॥ २. ओसप्पिणिकाले णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा ! छविहे पण्णत्ते, तं जहासुसमसुसमाकाले सुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले दुस्समाकाले दुस्समदुस्समाकाले ॥ ३. उस्सप्पिणिकाले णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा ! छविहे पण्णत्ते, तं जहादुस्समदुस्समाकाले' 'दुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले सुसमाकाले सुसमसुसमाकाले। ४. एगमेगस्स णं भंते ! महत्तस्स केवइया उस्सासद्धा विआहिया ? गोयमा ! असंखेज्जाणं समयाणं समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा आविलिअत्ति वुच्चई', संखेज्जाओ आवलियाओ ऊसासो, संखेज्जाओ आवलियाओ नीसासो। सिलोगा हवस्स अणवगल्लस्स, णिरुवकिट्ठस्स जंतुणो। एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुत्ति वुच्चई ॥१॥ सत्त पाणूइं से थोवे, सत्त थोवाइं से लवे । लवाणं सत्तहत्तरीए, एस मुहुत्तेति आहिए ॥२॥ गाहा तिणि सहस्सा सत्त य, सयाई तेवत्तरि च ऊसासा। एस मुहुत्तो भणिओ, सव्वेहिं अणंतनाणी हिं ॥३॥ एएणं मुहुत्तप्पमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तो, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उदू, तिण्णि उद् अयणे, दो अयणा संवच्छरे, पंच संवच्छरिए जुगे, वीसं १. सं० पा०---दुस्समदुस्समाकाले जाव सुसम- ३. हिट्ठस्स (क,ख)। सुसमाकाले। ४. उडू (त्रि); उऊ (प) अग्रेपि । २. पवुच्चइ (प)। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती जुगाई वाससए, दस वाससयाई वाससहस्से, सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्से, चउरासीई वाससयसहस्साई से एगे पुव्वंगे, चउरासीई पुव्वंगसयसहस्साई से एगे पुव्वे, एवं बिगुणं बिगुणं णेयव्वं सुडियंगे तुडिए अडडंगे अडडे अववंगे अववे हुहुयंगे हुहुए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे गलिणंगे णलिणे अत्थणिउरंगे' अत्थणिउरे अउयंगे अउए 'नउयंगे नउए पउयंगे पउए" चूलियंगे चूलिया जाव चउरासीइं सीसपहेलियंगसयसहस्साइं सा एगा सीसपहेलिया । एतावताव गणिए, एतावताव गणियस्स विसए", तेण परं ओवमिए ।। ५. से किं तं ओवमिए ? ओवमिए दुविहे पण्णते, तं जहा–पलिओवमे य सागरोवमे य॥ ६. से कि तं पलिओवमे ? पलिओवमस्स परूवणं करिस्सामि-परमाणू दुविहे पण्णते, तं जहा-सुहमे य वावहारिए य । अणंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदयसमिइ-समागमेणं वावहारिए परमाणू णिप्फज्जइ, तत्थ णो सत्थं कमइ--- गाहा सत्येण सुतिक्खणवि, छेत्तुं भित्तुं च जं किर ण सक्का । तं परमाणु सिद्धा, वयंति आदि पमाणाणं ॥१॥ १. जूयाई (त्रि.प.ब)। २. हूहुए (अप,पुत्); हूहूए (ब,हीवृ)। ३. अत्थिणीउरे (प)। ४. पउते २ णउते २ (अ,क,ब,हीव); द्रष्टव्यम् -अणुओगद्दाराइं ४१७ सूत्रस्यपादटिप्पणम् । ५. अत्र हीरविजयवृत्ती वाचनाभेदः समालोचि तोस्ति—अयं च संख्यानुक्रमो माथुरीवाचनानुगतो वलभीवाचनानुगतस्तु ज्योतिष्करण्डेsन्यथापि दृश्यते । तथाहि-पूर्वाङ्ग १ पूर्व २ लतांगं ३ लता ४ महालतांगं ५ महालता ६ नलिनांगं ७ नलिनं ८ महानलिनांग ६ महानलिनं १० पद्मांग ११ पद्म १२ महापद्मांगं १३ महापद्मं १४ कमलांगं १५ कमलं १६ महाकमलांग १७ महाकमलं १८ कुमुदागं १६ कुमुदं २० महाकुमुदांग २१ महाकुमुदं २२ त्रुटितांग २३ त्रुटित २४ महात्रुटितांगं २५ महात्रुटितं २६ अटटांगं २७ अटट' २८ महाअटटांग २६ महाअटट ३० जहांगं ३१ ऊहं ३२ महोहांगं ३३ महोहं ३४ शीर्षप्रहेलिकांगं ३५ शीर्षप्रहेलिका चेति ३६ न चात्र संमोहः कर्तव्यः भिक्षादिदोषेण श्रुतहान्या यस्य यादृशं स्मृतिगोचरीभूतं तेन तथा सम्मतीकृत्य लिखितं तच्च लिखनमेकं मथुरायां अपरं च वलभ्यामिति । यदुक्तम्-ज्योतिष्करण्डवृत्तावेव इह स्कन्दिलाचार्यप्रवृत्ती दुष्पमानुभावतो दुर्भिक्षप्रवृत्त्या साधूनां पठनगणनादिकं सर्वमप्यने शत् ततो दुभिक्षातिक्रमे सुभिक्षाप्रवृत्तौ द्वयोः सङ्घयोर्मेलापकोऽभवत तद्यथा एको वलभ्यामेको मथुरायाम् । तत्र सुत्रार्थसंघटने परस्परं वाचनाभेदो जातः विस्मृतयोहि सूत्रार्थयोः स्मृत्वा स्मृत्वा संघटने भवत्यवश्यं वाचनाभेदोन कदाचिदनुपपत्तिः । तत्रानुयोगहारादिकमिदानी च वर्तमान माथुरवाचनानुगतं ज्योतिष्करंडसूत्रकर्ता वाचार्यों वालभ्यस्तत इदं संख्यास्थानं प्रतिपादनं वालभ्यवाचनानुगतमिति नास्यानुयोगद्वारप्रतिपादितसंख्यास्थानः सह विसदृशत्वमुपलभ्य विचिकित्सितव्यमिति तथानुयोगद्वारे प्रयुतनयुतयोः परावृत्तिरप्यस्तीति । ६. आदी (त्रि,ब); आयं (प) । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो अणंताणं वावहारियपरमाणूण' समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा उस्साहस हिआइ वा सहमण्हियाइ वा उद्धरेण्इ वा तसरेणूइ वा रहरेणूइ वा वालग्गेइ वा लिक्खाइ वा जूयाइ वा जवमझेइ वा उस्सेहंगुलेइ वा अट्ठ उस्सण्हस ण्हियाओ सा एगा सहसण्हिया, अट्ठ सहसण्हियाओ सा एगा उद्धरेणू, अट्ठ उद्धरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ से एगे देवकुरूत्तरकुराणं मणुस्साणं वालग्गे, अट्ठ देवकुरूत्तरकुराणं मणुस्साणं वालग्गा से एगे हरिवास-रम्मयवासाणं मणुस्साणं वालग्गे', 'अठ्ठ हेमवय-एरण्णवयाणं भणुस्साणं वालग्गा से एगे पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गे, अट्ठ पूवविदेह-अवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गा सा एगा लिक्खा, अद्र लिक्खाओ सा एगा जूया, अट्ठ जूयाओ से एगे जवमझे, अट्ठ जवमज्झा से एगे अंगुले। एतेणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पाओ, बारस अंगुलाइ वितत्थी', चउवीस अंगुलाई रयणी, अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी, छण्णउई अंगुलाई से एगे अक्खेइ वा दंडेइ वा धणइ वा जूगेइ वा मुसलेइ वा णालिआइ वा । एतेणं धणुप्पमाणेणं दो धणुसहस्साई गाउयं, चत्तारि गाउयाई जोयणं । एएणं जोयणप्पमाणेणं जे पल्ले जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उडढं उच्चत्तणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं । से णं पल्लेगाहा--- एगाहिय बेहिय-तेहिय', उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । संमछे सण्णिचिए, भरिए वालग्ग कोडीणं ॥१॥ ते णं वालग्गा णो कुच्छेज्जा, णो परिविद्धंसेज्जा, णो अग्गी डहेज्जा, णो वाए हरेज्जा, णो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा, तओ णं वाससए-वाससए एगमेगं वालगं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे णीरए णिल्लेवे णिटिए भवइ, से तं पलिओवमे । गाहा एएसि पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिआ। तं सागरोवमस्स उ, एगस्स भवे परीमाणं ॥२॥ एएणं सागरोवमप्पमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा, तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा, दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदुस्समा, १. यद्यपि ग्रन्थान्तरे (अणुओगद्दाराई सू० ३६५) वालग्गे। अट्ट पुष्यविदेह-अवरविदेहाणं घरमाण तसरेणु' इत्यादि गाथायामुछ्श्लक्ष्णि मणुस्साणं वालग्गा भरहेरवयाण मणस्साणं कादीनि त्रीणि पदानि नोक्तानि (ही)। से एगे वालग्गे। अट्ट भरहे रवयाणं मणुस्साणं २. अंगुले (भ० ६१३४), वालग्गा सा एगा लिक्खा [अ० सू० ३६६] । ३. सं० पा०---वालग्गे एवं हेमवयएरण्णवयाणं ५. विहत्थी (क,ख,प,स, भ० ६।१३४, अणुओग मणस्साणं पुन्वविदेहअवरविदेहाणं मणुस्साग। द्दाराइं सू० ४००)। ४. प्रस्तुतपाठे भरतरवतयोर्मनुष्याणामुल्लेखो ६. जुतेति (ब) । नास्ति, अनुयोगद्वारसूत्रे विद्यते— अट्ट हेमवय- ७. •एगाहिय बेहिय तेहिय' ति षष्ठी बहुवचनहेरण्णवयाणं मणुस्वाणं वालग्गा पुब्वविदेह- लोपात् एकाहिक-द्वयाहिक - त्र्याहिकानाम् अवरविदेहाणं मणुस्साणं से एगे (ही)। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्तो एगा सागरोवमकोडाकोडीओ बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दुस्समसुसमा, एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समा, एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समदुस्समा । पुणरवि उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समदुस्समा, एवं पडिलोमं णेयव्वं जाव चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा। दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी, दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, बीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी।। ७. जंबुद्दीवे गं भंते ! दीवे भरहे वासे इमीसे ओस प्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमकट्टपत्ताए' भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था? गोयमा ! बहसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविधपंचवण्णेहि तणेहि य मणीहि य उवसोभिए, तं जहा- किण्हेहि जाव सुक्किलेहिं । एवं वण्णो गंधो फासो सहो य तणाण य भाणिअव्वो जाव' तत्थ णं वहवे मणुस्सा मणुस्सीओ य आसयंति सयंति चिळंति णिसीयंति तुयद॒ति हसंति रमंति ललंति ॥ ८. तीसे गं समाए भ रहे वासे बहवे उद्दाला 'कोद्दाला मोद्दाला" कयमाला णट्टमाला 'दंतमाला नागमाला सिंगमाला संखमाला" सेयमाला णामं दुमगणा पण्णत्ता, कुस-विकुसविसुद्धरुक्खमूला" पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य उच्छण-पडिच्छण्णा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा चिट्ठति ।।। तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहवे सेरुतालवणाई हेरुतालवणाई भेरुतालवणाई मेरुतालवणाई" पयालवणाइं" सालवणाई सरलवणाई सत्तिवण्णवणाई पूअफलिवणाइं खज्जूरीवणाई णालिएरीवणाई कुस-विकुस-विसुद्ध रुक्खमूलाई" 'पत्तेहि य प्रफेहि य फलेहि य उच्छण्ण-पडिच्छण्णा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा' चिट्ठति ॥ १०. तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहवे सेरियागुम्मा 'गोमालियागुम्मा कोरंटयगुम्मा बंधुजीवगगुम्मा मणोज्जगुम्मा बीयगुम्मा बाणगुम्मा कणइरगुम्मा कुज्जाय १. भारहे (क)। पुत्र); वट्टमाला दंतमाला सिंगमाला संखमाला २. ओसप्पिणीसमाए (ब)। (जी० ३।५८२)। ३. उत्तमट्ठपत्ताए (पु, शावृपा); उत्तिमट्ठ- १०. °मूला मूलमंतो कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्ताए (भ० ६।१३५)। (ख,प,शावृ)! ४. जी० ३२२७७ । ११. सूत्रे पुंस्त्वं प्राकृतत्वात् (हीव) । ५. णाणामणिपंचवण्णेहिं (म,क,ख,त्रि,ब)। १२. भेरुतालादयो वृक्षविशेषा (शाव) । ६. जी० ३१२७८-२९७ । १३.४ (अ,क,ख,ब,स); जीवाजीवाभिगमे ७. यावच्छब्दात् पुरा पोराणाणं सुचिष्णाणं (३५८१) पि एतत्पदं दृश्यते। सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं १४. पभवालवणाई (ख,त्रि); क्वचित् प्रभवालफलवित्तिविसेसे पच्चणुभवमाणा विहरंति वणा इति पाठः (शाव) । (ही)। १५. x (त्रि)। ८. मोद्दाला कुद्दाला (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १६. सं० पा० ---विसुद्धरुनखमूलाई जाव चिट्ठति । ६. संखमाला दंतमाला नागमाला (अ,क,ख,ब,स, Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोनो वखारी ३७५ गुम्मा सिंदुवारगुम्मा जातिगुम्मा मोग्गरगुम्मा जूहियागुम्मा मल्लियागुम्मा वासंतियागुम्मा वत्थुलगुम्मा कत्थुलगुम्मा सेवालगुम्मा अगस्थिगुम्मा मगदंतियागुम्मा चंपक गम्मा जातिगुम्मा गवणीइयागुम्मा कंदगुम्मा" महाजाइगुम्मा रम्मा महामेहणिकुरंवभूया दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमेंति, जे णं भरहे वासे वहुसमरमणिज्ज भूमिभाग वायविधुअग्गसाला मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति ॥ ११. 'तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहुईओ पउमलयाओ जाव सामलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ जाव' लयावण्णओ" । १२. तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ बहुईओ वणराईओ पण्णत्ताओ-- किण्हाओ किण्होभासाओ जाव' मणोहराओ रयमत्तछप्पय-कोरग-भिंगारग-कोंडलगजीवंजीवग-नंदीमुह-कविल-पिंगलक्खग-कारंडव-चक्कवाय- कलहंस-हंस"-सारसअणेगसउणगणमिहुणवियरियाओ सदुण्णइयमहुरसरणाइयाओ संपिडियदरियभम र महुयरिपहकरपरिलितमत्तछप्पय-कुसुमासवलोलमहरगुमगुमंतगुजंतदेसभागाओ गाणाविहगुच्छ-गम्म-मंडवगसोह्यिाओ वावापुक्खरणोदीहिया हि य सुणिवेसियरम्मजालघरगाओ" विचित्तसुहकेउ१. जाव (अ,क,ख,त्रि,ब,स, पुत्, होवृ) ६. कोरंगा (अ,क,ख,त्रि,ब,स); कोरण्टक २. यावन्महाकुन्दगुल्मा (हीब); यावन्महाजाति- (ही)। गुल्मा जीवाभिगमे तु सर्वगुल्मप्रान्ते महाकुन्द- १०. कोणाल (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। गुल्मा इति दृश्यते (पूर्व) मूलपाठ: 'प' ११. ४ (क,ख,त्रि,प,स) । संकेतितां प्रति प्रमेय रत्नमञ्जूषां चानुसृत्य १२. प्रमेयरत्नमञ्जूषायां प्रथमवक्षस्कार वनपण्ड. स्वीकृतः। पुण्यसागरमहोपाध्यायेन जीवा- वर्णकः उद्धृत!स्ति (वृत्ति पत्र २७,२८) तत्र जीवाभिगमवृत्ति लक्षीकृत्य महाकुन्दगुल्मा' 'विरइय' इति पाठो विद्यते 'विरचितं' इति इति सूचितम् । व्याख्यातमस्ति (वृत्तिपत्र ३०)। औप३. जी० ३१५८४ । पातिके (सू० ६) पि विरइय' इति पाठो ४. ४ (अ,क,ख,त्रि,ब,स, पुत्र, ही)। लभ्यते । तथा अस्मात् पाठात् परं 'एवं जाव ५. बहवे (अ.क,ख,त्रि,ब,स)। तहेव इच्चाइ वण्णाओ सेसं जहा' इत्यादि. ६. ओ० सू० ४। पदाभिव्य इम्य रतिदेशेर्दशितविवक्षणीयवाच्याः ७. अस्य स्थाने औषपातिके 'रम्माओ' इति सुत्रे लाघवं दर्शयन्ति, यत उक्तं निशीथभाष्ये पदमस्ति । षोडशोद्देशके--- ८. रइयमतपय (अ,ख,ब,त्रिस); शान्ति- कत्थइ देसग्गहणं, कत्थइ भण्णंति निरक्सेसाई। चन्द्रेण 'रतमत्ता:--. सूरतोन्मादिनः' इति उक्कमकमजुत्ताई, कारणवसओ निरुत्ताई ॥१॥ व्याख्यातम, एतमाठानुसारी वर्तते। हीर- १३. झणि (क); आदर्शेष संक्षिप्तपाठाः लिखिताः विजयवृत्तौ रइयमते' त्यादि, र ददाताति सनि, तेन वृत्ती अर्थविपासोपि दृश्यते, यथा रतिदा: गुञ्जनशब्दैः श्रोतृणामिति मम्मम् । -- 'झुणि' ति पदेन 'झुणिविचित्तभंगाओ' पुण्यसागरवृत्ती उपरचितं कृतम्' इति त्ति विशेषण ध्वनिविचित्रा भुना यासु व्याख्यातम् । एते द्वे अपि व्याख्ये 'रइय' तास्तथा (ही)। पाठमनुसृत्य कृते स्तः, तेन बुद्धिप्रधाने जाते। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ जंबुद्दीवपण्णत्ती भूयाओ अभितरपुप्फफलाओ बाहिरपत्तच्छण्णाओ पत्तेहि य पुप्फेहि य ओच्छण्णपरिच्छण्णाओ साउफलाओ णिरोगयाओ अकंटयाओ सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धाओ पिडिम' •णीहारिम सुगंधि सुहसुरभि मणहरं च महया गंधद्धणि मुयंतीओ सुहसेउके उबहुलाओ अणेगसगड-रह-जाण-जुन्ग-सीया-संदमाणिय-पडिमोयणाओ सुरम्माओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ।। १३. तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ-तत्थ मत्तंगाणाणं दुमगणा पण्णत्ता, जहा से चंदप्पभ जाव' ओछण्णपडिच्छण्णा चिट्ठति । एवं जाव' अणिगणा' णामं दुमगणा पणत्ता। १४. तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणुयाण केरिसए आगार भावपडोयारे' पण्णते ? गोयमा ! तेणं मणुया सुपइट्ठिय कुम्मचारुचलणा जाव लक्खण-वंजण-गुणोववेया सुजाय-सुविभत्त-संगयंगा पासादीया 'दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ १५. तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणुईणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ताओ णं मणुईओ सुजायसव्वंगसुंदरीओ पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ताओ अइकंत-विसप्पमाणम उय-सुकुमाल-कुम्मसंठिय-विसिट्ठचलणाओ'उज्जु-मउयपीवर-सुसाहयंगुलीओ अब्भुग्णय-रइय-तलिण-'तंब-सुइ"णिद्धणक्खा रोमरहिय-वट्ट-लट्ठसंठिय-अजहण्णपसत्थलक्खण-अक्कोप्पजंघजुयला 'सुणिम्भिय-सुगूढसुजाणू मंसलसुबद्धसंधीओर कयलीखंभाइरेकसंठिय-णिव्वण-सूकूमाल- मउय-मंसलअविरलसमसायसुजायवट्टपा ट्रपीवरणिरंतरोरू अट्ठावयवीचिपट्ठसंठिय"-पसत्थ-विच्छिण्ण-पिहुल सोणी वयणायामप्पमाणदुगुणिय विसालमंसलसुबद्धजहणवरधारिणीओ वज्जविराइय-'पसत्थलक्खणनिरोदरा तिवलियवलियतणुणमियमज्झियाओं उज्जुय-सम-सहिय-जच्चतणु-कसिण-णिद्ध-आदेज्ज-लडह-सुजायसुविभत्त-कंत-सोभंत-रुइल-रमणिज्जरोमराई गंगावत्त-पयाहिणावत्त-तरंगभंगुर-रविकिरण १. सं० पा० -पिडिम जाव पासादीयाओ। ११. तंबसुचिरुइल (अ,ब, पुत्र); आतंबविरइय २. जी० ३१५८६ । (क); आतंबसुचिरयित (ख); सुविरइय ३. जी० ३१५८७-५६५ ॥ (त्रि); आतंबसुचिरुइल (स)। ताना सुचय ४. अणियाणी (अ,ब); आयीणा (क); आयाणी रुचिरा (हीव)। (त्रि)। १२. °जण्णुमंडल' (प), जानुमण्डले (हीव) । ५. °पडोकारे (ब)। १३. प्रमेयरलमञ्जूषायां 'वीति' इति पदं व्याख्या६. जी० ३३५६६। तमस्ति-वीतिः-- विगतेतिको घुणाद्यक्षत इति ७. सं० पा०-पासादीया जाव पडिरूवा। भावः एवंविधोऽष्टापदो धूतफलकम्, विशेषण८. अक्कत (अ,क,ब,स)। व्यत्ययः प्राकृतत्वात् (पत्र ११४)। ६.°मउया (अ,ख,ब)। १४. "वरहारिणीओ (ब)। १०. पउमजुग (अ,ब); पउममउयसुजात (क, १५. निरोदरतिवलिय° (क,ख,प)। त्रि); पलममउय (प,स, पुव हीव) उज्जुमउय १६. नत ---न नं (शाव) । (पुवृपा)। १७. णिद्धआइज्ज (प); णिद्धादेज्ज (ब)। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारी तरुणबोहिय-आकोसायंतपउम'-गंभीरवियडणाभा अणुभड-पसत्थ-पीणकुच्छी सण्णयपासा संगयपासा सुजायपासा मियमाइयपीणरइयपासा अकरंडुय'-कणगरुयगणिम्मलसुजाय-णिरुवहयगायलट्ठी कंचणकलसप्पमाण-सम-सहित-लट्ठ-चूचुयआमेलग-जमलजुयलवट्टिय-अब्भुण्णयपीणरइयपीवरपयोहराओ भुजंग अणुपुव्वतणुय-गोपुच्छवट्टसम-संहियणमिय-आदेज्ज-ललियवाहा तंबणहा मंसलग्गहत्था पीवरकोमलबरंगुलीया गिद्धपाणिलेहा रवि-ससि-संख-चक्क-सोत्थिय-विभत्तसुविर इयपाणिलेहा पीणुण्णयकक्ख-वक्ख-वत्थिप्पएसा पडिपुण्णगल कवोला' चउरंगुलसुप्पमाण-कंबुवरसरिसगोवा मंसल-संठिय-पसत्थहणुगा दाडिमपुप्फापगास-पीवरपलबकुंचियवराधरा सुंदरुत्तरोट्ठा दहिदगरयचंदकुंदवासंतिमउलधवल-अच्छिद्दविमलदसणा रत्तुप्पलपत्त-मउयसुकुमालतालुजीहा कणवीरमउलअकुडिलअब्भग्गय-उज्जुतुंगणासा सारदणवकमलकुमुयकुवलयविमलदलगियरसरिसलक्खणपसत्थअजिम्हकतणयणा पत्तल-चवलायंत-तंवलोयणाओ११ आणाभियचावरुइलकिण्हब्भराइ-संगय-सुजाय-भुमगा अल्लीण-पमाणजुत्तसवणा सुसवणा पीण-मट्ठ-गंडलेहा चउरंस-पसत्थ-समणिडाला कोमुईरयणियर-विमलपडिपुण्णसोमवयणा छत्तुण्णय उत्तिमंगा" अकविल-ससिणिद्ध-सुगंधदोहसिरया छत्त-ज्झय-जय-थभ-दामिणि-कमंडलू-कलस-वावि. सोत्थिय-पडाग-जव-मच्छ-कुम्म-रहवर - मगरज्झय - अंक-थाल-अंकूस-अट्ठावय-सूपइट्रगमयूर-सिरियाभिसेय-तोरण - मेइणि"-उदहि-वरभवण-गिरि-वरआयंस-सलीलगय"-उसभसीह-चामर-उत्तमपसत्थबत्तीसलक्खणधरीओ हंससरिसगईओ कोइलमहुरगिरसुस्सराओ कंता सव्वस्स अणुमयाओ ववगयवलिपलिय-वंग-दुव्वण्ण-वाहि-दोहग्ग-सोगमुक्का उच्चत्तेण य णराण थोवणमस्सिआओ सभावसिंगारचारुवेसा संगयगय-हसिय-भणिय-चिट्रियविलास-संलाव-णिउणजुत्तोवयारकुसला सुंदरथण-जहण-वयण-कर-चलण-णयण लावण्ण-रूवजोव्वण-विलासकलिया णंदणवणविवरचारिणीउव्व अच्छराओ भरहवासमाणुसच्छराओ १. अकोसायंत (अ,त्रि.प.स, पुत्र, ही) । __ धवलशब्दो जीवाभिगमवृत्तौ दर्शनाल्लिखि२. अतसमासान्तेन ‘णाभा' इति सिद्धि (ही)। तोस्ति। ३. अकरंडय (अ, ब)। १०. मुकुल (अ, क, ख, व, स,)। ४. चुच्चुय० (अ, क, ख, ब); चुचुआमेलग ११. धवलायततंबं० (अ, ब, पुव); धवलायत(प)। आतंब (क, स); धवलायतआयंब (५); ५. आइज्ज (प); आदेय (ब)। क्वचिद्धवले कणन्तिवत्तिनी क्वचित्ताम्रलोचने ६. रेहा (प)। यासा ता: (शाव); चवलायंततंब (पुवपा) । ७. सुविभत्त० (क, ख, प, स, पु, शा)। १२. उत्तमंगा (ख, त्रि, ब)। ८. °कयोला (प)। १३. सुक (अ, त्रि, ब, स, हीव); क्वचिदङ्कस्थाने ६. मउल (अ, क, ख, त्रि, ब, स, पुल, हीव); शुक इति दृश्यते (शाव) । उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण 'धवल' शब्दः जीवाभिग. १४. मेतिणि (त्रि, ब)। मवृत्तिमनुसृत्य स्वीकृतो व्याख्यातश्च-जम्बू- १५. सुललियगय (पण्हा० ४।८); ललियगय (जी० द्वीपप्रज्ञप्ति-प्रश्नव्याकरणाद्यादर्शेऽवदष्टोपि ३३५६७)। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ वणी अच्छे रगपेच्छभिज्जाओ पासाईयाओ' 'दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ परूिवाओ || १६. ते णं मणुया ओहस्सरा हंसस्सरा कोंचस्सरा गंदिस्सरा गंदिघोसा सीहस्सरा सोहघोसा' सूसरा सूसरणिग्घोसा छायाउज्जो वियंगमंगा वज्जरिसनारायसंघयणा समचउरससंठाणसंठिया छवि - णिरातंका अणुलोमवाउवेगा कंकग्गहणी कवोयपरिणामा सउणिपोसपिट्ठ-तरोरुपरिणया छद्धणुसहस्समूसिया । तेसि णं मणुयाणं बे छप्पण्णा पिट्ठिकरंडकसया' पण्णत्ता समणाउसो ! पउमुप्पलगंधस रिसणीसास सुरभिवयणा । ते णं मणुया पगइ उवसंता पगइपयणुको हमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा भगा विणीया अपिच्छा असहिसंचया विडिमंतर परिवसणा जहिच्छिय कामकामिणो 'पुढवीपुप्फफलाहारा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो " ! ॥ १७. तीसे णं भंते ! पुढवीए केरिसए आसाए पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए गुलेइ वा खंडेइ वा सक्कराइ वा मच्छंडियाइ वा पप्पडमोयएइ वा भिसेइ वा पुप्फुत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा विजयाइ वा महाविजयाइ वा आकासियाइ वा आदसियाइ वा आगासफलोवमाइ वा उग्गाइ वा अणोवमाइ वा', भवे एयारूवे ? णो इणट्ठे समट्ठे । सा णं पुढवी इत्तो इतरिया चेव "कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुण्णतरिया चेव' मणमतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता || १८. तेसि णं भंते ! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए रणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स कल्लाणे भोयणजाए सयसहस्सनिप्फन्ने वण्णेणुववे' "गंधेणुववेए रसेणुवे फासेणुववेए आसायणिज्जे विसायणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे " मणिज्जे विहणिज्जे " सव्विदिअगायपल्हाय णिज्जे, भवे एयारूवे ? णो इणट्ठे समट्ठे | तेसि णं पुप्फफलाणं एत्तो इट्ठतराए चेव" कंततराए चैव पियतराए चैव मणुण्णतराए चेव मणामत राए चेव आसाए पण्णत्ते ॥ १६. ते णं भंते! मणुया तमाहारमाहारेत्ता कहि वसहि उवेंति ? गोयमा ! रुक्ख १. सं० पा० पासाईयाओ जाव पडिरूवाओ । २. जीवाभिगमादौ दुन्दुभिस्वरा मञ्जुस्वरा मञ्जुधांपा इत्यपि दृश्यते (पुवृ ) । ३. पट्टित० ( अ, त्रि, ब); पिट्ठ० (क, ख ) ; पृष्ठकरण्डुकशते पाठान्तरेण पृष्ठकरंडकशते ( शावृ) । ४. पगइभद्गा पंगइउवसंता (त्रि, स, पुवृ, ही वृ) 1 ५. उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण प्रमेय रत्नमञ्जूषायां अस्मिन् विषये एका टिप्पणी कृतास्ति अत्र च जीवाfभगमादिषु युग्मिवर्णनाधिकारे आहाराप्रश्नोत्तरसूत्रं दृश्यते, अत्र च कालदोषेण त्रुटित सम्भाव्यते, अत्रैवोत्तरत्र द्वितीयतृतीया - कवर्णकसूत्रे आहारार्थं सूत्रस्य साक्षाद् ण दृश्यमानत्वादिति, तेनात्र स्थानाशून्यार्थ जीवाभिगमादिभ्यो लिख्यते- तेसि भंते! मणुआणं केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ ? गोयमा ! अद्रुमभत्तस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ, पुढवी पुष्फफलाहारा णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो ! ६. वा इमेए अज्झोववणाए ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ) ; द्रष्टव्यम् - जीवा० ३१६०१, पण० १७ १३५ । ७. सं०पा० - इट्ठतरियाचेवजावमणामतरिया । ८. सं० पा०वण्णेणुववेए जाव फासेणुववेए । ६. x ( अ, क. ख, त्रि, प, ब ) । १०. X ( ब ) । ११. विग्वणिज्जे ( ब ) । १२. सं० पा० इट्ठतराए चेव जाब आसाए । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारी २७६ गेहालया णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ २०. तेसि णं भंते ! रुक्खाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! कूडागारसंठिया पेच्छा-'च्छत्त-झय"-थूभ-तोरण-गोपुर-वेइया -चोप्पालग'-अट्टालग-पासायहम्मिय-सवक्ख-वालग्गपोइया-वलभीघरसंठिया, अण्णे इत्थं वहवे वरभवणविसिट्ठसंठाणसंठिया दुमगणा सुहसीयलच्छाया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ २१. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे बासे गेहाइ वा गेहाव [य?] णाई वा ? गोयमा ! णो इणठे सम8, रुक्खगेहालया णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो! ॥ २२. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे 'गामाइ वा •णगराइ वा णिगमाइ वा रायहाणीइ वा खेडाइ वा कब्बडाइ वा मडंबाइ वा दोणमुहाइ वा पट्टणाइ वा आगराइ वा आसमाइ वा संवाहाइ वा सण्णिवेसाइ वा ? गोयमा ! णो इणठे समठे, जहिच्छियकामगामिणो णं ते मणुया पण्णत्ता ।। २३. अस्थि णं भंते ! 'तीसे समाए भरहे वासे" असीइ वा मसीइ वा किसीइ वा 'वणिएत्ति वा 'पणिएत्ति वा वाणिज्जेइ वा ? गोयमा ! णो इण? समढे, ववगयअसिमसि-किसि 'वणिय-पणिय'""-वाणिज्जा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो !॥ २४. अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे हिरण्णेइ वा सुवण्णेइ" वा कसेइ वा १. छयरुप्प (अ. ब)। वृत्तेः पाठः उट्टङ्कितः-'जहिच्छिअकामगा२. वेइगा (अ, ब)। मिणो' इत्यस्य स्थाने 'जं नेच्छियअकामगा३. चोयालग (अ, ब); चोपालग (क, ख, स); मिणो' इतिपाठः । चोवालग (वि); चोप्फाल (प, शा)। ८. x (अ, क, ख, त्रि, प, ब, स); अग्रेपि ४. यत्थ (अ, ब); एत्थ (क, ख, स)। क्वचिद् एष पाठो पि नास्ति, क्वचिद् भिरहे ५. वृत्तित्रयेपि 'आयतनानि' इति व्याख्यातम वासे' इत्येव विद्यते। लिपिसंक्षेपादेवं जातस्ति । द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३१८४१. मस्ति । सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. x (ही); विवणित्ति' विषणिरिति हट्टोप६.सं० पा०---गामाइ वा जाव सण्णिवेसाइ। जीविनः (पुत्र) । "अ, क, ख, त्रि, ब, स, ही' एषु गामाइ १०. वणिपणि (अ, क, ख, त्रि, ब, स)। वा' इत्यस्य स्थाने 'नगराइ वा' इति पाठो ११. प्रस्तुतप्रकरणे 'सुवर्ण कांस्य दूष्य' पदत्रयस्य दृश्यते । प्रयोगः कथं संभवेत् ? उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण ७. °गामगामिणो (अ, ख, ब); जं नेच्छियका- एष प्रश्नः समुपढौकितस्तस्य समाधानमपि कृतम् मगामिणो (त्रि); हीरविजयसूरिणा जं --घटितं सुवर्ण तथा ताम्रपुसंयोगज कांस्य जेच्छियकामगामिणो' इति पाठो व्याख्यातः, तथा तन्तुसन्तानसम्भव दूष्यं तत्र कथं सम्भ'जहिच्छियकामगामिणो' इति पाठान्तरत्वेन च वेयुः? शिल्पिप्रयोगजन्यत्वात् तेषा, न च तान्य क्वचिदादर्श 'जहिच्छियकामगामिणो' इति त्रातीतोत्सपिणीसत्कनिधान गतानि सम्भवं. पाठो दृश्यते, परं जीवाभिगमवृत्तौ तथा व्याख्यान- तीति वाच्यं, सादिसपयंसितप्रयोगबन्धस्थानुपलम्भान्न व्याख्यात: (हस्तलिखितपय स्थासंख्येयकाल-स्थितेरसम्भवात्, एगोस्गोत्तर११०); उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण जीवाभिगम- कुरुसूत्रयोरेतदालापकस्याकथनप्रक्षनात्, उच्यते, Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० 'जंबुद्दीवपण्णत्ती दूसे' वा मणि-मोतिय-संख-सिल-प्पवाल- रत्तरयण-सावज्जेइ वा ? हंता अस्थि, णो देव णं तेसि मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छइ । २५. अस्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे रायाइ वा जुवराया इ वा ईसर-तलवरमाबिय कोडुंबिय इन्भ - सेट्ठि सेणावइ सत्थवाहाइ वा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, ववगयइड्ढिसक्काराणं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ २६. अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे दासेइ' वा पेसेइ वा सिस्सेइ' वा भयगेइ वा भाइल्लएइ वा कम्मारएइ वा ? णो इण समट्ठे, ववगयआभिओगा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ २७. अस्थि णं भंते ! तोसे समाए भरहे वासे मायाइ वा पियाइ वा भाषा-भगिणिभज्जा- पुत्त-धूया -सुहाइ वा ? हंता अस्थि, णो चेव णं तिब्वे पेम्मबंधणे समुप्पज्जइ ॥ २८. अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे अरीड वा वेरिएइ वा घायएइ वा वह वा पडिणीए वा पच्चामित्तेइ वा ? णो इट्टे समट्ठे, ववगयवेराणुसया णं ते मण्या पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ २९. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे मित्ताइ वा वयंसाइ वा गायएइ वा ses' वा सहावा सुहीइ वा संगइएति वा ? हंता अस्थि, णो चेव णं तेसि मणुयाणं तिब्वे रागबंधणे समुप्पज्जइ ॥ ३०. अस्थि गं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे आवाहाइ वा वीवाहाइ वा जण्णाइ वा सद्धाइ वा थालीपागाइ वा पितिपिंड निवेदणाइ वा ? णो इट्ठे समट्टे, ववगयआवाहववाह-जण्ण-सद्ध थालीपाग पितिपिंडनिवेदणा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ३१. अतिथ गं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे इंदमहाति ना खंद णागजक्ख भूयअगड-तलाग ं-दह-णदि-रुक्ख-पव्वय-थूभ - चेइयमहाइ वा ? णो इट्ठे समट्ठे, ववगयमहिमा णं ते मया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ३२. अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे णडपेच्छाइ वा गट्ट जल्ल-मल्ल-मुट्ठियवेलंबग-कहग'-पवग-लासगपेच्छाइ वा " ? णो इणट्टे समट्ठे, ववगयको हल्ला णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ॥ संहरणप्रवृत्तक्रीडाप्रवृत्तदेवप्रयोगात् तानि सम्भवन्तीति सम्भाव्यते, (वृत्ति पत्र १२२ ) । प्रस्तुतप्रश्नस्य एतत् समाधानं स्वाभाविक भवति वर्णके कानिचित् पदानि प्रवाहपातीन्यपि भवन्ति । १. दोसे ( अ, ख, त्रि, ब) 1 २. निवाएति ( अ ); निवाइ ( ब ) । ३. x ( अ, क, ख, ब, ग ) । ४. कर्मकरः --- छगण पुज्जाद्यपनेता: (शावृ ) । ५. भाति (अत्रि, ब ) । ६. संघाडिए ( खत्रि, प ) ; संघाटिक:- सहचारी ( शाबु) । ७ X ( अ, क, ख, ब, स ) 1 ८. सड्ढेति ( अ, क, ख, त्रि,ब) । मिपिंड (त्रिप, शाबू, ही वृ ) 1 १०. कधक ( अ, ख, ब ) । ११. इतः परम् - आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल तुववीणिय काय मागहपेच्छाइ वा इति जीवाभिगामे ( ३।६१६) उपलभ्यते ( वृ ) 1 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो ३८१ ३३. अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे सगडाइ वा रहाइ वा जाणाइ वा जुग्गगिल्लि-थिल्लि-सीअ-संदमाणिआइ वा ? णो इणठे समठे, पायचारविहारा णं ते मण्या पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ३४. अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे गावीइ वा महिसीइ वा अयाइ वा एलगाई वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मगुयाणं परिभोगत्ताए हब्वामागच्छति ।। ३५. अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे आसाइ वा हत्थि-उट्ट-गोण-गवय-अयएलग-पसय-मिय-वराह-रुरु-सरभ-चमर-कुरंग-गोकण्णमाइया ? हंता अस्थि, णो चेव गं तेसि मणुयाणं परिभोगत्ताए हब्वमागच्छंति ॥ ३६. अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे सीहाइ वा वग्धाइ वा विग-दीविगअच्छ-तरच्छ-सियाल-बिडाल-सुणग-कोकंतिय-कोलसुणगाइ वा ? हंता अस्थि, णो चेवणं 'ते अण्णमण्णस्स तसिं वा" मणयाणं आवाहं वा वावाहं वा छविच्छेयं वा उप्पाएंति, पगइभद्दया णं ते सावयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ३७. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे सालीति वा वीहि-गोहम-जव'जवजवाइ वा कल'-मसूर-मुग्ग-मास-तिल-कुलत्थ-णिप्फावग-आलिसंदग-अयसि-कुसुंभकोद्दव-कंगु-वरग'-रालग-सण-सरिसव-मूलावीआइ वा ? हंता अस्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति ।। ३८. अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे गड्ढाइ वा दरी-ओवाय-पवाय-विसमविज्जलाइ वा ? णो इणठे समठे, भरहे वासे बहुसम रमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा ॥ ३९. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे खाणूइ वा कंटग-तणय-कयवराइ वा पत्तकयवराइ वा? णो इणठे समठे, ववगयखाणुकंटगतणकयवर-पत्तकयवरा णं सा समापण्णत्ता समणाउसो!॥ ४०. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे डंसाइ वा मसगाइ वा जूआइ वा लिक्खाइ वा ढिकुणाइ वा पिसुआइ वा ? णो इणठे समठे, ववगय डंस-मसग-जूअ-लिखढिंकुण-पिसुआ उवद्दवविरहिया णं सा समा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ४१. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे अहीइ वा अयगराइ वा ? हंता अस्थि, को चेव णं ते अण्णमण्णस्स तेसिं वा मणयाणं आवाहं वा वावाहं वा छविच्छयं १. स्वीकृतपाठः हीरविजय-पुण्यसागरवृत्त्योरनु- सारीवर्तत जीवाजीवाभिगमे (१६२०) पि एवमेव पाठो दृश्यते । शेषादर्शेषु प्रमेयरत्न मजवायां च 'नो चेव णं ते स मणयाणं' इत्येव पाठो दृश्यते। २. ४ (अ,ब)। ३. कलम (क,त्रि,हीवृ)। ४. कुसुभग (अ,ख,त्रि,ब) । ५. वग (अ,ब); x (त्रि, पुत्र, हीव) । ६. मूलबीजाति (क, ख, त्रि, प); मूलक: --- शाकविशेष: तस्य वीजानि, प्राकृतत्य.त् कका रलोपसन्धिभ्यां निष्पत्तिः (शा)। ७. जी. ३ २७७ । ८. उवदवबाहाविरहिया (क,ख,त्रि,स,हीव)। ६. सं० पा०—णो चेव णं तेसिं मणुयाणं आबाई वाबाहं वा जाव पगइभद्दया । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ जंबुद्दीवपण्णत्ती उप्पाएंति°, पगइभदया णं ते वालगगणा पण्णत्ता समणाउसो' ! ॥ ४२. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे डिबाइ वा डमराइ वा कलह 'बोलखार-वेर'-महाजुद्धाइ वा महासंगामाइ वा महासत्थपडणाइ वा महापुरिसपडणाइ वा महारुधिरपडणाति वा ? गोयमा ! णो इणठे समझें, ववगयवेराणुबंधा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ४३. अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे दुब्भूयाति' वा कुलरोगाइ वा 'गामरोगाइ वा मंडल रोगाइ वा" पोट्ट-सीसवेयणाइ वा कण्णो?-अच्छि-णह-दंतवेयणाइ वा कासाइ वा सासाइ वा सोसाइ वा 'जराइ वा" दाहाइ वा अरिसाइ वा अजीरगाइ वा दओदराई वा पंडुरोगाइ वा भगंदराइ वा एगाहियाइ वा बेयाहियाइ वा तेयाहियाइ वा चउत्थाहियाइ वा 'धणुग्गहाइ वा इंदग्गहाइ वा खंदग्गहाइ वा कुमारगहाइ वा जक्खगहाइ वा भूयम्गहाइ वा मत्थगसूलाइ वा हिययसुलाइ वा पोट-कूच्छि-जोणिसुलाइ वा गाममारीइ वा जाव सण्णिवेसमारीइ वा पाणक्खया जणवखया कुलक्खया वसणब्भूयमणारिआ? जो इणठे समठे, ववगयरोगायंका णं ते मण्या पण्णत्ता समणाउसो ! ।। ४४. तीसे णं" समाए भारहे वासे मणुयाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं देसूणाई तिरिण पलिओवमाइं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं॥ ४५. तीसे ण" समाए भरहे वासे मणयाणं सरीरा केवइयं उच्चत्तणं पण्णत्ता? गोयमा ! जहणेणं देसूणाई तिण्णि गाउयाई, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई ।। ४६. ते णं भंते ! मणुया कि संघयणी पण्णता ? गोयमा ! वइरोसभणारायसंघयणी पण्णत्ता ।। ४७. तेसि णं भंते ! मणुयाणं सरीरा किंसंठिया पण्णत्ता? गोयमा ! समचउरंससंठाणसठिया पण्णत्ता ॥ ४८. तेसि णं मणुयाणं बेछप्पणा पिट्टिकरंडगसया पण्णत्ता समणाउसो" ! ॥ ४६. ते णं भंते ! मणुया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जति ? गोयमा ! छम्मासावसेसाउया जुयलगं पसवंति, एगूणवण्णं राइंदियाई १. अत्र ग्रहयुद्धसूत्र जीवाभिगमादिषु साक्षाद् अराति (त्रि); पुकरः कुष्ठविशेषः सम्भाव्यते दृष्टमपि एतत्सूत्रादर्शषु न दृष्टमिति न (हीवृ) । व्याख्यायामप्यलेखि (सा)। ८. धणुग्गहाति वा (अ,क,ख,त्रि,ब स,पुवृ,ही); २. पोली खारा (अ); बोली खारा (ब)। इंदग्गहाति वा धणुग्गहाति वा (प)। ३. वइर (क,ख,त्रि,प,स)। ६. मणुयगणा (अ,ब)। ४. दुब्भुगगाइ (अ,ब), दुन्भुरोगाति (क,ख, १०. णं भंते (प)। त्रि,स) दुब्भूयरोगाति (ही)। ११. णं भंते (प)। ५. पंजलरोगाति बा गामरोगाति वा (अत्रि,ब, १२. x (अ,ब)। __पुत्, हीव)। १३. द्वितीयारके षष्ठमभक्तेनाहारार्थस्य वक्ष्यमाण६. x (प, शाव)। स्वादिहानुक्तोप्यष्टमभक्तेनाहारार्थों द्रष्टव्यः ७. दओअराति (अ,ब); तओराति (क), तउ- (हीव) । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीमो वक्खारो ३९३ सारक्खंति संगोवेंति, सारविखत्ता संगोवेत्ता कासित्ता छीइत्ता जंभाइत्ता अक्किट्ठा अव्वहिया अपरिताविया कालमासे कालं किच्चा देवलोएसु उववज्जति, देवलोगपरिग्गहा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ५०. तीसे णं समाए भरहे वासे कइविहा मणुस्सा अणुसज्जित्था ? गोयमा ! छविहा, तं जहा -पम्ह [पम्मा ?] गंधा' मियगंधा' 'अममा तेतली सहा सणिचारी" ॥ ५१. तीसे णं समाए चउहि सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अणंतेहिं गंधपज्जवेहि अणंतेहिं रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहि अणंतेहिं संठाणपज्जवेहि अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहिं आउपज्जवेहि अणंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं अगरुयल हुयपज्जवेहि अणंतेहिं उढाण-कम्म-बलवीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अणंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं सुसमा णामं समा काले पडिज्जिसु समणा उसो ! ॥ ५२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे इमीसे ओस प्पिणीए सुसमाए समाए उत्तमकटुपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था ? मोयमा ! बहुसमरमाणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगयुक्खरेइ वा, तं चेव जं सुस मसुसमाए पुव्ववणियं', णवरं—णाणत्तं चउधणुसहस्समूसिया एगे अट्ठावीसे पिट्टिकरंडुकसए छट्ठभत्तस्स आहारट्ठ, चउसट्टि राइंदियाइं सारवखंति, दो पलिओवमाइं आऊ, सेसं तं चेव ।। ५३. तीसे णं समाए चउन्विहा मणुस्सा अणुसज्जित्था, तं जहा-एका पउरजंघा कुसुमा सुसमणा ।। ५४. तीसे णं समाए तिहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कते अणतेहिं वण्णपज्जवेहि अणंतेहिं गंधपज्जवेहि अणंतेहिं रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणंतेहिं संठाणपज्जवेहि अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहिं आउपज्जवेहिं अणंतेहि गरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहि उट्ठाणकम्म वल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहि अणंतगुणपरिहाणीए 'परिहायमाणे-परिहायमाणे" एत्थ णं सुसमदुस्समा णामं समा काले पडिज्जिसु समणाउसो ! ।। १. पउमगंधा (जी. ३१६३१); द्रष्टव्य: तस्यैव पादटिप्पणम् । २. विगयगंधा (अ,क,ख,स); भिगमयगंधा (त्रि)। ३. अम या सहीए ताली साणिच्चारी (अ,ब)। ४. अगुरुलहु° (त्रि,प)। ५. उत्तिमट्टपत्ताए (अ,ब); उत्तिमकट्ठपत्ताए (क,स,हीवृ); उत्तमट्टपत्ताए (त्रि) । ६. जं १७-५०1 ७. आउं (अ,क,त्रि,ब,स)। ८. सं० पा०-वण पज्जवेहिं जाव अणंतगुण! ६. परिहायमाणी २ (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स) ५१ सूत्रस्थानुसारेण परिहायमाणे' इति पाठो युक्तोस्ति, हीरविजयवृत्तौ पुण्यसागरवृत्तौ च परिहीयमानः' इति व्याख्यातमस्ति, 'उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण परिहायमाणी' पाठ एव व्याख्यात:---नवरं परिहायमाणी इत्यत्र स्त्रीलिङ्गनिर्देश: समाविशेषणार्थस्तेन समाकालं इति पदद्वयं पृथम् मन्तव्यम् अयमेवाशयः सूत्रकृता 'सा णं समे' त्युत्तरसूत्र प्रादुश्चक्रे इति । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ जंबुद्दीवपण्णत्ती ५५. सा णं समा तिहा विभज्जई'–पढमे तिभाए, मज्झिमे तिभाए, पच्छिमे तिभाए । ५६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे इमीसे ओस प्पिणीए सुसमदुस्समाए समाए पढममज्झिमेसु तिभाएस भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था ? गोयमा ! वहुसमरमाणिज्जे भूमिभागे होत्था, सो चेव गमो यन्वो', णाणत्तं-दो धणुसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं, तेसि च मणुयाणं च उसढि पिट्ठिकरंडुगा, चउत्थभत्तस्स आहारत्थे समुप्पज्जइ, ठिई पलिओवम, एगूणासीइं राइंदियाइं सारक्खंति संगोवेंति जाव देवलोगपरिग्गहिया णं ते मणुया पण्णता समणाउसो! ॥ ५७. तीसे णं भंते ! समाए पच्छिमे तिभाए भरहस्स वासस्स के रिसए आगारभावपडोयारे होत्था? गोयमा ! वहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरे इ वा जाव' णाणाविह पंचवणेहिं मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहाकित्तिमेहि चेव अकित्तिमेहिं चेव ॥ ५८. तीसे णं भंते ! समाए पच्छिमे तिभागे भरहे वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था ? गोयमा! तेसिं मणुयाणं छविहे संघयणे, छविहे संठाणे, वहूणि धणुसयाणि उद्धं उच्चत्तेणं, जहणेणं संखेज्जाणि वासाणि, उक्कोसेणं असंखेज्जाणि वासाणि आउयं पालेति, पालेता अप्पेगइया णि रयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुस्सगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति बुज्झति मुच्चंति परिणिव्वंति° सव्वदुक्खाणमंत करेंति ॥ ५६. तीसे णं समाए पच्छिमे तिभाए पलिओवमट्ठभागावसेसे, एत्थ णं इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पज्जित्था, तं जहा–सम्मुती पडिस्सुई सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे विमलवाहणे चक्खुमं जसमं अभिचंदे चंदाभे पसेणई मरुदेवे णाभी उसमे त्ति ॥ ६०. तत्थ णं सम्मुति -पडिस्सुइ-सीमकर-सीमंधर-खेमंकराणं-- एतेसि पंचव्हं कुलगराणं हक्कारे णामं दण्डणीई होत्था । ते णं मण्या हक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिया विलिया वेड्डा" भीया तुसिणीया विणओणया चिट्ठति ।। ६१. तत्थ णं खेमंधर-विमलवाहण-चक्खुम-जसम-अभिचंदाणं—एतेसि णं पंचण्हं कुलगराणं मक्कारे णामं दंडणीई होत्था । ते णं मणुया मक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिया विलिया वेड्डा भीया तुसिणीया बिणओणया चिट्ठति ॥ ६२. तत्थ णं चंदाभ-पसेणइ-मरुदेव-णाभि-उसभाणं--एतेसि णं पंचण्हं कुल गराणं धिक्कारे णामं दंडशीई होत्था। ते णं मणुया धिक्कारेणं दंडेणं या समाणा लज्जिया १.भिज्जति (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। २. पुच्छा (अ,क,ख,त्रि,प,ब) । ३. जं ।७-५०। ४. मणुयगणा (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ५. एतादशे सूत्रसंरचने क्वचिदेव 'भते' इति पदं आदर्शेषु लभ्यते । ६. जी० ३।२७७1 ७. ते मनुजा इत्यध्याहार्यम् (ही)। ८.सं. पा.---- सिझंति जाव सव्वदुक्खाणमंतं। ६. सुमती (त्रि,प,स,शाव,हीव,पुवृपा) । १०. सुमति (त्रिप)। ११. वड्डा (ख)। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीमो वक्खारो ३८५ विलिया वेड्डा भीया तुसिणीया विणओणया चिट्ठति ॥ ६३. णाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए कुच्छिसि, एस्थ णं उसहे णामं अरहा कोसलिए पढमराया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थकरे पढमधम्मवरचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था॥ ६४. तए णं उसमे अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साई कुमारवासमज्झावसई', अज्झावसित्ता तेवट्टि पुव्वसयसहस्साई महारायवासमज्झावसइ, तेवढेि पुव्वसयसहस्साई महारायवासमज्झावसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावतरि कलाओ', चोसट्टि महिलागुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिण्णि वि पयाहियाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता तेसीइं पुन्वसयसहस्साई महारायवासमज्झावसइ, अज्झावसत्ता जेसे गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तवहुले, तस्स णं चित्तबहुलस्स णवमीपक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे चइत्ता हिरणं चइत्ता सुवण्णं चइत्ता कोसं च इत्ता कोट्ठागारं चइत्ता बलं चइत्ता वाहणं चइत्ता पुरं चइत्ता अंतेउरं चइत्ता विउलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावइज्जं विच्छड्डयित्ता विगोवइत्ता दाय' दाइयाणं परिभाएत्ता सुदंसणाए सीयाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे संखिय-चक्किय-णंगलिय-मुहमंगलिय-पूस माणव'वद्धमाणगआइक्खग'-लंख-मंख-घंटियगणेहि', [गणा?] ताहिं इटाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहि ओरालाहिं कल्लाणाहि सिवाहिं धण्णाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरिया हिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं कण्णमणणिव्वुइकरीहिं अपुणरुत्ताहिं अट्ठसइयाहि वग्ग हिं अणवरयं अभिणंदंता य अभिथुणता य एवं वयासी-जय जय नंदा'! जय जय भद्दा ! धम्मेणं, अभीए परीसहोवसग्गाणं, खंतिखमे भयभेरवाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउत्ति कटु अभिणंदंति य अभिथणंति य ॥ ६५. तए णं उसभे अरहा कोसलिए णयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे-पेच्छिज्जमाणे" •हिययमालासहस्सेहिं अभिणंदिज्जमाणे-अभिणंदिज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहि १. संचिट्ठति (अ,ब,स)। २. कुमारमासमझे वसति (अ,क,ख,त्रि,प,स, पूर्व, शाव,हीव); °मझावसति (पुवृपा,शावृपा) अग्रेपि एवमेव। ३. द्रष्ट व्यं औपपातिकस्य कलाविषयकं परि शिष्टम् । ४, रयणरत्त (क,ख,स)। ५. दाणं (त्रि)। ६. पूसमाणग (क,ख,त्रि,ब,स) । ७. आईख (ब) 1 ८. पडियगणेहिं (ब); औपपातिके (सू०६८) खंडियगणा' इति प्रथमान्तः पाठो विद्यते। अत्रापि प्रथमान्त एव पाठो युक्तोस्ति, किन्तु आदर्शषु तादृशः पाठो नोपलभ्यते, अतएव उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण इत्युल्लिखितम्-सूत्रे च आर्षत्वात् प्रथमार्थे तृतीया । ६. दीर्घत्वं च प्राकृतत्वात् (ही)। १०. सं० पा०---पेन्छिज्जमाणे एवं जाव णिग्गच्छइ जहा ओववाइए जाव आउलबोलबहुलं। अस्य पाठसंक्षेपस्य पूर्त्यर्थं औपपातिकस्य निर्देशः कृतोस्ति । असौ राठः औपपातिकसूत्रं वृत्तिगतवाचनान्तरं तथा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तित्रयं सम्मुखीकृत्य पूरितः । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ जंबुद्दीवपण्णत्ती विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथुव्वमाणे कंतिसोहगगुणेहिं पत्थिज्जमाणे-पत्थिज्जमाणे वहूणं नरनारीसहस्साणं दाहिणहत्थेणं अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे मंजुमंजुणा घोसेणं आपडिपुच्छमाणे-आपडिपुच्छमाणे भवणपंतिसहस्साइं समइच्छमाणे - समइच्छमाणे तंतीतल तालतुडियगीयवाइयरवेणं महुरेणं मणहरेणं जयसदुग्घोसविसएणं मंजुमंजुणा धोसेणं अपडिबुज्झमाणे कंदरगिरिविवरकुहरगिरिवरपासादुद्धघणभवणदेवकुलसिंघाडग -तिगच उक्कचच्चरआरामुज्जाणकाणणसभापवापदेसभागे पडिसुयासयसहस्ससंकुलं करेंते यहेसियहत्थिगुलगुलाइयरहरणघणसद्दमीसएणं महया कलकलरवेण जणस्स महुरेणं पूरयंते सुगंधवरकुसुमचुण्णउव्विद्धवासरेण कविलं नभं करेंते कालागुरुकंदरुक्कतुरुक्कधव निवहेणंजीवलोगमिव वासयंते समंतओ खुभियचक्कवालं . पउरजणबालं वुड्ढयपमुइयतुरियपहाविय - विउल° आउलबोलबहुलं णभं करेंते विणीयाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं णिम्गच्छइ, णिग्गच्छिता आसिय-संमज्जिय-सित्तसुइकपुप्फोवयारकलियं सिद्धत्थवणविउल रायमगं करेमाणे हयगयरहपहकरेण पाइक्कचडकरेण य मंद मंदाय' उद्धत रेणुयं करेमाणे-करेमाणे जेणेव सिद्धत्थवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठवेइ, ठवेत्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेवाभरणालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव चउहि अट्टाहिं' लोयं करेइ, करेत्ता छठे भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहि णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं खत्तियाणं च उहि सहस्सेहिं सद्धि एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । ६६. उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीबरधारी होत्था, तेण परं अचेलए।। ६७. जप्पभिई च गं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तप्पभिई च णं 'उसभे अरहा कोसलिए णिच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जति, तं जहा-दिव्वा वा' 'माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अणुलोमा वा । तत्थ पडिलोमा-वेत्तेण वा 'तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्रेज्जा, अणुलोमा-बंदेज्ज वा निमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्माणेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं° पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे' सम्म सहइ 'खमइ तितिक्खइ° १. मंदं (क,ख,त्रि,प,स)। स, पुत्र); के पुचिदादर्गेषु 'उस भस्स णं अरहओ २. उद्धरेणुयं (अ,ब)। कोसलिए वो टुकाए' इत्यादि पाठो दृश्यते ३. मुट्ठीहि (क); मुढाहिं (ब)। तत्रान्वयाभावात विभक्तिपरिणामो लेखकदोषो ४. 'आसाढाहिं' ति आषाढशब्देन उत्तरापाढा पदैक वान्यथा संगति वा घटनीया (ही)। देशे पदसमुदायोपचारात् 'पंच उत्तरासाढे' त्ति ६. सं० पा०—दिवा वा जाव पहिलोमा। वक्ष्यमाणत्वाच्च बहुत्वमापत्वात् सूत्रान- ७. सं० पा. वेत्तेण वा जाव कसेण । लोम्याच्च उत्तराषाढानक्षत्रण योगमुपागते- ८. सं० पा०-वंदेज्ज वा जाव पज्जुवासेज्ज। नाच्चिन्द्रेणेति योज्यम् (ही)। ६. उत्पन्नानिति गम्यम् (ही)। ५. उसभस्स अरहमओ कोसलियस्स (अ,क,ख,प, १०. सं० पा०--सहइ जाव अहियासेइ । Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो अहियासेइ ॥ ६८. तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए' 'भासासमिए एसणासमिए आयाणभंड-मत्तणिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल पारिट्रावाणियासमिए मणसमिए वइसमिए कायसमिए मणगुत्ते' वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए° गुत्तबंभयारी अकोहे' 'अमाणे अमाए° अलोहे संते पसंते उवसंते परिणिन्वुडे छिण्णसोए निरुवलेवे संखमिव निरंजणे, जच्चकणगमिव जायरूवे, आदरिसपलि भागे' इव पागडभावे, कुम्मो इव' गुत्ति दिए, पुक्खरपत्तमिव निरुवलेवे, गगणमिव निरालवणे, अणिले इव णिरालए, चंदो इव सोमदंसणे, सूरो विव तेयस्सी, विहगो विव अपडिवद्धगामी, सागरो विव गंभीरे, मंदरो विव अकंपे, पुढवी विव सव्वफासविसहे, जीवो विव अप्पडिहयगती॥ ६६. णत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे। ‘से पडिबंधे चउविहे भवति, तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ-इह खलू माया मे पिया मे भाया में भगिणी में भज्जा मे पत्ता मे धया मे नत्ता मे सण्डा मे सही मे सयण संगंथसंथया मे हिरण्णं मे सुवष्णं मे" "धणं मे धणं मे कसं मे दूस मे विपुलधण-कणग-रयण-मणि-मोतियसंख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावतेयं मे° उवगरणं मे । अहवा समासओ सच्चित्ते वा अचित्ते वा मीसए वा दव्वजाए सेवं तस्स ण भवइ । खेत्तओ गामे वा गरे वा अरण्णे वा खेत्ते वा खले वा गेहे वा अंगणे वा एवं तस्स ण भवइ। कालओ-थोवे वा लवे वा मुहुत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उऊ वा अयणे वा संवच्छरे वा अण्णयरे वा दोहकालपडिबध एवं तस्स ण भवइ । भावओ-कोहे वा" माणं वा मायाए वा लाहवा भए वा हासे वा एवं तस्स ण भवइ ।। ७०. से णं भगवं वासावासवज्ज हेमंत-गिम्हासु गामे एगराइए, णगरे पंचराइए, ववगयहास-सोग-अरइ-भयपरित्तासे णिम्ममे णिरहंकारे लहुभूए अगंथे वासीतच्छणे अदु?, चंदणाणुलेवणे अरत्ते, लेढुमि कंचणमि य समे, इहपरलोए य अपडिबद्धे, जीवियमरणे निरवकंखे संसारपारगामी कम्मसंगणिग्घायणट्ठाए अब्भुटिए विहरइ ॥ ७१. तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स एगे वाससहस्से विइक्कते १. सं० पा०--ईरियासमिए जाव पारिद्वाव- णियासमिए । २. सं० पा.----मणगुत्ते जाव गुत्तबंभयारी। ३. सं० पा०--अकोहे जाव अलोहे । ४. निरंगणे (ब)। ५. जच्चकणगं पिव (क,स); जच्चकणगं व संथयं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १०. सं० पा०...-सुवष्णं मे जाव उवगरणं । उपाध्यायशान्तिचन्द्रेश अत्र एका टिप्पणी कृतास्ति सा च यावत्पदपूर्तये उल्लेखनीयास्ति—अयं च यावत्पदसङ्ग्रहोऽदृष्टभूलकत्वेन मयैव सिद्धान्तल्या प्राकृतीकृत्य स्थानाशन्यतार्थ लिखितोस्ति तेन सैद्धान्ति करेतन्मूलपाठगवेषणायामुद्यमः कार्यः । ११. सं० पा०-कोहे वा जाव लोहे । १२. °हस्स (अ,ख,ब)। ६. 'तलिभागे (ख); पडिभागे (प)। ७. विव (ब) । ८.४ (अ,क,ख,त्रि,ब,पुव,शावृ,हीवृ)। ६. सं० पा०-भगिणी मे जाव संगंथसंथुया। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ जंबुद्दीवपण्णत्ती समाणे पुरिमतालस्स नगरस्स बहिया 'सगडमुहंसि उज्जाणंसि" णग्गोहवरपायवस्स अहे झाणंतरियाए वट्टमाणस्स फग्गुणबहुलस्स इक्कासीए पुव्वण्हकालसमयंसि अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं उत्तरासाढाणक्खत्तण जोगमवागएणं अणत्तरेणं नाणेणं अणत्तरेणं दसणेणं अणुत्तरेणं च रित्तेणं अणुत्तरेणं तवेणं बलेणं वीरिएणं आलएणं विहारेणं भावणाए खंतीए गुत्तीए मुत्तीए तुट्टीए अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं सुचरियसोवचियफलणिव्वाणमग्गेणं' अप्पाणं भावमाणस्स अणंते अणुत्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदसणे समुप्पस्ने, जिणे जाए केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी सणेरइयतिरियनरामरस्स लोगस्स पज्जवे जाणइ पासइ,' तं जहा- आगई गई ठिइं उववायं भुत्तं कडं पडिसेवियं आवीकम्म रहोकम्मं तं तं कालं मणवइकाइए जोगे एवमादी जीवाणवि सव्वभावे अजीवाणवि सव्वभावे मोक्खमग्गस्स विसुद्धतराए भावे जाणमाणे पासमाणे, एस खल मोक्खमग्गे 'मम अण्णेसि" च जीवाणं हियसुहणिस्सेसकरे सव्वदुक्ख विमोक्खणे परमसुहसमाणणे भविस्सइ।। ७२. तते णं से भगवं समणाणं निग्गंथाण य णिग्गंथीण य पंच महब्वयाई सभावणगाइं छच्च जीवणिकाए धम्मे देसमाणे विहरति, तं जहा-पुढविकाइए भावणागमेणं पंच महन्वयाई सभावणगाई भाणियव्वाई। ७३. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स चउरासीति गणहरा होत्था ।। ७४. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स उसभसेणपामोक्खाओ चुलसीइं समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था ॥ ७५. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बंभी-सुंदरीपामोक्खाओ तिण्णि अज्जियासयसाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था ।। ७६. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स सेज्जंसपामोक्खाओ तिणि समणोवासगसयसाहस्सीओ पंच य साहस्सीओ उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था ।। ७७. उसभस्स णं अरहओ कोस लियस्स सुभद्दापामोक्खाओ पंच समणोवासियासयसाहस्सीओ चउपण्णं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियासंपया होत्था ।। ७८. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खरसन्नि १, सगडामुहउज्जाणंसि (ब)। २. उत्तरासाढणक्खत्तेणं (त्रि, ब) ! ३. सं० पा० नाणेणं जाव चरित्तेणं । ४. एतत्पदं सर्वत्र संयोजनीयम् । ५. °सोबच्चफले णेवाण° (अ, ब)। ६. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पु,हीव) । ७. ममयमण्णेसि (व) ८. धम्म (ख,त्रि,प,स,पुत्र); धम्मे (पुत्पा) । ६. आ० चू० १५४२-७८ । १०. पर्युपणाकल्पे (मु० १६७) 'चउरासीइं गणा चउरासीइं गणहरा इतिपाठो लभ्यते । उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण अस्मिन् विषये प्रस्तुतसुत्रस्य जीर्णादर्णेपि एतादृशस्य पाठस्योल्लेख: कृतोस्ति-जरस जावड्या गणहरा तस्स तावइया गणा' इति वचनाद् गणाः सूत्रे साक्षादनिदिष्टा अपि तावन्त एव बोध्याः, क्वचिउजीर्ण प्रस्तुत सूत्रादर्श 'चउरासीति गणा गणहरा होत्था' इत्यपि पाठो दृश्यते । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोलो वक्खारो ३८६ वाईणं जिणो विव अवितहं वाकरेमाणाणं' चत्तारि चउद्दसपुव्वीसहस्सा अट्ठमा य सया उक्कोसिया चउदसपुव्वीसंपया होत्था ।। ७६. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स णव ओहिणाणिसहस्सा उक्कोसिया ओहिणाणिसंपया होत्था ।। ८०. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स-वीसं जिणसहस्सा, वीसं वेउव्वियसहस्सा छच्च सया उक्कोसिया', बारस विउलमईसहस्सा छच्च सया पण्णासा, बारस वाईसहस्सा छच्च सया पण्णासा॥ ८१. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभदाणं वावीसं 'अणत्तरोववाइयाणं सहस्सा" णव य सया। ८२. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स वीसं समणसहस्सा सिद्धा, चत्तालीसं अज्जियासहस्सा सिद्धा-सट्ठि अंतेवासीसहस्सा सिद्धा॥ ८३. अरहओ णं उसभस्स बहवे अंतेवासी अणगारा भगवंतो अप्पेगइया मासपरियाया एवं जहा ओववाइए सच्चेव' अणगारवण्णओ जाव' उड्ढं जाणू अहोसिरा झाणकोट्टोवगया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरंति ॥ ८४. अरहओ णं उस भस्स दुविहा अंतकरभूमी होत्या, तं जहा–जुगंतकरभूमी य परियायतकरभूमी य । जुगंतकरभूमी जाव असंखेज्जाइं पुरिसजुगाई, परियायतकरभूमी अंतोमुहुत्तपरियाए अंतमकासी ।। ८५. उसमे णं अरहा पंचउत्तरासाढे अभीइछठे होत्था, तं जहा ---उत्तरासाढाहिं १.वागरमाणाण (प)। ४. अणुत्तरोववाइयसहस्सा (अ,क,ख,त्रि,ब,स); २. अतः परं सर्वेष्वपि आदर्शषु संक्षिप्तपाठो 'अणुतरोववाइय' ति षष्ठी बहुवचनलोप। लभ्यते। पर्युषणाकल्पे (सू० १७४-१७७) प्राकृतत्वात् (पुत्)। पूर्णपाठः उपलब्धोस्ति, स चैवम्-- १७४ ५. सच्चेव वया (अ); सव्वओ (क,ख,त्रि,प); उसभस्स णं अरहो कोसलियस्स बीससहस्सा सच्चेव वत्तव्वया (ब)। सर्व (शावृाहीवृ) । केवलणाणीणं उक्कोसिया संपया होत्था॥१७५ ६. ओ० सू० २३-४५ । उसभस्स णं अरहओ कोसलिया वीससहस्सा ७. कडभूमी (त्रि) सर्वत्र । छच्च सया वेउन्वियाणं उक्कोसिया संपया ८. पर्यषणाकल्पे (सू० १६०) चउउत्तरासा' होत्था ।। १७६. उसभस्स णं अरहओ कोसलि- इति प्रतिपादकं सूत्रमस्ति, यथा- तेणं कालेणं यस्स बारस सहस्सा छच्च गया पन्नासा विउल- तेणं समएणं उसमेणं अरहा कोसलिए चउमईणं अड्ढाइज्जेसु दीवस मुद्देमु सण्णीणं पंचि- उत्तरागाढे अभीइपंचमे होत्था, तं जहादियाणं पज्जत्तगाणं मणोगए भावे जाणमाणाणं उत्तरासाढाहिं चुए चइत्ता गभं वक्कते। पासमाणाणं उक्कोसिया विउलमइसंपया उत्तरासादाहि जाए। उत्तरासादाहि मुंडे भवित्ता होत्था ।। १७७. उसभस्स णं अरहओ कोसलि- अगाराओ अणगारियं पवइए ! उत्तरागाढाहि यस्स बारस सहस्सा छच्च सया पन्नासा वाईणं अणते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणो कसिणे संपया होत्था । पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसहे समुप्पन्ने । ३. उत्कृष्टा सम्पदभूदिति सर्वत्र योज्यम् (ही)। अभीइणा परिनिन्धुए। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जंबुद्दीवपण्णत्ती चुए चइत्ता गम्भं वक्कते, उत्तरासाढाहिं जाए, उत्तरासाढाहिं रायाभिसेयं पत्ते, उत्तरासाढाहि मुंडे भवित्ता अगाराओ' अणगारियं पव्वइए, उत्तरासाढाहिं अणते अणुत्तरे णिव्वाधाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने, अभीइणा परिणिन्वुए। ८६- उसभे णं अरहा कोसलिए वज्जरिसहनारायसंघयणे समचउरंससंठाणसंठिए पंच धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ ८७. उसभे णं अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साई कुमारवासमज्झावसित्ता', तेवढि पुव्वसयसहस्साई रज्जवासमज्झावसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साई अगारवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। ८८. उसभे णं अरहा कोसलिए एग वाससहस्सं छ उमत्थपरियायं पाउणित्ता, एगं पुन्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, चउरासीई पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पाल इत्ता जेसे हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पवखे माहवहुले, तस्स गं माहवहुलस्स तेरसीपक्खेणं दसहि अणगारसहर से हिं सद्धि संपरिवुडे अट्ठावयसेलसिहरंसि चोद्दस मेणं भत्तेणं अपाणएणं संपलियंकणिसण्णे पुवण्हकालसमयंसि अभीइणा णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं सुसमदूसमाए समाए एगुणणउतीहि पक्खे हिं सेसेहि कालगए वीइक्कते" 'समुज्जाए छिण्णजाइ-जरा-मरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतकडे परिनिव्वुडे° सव्वदुक्खप्पहीणे ।। ८६. जं समयं च णं उसभे अरहा कोसलिए कालगए वीइक्कंते समुज्जाए छिण्णजाइजरा-मरण-बंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतकडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे, तं समयं च णं सक्कस्स देविदस्स देवरगो आसणे चलिए। ६०. तए णं से सक्के देविदे देवराया आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता भयवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता एवं क्यासी - परिणिव्वुए खलु जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे उसहे अरहा कोसलिए, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविदाणं देवराईण तित्थगराणं परिनिव्वाणमहिम करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भगवतो तित्थगरस्स परिनिव्वाणमहिमं करेमित्ति कटु एवं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता चउरासीईए सामाणियसाहस्सीहिं. तायत्तीसाए तावत्तीसएहि, चउहिं लोगपालेहि •अहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहि तिहि परिसाहिं सहि अणिएहि सत्तहि अणियाहिवईहिं च उहिं चउरासीईहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अण्णेहि य वहूहिं सोहम्मकप्पवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहिं देवी हि य सद्धि संपरिवुडे ताए उक्किट्ठाए" "तुरियाए चवलाए चंडाए १. आकाराओ (ब)। ७. सं० पा०.-वीइक्कते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। २.सं० पा०--अणंते जाव समुप्पन्ने । ८ जीवमेतं (अ,ब)। ३. °मज्झेवसित्ता (ख,त्रि,प,स) सर्वत्र । ६. तायत्तीस एहिं (त्रि,प,स)। ४. °स्सूणग (अ,क,ख,ब,स)। १०. सं० पा०----लोगपालेहि जाव चहि । ५. °णउतिहिं (अ,ब); णउएहि (त्रि,प)। ११. सं० पा०--उक्किद्राए जाव तिरियमसंखे. ६. x (अ,ब)। ज्जाणं। Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो ३६१ सिग्Eाए उद्ध्याए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए ' ' तिरियमसंखेज्जाणं दीवस मुद्दाणं मज्झमज्झेणं बीईवयमाणे वीईवयमाणे" जेणेव अट्ठावयपव्वए, जेणेव भगवओ तित्थगरस्स सरीरए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विमणे णिरागंदे अंसुपुण्णणयणे तित्थयरसरीरयं तिक्त आयाहिण -पयाहिणं करेइ, करेत्ता णच्चासणे णाइदूरे सुस्सुसमाणे' 'नमसमाणे अभिमु विणणं पंजलियडे' पज्जुवासइ ।। १. तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविंदे देवराया उत्तरद्धलोगाहिवई अट्ठावीसविमाणसय सहस्सा हिवई सूलपाणी वसहवाहणे सुरिंदे अरयंवरवत्थधरे जाव' बिउलाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ ॥ ६२. तए णं तस्स ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो आसणं चलइ ॥ ६३. तए णं से ईसाणे देविदे देवराया आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहि परंजइ, परंजित्ता भगवं तित्थगरं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता जहा सक्के नियगपरिवारेणं भाणेयव्वो जाव पज्जुवासइ ॥ ९४. एवं सव्वे देविंदा जाव अच्चुए णियगपरिवारेणं आणेयव्वा । एवं जाव भवणवासीणं इंदा, वाणमंतराणं सोलस, जोइसियाणं दोण्णि नियगपरिवारा यव्वा ॥ ६५. तए णं सक्के देविंदे देवराया बहवे भवणवइ-वाणमंतर - जोइस-वेमाणिए देवे एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! णंदणवणाओ सरसाई गोसीसवरचं दणकट्टाई साहरह, साहरिता तओ चियगाओ' रएह एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एवं अवसेसाणं अणगाराणं ॥ 17 ६६. तणं ते भवणवइ - वाणमंतर - जोइस' - वेमाणिया देवा णंदणवणाओ सरसाई गोसीसवरचं दणकट्ठाई साहरंति, साहरिता तओ चियगाओ रएंति एवं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एवं अवसेसागं अणगाराणं ॥ ६७. तए गं से सक्के देविंदे देवराया आभिओगे देवे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भी देवाणुप्पिया ! खीरोदसमुद्दाओ खीरोदगं साहरह ॥ ६८. तणं ते आभिओगा' देवा खीरोदसमुद्दाओ खीरोदगं साहति । ६६. तणं से सक्के देविदे देवराया तित्थगरसरीरमं खीरोदगेणं ण्हाणेति पहाणेत्ता सरसेणं गोसीसवरचंदणेणं अणुलिप, अणुलिपित्ता हंसलक्खणं पडसाइयं नियंसेइ, नियंसेत्ता सव्वालंकारविभूसियं करेति ॥ १००. तए णं ते भवणवइ" - वाणमंतर - जोइस' - वेमाणिया देवा 'गणहरसरीरगाई अणगारसरीरगाणि य" खीरोदगेणं व्हावेंति", व्हावेत्ता सरसेणं गोसीसवरचंदणेणं १. वीईवयमाणे वीईवयमाणे तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मकंमज्झणं ( पुवृ, शावृ, ही वृ ) । २. सं० पा० सुस्सुसमाणे जाव पज्जुवासइ ! ३. पण्ण० २।५१ । ४. जं० २०६१ ५. पण्ण० २।३०-६३ । ६. चिगाओ ( प ) सर्वत्र । ७. सं० पा० - भवणवइ जाव वेमाणिया । ८. अभिजोगिया ( अ, क, ब ) ; ( क ) ; आभियोगिया (त्रि, स ) | ९. पडगं ( अ, ब ) 1 १०. सं० पा० - भवणवइ जाव वैमाणिया । ११. गणहरअणगारसरीराई (त्रि, हीवृ ) । १२. हवेंति ( ब ) । - अभिओग्गिया Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ जंबुद्दीवपण्णत्ती अणुलिपंति, अणुलिंपित्ता अहताई दिव्वाइं देवदूसजुयलाई णियंसंति, णियंसित्ता सव्वालंकार-विभूसियाई करेंति ।। १०१. तए णं से सक्के देविदे देवराया ते वहवे भवणवई'- वाणमंतर-जोइसवेमाणिए देवे एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! ईहामिग-उसभ-तुरग'-*णरमगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय -भत्तिचित्ताओ तओ सिवियाओ विउव्वह-- एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एगं अवसेसाणं अणगाराणं ।। १०२. तए णं ते वहवे भवणवइ'-'वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा तओ सिबियाओ विउव्वंति-- एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एगं अवसेसाणं अणगाराणं ।। १०३. तए णं से सक्के देविदे देवराया विमणे णिराणंदे अंसुपुण्णणयणे भगवओ तित्थग रस्स विणटुजम्मजरामरणस्स सरीरगं सीयं आरुहेति, आरुहेत्ता चियगाए ठवेइ ।। १०४. तए णं बहवे भवणवइ. वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा गणहराणं अणगाराण य विण?जम्मजरामरणाणं सरीरगाइं सीयाओ' आरुहेति, आरुहेत्ता चियगाए ठवेंति ।। १०५. तए णं से सक्के देविदे देवराया अग्गिकुमारे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचियगाए गणहरचियगाए अणगारचियगाए अगणिकायं विउव्वह, विउव्वित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। १०६. तए णं ते अग्गिकुमारा देवा विमणा णिराणंदा अंसुपुण्णणयणा तित्थगरचियगाए गणहरचियगाए अणगारचियगाए य अगणिकायं विउव्वंति ॥ १०७. तए णं से सक्के देविंदे देवराया वाउकुमारे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचियगाए 'गणहरचियगाए° अणगारचियगाए य वाउक्कायं विउव्वह, विउव्वित्ता अगणिकायं उज्जालेह, तित्थगरसरीरगं गणहरसरीरगाइं अणगारसरीरगाइं च झामेह ।। १०८. तए णं ते वाउकुमारा देवा विमणा णिराणंदा अंसुपुण्णणयणा तित्थगरचियगाएं गणहरचियगाए अणगारचियगाए य वाउक्कायं विउव्वंति, अगणिकायं उज्जालेंति, तित्थगरसरीरगं गणहरसरीरगाई अणगारसरीरगाणि य झामें ति ।। १०६. तए णं से सक्के देविदे देवराया ते वहवे भवणवई"- वाणमंतर-जोइस-वेमाणिए देवे एवं क्यासी---खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचियगाए 'गणहरचियगाए' अणगारचियगाए य अगुरु"-तुरुक्क"-घय-मधुं च कुंभग्गसो य भारग्गसो य साहरह ।। १,११. सं० पा०--भवणवइ जाव वेमाणिए। ६. सं. पा०-तित्थगरचियगाए जाव विउव्वंति। २. सं० पा०-तुरग जाव वणलयभत्तिचित्ताओ। १०. सं० पा.- तित्थगरसरीरगं जाव अणगार३,४. सं० पा०-भवणवइ जाव वेमाणिया। सरीरगाणि । ५. सीयं (क,ख त्रि,प,स)। १३. x (अ,ब) । ६,७,८,१२. सं० पा०—तित्थगरचियगाए जाव १४. तुरक् (अ,ब)। अणगारचियगाए। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौलो वक्खारो ११०. तए णं ते भवणवइ - वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा तित्थगरचियगाए गणहरचियगाए अणगारचियगाए य अगुरु-तुरुक्क-घय-मधुं च कुंभग्गसो य° भारग्गसो य साहरंति ॥ १११. तए णं से सक्के देविंदे देवराया मेहकुमारे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! तित्थगरचियग गणहरचियगं° अणगारचियगं च खोरोदगेणं णिव्वावेह ।। ११२. तए णं ते मेहकुमारा देवा तित्थगरचियगं' 'गणहरचियगं अणगारचियगं च खीरोदगेणं णिव्वाति ॥ ११३. तए णं से सक्के देविंदे देवराया भगवओ तित्थगरस्स उवरिल्लं दाहिणं सकहं गेण्डाइ, ईसाणे देविदे देवराया उवरिल्लं वाम सक' गेण्डाइ, चमरे असुरिंदे असुरराया हेदिल्लं दाहिणं सकहं गेण्हइ, बली वइरोयणिदे वइरोयण राया हेढिल्लं वाम सकहं गेण्हइ, अवसेसा भवणवई'- वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा जहारिहं अवसेसाई अंगमंगाईकेइ जिणभत्तीए, केइ जीयमेयंतिकट्ट, केइ धम्मोत्तिकटु-गेण्हति ।। ११४. तए णं से सक्के देविदे देवराया वहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइस'वेमाणिए देवे" एवं बयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सव्वरयणामए महइमहालए तो चेइयथूभे करेह-एगं भगवओ तित्थगरस्स चियगाए, एगं गणहरचियगाए, एगं अवसेसाणं अणगाराणं चियगाए । ११५. तए णं ते बहवे' 'भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा खिप्पामेव सव्वरयणामए महइमहालए तओ चेइथूभे करेंति ।। ११६. तए णं ते बहवे भवणवई - वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा तित्थगरस्स परिणिव्वाणमहिमं करेंति, करेत्ता जेणेव नंदीसरवरे दीवे तेणेव उवागच्छंति ।। ११७. तए णं से सक्के देविदे देवराया पुरथिमिल्ले अंजणगपव्वए अट्टाहियं महामहिमं करेति ॥ ११८. तए णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चत्तारि लोगधाला चउसु दहिमुहपव्वएसु" अट्ठाहियं महामहिमं करेंति ॥ ११६. ईसाणे देविदे देवराया उत्तरिल्ले अंजणगे अट्ठाहियं", तस्स लोगपाला चउसु दहिमुहेसु अट्ठाहियं । चमरो य दाहिणिल्ले अंजणगे, तस्स लोगपाला दहिमुहपव्वएसु । बली पच्चस्थिमिल्ले अंजणगे, तस्स लोगपाला दहिमुहेसु ॥ १२०. तए णं वहवे भवणवइ" "वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा' अट्टाहियाओ १. सं० पा.--भवणवइ जाव तित्यगर जाव ६. सं. पा--भवणवइ जाद वेमाणिया । भारगसो। ७. वेमाणिया देवा (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। २.सं० पा०--तित्थगरचियगं जाव अणगार ८. जहारियं एवं (त्रि) 1 चियगं। ६. सं० पा०..-बहवे जाव करेंति । ३. सं० पा०—तित्थगरचियगं जाव णिवावेति । ११. दहिमुखगपब्वएस (अ,क,ख,ब) । ४. सगधं (अ,क,ख,ब,स); सगहं (त्रि)। १२. 'महामहिमं करेती' ति शेषः, एवं सर्वत्रापि । ५.१०.सं० पा०-भवणवइ जाव वेमाणिया। १३. सं० पा०-भवणवइ जाव अद्राहियाओ। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती महामहिमाओ करेंति, करेत्ता जेणेव साइं-साइं विमाणाई जेणेव साइ-साइं भवणाई जेणेव साओ-साओ सभाओ सुहम्माओ जेणेव सगा-सगा माणवगा चेइयखंभा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु जिण-सकहाओ पक्खिवंति, पविखवित्ता अग्गेहि वरेहि मल्लेहि य गंधेहि य अच्चेति, अच्चेत्ता विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति ।। १२१. तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहि अणंतेहिं गंधपज्जवेहि अगंतेहिं रसपज्जवेंहि अणंतेहिं फासपज्जवेहिं अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणंतेहि संठाणपज्जवेहिं अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहि आउपज्जवेहि अणंतेहि गरुयलहुयपज्जवेहिं अणतेहिं अगस्यलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं उट्ठाण कम्म-बलवीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अणंतगुणपरिहाणीए° परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमसुसमाणामं समा काले पडिज्जिसु समणाउसो !" १२२. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! वहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्ख रेइ वा जावणाणाविहपंचवणेहि मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा- कत्तिमेहिं चेव अकत्तिमेहिं चेव ॥ १२३. तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसिं मणुयाणं छविहे संघयणे, छबिहे संठाणे, बहूई धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं, जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडि आउयं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी •अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति' 'बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंत करेंति ।। १२४. तीसे णं समाए [भरहे वासे] तओ वंसा समुप्पज्जित्था, तं जहा- अरहंतवंसे चक्कवट्टिवसे दसारवंसे ।। १२५. तीसे गं समाए [भरहे वासे] तेवीसं तित्थक रा, एक्का रस चक्कवट्टी, णव बलदेवा, णव वासु देवा समुप्पज्जित्था ।। १२६. तीसे णं समाए [भरहे वासे] एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए यायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए काले वीइक्कते अणतेहिं वण्णपज्जवेहि अणंतेहि गंधपज्जवेहि अणतेहि रसपज्जवेहि अणतेहिं फासपज्जवेहि अणतेहिं संघयणपज्जवेहि अणतेहि संठाणपज्जवेहि अणतेहि उच्चत्तपज्जवेहि अणतेहिं आउपज्जवेहि अणंतेहि गरुयलयपज्जवेहिं अणतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं उठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहि अणंतगुण परिहाणोए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमा णाम समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो !" १. सपा०-वणपज्जयहि तहव जाव अणतेहि । उढाणकम्म जाव परिहायमाणे। २. जी. ३१२७७ ! २. पुन्वकोडी (अत्रि,प,ब)। ४. सं. पा.-णिरयगामी जाव देवगामी। ५. सं० पा–सिज्मति जाव सव्वदुक्खाणमंतं । ६. सं० पा०-वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव परिहाणीए। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौओ वक्खारो १२७. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भक्स्सिइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविहपंचवणेहि मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा --कत्तिमेहि चेव अकत्तिमेहिं चेव ॥ १२८. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स मणुयाणं के रिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसि मणुयाणं छविहे संघयणे, छविहे संठाणे, बहुईओ रयणीओ उड्ढ़ उच्चत्तेणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आउयं पालेति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणयगामी, अप्पगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति° सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ॥ १२६. तीसे णं समाए पच्छिमे तिभागे गणधम्मे पासंडधम्मे रायधम्मे जायतेए धम्मचरणे य बोच्छिज्जिस्सइ ।। १३०. तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहि काले विइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं, अणंतेहिं गंधपज्जवेहि अणंतेहिं रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहि 'अणंतेहि संघयणपज्जवेहि अणंतेहि संठाणपज्जवेहिं अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहि आउपज्जवेहिं अणतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहि अगरुयलहुयपज्जवेहिं अगंतेहि उट्ठाण-कम्मबल-वीरिय-पुरिसक्कार-परकम्मपज्जवेहिं अणंतगुणपरिहाणीए° परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमसमणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो !॥ १३१. तीसे णं भंते ! समाए उत्तमकट्टपत्ताए भरहस्स बासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! काले भविस्सई हाहाभूए भंभाभूए कोलाहलभूए समाणुभावेण 'य णं खरफरुसधूलिमइला दुव्विसहा वाउला भयंकरा य वाया संवट्टगा य वाहिति । इह अभिक्खं धूमाहिति य दिसा समंता रउस्सला" रेणुकलुस-तमपडल-णिरालोया । समयलुक्खयाए य गं अहियं चंदा सीयं मोच्छिहिति, अहियं सूरिया तविस्संति। अदुत्तरं च णं गोयमा ! अभिक्खणं अरसमेहा विरसमेहा खारमेहा खत्तमेहा" अग्गिमेहा विज्जुमेहा विसमेहा १. जी. ३।२७७ । ५. भागे (स)। २. सं० पा० ...णाणामणिपंच जाव वित्तिमेहि । ६. सं० पा०--फासपज्जवेहि जाव परिहायमाणे। ३. अत्र भविष्यदर्थे वर्तमानक्रियाप्रयोगः (हीव); ७. उत्तिमटुपत्ताए (अ,ब); उत्तिमकट्टपत्ताए अत्र पालयन्ति अन्तं कुर्वन्ति इत्यादौ भविष्य- (क,स)। कालप्रयोगे कथं वर्तमाननिर्देश: ? उच्यते, ८. हाभूते (अ,क,ख,ब,स)। सर्वास्वप्यवसप्पिणीषु पञ्चमसमासु इदमेव १. भंभन्भूए (भ० ७११७) । स्वरूपमिति नित्यप्रवृत्तवर्तमानकाले वर्तमान- १०.x (अ,त्रि,ब,पुत्)। प्रयोगः (शावृ)। ११. रयोसला (अ,क,ब,स) । ४. सं० पा० --णिरयगामी जाव सम्वदुक्खाण- १२. खट्टमेहा (ख, पुवृपा, शावृपा) । मंतं। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ जंबुद्दीपण्णत्तो अणिमेहा' अजवणिज्जोदगा' वाहिरोग वेदणोदी रण - 'परिणामसलिला अमणुष्णपाणियगा " चंडानिलहत- तिक्खधारा- णिवातपउरं वासं वासि हिति, जेणं भरहे वासे गामागरनगर-खेड-कब्बड-मडंब - दोण मुह-पट्टणासमगयं जणवयं, चउप्पयगवेलए, खयरे पक्खिसंघे ' गामारण्णप्पयारणिरए तसे य पाणे बहुप्पयारे रुक्ख गुच्छ गुम्म-लय- वल्लि पवालंकुरमादी वणवण सइकाइए ओसहीओ य विद्धसेहिति, पव्वय - गिरि- डोंगरुत्थलभट्टिमादीए य वेडगिरिवज्जे विरावेहिति, सलिलविल- 'विसम- गड्डु - णिण्णुष्णयाणि य गंगासिंधुवज्जाई समीकरर्हिति ॥ १३२. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स भूमीए केरिसए आगारभाव पडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! भूमी भविस्सइ इंगालभूया मुम्मूरभूया छारियभूया' तत्तकवेल्लुयभूया तत्तसमजोइभूया धूलिबहुला रेणुबहुला पंकबहुला पणयवहुला चलणिबहुला बहूणं धरणिगोयराणं सत्ताणं दुन्निकम्मा' यावि भविस्सई || १३३. तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे भविसइ ? गोयमा ! मणुया भविस्संति दुरूवा दुवष्णा दुग्गंधा' दुरसा दुफासा अणिट्ठा अकता अप्पिया असुभा अमणुण्णा अमणामा हीणस्सरा दीणस्सरा अणिट्ठस्सरा अकंतस्सरा अपियस्सरा अमणुण्णस्सरा अमणामस्सरा अणादेज्जवयणपच्चायाता' गिल्लज्जा कूड-कवडकलह-वह-बंध-वेरनिरया मज्जायातिक्कमप्पहाणा अकज्जणिच्चुज्जया" गुरुणि ओग-विजयरहिया य विकलरूवा परूढणह- केस-मंसु-रोमा काला खर- फरुस - सामवण्णा" फुट्टसिरा" कविलपलिकेसा" वहुण्हारुणिसंपिणद्ध-दुद्दस णिज्जरुवा * संकुडियवली तरंग-परिवेढिअंगमंगा जरापरिणयव्व थेरगणरा पविरल - परिसडिय - दंतसेढी उन्भडघडामुहा" विसमणयणवंकणासा वक" वली विगय" भेसणमुहा ददु-किटिभ-सिब्भ- फुडियफरुसच्छवी चित्तलंगमंगा " १. x ( अ, क, त्रि, प, ब, स ) ; 'असणिमेह' त्ति क्वचित् (पुवृ); 'असणिमेहा' इत्यपि पदं क्वचिद् दृश्यते (शा) : भगवत्या ( ७.११७ ) मपि एतत्पदं दृश्यते । २. अपिबणिज्जोदगा (पुवृषा, शावृषा, भ० ७। ११७) । 1 ३. परिणामा सलिलस मणुष्णपाणियागा ( अ, ब ) । ४. गड-दुग्गविसम ( भ० ७ ११७ ) ; क्वचिद् दुर्गपदमपि दृश्यते ( शाबू ) । ५. छारिभूया (त्रि ) । ६. दुल्लिग्गमा ( अ, क, ख, त्रि, बस, पु, ही वृ ) । ७. दुब्वण्णा (क, ख,स) 1 ८. दुगंधा (अ,प,ब) । ९. पञ्चाया ( अ, क, ख, त्रि,ब,स) 1 १०. ० णिच्चुज्जुता ( अ, त्रि, प, ब, स ) । ११. समवण्णा ( अ ) ; गमावण्णा (प ) ध्यामवर्णा (पुवृषा, शावृपा ); भगवत्या ( ७।११९ ) मपि 'झामवरण' इति पदं दृश्यते । १२. फट्टसिरा (क,ख ) ! १३. वलिया ( अ, क, ख, त्रि.ब)। १४. दुमणीयख्या ( क, ख ) 1 १५. उभडघाडामुहा हीवृपा ) 1 १६. बंधा ( अ, ब ) ; वंग (क, ख, स, पुवृपा, शावृपा) । १७. पलीविगय ( अ ) 1 १८. चित्तलगा (पुवृ, हीवृ, भ० ७ ११६ ) । (क, स, पुवृषा, शावृपा, Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीवो वक्खारो कच्छृखसराभिभूया खरतिक्खणवख-कंड इय-विक्खयतणू' टोलाकिति'-विसमसंधिबंधणउक्कुडुयट्ठियविभत्त-दुब्वल-कुसंघयण-कुप्पमाणकुसंठिया कुरुवा कुट्ठाणासण-कुसेज्ज-कुभोइणो असुइणो अणेगवाहिपरिपीलिअंगमंगा खलंत-विब्भलगई णिरुच्छाहा सत्तपरिवज्जिता विगयचेट्ठा नट्ठतेया अभिक्खणं सीउण्ह' खरफरुसवायविज्झडिय-मलिणपंसुरओगुंडिअंगमंगा बहुकोहमाणमायालोभा वहुमोहा असुभदुक्खभागी ओसण्णं धम्मसण्ण-सम्मत्तपरिभट्ठा उक्कोसेणं रयणिप्पमाणमेत्ता सोलस-बीसइवास-परमाउसों बहुपुत्तणत्तुपरियाल-पणयबहला" गंगासिंधओ महाणईओ 'वेयडढं च पव्वयं" नीसाए बावत्तरि णिगोया" बीयं बीयमेत्ता बिलवासिणो मणया भविस्संति ।। १३४ ते णं भंते ! मणुया किमाहारिस्संति ? गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं गंगासिंधुओ महाण ईओ रहपहमित्तवित्थराओ अक्खसोयप्पमाणमेत्तं जलं वोज्झिहिति, सेवि य णं जले वहुमच्छकच्छभाइण्णे, णो चेव णं आउबहुले भविस्सइ। तए णं ते मणुया सूरुग्गमणमुहुत्तंसि य सूरत्थमणमुहत्तंसि य बिलेहितो णिद्धाइरसंति, णिद्धाइत्ता मच्छकच्छभे थलाइं गाहेहिति, गाहेत्ता सीयातवतत्तेहिं मच्छकच्छभेहिं इक्कवीसं वाससहस्साई वित्ति कप्पेमाणा विहरिस्संति ।। १३५. ते णं भंते ! मणुया णिस्सीला णिव्वया णिग्गुणा जिम्मेरा णिप्पच्चक्खाणपोसहोववासा ओसणं मंसाहारा मच्छाहारा खोद्दाहारा कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहि गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिंति ? गोयमा ! ओसण्णं णरगतिरिक्खजोणिएसु उववज्जिहिति ।। १३६. 'ते णं भंते !" सीहा वग्धा वगा" दीविया अच्छा तरच्छा परस्सरा सियाल - बिराल-सुणगा कोलसुणगा ससगा चित्तलगा चिल्ललगा ओसण्णं मंसाहारा मच्छाहारा खोद्दाहारा कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति ? गोयमा ! ओसण्णं णरगतिरिक्खजोणिएसु उववजिहिति ॥ १३७. ते णं भंते ! ढंका कंका पिलगा मदुगा" सिही ओसण्णं मंसाहारा" मिच्छा१. विक यतणू (प,शा)। १०. डगडाहारा (अ,ब); खुद्दाहारा (क,ख); २. डोलाकिति (अ); डोलागिति (क,ख); खुड्डाहारा (त्रि,प); केषुचिदादर्गेषु अत्र टोलागिति (त्रि,स); टोलागति (प); गड्डाहारा' इति दृश्यते, स लिपिप्रमाद एव टोलगति (पुवुपा, शावृपा, हीवृपा, भ० सम्भाव्यते पञ्चमाङ्गे सप्तमशते षष्ठोद्देशे ७.११६)। दुषमदुष्पमावर्णनेऽदृश्यमानत्वात् (शावृ) । ३. सीयउछह (क,ख,त्रि,ब,स) । ११. तीसे गं भंते समाए (शाव, ही । ४. परायुसो (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । १२. विगा (त्रि, प, स)। ५. पणयपरियालबहला (क,ख,त्रि,ब,स); पुत्त- १३. सरभसियाल (क,ख, त्रिप) । ____णत्तुपरियालबहुला (पुवृपा,हीवृपा)। १४. चित्तगा (ख,त्रि,प); x (स)। ६. वेयड्ढपव्वयं च (ब)। १५. मर्दूई (अ,ब); मदुई (क,ख); मड्डुई ७. णिओता (अ,क,ख,ब,स)। (त्रि); मग्गुगा (प); मद् (स)। ८. बीतं (अ.व)। १६. सं० पा०-मंसाहारा जाव कहिं । ६. आवबहुले (अ,व)। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१५ , जंबुद्दीवपण्णत्ती हारा खोद्दाहारा कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहि गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिति ? गोयमा ! ओसण्णं णरगतिरिक्खजोणिएसु' उववज्जिहिति ॥ १३८. तीसे समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्कंते आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सावण बहुलपडिवए बालवकरणंसि अभीइणक्खत्ते चोट्सपढमसमये अनंतेहि दण्णपज्जवेहि अणतेहि गंधपज्जवेहिं अणतेहि रसपज्जवेहि अणतेहि फासपज्जवेहि अणतेहि संघयणपज्जवेहि अणतेहि संठाणपज्जवेहि अनंतेहि उच्चत्तपज्जवेहिं अणतेहि आउपज्जवेहि अणतेहिं गरुयल हुयपज्जवेहिं अणतेहिं अगरुयल हुयपज्जवेहि अणतेहि उद्वाणकम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार- परक्कमपज्जवेहि अनंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे- परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं दुसमद्समाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो ! ॥ १३६. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभाव पडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! काले भविस्सइ हाहाभूए भंभाए एवं सो चेव दूसमदू समावेढो यव्वों ॥ १४०. तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहि काले विइक्कते अणतेहि वण्णपज्जवेहिं' 'अणतेहि गंधपज्जवेहि अणतेहि रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहि संघयणपज्जवेहि अणतेहि संठाणपज्जवेहि अणतेहि उच्चत्तपज्जवेहि अहि आउपज्जयेहि अणंतेहिं गरुयल हुयपज्जवेहि अणंतेहि अगरुयल हुयपज्जवेहि अणतेहि उट्ठाण - कम्म-वल-वीरिय-पुरिसक्कार- परक्कमपज्जवेहि अनंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे- परिढेमाणे, एत्थ णं दूसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो ! ॥ १४१. तेणं कालेणं तेणं समएणं पुक्खलसंवट्टए गामं महामे हे पाउ भविस्सइ -- भरहप्पमाणमेते आयामेणं, तदणुरूवं चणं विक्खंभ - वाहल्लेणं' । तए णं से पुक्खल संवट्टए महामे खिप्पामेव तणतणाइस्सर, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुयाइस्सइ, पविज्जुयाइत्ता खिप्पामेव जुग मुसल-मुट्ठिप्यमाणमेत्ताहि धाराहि ओघमेधं सत्तरतं वासं वासिस्सइ, जेण भरहस्स वासस्स भूमिभागं इंगालभूयं मुम्मुरभूयं छारियभूयं तत्तकवेल्लुगभूयं' तत्तसमजोइभूयं णिव्वाविस्सति ॥ १४२. तंसि च णं पुक्खल संवट्टगंसि महामेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि, एत्थ पं खीरमेहे णामं महामेहे पाउभविस्सइ - भरप्यमाणमेत्ते आयामेणं, तदणुरूवं च णं विक्खंभवाहल्लेणं । तए णं से खीरमेहे णामं महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ" पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुयाइस्सइ, पविज्जुयाइत्ता' खिप्पामेव जुग मुसल-मुट्ठि" प्यमाणमेत्ताहि १. तिरिख जाव ( अ. क, ख, त्रि, प, ब, स ) 1 २. आगमेसाए (अव) । ३. सं० पा० - वण्णवज्जवेहिं जाव अनंत ४. वेढओ (१) । यू. जं० २।१३१-१३७ । ६. सं० पा०वण्णवज्जयेहिं जाव णंतगुण | ७. तदाणुरुवं (अ, क, ख, प, ब, स ) सर्वत्र । ८. बाहुले ( अ, ब ) । ६. क विल्लय° ( क ) ; ल्ल कविलग° (ख); कवे(त्रि,व) ° कवेलूय° ( प ) 1 १०. णिव्ववेसइ ( अव ); णिव्ववेस्सति ( क प ) ; णिव्ववेस्सति ( ख ); णिव्वावेस्सति (त्रि ) । ११ सं० पा० पतणतण इस्सर जाव खिप्पामेव । १२. सं० पा० - जुगमुसलमुट्ठि जाव सत्तरतं । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ बक्खारो धाराहिं ओध मेघ सत्तरत्तं वासं वासिरसइ, जेणं भरहस्स वासरस भूमीए वणं गंधं रसं फासं च जणइस्सइ॥ १४३. तंसिं च णं खीरमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि, एत्थ णं घयमेहे णाम महामेहे पाउभविस्सइ--- भरहापमाणमेत्ते आयामेणं, तदणुरूवं च णं विक्खंभ-वाहल्लेणं । तए णं से घयमेहे महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ', 'पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुयाइस्सइ, पविज्जुयाइत्ता खिप्पामेव जुग-मुसल-मुट्टिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघ सत्तरत्तं वासं वासिस्सइ, जेणं भरहस्स वासस्स भूमीए सिणेहभावं जणइस्सइ ।। १४४. तंसि च णं घयमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि, एत्थ णं अमयमेहे णामं महामेहे पाउब्भविस्सइ--भरहपमाणमेत्ते आयामेणं', 'तदणुरूवं च णं विक्खंभवाहल्लेणं । तए ण से अमयमेहे महामहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुयाइस्सइ, पविज्जुयाइत्ता खिप्पामेव जुग-मुसल-मुट्ठिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओएमेघ सत्तरत्तं वासं वासिस्सइ, जेण भरहे वासे रुवख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्वगहरित-ओसहि-पवालंकुरमा ईए तणवणस्सइकाइए जणइस्सइ।। १४५. तंसि च णं अमयमहसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणसि, एत्थ ण रसमेहे णामं महामेहे पाउभविस्सइ--भरहप्पमाणमेत्ते आयामेणं' 'तदणुरूवं च णं विक्खंभ-बाहल्लेणं । तए णं से रसमेहे महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुयाइस्सइ, पविज्जुयाइत्ता खिप्पामेव जुग-मुसल-मुट्ठिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहि ओघ मेघं सत्तरत्तं वासं वासिस्सइ, जेणं तेसि बहूणं रुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्वग-हरितओसहि-पवालंकुरमादीणं तित्त-कडय-कसाय-अंबिल-महुरे पंचविहे रसविसेसे जणइस्साई। तए णं भरहे वासे भविस्सइ परूढरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्वग-हरिय-ओसहिए, उचियतय-पत्त-पवालंकुर -पुप्फ-फलसमुइए सुहोवभोगे यावि भविस्सइ ।। १४६. तए णं ते मणुया भरह वासं परुढरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्वय-हरियओसहीयं उवचियतय-पत्त-पबालंकुर-पुष्प-फलसमुइयं सुहोवभोगं जायं चावि पासिहिंति, पासित्ता बिलेहितो णिद्धाइस्संति. णिद्धाइत्ता हट्ठतुट्ठा अण्णमण्णं सद्दा विस्संति, सद्दावित्ता एवं वदिस्संति-जाते णं देवाणुप्पिया ! भरहे वासे परूढरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तणपव्वय-हरिय:- ओसहीए उवचियतय-पत्त-पवालंकुर-पुप्फ-फलसमुइए° सुहोवभोगे, तं जे णं देवाणु प्पिया ! अम्हं केइ अज्जप्पभिइअसुभं कुणिमं आहारं आहारिस्सइ, से णं अणेगाहिं छायाहि वज्जणिज्जेत्तिक? संठिति ठवेस्सं ति, ठवेत्ता भरहे वासे सुहंसुहेण भिरममाणाअभिरमाणा विहरिस्संति ॥ १. सं० पा०—पतणतणाइस्सइ जाव वासं। २. सं. पा. -आयामेणं जाव वासं। ३. सं० पा०-आयामेण जाव वासं । ४. पवालिपल्लवंकूर (अ,ब); पवा लपल्लवंकुर (क,ख,त्रि,स,पुव, शाव); पवालपल्लवांकुरु (ख) अग्रेपि । ५. वावि (अ,क,ख,त्रि,ब,स) ! ६. सं० पा० ---हरिय जाव' सुहोवभोगे। ७. बवचिद् वर्ज' इति सूत्रपाठेतु वयो वर्जनीय इत्यर्थः (शाव)। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०. जंबुद्दीवपण्णत्ती १४७. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! वहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सई, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि तणेहि य उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहि चेव अकित्तिमेहि चेव ।। १४८. तीसे णं भंते ! समाए मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! तेसि णं मणुयाणं छविहे संघयणे, छविहे संठाणे, बहूईओ रयणीओ उड्ढे उच्चतेणं, जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आउयं पालेहिति, पालेता अप्पेगइया णिरयगामी', 'अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मण्यगामी, अप्पैगइया देवगामी, ण सिज्झंति'। १४६. तोसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्से हि काले वीइक्कंते अणंतेहि वण्णपज्जवेहि अणंतेहिं गंधपज्जवेहिं अणंतेहि रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अणतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अणंतेहिं आउपज्जवेहि अणंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं उट्ठाणकम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्वार-परक्कमपज्जवेहिं अणंतगुणपरिवड्डीए' परिवड्ढेमाणे-परिवडढेमाण, एत्थ ण दुसमसूसमाणाम समा काले पडिज्जिस्सइ समणाउसो! ॥ १५०. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहि मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहि चेव ।। १५१. तेसि णं भंते ! मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! तेसि णं मणुयाणं छविहे संघयणे, छव्विहे संठाणे, बहूई धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं, जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुन्वकोडि' आउयं पालेहिति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी', •अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगडया मणयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिज्जिहिंति बुज्झिहिंति मुच्चि हिंति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिति ।। १५२. तीसे णं समाए तओ वंसा समुप्पज्जिस्संति, तं जहा-तित्थगरवंसे चक्कवट्टिवंसे दसारवंसे ॥ १५३. तीसे णं समाए तेवीसं तित्थगरा, एक्कारस चक्कवट्टी, णव बलदेवा, णव वासुदेवा समुप्पज्जिस्संति ॥ १५४. तीसे णं समाए सागरोवमकोडाकोडीए बायलीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए १. जी० ३१२७७ । २. सं० पा.--णिरयगामी जाव अप्पेगइया। ३. नवरं न सिझति' त्ति द्वितीयारकवत्तिनो मनुजा न सिध्यन्ति' वर्तमान प्रयोगोपि भवि- ष्यत्तयाऽवसातव्यः, तेनन सेत्स्यन्ति सकल- कर्मक्षयलक्षणां सिद्धि न प्राप्स्यन्तीत्यर्थः (ही) । ४. सं० पा०-वण्णपज्जवेहिं जाब परिवड्ढेमाणे । ५. धणूयाई (अ, त्रि, ब)। ६. पुवकोडी (प)। ७. सं० पा.-.-णिरयगामी जाव अंतं। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वक्खारो ४०१ काले वीइक्कते अणतेहिं वण्णपज्जवेहि अणंतेहिं गंधपज्जवेहिं अणंतेहिं रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहि अणंतेहिं संठाणपज्जवेहि अणंतेहि उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहिं आउपज्जवेहि अणंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहि अणतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परवकमपज्जवेहि अणंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं सुसमदूसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो ! ॥ १५५. सा णं समा तिहा विभजिस्सइ, तं जहा--पढमे तिभागे मज्झिमे तिभागे पच्छिमे तिभागे। १५६. तीसे णं भंते! समाए पढमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! वहसमरमणिज्जे' 'भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविहपंचवणेहि मणीहिं तणेहि य उवसोमिए, तं जहा-कित्तिमेहि चेव अकित्तिमेहिं चेव ।। १५७. तीसे णं भंते ! समाए पढमे तिभागे भरहे वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! तेसिं मणुयाणं छबिहे संघयणे, छविहे संठाणे, बहुणि धणुसयाणि उद्धं उच्चत्तेणं, जहण्णणं संखेज्जाणि वासाणि, उक्कोसेणं असंखेज्जाणि वासाणि आउयं पालेहिति, पालेत्ता अप्पेगइया गिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुस्सगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेग इया सिज्झि हिंति बुज्झिहिंति मुच्चिहिंति परिणिव्वाहिति सम्बदुक्खाणमंतं करेहिति ।। १. सं० पा०-दण्णपज्जवेहिं जाव अणंतगुण । २. सं. पा०-बहुसमरमणिज्जे जाव भविस्सइ, मणुयाणं जा चेव ओस पिणीए पच्छिमे तिभागे वत्तन्वया सा भाणि यव्वा, कुलगरवज्जा उसभसामिवज्जा । 'उसभसामिवज्जा' इत्यस्य स्पष्टीकरणं प्रमेयरत्नमञ्जषायां इत्थं लभ्यतेअत्रैवापवादसूत्रमाह-कीदृशी च सा वक्तव्यतेत्याह—कुलकरान् वर्जयतीति कुलकरवर्जा, 'जण वर्जने' इत्यस्याचि प्रत्यये रूपसिद्धि, एवं ऋषभस्वामिवर्जाः, अवसप्पिण्यां कुलकरसम्पाद्यानां दण्डनीत्यादीनामिव ऋषभस्वामिसम्पाद्यानां चान्नपाकादिप्रक्रियाशिल्पकलोपदर्शनादीनामिवोत्सप्पिण्यामपि द्वितीयारकभाविकुलकरप्रवत्तितानां तेषां तदानीमनुवत्तिध्यमाणत्वेन तत्प्रतिपादकपुरुषकथनप्रयोजनाभावात् यथा अवसप्पिणीतुतीयारकतृतीय भागे कुलकराणां स्वरूपं ऋषभस्वामिरूपं च प्राक प्ररूपितं तथा नात्र वक्तव्यमिति भावः, अथवा ऋषभस्वामिवज्जत्यत्र ऋषभस्वामिअभिलापवर्जेति तात्पर्य, तेन ऋषभस्वाम्यभिला वजयित्वा भद्रकृतीर्थकृतोऽभिलापः कार्य इत्यागतम्, उत्सपिणीचरमतीर्थकरस्य प्रायोवसप्पिणीप्रथमतीर्थकृतसमानशीलत्वात, अन्यथोत्सप्पिणी . चतुर्विशतितमतीर्थकृत: बव सम्भवः स्यादिति संशयादयोपि स्यात् कलाद्यपदर्शनस्य तु अर्थादेव निषेधप्राप्ते तद्विषयकोभिलाप एव नास्तिीति । कुलकरविषयको वाचनाभेद: आगमादर्शषु एवमस्ति -अण्णे पढ़ति-तीसे णं समाए पढमे तिभाए इमे पण्ण रस कुलगरा समुप्पज्जिस्संति, तं जहा–सम्मुइ जाव उसमे सेसं तं चेव, दंडणीईओ पडिलोमाओ णेयवाओ [जं० २०५६-६२] । Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ जंबुद्दीवपण्णत्ती १५८. तीसे णं समाए पढमे तिभाए रायधम्म' 'जायतेए° धम्मचरणे य वोच्छिज्जिस्सइ॥ १५६. तीसे णं समाए मज्झिम-पच्छिमेसु तिभागेसु' भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, सो चेव गमो णेयव्वो', णाणत्तं-दो धणुसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं, तेसिं च मणुयाणं चउसद्धि पिट्टिकरंडगा, चउत्थभत्तस्स आहारत्थे समुप्पज्जिस्सइ, ठिई पलिओवमं, एगूणासीइं राइंदियाई सारक्खिस्संति संगोवेस्संति जाव देवलोगपरिग्गहिया णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ? १६०. "तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कते अणंतेहि वण्णपज्जवेहि अणंतेहि गंधपज्जवेहि अणंतेहिं रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणंतेहिं संठागपज्जवेहिं अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणतेहिं आउपज्जवेहि अणंतेहि गरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं अगस्यलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं उदाणकम्म-वल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहि अणंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणेपरिवड्ढेमाणे, एत्थ णं सुसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! ।।। १६१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तमकट्टपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुक्ख रेइ वा, तं चेव जं सुसमसुसमाए पुन्ववणियं', णवरं-णाणत्तं चउधणुसहस्समूसिया एगे अट्ठाबीसे पिढिकरंडुकसए छट्ठभत्तस्स आहारठे, चउसट्टि राइंदियाइं सारक्खिस्संति, दो पलिओवमाइं आऊ, सेसं तं चेव ।। १६२. तीसे णं समाए चउविवहा मणुस्सा अणुसज्जिस्संति, तं जहा-एका पउरजंघा कुसुमा सुसमणा ॥ १६३. "तीसे णं समाए तिहि सागरोवमकोडाकोडिहि काले वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहि अणंतेहिं गंधपज्जवेहिं अणंतेहिं रसपज्जवेहिं अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणंतेहिं संठाणपज्जवेहि अणतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहिं आउपज्जवेहिं अणंतेहि गरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं अगरुयल हुयपज्जवेहिं अणंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बलवीरिय-पूरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अणंतगणपरिवड्ढीए परिवडढेमाणे-परिवडढेमाणे, एत्थ णं सुसमसुसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो ! ।। १६४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भरहे वासे इमीसे उस्स प्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमकट्टपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! १. सं० पा०-राययम्मे जाव धम्मचरणे । यावत्करणात तुलामध्यन्यायेन मध्यग्रहणे आद्यन्तयोग्रहणमितिन्यायात् राजधर्मस्योभयोः पार्श्ववत्तिनां गणधर्मपाषण्डजाततेजसामुपादानं कार्य तेषामपि तत्र व्युच्छेत्स्यमानत्यात् २. सं० पाo.-तिभागेसु जा पढममज्झिमेसु वत्तध्वया ओसप्पिणीए सा भाणियव्वा । ३. जं० २१७-५० । ४. सं० पा०—सुसमा तहेव । ५. जं० २१७-५० । ६. सं० पा०--सुसमासुसमावि तहेव । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वखारो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुवखरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहि मणीहिं तणेहि य उक्सोभिए, तं जहा-किण्हेहिं जाव सुविकलेहिं° तहेव' जाव छव्विहा मणुस्सा अणुसज्जिस्संति, 'तं जहा- पम्हगंधा मियगंधा अममा तेतली सहा सणिचारी॥ १. जं० २।७-५०॥ २. [सं० पाल- अणुसज्जिरसति जाव सणिचारी। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो १. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चई-भरहे वासे ? भरहे वासे ? गोयमा ! भरहे णं वासे वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चोद्दसुत्तरं जोयणसयं एमारस' य एगूणवीसइभाए जोयणस्स अबाहाए, लवणसमुद्दस्स उत्तरेणं चोद्दसुत्तरं जोयणसयं एगारस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स अबाहाए, गंगाए महाणईए पच्चस्थिमेणं, सिंधूए महाणईए पुरथिमेणं, दाहिणड्ढभरहमज्झिल्लतिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं विणीया णामं रायहाणी पण्णत्ता-पाईणपडीणायया, उदीणदाहिणविच्छिण्णा, वालसजोयणायामा णवजोयणविच्छिण्णा धणवइमति-णिम्माया चामीकरपागारा णाणामणिपंचवण्णकविसीसगपरिमंडियाभिरामा अलकापुरीसंकासा पमुइयपक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया रिद्ध'-त्थिमियसमिद्धा पमुइय-जण-जाणवया जाव' पडिरूवा ।। २. तत्थ' णं विणीयाए रायहाणीए भरहे णाम राया चाउरंतचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव' रज्जं पसासेमाणे विहरइ॥ ३. बिइओ गमो रायवण्णगस्स इमो-तत्थ असंखेज्जकालवासंतरेण' उपज्जए १. एक्कारस (क, त्रि, ब)। २. पातीणपडियायता (अ, क, ख, त्रि, ब, स)। ३. रिद्धि (अ, ख, ब)। ४. ओ० सू० १। ५. आवश्यकचूणौँ राजवर्णकसूत्रं भरतस्य रत्नोत्पत्तिस्थलनिर्देशानन्तरं विद्यते (पृ० २०७२०६) । प्रस्तुतसूत्रस्य उपलब्धादर्शषु राजवर्णकसूत्रस्य किद्भिागः प्रस्तुतप्रकरणे विद्यते, किञ्चिच्च रत्नोत्पत्तिस्थलनिर्देशानन्तरं (३१२२०) विद्यते । प्रस्तुतप्रकरणे आवश्यकचणी उपलब्धजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिपाठे ये केचन पाठभेदास्ते एवं सन्ति–य संखेज्जकाल वासाउए जसंसी.....संघतणतणुकबुद्धि"देहधारी उज्जुगभिंगार....सोत्थियंकुसचंददिव्व. अरिंग ....." गागरभेगभवणविमाण हयणासणकोसिसन्निभ जातिजत वितवरचंपग... छत्तीसाएवि पसत्थ... अव्वोच्छिन्ननवत्तपागड ... कुलपुत्तयं देवेंद....."थिमिते फणवतिव.. भरहचवकवट्टी चोदसण्हं। ६.ओ० मू० १४। ७. य संखेज्ज° (अ,क,ख,त्रि,ब); उपाध्याय--- शान्तिचन्द्रेग आवश्यकचूर्णे: पाठोत्र उद्धतःआवश्यक चूर्णी तु तत्थ य संखिज्जकालवासाउए' इति पाठः। ४.४ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४०५ जसंसो उत्तमे 'अभिजाए सत्त-वीरियपरक्कमगणे पसत्थवण्ण-सर-सार-संघयण'-बुद्धिधारण'-मेहा-संठाण-सील-प्पगई पहाणगारवच्छायागइए अणेगवयणप्पहाणे तेय-आउ-बलवीरियजुत्ते अझुसिरघणणिचियलोहसंकल-णारायवइरउसहसंघयणदेहधारी' 'झस-जुग""भिंगार-वद्धमाणग-भद्दासण-संख-छत्त-वीयणि-पडाग-चक्कणंगल-मुसल-रह-सोत्थिय-अंकुसचंदाइच्च-अग्गि-जूव-सागर-इंदज्झय-पुहवि-पउम-कुंजर-सीहासण-दंड-कुम्भ-गिरिवर-तुरग - वर-मउड-कंडल-गंदावत्त-धणु-कोत-गागर-भवण विमाण - णेगलक्खणपसत्थसुविभत्तचित्तकरचरणदेसभागे उड्ढमुहलोमजात'-सुकुमालणिद्धमउयावत्तपसत्थलोमविरइयसिरिवच्छच्छण्णविउलवच्छे देसखेत्तसुविभत्तदेहधारी तरुणरविरस्सिबोहिय-वरकमलविबुद्धगब्भवण्णे हयपोसण-कोससण्णिभ-पसत्यपिठंतणिरुवलेवे पउप्पल-कुंद-जाइ-जूहिय-वरचंपगणागपुप्फ-सारंग-तुल्लगंधी छत्तीसाहियपसत्थपस्थिवगुणेहि" जुते अव्वोच्छिण्णातपत्ते पागड उभयजोणो विसुद्धणियगकुलगयणपुण्णचंदे, चंदे इव सोमयाए णयणमणणिव्वुईकरे, अक्खोभे सागरोव्वथिमिए, धणवइव्व भोगसमुदयसद्दव्वयाए, समरे अपराइए परमविक्कमगणे अमरवइसमाणसरिसरूवे भणुयवई भरहचक्कवट्टी भरहं भुंजइ पण्णट्ठसत्तू ।। ४. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अण्णया कयाइ आउहघरसालाए दिव्वे चक्क रयणे सम्प्पज्जित्था ॥ ५. तए णं से आउहधरिए भरहस्स रणो आउहघरसालाए दिव्वं चक्करयणं समुप्पन्नं पासाइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणं दिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणामेव से" दिव्वे चक्करयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता करयल" परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए जलि कटु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणामेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणामेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल •परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं आउहघरसालाए दिव्वे चक्करयणे समुप्पन्ने, तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पियट्ठयाए पियं णिवेदेमो, पियं भे भवउ ॥ १. अभियातसत (क, ख, स); अहियातसत ७. तुरंगवर (अ, क, ख, त्रि, ब, स)। (त्रि, ब, पुवृ, हीव)। ८. मगर (क, ख)। २. संघयणतणुग (क, ख, त्रि, प, स, पुव, शावृ, ६. उद्धामुहलोमजात (अ, ब, पुवृ); उड्ढामुहहीव); ताडपत्रीयादर्शयोः तणग' इति पदं लोमजाल (क,त्रि,प,स); उड्ढमुहलोमजाल नास्ति, उपाध्याय पुण्यसागरकृतवृत्तावपि (ख); °लोमजाल (शावृ, हीवृ, पुवृपा)। अस्य पदस्यादर्शनस्योल्लेखोस्ति--क्वचित्तनु- १०. छतीसा अहिय (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। कशब्दो न दृश्यते। ११. "उभतो (अ,क,ख,ब,स)। ३. x (ब)। १२. x (त्रि, प)। ४. नारायणवइर° (अ, ख, ब)। १३. सं० पा०—करयल जाव कटु । ५. झसयुगं-मत्स्युग्मम् (पुर्व)। १४. सं० पाo...-फरयल जाव जएणं । ६. जूय (क, ख, प, स) । १५. भवइ (अ, ब)। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ जंबुद्दीवपण्णत्ती ६. तते णं से भरहे राया तस्स आउघरियस्स अंतिए एयमझें सोचा णिसम्म हट्ठ 'तुट्ठ-चित्तमाणंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए वियसियवरकमलणयणवयणे पयलियवरकडगतुडियके ऊर-म उड-कुंडल-हारविरायंतरइयवच्छे पालंबपलबमाणघोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं परिंदे सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ. पच्चोरुहिता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता अंजलिमउलियम्गहत्थे चक्करयणाभिमुहे सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि णिहटु करयल'. परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता तस्स आउहपरियस्स अहामालियं मउडवज्ज ओमोयं दलयइ, दल इत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ ७. तए णं से भरहे राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! विणीयं रायहाणि सभितरबाहिरियं' आसिय-संमज्जिय-सित्त-सुइगसंमट्ठ-रत्यंतरवीहियं मंचाइमंचकलियं गाणाविहरागवसण'-ऊसियझयपडागाइपडागमंडियं लाउल्लोइयमहियं गोसीससरसरत्तदद्दर दिण्णपंचंगुलितलं उवचियवंदणकलसं वंदणघड. सुकय'- तोरणपडिदुवारदेसभायं आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं कालागुरुपवरकुंदुरुक्क-तुरक्कधूवमघमघेत° गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह कारवेह, करेत्ता कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ८. तए णं से कोडुबियपुरिसा भरहेणं रण्णा एवं बुत्ता समाणा हट्ठ' 'तुट्ठ-चित्तमाणंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसापमाणहियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमंति पडिणिक्खमित्ता विणीयं रायहाणि जाव' करेता कारवेत्ता य तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ६. तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणधरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले' रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि णाणामणिरयण-भत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहि पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहि य पुण्णे कल्लाणगपवरमज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइय-लूहियंगे सरससुरहि१. सं० पा०-हट्ठ जाब सोमणस्सिए । भिराम। २. "मउलितहत्थे (अ, क, ब)! ७. सं० पा०- हट्ठ करयल जाव एवं । ३. सं० पा० करयल जाव अंजलिं। ८. जं० ३७ ४. अभिंतर (अ,ब))। ६. कोट्टिमतले (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ५. वसणं (अ,क,ख,ब,म) । १०. ४ (अ,ब) । ६. सं० पा०-वंदणघडसुकय जाव गंधुद्ध या Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४०७ गोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते अहयसुमहग्घदूसरयणसुसंवुए सुइमाला-वण्णग-विलेवणे आविद्धमणिसुबण्णे कप्पियहारद्धहार-तिसरय-पालंबपलंवमाण-कडिसुत्तसुकयसोहे पिणद्धगेविज्जगअंगुलिज्जग'-ललितंगयल लियकयाभरणे णाणामणिकडगतुडियथंभियभुए 'अहियरूव-सस्सिरोए" कुंडल उज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे पालवपलंवमाणसुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलीए णाणामणिकणग-विमल-महरिह-णिउणोविय- मिसिमिसेंत-विरइयसुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठसंठियपसत्थआविद्धवीरवलए, किं बहुणा? कप्परुक्खए चेव अलंकियविभूसिए रिदे सकोरंट"मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं च उचामरवालवीइअंगे मंगलजयसद्दकयालोए अणेगगणणायग-दंडणायग'-'राईसर-तलवर-मांडवियकोडविय-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेड - पीढमद्द- नगर-निगम-सेट्ठि-सेणावइसत्यवाह दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवल-महामेहणिग्गए इव 'गहगण-दिप्पंत-रिक्खतारागणाण मज्झे' ससिव्व पियदंसणे णरवई धूवपुप्फगंधमल्लहत्थगए मज्जणघराओ पडिमिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव आउहघरसाला जेणेव चक्करयणे तेणामेव पहारेत्थ गमणाए। १०. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बहवे ईसर" तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-से ट्ठिसेणावइ-सत्थवाहं पभितओ-अप्पेगइया पउमहत्थगया अप्पेगइया उप्पलहत्थगया" अप्पेगइया कुमुयहत्थगया अप्पेगइया नलिणहत्थगया अप्पेगइया सोगंधियहत्थगया अप्पेगइया पंडरीयहत्थगया अपेगइया महापंडरीयहत्थगया अप्पेगइया सयपत्तहत्थगया अप्पेगइया सहस्सपत्तहत्थगया भरहं रायाणं पिट्ठओ-पिट्ठओ अणुगच्छंति ।। ११. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बहूओ--- खुज्ज चिलाइ वामणि, वडभीओ बब्बरी" पउसियाओ" । जोणियपल्हवियाओ, ईसिणिय५ थारुकिणियाओ" ॥१॥ लासिय लउसिय दमिली, सिंहलि तह आरबी पुलिदी य । पक्कणि वहलि" मुरुंडी, सबरीओ पारसीओ य ॥२॥ १. सुसंवुते (अ) ; °सुसंवुडे (त्रि,प)। भिन्नोस्ति । द्रष्टव्यं ओवाइयं ६३ सूत्रम् । २. तिसरिय (त्रि.प,शावृ,हीवृ) । भगवतीवृतौ (पत्र ३१८) औपपातिकस्य ३. अंगुलेज्जग (अ,ब)। पाठः उद्धृतोस्ति स प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तोः संवादी ४. अहियसस्सिरीए (अ,क,ख,प,ब,स,पुत् शा)। वर्तते। ओवाइयसूत्रस्य अष्टादशे सूत्रे पि ५. नाणामणिमयं (शा)। एतत्संवादी पाठो लभ्यते । ६. हीरविजयवृत्ती शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ च । १०. सं० पा० --इव जाव ससित्र । ___'ओयविय' इति पाठः उद्धृतोस्ति । ११. सं० पा० ईसर जाव पभितयो। ७. मिसिमिसंत (क,ख,त्रि,स) । ८. सं० पा०-सकोरंट जाव चउचामर° । १२.स १२. सं०प०--उप्पलहत्थगया जाय अप्पेगइया । हीरविजयसारिणा वाचनान्तरगतस्य छत्रचामर- १३. पप्परी (अ,ब)। वर्णकस्य उल्लेखः कृतोस्ति, द्रष्टव्यं औपपाति- १४. वउसीयाओ (क,ख,प,स)। कस्य ६३ सूत्रस्य वाचानान्तरम् । १५. तिसिंणामगा (अब)। ६. सं० पा०-दंडणायग जाव दूय । औपपाति- १६. चारुविणियाओ (वि) । कस्य उपलब्धादशेषु प्रस्तुतपाठः किञ्चिद् १७. पहलि (अ,ब) । Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० जंबुद्दीवपण्णत्ती अप्पेगइयाओ वंदणकलसहत्थगयाओ भिंगार-आदंस-थाल-पाति-सुपइट्टग'-वायकरग-रयणकरंड-पुप्फचंगेरी-मल्ल-वण्ण-चुण्ण'-गंधहत्थगयाओ वत्थ-आभरण-लोमहत्थयचंगेरी - पुप्फपडलहत्थगयाओ जाव' लोमहत्थगपडलहत्थगयाओ' अप्पेगइयाओ सीहासणहत्थगयाओ 'छत्त-चामर-हत्थगयाओ" तेल्लसमुग्गयहत्थगयाओ 'कोट्ठसमुग्गयहत्थगयाओ जाव सासवसमुग्गयहत्थगयाओ" । संगहणी गाहा---- तेल्ले कोट्ठसमुग्गे, पत्ते चोए य तगरमेला य । हरियाले हिंगुलए, मणोसिला सासवसमुग्गे ।।३।। अप्पेगइयाओ तालियंटहत्थगयाओ धूवकडुच्छयहत्थगयाओं भरहं रायाणं पिट्ठओ-पिट्ठओ अणुगच्छंति ॥ १२. तए णं से भरहे राया सव्विड्डीए" सव्व जुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्व विभूसाए सव्वविभूईए सव्ववत्थ-पुष्फ-गंध-मल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरिय"-सहसण्णिणाएणं महया इड्डीए जाव" मया वरतुरिय"-जमगसमगपवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरिझल्लरि-खरमुहि-मुरव' -मुइंग-दुंदुहिनिग्घोषणाइएणं जेणेव आउधरसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता जेणेव चक्करयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थयं परामुसइ, परामुसित्ता चक्करयणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिवाए दगधाराए अब्भक्खेइ, अब्भक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं अण लिपइ, अलिपित्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहि य अच्चिणइ, पुप्फारुहणं मल्ल-गंध-वण्ण-चुण्णवत्थारुहणं आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता अच्छेहिं सहेहि सेतेहिं 'रययामएहि अच्छरसातंडुलेहि चक्करयणस्स पुरओ अट्ठ मंगलए आलिहइ, [तं जहा--सोत्थिय सिरिवच्छ १ सुपति? (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ८. आदर्शषु चिह्नाङ्कितः पाठो नास्ति, मसौ २. रयणकरंडग (क,ख,त्रि,स)। प्रमेयरत्नमञ्जूषाया आधारेण अस्माभिः ३.x (अ,ब)। संस्कृतं प्राकृतीकृत्य स्वीकृतः। हीरविजयवृत्ती ४. पुष्पचङ्गेरीत आरभ्य मालादिपदविशेषिता- अस्य पूर्णपाठस्य निर्देशोस्ति, ततश्च सङ्ग्रहणीस्तच्चङ्यों ज्ञातव्याः लोमहस्तकचङ्गेरी गाथाया उल्लेखोस्ति। तु साक्षादुपात्तास्ति (शा)। ६. कडेच्छुय (अ,ब,स) ; कडिच्छुय° (ख)। ५. यावत्करणात् अप्येककाः पुष्पपटलकमाल्य- १०. 'यक्त' इति गम्यम् । पटलक . चर्णपटलकगंधवस्त्राभरणसिद्वार्थक- ११. तुडिय (क,ख,त्रि,प,स)। हस्तगता वाच्याः (हीव); अस्यां वृत्ती १२. अत्र यावत्करणात् पूर्वोक्तानि युत्यादि पदानि वर्ण' इति पदं व्याख्यातं नास्ति, मूलपाठे महच्छब्दयुक्तानि वाच्यानि (प) । तस्वीकृतमस्ति, तेन 'वण्णपडलहत्थगयाओं' १३. तुडिय (क,ख,त्रि,प,स) इत्यपि वाच्यम् । १४. मुरज (प)। ६. लोमहत्थगया २ पडलहत्थगया (अ,त्रि,ब); १५. रयणमएहिं (अ) । ___ लोमहत्थगयाओ (क,ख,प)। १६. द्वयोरपि पदयोः पूर्वपदस्य दीर्घान्तता प्राकृत. ७. ४ (त्रि,प,स,हीवृ)। स्वात् (ही)। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४०१ णंदियावत्त वद्धमाणग भद्दासण मच्छ कलस दप्पण' अट्ठमंगलए]' आलिहित्ता काऊणं' करेइ उवयारं, कि ते ? पाडल-मल्लिय-चंपग-असोग-पुण्णाग-चूयमंजरि-णवमालिय-बकुलतिलग-कणवीर-कुंद-कोज्जय-कोरंटय-पत्त-दमणय-वरसुरहिसुगंधगंधियस्स कयग्गहगहियकरयलपभट्ठविप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्पभ-वइर-वेरुलियविमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरुपवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-ध्रुवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमट्टि विगिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छ्यं पग्गहेत्तु पयते धूवं दहइ, दहित्ता सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता वामं जाणं अंचेई, अंचेत्ता दाहिणं जाणं धरणितलंसि साहट करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थर अंजलि कटु चक्करयणस्स° पणामं करेइ, करेत्ता आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसीयइ, सण्णिसीयित्ता अट्ठारस सेणिपसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्क उक्कर उक्किठें अदिज्ज अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिम अधरिभ गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं 'विजयवेजइयं चक्करयणस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह, करेत्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह ॥ १३. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ठाओ जाव' विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता भरहस्स रणो अंतियाओ पडिणिक्खमें ति, पडिणिक्खमेत्ता उस्सुक्कं उक्करं जाव' अट्ठाहियं महामहिमं करेंति य कारवेंति य, करेत्ता य कारवेत्ता य जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता" तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ १४. तए णं से दिव्वे चक्करयणे अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिबुडे दिव्वतुडियसहसणिणाएणं" आपूरते चेव अंवरतलं विणीयाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता गंगाए महाणईए 'दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरथिमं दिसि मागहतित्थाभिमुहे पयाते यावि होत्था ।। १. प्राकृतत्वाद् विभक्तिलोपो द्रष्टव्यः (ही)। ८.० ३१८ । २. कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांशः प्रतीयते। ६. जं० ३।१२।। ३. कृत्वा-अन्तर्वर्णकादिभरणेन पूर्णानि कृत्वे. १०. जाव (अ,क,ख,त्रि,प,ब,म)। त्यर्थः। ११. सर्वग्वादर्शषु 'तुडिय' इत्येव पदं दृश्यते । ४. कयगाह (अ,क,ब,स) । १२. पूरेते (अ,ब); पूरेति (ख) । ५. कडेच्छुयं (ख,ब,स) । १३. वृत्तित्रयेपि 'ण' शब्दो वाक्यालङ्करे लिखि६. सं० पा०-अंचेइ जाव पणाम । तोस्ति, किन्तु बहुषु स्थानेषु सप्तभ्यर्थे तृती७ विजयवेजयंत चक्करयणस्स (अ,क,ख,त्रिब,स, यापि भवति, अतोस्माभिरेषपाठः तृतीयान्तः पुवृपा, शापा)। स्वीकृतः । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती १५. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरथिमं दिसि माहतित्याभिमुहं पयातं पासद, पासित्ता हट्ट' - चित्तमाणं दिए नंदिए पीइम परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्रमाण हियए कोडुंवियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हयगय रहपवरजोहक लियं चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह || १६. तए णं ते कोडुंवियपुरिसा जाव' पच्चपिणंति !! १७. तए णं से भर हे राया जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जघरं अणुविस, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तत्र जाव' धवल - महामेहग्गिए इव गगण - दिप्पंत- रिक्ख तारागणाण मज्झे' ससिव्य पियदंसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता हय-गय-रह-पवरवाण-भड चडगर-पहकर संकुलाए सेना' पहियकित्ती जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकडगसण्णिभं गयवई गरवई दुरुढे ॥ १८. तए गं से भरहाहिवे परिंदे हारोत्ययसुकयरयवच्छे कुंडल उज्जोइयाणणे मउदित्तसिरए गरसीहे णरवई परदे णरवसमे मरुयरायवसभकप्पे अब्भहियरायतेयलच्छीए" दिप्पमाणे पसत्थमंगलसएहि संव्वमाणे जयसद्दकयालोए हुत्थिबंधवरगए संकोरंटमल्लदा मेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहि उद्धव्वमाणीहि उव्वमाणीहि जक्खसहस्ससंपरिवडे वेसमणे चैव धणवई अमरवइसण्णिभाए इड्डीए पहियकित्ती गंगाए महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं गामागर-नगर-खेड- कब्वड-मडंव-दोणमुह-पट्टणासम-संवाहसहस्समंडियं थिमियमेइणीयं वसुहं अभिजिणमाणे- अभिजिणमाणे अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छमाणे- पडिच्छ्रमाणे तं दिव्वं चक्करयणं अणुगच्छमाणे अणुगच्छमाणे जोयणंतरियाहि वसहीहि वसमाणे वसमाणे जेणेव मागहतित्थे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मागहतित्थस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायामं णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेस करेइ, करेत्ता वढ्ढइरयणं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाप्पिया ! मम आवास पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ १६. तणं से वड्ढइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हट्टतुट्ट-चित्तमादिए नंदिए पोमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुत्ता भरहस्स रण्णो आवलहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पचप्पिणति ॥ २०. तए गं से भरहे राया अभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता १. सं० पा०-हट्ठतुटु जाव हियए । २. जं ३१८,१५ । ३. जं० ३३६ । ४. सं० पा० इथ जाव सव्वि । ५. सार्द्धमिति शेषः (शावृ) । ६. मथुराय (त्रि, ही वृ ) । ७. अमहियरायलच्छीए ( अ, त्रि, ब ) । ८. मेतिणीयं ( अ, ब ) ६. सं० पा०पीइमाणे जाव अंजलि । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारी ४११ जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दन्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दव्भसंथारगं दुरुहइ', दुरुहित्ता मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्टमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी' उम्मुक्कमणिसुवणे वगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्यमुसले दब्भसंथारोवगए एगे अवीए अट्ठमभत्तं पडिजागरमाणे -पडिजागरमाणे विहरइ ॥ २१. तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया हय-गय रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेण्णं सष्णाहेइ, चाउग्घंटं अस्सरह पडिकप्पहत्ति कटु मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवल-महामेहणिग्गए 'इव गहगण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण मज्झे ससिव्व पियदसणे णरवई धूवपुप्फगंधमल्लहत्थगए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्ख मित्ता हय-गय-रह-पवरवाहण' - "भडचडगर-पहकरसंकुलाए° सेणाए पहिय कित्ति जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे अस्सरहे तेणेव उवागाच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं अस्सरहं दुरुढे ॥ २२. तए णं से भरहे राया चाउरघंटं अस्सरहं दुरुढे" समाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए१२ सद्धि संपरिवुडे महयाभइ-चडगर-पहगरवंदपरिक्खित्ते चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणु जायमग्गे" मया उक्किट्ठि-सीहणाय-बोल"-कलकलरवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे-करेमाणे पुरथिमदिसाभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुई ओगाहइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला ।। २३. तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई, निगिहित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धj परामुसइ । २४. तए णं तं अइरुग्गयवालचंद"-इंदधणु-सन्निकासं वरमहिस-दरिय-दप्पिय-दढघणसिंगग्गरइयसारं उरगवर-पवरगवल-पवरपरहुय-भमरकुल-गीलि-णिद्ध-धंत-धोयपट्ट णिउणोविय-मिसिमिसेंत-मणि रयण-घंटियाजालपरिक्खित्तं तडितरुणकिरण -तवणिज्ज १. द्रुहइ (अ,ब)। ११. रूढे (अ); द्रुढे (ब)। २. आराधनार्थमितिशेषः (ही)। १२. सेनया इति गम्यम् (शाव) । ३. पम्हचारी (म,त्रि,व)। १३. °णु यायमग्गे (अ,प,स)। ४. अबितीए (अ,बि); अबियए (क)। १४. उक्किट्ठ (अत्रि,प, ही); उक्कट्टि (स)1 ५. पडियागरमाणे (त्रि, ब)। १५. पोल (अ,ब,)। ६. आसरहं (पा)। १६ सेनामिति गम्यम् (ही)। ७. जं० ३१६ १७. बालयंद (स)। ८. सं० पा० ---महामेहणिगए जाव मज्जण- १८. संगम्यरइय° (अ,ब) । घराओं। १६. गवलय (त्रि)। ६. सं० पा०-पवरवाहण जाव सेणाए । २०. तडितरुणतरणिकिरण (क, ख, स, ही, १०. रूठे (अ); द्रुढे (ब)। पुपा)। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती बद्धचिंधं दद्दरमलय गिरिसिहर-केसरचामरवाल-द्धचंदचिंधं काल-हरिय-रत्त-पीय-सुक्किलबहुण्हारुणि'-संपिणद्धजीवं चलजीवं जीवियंतकरणं धणं गहिऊण से णरवई उसुं च वरवइरकोडियं' वइरसारतुंड' कंचणमणिकणगरयणधोइट्ठसुकयखं अणेगमणिरयण-विविहसुविरइयनामचिधं वइसाहं ठाईऊण ठाणं आयतकण्णायतं च काऊण उसुमुदारं इमाई वयणाई तत्थ भाणिय से णरवई हंदि ! सुणंतु भवंतो, बाहिरओ खलु सरस्स जे देवा । णागासुरा सुवण्णा, तेसि 'खु णमो" पणिवयामि ।।१॥ हंदि ! सुगंतु भवंतो, अभितरओ सरस्स जे देवा । णागासुरा सुवण्णा, सव्वे मे ते विसयवासी ॥२॥ इतिक? उसु णिसिरइ परिगरणिगरियमज्झो, वाउद्धयसोभमाणकोसेज्जो। चित्तेण सोभते धणुदरेण इंदोव्व पच्चक्खं ।।३।। तं चंचलायमाणं, पंचमिचंदोवमं महाचावं । छज्जइ वामे हत्थे, णरवइणो तंमि विजयंमि ॥४॥ २५. तए णं से सरे भरहेणं रण्णा णिसठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाई गंता मागहतित्थाधिपतिस्स देवस्स भवणंसि निवइए ॥ २६. तए णं से मागहतित्थाहिवई देवे भवणंसि सरं णिवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे चंडिक्किए कुविए भिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि णिडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी. केसणं भो ! एस अपत्थियपत्थए दरंतपंतलक्खणे हीणपण्णचाउसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए" दिवाए देवड्ढीए दिव्वाए देवजुईए* दिव्वेणं दिवाणुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमण्णागयाए उप्पि अप्पुस्सुए"भवणंसि सरं णि सिरइत्तिकटु सीहासणाओ अब्भुठेइ", अब्भुठेत्ता जेणेव से णामायके सरे तेणेव उवागच्छइ, १. पुहुण्हारुणि (अ,ब)। ७. थुणिमो (पुत्र); खु णमो (पुवृपा) । २. बलजीवं (ख,स, पुवृपा); X (प); चलजीव- ८. विसतवासी (क)। मिति विशेषणं त्वेतद्वर्णकवृत्तौ षष्ठाङ्गे ६. गंगा (अ,ख,ब)। श्री अभयदेवसूरिभि न व्याख्यातमिति न १०. हिण्ण' (अ,ख,त्रि,ब); भिण्ण (क,स, ही, व्याख्यायते यदि च भूयस्सु जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति- पुवृपा, शावृपा); होण° (हीवृपा)। सुत्रादर्शषु दृश्यमानत्वाद् व्याख्यातं विलोक्यते ११. एमाणुरुवाए (प)। तदा टङ्कारकरणक्षणे चला-चञ्चला जीवा १२. देविड्डीए (क,ख,प,स) । यस्य तत्तथा (शावृ)। १३. 'जुत्तीए (अ,ख,त्रि,ब,स); युतिर्वा इष्ट३. वरवइरकोडिमं (अ, त्रि, हीव); वरवइर- परिवारादिसंयोगलक्षणा (शाव)। कोट्टिम (ब, पुवृपा)। १४. अप्पस्सुए (अ,ब)! ४. °चुडं (अ); तोंडं (क,प,स) । १५. उठेइ (अ,क,ख,त्रि,ब,स, पुवृ, हीवृ)। ५. चित्तं (त्रि, ही)। १६. णामपहुंके (त्रि,हीवृ); णामाहयंके (प, शाबू)। ६. मणिय (त्रि, होवू)। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वक्खारो उवागच्छित्ता तं णामायकं सरंगेहइ, गेण्हित्ता णामकं अणुप्पवाएइ, णामकं अणुप्पवाएमाणस्स इमे एयारूवे अज्झ थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था~-उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणागयाणं मागहतित्थकुमाराणं देवाणं राईणमुवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमित्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हारं मउडं कुंडलाणि कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरगाणि य सरं च णामाहयं मागहतित्थोदगं च गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाइं पंचवण्णाई वत्थाइंपवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए" अंजलि कट्ट भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए णं देवाणुप्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे पुरथिमेणं मागहतित्थमेराए, तं अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयबासी, अहण्णं देवाणु प्पियाणं आणत्ती-किकरे, अहण्णं देवाणुप्पियाणं पुरथिमिल्ले अंतवाले.' तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! ममं इमेयारूवं पीइदा. णंतिकट्ट हारं मउडं कुंडलाणि कडगाणि य 'तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं मागहतित्थोदगं च उवणेइ ।। २७. तए णं से भरहे राया मागहतित्थकूमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मागहतित्थकुमारं देवं सक्कोरेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडि. विसज्जेइ॥ २८. तए णं से भरहे राया रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता मागहतित्थेणं लवणसमुद्दाओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ,उबागच्छित्ता तुरगे णिगिण्हइ,णिगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरहति, पच्चोरुहित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छत्ति, उवागच्छित्ता मज्जणधरं अणपविसइ, अणुपविसित्ता जाव' ससिव्व पियदंसणे परवई मज्जणघराओ पडिणिवखमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवसि सुहासणवरगए अट्टमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवदाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ,उवागच्छत्तासीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सदावेत्ता एवं वयासी - खिप्पमेव भो देवाणु पिया ! उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठ अदिज्ज अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरिय अणुद्धयमइंग १. सविखखियाई (अ,ब); अखिखिणियाई (त्रि) प्रमादादागतं दृश्यते। २. सिरे जाव (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । ७. वयासी जाव (ब); अत्र सूत्रे यावत् शब्दो ३. अंतेपाले (अ,त्रि,ब); अंतेवाले (क,ख)। लिविप्रमादापतित एव दृश्यते, सङ्ग्राहकपदा४. सं० पा०-- कड़गाणि य जाव मागह' । भावात्, अन्यत्र तद्गमादावदृश्यमानत्वाच्चेति ५. जं० ३।९। (शावृ)। ६.२ जाव (अ,क,ब); एतद् यावत्पदं लिपि- ८.सं० पा०-उपकरं जाव मागह। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती अमिलायमल्लदाम पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियं महा हिमं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। २६. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वृत्ताओ समाणीओ हट्रतुद्राओ जाव' करेंति, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ३०. तए णं से दिव्वे चक्करयणे वइरामयतुंबे लोहियक्खामयारए जंबूणयणेमीए णाणामणिखुरप्पवालिपरिगए मणिमुत्ताजालभूसिए सणं दिघोसे सखिखिणीए दिव्वे तरुणरविमंडलणिभे णाणामणि रयणघंटियाजालपरिक्खित्ते सव्वोउयसुरभिकुसुमआसत्तमल्लदामे अंतलिक्खपडिवणे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसहसण्णिणादेणं पूरते चेव अंबरतलं, णामेण सुदंसणे, णरवइस्स पढमे चक्करयणे मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्टाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिमिक्खमित्ता दाहिणपच्चत्थिम' दिसि वरदामतित्थाभिमुहे पयाए यावि होत्था ॥ ३१. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणपच्चत्थिमं दिसि वरदामतित्थाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हतु?'- चित्तमाणं दिए नदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए' कोडवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेह, आभिसेवक हत्थिरयणं पडिकप्पेहत्तिकटु मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता तेणेव कमेणं जाव' धवल-महामहणिग्गए जाव' सेयवरचामराहि उद्धन्वमाणीहिं-उद्धव्वमाणीहि, मगइयवरफलग-पवरपरिगरखेडय-वरवम्म -कवय-माढी-सहस्सकलिए उक्कडवरमउड'तिरीड-पडाग-झय-वेजयंति-चामरचलंत-छत्तंधयारकलिए, असि-खेवणि-खग्ग-चाव'"-णारायकणय-कप्पणि-सूल-लउड-भिडिमाल"-धणुह-तोण-सरपहरणेहि य काल-णील-रुहिर-पीयसुविकल-अणेगचिंधसयसंविणद्धे", अप्फोडियसीहणाय-छेलिय-हयहेसिय-हत्थिगुलुगुलाइयअणेगरहसयसहस्सघणघणेत-णीहम्ममाणसहसहिएण जमगसमगभंमा-होरंभ-किणित-खरमुहिमुगंद-संखिय-पिरिलि" पव्वग"-परिवायणि वंस-वेण-विवंचि"-महति-कच्छभि-रिगिसिगिकलताल"-कंसताल-करधाणु विद्धेण" महता सहसणिणादेण सयलमवि जीवलोगं पूरयंते, १. जं० ३।१३। ६. उक्कुड्डय' (ब)। २. °थालपरिगए (प); स्थालं-अन्तः परिधि. १०. याव (अ,ब)। रूपम् (शावृ)। ११. हिमाल (अ,ब)। ३. दक्खिगपच्चत्थिमे (अ,ब); दक्खिण° (क,ख, १२. संविणद्धं (अ,ब); सणि विठं (क, ख, त्रि, __त्रि,स)। स, शाबू, ही, पुत्पा); सण्णि विळे (प)! ४. सं० पा०-हट्ठतुट्ठ जाव कोडुंबिय । १३. परिलि (अ.स)। ५. जं० ३.१५-१७ ! १४. पच्चग (अ,ब); वन्वंग (प)! ६. जं० ३.१७ । १५. पवाइणि (क,स)। ७. माझ्य° (प, शावृ); विपाकश्रुते (१.३।४३) १६. बीवंचि (अ,ब) । पि 'मगइयएहि' इति पाठ एव दृश्यते । १७. तलताल (ख); करताल (स)! ८. वरचम्म (अ,क,ख,त्रि ,ब, पु, होव) १८ करधाणुस्थिदेण (प, शाव, आवश्यकचूर्णि Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१५ तइओ वक्खारो बलवाहणसमुदएणं', एवं जवखसहस्ससंपरितुडे वेसमणे चेव धणवई अमरपतिसण्णिभाए इड्डीए पहियकित्ती गामागर-णगर-खेड-कब्बड- मडंब-दोण मुह-पट्टणासम-संवाहसहस्समंडियं थिमियमेइणीयं वसुहं अभिजिणमाणे-अभिजिणमाणे अग्गाई बराइं रयणाई पडिच्छमाणेपडिच्छमाणे तं दिव्वं चक्करयणं अणुगच्छमाणे-अणुगच्छमाणे जोयणंतरियाहि वसहीहिं वसमाणे-वसमाणे जेणेव वरदामतित्थे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वरदामतित्थस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायाम णवजोयणदिच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारणिवेसं करेइ, करेत्ता वड्डइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामोव भो देवाणुप्पिया! मम आवसहं पोसहसालं च करेहि, ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।।। ३२. तए णं से आसम-दोणमुह-गाम-पट्टण-पुरवर-खंधावार-गिहावण विभागकुसले, एगासीतिपदेसु सव्वेसु चेव वत्थू सु अंगगुणजाणए पंडिए विहिण्णू पणयालीसाए देवयाणं, 'वत्थुपरिच्छाए मिपासेसु" भत्तसालासु कोट्टणिसु य वासघरेसु य विभागकुसले, 'छज्जे वेज्ञ" य दाणकम्मे पहाणबुद्धी, जलयाणं भूमियाण य भायणे, जलथलगुहासु जंतेसु परिहासु' य कालनाणे, तहेव सद्दे वत्थुप्पएसे पहाणे, गम्भिणि-कण्ण-रुक्ख-वल्लिवेढिय-गुणदोसवियाणए, गुणड्ढे, सोलसपासायकरणकुसले, चउसद्धिविकप्पवित्ययमई, ‘णंदावत्ते य वद्धमाणे सोत्थियरुयग" तह सव्वओभहसण्णिवेसे य वहुविसेसे", उइंडिय-देव-कोट्ठ-दारु-गिरि खाय-वाहण-विभागकुसले इय तस्स बहुगुणड्ढे, थवईरयणे परिंदचंदस्स। तवसंजमनि बिठे, किं करवाणीतुवट्ठाई ।।१।। सो देवकम्मविहिणा, खंधावार परिंदवयणेणं । आवसहभवणकलियं, करेइ सव्वं मुहुत्तेणं ॥२॥ करेत्ता पवरपोसहघरं करेइ, करेत्ता जेणेव भरहे राया 'तेणेव उवागच्छति, उवगच्छित्ता तमाणत्तियं खिप्पामेग पच्चप्पिणइ ।। ३३. 'तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पृष्ठ १८७) । वाद्यविषये पाठपरिवर्तनस्याध्य- (पुवृपा) । यनाथ रायपसेणइयसूत्रस्य ७७ सूत्र तथा ६. कण्णग (क,ख,त्रि,स, पुर्व); कणि (ब)। जीवाजीवाभिगमस्य ३१५८८ सूत्रं द्रष्टव्यम् । ७. सूत्रे च क्वचित् सप्तमीलोपः प्राकृतत्वात् १. 'सह' इति गम्यम् (ही)। (शा)। २.सं. पा०—तहेव सेसं जाव विजयखंधावार । ८. चिन्हाङ्कितपाठस्थाने 'अ,ब' प्रत्योः णंदाव' ३. वत्थपरिच्छायणे मिपासेसु (अ,त्रि,ब, पवपा); इत्येव लिखितं दृश्यते। वत्थु परिच्छए णे मिपासेस (ही, शावृपा); . करवाणि (अ,ब)। बत्थपरिच्छाए मिपासेसु, वत्थु परिच्छायणे १०. सं० पा०-राया जाव तमाणत्तियं । णेमिपासेसु (हीवृपा)। ११. एतमाणत्तियं (क,ख,प, शाव, ही)। ४. छज्जे वज्जे (पुवृपा)! १२. सं० पा०---पच्चप्पिणइ सेसं तहेव जाव ५. परिगुहासु (अत्रि,ब,पुत्र); परिहासु मज्जणघराओ। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ जंबुद्दीपण्णत्ती पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संयरइ, संथरिता दब्भसंधारगं दुरुहइ, दुरु-हित्ता वरदामतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं परिण्इ, परिहित्ता पोसहसालाए पोसहिए भयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिविखत्तसत्थमुसले दब्भसंथारोare एगे अवीए अट्ठमभत्तं पडिजागरमाणे- पडिजागरमाणे विहरइ || ३४. तए णं से भरहे राया अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव वाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबिय - पुरिसे सहावे, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिण सेण्णं सण्णा हेह, चाउघंटं अस्सरहं पडिकप्पेहत्तिकट्टु मज्जणघरं अणुविस, अणुप विसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाब धवल - महा मेहणिग्गए इव गहगण - दिप्पंत - रिक्ख तारागणाण मज्झे ससिव्व पियदंसणे णरवई धूव पुष्पगंध मल्ल हत्थगए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छन्' || ३५. तते णं तं 'धरणितलगमणलहु-ततोव्विद्ध-लक्खणपसत्यं" हिमवंत कंदरंतरशिवाय संवद्धिय-चित्त- तिणिसदलियं जंबूणयसुकयकुब्वरं कणयदंडियारं पुलय- 'वइरइंदणील"-सासग-पवाल- फलिहवर - रयण-'लेट्ठ मणि" विदुमविभूसियं अडयालीसाररइयतवणिज्जपट्टसंग हिय" - जुत्ततुंबं पघसियपसियनिम्मियनवपट्ट-पुट्ठ-परिणिट्टियं विसिटुलटुणवलोहवद्धकम्मं हरिपहरण रयणसरिसचक्कं कक्केयणइंदणी सासगसुसमाहिय-बद्धजालकंकड' 'पसत्य विच्छिण्ण सम -धुरं" पुरवरं व गुत्तं सुकरणतवणिज्जजुत्तकलिय" कंकडगणिजुत्तकप्पणं १. उवागच्छइ २ ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ) ; उपागच्छति उपागत्य (पुवृ, शाबू, हीवृ) आवश्यकचूर्णी ( पृ० १५५) एतलदं नैव दृश्यते । २. धरणितलगमणलहुततोविहुलक्खणपसत्ये ( अ, व पुवृपा ) धरणितलगमणलहुततो विहुलक्खणपत्थं (क, ख, स), धरणितलगमण लहुततोविणलक्खपत्रे (त्रि ); धरणितलगमणलहं ततो बहुलक्खणपसत्यं ( प शावृ) ; धरणितलगमण तथा विलक्खणपसत्यं ( होवृ ) ; धरणितलगमणलहुं ततो विलक्खणपत्ये ( ही वृपा ) ; आवश्यकचूर्णी ( पृ० १८८ ) स्वीकृतपाठस्य संवादित्वं दृश्यते । ३. कूबरं ( प ) ; कुप्परं (आवश्यकचूर्णि पृ० १८८ ) । ४. वरदणील ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स, पुवृ, शावृ); 'वर' इति पाठ: आवश्यकचूर्ण ( पृ० १८८) राधारेण स्वीकृतः । ५. वरफरिह (अ, क, ख, ब, स, पु० ) । ६. क्वचिष्टुमणिशब्दों न दृश्येते ( पुवृ ) । ७. संगहि ( अ, ब ) पट्टसंगहिय ( क, स, ही, पुवृपा) । ८. घसियनिम्मियनवपट्ट ( अ, ब, पुवृ ) 1 ६. बद्धजालगवाड (ख); बद्धजालकडगं (त्रि, प, शावृ, पुवृषा); जाल कटकं ( ही वृ ) | १०. (विच्छिष्णसुमहरं ( अ, ब ) अत्र लिपित्रमादः सम्भाव्यते । ११. सुकरण वणिज्जजालकलियं ( अ, पुवृषा); सुकरितवणिज्जजाल कलियं ( क, ख ); सुकरयणतवणिज्जजालकलियं (त्रि, ब, स ) ; सुकिरणतवणिज्जजुत्तकलिय ( प, शावृ); सुकयरयणत वणिज्जुज्जलकलियं (ga) सुक रण वणिज्जाकलियं ( हीवृ); वृत्तिकारैर्यथापाठोलव्धस्तथा व्याख्यातः । शान्तिचन्द्रेण Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वक्खारो पहरणाणुजायं खेडग-कणग-धणु-मंडलग्ग-वरसत्ति-कोत-तोमर-सरसयबत्तीसतोणपरिमंडियं कणगरयणचित्तं जुत्तं हलीमुह-बलाग-गयदंत-चंद-मोत्तिय-तणसोल्लिय'-कुंद-कुडय-वरसिंदुवार-कंदल-बरफेणणिगर-हार-कासप्पगासधवलेहिं अमरमणपवणजइण-चवलसिग्घगामोहिं चउहि चामराकणगभूसियंगेहिं तुरगेहि सच्छत्तं सज्झयं सघंटं सपडागं सुकयसंधिकम्मं सुसमाहियसमरकणग-गंभीरतुल्लघोसं वरकुप्परं सुचकं वरनेमीमंडलं वरधुरातोंडं वरवइरबद्धतुंब वरकंचणभूसियं वरायरिय गिम्मियं वरतुरगसंपउत्तं वरसारहिसुसंपग्गहियं वरपुरिसे बरमहारहं दुरुढे' आरूढे पवररयणपरिमंडियं कणयखिखिणीजालसोभियं' अयोज्झं सोयामणि-कणगतविय-पंकय-जासुयण जलणजलिय-सुयतोंडरागं गुजद्ध-बंधुजीवग-रत्तहिंगुलुगणिगर"-सिंदूर-रुइलककुम-पारेवयचलण-णयणकोइल-दसणावरणरइतातिरेग-रत्तासोग-कणग-केसुय"-गयतालु-सुरिंदगोवग-*-समप्पभप्पगासं" बिवफल-सिलप्पवाल-उतसूरसरिसं सव्वोउयसुरहिकुसुम-आसत्तमल्लदाम" ऊसियसेयज्झयं महामेहरसिय-गंभीरणिद्धघोसं सत्तुहिययकपणं पभाए"य" सस्सिरीयं, णामेणं पुह विविजयलंभंति वीसुतं" लोगविस्सुतजसो अहतं चाउग्घंटे आसरहं पोसहिए परवई दुरुढे ।। ३६. तए णं से भरहे राया चाउरघंटं आसरहं दुरुढे समाणे 'हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए' सद्धि संपरिबुडे महयाभड-चडगर-पहगरवंदपरिक्खिते चक्करयणदेसियमगे अणेगरायवरसहस्साणुजायमग्गे महया उक्किट्ठि-सीहणाय-वोल-कलकल रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयंपिव करेमाणे-करेमाणे दाहिणाभिमुहे वरदाम तित्थेणं लवणसमुदं ओगाहइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला" ॥ प्रस्तुतपाठांशविषये एकाटिप्पणीकृतास्ति- ११. "हिंगुलग (ख, स)। अत्र च एतत्सूत्रादर्शषु तवणिज्जजालकलिय' १२. केसुय (त्रि)। मिति पाठोऽशुद्ध एव सम्भाव्यते, आवश्यकचूणौ १३. गोपग (क, ख, स)। (पृ० १८८) अस्यैव पाठस्य दर्शनात् । १४. °प्पकासं (अ, क, ख, त्रि, ब, स) । १५. मल्लदामं (अ, त्रि, ब, स, पुर्व, शाव, हीव)। १. परपहरणाणुयातं (अ, ब, पुवृ)। सुत्तमल्लदाम (ख); आसत्तमल्लदाम (पुत्पा, २. तणसोत्तिय (आवश्यकचूणि पृ० १८८)। होवृषा)। ३. दरणेम (ब)। १६. सत्तुहितय (अ, ब) सत्तुदिय" (आवश्यक४. वरतुरंग (त्रि, आवश्यकचूणि पृ० १८८)। चणि पृ० १८६)। ५. दुरूढेत्ति आरूढः क्वचिदुरूढे आरूढे इति १७. प्रभाते (क, ख, स)। पाठद्वयम् (पुवृ)। १८. x (ख, आवश्यकचूणि पृ० १८९) । ६. x (ही)। १६. विस्सुतं (क, स) ७. कण्यकिंकिणीजालपरिसोभियं (क, ख, स)। २०. सं० पा०-समाणे सेसं तहेव । ८. अजोज्झ (अ, ब); अओज्झ (क, ख, प, स); २१ द्रष्टव्यम्-३/२२ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । अवोज्झं (त्रि)। २२. सं० पा०--उल्ला जाब पीइदाण से, णवरि ६. सोतामणि (क); सोदामणि (ख, स)। चडामणि च दिव्वं उरत्थगेविज्जगं सोणिय१०. जासुमणा (अ, ब), जासुमण (क, स); सुत्तगं कडगाणि य तुडियाणि य जाब दाहिजासुमणि (ख)। जिल्ले अंतवाले जाव अट्टाहियं । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३७. 'तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई, निगिहित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धj परामुसइ जाव' उसु णिसिरइ--- परिगरणिगरियमज्झो, वाउद्ध्यसोभमाणकोसेज्जो। चित्तेण सोभते घणुवरेण इंदोव्व पच्चक्ख ॥१॥ तं चंचलायमाणं, पंचमिचंदोवमं महाचावं । छज्जइ वामे हत्थे, परवइणो तंमि विजयंमि।।२।। ३८. तए णं से सरे भरहेणं रण्णा णिस? समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाई गंता वरदाम तित्थाधिपतिस्स देवस्स भवणंसि निवइए॥ ३६. तए णं से वरदामतित्थाहिवई देवे भवणंसि सरं णिवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रु? चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि णिडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी-केस णं भो ! एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए दिवाए देवड्डीए दिव्वाए देवजुईए दिवेणं देवाणुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमण्णागयाए उप्पि अप्पुस्सुए भवणंसि सरं णिसिरइत्तिकट्ट सीहासणाओ अब्भुटुइ, अब्भुट्ठत्ता जेणेव से णामायके सरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं णामाहयकं सरं गेण्हइ, मेण्हित्ता णामकं अणुप्पवाएइ, णामकं अणुप्पबाएमाणस्स इमे एयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समप्पज्जित्था-उप्पन्ने खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चप्पन्नमणागयाणं वरदामतित्थकुमाराणं देवाणं राईणमुवस्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रणो उवत्थाणियं करेमित्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता चूडामणिं च दिव्वं उरत्थगेविज्जगं सोणियसुत्तगं कड़गाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं वरदामतित्थोदगं गेण्हइ, गेण्हिता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाये उद्ध्याए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-बीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वदावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए णं देवाणुप्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे दाहिणिल्ले वरदामतित्थमेराए तं अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी, अहण्णं देवाणुप्पियाणं आणत्ती-किंकरे, अहण्णं देवाणु प्पियाणं दाहिणिल्ले अंतवाले, तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! ममं इमेयारूवं पीइदाणंतिकटु चूडामणि च दिव्वं उरत्थगेविज्जगं सोणियसुत्तगं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं बरदामतित्थोदगं च उवणेइ॥ ४०. तए णं से भरहे राया वरदामतित्थकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता वरदामतित्थकुमारं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥ ४१. तए णं से भरहे राया रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता वरदामतित्थेणं लवणसमुद्दाओ १. जं० ३१२४ । Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ तइओ वखारो पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव विजयखंधाबारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरगे णिगिण्हइ, णिगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपवि सित्ता जाव ससिव्व पियदसणे गरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता, जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्ख मित्ता जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्क उक्करं उक्किट्ठ अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणद्धयमूइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं वरदामतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ४२. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वृत्ताओ समाणीओ हट्ठतुट्ठाओ जाव अट्टाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ४३. तए णं से दिव्वे चक्करयणे वरदामतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे' 'जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसहसणिणादेणं पूरेते चेव अंवरतलं उत्तरपच्चत्थिमं दिसि पभासतित्थाभिमुहे पयाते यावि होत्था ॥ ४४. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपच्चत्थिमं दिसिं पभासतित्थाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता तहेव जाव' पच्चत्थिमदिसाभिमुहे पभासतित्थेमं लवणसमुदं ओगाहेइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला'। ४५. 'तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई, निगिण्हत्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धणं परामुसइ जाव उसु णिसिरइ-- परिगरणिगरियमज्झो, वाउयद्धसोभमाणकोसेज्जो। चित्तेण सोभते धणुवरेण इंदोव्व पच्चक्खं ॥१॥ तं चंचलायमाणं, पंचमिचंदोवमं महाचा। छज्जइ वामे हत्थे, परवइणो तंमि विजयंमि ॥२॥ ४६. तए णं से सरे भरहेणं रण्णा णिसछे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाइं गंता पभासतित्थाधिपतिस्स देवस्स भवणंसि निवइए । ४७. तए णं से पभासतित्थाहिवई देवे भवणंसि सरं णिवइयं पासह. पासिर ०७.शश सपना। १. सं० पा०.-अंतलिक्खपडिवण्णे जाव पूरते। २. ज० ३१५-२२1 ३. सं० पा०-उल्ला जाव पीइदाणं से, णवरं मालं मउडि मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य तुडियाणि य आभरणाणि य सरं च णामायं पभासतित्थोदगं च गिण्हइ २ ता जाव पच्च, स्थिमेण पभासतित्थमेराए अहष्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी जाव पच्चथिमिले अंतवाले सेसं तहेव जाव अट्टाहिया निव्वत्ता। ४. जं० ३१२४ । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० जंबुद्दीच पणती रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि पिडाले साहरइ, साहरिता एवं वयासी केस णं भो ! एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचा उद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जेणं मम इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवड्डीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं देवाणुभावेणं लाए पत्ताए अभिसमण्णागयाए उप्पि अप्पुस्सुए भवणंसि सरं णिसिरइत्तिकट्टु सीहासणाओ अब्भट्ठइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव से णामायके सरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं णामाहयकं सरं गेव्हइ, गेण्हित्ता णामकं अणुप्पवाएइ, णामकं अणुष्पवाएमाणस्स इमे यावे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - उप्पन्ने खलु भो ! जंबुद्दीने दीवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चप्पन्नमणागयाणं पभासतित्थकुमाराणं देवाणं राईणमुवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि गं अहंप भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमित्तिकट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता मालं मउडि मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य सुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं भासतित्थोदगं गेहइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिवाए उयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे - वीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयल परिग्ग हियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावे, वद्धावेत्ता एवं वयासी - अभिजिए णं देवाणुप्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे पच्चत्थिमिल्ले पभासतित्थमेराए तं अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी, अहष्ण देवापियाणं आणतो - किंकरे, अहण्णं देवाणु प्पियाणं पच्चत्थिमिल्ले अंतवाले, तं पडिच्छंतु देवापिया ! ममं इमेयारूवं पीइदाणंतिकट्टु मालं मउड मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहह्यं पभासतित्योदगं च उas || ४८. तए णं से भरहे राया पभासतित्यकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छर, पsिच्छिता पभासतित्थकुमारं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कोरत्ता सम्माणेत्ता पडिवि सज्जेइ ॥ ४६. तए णं से भरहे राया रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता प्रभासतित्थेणं लवणसमुद्दाओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरगे णिगिण्हइ, णिगि हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चीरुहति, पच्चरुहित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जाव ससिव्व पियदंसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अमभत्तं पारेइ पारेता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे fretes, णिसीइत्ता अट्टारस सेणि-प्पसेणीओ सद्भावेइ, सद्धावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्कं उक्कर उक्किद्धं अदिज्जं अभिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्की लियसपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं पभासतित्थकुमारस्य देवस्स Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइबो वक्खारो ४२१ अट्टाहियं महामहिमं करेह, करेता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ५०. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्टतुट्ठाओ जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ५१. तए' णं से दिव्वे चक्करयणे पभासतित्थकुमारस्स' देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता' •अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसहसणिणादेणं° पूरेते चेव अंबरतलं सिंधूए महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरथिमं दिसि सिंधुदेवीभवणाभिमुहे पयाते यावि होत्था ।। ५२. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं सिंधुए महाणईए दाहिणिल्लेणं कलेणं पूरस्थिमं दिसिं सिंधुदेवीभवणाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हतुटु-चित्तमाणंदिए तहेव आव जेणेव 'सिंधए देवीए भवणं" तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिंधुए देवीए भवणस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायाम णवजोयण विच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारणिवेसं करेइ, करेत्ता' 'वड्ढइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणप्पिया ! ममं आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।। ५३. तए णं से बड्ढइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुटु-चित्तमाणदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसूणेता भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति ५४. तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता १. आवश्यकचूणों (पृ० १८६) अतः ५८ सूत्र- पर्यन्तं भिन्नवाचनाया. पाठो लभ्यते-तते णं से दिवे चक्के पभासतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महिमाए णिवत्ताए अंसलिक्खपडिवष्णे जाव अंबरतलं सिवूए महाणदीए दाहिपिल्लेणं कूलेणं पुरस्थिमं दिसि सिंधुदेविभवणाहिमुहे पयाते यावि होत्या, भरहे वि यणं तहेव जाव तीए भवणस्स अदूरसामंते विजय- खंधावारनिवेसेणं तहेव अट्ठमभत्तग्गहणं तंमि परिणममाणसि सिंधुदेविए आसणचलणं ओहि- पउंजणं जीतकप्पसरणं जाव करेमित्तिकटु कुभद्वसहस्सं रयणचित्तं गाणामणिकणगरयण- भित्तिचित्ताणि य दुवे कणकभद्धासणाई कड गाणि य तुडियाणि य वत्याणि य आभरणागि य गेण्हित्ता जाय उवागच्छति जहा मागहकुमारे जाव आभरणाणि य उवणेति, रायावि तं सक्कारेति जाव अट्ठाहियाए महिमाए णिवत्ताए समाणीए से चक्करयणे । एवमग्रेपि वाचनाभेदो दृश्यते। २. पहास (अ, त्रि, ब)। ३. सं० पा०--पडिणिक्खमित्ता जाब परेंते । ४. सिंधुदेव (अ, ब)। ५. जं० ३११५-१८। ६. सिंधुमहाणदी दीवे (अ, ब)। ७. सं० पा०—करेत्ता जाव सिंधुए। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीपण्णत्ती पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दव्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहिता' सिंधू देवीए अट्टमभत्तं पगिण्हइ, परिहत्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी' • उम्मुक्कमणिसुवणे ववगयमालावण्णगविलेवणे गिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारो गए अमभत्तिए सिंधुदेव मणसीकरेमाणे - मणसीक रेमाणे चिटुइ || ५५. तए णं सा तस्स भरहस्स रण्णो अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि सिंधूए देवीए आसणं ४२२ चलइ ॥ ५६. तणं सा सिंधू देवी आसणं लियं पासइ, पासिता ओहिं पउंजइ, परंजित्ता भरहं राय ओहिणा आभोएइ, आभोत्ता इमे एयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था - उप्पन्ने खलु भो ! जंबुद्दीवे दोवे भरहे वासे भरहे ग्राम राया चाउरतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणाग्याणं सिंधूणं देवीगं भरहाणं' राईगं उवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमित्ति कट्टु कुंभट्टसहस्सं रयणचित्तं णाणामणि कणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगभद्दासणाणि य कडगाणि य तुडियाणि य 'वत्थाणि य" आभरणाणि य गेण्हइ, गेव्हित्ता ताए उक्किट्ठाए "तुरियाए चलाए जाए सीहाए सिघाए उयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणी - वयमाणी जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिखिणीयाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी - अभिजिए देवाप्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे, अहष्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासिणा, अहष्णं देवाप्पियाणं आणत्ति- किंकरी तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! मम इमं एयारूवं पीइदाणंतिकट्टु कुंभट्टसहस्सं रयणचित्तं णणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणकभद्दासणाणि कडगाणि य' 'तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य उवणेइ ॥ ५७. तए णं से भरहे राया सिंधूए देवीए इमेयारूवं पीइद णं पडिच्छर, पडिच्छित्ता सिंधु देवि सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ || ५८. तए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पहाए कयवलिकम्मे जाव' जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए मट्टमभत्तं पारेइ पारेता • भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे पिसीयइ, १. सं० पा० -- बंभयारी जाव दब्भसंथारोवगए । २. परिणाइ ( अ, ब ) 1 ३. पूर्व मागधादि प्रकरणे (२६) 'भरहाणं' इति पदं नैव दृश्यते । अत्र आदर्शषु एतत्पदमुपलभ्यते, वृत्तावपि व्याख्यातमस्ति । ४. जाव ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ) । ५. सं० पा० उक्किट्ठाए जाव एवं । ६. सं० पा० - कडगाणि य जाव सो चेव गमो जाव पडिविसज्जेइ | ७. जं० ३२२८ ॥ यावत्पदस्य गुरकसूत्रे पहाए कलिकम्मे' एतद् विशेषणद्वयं नैव लभ्यते, तेन ज्ञायते एतत् स्नानक्रियायाः सूचकमेवास्ति । ८. सं० पा० - पारेता जाव सीहासणवरगए । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइको वक्खारो णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता' एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सक उक्कर उक्किट्ठ अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाइइज्जकलियं अणेगतालायराणचरियं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कोलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं सिंधूए देवीए अट्टाहियं महामहियं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ____५६. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हठ्ठतुट्टाओ जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ६०. तए णं से दिव्वे चक्करयणे सिंधूए देवीए अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउघरसालओ' 'पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवडे दिव्वतडियसहसणिणादेणं परेंते चेव अंबरतलं उत्तरपरत्थिमं दिसि वेयड्ढपव्वयभिमुहे पयाए यावि होत्था । ६१. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपुरस्थिमंदिसि वेयड्ढपव्वयाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतु-चित्तमाणं दिए जाव' जेणेव वेयड्डपव्वए जेणेव वेयड्स्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेयडस्स पब्बयस्स दाहिणिल्ले णितंबे दुवालसजोयणायाम णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधा वारनिवेसं करेइ, करेत्ता' 'वड्डइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।। ६२. तए णं से वड्डइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए नंदिए पीइमाणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति ।। ६३. तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुप विसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दम्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दबभसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता वेयगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिहित्ता पोसहसालाए' पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्ण ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दम्भसंथारोवगए° अट्रमभत्तिए वेयगिरिकुमारं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिटइ।। ६४. तए णं तस्स भरहस्स रणो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि वेयड्डगिरिकुमारस्स देवस्स आसणं चलइ । एवं सिंधुगमो णेयवव्वो । पीइदाणं-आभिसेक्कं रयणालंकार" १. सं० पा०–सद्दावेत्ता जाध अट्ठाहियाए ५. सं० पा०-पोसहसालाए जाव अट्टमभत्तिए। ___ महामहिमाए। ६. ०३.५६ । २. सं० पा० --आउधरसालाओ तहेव जाव ७. भंडालंकारं (अ, ब, पुव); रयणालंकार उत्तरपुरस्थिमं। (पुवृपा); रत्नालङ्कारं-मुकुट मिति आवश्यक३. जं० ३.१५-१८ । चूणों तथैव दर्शनात् (शा); आवश्यकचूणों ४. सं० पा०--करेत्ता जाव वेयड्डगिरिकुमारस्स। (पृ० १६०) मउडालंकारे' इति पाठो दृश्यते । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए' 'तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-बीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिगहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी--अभिजिए णं देवाणुप्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे, अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी, अहण्णं देवाणु प्पियाणं आणत्ति-किंकरे, तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! मम इमं एयारूवं पीइदाणंतिकट्ठ आभिसेक्कं रयणालंकारं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य उवणेइ ।। ६५. तए णं से भरहे राया वेयड्डगिरिकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता वेयवगिरिकुमारं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। ६६. तए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पहाए कयवलिकम्मे जाव जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिमिक्वमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्क उक्करं उक्किट्ठ अदिज्ज अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं वेयड्डगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियं महामहिम करेह, करेत्ता मम एयमागत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ६७. तए णं ताओ अट्ठारस सेभि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ठतुट्ठाओ जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ६८. तए णं से दिव्वे चक्क रयणे वेयड्ढगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए' *आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्ख सहस्ससंपरिवडे दिव्वतुडियसद्दसण्णिणादेणं पूरेंते चैव अंबरतलं° पच्चत्थिम दिसिं तिमिसगुहाभिमुहे पयाए आवि होत्था ।। ६६. तए णं से भरहे राया तं दिव्यं चक्करयणं' पच्चत्थिम दिसि तिमिसगुहाभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए जाव' तिमिसगुहाए अदूरसामते दुवालसजोयणायामं णवजोयणविच्छिण्ण' वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ, करेत्ता १. सं० पा० --- उविकट्टाए जाव अदाहियं जाव पच्चप्पिणंति। २. सं० पा---समाणीए जाव पच्चस्थिमं । ३. चक्करयणं जाव (अ, क, ख, ग, ट, त्रि,) शाब); अत्र 'जाव' पदं लिपिप्रमादादागतं सम्भाव्यते। ४. ज० ३११५.१८॥ ५. सं० पा०—णवजोयणविच्छिपणं जाव कय मालस्स। Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइमो वक्खारो ४२५ वड्डइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ७०. तए णं से वड्डइ रयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुटु-चित्तमाणंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति ।। __७१. तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता कयमालस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी' उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्ठमभतिए कयमालगं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ ॥ ७२. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि कयमालस्स देवस्स आसणं चलइ तहेव जाव' वेयगिरिकुमारस्स, णवरं'-पीइदाणं---इत्थीरयणस्स तिलगचोद्दस भंडालंकारं कडगाणि य' 'तुडियाणि य वत्थाणि य” आभरणाणि य गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए" 'तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्याए उद्ध्याए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-बीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिग्ग हियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासीअभिजिए णं देवाणु प्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी, अहण्णं देवाणुप्पियाणं आणत्ति-किंकरे तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! मम इमं एयारूवं पीइदाणंतिकटु इत्थीरयणस्स तिलगचोइसं भंडालंकारं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य उवणेइ ।। ७३. तए णं से भरहे राया कयमालस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता कयमालं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणत्ता पडिविसज्जेइ ॥ ७४. तए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता गहाए कयवलिकम्मे जाव जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठम भत्तं पारेइ, पारेत्ता १. सं० पा० ---बंभयारी जाव कयमालगं । हीरविजयवृत्तौ ‘रयण' स्थाने 'दप्पण' इति २. जं० ३१६४१ पदं दृश्यते। ३. णवरि (अ, क, ब, स)। ६. सं० पा०-कङगाणि च जाव आभरणाणि । ४. थोरयणस्स (आवश्यक चूणि पृ० १६०)। ७. सं० पा०-उक्किदाए जाव' सक्कारेड, सम्माणेइ ५. प्रमेयरत्नमञ्जूषायां चतुर्दशाभरणानां सालिका २त्ता पडिविसज्जेइ जाव भोयणमंडवे, तहेव गाथा उद्धतास्ति-- महामहिमा कयमालस्स पच्चाप्पिणंति । हारद्धहार इग कणय रयण मुत्तावली उ केऊरे । कडए तुडिए मुद्दा कुंडल उरसुत्त चूलामणि तिलयं ॥१॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ जंबुद्दीवपण्णत्ती भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उसुक्कं उक्करं उक्किट्ठ अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदाम पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं कयमालं देवं अट्ठाहियं महामहिम करेह, करेत्ता मम एयम णत्तियं पच्चप्पिणह॥ ७५. तए णं ताओ अद्वारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ठतुट्टाओ जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता तमाणत्तियं पच्च प्पिणंति ।। ७६. तए णं से भरहे राया कयमालस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छाहि णं भो देवाणुप्पिया ! सिंधुए महाणईए पच्चथिमिल्लं णिक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता अग्गाइं वराई रयणाई पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि॥ ७७. तते णं से सेणावई बलस्स गेया, भरहे वासंमि विस्सुयजसे, महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी 'तेयंसी लक्खणजुत्ते' मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि णिक्खडाणं निण्णाण य दुग्गमाण' य दुक्खप्पवेसाण' य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेणावई सुसेणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हटतुटु-चित्तमाणदिए नदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए' करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्ख मित्ता जेणेव सए आवासे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडंवियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासो-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभि सेक्कं हत्यिरयणं पडिकप्पेह हय-गय-रह-पवर जोहकलियं° चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेहत्तिकटु जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता हाए कयबलिकम्मे कयको उय-मंगल-पायच्छित्ते सन्नद्धबद्धवम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टिए पिणद्धगेवेज्ज-बद्धआविद्धविमलवरचिधपट्टे गहियाउहप्पहरणे अणेगगणणायग-दंडणायग"- राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुविय-मंति - महामंतिगणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर- निगम- सेट्ठि- सेणावइ-सत्थवाह- दूय-संधिवाल' १.तेयलक्खणजुत्ते (क, ख, त्रि, प, स, शाव,हीद ६. सिग्घा मेव (अ, ब) 1 पुवृपा, आवश्यकचूणि पृ० १६०)। ७. अभिसेक्क (अ,ब) । २. दुसमाण (अ, ब)। ८. सं० पा०. हयगयरहपवर जाव चाउरंगिणि । ३. दुप्पवेसाण (प, स, शावृ)। ६. गेवेज्जे (अ,ख,ब,स,पुत्र); गेवेज्ज (पुवृपा)। ४. सं० पा०. हट्टतुटूचित्तमाणं दिए जाव १०. चिंधवट्टे (ब)। करयल। ११. सं० पा०-दंडणायग जाव सद्धि । ५. आवासए (ब)। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइमो दक्खारी सद्धि संपरिवडे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मंगलजयसद्दकयालोए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिमिक्खमित्ता जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुढे । ७८. तए णं से सुसेणे सेणावई हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महयाभड वडगरपहगरवंदपरिक्खत्ते महयाउक्किटिसीहणायबोलकलकलसद्देणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयंपिव करेमाणे-करेमाणे सव्विड्डीए सव्वज्जुईए सव्ववलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सब्वविभूसाए सव्वविभूईए सव्ववत्यपुप्फ-गंध-मल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरिय-सहसणिणाएणं महया इड्डीए जाव महया वरतुरिय-जमगसमगपवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहिमुरव-मुइंग-दंदुहि -निग्घोसनाइएणं' जेणेव सिंधू महाणई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चम्मरयणं परामुसइ ।। ७६. तए णं तं सिरिवच्छसरिसरूवं मुत्ततारद्धचंदचित्तं अयलमकंपं अभेज्जकवयं, जंतं सलिलासु सागरेसु य उत्तरणं दिव्वं चम्मरयणं, सणसत्तरसाई सव्वधण्णाई जत्थ रोहंति एगदिवसेण वावियाई, वासं णाऊण चक्कवट्टिणा परामु? दिव्वे चम्मरयणे दुवालस जोयणाई तिरियं पवित्थरइ तत्थ साहियाई ।। ८०. तए णं से दिव्वे चम्म रयणे सुसेणसेणावइणा परामुट्ठ समाणे खिप्पामेव णावाभूए जाए यावि होत्था । ८१. तए णं से सुसेणे सेणावई सखंधावारवलवाहणे गावाभूयं चम्मरयणं दूरुहइ, दुरुहित्ता सिंधु महाणइं विमलजलतुंगवीचि गावाभूएणं चम्मरयणेणं सबलवाहणे ससासणे समुत्तिणे । तओ महाणइमुत्तरित्तु सिंधु अप्पडियसासणे य सेणावई कहिंचि गामागरणगरपव्वयाणि खेडमडंबाणि' पट्टणाणि य सिंहलए बब्बरए य सव्वं च अंगलोयं बलावलोयं" च परमरम्म, जवणदीवं च पवरमणिकणगरयणकोसागारसमिद्ध", आरबके रोमके य अलसं चतुविशतिरप्युक्तानि, लोके च क्षधान्यानि बहन्यपि। ६. द्रुहुइ (ब)। ७. वीती (अ,क,ख,त्रि,ब,स) वीइयं (आवश्यक चूणि पृ० १६१) । ८. ४ (अ,ब); उत्तरति (आवश्यकचूणि पृ० १. दूढे (अ,क,ख,ब)। २. सं० पा.- सव्व बलेणं जाव निग्घोसनाइएणं। ३. नाइयरवेणं (आवश्यकचूणि पृ० १६०)। ४. यंदचितं (अ,क,ब.म)। ५. सणसत्तगमाइं (अ,ब); सत्तसत्तरसयाई (पुवपा) । प्रमेयरत्नमञ्जूषायां सप्तदशधान्य. सङ्ग्राहिका गाथा उद्धृतास्तिमालि जव वीहि कुद्दव रालय तिल मुरंग मास चवल चिणा। तूअरि मसूरि कुलत्था गोहुम णिप्फाव अयसि सणा ॥११ प्रायो बहूपयोगिनीमानीत्युक्तानि, अन्यत्र- ६. खेडकब्बडमंडबाणि (आवश्यकचूणि पृ०१६१)। १०. च लावलोकं (क, त्रि,हीव); विलायलोक (आवश्यकचूणि पृ० १६१) । ११. परमणि ' (अ,ब); पवरमणिरयणकणग° (प, थाव)। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ जंबुद्दीववपण्णत्ती डविसयवासी' य पिक्खुरे कालमुहे जोणए य उत्तरवेयड्डसंसियाओ य मेच्छजाई बहुप्पगारा दाहिणअवरेण जाव सिंधुसागरंतोत्ति' सव्वपवरकच्छं च ओयवेऊण पडिणियतो वहुसमरमणिज्जे य भूमिभागे तस्स कच्छस्स सुहणिसण्णे। ताहे ते जणवयाण गगराण पट्टणाण य जे य तहिं सामिया पभूया आगरपती य मंडलपती य पट्टणपती य सव्वे घेत्तूण पाहुडाइं आभरणाणि भूसणाणि रयणाणि य वत्थाणि य महरिहाणि, अण्णं च जं वरिष्टुरायारिहं जं च इच्छियव्वं एयं सेणावइस्स उवणेति मत्थयकयंजलिपुडा, पुणरवि काऊण अंजलि मत्थयंमि पणया "तब्भे अम्हत्थ' सामिया, देवयं व सरणागया मो तुब्भं विसयवासित्ति"" विजय जपमाणा सेणावइणा जहारिहं ठविय पूइय विसज्जिया णियता सगाणि णगराणि पट्टणाणि अणपविट्ठा। ताहे सेणावई सविणओ घेत्तूण पाहुडाई आभरणाणि भूसणाणि रयणाणि य पूणरवि तं सिंधुणामधेज्जं उत्तिणे अणहसासणवले, तहेव 'रण्यो भरहाहिवस्स"णिवेएइ, णिवेइत्ता य अपप्पिणिता य पाहुडाई सक्कारिय-सम्माणिए" सहरिसे विसज्जिए सगं पडमंडवमइगए॥ ८२. तते णं सुसेणे सेणावई हाए कयलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते जिमियभत्तत्तरागए समाणे" *आयंते चोक्खे परमसुइभूए' सरसगोसीसचंदणुक्किण्णगायसरीरे उपि पासायवरगए फट्टमाणेहि मुइंगमत्थएहि बत्तीस इबद्धेहि णाडएहि वरतरुणीसंघउत्तेहि उवणच्चिज्जमाणे-उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे-उवलालिज्जमाणे मयाह्यणट्ट-गोय-बाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं इ8 सद्दफरिसरसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे भुजमाणे विहरइ ।। ८३. तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ“ सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-गच्छ णं खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि, विहाडेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ८४. तए णं से सुसेणे सेणावई भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हटुतुटु-चित्तमाणदिए" •नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए° करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु५ •एवं सामी ! तहत्ति आणाए विधएणं वयणं° पडिसुणेइ, पडिसूणेत्ता भरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिमिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सए आवासे १. अलसंडविसय (अ,ब); अलसंडविसयासी य १०. 'तए णं भरहेणं रण्णा' इति शेषः (हीव) । ११. सं० पा० ...-समाणे जाव सरसगोसीस। २. सिंधुससागरंतोत्ति य (क,ख) । समाणे सरसगोसीस (पुत्र)! ३. अम्हित्थ (क,त्रि,स); अम्हेत्थ (ख,प) । १२. चंदणुक्खित्त° (त्रि, प, शा)। ४. च (पु) व (पुवृपा) १३. कदाचि (अ,त्रि,व); कयाति (आवस्यकणि ५. वागिणोत्ति (प, आवश्यकचूणि पृ १६१) । पृ० १६२)। ६. वि य (अ,ब,पुवृ); विजयं (पुवृपा)। १४. सं० पा० --हटुतुटूचित्तमाणदिए जाव ७. ताव (अ,ब)। करयल । ८. भरहस्स रण्णो (प,शावृ,हीवृ)। १५. सं० पा०-कटु जाव पडिसुणेइ । ६. अप्पणित्ता (ख,त्रि,प,स)। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तओ वखारी ४२६ जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दब्भसंथारंगं संघरइ', 'संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहिता कयमालस्स देवस्स अट्ठमभत्तं परिहर, पोसहसा लाए पोसहिए बंभयारी' 'उम्मुकमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खिससत्यमुसले Forientary एगे अवीए अट्टमभत्तं पडिजागरमाणे- पडिजागरमाणे विहरइ || ८५. तणं से सुसेणे सेणावई' अठ्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, . पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पहाए कयवलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई' मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे धूवपुप्फगंधमल्लहत्थगए मज्जणधराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा' तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ८६. तणं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहवे राईसर तलवर - माडंबिय' - " कोडुंबिय - इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ - सत्यबाहप्पभियओ - अप्पेगइया उप्पलहत्थगया जाव अप्पेगइया सहपत्तहत्थगया सुसेणं सेणावई पिट्टओ-पिटुओ अणुगच्छति ॥ ८७. तए णं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहूओ खुज्जाओ चिलाइयाओ जाव' इंगियचितिय-पत्थिय-विआणियाओ णिउणकुसलाओ विणीयाओ अप्पेगइयाओ वंदणकल सहत्थ - गयाओ जाव' सुसेणं सेणावई पिट्ठओ-पिट्टओ अणुगच्छति ॥ ८८. एणं से सुसेणे सेणावई सब्बिड्डीए सव्वजुईए जाव" णिग्घोसणाइएणं जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेइ, करेत्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए उदगधाराए अन्भुक्खेइ, अन्भुवखेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचगुलितले चच्चए य दलयति, दलयित्ता अग्गेहि वरेहि गंधेहिय मल्लेहिय अच्चिइ, अच्चिणेत्ता पुप्फारुहणं" "महल-गंध-वण्ण चुण्ण - वत्थाहणं करे, करेत्ता आसत्तोसत्तविपुलवट्ट वग्घारियमल्ल दामकलावं पंचवण्णसरस सुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं कालागुरु-पव र कुंदुरुक्क तुरुक्क - धूवमधमर्धेत - गंधुद्ध्याभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेइ, करेता अच्छेहि सहेहि सेतेहि रययामएहि अच्छरसातंडुलेहि तिमिस्सगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडाणं पुरओ अट्ठट्ठ मंगलए आलिहइ, [तं जहा- सोत्थिय सिरिवच्छ" दियावत्त वद्धमाणग भद्दासण मच्छ कलस दप्पण अट्ठमंगलए ] आलिहित्ता काऊणं" करेइ उवयारं, कि ते? पाडल-मल्लिय-चंपग असोग- पुण्णाग, चूयमंजरि णवमालिय १. सं० पा० – संघरइ जाव कथमालस्स | २. सं० पा० - बंभयारी जाव अट्टमभत्तंसि । ३. वेसाई ( ब ) 1 ४. कवाडा (ब) 1 ५. सं० पा० माडबिय जाव सत्यवाह । ६. जं० ३।१० । ७. बहूईओ ( प ) । ८. ओ० सू० ७० ॥ ६. जं० ३।११ । १०. जं० ३।१२ । ११. सं० पा० - पुप्फारुहणं जाव वत्थारुहणं । १२. सं० पा० – आसत्तोसत्तविपुलवट्ट जाव करेइ । १३. सं० पा० - सिरिवच्छ जाव कयग्गह' । १४. द्रष्टव्यम् - १२ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती बकुल-तिलग-कणवीर-कुंद-कोज्जय-कोरंटय-पत्त-दमणय-वरसुरहिसुगंधगंधियस्स' कयग्गहगहिय-करयलपब्भट्ठ' विप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्थ चित्तं जष्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्पभवइरवेरुलियविमलदंड 'कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुवक-धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमट्टि विणिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छुयं पग्गहेत्तु पयते धूवं दलयइ', दल यित्ता वामं जाणं अंचेइ, अंचेत्ता करयल' 'परिग हियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट कवाडाणं पणामं करेइ, करेत्ता दंड रयणं परामुसइ, तए णं तं दंडरयणं पंचलइयं वइरसारमइयं, विणासणं सव्वसत्तसेण्णाणं", खंधावारे णरवइस्स गड्ड-दरि-विसम-पब्भार-गिरीवर-पवायाणं समीकरणं, संतिकरं 'सुभकरं हितकर" रण्णो हियइच्छियमणोरहपूरगं दिव्वमप्पडियं दंडरयणं गहाय सत्तट्ठ पयाई पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे दंडरयणणं महया-महया सद्देणं तिक्खुत्तो आउडेइ ।। __८६. तए णं तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सुसेणसेणावइणा दंडरयणेणं महया-मया सद्देणं तिखुत्तो आउडिया समाणा महया-महया सद्देणं कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स" सगाई-सगाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था । ६०. तए" णं से सुसेणे सेणावई तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेइ, विहाडेत्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" भरहं रायं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं क्यासीविहाडिया णं देवाणु प्पिया ! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा, एयण देवाणुप्पियाणं पियं णिवेदेमो, पियं भे" भव उ॥ ___६१. तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एयम→ सोच्चा निसम्म हट्ठ१. अस्मात् पदात 'करेत्ता' पर्यन्तः पाठः आदर्गेषु १६२) 'तते णं सेणावती जाव भरहस्स तं लिखितो नैव दृश्यते । बहुषु स्थानेषु लिपिकारैः निवेदेइ' इति पाठोस्ति । अस्मिन् विषये पूर्वागतः पाठः संक्षिप्यैव लिख्यते । उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण एवं समीक्षा कृतास्ति२. सं० पा०--वेरुलियविमलदंडं जाव धूवं । इदं च सूत्रमावश्यकचूणौ वर्द्धमानसूरिकृतादि. ३. ३।१२ सूत्रे 'धूवं दह्इ' इति पाठो विद्यते । चरित्रे च न दृश्यते, ततोनन्तरपूर्वसूत्र एव ४. सं. पा.-करयल जाव मत्थए । कपाटोदघाटनमभिहितं. यदि चैतत्सत्रादर्शान५. णं भंते (ख,ब); णं भवे (आवश्यकचूणि पृ० सारेणेदं सूत्रमवश्यं व्याख्येयं तदा पूर्वसूत्रे १९२) सगाई २ ठाणाई इत्यत्रार्षत्वात् पञ्चमी ६. पंचरतिय (क)। व्याख्येया तेन स्वकाभ्यां २ स्थानाभ्यां कपाट७. सेणाणं (त्रि,प, शावृ, हीव)। द्वयसम्मीलनास्पदाभ्यां प्रत्यवस्तृताविति - ८. पहाणा (अ,ख,ब, शावृपा) । किञ्चिदविकसित वित्यर्थः तेन विघाटनार्थक६. हितकरं शुभकरं (क,ब,स, पुवृ) । मिदं न पुनरुक्तमिति । १०. आउड्डेइ (ख) आउटैइ (त्रि) । १३. उवागच्छित्ता जाव (अ,क,ख,त्रि, ब,स); ११. सरसरसरस्स (ब)। एतत्पदं लिपिप्रमादादागत सम्भाव्यते । १२. अस्य सूत्रस्य स्थाने आवश्यकचूणों (पृ० १४. ४ (त्रि, हीव)। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइबो वक्खारो ४३१ तुटु-चित्तमाणंदिए' • दिए पीइमणे परमसोमण स्सिए हरिसवसविसप्पमाण° हियए सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेता सम्माणेत्ता कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय-गयरह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेण्णं सण्णाहेह तहेव जाव' अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवरं णरवई दुरुढे । २. तए णं से भरहे राया मणिरयणं परामुसइ-तो' तं चउरंगुलप्पमाणमेत्तं च अणग्घियं' 'तंस-च्छलंसं अणोवमजुइं दिव्वं मणिरयणपतिसमं वेरुलियं सव्वभूयकंतं वेढो जेण य मुद्धागएणं दुक्खं, ण किंचि जायई 'हवइ आरोग्गे य" सव्वकालं। तेरिच्छिय-देवमाणुसकया य, उवसग्गा सव्वे ण करेंति तस्स दुक्खं । संगामे वि असत्थवज्झो, होइ परो मणिवरं धरतो। ठियजोव्वण-केसअवट्ठियणहो, हवइ य सव्वभय विप्पमुक्को। तं मणि रयणं गहाय से णरवई हत्थिरयणस्स दाहिणिल्लाए कुंभीए णिक्खिवइ ।। ६३. तए गं से भरहाहिवे णरिदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे कुंडल उज्जोइयाणणे मउड दित्तसिरए णरसीहे णरवई गरिदे परवसभे मरुय रायवसभकप्पे अब्भहिय रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे पसत्थमंगलसएहिं संथुव्वमाणे जयसद्दकयालोए हत्थिखंधव रगए सकोरंटल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेण सेयवरचामराहिं उद्धव्वमाणीहि-उद्धव्वमाणीहिं जक्खसहस्ससंपरिवुडे वेसमणे चेव धगवई अमरवइसण्णिभाए इड्डीए पहिय कित्ती मणिरयणकउज्जोए" चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे मयाउक्किटिसीहणायबोलकल कलरवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयंपिव करेमाणे-करेमाणे जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिमिसगुहं दाहिणिल्लेणं दुवारेणं अतीति ससिव्व मेहंधकारनिवहं ।। ६४. तए णं से भरहे राया छत्तलं दुवालसंसियं अट्ठकण्णियं अहिंगरणिसंठियं अट्ठसोवपिणय कागणिरयणं परामुसइ ।। ___५. तए णं तं च उरंगुलप्पमाणमित्तं" अट्ठसुवण्णं च विसहरणं अउलं चउरंससंठाण१. सं० पा०-- हट्ठतुट्ठचित्तमाणदिए जाव हियए। ७. जाति (अ,ख,ब); जाव (अवश्यकचूणि पृ० २. जं० ३६१५-१७ । १९३); 'जाव' इति पदं लिपिदोषाज्जातं ३. ततो (स); उपाध्यायशान्ति चन्द्रेण 'तोत' दृश्यते। मितिपाठः परामष्ट:---'तोत' मिति ८. पाठान्तरे--भवत्यरोगता (पुत्र)! सम्प्रदायाद् गम्यम् । ६. सं० पा०--हारोत्थयसुकयरइयवच्छे जाव ४. अणग्धेतं (ख,ब,स, पु, आवश्यक चूणि पृ० अमरवइ । १९३); अणखेयं (पुवृपा)। १०. °कयउज्जोए (क); कयउज्जोवे (ख) । ५. तस्सच्छलसं (अ,क,त्रि,ब,स, पुत्र); तंसं ११. हीरबिजयसूरिणा अनुयोगद्वारेणास्य विसंवादि. छलंसं (आवश्यकणि पृ० १९३) । त्वविषये विस्तृता चर्चा कृतास्ति-यत्तु एग६. पडिमं (क)। मेगस्स णं रणो चाउरंतचक्कवद्रिस्स Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्तो संठियं समतलं, माणुम्माणजोगा जतो लोगे चरंति सव्वजणपण्णावगा, णवि चंदो 'णवि तत्थ", सूरो ‘णवि अग्गी" णवि तत्थ मणिणो तिमिरं गासेंति अंधकारे, जत्थ तक दिव्वप्पभावजुत्तं' दुवालसजोयणाई तस्स लेसाओ विवड्ढेति तिमिरणिगरपडिसेहियाओ', रति च सव्वकालं खंधावारे करेइ 'आलोयं दिवसभूयं" जस्स पभावेण चक्कवट्टी, तिमिसगुहमतीति सेण्णसहिए अभिजेतुं वितियमद्धभरहं रायपवरे' कागणि गहाय तिमिसगुहाए पुरथिमिल्ल-पच्चत्थि मिल्लेसु कडएसं जोयगंतरियाई पंचधणुसयायामविक्खंभाई जोयणज्जोयकराई चक्कणेमीसंठियाइं चंदमंडलपडिणिकासाइं एगणपण्णं मांडलाइं आलिहमाणेआलिहमाणे अणुप्प विसइ ।। ६६. तए णं सा तिमिसगुहा भरहेणं रण्णा तेहिं जोयणंतरिएहि पंचधणुसयायामविक्खंभेहिं जोयणुज्जोयकरेहिं एगणपण्णाए मंडलेहिं आलिहिज्जमाणेहि-आलिहिज्जमाणेहिं खिप्पामेव आलोगभूया उज्जोयभूया दिवसभूया जाया यावि होत्था ॥ श्चचितोस्ति-यत्तु तस्स पं एगमेगा कोडी उस्सेहंगुल विक्खंभा तं च समणस्स भगवओ महावीरस्स अद्धंगुलं; इत्यनुयोगद्वारसूत्रे उक्तं तन्मतान्तरमवसेयम् । पुण्यसागरवृत्तावपि एषा चर्चा विद्यते। (हस्तलिखितवृति पत्र --..-.. अट्टसोवष्णिए कागिणीरयणे छत्तले दुवालसंसिए अटकविणए अहिगरणीसंठाणसटिए पण्णत्ते । तस्स णं एगमेगा कोडी उस्सेहंग्लविक्खंभा इति श्री अनुयोगद्वारसूत्रे तद्वृत्ती च एतानि च मधुरतृणफलादीनि भरतचऋत्तिकालसंभवान्येव गृह्यन्ते अन्यथा कालभेदेन वैषम्यसंभवे काकिणी रत्नं सर्वचक्रिणा तुल्यं न स्यात तुल्यं चेष्यते इति व्याख्यातं तच्च विचार्यमाण सम्यगभिप्रायविषयो न भवति यतः सूत्रे उत्सेधांगुलप्रमाणं कागिणीरत्नं भणितं तवृत्तौ च प्रमाणांगुलप्रमाणं उभय गुलप्रमाण उभय- मपि प्रवचनसारोद्वारादिना विसंवादि- दुक्लक्षमं च यत्तु चतुरंगुलो मणी पुणेति गाथां व्याख्यानयता श्रीमलयगिरिणापि इहांगुलं प्रमाणांगुलमवगन्तव्यं सर्वचक्रवत्तिना- मपि काकिण्यादिरत्नानां तुल्यप्रमाणत्वादिति बृहत्संग्रहणीवृत्तौ एतदपि प्राग्वद् विचारणास्पदमेवेति बहुश्रुतः सम्यकपर्यालोच्य यथावत् श्रद्धेयमिति। चतुरंगुलप्रमाणमा नाधिकं न च न्यूनमिति यत्तु 'उस्सेहंगुल विक्खंभा' इत्यनुयोगद्वारवचनेन एकांगुलप्रमाण वमुक्तं तद्वाचनाभेदहेतुकं संभाव्यते । शान्तिचन्द्रीयस्तावपि एष मतभेद १. णाइ तत्थ (अ,ब,स); ण इव तत्थ (क,प); ण इर तत्थ (ख, शाव, आवश्यकचूणि पृ० १९३); "इवात्थ (त्रि) २ ण इवग्गी (अ,ख,त्रि,ब);ण इव अगदी (क,प, स) अग्रेपि । ३. दिव्वभावजुत्तं (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स,पुवहीव) । ४. डिसेधियाओ (ब); पडिसिहिक्काओ (आवश्यकचणि पृ० १६३)। ५. आलोयदिवसभूयं (पुर्व) ; आलोक दिवस भूये (पुवृपा) । ६. अभिजेत्तु (त्रि)। ७. रायवर (अ,क,ख,प,ब,स, पु,शाव)। ८. पंचधणुसयाई पंचधणुयामविक्खंभाइं (अ,ब); पंचधणुसयाई क्विखंभाइं (त्रि), पंचधणु सयविक्खंभाइं (शा)। ६. सं० पा०-जोयणंतरिएहि जाव जोयणुज्जोय करेहि। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो पक्खारो ६७. तीसे णं तिमिसगुहाए वहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं 'उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओं' णामं दुवे महाणईओ पण्णत्ताओ, जाओ णं तिमिसगुहाए पुरथिमिल्लाओ भित्तिकडगाओ पवूढाओ समाणीओ पच्चत्थिमेणं सिंधु महाणई समप्पेति ।। १८. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-उम्मुरग-णिमुग्गजलाओ महाणईओ ? गोयमा ! जण्णं उम्मुग्गजलाए महाणईए तणं वा पत्तं वा कळं वा सक्करा वा आसे वा हत्थी वा रहें' वा जोहे वा मणुस्से वा पविखप्पई, तण्णं उम्मुग्गजला महाणई तिवखुत्तो आहुणियआहुणिय एगते थलं सि एडेइ । जपणं णिमुग्गजलाए महाण ईए तणं वा पत्तं वा कटठे वा सक्करा वा' 'आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मणुस्से वा पक्खिप्पइ, तण्णं णिमुग्गजला महाणई तिक्खुत्तो आहुणिय-आहुणिय अंतो जलं सि णिमज्जावेइ। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्च इ-उम्मुग्गणिमुग्ग जलाओ महाणईओ॥ ६. तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे महया उक्किट्टिसीहणाय वोलकलकल रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयंपिव° करेमाणे-करेमाणे सिंधूए महाणईए 'पुरथिमिल्लेणं कूलेणं" जेणेव उम्मुग्गणिमुग्गजलाओ महाणईओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वड्डइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उम्मुग्मणिमुग्गजलासु महाणईसु अणेगखंभसयसण्णिविठे अचलमकंपे अभेज्जकवए सालवणवाहाए सव्वरयणामए सुहसंकमे करेहि, करेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि ।। १००. तए णं से वड्डइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए" नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं सामो ! तहत्ति आणाए° विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव उन्मुग्गणिमुग्गजलासु महाण ईसु अणेगखंभसयसण्णि विट्ठे अचलमकंपे अभेज्जकवए सालंबणबाहाए सव्वरयणामए° सुहसंकमे करेइ, करेत्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तिय पच्चोप्पणइ ।। १०१. तए णं से भरहे राया सखंधादारबले उम्मुग्गणिमुग्गजलाओ महाणईओ तेहिं अणेगखंभसयसग्णिविठेहि 'अचलमकंपेहिं अभेज्जकवएहि सालवणवाहाएहिं सव्वरयणामएहि सुहसंकमेहिं उत्तरइ ॥ १०२. तए गं तीसे तिमिसगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महया-महया कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई" सगाई ठाणाई पच्चीसक्कित्था ।। १०३. तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरड्डभरहे वासे बहवे आवाडा णामं चिलाया १. उम्मगणिम्मग्ग (प) ; उम्मगणिमग्ग (स) । ७. सं०पा०-हट्टतुटूचित्तमाणदिए जाव विणएणं ! २. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृहीवृ) ।। ८. सं० पा.-अणेगखंभसयसणिविट्ठे जाव सुह३. परिक्खिप्पति (ख.त्रि); पक्खिपति (पुत्र); संकी। पक्खिप्पति (पुत्पा) ६. उवागच्छित्ता जाव (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। ४.सं० पा०—सक्करा वा जाव मण स्से। १०. सं० पा०---अणेगखंभसयसण्णिविठेहि जाव ५.सं. पा.--उक्किद्विसीहणाय जाव करेमाणे। सुहसंकमेहिं। ६. उभयत्रापि 'ण' शब्दो वाक्यालङ्कारे (शावृ)। ११. साइं (क,ख,)। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ जंबुद्दीवपणती परिवसंति-.-अट्टा दित्ता वित्ता विच्छिण्णविउलभवण-सयणासण-जाणवाहणाइण्णा बहुधण'बहुजायरूवरयया आओगपओगसंपउत्ता विच्छड्डियपउरभत्तपाणा बहुदासीदास-गो-महिसगवेलगप्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया सूरा वीरा विक्कता विच्छिण्ण विउलबलबाहणा बहुसु समरसंपराएसु लद्धलक्खा यावि होत्था 11 १०४. तए णं तेसिमावाडचिलायाणं अण्णया कयाइ विसयंसि वहूई उप्पाइयसयाई पाउब्भवित्था, तं जहा-अकाले गज्जियं, अकाले विज्जुयं, अकाले पायवा पुर्फति, अभिक्खणंअभिक्खणं आगासे देवयाओ णच्चंति ॥ १०५. तए णं ते आवाडचिलाया विसयंसि बहूई उप्पाइयसयाई पाउन्भूयाइं पासंति, पासित्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं विसयंसि बहूई उप्पाइयसयाई पाउब्भूयाइं तं जहा--अकाले गज्जियं, अकाले विज्जुयं, अकाले पायवा पुप्फति, अभिक्खणं-अभिक्खणं आगासे देवयाओ णच्चंति तं ण णज्जइ णं देवाणुप्पिया ! अम्हं विसयस्स के मन्ने उवद्दवे भविस्सइत्ति कटु ओहयमणसंकप्पा चितासोगसागरं पविट्ठा करयलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया भूमिगय दिट्ठिया झियायंति ।। १०६. तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसियमग्गे' 'अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे महया उक्किट्ठिसीहणाय बोलकलकलरवेणं पक्खुभियमहा समुद्दरवभूयं पिव करेमाणेकरेमाणे तिमिसगुहाओ उत्तरिल्लेणं दारेणं णीति ससिव्व मेहंधयारणिवहा ॥ १०७. तए णं ते आवाडचिलाया भरहस्स रण्णो अग्गाणीयं एज्जमाणं पासंति, पासित्ता, आसुरुत्ता रुद्वा चंडिक्किया कुविया मिसिमिसेमाणा अण्णमण्णं सहावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! केइ अप्पत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए', जे णं अम्हं विसयस्स 'उवरि विरिएण" हव्वमागच्छइ, तं तहाणं घत्तामो देवाणु प्पिया! जहा णं एस अम्हं विसयस्स 'उरि विरिएणं" णो हव्वमागच्छइत्तिकटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सण्णद्धबद्धवम्मियकवया उप्पीलियसरासणपट्टिया पिणद्धगेवेज्जा वद्धआविद्धविमलवरचिंधपट्टा गहिआउहप्पहरणा जेणेव भरहस्स रणो अग्गाणीयं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भरहस्स रण्णो अग्गाणीएण सद्धि संपलग्गा यावि होत्था । १०८. तए णं ते आवाडचिलाया भरहस्स रण्णो अगाणीयं हयमहियपवरवीरघाइयविवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पागोवगयं दिसोदिसि पडिसेहेति ।। १०६. तए णं से सेणावलस्स या 'भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी लक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि णिक्खुडाणं निण्णाण य दुग्गमाण य दुक्खप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं १. बहुधणा (आवश्यकचूणि पृ १६४) । २. सं० पा०-- मग्गे जाव समुद्दरवभूयं । ३. हरि (म,ख,ब)। ४. अवरवरिएणं (अ,क,त्रि,ब,हीव) । ५. अपरवरिएणं (अ,क,त्रि,प,ब,स,ही)। ६. पडिसेवंति (क,त्रि,प,ब) ; प्राचीनलिप्यां धकार वकारयो : प्रायः सादृश्येन अर्वाचीनादर्शषु धकारस्थाने वकारो जात : । ७. सं० पा०-णेया वेढो जाव भरहस्स। Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइको वक्खारो सेणावई सुसेणे भरहस्स रण्णो अग्गाणीयं आवाडचिलाएहिं हयमहियपवरवीर"घाइयविवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं° दिसोदिसिं पडिसेहियं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे कमलामेलं आस रयणं दुरुहइ, तए णं तं असीइमंगुलमूसियं णवणउइमंगुलपरिणाहं अट्ठसयमंगुलमायतं बत्तीसमंगुलमूसियसिरं चउरंगुलकण्णाकं वीसइअंगुलबाहाक' चउरंगुलजण्णुक' सोलसअंगुलजंघाकं चउरंगुलमूसियखुरं मुत्तोलीसंवत्तवलियमझ 'ईसिं अंगुट्ठपणयपढें संणयपढें संगयपढें सुजायपढें पसत्थपढें विसिट्ठपढें 'एणीजण्णुग्णय-वित्थय-थद्धपट्ठ" वित्तलयकसणिवाय-अंकेल्लणपहार'-परिवज्जिअंगं तवणिज्जथासगाहिलाणं वरकणगसुफुल्लथासगविचित्तरयणरज्जुपासं कंचणमणिकणगपयरग-णाणाविहघंटियाजाल-मुत्तियाजालएहिं परिमंडिएणं पट्टेणं सोभमाणेणं सोभमाणं कक्केयण-इंदनील-मरगय-मसारगल्लमुहमंडणरइयं आविद्धमाणिक्कसुत्तगविभूसियं कणगामयपउमसुकयतिलकं देवमइविकप्पियं 'सुरवरिंदवाहणजोग्गं च तं" सुरूवं दूइज्जमाणपंचचारुचामरामेलगं धरेंत अणदब्भवाह अभेलणयमं कोकासियवहलपत्तलच्छं सयावरणनवकणग-तवियतवणिज्जतालुजीहासयं सिरिआभिसेयघोणं" पोक्खरपत्तमिव सलिलबिंदु" अचंचलं चंचलसरीरं" चोक्ख" चरग-परिव्वायगो विव हिलीयमाणं-हिलीयमाणं" खुरचलणचच्चपुडेहि धरणियलं अभिहणमाणं-अभिहण माणं, दोवि य चलणे जमगसमग मुहाओ विणिग्गमंतं व, सिग्घयाए मुणालतंतुउदगमवि" णिस्साए पक्कमंतं, जाइकुल रूवपच्चय-पसत्थबारसावत्तगविसुद्धलक्खणं सुकुलप्पसूयं मेहादि भद्दयं विणीयं अणुकतणुकसुकुमाललोमनिद्धच्छवि सुयातं" अमर-मण १. सं. पा.-पवरवीर जाव दिसोदिसि । आवश्यकचूणों (पृ० १६५) 'अणट्ठभवाह' २. विसति° (त्रि)। इति पाठो मुद्रितोस्ति, किन्तु सोपि 'अणदग्भ३. जणूकं (क,ख,त्रि,प,ब,स) । वाहं' इति प्रतीयते। ४. सुत्तोली (त्रि,ब) ; लिपिदोषाद् वर्णविपर्यासो ११. सिरियाभिसेयधोसणं (ख,त्रि,ब,पुत्पा, जात : । हीवृपा); सिरिसाभिसेअघोणं (शावृपा)। ५. अंगुलपणयपट्ठ (अ,ख,त्रि,प,ब,स,पुवृ,शावृ); १२. सलिलबिंदुजुवं (आवश्यकचूणि पृ० १६५) । अंगुलाष्टप्रणतं (ही)। १३. चवल' (ब,आवश्यकचूणि पृ० १६५) । ६. एणीजंतुण्णयवित्थतत्थपट्ठ (ब,पुवृ० शाव); १४. चुक्ख (क,ख,स)। एणीजष्णुण्णयवित्थयत्थद्धपळे (पुवृपा) ! १५. हीलिज्जमाणं (त्रि,); हीलियमाणं (ब); ७. अण्हेल्लणपहार (अ,ब) । प्राकृतशैल्या अकार प्रश्लेषादभिलीयमानम् ८. पत्थरक (ख)। (शावृ)। ६. जोग्गं वयं (प) ; जोग्गं व तं (पुवृ) ; १६. पक्खुर° (होवृपा) । जोग्गावयं (साव)। १७. मुणालयंतु° (त्रि,ब)। १०. x (अ, ब); अणभवाहं (ख,प,स,पुव,शावृ १८. अणुपयणुक° (अ,ब)। होवपा); अणवब्भवाहं (त्रि,हीवृ) ; अदभ- १६. सुजातं (हीवृ, आवश्यकचूणि पृ० १६५) ; वाई (थापा) ; अणदब्भवाहं (हीवृपा); सुयातं (हीपा) । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चा॥ ४३६ जंबुद्दीवपण्णत्ती पवण'-गरुलजइणचवलसिग्घगामि, इसिमिव खंतिखमाए', सुसीसमिव पच्चक्खयाविणीयं उदग-हुतवह-पासाण-पंसु-कद्दम-ससक्कर-सवालुइल्ल-तड-कडग-विसम-पब्भार - गिरिदरीसु लंघण-पिल्लण-णित्यारणासमत्थं, अचंडपाडियं दंडपाति अणंसुपातिं अकालताल'च कालहेसिं जियनिइं गवेसगं जियपरिसहं जच्चजातीयं मल्लिहाणि सुगपत्तसुवण्ण'-कोमलं मणाभिरामं कमलामेलं णामेणं आसरयणं सेणावई कमेण समभिरूढे कुवलयदलसामलं च रयणिकरमण्डलनिभं सत्तजणविणासणं कणगरयणदंड णवमालियपुप्फसुरभिगंधि' णाणामणिलय. भत्तिचित्तं च पधोत-मिसिमिसित-तिक्खधारं दिव्वं खग्गरयणं लोके अगोवमाणं तं च पुणो वंस-रुक्ख सिंगट्ठि-दंत-कालायस विपुललोहदंडक-वरवइरभेदकं जाव सव्वत्थअप्पडिहयं किं पुण देहेसु जंगमाणं? गाहा पण्णासगुलदीहो, सोलंस सो अंगुलाई विच्छिण्णो। अद्धंगुलसोणीको, जेटुपमाणो असी भणिओ ॥१॥ असिरयणं णरवइस्स हत्थाओ तं गहिऊण जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आवाडचिल्लाएहि सद्धि संपलग्गे आवि होत्था ॥ ११०. तए णं से सुसेणे सेणावई ते आवाडचिलाए हयमहियपवरवीरघाइय"•विवडियचिंधद्धयपडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसि पडिसेहेइ ।। १११. तए णं ते आवाडचिलाया सुसेणसेणावइणा हयमहिय पवरवीरघाइय-विवडियचिंधद्धयपडागा किच्छप्पाणोवगया दिसोदिसि पडिसेहिया समाणा भीया तत्था बहियार उविग्गा संजायभया अत्थामा अवला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा अधारणिज्जमितिकट्ट अणेगाइं जोयणाई अवक्कमंति, अवक्कमित्ता एगयओ मिलायंति, मिलायित्ता जेणेव सिंधू महाणई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वालुयासंथारए संथरेंति, संथरेत्ता वालुयासंथारए १. पवर (त्रि,ब)। लत्वेनानाविलमपूतिगन्धि च घ्राणं-प्रोथो २. खंतिखमं (अ,ब); खंतिखमए (आवश्यक यस्य तत्तथा, ईकारःप्राकृतशैलीभवः । . चूर्णि पृ० १६५)। हीरविजयवृत्तौ 'मल्लिहाणं' अस्य पाठान्तर३. तर (अ,ब); तडाग (त्रि,हीवृ) ; तड रूपेण उल्लेखोस्ति। (हीवृपा)। ७.१७८ सूत्रे 'मल्लिहायणाणं' इति पाठः ४. करक (अ, ब)। आदर्शषु वृत्तित्रये पि दृश्यते। औपपातिके ५. पासियं (त्रि, स, हीवृपा); 'पाडियं (भाव- (६४) पि तथैव वर्तते । पाठद्वयमपि प्रसिद्धश्यकचूणि पृ० १६५)। मस्ति इति सम्भाव्यते । ६. x (अ, स)। ८. सुक यत्त (अ, ब, आवश्यकचूणि पृ० १६५)। ७. अत्र सर्वेष्वपि आदर्शेषु स्वीकृतपाठ एव १. गंध (त्रि)। लभ्यते। वृत्तित्रयेपि (शावृपत्र २३७, पुर्व पत्र १०. सं० पा.--'घाइय जाव दिनोदिसि । १०२, ही पत्र २४८, २४६) एष एवं पाठो ११. सं० पा०-- हयमयि जाव पडिसेहिया । व्याख्यातोस्ति, यथा शान्तिचन्द्रीय वृत्ती-- १२. तसिया (ब)। मल्लि:-विचकिलकुसुमं तद्वच्छुभ्रः अश्लेष्म Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४१७ दुरुहंति, दुरुहिता अट्ठमभत्ताई पगिण्हंति, पगिण्हित्ता वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया जे तेसिं कुलदेवया मेहमुहा णामं णागकुमारा देवा ते मणसीकरेमाणामणसीकरेमाणा चिट्ठति ॥ ११२. तए णं तेसिमावाडचिलायाणं अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि मेहमुहाणं णागकुमाराणं आसणाई चलति ।। ११३. तए णं ते मेहमुहा गागकुमारा देवा आसणाई चलियाई पासंति, पासित्ता ओहिं पउंजंति, पउंजित्ता आवाडचिलाए ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अण्णमण्णं सहावेंति, सहावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्डभरहे वासे आवाडचिलाया सिंधए महाणईए वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया अम्हे कुलदेवए मेहमहे जागकमारे देवे मणसीकरेमाणा-मणसीकरेमाणा चिटठंति, तं सेयं खल देवाणुप्पिया ! अम्हं आवाडचिलायाणं अंतिए पाउब्भवित्तएत्तिकटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमळं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए' 'चवलाए जइणाए सीहाए सिग्धाए उद्ध्याए दिव्वाए देवगईए° वीतिवयमाणा-वीतिवयमाणा जेणेव जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्डभरहे वासे जेणेव सिंधू महाणई जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिया ते आवाडचिलाए एवं वयासी-हं भो आवाडचिलाया ! जण्णं तुब्भे देवाणु प्पिया ! वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया अम्हे कुलदेवए मेहमुहे णागकुमारे देवे मणसीकरेमाणा-मणसीकरेमाणा चिट्ठह, तए णं अम्हे मेहमुहा णागकुमारा देवा तुभं कुलदेवया तुम्हें अंतियण्णं पाउब्भूया, तं वदह णं देवाणुप्पिया ! किं करेमो ? किं आचिट्ठामो ? के व भे मणसाइए? ॥ ११४. तए गं ते आवाड चिलाया मेहमुहाणं णागकुमाराण देवाणं अंतिए एयम सोच्चा णिसम्म हट्टतुटु-चित्तमाणंदिया' 'नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण' हियया उट्ठाए उट्ठति, उठेत्ता जेणेव मेहमुहा णागकुमारा देवा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहिय' 'सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट मेहमहे णागकुमारे देवे जएणं विजएणं वद्धाति, वद्धावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणु प्पिया ! केइ अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे' हरिसिरिपरिवज्जिए, जेणं अम्हं विसयस्स 'उरि विरिएणं" हव्वमागच्छइ, तं तहा णं छत्तेह देवाणुप्पिया ! जहा णं एस अम्हं विसयस्स 'उरि विरिएणं णो हव्वमागच्छइ ।।। ११५. तए णं ते मेहमुहा णागकुमारा देवा ते आवाडचिलाए एवं वयासी-एस णं भो देवाणुप्पिया! भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी महिड्ढीए महज्जुईए 'महावले महायसे महासोक्खे महाणुभागे णो खलु एस सक्को केणइ देवेण वा दाणवेण वा १.सं.पा.-तुरियाए जाव वीतिवयमाणा। २.सं०पा०---हतचित्तमाणंदिया जाव हियया। ३. सं० पा०-करयलपरिगहियं जाव मत्थए । ४. सं०पा०-दुरंतपंतलक्खणे जाव हिरिसिरि । ७. सं०पा०—महज्जुईए जाव महासोक्खे। ५. महासक्खे (अ, क, त्रि, ब, आवश्यकर्णि पृ० १६६); महेसक्खे (पुवृपा)। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्तो किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा उद्दवित्तए वा पडिसे हित्तए वा तहावि य णं तुभं पियट्टयाए भरहस्स रणो उवसग्गं करेमोत्तिक१ तेसि आवाइचिलायाणं अंतियाओ अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति', समोहणित्ता मेहाणीयं विउव्वं ति, विउव्वित्ता जेणेव भरहस्स रणो विजयखंधावारणिवेसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता उप्पि विजयखंधावारणिवेसस्स खिप्पामेव पतणतणायंति, पतणतणायित्ता खिप्पामेव पविज्जुयायंति, पविज्जुयायित्ता खिप्पामेव जुगमुसलमुट्टिप्पमाणमेत्ताहि धाराहि ओघमेषं सत्तरत्तं वासं वासिउं पवत्ता यावि होत्था ॥ ११६. तए णं से भरहे राया उप्पिं विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुट्टिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहि ओघमेषं सत्तरत्तं वासं वासमाणं पासइ, पसित्ता चम्मरयणं परामुसइ-तए णं तं सिरिवच्छसरिसरूवं' 'मुत्ततारद्धचंदचित्तं अयलमकपं अभेज्जकवयं जंतं सलिलासु सागरेसु य उत्तरणं दिव्वं चम्मरयणं, सणसत्तरसाइं सव्वधण्णाई जत्थ रोहंति एगदिवसेण वावियाई, वासं णाऊण चक्कवट्टिणा परामुळे दिवे चम्म रयणे दुवालसजोयणाइं तिरियं पवित्थरइ तत्थ साहियाई॥ ११७. तए णं से भरहे राया सखंधारबले चम्मरयणं दुरुहइ, दुरुहित्ता दिव्वं छत्तरयणं परामसइ.-तए णं णवणउइसहस्सकंचणसलागपरिमंडियं महरिहं अओझं' णिवण-सुपसत्थ-विसिट्ठलट्ठ-कंचणसुपुट्ठदंड मिउरायतवट्टलटुअरविंदकण्णिय'-समाणरूवं वत्थिपएसे य पंजरविराइयं विविहभत्तिचित्तं मणि-मुत्त-पवाल-तत्ततवणिज्ज'-पंचवणियधोतरयणरूवरइयं रयणमिरीईसमोप्पणाकप्पकारमणुरंजिएल्लियं रायलच्छिचिधं अज्जुणसुवण्णपंडुरपच्चत्थुयपट्ठदेसभागं" तहेव तवणिज्जपट्टधम्मतपरिगयं अहियसस्सिरीयं सारयरयणियरविमलपडिपुण्णचंदमण्डलसमाणरूवं परिंदवामप्पमाणपगइवित्थडं कुमुदसंडधवलं रण्णो संचारिमं विमाणं, सुरातववायवुट्टिदोसाण य खयकरं, तवगुणेहि लद्धगाहा अयं बहुगुणदाणं, उऊण' विवरीयसुकयच्छायं । छत्तरयणं पहाणं सुदुल्लह अप्पपुण्णाणं ॥१॥ पमाणराईण तवगुणाण फलेगदेसभाग, विमाणवासेवि दुल्लहतरं, वग्धारियमल्लदाम १. समोहणंति (अ, क, ख, प, ब, स)। २. सं० पा०-सिरिवच्छसरिसरूव वेढो भाणियन्वो जाव दुवालस। ३. अयोज्झं (अ, ब); अउज्झ (क,ख,त्रि,प,स); अवोझ (आवश्यकचूणि पृ० १९७)। ४. मिदुगयतवट्ट (अ, ब, पुवृपा); मिदुरायंत (पुवपा)। ५. रत्त (अ, ब, पुत्पा) । ६. मरीईसमप्पणा (त्रि) मरीई (4); मरीइसमोवणा' (पुर्व); तणुमरीइसमोवणा' (पुत्पा); "मरीइसमोप्पणा (पुवपा)। ७. पंडर (अ,क,ख,ब,स)। ८. 'पगीयवित्थडं (अ, ब, पुवपा); "पगतीयवि त्थंड (क, ख) "पगती इविस्थडं (स); पगति पवित्थडं (आवश्यकचूणि पृ० १६७) । ६. उदूण (अ, ख, ब); रिगुण (क, स)। Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइको वक्खारो कलावं 'सारयधवलब्भ-रयणिगरप्पगासं" दिव्वं छत्तरयणं महिवइस्स धरणियलपुण्णचंदो ॥ ११८. तए णं से दिव्वे छत्तरतणे भरहेणं रण्णा परामुठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाई पवित्थरइ साहियाइ तिरियं ॥ ११६. तए णं से भरहे राया छत्तरयणं खंधावारस्सुवरि ठवेइ, ठवेत्ता मणिरयणं परामुसइ'--'तो तं चउरंगुलप्पमाणमेत्तं च अणग्घियं तंस-च्छलंसं अणोवमजुई दिव्वं मणिरयणपतिसमं वेरुलियं सव्वभूयकतंवेढो जेण य मुद्धागएणं दुक्खं, ण किंचि जायइ हवइ आरोग्गे य सव्वकालं । तेरिच्छिय-देवमाणुसकया य, उवसम्मा सव्वे ण करेंति तस्स दुक्खं ।।१॥ संगामे वि असत्थवज्झो, होइ णरो मणिवरं धरतो। ठियजोव्वण-केसअवट्ठिय-णहो, हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को ॥२।। तं मणिरयणं गहाय छत्तरयणस्स वत्थिभागंसि ठवेइ, तस्स य अणतिवर' चारुरूवं सिल णिहियत्थमंतसित्त'-सालि-जव-गोहूम-मुग्ग-मास - तिल-कुलत्थ-सद्विग - निफाव-चणगकोद्दव-कोत्थुभरि-कंगु-बरग-रालग-अणेगधण्णावरण -हारितग-अल्लग-मूलग-हलिद्दि-लाउयतउस-तुंब-कालिंग-कविट्ठ-अब-अंबिलिय-सव्वणिप्फायए सुकुसले गाहावइरयणेत्ति सव्वजणवीसुतगुणे ॥ १२०. तए णं से गाहावइरयणे भरहस्स रण्णो तद्दिवसप्पइण्ण-णिप्फाइय-पूयाणं सव्वधण्णाणं अणेगाई कुंभसहस्साइं उवट्ठवेति ।। १२१. तए णं से भरहे राया चम्मरयणसमारूढे छत्तरयणसमोच्छन्ने मणिरयणक उज्जोए" समुग्गयभूएणं सुहंसुहेणं सत्तरत्तं परिवसइपाहा-- णवि से खुहा ण तण्हा", 'णेव भयं णेव विज्जए दुक्खं । भरहाहिवस्स रण्णो, खंधावारस्सवि तहेव ॥१॥ १. सारयधवलरयणि" (अ, ब, पुव); सारयधव- ६. 'वरण (अ,क,ख,ब,स); 'वरत्त (आवश्यकलब्भयंदणिगरप्पगासं (क,स, पुवृपा, आवश्यक- चूणि पृ० १९७)। चूणि पृ० १९७)। ७. गाहवति (अ); गहवति (क, ब, स)। २. सं०पा०-परामुसइ वेढो जाव छत्तरयणस्स। ८. पूइयाणं (प, आवश्यक चणि पृ १९८)। ३. अणतीवरं (अ, ब, पुर्वपा); अणतिचरं (त्रि, ६. समोच्छइत्ते (स) । हीव); आणतिपरं (पुष) १०. “कयउज्जोवे (ब); कतुज्जोवे (आवश्यकचूणि ४. सिलनियच्छमत्तसेत्त (अ,ब); सिलनिहियत्थ- पृ० १९८)। मंतसेत्तु (क, आवश्यकणि पृ० १६७); सिल- ११. वलियं (अ, क, ख, त्रि, ब); विलियं (प, निहियस्थमंतमेरु (ख); सिलनिहियच्छमंत- शाव); चलियं (स, पु; हीवृ) अयं पाठ सित्त (स)। आवश्यकचूाधारेण स्वीकृतः । शान्तिचन्द्रीय ५. वरालग (अ, क, त्रि, ब, आवश्यकचूणि पृ० वृत्ती अस्य समर्थनपरं उद्धरणं दृश्यते इयमेव १९७); परालम (स) । गाथा श्री वर्धमानसूरिकृतऋषभचरित्रे तु Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ jharit १२२. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सत्तरतंसि परिणममाणंसि इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - केस णं भो ! अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे' "हीणपुण्णचाउसे हिरिसिरि' परिवज्जिए जे गं ममं इमाए एयारूवाए' 'दिव्वाए देवडीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं देवाणुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमण्णागयाए उप्पि विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुट्ठि प्पमाणमेत्ताहि धाराहि ओघमेघं सतरतं वासं वासइ || ४४० १२३. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो इमेयारूवं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकष्पं समुप्पण्णं जाणित्ता सोलस देवसहस्सा सण्णज्झिउं पवत्ता यावि होत्था || १२४. तए णं ते देवा सण्णद्धबद्धवम्मियकवया' उप्पीलिय सरासणपट्टिया पिद्धगेवेज्ज-बद्धआविद्धविमलवरचिंधपट्टा गहियाउहप्पहरणा जेणेव ते मेहमुहा नागकुमारा देवा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मेहमुहे णागकुमारे देवे एवं वयासी-हं भो ! मेहमुहा नागकुमारा देवा ! अपत्थियपत्थगा' 'दुरंतपंतलक्खणा हीणपुण्णचाउद्दसा हिरिसिरि परिवज्जिया किण्णं तुब्भे ण याणह भरहं रायं चाउरंतचक्कवट्टि महिड्डीयं महज्जुईयं महावलं महायसं महासोक्खं महाणुभागं णो खलु एस सक्को केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण वा किपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा सत्यप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा तप्पओगेण वा उद्दवित्तए वा पडिसेहित्तए वा, तहावि णं तुब्भे भरहस्स रण्णो विजयखंधावारस्स उप्पि जुगमुसलमुट्ठिप्यमाणमेत्ताहि धाराहि ओघमेघं सत्तरतं वासं वासह, तं एमवि गते', इत्तो खिप्पामेव अवक्कमह अहव णं अज्ज पासह' चित्तं जीवलोगं ॥ १२५. तए णं ते मेहमुहा नागकुमारा देवा तेहि देवेहि एवं वृत्ता समाणा भीया तत्था वहिया उग्विग्गा संजायभया मेहाणीकं" पडिसाहरति, पडिसाहरित्ता जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता आवाजचिलाए एवं वयासी - एस णं देवाणुप्पिया ! भरहे राया महिड्डीए" "महज्जुईए महावले महायसे महासोक्खे महाणुभागे णो खलु एस सक्को केणइ देवेण वा" "दाणवेण वा किष्ण रेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा सत्यप्पओगेण वा अभिगप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा उद्दवित्तए वा पडिमेहित्तए वा, तहावि य णं" एवं णत्थि से खुहा, गवि तिसा णेव भयं' शेष प्राग्वत् । १२. विलितं (आवश्यकचूर्णि पृ० ११८ ) । १. एस (क, ख ) | २. सं० पा० - दुरंतपंतलक्खणे जाव ज्जिए । ३. सं० पा० एयाख्वाए जाव अभिसमण्णा गयाए । एयापुरुवाए ( प ) । ४. सं० पा०-- जुगमुसलमुट्ठि जाव वासं । ५. सं० पा० - सणद्धबद्धवमियकवया गहियाउ । परिव जाव ६. सं० पा० - अपत्थियपत्थगा जाव परिबज्जिया । अप्पत्थिय (क, ख, त्रि, प, स ) । ७. सं० पा० महिड्डीय जाव उद्वित्तए । ८. किं बहु अधिक्षिपामः ? ( शावृ) ६. पासध ( अ, त्रि, ब ) ! १०. मेहाणीतं (आवश्यकचूर्णि पृ० १९८ ) 1 ११. सं० पा०---महिड्ढोए जाव णो । १२. सं० पा० – देवेण वा जाव अग्गिप्पओगेण वा जाव उद्वित्तए । १३. तहवि पुणं ( अ, क, ख, ब, स ); तवि य णं (त्रि) 1 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइम वक्खारी ४४t अम्हेहि देवाणुप्पिया! तुब्भं पियट्टयाए भरहस्स रण्णो उवसग्गे कए, ส गच्छह णं तुब्भे देवाप्पिया ! व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ता उल्लपडसाडगा ओचूलगणियत्था' अग्गाई वराई रयणाई गहाय पंजलिउडा पायवडिया भरहं रायाणं सरणं उवेह, पणिवयवच्छता खलु उत्तमपुरिसा 'णत्थि भे" भरहस्स रण्णो अंतियाओ भयमितिकट्टु, एवं वदित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया || १२६. तए णं ते आवाडचिलाया मेहमुहेहि णागकुमारेहि देवेहि एवं वृत्ता समाणा उट्ठाए उट्ठेति, उट्ठेत्ता व्हाया कयवलिकम्मा कयको जय मंगल पायच्छित्ता उल्लपडसाडगा ओचूलगणियत्था अग्गाई व राई रयणाई गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं' "सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं बद्धावेंति, वृद्धावेत्ता अग्गाई वराई रयणाई उवर्णेति उवणेत्ता एवं वयासी गाहा— वसुहर ! गुणहर ! जयहर ! हिरिसिरिधी कित्तिधारकर्णारिद ! लक्खणसहस्सधारक ! रायमिणं णे चिरं धारे ॥ १ ॥ हयवति ! गयवति ! णरवति ! णवणिहिवति ! भरहवासपढमवति ! बत्तीसजणवय सहस्स राय ! सामी चिरं जीव ॥२॥ पढमणरीसर ! ईसर ! हियईसर ! महिलियासहस्साणं । देवसयसहस्सीसर' ! चोसरयणीसर ! जसंसी ! ॥३॥ सागरगिरिपेरंतं', उत्तरपाईणमभिजिय" तुमए । ता अम्हे देवाणुप्पियस्स विसए परिवसामो ॥४॥ अहो देवाप्पियाड्डी जुई जसे वले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे' दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभागे' लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तं दिट्ठा णं देवाणुप्पियाणं इड्डी" "जुई जसे ब वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभागे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तं खाणं देवाप्पिया ! खमंतु णं देवाणुप्पिया ! खंतुमरुहंतु णं देवाणुप्पिया ! गाइ भुज्जो - भुज्जो एवं करणयाएत्तिकट्टु पंजलिउडा पायवडिया भरहं रायं सरणं उवेंति ।। १२७. तए णं से भरहे राया तेसि आवाsचिलायाणं अग्गाई वराई रयणाई पच्छिंति, पडिच्छित्ता ते आवाडचिलाए एवं वयासी - गच्छह णं भो ! तुब्भे ममं बाहुच्छायापरिगहिया णिब्भया णिरुव्विग्गा सुहंसुहेणं परिवसह, णत्थि भे कत्तोवि भय १. नियच्छा ( प, स ) 1 २. ण मे ( अ, ब ) ; णत्थि (ख, त्रि 1 ३. सं० पा०—करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए । ४. बत्तीसं जणवयसहस्स ( अ, ब ) । ५. साहसीसर (त्रि), ६. मेरागं ( प, शावृ ) 1 ७. उत्तरपातीण° ( अ, ब ) ; उत्तरवातीण' (क, स) ; उत्तरवाणीण' (ख, त्रि); उत्तरवाईण° (प) 1 5. परक्कमे दिव्या देविड्ढी, इदं पदं क्वचिन्न दृश्यते ( पुवृ ) । ६. भावे (अप) । १०. सं० पा० - इड्ढी एवं चैव जाव अभिसमण्णा गए । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૪૨ जंबुद्दीवपण्णत्ती मितिकट्टु सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ || १२८. तए णं से भरहे राया सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छाहि भो देवाणुपिया दोच्चं पि सिंधूए महाणईए पच्चत्थिमं णिक्खुडं ससिन्धुसागर गिरिमेरागं मणिक्खुडाण य ओयवेहि, ओयवेत्ता अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि || १२. तए णं से सेणावई बलस्स गया भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे जहा दाहिणिल्लस ओयवणं तहा सव्वं भाणियव्वं जाव' पच्चणुभवमाणे विहरति ॥ १३०. तए णं दिव्वे चक्करयणे अण्णया कयाइ आउघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंत लिक्खपडिवणे' जवखसहस्ससंपरिवडे दिव्वतुडियस दस ण्णिणा देणं पूरेंते चैव अंबरतलं उत्तरपुरत्थिमं दिसिं चुल्ल हिमवंतपव्वयाभिमुहे पयाते यावि होत्था || १३१. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपुरत्थिमं दिसि चुल्ल हिमवंतपव्वयाभिमुहं पयातं पासइ जाव' जेणेव चुल्ल हिमवंतपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुल्लहिमवंत वा सहरपव्वयस्स अदूरसामन्ते दुवालसजोयणायामं णवजोयणविच्छिष्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेस करेइ जाव' चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्टमभत्तं पगिह, 'तहेव जहा' मागहकुमारस्स णवरं" - उत्तरदिसाभिमुहे जेणेव चुल्ल हिमवंतवासहरपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुल्लहिमवंतवासहरपव्ययं तिक्खुत्तो रहसिरे फुसइ, फुसित्ता तुरए णिगिण्हइ, णिगिहित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता धणुं परानुसइ तहेव जाव' आयतकण्णायतं च काऊण उसुमुदारं इमाणि वयणाणि तत्थ भाणीय से णरवईगाहा- हंदि ! सुणंतु भवंतो, बाहिरओ खलु सरस्स जे देवा, गासुरा सुवण्णा, तेसि खु णमो पणिवयामि ॥१॥ हंदि ! सुगंतु भवंतो, अभिंतरओ सरस्स जे देवा । णागासुरा सुवण्णा सव्वे मे ते विसयवासी ॥२॥ इतिकट्टु उड्ड वेहासं उसुं णिसिरइ परिरणिगरियमज्झो" वाउयसोभमाणकोसेज्जो ! चित्तेण सोभते धणुवरेण इंदोव्व पच्चक्खं ||३|| १. भयमस्थित्तिकट्टु आवश्यकचूर्णि पृ० १६६ ) 1 २. नं० ३।७७-८२ । ३. सं० पा० अंतलिक्खपडिवणे जाव उत्तर पुरत्थि । ४. जं० ३।१५-१६ । (क, ख, त्रि, प, स, हीवृ, ५. जं० ३३१८-२० । ६. जं० ३।२०-२२ । ७. तहेब जाव जहा मागहत्थिस्स जाव समुद्दरव भूयंपि करेमाणे २ ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स, पुवृ, शावृ, ही वृ); चिन्हाङ्कित पाठ: आवश्यकचूर्णावुद्धृतजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिपाठानुसारी विद्यते, आदर्शषु 'तहेब' इति पदानन्तरं 'जान' पदस्य कापि सार्थकता नानुभूयते । ८ जं० ३१२४ ॥ ६. सं० पा०—णरवई जाव सव्वे | १०. सं० पा० परिगरणिगरियमज्भो जाव तए । Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइत्री वखारी तं चंचलायमाणं. पंचमिचंदोवमं महाचावं। छज्जइ वामे हत्थे, परवइणो तंमि विजयंमि ॥४॥ १३२. तए णं से सरे भरहेणं रगणा उड्ड वेहासं णिसट्टे समाणे खिप्पामेव बावरि जोयणाई गंता चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स मेराए णिवइए ।।। १३३. तए णं से चुल्ल हिमवंतगिरिकुमारे देवे मेराए सरं णिवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुठे 'चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि णिलाडे साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी-केस णं भो! एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवडढीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं देवाणुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमण्णागयाए उप्पि अप्पुस्सुए मेराए सरं णिसिरइत्तिकट्ट सीहासणाओ अब्भुट्ठइ, अब्भुठेत्ता जेणेव से णामायके सरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं णामायकं सरं मेण्हइ, गेण्हित्ता णामकं अणुप्पवाएइ, णामक अणुप्पवाएमाणस्स इमे एयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्थाउप्पन्ने खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणागयाणं चुल्ल हिमवंतगिरिकुमाराणं देवाणं राईणमुवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमित्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सम्बोसहि च माल गोसीसचंदणं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं दहोदगं च गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किदाएतरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ,उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणीयाई पंचवण्णाइं वत्थाई पवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसण्णहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए णं देवाणुप्पिएहि केवलकप्पे भरहे वासे° उत्तरेणं चुल्ल हिमवंतगिरिमेराए अण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी,' 'अहण्ण देवाणुप्पियाणं आणत्ती-किंकरे° अहण्णं देवाणुप्पियाणं उत्तरिल्ले अंतवाले 'तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! ममं इमेयारूवं पीईदाणंत्तिकटु सव्वोसहिं च मालं गोसीसचंदणं कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहयं दहोदगं च उवणेइ। १३४. तए णं से भरहे राया चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीईदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता चुल्ल हिमवंतगिरिकुमारं देवं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ १३५. तए णं से भरहे राया तुरए णिगिण्हइ, णिगिण्हित्ता रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता जेणेव उसहकूडे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उसहकूडं पव्वयं तिक्खुत्तो रहसिरेणं फुसइ, फुसित्ता तुरए णिगिण्हइ, णिगिणिहत्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता छत्तलं दुवालसंसियं अट्टकपिणयं अहिगरणिसंठियं सोवणियं कागणिरयणं परामुसइ, परामुसित्ता उसभकूडस्स १.सं० पा० रुठे जाव पीइदाणं सव्वोसहिं च माल गोसीसचंदणं कडगाणि जाव दहोदग। २. सं० पा०—उक्किद्वाए जाव उत्तरेणं । ३. सं० पा० विसयवासी जाव अहण्णं। ४. सं० पा०-..अंतवाले जाव पडिविसज्जेइ । Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती पव्वयस्स पुरथिमिल्लसि कडगंसि णामगं आउडेइ-- गाहा ओसप्पिणी' इमीसे, तइयाए समाइ पच्छिमे भाए। अहमसि' चक्कवट्टी, 'भरहो इति" नामधेज्जेणं ॥१॥ अहमसि' पढमराया, इहई भरहाहिवो परवरिंदो। णत्थि महं पडिसत्तू, जियं मए 'भा रहं वासं ॥२॥ इतिकटु णामगं आउडेइ, आउडेता रहं परावत्तेइ, परावतेत्ता जेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव" १३६. तए णं से दिव्वे चक्करयणे चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता •अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसहसणिणादेणं पूरेते चेव अंवरतलं दाहिणं दिसि वेयड्ढपव्वयाभिमुहे पयाते यावि होत्था । १३७. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणं दिसि वेयड्डपब्वयाभिमुह पयातं चावि पासइ, पासित्ता हत-चित्तमाणदिए जाव' जेणेव वेयडढपव्वा जेणव वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले णितंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले णितंबे दुवालसजोयणायामं णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ जाव' पोसहसालं अणुपविसई", अणुपविसित्ता पोसहसाल पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहिता' णमिविणमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्ठमभत्तिए' णमि-विणमिविज्जाहररायाणो मणसीकरेमाणे-मणसीक रेमाणे चिट्टइ ।। १३८. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि णमि-विणमी विज्जाहररायाणो दिव्वाए मईए" चोइयमई अण्णमण्णस्स अंतियं पाउभवंति, पाउन्भवित्ता एवं वयासी-उप्पन्ने खलु भो देवाणुप्पिया! जंबुद्दोवे दीवे भरहे वासे भरहे राया चाउरतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणागयाणं विज्जाहरराईणं चक्कवट्टीणं उवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! अम्हेवि भरहस्स रपणो उवत्थाणियं करेमोत्तिकट्ट विणमी णाऊणं चक्कट्टि दिव्वाए मईए चोइयमई माणुम्माणप्पमाणजुत्तं तेयस्सिं रूवलक्खणजुत्तं १. ओसप्पिणीए (त्रि); अत्र पष्ठीलोपः ६. भरहवास (अ, ख, ब, स)। प्राकृतत्वात् (शावृ)। ७. जं० ३।२८, २६ । २. अहतंसि (अ, क, त्रि, ब, स); अयंमि ८. सं० पा.--.पडिणिक्खमित्ता जाव दाहिणं। (आवश्यकचुणि पृ० २००); स्वार्थे कप्रत्यये ६.० ३.१५-१८ । सति अहयं यकारस्य तकारे सति महतं' इति १०. जं० ३६१८-२० । रूपं जातमस्ति । ११. स० पा० ----अणुपविसइ जाव णमि। ३. भरहो ती (अ, ब); भरहो इय (प) । १२. सं० पा०-पोसहसालाए जाव णमि । ४. अहतंसि (अ, क, ख, त्रि, ब, म)। १३. मदीए (अ, ब)। ५. अहयं (प, शाव, पुत्पा); इहयं (पुत्र) १४. चोतितमती (अ, त्रि, ब)। Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ठियजुव्वण केसवट्ठियणहं सव्वामयणासणि' बलकरि इच्छियसीउण्हफासजुत्त'गाहा 'तिसु तणुयं" 'तिसु तंब" तिवलीणं तिउण्णय तिगंभीरं । तिसु कालं तिसु सेयं तियायतं "तिसु य विच्छिण्णं ॥१॥ समसरीरं भरहे वासंमि सबमहिलप्पहाणं सुंदरथण-जघण-वरकर-चरण-णयण-सिरसिजदसण-जण हिदयरमण-मणहरि सिंगारागार चारुवेसं संगयगय-हसिय-भणिय-चिट्रियविलास- संलाव-णि उण जुत्तोवयारकुसलं अमरबहूणं, 'सुरुवं रूवेणं अणुहरंति" सुभद्दे भइंमि जोन्वणे वट्टमाणिं इत्थीरयणं," णमी य रयणाणि य कडगाणि य तुडियाणिय गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए" उविकट्ठाए तुरियाए" चवलाए जइणाए सीहाए सिन्धाए° उद्धृयाए विज्जाहरग ईए जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणीयाइ५ पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु भरहं रायं°जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी--अभिजिए णं देवाणुप्पिएहि" केवलकप्पे भरहे वासे उत्तरेणं चुल्ल हिमवंतगिरिमेराए तं अम्हे णं देवाण प्पियाणं विसयवासिणो अम्हे णं देवाणुप्पियाणं आणत्ति-करा तं" पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! अम्हं इमं "एयारूवं पीइदाणंतिकटु विणमी इत्थीरयणं, णमी रयणाई समप्पेइ ।। १३६. तए णं से भरहे राया" *णमि-विण मिविज्जाहरराएहिं इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छत्ता णमि-विणमिविज्जाहररायाणो सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जाव" ससिव्व पियदंसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमई, पडिणिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता १. सवारोयणासणि (अ, ब); सब्बरोयणासणि ११. सुरूवरूवेणं अणुहरती (अ, क, ख, त्रि, ब, (ख, त्रि, प, शाव, ही) स, पुत. हीवृ)। २. °सी उण्हपएसजुत्तं (अ, ख, ब)। १२. विणमी इत्थिरयणं (अ, क, ख, त्रि, ब, स, ३. तिष्णि तणुकिं (क) तिष्णि तणु (ख); पुव, हीव, आवश्यक चूणि पृ० २००)। तिणि तणुकं (त्रि); ति तणुकं (स, पुव)। १३. जाव ताए (अ, क, ख, त्रि, ब, स, पुत्, होवृ) ४. ति तंबं (अ, क, ख, त्रि, ब, स, पुत्र) । एतत्पदं लिपिदोषादागतं सम्भाव्यते । ५. ति (अ, ब, स, पुवृ); तिगिण (क, ख, त्रि)। १४. सं० पा०-तुरियाए जाव उद्धयाए। ६. जहण (अ, क, ख, त्रि, ब, स)। १५. सं० पा०-सखिखिणीयाइं जाव जएणं। ७. वदणकर (क, ख, स, पुवृ)। १६. सं० पा०-देवाणुप्पिया जाव अम्हे । ८. चलण (अ, त्रि, ब)। १५. इतिकटु तं (अ, क, ख, त्रि, प, ब, स)। १. हियय (अ, त्रि, प, ब); हितय °(क, स) १८. सं० पा०-- इमं जाव विणमी। हदय° (ख)। १६. सं० पा०-राया जाव पडिविसज्जेइ । १०. सं० पा०—सिंगारागार जाव जुतोवयार- २०.० ३९। कुसलं । Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४६ जंबुद्दीवपण्णत्ती भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ जाव' णमि-विणमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठाहियमहामहिमं करेंति ॥ १४०. तए णं से दिवे चक्करयणे आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता' अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिबुडे दिव्वतुडियसहसण्णिणादेणं पूरेते चेव अंवरतल° उत्तरपुरस्थिमं दिसिं गंगादेवी भवणाभिमुहे पयाए यावि होत्या ॥ १४१. "तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं उत्तरपुरस्थिमं दिसिं गंगादेवीभवणाभिमुहं पयातं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए तहेव जाव जेणेव मंगाए देवीए भवणं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंगाए देवीए भवणस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायाम णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छे विजयखंधावारणिवेसं करेइ, करेत्ता वड्डइरयणं सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं बयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।। १४२. तए णं से वड्डइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुटु-चित्तमाणदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता भरहस्स रण्णो आवसह पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणति ।। १४३. तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोल्हइ, पच्चोरुहिता जेणेव पोसहसालं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुपविसइ अणुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहिता गंगाए देवीए अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवणे ववगयमालावण्णगविलेवणे मिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्ठमभत्तिए गंगादेवि मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ॥ १४४. तए गं तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि गंगाए देवीए आसणं चलइ।। १४५. तए णं सा गंगा देवी आसणं चलियं पासइ, पासित्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता भरहं रायं ओहिणा आभोएइ. आभोएत्ता इमे एयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था- उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे णामं राया चाउरंतचक्कवटी, तं जीयमेयं तीयपच्चप्पन्नमणागयाणं गंगाणं देवीणं भरहाणं राईणं उवत्थाणियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रण्णो उवत्थाणियं करेमित्तिक१ कुंभट्ठसहस्सं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाणि य कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य १. जं० ३।२८, २६ । कुंभटुसहस्सं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयण. २. सं० पा०--पडिणिक्खमित्ता जाव उत्तरपुर- भत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाई सेसं तं त्थिमं। चेद जाव महिमत्ति। ३. सा चेव (क, ख, त्रि, स); सं० पा०- ४.० ३.१५-१८ । सच्चेव सव्वा सिंधुदत्तन्वया जाव णवरं Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वक्खारो गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्याए दिवाए देवगईए वीईवयमाणी-वीईवयमाणी जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिखिणीयाइं पंचवण्णाइं वत्थाई पवर परिहिया करयलपरिम्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी- अभिजिए णं देयाणुप्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासिणी अहण्णं देवाणु प्पियाणं आणत्तिकिंकरी, तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! मम इमं एयारूवं पीइदाणंतिकटु कुंभट्ठसहस्सं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाणि य कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य उवणेई॥ १४६. तए णं से भरहे राया गंगाए देवीए इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता गंगं देवि सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। १४७. तए णं से भरहे राया पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हाए कयवलिकम्मे जाव' जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता अट्रारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया ! उस्सुक्क उक्करं उक्किनें अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिम अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं गंगाए देवीए अट्ठाहियं महामहिम करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ १४८. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेगीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हतुवाओ जाव अट्टाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। १४६. तए णं से दिव्वे चक्करयणे गंगाए देवीए अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता' 'अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिपुडे दिव्वतुडियसहसण्णिणादेणं पुरेते चेव अंबरतलं गंगाए महाणईए पच्च स्थिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसि खंडप्पवायगुहाभिमुहे पयाए यावि होत्था ॥ १५०. तते णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महाणईए पच्चत्थिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसि खंडप्पवायगुहाभिमुहं पयातं चावि पास इ, पासित्ता हट्टतुटु-चित्तमाणंदिए जाव' जेणेव खंडप्पवायगुहा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सव्वा कयमालकवत्तव्वया णेयव्वा, णवरि–णट्टमालगे देवे, पीतिदाणं से आलंकारियभंडं कडगाणि य, सेसं सव्वं तहेव जाव' अट्टाहिया महामहिमा ॥ १५१. तए णं से भरहे राया गट्टमालगस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए १. जं० ३।२८ । ३. जं० ३.१५-१८॥ २.सं० पा०—पडिणिक्खमित्ता जाव गंगाए। ४. जं० ३१६६-७५॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ जंबुद्दीवपण्णत्ती णिव्वत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छाहि णं भो देवाणुप्पिया ! गंगाए महाणईए पुरस्थिमिल्लं णिक्खुडं सगंगासागरगिरिमे राग समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि जाव सिंधुगमो णेयव्वो जाव' तओ महाणइमुत्तरित्तु गंगं अप्पडिहयसासणे य सेणावई गंगाए महाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेइ, ओयवेत्ता अगाणि वराणि रयणाणि पडिच्छइ, पडिच्छित्ता जेणेव गंगा महाणई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोच्चं पि सखंधावारबले गंगामहाणई विमलजलतुंगवीइं णावाभूएणं चम्मरयणेणं उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव भरहस्स रण्णो विजयखंधावारणिवेसे जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता अग्गाई वराई रयणाई गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मस्थए अंजलि कटु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता अग्गाई वराइं रयणाई उवणेइ ।। १५२. तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अम्गाइं वराइं रयणाइं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥ १५३. तए ण से सुसेणे सेणावई भरहस्स रण्णो 'अंतियाओ पडिणिक्खमति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सए आवासे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता मज्जणघरमणुपविसति अणुपवसित्ता हाए', सेसंपि तहेव जाव विहरइ ।। १५४. तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ सुसेणं सेणावइरयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- गच्छण्णं भो देवाणुप्पिया! खंडगप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि, विहाडेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।। १५५. तए णं से सुसेणे सेणावई जहा तिमिसगुहाए तहा भाणियव्वं जाव' दंडरयणं गहाय सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्काइ, पच्चोसक्कित्ता खंडप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडे दंडरयणेणं महया-महया सद्देणं तिखुत्तो आउडेइ ॥ १५६. तए णं खंडप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सुसेणसेणावइणा दंडरयणेणं महया-महया सद्देणं तिक्खुत्तो आउडिया समाणा महया-महया सद्देणं कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई-सगाई ठाणाई पच्चीसक्कित्था । १५७. तए ण से सुसेणे सेणावई खंडप्पवाहगुहाए उत्तरिल्लस्स द्वारस्स कवाडे विहाडेइ, विहाडेत्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भरहं रायं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं बयासी-विहाडिया णं देवाणुप्पिया ! खंडप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडा, १.जं० ३१७७-८१। तोस्ति । २. सं. पा.-करयलपरिग्गहियं जाव अंजलि। ४. जं० ३८२, ही पत्र २७२ । ३. चिन्हाङ्कितः पाठो हीरविजयवृत्तिमनुसृत्यादृ- ५. ज० ३।८४-८८ । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ बक्खारो re एयणं देवाणु प्पियाणं पियं णिवेदेमो, पियं भे भवउ, सेसं तहेव जाव' भरहो उत्तरिल्लेणं दुवारेणं अईइ ससिव्व मेहंधकारनिवहं ।।। १५८. "तए णं से भरहे राया छत्तलं दुवालसंसियं अट्ठकण्णियं अहिंगरणिसंठियं अट्ठसोवणियं कागणि रयणं परामुसइ ।।। १५६. तए णं तं चउरंगुलप्पमाणमित्तं अट्ठसुवण्णं च विसहरणं अउलं चउरंससंठाणसंठियं समतलं, माणुम्माणजोगा जतो लोगे चरंति सव्वजणपण्णवगा, णवि चंदो णवि तत्थ सूरो णवि आगी णवि तत्थ मणिणो तिमिरं णासेंति अंधकारे, जत्थ तक दिव्बप्पभावजुत्तं दुवालसजोयणाइं तस्स लेसाओ विवड्ढेति तिमिरणिगरपडिसेहियाओ, रत्तिं च सव्वकालं खंधावारे करेइ आलोयं दिवसभूयं जस्स पभावेण चवकवट्टी, खंडप्पवाय गुहमतीति सेण्णसहिए रायपवरे कागणिं गहाय खंडप्पवाय गुहाए पच्चस्थिमिल्ल-पुरथिमिल्लेसु कडएसं जोयणंतरियाई पंचधणुसयायामविक्खंभाइं जोयणुज्जोयकराई चक्कणेमोसंठियाइं चंदमंडलपडिणिकासाई एगणपण्णं मंडलाइं आलिहमाणे-आलिहमाणे अणुप्पविसइ ।। १६०. तए णं सा खंडप्पवायगृहा भरहेणं रण्णा तेहिं जोयणंतरिएहिं पंचधणुसयायामविक्खंभेहिं जोयणुज्जोयकरेहिं एगणपण्णाए मंडलेहिं आलिहिज्जमाणेहि-आलिहिज्जमाणेहि खिप्पामेव आलोगभूया उज्जोयभूया दिवसभूया जाया यावि होत्था ॥ १६१. तीसे णं खंडगप्पवायगुहाए' बहुमज्झदेसभाएं •एत्थ णं° उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओ णामं दवे महाणईओ .पण्णताओ. जाओ ण खंडप्पवायगहाएपच्च थिमिल्लाओ कडगाओ पवूढाओ समाणीओ पुरथिमेणं गंगं महाणई समप्येति, सेसं तहेव णवरिपच्चत्थिमिल्लेणं कूलेणं गंगाए संकमवत्तन्वया तहेव ॥ १६२. तए णं तीसे खंडगप्पवायगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महयामहया कोंचारवं करेमाणा-करेमाणा सरसरस्स सगाई-सगाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था ।। १६३. तए णं से भरहे राया चक्क रयणदेसियमन्गे" •अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे महयाउक्किट्ठिसीहणायबोल कलकलरवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयंपिव करेमाणे-करेमाणे खंडगप्पवायगुहाओ दक्खिणिल्लेणं दारेणं णीणे इ ससिव्व मेहंधकारनिवहाओ । १६४. तए णं से भरहे राया गंगाए महाणईए पच्चथिमिल्ले कूले दुवालसजोयणायाम णवजोयण विच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं° विजयखंधावारणिवेसं करेइ', 'करेत्ता वड्डइरयणं, सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! मम आवासं पोसहसालं च १. जं० ३१६१-६३ । ६. जं० ३१६८-१०१। २. सं० पा...-तहेव पविसंतो मंडलाइं आलिहइ। ७. सं० पा०-चक्करयणदेसियमग्गे जाव खंड३. खंडप्पवाय" (क,ख)। गणवायगुहाओ। ४. सं० पा०-बहुउज्झदेसभाए जाव उमुग्ग। ८.सं० पा०—णवजोयणविच्छिण्णं जाव विजययावत्करणात् एल्थ गं' इति पदमात्रमेव खधावारणिवेसं । (ही)। ६. सं० पा०—करेइ अवसिळं तं चेव जाव ५. सं. पा....महाणइओ तहेव णवरं पच्चत्थि- निहिरयणाणं। मिल्लामओ। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ १६५. तए णं से वड्ढइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हट्टतुट्ठ- चित्तमाणं दिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेs, पडणेत्ता भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पञ्चष्पिणति ॥ १६६. तए णं से भरहे राया आभिसेवकाओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पन्चोरुहिता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल अणुपविसद, अणुपविसित्ता पोसहसा पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरिता दम्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहिता निहिरयणाणं अट्टमभत्तं परिण्हई || १६७. तए गं से भर हे राया पोसहसालाए' 'पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे aarयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दब्भसंथारोवगए अट्टमभत्तिए णिहिरयणे मणसीकरेमाणे मणसीकरेमाणे चिट्ठइ, तस्स य अपरिमियरत्तरयणा धुवमक्खयमव्दया' सदेवा' लोकोपचयंकरा' उवगया गव पिहिओ लोगविस्सुयजसा, तं जहा --- गाहा सप्पे पंडुयए, पिंगलए सव्वरयण' महापउमे' | काले य महाकाले, माणवग महानिही संखे ॥१॥ सपनि शिवेसा, गामागरणगरपट्टणाणं च । दो मुहमवाणं, खंधावारावणगिहाणं ॥२॥ गणिस्स य' उप्पत्ती', माणुम्माणस्स जं पमाणं च । धणस्य बीयाण य, उप्पत्ती पंडुए भणिया ॥ ६ ॥ सव्वा आभरणविही, पुरिसाणं जा य होइ महिलाणं । आसाण य हत्थीण य, पिंगलगणिहिमि सा भणिया ||४|| रयणाई सव्वरयणे, 'चोट्स पवराई" चक्कवट्टिस्स । 'उप्पज्जते गिदियाई पंचिदियाई च" ||५|| १. सं० पा० २. मक्ख (कर)। ३. सदेवा ( अ, ब ) ; सदिव्वा (क, ख, त्रि, स, पुवृ, ही ); सदेवा (हीवृपा ) । पोसहसालाए जाव णिहिरयणे । ४. लोगपव्वयंकरा ( पुवृपा ) ५. सव्वरयणे ( अ, क, ख, त्रि, ब) 1 ६. महपउमे ( अ, ब, स ) 1 ७. खंधाराणं गिहाणं च ( ठाणं २२/२) | ८. उ ( अ, ब ) । जंबुद्दीपण्णत्ती ६. क्वचित् गणियस्स य बीयाणं ति पाठः क्वचित् गीयाणं ति पाठ: (पुत्र); बीयाणं ( ठाणं |२२|३) । १०. चोट्सवि वराई ( अ, क, ख, प, ब, स, शावृ) 1 ११. उपज्जेते पंचिदियाई एगिदियाई च (क, ख, स, आवश्यकचूर्णि पृ० २०२ ); उप्पज्जंत एगिंदियाइं ( प ) उप्पज्जेति एगिदियाइं° (GIT IRRIX) 1 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वक्खारो ४५१ वत्थाण य उप्पत्ती, णिप्फत्ती चेव सव्व भत्तीणं । रंगाण य धोव्वाण' य, सव्वाएसा महापउमे ॥६॥ काले कालण्णाणं, भव्वपुराणं च तिसुवि वासेसु'। सिप्पसयं कम्माणि य, तिष्णि पयाए हियकराणि ॥७॥ लोहस्स य उप्पत्ती, होइ महाकाले' आगराणं च । रुप्पस्स सुवण्णस्स य, मणि-मोत्ति-सिल-प्पवालाणं ॥८॥ जोहाण य उप्पत्ती, आवरणाणं च पहरणाणं च । सव्वा य जुद्धणीई, माणवगे दंडणीई य ॥६॥ णविही णाडगविही, कव्वस्स चउविहस्स उप्पत्ती। संखे महाणि हिमी, तुडियंगाणं च सव्वेसि ।।१०।। चक्कट्ठपइट्ठाणा, अठुस्सेहा य गव य विक्खंभे । बारसदीहा मंजूससंठिया जण्हवीइमुहे ।।११।। वेरुलियमणिकवाडा, कणगमया विविहरयणपडिपुण्णा। ससिसूरचक्कलक्खण', अणुसमवयणोववत्तीया' ।।१२।। पलिओवमट्टिईया, णिहिसरिणामा य तेसु खलु देवा। जेसिं ते आवासा, अक्किज्जा आहिवच्चा य ॥१३॥ 'एए णव णिहिरयणा", पभूयधणरयणसंचयसमिद्धा । जे वसमुपगच्छंति", भरहाहिवचक्कवट्टीणं ॥१४॥ १६८. तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, एवं मज्जणघरपवेसो जाव" १५ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्क उक्करं उक्किट्ठ अदिज्ज अमिज्ज अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कोलिय-सपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं निहिरयणाणं अट्ठाहियं महामहिमं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। १. धाऊण (पुवृपा); धोयाण (ठाणं ६।२२।६)। ६. अणुवमवयणोववत्तीया (हीवृपा); अणुसम२. वसेसु (क,ख,त्रि,प,स,पुवृ,शावृ); वासेसु जुगवाहुक्यणा य (ठाणं ६२२।११) । (पुत्पा )। १०. तत्य (प); तत्र (शावृ)। ३. महाकालि (त्रि,प, स, आवश्यक चूणि पृ० ११. अखेज्जा (अ, त्रि, ब, हीव); अक्केज्जा २०२)। (हीवृपा, आवश्यकचूणि पृ० २०३) । ४. मुत्त (प,स)। १२. एए ते णवणिहिणो (ठाणं ६।२२११४)। ५. उ (क,ख,स)। १३. वसमणुगच्छति (अ,क,ख,त्रि,ब,स,हीव, आव६. कव्वस्स य (अ,त्रि,प,ब, आवश्यकचूणि पृ० श्यकचूणि पृ० २०३) । २०२)। १४. जं० ३१५८ । ७. विक्खंभा (त्रि,ब)। १५. सं० पा०--सेणिपसेणिसद्दावणया जाव ८. प्रथमा बहुवचन लोपः प्राकृतत्वात् (शाव)। णिहिरयणाणं अट्टाहियं महामहिमं करेइ । Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ जंबुद्दीवपण्णत्ती १६६. तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वृत्ताओ समाणीओ हतुवाओ जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति, करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ १७०. तए णं से भरहे राया णिहिरयणाणं अट्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावइरयणं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं क्यासी-गच्छण्णं भो देवाणु प्पिया! गंगामहाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं दोच्चपि सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि, ओयवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ १७१. तए णं से सुसेणे तं चेव पुत्ववणियं भाणियन्वं जाव ओयवित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणइ, पडिविसज्जिए जाव' भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ।।। १७२. तए णं से दिवे चक्करयणे अण्णया कयाइ आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपडिवुडे दिव्वतुडिय" सहसण्णिणाएणं' आपरेते चेव अंवरतलं विजयखंधावारणिवेसं मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता दाहिणपच्चत्थिमं दिसि विणीयं रायहाणि अभिमुहे पयाए यावि होत्था । १७३. तए णं से भरहे राया 'तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं विणीयाए रायहाणीए अभिमुहं पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्टतुटु'- चित्तमाणंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए° कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्क' "हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेण्णं सग्णाहेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। १७४. तए णं ते कोडंबियपुरिसा जाव' पच्चप्पिणंति ॥ १७५. तए णं से भरहे राया अज्जियरज्जो णिज्जियसत्तू 'उप्पन्नसमत्तरयणे चक्करयणप्पहाणे" 'णवणि हिवई समिद्धकोसे" वत्तीसरायवरसहस्साणुयायमग्गे सट्ठीए परिससहस्सेहिं केवलकप्पं भरह वासं ओयवेइ, ओयवेत्ता कोवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पह, हय-गय-रह""पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। १७६. तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति । १७७. तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणधरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवलमहामेह णिग्गए इव गहगण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण मज्झे ससिव पियदंसणे गरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता हय-गय-रह-पवरवाहण-भड-चडगर-पहकरसंकुलाए सेणाए पहियकित्ती जेणेव वाहिरिया उवटाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव १. पडिविसज्जेइ (प)। २. जं० ३.१५१-१५३ । ३. सं० पा० --दिवतुडिय जाव आपूरेते।। ४ सं० पा०-राया जाव पासइ । ५. सं० पा०—हतुटु जाव कोडुबिय । ६.सं० पा०-आभिसेक्कं जाव पच्चप्पिणति । ७. जं० ३१८,१७३। ८.समतरयणचक्करयण° (अ,क,ख,ब,स,पुत्र ही आवश्यकचूणि पृ० २०३)। १. णवणिहिसमिद्धकोसे (बावश्यकणि पृ० २०३)। १०. सं० पा०-हयगयरह तहेव अंजणगिरि । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइको बक्खारो उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूडसणिभं गयवई णरवई दुरुढे ॥ १७८. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो आभिसेक्क हत्थिरयणं दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरओ अहाणुपुन्वीए संपट्ठिया' तं जहा-सोत्थिय-सिरिवच्छ'- दियावत्तवद्धमाणग-भद्दासण-मच्छ-कलस-दप्पणे। तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिगारं 'दिव्वा य छत्तपडागा५ 'सचामरा दंसण-रइय-आलोय-दरिसणिज्जा वाउद्धय-विजयवेजयंती य ऊसिया गगणतलमणुलिहती पुरओ अहाणुयुबीए° संपट्ठिया । तयणतरं च णं वेरुलियभिसंत-विमलदंड' 'पलबकोरंटमल्लदामोवसोभियं चंदमंडलणिभं समूसियं विमलं आयवत्तं पवरं सीहासणं वरमणिरयणपादपीढं सपाउयाजोयसमाउत्तं बहुकिंकर-कम्मकर-पुरिसपायत्तपरिक्खित्तं पुरओ अहाणुपुवीए संपट्टियं । तयणंतरं च णं सत्त एगिदियरयणा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया, तं जहा-चक्करयणे छत्तरयणे चम्मरयणे दंडरयणे असिरयणे मणिरयणे कागणिरयणे । तयणंतरं च णं णव महाणिहिओ पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया, तं जहा-णेसप्पे पंडुयए" पिंगलए सव्वरयणे महाप उमे काले महाकाले मागवगे संखे । तयणंतरं च णं सोलस देवसहस्सा पुरओ अहाणपुवीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं बत्तीसं रायवरसहस्सा" अहाणुपुव्वीए संपट्टिया । तयणंतरं च णं सेणावइरयणे पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिए। एवं गाहावइरयणे वड्डइरयणे पुरोहिय रयणे" । तयणंतरं च णं इत्थिरयणे पुरओ अहाणुपुवीए संपट्टिए। तयणंतरं च णं बत्तीसं उडुकल्लाणियासहस्सा पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया। तयणंतरं च णं बत्तीसं जणवयकल्लाणियासहस्सा पुरओ अहाणपूवीए संपट्ठिया। तयणतरं च णं बत्तीसं" बत्तीसइबद्धा णाडगसहस्सा पूरओ अहाणपुवीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं तिण्णि सट्टा सूयसया पुरओ अहाण पुवीए संपट्ठिया। तयणंतरं च णं अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ पुरओ अहाणुपुबीए संपट्ठियाओ। तयणंतरं च णं चउरासीइं आससयसहस्सा पुरओ अहाणपुवीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं चउरासीइं हत्यिसयसहस्सा"पुरओ अहाणुपुव्वीए संपद्विया। 'तयणंतरं च णं च उरासीइं रहसयसहस्सा पुरओ अहाणुपुवीए संप ट्ठिया५तयणंतरं च णं छण्णउई मणुस्सकोडीओ पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियाओ। तयणंतरं च णं वहवे राईसर-तलवर"- माड विय-कोडुबिय१. संपडिया (अ,ख)। १०. सं० पा०—पंडयए जाव संखे। २.सं० पा०--सिरिवच्छ जाव दप्पणे। ११. रायसहस्सा (अ, क, ख, ब, स) । ३. दप्पण (क,ख,स)। १२. पुरोहित रत्नं-शांतिकर्मकृत्, रणे प्रहाराद्दि४. तदाणंतरं (अ,ख,त्रि,ब) प्रायः सर्वत्र । तानां मणिरत्नजलच्छटया वेदनोपशामकम् ५. दिवायवत्तपडागा (राय० सू० ५०); सं० (शा)। सं० पाo.- छत्तपडागा जाव संपट्टिया। १३. x (अ, त्रि, ब)। ६. संपत्थिया (क,ख,त्रि,स, आवश्यकचूणि पृ० १४. दंतिसयसहस्सा (क, आवश्यकचणि पृ० २०४) प्रायः सर्वत्र। २०४)। ७. सं० पा०-विमलदंडं जाव अहाणुपुष्वीए। १५. ४ (प, शावृ)। ८. काकिणि (अ,ब)। १६. रादीसर (आवश्यक चूणि पृ० २०४)। ६. निहितो (अ,त्रि,ब); °निहमो (ख,स)। १७. सं० पा०-तलवर जाव सत्यवाह । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीपण्णत्ती इब्भ-सेट्ठि सेणावइ सत्थवाहप्पभितओ' पुरओ अहाण पुव्वीए संपट्टिया । तयणंतरं च णं बहवे असि- लट्ठिग्गाहा कुंग्गाहा' चावगाहा चामरग्गाहा पीढग्गाहा पासग्गाहा फलगग्गाहा" पोत्थगग्गाहा वीणग्गाहा' कूवग्गाहा" हडप्परगाहा दीवियग्गाहा - सएहि सहि रूवेहि, एवं वेसेहिं चिधेहि निओएहि सएहि सएहि नेवत्थेहि पुरओ अहाणुपुन्वीए संपट्टिया । तयणंतरं च णं बहवे दंडिणो मुंडिगो 'सिहंडिणो जडिणो पिच्छिणो" हासकारगा खेड्डुकारगा दवकारगा" चाडुकारगा कंदपिया कोकुइया मोहरिया गायंता य वायंता य नच्चता य हसंता य रमंता य कोलंता य 'सासेंता य सावेंता" य जावेंता य राताय सोता य सोभावेंता य 'आलोयंता य" जयजयसद्दं च पजमाणा पुरओ हावी संपट्टिया" । " तयणंतरं च णं जच्चाणं" तरमल्लिहायणाणं" हरिमेलामउलमल्लिअच्छीणं चंचुच्चिय-ल लिय-पुलिय-चल-चवल - चंचल गईणं लंघण वग्गण धावण धोरणतिवइ - जइण- सिक्खियगईणं ललंत - लाम- गललाय - वरभूसणाणं मुहभंडग-ओचूलग-थासगअहिलाण " - चमरीगंडपरिमंडियकडीणं किंकरवरतरुणपरिग्गहियाणं असयं वरतुरगाणं पुरओ अहाणुपुब्वोए संपट्टियं । तयणंतरं च णं ईसिदंताणं ईसिमत्ताणं ईसितुंगाणं " ईसिउच्छंग विसाल " - धवलदंताणं कंचनकोसी-पविद्वदंताणं कंचणमणिरयणभूसियाणं वरपुरिसारोगसंपत्ताणं असयं गयाणं पुरओ अहाणुपुव्वोए संपद्वियं । तयणंतरं च णं सच्छत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराण" सनंदिघोसाणं सखि खिणो जालपरिक्खित्ताणं * ४५४ १२. x ( अ, क, ख, त्रि, ब ) । कुंग्गाहा १३. भावेंता (कत्रि ) 1 पीढगग्गाहा १. भिओ (क, ख, त्रि,स) २. x ( अ, क, ख, त्रि, बस, पुवृ) ; ( पुवृपा) । ३. ( अ, क, ख, चिप, बस, पुवृ); ( पुवृपा) । ४ x ( अ, क, ख, ब, पुवृ); पास गाहा (पुवृपा) । ५. फलगग्गाहा परसुग्गाहा ( ख ) 1 ६. x ( अ, ब ) 1 ७. कूयग्गाहा ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ) 1 ८. विविहेहि ( अ, ब, पुवृ); विधेहि (पुवृपा ) 1 ९. अबद्धसूत्रे च पदानि न्यूनाधिकान्यपि लिपिप्रमादात् सम्भवेयुरिति तन्नियमार्थं सङ्ग्रहगाथा सूत्रबद्धा क्वचिदादर्श दृश्यते, यथाअसिलट्ठितचावे, चामरपासे य फलगपात्ये य । वीणाकूवग्गाहे, तत्तो य हडप्पा य ||१|| ( शावृ १०. पिच्छिणो जडिणां सिखंडियो (अल, खत्रि, ब, पुवृ) 1 ) ११. क्वचित् ‘डमरकरा' इति दृश्यते ( पुवृ ) 1 । १४. ओलोयं च केइ ( अ, ब, पुवृ); आलोयंता य (पुवृपा) । १५. इहगमे कवचिदादर्शे न्यूनाधिकान्यपि पदानि दुश्यन्ते (शावृ) । १६. सं० पा० एवं ओववाइयगमेणं जाव तस्स । अस्य सक्षिप्तपाठस्य पृतिः हीरविजयशान्तिचन्द्रकृतवृत्त्यांस्तथा औपपातिकसूत्रपाठ ( सू ६४ ) मनुसृत्य कृतास्ति । १७. x (शा) । १८. वरमल्लिभासणाण ( शावृपा ) । १६. अमिलाण ( ही ओ० सू० ६४ वाचनान्तरम् ) । २०. x ( ही ) । २१. ईसिउच्छंग उन्नयविशाल ( शाबु) 1 २२. सतोरणा (हीवृ ) २३. सखिखिणी हेमजाल (हीवृ ) । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइमो बक्खारी ४५५ हेमवयचित्ततिणिसकणगणिजुत्तदारुगाणं कालायससुझयणेमिजंतकम्माणं सुसिलिट्ठवत्तमंडलधुराण' आइण्णवरतुरगसुसंपउत्ताणं कुसलणरच्छेयसारहिसुसंपग्गहियाणं बत्तीसतोणपरिमंडियाणं सकंकडवडेंसगाणं सचावसरपहरणावरणभरियजुद्धसज्जाणं अटुसयं रहाणं पुरओ अहाणुपव्वोए सपंटियं । तयणंतरं च णं असि-सत्ति-कुंत-तोमर-सूल-ल उल-भिडिमाल-धणुपाणिसज्जं पायत्ताणोयं पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठियं ।। १७६. तए ण तस्स भरहस्स रण्णो पुरओ महआसा आसधरा', उभओ पासिं णागा णागधरा', पिट्ठओ रहा रहसंगेल्ली अहाणुपुब्बीए संपट्ठिया ॥ १८०. त णं से भरहाहिवे गरिदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे' 'कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए णरसीहे परवई गरिदे भरवसभे मरुयरायवसभकप्पे अब्भहियरायतेयलच्छीए दिप्पमाणे पसत्थमंगलसरहिं संथुन्वमाणे जयसद्दकयालोए हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेण धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धव्वमाणीहि-उद्धव्वमाणीहिं जक्खसहस्ससंपरिवुडे वेसमणे चेव धणवई अमरवइसपिणभाए इड्ढीए पहियकित्ती चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे 'महया उक्कि डिसीहणायबोलकलकलरवेणं पक्खुभियमहा समुद्दरवभूयं पिव करेमाणे-करेमाणे सब्बिड्डीए सव्वज्जुईए" सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूसाए सव्व विभूईए सव्ववत्थ-पुप्फ-गंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरियसहसणिणाएणं महया इड्डीए जाव महया वरतुरियजमगसमगपवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-मुरव-मुइंग-दुंदुहिणिग्योसणाइयरवेणं गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मइंव - दोणमुह-पट्टणासम-संवाहसहस्समंडियं थिमियमेइणीयं वसुहं अभिजिणमाणे-अभिजिणमाणे अग्गाइं वराई रयणाई पडिच्छमाणेपडिच्छमाणे तं दिव्वं चक्करयणं अणुगच्छमाण-अणुगच्छमाणे जोयणंतरियाहिं वसहीहिं वसमाणे-वसमाणे जेणेव विणीया रायहाणो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विणीयाए रायहाणीए अदरसामंते दुवालसजोयणायाम णवजोयणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजय - खंधावारणिवेसं करेइ, करेत्ता वड्डइरयणं सद्दावेइ, सद्धावेत्ता" °एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! मम आवासं पोसहसालं च करेहि, करेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।। १८१. तए णं से वड्ढइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हट्टतुटु-चित्तमाणदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अजलि कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसूणेइ, पडिसणेत्ता १. सुसिलिटुचक्कमंडल° (ही)। ६. सं० पा०–अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे २. आसवरा (पुत्, हीवृपा); आसधरा जाव समुद्दरव। (पुत्पा) ७. सं० पा० ... सव्वज्जुईए जाव णिग्घोसणाइयर३. मागवरा (पुवृ, हीवृपा); पागधरा वेणं । (पुवृपा)। ८. सं० पा०–मडंब जाव जायणतरियाहि । ४. x (ओ० सू० ६६) । ६. सं० पा०-गवजोयणविच्छिण्णं जाव ५. सं० पा०---हारोत्थयसुकयरइयवच्छे जाव खंधावारणिवेस। अमरवइ । १०. सं० पा०-सहावेत्ता जाव पोसहसालं । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૬ 'जंबुद्दीवपण्णत्ती भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चष्पिणति || १८२. तए णं से भरहे राया अभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल अणुपविसर, अणु पविसित्ता विणीयाए रायहाणोए अट्ठमभतं परिण्हइ, परिहित्ता' 'पोसहसालाए पोसहिए भयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणं णिक्खित्तसत्यमुसले दब्भसंथारोवगए एगे अबीए अट्टमभत्तं पडिजागरमाणे- पडिजागरमाणे विहरइ || १८३. तए णं से भरहे राया अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाप्पिया! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह जाव' तहेव अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवई दुरुढे, तं चैव सव्वं जहा हेट्ठा णवरि णव महाणिहिओ चत्तारि सेणाओ ण पवि संति, सेसो सो चेव गमो जाव' णिग्वोसणाइयरवेणं विणीयाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भवणवरवडेंसगपडिदुवारे तेणेव पहारेत्थ गमणाए || १८४. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो विणीयं रायहाणि मज्झंमज्झेणं अणुपविसमाणस्स अप्पेगइया देवा विणीयं रायहाणि सब्भंतरवाहिरियं आसियसंमज्जिओवलित्तं करेंति, अप्पेगइया मंचाइमंचकलिय* करेंति', अप्पेगइया णाणाविहरागवसणुस्सियधयपडागाइपडागामंडित करेंति, अप्पेगइया लाउल्लोइयमहियं करेंति, अप्पेगइया गोसीसस रसरत्तदद्दरदिण्ण पंचगुलितलं जाव' गंधवट्टिभूयं करेंति अप्पेगइया हिरण्णवासं वासंति, अप्पेगइया सुवण्ण- रयण - वइर - आभरणवासं वासंति || १८५. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो विणीयं रायहाणि मज्झमज्झेणं अणुपविसमाणस्स सिघाडग'-"तिग- चउक्क चच्चर-चउम्मुह' - महापह-पहेसु वहवे अत्यत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया इड्डिसिया किब्बिसिया " कारोडिया कारभारिया" संखिया चक्किया गंगलिया मुहमंगलिया पूसमाणया वद्धमाणया लंखमंखमाइया ताहि ओरालाहि इट्टाह कंताहि पियाहि मणुष्णाहि मणामाहि सिवाहिं धण्णा हि मंगल्लाहि सस्सिरीयाहि हिययगमणिज्जाहि हिययपल्हायणिज्जाहि वग्गूहिं अणवरयं" 'अभिनंदता य अभिधुणंता य" एवं वयासी - जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! 'जय जय नंदा ! " भद्दं ते, अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि, इंदो विव देवाणं, चंदो विव ताराणं, चमरो १. सं० पा० ८. सं० पा० --- सिंघाडग जाव महापह° । ६. रिडिसिया ( ख ) । २. जं० ३११७५-१७७ । ३. जं० ३।१७८-१८० 1 १०. x ( अ, ब ) किट्टिसिया (क, ख, ही वृपा ) | ४. आदर्शेषु अत्र बहूनि विशेषणानि संक्षेपेण ११. कारतारिया ( अ ); कारवाहिया ( प, शावृ लिखितानि सन्ति । पुवृषा, हीवृषा, ओ० सू० ६८ ) । मिहित्ता जाव अट्टमभत्तं । ५. करेंति एवं सेसेसुवि पसु (क, ख, स, दीवृ, पुवृ) ६. जं० ३३७ । ७. वतिर (अत्रि, ब) १२. अणुवरतं (अ, क,ख, १, ब) । १३. क्वचिदनयोः पादयोव्यंत्ययो दृश्यते ( पुवृ ) । १४. X ( प, शाबु ) । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइमो वखारी विव असुराणं, धरणो विव नागाणं, वहुई पुवसयसहरसाइं वहूईओ पुव्वकोडीओ बहूईओ पुवकोडाकोडीओ विणीयाए रायहाणीए चुल्ल हिमवंतगिरिसागरमेरागस्स य केवल कप्पस्स भरहस्स वासस्स गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-सण्णिवेसेसु सम्म पयापालणोवज्जियलद्धजसे महया"यणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाइं भंजमाणे आहोवञ्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे° विहराहित्तिकटु जयजयसई पउंजंति ॥ १८६. तए णं से भरहे राया गयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे-पेच्छिज्जमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथब्वमाणे हिययमालासहस्सेहिं उण्णंदिज्जमाणेउण्णं दिज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे कंतिरूवसोहग्गगुणहि पत्थिज्जमाणे-पत्थिज्जमाणे अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइज्जमाणे-दाइज्जमाणे दाहिणहत्थेणं बहूणं णरणारीसहस्साणं अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे भवणपंतिसहस्साई समइच्छमाणे -समइच्छमाणे तंती-तल-ताल-तुडिय-गीय-वाइयरवेणं मधुरेणं मणहरेणं मंजुमंजुणा घोसेणं अपडिवुज्झमाणे अपडिबुज्झमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव सए भवणवर डसयदूवारे तणव उवागच्छ', भवणवरवडसयदुवारे आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ, ठवेत्ता आभिसेक्काओं हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सोलस देवसहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता बत्तीसं रायसहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणे इ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं गाहावइरयणं वड्डइरयणं पुरोहियरयणं सक्कारे इ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तिण्णि सठे सूयसए सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता अण्णे वि बहवे राईसर- तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ°सत्थवाहप्पभितओ सक्कारे सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेता पडिविसज्जेइ, इत्थीरयणणं, बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्सेहि, वत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्सेहिं, बत्तीसाए बत्तीस इबद्धेहि गाडयसहस्सेहिं सद्धि संपरिबुडे भवणवरवडेसगं अईइ जहा कुबेरो व्व १.सं० पा०—-महया जाव आहेवच्चं पोरेवच्च जाव विहराहित्ति कट्ट । अस्य पाठस्य पूर्तिः शान्तिचन्द्रीयवृत्तेराधारेण कृतास्ति । औप- पातिके (सू ६८) पाठस्य भिन्न: क्रमास्ति, तस्य सूचना हीरविजयसूरिणापि कृता- यद्यप्यौपातिकादिषु महताह्यणट्टगीयवाइय- तती' त्यादिसुत्ररचना आहेबच्च' मित्यादि सूत्ररचनातः पश्चादेव दृश्यते, अत्र तु प्रथम- तया तथापि सूत्रकाराणा विचित्रागतिरतो न सम्मोहो न वान्यथाकरणम् । २. अभिणदिज्जमाणे (जं० २।६४)। ३. कतिसोहगगुणेहिं (जं० २१६४) । ४. समईमाणे (अ,ब); समइक्कममाणे (त्रि)। ५. अपरिबुज्झमाणे (अ,क,ख,व); क्वचित आपुच्छमाणे, क्वचित् पडिबुज्झमाणे (ही)। ६. उवागच्छित्ता (पुत्र)। ७. अभिसेक्काओ (त्रि)! ८. देवसहस्सा (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ६. सं० पा०--राईसर जाव सत्थवाह। १०. पभिइयो (क,ख,स)। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ जंबुद्दोवपण्णत्तो देवराया केलाससिहरिसिंगभूतं ।। १८७. तए णं से भरहे राया मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधिपरियणं पच्चुवेक्खइ, पच्चवेक्खित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव' मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहि मूइंगमत्थएहि बत्तीसइबद्धोह णाडएहि वरतरुणीसपउत्तहि उवलालिज्जमाणं-उवलालिज्जमाणे उवणच्चिज्जमाणे-उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे-उव गिज्जमाणे महया 'हयभट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं इठे सदृफरिसरसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे भुजमाणे विहरइ॥ १८८. तए' णं तस्स भरहस्स रण्णो अण्णया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेयारूवे *अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-अभिजिए णं मए णियगवलवीरिय-पुरिसक्कार'-परक्कमेणं चुल्ल हिमवंतगिरिसागरमेराए केवलकप्पे भरहे वासे, तं सेयं खलु मे अप्पाणं महयारायाभिसेएणं' अभिसिंचावित्तएत्तिकट्ट एवं संपेहेति, संपेहेत्ता १. सिहर' (अ,ब,पुवृ); °सिहरि (पुवृपा)। भरताभिप्रायकाल एव तथाभिप्रायमवगम्य २. जं० ३१९ । आभियोजिकदे वैविज्ञप्तो भरतस्तथैवं प्रति३. ४ (अ,क,ख,प,ब,स)। पन्नवान् इत्यदोषात् युक्तिमत्वाच्च । ४. सं० पा.--महया जाव भुजमाणे।। उपाध्यायशान्तिचन्द्रस्यापि अस्मिन् विषये ५. आवश्यकचौँ (पृ० २०५) महाराजा- एका टिप्पणी विद्यते ---आवश्यकचूादी तु भिषेकस्य प्रस्तावो देवादिभिः कृतः इत्युल्लेखो भक्त्या सुरन रास्तं महाराजाभिषेकाय विज्ञदृश्यते--तए णं तस्स अन्नया कयादी ते पयामासुभरतश्च तदनुमेने, अस्ति हि अयं देवादीया महारायाभिसेयं विभवंति, सेवि य विधेयजनव्यवहारो यत्प्रभूणां समयसेवाविधी णं तहेव अट्ठमभत्तं गेहति । हीरविजयमूरिणा ते स्वयमेवोपतिष्ठन्ते, सत्यप्येवंविधे कल्पे यद् स्ववृत्ती ऋषभचरित्रान्तर्गतस्य अस्य विषयस्य भरतस्यात्रानुचरमुरादीनामभिषेकज्ञापनमुक्तं सूचना कृतास्ति. श्रीऋषभचरित्रे तु 'तए णं तद् गम्भीरार्थकत्वादस्मादशां मन्दमेधसामनातस्म भरहस्य रण। अण्णयाइं ते देवाइया कलनीयमिति । महाराजाभिषेकाय अन्येषां महारायाभिसेयं काउंकामा भरहं रायाण प्रस्तावोधिकं स्पृशति मनोभावं, किन्तु विष्णवेति-जिएण देवाणु पिएहिं भारह वासे, आदर्शपु सर्वत्र भरतकृतप्रस्तावस्योल्लेखो वसमुवागया विज्जाहराइरायाणो तमणु- लभ्यते, यद्यपि आवश्यकचूणौँ जम्बूद्वीपजाणह महारायाभिसेय करेमो। भरहोवि तं प्रज्ञप्ते रेव पाठ उद्धा तोस्ति, किन्तु तादृशः पाठो देवाइयाणं वयणमणुमण्णति । तेवि हट्टतुटु नादर्शषु क्वापि लभ्यते । एष वाचनाभेदोस्ति कयंजलिणो आभियोगिया देवा विणीयाए अथवा उत्तरकालीन परिवर्तन मिति अनुसन्धा नस्य विषयोस्ति। रायहाणीए उत्तरपुरस्थिमे दिनोभाए एग महं ६. सं० पा० -इमेयारूवे जाव समूप्पज्जित्था । आभिसेयमंडवं वि उव्वंति' न चास्य प्रकृत ७. पुरिसगार (क,ख,स)। सूत्रेण सह विरोधः शनीयः तीर्थ कृतां निष्क्र. ८. महारायाभिसेय (अ,ब); महारायाभिसेएणं मणकाले लोकान्तिकदेवानामिब पुण्योत्कर्षात (क,ख,प,स); मह्याभिसेएणं (त्रि)। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ तइओ वक्तारो कल्लं पाउप्पभाए' रथणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव' मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयति, णिसीइत्ता सोलसदेवसहस्से, बत्तीसं रायवरसहस्से, सेणावइरयणे' गाहावइरयण वड्डइरयणे' पुरोहियरयणे, तिण्णि सठे सूयसए, अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ, अपणे य बहवे राईसरतलवर-'माडविय-कोडुविय-इब्भ सेटि-सेणावइ सत्थवाहप्पभिइयो सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए णं देवाणुप्पिया ! मए णियगबल-वीरिय' पुरिसक्कार-परक्कमेणं चुल्ल हिमवंतगिरिसागरमेराए केवल कप्पे भरहे वासे, तं तुब्भे गं देवाणुप्पिया ! मम महयारायाभिसेयं वियरह ।। १८६. तए णं ते सोलस देवसहस्सा जाव' सत्थवाहप्पभिइयो भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हद्वट्ठ-चित्तमाणंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसण्णहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु भरहस्स रण्णो एयमट्ठ सम्म विणएणं पडिसुणेति ।। १६०. तए णं से भरहे राया जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव" अट्टमभत्तिए [अट्ठमभत्तं ?"] पडिजागरमाणे विहरइ ।। १६१. तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि आभिओग्गे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासि-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए एगं महं अभिसेयमंडवं विउव्वेह, विउव्वेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। १६२. तए णं ते आभिओग्गा देवा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्टा जाव एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरथिम दिसीभागं अवक्कमति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहणंति", समोडणित्ता संखिज्जाई जोयणाई दंड णिसिरंति. तं जहा.- रयणाणं जाव रिटाणं अहाबायरे पोग्गले परिसा.ति. परिसाडेत्ता अहासुहमे पोग्गले परियादियंति, परियादित्ता १. सं० पा०—पाउप्पभाए जाव जलते। जं० ३१२०,१८२ । 'पडिजागरमाणे' इत्यर्ध२. जं० ३.६। क्रियापदस्थ कर्मापेक्षयापि 'अट्ठम भत्तं' इति ३.सं० पा०-सेणावहरयणे जाव पुरोहियरयणे। पाठो युक्तः स्यात् । ४. सं० पा०- तलवर जाव सत्यवाह । ६. आभियोगिए (प, ही)। ५. सं० पा०-वीरिय जाव केवलकणे। १०. जं० ३११६ । ६. जं० ३११८८ । ११. समोरणति (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स); समवन७. जं० ३.२०१८२ न्ति (शावृ)। ८. पाठस्य पूर्वपद्धति यदि विचारयामः तदा १२. जी० ३१७ । 'अट्टमभत्तं' इति पाठो युक्तः स्यात् । द्रष्ट व्यं Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दोवपण्णत्ती दोच्चंपि वेउन्विय "समुग्घाएणं समोहण्णंति', समोहणित्ता बहुसमरमणिज्जं भूमिभाग विउच्वंति, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविधपंचवण्णेहिं तणेहि य मणीहि य उवसोभिए । १६३. तम्स णं वहसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एग अभिसेयमंडवं विउव्वंति-अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ जाव गंधवट्टिभूयं पेच्छाघरमंडववष्णगो।। १६४. तस्स णं अभिसेयमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगं अभिसेयपीढं विउव्वं ति---अच्छं सण्हं ॥ १६५. तस्स णं अभिसेयपीढस्स तिदिसि तओ तिसोवाणपडिरूवए विउव्वंति । तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते जाव तोरणा ॥ १६६. तस्स णं अभिसेयपीढस्स बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते ॥ १९७. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगं सीहासणं विउव्वंति, तस्स णं सीहासणस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते जाव' दामवण्णगं समत्तं ।। १६८. 'तए णं" ते देवा अभिसेयमंडवं विउव्वं ति, विउव्बित्ता जेणेव भरहे राया" तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। १६६. तए णं से भरहे राया आभिओग्गाणं" देवाणं अंतिए" एयमझें सोच्चा णिसम्म हट्टत? - चित्तमाणं दिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, पडिकप्पेत्ता हय-गय", रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेह', सण्णाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। २००. 'तए णं ते कोडुवियपुरिसा° जाव पच्चप्पिणंति ।। २०१. तए णं से भरहे राया मज्जणघरं अणुपविसइ जाव" अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवई दुरुढे ॥ २०२. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयाणं दुरुढस्स समाणस्स इमे १. सं० पा०-बेउब्विय जाव समोहण्णंति । ६. एएणं (अ,त्रि,ब,हीव); एवं णं (हीवपा)। २. समोहणंति (क,ख,वि,प,म) । १०.सं. पा.-.-राया जाव पच्चप्पिणंति । ३. जी० ३१२७७ । ११. अभिओग्गाणं (अ,ब)। ४. पूर्णपाठावलोकनार्थ द्रष्टव्यं जं० २१७ । १२. अंतियं (क,ख)। ५. राय० सू० ३२ १३. सं० पा०-हट्टतटु जाव पोसहसालाओ। ६. अभिसेयपेढं (अ,ब); अभिसे यपीढं (ख) प्रायः १४. सं० पा० . हयगय जाव सण्णाहेत्ता । सर्वत्र। १५. सं० पा० -पच्चप्पिणह जाव पच्चप्पिणंति । ७. जी. ३२२८७-२६१ । १६. जं० ३।१७। ८. जी० ३।३११-३१३ । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सइमो वक्षारो अट्ठमंगलगा पुरओ अहाणुपुबीए संपट्ठिया ॥ २०३ जो चेव गमो विणीयं पविसमाणस्स सो चेव णिक्खममाणस्सवि' जाव' ।। २०४. 'तए णं से भरहे राया गयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे-पैच्छिज्जमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथुव्वमाणे हिययमालासहस्सेहिं उण्णं दिज्जमाणे-उण्णंदिज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे कंतिरूवसोहागगुणेहिं पत्थिज्जमाणे-पत्थिज्जमाणे अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइज्जमाणे-दाइज्जमाणे दाहिणहत्थेणं बहूणं णरणारीसहस्साणं अंजलिमालासहस्साई पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे भवणपंतिसहस्साई समइच्छमाणे-समइच्छमाणे तंती-तल-ताल-तुडिय-गीय-वाइयरवेणं मधुरेणं मणहरेणं मंजूमंजणा घोसेणं अप्पडिवज्झमाणे-अप्पडिबज्झमाणे विणीयं रायहाणि मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव विणीयाए रायहाणीए उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए जेणेव अभिसेयमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अभिसेयमंडववारे आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ', ठवेत्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता इत्थीरयणणं', बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्से हिं, वत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्सेहि, वत्तीसाए बत्तीसइवद्धेहिं णाडगसहस्सेहिं सद्धि संपरिवूडे अभिसेयमंडवं अणुपविसइ, अणुप विसित्ता जेणेव अभिसे यपीढे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभिसेयपीढं अणुप्पदाहिणीकरेमाणे-अणुप्पदाहिणीकरेमाणे पुरिथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुरत्थाभि हे सपिणसणे ।।। २०५ ताणं तस्स भरतस्स रणो वत्तीसं रायसहस्सा जेणेव अभिसेयमंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता' अभिसेयमंडवं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता अभिसेयपीढं अणुप्पदाहिणीकरेमाणा-अणुप्पदाहिणीक रेमाणा उत्तरिलेणं तिसोवाणपडिरूवएणं जेणेव भरहे राया तेणेब उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए' अंजलि कटु भरहं रायाणं जएणं विजएणं व द्धाति, वद्धावेत्ता भरहस्स रण्णो णच्चासण्ण णाइदूरे सुस्सूसमाणा" •णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलियडा पज्जुवासंति ।। २०६. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सेणावइरयणे *गाहावइरयणे वड्डइरयणे पुरोहियरयणे, तिणि सट्टे सूयसए, अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ, अण्णे य वहवे राईसर-तलवरमाडविय-कोडुविय-इन्भ- सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइओ जेणेव अभिसेयमंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अभिसेयमंडवं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता अभिसेयपीढं अणुप्पदाहिणीकरेमाणा-अणुप्पदाहिणीकरेमाणा° दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं" १.सं० पा०-णिक्खममाणस्सवि जाव अप्पडि- ७. सं० पा०–सुस्मसमाणा जाव पज्जुवासंति । वुज्झमाणे। ८. सं० पा०-सेणावइरयणे जाव सत्थवाह! २. जं० ३३१८३-१८५। ६. सं० पा०-पभिइओ तेवि तह चेव णवरं ३ ठावेइ (त्रि,प)। दाहिणिल्लेणं। ४. थोरयणं (अ,ब)। १०. सं० पा०-तिसोवाणपडिरूवएणं जाव पज्जू५. उवागच्छित्ता जाव (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। वासंति। ६. सं० पा०-करयल जाव अंजलि । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ जंबुद्दीपण्णत्तो " जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु भरहं रायाणं जाणं विजएणं वद्भावेति वद्धावेत्ता भरहस्स रण्णो णच्चासणे नाइदूरे सुस्सुसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलियडा पज्जुवासंति || २०७. तए णं से भरहे राया आभिओग्गे देवे सहावे, सद्दावेत्ता एवं वयासो खिप्पामेव भो देवाप्पिया ! तं महत्थं महग्धं महरिहं महारायाभिसेयं उबटूवेह ॥ २०८. तए णं ते अभिओग्गा देवा भरहेणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठचित्ता जाव' उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहणंति एवं जहा विजयस्स तहा इत्यंपि जाव' पंडगवणे एगओ मिलायंति, मिलाइत्ता जेणेव दाहिणभर हे वासे जेणेव विणीया रायहाणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता विणीयं रायहाणि अणुप्पयाहिणीक रेमाणा- अणुप्पयाहिणीकरेमाणा जेणेव अभिसेयमंडवे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता तं महत्यं महग्वं महरिहं महारायाभिसेयं उवटुवेंति ।। २०६. तए णं तं भरहं रायाणं बत्तीसं रायसहस्सा सोभणंसि तिहि-करण-दिवसणक्खत्त-मुहुत्तंसि उत्तरपोट्ठवया - विजयंसि तेहि साभाविएहि य उत्तरवेउब्विएहि य वरकमलपइट्टाणेहि सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहिं चंदणकय चच्चाएहि आविद्धकंठे गुणेहि परमुप्पल पिधाणेहिं सुकुमाल करतलपरिग्गहिएहि अट्टसहस्सेणं सोवणियाणं कलसाणं रुप्पामयाणं मणिमयाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सच्चमट्टियाहिं सव्वतुवरेहिं सव्वपुष्फेहि सव्वगंधेहि सव्वमल्लेहि सव्वोसहिसिद्धत्थ एहि य सव्विड्ढी सव्वजुतीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूतीए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सब्वपुष्फगंध मल्लालंकारेणं सव्वदिव्वतुडियस सष्णिणाएणं महया इड्ढीए महा ती महा बलेणं महया समुदएणं महया वरतुरियजमगसम गपडुप्पवादितरवेणं संख-पणव- पडह - भेरि झल्लरि-खर मुहि-हुडक्क- मुरख मुइंग- दुंदुहि णिग्घोसनादितरवेण महा महया रायाभिसेएणं अभिसिचति, अभिसेओ जहा विजयस्स, अभिसिंचित्ता पत्तेयंपत्तेयं करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु ताहि इट्टाहिं" कंताहि पिया हि मणुण्णा हि मणामाहि सिवाहि घण्णाहि मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहि हिययगमणिजाहि हिययपल्हायणिज्जाहिं वग्गूहिं अणवरयं अभिनंदता य अभिधुणंता य एवं वयासी - जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! जय जय नंदा ! भद्दं ते, अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि, इंदो विव देवाणं, चंदो विव ताराणं चमरो विव असुराणं, धरणो विव नागाणं, बहूई पुव्वसयसहस्साइं बहूईओ पुन्वकोडीओ बहूईओ १. जं० ३।१६२ । २. समोहति ( अ, क, ख, प, ब, स ) 1 ३. जी० ३।४४५) । ४. सं० पा० - सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहि जाव महया । असौ पाठी जीवाजीवाभिगमात् ( ३ | ४४६ ) वृत्तित्रयाच्च पूरितः । वृत्तित्रयेपि - कानि कानिचिद् विशेषणानि भिन्नानि वर्तन्ते । ५. जी० ३।४४७, ४४८ ॥ ६. सं पा०—पत्तेयं जाव अंजलि । ७. सं० पा० दाहि जहा पविसंतस्स भणिया जाव विहराहित्तिकट्टु | Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वक्खारो ४६३ पुवकोडाकोडीओ विणीयाए रायहाणीए चुल्ल हिमवंतगिरिसागरमेरागस्स य केवलकप्पस्स भरहस्स वासस्स गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमूह-पटणासम-सण्णिवेसेस सम्म पयापालणोवज्जियलद्धजसे महयाहयणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्त आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे° विहराहित्तिक१ जयजयसई पउंजंति ॥ २१०. तए णं तं भरहं रायाणं सेणावइरयणे' 'गाहावइरयणे वड्ढइरयणे' पुरोहिय रयणे, तिणि य सट्टा सूयसया, अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ, अण्णे य बहवे राईसरतलवर-मांडबिय-कोकुंबिय-इब्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइओ एवं चेव अभिसिंचंति तेहिं वरकमलपइट्टाणेहिं तहेव जाव अभिथुणंति य । सोलस देवसहस्सा एवं चेव गवर.... २११. 'तए णं तस्स भरहस्स रण्णो तप्पढमयाए पम्हलसमालाए दिव्वाए सरभीए गंधकासाईए गाताई लू हेंति, लुहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिपति, अणुलिपित्ता नासानीसासवायवोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिस जुत्त हयलालापेलवातिरेगं धवलं कणगखचियंतकम्म आगामफहिलहसमप्पभं अहतं दिव्वं देवदूसजुयलं णियंसावेंति, णियंसावेत्ता हारं पिणिद्धेति, पिणिद्धत्ता अद्धहारं पिणिद्धेति, पिणिद्धेत्ता एकावलि पिणिलैंति, पिणिवेत्ता एवं एतेणं अभिलावेणं मुत्तावलि कणगावलि रयणावलि कडगाइं तडियाई अंगयाई केयूराइं दसमुद्दियाणंतकं कुंडलाइं चूडामणि चित्तरयणसंकडं मउडं पिणछेति । तयणंतरं च णं दद्दरमलयसुगंधगंधिएहिं गंधेहिं गायाई भुकंडेंति दिव्वं च सुमणदाम पिणद्वेति, किं बहुणा ? गंथिम-वेढिम - पूरिम-संघाइमेणं चउविहेणं मल्लेणं कप्परुक्खयं पिव अलंकिय -विभूसियं करेंति॥ २१२. तए णं से भरहे राया महया-मया रायाभिसेएणं अभिसिंचिए समाणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हत्थिखंधवरगया विणीयाए रायहाणीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर'-' चउम्मुह-महापह-पहेसु महयामहया सट्टेणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाण उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठ अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलिय -सपुरजणजाणवयं दुवालससंवच्छरियं पमोयं घोसेह, घोसेत्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। २१३. तए णं ते कोडुंबियपूरिसा भरहेणं रण्णा एवं वत्ता समाणा हातचित्तमाणदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया विणएणं वयणं १. सं० पा०-सेणावइ रयणे जाव पुरोहियरयणे। ५. सुमणोदाम (प)। २. सं० पा०-बहवे जाव सत्थवाह । ६. गंठिम (त्रि, प)। ३.सं० पा०--वरं पम्हलसूमालाए जाव ७. सं० पा०--वेढिम जाव विभूसियं । - मउड । ८.सं० पा०-चच्चर जाव महापह। ४. अभुक्खंति (क, ख, त्रि, प, शाबू,हीवपा); है. सं० पा०-अदंडकोदंडिमं जाव रापुरजणजाणभुकुडेति (शावृपा)। वयं । संपुरजणुज्जाणवयं (अ, त्रि, ब)। Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ जंबुद्दीवषण्णत्ती पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव हत्थिखंधवरगया' •विणीयाए रायहाणीए सिंघाडगतिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापह-पहेस महया-महया सहेणं उग्धोसेमाणा-उग्घोसेमाणा उस्सुक्कं उक्करं उक्किलैं-अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेस अंदडकोदंडिम अधरिम गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदाम पमुइयपक्कीलियसपुरजणजाणवयं दुवालससंवच्छरियं पमोयं घोसंति, घोसित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। २१४. तए णं से भरहे राया महया-'महया रायभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासणाओ अब्भुट्टेइ, अन्भुठेत्ता इत्थिरयणेणं, 'बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्सेहि, बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्सेहि,बत्तीसाए बत्तीसइबद्धेहि णाडगसहस्सेहिं सद्धि संपरिवडे अभिसेयपीढाओ पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं' पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अभिसेयमंडवाओ पडिणिक्खमइ. पडिमिक्खमित्ता जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूडस ण्णिभं गयवई५ •णरवई दुरुढे ॥ २१५. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो बत्तीसं रायसहस्सा अभिसेयपीढाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोहति ।। २१६. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सेणावइरयणे •गाहावइरयणे बढइरयणे पुरोहियरयणे, तिण्णि सट्टे सूयसए, अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ, अण्णे य बहवे राईसरतलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेद्वि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइओ अभिसेयपीढाओ दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति ॥ २१७. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरओ 'अहाणुपुवीए° संपट्ठिया, जच्चियः अइगच्छमाणस्स गमो पढमो कुबेरावसाणो सो चेव इहपि कमो सक्कारजढो यन्वो जाव' कुबेरोव्व देवराया केलासं सिहरिसिंगभूयं ॥ २१८. तए णं से भरहे राया मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जाव" भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहि 'बत्तीस इबद्धेहिं णाडएहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवलालिज्जमाणे-उवलालिज्जमाणे उवणच्चिज्जमाणे-उवण च्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे महयाहयणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण १. सं० पा०—हत्थिखंधवरगया जाव घोसंति । २. महयाभिसेकेणं (अ, क, त्रि, ब)। ३. सं० पा०-इत्थिरयणेणं जाव __णाडगसहस्सेहि। ४. तिसोमाण° (अ,ब)। ५. सं० पा०-गयवई जाब दुरुढे । ६.सं० पा०--सेणावइरयणे जाव सत्यवाह। ७. सं० पा०-पुरओ जाव संपट्ठिया। ८. जेचिय (अ, ब); जोच्चिय (क, स, पुव); जेच्चिय (ख); जोविय (प, शा)। ६. जं० ३११८३-१८६ । १०. सिहर° (अ, क, त्रि, ब)! ११. जं० ३११८७। १२. सं० पा०-मुइंगमस्थ एहिं जाव भुंजमाणे। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वखारो मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं इठे सद्दफरिसरसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे° भुंजमाणे विहरइ॥ २१९. तए णं से भरहे राया दुवालससंवच्छरियंसि पमोयंसि णिवत्तंसि समाणंसि जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव' मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिवखमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला 'जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे णिसीयइ, णिसीइत्ता सोलस देवसहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता बत्तीसं रायवरसहस्सा सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता' 'एवं गाहावइरयणं वड्ढइरयणं° पुरोहियरयणं सक्कारेइ सम्माणे इ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं तिण्णि सठे सूयसए' अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता अण्णे य बहवे राईसर-तलवर. माडंबियकोडुबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइओ सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता उप्पि पासायवरगए जाव विहरइ॥ २२०. भरहस्स रण्णो चक्करयणे 'छत्तरयणे दंडरयणे असिरयणे-एते णं चत्तारि एगिदियरयणा आउघरसालाए समुप्पण्णा। चम्मरयणे मणिरयणे कागणिरयणे णव य महाणिहओ-एए णं सिरिघरंसि समुप्पण्णा । सेणाव इरयणे गाहावइरयणे वड्ढइरयणे पुरोहियरयणे--'एए णं" चत्तारि मणुयरयणा विणीयाए रायहाणीए समुप्पण्णा। आसरयणे हत्थिरयणे-'एए ण दुवे पंचिदियरयणा वेयड्ढगिरिपायमूले समुप्पण्णा। इत्थीरयणे उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए समुप्पण्णे ॥ २२१. तए णं से भरहे राया चउदसण्हं रयणाणं णवण्हं महाणिहीणं सोलसण्हं देवसाहस्सीणं बत्तीसाए रायसहस्साणं बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्साणं बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्साणं बत्तीसाए बत्तीसइबद्धाणं णाडगसहस्साणं तिण्हं सट्ठीणं सूयसयाणं अदारसण्हं सेणि-प्पसेणीणं चउरासीए आससयसहस्साणं चउरासीए दंतिसयसहस्साणं चउरासीए रहसयसहस्साणं छण्णउइए मणुस्सकोडीणं बावत्तरीए पुरवरसहस्साणं बत्तीसाए जणवयसहस्साणं छण्ण उइए गामकोडीणं णवणउइए दोणमुहसहस्साणं अडयालीसाए पट्टणसहस्साणं चउव्वीसाए कब्बडसहस्साणं चउव्वीसाए मडंबसहस्साणं वीसाए आगरसहस्साणं सोलसण्हं खेडसहस्साणं" चउदसण्हं संवाहसहस्साणं छप्पण्णाए अंतरोद१. जं० ३९। ८. काकिणि° (अ); कागिणी' (ब); २.सं० पा०-उवट्ठाणसाला जाव सीहासणवर काकणि' (स)। गए। ६. एवं (अ, त्रि, ब)। ३. सं० पा०—सम्माणेता जाव पुरोहियरयणं । १०. एवं (अ,ब)। ४. सूआरसए (प) ११. सुभद्दा इत्थीरयणे (क, ख, त्रि)। ५. सं० पा०-तलवर जाव सत्यवाह। १२. सूआरसयाणं (प)। ६.० ३.१८७ १३. खेडगसयाणं (अ, ब, आवश्यकचूणि पृ० ७. दंडरयणे असिरयणे छत्तरयणे (ख, त्रि, प)। २०८) । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्तो गाणं एगणपण्णाए कुरज्जाणं विणीयाए रायहाणीए चुल्ल हिमवंतगिरिसागरमेरागस्स केवलकप्पस्स भरहस्स वासस्स अण्णेसि च बहूणं राईसर'-तलवर-भाडंबियकोडंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ°-सत्थवाहप्पभिईणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे ओह्य-णिहएसु कंटएसु उद्धियमलिएसु सव्वसत्तुसु णिज्जिएसु भरहा हिवे गरिदे वरचंदणचच्चियंगे वरहाररइयवच्छे वरमउडविसिट्ठए वरवत्थभूसणधरे सव्वोउयसुरहिकुसुमवरमल्लसोभियसिरे वरणाडगनाडइज्ज-वरइत्थिगुम्म सद्धि संपरिबुडे सव्वोसहि-सव्वरयण-सव्वसमिइसमग्गे संपुण्णमणोरहे यामित्तमाणमहणे पुवकयतवप्पभाव-निविट्ठसंचियफले भुंजइ माणुस्सए सुहे भरहे णामधेज्जे ॥ २२२. तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता 'मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुयविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडवंसि णाणामणि-रयण-भत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहि पुप्फोदएहि सुद्धोदएहि य पुण्णे कल्लाणगपवरमज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलहियंगे सरससुरहिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते अहयसुमहग्घदूसरयणसुसंवुए सुइमाला-वण्णग-विलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार-तिसरय-पालंबपलबमाणकडिसत्तसूकयसोहे पिणद्धगेविज्जगअंगलिज्जग-ललितंगयललियकयाभरणे णाणामणिकड गतुडियथंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे पालंबपलबमाणसुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलीए णाणामणिकणगविमल-महरिह-णिउणोवियमिसिमिसेंत-विरझ्यसुसिलिट्ठविसिटुलट्ठसंठिय-पसत्थआविद्धवीरवलए, किं बहुणा? कप्परुक्खए चेव अलंकियविभूसिए नरिंदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे मंगलजयसद्दकयालोए अणेगगणणायग-दंडणायगराईसर-तलवर-माडंबिय - कोडुंबिय-मंति-महामंति - गणग-दोबारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्दनगर-निगम-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवल-महामेहणिग्गए इव गहराण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण मज्झे ससिव्व पियदसणे गरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव आदंसघरे जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीय इ, णिसीइत्ता आदसघरंसि अत्ताणं देहमाणे-देहमाणे चिट्ठइ ।। २२३. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहि १. रादीसर (आवश्यकचूणि पृ० २०८) २. सं० पा०-तलवर जाव सत्यवाह। ३. करेमाणे (अ, क, ब)। ४. विसट्ठाए (अ, ब); विकट्टए (क); विगड्ढए (ख, पुपा)। ५. चूणौ तु 'वरम उडाविद्धाए' (शा)। ६. तृतीया लोप: आर्षत्वात् (शाव)। ७. हतामित्तसत्तुपक्खे (आवश्यकचूणि पृ०२०६)। ८. पुवकड (क,स)। ६. सं० पा०-- उवागच्छित्ता जाव ससिव्व । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइमो वक्खारो लेसाहिं विसुज्झमाणीहि-विसुज्झमाणीहिं ईहापोह-मगण-गवेसणं करेमाणस्स तयावरिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुव्वकरणं पविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे कसिणे पडिपूण्णे निव्वाघाए निरावरणे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे ॥ २२४. तए णं से भरहे केवली सयमेवाभरणालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, करेत्ता आदंसघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अंतेउरं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता दसहिं रायवरसहस्सेहि सद्धिं संपरिवुडे विणीयं रायहाणि मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरइ, विहरित्ता जेणेव अावए पव्वते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्ठावयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ, दुरुहित्ता मेघघणसण्णिकासं देवसण्णिवायं पुढविसिलापट्टगं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता संलेहणा-झू सणा-झूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पायोवगए कालं अणवकखमाणे-अणवकंखमाणे विहरई॥ २२५. तए णं से भरहे केवली सत्तत्तरि पुवसयसहस्साई कुमारवासमज्झावसित्ता एग वाससहस्सं मंडलियरायमज्झावसित्ता, छ पुव्वसयसहस्साई वाससहस्सूणगाई महारायमज्झावसित्ता, तेसीइं पु०वसयसहस्साई अगारवासमज्झावसित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं देसूणगं केवलिपरियायं पाउणित्ता, तमेव बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता, मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं सवणेणं" णक्खत्तेणं जोगमवागएणं खीणे वेयणिज्जे आउए णामे गोए कालगए वीइक्कते समज्जाए छिण्णजाइजरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिणिव्वुडे अंतगडे सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ २२६. भरहे य एत्थ देवे महिड्ढीए महज्जुईए' "महाबले महायसे महासोक्खे महाणुभागे । पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से एएणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-भरहे वासे भरहे वासे ॥ अदुत्तरं च णं गोयमा ! भरहस्स वासस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते-जंण कयाइ ण आसि ण कयाइ पत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे णियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे भरहे वासे ।। १. ईहापूह (अ.क,ख.स); ईहावूह (पुत्र)। २. मुयई (ब)। ३. सिलावट्टयं (प)। ४. भरहे राया (क,ख,स)। ५. °मज्झे वसित्ता (ख,त्रि,प,शाव,हीव) सर्वत्र । ६. पाउणित्ता (क,प)। ७. समणेणं (अ,ब)। ८. सं० पाo-महज्जुईए जाव पसिओवमट्टिईए। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो १. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णते ? गोयमा ! हेमवयस्स वासस्स दाहिणणं, भरहस्स वासस्स उत्तरेणं, पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते पवा पण्णते-पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे दहा लवणसमूह पुढे- पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुठे, पच्चथिमिल्लाए कोडीए यच्चस्थिमिल्लं लवणसमुदं पुढें, एगं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, पणवीसं जोयणाई उठवेहेणं, एगं जोयणसहस्सं बावण्णं च जोयणाई दुवालस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरथिमपच्चत्थिमेणं पंच जोयणसहस्साई तिण्णि य पण्णासे जोयणसए पण्णरस य एगूणवीस इभाए जोयणस्स अद्ध भागं च आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणाणया' 'दुहा लवणसमुदं पुट्ठा-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुई पुट्ठा, पच्चस्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, चउव्वीसं जोयणसहस्साइं णव य बत्तीसे जोयणसए अद्धभागं च किंचिविसेसूणा आयामेणं पण्णत्ता । तीसे धणुपट्टे दाहिणणं पणवीसं जोयणसहस्साई दोणि य तीसे जोयणसए चत्तारि य एगूणवीस इभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुयगसंठाणसंठिए सब्वकणगामए अच्छे सण्हे लण्हे जाव' पडिरूवे, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ते दुण्ह वि पमाणं वण्णगो य॥ २. चुल्लहिमवंतस्स णं वासहरपव्वयस्स उरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति" 'सयंति चिट्ठति णिसीयंति तुयटृति रमंति ललंति कीलंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फल१. पडियायते (अ,ब) प्रायः सर्वत्र । ६. जं० ११५। २. पासा (अ,ब)। ७. परिसं (अ,ख,त्रि,ब,स)। ३. सं० पा०-पाईणपडीणायया जाव पच्चत्थि- द. जं०१०-१४ । ___ मिल्लाए। १. जं० १६१३ । ४. पणुवीसं (अ,क,ब.स)। १०. सं० पा०—आसयंति जाव विहरति । ५. सव्वकणकमए (अ,ब)। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउत्यो वक्खारी ४६६ वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ ३. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं एक्के महं पउमद्दहे णाम दहे पण्णत्ते-पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे एक्कं जोयणसहस्सं आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं, दस जोयणाई उज्वेहेणं, अच्छे सण्हे रययामयकूले 'वइरामयपासाणे सुहोतारे सुउत्तारे णाणामणितित्थ-बद्धे वइरतले सुवण्णसुज्झ-रययवालुयाए वेरुलियमणिफालियपडल-पच्चोयडे वट्टे समतीरे अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजले संछण्णपत्तभिसमुणाले बहुउप्पल-कुमुय-णलिण -सुभग-सोगंधिय-पोंडरीयमहापोंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्तपप्फुल्लकेसरोवचिए अच्छविमलपत्थसलिलपुण्णे परिहत्थभमंतमच्छकच्छभ-अणेगसउणगणमिहणपविचरिय- सदगुण्ण इयमहरसरणाइए पासार्ड दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे । से ण एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिविखत्ते, वेइया-वणसंड-वण्णओ भाणियव्वो॥ ४. तस्स णं पउमद्दहस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णावासो भाणियव्वो। ५. तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तोरणे पण्णत्ते । ते णं तोरणा णाणमणिमया ।। ६. तस्स णं पउमद्दहस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पउमे पण्णत्ते ---जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं दो कोसे ऊसिए जलंताओ 'साइरेगाइं दसजोयणाइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते' । से णं एगाए जगईए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते , जंबुद्दीवजगइप्पमाणा गवक्खकडएवि तह चेव पमाणेणं ।।। ७. तस्स णं पउमस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा- वइरामया मुला रिद्वामए कंदे वेरुलियामए णाले वेरुलियामया बाहिरपत्ता जंबूणयामया अभितरपत्ता तवणिज्जमया केसरा णाणामणि मया पोक्खरस्थिभया कणगामई कण्णिगा, सा णं अद्धजोयणं आयाम-विक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, सव्वकणगामई अच्छा ।। ८. तीसे णं कण्णियाए उपि बहुसरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा ॥ है. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते--कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणगं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, १. °पडियायए (अ,ब) °पडिणायए (क,ख,त्रि,स)। २. सं० पा०–रययामयकूले जाव पासाईए जाव पडिरूवे। ३. ज० ११०-१३ 1 ४. जं० ४२६ ५. नवरं 'णाणामणिमये' ति वर्णकैकदेशेन पूर्ण स्तोरणवर्णको ग्राह्यः (शावृ); जं० ४१२७- ६. x (अ,ब)। ७. पमाणेणं सातिरेगाइं दसजोषणाई सम्बग्गेणं पण्णत्ते (अ,क,ख,त्रि,ब); जं०१२८,। ८. पुष्करास्थिभागाः (शा); पुक्खरस्थिभुया (जी० ३.६४३)। है. 'अच्छा' इत्येकदेशेन ‘सण्हा' इत्यादिपदान्यपि विज्ञेयानि (शावृ) । १०. जं० १॥१३॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० जंबुद्दीवपण्णत्ती अणेगखंभसयसणिविट्ठे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ १०. तस्स णं भवणस्स तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता। ते णं दारा पंचधणुसयाई उडढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइंधणुसयाई विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा जाव' वणमालाओ णेयव्वाओ।। ११. तस्स णं भवणस्स अंतो' बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा ॥ १२. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स, बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मह एगा मणिपेढिया पण्णत्ता । सा णं मणिपेढिया पंचधणुसयाई आयाम-विक्खंभेणं, अड्ढाइजाई धणुसयाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा ।। १३. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे सणिज्जे पण्णत्ते', 'तं जहा-. नाणामणिमया पडिपादा, सोवणिया पादा, नाणामणिमया पायसीसा, जंबूणयमयाई गत्ताई, वइरामया संधी, णाणामणिमए वेच्चे, रइयामई तूली, लोहयक्खमया बिब्बोयणा, तवणिज्जमई गंडोवहाणिया। से णं देवसणिज्जे सालिंगणवटीए उभओ बिब्बोयणे दुहओ उण्णए मझे णय-गंभीरे गंगापुलिणवालुया-उद्दालसालिसए ओयवियखोमदुग्गुलपट्ट-पडिच्छयणे आइणग-रूत-बुर-णवणीय-तूल फासे सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुय साईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे.॥ १४. से णं पउमे अण्णेणं अट्ठसएणं पउमाणं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्ताणं सव्वओ समता संपरिखिक्त्ते । ते णं पउमा अद्धजोयणं आयाम-विक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, दस जोयणाई उन्हेणं, कोसं ऊसिया जलंताओ, साइरेगाइं दसजोयणाई 'सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥ १५. तेसि णं पउमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा--वइरामया मूला जाव कणगामई कण्णिया। सा णं कण्णिया कोसं आयामेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं सव्वकणगामई अच्छा ।। १६. तीसे णं कण्णियाए” उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' मणीहिं उवसोभिए । १७. तस्स णं पउमस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं सिरीए देवीए चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। १८. तस्स णं पउमस्स पुरस्थिमेणं, एत्थ णं सिरीए देवीए चउण्हं महत्तरियाणं १. जी० ३।२६६-३०६ । जीवाजी वाभिगमे (३६५३ पि नीलवग्रह२. अंते (ख,त्रि)। प्रकरणे गव्यग्गेणं' इति पाठो लभ्यते। ३. महइ (प)। वृत्तावपि (पत्र २७६) तथैव व्याख्यातोस्ति! ४. सं० पा०-पण्णत्ते सयणिज्जवण्णओ भाणि- अत्रापि सव्वग्गेणं' इति पाठो युक्तः प्रतिभाति। यव्वो। ६. जं० ४७ ५. उच्चत्तेणं (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स); पूर्वप्रकरणे ४१६ सम्बग्गेणं पण्णत्ते' इति पाठोस्ति । ८. जं० १११३ । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वक्खारो चत्तारि पउमा पण्णत्ता॥ १६. तस्स णं पउमस्स दाहिणपुरथिमेणं, एत्थ णं सिरीए देवीए अभितरियाए परिसाए अटण्हं देवसाहस्सीणं अट्ट पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ । दाहिणेणं मज्झिमपरिसाए दसण्हं देवसाहस्सीणं दस पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ दाहिणपच्चत्थिमेण बाहिरियाए परिसाए बारहसण्हं देवसाहस्सीणं बारस पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। पच्चत्थिमेण सत्तण्हं अणियाहिवईणं सत्त 'पउमा पण्णत्ता' । २०. तस्स णं पउमस्स चउद्दिसि सव्वओ समंता, एत्थ णं सिरीए देवीए सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। २१. से णं पउमे तिहिं पउमपरिक्खेवेहि सव्वओ समता संपरिक्खित्ते, तं जहाअभितरएणं' मज्झिमएणं बाहिरएणं । अभितरए पउमपरिक्खेवे बत्तीसं पउमसयसाहस्सीओ पण्णताओ। मज्झिमए' पउमपरिक्खेवे चत्तालीसं पउमसयसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। बाहिरए पउमपरिक्खेवे अडयालीसं पउमसयसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। एवामेव सपुत्वावरेणं तिहिं पउमपरिक्खेवेहिं एगा पउमकोडी वीसं च पउमसयसाहस्सीओ भवंतीति अक्खायं ॥ २२. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ--पउमद्दहे-पउमद्दहे ? गोयमा ! पउमद्दहे ण तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई पउमद्दहप्पभाई 'पउमद्दहागाराइं पउमदहवण्णाई पउमद्दहवण्णाभाई, सिरी यत्था देवी महिड्ढीया जाव पलिओवमट्टिईया परिवसइ । से एएणठेणं ।। अदुत्तरं च णं गोयमा ! पउमद्दहस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते - जं ण कयाइ णासि ण कयाइ पत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे णियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे ।। २३. तस्स णं पउमद्दहस्स पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महाणई पढा समाणी पुरत्थाभिमुही पंच जोयणस याइं पव्वएणं गंता गंगावत्तणकडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिणि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स दाहिणाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं" मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ। २४. गंगा महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पण्णत्ता । साणं जिभिया अद्धजोयणं आयामेणं, छस्सकोसाई जोयणाई विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, १. १उमसाहसीओ पण्णत्ताओ (अ, ख, त्रि)। चतुष्टयी विद्यते । शान्तिचन्द्रीयवत्तौ 'पद्मदहा२. अभंतरए (अ, ब)। काराणि' इति विशेषणमपि व्याख्यातमस्ति । ३. मज्झिमाए (अ, क, ख, त्रि, ब)। ८. इत्य (प)। ४. बाहिरियाए (अ, क, ख, त्रि, ब) ! ६. जं० १४२४ 1 ५. देसे-देसे (अ, क, ख, ब, स)। १०. गंगा (अ,ख, ब) लिपिप्रमादोगो सम्भाव्यते । ६. सयसहस्सपत्ताई (अ, क, ख, ब,स)। ११. पवितएणं (ख, स); पवित्तिएणं (त्रि)। ७. x (अ, क, ख, त्रि, प, ब, स); जीवाजीवा- १२. सदिएणं (ब) । भिगमे (३१६५६) नोलवद् द्रवर्णने विशेषण- १३. पवाहेणं (त्रि)। Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ जंबुद्दोवपण्णत्तो मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा ।। २५. गंगा महाणई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे णामं कुंडे पण्णत्तेसट्रि जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, णउयं जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं दस जोयणाई उव्वेहेणं अच्छे सण्हे रययामयकूले' वइरामयपासाणे' 'सुहोतारे सुउत्तारे णाणामणितित्थ-बद्धे वइरतले सुवण्ण-सुज्झ-रययमणिवालुयाए वेरुलियरमणिफालियपडलपच्चोयडे'3 बट्टे समतीरे अणुपुटवसुजायवप्पगंभीरसीयलजले संछण्णपत्तभिसमुणाले बहुउप्पल-कुमूय-णलिण-सुभग-सोगंधिय-पोंडरीय-महापोंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त-पप्फुल्लकेसरोवचिए अच्छविमलपत्थसलिलपुण्णे पडिहत्थभमंतमच्छकच्छभ- अणेगसउणगणमिहुणपवियरिय-सद्दुन्नइयमहुरसरणाइए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूबे पडिरूवे । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सवओ समता संपरिक्खित्ते, वेश्या-वणसंडपमाणं वण्णओ भाणियव्वा !! २६. तस्स णं गंगप्पवायकुंडस्स तिदिसि तओ तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता,तं जहा -पुरस्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं । तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णते, तं जहा-वइरामाया णेम्मा रिट्रामया पइदाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पमया फलया लोहियक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी णाणामणिमया आलंबणा आलंबणबाहाओ ।। २७. तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं 'तोरणे पण्णत्ते । ते णं तोरणा णाणामणिमया णाणामणिमएसु खंभेसु उवणिविट्ठसंनिविट्ठा 'विविहतारारूवोवचिया विविहमत्तंतरोवइया ईहामिय-उसह-तरग - णर-मगर- विहग-वालगकिष्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामा" विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव अच्चीसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया १. रययामयकुंडे (अ, ब); रययमथकूले कमले (प, शावृ)। समतीरे (प, शावृ)। ६. वणशंडगाणं पमाणं (त्रि, प)। २. क्षेत्रसमासवृत्तौ तु ववमयपार्श्वमित्युक्तम् , ७. जं० १४१०-१३।। तदनुसारेण सूत्रपाठस्तु 'वयरमयपासे' ति ८. णिम्मा (अ, क, त्रि, ब)। द्रष्टव्यम् (ही)। ६. तोरणा पण्णत्ता (क, ख, त्रि, प)। ३. चिन्हावितपाठस्य स्थाने 'प' प्रतौ शान्ति- १०. विविह मुत्तरोवइया विविहतारारूवोवचिया चन्द्रीयवृत्ती च भिन्तः ऋमः क्वचिद् भिन्न- (प, शावृ); जीवाजीवाभिगमे (३।२८८) पदश्च पाठो विद्यते--वइरतले सुवण्णसुभरय पि एवमेव विद्यते, प' संकेतितादर्श: यामयबालुयाए वेरुलिअमणि फालिअपडल- जीवाजीवाभिगमपरम्परानुसारी विद्यते, पच्चोअडे सुहोतारे सुउत्तारे णाणामणितित्य- उपाध्यायशान्तिचन्द्रणापि तस्य सूत्रस्य सुबद्धे (प, शावृ)। पाठपरम्परा अनुसृतास्ति बहुशः । ४. x (प, शावृ)। ११. खंभुतरवहर (अ', ब)। ५. केसरोवचिए छप्पयमहुयरपरिभुज्जमाण- १२. विज्जाहरजमलजंत' (अ, क, त्रि, ब,स) । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारौ 'भिसमाणा भिब्भिसमाणा" चक्खुल्लोयणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ २८. तेसि णं तोरणाणं उवरि बहवे अट्ठट्ठमंगलगा पण्णत्ता, तं जहा सोत्थियसिरिवच्छ - गंदियावत्त- वद्धमाणग-भद्दासण- कलस-मच्छ दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ २६. तेसि णं तोरणाणं उवरि बहवे किण्हचामरज्झया' नीलचामरज्झया लोहियचामरज्झया हालिद्दचामरज्झया सुक्किलचामरज्झया अच्छा सहा रुप्पपट्टा वइरामयदंडा जलयामल गंधिया सुरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ ३०. 'तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे छत्ताइच्छत्ता पडागाइपडागा घंटाजुयला चामरजुयला उप्पलहत्थगा पउमहत्थगा जावई सहस्सपत्तहत्थगा सव्वरयणामया अच्छा जाव" पडिवा | ३१. तस्स णं गंगप्पवायकुंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे गंगादीवे णामं दीवे पण्णत्ते अट्ट जोयणाई आयाम विक्खंभेणं, साइरेगाई पणवीसं" जोयणाई परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलताओ, सव्ववइरामए अच्छे से णं एगाए पउमवरवेश्याए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते, वण्णओ भाणियव्वो" ॥ ४७३ ३२. गंगादीवस्स णं दीवस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते || ३३. तस्स णं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं गंगाए देवीए एगे भवणे पण्णत्तेकोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणगं च कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसणि विट्ठे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे जाव' ३ बहुमज्झदेसभाए मणिपेढिया सयणिज्जे || is ३४. से केणट्ठेणं" "भंते ! एवं वुच्चइ-गंगादीवे णामं दीवे ? गोयमा ! गंगादीवे तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहि बहूई उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताइं गंगादीवप्पभाई गंगादीवागाई गंगादीवaaण्णाई, गंगादी ववण्णाभाई गंगा यत्थ देवी महिड्ढीया जाव पलिओवमद्विईया परिवसइ । से तेणंट्ठेणं । अदुत्तरं चणं जाव" सासए णामधेज्जे पण्णत्ते || ३५. तस्स णं गंगप्पवायकुंडस्स दक्खिणिल्लेणं १. भिभिमीणा भिसमीणा ( अ, ख, ब ) । २. 'रूवा घंटावलिचलिअमहरमणहरसरा ( प, शाबू, राय० सू० २० ) । ३. पासादीता ( अ, ब ) । ४. सं० पा० सिरिवच्छ जाव पडिरूवा । ५. सं० पा० – किण्हचामरज्या जाव सुक्किल 1 ६. मयतुंडा ( अ, ब ) 1 ७. सुरम्मा ( प शावृ ) । ८. • चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'अ, क, ख, त्रि, तोरणेणं गंगा महाणई पवूढा समाणी ब, स, हीवृ' आदर्शषु केवलं 'बहवे' इति पाठो विद्यते । ६. जं० ३ १० । १०. जं० १८ १ ११. पणवीस ( अ, क, ख, ब) 1 १२. जं० १११०-१३ । १३. जं० ४१६-१३ । १४. संपा० – केणट्ठे जाव सासए । १५ जं० ४।२२ । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीनपण्णत्ती उत्तरड्ढभरहवासं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी सत्तहि सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी'-आपूरेमाणी अहे खंडप्पवायगुहाए वेयड्ढपव्वयं दाल इत्ता दाहिणड्ढभरहवास एज्जेमाणीएज्जेमाणी दाहिणड्ढभरहवासस्स बहुमज्झदेसभागं गंता पुरत्थाभिमुही आवत्ता समाणी चोद्दसहि सलिलासहस्सेहि समग्गा अहे जगई दाल इत्ता पुरत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ ॥ ३६. गंगा णं महाणई पवहे 'छ स्सकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, अद्धकोसं उब्बेहेणं, तयणतरं च णं मायाए-मायाए परिवड्ढमाणी-परिवड्ढमाणी मुहे बा४ि' जोयणाई अद्धजोयणं च विक्खंभेणं, सकोस जोयणं उन्हेणं, उभओ पासिं दोहि य पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ता, वेइयावणसंडवण्णओ भाणियब्वो' । ३७. एवं सिंधूएवि णेयब्वं जावः तस्स णं पउमद्दहस्स पच्चथिमिल्लेणं तोरणेणं सिंधुआवत्तणकूडे दाहिणभिमुही, सिंधुप्पवायकुंड, सिंधुद्दीवो, अट्ठो सो चेव जाव" अहे तिमिसगुहाए वेयड्डपब्वयं दाल इत्ता पच्चत्थिमाभिमुही आवत्ता समाणी चोहसेहिं सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे जगई दाल इत्ता पच्चत्थिमेणं लवण 'समुई समप्पेइ, सेसं तं चेव ।। ३८. तस्स ण पउमद्दहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं रोहियंसा महाणई पवूढा समाणी दोण्णि छावत्तरे जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स उत्तराभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ॥ ___३६. रोहियंसा महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिभिया पण्णत्ता । सा णं जिब्भिया जोयणं आयामेणं, अद्धतेरस जोयणाई विखंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, मगरमूहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा ।। ४०. रोहियंसा" महाणई जहिं पवडइ, एत्थ णं महं एगे रोहियंसप्पवायकुंडे णाम १. आभरमाणी (अ); आऊरेमाणी (प) । समावाबाङ्गेन सह विरोधः स्यात् (होवृ)। २. गंगामहानदीप्रवहे मकर मुख जिविकाप्रदेशे ३. पवङमाणी (क, त्रि)। पट्सक्रोशानि योजनानि विष्कम्भेण यत्त ४. बालट्टि (प)। छजायणसवकोसमिति क्षेत्रसमासगाथा ५. ज० १११०-१३। व्याख्यानयता मलयगिरिणा प्रबहे पद्मद्रहा. ६. जं०४।२३-३३. अत्र ‘णवरं' इति पदमपेक्षितदिनिर्गमे षट्योजनानि सक्रोशानि गंगानद्या मापीत, किन्तु न जाने केन कारणेन तस्य स्थाने विस्तार इति भणितं तन्मकरमुखजिबिकाया 'जाव' पदस्य प्रयोगो जातः । निगम यावदऽविशेषेण विवक्षणात् अन्यथा- ७.०४।३४,३५ । गंगासिंधुओ णं महाणदीओ पणवीसं गाउयाणि ८. सं० पा० -लवण जाव समप्पेइ । पुहुत्तेणं दुहओ घडमुहपवित्तिएणं मुत्तावलि- १. जं० ४:३६ । हार---संठिएणं पवातेणं पवडंति (सं० १०. रोहियंसा णं (अ,क,ख,ब,स); रोहियंसा णाम २५७) 1 तथा - गंगासिंधुओ मं (त्रि)। महाणईओ पबहे सातिरेगे चउवीसं कोसे ११. रोहियंसा णं (अ,क,ख,ब,स); रोहियंसा णाम वित्थारेणं पण्णत्ताओ (स० २४१५) त्ति (त्रि)। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारी कुंडे पण्णत्ते--सवीसं जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं, तिणि असीए जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, दसजोयणाइं उब्बेहेणं, अच्छे कुंडवण्णओ जाव' तोरणा ॥ ४१. तस्स णं रोहियंसप्पवायकुंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्य णं महं एगे रोहियंसदीवे णाम दीवे पण्णत्ते सोलस जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं पण्णासं जोयणाई परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलंताओ, सवरयणामए अच्छे, सेसं तं चेव जाव' भवणं अट्ठो य भाणियब्वो॥ ४२. तस्स णं रोहियंसप्पवायकुंडस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं रोहियंसा महाणई पढा समाणी हेमवयं वासं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी चउद्दसहिं सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणीआपूरेमाणी सद्दावइ वट्टवेयड्डपब्वयं अद्धजोयणेणं असंपत्ता समाणी पच्चत्थाभिमुही आवत्ता समाणी हेमवयं वासं दुहा विभयमाणी-विभयमाणी अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहि समग्गा अहे जगई दालइत्ता पच्चत्थिमेणं लवणसमुई समप्पेइ ॥ ४३. रोहियंसा ण पवहे अद्धतेरसजोयणाई विक्खंभेणं, कोसं उब्वेहेणं तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिवड्डमाणी-परिवड्डमाणी मुहमूले पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं, अड्डाइज्जाइं जोयणाई उव्वेहेणं, उभओ पासि दोहिं पउमवरवेइयाहि दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ता ।। ४४. चल्लहिमवंते णं भंते ! वासहरपब्वए कइ कडा पण्णत्ता ? गोयमा ! एक्कारस कूडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्धायतणकूडे चुल्लहिमवंतकूडे भरहकूडे इलादेवीकडे गंगाकडे सिरिकडे रोहियसकडे सिन्धुकडे सूरादेवीकडे हेमवयकडे वेसमणकडे ॥ ४५. कहि णं भंते ! चुल्लहिमवंते वासहरपव्व ए सिद्धायतणकूडे णामं कडे पण्णत्ते ? गोयमा ! पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतकूडस्स पुरस्थिमेणं, एत्थ णं सिद्धायतणकडे णामं कुडे पण्णत्ते- पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंचजोयणसयाई विक्खंभेणं, मझे तिष्णि य पण्णत्तरे जोयणसए विक्खंभेणं, उप्पि अड्राइज्जे जोयणसए दिक्खंभेणं, मुले एग जोयणसहस्सं पंच य एगासीए जोयणसए किचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, मज्झे एग जोयणसहस्सं एग च छलसीयं जोयणसयं किंचिविसेसणे परिक्खेवेणं, उप्पि सत्तएक्काणउए जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णे, मज्झे संखित्ते, उप्पि तणुए, गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते ।। ४६. सिद्धायतणस्स कूडस्स णं उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव'-- ४७. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे सिद्धायतणे पण्णते-पण्णासं जोय गाइं आया मे गं, पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं, छत्तीसं जोयणाई उड़दं उच्चत्तेणं जाव जिणपडिमावण्णओ णेयव्यो । १. जं०४।२५-३० । २. जं० ४।३१-३४ ३. सिंधुदेवीकूडे (त्रि,प)। ४. सिद्धायणकूडे (ब)। ५. जं० ११३६ । ६. जं. १७३७-४० । ७. भाणियन्बी (त्रिप) । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपन्नती ___४८. कहि णं भंते ! चुल्लहिमवते वासहरपव्वए चुल्लहिमवंतकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! भरहस्स कूडस्स पुरत्थिमेणं, सिद्धायतणक डस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए चुल्लहिमवंतकूडे णामं कूडे पण्णत्ते । एवं जो चेव सिद्धायतणकडस्स उच्चत्त-विक्खंभ-परिक्खेवो जाव'-- ४६. बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पण्णत्ते - 'बावद्धि जोयणाई अद्धजोयणं च उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं'२ अब्भुग्गयभूसिय-पहसिए विव विविहमणिरयणभत्तिचित्ते वाउद्धयविजयवेजयंतीपडाग-च्छत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाणसिहरे जालंतररयण पंजरुम्मिलिएब्व मणिग्यणथूभियाए वियसियसयवत्तपुंडरीयतिलयरयणद्धचंदचित्ते णाणामणिमयदामालंकिए अंतो बाहिं च सण्हें वइर तवणिज्जरुइलवालुगापत्थडे सुहफासे सस्सिरीयरूवे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ ५०. तस्स णं पासायवडेंसगस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव सीहासणं सपरिवारं ।। ५१. से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ -- चुल्लहिमवंतकूडे ? चुल्लहिमवंतकडे ? गोयमा ! चल्लहिमवंते णामं देवे महिड्डीए जाव" परिवसइ ॥ ५२. कहि णं भंते ! चल्लहिमवंतगिरिकमारस्स देवस्स चल्लहिमवंता णाम रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! चुल्लहिमवंतकूडस्स दक्खिणेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अण्णं जंबुद्दीवं दीवं दक्खिणेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स३ देवस्स चुल्लहिमवंता णाम रायहाणी पण्णत्ता- बारस जोयणसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, एवं विजयरायहाणीसरिसा भाणियव्वा ॥ ५३. एवं अवसेसाणवि कूडाणं 'वत्तव्वया णेयव्वा५, आयाम-विक्खंभ-परिक्खेव १. ० ४।४५-४६ । पाठांशो व्याख्यातो नास्ति। २. बासदि जोयणाई अद्धजोयणं च विक्ख भेण ६. बहिं (क,ख.प,स) । एक्कतीसं जोयणाई' कोसं च उड़द उच्चत्तेणं ७. संड (अ,ख,ब); सह (क,त्रिप)। (अ.क.ख,त्रि,ब,स,पुत्र, हीव); एष पाठः ८.x (शाव, जी० ३।३०७) । सम्यग न प्रतीयते, सर्वत्रापि सच्चत्वापेक्षया ६. सं० पा०-पासाईए जाव पडिरूवे । विष्कम्भस्य अर्धत्वं दृश्यते । इदं समुचितमपि, १०. जी० १३०८-३१३ जं० २४३,४४ । यथा जीवाजीवाभिगमे (३१३५६) स्वीकृतपाठ- ११. जं० १२४॥ स्य संवादी पाठः उपलभ्यते-तेणं पासायव.- १२. अत्र परिवसति तेन क्षदहिमवन्तकट' मिति सगा बाढेि जोयणाई अद्धजोयणं च उढ्डं उच्च- क्षुद्रहिमवत्कूट, अत्र च सूत्रेऽदृष्टमपि से तेणं एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम- तेणछेणं चुल्लहिमवंतकूडे' (शाव)। विक्खंभेणं। १३. चुल्लहिमवंत कूडस्स (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ३. गयणयल° (क)। १४. जी० ३१३५१-५६५ । ४. सूत्रे चात्र विभक्तिलोपः प्राकृतत्वात् (शाव)। १५. जयव्वा वत्तध्वया (अत्रि,ब,स); णेयवा ५. शान्तिचन्द्रीयवृत्ती तिलयरयणवचंद' इति (क,ख) । Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वखारो पासायदेवयाओ सीहासण-परिवारो' अट्ठो य देवाण य देवीण य रायहाणीओ णेयव्वाओ', चउसु देवा-चुल्ल हिमवंत-भरह-हेमवय-वेसमणकूडेसु, सेसेसु देवयाओ॥ ५४. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ.-चुल्ल हिमवंते वासहरपव्वए ? चुलहिमवंते वासहरपव्वए? गोयमा ! महाहिमवंतवासहरपव्वयं पणिहाय' 'आयामुच्चत्त-उव्वेह"विपखंभ-परिक्खेवं पडुच्च ईसि खुड्डतराए चेव ह्रस्सतराए' चेव णीयतराए चेव । चुल्लहिमवंते यत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से एएणठेणं गोयमा ! एवं युच्चइ-चुल्लहिमवंते वासहरपव्व ए-चुल्लहिमवंते वासहरपव्यए । अदुत्तरं च णं गोयमा ! चुल्लहिमवंतस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते--जंण कयाइ णासि ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे णियए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए णिच्चे ॥ ५५. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हेमवए णाम वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं,८ चुल्ल हिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेमवए णाम वासे पण्णत्ते--पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे पलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुदं पुछे-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुठे, पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुठे, दोण्णि य जोयणसहस्साइं एगं च पंचुत्तरं जोयणसयं पंच य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं छज्जोयणसहस्साई सत्त य पणवण्णे जोयणसए तिष्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहओ लवणसमुई पटापुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, पच्चथिमिल्लाए° 'कोडीए पच्चस्थिमिल्लं लवणसमुई पुट्ठा, सत्ततीसं जोयणसहस्साई 'छच्च चउवत्तरे" जोयणसए सोलस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसूणे आयामेणं ! तस्स धणुं [धणुपट्ठ ? ] दाहिणेणं अट्ठतीसं जोयणसहस्साइं सत्त य चत्ताले जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं ॥ ५६. हेमवयस्स गं भंते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, ‘एवं तइयसमाणुभावो" णेयव्बो॥ १. सपरिवारो (अ); परियारो (क,ब)। २. जं० ४।४७-५११ ३. पणिभाए (अ,ब)। ४. आयामुच्चत्तोवेह (क,ख,स); आयामुच्चत्तुव्वेह ६. x (प)। १०.सं० पा०-पच्चथिमिल्लाए जाव पुट्ठा। ११. छच्च चउदुत्तरे (म); छच्च चोवत्तरे (क); छच्च चुउत्तरे (ख); छच्च चोवुत्तरे (त्रि); छच्चेयत्तरे (ब); छच्चोयत्तरे (स)। १२. एरवयतइयसमयभावो (अ, ब); एरवततइय मणुस्सभावो (ख); एरवततइयसमाणुभावो (स); एरवयतइयसमाणुभावो णेयव्वोत्तिऐरक्तक्षेत्रसत्कसुषमदुष्पमालक्षणतृतीयारकानु ५. हस्सतराए (प)। ६. इत्थ (क,ख,त्रि,स); य इत्थ (प) । ७. जं. १२२४ । ८. दाहिणेणं (त्रि)। Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ जंबुद्दीवपण्णत्ती ५७. कहि णं भंते ! हेमवए वासे सद्दावई' णामं वट्टवेयड्डपव्वए पण्णते ? गोयमा ! रोहियाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, रोहियंसाए महाणईए पुरथिमेणं हेमवयवासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं सद्दावई णामं वट्टवेयपव्वए एण्णत्ते.. एगं जोयणसहस्सं उड्ढे उच्चत्तेणं, अड्डाइज्जाइं जोयणसयाई उव्वेहेणं, सव्वत्थसमे पल्लगसंठाणसंठिए एग जोयणसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसहस्साई एगं च बावट्ठ जोयणसयं किचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं सब्बरयणामए अच्छे । से गं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, वेइयावणसंडवण्णओ भाणियव्वो॥ ५८. सद्दावइस्स णं बट्टवेयड्वपव्वयस्स उरि बहुसमरमणिज्जे. भूमिभागे पण्णत्ते ।। ५६. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पण्णत्ते बाढि जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम-विक्खंभेणं जाव' सीहासणं सपरिवारं ॥ ६०. से केण→णं भंते ! एवं वुच्चइ --सद्दावई वट्टवेयड्डपव्वए ? सद्दावई वट्टवेयड्डभाववदऋत्यमनुष्याणामप्यनुभावो नेतव्य ज्ञेया इत्यर्थः (पुत्र); एवं तझ्यसमाणुभावो इत्यर्थः । ऐरावतग्रहणं भरतस्योपलक्षणार्थ (पुवृपा)। यथा हि भरतेरावतयोस्ततीयारकमनप्या १३. ०२:५६ । एकगव्यूतोच्चत्वादिभावास्तथा अप्रत्या अपि १. प्रस्तुतसूत्रे हेमवत-हरिवर्ष-रम्यक हैरण्यवतसूत्रेषु वृत्तवैताठ्यपर्वतानां देवानां च स्थानाङ्गतः भिन्ना परम्परा विद्यते, द्रष्टव्यं निम्नवतियन्त्रम् हैमवत जं०४।५७ सहावाती देव सहावई साती ठाणे ४.३०७ वृत्त वैताठ्य सहावई हरिवर्ष वृत्तवैताढ्य जं०४५४ वियडावई अरुणे ठाणं ४.३०७ गंधावाती अरुणे देव रम्यक वृत्तवैताढ्य जं ४१२६४ गंधावई पउमे ठाण ४१३०७ मालवंतपरिताते पउमे हैरण्यवत जं०४२७० माल वंतपरियाए पभासे वृत्तवैताढ्य ठाणं ४३०७ वियडावाती पभासे ३. जं० ४।४८,४६ । २. जं २०१०-१३ । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चल्यो वस्वारो पव्वए ? गोयमा ! सहावइवट्टवेयडपव्वए गं खुड्डा खुड्डियासु वावीसु जाव' बिलपतियासु बहवे उप्पलाई पउमाई सद्दावइप्पभाई सद्दावइआगाराई सद्दावइवण्णाई सद्दावइण्णाभाई । 'सद्दावई यत्थ" देवे महिडीए जाव महाणुभागे' 'पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से तेणट्ठेणं जाव सद्दावई वट्टवेयपव्वए-सद्दावई वट्टवेयङ्कपव्वए । रायहाणीवि णेयव्वा ” ॥ ६१. से केणट्ठणं भंते ! एवं बच्चइ - हेमवए वासे ? हेमवए वासे ? गोयमा ! चुल्ल हिमवंत महाहिमवतेहि वासहरपव्वएहिं दुहओ समुवगूढे' णिच्चं हेमं दलयइ, णिच्च हेमं पगासइ | हेमवए य एत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओ मट्ठिईए परिवसइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ हेमवए वासे- हेमवए वासे || ६२. कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! हरिवासस्स दाहिणेणं, हेमवयस्स वासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुहस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिम लवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे पलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुद्द पुट्ठे- पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्द पुट्ठे, दो जोयणसयाई उड्ड उच्चत्तेणं, पण्णासं जोयणाई उव्वेहेणं १. जी० ३।२८६ । २. सद्दावइत्थ (अ, ब ); सद्दावई इत्थ (क. त्रि ) ; सावतित्य ( ख स ) | ३. महाणुभावे ( प, शावृ) 1 ४. से णं तत्थ चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं पलिमोवमट्टितीए जाव परिवसइ रायहाणी वि ( अ, क, ख, त्रि, बस, ही वृ) ; पलिओोवमट्टितीए परिसर से णं तत्य चउन्हं सामाजियसाहस्सीणं जाव रायहाणी ( प, शावृ) पुण्यसागरीयवृत्ती स्वीकृतपाठ एवं व्याख्यातोस्ति । हीरविजयवृत्ती 'साहस्सीणं' इति पदानन्तरं 'पलिओट्ठिए' इत्यादि व्याख्यातमस्ति, किन्तु पूर्वपाठानुसन्धानेन नैतत् सङ्गच्छते । बहु आदर्शष्वपि एषा पाठ विसङ्गतिरस्ति । अस्या विसङ्गतेनिवारणार्थ उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण प्रयत्नः कृतः । तस्यानुसारी 'प' प्रतिगतः पाठो व्याख्या चापि सङ्गच्छते । स च प्रयत्नः एवमस्ति शब्दापाती चात्र देवो महद्धिको यावन्महानुभावः पत्योपमस्थितिकः - परिवसति, अथ शब्दापातिदेवमेव विशिनष्टि 'से णं तत्थ' इत्यादि, स शब्दापाती ૪૭૨ देवस्तत्र प्रस्तुतगिरी चतुर्णां सामानिकसहस्राणां यावत्पदात् विजयदेववर्णकसूत्रं सर्वमपि ज्ञेयं व्याख्येयं च कियत्पर्यन्तमित्याहराजधानी मन्दरस्य दक्षिणस्यामन्यस्मिन् जम्बूद्वीपे द्वीपे इति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्त्यादर्शेषु एतत्सूत्रदृष्टोऽपि पलिओ मट्टिई परिवसती' त्ययं सूत्रादेश: पूर्वसूत्रे यद्योजितस्तद्बहुसु विजयदेवप्रकरणादिसूत्रेष्वित्थमव दृष्टत्वात् बहुग्रन्थ साम्पत्येन क्वचिदादर्श वैगुण्यमुद्भाव्यान्यथायोजनं बहुश्रुतसम्मतमेवास्ति इत्यलं विस्तरेण । जो० ३।३५१-५६५ । ५. समवगूढे (क, ख, प, स, पुवृ, शावृ, हीवृ); समुदगूढे (वृपा) । ६. 'त्रि' प्रती 'दलयइ' इति पदस्य स्थाने 'मुंचति' इति पदं विद्यते । 'क, ख, ब, स' प्रतिषु हीरविजयवृत्ती पुण्यसागरवृत्तौ च 'दलयइ' इति पदस्याग्रे णिच्चं हेमं मुंबई' इति पाठो विद्यते एतत्पदं क्वचिन्न दृश्यते ( पुढे ) : 'प' प्रतौ 'दलयई' स्थाने 'दलति' इति पदं विद्यते । Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० जंबुद्दीववपण्णत्ती चत्तारि जोयणसहस्साइं दोणि य दसुत्तरे जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरथिमपच्चत्थिमेणं णव जोयणसहस्साइं दोण्णि य छावत्तरे जोयणसए णव य एगूणवीस इभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुदं पुट्ठा-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुई पुद्रा, पच्चस्थिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, तेवण्णं जोयणसहस्साई नव य एगतीसे जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स किचिविसेसाहिए आयामेणं । तस्स धणु [धणुपट्टं ? ] दाहिणेणं सत्तावण्णं जोयणसहस्साई दोगिण य तेणउए जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुयगसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिंदोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ते ।। ६३. महाहिमवंतस्स णं वासहरपव्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्तेणाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि य तणेहि य उवसोभिए जाव' आसयंति !! ६४. तस्स णं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं एगे महापउमद्दहे णाम दहे पण्णत्ते- दो जोयणसहस्साई आयामेणं, एगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छे रथयामयकले एवं आयाम-विक्खंभविहणा जा चेव पउमद्दहस्स बत्तन्वया सा चेव णेयव्वा । पउमप्पमाणं दो जोयणाई अटो जाव महापउमद्दहवण्णाभाई। हिरी य एत्थ देवी महिड्डीया जाव पलिओवमट्टिईया परिवसइ । से एएणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-महापउमद्दहेमहापउमद्दहे। अदुत्तरं च णं गोयमा ! महापउमद्दहस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते-जण कयाइ णासी ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे णियए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए णिच्चे ॥ ६५. तस्स णं महापउमद्दहस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं रोहिया महाणई पबूढा समाणी सोलस पंचुत्तरे जोयणसए पंच य एगूणवीसइभाए जोयणस्स दाहिणाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगदोजोयणसइएणं' पवाएणं पवडइ ।। ६६. रोहिया ण महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिभिया पण्णत्ता। साणं जिब्भिया जोयणं आयामेणं, अद्धतेरसजोयणाई विक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा ।। ६७. रोहिया णं महाणई हि पवडइ, एत्थ णं महंएगेरोहियप्पवायकंडे णाम कंडे पण्णत्ते---सवीसं जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं, तिणि असीए जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, दस जोयणाइं उन्हेणं, अच्छे सण्हे सो चेव वण्णओ, वहरतले वट्टे समतीरे जाव तोरणा ॥ ६८. तस्स णं रोहियप्पवायकुंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे रोहियदीवे १. जी० ३१२७७-२६७ १ ५. साइरेगजोयणदुसइएणं (अ, ब)। २. महं एगे (क, ख, त्रि, स)। ६. "विक्खंभेणं पण्णत्ते (ब, क,ख,त्रि, प, ब,स)। ३. रयणामयकूले (अ, ख, त्रि, ब)। ७. जं० ४१२५-३०। ४. जं० ४।३-२२। Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वखारो णाम दीवे पण्णत्ते----सोलस जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं पण्णासं जोयणाई परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलंताओ, सव्ववइरामए अच्छे । से गं एगाए पउमरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते ।। ६६. रोहियदीवस्स णं दीवस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते ।। ७०. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते -कोसं आयामेणं, सेसं तं चैव पमाणं च अट्ठो य भाणियब्बो' ७१. तस्स णं रोहियप्पवायकुंडस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं रोहिया महाणई पढा समाणी हेमवयं वासं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी सद्दावई वट्टवेयड्वपव्वयं अद्धजोयणेणं असंपत्ता पुरत्थाभिमुही आवत्ता समाणी हेमवयं वासं दुहा विभयमाणी-विभयमाणी अट्ठावीसाए सलिलासहस्से हिं समग्गा अहे जगई दाल इत्ता पुरथिमेणं लवणसमूह समप्पेइ ॥ ७२. रोहिया णं •पवहे अद्धते रसजोयणाई विक्खंभेणं, कोसं उब्वेहेणं, तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिवड्डमाणी-परिवड्डमाणी मुहमूले पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं, अड्डाइज्जाइं जोयणाई उव्वेहेणं, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ता। ७३. तस्स णं महापउमद्दहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं हरिकता महाणई पढा समाणी सोलस पंचु त्तरे जोयणसए पंच य एगूणवीसइभाए जोयणस्स उत्तराभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगदुजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ॥ ७४. हरिकता महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पण्णत्ता-दो जोयणाई आयामेणं, पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया 'सव्वरयणामई [सव्ववइरामई ?'"] अच्छा ।। ७५. हरिकता णं महाणई जहिं पवडइ, एत्थ णं महं एगे हरिकतप्पवायकंडे णामं कुंडे पण्णत्ते- दोणि य चत्ताले जोयणसए आयाम-विक्खंभेणं, सत्तअउणटठे जोयणसए परिक्खेवेणं, अच्छे, एवं कुंडवत्तव्वया सव्वा नेयव्वा जाव' तोरणा॥ ७६. तस्स णं हरिकंतप्पवायकुंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे हरिकंतदीवे णाम दीवे पण्णत्ते- बत्तीसं जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं एगुत्तरं जोयणसयं परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलंताओ, सव्वरयणामए अच्छे । से णं एगाए प उमवरवेइयाए एगेण १. ० ४१३३,३४ । २. समुप्पेइ (ख, त्रि)1 ३. सं० पा०-रोहिया णं जहा रोहियंसा तहा पवहे य मुहे (तहा वट्टवेयट्टमुहे-अ, ब) य भाणियव्व जाव संपरिक्खित्ता। ४. अत्र 'सव्वरयणामई' ति पाठो बह्वादशंदृष्टोऽपि लिपिप्रमादादापतित एव सम्भाव्यते, बृहत्क्षेत्रविचारादिषु सर्वासां जिबिकानां वज्रमयत्वेनैव भणनात् जलाशयानां प्रायो बज्रमय. स्वेनैवोपपत्तेश्च (शाव) । ५. जं० ४१२५-३०। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ जंबुद्दीवपण्णत्ती य वण संडेणं' सवओ समता संपरिविखत्ते, वण्णओ भाणियच्यो, पमाणं च सयणिज्जं च अट्ठो य भाणियन्वो ॥ ७७. तस्स णं हरिकंतप्पवायकुंडरस उत्तरिलेणं तोरणेणं' 'हरिकता महाणई पवढा समाणी हरिवास वासं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी वियडावई वट्टवेयड्ढे जोयणेणं असंपत्ता पच्चस्थाभिमुही आवत्ता समाणी हरिवासं दुहा विभयमाणी-विभयमाणी छप्पण्णाए सलिलासहस्सेहि समग्गा अहे जगई दाल इत्ता पच्चत्थिमेणं लवणसमुई समप्पेई॥ ७८. हरिकता णं महाणई पवहे पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं, अद्धजोयणं उन्वेहेणं, तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिवड्डमाणी-परिवड्डमाणी मुहमूले अड्डाइज्जाई जोयणसयाई विक्खंभेणं, पंच जोयणाई उव्वेहेणं उभओ पासि दोहि पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ता॥ ७६. महाहिमवते णं भंते ! वासहरपव्वए कइ कडा पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ कूडा पणत्ता, तं जहा - सिद्धायतणकडे महाहिमवंतकडे हेमवयकडे रोहियकडे हिरिकूडे हरिकताकूडे हरिवासक डे वेरुलियकूडे, एवं चुल्ल हिमवंतकूडाणं जा वत्तव्वया सच्चेव णेयव्वा ।। ८०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ---महाहिमवंते वासहरपव्वए ? महाहिमवंते वासहरपदवए ? गोयमा ! महाहिमवंते णं वासहरपव्व ए चुल्ल हिमवंतं वासहरपव्वयं पणिहाय आयामुच्चत्तवह-विक्खभ-परिक्खेवेण महततराए चेव दोहतराए चेव । महाहिमवंते यत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ ।। ८१. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हरिवासे णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स दविखणेणं, महाहिमवंतस्स" वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरथिमलवणस मुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हरिवासे णामं वासे पण्णत्ते! एवं जाव पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुदं पुठे, अट्ठ जोयणसहस्साइं चत्तारि य एगवीसे जोयणसए एगं च एगणवीसइभागं जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरथिमपच्चत्थिमेणं तेरस जोयणसहस्साई तिष्णि य एगसठे जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं । तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुदं पुढा---पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं जाव लवणसमुई पुट्ठा, तेवत्तरि जोयणसहस्साई णव य एगुत्तरे जोयणसए सत्तरस य एगूणवीस इभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं । तस्स १. सं० पा०-वणसंडेणं जाव संपरिक्खित्ते । ७. जं० ४१४५-५४। २. जं० १९१०-१३ । ८. आयामुच्चत्तोव्वेह (अ, ख त्रि, ब, स)। ३.० ४१३२-३४॥ ६ महंतराए (अ, क, ख, त्रि, ब)। ४. सं० पाo-तोरणेणं जाव पबूढा । १०. जं० २२४॥ ५. हरिवस्सं (अ, प, ब)। ११. महयाहिमवंतस्स (अ, त्रि, ब)। ६. सिद्धायणकूडे (अ, ब)। १२. जं० ४।१। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वक्खारो ४८३ धj [धणुपट्ठ ? ] दाहिणेणं चउरासीई जोयणसहस्साइं सोलसजोयणाई चत्तारि एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्सेवेणं ।। ८२. हरिवासस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोआरे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीहि सणेहि य उवसोभिए, एवं मणीणं तणाण य वण्णो गंधो फासो सहो य भाणियव्वो॥ . ८३. हरिवासे णं वासे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे खुड्डा खुड्डियाओ, एवं जो सूसमाए अणभावो सोचेव अपरिसेसो वत्तव्वो॥ ८४. कहि णं भंते ! हरिवासे वासे वियडावई णामं वट्टवेयपव्वए पण्णत्ते? गोयमा ! हरीए महाणईए पच्चत्थिमेणं, हरिकंताए महाणईए पुरत्थिमेणं, हरिवासस्स वासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं वियडावई णामं वट्टवेयपव्वए पण्णत्ते। एवं जो वेव सहावइस्स विक्खंभुच्चत्तुव्वेह-परिक्खेव-संठाण-वण्णावासो य सो चेव वियडावइस्सवि भाणियव्वो', णवरं - अरुणो देवो, पउमाई जाव वियडावइवण्णाभाई। अरुणे यत्थ देवे महिड्डीए एवं जाव दाहिणेणं रायहाणी णेयव्वा ॥ ८५. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ---हरिवासे वासे ? हरिवासे वासे ?, गोयमा ! हरिदासे णं वासे मणुया अरुणा अरुणोभासा सेया णं संखतलसण्णिकासा, हरिवासे देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ। से तेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ हरिवासे वासे-हरिवासे वासे ।। ___८६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स दक्खिणेणं, हरिवास्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चस्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते-पाईणपडीणायए उदीणदा हिणविच्छिण्णे दुहा लवणसमुदं पुढें--पुरस्थिमिल्लाए जाव पुढे, चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाइं उन्वेहेणं, सोलस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले' जोयणसए दोण्णि य एगुणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स बाहा पुरथिमपच्चत्थिमेणं वीसं जोयणसहस्साई एगं च पण्णढें जोयणसयं दुण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुदं पुट्ठा-पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुई पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चस्थिमिल्लं लवणसमुहं पुट्ठा, चउणवई जोयणसहस्साइं एगं च छप्पण्णं जोयणसयं दुण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं । तस्स धj [धणुपट्ठ ? ] दाहिणेणं एग जोयणसयसहस्सं चउवीसं च जोयणसहस्साइं तिण्णि य छायाले जोयणसए णव य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुयगसंठाण १.जी ३१२७७-२८५। २. ज २१५२, ५३ । ३. द्रष्टव्यम्-४।५७ सूत्रस्य पादटिप्पणम्। ४.० ४१५७-६०। ५. संखदल° (प, शाव, पुष्पा)। ६. पायाले (अ, ब): बायालीये (वि)। ७. सं० पा०-उत्तरेणं जाव पउपवई । ८. तस्स य (त्रि, हीव)। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ जंबुद्दीवपण्णत्ती संठिए सव्वतवणिज्जमए अच्छे, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि' 'सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते ।। ८७. णिसहस्स' णं वासहरपव्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव आसयंति सयंति।। ८८. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे तिगिछिद्दहे' णामं दहे पण्णत्ते--- पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे चत्तारि जोयणसहस्साई आयामेणं, दो जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे रययामयकूले ।। ___८६. तस्स णं तिगिछिद्दहस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। एवं जाव आयाम-विक्खंभविहूणा जच्चेव महापउमद्दहस्स वत्तव्वया सच्चेव तिगिछिदहस्सवि वत्तव्वया तं चेव पउमद्दहप्पमाणं अट्ठो जाव तिगिछिवण्णाई। धिई यत्थ देवी पलिओवमट्टिईया परिवसइ । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-तिगिछिद्दहेतिगिछिद्दहे ॥ ९०. तस्स णं तिगिछिद्दहस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं हरिमहाणई पवढा समाणी सत्त जोयणसहस्साई चत्तारि य एकवीसे जोयणसए एगं च एगूणवीसइभागं जोयणस्स दाहिणाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएण* *मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगचउजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ । एवं जा चेव हरिकताए वत्तव्वया सा चेव हरीएवि णेयव्वा...जिभियाए कंडस्स दीवस्स भवणस्स तं चेव पमा, अट्रोवि भाणियव्वो जाव अहे जगई दालइत्ता छप्पण्णाए सलिलासहस्सेहि समग्गा पुरत्थिमं लवणसमुदं समप्पेइ। तं चेव पवहे य मुहमूले य पमाणं उव्वेहो य जो हरिकताए जाव वणसंडसंपरिक्खित्ता॥ ६१. तस्स णं तिगिछिद्दहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं सीतोदा महाणई पवूढा समाणी सत्त जोयणसहस्साई चत्तारि य एगवीसे जोयणसए एगं च एगूणवीसइभागं जोयणस्स उत्तराभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं" 'मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगचउजोयणसइएणं पवाएणं पक्डइ। सीतोदा णं महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिभिया पण्णत्ता-चत्तारि जोयणाई आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा ।। ६२. सीतोदा णं महाणई जहिं पवडइ, एत्थ णं महं एगे सीओदप्पवायकुंडे णाम कुंडे पण्णत्ते- चत्तारि असीए जोयणसए आयाम-विवखंभेणं, पण्णरसअट्ठारे' जोयणसए ७. सं० पा०-घडमुहपवत्तिएणं जाव साइरेग। ८. जं. ४१७४-७८। ६. सीओता (अ,ब); सीओदा (त्रि); सीओआ १. सं० पा०-वणसंडेहिं जाव संपरिक्खित्ते । २. णिसभस्स (अ, ब)। ३. तिगिच्छिद्दहे (अ, ब)। ४. रततामयकूले (अ,ब) । ५. जं० ४१६४। ६. दक्षिणेणं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १०. सं० पा०--घडमुहपवत्तिएणं जाव साइरेग। ११. °अट्ठार (त्रि,ब)। Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वक्खारो किं चिविसे परिवखेवेणं, अच्छे, एवं कुंडवत्तव्वया णेयव्वा जाव' तोरणा ॥ ९३. तस्स णं सीओदप्पवायकुंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे सीओदा दीवे' णामं दीवे पण्णत्ते- चउसट्ठि जोयणाई आयाम - विक्खभेणं दोणि बिउत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलताओ, सव्ववइरामए अच्छे, सेसं तमेव वेइयावणसंड-भूमिभाग-भवण-सयणिज्ज अट्ठो य भाणियव्वो । ४. तस्स णं सीओदप्पवायकुंडस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं सीओदा महाणई पवूढा समाणी देवकुरं" एज्जेमाणी- एज्जेमाणी चित्तविचित्तकूडे पव्वए निसढ - देवकुर-सूर-सुलसविजुभय दुहा विभयमाणी - विभयमाणी चउरासीए सलिलास हस्सेहिं आपूरेमाणीआपूरेमाणी भद्दसालवणं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी मंदरं पव्वयं दोहिं जोयणेहि असंपत्ता पच्चत्थिमाभिमुही 'आवत्ता समाणी अहे विज्जुप्पभं वक्खारपब्वयं दालइत्ता मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं अवरविदेहं वासं दुहा विभयमाणी - विभयमाणी एगमेगाओ चक्क - विजयाओ अट्ठावीसाए - अट्ठावीसाए सलिलास हस्सेहिं आपूरेमाणी-आपूरेमाणी पंचहि सलिलासय सहस्सेहि" दुतीसाए" य सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे जयंतस्स दारस्स जगई दाइत्ता पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेति ॥ ६५. सीतोदा णं महाणई पवहे पण्णासं जोयणाई विक्खभेणं, जोयणं उव्वेहेणं, तयणंतरं च णं मायाए- मायाए परिवड्डूमाणी- परिवडूमाणी मुहमूले पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं, दस जोयणाइं उव्वेहेणं, उभओ पासि दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ता ॥ ६६. सिढे णं भंते! वासहरपव्वए कति कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा -- सिद्धायतणकूडे जिसढकूडे" हरिवासकूडे पुव्वविदेहकूडे हरिकूडे धिइकूडे सीओदाकूडे अवरविदेहकूडे रुयगकूडे । जो चेव चुल्ल हिमवंत कूडाणं उच्चत्त-विक्खंभपरिक्खेवो य पुव्ववणिओ रायहाणी य सच्चेव इहंपि यव्वा" || ६७. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ सिहे वासहरपव्वए ? णिस हे वासहरपव्वए ? गोयमा ! सिहे णं वासहरपव्वए बहवे कूडा णिसहसंठाणसंठिया उसभसंठाणसंठिया । सिहे यत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्ठिईए परिवसइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ- णिसहे वासहरपव्वए- सिहे वासहरपव्व ए ॥ ६८. . कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महा विदेहे णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दविखणेणं, णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवण १. जं० ४२५-३० २. सीओदद्दीवे ( अ, ब ) ; सीतोददीवे ( क, ख, प, स ) 1 ३. पिउत्तरे ( ब ) | ४. जं० ४।३१-३४ | ५. देवकुरु (क, ख ) अत्र सूत्रे एकवचनं आकारान्तत्वं च प्राकृतत्वात् ( शाबु) 1 ६. पाठान्तरे आवर्त्तमाना (बु) । ४८५ ७. सलिल सहस्सेहिं (क, त्रि, प ); 'सय' इति पदं लिपिमादात्त्रुटितं सम्भाव्यते । ८. दुवत्तीसाए ( अ ); दुबत्तीसाए (क, त्रि); बत्तीसाए (स) 1 ६. सिद्धायण (अ, ब, स ) | १०. जिसम° ( अ, व ) ; सिह (क, ख, स ) । ११. जं० ४१४५-५३) । Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ बुद्दीपण समुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दोघे महाविदेहे णामं वासे पण्णत्ते - पाईणपडीणायए' उदीर्णदाहिणविच्छिष्णे पलियंकसं ठाणसंठिए दुहा लवणसमुद्द पुट्ठे- पुरथिमिल्लाए' कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्द° पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठे, तित्तीसं जोयणसहस्साई छच्च चुलसीए जोयणसए चत्तारि य एगूणवीस इभाए जोयणस्स विक्खंभेणं । तस्स हा पुरत्थिमपच्चत्थिमेण तेत्तीसं जोयणसहस्साइं सत्तय सत्तट्ठे जोयणसए सत्त य एगुणaresभाए जोयणस्स आयामेणं । तस्स जीवा बहुमज्झदेसभाए पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठा - पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुद्द पुट्ठा, एवं पच्चत्थिमिल्लाए जाव पुट्ठा, एगं जोयणसयसहस्सं आयामेणं । तस्स धणुं [ धणुपछं ? ] उभओ पासि उत्तरदाहिणेणं एगं जोयणसयसहस्सं अट्ठावण्णं जोयणसहस्साइं एगं च तेरसुत्तरं जोयणसयं सोलस य एगूणवीसइभागे जोयणस्स किचिविसेसाहिए परिक्लेवेणं ॥ ε६. महाविदेहे णं वासे चउव्विहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते, तं जहा--पुव्वविदेहे अवरविदेहे देवकुरा उत्तरकुरा ॥ १००. महाविदेहस्स णं भंते ! वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' कत्तिमेहि' चेव अकत्तिमेहि चेव ॥ १०१. महाविदेहे गं भंते ! वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोमा ! तेसि णं मणुयाणं छविहे संघयणे छव्विहे संठाणे पंचधणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी आउयं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइया गिरयगामी, ● अप्पेगइया तिरियगामी अप्पेगइया मणुयगामी अप्पेगइया देवगामी अप्पेगइया सिज्झति बुज्झति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणं' अंतं करेंति ॥ १०२. से केणट्ठेणं भंते ! एवं बुच्चइ महाविदेहे वासे ? महाविदेह वासे ? गोयमा ! महाविदेहे णं वासे भरहेरवय- 'हेमवय हेरण्णवय" - हरिवास-रम्मगवासेहितो आयाम - विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं विच्छिण्णतर (ए चैव विपुलतराए चैव महंततराए चेव सुप्पमाणतराए चेव । महाविदेहा यत्थ मणूसा परिवसति । महाविदेहे यत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवर्माट्ठईए परिवसइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - महाविदेहे वासेमहाविदेहे वासे । अदुत्तरं चणं गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते - जंण कयाइ णासि ण कयाइ गत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए णिच्चे ॥ १०३. कहि णं भंते! महाविदेहे वासे गंधमायणे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? १. पदीण पडियायए ( अ, ब ) 1 २. सं० पा०-- पुरत्थिम जाव पुट्ठे । ३. जं०] ११२१ ॥ ४. कित्तिहिं (क, ख, प, स ) 1 ५. सं० पा०- गिरयगामी जाव अप्पेगइया । ६. सं० पा० - सिज्झति जाव अंतं । ७. हेमव एरण्णवय क, ख, ब, स ) ; हेमवय एरणवय (त्रि) 1 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४८७ गोयमा ! णोलवंतस्स वासहरपब्वयस्स दाहिणेणं, मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, गंधिलावइस्स विजयस्स पुरत्यिमेणं, उत्तरकुराए पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे गंधमायणे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते - उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे तीसं जोयणसहस्साइं दुण्णि य णउत्तरे जोयणसए छच्च य एगूणवीस इभाए जोयणस्स आयामेणं, णीलवंतवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाई उब्वेहेणं, पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं, तयणंतरं च णं मायाए-मायाए उस्से हुन्वेहपरिवुडीए परिवडमाणे-परिवडूमाणे विक्खंभपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे मंदरपव्वयंतेणं पंच जोयणसयाई उडढे उच्चत्तेण, पंच गाउयसयाई उब्वेहेणं, अंगलस्स असंखेज्जइभागं विक्खंभेणं पण्णत्ते ...गयदंतसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे, उभओ पासि दोहि पउमवरवेइयाहि दोहि य वणसंडेहि सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते ॥ १०४. गंधमायणस्स णं वक्खारपब्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव' आसयति ।। १०५. गंधमायणे णं वक्खारपव्वए कति कडा पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त कूडा पण्णता, तं जहा -सिद्धायतणकूडे गंधमायणकूडे गंधिलावइकूडे उत्तरकुरुकूडे फलिहकूडे लोहियक्खकूडे आणंदकूडे ।। १०६. कहि णं भंते ! गंधमायणे वक्खारपव्वए सिद्धायतणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, गंधमायणकूडस्स दाहिणपुरस्थिमेणं, एत्थ णं गंधमायणे वक्खारपवए सिद्धायतणकडे णामं कूडे पण्णत्ते । जं चेव चुल्लहिमवंते सिद्धायतणकूडास पमाणं तं चेव एएसि सव्वेसि भाणियव्वं', एवं चेव विदिसाहि तिणि कडा भाणियव्वा, चउत्थे ततियस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, पंचमस्स दाहिणेणं, सेसा उत्तरदाहिणेणं । फलिह-लोहियक्खेसु भोगंकर-भोगवईओ दो देवयाओ, सेसेसु सरिसणाभवा देवा। छसुवि पासायवडेंसगा, रायहाणीओ विदिसास ।। १०७. से केण→णं भंते ! एवं वुच्चइ --गंधमायणे वक्खारपव्वए ? गंधमायणे वक्खारपव्वए? गोयमा! गंधमायणस्स णं वक्खारपव्वयस्स गंधे, से जहाणामए -कोदपूडाण वा पत्तपूडाण वा चोयपूडाण वा तगरपूडाण वा एलापूडाण वा चपापूडाण वा दमणापडाण वा कंकमडाण वा चंदणपडाण वा उसीरपूडाण वा मरुयापूडाण वा जातिपुडाण वा जहियापुडाण वा मल्लियापुडाण वा हाणमल्लियापुडाण वा केतकिपुडाण वा पाडलिपुडाण वा णोमालियापुडाण वा वासपुडाण वा कप्पुरपुडाण वा अणुवायंसि उन्भिज्जमाणाण वा णिभिज्जमाणाण वा कोटेज्जमाणाण वा° पीसिज्जमाणाण वा उक्किरिज्जमाणाण वा विकिरिज्जमाणाण वा परिभुज्जमाणाण वा' 'भंडाओ भंडं १. लवास्स (अ, क ख, ब, स)। २. जं० ११३। ३. आणंदनकूडे (ख) । ४. जं० ११३५-४६ ! ५.४ (अ, प, ब)। ६. सं० पा० ....कोटपुडाण वा जाव पीसिज्जमा णाण। ७. सं० पा०—परिभुज्जमाणाण वा जाव ओराला। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५५ जंबुद्दीपण्णत्ती साहरिज्ज माणा ओराला मणुण्णा' मणहरा घाणमणणिव्वुतिकरा सव्वतो समंता गंधा अभिणिस्सर्वति भवे एयारूवे ? णो इणट्ठे समट्ठे, गंधमायणस्स णं एत्तो' इतराए चेव "कंततराए चेव पियतराए चेव मणुष्णतराए चेव मणामतराए चेव' गंधे पण्णत्ते । से एएणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ गंधमायणे वक्खारपन्वए-गंधमायणे वक्खारपव्वए । 'गंधमायणे य इत्थ" देवे महिडीए परिवसइ । अदुत्तरं च णं सासए णामधेज्जे ॥ १०८. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे उत्तरकुरा णामं कुरा पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, णीलवंतस्सर वासहरपव्वयस्स दविखणेणं, गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, मालवंतस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा णामं कुरा पण्णत्ता पाईणपडीणायया उदीणदाहिणविच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया एक्कारस सहस्सा अट्ठ बायाले जोयणसए दोण्णि य एगुणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं । तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा वक्खारपव्वयं पुट्ठा, तं जहा पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए' कोडीए' पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा'", तेवण्णं जोयणसहस्साइं आयामेणं । तीसे णं धणुं [ धणुपठ्ठे ? ] दाहिणं सद्वि जोयणसहस्साइं चत्तारि य अट्ठारसे जोयणसए दुवालस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं ॥ १०६. उत्तरकुराए णं भंते ! कुराए केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । एवं पुब्ववण्णिया जच्चेव सुसमसुसमावत्तव्वया सच्चेव यव्वा जाव" म्हगंधा मियगंधा अममा सहा तेतली सणिच्चारी" ॥ ११०. कहि गं भंते ! उत्तरकुराए जमगा णामं दुवे पव्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठजोयणसए चोत्तीसे चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए, सीवाए महाणईए [ पुरत्थिम-पच्चत्थिमेण ? ] उभओ कूले, एत्थ णं जमगा णामं दुवे पव्वयां पण्णत्ता जोयणसहस्सं उड्ढं उच्चत्तेणं अड्डाइज्जाई जोयसाई उठणं मूले एगं जोयणसहस्सं आयाम विक्खंभेणं, मज्झे अट्टमाणि जोयणसयाई आयाम विक्खंभेणं, उवरि पंच जोयणसयाई आयाम विक्खंभेणं, मुले तिष्णि जोयणसहस्साई एगं च बावट्ठ जोयणसयं किचिविसे साहियं परिक्खेवेणं, मज्झे दो जोयणसहस्साइं तिणिय बावत्तरे जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिवखेवेणं, उवरि एवं जोयणसहस्सं पंच य एकासीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, मुले विच्छिण्णा १. सं० पा० - मणुष्णा जाव गंधा । २. इतो ( क, प, स ) 1 ३. सं० पा० चेव जाव गंधे । ४. गंधमायणे तथ ( अ, ब ) 1 ५. पेलवंतस्त्र (अ, क, ख, ब, स ) ! ६. इक्कारस ( क, ख, प, स ) 1 ७. सं० पा० एवं पच्चत्थिमिल्लाए जाव पच्चत्थिमिल्लं | ८. एवं पच्चत्थिमेणं पुट्ठा ( अ, क,ख, त्रि, ब, स ) । ६. अट्ठारे ( अ, ब ) ; अट्टारस (त्रि ) । १०. जं० २७-५० ११. सणवारी (प) । १२. द्रष्टव्यम् जं ४ २०६; जी० ३।६३२ । १३. °विसेसाहिए (अ, क, ख, त्रि, ब, स ) 1 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४८ मज्झे संखित्ता उप्पि तण्या गोपुच्छसंठाणसंठिया' सव्वकणगामया अच्छा सण्हा, पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता। ताओ ण पउमवरवेश्याओ दो गाउयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं, वेइयावणसंडवण्णओ भाणियव्वो॥ १११. तेसि णं जमगपव्वयाणं उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव'.... ११२. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं दुवे पासायवडेंसगा पण्णत्ता। ते णं पासायवडेंसगा बावट्टि जोयणाई अद्धजोयणं च उड्द उच्चत्तंण, एक्कतीस जोयणाई कोसं च आयाम-विक्खंभेणं, पासायवण्णओ भाणियव्वो', सीहासणा सपरिवारा जाव एत्थ णं जमगाणं देवाणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ११३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ जमगा पव्वया? जमगा पव्वया ? गोयमा! जमगपव्व एसु णं तत्थ-तत्थ देसे तर्हि-तहि 'खुड्डाखुड्डियासु वावीसु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्पलाई जावः जमगवण्णाभाई। जमगा य एत्थ दुवे देवा महिड्डीया । ते णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव भुंजमाणा विहरंति । से तेणठेणं गोयमा! एवं वच्चइ जमगपव्यया-जमगपव्वया। अदुतरं च णं सासए णामधेज्जे जाव' जमगपव्वया-जमगपब्बया ।। ११४. कहि णं भंते! जमगाणं देवाणं जमगाओ" रायहाणीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं अण्णमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं जमगाणं देवाणं जमगाओ रायहाणीओ पण्णत्ताओ बारस जोयणसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, सत्तत्तीसं जोयणसहस्साइं णव य अडयाले जोयणसए किंचि सेसाहिए परिक्खेवेणं, पत्तंय-पत्तयं पागारपरिक्खित्ता । ते ण पागारा सत्तत्तीसं जोयणाई अद्धजोयणं च उडढं उच्चत्तेणं, मुले अद्धतेरस जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे छस्सकोसाइंग जोयणाई विक्खंभेणं, उरि तिणि सअद्धकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, मूले विच्छिण्णा, मज्झे संखित्ता, उप्पि तणुया, बाहिं बट्टा, अंतो चउरंसा, सवरयणामया अच्छा। ते णं १. जमगठाण (अ,क,प,ब,स,पुवृ,शावृहीत्र); ५. बहवे खुड्डाखुड्डियाओ जाव बिलपतियाओ जीवाभिगमे (३१६३२) तु गोपुच्छसंस्थान- (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। सस्थितः (पुर्व); यमको यमल जातो म्राटरौं ६ जी० ३१६३७ । तयोर्यत्संस्थानं तेन संस्थिती, परस्परं सदृश- ७. जी. ३१६३७ । संस्थानावित्यर्थः; अथवा यमका नाम शकुनि- ८. ० ३१२२५ । विशेषास्तसंस्थानसंस्थिती संस्थानं चानयो- . जमगा पब्वया (अ,क,ख,ब,स)। मलतः प्रारम्भ्य संक्षिप्त-संक्षिप्तप्रमाणत्वेन १०. जमिगाओ (क,ख प स,पूर्व,शाबू) । प्रायः गोपुच्छस्येव बोध्यम् (शाव) । सर्वत्र। जीवाजीवाभिगमे (३२६३८)। पि २. जं० २१०-१३ । 'जमगाओ' इति पाठो विद्यते । ३. जी० श६३३। ११. छच्च सकोसाइं (क,ख,स)। ४. जी० ३१६३४,६३५) । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૦ पागारा णाणामणिपंचवण्णेहिं कविसीस एहि उवसोहिया, तं जहा हि । तेणं कविसीसगा अद्धकोसं आयामेणं, देसूणं अद्धकोसं धणुसयाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमया अच्छा ॥ ११५. जमगाणं रायहाणीणं एगमेगाए बाहाए पणवीसं पणवीसं दारसय पण्णत्तं । ते णं दारा बावट्ठ जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढ उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खभेणं, तावइयं चैव पवेसेणं, सेया वरकणगथुभियागा एवं रायप्प सेणइज्जविमाणवत्तव्वयाए' दारवण्णओ जाव' अट्ठट्ठमंगलगाई ॥ ११६. जमयाणं रायहाणीणं 'चउद्दिसि पंच-पंच जोयणसए अवाहाए" चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा - असोगवणे सत्तिवण्णवणे* चंपगवणे चूयवणे । ते णं वणसंडा साइरेगाई बारसजोयणसहस्साई आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खभेणं, पत्तेयं-पत्तेयं पागारपरिक्खित्ता किव्हा वणसंडवण्णओ, भूमीओ पासायवडेंसगा य भाणियव्वा ।। ११७. जमगाणं रायहाणीणं अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, वण्णगो" ॥ ११८. 'तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं दुवे उवयारियालयणा पण्णत्ता- बारस जोयणसयाई आयाम विक्खंभेणं, तिष्णि जोयण १. वत्तव्या ( अ, क, ख, त्रि.ब, न, पुवृ, ही ) । २. राय० सू० १२६-१६८ । ३. जवियाणं ( अ, ख, ब ) । ४. पंच-पंच जोयणसए अबाहाए चउद्दिसि (अ. क. खत्रि, बस, पुवृ, ही वृ); रायपसेणइयसूत्रे ( १७० ) जीवाजीवाभिगमे (१३५८) च स्वीकृतपाठसंवादी पाठो विद्यते । ५. सत्तवण्णवणे (त्रि ) । ६. जी० ३१३५८ । ७. जी० ३।३५६ । ८. वण्णओ ( अ.ब); वणतो ( ख ) ; जी० ३।३६० । ६. चिन्हाङ्कितः पाठः 'अ, क, ख, त्रि,व' आदर्शेषु नास्ति । हीरविजयसूरिणा अस्थ पाठस्य अपेक्षा प्रत्यवादि अत्र तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्थ भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ गंएगे मह उवयारियालयणे पण्णत्ते बारसजोयणसयाई आयाम विक्खंभेणमित्यादिसूत्रं श्रीजीवाभिगमतोऽध्याहृत्याध्येतव्यं तत्र उपकरिकालयन उपकरोत्युपष्टस्वातीति जंबुद्दीवपण्णत्ती किण्हेहि जाव सुविकउड्ढं उच्चत्तेणं, पंच कस्य उपकारिका राजधानीस्वामीसत्कप्रासादावतंस - कादीनां पीठिका उपकारिकालयनमिवोपकारिकालयन यत् अन्यथा तिजोयणसहस्साइमित्यादि परिक्षेपप्रतिपादकस्य तत्रानुपपत्तेः विष्कम्भाद्युपेत पदार्थ परिज्ञानाभावे परिक्षेप उपवर्ण्यते ग्रामो नास्ति कुतः सीमेति वचनात् अध्याहृतसूत्रस्याभिधेयं यदुपकारिकालयनं तस्य परिधिमाह । उपाध्यायशान्ति चन्द्रेण एप पाठ: साक्षाल्लिखित, अप्राप्तिश्च लेखकप्रमादात् प्रतिपादिता - अत्र च उपकारिकालधनसूत्रमादर्शेष्वदृश्यमानमपि राजप्रश्नीसूर्याभविमानवर्ण के जीवाभिगमे विजयाराजधानीवर्णके व दृश्यमानत्वात् तिणि जोयणसहस्काई सत्त य पंचाणउए जोयणसए परिक्खेवेण मित्यादिसूत्रस्यान्यथानुपपतेश्च जीवाभिगमतो लिख्यते, आदर्शष्यदृश्यमानत्वं च लेखक गुण्यादेवेति, तद्यथा— 'तेसि ण' मित्यादि । प्रस्तुतपाठस्य सम्बन्धावलोकनार्थं द्रष्टव्यं -- राय० सू० १८८ जीवाजीवाभिगमे ३।३६१ । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ art वक्खारो सहस्साई सत् य पंचणउए जोयणसए परिक्खेवेणं, अद्धकोस' च बाहल्लेणं, सव्वजंबूणयामया अच्छा, पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता, पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडवण्णओ भाणियव्वो, तिसोवाणपडिरूवगा तोरणा चउद्दिसि भूमिभागो य भाणियव्वो' || ११६. तस्स णं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं 'एगे पासायवडेंसए पण्णत्ते" [ दुवे पासायवडेंसया पण्णत्ता ? ] -बाबट्ठि जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोस च आयाम - विक्खभेणं, वण्णओ', उल्लोया भमिभागा सीहासणा सपरिवारा। एवं पासायांतीओ एक्कतीसं जोयणाई कोसं च उड्हें उच्चत्तेणं, साइरेगाई अद्धसोलसजोयणाई आयाम विक्खभेणं । बिइयपासायांती* ते णं पासायवडेंसया साइरेगाई अद्धसोलसजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, साइरेगाई अद्धट्टमाई जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं । तइयपासायापंती - ते णं पासायवडेंसया साइरेगाई" अट्टमाई जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, साइरेगाई अद्धजोयणाई आयाम - विक्खंभेणं, वण्णओ", सीहासणा सपरिवारा ॥ १२०. तेसि णं मूलपासायवडेंसयाणं उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं जमगाणं देवा सभाओ सुहम्माओ पण्णत्ताओ अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं, छस्सकोसाई जोयणाई विक्खंभेणं, णव जोयणाई उड्ढ उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसण्णिविट्ठा, सभावण्णओ" || १२१. तासि णं सभाणं सुहम्माणं तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता । ते णं दारा दो जोयणाई उड़ढं उच्चत्तेणं, जोयणं विक्खभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया, वण्णओ जाव १. अद्धजोयणं (अ,क. खत्रि,ब,स,पुवृ, हीवृ); अत्र 'जोपणं' इति पदं लिपिमादादागतमिति सम्भाव्यते, हरिविजयसूरिणा उपाध्यायपुण्यसागरेण च आदर्शेषु यथा पाठो लब्धस्तथैव टोकितः । जीवाजीवाभिगमे ( ३/३६१) 'अद्धकोi' इत्येव पाठो दृश्यते । २. जी० ३।३६२-३६४ । ३. x ( अ, क, ख, त्रि, बस, पुवृ, ही वृ.) । ४. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'दुवे मूलपासायवडेसया पण्णत्ता' इति पाठो युज्यते, एपा सम्भावना १२० सूत्रस्य 'तेसि णं मूलपासायवडेंसयाणं' इति पाठेन संपुष्टा भवति । किन्तु सर्वादशेष्वपि पानागवडे गए पण्णत्ते' इति पाठी लभ्यते । महोपाध्यायपुण्यसागरेण प्रस्तुतप्रश्नस्य समाधानार्थं कश्चित् प्रयत्नः कृतः - एकवचननिर्देशस्तु एकैकस्मिन् भूमिभागे एककस्य प्रासादस्य सद्भावात् । ५. जी० ३।३६४-३६७ । ६. प्रस्तुतप्रकरणे संक्षिप्तः पाठः उपलभ्यते, अस्य ४६१ सम्यगवबोधार्थ जीवाजीवाभिगमस्य ३।३६८ सूत्रमवलोकनीयमस्ति । तत्र एवं पाठो विद्यते'से णं पासाववडेंसए अण्णेहिं चउहिं' तदद्धुच्चतप्पमाणमेत्तेहि पासाथवडेंस एहि सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते । ते णं दासायवडेंसगा एगतीसं जोयणाई' इत्यादि । ७ बीतित (अस); द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३।३६६ सूत्रम् । ८. ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ६. द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३।३७० सूत्रम् । १०. x ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) 1 ११. जी० ३१३७० १२. यद्यपि जीवाभिगमे विजयदेवप्रकरणे तथा श्री भगवत्वङ्गवृत्ती चम प्रकरणे प्रासादपंक्तिचतुष्कं तथाप्यत्र यमकाधिकारे पंक्तित्रयं बोध्यम् (शावृ) । १३. जी० ३/३७२ १४. जी० ३।३७३ ॥ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९२ जंबुद्दीवपणतो वणमाला ॥ १२२. तेसि ण दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तओ मुहमंडवा पण्णत्ता । ते णं मुहमंडवा अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं, छस्सकोसाई जोयणाई विक्खंभेणं, साइरेगाइं दो जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं जाव' दारा भूमिभागा* य ।। १२३. पेच्छाघरमंडवाणं तं चेव पमाणं भूमिभागो मणिपेढियाओ। ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ सीहासणा भाणियव्वा ॥ १२४. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ 'दो जोयणाई' आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ॥ १२५. तासि णं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं 'थूभा पण्णत्ता । ते णं थूभा 'दो जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, 'दो जोयणाई' आयाम-विक्खंभेणं, सेया संखतलविमल-णिम्मल-दधिघणगोखीर-फेण-रययणिगरप्पगासा जाब" अट्ठमंगलया ॥ १२६. तेसि णं थूभाणं चउद्दिसि चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, जिणपडिमाओ२ वत्तव्वाओ। चेइयरुक्खाणं मणिपेढियाओ दो" जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं, चेइयरुक्खवण्णओ५॥ १२७. तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरओ तओ मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं ।। १२८. तासि णं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं महिंदज्झया पण्णत्ता । ते णं अट्ठमाइं जोयणाई १. जी० ३१३७४,३७५ ।। पण्णत्ते (जी. ३:३८१) । २. भूमिभागो (क,ख,त्रि,स)। ८. सातिरेगाइं दो जोयणाई (जी० ३१३८१)। ३. जी० ३।३७६ । ६. जोयणं (अ,क,ख,त्रि,ब,स); अयमपि पाठः ४. जी० ३,३७७-३७६ । 'प' सङ्केतितादर्श शान्तिचन्द्रीयदृत्ति चानुसृत्य ५,६. जायणं, अद्धजोयणं. (अ,क,ख,त्रि,ब,स); स्वीकृतः । वृत्तिकर्तुः टिप्पणी एवमस्ति-द्वे स्वीकृत पाठः ' सङ्कतितादर्श शान्तिचन्द्रीय- योजने ऊध्वोच्चत्वेन द्वे योजने आयामवृत्तः परम्परानुसारी वर्तते । अस्य पाठस्य विष्कम्भाभ्यां व्याख्यातो विशेष प्रतिपत्ति' रिति विषये उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण एका टिप्पणी देशोने द्वे योजने आयामविष्कम्भाभ्यां ग्राह्ये, चापि कृतास्ति-यद्यप्येतत्सूत्रादर्शषु 'जोयणं अन्यथा मणिपीठिकास्तूपयोरभेद एड स्यात् । आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहलेणं' इति १०. संखदल (प,शाव)। पाठो दृश्यते तथापि जीवाभिगमपाठदृष्टत्वेन ११. जी० ३१३८१,३८२ । राजप्रश्नीयादिषु प्रेक्षामण्डपमणिपीठिकातः १२. जिणपडिमाओ चेव (अ,ब)। स्तूपमणिपीठिकाया: द्विगुणमानत्वेन दृष्टत्वा- १३. जी. ३३८३,३८४ ॥ च्चायं सम्यक् पाठः सम्भाव्यते, आदर्शषु लिपि- १४. (अ,ब) । प्रमादस्तु सुप्रसिद्ध एव। १५. जी० ३।३८५-३६१ । ७. तो थूभा (अ,क,ख,त्रि ,ब,स); चेइयथूभे Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरथो वक्खारो उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उच्चेहेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, वडरामय वट्टलट्ठसंठिय-सुसिलिट्ठपरिघट्टमट्ठसुपतिट्ठा वण्णओ' । वेइगा-वणसंड- तिसोवाण- तोरणा य भाणियव्वा' ।। १२६. तासि णं सभाणं सुहम्माणं छच्च मणोगुलियासाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहापुरत्थिमेणं दो साहस्सीओ पण्णत्ताओ, पन्चत्थिमेणं 'दो साहस्सीओ" दाहिणेणं एगा साहस्सी, उत्तरेणं एगा जाव दामा चिट्ठेति ॥ १३०. एवं गोमाणसियाओ, णवरं - धवघडियाओ || १३१. तासि णं सुधम्माणं सभाणं अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते " ।। १३२. मणिपेढिया दो जोयणाई आयाम विक्खभेणं, जोयणं बाहल्लेणं ॥ १३३. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि माणवए चेइयखंभे महिंदज्झयप्पमाणे ॥ १३४. उवरिं” छक्कोसे" ओगाहित्ता हेट्ठा छक्कोसे वज्जित्ता 'जिणस कहाओ पण्णत्ताओ" || १३५. माणवगस्स पुव्वेणं सीहासणा सपरिवारा”, पच्चत्थिमेणं मयणिज्जा, वण्णओ || १३६. सयणिज्जाणं उत्तरपुरत्थि मे " दिसिभाए खुड्डगमहिंदज्झया मणिपेढियाविहूणा महिदज्झयप्पमाणा ॥ १३७. तेसि अवरेण चोप्पाला पहरणकोसा । तत्थ णं बहवे फलिहरयणपामोक्खा जाव चिट्ठति ॥ १३८. सुहम्माणं उपि अट्ठट्ठमंगलगा" ॥ १३. तासि णं उत्तरपुरत्थिमेणं सिद्धायतणा । एसेव जिणघराणवि गमो, णव २३इमं णाणत्तं - एतेसि णं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं - पत्तेयं मणिपेढियाओ दो जोयणाई आयाम १. जी० ३।३६३, ३६४ । २. उक्ता महेन्द्रध्वजा, अथ पुष्करिण्यः ताश्च 'वेइयावणसंड' इत्यादिपर्यन्तसूत्रेण संगृह्यते ( शाबू ) । ३. जी० ३।३६५, ३६६ । ३।४०२, ४०३ सूत्रम् ११,१२. छाक से ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) १३. जिणसकहा वष्णओ (क.ग ) १४. जी० ३१४०४,४०५ 1 १५. जी० ३।४०६, ४०७ । १६. उत्तरओ ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) 1 १७. खुड्डाग° (क, ख, स ) । १८. जी० ३१४०८.४०६ ॥ ४. दोणि ( अ, ब ) ; दुण्णि ( क, ख, त्रि, स ) T ५ जी० ३।३६७ ६. जी० ३३६८ । ७. धूवघडिया (अब); धूवघडिओ ( क, ख, १६. पामुक्खा (क, ख, त्रि, प, स ) 1 २०. जी० ३१४१० ४६३ त्रि,स) । ८. अत्र मणिवर्णादयो वाच्याः उल्लोकाः पद्मलतादयोपि च चित्ररूपाः (शाबू ) ; जी० ३:३६६, २१. सुधर्म योरुपर्यष्टाष्टमङ्गलकानि इत्यादि तावद् वक्तव्यं यावद् बहवः सहस्रपत्र हस्तकाः सर्वरत्नमया इत्यादि (शा) 1 ४००। ६. जं० ४। १३२ । २२. सिद्धायणाओ ( अ, ब ) । १०. पूर्णपाठावबोधार्थं द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य २३. णवर ( अ, क, ब, स ) 1 Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ जंबुद्दीवपण्णत्ती विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं । तासि उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं देवच्छंदया पण्णत्ता--दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामया। जिणपडिमा, वण्णओ जाव' धूवकडुच्छुगा । १४०. एवं चेव अवसेसाणवि सभाणं जाव उववायसभाए' सयणिज्जं 'हरओ य" अभिसेयसभाए बहू आभिसेक्के भंडे', अलंकारियसभाए' बहू अलंकारियभंडे' चिट्ठइ, ववसायसभासु पोत्थयरयणा, णंदा पुवखरिणीओ, बलिपेढा ‘दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं' जावसंगह-गाहा--- उववाओ संकप्पो, अभिसेय विहूसणा य ववसाओ । अच्चणियसुधम्मगमो, जहा य परिवारणाइड्ढी" ॥१॥ जावइयंमि पमाणंमि, हुंति जमगाओ" णीलवंताओ२ । तावइयमंतरं खलु, जमगदहाणं दहाणं च ॥२॥ १४१. कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए णीलवंतदहें णाम दहे पण्णत्ते ? गोयमा! जमगाणं * दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठसए चोत्तीसे चत्तारि य सत्तभाए 'जोयणस्स अवाहाए' सीयाए महाणईए बहुमज्झदेसभाए, 'एत्थ णं णीलवंतद्दहे णामं दहे पण्णत्ते".... दाहिणउत्तरायए पाईणपडीणविच्छिण्णे जहेव पउमद्दहे तहेव वण्णओ मेयन्वो, णाणत्तंदोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ते, ‘णीलवंते णाम णागकुमारे देवे, सेसं तं चेव णेयव्वं ॥ १४२. णीलवंतदहस्स पुव्वावरे पासे 'दस दस'२१ जोयणाई अबाहाए, एत्थ णं वीसं १.जी. ३.४१२-४२० । ६. यावत्पदात 'सव्वरयणामया अच्छा पासाईया २. x (प,शावृ)। ४'। (शाव); जी० ३।४२१-४३८ । ३. ओतावसभाए (क)। १०. परियारणाइड्ढी (अ,ख,त्रि,ब); परिआरणा४. 'अ,क,ख,पि,ब,स,पुव हीच' एतेषु सर्वेष्वपि इड्ढो (क,रा)। हरओ य' इति पाठः 'आभिसेक्के भंडे' इति ११. जवगाओ (अ,ब) । पाठानन्तरं विद्यते, किन्तु जीवाजीवाभिगमस्य १२. लवंताओ (अ,क,ख,ब) । ३,४२५ सूत्रस्यावलोकनेन एतज्ज्ञायते—उप- १३. जवग (अ,ब)। पातसभायाः उत्तरपौरस्त्ये ह्रदो विद्यते, तस्य १४. जेलमंतहहे (अ,ब) 1 उत्तरपौरस्त्ये अभिषेकसभा विद्यते, अतः 'हरओ १५. जवगाणं (अ,ब); जमिगाणं (ज)। य' इति पाठः अभिषेकसभातः पूर्वमेव १६. अबाहाए जोयणस्स (अ,त्रि,ब,स); आबाहाए युज्यते। ___ जोयणस्स (क,ख) । ५. भंडे हरओ य (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १७. x (अ,क,ख,ब,स)। ६. आलंकारियसभाए (अ,ब)। १५. पादीणपडिण° (अ,ब) | ७. आलंकरिय° (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । १६. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ८. सव्वरयणामया' सकोसं जोयणं बाहल्लेणं २०. जं० ४१३.२२ । (अ,क,ख,त्रि,बस पुवाही)। २१. दह २ (अ,क,ख,ब,स)। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४१५ कंचणगपव्वया पण्णत्ता- एग जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं-- गाहा मूलंमि जोयणसयं, पण्णत्तरि जोयणाई मज्झं मि । उवरितले कंचणगा. पण्णासं जोयणा हंति ॥२॥ मूलंमि तिणि सोले, सत्तत्तीसाइं दुण्णि मज्झमि । अट्ठावण्णं च सयं, उवरितले परिरओ होइ ॥२॥ पढमोत्थ' नीलवंतो', बितिओ' उत्तरकुरू मुणेयव्वो। चंदद्दहोत्थ तइओ, एरावण मालवंतो य ॥३॥ एवं वण्णओ, अट्ठो पमाणं पलिओवमट्टिइया देवा ॥ १४३. कहि णं भंते । उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे णामं पेढे पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपब्वयस्स दक्खिणेणं, मंदरस्स उत्तरेणं [उत्तरपुत्थिमेणं ?५], मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं [गंधमादणस्स वखारपव्वयस्स पुरथिमेणं ? ६], सीयाए महाणईए पुरथिमिल्ले कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे णाम पेढे पण्णत्ते- पंच जोयणसयाई आयाम-विक्खंभेणं, 'पण्णरस एक्कासीयाई” जोयणसयाई किचिविसेसाहियाइं परिक्खेवेणं, बहमज्झदेसभाए बारस जोयणाई बाहल्लेणं, तयणंतरं णं 'मायाए-मायाए० पदेसपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे सव्वेसु णं चरिमपेरतेसु दो-दो गाउयाई बाहल्लेणं, सव्वजंबूणयामए अच्छे । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । दुण्हंपि वण्णओ" || १४४. तस्स णं जब पेढस्स चउद्दिसि एए चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वपणओ जाव२ तोरणाई। १४५. तस्स णं जंबूपे ढस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मणिपेढिया पण्णत्ता-- अट्ठजोयणाई आयाम-विक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं ।। १४६. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं जंबू सुदंसणा पण्णत्ता-अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धजोयणं उब्वेहेणं । तीसे णं खंधो दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्ध १. पदमित्य (क,ख,त्रि,प,स) ! तथापि गंधमादणस्स वक्खारपन्वयस्स पुर२. णेल मंतो (अ,ब)। त्थिमेणं इति' पाठो युज्यते। जीवाजीवाभिगमे ३. पितिओ (अ,ब)। (३१६६८) पि एवंविधः पाठो लभ्यते । ४. एरावय (प,शावृ)। ७. पण्णरसे एक्कतीसाइं (अ.ब); पण्णरसेक्का५. यथा देवकुरुप्रकरणे (४१२०७) मंदरस्स सीयाई (क,ख,त्रि,स)। पव्वयस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं इति पाठोस्ति ८.x (अ,ब)। तथात्रापि' 'मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं' ६. विसेसाहिए (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। इति पाठो यूज्यते। जीवाजीवाभिगमे १०. माताए २ (अत्रि,ब)। (३।६६८) पि एवंविधः पाठो लभ्यते । ११. जं० २१०-१३॥ ६. यथा देवकुरुप्रकरणे (४।२०७) 'विज्जुप्पभस्स १२. जी० ३१२८७-२६१ । वक्खारपब्वयस्स पुरस्थिमेणं' इति पाठोस्ति Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૨૬ जंबुद्दीवपण्णत्ती जोयण बाहल्लेणं । तीसे णं साला छ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं अट्ठ जोयणाई सव्वम्मेणं । तीसे णं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते 'वइरामय मूल - रययसुपइट्टियविडिमा" जाव' अहियमणणिव्वुइकरी पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ १४७. जंबूए णं सुदंसणाए चउद्दिसिं चत्तारि साला पण्णत्ता । 'तेसि णं सालाणं बहुमज्झदेस भाए, एत्थ णं सिद्धाययणे पण्णत्ते कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, aari को उड्ढ उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयस णिविट्ठे जाव दारा पंचधणुसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं जाव वणमालाओ, मणिपेढिया पंचधणुसयाई आयाम विवखंभेणं, अड्ढाइज्जाई धणसयाई बाहल्लेणं । तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि देवच्छंदए पंचधणुसयाई आयाम विक्खंभेणं, साइगाई पंचधणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, जिणपडिमा वण्णओ सव्वो यव्वों" । तत्थ णं जेसे पुरथिमिल्ले साले, एत्थ णं भवणे पण्णत्ते 'कोसं आयामेणं'' एमेव, " णवरमित्थ सणिज्जं, सेसेसु पासायवडेंसया सीहासणा 'य सपरिवारा " ।। १४८. जंबू णं बारसहिं पउमवरवेइयाहि सव्वओ समता संपरिक्खित्ता, वेइयाणं वण्णओ" ॥ १४६. जंबू णं अण्णेणं असणं जंबुणं तदद्धच्चत्ताणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता, तासि णं वण्णओ" । ताओ णं जंबू छहि परमवरवेइयाहि संपरिक्खित्ता ॥ १२ १५० जंबूए णं सुदंसणाए 'उत्तरपुरत्थिमेणं उत्तरेणं उत्तरपच्चत्थिमेणं एत्थ णं अणाढियस्स देवस्स चण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि जंबूसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ॥ 13 १. वइरामय। मूला रतयामया विडिमा सुविदिसि ( अ, ब ) वइरामया मूला रजतमया विडिमा सुविदिति (कख); वइरामया मुला रजतमया विडिमा सुदिसि (त्रि, होवृ ) वरामया मूला रयतामया विडिमा ( स, पुवृ ) : जीवाभिगमे तु वज्रमयमूला रजतमयसुप्रतिष्ठितविडिमा इत्यादिरूपो वर्णको दृश्यते ( पुवृ) 1 २. जी० ३१६७२ । ३. तेसि ( अ, ब ) । ४. उपरितनविडिम शालायामित्यध्याहार्य जीवा- १०. जं० १११०,११ । भिगमे तथा दर्शनात् ( शावृ ) । ११. जी० ३।६७६ ५. जी० ३।६७४-६७७ । ६. x ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । १२. उत्तरेणं पुरत्थिमेणं दविखणेणं ( क ) ; उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमेणं (जी० ३।६७०) | ७. जी० ३।६७३ । ५. जी० ३३६७३ । १३. सामाणियदेवसाहस्तीर्ण ( क, ख, त्रि, स ) । ६. अपरिवारा (क, स ) ; सीहासणा अपरिवारति अत्र प्रासादेषु सिंहासनानि अपरिवाराणि किमुक्त भवति एकैकस्य प्रासादावतंसकस्य मध्ये पञ्चधनुः शतायामविष्कम्भा अर्धतृतीयधनुः शतबाहल्या मणिमयी पीठिका । तासां च मणिपीठिकानामुपरि प्रत्येकमनादृतदेवयोग्यं सर्वरत्नमयं भद्रासनरूपपरिवाररहितं वाच्यमिति (पुवृ); सिहासनानि चापरिवाराणि परिवाररहितानि वाच्यानि, क्वचित् परिवारा इत्यपिपाठ: ( ही ) | Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थो वक्खारी ४९७ १५१. तीसे णं पुरथिमेणं चउण्हं अग्गमहिसीणं' चत्तारि जंबूओ पण्णत्ताओ-- गाहा दविखणपुरस्थिमे, दविखणेण तह अवरदविखणेणं च । अट्ठ दस बारसेव य, भवंति जंबूसहस्साइं ॥१॥ अणियाहिवाण पच्चत्थिमेण सत्तेव होंति जंबूओ। - सोलस साहस्सीओ, चउद्दिसि आयरक्खाणं ॥२॥ १५२. जंबूए णं तिहिं सइएहि वणसंडेहि सवओ समंता संपरिक्खित्ता [तं जहा-- अभंतरएणं मज्झिमेणं बाहिरेणं ?२] ॥ १५३. जंबुए णं पुरत्थिमेणं पण्णासं जोयणाइं पढम वणसंडं ओगाहित्ता, एत्थ णं भवणे पण्णत्ते - कोसं आयामेणं, सो चेव वण्णओ' सयणिज्जं च । एवं सेसासुवि दिसासु भवणा । १५४. जंबूए णं उत्तरपुरस्थिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा---पउमा पउमप्पभा कुमुदा कुमुदप्पभा। ताओ णं कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, पंचधणुसयाइं उव्वेहेणं, वण्णओ। १५५. तासि ण मज्झे पासायवडेंसगा- - कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसणगं कोस उड्ढे उच्चत्तेणं, वण्णओ, सीहासणा सपरिवारा, एवं सेसासु विदिसासुगाहा पउमा पउमप्पभा चेव, कुमुदा कुमुदप्पहा । उप्पलगुम्मा णलिणा, उप्पला उप्पलुज्जला .११॥ भिंगा भिंगप्पभा चेव, अंजणा कज्जलप्पभा। सिरिकता सिरिमहिया, सिरिचंदा चेव सिरिनिलया ॥२॥ १५६. जंबूए णं पुरथिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं, उत्तरपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दक्खिणेणं, एत्थ णं 'महं एगे' कूडे पण्णत्ते--अट्ठ ,जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाई उव्वेहेणं, मूले अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, बहुमज्झदेसभाए छ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, उरि चत्तारि जोयणाई आयाम-विक्खंभेणंगाहा पणवीसट्टारस बारसेव मूले य मज्झमुवरि" च । सविसेसाई परिरओ, कूडस्स इमस्स बोद्धव्वो ॥१॥ १. अग्गबरमहिसीणं (अ,ख,ब)। ५. जी. ३१६८३,६८४ । २. शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ तद्यथा-अभ्यंतरेण मध्य- ६. भिगणिभा (क,ख,जी० ३६५७। मेन बाह्येनेति' इति व्याख्यातमस्ति । जीवा- ७. कज्जला (स)। जीवाभिगमेपि (३१६८१) एष पाठः उपलभ्यते ८. सिरियंदा (अ,क,ख,त्रि.ब.स) । तं जहा.-अब्भंतरएणं मज्झिमेणं बाहिरेणं! ६. x (अ,क,ख,प,ब,स); एगे महं (विहीर)। तेन आदर्शषु अनुपलब्धोपि एष पाठो युज्यते । १०. मज्झ उरि (क,ख,स); मगले वरि ३. जी० ३१६७३ । (त्रि); मज्झि उरि (प)। ४. जी० ३१२८६ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ जंबुद्दीवपण्णत्ती मूले विच्छिण्णे, मज्झे संखित्ते, उरि तणुए, सव्वकणगामए' अच्छे वेइया-वणसंडवण्णओ । एवं सेसावि कूडा ।। १५७. जंबूए णं सुदंसणाए दुवालस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा---- गाहा सुदंसणा अमोहा य, सुप्पबुद्धा जसोहरा। विदेहजंबू सोमणसा, णियया णिच्चमंडिया ॥१॥ सुभद्दा य विसाला य, सुजाया सुमणा वि या। सुदंसणाए जंबू ए, णामधेज्जा दुवालस ॥२॥ १५८. जंबए णं अटूटूमंगलगा ॥ १५६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जंबू सुदंसणा? जंब सुदंसणा? गोयमा ! जंबूए णं सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे जंबुद्दीवाहिवई परिवसइ-महिड्ढीए । से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं, जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स, जंबूए सुदंसणाए, अणाढियाए रायहाणीए, अण्णेसि च बहूणं देवाण य देवीण य जाव विहरई'। से तेणठेणं गोयमा ! एवं उच्चइ.-जंबू सुदंसणा-जंबू सुदंसणा। अदुत्तरं च णं गोयमा ! जंबू सुदंसणा जाव भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवा णियया सासया अक्खया अवट्ठिया ।। १६०. कहि णं भंते ! अणाढियस्स देवस्स अणाढिया णामं रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स उत्तरेणं, जं चेव पुत्ववणियं जमिगापमाणं तं १. कणगमए (अत्रि,ब)। शान्तिचन्द्रेण प्रस्तुतपाठस्य विषये एका महत्त्व.२. जं०१।१०.१३ । पूर्णा टिप्पणी कृतास्ति-यद्यप्यनादता राज. ३. जी० ३.६८६-६६८ । धानीप्रश्नोत्तसूत्रे सुदर्शनाशब्दप्रवृत्तिनिमित्त४. णितिया (अ,क,ख,वि,ब,स)। प्रश्नोत्तरसूत्रनिगमनसूत्रान्तगते बहुप्वादशेषु ५. भद्दा (अ,क,ख ब,स)। दृष्टे तथापि से तेणठेण' मित्यादि निगमन६. णं उप्पि (अ,ब)। सूत्रमुत्तरसूत्रान्तरमेव वाचयितणामव्यामोहाय ७. मंगला (क,ख,स)। उपलक्षणाद् ध्वजच्छ- सूत्रपाठेस्माभिलिखितं व्याख्यातं च, उत्तरसूत्रा. __ त्रादिसूत्राणि वाच्यानि (शाद)। नन्तरं निगमनसूत्र यत्र पौक्तिकत्वादिति, अथा८. x (प) परं गौतम ! यावच्छब्दाज्जम्ब्वाः सुदर्शनाया ६. जं० ४।१५१। एतच्छायतं नामधेयं प्रज्ञप्तं यन्न कदाचिन्ना१०. जी० ३१३५० सीदित्यादिकं ग्राह्य नाम्नः शाश्वतत्वं दर्शितम्, ११. अतः परं प्रस्तुतसूत्रस्य. समग्रोपि पाठः '' अथ प्रस्तुतवस्तुनः शाश्वतत्वमस्ति नवेत्या... सङ्कतिता प्रति शान्तिचन्द्रीयवृत्तिं च मुक्त्वा शहां परिहन्नाह-'जंबुसुदंसणा' इत्यादि, गर्वेष्वपि आदर्शषु वृत्तिद्वयेपि च परवर्तितसूत्रे व्याख्यास्य प्राग्वत् । 'निरवसेसो' इति पदानन्तरं विद्यते । उपाध्याय- १२. जं० २४७ । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ४६६ चेव णेयव्वं जाव' उववाओ अभिसेयो य निरवसेसो । १६१. से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ- उत्तरकुरा उत्तरकुरा ? गोयमा ! उत्तरकुराए उत्तरकुरू णामं देवे परिवसइ- 'महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वच्चइ-उत्तरकुरा-उत्तरकुरा। अदुत्तरं च णं जाव' सासए॥ १६२. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे मालवंते णामं वक्खारपव्वए पण्णते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं, नीलवंतस्स” वासहरपब्वयस्स दाहिणेणं, उत्तरकुराए पुरथिमेणं, कच्छस्स चक्कवट्टिविजयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे मालवंते णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते --- उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे, जं चेव गंधमायणस्स पमाणं विक्खंभो य, णवरमिमं णाणत्तं-सव्ववेरुलियामए अवसिठं तं चेव जाव गोयमा ! नव कूडा पण्णत्ता, तं जहा--सिद्धाययणकूडे ।। गाहा -- सिद्धे य मालवंते, उत्तरकुरु कच्छ सागरे रयए"। सीया य पण्णभद्दे", हरिस्सहे चेव बोद्धध्वे ॥१॥ १६३. कहि णं भंते ! मालवंते वक्खारपव्वए सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं, मालवंतकूडस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, एत्थ णं सिद्धाययणे कूडे'3- पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अवसिट्ठ तं चेव जाव रायहाणी। एवं मालवंतकूडस्स उत्तरकुरुकूडस्स कच्छकूडस्स एए चत्तारि कूडा दिसाहि पमाणेहि य णेयव्वा", कूडसरिसणामया' देवा ।। १६४. कहि णं भंते ! मालवंते सागरकडे नामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा! कच्छकूडस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, रययकूडस्स" दक्खिणेणं, एत्थ णं सागरकूडे णामं कूडे पण्णत्ते पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, 'अवसिळं तं चेव"८ सुभोगा देवी, रायहाणी १. जं० ४१११४-१४०। १०. रुचककूटं पाठान्तरे रजतकूटं (पुर्व); इदं २. निरवसेसो से तेणट्टेणं गो एवं वुच्चइ जंबू चान्यत्र रुचकमिति प्रसिद्धम् (शाव)। सुदंतणा जाव भुवि च ३ धुवा णितिया सासया ११. पुण्णगामे (अ,क,ख,ब,स); क्वचित् पूर्णनाअक्खया अवट्ठिया। अदुत्तरं च णं गोयमा जाव मेति पाठ: (ही)। पडुच्च (अ,क,ख,त्रि,ब,प,पुवहीव) । १२. हरिकूडे (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ३. जं० २१२४ १३. प्रज्ञप्तमिति गम्यम् (शा) । ४. जं० २४७ १४. जं०४:४५-४७ । ५. गेलमंतस्स (अ,ब) प्रायः सर्वत्र। १५. जं० ४१४८-५२। ६. पादीण (अ,ख,त्रि,ब,स)। १६. सरिणामया (अ,क,ख,स)। ७. पमाणं च (अ,ब) । १७. रयणकूडस्स (अ,ख,ब); रजतकूडस्स (क)। ८. जं० ४११०३-१०५ । १८. X(अ,ख,त्रि,बस) । ६. सिद्धायण° (अ, ब) प्रायः सर्वत्र । Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० बुद्दीपणती उत्तरपुर स्थिमेणं । रययकूडे भोगमालिणी देवी, रायहाणी उत्तरपुरत्थिमेणं' । अवसिट्टा कूडा उत्तरदाहिणेणं णेयव्वा एक्केणं पमाणेणं ॥ १६५. कहि णं भंते ! मालवंते हरिस्सहकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! पुण्णभद्दस्स उत्तरेणं, णीलवंतस्स कूडस्स दक्खिणेणं, एत्थ णं हरिस्तहकडे णामं कूडे पण्णत्ते- एवं जोयणसहस्सं उड्ढं उच्चत्तेणं, जमगपमाणेणं णेयव्वं । रायहाणी उत्तरेणं असंखेज्जदीवे* अमि जंबुद्दीचे दीवे उत्तरेणं बारस जोयणसहस्सा ओगाहित्ता, एत्थ णं हरिस्सहस्स देवरस हरिस्सहा णामं रायहाणी पण्णत्ता -- चउरासीइं जोयणसहस्साई आयाम - विक्खभेणं, बे जोयणसयसहस्साइं पण्णतिं च सहस्साइं छच्च बत्तीसे जोयणसए परिक्खेवेणं, सेसं जहा चमरचंचाए रायहाणीए तहा पमाणं भाणियव्वं", महिड्डीए महज्जुईए' || १६६. से केणट्ठे णं भंते ! एवं बुच्चइ - मालवंते वक्खारपव्वए ? मालवंते वक्खारपव्वए ? गोयमा ! मालवंते णं वक्खारपव्वए तत्थ-तत्थ देसे तर्हि तहि बहवे सेरिया गुम्मा" गोमालियागुम्मा जाव" मगदंतियागुम्मा" । ते णं गुम्मा दसद्धवण्णं 'कुसुमं कुसुमेंति"", जे णं तं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं वायविधुयभ्गसालामुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति । मालवंते य इत्थ देवे महिड्डीए जाव' पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ | अदुत्तरं च णं जाव५ णिच्चे ॥ १६७, कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोमा ! सीयाए महाणईए उत्तरेणं, गीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, चित्तकूडस्स ववखारपव्यस्स पच्चत्थिमेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवेदी महाविदेहे वासे कच्छे णामं बिजए पण्णत्ते- उत्तरदाहिणायए पाईणपडीण १. गुरत्थिमेणं ( अ, त्रि, बस, पुवृ, ही वृ) २. दाहिणं ( ख ) । ३. अं० ४।११० | ४. 'असं खेज्जदीवे' त्ति पदं स्मारकं तेन मन्दरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तिरिअमसंखेज्जाइं दीवसमुहाई वीईवइत्ता' इति ग्राह्यम् (शावृ ) । ५. सहसं ( अ ); 'सहस्सा ( खत्रि, ब, स ) । ६. हरिकंता ( अ, क, ख, त्रि, बस, पुवृ, ही वृ) । ७. छत्तीसे (त्रिप) अशुद्धं प्रतिभाति 'बकार' स्थाने 'छकारों' जातः लिपिप्रमादात् । ८. भ० २।१२१; १३ । ६६ । ६. 'महिद्धीए महज्जुईए' इति सूत्रेणास्य नामनिमित्त विषय के प्रश्ननिर्वचने सूचिते, ते चैवम्- 'से केणट्ठेणं भंते! एवं बुच्चइ हरिस्त हकडे २ ? गोमा ! हरिसह कूडे बहवे उप्पलाई पउमाई हरिस्सह्कूडसमवण्णाई जाव हरिस्सहे णाम देवे अ इत्थ महिडीए जाव परिवसइ, से तेणट्ठेण जाव अदुत्तरं च णं गोयमा ! जाव सासए णामधेज्जे' इति ( शावृ ) । १०. सिरिया गुम्मा (अब); सेडियागुम्मा ( क ) :.. सरियामा ( खत्रि, प, शावृ) ११. जं० २११० 1 १२ अगदंतिया ( अ,ख. त्रि, ब ) । १३. कुसुमेति ( खत्रि, ही वृ ) । १४. जं० १।२४ । १५. जं० ११४७ । १६. णेलवन्तस्स ( अ, क, ख, त्रि, व, स ) । १७. दक्खिणे (प) | Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थो वक्खारो ५०१ विच्छिणे पलियंकसंठाणसंठिए 'गंगासिंधूहि महाणईहि" वेयड्ढेण य पव्वएणं छब्भागपविभत्ते सोलस जोयणसहस्साई पंच य बाणउए जोयणसए दोण्णि य एगूणवीस इभाए जोयणस्स आयामेणं, दो जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेरसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे विक्खभेणं ॥ १६८. कच्छस्स णं विजयस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं वेयड्ढे णामं पव्व पण्णत्ते, जे गं - कच्छं विजयं दुहा विभयमाणे विभयमाणे चिट्ठइ, तं जहा -- दाहिणडुच्छं च उत्तरडुकच्छं च ॥ 13 १६६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दाहिणडुकच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! वेयस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, सीयाए महाणईए उत्तरेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दाहिणडकच्छे णामं विजए पण्णत्ते उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिणे अटू जोयणसहस्साई दोण्णि य एगसत्तरे* जोयणसए एक्कं च एगूणवीस भागं जोयणस्स आयामेणं, दो जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेरसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे विक्खभेणं, पलियंकसंठिए ॥ १०० दाहिणड्डुकच्छस्स णं भंते ! विजयस्स केरिसए आगारभाव डोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' कत्तिमेहिं चेव अकत्तिमेहिं चेव ॥ १७१. दाहिणड्डूकच्छे णं भंते ! विजए मणुयाणं केरिसए आगारभाव पडोया रे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसि णं मणुयाणं छव्विहे संघयणे जाव' सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ॥ १७२. कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे विजए वेयड्ढे णामं पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! दाहिणडुकच्छविजयस्स उत्तरेणं, उत्तरढकच्छस्स दाहिणेणं, चित्तकूडस्स पच्चत्थिमेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं कच्छे विजए वेडे णामं पव्वए पण्णत्ते, तं जहा पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिणे दुहा वक्खारपव्व पुट्ठे - पुरथिमिल्लाए कोडीए" पुरथिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठे भरवेयड्डसरिसए", णवरं-दो बाहाओ जीवा धणुपट्ठे च ण कायव्वं, विजयविक्खंभसरिसे आयामेणं, विक्खभो उच्चत्तं उव्वेहो तह चेव विज्जाहरसेढीओ तहेव, णवरं पणपण्णं पणपणं विज्जा १. गंगासिंधूमहानदीही ( अ, ब ) । २. एकूण ( अ, त्रि, ब ) । ३. कच्छविजयं (अत्रि, ब ) । ४. एक्कहत्तरे ( अ, ब ) ; एगुत्तरे ( क ) । ५. पलियं कसं ठाणसंठिए ( खत्रि, स, पुवृ, हीबृ ) । ६ जं० २।१२२ । ७. कित्तिमेहिं ( अ, क, ब ) 1 ८. अकित्तिमेहि ( अ, क, ब ) । ६. जं० २।१२३ । १०. सं० पा० – कोडीए जाव दोहिवि पुट्ठे । तत्र पौरस्त्यं चित्रकूटनामानं वक्षस्कारपर्वतं स्पृष्ट:, पाश्चात्यया कोटया पाश्चात्यं माल्यवन्तं वक्षस्कारपर्वतं स्पृष्ट: (हीवृ ) । ११. जं० १।२३-४७ । १२. वर (क,ख,त्रि) 1 १३. पणवण्णं २ ( अ, ब, स ) 1 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ जंबुद्दीवपणती हरणगरावासा पण्णत्ता । आभिओगसेढीए उत्तरिल्लाओ सेढीओ सीयाए ईसाणस्स, सेसाओ सक्कस्स, कूडागाहा सिद्धे कच्छे खंडग, माणी वेयड्ड पुण्ण तिमिसगुहा । कच्छे वेसमणे वा, वेयड्ढे होंति कूडाई ॥१॥ १७३. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरड्डकच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! वेयडस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरथिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दाहिणड्डकच्छे णामं विजए पण्णत्ते जाव' सिझंति, तहेव णेयव्वं सव्वं ॥ १७४. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरडकच्छे विजए सिंधकंडे णाम कुंडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, उसभकूडस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले शितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरडकच्छविजए सिंधुकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते सट्टि जोयणाणि आयामविक्खंभेणं जाव' भवणं अट्टो रायहाणी य पवा, भहमिचकुंडसरिसं सव्वं णेयव्वं जाव तस्स णं सिंधुकुंडस्स दाहिणिल्लेणं तोरणेणं सिंधू महाणई पढा समाणी उत्तरकच्छविजयं' 'एज्जेमाणी-एज्जेमाणी'५ सहि सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी-आपूरेमाणी अहे तिमिसगुहाए वेयड्डपव्वयं दालयित्ता दाहिणढकच्छविजयं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी चोद्दसहि सलिलासहस्सेहिं समग्गा दाहिणेणं सीयं महाणइं समप्पे । सिंधु महाणई पवहे य मूले य भरहसिंधुसरिसा पमाणेणं जाव" दोहि वणसंडेहिं संपरिक्खित्ता॥ १७५. कहि णं भंते ! उत्तर कच्छविजए उसभकुडे ग्राम पव्वए पष्णते ? गोयमा ! सिंधुकुंडस्स पुरथिमेणं, गंगाकुंडस्य पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्म वासहरपब्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं उत्तरकच्छविजए उसहकडे गाम पव्वए पण्णत्ते अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, तं चेव पमाणं जाव रायहाणी से, णवरं - उत्तरेणं भाणियव्वा । १७६. कहिणं भंते ! उत्तरडुकच्छविजए गंगाकडे णाम कंडे पण्णते? गोयमा! चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, उसहकूडस्स पुरथिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं उत्तरडकच्छविजए गंगाकुंडे णामं कुंडे पण्णत्तेसद्धि जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं तहेव जहा सिंधू जाव” वणसंडेण य संपरिक्खित्ते ।। १. जं० ४।१६६-१७१। २. x (ख,प, शावृ, हीव) । ३. जं० ४३७ । ४. कच्छं विजयं (अ,क,ख,ब)। ५. पज्जेमाणी (अक,ख,त्रि,ब); ६. गिधणं (अ,क,ख,ब,स)। ७. जं० ४१३७ । ८. उत्तरडकच्छे (अ,क,ख,त्रि,ब,स) अग्रेपि प्राय, सर्वत्र । पाययन्ती ___E.जं० ११५१। १०. जं० ४११७४ । Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वक्खारो १७७. 'से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ- - कच्छे विजए ? कच्छे विजए ?" गोयमा ! 'कच्छे विज ए'२ वेयवस्स पब्वयस्स दाहिणेणं, सीयाए महाणईए उत्तरेणं, गंगाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, सिंधूए महाणईए पुरत्थिमेणं दाहिगड्ढकच्छविजयस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं खेमा हामं रायहाणी पण्णत्ता, विणीयरायहाणीसरिसा भाणियब्वा । तत्थ णं खेमाए रायहाणीए कच्छे णामं राया समुप्पज्जइ ....महयाहिमवंत जाव सव्वं भरहोयवणं भाणिय व्वं निक्खमणवज्ज, सेसं सव्वं भाणियब्वं जाव भुंजए माणुस्सए सुहे कच्छे णामधेज्जे । कच्छे यत्थ देवे महड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ। से एएणठेणं' गोयमा! एवं वच्चइ-कच्छे विजए-कच्छे विजए जाव णिच्चे ।। १७८. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चित्तकूडे णाम वक्खारपब्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! सीयाए महाणईए उत्तरेणं, णीलवंतस्स वासहरपन्वयस्स दाहिणेणं 'कच्छस्स विजयस्स'५ पुरस्थिमेणं 'सुकच्छस्स विजयस्स'६ पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चित्तकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते - उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे सोलसजोयणसहस्साइं पंच य बाणउए जोयणसए दुणि ३ एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खं भेणं, नीलवंतवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाई उव्वेहेणं, तयणंतरं च णं मायाएमायाए उस्सेहोब्वेहपरिवढीए परिवद्रमाणे-परिवडमाणे सीयमहाणईयंतेणं पंच जोयण. सयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच गाउयसयाई उब्वेहेणं, आसखंधसंठाणसंठिए सब्बरयणामए अच्छे सण्हे जाव" पडिरूवे । उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि संपरिक्खित्ते, वण्णओ दोण्हवि ।। १७६. चित्तकूडस्स णं वक्खारपब्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव" आसयंति ॥ १८०. चित्तकडे णं भंते ! वक्खारपव्व ए कति ५ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्धाययणकूडे चित्तकूडे कच्छकडे सुकच्छकडे, समा६ उत्तरदाहिणणं पहप्परंति"", पढमए सीयाए उत्तरेणं, चउत्थए नीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स १. कहि णं भंते ! खेमा गामं रायहाणी पण्णत्ता ६. आसखंधगसंठाण (अ,ख,त्रि,ब) : १०. सिण्हे (ख)। २.कच्छे णं विजए णं (अ,क,ख,ब,स); कच्छे ११. जं० २८ । विजए णं (त्रि ) १२. पस्सि (अ,त्रि,ब)। ३. जं० ३।१-२२१,२२६ । १३. जं० १३१०-१३॥ ४. तेणठेणं (अ,त्रि,ब); एगट्टेणं (क,ख,स)। १४. जं० ४१२ । ५. कच्छविजयस्त (प)। १५. कइ (ख,स)। ६. सुकच्छविजयस्म (क,ख,त्रिप)। १६. समं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ७. तयाणंतरं (अ,ख,ब); तदाणंतर (त्रि) १७. परोप्परंति (अत्रि,ब)। ८. परिवड्डीए (अ,ख,स)। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૦૪ जंबुद्दीवपण्णत्तो दाहिणेणं, अट्ठो', एत्थ' णं चित्तकूडे णामं देवे महिड्डीए जाव रायहाणी । से तेणट्ठेणं || १८१. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सुकच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोमा ! सीयाए महाणईए उत्तरेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, गाहावईए महाणईए पच्चत्थिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सुकच्छे णामं विजए पण्णत्ते - उत्तरदाहिणायए जहेव* कच्छे विजए तहेव सुकच्छे विजए, णवरं - खेमपुरा रायहाणी, सुकच्छे राया समुप्पज्जइ, तहेव सव्वं ॥ १८२. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे गाहावइकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते ? गोयमा ! सुकच्छस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, महाकच्छस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ जं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे गाहावइकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते, जहेव रोहियंसा कुंडे तहेव जाव' 'गाहावइदीवे भवणे" || १८३. तस्स णं गाह्रावइस्स कुंडस्स दाहिणिल्लेणं तोरणेणं गाहावई महाणई पवूढा समाणी सुकच्छ - महाकच्छविजए दुहा विभयमाणी - विभयमाणी अट्ठावीसाए सलिला - सहस्सेहिं समग्गा दाहिणेणं सीयं महाणई समप्पेइ । गाहावई णं महागाई पवहे य मुहे य सव्वत्य समापणवीसं" जोयणसयं विक्खंभेणं, अड्डाइज्जाई जोयणाई उव्वेहेणं, उभओ पासि दोहिं परमवर वेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ता, दुहवि वण्णओ ॥ १८४. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! गीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, सीयाए महाणईए उत्तरेणं, पम्हकूडस्स" बक्खारपव्वयस्स” पच्चत्थिमेणं, गाहावईए महाणईए पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजए पण्णत्ते, सेसं जहा कच्छस्स विजयस्स जाव महाकच्छे इत्थ देवे महिड्डीए, अट्ठो य भाणियो" ॥ १८५. कहिणं भंते! महाविदेहे वासे पम्हकूडे णामं वक्खारपव्वए पष्णते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं महाकच्छस्स पुरस्थिमेणं, कच्छगावईए” पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे पम्हकूडे णामं वक्खारपव्वए १. x ( अ, क, ख, त्रि, प, स ) । २. x (अब) 1 ३. जं० ४१५१, ५२ ॥ ४ जं० ४।१६७-१७७ ५. वरि (क); णवर ( खत्रि ) । ६. जं० ४ ४०, ४१ । ७. गाहावइदेवी भवणे ( अ, ब, स, पुवृ); असौ सङ्क्षिप्तपाठः रोहितां कुण्डाय समर्पितोस्ति, तत्र तस्य णं रोहिपप्पवायकुंडस्स बहुमज्झ देसभाए एत्थ णं महं एगे रोहियंसदीवे णामं दीवे पण्णत्ते' इति पाठोस्ति तेनात्र 'महावइदीवे' इति पाठ एव युक्तोस्ति । एका भिन्नापि पाठपरम्परा दृश्यते, तस्यां ग्राहावतीद्वीपस्योल्लेख नास्ति किन्तु 'गाहावइदेवोभवणे' एष पाठ: सम्मतोस्ति, स च पाठान्तरत्वेन स्वीकृतः । 5. पणुवी ( अ, ब, स ) । ६. जं० ११०-१६ । १०. बम्हकूडस्ल (क, ख, त्रि, प, स ) ; ब्रह्मकूट ( पुवृ) प्राय: सर्वत्र ११. x ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स ); अत्र लिपिमङ्क्षेपात् केवलं 'पव्वयस्स' इति पाठो दृश्यते । १२. जं० ४११६७-१७७ । १३. कच्छावइस्स ( क प ) ; कच्छावयस्स ( स ) 1 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउत्थो वक्खारो ५०५ पण्णत्ते--- उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे, सेसं जहा चित्तकूडस्स जाव' आसयंति ।। १८६. पम्हकूडे चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा–सिद्धाययणकूडे पम्हकडे महाकच्छकूडे कच्छगावईकू डे एवं जाव' अट्ठो। पम्हकूडे इत्थ देवे महिड्डीए पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से तेणठेणं ।। १८७. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे कच्छगावती णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दाहिणेणं, सीयाए महाणईए उत्तरेणं, दहावतीए महाणईए पच्चत्थिमेणं, पम्हकूडस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे कच्छगावती णामं विजए पण्णत्ते ... उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे, सेसं जहा कच्छस्स विजयस्स जाव कच्छगावई य इत्थ देवे ॥ १८८. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे दहावई कुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते ? गोयमा ! आवत्तस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं कच्छगावईए विजयस्स पुरत्थिमेणं, णीलवंतस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं महाविदेहे वासे दहावईकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते, सेसं जहा गाहावईकुंडस्स जाव' अट्ठो।। १८६. तस्स णं दहावईकुंडस्स दाहिणेणं तोरणेणं दहावई महाणई पवूढा समाणी कच्छगावई-आवत्ते विजए दुहा विभयमाणी-विभयमाणी दाहिणेणं सीयं महाणई समप्पेइ, सेसं जहा गाहावईए । १६०. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे आवत्ते णाम विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, सीयाए महाणईए उत्तरेणं, णलिणकडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, दहावतीए महाणईए पुरथिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे आवत्ते णामं विजए पण्णत्ते, सेसं जहा कच्छस्स विजयस्स ॥ १६१. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे णलिणकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दाहिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, मंगलावइस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं, आवत्तस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे णलिणकूडे णामं वक्खारपब्वए पण्णत्ते-- उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे, सेसं जहा चित्तकूडस्स जाव आसयंति ॥ १६२. णलिणकूडे णं भंते ! कति कूडा पण्णता ? गोयमा ! चत्तारि कूडा पण्णत्ता, सं जहा--सिद्धायतणकूडे णलिणकूडे" आवत्तकूडे मंगलावत्तकूडे । एए कूडा पंचसइया, रायहाणीओ उत्तरेणं ।। १. जं० ४११७८,१७६ । ६. जं० ४११५३ । २. जं०४१८०,५१,५२ । ७ जं. ४११६७-१७७ । ३. दहवतीए (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुष,हीव) प्रायः ८. जंगलावइस्स (अ,ब)। सर्वत्र। ६. जं० ४११७८-१७६ । ४. जं० ४११६७-१७७ १०. णलिणिकूडे (अ,क,ख,ब,स) । ५. जं०४॥१८२। प्रायः सर्वत्र । Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती १६३. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे मंगलावत्ते' णाम विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! गीलवंतस्स दक्खिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, णलिणकूडस्स पुरथिमेणं, पंकावईए पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं मंगलावत्ते णाम विजए पण्णत्ते । जहा कच्छविजए तहा एसो वि भाणियन्वो जाव' मंगलावत्ते य इत्थ देवे परिवसइ । से एएणठेणं ।। १६४. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पंकावईकुंडे' णामं कुंडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंगलावतस्स पुरथिमेणं, पुक्खल विजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स दाहिणे नितंबे, एत्थ णं 'पकावइकुंडे णाम कुडे पण्णत्ते', तं चेवगाहावइकुडप्पमाणं ॥ १६५. 'तस्स गं पंकावइकुडस्स दाहिणिल्लेणं तोरणेणं पंकावती' महाणदी पवूढा समाणी मंगलावत्त-पुक्खलविजए' दुहा विभयमाणी-विभयमाणी अवसेस तं चेव'' गाहावईए । १६६. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पुक्खले" णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दाहिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, पंकावईए पुरथिमेणं, एगसेलस्स२ वक्खारपब्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खले णामं विजए पण्णत्ते। जहा कच्छविजए तहा भाणियन्वं जाव' पुक्खले य इत्थ देवे पहिड्डीए पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से एएणठेणं ।। १६७. कहिणं भंते ! महाविदेहे वासे एगसेले णामं वक्खारपव्दए पण्णते? गोयमा ! पुवखलचक्कट्टिविजयस्स" पुरत्थिमेणं, पोक्खलावतीचक्कवट्टिविजयस्स पच्चत्थिमेणं, णीलवंतस्स दक्खिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, एत्थ णं एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते, चित्तकूडगमेणं णेयव्वो जाव" देवा आसयंति ॥ १९८. चत्तारि कूडा, तं जहा -सिद्धाययणकडे एगसेलकूडे पुक्खल कडे पुक्खलावईकूडे । कूडाणं तं चेव पंचस इयं परिमाणं जाव" एगसेले य देवे महिड्डीए ।। १६६. कहि णं भंते ! महाविदेहे वासे पुक्खलावई णामं चक्कवट्टिविजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, उत्तरिल्लस्स सीयामुहवणस्स पच्चत्थिमेणं, एगसेलस्स ववखारपब्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे पुक्खलावई माम विजए पण्णत्ते उत्तरदाहिणायए, एवं जहा कच्छविजयस्स जाव' पुक्खलावई य १. णंगलावत्ते (अ,क,ब) । ८. ग्रन्थान्तरे वेगवतीत्यस्या नाम पठ्यते (पुत्र) । २. जं० ४११६७-१७७ । ६. पुक्खलावत्तविजए (स) । ३. पंकवई (अ,क,ब) प्रायः र्वत्र । १०.०४.१८३: ४. पोक्खलावइस्स (अ,); पुक्खलावइस्स ११. पंक्खिले (अत्रि,ब) । (क,ख,स)। स्थानाङ्ग (२०३४०) पि १२. एगसेलगस्स (अ,ब)। "पुक्खला' इति पाठो दृश्यते। १३. जं० ४१६७-१७७ । ५. पंकावर (म,क,ख,त्रि,ब,स); पकावइ जाव १४. पोरखलाब: (अ,ब); पुक्खलावइ (फ,ख)। __ कुंडे पण्णत्ते (प)। १५. जं० ४११७८,१७६ । ६. जं० ४११८२। १६. पुक्ललावत्तकूडे (प)। ७. सं. पा.--गाहावइकुंडप्पमाणं जाव १७. जं० ४.१८० । मंगलावत्त। १८. जं० ४११६७-१७७ । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च उत्थो वक्खारो ५०७ इत्थ देवे परिवसइ । से एएणठेणं ।। २००. कहि भंते ! महाविदेहे वासे सीयाए महाणईए उत्तरिल्ले सीयामुहवणे णामं वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स दक्खिणेणं, सीयाए उत्तरेणं, पुरथिमलवणसमुइस्स पच्चत्थिमेणं, पुक्खलावइचक्कवट्टिविजयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सीयामुहवणे णाम वणे पण्णत्ते -उत्तरदाहिणायए पाईणपडोणविच्छिण्णे सोलसजोयणसहस्साइं पंच य बाणउए-जोयमसए दोणि य एगणवीसइभाए जोयणस्रा आयामेणं, सीयामहाणइंतेणं दो जोयणसहस्साइं नव य बावीसे जोयणसए विक्खंभेणं, तयणतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणे-परिहायमाणे णीलवंतवासहरपब्वयंतेणं एगं एगूणवीसइभागं जोयणस्स विक्खंभेणं, से गं एगाए पउमवर वेश्याए एगेण य वणसंडेणं संपरिक्खित्तं, वण्णओ सीयामहवणस्स जाव देवा आसयंति । एवं उत्तरिल्लं पासं समत्तं। विजया भणिया। रायहाणीओ इमाओ-- गाहा ... खेमा खेमपुरा चेव, रिट्ठा रिटपुरा तहा।। ___ खग्गी मंजूमा अवि य, ओसही पुंडरीगिणी ॥१॥ सोलस विज्जाहरसेढीओ' ? ] नावइयाओ आभियोग सेढीओ, सव्वाओ इमाओ ईसाणस्स। सम्वेसु विजएसु कच्छवत्तव्वया जाव अट्ठो, रायाणो सरिसणामगा विज एसु, 'सोलसण्हं ववखारपव्वयाणं' चित्तकूडवत्तव्वया जाव कूडा चत्तारि-चत्तारि बारसण्हं णईणं गाहावइवत्तव्वया जाब उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं वणसंडेहि य वण्णओ॥ २०१. कहि एं भंते ! जंबुद्दी वे दीवे महाविदेहे वासे सीयाए महाणईए दाहिणिल्ले सीयामुहवणे णामं वणे पण्णत्ते ? एवं जह चेव उत्तरिल्ले सीयामुहवणं तह चेव दाहिणंपि भाणियव्वं, णवरं णिसहस्स" वासहरपव्ववस्स उत्तरेणं, सीयाए महाणईए दाहिणेणं, पुरस्थिलवणसमुदस्स पच्चत्यिमेणं, वच्छस्स विजयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीयाए भहाणईए दाहिणिल्ले सीयामुहवणे णामं वणे पण्णत्ते--- १. सीयं महा° (अ,क,ख त्रि,ब,')। विद्याधरयेणिसूत्र आदर्शान्तरेवदष्टमपि प्रस्ता२. तेवीसे (अ,क,ख,नि,ब,न,पुत्र श्रीव); विजयक- वादाभियोग्पणि अत्यनुपपत्तेश्च प्राकृत क्षस्काराद्यन्तरनदोमेकप्रताप र भद्रशः नवना- शैल्या संस्कृत्य मया लिखितमस्तीति बहुश्रुतैर्म यि याममीला जातानि ६४१५६, अस्य राज- मूत्राशातना न चिन्तनीयेति, उत्तरत्रापि सूत्रम्बुद्वीपपरिणामात् शोध ने शेषं ५८४४, अस्य कारेण राहगाथा-यामाभियोग्यश्रेणिसनशीताशीतोदयोरेकस्मिन् दक्षिणे उत्तरे वा भागे होविद्याधरणिसंग्रहपूर्वकमेव वक्ष्यते (शा)। द्वे मुखवन इति द्वाभ्यां भागे हुते आगतानि ६. सरिणामगा (क,ख) । द्वाविंशत्यधिकान्येकानत्रिश द्या जनशतानि २६२२, ७. लोलस वक्खारपक्ष्या (पुर्व); सोलसण्हं अत्र च तेवीसे' इति पाठोऽशुद्धः (शाव) । वखार पक्ष्याणं (पुवृपा)। ३. तदाणंतरं (अत्रि,ब); तयाणंतर (क,खस)। ८. तहा (अ,ब) । ४. जं० १११३ ! १. ज०४।२००। ५. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पु,हीव); अत्र च १०. निसभस्स (अ,ब) । Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुद्दीपण्णत्तो उत्तरदाहिणाथए, तहेव सव्वं, णवरं - णिसहवासहर पब्वयंतेणं एगमेगुणवीसइभागं जोयणस्स विक्खभेणं, किण्हे किण्होभासे' जाव' आसयंति, उभओ पासि दोहिं पउमवरवेइयाहिं वणवण्णओ ॥ ३०८ २०२. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे वच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सीयाए महाणईए दाहिणेणं, दाहिणिल्लस्स सीयामुहवणस्स पच्चत्थिमेणं, तिउडस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे ara महाविदेहे वासे वच्छे णामं विजए पण्णत्ते, तं चेव' पमाणं सुसीमा रायहाणी, तिउडे वक्खारपव्वए । सुवच्छे विजए, कुंडला रायहाणी, तत्तजला गई । महावच्छे विजए, अपराजिया राहाणी, वेसमणकडे वक्खारपव्वए । बच्छावई विजए, पभंकरा रायहाणी, मत्तजला गई । रम्मे विजए, अंकावई रायहाणी, अंजणे वक्खारपव्वए । रम्मगे विजए, पम्हावई रायहाणी, उम्मत्तजला महाणई। रमणिज्जे विजए, सुभा रायहाणी, मायंजणे वक्खारपव्वए । मंगलावई विजए, रयणसंचया रायहाणी । एवं जह चैव सीयाए महाणईए उत्तरं पासं तह चैव दक्खिणिल्लं' भाणियव्वं, दाहिणितलसीयामुहवणाइ । इमे ववखारकूडा, तं जहा - तिउडें वेसमणकूडे अंजणे मायंजणे, विजया---- गाहा वच्छे सुवच्छे महावच्छे, चउत्थे वच्छगावई । रम्मे रम्मए चेव, रमणिज्जे मंगलावई ॥ १ ॥ रायहाणीओ, तं जहा सुसीमा कुंडला चेव, अवराइय पहंकरा । अंकावई पम्हावई", सुभा रयणसंचया ॥२॥ वच्छस्स विजयस्स -- णिसहे दाहिणेणं, सीया उत्तरेणं, दाहिणिल्लसीयामुहवणे पुरत्थिमेणं, तिउडे पच्चत्थिमेणं---सुसीमा रायहाणी, पमाणं तं चेव । वच्छानंतर तिउडे, तओ सुवच्छे विजए। एएणं कमेणं तत्तजला गई, महावच्छे विजए । वेसमणकूडे वक्खारपव्व ए, वच्छावई विजए । मत्तजला गई, रम्मे विजए | अंजणे वक्खारपव्वए, रम्मए विजए । उम्मत्तजला गई, रमणिज्जे विजए । मायंजणे वक्खारपव्वए, मंगलावई विजए || २०३. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सोमणसे णामं वक्खारपव्वए पणते ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणपुरत्थिमेणं, मंगलावईविजयस्स" पच्चत्थिमेणं, देवकुराए" पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे १. किन्होभासे जाव महया गंधद्वाणिं मुयंते ( क,ख, त्रि, प, स ) 1 २. जं० १११३ । ३. जं० ४११६७-१७७ । ४. अंजणे (अ,ब ) । ५. दक्खिणं ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) 1 ६. तिउडकूडे ( अ, ब ) तिउडे कूडे ( क,ख, त्रि) 1 ७. × ( अ, ख, त्रि. ब, स ) । 5. वह्मावई (अत्रि ) । ६. सीयावणमुहे ( अ, क,ख, त्रि, ब, स ) । १०. मंगलावइस्स विजयस्स ( अ, क, ख, त्रि, ब ) | ११. देवकुराणं ( स ) 1 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउथो वक्तारो वासे सोमणसे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते - उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिणे' जहा मालवंते वक्खारपव्वए तहा, गवरं - सव्वरययामए अच्छे जाव' पडिरूवे णिसहवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाइं उब्वेहेणं, सेसं तहेव सव्वं, णवरं अट्ठो से गोयमा ! सोमणसे णं वक्खारपव्वए बहवे देवा य देवीओ य सोमा सुमणा सोमणसिया, सोमणसे य इत्थ देवे महिड्डीए जाव परिवसइ । से एएणट्ठेणं गोयमा ! जाँव णिच्चे || २०४. सोमणसे वक्खारपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त कूड़ा पण्णत्ता, तं जहा गाहा- सिद्धे सोमणसे वियई, बोद्धव्वे मंगलावईकडे । देवकुरु विमल कंचण वसिटूकूडे य बोद्धव्वे ॥१॥ एवं सव्वे पंचसइया कूडा, एएसि पुच्छा दिसिविदिसाए भाणियव्वा जहा " गंधमायणस्स, विमल - कंत्रणकडेसु, नवरं देवयाओ सुबच्छा वच्छमित्ता य, अवसिट्ठेसु कूडेसु सरिस - णामया" देवा, रायहाणीओ दक्खिणं ॥ २०५. कहि णं भंते! महाविदेहे वासे देवकुरा णामं कुरा पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, णिसहस्सर वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, विज्जुप्पहवक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, सोमणसवक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं देवकुरा णामं कुरा पण्णत्ता - पाईणपडीणायया उदीणदाहिणविच्छिण्णा* एक्कारस जोयणसहस्सा इं अ य बायाले जोयणसए दुण्णि य एगुणवीसइभाए जोयणस्स विक्खभेणं, जहा उत्तरकुराए वत्तब्वया जाव" अणुसज्जमाणा पम्हगंधा मियगंधा अममा सहा" तेतली " सणिच्चारी " ॥ २०६. कहि णं भंते! देवकुराए चित्त-विचित्तकूडा णामं दुवे पव्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरिल्लाओं चरिमंताओ अट्ठचोत्तीसे जोयणसए १. उदोणदाहिणविच्छिणे ( अ, ब ) अशुद्धं प्रति भाति । २. जं० ४।१६२ ॥ ३. वरि ( अ, क, त्रि, ब, स ) प्रायः सर्वत्र । ४. सव्वरयणामए ( अ, त्रि. ब, स, ही ) 1 4.50 815 1 ६. 'से' इति पदं 'से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ सोमणसे वक्खारपव्वए सोमणसे वक्खारपव्वए' इत्यस्य सूचकमस्ति । ७. x ( प, शाबु ) ; क्वचित् 'सोमणस्सिया' ( पुवृ) ८. जं० ४११०३, १०४, १०७ । ६. या ( अ, क, ख, त्रि, बस ) t १०. जं० ४। १०६ । ११. सरिणामया ( अ, ब, ब, स ) । १२. सिमस ( अ, ख ब ) ; णिसदस्स (त्रि ) । १३. विज्जुप्पहरूस वक्खार° (प) १४. अतः परं उत्तरकुरुप्रकरणे (४११०८) 'अचंदसंठाणसंठिया' इति पाठोपि विद्यते । १५. जं० ४ १०८, १०६ । १६. सहि ( अ, ब ) ; सुसहा ( ब ) | १७. एताली ( अ, ब ) ; तिताली (क, ख ) | १८. राणिचारी ( अ, ब ) ; सणिच्चारी ( ख ) । Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० जंबुद्दीपण्णत्ती चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए सीयोयाए' महाणईए पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं उभओ कूले, एत्थ णं चित्त-विचित्तकूडा णामं दुवे पव्वया पण्णत्ता । एवं जच्चेव जभगपव्वयाणं सच्चेव' । एएस रायहाणीओ दक्खिणं ॥ २०७. कहि णं भंते! देवकुराए कुराए णिसहद्द हे णामं दहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेस चित्त-विचित्तक्डाणं पव्वयाणं उत्तरिल्लाओं चरिमंताओ अट्ठ चोत्तीसे जोयणसए चत्तारि य सत्तभाए जोगणस्स अबाहाए सीओयाए महानईए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं freeहे णामं दहे पण्णत्ते । एवं जच्चेव नीलवंत - उत्तरकुरु चंदेरावण - मालवंताणं वत्तब्वया सच्चेव' णिसह देवकुरु-सूर - सुलस-विज्जुप्पभाणं णेयव्वा । रायहाणीओ दक्खिणं ॥ २०८. कहिणं भंते! देवकुराए कुराए कूडसामलिपेढे' णामं पेढे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, विज्जुप्पभस्स बक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, सोमणसस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, सीयोयाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, देवकुरुपच्चत्थिमद्धस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं देवकुराए कुराए कूडसामलीए कूडसामलिपेढे णामं पेढे पण्णत्ते । एवं जच्चेव जंबूए सुदंसणा वत्तब्वया सच्चेव सामलीएवि भाणियव्त्रा णामविहूणा गरुलवेणुदेवे, रायहाणी दक्खिणं, अवसिद्धं तं चैव जाव देवकुरू य इत्थ देवे पलिओवमट्ठिए परिवसइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वच्चइ - देवकुरा - देवकुरा । अदुत्तरं च णं देवकुराए || २०६. कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे विज्जुप्पभे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, देवकुराए पच्चत्थिमेणं, पम्हस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दी दीवे महाविदेहे वासे विज्जुप्पभे वक्खारपव्वए पण्णत्ते उत्तरदाहिणायए, एवं जहा " मालवंते, णवरि सव्वतवणिज्जमए अच्छे जाव देवा आसयति ॥ २१०. विज्जुप्प णं भंते ! वक्खारपब्वए कई कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! नव कूडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्धाययणकूडे विज्जुप्पभकूडे देवकुरुकूडे पम्हकूडे कणगकूडे सोवत्थियकूडे सीतोदाकूडे सयज्जलकूडे " हरिकूडे । गाहा सिद्धेय विज्जुणामे, देवकुरु पम्ह कणग सोवत्थी । सीतोदा य सयज्जल, हरिकूडे चेव बोद्धव्वे ॥ १ ॥ १. सीयाए ( अ, त्रिप, ब ) अशुद्ध प्रतिभाति । २. जं० ४।११०-१४० । ३. चंदेराश्य (क), त्रि, पस. पुवृ, शाबू हीवृ); द्रष्टव्यं -- ४।१४२ सूत्रम् । जीवाजीवाभिगमे (२६६७) पि एरावणदहे' इति पाठो दृश्यते । ४. जं० ४।१४१, १४२ ।. ५. वेढे (क ) । ६. गरुलदेवे ( अ, ख, त्रि. प. व ही ); गरुडदेवोत्र, गरुडो गरुडजातीयो वेणुदेवनामा मतान्तरेण, गरुडवेनामा वा देवः ( शावृ ) | ७. जं० ४।१४३-१६१ । ८. जं० ४। १६२ ॥ ६. सीओओकूडे (खस) । १०. सयंजूल कूडे (त्रि); सूर्यजलकूटम् ( ही ) । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वक्खारो मसामगिपा एए हरिकृडवज्जा पंचसइया णेयव्वा! एएसि णं कूडाणं पुच्छाए' दिसिविदिसाओ' णेयवाओ', जहा मालवंतस्स हरिस्सहकडे तह चेव हरिकुडे, “रायहाणी जह चेव दाहिणणं चमरचंचा रायहाणी तह णेयव्वा । क णग-सोवत्थियकडेसु वारिसेणबलाहयाओ' दो देवयाओ, अवसिठेसु कू डेसु कूडसरिसणामया देवा, रायहाणीओ दोहिणेणं ॥ २११. सें केणट्टेणं भंते ! एवं वच्चइ- विजुप्पभे वक्खारपव्वए ? विज्जुप्पभे वक्खारपव्वए ? गोयमा ! विज्जुप्पभे णं वक्खारपव्वए विज्जुमिव सव्वओ समंता ओभासइ उज्जोवेइ पभास इ । विज्जुप्पभे य इत्थ देवे महिड्डीए जाव परिवसइ। से एएणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ- विज्जुप्पभे-विज्जुप्पभे। अदूत्तरं च णं जाव" णिच्चे। २१२. एवं पम्हे" विजए, अस्सपूरा रायहाणी, अंकावई ववखारपव्वए। सूपम्हे विजए, सीहपुरा रायहाणी, खीरोदा महाणई । महापम्हे विजए, महापुरा रायहाणी, पम्हावई २ वखारपव्वए । पम्हगावई विजए, विजयपुरा रायहाणी, सीहसोया महाणई । संखे विजए, अवर(इया रायहाणी, आसीविसे ववखारपब्वए। कुमुदे विजए, अरजा' रायहाणी, अंतोवाहिणी महाण ई। गलिणे विजए, असोगा रायहाणी, सुहावहे वक्खारपव्वए। सलिलावई ५ विजए, वीयसोगा रायहाणी, दाहिणिल्ले सीतोदामुहवणसंडे । १. पुच्छादे (अ,ब); पुच्छा (प)। (शा)। २.दिसविदिसाओ (अ,ख,ब)। ८. ओभासेइ (प)। ३. जं० ४.१६३-१६५।। ६. जं० १।२४ । ४. रायहाणीत्यादि राजधानी चास्य देवस्य १०. जं० २४७ । दक्षिणतो यथैव चमरचंचा राजधानी तथव ११. वम्हे (अ,ब)। ज्ञेया । क्वचित् राबहाणो तह चेव दाहिणेणं १२. वाहावती (अव) । चमरचचा रायहाणिप्पमाणणं णेयवा इति १३. सीहसोगा (अ.क.ब); सीयसं.गा (त्रि,प, पाठः (पुव)। शाव, हीव); शीघ्रस्रोता: सिहस्रोता वा ५. पलाहयाओ (ब)। ग्रन्यान्तारे शीतस्रोताः (पुर्व); द्रष्टव्यम्-- ६. 'सरिणामया (अ,क,ख,ब,स)। टाणं ३:४६१। ७. यद्यप्युत्तरकुरुवक्षस्कारयोर्यथायोग सिद्ध- १४. अवरा (स); अपरा (पुवृ); स्थानाङ्गे हरिस्राहकूटवर्जकूटाधिपराजधान्यो यथाक्रम (२।३४१) पि 'अवरा' इति पाठो विद्यते, वायव्यामशान्यां (४.१०६,१६४) च किन्तु अस्मिन्नेव सूत्रे किञ्चिद 'अरया' प्रागभिहितास्तथा देवकुस्वक्षस्कारयोर्यया- इति पाठी प्वप्यादर्शषु विद्यते तेगात्रापि योगं सिद्धहरिक्ट वर्जकटाधिपराजधान्यो यथा- 'अजा' इति पाठः स्वीकृत: । क्रममारनेरया नैऋत्यां च बक्तमुचितास्तथापि १५. गलिणावई (प); सलिलावती ग्रन्थान्तरे प्रस्तुतसूत्रम्म्बन्धियावदादर्गेषु पूज्यनीमलय- नलिनावती (पूर्व); नलिनावती विजयः गिरिकृतक्षेत्रसमासवृत्तौ च तथादर्शनाभावात् सलिलावतीतिपर्यायः (श.); सलिलावती अस्माभिरपि राजधान्यो दक्षिणनेत्यले खि (ठाणं २०३४०)। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ जंबुद्दीवपण्णत्तो उत्तरिल्लेवि एमेव भाणियव्वे जहा सीयाए, वप्पे विजए, विजया रायहाणी, चंदे वक्खारपव्वए । सुवप्पे विजए, वेजयंती रायहाणी, ओम्मि मालिणी णाई । महावप्पे विजए, जयंती रायहाणी, सूरे वक्खारपवए । वप्पावई विजए, अपराइया रायहाणी, फेणमालिणी गई । वग्गू विजए, चक्कपुरा रायहाणी, णागे वक्खारपव्वए। सुवग्गू विजए, खरगपुरा रायद्वाणी. गंभीरमालिणी अंतरणई। गंधिले विजए, अवज्झा रायहाणी, देवे ववखारपवए । गंधिलावई विजए, अओज्झा रायहाणी, एवं मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लं पासं भाणियव्वं तत्थ ताव सीतोदाए णईए दविखणिल्ले णं कुले इमे विजया, तं जहा-- गाहा पम्हे सुपम्हे महापम्हे, चउत्थे पम्हगावई। संखे कुमुए णलिणे, अट्ठमे' णलिणावई ॥१॥ इमाओ रायहाणीओ, तं जहा--- गाहा-~ आसपुरा सीहपुरा, महापुराचेव हवइ विजयपुरा ! अवराइया य अरया, असोग तह वीयसोगा य ॥२॥ इमे वक्खारा, तं जहा- अंके पम्हे' आसीविसे सुहावहे, एवं इत्थ परिवाडीए दो-दो विजया कडसरिसणामया भाणियब्वा, दिसा विदिसाओ य भाणियव्याओ, सीयोयामहवर्ण च भाणियव्वं, सीतोदाए दाहिणिल्लं५ उत्तरिल्लं च। सीतोदाए उत्तरिल्ले पासे इमे विजया, तं जहा गाहा-- वप्पे सुवप्पे महावप्पे, चउत्थे वप्पगावई । वग्गू य सुवग्गू या, गंधिले गंधिलावई ॥३॥ रायहाणीओ इमाओ, तं जहा--- गाहा-. विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया। चक्कपुरा खरगपुरा, हवइ अवज्झा अओज्झा य॥४॥ इमे बक्खारा, तं जहा---चंदपव्वए सूरपव्वए नागपव्वए देवपव्वए। सीयोयाए महाणईए दाहिणिल्ले कूले-खीरोया सीहसोया अंतोवाहिणीओ" णईओ, उम्मिमालिणी फेणमालिणी गंभीरमालिणी उत्तरिल्लविजयाणंतराओ"। इत्थ परिवाडीए दो१. अयोज्झा (अ,त्रि,ब) 1 ८. वेजयंती य (अ,ब)। २. उत्थे (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ६. सीयसोया (प)1 ३. पउमे (अ,क,ख,ब,स) । १०. अंतोवाहिणी (अ,ख,त्रि,ब) । ४. °सरिणामया (प्रक,ख,ब,स) प्रायः सर्वत्र । ११. यत्तु पूर्वविभागे विजयादिसङ्ग्रहः प्राच्य५. दक्खिणिल्लं (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । विभागद्वयेन्तरनदीसंग्रहश्च नोक्तस्तत्र सूत्र६. वप्पावई (अ,त्रि,ब] । काराणां प्रवृत्तिवैचित्र्यं हेतुळवच्छिन्नसुत्रता ७. गंधिला (म,क,ख,त्रि,ब.स)। वेति (शाव)। Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो दो कू डा विजयसरिसणामया भाणियव्वा! इमे दो-दो कूडा अवट्ठिया तं जहा-- सिद्धाययणकूडे पव्वयसरिसणामकूडे ॥ २१३. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरे णाम पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा! उत्तरकुराए दविखणेणं, देवकुराए उत्तरेणं, पुव्व विदेहस्स वासस्स पच्चत्थिमेणं, अवरविदेहस्स वासस्स पुरत्थिमेणं, जंबुद्दीवस्स दीवस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरे णा में पव्वए पण्णत्ते- णवणउतिजोयणसहस्साई उड्ढे उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्साई णवइं च जोयणाइं दस य एगारसभाए जोयणस्स विक्खंभेणं, धरणितले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, तयणंतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणे-परिहायमाणे उवरितले एगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं, भूले एकत्तीसं' जोयणसहस्साइं णव य दसुत्तरे जोयणसए तिणि य एगारसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं, धरणितले एकत्तीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसए परिक्खेवेणं, उवरितले तिण्णि जोयणसहस्साई एगं च बावट्ठ जोयणसयं किं चिविसेसाहियं परिवखेवेणं, मूले विच्छिण्णे मज्झे संखित्ते उवरि' तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे सण्हे । से ण एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सब्वओ समंता संपरिक्खित्ते, वण्णओ॥ २१४. मंदरेणं भते ! पव्वए कई वणा पण्णत्ता? गोयमा! चत्तारिवणा पण्णत्ता, तं जहा-भद्दसालवणे गंदणवणे सोमणसवणे पंडगवणे ! २१५. कहि णं भंते ! मंदरे पव्वए भद्दसालवणे णामं वणे पण्णत्ते? गोयमा ! धरणितले, एत्थ णं मंदरे पव्वए भद्दसालवणे णामं वणे पण्णत्ते--पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे सोमणस-विज्जुप्पह-गंधमायण-मालवंतेहिं वक्खारपश्व एहिं सीयासीतोदाहि य महाणईहिं अट्ठभागपविभत्ते, मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमेणं बावीस-बावीसं'८ जोयणसहस्साइं आयामेणं, उत्तरदाहिणेणं अड्डाइज्जाइं-अड्डाइज्जाई जोयणसयाई विक्खंभेणं, से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिविखत्ते, दुहवि वण्णओं भाणियव्वो किण्हे किण्होभासे जाव देवा आसयंति सयंति ।। २१६. मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरथिमेणं भद्दसालवणं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं महं एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते- पण्णासं जोयणाई आयामेणं, पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं, छत्तीसं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसण्णिविठे वणओ" ॥ १. मंदिरे (अ,ब) अग्रेपि प्राय एवमेव । (क त्रि,स)। २. धरणियले (अ,प,स)। ८. पच्चत्थिमेणं बाबीसं (अ,ब); पच्चत्थिम३. तदाणंतरं (अ, ब); तयाणंतरं (क, ख, पुरस्थिमेणं बावीसं (क,ख,स); पुरथिमेणं त्रि, स)। पच्चत्थिमेणं बावीसं २ (त्रि); पश्चिम४. एक्कतीसं (अ,ब); एगत्तीसं (क,ख त्रि,स)। पूर्वाभ्यां (हीवृ) । ५. उप्पि (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ६. उत्तरेण वाहिणणं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ६. नं० ११०-१३॥ १०. जं० १.१०-१३। ७. पादीणपडियायते (अ,ब); पडियायए १२. जं ११३७ । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१४ जंबुद्दीवपण्णत्ती २१७. तस्स णं सिद्धाययणरस तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता। ते णं दारा अटु जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया वरकण गथूभियागा जाव' वणमालाओ भूमिभागो य भाणियव्वो॥ २१८. तस्स णं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता.... अट्ठ जोयणाई आयाम-विवखंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वरयणामई अच्छा ।। २१६. तीसे गं मणिपेढियाए उवरि देवच्छंदए- अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाई अट्ट जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं जाव जिणपडिमावण्णओ देवच्छंदगस्स जाव' धूवकडुच्छुयाणं ॥ - २२०. मंदरस्स णं पव्वयस्स दाहिणेणं भ६सालवणं पण्णासं, एवं चउद्दिसिपि मंदरस्स भद्दसालवणे चत्तारि सिद्धाययणा भाणियव्वा । २२१. मंदरस्स णं पव्वयस्स उत्तरपुरथिमेणं भद्दसालवणं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि णंदापुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--- पउमा पउमप्पभा चेव, कुमुदा कुमुदप्पभा। ताओ णं पुक्खरिणीओ पण्णासं जोयणाई आयामेणं, पणवीसं जोयणाइं विक्खंभेणं, दस जोयणाइं उव्वेहेणं, वण्णओ वेइयावणसंडाणं भाणियव्वो । चउद्दिसि तोरणा जाव तासि णं पुवखरिणीणं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे ईसाणस्स देविंदस्स देवरणो पासायव.सए पण्णत्ते पंचजोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, अड्डाइज्जाई जोयणसयाई विवखंभेणं', अब्भुग्गयमूसियपहसिय विव एवं सपरिवारो पासायवडेंसओ भाणियव्वो" ।। २२२. मंदरस्स णं एवं" दाहिणपुरत्थिमेणं पुक्खरिणोओ उप्पलगम्मा णलिणा, उप्पला उप्पलुज्जला। तं चेव पमाणं मज्झे पासायवडेंसओ सक्कस्स सपरिवारो तेणं चेव प्रमाणेणं ।। २२३. दाहिणपच्चत्थिमेण वि पुक्खरिणीओ भिगा भिगनिभा चेव, अंजणा कज्जलप्पभा२ ॥ पासायवडेंसओ सक्कस्स सीहासणं सपरिवारं ।। २२४. उत्तरपच्चत्थिमेणं पुक्खरिणीओ.-- सिरिकता सिरिचंदा, सिरिमहिया चेव सिरिणिलया। पासायवडेंसओ ईसाणस्स सीहासणं सपरिवारं ॥ १. जी० ६१३००-३०६ । ८. जं० ४१२६.३० । २. वणलयामालाओ (क,म); वणलयाओ (ख)। ६. आयाम-विक्खंभेणं (क,ख,स)। ३. जी. ३.४१४-४१६। १०. जी. ३३३३८ ३४५; पण्ण०२२५१ । ४. पञ्चाशयोजनान्यवगाोत्याधालापकोग्राह्यः ११. एवमितिपदमुक्तातिदेशार्थं तेन 'भहसालवणं (शावृ)। पण्णासं जोअणाई ओगाहित्ता' इत्यादि ग्राह्यम् (शाबू)। ५. णंदाओ (अ,क,ख,त्रि,ब)। १२. अंजणप्पभा (प)। ६. पणुवीसं (अ,ख,ब)। १३. सिरियंदा (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । ७. जी० ३१२८६ १४. तेव (ब)। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वक्खारो ५१५ २२५. मंदरे पं भंते ! पव्वए भ६सालवणे कइ दिसाहत्थिकूडा पण्णत्ता? गोयमा ! अट्ठ दिसाहत्थिकूडा पण्णत्ता, तं जहा--- गाहा पउमुत्तरे णीलवंते, सुहत्थी अंजणागिरी'। कुमुदे य पलासे य, वडेंसे रोयणागिरी ।। २२६. कहि णं भंते ! मंदरे पव्वए भद्दसालवणे पउमुत्तरे णाम दिसाहत्थिकूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं, पुरथिमिल्लाए सीयाए उत्तरेणं, एत्थ णं पउमुत्तरे णाम दिसाहत्थिकूडे पण्णत्ते- पंचजोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंचगाउयसयाई उव्वेहेणं, एवं विक्खंभे परिक्खेवो य भाणियन्वो' चुल्लहिमवंतकूडसरिसो, पासायाण य 'तं चेव', पउमुत्तरो देवो, रायहाणी उत्तरपुरस्थिमेणं ॥ २२७. एवं णीलवंतदिसाहत्थिकूडे मंदरस्स दाहिणपुरथिमेणं, पुरथिमिल्लाए सीयाए दक्खिणेणं । एयस्सवि नीलवंतो देवो, रायहाणी दाहिणपुरथिमेणं ॥ २२८. एवं सुहत्थिदिसाहत्थिकडे मंदरस्स दाहिणपुरथिमेणं, दक्खिणिल्लाए सीयोयाए पुरथिमेणं । एयस्सवि सुहत्थी देवो, रायहाणी दाहिणपुरथिमेणं ॥ २२६. एवं चेव अंजणागिरि दिसाहत्थिकूडे मंदरस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, दक्खिणिल्लाए सीतोदाए पच्चत्थिमेणं । एयस्सवि अंजणागिरी देवो, रायहाणी दाहिणपच्चत्थिमेणं ॥ २३०. एवं कुमुदेवि दिसाहत्थिकूडे मंदरस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, पच्चथिमिल्लाए सीतोदाए दक्खिणेणं । एयस्सवि कुमुदो देवो,रायहाणी दाहिणपच्चत्थिमेणं ।। २३१. एवं पलासेवि दिसाहत्थिकूडे मंदररस उत्तरपच्चत्थिमेणं, पच्चथिमिल्लाए सीतोदाए उत्तरेणं । एयस्सवि पलासो देवो, रायहाणी उत्तरपच्चत्थिमेणं ।।। २३२. एवं वडेंसेवि दिसाहत्थिकूडे मंदरस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, उत्तरिल्लाए सीयाए महाणईए पच्चत्थिमेणं । एयस्सवि वडेंसो देवो, रायहाणी उत्तरपच्चत्थिमेणं ।। २३३. एवं रोयणागिरी दिसाहत्थिकडे मंदरस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, उत्तरिल्लाए सीयाए पुरत्थिमेणं ! एयस्सवि रोयणागिरी देवो, रायहाणी उत्तरपुरस्थिमेणं ।। २३४. कहि णं भंते ! मंदरे पव्वए णंदणवणे णाम वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! भद्दसालवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ पंच जोयणसयाइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए गंदणवणे णाम वणे पण्णत्ते--पंच जोयणसयाई चक्कवालविक्खंभेणं वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरं पव्वयं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिदुइ १. अंजणगिरी (अ.प,ब,स)। वृत्तिकृता मंष पाठो सब्यस्तेन विभक्तिलोपस्य २. वडेंसए (अ,ब); वतंसे (ख) । सम्भावना कृता। ३. रोहणागिरि (शावृपा) । ५. जं०४१४८-५२1 ४. विक्खंभ (क,ख,त्रि,प,स,); अत्र विभक्तिलोपः ६. तदेव प्रमाणमिति गम्यम् (शाद)। प्राकृतत्वात् (शाव); ताडपत्रीयादर्श विक्ख' ७. दाहिणपुरथिमिलेणं (ब)। इति पाठो लम्यते, किन्तु अर्वाचीनादर्शषु ८. वलास (ब)। Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१६ जंबुद्दीपण णव जोयणसहस्साई णव य चउप्पण्णे जोयणसए छच्चेगारसभाए जोयणस्स बाहिं गिरिविक्खभो, एगत्तीसं जोयणसहस्साइं चत्तारि य अउणासीए जोयणसए किचिविसेसाहिए बाहि गिरिपरिरएणं, अट्ठ जोयणसहस्साइं णव य चउप्पण्णे जोयणसए छच्चेगारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिविवखंभों, अट्ठावीसं जोयणसहस्साइं तिष्णि य सोलसुत्तरे जोयणसए अट्ठय इक्कारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिपरिएणं । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते, वष्णओ जाव' देवा आसयति ॥ २३५. मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते । एवं चउद्दिसि चत्तारि सिद्धाययणा, विदिसासु पुक्खरिणीओ तं चैव पमाणं सिद्धाययणाणं, पुक्खरिणीणं च, पासायवडेंसमा तह चेव सक्केसाणाण' तेणं चेव पमाणेणं' ॥ २३६. गंदणवणे णं भंते ! वणे कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा - णंदणवणकडे मंदरकडे जिसहकूडे हिमवयकूडे रययकूडे रुयगकूडे सागरचित्तकूडे वइरकूडे बलकूडे ।। २३७. कहि णं भंते! णंदणवणे णंदणवणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमिल्ल सिद्धाययणस्स उत्तरेणं, उत्तरपुरत्थिमिल्लस्स पासाय वडेंसयस्स दक्खिणं, एत्थ णं णंदणवणे णामं कूडे पण्णत्ते । पंच सइया कूडा पुव्ववणिया भाणियव्वा' देवी मेहंकरा, रायहाणी विदिसाए ॥ २३८. एयाहि चेव पुग्वाभिलावेणं णेयव्वा इमे कूडा इमाहिं दिसाहि— पुरत्थि - मिल्लस्स भवणस्स दाहिणेणं, दाहिणपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं मंदरे कूडे, मेहवई देवी, रायहाणी पुव्वेगं । दक्खिणिल्लस्स भवणस्स पुरत्थिमेणं, दाहिणपुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं जिसहे कूडे सुमेहा देवी, रायहाणी दक्खिणं । दक्खिणिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं, दक्खिणपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरत्थिमेणं 'हेमवए कूडे " मेघमालिनी देवी, रायहाणी दक्खिणं । पच्चत्थिमिल्लस्स भवणस्स दक्खिणेणं, दाहिणपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं 'रयए कूडे "" सुवच्छा देवी, रायहाणी पच्चत्थिमेणं । पच्चत्थिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं, १. जं० १११०-१३ । २. जं० ४।२१६-२२४ । ३. सक्कणाणं ( अ, क, ब ) । ४. अत्र च पुष्करिणीनां नामानि सूत्रकारालिखितत्वाल्लिपिमादाद् वा आदर्शेषु न दृश्यन्ते इति तत्र शान्यादिप्रासादक्रमादिमानि नामानि द्रष्टव्यानि पूज्यप्रणीतक्षेत्र विचारतः -- नन्दो - त्तरा, नन्दा, सुनन्दा, नन्दिवर्द्धना तथा नदिपेणा अमोघा गोस्तूपा सुदर्शना तथा भद्रा विशाला कुमुदा पुण्डरीकिणी तथा विजया वैजयन्ती अपराजिता जयन्ती ( चावू ) । ५. पुरथिमिल्लस्म (क, ख, त्रि, स ) ! ६. अथ लाघवार्थमुक्तस्य वक्ष्यमाणानां च कूटानां साधारणमतिदिशति - पञ्चशतिकानि कूटानि पूर्व विदिहस्तिकूटप्रकरणं वर्णितानि उच्चत्वव्यासपरिधिवर्णसंस्थान राजधानी दिगादिभिः तान्यत्र भणितव्यानीति शेष: (शावृ) । ७. हिकडे ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ८. भवयकडे ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । ६. हेममालिनी (क ) | १०. रययकूड़े (अव) रजतकूडे ( क,ख,स); रयत कूडे (त्रि ) । Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ५१७ उत्तरपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दक्खिणेणं 'रुयगे कूडे ", वच्छमित्ता देवी, राहाणी पच्चत्थिमेणं । उत्तरिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं, उत्तरपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरत्थिमेणं 'सागरचित्ते कुडे, वइरसेणा देवी, रायहाणी उत्तरेणं । उत्तरिल्लस्स भवणस्स पुरत्थिमेणं, उत्तरपुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं 'वइरे कूडे ', बलाहया" देवी, रायहाणी उत्तरेणं ॥ २३६. कहि णं भंते ! गंदणवणे* बलकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं णंदणवणे बलकूडे णामं कूडे पण्णत्ते । एवं जं चेव हरिस्तहकूडस्स पमाणं रायहाणी य, तं चैव बलकूडस्सवि, णवरं बलो देवो, रायहाणी उत्तरपुरत्थमेणं ॥ २४०. कहि णं भंते ! मंदरए पव्वए सोमणसवणे णामं वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! णंदणवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अद्धतेवट्टि जोयणसहस्साइं उड़ढं उप्पत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए सोमणसवणे णामं वणे पण्णत्ते पंचजोयणसयाइं चक्कवालविक्खभेणं, वट्टे वलयाकार संठाणसंठिए, जेणं मंदरं पव्वयं सव्वओ समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठs - चत्तारि जोयणसहस्साइं दुण्णि य बावत्तरे जोयणसए अट्ठ य इक्कारसभाए जोयणस्स 'बाहिं गिरिविक्खभेणं", तेरस जोयणसहस्साई पंच य एक्कारे" जोयणसए छच्च' इक्कारसभाए जोयणस्स बाहि गिरिपरिरएणं, तिष्णि जोयणसहस्साइं दुण्णि य बावत्तरे जोयणसए अट्ठ य एक्कारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिविक्खंभेणं, दस जोयणसहस्साइं तिष्णि य अउणापणे" जोयणसए तिष्णि य इक्कारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिपरिरएणं । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, वण्णओ" किण्हे किण्होभासे जाव आसयंति । एवं कूडवज्जा सच्चेव णंदणवणवत्तव्वया भाणियव्वा, तं चेव ओगाहिऊणं जाव पासायवडेंसगा सक्कीसाणाणं | २४१. कहिणं भंते ! मंदरे पव्वए पंडगवणे णामं वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! सोमणसवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ छत्तीसं जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए सिहरतले पंडगवणे णामं वणे पण्णत्ते - चत्तारि चउणउए जोयणसए चक्कवाल विक्खंभेणं, वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिविखत्ताणं चिट्ठइ - तिष्णि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठ जोयणसयं किंचिविसे १. रुगडे ( अ, क,ख, त्रि,ब,स) 1 २. सागरचित्तकूडे ( अ, क, ख, त्रि,ब,स) । ३. वइरकूडे ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) 1 ४. बलाहिका (त्रि,हीवृ ) । ५. नंदणवणे २ (अ, क, ख, ब, स ) । ६. जं० ४। १६५ । ७. बाहिरविणं ( अ, ख, ब, स ) ; बाहिर गिरि विक्खंभेणं (त्रि ) । ८. एक्कारस (त्रि); एक्कार ( स ) । ६. छ ( ख ) । १०. अउणवणे ( अ, ब ) । ११ जं०] १।१०-१३ ॥ १२. ओगा हिऊण (त्रि ) । १३. जं० ४१२३५ । १४. मंदिरस्स चूलियं ( अ, ब ) ; मंदरस्स चूलियं (क, ख, त्रि,स) । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ जंबुद्दीaurit साहिय' परिक्खेवेणं । से णं एगाए पउमवर वेश्याए एगेण य वणसंडे' जाव किण्हे देवा आसयंति || २४२. पंडगवणस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मंदरचूलिया णामं चूलिया पण्णत्ता-चत्तालीसं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले बारस जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे अटु जोयणाई विक्खभेणं, उप्पि चत्तारि जोयणाई विक्खभेणं, मुले साइरेगाई सत्तत्तीस जोयणाई परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाई पणवीसं जोयणाई परिक्खेवेणं, उप्पि साइरेगाई बारस जोयणाई परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिया सव्ववेरुलियामई अच्छा सा णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता, उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव" सिद्धाययणं" बहुमज्झदेसभा -- कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूण कोस उड्ढ उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयस ष्णिविट्ठे जाव" धूवकडुच्छुगा ॥ २४३. मंदरचूलियाए" णं पुरत्थिमेणं पंडगवणं पण्णासं जोयणाई ओगाहिता, एत्थ णं महंगे भवणे पण्णत्ते । एवं जच्चेवर सोमणसवणे" पुव्ववण्णिओ गमो भवगाणं ५ पुक्खरिणी पासायवडेंसगाण य, सो चेव णेयव्वो जाव' सक्कीसाणवडेंसगा तेणं चैव परिमाणेणं ॥ २४४, पंडकवणे णं भंते ! वणे कइ अभिसेयसिलाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! चत्तारि अभिसेयसिलाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--- पंडुसिला पंडुकंबलसिला रत्तसिला रत्तकंबलसिला " | २४५. कहि णं भंते ! पंडगवणे वणे पंडुसिला णामं सिला पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरचूलियाए पुरत्थिमेणं, पंडगवणपुरत्थिमपेरते, एत्थ णं पंडगवणे वणे पंडुसिला णामं सिला पण्णत्ता - उत्तरदाहिणायया पाईणपडीणविच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया पंचजोयणसयाई आयामेणं, अड्डाइज्जाई जोयणसयाई विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वकणगामई अच्छा । वेइयावणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता, वष्णओ !] १. किंचिविसेसाहिए ( अ, क, ख, त्रि,ब,स) । २. जं० १११०-१३ । 'जाव' इति पदं किण्हे पदानंतरं युज्यते अत्र कश्चिदुलिपिप्रमादः सम्भाव्यते । ३. पणुवीसाई ( अ, ब ) ; पणुवीसं ( क, ख ) । ४. उवर (त्रि ) । ५. दुवाल ( अ, त्रि, ब ) । ६. सं०पा० - पउभव रखेइयाए जाव संपरिक्खित्ता । ७. जं० ११३६, ३७ । ८. सिद्धायणं ( अ, ब ) ; सिद्धाययणे (क, ख,स) 1 ६. देणं (क, त्रि) 1 १०. जं० ११३७-४० ११. मंदरचूलगाए (अब) 1 १२. जो चैव ( क,ख, स ) । १३. सोमणसवण ( अ, ख, त्रि, ब, स ) ; सोमणस (क); सोमणसे ( प ) 1 १४. X ( अ, त्रि,त्र ) । १५. भवणं ( अ, ख, ब ) ; भवणस्स (क, त्रि) 1 १६. जं० ४।२४० 1 १७. अन्यत्र तु पाण्डुकम्बला अतिपाण्डुकम्बला रक्तकम्बला अतिरक्तकम्बला नामान्तराणि (शावृ) : १८. जं० १११०-१३ ॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउस्यो वक्खारी ५१६ २४६. तीसे णं पंडुसिलाए चउद्दिसि चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता जाव' तोरणा, वण्णओ॥ ___ २४७. तीसे णं पंडुसिलाए उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' देवा आसयंति सयंति ॥ २४८. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए उत्तरदाहिणेणं, एत्थ णं दुवे अभिसेयसीहासणा पण्णत्ता पंच धणुसयाई आयाम-विक्खंभेणं, अड्डाइज्जाई धणुसयाई बाहल्लेणं, सीहासणवण्णओ भाणियव्वो' विजयदुसवज्जो। तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले सीहासणे तत्थ णं बहूहिं भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहिं देवेहि देवीहि य कच्छाइया तित्थयरा अभिसिच्चति । तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले सीहासणे तत्थ णं बहुहिं भवण 'वइ-वाणमंतर-जोइसिय° वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य वच्छाईया तित्थयरा अभिसिच्चंति ॥ २४६. कहि णं भंते ! पंडगवणे वणे पंडुकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता ? गोयमा ! मंदरचूलियाए दक्खिणेणं, पंडगवणदाहिणपेरंते, एत्थ f पंडगवणे वणे पंडुकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता पाईणपडीशायया' उत्तरदाहिणविच्छिण्णा, एवं तं चेव प्रमाणं वत्तब्वया य भाणियव्वा जाव...... २५०. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे सीहासणे पण्णत्ते, तं चेव सीहासणप्पमाणं', तत्थ णं बहूहिं भवणवइ"-'वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहि देवेहिं देवीहि य° भारहगा तित्थय रा अभिसिच्चति ॥ २५१. कहि णं भंते ! पंडगवणे वणे रत्तसिला णामं सिला पण्णता? गोयमा ! मंदरचलियाए पच्चत्थिमेणं, पंडगवणपच्चत्थिमपेरंते, एत्थ णं पंडगवणे वणे रत्तसिला णामं सिला पण्णता - उत्तरदाहिणायया पाईणपडीणविच्छिण्णा जाव" तं चेव पमाणं सव्वतवणिज्जामई अच्छा । तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले सीहासणे तत्थ णं बहूहि भवणवईवाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहिं देवेहि देवीहि य पम्हाइया तित्थयरा अभिसिच्चति । तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले सीहासणे तत्थ णं बहूहिं भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहि देवेहिं देवीहि य वप्पाइया२ तित्थयरा अभिसिच्चंति ।। २५२. कहि णं भंते ! पंडगवणे वणे रत्तकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता? गोयमा ! मंदरचूलियाए उत्तरेणं, पंडगवण उत्तरचरिमंते, एत्थ णं पंडगवणे वणे रत्तकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता... पाईणपडीणायया उदीणदाहिणविच्छिण्णा सव्वतवणिज्जामई १. जं० ४।२६-३०। २. जं० १११३ । ३. अभिसेया सीहासणा (अ,ब) । ४. जी० ३३३११ ५. अभिसिंचंति (अ,ब)। ६. सं०पा० -भवण जाव वेमाणिएहि । ७. पडियायता (अ,क,ब,म)। ८. ० ४।२४५-२४७ । ९. जं. ४१२४८ । १०. संपा०---भवणवइ जाव भारहगा। ११. जं. ४१२४५-२४८ । १२. वप्पातिया (अ,ब)। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० जंबुद्दीवपण्णत्ती अच्छा जाव' बहुमज्झदेसभाए सोहासणं, तत्थ णं बहूहि भवणवई-वाणमंतर-जोइसियवेमाणिएहि देवेहिं देवीहि य एरावयगा तित्थयरा अभिसिच्चंति ॥ २५३. मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स कइ कंडा पण्णत्ता ? गोयमा! तओ कंडा पण्णत्ता, तं जहा. 'हेट्ठिल्ले कंडे, मज्झिमिल्ले कंडे, उवरिल्ले कंडे ॥ २५४. मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स हेटिल्ले कंडे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा ...पूढवी उबले वइरे' सक्करा ॥ २५५. मज्झिमिल्ले णं भंते ! कंडे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते, तं जहा.. अंके फलिहे जायरूवे रयए ।। २५६. उवरिल्ले कंडे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा! एगागारे पण्णत्ते सव्वजबूणयामए॥ २५७. मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स हेडिल्ले कंडे केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एग जोयणसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ __ २५८. मज्झिमिल्ले कंडे पुच्छा। गोयमा तेवढेि जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। २५६. उवरिल्ले पुच्छा । गोयमा ! छत्तीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते। एवामेव सपुव्वावरेणं मंदरे पव्वए एग जोयणसयसहस्सं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥ २६०. मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स कति णामधेज्जा पण्णत्ता ? गोयमा ! सोलस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा -- गाहा-- मंदर' मेरु मणोरम सुदंसण सयंपभे य गिरिराया। रयणोच्चए सिलोच्चए' मज्झे लोगस्स णाभी य ॥१॥ अच्छे य सूरियावत्ते सूरियावरणे ति या। उत्तमे य दिसादी य, वडेंसेति य सोलस ॥२॥ २६१. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ. मंदरे पव्वए ? मंदरे पव्वए? गोयमा ! मंदरे पव्वए मंदरे णामं देवे परिवसई महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ मंदरे पव्वए-मंदरे पव्वए । १. जं० ४।२४५-२४८ । ६ जोयणसहस्स (प,ब,स) अशुद्ध प्रतिभाति । २. सं०पा०-भवणवइ जाव देवेहिं । १०. समवायाङ्गे (१६१३) पाणां नाम्नां भेदो ३. हेट्रिल्ल कंडे मज्झिमकंडे उवरिल्लकंडे (अ,त्रि दृश्यते .... ब, पुवृ, हीवृ); °मझिल्ले कंडे° (म)। मंदर-मेरु-मणोरम-सुदंसण सयंपों य गिरिराया। ४. वतिरे (ख)। रयणुच्चय पियदंगण, मज्झे लोगस्स नाभी य ॥११॥ ५. जावरूवे (अ,ब)। अत्थे य सूचियावत्ते, सूरियावरणेत्ति य । ६. एक्काक्कारे (अत्रि,व) । उत्तरे य दिवाई य, बडेसे इय सोलसे ॥२॥ ७. सव्वपूणतामए (अ,ब) ! ११. रयणुच्चए सिलुच्चए (क,ख,त्रि,)। ८. मज्झिल्ले (अ,त्रि,व)। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्यो वक्खारो ५२१ अदुत्तरं तं चेव' ।। - २६२. कहि ण भंते ! जंबुद्दीवे दीवे णीलवते' नाम वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स उत्तरेणं, रम्मगवासस्स दक्खिणेणं, पुरथिमिल्ललवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेण, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरस्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवेणीलवंते णामं वासहरपवए पण्णत्ते .. पाईणपडीणायए' उदीणदाहिणविच्छिण्णे, णिसहवत्तव्वया प्पीलक्तस्स भाणियब्वा', गवरं -जीवा दाहिणेणं, धणु [धणुपट्टं ? ] उत्तरेणं, एत्थ णं केसरिद्दहो, सीथा महागई पवू ढा समाणी उत्तरकुरं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी' जमगपव्वए' णीलवंत-उत्तरकुरु-चंदेरावण-मालवंतद्दहे य दुहा विभयमाणी-विभयमाणी चउरासीए सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी -आपूरेमाणी भद्दसालवणं एज्जेमाणी -एज्जेमाणी मंदर पब्वयं दोहिं जोयहि असंपत्ता पुरस्थाभिमुही आवत्ता समाणी अहे मालवंतवक्खारपव्वयं दालयित्ता मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं पुव्वविदेहं वासं दुहा विभयमाणी-विभयमाणी एगमेगाओ चक्रवट्टिविजयाओ अट्ठावीसाए-अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणीआपूरेभाणी पंचहि सलिलासयसहस्सेहिं बत्तीसाए" य सलिलासहस्सेहि समग्गा अहे विजयस्स दारस्स जगई दालइत्ता पुरथिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ, अवसिडें तं चेव । एवं णारिकतावि उत्तराभिमुही णेयव्वा, णवरमिमं" णाणत्तं----गंधावइवट्टवेयपव्वयं जोयणेणं असंपत्ता पच्चत्थाभिमुही आवत्ता समाणी, अवसिट्ठ तं चेव पवहे य मुहे य जहा" हरिकतासलिला ।। २६३. णीलवंते णं भंते ! वासहरपब्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! नव कूडा पण्णत्ता, तं जहा--सिद्धाययणकूडे । गाहा-- सिद्धे णोले" पुव्वविदेहे, सीया य कित्ति णारी य । अवरविदेहे रम्मगकूडे उवदंसणे चेव ॥१॥ सव्वे एए कूडा पंचसइया, रायहाणीओ उत्तरेणं ॥ २६४. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ ---णीलवंते वासहरपव्वए ? णीलवते वासहरपव्वए ? गायमा ! णोले णालोभासे, णोलवते य इत्थ देवे महिड्डीए जाव' परिवसइ । सव्ववेरुलियामए णोलवते जाव' णिच्चे ॥ १. जं०११४७ । ११. जे० ४१६१-६५ २. लवंते (अ,कत्रि,ब) प्रायः सर्वत्र । १२. नवरं इमं (अ,ब); नवरि इमं (त्रि)। ३. पडियायते (अ,क,ख,ब) । १३. मालवनपरियागं वट्टवेय१पन्चयं (अ,ब) । ४. ०४१८६-८६। १४. जं० ४१६०; यच्चात्र हरिसलिला विडाय प्रवह५. तत्थ (अ.क,ख,त्रि,ब,स) । मुखयोईरिकान्तातिदेश उक्तस्तत् हरिरालिला६. पज्जेमाणी (अ.क,ख,त्रि,ब,वहीव) । प्रकरणेपि हरिकान्तातिदेशस्याक्तत्वात् (शा)। ७. जवगपवतो (अ,ब)। १५. लवंत (अ,ब) ८. आपूरयमाणी (अ,ब); आपुरमाणी (ख,स)। १६. जं. ११२४ । १.पज्जेमाणी (अ,क,ख,त्रि,ब,पुत्,हीवृ) । १७. जं० २४७ । १०. दुपत्तीसाए (अ,ब); दुबत्तीसाए (त्रि) । Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ जंबुद्दीवपण्णत्ती २६५. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे रम्मए णाम वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! णीलवंतस्स उत्तरेणं, रुप्पिस्स दक्खिणेणं, पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एवं जह चेव हरिवासं तह चेव रम्मयं वासं भाणियव्वं', णवरं-- दक्खिणेणं जीवा उत्तरेणं धणुं [धणुपट्टे ? ] अवसेसं तं चेव ॥ २६६. कहि णं भंते ! रम्मए वासे गंधावई णामं वट्टवेयपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! गरकताए पच्चत्थिमेणं, णारीकताएं पुरथिमेणं, रम्मगवासस्स बहुमज्झदेसभाए, एन्थ णं गंधावई णामं वट्टवेयड्ढे पब्बए पण्णत्ते, जं चेव वियडावइस्स तं चेव गंधावइस्सवि वत्तव्वं । अट्ठो, बहवे उप्पलाइं जाव गंधावइवण्णाइं गंधावइवण्णाभाई गंधाव इप्पभाई। 'पउमे य इत्थ देवे महिड्डीए जाव' पलिओवमट्टिईए परिवसइ । रायहाणी उत्तरेणं ।। २६७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ.-रम्मए वासे ? रम्मए वासे? गोयमा ! रम्मगवासे णं रम्मे रम्मए रमणिज्जे। 'रम्मए य इत्थ' देवे जाव परिवसइ। से तेणठेणं ।। २६८. कहिण भते । जंबूद्दीवे दीवे रुप्पी णाम वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! रम्मगवासस्स उत्तरेणं, हेरण्णवयवासस्स" दक्खिणेणं, पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पूरस्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे रुप्पी णामं वासहरपब्वए पण्णत्ते -- पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिष्णे, एवं 'जा चेव महाहिमवंतवत्तव्वया 'सा चेव रुप्पिस्सवि, णवरं दाहिणेणं जीवा उत्तरेणं धणु [धणुपट्ठ?] अवसेसं तं चेव, महापुंडरीए दहे, ण रकंता३ महाणदी" दक्खिणेणं णेयव्वा, जहा५ रोहिया पुरत्थिमेणं गच्छइ, रुप्पकूला उत्तरेणं णेयव्वा, जहा६ हरिकता पच्चत्थिमेणं गच्छइ, अवसेसं तं चेव ॥ २६६. रुप्पिम्मि णं भंते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा.--.. गाहा-- सिद्धे रुप्पी रम्मग, णरकता बुद्धि रुप्पकूला य । हेरण्णवए मणिकंचणे य रुप्पिम्मि कूडाइं ॥१॥ सव्वेवि एए पंचसइया, रायहाणीओ उत्तरेणं ॥ १. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पु,हीवृ)। २. जं० ४८१-८३। ३. द्रष्टव्यम् -४१५७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. नारिकताए (अ,क,ख,ब,स)। ५. जं. ४८४। ६.४ (अ.प,ब,शावृ) । ७. पउमेत्थ (अ,ब); पउमे इत्थ (क,ख,त्रि,स)! ५. ० १०२४। ६. रमएत्थ (अ,ब); रम्मए इत्थ (ख,त्रि,स)। १०. हेरण्णवासस्स (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ११. जच्चेव (अ,त्रि,ब); ० ४.६२,६३६ १२. सच्चेव (अ,त्रि,ब)। १३. णारिकता (अ,ब); स्थानाङ्गपि (२।२६३), __णरकता' इत्येव पाठो लभ्यते । १४. नदी (प)। १५. जं० ४१६४-७२ । १६. जं० ४१७३-७८ । Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वक्खारो ५२३ २७०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ -रुप्पी वासहरपन्वए ? रुप्पी वासहरपन्वए ? गोयमा ! रुप्पी गं' वासहरपव्वए रुप्पी रुप्पपट्टे रुप्पिओभासे सव्वरुप्पामए। रुप्पी य इत्थ देवे पलिओवमट्ठिईए परिवसइ । से तेण→णं ।। २७१. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! रुप्पिस्स उत्तरेणं, सिहरिस्स दविखणेणं, पुरथिमलवणससुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पण्णत्ते । एवं जह चेव हेमवयं तह चेव हेरण्णवयंपि भाणियव्य', णवरं जीवा दाहिणणं उत्तरेणं धj [धणु पढें ? ] अवसिठं तं चेव ।। २७२. कहि णं भंते ! हेरण्णवए वासे मालवंतपरियाए णामं वट्टवेयड्डपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! सुवण्णकूलाए पच्चत्थिमेणं, रुप्पकूलाए पुरत्थिमेणं, एत्थ णं 'हेरण्णवयस्स वासस्स बहुमज्झदेसभाए"मालवंतपरियाए णामं वट्टवेयड्ढे पण्णत्ते। जह' चेव सद्दावई तह चेव मालवंतपरियाए। अट्ठो, उप्पलाई पउमाई मालवंतप्पभाई मालवंतवण्णाई मालवंतवण्णाभाई । पभासे य इत्थ देवे महिड्डीए पलिओवमट्ठिईए परिवसइ । से एएणठेणं । रायहाणी उत्तरेणं ।। __ २७३. से केणढेणं भंते ! एवं बुच्चइ-हेरण्णवए वासे ? हेरण्णवए वासे ? गोयमा ! हेरण्णवए णं वासे रुप्पि-सिहरीहिं 'वासहरपब्वएहि दुहओ" समुवगूढे' णिच्चं हिरण्णं दलयइ" णिच्चं हिरण्णं पगासइ । हेरपणवए य इत्थ देवे परिवसइ। से एएणठेणं ।। २७४. कहि णं भंते ! जंबुद्दोवे दीवे सिहरी णाम वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! हेरण्णवयस्स उत्तरेणं, एरावयस्स दाहिणेणं, पुरथिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेण! एवं जहा चेव चुल्लहिमवंतो तह चेव सिहरीवि, णवरं---जीवा दाहिणेणं, धj [धणुपट्ठ ? ] उत्तरेणं, अवसिठं तं चेव । पुंडरीए दहे, सुवण्णकूला महाणई दाहिणेणं णेयव्वा जहा" रोहियंसा पुरथिमेणं गच्छइ । एवं जह चेव गंगा-सिंधूओ तह चेव रत्ता-रत्तवईओ णेयव्वाओ---पुरस्थिमेणं रत्ता, पच्चत्थिमेणं रत्तवई, अवसिळं तं चेव, 'अपरिसेसं णेयव्वं ।। २७५. सिहरिम्मि णं भंते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? गोयमा ! इक्कारस कूडा पण्णत्ता, तं जहा--सिद्धाययणकूडे सिहरिकूडे हेरण्णवयकूडे सुवण्णकूलाकूडे सुरादेवी१. णामं (प); X (स)। ६. वासहरपब्वएहिमुभओ (त्रि,हीव)। २. ४ (प, शावृ)। १०. समवगूढे (त्रि,पुत हीवृ) 1 ३. रुप्पोमासे (प)। ११. दलयइ णिच्चं हिरणं मुंचति (अ,क,ख,ब,स, ४. जं० १५५.५६ । पुव,हीव); द्रष्टव्यं ४६१ सुत्रस्य पाद५. द्रष्टव्यम्-४१५७ सुत्रस्य पादटिप्पणम् । टिप्पणम् । ६. ४ (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृ,होवृ)। १२. जं० ४११,२। ७. जं० ४१५७-६० 1 १३. जं०४।३-४३ । ८. X(अ,क,ख,त्रि,ब,स) । १४. अवसेसं भाणियव्वं (प)। Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ जंबुद्दीवपण्णत्ती कूडे रत्ताकूडे लच्छीकूडे रत्तवईकूडे इलादेवीकूडे एरवयकूडे तिगिच्छिकूडे' 1 एवं सब्वेवि एते' कूडा पंचसइया, सयहाणीओ उत्तरेणं । २७६. से केणोणं भंते ! एवं वुच्चइ सिहरिवासहरपव्वए ? सिहरिवासहरपव्वए ? गोयमा ! सिहरिम्मि' वासहरपव्वए बहवे कूडा सिहरिसंठाणसंठिया सव्वरयणामया सिहरी य इत्थ देवे जाव परिवसइ। से तेणठेणं ।। २७७. कहि णं भंते ! जंबुद्दोवे दीवे एरावए णाम वासे पण्णत्ते ? गोयमा ! सिहरिस्स उत्तरेणं, उत्तरलवणसमुद्दस्स दक्खिणेणं, पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे एरावए णामं वासे पण्णत्ते-- खाणुबहुले, कंटकबहुले, एवं जच्चेव भरहस्स वत्तव्वया सच्चेव सव्वा निरवसेसा णेयव्वा सओयवणा सणिक्खमणा सपरिनिव्वाणा, गवरं—एरावओ चक्कवट्टी, एरावओ देवो। से तेणठेणं एरावए वासे-एरावए वासे ।। १. तिगिच्छकूडे (अ); तिगिछिकूडे (क,त्रि, ३. मिहरिम्हि (भ,त्रि,ब) । प); तिगिच्छे कूडे (ख); तेगिच्छिकूडे ४. जं० ११२४ । (ब)। ५. ० ३।१-२२६ । २. x (प)। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो १. जया णं एक्कमेक्के' चक्कवट्टिविजए भगवंतो तित्थयरा समुप्पज्जंति, तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थब्वाओ अट्ट दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ सएहि-सएहि कूडेहि सएहि-सएहिं भवणेहिं सएहि-सएहिं पासायवडेंसएहिं पत्तेयं-पत्तेयं चउहि सामाणियमाहस्सीहि चउहि य महत्तरियाहिं सपरिवाराहि सत्तहिं अणिएहिं सहि अणियाहिवईहि सोलसएहि आयरवखदेवसाहस्सीहि, अण्णेहि य बहूहि देवेहि देवीहि य सद्धि संपरिवुडाओ मयाहयणट्ट-गीय-वाइय- तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणीओ विहरंति, तं जहा--- वृत्तं--- भोगंकरा' भोगवई, सुभोगा भोगमालिणी। तोयधारा विचित्ता य, पुप्फमाला अणिदिया ॥१॥ १. एगमेगे (क,ख,म)। विहरणशीलत्वादिति संभाव्यते। तत्त्वं तु बहु२. भगवं (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । श्रुतगम्यमिति (शावृ)। पञ्चमे सूत्र कस्मि३. अधो (अ,व; अहो (ख,त्रिप); श्चिदादर्श ग्वाणमंतरेहि' इति पदं नास्ति । ___ अह° (स)। ६. सं० पा०-वाइय जाव भोगभोगाई। ४. x (प,स)। ७. पुण्यसागरीयवृत्तो दिशाकुमारीनाम्नां भेदो ५. बहहिं वाणमंतरेहि (अ,क,ख,त्रि,ब,स); ननु दृश्यतेकासांचिदिवकुमारीणा व्यक्त्या स्थानाले भोगकरा भोगवती, सुभोगा भोगमालिनी। पल्योपमस्थितेर्भणनात् समानजातीयत्वेना. सुवत्सा वत्समिश्रा, पुप्फमाला अनि दिता॥१॥ सामपि तथाभूतापः सम्भाव्यमानत्वात् भवन- एषु नामसु स्थानाङ्गप्रतिपादिताम्नायानुसारेण पतिजातीयत्वं सिद्धं । तेन भवनपतिजातीयानां 'पुप्फमाला अनिंदिता' एते द्वे नाम्नी ऊर्वलोकवानमंतरजातीयपरिकरः कथं राङ्गच्छते? वास्तव्ययोदिशाकुमार्योविद्यते। उच्यते- एतासां महद्धिकत्वेन ये आज्ञाकारिणो स्थानाङ्ग (८१६६,१००) अधोलोकवास्तघ्यन्तरास्ते ग्राह्या इति अथवा वानमन्तर- व्यानां ऊद्धर्वलोकवास्तव्यानां च दिशाकुमारीणां शब्देनात्र वनानामन्तरेषु चरन्तीति यौगिकार्थ. नामानि अनेन क्रमेण प्रतिपादितानि सन्तिसंश्रयणात् । भवनपतयोऽपि वानमन्तरा अट्र अहेलोगवत्थव्वाबो दिसाकूमारिमहत्तरिइत्युच्यते । उभयेषामपि प्रायो वनक्टादिषु याओ पण्णताओ, तं जहा-- ५२५ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ जंबुद्दीवपण्णत्ती २. तए णं तासि अहेलो गवस्थावाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाण' पत्तेयं पत्तेयं आसणाई चलंति ॥ ३. तए णं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ट दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ पत्तेयं-पत्ते आसणाई चलियाई पासंति, पासित्ता ओहि पउजंति, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी---उप्पण्णे खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भयवं तित्थयरे, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्टण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं जम्मणमहिमं करेत्तए, तं गच्छामो णं अम्हेवि भगवओ जम्मणमहिमं करेमोत्तिकट्ठ एवं वयंति, वइत्ता पत्तेयं-पत्तेयं आभिओगिए' देवे सद्दावेंति, सहावेत्ता एवं वयासी. खिप्पामेव भो देवाणप्पिया! अणेगखंभसयसणिविटठे लीलदियसालभंजियागे, एवं विमाणवण्णओ भाणियन्वो जाव' जोयणविच्छिपणे दिव्वे जाणविमाणे विउवह, विउव्वित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ४. तए णं ते आभिओगिया देवा अणेगखंभसयसन्निविठे जाव पच्चप्पिणंति ।। ५. तए गं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ट दिसाकुमारीमहत्तरियाओ हट्ठतूटुचित्तमाणंदियाओ पत्तेयं-पत्तेयं चउहि सामाणियसाहस्सीहिं चउहि महत्तरियाहिं जाव अण्णेहि य बहूहि देवेहिं देवीहि य सद्धि संपरिवुडाओ ते दिव्वे जाणविमाणे दुरुहंति, दुरुहित्ता सव्विड्डीए सव्वजुईए घणमुइंगपणवपवाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए 'तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्धाए उद्धयाए दिवाए देवगईए जेणेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मणणगरे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणं तेहिं दिव्वेहि जाणविमाणेहिं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए ईसिं चउरंगुलमसंपत्ते धरणियले ते दिव्वे जाणविमाणे ठवेंति, ठवेत्ता पत्तेयं-पत्तेयं चउहि सामाणियसाहस्सीहिं जाव सद्धि संपरिवुडाओ दिव्वेहितो जाणविमाणेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहिता सव्विड्डीए जाव दुंदुहिणिग्योसगाइएणं जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता पत्तेयं-पत्तेयं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी--णमोत्थु ते रयणकुच्छि भोगंकरा भोगवती, सुभोगा भोगमालिनी। सुवच्छा वच्छमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा ॥ अट्ठ उड्ढलोगवत्थव्वाओ दिसाकुमारिमहत्तरि- याओ पण्णत्तायो, तं जहा-. मेघंकरा मेघवती, सुमेवा मेघमालिनी। तोयधारा विचित्ता य, पुप्फमाला अणिदिता॥ ८. तोयहारा (अ,ब)। १. दिसाकुमारीणं मयहरियाणं (क,प); दिसी- कुमारीणं महायरिआणं (ब); दिसाकुमारीणं महरियाणं (स)। २. आभिओगे (म,क,ख,त्रि,ब,स)। ३. जं० श२८ । ४. एतत्सूत्रं 'अ,ब' प्रत्यो व दृश्यते । ५. आभिओगा (क,ख,त्रि,स)। ६. 'हद्वत्'त्याधेकदेशदर्शनेन सम्पूर्णालापको ग्राह्यः (शाव)। ७. सं० पा०-उक्किट्ठाए जाव देवगईए। ८. जं० ३।१२। ६. णमुत्थु (प,स) । Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वखारी धारिए जगप्पईवदाईए' सव्वजगमंगलस्स चवखुणो 'य मुत्तस्स" सव्वजगजीववच्छलस्स हियकारग' - मग्गदेसिय- पागड्डि - विभुपभुस्स जिणस्स पाणिस्स णायगस्स बुद्धस्स बोहगस्स सव्वलोगणाहस्स" णिम्ममस्स' पवरकुलसमुब्भवस्स जाईए खत्तियस्स जंसि लोगुत्तमस्स जणी धण्णासि पुण्णासि तं कयत्थासि, अम्हे णं देवाणुप्पिए ! अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारी महत्तरियाओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करिस्सामो", तणं तुम्भाहि ण भाइयव्वंतिकट्टु उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता उब्वियसमुग्धाएणं समोहम्णंति" समोहणित्ता संखिज्जाई जोयणाई दंडं णिसिरंति, तं जहा - रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहावायरे योग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता दोच्चंपि वेउव्वयसमुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता संवट्टगवाए विउव्वंति, विउव्वित्ता तेणं सिवेणं मउएणं मारुणं अणुद्धणं भूमितल विमलकरणेणं मणहरेणं सव्वोउयसुरभिकुसुमगंधाणुवासिए पिडिमणीहारिमेणं गंधद्धरेण* तिरियं पवाइएणं भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणस्स सव्वओ समता जोगणपरिमंडल से जहाणामए - कम्मगरदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पिट्ठतरोरु- परिणए घण- णिचिय-वट्टवलियखंधे चम्मेदृग- दुघण-मुट्ठिय-समाहय-निचियगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तलजमलजुयलबाहू लंघण-पवण-जइण- पमद्दणसमत्ये छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेधावी पिउणसिप्पोवगए एगं महं दंडसं पुच्छणि वा सलागाहत्थगं वा वेणुसलाइयं वा गहाय रायंगणं वा रायंते उरं वा आरामं वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पवं वा अतुरियमचवलमसंभंत निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता संपमज्जेज्जा । एवामेव ताओ दिसाकुमारी महत्तरियाओ जं तत्थ तणं वा पत्तं वा कट्ठे वा कयवरं वा असुइमचोक्खं पूइयं दुब्भिगंधं तं सव्वं आणि आहुणिय एगंते एडेंति, एडेत्ता जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य अदूरसामंते 'आगाय १. जगप्पीदादए (आवश्यकचूर्णि पृ० १३७ ) । अतः परं तत्र 'सव्वलोयणाहस्य सव्वजगमंगलस्स सव्वजगजीववच्छलस्स' इत्यादि विशेषजानि सन्ति 'बोहगस्स' अनन्तरं 'चक्खुणो य मुत्तस्त' इति पाठी विद्यते । २. अमुत्तस्स ( ख ); असुत्तस्म (त्रि); 'सुत्तस्स' त्ति सूत्रमिव सूत्रं ज्ञानादिरत्नावलिनिबन्धहेतुत्वात् तस्य यथा 'असुत्तस्त' त्ति अखण्डमिव विशेषणं तत्र न सुप्तोऽसुप्तः सर्वत्रापि सदनुष्ठानेषु निद्रारहितो जागरूकोऽप्रमत्त इत्यर्थः ( ही ) । ३. हियकरग ( अ, क, ख, बस, पु, ही वृ) । ४. वागिड्डि (पशावृ) ५. सकललोगणाहस्स ( अ, ब ) । ६. सध्वजग मंगलस्स णिम्नमस्स ( अ, क, ख, त्रि,ब, स, वृहीवृ । ७. लोउत्तमस्स (अखब) ; लोए उत्तमस्स ( क ) । ८. संपुष्णासि ( अ, ब ) । ६. कयत्थे (अ,ब, आवश्यकचूर्णि पृष्ठ १३७ ) । १०. करेस्सामो ( ब ) 1 ११. समोहति ( प ) 1 १२. सं० पा०-- रयणाणं जाव संवट्टगवाए । १३. सव्यत्तु य० ( ख ) | १४. गंधुद्ध एणं ( प ) १५. सं० पा० - सिया जाव तहेव जं । ५२७ 1 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ जंबुद्दीवपण्णत्ती माणीओ परिगायमाणीओ" चिट्ठति ॥ ६. ते कालेणं तेणं समएणं उड्डलोगवथवाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ स एहि-सएहि कूडेहि सएहि-सएहि भवणेहिं सहि-सएहिं पासायव.सएहिं पत्तेयंपत्तेयं चउहि सामाणियसाहस्सीहि एवं तं चेव पुत्ववणियं जाव विहरंति, तं जहा... वृत्तं मेहंकरा मेहवई, सुमेहा मेहमालिणी । सुवच्छा वच्छमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा ॥१॥ ताण तासि उडलोगवत्थव्वाणं अटण्हं दिसाकमारीमदत्तरियाणं पत्तेयं-पनेयं आमणाई चल ति, “एवं तं चेव पुत्ववण्णियं भागियन्वं' जाव' अम्हे पं देवाणु प्पिए ! उड़लोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मणमहिम करिस्सामो, तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकटु उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाई दंडं निसिरति, तं जहा- रयणाणं जाव रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेति, परिसाडेत्ता दोच्चं पि वे उव्वियसमुरघाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अभवद्दल विउव्वंति, से जहाणामए..... कम्मगरदारए सिया तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं दगवारगं वा दगथालगं वा शकलसगं वा दगभगं वा गहाय आराम वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पर्व वा अतूरियमचवलमसंभंतं निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता आवरिसेज्जा, एवामेव ताओ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ अब्भवद्दलए विउव्वंति, विउव्वित्ता खिप्पामेव पतणतणायंति, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जुयायंति, विज्जुयाइत्ता भगवओ तित्थय रस्स जम्मणभवणस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं णच्चोदगं णातिमट्टियं तं पविरलफसियं रयरेणविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदगं वासं वासंति, वासित्ता तं णिहयरयं णटूरय भट्ररयं" पसंतरयं उवसंतरयं करेंति, करेत्ता 'खिप्पामेव पच्चुवसमंति," 'पच्चुवसमित्ता तच्चपि वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता पुप्फबद्दलए विउव्वंति, से जहाणामए-... मालागारदारए सिया तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं पुप्फछज्जियं वा पुप्फपडलगं वा पुप्फचंगेरियं वा गहाय रायंगणं वा रायतेउरं वा आराम वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पवं वा अरियमचवलमसंभंतं निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता कयग्गहगहियकरयलपभट्ठ-विष्पमुक्केणं दसद्धवणेणं कुसुमेणं मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेज्जा, एवामेव ताओ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ पुप्फवद्दलए विउव्वंति, विउवित्ता खिप्पामेव पतणतणा १. आगयमाणीओ परियायमाणीओ (अ);आगय. माणीओ (ब)। २. जं०५।१। ३. द्रष्टव्यं--प्रथमसूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. तं एवं चेव भाणियव्वं पुत्ववणियं (अ, ख, ब)। ५. जं०१२-५॥ ६. सं० पा०-अवक्कमित्ता जाव अभवलए वि उध्वंति २ जाव तं णियरयं । ७. पणटुरयं (क,ख,स)। ८. x (अ,क,ख,ब,स)। ६.४ (ख,स); सं० पा०-~-पच्चुवसमंति एवं पुप्फबद्दलगंसि पुप्फवासं वासंति, वासिता जाव कालागुरुपवर जाव सुरवराभिगमणजोगं । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ५२६ यंति, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जूयायंति, विज्जयाइत्ता भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं जलयथलयभासुरप्पभूयस्स बेंटट्ठाइस्स दसद्धवण्णकुसुमस्स जपणुस्सेहपमाणमेत्ति ओहि वासं वासंति, वासित्ता कालागरु-पवरकंदुरुक्कतुरुक्क-धूव-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूतं दिव्वं° सुरवराभिगमणजोग्गं करेंति, करेत्ता जेणेव भयवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति, उवार्गोच्छत्ता' 'भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य अदूरसामंते आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥ ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरथिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहि-सएहि कूडेहि तहेव जाव' विहरंति, तं जहा.वृत्तं-- णंदुत्तरा य णंदा, आणंदा दिवद्धणा। विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥१॥ सेसं 'तं चेव" जाव तुभाहिण भाइयव्वंतिकट्ठ भगवओ तित्थय रस्स तित्थयरमायाए य पुरथिमेणं आदंसहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ।। ___. तेणं कालेणं तेणं समएणं दाहिणरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ तहेव जाव विहरंति, तं जहा--- वृत्तं समाहारा सुप्पइण्णा', सुप्पबुद्धा जसोहरा। लच्छिमई सेसवई, चित्तगुत्ता वसुंधरा ॥१॥ तहेव जाव तुम्भाहि ण भाइयव्वंतिकटु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य दाहिणणं भिंगारहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥ १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं पच्चत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ट दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहि-सएहिं जाव विहरंति, तं जहा--- वृत्तं इलादेवी सुरादेवी, पुहवी पउमावई । एगणासा णवमिया 'भद्दा सीया" य अट्ठमा ॥१॥ तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिक? भगवओ तित्थय रस्स तित्थयरमाऊए य पच्चत्थिमेणं तालियंटहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिटठति ।। ११. तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरिल्लरुयगवत्थव्वाओ जाव विहरंति, तं जहा १. सं० पा०—उवागच्छित्ता जाव आगायमा- णीओ। २. जं० ५।१। ३. तहेव (अ,क,त्रि,ब,पुद)। ४. जं० २२-५॥ ५. तुम्हेहि (अ,ब); तुम्भेहि (क,ख,स, आवश्यक चूणि पृष्ठ १३८)। ६. सुप्पदिण्णा (ब)। ७. सीता भद्दा (ठाणं ८/९७) । ८. तालयंत° (अ,ब); तालवंत (त्रि) । Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती वृत्तं -- अलंबुसा मिस्सकेसी, पुंडरीका' य वारुणी। हासा सव्वप्पभा चेव, 'सिरि हिरि" चेव उत्तरओ ।।१।। तहेव जाव वंदित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य उत्तरेणं चामरहत्थगयाओ' आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिठ्ठति ।। १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं विदिसिरुयगवत्थन्दाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ जाव विहरंति, तं जहा--.. वृत्तं ... चित्ता य चित्तकणगा, सतेरा य सोदामिणी ।। तहेव जाव ण भाइयव्वंतिकटु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य चउसु विदिसासु दीवियाहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ।। १३. तेणं कालेणं तेणं सम एणं मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहतरियाओ सएहि-सएहिं कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तं जहा. रूया रूयंसा' सुरूया रूयगावई । तहेव जाव तुम्भाहि ण भाइयव्वंतिकटु भगवओ नित्थय रस्स चउरंगुलदज्ज णाभिणालं' कप्पेंति, कप्पेत्ता वियरगं खणंति, खणित्ता वियरगे णाभि णिहणंति, णिहशित्ता' 'रयाण य वइराण य परेंति, परेत्ता हरियालियाए पेट बंधति, बंधित्ता तिदिसिं तओ कयलीहरगे विउव्वंति । 'तए ण तेसिं कयलीहरगाणं बहुमज्झदेसभाए तओ चाउस्सालए विउव्वंति । तए णं तेसिं चाउस्सालगाणं बहुमज्झदेसभाए तओ सीहासणे विउव्वंति । तेसि णं सीहासणाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, सव्वो वण्णगो भाणियम्वो ॥ १४. तए णं ताओ रुयगमज्झवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ जेणेव भयवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता "भगवं तित्थयरं करयलपुडेण गिण्हंति तित्थयरमायरं च बाहाहि५ मिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव दाहिणिल्ले कयलीहरगे जेणेव चाउस्सालए जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासणे णिसीयाति, णिसीयवेत्ता सयपाग-सहस्स१. पुंडरीगा (त्रि); पुंडरीया (प); पोंडरिंगी ६. णिहिता (ब) । (ठाणं ८६८) १०. रत्नश्च वज्रः' प्राकृतत्वाद् विभक्तिव्यत्ययः.. २.हिरि सिरी (अ,क,ख,ब,स) । (शा)। ३. चामरा (ब)। ११. पीढं (क,ख,स)। ४. सोरा (अ,ब); साओरा (ख); सुतेआ १२. तयणंतरं (ब)। १३. राय० सू० ३७.४० । ५. रूआसिया (प); रूपासिका (शाव)। १४. संपुडेणं (प, शाय)। 5. तुन्भेहिं (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। १५. भगवं तित्थगरं तिस्थयरमायरं च बाहाहिं ७. नाभि (अ,ब, आवश्यकचणि पृ० १३६)। (त्रि, ही)। ८. विवरगं (त्रि)। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्लारो ५.३१ पागेहि तेल्लेहिं अब्भंगति, अब्भगेत्ता सुरभिणा गंधट्टएर्ण उवट्टेति, उवट्टेत्ता भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं' तित्थयरमायरं च बाहासु गिव्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुरथिमिल्ले कयलीहरए जेणेव चाउस्सालए जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासणे णिसीयावेंति, णिसीयावेत्ता तिहि उदएहि मज्जावेंति, [ तं जहा - गंधोदणं पुप्फोद एणं सुद्धोद एणं * ] मज्जावेत्ता सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयरमायरं च बाहाहिं गिव्हंति, गिव्हित्ता जेणेव उत्तरिल्ले कयलीहरए जेणेव चाउस्सालए जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च सीहासणे णिसीयाविति, णिसीयावित्ता आभिओगे देवे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चुल्ल हिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाई गोसीसचं दणकट्ठाई साहरह ॥ १५. तए णं ते अभिओगा देवा ताहिं रुयगमज्झवत्थब्वाहिं चउहि दिसाकुमारीमहत्तरियाहि एवं वृत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव' विणएणं वयणं पडिच्छंति, पडिच्छित्ता खिप्पामेव चुल्लहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाई गोसीसचं दणकट्ठाई साहति ॥ १६. तए णं ताओ मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारी महत्तरियाओ सरगं करेंति, करेत्ता अरणि घडेंति, घडेत्ता सरएणं अरणि महिति महित्ता अगिंग पाडेंति, पाडेत्ता अग्गि संधुक्खंति, संधुक्खित्ता गोसीसचं दणकट्ठे पक्खिवंति, पक्खिवित्ता अरिंग उज्जालंति, उज्जालित्ता 'समिहाकट्ठाई पक्खिवंति, पक्खिवित्ता" अग्गिहोमं करेंति, करेत्ता भूतिकम्मं करेंति, करेत्ता रक्खापोट्टलियं बंधंति, बंधेत्ता जाणामणिरयणभत्तिचित्त दुविहे पाहाणवट्टगे" गहाय भगवओ तित्थयरस्स कण्णमूलंसि टिट्टियावेंति---भवउ भयवं पब्वयाउए । १७. तए णं ताओ रुयगमज्झवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारी महत्तरियाओ भयवं तित्थयरं करयलपुडेणं तित्थयरमायरं च बाहाहि गिव्हंति, गिव्हित्ता जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तित्थयरमायरं सयणिज्जंसि सियावेंति, णिसीयावेत्ता भयवं तित्थयरं माऊए" पासे ठवेंति, ठवेत्ता आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ॥ १८. तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के णामं देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे १.ति (क, ख, त्रि); अब्भंति ( स ) 1 २. गंधवणं ( अ, क, ख, त्रि, प, ब, स, पुवृ शावृ, ही वृ ) ; द्रष्टव्यम् - ठाणं ३८७ | ३. पुढेहि (अ, क, ख,त्रि, ब, स ) अग्रेपि । ४. कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । ५. x ( अ, क, ख, प, ब, स, पुवृ, शावृ ) । ६. जं० ३८ ॥ ७. मथिति ( अ, क, ख, त्रि, बस) । 5. (आवश्यकचूर्णि पृ० १३८ ) | . पुट्टलियं ( क, ख, स ) । १०. पट्टगे ( अ, ब ) ; पाहाणवट्टगोलए (त्रि, शाबू, ही ) । ११. माताएं (अब) 1 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ जंबुद्दीवपण्णत्ती सयक्कऊ सहरसवखे मघवं पागसासणे' दाहिणड्डूलो गाहिवई बत्तीस विमाणावास्सयसहस्सा हिवई एरावणवाहणे सुरिंदे अरयंबरवत्थधरे' आलइयमालमउडे णव हेमचारुचित्तचंचलकुंडल विलिहिज्ज माणगल्ले' भासुरबोंदी पलंबवणमाले महिडीए महज्जुईए महाबले महायसे महाणुभागे महासोवखे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासांसि [णिसण्णे ?"] ॥ १६. से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए' तावत्तीसगाणं', चउन्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अभ्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिन्हं परिमाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउन्हं चउरासीण" आयरखखदेवसाहस्सीणं, अण्णेसि च बहूणं सोहम्मकप्पवासीणं वैमाणियाण देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा - ईसर- सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे मह्यायणट्ट- गीय-वाइय-तंती - तल-ताल-तुडिय घण-मुइंग पडुप्पवाइयर वेणं" दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ॥ २०. तए णं तस्स सक्क्स्स देविंदस्स देवरण्णो आसणं चलइ ॥ २१. तए णं से सक्के " "देविंदे देवराया आसणं चलिये पासङ, पासित्ता ओहि पउंजइ, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता हट्टतुट्ठचिते " आनंदिए मंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरभिकुसुम - चंचुमाल इय" - ऊसविय-रोमकूवे 'वियसियवर कमल-णयणवयणे" पर्यालियवर कडग-तुडियकेऊर-मउड-कुंडल-हारविरायंतवच्छे पालंबलंबमाणघोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं १. आवश्यकचूर्णी अत्रैव पाठसङ्क्षेपांस्तिपागसासणे जाव अद्भुट्ठाह अच्छराकोडीह सद्धि जाव विहरइ | २. अयरंबर (क, ख, प, स ) लिपिप्रमादाद् वर्णव्यत्ययो जात इति सम्भाव्यते । ३. गंडे (त्रिप) | ४. सर्वेष्वप्यादर्शषु 'सीहासणंसि' एतत्पर्यवसान एव पाठी लभ्यते, अर्थविचारणया नैव पर्याप्तो. स्ति, क्रियापदं चापि नैव विद्यते । पज्जोसवणाकप्पे (८) अस्मिन्नव प्रकरणे सीहास मंसि निसणे' इति पाठो विद्यते अत्रापि तथैव युज्यते । ५. तावत्तसाए (अब) 1 ६. तायत्तीस गाणं ( क.ख, त्रि, प, स ) । ७. चउरासीतीणं (ख); चउरासीए (त्रि, ही ) ८. अतः परं 'अ, क, ख, त्रि,व' आदर्शषु 'अण्णे पढति' इत्युल्लेखपूर्वकं पाठान्तरं लिखितं दृश्यते— 'अण्णे पढति अण्णेसि च बहूणं देवाण य देवीण य आभिओगउववण्णगाणं' | 'पुवृ हीवृ' इति वृत्तिद्वयेपि इदं व्याख्यातमस्ति । ६. दीसर (ब) 1 १०. पडुडवाइयरवेणं ( प ) । ११. सं० ११० - सक्के जाव आसणं । १२. आवश्यकचूर्णी ( पृष्ठ १४० ) अतः पुरं एवं पाठसंक्षेपोस्ति एवं जहा वज्रमाणस्सामिस्स अवहारद्दारे जाव सन्निसन्ने जीयकप्पं सरति, सरिता तं गच्छामि । १३. धाराहयकयंबकुसुम ( प ) 1 १४. चंचुमालइयत णुए ( भ० ११।१३४ ) ; चुंचुमाल इयतणू (नाया० १२० ) । १५. कमलाणणवयणे ( अ, क,ख, ब ) ; कमलावयणणणे (त्रि); कमलाणणणयणे ( हो बृ) । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो सुरिंदे सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुठेत्ता 'पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता' वेरुलिय-वरिट-रिटु-अंजण-णिउणोविय-मिसिमिसितमणिरयणमंडियाओ पाउयाओओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता अंजलि-मउलियग्गहत्थे तित्थयराभिमुहे सत्तट्ठ पयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता, वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणीतलंसि साहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि णिवेसेइ, णिवेसेत्ता ईसिं पच्चण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडग-तुडिय-थंभियाओ भुयाओ साहरइ, साहरित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-णमोत्थु णं अरहताणं भगवंताणं, आइगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं, पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पूरिसवरगधहत्थीण, लोगुत्तमाण लोगणाहाण लोगहियाण लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराण', अभयदयाण चक्खुदयाण मगदयाणं सरणदयाणं जोवदयाणं बोहिदयाणं', धम्मदयाणं धम्मदेसयाण धम्मणायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्रीणं, दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा, अप्पडियवरनाणदंसणधराणं वियट्टछउमाणं, जिणाणं जावयाणं तिण्णाण तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं, सव्वणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमवावाहमपुणरावित्ति" सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं"। णमोत्थ णं भगवओ तित्थगरस्स आइगरस्स जाव संपाविउकामस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भयवं! तत्थगए इहगयंतिकटु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सीहासणवरंसि पूरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे॥ ___ २२. तए णं तस्स एक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अयमेयारूवे" 'अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए' संकप्पे समुप्पज्जित्था ---उप्पण्णे खलु भो ! जंबुद्दीवे दीवे भगवं तित्थयरे, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविंदाणं देवराईणं तित्थयराणं जम्मणमहिमं करेतए, तं गच्छामि णं अहंपि भगवओ* तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करेमित्तिक? एवं संपेहेइ, संपेहेता हरि-णेगमेसिं पायत्ताणीयाहिवई देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-.. खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सभाए सुहम्माए मेघोघरसियगंभीरमहुरयरसइं" जोयण१. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स, पुत्, ही)। पुव): प्राचीनादर्शपु 'ठाणं संपत्ताण' इति २. भिटु (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुत्,हीव) । पर्यवसितः पाठो लभ्यते, भगवत्या(१७) मपि ३. निवाडेइ (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृ,ही) । 'ठाणं संपाविउकामे इत्येव पाठो विद्यते । ४.X(अक,ब,स) 1 १२. रायपसेणिइ (८) सुत्ते 'पासई' इति पदं ५. णमुत्थु (क,प,स) ! स्वीकृतमस्ति । अर्थदृष्ट्या तत् समीचीन६. अरिहंतागं (अ,त्रि) । मस्ति, किन्तु प्रयुक्तादर्शेषु 'पासई' इति पदं ७. पुरिसुत्तमाणं (क,ख,त्रि,प,स)। क्वापि नैव दृश्यते। 5. ४ (अ,ब)। १३. सं. पा.--अयमेयारूबे जाव संकणे। ६. x (अ,ब)। १४. भगवं (अ,ब)। १०. 'वत्ति (अ,क,ख,त्रि) वत्तयं (ब)। १५. गंभीरतरमहुरतरसदं (अ क,ख,त्रि,ध,ष,पु,) ११. संपत्ताणं णमो जिणाणं (क,ख,त्रि,हीव); हीव); गंभीरतरमहुरसई (आवश्यकचूणि पृ० संपत्ताणं णमो जिणाण जियभयाणं (प.स, १४०)। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जबुद्दीवपण्णत्तो परिमंडलं सुघोसं सूसरं घंटं तिक्खुत्तो उल्लालेमाणे-उल्लालेमाणे-महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्घोसेमाणे एवं वयाहि -आणवेइ णं भो ! सक्के देविंदे देवराया, गच्छइ जंबुद्दीवे दीवे भगवओ तित्थयरस्स जम्मणमहिमं करित्तए, तं तुब्भेवि णं देवाणुप्पिया ! णं भो! सक्के देविदे देवराया सव्विड्डीए सव्वजुईए सव्यबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूईए सवविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वणाडएहिं सव्वोरोहेहि' सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वदिव्व तुडियसहसण्णिणाएणं महया इड्डीए जाव' दुंदुहिणिग्धोसनाइयरवेणं णिययपरियालसंपरिवुडा सयाई-सयाइं जाणविमाणवाहणाई दुरुढा' समाणा अकालपरिटीणं चेव सक्कस्स देविदस्स देवरणो अंतियं पाउब्भवह।। २३. तए णं हरि-णेगमेसी देवे पायत्ताणीयाहिवई सक्केणं देविदेणं देवरण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुटु-चित्तमाणदिए जाव एवं देवोत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सक्स्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए मेघोघरसियगंभीरमहुरयरसद्दा जोयणपरिमंडला सुधोसा घंटा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियगंभीरमहुरयरसदं जोयणपरिमंडलं सुघोसं घंटं तिक्खुत्तो उल्लालेइ॥ २४. तए णं तीसे मेघोघरसियगंभीरमहरयरसहाए जोयणपरिमंडलाए सुघोसाए घंटाए तिक्खुत्तो उल्लालियाए समाणीए सोहम्मे कप्पे अण्णेहिं एगणेहिं बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्सेहिं अण्णाई एगूणाई बत्तीसं घंटासयसहस्साइं जमगसमगं कणकणरवं काउं पयत्ताइं चावि हुत्था॥ २५. तए णं सोहम्मे कप्पे पासायविमाणणिक्खुडावडियसद्द-घंटापडेसुयासयसहस्ससंकुले” जाए यावि होत्था । २६. तए णं तेसिं सोहम्मकप्पवासीणं बहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य एगंतरइपसत्त-णिच्चप्पमत्त-विसयसुहमुच्छियाणं सूसरघंटारसियविउलबोलतुरियचवलपडिबोहणे" कए समाणे घोसणकोऊहलदिण्णकण्ण-एगग्गचित्तउवउत्तमाणसाणं से पायत्ताणीयाहिवई देवे तंसि घंटारवंसि णिसंत-पसंतंसि समाणसि तत्थ-तत्थ १. सव्वरोहे हि (अ,क); सव्वावरोहेहि (त्रि); ८. कणकणगरवं (त्रि); कणकणारावं (प)। सव्वारोहेहि (ब); सव्वोवरोहेहिं (आवश्यक- ६. निक्खुडपडियसद्द (अ,ब)। चूणि पृ० १४०)। १०. °पडेसुका (अ,ब आवश्यकचूणि पृ० १४१); २. जं० ३१२। __°पडिसुका (क,ख); °डिस्सुया (त्रि); ३. जाणाई वाहणविमाणाई (अ,ब); जाणवाहण पडंसुया° (स)। बिमाणइं (क ख,त्रि,स,पुवहीवृ, आवश्यकचूणि ११. बोलतरितु (अ,ब); बोलतरिय पृ० १४०)। (क,ख,स)। ४. द्रुढा (अ,ब)। १२. पडिनिसंतसि (अ,ब,पुव); पडिसंतसि (क,त्रि,स, ५. सं० पा० - सास्स जाव अंतियं । हीव, आवश्यकचूणि पृष्ठ १४१); रायपसेणइय६. जं० ३१८। ७. गंभीरमहरसहा (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुव,हीवृ) सूत्रे (१५)पि निसंत-पसंतसि' इति पाठो अग्रेपि एवमेव । लम्यते । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो तहि-तहिं देसे महया-भहया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्घोसेमाणे एवं वयासी-- हंदि ! सुणंतु भवंतो बहवे सोहम्मकप्पवासी बेमाणिया देवा य देवीओ य सोहम्मकप्पवइणो इणमो वयणं हियसुहत्थं--- आणवेइ णं भो! सक्के देविदे देवराया, गच्छइ णं भो ! सक्के देविदे देवराया जंबुद्दीवे दीवे भगवओ तित्थय रस्स जम्मणमहिम करित्तए, तं तुभेवि णं देवाणुप्पिया ! सव्विड्डीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेण सबविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वणाडएहि सब्बोरोहेहि सव्वपुष्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्व दिव्वतुडियसहसण्णिणाएणं मह्या इड्डीए जाव दुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं णिययपरियालसंपरिबुडा सयाई-सयाइं जाणविमाणवाहणाई दुरुढा समाणा अकालपरिहीणं चेव सक्कस्स देविंदस्स देवरको अंतियं पाउन्भवह ॥ २७. तए णं ते देवा य देवीओ य एयमझें सोचा हट्टतुटु - चित्तमाणंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण° हियया अप्पेगइया वंदणवत्तियं एवं प्रयणवत्तियं सक्कारवत्तियं सम्माणवत्तियं दंसणवत्तियं कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया सक्कस्स वयणमणवत्तमाणा अप्पेगइया अण्णमण्णमणवत्तमाणा अप्पेगइया जीयमेयं एकमाइत्तिकट्ट सव्विड्डीए जाब अकालपरिहीणं चेव सक्कस्स देविंदस्स देव रण्णो अंतियं पाउब्भवंति ।। २८. तए ण से सक्के देविदे देवराया ते वेमाणिए देवे य देवीओ य अकालपरिहीण चेव अंतियं पाउन्भवमाणे पासइ, पासित्ता हट्टतुटु-चित्तमाणं दिए पालयं माम आभिओगिय"देव सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी... खिप्पामेव भो देवाणपिया ! अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ लीलट्ठियसालभंजियाकलियं ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मगर-विहग-बालगकिण्णर-झरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्तं खंभुग्गयवइरवेइयाररिगयाभिराम विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्तंपिव अच्चीसहस्समालणीय रूवगसहस्सकलियं १.हंद (क,त्रि,हीव); हंत (ख,प,पुव,शावृ)। त्ति अप्पेगइया जीयमेयं । औपपातिके (५२) २. सं० पा०----सबके तं चेव जाव अंतियं । पि एवमेव दृश्यते। ३. सुच्चा (क,ख,स)। ६. "मणुयत्तमाणा (अ,ब) मनपि एवमेव । ४. सं० पाo.-हट्टतुट्ट जाव हियया । ७. जं० ५२२ ५. कोउहल्ल° (अ,ख,त्रि,ब, आवश्यकचूर्णि ८. रायपसेणयसुत्ते (१७) अतः पर 'सन्विड्डीए १० १४१); कोऊहल्ल° (क,स); रायपसेणिय- जाव अकालपरिहीणं' इति पाठो दृश्यते। सत्रे (१६) अन्यान्यपि कारणानि निदिष्टानि ६ पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यम- ज० २२७ । सन्ति । तत्प्रतिपादक: पाठः एवमस्ति- १०. आभिओग्गियं (अ,ख,ब)। कोऊहलवत्तियाए अप्पेगइया असुयाई ११. अब्भुग्गय (अ.क,ख,ब,स) । सुणिस्मामो, अप्पेगइया सुयाई अट्ठाई हेऊई १२. मालिणीयं (अ,क,ख,त्रि,स); रायपसेणइय• पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छिस्मामो, सुत्ते (१७) तथा नायाधम्मकहानी (१८६) अपेगइया सूरियाभस्म देनस्म वयणमणुयत्ते- 'मालणीय' इति पाठो स्वीकृतोस्ति । माणा अगइया अग्ण मण्णमणुवत्तेमाणा, १३. रूअग° (क); रूपग' (क,त्रि, आवश्यकअपेगया जिणतिरागेणं अप्पेगड्या धम्मो चूणि पृष्ठ १४१) । Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती भिसमा भिभिसमाणं चक्खल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं घंटावलिचलिय'-महरमणहरसरं 'सुहं कंतं दरिसणिज्ज'२ णि उणोविय-मिसिमिसेंत-मणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं जोयणसयसहस्सविच्छिण्णं पंचजोयणसयमुश्विद्धं सिग्घ-तुरिय-जइण-णिवाहि दिव्वं जाणविमाणं विउव्वाहि, विउब्वित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।। २६. तए णं से पाल ए देवे सक्केणं देविदेणं देवरण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणदिए जाव वेउब्वियसमुग्घाएण समोहणित्ता तहेव करेइ।। ३०. तस्स णं दिव्वस्स जाणविमाणस्स तिदिसि तओ तिसोवाणपडिरूवगा वण्णओ ॥ ३१. तेसि णं पडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तोरणे, वण्णओ' जाव पडिरूवा ।। ३२. तस्स णं जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे, से जहाणामए.--. आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' दीवियचम्मेइ वा अणेगसंकुकीलगसहस्सवितते आवड-पच्चावड-सेढि-प्पसेढि-सोत्थिय-सोवत्थिय-'पूसमाणव- बद्धमाणग''- 'मच्छंडग- मगरंडग- जारमार""-फुल्लावलि-पउमपत्त-सागरतरंग-वसंतलय-पउमलयभत्तिचित्तेहि सच्छाएहिं सप्पभेहि समरीइएहि सउज्जोएहि णाणाविहपंचवण्णेहि मणीहि उवसोभिए । तेसि णं मणीणं वण्णे गधे फासे य भाणियब्वे जहा" रायप्पसेणइज्जे ।। ३३. तस्स णं भूमिभागस्स मज्झदेसभाए"पेच्छाघरमंडवे--अगेगखंभसयसण्णिविठे, वण्णओ जाव पडिरू ३४. तस्स उल्लोए पउमलयभत्तिचित्ते जाव" सव्वतवणिज्जमए जाव पडिरूवे ॥ १. बलिय (क,ख,त्रि); लिपिसादश्यात् ११. अच्छदामा मोराकुंडा जारा मंडा(अ,व); चका स्थान बकारो दृश्यो। अच्छदाम माराअंडा जारा मंडा (क); २. सुभकं उदरिसणिज्ज (अ,ख,त्रि,ब,आवश्यक चूणि अच्छंदाम मोरा अंडा जारामारा (ख); पृष्ठ १४१) । मच्छडग मकरंडा जारामारा (त्रि); मच्छंडा ३. पोवाहि (क,त्रि,वस) । मकरंडा जारामारा (स); मच्छग ससुमार ४. राय० सू० १८॥ अडग जरामंडा (आवश्यकचूणि पृ० १४२) । ५. राय० सू०१६। १२. पउमपत्तवर (त्रि,स)। ६. तोरणा (प)। १३. वसंतलता (अ,ख,ब); वासंतलता (त्रि)। ७. राय० सु० २०-२३ । १४. समिरीएहि (अ,ब,स,पुत्र, आवश्यकचूणि .. ८. राय० सू० २४ पृ० १४२); सस्सिरीएहि (क,ख) । ६. पडिसेढि (अ,क,ख,ब आवश्यकचूणि पृष्ठ १५. राय० सु० २४-३१ । १४२); X(प)। १६. बहुमज्झ (त्रि,पुव)। १०. वद्धमाणा पूरामाणा(अ,क,ख,ब); पुसमाणग १७. राय० सू० ३२ । वद्धमाणग (त्रि); वढमाण पूसमाणव (प); १८, अतःपूर्व 'रायपसेणिज्जे (३३) प्रेक्षागृहमण्डबद्धमाण गुलमाण (स, आवश्यकचूणि पृ० पस्य भूमिभागसूत्रं विद्यते । १४२); द्रष्टव्यम् राय० सू०२४ । १६. जी ३१२०६ । Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ३५. तस्स' णं मंडवस्स बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स मज्झदेसभागंसि' महेगा मणिपेढिया अट्ट जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई, वण्णओ ।। ३६. तीए उरि महेगे" सीहासणे, वण्णओ ।। ३७. तस्सुवरि महेगे विजय से सव्वरयणामए, वण्णओ ॥ तस्स मज्झदेसभाए एगे वइरामए अंकूसे, एत्थ णं महेगे कंभिक्के मूत्तादामे। से णं अण्णेहिं तदद्धच्चत्तप्पभाणमित्तेहि चाहिं अद्धकुंभिक्केहि मुत्तादामेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । ते ण दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपयरगमंडिया णाणामणिरयणविविहहारद्धहारउवसोभियसमुदया ईसि अण्णमण्णमसंपत्ता पुव्वाइएहिं वाएहिं मंद-मंद एज्जमाणा"-एज्जमाणा •पलबमाणा-पलबमाणा पझंझमाणा-पझंझमाणा उरालेणं मणुणोणं मणहरेणं कपण-मण निव्वु इकरेणं सद्देणं ते पएसे 'सव्वओ समंता आपूरेभाणाआपूरेमाणा३ सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ __३६. तस्स णं सीहासणस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं सक्कस्स देविदस्स देवरणो चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं, चउरासीइं भद्दासणसाहस्सीओ, पुरथिमेणं अट्ठण्हं अग्गमहिलोणं, एवं दाहिणपुरस्थिमेणं अभितरपरिसाए दुवालसण्ह देवसाहस्सीण, दाहिणेणं मज्झिमपरिसाए चउदसण्हं देवसाहस्सीणं, दाहिणपन्चत्थिमेणं बाहिरपरिसाए सोलसण्हं देवसाहस्सीणं, पच्चत्थिमेणं सत्तण्हं अणियाहिवईणं ।। ४०. लए णं तस्स सोहासणस्स चउद्दिसिं चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सोणं, एवमाइ विभासियव्वं सरियाभगमेणं जाव५ पच्चप्पिणति ६ ॥ ४१. तए णं से सक्के 'देविंदे देवराया हटतुटु-चित्तमाणदिए जाव हरिसवसविसप्पमाणहियए'७ दिव्वं जिणिदाभिगमणजोग्गं सव्वालंकारविभूसियं उत्तरवेउब्वियं रूवं विउन्वइ, विउवित्ता अहिं अग्गमहिसोहि सपरिवाराहि णट्टाणीएणं गंधवाणीएण य १. अतः पूर्व रायपसेणिज्जे (३५) अक्षपाटक- ६. ईसि णं (अ,ब) सूत्रं विद्यते। शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ एतद्विषये १०. एइज्जमाणा (अ,त्रि,प,स); एइज्जमाणे एका टिप्पणी कृतास्ति-----अत्रच राजप्रश्नीये (क,ख); इज्जमाणा (ब)। सूर्याभयानविमानवर्णकेऽक्षपाटकसूत्र दृश्यते, ११. सं० पा०.--एज्जमाणा जाव निव्वुइकरेणं । परं बहुष्वेतत्सूत्रादर्शषु अदष्टत्वान्न १२. x (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स); रायपसेणिज्जे लिखितम् । (४०) पि सम्बओ समता' इति पाठो २. बहुमज्झ° (त्रि,पुवृ)। दृश्यते। ३. महं एगा (प)। १३. सं० पा०-आपूरेमाणा जाव अतीव । ४. राय० सू० ३६ । १४. मज्झिमाए (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स) । ५. महं एगे (प)। १५. राय० सू० ४४.४६ ॥ ६. राय० सू० ३७ ! १६. पच्चप्पिणंति (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। ७. महं एगे (प) अग्रेपि एवमेव । १७. जाव हदहितए (अ,ब,); जाव हट्ठयिए ८. राय० सु०३८ । (क,ख त्रि,प,स आवश्यकचूणि पृ० १४३)। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३८ जंबुद्दीवपण्णत्तो सद्धि तं विमाणं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे...-अणुप्पयाहिणीकरेमाणे पुब्विल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं' दुरुहइ, दुरुहिता' जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे' । ४२. एवं चेव सामाणियावि उत्तरेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुत्वष्णत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति । अवसेसा देवा य देवीओ य दाहिणिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहित्ता पत्तेयं-पत्तेयं पुत्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति ।। ४३. तए णं तस्स सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो तंसि [दिव्वंसि जाणविमाणंसि ? दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरओ अहाणु पुवीए संपट्ठिया" 1 तयणंतरं च णं पुषणकलसभिंगारं दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा य दंसमरइयआलोयदरिसणिज्जा वाउद्धथविजयवेजयंती य समुसिया गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुवीए संपट्टिया । तयणतरं छत्तभिंगारं । तयणंतरं च णं वइरामयवट्टलट्ठसंठियसुसिलिट्टपरिघट्टमसुपइट्टिए" विसिटठे अणेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामे वाउद्धयविजयजयंतीपडागाछत्ताईच्छत्तकलिए तुंगे गयणतलमणुलिहंतसिहरे जोयणसहस्स मूसिए महइमहालए महिदज्झए पूरओ अहाणुपुवीए संपट्टिए। तयणंतरं च णं सरूवणेवत्थपरियच्छिया सुसज्जा सव्वालंकारविभूसिया पंच अणिया पंच अणियाहिवइणो पुरओ अहाणुपुन्वीए संपट्ठिया । तयणंतरं च णं बहवे आभिओगिया देवा य देवीओ य सएहि-सएहि रूवेहि •सएहिसहि विहवेहिं सएहि-सएहि वत्थेहि सएहि-सएहि णिओगेहिं सक्कं देविदं देवरायं पुरओ य मग्गओ य पासओ य अहाणु पुठवीए संपट्ठिया। तयणंतरं च णं बहवे सोहम्मकप्पवासी देवा य देवीओ य सव्विड्डीए जाव दुरुढा समाणा पुरओ य मग्गओ य पासओ य अहाणुपुचीए संपट्टिया । ४४. तए णं से सक्के देविदे देवराया तेणं पंचाणियपरिक्खित्तेणं जाव' महिंदज्झएणं १. तिसोमाणेणं (अ,क,ख,ब,स); तिसोवाणेणं पूर्णपाठावल कनार्थ द्रष्टव्यं - औपातिकस्य (त्रि,प,); रायपसेणिज्जे (४७) पि 'तिसो ६४सूत्रम्। मानपडिरूवएणं' इति पाठो दृश्यते । अग्रेपि। ११. दइरामयवट्टल ट्ठियसंठिय. (अ,क,ख,त्रि,ब,स, २. दुहइ (अ,ब)। गुवपा)। ३. सं०पा०.--दुरुहिता जाव सीहासणंसि। १२. गगणतलमभिकंखमाणसिहरे (अ,क,ख,त्रि,ब, ४. णिसण्णे (अ,ब)। सः,पुवृपा)। ५. तए णं एवं (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुव ही)। १३. सरुवणेवत्थहत्यपरि अ,ब); सरूवणेवत्थ ६. द्रुहिता (अ,ब) अग्रेपि । हत्थपरि. (क,ख,स); सुरूवर्णवत्थहत्थपरि ७. अवसेसा य (अ,क,ख,त्रि ब,स)। (त्रि,पुवृ); सुरूवणेवत्यपरि (पुवृपा) । ८. सं० पा०--दुरुहित्ता तहेव जाव णिसीयंति। १४. सव्वालंकारभूरिया (अ,ब); क्वचित् महया ६. इदं सूत्रं सङ्क्षिप्तमतो राजप्रश्नीयानुसारेण भडबडगरपड़करेणं (पूर्व) । (४६) किञ्चित्सविस्तरं व्याख्यायते (पुर)। १५. सं० पा०--रूवेहि जाव णिओगेहि। १०. अस्मिन् प्रकरणे पाठसंडे क्षपो विद्यते । १६. राय० सू० ५६ । Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वखारी ५३६ पुरओ पकडिज्जमाणेणं चउरासीए सामाणियसाहस्सीहि जाव' परिवडे सव्विडीए जाव' णाइयरवेणं सोहम्मस्स कप्पस्स मज्झंमज्झेणं तं दिव्वं देविडि' दिव्वं देवजुर्ति दिव्वं देवाणुभावं° उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे जेणेव सोहम्मस्स कप्पस्स उत्तरिल्ले निजाणमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जोयणसयसाहस्सिएहिं विग्गहेहि ओवयमाणे वोतिवयमाणे ताए उक्किट्ठाए 'तुरियाए चक्लाए जइणाए सीहाए सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए° देवगईए कीईचयमाणे-बीईवयमाणे तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झंभज्झेणं जेणेव गंदीसरवरे दीवे जेणेव दाहिणपुरथिमिल्ले रइकरगपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दिव्वं देविडि' दिव्वं देवजुर्ति दिव्वं देवाणुभावं दिव्वं जाणविमाणं पडिसाहरेमाणे-पडिसाहरेमाणे पिडिसंखेवेमाणे-पडिसंखेवेमाणे जेणेव भगवओ तित्थय रस्स जम्मणणगरे, जेणेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मणभवणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवओ तित्थगरस्स जम्मणभवणं तेणं दिवेणं जाणविमाणेणं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता भगवओ तित्थय रस्स जम्मणभवणस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसीभागे चउरंगुलमसंपत्तं धरणियले" तं दिव्वं जाणविमाणं ठवेइ, ठवेत्ता अहिं अग्गमहिसीहि दोहि अणीएहिगंधव्वाणीएण य णट्टाणीएण य सद्धि ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ पुरथिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ ॥ ४५. तए णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउरासीइं१२ सामाणियसाहस्सीओ ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ उत्तरिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति । अवसेसा देवा य देवीओ य ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ दाहिणिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति ।। ४६. तए णं से सक्के देविदे देवराया चउरासीए सामाणियसाहस्सीहि जाव" सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव* दुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छई, उवागच्छित्ता आलोए चेव पणामं करेइ, करेत्ता भगवं तित्थयरं तित्थयरमायरं च तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता करयल'५ 'परिग्गहियं १. राय सू० ५६ । पाठस्य अर्थस्य च सूचकः । केनापि कारणेन २. जं० ३१२२ । पाठविपर्यासो जातः इति सम्भाव्यते । ३. सं० पा० ... देविति जाव उवदंसेमाणे । ७. सं० पा०----विढेि जाव दिव्वं । ४. विगहेहि उवगहेहिं (ख,ब) । ८. परिसाहरमाणे (अ,ब); पडिसाहरमाणे (क,स)। ५. सं० पा० --उक्किट्टाए जाव देवगईए। ६. सं० पा०....पडिहरेमाणे जाव जेणेव । ६. उवागच्छित्ता एवं जच्चेव सूरियाभस्म वत्तव्वया १०. धरणितलं (अ,ब); धरणिअलं (क,ख,स) । णवरं सक्काहिगारो दत्तव्यो जाव (अ,क,ख, ११. पच्चोरुभइ (अ,ब) अग्रेपि । त्रि,प,ब,ग,पुत्,शाबू,हीवृ); एष पाठान्तररूपेण १२. चउरासि (अ,ब); चउरासीइ (क,प); निर्दिष्ठः पाठः आवश्यकचूणौँ नास्ति, चउरासीए (ख); चउरासी (स)। रायपसेणिज्ने (५६)पि 'उवागच्छित्ता' इति १३. जं० २।१०। पदानन्तरं तं दिवं देविडि' इति पाठो १४. जं० ३।१२। विद्यते । एष अन्तरवर्तिपाठो नास्ति कस्यापि १५. सं० पा०---करयल जाव एवं । Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४० बुद्दीपण्णत्ती सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - णमोत्थु ते रमणकुच्छिधारिए' • जगप्प ईवदाइए सव्वजगमंगलस्स चक्खुणो य मुत्तस्स सव्वजगजीववच्छलस्स हियकारग-मग्गदेसिय- पागड्डि- विभुपभुस्स जिणस्स णाणिस्स पायगस्स बुद्धस्स बोहगस्स सव्वलोगणाहस्स णिम्ममस्स पवरकुलसमुब्भवस्स जाईए खत्तियस्स जंसि लोगुत्तमस्स, जणणी धण्णासि पुण्णासि तं कयत्यासि, अहण्णं देवाणुप्पिए ! सक्के णामं देविदे देवराया भगवओ तित्थयरस्स जम्मणमहिमं करिस्सामि, तण तुम्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु ओसोवण दलयइ, दलइत्ता तित्थयरपडिरूवगं विउब्वइ, विउवित्ता तित्थय रमाउयाए पासे ठवेइ, ठवेत्ता पंच सक्के विउव्वइ, विउब्बित्ता एगे सक्के भगवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हइ, एगे सक्के पिट्टओ आयवत्तं धरेइ, दुवे सक्का उभओ' पासिं चामरुक्खेवं करेंति, एगे सक्के पुरओ वज्जपाणी पगडई' || ४७. तए णं से सक्के देविदे देवराया अण्णेहि बहूहिं भवणवइ-वाणमंतर - जोइस*देवे देवीहि यसद्धि संपरिवुडे सब्बिड्डीए जाव दुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं ताए उक्किट्टाए" "तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए' वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव मंदरे पव्वए जेणेव पंडगवणे जेणेव अभिसेयसिला जेणेव अभिसेयसीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सणसण्णे || ४८. तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविंदे देवराया सूलपाणी वसभवाहणे सुरिंदे उत्तरडलोगाहिवई अट्ठावीस विमाणावाससयसहस्सा हिवई अरयंबरवत्थधरे, एवं जहा सक्के, इमं णाणत्तं - महाघोसा घंटा, लहुपरक्कमो पायत्ताणियाहिव ई", पुप्फओ विमाणकारी, दक्खिणा निज्जाणभूमी, उत्तरपुरत्थिमिल्लो रइकरगपव्वओ, मंदरे समोसरिओ जाव" पज्जुवासइ ॥ ४९. एवं अवसिद्वावि इंदा भाणियव्वा जाव अच्चुओ, इमं णाणत्तं १. सं० पा० - रयणकुच्छिधारिए एवं जहा दिसाकुमारीओ जाव धण्णासि । २. ते (त्रि, हो) । ३. अहो ( अ, ब ) 1 ४. पवट्टति (त्रि ही, पुवृपा ) 1 ५. जोइसिय (त्रि ) । ६. जं० ३।१२ । ७. सं० पा०-- उक्किट्टाए जाव वीईवयमाणे ८. विमाणवास (क, ख, त्रि, प, ब ) । ६. जं० ५।१८-४६ । १०. पादत्ताणीया (ब) ! ११. अस्य' 'जाव' पदस्य पूर्तिवृत्तित्रयेपि भिन्न-भिन्न प्रकारेण कृतास्ति यावत्करणात् जेणेव भगवं तित्थयरे तेणेव उवागच्छइ, भगवं तिस्थयरं आयाहिण-पयाहिणं करेति २ सा वंदs नमसक, वंदित्ता २ तिविहाए पज्जुवा सणाए पज्जुवास (वृ); यावत्पदात् भगवंतं तित्ययरं तिक्खुत्ती आयाहिणपयाहिणं कद, करिता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमुंसित्ता णच्चासणे णाइदूरे सुस्सुसमाणे गमसमाणे अभिमुहे विणणं पंजलिउडे इति पर्युपास्ते ( शावृ ) ; यावत्करणात् जेणेव भगवं तित्थगरे तेणेव उवागच्छति २ ता भगवं तित्थगरं आयाहिण -पयाहिणं करेइ इत्यादि द्रष्टव्यम् ( ही ); जं०५५८ १२. ठाणं १० १४६ : Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ५४१ गाहा-... चउरासीइ असीई, बावतरि सत्तरी य सट्ठी य । पण्णा चत्तालीसा, तीसा वीसा दस सहस्सा ॥१॥ एए सामाणिया ण बत्तीसट्टावीसा बारस अट्ट चउरो सयसहस्सा। प्रम्मा चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे ।।२।। आणयपाणयकप्पे, चत्तारि सयारणच्चुए तिणि ।। एए विमाणा णं । इमे जाणविमाणकारी देवा, तं जहा.-. पालय पुष्फय सोमणसे सिरिवच्छे य' णंदियावत्ते । कामगमे पीइगमे', मणोरमे विमल सव्वओभद्दे ।।३।। सोहम्मगाणं सणंकुमारगाणं बंभलोयगाणं महासुक्कगाणं पाणयगाणं इंदाणं मुधोसा घंटा, हरि-णेगमेसी पायत्तणीयाहिवई, उत्तरिल्ला णिज्जाणभूमी, दाहिणपुरथिमिल्ले रइकरगपब्वए। ईसाणगाण माहिद-लंतग-सहस्सार-अच्चुयगाण य इंदाणं महाघोसा घंटा लहुपरक्कमो पायत्ताणीयाहिबई, दविखणिल्ले णिज्जाणमग्गे, 'उत्तरपुरथिमिल्ले रइकरगपकाए', परिभाओ णं जहा जीवाभिगमे, आय रक्खा सामाणियच उग्गुणा सब्वेसि, जाणविमाणा सव्वेसि जोयणसयसहस्सविच्छिण्णा, उच्चत्तेणं सविमाणप्पमाणा, महिंदज्झया सव्वेसि जोयणसाहस्सिया, सक्कवज्जा मंदरे समोसरंति जाव" पज्जुवासंति ।। ५०. तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीहिं" तायत्तीसाए तावत्तीसेहि, चउहिं लोगपालेहि, पंचहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहि, सत्तहिं अणिएहि, सत्तहिं अणियाहिवईहि, चउहि चउसट्ठीहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहि, अण्णेहि य जहा सक्के, णवरं- इमं णाणतं--दूमो पायत्तणीयाहिवई, ओधस्सरा घंटा. विमाणं पण्णासं जोयणसहस्साई, महिंदज्झओ पंचजोयणसयाई, विमाणकारी आभिओगिओ देवो, अवसिट्ठ तं चेव जाव मंदरे समोसरइ पज्जुवासइ ।। ५१. तेणं कालेणं तेणं समएणं बली असुरिंदे असुरराया एवमेव णवरं-सट्टी सामाणियसाहस्सीओ, चउगुणा आयरक्खा, महादुमो पायत्ताणीयाहिवई, महाओहस्सरा १. णं इति वाक्यालंकारे (ही)। समोतरंति (आवश्यकचूणि पृ० १४५) । २. 'ण' इति प्राश्वत् (ही) { १०. जं० २५८ । ३. x (अ,क,ख,त्रि,वस)। ११. 'सामाणियसाहस्सीहिं' इत्यादिपदेसु पष्ठी४. कामकमे (अ,ब)। विभक्तेबहुवचनमपेक्षितमस्ति, यथा शक्र५. स्थानाङ्गे (८.१०३,१०।१५०) 'पीतिमणे' इति प्रकरणे (श१६) सामाणियसाहस्सीणं' पाठो दृश्यते। इत्यादि पदानि दृश्यन्ते, अन्यथा 'जहा सक्के' ६. आणयगाणं (अ.व)। इति समर्पणस्य सार्थकता न स्यात् । तृतीयान्त ७. पुरत्यिमिल्लो रकरपव्वओ (अकवि,ब)। पदानि घण्टावादनानन्तर प्रयाणसमये ८.जी. ३११०४०-१०५५ ! निदिष्टानि सन्ति, द्रष्टव्यं ५।४६ सूत्रम् । ६. समोयरंति (क); समोअरंति (ख,प); १२. जं० ५।१६-४६ । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ घंटा, सेसं तं चेव', परिसाओ जहां जीवाभिगमे ॥ ५२. तेणं कालेणं तेण समएणं धरणे तहेव, णाणत्तं - छ सामाणियसाहस्सीओ, छ अग्ग महिसीओ, चउग्गुणा आयरवखा, मेघस्सरा घंटा, भद्दसेणो पायत्ताणीयाहिवई, विमाणं पणवीसं जोयणसहस्साई, महिंदज्झओ अड्डाइज्जाई जोयणसयाई, एवम सुरिंदवज्जियाणं भवणवासिइंदाणं, णवरं असुराणं ओघस्सरा घंटा, णागाणं मेघस्सरा, सुवण्णाणं हंसस्सरा, विज्जूर्ण कोंचस्सरा, अग्गीणं मंजुस्सरा, दिसाणं मंजुघोसा, उदहीणं सुस्सरा, दीवाणं महुरस्सरा, बाऊणं णंदिस्सरा, थणियाणं णंदिधोसा । गाहा चट्टी सट्ठी खलु छच्च सहस्सा उ असुरवज्जाणं । सामाणिया उ एए, चउग्गुणा आयरक्खा उ ॥ १॥ दाहिणिल्लाणं पायताणीयाहिवई भद्दसेणो, उत्तरिल्लाणं दक्खो || ५३. वाणमंतरजोइसिया णेयव्वा, एवं चेव गवरं - चत्तारि सामाणियसाहस्तीओ, चत्तारि अग्ग महिसीओ, सोलस आयरक्खसहस्सा, विमाणा सहस्सं, महिंदज्झया पणवीसं जोयणसयं, घंटा दाहिणाणं मंजुस्सरा, उत्तराणं मंजुघोसा, पायत्ताणीयाहिवई विमाणकारी य आभिओगा देवा, जोइसियाणं सुस्सरा सुस्सरणिग्घोसा घंटाओ, मंदरे समोसरणं जाव पज्जुवासंति || ५४. तए से अच्चए देविंदे देवराया महं' देवाहिवे आभिओगे' देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! महत्थं महग्घं महरिहं विलं तित्थयराभिसेयं उट्ठवेह || ५५. तए णं ते आभिओग्गा देवा हट्ट - चित्तमानंदिया जाव पडिणित्ता" उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं जाव' समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णयकलसाणं, एवं रुष्पमयाणं मणिमयाणं सुवण्णरुपमयाणं सुवण्णमणिमयाणं रुपमणिमयाणं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं अट्ठसहस्सं भोमेज्जाणं, अट्टसहस्सं वंदणकलसाणं, एवं भिंगाराणं आयंसाण थालाणं पातीणं सुपइट्ठाणं चित्ताणं" रयणकरंडगाणं वायकरगाणं" पुप्फचंगेरीणं जहा " सूरियाभस्स सव्वचंगेरीओ सव्वपडलगाई विसेसियतराई भाणियव्वाई विउव्वंति, विउब्वित्ता सीहा सण छत्त चामर तेल्लसमुग्गा जाव सरिसवसमुग्गा तालियंटा जाव असहस्सं कडुच्छुयाणं विउव्वंति, विउव्वित्ता साहाविए वेडव्विए य कलसे जाव कडुच्छुए य गिण्हित्ता जेणेव खीरोदए समुद्दे तेणेव आगम्म खीरोदगं गिण्हंति, जाई तत्थ उप्पलाई पउमाई जाव सहस्सपत्ताई ताई गिण्हंति एवं पुक्खरोदाओ जाव १. जं० ५।५० 1 २. जी० ३।२३५-२५० ३. णिग्ध साओ ( प ) 1 ४. महिंदे (क. खस, पुवृ ) महं ( पुवृपा ) | ५. आभिओगे (क,ख, प, स ) ; आभिओगिए (त्रि ) । जंबुद्दीपण्णत्ती ६. जं० ३१५ ॥ ७. पइसुणेत्ता (अ, ब ) । ८. जं० ५५ । 8. पादी ( अ, ब ) ; पाईणं (क, ख, प, स ) | १०. सुपट्टगाणं ( प ) 1 ११. १२. १३. ( अ, क, ख, त्रि, बस आवश्यकचूर्णि पृ० १४७) ( अ, क, ख, त्रि, बस, आवश्यकचूर्णि पृ० १४७ ) राय० सू० २७६ । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो ५४३ भरहेरवयाणं मागहाइतित्थाणं उदगं मट्टियं च गिण्हति, एवं गंगाईणं महाणईणं जाव चुल्लहिमवंताओ सम्वतुवरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सब्वमल्ले जाव सव्वोसहीओ सिद्धत्थए य गिण्हंति, गिण्हित्ता, पउमद्दहाओ दहोदगं उप्पलाईणि य, एवं सव्वकुलपव्वएसु वट्टवेयड्ढेसु सव्वमहद्दहेसु सव्ववासेसु सब्वचक्कवट्टिविजएसु वक्खारपव्व एसु अंतरणईसु विभासिज्जा जाव उत्तरकुरुसु जाव सुदंसणभद्दसालवणे सव्वतुवरे जाव सिद्धत्थए य गिण्हंति, एवं 'णंदणवेणाओ सव्वतुवरे जाव सिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं दिव्वं च सुमणदाम गेण्हंति, एवं सोमणसपंडगवणाओ य सव्वतुवरे जाव सुमणदाम दद्दरमलयसुगंधे य गिण्हंति, गिण्हित्ता एगओ मिलायंति' मिलाइत्ता जेणेव सामी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं जाव तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेंति । ___५६. तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया दसहिं सामाणियसाहस्सीहि, तायत्तीसाए तावत्तीसएहि चहि लोगपालेहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहि, सत्तहिं अणियाहिवईहिं, चत्तालीसाए आय रक्खदेवसाहस्सीहिं सद्धि संपरिवुडे तेहि साभाविएहिं वे उव्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहिं सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहि चंदणकयचच्चाएहि आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पलपिहाणेहि करयलसूमालपरिग्गहिएहि असहस्सेणं सोवणियाणं कलसाणं जाव अटुसहस्सेणं भोमेज्जाणं जाव सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वतुवरेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं सब्बिड्डीए जाव दुंदुहिणिग्घोसनाइयरवेणं महया-मया तित्थयराभिसेएणं अभिसिंचई ॥ ५७. तए णं सामिस्स महया-महया अभिसेयंसि वट्टमाणंसि इंदाइया देवा छत्तचामरकलसधवकडुच्छुयपुप्फगंध जाव हत्थगया हद्वतुटु-चित्तमाणंदिया जाव' वज्जसूलपाणी पुरओ चिट्ठति पंजलिउडा, एवं विजयाणुसारेण जाव' अप्पेगइया देवा आसिय-संमज्जिओवलित्तं सित्तसुइसम्मट्टरत्यंतरावणवीहियं करेंति जाव गंधवट्टिभूयं, अप्पेगइया हिरण्णवास वासंति, एवं सुवण्ण-रयण-वइर-आभरण-पत्त-पुप्फ-फल-बीय-मल्ल-गंध-वण्ण जाव चुण्णवासं वासंति, अप्पेगइया हिरणविहिं भाएंति, एवं जाव चुण्ण विहिं भाएंति, अप्पेगइया चउब्विहं वज्जं वाएंति, तं जहा--ततं विततं धणं झुसिरं, अप्पेगइया चउन्विहं गेयं गायंति, तं जहा-. उक्खित्तं पयत्तं' मंदं रोइंदगं", अप्पेगइया चउव्विहं णटुं गच्चंति, तं जहा-अंचियं दुयं १. मिलंति (प)। ७. जी. ३१४४७1 २. संपरिबुडे जाव (अ,क,ख,त्रि,ब,स, आवश्यक ८. सुसिरं (अ,ब) । चूणि पृ० १४८)। ६. पायत्तं (प); पत्तए (ठा०४।६३४); पायंतं ३. सुकुमाल (क, ख, त्रि, प, स)। (रायः सू० ११५); पायंतायं (राय० सू० ४. अभिसिं चंति (अ, क,ख,त्रि,प,ब,स,हीव); एक- २८१)। वचनकर्तकत्वेन एकवचनान्तमेव क्रियापदं युज्यते १०. मंदायं (प, पुवृपा, राय० सू० ११५,२८१, तथापि सिपिप्रमादात् आदर्शषु तद् बहुवचनान्तं जी. ३.४४७)। जातम् । ११. रोइयगं (क,स,शावृपा); रोइदअंग (ख); ५. जं० ५।५५; ३३१०,११ । रोझ्यावसानं (त्रि,प,पुष,राय० सू०११५,२८१ ६.० ५२७ । जी० ३।४४७) । Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती आरभडं भसोलं, अपेगइया च उत्विहं अभिणयं अभिणेति, तं जहा- दिलैंतियं पाडियंतियं' सामण्णओविणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं', अप्पेगइया बत्तीस इविहं दिव्वं णट्टविहि उवदंसेंति, अप्पेगइया उप्पयनिवयं निवय उप्पयं" संकुचियपसारियं जाव भंतसंभंतं णाम दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति, 'अप्पेगइया पीणेति, एवं बुक्कारेंति' तंडवेंति लासेंति अप्फोडेंति वग्गति सीहणायं णदंति, अप्पेगइया सब्वाई करेंति, अप्पेगइया ह्यहेसियं", एवं हत्थिगुलगुलाइय रघणघणाइयं, अप्पेगइया तिण्णिवि, अप्पेगइया उच्छोलेंति", अप्पेगइया पच्छोलेंति,', अप्पेगइया तिवई छिदंति, 'अप्पेगइया तिण्णिवि' २, अप्पेगइया पायदद्दरयं" करेंति, अप्पेगइया भूमिच वेडं दलयंति, अप्पेगइया मया-महया सद्देणं रावेंति, एवं संजोगा विभासियव्वा, अप्पेगइया हक्कारेंति, एवं पूक्कारेंति थक्कारेंति५ ओवयंति उपयंति परिवयंति, जलंति तवंति पतवंति" गज्जति विज्जुयायंति वासंति, अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति, एवं देवकहकहगं" करेंति, अप्पेगइया दुहदुहगं" करेंति, अप्पेगइया विकियभूयाई रूवाई विउव्वित्ता पणच्चंति, एवमाइ विभासेज्जा जहा विजयस्स जाव सव्वओ समंता आधावेंति परिधावेंति ॥ ५८. तए णं से अच्चुइंदे सपरिवारे सामि तेणं महया-गया' अभिसे एणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं° मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं बद्धावेइ, वद्धावेत्ता ताहि इटाहि3 कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहि सिव्वाहि धण्णाहिं मंगल्लाहि सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं वग्गूहिं॰ जयजयसई १. पडियंतियं (क); प्रातिश्रुतिकं (पुवृ,शाव); ६. गुलगुलाइयं (अ,क,ख,प,ब,स)। प्रतिश्रुतिकं (हीव); द्रष्टव्यं ठाणं ४१६३७ १०. उच्छोलंति (क,ख); उच्छलेंति (त्रि); सूत्रं तत्पादटिप्पणं च। उच्छलंति (हीवृ पवृपा)। २. सामंतीकतियं (अ,नि,ब); सामंतोवाइयं ११. पच्छोलंति (क,ख); प्रोच्छलंति (हीबू,पुवृपा)। (क,प,स); सामंतोकंतियं (ख); सामण्ण- १२. x (अ,क,ख,त्रि,प.व.स,शाव,हीवृ) । ओविणिवाइयं (ठाणं ४।६३७ राय० सू० १३. ददरं (अ,क,ख,त्रि,ब,स, आवश्यकणि ११७,२८१. जी० ३१४४७ । पृ० १४८)। ३. लोगमज्झावसियं (अ,क,ख,प,ब,स); लोग- १४. बुक्कारेंति (स,पुव) । मज्झावसाणियं (गय० सू० ११७,२८१. जी० १५. बक्कारेंति (आवश्यकचूणि पृ १४८) । ३:४४७) : १६. x (अ,क,ख,त्रि,ब)। ४. उप्पयणिक्यप्पवत्तं (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुव,ही। १७. विज्जुतापयंती (अ,ख,ब); विज्जुयंति (आव५. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पु,हीव) : रायपसेण इ. श्यकचूणि पृ० १४८) । यसुत्ते (१११); जीवाजीवाभिगमे (३।४४७) १८. देवकुहुकुहगं (अ,व) । च निवाय-उपाय' इति पाठो विद्यते । १६. देबदुदुचुंग (अ); देवदुदुनुंग (ब)। ६. बक्कारेंति (अ क,ख,ब)। २०. जी० ३१४४७ । ७. अप्पेगइया तंडवेंति अप्पेगइया लासेंति अप्पेग- २१. महया जाव (अत्रि,ब)। इया पीणेति एवं बुक्कारेति (प,शावृ)। २२. सं० पा०-करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए। ८. हतहिसियं (अ,ब)। २३. सं० पा०-इट्ठाहिं जाव जयजयस इं। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो बबखारो ૪૬ परंजइ, परंजिता' 'तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए' सुरभीए गंधकासाईए गायाई' लूहेइ, लूहेत्ता" "सरसेणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिपति, अणुलिपित्ता नासानीसासवायवोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलकणगखचियंत कम्मं आगासफलिहसमप्पभं अहतं दिव्वं देवदूतजुयलं णियंसावेति णियंसावेत्ता जाव कप्परुवखगं पिव अय-विभूसियं करेइ, करेत्ता' 'दिव्वं च सुमणदामं पिणद्धावेइ, पिणद्धावित्ता' ट्टविहि उवदंसेइ, उवदंसेत्ता अच्छेहि सहेहि रययामएहिं अच्छरसातंडुलेहिं भगवओ सामिस्स पुरओ अट्टमंगलगे आलिहइ, [तं जहा दप्पण भासण वद्धमाण वरकलस मच्छ सिरिवच्छा । सोत्थिय णंदावत्ता लिहित्ता अट्ठट्ठ मंगलगा || १ || ] काऊण' करेइ उवयारं, कि ते ? पाडल-मल्लिय चंपग असोग पुण्णाग-चूयमंजरि णवमालिय- बकुल- तिलग-कणवीर कुंद कोज्जय कोरंट-पत्त - दमणग- वरसुरभिगंधगंधियस्स" कयग्गहिय" - करयलपब्भट्ठविप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं " ओहिनिगर" करेत्ता चंदप्पभ-रयण-वइर-वेरुलियविमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं " कालागरु"-पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क-धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टि विणिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छुयं पग्गहेतु पयते धूवं दाऊण जिणवरिदस्स सत्तट्ठपयाई ओसरित्ता दसंगुलियं अंजलि करिय मत्ययंसि पयओ" अट्ठसय विसुद्ध गंथजुत्तेहि महावित्तहि अपुणरुतेहि अत्यजुत्तेहि संथुणइ, संधुणित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता" दाहिणं जाणं धरणितलंसि साहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि णिवेसेइ, णिवेसेत्ता ईसि पच्चण्णमई, पच्चुण मित्ता कडग तुडिय-थंभियाओ भुयाओ साहरइ, साहरिता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - णमोत्थु ते सिद्ध ! बुद्ध ! णीरय ! समण ! समाहिय ! समत्त ! समजोगि ! सल्लगत्तण! णिब्भय ! णीरागदोस ! णिम्मम ! णिस्संग ! णीसल्ल ! माणमूरण ! गुणरयण ! सीलसागरमणंतमप्पमेय ! भविय ! धम्मवरचाउरंतचक्कबट्टी ! णमोत्थु ते अरहओत्तिकट्टु " वंदइ णमंसइ, वंदित्ता २२ १. सं० पा०—पजित्ता जाव पम्हलसूमालाए । २. 'सुकुमालाए ( अ, त्रि, ब ) । ३. गाई (क, ख ); गत्ताई ( ब ) । ४. सं पा० - लहेत्ता एवं जाव कप्परुवखगं । ५. जी० ३।४५१ ॥ ६. सं० पा० – करेला जाव णट्टविहि ७. सहेहि सेतेहि (जं० ३११२) । ८. कोष्ठकवत्तिपाठः व्याख्यांशो दृश्यते । ६. लिहिऊण ( प, शावृ); आलिहित्ता काऊणं ( जं० ३।१२ ) । द्रष्टव्यम् - ३११२ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । - ११. ग्गाह (ब) 1 १२. कुसुमसंचतस्स (आवश्यक चूर्णि पृ० १४९ ) । १३. जाणु° (त्रि) 1 १४. ओह (क, ख, प, स, पुवृ ) । १५. पाणामणि (त्रि, ही वृ ) १६. कालागुरु (त्रि) 1 १७. कडेच्छ्यं ( क, ख ) ; कडच्छुयं ( ब ) । १८. मत्यगंमि ( अ, ब ) ; मत्ययंमि (क, ख, स ) । १६. पत्तो ( अ, त्रिच ) 1 २० सं० पा०--अंचेत्ता जाव करयपरिगहियं । २१ गिरागदोस ( अ, ब ) 1 १०. ° सुरभिसुगंधगंधियस्स (क, ख, पुवृ ) : सुरभिसु- २२. अरहओ मोत्य ते भगवओत्तिकट्टु ( अ,ब, पुवृ) : अरहओ णमोत्यु ते अरहओत्तिकट्टु ( क ) । किस ( ) | Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती णमंसित्ता णच्चासण्णे गाइदूरे सुस्सूसमाणे •णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलियडे पज्जुवासइ।। ५६. एवं जहा अच्चुयस्स तहा जाव ईसाणस्स भाणियव्वं, एवं' भवणवइ-वाणमंतरजोइसिया य सूरपज्जवसाणा सएण-सएणं परिवारेणं पत्तेयं-पत्तेयं अभिसिंचंति ।। ६०. तए णं से ईसाणे देविदे देवराया पंच ईसाणे विउव्वइ, विउवित्ता एगे ईसाणे भगवं तित्थयर करयलपुडेणं' गिण्हइ, गिण्हित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे, एगे ईसाणे पिट्टओ आयवत्तं धरेइ, दुवे ईसाणा उभओं पासिं चामरुक्खेवं करेंति, एगे ईसाणे पुरओ सूलपाणी चिट्ठाइ । ६१. तए णं से सक्के देविंदे देवराया आभिओगे' देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एसोवि तह चेव अभिसे यात्ति देइ, तेवि तह चेव उवणेति ॥ ६२. तए णं से सक्के देविदे देवराया भगवओ तित्थय रस्स चउद्दिसिं चत्तारि धवलवसभे विउव्वेइ--सेए 'संखतल-विमल-णिम्मल-दधिघण-गोखीर-फेण-रयय-णिगरप्पगासे" पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ।। ६३. तए णं तेसि चउण्हं धवलवसभाणं अहिं सिंगेहितो अटु तोयधाराओ णिग्गच्छंति ॥ ६४. तए णं ताओ अट्ठ तोयधाराओ उड्ढं वेहासं उप्पयंति, उप्पइत्ता एगओ मिलायंति, मिलाइत्ता भगवओ तित्थयरस्स मुद्धाणंसि णिवयंति" ।। ६५. तए णं से सक्के देविदे देवराया चउरासीईए सामाणियसाहस्सीहि, एयस्सवि तहेव अभिसेओ भाणियब्वो जावर णमोत्थु ते अरहओत्तिकटु वंदइ णमंसइ जाव पज्जुवासइ ॥ ६६. तए णं से सक्के देविंदे देवसया पंच सक्के विउव्वइ, विउव्वित्ता एगे सक्के भयवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हई, एगे सक्के पिट्टओ आयवत्तं धरेइ, दुवे सक्का उभओ" पासिं चामरुक्खेवं करेंति, एगे सक्के वज्जपाणी पुरओ पकड्ढइ" ॥ ६७. तए णं से सक्के देविदे देवराया चउरासीईए सामाणियसाहस्सीहिं जाव" अण्णेहि य बहूहिं भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धि संपरिवडे सब्विड्डीए जाव" दुंदुहिणिग्धोसणाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए १. सं० पा०-सुस्सूसमाणे जाव पज्जुवासइ। १०. अट्ठसु (अ,क,ख,त्रि,ब,स); 'असुतिप्राकृतत्वात २. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पु,हीद)। सप्तमी पञ्चम्यर्थे (हीव)। ३. करयलसंपुडेणं (क,ख,प,स) । ११. निपयंति (अ,ब); निपतंति (क,ख,त्रि)! ४. अवहो (अ,ब)। १२. जं० ५५५६-५८। ५. एतत्सूत्रं अ,ब' प्रत्यो: नास्ति । १३. अवहो (अ,ब)। ६. आभिमोग्गे (क,स) १४. पगच्छति (त्रि) ७. जे० ५.५४,५५॥ १५. जं० २।६० । ८. संखदल (प,शाबू)। १६. जोइसिय (त्रि)। ६. संखदलसन्नि गासे (आवश्यकचूणि पृ० १५०)। १७. जं० ३११२ । Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वक्खारो सिग्धाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयवमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणणयरे जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणे जेणेव तित्थयरमाया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं माऊए पासे ठवेइ, ठवेत्ता तित्थयरपडिरूवगं पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता ओसोवणि पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता एगं महं खोमजुयलं कुंडलजुयलं च भगवओ तित्थयरस्स उस्सीसगमूले' ठवेइ, ठवेत्ता एगं महं सिरिदामगंडं तवणिज्जलंबूसगं सुवण्णपयरगमंडियं णाणामणिरयणविविहहारद्धहारउवसोहियसमुदयं भगवओ तित्थयरस्स उल्लोयंसि णिक्खिवइ, तण्णं भगवं तित्थयरे अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणे-देहमाणे सुहंसुहेणं अभिरममाणे-अभिरममाणे चिट्ठइ ।। ६८. तए णं से सक्के देविदे देवराया वेसमणं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ! बत्तीसं हिरण्णकोडीओ बत्तीसं सुवण्णकोडीओ' बत्तीसं णंदाई बत्तीसं भद्दाई सुभगे सोभग्ग-रूव-जोव्वण-गुण-लावण्णे य भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणंसि साहराहि, साहरित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ६६. तए णं से वेसमणे देवे सक्केणं जाव' विण एणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जंभए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ! बत्तीसं हिरणकोडीओ जाव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणंसि साहरह, साहरित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ७०. तए णं ते जंभगा देवा वेसमणेणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुटु-चित्तमाणंदिया जाव' खिप्पामेव बत्तीसं हिरण्णकोडीओ जाव सोभमग-रूव-जोवण-गुण-लावण्णे य भगवओ तित्थगरस्स जम्मणभवणंसि साहरंति, साहरित्ता जेणेव वेसमणे देवे तेणेव' •उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चण्णिंति ।। ७१. तए णं से वेसमणे देवे जेणेव सक्के देविदे देवराया 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणइ । ७२. तए णं से सक्के देविदे देवराया आभिओगे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! भगवओ तित्थय रस्स जम्मणणयरंसि सिंघाडग''तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह -महापह-पहेसु मह्या-मया सद्देणं उग्घोसेमाणाउग्धोसेमाणा एवं वदह-हंदि ! सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइ-वाणमंतर-जोइसवेमाणिया देवा! य देवीओ ! य जे णं देवाणुप्पिया ! तित्थय रस्स तित्थयरमाऊए वा असूभं मणं पधारेइ, तस्स णं अज्जगमंजरिका इव सतहा" मुद्धाणं फुट्टउत्ति [फुट्टिहीति? ]कट्ठ घोसणं घोसेह, घोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ १. ऊसीसगमूले (अ,ब); उस्सीसमले (त्रि)। २. °कोडीओ बत्तीसं रयणकोडीओ (त्रि,ही)। ३. सुभग्ग (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । ४. ४ (क,ख)। ५. जं० २३ । ६. ३१८ । ७. सं० पा० तेणेव जाव पच्चप्पिणंति । ८. सं० पा०--देवराया जाव' पच्चप्पिणइ । ६. सं० पा०—सिंघाडग जाव महापह । १०. हंद (क,ख,त्रि,प,स)। ११. सत्तहा (अत्रि,ब,स,पुष,हीव)। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्तो ७३. तए णं ते अभिओगा देवा जाव एवं देवोत्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुगंति, पडिणित्ता सक्क्स्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता खिप्पामेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मणणगरंसि सिंघाडग'-"तिग- चउक्कचच्चर-चउम्मुह-महापह- पहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वयासी -- हंदि सुणंतु भवंतो बहवे भवणवड'- 'वाणमंतर - जो इस वेमाणिया देवा ! यदेवीओ ! य° जेणं देवाणुप्पिया ! तित्थयरस्स' 'तित्थयरमाऊए वा असुभं मणं पधारेइ, तस्स णं अज्जगमंजरिका इव सतहा मुद्धाणं फुट्टिहीतिकट्टू" घोसणं घोसेंति, घोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पियंति ॥ ७४. तए णं ते बहवे भवणवइ-वाणमंतर - जोइस-वेमाणिया देवा भगवओ तित्थगरस्स जम्मणमहिम करेंति, करेत्ता जेणेव गंदिस्सरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्ठाहियाओ महामहिमाओ करेंति, करेत्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया || ५४८ १. जं० ५। २३ । २. सं० पा० - सिंघाडग जाव एवं । ३. सं० पा०—भवणवइ जाव जे । ४. सं० पा० - तित्यथरस्स जाव फुट्टिही तिकट्ट । ५. फुट्टितित्तिकट्टु (क) फुट्टिहित्तिकट्टु ( ख ) ; फुतुत्तिकट्टु (त्रि ) ; फुट्टिहितिकट्टु ( स ) | Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो वक्खारो ५. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स पएसा लवणं समृद्दं पुट्टा ? हंता ! पुट्ठा || २. ते णं भंते ! कि जंबुद्दीवे दीवे ? लवणे समुद्दे ? गोयमा ! ते णं जंबुद्दीवे दीवे, खलु लवणे मुद्दे || ३. एवं लवणसमुद्दस्सवि पएसा जंबुद्दीवे दीवे पुट्ठा भाणियव्वा ।। ४. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जीवा उद्दाइत्ता उद्दात्ता लवणे समुद्दे पच्चायति ? गोमा ! अत्थेगइया पच्चायति, अत्थेगइया नो पञ्चायति ॥ ५. एवं लवणसमुद्दस्सवि जंबुद्दीवे दीवे णेयव्वं । वाहा खंडा जोयण वाला, पव्वय कूडा य तित्थ सेढीओ । विजय दह सलिलाओ य, पिंडए होइ संगहणी || १ || ७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भरहप्पमाणमेत्तेहि खंडेहि केवइयं खंडगणिएणं पण्णत्ते ? गोमा ! णउयं खंडसयं खंडगणिएणं पण्णत्ते ॥ ८. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइयं जोयणगणिएणं पण्णत्ते ? गोयमा ! गाहा सत्तेव य कोडिसया, णउया छप्पण्ण सयसहस्साई । चउणवई' च सहस्सा, सयं दिवड्ढं च गणियपयं ॥ १ ॥ ९. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे कइ वासा पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त वासा पण्णत्ता, तं जहा "भरहे एखए" हेमवए हेरण्णवए' हरिवासे रम्मगवासे महाविदेहे ॥ १०. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया वासहरा पण्णत्ता ? केवइया मंदरा पाया ? केवइया चित्तकूडा ? केवइया विचित्तकूडा ? केवइया जमगपब्वया ? केवइया कंत्रण - पव्वया ? केवइया वक्खारा ? केवइया दीहवेयड्ढा ? केवइया वट्टवेयड्ढा पण्णत्ता ? गोमा ! जंबुद्दीवे दीवे छ वासहरपन्वथा, एगे मंदरे पव्वए, एगे चित्तकूड़े, एगे विचित्तकुडे, दो जमगपव्वया, दो कंचणगपव्वयसया, वीसं वक्खारपव्वया, चोत्तीसं दीहवेयड्डा, चत्तारि वट्टवेयड्डा एवामेव सपुव्वावरेण जंबुद्दीवे दीवे दुण्णि अउणत्तरा पव्वयस्या भवतीति मक्खायं || १. जी० ३१५७३, ५७४। २. जी० ३।५७६ ३. जोयणभाइएण (अव) ४. चणउति ( अ, क, ख, त्रि.बस ) । ५. भरद्देवए (अ, क, त्रि, ब ) । ६. एरणव (अ, क,ख, त्रि, ब ) । ७. जवगपव्वया ( अ, ब ) अग्रेपि । ૪૨ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५० जंबुद्दीवपण्णत्ती ११. जंबुद्दीवे णं भंते ! दोवे केवइया वासहरकूडा ? केवइया वक्खारकुडा? केवइया वेयडकडा ? केवइया मंदरकूडा पण्णता? गोयमा ! छप्पण्णं वासहरकूडा, छण्णउइं वखारकूडा, तिण्णि छलुत्तरा वेयड्डकूडसया, णव मंदर कूडा पण्णत्ता---एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चत्तारि सत्तट्टा' कूडसया भवंतीतिमक्खायं ॥ १२. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भरहे वासे कइ तित्था पण्णत्ता? गोयमा ! तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा- मागहे वरदामे पभासे ॥ १३. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे एरवंए वासे कइ तित्था पण्णत्ता? गोयमा! तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा.-मागहे वरदामे पभासे ॥ १४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे महाविदेहे वासे एगमेगे चक्कवट्टिविजए कइ तित्था पणता ? गोयमा! तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा -मागहे वरदामे पभासे एवामेव सपूव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे एगे विउत्तरे तित्थसए भवतीतिमक्खायं ।। १५. जंबहीवे णं भंते ! दीवे केवइयाओ विज्जाहरसेढीओ? केवइयाओ आभिओगसेढीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे अदुसट्ठी विज्जाहरसेढीओ, असदी' आभियोगसेढीओ पण्णताओ एवामेव सपुवावरेणं जंबुद्दीवे दीवे छत्तीसे सेढीसए भवतीतिमक्खायं ।। १६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया चक्कट्टिविजया ? केवइयाओ रायहाणीओ? केवयाओ तिमिसगुहाओ? केवइयाओ खंडप्पवायगुहाओ? केवइया कयमालया देवा ? केवइया द्रमालया देवा ? केवइया उसभकडा पव्वया पण्णता? गोयमा! जंबडीवे दीवे चोत्तीसं चक्कवट्टिविजया, चोत्तीसं रायहाणीओ, चोत्तीसं तिमिसगुहाओ, चोत्तीसं खंडप्पवायगुहाओ, चोत्तीसं कयमालया देवा, चोत्तीसं गट्टमालया देवा, चोत्तीसं उसभकूडा पव्वया पण्णत्ता ।। १७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया महदहा पण्णत्ता? गोयमा ! सोलस महदहा" पण्णत्ता ।। १८. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीये केवइयाओ महाण ईओ वामहरपवहाओ ? केवइयाओ महाणईओ कुंडप्पवहाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे चोद्दस महाणईओ वासहरपवहाओ, छावतार महाणईओ कुंडप्पवहाओ एवामेव सपुवावरेणं जंबुद्दीवे दीवे णउई महाणईओ भवंतीतिमक्खायं ॥ १६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दोवे भरहेरवएसु वासेसु कइ महाणईओ पण्णत्ताओ? गोयमा! चत्तारि महाणईओ पण्णताओ, तं जहा--- गंगा सिंधू रत्ता रत्तवई। तत्थ णं एगमेगा' महाणई चउद्दसहि सलिलासहस्सेहिं समग्गा पुरथिमपच्चत्थिमेणं लवणसमूह समप्पेइ .. एवामेव सपुब्बावरेणं जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु छप्पण्णं सलिलासहस्सा १. सत्तसट्ट (त्रि)। ५. महादहा (त्रि)। २. पिउत्तरे (अ,ब)। ६. एगमेका (अ,ब) ! ३. अट्ठराट्टि (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । ७. पुरस्थिमेणं पच्चरिथमेणं (त्रि) अग्रेपि । ४. °मक्खाए (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो वक्खारो ५५१ भवंतीतिमक्खायं ॥ २०. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे 'हेमवय-हेरण्णवएसु" वासेसु कइ महाणईओ पण्णताओ? गोयमा ! चत्तारि महाणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा -रोहिया रोहियंसा सुवण्णकूला रुप्पकूला। तत्थ णं एगमेगा महाणई अट्ठावीसाए-अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं समग्गा पुरथिमपच्चत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ. एवामेव सपुत्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे . हेमवय - हेरण्णवएसु वासेसु बारसुत्तरे सलिलासयसहस्से भवतीतिमक्खायं ॥ २१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे हरिवास-रम्मगवासेसु कइ महाणईओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि महाणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा----हरी हरिकता पारकंता णरिकता। तत्थ णं एगमेगा महाणई छप्पण्णाए-छप्पण्णाए सलिलासहस्सेहि समग्गा पुरथिमपच्चत्थिमेणं लवणसमुई समप्पेइ ... एदामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे हरिवास-रम्मगवासेसु दो चउवीसा सलिलासयसहस्सा भवंतीतिमक्खायं ।। २२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे महाविदेहे वासे कइ महाणईओ पण्णत्ताओ? गोयमा! दो महाणईओ पण्णत्ताओ, तं जहा... सीया य सोतोदा य । तत्थ णं एगमेगा महाणई पंचहि-पंचहि सलिलासयसहस्सेहिं बत्तीसाए य सलिलासहस्सेहि समग्गा पुरथिमपच्चत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ–एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दस सलिलासयसहस्सा चउसद्धिं च सलिलासहस्सा भवतीतिमक्खायं ॥ २३. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स' पव्वयस्स दक्खिणेणं केवइया सलिलासयसहस्सा पुरथिमपच्चत्थिमाभिमुहा लवणसमुई समति ? गोयमा ! एगे छण्णउए सलिलासयसहस्से पुरथिमपच्चत्थिमाभिमुहे लवणसमुई समप्पेइ॥ २४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं केवइया सलिलासयसहस्सा पुरत्थिमपच्चत्थिमाभिमुहा लवणसमुई समति ? गोयमा ! एगे छण्णउए सलिलासयसहस्से पुरथिमपच्चत्थिमाभिमुहे 'लवणसमुई समप्पेइ ।। २५. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया सलिलासयसहस्सा पुरथिमाभिमुहा' लवणसमुदं समति ? गोयमा ! सत्त सलिलासयसहस्सा अट्ठावीसं च सहस्सा पुरथिमाभिमुहा लवणसमुदं समप्येति ॥ २६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया सलिलासयसहस्सा पच्चत्थिमाभिमुहा लवणसमुई समप्यति ? गोयमा! सत्त सलिलासयसहस्सा अट्ठावीसं च सहस्सा पच्चत्थिमाभिमुहा लवणसमुई समप्पेंति -एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोद्दस सलिलासयसहस्सा छप्पण्णं च सहस्सा भवंतीतिमक्खायं ।। १. °मक्खाया (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। २. हेमवएरण्णवएमु (अ,क,ख,त्रि,ब,स) अग्रेपि। ३. रुप्पीकूला (त्रि); रुक्मीकूला (हीवृ)। ४. x (अ,त्रि,ब) । ५. मंदिरस्स (अव) अग्रेपि । ६. सं०पा० -पच्चस्थिमाभिमुहे जाव समप्पेइ। ७. पुरत्याभिमुहा (त्रिप) । ८. सं० पा०-सहस्सा जाब समप्येति । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे कइ चंदा पभासिसु पभासंति पभासिस्संति ? कइ सूरिया' तव तवेंति तविस्संति ? केवइया णक्खत्ता जोगं जोएंसु जोएंति जोएस्संति ? केवइया महग्गहा चारं चरिंसु चरंति चरिस्संति ? केवइयाओ तारागणकोडाकोडीओ सोभं सोभि सोभंति सोभिस्संति ? गोयमा ! दो चंदा पभासिसु पभासंति पभासिस्संति, दो सूरिया तवइंसु तवेंति तविस्संति, छप्पण्णं णवखत्ता जोगं जोइंसु जोएंति जोएस्संति, छावत्तरं महग्गहस्यं चारं चरिंसु चरंति चरिस्संति, गाहा -- एगं च सयसहस्सं, तेत्तीसं खलु भवे सहस्साइं । वय सया पण्णासा, तारागणकोडिकोडिणं ॥ १ ॥ २. कइ णं भंते! सूरमंडला पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे चउरासीए मंडलसए पण्णत्ते ॥ ३. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पण्णत्ता ? गोमा ! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता, एत्थ णं पण्णट्टी सूरमंडला सत्तमो वक्खारो पण्णत्ता ॥ ४. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवइयं ओगाहिता केवइया सूरमंडला पण्णत्ता ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तिण्णि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं एगूणवीसे सूरमंडलसए पण्णत्ते एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे 'लवणे य समुद्दे" एगे चुलसीए सूरमंडलसए भवतीति मक्खायं ॥ ५. सव्वन्तराओ णं भंते ! सूरमंडलाओ केवइयं ' अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पण्णत्ते ॥ ६. सूरमंडलस्स णं भंते! सूरमंडलस्स य केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! 'दो-दो " जोयणाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ७. सूरमंडले णं भंते! केवइयं आयाम - विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं १. सूरा (त्रि) २. x (क, ख, त्रि, प, स ) 1 ३. लवणसमुद्दे ( अ, ब ) । ५५२ ४. केवइयाए ( क,ख, प, स ) ; केवइए (त्रि ) 1 ५. दो (पशावृ) सर्वत्र Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमौ वक्खारौ ५ बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अडयालीसं एगसट्टिभाए जोयणस्स आयाम - विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, चउवीसं एगसट्टियाए जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ ८. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं' अबाहाए सव्वभंत रे सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीस जोयणसहस्साइं अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्भंतरे सूरमंडले पण्णत्ते || ९. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अन्यंतराणंतरे' सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीस जोयणसहस्साई अट्ठ य बावीसे जोयणसए अडयालीसं च एगसद्विभागे' जोयणस्स अबाहाए अब्भंतराणंतरे सूरमंडले पण्णत्ते || १०. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरतच्चे सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य पणवीसे जोयस ए पणतीसं च एगसट्टिभागे जोयणस्स अबाहाए अब्भंतरतच्चे सूरमंडले पण्णत्ते । एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए 'तयणंतराओ' मंडलाओ तयणंतरं मंडल" संकममाणेसंकममाणे दो-दो जोयणाई अडयालीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगमेगे मंडले अवाहावुढि अभिवड्ढेमाणे- अभिवड्डेमाणे सव्वबाहिर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ ११. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पब्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरे' सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं तिण्णि य तीसे जोयणसए अबाहाए सम्बाहिरे सूरमंडले पण्णत्ते ॥ १२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए बाहिराणंतरे" सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं तिष्णि य सत्तावीसे जोयणसए तेरस य एगसट्टिभाए" जोयणस्स अबाहाए बाहिराणंतरे सूरमंडले पण्णत्ते ॥ १३. जंबुद्दीवे णं भत्ते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए बाहिरतच्चे सूरमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं तिष्णि य चउवीसे जोयणसए छवी सं च एगसट्टिभाए जोयणस्स अवाहाए बाहिरतच्चे सूरमंडले पण्णत्ते । एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए 'तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडल संक्रममाणेसंकममाणे दो-दो जोयणाई अडयालीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगमेगे मंडले अवाहाafrasढेमाणे विड्ढेमाणे सव्वव्यंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ १. केवइयाए ( प ) 1 २. आबाधाए ( क ) ; आबाहाए ( ब ) | ३. सव्वन्तराणंतरे (त्रि, प ) । ४. एगट्टिभाए ( अ, क. ख. ब, स ) अग्रेपि । ५. अतिराणंतरे ( अ, ब ) 1 ६. तयाणंतराओ (त्रि ) । ७. तदनंतराओ तदनंतर मंडलाओ मंडलं ( अ, ख, (स) । ८. अभिबुड्ढेमाणे (त्रि) अग्रेपि । ९. चाहिए (अख, श्रि, ब, स ) । १०. बाह्यानन्तरं सर्वब्राह्यमंडलात् अनन्तरं जम्बूद्वीपप्रवेशाभिमुखस्य चारक्षेत्रस्यादिभूतं द्वितीयं मंडलं प्रज्ञप्तम् ( होवृ ) । ११. एगट्टिभाए ( अ, ब, स ) 1 १२. तदनंतराओ तदनंतरं मंडलामो मंडलं (अ, क, खत्रि, बस ) अग्र प्येवमेव । १३. णिवुड्ढेमाणे ( अ, क, ख.प, ब, स ) 1 Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪ जंबुद्दीपण्णत्ती १४. जंबुद्दीवे दीवे सव्वब्भंतरे णं भंते! सूरमंडले केवइयं आयाम - विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! णवणउई जोयणसहस्साई छच्च चत्ताले जोयणसए आयाम - विक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं पण्णरस य जोयणसहस्साइं एगुणणउई च जोयणाई किचिविसेसाहियाई' परिक्खेवेणं ॥ १५. अब्भंतराणंतरे णं भंते! सूरमंडले केवइयं आयाम - विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! णवणउइं जोयणसहस्साइं छच्च पणयाले जोयणसए पणतीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स आयाम विक्खभेणं, तिष्णि य जोयणसयसहस्साइं पण्णरस य जोयणसहस्साइं एगं च सत्तुत्तरं जोयणसयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ १६. अब्भंतरतच्चे णं भंते ! सूरमंडले केवइयं आयाम - विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! णवणउई जोयणसहस्साई छच्च एक्कावण्णे जोयणसए णव य एगसट्टिभाए जोयणस्स आयाम - विक्खंभेणं, तिष्णि य जोयणसय सहस्साई पण्णरस जोयणसहस्साई एगं च पणवीसं जोयणसयं परिक्खेवेणं । एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खमाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओं तयणंतरं मंडल संकममाणे' - संकममाणे पंच पंच जोयणाई पणतीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगमेगे मंडले विक्खंभवु अभिवड्ढेमाणेअभिवढेमाणे अट्ठारस - अट्ठारस जोयणाई परिरयबुढि अभिवड्ढेमाणे- अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ १७. सव्वबाहिरए णं भंते ! सूरमंडले केवइयं आयाम विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एगं जोयणसयसहस्सं छच्च सट्ठे जोयणसए आयामविक्खंभेणं, तिणि य जोयणस्यसहस्साइं अट्ठारस य सहस्साइं तिण्णि य पण्णरसुत्तरे जोयस परिक्खेवेणं ॥ १८. बाहिराणंतरे णं भंते ! सूरमंडले केवइयं आयाम - विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एवं जोयणसयसहस्सं छच्च चउप्पण्णे जोयणसए छब्बीसं च एगसद्विभागे जोयणस्स आयाम - विक्खंभेणं, तिणि य जोयणस्यसहस्साई अट्ठारस य सहस्साई दोणि य सत्ताणउए जोयणसए परिवखेवेणं ॥ १६. बाहिरतच्चे णं भंते ! सूरमंडले केवइयं आयाम विक्खभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एवं जोयणस्यसहस्सं छच्च अडयाले जोयणसए बावण्णं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयाम विक्खंभेणं, तिणि जोयणस्यसहस्साई अट्ठारस य सहस्साइं दोण्णि य अउणासीए जोयणसए किंचिविसे साहिए परिक्खेवेणं । एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडल संक्रममाणे- संक्रममाणे पंच-पंच जोयणाई पणतीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगमेगे मंडले विक्खंभवुड निवड्ढेमाणे १. विसेसाहिए ( अ, क,ख, त्रि, बस ) । २. जोयणसयं परिक्षेपे सप्तोत्तरं योजनशतं fai वक्तव्यम् । यदागम:- एगं सत्तुत्तरं जोयणसयं किचिविसेसूणं परिक्खेवेणं पण्णत्ते' त्ति सूर्यप्रज्ञप्ती यद्वान सूत्रे व्यवहारनयमव लम्ब्य किञ्चिन्न्यूनत्वस्याविवक्षणम् ( ही ) | ३. उवसंकममाणे ( 9 ) । ४. X ( प, शाबू ) ५. वुड्समाणे ( अ ) ; णिवुढेसमाणे ( ब ) | Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारी ५५५ णिवड्ढेमाणे अट्ठारस-अट्ठारस जोयणाई परिरयबुढि णिवड्ढेमाणे-णिवड्ढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरई॥ २०. जदा णं भंते ! सूरिए रावभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ, तदा णं एगमेगेणं मुहत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोत्रमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साई दोण्णि य एगावण्णे जोयणराए एगणतीसं च सद्विभाए जोयणस्स एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छइ । तदा णं इहगयस्स मणू स्म' जीयालोसाए जोयणसहस्सेहि दोहि य तेवढेहि जोयणसएहिं एगवीसाए ग जोयणस्स सट्ठिभाएहिं सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ । से शिक्खममाणे पुरिए णव सवच्छर अयमाणं पढमसि अहोरत्तीस अब्भतराणतर मंडल उवसंकीमत्ता चार चरइ। २१. जया णं भंते ! सूरिए अब्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य एगावण्णे जोयणसए सीयालीसं च सट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ । तया णं इहगयस्स" मणू सस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं एगणासीए जोयणसए सत्तावण्णाए 4 सद्विभाएहिं जोयणस्स सट्ठिभागं च एगसटिहा छेत्ता एगणवीसाए चुणियाभागेहिं सूरिए चक्खुप्फास हव्वमागच्छइ । से णिक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरसि अभंतररुच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरई॥ २२. जया णं भंते ! सुरिए अभंतरतच्चं मंडलं उवसंकभित्ता' चारं चरइ, तथा णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य बावण्णे जोयणसए पंच व सद्विभाए जोयणस्स एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छइ ! तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं छण्णउईए जोयणेहि तेत्तीसाए सद्रिभागेहि जोयणस्स सट्ठिभागं च एगसहिहा छेत्ता दोहिं चुण्णियाभागेहि सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ । एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं संक्रममाणे-संकममाणे अट्ठारस अट्ठारस सट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले महत्तगई अभिवड्ढेपाणे-अभिवड्ढे पाणे चुलसीई-चुलसीईसीयाई जोयणाइं परिसच्छायं णिवड्ढेमाणे-शिवड्ढेमाणे सव्ववाहिरं मंडलं उवसंकमिता चारं चरइ ।। २३. जया शं भंते ! सूरिए सव्वबाहिरमंडलं उवसंकभित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोषणसहस्साई तिणि य पंचत्तरे जोयणसए पण्णरस य सहिभाए जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ । तया ण इहगयस्स मणूस स्स एगतीसाए जोयणसहस्सेहि अट्टहि य एगत्तीसेहि जोयणसएहि तीसाए १. भणुयस् । (ख); मगुअस्स (नि)। ६. मणुयस्स (स); मणुअस्स (त्रि) । २.४ (अख,ब) । ७. सत्ताक (अ,ख,त्रि,बस) । ३. सभंतराणंतरं (त्रि); सबभंत राणंतरं ८. एगट्टिवा (अ,क,ख,ब,) अग्रेषि। ६. उवसंपत्तिा (अ,ख,4,स) । ४. एगापण्णे (अ,ब)। १०. सत्ताई (अ); सताई (ब); सूर्यप्रज्ञप्ल्या५. इहगतस्स (ब)। (२॥३) मपि सीताई' इति पाठो विद्यते। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती य सट्ठिभाएहिं जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्म छम्मासस्स पज्जवमाणे । से पविसमाणे सूरिए दोच्चे छम्मासे अयमाणे पढमंसि अहोरत्तसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ २४. जया णं भंते । सूरिए बाहिराणतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साई तिग्णि य चउरुत्तरे जोयणसए सत्तावण्णं च सद्विभाए जोयणस्स एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छइ । तया णं इहगयस्स मणूसस्स एगत्तीसाए जोयणसहस्सेहि णवाहि य सोलसुत्तरेहि जोयणसएहिं इगुणालीसाए य टिभाएहि जोयणस्स सटिभागं च एगसट्टिहा' छेत्ता सट्ठीए चुणियाभागेहिं सूरिए चक्खुल्फास हव्वमागच्छइ । से पविसमाणे सरिए दोच्चंसि अहोरत्तसि बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ॥ २५. जया णं भंते ! सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उबसंकमित्ता चार चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच-पंच जोयणसहस्साई तिण्णि य चउरुत्तरे जोयणसए इगुणालीसं च सद्विभाए जोयणरस एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ । तया णं इहगयस्स मणूसस्स एगाहिएहि बत्तीसाए जोयणसहस्सेहिं एगूग.', ण्णाए य सद्विभाएहि जोयणस्स सट्ठिभागं च एगसट्ठिहा छेत्ता तेवीसाए चुणिमाभाएहि सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ । एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं संकममाणे-संकममाणे अट्ठारस-अट्ठारस सद्विभाए जोयणस्स एगमेगे मंडले मुहत्तगई निवड्ढेमाणे-निवड्ढेमाणे साइरेगाइं पंचासीई-पंचासीइं जोयणाई पुरिसच्छायं अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वन्भंतरं मंडलं उवसंक मित्ता चारं चरइ । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस णं आइच्चे संवच्छरे, एस णं आइच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे पण्णत्ते ।। २६. जया णं भंते ! सूरिए सव्वभंतरं मंडल उवसंमत्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया' राई भवइ ? गोयना ! तया ए उत्तम कट्टपत्ते उक्कोसए अटारसमुहत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुधालसमुहुत्ता राई भव । से णिवखममाणे सूरिए णवं संवच्छर अयमाणे पढमंसि अहोरत्तसि अभंत राणतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ ।। २७. जया णं भत ! सूरिए अभंतराणतरं मंडल उवसंकभित्ता चार चरइ, तया ण केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ ? गोषमा ! तया णं असारसमुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगसहिनाममुहुतेहिं ऊणे, दुवालसमुडुत्ता राई भवइ दोहि य एगसट्ठि उगुणतालीय (त्रि), उतालीसं (स)। १. अयमी (ब,क,ब) अपि नर्वत्र । २. ऊणालीलाए (अ); गुतालीमाए (क,ख); उगुणतालीसाए (त्रि,स)। ३. एगट्ठिधा (अ,क,ख,त्रि,व,स)। ४. ऊतालीसं (अ,ब); ऊगुतालीसं (क,ख); ६. महालय (काख त्रिबस) । ७. केमहालिया (ब)। ८. मुत्तेणं (ख,स) । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो भागमुहत्तेहि अहिया। से णिक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि' 'अभंतरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं अहारसमुहत्ते दिवसे भवइ चउहि एगसट्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहत्ता राई भवाइ चाउहि एगसहिभागमुहुत्तेहि अहिया । एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं संकममाणे-संकममाणे दो-दो एगसहिभागमुहत्ते मंडले दिवसखेत्तस्य निवड्ढेमाणे-निवड्ढेमाणे रमणिखेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ । जया ण सूरिए सव्वभंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं सव्वब्भंतरमंडलं पणिहाय एपोणं तेनीएणं राइंदिग्रसएणं तिण्णि छावठे एगसट्ठिभागमुहत्तसए दिवसखेत्तस्स निवड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ ।। २८. जया णं भंते ! सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे', केमहालया राई भवई ? गोयमा ! तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहत्ता राई भवई, जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ। एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरसि बाहिराणतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ २६. जया णं भंते ! सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे', केमहालया राई भवइ ? गोयमा ! अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ दोहिं एगसद्विभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहि एगसद्विभागमुहुत्तेहि अहिए। से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरतच्चं मंडलं उबसंकमित्ता चारं चरइ ।। ३०. जया णं भंते ! सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं अट्ठारसमुहत्ता राई भवइ चर्हि एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवइ चाहिं एगस ट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए । एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयणंतराओ मंडलाओ तयणतरं मंडलं संकममाणे-संकममाणे दो-दो एगसटुिभागमुहत्ते एगमेगे मंडले रयणिखेत्तस्स निवड्ढेमाणे-निवड्ढेमाणे दिवस खेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ । जया ण सूरिए सव्ववाहिराओ मंडलाओ सव्वभंतर मंडलं उवसंव मित्ता चारं चरइ, तया णं सव्ववाहिरं मंडलं पणिहाय एगेणं तेसीएणं राइंदियसएणं तिणि छावठे एगसट्ठिभाग हुत्तसए रयणिवेत्तस्स णिवड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स ६. दिवसे भवइ (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। ७. णं भंते (अ,ख,त्रि,प,ब,स) । ८. सम्वन्भंतरं (अ,क,ब,स); सध्वन्भंतर बाहिर १. सं० पा०- अहौरतसि जाव चारं । २. केमहालिया (अ,ब)। ३. अभिणिवत्ता (अ,ब): अभिणिवुड्ढेत्ता (क,स); णिबुड्डेता (त्रि) । ४. अभिवुड्ढेत्ता (ख,प)। ५. दिवसे भवति (अ,त्रि,ब)। ६. छाबट्ठि (अ,ब)। Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस णं आइच्चे' संवच्छरे, एस णं आइच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे पण्णत्ते ॥ ३१. जया णं भंते ! सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं किसंठिया तावखेत्तसंठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! उड्ढीमुहकलबुयापुप्फसंठाणसंठिया तावखेत्तसंठिई पणत्ता - अंतो संकुया' बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहला, अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओं पासेणं तीसे दो बाहाओ अवट्टियाओ हवंतिपणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवट्ठियाओ हवंति, तं जहा-... 'सव्वभंतरिया चेव बाहा 'सब्वबाहिरिया चेव" बाहा। तीसे णं सव्वभंतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं णव जोयणसहस्साई चत्तारि छलसीए जोयणसए णव य दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं। एस णं भंते ! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा? गोयमा ! जे णं मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं, तिहिं गुणेत्ता दसहिं छेत्ता दसहि भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहिएति वएज्जा। तीसे णं सव्ववाहिरिया वाहा लवणसमुदंतेणं च उणवई जोयणसहस्साइं अट्ठ य अट्ठसठे जोयणसए चत्तारि य दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं। से णं भंते ! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा ? गोयमा ! जे णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं तिहिं गुणेत्ता दसहिं छेत्ता 'दसहिं भागे' हीरमाणे, एस परिक्खेवविसेसे आहिएति वएज्जा ।। ३२. तया णं भंते ! तावखेत्ते केवइयं आयामेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठहत्तरि जोयणसहस्साइं तिण्णि य तेत्तीसे जोयणसए जोयणतिभागं च आयामेणं पण्णत्ते। १. आदिच्चे (अ,क,ख,व.स) । प्रज्ञप्ती (४१४) च 'सत्थीमुहं" इति पाठो २. उड्ढ़मुह (अ,ब); उद्धीमुह (क,ख,प)। विद्यते । तद्वत्त्योश्च 'स्वस्तिकः' इति पदं ३. संकुडा (क)। व्याख्यातमस्ति । किन्तु प्रस्तुतसूत्रस्य ३२ ४. सत्थीमुह (अ,ब,स); आदर्शान्तरे तु बाहिं सूत्रेपि 'सगडुद्धी' इत्येव पाठो दृश्यते सोस्थियमुहसंठिया' पाठः (शा); दाह तेनात्र एतदेवपदं स्वीकृतम् । असो वाचनासत्थीमुहसंठिया ति बहिलवणदिशि स्वस्तिक- भेद: स्यादवा केनापि कारणेन लिपिभेदोपि मुखसंस्थिता स्वस्तिक: प्रतीतस्तस्यमुखमप्र- जालः स्यात् ? भाग: तस्येवातिविस्तीर्णतया संस्थितं संस्थानं ५. अवहो (अ,ख,ब); अवधो (क)। यस्याः सा तवा (पुत्र); बाहि सगडुद्धित्ति ६. सव्वम्भंतरिअच्चेव (अ,ब)। बहिः शकटोद्धिमुखसंस्थिता जीदिशेषु तु ७. सव्वबाहिरयच्चेव (अब)। क्वचित साथीमहसंठअति पाठस्तत्र स्वस्तिकः ८. सम टेणं अब)। प्रतीतस्तस्य मुखमग्रभागस्तस्येवातिविस्तीर्ण- १. चउउइ (अ,ब); च उणउति (क,ख,स)। तया संस्थितं संस्थानं यस्याः सा तथा अयं १०. अदृठे (अ,क,ख,त्रि,ब)। च पाठः सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रसंवादी व्याख्याप्पुक्त- ११. दसभागे (अ,क,ख,प,ब,स) । रूपवेत्यवसेयम् (हीव) । सूर्यप्रज्ञप्ती चन्द्र- १२. जोयणरस तिभागं (क,ख,त्रि,प,स) । Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो गाहा --- मेरुस्स' मज्झयारे, जाव य लवणस्स रुंदछ भागे । तावायामो एसो, सगडुद्धीसंठिओ णियमा ||१|| ३३. तया णं भंते! किंसंठिया अंधयारसंठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! उड्डीमुहकलंबुयापुप्फस ठाणसंठिया अंधयारसंठिई पण्णत्ता- अंतो संकुया बाहि वित्थडा, अंतो वट्टा बाहि पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिया बाहि सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओ पासे णं तीसे दो बहाओ अवट्टियाओ हवंति - पणयालीसं पणयालीस जोयणसहस्साई आयामेण, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवट्टियाओ हवंति, तं जहा - सव्वभंतरिया चेव बाहा, सव्वबाहिरिया चेव बाहा' | तीसे णं सव्वभंतरीया बाहा मंदरपव्वयंतेणं छज्जोयणसहस्साइं तिष्णि य चउवीसे जोयणसए छच्च दसभाए जोयणस्स परिवखेवेणं । से णं भंते! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा ? गोयमा ! जे गं मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे तं परिक्खेवं दोहि गुणेत्ता दसहिं छेत्ता दसहि भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहिएति वएज्जा । तीसे णं सव्वबाहिरिया वाहा लवणसमुदतेणं तेसट्ठी' जोयणसहस्साई दोणि य पणयाले' जोयणसए छच्च दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं । से णं भंते ! परिक्खेव विसेसे कओ आहिएति वएज्जा ? गोयमा ! जे णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं दोहिं गुणेत्ता' 'दसहिं छेत्ता दसहि भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहिएति वएज्जा' || ३४. तया णं भंते! अंधयारे केवइए आयामेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठहत्तर " जोयणसहस्साइं तिष्णि य तेत्तीसे जोयणसए जोयणतिभागं च आयामेणं पण्णत्ते ॥ ३५. जया णं भंते! सूरिए सव्वबाहिरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया गं किसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! उड्डीमुहकलं बुयापुप्फसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं चैव सव्वं गेयव्वं, णवरं णाणत्तं -जं अंधयारसंठिईए पुव्ववणियं प्रमाणं तं तावखेत्तसंठिईए णेयव्वं", जं तावखेत्तसंठिईए पुव्ववणियं प्रमाणं तं अंधयारसंठिईए" यव्वं ॥ ३६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ? मज्झतियमुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति ? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ? हंता गोयमा ! तं चैव जाव दीसंति ॥ १. 'अ' सङ्केतितयोः ताडपत्रीयादर्शयोः नेयं गाथा उपलभ्यते । २. उद्धीमुह° (अ,ख,त्रि,व) । ३. सं० पा० – वित्थडा तं चैव जाव तीसे 1 ४. तेवट्ठी ( अ, क, ख, व, स ) ; तेवट्ठि (त्रि ) । ५. पणताले (क, ख, स ) ; पणयाली से (त्रि ) । ६. सं० पा०-- -- गुणेत्ता जाव तं देव । ५६ ७. अट्ठतर ( अ, ब, स ) ८. बाहिर ( अ, ब ) | ६. वरि (अ, क, ब, स ) ; णवर (ख) त्रि ) । १०. जं० ७१३३,३४ । ११. अंधकारस्स (अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । १२. जं० ७/३१,३२ ॥ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीपणती ३७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया उग्गमणमुहत्तंसि या मज्झतियमुहुत्तंसि या अत्थमणमुत्तंसि या सव्वत्थ समा उच्च सेणं ? हंता तं चैव जाव उच्चत्तेणं ॥ ५६० ३८. जइ णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि या मज्झतिय मुहुत्तंसि या अत्थमणमुहत्तंसि या सव्वत्थ समा उच्चत्तेर्ण, कम्हा णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुत्तंसि दूरेय मूले य दीसंति जाव अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ? गोयमा ! लेसापडिघाएणं उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, लेसा हितावेणं' मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति, लेसापडिघाएणं अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, एवं खलु गोयमा ! तं चैव जाव दीसंति ॥ ३६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया किं तीतं खेत्तं गच्छति ? गच्छति ? अणागयं खेत्तं गच्छति ? गोयमा ! णो तीतं खेत्तं गच्छति, गच्छंति, णो अणागयं खेत्तं गच्छति ॥ ४०. तं भंते! किं पुट्ठं गच्छति' ? अपुट्ठे गच्छति ? गोयमा ! पुट्ठं गच्छति, अपुट्ठे गच्छति ॥ ४१. तं भंते! किं ओगाढं गच्छति ? अणोगाढं गच्छति ? गोयमा ! ओगाढं गच्छति, णो अणोगाढं गच्छति ॥ ४२. तं भंते ! किं अनंतरोगाढं गच्छति ? परंपरोगाढं गच्छति ? गोयमा ! अणंतरोगाढं गच्छति, णो परंपरोगाढं गच्छति ॥ किं अणुं गच्छति ? बायरं गच्छति ? गोयमा ! अणुंपि गच्छंति, ४३. तं भंते! बायरंपि गच्छति ॥ ४४. तं भंते ! किं उड्ढं गच्छति ? अहे गच्छति ? तिरियं गच्छति ? गोयमा ! उड़पि गच्छति, अहेपि गच्छति, तिरियंपि गच्छति ॥ ४५. तं भंते! कि आईं गच्छति ? मज्झे गच्छति ? पज्जवसाणे गच्छति ? गोयमा ! आइपि गच्छंति, मज्झेवि गच्छंति, पज्जवसाणेवि गच्छति ॥ ४६. तं भंते ! किं सविसयं गच्छति ? अविसयं गच्छति ? गोयमा ! सविसयं गच्छति, णो अविसयं गच्छति ॥ ४७. तं भंते! किं आणुपुव्वि गच्छति ? अणाणुपुव्विं गच्छति ? गोयमा ! आणु नियमा पडुप्पण्णं खेत्तं पडुप्पण्णं खेत्तं पुव्वि गच्छति, णो अणाणुपुव्वि गच्छति ॥ ४८. तं भंते! किं एगदिसि गच्छति ? छद्दिसि गच्छति ? गोयमा ! छद्दिसि ॥ ४६. एवं ओभासेति ॥ ५०. तं भंते ! किं पुठ्ठे ओभासेंति ? एवं आहारपयाई णेयब्वाई पुट्ठोगाढमणंतरअणु-मह-आइ-विसयाणुपुव्दी य जाव णियमा छद्दिसि ॥ ५१. एवं उज्जोवेंति तवेंति पभासेंति || ५२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरियाणं किं तीए खेत्ते किरिया कज्जइ ? पडुप्पण्णे १. साहियावेणं ( अ, ब ) ; लेसाभितावेण ( क ) ; लेसाभियावेणं ( ख ) । २. सं० पा० – गच्छति जाव नियमा । Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो खेत्ते किरिया कज्ज इ ? अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ ? गोयमा ! णो तीए खेत्ते किरिया कज्जइ, पडुप्पण्णे खेत्ते किरिया कज्जइ, णो अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ॥ ५३. सा भंते ! कि पुट्ठा कज्जइ ? अपुट्ठा कज्जइ? गोयमा ! पुट्ठा कज्जइ, णो अपुट्ठा कज्जइ जाव णियमा छद्दिसि ।। ५४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया केवइयं खेत्तं उड्ढं तवयंति अहे तिरियं च ? गोयमा ! एग जोयणसयं उड्ढं तवयंति, अट्ठारस जोयणस याई अहे तवयंति, सीयालीसं जोयणसहस्साई दोण्णि य तेवढे जोयणसए एगवीसं च सद्विभाए जोयणस्स तिरियं तवयंति ॥ ५५. अंतो गं भंते ! माणसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवा ते णं भंते ! देवा कि उड्ढोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा, चारट्टिइया गइरइया गइसमावण्णगा? गोयमा ! अंतो णं माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय' गहगण-णक्खत्त° तारारूवा ते णं देवा णो उड्डोववण्णगा णो कप्पोववण्णगा, विमाणोववण्णगा चारोववष्णगा, णो चारढिइया, गइरइया गइसमावण्णगा उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिएहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहि, साहस्सियाहिं 'वेउव्वियाहिं, बाहिराहि" परिसाहिं महयाहय-पट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहणायबोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वयरायं पयाहिणावत्तमंडलचार मेरु अणपरियटटंति ॥ ५६. तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कहमियाणि पकरेंति ? गोयमा! ताहे' चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जाव 'तत्थपणे इंदे" उववण्णे भवइ । ५७. इंददाणे णं भंते ! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए ? गोयमा! जहण्णणं एग समयं, उक्कोसेणं छम्मासे ‘उववाएणं विरहिए"। ५८. बहिया णं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम २- सूरिय-गहगण-णक्खत्ततारारूवा, तं चेव णेयव्वं, णाणत्तं- विमाणोववण्णगा, जो चारोववण्णगा, चारट्रिइया, णो गइरइया णो गइसमावण्णगा पक्किट्टगसंठाणसंठिएहि" जोयणसयसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं, सयसाहस्सियाहिं वेउब्बियाहिं, बाहिराहि परिसाहिं महयाहयणट्ट-गीय-वाइय" 'तंती-तल १. तवंति (अ,ब)। ८. देवा:समुदितीभूय (पुवहीव); देवाः सम्भूय २. सं० पा०—सूरिय जाव तारारूवा। (शाव)। ३. बाहिरियाहिं वेउब्वियाहिं (जी० ३८४२; सू० ६. तत्य णं इंदे (त्रि,हीव)। १६।२३) । १०. केवइ (अ,ब); केवति (क,ख,त्रि,स)। ४. उक्किट्ठी (अ,ब); उक्किट्ठि (ख); उक्कट्ठि ११. विरहिए उववाएणं (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १२. सं. पा.---चंदिम जाव तारारूवा । ५. जाधे (अ,ब)। १३. वकिट्टग° (अ.क,ख,त्रि,ब,स,ही)। ६. जाव (अ,क,ख,त्रि,ब,स पुर्व) । १४. सं० पा०—बाइय जाव भुंजमाणा। ७. ४ (अ,क,ख,त्रि,प,ब,स)। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीवपण्णत्ती ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा सुहलेसा मंदलेसा मंदायवलेसा चित्तंतरलेसा अण्णोण्णसमोगाढाहिं लेसाहिं कूडाविव ठाणठिया सव्वओ समंता ते पएसे ओभासेंति उज्जोवेंति पभासेंति ।। ५६. तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कहमियाणि पकरेंति ? गोयमा ! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जाव तत्थपणे इंदे उववण्ण भवइ॥ ६०. इंदट्टाणे णं भंते ! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए ? गोयमा ! ° जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा ।। ६१. कइ णं भंते ! चंदमंडला पण्णता? गोयमा ! पण्णरस चंदमंडला पण्णत्ता । ६२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया चंदमंडला पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता पंच चंदमंडला पण्णत्ता ।। ६३. लवणे णं भंते ! पुच्छा। गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तिण्णि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं दस चंदमंडला पण्णत्ता। एवामेव सपुवावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे य समुद्दे पण्णरस चंदमंडला भवतीतिमक्खायं ।। ६४. सव्वब्भंतराओ णं भंते ! चंदमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पण्णत्ते ।। ६५. चंदमंडलस्स णं भंते ! चंदमंडलस्स य एस णं केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! पणतीसं-पणतीसं जोयणाइं तीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुणियाभाए चंदमंडलस्स-चंदमंडलस्स अबाहाए अंतरे पण्णत्ते॥ . ६६. चंदमंडले णं भंते ! केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा! छप्पण्णं एगसद्विभाए जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, अट्ठावीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स वाहल्लेणं ।।। ६७. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वभंतरए चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्भंतरे चंदमडले पण्णत्तं ।। ६८. जंबहीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अभंतराणंतरे चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य छप्पणे जोयणसए पणवीसं च एगसद्विभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि' चुणियाभाए अबाहाए अभंत राणंतरे चंदमंडले पण्णत्ते ।। ६६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अभंतरतच्चे चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य बाणउए जोयणसए एगावणं १. सं० पा०..-पकरेति जाव जहण्णणं । ४. पणुवीसं (अ,क,ब) अग्रेपि । २. एगदिमाए (अ,क,ख,त्रि,ब,स) प्रायः सर्वत्र। ५. चत्तारि य (ख,त्रि,स)। ३. एगढिमाए (प) । ६. एक्कापणं (अ,ब)। . Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो च एगसद्विभाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता एगं चणियाभागं अबाहाए अभंतरतच्चे चंदमंडले पण्णत्ते । एवं खलु ए एणं उवाएणं णिवखममाणे चंदे 'तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडल" संकममाणे-संक.ममाणे छत्तीसं-छत्तीसं जोयणाई पणवीसं च एगसद्विभाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुणियाभाए एगमेगे मंडले अबाहाए वुद्धि अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंक्रमित्ता चारं चरइ ।। ७०. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरे चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा! पणयालीसं जोयणसहस्साई तिणि य तीसे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पण्णत्ते ॥ ७१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पन्वयस्स केवइयं अबाहाए बाहिराणंतरे' चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं दोणि य तेणउए जोयणसए पणतीसं च एगसट्टियाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता तिणि चुणियाभाए अबाहाए बाहिराणंतरे चंदमंडले पण्णत्ते ।। ७२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए बाहिरतच्चे चंदमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साई दोणि य सत्तावणे जोयणसए णव य एगसद्विभाए जोयणस्स एगसविभागं च सत्तहा छेत्ता छ चुणियाभाए अबाहाए बाहिरतच्चे चंदमंडले पण्णत्ते । एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे चंदे 'तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं" संकममाणे-संकममाणे छत्तीसं-छत्तीसं जोयणाइं पणवीसं च एगसटिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुषिणयाए एगमेगे मंडले अबाहाए बुद्धि णिवड्ढेमाणे-णिवड्ढेमाणे सवभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ।।। ७३. सव्वब्भंतरे णं भंते! चंदमंडले केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते? गोयमा ! णवणउइंजोयणसहस्साइंछच्चचत्ताले जोयणसए आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसहस्साइं पण्णरस जोयणसयसहस्साई अउणाणउई च जोयणाई किचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।। ७४. अब्भंतराणंतरे सा चेव पुच्छा। गोयमा ! णवणउई जोयणसहस्साइं सत्त य बारसुत्तरे जोयणसए एगावणं च एगसद्विभागे जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता एग चुण्णियाभाग आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं पण्णरस सहस्साई तिण्णि य एगूणवीसे जोयणसए किचिबिसेसाहिए परिक्खेवेणं ॥ ७५. अब्भंतरतच्चे णं जाव पण्णत्ते ? गोधमा ! णवण उई जोयणसहस्साइं सत्त य पंचासीए जोयणसए इगतालीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता १. तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं (अ, ५.णि बुड्ढेमाणे (अल,ख,त्रि,प,ब,स)। क,ख,त्रि,ब,स) अग्रेपि। ६. अउणवीसे (अ,ब); अउणावीसे (क,ख,त्रिस)। २. अभिवुड्ढेमाणे (ख,त्रि)। ७. जं० ७१७३। ३. सव्वबाहिराणंतरे (ख,स,शाव)। ८. इतालीसं (अ.व) : इयालीसं (क); एगता४. तयणंतराओ तयणंतरं चंदमंडलाओ चंदमंडलं लीसं (त्रि)। (त्रि,हीव) 1 Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ बुद्दीपण दोणि य चुण्णियाभाए आयाम विक्खंभेणं, तिण्णिय जोयणस्यसहस्साई पण्णरस जोयणसहस्साई पंच य इगुणापणे' जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं । एवं खलु एए उवाएणं णिक्खममाणे चंदे तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडल संकममाणेसंकममाणे बावर्त्तारं-बावर्त्तारि जोयणाई एगावण्णं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्ता छेत्ता एवं चचुष्णियाभागं एगमेगे मंडले विक्खंभवुडि अभिवड्ढेमाणे अभिवड्ढेमाणे दो-दो तीसाई जोयणसयाई परिरयवुढि अभिवड्ढेमाणे- अभिवड्ढेमाणे सव्ववाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ ७६. सव्ववाहिरए णं भंते ! चंदमंडले केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिवखेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एवं जोयणसयसहस्सं छच्चसट्ठे जोयणसए आयाम विक्खभेणं, तिणि य जोयणसयसहस्साइं अट्ठारस सहस्साइं तिण्णि य पण्णरसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं ॥ ७७. बाहिराणंतरे णं पुच्छा । गोयमा ! एवं जोयणस्यसहस्सं पंच सत्तासीए' जोयणसए व य एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसट्टिभागं च सत्तहा छेत्ता छ चुण्णियाभाए आयामविवखंभेणं, तिण्णि य जोयणसयसहस्साई अट्ठारस सहस्साई पंचासीइं च जोयणाई परिक्खेवेणं || ७८. बाहिरतच्चे णं भंते ! चंदमंडले जाव' पण्णत्ते ? गोयमा ! एगं जोयणसयसहस्सं पंच य चउदसुत्तरे जोयणसए एगुणवीसं " च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्ता छेत्ता पंच चुण्णियाभाए आयाम - विक्खंभेणं, तिष्णिय जोयणसयसहस्साई सत्तरस सहस्साइं अट्ठ' य पणपणे जोयणसए परिक्खेवेणं । एवं खलु एएवं उवाएणं पविसमाणे चंदे तयणंतराओ मंडलाओ तयणंतरं मंडलं संकममाणे संकममाणे बावर्त्तारबावर्त्तार जोयणाई एगावण्णं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता एवं चुण्णियाभागं एगमेगे मंडले विक्खंभवुद्धिं निवड्ढेमाणे- णिवड्ढेमाणे दो-दो तीसाई* जोयसाई परिरयवुड णिवड्ढेमाणे निवड्ढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ || ७६. जया णं भंते ! चंदे सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया गं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच जोयणसहस्साइं तेवतरि च जोयणाई सत्तत्तरि च चोयाले भागसए गच्छइ मंडल तेरसहि सहस्सेहिं सत्तहि य पणवीसेहि" सएहिं छेत्ता । तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहिय तेवट्ठेहिं जोयणस एहिं एगवीसाए य सट्टिभाएहिं जोयणस्स चंदे चक्खुप्फासं हव्वमा गच्छइ ॥ १. अणपणे (अत्रि, ब); अणपणे (क, स ) ; अगुणापरणे ( ख ) । २. सं०पा० - चंदे जाव संकममाणे । ३. सतावी से ( अ, ख, ब)। ४. जं० ७ ७३ ॥ ५. अणावी ( अ, क, ख, त्रि,स) । ६. सत्त ( अ, क,ख, ब ) 1 ७. सं० पा० चंदे जाव संकममाणे ८. असीयाई ( अ, ब ) 1 ६. जदा ( अ, क, ख, ब) 1 १०. पणुवी हि ( अ, क, ख, त्रि, ब ) । Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतमो वक्खारी ५६५ ८०. जया णं भंते ! चंदे अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ', 'तया णं एगमेगेणं मुहुत्ते केव इयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच जोयणसहस्साइं सत्ततरं च जोयणाई छत्तीसं च चोवत्तरे भागसए गच्छइ मंडलं तेरसहि सहस्सेहि सत्तहि य पणवीसेहिं सएहिं छेत्ता ॥ ८१. जया णं भंते ! चंदे अबभंतरतच्चं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच जोयणसहस्साई असीई च जोयणाई तेरस य भागसहस्साई तिष्णिय एगूणती से भागसए गच्छइ मंडल तेरसहि' "सहस्सेहि सत्तहि य पणवीसेहिं सएहिं छेत्ता । एवं खलु एएवं उवाएणं क्खिमाणे चंदे तयतराओ" "मंडलाओ तयणंतरं मंडलं' संकममाणे संक्रममाणे तिष्णि-तिष्णि जोयणाई छण्णउई च पंचावण्णे भागसए एगमेगे मंडले मुहुत्तगई अभिवड्ढे माणे- अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ || ८२. जया णं भंते ! चंदे सम्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच जोयणसहस्साई एगं च पणवीसं जोयणसयं अउणत्तरि च गउए भागसए गच्छइ मंडल तेरसहि भागसहस्सेहि सत्तहि *पणवीसेहिं सएहिं छेत्ता । तथा णं इह्ायस्स मणूसस्स एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहि अटूहि य एगत्तीसेहिं जोयणसएहिं चंदे चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ ॥ ८३. जया णं भंते ! बाहिराणंतरं पुच्छा । गोयमा ! पंचजोयणसहस्साइं एक्कं च एक्कवीसुत्तरं जोयणसयं एक्कारस य सट्ठे भागसहस्से गच्छइ मंडलं तेरसहि" सहस्सेहि सत्तहि य पणवीसेहिं सहि' छेत्ता ॥ ८४. जया णं भंते! बाहिरतच्च पुच्छा । गोयमा ! पंचजोयणसहस्साई एवं च अट्ठारसुत्तरं जोयणसयं चोट्स य पंचुत्तरे भागसए गच्छइ मंडलं तेरसहि सहस्सेहिं सत्तहिं पणवीसेहिं सएहिं छेत्ता । एवं खलु एएणं उवाएणं" पविसमाणे चंदे तयणंतराओ मंडलाओ तयनंतर मंडल संक्रममाणे संकममाणे तिणि- तिष्णि जोयणाई छण्णउई च पंचावण्णे भागसए एगमेगे मंडले मुहुत्तगई णिवड्ढेमाणे- णिवड्ढेमाणे सव्वमंतर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ॥ ८५. कइ णं भंते! णक्खत्तमंडला पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ णक्खत्तमंडला पण्णत्ता || ८६. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहिता केवइया णक्खत्तमंडला पण्णत्ता ? गोमा ! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहेत्ता, एत्थ णं दो णक्खत्तमंडला पण्णत्ता ॥ तेरस हि जाव छेत्ता । तयगंतराओ जाव संकममाणे 1 १. सं० पा० चरड़ जाव केवइयं । २. चोत्तरे ( अ, ब ) | ३. सं० पा० - तेरसहि जाव छेत्ता । ४. केषुचित् सूत्रेषु चन्द्रस्य चक्षुः स्पर्शस्य प्रतिपत्ति दृश्यते । ५. अउणती ( अ, त्रि,व); अउणातीसे ( ख ) । ६. सं० पा० ७. सं० पा० ८. सं०पा०य जाव छेत्ता । ६. एक्कवी ( प ) । १०. सं० पा० - तेरसहिं जाव छेत्ता ११. सं० पा०-- उवाएणं जाव संक्रममाणे । Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीपण ८७. लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं ओगाहेता केवइयं णक्खत्तमंडला पण्णत्ता ? गोमा ! लवणे णं समुद्दे तिणि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं छ णक्खत्तमंडला पण्णत्ता । एवामेव सपुब्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणसमुद्दे अट्ठ णक्खत्तमंडला भवतीतिमवखायं ॥ ८८. सव्वभंतराओ णं भंते ! णक्खत्तमंडलाओ केवइयं' अबाहाए सब्वबाहिरए क्खत्तमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए णक्खत्तमंडले पण्णत्ते || ८९. णक्खत्तमंडलस्स णं भंते ! णक्खत्तमंडलस्स य एस णं केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! दो जोयणाई णक्खत्तमंडलस्स' गक्खत्तमंडलस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ६०. णक्खत्तमंडले णं भंते! केवइयं आयाम - विक्खभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! गाउयं आयाम विक्खभेण तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, अद्धगाउयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ ५६६ १. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्त पव्वयस्स केवइयं अवाहाए सव्वब्भंतरे णक्खत्तमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! चोयालीस जोयणसहस्साई अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वन्तरे णक्खत्तमंडले पण्णत्ते || ६२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए क्खत्तमंडले पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीस जोयणसहस्साइं लिणि य तीसे जोयणसए अबहाए सब्वबाहिरए णक्खत्तमंडले पण्णत्ते || ६३. सव्वब्भंतरे गं भंते ! क्वत्त मंडले केवइयं आयाम - विक्खमेणं, केवइयं परिवखेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! णवणउई जोयणनहस्साइं छच्चचत्ताले जोयणसए आयाम - विक्खभेणं, तिणि य जोयणसयसहस्साई पण्णरस जोयणसहस्साई एगुणणवई च जोयणाई किचिविसे साहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ ४. सव्वबाहिरए णं भंते! णक्खत्तमंडले केवइयं आयाम विक्खभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एवं जोयणसयसहस्सं छच्च सट्ठे जोयणसए आयामविक्खभेणं, तिणि जोयणसय सहस्साइं अट्ठारस य जोयणसहस्साइं तिष्णि य पण्णरसुत्तरे जोस परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ ६५. जया णं भंते! णक्खत्ते सव्वमंतरमंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, तथा णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच जोयणसहस्साई दोणि य पण्णट्ठे जोयणसए अट्ठारस य भागसहस्से दोण्णि य लेवट्ठे भागसए गच्छइ मंडलं एक्कवीसाए भागसहस्से हिं णवहि य सट्ठेहि सएहिं छेत्ता ॥ ६६. जया णं भंते ! णक्खत्ते सव्वबाहिर मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया गं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोत्रमा ! पंच जोयणसहस्साइं तिष्णि य एगूण३. मंडलस्य (त्रि, प ) 1 ९. माया (अ, क, ख, त्रि, ब, स ) । २. केवइयाए ( प ) सर्वत्र । Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ५६७ वीसे जोयणसए सोलस य भागसहस्से हि तिण्णि य पण्णठे भागसए गच्छइ मंडलं एगवीसाए भागसहस्सेहिं णवहि य सछेहिं सएहिं छेत्ता । ७. एए णं भंते ! अटु णक्खत्तमंडला कइहिं चंदमंडलेहि समोयरंति ? गोयमा ! अहिं चंदमंडलेहि समोयरंति, तं जहा--पढमे चंदमंडले तइए छठे सत्तमे अद्रुमे दसमे एक्कारसमे पण्णरसमे चंदमंडले ॥ १८. एगमेगेणं भंते ! मुहत्तेणं चंदे केवइयाई भागसयाई गच्छइ ? गोयमा ! जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स ‘सत्तरस अटुट्ठ भागसए गच्छइ मंडलं सयसहस्सेणं अट्ठाणउईए य सएहिं छेला ॥ ६६. एगमेगेणं भंते ! मुहत्तेणं सूरिए केवइयाइं भागसयाइं गच्छइ ? गोयमा ! जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अट्रारसतीसे भागसए गच्छइ मंडलं सयसहस्सेहिं अट्राणउईए य सएहि छेत्ता । १००. एगमेगेणं भंते ! मुहुत्तेणं णक्खत्ते केवइयाई भागसयाई गच्छइ ? गोयमा ! जं-ज मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस पणतीसे भागसए गच्छइ मंडलं सयसहस्सेणं अट्ठाणउईए य सएहि छेत्ता ।। १०१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया 'उदीण-पाईणमुग्गच्छ" पाईण-दाहिणमागच्छंति, पाईण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिण-पडीणमागच्छंति, दाहिणपडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीणमागच्छंति, पडीणउदीणमुग्गच्छ उदीण-पाईणमागच्छंति ? हंता गोयमा ! जहा पंचमसए पढमे उद्देसे जाव' णेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्टिए णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो! इच्चेसा जंबुद्दीवपण्णत्ती सूरपण्णत्ती वत्थुसमासेणं समत्ता' भवइ ।। १०२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे चंदिमा उदीण-पाईणमुरगच्छइ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जहा सूरवत्तव्वया जहा पंचमसयस्स दसमे उद्देसे जाव' अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो! इच्चेसा जंबुद्दीवपण्णत्ती चंदपण्णत्ती वत्थुसमासेणं समत्ता भवइ ।। १०३. कई णं भंते ! संवच्छरा पण्णत्ता? गोयमा! पंच संवच्छरा पण्णत्ता, तं जहा--णक्खत्तसंवच्छरे जुगसंवच्छरे पमाणसंवच्छरे लक्खणसंवच्छरे सणिच्छरसंवच्छरे । १०४. णक्खत्तसंवच्छरे गं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुवालसविहे पण्णत्ते, तं जहा -सावणे भद्दवए आसोए 'कत्तिए मग्गसिरे पोसे माहे फरगुणे चेत्ते वइसाहे १. अउणापण्णे (अ,क,ख,त्रि,ब,स ,पुवृ,दीव)। २. पणठे (ब) 1 ३. सत्तरसटूठे (अ,ब); सत्तरटुमठे (स); सप्तदशशतानि अष्टषष्ठिभागैरधिकानि गच्छति (शाव)। ४. उदोयिपादीण° (अ,ब) अग्रेपि । ५. भ० ५१३-२० । ६. पण्णता (त्रि, होव)। ७. चंदमा (त्रि) । ८. भ० ५।२३० । ६. सनिच्छर° (ब)। १०.सं० पा०-- आसोए जाव आसाढे । Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ जंबुद्दीवपण्णतो जेट्टामूले आसाढे, जं वा बिहप्फइ' महग्गहे दुवालसेहिं संवच्छरेहिं सव्वणक्खत्तमंडलं समाणेइ । सेत्तं णक्खत्तसंवच्छरे ।। १०५. जुगसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-चंदे चंदे अभिवडिए' चंदे अभिवड्डिए चेव ।। १०६. पढमस्स णं भंते ! चंदसंवच्छरस्स कइ पव्वा पण्णत्ता ? गोयमा! चउव्वीसं पब्वा पण्णत्ता॥ १०७. बिइयस्स णं भंते ! चंदसंवच्छरस्स कइ पव्वा पण्यत्ता? गोयमा! चउव्वीसं पव्वा पण्णत्ता॥ १०८. एवं पुच्छा तइयस्स । गोयमा ! छव्वीसं पव्वा पण्णत्ता ।। १०६. चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स चोव्वीसं पव्वा पण्णत्ता ॥ ११० पंचमस्स णं अभिवड्डियस्स छव्वीसं पन्वा पण्णत्ता । एवामेव सपुव्वावरेणं पंचसंवच्छरिए जुए एगे चउव्वीसे पव्वसए पण्णत्ते । सेत्तं जुगसंवच्छरे ॥ १११. पमाणसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णते ? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा. .णक्खत्ते चंदे उऊ' आइच्चे अभिवड्डिए । सेत्तं पमाणसंवच्छरे । ११२. लक्खणसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा--- गाहा समयं णक्खत्ता जोगं जोयंति समयं उद् परिणमंति। णच्चुण्ह णाइसीओ, बहूदओ होइ णक्खत्ते ॥१॥ ससि समगं पुण्णमासिं, जोएंति विसमचारिणखत्ता । कडुओ बहूदओ वा, तमाहु संवच्छरं चंदं ॥२॥ विसमं पवालिणो परिणमंति, अणुसु देंति फुप्फफलं । वासं न सम्म वासइ, तमाहु संवच्छरं कम ॥३॥ पूढविदगाणं तु रसं, पुप्फफलाणं च देइ आइच्चो। अप्पेणवि वासेण, सम्म निष्फज्जए सास" ॥४॥ आइच्चतेयतविया, खणलवदिवसा उऊ परिणमंति। 'पूरेइ य णिण्णथले", तमाहु अभिड्डियं जाण ॥५।। १. वहस्सई (अ,क,ख,ब,स) । २. अहिवढिए (अ,ब) अग्रेपि । ३. उडू (अ); उदू (क,ख,त्रि,ब)। ४. जोएंति (अ,क,ब)। ५. 'ससि' त्ति विभक्तिलीपात् शशिना (ही)। ६. समयं (अ,ब); समय (क,स); समग (ख,त्रि,प); सगल (ठाणं श२१३३२)। ७. या (अ,ख,ब); आ (प) ८. अणुऊसु (प)। ६. च (प). १०. सस्स (क,ख,त्रिप)। ११. पूरिति य णिण्णतले (अ,ब); स्थानाङ्गे (५२२१३॥५) 'पूरेति रेणु थलयाई' इति पाठो लभ्यते, किन्तु सूर्यप्रज्ञप्ति-चन्द्रप्रज्ञप्त्योः (१०११२६) 'पूरेति णिण्णथलए' इति पाठो दृश्यते । वृत्तिकृता मलयगिरिणापि निम्न स्थानानि स्थलानि च जलेन पूरयति' इति व्याख्यातमस्ति । Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्तं-- सत्तमो धक्खारो ५६६ ११३. सणिच्छरसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! अट्ठावीसइविहे पण्णत्ते, तं जहा--- गाहा - अभिई सवणे धणिवा, सयभिसया दो य होति भद्दवया । ___ रेवइ अस्सिणि भरणी, कत्तिय तह रोहिणी चेव ॥१॥ जाव उत्तराओ आसाढाओ जं वा सणिच्चरे महग्गए तीसाए संवच्छरेहिं सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेई । सेत्तं सणिच्चरसंवच्छरे । ११४. एगमेगस्स णं भंते ! संवच्छरस्स कइ मासा पण्णत्ता? गोयमा ! दुवालस मासा पण्णत्ता । तेसि णं दुविहा णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा--लोइया लोउत्तरिया य । तत्थ लोइया णामा इमे', तं जहा - सावणे भद्दवए जाव' आसाढे। लोउत्तरिया णामा इमे, तं जहा--- अभिणदिए" पइठे य, विजए पीइवद्धणे। सेयंसे य सिवे चेब, सिसिरे य सहेमवं ॥१॥ णवमे वसंतमासे, दसमे कुसुमसंभवे । एक्कारसे 'निदाहे य", वणविरोहे य बारसे ॥२॥ ११५. एगमेगस्स णं भंते ! मासस्स कइ पक्खा पण्णत्ता ? गोयमा ! दो पक्खा पण्णत्ता, तं जहा-बहुलपक्खे य सुक्कपक्खे य॥ ११६. एगमेगस्स णं भंते ! पक्खस्स कइ दिवसा पण्णता? गोयमा! पण्णरस दिवसा पण्णत्ता, तं जहा -पडिवादिवसे बिइयादिवसे जाव पण्णरसीदिवसे ॥ ११७. एएसि णं भंते ! पण्ण रसण्हं दिवसाणं कइ णामधेज्जा" पण्णत्ता? गोयमा ! पण्णरस णामधज्जा पण्णत्ता, त जहागाहा- 'पुव्वंगे सिद्धमणोरमे य, तत्तो मणोहरे" चेव । जसभद्दे य जसधरे, छठे सव्वकामसमिद्धे य ॥१॥ इंदमुद्धाभिसित्ते य, सोमणस" धणंजए य बोद्धव्वे । अत्थसिद्ध अभिजाए, अच्चसणे सयंजए चेव ॥२॥ अग्गिवेसे उवसमे, दिवसाणं होंति णामधेज्जाई । १. जं०७११२८ । ७. य गिद्दाहे (ब)। २. x (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। ८. वणवरोधे (क,ख); वणविरोहि (त्रि,हीव); ३. जं०७४१०४। वणविरोधे (स); सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तौ तु....... ४. x (अ,क,ख,त्रि,वस)। वणविरोहस्थाने तु वणविरोधि (शावृ) । ५. अभिणादिए (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृ,हीव); १. सुक्किलपक्खे (ख,स) । क्वचिदभिनंदन इति पठ्यते (पु); सूर्य- १०. णामधेया (त्रि)! प्रज्ञप्तिवृत्तौ तु अभिनन्दितस्थाने अभिनन्दः ११. पुठवंगे चेव मणोरमे य तत्तो य (त्रि)। (शाव) : चन्द्रप्रज्ञप्त्यादौ तु 'अहिणं दिए' त्ति १२. मणी रहे (अ,क,ख,ब) । पाठस्तत्राभिनंदित इति (हीद) । १३. सोमणसे (क,त्रि)। ६. ४ (अ,क,ख,त्रि,ब)। Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० जंबुद्दीवपण्णत्ती ११८. एएसि णं भंते ! पण्णरसण्हं दिवसाणं कइ तिही पण्णत्ता ? गोयमा ! पण्णरस तिही पण्णत्ता, तं जहा शंदे भद्दे जए तुच्छे, पुण्णे पक्खरस पंचमी। पुणरवि-- णंदे भद्दे जए तुच्छे, पुण्णे पक्खस्स दसमी। पूणरवि- गंदे भद्दे जए तुच्छे, पुण्णे पक्खस्स पण्णरसी। एवं एते तिगुणा तिहीओ सव्वेंसि दिवसाणं । ११६. एगमेगस्स णं भंते ! पक्खस्स कई राईओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! पण्णरस राईओ पत्ताओ, तं जहा --पडिवाराई जाव पण्णरसीराई।। १२०. एयासिणं भंते ! पण्णरसण्हं राईण कइ णामधेज्जा पणत्ता? गोयमा ! पण्णरस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहागाहा- उत्तमा' य सुणक्खत्ता, एलावच्चा जसोहरा। सोमणसा चेव तहा, सिरिसंभूया य बोद्धव्वा ॥१॥ विजया य वेजयंति, जयंति अपराजिया य इच्छा य । समाहारा चेव तहा, तेया य तहेव' अइतेया ॥१॥ देवाणंदा णिरई. रयणीणं णामधेज्जाई। १२१. एयासि णं भते! पण्णरसण्हं राईणं कइ तिही पणत्ता ? गोयमा ! पण्णरस तिही पण्णत्ता, तं जहा--उम्गवई, भोग्गई, जसवई, सबसिद्धा सुहाणामा। पूणरवि उग्गवई भोगवई जसवई सबसिद्धा म्हणामा। पुणरवि उग्गवई भोगवई जसवई सव्वसिद्धा सुहणामा । एवं एए तिगुणा तिहीओ सव्वेसिं राईणं ।। १२२. एगमेगस्स णं भंते ! अहोरत्तस्स कइ मुहुत्ता पण्णत्ता ? गोयमा! तीसं मुहुत्ता" पण्णता, तं जहागाहा- रोहे सेए मित्ते, वाउ सुपीए तहेव अभिचंदे । माहिंद' बलव बंभे, बहुसच्चे चेव" ईसाणे ॥१॥ १. उत्तरमा (अ,ब)। २. महाहारा (अ,ब)। ३. तहा (प)। ४. अभितेया (अ,ब)। ५. निरतीति पंचदश्या एवं द्वितीय नाम (ही) ६. कन्नदृसिद्धा (अक ख,त्रि,ब,स,पुर्व) सर्वत्र। सूर्यप्रज्ञप्तिरत्तौ तु सर्वार्थसिद्धास्थान सर्वतिद्वेति दृश्यते (वृ)। ७. मुहत्ता मुहुत्तग्गेणं (सम ३०१३)। ८. रुद्दे (त्रिप)। ६. सुवीए (क,ख,त्रि,प,स) 1 १०. अभिणंदे (अ,क,ख,व) । ११. महिंदे (अक,ख,ब) १२. बलवं (अ,क,त्रि,व,स); पलंबे (सम० ३०१३) । १३. पण्ड (अ,व); पक्ष्मः क्वचिद् ब्रह्मेति दृश्यते (पुत्र); पदमः (चन्द्र प्रज्ञप्तिवृत्ति १०८४) । अतः परं समवायाङ्गे (३०१३) नाम्नां व्यत्ययो भेदश्च दश्यते---सच्चे आणंदे विजए वीरासेणे दायावच्चे उसमे ईसाणे तिठे Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो तळे' य भावियप्पा', वेसमणे वारुणे' य आणंदे । विजए य वीससेणे, पायावच्चे उबसमे य ॥२॥ गंधव अग्गिवेसे, सयवसहे आयवं य अममे य । अणवं भोमे च* रिसहे", सव्वटठे रक्खसे चेव ॥१॥ १२३. कइ णं भंते ! करणा पण्णत्ता? गोयमा! एक्कारस करणा पण्णत्ता, तं जहा.-बवं बालवं कोलवं थीविलोयणं गराइ वणिज विदी सउणी चउप्पयं णागं किथुग्छ । १२४. एएसि णं भंते ! एक्कारसण्ह करणाणं कइ करणा चरा, कइ करणा थिरा पण्णत्ता? गोयमा ! सत्त करणा चरा, चत्तारि करणा थिरा पण्णता, तं जहा - बवं बालवं कोलवं थीविलोयणं गराइ वणिजं विट्ठी-एए णं सत्त करणा चरा । चत्तारि करणा थिरा पण्णत्ता, तं जहा- सउणी चउप्पयं णाग किंथुरघं-एए णं चत्तारि करणा थिरा ॥ १२५. एए णं भंते ! चरा थिरा वा कया" भवंति ? गोयमा! सुक्कपक्खस्स पडिवाए" राओ बवे करणे भवइ । बिइयाए दिवा बालवे करणे भवइ, राओ कोलवे करणे भवइ । तझ्याए दिवा थीविलोयणं करणं भवइ, राओ गराइ करणं भवइ । चउत्थीए दिवा वणिज राओ विट्ठी । पंचमीए दिवा बवं, राओ बालवं । छट्ठीए दिवा कोलवं, राओ थीविलोयणं । सत्तमीए दिवा गराड, राओ वणिज । अदमीए दिवा विटी, राओ बवं । णवमीए दिवा बालवं, राओ कोलवं । दसमीए दिवा थीविलोयणं, राओ गराइ। एक्कारसीए दिवा वणिज, राओ विट्ठी । बारसीए दिवा बवं, राओ बालवं । तेरसीए दिवा कोलवं, राओ थीविलोयणं च उद्दसीए दिवा गराइ करणं, राओ वणिज । पुण्णिमाए दिवा विट्ठी करणं, राओ बवं करणं भवइ । भावियप्पा बेसमणे वरुणे सतरिमभे गंधठते ६. सत्यवान् (चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ति १०८४)। अग्गिवेशायणे आतवं अवधं तदुवे भूमहे रिसभे १०. तिय (अ,ब); ईय (क); इय (ख,स); सव्वटुसि रक्खसे । इया (त्रि) । १४. च्चेव (अ)। ११. थीविलोवण (अ); थीवलावणं (ब); थीलो१५. तीसाणे (अ,ब) । यणं (स); अन्यत्रास्य स्थाने तैतिलं (शावृ)। १. तत्थे (क,स); सट्टे (त्रि); स्रष्टा (हीव, १२. गराइ (त्रि); अन्यत्र गरं (शा); ज्योतिः चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ति १०३१३) । शास्त्रेषु गरादि स्थान गरं स्त्रीविलोचनस्थाने २. भावियाया (ख)। तैतलमिति (ही)। ३. अपरः (चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ति (१०८४) । १३ वाणिज्ज (त्रि); वाणिज्यं (पुत्र)। ४. विजयसेन: (चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ति १०८४)। १४. कता (अ,ब); कदा (त्रि)। ५. पादावच्चे (अ,ब)। १५. पडियदे (अ,ब); पडिवए (क,ख,स)। ६. गंधव्वे (अ,ब); गंधवे य (क,ख,स)। १६. पालवे (अ,ब)। ७. ४ (ख,त्रि,प,स)। १७. रातो (ब)। ५. वसहे (ख,त्रि,प)। १८. कोलते (स)। Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ बुद्दीवपण्णत्तो बहुपक्खस्स पडिवाए दिवा' बालवं, राओ कोलवं । बिइयाए दिवा थीविलोयणं, ओ गराइ । तइयाए दिवा वणिजं, राओ विट्ठी । उत्थीए दिवा बवं, राओ बालवं । पंचमीए दिवा कोलवं, राओ थीविलोयणं । छट्टीए दिवा गराइ, राओ वणिजं । सत्तमीए दिवा विट्टी, राओ बवं । अट्टमीए दिवा बालवं, राओ कोलवं । णवमीए दिवा थीविलोयणं, ओ गराइ । दसमीए दिवा वणिजं, राओ विट्ठी । एक्कारसीए दिवा बवं राओ बालवं । बारसीए दिवा कोलवं, राओ थीविलोयणं । तेरसीए दिवा गराइ, राओ वणिजं । चउद्दसीए दिवा विट्ठी, राओ सउणी । अमावसाए' दिवा चउप्पयं, राओ जागं । सुक्क पक्खस्स पडिवाए दिवा किंथुग्धं करणं भवइ ॥ १२६. किमाइया णं भंते ! संवच्छरा, किमाइया अयणा, विमाइया उऊ, किमाइया मासा, किमाइया पक्खा, किमाइया अहोरत्ता, किमाइया मुहुत्ता, किमाइया करणा किमाइया णक्खत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! चंदाइया संवच्छरा, दक्खिणाइया अयणा, पाउसाइया' उऊ, सावणाइया मासा, बहुलाइया पक्खा, दिवसाइया अहोरत्ता, रोद्दाइया मुहुत्ता बालवाइया करणा, अभिजियाइया णक्खत्ता पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ १२७. पंचसवच्छरिए णं भंते! जुगे केवइया अयणा, केवइया उऊ, एवं मासा पक्खा अहोरता, केवइया मुहुत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचसवच्छरिए णं जुगे दस अयणा, तीस उऊ, सट्ठी मासा, एगे वीसुत्तरे पक्खसए, अट्ठारसतीसा अहोरत्तसया, चउप्पण्णं मुहुत्त सहस्सा णव य सया पण्णत्ता ! गाहा - जोगो देवय तारग्ग, गोत्त संठाण चंदरविजोगो । कुल पुष्णिम अवमंसाय, सष्णिवाए य णेया य ॥ १ ॥ १२८. कइ णं भंते ! णक्खत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठावीसं णक्खत्ता पण्णत्ता, तं जहा अभिई सवर्णो वणिट्ठा समभिसया पुव्वभद्दवया उत्तरभद्दवया रेवई अस्सिणी भरणी कत्तिया रोहिणी मियसिर" अद्दा पुणव्वसू पुसते" अस्सा मघा पुव्वफग्गुणी उत्तरफग्गुणी हत्थो चित्ता साइ विसाहा अणुराहा जेट्ठा मूलं पुव्वासाढा उत्तरासादा ॥ १२६. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता, जेणं सया चंदस्स दाहिणं जोयं जोएति ? कयरे णक्खत्ता, जेणं सया चंदस्स उत्तरेणं जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता, जेणं चंदस्स दाहिणेणवि उत्तरेणवि पमद्दपि जोगं जोएंति ? कयरे १. पडिव ( अ, ख, ब, स ) : पाडिदए (क) त्रि ) । २. दिया ( अ, ब ) 1 ३. अवासाए ( अ, ब ) । ४. पाडवा ( अ, क, ब ) ; पडिवए ( ख ) 1 ५ उर्दू (अत्रि,व) | ६. पाउसतिया ( अ, ब ) । ७. ववातिया ( अ, ब ) ; बवादिया ( क,ख, स ) ; बवादीनि (पुवृ); बालवादिकानि करणानि बहुप्रक्षिपद्दिवसे तस्यैव सम्भवात् ( शावृ ) । ८. अभिजिदादिया ( अ, ब ) ; अभिजादिया (क,स); अभिजादीया ( ख ) । ६. समणे (अब)। भगलिरं (ब) । १. पुस्तो ( अ, खत्रि,ब,स) । O १२. जोयंति ( अ ) जोगंति ( ब ) । १३. दाहिणेर्णपि (प) । Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ५७३ णवखत्ता, जेणं चंदरस दाहिणेणवि पमद्दपि जोयं जोएंति ? कयरे णवत्ता, जेणं सया चंदस्स पमदं जोयं जोएंति ? गोयमा ! एएसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं, तत्थ णं, जेते णक्खत्ता 'जेणं' सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति, ते णं 'छ, तं" जहा·--- संठाण' अद्द पुसो, सिलेस हत्थो तहेव मूलो य । बाहिरओ बाहिरमंडलस्स छप्पेते णक्खत्ता ॥१॥ गाहा तं जहा तत्थ' णं जेते णवखत्ता जे गं सया चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, ते णं बारस, अभिई' सवणो धणिट्टा सयभिसया पुव्वभद्दवया उत्तरभद्दवया रेवई अस्सिणी भरणी फग्गुणी उत्तर फग्गुणी " साई । तत्थ णं जेते णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणेगवि" च उत्तरेणवि" मद्दपि जोगं जोएंति, ते णं सत्त, तं जहा कत्तिया" रोहिणी पुणव्वसू मघा चित्ता विसाहा अणुराहा । तत्थ णं जेते णक्खत्ता, जे गं सया चंदस्स दाहिणओवि पमद्दपि जोगं जोएंति, ताओ णं दुवे आसाढाओ । सव्वबाहिरए मंडले जोगं जोइंसु वा जोइति वा जोइस्संति वा । तत्थ णं जेसे णक्खते, जे णं सया चंदस्स पमद्दं जोगं जोएइ सा णं एगा जेा ॥ - १३०. एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते किंदेवयाए पणते ? गोयमा ! बम्हदेवयाए पण्णत्ते । सवणे" णक्खत्ते विण्हुदेवयाए पण्णत्ते । धणिट्ठा क्खत्ते वसुदेवया पण्णत्ते । एएणं कमेणं णेयव्वा अणुपरिवाडीए" इमाओ देवयाओ हा विup वसू वरुणे अए अभिवडी" पूसे आसे जमे अग्गी पयावई सोमे रुहे अदिती वहस्स ई" सप्पे पिऊ भगे अज्जम सविया तट्ठा वाऊ इंदग्गी मित्तो इंदे पिरई आऊ विस्सा य एवं क्खत्ताणं एताए परिवाडीए" णेयव्वा जाव उत्तरासाढा किंदेवया पण्णत्ता ? गोमा ! विस्सदेवया" पण्णत्ता ॥ १. × ( अ, ब ) । २. x ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) 1 ३. छत्तं ( अ, ब ) 1 ४. मृगशिर: ( सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ति, पत्र १३८ ) । ५. समवायांगे (हा६ ) अस्मिन् प्रकरणे नव नक्षत्राणामुल्लेखों विद्यते - अभीजियाइया नव नक्खत्ता चंदस्रा उत्तरेणं जोगं जो एंति, तं जहा - अभीजि सवणो धणिट्टा रायभितथा पुब्वाभद्दवया उत्तरापोट्ठवया रेवई अस्सिणी भरणी । ६. अभिती ( अ, ब, स ) अभिवी ( क, ख ) । ७. समणो ( अ, ब ) । ८. उत्तराभवया (नि); उत्तराभवता ( ब ) । ६. पुवा (क, ख, ब, स ) । १०. उत्तरा° (स) । ११. ओवि ( प ) | १२. उत्तरओवि (च) । १३. कित्तिया ( क, ख स ) । १४. समणे (अत्र) । १५. अणुपरिवाडीय ( अ, क, ख, ब, स ) अणुपरिवाडी ( प ) | १६. विविद्धी ( अ, क, ख, ब) अभिवृड्डी (त्रि ) ; अहिवडी ( स ) अभिवृद्धिः क्वचिद् विवृद्धिग्रन्थान्तरे अहिर्बुध्नः (पुवृ); अभिवृद्धि : अन्य - त्राहिर्बुध्न: (शावृ); अभिवृद्धिः ज्योतिःशास्त्रे तु पाहिर्बुध्ननामेति ( होवृ ) । १७. पहस्पती ( अ, अ ); बहप्फई (त्रि ) 1 १८. एया परिवाडी ( प ) 1 १६. वीसुं° ( अ, ब ) । Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ जंबुद्दीवपण्णत्ती १३१. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिईणक्खत्ते कइतारे पण्णत्ते ? गोयमा । तितारे पण्णत्ते । एवं णेयव्वा जस्स जइयाओ' ताराओ, इमं च तं तारगं--- गाहा- तिग-तिग पंचेगसयं, दुग-दुग 'बत्तीसगं तिग-तिगं च" । छप्पंचग-तिग-एक्कग-पंचग-तिग-छक्कगं चेव ॥१॥ सत्तग-दूग-दूग-पंचग, एक्केक्कग-पंच-चउ-तिगं चेव । एक्कारसग-चउक्क, चउक्कगं चेव तारग्गं ॥२॥ १३२. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई" णवखत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? गोयमा! मोग्गलायणसगोत्ते। गाहा- मोग्गलायण संखायणे य, तह अग्गभाव कण्णिल्ले । तत्तो य जाउकण्णे, धणंजए चेव बोद्धव्वे ॥१॥ पुस्सायणे य अस्सायणे य, भग्गवेसे य अग्गिवेसे" य । गोयम भारद्दाए, लोहिच्चे चेव वासिठे ।।२।। ओमज्जायण मंडव्वायणे य, पिंगायणे य गोवल्ले । कासव कोसिय दव्भा य, चामरच्छाय सुंगा य ।।३।। गोलव्वायण" तेगिच्छायगे य कच्चायणे हवइ मूले । तत्तो य वज्झियायण, वग्यावच्चे य गोत्ताई ॥४॥ १३३. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिईणक्खत्ते किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा! गोसीसावलिसंठिए पण्णत्ते, गाहा- गोसीसावलि काहार", सउणि पुप्फोवयार" वावी य । णावा आसक्खंधग, भग छुरघरए" य सगडुद्धी ॥१॥ १. जत्तियाओ (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १०. धणंजया (अ,ख,ब); धणंधया (क)। २. पंचगसय (प)। ११. पुस्सायणि (अ,ख,ब,स); दुस्सायणि (क)। ३. बत्तीस गतिगं तह तिगं च (प)। १२. अस्सासयणी (अ,ख,ब); अस्सायणी (स)। ४. पंच (अ,क,ख,त्रि,ब) । १३. भागवेसी (अ,क,ब); भग्मविसी (ख) । ५. अमीयाइ (अ,ब); अभीई आदी (क,ख)। १४. अग्गिवेसी (अ,क,ख,ब) 1 ६. मोग्गल्याण (प)। १५. गोदम (अ,ब)। ७. अत्तभाव (अ,ख,ब,स); अत्त (क); अग्गताव १६. मणुब्वायणे (अ,क,ख,ब) । (त्रि, हीव) । सूर्यप्रज्ञप्तेश्चन्द्रप्रज्ञप्लेश्व हस्त- १७. गोवल्ला (अ,क,ख,ब,स)। लिखितादर्शषु उद्धृतासु जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिगाथासु १८. गोलदाय (क,ख,स) : गोलव्याण (त्रि); 'अग्गभाव' इति पदं दृश्यते । गोवल्लायण (प)। ८. कष्णेल्ले (अ,ब); कणेले (क); कालण्णे १६. कागार (त्रि) । (ख) कण्णेले (स)। २०. पुप्फोवकार (अ,क,ख,ब) । ६. जातुकण्णी (अ,ब); जानुकण्णं (क); गजा- २१. छुरधारा (त्रि) उकण्णी (ख)। Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो मिगसीसावलि रुहिरबिंदु' तुल वद्धमाणग पडागा' । पागारे पलियं के हत्थे मुहफुल्लए चेव ॥२॥ खीलग दामणि एगावली य गयदंत विच्छुयअले* य' । गयविक्कमेय तत्तो, सीहणिसाई य संठाणा || ३ || १३४. एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिईणवखत्ते कइमुहुत्ते चंदे सद्धि जोगं जोएइ ? गोयमा ! णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्टिभाए मुहुत्तस्स चंदेण सद्धि जोगं जोएइ । एवं इमाहिं गाहाहि अणुमंतव्वं अभिइस्स चंदजोगो, सत्तट्ठिखंडिओ अहोरत्तो ! तेहुति णव मुहुत्ता, सत्तावीस कलाओ य ॥१॥ यभिसया भरणीओ, अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठाय । एए छण्णक्खत्ता पण्णरस मुहुत्त संजोगा ॥२॥ तिण्णेव उत्तराई, पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य । एए छण्णवखत्ता, पणयालमुहुत्तसंजोगा ॥३॥ अवसेसा णक्खता, पण्णरसवि हुति तीसइमुहुत्ता ! चंदमि एस जोगो, णवखत्ताणं मुणेयव्वो ||४|| १३५. एएसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिईणक्खत्ते कइ अहोरत्ते सूरेण सद्धि जोगं जोएइ ? गोयमा ! चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेणं सद्धि जोगं जोएइ । एवं इमाहिं गाहाहिं णेयव्वं अभिई छच्च मुहुत्ते, चत्तारि य केवले अहोरते । सूरेण समं गच्छइ, एत्तो सेसाण वोच्छामि ॥ | १ || सयभितया भरणीओ, अद्दा असेस साइ जेट्ठा य । वच्चति मुहुत्ते 'इक्कवीस छच्चेवहोरत्ते" ॥२॥ तिण्णेव उत्तराई, पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य । वच्चति मुहुत्ते, तिष्णि चैव वीसं अहोरते ॥३॥ अवसेसा णक्खत्ता, पण्णरसवि सूरसहगया जंति । बारस चैव मुहुत्ते, तेरस य समे अहोरते ||४| १३६. कइ णं भंते ! कुला, कइ उवकुला, कइ कुलोवकुला पण्णत्ता ? गोयमा ! १. रुहिरवंड ( अ, ब ) 1 २. पडाला ( अ, ब ) । ३. पल्लंके (त्रि) । ४. विच्छुलंगूल (त्रि); चन्द्रप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्त्यो ধুশুধু रादशेषु विच्छ्यनंगोलसंटित, विच्छुयलंगोल" इति पाठद्वयं लभ्यते, प्रस्तुतसूत्रस्य एकस्मिन्नादषु 'विच्छलंगुल' इति पाठो दृश्यते किन्तु ताडपत्रीयादिप्राचीनादर्शेषु विच्छुअयले' इति पाठो विद्यते, तेनासो मूले स्वीकृत: 'अल' शब्दस्वार्थावबोधाय द्रष्टव्यः पाइयसद्दमहण्णवो । ५. या ( अ, क, ख, त्रि,स); वा ( ब ) | ६. सीह णिसीई (अ); सीहासणिसाई ( क ) । ७. इक्कीसाई छच्च अहोरते ( अ, ब ) ; एक्कवीति छच्च अहोरते (क, ख ) 1 ८. यंति ( क ) ; इंति (खस) । ६. अवकुला ( अ, ख, ब) सर्वत्र । Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '५७६ जंबुद्दीवपण्णत्ती बारस कुला, बारस उवकुला, चत्तारि कुलोवकुला, पणत्ता। बारस कुला, तं जहाधणिट्ठा कुलं उत्तरभदवया कुलं अस्सिणी कुलं कत्तिया कुलं मिग सिर कुलं 'पुस्सो कुलं' मघा' कुलं उत्तरफागुणी कुलं' चित्ता कुलं विसाहा कुलं मूलो कुलं उत्तरासाढा कुलं । गाहा- मासाणं परिणामा, होति कुला उवकुला उ हेट्ठिमगा। होति पुण कुलोवकुला, अभीइसय अद्द अणुराहा ॥१॥ बारस उवकुला, तं जहा--सवणो उवकुलं पुव्वभद्दवया उवकुलं 'रेवई उवकुलं भरणी उवकुलं रोहिणी उवकुलं पुणव्वसू उवकुलं अस्सेसा उवकुलं पुवफग्गुणी उवकुलं हत्थो उवकुलं साई उवकुलं जेट्ठा उवकुलं" पुव्वासाढा' उवकुलं । चत्तारि कुलोवकुला, तं जहा-- अभिई कुलोवकुला सयभिसया कुलोवकुला अद्दा कुलोवकुला अणुराहा कुलोवकुला।। १३७. कइ णं भंते ! पुण्णिमाओ, कइ अमावसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा! बारस हारस अमावसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा. साविट्ठी पोटूवई आसोई कत्तिगी मगसिरी पोसी माही फग्गुणी चेत्ती वइसाही जेट्ठामूली आसाढी ।। १३८. साविडिण्णं भंते ! पुण्णिमासि कइ णक्खत्ता जोगं जोएंति ? गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता जोगं जोएंति, तं जहा- अभिई सवणो धणिट्ठा ।। १३६. पोढवइण्णं भंते ! पुण्णिमं कइ णक्खत्ता जोगं जोएंति ? गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता जोगं जोएंति, तं जहा- सयभिसया पुव्वभद्दवया उत्तरभद्दवया ।। १४०. अस्सोइण्णं भंते ! पुषिणमं कइ णक्खत्ता जोगं जोएंति ? गोयमा! दो णक्खत्ता जोगं जोएंति, तं जहा---रेवई अस्सिणी य । कत्तिइण्णं दो-भरणी कत्तिया। मग्गसिरिणं दो---रोहिणी मग्गसिरं च । पोसिणं तिण्णि---अद्दा पुणव्वसू पुस्सो। माधिण्णं दोअस्सेसा मघा य । फग्गुणिण्णं दो-पुव्वाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी य। चेत्तिण्णं दो हत्थो चित्ता य । विसाहिणं दो-साई विसाहा य । जेट्ठामूलिण्णं तिण्णि---अणुराहा जेट्ठा मूलो। आसाढिण्णं दो-पुवासाढा उत्तरासाढा ॥ १४१. साविट्टिण्णं भंते ! पुण्णिम किं कुलं जोएइ ? उवकुलं जोएइ ? कुलोवकुलं जोएइ ? गोयमा ! कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ, कुलोवकुलं वा जोएइ । कुलं जोएमाणे धणिट्टा णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे सवणे" णक्खत्ते जोएइ, कुलोकुलं जोएमाणे अभिई णक्खत्ते जोएइ । साविट्टिण्णं पुणिमासिं कुलं वा जोएइ उवकुलं वा जोएइ°, कुलोवकुलं वा जोएइ । कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता कुलोवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी पुण्णिमा जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया ॥ १. पूसो कुलं (अ,ब); पुस्सकुलं (क,ख,त्रि,स) ! ६. पुनाआसाढा (अ,ब)। २. महा (प)। ७. अवार्मसाओ (ब)। ३. उत्तरा° (अ,ब) : ८. पोटुवदा (अ,ब); पोढुवया (क,ख,स) । ४. पुवा° (अ,ब)। ६. पुव्वा (अ,क,ख,ब)। ५. रेवती भरणीय रोहिणी य, पुणब्वसू य असेसा। १०. उत्तरा (अ,ब)। पुवाफगुणी य हत्थो य, साती य जेट्ठा य । ११. समाणे (अ,ब)। (अ,ख,ब,स)। १२. सं० पा०-जोएइ जाव कुलोवकुलं । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो ववखारो ५७७ १४२. पोटुवइण्णं भंते ! पुणिमं किं कुलं जोएइ पुच्छा। गोयमा ! कुलं वा उवकुलं वा कुलोवकुलं वा जोएइ । कुलं जोएमाणे उत्तर भद्दवया णवखत्ते जोए इ, उवकुलं जोएमाणे पुव्वभद्दवया णक्खत्ते जोएइ, कुलोवकुलं जोएमाणे सय भिसया णदखत्ते जोएइ। पोट्टवइपणं पुण्णिमं कुलं वा जोएइ जाव कुलोवकुलं वा जोएइ। कुलेण वा जुत्ता जाव कुलोवकुलेण वा जुत्ता पोट्ठवई पुण्णमासी जुत्तति वत्तव्वं सिया ॥ १४३. अस्सोइण्णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ, णो लब्भइ कुलोवकुलं । कुलं जोएमाणे अस्सिणी णवखत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे रेवई णक्खत्ते जोएइ । अस्सोइण्णं पुण्णिमं कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ । कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता अस्सोई पूण्णिमा जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया ।। १४४. कत्तिइण्णं भंते ! परिणयं कि कलं पच्छा। गोयमा! कलं वा जोएड. उवकलं वा जोएइ, णो कुलोवकुलं जोएइ। कुलं जोएमाणे कत्तिया णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे भरणी णक्खत्ते जोएइ। कत्तिइण्णं' 'पुणिम कुलं वा जोए इ, उवकुलं वा जोएइ। कुलेणं वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता कत्तिई पुणिमा जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया ।। १४५. मग्गसिरिण्णं भंते ! पुण्णिमं किं कुलं तं चेव दो जोएइ, णो भवइ कुलोवकुलं । कुलं जोएमाणे मग्गसिर णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे रोहिणी णक्खत्ते जोएइ । मग्गसिरिणं पुण्णिमं जाव वत्तव्वं सिया ॥ १४६. एवं सेसियाओवि जाव आसाढिं पोसि जेट्टामूलिं च कुलं वा उवकुलं वा कुलोवकुलं वा । सेसियाणं कुलं वा उवकुलं वा, कुलोवकुलं ण भण्णइ ॥ १४७. साविट्टिण्णं भंते ! अमावसं कइ णक्खत्ता जोएंति ? गोयमा ! दो णवखत्ता जोएंति, तं जहा-अस्सेसा य महा य ॥ १४८. पोटुवइण्णं भंते ! अमावसं' कइ णवखत्ता जोएंति ? गोयमा ! दो णवखत्ता जोएंति, तं जहा-पुन्वाफरगुणी, उत्तराफग्गुणी' य ॥ १४६. अस्सोइण्णं भंते ! दो- हत्थे चित्ता य । कत्तिइण्णं दो साई विसाहा य । मग्गसिरिण्णं तिण्णि-- अणुराहा जेट्टा मूलो य । पोसिण्णं दो - - पुव्वासाढा उत्तरासाढा । माहिण्णं तिण्णि-अभिई सवणो धणिट्टा । फरगुणिण्णं तिण्णि-सयभिसया पुबाभद्दवया उत्तराभवया । चेत्तिण्णं दो-रेबई अस्सिणी य। वइसाहिण्णं दो-भरणी कत्तिया य। जेद्वामूलिण्णं दो-रोहिणी मगसिरं च । आसाढिएणं तिणि - अद्दा पुणव्वसू पुस्सो।। १५०. साविट्टिण्णं भंते ! अमावसं कि कुलं जोएइ ? उवकुलं जोएइ ? कुलोवकुलं जोएइ ? गोयमा! कुलं वा जोएइ, उपकुलं वा जोएइ, णो लब्भइ कुलोवकुलं । कुलं जोए १. सं० पा०-कत्तिइण्णं जाव वत्तध्वं । २. अमावास (अ,क,ख,त्रि,ब) । ३. अवामसं (अ,ब)। ४. उत्तरभद्दवया (अ); उत्तरा फग्गुणी उत्तरा- भद्दवया (ब); वृत्तित्रयेपि परमार्थतः पुनस्त्रीणि नक्षत्राणि मघादीनि इति तात्पर्य स्वीकृतमस्ति, किन्तु उत्तराभवया' इति पाठी नास्ति तयोल्लिखितः । एप वाचनाभेद एव सम्भाव्यते लिपिदोषो वा। ५. अवामस (अ); अमावासं (क,त्रिप); अवामासं (ख); अवमास (ब)। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पू७८ जंबुद्दीपण्णी माणे महा णवखत्ते जोएइ, उबकुलं जोएमाणे अस्सेसा गवखत्ते जोएइ । साविट्टिण्णं अमावसं कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ । कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी अमावसा जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया ॥ १५१. पोवइण्णं भंते ! अमावसं तं चैव दो 'जोएइ, णो लब्भइ कुलोवकुलं" । कुलं जो माणे उत्तराफग्गुणी णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे पुव्वाफग्गुणी णक्खत्ते जोएइ । पोट्ठवइण्णं अमावसं जाव जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया || १५२. मग्गसिरिणं तं चैव कुलं मूले णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जेट्टा णक्खत्ते जोएइ, कुलोवकुलं अणुराहा जाव जुत्तत्ति वत्तव्वं सिया || १५३. एवं माहीए फग्गुणीए आसाढीए कुलं वा उवकुलं वा कुलोवकुलं वा । अवसेसियाणं कुलं वा उवकुलं वा जोएइ || १५४. जया गं भंते! साविट्ठी पुष्णिमा भवइ, तया णं माही अमावसा भवइ ? जया माही पुणिमा भवइ, तथा णं साविट्ठी अमावसा भवइ ? हंता गोयमा ! जया णं साविट्ठी तं चैव वत्तव्वं ॥ १५५. जया णं भंते ! पोटुवई पुण्णिमा भवइ, तथा णं फग्गुणी अमावसा भवइ ? जया णं फग्गुणी पुण्णिमा भवइ, तया णं पोट्ठवई अमावसा भवइ ? हंता गोयमा ! तं चेव । एवं एएवं अभिलावेणं इमाओ पुण्णिमाओ अमावसाओ णेयव्वाओ - अस्सिणी पुण्णिमा चेत्ती अमावसा, कत्तिगी' पुण्णिमा वइसाही अमावसा, मग्गसिरी पुण्णिमा जेट्ठामुली अमावसा पोसी पुणिमा आसाढी अमावसा ॥ १५६. वासाणं भंते! पढमं मासं कइ णक्खत्ता र्णेति ? गोयमा ! चत्तारि णक्खत्ता णेंति, तं जहा - उत्तरासाठा अभिई सवणो धणिट्ठा। उत्तरासादा चउस अहोरत्ते इ । अभिई सत्त अहोरते ई । सवणो अट्ट अहोरते गेई । धणिट्ठा एवं अहोरत्तं णेइ । तंसि च णं मासंसि चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टा । तस्स गं मासस्स 'चरिमे दिवसे" दो पया चत्तारि य अंगुला पोरिसी भवइ || १५७. वासाणं भंते ! दोच्चं मासं कइ णक्खत्ता णेंति ? गोयमा ! चत्तारि, तं जहाधट्ठा भिसा पुन्वाभद्द्वया उत्तराभद्दवया ! धणिट्ठा णं चउद्दस अहोरत्ते इ । सयभिसया सत्त । पुव्वाभद्दवया अट्ठ । उत्तराभद्दवया एगं । तंसि च णं मासंसि अट्ठगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ । तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पया अटू य अंगुला पोरिसी भवइ ॥ १५८. वासाणं भंते ! तइयं मासं कइ णक्खत्ता र्णेति ? गोयमा ! तिष्णि णक्खत्ता णेंति, तं जहा - उत्तराभद्दवया रेवई अस्सिणी । उत्तराभद्दवया चउद्दस राइदिए इ । रेवई पण्णरस । अस्सिणी एगं । तंसि च णं मासंसि दुवाल संगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियदृइ । तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे लेहट्टाई तिष्णि पयाई पोरिसी भवइ ॥ १. णो जोएइ कुलोवकुलं ( प ) 1 २. अवमंसा ( अ, क, ख, त्रि, ब ) । ३. कत्तिकी ( अ ) ; फित्तिकी (ख, ब ) ; कित्तिगी (स) 1 ४. चरिमदिवसे ( म, त्रि, प ) : चरमदिवसे ( ब ) | Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो १५६. वासाणं भंते ! चउत्थं मासं कइ णक्खत्ता णेंति ? गोयमा! तिण्णि, तं जहाअस्सिणी भरणी क तिया । अरिसणी उस । भरणी पप्णरस । कत्तिया' एगं । तंसि च णं मासंसि सोलसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे तिणि पयाइं चत्तारि य अंगुलाई पोरिसी भवइ ।। १६०. हेमंताणं भंते ! पढमं मासं कइ णक्खत्ता णेंति ? गोयमा ! तिण्णि, तं जहा-कत्तिया रोहिणी मिगसिरं'। कत्तिया चउद्दस । रोहिणी पण्णरस । मिगसिरं ए अहोरत्तं जेई । तंसि च णं मासंसि वीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरिवट्टइ । तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि तिण्णि पयाइं अट्ठ य अंगुलाई पोरिसी भवइ॥ १६१. हेमंताणं भंते ! दोच्चं मासं कइ णक्खत्ता ऐति ? गोयमा ! चत्तारि णक्खत्ता ऐति, तं जहा -मिगसिरं अद्दा पुणव्वसू पुस्सो। मिगसिरं चउद्दस राइंदियाई णेइ । अद्दा अट्ट णेइ । पुणब्वसू सत्त राइंदियाइं । पुस्सो एग राइंदियं णेइ। तया णं चउब्बीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ । तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि लेहवाइं चत्तारि पयाई पोरिसी भवइ ।। १६२. हेमंताणं भंते ! तच्चं मासं कइ गक्खत्ता णेति ? गोयमा! तिण्णि, तं जहा–पुस्सो असिलेसा महा । पुस्सो चोद्दस राइंदियाई गेइ। असिलेसा पण्णरस । महा एक्कं । तया णं वीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि तिणि पयाइं अटुंगुलाई पोरिसी भवइ ।। १६३. हेमंताणं भंते ! चउत्थं मासं कइ णक्खत्ता ऐति ? गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता. तं जहा-महा पवाफग्गणी उत्तराफग्गणी । महा चउस राइंदियाई णेइ । पुव्वाफग्गुणी पण्णरस राइंदियाई णेइ। उत्तराफग्गुणी एग राइंदियं णेइ ! तया णं सोलसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ । तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि तिष्णि फ्याइं चत्तारि य अंगुलाई पोरिसी भवइ । १६४. गिम्हाणं भंते ! पढम मासं कइ णक्खत्ता मेंति ? गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता ऐति, तं जहा-उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता। उत्तराफग्गुणी चउद्दस राइंदियाई णेइ । हत्थो पण्णरस राइंदियाई णेइ। चित्ता एगं राइंदियं णेइ। तया णं दुवालसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि लेहट्ठाई तिणि पयाई पोरिसी भवइ ।। १६५. गिम्हाणं भंते ! दोच्चं मासं कइ णखत्ता णेति ? गोयमा ! तिणि णक्खत्ता ऐति, तं जहा-चित्ता साई विसाहा । चित्ता चउद्दस राइंदियाई णेइ। साई पण्णरस राइंदियाई णेइ । विसाहा एगं राइंदियं णेइ। तया णं अठंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाई अलैंगुलाई पोरिसी भवइ ॥ १. मासिणी (ब)1 २. कित्तिया (कख,स। ३. मगसिरं (ब)। ४. तता (अ,ब); तदा (क,ख,स)। Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० जंबुद्दीवपण्णत्ती १६६. गिम्हाणं भंते ! तच्चं मासं कइ णखत्ता णेंति ? गोयमा ! चत्तारि णक्खत्ता णेति, तं जहा -विसाहा अणुराहा जेट्टा मूलो। विसाहा च उद्दस राइंदियाई णेइ । अणुराहा अट्ठ राइंदियाई गेइ। जेट्ठा सत्त राइंदियाइं णेइ । मूलो एक्कं राइंदियं णेइ । तया णं चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टः । तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाइं चत्तारि य अंगुलाई पोरिसी भवइ ।। १६७. गिम्हाण भते ! वउत्थं मासं कई णवखत्ता णेति? गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता णेंति, तं जहा- मुलो पूष्वासाढा उत्तरासाढा । मलो चउस राइंदियाई इ । पव्वासाढा पण्णरस राइंदियाई णेइ । उत्तरासाढा एग राइंदियं णेइ । तया णं वट्टाए समच उरंससंठाणसंठिए णग्गोहपरिमंडलाए सकायमणुरंगियाए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ ! तस्स णं मासस्स जेसे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि लेहवाइं दो पयाई पोरिसी भवइ । एएसि णं पृथ्ववणियाणं पयाणं इमा संगहणी, तं जहा - गाहा- जोगो' देवय तारराग, गोत्त संठाण चंदरविजोगो। कुल पुण्णिम अवमंसा, णेया छाया य बोद्धवा ॥१॥ १६८. गाहा--हिट्टि ससिपरिवारों, मंदरवाहा तहेव लोगते । धरणितलाउ अबाहा, अंतो बाहिं च उड्डमहे ।।१।। सठाणच पमाण, वहति सोहगई इड्रिमता य। तारंतररगमहिसी, तुडिय पहु ठिई य अप्पबहू ॥२॥ अत्थि णं भंते ! चंदिमसूरियाणं हिटुिंपि तारारूवा अणुपि तुल्लावि ? समंपि तारारूवा अणुपि तुल्लावि ? उप्पिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? हंता गोयमा ! तं चेव उच्चारेयव्वं ॥ १६६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ- अस्थि णं जहां-जहा णं तेसि देवाणं तवणियम-बंभचेराई ऊसियाई भवंति, तहातहा णं तेसिणं देवाणं एवं पण्णायए, तं जहाअणुत्ते वा तुल्लत्ते वा। जहा-जहा णं तेसिं देवाणं तव-णियम-बंभचेराई णो ऊसियाई भवंति तहा-तहा ण तेसिं देवाणं एवं णो पण्णायए, तं जहा- अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा ।। १७०. एगमेगस्स णं भते! चंदस्स केवइया महम्गहा परिवारो, केवइया णक्खत्ता परिवारो, केवइया तारागणकोडाकोडीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! अट्ठासीइमहग्गहा परिवारो, अट्ठवीसं णवखत्ता परिवारो, छावट्टिसहस्साई णव सया पण्णत्तरा तारागणकोडाकोडोणं पण्णत्ता ।। १७१. मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए जोइसं चारं चरइ ? गोयमा! एक्कारसहिं एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं अवाहाए जोइसं चारं चरइ ।। १. जोगो देवय तारम्ग इत्यादि प्रागव्याव्यात. ४. समेवि (अ,क,ख,त्रि,प,व); जीवाजीवाभिगमे स्वरूपाः अस्या निगमनार्थ पुनरुपन्यासस्तेन न (३।१०००) सूर्यप्रज्ञप्ता (१८९२) वपि च पुनरुक्तिर्भावनीया (शा) । ___ 'समंपि' इति पाठो लभ्यते। २. परियारो (म,क,ख,ब)। ५. जह (अ,ब) अगेपि । . ३. सिग्घगई (ख,स)। ६. तह (अ,ब) अग्रेपि । . Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो १८३ १७२. लोगंताओं णं भंते ! केवइयाए अबाहाए जोइसे पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कारस एक्कारसेहिं जोयणसएहिं अवाहाए जोइसे पण्णत्ते || १७३. धरणितलाओ णं भंते ! [ केवतियं अवाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति ? वतियं अवाहाए सुरविमाणे चारं चरति ? केवतियं अवाहाए चंदविमाणे चारं चरति ? केवतियं अवाहाए उवरिल्ले तारास्वे चारं चरति ? गोयमा ! ]' सत्तहि णउएहिं जोयणसएहिं जोइसे चारं चरइ । एवं सूरविमाणे अहिं सहि, चंदविमाणे अट्ठहि असीएहि, उवरिल्ले तारारूवे नवहिं जोयणसएहि चारं चरइ || १७४. जोइसस्स णं भंते ! हेट्ठिल्लाओ तलाओ केवइयं अवाहाए सूरविमाणे चारं चरइ ? गोयमा ! दसह जोयणेहि अबाहाए चारं चरइ । एवं चंदविमाणे उईए जोयहि चारं चरs, उवरिल्ले तारारूवे दसुत्तरे जोयणसए चारं चरइ, सूरविमाणाओ चंदविमाणे असीईए जोयणेहिं चारं चरइ, सुरविमाणाओ जोयणसए उवरिल्ले तारारूवे चारं चर, चंदविमाणाओ वीसाए' जोयणेहि उवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ || १७५. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खते सव्वभंतरिल्लं' चारं चरइ ? कयरे णक्खते सन्ववाहिरं चारं चरइ ? कयरे णक्खते सव्वहिट्ठिल्लं चारं चरइ ? कयरे णक्खत्ते सव्वउवरिल्लं चारं चरइ ? गोयमा ! अभिई णक्खत्ते सव्वभंतरं चारं चरइ, मूलो सव्वबाहिर चारं चरइ, भरणी सव्वहिद्विल्लगं चारं चरइ, साई सब्बुवरिल्लं' चारं चरइ || १७६. चंदविमाणे णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! अद्धकविद्वसं ठाणसंठिए सव्वालियामए अवभुग्गयमूसिपपहसिए एवं सव्वाई यव्वाई ॥ १७७. चंदविमाणे णं भंते ! केवइयं आयाम - विक्खंभेणं ? केवइयं बाहल्लेणं" ? गोयमा ! गाहा छप्पण्णं खलु भाए, विच्छिण्णं चंदमंडल होइ । अट्ठावीस भाए, बाल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥ १॥ अयालीसं भाए, विच्छिण्णं सूरमंडलं होइ । चवीसं खलु भाए, बाल्लं तस्स वोद्धव्वं ॥२॥ १. धरणियलाओ (अप,त्र) । २. आदर्शषु कोष्ठक्रवर्ती पाठो नोपलभ्यते । शांतिचन्द्रीयवृत्ती धरणितलाओ णं भंते ! उड़द उपत्ता केवइयाए अवाहाए हेट्ठिल्ले जोइसे चारं चरs' एष प्रश्नांश: समुल्लिखि तोस्ति, शेपप्रश्ना नव निर्दिष्टाः सन्ति : अस्माभिरनौ पाठ: जीवाजीवाभिगम (३१००३) सूत्राङ्गितास्ति । ३. वीसं ( अ, ब ) । ४. सव्वभंतरिल्ले ( अ, ब ) । ५. सम्वबाहिरओ (अ),ख, प, ब); सध्वबाहिल्लो (क) । ६. परिल्लं ( क, ख, ब, स ) । ७. कविद्रुग° (अ, क, ख, ब, स ) ८. जी० ३।१००८, १००६ । ६. उपलक्षणान् सुर्यादिविमानं च ( पुवृ ) । १०. ४ ( अ, क, ख, त्रि, बस ); उपलक्षणात् कियद्बाहल्येन प्रज्ञप्तं (पुर्व) | Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८२ जंबुद्दीवपण्णत्ती दो कोसे य गहाणं, णक्खत्ताणं तु हवइ तस्सद्धं । तस्सद्धं ताराणं, तस्सद्धं चेव बाहल्लं ॥३॥ १७८. चंदविमाण' भंते ! कई देवसाहस्सीओ परिवहति ? गोयमा ! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति--चंदविमाणस्स गं पुरथिमेणं सेयाणं सुभगाणं' सुप्पभाणं' संखतल-विमलणिम्मलदहिघण-गोखीर-फेण-रययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउट्ठ-वट्टपीवरसुसिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबियमुहाणं रत्तुप्पलपत्तम उयसूमालतालुजीहाणं महुगुलियपिंगलक्खाणं पीवरवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसयसुहमलक्खणपसत्थवरवण्णकेसरसडोवसोहियाणं ऊसिय-सुणमिय-सुजाय-अप्फोडिय-णंगूलाणं वइरामयणक्खाणं वइरामयदाढाणं वइरामयदंताणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसजोइयाण कामगमाण पीइगमाण मणोगमाणं मणोरमाण अमिथगईण अमियबलवीरियपुरिसक्कारपरक्कमाणं महया अप्फोडियसीहणायबोलकलकलरवेणं" महरेणं मणहरेणं पूरता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ सीहरूवधारीणं पुरथिमिल्लं बाहं परिवहति ॥ चंदविमाणस्स णं दाहिणेणं सेयाणं सुभगाणं" सुप्पभाणं संखतल-विमलणिम्मलदहियणगोखीर-फेण-रययणिगरप्पगासाणं वइरामयकुंभजुयल-सुट्टियपीवरवरवइरसोंडवट्टियदित्तसुरत्तपउमपगासाणं अब्भुण्णय मुहाणं तवणिज्जविसालकण्णचंचलचलंतविमलुज्जलाणं महुवण्णभिसंतणिद्धपत्तलनिम्मल तिवण्णमणिरयणलोयणाणं अब्भुग्गय मउलमल्लियाधवलसरिससंठिय-णिवण्ण-दढ-कसिणफालियामय-सुजाय-दंतमुसलोवसोभियाणं कंचणकोसीपविटदंतग्ग-विमलमणिरयणरुइलपेरंतचित्तरूवगविराइयाणं१९ तवणिज्जविसालतिलगप्पमुहपरिमंडियाणं नाणामणिरयणमुद्ध-गेवेज्जबद्धगलयवरभूसणाणं वेरुलियविचित्तदंड१. 'चंदविमाणे णमित्यादि' चन्द्रविमानं लिंग- १३. गतीणं अमियबलाणं (अ.क,ख,ब,स,पूर्व) । विभक्त्योश्चात्र व्यत्ययः प्राकृतत्वात् (हीव)। १४. 'बोलकलरवेणं (अ,त्रि,ब) । २. सुभाणं (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुवृ.हीवृ)। १५. सुभाण (अ,ख); सुभाणं (क); सुहाग ३. सपभाणं (ख त्रि.पुव ही)। (त्रि); सुहाण (ब,स)। ४. रयणिगर° (अ,ब) अग्रेपि । क्वचित् संखत- १६. "कुभिजुअय (अ,ब)। लेत्यादि यावत् रजनिकरप्रकाशानाम् (पुत्र)। १७. सुहितपीवर' (ब)। ५. °पयओट्ट (अ,ब)। १८. निम्मललसत्तमणिरयणनिम्मलाणं (अ); ६. 'अ,ब' प्रत्योः 'विसय' स्थाने 'विसद' इति पदं निम्मलभिसत्तमणि (ख) निम्मलभिसत्तविद्यते 'पसत्य' इति पदं च नास्ति । मणिरयणनिम्मलाणं (ब); निम्मलमणि ७. सुणिमित्त (अ,ब); सुणिम्मित (ख,त्रि,स)। ८. लांगूलाणं (प)। १६. °मणिरयणभरियपेरंत (अ,ब); "मणिरयण६. x (ब)। भरियफेरंत (ख)। १०. x (अ,क,ख.त्रि,ब,स,पुत)। २०. °सुद्ध (अ,ब,पुबाहीवृ); पाठान्तरे वा मुग्धं ११. पीयगमाणं णभोगमाणं (ख)। (पूर्व); क्वचित् 'मुद्ध' त्ति पाठः स चाशुद्ध: १२. ४ (पु)। सम्भाव्यते (हीव)। Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वखारो ५८३ हिम्मलवइरामयतिक्खल?अंकुसकुंभजुयलयंतरोडियाणं तवणिज्जसुबद्धकच्छदप्पियबलुद्धराणं विमलधणमंडलवइरामयलालाललियतालण-णाणामणिरयणघंटपासगरययामयबद्धरज्जुलंबियघंटाजुयलमहुरसरमणहराणं अल्लीणपमाणजुत्तवट्टियसुजायलक्खणपसत्थरमणिज्जबालगत्तपरिपुंछणाणं उवचियपडिपुण्णकुम्मचलणलहुविक्कमाणं' अंकमयणक्खाणं 'तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालूयाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं अमियगईणं अमियबलवीरियपुरिसक्कारपरक्कमाणं महया गंभीरगुलुगुलाइयरवेणं महुरेणं मणहरेणं पूरेता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ गयरूवधारीणं देवाणं दक्खिणिल्लं बाहं परिवहति । चंदविमाणस्स ण पच्चत्थिमेणं सेयाणं सुभगाणं' सुप्पभाणं चलचवलककुहसालोणं घणणिचियसुबद्धलक्खणुण्णयईसिआणयवसभोढाणं चंकमियललियपुलियचलचवलगवियगईणं सण्णयपासाणं संगयपासाणं सुजायपासाणं पीवरवट्टियसुसंठियकडीणं ओलंबपलंबलक्खणपमाणजुत्तरमणिज्जवालगंडाणं 'समखुरवालिधाणाणं समलिहियसिंगतिक्खग्गसंगयाणं'१० तणुसहुमसुजायणिद्धलोमच्छविधराणं उवचियमंसल विसालपडिपुण्णखंधपएससुंदराणं वेरुलियभिसंतकडक्खसुणिरिक्खणाणं" जुत्तपमाणपहाणलक्खणपसत्थरमणिज्जगग्गरगलसोभियाण घरघरगसुसद्दबद्धकंठपरिमंडियाणं णाणामणिकणगरयणघंटियावेगच्छिगसुकयमालियाण" वरघंटागलयमालुज्जलसिरिधराणं पउमुप्पलसगलसुरभिमालाविभूसियाणं 'वइरखुराणं विविहविक्खुराणं"५ फालियामयदंताणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं अमियगईणं अमियबलवीरियपूरिसक्कारपरक्कमाणं महया गज्जियगंभीररवेणं महरेणं मणहरेणं पूरेता १. कुंभयुगलस्यान्तरे उत्थितं ऊर्वतया स्थितं समलिहितसिंगतिक्खग्गसंगगयाण (पुवृपा); येषां (पुव) । समधुरवालिहीणं (हीवृपा)। २. व इरामततलल लियतालेण (अ,ब) °वइराम- ११. भिसंतकरखदक्खसुतिरखनिरिक्खणाणं (अत्रि, यलालललियतालेण (क,ख,त्रि); °वइराम- वपुष); भिसंतकवखडसुनिरिक्खणाणं (क, तलाल° (स)। हीव) भिसंतकक्खदक्खसुनिरिक्खणाणं ३. उप्पतिय (अ,त्रि,ब,हीवृ); उपचिता (ख,स); भिसंतकडक्खसुनिरिक्खणाणं (हीवृपा)। (पुवृपा)। ४. अंकामय° (अ,क,ख,त्रि,ब,स)। १२. रमणिज्जलंबभंगगंधाउडगलगसोभियाणं (अ, ५. तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजीहाणं (ख,त्रि, ख, त्रि,ब,स,पुत्र) । स,पुवृ,ही)। १३. °कण्णपरिमंडियाणं (अ,ख,त्रि,ब,म); घुग्ध६. सुभाण (अ,क,ख,त्रि,ब,स) । रगसुसद्दबद्धकण्णपरिमंडियाणं (पु); ७. सप्पभाणं (अ,ख,त्रि,ब,स) । पाठान्तरे वा ईदृग् य कण्ठः (पुवृ) । ८. वरवलय° (अ,ब)। १४. 'वेगच्छग° (अ,क,ख,त्रि,ब,स,पुत् होवृ)। है. इसि' (अ,क,ख,त्रि,ब) 1 १५. वेरक्खुरविविहपिक्खुराणं (अ,क,ब); वेर१०. समधुरवालियहाणसमलियसंगमाणं (अ,ब); विविहपिक्खु राणं (ख); वेरखुरविविहक्खुराणं समखुरवालिहीणं° (त्रि); समखुरवालिहाण Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ जंबुद्दीवपण्णत्ती अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ वसहरूवधारीणं' देवाणं पच्चथिमिल्लं बाहं परिवहति । चंदविमाणस्स णं उत्तरेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं तरमल्लिहायणाणं' हरिमेलामउलमल्लियच्छाणं चंचुच्चियललियपुलियचलचवलचंचल गईणं लंघणवग्गणधावणधोरणतिवइजइणसिक्खियगईणं ललंत-'लाम-गललाय"-बरभूसणाणं सुण्णयपासाणं संगयपासाणं सुजायपासाणं पीवरवट्रियसूसंठियकडीणं ओलंवपलबलक्खणपमाण जुत्तरमणिज्जवालपच्छाणं तणसुहमसुजायणिद्धलोमच्छविहराणं मिउविसयसुहमलक्खणपसत्थविकिण्णकेसरवालिहराण' ललंतथासगल लाडवरभूसणाणं मुहमंडग-ओचूलग-चामर-थासग-परिमंडियकडीणं तवणिज्जखुराणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं •पोइगमाणं मणोगमाणं" मणोरमाणं अमियगईणं अमियबलवीरियपुरिसक्कारपरक्कमा महया यहेसियकिलकिलाइयरवेणं मणहरेणं पूरता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ हयरूवधारीणं देवाणं उत्तरिल्लं बाहं परिवहति । गाहा --- सोलसदेवसहस्सा, हवंति चंदेसु चेव सूरेसु । अद्वैव सहस्साई, एक्केककभी गहविमाणे ॥१॥ चत्तारि सहस्साई, णक्खत्तमि य हवंति इक्किक्के । दो चेव सहस्साई, तारारूवेक्कमेक्कमि ॥२॥ १७६. एवं सूरविमाणाणं जाव तारारूवत्रिमाणाणं, णवरं -एस देवसंघाए। १८०. एएसि णं भंते ! चंदिम-सूरियगहगण-णक्खत्त-तारारूवाणं कयरे सव्वसिग्घगई ? कयरे सवसिग्घगईतराए चेव ? गोयमा! चंदेहितो सूरा सव्वसिग्घगई, सुरेहितो गहा सिग्घगई, गहेहिंतो णक्खत्ता सिग्घगई, णक्खत्तेहितो तारारूवा सिग्घगई, सव्वप्पगई, चंदा, सबसिग्घगई तारारूवा।। १८१. एएसि णं भंते ! चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवाणं कयरे सव्वमहिड्डिया? कयरे सव्वप्पिड्डिया' ? गोयमा ! तारारूवेहितो णक्खत्ता महिड्डिया, णक्खत्तेहितो गहा महिड्डिया, गहेहितो सूरिया महिड्डिया, सूरेहितो चंदा महिड्डिया, सव्वप्पिड्डिया तारारूवा, सव्वमहिड्डिया चदा।। १८२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे ताराए य ताराए य केवइए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—'वाघाइए य निव्वाघाइए" य । निव्वा १. उसभ° (त्रि)। ८. सं० पा०-कामगमाणं जाव मणोरमाण। २. वर° (अ,क,त्रि,ब,साही)। ९. वहति (अ,खत्रि,ब,हीव)। ३. लासगललाम (म',क,ख,त्रि,ब,पुतहीवृ); °ललाम १०. इक्किक्कस्स (त्रि)। ११. सव्वप्पड्ढिया (त्रि)। ४. विच्छिण्णकेसरवालिहराणं (प,शाव) । १२. तारारूवस्स (क)। ५. ललंतलामग° (अ,क,ग्व,त्रि,ब,स,पु,हीबू)। १३. वाघाइमे निव्वापाइमे (यु)वाघाइए ६. मुह डग (पुवृ)। निव्वाधाइए (पुवृपा)। ७. जेऊर (अ,त्रि,ब); उवला (ख)। Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो ५८५ घाइए जहणणेणं पंचधणुसयाई, उक्कोसेणं दो गाउयाई । वाघाइए जहण्णेणं दोणि छावळे जोयणसए, उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साइं दोण्णि य बायाले जोयणसए तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। १८३. चंदस्स णं भंते ! जोइसिदस्स जोइसरपणो कइ अगमहिसीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--- चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा । तओ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि-चत्तारि देवीसहस्साई परिवारो पण्णत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अण्णं देवीसहस्सं परिवारो विउवित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवी सहस्सा । सेत्तं तुडिए। १८४. पभू णं भंते ! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धि महयाह्यणट्ट-गीय-वाझ्य'-*तंती-तल-ताल-तुडिय-धणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए? गोयमा ! णो 'इणठे समझें" ।। १८५. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ णो पभू जाव विहरित्तए ? गोयमा ! चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेइयखंभे वइरामएसु गोलबट्टसमुग्गए वहुईओ जिण-स कहाओ सण्णिक्खित्ताओ चिट्ठति, ताओ णं चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो अण्णेसि च बहूणं जोइसियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव' पज्जुवासणिज्जाओ। से तेणठेणं गोयमा ! णो पभ । पभणं चंदे सभाए सुहम्माए चहि सामाणियसाहस्सीहिं एवं जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरित्तए केवलं परियारिड्डीए, णो चेव णं मेहुणवत्तियं ।। १८६. विजया वेजयंती जयंती अपराजिया- सव्वेसि गहाईणं एयाओ अग्गमहिसीओ वत्तव्याओ इमाहि गाहाहि---- १. अच्चिमाला (क,ख,त्रि) । २. सं० पा०-वाइय जाव दिव्वाई। ३. तिणत्थे समत्थे (ब)। ४. जं० ७।१८४ ५. जी. ३१४०२ । ६. द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३।१०२५ सुत्रम्। ७. मेहुणपत्तियं (अ,क,ख,त्रि,ब)। शान्तिचन्द्रीय वृत्तौ सूर्यस्य अग्रमहिषीविषये जीवाजीवाभिगमस्य पाठ उद्धृतोस्ति– अथ प्रस्तुतोपाङ्गादर्शष्वदृष्टमपि जीवाभिगमाद्युपाङ्गादर्शदृष्टसूर्याप्रमहिषीवक्तव्यमुपदा ते सूरस्स जोइसरणो कइ अग्गमहिसीओ पण्णताओ गो चत्तारि अगमहिसीओ पण्णत्ताओ तं सूरप्पभा आयवाभा अच्चिमाली पभंकरा। एवं अवसेसं जहाँ चंदस्स । णवरं सुरवडेंसए विमाणे सूरंसि सोहासणंसोति व्यक्तम् । हीर. विजयवृत्तौ अस्योल्लेखोपि नास्ति। पुण्यसागरीयवृत्तौ एष पाठः मूले व्याख्यातोस्ति । द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३१०२६ सूत्रम् । ८. गहाणं (अ,क,ख,ब,स)। ६. अगमहिसीओ छावत्तरस्स वि गहसयस्स एयाओ अग्गमहिसीओ (अ,क,ख,प,ब,स,पुद, शावृ); हीरविजयवृत्ती अस्मिन् विषये एका टिप्पणी चापि विद्यते-यद्यप्यत्र बहुष्वादशेषु अन्यथापि पाठो दृश्यते । परं व्याख्यातपाठस्यैवोपादेयत्वं द्रष्टव्यं जीर्णादर्शषु तथैव दृष्टत्वाज्जीवाभिगमसङ्गतत्वाच्च । Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ક્ इंगालए वियालए लोहितक्खे' सणिच्छरे चेव । आणि पाणिए, कणगसणामा य पंचेव || १॥ सोमे सहिए सासणे य कज्जोवए य कव्वड | अकरए' दुंदुभए, संखसणामेव तिष्णेव ||२॥ एवं भाणियव्वं जाव' भावकेउस्स अग्गमहिमीओ | गाहा म्हा" विग्रह य वसू, वरुणे अय विद्धी' पूस आस जमे । अग्ग पावड सोमे, रुद्दे अदिई वहस्सई सप्पे ॥ १॥ पिउ भग अज्जम सविया, तट्ठा बाऊ तहेव इंदग्गी | मित्ते इंदे गिरई, आऊ विस्सा य बोद्धव्वे ॥२॥ १८७. चंदविमाणे णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वासस्यसहस्समम्भहियं ॥ १८८. चंदविमाणे णं देवीणं जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वास सहस्से हिमन्महियं ॥ उभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओ मं १८६. सूरविमाणे देवाणं जहणणेणं वाससहस्समम्भहियं ॥ १६०. सूरविमाणे देवीणं जहण्णेणं चउव्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहि वाससएहिं अब्भहियं ॥ १६१. गहविमाणे देवाणं जणेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं ॥ १९२. गहविमाणे देवीगं जहोणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ॥ १६३. णक्खत्तविमाणे देवाणं जहणणेणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलि ओवमं ॥ १४. क्खत्तविमाणे देवीणं जहणणेणं च भागप लिओ मं', उक्कोसेणं साहिय" चभागपलिओवमं ॥ १६५. ताराविमाणे देवाणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउभाग १. नक्षत्रसम्बन्धिगाथाद्वयं 'अ, क, ख, त्रि, बस, पुव, हीव' - एतेषु आदर्शेषु ग्रहसम्बन्धिगाथाभ्यां पूर्व विद्यते । स्थानाङ्गे २. लोहियंके ( अ, क,ख, पब, शावृ); (२१३२५) 'लोहितक्खा' इति पाठो विद्यते । ३. आसासेणे ( अ, ब ) आससणे ( क, ख ) ; असासणे (त्रि) | ४. कव्रती (अव) कन्वरए (त्रि ) कब्बुरए ( प, स, पुवृ, शात्र, ही वृ); स्थानाङ्गे (२२३२५) 'कब्बडगा' इति पाठो विद्यते । ५. आतरए ( अ, ख, ब ) जंबुद्दीपण्णत्ती ६. ठाणं २।३२५ । ७. वम्हे (अत्रि, ब ) ; पम्हे (कख) 1 पुण्यसाग यवृत्ती एतद् गाथाद्वयं नास्ति व्याख्यातम् । 'स' प्रतावपि नैतद् उपलभ्यते ! ८. वुड्ढी ( प ) 1 ६. अनुभाग " (क,ख, त्रि, होवृ ) : एतदशुद्ध प्रतिभाति । बहुष्वादशेषु प्रज्ञापनायां ( ४११६८ ) जीवाजीवाभिगमे (३११०३४) पि च तथादर्शनात् : १०. x ( क, ख, त्रि, ही वृ ) । Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वक्खारो पलिओवमं ॥ १६६. ताराविमाणे देवीणं जहणेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं साइरेगं अट्ठभागपलिओवमं ॥ १६७. एएसि णं भंते ! चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त- तारारूवाणं कयरे- कयरेहितो अप्पा वा ? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा ? गोयमा ! चंदिम-सूरिया दुवे ' तुल्ला सव्वत्थोवा, णक्खत्ता संखेज्जगुणा, गहा संखेज्जगुणा, तारारूवा संखेज्जगुणा ॥ १६८. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जहण्णपए वा उक्कोसपए वा केवइया तित्थयरा सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णपए चत्तारि, उक्कोसपए चोत्तीसं तित्थयरा सव्वम्गेणं पण्णत्ता ॥ १६६. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जहण्णपए वा उक्कोसपए वा केवइया चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णपए चत्तारि, उक्कोसपए तीसं चक्कवट्टी सव्वगेणं ५८७ पण्णत्ता || २००. बलदेवा तत्तिया चेव जत्तिया चक्कवट्टी, वासुदेवावि तत्तिया चेव ॥ २०१. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया णिहिरयणा सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! तिष्णि छलुत्तरा णिहिरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता ॥ २०२. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया णिहिरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमा - गच्छति ? गोयमा ! जहण्णपए छत्तीसं, उक्कोसपए दोण्णि सत्तरा णिहिरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति ॥ २०३. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया पंचिदियरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! दो दसुत्तरा पंचिदियरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता ॥ २०४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जहण्णपए वा उक्कोसपए वा केवइया पंचिदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्यमागच्छति ? गोयमा ! जहण्णपए अट्ठावीसं, उक्कोसपए दोण्णि दसुत्तरा पंचिदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति ॥ २०५. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया एगिंदियरयणसया सव्वमोणं पण्णत्ता ? गोमा ! दो दसुत्तरा एगिदियरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता ॥ २०६. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया एगिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हब्वमागच्छति ? गोयमा ! जहण्णपए अट्ठावीसं, उक्कोसेणं दोण्णि दसुत्तरा एगिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति ॥ २०७. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं आयाम - विक्खभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं उव्वेहेणं, केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं, केवइयं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयाम विक्खभेणं, तिष्णि जोयणसयसहस्साई सोलस य सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिष्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अर्द्धगुलं च चिविसेसाहियं परिक्वेवेणं, एवं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, णवणउई जोयणसहस्साई साइरेगाई' उड्ढं उच्चत्तेणं, साइरेगं जोयणसयसहस्सं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥ १. दोवि ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) 1 २. X ( अ, क, ख, त्रि, ब, स ) 1 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ जंबुद्दीवपण्णत्ती २०८. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे किं सासए ? असासए ? गोयमा ! सिय सासए, सिय असासए ॥ २०६. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ--सिय सासए ? सिय असासए? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासए, वण्णपज्जवेहिं गंध-रस-फास-पज्जवेहिं असासए । से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ. सिय सासए, सिय असासए॥ २१०. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! ण कयावि णासि ण कथावि पत्थि ण कयावि ण भविस्सइ, भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुवे णिइए सासए अक्खए अव्वाए अवट्रिए णिच्चे जबुहोवे दीवे पण्णत्तं ।। ___ २११. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे किं पुढविपरिणामे ? आउपरिणामे ? जीवपरिणामे ? पोग्गलपरिणामे ? गोयमा } पुढविपरिणामेवि आउपरिणामेवि जीवपरिणामेवि पोग्गलपरिणामेवि ।। २१२. जंबुद्दीवे गं भंते ! दीवे सव्वपाणा 'सव्वभूया सव्वजीवा" सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए आउकाइयत्ताए तेउकाइयत्ताए वाउकाइयत्ताए वणस्सइकाइयत्ताए उववण्णपुव्वा ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो॥ २१३. से केपट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ -जंबुद्दीवे दीवे जंबुद्दीवे दीवे ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे' तहि-तहिं बहवे जंबुरुक्खा जंबूवणा जंबुवणसंडा णिच्चं कुसुमिया जाव पडिमंजरिवडेंसगधरा' सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति । जंबुए सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे महिड्डिए जाव' पलिओवमट्टिईए परिवसइ । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जंबुद्दीवे दीवे जंबुद्दीवे दीवे ॥ २१४. 'तए णं समणे भगवं महावीरे मिहिलाए गयरीए माणिभद्दे चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं मज्झगए एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ जंबुदीवपण्णत्ती णाम अज्जो ! अज्झयणे" अझैं च हेउं च ‘पसिणं च कारणं च वागरणं च १ भुज्जो-भुज्जो उवदंसेइत्ति बेमि ॥ ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर-१,६७,६९८ अनुष्टुप् श्लोक ५,२४० अक्षर १८ १. आउय (अ,त्रि,ब) अग्रेपि । २. सव्वजीवा सन्दभूया (अ,क,बस,शावृ) । ३. देसे-देसे (क,ख,स)। ४. ओ० सू० ५। ५. पिडि° (अ); पोंडि° (ब); पुंडि° (म)। ६. जं० ११२४ । ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं (पुर्व); तए णं (पुवृपा)। ८. माघवदे (अ,ब)। ६. चितिए (अ,ब)। १०. अज्झयणं (पुत्र); अज्झयणे (पुत्पा) । ११. करणं च (अ,ब) । Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संक्षिप्त-पाठ अणागारेहिं जाव पासति अतिरिया चैव जाव अमणामतरिया अणितरिया जाव अमणामतरिया अबाहा जाव णिसेगो आगारेहि जाव जं परिशिष्ट - १ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त स्थल और पूर्ति आधार-स्थल आभिणिबोहियणाण एवं जहेव कण्हले साणं तहेव भाणियध्वं जाव चउहि इट्टतरिया चैव जाव मणामतरिया उट्टे जाव एलए उदएण जाव अट्ठविहे उववेया जाव फासेणं तो जाव अमणामतरिया एवं जहा इंदियउद्देसए पढमे भणियं तहा भाणियव्वं जाव से तेणट्ठेणं एवं जहा नेरइयाणं एवं मणूसाण वि कंता जाव मणामा कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुतोवउत्ता कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुतोवउत्ते कालं जाव खेत्तओ खेत्तं जाव पासति जाव इत्तरिय गोयमा जाव णण्णत्थ गोमा जाव रोएज्जा जहा पंचेंदियतिरिक्खजोगिएसु जाव जेणं पूर्त-स्थल ३०१२७, २८ १७/१३० १७।१२५ २३१६८, ७४ ३०/२६ १७/११३ १७११२६,१२७,१३४ ११११७, १९, २० २३।२१,२२ १७/१३४ १७/१३१,१३२ ३४।१२ २८३३६ ३४१६ २८/१०५ २३।२०० २३।२०१ १८११७ १७ १०७ ११ १६, २० २०१३४ २०१८ पूर्ति आधार- स्थल ३०१२८ १७।१२३ १७।१२३ २३।६० ३०/२५ १७।११२ १७।१३८ ११।१६ २३ १३ १७।१३३ १७।१२३ १५/४६ २८२२ ३४८ २५/२४ २३१६६ २३ १६६ १८/२६ १७ १०६ ११।११ २०१७ २०१७ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८॥३३ १५.४७ १२५१ १७।१०६ १७।१०६ १७११५१ १५१५२ ३४११५ ३४|१८ २३॥१३ २३.१५ ३०१२६ १७११३२ १७।१०८ अहा भासुद्देसए जाव पियमा २८११२.१६ जहेव नेरइया तहेव २८.३५ जाणंति जाव अत्येगइया ११४६ जावतियं तं चेव ११५१ रइए जाव पासति १७११०७ रइए तं चेव जाव इत्तरिय १७११०७ तं चेव १७१५४ तं चेव जाव चिट्ठति १२५२ तं चेव जाव णो ३४३१६ तं चेव जाव मणपरियारणा ३४११८ तहेव पुच्छा २३.१६ तहेव पुच्छा उत्तरं च, णवरं-अमणुण्णा सद्दा जाव कायदुहता २३३१६ तेणठेणं जाव णो ३०१२६ पसत्येणं जाव फासेणं जाव एत्तो १७.१३३ पासइ जाव विसुद्धतरागं १७४११० पुच्छा १५.१७,१८,२०-२३,२६-३६,३६, ४२-४४,४६,४६-५१,५७,६२,६३, ६५,६६,६८,७०-७५,७७,७८,८०, १२,८४,८५,८७-६०,६३,९४,९७, ६८,१००-१११,११३,११४,११६, ११७,११६,१२०,१२२,१२३,१२५१२७ २११४० २३।१६,२१,२३ पुच्छा २३२२८,३०,४० पुच्छा २४१११ २८.४१,४३,४८ पुच्छा । गोयमा ! एवं चेव, णवरं---अणिद्रा सद्दा जाव होणस्सरता दोणस्सरता अणिदुस्सरता अकंतस्सरता 5 वेदेते सेसं तं वेब जाव चोद्दसविहे २३३२० पुच्छा । गोयमा! एवं चेव, णवरं—जातिविहीणया जाव इस्सरियविहीणय २३२२२ बस्स जाव कतिविहे २३३१७ पुच्छा पुच्छा १८११ २११३८ २३३१३ २३३२५ २४१४ २८।२४ पुच्छा २३.१६ २३१२१ २३६१३ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९ २३३१४,१५ २०१३ बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम मणुस्सा एवं चेव, णवरं-आभोगणिन्वत्तिए जहष्णेणं अंतोमुहुत्तस्स उक्कोसेणं अट्ठमभत्तस्स आहारट्टे समुपज्जति २८१४६-७१ २८१४-१६,३२,२१, २२,४०,४३-४५ ३६.१० ३६६८० २३३६६ मणसस्स अतीता वि पुरेक्खडा वि जहा रइयस्स पुरेक्खडा माहिड्ढीए जाव महासोक्खे वाससताइं जाव णिसेगो सपज्जवसिए जाव अवड्ठं समझें एत्तो जाव अमणामतरिया सम्मुच्छिमसामण्णपुच्छाकायव्वा सिझति जाव अंतं सीलं वा जाव पडिवज्जित्तए सेसं जहा नेरइयाणं जाव आहच्च ३६९ २०३० २३३६० १९५६ १७११२३ १७६१२४ ४११३४ ३६१६२ २०१३४ २८/३२,३३ ३६६८५ २०१७ २८।२०,२१ जंबुद्दोवपण्णत्ती २०६८ अंचेइ जाव पणाम ३११२ अंचेता जाव करयलपरिग्गहियं ५।५८ अंतलिक्खपडिवण्णे जाव उत्तरपुरस्थिमं ३३१३० अंतलिक्खपडिवण्णे जाव पूरेते ३४३ अंतवाले जाव पडिच्छइ ३६१३३,१३४ अकोहे जाव अलोहे अच्छरगणसंघसंविकिण्णा जाव पडिरूवा अणंते जाव समुप्पन्ने २१८५ अणुपविसइ जाव णमि ३११३७ अणुसज्जिस्संति जाव सणिचारी २।१६३ अणेगखंभसयसण्णि विठे जाव सुहसंकमे ३११०० अणेगखंभसयसण्णिविठेहि जाव सुहसंकमेहि ३१०१ अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे जाव समुद्दरव ३११८० अदंडकोदंडिम जाव सपूरजणजाणवयं ३१२१२ अपत्थियपत्थगा जाव परिवज्जिया ३।१२४ अयमेयारूवे जाव संकप्पे अवक्कमित्ता जाव अब्भवद्दलए विउन्वंति २ जाव तं णिहयरयं १७ अहोरत्तंसि जाव चारं ७.२७ ३१६ ५२२१ ३१४३ ३१३० ३१२६,२७ पज्जो० ७८ पण्ण० २३० पज्जो० ८१ ३।२० २।४६ ३६६ ३६६ ३१२२ ३३१२ ५१२२ ५२२० राय० स० १२ ७१२६ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ ३।४३ राय० सू०४० ३११५,१६ २१४१ ३७ आउहघरमालाओ तहेब जाव उत्तरपुरत्थिमं आपुरेमाणा जाव अतीव आभिसेक्कं जाव पच्चप्पिणंति आयामेणं जाव वासं आसत्तोसत्तविपुलवट्ट जाव करेइ आसयंति जाव भुंजमाणा आसयंति जाव विहरति आसोए जाव आसाढे इट्टत्तराए चेव जाव आसाए इत्तरिया चेब जाव मणामतरिया इटाहि जहा पविसंतस्स भणिया जाव विहराहित्तिकट्ट इट्ठाहिं जाव जयजयसई इड्ढी एवं चेव जाव अभिसमण्णागए इत्थिरयणेणं जाव णाडगसहस्से हिं इमं जाव विणमी इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था इव जाव ससिव्व ईरियासमिए जाव पारिद्रावणियासमिए ईसर जाव पभितयो उक्करं जाव मागह उक्किट्ठाए जाव अट्टाहियं जाव पच्चप्पिणति उक्किट्ठाए जाव उत्तरेणं उक्किट्ठाए जाव एवं उक्किट्ठाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं उक्किट्ठाए जाव देवगईए उक्किट्ठाए जाव वीईवयमाणे उक्किट्ठाए जाव सक्कारेइ सम्माणेइ, २ ता पडिविसज्जेइ जाव भोयणमंडवे, तहेव महामहिमा कयमालस्स पच्चप्पिणंति उक्किट्ठिसीहणाय जाव करेमाणे उत्तरेणं जाव चउणवई उप्पलहत्थ गया जाव अप्पेगइया उल्ला जाब पीइदाणं से, णवरं चुडामणि च दिवं उरत्थगे विज्जग सोणियसुत्तगं कडगाणि य .... तुडियाणि य जाव दाहिणिल्ले अंतवाले जाव अद्राहियं ३२६० ५॥३८ ३०१७३,१७४ २२१४४,१४५ ३.८८ ११३३ ४१२ ७।१०३ २।१८ २०१६ ३१२०६ श५८ ३३१२६ ३३२१४ ३११३८ ३१८८ ३२६,१७ २१६८ १११३ १११३ भ० १८१२१६ जी. ३५६६ जी० ३३२७६ ३१८५ ३११८५; शाव ३६१२६ ३२२०४ ३१२६ ३१२६ ओ० सू० ६३ पज्जो०७८ ओ० सू० ५२ ३११२ ३२८ ३१६४-६७ ३११३३ ३६५६ २।१० २५,४४ ५१४७ ३।२६ ३१२६ जी० ३४४३ ३।२६ ३।२६ ३१७२-७५ ३२९६ ४१८६ ३११० ३।२२ १३२० शाव ३१३७-४२ ३१२३-२६ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६३ उता जाव पौदा से नवरं माल मउड मुत्ताजाल हेमजाल कहगाणि तुडवाणि य आभरणाणि व सरं च णामाहयं पभासतित्थोदगं च गिण्हइ २ ता जाव पच्चत्थिमेणं पभासतित्यमेशए अहरणं देवाणुप्पियाणं विसवासी जाव पच्चत्थिमिल्ले अंतवाले, सेसं तहेब जाव अाहिया निव्वत्ता उाणसाला जाव सीहासणवर गए उदाएर्ण जाव संक्रममाणे उवागच्छिता जाव आगायमाणी ओ उवागच्छित्ता जाव ससिव्व एज्जमाणा जाव निव्वु इकरेणं एवाख्वाए जाव अभिसमा गए एवं ओववाइयगमेणं जाव वस्त एवं पच्चत्थिमिल्लाए जाव पच्चत्थिमिल्लं कट्टु जाव पडिसुणेइ कडगाणि य जाब आभरणाणि कडगाणि य जाव मागह कडगाणि य जाव सो चेन गमो जब पडिविसज्जेड कत्तिइष्णं जाव वत्तब्वं करयल जाव अंजलि करयल जाव एवं करयल जाव कट्टु करयल जाव जएणं करयल जाव मत्थए करयलपरिगहियं जाव अंजलि करयपरिग्महियं जाय मत्थए करेइ अवसिद्धं तं चैव जाव निहिरयणाणं करेत्ता जाव णट्टविहि करेता जाव वेवगिरिकुमा रस्स करेला जाय सिए कामगमाणं जाव मणोरमाणं किण्हचामरज्भया जाव सुविकल केणट्ठेणं जाव सासए कोद्वाण वा जाब पीसिज्जमाणाण कोडीए जाव दोहिवि पुट्ठे ३१४५-५० ३१२१६ ७१८४ ५७ি ३।२२२ ५३८ ३।१२२ ७/७८ ५।५ ३६ राय० सू० ४० ३।२६ ३१७८१७१ ही ओ० सू०६४ , ४।१ E ३।२६ ३।२६ ४४१०६ ३१८४ ३/७२ ३२६ २०५६,५७ ७११४२ ३६,२०४ ५।४६ ३५ ३१५ ३३८८ ३।१५१ ३।११४,१२६ ५५ ३।१६४-१६६ ५।५८ श६१-६३ ३१५२-५४ ७ १७५ ४२६ ४१३४ ४११०७ ४।१७२ ३१२३-२६ ३।१८६ ३/२६,२७ ७ १४१ ३१५ ३१५. ओ० सू० २० ओ० सू० २० ३।५ ३१५ ३५ ३१८-२० शाबु ३।१८-२० ३।१८-२० ७। १७५ जी० ३१२०० ४२२, पुत्र, ही जी० ३१२८३ *1* == Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९४ कोहे वा जाव लोहे २०६६ पज्जो०७४ गच्छंति जाव नियमा ७१४०-४८ भ० ११२५८-२६६, शावृ गयवई जाव दुरुढे ३१२१५ ३१७ मामाइ वा जाव सण्णिवेसाइ २१२१ ठाणं ॥३६० गाहावइकुडप्पमाणं जाव मंगलावत्त ४।१६५ ४११८३; ही गुणेत्ता जाव तं चेत्र ७.३३ ७१३१ घडमुहपवत्तिएणं जाव साइरेग' ४११०,६१ ४॥२३ घाइय जाव दिसोदिसिं ३३११० ३३१०८ चंदिम जाव तारारूवा ७१५८ ७१५५ चंदे जाव संकममाणे ७७५,७८ ७१६६ चक्करयणदेसियमम्गे जाव खंडगप्पवायगुहाओ ३।१६३ ३३९३ चच्चर जाव महापह ३३२१२ ३॥१८५ चरइ जाव केवइयं ७.८० ७७६ चेव जाव गंधे ४११०७ जी० ३२८१ छत्तपडामा जाव संपट्ठिया ३३१७८ ओ० सू० ६४ जा पढममज्झिमेसु वत्तब्धया ओसिप्पिणीए सा भाणियन्वा २०१५८ २१५५ जुगमुसलमुट्टि जाव वासं ३।१२२ ३१११५ जुगमुसलमुट्ठि जाव सत्तरत्त २११४२ २११४१ जोएइ जाव कुलोबकुलं ७.१३६ ७.१३६ जोयणंतरिएहिं जाव जोयणज्जोयकरेहि ३६६ ३१६५ णरवई जाव सव्वे ३१३१ ३।२४ णवजोयणविच्छिण्णं जाव कयमालस्स ३१६६-७१ ३११८-२० णवजोयणविच्छिण्णं जाव खंधावारणिवेसं ३११८० ३११८ णवजोयणविच्छिण्णं जाब विजयखंधावारणिसं ३११६४ ३।१८ णवरं पम्हलसूमालाए जाव मउड ३२११ जी० ३।४४६ णाणामणिपंच जाव कित्तिमेहि २।१२७ २१५७ णिक्खममाणस्सवि जाव अप्पडिव ज्झमाणे ३।२०४ ३३१८६ णिरयगामी जाव अंत ११५१ ११२२ णिरयगामी जाव अप्पेगइया २११४८,४११०१ ११२२ णिरयगामी जाव देवगामी २२१२३ १।२२ णिरयगामी जाव सव्वदुक्खाणमंत २११२८ १२२२ णेया वेढो भरहस्स ३१७७ णो चेव णं तेसि मणुयाणं आबाहं वाबाहं वा जाव पगइभद्दया २१४१ २०३६ तयणतराओ जाव संकममाणे ७१६६ तलवर जाब सत्यवाह ३।१७८,१८८,२१६,२२१ ३।१० तहेव पविसंतो मंडलाई आलिहइ ३।१५८-१६० ३१६४-६६ तहेव सेसं जाव विजयखंधावार' ३११८ ७१८१ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तित्यगरचयगं जाव अणगारचियग तिरथगरचिय जाव दिवेति तित्थगरचियगाए जाव अणगारचिबगाए तित्थगरचियगाए जाव विउब्वंति तिस्वगर सरीरगं जाव अणगारसरीरमाणि तित्थयरस्स जाव फुट्टिही तिकट्टु तिसोवाणपडिरूवएणं जाव पज्जुवासंति तुरंग जाव वलयभत्तिचित्ताओ तुरियाए जब उयाए तुरियाए जाव वीतिवयमाणा तेणेव जाव पञ्चपिणंति तेरसहि जाव घेता तोरणेणं जान पढा दंडणायग जाव दूय दंडणायग जाव सद्धि दिव्वतुडिय जाव आपूते दिव्वा वा जाव पडिलोमा दुरंत तलवणे जाव परिवज्जिए दुरंतपंतलक्खणे जाव हिरिसिरि दुरुहिता जाव सीहासणंसि दुरुहिता तहेब जाव णितीयंति दुस्समदुस्समाकाले जव सुसमसमाकाले देवराया जाय पच्चपिण देवापिया जाव अम्हे देवा य जाव विहरति देविड्ढि जाव उवदसेमाणे देविडिव दिवं देवेण वा जाव अग्गिपओगेण वा जाव उवित्तए नाणेणं जाव चरितेणं परंजित्ता जाव पम्हसूमालाए परवेयाए जब संपरिक्खिता पंडुयए जाव संखे पकरेंति जान जहणे परिहिता जाव अट्ठमभतं पचमाभिमुद्दे जाव समप्ये पच्चत्थिमिल्लाए जाव पुट्ठा ७९५ २।१११ २११२ २१०५-१०७, १०९ २।१०८ २।१०८ ५।७३ ३।२०६ २।१०१ ३११३८ ३।११३ ५/७० ७१८०,८१,८३ ४१७७ ३६ 3100 ३।१७२ २६७ ३।१२२ ३।११४ ५२४१ ५।४२ २३ ५।७१ ३।१३८ १०३६ ५।४४ ५१४४ ३।१२५ २७१ ५।५८ ४२४२ ३११७५ ७५६, ६० ३।१८२ ६।२४ ४|५५ २२६५ २।१११ २/१५ २।१०७ २ १०७ ५।७२ ३१२०५ १८३७ ३।२६ ३।२६ ३।१३ ७७६ ४/३५ शाकृ ३६ ३।१४ पज्जो० ७७ ३।२६ 龍 राय० सू० ४७ ५:४२ २२ ३।१३ ३२६ १:१३ राय० सू० ५६ राय० सू० ५६ ३।११५ पज्जो० ८१ शावृ, जी० ३१४६६ ४।३ ३।१६७ ७५६,५७ ३।२० ६।२४ ४।१ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ ११४८ ३३३३,३४ ३१२०० १०२० ३१२०,२१ पच्चत्थिमिल्लाए जाव पुढे पच्चप्पिणइ सेसं तहेव जाव मज्जणघराओ पच्चप्पिणह जाव पच्चप्पिणंति . पच्चुवसमंति एवं पुप्फवद्दलगंसि पुप्फवासं वासंति, वासित्ता जाव कालागुरुपवर जाव सुरवराभिगमणजोग्गं पडिणिक्खमित्ता जाव उत्तरपुरस्थिमं पडिणिक्खमित्ता जाव गंगाए पडिणिक्खमित्ता जाव दाहिणं पडिणिक्खमित्ता जाव पूरते पडिसाहरेमाणे जाव जेणेव पण्णत्ते सयणिज्जवण्णओ भाणियव्यो पतणतणाइस्सइ जाव खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ जाव वासं पत्तेयं जाव अंजलि परामुसइ वेढो जाव छत्तरयणस्स परिगरणियरियमझो जाव तए परिभुज्जमाणाण वा जाव ओराला पवरवाहण जाव सेणाए "पवरवीर जाव दिसोदिसिं पाईणपडीणायया जाव पच्चस्थिमिल्लाए पाउप्पभाए जाव जलते पारेत्ता जाव सीहासणवरगए पासाईयाओ जाब पडिरूवाओ पामादीया जाव पडिरूवा पिंडिम जाव पासादीयाओ पीइमणे जाव अंजलि पुष्फारुहणं जाव वत्थारुहणं पुरथिम जाव पुढे पेच्छिज्जमाणे एवं जाव णिग्गच्छइ जहा ओववाइए जाव आउलबोल बहुलं ५७ राय० सू०१२ ३११४० ३।४३ ३।१४६ ३१४३ ३।१३६ ३१४३ ३३५१ ३४३ राय० सू०५६ ४१३ जी० ३.४०७; शावृ २११४२ २१४१ २११४३ २११४१ ३३२०६ जी० ३।४४६ ३२११६ ३६२ ३।१३१ ३।२४ ४११०७ जी० ३।२८१ ३२२१ ३३१७ ३।१०६ ३११०५ ४११ १।१२० ३११८८ ओ० सू० २२ ३१५८ ३।२८ २।१५ १८ २।१४ २।१२ ओ० सू०७ ३।१६ ३॥८८ ३।१२ ४११८ श २०६५ पोसहसालाए जाव अट्ठमभत्तिए पोसहसालाए जाव णमि पोमहसालाए जाव णिहिरयणे पभिइओ तेवि तह चेव णवरं दाहिणिल्लेणं फामपज्जवेहिं जाव परिहायमाणे वंभयारी जाव अट्ठमभत्तिए ३१६३ ३११३७ ३११६६ ३१२०६ २।१३० ३२८४,८५ ओ० सू० ६६ वाचनान्तर; वृतित्रय ३१५४ ३१५४ ३१५४ ३।२०५ २१५१ ३२०,२१ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बंभवारी जाव कमालगं बंभयारी जाव दम्भ संथारोव गए बहवे जाव करेंति बहवे जाव सत्यवाह बहुमण्झसभाए जाव उम्मुग्ग बहुसंघणा जाव अप्पेगइया बहुसमरमणिज्जे जाव भविस्सइ, मणुयाणं जा चेव ओसप्पिणीए पच्छिमे विभागे वसन्या सा भाणियव्या कुलगरवज्जा उसभमामिवञ्जा भगिणी मे जाव संगंथ संथ या भवन जाव वैमाणिएहि भवन जाव अट्ठाहियाओ भवणवइ जाव जे भणवइ जाव तित्थगर जाव भारग्गसो भवणव जाव देवेहि भवणवइ जाव भारहगा भवणव जाव वेमाणिए भवणवइ जाव वैमाणिया साहारा जाव कहि ● मग्गे जाव समुद्दव भूयं मडंब जाय जोवनंतरियाह मणगुले जाव गुत्तबंभवारी मणुण्या जाव गंधा महज्जुईए जान पलिओवमट्ठिए महज्जुईए जाव महासोक्खे महज्जुईया जाब महासोक्खा महया जाव आहेबच्चं पोरेवच्च जाव बिहरा [हित्तिकट्टु महया जाय जमाणे महाणईओ तहेब गवरं पच्चत्थिमिल्लाओ महामेहणिग्गए जाव मज्जणघराओ महिडीए जाव पो ७६७ महिड्ढीयं जाव उद्दवित्तए माडंबिय जाव सत्थवाह ० य जाव घेता रमणकुच्छिधारिए एवं जहा दिसाकुमारीओ जाव ण्णास ३।७१ ३५४ २।११५ ३।१० ३।१६१ १५० २०१५६,१५७ २६६ ४१२४८ २।१२० ५।७३ २१११० ४/२५२ ४१२५० २।१०१, १०२, ११४ २०६६, १००,१०२,१०४,११,११६ २।१३७ ३।१०६ ३|१८० ३।६८ ४१०७ ३।२५६ ३।११५ ११३१ ३।१८५ ३।१८७ ३।१६१ ३।२१ ३।१२५ ३।१२४ ३।८६ ७१८२ ५/४६ ३/६३ ३१२० २।११४ ३।१७८ ३८१७ १।२२ २५७,५८ ० २।१।५१ शाबू ४।२४५ २.११६ ५७२ २१०६ ४१२४८ ४।२४८ २६५ २६५ २/१३५ ३।२२ ३.१५ पज्ज०७८ ज०३२०१ १।२४ १४२४ १।२४ शावृ ३१८२ ३।६७ ३६ ३।११५ ३।११५ ३.१० ७१७६ ५ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१३८ ३१८६ २११५७ ३१३२ ३३१९८ ३।१३६ ३६१७३ रा० सू० १२ ४१२५ ३६१० २।१२८ ३।१३ ३११३ ३२७ ३३३१ ३३१३३ ३।२६ ५१४३ (राय० सू० ५४, शावृ रयणाणं जाव संवट्टगवाए रययाम यकूले जाव पासाईए जाव पडिरूवे राईसर जाव सत्यवाह रायधम्मे जाव धम्मचरणे राया जाव तमाणत्तियं राया जाव पच्चप्पिणंति राया जाव पडिविसज्जेइ राया जाव पास इ रुटठे जाव पीइदाणं सम्वोसहि च मालं गोसीसचंदणं कडगाणि जाव दहोदगं रूवेहिं जाव णिओगेहिं रोहिया णं जहा रोहियंसा पवहे य मुहे य भाणियब्वा जाव संपरिक्खित्ता लवणं जाव समप्पेइ लुहेता एवं जाव कप्परक्खगं लोगपालेहिं जाव चउहि वंदणघडसुकय जाव गंधुद्ध याभिरामं वंदेज्ज वा जाव पज्जुवासेज्ज वणसंडेणं जाव संपरिक्खित्ते वणसंडेहि जाव संपरिक्खित्ते वण्णपज्जवेहिं जाव अणंतगुण' वण्णपज्जवेहिं जाव परिवढेमाणे वण्णपज्जवेहि तहेव जाव अणंतेहिं उढाणकम्म जाव परिहायमाणे वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव परिहाणीए वण्णेणुववेए जाव फासेणुववेए वाइय जाव दिब्वाई वाइय जाव मुंजमाणा वाइय जाव भोगभोगाई वालग्गे एवं हेमवयएरण्णवयाणं मणुस्साणं पुवविदेह अवरविदेहाणं मणुस्साणं वित्थडा तं चेव जाव तीसे विमलदंडं जाव अहाणुपुब्बीए विसयवासी जाव अहण्णं विसुद्धरुक्खमूलाई जाव चिठ्ठति ४१७२ ४१३७ ५।५८ रा. ३१७ २०६७ ४१७६ ४१५६ २१५४,१३८,१४०,१५३ २।१४६ ४१४३ ४१३५ शाव, जी० ३।४४६ ॥१६ ओ० सू० ५५ शाव ४॥३१ ४१३१ २२५१ २२५१ २२१२१ २।१२६ २०१८ ७१८२ ७।५८ २१५१ २१५१ जी० ३१५६६ ५।१८ ५।१८ ११८ २१६ ७१३३ ३११७८ ३१३३ २२६ ७१३१ ओ० सू० ६४ ३३२६ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २।८८ ३११८८ ३।१६२ ३१२११ २०६७ ३८८ ३२८४ ३६ ५२२२ ३३९८ ५।२१ ५।२६ ३३१३८ ३।१४१-१४८ २१८६ ३३१८८ ३।१६२ जी० ३१४४६ शा ३.१२ ३१२० ओ० सू० ६३ श२० ३१६८ श२० ५१२२ ३३२६ ३।५२-५६ वीइक्कते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे बीरिय जाव केवलकप्पे वेउब्विय जाव समोहण्णंति वेढिम जाव विभूसियं वेत्तेण वा जाव कसेण वेरुलियविमलदंडं जाव धूवं संथरइ जाव कयमालस्स सकोरंट जाव चाउचामर सक्कस्स जाव अंतियं सक्करा वा जाव मणुस्से सक्के जाव आसणं सक्के तं चेव जाव अंतियं सखिखिणीयाइं जाव जएणं सच्चेव सब्बा सिंधुवत्तव्वया जाव णवरं कुभट्ठसहस्सं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयण भत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाई सेसं तं चेव जाव महिमत्ति सपणद्धबद्धवम्मियकवया जाव गहियाउह सद्दावेत्ता जाव अट्ठाहियाए महामहिमाए सहावेत्ता जाव पोसहसालं समचउरसे जाव तिक्खुत्तो आदाहिणपयाहिणं करेइ वंदति वंदित्ता जाव एवं समाणीए जाव पच्चत्थिमं समाणे जाव सरसगोसीस समाणे सेसं तहेव सम्माणेता जाव पुरोहियरयणं सयंति जाव फलवित्तिविसेसं सव्वज्जुईए जाव णिग्योसणाइयरवेणं सव्वबलेणं जाव निग्घोसनाइएणं सहइ जाव अहियासेइ सहस्सा जाव समति सासया जाव णिच्चा सिंगारागार जाव जुत्तोवयारकुसलं सिंघाडग जाव एवं सिंघाडग जाव महापह सिझंति जाव अंतं सिझति जाव सव्वदुक्खाणमंतं ३।१२४ ३३५८,५६ ३११८०-१५२ ३१७७ ३२८,२६ ३११८-२० ११५,६ ३२६८ ३८२ ३३३६ ३२२१६ ११३० ३११८० ३१७८ २०६७ ६।२६ १२११ ३११३८ ५७३ ३।१८५,५७२ ४११०१ १२५०,२१५८ भ० ११६,१० ३१४३ शा ३२२२ ३।१८६ १४१३ ३३१२ ३१० पज्जो०७७ ६१२६ ११४७ २०१५ ५१७२ ओ० सू० ५२ १।२२ १।२२ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८.० ५३५ ३।८८ ३११७८ ४१२८ ३।११६ २।२०६ २१६६ २११५६-१६१ २११६२,१६३ ३।२०५ २।९०,१५८ ७१५५ ३१०८,२१० ३१२०६,२१५ राय० सू०१२ ३३१२ ३११२ जी० ३२८७ ३७६ जी० ३१४४४ सू० २।११५० २।५०-५२ २१५०,७ ७१५५ ३।१७८ ३।१८८ सिया जाब तहेव जं सिरिवच्छ जाव कयग्गह सिरिवच्छ जाव दप्पण सिरिवच्छ जाव पडिरूवा सिरिवच्छसरिसरूवं वेढो भणियन्वो जाव दुवालस सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहिं जाव महया सुवणं मे जाव उवगरणं सुसमा तहेव सुसमासुसमा तहेव सुस्सूसमाणा जाव पज्जुवासंति सुस्सूसमाणे जाव पज्जुवासइ सूरिय जाव तारारूवा सेणावइरयणे जाव पुरोहियरयणे सेणावइरयणे जाव सत्थवाह. सेणिपसेणिसद्दावणया जाब णिहिर यणाण अट्ठाहियं महामहिमं करेइ हट्ट करयल जाव एवं हट्ठ जाव सोमणस्सिए इट्ठतुटुचित्तमाणदिए जाव करयल' हतचित्तमाणदिए जाब विणएणं हदतचित्तमाणंदिया जाव हियया हट्टतुट्ट जाव कोडुबिय हट्ठतुट्ठ जाव पोसहसालाओ हट्टतुटु जाव हियए हट्टतुटु जाव हियया हत्थिखंधवरगया जाव घोसंति हयगय जाव सण्णाहेत्ता हयगयरह तहेव अंजणगिरि हयगयरहपवर जाव चाउरंगिणि यमहिय जाव पडिसेहिया हरिय जाव सुहोवभोगे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे जाव अमरवइ° सूरपण्णत्ती सव्वम्भंतराए जाव परिक्खेवेणं एवं एग दीवं एग समुई अण्णमण्यास्स अंतरंकट्ट ३६ ३८ ३३५ ३।१६८,१६६ ३१५८,५६ ३१८ ३३५; ओ० सू० ५६ ३५ ३३७७,८४ ३.१०० ३११६ ३।११४ ३।३१,१७३ ३.१६६ ३१५ ३१५ ३१५ ५।२७ ३३५ ३१२१३ ३२२१२ ३३१६६ ३३१५ ३।१७५-१७७ ३१५-१७ ३१७७ ३११५ ३११११ ३।१०८ २।१४६ २११४५ ६।६३,१८० ३।१८ १११४ १०२० जं० ११७ १२० Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०१ ११२४ ४४ ४१६,७ ११२४ ४।३ ४६३,४ ४१७ १५।१४ राइंदिए तहेव तीसे तहेव जाव सव्वबाहिरिया उड्ढीमुहकलंबुयापुष्फसंटिता तहेव जाव वाहिरिया सेसं तहेव अणुपरियट्टित्ता जाब विगतजोई गह जाव तारारूवा वाइय जाव रवेणं सव्व जाव चिट्ठति ममचकवालसंठिते जाव णो सव्वतो जाव चिट्ठति ममचक्कवाल जाव णो १६।२६ १६१२६ १६२८ १५१० १६॥२३ १६।२३ १९४२ १६॥३ १६२६ १६।२ १६.३२ १९८३३ १६।३ उवंगा अंतरं वा जाव मम्म १६६६ अंतराणि जाव पडिजागरमाणे १११०५ अंतिए जाव पडिबज्जइ ३।१०४ अगाराओ जाव पव्व इत्तए ३।१०६ अज्जग जाब उवसंपज्जित्ता १२११६ अज्जाणं जाव पब इत्तए ३।१०६,१३८ अज्झथिए ३।२६ अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था ११५३।४८,५०२५५३५ अज्झत्थियं जाव वियाणित्ता ॥३७ अणगारे जाव अप्पाणं ५१३२ अत्तए जाव वेहल्लं ११११४ अपत्थियपत्थए जाव परिवज्जए १८१ अम्प्रयाओ जाव अंगपडिचारियाओ निरवसेसं भाणियव्वं जाव जाहे वि य णं तुमं वेयणाए अभिभुए महया जाव तुसिणीए ११७४-८७ अम्मयाओ जाव एत्तो ३११०१ अम्मयाओ जाव जम्म १२३४ अयमेय रूवे जाव समुप्पज्जित्था ११५१,६६,३।१०६ असण जाव सम्माणेत्ता ३१५० अहं जाव पवइत्तए ४११४ अहापडिरूवं जाव विहरति श२६ आएहि जाव ठिई ११४३ १२६५ १।६५ ३११०३ ३।११८ १५१०६ ३३१०६ १२१५ रायः सू०६ १११५ भ० ११५१ ११११० उवा० २०२२ ११३४-६२ ३१६८ ना० ११११३३ १११५ ना० १७।६ ३३१२८ ३।६६ ११४१ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०२ वृत्ति २।३ आघवित्तए वा जाव विण्णवित्तए ३१०६ ३३१०६ आरंभेहि जाव एरिसरण १।१४० ११२७ आलोएहि जाव पायच्छित्तं ३१११५ ठाणं ३१३३८ आसाएमाणीओ जाव परिमाएभाणीओ ११३४ वि० ११।२६ आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धण ११२२ आहारपज्जत्तीए जाव भासमणपज्जत्तीए ३११५ राय० सू० ७६७ आहेवच्च जाब विहरइ ५११० ना० १६५६ इच्छिए जाव अभिरुइए ३३१३ ना० १११।१०२ इट्ठाहिं जाव वगृहिं १४४ ११४१ इमेयारूवे जाव संकप्पे ३।६८ १३१५ उखेवओ ३८८,१५४,१६७ ३२२० उक्खेवओ ४।३।५।३ उक्खेवओ जाव दस ४११,२ २१,२ उक्खेवओ भाणियचो ३१२३,२४ ३।२०,२१ उड्ढे जाणू जाव विहरइ ओ० सू०८२ उबट्टवेत्ता जाब पच्चप्पिणंति १।१७,१८ राय० सू० ६६०,६९१ उवट्ठवेत्ता जाव पच्चप्पिणह ४।१६ १११७ एयारूवे जाव समुपज्जित्था ११५४ १५१५ एवं मारेउ बंधेउ २७३ एवमाइक्खइ जाब परुवेइ १९९८ ओ० सू० ५२ ओग्गहं जाव विहरंति ३११३२ ३११ ओहय जाव झियाइ ३१६८ १४१५ ओहयमण जाव झियाइ १११५ वृत्ति कंता जाव भंड ३०१२८ ना० ११०२०६ कयवलिकम्मा जाव अप्प० श१६ ओ० सू० २० करयल० ११३६:५८ ; ३१०६१३८, ५११६ करयल० १६४५,४।१५ १४५ करयल० १५१०७ ओ० सू० २० करयल जाव एवं १६६ करयल जाव कटु करयल जाव पडिसुणेता ११४५ ओ० सू० ५६ करयल जाव बद्धावेंति ११२२ १।१०७ करयल जाव वद्धावेत्ता श११६ १२१०७ काणि जाव वेहल्लं १६११२ १११११ कुणिएणं करयल जाव पडिसुणेत्ता ११४५ गामागर जाव सविणवेसाई ३।१०१ ओ० सू० ८६ चउत्थ जाव अप्पाण ५।२८ २०१० १७३ वृत्ति १२१०८ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०३ २०१० राय० सू० ६८६ ३।४८ २०१० ५१३६ २११० ११० ना० ११११२०१ ४११८ १११५ १११०६ भग० १२०५-२२१ चउत्थ जाव भावेमाणे ३.१४ चरमाणे जेणेव रायगिहे नयरे जाव अहापडिरूवं श२ चिण्णाई जाव जुवा ३१५० छ? ४/२४ टुट्ठम जाव मासद्ध ३।८३ हम जाव विचित्तेहि छट्टम जाव विहर २११० छत्तादीए जाव धम्मियं १६ जइस्सइ जाव कालं श२१ जहा पढम जाव वेहल्लं ११११३ जहा पण्णत्तीए । सामिलो निग्गओ खंडियविहणो जाव एवं वयासी.-- जता ते भंते ! जवणिज्जं च ते भंते ! पुच्छा । सरिसवया मासा कुलत्था एगे भवं जाव संबुद्धे ३।२६-४५ जहा भगवया कालीए देवीए परिकहियं जाव जीवियाओ ववरोविए १।१४० जहा सिवो जाव गंगाओ ३१५६ व्हाए जाव सव्वालंकार' १२७० व्हायं जाव पायच्छित्तं ३३११० पहाया जहा कालादीया जाव जएण' १२१२६,१३० व्हाया जाव पायच्छित्ता १।१२१,५११६ तं चेव जाव कट्ठमुद्दाए ३२५५ तं चेव जाव निवेयणे तं चेव भाणियव्व जाव वेहल्लं ११११० त चेव सखंधावारे ११११६ तं चेव सव्व भाणियब्वं जाव आहारं अहारेइ, नवरं इमं नाणत्तं -दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्यियं अभिरक्खउ सोमिलं महापरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव अणुजाणउ त्ति कट्ट दाहिणं दिसि पसरइ। एवं पच्चत्थिमेणं वरुणे महाराया जाव पच्चत्थिमं दिसि पसरइ । उत्तरेणं वेसमणे महाराया जाव उत्तरं दिसिं पसरइ। पुवदिसागमेणं चत्तारि वि दिसाओ भाणियब्वाओ जाव आहार आहारेइ ३१५३, ५४ तलवर जाव संधिवाल श६२ तलवर जाव सत्यवाह ३।१०१ तवसा जाब विहरंति ३२९६ ११२२ ३३५१, भग० १११६४ ओ० सू०७० ११७० ११२१,१२२ ११७० ३।५५ ११६१ १।१०६ १२११५ ३१५१ ओ० सू० ६३ ११६२ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०४ ओ० सू० ५२ १०७ ओ० सू० ८१ ११८ तहारूवाणं जाब विउलस्स १११७ तहेव भाणियब्वं जाव बेहल्लं १।१०८ तिक्खुत्तो जाव एवं ११२१ ते जाव पच्चप्पिणंति ४.१७ दंतिसहस्सेहिं जाव ओयाए १।१५ दंतिसहस्सेहि जाव मणुस्सकोडीहि १११३६ दंतिसहस्सेहिं जाव रहमुसलं ११२१ दंतिसहस्सेहिं जाव सत्तावण्णाए १।१३७ दिव्या जाव अभिसमण्णगया ३१८५ दुज्जाएहि जाव नो संचाएमि विहरित्तए ३११३४ दुरंत जाव परिवज्जिया ११११५ देवसयणिज्जसि जाव ओगाहणाए ३८३,४१२४ देवसयणिज्जसि जाव भासमणपज्जत्तीए ३११६११६२ देविड्दी जाव अभिसमग्णामया ३३१२२ देवी जाव कहि ४१२६ देवे जाव एवं ३७५,७६ नमसंति जाव पज्जुवासंति ५।३६ नरए जाव नेर इयत्ताए ११४० नाइ जाव रवेणं ४।१८ निवखेवओ ३८७,१६६ १७०४।२७ ; ५१४३ निसम्म जाव हियया १२२१ नीय जाव अडमाणे ३।१३३ पढम भणइ तहेव ३७७ परिजाणइ जाव तुसिणीए ३॥६१ पवर जाव पच्चप्पिणति ५११८ पासादीए जाव पडिरूवे पुप्फ जाव दरिसणिज्जे पुधरत्ता जाव समुप्पज्जित्था ११६५ पुल्वाणपुचि जाव अंबसालवणे विहरइ ३।२६ बहुपडिपुण्णाणं जाव सूमालं ११५३ बहण नगरनिगम जहा आणंदो ६।११ बुज्झिहिइ जाव अतं १।१४१ बुझिहिइ जाब सव्व ५.४३ भगवं जाव पज्जुवासामि १२१७ भवित्ता जाव पब्बयाइ ३।११२ भवित्ता जाव पब्धयाहि ३।१३६ श१४ २१४ १११४ राय० सू० ७६७ ३।१३१ ११८६ ३२१२० ३१८३,८४ ३१८४ ३.१२५ ३१५७,५८ ओ० सू० ५२ १२६ ३११११ ३३१६ ओ० सू० ८१ ३११०० ३१५६ ३१५६ १११२३ ना०११५२४ ११५१ ओ० सू० ५२ ओ० सू० १४३ उवा० १।१३ ओ० सू० १५४ ओ० सू० १५४ ओ० सू० ५२ ३११०६ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीए जाव संजायभए भीया जाव देवापियाण भोगभोगाई जाव विहरामि मज्जणघरे जाव दुरूढे मुंडा जाव पठाइ मुंडा जावयामि मुंडा जाव पववाहि मुंडे जाव पव्वइत्तए मुच्छिया जाव अन्ोववण्णा मुच्छिया जाव अमंगणं रज्जं च जाव जणवयं रज्जसिरि जाव विहरामि जेण वा जाव जणवएन राईमर जाय मरवाह लोह जाव गहाय मुंडे जाव पन्त्रइए लोह जाव घडावेत्ता जाय उसवेत्ता लोह काय दिसापविवय" वसही जाव वद्धावेता वाणारसीए जाव पुप्फारामा य जाव रोविया विउलाई जाव विहरामि विउलाई जाव वित्तिए संकाइय जाव कट्ठमुद्दाए संजमेणं जाव विहर सण जाव गहियाउह० सद्द जाव विहरइ सद्धि जाव भुजमाणी समाणी जाव पन्त्रइत्तए समाणे जाव भासमणपज्जत्तीए सीयं जाव विविहा सुरं च जाव पसण्णं मोल्लेहि य जाव दोहलं हट्टु जाव हियवा हीलिज्जमाणीए जाव अभिक्खणं ८०५ शह ४१६ ३ १०६ ५११६ ४११६ ३।१३६ ३।१०७,१३६ ५३२ ३।११४,११५ ३।११६ १।१४ १।७१ ११६६ ५।२० ३।५५ ३।५५ ३५० १।११० ३।५५ ३।१०६ ३।१३१ ३०६२ ११२ ११३८ ५।२० ३।१३१ ३।१०८ ३।८४ ३।१२८ ११२४ ११४६ ११४२ ३११२८ ३।११८ ना० १।१।१६० ३।११२ शहद १।१२४ ३।१०६ ३|१०६ ३।१०६ ३।१०६ ना० १११६१२८ ३।११४ ११६६ ११६५ १/६६ ११६२ ३।५० ३३५० ३१५० राय० सू० ६८३ ३।४८ २३२२८ ३।१३१ ३१७३ राय० सू० ६८६ राय० सू० ६६४ ओ० सू० १५ ३१३० २०१०६ २३।१५ ना० १।१।२०६ वि० १२:२६ १।३४ ओ० ० २० ३।११७ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाणविधि • अव्यय, सर्वनाम का साक्ष्य-स्थल का निर्देश प्राय: एक बार दिया है। • रूट (1) अंकित शब्द धातुएं हैं । उनके रूप भी दिए गए हैं । ० शब्द के बाद साक्ष्यस्थल .. पण्णवणा पहला प्रमाण पद का, दूसरा सूत्र का और तीसरा श्लोक का परिचायक है। जंबुद्दीवपणती... पहला प्रमाण वक्खार का, दूसरा सूत्र का, तीसरा श्लोक का परिचायक चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती -पहला प्रमाण पाहुड का, दूसरा सूत्र का, तीसरा प्रलोक का परिचायक है। उवंग अंक १ निरयावलियाओ, अंक २ कापडिसियाओ, अंक ३ पुपियाओ, अंक ४ पुष्फलियाओ, अंक ५ वण्हिदसाओ का परिचायक है। दूसरा सूत्र का प्रमाण, तीसरा श्लोक का है। अध्ययन (पद, वखार) आदि के परिवर्तन का संकेत (B) सेमिकोलन है। जहां एक सूत्र में अनेक श्लोक आ गए हैं वहां आगे के सूत्र की संख्या से पहले अध्ययन की संख्या भी दी गई है। जैसे उप्पल (उत्पल) पा० ११४६, १४४८१४४. १२६२ । शब्द पहले सूत्र में आया फिर उसी सूत्र के श्लोकों में आया तो उसके दोनों प्रमाण दिए हैं, जैसे --अइकाय (अतिकाय) प० २।४५, २०४५।२। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ (अ) प ११६६७ अइ (अपि) प २१६४७ अइ (अयि) उ ११२६; ५।४० अइकंत (अतिकान्त) ज २।१५ अइकाय (अतिकाय) ५ २१४५,२१४शर अइगच्छमाण (अतिगच्छत् ) ज ३।२१७ अइगय (अतिगत) ज ३८१ अइछत्त (अतिछत्र) प २।४८ अइतेया (अतितेजा) ज ७१२०१२ अइदूर (अतिदर) ज २१६०; ३।२०५,२०६; अइपडागा (अतिपताका) ज ३१७ अइमुत्तग (अतिमुक्तक) ५ ११४ अइमुत्तय (अतिमुक्तक) १ १४४०१३ अइमुत्तय (लता) (अतिमुक्तकलता) प १३६१ अइरत (अतिरात्र) सू १२॥१७११ अइरित (अतिरिक्त) उ ५६४५ अइरेक (अतिरेरु) ज २११५ अइवइत्ताण (अतिव्रज्य) प ३४११६ अइविकिट्ठ (अतिविकृष्ट) उश११० अइविगिट्ठ (अतिविकृष्ट) उ १११२६,१३३ अइसीय (अतिशीत) ज ७।११२११ अइ (अति- इ) अईइ ज ३.१५७,१८६ अईव (अतीव) ज २१८,६; ७।२१३ उ ३.४६ अउज्झ (अयोध्य) प २।३०,३१,४१ अउणतीस (एकोनत्रिंशत्) सू २१३ अउणत्तर (एकोनसप्तति) ज ६:१० अउणत्तरि (एकोनगप्तति) ज ७८२ अउणपणास (गकोनपञ्चाशत्) सू० १६७२२२ अउणाउति (एकोननवति) सू १२७ अउणागति (एकोननवति) सू १९।१४,१५११ अउणाणवइ (एकोननवति) ज ७७३ अउणापण्ण (एकोनपञ्चाशत्) ज ४।२४० सू० १०.१६३ अउणावीस (एकोनविंशति) सू २।३ अउणासीई (एकोनाशीति) ज १७११ अउणासीत (एकोनाशीति) सू श२७ अउणासीति (एकोनाशीति) सू २१२१३ अउणासीय (एकोनाशीति) ज ४।२३४; ७।१६ अउण्णापण्ण (एकोनपञ्चाशत) १ २०६४ अउय (अयुत) ज २।४; ७.१७८ अउयंग (अयुतांग) ज २४ अउल (अतुल) ज ३।६५,१५६ अओज्झ (अयोध्य) ज ३६११७, ४२१२ अंक (अंक) प १॥२०॥३, २।३०,४८,४६; १७।१२८ ज २११५, ४२१२,२५५, ५१५ अंकमय (अंकमय) ज ७।१७८ अंकमुहसं ठित (अंकमुखसंस्थित) ज ७१३१, ३३ सू ४१३,४,६,७ अंकलिवि (अंकलिपि) प १९८ अंकवडेंसय (अंकावतंसक) प २१५१,५६ अंकावई (अंकावती) ज ४२०२१२,२११; ७।१७८ अंकिय (अंकित) प २।३० अंकुर (अंकुर) ५ ३६१६४ ज २११३१,१४४ से १४६ अंकुस (अंकुश) ज २११५; ३१३; ५॥३८; ७।१७८ अंकेल्लण (दे०) ज ३१०६ अंकोल्ल (अंकोल, अंकोठ, अंकोट) प १३५॥१, ११३७१५ अंग (अंग) प १९३।१,१११०१।६,८ ज २११४; ३१६,३५,१०६, २२१,२२२ उ १११२२,१२६; २११०; १२; ३।१४, १५०,१६१,१६६; २२८,३६,४१ अंगइ (अंगजित्) उ ३११०,११,१३,१४,२१ अंगण (अंगन) १ १११२५ ज २१६६%; ५५,७ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगद-अंतरगत अंगद (अंगद) प २१३०,४६ १८३,२०१,२१४ अंगपडियारिया (अंगपरिचारिका) उ ११३६,३७ अंजणा (अजना) ज ४:१५५।२,२२३३१ अंगमंग (अंगांग) ज २१६,११३ अंजणागिरि (अजनगिरि) ज ४१२२५२१ अंगय (अंगद) प २।३१,४१ ज ३१६,२११, अंजलि (अञ्जलि ) ज २१६५, ३३५,६,८,१२, २२२ १६,२६,३६,४७,५३,५६,६२,६४,७०,७२, अंगलोय (अंगलोक) ज ३८१ ७७,८१,८४,८८,६०,१००:११४,१२६,१३३, अंगा (अंग) उ १:१२२ १३८,१४२,१४५,१५१,१५७,१६५,१८१, अंगारग (अंगारक) प १४८ १८६, १८६,२०४ से २०६,२०६; ५१५, अंगुढ़ (अंगुष्ट) ज ३३१०६ २१,४६,५८ उ ११३६,४५,५५,५८,८०,८३, अंगुल (अंगुल) प ११७४,७५,८४, २०६४, १६,१०७,१०८,११६,११८,१२२; ३।१०६, २१६४।८; १२:१२,१६,२७,३१,३२,३७,३८%; १३८, ४११५, ५/१७ १५७ से ६,२२,४० से ४२; १८।४१,४३,६५, अंजलिपुट (अलिपुट) ज ३८१ ११७, २११३८,४० से ४३, ४८,६३ से ७१,८४, अंडग (अण्डज) ज ५।३२ ८६,६० से १२; ३३.१२,१३,१६,१७; अंत (अन्त) प ६.११०; २०१८; २११६०; ३६।६६,७०,७२ से ७४,८१ ज १७, २१६ ३६।८८,६२ जे श२२,२७,५०; २१५८, सू १।१४; १०।६३ से ७३; १६२२१७. ८४,१२३,१२८,१५१,१५७; ४११०१,१०३, उ ३८३,१२०,१६१, ४।२४ १७१,१७८,२०० सू ४।४,७, २०१२,७ अंगुलपुहत्तिय (अंगुलपृथक्विक) प १९७५ उ ११४२,१४१,१४७; ११३; ३१२१, अंगुलि (अंगुलि) प २।३०,३१,४१ ज २।१५; ८६,१५२,१६५, ५१४३ ३।६,१८४,१८६,२०४,२२२ अंतकड (अन्तकृत) ज २१८८,८६ अंगुलिज्जग (अंगुलीयक) ज ३।६,२२२ अंतकम्म (अन्त कर्मन्) ज ५१५८ अंगुलितल (अंगुलितल) ज ३१७,८८ अंतकर (अन्तकर) उ ११५४,७६ अंतकिरिया (अन्तक्रिया) प ११११५; २०११।१, अंगुलिय (अंगुलिक) ज ५५८ अंच (कृष्) अंचेइ ज ३१६ २००१ से ४,६ से १३,४०,४४,४६,४८ अंचिय (अञ्चित) ज ५१५७ अंतक्खरिया (अन्त्याक्षरिका) प ११६८ अंचेता (कृष्ट्वा ) ज ३१६ अंतगड (अन्तकृत) ज ३१२२५ अंज (अङ्ग्) अंजेइ उ ३३११४ अंतगमण (अन्तगमन) उ ११४२ अंतर (अन्तर) ५ २१३०,३१,४१, ११७० अंजण (अजन) प १०२०१२; १३१, १७।१२३ ज १:१७, ३१३,३५,२२१, ४।२७,४६, ज ४२०२; ५१५,२१ सू २०१२ उ ३.११४ १४०१२; ७।६,६५,८६,१६८,१७८,१८२ अंजणई (अजनकी) प ११४०१५ च ३११ मू० ११७।१,१५१६,२०,२१,२४,२७; अंजणकेसियाकुसुम (अजनकेशिकाकुसुम) १२, ११, १८।२०; १६।२२२८ प १७११२४ उ ११२४,४७,६५,६६,६८,९०,६२,१०५, अंजणग (अञ्जनक) ज २१११७,११६,१२० अंजणगिरि (अजनगिरि) ज ३११७ अंतरकंद (अन्तरकन्द) ५१४८६४२ अंजणगिरिकूड (अञ्जन गिरिकूट) ज ३।६१,१७७, अंतरगत (अन्तर्गत) सू ५११; ७।१ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतरणई-अंतोमुहुत्त ८११ चं १० सू ११५ उ ११२,३; ५।२०,४०,४१ अंतरणई (अन्तर्नदी) ज ४।२१२; ५१५५ अंतरदीव (अन्तर्वीप) ११२६ ६।१४ अंतरदीवग (अन्तपिज, द्वीपक) प १८५,८६; ६७२, ८१,६७,१०८; १७१७२, २११७२ अंतरदीवय (अन्तर्वीपज, 'द्वीपक) प ११८४,८६; ६७६; १७११६२, २११५४ अंतरवीहिय (अन्तर्वाथिक) ज ३१७ अंतराइय (आन्तरायिक) प २२॥२८; २३३१, ८,१२,२३,२४,५९,१३३,१५४,१५६,१६३, १६६,१७५ १५६,१६०,२०२; २४११; २५॥१, ३; २६११,७; २७।१,४ अंतरापह (अन्तरापथ) प १६।२२ अंतराय (अन्तराय) प २४११५ अंतरावास (अन्तरावास) उ १३१००,१२६,१३३ अंतरिय (अन्तरित) ज ३३१८,३१६५,९६,१५६, १६०,१८० उ १११३४; ३३१४,८३,१२०, १६१, ४१२४ अंतरिया (अन्तरिका) सू १६२२।३० अंतलिक्ख (अन्तरिक्ष) ज ३११४,२६,३०,३६, ४३,४७,५१,५६,६०,६४,६८,७२,११३,१३६, १३८,१४०,१४५ १४६,१७२ उ ३१६६ अंतवाल (अन्तपाल) ज ३१२६,३६,४७,११३ अंतिय (अन्तिक) प ३४११६,२१ ज ३६,८,१३, ७७,८४,६१,१०७,११३ से ११५,१२५, १३८,१५३,१६६ ५१२२,२३,२६ से २८७३ उ १२१,२३,३७,४१,४५,८८,११५ ११७, ११६,१२१,१२६; २११०,१२; ३।१३,१४, २६,५०,५५,५७,६५,६९,७२,७५,७६,१०३, १०४,१०६ से १०८,११२,११८,१३४,१३६, १३८,१३६,१४८,१५०,१६१,१६६; ४११४, १६,२०,२८, ५१२८,३२,३६,४१,४३ अंतियाओ (अन्तिकतस्) उ ३।११० अंतेउर (अन्तःपुर) ज २१६४; ३।२२४; १५, ७ उ १।१६,६३,९७,६८,१०५ से १०७,११६ अंतेवासि (अन्तेवासिन्) ज ११५, २।८२,८३ अंतो (अन्तर् ) प ११७४,९४; २१७,२० से २७, २६ से ३५,४१,४८; २३।११,१२६,१७७, १८२,१८६,१६०; ३३१२७ से २६ ज १।१३,१४,३१,३६, ३६८; ४११,४६, ५०,११४,११७,१३१,२३४,२४०; ५।३२; ७।३१,३३,५५,१६८११ सू ४३,४,६,७, १६।२२।१५,२१, १९२३२०१७ अंतोमुहत्त (अन्तमहत) प ४२,३,५,६,८,९,११, १२,१४,१५,१७,१८,२०,२१,२३,२४,२६, २७,२६,३०,३२,३३,३५,३६,३८,३६,४१,४२, ४४,४५,४७,४८,५०,५१,५३,५४,५६ से ६७, ६६ से १६४,१६६,१६७,१६६,१७०,१७२, १७३,१७५,१७६,१७८,१७६,१८१,१८२, १-४१८५,१८७,१८८,१६०,१६१,१६३, १६४,१६६,१६७,१६६,२००,२०२,२०३, २०५,२०६,२०८,२०६,२११,२१२,२१४, २१५,२१७,२१८,२२०,२२१,२२३,२२४, २२६,२२७,२२६,२३०,२३२,२३३,२३५, २३६,२३८,२३६,२४१,२४२,२४४,२४५, २४७,२४०,२५०,२५१.२५३,२५४,२५६, २५७,२५६,२६०,२६२,२६३,२६५,२६६, २६८,२६६,२७१,२७२,२७४,२७५,२७१, २७८,२८०,२८१,२८३,२८४,२८६,२८७, २८६,२६०,२६२,२६३,२६५,२६६,२६८, २६६६२०,२१:१८।३,४,८,९,१०,१२, १४ से १६.१८ से २४,२६ से २८,३० से ३६,४१ से ५४,५६,५७,५६,६१,६३ से ६७, ६६ से ७४,७६ से ७६,८३,८५,६०,६१,६३, ६६,१०३ से १०५,१०७,१०८,११०,११३, ११४,११६,११७,११६,१२०,२०१६३; २३३६०,६२,६५,६७,७२,७८,७६,१३३,१४७, १५८,१६२,१६५,१६६,१७०,१३६,१८४; २८१४७,५०, ३६०६१,७६ जं २१८४,१२३, १२८,१४८,१५१; ४११०१ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१२ अंतोमुत्तग-अकिरिय अंतोमुहत्तग (अन्तर्मुहूर्तक) य १११७१ अंतोमुहुत्तद्धाउय (अन्तर्मुहूर्ताद्धायुष्फ) प ११७४ अंतोमुहुत्ताउय (अन्तर्मुहूर्तायुष्क) ५ ११८४ अंतोमुहुत्तिय (आन्तर्मुहूर्तिक) प १५।६१; २८१४,३:; ३६।२,८४,६२ अंतोवाहिणी (अन्तर्वाहिनी) ज ४।२१२ 'अंदोलाव (आन्दोलय) अंदोलावेइ उ ११६७ अंधकार (अन्धकार) ज ३६३,६५,१५७,१५६, १६३ सू १४१५ से ८; १६६५,६ अंधकारपक्ख (अन्धका रपक्ष) सू १३:१; १४१२, ३,५ से ८ अंधयार (अन्धकार) प २०२० मे २७ ज ११२४; अकंत (अकान्त) ज २११३३ अकंततरिया (अकान्ततरका) प १७११२३ से १२५, १३० से १३२ अकंतत्त (अकान्तत्व) प २८।२४ अकं तस्सर (अकान्तस्वर) ज २।१३३ अकंतस्सरता (अकान्तस्वरता) प २३१२० अकंप (अरम्प) ज २१६८,३७६.६ से १०१ अज्ज (अकार्य) ज २१३३ अकण्ण (अकर्ण) प ११८६ अकतिम (अकृत्रिम) ज २११२२,१२७, ४११००, १७० अकम्मभूमग (अकर्म भूमज) प ११८५,८७; ६७२ ८१८४,६५,६७,१०८,२१:५४,७२ अकम्मभूमय (अकर्मभूमज) १६७६; १७११६२, अकम्मभूमि (अकर्मभूमि) प ११८४,२१२६ अकयपुण्य (अकृतघुण्य) उ १११२३३१८,१०१ अंधयारसंठिति (अन्धकारसंस्थिति) ज ७।३३, से ३५ सू ४।६,७,६ अंधिया (अन्धिक!) प ११५१११ अंब (आम्र) प १३३५११; १६॥५५; १७:१३२, १३३ ज ३।११६ अंबट (अम्बष्ठ) प ११६४११ अंबर (अम्बर) ज ७१७८ अंबरतल (अम्बरतल) ज ३।१४,३०,४३,५१,६० ६८,१३०,१३६,१४०,१४६,१७२ अंबसालदण (अम्रशालवन) उ ३।२६,६,९५ अंबाडग (आम्रातक) प ११३६६१,१६।५५; १७११३२ अंबाराम (आम्राराम) उ ३४८ से ५०,५५ अंबिल (अम्ल) प १४ से ६,५१५,७,२०५; २८१२६,३२,६६ ज २।१४५ अंबिलसाय (अम्लशाक) ५११४४०२ अंबिलिया (अस्तिका) ज ३१११६ अंबिलोदय (अम्लोदकः) प ११२३ अंबुभक्खि (अम्बुर्भाक्षन् ) उ ३.५० अंस (अंस) उ १११३८ अंसु (अश्रु) ज २१६०, १०३,१०६,१०८ अकंटय (अकण्टक) ज २११२ अकरंडुय (अकर"डक) ज २२१५ अफरणया (अकारणता) उ ३.११५ अकविल (अकपिल) ज २११५ अकसाइ (स्क्रपायिन्) प ३१६८; १३.१६; १८१६७२८११३८ अकसायसमुग्धाय (अकषायसमुद्घात) १ ३६:४८ अकसायि (अकपायिन्) प ३९८ अकाइय (अकायिक) प ३१५०; १८२६ अकामय (अकामक) उ ३।१०६ अकामिय (अकामित) उ १४५२,७७ अकाल (अकाल) ज ३.१०४,१०५ अकालतालु (अकालतालु) ज ३।१०६ अकालपरिहीण (अकालपरिहीन) जं ५१२२,२६ से २८ अकित्तिम (अकृत्रिम) जं ११२१,२६,४६; २६५७, १४७,१५०,१५६ अकिरिय (अक्रिय) प १७१२५, २२।७,८,२६,३० Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकुडिल-अम्गमहिसी ३२ से ३४,३६,३७,४५ अकुडिल ( अकुटिल ) ज २।१५ अवमाण ( अकुर्वत्) सू २०१७ अकेसर ( अकेसर ) प ११४८४६ अकोह (अक्रोध) ज २१६= अक्क ( अर्क ) प १|३७|३ अक्कबोंदी (दे० ) प ११४०५ v अक्कम ( आ-: क्रम्) अक्कम १।११६ अक्कमाहि उ १।११५. अक्कमिता ( आश्रम्य ) उ १।११५ अक्किज्ज (अक्रेय ) ज ३।१६७११३ अक्किट्ठे ( अक्लिष्ट) ज २०४६ अक्कुस्समाण (आक्रोशत् ) उ ३११३० अक्कोप्प (अकोव्य) ज २।१५ अक्कोसमाण (आक्रोशत् ) उ २०१३० ara (अक्ष ) ज २६,१३४ अक्खय (अक्षय) ज १|११,४७, ३।१६७,२२६; ४।२२,५४,६४,१०२, १५६ : ५१२१ ७।२१० ३।४३, ४४ अक्खर (अक्षर) ज २१६,१३४ अक्खरपुट्ठिया ( अक्षरपुष्टिका 'पृष्टिका ) प १६८ अक्खाइया (आख्यायिका ) प ११।३४।१ अवखाइयाणिस्सिया (आख्याधिकानिश्रिता ) प ११३४ अक्खात (आयात) प ११४६,६६,७५,८१; २।२१ से २६,३०,३२ से ३९, ४१, ४३,४६, ४८ से ५२, ५५ से ५७.६० मे ६२ सू ३१; १३१२ अक्खा (आयात) प ११५०,५१,६०,७६, २१२०,३१,५८,५१ ज २६४१२१; ६।१०, ११, १४, १५, १८ से २२,२६७ ४,६३ ८७ १०।१२७ ( अक्खिव ( आ + क्षिप् ) अक्खिवइ उ १।१०५ अक्खिविकाम (अक्षेतुकाम) उ १।१०५ १. टीका में अक्षरस्पृष्टिका है । अक्खीण (अक्षीण ) प ३६८२ अक्खोड (नोट) प १६५५ अक्खोटय (अक्षोटक ) प १७ ११३२ अक्खोभ ( अक्षोभ ) ज ३१३ अगंण ( अगत्वा ) प ३६/८३३२ ८१३ अगंथ (अग्रन्थ) ज २७० अगक्छमाण ( अगच्छत् ) सू २२ अगड (दे० ) प २२४, १३.१६ से १६, २८ : ११।७७ ज २।३१ अगणि (अग्नि) प ११४८ ५६२।२० से २५ अगणिका (अग्निकाय) ज २३१०५ से १०८ अगत्थि ( अगस्ति ) प १३८ २ ज २११० सू २०१६, २०१८१४ अगरुलहु ( अगुरुलघुक ) प १५ ५७ ज २२५१, ५४, १२१,१२६,१३०,१३८, १४०, १४६, १५४, १६०, १६३ freeहज्जव (अगुरुलघुकपर्यव) ज २।१४६, १५४,१६०,१६३ अगरु लहु परिणाम (अगुरुलघुकपरिणाम ) प१३१२१,३० अगार ( अगार ) प २०११७, १८ ज २२६५,६७,८५, ८७ उ ३।१३,१०६ से १०८, ११२, ११८, १३६,१३८, १३६, ४११४, १६५३२,४३ अगारवास ( अगारवास ) ज २८७ ३।२२५ उ ३।११८ अगुरु (अगुरु ) जं २।१०६,११० अगलघुअणाम (अगुरुलघुकनामन् ) प २३।५१ अगुरुलणाम (अगुम्लघुनामन् ) प २३३८, ११ अग्ग (अग्र ) प २।३१ ज ११३७, २०१२०, ३११२, १८,२२,३१,७६,८८ १०७,१२५ से १२८, १५१,१५२, १५६, १८० अगुलिया (अगुलिका) उ ११५६, ६१ से ६३ ६४,८६,८७ अगभाव (अग्रभाव) ज ७|१३२१. सू १०६४ अगमहिती (महिपी ) प २०३० से ३३,३५, Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१४ अग्गर-अच्चुय ४१, ४३,४८ से ५२ ज ११४५; २१६०, अचरित्ति (अचरित्रिन्) प १३३१४,१८,१६ ४.१५१; ५:१६,३६,४१,४४,५०,५२,५३; अचरिम (अचरम) प १११०३,१०६,१०७ १०६ ७।१६८१२,१८३,१८६ सू १८२१,२३,२४, ११०,११३,११४,११६,११६,१२०,१२२, २०१६ १२३,३।१२३,१०।२ से १३,२१,२६ से ५३; अग्गर (दे०) प ११८६ १८११२७ अग्गल (अर्गल) सू २०१८ अचरिमंत (अचरमान्त) प १०।२ से ५,२१,२६,से अग्गसाला अग्रशाला) ज २।१०।४।१६६ अग्गसिहर (अग्रशिखर) ज ११३७ अचल (अचल) ज ३१६ से १०१,५१२१ अग्गहत्य (अग्रहस्त) ज २०१५ अचवल (अचपल) ज ५१५,७ अग्गाणीय (अग्रणीक) ज ३३१०७ से १०६ अचित्त (अचित्त) प ६१३ से १७,१६ ज २१६६ अन्गि (अग्नि) प २।३०।१,२।४०।२,६,११; अचित्तजोणीय (अचित्तयोनिक) प ६।१६ ३६।६४ ज २१६ ; ३।३,६५,११५,१२४,१२५ अचित्ताहार (अचित्ताहार) १२८।१,२ १५६; ५॥१६,५२,७१३०,१८६।३ उ ३४८, अचिरयत्त विवाह (अचिरवृत्तविवाह) सू २०१७ ५०,५१,६४ अचेलय (अचेलक) ज २०६६ अग्गिकुमार (अग्निकुमार) प १४१३१; १३ अचोक्ख (दे०) ज ५१५ ६.१८ ज २११०५,१०६ अच्च (अर्च ) अच्चे इ उ ५।अच्चेति ज० २११२० अग्मिदेवया (अग्निदेवता) सू १०१८३ अच्चंत (अत्यन्त) उ ११७२,७३,८७,८८,६२, अग्गिमाणव (अग्लिमानव) प २१४०१७ ३।४८,५०,५५ अग्गिमेह (अग्निमेघ) ज २।१३१ अञ्चणिज्ज (अर्चनीय) ज ७११८५ सू० १८१२३ अग्गिल (अग्निल) सू २०१८।५ अच्चणिया (अनिका) ज ४११४०११ अग्गिवेस (अग्निवेश्मन्) ज ७१११७,१२२१३, अच्चसण (अत्यशन) ज ७.११७१२ सू १०।८६४२ १३२।३ सू १०८४।३,१०।८६।३ अच्चासण्ण (अत्यामन्त्र) ज २१६०३।२०५,२०६, अग्गिसीह (अग्निसिंह) प २१४०१६ ५५८ अग्गिहोत्त (अग्निहोत्र) उ ३।५५,६३,७०,७३ अच्चासन्न (अत्यासन्न) ज ११६ अग्गिहोम (अग्निहोम) ज ५११६ अग्धा (आना )-अग्याति प १५।३८,४२ अच्चि (अचिस्) प १।२६२१३०,३१,४१,४६ अच्चिणेत्ता (अर्चयित्वा) ज ३८८ अग्घाडग (दे० अपामार्ग) प १।३७१४ अच्चिमालि (अचिर्मालिन् ) प २१५०,५४,५८ से६० अचंचल (अचञ्चल) ज ३।१०६ अचंडपाडिय (अचण्डपातित) ज ३।१०६ ज ७१८३ सू १८।२१,२४,२०१६ अच्चिसहस्तमालणीय (अचिस्सहस्रमालनीक) अचक्खदसण (अचक्षुर्दशन) प ५१५,७,१०,१२, ज४।२७,५२८ १४,१६,१८,२०,२१,४५,५३,५६,५६,६३, अच्च इंद (अच्युतेन्द्र) ज ५१५८ ६८,७१,७४,७८,६३,६७,२६।३,७.१०, १३,१४,१७,१६ से २१ अच्चुण्ह (अत्युषण) ज ७११२।१ सू१०।१२६।१ अचक्खुदंसणावरण (अचक्षुदर्शनावरण) प २३।१४ । अच्चुत (अच्युत) प १४१३५२१४६,५६,६०,३११८३ अचक्खुदंसमि (अचक्षदर्श निन् ) प ३।१०४; अच्चुतव.सय (अच्युतावतंसक) प २६५६ ५१४७,६५,८०,६६,११७,१८१८६ अच्चुय (अच्युत) प २१४६,५६,५६२,६३,४१२६४ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अच्चुयग-अजीवपज्जव से २६६,६३८,५६,६६,८५,८६,६८,७१६; १८८, २०१६१,२११६१,७०,६१,६२२६ ३०/२६,३३।१६,२४,३४।१६, १८ ज २१६४; ५३४६, ५४,५६,५८,५६ उ २२२५.४१ अच्चुग (अच्युतक) ज ५१४६ अच्चेत्ता (अर्चयित्वा ) ज २।१२० अच्छ ( रुक्ष ) प १६६,११।२१ ज २१३६, १३३ अच्छ (अच्छ) प १९३१४२२३०,३१,४१,४६,५० ५.२,५८,५६,६३,६४ ज १८ से १०,२३,३१, ३५,५१:३।१२,८८,१६,१६४४११, ३, ७.१२, १५, २४, २५, २८ से ३१,३० से ४१,४५,५७, ६२,६४,६६ से ६८,७४ से ३६,८६,८८, ११ से ९३,१०३, ११०,११४,११८,१४३, १५६ १७८, २०३,२०६,२१३,२१८,२४२२४५ २५१,२५२,२६०१२,५३५६, ३१५५ म् 21१; १६।२३ √ अच्छ (आम्) अच्छेज्ज व २२६४।१६ अच्छत्तय (अछत्रक) उ५।४३ अच्छरगण ( अप्सरोगण ) प २१३०,३१,४१ ज १।३१ अच्छरसातंडुल (अप्सनस्तण्डुल ) ज ३११२,८८ ५।५८ अच्छरा (दे० ) प ३६८१ अच्छरा ( अप्सरम् ) प २४|११ से २४ उ ५ ५ अच्छि (अक्षि ) प १४६१४७, १११२५ चं १३१ ज २२४३;३११७८७।१७८ उ० ३१११४ अच्छिण्ण (अच्छिन्न ) प १५।४० से ४२ अच्छि ( अछिद्र ) ज २११५ अच्छिरोड ( अक्षिरोट ) प ११५.१ अच्छिवेह ( अक्षिवेध ) प ११५१ अच्छी (ऋक्षी ) प १११२३ अच्छेरग (आश्चर्य ) ज २११५ अजर ( अजर ) प २१६४२१ १ अच्छो रसो येषां ते अच्छरमाः प्रत्यासन्नवस्तु प्रतिविम्वाधारभूता इवातिनिर्मला इतिभाव: टीका पत्र १६२ अजसो कित्तिणाम (अयश: कीर्तिनामन् ) प २३३८, १२८ अजहरण ( अजघन्य ) प २३।१६१ से १९३ ज २११५ अहमreate ( अजघन्यानुत्कर्ष ) प ४।२६७, २६६, ५४२,४६, ६४,७६, ११२, ११६,२४४; ७३०, १८११०२२/२३६३२८१६७ मक्कोसगुण ( अजघन्यामुत्कर्वगुण) ८१५ ५३८,६०,७५,२०,१०८,१२१,१६४,२०१, २०४,२०८,२१२,२१५,२१६,२२२,२२५,२४३ अजहण्णमणुक्कोसट्ठितिय (अजघन्यानुत्कर्षस्थितिक ) प ५१३५,५७,७२,८७,१०५, १७५, १७८,१८२, १८५,१६८,२४० अजहणमणुक्कसपदेसिय (अजघन्यामुत्कर्पप्रदेशिक) प २३१,२३२ अजहण्णमणुक कोसमति ( अजघन्यात्कमति ) ५१६४ अजहण मणक्को सो गाहणम (अजघन्यानुत्कर्षावगाहनक) प ५११७१,१७२,२३६,२३७ अजहष्णमणुककोसोगाहणय ( अजघन्यानुत्कपवगाहनक ) प ५५०,५४,६६, ८४, १०२, १५२, १५८ १६०,१६४,१६७,१७२,२३७ अजष्णुक्कोस ( अजघन्योत्कर्ष ) प ५४,६८ अज हृणुक्को सो गाहणग ( अजघन्योत्कर्षोवगाह्नक ) प ५३१,३२ अजहष्णुकोसोगाहणय ( अजघन्योत्कपीवगाहनक ) प ५३२,१६१ अजाइय (अयाचित ) उ० ३।३८ अजावणिज्ज ( अयापनीय ) ज२११३१ अजिण ( अजिन ) ज ७६ अम्हि (अजिह्म) ज २।१५ अजिय ( अजित ) ज० ३।१८५,२०६ अजीरग ( अजीरक) ज २२४३ अजीव (अजीव ) प १११०१।२१५।५७ ज २१७१ सू २०११ ३।१४४ : ५/३४ अजीवपज्जव ( अजीवपर्यव ) प ५।१,१२३ से १२५, २४४ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजीवषण्णवणा-अट्ट अजीवपण्णवणा (अजीवप्रज्ञापना) प ११ ४,९ अजीवपरिणाम (अजीवपरिणाम) प १३।१,२१,३१ अजीवमिस्सिया (अजीव मिथिता) ५११६३६ अजोगया (अयोगता) ३६६२ अजोगि (अयोगिन् ) प ३।६६:१३।१६,१८५८; २८११३८ अजोगिकेवली (अयोगिकेवलिन ) प १५१०८,११०, अजोगिभवत्थकेवलि (अयोगिभवस्थकेवलिन) प१८११०१:१०३ अजोणि (अयोनि) प ६१६ अजोणिय (अयोनिक) प ६१२,१६,२५ अज्ज (अद्य) ज २११४६ सू १०।१६२ से १६६ अज्ज (आय) ज ३।१२४७।२१४ अज्जग (अर्जक) ज ५७२,७३ अज्जग (आर्यक) उ १।१०५ से १०७,११६ अज्जम (अर्थमन्) ज ७.१३०,१८६।४ अज्जमदेवता (अर्यमदेवता) मू १०१८३ अज्जय (अर्जक) प ११४४१३ अज्जल (आर्यल) प ११८६ अज्जव (आर्जव) ज २०७१ अज्जसुहुम्म (आर्य सुधमन् ) उ ११२,३ अज्जा (आर्या) उ ३१६६ से १०४,१०६ से १०८, १११ से १२०, १३२ से १३६,१४१,१४२ १४३,१४५,१४६,१४८ से १५०,४।२१ से २४ अज्जिय (अजित) ॐ ३।१७५ अज्जिया (आयिका) ज २१७५,८२ उ ३.१२ अज्जुण (अर्जुन) प ११३६१३,४२११ ज ३१११७ अज्झत्थवयण (अध्यात्मवचन) प १११८६ अज्झस्थिय (आध्यात्मिक) ज ३।२६,३६,४७,५६, १२२,१२३,१३३,१४५,१८८:५२२ उ ११५ १७.५१,५४,६५,७६,७६,६६,१०५,३१२६ ४८,५०,५५,६८,१०६,११८,१३१:५।३६,३७ अज्झयण (अध्ययन) प शश३ ज ७११४ च ५१२ मु ११३।२।१०।७८ उ ११६ से ८, १४२,१४३, १४८; १ मे ३,१४,१५,२१:३।२,३,१६,२०, २२,२३,८७,८८,१५३,१५४,१६६,१६७,१७०, ४१ से ३,२७,५२,३,४४,४५ अज्झवसाण (अध्यवयान) प ३४११११,३४।१३ ज ३२२२३ अज्झावस (अधि: आ. वम् )-अज्झावमइ ज २६४ अज्झावसमाण (अध्यावमत्) ज ६४ अज्झावसित्ता (अध्योप्य) जश६४ अज्झोववण्ण (अध्यापपन्न) उ ३१११४,११५,११६ अझुसिर (अशुषिर) ज ३।३ अट्ट (आत ) उ ११५२,७७ अट्टइ (दे०) १०११३७३ अदृज्झाण (आर्तध्यान) ज ३।१०५ उ १।१५:३।१८ अट्टालग (अट्टालक) ज २१२० अट्टालय (अट्टालक) ५ २१३०,३१,४१ अट्ठ (अष्टन ) प १५० ज शांचं ३२ अठ्ठ (अर्थ) प ५६३,५,७,१०,१२,१४,१६,१८,२०, २४,२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६,५३,५६, ५.६,६३,६८,७१,७४,७८,८३,८६,८६,६३,६७, १०१,१०४,१०७,१११,११५,११६,१२७,१२६, १३१,१३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७, १५०,१५४,१५,१६३,१६६,१६६,१७२,१७४, १७७,१८१,१८४,१८७,१६०,१६३,१६७,२००, २०३,२०७,२११,२१४,२१८,२२१,२२४, २२८,२३०,२३२,२३४,२३७,२३६,२४२; १११३,११ से २०,३६,४१,१५१४४,४८,४६; १७।१ से ६,८ से १७,२०,२२,२४,२५,२७, १०७,१०६,१११,११६,११६,१२३ से १२८, १३० से १३२,१३५,१५०,१५२,१५५:२०१२ ३,१४ से १७,१६ से २५,२७ से ३०,३३,३४, ३६ से ४८,५० से ५२,५५,५६,२२१८,७६, ८०,८२,६२,६४,६५:२८१४,२५,२७,२६,३८, ४७,५०,७३ से ७५,८७,२६१३,१६ से २१; ३०११६,१६,२१,२३,२५,२६,२८:३४.१२. Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठअसीय-अट्ठहत्तर ८१७ १६,१८,३५११८,२०,२३; ३६१८०,८१,८३, ८८६२,६४, ज १११,४५,४७,५१; २११७,१८,२१ से २३,२५,२६,३० से ३३, ३८ से ४०,४२,४३,५२,५६,१५६.१६१,३।१ ६,६१,६८,१०६.१०७,११३,११४,१८६, १६६,२०९,२२६,४।१६,२२,३४,३७,४१,५१, ५३,५४,६०,६१,६४,७०,७६,७६,८१,८५, ८६,८६,६०,६३,६७,१०२,१०७,१०८,११०, ११३,१४१,१४२,१४६,१५१,१५६,१६१,१६६, १७७,१८०,१८४,१८६,१८८,१६३,१६६, १६६,२००,२०३,२०५,२०६,२०६ से २११,२६१,२६४,२६६,२७०,२७२,२७३, २७६,२७७,२७,७५१६६,१८४,१८५,२०६, २१३,२१४ सू १६।२,४,६,१८१२२ उ ११४, ८,१७,२३,२४,३७ से ४०,४२,४३,५५,५७, ५८,६७,८०,८२,८३,८८,६६,१००,१०२, १०४,१०७,११५,११७,११६,१२०,१२२, १२७.१४२,१४३,२।१,३,१४,१५,२१,३३१, ३,१३,१६,२०,२२,२३,२६,३८,४०,४२,४४, ५६,६१,७७,८७,८८,१०२,१०७,११६ से ११८,१२३,१४०,१४७,१५३,१५४,१६०, १६६,१६७,१७०,४।१,११,२७,५१,३,१५, ३८,४३,४४ अट्ठअसीय (अष्टाशीति) सू १८।१ अट्ठक (अप्टक) सू १३०५,६ अट्ठकणिय (अप्टकणिक) ज ३४६४,१३५,१५८ अद्वछत्ताल (अष्टचत्वारिंशत् ) सू १०।१४६ अट्ठजोयणिय (अप्टयोज निक) प २१६४ अट्ठतरि (अप्टसप्तति) सू ४।५ अट्ठतीस (अष्टत्रिशन् ) प २।३८ ज ११२० सू. १०११५२ उ ३.१२ अट्ठपंचासत (अप्टपञ्चाशीति) सू १२३ अठ्ठपदेसिय (अष्टप्रदेशिक) प १०।१३,१४ अपिणिठ्ठिया (अष्टपिटनिष्ठिता) ५१७११३४ अट्ठभाग (अष्टभाग) प ४११७१,१७३,१७४, १७६,२०१,२०३,२०४,२०६, ज २।५९; ४१२१५,७।१६५,१६६ सू १८१२५,२६,३४,३६ अट्ठम (अष्टम) प ३६।८५,८७ ज २१७१,४।२११ ५।१०।७१६७ मू १०७७:१२।१७,१३१८ उ २०१०,२२, ३११४,८३.१५०,१६१,४१२४; ५।२८,३६,४३ अट्ठमंगलग (अष्टमंगलक) ज ३।१७८,२०२, २१७,४।२८,११५,१३८,१५८,५१४३,५८ अट्ठमंगलय (अप्टमंगलक) ज ३१२,८८,४।१२५ अट्ठमभत्त (अष्टमभक्त) प २८१५० ज ३२०, २१,२८,३३,३४,४१,४६,५४,५५,५८,६३, ६४,६६,७१,७२,७४,८४,८५,१११,११२, ११३,१३१, १३७ से १३६,१४३,१४४, १४७,१६६,१६८,१८२,१८३,१८७,१६१, २१८ अट्ठमभत्तिय (अष्टमभक्तिक) ज ३।५४,६३,७१, १११,११३,१३७,१४३,१६७,१६० अट्ठमी (अष्टमी) ज ७।१२५ अट्ठया (अर्थ) सू १७११;२०११ उ ३१४४ अट्ठविह (अष्टविध) प ११४,१३२,१३१२६; २११५५:२२०२१ से २३,२८,८३,८४,८६,८७ १०:२३।१५,१६,२१,२२,३०,३१,५०,५८%; २४।२ से ८,१० से १३,२५।४.५:२६१२ से ६, ८ से १०,२७१२,३; २६।२ सू ६३५ अट्ठवीस (अष्टविंशति) प २१५६।१ अठ्ठसइय (अष्टशतिक) ज २१६४ अठ्ठसठ (अष्टपप्टि) ज ७३१ सू ४।४ अट्ठसठ्ठि (अप्टषष्टि) ज ६।१५ अट्ठसमइय (अप्टसामयिक) प ३६१३,८५ अठ्ठसयमंगुलमायत (अष्टशताङ्गुलायत) ज ३।१०६ अट्ठसुवण्ण (अप्टसुवर्ण) ज ३।६५,१५६ अट्ठसोवपिणय (अप्टगौवणिक) ज ३१६४,१५८ अट्ठहत्तर (अष्टसप्तति) प २।२१ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१८ अदृहत्तरि-अणंत अठहत्तरि (अष्टसप्तति) ज ७३२,३४ अड (दे०) प ११७६ अट्ठा (अष्टा) ज २१६५ अडड (अटट) ज २१४ अट्ठाणउइ (अष्टनवति) ज ७६८ अडडंग (अटटाङ्ग) ज २१४ अट्ठानउति (अष्टनवति) सू १०११६५ अडतालीस (अष्टचत्वारिंशत् ) सू ११२३ अट्ठाणउय (अप्टनवति) सू १०११७३ अडमाण (अटत् ) उ ३।१००,१३३ अट्ठार (अष्टादशन) प १०।१४।४ से ६ ज ४।६२ अडयाल (दे०) ५२।३० अटठारस (अष्टादशन् ) प २१२४ जं ११४८ स अडयाल (अष्टचत्वारिंशत् ) ज ११२० सू ११२४ १११३ उ १५१०४ अडयालीस (अप्टचत्वारिंशत् ) ज २१६ सू ११२४ अडवीबहुल (अटवीबहुल) ज १११८ अट्ठारसवंक (अष्टादशवक्र) उश६६,१०२ से अडसदिछ (अष्टषष्टि) सू १५।२ ११७,११६,१२७,१२८ अडिल (अटिल) ११७८ अठारसविह (अष्टादशविध) प १६८ अड्ढ (आढ्य) ज ३।१०३ उ १६१४१:३।१०,२१ अट्ठावण्ण (अष्टपञ्चाशत) ज ४११४२ २८,६६,१५८,४७ अट्ठावय (अष्टापद) ज २॥१५,८८,६०,३१२२४ अठ्ठावीस (अष्टाविशति) प २१२३ ज ११७ ११४ अड्ढाइज्ज (अर्धतृतीय) प ११३४,८४,२७,२६; १८१४५;२११६६,६७,३३१५,६ ज ११३८,४३; अट्ठवीसइभाग (अष्टाविंशतिभाग) सू १०११४२ ४।१०,१२,४३,४५,५७,७२,७८,११०,१४७, अट्ठावीसइविह (अप्टविशतिविध) ज ७।११३ सू १८३,२१५,२२१,२४५,२४८,५१५.२ सू ११२३ १०।१३० १८१ अठ्ठावीसतिभाग (अष्टविंशतिभाग) प २३११०२ अणंगसेणा (अननसेना) उ ५।१०,१७ से १०४,१५२ मू १२१३० अणंत (अनन्त) ११५१३,४८,११४८७,८, १० से अठावीसतिविह (अष्टाविंशतिविध) प ११८६; १६,३० से ३३,३८ से ४२,५०,५२,५७,५८, ६०,२२६४।१०,११,१३,१५,१६:५२ से ७, अठ्ठावीसविमाणसयसहस्साहिवइ (अष्टाविंशति ६ से २०,२३,२४,२७ से ३४,३६,३७,४०, विमानशतसहस्राधिपति) ज २६१ ४१,४४,४५,४८,४६,५२,५३,५५,५६,५८,५६, अटासोइ (अष्टाशीति) सू २०१८16 ६२,६३,६७,६८,७०,७१,७३,७४,७७,८२,८३ अट्ठासोति (अष्टाशीति) सू १८१४,२०१८ ८५,८८,६२,६६,१००,१०१,१०३,१०६,११० अट्ठासीय (अप्टाशीति) ज ११२३ सू १०११४१ ११४,११८,११६,१२६ से १३०,१३३,१३५, अठ्ठाहिय (अष्टाहिक) ज २१११७ से १२०७३।१२ १३७,१३६,१४२,१४४,१४६,१४६ से १५४ से १४,२८,३०,४१,४२,४३,४६ से ५१,५८ से ६०, १५६,१६२,१६५,१६८,१७१,१७३,१७६, ६६ से६८,७४ से ७६,१३६,१३६,१४७ १८०,१८३,१८६,१८६,१६२,१९६,१६६,२०२ से १५१,१६८ से १७०, ५७४ २०६:२१०,२१३,२१७,२२०,२२३,२२७, अछि (अर्थिन् ) ५२८.११,२८१३,२५,२८,३७, २२६,२३१,२३३,२३८,२४१,६४६३,१०।१६, ४६, ज ३।१०६ १८ से २०,१२१७ से ११,२०१५।१४,१५, अदिठकच्छभ (अस्थिकच्छप) प १४५७ २७,३२,५७,८३,८४,८७,८६ से १६, १०३, अट्ठिय (अस्थित) प १११८० से ८३ १०४,१०६,११२,११५,११८,११६,१२१, अठिय (अस्थित) प१०४१ १ अडयाल शब्दो देशीवचनत्वात् प्रशंसायाची , રા: Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतक-अणघ १२२,१२६,१२६,१३०,१३५ से १३७, १३६ से १४२,१६:३७,१७११४२,१८।३,१४, २७,४५,५६,६४,७७,८३,६०,१०८:३६५८, १२,१४,१६,१८ से २६ ३२ से ३४,४४ से ४७,८३१२ ज २१६,५१,५४,७१,८५,१२१ १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, १६३;३।२२३:५।२१,५८ अणंतक (अनन्तक) ज ३१२११ अणंतखुत्तो (अनन्तकृत्वस्) ज ७१२१२ अणंतगण (अनन्तगुण) प २०६४1१५,३।३८ स ४२ ४६ से ५२,६० से ६३, ७१ से १४,८४ से ८७,६५ से १०२,१०५ से ११५,११८,१२२, से १२४,१७५,१७७ से १७६,१८२,१८३; ५१५,१२६,१५१,१५२,६।१२,१६,२५,१०१४, ५,२९,३०,१११५४,५६,५८,६०,६१,७२,७८, १०।१२।७,१०,२०,१५:१३,१६,२६,२८,३१, ३३,१७१५६,५६,६६,१४४,१४६,२१।१०४; २८1७,१०,११,४१,४४,५३,५६,५७,७०; ३६।३५,४८ ज २१५१,५४,१४६,१५४,१६०, १६३ सू २०१७ अणंतनाणि (अनन्तज्ञानिन् ) ज ६४।३ अणंतपएसिय (अनन्तप्रदेशिक) प ५११३७,१३८, १६८,१६६,१७१,१७२,१८७,२०२,२०३, २०६,२०७,२२४;१०११४,१७,२०,२४,२६, ३०,१११४६;१५।११,२४,१६।४३ । अणंतपदेसिय (अनन्तप्रदेशिक) प ३११७६; ५।१२७,१७२,१८६,२०७,२२३,२२४१०१७, २५,१६३३६,१७।१४०:२८१२,५१,३०॥२६, १७ से २५ २७,२६,३२,३४,३८ से ४०,४५ ५२,३४।१।१३४।१ से ३; ३६३६२ ज ३।१७८ २११:४।३६,७२,७८,६५,१०३,१४३,१७८, २००,२०२,२१२,५४४३,७।६,१०,१२,१३,१५ १६,१८ से ३० ४२,५०,६८,६६,७१,७२,७४ ७५,७७,७८,८०,८३,८४, सू१।१४,१६,१७, २१,२४,२७,२।२,३;६।१८।१६।१:१३।१४; १६।२२।२५ उ ११४१:३१६२,१२५,४।२६, २८,३०,४३ अणंतरपच्छाकड (अनन्तरपश्चात्कृत) सू८०१, ११२ से ६ अणंतरपुरक्खड (अनन्तरपुरस्कृत) सू८।१; १११२ से ६ अणंतरसिद्ध (अनन्तरसिद्ध) प १११,१२, १६३५,३६ अणंतरोवगाढ (अनन्तरावगाढ) प १११६३,६४, २८।१३,१४,५६,६० अणंतरोववण्णग (अनन्तरोपपन्नक) प १५१४६ ३४.१२ अणंतसमयसिद्ध (अनन्तसमयसिद्ध) पश१३ अणंताणुबंधि (अनन्तानुबन्धिन् ) प १४।७; १८।१; २३।३५ अणंसुपाति (अनथुपातिन् ) ज ३१०६ अणगार (अनगार) ५ १५.११,१५१४३; ३६।७६ ज १३५; १६५,६७,८३,८५,८७, ८८,६५,९६,१०० से १०२,१०४,११४,चं १० सू१।५ उ १।२,३२६ से १२,३११३, १४,१६१,५।२१,२२,२७,२८,३२,३८ से ४१ २८ ४३ अणगारचियगा (अनगारचितका) जं २।१०५ से अणंतभाग (अनन्तभाग) प ५१५,१२६,१२१७,१०, २०:१५।५७२८।२२,३४,३६,६८ अणंतमिस्सिया (अनन्तमिश्रिता) प १११३६ अणंतय (अनन्तक) प १२४८।५२ अणंतर (अनन्तर) प २१६४:६१९६,१०१,१०३, १०५,११०,१११६६।१,२०११।१:२०१६ से १५ अणगारिया (अनगारित!) प २०११७,१८ उ ३।१३,१०६ से १०८,११२,११८,१३६, १३८,१३६४१४,१९,५३२,४३ अपघ (दे०अक्षत) ज० ३८१ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२० अणग्वाइज्जमाण (अनाश्रायमाण ) प २८१४३, ४४,६६,७० अणग्धिय ( अनधित) ज ३।९२,११६ अणतिवर ( अनतिवर ) ज ३०११६ वाह (अभ्रवाह) ज ३११०६ अभिगहिय ( अनभिगृहीत ) प १११०१।११ अभिगहिया (अनभिगृहीता ) प १११३७।२ अरिह (अनर्ह ) उ १।४०, ४३ अणव (ऋणवत् ) ज ७।१२२/३ सू १०२८४१३ अणवखमाण (अनवकाङ्क्षत् ) ज ३।२२४ उ० २।११ अणवगल्ल (अनवकल्प ) ज २|४|१ अणवति (अनवस्थित) सू ६ | १०८११०: १३।१७,१६।२२।१०,२७ अणवट्ठिय (अनवस्थित) प ३३ ३५, ३६ ज ७ ३१, ३३ सू ४१३ से ७ अणर्वाणद (अणपन्निकेंद्र ) प २०४६ trafore ( अपनिक) प २१४१, ४६ वणिकुमार राय ( अणपन्निककुमारराज ) प २२४६ अणवन्निय (अणपत्रिक) प २१४६, ४७।१ अणवरय ( अनवरत ) ज २२६४६३।१८५, २०६ अणसण ( अनशन ) उ २११२:३११४, ८३, १२०, १५०,१६१५२८,३६,४१,४३ अणरसाइज्जमाण (अनास्वाद्यमान) प २८/४३, ४४ ६६,७० अह ( अनघ ) सू २०७ अणह (दे०अक्षत) ज ३१८१ अणाई (अनादिक ) प १८११३,१०५ अणाज्जणाम ( अनादेयनामन् ) प २३|१२६ अागतद्धा (अनागताध्वन् ) २२६४, ३६।६३ अपाय ( अनागत ) ज २६०, ३१२६,३६,४७, ५६,१३३,१३८, १४५, ५१३, २२, ७१३६, ५२ अद्धा (अनागताध्वन् ) प ३६।६४ अणागयवयण (अनागतवचन ) प ११८६ अणगघा इज्ज माण- अणाहारग अणागार ( अनाकार ) प २६४।१२ : २६।११ ; ३०/२६ से २८ अणगारपरिस (अनाक रदर्शिन् ) प ३०।१५ से १८ २०,२२,२३ अणागारपासता ( अनाकारदर्शन, पश्यत्ता) प ३०११७ अणगारपाणया (अनाकार दर्शन, पश्यत्ता) प ३०११, ३, ५, ७,१२,१३ अणगारोवउत्त (अनाकारोपयुक्त ) प ३११०६, १७४; १३ १४; १८/६३; २६/१६ से २१ अणागारोवओग (अनाकारोपयोग ) प १३३८,२६११ ३, ५, ७, ८, १०, १३, १४ अणाघाइज्जमाण (अनाघ्रायमाण ) प २८१४४,७० अणादाइज्माण (अनाद्रियमाण ) उ ३१६२ अणाढायमाण (अनाद्रियमाण ) उ ३५६,६१,७७, ११६ अणादिय (अनादृत) ज ४।१५०,१५६,१६०; ७।२१३ उ ३/२,१७१ अणाणत्त (अनानात्व ) प २१३,६,६,१२,१५ अणानुगामिय (अनानुगामिक) प ३३१३५ treya (अनानुपूर्व्य) ज ७।४७ अणाणवी (अनानुपूर्वी ) प ११३६८२८१८, ६४ अणादि (अनादि) सू १६; ११।१ अणादीय (अनादिक ) प १८।२५, ५५,५६,६४,६८ ७७,८३,८६,६०,१११,१२२, १२३, १२६, १२७ अणादेज्ज (अनादेय) ज २११३३ अणाज्जणाम ( अनादेयनामन् ) प २३३३८ अणाभोगवित्तिय (अनाभोग निर्वर्तित ) प १४६; २८१४,५०,३४१५ अणारिय (अनार्य ) ज २१४३ अणालोइय (अनालोचित ) उ३।८३ १२० ; ४१२४ अबुट्ठिबहुल (अनावृष्टिबहुल) ज १।१८ अणासाइज्जमाण (अनास्वाद्यमान) प २८१४०, ४१,४४,७० अनाहारग (अनाहारक ) प ३|१०७ २८ । १०८ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणाहारय-अणुत्तर ५२१ से ११०,११२,११४ से ११६,११५११६, १२१,१२३ मे १२५,१३०,१३१,१३६ से १३६,१४१,१४२ अणाहारय (अनाहारक) प १८९७ से १०३; २८।१०६ से १०८,१११,११३,११७,११६, १२०,१२२,१२५,१२७ से १२६,१३२,१४३ अणिद (अनिन्द्र) प १६०,६३ ।। अणिदिय (अनिन्द्रिय) प ३।४०; १३१६; १८११७ अणिदिया (अनिन्दिता) ज ५११ अणि क्खित्त (अनिक्षिप्त) उ० ३५० अणिगण (अनग्न) ज २०१३ अणिच्चजागरिया (अनित्यजागरिका) उ० ३१५५ अणिच्छियत्त (अनिष्टत्व) प २८।२४ अणिज्जिण्ण (अनिर्जीर्ण) प ३६८२ अणिट्ठ (अनिष्ट) प २३।२० ज २११३३ अणितरिया (अनिष्टतरका) ११७४१२३ से १२५,१३० से १३२ अणिद्वत्त (अनिष्टत्व) १२८१२ अणिट्ठस्सर (अनिष्टस्वर) ज २११३३ अणिट्ठस्सरता (अनिष्टस्वरता) प २३।२० अणिढि (अद्धि) प ६१६८२११७२ अणिढिपतारिय (अनद्धिप्राप्तार्य) प ११६०,६२, १२६ अणित्थंथ (अनित्यंस्थ) प २१६४३६ अणिदा (दे०) १३५।१।१,३५१६ अणिदाया (दे०) प ३५११७ मे २०,२२,२३ अणिमिस (अनिमेष) ज ५।६७ अणिय (अनीक) १३० मे ३३,३५,४१,४३,४८ से ५१ ज ११४५, २१६०३१२५५१,१६, ४३,४४,५०,५६, सू १८१२३ अणियट्टि (अनिवृत्ति) मू २०१८,२०1८1८ अणियत (अनियत) सू ११२६ अणियय (अनियत) प १७२० अणियाधिवति (अनीकाधिपति) प २।३७ में ३३ ४१,४३,४८ से ५१ अणियाहिव (अनीकाधिप) ज ४।१५२२ अणियाहिबई (अनीकाधिपति) ज ११४५; १९० ४।१६,१५१,५१,१६,३६,४३,४८,५०,५२, ५३,५६ मू १८।२३ अणियाहिवति (अनीकाधिपति) प १३० अणिल (अनिल) ज २१६८ अणिवारिय (अनिवारित)उ ३.११६४१२२ अणीय (अनीक) उ १११४६; १४७ अणु (अणु) प १११६४,६५,६६।१२८।१४,१५, ६०,६१ ज ७१४३,५०,१६८ मू ६।१६।२; १७१,१८१२,३, १६२१ अणुउ (अन्तु) सू १०११२६।३ अणुकतनुक (दे०) ज ३.१०६ अणुगंतव्य (अनुगन्तव्य) ५११४८; १४०१५१५५ ज ७।१३४ 4 अणुगच्छ (अनु गम्) अणुगच्छइ ज ३१६:५।२१ उ ३।१०१ अणुगच्छति ज ३१०,११,५१,८६,८७ अणुगच्छति प १६१४८ अणुगच्छमाण (अनुगच्छत् ) ज ३।१८,३१,१८० अणुगच्छित्ता (अनुगम्य) ज ३१६ उ ३११०१ अणुगम्ममाण (अनुगम्यमान) उ ३११३० अणुगिण्हमाण (अनुगृण्हान) उ ११०७,१०८ 4 अणुचर (अनु+चर) ___ अणुचरंति सू १६।२२।११ अणुचरंत (अनुचरत्) सू १९४२२।११ अणुचरिय (अनुचरित) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८ ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ 1 अणुजाण (अनु-ज्ञा) अणुजाणउ उ ३१५१ अणुजाय (अनुयात) ज ३।२२,३५,३६ अणुडिया (अनुतटिका) र १११७७ अणुतष्ठियाभेद (अनुतटिकाभेद) प ११७७,७६ अणुडियाभेय (अनुतटिकाभेद ) 4 १११७३ अणुत्त (अणुत्व) ज ७।१६६ सू १८।३ अणुत्तर (अनुतर) परा२७,२७।८।४६,६३; Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ अणुत्तरविमाण-अणुलित २११५५, ३४।२३,२४ ज २०७१,८५, ३।२२३ अणुत्तरविमाण (अनुत्तरविमान) प २१६२।१; १०१२,३०।२६ अणुत्तरोववाइय (अनुतरोपपातिक) प १११३६, १३८, २।४६.६३ ; ३११८३, ६१४६,६६,६६, २८,११३ ; २०१५.७:२११५५,७१,८३,६३, ९४,३३११८,२६,३४।१६,१८ ज०२।८१ अणुत्तरोववातिय (अनुत्तरोपपातिक) ५२०५६; २११६२ अणुदु (अनृतु) ज ७.११२।३ अणुद्धय (अनुद्धृत) जं ३।१२,२८,४१,४६,५८ ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ ; ५५ अणुपरियट्ट (अनु--परि + वृत) अगुपरिट्टइ ज ७.१५६ से १६७ सू१०१६७ अणुपरियति ज ७१५५ सू १६।२३ अणुपरियट्टति सू १०५ अणुपरियट्टित्ता (अनुपरिवृत्य) सू १०५ अणुपरिट्टित्ताणं (अनुपरिवृत्य) प ३६८१ अणुपरिवाडीय (अनुपरिपाटीक) ज ७१३० अणुपविट्ठ (अनुप्रविष्ट) ज ३३८१ उ १।३३, ३८,१००,१३३ अणुपविस (अनु -प्र+विश्) अणुपविसइ ज ३१६,१७,२०,२१,२८,३१ से ३४,४१,४६,५४,६३,७१,७७,६५,१३७,१३६, १४३,१५६,१६६,१७७,१८२,२०१,२०४, २१८,२२२ सू२।१ अनुपविसंति ज ३१२०५, २०६ अणुपविमति ज ३.१८३,१८४ अणुपविसह उ ३।१०१ अणुपविसमाण (अनुप्रविशत) ज ३११८४,१८५ अणुपविसित्ता (अनुप्रविश्य) ज ३।६ मू २।१ अणुपुत्व (अनुपूर्व) ज २११५, ४१३।२५,३५ सू ६.१ उ ११५७,५८,८२,८३:३१४६ अणुप्पत्त (अनुप्राप्त) उ ३११२७,१२८,५१४३ अणुप्पयाहिणीकरेमाण (अनुप्रदक्षिणीकुर्वत्) ज ३१२०४ से २०६,२०८,५१४१ अणुप्पवाएमाण (अनुप्रवाचयत्) ज ३१२६,३६, ४७,१४३ अणुप्पवाय (अनु-प्र- वाचय) अणुप्पवाएइ ज ३।२६,३६,४७,१३३ अणुबंध (अनुवन्ध) ज २४२ अणुबद्धचारि (अनुवद्ध चारिन् ) सू २०१२ अणुब्भड (अनुभट) ज २११५ अणुभाव (अनुभाव) प २३५१३१,२३।१३ से २३ ज ४१८३ च १५ १६६१५१६२२११६,२० अणभावणामणिहत्ताउय (अनुभावनामनिधत्तायुष्क) प६।११८ अणुभावणामनिहत्ताउय (अनुभावनामनिधत्तायुक) ५६।११६,१२२ अणुभावनिहत्ताउय (अनुभावनिधत्तायुप्क) १६१२३ अणुमण्ण (अनु। मन्) अणुमण्णित्थ; उ ३३१०६ अणुमय (अनुमत) प १११३०३१,२ ज २०१५ उ ३.१२८ अणुमाण (अनुमान) सू ।३ अणुमाणइत्ता (अनुमान्य) उ ३५५ अणुयाय (अनुयात) ज ३१६३,९६,१०६,१६३, १७५,१८० अणुरंगिणी (अनुरङ्गिनी) सू १०१७४ अणुरंजिएल्लिय (अनुरञ्जित) ज ३१११७ अणुरत्त (अनुरक्त) सू २०१७ उ १५१३६ अणुराग (अनुराग) प २१४०।११ उ ११७२,७३, ८७,८८,६२ अणुराधा (अनुराधा) सू १०१२ से ३, १८ अणुराहा (अनुराधा) ज ७.१२८,१२६,१३६।१, १४०,१४६,१५२,१६६, सू १०१२ से ६,१८, २३,५०,६२,७३,७५,८३,११५,१२०,१३१, अणुलिप (अनु ।-लिप) अलिपइ ज २१९९%3B ३॥१२ अणुलिपति ज २१००३।१२,२११, ५१५८ अणुलिपित्ता (अनुलिप्प) ज २NEE अणुलित्त (अनुलिप्त ) प २।३१ ज ३१६,२२२ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुलिह-अण्णतरठितिय ८२३ अणुलिह (अनु + लिह) अणुलिहंति ज ३१७८५४३ अणुलिहंत (अनुलिहत्) उ ५१५ अणुलिहमाण (अनुलिखत्) प २०४८ अणुलेवण (अनुलेपन) प २१२० से २७,३०,३१, ४१,४६ ज २७० अणुलोम (अनुलोम) ज २।१६,६७ अणुलोमच्छाया (अनुलोमछाया) सू ६।४ अणवत्त (अनुपयुक्त) प १५१४८,४६ ; ३४११२ अणुवत्तमाण (अनुवर्तमान) ज ५।२७ अणुवम (अनुपम) प ३०१२७,२८ अणुवरयकाइया (अनुपरतकायिकी) प २२१२ अणुक्वेत (अनुपेत) प १७।१३२ अणुवसंत (अनुपशान्त) प १४।६ अणुवसंपज्जमाणगति (अनुपसंपद्यमान गति) प १६१३८,४२ अणुवसंपज्जित्ताणं (अनुपसंपद्य) प १६४२ अणुवाय (अनुवाद) ज ४१०१ अणुवायगइ (अनुपातगति) सू १:१४ अणुवासिय (अनुवासित) ज ५।५ अणविद्ध (अनुविद्ध) ज ३.१२,८८५.५८ अणुव्वय (अणुव्रत) उ ३८१,८२ अणुसज्जमाण (अनुसजत् ) ज ४१२०५ अणुसज्ज (अनु | पंज) अणुसज्जित्था ज २१५० अणुमजिस्म ति ज २११६२, १६४ अणुसमवयणोववत्तीय (अनुसमवदनोपपत्तिक) ज ३।१६७।१२ अणुसमय (अनुसमय) प ६।१६,६२,६३ ; १११७०; २८१४,२६.५० अणुसार (अनुमार) प २११८० ज० ५१५७ उ ५.४५ अणुहर (अनु+ह) __ अणुहरंति ज ३११३८ अणुहो (अनु ! भु) अणुहोति प २१६४।२२ अणूण (अनून) सू १९०२११८, १९४२२०२८ अणेग (अनेक) प १३८३३,११४८१६,४७:११०११ ७; २।४१,६४ ज ११३७,२।१२,११३,१४६; ३१३,६,१२,२२,२४,२८,३१,३६,४१,४६,५८, ६६,७४,७७,६३,६६से१०१,१०६,१११,११६, १२०,१४७,१६३,१६८,१६३,२१२, २१३, २२२, ४।३,६,२५,३३,१२०,१४७,२१६, २४२; ५।३,४,२८,३२,३३,४३ उ श६७ से १६; ३।४३,४४,५१०,१७ अणेगजीविय (अनेकजीवित जीवक) प १३५,३६ अणेगविह (अनेकविध) प १।१३,२०,२३,२६,२६, ३५ से ५१,५६,६३ से ६६,७०,७१,७५,७६, ७८,७६.८६,६६,१६।३०,३७ अणेगसिद्ध (अनेकसिद्ध) पश१२,१६॥३६ अगिदिय (अनेकेन्द्रिय) प १११३८ अणेरइय (अनैरयिक) प१७१६०,६१ अणेसणिज्ज (अनेषणीय) उ ३।३८ अणोगाढ (अनवगाढ) प १११६२,२८।१२,५८ अणोवम (अनुपम ) ज ३१६२,१०६,११६ अणोवमा (अनुपम!) प २१६४११८,१७।१३५ अणोवमा (दे०) ज २।१७ अणोवाहणय (अनुपानत्क) उ ५१४३ अणोहद्रिय (दे०) उ ३३११९४१२३ अण्ण (अन्य) प १२०,२३,२६,२६,३५ से ३७,३६ से ४७,४८१७.१० से २६% ११४८ से ५१,५६, ६०,७८,६६,६७,२२३० से ३३,४८ से ५५; १०२१ से २५, ३६.६४ ज ११४५,४६; २।२०,७१,६०,३८१,१८६,१८८,२०६, २१०,२१६,२२१; ४११३,१४,५२,११४,१४६, १५६,१६५,२०६,२१६,२१६,२२१; ५:१,५, १६,२४,३८,४७,५०,६७, ७।५६,५६,१८३, १८५ सू ६.१:१०।१६२ से १६४,१६६; १७११,१८१२१,२३,१६६११,२४, २०११ उ ५।१०,१७ अण्णतर (अन्यतर) मू ६३१ अण्णतरठितिय (अन्यत रस्थितिक) प २८१५०,५१ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२४ अण्णत्थ-अस्थि अण्णत्थ (अन्यत्र) प ११।११ से २०,४६ र १।१४, अतिवतित्ताणं (अतिव्रज्य) प २८।१०५ ; ३४।१६ - १७,१०११३६; २०१७ अतिसीत (अतिशीत) सू १०११२६।१ अण्णमण्ण (अन्योन्य) प१६।३६,४२ ज २।३६, अतिहि (अतिथि) उ ३१४८,५०,५१ ४१,१४६,३।१०५,१०७,११३ से १३८; अति (अति-!-इ) अतीति ज ३।६३,६५ ५१३,२७,३८ सू १११८ से २१ उ ११४७,६८, अतीत (अतीत) प १५१८३,८४,८६ से ६७,६६ १३८,१३६ से १०१,१०३ से १०६,१०६,११०,११२ अण्णयर (अन्यतर) प २२१६१ से ६५:२३।१६१ से ११७,११६,१२०,१२२,१२३,१२५ १६२ ज २६६ में १३२,१३५,१३६,१४०,१४१,१४३, ३६१८ अण्णया (अन्यदा) ज ३।४,८३,१०४,१३०,१५४, से २६,३० से ३४,४४, से ४७ १७२,१८८,२२२ उ १११४; १८, ३१४६; अतीय (अतीत) प १५१०८,११८,३६१३४ ४।२१:५।१३ अतीव (अतीव) ज ५।३८ अण्णलिंगसिद्ध (अन्यलिङ्गसिद्ध ) प ११२ अतुरिय (अत्वरित) ज ५१५,७ अण्णहा (अन्यथा) प ११०११३,५ उ १।१०६ ___ अतुल (अतुल) प २१६४।२० अण्णाण (अज्ञान) प ५१२४,२८,३०,३२,३४,३७, अत्त (आत्मन) प १५१५० ज ३।२२२ उ ३८३, ४३,४५,४६,५३,५६,६८,७१,७४,८०,८३,८४ १२०, १५०५२८,४३ ८६,८७,८६,६७,६६,१०१,१०२,१०४,१०५, अत्तय (आत्मज) उ १२१०,३१,६५,१०६,११०, १०७,११७ ११३,११४, २६ अण्णाणपरिणाम (अज्ञानपरिणाम) प १३।१४,१६ । अत्तया (आत्मजा) उ ४ाह १७,१६, अत्थ (अत्र) ज ४१४२,३ सू ।१ उ ३.१५१ अण्णाणि (अज्ञानिन्) प११७४,८४,५२६४,१८।८३ अत्थ (अर्थ) ज ५।२६ चं ११३ म २०१७ उ ३.४० २३१२००,२८११३७ अत्थ (अस्त्र) ज ३१७७,१०६ अण्णाणुपुवी (अनानुपूर्वी) प २८.१८,६४ स २६ अत्थओ (अर्थतस्) प १११०१८ अण्णोष्ण (अन्योन्य) प २१६४११० ज ७५८ अत्थजुत्त (अर्थयुक्त) ज ५१५८ सू १६।२६ अत्थणिउर (अर्थनिकुर) ज २।२४ अण्हाणय (अस्नानक) उ ५१४३ अस्थणिउरंग (अर्थनिकुराङ्ग) ज २०४ अतसी (अतसी) प १६३७१२ अत्यस्थि (अर्थाथिन ) सू २०१७ अतिक्कम (अतिक्रम) ज २११३३ अत्यस्थिय (अर्थाथिक) जे ३।१८५ अतितेया (अतितेजा) सू १०८८२ अस्थमंत (अस्तवत् ) ज ३.१६ अतित्थगरसिद्ध ((अतीथंकरसिद्ध) प ११२ अस्थमण (अस्तमयन) ज ७।३६ से ३८ च ४११ अतिथसिद्ध (अतीर्थ सिद्ध) प११२ गू श८।१२।३६।२ अतिदूर (अतिदूर) ज ११६ अत्थसत्य (अर्थशास्त्र) उ ११३१ अतिभाग (अतिभाग) सू ४।८ अत्यसिद्ध (अर्थ गिड) ज १११२ सू १०८६।२ अतिमास (अतिमास) सू १५१३७ अत्थाम (अस्थामन्) ज ३।१११ अतिराउल (दे०) प ११:१४,१६ अस्थि (अस्ति) प १७५२१६४।१४,५८०, अतिरेग (अतिरेक) ज ३१३५,२११; ५१५८ १९६११०,१२।६; १५१४५,४७ मे ४६, Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्थिकायधम्म-अद्धजोयण ८२५ ६०,६२,६३,६५,६६,८७,६४ में १०१,१०३ १४१,१८०; १५,७ उ ११३, ३१२६५६ से १०६,१०८,११२ से ११४,११६,१३८, अदेवीय (अदेवीक) प ३४११५,१६ १४१,१७४१३,३५; १८।११२, २०११,४,१७ अद्द (आर्द्र) प २।३१ १८,२२,२५,२८,२६,३४,३८,३६,४६,५०,५३, अद्दरूसग (अटरूपक,आटरूषक) प ११३७१४ ५८२११८ मे १००,१०३,२२१६,११,१२, अद्दा (आर्द्रा) ज ७/१२८,१२६११,१३४ से १३६, १४,१६,१८,५८,५६,७७,७६,८१,८२, २३१६ १३६।१,१४०,१४६,१६१, स १०।३ से ६, २८११२३,१३६,१४१,१४५,३४१७ में ६,११, १३,२४,३६,६२,६८,७५,५३,१०४,१२०, १२,१५,१६,२०, ३६८ से ११,१७ से २३, १३१ से १३४१२,१३५२,१६० २५,२६,२६ से ३२,३४,४४ ज ११४७, अद्दाय (दे०) प १५.१११५१५० सू ११३६१ उ ३।१०१४।५५१२६ अट्टारिठ्य (आर्द्रारिष्टक) प १७।१२३ अस्थिकायधम्म (अस्तिकायधर्म) प १।१०१११२ अद्ध (अर्ध) ज १११६,३।१०६।४।२०८,५२३८ अस्थिय (अस्थिक) प ११३६।१।३।१।२ ७.१७६,१७७१३ सू २।२ ।३ उ१११०३, अत्थोगह (अर्थावग्रह) प १५६८,७० से ७२,७४, १०६,११०,११३,११४ अद्धअउणछि (अर्दुकोनषष्टि) स ६।३ अथिरणाम (अस्थिरनामन्) प २३१३८,१२२ अद्धअट्ठारस (अर्धाष्टादश) सू १८।१ अद (अदस्) म् १६४ अद्धएकोणवीस (अर्धकोनविंशाति) स १८.१ अदंड (अदण्ड) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६,७४ ।। अद्धएकवीस (अर्धेकविंशति) सू १८१ १४७,१६८,२१२,२१३ अद्धएकारस (अधैंकादश) सू १८१ अदंतवणय (दे० अदन्तधावनक) उ ५५४३ अद्धंगुल (अर्धाङगुल) प ३६८१ ज १११७; अदि (अयि) उ ५१४१ ३।१०६७।२०७ सू १।५४ अद्धकविठग (अकपित्थक) प २१४८ सू १८१८ अदिइ (अदीति) ज ७।१८६३ अद्ध कुंभिक (अर्द्धकुम्भिक) ज ५।३८ अदिज्ज (अदेय) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६, अद्धकोस (अद्धकोश) ज ११३७,४२,५१,४९, ७४,१४७,१६८,२१२,२१३ अदिट्ठ (अदृष्ट) सू ५११७११ १५,२४,३३,३६,११४,११८,१२८,१४७, १५४,१५५,२४२, सू १८।१२,१३ अदिद्वैत (अदृष्टान्त) ५३०।२७,२८ अद्धगाउय (अर्द्धगव्यूत) ५ ३३।२,६ ज ७।१० अदिण्णादाण (अदत्तादान) प २२।१४,१५,८० अद्धचउवीस (अर्द्ध चतुर्विंशति) सू १८१ अदिति (अदिति) ज ७३१३० अद्ध चंद (अर्द्धचन्द्र) प अदितिदेवया (अदितिदेवता) सू १०८३ ४८,५०,५६, ज ११२०; अदुक्खममुह (अदुःखासुख) प ३५॥१॥२,३५।१० ३१२४,७६,११६ ; ४।४६,१०८,२४५ अद्धचंदसंठाणसंठित (अर्द्धचंद्रसंस्थानसंस्थित पश५८ अदुत्तर (दे०) ज २।४७,१३१; ३1२२६; ४।२२, अद्धचोद्दस (अर्धचतुर्दश) सू १८११ ३४,५४,६४,१०२,१०५,११३,१५६.१६१, अद्ध छट्ट (अर्द्धषष्ठ) सू १८।१ १६६,२०८,२१०,२६१ उ ११११६ अद्धछव्वीस (अर्द्धषड्विंशति) सू १८११ अदुवा (दे०) ज ७।२१२ अद्धछन्वीसतिविह (अर्द्धषड्विंशतिविध) प ११६३ अदूरसामंत (अदूरसामन्त) प ३४१२२,२३ अद्धजोयण (अर्द्धयोजन) ज १७१, ११६,१०,१७, ज १५,३।१८,३१,५२,६६,१३१, २३,२५, ४१६,७,१४,२४,३६,४२,४६,५९,७१, १२ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२६ अद्धट्रम अधिपति ७४,७८,११२,११४,१११,११६,१२३, अद्धमंडलसंठिति (अर्द्धमण्डलसंस्थिति) सू १७।१, १२६,१२७,१४६ सू १८११.२० १.१५ से १७ अट्ठम (अष्टिम) ज २१७८,४।११०,११६, अद्धमागहा (अर्द्धमागधी) प ६८ १२८ सू१८।१ उ १३५३,७८ अद्धमास (अर्द्धमास) प ६।१२; २३७१,१८४ अट्ठारस (अप्टिादश) प २३।१०४ __ सू १३।४,५,११ अद्धणवम (अर्द्धनकम) सू १८१ अद्धमासिया (अर्द्धमासिकी) उ ३३१४,८३,१२० अद्धणाराय (अर्द्धनाराच) प २३।४५,६७ अद्धवीस (अर्द्धविंशति) सू १८१ अद्धतिवण्ण (अत्रिपञ्चाशत् ) पश२७।३ अद्धसत्तम (अर्द्धसप्तम) स १८।१ अद्ध तेरस (अर्द्ध त्रयोदश) प ११६०,८११; अद्धमत्तरस (अर्द्धसप्तदश) सू १८।१ २३।१०२ ज ४१३६,४३,६६,७२,११४,१२०, अद्ध सीतालीस (अर्द्धसप्तचत्वारिश) सू श२३ १२२ स १८१ अद्धसोलस (अर्द्धषोडश) ज ४।११६ सू १८।१ अद्धतेवट्ठि (अर्द्ध त्रिषप्टि) ज ४।२४०३७ अद्धहार (अर्धहार) ज ३।६,२११,२२२:५॥३८ अद्धतेवण्ण (अद्धं त्रिपञ्चाशत् ) प २।२७ अद्धतेवीस (अर्द्ध त्रयोविंगति) प६३१ स. १८।१।। अद्धा (अद्धा, अध्वन्) प १६४।१५,१६,१५। अद्धदसम (अर्द्धदश) सू १८१ ५८।१:१५॥६३,६४; १८.१,१२५; ३६।१२, अद्धद्धमिस्सिया (अद्धि मिथिता) प १२३६ ६४, मू१११,१२,२७ से ३१; रा२; ६३; अद्ध पंचम (अर्द्धपञ्चम) ५४३४,३६,४०,४२ १२।२ से ६,१० से १२ सू १८१ अद्धामिस्सिया (अर्द्धमिश्रिता) ५ १११३६ अद्धपण्णवीस (अर्द्धपञ्चविंशति) म १८१ अद्धासमय ('अद्धा'समय) प १५३,३।११४,११५, अद्धपण्णरस (अर्द्धपञ्चदशन ) स १८१ १२१,१२२,१२४; ५।१२४,१५५३ से ५५, अद्धपलिओवम (अर्द्धपल्योपम) प ४११६८,१७०, ५७,१८।१२५ १७४,१७६,१८०,१८२,१८६,१८८,१६२, अद्भुट्ठ (दे०) प ३३३३,४ ज ४११६ सू ११२३, १६४,१६५,१६७ ज ७।१८८,१६०,१६२, ३।१; १८११ उ ५।१० १६३ सू १८।२६,२८,३०,३२,३३ अधरण (अधन्य) उ ११६२, ३।९८,१०१,१३१ अद्धपलियंकसंठित (अपर्यक संस्थित) स १०॥४४ ।। अधमस्थिकाय (अधर्मास्तिकाय) प ११३ ; ३१११४, अद्धपोरिसी (अर्द्धपौमषी) सू ।३ ११५, ११७.१२२, ५११२४; १५१५३,५४ अद्धबारस (अर्द्रद्वादश) सू १८।१ अधर (अधर) ज २११५ अद्धबयालीस अर्द्धवाचत्वारिंश) स ११२३ अधरिम (अधरिम) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६, अद्ध बाबण्ण (अर्द्धद्विपञ्चाशत् ) सू ११२३ ७४,१४७,१६८,२१२,२१३ अद्धबावीस (अद्वंद्वाविशति) स १८।१ अधाजोग (यथायोग) सू १५:१० अद्धभरह (अदभरत) ज ३१६५ अधाजोय (यथायोग) मू १५१३ अद्धभाग (अर्धभाग) ज १।२३,४८, ४।१,६२,८१ अधातच्च (यथातथ्य) सू १२११३ अधारणिज्ज (अधारणीय) ज ३११११ अद्धमंडल (अर्द्ध मडल) च ३३१ सू १६१८; १३१७ अधिगय (अधिगत) प १३१०११२ से ११,१४ से १६:१५।२६ से ३१ अधिपति (अधिपति) ज ३१२५,४६ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिय-अपत्थियपत्थग अधिय (अधिक) सू १३।११,१४ १८३,४२,५,८,११,१४,१७,२०,२३,२६,२६, अधिवति (अधिपति) प २१५०,५१ ३२,३५,३८,४१,४४,४७,५०,५३,५७,६०,६३, अधेसत्तमा (अधःसप्तमी) प ३।१८३ ६६,६८,७०,७३,७५,७७,८०,८३,१०२,१०५, अनिल (अनिल) ज २६८,१३१ १०८,१११,११४,११७,१२०,१२३,१२६, अपइट्ठाण (अप्रतिष्ठान ) प २२७ १२६,१३२,१३५,१३८,१४१,१४४,१४७, अपच्चक्खाण (अप्रत्याख्यान) प १४।७,२३।३५ १५०,१५३,१५६,१५६,१६३,१६६,१६६, अपच्चक्खाणकिरिया (अप्रत्याख्यानक्रिया) १:३२,१७५,१७८,१८१,१८४,१८७,१६०, प १७११,२२,२३,२५; २२१६०,६४,६६, १६३,१६६,१६६,२०२,२०५,२०८,२११,२१४, ७२,७४,६८,६६ २१७,२२०,२२३,२२६,२२६,२३२,२३५, अपच्चक्खाणि (अप्रत्याख्यानिन्) प २२१६४ २७१;६७१,७२,७६,८३,८४,९७,१०२; अपच्चक्खाय (अप्रत्याख्यात) प १११८६ १११३१,३५,३६१८१८,१८,३०,३६,११४; अपज्जत्त (अपर्याप्त) प १।१७,२२,३१,४६ २११४०,४२, २३११६३; २८/१४३ से १४५; से ५१,६०,६६,७५,७६,८१,२।१७,२० ३६।५२ से ३६,४१ से ४३,४८ से ६३ : ३१४३ से ४६, अपज्जत्ति (अपर्याप्ति) प २८.१४३ ५३ से ६०,६४ से ७१.७५ से ८४,८८ से १५, अपज्जवसित (अपर्यवसित) १६४ ११०,१७४ ; ४१५५,८६,८६,६१,६३,६६,६६, अपज्जवसिय (अपर्यवसित) प १८७,१३,१७, २३८,२४१,२४४,२४७,२५०,२५३,२५६, २५,२६,५५,५८,५.६,६३,६४,६७,६८,७५ २५६,२६२,२६५,२६८,२७४,२७७,२८०, से ७७,७६,८२,८३,८६,८८,९०,६२,१००, २८३,२८६,२८६,२६२,२६५,२६८, २११६, १०५,१११,११२,११५,११८,१२१,१२३, १६,१८,२३ से ३२,३६,४०,४१,४८,५०,५३, १२४,१२७ अपज्जुवासणया (अपर्युपामना) उ ३।४७ अपडिक्कत (अप्रतिक्रान्त) उ ३१८३,१२०,४२४ अपज्जत्तग (अपर्याप्तक) प १२०,२३,२५,२६,२८ अपडिबद्ध (अप्रतिबद्ध) जरा७० २६,४८१६०; १९४८ मे ५१,५३,८४, १३१ अपडिबद्धगामि (अप्रतिबदगामिन्) जश६८ से १३३,१३५,१३७,१३८,२१२,३,५, अपडिबुज्झमाण (अप्रति बुध्यमान) ज २०६५ ६,८,६,११,१२,१४ से १६३४१,८३ से ४६,५१,५३ से ६०,६२,६४ से ७१,७३,७५ अपडिवाइ (अप्रतिपातिन) प ३३।१११,३३३३५ से ८४,८६,८८,६१,६३ से ६५,११०,१४२, अपडिवाति (अप्रतिपातिन) प११११४ १४८,१५१,१८३,६७१,७२,८३,१०२; अपडिसुणमाण (अप्रतिशृण्वत्) उ १११२७ १११३६,४१,१५१४६१८१४८,२११५,१०, अपडिहय (अप्रतिहत ) प १११८६ १३,२०,३३,३४,३६,४१,५२ से ५५,७२, अपडोयार (अप्रत्यवतार) प ३०।२७,२८ ३४.१२ अपढ़म (अप्रथम) प १३१३,१०३,१०६,१०७, अपज्जतगणाम (अपर्याप्तकनामन् ) २३१३८,१२० १०६,११०,११३,११४.११६,११६,१२०, अपज्जत्तय (अपर्याप्तक) प ११२६,३१६२,६६ १ २२,१२३ ;१६।३७ से ६८,८६,८६,६०,६२,६३,६५,१४५,१५४, अपत्थियपत्थग (अप्राथितप्रार्थक) ज ३।१२४ १५७,१६०,१६३,१६६,१६९,१७२,१७४, उ १।११५.११६ ५५ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२८ अपत्थियपत्य ( अप्रार्थित प्रार्थक ) ज ३।२६,३६, ४७,१०७,११४, १२२,१३३ उ ११८६ अपदेसया (अप्रदेशार्थ ) प ३३१७६,१८१ अपमत्त ( अप्रमत्त ) प १७ ३३२१/७२ अपमससंजत (अप्रमत्तसंयन ) प ६६८ अपमत्तसंजय ( अप्रमत्तसंयत ) प ६६८; १७१२५, २२/६३ अपमाण ( अप्रमाण ) प ३०।२७, २८ अपराइय (अपराजित ) ज ३ | ३ अपराइया (अपराजिता ) ज ४१२१२ अपराजित (अपराजित ) प १२१३८ २२६३ ६।५६७२६ ज १११५ अपराजिता (अपराजिता ) ज ४।२०२७११८६ अपराजिय ( अपराजित ) प ४।२६४ से २६६; ६२४२१५/६६,६२,१००,१०५, १०८,१०६, ११४,११६,१२०,१२१,१२३, १२५,१२६, १३१,१३९; २८/६६ अपराजियत (अपराजितत्व ) प १५।११३ अपराजिया (अपराजित) ज ४५२१२।४; ५८११ ; ७/१२०/२ सू १०८८ २ अपरिह (अपरिगृहीत) प ४।२२२ से २२४, २३४, से २३६, अपरिमाणमाण (अपरिजानत् ) उ ३१५६,६१,७७, ११६ अपरिताविय (अपरितापित ) ज २४६ अपरित्त (अपरीत ) प ३।१०६; १८११०६ अपरिभुंजमाण (अपरिभुञ्जत् ) उ १।३५ अपरिभूय (अपरिभूत) ज ३११०३ उ ३११०, २८ ६६ अपरिमिय (अपरिमित ) ज ३।१६७ अपरियाग ( अपरिपाक, अपर्याय ) प १७।१३२ अपरियार (अपरिवार ) प ३४।१५,१६ अपरियार (अपरिचारक ) प ३४।१८,२५ अपरिसेस (अपरिशेष ) प २८१४०, ६६ ज४।८३, २७४ अपत्थियपत्थय- अप्प अपरिसेसि (अपरिशेषित) २८१२३ अपविट्ठ (अप्रविष्ट ) प १५/३६, ४१ अपसत्य ( अप्रशस्त ) प १७ । ११४ १ २३५६, १०६,११७,१२८ अपाणय ( अपानक) ज २२६५, ७१,६८ ३१२२५ अपि (अपि) ज १।२२ ११६७, ३।६० ५ १७ अपिक्क ( अपक्व ) प १७ १३२ अपुट्ठे ( अस्पृष्ट ) प ११६१, १५१३६ से ३८, ४१; २२१५६ २८१११,५७ ज ७१४०, ५३ अपुणरावित्ति ( अपुनरावृत्ति) ज ५।२१ अपुणरुत्त (अपुनरुक्त) ज २२६४, ५३५८ अपुण्ण ( अपुण्य) उ १६२: ३१८,१०१,१३१ अरिसक्कार ( अपुरुपकार) ज ३।१११ अपुरोहिय ( अपुरोहित) १ २६०,६३ अपुब्व (अपूर्व) २८१२०,३२,६६ अवकरण (अपूर्वकरण ) ज ३।२२३ अपोह ( अपोह ) ज ३१२२३ अप्प ( आत्मन् ) प० १२४०१४, २२१४ से ६ ज ११५ २०७१, ८३, ३१८८ ५१५७ सू१।१६; १३।१२,१४ से १७१६८ २०४ उ १।२,३,४६,६५,६८,७२, २११०,१२, ३११४, २६, ५०, ५१, ५३, ५४, ८३,६६, १३२, १४४,१६१, ४२४, २८, ५२६, २८,३२,३६, ४३ अप्प ( अल्प ) प ३1३८ से ११६, ११७ १,११८ से १२०,१२२ से १२४, १७४, १७९ से १८३; ६।१२३ ८१५,७,६,११, ६ १२, १६, २५, १०1३ से ५,२६ से २६, ११७६,६०, १५।१३,१६,२६,२८,३१,३३,६४, १७२५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से ५३,१४४ से १४६; २०१६४; २१३१०४, १०५, २२११०१, २८/४१, ४४,७०, ३४।२५ ३६ ३५ से ४१, ४८, ४६ ज १५० २१५८, ८३, १२३, १२८, १४८, १५१, १५७; ३।१०,११,८५,८७,११७२१, १८४; ४११०१; ५१५२७,५७,७१११२१४, १६८, १६७ सु १०११२६।४ १५ १६ १८१८, ३७, १६८ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्प-अबाहा ८२६ २३,२६; २०१७ उ १११६,४२,६३, ३।२६, १४१; ४।१२ अप्प (अल्प) जवासा प १४०।४ अप्पकप्पिय (आत्मकल्पित) उ ११४६ अप्पकम्मतराग (अल्पकर्मतरक) प १७१३,१६ अप्पच्चदखाण (अप्रत्याख्यान) प १४७ अपच्चक्खाणकिरिया (अप्रत्याख्यान क्रिया) प २२१६४,६६,७४,६७,१०१ अप्पच्चक्खाणवत्तिया (अप्रत्याख्यानप्रत्यया) प२२०६४ अप्पडिबुज्झमाण (अप्रतिबुध्यमान) ज ३१२०४ अप्पडिय (अप्रतिहत) ज ३८१,८८,१०६,१५१; ५२१ अप्पणया (आत्मन् ) प २८।२०,३२,६६ अप्पतराय (अल्पतरक) १७१२,२५ अप्पतिट्ठिय (अप्रतिष्ठित) प १४१३ अप्पत्त (अप्राप्त) सू१९२२१७ अप्पत्थियपत्थय (अप्रार्थितप्रार्थक) ज ३१०७ अप्पबहु (अल्पबहु) प १७४११४।१; २१।१।१; ३४१११२ ज ७११६८२ अप्पमेय (अप्रमेय) ज ५१५८ अप्पवस (आत्मवश) उ ३।११८ अप्पवेदणतराग (अल्पवेदनतरक) प १७१६,२७ अप्पसत्थ (अप्रशस्त) प १७११३८२३।११६, १३२, ३४।१३ अप्पसरीर (अल्पशरीर) प १७।२,२५ अप्पसोय (अल्पशोक) उ ११६३ अप्पयगति (अप्रहतगति) ज २१६८ अप्पाबहु (अल्पबहु) प६।१२३; १५।११ अप्पाबहुग (अल्पबहुक) प १७।६६,७० अप्पाबहुय (अल्पबहुक) प०१०।२५; १९८० १५.१८,१६, १५।५८११, १७७७ अप्पिच्छ (अल्पेच्छ) ज २०१६ अप्पिढिय (अल्पद्धिक) प १७१८४ से ८७,८६ ज० ७.१८१ मू १८१६ अप्पिण (अर्पय्) अप्पिणइ उ० १।११८ अप्पिणामि उ० ११११७ अप्पिणित्ता (अपयित्वा) ज ३।८१ अप्पिय (अप्रिय) ज २११३३ अप्पियतरिया (अप्रियतरका) प १७.१२३ से १२५, १३० से १३२ अप्पियत्त (अप्रियत्व) प० २८।१४ अप्पियस्सर (अप्रियस्वर) ज २११३३ अप्पुस्सुय (अल्पौत्सुक्य) ज ३।२६,३६,४७,१३३ अप्पेस्स (अप्रेष्य) ५०२१६०,६३ अप्फुण्ण (दे) उ ११२३,६१ अप्फोड (आ+स्फोटय)--अफोर्डेति ज ५७ अप्कोडिय (आस्फोटित) ज ३१३१; ७१७८ अप्फोया (आस्फोता) मल्लिका, अपराजिता प १॥४०॥३ अफासाइज्जमाण (अस्पृश्यमान) प २८।४०,४१, ४३,४४,६९,७० अफुण्ण (दे०) प ३६५६,६०,६६ से ६८,७०,७१, ७३ से ७५ अफुसमाण (अस्पृशत् ) प १३।२३ अफुसमाणगति (अस्पृशद्गति) प १६।३८,४०; ३६६२ अफुसित्ता (अस्पृष्ट्वा ) प १६:४० अबंधग (अबन्धक) प ३११७४; २२।८४; २६६ अबंधय (अबन्धक) प २२१८३,८४,८६; २६.८ से अबल (अबल) ज ३११११ अबहुस्सुय (अबहुश्रुत) सू २०१६।२ अबाधा (अवाधा) सू२८।२० अबाहा (अबाधा) प २१६४, २३१६० से ६४,६६, ६८,६६,७३ से ७७,८१,८३,८५ से १०,६२, ६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१७६,१७७, १८२,१६३,१८७,१६० ज ११७, ३.१; ४।११०,११६,१४१,१४२,२०६.२०७; १५, Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अबाहूणिया-अभवसिद्धिय ६,८ से १३,६४,६५,६७ से ७२,८८,८६,६१, ७४,८४; २३५८,७६,१६६; २६२१ ६२,१६८८१,१७१ से १७४,१८२ सू १८१५,६ ज ३११८,६३,१८०; ७१८७ से १६० अबाहूणिया (अबाधोनिका) प २३१६० से ६४,६६ सू १८१२५ से ३० उ ३३१६ ६८,६६,७३ से ७७,८१,८३,८५, से ६०,९२, अदिभतर (आभ्यन्तर) प १३५५३३०१ ६५ से १६,१०१ से १०४,१११ से ११४, जे १७, २११२, ४,२१, ५।३६सू १११४, ११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१३३,१७६, १६,२१,२४,२७ से २६,३१; २१३; ४।६; १७७,१८२,१८३,१८७,१६० ६११; ८।१, १६।२१।१ अबीय (अद्वितीय) ज ३१२०,३३,८४,१८२ अभिंतरओ (अभ्यन्तरतस् ) ज ३।२४।२,१३१२ अभइय (अभ्यधिक) प १८:४ उश अभंग (अभि । अञ्ज ) अब्भंगेइ उ ३१११४ अभिंतरग (आभ्यन्तरक) प ११४८।४५ ___ अभंगेति ज ५११४ अभिंतरय (आभ्यंत रक) उ ११४४ अभंगण (अभ्यञ्जन) उ ३।११४,११५,११६ अभिंतरिय (आभ्यंतरक) ज ४।१६ अभंगेत्ता (अभ्यज्य) ज ५११४ अब्भुक्ख (अभि+ उक्ष ) अब्भुक्खेइ ज ३११२, अभंतर (आभ्यन्तर) प ३६८१ ज ३।१८४; ८८ उ०४।२१ ४।१५२, ७।५,८,९,१०,१३ से १६,१६ से अब्भुक्खेत्ता (अभ्युक्ष्य) ज ३।१२ २२,२५ से २७,३०,३१,३३,६४,६७ से ६६, अन्भुग्गय (अभ्युदगत) प ४।४८ ज ११४२, २।१५; ७२ से ७५,७८ से ८१,८४,८८,६१,६३,६५, ४.४६, २२१, ७.१७६,१७८ सू १८१८ १७५ सू १११,१२,१४,१६,१७,२१,२४, अब्भुट्ठ (अभि-1-उत्-+-ष्ठा) अब्भुद ठेइ २७,३०; २।३; ३११,२; ४१७; ६.१ ६२; ज ३१६,२६,३६,४७,१३३, २१४; ५१२१ १०११३२; १३।१३, १९४१, १६।२२।१२ उ ३६१०१--अब्भुट्ठमि उ ३११३६, ४११४ -~-अभुळेहि उ ३।११५ अभंतर पुरक्खरद्ध (आभ्यन्तर पुस्करार्द्ध) सू ८१ अब्भुठ्ठिय (अभ्युत्थित) ज २१७० १६.१६ स १६ अब्भुठेत्ता (अभ्युत्थाय) ज ३१६ उ ३३१०१, अभंतरिय (आभ्यन्तरिक) सू ४१३,४,६,७ अभंतरिल्ल (आभ्यंतरिक) ज ७।१७५ सू१८१७ अब्भुण्णय (अभ्युन्नत) ज २११५, ७११७८ अब्भक्खाण (अभ्याख्यान) प २२०२० अब्भुवगम (अभ्युपगम) प ३५।११ अभणुण्णाय (अभ्यनुज्ञात) उ ३३१०६,१०८,१३८; अन्भोरुह (अभ्यवरुह) प ११४४०१ ४।११ अन्भोवगमिया (आभ्युपगमिकी) प ३५।१२,१३ अभपडल (अध्रपटल) प १।२०।२; ११७५ अभंगय (अभङ्गक) प २६९; २८११६ अब्भवद्दलय (अभ्रवादलक) ज ५१७ अभवखेय (अभक्ष्य) उ ३१३७ से ४० अब्भवग्लुया (अभ्रवालुका) प १।२०।२ अभड (अभट) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८,६६,७४, अन्भहिय (अभ्यधिक) प ४११७१,१७३,१७४,१७६, १४७,१६८,२१२,२१३ १७७,१७६,१८०,१८२,१८३,१८५,१८६, अभय (अभय) उ १३१,४२ से ४६,४८ १८८; ५१५,१०,२०,३०,३२,७२,८१,१०२, अभयदय (अभयदय) ज ५।२१ १२६,१३१,१३२,१३४,१६०,१७७,१६३, अभवसिद्धिय (अभवसिद्धिक) प ३.११३,१८३; २१४,२२८; १७॥६३; १८२८,४७,६०,६६ से १२७,२०; १८११२३, २८।११२ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभव्व जण-अभिरूव अभव्वजण (अभव्यजन) सू २०६१ अभायण (अभाजन) सू २०६।३ अभाव (अभाव) प ३६१२१ अभासग (अभाषक) १ ३।१०८; १११३८ से ४१, अभिणंद (अभिनणद् ) अभिणंदति ज २१६४ अभिणंद (अभिनन्द) सू १०११२४११ अभिणंदत (अभिनन्दत्) ज २१६४; ३।१८५, २०६ अभिणंदिज्जमाण (अभिनन्द्यमान) ज २०६५ अभिणंदिय (अभिनन्दित) ज ७११४।१ अभिणय (अभिनय) ज ५१५७ अभिणिसढ (अभिनिमृत) सू ६।१,३ अभिणिस्तव (अभि+नि । स्र ) अभिणिस्पति ज ४११०७ अभिणिस्सित (अभिनिथित) सू ६३ अभिणी (अभिणी ) अभिणेति ज ५१५७ अभिष्ण (अभिन्न) प ११।७२ अमिथुण (अभि : प्टु) ___ अभिथुणंति ज २१६४ ; ३।२१० अभिथुणंत (अभिष्टु वत्) ज २१६४ ; ३।१८५,२०६ अभिथुब्वमाण (अभिष्टयमान) ज २१६५, ३१८६ २०४ अभासय (अभाषक) १०१८।१०५ अभिइ (अभिजित् ) ज ७।११३।१, १२८ से १३१, १३३,१३४११, १३५,१३६,१३८,१४१,१४६, १५६,१७५ सू १०।१ से ६,८,२०,२३,२७,५५, ६३,७५,७८,६२,१२०,१२२,१२३,१३० से १३६; १२।१६; १५।८,११; १८७; अभिओग (अभियोग) उ ३६१ अभिक्ख (अभीक्षण) ज २११३१ अभिक्खण (अभीक्ष्ण) ११७१२,२५, २८।२१,३३, ६७ ज०१।१८, २११३१,१३३; ३।१०४, १०५ उ ११५६,८४,६७, ३।११७; ४१२१ अभिगम (अभिगम) प ३४।१२ अभिगमण (अभिगमन) ज ५७,४१ सू० १३११७ उ १।१७; ३७ अभिगय (अभिगत) उ ३३१४४; ५।३४ Vअभिगिण्ह (अभि+ ग्रह )अभिगिण्हइ उ ३।५५ अभिगिहिस्सामि उ ३१५० अभिगिण्हेत्ता (अभिगृ ह्य) उ ३१५० अभिग्गह (अभिग्रह) प १११३७१२ उ० ३१५० अभिचंद (अभिचन्द्र) ज २१५६, ६१; ७/१२२११ सू १०१८४।१ अभिजात (अभिजात) सू१०1८६४२ अभिआय (अभिजात) ज ३१३; ७१११७.२ अभिजिणमाण (अभिजयत् ) ज ३१८,३१,१८० अभिजिय (अभिजित) ज ३।३६,३६,४७,५६,६४, ७२, १२६१४, १३३,१३८,१४५,१८८) ७/१२६ अभिजेतुं (अभिजेतुम् ) ज ३१६५ अभिज्झियत्त (अभिध्यातत्व) प २८।२४,२६ अभिनिविट्ठ (अभिनि विष्ट) प २०१३६ अभिनिस्सब (अभि-नि+स.) अभिनिस्सवेइ उ १४५६ अभिभूय (अभिभूत) ज २११३३ उ ११६०,६२,८५, ८७,६३ अभिमुह ((अभिमुख) ज ११६; २६०३.१४, १५,२२,३०,३१,३६,४३,४४,५१,५२,६० ६१,६८,६६,१३०,१३१,१३६,१३७,१४०, १४११४५,१४६,१५०,१७२,१७३,२०५,२०६, ४।१,३७,३८,६५,७१,७३,६०,६१,६४; ५।५८,६।२३ से २६ उ १।१६३४३ अभिरक्ख (अभिरक्ष ) अभिरकरवउ उ ३३५१ अभिरममाण (अभिरममाण) ज २११४६ : ५१६७ अभिराम (अभिराम) प २१३०,३१,४१ ज ३.१, ७,६,१७,२१,३४,८८,१०६,१७७,२२२; ४१२७,५७,२८,४३ सू २०१७ उ ५५ अभिरुइय (अभिरुचित) उ ३११३८ अभिरूव (अभिरूप) प २१३०,३१,४१,४८,४६, Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३२ अभिलंघमाण-अमणुण्ण ५६,६३,६४ ज ११८,२३,३१,४२; २।१२,१४, अभिसिचाव (अभि+सेचय) अभिसिचावेइ १५, ४१३,६,१३,२५,२७,२६,३३,४६,१४६; उ ११६८ अभिसिंचावेसि उ १।७२ ५६२ सु०१११ उ०५।४ से ६ अभिसिंचावित्तए (अभिपिञ्चयितुम) ज ३११८८ अभिलंघमाण (अभिलङ्घमान) ज ४१४६ उ० ११६५ अभिलाव (अभिलाप) ५४।५५; ६।४६.५६,६९,७८ अभिसिचित्ता (अभिपिच्य) ज २१६४ १११,१२३,१११८३ १५३३८,५०; १७८८, अभिसिंचिय (अभिषिञ्चित) ज ३।२१२ ६१,६६,११७,१४५,१४६२११५५; २२१५८; अभिसित्त (अभिषिक्त) ज ३१२१४ २३६१६१ ; ३६६६५ ज ३१२११ : ४।२३८; अभिसेक (अभिषेक) ज ३।२०४,२१४,२१७, ४।१४० ७.१५५ सू ५।१ ; ६।१; ७११ ; ६१२,३ ; १०।२३, १४८,१५०; १५१६; १८।११६१,३१, २०१२ अभिसेवक (अभिषेक्य) उ १११२३,१३१ अभिवंदिऊण (अभिवन्द्य) प १११ अभिसेय (अभिषेक) ज २०१५, ३१२०६; ४११४०११ अभिवढि (अभिवृद्धि) ज ७।१३० १६०,२४४,२४८, ५१५७,५८,६१,६५ अभिवडिढत (अभिवधिन) सू १०।१२८,१२६% अभिसेयपीढ (अभिषेकपीठ) ज ३११९४ से १९६, ११११,१२१,६,१२,१५।२६से २८ २०४ से २०६,२१४ से २१६ पनि अभिनय ११ अभिसेयमंडव (अभिषेकमण्डप) ज ३१६१,१६३, से ६,१२१६ १६४,१६८,२०४ से २०६,२०८,२१४ अभिवडिढत्ता (अभिवयं ) सू ६।१ अभिसेयसभा (अभिषेकसभा) ज ४११४० अभिवढिदेवया (अभिवृद्धिदेवता) सू०१०१८३ अभिसेयसिला (अभिषेकशिला) ज ४१२४४,५१४७ अभिवढिय (अभिवधित) ज ७१०५,११० से अभिसेयसिहासण (अभिषेकसिंहासन) ज ४१२४८%3 ११२।५ सू १०१२७,१२६।५ ५.४७ अभिवढियसंवच्छर (अभिवधितसंवत्सर) सू अभिहण (अभि+ हन्) १०1१२७ ___अभिहणंति प ३६।६२,७७ अभिवता (अभिवयं ) ज ७।२७ सू६।१ अभिहणमाण (अभिघ्नत् ) ज ३११०६ अभिवड्ढेमाण (अभिवर्धमान) ज ७.१०, अभिहिय (अभिहित) प १११०१।१२ १६,२२,२५,२७,३०, ६६,७५,८१, सू१२०, अभीइ (अभिजित् ) ज २१८५,८८,१३८,७११३६।१ २१,२७,६।१६२ सू १६।२२१२७ अभिवुड्ढ (अभि + वृध) अभिवुड्ढइ सू ६१ अभीय (अभीत) ज २०६४ अभिवुढिड्त्ता (अभिवयं) सू ११४ अभेज्ज (अभेद्य) ज ३७६,६६ से १०१,११६, अभिवुड्ढेमाण (अभिवर्धमान) सू १११४ ; २१३; हा२ अमेल (अभेल) ज ३।१०९ अभिसमण्णागय (अभिसमन्वागत) प २०१३६ मू अमच्च (अमात्य) ज ३१,६,७७,२२२ ३।२६,३६,४७,१२२,१२६,१३३ उ ३.८५, अमणाम (दे०) ज २।१३३ १४,१२२,१६३,५।३१।। अमणामतरिया ('अमणाम' तरका) प १७११२३ अभिसरमाण (अभिसरत् ) उ ३६८ से १२५,१३० से १३२ अभिसिंच (अभि ।-सिंच) अभिसिंचइ ज २१६४ अमणामत्त ('अमणाम' त्व) प २८२४ अभिसिंचंति ज ३।२१० ; ४१२४८,२५० से अमणुण्ण (अमनोज्ञ) प २३।१६,३१॥ २१३१, २५२:५।५६ अभिसिंचति ज ३१२०६५६० १ ३३ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमणुण्णतरिया-अरतिरति ८३३ अमणण्णतरिया (अमनोज्ञ तरका) प १७११२३ से १२५,१३० मे १३२ अमणुण्णत्त (अमनोज्ञत्व) प २८१२४ अमणूस (अमनुष्य) प २१७२ अमम (अमम) ज २।५०,१६४,४।१०६ २०५, ७१२२६३ सू १०८४।३ अमयमेह (अमृतमेघ) ज २६१४४,१४५ अमर (अमर) प २१३०,३१,४१, २०६४।२१; ज०७१, ३।३५,१०६,१३८ अमरपति (अमरपति) ज ३१३१ अमरवइ (अमरपति) प २१४५२ ज ३।३.१८, ६३,१८० अमल (अमल) ज ४।२६ अमाइसम्मपिठिउववण्णग (अमायिसम्यक दृष्ट्यु पपन्नक) प १७४२७,२६ अमाइसम्मद्दिठी (अमायिसम्यकदष्टि) प१५।४६; ३४।१२,३५॥३ अमाइसम्महिठी उबवण्णग(अमायि सम्यकदृष्ट्युप पन्नक) प १७।२७ अमाण (अमान) ज २१६८ अमाय (अमाय) ज २१६८ अमावासा (अमावास्या) ज ७।१२५,१३७,१४७, १४८.१५०,१५१,१५४,१५५, सू १०७,२३ से २६,१३६,१३७,१४८ मे १५१,१५७ से १६१, १३.१ से ३,६, अमिज्ज (अमेय) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६, ७४,१४७,१६८ २१२,२१३ अमित्त (अमित्र).ज ३।२२१ अमिय (अमृत) प २१६४११६ अमिय (अमित) प२१४०१७ ज ७१७८ अमियवाहण (अमितवाहन) प २१४०१७ अमिलाय (अम्लान) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८, ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ अमिलाव (अमिलाप) ज ४१२३८ अमूढदिदिठ (अमूढदृष्टि) | ११०१।१४ अमोहा (अमोहा) ज ४११५७।१ अम्मता (अम्बा) उ ४१११ अम्मया (अम्बा) उ १२३४,४०,४३,७४, ३६८, १०१,१३१ अम्मा (अम्बा) प १११३,१८ उ १७१,७३,८८ अम्मापिइ (अम्बापितृ) उ राह अम्मापियर (अम्बापितृ) उ ११६३ ; ३११२६,१२८ ४।११,१४,१५,१६, २७,३८ अम्ह (अस्मत्) प ११३ ज ५।३ सू ११२० उश१५ अय (अज) प.१६४; ११।१६ से २० ज २१३४, ३५७।१८६।३ अय (अयस्) प १२०१ ज १७ अयकरय (अजकरक) ज ७:१८६।२ स २०१८,८।२ अयखंड (अयस्खण्ड) प ११।७४ अयगर (अजगर) ११४६८,७२ ज २०४१ अयगोल (अयोगोल) ११४८१५६ अयण (अयन) ज २१४,६६७१२६,१२७ सू ६.१८१११३७,६,१२ से १४ अयदेवया (अजदेवता) स १०।८२ अयमाण (अयमान) ज ७१२०,२३,२६,२८ सू १११४,१६,२१,२४,२७, २॥३,६६१,१३११ १४॥३,७ अयल (अचल) ज ३७६,११६ अयसिकुसुम (अतसीकुसुम) प १७।१२४ अयसी (अतसी) ५११४५२२।३१ ज १३७ अयाणंत (अजानत्) प १।१०१५ अयोझ (अयोध्य) ज ३१३५ अयोमुह (अयोमुख) प ११८६ अर (अर) ज ३१३५ अरइ (अरति) प २३७७ जं २७० अरजा (अरजा) ज ४१२१२ अरणि (अरणि) ज ५११६ उ ०३१५१ अरण्ण (अरण्य) ज २२६६,१३१ अरति (अरति) प २३१३६,१४५ अरतिरति (अरतिरति) प २२०२० Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरत्त-अवज्झा अरत (अरक्त) प २१७० ६४,७२,७८,१५०,१८०,२०६,२२४;५।१४, अरय (अरक) ज ३।३० २२,३६,४१,४३ उ ११३५,७०,३१५०,११०, अरय (अरजस्) सू २०१८१७ ११३; ४११८,२०, ५।१७ अरयंबर (अरजोम्बर) प १५० से ५३,५४ अलंकारिय (अलंकारिक) ज ४।१४० ज २१६१ अलंकित (अलङ्कृत) सू २०१७ अरयंबरवत्थधर (अरजोम्बरवस्त्रधर) ज ५१८, अलंकिय (अलङ्कृत) प २१४८ ज ३१६,८५,२११, ४५ २२२,४१४६,५१५८ उ १।१६,४२,३३२६, अरया (अरजा) ज ४।२१२१२ १४१ ; ४.१२ अरबाक (अरबक) प ११८६ अलंबुसा (अलम्बुसा) ज ५१११११ अरविंद (अरविन्द) प ११४६.११४८।४४ अलकापुरी (अलकापुरी) ज ३।१ ज ३११७ अलत्तग (अलक्तक) उ ३३११४, अरसमेघ (अरसमेघ) ज २।१३१ अलद्ध (अलब्ध) उ ३.३८ अरह (अर्हत्) ज २१६३ से ६७,७३ से १०; अलभमाण (अलभमान) उ ११६६ ५३५८,६५ उ ३।१२,१४,२९,४६,७६,४।१०, अलसंडविसयवासी (अलसण्ड विपयवासिन) ११,१३,१४,१६,२०,५।१४,२०,३२,३३,३६, ज३८१ ३७,३६ से ४१ अलाय (अलात) ५११२६ अरहंत (अर्हत्) प ११६१ ६।२६ ज ११:५।२१ अलिय (अलीक) उ ११४७ सू० २०१९४४ उ १६१७ अलेस्स (अलेश्य) प ३१६६,१३।१६, १७१५६, अरहंतवंस (अर्ह वंश) ज २११२४ ५८,१८७५, २८११२४ अरि (अरि) ज २।२८ अलोग (अलोक) प १०१२,४,५; १५:१२ अरिट्ठ (अरिष्ट) ५१३५।२ अलोय (अलोक) प २१६४१३,१५।५७,३३३१३ अरिठ्ठनेमि (अरिष्टनेमि) उ ५११४,२०,३२,३३, अलोवेमाण (अलोपयत् ) उ १११११,११२ ३६,३७,३६, से ४१ अमोह (अलोभ) ज २१६८ अरिस (अर्शस ) ज २१४३ अल्ल (आद्र) उ ११४४ से ४६ अरिह (अह) ज १२ उ ११३६,४२ अल्लइकुसुम (आद्र कीकुसुम) प २७।१२७ अरुण (अरुण) ज ४।८४,८५ सू २०१८,८१५ अल्लग (आद्रक) ज ३१११६ अरुणवर (अरुणवर) प १५।५५।१ सू १६६३१ अल्लोण (आलीन) ज २११५,१६, ७।१७८ अरुणवरोभास (अरुणवरावभास) सू १९३१ अवक्कम (अव- क्रम्) अवक्कमइ उ ३।११३, अरुणोभास (अरुणावभास) ज ४१८५ अवक्कमति ज ३११११,११५.१६२,२०८; अरुणाभ (अरुणाभ) सू २०१२ ५५,७,५५ अवक्कमह ज ३१२४,४१२० अरुणोद (अरुणोद) सू १६३१ अवक्कमित्ता (अवक्रम्य) ज ३।१११, उ ३१११३; अरुय (अरुज) ज ५।२१ ४१२० अरूवि (अरूपिन् ) प ११२,३,५।१२,३,१२४ अवगाह (अवगाह) प १७१११४।१ अरुह (अह.) अवचिज्ज (अव: चि) अवचिज्जति अरुहत ज ३११२६ प २११६७ अलंकार (अलङ्कार) ज २१६५,६६,१००,३।१२ अवज्झा (अवध्या) ज ४१२१२,२१२१४ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवद्वित-अवाय ५३५ अवठित (अवस्थित) ६.१,१६२२॥११ ५५,५७,६५,६८,७२,७५,७६,९८,१०६,१३१, अवत्तिा (अवस्थाय) यू १६।२२।२२ अवठिय (अवस्थित) प ३३१२५ ज १।११,४७, अवर विदेह (अपरविदेह) प १६।३०।१७।१६१ ३।६२,११६,२२६,४१२२,५४,६४,१०२,१५६, जे रा६४/६४,६६,२१३,२६३।१ २१२ ; ७।३१,३३,१०१,१०२,२१० सू ४१३ अबरविदेहकूड (अपरविदेहकूट) ज ४१६६ ४,६,७,८१ उ ३।४३,४४ अवरयेयालि (अपर'वेयाली') प १६।४५ . अवड्ढ (अपाधं) प १८५६,६४,७७.८३,६०,१०८ अबराइया (अपराजिता) ज ४।२०२।२,२१२, सू ११२२;६।३ २१२।२ अवड्ढखेत्त (अपार्धक्षेत्र) १०।४,५ अवलद्ध (अपलब्ध) ५१४३ अवडढगोलगोलच्छाया (अपार्धगोलगोलछाया) अवव (अवव) ज २१४ सू ६५ अववंग (अववाङ्ग) ज २।४ अवडढगोलच्छाया (अपाधंगोलच्छाया) ६।५ अवस (अवश) उ १५२,७७ अवडढमोलपुंजच्छाया (अपाधंगोल पुजछाया) अवसण (अवसन) ज ३११११,११३ मू ६५ अवसाण (अवसान) प ८१३ ज ३।६,२१७,२२२ अवडढगोलावलिच्छाया (अपार्धगोलावलिछाया) अवसिठ्ठ (अवशिष्ट) प २३३१७५ ज ४११६२ से १६४,२०४,२०८,२१०, अवड्ढभाग (अपार्धभाग) सू १२॥५ २६२,२७१,२७४ ,५१४६,५० अवडढवाविसंठिय (अपार्द्धवापीसस्थित) सू १०.३१ अवसेय (अवशेष) प २५४; ३३१८२५१३७,३६, अवणीयउवणीयवयण (अपनीततोपनीतवचन) ७४, ८६,१०७,१४६,१५६,१६०,१६३,१६७, प१११८६ २००,२०३,२०५,२०७,२२४,२४२१७।१७, अवणीयवयण (अपनीतवचन) प ११३८६ २०१२३,२२१२४; २४११:२६।४,८,२७१२; अवण्ण (अवर्ण) प ३०।२७,२८ २८११२५,१३३,१३६,१३७,१४१ से १४३; अवतंस (अवतंस) सू ५१ ३०१२४,३६१२० ज २१४६,५६,६२,६५,६६, अवतव्बय (अवक्तव्यक) प १०१६ मे १३ १०१,१०२,११३,११४; ४।५३,१४०,१६५, अवदाल (अवन दलय) अवदालेति प ३६।८१ २६५,२६८,५।४२,४५,७१३४१४,१३५१४, अवदालेत्ता (अवदल्य) प ३६८१ १५३ सू १०१२२:१३११, २०१३ अवद्दार (अपद्वार) उ ११११७ मे ११६ अवहाय (अपहाय) ज २१६ अवमंस (दे० अमावास्या) ज ७।१२७१,१६७१। अवहार (अपहार ) प १२॥३२ अवय (अवका) प ११४६,११४८११,११६२ शैवाल अवहिय (अपहृत) ५१२४,३३ अवर (अपर) प १११६,११४८१४,८११६१ ज अवहीर (अप । ह) अवहीरंति प १२।७,८,१०, ४११७; १३७,१५१,५३६ च ५२ सू ।। १२,१६,२०,२४,२७,३२ अवहीरति २.१,३।११०१५,१२७,१३१५,१७,१८१, १२।२७,३२ अवहीरमाण (अपह्रियमाण) प १२।२४,३३ अवरक (अप-क) म १३११२ अवाउक्काइय (अवायुकायिक) प २१:५० अवरत्त (अपरात्र) उ १५१,६५,७६, ३।४८, १० अवाय (अवाय) प १५१५८।२१५।६६ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३६ अवि (अपि) प १ १ ३ ज ४ |२०० सू १।२५;५११ उ १।३१ ; ३१११ ; ४ । ६ ; ५ ४५ अदिमाण (अविन्दान) उ १४१, ४३ अविग्गह ( अविग्रह ) प ३६।१२ अविग्ध ( अविघ्न ) ज २६४ अविणिज्माण ( अदिनीयमान) उ११३५, ४०,४३ अविणीय (अविनीत) ज ३१०६ सू २०१६६ अहि ( अवितथ ) ज २७८ उ ११२४,४२ ३|१०३ अवियारिया (दे० अविजनयित्री) उ३।१३१ अवियाजरी (दे० अविजनयित्री) उ ३३६७ अविरत ( अविरत ) प ३।१८३ अविरत ( अविरक्त) सू २०१७ अविर ( अविरत ) प ११८६ अविरल (अविरल) ज २११५ अविरहिय ( अविरहित ) प ६।१६,६२.६३; ११ । ७०,२८१४, २६, ५० सू १० ७७ १६।२२।१७ अविराहियसंजम ( अविराधितसंयम ) प २०१६१ अविराहियसंजमासंजम ( अविराधितसंयमासंयम ) प २०१६१ अविसय ( अविषय ) प १११६७, २८३१७,६३ ज ७ ४६ अविसार ( अविशारद) प० १११०१।११ अविसुद्ध (अविशुद्ध ) प १७/१३८ अविसुद्ध लेस्सतराग ( अविशुद्धलेश्यतरक ) प १७७ अविसुद्धवण्णतराग (अविशुद्धवर्णतरक ) प १७/६, १७ अविसेस (अविशेष ) प २३, ६, ६, १२, १५ अविसेलिय (अविशेषित) ज ११५.१ अविराम ( अविश्राम ) प २४८ अवरिय (अवीर्य ) ज ३३१११ ( अवे ( अप --- इ) अवेति प २८११०५ ; ३४।१६ अवेद (अवेद ) प २।६४।१ अवेद (अवेदक ) प ३६७१३१६ अवि-असंखेज्ज अवेदणा ( अवेदना ) प २२६४ । १ अवेदय ( अवेदक ) प १८ १६३२८१४० अवेदिय (अवेदित ) प ३६८२ अव्यय (अव्यय) ज ११११,४७,३३१६७,२२६; ४।२२,५४,६४,१०२७।२१० उ ३१४३, ४४ अन्वहिय ( अव्यथित) ज २१४६ अव्वाबाह (अन्याबाध ) प २२६४११४, २०, २२; ३६।६४।१ ज ५१२१ उ ३३०,३५ अवोच्छिण ( अव्यवच्छिन्न) ज ३१३ अन्योच्छित्तिणय ( अव्यवच्छित्तिनय) सू १७११; २०११ अन्वोयड ( अव्याकृत ) प ११।३७/२ अस (अस्) अस्थि प १२७५, ८०,५६६; १२/६, १५३६५,६६,१७३३,२८।१२३,१३६, १४१,१४२, १४५ ज ११४७ आसि ज ११४७ आसी प २२६४।५ सिया सू १०।२५ असइ (असकृत् ) ज ७१२१२ असं किलिट्ठ (असंक्लिष्ट ) प २।३११७११३८ असंख (असंख्य ) प १२४६ ६० असंखभाग (असंख्य भाग ) प ११४८६० असंखिज्जइभाग (असंख्येयभाग ) प २३|१०१, १५१,१५७ असं खिज्जगुण ( असंख्येयगुण) व १८२६३, २८३१४० असं खिज्जतिभाग ( असंख्येयभाग ) प २४८ असंखिज्जसमइय ( असंख्येयसामयिक ) प १५६१ असंखेज्ज ( असंख्येय) प १११३,२०,२३, २६, २६, ४८,११४८१८,४०,५६,२/१०,११,४१ से ४३, ४६,४८ ५०, ५६, ३११८०,५२, ३, ५, १२६, १२७, १४४, १४५, १५१,६४२, ६० से ६४,६८, १०।१६,१८ से २०,२३,२५,२८,३०,११०५०, ७०, ७२, १२१७, ८, १२, १६,२०,२४,२७,३१, ३२,१५ १२,२५,५८३१, १५१८३, ८४,८७,६१, ६२, ६४ से ६६, १०३, १०४, ११८, १२० से १२३, १२५ से १२८,१३५ से १३७,१४० से १४२; १७११४१,१४३, १८१३,२६,२७,३७ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंखेज्जइभाग-असंविदित ८३७ ३८,४१,४३,६५,१०७,११७,२८1५,५१:३३॥ २८१२२,३४,३६,६८,३३३१२,१३,१६,१७, १०,१२,१३,१६,१७,३४११३:३६।८,१३ से ३६।६६,७०,७३,७४ १५,१७ से २०,२२,२३,२५,२६,३३,३४,४४, असंखेज्जपएसिय (असंख्येयप्रदेशिक) प ५१३५, ६६,६८,६२ ज ११४६:२१४,५८,८४,९०,१५७; १३६,१६५,१६६,१८३,१८४,१६६,२००, १३४१६५४ ३३३;४।५२,१६५:५।४४ सू १३१२,१४।४,८%; २२०,२२१,१०१७,२२,२७,१११४६ १८.१,१६।२२।११६१३४,३५,३७,३८ असंखेज्जपदेसिय (असंख्येयप्रदेशिक) ३३१७६; असंखेज्जइभाग (असंख्येयभाग) प १७४,८४; ५११२७,१८४,१०,१७,१६,२३,२८ २२१,२,४,५,७,८,१३,१६ से ३२,३४ ३५,३७. असंखेज्जभाग (असंख्येयभाग) प ५१५,१०,२०,३०, ३८,४१ से ४३,४६,४६,५०,५२,५८ से ६०; ३२,१०२,१२६ ४११४६,१५१,१५७:१५।२२,१८।२७,७० से असंखेज्जवासाउय (असंख्येयवर्षायुष्क) प ६७१, ७२,६५,११७,२०६३,२११३८,४० से ४२, ७२,७६,८१,६४,९५,६७,१०७,१०८,११६; ४८,६३ से ६७,७०,७१,८४,८६,६० से १२ २११५३,५४,७२ २३१६१,६४,६६,६८,७३,७५ से ७७,८३ से असंखेज्जसमइय (असंख्येयसामयिक) १९७१ ८६,८८ से १०,६२,६५ से १६,१०२ से १०४, २८१४,३८,३६१२,८४,९२ १११ से ११४,११७,११८,१३४,१३५,१३८, असंखेज्जसमयट्ठितिय (असंख्येयसमयस्थितिक) १४०,१४२,१४३,१५१ से १५३,१५५,१५६, प ५१४८,११:५१ १६०,१६१,१६४,१६६ से १६६,१७१ से असंखेज्जसमयठितीय (असंख्येयसमयस्थितिक) १७३,२८।४०,६६ उ ३।८३,१२०,१६१; प३१८१ ४।२४ असंखप्पद्धपविठ (असंक्षेप्याध्वप्रविष्ट) असंखेज्जग (असंख्येयक) ५ १२१७ प २३।१६३ असंग (असम) प २१६४११,२१ असंखेज्जगुण (असंख्येयगुण) प २०६४।११,३।१०।। असंजत (असंयत) प ३३१०५, ६१६७,६८ से २३,२६,२६ से ३६,३८,३६,४५ से ५२,५६ असंजय (असंयत) प ३।१०५; १७।२३,२५,३०; से ६३,७१ से ६६,१०१,१०३ से १०५,१०७, १८६०; २०१६०; २१७२३२११ से ४,६ १११,११६,११७,११६,१२०,१२२,१२५ से। असंजयभबियदव्वदेव (असंयतभविकद्रव्यदेव) १२६,१३१ से १७३,१७५ से १७७,१८२, प २०६१ १८३,५१५,१०,२०,३२,१२६,१५१;६।१२, असंठाण (असंस्थान) ५३०४२७,२८ १९,२५,१०।३ से ५:११४६०:१५।१३, असंत (असत्) प २१६४।१७ १७०५७,६०,६३,६४,६७,६८,७१,७३,७४,७६, असंतप्यमाण (असंतप्यमान स 12 ७६ से ८३,१४४ से १४६,२०१६४,२१।१०४, ' असंदिद्ध (असंदिग्ध) उ० १२४,४२ १०५,२८७,५३;३४।२५,३६।३५ से ४१,५२, , " असंपत्त (असंप्राप्त) प १४२०,२३,२६,२६,४८% ६२ २३१,१६।२२ ज ४।४२,७१,७७,९४,२६२, असंखेज्जजीविय (असंख्येयजीविक) प ११३५,३६ __५१५,३८,४४ सू१०।१४२,१४७,१२।३० असंखेज्जतिभाग (असंख्येयभाग) प २१५१,६१,६३, असंभंत (असम्भ्रान्त) ज ५१५,७ ६४ ; ४११५५,१२१८,१२,१६,२४,२७,३१, असंविदित (असंविदित) उ ११०७,१०८,११६, १५७,८,४०,४२:१८१३,४१,४३,२३१५१, Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३८ असंसारसनावण्ण ( असंसारसमापन्न ) प ११० से १३ असंसारसमावण्णन (असंसारसमापन्नक) प ११३६, २२८ असकण्णी ( अश्वकर्णी ) प ११४८ । १ अक्काfरय (असत्कारित) उ ११११७ से ११६ असच्चामोसभासम (असत्यमृषाभाषक ) प ११ ६० असच वामोसमण (असत्य मृषामनस् ) प १६११,७ असच्चामो समणजोग (असत्यमृषा मनोयोग ) प ३६४५६ असच्चामोसवइ (असत्यमृषावाक् ) प १६ ३, ६, १३ असच्चामोसवइजोग (असत्यमृषावारयोग ) प ३६६० असच्चामोसा (असत्यमृषा ) प १११२,२,३५,३७, ४२ से ४६,८३ से ८५,८८,८६ असण ( अशन ) प १३५१३ उ ३१५०,५५, १०१, ११०,१३४, १४६ असण ( अशनि ) प ११२६ नू २०११ असणिमेह ( अशनिमेघ ) ज २।१३१ असण्णि (असंज्ञित् ) प ११८४ ३११२ १७/२०; १८१२०:२०१६१,६३, २३१६७,१७१ २८/११७ से ११६; ३१११ से ३, ५, ६,६११ः ३५।२० असणिआउय (असंज्ञयायुष्क ) प २०१६२ असणभूत (असंज्ञिभूत ) प ३५।२० असणिभूय (असंज्ञिभूत ) प १५३४८, १७१६; ३५।१८ असणिहि (असन्निधि) ज २११६ असणिभूय (असंज्ञिभूत ) प १७।२० अथ (अगस्त्र ) ज ३६२, ११६ उ ३३८,४० असमोहत (असमवहत ) प ३१७४ असमोहय ( अममवहत ) प ३११७४ ३६।३५ से ४१,४८ से ५१ असम्मानिय ( असम्मानित ) उ० १।११७ से ११६ असरीर (अशरीर ) प २६४ १२:३६ १३,६४ असरीरि (अशरीरिन् ) प २८ ११४१ असंसारसमावण्ण असुरकुमार असाढ (अपादक ) प ११४२१ असात (असात ) प ३५।११२; ३५८, ६ असातवेद (असातवेदक ) १ ३११७४ असातावेयणिज्ज ( असातावेदनीय ) प २३१२६,१८० ternoon ( असामान्यक ) सू १३१५, ६, १२,१३,१७ असाय ( असात ) १२२५ असायावेदणिज्ज (असातावेदनीय ) प २३|१६ असायावेयणिज्ज ( असात वेदनीय ) प २३ १६,६४, १३६ असासय ( अशाश्वत ) ज ७२०८, २०६ असाहुदंसण ( असाधुदर्शन) उ ३१४७,७६ असि (असि ) प २२४१; १५।१।२३१५१५० ज २।२३,३१,१७८ ३।१७८ उ १।१३८ असि (असित ) प २३१ असिरयण ( असिरत्न ) ज ३।१०६१७८, २२० असिरयणत्त ( असि रत्नत्व) प २०६० असिलेस (अश्लेष ) ज ७ १२६११,१६२ असीड ( अशीति ) प २२५६१३ retsमंगुलसि (अशीत्यङ्गुलोच्छ्रित) ज ३।१०६ असीति ( अशीति) प० २१५११।२२१२१५, १२ असुइ (अशुचि ) प २२० से २७ ज २।१३३; ५५ उ १।६३;३।१२६,१३० असुइजाय कम्मकरण ( अशुचिजातकर्मकरण ) उ० ११६३, ३११२६ असुइय ( अशुचिक ) प १३८४ असुभ (अशुभ) १२/२० से २७; २२२४ अभणाम (अशुभनामन् ) प २३।३८,१२३ अभत्त (अशुभत्व ) प २८१२४ उ १।२७,१४० असुर (असुर) प० २१३० १.२१४० १, ५, १०; ५।३३६।४६ ज २१६४ ३।२४/१,२, १३१११,२,३ १८५, २०६६ ५५२; चं ११२ असुरकुमार (असुरकुमार ) प १।१३१; २/३१ से ३३,४०१८ ४१३७ से ३६५६ से ८,४८ से ५०, १२१; ६।१७, ५२,६१,८१,८५,६३,१०१, १०६,१११, ११२, ११४ ७ २ ८ ३ ; ६३, Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असुरकुमारत्त-अहवणं ८३६ १५,१०,१११४४; १२२,१५,१६,३१; १३।१५,२०१५।१६,३५,७१,७८,८४,८७, १०२,१३६,१३८; १६:३,११,१६,१७:१४ से १७,२६,३०,३३,३४,६३,६८,६६,१०१, १०२,१०५,१६१; २०१३,५,६,११,१२,१५, २० से २४,२७,३५,३७,४४,६०, २११५५, ६१,७०,६०%, २२।२३,३७,४५,२८.१,२५, ७४,१०६ ; ३१।२; ३३।१०,२०, ३४।२,४,५, ३५१३,३६५,८,१६,२०,२३,२४,२६,३७, ४१,५०,५५,६९,७२ उ २०१७ असुरकुमारत्त (अमुरकुमारत्व) प १५१६५,६७, ११६,१४१३६।१८,२०, २२ से २४ असुरकुमारराय (असुरकुमारराज) प २।३१,३२ ज २११३,५१५०,५१ असुरकुमारिद (असुर कुमारेन्द्र) प २१३१,३२ असुरकुमारी (असुरकुभारी) प ४१४० से ४२; २०१२ असुरिंद (असुरेन्द्र) ज २१११३,५१५० से ५२ सू २०१७ असुह (अशुभ) प २२० से २७ असेलेसिपडिवण्णग (अशैलेशीप्रतिपन्नक) प १११३६, २२१८ असेस (अशेष) ज ७।१३५३२ असोग (अशोक) प० ११३५३ ज २१६५, ३।१२, ३५,८८,१८८,४।२१२१२,५०५८ सू २०१८, २०१८१७ उ १२१, ३६५६,६४,६६,६८,७६ असोग (लता) (अशोकलता) प ११३६१ असोगवडेंसय (अशोकावतंस) प २।५०,५२ असोगवणिया (अशोकवनिका) उ ११५५ से ५७, ८० से ८२ असोगवण (अशोकवन) ज ४११६ असोगा (अशोका) ज ४१२१२ अस्प्त (अश्व) प ११६३ अस्संजत (असंयत) प ३२०६१ अस्संजय (असंयत) प ११८६; २८।१२६% ३२।६।१ अस्संजयभवियदव्वदेव (असंयतभविकद्रव्यदेव) प२०६१ अस्सण्णि (असं जिन्) प ११७४६।८०१ अस्सतर (अश्वतर) प ११६३ अस्सदेवया (अश्वदेवता) सू १०८३ । अस्सपुरा (अश्वपुरा) प ४।२११ अस्सरह (अश्व रथ) प ३१२१,२२,३४ अस्मातावेदग (असातवेदक) प ३११७४ अस्सातावेदणिज्ज (असातवेदनीय) प २३१६ अस्सातावेयणिज्ज (असातवेदनीय) प २३११६ अस्साय (आ-!- स्वादय) अस्साएइ प १५।३.८ अस्साएंति प २८१२२,३६,६८ अस्सायण (आश्वायन) ज ७१३२ सू० १०६६ अस्सायावेदणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।३१।। अस्सिणी (अश्विनी) ज ७।११३११,१२८,१२६, १३६,१४३,१४६,१५५,१५८,१५६, सू१०११ से ६,१०,२२,२३,३४,६२,६५,६६,७५,८३, ६६,१२०,१३१ से १३३,१५४ अस्सेसा (अश्लेषा) ज ७/१२८,१३४,१३६,१४०, १४७,१५० सू १०१ से ६,१४,२३,२५,४२, ६२,६६,७५,८३,१०७,१२०,१३१ से १३४।२, १५७ अस्सोई (आश्वयुजी) ज ७।१४०,१४३,१४६ सू १०१२३ अस्सोय (आश्वयुज) सू १०।१२४ अह (अथ) प ५१५ उ० ३१२६ अह (अधस्) ज ३११८८ अहक्खाय (यथाख्यात) प १३१२४,१२६ अहक्खायचरित्तपरिणाम (यथाख्यातचरित्रपरिणाम) प०१३।१२ अहत (अहत) ज २११००; ३1३५,२११,५१५८ अहत्ता (अधस्ता) प० २८१२४,२६ अहमिद (अहमिन्द्र) प २०६०,६१,६२।१,६३ अहय (अहत) ज ३१६,११७.१२,२२ अहर (अधर) प २१३१ अहवणं (अथवा) प० १२११२ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४० अहवा ( अथवा ) प १।१०३ ज २।६६ सू १०।१२० उ १।११५ अहा छंद ( यथाछन्द) उ३।१२० अहाछंदविहारि ( यथाछंदविहारिन् ) उ ३ । १२० अहापडिव ( यथाप्रतिरूप ) उ ११२३/२६,६६, १३२; ५।२६ अहावी ( यथानुपूर्वी) ज ३३१७८, १७६,२०२, २१७:५।४३ अहाबायर ( यथावादर ) ज ३११२२; ५३५, ७ अहमालय ( यथामालिक ) ज ३१६ अहारिह ( यथार्ह) उ ३।११५ अासु ( यथासुख) उ ३११०३, ११२,१३६, १४७, १४८४१११, १४, १५, १६ अहाम (यथासूक्ष्म ) ज ३३१९२ अहि (अहि) प १६८,६६, ७१ ज० २।४१ अहिंग ( अधिक ) सू ११२७१५।२४, २५ अहिगम ( रुइ ) ( अधिगमरुचि ) प १।१०१।१ अहिंगमes ( अधिगमरुचि ) प १।१०१८ अहिरणिया (आधिकरणिकी ) प २२३१,३,४८, ५३ से ५६,५८,५६ अहिगरणिसंठिय (अधिकरणीसंस्थित) ज ३१६४, १३५,१५८ अहिगरणी (अधिकरणी ) प २२१४८ अहिछत्ता (अहिछत्रा ) प १९३२ ( अहिज्ज ( अधि + इ ) अहिज्जइ उ २1१० ; ३११४; ५२८ अज्जित (अधीयान) प ११०१/६ अहिज्जिता (अधीत्य ) उ २ १०६३।१४;५|३६ a (अधिक ) प २२७/२; १३१२२/२ : २३/१४७, १५८,१६२, १६५ ज २ १३१३/३६,७६,११७, २२२;४११४६;७।२७, २९, ३० सू १११४, १६ २१,२४६।१; १५/२८,३१,३२; १६।११।१ अहियास (अधि + सह, आस्) अहियासिज्जति उ ५१४३ अहिया सेइ ज २२६७ अहिलाण (दे० ) ज ३ | १०६,१७८ घोड़े के मुंह पर अहवा अहोसिर बांधे जानेकला अहिवइ ( अधिपति) ज ३१२६,३६,१५६ ५।१८,४६ अहिसलाग (दे० ) प ११७१ अहीण ( अहीन) उ५३४५ अहोय (अधीत ) उ ३१४८,५० अणोववरण (अधुनोपपन्न) उ३११५, ८४, १२१, १६२ आहे (अधस् ) प २२० से २७,२७१३, २।३०,३१, ४१; ११।६५,६६,६६११; १६५५ २१३८७, ६०,६१,२८।१५,१६,६१,६२,३३।१६ ज २१६५, ७१ ७ ५४,१६८ ।१ २११ ; ४ १०; १६१२२; २०११ २ १।४६; ३५६, ६४,६८,७१,७४ आहे (अथ ) ३।५१११ अहेतु (अहेतु) प ३०/२७,२३ अहेदिसा (अधोदिशा ) प ३।१७६, १७८ अलोइय (अधोलौकिक ) प २१/६२, ६३ अहेलोय (अधोलोक ) १० ३।१२५ से १७३, १७५, १७७ असत्तमा ( अधः सप्तमी ) प ३।१७,१८ ४१२२ से २४;६/१६,५१,६०,८०,८८, ६१, १२, १००, १०६, १०१२,३,१६२६, २०१७, ४३,५७; २१५२,५६,६७,८७ ३०१२६; ३३१६, १७ असत्तमापुढवि (अधः सप्तमी पृथ्वी) प० २०५२ अहो ( अहो ) ज ३११२६ उ ११६२५१२२ अहोरत (अहोरात्र ) ज २२४,६६,७२० से २४, २६ से २६,१२२१२६, १२७,१३४११, १३५।१ से ४,१५६,१५७,१६० सू १११४, १६,२१,२४, २७, २३ : ६१; ८।११०१३,६३ से ७४,८४,१३४; १२२ से ५, १२, १५/११, १२,२६ से ३१,३४ अहोलोग (अधोलोक ) ज ५११ से ३, ५ अहोलोय (अधोलोक ) प २११,४,१०,१६ से १६,२८ अहोवाय (अधोवात ) प १२६ अहोसिर ( अधः शिरस् ) ज ११५, २१८३ उ० ११३ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आइ-आउहघरसाला ८४१ आ आइ (आदि) प ५१४,१४३,२१८, २५।४ ज २१२१:५१२७,४०,५५,५७, ७/४५,५० उ २२२२, ५।४५ Vआइक्ख (आख्या ) आइक्खइ ज ७२१४ उ१६८ आइक्खग (आख्यायक) ज २०६४ आइगर (आदिकर) ज ११ उ ३।१२,५११४ आइच्च (आदित्य) ज ३१३,७४२५,३०,१११, ११२१४,५ सू १६।३।१०।१२८,१२६१४,५ आइच्चचार (आदित्यचार) च ५१३ आइणग (आजिनक) ज ४।१३ आइण्ण (आकीर्ण) ज २१३४, ३.१०३,१७८ आइय (आदिक) ५ ११५०,५१,६०,७५,७६,८१, २४।८ ज १३५,६४,१४४,३११८५; ४१२४८,२५१, ५.३८,५७,७११२६ उ २११०, १२३३१४,१६१,२५०२८,३६,४१ आइय (आचित) १७११६ आइल्ल (आदिम) प ५.१०२, २२।३५,५१,५४ आइल्लिग (आदिम) प १७।३० आइल्लिय (आदिम) प २२।७३,७४ आईणग (आजिनक) सू २०६७ आईय (आदिक) ५ १४।१८, २८।११६; उ १६६,६७,६४,४११३३ आउ (दे० अप) प ६६१०२,१०४,११५; ६।४; १११२६ से २८; १३१६:१७।३३१८१२६, ३२,२०१८,२२,२८,२११८५:२२।२४:२८।१२३ आउ (आयुष) ज ११२२,२७,५०,२१४६,५१,५३, ५४,५८,१३३ से १३५,१६१; ३१३; ७११३०, १८६।४,२११ आउ (काइय) (दे० अकायिक) प १७१४० आउकाइय (अप्कायिक) प ११५, ३१५० से ५२, ५५, ६० से ६३,६६,७१ से ७४, ७७,८४ से ८७,६०,६५,१५६ से १६१,१८३,४।६५ से आउकाइयत्त (अकायिकत्व) ज ७।२१२ ७०,५॥३,११,१२,६.१६,१०२,१५११३७ आउक्काइय (अप्कायिक) प ११२१:२।४ से ६ ३।३।६।८६,१२।२२,१५।२६,८५,१७१६०, ६६,१०२,१८।३८,४०,४२,५०,२०११३,२५, २६,४४:२११२४,४०; २२॥३१ आउकाय (अप्काय) सू २।१ आउक्खय (आयुःक्षय) उ० २११३; ३३१८,८६, १२५,१५२,४१२६, ५।३०,४३ आउज्जीकरण (आवर्जीकरण) प ३६१८४ आउट्ट (आ+वृत्) आउज्जा ज २१६७ आउट्टि (आवृत्ति) सू १२।१८ से २८ आउड (आ.कुट ) आउडेइ ज ३१८८,१३५, १५५ आउडिय (आकुटित) ज ३।८६,१५६ आउत्त (आयुक्त) प १११८६ ज ३३१७८ आउदेवया (अब्देवता) सू१०।८३ आउपज्जव (आयुषपर्यव) ज २१५१,५४,१२१, १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ आउय (आयुष्क) ए ३३१७४; २०१६१,६३; २२।२८, २३११,१२,१८,३७,१४६,१६६,१८५ १६१,१६३,१६७ से २०१; २४११४:२६:११; २७१५,३६.८२,८३।१,६२ ज २१४६,५८,१२३, १२८,१४८,१५१,१५७, ३१२२५४।१०१ आउयबंध (आयुष्कबन्ध) प ६।११८,११६ आउयबंधद्धा (आयुष्कबन्धाध्वन् ) प २३।१६३ आउल (आकुल) प० २।४१ ज० २०६५ सू २०१७ आउस (आयुष्मत् ) प २।३,६,९,१२,१५,२० से २७, ६० से ६३; ३।३६, १५६४३,४५,३६७६, ८१ ज ११६.१६ से २१,२३,२५,२६,२८, ३० से ३६,३६ से ४३,४८,४६,५१,५४,१२१, १२६,१३०,१३३,१३८,१४०,१४६,१५४,१५६, १६०,१६३, ७.१०१,१०२,१२६, सू ८।१०; २०१७ आउह (आयुध) ज ३७७,१०७,१२४ उ ११३८ आउहघरसाला (आयुधगृहशाला) ज ३१४,५,६,१२, Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४२ १४,३०,४३,४१,६०,६८,१३०,१३६.१४०, ३०५,६ १४६, १७२,२२० आउरिय (आयुधमूहिक) आज्जणाम (आदेयनामत् ) प २३।१२६ आएस (आदेश) ज ३।१६७।६ आओग (आयोग) ज ३२१०३ आयोजित ( आयोजित ) २२५७ आओजिय ( आयोजित ) प २२५८ V आओस (आ· क्रुश्) आओस उ ११५७ आओसणा ( आक्रोशना ) उ ११५७,८२ आकासिया ( आकाशिक) ज २०१७ आकुल ( आकुल ) ज ३६,२२२ फोसावंत ( आक्रोशायमान) २०१५ आग ( आगति) ज २०७१ √ आगच्छ ( आ· · गम् ) आगच्छइ ज २१२४, ३।१०७, ११४७।२० से २५,७६,८२ २३ उ १।७० आगच्छति प ११।७२ २८|४०, ४३,६६२०३४,३५,३७,१०१७१०१. १०२,२०२,२०४,२०६८१ आगच्छति सू २३ आगच्छेज्ज प ३६।६१ आगच्छेज्जा प ३६।८१ ज २६ आगच्छमाण (आगच्छत् ) सू २०१२ आगत ( आगत ) प २०१६,१० आगम ( आ + गम् ) आगमेसि ज २१८१ आगमण ( आगमन) २।१६२ आगमेस्स (आगमिष्यत्) ज २९१३८, १६१ आगम्म ( आगम्य ) ज ५।५५ उ५७ आगय ( आगत ) प २०१६ से १,११ से १३: ३४।१।१ ज ३१८२ सू २०१७ उ० १११७,२२, १०७.१०८,१२७.१२८, १३८, १४० ३२७,२१, २५,२६,६१ आगर ( आकर ) प १७४ २१२२,१३१: ३।१८,३१,८१,१६७१२, ८, ३११८०, १८५,२०६, २२१ उ० ३।१०१ ५३६ आगरपति (अत्करपति) ज ३६१ अ. उपरिय-आणंदकूड आगायमाण ( अगायत् ) ज ५१५७ से १२,१७ उ० ३।११४ आगार (आकार) प १०३८३३३०१९.२४ आगार ( आगार ) प ३०२५, २६ आगारभाव (आकारभाव) ज १७,२१,२६, २७, २६,३३,४६,५०२१४,१४,१५,२०,५२,५६ से ५८,६५,१२२,१२३.१२७.१२८,१३१ से १३३, १३६, १४७, १४८, १५०, १५१.१५६,१५७,१५९ १६१.१६४ : ४१५६,८२,१००,१०१.१०६,१७०, १७१ आगारभावमाता ( आकारभावमात्रा ) प १७ १५०, १५२.१५५ आगरिस (आक) ६११:६।१२०, १२१.१२३ आगास ( आकाश ) प २२६४११६ १५१५३,५४, ५७ २०१०४.१०४.१०७,२११:५५८ २१६ आवासत्यिकाय (आकारिका) १३: ३१११४,११५, ११८, १२२ ५ १२४ १५:५३, ५४,५७ आगासथिग्गल (आकाशथिल ) प १५।५३,५६; १४।१२३ आगासफलोवम (आकाशफलोपम ) ज २१७ आगासफालिओमा (३०) प १७।१२५ आघवणा ( आख्यान ) उ३।१०६ आयवित्तए (आग्यातुम् ) ४३।१०१ आविट्ठ (आस्था) आविद्वामोज ३११३ आजीविय (आजीविक ) प २०६१ आजोजित ( आयोजित ) प २२५७ आडोव (आटोप) ज ७ १७८ आढई (आढकी) ११३७।१ आढत्त ( आर ) प १७११४८ / आढा ( आ + दृ) आढाइ उ ११३८ ; ३१५६ आति ३११८ आणंद (आनन्द) ज ७ १२२१२ सू १०६४/२ १।७१,७२२१२१ आणंदकूड (आनन्दकूट) ज ४।१०५ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आणंदा-आदरिस ८४३ आणंदा (आनन्दा) ज ५।८।१ आणा (आज्ञा) प ११०१।५ ज ११४५,३१८, आणंदिय (आनन्दित) ज ३१५,६,८,१५,१६,३१, १६,५३,६२,७०,७७,८४,१००,१४२,१६५, ५२,५३,६१,६२,६६,७०,७७,८४,६१,१००, १८१,१८५,१६२,२०६,२२१:५।१६,२३,७३ १३४,१३७,१४१,१४२,१५०,१६५.१७३, उश२०,४५,१०८ १८१,१८६,१६६,२१३,५१५,१५,२१,२३,२७, आणाईसर (आज्ञेश्वर) प२१३०,३१,४१,४९ २८,२६,४१,५५,५७,७० उ ११२१,४२; उ ५.१० ३११३६ आणापाणु (आनप्राण, आनापान) सू ८११:२०१५ आणण (आनन) ५२१४६ ज ३।६,१८,६३,१८०, आणापाणुचरिम (आनप्राणचरम, आनापानचरम) २२२ प१०।४०,४१ आणत (आनत) प १११३५ आणापाणुपज्जत्ति (आनप्राणपर्याप्ति, आनापानआिणत्त (अन्यत्व) प १५।४४,४५ पर्याप्ति) प २८।१४२ आणत्ति (आज्ञप्ति) ज ३।२६,३६,४७,५६,६४, आणामिय (आनमित) ज २०१५ ७२,१३३,१३८,१४५५६६१ उ १११६ आणारुड (आज्ञारुचि) प ११०१११,५ आणत्तिया (आज्ञप्तिका) ज २१०५,३७,६,१२, आणु (आन) प ११४८।५३ १३,१५,१८,१६,२८,२६,३१,३२,४१,४२, आणुगामिय (आनुगामिक) प ३३१३५,३६ ४७,४६,५०,५२,५३,५८,५६,६१,६२,६४, आणुपाण (आनप्राण, आनापान) प ११४८।५५ ६६,६७,६६,७०,७४ से ७६,८३,६६,१००, आणुपुटिवणाम (आनुपूर्वीनामन्) प २३।५४,१११, १२८,१४१,१४२,१४५,१४७,१४८,१५१, ११३,११४,१४६ १५४,१६४,१६५,१६८ से १७१,१७३,१७५, आणुपुवी (आनुपूर्वी) प ४४७।३।११।६८,६६, १८०,१८१,१६१,१६८,१६६,२१२,२१३,५।३, ६६।१२३३११२,११५,१७५,१६०; २८.१८, २८,६८,६६ से ७३ उ १।१७,१८,१२३,३।७; १६,६४,६५ ज ७४७,५० सू २०१८ उ २।१२, ४।१६,१७,५१८ २२:५॥३६ आणपाणपज्जत्ति (आनप्राणपर्याप्ति, आनापान आणुपुत्वीणाम (आनुपूर्वीनामन ) प २३१३८ पर्याप्ति) उ ३११५८४ | आणे (आतुम्) उ ११०७ आणपाणु (आन प्राण, आनापान) प १०५३।१ आणेत्ता (आनीय) उ ४११६ आणम (आ+ नम ) आणमंति, ७४१ से ४,६ आणेयव्य (आनेतव्य) ज २६४ आयपत्त (आतपत्र) ज ३।३ आणमणी (आज्ञापनी) प १११६,६,२७,३७१ आतरक्ख (आत्म-क्ष) प २१३१,४३ आणय (आनत) ५२१४६.५८,५६,५६।२,६३,३।१५३; आतव (आतप) ज २।१३४,३।११७ सू १६॥३,४ ४१२५५ से २५७, ६।३५,५६,६६,८६,६६, आतवा (आतपा) सू१८१२४ ११३;७१६:१५।८८,२११७०,६२:२८१८३; आतीय (आदिक) उ ४।१८ ३३।१६३४११६,१८ ज ४।२४६,५१४६; आस (आदर्श) ज ३१११,५१८ ७.१७८ आदंसघर (आदर्शगृह) ज ३१२२२,२२४ आणव (आज्ञापय ) आदसिया (दे०) प १७११३५ ज २०१७ आणवेइ ज ५।२२,२६ उ ११११० आदरिस (आदर्श) ज २१६८ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४४ आदाण (आदान ) सू १२।१५ आदाय ( आदाय ) ज २६५ आदि (आदि ) प १६४,७६, ८६, ५२५,४६, १३१, १३४,१३६, १४०, १४७, १६३, १६६,१६६, १७२, १७४, १७७, १८१, १८४, १८७, १९३, १६७,२००, २०३, २०५,२२१,२२४,२३०,२३२, २३४, २३७,२३६; १०१२; ११ ६६, ६७,६६।१; २०१२५; २३।१०८ २४८ २६६ २८१११२, २८१६,१७,६२,६३,१२३, १३३,१३६, १३७, १४०; ३६।२०,४६ ज २६।१२।७१,१३१, १४५ चं २ ३ ११६।३ : ५१; १०।५; ११३२ ६ आदिच्च (आदित्य) सू १।१३,१४,१६,१७,२१, २४, २७, २३ : ६।११०१५, १०, ११,७७, १२ १,५,१० से १२; १३ । ५; १५। २३ से २५; १६२२१४,७,८,२२; २०१५ आदिच्चचार (आदित्यचार) सू १० १२१,१२३ आदिपदेस ( आदिप्रदेश ) सू १।१६ आदिय (आदिक ) प ११४६,६६२८३१४५ सू १०११,१३१, २०१५ आदिल्ल ( आदिम ) प ५१०५ २२१५१ १६।२२।२५ आदिल्लिय (आदिम ) प १७१६७ आदीय (आदिक ) प ६ १२३,१११३०२२१४५ ; २४।६ से ११२६८ २८३१२३,१२६,१३७, १४०, १४५; ३६।२० उ १।१६,११६ से १२२, १२५; ३।३१,४० आदेज्ज (आदेय ) ज २।१५ आदेज्जणाम (अदेयनामन् ) प २३१३८ आदेस (आदेश) प १८३६० / आघाव ( आ + धाव् ) आधावेंति ज ५।५७ आप डिपुच्छमाण ( आप्रतिपृच्छत् ) ज २२६५ आपुच्छ ( आ + प्रच्छ्) आपुच्छर उ ३।१४८ ४।१५ आच्छामि उ३।१३६; ४।४; ५।२७ आपुच्छणा ( आप्रच्छना) उ२६ आपुच्छणिज्ज (आप्रच्छनीय ) उ३।११ आदाण-आभिणिबोहियणाणि आपुच्छित्ता ( आपृच्छ्य ) उ २।११ ३३५०, ५३३८ आपूत ( आपूरयत्) ज ३११४, १७२ आपूरेमाण ( आपूर्यमाण ) ज ४१३५, ४२,६४, १७४, २६२,५१३८ आवाहा (आबाधा ) ज २।३०,३६,४१ आमंकर (आभङ्कर) सू २०१८, २०१८ ७ आमरण (आभरण ) प २१३०,३१,४१,४६; ११।२५ ; १५१५५।२ ज २१६५३१६,११,१२, २६,३६,४७, ५६, ६४,७२,७८, ८१, ८५, १३३, १४५, १८४,२२२,२२४; सू २०१७ उ १११६; ४२, ३ २६,११३,१४१ ४ १२,२० आभरण (वासा) (आभरणवर्षा ) ज ५।५७ आभरणविहि (आभरणविधि ) ज ३।१६७१४ आभरणारहण (आभरणारोहण आभरणारोपण ) ज ३।१२ आभास (आभाषिक ) प १३८६,८६ आभिओग (आभियोग ) प २०१६१ ज २१२६,६७, ६८५११४, १५,५३,६१,७२, ७३ उ ३।३७, ६१ अभिओगसेढी (आभियोगश्रेणी) ज ४।१७२ आभिओगिय (आभियोगिक ) प २०/६१ ज ५३, ४,२८,४३,५० आमिओग्ग (अभियोग्य ) ज १३१३:३।१६१, १६२,१६,२०७, २०८ ५२८ ५४,५५ अभिओग्गसेढी (अभियोग्यश्रेणी) ज ११२८ से ३२, ६६५ आभिणिब्रोहिय ( आभिनिबोधिक) प १७।११२, ११३ आभिणिबोहियाण (आभिनिबोधिकज्ञान ) प ५१५, ७,२०,२४,४१,४२,४६,७८, ६३, ६७,१११, ११२६१७।११२,११३,२०११७,१८,३४; २६१२,१२,१७,१६,२१ आभिणिबोहियणाणारिय (आभिनिबोधिकज्ञानार्य ) प ११६६ आभिणिबोयिणाणावरणिज्ज (आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय ) प २३।२५ आभिणिवोहियणाणि (आभिणिबोधिकज्ञानिन् ) प ३११०१, १०३५/४० से ४२,७७ से ७६, Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभिणिबोहियनाणपरिणाम-आयाम ५४५ ६२ से १४,६६,१०० से ११२,११७:१३३१४, १७,१६,१८१८०; २८११३६ आभिणिबोहियनाणपरिणाम (आभिनि बोधिज्ञान परिणाम) प० १३६ आभियोगसेढी (आभियोगश्रेणी) ज ४१२०० आभिसेक्क (आभिषेक्य) ज ३।१५,१७,२०,३१, ३३,५४,६३,६४,७१,७७,६१,१४३,१५१,१६६, १७३,१७५,१७७,१७८,१५२,१८३,१८५, १६६,२०२,२०४,२१४,२१७,४११४० उ ५:१८ आभिसेय (आभिषेक) ज ३।१०६ आभूय (आभूत) उ १७४ आभोएत्ता (आभोग्य) ज २१६० आभोएमाण (आभोगयत्) उ ३७,६१ आभोग (आभोग) प १४११८१ आभोगणिबत्तिय (आभोगनिवर्तित) प १४१६% २८१४,२५,२७,३७,४७,५०,७३ से ७५; ३४१५ आभोय (आ+ भोगय) आभोएइ ज २१६०,६३; ३१५६,१४५,५२१ आभोएंति ज३।११३; आयंक (आतङ्क) ज २१४३,५१५ उ ३।३५,११२, १२८ आयंत (आचान्त) ज ३८२ उ ३१५१,५६ आयंस (आदर्श) ज २।१५,५१५५ आयंसमुह (आदर्शमुख) प ११८६ आयंसलिवि (आदर्श लिपि) प १०६८ आयत (आयत) प ११४ से ६२२५० से ५२,५७, ५८,६१,६२,१०११५ से २५,२७ से ३०; १५१५२ ज ३।२४,१०६,१३१,१३८।१ आयय (आतत) १७,२॥३१,५३ से ५६,५६, ६०१०।२६:१३।२४ ज १।१८,२०,२३,२५, २८,३२,४८,४।८१,६८,१०३,१०८,१७२, १६१,२०३,२०५,२१४,२४५,२५१,२५२, २६८ उ ११२२,१४० आयर (आदर) ज ३११२,७८,१८०,२०६:५।२२, २६ आयरक्ख (आत्मरक्ष) प २१३० से ३३,३५:४०।५; २०४१,४८ से ५६ ज २४५२।१०४२०, ११२,१५११२२११५६११,१६,४०,४६ से ५१,५२।२,५३,५६ सू १८।२३ आयरिय (आचार्य) प१६५१ ज ३१३५ च १२ उ ५१२६,२८ आयव (आतप) ज ७/१२२।३ सू १०८४१३ आयवणाम (आतपनामन्) प २३।३८,११५ आयसरीर (आत्मशरीर) १२८१२०,३२,६६ आयाए (आदाय) उ १६३ आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमित (आदानभाण्डामत्रनिक्षेपणासमित) उ ३.66 आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिय (आदानभाण्डामत्रनिक्षेपणासमित) ज ३१६८ आयाम (आयाम) ५२१५०,५.६,६४, २११८४,८६, ५७,६० से १३,३६१६६,६८,७०,७२ से ७४, ८१ ज १७,२०,२३ से २५,२८,३२,३७,४०, ४३,४८,५१, २१६,१५,१४१ से १४५:३११, १८,३१,५२,६१,६६,६५,६६,१३१,१३७, १३८,१४१,१५६,१६०,१६४,१८०४११,३, आमोयण (आभोगन) प ३४।१।१ आमंत (आ+ मंत्रय) आमतेइ उ ३।११० ४.१६ आमंतणी (आमन्त्रणी) प १११३७११ आमंतेत्ता (आमन्त्र्य) उ ३१५०, ४११६ आमलग (आमलक) प ११३६।१ आमलगसारिय (आमलकसारिक) सू १०।१२० ५ आमुस (आ - मृश्) आमुसइ उ १६१ आमुह (आमुख) सू१६१२३ आमेल (आपीड) प २१४१ ।। आमेलग (आमेलक) ज २११५:)३.१०६ आय (दे०) प १।४७ आय (आत्मन्) प १४१३ ; १४।१८१ आय (आय) उ १४१,४३ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४६ आयारभाव-आलोअंत ६,७,६,१२,१४,१५,१६,२४,२५,३१,३३,३६ आराह (आ राध) आराहेहिति उ ५५४३ से ४१,४७,५२ से ५५,५७,५६,६२,६४,६६ से अराहणविराहणी (आराधनविराधनी) ११३ ६८,७०,७४ से ७६,८०,८१,८६,८८,८६,६१ आराहणी (आराधनी) प ११४३,८ से ६३,९८,१०२,१०३,१०८,११०,११२,११४, आराहय (आराधक) प ११८६ उ १२० ११६,११८ से १२०,१२२ से १२७,१३२, आराहेत्ता (आराध्य) 3 ५१४३ १३६,१४०,१४३,१४५ से १४७,१५३ से १५६, आरिय (आर्य प १३८८,६०,६३३६,१११२६ १६५,१६७,१६६,१७२,१७४,१७६,१७८, उ १३१७ २००,२१५,२१६,२१८,२१६,२२१,२४२, आरूढ (आरुढ) ज ३१३५,१२१ २४५,२४८,५३३५७७,१४,१६,३१,३२११, आरुभित्ता (आरुह्य) सू ६१४ ३३,३४,६६,७३ से ७८,६०,६३,६४,१०७, आरह (आ: रह.) आरुहेति ज २।१०३,१०४ २०७ सू १।१४,२६,२७, ४१३,५ से ८,१८६ आरुहेत्ता (आरुह्य) ज २११०३ से १३,१६२०,३० उ ५४ आरोग्ग (आरोग्य) ज ३६२,११६ आयारभाव (आकारभाव) ज ११२२ आरोहग (आगेहक) ज ३।१७८ आयावण (आतापन) उ ३१५० आलइय (आलगित) प २१५० ज ५११८ आयावणभूमी (आतापनभूमी) उ ३.५०,५१,५३ आलंकारिय (आलंकारिक) ज ३११५० आयावेमाण (आतापयत् ) उ ३१५० आलंबण (आलम्बन) ज ४।२६ आयाहिण (आदक्षिण) ज १६; २१६३१५; आलंबणभूय (आलम्वन भूत) उ ३.११ ५५,४४,४६ उ १।१६,२१, ३.११३,४।१३ आलय (आलय) ज २७१ आरंभ (आरम्भ) उ १।२७,१४० आलावग (आलापक) प १७।१६७ से १७२; आरंभिया (आरम्भिको) प १७११,२२,२३,२५, २१:३१ सू ८१ २२।६०,६१,६६ से ६६,७६,६१,६८,१०१ आलिंगणवट्टिय (आलिङ्गनवतिक) ज ४।१३ आरंभियाकिरिया (आरम्भिकी क्रिया) प २२१६७ सू२०१७ आलिंगपुरखर (आलिङ्गपुष्कर) ज १११३,२१,२६, आरण (आरण) प १।१३५; २।४६,५६,५६२, ३३,३६,३६.४६:२१७,३८,५२,५७,११२, ६०,६३,३।१८३;४।२६१ से २६३,६।३७,५६, १२७,१४७,१५०,१५६,१६१,१६४,३।१६२; ६६,७१८,१५।८८,२११७०,९२,२८८५; ४।२,८,११,५।३२ ३३११६, ३४.१६,१८ ज ५१४६ आलित्त (आदीप्त) उ ३।११३ आरद्ध (आरब्ध) २०१६० आलिसंद (दे०) प ११४५११ आरबक (आरब) ज ३१८१ आलिसंदग (दे०) ज २१३७ आरबी (आरबी) ज ३११११२ आलिह (आ-:-लिख ) आलिहइ ज ३११२,८८; आरम्भ (आरब्ध) प १७१३२ ५५८ आरभड (आरभट) ज ५१५७ आलिहमाण (आलिखत् ) ज ३६५,१५६ आरस (आ+रस्) आरसइ उ ११६० आलिहिज्जमाण (आलिमयमान) ज ३९६,१६० _आरससि उ १९८५ आलिहिता (आलिख्य) ज ३।१२ आरसिय (आरमित) उ १६१,८६ आलुग (आलुक) प ११४८।२ आराम (आराम) जरा६५:५५,७७ ३१३६,३६ आलोअंत (आलोकमान) ज३।१७८ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आलोइय-आसय ८४७ आवास (आवास) ५१५२५५।३ ज ३११८,५२,६१, ६६,७७,८४,१४१,१५३,१६४,१६७।१३,१८० उ ५।४१ आविद्ध (आविद्ध) ज ३१९,७७,१०७,१०६,१२४, २२२; ५५६ उ १११३८ आविद्धकंठ (आविद्धकण्ठ) ज ३।२०६ आवीकम्म (आविष्कर्मन्) ज २०७१ आवेढिय (आवेष्टित) प १५३५१ आस (अश्व) प २१४०।१०।११।२१ ज २।३५ ३।६८,१६७१४,१७८,१७६,२२१,७४१३, १८६।३ उ १३१४,१५,२१,१२१,१२६,१३३, आलोइय (आलोचित) उ०१२;३।१५०,१६१, ५२८,३६,४१ आलोगभूय (आलोकभूत) ज ३९६,१६० आलोय (आलोक) ज ३१६,१२,१८,७७,८८,६३, ६५,१५६,१७८,१८०,२२२, ५१४३,४६ आलोय (आ+ लोच ) आलोएहि उ ३.११५; ४।२२ आवकहिय (यावत्कथिक) प १११२५ आवज्ज (आ+पद) आवज्जति प १११७२ आवड (आवर्त) ज ५१३२ आवडिय (आपतित) ज ५।२५ आवण (आपण) ज ३१३२ आवणगिह (आपणगृह) ज ३।१६७२ आवत्त (आवतं) प ११६३ ज ३१३,४१२३,३५, ३७,४२,७१,७७,६४,१८८ से १६१,२६२; ७।५५ सू१६।२२११०,११,१६१२३ आवत्तकूड (आवर्तकूट) ज ४।१६२ आवत्तग (आवर्तक) ज ३।१०६ आवरण (आवरण) ज ३१३५,११६,१६७।६,१७८ आवरित्ता (आवृत्य) सू २०१२ आवरिस (आ+वष ) आवरिसेज्जा ज ५७ आवरेत्ता (आवृत्य) सू २०१२ आवरेमाण (आवृन्वत्) सू २०१३ आवलि (आवलि) ज ५१२८ आवलिया (आवलिका) प १२।२७,१८१३,२७ ज २।४ चं ५११ सू १।९।१८११ २०१५ आवलियाणिवात (आवलिकानिपात) सू१०१ आवस (आ । वस्) आवसामि उ ३।११८ आवसह (आवसथ) ज ३११६,३१,३२।२,५३,६२, ७०,१४२,१६५,१८१ आवसित्ता (ओस्य) ज ३१२२५ आवस्सग (आवश्यक) उ ३१३१ आवाग (आपाक) प २३११३ से २३ आवाड (आपात) ज ३३१०३ से १०५,१०७ से ११५,१२५ से १२७ आस (आस्य) प २।४०११० आस (आम्) आसि ११४७ आसकरण (अश्वकर्ण) प १८६ आसक्खंधसंठिय (अश्वस्कन्धसंस्थित) सू१०॥३४, आसखंध (अश्वस्कन्ध) ज ४११७८ आसखंधग (अश्वस्कन्धक) ज ७।१३३।१ आसग (आस्यक) उ १८६,६० आसण (आसन) प १११२५ ज २८६,६०,६२, ६३; ३,५५,५६,६४,७२,१०३,११२,११३, १४४,१४५; १२,३,७,२०,२१ सू २०१४ उ ३।१०१,१३४ आसत्त (आसक्त) प २।३०,३१,४१ ज २१७,३०, ३५,८८ आसत्थ (आश्वस्त)उ १२४,६२ आसधर (अश्वघर) ज० ३।१७६ आसपुरा (अश्वपुरा) ज ४१२१२२२ आसम (आश्रम) प १७४ ज २।२२,१३१; ३१८,३१,३२,१८०,१८५,२०६ उ ३१५५,१०१ आसमुह (अश्वमुख) प ११८६ आसय (आस्यक) उ ११६१,६२,८६,८७ आसय (आस्) आसयंति ज १११३,३०,३३,३६; २।७,४१२,६४,८७,१०४,१७६,१८५,१६१, १९७,२००,२०१,२०६,२१४,२३४,२४०, २४१,२४७ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४८ आसरयण ( अश्व रत्न ) ज ३४१०६,२२० आसरयणत्त ( अश्व रत्नत्व) प २०१५६ आसरह (अश्वरथ) ज ३।३४ से ३६ उ १।११० ; ५१३८ आसल (दे० ) प १७|१३४ आसव (आश्रव ) प १११०१।२; १७ १३४ आसा (आशा) उ३।१५६ आसाएमाण (आस्वादयत् ) उ ११३४,४६,७४ आसाढ (आपाढ) ज २२६५७ १०४, ११३, ११४, १२६ सू १०।१२४,१२६ उ ३१४० आसाढा ( आषाढा) सू १०।७५, १२०, १५५, १५६; ११२ से ६; १२/२४ से २८ आसाढी ( आषाढी) ज ७ १३७, १४०,१४६, १४६, १५३,१५५ सू १०१७,१६,२४,२५,२६ आसाय (आस्वाद ) प १७।१३० से १३५ ज २२१७,१८ आसाय ( आ + स्वाद ) आसाएंति प २८१२२, ३४,६८ आसायणिज्ज (आस्वादनीय ) प १७।१३४ ज २०१८ आसालिय (आशालिक, आसालिंग ) प १२६८,७३, ७४ आसासग ( अश्वास्यक ) प २१४० १० आसासण ( आश्वसन ) ज ७ १८६२ सू २०१८, २०१८ार आसिय (आसिक्त) ज २२६५; ३७, १८४ ५७ आसीत (आशीत ) प २२७ १ आसरयण आहारगसरीर सू १०११२६ २,५ आहच्च (दे० ) प १७ २,२५६२८।२१,३३,३८,६७ आहत (आहत ) प २३०, ३१, ४१, ४६ सू १६२३, २६ आय ( आहत ) ज ११४५; ३१२६,८२,१३३; ५०१, १६७१५५, ५८ सू १८१२३ ( आहर ( आ + हृ ) आहरेइ उ ३।५१ आहार ( आ + ह् ) आहारिस्सइ ज २९१४६ आहारिस्संति ज २११३४, १४६ आहारेइ उ ३५० आहारति प १५।४६ से ४६; १७१२, २५; २८।५ से ७, ६ से २३, ३० से ३५, ३६, ४०,५१,५२, ५३, ५५ से ६६,६८ से १०१ ; ३४१६ से १,११,१२ आहारेमि प ११।१२, १७ आहार (आहार) प १ । १ ७, ११४८३५५ ३|१|१; १०१५३।१११।१२; १५३१११ ; १७।१११ ; १७१५; १८११११ ; २८|१|१२८१३ से ५, २०,२७ से ३०,३२,३७,३८, ४०, ४७, ४६ से ५१,६६,६६,७३ से ७५,६७,१०६।१; ३४।१११,३४११ से ३, ५ ३६।१।१ ज २।१६, १६,५२,५६,१४६,१५६,१६१ उ ३१५१,५३,५४ आहार (आधार) उ ३।११ आहारग (आहारक ) प ३।१०७:१२।१३,२८, ३६; २१।१०४,१०५ : २३१४२,६१,६२,१४६, १७४; २८ १०८ से ११०, ११२,११४ से ११६, ११८,११६,१२१,१२३, १२४, १३०, १३१, १३६, १३७,१४१,१४२ आहारगमीसगसरीर ( आहारकमिश्रकशरीर ) प १६।१५ आहारगमीससरीर (आहारक मिश्रशरीर ) प १६ १, आसीत्तय (दे० ) सू १०११२० सीविस (आशीविष ) प ११७० ज ४।२१२ आसुरत (आशुरक्त) ज ३।२६,३६,४७,१०७, १०६,१३३ उ ११२२,५७,८२,११५ से ११७, ११६,१४० आसोइ (आश्वयुजी ) ज ७ १३७ सू १०१७,१०,२२, २३, २६ आसोत्थ ( अश्वत्थ ) प १३३६।१ आहारगसमुग्धात (आहारकसमुद्घात ) प ३६ ३३ आहारगसमुग्धाय (आहारकसमुद्घात ) प ३६ १ २,७,९,१०,१३,१४,३०, ३५, ५३, ५८, ७४ आसोय (आश्वयुज) ज ७।१०४ उ ३।४० (आह (ब) आहंसु सु १३२० आज ७ ११२२२, ५ आहारगसरीर ( आहारकशरीर ) प १२/१३,२१, १०,१५,३६१८७ आहारगमीसासरीर (आहा रकमिथकशरीर ) प १६ १०, १५; ३६/८७ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहारगसरीरय-इंदियपरिणाम ८४६ ३४१६११,१०,१५, २१।७२ से ७४,९६,६६, इंगाल (अङ्गार) प १।२६ उ ३।५० १०१,१०२,१०४,१०५; २३।१८६३६१८७ इंगालभूय (अंगारभूत) ज २११३२,१४१ आहारगसरीरय (आरारकशरीरक) प १२१६ इंगालय (अंगारक)ज ७४१८६६१ स २०१८,२०११ आहारगसरीरि (आहारकशरीरिन् ) प २८।१४१ इंगिय (इङिगत) ज ३.८७ आहारचरिम (आहारचरम) प १०।४२,४३ इंद (इन्द्र) प २।४०,४५,४७३१ ज २।९४३।२४१३, आहारत्त (आहारत्व) प २८१२२ से २४,३४ से ३७११,४२११३१।३,१८५,२०६५४६, ३६,३६,४०,४२,४५,४८,६८,६६,७१,३४१६ ५२,५७,७१५६,५७,५६,६०,१३०,१८६१४ आहारपज्जत्ति (आहारपर्याप्ति) प २८.१४२,१४३, सू १६।२४,२७ उ ३।१५,८४ इंदगोवय (इन्द्रगोपक) प १५० आहारपय (आहारपद) ज ७५० इंदग्गह (इन्द्रग्रह) ज २०४३ आहारभूय (आधारभूत) उ ३१११ इंदग्गि (इन्द्राग्नि) ज ७।१३०,१८६।२,४ आहारय (आहारक) प १२११,५,२५; १८।१४ से सू २०१८,२०१४ ६७,२१११; २८।१०६ से १०८,१११,११३, इंदगिदेवया (इन्द्राग्निदेवता) म १०८३ ११७,११६,१२०,१२२,१२५.१२७ से १२६, इंदज्य (इन्द्रध्वज) ज ३।३ १३२,१४३ इंदाण } इन्द्रस्थान) सू १६१२५ आहारयसरीर (आहारकशरीर) प १२।१७ इंदणील (इन्द्रनील) ज ३१३५ आहारसण्णा (आहारसंज्ञा) प ८१ से ११ इंददेवया (इन्द्रदेवता) सू१०८३ आहारेता (आहार्य) ज २११६ इंदधणु (इन्द्रधनुष्) ज ३।२४ आहारेमाण (आहारयत्) प ११।१२,१७ इंदनील (इन्द्रनील) प १२००३ ज ३.१०६ आहिंड (आ-+- हिण्ड) आहिडह उ ३.१०१ इंदभूइ (इन्द्रभूति) ज ११५ आहित (आस्यात) सू १।१०,११,१५ से १८,२०, इंदभूति (इन्द्र भूति) चं ११४,१० सू ११५ २२,२३,२५; १६॥२२॥३ इंदभूय (इन्द्रभूत) सू २०१७ आहिय (आख्यात) प ३४.१११ ज २।४।२; इंदमह (इन्द्रमह) ज २६३१ ७.३१,३३ चं २।३,५ सू १६३,५ इंदमुदधाभिसित्त (इन्द्र मुर्धाभिषिक्त) ज ७।११७।२ हिवच्च (आधिपत्य) ज ३।१६७।१३ सु १०८६२ आहुछि (दे०,अर्ध चतुर्थ) सू १६१ इंदिओवउत्त (इन्द्रियोपयुक्त) प ३।१७४ आहुणिय (आधुनिक) ज ३१९८५१५७११८६।१ इंदिकाइय (द०) १५० आहूय (आहूत) उ ३।४८:५० सू २०१८,२०८११ इौदय (इन्द्रिय) प १११।५।३।१।११३।१७; आहेबच्च (आधिपत्य) प २१३० से ३३,३५,३६, २५६१,१७,१६,२०,३०,३४,५८।१,१५१५८ से ४१,४३, ४८ से ५१,५७,२६ ज ११४५,१८५, ६०,६२,६३,६५,६६,६७,७५,७६,१३४,१४३, २०६,२२१, ५११६ उ ५।१० १७।१३४; १८1१।१, २८।१०१ इंदिय उवउत्त (इन्द्रियोपयुक्त) प ३११७४ इंदियजवणिज्ज (इन्द्रिययापनीय) उ ३.३२,३३ इ (इति) प ११४८१२ ज ११२६ मू ११८ इंदियपज्जत्ति (इन्द्रियपर्याप्ति) प २८.१४२ इ (चित् ) उ ११३६,३१११ उ ३११५,८४ इइ (इति) सू २०१६ इंदियपरिणाम (इन्द्रियपरिणाम) ५० १३१२,१४ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५० १६,१७,१६ इंदीवर ( इन्दीवर ) प १४४३ इक्क (एक) ज १।२० सू १६१२५ इक्कड (इक्कड) सरकंडा, पानी का पौधा ११४८|४६ strate ( एकविंशति) ज २ १३४ इक्कार ( एकादशन् ) ज ४।२७५ इकारसम ( एकादश ) सू १० ७७ इक्कारसी (एकादशी) ज २२७१ इक्कावण्ण ( एकपञ्चाशत् ) सू ११२१ इक्क्क्कि (एक) ज ७ १७८१२ इक्aाग ( इक्ष्वाकु ) प १६५ (इ) १/४१११, ११४८।४६ क्वाडिया ( इक्षुवाटिका ) प ११४८।४६ इक्खुवाडी ( इक्षुवाटी ) प ११४१।१ इगतालीस ( एकचत्वारिंशत् ) ज ७ ७५ सू ११।३ इगुणापण ( एकोनपञ्चाशत् ) ज ७।७५ इगुणालीस ( एकोनचत्वारिंशत् ) ज ७।२४ √ इच्छ (इब्) इच्छइ उ १।५१ इच्छंति १६४६ इच्छसि स १६ । २२२६ इच्छामि उ १२७६, ३ १०६४।११ इच्छामो प २८ । १०५ ३४।१६, २१ से २४ इच्छा ( इच्छा ) ज ७।१२०२१०१६८२ इच्छानुलोम (इच्छानुलोम ) प ११ |३७|१ इच्छामण ( इच्छा मनस) प २८ । १०५ ३४ । १६, २१ से २४ इच्छिय (इष्ट, ईत्सित ) ज ३१८८, १३८ उ ३।१३८ इच्छित्त (इष्टत्व ) प २८।२६ इच्छियव्व (एष्टव्य, एषितव्य ) ज ३८१ इट्ठ ( इप्ट ) प २३/१६:२८ ११०५ ज २४६४; ३१२४,८२,१८५, १८७, २०६,२१८, ५३५८ सू २०१७ उ ११४१, ४४, ३।११२, १२८, ४१६; ५१२२, २५ इट्ठतर ( इष्टतर ) ज २११८४ १०७ इंदीवर - इत्थी इट्ठतरिय (इष्टतरक) प १७ १२६ से १२८,१३३ से १४५ ज २।१७ इट्ठत्त (इष्टत्व ) प ३४१२० इट्ठस्सरता ( इष्टस्वरता ) प २३|१९ इड्ढि ( ऋद्धि ) प २३०, ३१, ४१, ४६; ६६८, १७८६२११७२ ज २२२५; ३११२,१८,३१, ७८,८८,६३,१२६, १८०, १८६,२०६,२१६; ४११४०;५।२२,२६,२७,४३,४४,४६,४७,५६, ६७ उ ११६२,१२१,१२२,१२६,१३३,१३४, १३८,३४६,५०,१११, १२२:४१८५ । १७, १९,२३,३१ पित्तारि ( ऋद्धिप्राप्तार्थ ) प १६०, ६१ इमिंत (ऋद्धिमत् ) ज ७।१६८।२ इढिसय (दे० ) ज ३।१८५ इणं ( एतत् ) प १ १ ३ ज २११७ सू १८।२२ इतर (इतर) सू ११२५ ; २१२:४२ इति (इति) प १ ७५ ज ११२६; ३।३२११ सू १० १० १ १७ इतरिय ( इत्वरिक ) प १११२५; १७ १०६ १०७ इत्तो ( इतस् ) प २२६४।१८ ज ३११२४ इत्थ (अत्र ) प २ ३१ ज ४।१४७ इत्थं (अत्र) ज २२० इथि (स्त्री) प १६०,६६,७५,७६,८१६ ७९, ८०८०३२१११५ से १०,२३,२६ से २८ १७११६६ से १७२ ज ३।२२१ इत्थिरयण ( स्त्रीरत्न ) प ६।२६ ज ३।७२,१३८, १७८, १८६, २०४, २१४,२२० इत्रियणत ( स्त्रीरत्नत्व) प २०५८ इत्थवयण (स्त्रीवचन ) प ११२६,८६ इथिवेद ( स्त्रीवेद ) प १८६०; २३७३; २८ । १४० इथिवेदग (स्त्रीवेदक ) प १३११४, १६ इथिवे (स्त्रीवेद ) प २३।३६,१४१ इत्थवेयपरिणाम ( स्त्रीवेदपरिणाम ) प १३११३ इथिवेग ( स्त्रीवेदक ) प १३०१५ इत्थी (स्त्री) उ ३३६,४२ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इत्थीलिंगसिंद्ध-उउ ८५१ इत्थीलिंगसिद्ध (स्त्रीलिंगसिद्ध) प ११२ ईसर (ईश्वर) प २।४७।२:१६.४१ ज २१२५; इत्थीवेदग (स्त्रीवेदक) प ३।६७१३।१८ ३११२६:३;५।१६ उ ११२।१० इम (इभ्य) ११६।४१ ज २२५,३१०,८६, ईसर (ऐश्वर्य) ज ११४५,३।१०,१८५,२०६,२२१ १७८,१८६,१८८,२०६,२१०,२१६,२१६, ईसाण (ईशान) प ११३५२१४६,५१,५३,६३; २२१ उ ११६२,३१११,१०१,५१० ३१३०,१८३,४।२२५ से २३६,६।२८,५६,६५, इन्भजाति (इभ्यजाति) ५११९४१ ८५,१११,१५११३८:२०१६०;२८१७६:३४।१६, इम (इदम्) प ११४८ सू १४१५ उ २१५२६ १८ ज २९१ से ६३,११३,११६;४।१७२, इय (इति) प श६४।१८ ज १७ सू११६ २००,२२१,२२४११,२३५,२४०,२४२,२४३; इयर (इतर) प २११३५ ५।४८,५६,६०,७१२२११ सू १०१८४।१ इयाणि (इदानीम् ) सू १६२४ उ ३१५५ उ १२०,२२,५१४१ इरियावहियबंधग (ईर्यापथिकबन्धक) प २३।६३ ईसाणकप्पवासि (ईशानकल्पवासिन) प २१५१ इरियावहियबंधय (ईपिथिकबन्धक) प २३.१७६ ईसाणग (ईशानज) प २१५१,६।६५७१६१५१८७% इरियासमिय (ईर्यासमित) उ २९३३१३,६६, २११७०,६०,३३.१६ ज ५१४६ १०२,११३,११५,१३२,१४६,४१२२,५१३८,४३ ईसाणवडेंसग (ईशानावतंसक) प २२५५,५७ इलादेवी (इलादेवी) ज ५११०११ उ ४।२।१ ईसाणवडेंसय (ईशानावतंसक) प २१५१ इलादेवीकूड (इलादेवीकूट) ४१४४,२७५ ईसि (ईषत् ) प २।३१,६४,१७।१३४,२३३१६५ इव (इव) ५ २।४८ उ ३११२८ ज ३११०६,१७८,४१५४,५१५,२१,३८,५८; इसि (ऋषि) प २१४७२ ज ३।१०६ उ १२० ७/१७८ इसिपाल (ऋषिपाल) प २१४७१२ ईसिउच्छंग (ईषदुत्सङ्ग) ज ३११७८ इसिवाइय (ऋषिवादिक) प २।४१,२।४७११ ईसिणिया (ईशानिका) ज ३।११०१ इसीपब्भारा (ईषत्प्रागभारा) २६१,२१४९० ईसितुंग (ईषत्तुङ्ग) ज ३।१७८ इस्सरियविसिठ्ठया (ऐश्वर्यविशिष्टता)प २३२१, ईसिदंत (ईषदान्त) ज ३।१७८ ईसिमत्त (ईषन्मत्त) ज ३११७८ इस्सरियविहीणया (ऐश्वर्यविहीनता) प २३१२२, ईसीपमारा (ईषत्प्रागभारा) प २१६४:१०.१,२; २११६०,३०।२६,२८ इह (इह) ज २।६६ उ १९ ईसीहस्सपंचक्खरुच्चारणद्धा (ईषद हस्वपञ्चाक्षरोइहं (इह) प १७५ उ ११७ च्चारणाध्वन् ) प ३६.९२ इहगय (इहगत) ज ५१२१,७४२०,२२ से २५,७६, ईहा (ईहा) ११५१५८।२,१५१६७ ज ३१२२३ ईहामइ (ईहामति) उ ११३१ ईहामिग (ईहामृग) ज २१३७,१०१:४।२७ ईतिबहुल (ईतिबहुल) ज ११८ ईताल (एकचत्वारिंशत् ) सू १९८१ ईतालीस (एकचत्वारिंशत् ) सू १३।१४ ईतालीसक (एकचत्वारिंशत्क) सू १३११७ ईरियासमिय (ईर्यासमित) ज २११६५ उ (तु) प १४४८१६ ज ११४७ सू ११७ उ ११७ उईर (उदीरण) प १४।१८।१ उउ (ऋतु) ज २१६६३१११७१७।१११,११२१५, १२६, १२७ उ ५४२५ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५२ उउय-उक्कोसपय उउय (ऋतुक) प २१४१ उंबर (उदुम्बर) प ११३६१ उ ३७४,७६ उंबेभरिया (दे०) प १।३५१२ उक्कड (उत्कट) प १५० ज ३।३१ उक्कर (उत्कर) ज ३।१२, १३,२८,४१,४६,५८, ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ उक्करिया (उत्करिका) प ११७८,१३१२५ उक्करियाभेद (उत्करिकाभेद) १ १११७८,७६ उक्तरियामेय (उत्करिकाभेद) प १११७३ उक्कलिया (उत्कलिका) ५११५० उक्कलियावाय (उत्कलिकावात) प ११२६ उक्का (उल्का) प २६ उक्कामुह (उल्कामुख) प १८६ उक्कालिय (उत्कालिक) ज७ उक्किट्ठ (उत्कृष्ट) ज २६०३।१२,२६,२८,३६, ४१,४७,४६,५६,५८,६४,६६,७२,७४,११३, १३८,१४५,१४७,१६८,२१२,२१३;५।५,४४, ४७,६७,७१५५ उ ११३८,३।१२७ उक्किट्ठि (उत्कृष्टि) ज ३१२२,३६,७८,६३,९६, १०६,१३३,१६३,१८० उक्किण्ण (उत्कीर्ण) प २।३०,३१,४१ ज ३१८२ उक्कित्तिता (उत्कीर्तिता) मू २०१६।१ उक्किरिज्जमाण (उत्कीर्यमाण) ज ४।१०७ उक्कुट्ठ (उत्कृष्ट ) स. १६।२३ उक्कुडुठ्ठिय (उत्कुट कस्थित') ज २।१३३ उक्कुरुडिया (दे०) उ १५४ से ५७,५६,६३,७६ से १७/१४५,१४६;१८२ से ४,६,८ से १०,१२, १४ से १६,१८ से २४,२६ से २८,३० से ३६, ४१ से ५४,५६,५७,५६ मे ६७.६६ से ७४, ७६ से ७६,८१,८३ से ५,८७,८६ से ११, ६३,६५,६६,६८,१०३ से १०५, १०७,१०८, ११०,११३,११४.११६,११७,११६,१२०, २०१६ से १३,६१,६३,२११३८,४० से ४४, ४६ से ४८,६३ से७१,७४,८४,८६,८७,६० से ६३,२३।६० मे ७६,८१,८३ से १२,६५ से ६६, १०१ से १०४,१११ से ११४,११६ मे ११८,१२७,१२६ से १३१,१३३ से १३५, १३८,१४०.१४२,१४३,१४७१५१ से १५५, १५७,१५८,१६० मे १६२,१६४ से १६६, १०१ से १७३,१७६,१७,१८२,१८३,१८६, १८७,१६०,२८२,२७,८७,५०,७३ से १६; ३३१२ से १३,१५ से १७:३६१८ से १०,१७, १८,२०,३०,३४,४४,६१,६६,६८,७०,७२,७४, ७६ ज १६,४८,४५,५८.१२३,१२८,१३३, १४८,१५१,१५७४।१०१,७१५७,६०,१८२, १८७ से १६६,२०६ सू १८१२०,२५,३६; १६२५ उ २२०,२२,३६१३० उक्कोसकालठिईय (उत्कर्षकालस्थितिक) प२३१२०० उक्कोसकालठितीय (उत्कर्षकालस्थितिक) प२३।१६४ से १९६,१६८ मे २०१ उक्कोसग (उत्कर्षक) प १७११४५,१४६; २३।१८४ उक्कोसगुण (उत्कर्ष गुण) प ५।३८,६०,७५,६०, १०८,१६१,१६४,१६८,२०१,२०४,२०८, २१२,२१५,२१६,२२२.२२५,२४३ उक्कोसटिईय (उत्कर्षस्थितिक) १८५ उक्कोसद्वितीय (उत्कर्षस्थितिक) प ५१३५,५७, ७२,८३.१०५.१७५,१७८,१२२,१८८,२४० उक्कोसपएसिय (उत्कर्षप्रदेशिक) ५ ५।२२६,२३० उकोसयद (उत्कर्षपद) प १२॥३२ उक्कोसपय (उत्कर्षपद) ज ७१६८,१९६,२०२, उक्कुला (उत्कूला) सू १०१६ उक्कूवमाण (उत्क्रूजत्) उ ३११३० उक्कोस (उत्कर्प) प ११७४ ; रा६८।६ ४११ से ६७,६६ से २९६,२६८,५१४२,४६, ७६,६४, १८,११२,११६६१ से १८,२० से ४५,६०, ६१.६४,६६ से ६८,१२०,१२१,१२३,२,३, ६ से २६११।७०,७१:१२२९१५:४० से ४२; १. अस्थिक इत्यपि भवति विकल्पेन । Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्कोसमति-उच्छोल ८५३ उक्कोसमति (उत्कर्यमति) प ५६४ ५७,५६,६२,८०,८४,८६,६६,१०१,१०३, उक्कोसमदपत्त (उत्कर्षमदप्राप्त) १ १७।१३४ ११०,११२,११४,११५.११६ से १२२,१२५, उक्कोसय (उत्कर्षक) प १५६४२११०५ १२८,१३६,१४२,१४६,१४७,१४६,१५५, जे ७।२६ सू१११६,१७,२१,२२,२४,२७,२।३; १५६,१६३ से १६५,१७२,१७५,१७८,२०३, ३१२:६।१८११, ६।२, २०१३ २१२,२१६,२१७,२१६,२२१,२२६,२४२; उक्कोसा (उत्कधक) प १७:१४६ ११३८,४६,७२,७३:३७,३८,२०७२१५ उक्कोसिया (उत्कपिका) ज २१७४ से ८०,७१२८ सू १६५९१२,३,१८१ सू११४,२१,३,४।६६.१ उच्चत्तच्छाया (उच्चत्वछाया) मू ६।४ उक्कोसोगाहग (उत्कर्षावगाहनक) प ५।३० उच्चत्तपज्जव (उच्चत्वपर्यव) ज २५१,५४,१२१, उक्कोसोगाहणय (उत्पविगाहनक) प ५२९, १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, ३०,५०,५४,६६,८४,१०२,१५५,१५८,१६०, १६४,१६७,१७०,२३५ उच्चत्तुद्देस (उच्चत्वोदेश) मू हार उक्खित्त (उत्क्षिप्त) ज ५१५७ उच्चागोय (उच्चगोत्र) प २३१२१,५७,५८, उक्खेव (उत्क्षेप) ज ५१४६,६०,६ १३१,१५३,१८८ उग्ग (उम्र) प ११६५ ज २,१६५ उच्चार (उच्चार) प ११८४ उम्गच्छ (उद्गत्य) ज ७।१०१,१०२ मू८११ (उच्चार (उन्:-चारय) उच्चारेइ उ ३.७६ उम्गतव (उग्रतपम् ) जे १५ उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघापपरिवणियासमिय उग्गमण (उद्गमन) ज १३६ से ३८ सू २।३; (उच्चारप्रस्रवणश्वेल 'जल्ल' 'सिंघाण' परिष्ठापनिकासमित) ज २१६८ उग्गममाण (उद्गच्छन्) प १८८५२ उच्चारपासवणखेलसिंघागजल्लपरिट्ठावणियासमिय उग्गय (उद्गन) १३७३१२४,४१२७,५१२८ (उच्चारप्रस्रवणश्वेल 'सिंघाण' 'जल्ल' परिष्ठाउग्गवई (उपवती) ज १२१ मू १०६१ पनिकासमित) 3 ३६६ उग्गविस (उनविए) प ११७० उग्गसेण (उनमेन) उ ५१० उच्चारतव्व (उच्चारयितव्य) मू१०११३५ उग्गह (अवग्रह) ११५१६८,७१,७२ उच्चारेयव्व (उच्चारयितव्य) ज ७११६८ उग्गा (दे०) २१७ सू१०।१३४ उग्घोस (उद्घोप) ज २१६५ उच्चावय (उच्चावच) ५३४।२३,२४ उ ११५७, उग्घोसेमाण (उद्घोषयन्) ३।२१२,२१३; ८२,५४३ ५३२२,२६ उच्चाविय (उच्च कृत्वा) प १७।१११ उच्च (उच्च) उ ३११००,१३३ उच्छंग (उत्सङ्ग) उ ३६८,११४ उच्चंतय (उच्चंतग) प? १२४ उच्छण्णा (उत्सन्न) ज २१८,६ उच्चत्त (उच्चत्व) ॥ २१॥८॥२ ज ११८ उच्छण्णणाणि (उत्सन्नज्ञानिन्) प २३।१३ से १०,१६,२२ से २४,२,३५,३७,३८,४०, उच्छप गदसणि (उत्सन्नदर्श निन् ) प २३।१४ ४२,४६,५१:२६,१५,४५,५१,५४,५६,५८, उच्छाह (उत्माह) सू २०१६।३,५ ८६,१२३,१२८,१३८,१४०,१४८,१५१,१५७, उच्छूढसरीर (उत्क्षिप्तशरीर) ज ११५ १५६४११,६,१०,१४,३३,४५,४७ से ४६,५४, उच्छोल (दे० उतक्षालय) उच्छोलेंति Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५४ ज ५।५७ उजुसेद (ऋजुश्रेणि ) प ३६।१२ उज्जय ( उद्यत ) ज २११३३ उज्जल ( उज्ज्वल ) ज ११३७ ७ १७८ उज्जाण ( उद्यान) ज २।६५,७१,५१५,७३१३६; __५१६,७,२४,२६,३७ उज्जाणसंठित (उद्यानसंस्थित) सू ४ ३ / उज्जाल ( उत् + ज्वालय् ) उज्जालंति ज ५।१६ उज्जालेइ उ ३१५१ उज्जालेंति ज २।१०५ उज्जालेह ज २११०७ उज्जालिता ( उज्ज्वल्य ) ज ५११६ उज्जालेत्ता ( उज्ज्वाल्य ) उ३।५१ उज्जु (ऋजु ) प २ ३१ ज २११५ ज ११८, ३१, ३१६३, १२१,५/३२ V उज्जोय ( उद् - - द्योतय् ) उज्जोए ति सू १६ १ उज्जोएति सू १६११ उज्जोकर (उद्योतकर ) ज ३६५,६६, १५६,१६० उज्जोयणाम (उद्योतनामन् ) प २३३३८ उज्जोयभूय (उद्योत भूत) ज ३/६६,१६० उज्जोव ( उत् । द्युत्) उज्जोवेइ ज ४।२११ उज्जोर्वेति ज ७५१, ५८ सू ३।१ उज्जोवेति सू ३।२ उज्जोवणाम (उद्योतनामन् ) प २३।११५ उज्जोविय ( उद्योतित ) ज २।१६ उ १५६,६१ उज्जोवेमाण ( उद्योतयत् ) प २३०,३१,४१,४६ / उज्झ (उज्झ ) उज्झइ उ ११५५ उज्झाहि उ ११५४ उज्झर (उज्झर ) प २४,१३,१६ से १६,२८ उ ५८५ उजुसे दि-उ उज्झरबहुल (निर्भर बहुल ) ज १।१८ / उज्झाव ( उज्झय् ) उज्झावेसि उ ११५७ उज्मावित्तए ( उज्झयितुम् ) उ ११५४,५६ उज्जमाण ( उज्भ्यमान ) उ ११५६,६३,८४ उज्झित ( उज्झित) उ ११५६,८१ उज्झिय ( उज्झित) उ ११५७,८२ उट्ट (उष्ट्र ) प १६४; ११।१६ से २० ज २१३५ ( उट्ठा ( उत् + ष्ठा) उठेइ उ ११२४ उट्ठेति ज ३।११४,१२६ उट्ठेति ज ११६ उट्ठा (उत्था ) उ ११२४ उट्ठाण ( उत्थान ) प २३।१६, २० ज २१५१,५४, उज्जय ( ऋजुक) ज २०१५ उज्जसुय ( ऋजुसूत्र ) प १६४६ उज्जोइय ( उद्योतित ) प २१४६ ज ३१६,१८, ६३, उट्ठेत ( उत्तिष्ठत् ) ज ३१३५ १८०,२२२ उट्ठेत्ता (उत्थाय ) ज ११६ उ ११२४ उज्जोत (उद्योत ) प० २२४१,५६,६६ उडय ( उटज) उ ३३५१, ५३ उज्जोय ( उद्योत ) प २ ३०, ३१,४६,५६,६३ उडिय (दे०) ज ७ १७८ उडु (ऋतु) सू ६११ ८ १ १०८१२८, १२६, १२१, ४, ११, १२, १४, १५; १५/२० से २२ उडु ( उडु) सू १०।१२६।१,५ उडुकल्लाणिया ( ऋतुकल्याणिका) ज ३।१७८, १२१,१२६,१३०,१३५, १३८, १४०, १४६, १५४,१६०,१६३ सू २०११, ७, ६२३, ५ उट्ठाय ( उत्थाय ) ज १६ उट्ठिय ( उत्थित ) ज ३११८८६ उ ३२४८, ५०, ५५, ६३, ६५, ७०, ७४,१०६,११८ १८६,२०४, २१४,२२१ उडुपण ( उडान ) प १५।१।२१५१५० उड्ड (उड़ ) प १८e उड्ढ (ऊर्ध्व ) प २१४, ४८ से ५३,६०,६३,६४; ११/६५,६६,११।६६।१६ १५ ५२ २१३८७, ६० से ६३; २८।१५,१६,६१,६२,३३११६, १७; ३६१६२ ज १८ से १०,२५,२८,३२, ३५,३७,३८, ४०, ४२,५१, २२६,५६,८६,१२३, १२८,१४८;३।१३१, १३२,४१,६,१०,२३, ४५,४७,५७,५६,६२,८६,१०१, १०३, ११०, ११२,११४,११५,११६ से १२२,१२८,१३६, १. उडु (जलम् ) आप्टे पृ० ४०१ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उड्डजाणु-उत्तरडकच्छ ८५५ १४२,१४६,१४७,१५५,१५६,१६३ से १६५, १७५,१७८,२०३,२१२,२१६,२१७,२१६, २२१,२२६,२३४,२४० से २४२५१६४; ७१४४,५४,१६८११,२०७ सू २११४११०; ६१३;१८।१:१६२२११२,१६१२३ उ १९७; २।१२,३१५०:५१४१ उड्ढजाणु (ऊर्ध्वजानु) ज ११५,२१८३ उ ११३ उड्ढत्त (ऊर्ध्वत्व) प २८१२४,२६ उड्ढदिसा (ऊर्ध्व दिशा) प ३६१७६,१७८ उड्ढमुह (ऊर्ध्वमुख) ज ३।३; १७:१६८ उड्ढलोग (ऊर्वलोक) ज ५१६,६७ उड्ढलोय (ऊर्ध्व लोक) १ २११,४,१०,१३,१६ से १६,२८,३११२५,१२७ से १७३,१७५,१७७ उड्ढवाय (ऊध्वंवात) पश२६ उड्ढामुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठित ('उद्धी'मुखकलम्बुकपुष्पसंस्थानसंस्थित) सू १६।२३ उड्ढीमुहकलयापुप्फसंठित ('उद्धी'मुखकलम्बुक पुष्पसंस्थित) ज ७३३१,३३,३५ सू४।३,४,६, ७,६ उड्ढोबवण्णग (ऊवोपपत्रग) ज ७५५५ सू १६।२३, उत्तमपुरिस (उत्तमपुरु) प६।२६ उत्तमा (उत्तमा) ज ७।१२०११ सू ५११,१०८८१ उत्तर (उत्तर) प २।२१ से २७, २७११,२,२१३० से ३६,४४,४८,५१,६०,६१,६२।१२।६३; ३१ से ३७,१७६,१७८,१५१८५१८१६० ज १११८,२०,२३,४८,३११,८२,१२६।४,१३१, १३३,१३८,१५१,४।१,१७,३८,५५,६२,७३, ७६,८१,९६,६१,६३,६८,१०३,१०८,११४, १२६,१४१ से १४३,१५०,१५६,१६०,१६५, १६७,१६६,१७२,१७३,१७५,१७७,१७८, १८०,१८१,१८४,१८५,१८७,१६०,१६१, १६३,१६६,१६७,१६६ से २०३,२०५,२०८, २०६,२१३,२२६,२३१,२३४,२३७,२३८, २४६,२५२,२६२,२६५,२६८,२६६,२७१, २७२,२७४,२७५,५।११,३६,४२,६।११, १४,२४७१५,१५,१७,२४,२५,६४,७४,७६, ७८,८३,८४,८८,६४,१२७,१२६,१३४।३, १३५।३,१७४,१७८,२०१,२०४ सू१।१५ से १७,२४,२६ से ३१,१३,१०७५,१३५, १२।१२,१३१६,१०,१८।१४ से १७:१६८१, ११।१२०१२ उ ३.५४,५५,६३,६७,७०,७३, ४।१६,५१४१ उत्तर (उत्+तु) उत्तरइ ज ३११०१,१२६ उत्तरओ (उत्तरतस्) ५२१४०१४ ज १११८ उत्तरकुरा (उत्तरकुरु) ज ४।६६,१०३,१०८ से ११०,१४१,१४३,१६१,१६२,२०५,२१३ उत्तरकुरु (उत्तरकुरु) प १८७१६३०१७३१६४ ज २१६,४११४२१३.१६११२,१६२,२०७, २६२,५२५५ उत्तरकुरुकूड (उत्तरकुरुकूट) ज ४११०५,१६३ उत्तरकूल (उत्तरकूल) उ ३५० उत्तरगुण (उत्तरगुण) प १११४६ उत्तरड्ढ (उत्तरार्द्ध) प २१५१,८।१ उत्तरड्ढकच्छ (उत्तरार्द्धकच्छ) ज ४११६८,१७२, १७३ से १७६ उण्णं दिज्जमाण (उन्नन्द्यमान) ज ३३१८६,२०४ उग्णय (उन्नत) ज २।१५ ३1१०६,१३८,४।१३; ७।१७८ सू २०१७ उण्णाय (उन्नाक) उ ५।४३ उण्ह (उष्ण) प १७।११४११,१७।१३८,२८१२६ उ ३३१२८ उतालीस (एकोनचत्वारिंशत् ) सू १२१२० उत्तत्त (उत्तप्त) प २।४०६ उत्तम (उत्तम) प २१४६ ज २०१५, ३१३,१२, १२५,४१२६०।१५।५८ सू ५१ । उत्तमकठ्ठपत्त (उत्तमकाष्ठाप्राप्त) ज २१७,५२, । १३१,१६१,१६४,७।२६,२८ सू ११४,१६, १७,२१,२२,२४,२७, २।३,३१२,४८,९; ६।१६२ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५६ उत्तरडभरह-उत्तरिल्ल उत्तरढभरह (उत्तरार्द्धभरत) ज ११६,४७ से ५१,३।१०३,११३;४१३५ उत्तरढभरहकूड (उत्तराद्ध भरतकूट) ज ११३४ उत्तरलवणसमुद्द (उत्तरलवणसमुद्र) ज ४।२७७ उत्तरढलोकाहिवइ (उत्तराद्धलोकाधिपति) ज ५।४८ उत्तरण (उत्तरण) ज ३१७६,११६ उत्तरदारिया (उत्तरद्वारिका) सू १०॥३१ उत्तरदाहिण (उत्तरदक्षिण) ज ११२४४११०६, १६४,१६७,१६६,१७८,१८०,१८१,१८५, १८७,१६१,१६६ से २०१,२०३,२०६,२१५, २४५,२४८,२५१,२५२ स ८१ उत्तरदाहिणायया (उत्तरदक्षिणायता) ज १।२४; ४११०३,१६२,१६७,१६६,१७८,१८५,१८७, १६१,२००,२०३,२४५,२५१ उत्तरद्ध (उत्तरार्द्ध) ज २०६१ उत्तरद्धभरह (उत्तरार्द्धभरत) ज ११२३ उत्तरपच्चस्थिम (उत्तरपाश्चात्य) प ३।१७६,१७८ ज ३१४३,४४,४११०३,१०६,१५०,२२४,२३१, २३२ सू २१,२०१२ उत्तरपच्चथिमिल्ल (उत्तरपाश्चात्य) ज ४२३८ सू. १।१६; २३१,२००२ उत्तरपाई (उत्तरप्राची) में ३।१२६ उत्तरपुरस्थिम (उत्तरपौरस्त्य) प३।१७६,१७८ ज ११३,३।६०,६१,१३०,१३१,१४०,१४१, १६१,१६२,२०४,२०८,४।१७,१२०,१३६, १३६,१५०,१५४,१६२ से १६४,२२१,२२६, २३३,२३९,५५,७,३६,४४,५५ च ७ सश२ २०१२ उ ३।११३ ; ४।२०। ५१५ उत्तरपुरथिमिल्ल (उत्तरपौरस्त्य) ज ४।१५६, २३७,२३८,५।४८,४६ सू १।१६ उत्तरपोट्टवया (उत्तरप्रोष्ठपदा) ज ३।२०६ सू १०।६४ उत्तरफागुणी (उत्तरफल्गुनी) ज ७/१२८,१२६, उत्तरभद्दवया (उत्तरभद्रपदा) ज ७११२८,१२६, १३६,१३६,१४२ उत्तरवेउन्विय (उत्तरवैयिक) प १५.१८,१६%3 २११५८,५६,६१,६५ से ६७,७०, ३४११६,२१ से २३ ज ३।२०६५४१ उत्तरवेयड्ढ़ (उत्तरवैताढय) ज ३८१ उत्तरा (उत्तर) सू १०३२,४५,६०,६२,१२०, १५३,१५५,१५६,१५८ ११०२,४ से ६; १२।२४ से २८ ज ७११३ उ ३।५५.६३,६५, ६७,७०,७४ उत्तरापोवया (उत्तरप्रोष्ठपदा) सू १०१५,६,२१, २३,६५,७५,८३,६७,१३१ से १३५ उत्तराफग्गुणी (उत्तरफल्गुनी) ज ७।१४०,१४८, १५१,१६३,१६४ सू १०।२ से ६,१५,२३,७०, ७१,७५,८३,११०,१३१ से १३३ उत्तराभद्दवया (उत्तरभद्रपदा) ज ७१४६,१५७, १५८ स १०१२ से ६,१३१ उत्तराभिमुह (उत्तराभिमुख) 3 ३१५५,६३,६७, ७०,७३ उत्तरासंग (उत्तरासङ्ग) ज ३।६; ५।२१ उत्तरासाढा (उत्तरापाढा) ज १७१,८५, ७/१२८, १३०,१३६,१४०,१४६,१५६,१६७ सू १०१ से ६,१६,२३,५४,६२,६३,७४,८३,११६, १२२,१२३,१३० से १३५,१५१९,१२ उत्तरिज्ज (उत्तरीय) ज ३१,२२२ उत्तरित्तु (उत्तीर्य) ज १११८१ उत्तरिय (औत्तरिक) प ३६१२१,२२,२४,२६,२७, ४६ उत्तरिल्ल (औदीच्य) प २।३३,३६,३६,४०,४४, ४७,१६१३४ ज ११२६,२१११६३।१०२, १०६,१३३,१३७,१५४ से १५७,२०५,२१५, २२०, ४१३८,४२,७३,33,६१,९४,१७२, १६६ से २०२,२०६,२०७,२१२,२३२,२३३, २३८,२४८,२५१,११११,१४,४४,४५,४६,५२, ७१७८ उ ३६१ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरोट्ठ-उद्धय उत्तरोठ (उत्तरौष्ठ) ज २।१५ उत्ताण ( उत्तान ) उ३।१३० उत्ताणग ( उत्तानक) ज ३११११, ११३ उ १४६ उत्तणय ( उत्तानक ) प २०६४१।४६ उत्ताणसेज्ज ( उत्तानशय ) उ३।१३०,१३१,१३४ उत्तासण ( उत्त्रासन ) प २।२० से २६ उत्तासणय ( उत्त्रासनक ) प २०२७ उत्तिण ( उत्तीर्ण) ज ३१८१ उत्तिमंग ( उत्तमाङ्ग ) ज २११५ उदग (उदक) २।१३१,३१२६,३६,४७,१०६, १३३,२२१:५१५५. उदगधारा (उदकधारा) ज ३८ उदय (उदय) प २३१३,१३ से २३ सू ११६१२, ११८३१ उदय (उदक ) प ११४११२, ११४६,१०११७१ १६।५४ ज ३१६, २०६,५११४,५६,७१११२/१, २ चं २।२४।१, ३ सू १०।१२६।१,२ उदयसंठिति ( उदयसंस्थिति ) सू १ १६ २, ११८११,३ उदर (उदर) उ ११४३ उहि (उदधि ) प २३०१, २२४०१२,८,१०; १५ ११२ ज २११५; ५१५२ उदहिकुमार (उदधिकुमार ) प ११३१,५३,६१८ उदार (उदार ) ज ३१२४,१३१ उदाहु ( उताहो ) प २०१६,१५१४६,४७,३४१६ उ १११२७ उदिष्ण ( उदीर्ण ) प २०१३६,२३३, १३ से २३ उदीण ( उदीचीन ) प २११०,५० से ५२,५४,५६, ५८ से ६० ज ११८,२०,२३,२५,२८,३२, ४८, ३११,४११, ३,५५६२,८६,८८, १०८,१७२,२०५,२१४,२५२, २६२,२६८; ७११०१,१०२ ८१ उदीर्णदाहिनायता ( उदीच्यदक्षिणायता ) सू १११६, २१:१० ११४२.१४३,१२/३० उदीर्णवाय ( उदीचीनबात ) प ११२६ ( उदोर (उद् ईर् ) उदीरति प १४/१५ उदीरिस्सति प १४|१८ उदीरेति उ ३।३४ ८५७ उदीरें १४।१८ उदीरेति प २२१५ उदीरण ( उदीरण ) ज २।१३१ उदीरिज्माण ( उदीर्यमाण ) प २३।१३ से २३ उदीरिय ( उदीरित) प २३।१३ से २३ उदु (ऋतु) ज २२४७१११२।१ उद्दंडग (उद्दण्डक ) उ ३१५० उडिय ( उद्दण्ड ) ज ३१३२ उद्दव ( उ ) उद्दति प ३६/६२,०७ उवित्त (द्रवयितुं ) ज ३।११५ उद्दात्ता (उद्भुत्य ) ज ६६४ उद्दाल ( उद्दाल) जरा उद्दाल (अवदाल ) ज ४११३ सू २०१७ उद्दाल' (आ छिन् ) उदा उ १।१०५ उहाले काम (काम) उ ११०५ उद्दि (दे० ) सू १६४२२१२५ उद्दिस ( उत् + दिश् ) उद्दिसंति उ ५ ४५ उद्दिस्यि (उद्दिश्य ) प १६।५१ उद्दिपविभत्तगति ( उद्दिश्यप्रविभक्तगति) १६६३८,२१ उद्देश ( उद्देश ) ज ७ १०१,१०२ उद्देग (देशक) १४५ उद्देश्य (क ) प १७/१४ उद्देहिया (३०) प ११५० उद्ध (ऊ) ३३२४ ज १११६, २३, २४; २१६, ५८,६५,१५७ ११५७,८२ उस (उन् वृष) उस उ १५७ उणा (उद्धर्पणा) उद्धसेत्ता (उद्वयं) ११५७ उद्धत (उद्धत ) ज २६५ उद्धिय (उद्धृत) ज ३१२२१ उद्भुत ( उ ) २४८ उद्धय (उद्धृत ) प २३०, ३१, ४१ ज २६०, ३७; २४१३,२६,३७११, ३६.४५।१,४७,५६,६४, ७२,८८,११३,१३११३,१३८, १४५,१७८; १. हेम ४११२५ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्धर-उम्मुग्गजला ४१४६, १५,७,४३,४४,४७,६७ सू २०१७ उप्पलिणीकंद (उत्पलिनीकन्द) प ११४८९४२ उद्धर (उद्धर) ज ५१५; ७१७८ उप्पलगुम्मा (उत्पलगुल्मा) ज ४।११।१,२२२ उद्धृब्वमाण (उद्धूयमान) ज ३१८,३१,६३,१८० उप्पलुज्जला (उत्पलोज्वला) ज ४।११५३१,२२२ उ ५११६ उप्पाइय (औत्पातिक) ज ३३१०४,१०५,१०६ उपगच्छ (उपगम्) उपगच्छंति ज ३।१६७।१४ उपाएत्ता (उत्पाद्य) १२८२०,३२,६६ उपचयंकर (उपचयङ्कर) ज ३११६७ उप्पाड (उत्+पादय) उप्पाडेज्जा प २०११७, उपरिल्ल (उपरितन) सू १८७ १८,३२ से ३४,४७ उपसंत (उपशान्त) ५ २०३६ उपाय (उत्पाद) प १५० उप्पइत्ता (उत्पत्य) प २।४८ से ६३ ज ११२५ उप्याय (उत्। पादय) उप्पाएंति ज २१३६,४१ सू २२१,१८०१ उपि (उपरि) प २१५२ से ६२ ज १११०,१२, उप्पज्ज (उत्+पद्) उप्पज्जइ सू ६.१ १४,१६ सू १२।३०१८।२,३ उ १।४६;रा उप्पज्जति ज २६७ ५।१३,२०,२७,३१ उप्पज्जंत (उत्प द्यमान) ज ३।१६७।५ उप्पीलिय (उत्पीडित) ज ३१७७,१०७,१२४ उप्पज्जय (उत्पद्यक) ज ३।३ उ ११३८ उप्पड (उत्पट) प ११५० उप्फिडिय (उतफिट्य) प १६:४४ उप्पण्णमिस्सिया (उत्पन्न मिश्रिता) प १११३६ उप्फेस (दे०) प २।३० उप्पण्णबिगमिस्सिया (उत्पन्न विगतमिश्रिता) उब्बहिया (उद्वाह्य) प १६।५४ प११।३६ उन्भड (उद्भट) ज २११३३ उत्पत्ति (उत्पत्ति) प ११६३१६:१४।५,३६१६४ उब्मिज्जमाण (उद्भिद्यमान) ज ४११०७ ज ३.१६७/३,६,८,९,१० उभओ (उभयतस्) ज ११२३,२५,२८,३२; उत्पत्तिया (औत्पत्तिकी) उ ११४१,४३ ३.१७६४।१,१३,३६,४३,६२,७२,७८,८६, उत्पन्न (उत्पन्न) ज ३.२६,३६,४७,५६,१३३, ६५,६८,१०३,११०,१८३,२००,२०१,२०६; १३८,१४५,१७५,५५३,२२ ५।४६,६०,६६७१३१,३३ सू ४१३,४,६,२०१७ उप्पन्नकोउहल्ल (उत्पन्नकुतूहल) ज ११६ उभय (उभय) ज ३।३ उत्पन्नसंसय (उत्पन्नसंशय) ज १२६ उभयभाग (उभयभाग) सू १०॥४,५ उत्पन्नसड्ढ (उत्पन्नश्रद्धा) ज ११६ उम्मज्जग (उन्मज्जक) उ ३१५० उपयनिवय (उत्पातनिपात) ज ५५७ उम्मत्तजला (उन्मत्तजला) ज ४।२०२ उपय (उत् + पत) उप्पयंति ज ५१५७,६४ उम्माण (उन्मान) ज ३१६५,१३८,१५६,१६७१३ उप्पल (उत्पल) प ११४६,११४८।४४,११६२, उम्मिमालिणी (ऊमिमालिनी) ज ४।२१२ १५१५५१२ ज ११५१, २२४,१६,३।३,८६, उम्मिलिय (उन्मीलित) प २१४८ ज ३१८८%, १८८,२०६४।३,२२,२५,३०,३४,६०,११३, ४।४६ २६६,२७२,५१५५,५६,७।१७८ उम्मुक्क (उन्मुक्त) पश६४।२१ ज ३१२०,३३, उप्पलंग (उत्पलाङ्ग) ज १४ ५४,६३,७१,८४,१३७,१४३,१६७,१८२ उप्पलहत्यगय (हस्तगतोत्पल) ज ३१० उम्मुग्गजला (उन्मुक्तजला) ज ३६७ से १०१, उप्पला (उत्पला) ज ४११५५६१,२२२ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपर-उबट्टत्ता ८५६ उयर (उदर) उ ११३४,४०,४६,४८,४६,५१,५४, उवंग (उपाङ्ग) उ ११४ से ८,२।१३।१,२, ७४,७६,७६ ४।१,३,५॥१,३,४५ उर (उरस्) ज ५५ उ ३।११४ उवकुल (उपकुल) ज ७/१३६.१,१४१,१४३ से उरग (उरग) प६१८०१ ज ३.२४ १४६,१५० से १५३ सू १०१६,२० से २२,२५ उरत्थ (उरःस्थ) ज ३१३६ उवक्खड (उपस्कारय् ) उवक्खडावेइ उ ३३११०; उरपरिसप्प (उर:परिसर्प) प ११६७,६८,७५; ४।१३१ से १३६,६७१, २०१४ से १६,३५, उवक्खडावेत्ता (उपस्कार्य) उ ३१५० ४५,६० उवगच्छ (उप-+-गम् ) उवगच्छइ ज ३१४१ उरम्भरुहिर (उरभ्ररुधिर) प १७.१२६ उवगच्छित्ता (उपगम्य) ज ३१४१ उराल (उदार) १११४४१३ गुलू नामक वृक्ष उवगय (उपगत) प २१६४।१४,२० ज ३१२०,३३, उराल (दे०) ज ५॥३८ ५४,५६,८४,१०५,१०८ से १११,११३,१३७; उरु (उरु) ज २११५,१६:५१५; ७१७८ ५६५,७ उ १२१५,२५,३१६८,१०६:५।३५ उरुलुंचग (दे०) प १५० उबगरण (उपकरण) ज २१६६ सू २०१४ उ ११९३, उलंघ (उत् + लङ्घ) उलंघेज्ज प ३६।६१ १०५,१०६,३।५५,६३,७०,७३ उल्ल (आर्द्र) ज ३।२२,३६,४४,१२५,१२६ उवगिज्जमाण (उवगीयममान) ज ३८२,१८७, उल्लाल (उत् + लालय) उल्लालेइ ज ५२३ १८८ उ ५२५ उल्लालिय (उल्लाल्य) ज २४ उवग्गच्छाया (उपाग्रछाया) सू ६४ उल्लालेमाण (उल्ललायत्) ज ५१२२ उवधाइय (उपधातिक) ५० १११३४।१ उल्लोइय (उल्लोचित) प २१३०,३१,४१ ज ११३७; उवणाय । उवग्गहिय (औपग्रहिक) प २३१६ ३।७,१८४ उवघायणाम (उपघातनामन् ) प २३।३८,५२,११० उल्लोय (उल्लोच) ज ४।११६५।३४,६७ उवधायणिस्सिया (उपघातनिधिता) प १११३४ सू २०१७ उवचय (उपचय) प १५:५८१११५२५८,५६ उल्लोयण (उल्लोचन) उ १२४६ उपचय (उप-|-चि) उवचयंति प ६।२६ उवइय (उपचित) ज ४।२७ उचिण (उप-चि) उवचिण प १४।१८।१ उवउज्जिऊण (उपयुज्य) ५१६२०, २२१४५ उवचिज्जति प १४।१८११२१९९७ ३६.३२ उवचिणंति प१४।१५ उवउत्त (उपयुक्त) प २२६४।१२,१३,८।४ से ११; उवचिणिसु प १४११४ उवचिणिस्संति १५।४८,४६,२६१७,१६,२०,३४११२ प१४११६ ज ५२६ उवचित (उपचित) प २१३१,४१ उवएसरुद्द (उपदेशरुचि) पश१०१।१,४ उचिय (उपचित) १२।३०,२३३१३ से २३ उवओग (उपयोग) १५१७३।१११,१५१५८।१; ज।१४५,१४६,३७,४१३,२५,२७,७१७८ १५१६३,६४१८।१।१२८११०६।१:२६।१५, उवज्जिय (उपार्जित) ज ३१८५,२०६ ८,११,१५ उवज्झाय (उपाध्याय) प १६:५१ च ११२ उपओगपरिणाम (उपयोगपरिणाम) प १३१२,१४, उवट्ट (उद्+वृत्) उवट्ठति ज ५।१४ उवदे॒त्ता (उद्वत्य) ज ५११४ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६० V उद्भव ( प | स्थापय् ) उवदुर्वेति ज ३२२०८, ५५ उतिज ३११२० उबटुबेह १५४३।२०७ उ १।१७ उववेत्ता (उपस्थाप्य) : १।१७ उद्या (उपस्थायिन् ) उवासाला (उपस्थानशाला ) ३५,१२,१७, २१,२०,२४,४१,४६,५८,६६,७४,७७, १३५, १४७.१५१,१७७,१८,२१६३ १११६.४१, ४२,१२६,४११२:१६ ३।३२।१ उवयि ( उपस्थित ) उ ११२० उचकी (उप + णी) उवणे व १२६,३६,४०, १८७,५६,६४,०२,१३३, १४५,१५१ उवर्णेति न ३३८१,१२६,५१६१ ३ ११४५ उवणेह ११४४ अवयवयण ( उपनीतापनीत वचन ) प १११८६ उवणीयवयण ( उपनीतवचन ) प ११८६ उवत्ता (उपनी ) ३११२६ उत्थापया (उपस्थानिका) १२६,३६,४७, ५६.१३६,१३८५.१४५३११२३ जव (न्) उदम ५५३,५८ १२१४० ११२३ उवति) ज ५१५७ राति सू २०१२ उयण (दर्शन) वा उपसित (उपदर्शयितुम् )२१११२ पतिता (उदर) ३१२१४१५ उदय (उपदति ) प १११२ उवदा (उपदश्यं ) प ५५८ स्वयंसेमाण ( उपदर्शयत् ) प ३४४२२ ज ५३४४ सू २०१३ उठिदिष्ट ) प १०१०११४ च ११३ उदिम (उप दिश्) उदिगइ प २२६४ उबदिसिता (उपदिश्य ) प ६४ उपाय ( उपद्रव) ज २१४०३।१०५ उवपयाण ( उपप्रदान) १।३१ १४१०१११४ ( उद्वव उवला लिज्जमाण उबभोग ( उपभोग ) ज २११४६ उवभोगंतराय (उपभोगान्तराय) प २३।२३ उमा ( उपमा ) प २।६४।१७:३५।२५,२६ ज ३२४८४३७२, ४५२, १३११४ उ ३६८ उवयार (उपचार) प २/३०,३१,४१ ज २ १०, १५,६५,३७,१२,८८,१३८४११६६,५७, ५८,७१३३११ सू २०१७ उवयारियालयण ( उपकारिकालयत) ज ४|११८ उवर क्खिय ( उपरक्षित ) प २२३०,३१,४१ उवरि (उपरि ) प १२१ से २७,३० से ३६,४१ मे ४३,४६,१२/३२ ज १४३५, ४ । १५६।१, २१३,२१६ उवरितल ( उपरितल) ज ४१४२११,२,४१२१३ उवरिम ( उपरितन ) प २२७३,६२११ उवरिमरिमगवेज्जग ( उपरितनोपरितनग्रैवेयक ) १।१३७,४१२६१ से २६३७२८ २८६५ उवरिमगवेज्जग (उपरितनग्रैवेयक) २६२; ३११८३,६/४१,५६,२०१६१३३।१७ उafरमवेज्जय ( उपरितनग्रैवेयक ) प २०१६१ उवरिममज्झिम (उपरितनमध्यम ) प २८३६४ उवरिममज्झिमगेवेज्जग ( उपरितन मध्यम वेयक ) प ११३७४२८८ से २६०७।२७ उवरिमठिम (उपरितनाधस्तन) १२८३९३ उवरि महेट्ठिमगेवेज्जग ( उपरितनाधस्तन ग्रैवे. क ) १११३७,४।२८५ मे २८७९७१२६ उवरिल्ल ( उपरितन ) प २०६४ : ५११३९,१३४, १३६,१४०, १४३, १६६,१६,१८१,१८४, १६३,१६७,२००,२२८, २३४,१६।३४; २२/५१,७०,७१,७४ ज २१११३,४१२५३, २५६, २५६,७१७३ से १७५ १८१ उवरिलय ( उपरितन ) प २८३१४३ उवल (उपल) प १३२०१ ज ४।२५४ उवलद्ध (उपलब्ध) प १११०१।६ उ ३।१०१ उवलालिज्जमाण ( उपलालयमान) ज ३१८२,१८७, २१८ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उबलित्त उवागच्छ उवलित्त (उपलिप्त ) ज ३३१८४५।५७ ३ ३ १३०, १३१.१३४ उपलेषण (उपलेपन) २०५१,५६,७१,७९ 1 उववज्ज ( उप -- पद् ) उववज्जड़ ग १७।६५ उबजेति ६४७ मे २६,६० मे २४,६६ ७० से ७२.७८ ११०.११०,११३ २१४९ यू १७१ उबवण्जति १६५०:१७९०, १२, २४,९५,११ से १०४ जिहि १०१४१ उ ३४१८६४०२६ उज्जित २१३५ से १३७ उज्जमाण ( उपपद्यमान ) प २०१६१ उज्जावे (उपपदविव्य) ६६२,९४ उवण ( उपपन्न) ज ७५६, २४, २१२ १६ २२/२१.१६२४१४२५ मे २०१४० २०१२, २०१४,०८३, १००, १६२, ४००८,२०५८ ३०, ४०, ४१ उष्ण ( उपपन्नक) १३०३६ १५०४२: ३४।१२ ३५।२३ उववणपुत्र ( उपपन्नपूर्व) ज ७।२१२ उवन्नग ( उपपन्नक) प १५१४६; ३४।१२ उवाय ( औपपातिक ) प ६ । ७३ उवदाएयय (उपपादवितव्य ) प ६२७३,७४ उवात ( उपपत ) प २०१६० चं १५. स. १।६।५१७|१ उववातगति (उपपातगति ) प १६।३७ उववातसभा (उपपातगभा) उ३|१४ (उपपासप २०१,२,४,५,७,८,१०,११. १३,१४,१६ से ३०,४६६१ ४,१० से २३,२७,४३,५६,६३,६१,८०१२,६५१,५३, ८१,१२,१००, १०२१०७ १०८२०१६१. ज २२७१ : ४। १४० ११,१६०६७१५७,६० उ २१२०,२२, ३३१६६ उपवायगति (उपपातगति) १६३१७,२४ से ३५ उवासभा (उपपातसभा) ज ४।१४० उ ३१८३; १२०,१६१ : ४।२४ उववास (उपवास) ज० २।१३५ उववेत (उपेत ) प १७।१३३ उववेय (उपेत ) प १७३१३४ २२१४,१८ उ ५।५ उवसंकम (उपक्रम) सू. १।१७ उपसंकमित्ता (उपगतम्) १०.१.२९ सू १।११:१४ उबसंत (उपशान्त) प १४२२०२ ६८६ ५५७. उ ३।३५ उवसंतकसाय (उपशान्तकपाय ) प ११००१०३. ११५, ११६ उवसंपज्जनागगति (उप) १६।३८४१ ८६१ उवसंपज्जिथं () (49 ज ७५५६५. १६२४४०५२ ू उवसग्ग ( उपसर्ग ) ज २२६४,६७६ ३१६२.११५, ११६,१२५ उवसम (उपगम ) ज ७ ११७,१२२/२. १०६४/२६६२ उवसाय (उपशामक) ५२३।१२१,१६२ उसोभय (उप) १४१३,२१,२६,२९, २३,४६ २४७,५७,१२०.१२७.१४७.१५०, १५, १६४३११७८११२४१२६.६३६२३ ५।३२,३८,७१७म उपसोमशण (उपमान) उसोभमान)६३६ ७१२१३ उसोहि उप उदयय (उपाध्य) उहाण (उपधान) ज ४४१२ उवहि (उपधि ) प १४५ उहित (उप) सू २४ उपादाता (पातिक सू१०११३८ ~ उवागच्छ (उप आ गम्) बागच्छ ११६ २०१० ३१५.९.१२.१७, १८.४१ ३११११११८.१४१४१२२ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६२ उवागच्छित्ता-उस्सासणाम उ ११२३१२६४।११।५।१६ - उवागच्छति उव्वेहलिया (दे०) प ११४८५० प ३४१२२,२३. ज २१११६. उ १।४५५।१७ उसभ (ऋषभ) प २।४६ ज० ११३७,५१, २।१५, -उबागच्छति. ज २।१६५, ३१२८,३२,४१, ५६,६२,६४ से ६७,७३ से ८६,१०१, ४६,२१६ उवागच्छसि. उ ३७६ ४६७, ५।२८ उवागच्छित्ता (उपागत्य उपागम्य) प३४१२२, उसभकूट (ऋषभकूट) ज० १:५१३।१३५; ज ११६. उ० ११६, ३१२६, ४१११:५११६ ४।१७४,१७५, ६.१६ उवागय (उपागत) उ १।१२२,१३०, ३७१,७६, उसभणाराय (ऋषभनाराच) प २३:४५,६५ ६६,१०६,१३८,४।१५,१८,१६ ५।२६ उसभसेण (ऋषभसेन ) ज० २।७४ उवाय (उपाय) प० १११७१, ३६६२ ज १०, उसह (ऋषभ) ज २६३,६०४।२७ १३,१६,१६,२२ से २५,२७,३०,६९,७२,७५, उसहक ड (ऋषभकूट) ज० ११५१,१३५,४।१७५, ७८,८१,८४ सू १११४,१६,१७,२१,२४,२७, उसहच्छाया (ऋषभछाया) ११६४७ २१३, ६।१।१०।१४१,१४६,१४८,१५० उसहसंधयण (ऋषभसंहनन) ज ३।३ उ १४१,४३ उसिण (उष्ण) प ११४ से ६५१५,७,१२६,१५४, उवागय (उपागत) ज २१६५,७१,८८, ३१२२५ २११,२१४,२१८,२२१,२२६६१ से ११ उवे (उप-1 इ) उवेइ प १३१२२२२. उ ३११११ ११।५६,६०, २८।३२,६६,१०५, ३४११६ उति ज २१६, ३।१२६ उवेह ज' ३.१२५ ३५१ से ३ उन्वट्ट (उद्+वृत्) उव्वति प ६१५८,६८ उसिणजोणिय (उष्णयोनिक) प १२ उव्वट्टति प १७६१,६२,६४,६५,१००,१०२ उसिणोदय (उष्णोदक) प १२३ से १०४ उन्वटे इ उ०३।११४ उसीरपुड (उशीरपुट) ज ४।१०७ उव्वट्ट (उद्वर्त) प २०११ उसु (इषु) ज ३१२४,३७,४५,१३१ उ ११२२, उव्वट्टण (उद्वर्तन) प ६१.१. उ० ३१११४ १४० उन्वट्टणया (उद्वर्तन) प ६१६,७ उसुय (इषुक) उ ३।११४ उव्वट्टणा (उद्वर्तना) १६८,६,४५,४६,५६,६६, उस्सक (उत्+वष्क) उस्सक्कति १००,१०२,१०३,१०७,१०८ प १७।१५०,१५२ उव्वट्टिता (उद्वर्त्य) १६६६ उ १११४१ उस्सण्हसहिया (उत्श्लक्षणश्लक्षिणका) ज २१६ उव्विग्ग (उद्विग्न) प २।२० से २७ ज ३।१११, उस्सप्पिणी (उत्सपिणी) प १२१७,८,१०,१२, १२५ उ ११८६; ३१११२; ४११६ १६,२०,२७,३२,१८१३,२६,२७,३७,३८,४१, उम्बिद्ध (उद्विद्ध) ज २६५,३।३१,५१२८ ४३,४५,५६,६४,७७,८३,६०,९५,१०७, जिविह (उद्-व्यध्) उबिहइ उ ११६१ १०८. ज २११,३,६,१३८,१६१,१६४; उब्वेह (उदवेध) ज० ११२३,५१,४११,३,६,१४; ७१०१ सू ६५१८।१६।२; १७१;२०१५ २५,३६,४०,४३,५४,५७,६२,६४,६७,७२, उस्सास (उच्छ्वास) प १२११४१७११११ ७८,८०,८४,८६,८८,६०,६५,१०३,११०, उ ५१४३ १२८,१४६,१५४,१५६,१७२,१७८.१८३, उस्सासणाम (उच्छ्वासनामन्) प २३॥३८,५५, २०३,२१३,२२१,२२६७२०७ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उस्सासद्धा एक्कहत्तर उस्सासद्धा (उच्छ्वास 'अद्धा ' ) ज २१४ उस्सासविस (उच्छ्वासविष ) प १।७० उस्सिय ( उच्छ्रित) जं ३।१८४. सू १८।३ उस्सीसग (उच्छीर्षक) ज ५२६७ उस्सुक्क (उच्छुल्क) ज ३११२,१३, २८, ४१, ४६, ५८,६६,७४, १४७, १६८,२१२,२१३ उस्सेह ( उत्सेध ) ज १६४० ३।१२,८८,१६७ ११; ४११०३,१७८५ ५७,५८ चे १० उ ११३; ३।१२ उस्सेहंगुल ( उत्सेधाङ्गुल) ज २६ ऊ ऊण (ऊन ) प २१२६, २७२४, २६४७,४३,६,६, १२,१५,१८,२१,२४,२७,३०,३३,३६,३६, ४२,४३,४५,४६, ४८, ४९, ५१, ५२, ५४,५८,६४, ६७,७१,७४,७८, ८१, ८७, ६०, ६४,६७,१००, १०३, १०६,१०६, ११२,११५, ११८, १२१, १२४, १२७,१३०, १३३, १३६, १४२, १४५, १४८, १५१,१५४, १५७,१६०,१६४, १६७, १७०,१७३, १७६,१७६, १८२,१८५, १८८, १६१, १९४, १६७, २००,२०३,२०६,२०६, २१२,२१५,२१८,२२१, २२४, २२७, २३०, २३३,२३६,२३६, २४२, २४५, २४८, २५१, २५४, २५७,२६०, २६३, २६६, २६६, २७२, २७५,२७८,२८१,२८४,२८७,२६०, २६३, २६६, २६६, १२११०; १५१५७१८१६, १०, १२, ५६,६४,७७, ८१, ८३, ८४,८६ से ११,९५, ६६,१०८२११७४१२३।७६, १५६ ज १११७|१,२२८८४१५५,६२,७१२७,२६, ३० सू १११४,१६,२१,२३, २४,६११:१५ १८, १६,२६,३४ ऊणक ( ऊनक ) सू १३२ ऊणग ( ऊनक ) प २३६६,८१,८३ से ६६,८६, ६५ से ६६, १०९ से १०३,१११ से ११४, १५२ ज ३।२२५; १५।२७ कृणय ( ऊनक ) प २३/६१,६४,६८,७३,७५,७७, ८६३ ८८,६०,६२,१०४, ११७, ११८, १३४, १३५, १३८, १४०,१४२, १४३,१५१,१५३,१५५, १५७,१६०,१६१, १६४,१६६ से १६८, १७१ से १७३ ज २६,१२६,१२४ ऊताल ( एकोनचत्वारिंशत् ) सू १६४४ ऊतालीस ( एकोनचत्वारिंशत् ) सू २२३ ऊरु (ऊरु ) उ १११३८, ३।११४ ऊस ( ऊष ) प १/२०११ ऊसय ( उत्सव ) उ ११७१,७२ ऊसविय ( उच्छ्रित) ज ५१२१ सू १८१८ / ऊसस ( उत् +- श्वस् ) ऊससंति प ७२१ से ३, १७१२,२८।२१,३३,६७ ऊसास (उच्छ्वास ) प १२४८५३ ० २२४१ ऊसिया ( उच्छ्रित) प २२४८१५३५२ ज ११४२: २३१५,१६,५२,१६१,३७,३५,१०६,१३८ ४१६,१४,३१,४१,४६,६८,७६,६३,२२१; ५।४३; ७११६६,१७६,१७८ १८८. उ० ३१७ ए एकादसम ( एकादश ) सू १०११२४१२ एकावलि ( एकावलि) ज ३।२११ एकासीद ( एकाशीति) ज ४|११० एकूण वीस तिम ( एकोनविंशतितम) सू० १२।१६ एक्क (एक) प ११४८५४ ज १।३२ सू १०।१५७ एक्कग (एक) ज ७।१३१।१ एक्कड ( इक्कट ) प १।४१।१ एक तरह का सरकंडा जिसकी चटाई बनाई जाती है । एक्कतीस ( एकत्रिंशत् ) प ४।२६१ ज ४।११९ सू २/३ एकतीसा ( एकत्रिंशद्धा ) सू १३ १४, १६, १७ एक्कमेक्क ( एकैक ) ज ५।१ एक्कवीस ( एकविंशति ) प ७।१६. ज २२६ सू २१३. उ ५ १० एक्कवीस ( एकविंशतितम) प १०११४|४ एक्कहत्तर (एकसप्तति ) ज ११४८ Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६४ एक्काणउति-एगवउ एगगुण (एकमुण) प ३११८२,५११४६,१५०; १११५.४.५६,५८,६०:२८७,१०,५३,५६ एगग्ग (एकात्र) ज ५१२५ एगजडि (एक टिन्) सू २०१८ एगजोक (एकव) प२४७।१ एकजीविय (एकत्रीविका) प१४७।१ एगट्ठ (एकार्थ) सू १६६२,४,६ एगट्ठिभाग (एक टिनम) सू १११४,१६,२०, एक्काणउति (गकनवनि) सू १११६ एककार (एकादश) व १०।१४१३ एक्कार (एकादशन) सू १८१६ एक्कारस (कादान्) ११.१ ज ११४८. सू १२१६. र १६६ एक्कारस (एकादश) ५ १०११४१२ एक्कारसग (एकादश) ज ७११३१२ एकारसम (एकादश) प१०।१४।१ ज ७१६७ सू १०१७७१३।१० उ १११४,१५,२१,१४०; ३११२६ एक्कारसविह (एकादशयि) प १६१३,२० एक्कारसी (एकादशी) १.५ एक्कावण (करना) : ७१६ सू ११२७ एक्कासी (एक शीति) सू १६१८ एक्कासीइ (एकाशीति) ज ४११४३ एक्कासीत (एकाशीति) सू १६५ एक्कासीतिविह (काशीतिविध) ५० १७४१३६ एकिक्किय (एककक) सू १६।२२।८ एक्कणवीसइम (एकोनविंशतितम) प ११४८१६२ एक्केक्क (एकैक) प ११४८१५८ ज ७१७८।१.२. सू८।१:१६।२२।४ से ६ एग (एक) प १२० ज १७. सू १।१४ उ १११७ एगइय (एकक) प १७५:११४५,४७ से ४६; १७१३,२०६१,४,१७,१८.२२,२५,२८,२६, ३४,३८,३६,४६,५०,५३,५८,२२१५६,२३६; ३४१७ से ६,११,१२,१५,१६ १२२,५०, २२५८,८३,१२३,१२८,१४८,१५१,१५७; ३३१०,११,८६,८७,१४४,४।१०१,१८४; ५।२७,५७,६१४ उ ११६७३।११४,१३०, १३१,१३४,१५१:५।१७,२६ एगओवत्त (एकतोवत्त) प ११४६ एगत (एकान्त) ज ३१९८५१५,२६. सू २०१७. उ ११५४ मे ५७,५६,९३,७१ से १८४ एगखर (एकखुर) प ११६२,६३ एगठ्ठिय (एकास्थिक) प ११३४,३५ एगठिहा (एकपष्टिधा) सू२१३ एगणासा (एकनासा) ज ५११०।१ एगतओ (एकततम् ) 3 १{१२५ एमतारा (एकताग) सू १०१६२ एगतिय (एकक) प ६।११० सू । एमतीस (एकत्रिशत् ) ज ४।६२ सू १३।११ एगतोनिसहसंठिय (एकतानिषधसं स्थित) सू ४१३ एगत्त (एकत्य) प ११८३,८५,२२।२५,२८; २३१८,१२,२४।६।२५१४;२७।२;२८१२४; १३०,१३१,१३६,१४३,१४५ एगदिसि (एकदिश) ज ७४८ एगपएसिय (एकप्रदेशिक) प १११४६ एगमेग (पकैक) प १०१५१५।८३,८४,८६,६४ स ६७,१००,१०३ से १०६,१०६,११४,११५, ११७,१३५,१४१,३६१८ से ११,१८ से २२, ३०,३१,४४,४६ ज २१४:४१६४,११५,२६२, ६।१४,१६,२१,२२,७१३,१६,१६ से २५, ६६,७२,७५,७८ से ८२,८४,९५,९६,९८ से १००,११४ से ११६,११६,१७० सू ११८, २०,२१,२३,२४,२७,२६३, ६।११०।८४,८५, ८७,६०,६१,१२४:१५।२ से ४,२६ से ३४; १८।४,२१ एगयओ (एकततस्) ज ३.१११ एगराइय (एकररात्रिक) प २१७० एगलक्खण (गकलक्षण) सू १६।२,४,६ एगवउ (एकवचस्) प ११२१ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगवयण-एत ८६५ एगवयण (एकवचन) प ११३८६,८७ ५०,५७,६४,७५,७६,७६,८०,८५,९४; एगविह (एकविध) ५ २१३,६,९,१२,१५,२२१८३, २२।२५,८२,२३।४०,८५,१३४,१३५,१३७ ८४,८६,२४।१० से १२:२६१२,४,६,८ से १० से १४०,१४२,१४३,१५०,१५६,१५६; एगवीस (एकविंशति) १४।२,६१ सू २३ २४।१३:२६।४,५,६:२८.११२,२८१६८,६६, एगसट्ठि (एकषष्टि) ज ७७ १०२,१०६,११२,११५.११६,१२३,१२६, एगस ट्ठिभाग (एकषष्टिभाग) ज ७१२७,२६,३०, १२७,१२६,१३२,१३३,१३७ से १४१,१४३; ६६.७२,७५ ३४१५,१४,३५७,३६०५६,६६ ज ३।१६७१५, एगसदिठमाय (एकषष्टिभाग) ज ७.६५,६६,७१, १७८ ७२,७५,७७ एगिदियरयण (एकेन्द्रियरत्न) ज ३११७८,२२०; एगसटिठहा (एकषष्टिधा) ज०७२१,२२,२४,२५ ७।२०५,२०६ एगसत्तर (एकसप्तति) ज ४११६६ सू १२११२ एगूणणउद (एकोननवति) ज ७१४ एगसमइय (एकसामायिक) प ३६।६०,६७,६८, । एगणणउति (एकोनवति) ज २१८८ सू ११२७ ७१,७५ एगणतालीस (एकोनचत्वारिंशत्) सू २१३ एगसमइयद्वितीय (एकसमयस्थितिक) प ५।१४६, एगूणतीस (एकोनत्रिंशत् ) प ४१२८५ सू २३ १४७,१११४१ एगूणपण्ण (एकोनपञ्चाशत् ) ज २०४६ सू २।३ एगसमयठितीय (एकसमयस्थितिक) प ३१३८१ एगणवण्ण (एकोनपञ्चाशत् ) प ४६८ एगसाडिय (एकशाटिक) ज ३१६:५२१ एगणवीस (एकोनविंशति) प ४१२५७ ज ७१४ एगसिद्ध (एगसिद्ध ) प ११२ सू१।१० एगसेल (एकशेल) ज ४११६६,१६७ एगणवीसइ (एकोनविंशति) ज ११८ एगसेलकूड (एकशेलकूट) ज ४।१६८ एगूणवीसइभाग (एकोनविंशतिभाग) ज ११२३; एगागार (एकाकार) पश६०,७२,७३,८०,८१, ४।८१,६०,६८,१६६ ८४;१३.२०,२१७२२३०५१ से ५३,५५,५६, एगणवीसइभाय (एकोनविंशतिभाग) ज १११८,२०, ज ४१२५६ एगारस (एकादशन्) ज ३।१ ४८,४६८,२००,२०१ एगावण्ण (एकपञ्चाशत् ) ज ७।२० एगणवीसति (एकोनविंशति) ज २८८ एगावलि (एकावलि) ज ७१३३ एगूणसट्ठि (एकोनषष्टि) सू १२।६ एगावलिसठिय (एकावलिसंस्थित) सू १०॥५० एगणासीइ (एकोनाशीति) ज २१५६ एगासीति (एकाशीति) ज ३१३२ एगेंदिय (एकेन्द्रिय) प १२१५,३।४६ एगाहच्च (एगाहत्य) उ १२२,२५,२६,१४० एगोरुय (एकोरुक) प ११८६ एगाहय (एकाहिक) ज २।६,४३,७१२५ सूरा३ एज्जमाण (एजमान) ज ३४१०७ एगिदिय (एकेन्द्रिय)प १११४,४८,३१४० से ४२,४४, एज्जमाण (आयत्) उ १२२,८६,१४० ४६,१४१ से १४३,१८३;६।७१,८३,८६,६२, एज्जेमाण (आयत्) ज ४१३५,४२,७१,७७,६४ १००,१०२,१०७,११२; १०१३६:१११३६, एड (एड्) एडेइ ज ३१९८ एडेंति ज ५१५ ४१,८०,८४,१३।१६१५:१०३;१६२७, एउता (एलित्वा, एडित्वा) ज ५१५ १७।३६,५६,६०,६२,८७,१८।१४,२०; एणी (एणी) ज ३३१०६ २०१३५२१२ से ५,२२ से २५,३६,४०४६, एत (एतद् ) प १२० Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एतारूब-ओगाहणठ्या एतारूव (एतद्रूप) प १७१२३ से १२५,१२७, १२८,१३० मे १३२,१३४,१३५ एतार (एतावत् ) ज २।४ एतादत (एतावत) सू१३३१०,१३ से १६ एत्तो (इतर) प १७११३५ उ ३।१०१ एत्थ (अत्र) प ११७४ ज १३ चं ७ मू ११२ उ ३१४५ एमेव (एवमेव) प ११०११३ एय (एतद् ) प ११२६ ज ३१०७ चं २१५ सू ११६ उ१११७ एयारूव (एतद्रूप) १ १७१२६ ज ११११, २।१७,१८,३२६,२७,३६,४०,४७,४८,५६, ५७,६४,६५,७२,७३,११२,१२२,१२३,१३३, १३४,१३८,१३६,१४५,१४६,१५८,१६५, १६७,४७,१५,२६,१०७,१४६,५।१३,२२ उ १।१५,१७,३४,४०,४३,५१,५४,६३,६५, ७४,७६,७६,६६,१०५,३।२६,४८,५०,५५, १८,१०६,११८,१२६,१३१:५२३,३१,३६, एलय (एलक) प १११६ से २० एलवालु (दे०) प ११४८१४८ एलवालुंको (दे०) प ११४०।१ एलापुड (एलापुट) ज ४।१०७ एलावच्चा (एलापत्या) ज ७१२० सू १०८८१ एक (एव) ज १११६ स १६३११ उ ११२ एवई (एतावत् ) ५ ३६१६० एवइय (एतावत् ) प ३६१५६,६६,७४ एवं (एवं) प १४६०११६ चं २।५ सू ११५ उ११४ एवंकरणया (एवंकरण) ज ३११२६ एवंभाग (एवंभाग) सू१९१०४ एवंभूय (एवंभूत) प १६:४६ एवति (इयत्, एतावत् ) प ३६६७,७१,७५ एवतिय (एतावत्, इयत्) प ३६१६६,६८,७०,७३ सू २१२,१६।२२।२,३ एवमेव (एकमेव) प ३४११६ एवामेव (एवमेव) प २८।१०५ ज ११२६ सू ३११; १०११२७११६३ एसणासमिय (एषणास मित) ज २१६८ उ ३६६ एसणिज्ज (एषणीय) उ ३१३६,३८ ३७ ओ एरंड (एरण्ड) प ११४२१२; ११४८१४६ एरंडबीय (एरण्डबीज) प ११७८ एरणवय (ऐरण्यवत) प १७।१६३ ज १६ एरवत (ऐरवत) प १८८ एरवय (ऐरवत) प १६:३०:१७१६० ज ४।१०२ ५५५५, ६१६,१३,१६,२० सू ११८,१६ एरदयकूड (ऐरवतकूट) ज ४।२७५ एरावण (ऐरावण) ज ४११४२१३,२०७,२६२; ५।१८ एरावणवाहण (ऐरावणवाहन) प २१५० एरावतिय (ऐरावतिक) सू १।१६ एराक्य (ऐरावत) जा२७४,२८७ एरात्रयग (ऐरावतक) ज ४।२५२ एरिसय (ईदशक) प २३११६५,१६६,२०० सू २०१७ उ श१४० एरिसिय (ईदृशक) प २३१२०१ एलग (एलक) ५ ११६४ ज २।३४,३५ .. ओअवण (दे० साधन, स्वायत्तीकरण) ज ४॥२७७ ओइण्ण (अवतीर्ण) उ १६०,६१ ओगाढ (अवगाढ) प३।१८०,१८२,५११३६ से १४५:१०.१८ से ३०,१११५०,६२ से ६४, ६६।१:१५३१११,१५११२,२५,१७११४१; २८१५,१२,१३,२०,३२,५१,५८,५६,६६ * ७१४१,४२,५०,५८ ओगाह (अव । गाह) ओगाहइ ज ३१२२,२६ चं ३१२ सू १।७२ उ ३१५१ ओगाहई ५ ११०१।६ ओगाहेइ ज ३।४४ ओगाहणठ्ठया (अवगाहनार्थ) प ५१५,७,१०,१२, १४,१६,१८,२०,२४,२५,२८,३०,३२,३४, ३७.४१,४५,४६.२३,५६,५६,६३,६८,७१, Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओगाहणसंठाण-ओय विय ८६७ ७४,७८,८३,८४,८६,८६,६३,६७,१०१,१०२, १०४.१०५,१०७,१११,११५,११६,११७, ११६,१२६,१३१,१३२,१३४,१३६,१३८, १४०,१४३,१४५,१४७,१५०,१५४,१६०, १६३,१६६,१६६,१७२,१७४,१७७,१७९, १८१,१८४,१८७,१६०,१६३,१६७,२००, २०३,२०७,२११,२१४,२१८,२२१,२२४, २२८,२३०,२३२,२३४,२३७,२३६,२४३; १५।१३,२६,३१ ओगाहणसंठाण (अवगाहनासंस्थान ) प १।११६ ओगाहणा (अवगाहना) १७४,८४, २१६४१४, ६ से १५१६६,१३२,१६५,११।७२, १५।१३,२६,३०,३१,५८।२,६५,२१।१।१, २१॥३८,४० से ४२,४८,६३ से ६६,६८ से ७१,७४,८४ से ६४,१०५ उ ३।८३,१२०, १६१,४१२४ ओगाहणाणामणिहत्ताउय (अवगाहनानामनिधत्ता युष्क) प ६।११८ ओगाहणाणामनिहत्ताउय (अवगाहनानामनिधत्ता युष्क) प६।११२ ओगाहणानामनिहनाउय (अवगाहनानामनिधत्ता- युष्क) प६।११६ ओगाहिऊण (अवगाह्य) ज ४।२४० ओगाहित्ता (अवगाह्य) प २२१,२२,२४ से २७, ३० से ३२,४१ से ४३; १५१४३,४५,५२ ज ११४६, ४।२२१; सू ११२२ उ ३१५१ ओगाहेत्ता (अवगाह्य) २।२३,३३,३५,३६ ओगिहित्ता (अवगृह्य) उ ११२,३१२६, ५१२६ ओगुंडिय (अवगुण्डित) २११३३ ओग्गह (अवग्रह) ११२:३१२६,६६,१३२; ५.२६ ओघ (ओघ) ज ५२२ से २४ ओघमेघ (ओधमेघ) २११४१,१४२,१४५; ३१११५.११६,१२२,१२४ ओघसण्णा (ओषसंज्ञा) प ८.१,२,३ ओघस्सर (ओघस्वर) ज ५१५२,५६ ओचूलग (अवचूलक) ज ३११२५,१२६,१७८; ७१७८ ओच्छपण (अवच्छन्न) ज २११२,१३,३।१२१ ओट्ठ (ओष्ठ) प २।३१,३२ ज २१४३,७१७८ उ ३१११४ ओठावलं विणी (ओष्ठावलम्बिनी) प १७११३४ ओणय (अवनत) ज २१६० ओत्थय (अवस्तृत) ज ३।६,१८,६३,१८०,२२२ ओभंजलिया (दे०) १५१ ओभास (अव-भास्) ओभासइ ज ४।२१० चं २११ सू १९६।१ ओभासंति सू०३।१ ओभासति सू ३१२ ओभासें ति ज ७।४६,५८ ओभास (अवभास) ज ११२३,२११२:४।२०१, २१४,२४०,२६४,२७० सू २०१८,२०८१६ ओम (अवम) सू ६३ ओमंथिय (दे० अवमस्तिक) उ १२१५,३५, ३।६८ ओमज्जायण (अव मज्जायन) ज ७१३२११; सू १०११०६ ओमत्त (अनमत्व) १५४४,४५ ओमरत्त (अवमरात्र) सू १२११६,१७११ ओमइत्ता (अवमुच्य) ज २१६५ उ ३।११३ Vओमुय (अव + मुच् ) ओमुयइ ज २१६५,२२४; ५१२१ ३ ३१११३,४१२० ओमोय (दे०) ज ३१६ ओम्मिमालिणी (मिमालिनी) ज ४२११ ओय (ओजस्) चं ।२ सू १।६।२;६।१;६३ ओयमि (ओजस्विन) ज ३७७,१०६ 1 ओधर (अब ' त) ओयरइ उ १६७ ओयव (द०) ओयवेइ ज ३११७५ ओयवेहि ज ३१७६,१२८,१५१,१७० ओयवण (दे०, साधन, स्वायत्तीकरण) ज ३।१२६;४११७७ ओयविता (दे० अधीनीकृत्य) ज ३१७१ ओयविय (दे० परिकर्मित) प २।३१ ज ४.१३ स् २०१५ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६८ ओयवेऊण-ओहद्रिय ओयवेऊण (दे० स्वायत्तीकर्तु) ज ३८१ ओयवेत्ता (दे० अधीनीकृत्य) ज ३७६ ओयसंठिति (ओजस स्थिति) सू १०६६१; हार ओयाय (उपयात) उ १११४,१५,२१,१३६,१३७ ओयाहार (ओज आहार) प २८५१०४,१०५ ओराल (दे०, उदार) प ३४११६,२१,२२ ज ११५; २१६४,३।१८५,४११०७ सू २०१७ उ ११४०, ४१,४३,४४, २०११ ओरालिय (औदारिक) प १२।१,३ से ५,८,९, ११ से १३,१५ से १७,२१,२३,२७ से २६, ३२,३३,३५,३६,२१११,३६,८०,८२,१०२, १०४,१०५;२३०४१ से ४४,८६,९२,३६।१२ ओरालियामीसगसरीर (औदारिकमिश्रकशरीर) प१६।१५,३६.८॥ ओरालियमीससरीर (औदारिकमिधशरीर) प१६।१,४ से ७ ओरालियमीसासरीर (औदारिकमिश्रकशरीर) क १६।१२ से १५, ३६८७ ओरालियसरीर (औदारिकशरीर) प१२।२३,२७, ३२,१६।१,४ से ७,१२ से १५,२११२ से ५, १६ से २५,२८ से ३२,३६,३८,४० से ४२, ४८,७६,७७,६५,९८ से १००,१०४,१०५; २२।३७,४४,४५,२८११०४,१४१,३६१८७ ओरालियसरीरग (औदारिकशरीरक) प १२० ओरालियसरीरय (औदारिकशरीरक) प १२७ ओरालियसरीरि (औदारिकशरीरिन) प २८१२,१४१ ओरोह (अवरोध) ज ५२२,२६ ओलंग (अवलम्ब) ज ७१७८ ओलुग्ग (अवरुग्ण) उ ११३५ ओवइय (दे०) प ११५० ओवक्कमिया (औपक्रमिकी] प ३५।१११:३५।१२, ओवम्म (औपम्य) प २१६४।१८ ओवम्मसच्च (औपम्यसत्य) १ ११।३३।१, ११३३ ओवय (अव पत्) आव यंति ज ५१५७ ओयवमाण (अवपतत्) ज ५१४४ ओववाइय (औपपातिक) ज २१८३,५१५७ ओवाय (अवपात) ज २६३८ ओवासंतर (अवकाशान्तर) प १५.५१ ओविय (दे०) ज ३१६,२४, ५१२१,२८ ओसक्क (अव-प्वप्क) आसक्कति प १७१५२,१५५ ओसक्कइत्ता (अवष्वष्क्य) सू१०।१४८ ओसण्ण (अवसन्न) प८।४,६,८,१०,२८१२०, २६,३२,६६ ज २।१३३,१३५ से १३७ उ ३।१२० ओसण्णविहारि (अबसन्न विहारिन् ) उ ३।१२० ओसत्त (अवसक्त) प २१३०,३१,४१ ज ३७,८८ ओसधि (ओषधि) प ११३३।१,१।४५ ज २११३१, १४४ से १४६,३।१३३,२०६,२११:५।५५, ५६ ओसप्पिणी (अवसर्पिणी) प १२१७,८,१०,१२,१६, २०,२७,३२,१८।३,२६,२७,३७,३८,४१,४३, ४५,५६,६४,७७,८३,६०,६५,१०७,१०८ ज २११,२,६,७,५२,५६,१३५३१ सू ८.१६२% १७११, २०१५ ओसरित्ता (अपसत्य) ज ५१५८ ओसह (ओषध) उ ३।१०१ ओसही (ओषधी) ज ४।२००३१ नगरी का नाम ओसा (दे०) प ११२३ ओसारिय (उत्सारित) उ ११३८ ओसोवणी (अवस्वापिनी) ज ५।४६,६७ ओहय (उपहत,अवहत) ज ३११०५,१०६,२२१ उश१५,३५,४१ से ४४,७१,३१६८ ओहस्सर (ओघस्वर) ज २११६,५१५१ ओहडिय (अवघटित) ज ११२४ ओवमिय (औपमिक) ज २१४,५ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओहारिणी-कंतरिय ८६६ ओहारिणी (अवधारिणी) प ११११ से ३ ओहि (अवधिप ११७१७।१०६ से १०८, ११०; ३३।१।१; ३३.१ से १३,१५ से १६, २६,२७,३५ ज २१६०,६३, ३।१२,५६,८८, ११३,१४५, ५.३,७।२१,५८ उ ३७,६१ ओहिणाण (अवधिज्ञान) प ५१५,७,२४,४१,४६, ६७,११५,१७१११२,११३, २०१७,१८,३४; २८.१३६,२६२,६,१७,१६,३०।२,६ ओहिणाणारिय (अवधिज्ञानार्य) प १९६ ओहिणाणि (अवधिज्ञानिन्) प ३।१०१,१०३; ५६४३,६६ मे १६,११४ से ११७; १३।१४; १८१८०२८।१३६, ३०1१६ ज २१७६ ओहिदसण (अवधिदर्शन) प ५१५,७,४५,६७; २६॥३,७,१७,१६,३०१३,७ ओहिदसणावरण (अवधिदर्शनावरण) प २३।१४ ओहिदंसणि (अवधिदशं निन्) प ३.१०४:५।४७, ६६,११७,१८१८७,३०१६ ओहिनाणपरिणाम (अवधिज्ञानपरिणाम) प १३१६ ओहिनिगर (अवधिनिकर) ज ३३१२,८८ ओहिय (औधिक) प २।३४,३७,४२,४३,५०%; ४।५५,६८,७५,६१,६७३,७४;१११८२,८३; १२२६,२८,२६,३२ से ३४,३६:१५.१८, १६,३०; १७।२८ से ३०,३२,३३,३५,५८, ६०,६२,६३,२११३१,३६,४२,४४ से ४७, ६१,७०:२२१२४,२३।१७६,१८१,१६५,१६०, २६१५ कओ (कुतस्) प ६८२,६३,१११३०११ ज ७।३१ कंक (कक) प १७६ ज २११३७ कंकरगहणी (कङ्कग्रणी) ज २०१६ कंकडग (कंकटक) ज ३1३५,१७८ कंकण (कडकण) उ ३।११४ कंकावंस (दे०) प ११४११२ कंग (कङ्गु ) प ११४५१२ ज २१३७,३।११६ कंगुया (कंग) प ११४०१२ कंचण (काञ्चन) ज ११३७२११५,७०,३११२, २४,३५,८८,१०६.११७:५१५८,७१७८ कंचणकूट (काञ्चनकूट) ज ४।२०४११ कंचणकोसी (काञ्चनकोशी) ज ३१७८ कंचणग (काञ्चनक) ज ४।१४२२१ कंचणगपव्यय (काञ्चनकपर्वत) ज ४।१४२ ६१० कंचणपुर (काञ्चनपुर) प ११६३१ कंटक (कण्टक) ज ४।२७७ कंटकबहुल (कण्टकबहुल) ज ११८ कंटग (कण्टक) ज २६३६ कंटय (कण्टक) ज ३१२२१ कंठ (कण्ठ) ज ५।५६७।१७८ कंठाणुवादिणी (कण्ठानुवादिनी) सू ११४ कंड (काण्ड) प २६४१ से ४३,४६ कंडावेलु (कण्डावेणु) प ११४१।२ कंडुइय (कण्डू यित) ज १११३३ कंडक्क (कंडुक) प ११४८१५०,६२ भिलावा, तमाल कंडुरिया (कंडुर) प ११४८१२ एक तरह का सरकंडा कंत (कान्त) प २१४१,२८।१०५ ज २।१५,६४, ६५;३।६२,११६,१८५,२०६:५।२८,५८ सू २०१४ उ ११४१,४४,३।११२,१२८,५२२ कंततर (कान्ततर) ज २११८,४।१०७ कंततरिय (कान्ततरक) प १७११२६,१२७,१३३ ___ से १३५ ज २११७ कंतत्त (कान्तत्व) प ३४।२० कंतयरिय (कान्ततरक) प १७१२८ क क (किम् ) प ११ ज ११४५ सू ११६ उ ११४ कइ (कति) प १५१५३,१५।१४१,२२।४०,४१, ६०,२५१४ ज ११३४,४१२१४ चं ११.३ सू ११६।१,३ उ ११६; २।१,४।१ कइविह (कविविध) प १६११:२११७,१३,३०२ __ ज २।५७११०४,१०५,१११ से ११३ कइरसार (करीरसार) प १७११२५ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७० कंतस्तरता (कान्तस्वरता ) प २३|१६ कंति ( कान्ति) ज २२६५३।१८६,२०४ कंद ( द ) प ११३५,३३,४८१७,११,२१,३१,३५, ६१,१११०१,१२८ ज ४।७ उ ३१५०,५१,५३ कंद ( कन्दर्प ) प २०४१ कंदपि ( कान्दर्पिक) प २०१६१ ज ३।१७८ कंदमाण ( ऋन्दत् ) उ १।६२३११३० कंदमूल (कन्दमूल ) प ११४८३८,६१ कंदर (कन्दर ) ज २१६५; ३१३५ कंदल (कन्दल ) ज ३।३५ कंदलग (कन्दलक ) प १३६३ कंदल ( कन्दली ) प ११३७ २, ११४३११ कंदली (कंद) ( कन्दलीकन्द ) प ११४८।४३ कंदलीथंभ (कन्दली स्तम्भ ) प १११७५ कंदाहार ( कन्दाहार) उ३१५० कंदित ( ऋन्दित ) प २४१ कंदिय ( ऋन्दित) प २२४७ १ कंदु (कन्दु) उ ३१५० कंटुक्क (कंदुक) व ११४८५० कंपण (कम्पन ) ज ३।३५ कंपिल्ल ( काम्पिल्य ) प ११६३/२ कंबल (कम्बल) प १५१११२,१५५१ कंबु (कम्बु ) प ११४८३ कंस (कांस्य) प १११२५ २२४,६६ सू २०१८ कंसणाभ (कंसनाभ ) सू २०१६ २०१८१३ कंसताल (कांस्यताल ) ज ३१२१ कंसवण्णाम (कांस्यवर्णाभ) सू २०१८ कंसोय ( कंसीय ) प १११२५ ककुह ( ककुद) ज ७।१७८ Tara ( कर्कश ) ३६८ क्यण (कर्तन ) ज ३१३५,१०६ aratee (कर्कोटकी ) प ११४०१२ Era ( कक्ष) ज० २।१५ ३० ३।६८ कक्वंतर ( कक्षान्तर ) उ४१२१ कक्खड (कक्खट ) प ११४ से ६; २।२० से २७ ; ३१८२५१५, ७,२०६ से २०८; १३२६; कंतस्सरता कट्ट् १५११४,१६, २७, २८, ३२, ३३, २३१५०; २८१६, १०,२०,३२,५५,५६,६६ कच्चायण ( कात्यायन ) ज ७११३२|४ सू १०।११७ कच्छ ( कक्ष) ज ४१२४८ कच्छ (कच्छ) ज ३१८१,४१६२११, १६७,१७२/१, १७७,१७८, १८१,१८४, १८७, १६०, २००; ७१७८ कच्छकूड (कच्छकूट) ज ४ १६३,१६४,१८० कच्छगाव ( कच्छकावती) ज ४।१८५ से १८६ कच्छगावइकूट (कच्छ्रकावतीकूट) ज ४।१८७ कच्छ्गावती ( कच्छकावती) ज ४११८७ कच्छभ ( कच्छप ) प ११५५, ५७ ज २११३४; ४१३,२५ सू २०१२ कच्छभी ( कच्छभी ) ३।३१ कच्छविजय ( कच्छविजय ) ज ४।१६३,१६६,१९६ कच्छा (कक्षा ) वराही नामक पौधा, भींगुर प ११४६, ११४८१६२ कच्छु (कच्छू) ज २११३३ कच्छुल ( कच्छु ) प ११३८।२ कच्छुरी ( कच्छुरा ) प ११३७/१ कज्ज (कृ) कज्जइ प २२१०,१५,१६,१८,४८, ५०,५२,६७ से ६६,७२,८२,१३,६८, ६६७१५२, ५३ कज्जति प १७१११, २२, २३,२५,२२/५१,७१,७३,७४ कच्चति प १७२५२२।६, ११ से १४,१७,१६,४८ से ५०, ५२ से ५६,६१ से ६५,६७ से ६६,७१ से ७४,७६ से ७६,८१,६१,६४,६७ से ६६ कज ( कार्य ) सू १०/१२० उ ३।११,५१,५६ कज्जल ( कज्जल ) प १७।१२३ कज्जलध्यमा ( कज्जलप्रभा ) ज ४।१५५/२, २२३॥१ कज्जोय ( कार्योग) ज ७।१८६२ सू २०१८; २०१८१२ कट्टु ( कृत्वा ) प १११७० २१६४ सू ११२०, २१ उ १।१७ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कट्ठ-कण्णपाउरण ८७१ कट्ठ (काष्ठ) प १६४८।३० से ३७ ज २१६५, ६६,९८,१३१,३१६८,५५,१४ से १६ उ ३१५०,५१ कठ्ठपाउयार (काप्ठपादुकाकार) प १६७ कट्ठमुद्दा (काष्ठमुद्रा) उ ३।५५,५६,६३,६४,६७, ६८,७०,७१,७३,७४,७६ कट्ठसेज्जा (काप्ठशय्या) उ ५।४३ कट्ठा (काष्टा) सू १४६३११६१ से ३ कट्ठाहार (काष्ठाहार) प ११५० कड (कृत) २०१३९;२३।१३ से २३ ज १११३, ३०,३३,३६,२७१,४।२ सू १२१२ से ६,१० से १२ उ ११२७,१४० कडक्ख (कटाक्ष) ज ७१७८ कडग (कटक) प २१३० ज ३१६,६,१७,२६,२६, ४७,५६,६४,७२,६७,१०६,१३३,१३५,१३८, १४५,१५०.१६१,२११,२२२२५२१,५८ उ ५१५ कडय (कटक) पश३१,४१,४६ ज ११६,३१६५, १५६,४१६ कडाह (कटाह) प ११४८४६ कटावक्ष कडि (कटि) ज ३।१७८७११७८ उ ३३११४ कडिसुत्त (कटिसूत्र) ज ३।६,२२२ कडुमतुंबी (कटुकतुम्बी) १७१३० कडुगलंबीफल (कट कतुम्बीफल) प १७।१३० कडुच्छुग (दे०) ब १२४०,४११३६,२४२ कडुच्छ्य (दे०) ज ३१११,१२,८८,४१२१६; ५।५५,५७,५८ उ ३१५०,५५ कडय (कटक) प १४ से ६५५,७,२०५; २८१२०,३२,६६, ज २११४५,७।११२१२ सू १०११२६।२ कढिण (कठिन) उ ३३५० कण (कण) सू २०१८ कणहर (करवीर) प १३८१ ज २०१० कणिकार का पेड कणकण (कणकण) ज ५२४ कणकणय (कणकणक) सू२०१८ कणग (दे०) ज ३.३५ बाण कणग (कनक) प १५१, २१४०1८,६२१४८ ज ११५,१६,३८, २११५,६४,६८,६६; ३६, २४,३५,५६,८१,१४५,१७८,२११,२२२; ४११०,११५, ४।२१०११,२१७; १५८, ७.१७८ कणगमय (कनक मय) ज ३.१६७४१२ कणगरयणदंड (कनकरत्नदण्ड) ज ३।१०६ कणगसणाम (कनकसनामन्) ज ७।१८६? सू २०११ कणगामई (कनकावती) ४.७,१५,२४५ कणगामय (कनकमय) ज ११४६,३३१०६,१६७ ४।१,११०,१५६ कणगावलि (कनकावलि) ज ३१२११ कणय (कनक) प ११४११२ पलाश, धतूरा कण्दय (दे०) ज ३३१ । कणय (दे०) सू २०१८ एक ग्रह का नाम कणयदंडियार (कनकदण्डिकार) ज ३।३५ कणयमय (कनकमय) ज ११४६।१ कविताणय (कनकवितानक) सू २०१८ ग्रह का नाम कणसंताणय (कन कसंतानक) सू२०१८ ग्रह का नाम कणवीर (करवीर')ज २११५,३३१२,८८,५।५८ कणिक्कामच्छ (कणिका मत्स्य) प ११५६ कणीयस (कनीयम) उ ११६५ कण्ण (कर्ण) ज २१४३,६४,५१२६,३८,७१७८ उ३।१०२ कण्णकला (कर्णकला) सू १।८।१२१२ कण्णगा (कन्यका) उ ५१३,२५ कण्णत्तिय (दे०) प १९७८ कण्णपाउरण (कर्णप्रावरण) प ११८६ १. हे० ११२५३ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७२ कण्णपीढ-कतिविह कण्णपीढ़ (कर्णपीठ) प२३०,३१,४१,४६ ७,६,११,६।१२,१६,२५,१०१३ से ५,२६, कण्णमूल (कर्णमूल) ज ५११६ २८,२६११७६,६०,१५:१३,१६,२६,२८, कण्णा (कन्या) ज ३१३२ ३१,३३,६४,१७१५६ से ६६,७१ से ७६,७८ कण्णायत (कर्णायत) ज ३।२४,१३१ से ८३,१४५,१४६,२०१६४;२१११०४,१०५; कण्णायय (कर्णायत) उ ११२२,१४० २८१४१,४४,७०,३४१२५:३६।३५ से ३७,३६ कण्णिमा (कणिका) ज ४७ से ४१,४८,४६ सू १३१६,८,१०,१३,१८१७, कणिया (कणिका) प ११४८१४५ ज ३२११७; ४१८,१५,१६ कति (कति) प ६१२०,१२१:८1१ से ३,१०११ कणियारकुसुम (कणिकारकुमुम) प १७१२७ ,१५,१११३०१११११४२,८८,१२११ से ५; कणिलायण (कणिलायन) सू १०६५ १४.१ से ३,५,११ से १४,१७; १५३१११, कण्णिल्ल (कणिल) ज ७१३२१६ १५.१,१२,१७,१६,२०,२५,३०,५४,५६, ५७,७७ से ८०,१३३,१३४,१७१३६ से कण्ह (कृष्ण) प ११४४१३:११४८१७,११६३१६; ४०,११२ से ११४,१२६,१३६,१३७, २।२०:१७।२६,५६ से ६६,७१ से ७६,८१ १४७,१५६,१५७,१५६ से १६१,१६३; से ८७,९४,१०० से १०४,१०६,१०६,११२, २१।१,६५,६६,२२११,२१ से २३,२६,२७, १६६,१६७,१६६ से १७२ उ १७; ५१६,१५, २६,३०,३२ से ३६,४२ से ४७,५७,६६,८३, १७ से १६ ८४,८६,८७,८६,६०२३११।१,२३३१,२,६,७, कण्ह (बल्ली) (कृष्णवल्ली) प १४०।३ २४,२४११ से ५,१० से १५:२५.१,२,५; कण्हकंदय (कृष्णकंदक) प १७।१३० २६.१ से ४,८,९,२७११ से ३,५,६:२८।३१; कण्हकडबु (दे०) प १४८।३ ३६।१,४ से ७,४२,४३,५३,५४,५८,६२ से कण्हलेस (कृष्णलेश्य) प १३३१५; १७१८३,६२, ६४,७७,७८ ज ११५,४।२६० चं ॥३,५ ६४,६५,१०३,१०४,१०७,१०८,१२१,१२६, सू ११६१३,१।९१ से ३:१०।८ से १६,६३ से १७०,१७२,१८१६६,२३:१६५,२०० ७४,७६,१२११,१३१४,५,१५ से ३७,१८११४ कण्हलेसट्ठाण (कृष्णलेश्यास्थान) प १७।१४६ से १७१६१ कण्हलेसा (कृष्णलेश्या) प १७:१२१:२८११२३ कतिपएसिय (कतिप्रदेशिक ) ११५१११,२४ कण्हलेस्स (कृष्णलेश्य) प १३३१४,१६ कतिपदेसिय (कतिप्रदेशिक) प १७१४० कण्हलेस्सट्ठाण (कृष्णलेश्यास्थान) प १७:१४६ कतिप्पगार (कतिप्रकार) प ११।३०।१ कण्हलेस्सा (कृष्णलेश्या) प १३३१४,१६,१६१४६, कतिभाग (कतिभाग) ५२८1१।१,२८।२२,३४,३६ ५०;१७१३६,३८,३६,४१,४३,४७,५०,८२, ११४ से ११६,११८,१२१,१२३,१३०,१३६ कतिभागावसेसाउय (कतिभागावशेषायुष्क) से १४५,१४७ से १५०,१५६ से १६४ प६११४ से ११६ कण्टलेसापरिणाम (कृष्णलेश्यापरिणाम) ११३१६ कतिविध (कतिविध) प ६१११८,१७१३६ कण्हसप्प (कृष्णसर्प) प ११७० सू २००२ कतिविह (कतिविध) प ५।१,१२३ से १२५; कत (कृत) प २८११०५,३४११६ सू २०१७ ६।११६६।१,१३,२०,२६:११॥३१ से ३७, कतर (कतर) प ३३८ से ४८,५० से १२०,१२२ ७३,८६,१३१ से १३,२१ से ३१,१४७,६; से १२४,१७४,१७९ से १८२६।१२३,८१५, ११५८ से ६०,६२,६३,६५ से ७४,७६; Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतिसमइय कब्बडय १६१२,३,१७,१६,२०,२०६२ २१।२ से ६, मे १२, १४, १५, १६,२०,४६,७२, ७५ से ७७,६४,२२१२ से ६; २३३१११,२३।१३ से २३, २५ से ४७,४७ से ५६; २६।१ से ३, ५ से ७,६,१०,१२,१३,३०१, ३, ५ से ११,१३; ३३।१,३४।१७:३५ १,४,६,८,१०,१२,१६ ज २१ से ३४।२५४,२५५ सू १०।१२६; २०१३ कतिसमय ( कतिसामयिक ) प १५१६१ : ३६२, ३,८४,८५ कतो ( कुतस् ) प० ६।७० सू ४/४ कत्तिई (कार्तिकी) ज ७ १४०,१४४,१४६ सू १०/२६ कत्तिगी (कार्तिकी) ज ७।१३७,१५५ कत्तिम (कृत्रिम) ज २।१२२, १२७, ४११००, १७० कत्तिय (कार्तिक) ज ७।१०४,११३११,१३७ उ ३१३,४० कतिया ( कृत्तिका ) ज० ७ १२८, १२६,१३६, १४०,१४४,१४६,१५,१६० सू १०।१ से ६, ११,२३,३६,६२,६६,६७,७५,८३,१०१,१२०, १२४,१३१ से १३३,१२/२८ कत्तिया ( कार्तिकी) सू १०1७,११,२३,२६ कत्तो ( कुतस् ) प ६।१।१६।७५,७८,८०,८१,८७, ६०,६४,६६ ज ३।१२७ कत्थ (कुत्र ) प २१६४२ कत्थइ ( कुत्रचित् ) ज २ ६६ सू २०१७ कत्थुल ( कस्तुल) ज २।१० कवलीथंभ (कदलीस्तंभ ) प ११।७५ कद्दम ( कर्दम ) ज० ३।१०६ उ ११३६ कदुइया (दे० ) प ११४०१२ ai ( कथं ) सू १९ । २४ कथ्य ( कल्प ) प ० २११,४,१०,१३,५० से ५६, ५६१२२३६०,६३,३।२६ से ३६, १८३४।२१३ से २४०, २४३, २४६, २५८, २६४,६२८,६५, ६८,१०६,२०१६१,२११७०, ६१,६२,३०।२६; ८७३ ३४/१६,१८ ज ५।१८, २४ मे २६, ४४, ४६ उ २२०, २२ : ३१६०, १२०, १५६, १६१,४/५, २४.२८ v कप्प ( कृप् ) – कप्पइ उ ३।५०,४१२२कप्पेंति ज ५ १३,१८,२४,२५ Veer ( कल्पय् ) कप्पेह उ५११८ कप्पकार (कल्पकार ) ज ३१११७ कपणा (कल्पना) ज ३१३५ कप्पणी (कल्पनी) ज ३१३१ कप्पणिrयि (कल्पनीकल्पित) उ ११४६ कपरुक्ख (कल्पवृक्ष,कल्परूक्ष ) ज ३६, २११,२२२ कप्परुषखग (कल्परूक्षक ) ज ५।५८ पडसिया (कल्पातंसिका ) उ ११५ : २११ से ३,१४,१५,२१,३११ कपाईय (कल्पातीत ) प १।१३८ कप्पातीत (कल्पातीत ) प १।१३४; २१ ५५,७१ कप्पातीतग (कल्पातीतक ) प ६६५,६२ कप्पातीय (कल्पातीत ) प १११३६, २१।६२ कपाससमजिया (कार्पासास्थिसमज्जिका) प ११५० कप्पासिय ( कार्पासिक ) प १६६ कप्पिद ( कल्पेन्द्र ) प १५५५।२ कप्पिय (कल्पित ) ज ३३६,२२२ कप्पूरपुड ( कर्पूरपुट) ज ४११०७ कप्पेत्ता ( कल्पयित्वा ) ज ५।१२ कप्पेमाण ( कल्पमान) ज १।१३४ कप्पोवग ( कल्पोपग ) प १।१३४, १३५ ६८५ ८६, ६५; २१।५५ कप्पोववण्णग (कल्पोपपन्नक) ज ७ ५५ सू १६१२३ २६ बंध (कवन्ध ) उ १११३६ कब्बड (कर्बट) प १।७४ ज २१२२,१३१,३११८, ३१, १८०,१८५,२०६,२२१ उ ३१०१ कब्बडय ( कर्बटक) ज ७ १८६२सू२०१८, २०१८/२ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ कम-कयपुण्ण कम (क्रम) ज ३।३१,१०६,२१७ ; ४१२०२,७१३० कम्मपगडि (कर्मप्रकृति) प १४।११ से १४,१७; सू १६२२।१४ २२।२१ से २३.२८,८३,८४,८६.८७,८६, किम (क्रम्) कमइ २१६, ४।२०२७।१३० ६०।२३।१ से ५,२४,२४।१ से ५.१० से १५; कमंडलु (कमण्डलु) ज २०१५ उ ३१५१११ २५.१.२.४५,२६।१ रो ४८६;२७११ से ३, कमल (कमल) ज २११५,३१३,६,१८८,२०६, २१०,५।२१,५६ उ १११५,३५,३१६८ कम्मबीय (कमबीज) प ३६।१४ कमलमाला (कमलमाला) उ ११३५ कम्मभूमग (कर्मभूमिक) १११८५,८८,१२६; कमलागर (कमलाकर) ज ३।१८८ ६।७२,८४ ६७.६८,११३,२११५४,७२ कमलामेल (कमलामेल) ज ३.१०६ कम्मभूमग (कर्मभूमिज) य २३।२०० कम्म (कर्मन् ) प १११६:२१६४।२५,३।१७४; कम्मभूमगपलिभागि (कर्मभुमिकपरिभागिन्) १११८६; १७।१।१:१७११८:२०१३६; प२३।१६६,१६६ स २०१ २१११०२:२२२६,२७,२३१३,६,७,६ मे ११, कम्मभूमय (कर्मभूमज) प ६७६;१७।१५६,१६१, १३ से २३,२५,२६,२६ से ४१,४७,४८,५७ १७१,२३।१६६.१६६ से ६४,६६,६८,६९,७३ से ७७,८१,८३,८५ कम्मभूमि (कर्मभूमि) प १।७४,८४,२७,२१ से १०,६२,६३,६५ मे १६.१०१ से १०४, कम्मभूमिग (कर्मभूमिज) प २३१२०१ १११ से ११४,११६ से ११८,१२७,२३०, कम्मय (कर्मक) प १२०१ से ५,३५,३६,२१११ १३१,१३३ से १३५,१३७.१३८,१४२,१४३, काम कम्मवेदय (कर्मवेदक) प १३१६६ १५५,१६१,१६५,१६७,१७१,१७६,१७७, कम्मसरीर (कर्मशरीर) प १२८ १८२,१८३,१८७.१६१ से २०१:२४१२ मे ५, कम्मा (कर्मक) प १२।२५२११०२ ११,१२,१४:२५।२,४,५,२६१२ से ४,८,९ कम्मार (कार) ज २६ २७२,३.६:३६।८२,८३३१,३६॥६२ ज १२१३, कम्मारिय (कार्य) ९२,६६ ३०,३३,३६; २१५१,५४,६४.७०,१२१.१२६, कम्मासरीर (कर्मकशरीर) ५ १६।१ से ८.१० से १३०.१३८,१४०,१४६,१५४.१६०.१६३ १ ५.१६ ३।३।२,३५,१२५.१६७७.१७८,२११,२२३; कम्मिया (काभिकी) उ११४१,४३ ४।२७।११२।३ सू १०११२६।३२०११,२, कम्हा (कस्मात् ) ज७३८ २०१६।३,५ उ ११२७,१४० कय (कृत) २।३०,३१,४१ ज ३६,१८,५८, कम्मंस (कमांश) ५३६१२,६२ ६६.७२.७४.७७८१.८२,८५,६२,६३, कम्मकर (कर्मकर) ज ३।१७८ ११७११,११६ १२१,१२५,१४७,१८० २२१, कम्नखंध (कर्मस्कन्ध) प ३६।९२ २२२.२२६; १२६,५६ उ ११६,७०,८८, कम्मग (कर्मक) प १२।१४.२१,२६,२६; २१६६, ६२.१२१३४८,५०,५१,५६,११०,५१७ १०५:२३।४१,४३,४४,३६।१२ कयंब (कदम्ब) प ११३६।३ कम्मगर (कर्मकर) ज ५१५७ कयकज्ज (कृतकार्य) सू २०१७ कम्मगसरीर (कर्मकारीर) प १२११०,१६.१५, कयग्गह (कच ग्रह) ३।१२,८८,५७,५८ १८.२१:२११६४.१०० १०३ से १०५,३६।८७ कयत्य (कृतार्थ ज ५१५.४६ उ २३४ कम्मगारोरि कर्मकशरीरिक प २८।१४१ कयपुण्ण (कृतपुण्य) उ १३४ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कयमाल करीर कमाल ( कृतमाल ) ज २२८ ३।७१ से ७४,७६, ८४ कमालक ( कृतमालक) ज ३२७१, १५० रुपमालय ( कृतमालक) ज ११२४,४६३६११६ कबर (कतर ) प ३१४६ १७ १४४ २२१०१३ ३६।३८ ज ७।१२६,१७५, १८०, १८१,१६७ सू १०१२ से ४,७५,७७,१३३ से १२१ १८११८, १६ कलक्खण ( कृतलक्षण) उ १।३४ कयलोखंभ (कदलीस्तंभ ) ज २११५ कयलीहर (कदलीगृह ) ५१४ कयलीहरग (कदलीगृहक) ज ५११२ कयवर (कवर) ज २४३६६५४५ कवि ( कृतविभव) उ११३४ कया (कदा ) ज ७ १२५ २१४ सू ११६ |४; १४११ कयाs (कदाचित् ) ज १२४७३४४,८३.१०४, १५४, १७२, १००, २२२, २२६४/२२,५४, १०२३ १११४ ३१४६ ४ २१ ; ५११३ कमाई (कदाचित् ) उद कर (कृ) अकासी ज २२८४ करवाणि ज ३।३२।१ करिस्सामि ज २६ ५/४६ करिस्सामो ज २३५,७ क प १७४१६८१६ २३६५.२०३३५.६.१२.१० १९.३१.३२१२, ४६.५२, ५३ ४१,६२६६.७०८८६५.१००, १३१,१३७.१४११४२.१५९.१६४.१६५, १८०,१६१.२२४ ५०२१, २२, ४४, ४६४८ २१११।१९३।२१:४१३ कति १३८४६।११०,२०१६ से ८२४१६,२१ से २४ ज ११२२,२७,५०३ २०१०.५८, १००, ११५.११६.११८,१२०, १२३, १२८ ३११२, २८.४२,४७,५०५६,६७.७५.१२.११९,१३६. १४० १६.१०४, २११, ४११०१,१६६,१७१: ५४५.७.१४,१६,४६.५७,६०,३६,७४ २११६३ का २०११ से ४,१८, ४०,४४,४६, ४८ ज ५७ करेति प ११७१ १६।५० ३६८२११३६१८५,१२ ज २२६६, ११७ करेमि ज २।१० ३४२६.३६,४७, ५६ १३३,१४५ ५।२२ ११४२ कमी ज ३।११२, ११५,१३८६४०३ करेसिउ ३४७६ करेस्सामी उ ३२६ करेह ज २११४; ३७, १२,२०,४१,४६,५८,६१,६६.७४,१४७, १६८ करेहि ३१०.१९.३१,५२.६९.६६.१४१. १९४,१८० सू ३।१०३ करेहिद उ ३२१ करेहिंति ज २३१५१.१५७ उ ३।१२६ काहिइ उ १४१३८६ कीरइ उ ५ ४३ कर (कर) ज २।१५,७१३२३,१२८१।१३९ करंज ( करञ्ज ) प १३५११ कंजा जिसके फल आदि दवा के काम आते हैं कडग (करण्डक) उ३११२८ करंग (दे०) ज २०१६ करंत ( कुर्वत्) उ११८८,१२ करकर (करकर, अकरकरा ) प १२४२१२:११४६१४६ अकरकरा करकरय ( करकरक) सू २०१८/६ करकरिय ( करकरिक) सू २०१८ ८७५ करण (करण) ज १११३८, ३१३२१२६,२०६ ५।५७१२३ से १२६ करतल ( करतल ) ज ३१२०६ करघाण ( करध्मान ) ३१३१ करम ( करमर्द) प १३७।४ कदा, आंवला कर (करक) प ११२३ करयल ( करतल) ३१५.६.८,१२,१९,२६,३६, ४७, ५३.५६, ६२६४,७०,७२,७७,८४,८८, १०,१००, १०५, ११४,१२६,१३३,१३८ १४२, १४५, १५१.१५७१६२,१०१.१०९,२०५, २०६५५७.२१.४६,५६१।१५,३५, ३६, ४५.५५.५७,१८,६१,६२,००,०२,८३ ८६,८७,२६,१०७, १०, ११, ११८, १२२/ ३।१८,१०६, ११४, १३८, १४५ ४४१५६ ५।१७ करयलपुर ( करतलपुट) ज ५११४,१७,६०६६ करिय ( कृत्वा) ज ५५० Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करित्तए-कसरि करित्तए (कर्तुम् ) प २८।१०५ ज ५१२२ ७८,८८,६१,१४७,१६८,१७३,१७५,१८४, करीर (करीर) प ११३७/४ करील १६६,२१२,२१३, ४।२७,४६ १६६५७ करेंत (कुर्वत्) ज २१६५ २८,४३ सू २०१७ उ १२१२३,५१८ करेत्तए (कर्तम् ) प ३४।१६,२१ से २४ ज २१६० कलुय (कलुक) प ११४६ उ३१११५ कलुस (कलुष) ज २।१३१ करेत्ता (कृत्वा) प ३६१६२ ज ११६ सू २११ कलेवर (कलेवर) प १३८४ सू २०११ उ ११९३७, ४११३ कल्ल (कल्य) ज ३.१८८ उ ३।४८,५०,५५,६३, करेमाण (कुर्वत्) ज २६५,७८ ; ३।२२,२८,३१, ६७,७०,७३,१०६,११८ ३२,३४ से ३६,५४,७८,८६,६३,६६.१०२ कल्लाण (कल्यानी) प १५४१२ जंगली ३३८ १०६,१११.११३,१३७,१४३,१५६,१६२, कल्लाण (कल्याण) ज १११३,३०,३३,३६; १६३,१८०,२०४ से २०६,२०८.२०६,२२३ २११८,६४,६७,४१२ सू १८।२३ उ १।१७, उ १२२,६५,६६,७१,६४,१११,११२,१३८, ४१,४४,५।३६ १४०, ३१५० कल्लाणग (कल्याणक) प २।३०,३१,४१,४६ कल (कल) प ११४५११ ज १३७ सालवृक्ष ज ३१६,२२२ कलंकलीभाव (कलंकलीभाव) परा६४ कल्हार (कल्हार) प ११४६ सफेद कोइ, एक पुष्प कलंबुया (कदम्बक) प ११४६; १५:२.१८ सू ४१३, कवड (कपट) ज २११३३ ४,६,७,६१६॥२२१२,१५,१६।२३ कवय (कवच) प २१६४।२१ ज ११३७, ३१३१, कलकल (कलकल) ज २१६५, ३।२२,३६,७८,६३, ७७.७६,६६,१००,१०१,१०७,११६,१२४ ६६.१०६,१६३.१८०, ७१५५,१७८ सू १६।२३ उ ११३८ उ १११३८ कलकुसुम (कलकुसुम) प १७११२५ कवाड (कपाट) प २१८,३०,३१,४१ ज २२४; कलताल (कलताल) ज ३१३१ ३।८३,८५,८८ से १०,१०२,१५४ से १५७, कलस (कलश) प२३०,३१४१ ज २।१५) १६२,१६७।१२ ३११७८,२०६४१२८,५१५६ से ५८ कविजल (कपिञ्जल) प १७६ उ ३१५१,५६ कविट्ठ (कपित्थ) प ११३६३१, १६:५५१७११३२ कलह (कलह) प २।४१२२।२० ज २१४२.१३३ ज ३।११६; १७६ कथ कलहंस (कलहंस) प १७६ ज २०१२ कविट्ठाराम (कपित्थाराम) उ ३१४८,५५ कला (कला) ज २१६४७१३४११ सू१०।१४२, कक्लि (कपिल) ज २।१२,६५,१३३ १४७,१२।३० उ ५११३ कविलय (कपिलक) सू २०१२ राहु का नाम कलाव (कलाप) प २१३०,३१,४१:१५२६% कविसीसग (कपिशीर्षक) ज ३११४।११४ २११२५ ज ३७,८८.११७ कविसीसय (कपिशीर्षक ) ज ४१११४ कलिंग (कलिङ्ग) प १।६३११ कवीय (कपोत) प १७६ ज २१६ कलिद (कलिन्द) पश६४.१ कवोल (कपोल) ज २०१५ कलिय (कलित ) प २१३०,३१४१,४८ ज ३।१०, कव्व (काव्य) ज ३।१६७।१० १५.६५, ३१७ १२,१५,२१,२२,२८,३१, कस (कष) ज २१६७, ३११०६ ३२।२,,३४ से ३६,४१ ४६,५८,६६,७४,७७, कसरि (दे०) सू १०।१२० Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कसाय-कामभोग ८७७ कसाय (कषाय) १११११५,११४ से ६३.११ काउलेसट्ठाण (कापोतलेश्यास्थान) प १६।१४६ ५१५,७,२०५;१४।१,२,१८।१।१,२३।६८, काउलेसा (कापोतलेश्या) प १७६१२१२८११२३ १४०,१८३,१८४; २८१३२.६६,१०६।१; काउलेस्स )कापोतलेश्य) प ३९६१३११४; ३६।११ ज २११४५ १६।४६:१७१३२,५६,५७,५६ से ६१,६३,६४, कसायपरिणाम (कषायपरिणाम) प १३१२,५,१४ ६६ से ६४,७१ से ७४,७६,८१ से ८५,८७, १४,१००,१०२,१०३,१११,१६७,१८७१ कसायवेयणिज्ज (कषायवेदनीय) व २३:१७,३४, काउलेस्सट्ठाण (कापोतले श्यास्थान) प १७४१४६ ३५ काउलेस्सा (कापोतलेश्या) प १६६४६१७३६, कसायसमुग्घात (कषायस मुद्घात) प ३६६५ । ३७,११७,११८,१२१,१२२,१२५,१२६,१३२, कसायसमुग्घाय (कवायसमुद्घात) प ३६११४,५, १३६,१४४,१४५,१५१ से १५३ ६,७,२१,२२२८,३५ से ४३,४६,५३ से ५८ काउलेस्सापरिणाम (कापोतलेश्यापरिणाम) कसाहिया (दे०) प १७१ प १३।६ कसिण (कृष्ण) प २१३१ ज २२१५ काऊ (कागोती) प २१२० से २५ कसिणपुग्गल (कृष्णपुद्गल) सू २०१२ काऊण (कृत्वा) ज ३।१२ कसेरुया (कशेरुक) प ११४६ एक तरह का घास काओदर (काकोदर) प १७० कह (कथं) प २३।१११ काओली (काकोली) ११४८१५ एक वनौषधि जो किह (कथय ) कहेइ उ २०१२ अष्टवर्ग के अन्तर्गत है, जीवंती कहं (कथं) ज ७५६ चं २१४ सू ११६ उ १७२, काकंदी (काकन्दी) उ ३।१७१ ३७८ काकंध (काकन्ध) सू २०१८,२०८१३ कहग (कथक) ज २१३२ काग (काक) प १७६ कहा (कथा) उ १।१७,५७,८२,६६,१०७,१२७; कागणि (काकिणी) प १४४०१५ ज ३१६५,१५६ ३।१३,२६,१४७,१६०,४।११५१५,३८ कागणिरयण (काकिणीरत्न) ज ३।६४,१३५,१५८, कहि (क्व) प १७४ जे १७ १७८,२२० कहि (क्व) प ६९६ ज २११५ च २।२ सू १४६।२ कगणिरयणत्त (काकिणीरत्नत्व) १२0१६० काणण (कानन) ज २१६५ कहिचि (कुत्रचित्) उ ३३१०१ कातन्य (कर्तव्य) ५ ५।१६१,१७६६५६,६६, कहिय (कथित) ज ११४ च ६सू ११४ उ ११२ ७४ से ७८,८०,१११ काइय (कायिक) ज २१७१ कामंजुग (कामयुग) प ११७६ काइया (कायिकी) प २२।१ २,२२१४६ से ५०,५३ कामकाम (कामकाम) प २१४१ कामकामि (कामकामिन् ) ज २११६ काउ (कापोत) प १३१६,१७१२२ कामगम (कामगम) ज ५।४६।३;७१७८ काउं (कृत्वा) उ ३।१११४१६ कामगामि (कामकामिन्) ज २१२२ काउंबरी (काकोदुम्बरिका) १ ११३६।२ कामगुणित (कामगुणित) प २।६४।१६ काउलेस (कापोतलेश्य) प १७६२,६४,६५,१०३, कामस्थिय (कामाथिक) ज ३११८५ ११०,१११,१६८ कामभोग (कामभोग) ज ३१८२,१८७,२१८ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७८ सू २०१७ उ ११११ कामभोग (कामभोग) ३५२५ कामरुव (कामरूप ) प २०४१ काय (काक ) प २०४७ काय ( कार्य ) प १८६३११११; १५१५३,५४,५६, ५७,१६३१ से ८, १० से १५,१८,१६,२१, ५४; १८११२३३१५,१६,२०,२१,३४१११२ ज २२६७,६।१६७ १० १७४; २०१८ २०१८१३ कायपरित (फायअपरीत) प १८१०९, ११० कायगुल ( कायगुप्त ) २६३९९ कायजोग ( काययोग ) प ३६८६ से ८८,६१,६२ कायजोगपरिणाम ( काययोगपरिणाम ) प १३७ कायजोगि (काययोगिन् ) प ३६६ १३ १४, १६: १८५३२८१२८ कायfor ( कार्यस्थिति ) प १११।५, १८१११२ कायपरित ( कायपरीत ) प १८३१०६,१०७ कायपरियार (कायपरचार ) प ३४।१२ कायपरियार (काय परिचारक) १३४११६,१६, २१,२५ कापरियारणा ( कायपरिचारणा ) प ३४ । १७ से १६ कायमाई ( काकमाची ) प १३७१२ मकोय काययोग (काययोगिन् ) प १३०१७ काव्य (कर्तव्य) प ५।१३२,२२६६१४६.११० : १३११७,१५।३४, ३८, ७५, १०६१ २८।११२ ज ४।१७२ कायसत्रिय (कामत) २१० कारंडव ( कारण्ट ) ज २०१२ कारण (कारण) प ८४,६,८,१०२२०२६, ३२,६६ ज ७।२१४ १ ३६,११६, १२७; ३।११,२६ कारभरिय (कारनारिक) ३१०५ कारव (कार) कारर्खेति ज ३११३ कारवेह ज ३॥७ कारवेत्ता ( कारयित्वा ) ज ३१७ कामभोय-काल कारियल (कारवल्ली ) प ११४०२ करेना कारिया (दे०) प १२७१५. कारिल्लय (दे० ) सु १० । १२० कारेमाण ( कान्यत् ) प २१३०,३१,४१,४६,५७ ज १/४५:३११८५,२०५,२०६,२११:५।१६ उ ५।१० कारोडिय (कारोटिक) ज ३।१८५ काल ( काल ) प ११४ से ६,३४,८४२१२० से २७, ३१ से ३३,४०१८ २१४२ ४३ ४५११ २०४६,४७, ६४४११ से ४६,५६ से ५८,६५,७२,७६,८८, १५,६८,१०१,१०४, ११३,१३१,१४०, १४६. १५८,१६५,१६५,१७१,१७४,१८३,२०७, २१०,२१३, २९४, २६७, २६६,५५,७,३७,३८, ७४, १०७,१२६,१५०,१५२,१५४,१६०,१६२, १६७,२००,२०३, २४२२४४६।१ से २३, २७,४२ से ४५७११ से ४,६ से ३०११५२, ५४; १२१२४,३२,३३,१३२६:१६५०; १८३, १४, १५, २६, २७, ३७,३८,४१,४३,४५, ५७, ५६,६२,६४,७७,८३,६०,६५,१०५. १०७, १०८, ११०,११६,११७,१२० २३:४७, ६० से ६२,१०५,१६३ से १९६,१६० से २०१ २६१४, ६, ७,२०,२१,३२,३८, ५०, ५२, ५३, ६६:३६१६०,६१,६७/७१,७२,७५,७६,६३, १४ व ११२,४,५, २१ से २,६,४४,४६,५१, ५४,६६,७१,८८,८६,६१,१२१,१२६,१३०, १३१,१३३ ते १४१, १४९,१५४,१६०,१६३३ ३०३,२४,३१,३२,१२,१५,१०३,१११,१३८११, १५६, १६७१,७,१७८२२४५१.६ से १३,१८,४८,५० से ५२७१५७,६०,१०१, १०२,१८७, २१० ६.१,१०१११,४,५ २२; ८११७११:१८२५ से ३४:१६ २५ २०१७ उ ११ से ३, ७, ९,१३ से १६,२१.२२, २५ से २८,५१,६५ से ६७,७६,१३,६४,११९ से १२२, १२५,१४०, १४१, १४४, १४७,२०४, ६, ७,६,११,१६,२२,३१४ से ६,९,१२,१४,१६, २१,२४,२५,२७,४०,४८,५०,५५ से ५७,६४, Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काल-किंपुरिस ७६ ६५,६८,६६,७१,७२,७४,७५,७६,८३,८६, कालिंग (कालिङ्ग) प ११४८।४८ ज ३।११६ ६०,६५,६८,६६,१०६,१२०,१२४,१३१,१३२, कालिंगी (कालिङ्गी) प ११४०।१ १५०,१५५ से १५७,१५६,१६१,१६४,१६८, काली (काली) १११२,१३,१५,१७,१६ गे २४; १६६,४१४ से ६,१०,१६,२४:५१४,१४.२१, १५,६ २४,२५,२६ २८,३६,४०,४१ कारोदधि (कालोद) सू १६।११।१ काल (काल) सू २०१७२०८१५ कालोदहि (कालोदधि १११।२,४ काल (दे० कृष्ण) म १६।२२११६,१८,२० काय कालो) ५ १५१५५,५५५१ सू॥१ कालओ (कालतस्) प १११४८,५१,१२।७.८,१०, कागोषसमुह (कालोदामुद्र) प १६३० १०.१०.२०.०७.२२:१८। ११०,१२ १७, कादिसाय (कापिसाचनः प१७१३४ १६ से ३६,४१ से ४७४६ मे ५१, ५४ से। कास (काश, कास) प ११३७१४ सहिजन का पेड, ५६,६१ से १०,६३ मे १११,११३,११४, एक घास ११६,११७.११६,१२०.१२२.१२३,१२५ से कास (कास), २४३ १२७:३५।४ ज २६६ काम (काश) सू२०१८:२०८।४ कालग (कालक) ३३१८२,१३७,५६,८८,८६, कासपात कामपकाश) ३३५ १०७,५४६,१५०.१६०,१६३,१६,२०० कासव (काश्यप) ७।१३।३ कालगय (कालगत) अ २१८८,८६,३।२२५ कासवगोत (काश्यपगोत्र) उ ११३ उश२२,६२,२।१२,५।३६,४० कासित्ता (कातित्वा) ज २०४६ कालण्णाण (कालज्ञान) ज ३११६७१७ कासी (काशी) १ १९३१ उ १११२७ से १३०, कालनाण (कालज्ञान) ज ३१३२ १३२ कालतो (कालतस्) प १२।२०१८१३,१८,४१, काह (कथय) काहिइ उ २११३,१४३ ४३,६०,६५,२८।५,५१ काहार (दे०) ज७१३३११ कालमास (कालमास) ज २१४६,१३५ से १३७ काहारसंठिय 'काहार'सस्थित) सू१०।२७ उ ११२५ से २७,१४०।३।१४,८३,१२०,१५०, कि (किम) ५११ ज १७चं ॥ १११६ १६१,४१२४।५।२८,४०,४१ कालमुह (काल मुख) ज ३८? फि.कर (विकर) प २१३०,३१,४१ व ३१२६,३६, कालय (कालक) प ३३१८२,५१३६ से ३८,५८ से ४७,५६,६४,९२,१३३,१३८,१४५,१७८ ६०,७३ से ७५,८६,९०,१०६ से १०८,१५०, किचि (किञ्चित् ) २६४।१८ ज १७ १५१,१८१ मे १६४,१६६ से २०४,२४१ से। सू१३१४,२०,२७ २४३,१७११२६ सू २०१२ किंचिविसेशण (किचितविक्षपोन) ११४८; काललोहिय (काललोहित) ३१७४१२६ ४।१,४०,५५,६७,१६७,१६६ सू ११२७; कालहेसि (कालहेपिन्) १५१६६४,५६१,१११६७,८१ काला (काला) १३३ किथुग्ध (किंस्तुध्न) ज ७।१२३ से १२५ कालागरु (कालागुरु) ५ ६१३०,३१,४१ ज २६५; किपज्जवसिय (पर्यवसित) ष १११३० ३।१२:५७,५८ किंपहव (शिप्रभव) प ११।३० कालागुरु (कालागुरु) ज ३३७,८८ सू २०१७ किंपुरिस (frपुरुष) प १११३२,४१,४५, कालायस (कालायस) ज ३।१०६,१७८ ४५।२ ज ३१११५,१२४,१२५ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म८० किसठिय-कीलंत किसठिय (सिंस्थित) १११३० किण्हा (कृष्णा) ज ११२३,२११२ किसुय (किंशुक) ज ३।१८८ किण्हासोय (कृष्णाशोक) प १७४१२३ किसुयपुप्फ (किंशुकपुष्प) ५१७४१२६ किण्होमास (कृष्णावभास) ज ४१२१५ उ ३.४६ किच्च (कृत्य) उ १।६२ कित्ति (कोति) ज ३,१७,१८,२१,३१,६३,१७७, किच्चा (कृत्वा ) ज २१४६ उ १२२५, ३.१४; १८० उ ४।२।१ ४।२४,५२८ कित्ति (कूड) (कीतिकूट) ज ४२६३३१ किच्छ (कृच्छ) ज ३११०८ से १११ कित्तिम (कृत्रिम) ज ११२१,२६,४६, २१५७,१४७, किटिभ (किटिभ) ज २११३३ १५०,१५६ किट्टि (किट्टी) प ११४८।४ कित्तिय (कीर्तित) प १४४८१६३ किट्ठीय (किट्टिया) प ११४८।२ किन्नर (किन्नर) प १११३२,०४१ किढिण (किठिण) उ ३१५१,५३,५५,५६,६३,६४, किन्नरछाया (किन्नरछाया) प १६:४७ ६७,६८,७०,७१,७३,७४,७६ किब्बिसिय (किल्विषिक) प २०१६१ ज ३।१८५ किणा (कथं) प १५१५३ किमंग (किमङ्ग) उ १११७; ३।१०२ किण्णं (किंनं) ज ३११२४ उ १६६ किमिरागकंबल (कृमिरायकम्बल) प १७६१२६ किण्णर (किन्नर) प २।४५,४५१२ ज ११३७; किमिरासि (कृमिराशि) प ११४८६ २१०१३३११५,१२४,१२५,४।२७,५२८ ।। किर (किल) ज २१६ सू २०१६।४ किण्णा (कथं) उ ५२२३ फिरण (किरण) ज २०१५३।२४ किण्ह (कृष्ण) प०४८१६ कालीमीर्च, करौदा किरिया (क्रिया) प १३१६:१७:११,२२,२३, किण्ह (कृष्ण) प २२१ से २७ ज २१३,१४, २५,३०,३३,२२११ से ५,६ से १६,२६,२७, २१७,१२,२३,१६४,४१२६,११४,११६,१२६, २६,३०,३२ से ५०,५२ से ६३,६५ से ६६, २०१,२१५,२४०,२४१ सू १६।२२।१७ ७१ से ७४,७६,६१ से १४,६७ से ८६,१०१; २०१२ उ ३१४६ २६६१०,३६।६२ से ६४,६७,६८,७१,७७,७८ किण्हकणवीरय (कृष्णकरवीरक) प १७११२३ ज ७१५२ किण्णकेसर (कृष्णकेशर) प १७११२३ किरिया (रुइ) (क्रियारुचि) प ११०१११,१० किण्हपत्त (कृष्णपत्र) प ११५१ किरियारइ (क्रियारुचि) प १११०१११० किण्हबंधुजीवय (कृष्ण बन्धुजीवक) प १७:१२३ किलकिलाइय (किलकिलायित) ज ७।१७६ किण्हब्भ (कृष्णाभ्र) ज २१५ इकिलाव (क्लम्) किलावेंति प ३६.६२ किण्हमत्तिया (कृष्णमृत्तिका) १११६ किवणबहुल (कृपणबहुल) ज ११८ किण्हय (कृष्णक) प ११४८।६२ किलेस (क्लेश) चं १।२ सू २०६६ किण्हलेसा (कृष्णलेश्या) प १७:२१ किसलय (किसलय) प ११४८।५२ किण्हलेस्स (कृष्णलेश्य) प ३९६,१७३१,८४; किसि (कृषि) ज २३ २३।१६६ कोड (कीट) प १३५११ किण्हलेस्सा (कृष्णलेश्या) प १७।३७,११६,१२०, 1 कोड (क्रीड्) कीडंति ज ११३०,३३ १२२,१२३,१३६ Vकील (क्रीड्) कोलंति ज १११३४१२ किण्हसुत्तय (कृष्णसूत्रक) प १७/११६ कोलंत (क्रीडत्) ज ३१७८ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीलग-कुप्पर ८८१ कोलग (कोलक.) ज ५१३२ कीलण (क्रीडन) प २१४१ कोलायण (क्रीडन) उ १163 से ६६ कीस (स्मिात् ३१५७८२ कीसत (शी शता) प २८१२४,३६,४२,४५,७१ कुंकुन (ककुम) ज ३१३५ कुंकुमपुड (ककुमपट) - ४११०७ कंजर (कुमार) ब ११३७२११०१, ३१३ ; ४।२७; ५२८ कुंड (कुण्ड) म ११॥२५ ज ४।२५,४०,६७,६८, ७१,७५,६०,६२,१३४ ने २७६,१८२,१८३, १८८,१८६१६४६१८ कुंडल (वृण्डल) २१३०,२१,४१,४६.५०%3 १५०५५.? ३.६.१८,२६,६३,१८०, २११,२२२,४१२०२५३१८,२१.६७ सू १६।३१ कुंडलवर (कुंडलवर) सू १६६३१ कुंडलवरोद (कुडलवरोद) सू १६।३१ कुंडलवरोभास (डलबरावनाम) सू १६।३१,३२ कुंडलोद (कुण्डलोद) सू १६६३१ कुंत (कुत्त) प१४१ ज ३।१७८ कुंदग्ग (कुन्नार) उ २१११५,११६ कुंतम्गाह (कुताह) ज ३१७८ कुंथु (कुथु) प १२० कुंद (कुन्द) प १।३।३, २१३१,१७११२८ जरा१०.१५३1३.१२.३५, ८ ५८ कुंद (लता) (वृन्दलता) प ११३९१ कुंदरुक : (दश).२६५,३८८ एक कर __ और उन सिकी तबीयानी है कंदुरुक्क ( वा) ॥ ३०, ३ १ ज ३१७.१८८५13:५८ सू २०१७ कुंभ (कुम) ज ३,५६,१२०,१४५,७१७८ उ १६७ कुंभगत (भा प्रस्) ११०६.११० कंभिक्क (कम्भिक, भात) ज ५१३८ कुंभी (कुम्भी) ज ३१६२ कुक्कुड (कुक्कुट ! प ११५१११,१७६ कुक्कुडि (कृकुटी) उ ११६:३,८४ कुक्कुह (दे.) ११५१११ कुच्च (वर्च प ११३७५ 1 कुच्छ (कुल) कुच्छेजा ज २१६ कुच्छि (कुक्षि) । ११७५२ २१६.६३ सू २०१२ उ ३१९८५॥३० कुच्छि (कुक्षि) २०४३ अडतालीस आंगुल का मान कुच्छितिरिय (कृक्षिकृमिक) प ११४६ कुच्छियहत्तय (कुक्षिपृथक्त्वि क) प १७५ कुज्जय (ब्जा.) प १३८११ कुज्जाय ( ) ज २११० कुमा (हातल) ज ३१६,२२२ कुठायाण (कुस्थानामन) २२१३३ कुडगछल्ली (कुटज छल्ली) प १७११३० कुडगपुष्फरालि (कूट अपुप्पराशि) प १७११२८ कुडगफल (कुट फल) १७११३० कुडगफाणिय (टफाणित) प ११३० कुडभी (कुडमी) ५.४३ कुडय (कुटको पश३६।३,१६४२१७४१३० ज३३५ कुडुंब (कुटुम्व) 3 ३१११,१३,५०,५५ कुडंबजारिया (कूटम्बजागति) १११५ २४८, ०.७६,६८,१०६,१३१ कुडुमय (कर) (कुम्बादप ११४८०४३ कुक (दुण) प ११४७ कशाला (वृणाला) ११६५ लिम (दे णप) ज २११४६ कुराहार ('वृणिः'माहार) ज१३५ ते १३७ कुत्युंभार (कुस्तुमरी) प ११३६१२,३७१२ कुदंतण (कुदर्शन ) ए १११०१।१३ कट्टि (कुदृष्टि) प ११०१।११ कुपमाप (कुत्रमाण) ज २:१३३ कुष्पर (नयर) ज ३१२२,३५,३६,४५ Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८२ कुबेर-कुसील कुबेर (कुवेर) ज ३३१८६,२१७ कुभोइ (कुभोजिन् ) ज २११३३ कुमार (कुमार) उ १११३ से १५,२१,२२,२५ से २७,३१,४२ से ४६,४८,६४ से ६६,६४ से १६,१०२ से ११७,११६ से १२२,१२५, १२७,१२८,१४०,१४१,१४६,१४७,२१६,७, ६,१८,१६,३।११४,१२०५।१०,२०,२२, २३,२७,३१,३२,३४ से ३८ कुमार (कुमार) उ १८६ कुमारग्गह (कुमारग्रह) ज २१४३ कुमारावास (कुमारावास) ज २१६४,८७, ३।२२५ कुमारिया (कुमारिका) उ ३।११४,१३० कुमुद (कुमुद) प ११४६ ज ३।११७,४।१५४, १५५,२१२,२२५११,२३० कुमुददल (कुमुददल) प १४६१२८ कुमुदप्पभा (कुमुदप्रभा) ज ४।२२१११ कुमुदप्पहा (कुमुदप्रभा) ज ४।१५५११ कुमुदा (कुमुद) ज ४।१५५।१,२२१ कमय (कुमुद) ज २१५,४१३,२५,२१०१ कुमुयहत्थगय (हस्तगत कुमुद) ज ३११० कम्म (कम) ज २।१४,१५,६८,३१३;७।१७८ कुम्मुण्णया (कर्मोन्नता) प २६ कुरंग (कुरङ्ग) प ११६४ ज २।३५ कुरज्ज (कुराज्य) ज ३१२२१ कुरय (कुरब) प ११४७ लालफूलवाली कटसरैया कुरल (कुरल) प १७६ कुरा (कुरु) ज ४।१०८,१४१,१४३,२०५,२०७ ३४८,५०,५५,१००,१३३५५ कुल कोडि (कुलकोटि) ५११४६ से ५१,६०,६६, ७५,७६,८१,८१।१ कुलक्ख (कुलाक्ष) १८६ कुलक्षय (कुलक्षय) ज २१४३ कुलगर (कुलकर) ज २१५६ से ६३ कुलत्थ (कुलत्थ) प ११४५११ ज २१३७, ३.११६ उ ३३४१,४२ कुलत्था (कुलस्था) उ ३.४२ कुलदेव (कुलदेव) ज ३।११३ कुलदेवया (कुलदेवता) ज ३।१११,११३ कुलधुया (कुलदुहित) उ ३१४२ कुलमाउया (कुलमातृका) ल ३।४२ कुलरोग (कुल रोग) ज २१४३ कुलवधुया (कुलवधु) उ ३६४२ कुलविसिट्ठिया (कुल विशिष्टता) प २३।२१ कुलविहीणया (कुलविहीनता) प २३।२२ कुलारिय (कुलार्य) प १६५ कुलोवकुल (कुलोपकुल) ज ७११३६,१४१ से १४६,१५० से १५३ सू १०१६,२० से २२,२५ कुवधा (दे०) प १२४०।२ कुवलय (कुवलय) चं १५१ कुविदवल्ली (कुविन्दवल्ली) प ११४०१३ कुविय (कुपित) ज ३१२६,३६,४७,१०७,१०६, १३३ उ ११२२,१४० कुथुट्ठिबहुल (कुवृष्टिबहुल) ज ११८ कुव्वमाण (कुर्वत्) प २।३३,५०,५१,५६ कुव्वर (कूबर) ज ३।३५ कुस (कुश) प ११४२११ ज २८.६उ ३१५१,५६ फुसंधयण (कुसंहनन) ज २११३३ कुसंठिय (कुसंस्थित) ज २११३३ कुसट्ट (कुशावर्त) प ११६३१२ कुसल (कुशल) ज २१३ ३३३२,७७,८७,१०६, ११६,१३८,१७८,५३५ सू २०१७ कुसील (कुशील) उ ३।१२० २०८ कुरु (कुरु) प ११६३।२; १५१५५।३ कुरुर्विद (कुरुविन्द) प १४२।२ कुरूव (कुरूप) ज २११३३ कुल (कुल) ज ३१३,६,१७,२१,२४,३४,१०६, १७७,४।२१२,५१५,४६,५५७१२७१, १३६।१,१४१ से १४६.१५० से १५३, १६७४१ च ५।१ सू ११६१:१०६,२०,२१, २२,२५,२०६४ उ११५४,७६,१४१; Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसीलविहारी केवइय ८८३ कुसीलविहारी (कुशीलविहारिन्) उ ३।१२० १४३,२०६,२११ कुसुंभ (कुसुम्भ) प ११४५।२ ज २०३७ कूलधमा (कूलमायक) उ ३१५० कुसुम (कुसुम) प २१३१,४१ ज २११०,५३,६५, कूवग्गह (कूपग्राह) ज ३११७८ १६२, ३११२,३०,३५,८८,२२१,४।१६६; कूवमाण (कुप्यत्) उ ३३१३० ५।५,७,२१,५८ सू२०१७ केइ (केचित्) प ११४८१४१ ज २११३ कुसुम (कुसुम्) कुसुमेति ज २।१०४।१६६ केउबहुल (केतुबहुल) ज २०१२ कुसुमसंभव (कुसुमसंभव) ज ७११४१२ केउभूय (केतुभूत) ज २०१२ सू १०११२४१२ केऊर (केयूर) ज ३१६:५।२१ कुसुमासव (कुसुमासव) ज २।१२ केषकय (केकय) प ११८६ कुसुमिय (कुसुमित) ज २।११;७१२१३ केणइ (केनचित्) पू १३३५ कुसेज्जा (कुशय्या) ज २६१३३ केतकि.पुड (केतकीपुट) ज ४११०७ कुहंड (कुष्माण्ड) ज २०४१,४७।१ केतु (केतु) प २।४८ कुहंडियाकुसुम (कुष्माण्डिकाकुसुम) प १७।२७ केमहालय (नियत्महत) ज ११७;७।२६ से ३० कुहण (कुण) प १।३३।१,११४७ केमहालिय (वियत्महत ) प २११३८,४० से ४२, कुहर (कुहर) ज २६५ ४८,६३ से ६६,६६ से ७१,७४,८४ से ६३ कूड (कट) प २।११५१५५।३ ज ११३४,३५,४१, केयइ (केतकी) प ११३७१५,११४३।१ ४६।१२।१३३;४।४४ से ४६,४८,५३,७६, केयइअद्ध (केकयार्द्ध) प ११६३६ ६६,६७,१०५,१०६,१५६११,१६२ से १६५, केयूर (केयूर) ज ३।२११ १६७,१६६,१७२।१,१८०,१८६,१६२,१६८, केरिस (कीदश) सू २०१७ २०४,२१०,२१२,२३६ से २४०,२६३,२६६, केरिसिय (कीदृशक) प २३।१६५,१६६,१६६ से २७५,२७६,५।१६ से ८,१३,६१६:१,६।११, २०१ ज ११२१,२२,२६,२७,२६,३३,४६,५०% १६;७५८ सू १९२६ २।७,१४,१५,१७,१८,२०,५२,५६ से ५८, कासामली (कूटशाल्मली) ज ४१२०८ १२२,१२३,१२७,१२८,१३१ से १३३,१३६, कूडसामलोपेढ (कूटशाल्मलीपीठ) ज ४१२०८ १४७,१४८,१५०,१५१,१५६,१५७,१५६, कूडागार (कूटागार) ज २१२० १६१,१६४,४१५६,१००,१०१,१०६,१७०, कूडागारसाला (कूटानारशाला) उ ३१८,२६,६३, १७१ उ १२७ केरिसिय (कीदृशक) प १७११२३ से १२८,१३०, कूडाहच्च (कूटाहत्य) उ ११२२,२५,२६,१४० कूणिय (कणिक) उ ११० से १२,१४,१५,२१, केलास (कैलाश) ज ३११८६,२१७ २२,६३ से ७४,८८,८६,६१ से १५,६८ से केलास (कैलाश) सू २०१२ राहु का नाम १२६,१३१,१३४,१३६,१४०,१४४,१४५;२।४, केलि (केलि) प २१४१ ५,६,१६,१७,५११६ केवइ (क्रियत्) प ७।६।३६१६०,६१,७५ कूर (कर) उ ३११३० केवइय (वियत्) प ५८२,६१३,१२।११,१२, कूल (कल) ज ३।१४,१५.१८,५१,५२,६६,१४६, १५।३२,२०१११, ३६।४४ ज १११७:२२४, १५०,१६१,१६४,४१३,२५,६४,८८,११०. ४४,४५,४।२५७, ६७,८,१०,११,१५ से Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८४ केचिर-केवनिसमुग्याय १८,२३ से २५, ७११,३ से २५,३२,५४,५७, केवल (केवा) प २०११७,१८,२६.३४ अ २०७१, ६०.६२ ६४ से ७३.७६७६ से ८२,८६ से ८५३।२२३, १३५११,१८५ सू १८१२३ १६,९८ मे १००.१२७,१७० से १७२,१७४, केवल एप्प (के ) प ३६८११२६,२६, १८२.१८७,१६८,१६६,२०१ से २०७ ४३,५,६४,१२,१३३.१३८,१४५,१७५, चं १,३१२ ग १।६।१:१।७१२ उ ३.१६, १८५,१८८,२०६,२११5215६१ १२४,१६४ केवल (माण) (के ज्ञान) प ९१७ केवचिर (यच्चिरं) प१८१ से १०,१२ से ३७, केवलणाण (केद, ज्ञान) १६.४.१३,५:२४, ४१ ४५,४६ से५१,५४ मे ८२,८४ मे २०. १०२,१०,११,११११३; २०१८,३३; १३ मे १११,११३,११४,११६,११७.११६, २६२३०१२ १२०.१२२,१२३,१२५ मे १२७ ज ७१२१० केवलणाणारिय (केनिज्ञाना) १९६ केवति (कियत्) ५७।१ से ४,६ मे ८,१० से ३०ः केवलणावादरणिज्ज (केवलज्ञानावणी} २८।१।१,२८१४,२६,३८,५०,३६।६७,७१,७२, १२३४२५ केवलणाणि (केशरज्ञानिन ) ३१०१,१०३; केमिय (कियत्) व ४१ मे ४६,५६ मे १८,६५, ५।१,११८,११६:2318:१८१८२; ७२.७६,८८,६२,६८,१०१,१०४,११३,१३१, २८।१३६,१४०, ३०१,१ १४०,१४६,१५८,१६५,१६८,१७१,१७४, केवलदसण (केवलदर्शन) प ५१२८१२,१०५, १८३,२०७,२१०,२१३,२६४,२६७,२६६, १०७,११६; २६१३,१७, ३०।३,१७ ५१४,६,६,११,१७,२३,२७,२६,३१,३३,३६, केवलदसणावरण (केरलदर्शनाःण) प २३।१४ ४०,४४,४८,५२,८५,६२,१००,१०३,१०६, केवलदसणावरणिज्ज (केवलदर्शनावणी:) ११०,११४,११५.१२८,२३१,२४१,६।१,२, प२३२२८ ४ से २३,२७,४३ से ४५,६० से ६४,६७,६८; केवलदंसणि (केवलदर्श निन्) ३.१०४:५।१२०%, १२.७ से १०,१३,१५,१६,२०,२१,२३,२७, १८८८,३०१६ ३१.३२,१५७,८,१४,१५,२२,२३,२७,४०, केबलादिछि (केवर दृष्टि) १२१६४।१३ ४१,८३ से ८५,८६,६१,६४ से ६८,१००, केवलनाण (केवलज्ञान) प ५१०५ १०३ से १०६,१०८,१०६,११३ से १२०, केवलनाणपरिणाम (केवलज्ञानपरिणाम) प १३१६ १२३,१२६,१२७,१२६,१३१,१३२,१३५, केबलनाणि (केवाज्ञानिन्) प ५११६ १३६ से १४१,१४३,१७.१०६,१०८,११०, केलकोहि (केवर चोधि) उ ५१४३ १४२,१४३; २०१६,१०,१२,१३; २३१६० से केवलि (केनि ) पश१०४,१०८,१२१,१२६; ६२,३३१२,३,१०,१२,१३ १५ से १८; १८१६,६६,६७,६६;२०१७,१८,२२,२५,२८ ३४।१३,३६।८ मे २२,३० से ३४,४४ से २६,३४,४५,३०२५ से २८,३६८२,८३, ४७,५६,६६,७०,७३,७४ ज ७१७३३ ८३१२ ज २६३,७१, ३।२२४,२२५ सू ११२०,२२,२३,२६,२८ से ३१२३; ३३१४,५,८,१०:१२१२ मे १४,८, केबलिपरियाय (केलिपर) जरा८८,२२५ १५२ से ७:१८१४ मे ६,६,१०,१२,१३,२०, केलिय (क ) ५३६१११ २५ मे ३४; १९१४,५,७,८,१०,११,१४,१५, केलिसमुरघाय (के वलीसमुद्घात) प ३६.१३७ १८ मे २१,२५,३०,३१,३४,३५,३७,३८ ११,१५ मे १७,३१.३४,३५,८१.७६.८... Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केस-कोडिग ८८५ कोट्ट्य (कोष्ठक) उ ३१६,१२ फोठ्ठसमुग्ग (कोठसमृद्ग) ज ३।१११३ कोट्ठसमुग्गयहत्यगय (हस्तगतकोप्टममुद गक) ज ३।११ कोट्ठागार (कोप्ठागार) ज २१६४ उ ११६६,६४, केस (केश) प १३१ ज २११३३,३।२६,३६,४७, १२,११६ केसवठिअणह (केशापस्थितनख) ज ६।१३८ केस (कीदृश) ३।१२२ केसर (केस) प ११४८।४५,४६ ज ३।२४:४१३, ७,२५७१७८ केसरिइह (केसरिद्रह) ज ४२६२ केगलोय (केश-नोच) ३५४३ केसि (केशि) उशना२९ केसुय (fid.) ३१५ कोइल (काल) १५:३।३५ 3 ५५ कोइलच्छदकुसुम (पिछदकुसुम) प १७१२५ कोइला (विला) १७६ होउय ( क) MIR,3,८२,८५,१२५,१२६, ०२२७१।१६०,१२१३।११।१७ कोउहल कौतुहल ज १३२ कोऊहल ( ह) ग ५१२६ कोऊहरूवत्तिय (कौतुहल प्रत्य) ज २७ कोणग (कोकण) पश८६ कोंच (क्रौञ्च) प ११७६,८६ उ ५५ कोंचारव (क्रौञ्चारब) ज ३८६,१०२,१५६,१६२ घोंचस्तर (क्रौञ्चस्वर) ज २।१६,५।५२ कोंडलग (कुण्ड रक) २०१२ कोत (कुन्त) १३,३५ कोतिय (दे०) ज २१३६ लोमड़ी कोणद (कोकनद) प ११४६,११४८१४४ फोकासिय (दविकसित) ज ३११०६ कोकुइय (कांकुचिक) ज ३१७८ कोक लिय (द) ११६६,११५२१,२३ कोज्जय (कुमक) ३।१२,८८,२१५८ कोटेज्जमाण (कुटन) ज ४।१०७ कोट्टणी (दे०) ३१३२ कोट्ठ (कोष्ठ)ज ३।३२ कोट्ठग (कोष्ठक) प २३०,३१,४१ कोयुड (कोप्ठगुट) ज ४११०७ १. हे ० १।२६ कोडाोडि (काटिकाटि) प २१४६,५०,५२,५३, ५५,५६,६३ ; १२२७,३२,१८१४२,४४,४६, २३१६० से ६४,६६,६८,६६,७३ से ७७, ८१,८३,८५ से १२,६५ से १६,१०१ मे १०४,१११ से ११४,११६ से ११८, १२७,१२६ से १३१,१३३,१७६,१७७, १८२,१८३,१८६,१८७,१६० ज १६, ५१,५४,१२१,१२६,१५४,१६०,१६३,७११, १७० कोडि (कोटि) प २३०,४६,५०,५२,६२,६३,६४ ज ११२०,२३,४८,०६, ३।२४,१७८,२२१; ४११,२१,५५,६२,८१,८६,६८,१०८.१७२, ५६८ से ७०६८।१७।१। १ १।१४,१५, २१,१२१,१२२,१२६,१३३,१३६,१३७,१४०; ५११० कोडिकोडि (कोटिकोटि) यू १८१४१६६१११,५१३, ८।३,१११४,१५१४,१६।१६,२११५,८, १६।२२।३.१६।३१,३५,३८ कोडिगार (कोटिकार) प १९७ कोडो (टि) सु १६५१४,१५।१,१८,२११२ फोडीवरिस (कोटिव) ५११६३१५ कोबिय (नट म्बिक) प १६४१ उ १।१७,१८, ६२,१२३,१३१,३१११,१०१४।१६,१७, ५।१०,१५,१६,१८ होतुक (कौतुक) मू २०१७ कोत्तिय (दे०) उ ३.५० कोत्थंभरि (कुस्तुम्बरी) ज ३१११६ कोत्यलवाहग (दे०) १५५० कोदंडिम (कुदण्डिम) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८, Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८६ कोदुसा-खंडाभेद कोसागार (कोशागर) ज ३१८१ कोसिय (कौशिक) ज७१३२१३ सू १०११११ कोसेज्ज (कौशेर) ज ३१२४१३,३७.१,४५११ १३११३ कोह (क्रोध) प १११३४११,१४१३,५,७,६,११ से १५,१७,२२।२०।२६।६,३५,७० से ७२,१८४ ज २।१६,६६,१३३ उ ३१३४ कोहकसाइ (क्रोधकतान्)ि प ३६८,१३,१४, १६; १८१६५, २८१३३ कोहकसाय (क्रोधकषाय) प १४११,२ कोहकसायपरिणाम (क्रोधकषा परिणाम) प १३।५ कोहकसायि (कोधकषानिन ) प ३९८ कोहणिस्तिया (क्रोधनिश्रिता) प ११:३४ कोहसंजलना (क्रोधसंज्वलन) १२३।६६,१४० कोहसण्णा (क्रोधसंज्ञा) प ८.१,२ कोहसमुग्धाय (कोधसमुद्घात) ५३६।४२,४४ से ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ कोदूसा (कोरदूष?) ५११४५।२ कोद्दव (कोद्रव) प ११४५२ ज २१३७,३।११६ कोद्दाल (दे०) ज २१८ कोमल (कोमल) ज २।१५; ३।१०६,२८८ उ ३६८ कोमुई (कौमुदी) ज २११५ कोरंट (कोरण्ट) ज ३।१७८,५१५८ कोरंटय (कोरण्टक) प १३८।१ ज २।१०; ३।१२,८८ कोरग (कोरक) ज २१२ कोरव (कौरव्य) ५११६५ कोरेंटमल्लदाम (कोरण्ट माल्यदामन ) प १७११२७ कोलठिय (कोलास्थिक) सू१०।१२० कोलव (कौलव) ज ७११२३ से १२५ कोलसुणग (कोलशुनक) प ११६६ ज २॥३६,१३६ कोलसुणय (कोलशुनक) १ १११२१ कोलसुणिया (कोलशुनिका) प ११।२३ कोलालिय (कौलालिक) प १०६६ कोलाह (कोलाभ) प १९७० कोलाहल (कोलाहल) प २१४१; ज २११३१ कोस (क्रोश) प ३६८१ ज १७,३५,३७,४२,५१, ४१७,६,१४,१५,२४,३१,३३,३६,३६,४१,४३, ४६,५६,६६,६८,७०,७२,७६,६३,११२,११४, ११५,११६,१२०,१२२,१३४,१३७,१४७, १५३ से १५५,२४२,७१७७१३,२०७ सू११४,१८,११,१२ कोस (कोष) ज २१६४,३१३,१७५, ४१६७।१७७ उ ११६६,६४,६८ कोसंब (कोशाम्र) प ११३५११ कोसंबी (कौशाम्बी) प ११६३।३ कोसल (कौशल) प ११६३१२ कोसलग (कौशलक) उ १११२७ से १३०,१३२ कोसलिय (कौशलिक) ज २६३ से ६७,७३ से ८२,८६ से ६० खइरसार (खदिरसारक) प १७।१२५ खओवसमिय (वायोपशभिक) प ३३११ खंजण (खजन) प १७:१२३ खंजण (दे०) सू २०१२ राहु का नाम खंजणवणाभ (खजनवर्णाभ) सू २०१२ खंड (खण्ड) प १३१२५; १७४१३५३३११३ खंड (खण्टा __ ज २।१७, ६।६।१,६७ उ १।१४,१५,२१ खंडग (खण्डक) ज ४।१७२।१,६७ खंडगप्पवायगुहा (खण्डप्रपात गुफा)ज ३१५४,१६१ खंडप्पदायकूड (खण्डप्रपातकट) ज १।४१ खंडप्पवायगुहा (खण्डप्रपातगुफा) ज १।२४; ३।१४६,१५०,१५५ से १५७,१५६ से १६१ ४।३५, ६।१६ खंडप्पवायगुहाकड (खण्डप्रपातगुहाकट) ज ११३४ खंडय (खण्डक) ५११६७४ खंडाभेद (खण्डभेद) प १११७६ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संडाभेदस्वाम खंडाभेव (खण्डभेद ) प ११।७२,७४ खंडिय ( खण्डित) ज ७१३४११ खंति (अन्ति) ज २२६४,७१३११०१ तं (क्षन्तुम्) ३११२६ (स्कन्द) ज २३१ दग्गह (स्कन्दग्रह) ज २०४३ लामे ज ३।१२६ खम (क्षम) ज २६४ खंध ( स्कन्ध) प ११४,३५,३६,४७११,१२४८१२, २२,३२,३६; ३।१७६ ५११२५, १२७,१३४, १३६.१३८, १५४,१६६,१६६,१७२,१८१,२२७ से २३२,१०१७ से १४; १०११४ ५, ६ ; १३।२२।१ १६ ३६,४३ ३०१२६,२६ खमा (क्षमा) ज ३।१०९ खय (क्षय) प ३३|१|१ ज ३११२३ उ १३१३६ खयकर (क्षयकर) ज ३।११७ ज ३११८,७८,९३,२१२,२१३ : ४११४६ : ५/५ ; खर (खर ) प १३१८, २०११ १६ से २० ज २११३३ खरमुही ( खरमुखी) ज ३०१२,२१,७०,१००,२०१ खरय (दे०) सू २०१२ राहु का नाम खरोट्ठी (सरोष्ट्रिका खल (खल) ज २१६६ खलंत ( स्खलत्) ज २११३३ १२६ ७ १७८ उ १।६७, १२१,१४०, ३१११४ खंधावार ( स्कन्धावार) प ११७४ ज ३।१८,२८, ३१,३२१२,४१,४१,५२,६१,६१,८१,८८, १५, १०१,११५ से ११७११६,१२१०१,१२२, १२४,१३१,१३५,१३७, १४१,१५१,१५८, १६४,१६७।२,१७२,१८० ११११५.११६. १२३,१३४ खंभ (स्तम्भ) ज १।३७ : ३१६६ से १०१,१६३; ४६, २६, २७, ३३, १२०, १४७,२१६,२४२, ५१३,४,२८,३२ सू २०१४ खंभच्छाया ( स्तम्भछाया) सू ६१४ खग्ग ( खड्ग ) प ११६५ २४६ ज ३।३१ ४२००११ खगपुरा (खगपुरा ) ज ४।२१२,२१२२४ खम्गरयण (सड्गरत्न ) ३१०६ खचिय ( खचित) ज १।३७ ३१२११५५८ खज्जग ( खाद्यक ) उ ३११३० लग (०) २०११४ खजूरसार (खर्जुरसारक ) प १७।१३४ खज्जरी ( खर्जूरी ) प ११४३१३ खज्जूरीषण (खर्जूरीवन) २६ खट्टोदय ('खट्ट' उदक ) प ११२३ खड्डाबहुत ('खड्डा' बहुल) १११८ खण (क्षण) ७११२ १०११२६५ खण ( खन् ) खर्णति ज ५ १३ खणित्ता (खनित्वा) ज ५।१३ खतय (दे०) सू २०१२ राहु का नाम खत्तमेघ ( 'खत्त' मेघ) उ २।१३१ ८८७ खत्तिय (क्षत्रिय) ज २१६५ ५३५, ४६ (खम (क्षम् ) खमई ज २१६७ खमंतु ज ३।१२६ खलु ( खलु ) प ११४८५२६८०२११७/१५०, १५२,१५५; २३।३,६३६१८२ १ ४६ १।१२ १५ २१२३१२४१२५३२ खल्लूड ( खल्लूट) प १२४८७ खन (क्षपत्र) खवे १९२२ खवइत्ता (क्षपयित्वा ) प ३६।९२ म (क्षपम्) सवयति ३६।२२ सवेद १९।२२।१८ सवेति प ३६४१२ खवय ( क्षपक) प २३११९१,१६२ खवल्लभच्छ (दे० ) प ११५६ सता (क्षपवित्वा) प ३६।१२ खस (खस) प ११८६ खसर ) ससर) ज २१३३ सहचर (सेर) प ११५४,७७,६१३३१८३३ ४।१४९ से १५७६ ६७१,७६,७८, ९४२११८, १७,३५,४७,५३,६० ज २।१३१ खाइम (खाद्य) उ ३।५०, ५५, १०१,११०,१३४; ४:१६ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८८ खाइय-खेत्त खाइय (खादित) उ ११५१,५४,७६,७६ खाणु (स्था) जे १३६४।२७७ खाणुबहुल (स्थाणुबल) १।१८ खात (खात) प २१३० खाय (खात) प १३१,४१ ज ३३२ खार (क्षार) प १७६ खारतउसी (क्षारयुपी) प १७११३० खारतउसीफल (क्षारत्रपुपीफल) प १७१३० खारमेघ (क्षारमेघ) ज २१४२,१३१ खारोदय (क्षारोदक) प ११२३ खासीय (खाशिक) प ११८६ खिखिणी (किंकणी) ३१३५ अखिल (खिन) खिसति उ ३।११७ खिज्जिमाण (खिस्यमान) उ ३३११८,१२३ खिप्पामेव (क्षिप्रमेव) प २८।१०५; ३४।१६,२१, २४ ज २१६५,६७,१०१,१०५,१०७,१०६, १११११४,११५,१४१ से १४५, ६७,१२, १५,१८.१६,२१,२५,२८,३१,३२,३८,३८, ३६ ४६,४६,५२,५३,५८,६१,६२,६६,६६, ७०,७४, ७७,८०,८३,६१६६.६६.१००. ११५.११८.१२१.१२४,१२८,१३२.१८१, १४२१४३,१६० से १६१.१६८,१७३.१७१ १८०,१८१.१८३,१६१.१६६.२०७.१९२, २१३,५१३,७,१४,१५२५,२८,५४,६८ रो खीरोद (क्षीरोद) ज २६७,६८ खीरोग (क्षीदक) जरा९७ से १००,१११, ११२:५१५५ खीरोदय (क्षीदक) ग ११२३ ज ५१५५ खीरोदा (क्षीरोदा) ज ४२१२ खीरोया (धीरोदा) ज ४ा२१२ खोलग (कीलक) ज ७।१३३१३ खीलगसंठिय (कीलकसं स्थित) सु १०।४८ खोलच्छाया (कीलछायः) सूहा। खोलिया (कीलिका) प २६१४५.६८ खु (खलु) ल ३।२४ खुज्ज (कुटज) प १५.३५२३।४६ ज ३११११,८७ खुज्जा (कुटजा) १:१६ खुड्ड (९) प ३६१ ज १७, ४१६०,८३,११३ खुड्डग (शुद्रक) ज४।१३६ खुड्डार (शुदतर) ज ४१५४ खुड्डाग (क्षुद्रक) प १८९५ खुड्डाय (धुक) सू १।१४ खुड्डिया (धुद्रिका) ज ४।६०,८३,११३ खुभिय (अमित) २०६५ खुर (बु.) ३१३०, ११७८ खुरप (अरप्र) प २१२० से २७; १५२५ ज ३१३० खुल्ला (क्षुल्लक) ५१।४६ खुहा (क्षुधा) ३१२२१११३.१२८ खेड (खेट) प ११७४ ज २१२२,१३१, ३।१८,३१, ८१,१८०,१८५,२०६,९२१ उ ३३१०१ खेडग (खटक) ३३५ खेडय (खेटक) ३१३१ खेड्डकारग (खलकारक.) ३११७८ खेत (क्षेत्र) प २६८,३३११२१२१३२, १४१५, १४११८११५१५२,१७४१०६ से १११; २८।२०,३२,६६,३३१२,३,१०,१२,१३,१५ से १८; ३६:५६,६०,६६ से ६८,७० से ७४ ज१६३१३, ७२० से २५,२६,५२,५४, ७६ में ८२,६५,९६ सू १११४; २१३,३।१; खीण (क्षीण) २१६३१२२५ खीणकषाय (क्षीण पाय) प ११०२,१०४ स ११०,११५.११७ से १३ खोर (खीर) प ११४२११ लोकी खीर (वीर) प १५०५५।११।११६,१२८ सू १०१२० उ ३.११४,९३० खीरकाओती (श्रीरकाकोली) १११४१५ खीरपूर (क्षी पूर) प १७१२८ खीरमेह (श्री मेघ) २२१४२,१४३ खीरवार ) सू १६६३१ खीरिणी (बोरिणी) ११३५२ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेत्तओ-गंध ८८६ ६.१; ६।१:१०१४,५,१७३; १९२२॥२५. प६.११८ खेत्तओ (क्षेत्रतस्) १११।४८,५०,१२१७,८,१०, गइपरिणाम (गनिरिणाम) प १३१२३ १२,१६,२०,२७,३२; १८१३,२६,२७,३७,३८, गइप्पवाय (गतिप्रपान) '१६।१७,५५ ४१,४३,४५,५६,६४,७७,८३,१०८,११७; गइरइय (गति रतिक) ज ५५,५८ २८१५,५१, ३५१४ ज २६६ गंगदत्त (गङ्गदत्त) उ ३।१३,१६० खेत्ततो (क्षत्रतस्) प १८।१०,६२,६५ गंगष्यवायकुंड (गंगाप्रगानण्ड) ज ४।२५,२६,३१, खेत्ताणुवाय (क्षेत्रानुपात) प ३।१२५ से १७३, १७५,१७७ गंगा (गंगा) ज १११८,२०,४८,२१६१,१३३, खेत्तारिय (क्षेत्रार्य) प ६६२,६३ १३०, ३११,१४,१५,१८,१४१,१४३ से १५१, खेत्तोववातगति (क्षेत्रोपपानगति) प १६१२५ खेत्तोववायगति (क्षेत्रोपपातगति) प १६१२४ ३६,१६७,१७,२७४; ५५५६।१६ से ३०३२ सू २०१७ उ १९७३०५१,५६,६८ खेम (क्षम) प २१३०,३१,४१ गंगाकुंड (गंगाकुण्ड) ज ११५१४।१७५१७६ खेमकर (क्षेमकर) जरा५६,६० सू२०१८,२०१८७ गंगाकड (गंगाक्ट) ज ४।४४ खेमंधर (क्षमंधर) २१५६,६१ गंगाकूल (गंगाकूल) उ ३.५० खेमपुरा (क्षमपुरा) ज ४।१८१,२००।१ गंगादीव (गंगाद्वीप) ज ४१३१,३२ खेमा (क्षमा) ज ४।१७७,२००१ गंगादेवी (गंगादवी) ज ३।१४०,१४१,१४३,१४५, खेल (श्वेल) प १८४ खेल्लणग (खेलनक) उ ३।११४ गंगावत्त (गंगावतं) ज २११५ खेल्लणय (खेलनक) उ ३।१३० गंगावत्तणकूड (गङ्गावर्तनकूट) ज ४।२३ खेवणी (शेपणी) ३३१ गंज (गजा) ११॥३७५ खोत (क्षोद) प १५१५५११ गंठि (प्रन्थि) प ११४१३८ ईख खोतोदय (क्षोदोदक) प ११२३ खोदवर (क्षोदवर) सू १६६३१ गंड (गण्ड) प १६५:२२५० ज ४।१३,५१६७; खोदोद (क्षोदाद) सू १६।३१ 15८ खोद्दाहार (क्षौद्राहार) ज १३५ से १३७ गंडतल (गण्डतल) ५२१३०,४६ खोम (क्षीम) ज ४।१३; ५१६७ सू २०१७ गंडयल (मण्डतल) प २३१४१ खोमिय (क्षौमिक) सु २०१७ गंडलेहा (गण्डरखा) २०१५ गंडीपद (गगडीपद) प ११६२ गंडीपय (गण्डीपद) प ११६५ गइ (गति) ए ४८ ज ११५,७१,१३३,३३, गंडूयलग (गण्डमदर) प १४६ १३८,१७८,५१२१, १२१,२५,५५,५८,८१, गंता (गत्वा) ग ११७२३६।३२ ज ३।२५.३८, १७५,१७८ च ४११ सू११६,१।८।१; १६२२१२२ गंतूण (गत्वा) प २१६४।२,३ गइकल्याण (गति वाल्याण) १८१ गंध (गन्ध्र) ध ११४ ३ ०१,४१,४६; गइनामणिहताउय (गतिनामनिधत्तायुष्क) ३११८२७५११०,१२.१४.१६.१८,२०,२४,२८, Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६० गंधओनाच्छ ३०,३२,३४,३७,३६,४१,४५,५३,५६ ५६, ६१.६३,६८,७१,७४,७६,७८,८३,८६,८६, ९१ ९३,६७,१०१,१०४,१०७.१०६,१११, ११५,११६,१२६,१३८,१५०,१५२,१५४, १६०,२०७,२११,२१४,२२८.२४२,२४४; १०॥५३।११११५५,१५३८,४२,१५१५५१२ १७१११४११,१७:१३२ से १३४; २३।१५ १६. १६,२०,१६०,२८१२०,३२,६६,३६८०,८१ ज ११३,२१७,१६,१८,१२०,१४२१६४, २११:३१३,७.६.११.१२,२१,३४.७८,८२, ८५,८८.१०६,१८०,१८७,२०६,२११,२१८, २२२,४।८२,१०७,१०६:५।५,७,२२,२६, ३२,५५,५८,७।२०६ सू २०१७ उ ११३५; ३१५०,११०।५।२५ गंधओ (गन्धतस्) प१५ से६१११५६२८१८, २०,२६.३२,५४,५६ गंधकासाइय (गन्धकासायिक) ज ३।६,२११,२२२; ५५८ गंधचरिम (गन्धचरम) प १०१४८४६ गंधट्टय (गन्धाट्टक) ज ५११४ गंधणाम (गन्धनामन्) प २३॥३८,४८,१०६,१०७ गंधतो (गन्धतस्) प १७ सेह गंधदेवो (गन्धदेवी) उ ४।२१ गंधदधुणि (गन्धध्राणि) ज २११२ गंधपज्जब (गन्धपर्यव) ज २१५१.५४,१२१,१२६, १३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ गंधपरिणाम (गन्धपरिणाम) प १३१२१,२७ गंधमंत (गन्धवत् ) प १११५.२,५५,२८१५,५१ गंधमायण (गन्धमादन) ज ४।१०२,१०४ से १०८, १६२,२०४,२१५ गंधमायणकूड (गन्धमादनकूट) ज ४११०५ गंधवट्टिभूत (गन्धवर्तिभूत) प २।३०,३१,४१ ज ३७,८८,१८४,१६३,५५७ सू २०१७ गंधवाट्टिभूय (गन्धवतिभूत) ज ५७ गंध (वासा) (गन्धर्षा) ज ५१५७ गंधव (गन्धर्व) प १११३२,२१४१,४५,६१८५ ज ३।११५.१२४,१२५७।१२२।३ सू१०१८४१३ गंधव्वछाया (गन्धर्वछाया) प १६१४७ गंधवलिवि (गन्धर्व लिपि) प १९८ गंधव्वाणीय (गन्धर्वानीक) ज ५१४१,४४ गंधहत्थि (गन्धहस्तिन) उ ११९६ से १६,१०२ से २ १११२१ गंधादेस (गन्धादेश) प ११२०,२३,२६ २६,४८ गंधावइ (गन्धापातिन) ज ४२६६ गंधावइवट्टवेयड्ढपव्वय (गन्धापातिवृत्तवैतादय पर्वत) ज ४।२६२ गंधावति (गन्धापातिन् ) प १६।३० गंधाहारग (गन्धारक) प १३८६ गंधिल (गन्धिल) ज ४।२१२,२१२।३ गंधिय (गन्धिक) प २।३०,३१,४१ ज ३१७,१२, ८८,२११,२२१,४।२६,५१७,५८ उ ३।१३१ गंधिलाबई (गन्धिलावती) ज ४११०३,२१२, २१२१३ गधिलायइकर (गन्धिलावतीकूट) ज ४।१०५ गंधोदग (गन्धोदक) ज ५७ गंधोदय (गन्धोदक) ज ३१६,२२२ गंभीर (गम्भीर) प ११५१:२१२० से २७,३०,३१, ४१ ज २०१५,६८,३१३५,१३८।१,४।३,१३, २५:०२२ से २४७।१७८ सू २०१७ गंभीरमालिणी (गम्भीरमालिनी) ज ४।२१२ गगण (गगन) ल ११२६,२।६८,३।१७८,४।४६ गगनतल (गगनतल) प २१४८ ज ३३१७८,५१४३ गग्गर (गद्गद) ज १७८ गच्छ (गम् ) गच्छ ज ३१८३,१७० उ ११५४ गच्छइ ज ४।२६८ २७४; १२२,२६,७।२० से २५,७६ से ८४,९५६८ से १००,१३५; ७।१३५११ च ११ सू ११६११ गच्छं ज ३।१५४,१७० गच्छति प ६१६६.१०५, ११०,३६३८३ ज २१४६,७१३६ से ४८ गच्छति प १६३४,४१,४२,४४,४५,४७,५१, ५४,३६.८२,८३।१ सू २१२ Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गच्छमाण-ब्भवतिय ८९१ गच्छह ज ३।१२५,१२७ उ ११४४ गच्छामि गत (गत) प २१३०,३१,६३ ; १७१०७,१५१, ज २०६०,३१२६,३६,४७,५६,१३३,१४५; १५४,२११५२,५५,७७,३४१२०,३६१८३१२, ५।२२ उ १:१७,३।२६ गच्छामो ज ३।१३८; ३६।८६,८८ सू २१३,६।३; १३७,६,१२,१४ ५१३ गच्छाहि ज ३।७६,१२७,१२८,१५१ से १६:२०१७ गच्छिहिइ उ १११४१;३।१८,४।२६,५१४३ गति (गति) प ३३१११,३१३८,३६१०१५३११ गच्छिहिति ज २११३५ से १३७ गच्छेज्ज १६.३६,४०,४३,४६,५५,१७।११४।१; प ३६९१ १८।१।१२३३१३ से २३, ३६८३१२ सू गच्छमाण (गच्छत् ) सू २२, २०१२ २।३१५।१,३७,१८१८ गच्छित्ता (गत्वा) ज ५११४ गतिचरिम (गतिचरम) १०३१ से ३३ गज्ज (गर्ज ) गज्जति ज ५१७ गतिणाम (गतिनामन्) प २३१३८,३६,८१ से गज्जिय (गजित) ज ३.१०४,१०५७११७८ ८४,१४६,१४८,१४६,१७१,१७२ गड्ड (गर्त) ज २१३८,१३१३१८८ उ ३१५५ गतिणामनिहत्ताउय (गतिनामनिधात्तायुष्क) गढिय (ग्रथित) उ ३११४,११५,११६ प६११६,१२२ गण (गण) प २१३०,३१,४१,४८,६० से ६३; गतिपरिणाम (गतिपरिणाम) प १३१२,३,१४,१६ २१६४११५ ज ११३१, २।८,१२,१३,२०,३६ से २१,२३ ४१,६४,४।३,२५ सू १६।२२।१०,२१, २०१६।४ यतिमाता (गतिमात्रा) सू १५१५ से ७ उ ४।११,५१५ गतिरतिय (गतिरतिक) सू १६२३,२६ गणग (गणक) ज ३।६,७७,२२२ गतिसमावण्ण (गतिसमापन्न) सू१०।१७०,१५।५ गणणा (गणना) चं ११३ गणधम्म (गणधर्म) ज २।१२६ गतिसमावण्णग (गतिसमापन्नक) सू १६।२३,२६ गणनायग (गणनायक) ज ३१६,७७,२२२ गत्त (गात्र) प २१३१ ज ३।६,२२२,४।१३; गणराय (गणराज) उ १।१२७ से १३०,१३२ १५७।१७८ गणहर (गणधर) प १६१५१ ज २।७३,६५,९६, गद्दभ (गर्दभ) प ११६३ १०० से १०२,१०४ सू २०१६।४ गब्भ (गर्भ) प ६।२६, १७/१६६,१६७,१६६ गणहरचियगा (गणधरचितका) ज २११०५ से से १७२ ज २१८५,३१३ उ १५० से ५२, ११२,११४ ५४,७४,७६,७७,७९ गणावच्छेइय (गणाव च्छेदक) ५ १६:५१ गम्भवक्कंतिय (गर्भावक्रान्तिक) प ११६०,६६, गणि (गणिन ) प १६.५१ ज ३१३५, १६७ च १३३ ७५,७६,८१,८२,८४,८५,१२६; ३३१८३; गणिज्जमाण (गण्यमान) सू १२।३ से ६,१५ ४।११० से ११२,११६ रो १२१,१२८ से गणितलिवि (गणितलिपि) प ११६८ १३०,१३७ से १३६,१४६ से १४८,१५५ से गणिय (गणित) ज २१४,६४,३।१६७३,६७,८ १५७,१६२ से १६४, ६१२२,२४,६५,६६, गणियपय (गणितपद) ज ६।८।१ ७१,७२,८४,६७,६८,१०८,११३,६७,१०, गणिया (गणिका) ज ३११२,२८,४१,४६,५८, १७,२३, १६।२८,१७१४३,४७,६३,६४,६६, ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ उ ५.१०, ६७,८६२११६,१०,१२,१३,१५ से २०,३१, १७ ३४,३६,४३ से ४८,५३,५४,७२ Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६२ गमवसहि-गवेसित्ता 21१६ गयवति (गपति) ज ३।१२६।२ गयवर (बर) जा६१ गयविक्कम (गनविक्रम) १३३।३ गयविकामसंठिय (जविक्रमथित) सु १०१५३ गरह (गई.) रति उ ३३११७ गरहेहि उ३।११५ गरहिज्जमाण (गई यमान) उ ३१११८ गराइ (गर) ज १२३ मे १२५ गरुय (गुरुक) प ११४ से ६:३।१८२:५॥५,७, २०६१५।१४,१६,२७,२८,३२,३३,२८४२०, गब्भवसहि (गर्भवमति) प २१६४ गभिणी (गभिगी) ज ३।३२ गम (गम) प १५१४३,२३।१६७ ज २५६, १५६:३१३,१८३,२०३,२१७४११३६, १४०११,१६७,२४३,५१४० मू का? गमण (गमन) ज ३१६,३५,८५.१८३ उ ११४२, ८८,१२६:३।१२७,१२८ गमणिज्ज (गमनीय) ज २६४,३११८५,२०६ ५॥५८ गमय (गमक) प ५११७६१७1८,३५. गमित्तए (गन्तुम्) उ ४३११ गय (गज) प १३० ज १५.६५,३११५,१७, २१,२२,३१,३४ से ३६,७७,७८,६१,१७३, १७५,१७७,१७८,१६६ उ१११२३,१३८, ५११८ गय (गत) १६४१:१७।१०६,१११:२११५५ ज २१५३१८,१३८७।१३३१३,१३५ चं १।१,२ उ ११२५,४६,५१,५४,६४,७६,७६ ८८,८६,६१,१११.११२,१२१,१३८, ३.१५,३५,५१,५६,८४,१२१,१६२:४।२४; ५.१३,२०,२७,३१,४० गयंद (गजेन्द्र) चं १११ गयकण्ण (गवाण) प १९८६ गयकलभ (गजकलभ) प १३।१२३ गयछाया (गजछाया) ११६१४७ गयण (गगन) ज ३१३ गयणलल (गगनतल) ज ५।४३ गयतालुय (गमतालुक) प १७४१२६ गयदंत (गजदन्त) ज ३।३५,४११०३,७।१३३।३ गजदतठय (मजदतगस्थित) सू १०५१ गयपुर (गपुर) प १९३२ गयमारिणी (जमारिणी) प ११३७५ गयरूवारि (नजरूपधारिन् ) ज १७८ म् १८।१४ गयव३ ( पति) प २१४६ ज ६।१७,१२६१२, १७७,१८३,२०१,२१८७१११२४,१३१; गरुयत्त (गुरुकरका) प १५३४४,४५ गरुयलहुयपज्जव (गुरुक रघु पयंत्र) ज २१५१, ५४,१२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४, १६०,१६३ गरुल (रुड) प २।३०,३१ ज ३।१०६४१२०८ च १२ गरुलम्वूह (माटव्यूह) उ १।१४,१५,२१,१३६, गल (पल) ज २११५७१७८ गल (गत्) चं १११ गिल (ल) इ उ १५१ गलय () ज १७८ गललाय (गालात) ज ३११७८,१७८ गल्ल (गल्ल) ज ५१% गवक्ख (वाक्ष) जे १९२०४१६ गवय (गबय) प ११६४ ज २१३५ गवल (गवल) प २१३१,१७।१२३ ज ३१२४ गवलवलय (गवलवलय) प १७११२३ गवेलग ( वेलक) ज ३११०३ गवेलय (विलक) ज २११३१ गवेस (वेम्) वेसइ उ ३६११४ गवेसग (गवेपक) ज ३११०६ गयेसणा (वेपणा) ज ३१२२३ सु २०१७ गवेसित्ता (वेपयित्वा) उ ३३११४ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गविष-गाहेता गव्विय (वित्त) ज ७।१७८ यह (ग्रह) १०१३३:२२ मे २७,४८ से ५१. ६३ ज ११२४, ७ १७७३ १८०, १६१, १८६, ११७ १०।१७१ से १७३१५१.१०.१३ १८१४१८१२३७१९४१,५१२८१२, १६।२२१३.६, ९, १०, २१,२०,२६,३१:२०१८ ग्रहगण (प) ४३०१,१७,२१,३४,१०७,२२२; ७१५५, ५८, १८०, १८१.१६७, सू १८१८ १६।२२, २३, २६:२०३५ २०१२५४१ गहण ( मन ) प १।४८।५३ से ५५ ११०५३, ५५, ५७. ५२, ७१: १६१६५२२१५.०० १७१ महणया ( ग्रहण) उ १०१७ महत (त्व) २८३ शहर (दे० ) प ११७e मदिरा (मान) १६ मे १९४ ज ७।१७८११, १६१,१६२ ३१,३२ हाय (गृहीत्वा ) प ३६८११२६७ ३१५० गहिण (हत्या) ज ३०२४ गहित ( गृहीत ) सू २०१२, ६२३३१५५ महिष (गृहीत) १८८, ११, १५, २४१६१२४७१७२३३१२, ७७,८८ १०७, १२४ ४७,३८ ११३८ ३१६३,७०,७३ गहिर ( गंभीर ) प २१४ *()*XX* गाउय (ब्यून ) प १३५२१६४२१४२,४४,४६, ४७११.२०२४८२३२६.४५ J ४१६६१०३, ११०,१४३, १३०.२०३,२२६, ७६०, १८२ गाउयपुत्तिय (व्यूत पृथवित्वा) १७५ गागर (दे ) प ११५६२३ गात (३४२११, २०१८ गाम (न) ११७४१६१२२२११९२.६३ २१२२.६६७०.१३१.२०१६.३१.३२.०१. १६७२, १८०.१८५,२०६, २२१३३।१०१. ५१३६ गामकंटय (कण्टर) ५१४३ गामिण (समणिमण' ) प ८४ गाममारी (ग्राममारी) ज २१४३ ग्रामरोग (ग्राम)२४३ गाय (गो) १२१४ गामाणुयाम (गानुम) १४२१७३२६,६६, १३२:५/३६ ८६३ नाम (१।१११.११२ गाय (गो) प ११४ गाय (धन) १७०१३४ २०१५, १८२८२. २११५५३५० गायंत (यत्) ३०१७ गारव (ग) ३५३ गारविय (गौरव) सू २०१६१२ गालण ( गालन ) उ ११५१, ७६ लिए) उ ११५२.७६.७७ यामाण ( गालगत ) उ५।२५ गावी (यो ) ज २१३४ गाह (ग्रह) प ११५५.५८ गाह (ह) माहिति ) ज २०१६४ गाहा (गाया ) प १४० २०४० १५०५५ १०१७, १६.२५ गाहाव (गृहपति) ज ४११८१,१०३, १८४,१८६, १९५३।१०,११.१३,२१.१५८,१६०,१६६० ४१७ से १,१६,१८ हाइकुण्ड (पछि ६४१८२१९४ गाहायइणी (गृहपत्नी) उ४ गावइदीप (गृहपतिद्वीप) ४।१८२ गाहारयण (बृहपतिरत्न ) ज ३११, १२०, १७८,१६,१५५१०६, २१०, २१६, २१६, २२० गाहावइरयणत ( गृहपतिः) २०५८ गार्हता (ग्राहयित्वा ) ज २२१३४ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६४ गिव्ह ( ग्रह . ) गिण्हइ ज ५१६०,६६ उ ११५७ मिति ज ५।१४, १७, ५५ उ १४५ मिन्हह उ १।४४ गिण्हेइ उ १४८ गिण्उकाम ( ग्रहीतुकाम) उ १११०५ हिमाण (गृह णत् ) प १११७० गिहित (हीतुम् ) उ ११११६ गहिता (गृहीत्वा ) ज ५ १४ सू २०१२ उ ११४५ गिण्हेऊणं (गृहीत्वा ) उ ३१६८ गिता ( गृहीत्वा ) उ १४८ निम्ह (ग्रीष्म) ज २१६४,७०,७ १६४,१६७ सू८ । ११०।७१ से ७४; १२।१४ ३ ५। २५ गिरिकुमार (गिरिकुमार ) ज ३११३३,१३६ गिरा ( गिरा, गिर् ) ज २ १५ गिरि (गिरि) ज २११५,६५,१३१,१३३,१३४; ३।३२,७६,७७,१०६, १२६४, १२८,१३८, १५१,१७०, १८५,२०६,२२१,४।२३४,२४० frferous (गिरिकर्णी ) प १४० १५ अपराजिता गिरिवरी ( गिरिवरी) ज ३३१०९ गिरिराय ( गिरिराज ) ज ४२६०।१ सू५ । १ गिरिवर ( गिरिवर) ज २२६५३२३,८८ गिल्लि (दे० ) ज २२३३ हि (गृह) ज ३।३२, १८३, १८६ उ ११४२, ४४, १०८३२६,१००, १०१,१३१,१४१, १४८, ४११२, १३ गिहिलिगसिद्ध ( गृहलिङ्गसिद्ध ) प १।१२ गीत ( गीत ) प २१३०,३१,४१ १८ २३; १६।२३,२६ गीतजस ( गीतयशस् ) प २४५, ४५।२ गीतरति ( गीत रति ) प २।४५ गीय ( गीत ) प २४१, ४६ ज ११४५, २२६५; ३१८२,१८५, १८७, २०४,२०६,२१८; ५।१, १६७५५, ५८, १८४ गोयरs ( गीतरति ) प २४५२ गोवा (ग्रीव) ज २०१५ गिव्ह - गुत्ति गुंजत ( गुञ्जत् ) ज २११२ गुंजद्ध ( गुञ्जार्ध) ज ३१३५,१८८ गुंजद्धराग ( गुञ्जार्ध राग ) प १७ १२६ गुंजालिया (गुञ्जालिका ) प २०४, १३, १६ से १६, २८,११।७७ गुंजावल्ली (गुञ्जावल्ली ) प ११४० १४ घुंघची गुंजावाय ( गुञ्जावात ) प १।२६ गुच्छ (गुच्छ) प १।३३।१,३७९१।४८१६,६१ ज २।१२,१३१,१४४,१४६ उ ५ १५ गुच्छवहुल (गुच्छबहुल) ज १११८ गुज्म (गुह्य) उ३।११ गुज्नंतर (गुह्यान्तर ) ज ४।२१ गुण ( गुण ) प २२६४।१३, १७५/३६ से ३८,५८ से ६०,७३ से ७५,८८ से ६०,१०६ से १०८, १४६, १५०; १५ १४ से १६, २७, २८, ३२, ३३, ५७ २०१७,१८,३४; २८१२०, २६,३२,६६; ३४/२० ज २१५,६५,३३,३२,११७११, ११६,१८६,२०४, २०६, ५१५६,६८,७० √ गुणड्ढ ( गुणाढ्य ) ज ३1३२|१ गुणfreevण ( गुणनिष्पन्न) उ ११६३ गुणरयण ( गुणरत्न) ज ५३५८ गुण सिलय ( गुणशिलक ) उ १११, २:३४, २१, २४, ८६,१५५,१६८ ; ४/४,६,१३,१८ गुणसेढि ( गुणश्रेणि) प ३६६२ गुणसेढीय (गुणश्रेणिक) प ३६ ९२ गुणहर ( गुणधर ) ज ३११२६११ गुणित ( गुणित ) सू १६ । २२/२६ गुणिय ( गुणित ) जरा६ गुणेत्ता ( गुणयित्वा ) ज ७।३१ सू ४/४,७ गुणोववेय (गुणोपेत) ज २।१४ गुप्त (गुप्त ) प २ ३०,३१,४१ ज २६८, ३१३५ तवं भारि (गुप्तब्रह्मचारिन् ) ज २२६८ २६; ३३१३,८६,१०२,११३,११५, १४६,१६०; ४१२०, २२; ५।२७,३८,४३ गुति ( गुप्ति ) प १|१०१११० ज २ ७१ Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुत्तिदिय-गोयम ८९५ गुत्तिदिय (गुप्तेन्द्रिय) ज २१६८ उ ३६६ गुमगुमंत (गुमगुमायमान) ज २।१२ गुम्म (गुल्म) प ११३३।११।३८१३,११४८१६१ ज २।१०,१२,१३१,१४४ मे १४६,३।२२१; ४।१६६ उ ५५ गुम्मबहुल (गुल्मबहुल) ज ११८ गुरु (गुरु) प १११११ २११३३ गुरुजण (गुरुजन) उ १७२ गुरुजणग (गुरुजनक) उ १८८,६२ गुल (गुड) प १७।१३५ ज २०१७ गुलगुलाइय (गुलगुलायित) ज २१६५,३।३१; ५१५७ गुलिया (गुलिका) प २१३१ ज ७१७८ गुलगुलाइय (गुलगुलायित) ज ७।१३८ गुहा (गुफा) ज १।२४,३।३२ गूढदंत (गूढदन्त ) प १८६ गूढछिराग (गूढशिराक) प ११४८१३६ गण्ह (ग्रह ) गेण्हइ प १११७१ ज २१११३; ३१२६,३६,४७,५६,६४,७२,१३३,१३८, १४५,५।५५ उ ३।५१ गेहंति प ११८१ २८१२२ से २४,३४ से ३६,३६,४०,४२,४५, ६८,६६,७१,३४।६ ज २।११३,५१५५ गेण्हति प १११४७ से ७०,८०,८१,८३,८५ सू २०१२ गेण्हमाण (गह णत) सू २०१२ गेण्हित्ता (गृहीत्वा) ३१२६,३६ उ ३१५१ गेय (गेय) ज ५१५७ गेरुय (गरिक) प ११२०१४ गेविज्ज (वेय) उ ११३८ गविज्जग (वेयक) ज ३१६,३६,२२२ गेविज्जविमाण (ग्रेवेयकविमान) 3 ५।४१ गेवज्ज (ग्रेवेय) प २१४६,६३,३४।१६,१८ ज ३१७७,१०७.१२४,७११७८ गेवेज्जग (वेयक) ११३६,१३७२।४६,६० से ६२,६।६६,९८,१५।८८,६१,६६,१०४,१०८, ११२,११५,११६,१२२,१२५,१२७,१२६, १३६२११५५,६२,७१,९३,३३१२५ गेवेज्जगविमाण (वेयकविमान) पश६०, ३०१२६ गेह (गेह) ज ६६ र ४।२,३ गेहावण (गेहायतन') ज २१२१ गेहावणसंठित (गेहापणसंस्थित) सू ४।२ गो (गो) ज ३११०३ गोकण्ण (गोकर्ण) प ११६४,८६ ज २१३५ गोक्खीर (गोक्षीर) प २०६४ गोखीर (गोक्षीर) १ २।३१ ज ४११२५:५१६२; ७।१७८ गोजलोय (गोजलौका) प१४६ गोड (गोड) प १८६ गोण (गौण) प ११६४,११११६ से २० ज २१३५ गोणस (गोनस) प १७१ गोतम (गौतम) प ३६।१२,८१ च ११४ गोत्त (मोत्र) प ३६३६२ ज ११५,७१२७११, १३२।४,१६७१ च ५।३,१० सू १६५६१४; १०६२ से ११६; १९४२२१३ गोत्तफुसिया (गोत्रस्पर्शिका) प ११४०१५ मोध (गोध) प ११८६ गोधूम (गोधूम) प ११४५।१ गोपुच्छ (गोपुच्छ) ज १:१८,३५,५१:२।१५; ४१४५,११०,२१३, २४२ गोपुर (गोपुर) ज २२० सू ४।२ गोमयकीडग (गोमयकीटक) प ११५१ गोमाणसिया (दे०) ज ४११३० मोमुह (गोमुख) प १८६ गोमेज्जय (गोमेदक) प १५२०१३ गोम्ही (दे०) प ११५० गोय (गोत्र) ५ २२१२८,२३.१,२,५७,२४११५; २६।११:२७१५,३६१५२ ज ३१२२५ उ १११७ , गोयम (गौतम) प ११७४,८४,२११ से ३६,४१ से १.गेहेषु आपतनानि वा उपभोगार्थमागमनानि । Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६६ गोयम ४४,४६,४८ से ६४,३।३८ गे १२०,१२२ में १२४,१७४.१७६ ते १८२,४११ से ५४, ५६ मे ६७.६६ ये ७४.६ ६०,६२ २६९५१ से ७.६ से २०,२३.२४,२७ से ३४.३६,३,४०,४१,४४,४५,६५,८६,५२, ५३,५५.५६,५८,१.६,६२,६३,६१.६८,30, ७१,७३,१४,७७,७८,८२,८३,८५,६६.८८, ८६,६२,९३,९६,६७,१००,१०१,१०३,१०४, १०६,१०७,११०,१११,११४,११५.११८, ११६,१२३ से १३१,१३३ से १४०,१४२ में १४७,१४६,१५०,१५३,१५४,१५६,१५७. १५६,१६२,१६३,१६५.१६६,१६८,१६६, १.१ मे १३४,१७६,१७७.१८०,१८१.१८३, १८४,१८६,१८,१८६,१६०,१६२,१६३, १६६,१६७.१६६,२००,२०२,२०३,२०६, २०७,२१०,२११,२१३,२१४,२१७,२१८, २२०,२२१,२२३,२२४,२२७ से २३४, २३६२३६,२४१,२४५७६५१से ४५, ४७ मे ५५,५७,५८,६० से ६४,६७,६८,७० मे ७२,७४ मे ८५,८७ मे ६१,६३,९४,९६ से १०३,१०५ ११०,११२,११४ से ११६, ११८ से १२१,१२३,७१ से ४,६ से ३०%, ८.१ से ११,६।१ से ४,६ से १६,१६ से २२, २५,२६:१०११ से ५,७ से १३,१५ से २४, २६ से २६,३१ से १३:११।१ से ४४,४६, ७३,७६ ६०:१२११ से 37 १३,१५, १६.२०,२१,२३,२४,२७,३१३३:१३११ मे १६.१ मे ३१:१४.१ से ३.१,७,६११ ने १५,१७,१५२१ । २८,३० से ३३,३६ से ५४, ५७ से ७४,७६ से ८४,८६,६१ से ६८,१००, १०३ से १०६,१०८,१०६,११३ से ११६, १२६,१२६,१३२ से १२५,१४०,१४१,१६.१ से ४,६ गे ८,१० से १३,१५,१७,१६ से २१,१७१ से ६,८ से १७,१६ से २२,२४, २५,२७,२६,३३,३६ से ६१,६३ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८७,६० से ६२,६४,६५,१००, १०२ से १०४,१०६ से ११६,११८ से १३३, १३६ से १४०,१४६ से १५२,१५४ मे १६४, १६६,१६७,१६६ मे १७२,१८।१ मे १६,१२ मे ३३,३६,४१ से ४१,४६ से १०,६२ मे १२७:१६।१ से ३,५,२०११ से ४.६.७६ मे २५,२७ मे ३०.३२ मे ३४,३८ मे ५४,६१ से ६४,२१११ से १५,१६ से २५,२८ मे ३२, ३६ से ३८,४० मे ४२,४८ से ८१,८३ से ६६,९८ से १०१,१०३ से १०५,२२११ से ११,१३,१५,१७,१६,२१ से २३.२६,२७, २६,३०,३२ से ५०,५२,५३,५:०,५६ से ६६, ७८.७६.८२ से ८४,८६,८७,८६ से ६५,९७ मे २६,१०१,२३५१ से ७६ से ११,१३ से ५०,५७ से ६२,६५,६६ से ७६,८१,८३ मे ८६,८६,६०,६५,९८,६६,१०१ मे १०४, १०६,१११ से ११८,१२८,१२६,१३१ से १३५,१३७ से १४०,१५४,१५५,१५३,१६१, १६१,१६४,१६७,१७१,१७३,१७६,१७७, १९१ से १६६,१६८ से २०१,२४.१ से६,८, १० से १५,२५॥१,२,४,५२६११ से ४,६८ मे १०:२७११ से ३,५,६; २८।१,२ से ७,१० से १६,२१ से २४,२६,३१,३३ से ३७,३६ से ४२,४४,४५,४६ से ५३,५६ से ६५,६७ से ७१,७६ से १६,१०२,१०४,१०६ से १२०, १२२,१२३,१२५,१२७ से १२६,१३२:२६।१ से ३.५ से १३,१६ से २१:३०११ से ३,५ मे १३,१५ से २३,२५ मे २८,३१११ से ३,६,३२११ से ४,६,३३३१ से ३,७ १०, १२,१३,१५ से २६,३१ से ३३,३५,३६; ३४.१ से ३,५ से २,११ से १८,२०,२५; ३५.१ से १३,१६ से २०,२२,२३,३६११ से २२,३० से ५१.५३ से ६४,६६,६७,७०,७१, ७४ मे १०,६२,६४ 7 १५ मे ७,१५ से १८,२० से २३,२६,२७,२६,३३ मे ३५,४१, Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोयम-घणघणाइय ६७ गोवल्ल (गोवल) ज ७/१३२१३ गोवल्लायण (गोवलायन) सू१०११०६ गोवल्ली (दे०) प १४०१४ गोसीस (गोशीर्ष) प १३०,३१,४१ ज २१६५, ६६,६६,१००,३७,६,१२,८२,८८,१३३, १८४,२११,२२२:५११४ से १६,५५,५८ गोसीसावलि (मोशीर्षावलि) ज ७।१३३११ गोसीसावलिसंठिय (गोशीविलिसंस्थित) सू१०।२७ मोहा (गोधा) १७६ गोहूम (गोधूम) ज २।३७:३।११६ ४५ से ५१;२११ मे ४,७,१४,१५,१७ से २३, २५,४२,४४ से ४८,५०,५२,५६ से ५८, १२२,१२३,१२७,१२८,१३१ से १३७,१३६, १४७,१५०,१५१,१५६,१५७,१५६,१६१, १६४:३११,६८,२०८४४१,२२,३४,४४,४५, ४८,५१,५२,५४ मे १६० से ३२,६४,७६, मे ८२,८४ से ८६,८६,६६ से ६८,१०० से १०० से १०३,१०५ से ११०,११३,११४,१४१,१४३, १५६ से १६७.१६६ से १७८,१८० से १८२, १८४,१८५,१८७,१८८,१६० से १९४,१६६, १६७,१६६,२००,२०२ से २१०,२१२ से २१४,२२५,२२६.२३४,२३६,२३७,२३६, २४१,२४५,२४६,२५१ से २७.१,६२,४,७ से २६१ से ३,३८ में ४८, २ ते ५७,, ५६ से १६८,१११ से १४४,१४७,१४८, १५०,१५४ से १६,१७० से १७८,१८० से १८५,१८७,१६७ से १६६,२०१ से २१३, च १० सू० ११५,१०११०२ उ ११२५,२६,२८, १४०,१४१:२११२.१३,३१८,६,१६ से १८, २६,२७,८५,८६,६३,६५,१२२ से १२५,१५२, १५७,१६३ से १६५,४१६,२५,२६ गोयम (गौतम) ज ७४१३२१२ गोयर (गोचर) ज २११३२ गोर (गौर) पु २४०१८,२१४६ ज १५ गोरक्खर (गौरखर) प १६३ गदर्भ की एक जाति गोलगोलच्छाया (गोलगोलच्छाया) सू ६।५ गोलच्छाया (गोलच्छाया) सू ६४,५ गोलपुंजच्छाया (गोलपुआच्छाया) सू ६३५ गोलवट्टसमुग्गय (मालवृत्तममृद्ग) २०१२०, ७।१८५ गोलवायण (गौलव्यायन) ज ७१३२।४ मू १०।११५ गोलावलिच्छाया (गोलाबलिच्छाया) सू ६५ गोलोम (गोलोमन) ५११४६ गोवग (गोपक) ज ३१३५ घओदय (घतोदक) प ११२३ घंटा (धण्टा) ब ११३७,३।३५,१७८४१३०%; ५।२२ से २६,२८,४८ से ५३७१७८ उ १।१३८,३७,६१ घंटिया (घण्टिका) ज २१६४,७११७८ घंटियाजाल (घण्टिकाजाल) ज ३१२४,३०,१०६; २८ घट्टणया (घनता) प१६१५३ घछ (प्ट) प|३०,३१,४१,४६,५६,६३,६४ ज १८,२३,३१ सू २०१७ घड (घट) ५२।३०,३१,४१ ज ३७,४१२३,३८, ६५,७३,६०,६१ घड (घटय घडति ज ५११६ घडावेता (घटयित्वा) उ ३.५० घड़िया (घटिका) ज ४११२६ घडेत्ता (घटयित्वा) ज ५११६ घण (घन) प १।४८।३८२१३०,३१,४१,४६%) १२।१२,३८; ज ११२४,४५,६५,३१३,२४, ८२,१६७,१८५,१८७,२०६,२१८,२२४; ४।१२५,५।१,५,१६,५७,६२,७१५५,५८, १७८,१८४ सू १८।२३;१६।२३,२६ घणघण (घनघन) ज २१६५ घणघणाइय (घनघनायित) ज० ५१५५७ Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६५ घर्णेत (घनघनायमान) ज ३।३१ घणदंत ( घनदन्त ) प १८६ घणवाय ( घनवात ) प १२६; २११० घणवायवलय (घनवातवलय ) प २११० घणसंमद्द ( घनसंमर्द) सू १२/२६ घणोदधि (घनोदधि ) प २३२४ घणोदधिवलय ( घनोदधिवलय ) प २४ घणोदहि (घनोदधि ) १२।१३ घणोदहिवलय ( घनोदधिवलय ) प २११३ घत ( घृत ) प १५ । ५५।१ सू१०।१२० घतवर (घृतवर) सु १६ १३१ घतोद ( घृतोद) सू १६१३१ / घत्त (ग्रह) घत्तामो ज ३।१०७ घत्तिहामि उ १४१ धत्तेह ज ३।११४ चरथ ( ग्रस्त ) सू २०/२ घय ( घृत) ज २ १०६; ११० उ ३।५१ मेह ( घृतमेघ) ज २११४३, १४४ घर (गृह) सू २०१७ उ ३३१०० घर (गृहक) ज १११३ घरघरग (घरघरक ) ज ७।१७८ अनुकरणशब्द घरोइला (गृहको किला ) प १७६ घाइय ( घातित ) ज ३।१०८ से १११ उ १२२; १४० घाउकाम ( हन्तुकाम) उ१।७२ घाडिय ( घाटिक) ज २२२६ घाण (प्राण) प १५७७,८१,८२३६३८१ ज ४।१०७ घाणविणाणवरण (प्राणविज्ञानावरण) प २३/१३ घाणावरण (प्राणावरण ) प २३|१३ घाणिदिय (घ्राणेन्द्रिय ) प १३४ १५ १, ४, ८, १३,१६,४२,५८,६४,६६, ७० २८१४५,४६, ७१ उ ३।३३ घाणिदियत्त (घ्राणेन्द्रियत्व ) प ३४१२० घाणिदियपरिणाम ( घ्राणेन्द्रियपरिणाम ) प १३१४ घणघणेंत - चउक्कय घादिय (घ्राणेन्द्रिय) प १५।३४ घाय (घातक) ज २०२८ घुल्ला (दे० ) प ११४६ घेण (गृहीत्वा ) ज ३१८१ घोडग (घोटक ) प ११६३ घोडय ( घोटक ) प ११।१६ से २० घोणा ( घोणा ) ज ३१०६ घोर (घोर) ज ११५ घोरगुण ( घोरगुण) ज ११५ घोरतवसि ( घोरतपस्विन् ) ज ११५ घोरवंभचेरवासि ( घोरब्रह्मचर्यवासिन् ) ज ११५ घोलंत ( घोलत् ) ज ३१६; ५।२१ घोस ( घोष ) प० २१४०१६ ज २१६५६ ३१३५, १८६,२०४ / घोस ( घोषय ) घोसंति ३१२१३ घोति ज ५/७३ घोसेह ज ३।२१२, ५।७२,७३ घोसणा ( घोषणा ) ज ५१२६,७२,७३ घोसाडइफल ( कोशातकीफल ) प १७।१३० घोसाई ( कोशातकी) प १।४०।१ घोड ( कोशातक ) प ११४८१४८६ घोसाडिय ( कोशातकी ) प १७ १३० घोसेत्ता (घोषयित्वा ) ज ३१२१२ च च (च ) प १ १ ज १७ सू ११७ उ १७; ३७; ४|१० चइत्ता ( त्यक्त्वा ) प २०१४१ ज २१६४ उ ३।१८, १२५,१५२,४१२६,२८,५/३०,४३ चइत्ता (च्युत्वा ) ज २२८५ चउ ( चतुर ) प १११३ ज १३८ चं ४३ सू १८ उ २१२२ चक्क (चतुष्क ) प २१।१६,२३।२६,२८,६२, १३४,१७८ ज २१६५:३११८५,२१२,२१३: ५।७२,७३७।१३१।२१।१८ चक्कग ( चतुष्क ) ज ७।१३११२ चक्कय ( चतुष्क ) प ६१८३२३२८ Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउगुण-चउम्मुह चगुण (चतुर्गुण ) प २१५६ ५।५१ चउग्गुण (चतुर्गुण ) प २२४०१५ ५१४६, ५२३१ सु १६१२२/२३ चउजमलपय (चतुर्य मलपद ) प १२३२ चाणवडित ( चतु. स्थानपतित ) प ५।१२,१४, १६,१८,२४,२८,३४, ३५, ३७,४१,४५,४६, ५०,५४,५६,५६,६३,६६,७१,७४, ७८,८६, ८७,८६,६३,६४,६७, १०२, १०४, १०५, १०७, १११, ११२,११६,११६,१३१, १३४,१३६, १३८, १४०, १४३, १४५, १४७, १४८, १५०, १५१,१५४,१६६,१६७,१६९, १७२, १७५, १७८,१८२,१६४, १८५, १८७,१८८, १६०,१६३, १६७,२००, २०३, २०७, २११,२१४,२१८, २२१,२२४,२२,२३०,२३२,२३४, २३७, २३६,२४०,२४६ चउट्ठाणवडिय ( चतुःस्थानपतित ) प ५७, २५, ८४, १६३ चरणउत (चतुर्नवति) सु १६ । १४ १५ १ चरणउति (चतुर्नवति) सू ४|४ चउणय ( चतुर्नवति) ज ४।२४१ चरणवs (चतुर्नवति) ज ४१८६ चउतीस ( चतुत्रिंशत् ) सू १२० चउत्तीस ( चतुत्रिंशत् ) ११२२ चत्य (चतुर्थ) प ३।२०,१८३,६८०११; १०११४१४,५,६,११३,४२,८८; १५।१४३; १७।१४८, ३३।१६, ३६।८५,८७ ज ४।१८०, २०२, ७११०६,१५६,१६३१०१३०,७४, ७७, १२७ ११ ५,६, १२०५, १७,२७,१३३८, १६ उ २।१०,१२,३११४,५४,३१,८३,८ १५३,१५४.१६१, ४१, ३,२४,५१,२८,३६,४३ चउत्थभत्त (चतुर्थभक्त ) २८१२५ ज २२५६,१५६ चउत्था ( चतुर्थी) सू १२२२ उत्थाहिय ( चतुर्थाहिक) ज २१४३ चउत्थी (चतुर्थी) ज ७११२५ उ ११२६,२७, १४०, १४१ चउदस ( चतुर्दशन् ) ज ३।२२१ चउदसपुव्वि ( चतुर्दशपूर्विन् ) ज २७८ उद्दस ( चतुर्दशन् ) ज ७ । १५६ सू८१ चपुवि ( चतुर्दशपूर्विन्) ज २७८ चउदसम ( चतुर्दश) सू १० ७७१३८ चउसी ( चतुर्दशी ) ज ७ । १२५ उद्दिस (चतुर्दिश्) ज ४/४,२०,११८,१२६, १४४, १४७,१५१।२,२१६, २३५, २४६; ५/४०,६१ ८६६ चउनाणोवगय (चतुर्ज्ञानोपगत) ज ११५ चउपसिथ ( चतुःप्रदेशिक ) प ५।१५६, १० ह चउपण्ण (चतु पञ्चाशत् ) ज २७७ चपण्णग (चतु. पञ्चाशत्क ) सू १३।१७ चपुरिसपविभक्तगति (चतुः पुरुषप्रविभक्तगति) प १६३८,५२ चउप्पएसिया ( चतुप्रदेशिक ) प ५।१६० चप्पगार ( चतुःप्रकार ) प ११।३०/२ चउप्पण्ण (चतुःपञ्चाशत् ) ज ४१२३४ चउपदेस (चतुःप्रदेशिक ) प १०८१४१२ चप्पय ( चतुष्पद) प १६१,६२,६६, ४१२२ से १३०,६७१,७७,२१३११ से १३,३५,४४, ५३,६० ज २११३१, ७ १२३ से १२५ चपाइया (चतुष्पादिका ) प १२७६ चभाग (चतुर्भाग) ज ७।१६० से १६५ सू १११६,१०११४२, १४७, १२ ३०१८।२७ से ३५ चभंग (चतुर्भङ्ग ) प १६ १०:२६ ६, ६ चउभंगि (चतुर्भङ्गिन् ) प १०३६ चउभाग (चतुर्भाग) प ४ १७७, १७६, १८०, १८२, १८३,१८५,१८६,१८८, १८६,१६१,१६२, १६४, १६५, १६७,१६८,२००,२०१,२०३ ज ७ १८७,१८८ सू १।१६,२१,६१३; १०।४७,१२।३०;१३४; १५।१७ से १६, २४ २५ म्ह (चतुर्मुख) ३३१८५,२१२,२१३; ५।७२.७३ उ ११६८ Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०० चउरंगुल-चंद चउरंगुल (चतुरङ्गुल) सू १०६३१६१२२ चउरंगुलकण्णाक (चतुरङ्गुलकर्णक) ज ३।१०६ चउरंगुलजण्णुक (चतुरङ्गुलजानुक) ज ३।१०६ चउरंगुलमूसियखुर (चतुरमुलोच्छितषुर) ज३।१०६ चउरंस (चतुरस्र) प १४ से ६२०२० से २७, ३१ से ३५,४१,१०।१५,२६,२११६२ ज ११३१२।१५:३१६५,१५६,४।११४ चउरासीई (चतुरशीति) ६ २१४६ ज २१४ चउरासीति (चतुरशीति) प २१२० ज २१७३ चरिदिय (चतुरिन्द्रिय) प १३१४,५१,२।१८) ३।६,४० से ४२,४७,४६,१५० से १५२, १८३,४११०१ से १०३,५१३,८१,६।२०,६५, ७१,८३,१००,१०२,१०४,११५, ६१४,१६, २२११।४५१२१३,३०,१३।१७:१५।३४,७५, ८२,८६,१३७:१६१६,१३,१७४२२,४०,६२, ८८,६६,१०३,१८१५,२३,२०१८,१६,२३, २५,२८,३३,४७,२११६,२८,४२,७६,८०,८६; २२।३१,७३,२३३८८,१५१,१६४,२८।४३, ४६,१०१,१२५,१३६,२६।१४,२१:३०।१२, १३,२२,२३,३११३,३२१२,३४,३,७,३५।१३, २०३६।६,३६ चरिदियत्त (चतुरिन्द्रियत्व) प १५/६७,१४२ चउरेंदिय (चतुरिन्द्रिय) प६८६;१६१३ चउवत्तर (चतुःसप्तति) ज ४१५५ चउवीस (चतुर्विशति) प६।११ ज २६ सू ४१७ चउवीसतिम (चतुविशतितम) सू १२११७ चउवीसय (चतुर्विशति) सू १।१६ चउब्विह (चतुर्विध) प ११४,५२,६२,६८,७७, १०११३,१३०,५२१२५१३१३,५,१४१७,६; १५१६६,७५:१६६,२६,३१,५३,१७११३; २०१६२,२११७७,२३।१८,२८,३७,३६,५४; २५२४,५,२६१३,१२:३०१६,३५१४ ज २२५३, ६६,१६२,३।१६७१०,२११:४।६६,२५४, २५५:५१५७ चउन्वीस (चतुविशति) प ६।१० सू२११ चउव्वीस (चतुविशतितम) प १०।१४।३ चउसट्ठि (चतुःषप्टि) प २।३२ ज २०५२ चउसमइय (चतु:सामयिक) १३६१६७,६८ चउहा (चतुर्धा) प १६.१ चंकमिय (चंक्रम्य) ज ७१७८ चंगेरी (चंगेरी) ज ३।११:५७,५५ चंचल (चञ्चल) प २१४१,५० ज ३।१०६,१७८, ५।१८,७१७८ चंचलायमाण (चंचलायमान) ज ३१२४१३,३७१, ४५११,१३१३३ चंचुच्चिय (दे०) ज ३।१७८६७।१७८ कुटिलगमन चंचुमलइय (दे०) ज ५।२१ चंड (चण्ड) २६०,१३१ चंडिक्किय (दे०) अत्यधिक कुपित ज ३।२६,३६, ४७,१०७,१०६,१३३ उ १।२२,१४० चंडी (चण्डा) ५११४८।४ चंद (चन्द्र) प ११३३;२१२० से २७,४८,१५१३, ४,२१,५५।३,१७४१२८,२११२३,८० ११२४२।१५,६८,१३१,३।३,२४।४,३२१, ३५,३७४२,४२,४५।२,७६,८५,६५,१३१।४, १५६,१८५,२०६; ४।१४२,२११:७१,७२, ७५,७८ से ८२,८४,६८,१०५.१११, ११२।२,१२६,१२७११,१२६,१३४११,४, १६७।१,१७०,१७७।१,१७८।१,१८०,१८१, १८३ से १८५,२०७,२१२,२६२ सू १०।२, ५,७५,१२२,१२७ से १२६२,१३२,१३३, १३६,१३८ से १४२,१४८,१४६,१५२ से १६५,१७०,१७२,१७३;११११ से ६:१२।३, १५,१७११,१६ से २८,३०,१३३१,३ से १७; १४।३,७,१५॥१,२,५,६,८ से १०,१४,१७ से २०,२६,२६,३२,३५,१८।१४,१८,१६,२१ मे २४,३७, १६१११,५।२,८,११६२,१५।२, १६,२१।३,६,१६।२२।४,७,१०,१५ से २५, २७,२८,३०,१६३३१,३५,३८, २०१२,३,४,६ उ ११६३;३।२।१,३।६.१४ से १८,२१,२५ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदचार-चक्कट्टि १०१ चंदिम (चन्द्रमम) प ०४८ से ५१,६३ ज ७1५५, ५८,१६८,१८०,१८१,१६७ सू ३११;६१ १५.१:१७११,१८,२,३,१८,१६,३७, १९४१, २६ , २०११,७ उ २११२,५१४१ चंदिमसूरियसंठिति (चन्द्रमरसूर्यमंस्थिति) सू ४।१,२ चंदिमा (चन्द्रिका) ज ७१०२ चंदोतारायण (चन्द्रावताराचन) उ ३।१५७ चंप (चम्पक) प १७:२७ चंपकवण (चम्पकवन) ज ४।११६ चंपग (चम्पक) ज २१०,३३१२,८८ उ ११२३, चंदचार (चंद्रचार) सू१०।१२१,१२२ चंदण (चन्दन) प १२००४:२३६।३,११४६; २१३०,३१,४१ ज २१७०,६५,६६,९६,१००; ३१६,१२,८२,८८,१३३,२०६,२११,२२१, २२२:५११४ से १६,५५,५६,५८ चंदणकयचच्चाय (चन्दन कृतचर्चाक) ज ३।२०६ चंदणपुड (चन्दनपुट) ज ४।१०७ चंदणा (चन्दना) उ ३।१७१ चंदद्दह (चन्द्रद्रह) ज ४।१४२।३,२६२ चंदपण्णत्ति (चन्द्रप्रज्ञप्ति) ज ७।१०२ चंदपव्वय (चन्द्रपर्वत) ज ४१२२२ चंदप्पभ (चन्द्रप्रभ) प ११२०।४ ज २११३; ३११२,८८,५१५८ चंदप्पमा (चंद्रप्रभा) प १७।१३४ ज ७/१८३ सू१८१२१,२०६ चंदमंडल (चन्द्रमण्डल) ज ३।६५,११७,१५६, १७८,७६१ से ७३,७६,७८,६७,१७७ सू १०७६,७७ चंदमाग (चन्द्रमार्ग) च ५२ सू १।६२; १०७५ चंदमस (चन्द्रमा) चं १४ ; सू १९६८४ १३३१,१७ चंदमा (चन्द्रम) ११६,१३।१,१७ चंदमास (चन्द्रमास) सू १२।१० से १२ चंदलेस्सा (चन्द्रले ) सू १६६१,२ चंदवडिसय (चन्द्रावतंसक) सू १८१२२,२३ उ ३६,१४ चंदविभाग (चन्द्रविमान) प ४११७७ से १८२; ६१८५ ज ७१७३,१७४,१७६ से १७८,१८८ सू १८।१,८,९,१४,२७,२८ चंदसंवच्छर (चन्द्र वित्सर) ज ७१०६,१०७ सू १०११२७:११।२ से ६,१२।१,३,१० से चंपगजाति (चम्पकजाति) प १३८।३ चंपकवडेसंय (चम्पकावतंसक) प २२५०,५२ चंपछल्ली (चम्परछल्ली) प १७:१२७ चंपभेद (चम्पकभेद) प १७१२७ चंपयकुसुम (चम्पककुसुम) प १७.१२७ चंपयलता (चम्पकलता) प ११३६।१ चंपा (चम्पा) प १०६३।११७।१२७ उ ११६,१०, १२,१६,६३,९५,६७,६८,१०५,१०६,११०, ११६,१२२,१२५,१४४,१४५, २।४,५,१६,१७ चंपापुड (चम्पापुट) ज ४। ०७ चक्क (चक्र) ज २११५:३।३,३५,६५,१५६, १६७।११,१२ सू ३२ चक्कद्धचक्कवालसंठित (चक्रार्धचक्रवालसंस्थित) सू ११२५,४१२ चकरपुरा (चक्रपुरा) ज ४१२१२,२१२१४ चक्करयण (चक्ररत्न) ज ३१४ से ६,६,१२,१४, १५,१८,२२,३०,३१,३६,४३,४४,५१,५२, ६०,६१,६८,६६,६३,६६,१०६,१३०,१३१, १३६,१३७,१४०,१४१,१४६,१५०,१६३, १७२,१७३,१७५,१७८,१८०,२२० चक्करयणत्त (चक्ररत्नत्व) प २०१६० चक्कट्टि (चक्रवर्तिन्) पश७४,६१,६२६ ज २।१८,६३,१२५,१५३,३१२,३,२६,३६, चंदाभ (चन्द्राभ) ज २१५.६,६२ चंदायण (चन्द्रायण) सू १३।१०,१३ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ ४७,५६,७१, ६५, ११५, ११६,१२४,१३३, _१३५१,१३६,१३८, १४५,१५६, १६७१५, १४; ४१६४,१६२,२७७, ५।२१,५८,७११६६,२०० hai ( चत्वि ) प २०१५०,५२ चक्कविंस (चक्रातिवंश) ज २ १२४, १५२ चक्कट्टिविजय (चतिविजय ) ज ४११६६, २६२;५।१,५५,६११४,१६ काग (चक्रवाक) उ५।५ arrata (चक्रवात) ज २।१२ चक्कवाल (चक्रवाल) न १२६५,४१२३४, २४०, २४१ सू १६/४,७,१४, १८, ३०, ३४, ३७ उ ३।१२,१४१,४/१२,१३ चक्काग (चक्रवाक ) प ११४८३८१७६ चक्कि ( चक्रिन् ) प ११९३१६,२०२१।१ चक्किय ( चक्रिक ) ज २६४ चक्किया ( शक्नुयात्) ज ३११८५ aftaar (चक्षुरिन्द्र ) प १५ १,३,८,१३,१६, ३४,४१,५८,६४,७०,२८१४६,७१७ ३/३३ चखिदियस (चक्षुरिन्द्रियत्व ) १३४।२० परिणाम (चक्षुरिन्द्रियपरिणाम ) प १३४ चक्खु ( चक्षुप ) ज ५१५, ४६ चक्खुदंसण (चक्षुर्दर्शन) प ५१५,७,२१,४५,८१, ६३,६७,२६१३,७, १४, १७, १९, २१,३०१३,७, १३ चक्बुदंसणावरण (चक्षुर्दर्शनावरण) प २३१४ चक्खुदंसणावर णिज्ज (चक्षुदर्शनावरणीय) प २३३२८ चक्खुदंसण ( चक्षुर्द शिन् ) प ३११०४ खुद (चक्षुर्द) ज ५३२१ चक्खु फास (चक्षुःस्पर्श ) ज ७२० से २५,७६, ८१ चक्खुफास ( चक्षुः स्पर्श) सू २०३ चक्खू भूय ( चक्षुर्भूत) उ३।११ चक्खुन ( चक्षुष्मत् ) ज २२५६,६१ चल्लोयणलेल (चक्षुर्लोकनलेश ) ज ४।२७; ५२८ चक्कवट्टत्त-चर चक्बुहर (चक्षुर्हर ) ज ३१२११५१५८ चच्ays ( चर्चपुट) ज ३३१०६ चच्चय ( पक) ज ३३८८ चच्चर ( चत्वर) ज २२६५ ३११८५,२१२,२१३; ५१७२,७३३ १६८ चच्चा (दे०) ज ५।५६ चच्चिय ( चर्चित ) ज ३१२११ चडकर (दे०) ज २२६५ चडगर (दे० ) ज ३१७,२१,२२,३६,७८, १७७ चण ( चणक) ज ३।११६ चत्ताल ( चत्वारिंशत् ) ज ४।५५ सू १।२१ चत्तालीस ( चलारिंशत् ) प २३३६ ज ५।४६ सू १०११५७ चमर ( चमर ) प ११६४६ २१३१,३२,४०१६ ज ११३७, २१३५, १०१,११३,११६,३११८५, २०६४।२७ : ५।२८, ५० चमरवंचा (चमरचञ्चा) ज ४।१६५,२१० : ५१५० चमरोगंड ( चमरगण्ड ) ज ३।१७८ चम्म ( चर्मन् ) ज ५।३२ चम्पक्खि (चर्मपक्षिन् ) प ११७७,७८ चम्मरयण (चर्मल) ज ३७ से ८१,११६, ११७, १२१,१५१,१७८, २२० चम्मरयणत ( चर्मरत्नत्व ) प २०१६० चम्मेट्ठग (चर्मेण्टक) ज ५१५ चय (चय, व्यव ) प २०१४६ ३ ३१८, १२५, १५२; ४/२६,२८; ५/३०,४३ चय ( स ) नए प २२६४।१७ चय (च्यव्) चयंति प ६।१११,९२६ १७६६ सू १७९ चयति स १६२४ चयंत ( त्यजत् ) प २।६४।५ चयण ( च्यवन ) प ६४६,५६,६६, १७/६१,१०५ चं २५ सू १६।५; १७११ चयोवचय (चयोपचय ) सू १।१४ चर (चर्) चरइ ज ७ १०,१३,१६,१६ से ३०, २४,६६,७२,७५,७६ से ८२,६४,६५,६६,६८ से १००,१७१,१७३, १७५ स् १।११ चरति Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चर-चामरहत्यगव प१७५, २०४८ ज ३.९५,१२५,७११ च ३११ चल (चल) ज ३।१७५, ७११७८ सू १७११:१६६१,१११२,१५।२,२१॥३,६ चल (चल्) चलइ ज २१६२,३१५५,६४,७२, चरति सू १३१५, १६।२२१२,१७ चरिति १४४,१२० चलंति ज ३।२,१११,११२,५२,७ सू १६८ चरिंसु ज ३३६५७।१ सू १६१ चलंत (चलत् ज ३।३१,७१७८ चरिस्संति ज ३१६५७१ सू १६१ चरेंति चलचवल (चलचपल) प २१४१ सू १६६११ चलण (चरण) ज २११४,१५,३।३५,१०६७।१७८ चर (चर) ज ७।१२४,१२५ चलणीबहुल (चलनी' बहुल) ज २११३२ चरग (चरक) प २०१६१ ज ३.१०६ चलिय (चलित) ज २१८६,६०,६३, ३१५६,११३, चरण (चरण) ज ३१३,१३८ १४५, ५६३,२१,२८ चरम (चरम) सू ७।११०१५६ , २०१३ चवल (चपल) ज २६०,३३६,२६,३५,३६,४७, चरमाण (चरत्) उ ११२,१७,३।२६,६६,१३२, ५६,६४,७२,१०६,११३,१३८,१४५,१७८; १४६,१५६,४।११:५१३६ ५।५,२१,२६,४४,४७,६७,७११७८ चरित्त (चरित्र) प १।१०१११० ज २०७१ चवलायंत (चपलायमान) ज २११५ चरित्तधम्म (चरित्रधर्म) प १११०१।१२ चविया (चव्य) प १७:१३१ चरित्तपरिणाम (चरित्रपरिणाम) १३।२,१२, चाउग्घंट (चतुर्घण्ट) ज ३।२१,२२,३४ से ३६ १४,१८,१६ उ ५१३८ चरितमोहणिज्ज (चरित्रमोहनीय) प २३१३२,३४ चाउघंट (चतुर्घण्ट) उ १।११० चरित्ताचरिति (चरित्राचरित्रिन्) प १३११४,१८, चाउरंगिणी (चतुरङ्गिणी) ज ३।१५,२१,३१,३४, ७८,६१,१७३,१७५,१६६ उ १११२३ १२७, चरितारिय (चरित्रार्य) पश६२,१११ से १२६ १२८,५११८ चरित्ति (चरित्रिन) प १३।१४,१८,१६ चाउरंत (चतुरन्त) ज २।१८३।२,२६,३६,४७, चरिम (चरम) प १११४,१०३,१०६,१०७,१०६, ५६,११५,१२४,१३३,१३८,१४५,५१२१,५८ ११०,११३,११४,११६,११६,१२०,१२२,१२३, चाउस्सालग (चतुःशालक) ज ५१३ २०६४।५।३।१।२,३।१२३:१०१२ से १३, चाउस्सालय (चतु:शालक) ज ५११३,१४ २१ से २४,२६ से २६, ३१ से ५३; चाडुकारग (चाटुकारक) ज ३।७८ १५१४३;१८।११२,१८११२६; २३१६३, चामर (चामर) प १११२५ ज २०१५,३६,१८, ३६.७६ ज ४११४३;७।१५६ से १६७ सू ५१; २४,३१,३५,६३,१०६,१७८,१८०,२२२; १०१६३ से ७४,१३८,१४२,१४३,१४७ से ४।२६,३०,५१११,४३,४६,५५,५७,६०,६६, १५१,१५६,१६१,१११५,६,१२१२४ से २८, ७/१७८ ३०,१३।१ उ ५।४३ चामरग्गाह (चामरग्राह) ज ३११७८ चामरच्छाय (चामरच्छायन) ज ७१३२१३ चरिमंत (नरमान्त) प २१६४,१०१२ से ५,२१, चामरच्छायण (नामरच्छायन) सू १०११३ २६,२७ से २६; १६।३४, २१।१०३३।१६, चामरहत्थगय (हस्तमतचामर) ज ३१११ १७ ज ४११०,१४१,२०६,२०७,२५२ चरिमभव (चरमभव) १ २१६४।४ चरु (चरु) उ ३१५१,६४ १ चलनप्रमाण कर्दम: चलनीत्युच्यते Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०४ चामीकर-चित्त चामीकर (चामीकर) ज ३११ चार (चार) प २१४८,१६:५५ ज ७११,१०,१३, १६, १६ से ३१, ३५, ६६,७२,७५,७८ से ८२,८४,६५,६६,९८ से १००,१७१,१७३ से १७५ सू श६,११,१४,१६,१७,१६ से २४, २७:२२२,३,३१२:४।४,७,६६।१६।२ १०।१२१,१२२,१३।५ से १०,१२,१३,१७; १५१२ से ४,१८१,५,७,१६.१,५,८,११,१५, १६,२१,१६३२२१२,१३,२२,१६।२३ चारगसाला (चारकशाला) उ १८८,६१ चारद्विइय (चारस्थितिक) ज ७५५,५८ चारद्वितिय (चारस्थितिक) सू १९३२३,२६ चारण (चारण) प १९१ चारि (चारिन् ) प २०४८ चारिय (चारिक) प १७६३१ चारियत्व (चारयितव्य) प १७:३१,६७ चार (चारु) प २।४१,५० ज २११४,१५,३११०६, ११६,१३८,५१८ चारुभासि (चारुभासिन् ) ज ३७७,१०६ चारेयव्व (चारयितव्य) प २१।१०२; २२१७० चारोवग (चारोपण) सू १६॥२२२२१ चारोववष्णग (चारोपपन्नक) ज ७१५५,५८ सू १६१२३,३६ चाव (चाप) ज २।१५,३।३१,१७८ चावग्गाह (चापग्राह) ज ३।१७८ चाववंस (दे०) प ११४१२२ चास (चाष) प ११७६१७४१२४ चासपिच्छ (चाषपिच्छ) प १७।१२४ चि (चि) चिज्जति १२११९५,९६ चिउर (चिकुर) प १७११२७ चिउरराग (चिकुरराग) प १७१२७ चिचाराम (चिञ्चाराम) उ ३।४८,५५ चित (चित्) चितेमि प ११११ चितय (चिन्तक) उ ११३१ चिता (चिन्ता) ज ३१०५ उ २।११ चितिय (चिन्तित) ज ३१२६,३६,४७,५६,८७, १२२,१३३,१४५,१८८,५१२२ उ १११५,५१, ५४,६५,७६,७६,६६,१०५:३३२६,४८,५०, ५५,९८,१०६,११८,१३१,५१३६,३७ चितेमाण (चिन्तयत्) ज ३११८८ चिध (चिह्न) प २१३०,३१,४१,४८,४६ ज' ३३२४,३१,७७,१०७ से १११,११७,१२४, १७८ उ १।१२,१४० चिक्खिल्ल (दे०) प १२० से २७ चिट्ठ (स्था) चिट्टइ उ १।४७ चिट्ठई ज ११६, ४०,४७,३१५४,६३,७२,१३७,१४३,१६७, २२२,४११४०,१६८,२३४,२४०,२४१,५१६७, ६८ चिट्ठति प० २१६४;२।६४१२०१५।४३, ४५,२८.१०५:३४।१६,२२ से २४,३६,७६, ८१,६३,६४।१ ज १११३,३०,२१७ से ६,१३, ६० से ६२, ३।१११,११३;४१२,१२६,१३७; ५१५,७ से १२,३८,५७,६०,६७७।१८५,२१३ सू १८१२३ उ ३.४६ चिट्ठति प १५२५१,५२ सू १६२ चिट्ठह ।।११३ चिट्ठामि उ १.११७ चिट्ठाहि उ १।११५ चिट्ठज्ज प ३६१६१ चिठ्ठित (स्थित) सु २०१७ चिठ्ठिय (चेष्टित) ज २।१५, ३११३८ चिडग (चटक) प १७९ चिणण (चयन) प २१११११ *चिण (चि) चिण १४॥१८१ चिति प१४५१२ पिणियु, १४१११ चिणिस्संति प १४।१३ चिण्ण (चीर्ण) चं ३।१ सू १७,१८,१६,१३३१२, १४ से १७ उ ३३४८,५.०,५५ चित्त (चित्त) २८१ ज ६५,६,८,१५,१६,३१,५२, ५३,६१,६२,६६.७०,७७,८४,६१,१००,१०६, ११४,१३७,१४१,१४२,१५०,१६५,१७३, १८१,१६६,२०८,२१३,५१५,१५.१८,२१, २६,२७,२६,४१,५५,५७,७० उ ११२१,३१, Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्त-चुलसी ४२,१०८ ३ १३६;५/२० चित्त (चित्र) प १।११३, २०३०,३१,४१,४८,५० ज ३१२४१३,३७११, ४५२१, ७६, ११६, १२४, १३१३,१४५,१७८७११७८ चित्त (चैत्र) सू १० १२४ चित्तंतरलेस ( चित्रान्तरलेश्य ) ज ७ ५८ सू १६/२६ चित्तंतरले साग ( चित्रान्तरलेश्याक) सू १६१२२/३० चित्तकणगा ( चित्रकनका ) ज ५३१२ चित्तकूड ( चित्रकूट ) ज ४ १६६, १६६,१७२,१७३, १७६,१७८ से १८१, १८५, १६१, १६७, २००, २०६, २०७६ १० चित्तग (चित्रक ) प ११६६ चित्तगुत्ता (चित्रगुप्ता) ज ५६ १ चित्तपक्ख (चित्रपक्ष ) प ११५१ चित्तहुल ( चित्रकबहुल) ज २६४ चित्तय ( चित्रक ) प ११।२१ चित्तलंगमंग (चित्रलाङ्गाङ्ग) ज २११३३ चित्तलग (चित्रलक ) प १/६६ ज २३१३६ चितल (चित्र, चित्रलिन् ) प १।७१ चित्तविचितकूड (चित्रविचित्रकूट) ज ४१६४ चित्ता (चित्रा) ज ५।१२७ १२८, १२६,१३६, १४०,१४६,१६४,१६५ सू १०१२ से ६,१६, २३,४७,६२,७१,७२,७५,८३,११२,१२०, १३१ से १३३,१५४; १२।३० चित्तामूलय (चित्तामूलक ) प १७।१३१ चितार (चित्रकार ) प ११६७ चितिया ( चित्रिका ) प ११।२३ चिय (चित) प २३|१३ से २३ ज ३।२१७ चिय (एक) सू १०।१३६ चियेगा ( चितका) ज २६५, १६, १०३, १०४,११४ चियत्तदेह (रक्तदेह ) ज २२६७ चिरं (चिरम् ) ज ३।१२६ १,२ चिरंजीव ( चिरंजीव) ज ३।१२६ चिराईय ( चिरातीत ) चं ७ उ ५ ७ चिलाइ (किराती) ज ३३११११ चिलाइया ( किरातिका) ज ३१८७ चिलाय (किरात) ज ३११०३ से १०५,१०७, ११५,१२५ से १२७ चिलाविसवासि (किरात विषय वासिन् ) प११८६ चिल्लम (दे० ) प २१४१ चिल्लल (दे० ) प ११८६ २४, १३, १६ से १६,२८ चिल्ललग (दे० ) प ११ २२ चिल्ललय (दे० ) प ११०२१, २४ चिल्ललिया (दे० ) प ११०२३ चिल्लाय (किरात ) प १८६ चिल्लियतल (दे० ) सू २०१७ देदीप्पमान तल चौण (चीन) १८६ चपरासि (चीनपिष्टराशि ) प १७ १२६ चीवरधारि (चीवरधारिन् ) ज २२६६ ०५ चंचुंण (चुञ्चुण ) प १।६४।१ चंचुय (चुञ्चुक ) प १८ चुच्चु (दे० ) प १|३७|२ चुष्ण (चूर्ण) प १२४८ ३८ ज २२६५;३।११,१२, ८८ २०७ चुण्णग ( चूर्णक) उ३।११४ चुण्णवास ( चूर्णवास) ज ५।५७ चुणविहि ( चूर्ण विधि) ज ५३५७ चुणिया ( चूर्णिका ) प ११।७६ ज ७ २१,२५,६५, ६८,६६,७१,७२,७४२।३; १० १५२ से १६०,१६२,१६३,११।२ से ६ १२७, ८, १६ से २५ चुणियाभाग ( चूर्णिकाभाग) ज ७ २१,६६, ७४, ७५ चुण्णियाभाय ( चूर्णिकाभाग ) ज ७।२५,६५,६८, ७१,७२,७५,७७, ७८ चुणियाभेद ( चूर्णिकाभेद ) प ११७६,७९ चुणियाभेय (चूर्णिकाभेद ) प ११।७३,७६ चुय (च्युत) ज २८५ ७१५६,५६ चुलसीई ( चतुरशीति ) प २३४ ज २०७४ चं ४२ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुलसीति-चोरग चुलसीति (चतुरशीति) प २१४०११ सू २।३ चेडरूव (चेटरूप) उ ३.११४ चुलसीय (चतुरशीति) सू १११२ चेडिया (चेटिका) उ ३।१४१ चुल्लमाउया (क्षुल्लमातृका) उ १।१२,४३,४४, चेडी (चेटी) ११५४,५५,७६,८०,४।१२,१३ १४५,२१५,१७ चेतियखंभ (चैत्यस्तम्भ) सू१८३ चुल्लाहमवंत (क्षुल्ल हिमवत् ) प १६।३० ज १।४८; चेत्त (चैत्र) ज १०४ उ ३।४० ४।४८ चेत्ती (चैत्री) ज ७।१३७,१४०,१४६,१५५ चुल्लहिमवंतकूड (चुल्लहिमवत्कूट) ज ४१४४,४५, सू १०७,१६,२३,३६ ४८,५१,५२,७६,६६,२२६ चेदि (चेदि) प ११६३४ चुल्लहिमवंतगिरिकुमार (क्षुल्लहिमवगिरिकुमार) चेय (त्यज्) चेएइ उ० ४.२१ चेएसि उ ४१२२ ज ३११३१ से १३४,१३६,४१५२ चेलपेला (चे लपेटा) उ ३३१२८ चूचुय (चुचु ( ज २०१५ चेल्लणा (चेलना) उ ११०,३२ से ४१,४३,४४, चूडामणि (चूडामणि) प २।३० ३१ ज ३१३६, ४६,४८ से ५५,५७,५८,७० से ७४,८८,६५, १०६,११०,११३,११४ चूतलता (चूतलता) प ११३६११ वेव (चैव प१:१७ चूयमंजरी (चूतमञ्जरी) ज ३११२,८८,५१५८ चोइयमइ (चोदितमति) ज ३११३८ चूयवण (चूतवन) ज ४११६ चोक्ख (चोक्ष) ज ३८२,१०६ उ ३।५१,५६ चूयवडेंसय (चूतावतंसक) प २६५०,५२ चोताल (चत्वारिंशत् ) सू १२११२,१६११५१२ चूलासोइ (चतुरशीति) सू १८।२ चोत्तालीस (चत्वारिंशत् ) सू १०।१३६ चूलियंग (चूलिकाङ्ग) ज १४ चोत्तीस (चतु:त्रिशत् ) प २३६ ज ४।११० चुलिय (चलिक) ज २१४,४।२४२ सू ११२२ चेइय (चैत्य) ज ११३;२३१,६७,७१२२४ चं ७,६ चोइस (चतुर्दशन ) प २२६; ज ११४८ सू ११२,४,१८।२३ उ ११,२,६,१७,१६, सू३।११०१६३ १४४,२१४,१६,३१४,६,२१,२४,२६,४६,८६, चोहसपुब्धि (चतुर्दशपूविन्) ज ११५ ६५,१५५,१५७,१६८,१७१४।४,६,१३,१८, चोदाय (चतुर्दश) ज २।८८ २८,५१३६ चोहसरयणीसर (चतुर्दशरत्नेश्वर) ज ३११२६।३ चेइमखंभ (चैत्यस्तम्भ) ज २११२०४।१३३; चोट्सविह (चतुर्दशविध) प २३।१६,२० ७१८५ चोप्पाल (दे०) ज ४,१३७ आयुधशाला चेइयथूभ (चैत्य स्तुप) जरा११४,११५ चोप्पालग (दे०) ज २१२० वरण्डा चेइयरुक्ख (चैत्य रूक्ष,चैत्यवृक्ष) ज ४११२६,१२७ चोय (दे०) ज ३.१११३ चेट्ठा (चेष्टा) ज २११३३ चोयपुड ('चोय'पुट) ज ४११०७ चेड (चेट) ज ३।६,७७,२२२ चोयाल (चतुश्चत्वारिंशत् ) प २१४०।३ ज ७७६ चेडग (चेटक) उ ११२२,१०७,१११,११५,११६, सू ११८ ११६,१२८,१३७,१४० चोयालीस (चतुश्चत्वारिंशत् ) प २।३५ ज ७८ वेडय (चेटक) उ १२२,२५,२६,१०५ से १०७, चोयासव (चोयासव) प १७।१३४ १०६,११०,११३,११४,११६ से ११६,१२७, चोर (चोर) प १७१३२ उ ३।१२८ १२६ से १३४,१४० चोरग (चोरक) प ११४४१३ असबरक, एक बढ़िया Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवटि-छप्पण्ण घास जो रेशम रंगने के काम आता है २१६,२२१,२२२,२२४,२२५,२२८,२३०, चोवछि (चतुष्षष्टि) प२३१ २३२,२३४,२३७,२३६,२४२ से २४४ चोवत्तर (चतुस्सप्तति) ज ७८० छट्ठाणवडिय (षट् स्थानपतित) प ५१५.७।११५, चोवीस (चतुर्विशति) ज ७१०६ चोसट्ठि (चतुष्पष्टि) ज २।६४ छठ्ठी (षष्ठी) प २१२७१२ ज ७।१२५ छण्ण (छन्न) ज ३।३ छण्णउइ (षण्णवति) प २।४०।१,१२।३२ ज २।६; छ (षष् ) प १४६४.१ ज १११८ च ३३३ सू १७ ३.१७८ उ ५२५ छउमस्थ (छामस्थ) ५ १११०१।४,१११०४ से १०७, छण्णउत (षण्णवति) सू १६२१ छण्णउति (षष्णवति) सू २१३ ११७ से १२०,१२६; ३३१८३:१५।४४,४५; छण्णउय (षण्णवति) सू १६।११३२११७ १८।६४,९५,६७,६८,३६१८०,८१ छत्त (छत्र) ५ २६४८,६४,१११२५ ज २११५,२०, छउमत्थपरियाय (छद्मस्थपर्याय) ज २१८५ छक्कग (षट्क) ज ७१३१११ ३.३,६,१८,३१,३५,७७,७८,९३,१७८,१८०, छवखुत्तो (षट कृत्वस्) सू १२११० २२२,५।४३,५५,५७ सू १२।२६ उ १।१६; ४।१३,१८ छगल (छगल) प २१४६ छज्ज (राज्') छज्जइ ज ३१२४१४,३७४२,४५।२, छत्तहत्थगय (हस्तगतछत्र) ज ३।११ छत्तछाया (छत्रछाया) प १६।४७ १३१॥४ छठ्ठ (षष्ठ) प ३३१८,१८३,६१८०।२,१०।१४।४ छत्तरयण (छत्ररत्न) ज ३।११७।१,११८,११६, से ६,१२।३२; १७९६५ ; ३३।१६, ३६८५,८७ १२१,१७९,२२० ज २६५,८५७६७,११७१ सू १०७७, छत्तरयगत्त (छत्र रत्नत्व) प २०१६० १३।८ उ २।१०,२२, ३,१४,५०,५५,८३,१५० छत्तल (पट्तल) ज ३१६३,१३५,१५८ १६१.१६७,१७०।४।२४।५।२८,३६,४३ छत्ताइच्छत्त (छत्रातिच्छत्र) ज ४।३०,४६,५१४३ छट्टक्खमण (षष्टक्षपण) उ३१५० से ५४ छतागारसंठित (छत्राकारसंस्थित) सू ११२५,४।२ छट्ठभत्त (षष्ठभक्त) प २८१४७ ज २१५२,१६१ ।। छत्तातिच्छत्त (छत्रातिच्छत्र) सू १२।२६,३० छठाणवडित (षट्थानपतित) प ५१५,७,१०,१२ छत्ताय (छत्राक) प ११४७ कुकुरमुत्ता, धनिया, १४,१६,१८,२०,२४,२५,२८,३०,३२,३४, सोया, जाल बवूर का वृक्ष ३७,३८,४१,४२,४५,४६,४६,५३,५६,५६, छत्तार (छत्रकार) प १९६७ ६०,६३,६४,६८,७१,७४,७५,७८,७६,८३, छत्तालीस (षट्चत्वारिंशत्) सू १२।२५ ८४,८६,८६,६०,६३,६४,६७,१०१,१०२, छत्तीस (पत्रिंशत्) १ २१४०।४ ज ३१३ १०४,१०५,१०७,१०८,१११,११२,११६,१२६, सू १०.१६६ १३१,१३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७, छत्तोह (छत्रौघ) प ११३६।३ १५०,१५१,१५४,१६३,१६६,१६६,१७२, छप्पएसिय (षट् प्रदेशिक) प १०।११ १७४१७७,१८१,१८४,१८७,१६०,१६१, छप्पण्ण (षट्पञ्चाशत् ) प ११८४ ज ४१८६ १६३,१६४,१६७,१६८,२००,२०१,२०३,२०४, २०७,२०८,२११,२१२,२१४,२१५,२१८, छप्पण्ण (दे० षट्प्राज्ञक) ज २११६ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छप्पय-छत्तुं छप्पय (षट्पद) ज २०१२ १०१६३ से ७४:१६।५.६ छन्भंग (षट्भङ्ग) प २८६११६,१२३,१२५,१३३, छायागति (छायागति) प १६१३८,४७ १३६,१४३ से १४५ छायाणुमाणप्पमाण (छायानुमानप्रमाण) सू ६.३ छम्भाग (पभाग) प २१६४ ज १११८६३२।१।। छायाणुवादिणी (छायानुवादिनी) सू ६।४ छमास (पण्मास) सू १:१६ | छायाणुवायगति (छायानुपातमति) ५ १६:३८,४८ छम्मास (पण्मास) ज २१४६७।२३,२५,२८,३०, छायाल (पट्चत्वारिंशत् ) ५ २।४०।४ ज ४।८६ ५७,६० सू १११३,१४,१७,२१,२४,२७,२।३; छायालीस (पट चत्वारिंशत् ) सू१४१७ ६.१,१६।२५,२७ छायाविकंप (छायाविकम्प) सू ६।४ छम्मासावसेसाउय (छामासावशेषायुष्क) छारियभूय (क्षारिक भूत) ज २११३२,१४१ प६११४ छावट्ठ (षट्पष्टि) ज७।२७ छल (षष्) ज ७२०१ सू १२।१२ छावठ्ठि (पटपष्टि) प १८७६ ज १२० छलस (षडस्र) ज ३१६२,११६ सू १।११,१२१३ छलसीय (षडशीति) ज ४।४५७।३१ सू ४।४; छावत्तर (षट्सप्तति) ज ७१ सू१६।११,१११३ १५।२६ छावत्तरि (षट् सप्तति) प २१४०।२।। छल्ली (छल्ली) प ११४८१३० से ३७,६३ छिद (छिद) छिदति ज ५१५७ किमि उ १८८ छवि (छवि) ज २११६,३६,४१,१३३, ३११०६ छिज्ज (छेद्य) 3 ३१११४ छविच्छेय (छविच्छेद) ज २१३६,४१ छिण्ण (छिन्न) ज २१८८,८६३१२२५ छविधर (छविधर) ज ७१७८ छिण्णरहा (छिन्नरुहा) १११४८।३ गुडुची छविहर (छविधर) ज ७१७८ छिद्द (छिद्र) प २११० उ१६५,६६,१०५ छविध (षड्विध) प ६१११८ छिपणलेसा (छिन्नलेश्या) सू ६१ छविय (दे०) प ११६७ कट आदि बनाने वाला छिन्नसोय (छिन्नस्रोतस, छन्नशोक) ज २१६८ छविह (षडविध) प ११६१,६४,६५,६११६ छिप्पतूर (क्षिप्रतूर्य) उ ११३८ १३।६,१५१३५,७०,२११२६,३१,३२,३४,३६, छिया (दे०) ज २०६७ २२।८३,८४,८६;२३१४५,४६; २४।२,४,८, छोइत्ता (क्षुत्वा) ज२४६ १० से १२;२६१२,४,६,८ से १०:२६१६; छोरविरालिया (क्षीर विडालिका) प १७६ ३०।२ ज २।२,३,५०,५८,१२३,१२८,१४८, छोरविराली (क्षीरविदारी) प १४०१४; १५१,१५७,१६४,४।१०१,१७१ ११४८।२ सफेद और अधिक दूध वाली छब्बीस (पविशति) ५२।२३ ज ७।१०८ विदारी सू श२१ छाउद्देस (छायोद्देश) सू ६।२ छुरघरगसंठिय (क्षुरगृहकसं स्थित) सू १०३६ छाउमत्थिय (छाद्मस्थिक) प ३६।५३ से ५६,५८ छुरघरय (क्षुरगृहक) ज ७३१३३११ छाणविच्छ्य (छगणवृश्चिक) प ११५१ छुहा (क्षुधा) प २१६४।१६ छायच्छाय (छायाछाया) सू ६४ छेइत्ता (छित्त्वा) उ ३।१५०५१२८,४१ छाया (छाया) प२।३०,३१,४१,४६१६१४८ छेज्ज (छेद्य) ज ३१३२ ज ११८,२३,३१,२।१६,२०,१४६ ; ३१३,११७।१ छेत्ता (छित्त्वा) ज ७२२ सू १।१६ १२७,५।३२७।१५६ से १६७।१ सू ६१४; छेत्तुं (छेत्तुम् ) ज २१६११ Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छेद-जभग १०६ छेद (छिद् ) छेदेइ उ ३।८३ छेदेहिइ उ ५।४३ छेदित्ता (छित्वा) उ २०१२;३।१४ छेदेत्ता (छित्त्वा) उ ३१८३ । छेदोवठावणिय (छेदोपस्थापनीय) प१।१२४, १२६ छेदोवठावणियचरिस्परिणाम (दोपस्थानीय चरित्रपरिणाम) प १३११२ छेय (छेद) ज २३६,४१,६०,३११७८,५१५ छेय (छिद्) छेएइ उ ५१३६ छयणगदाइ (छेदनकदायिन्) प १२।३२ छेरमाण (रिच्यमान) उ ३।१३० छेलिय (दे०) ज ३।३१ छेवट (सेवार्त) ५२३१४५,९६,१०५,१०७.१०६, छोड़े (क्षिप्त्वा ) सू ६३ ज (यत्) प १४ ज १२६ सू ११४ उ ११२,३३१; ५।३६ जइ (यदा) प १२ जइ (यदि) प २६४।१६ सू १११३ उ १६; २।१,३३१,४:१;५१ जइ (यत्र) प२३.१६० जइण (जविन्) ज २।१०३।२,३५,३६,४७,६४, ७२,१०६,११३,१३८,१४५,५१५,२८,४४,४७, ६७७१७८ जइया (यावत् ) ज ७।१३१ जंगम (जङ्गम) ज ३।१०६ जंगल (जग) प ११६३।२ जंघा (जङ्घा) २११५ उ ३१११४ जंत (यंत्र) १२१३०,३१,८१ ज ३१३२,७६,१०६, ११६,१७८,४१२:७,५।२८ जंतु (जन्तु) ज २१४।१ जंपमाण (जल्पत्) ज ३१८१ जंबु (जन्तु, जम्बू) प १।३३।१।१३१ उ १३ से १. हे० ४।१४३ क्षिप्-छुह ५,७,९,१४२,१४४,२।२,४,१४,१६,२१,३१२, ४,१६,२१,२२,२४,८७,८६,१५३,१५५,१६६, १६८,१७०,४।२,४,२७,५२,४,४४ जंबुद्दीव (जम्बूद्वीप) प २३२,३३,३५,३६,४३,५०, ५१,१५१५४,५५१,१६।३०,३६।८१ ज १७, १५,१६,१७।१,१८,२०,२३,३४,३५,४६,४८, ५१,२।१,७,१६,५२,५६,६०,१६१,१६४,३३२६, ३६,४७,५६,११३,१३३,१३८,१४५,४।१,६, ५२,५५,६२,८१,८६,६८,११४,१५६,१६०, १६५,१६७,१६६,१७२ से १७४,१७८,१८१, १८२,२०१ से २०३,२०६,२१३,२६२,२६५, २६८,२७१,२१७४,२७७,२३,२२,२६,६३१,५,७ से २६;७१,४,८ से १४,३१,३३,३६ से ३६, ५२,५४,६२६३,६७ से ७२,८६,८७,६१,६२, १०१,१०२,१७५,१८२,१९८ से २०८,२१० से २१३ सू १११४,१६,१७,१६,२१,२२,२४, २७:२।१,३,३११,२,४।३,४,७,१०,६।१८११; १०।१३२,१४२,१४७,१२१३०,१८७,२०, १६।१,२,१६।२२।२३ उ ११९३७,६१,१२५, १५७:५।२४,४३ जंबुद्दीवपण्णत्ति (जम्बूद्वीपज्ञप्ति) ज ७।१०१,१०२, २१४ सू ३११ जंबू (जम्बू) ज ४।१४६ से १५०; १५१।१,२,१५.२ से १५४,१५६,१५७१२,१५८,१५६,२०८% ७२१३ जंबूणय (जाम्बूनद) ज ३।३०,३५ जंबणयामय (जाम्बूनदमय) ज ११५१,४१७,१३, ११८,१४३,२५६ जंबूपेढ (जम्बूपीठ) ज ४।१४३ से १४५ जंबूफल (जम्बूफल) प १७.१२३ जंबूफलकालिया (जम्बूफलकालिका) प १७:१३४ जंबूरुषख (जंक्ष) ज ७२१३ जंबूवण (जम्बूवन) ज ७।२१३ जंबूवणसंड (जम्बूक्नषण्ड) ज ७।२१३ जंभग (जुम्भक) ज २६६ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० जंभय-जम्म जंभय (जम्भक) ज ५७० १८६,२०४,२१४.२२१ जंभाइत्ता (जम्भयित्वा) ज २०४६ अणवयविहार (जनपदविहार) उ ३.४६,१४५,५१३३ जक्ख (यक्ष) प १११३२,२२४१.४५,१५१५५।३ जणक्यसच्च (जनपदसत्य) प १११३३ ज २१३१,३३१४,१८,३०,३१,४३,५१.६०,६८, जणिय (जनित) उ ३।४८,५० ६३,१३०.१३६,१४०,१४६.१७२,१८० जग्ण (यज्ञ) ज २१३० उ ३१४८,५० सू १६३८ उ ५।७,२४,२६ जण्णइ (यज्ञकिन् ) उ ३१५० जक्खग्गह (यक्ष ग्रह) ज २१४३ जण्णु (जानु) ज ३।१२.८८,५७,५८ जक्खाययण (यक्षायतन) उ ५७,८,२४,२६ जण्हवी (जाह्नवी) ज ३।१६७१११ जक्खोद (यक्षोद) सू १९३८ जत (यत) प २१३०,४१ जग (जगत्) ज ५५,४६ जति (यदा) प ५१२०५१३४ सू १९४२२१२६ जगई (जगती) ज १७ से ६.१२,१४,४।६,३५, जति (यत्र) प २३११६७ ३७,४२,४५,७१.७७,६०,९४,२६२ जतिविह (यतिविध) प १६४२० जगईसमिया (जगतीस मिका) ज १११० जत्ता (यात्रा) उ ३।३०,३१ जगती (जगती) सू ३।१ जत्तिय (यावत्) प १५।६६,१०३; २३११७५ जगप्पईवदाइय (जगत्प्रदीपदायिका) ज ५१५,४६ ज ७१२०० जघण (जधन) ज ३११३८ जत्थ (यत्र) ज ३१७६ उ ३।५५; ४१२१; ५३६ जच्च (जात्य) ज २१५,३३१०६,१७८ जदा (यदा) ज ७१२० जच्चकणग (जात्यकनक) ज २१६८ जदि (यदि) प ५१५ जठ्ठ (इष्ट) उ ३।४८,५० जप्पभिइ (यत्प्रभृति) ज २।६७ उ ३।११८ जडि (जटिन्) ज ३११७८ जम (यम) ज ७१३०,१८६।३ उ ३१५३ जडियाइलय (जटिकादिलक) सु २०१८१५ जम (काइय) (यमकायिक) ज ११३१ जडियायलय (दे० जटिकायिलक) सू २०१८।५ जमग (यमक) ज ४।११२ से ११५.११७,१२०, जढिलय (जटिलक) सू २०१२ १४०।२,१४१,१६५ जद (त्यक्त) ज ३।१२७ जमगपव्वय (यमकपर्वत) ज४।१११,११३,२०६, Vजण (जन्) जगइस्सइ ज २११४२,१४३,१४५ २६२, ६।१० जणेज्जा प १७१६६,१६७.१६६ से १७२ जमगवण्णाभ (यमकवर्णाभ) ज ४।११३ जण (जन) प १।१२ ज ११२६, २०६५,३।१,६५, जमगसंठाणसंठिय (यमकसंस्थानसं स्थित) ज४११० १०६ ११६,१३८,१५६ सू१११।६८, जमगसगम (दे०) ज ३११२.३१,७८,१०६,१८० १३६; ३।११४,११५,११६:५७,२०,२७ २०६:५१२४ जणक्खय (जनक्षय) ज २०४३ जमदेवया (वमदेवता) सू१०८३ जणणी (जननी) ज ५१५,४६ जमय (यमक) ज ४।११६ जणवद (जनपद) उ १५६६ जमल (कमल) ज १।२४, २११५,४१२७:५३५,२८ जणवय (जनपद) प ११।३३११ ज २११३१,३८१, जमालि (जमालि) ४११५; ५।२०,२७,३८ १८६,२०४,२२१ उ ११६४,६६,१०३ १०६, जमिगा (मिका) ज ४।१६० ११०,११३,११४,१२२,१२६,१३३ जम्म (जन्मन्) ५३६।१४ ज २०१०३,,१०४ जणवयकल्लाणिया (जनपदकल्याणिका) ज ३११७८, उ ११३४,३१६८,१०१,१३१ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्मण-जसंसि जम्मण (जन्मन् ) ज ५१३,५,७.१७,२२,२६,४४, ४६,६७ से ७०,७२ से ७४ उ २।३.११२; ४।१६५२५ जम्हा (स्मात् ) उ १।६३,२।६ जय (त) प २१३१ जय (ज) ज २११५.६४.६५, ३।५,६.१८,२६,३६. ४७,५६,६४,७२.७७.६०,६३ ११४,१३३, १३८,१४५,१५१.१५७.१७८,१८०,१८५, २०५,२०६,२२२, ५१५८, ७।११८ उ ११०७, ११०.११६,११८,१२२.१३०,५।१७ जिय (जि) जइस्स इ उ १।१५ जयंति उ ११३५ जयंत (जान्त) प १११३८ । २०६३,४।२६४ से २६६।६।४२,५६;७।२६, १५८६,६२,१००, १०२.१०५,१०८,१०९.११३,११४,११६, १२०,१२१,१२३,१२५,१२६,१३१,१३६; २८९६ ज ११५,४१६४ जयंती (जबन्ती) ज ४१२१२, २१२।४।५1८1१; ७।१२०१२,१८६ सू १०८।२ जयणा (यतना) उ ३३३१ जयहर (जधर) ज ३११२६११ जया (यदा) ज ५१ सू ११११ उ ३३११८ जया (जया) सू १०६०,१७०,१७२ जर (जरा) प १११११; ३६।८३।२ सू २०१६।६।। जर (ज्वर) ज २१४३ जरा (जरा) प २१६४,२०६४।६,२२,३६।१४।१ ज २८८,८६.१०३,१०४,१३३,३।२२५ जरुला (दे० प १५१ जल (गल) प ११७५ ज २११३४३६३२,८१,६८, १५१:४१३,२५ उ ३१५५ जिल (ज्वल ) जल ति ज ५७ जलंत (ज्वलत) ज ३११८८,४।६.१४,३१,४१,६८, ७६.६३ उ ३।४८,५०,५५६३,.६७.७०,७३, १०६,११८ जलकंत (जलकान्त ) प १५२०।४।२।४७१६ जलकिड्डा (जलक्रीडा) उ ३॥५.१,५६ जलचारिया (जलचारिका) प ११५१ जलट्ठाण (जलस्थान) प २१४,१३,१६ से १६.२८ जलण (ज्वलन) ज ३१३५ जलपह (जलपथ) प १६।४५ जलप्पह (जलप्रभ) प २१४०1७ जलमज्जण (जलमज्जन) उ ३१५१,५६ जलय (जलज) प ११४८।४० ज ४२६५७ जलय (जलग) ज ३।३२ जलयर (जलचर) प ११५४,५५,६०,३।१८३; ४।११३ से १२१,६७१.७८,८३,२१८ से १०,३२ से ३४,४३,५३.६० सू १०।१२० जलरुह (जरूरुह) प १।३३१,११४६ जलवासि (जनवासिन्) उ ३.५० जलविच्छ्य (जलवृश्चिक) ५ ११५१ जलाभिसेय (जलाभिषेक) र ३१५०,५१,५६ जलासय (जलाशय) प २।४,१३,१६ से १६,२८ जलिय (ज्वलित) ज ३१३५ जलोउय (जलोतुक) प ११४६ जलोया (जलौका) प ११४६,७८ जल्ल (दे०) ज २१३२ जल्लेस (यत्लेश्य) प १७१६२,१०२ जल्ललेस्स (गत्लेश्य) प १७१६२,१०२ जव (यव) प ११४५।१ ज २११५,३७, ३३११६ जवजव (यवयव) प ११४५।१ ज २।३७ जवण (पवन) प ११८६ जवणदीव (यवनद्वीप) ज ३।८१ जवणाणिया (यवनानिका) प ११८ जवणालिया (वनालिका) प ३३।२६ जवणिज्ज (यापनीय) ज ३।३०,३२,३४ जवमज्श (यवमध्य) ज २१६ जवसय (यवासक) प११३७।३ जवासा नामक पौधा, एक तरह का खदिर जवासाकुसुम (यवासककुसुम) प १७।१२५ जस (यशस् ) ज ३।३५,७७,१०६,१२६,१२६, १६७,१८५,२०६ जसंसि (यशस्विन्) ज ३१३,१२६१३ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२ जसधर ( यशोधर ) ज ७१११७।१ जसभद्द ( यशोभद्र ) ज ७ । ११७।१ सू १०८६।१ जसम ( यशस्वत्) ज २१५६,६१ जसवई ( यशस्वती) ज ७ १२१ सू १०/६१ जसोकित्ति ( यशः कीर्ति ) प २३|१६,२०,१५३ जसोकित्तिणाम ( यशः कीर्तिनामन् ) प २३१३८, १२७, १८८ जसोधर ( यशोधर ) सू १०८६१,८८ १ जशोहरा ( यशोधरा ) ज ४ । १५७|१५||१; १२०१ जस्संठित ( यत् संस्थित) सू ४ ३ जह ( यथा ) प ११११३ उ १११०६ जहण ( जघन ) ज २११५ जहण ( जघन्य ) प १२७४ २२६४८४३१ से ५४, ५६ से ६७,६१ से ८६, ६१ से १३३,१३५ से २६६, २६८, ५४०, ४१, ४४, ४५, ७७, ७८, ६२, ६३.६६,६७, ११०,१११, ११४,११५,१५३, १५४,१५६,१५७,१५६, १६२,१६३, १६५,१६६, १६८,१६,६।१ से १८,२० से ४५,६०,६१, ६४,६६ से६८,१२०,१२१, १२३, ७३२, ३, ६ से २६;११।७०,७१;१२१६, १३२२२; १५१४० से ४२; १७/१४६; १८१२ से ४, ६, ८ से १०,१२,१४ से १६, १८ से २४,२६ से २८.३० से ३६,४१ से ५४,५६,५७,५६ से ६७,६० से ७४,७६ से ८१,८३ से ८५,८७,८६ से ६१,६३,६५,६६, ८,१०३,१०४,१०५, १०७.१०८, ११०,११३, ११४,११६,११७,११६, १२०, २०१६ से १३, ६१,६३,२१1३८, ४० से ४२,४८,६३ से ७१, ७४,८४,८६,८७,६० से ६३,२३६० से ७६, ८१, ८३ से ६२, ६५ से ६६, १०१ से १०४, १११ से ११४,११६ से ११८, १२७,१२६, १३१,१३३ से १३५, १३८, १४०, १४२,१४३; १४७, १५१ से १५३, १५५,१५७,१५८,१६० से १६२,१६४ से १७३, १७६, १७७,१८२,१८३ १८६ से १८८, १६० से १६३; २८/२५,४७,५०, जसधर - जहण्णोगाहणम ७३ से ६६; ३३।२ से १३,१५ से १७,३६८ से १०,१७,१८,२०,३०,३४,४४,६१,६६,६८, ७०७२ से ७४,७६, १२ ज २१४४, ४५,५८, १२३, १२८, १४८, १५१, १५७, ४११०१, ७/२८, ५७,६०,१८२,१८७ से १६६,२०६ सू १।१४; १८।२०,२५ से ३४; १६१२, २०१३ जहण्णग ( जघन्यक ) प १७ १४४, १४६, २३ १५२, १८४ जहण्णगुण ( जघन्यगुण ) प ५२३६, ३७,५८,५६,७३, ७४,८८,८९,१०६, १०७,१८६, १६०, १६२, १९३,१६६, १६७,१६६,२००,२०२, २०३, २०६,२०७,२१०, २११,२१३,२१४, २१७, २१८,२२०, २२१, २२३, २२४, २४१,२४२ जहणतीय ( जघनःस्थितिक ) प ५१२३, ३४,५५, ५६,७०,७१,८५,८६,१०३, १०४, १७३, १७४, १७६,१७७, १८०, १८१, १८३, १८४, १८६, १८७,२३८,२३६ जहणवितीय ( जघन्यस्थितिक ) प ५१५६ जहणपएसिय ( जघन्यप्रदेशिक ) प ५२२८ जहण्णपदेशित ( जघन्य प्रदेशिक ) प ५।२२८ जहण्णपदेसिय ( जघन्यप्रदेशिक ) प ५।२२७ जहण्णय ( जघन्यपद ) ज ७ १६८,१६६,२०२, २०४,२०६, १२३२ जहणमति ( जघन्यमति ) प ५१६२,६३ जहणय ( जघन्यक ) प १५ ६४; १७ १४४; २१११०५;२३।१६३ ज ७।२६ सू १।१४,१६, १७, १९, २१, २२, २४, २७, २१३ ३२,४७,६ ६११८|१,६२ जणुक्कोसग ( जघन्योत्कर्षक ) प १७।१४६ हक्कोस (जन्योत्कर्षक ) प १५/६४; २११०५ जहणोगाहणग ( जघन्यावगाहनक ) प ५।२७, २८, ४८,४६,५२, ५३,६७,६८,८२,८३,१००,१०१, १५३,१५४,१६२१६३,१६५,१६६,१६८. १६६,२३३,२३४ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जहणीगाहणय जातरूववडेंसग जणोगा हणय ( जघन्यावगानक ) १५१२८,४६, ५२.६८,६१.६३,१००,१५४,१५६,१५६, १६३, ६,१६६,१६२,२३४ जहन्न ( जघन्य ) प ४।१०,१३४ जहा (मया) र ११ १०१११।१२ १२: २१२:३२:४१२.५. जहाणाम (पधानामन् ) सू २०१७ जहाणामय ( यथानामक ) प १६५२,५४, १७१०७,१०१.१११.११६.१९९.१२३ से १२,१३० से १३५: २६।१०५३४।१६ २६१४ ११३,२१,२६,३३,३८,४१:२७, १०.१८३८,५२,४७, १२२, १२७, १४७, १५०, १५६,१६१, १६४ १२:४१२, ८, ११.१०७ ५३५.७.३२ जहाभूय ( यथाभूत) उ ११४२ जहारिह (यथा ) ज २।११३३८१ जहाविभव ( यथाविभव) ५११७,२५ जहिय ( यचेष्ट) ज २०१६,२२ जहेव ( यथैव ) सू १७।१३१२१ जहोचिय (यथोचित) १०३५ जा (या) जति प ६०१ ७१३५४ जाइ (जाति) प १३८/२ छोटा आंवला. चमेली, जायफल जाइ (जाति) प ११४६,६०,६६,७५,७६,११/६ ज २६१२२५.३१३,१०६.५०५, ४६ सू ११६९२१.५ से १०.१२ से १७:१४३७ १४२,३४, ४१,७४३१५६५२६ जाइजमाण (च्यमान) १११०५ जाणा (विनामन् २३१०,६५,८७ मे १५० जानामनिलाउ (निनामनिवारक) १६।१२१ जाइय ( याचित) ३३८ जाइविशिट्ट्या (विष्ट) १२३१५८ जाहिल (ति) ११७।१२६ जाण (७१३२॥१ जाकविया (जातुकणिका) सू १०।१६ जाउला (जातुल्क ) प १।२७।५ जागर (जागर ) प ३।१७४२३।१६२,१९९ से २०१ जागरमाण ( जाग्रत् ) उ १११५, ३१४८,५०,५५,८७, ६८.१०६,१३१, ५/३६ जागरिया (जागरिका) उ ११६३ जाण (जा) आण १४८५६७।११२२५ जाणइ प ११।११; १७।१०८ से ११०:२३|१३; ३०१२७, २८ ज २७१७३११२ ११६८ जाति २०६४।१३:१५०४६ से ४२३३२ से १३,१५ से १८३४११११.२४१६ से ३.११. १२ ति प ११।१२ मे २०१५।४४, ४५ १७।१०६ से १०५,११०१११३०२५ मे २०३६००,८१ जागा हि १०।२२२ जाण (मान) ज २१२.२३.२०१०३३ १४१७, १९, २४, ४११२, १३, १५ जाणमाण ( जानत् ) ज २१७१ जाणय ( झ ) ज ३।३२ जाणवय (जानपद) व १४२६:३११,१२,४१,४९, ५८,६६,७४, १४७, १६०,२१२ से २१४ ६१३ सू १।१ जाणविमाण ( मानविमान ) ज ५१३, ५,२२,२६,२८, ३०,३२,४४,४५ उ ३७, ६१ जाणविमानकार (विमानकारिन् ) ५४९ जाणिकाम (ज्ञातुकाम) प २३०१३ जाणता (ज्ञात्वा ) प २३।१३ ज ३११२३३११६८; ५।४० आणियत्व (ज्ञात) १५१४३: १६।११:२३०१३ जा (वा) ३२६,१२,८८५१२१,५० जाणुकोवरमाया (जानुकूर) उ ३।२७,१३१६३।१०४,१३१ जात (यात ) प १।७५ जात (जात) ज २११४६,३३ जातकस्म (जातकर्मन् ) उ१।६३ : ३।१२६ यस (जातरूपावतंसक ) प २१५१ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ जाति-जिणवर जाति (जाति) प ११५०,५१,८१,८१११:२०६४, जालघरग (जालगृहक) ज २११३ २६४१२२:११।८ से १०,३६१६४।१ ज २११०; जाला (ज्वाला) प ११२६ ५१५ जाव (गवत् ) प ११३, २०३२ से ४०,४२ से जातिआरिय (जात्यार्य) प ११६२,६४ ४६,४८,५० से ६३,४।५५७१६ से ३०; जातिणाम (जातिनामन् ) प २३१८६,१५०,१५१ ८३,४,६ से ११;६॥२२:१०।१६ मे २५,२७ जातिणामणिहत्ताउय (जातिनामनिधत्तायुष्क) से ३०,३२ मे ४३,४५ से ५३; २०१५२,५६, __ प ६.११८,१२०,१२३ ६०,६३,६४ ज ११६ च १० सू११ उ १२; जातिनामनिहत्ताउय (जातिनामनिधत्तायुष्क) २१;३।१,४११:५१ - प ६१११६,१२३ जावइ (यावी) प ११३७१५ जातिपुड (जातिपुट) ज ४।१०७ जावइय (यावत् ) ज २१६४।१४०१२ जातिविसिठ्ठया (जातिविशिष्टता) प २३१२१ जावज्जीव (बावज्जीय) उ ३१५० जातिविहीणया (जातिविहीनता) प २३।२२.५८ जावति (यावी) प ११४३११ जातीय (जातीय) ज ३।१०६ जावतिय (कावत्) प १५१५१,५२ मू ६।३१३३२ जाधे (यदा) सू १६।२४ जावय (ज्ञापक) ज ५१२१ जाय (जात) ज ११६,२७१,५५,१२८,१४६; जावेत (मापयत् ) ज ३११७८ ३१८०,६५,६६,१०३ उ ११६६,६३,२१६; जासुमण (जपासुमनस्) प १।३७.१ ज ३।३५ ३।१३,४६,१०५,११३,१४४,१४६४१२१, जासुमणकुसुम (जपासुमनस्कुसुम) प १७११२६ २७,३४,३८ जासुवण (जपासुमनस्) प १४०६३ जाय (जन) जायइ ज ३।६२,११६ जायंति जाहा (जाहक) प १९७६ ज ३१६२,११६ जाहिं (बत्र) प २४९ ‘जाय (याच) जायेइ उ १।१०२ जाहे (यदा) ज ७५६ सू १६।२७ उ ११५२; जायकोउहरूल (जातकौतूहल) ज ११६ ३।१०६ जायणी (शचनी) प १११३७११ इजि (जि) जयति च ११ जायतेय (जाततेजस्) जे २।१२६,१५८ जिण (जिन) प ११६३१६,१११०१।३,४,१२; जायय (जातक) उ ३।३८ ३६०८३३२ ज ११४०२६३,७१,७८,८०, जायरूव (जातरूप) ज २१६८,४१२५५,५१५ ५१५,२१,४६, सू१६।२२११ जायरूवखंड (जात रूपखण्ड) प ११७४ इजिण (जि) जिणाहि ज ३।१८५ जायरूपवमय (जात रूपावतंसक) ५ २०५६ जिणसकधा (जिन सकधा') सू १८।२३ जायसंश्य (जातसंशय) ज ११६ जिणसकहा (जिन 'सकहा') ज २।१२०,४।१३४; जायसढ (जातश्रद्ध) ज ११६ उ ११४५२२ ७.१८५ जार (जार) ज ५१३२ जिणघर (जिनगृह) ज ४।१३६ जारु (चारु) प ११४८२ जिणपडिमा (जिनप्रतिमा) ज ११४०,४६४७,१२६, जाल (जाल) प ११११५ ज ३।६,१७,२१,३४,३५, १३६,१४७,२१६ १७७,१२२,१७८,५।२८ जिणभत्ति (जिनभक्ति) ज २।११३ जालंतर (जालान्तर) प २१४८ जिणवर (जिनवर) प ११२ चं ११४ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिणवरद-जीविय जिणवरद ( जिणवरेन्द्र ) प १११११ ज ५५८ जिणंद ( जिनेन्द्र ) प ५१४१ जिन्मगार (जिलाकार ) प ११६७ जिभिदिय ( जिह्न ेन्द्रिय) १५१,२,६,१३,१६, ३० से ३३,४२,५८,६४,६६, ७०, ८०: २८/४२, ४५,४६.७१३१३३ जिभिदियपरिणाम (ह्निपिरिणाम ) प १३४ जिमिया (जिह्निका ) ज ४१२४,३६,६६,७४, १०, ६१ जिमिथ ( जिमित ) ज ३१८२ उ४।१६ जिय ( जित) ज ३११३५१२,१८५,२०६ जियंतय (जीवन्तक) प ११४४१२ जीवंत शाक जियंति (जीवन्ती ) प ११४००४ अन्य वृक्षों पर रहकर फैलने वाली लता जिर्यानिद्द ( जितनिद्र ) ज ३४१०६ जयपरीसह ( जितपषह ) ज ३।१०६ जिसत्तु ( जितशत्रु ) ज १३ च ८ सू ११३ उ ४१६ जीमूय ( जीमूत) प १७।५२३ जीव ( जीत ) ज २२६०.११३३१२६,३६,४७,५६, १३३,१३८, १४५, ५१३,२२,२७ जीव (जीव ) प १।४७११, ११४८१७ से ४३,४५, ४७, ४० से ५१,५५ से ५६, ११८४,१०१।२; २३६४, ३।११२, ३११,६६ से ११३,१२३ से १२५,१४१ से १४३.१५० से १५२.१७४, १८३,६ । १२०, १२३, ६११२,१६,२५.२६; १० ३१,११।३०, ३८.३६, ४३.४६, ४७,७० मे ७२,८० से ८२,८४,८५,६०,१२।१० ; १४|११ से १५.१७.१८,१६१२.१०,१६. २१,२३,१७१६८४.८६, ११२,११३; १८११११, १८११,१६६१; २०११,६३; २११८४; २२७ से १०.१२ से २२.२४ से २७,२६ से ४०,४२ से ४५,४८ से ५०,५२ से ५६,५८, ५६,६७ से ६६,७५ से ६५ से ६४,६६, ६७.१००; २३५१।१.२३।३.५ से ७,६ से ११, १३ से २३,१३४ १३५,१३७ से १३६, १५५, १५७.१६०,१६१,१६४.१६७, १७१,१७६. ६१५ १९३, २४१२ से ४, ६ से ११, १३ से १५ ; २५/२, ३, ५, २६।२ से ४, ८, ६,२७१२, ३, ६; २८।१०६, १०८, १०६,१११ से ११८,१२० से १२६,१२८ से १३३, १३६ से १४५, २६/४, १६, १७, २२,३०२४,१४ से १६, २४, ३१११,४; ३२३१,६११ : ३५/६; ३६११।१,३६।३०, ३२, ३५,४६ से ४८, ५२, ५६, ६२ से ६६, ६९, ७०, ७२ ७३, ७४, ७७, ७८, ६४ ज २२६८, ७१,५१५,४६; ६/४७१२११,२१२ उ ११६०,६१,३/१४२, १४४; ५।३४ / जीव (जीव ) जीव ज ३।१२६१२ जीविस्सइ उ १११५ जीवंजीव ( जीवंजीव ) प १७८ जीवंजोग (जीवजीवक) ज २०१२ जीवंत ( जीवत् ) उ १११०६,११०,११४ जीवंत ( जीवत्क ) उ ११६६,१०३,१३३ जीवण ( जीवधन ) प २२६४१२३६॥६३,६४ जीवणिकाय ( जीवनिकाय) प २२३१०,७८ ज २७२ जीवत्थिकाय (जीवास्तिकाय ) प ३।११४, ११५, ११६,१२२ जीवदय ( जीवदय ) ज ५।२१ जीवपज्जव ( जीवपर्यव ) प ५१ से ३,१२२ जीवपण्णवणा ( जीवप्रज्ञापना ) प १११,१० से १५, ४६ से ५२,१३८ जीव परिणाम ( जीवपरिणाम ) प १३११,२,२० जीवमाण (जीवत् ) उ १।१५,२१,२२ जीवमिस्सिया ( जीवमिश्रिता ) प ११1३६ जीवलोक ( जीवलोक) ज २६५; ३१३१,१२४ जीवा (जीव) ज ११२०, २३, ४८ ३ २४; ४|५५, ६२,८१,८६,६८,१०८,१७२,२६२,२६५, २७१, २७४ १।१६:२।१६ १०११४२, १४७:१२/३० ; २०११ ११३८ जीवाजीवमिस्सिया ( जीवाजीवमिश्रिता ) प ११३३६ जीवाभिगम ( जीवाभिगम ) ज ११११ ; ५/४६,५१ जीवि (जीवित) प ११४८५,४१,२२२६ ज २२७० ११२२,२५,२६,३४, १४०३६८, १०१. Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६ १३१,१५६ जीवितकरण ( जीवितान्तकरण ) ज ३१२४ जीवियारिह ( जीवितार्ह ) ज ३१६ जोहा ( जिह्वा ) प २१३११५। ७७,८१,८२ ज २११५; ३११०६७ १७८ जुइ ( द्युति ) प २ । ३१ ज ३३१२,७८,८८,६२,११६, १२६,१८० ५१२२,२६ जुंज (युज्) जुंजइ ३६८६,८७,८६,६० जुजति प ३६।८६ से १० सू १५।१० जुंजमाण ( युञ्जान ) प ३६८७,८ से १ जुंजिता ( युक्त्वा ) सू १५।१० जुग ( युग ) ज २४, ६, १४१ से १४५; ३।३, ११५, ६ १ ८ १ ; १०११२२,१२३,१२७, १२१६; १३३; १५१३५ से ३७ ११६,१२२,१२४,७१२७ तरभूमि ( युगान्तकरभूमि ) ज २१८४ जुगप्पत्त ( युगप्राप्त) सु १२८ जुगमच्छ ( युगमत्स्य ) प ११५६ जुगव ( युगपत् ) प ३६ ६२ ज ५१५ जुगसंच्छर ( युगसंवत्सर) ज ७।१०३, १०५, ११० सू १०।१२५, १२७ जुग्ग ( युग्य) ज २।१२,३३ जुज्झसज्ज ( युद्धसज्ज ) उ १।१२७,१२८,१३३ जुज्झ ( युध् ) जुज्भंति उ ११३६ जुज्झह उ १११२६ जुज्झामो उ १।१२८ जुज्झित्था उ १११२७ जुण्णकुमारी ( जीर्णकुमारी) उ ४१६ जुष्णा ( जीर्णा ) उ४| जुति (द्युति) प २३३०,३१,४१,४६ ज ५।२०६ जुत्त ( युक्त) ज २।१५ ३।३,३५,७७, ६५, १०६, १३८,१५६,२११, ४१२७ ५२८ ५८७११४१ से १४४,१५० से १५२,१७८ सू १०।२० से २२,२५,१७२,१७३, १६२२१२७; २०१७ उ १।१७,११६,१२८ जुति (युक्ति) ज ३।२०६ जुति (युक्ति, द्युति) उ५१२।१ जुद्धणी ( युद्धनीति) ज ३११६७१६, १७८ जीवित करण-जो इस जुद्धसज्ज ( युद्धसज्ज ) उ ११११५ से ११७ जुम्ह ( युष्मत् ) सू १६ उ ११२२,३२६, ४१११ जय (ग) ज ७।११० जयगद्ध ( युगन ) सू १२ १२६ जुयल ( युगल) ज ११२४; २।१५,१००, ३।२११; ४ २७,३०५१५,२८,५६,६७६७ १७८ उ ३।१३४ जुथलग ( युगलक ) ज २०४६ उ ३११२६ जुवराय ( युवराज ) प १६।४१ ज २।२५ जुवलय ( युगलक ) प २२४०१२ जुवाण ( युवन् ) ज ५१५ जुवण ( यौवन ) ज ३|१३८ जू (यूप) ज २।१५ जया ( यूका ) प १५० ज २२६,४० जूब (ग्रुप) ज ३।३ उ ३२४८, ५०, ५५ जूस (यूष ) सू १०/१२० जूहिया ( यूथिका ) प १३८।२ ज २११०३।३ जूहियापुड (यूथिकापुट ) ज ४११०७ जेठ (ज्येष्ठ) ज ११५;३।१०६ चं १० सू ११५ जेट्ठपुत्त ( ज्येष्ठपुत्र) उ ३११३,५०,५५ जेठा ( ज्येष्ठा) ज ७११२८,१२६,१३४१२, १३५।२,१३६,१४०,१४६, १५२,१६६ स १०/२ से ६,१८,२३,५१,६२,७३,७५,८३,११६, १२०, १३१ से १३५ जेट्ठामूल (ज्येष्ठामूल) ज ७|१०४,१४६,१४६, १५५ १०११२४ उ ३१४० जेट्ठामूली (ज्येष्ठामूली ) ज ७ १३७,१४० सू १०७,१८,२२,२३,२६ जेणामेव (यव) प ३४।२२ ज ३।५ जोअ ( द्योत ) सू १९१२२१२७ जोइ (ज्योतिष) सू १४८, ६, ११ से १३ जोइस ( ज्योतिस्, ज्योतिष ) प २२४८ ३४।१८ ज १।२४; २३६४ से ६६,१००,१०२,१०४, १०६, ११०,११३ से ११७५/४७,६७, ७२ से ७४,७३१७१ से १७४ चं ५/४ सू ११६१४; १६२२१२ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोइसगणरायपण्णत्ति-जोय जोइसगणरायपण्णत्ति (ज्योतिर्गणराजप्रज्ञप्ति) १७३।१२।२६।१५।१०:१६।२२।१० उ ३१३१ चं १३ जोगपरिणाम (योगपरिणाम) प १३।२,१४,१६, जोइसपह (ज्योति:पथ) प २।२०,२४,२५,२७ १७,१६ ज ११२४ जोगसच्च (योगसत्य) प १११३३ जोइसप्पह (ज्योतिःपथ) प २।२२,२३,२६ जोगि (योगिन् ) १३६१६२ जोइसराय (ज्योतीराज) ज ७।१८३ से १८५ जोग्ग (योग्य) ज ३११०६:५७,४१ उ ३७ जोइसरायपण्णत्ति (ज्योतीराजप्रज्ञप्ति) चं ११४ जोणय (जोनक) ज ३।८१ म्लेच्छ जोइसिंद (ज्योतिरिन्द्र) प १४८ ज ७।१८३ से जोणि (योनि) प ११११४,११४८१६३,२१६४;६? १८५ उ ३१६,१५ से १८ से ४,६ से ११,१३ से १७,१६ से २३,२६ जोइसिदत्त (ज्योतिरिन्द्रत्व) उ ३।१४ ज २११३५ से १३७,३।३ जोइसिणी (ज्योतिषी) ५ ३११३८,१८३;४।१७४ जोणिप्पमुह (योनिप्रमुख) प १२०,२३,२६,२६, से १७६,१७१५३,७८,६२,८३,२०।१३ ४८,५०,५१,६०,६६,७५,८१ जोइसिय (ज्योतिधिक) प १११३०,१३३, २।४८; जोणिभूय (योनिभूत) प ११४८१५१ ३१२८,१३७,१८३,४।१७१ से १७३; ५३, जोणिय (योनिक) ज ३११११ २६,१२२;६।२६,४६,५६,५६,६५,६६,८५,९४, जोणिसूल (योनिशूल) ज २१४३ । १०६,१११,११७७।६।६।११,१८,२४,१५१३५, जोणीपमुह (योनिप्रमुख) प ११४६,७६ ४८,८७,६६,१२४; १६१६१७४२७,३०,५३, जाह (ज्योत्स्न) १०११३१,१८।१,५,६; ७८.८१,८३,६६,१०५;२०।१३,१६,२५,३०, १९।२२।१६,२०;१६६३१ ४८,५४,६०,२१।५५,६१,७०,६०; २२१३१, जोतिस (ज्योतिष् ) प २।४८,३१।६।१;३४।१६ ३६,८८,१००,२८1७३,११७,२६।१५,३११५ सू १०११३१,१८।१,५,६:१६६३१ ३३११५,३०:३५।१५,२२,२३ ज २१६४ जोतिसराय (ज्योतीराज) सु १८।२१ से २४; ४॥२४८,२५० से २५२,५१५३,५६,७२ से ७४; २०१४,६,७,६।१ जोतिसिद (ज्यौतिरिन्द्र,ज्यौतिषेन्द्र) स १८१२१ मे ७१८५ २४,२०१४,६,७ जोइसियत्त (ज्योतिपिकत्व) प १५१२६ जोतिसिणी (ज्यौतिषी) मू १८१२६ जोइसियराय (ज्योतीराज) प २०४८ जोतिसिय (ज्योतिधिक) ५ १२१६,३७,१३१२०, जोईरस (ज्योतीरस) ज ५१५ १५।१०४,१०७,१६१६१७।३३,३४,६१; जोएअव्व (योजयितव्य) प १०।२६ १६१४,२०।३५,३७,२२।७५:२६॥२२३२।५; जोएत्ता (युक्त्त्वा ) सू १०५,१५८६ ३३।२३,३४,३७,३४१४,१०,३५२२३३६१२६, जोएमाण (युञ्जत् ) ज ७१४१ से १४५,१५०, ४१,७२ १८२३,२५,१६।२२ जोतिसियत्त (ज्योतिषिकत्व) प १५५१११,३६।२२ जोग (योग) प३।१११:११३३११:१८११११ जोत्तग (योक्त्रक) ज ७।१७८ २८॥१०६१३६।१२ ज २१६५,७१,८८,६५; जोय (योग) ज ३११७८,७१२६ सू १०२,३,५, ३।१५६,२२५७।१,११२१२,१२७।१,१२६, ७५,१२२,१२३,१२६१,१३२ से १३४,१३६, १३०:१३४।१,४,१३५,१३८ से १४०,१६७११ १६२ से १६६१२।२६,३०,१५।८,११,१२, चं १३,५.१ सू ११६३,१।६।१:१०.१,५,१७२, १३,१६।१,५,८,१५,१६,२१,१९४२२१२१ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ जोय-असणा जोय (युज) जोइंति ज ७/१२६ जोइंसु जोयणसहस्सहत्तिय (योजनसहस्रपृथक्रिक) ज ७११२६ जोइस्संति ज ७१२६ मू १६१ प ११७५ जोएइ ज ७/१२६ जोएंति ज ७।१,११२१२ जोवण (यौवन) प २।३१,३४१२० ज २११५; सू १०१५,१२६।१,२ जोएंसु ज ७।१ सू१०।७५ ३।६२,११६,१३८,५६८,७० सू २०१७ जोएति सू १०१२० जोएस्संति ज ७१ उ३।१२७ सु १०७५ जोयंति ज ७/११२११ जोव्वणग (यौवनक) २३१२७ १२८,५१४३ जोयण (योजन) प १७४,७५,८४,२।२१ से २७, जोह (योध) ज ३।१५,२१,२२.३१,३४,३६,७७, २६ से ३६,३८,४१ से ४३,४६,४८ से ५५, ७८,६१,६८,१६७।६,१७३,१७५,१६६ ५६,६३,६४,१११७२,१२१२७,३६,१५१४० से उ १११२३ ; ५११८ ४२,२११३८,४१ से ४३,४५,४७.१,२,२११६३, ६८ से ७०,८७,३३।१०,११:३६१६६.६८, . झंझावाय (भ.झावात) प १२६ ७०,७२,७४८१ ज ११७,८,१२,१४,१६, झय (ध्वज) ज ११३७,२।१५,२०,३१७,३१,३५, १७।१,१८,२०,२३,२८,३२,३५,४६,४८,५१; २१६३११,१८,२५,३१,३८,४६,५२,६१,६६, १७८,१७६ ७६,८१,६५,६६,१११,११६,११८,१३१,१३२, झया (ध्वजा) उ १२२,१४० झल्लरि (भल्लरी) प ३३।२३ ज ३।१२,७८, १३७,१४१,१५६,१६०,१६४,१८०,१६२; १८०,२०६ ४।१,३,६,७,१४,२३ से २५,३१,३६,३८ से ४३,४५,४७,४६,५२,५५,५७,५६,६२,६४ से झस (झस) ज ३३ ६८,७२ से ७८,८१,८६,८८,६० से १५,६८, झिा (ध्य) भियाइ र १४१५३९८ झिामि १०३,१०८,११०,११२,११४ से ११६,११८ उ ११४० झियासि उ ११३७ मिह उ २४२ से १२८,१३२,१३६ से १४१ १४२११,१४३, झिाहि उ ११४१ १४५,१४६,१५३,१५४,१५६.१६३ से १६५, झाण (ध्यान) उ३१३१ १६६,१७४ से १७६.१७८,१८३,२००,२०१, झाणंतरिया (ध्यानातरिका) ज २१७१ २०३:२०५ से २०७,२१३,२१५ से २१९, झाणकोट्टोवगय (ध्यानकाप्टोपगत) ज ११५; २२१,२२६,२३४,२४० से २४३,२४५,२५७ १८३ उ ११३ से २५६,२६२,५।३,५,७,२२ से २४,२८.३५, झिाम (दह ) भामेति ज २।१०८ झामेह ज १०७ ४३,४४,४६,५०,५३, ६६.१,६८,७।३ से झिगिर (दे०) ५ ११५० २५,३१ से ३४,५८,६२ से ८४,८६,८८,८६, झिगिरिड (दे०) ५ १५० ११ से १६,१७१ से १७४,१८२,२०७ ‘झिया (ध्य,ध्मा) झियायंति ज ३।१०५ सू १११४,२० से २४,२६ से ३१:११,३, झियायमाण (ध्यायत) उ ११३६,३७,४२,७१ ४।३ से ५,७,८,१०,१८११,५,६,६ से ११,२०, झिल्लिया (झिल्लिका) ११५५० १६४,७,१०,१४,१८,२०,२२।२८,२६, झिल्ली (झिल्ली) प ११४८१४२ १६।२३,२६,३०,३४,३७, उ १५१३४३७, झुसिर (शुषिर) ज ५।५७ २०११ ६१:५४ झूस (शोपय् ) भूसेइ उ ३१८३ महिइ जोयणपुहत्तिय (योजनपृथक्त्विक) प ११७५ उ ५१४३ जोयणसत्तपुहत्तिय (योजनशतपृथक्त्विक) प १७५ असणा (जोषणा) ज ३१२२४ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असित्ता-ठिति ६१६ झूसित्ता (शोपवित्वा) ११८ झूसिय (जुष्ट) ज ३।२२४ झूसेत्ता (शोषयित्ता) उ ३.८३,५१४३ झोसेत्ता (शोपयित्वा) उ २११२३।१० ठिइ (स्थिति) प ११११४:४१५:५१५,८४,११५, १४८,२१४,२३।१६३ ज २१५६,७१,१५६; ७।१६८।२,१८७ उ १४१,४३,२११२,२२; ३।१६,८५,१२४,१५०,१६४,१६६,१७१; ४१२५:१२६,४२ ठिइकल्लाण (स्थितिकल्याण) ज १८१ ठिइक्खय (स्थितिक्षय) उ३११८,१२५,१५२,४।२६ टंक (टङ्क) प १११ टिट्टिय (दे०) ज ५१६ टोलकिति (दे०) ज २१३३ TER Vठव (स्थापय ) ठवइ ज २१६५ ठविस्मति ज २११४६ ठवेइ ज २१६५ उ १११६,३।५१; ४११८ ठवें तिज २।१०४ ठवेसि उ ३७६ ठवेहि प ११४८।५८,५६ ठवणा (स्थापना) प ११:३३३१ ठवणासच्च (स्थापनासत्य) प १११३३ ठिवाव (स्थापय ) ठवावेइ उ ११४६ ठयाविता (स्थापयित्वा) उ०४६ ठवेत्ता (स्थापयित्वा) उ १.१६ ठविय (स्थापित) ज ३१८१ ठवेत्ता (स्थापयित्वा) १६५ ठा (प्ठा) ठाइ उ ११२२ ठाईऊण (स्थित्वा) ज ३।२४ ठाण (स्थान) ११५४,८४, २१ से ३६,४१ से ४३,४६,४८ से ५२,५४ से ६४, ६।११०, १४१५,११ से १५,१७; १७/११४११,१७११४३ स १८५२३।११२३१६,७,१६० ज ३२४, ८६,१०२,१५६,१६२,५१२१,७५६ से ६० सू १०।१३८ से १४१,१४३ से १४६,१४८ से १५१:१६२४,२७ उ ११२२,१४०,३१५१।१ ३१८३,११५,१२०४।२१,२२,२४ ठाणठित (स्थानस्थित) सू१६।२६ ठाणमम्गण (स्थान मार्गण) प २८६,५२ ठाभिज्ज (स्थानी ) उ ११४४,४५ 'ठाव (स्थापय ) ठावेगि उ ३३१३ ठावेत्ता (स्थापयित्वा) उ ३५० ठिइय (स्थितिक) उ १२६,१४०:२०२० ठिईय (स्थितिक) ज ११२४,३१,४६,४७,२१४४; ३१२२५,४।२२,३४,५४,६०,६१,६४,८०,८५, ८६,६७,१०२,१४१,१४२,१६१,१६७,१७७, १८६,१६६,२०८,२६१,२७०,२७२:७५५, ५८,२१३ ठिच्चा (स्थित्वा) प १७४१०७,३४१२२,२३ उ ११२०,३१२६ ठितलेस्स (स्थितलेश्य) प २०४८ ठिति (स्थिति) प ४१ मे ४,६ से ४६,५६ से ५८, ६५,७१,७६,८८,६५,६८,१०१,१०४,११३, १३१,१४०,१४६,१५८,१६५,१६८,१७१, १७४,१८३,२०७,२१०,२१३,२६४,२६७, २६६,५७,१०,१२,१४,१६,१८,२०,२४ से २६,२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६,५०,५३, ५६,५६,६३,६८,७१,७२,७४,७८,८३,८६,८६, ६३,६४,९७,१०१,१०२,१०४,१०५,१०७, १११,११२,११६,१२२,१२६,१३१,१३४, १३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७,१४८, १५०,१५४,१६३,१६६,१६६,१७०,१७२, १७४,१७५.१७७,१७८,१८१,१८२,१८४, १८५,१८७.१८८,१६०,१६३,१६७,२००, २०३,२०७,२११,२१८,२२१,२२४,२२८, २३०,२३२,२३४,२३५,२३७,२३६,२४०, २४२,१००५३।१:२३३१३ से २३,६० से ६४, ६६,६८,६६,७२ से ७७,८०,५१,८३,८५ से ६०,६२,९३,९५ से १६,१०१ से १०४,१११ से ११४,११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१३३, Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ठितिपडिया-पक ख १७६,१७७,१७६,१८१,१८२,१८३,१८५, पई (नदी) ज ४१२००,२०२,२१२ १८७,१६० से १६३;२८१५,३६५८२११,८३१ । णउति (नवति) १८१ गु १८।२५,२६ से ३४ णउय (नवति) ज ११८ ; ४१२५६१८७८२, ठितिणामनिहत्ताउय (स्थितिनामनिधत्ताश्रूष्क) प ६.१२२ णउल (नकुल) प ११७६ ठितिनामणिहत्ताउय (स्थितिनामनिधत्तायुक) णं (दे०) प ११२० ज ११३ सू ११२ उ ११५; २११; प६११८ ३११,४११:५।१ ठितिपडिया (स्थितिपतिता) उ ११६३ जंगल (लाङ्गल) ज ।३ ठितीचरिम (स्थितिचरम) प १०॥३४,३५ णंगलई (लाङ्गलिकी) प४८१६ ठितीणामणिहत्ताउय (स्थितिनामनिधत्तायुक) गंगलिय (लाङ्गलिक) ज १६४६४१८५ प६.११६ गंगूल (लाल) ज ७११७८ ठिय (स्थित) प १११४७,४८,८० से ८३ गंगोलि (लागुलिन्) १११८६ ज ३१६२,११६,१३८,५३,२८,७५८ सू१११७ द (नन्द) ७११८ उ १११६ गंदणवण (नन्दनवन) ज २१६५,६६४१२१४, २३४,२३६,२३७,२३६,२४०,५१५५ णंदणवणकड (नन्दनवनकट) ज ४१२,३६ डंस (दश) ज २।४० णंदणवणविवरचारिणी (नन्दनवनविवरचारिणी) डब्भ (दर्भ) प ११४२१ डमर (डमर) ज २१४२ ज २१५ णंदा (नन्दा) ४१८०५।८।१,६८:४११८ डमरबहुल (उमरबहुल) ज १३१८ सू१०१६० डिह (दह) डहेज्जा ज २६ डाव (दे०)उ ११३८ गंदापुक्खरिणी (न-दापुका शी) ४१२२१ डिब (डिम्ब) ज २१४२ गंदावत्त (नन्दावत्त ) प १७१११ ज ३।३,३२ डिबबहुल (डिम्बबहुल) ज १६१८ णं दिघोष (नन्दिपंग) २.१६३१३०,५१५२ डिभय (लिम्भक) उ ३१६२,११४,१२३,१३० णंदिपुर (नईन्दपुर) प ११६६।३ हिभिया (डिम्भिका) उ ३।६२,११४,१२३,१३०, शंदिय (नन्दित) २१ णंदियावत्त (नन्द्यावत) ५ ११४६ ३।१७८; डोंगरू (दे०) ज २।१३१ ४।२८,५१४६३ डोंब (दे०) प १८६ णंदिरुक्ख (नन्दिरूक्ष) प १।३६।२ डोंबिलग (दे०) प १८६ दिबद्धणा (नन्दिवर्धना) ५.८१ कंदिस्सर (नंदिस्वर)) २११६:४८८,५२,७४ सू१९६३१ ढंक (ध्वाक्ष) प १७६ ज २१४०,१३७ णंदुतरा (नन्दोत्तरा) २८१ ढिकुण (दे०) प ११५१११ ज २।४० पका (नन्ह) प १५६ णक्क (ना) ११८६ ण (न) प १।१०१।३ ज १६ मु१३१४१०१२६ णक्ख (नख) १५,१६३१७८ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक्सत्त-णसगवयण ६२१ णक्खत्त (नक्षत्र) प १२० से २२,४६,५१, ज १२६,४११७२ १५१५५।३ ज १५२४२१६५,७१,५८,१३८; णग्गोह (न्यग्रोध) प ११३६१२ ज २०७१ ३।२०६,२२५७।१,५५,५८,६५,६६,१००, गरगोहपरिमंडल (न्यग्रोधपरिमण्डल) प १५१३५; १०३,१०४,१११,११२।१,२,११३,१२६, २३।४६ ज ७१६७ सू १०७४ १२८,१२६१,१३० से १३३,१३४।२,३,४, पणच्च (नत) पच्चंति ज ३।१०४,१०५:५।५७ १३५४४,१३८ से १४५,१४७,१४८,१५०, णच्चण (नर्तन) प २१४१ १५१,१५२,१५६ से १६७,१७०,१७५, णिज्ज (ज्ञा) णज्जइ ज ३११०५ १७७१३,१७८१२,१८०,१८१,१६७ च ५।४ पट्ट (नाट्य) प ६३१,४१ ज २१३२,३८२, सू १०११ से ५,८ से २५,२७ से ३१,३३ से १६७।१०,१८५,१८७,२०६,२१८,५१,१६, ४२,४४,४६ से ५६,६१ से ७५,७७ से ८३, ५७,७१५५,५८,१८४ सू १८१२३:१६४२३,२६ १२ से १०७,१०६ से १२०,१२२,१२३,१२८, णमुमालग (नाट्यमालक) ज ३११५०,१५१ १२६।१,२,१३० से १३५,१५२ से १६६, णमालय (नाट्यमालक) ज १५२४,४६, ६.१६ १७१ से १७३,१११२ से ६१२।१६ से २८, मद्रमाल (नाट्यमाल) ज २।८ ३०; १३।११,१४,१५.१,२,४,६ से ६,११, णट्रविहि (नाट्यविधि) ज ३।१६७।१०,५१५७,५८ १२,१४ से १६,१६ २२,२५,२८,३४,३७, णट्टाणीय (नाट्यानीक) ज ५१४१,४४ १८१४,७,१८,१६,३७, १६।१।१,५२,८१२, गट्ठरय (नष्टरजस्) ज ५७ ११४३,१५॥३,१६,१६४२१४,७,२२।३,२२,३१, णडपेच्छा (नटप्रेक्षा) ज २१३२ १६२३,२६,२०१७ उ ५।४१, णत (नत) सू २०१७,२०।६।६ णक्खत्तमंडल (नक्षत्रमण्डल) ज ७९८५ से ६४,६७, णतंभाग (नक्तंभाग) सू १०१४,५ ११३ सू १०।१२६,१३० पत्तु (नप्त) ज २११३३ णक्खत्तमास (नक्षत्रमास) म १२।२,१२ णत्थि (नास्ति) ५ १७५,८०,२६५२,६४।१८, णक्खत्तविजय (नक्षत्रविजय) सू १।६।४; १०११३२, ५१४३,६६,८०,६६,१८०,१२१६,११,२१,२८; १७३ १३।१६१५२८७,६४ से १०१,१०३ से १०६, णक्खतविमाण (नक्षत्रविमान) प ४।१६५ से २०० १०८ से ११०,११२ से ११७,११६ से १२३, ज७।१६३,१६४ मू १८१८,१२,१६,३३,३४ १२५,१२६,१२८ से १३२,१३८ से १४१, णक्खत्तसंठिति (नक्षत्रसंस्थिति) म १०१२७ १४३,१७७०,२११६२ से १०१, २२॥४२; णक्खत्तसंवच्छर (नक्षत्रसंवत्सर) ज ७।१०३,१०४ २३११३७,१३६२८११४२,१४५:३०।१७; सू १०११२५,१२६,१२६,१२।२ ३६.८ से ११,१५ से २३,२५,२६,२८,३०, णख (नख) सू २०१२ ३१,३३,३४,४४ सू १११३,१४,१०।२२,२५ णखीमंस (नखीमांस) सू१०।१२० कथारी की जड णगर (नगर) प ६४१ मे ४३,२२६४।१७; दि (नद्) गदति ज ५१५७ णदी (नदी) प ११७७ ज २१३१ ज १२६:२।२२,६६,७०,१३१,३।१८,३१,५२, णदीबहुल (नदीबहुल) ज ११८ ६१,६६,८१,१३१,१३७,१४१,१६४,१६७१२, १८०,१८५,२०६;५१५,४४ णपुंसग (नपुंसक) प ११६६,७६११६५ से १०,२५ गरणिमण (नगर गिद्धमण') प १।८४ से २८ णगरावास (नगरावास) प २।४१,४२,४६ णपुंसगवयण (नपुंसकवचन) ५ ११२६,८६ Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ णसगवेद-णक्य णपुंसगवेद (नपुंसकवेद) प १८१६२; २३१३६,८२, णरवइ (नरपति) ज ३।६,१७,१८,२१,२४१४, १४३,१४८,१५० ३।२८,३०,३४,३५,३७४२,४१,४५।२,४६,८८, णपुंसगवेदग (नपुसकवेदक) १३।१४,१५,१८ ६१ से ६३,१०६,१३१४,१३६,१४१,१७७, णपुंसगवेदय (नपुंसकवेदक) प २८१४० १८०,१८३,२०१,२१४,२२२ णपुंसगवेय (नपुसकवेद) प २३११४५ परवति (नरपति) ज ३११२६२ नपुंसगवेयपरिणाम (नपुंसकवेदपरिणाम) प १३.१३ परवरिद (नरवरेन्द्र ) ३।१३५१२ पपुंसय (नपुंसक) प ३३१८३ गरसभ (नरवपन) ज ३१८,६३,१८० णभ (नभ) ज २१६५ सू २०१२ णरसीह (नरसिंह) ज ३।१८,६३,१८० णभसूरय (नभःशूक) मू २०१२ रिद (नरेन्द्र) ज ३१६.६,१८,३२।१,२,६३,११७, णमंस (नमस्य) नमसइ ज ६०५।२१,५८,६८ १२६।१,१८०,२२१,२२२ णमंसति उ ११२१ णमंसामि उ १११७ णल (नल) प १४११ णमंसण (नभस्यन) उ १।१७ णल (नड,नल) प ११४१।१,१४८१४६; ११७५ णमंसमाण (नमस्यत्) ज ११६,२१६०,३।२०५, णलिण (नलिन) ज२४;४।३,२५,२१२,२१२।१ च ११ २०६:५४५८ णलिणंग (नलिनांम) ज २४ णमंसित्ता (नमस्यित्वा) में २१६० उ ११२१ पलिणकड (नलिनबाट) ज ४।१६० से १६३ णमि (नमि) ज ३११३७ से १३६ पमिय (नत) ज २११५ णलिणा (नलिना) ज ४१५५।१,२२२।१ गव (नवन ) प ११५१ ज १।२० सू १०१२ णमो (नमस्) ज १।१३।२४।१,१३१ अमोत्थु (नमोस्तु) ज ५१५,२१,४६,५८,६५ णव (नव) प २१५० ज ५।१८ चं ११ गवई (नवनि ) ज ४२१३ णय (नय) प १६।४६ णय (नत) ज ४.१३ णवग (नवक) प १८१ पयगति (नवगति) प १६।३८,४६ णवणउइमंगुलपरिणाह (नबनवतत्यङ्-गुलपरिणाह) ज३११०६ जयठ्ठया (नयार्थता) सू १११३ णवणवति (नबनर्वाल) ज ४२१३ णयण (नयन) पश३१ ज २११३,६०,१०३,१०६, वजहदति (नवनिविपति) ज ३१२६२,१७५ १०८,१३३,३१३,६,६५,१०६,१३८,५२१ णवगोड्या (ननीतिका) प ११३८।३ ज २०१० णयणमाला (नयनमाला) जश६५,३३१८६,२०४ जयर (नगर) ज ५७०,७२ र ३।१०१ णवणीत (नवनीत) मू१०।१२०,२०१७ णयरी (नगरी) ११६३।६ ज श२,३,७१२१४ णवणीय (नवनीत) प १११२५ ज ४.१३ णयविहि (न विधि) प १११०१६ णवम (नवम) प १७१६६ ज ७।११४१२ सू १०७७, जर (नर) ज ११३७; ११०१,१३३,३१६२,११६, १२४।२।१३।१० १७८,१८६,२०४४१२७,५२८ णवमालिया (नवमालिका) ज ३११२,८८,१०६ णरकता (नरकान्ता) ज ४२६६,२६८,२६६३२; ५५८ ६१२१ णमिव (नवमीपक्ष ) ज २६६४ परः २) ११९० से २७ ज २१३५ से १३७ मियामका ज ५११००१ परगाव, काना) प २२६ पवमी (नवबी) ल १९११. णरदाय णय नरदापनि) ११६६ गवयपदक प२४०,८३,४४ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गवरं-जाणावरण ६२३ णवरं (दे०) प २।४५,५२ से ५६,६१ : ५।२१,२६, ७३,५:२८१७२,३३१११,१४:३६.२० ३५,३८,४३,५७,६०,६६,७२,७५,८०,११,८४, ज ३११११ से ३१५,१२४ से १२६, ४।१४१ १०,६४,१०२,११६,१५१,१६०,१६१,१६४, णामकुमारत्त (नागकुमारत्व) प ३६।२० १६१,१६५,२०१६६६,६५,६८,१०४,११३; जागकुमारराय (नागकुमारराज) प २१३४,३५ १०१३०१११८५,१२।२६,३१,३६ से ३८, णागकुमारिद (नागकूमारेन्द्र) ५२।३४ से ३६ १३।१६ से १८,२०,१५१८,१६,२६,३०,३४, णागधर (नागधर) ज ३।१७६ ३५,३८,४६,५५,६३,६५,६७,७५,८५,८६,६१ णागफड (नागस्फटा) प २३० ६७,६८,१०२,१०३,११५,१२१,१२२,१२५, णागपुष्फ (नागपुष्प) ज ३१३ १२६,१३६,१३७,१३८,१४०,१४१,१४२; जागरुक्ख (नागरूक्ष) प ११३५।३ १६६४,१२; १७१२३,२५,२७,२९,३०,३२,३३, णागलया (नागलता) प १४०।३ ३५,५८,६०,६३,७०,६१,६३,६६,१०५,२४५, गागोद (नागोद) सू १६।३८ १७२:१८/८०:२०१४३२,५४५५,५७,५८, णाडइज्ज (नाटकी) ज ३.१२,२८,४१,४६,५८, २१।३५,६१,७०,७१.६२,२२।४१,४२,४४, ६६,१४७,१६८,२१२,२१३,२२१ ७६,८०.८२,६०२३।१०,१२,५६.५८,१५६, णाडग (नाटक) ज ३३१७८,२०४,२१४,२२१ १६६,१६७,१७०,१७२,१७५,१८८,१६०; गाडगविहि (नाटकविधि) ज ३११६७।१० २४१३,११,२६।६।२८।२७,३१,३८,४३,४७, णाडय (नाटक) ज ३१८२,१८६.१८७,२१८; ७३,७४,१०६,११५,१३३,१३८,२६।१४,२१, २२,२६ ३०११७:३३११६:३४।३,५,१४,३५७,३६१६, णाण (ज्ञान) ११११०१।१०,३३१११,३१५,२८,३०, ७,११,१३,१५,२४,२६,२८ से ३४,३८,४६, ३२,३४,३७,४३,४५,६८,६६,७२,७४,८०,८३, ५२,५६,६५,६८,६६,७२,७३ ज २१५२ सू ८४,८७,८६,६४,६६,१०१,१०२,१०१,१०७, २१७,१०१२५,१८१२४ ११२,११७; १७१११२,११३,१८।१।१; गरि (दे०) ज ३१५० २८।१०६।१,३०२६,२८ सू २०१६।४,५ णवविह (नवविध) प ११६२,१३७,२११५५; णाणत (नानात्व) प १४५, ६१६८१५१४४,४५; २३३१४३६ २३।१६०३६।१४,१५ ज २५२५६,१५६, णह (नख) ज २११५,४३,१३३, ३१६२,११६,१४५ पहिया (नखिका) प १४७ १६१:४।१३६,१४१,१६२,२६२,५५४८ से ५०; ७३५,५८ णही (नखी) प १४८५ णाइ (न) ज ३११२६ णाणपरिणाम (ज्ञानपरिणाम) प १३१२,६,१४,१६, णाइ (ज्ञाति) ज ३।१८७ १७,१६ णाइय (नादित) उ १।१२१,१२२,१२५,१२६, णाणा (नाना) ११४८१५१६,१६,२६२१२१, १३३,१३४,१३८,३।१११:४११८,५३१६ २२,२७,५६,६०,६१,७८,७६,३३।२१, गाउं (ज्ञातुम् ) सू १६।२२।२६ ज ११३७,३११६,३०,५६,१०६,१४५,२२२, णाग (नाग) २।४०।१,८,५१३१५५५॥३; ४।३,५,७,१३,२५ से २७,४६,६३,११४; ज २।३१,३१२४।१,२,१३१११,२,१७६; ५।१६,३८,६७१७८ ४१२१२,५१५२,७।१२३ से १२५ सू १६॥३८ णाणारिय (ज्ञानार्य) ५११९२,86 णागकुमार (नागकुमार) प १३४ से ३६,३८,३६; णाणावरण (ज्ञानावरण) प २८१६,११ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ पाणावणिज्ज (ज्ञानावरणीय ) प २२/२६, २७६ २३३१,३,६,७,६ से १३,२४,२५,६०,१३४, १३६.१५४,१५४, १६०,१६४, १६७, १७६, १७८,१०१,१६१,१९४ से १६६,२०२,२४०१ से ५, ८, १५:२५६१,२,२६।१ से ४,७,१२: २७/१ से ३ जाणाविध ( नानाविध) ज २२७:३।१८६ से १९२ जाणाविह ( नानाविध ) प ११४७।१२।४१ ज १।१३,२१,२६,१२,३७,४६, २०१२.५७, १२२,१२७, १४७, १५०, १५६, १६४३७, १०.१८४,१६२४६ ३५।३२ जाणि (ज्ञानिन् ) प १८७१ २३२०० २८।१३५ ज ५.१५, ४६ णाणोवउस (ज्ञानोपयुक्त) प ३६१२३, १४ णात ( ज्ञात ) प १।६५ नाम (नाम) ज २:१५ नाभि ( नाभि ज २५६,६२,६३४१२६०११ : ५८१३ णाभिणाल ( नाभिनाल ) ज ५३१३ णाम ( नामन् ) प १११०१।१० २।४८, ५० से ५२ ५४ से ५७,५९,६०,६२ से ६४,६४।१७, ११.३. |११|३३|१; २२१२८२३१,१२,३८ २४।१५ २६।११;२७।५;३६।८२, १२ ज ११२,३,५, १६, १८ से २०,२३,३५,४१,४५,४६, ४८, २१, २२८, १३,५१,५४,६० से ६३,१२१,१२६,१३०, १४१ से १४५, १४६, १५४, १६०, १६३, ३१, २,२६,३०,२५,३६,४७,५६,६७,१०२.१०६, १११, ११५.१३३.१४५, १६१, १६७/३, २२५, ४०१,३,२५,३१,३४, ४०, ४१, ४४, ४५,४६,५१, ५२,५५,५'१,६२,६४,६७,६८,७५,७६,८१,८४, ८६,८८,९२,६८,१०३, १०६, १०८, ११०,१४१, १४३, १५ से १६५, १६७ से १६१,१७२ से १७५, १८० से १८२, १८४, १८५ १८० १०८ १६०,११,१२३. १६४,१२६,१६७,१६९ से २०३,२०५ से २०६,२१०११,२१२.२१३, २१४,२२६,२३४, २३७, २३६ से २४२. २४५, २४६,१५१, २५२.२६१,२६२,२६५, २६६, णाणावर णिज्ज -पास २६८,२७२,२७४, २७७ ५११८,२८,४६, ५७; ७११४, २११.२१४ नं १ ४ १०।१२४; १२।२६११।२६.९.१२.१६२२४३,२८,३६ उ १११७ णामक ( नामक ) ज ३।२६,३६,४७,१३३,१३५ नाम ( नामक ) ज ४।२०० णामधेन्ज (नामधेय ) ज १२४७३२८१,२२१. २२६,४।२२,३४, ५४.६४, १०२, १०७, ११२, १५७२,१७७.२६०७११४,११७.१२० सू १०३८६,८८,१२४,२०१२ नामधेय (नामधेय ) ज ५२१ णामय ( नामक ) ज ११४६; २११७ ४ १०६, १६३, २०४,२१०,२११ णामसच्च (नामसस्य ) प ११०२३ णामसूरय (दे० ) सु २०१२ मायक (नामाहतक) ज ३१२६,३६,४७,१३३ णायग ( ज्ञायक ) ज ५।५,४६ णायय ( ज्ञातक) ज २१२६ गायव्य ( ज्ञातव्य ) प १३१०१०३.६.७.१.११: १६।१।२:३५।१।१ मारग (नारक) प १२२६२४११०, ११.२६६६ नाराय ( नाराच ) प २३२४५, ४६ ज ३२३, ३१ णारिकता ( नारीकान्ता) ४२६२६।२१ जारी (नारी) ज ३।१८६.२०४ पारीकंता (नागरीकान्ता) ज ४९२२६६ पारीकूड ( नारीकूट) ज ४।२६३।१ पाल (माल) ज ४1 णालबद्ध ( नालबद्ध ) प ११४८१४० णालिएरीवण ( नालिकेरीवन ) जरा गालिया ( नालिका) ज २१६ पालिया (नालिका, नाडीका) पं १०४०११ णाचा (नौ) प १६२४५ ज २२५००१,१५१. ७ १३३।११०३३३ भावागति (नीति) १६०३८, ४५ संठिय(नौति ५१०१३३ णात (नातू) वासेति २०१५ १५६ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णासा- णिज्जुत्त जासा (नासा) प २/३१ ज २।१५.१३३ णिइय ( नित्य ) ज ७ २१० गण ( निपुण ) ज २११५३६,२४,८७,१३८, २२२,५५,२१,२८ २०१७ णिओग ( नियोग) ज २११३३ ५१४३ निओय ( निगोद ) प ३६१.६३ ffia (निन्द् ) निदेहि उ ३।११५ fra (निम्ब) ११३५३१,१७।१३० बिछल्लो ( निम्बछल्ली ) प १७ १३० franाणिय ( निम्फाणित ) ११७।१३० बिसार (निम्बसार ) प १७११३० णिकुरंब (निकुरम्ब) ज २।१० णिक्कंकड (निष्कंकट ) ज ११८, २३, ३१ निक्कंकडछाया (निष्क कुटछाया ) प २३१४१ णिक्खमंत (निष्क्रामत्) १६१२२११४ णिक्खमण (निष्क्रमण ) ज ४।२७७ १३ १७ खिममाण (निष्क्रामत्) ज ३।२०३७।१०,१६, २० से २२,२६,२७,६६,७५,८१ चं ४१२ ग्रु १३६,१२ णिक्खित्त ( निक्षिप्त) ज ३१२०,३३,५४,६३,७१, ८४, १३७, १४३, १६७,१८२ / निक्खिय ( नि:- क्षिप् ) णिक्खिवइ ज ३३६२; ५।६७ णिक्कुड (दे०, निष्कुट ) प २०१० ज ३७६,७७, १०६. १२८.१५१,१७०६५३२५ ( णिगच्छ ( नि-: गम् ) णिगच्छइ ज २२६५; ३११४, १७२.२०४,२२६ निगच्छति ज ५।६३ णिगच्छित्ता (निर्गत्य ) ज २३६५ निगम ( निगम ) ज २।२२ उ ३११०१ जिगर ( निकर ) ज ३११२,३५,८८, ६५, १५६; ४११२५६५।५८ णिगरिय (निकरित निगडित ) ज ३१२४१३, ३७।१,४५।१, १३१।३ v णिगिव्ह ( नि । ग्रह ) निगिण्हइ ) ज ३।२८ fuffoon ( निगृह्य ) ज ३।२८ णिगोद ( निगोद ) प ३।६२,८६; १८१३८ णिगोय ( निगोद ) प १८४५, ५३ ज २।१३३ णिग्गंथी (निर्ग्रन्थी) ज २७२ णिग्गय ( निर्गत ) ज ११४; ३१६, १७, २१, ३१.३४, ६२५ १७७,२२२ णिग्गुंडी (निर्गुण्डी ) प १|३७|३ णिग्गुण (निर्गुण) ज २।१३५ निग्धाय ( निर्धात ) प १।२६ निग्धायण ( निर्घातन) ज २१७० णिग्घोस ( निर्घोष ) ज ३३८८,१८०,१८३५१५, २६,४६,४७,५६,६७ उ १।१२१,१२२१२५, १२६,१३३,१३४,१३८ ३।१११ ; ४११८३ १६ णिचिय ( निचित) ज ३।३५।५७२१७८ णिच्च (नित्य) प २२० से २७ ज १।११,२४, ४७२।११,६७,१३३;३/२२६ ४।२२,५४, ६१,६४, १०२, १६६, १६७, १७७, २०३,२१०, २६४,२७३ ५।२६६७/२१०,२१३ १६२२/१७ freeमंडिया ( नित्यमण्डिता ) ज ४ । १५७ १ णिच्चालोय नित्यालोक ) सू २०१८ froचुजोत ( नित्योद्योत ) सू २०१८ णिच्चुज्जोय ( नित्योद्योत ) सू २०१६६६ णिच्छिष्ण ( निश्छिन्न) प २२६४ २२:३६ ९४१ पिच्छीर (निःक्षीर) १४८१३६ √ णिच्छुभ ( नि + क्षिप् ) मिच्छुभइ प ३६ । ७३,७४ पिच्छुमति ३६ ५६,६१,६६,७०,७६ णिच्छूढ ( निक्षिप्त) प ३६/६२,७७ विजुत ( नियुक्त ) प २०४१ णिज्जरा (निर्जरा ) प १५०४३ से ४७, ४६; ३६ ७६ से ८१ पिज्जाणभूमि (निर्याणभूमि) ज ५१४६ पिज्जाणमा ( निर्याणमार्ग ) ज ५२४६ णिज्जिय (निर्जित) ज ३।१७५,२२१ णिज्जुत्त (निर्युक्त) ज ३।१७८ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ णिज्भर बहुल (निर्भर बहुल) ज १।१८ निट्ठियट्ठ ( निष्टितार्थ ) प ३६/६३, ९४ णिडाल ( ललाट) ज २।१५,३।३६, ३६.४७, १३३ णिण्ग ( निन्नग ) प १८६ णिण्णथल ( निम्नस्थल ) ज ७ । ११२१५ निष्णथलय ( निम्नस्थलक) सु १०।१२९५ णिण्णुष्णय ( निम्नोन्नत) ज २११३१ णिण्हझ्या (निह्नविका ) प ११६८ नितंब ( नितम्ब ) ज १।५१३।६१,१३७; ४ १७४, १७२१७६.१८२,१८८ णित्यारण ( निस्तारण ) ज ३३१०६ गिदा (दे० ) प ३५ | १११,३५११६ णिदाया (दे० ) प ३५११७,१८,२०,२२,२३ विवाह ( निदाघ ) सु १०।१२४१२ निद्दा ( निद्रा ) प २३१४, २६, २७,१३४१५५, १७७, १८० णिप्पंक (निष्पंक) ज ११८, २३ णिप्वच्चक्खाणपोसहोववास (निष्प्रत्याख्यानपौषधोपवास) ज २२१३५ फिज्म (निर्+ पद्) गिप्फज्जइ ज २६ जिम्फत्ति (निष्पत्ति) ज ३११६७/६ णिष्फाइय (निष्पादित ) ज ३११२० णिकायय (निष्पादक) ज ३।११६ रिफाaa (निष्पावक) ज २।३७ जिन्भय (निर्भय) ज ३११२६६५।५८ गिभिज्ज माण (निर्भिद्यमान) ज ४।१०७ णिभ ( निभ) ज ३।३०,१७८ णिज्झरबहुल-गिरड ~णिमज्जाव ( नि | मज्जय् ) णिमज्जावेइ ज ३६८ णिमुग्गजला ( निमग्नजला ) ज ३।६७ से १०१, णिद्दाणिद्दा ( निद्रानिद्रा ) प २३|१४ गिद्ध (स्निग्ध ) प १६:२/३१ ५ १५४,२११; १११५६,६०; १३/२२१,२२८/२६,३२,६६ ज २११५;३१३,२४,३५७ १७८ द्धिंत ( निर्मात ) प २।३१ पिया (स्निग्धता ) प १३।२२११ गिद्ध इत्ता (निर्धाव्य ) ज २।१३४ Nfद्धाव ( निर् - - - धाव् ) णिउाइांति ज २ १३४, १४६ १६१ णिम्मम ( निर्मम ) ज २१७०; ५१५,४६,५८ णिम्मल ( निर्मल ) प २१३०,३१ ज ११८,२३,३१६ २११५; ४।१२५; ५६२; ७ १७८ निम्माणणाम (निर्माणनामन् ) प २३३८,१२८ जिम्माय ( निर्मात ) ज ३११ णिम्मिय ( निर्मित) ज ३।३५ जिम्मेर ( निर्मर्याद) ज २११३५ पियंस ( नि :- वस् ) नियंसंति ज २१०० णियंसेइज २६ नियंत्रण ( निवसन ) प २४१ / नियंसाव ( नि |- वासय् ) नियंसावेंति ज ३१२११ नियंसावेता ( निवास्य) ज ३।२११ नियंसेत्ता (न्युष्य ) ज २६६ जियग (निजक) ज २१६४; ३१३, १८७,१८८ सू २०/७ / णिच्छ ( निर् + दा) नियच्छति प २३१३ नियत (नियत) ज ३८१ णियतिया ( नैयतिकी) प १७।११,२२,२३ णियत्थ (दे० ) ज ३।१२५,१२६ नियम (नियम) प १२०, २३, २६, २६; ६ ११४, ११६,१०।२:१११५३, ५७, ५६, ६६,६६३१ ; २११६६,६६,१००, १०३; २२४८, ५१,६८, ६६,७१ से ७४; २३।१०,१२:२४/१४२५१२, ४:२७।६;२८११६,३८,६५,६८ से १०१,३६।५६ ज ७ ५०, ५३, १६६ सू १८।३ णियमा ( नियमा) ज ७१३२ ।१ सू २०१६ णियय (नियत) ज ११११,४७३।२२६ ४१२२, ५४,६४,१०२, १५६, ५२२,२६ णियय ( निजक) सू १९।२२।१४ णियया ( नियता) ज ४३१५७।१ णियर ( निकर ) ज २११५ णिरह (निर्ऋति) ज ७।१२०,१३०,१८६३४ सू १०१८३ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णि रइदेवता-णिव्वाणमा १२७ णिरइदेवता (निऋतिदेवता) म १०८३ णिल्लेव (निर्लेप) ज २१६ णिरइयार (निरतिचार) प ११२६ णिवद्दय (निपतित) ज ३१२६,३६ णिरंतर (निरन्तर) प १०३२ से ३४,४०,१११४१५ णिवढेता (निवृधा) ज ७।३० ७१:२०१२५,२१,५९; २२११३,१५,१७,१६ से लिवड्ढेमाण (निवर्धमान) ज ७४१३,१६,२२,७२, २१३६८, ज २०१५ णिरय (निन्य) प २१,१०, २।३६,८१.१११, णिवण (निपण्ण) ज ७.१७८ १४६,१०१ णिवतित (निपतित) ज २११४२ से १४५ णिरय (निरन) ज २६१३१ णिवत्त (निवृत्त) 3 ३.१२६ णिरयगतिपरिणाम (निन्यगतिपरिणाम) प १३१३ इणिवय (नि-- पत्) णिवयंति ज ५१६४ णिरयगतिय (नित्यगतिक ) १३१४ णिवह (निवह) ज ३.१०६ णिरयगामि (निरयगामिन ) १२२,५०,२१५८, णिवात (निपात) प ३६८१ ज २६१३१ १२३,१२८,१४८,१५१,१५७,४।१०१ णिवाय (निपात) ज ३।३५,१०६ णिरयावास (निरयावास) प १२० से २४ णि विट्ठ (निविष्ट) प २०१३६ जिरवसेस (निरवदोप) प ६६२:१०।२८:१७१२८%; इणवुड्ढि (निवृद्धि) सू १३।१७ २१३९४,३४।२४:३६॥२८,४६,६५,६६,७२। णिवुड्ढेत्ता (निवयं ) सू ६१ णिरहंकार (निरहुकार) ३२७० णिवुड्ढेमाण (निवर्धमान) सु ६०२ णिराणंद (निरानन्द) ज २।६०१०३,१०६,१०८ णिवेइत्ता (निवेद्य) ज ३८१ हिरातंक (निरातङ्क) ज २।१६ ििणवेद (नि+वेदय) णिवेएइ ज ३१८१५०५८ णिरालय (निरालय) ज २०६८ णिवेदम ज ३१५ णिवेदेमो ज ३४९० णिरालोय (निरालोक) ज २।१३१ णिवेस (निवेश) प १७४ ज ३।२८,३१,४१,४६, णिरावरण (निरावरण) ज २१७१,८५ ५२,११५,१३५,१४१,१५१,१६४,१६७२,१८० इणिरंभ ( निरुध)-णिरु भइ प ३६१६२ इणिवेस (नि ! वेगय) णिवेरोइ ज ५।२१,५८ णिरु भति ५ ३६।१२। णिवेसेत्ता (निवेश्य ) ज ५१२१ णिरुंभित्ता (निरुथ्य) प ३६४१२ णिध्यण (निवण) ज ११५,३११७७,७१७८ णिरुद्ध (निरुद्ध) प २३।१६३ णिवत्त (निर्। वृत्) णि रोइ म २ णिवत्तेति प २३.१६१ गू ? णिरुवकिट्ठ (निरपश्लिष्ट) ज २।४.? थिव्वत (निवृत्त) ज ३।३०,४३,५१.६०,६८,७६, णिरुच्छाह (निम्त्याह)ल।१६३ हिरवलेव (निशा नेप) ३ १३६,१५१,१७०,१७८,२१६ णिरुबय (निरुपात) ज २१५ णिध्वत्तपया (नियंर्तन) १३४१२,३ णि रुविय नितिन) १९१६ णिध्वत्तणा (निवंतना) प १५१५८.१,११६१ जिल्हा (नीरुहा) प ११४८।३ णिव्वत्तिय (निर्वतित) प २३११३ से २३ गिरेयण (निरेजन) प ३६॥६३,६४ णि व्वय (निर्वत) ज २१३५ णिरोगय (नीरोगक) ज २।१२ णिव्वाघाय (निव्याघात) प १६६५५; २११९५; णिरोह (निरोध) ५३६९२ २८।३१ ज १७१,८५ मिल्लज्ज (निर्लज्ज) ज २०३३ णिव्वाण मग (निर्वाणमार्ग) ज १७१ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ णिवाण-णीलय vणिव्वाण (निर-वापय) णिवाविस्सति हिस्संग (निःसङ्ग) ज ५।५८ ज २११४१ णिवाहि ज ५१२८ णिवावेंति हिस्सग्गरुइ (निसर्गरुचि) प ११०११३ ज २।११२ णिवावेह ज २११११ णिस्सा (निश्रा) प ११२०,२३,२६,२६,४८ णिध्वुइकर (निर्वतिकर) ज २१६४,३३, ४११४६ णिस्साय (निश्राय) ज ३११०६ णिवइकरण (निर्वतिकरण) प १११२ णिस्सील (निःशील) ज ११३५ णिवृतिकर (निर्वतिकर) ज ४।१०७ णिस्सेस (निःश्रेयस् ) ज २१७१ णिसंत (निशान्त) ज ५१२६ णिहटु (निहृत्य) ज ३।६ जिसम्म (निसर्ग) १११०११२ इणिहण (नि+ हन् ) णिहणंति ज ५११३ णिसट्ठ (निःसृष्ट) जे ३१२५,३८,४६,४७,१३२ णिहणित्ता (निहत्य) ज ५॥१३ मिसढ (निषध) प १६५३० ज ४।९६ णि हयरय (निहतरजस्) ज ५१७ णिसढकूड (निषधकूट) ज ४।६६ णिहि (निधि) प १५३५५१२ ज ३१६७११३,१४, णिसष्ण (निषण्ण') ज २१८८; ३।६,८१,२२२ णिसम्म (निशम्य) ज ३१६ णिहिय (निहित) ज ३१११९,२२१ णिसह (निषध) ज ४८१,८६,८७,६७,६८,२०१ ।। णिहिरयण (निधि रत्न) ज ३११६७,१७०,७/२०१, से २०३,२०६,२०७,२०६,२३८,२६२ २०२ णिसहकूड (निषधकूट) ज ४१२३६ णिहुय (स्निहूक) प ११४८।४१ णिसहद्दह (निषधद्रह) ज ४१२०७ इणी (नी) णेइज ७/१५६,१५७,१६१,१६५, Vणिसिर (नि+सृज्) णिसिरइ ज ३।२४,२६, १६६ ; ३।१६३ गेति ज ७१५६ सू १०१६३ ३७,३६,४५,४७,१३१,१३३ णिसिरंति णेति सू १०६३ ३११६२,४१५,७,५५,७ णिसिरति भणी (गम्) णीति ज ३।१०६ प ११६७१,७२,८४,८५ गीइ (नीति) ज ३।१६७ णिसिरण (निसजन) १ ११७१ णोणिया (नीनिका) प ११५१ मिसिरमाण (निमृजत् ) प १११७१ णीम (नीप) प १।३६६३ जिसीइत्ता (निषद्य) ज ३४६ णीय (नीत) प १५५१०२ इणिसीय (नि+पद) णिसीएज्ज प ३६।११ णीयतर (नीचतर) ज ४।५४ णिसीयइ ज ३१८,४१,४६,५८,६६,७४,१४७, णीयागोय (नीचगोत्र) प २३१२२,५७,५८,१३२ २१५,२२२ णिसीयंति ज ११३,३०,३३; जीरय (नीरजस्) प २१३०,३१,६३, ३६।६३,६४ ७,४१२,५४२ णिसीयति ज ३१८८ ज १५१८,२३,३१,२०६५।५८ इणिसीयाव (नि+पादय) णिसीयाति णीरागदोस (नीरागदोष) ज ५१५८ ज ५।१४,१७ णील (नील) प १६ से ८,२१३१,२१४०।११; णिसीयवेत्ता (निषाद्य) ज ५।१४ ५।५,७,१३१६१७१९४२३११०४,२८१३२, णिसेग (निषेक) २३१६० से ६४,६६,६८,६६, ६६ ज ३१३१,४१२६४ सू २०१२,८,२०१३) ७३,७५ से ७७,८१,५३,८५ से १०,६२,६५, णीलकणवीरय (नीलकरवीरक) प १७।१२४ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४,११६ णीलकूड (नीलकूट) ज ४।२६३११ से ११८,१२७,१३०,१३१,१३३,१७६,१७७, पीलबंधुजीवय (नीलबन्धुजीवक) ५१७११२४ १८२,१८३.१८७ गीलय (नीलक) प १७.१२६ सू २०१२ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णीललेसणे इय ६२६ गीललेस (नील ) प १७८३,६२,६४,६५, णेग (नंक) प २८१४०,४३,६६ ज ३१३,३२ १००,१०३.१०८,१:८; १९७० णेगम (नगम) प १६।४६ णीलले ठाण (नील लेश्यास्थान) प १७१४६ दव (नेतव्य) सू६१८।१६।३१०।२३,२५; णीललेत (नीललेश्या) १७।१२१.१२४; १५१६, १८:११९४१,३५,२०१८ २८११२३ णेतु (नेतृ) सू १०॥६३ णीललेस्स (नीम इत्या ) प ३९६,१३११४:१७।३१, णेत्त (नेत्र) प १५१७७,८२ .1328,६५६४,६ ६८,७१ से ७४, तविण्णाणावरण (नेत्रविज्ञानावरण) १२३११३ 3६८१ मे ८५,८७,१००,१०३,१०६ से १११, णेत्तावरण (नेत्रावरण) प २३११३ णद्दर (दे० नेहर) प १८९ णीललेस्सठाण (नीललेश्यास्थान) प१७११४६ णेम (नेम) ज १।११ णीललेस्सा (नील नेत्या) T१६६४६; १७.३६, णेमि (नेमि) ज ३।३०,६५,१५६,१७८ ११५ से १-१२४,१२६,१३१,१३६,१४४, णेमिपास (नेमिपाव) ज ३१२२ १४५,१४८ से १५२ जेम्म (नेम) ४१२६ णीदले जाकर जान नीलामापरिणाम) १३१६ णेय (जेय) प २११५३ ज ३७७,१०६,१२६, होती . ४९८,१०३, ७१२७११,१६७१ च ५२ १२ १०८:१०,१८० १.१ से १४३,१६२,१६५, यतिया (नवतिकी) १७१२५ १६७,१७३ से १७६,७८,१८० से १८२, णयब्द (नेता) ४।५५,५११६१८।३१११८१; १८४,१८५,१८७,१८८,१६०,१६१,१६३, १५.१०२,१०८,१४३,१७।८८,२११५२; १९४,१६६,१६७,१६३,२००,२२५२१,२२७, २२१७६; ३६।२२,२६,३२,४६ ज १११२ से २६२ से २६५ १४,२५,४६:२।४,६,४६,५६,६४,१३६,१५६; णोलसुत्तय (नीलसूत्रक) प १७११६ ३॥६४,१५०,१५१,२१७,४११०,४७,५३,५६, णोली (नीली) ३।२४ ६०,६४,७६,८४,६०,६२,६६,१०६,१४१, पीलुप्पल (नीलोत्पल), १७१२४ १४७,१६०,१६३ से १६५,१७३,१७४,१६७, णीसंद (निप्यन्द) : ११३ चं १११ २०७,२१०,२३८,२४३,२६२.२६८,२७४, णीसल्ल (नि:शप) ५८ २७७, ५१५३ : ६१५७१३५,५०,५८१३०, पीसस (निर: वीरागंलिप १७॥२,२५, १३१ १३५.१५५,१७६ सू ७१,६।२,१०१२२ यु (गत) सू १६ णीसास (नि: ::२११६ गरइअत्त (नैरकत्व) प १५।१४ मोहम्ममाणा ( निज ६६३१ त्य (नरक) प २।२०,२१, ३११६,२२,४।३; गीहारिन (मिला). १२ १०३२ से ३८,४० से ४२,४४ से ५२; णीह (स्निह) प? ११॥४४,८०,११२,११ से १३,१५,३६; णणं (जन) 2212:१:४९५ से १०४, १३११४,१६ रो १६; १४१२,३,५,७,६,११ से ११५.१२.१: ० ४८,१४६,१५१,१५.४; १५,१८,१५११७,१८,३५,४६,४८,५६,६२, ३६१८१ ६३,६५,६६,७१,७५,७८,८२,८३,६१,६४ से उर (दे०) १४६१ ६,१००,१०२,१०७.१०८,११८ से १२०० Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० १२४,१३४,१३५,१३८, १४०, १४१; १६ ३, ६, ११,१४,२०,२५,२६,३१,३२,१७।१ से ६, ८ से १४,१७,१८,२३,२५,२८,२६,३२,३७, ४०,४२,४६,५७,८५,६० से ६२,१००,१०६ से १११,१८२, ५, ८,६,११,१२१, २०११/१ २०११ से ३,६,७,६,१०,१४, १५, १७ से २०, २३ से २५, २७, ३२, ३४, ३५, ३५ से ४२,४६, ५२,२११५१, ५२,५८,५६,६५,६६,७७,८१, ८७ २२।११.१३,१५,१७,१६ से २१,२३, २४,२६.२७,३०,३१,३३,३५,३७ से ४५,४७, ५३,५७,६६,७३,७५,७६,७६,८२,८७,८८, १०,६८,१००, २३१२, ४, ६, ७, १०, १८,३७,५४, ७८८०.१४६, १६४ से १६६, १६८, २४११, ३, ५. ८, १४, १५, २५१,२,४,२६११,३:२७११,६; २८।१,३ से ५, २१ से २६,३०३८,९८, १०१, १०२,१०४,१०,११७,११९.१३३,१४३ से १४५, २६।५ से ७,१५,१८,१६,२२३०१५ से ७,१४,१७,२४:३११२, ४,६११, ३२१२, ५; ३३।१ से ७,१६,२७,३०,३१,३४,३५,३७, ३४११,३,५,६,१०, १३, १४,३५१२, ५, ७, ६, ११, १३,१५,१७,१८,२१,३६१४,८,६,११ से १३, १५,२८,२० से २२, २४, ३० से ३४,३६,४३ से ४७,४६,५४,६५,६८,६६,७२ ज २७१ अणिजय (नैरयिकासंज्ञ यात्रुष्) प २०१६२,६४ इयत्त (नरक) १५१०३, १०४, १०६, १११, ११५, ११८, १२२,१२६,१२६, १४१, ३६।१८,१६,२१,२३,२५,२६,३० से ३४,४६, ૪૭ राज्य (नैराष्) प २३११८,३७,७८, ८०, १४५, १६, १७० णेरतिय (नैरयिक) प १०३६ वच्छ (नेपथ्य ) प २१४१ वस्थ (नेपथ्य ) ज ५१४३,७११०१ वाण (निर्वाण ) प २६४२० इस णिआय-गोहुमणोवादर सप्प (सर्प) ज ३।१६७१२,१७८ को (नो) प ११।६८ ज २१६ सु ८१ गोअपरित (नोअपरीत ) १८ ।११२ असंजय (नोअसंत ) प १८६२ पोअसण ( नोअसंज्ञिन् ) प ३११२,६ गोइंदिय (नोइन्द्रि ) प १५७० कसायवेयणिज्ज (नोकषावेदनी) १२३३१७, ३४.३६ नोपज्जत्तयणोअपज्ज सय (नोपर्याप्तकनो अपर्याप्तक) १८११५ पोपरित (नोपरीत ) प १८ ।११२ जोभवसिद्धियणो अभवसिद्धिय (नोभवसिद्धिन अभयसिद्धिक) प १८ ।१२४; २८।११३,११४ गोभवोवातगति (नभिपपातमति ) प १६१३७ गोभवोववायगति (नोभवोपपातगति ) प १६२४, ३३ से ३७ गोमालिया ( नवमालिका) प ११३८ ।११६ ४१६६ पोमालियाड (नवमालिकापुट ) ज ४।१०७ गोसंजतणोअसंजतणोसंजया संजय (नमंत्रनोअसं तनोसंयतासंयत ) प ३२/१,२ णोसंजतणो असंजयणोसंजलासंजय (नोनोअसं तनोतात ) प ३२१४ गोसंजय (नोगत) प १८६२ गोसंजयण असंजयणोसंजयासंजय (नोसं तनोअसंयतनो संवतासंगत ) प २८।१३१,३२३,६ गोसंजय संजय (नोगतात ) प १८६२ गोणिनोअल (नोसंजिना असंज्ञित् ) प १८१२१६२८११२०,१२१,१३४,१३६: ३१।१ से ३,५,६ णोसुहमणोवादर ( नोनुक्ष्मनोवादर ) प १८ ।११८ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्हाण-तछु Vi व्हाण (ष्णा) पहाणे ज २१०० हाति व्हाणपीढ ( स्नानपीठ ) upta ( स्वानमण्डप) व्हाण मल्लिया पहाता ( स्नात्वा ) २२६६ हा ( स्नात ) सू २०१७ व्हाय ( स्नात) ज ३१५८,६६,७४,७७,८२,८५, १२५,१२६, १४७, १५३३ १११६,४२, ७७, १२१,१२२,१२६; ३१२६, ११०, १४१, ४ १२, १८५११७ हारु ( स्नायु ) ज २११३३, ३१२४ हा (स्वापय्, स्नपय् ) वेद ३।११४ व्हावेता (स्नप स्वापति) ज २२१०० १६७ व्हार्णेति २१६६ ३१६,२२२ ३१६,२२२ (स्नानमल्लिकापुट) ज ४।१०७ त त (तत्) प १११ सू १।११।१ इ (तृतीय) प ३२१ ६८०११; १५६१४३ ३|१३५११ ; ४१५६, १७, १४२३७११०८, १५८ चं ४/३ सू ११८३ उ २२२२३१६८ ४|१ तया ( तृतीया) ज ७।१२५ १० १४८, १५० तहविह (ततिविध ) प १५५६ उखंड (खण्ड ) प ११७४ तय ( क ) प ११२ १ उस ( स ) प ११४४८३१११६ खीरा तमिजिया (त्रसमिनिका ) प ११५० उसी (पु) १११ खीरा की लता ए ( ततस् ) ११४ २८३।११,२३१३ ओ (तत्) ३४१ से ३,३६१७७,६२ उ ३।५१.५३,४४,२६,१०७,११०,१३६; ४१२१ तंजा (११२ तंड (ट) ५१५७ तंडुल (ल) नंत (तान्त ) उ ११५ २१२६८५१५८३ ३१५१ dar (तन्त्रक) प ११५१ तंती (तन्त्री ) प २३०, ३१, ४१, ४६ ज ११४५ ; २२६५,३३८२, १८५ से १८७, २०४,२०६, २१८५११, १६७१५५, ५८,१६४ सू १८।२३; १६।२३,२६ तंतु (तन्तु) ज ३|१०६ तंतुवाय (तन्तुवाय) प ११६७ तंदुल ( तण्डुल ) उ ३१५१ तंदुलमच्छ ( तण्डुलमत्स्य ) प १३५६ तंदुलेज्जग (तन्दुलीय) प ११४४|१ वायविडंग, चोलाई का साग तंब (ताम्र ) प १।२०।१२।३१; १७११२५ ज २११५;३११३८११ तंबकरोड (ताम्र करोडय' ) प १७ १२५ तं खंड (ताम्रखण्ड ) प ११७४ बकरण (ताम्रादिकरण ) प १७ १३४ तंबधिवाडिया (ताम्र' छिवाडिया' ) प १७।१२५ तंबिय (ताम्रिक ) उ ३।५०, ५५ तंस ( स ) प ११४ से ६; १०३१५, १६ तक (तत्) ज ३६५,१५६ तक्करबहुल ( तस्कर बहुल ) ज १।१८ तक्कलि (तकिल ) प १।४३११ चक्रमर्द वृक्ष, ९३१ चकवड तगरमेला ( तगरमेल 1 ) ज ३।११।३ तगरपुड ( तगरपुट) ज ४११०७ तच्च (तृतीय) प ३।१८३; २१/६०; ३३ । १६; ३६/१२ ज ७ । १६२ सू १११४, १६, १७, २१ उ ११३९, ४०, ११५, ११६; ३।१, २,२३,५४,६०,६१,७७, ७८,८७,६८,१०८ तच्चा (तृतीया) सू १२ । २१ तच्छण (तक्षण ) ज २१७० तट्ट (दे०, स्थल ) प २८ तट्ठ ( त्रस्त ) ज ७।१२२/२ सू १०/६४१२ तदेवया ( त्वष्टृदेवता ) सू १०१८३ तट्ठ (त्व) ज ७११३०,१८६४ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६.३२ नड-तयणंतर तड (तट) ज ३३१०६ उ ५१ तडाग (तटाक) प २०१३ तडित (तडित् ) ज ३।२४ तण (नण) प ११३३११,११४२,४४११,१।४।४६; ३८६१ ज ११३,२१,२६,२६,३३,४६:२१७, २६.५७,१२२,१२७,१४४ से १४७,१५०, १५६,१६४,३३९८,१६२,४१६३,८२५१५ तणमूल (तृणमूल) प ११४८१८ तणय (तृणक) ज २।३६ तणवणस्सइकाइय (तण वनस्पतिकायिक) ज २२१३१ तविटिय (तुणवन्तक) प ११५० तणविहूण (तणविहीन) ज १।१४ तणसोल्लिया (दे०मल्लिका) ज ३१३५ हणाहार (तृणाहार) प ११५० तणु (तनु) प २१६४ ज ११५१,२।१५,१३३; ४१४५,१५६,७११७८ तणुक (तनुक) ज ३।१०६ तणुतणु (तनुतनु) प २०६४ तणुय (तनुक) ज ११८,३५,५१,२।१५; ३११३८।१४:४५,११०,११४,१५६,२१३, २४२ तणुयतर (तनुकतर) प ११४८१३४ से ३७ तनुयरी (तनुतरी) प २२६४ तणुवाय (तनुवात) प ११२६; २०१० तणुवायवलय (तनुवातवलय) प २०१० तण्हा (तृष्णा) प २।६४११६ ज ३११२१।१ तत (तत) ज ५१५७ ततगति (ततगति) प १६१७,२२ तति (तति) प १५।१३४ ततिय (ततीय) प १०।१४।१ से ३,१११४२,८८, १२॥३२,३८,३६।८५,८७ सू १०१६५,६६,७३, ७७,१२।१६:१३३१० उ १२६३ ततिविह (ततिविध) प १६:२० तते (ततस) ज ११६ ततो (ततस्) प ३४।१,३,३६१८५ ज ३।३५ तत्त (तप्त) प ११४८१५६,२१३१,४८ ज ३१११७ तत्तकवेल्लुयभूय (तप्त कावेल्लुय'भूत) ज २११३२, १४१ ततजला (तप्तजला) ज ४।२०२ तत्ततव (तप्ततपस्) ज ११५ तत्तसमजोइभूय (तप्तसमज्योतिर्भत) ज २११३२, १४१ तत्तिय (तावत्) ५ १५३१०३ ज ७२०० सू १०६५,६६,७३,७७,१२२१६:१३।१० तत्तो (ततस् ) प १३१७,११४८११२१६४१४; २११४७।१,२,३४११,२ तत्थ (तत्र) प ११२० ज १२१३ सू१।१४ उ ११० तत्थ (त्रस्त) प २२० से २७ ज ३।१११.१२५ उ १८६ तत्थगय (तत्रगत) ज ५।२१ तदणुरूव (तदनुरूप) ज २।१४१ से १४५ तदुभय (तदुभय) प १४।३,२२१४ से ६; २३:१३ से २३ तप्प (तप्र) प ३३११६ तप्पभिइ (तत्प्रभृति) ज २१६७ उ ३।११८ तप्पाउग्य (तत्प्रायोग्य) प २३१२००,२०१ तम (तमस) ज २१३१ तमतमप्पभा (तमस्तमःप्रभा) प ११५३,२१,२०, १०११ तमतमा (तमस्तमा) प २।२७,२।२७१३ तमप्पभा (तमःप्रभा) प ११५३; २१,२०,२६ ३।१६,४१६ से २१:१०।१ तमस (तमम् ) प २१२० से २७ तमा (तमा) प ३.१५,१६,१८३, ६.१५,७८,६१, २०१४२२११६७,३३१८,१६ तमाल (तमाल) प ११४३।१ तय (त्वच) उ ३१५०,५१,५३ तयणंतर (तदनन्तर) ज ४।२१३ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तयणुरूव-तह पगार तवणुरूव (तदनुरूप) ५११७४ तव (तम्) तवइंति सू १६१ तवामु ज ७।१ तया (त्वच् ) प १।३५,३६,११४८।१३,२३,६३; सू १६१ तवइस्सति सू १६१ तवंति ११४८ ज २२६७,१४५,१४६ ज १५७ तवयंति ज ७५४ सू ४।१० तया (तदा) सू १११४१०१२६ उ ३१६२ तविसु सू १६१ तविस्संति ज २११३१ तयाणंतर (तदनन्तर) सू १।१४,१६,२१,२४,२७, सु १०११३२ तवति ज ७१ यु ३१वेंसु म १६ तवेति सू ३१२ तयावरणिज्ज (तदावरणीय) ज ३१२२३ तवणिज्ज (तपनीय) प ११४८१५६२।३१,४८ तयाविस (त्वगविष) प ११७० ज ३१२४,३५,१०६,११७,४१४६,५३८,६७, तयाहार (त्वगाहार) उ ३१५० ७।१७८ तरंग (तरङ्ग) २३१५,१३३: ५।३२ तवणिज्जमय (तपनीयमय) ज ४७,१३,८६,२०६, तरच्छ (तरक्ष) प १४६६११०२१ ज २३६,१३६ २५१,२५२,५१३४ तरच्छी (तरक्षी) प ११२३ तवविसिठ्ठया (तपोविशिष्टता) प २३१२१ तरमल्लिहायण (तरोमल्लिहायन) ज ७१७८ तवविहीणया (तपोविहीनता) प २३३२२ तरण (तरुण) ज २१५, ३१३,२४,३०,१७८; तविय (तप्त) ज ३१३५,१०६७।११२१५ सू१०१२६।५ तरुणी (तरुणी) ज ३१८२,१८७,२१८ तवोकम्म (तपःकर्मन) उ२।१०,३।१४,५०, तल (तल) परा२० से २७,३०,३१,४१,४६ ४१२४:५।२८,३६,४३ ज ११४५,२१६५,३।७,८२,१७८,१८४,१८६, तबोवहाण (तपउपधान) उ ३.८३ १५७,२०४,२०६,२१८,४।३,२५,४६,६७,६२, तध्वरित (तद्व्यतिरिक्त) प २३।१६१,१६३ ८५,१२५,१४२,५।१,५,१६,६२;७।५५,५८, तव्यतिरित्त (नव्यतिरिक्त) प २३।१६२ १७४,१७८,१८४ सू१८१२३,१६०२३,२६ तसकाइय (त्रसकायिक) ५ ३१५० से ५२,५६,६०, तलऊडा (त्रपुटी) प ११३७१३ छोटी इलायची ७२ मे ७४,८३ से ८७,६५,१७१ से १७३; तलभंगय (तलभङ्गक) प २।३१ १८१२८,३०,३६,४७,५४ तलवर (तलवर) प १६।४१ ज २२५; ३१६,१०, तसकाय (सकाय) प १५।५३,५४ ७७,८६,१७८,१८६,१८८,२०६,२१०,२१६, तसणाम (वसनामन्) प २३।३८,११७ २१६,२२१,२२२ उ १६२,३१११,१०१; तसरेणु (त्रसरेणु) ज २१६ ५१० तसित (तृषित) प २।२३ तलाग (तडाग) १११७७ ज २।३१ तसिय (तृषित) ५ २०२० से २२,२४ से २७ तलाय (तडाग) प २१४,१६ से १६,२८ उ १८६ तलिण (तलिन) ज २११५ तह (तथा) प १११३ ज ३३११ चं ४।१ गू श८ तलिय (तलित) उ ११३४,४६,७४ उ ३७६ तल्लेस (तल्लेश्य) प १७।६२,१०२ से १०४ तह (तथ्य) उ १।२४,३११०३ तव (तपस्) प ११०१।१० ज ११५,२।७१,८३, तस्संठित (तत्संस्थित) ज ४१३ ३।३२११,११७,२२१:७११६६ उ ११२,३; तहत्ति (तथेति) ज ३१५३,१०० ३।२६,३१,६६,१३२,५२६,३२ तहप्पगार (तथाप्रकार) प ११२०,२३,२६,२६, Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३४ ३५ से ३७,३८ से ५१,५६,६०,६३ से ६६, ७०,७१,७५,७६,७८,६६,६६,११।२१ से २५ तहा ( तथा ) प १।३५।३ ज ३३१०७ सु ८१ उ ११७ तहारूव ( तथारूप ) उ १।१७:२०१० १२:३०१४, १६१, ५१३६, ४१, ४३ ताविह ( तथाविध) ए ११४८७ १० से ३७,४१, ४३ तहिं ( तत्र ) प २६४५ तहेब (तथैव ) प १६४८२ १०५१ १।१७ उ १८७ ता (तावत्) नू ११० ताओ ( ततस् ) ज १२० उ २।१३,३१८ तागंधत्त (तद्गन्धत्व ) प १६/४६; १७।११५, ११६, ११८, १४८, १४९ तादिज्नमाण (मान) २३ ताण (त्राण) ज ५।२१ साफासल (तत्स्पर्शत्व ) प १६।४९ १७११५. ११६.११८, १४८, १४९ तामरस (दे० ) प ११४६ तामलित्ति (ताम्रलिप्ति ) प १।२३।१ ताय (टात) उ ११४२ से ४४ लायतीसा (त्रयस्त्रिंशत् ) प २०३२,१२,३५,५०,५१ ज २६० तार (तार) प ११।२५ तारंतर (तारान्तर) ज ७ १६८६६२ तारयण ( तारका) चं ५२ १११२ तारग (तारक) सू १९।२२।११ तारग्ग ( ताराग्र) ज ७।१२७/१,१३११२,१६७।१ १०१५५; १६२२/२,२६ तारया ( तारका ) प २४८ ५।२१ यू १०.५५१९ २२ तारसत ( तदसत्व) प १६ ४६ १७ ११५,११६, ११८,१४८, १४९ पगार वालियंट तारा (तारा) प ११२३७६,११,१५, २०६७१३१,१७७२१६२१०१५५. ५६,५७,५६,६१,६२०१५११८१४, १५, १६, ३७३१६४२२११,१६१२२,३१ तारायण (तारागण ३६,१७,२१,२४,१७७, २२२७११६१,१७० सू १८१४६१२११, ५१३, ८०३, ११०४, १५८,१६,२११५,६,१९२२।३२, १९०३१,२४,३० तारापिण्ड (ताश पिण्ड ) १९१२२११ तारास्व ( तारारूप ) १२/४२ से ४१.६३ ज ४।२७७२५४.५०, १६०,१७२,१७४, १७८/२,१७६ से १८२,१६७ सू १५ १६ १८३२ से २१ से २०,२७,१६२३,२६: २०१७ २।१२५४१ ताराविमा (सत्यपि ४०१ २०६ ६८५७११९५,११६१०१,८,१२, १७,३५,३६ तारिस ( तादृश ) १०।१६४; २०१७ तारिसग ( तादृशक) ५।१३,१५,३१ २०७१।३३२२८, २०६ (रूपत्व) प १६४४६ १७ ११५, ११६० ११० से १२८,१४८ से १५२,१५४,१५५ ताल (ताल) प ११४७११; १३०,३१,४१,४६ १९४५ २६५३१०२, १८६, २०४, २०६६ २१८,२२२५११, १९७५५,५८,१६४ सू १६।१३, १६०२३,२६ ताल (ताड ) प २०४६४१ ताल (ताड) २१६ उ ५।१५ ताल (सावन) ज ७११७८ तालपुव (ताल) १२०१९० तातावार ( तालाकर) २६.७४, १४७, १६०.११९.२१३ ३३१२,२८,४१,४६,५८ तात्रय (तारित) ५१७ तालियंट (ताजयुक्त) ३०११५१०५५ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालु-तित्थगरत्त तालु (तालु) प २।३१ ज २११५, ३।३५,१०६, ४४,४६,५८ उ १११६,२१,३११०३,११३, ७११७८ ४।१३,१६ ताव (तायत्) प २४।७ उ ११५१ तिग (त्रिक) ज २६५, ३११८५,२१२,२१३, ताव (ताप) ज ५१३२ उ ३।५० ५७२,७३,७४१३१।१ उ १९८ तावइय (ताक्त) ज १११६,३।८४।१२१,१४०।२, तिगिछद्दह (तिगिच्छद्रह) ज ४1८८ से ११ २१७ तिगिच्छकूड (तिगिच्छकूट) ज ४।२७५ तावक्खेत (तापक्षेत्र) सू २१३ ; ४।५ ; ६३१; तिगिच्छायण (चिकित्सायन) सू १०१११६ १९४२२११४,१६१२३,२६ तिगुण (त्रिगुण) ज २१६, ७७,६६,६०,११८,१२१, तावक्षेत्तसंठिति (तापक्षेत्रमंस्थिति) ज ७।३१,३५, सू १०।६०,६१,१८१६ से १३ सू४।१,३,४,६ तिगुणित (त्रिगुणित) सू १६।२२।२३,२५ तावखेत (तापक्षेत्र) ज ७३२,५५,५८,१६८,२१२, तिजमलपय (त्रियमलपद) प १२१३२ तिछाणवडित (त्रिस्थानपतित) प ५१२,१४,१६, ताखेत्तयह (तापक्षेत्रपथ) सू १६।२२१५ २०,२६,५३,५७,१६,६३,६८,७२,७४,७८,८३, तावण्णत्त (तद्वत्व) प १६४६१७११५, १४,६७,१०१,११२,११५.११६,१२२ ११६,११८,१४८,१४६ हिट्ठाणवडिय (त्रिस्थानपतित) ५ ५।१८ तावतिय (तावत् ) प १५३५१,५२,६२ ज ४।१० तिणिस (तिनिश) ज ३।३५,१७८ तावत्तीस (वात्रिंश) ज ५५० तिण्ण (तीर्ण) ज ५।२१ तावत्तीसग (बायस्त्रिंशक) प २१३२,३३,३५,४६ ििततिक्ख (तितिक्ष) तितिक्खइ ज २१६७ से ५१ ज ५११६ तित्त (तप्त) प श६४११६ तावतीसय (बायस्त्रिंशक) ज २६६० तित्त (विक्त) प १४ से ६५1५,७,२०५:११।५८, तावत्तीसा (त्रायस्त्रिंशक) १२।३० से ३२ १३।२८२३४६,२८१२०,३२,६६ ज २१४५ तावस (तापस) प २०१६१ उ ३१५०,५५ तित्तिर (तित्तिरि) प १७६ सू १०११२० तावसत्त (तापसल) उ ३१५०,५५ तित्तीस (त्रयस्त्रिंशत् ) ज ४८ ताहि (तत्र) प २४१६ तित्थ (वीथं) ज ३३१४,१५,१८,२०,२२,३०,३१; तम्हे (तदा) ज ७५६ उ ११५२, ३।१२३ ४।३,२५,५५५,६।६,१२ से १४ ति (त्रि) प १११३ ज ११७ च ३।३ सू १७ तित्थकर (तीर्थकर) ज २६३,१२५ १।१४ तित्थगर (तीर्थकर) प २०११।१ ज २१६०,६५, तिउड (द०) ज ४।२०२ १०१ से १०३,११३ ११४,११६,१५३; तिदु (तिन्दु) प ११३६।१ ५१७,२२,७०,७३ तिदुय (निन्दुम) प १६३५५ तित्थगरचियगा (तीर्थकरचिनया) ज २११०५ से तिदूय (निन्दुक) प ११४८१४८ ११२ हिक्ख (तीक्ष्ण) २१३३७।१७८ तित्थगरणाम (नीर्थकरनामन ) प २३।३८,५६, तिक्खरग (तीक्ष्णाग्र) ज ७१७८ १२६,१४६,१७४,१८६ शिक्खधार (तीक्षार) ज २११३१,३।१०६ रिस्थगरणामगोय (तीर्थकरनामगोत्र ) प २०१३६ तिक्खुतो (विल) ज१६; २१६०, ३५,८८,८६, तित्यगरत्त (तीर्थकरत्व) ५२०३८ से ४०,४५, ६८,१३१,१३५,१५५,१५६,५।५,२१ से २४, ४६,५१ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तित्वगरव-तिरिक्खजाणिवत्त तित्थगरवंस (नीर्थकरवंश) ज २।१२४,१५२ ८३,८५८८६,६३,६५ ले ९० १०२, तित्थगरलरीरग (तीर्थकरशरीरक) ज २१६६ १०६,१५५:४।३७.१७२।१.१७८,६।१६ तित्थगरसिद्ध (तीर्थकरसिद्ध) प १३१२ तिमिसगुहाकड (निभिसागुहाट) । ११३४ तित्ययर (तीर्थकर) ज ४१२४८,२५० से २५२, लिय (वि:) १६११५ ७१३१११ ११.३.५,८ से १४,१६,१७,२१.२२,४४,४६: लिय (इदिय) प्रीमियम १७१६६ ६०,६२,६४,६६ से ६६.७२,७३,७११६८ सियभंग (विभः) ५२४७,१३,२६,६; तिस्थयरमाउ (तीर्थक रमात) ज ५९ से १२ २८।११२,११६,११६,१२१,१२३,१२५,१२६, तित्ययरमायरा (तीर्थकरमात) ५५,१४,१७ १२८,१२६,१२,१३६,४३६ से १४५ तित्थयरमाया (तीर्थकरमात) ज ५॥७,८,४६,६७ तिरिक्ख (तिच) ॥ १७॥३३,२१७ तित्थयराइसय (तीर्थक रातिशय) उ४।१३ लिरिक्खजोनिधी (पर्याय) प३।६८,१२८, तित्थयरातिसय (तीर्थकराशिय) उ १।१६,४१८ १८३:१७166,:.६ ,९१८।४,१०; तित्थयराभिसेय (तीर्थकराभिषेक) ज ५०५४ से ५६ २०११३:२३।१६४,१०६.१६८ तित्यप्तिद्ध (तीर्थ सिद्ध) ५ १:१२,१६॥३६ हिरिजोणिय लिया ११५२,६४,५५., सिधा (त्रिधा) ज ११८ ६० से ६२, ६ ७ ,७,८१२।२८, तिपएसिय (त्रिप्रदेशिक) प ५११३१,१५६;१०८ २४,३५,२६१२७,१८६ ४.१०४ से १५७; तिपडोयार (त्रिप्रत्यवतार,त्रिपदावतार) सू १९१३५ ५.३,२२,२२,८३,८५.८६,८८,८६,६२,६३, तिपदेस (त्रिप्रदेशिक) प १०६१४३१ ६६.६७६२१,२०४८,५८,६५,७०,७१,७८, तिभाग (त्रिभाग) प २१६४१४,६,७,९;६.११६; ८१,८२,८३,८८,८६,९२,६६,६६ से १०३, २११६१,२३१७८,७६,१४७,१६२,१६६, १०५,१०,११:.११६, ८६,६१६,७,१६: जे १२०,४८,२१५८,१२६,१५५,९५७,१५६, १७,२२,२६, ११:४६,१२१४.२१:१६।१८; ३११,७१३२,३४ सू ११२३,४१५८६३ १५॥३.५,५६,६७,१०,१२,१३८,१६७,१४, तिभागतिभाग (त्रिभागत्रिभाग) ५६।११६ २५,२७; ११२९५,३८,८१ से ४३,५८, तिभातिभागतिभागावसेसाउय ६३ से ६६८ ७,८६,६७.१०४:१८।३,१० (विभागत्रिभागत्रिभागावशेपा बुक) ५६।११५, १९१४,२०११३,१३,२६,२५,२६,३४,३५,४८, २११८ स १८,६ स ३२,४३,५३,६०,६८, तिभागतिभागावसेसाउय (विभागत्रिभागावशेषायुक) ७७,८२,८८२३१,०८,८७.९८२७६, प६।११५ १६४,१०६,१६८,१६६२४७२८१४७,४८, तिभागावसेसाउय (त्रिभागावशेपायुक) प ६.११५, ११६,१३०,१३,१६७,१४४,२६१५,२२, ३११४;३२११, २२११,१२,२१,२८,३२,३६ तिभागूण (त्रिभागान) परा६४१७ सू १२३ ३४।३,८,६५४१८,२१ १७.४०,५१,५७, तिभाय (विभाग) ज २१५५ से ५७,५६,१५६,१५८ ७२.७३ ज 2,१३५ से १३७ तिमि (तिमि) प ११५६ तिरिक्खजो गयअस आज्य हिर्शमगिल (तिमिङ्गिल) ५ ११५६ (तिर्यनिवासया ५) ५६१६४ तिमिर (तिमिर) पश४१।१ ज ३१६५,१५६ तिरिक्खजोषियत्त (तियंग्यौनिकत्व) १५११७, तिमिसगुहा (तिमिस्रागुहा) ११२४३१६८,६६, Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिरिक्खजोणियाउय-तुच्छ तिरिक्खजोणियाउय (तिर्यग्योनिकायुष) तिवण्ण (त्रिवर्ण) प ७.१७८ प २०१६३,२३१७६,१४७,१५८,१६२,१६५, लिवलि (त्रिवलि) ज ३११३८११ १७० तिवलियवलिय (त्रिपालिकवलित) ज २११५ तिरिच्छ (तिर्यच) सू १।६।१ तिवलिया (त्रिवलिका) ज ३१२६,३६,४७ तिरिच्छगति (तिर्यगति) सू २।१ च २१ उ १२२,११५,११७,१४० तिरिय (तिर्यच) १ २१४१ से ४३,४६,४८; तिविह (विविध) प १११११,११५४.६०.६६,७५, ११६६५,६६:१५१५२:२०१५३,२११८७,६० से ७६,८१,८५;६।१,६,१३,२०,२६,१३७,१०, ६३,२३१३६,८२,११२,११५,१४८,२८११५, ११,१३,१५७५१६१४,२४;१७।११,२५, १६,६१,६२,३१६६।१,३२१६।१,३३३१६,१७ ३०,१३६ १८१५६,६४,७७६०,१०५२११८; ज २१४६,७१,६०,१३७,३७६.११६,११८%, २२।४ से ६२३१३३,४२,२६७,३०१३; ४१५२,५१५,४४,७।४४ ५४ सू २।१४।१०; ३५१,६,८ से १० चं ११४ उ ३।३८,४२ १८।११६।२२।१२ तिव्व (तोत्र) परा२७,२६ तिरियगति (तिर्यगति) प ६२.७,२३।१७२ तिसत्तखत्तो (त्रिसप्तकृत्वस्) प ३६.८१ तिरियगतिपरिणाम (तिर्यग्गतिपरिणाम) ५ १३.३ तिसमइय (त्रिसामयिक) प ३६.६०,६७ से ६६, तिरियगतिय (तिर्यग्गतिक) ५१३।१६ से १८ तिरियगामि (तिर्यगगामिन्) ज ११२२,५०,२१५८, तिसरय (त्रिसरक) ज ३१६,२२२ तिहा (विधा) ज १।२०२५५१५५ १२३,१२८.१४८,१५१ १५७,४११०१ तिहि (तिथि) ज ३।२०६७।११८,१२१ सू श६ तिरियलोग (तिर्यक्लोक) प २११८६ तीत (अतीत) ज ७१३६ सिरियलोय (तिर्यक् लोक) प ११.४,८,१०,१३, तीतवयण (अतीतवचन) प १११८६ १६ से १६.२८३।१२५ से १७३,१७५,१७७ तिरियवाय (तिर्यग्वात) प ११२६ तीय (अनीत) प १५:५८२ ज २।६०,३।२६,३६, तिरियाउय (तिर्यगायुप) प २३११८ ४७,५६,१३३,१३८,१४५, ५॥३,२२,७५२ तिरोड (किरीट) प २।४६ ज ६।३१ तीर (तीर) ज ४।३,२५,६७ तिल (तिल) प ११४५॥१.१२४७१३ ज १३७,११६ तीस (त्रिशत्) प १८४ ज ११२० सू१११८ तिलक (तिलक) ज ३।१०६ उ ३।१४ तिलग (तिलक) ज ३११२,८८,१७२,५१५८; तीसइ (त्रिंशत्) सू १०।४ ७/१७८ तीसति (त्रिंशत्) सू १०३५ तिलचुण्ण (निलचूर्ण) प ११७६ तीसतिविह (त्रिंशद्विध) प १३८७ तिलतंदुलग (तिलतण्डुलक) सू १०।१२० तु (तु) मु १६।२२ तिलपप्पडिया (तिलपर्प टिका) प १।४७१३ संग (तुङ्ग) ५२।३१,४८ ज २११५,३८१,१५१, तिलपुष्फवण्ण (तिलपुष्पवर्ण) सू२०१८.२०।८३ ४१४६५।४३ उ ५५५ तिलय (तिलक) प ११३६:३;२०४८१५।५५१२ तुंड (तुण्ड) ज ३१२४ ज ४१४६ उ ३.११४ तुंब (तुम्ब) प ११४८१४८ उ ३।३०,३५,११६ तिलसिंगा (तिलसिला') प १११७८ तिल की फली तुंबी (तुम्बी) प १४०१ तिवई (त्रिपदी) ज ३।१७८,५१५७ तुच्छ (तुच्छ) ज ७११८ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुच्छत्त-तूली तुच्छत्त (तुच्छत्व) प १५६४४,४५ तुच्छा (तुच्छा) पू १०६० तुट्ठ (तुष्ट) ज २१४६,३१२,६.८,१५,१६,२६, ३१,४२,१०,५२,५३,५६,६१,६२,६७,६६, ७०,७५,७७,८४,६१,१००,११४,१३७,१४१, १४२,१४८,१५०,१६५,१६६.१७३,१८१, १८६.१६२,१६६,२०८,२१३,५१५,१५,२१, २३,२७ से २६,४१,५५,५७,७० उ १२१, ४२,४५,१०८, ३.१३,१०१,१०३,११३,१३६, १६०,४१११,१४,२०,५१५,३८ तुठ्ठि (तुप्टि) ज २१७१ उ ११७१,७२ तुडित (तूर्य) प २।३०,३१,४६ तुडित (त्रुटिक) ज ११३१,३।२६ तुडित (त्रुटि) प २१३०,३१ तुडिय (त्रुटित) प २३०,३१,४१ ज ३६,६,२६, ३६,४७,५६,६४,७२,१३३,१३८,१४५,२११, २२१:५२१,५८ तुडिय (दे० त्रुटित ) ज २१४ संख्। विशेष तुडिय (तुर्ष) प २।३०,३१,४१,४६ ज १११४५; स६५, ३३१४,३०,४३,५१,६०,६८,८२,१३०, १३६,१४७,१४६,१७२,१८०,१८५,१८६, १८3,२०४,२१८५११,१६,२२,२६७।५५, ५८,१८४ सुडिय (३०) ज७१६८१२ सु१८१२३ अन्तःपुर तुाडयंग (दे० अटिनांग) ज १४ दुड़ियंग ( ङ्गि) ज ३११६७६१० तुण्णाग (तुम्नाय) ५ १९७ तुयट्ट (ताद : वृत्) यट्ट ति ज १।१३,३०, ___३३:२१७४१२ तुटेज प ३६।६१ तुरग (तुग्ग) ज ११३७,२३१०१,३३,२३,२८, ३५,३७,४१,४५,६७,४६,१७८,४।२७,५१२८ तुरगरूवर (तु गरूपधारिन्) म १८१४ से १७ पुरय (नग) ज ३११३१,१३५ सुरिय (ब) १२७८ तुरिय (नि) ६५,६०३१६,२६,३६ ४७, ५.६,६४,७२,७८,११३,१३३,१३८,१४५,१८०, २०६५३५,२१,२६,२८,४४,४७,६७ तुरुक (तुरु) प २१३०,३१,४१ ज २६५,१०६, ११०; ३७.१२,८८,५७,५८ - २०१७ तुल (नुना) ज ७.१३३१२ तुलसी (दुमली) ११३७॥१,२१४४१३ तुलासंठिय (तुमाथित) १०४० तुल्ल (गुरु) प ३३८ से १२०,१२२ से १२४, १७४,१७६,१७८ स १८२:५५,७,१०,१२,१६, १८,२०,२४,२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६, ५३,५६,५६,६३,६८.७१,७४,७८,८३,८६, ८६,९३,६७,१०१,१०२,१०४,१०७,१११, ११५.११६,१२६१३१,१३४,१३६,१३८, १४०,१४३,१४,१४७,१५०,१५४,१६३, १६६,१६,१७०,१७२,१७४,१७७,१८४, १८७,१६०,१६३,१६७,२००,२०३,२०७, २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३४, २३५,२३७,२३६,२४२, ६।१२३,८१५,७,६, ११; ६।१२,१६,२५२१०१३ से ५,२६ से २९ ११७६,६०,१५११२,१६,२६,२८,३१,३३, ६४; १७५६ से ६६,७१ ते ७६,७८ से १३, १४४ मे १४६:०६४, २१११०४,१०५; २२११०१,२८।४१,४४,७०,६४।२५,२६.३५ से ४१,४८,८६,८३.१ ज ३।३,३५,७।१६८,१६७ मु १८।२,३,३७ तुल्लत्त (तुल) ज १६८ १८१३ तुवर (तुर) ज ३।२०३५५५,२६ तुवरी (तुयी) - १०।१२० तुसार (तुपार) परा६४ तुसिणीय (नुग्णी) ज २१६० उ ११३८,६१,६२, ५६,८७,२००, १२.६.५६.६१,६४,६८,७१, सूली मी) ज ४१३ Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तूवरी- तेया तुवरी ( तुवरी ) प १३७ ३ तेइंदिय ( त्रीन्द्रिय) प ११५० २७ ३८४० से ४२,४६,४९,१४७ से १४६, १८३ ४ ६८ से १००५३,२१,८१६।२०, ६५, ७१,८३,८६, १०४,११५; ६ |४; १११४५ १५३४,७५,८१, ८६, १३७, १७४०,६२,१०३, १८११५, २२; २०१८,२३,२८,३३,४७२१६, २८, ४२; २२३१,२३८७,१५१,१६०,१६१ २८ ।४५ से ४७,१०१,१२५,१३६; २६।१३;३०।११, २१,३१३,३४/६ तेईदियत्त (त्रीन्द्रियत्व ) प १५६७.१४२ तेज (तेजस् ) प ६८६,६२,१०४, ११५; १३३६, १६; १७/४०, ६६; १८१२६, २०१८.२३,२८, ५७,२११८५, २२१२४ तेउकाइय (तेजस्कायिक) प १।१५२।७ से ६; ३ ५० से ५२,५६,६० से ६३,६७,७१ से ७४,७८, ८४ से ८७,६१,६५,१६२ से १६४, १८३,४१७२,७५ से ७७५/३,१३,१४,६ १६,१०२ तेउका इयत्त ( तेजस्कायिकत्व) ज ७१२१२ तेइ (तेजस्कायिक ) प ११२४, २०७१ ३४, १६४,१८३६१५; १२१२२; १५१२६,८५,१३७; १७६१ से ६३,१०३, १८१३,३८, ४०, ५१ ; २०२७,२६,३१,४५, २११२५, ४०, २२/३१ तेउलेस (तेजोलेश्य ) प १३।१५; १७६५, ६, १०२,१६८ तेउलेसट्ठाण (तेजोलेश्यास्थान ) प १७ १४६ तेउलेसा (तेजोलेश्या ) प १७५५,१२१,१४६ तेउलेक्स (तेजोलेश्य ) प ३१६६; १३ १६, २०; १७३३,५६,५६,६०,६२,६४,६६ से ६८, ७१ से ७६,७ से ८४,८७,८६,६५,२१०१,१०२, १६७१८७२ २८/१२३ तेउलेस्तट्ठाण (तेजोलेश्यास्थान ) प १७ १४६ तेउलेस्सा (तेजा ) प १६१४६; १७३४ से ३६,३६,५०,५३,५४, १३, १६, ११७, ११८, १२१,१२२,१२६,१२६,१३३, १३७.१४४, ६३६ १५३,१६२ से १६४; २८।१२३ तेउलेस्सापरिणाम (तेजोलेश्यापरिणाम ) प १३१६ तेंदिय ( त्रीन्द्रिय) प १२१४,५०३२४२, ४६,४६ तेंदुय ( तिन्दुक ) प १७/१३२,१३३ तेंदूस ( विन्दुस ) प ११४८४८ तेगिच्छायण ( चिकित्सायन) ज ७ १३२२४ बहुल ( स्तेनवहुल) ज १।१८ तेण ( तेन ) सू ६।१ तेणउति ( त्रिनवति) सु १२/१२ ते उय ( त्रिनवति) ज ४६२ तेणामेव ( तत्रैव ) प ३४१२२ ज ३१५ तेतलि (तेजस्त लिन्, तेतलिन् ) ज २१५०, १६४; ४११०६, २०५ तेतालीस ( त्रिचत्वारिंशत् ) सू ११/६ तेत्तीस ( त्रयत्रिंशत् ) प २०६४।६ ज ४१६८ सू १२० उ ११२६ तेदुरणमज्जिया (दे० ) प १५० तेपण (त्रिपञ्चाशत् ) सू १२/२० तेय ( तेजस् ) प २१२०,३१,४१.४६,२८।१४१ ज २११३३,३३,१८,६३,१८०,१८८७ ११२१५ सू १०८८, १२६१५ उ ३४८, ५०, ५५,६३, ६७,७०,७३, १०६,११८ तेयंसि ( तेजस्विन् ) ज ३१७७, १०६ तेग ( तैजस ) प २१।७६६३६।३२ तेयगसमुग्धाय ( तैजससमुद्घात ) प ३६/८,१२,२६, ३२, ३५, ३७, ४१, ५३, ५५,५७,५८,७३ तेयगसरीर ( तैजसारीर ) प २१ ७५ से ८१,८३, ६०.६४,१००, १०२, १०४ तेयगसरीरय ( तैजसशरीरक ) प १२११० ते (तेजस ) प १२१ से ५:२१११,३६।१।१ तेयलि (दे० ) प १३४३३१ तेयलेस्स (तेजोलेश्य ) ज ११५ तेयसि (स्थिन् ) २२६८,१३८ तेया (नैनस ) प १२।१४,१८,२१.२४.२६.२६,३५. २११६६, १०२.१०४,१०५२३१९२१३६।६२ Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० १०८८२ तेया (तेजा ) ज ७।१२०१२ तेयाल ( त्रिचत्वारिंशत् ) ज १।२३ तेयालीस ( त्रिचत्वारिंशत् ) सू १०/१५६ तेयासमुग्धाय (+जससमुद्घात ) प ३६११, ५, ७, ४० तो (तुण ) प ३१३१,३५,१७८ ज ३१३१,३५. तेहिय ( व्याहिक) ज २०६ तो ( ततस् ) प २२७३ तोट्ठ (दे० ) प ११५१ तेयासरीर (तैजसशरीर ) प २११८४ से ६३ १७८ उ ११३८ तेयाहिय ( त्र्याहिक) ज २१४३ तेरस (त्रयोदशन् ) प ३६।८१ ज १७ सू १।१४ तेरसक (त्रयोदशक ) सू १३३१२,१३,१७ तेरसम ( त्रयोदश ) प १० | १४ | ३ सु १० ७७; १३।१० तोमर (तोमर) ज ३३५,१७८ तोयधारा (तायधारा ) ज ५४१११,६३,६४ तोरण (तोरण ) प २१,३०,३१,४१ ज ११३७ २।१५,२०,३७,१७८, १६५,४५, २३, २७ से ३०, ३५, ३७, ३८, ४०, ४२, ६५, ६७,७१,७३, ७५,७७,६० से ६२,६४, ११८, १२८, १४४, १७४,१८३,१८६,१६५,२२१,२४६ : ५१३१ त्ति (इति) प १११ चं १४ स्थिभंग (स्तिभक ) प ११४८।१ रिथमिय ( स्तिमित) ज ११२,२६,३१,३,१८,३१, १८० चं ६ सू १।१ उ १११,६, २८, ३।१५७; ५१२४ त्थिहु ( स्तिभु ) प ११४८१ तेरसविह (त्रयोदशविध ) प १६ | ७ तेरसी (त्रयोदशी) ज २२८८७ १२५ तेरिच्छिय (तैरश्चिक ) प २०१६१ ज ३६२,११६ तेलापूर (तैलापूप ) प ३६।८१ ज १३७ सू १/४ तेलोक्क (त्रैलोक्य) प १|१|१३ । १२५ से १७३, १७५,१७७ तेल्ल (ल) प ११०११७,१५।१।२; १५।५० ज ३।११।३, ५११४ उ ३११३० तेल्लकेला (तलकेला ) उ ३११२८ तेल्लसमुग्ग ( समुद्ग ) ज ५१५५ तेल्लसमुग्गहयगय ( हस्तगत तैलसमुद्ग ) ज ३।११ तेल्लोक (त्रैलोक्य) उ५१५ तेवट्ठ (त्रिपष्टि ) ज ७ २० २/३ तेवट्ठि (त्रिषष्टि) ज २२६४ तेवण्ण (त्रिपञ्चाशत् ) प ४।१३४ ज ४१६२ सू १११३ तेवर्त्तार ( त्रिसप्तति ) ज २४ तेवीस ( त्रिविशति ) प २१४६ ज २।१२५ सू २/३ तेवीस (त्रिविशतितम) प १०३१४१३ तेवीसइम (त्रिविशतितम ) प १०१४१२ तेवीसतिम (त्रिविशतितम) सू १२।१६ तेसट्ठि (त्रिषष्टि) ज ७।३३ तेसीइ ( व्यशीति) ज २१६४ तेसीत ( त्र्यशीति) सू ११२३ सीति (यशीति) सु ११२३ तेसीय (व्यशीनि ) मू ११४ तेया धणिय कुमार थ थंभणया ( स्तम्भन ) प १६५३ थं भय ( स्तम्भिन ) प २१३०, ३१, ४१, ४६ ज ३३६, २२२:५१२१,२८ / थक्कार (दे० ) थक्कारेति ज ५।५७ ण (स्व) ज २११५:३११३८ उ ३।१८,१३०, ४६ गंतर (स्वनकान्तर) उ४४२१ थणपाय ( स्तपाय ) उ ३।१३० थणभूल ( स्तनमूल) उ ३३६८ यणित ( स्वनित) सू २०११ णिय ( स्तति ) प २२३०११,२१४०१२, ८, १० ज ५।२२ यणियकुमार ( स्तनितकुमार ) प ११३१,४।५५; ५१३,८,५१,६।१८,५२,६१,८१,८५,१०२,१०९, ११४; ७/३८२३,६१३, १५, ११/४४; १२२, १६,१३।१५; १५।१६,७१,७८,८४,१३६, Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यणिय कुमारत्त - दंडपति १६।३,११,१७११७, ६३, १०१:१६।१,२०१८, १२,२१,२३,२४,२७,३५,२११५५,६१,७०,६०; २२१२३,३०,३६,७३,६८,२४१५२८२७,६८, ११६, २६७, १६, ३०१७,१७,३११२३३११, २०,२७,३१,३५:३४।२, ३५।१८ ; ३६।५, २४, थूम ( स्तूप ) प १११२५ ज २३१५, २०, ३१; ४१२५,१२६ ३७,७२ थणियकुमारत (स्तनितकुमारत्व ) प १५ ६५, १४१६ थेज्ज ( स्थैर्य) उ ३११२८ थवईरयण ( स्थपतिरत्न ) ज ३१३२११ थाल ( स्थाल ) प ११।२५ ज २११५; ३३११; ५।५५ थालइ ( स्थालकिन् ) उ ३।५० यारुकिणिया (थारुकिनिका ) ज ३।११।१ थालीपाक ( स्थालीपाक) सु २०१७ थालीपाग ( स्थालीपाक) ज २।३० थावरणाम (स्थावरनामन् ) प २३३८,११७ थासग ( स्थासक ) ज ३३१०६,१७८७३१७८ free (दे० ) प १५११२ faबुग (स्तिक ) प १५३२६,२१।२४ थिर (स्थिर) ज ७।१२४, १२५, १७८ थिरणाम ( स्थिरतान् ) प २३।३८,१२२ थिरीकरण ( स्थिरीकरण ) प १०१०१३१४ थिल्ली (दे०) २३३ थी (स्त्री) प १८४ थीद्धि (स्थान) प २३|१४, २७ थीविलोयण (त्रविलोचन ) ज ७।१२३ से १२५ थुर (दे० ) प १४२२ थू (स्थूणा ) १५१ ।२.१५।५२ ३६।२२,२५ द्ध ( स्तब्ध ) ज ३|१०६ सु २०२ थल (स्थल) प १६७५ ज २११३१,१३४:३।३२, ६६ थेरग ( स्थविरक) ज २११३३ उ ३।५५ थलय (स्थलज ) प ११४८१४० लय (स्थलक) ज ५।७ लयर ( स्थलचर ) प ११५४,६१,६२,६६ से ६८ ७६, ३१८३४।१२२ से १४८६७१,७८; २१८,११ से १६,३५,४४,५३,६० भियग्ग (स्तूपिकाग्र ) प २०६४ यूमिया ( स्तूपका ) प १११६,३७,४।१०,४६ थुभियाग (स्तुपिका ) प २२४८ ज ११३८ ४ १०, ११५,२१७,२२६ ४१ थेर ( स्थविर ) प १६।५१ सू २०६४ उ २११०, १२:३११४,१५६,१६१, १६७,५३६४१, ४३ थोव ( स्तोक ) प ३।१ से १७,२४ से १२०,१२२ से १८१,१८३ ६ १२३, ७ २, ३, ८५, ७, ६, ११; १२,१६.२५:१० १३ से ५, २६, २७,११७६, ६०,१५/१३,१६,२६,२८,३१,३३,३४,६४, १७/५६ से ५६,६१,६४,६६ से ६८, ७१ से ७४,७६,७८ से ८३,१४४ से १४६, २०१६४; २१।१०४, १०५, २२११०१, २८ ४१, ४४, ७०; ३४।२५ ३६ ३५ से ४१, ४८ से ५१, ८२ ज२४२, ६६ सु८१; २०१५ थोक्तराग ( स्तोकत रक ) प ३५३२ थोवूण ( स्तोकोन ) ज २०१५ व दओदर ( दकोदर) ज २१४३ दंड ( दण्ड ) प २१३०, ३१, ४१, ३६।८५ ज २६, ६० से ६२,३३,१२,८८, ११७, १७८, १६२; ४:२६,५।५,७,५८; ७ १७८ उ १।३१ दंडग ( दण्डक) १६।१२३, १९८३, ८५, १४१६,८, १०,१८,२०१५, २२१२०, २५, २८, ४५,५६,५८ ७६,२३१८, १२:२८।१४५, ३६८, १२, २०, २६ से ३१,३३,३४,४४,४५ दंडाग ( दण्डनायक ) ज ३१६,७७, २२२ दंडणी ( दण्डनीति) ज २१६० से ६२ : ३३ १६७/६ दंडदारु ( दण्डदारु) उ ३१५११ दंडपति ( दण्डपति) ज ३०१०६ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ दंडय ( दण्डक ) प ११८०, ८२ से ८४ १४/३४; १५ । १०२.१४०; १७८६, २२१३३, ३५, ४१,५४ दंडरयण ( दण्ड रत्न ) ज ३८८,८६,१५५, १५६, १७८,२२० दंडरयमत्त ( दण्ड रत्नल ) प २०६० दंडि ( दण्डिन् ) ज ३११७८ दंडिया ( दण्डिका) ज ३१३५ दंत ( द ) प २।२१ ज २।४३,१३३,१३४; ३११०६,१७८७ १७८ दंतंतर ( दन्तान्तर ) उ ११२७ दंतग्ग ( दन्ताम्र ) ज ७ १७८ दंतमाल ( दन्तमाल ) अश दंतमूल (दन्तमुगल ) उ १९७ दंतार ( दन्तकार ) प १६७ दंति ( दन्तिन् ) प १।४८।४ ज ३।२२१ १ १४, १५,२१,२२,२५,२६,१२१,१२५,१२६,१३२, १३३,१३६,१३७,१४०, १४७ दंतु खलिय ( दन्त' उखलिक') उ३।५० दंस ( दंश ) उ३३१२८ दंसण ( दर्शन ) प १1१०१ १०; २।६४ १२: ३।१।१५।२१,२४, २८, ३०, ३२, ३४, ३७,४१, ४६,८०,६३,८४,८६,८७,८९,६४,६६,१०१, १०२,१०४,१०५,१०७,१११, ११२,११५, ११७१३/१६:१८११११, २०१६१; २३/२६, २८,६२,१३४,१७८३०१२६, २८ ज २२७१, ८५ ३।१७८, २२३५।४३ ३ ३३४४; ५१३, ३१ दंसण ( उ ) ( दर्शनोपयुक्त) प ३६/६३,६४ दंसणधर (दर्शनवर) ज ५३२१ दंसणपरिणाम ( दर्शनपरिणाम ) प १३२,१४,१६, १७,१९ दंसणमोहणिज्ज ( दर्शनमोहनीय ) प २३३,३२,३३ दंसणवत्तिय ( दर्शनप्रत्यय) ज ५१२७ दसणारय ( दर्शनार्य) १ १ ६२,१०० से ११० सणावरण ( दर्शनावरण) प २४१६ दंडेय - ददुर दंसणावर णिज्ज ( दर्शनावरणीय ) प २३१,३,८, १२ दक्ख ( दक्ष ) ज ५१५.५२ दक्खिण (दक्षिण) ज १२४६, ४१५२,५५,८१,८६, १८,१०८, १४३,१५१।१,१५६,१६४,१६५, १८५,१३,१९७, १६६,२००, २०४, २०६ मे २०८,२१३,२२७,२३०, २३७,२३८, २४६, २६२,२६५,२६८, २७१, २७७५३४८; ६१२३; ७।१२६ कूल (दक्षिण कूल ) उ३।५० दक्खिणा ( दक्षिणा ) ३३१४८,५० दखिल्लि ( दाक्षिणात्य ) ज १।२६; ३११६३; ४१३५,६५,७१,६०,११०,१४१,२०२,२१२, २२८,२२६,२३८५/४६, ७ १७८ दग ( क ) प १७१२८ ज ३११२५३७; ७ ११२/४ १०११२६१४, २०१८, २०१८/३ दगकलसग (दककलशक ) ज ५ ॥ ७ दगकुंभग ( दककुम्भक ) ज ५।७ दगथलग ( दकस्थालक) ज ५/७ दगपणवण्ण (दकपंचवर्ण ) २०१८, २०१८/३ पिप्पली (दक पिप्पली ) प ११४४१२ दगर ( दकरजस् ) प २३१,६४,१७१२८ ज २११५ दगण ( दकवर्ण) सू २०1८ दगवारग ( दकवारक) ज ५७ दट्ठव (द्रष्टव्य ) प १५।२६ दड्ढ ( दग्ध ) प ३६।९४ दढ (दृढ ) ज ३१२४; ५१५ ७२ १७८ दढपण (दृढप्रतिज्ञ ) उ १।१४१,२०१३ ढरह (वृढरथ) उ५१२११ दत्त (दत्त) उ ३।२।१,३।१७१ दद्दर (दे० ) प २।३०,३१,४१ ज ३१७,२४,१८४, २२१,५५५ ददु (द) ज २ । १३३ ददुर (दर्दुर) सू २०।२ प २०४६ २० २ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दधि-दव्वीकर १४३ दधि (दक्षि) ज ४११२५:५१६२ सु १०।१२० दलिय (दलिक) ज ३१३५ दप्पण (दर्पण) च ३३१२,१०८:४।२८,५१५८ वव (द्रव) प २१४१ दप्पणिज्ज (दपणी) १७१३४ २०१८ दवारग (द्रबकारक) ज ३।१७८ दप्पिय (दपित) ३१२४; ७१७८ दव (द्रव्य) प १११०१।९३.१२४,१७७,१७८%; दभ (दर्भ) ज ११२२ उ ३५१५६ १०५:१११४७,५३,५५.५.७,५६.७० से ७३,७६ दभपुप्फ (दर्भपुल) र १० से ८५,१५।५७,१६।५०:२१११।१,२११२२; दम्भसंथार (दर्भस्तार) ज ३।२०३३,५४,६३, २२।१३,१५,१७,१६,८०,८२,२८।५; ७१,८४,१३७,१७,१५२ उ१४३ ३५।१।१ उ ११४० दब्भसंथारग (दास्तारः) ज ६।२०,३३,५४, दवओ (व्यतम्) ११११४८,४६१२१७,१०; २८५,५१, ३५१४,५ ज २६६ दभियायण (दायिन): १०।११२ दव्वजाय (द्रव्य जात) ज २१६६ दरणग (दमा ) प ११४४।३ ज ५१८ दोनावृक्ष, दव्वछ (द्रव्यार्थ) प३।११६ से १२०,१२२, द्रोणलता १७६ से १८२; १०।३ से ५,२६ से २६; दमणगड (दा कमुट) ज ४११०७ १७९१४४ से १४६,२११०४ दमणय (दग्गज ३११२८८ दवट्ठता (द्रव्याथं) प ३।११६ से ११८ दमिल (द्राविडी १८६ देवठ्ठया (द्रव्यार्थ) प ३३११४,११६,१२०,१२२, दमिली (विडा द्रमिका) ज ३।१११२ १७६ मे १८२,५१५,७,१२,१४,१६,१८,२०, दरि (दरि) ज २१३८,३८८,१०६ २४.२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६,५३, दरिदा (दरिबहुल) न १।१८ ५६,५६,६३,६८,७१,७४,७८,८३,८६,८९, दरिय (दप्त) ज २११३३३४ ६३,६७,१०१,१०४,१०७,१११,११५,११६, दरिसणावरणिज्ज वसंता रणी ) प २२१२८; १२६,१३१,१३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५, २३।१४,२६,२६१७,२७१४ १४७,१५०,१५४,१६३,१६६,१६६,१७२, ररिसणिज्ज (दर्शनी प|३०,३१,४१,४८, १७४,१७७,१८१,१८४,१८७,१६०,१६३, ४६,५६६३.६४ ज ११८.२३.३६ ४२,२।१२. १६७,२००,२०३,२०७,२११,२१४,२१८, १४,१५:३११७८,४॥३६.१३,२५,२७,२६, २२१,२२४,२२८,२३०,२३२,२३४,२३७, ३३.४६,११,१२८ ४३.६२ गु ११ उ ५।४ २३६,२४२,१०।३ से ५,२६ से २६, १७४१४४ से १४६,२१११०४ ज ७।२०६ दरी (दरी) उ ३१५५ उ ३४४ दल (दल) ज. २३१५३:१०६ चं ? दलइत्ता (दत्वाज दव्वणिया (द्रव्यहलिका) प ११४७ दिलय (द) दलल्म उ ३१२८ दल इ विदिय (द्रव्येन्द्रिय) प १५३५८१२,१५०७६ से ज ३१६,४१६१:५॥४६ ११०१३३११४ ८४,८६,६१,६४ से ६७,१००,१०४ से १०६, दलयंतिपदा तिज ३८८ दलयह १०८,१०६,११४,११५,११७ से १२०,१२३, उ११०३ दलमि उ१०३:३१११२ १३१,१३२.१४०,१४२,१४३ दलयानो उ ४ दवी (दार्वी) प ११४४।२ दारुहरिद्रा दलयित्ता (दत्वा) ३.८८ दध्वीकर (दर्वीकर) ५११६६,७० Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४४ ददिय (द्रव्येन्द्रिय) प १५ १०३, १२६,१२६, १४३ दस (दशन् ) प ११६६ ज ११२३ सू १।२४ उ १।१७ दस ( दशम ) प १० १४३ दसगुण ( दशगुण ) प ५।१५१२८।७,५३ दसण ( दर्शन ) ज २।१५ ३।३५, १३८५।२१ दह (दशनख ) ज ३।२६,३६,४७,५६,६४,७२, ७७ १३३,१८८५१२१ दसण ( दशार्ण ) प ११६३॥४ दसद्धषण्ण ( दशार्धवर्ण) ज २११०३११२,८८, ४ १६६; ५१७,५८ दसणु ( दशधनुष्) ज ५१२।१ दसपएस (दशप्रदेशिक ) प ५।१३०, १६१,१७६, १६५,२१६ दसपवेलिय ( दशप्रदेशिक ) प ५ १२७,१७६ दसम ( दशम ) प १०।१४१२, ११।३३।१,११।३४।१ ज ७ ६७, १०२, ११४१२ चं ५१४ सू ११६; १०७७, १२४।२; १२/२६१३३८ उ ११७; २११०,२२,३१४, ८३, १५०, १६१,४२४; ५१२८,३६,४३ दसमी (दशमी) ज ७।११८,१२५ सु १०1६० दसरह (दशरथ) उ ५ २१ दविध ( दशविध ) सू १२२६ दसविह ( दशविध ) प १३,१०१,१३१५।१२४; ११।३३,३४,३६,१३।२,२१,२३।१३ दस मई ( दडसमयस्थितिक ) प ५।१४८ दहा ( दशधा ) प २।३०११ दसार (दसार) उ५१५,१०,१७,१६ दसारवंस (दसारवंश) ज २।१२४, १५२ दह (ह) प २/४, १३, १६ से १६, २८:११ ७७ १५/५५।२ ज २३१, ३०१३३,४।३,६४,८८, १४० २,१४१,१४२, २०७, २६८,२७४;५ १५५; ६६।१ दह (दह ) दहइ ज ३।१२ दवें दिय-दार दहफुल्लड (दे० ) प १४०५ दहबहुल ( द्रवहुल) ज १।१८ दहावई (द्रावती) ज ४।१८८, १८९ दहावईकूड (द्रावतीकूट ) ज ४११८८ दहावती (द्रावती) ज ४ । १८७,१६० दहि (दधि ) प ११:२५; १७।१२८ ज २२१५; ७१७८ दहिता ( दग्ध्वा ) ज ३११२ दहिण ( दधिधन ) ज २३११७ १२८ हिमुह ( दधिमुख) ज २।११६ दहिय ( दधिमुखपर्वत) ज २।११८, ११६ दहिवण ( दधिपूर्ण ) प १।३६१३ √दा (दा) दिति सू १०।१२६ देइ ज ७ ११२३४ सू १०।१२६ उ १।११० देति ज ७।११२/३; उ ३६८ दाइज्जमाण ( दर्शयमान ) ज ३ । १८६, २०४ दाइ (दायिक) ज २०६४ दाऊ ( दत्वा ) ज १५८ दाडिम ( दाडिम) प १।३६।१ ज २३१५ दाढा (दंष्ट्रा ) ज ७ १७८ दाण (दान) ज ३|११७११ दाणतराइय ( दानान्तरायिक) व २३|५६ दाणंतराय ( दानान्तराय) प २३।२३ दाणकम्म (दानकर्मन् ) ज ३१३२ दाग (दानव) ज ३।११५,१२४, १२५ दाम (दामन् ) प २४८ ज ३११६७४ ४६, १२६; ५१३८ दामणिसंठिया ( दामनीसंस्थित) सू १०/४६ दामणी ( दामनी) ज ७।१३३।३ सू १०१४६ दामिणी ( दामिनी) ज २।१५ दामिली ( द्राविडी ) प १३८ दाय (दाय) ज २१६४ उ २।६;५।१३,२५,५२ दायव्य ( दातव्य ) सू २०६५ दार (द्वार ) प २1१ ज १११५ से १७,३५; ३१०६,१६३, ४११०, १४, ११५, १२१,१२२, १४७.२१७,२६२ चं ५१४ भू ११६१४; १०११३१ Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दार-दाहिणिल्ल ९४५ दार (दार) ३३१४८,५० २०१२ उ ३१५१,५३,६२ दारग (दारक) 3 ११५३ से ५५,५७ से ५६,६१ दाहिणअवर (दक्षिणापर) ज ३८१ से ६३,७८,८६,८२,२२६३३६२.६८.१०१, दाहिण उत्तराय। (दक्षिणोत्तरायता) ज ४।१४१ १०६,१३०,१३१ दाहिणओ (दक्षिणनस्) प २१४०१३ दारगरूव (दातरूप) 3३३१२६.१३४ दाहिण ड्ढ (दक्षिणार्ध) १२।५० सू २११,८११ दारय (दार) ५.५७ उ ११५१.५४,५६,६० दाहिण ड्ढच्छ (दक्षिणार्धकच्छ) ज ४.१६८ से से ६२.७६ ७६;२६.१०,३११४.१२३.१२४ १७४ दारियत्त (दानिकात्व) उ३।१२५ बाहिणड्ढभरह (दक्षिणार्धभरन) ज १११६,२१ से दारिया (दारिका) 3 ३६२,१८,१०१.१०६ ११४, २३ ४५ से ४७,३।१,२०८,४।३५ उ ५।१० १२३,१२६.१२८,१३०:४।५,६,११ से १६,१८, दाहिणभरहकड (दक्षिणाई भरनकूट) ज ११३४, १६,२० ४१,४५,४६ दारु (दारु) ज ३1३२ दाहिण दारिया (दक्षिणद्रारिका) सु १०।१३१ दारुग (दारुक) ज ३१७८ वाहिण द्धभरह (दक्षिणाईभरत) ज ११२० दालयित्ता (या वित्या) ज ४।३५ दाहिए पदमि (दक्षिणपाश्चात्य) १ ३११७६, दालित्ताणं (दलयित्वा) ए १७४ १७८ ज ३१३०,३१,१७२,१७३,४११६,१६३, दालिम (दाडिम) प १६।५५; १७।१३२ २०८.२०६.२२३,२२६.२३०,५१३६,४६ सू २०१२ दास (दास) ज २।२६३।१०३ उ ११५४,५५.७६, दाहिण पच्चस्थिमिल्ल (दक्षिणपाश्चात्य) ८० ज ४१२३८ दासी (दासी) प ११३७५ काकजंघा, नीलाम्ला, नीलभिटी दाहिण गडीण (दक्षिणापाचीन) सु १११६ दाहिणपुरस्थिम (दक्षिणपौरस्त्य) प ३११७६,१७८ दासी (दासी) ज ३।१०३ ज ४।१६,१०६.२०३,२२२,२२७,२२८,३६, दाह (दाह) ज २१४३ ४६ सू २१,२०।२ दाहिण (दक्षिण) प २११०,३२.३३.३५,४३.५.० दाहिण पुरथिमिल्ल (दक्षिणपौरत) ज ४।२३८%; से ५२.५४,५६५८से ६०३१ से ३०,१७६, १७८ ज ११८,२०,२३.२५.२८,३२,४६,४८, ५।४४,४६ सू १११६२।१,१२१३० ५.१,२।६५.११३,३।१६.१२,३६ १३६,१३७, दाहिणभुयंत (दक्षिणभुज न्त) सू २०१२ १४६.१५०,१८६.२०४।४।१,३,१६.२३,२६, हिमाय (दक्षिणवत) प ११२६ ३७,५१,२,६५.८१,८६.८६,८६,६०,६८. दाहिणव्यालि (दक्षिण वेयाली') प १६.४५ १०३.१०६,१०८.१२६,१६२,१६७ मे १६६ दाहिफिल (दाक्षिणात्य) प १३२,३३,३५,३६, १७२ ले १७४.१७,१७८ १८० १८१,१८३, ३८,४३,४४,४७,३।१८ से २३:१६६३४ १८७,१८६ मे १६१,१६४,१९६ २०१ मे ज ११२६,५१:२।११६,३११४ ज १२२६,५१, २०३, ०५.२१०,२१४,२२० २३८,२६२, २।११९३३१४,१५,१८,३६,५१,५०,६१,८३, २६८.२९१, २ ३ .२१.३६.६:८; ८५.८८ से १०,६२,६३,१२६,१६२,२०६,२१६; ७।१०१.१०२.१६६ १७८६, १५१५ मे १७, ४।१७४ से १७६,१८२,१८३,१८८,१६५, १६:२१:८११:१०।1:१३15,८,१८।१४: २०१.२०२,२१२,२४८,२५१:५११४,४२,४५, Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ दिगिदलय-दिसाणुवाय ५२ सू१०११४२,१४७ २१,२२,२४,२७,२१३,३१२,४१८,६;६.१; दिगिदलय (दे०) उ ३.११४ ८।१६।२,३,१०१५,६३ से ७४,८६।३.१२६५ दिठ्ठ (दृष्ट) प ११०१।३,८ ज ३३१२६ १६॥२२॥१८ उ १२६३,३१६४,६८,७१,७४, दिह्रत (दृष्टान्त) प १७११४८; उ ३१८,२६,६३ ७६,१२६,५।१३,४५ दिळंतिय (दार्टान्तिक) ज ५।५७ दिवसखेत्त (दिवसक्षेत्र) ज ७२७,३० दिट्ठाभट्ठ (दृष्टाभापित) उ ३१५५ दिवसतिहि (दिवसतिथि) सू१०1८६,६० दिछि (दप्टि) प २८.१०६।१ ज ३.१०५:५१६७ दिवा (दिवा) ज ७१२५ दिठिवाय (दृष्टिवाद) १११११३,१११०१।८ दिव (दिव्य) प २३०,३१,४१,४६ ज ११३१, विट्ठीविस (दृष्टिविष) प ११७० ४५,२२६७,६०,१००३१४,५,१२,१४,१५,१८, दिणकर (दिनकर) सू १६११२,१६३२१२३, २६,३०,३१,३६,४३,४४,४७,५१,५२,५६, १६।२२।१२,१३ ६०.६१,६४,६८,६६,७२,७६,८८,६२,६५, दियर (दिनकर) ज ३१८८ सू१६।२२।३० १०६,११३,११६,११७,११६,१२२,१२३,१२६, उ ३४८,५०,५५,६३,६७,७०,७३,१०६,११२ १३०,१३१,१३३,१३६ से १३८,१४०,१४१, दिण्ण (दत्त) प २१३०,३१ ज ३७,१८४,५२६ १४५,१४६,१५०,१५६,१७२,१७३,१७८, उ १६६,१०३,१०६,११०,११३,११४; १८०,२०६,२११:५।१,३,५,७,१६,२२,२६, ३४८,५० २८,३०,४१,४३ से ४५,४७,५५,५७,५८, दित्त (दीप्त) १ २१४६ ज ३६,१८,६३,१०३, ६७,७।५५,५८,१८४,१८५ सू १८।२२,२३; १८०,२२२,७।१७५ सू १६।११।२,२११३, १६।२६ उ ३११७,८५,६४,१२२,१२३,१६३; १६॥२२॥३० ४।२५ दित्त (दप्त) ज ३११०३ दिव्वा (दिव्याक) प १७१ दित्ततव (दीप्ततपस्) ज ११५ दिसा (दिशा) प २।३०,३१,२।४०।२,८,१०, दित्तसिरय (दीप्तशिरस्क) ज ३१६,१५ २१४१,४६ ज ११३८, २।१३१, ३.१४,१५, दिन्न (दत्त) प २१४१ २२,३०,३१,४३,४४,५१,५२,६०,६१,६८,६६, दिपंत (दीप्यमान) ज ३१६,१७,२१,३४,१७७, १०० से १११,१२५,१३०,१३१,१३६,१३७, २२२ १४०,१४१,१४६,१५०,१७२,१७३,१६५, दिप्पमाण (दीप्यमान) ज ३१८,६३,१८० २११:४।१०,१२१,१५३,१६३,२१२,२१७, दिली (दे०) प ११५८ २३८; ५१५२,७४; ७।१७८ सू ११४५१ दिवड (द्वयर्धद्वयपाध) १ २३१७३,८३,१३५, उ ११२२,१४०,३१५१,५३,५५,६३,६७,७०, १५२,१७२;३३१७८ ज ६०८।१सू ३३२,६।३; दिसाकुमार (दिशाकुमार) प १११३१, ५।३; दिवड्ढखेत्त (द्वयपार्धक्षेत्र) सू १०१४,५ ६१८ दिवस (दिवस) प २८१२७,७३ से ७६ ज २१६४; दिसाकुमारी (दिशाकुमारी) ज ५१ से ३,५ से ३७६,६५,६६,११६,१२०,१३६,१६०,२०६; १०,१२ से १७ ७१२६ से ३०,११२१५,११७,११८,१२६,१५६ दिसाचक्कवाल (दिशाचक्रवाल) ३.५० से १६७ च ५।३ सू श६।३,१।१३,१४,१६, दिसाणु वाय (दिशानुपात) प ३।१ से १७,२४ से १८.१ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिसादि- दुक्ख ३७, १७६, १७८ दिसादि ( दिशादि) ज ४२६०१२ मेरुपर्वत दिशापोक्खि (दिशाप्रोक्षिन् ) उ ३।५० दिसापोक्खिय ( दिशःप्रोक्षिक) उ ३१५०, ५५ दिसापकिय (तावस ) ( दिनाप्रक्षितःपस ) उ ३१५० दिसाहत्यिकूड ( दिश: हस्तिकूट ) ज ४।२२५ से २३३ दिसि (दिश् ) प २२७, २२३०११, २०६३, ३११११ ; ११।६६,६६।१:२१।६५, १६, २८१६,३१,६५, ३६।५६,६६,६८,७०,७२ से ७४ ज ४:२०४, २१०,२१६,२२०:५१३०, ७१४८, ५०, ५२, ५३ उ १ । २४; ३ । ५१,५३,६२,८१,१४३, १५६ दिसोभाग ( दिग्भाग) ज ३।२०८, ५५,४४,४५ उ ३।११३३४५२० दिसोभाय ( दिग्भाग) ज ११३,३३१६२,२०४, २०८४।१२०,१३६,५५,७ चं ७ सू ११२ उ ५१५ दोण (दीन) उ ११५, ३५, ३१९८ दणस्सर ( दोन स्वर ) ज २।१३३ दीणस्सरता ( दीनरवरता ) प २३१२० दीव (द्रीप ) प १।७४,७५,८०,८१,८४,२१,४,७, १३,१६ से १६,२८,२६,३०११,२३२,३३,३५, ३६, ४०१२,६,११,२१४३,५०,५१,१५११२, १५।५४,५५,१६ । ३०,३३।१० से १२,१५ से १७३६।८१ ज ११७,१५ से १८,२०,२३, ૪૭ १०२. १७५, १८२.१६८ से २०८,२१० से २१३ सू १।१४,१६,१७,१६ से २२,२४,२७,२।१, ३,३।१,२,४१३.४,७, १०,६११, ८११,१०११३२, १४२, १४७, १२।३०:१८१७.२० १६ १.२.६, ७ ८१३,६,१२ मे १४,१५१३, १६ १६, १९२२, २४,१६३२८.३१ से ३४ उ ११६; ३१७,६१, १२५, १५७ ५१२४,४३ दीवकुमार (दीपकुमार ) प १।१३१,५३,६११८ दीवग ( द्वीपिक) सू १०।१२० दीवणिज्ज ( दीपनीय ) प १७ । १३४ २०१८ दीविग ( द्वीपिक) ज २३६ दोदय ( द्वीपिक ) प १६६११।२१ ज ३१३६; ५३२ दविगाह (दीपिका) ३।१७ दीपिया (दीपिका) प ११।२३ दीविया हत्यगय ( ह्तगत दीपिका) ज ५ १२ / दीस (दृश् ) दीनं ति प १३४८३५७ ज ७ ३६,३८ दीह (दी ) प ६४/४; १३।२३ ज २।१५,६६; ३।१०६, १६७।११ दोहसर (दीर्घतर ) ज ४ । ८० दीहवेयड्ड ( दीर्घवंत ढ्य ) ज ६ १० दोहिया (दीधिकः ) प २०४, १३, १६ से १६,२८; ११।०३ ज २।१२ दु ( ) प १|१३ सू ११४ दुइ (द्वितीय) प ३२२ ३४,३५,४६.४८,५१,२०१,७,५२,५६,६०,११६, दुंदुभय (दुन्दुमक) ज ७ १८६।२ सू २०१८ (दुन्दुभक) सू २०१८१२ ३१२,७८, १८०, २०६५१५ २२२६,४६,४७.५६,६७ उ ११२१,१२२, १२५.१२६,१३३.१३४,१३८, ३।१११; ४११८; १६१, १६४,३१६६,३६,४७,५६,११३,१३३, १३८,४११,३१,३२,३४,४१,५२,५४,६२,६८, ६६,७६,८१,८६,९०,६३,२८,११४,१५६, १६०,१६५,१६७,१६६,१७२ से १७४, १७८, १८१,१०२,२०१ से २०३,२०६,२१३,२६२. २६५,२६८,२७१, २७४,२७८,५१३,२१,२२, २६.४४,५२,७४६।१ से ५७ से २६७|१, ३.४, ८ से १४,३१,३३,३० से ३९.५२. ५४, ६२,६३,६७ से ७२, ८६, ८७.६१.६२,१०१. दुहि (दुन्दुमि ) ५।१६ दुक्काहुन ( दुष्कालबहुल ) ज १।१८ दुक्ख ( दु:ख ) प २६४।२२,६१११०;२०११८; ३५/१/१,२,३५११०,११; ३६३८८,६२,६४११ जे ११२२,२७.५०: २२५८,७१,८८,८६,१२३, Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४८ दुवखत्त-दुरूव दुपदेसिय (द्विपदेगिक) प ५१२७,१३०,१३१; १२८,१५१,१५७; ३।७७,६२,१०६.११६, १२१११,१२५,४११०१,१७१ सू १६०२२।१३ उ ११६३,१४१:३१८६५१४३ दुक्खत्त (दुःखत्व) प २८१२४ दुक्खभागि (दुःखभागिन् ) ज २११३३ दुक्खुत्तो (द्विम् ) सू १११२ दुखुर (द्विखुर) प ११६२.६४ दुग (द्विक) ज ७१३११२ दुगुंछा (जुगुप्सा) प २३१३६,७७,१४५ दुगुण (द्विगुण) सू १६३२२।२३ दुगुणिय (द्विगुणित) ज १२५ दुगूल (दुकूल) सू २०१७ दुग्ग (दुर्ग) उ ३१५५ दुग्गइगामि (दुर्गतिगामिन्) प १७११३८ दुग्गंध (दुर्गन्ध) ज २१३३ उ ३३१३०,१३१,१३४ दुग्गम (दुर्गम) ज ३१७७,१०६ दुग्गबहुल (दुर्गबहुल) ज ११८ दुग्गुल (दुकूल) ज ४११३ दुषण (छैधण) ज ५१५ दुजडि (द्विजटिन्) सू २०१८ दुज्जम्मय (दुर्जन्मक) उ ३११३१,१३४ दुज्जाय (दुर्जात) उ ३११३१,१३४ दुटठाणवडित (द्विस्थानपतित) प ५११३४,१४३, १४८,१५१,१६३,१६४,१८१,१६७,२१८ दुठ्ठ (दुष्टु) उ १८८,६२ दुतीस (द्वात्रिंशत्) ज ४१६४ दुईत (दुर्दान्त) उ ५१० दुईसणिज्ज (दुर्दर्शनीय) ज २११३३ दुद्ध (दुग्ध) प १११२५ उ ३१६८ दुधा (द्विधा) सू १९१६ दुन्निकम्म (दुनिष्क्रम) ज २१३२ दुपएसिय (द्विप्रदेशिक) प ५१५३,१५४,१५७, १५६,१६०,१७६,१७७,१६२,१६३,२१३, २१४,१०।७:११:४६ ; ३०१२६ दुपदेस (द्विप्रदेशिवः) प १०११४१ दुप्पउत्तकाइया (दुष्प्रयुक्ताायिकी) प २२२२ दुप्पव्वइय (दुप्प वजित) उ ३१५८,६०,७६ से ७६ दुप्पवेस (दुप्पवेश) ज ११२४ दुफास (दुम्पर्श) ज २११३३ दुबत्तीस (द्वि द्वात्रिंशत् ) सू १०११३८ से १४१, १४८,१५२,१२।२२ दुब्बल (दुबल) ज २१३३ दुभि (दुर्) प १३१२७,३१,२३।१०७ दुरिभक्खबहुल (दुर्भिक्षवहुल) ज ११८ दुबिभगंध (दुर्गन्ध) प ११४ से ६२०२० से २७; ५१५,७,२०५; १११५६:१७।१३६२८।२०, ३२,६६ ज ५५ दुब्भूय (दुर्भूत) ज २१४३ दूभागमंडल (द्विभागमण्डल) सू १५॥३७ दुम (द्रुम) ज २१८,१३,२०,५५० दुय (द्रुत) ज ५१५७ अभिनय का प्रकार दुरंतपन्तलक्खण (दुरन्तप्रान्तलक्षण) ज ३१२६, ३६,४७,१०७,११४,१२२,१२४,१३३ उ १८६,११५,११६ दुरभि (दुरभि) प२३१४८ दुरस (दूरस) ज २११३३ दुरहियास (दुरध्यास,दुरधिसह) प २०२० से २७ दुरुढ (आरूढ) ज ३।१७,२१,२२,३५,३६,७७, ६१,१७७,१७८,१८३,२०१,२०२,२१४,२१७; ५।२२,२६,४३ दुरुह (आ- रुह) दुरुहइ ज ३१२०,३३,५४,६३, ७१,८१,८४,१०६,११७,१३७,१४३,१६६, २०४,२२४;५१४१,४२३ १११६ दुरुहति ज ३।१११।४।५:१५ दुरुहति प १७।१०६, दुरुहिता (आम्ह य) ५ १७११०६ ज ३।२० उ १३१६ दुरुढ (वारूढ) उ १६१२४,१३१४।१२:५1१४ दुरूव (दुरूप) २११३३ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुरुह-दूसमदूसमा दुरूह (आ--रुह) दुरूहइ उ ११११०,४।१५ १४,१६,१८,२३ ज २११,५,६,५॥१६७।११४ दुरूहेइ उ ४।१८ सू १०८६,१२१,१२४,१८१२०,२०१३ दुरूहित्ता (आरुह य) उ ११११०,४।१५ उ ३१३१,३८,४०,४२,४४ दुरूहेत्ता (आरह य) उ ४११८ दुन्विसय (दुर्विपत्र) ज २।३१ दुल्लह (दुर्लभ) ज३।११७ सू २०६१ दुसमइय (द्विसामयिक) प १११७१:३६।६०,६७, दुव (द्वि) ज ११२५ च ४.३ सु ११८१३ उ १११११ ६८,७१,७५ दुवयण (द्विवचन) प ११८६ दुसमयद्वितीय (द्विसमयस्थितिक) प १११५१ दुवण्ण (दुर्वण) ज २११५,१३३ दुसमसुसमा (दुप्पमसुपमा) ज २१४६ दुवार (द्वार) ज ३०८३,८५,८८ से ६०,६३,१०३, दुस्समदुस्समा (दुप्पमदुप्पमा) ज २।२,३,६ १५४,१५७,१६२.१८६ दुस्समसुसमा (दुप्पमसुसमा) ज २२२,३,६,४६ दुवालस (द्वादशन ) प २१६४ ज १२० सू १११३ दुस्समा (दुष्पमा) ज २१२,३,६ उ२११० दुहओ (द्वितस्,द्वय) ज ४१६१ सू १०।१३६,२०१७ दुवालसंसिय (द्वादशासिक) ज ३१९४,१३५,१५८ दुहओवत्त (द्वितआवर्त) प ११४६ दुवालसक्खुसो (द्वादशकृत्वस्) ग १२।२ स ६,११ दुहणाम (दुःखनामन्) प २३१२० दुवालसमा (द्वादशी) सू १०।१४१,१४६,१४८,१५५, दुहट्ट (दुधाट्ट) उ १४५२,७७ दुहता (दुःखता) १ २३११६ दुवालसमी (द्वादशी) १०११४८,१५० दुहतो (द्वितम् द्वय) सू १०.१७३ दुवालसविह (द्वादविध) प ११३४; १२१३७ दहतोनिसहसंठिय (द्वितोनिषधसंस्थित) सू ४।३ ज ७१०४ सू १०।१२६ उ ३१७६,१४३ दुहत्त (दुःखत्व) प २८।२६ दुविध (द्विविध) सू ४१ दुहया (दुःखता) प २३१३१ दुविह (द्विविध) प१।१,२,४,१०,११,१६ ने १८ दुहा (द्विधा) ज १११६,२०,२३,४११,४२,६२,६४, २० से ३२,३४,४८ से ५१,५३,५७,५६ से १०८,१७२ ६१,६६,६७,६६,७५,७६,८१,८२,८८,९०, दूइज्जमाण (यमाण) ज ३.१०६ उ१२,१७, १००.१०२ से १२३.१२५ मे १२६,१३१ से ३।२६,६६,१३२,५:३६ १३८,५१,१२३,६।११५,११६:१११३१,३२, भगणाम (दुर्भगनामन्) प २३1३८,१२४ ३५,३६,४१,१२७ से १३,१६ स १८,२०, दूमिय (दे० धवलित) सू २०१७ २१,२३,२४,२७.३१ से ३३,१३११,८,२२ दूमिय (दून) उ १।५६,६३,८४ २३.२७.३१:१५॥१८,१६,४८.४६,६८,७१, दूय (दूत) ज ३१६,७७,२२२ उ ११९२,१०७ से ७२,७५,७६,१६३५,२८,३३,३५,१७४२.४,६, ११६,१२७ ६.१६,२३,२५.२७,१८११३,२५,५५.६३,६७ ६८,७६.७६,८६.६४.६७,६६१०१.१०६. दूर (दूर) प २१४६,५०,५२,५३,६३,१७११०६ १०६.१११,१२७,२११४ से ७,६ से २०,४६, ज ७।३६,३८ सु।।१ ५५.५८,५६,६१.६५,६६,७०।२२।२,३.८; दूरतराग (दूरतरक) प १७।१०८,११० २३१६,२६,२६,३२,३४,४८,५६,५७:२८१४, दूस (दुष्य) ज २१२४,६५,६९,३१९,२२२ ४०,५०,३६, २६३१.५,८,६,११,१४,३०१,५, दूसमदूसमा (दुष्षमदुष्षमा) ज २११३०,१३५, ७,११,१२७३३३१,३४११२,३५।११२,३१२, १३६ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५० दूसमदुसमा-देवगतिपरिणाम दूसमसुसमा (दुष्पमसुसमा ) ज २११२१ दूसमा (दुष्षमा) ज २।१२६,१४० दूसरणाम (दुःस्वरनामन्) प २३।३८,१२५ सि (दूष्य) प १७।११६ देय (देय) सू २०६२ देयड (दे० दृतिकार) प ११६७ देव (देव) प ११५२,१३०,१३८, २०३० से ३६, ४१ से ४३,४६,४७४१,४८ से ६३,२०६४।१४; ३।२६ से ३६,३८,३६,१३१,१३३,१३५,१३७, १३६,१८३:४१२५ से २७,३१ से ३३,३७ से ३६,४३ से ४५,४६,५५,१६५ से १६७,१७१, १७७ से १७६,१८३ से १८५,१८६ से १६१, १६५ से १६७,२०१ से २०३,२०७,२१३ से २१५,२२५ से २२७,२३७ से २४३,२४६, २४६,२५२,२५५ से २६६;६१२७ से ३८,४१ से ४३,५०,५२,५६,६५,७०,८१,८२,८५ से ८७,८६,९०,६२,६३,६५,६६,९८,६६,१०१, १०३,१०५,१०६,११०,११२,११३,७१८ से ३०८११०,११,६११११२१४५,५५॥३,८७ से ६३,१०८,१०६,११४,११५,११७,१२५,१२६, १३२,१३६,१४३;१६।२५,२६,३१,१७१४६, ५१,५२,७१:७३,७४,७६,७८ से ८१,८३,८६; १८१५,११:२०।४६,२११५१,५५,६१,६२,७०, ७१,७७,८३,६१ से ६३,२२६४१,४२,४५,७६; २३१३६,५४,८४,११४,१४६,१७२, १६४, १६६,१६८,२८९७,१०२,१०५,१३३,१४३ से १४५,३३३१,१६ से १८,२४,२५,३४।१५, १६,१८ से २५;३६।५०,८१ ज १११३,२४, ३०,३१,३३,३६,४५ से ४७,५१,२१६४,६०, ६५ से १६,१०० से १०२,१०४ से ११६, १२०,३।२०२४११,२,२५ से २८,३०,३२१२, ३३,३८ से ४१,४३,४६ से ४६,५१,६३ से ६५,६८,७१ से ७४,७६,८४,६२,१११ से ११५,११६,१२३ से १२५,१३१११,२,१३२ से १३४,१३६,१५०,१५१,१६७।१३,१७८,१८४, से १८६,१८८,१८६,१६१,१६२,१६८,१६६, २०७ से २१०,२१६,२२१,२२४,२२६;४।२, १३,१६,२०,५१ से ५४,६०,६१,८०,८४,८५, ६७,१०२,१०६,१०७,११२.११३,११४,१२०, १४१,१४२,१५०,१५६ से १६१,१६३,१६५, १६६,१७७,१८०,१८४,१८६,१८७,१६३, १६६ से २००,२०३,२०४,२०८ से २१२, २१५,२२६ से २३४,२३६,२४७,२४८,२५० से २५२,२६१,२६४,२६६,२६७,२७०,२७२, २७३,२७६,२७७, ५११,३ से ५,१४,१५,१६, २२,२३,२६ से २६,३६,४२,४३,४५,४७,४६, ५०,५.३ रो ५६,६१,६७,६६ से ७४,६।१६; ७।५५,५,६,५६,१६६,१७८।१,१८५,१८७, १८६,१६१,१६३,१६५,२१३,२१४ सू ६१; १३।१७,१७११:१८।२ से ४,१४ से १७,२१, २३,२५,२७,२६,३१,३३,३५,१६२३,२४, २६,२७,२०११,२,४,७ उ २।१३,३३५१,५६ से ६२,६५,६६,६६,७२,७५ से ६१,१५१, १५२,१५६,१६२ से १६५,५।५,२६,३०,४२, देव (देव) स १६।३६,३८ देव नामक द्वीप देवमण्णिआउय (देवासंज्ञवायुष्) ५ २०१६२,६४ देवउत (देवकुल) ज ५१५,७ देवकहरूहम (द कहकहक) ल ५१५७ देवकुमार (देवकुमार) उ ३१६२ देवकुमारिया (देवकुमारिका) उ ३१६२ देवकुरा (देव कुरु) ज ४।६४,६६,२०३,२०६ से २०८,२१३ देवकुरु (देवयुरु) प १८७,१६।३०,१७१६४ ज २।६।४।२०४११,२०७,२०८,२१०।१ देवकुल (देवकुल) ज २६५ उ ३३६ देवगइ (देवगति) ज २१६०३।२६,३६,४७,५६, ६४,७२,११३,१३३,१४५:५५५,४४,४७,६७ देवगइय (देवगतिक) प १३१२० देवगति (देव ति) प ६४,६ देवगतिपरिणाम (देवगतिपरिणाम) प १३।३ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवगतिय-देविंद १५० देवगतिय (देवगतिक) प १३।१५ देवगामि (देवगामिन्) ज १।२२,५०,२१५८,१२३, १२८,१४८,१५१,१५७,४११०१ देवच्छंदग (देवच्छंदक) ज ४२१६ देवच्छंदय (देवच्छंदक) ज ११४०,४।१३६,१४७, २१६ देवजुइ (देवद्युति) ज ३।२६,३६,४७,१२२,१२६, देवजुति (देवद्युति) ज ५।४४ उ ३.८५,१२२ देवज्जुइ (देवद्युति) उ ३।१२३ देवड्ढि (देवद्धि) ज ३१२६,३६,४७,१२२,१३३ ।। देवता (देवता) च ५२ सू हार देवत्त (देवत्व) प १५६६ से १०१,१०४ से १०६, १०८,११२,११४ से ११७,११६ से १२३, १२५,१२७ से १२६,१३१,१३२,१४३, उ २११२;३।१५०,१६१,५२८,४१ देवदारु (देवदारु) प ११४०।२ देवदाली (देवदाली) प ११३६१२,१७११३० देवदालिपुप्फ (देवदालीपुष्प) प १७.१३० देवदुहदुहग (देवदुहदुहक) ज ५१५७ देवदूस (देवदुप्य) ज २६५,१००,२११,५१५८ उ ३।१४,८३,१२०,१६१,४।२४ देवपव्वय (देवपर्वत) ज ४२१२ देवमइ (देवमति) ज ३।१०६ देवय (देवता) प १४८ ज ७/१२७११,१६७११ देवय (दैवत) ज २१६७,३१८१ सू १८१२३, उ १११७,७२,८८,६२,५।३६ देवया (देवता) ज ३३२,१०४,१०५,४१५३, १०६,२०४,२१०,७३० सू १०७८ से ८३ देवराय (देवराज प २१५० से ५६ ज १३१; १८६ से ६३,६५,६७,६६,१०१,१०३,१०५, १०७,१०६,१११,११३,११४,११७ से ११६, १८६,२१७,४१२२१,५।१८,२० से २३,२६ से २६,३६ से ४१,४३ से ४८,५४,५६,६०, ६१,६२,६५ से ६८,७१ से ७३ उ ३३१२२, देवलोग (देवलोक) प २०१६१ ज २०४६,१५६; ३।१ उ २।१३;३।१८,८६,१२५,१५२,१६५; ४।२६:५।३०,४३ देवलोय (देवलोक) ज २।४६ उ ५१४ देवसंघाय (देवसंघात) ज ७१७६ देवसयणिज्ज (देवशयनीय) उ ३१४,८३,१२०, १६१,४।२४ देवसयसहस्सीसर (देवशतसहस्रेश्वर) ज ३११२६।३ देवसिरि (देवश्री) उ ३११७१ देवाउय (देवायुषक) प २०१६३,२३३१८,३७,८०, १४६,१७० देवाणंदा (देवानन्दा) ज ७/१२० सू१०८८।३ उ ३.११३; ४१२० देवाणुप्पिय (देवानुप्रिय) ज ६५,६७,१०१, १०५,१०७,१०६,१११,११४,१४६, ३३५,७, १२,१५,१८,२१,२६,२८,३१,३४,३६,४१, ४७,४६,५२,५६,५८,६१,६४,६६,६६,७२, ७४,७६,७७,८३,६०,६१,६६,१०५,१०७, ११३,११४,१२५,१२६१४,१२८,१३३,१३८, १४१,१४५,१४७,१५१,१५४,१५७,१६४, १६८,१७०,१७३,१७५,१८०,१८३,१८८, १६१,१६६,२०७,२१२:५॥३,५,७,१४,२२, २६,२८,४६,५४,६८,६६,७२,७३ उ १११७, ३७,३६,४१,४४,५४,५७,६६,७६,८८,६८, १०७,१०६,१११,११३,११५,११६,१२१, १२३,१२७,१२६,१३१,३११३,७८ से ८१, १०२,१०३,१०६,१०८,११२,११५,१३६, १३८,१३६,१४८,४।११,१४ से १६,१६,२२, ५।१५,१८,२७,३२,४० देवाणुभाग (देवानुभाग) ज ३११२६ देवाणभाव (देवानुभाव) ज ३१२६,३६,४७,१२२, १३३,५१४४ उ ३.८५,१२२,१२३ देवाहिव (देवाधिप) ज ५१५४ देविंद (देवेन्द्र) परा५० से ५६ ज ११३१२१८६ से ६५,६७,६६,१०१,१०३,१०५,१०७,१०६, Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५२ देविडि-दोणमुह १११,११३,११४,११८,११६४।२२१५१८, २० से २३,२६ से २६,३६,४०,४३ से ४८, ५४,५६,६० से ६२,६५ से ६८,७१ से ७३ उ ३१२३,१५० देविढि (देवद्धि) ज ५।४४ उ ३।१७,८५,६४, १२२,१२३,१६३, ४१२५ देवित्त (देवीत्व) उ ३११२० देवी (देवी) प २।३० से ३३,३५,४१,४३,४८ से ५१,३।३६,१३२,१३४,१३६,१३८,१४०, १८३,४१२८ से ३०,३४ से ३६,४० से ४२, ४६ से ४८,५२,५५,१६८ से १७०,१७४,१८० से १८२,१८६ से १८८,१६२ से १६४,१६८ से २००,२०४ से २०६,२१० से २१२,२१६ से २२४,२२८ से २३६:१७१५०,७२,७३,७५, ७६,७८,८०,८२,८३,१८।६,८,१२:२३॥ १६४,१६६,१६८ ज २३,१३,३०,३३,३६, ४५:२।१०,३१५२ से ५८,६०,१४०,१४१, १४३ से १४७,१४६,४१२,१७ से २०,२२,३३, ३४,५३,६४,८६,१५६,१६४,२०३,२३७, २३८,२४८,२५० से २५२,५१,५,१६,२६ से । २८,४२,४३,४५,४७,६७,७२,७३७१८३, १८५,१८८,१६०,१६२,१६४,१६६,२१४ चं ८ सू ११३;१८।२१,२३,२६,२८ ३०,३२, ३४,३६,२०६४ उ ११० से १३,१५,१७,१६ से २४,३० से ४१,४३,४४,४६,४८ से ५५, ५७,५८,७० से ७४,८८,६५,९७,६६ १०२, १०६,११०,११३,११४,१४६ से १४६,२।४ से ६,१६,१७,१६,२०,३६०,६२,९४,१२१ से १२५, ४१२५,२६,५।१०,१२,१३,१७,२५,३०, ६१,६६,१०८,२१।७४,२२१५५,५६,५८,७६ ज ११३०,३३,२२४:४१२२,३४,८३,११३, ११४,१६६,५१२६,७२१३ सू१।१६६.१; है।३।१०।१३८ से १५१,१६२ से १६६; १२।३०:१३।२ देसपंत (देशप्रान्त) उ १११३३,१३४ देसभाग (देशभाग) प २०१६.१७,३०,३१,४१,५०, ५२ ज २०१२,६५:३१३,११७,५।३५ सू ३९८ देसभाय (देशभास) प ११८.१६,२८,५१,५६,६४ ज ३।७,५१३३,३८ देसमाण (दिशत्) ज २०७२ देसि (देशिन्) प २१४१ देसिय (देशित) ज ३१२२,३६,६३,६६१०६,१६३, १८० देसूण (देशोन) ११२,१४,१७,२३,३५,३७,५१; २६४४,४५,४१११४ देसुणग (देशोनक) ज ३१२२५४।६,३३,१४७, १५५,२४२ देसोहि (देशावधि) प ३३।१।१,३३।३१ से ३३ देह (देह) ज ३।१०६ देहधारि (देहधारिन ) प ४१ ज ३१३ देहमाण (दे० पश्यत्) - ३१२२२, ५१६७ दो (दि) प२०१५६ १७.१११४ उ १११३५ दोच्च (द्वितीय ६८०१३३।१६,३६१६२ ३।१२८,१५१.१६२३.२५,२८ से ३०,१५७.१६१,१६५.१७० सू १११३.१४, १६.१७.२१.२४,२७,९१३, ६११; १०१६४.६८, १२७.१३६.१४०,१८४.१४५,१५८,१११२ से ४,१२१३,२०,२५; १३।१,१२,१३ उ ११३६, ४०.१११,१४३, २११,१५.२१,३३१,२०,२२ २३.५१.५३ ६०,६१.७७,७८.१०८ दोच्चा (द्वितीया) प३।१८३ दोणमुह (द्रोण मुख) प १७४ ज २२,१३१; ३११८,३१,३२,१६७१२,१८०:१८५.२०६, २२१ उ ३११०१ देवलिया (देवोत्कलिका) ज ५१५७ देवोद (देवोद) सू १६:३८ देस (देश) प ११३,४,२१६४।११,४१४३,४५,४६, ४८,४६,५१,५२,५४,५३१२४,१२५,१५३५३; ५४,५७,१८१५६,६४,७७,८१,८३,८४,५६ से Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोला-धम्मवर ६५३ दोला (दे०) १५१ २३,२४,३५,३७,६५,१३१,१५६,१६०,१७८; दोवारिय (दौवारिक) ज ३।६,७७,२२२ ४।१०,१२,५५,६२,८१,८६,६८,१०१,१०८, दोस (दोष) प ११॥३४१, २२१२०, २३१६ ११०,११४,१४७, ५४,२४८,२६२,२६५, ज ३१३२,११७ सू २२, २०।६।६ उ ३१३५ २६८,२७१,२७४ ७.१८२,२०७ सू १११४; दोसपिस्सिया (दोषनिधिता) प १११३४ १८।१३,२० उ १२२,१३८,१४० दोसपुरिया (दोषपूरिका) प ११६८ धणुगह (धनुर्ग्रह) ज २१४३ दोसिणा (दे० ज्योत्ना ) चं २।४ सू ११६।४; धणुप्पट्ठ (धनुष्पृष्ठ) ज १।१८,२०,२३,४८, १४।१ से ४,१६॥१,२ ४।१,१७२ जापाव (दोसिडाप्रल - 319.9818 से धणु हत्तिय (धनुःपृथकिवक) ५७५ धणु वर (धनुर्वर) ज २१६६,३७६,११६,११६, दोसिणाभा ('दोसिणा'आभा) ज ७१८३ १२०,१६७।३,१८५,२०६ सू १८१२१,२०१६ धणुह (धनु) ज ३१३१ दोसिणलक्खण (दोसिणा'लक्षण) चं ॥४ धण्ण (धान्य) प ११०२६ से २८ ज २१६६;३७६, सू १६४ ११६,११६,१२०,१६७।३,१८५,२०६ दोसिणालक्खण (दोगिणा'लक्षण) सू १६१ उ ३१४०५१४ धण्ण (धन्य) ज ५१५,४६,५८ उ ११३४,४०,४१, दोस्सिय (दौगिक) प ११६६ ४३,४४,७४,३।६८,१०१,१३१:५।३६ दोहाग (दीर्भाग्य ) ज २०१५ धन्न (धन्य) ज २१६४ उ ३१३८ दोहल (दोहद) उ ११३४,३५,४०,४१,४३,४४, धमाससार (धमाससार) प १७।१२५ धम्म (धर्म) प २०१७,१८:२२,२५,२८,२६,३४, ४५ ज ११४,२०६४,७२,११३,१३३ च ६ सू ११४ धंत (ध्मात) प ११४८१५६ ज २४ उ १२,२०,२१,३।१३,१०२,१०३,१३४ से धंतधोयरुप्पपट्ट (ध्मात धोतरूप पट्ट) प १७:१२८ १३६,१३८,१४२,१४७, ४.१४:५१२०,२७ धण (धन) २६६४,६६,३३१०३, १६७११४ धम्मत (ध्मा मान) जे ३३११७ धणंजय (धनञ्जय) ज ११७॥२.१३२॥१ धम्मकहा (धर्मकथा) उ ३७१ सू १०८६।२६७ धम्मचरण (धमंचरण) ज २१२६,१५८ घणवइ (घ. पति) ज ३१३,१८,६१,६३,१८० धम्मजामरिया (धर्मजागरिका) उ २।११,५१३६ धम्मणायग (धर्मनायक) ज ५।२१ धणिट्ठा (धनिष्ठा) ज ७११३।१,१२८ से १३०, भर धम्मस्थिकाय (धारितकाब) प ११३,३३११४ से १३६,१३८,१४१,१४६,१५६,१५७ सू १०११ ११६,१२२,५११२४,१५१५३,५४,५७; से ६,८,२०,२३,२६,५७,६३,६४,७५,८०,६४, १८.१२५ १२०,१३१ से १३३,१५२ धम्मदय (धर्मदय) ज ५।२१ घणु (धनुप) प ११७५२१६४।६।२१।४६,४७, धम्मदेसय (धर्मदेशक) ज ५२१ ४७।१,२,२११६५ से ६७,३६८१ ज १७,६, धम्मरुइ (धर्मरुचि) प १११०१।१,१२ १०,२३,२५,३८,४०,४३:२।६,१६,५२,५६, धम्मरक्ख (धर्मरूक्ष) प १६४३।१ ५८,८६,१२३,१५१,१५७,१५६,१६१, ३१३, धम्मवर (धर्मवर) ज २१६३:५।२१,२८ Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है५४ धम्मसारहि ( धर्मसारथि) ज ५।२१, धम्मिय (धार्मिक) उ १।१७,१६,२४४।१२,१३, १५. धय ( ध्वज ) उ ३।१०८, १८४ धर (घर) प २३०, ३१,४०११०,२१४१, ४६ से ५४ 1 धर (धू) धरेइ ज ५१४६,६०,६६ धरण (धरण) ज २३४, ३५, ४०१६ ज ३।१८५, २०६५।५२ धरणि ( धरणि) ज २१३२ धरणिखील ( धरणिकील) सू ५:१ धरणितल ( धरणितल ) प १७ १०७,१०६,१११ ज ३।६।१२,३५,१०६ ४१२१३,२१५, ५।२१, ५८ धरणिसिंग ( धरणिशृंग ) सू ५।१ धरणीयल ( धरणीतल ) ज ३२१०६, ११७५।५, ४४ उ १२३,६१ घरिज्जमाण ( ध्रियमाण ) ज ३६,१८,७७,७८, ६३, १८०,२२२ घरत ( धरत्) ज ३६२ ध (ध) प १३३६।३ धवल (धवल ) प २।३१ ज १।३७२११५; ३३६, १७,२१,३१,३४,३५,११७, १७७, १७८, २११, २२२५५८, ७ १७८ धवलवसभ ( धवलवृषभ ) ज ५१६२,६३ धस (दे० ) उ ११२३, ११ धाइकम्म ( धातृकर्म ) उ३१११५ धाई (धातु) उ ११६४ धाय (धातु) प २४७ २ धाइड ( धातकीपण्ड ) प १५।५५; १६।३०; १७।१६५ सू८१; १६७,८११,२, १६३६ ; १६।२२।२५ धाई ( धातकी ) प १।३५।२१५।५५।१ घाईड ( धातकीपण्ड ) स १६।२२।२३, २४ धार ( धारय् ) धारे ज ३ । १२६ । १ धारणा ( धारणा ) ज ३१३ धारणिज्ज ( धारणीय ) प २२२१५,८० धम्मस रहिन्धोव धारा (धारा) ज २११४१ से १४५; ३ । १२,११५, ११६,१२२,१२४ धाराय ( धाराहत) ज ५१२१ धारि ( धारिन् ) प २ ३०,३१,४१,४६ धारिणी ( धारिणी) ज ११३; २०१५ चंसू १३ धारेयव्व ( धर्तव्य ) सू २०६५ घावण ( धावन) ज ३।१७८ ७११७८ धिइ ( धृति) ज ४६८९ उ ४१२३१ धिइकूड ( धृतिकूट ) ज ४१६६ धिक्कार ( धिक्कार ) ज २१६२ धिति ( धृति) सू २०१६१३, ५ धुर (धुर) सू २०१८ धुर ( धुरक) सू २०१८५ धुरा (धूर् ) ज ३।३५, १७८,१८८ ध्रुव ( ध्रुव) ज ११११,४७,३१६७,२२६, ४१२२, ५४,६४,१०२,१५६६७/२१० ध्रुवराहु ( ध्रुवराहु ) सू २०१३ धूमके ( धूमकेतु) प २२४८ सू २०१६२४ धूमकेतु (धूमकेतु) सू २०१८ धूमप्पभा ( धूमप्रभा ) प १।५३; २/१,२०,२५; ३३१५,१६,२०,१८३४।१६ से १५; ६११४,७७,७८,१०११ २०१७, ४१ ; २१/६७; ३३।७,१६ धूमट्टि (धूमवति) ज ३।१२,८८५१५८ 1 धूमाय (धूमाय्) धूमाहिति ) ज २।१३१ धूया ( दुहितृ) ज २२७,६६ ३ ३ ११४; ४६, १६ धूलि ( धूलि ) ज २ १३१,१३२ धूव ( धूप ) प २३३०,३१,४१ ज १४० २२६५; ३७.६.११,१२,२१,३४,८५,८८,४।१३०, १३६,२१८,२४२५७,५७,५८ सू २०१७ उ ३१५०,११० धोत ( धौत ) ज ३|११७ धोय (धौत ) प २३१ ज ३१२४ धोरण (दे० ) ज ३३१७८७ १७८ V धोव (धाव् ) धोवइ उ ४१२१ धोवसि उ ४१२२ Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धोव्व-नलिणिगुम्म ५५ घोम्ब (दे०) ज ३।१६७६ नपुंसकलिंगसिद्ध (नपुंसकलिङ्गसिद्ध) प १११२ नपंसग (नपुंसक) प ११४६ से ५१,६०,७५,७६, ८१:१११२७ न (न) उ ११३७ नपुंसगवेद (नपुंसकवेद) प १८१६२,२३१७५ नउय (नयुत) ज २१४ नपुंसगवेदग (नपुंसकवेदक) प ३६७,१३।१६ नउयंग (नयुताङ्ग) ज २।४ नपुंसय (नपुंसक) प ६१७६ नंद (नन्द) ज २१६४; ३।१८५,२०६ नभ (नभस्) ज २१६५ नंदण (नन्दन) उ २।२।१ निमंस (नमस्य ) नमसइ ज ११६:५५८ नंदणयण (नन्दनवन) उ ५।६,७,३६ ३७ उ १।१६।३।८१,४।१३:५।२० नमसंति नंदा (नन्दा) उ ११३०,३१ उ४।१६,५१३६ नमसीहामि उ ३।२६ नंदि (नन्दि) प १५५५।१ नमसेज्ज ज २०६७ मंदिघोस (नन्दिघोष) ज ३।१७८ नमसमाण (नमस्यत्) उ ११६ नंदिय (नन्दित) ज ३१५,६,८,१५,१६३१,५३, नमंसित्ता (नमस्यित्वा) ज ११६ उ १८१६,३१८१; ६२,७०,७७,८४,६१.१००,११४,१४२,१६५, ४।१४।५।२० १७३,१८१,१८६,१६६.२१३;५।२७ नमिऊण (नत्वा) ११२ नंदीमुह (नन्दिमुख) ज २१२ नय (नय) सू श२५;२२,४१२ उ ११३८,४०,४२ नंदीसरवर (नन्दीश्वरवर) ज २।११६ नयण (नयन) उ १११५.३५,३१६८ नक्खत्त (नक्षत्र) पश१३३,२।२३ से २७,४८,५०, नयर (नगर) उ १२,२८,२६.१२१,१२२:३१४, ६३ उ २०१२ २१,२४,८६,१५५,१६८,१७१,४।४,६.७,१३, नगर (नगर) पश७४ ज २१७१:३१६,७७,२२२ १५,१८,२८,५।२४ से २६,४३ नगरावास (नगरावास) प २४४३ नयरी (नगरी) चं ६,७,८ सू१।१ से ३ उ १५६, नगरी (नेगरी) उ ११११० १०.१२.१६ ६३,६५६७,६८,१०५ से १०७, नग्गभाव (नग्न भाव) उ ५१४३ ११०,१११,११५,१२२,१२५,१२६,१३०, नच्चंत (नत्यत्) ज ३११७८ उ ११३६ १३२,१४४.१४५, २१४,५,१६,१७,३१६,११, निज्ज (ज्ञा) नज्जइ उ ११५४ २१ २७ से २६,४६,४८,५०,५५,६५,६६,६६, नट्ट (नाट्य) प २१३०,३१,४६ ज १४५ १००,१११,१५७,१५८,१६६,१७१,५।४,५,६, नदृविहि (नाट्यविधि) उ ३१७,२१,२५,६२,१५६, १६९७४।५ नर (नर) ज २६५,७१ नट्ठ (नष्ट) ज २११३३ नरग (नरक) प २२२ से २७,२।२७।३,४ नत्ती (नप्त्री) उ ३१११४,११५,११६ उ ११२६ नत्तु (नपत) ज २६६ उ २२२ नरच्छाया (नरच्छाया) प १६१४७ नत्तुय (नप्नक) उ १५१०६,११०,११३,११४; नरय (नरक) प २।२३;६१८०१२ उ १।१४० ३।११४ नरवइ (नरपति) उश१२४,१३१:५।१६ नत्यि (नास्ति) ५११८१,५११५५; ३६१३३ नलिण (नलिन) प ११४६,१४४८१४४ नदी (नदी) प २१४,१३.१६ से १६,२८; नलिणहत्थगय (हस्तगतनलिन) ज ३.१० १५५५।२ नलिणिगुम्म (नलिनीगुल्म) उ २।२।१ Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव-निक्कट्ठ नव (नवन्) प ११८११ ज ३।१०६ सू श१४ उ११५३ नव (नवम) प १०।१४।३ नवणउति (नवनवति) सू ११२१ नक्ण उय (नवनवति) सू १२६ नवणवति (नवनवति) सु ११२१ नवति (नवति) सू २१३ नबम (नवम) ५ १०११४।१,२ उ १ २२ नयरं (दे०) प २।४०,४४,६२,५१४२,४३,४६, ५०,५४,६४,८७,९८,१०२,१०५,१०८.११२, ११७,१२२,१३२.१४८,१५१,१६७,१७०, १७५,१७८,१७६,१८२,१८५,१८८,१६४, १६८,२०४,२०,२०८,२१३,२१५.२१६, २१६,२२२,२२५,२३५,२४०,२४३, ६।४६, ५६,७४ से ७८.८०,८१,८३,८४,८६,८६,६२, ६४,१००,१०७,१०८,११२,११८२,८३, १२॥३१, १३।१५,१५।६०,६२,६६,६७,१४३; १७.६६, ३६।६ सू११२२ उ १११४८,२१२०; ३१७,१३, ४१५५११३ नवविह (नवविध) प १७:१३६ नह (नख) उ ११३६,५५,५८,८०,८३,६६,११६ ११८,३।१०६,१३८,५१७ नाइ (ज्ञाति) उ ३.४२,११०,१११:४११६,१८ नाइय (नादित) ज ३७८,५।२२ नाग (ग) प २३०११,२१४०।१० ज ३११८५, २०६ नागकुमार (गकुमार) प १११३१,२।३५,४१४३ से ४५.५५,५८,६१८.६१ नागकुमारत्त (नागकुमारत्व) प ३६।२४ नागकुमारराय (नागकुमारराज) प २१३६ नागकुमारी (नागकुमारी) प ४१४६ से ४८ नागपव्यय (नागपर्वत) ज ४१२१२ नागमाल (नाममाल) ज २१८ नागलता (नारलता) प ११३६१ नाडइज्ज (नाटकीर) ज ३१७४ नाण (ज्ञान) प २१६४।१२।४३,८७,१०२,१०५, ११५ ज २१७१,८५,३।२२३:५।२१ उ ३।४४ नाणत्त (नानात्व) प २४० नाणा (नाना) ज ४।१३ नाणाविह (नानाविध) उ ५१५ नादित (नादित) ज ३।२०६ नाम (नामन्) ५१।१०११५, २१३०११,२१५८,६१; २३३१५१ ज ११४६,३।२४४।२६२ च ६,७, ८,१० सू ११ मे ३,५,६ उ १११ से ३,९ से १३,२८ से ३२,६५,१४४ से १४६, १४८; २।४ से ७.१६ से २०,२२, ३1४,६,१०,२१, २७.२८,४८,५०,५५,८६,६५ से १७,१३२, १५५,१५७,१५८,१७१,४७ से ६.२८; ५।२।१,४ से ७,६.११ से १३,२१,२४ से २६, ४०,४१ नामधिज्ज (नामधेय) प २१६४ नामधज्ज (नामधेय) ज ३।१३५.१ सू १०।८४ उ ११६३; २६।३।१२६ नामय (नामक) च ५२ सू १६२ नायव्य (ज्ञातव्य) ५११४८६.१६१०११४,१२ सूश२५:२।२ नारी (नारी) ज १६५ नालिएरी (नालि केरी) प ११४३१२,११४७११ नालियावद्ध (नालिकाबद्ध) प १४८१४१ नासा (नासा) ज ३१२११:५५८ निउण (पुण) प २१४१ ज ५७ निओय (नियोग) ज ३११७८ इनिंद (निन्द) निदंति उ ३.११६ निदिज्जमाण (निन्द्यमान) उ ३।११८ निबकरय (निम्बकरज) ११३५३ निकुरंब (निकुरम्ब) उ ३।४६ निक्कंकड (निष्कङ्कट) ज २३१ निक्कंकडछाया (निकट छाया) प २।३०,४६. निक्कंखिय (निष्कासित प १११०१।१४ निक्कठ (निकृष्ट) उ १११३८ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निक्खंत - निमंच्छणा निक्खंत (निष्क्रान्त) उ ३११७०४।२८५।२७ निक्खम ( निर् + क्रम् ) निक्खमइ उ १ ११६ निक्खमण (निष्क्रमण ) ज ४।१७७ उ ३३१०६; ४११६ निक्खमाण (निष्क्रामत् ) सू १८१२, १११२.१४, १६,१८,१६,२१२४,२७; २।३६११ निक्खमित्ता (निष्क्रम्य ) उ १।११६ निक्खित्त ( निक्षिप्त) उ३।४८.५०,५५ निक्लेव (निक्षेप) उ १३१४८ निगम ( निगम ) प १७४ ज ३१६,७७,२२२ निगर ( निकर ) ज ३।१२,८८५५८ / निगिण्ह ( नि + ग्रह ) निभिष्हइ ज ३।२३,३७, ४४ निगिव्हित्ता ( निगृहय ) ज ३१२३ निगोद (नगद) प ३६१ से ६३,७० से ७४,८२, ८४ से ८७,६४,६५,१८३; १८४६ निगोय ( निगोद ) प ११४८।५६ से १८३२८७ निग्गंथ ( निर्ग्रन्थ) ज २१७२३३१३८, ४०, ४२, १०३,१३६ ; ४।१४; ५।२० निम्गंथी (निर्ग्रन्थी) ज ३।१०२, ११५, ११७,११८; ४१२२ ३ १०२, ११५, ११७,११८६४१२२ / निमाच्छ ( निर् + गम् ) विग्गच्छइ उ १११६; ३।१३:४११३५।१६ निम्गच्छित्ता (निर्गत्य ) उ १११६, ३३२६, ४ । १३ निग्गय ( निर्गत ) चं ६ सू १४ उ १२.१६, २०६६ ३१५,१२,२४,८६. १४७ १५५, १५६, ४१४, १० : ५१४, २६, २७, ३७,३८८ निग्घोस ( निर्घोष ) ज ३११२.७८ निघस ( निकष ) ज ११५ निचिय ( निचित) ज ५१५ निच्च (निस) २२४,२६,२७ निच्चच्छणय ( चित्यासक, वित्यक्षणक) उ५१५ निच्चालोय (लोक) सू २०१८/६ निच्चिट्ठ (निष्चेष्ट ) ११६०.६१ निच्छुकाम (निक्षेपकाम) उ११७३ ६५७ निच्छय ( निश्चय ) उ ३१११ निच्छुहाव ( नि ! क्षेपय् ) निच्छु वेड उ १।११७ निच्छुहाबिय (निक्षेपित ) उ १।११६ निच्छूद ( निक्षिप्त) उ १।११८ निज्जर (र्ज्)ि निज्जरंति प १४।१८ निज्जरि १४/१८ जिरिस्सति १४१८ निजरेंसु प १४।१८ निज्जरा (निर्जग ) प १४।१८११ निज्जाणसंठिया ( निर्याणसंस्थित) सु४|३ निज्जाणभूमि (निर्याणभूमि) ज ५४८ निज्जाणमा (निर्माणमार्ग ) ज ५।४४ उ ३३६१ निज्जत (निर्युक्त ) प २।३० निज्झर ( निर्भर) ज २४,१३१६ से १६,२८ निट्टियट्ठ (निष्टतार्थ ) प ३६६४ निष्ण ( निम्न ) ज ३२७७, १०६ नितंब ( नितम्ब ) ज ४१६४ नित्तेय ( निस्तेजस् ) उ ११३५ निदाया (दे० ) प ३५।१८,१६ निदाह ( निदाघ ) ज ७ ११४१२ निद्दा ( निद्रा ) प २३६१ निहाय माण ( निद्रायमान) उ३।१३० निद्ध (स्निग्ध ) प १४ से ६६५१५,७,१२६.२१४, २१८,२२१,२२६; १३/२२; १७/१३८ ज ३।१०६ निन्न ( निम्न ) उ ३३५५ निष्पंक ( निप्प ) प २३०, ३१,४६,५६,६३, ६४ ज ११३१ निष्पट्ट्पािगरण (निःस्पृष्टप्रश्नव्याकरण) उ ३२६ निप्पाण (निष्प्राण ) उ १२६०.११ V निष्कज्ज ( निर् + षद् ) निष्फज्जए ज ७ ११२/४ सू १०।१२२२४ निष्फज्जति प ९२६ निष्पन्न (निष्पन्न ) ज २११८ निष्काव (निष्पाव ) प १।४५।१ ज ३ । ११६ सेम / निर्भछ ( निर् + भत्सं ) निव्भच्छेइ उ ११५७ निच्छणा ( निर्भर्त्सना ) उ ११५७,८२ Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निम-निविट्ठ निभ (निभ) ज ३।१०६ निरुवक्कमाउय (निरुपक्रमायुष्क) प ६।११५,११६ निमज्जग (निमज्जक) उ ३१५० निरुवलेव (निरुपलेप) ज २१६८ निमित्त (निमित्त) उ १४१,४३ निरुवहय (निरुपहत) उ ३१३२ निम्मंस (निर्मास) उ ११३५ निरोदर (निरुदर) ज २१५ निम्मम (निर्मम) प २१६४।१ निलाड (ललाट) उ ११२२,११५,११७,१४० निम्मल (निर्मल) प २१३१,४१,४६,५६.६३,६४ ।। निवइय (निपतित) ज ३।२५,३८,४६ ज ७४१७८ ििनवज्जाव (नि। सादय) निवज्जावेइ उ ११४६ नियम (निजक) ज २१६३ उ १११६,१३६, ३२५०, निवज्जावेत्ता (निप.द्य) उ १।४६ ६८,११०,१११,१२८,४११३,१६,१८ निवडिय (निपतित) उ ११२२,१४० नियत्त (निकृत्त) उ ११२३,६१ निवडढेत्ता (निवऱ्या) ज ७४२७ नियत्थ (दे०निवसित) उ ३१५१,५३,५५,६३,६७, निवडढेमाण (निवर्धयत् ) ज ७१२५,२७,३० ७०,७३ सू११२० नियम (नियम) प ६।११६,१०।६,२१,१११५५ निवत्त (निवृत्त) उ १२६३ २१:१०३ ; २२१५० से ५२,६७, २७।२ भिवयउप्पय (निपातोत्पात) ज ५१५७ उ ३।३१ निवह (निवह) ज २१६५,३१६३,१५७.१६३ नियमसो (नियमशस) प २१६४१११ निवार (नि+ वारय्) निवारेंति उ ३१११७ नियमा (नियमा) ज ७/४८ निदारिन्जमाण (निवार्यमाण) उ ३३११८ नियल (निगड) उ १.६५,६६,६८,७२,८८,६२ निवृढिता (निवi) सू १।१४ निरंगण (निरङ्गण) १ १११२५ निवुड्ढेत्ता (निवध्यं) सू ६१ निरंजण (निरञ्जन) ज २६८ निवुड्ढेमाण (निवर्धमान) सू ११४,२१,२७,२॥३; निरंतर (निरन्तर) १६४७ से ५८,१०६,११०% १०३५ से ३६,४१ से ५३,१११७०,२०११६. निवेदण (निवेदन) ज २१३० ४४,६०,२२१११,२७,५३, ३६।२४ ज ५५,७, निवेस (निवेश) प १७४ ज ३।१८,६१,६६, निरय (निरय) परा१,१० ज २१३३ १३१,१३७ उ १११३३,१३४ निरयगति (निरयगति) प ६१,६ निवेसिय (निवेशित) उ ३९८ निरयपत्थड (निरयप्रस्तर) प २११ निश्वत्त (निर्वत्त) २१६७११ ज ३।१४,४३,१४६ निरयावलिया (निरयावलिका) प २।१,१० उ ११५ निव्वत्तणया (निर्बर्तन) प ३४।१,२,३ से ८,१४२,१४३,१४८,२१,५१४५ निव्वत्तणा (निर्वर्तना) प १५१६०,६५ निरयावास (निरयावास) प २।२५ निब्वत्तणाहिकरणिया (निर्वर्तनाधिकरणिकी) निरवकंख (निरवकाक्ष) ज २१७० प २२।३ निरक्यव (निरवयव) उ ३७६ निवत्ति (निर्वृत्ति) प १४८५३ निरवसेस (निरवशेष) प ३४२१ ज ४११६०,२७७ निवाघाइय (नियाघातिक) ज ७/१८२ उ११४७ निवाघातिम ( निघातिन, निर्याघातिम) निरालंबण (निरालम्बन) ज २१६८ सू१८१२० निरालोय (निरालोक) उ११२२,१४० निवाघाय (निाघात) ज १७ ज ३२२३ निरावरण (निराकरण) ज ३१२२३ निस्विट्ठ (निर्विष्ट) ज ३६३२।१,२२१ Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निविट्टकाइय-नोइंदियउवउत्त निविठकाइय (निविष्टकायिक) प १११२७ निविण्ण (निर्विण) उ ११५२,७७ निम्वितिगिच्छा (निविचिकित्सा) प११०१११४ निविसमाण (निविशमान) प ११२७ निव्वुइकर (निर्वृतिकर) ज ५१३८ निवडढ़ ( निर्धय) निबुड्ढेइ सू ६.१ नित्य (निर्वत) उ १।६१,६२,८६,८७ निवेड्ढ (निर्+ वेष्टय) निवेड्ढे इ सू २।२ निव्वेढेति सू २।२ निव्वेयण (निर्बेदन) 3 १६१,६२,८६,८७ निसंत (निशान्त) उ ३११३८ निसढ (निषध) ज ४१९४ उ ५।२६१,५।१३,२०, २२,२३,३१,३२,३४ से ४३ निसम्म (निशम्य) ज ३।६१ उ १२१:३११३; ४११४:५/३० निसामत्तए (निशमितुं) उ ३३१०२,१३४ निसास (निःश्वास) ज ३।२२१ उ ५६४३ निसीय ( निषद्) निसीयइ उ ११४१ निसीयित्ता (निषद्य) उ ११४१ निसीहिया (निषाधिका,नषेधिकी) उ ४॥२१ से २३ निसेग (निषेक) प २३।७४ निस्संकिय (नि:शंकित) प११०१।१४ निस्सग्ग (निसर्ग) प ११०१११ निस्सासविस (निःश्वासविष) ५ १७० निहाण (निधान) प १।११२ निहिरयण (निधि रत्न) ज ३।१६६ से १६८ इनीण (ती) नीणेइ उ ११६७ नीय (नीच) उ३११००,१३३ नीरय (नीरजस) प १४१,४६,५६,६३,६४ नील (नील) प ११४ से ६; ५।२०५:१११५३; २८।२० ज ४२६ नीलपत्त (नीलपत्र) प ११५१ नीलमत्तिया (नीलमत्तिका) प १११६ नोललेस्स (नीललेश्य) प १७१६४ नोललेस्सा (नीललेश्या) प १७३७ नीलवंत (नीलवत्) ज ४११४२।३,१७८,१८०,२०७ २२७ नीलासोय (नीलाशोक) १७।१२४ नोली (नीली) प ११३७।१ नील नीव (नीप) ज ५।२१ इनीसस (निरन श्वस्) नीससंति प ७१ से ४, १ से ३०; १७१२५ नीसा (निश्रा) ज २।१३३ नीसास (नि:श्वास) प ११४८८५३ ज २१४१; ५८ नीहरण (निर्हरण) उ १६२ नूणं (नूनम् ) उ ३।३८ ने उर (नुपूर) ज ११२६ नेमि (नेमि) ज ३।३५ नेयत्व (नेतन्य) प २।४७१३, ३६.२७ ज ४।७५ सू २।२४।२ उ ११४८, २।२२,५१४५ नेरइय (नरयिक) प ११५२,५३,२।२० से २७; ३।१० से २३ ३८,३६,१२६,१८३,४।१,.. से २४,५२३ से ५,८,२२,२७ से ३४,३६,३७, ४०,४१,४४,४५,६।१० से १६,४५,४६.५१, ५८,६०,६५,६८,७०,७३ से ७८,८०८:, ८७,८८,६० से ६३,६६,६६,१०१ से १०३, १०५,१०६,११०,११४,११७,११६,१२१ ७१,८१२,४,५,६२,१४,२१,२४,१०१ : ५१; १११४०,४१,१५१६०,६१,८८; ११::: १७१६,१०१,१८१२,२०१६३;२०१३ २८।१०६,३६१२२ उ १।२६,१४० नेरइयअसपिणआउय (नरयिकासंज्ञयानक प २०१६४ नेरइयत्त (नरयिकत्व) उ ११२६,२७,१० नेवत्थ (नेपथ्य) ज ३३१७८ नेसप्प (नंसर्प) ज ३।१६७१ नेह (स्नेह) उ ११७२,७३,८७,८८.६२ नो (नो) पश२ सू १११८ उ १।१५८ ४१२२ नोइंदियउवउत्त (नोइन्द्रियोपयुक्त) ५ ३।१७० Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नोइंदियजवणिज्ज-पउस. नोइंदियजवणिज्ज (नाइन्द्रिययापनीय)3३।३२, ३०,६०,६४,८४,१५४,१५५,२६६,२७२; ५।५५ ५६७।१७८ उ२१२,६ से १३ नोजुग (नोयुग) सू १२१७ पउम (कंद) (पद्मकन्द) ५११४८।४२ नोपज्जत्तगनोअपज्जत्लग (नोप निकनोअपर्याप्तक) पउमंग (पद्गाङ्ग) जरा४ प३।११० पउमगुम्म (पद्मगुल्म) उ २१२११ नोपज्जत्तनोअपज्जत (नाप प्तिनो पर्याप्त) पउमद्दह (पद्मद्रह) ज ४।३,४,६,२२,२३.३७, प३१११० ३८,६४.८६,१४१,५४५५ नोपरिर नोअपरित (नोपरीतनो अपरीत) प३।१०६ पउमपरा (पद्मपत्र) ज ५१३२ नोभवसिद्धियोअभवसिद्रिय यमप्पभा (पत्रमा) ज ४।१५४,१५५।१,२२१ (नोम सिद्धिकनोभवमिडिक) प ३।११३ पउमभद्द (पद्मभद्र) २२.१ नोसंजतनोअसंजतनोसंजतासंजत पउमलता (पद्मलता) प ११३६१ (नोनयननो संयतनो दामन) प३।१०५ पउमलया (पदमलता) ज १३७,२।११,१०१; ४।०७।२८,३२३४;७।१७८ नोसंजयनोअसंजयनोसंजतासंजत पउमबरोइया (पद् गवरवेदिका) ज ११० से १२, (ोतं तनातनोगयतागयत) प ३३१०५ १४,२३,२५,२८,३२,३५,५१:४३१,३,२५,३१, नोसणि नोअसष्णि (नोगंज्ञिनोसंजिन) प ३१११२ २६,४३,४५,५७,६२,६८,७२,७६.७८,८६, नोसुहुमनोबादर (नोसूक्ष्मनोबादर) ५ ३।१११ ६५,१०३,११०,११८,१४१,१४३,१४८,१४६, १७८,१८३,२००,२०१,२१३,२१५,२३४,२४० पइठ्ठ (प्रतिष्ठ) ज ७/११४।१ से २४२ पइट्ठा (प्रतिष्ठा) ज ५१२१ पउमसेण (पद्मसेन) उ २।२।१ पइट्ठाण (तिष्ठान) ज ३।१६७।११,३।२०६, पउमा (पद्मा) प ११४८४ ज ४११५५११,२२१ २१०।४।२६:५१५६ पउमहत्थगय (हस्नगतपद्म) ज३।१० पइति ( : तिष्ठित) प २६४१२ पउमावई (पदमावती) ज ५।१०११उ ११११, पइट्टिय (अतिटित) १२१६४।३ ; १४१८।१ १६ से १.२,१४४२।४,७ से १,१६:५।२५ पइण्ण (कीर्ण ) ज ३।१२० पउमुत्तर (पदमोत्तर) प १७।१३५ ज ४१२२५॥१, पइण्णग (प्रकीर्णक) प १११०१।८ पिउंज ( गुज) पउंजइज २१६०,६३,३१५६, १४५५॥२१,५८ पउंज ति ज २११८३।११३; पउनुपलपिधाण (पद्मोत्पल पिधान) ज ३।२०६ १८५,२०६३ पउय (प्रयुत)ज २१४ पउंजमाण (प्रमुजान) ज ३।१७८ पउयंग (प्रताङ्ग) ज २१४ पउंजिता (प्रयुज्य) ज २०१० पउर (प्रचुर) ज २३१३१,३११०३ उ ५५ पउट्ठ (कोष्ठ) ज ७११५८ पउरजंघा (प्रचुरजंघा) ज २१५३,१६२ पउम (पद्म) प ११४६,११४८१४१,४४,६२, पउरजण (पौरजन) ज २१६५ २।४६११।२५ ज ११५१,२१४,१५,१६,३१३, पउल (दे०) प ११४८।६ १०,१०६:२०६;४१६,७,१४,१५,१७ से २२, पउस (पओम) पर Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउसीया-पंचवीस ९६१ पउसिया (बकुसिका) ज ३।११०१ पंचगुमितल (पंचांगुलितल) ज ३१५६ पएस (प्रदेश) प १४,११४८१५८,५९२१६४, पंचोलिया (पञ्चाङ्गुलिका) प १४०।१ २०६४।११:३।१८०।५।१३२,१३६ से १४५, पंचगि ((गच्चाग्नि) उ ३०५० १६०,१६१,१७६ १६५,२१४,२१६:१०१२ से पंदण उय (पञ्चनवति) ज ४।११८ १,१८ से २४,२६ से ३०,१११५०; १५।१११; पंचतीत (पञ्चविंशत् ) सू १३१२५ १५॥१२,२५,५४ ; १५११४१ ; २०१।१; पंचपएसिय (पञ्चप्रदेशिक) प १०१० २२१५६,३६८२ ज २१५:३।११७,५१३८%, पंचम (पञ्चमी पंचम (पञ्चय) प ३।१६,१८३,६८०१; ६६१,३,७१७८ १०११४।३;१२१३२:१७१६५; २२१४१,४२, पएसठ्ठया (प्रदेशार्थ) प ३।१२२,१८०,५१२४, ३३११८:३६१८५,८७ ज १८८,४११०६; २८,६८,७८,८६,११५,१३६,१३८,१४०,१४३, ७।१०१ से ११०,१३११ सू१०७७.१२७; १४७,१५०,१५४,१६३,१६६,१६३,१६७ ६३३१११२,६,१२१६,१३१० उ २।२२, २००,२१४,२१८,२२१,२३०,२४२:१०॥३,२७ 1७४,७६,१५४,१६६,१६७,५११,३,४५ से २६:१५॥१३,२६,३१,१७१४४ से १४६, पंचमी (पटनमी) ज ३१२४१४ १२:४५२,११८, २११०४ उ ३१४४ १२५,१२११४ सु १०।६०; १२१२८ पओग (प्रयोग) प ११११५,१६११ से १८ पंचमठिय (परमप्टिक) ज ३।२२४ उ ३।११३ __ ज ३।१०३,११५,१२४,१२५ पंचय (पञ्चक) प २३।२६,२७,६१ पओगगति (प्रयोगगति) प १६।१७ से २१ । पंचराइय (पञ्चरात्रिक) ज २७० पओगि (प्रयोगिन् ) १६१० से १५ पंचलइया (चलतिकर) ज ३१८८ पओय (प्रयोग) उ ३।१०१ पंचम (चवर्ण) ज १।१३,२१,२६,३३,३७, पंक (पङ्क) प १६।५.४ ३६,२७,५७,१२२,१२७,१४७,१५०,१५.६, पंकगति (पङ्कगति) प १६१३८,५४ १६४:३१,७,२६,३६,४७,५६,६४,७२,८८, पंकरपभा (पङ्कप्रभा) प १५३,२१,२०,२४; ११३,१३३,१३८,१४५,१६२,४१६३,११४; ३.१४,२०,२१,१८३:४११३ से १५६१३, ५१३२,४३ सू २०१२ ७६,७७,१०११;२०१६,१०,४०,२१६७:३३१६, if पंच पिणय (पंचणिक) ज ३।११७ काज १६ उ ११२६,२७,१४० पंचध (पञ्चविध) सू २०१७ पंकबहुत (पङ्कवहुल) ज २११३२ पंचविह (पञ्चविध) प १४,१४,१५,५५,५८,६६, पंकय (पङ्कज) ज ३।३५ १२४,१३३,१३८,१११७३;१३१४,६,१२,२४ पंकावई (पावती) ज४।१९३ से १६६ से २६,२८; १५॥१८ से ६०,६२,६३,६.५ से पंकावती (पावती) ज ४१६५ ६७; १६।५,१७,२५,२७,२११२,३,५५,७५,७६, पंच (पञ्नन्) प ११७४१९ च ३।३ सू १० १४:२३।१७,२३,२५,२७,४०,४१,४३,४४,४६, उ १२ ५६३४।१७,१८ ज २२१४५:३१८२,१८७, पंच (पंचम) प १०१४।४ से ६ २१८,७।१०५,१११,११२ सू १०।१२७ से पंचक (पञ्चक) प २३।१.४ १२६:१६।२२।२१ उ ३३१५,८४,१२१,१६२ः पंचग (पञ्चक) प २३११५५,१३७,१८० ४१२४:५१२५ ज७१३१२ पंचवीस (पञ्चविंशति) सू ११२१ Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ पंचसइय-पक्कणी पंचसइय (पञ्चशतिक) ज ४११६२,१६८,२०४, ३६७,४०,५१,५७,७२,७३,६२ २१०,२३७,२६३,२६६,२७५ पंजर (पञ्जर) १ २।४८ ज ३१११७,४१४६ पंचसतर (पञ्चसप्तति) सू १९४२२१३२ पंजलिडड (प्राञ्जलिपुट) ज ३।१२५,१२६,५४५७ पंचसत्तर (पञ्जसप्तति) सू १८१४ । उ १३१६ पंचाणुब्वइय (पञ्चानुनतिक) उ ३७६ पंजलियड (प्राञ्जलिपुट) ज १६:२१६०३।२०५, पंचाल (पाञ्चाल) प १४६३०२ २०६५१५८ पंचावण (दे० पञ्चपञ्चाशत) ज ७८१,८४ पंडग (पण्डक) उ ३३६ पंचासीइ (पञ्चाशीति) ज ७२५ पंडगवण (पण्डकवन) प २११८७ ज ३।२०८; पंचासीत (पञ्चाशीति) सू १३११ ४।२१४,२४१,२४२,२४४,२४५,२४६,२५१, पंचासीति (पञ्चाशीति) सू २।३ २५२,५१४७,५५ पंचिदिय (पञ्चेन्द्रिय) प ११५२,५४,५५,६६, पंडर (पाण्डुर) १२॥३१४०१८ १३८% २।१६,२८,३११५३ से १५५.१८३; पंडिय (पण्डित) ज ३१३२ ४।१०५५१३६।१०७,१२१५,१३३१४,१५:३५, पंडुकंबलसिला (पाण्डुकम्बलशिला) ज ४१२४४, १७१२३,२०१३४,३५, २११४३,७०, २२॥३१ २४६ २३।१६५ ज ३।१६७५ पंडुमत्तिया (पाण्डुमृत्तिका) प १।१६ पंचिदियरयण (पञ्चेन्द्रियरत्न) ज ३१२२०; पंडुय (पाण्डुक) ज ३।१६७३ ७।२०३,२०४ पंडुयय (पाण्डुक) ज ३।१६७।१,१७८ पंचेंदिय (पञ्चेन्द्रिय) प १।१४,६० से ६२,६६ से पंडुर (पाण्डुर) ज ३।११७,१८८ ६८,७६,७७,८१, ३।२४,४० से ४२,४८,४६, पंडुरोग (पाण्डुरोग) ज २१४३ १५३;४११०४,१०६ से १५७:२२,८२,८३, पंडुलइयमुही (पाण्डुरकितमुखी) उ ११३५ ८५,८६,८८,८६,६२,६३,९६,६७,६२१,२२, पंडुसिला (पाण्डुशिला) ज ४।२४४ से २४७ ५४,६५,७१,७८,८३,८७,२६,६२,१००,१०२, पंति (पङ्क्ति ) ज २१६५,३२०४:४।११६ १०५,१०७,११६ ; ६४६,७,१६,१७,२२,२३, सू १६।२२।७,८,९ १११४६१२।३१:१३।१८,१६१५॥१७,४६, पंतिया (पङ्क्तिका) उ ३३११४ ८७,६७,१०२,१०३,१०६,१२१,१३८,१६७, पंसु (पांशु, पांसु) ज २११३३;३३१०९ १४,२७,१७।३३,३५,४१ से ४३,६३ से ६८, पंसुकीलियय (प्रांशक्रीडितक) उ ३१३८ ५६,६७,१०४;१८।१६,१८,२४,१६।४; पकड्ढ (प्र: कृष्) पकड्डइ ज ५१४६ २०११३,१७,२३,२५,२६,३४,४८,२११२,७ से पकड्ढिज्जमाण (प्रकृष्यमाण) ज ५१४४ १६,१६,२०,२६ से ३२,३६,४६,५१ से ५५, पकर (प्र+कृ) पक रेंति प ६।११४ से ११६: ५८ से ६२,६५,६८,६६,७१,७७,८२,८८,६४; २०१८ से १३ ज ७।५६ सू १६।२४ २२१७४,८७,६६२३१४०,८६,१५०,१६७, पकरेति २०१६३ १७१,१७६,१७७,१६६,१६६ से २०१,२४।७; पकरेमाण (प्रकुर्वत्) प ६.१२३,२०१६३ २८।४७,४८,६८,११६,१३०,१३६,१३७, पक्क (पक्व) प १६५५ १४२,१४४,२६।१५,२२:३११४,३२१३,३३११, पक्कणिय (दे०)प १८६ १२,२१,२८,३०,३६,३४।३,८,३५११४,२१, पक्कणी (दे०) ज ३१०२ Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक्कमंत-पच्चत्थिम पक्कमंत (प्रकामत् ) ज ३।१०६ पगास ( प्रकाश) पगासइ ज ४१६१,२७३, पक्किमृगसंठाणसंठित (पक्वेष्टकसंस्थानसंस्थित) ७.१७८ पगासेति मू ३.१ पगासेति सू ३१२ सू १६.२६ पगिझिय (प्रगृह्य) उ ३।४२ पक्किट्टगसंठाणसंठिय (पक्वेष्टकसंस्थानसंस्थित) पगिण्ह (प्र+गह ) पगिण्हइ ज ३।२०,३३,५४, ज ७:५८ ६३,७१,८४,१३१,१३७,१४३,१६६,१८२ पक्कोलिय (प्रकीडित) ज ३११,१२,२८,४१,४६, पगिण्हं ति ज ३।१११ ५८,६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ पगिरिहत्ता (प्रगृह्य) ज ३।२० पक्ख (पक्ष) प ७२,७ से ३० ज २०४,६४,६६, पग्गहेत्तु (प्रगृह्य) ज ३।१२,८८,५१५८ ८८,७११५,११६,११८,११६,१२६,१२७ पघसिय (प्रर्षित) ज ३१३५ सू६।१८।१:१०८५,२७,६०,६१ पच्चक्ख (प्रत्यक्ष) ज ३११,२४१३,३७११,४५११, पक्खच्छाया (पक्षच्छाया) सू ६।४ १३११३ उ ५४४ पिक्खल (प्र+स्खल) पक्खलेज्ज उ ३।५५ पच्चक्खयाविणीय (प्रत्यक्षविनीत) ज ३१०६ पक्खि (पक्षिन) ५६१८०।१११४, २११४७।१ पच्चक्खवयण (प्रत्यक्षवचन) प ११८६ . ज २११३१ सू २०१२ पच्चक्खाण (प्रत्याख्यान) ५ २०१७,१८,३४ पक्खित्त (प्रक्षिप्त) प १२।३२ उ १५६० पच्चक्खाणावरण (प्रत्याख्यानावरण) प १४७; पविखप्प (प्रक्षिप) पक्खिप्पई ज ३११८ पिक्खिव (प्र+क्षिप) पक्खिवइ उ ११४६३३५१ २३।३५ पच्चक्खाणी (प्रत्याख्यानिनी) प १११३७।१ पक्खिवंति ज २।१२०५।१६ पक्खिवेज्जाहि पच्चणुभवमाण (प्रत्यनुभवत्) प २१२० से २७ सू २०१६।३ पक्खिवित्ता (प्रक्षिप्य) ज २।१२० उ ११६१; पच्चणुभवमाण (प्रत्यनुभवत्) ज १:१३,३०,३६; ३१४१ ३।१२६,४।२ सू२०१७ उ ११११,९८,६९; पक्खिविराली (पक्षिविराली) प ११७८ ३१११४,११५,११६ पक्खुभिय (प्रक्षुभित) ज ३।२२,३६,७८,६३,६६, पच्चत्थाभिमुहि (पश्चिमाभिमुखिन्) ज ४।४२,७७, १०६,१६३,१८० २६२ पक्खेवाहार (प्रक्षेपाहार) प २८१४०,६६,१०२,१०३ पच्चस्थिम (पाश्चात्य) प ३.१ से ३७,१७६ १७८, पक्खेवाहारत्त (प्रक्षेपाहारत्व) प २८१४०,६६ ज १११६,१८,२०,२३,२४,३५,४१,४६,४८, पक्खोलणय (प्रस्खलत्) उ ३।१३० ५१,३१,४४,६८,६६,६७,१२८,४।१,१६, पगइ (प्रकृति) ज २११६,३१३,११७,७।१८० २६,३७,४२,४५,४८,५५,५७,६२,७७,८१,८४, उ ५१४०,४१ ८६,६४,६८,१०३,१०८,१२६,१३५,१४३, पगइभद्द (प्रकृतिभद्र) ज ११४१:२।३६,४१ १५१०२,१६२,१६७,१६६,१७२ से १७८,१८१, पगडि (प्रकृति) प २३३१०१ १८२,१८४,१८५,१६०,१६१,१६३,१६४, पगय (प्रगत) उ ५२।१ १६६.१६७,१९८,२०० से २०३,२०५,२०६, पगरेमाण (प्रकुर्वत्) प ६११२३ २०८,२०६,२१३,२१५,२२६,२३२,२३८, पगार (प्रकार) ज ३१८१ २५१,२६२,२६५,२६६,२७१,२७२,२७४, पगास (प्रकाश) पश३१ ज २१५,३१३५.११७, ५।१०,३६, ६.१६ से २४,२६,७।१७८ १८८,४११२५,५१६२७१७८ उ ५१६ सू २।१८।१:१३३३२,१४,१६,१८११४; Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पच्चत्थिमलवणस मुद्द-पच्छिमदारिया २०१२ उ ३३५४ पिच्चुत्तर (प्रति --उत्+त) पच्चुत्तरइ ज २०२८ पच्चत्थिमलवणसमुद्द (पाश्चात्यलवणसमुद्र) ४१,४६ उ ३१५१ ज ४१२६८,२७७ पच्चुत्तरिता (प्रत्युत्तीर्य) ज ३१२८ उ ३१५१ पच्चस्थिमिल्ल (पाश्चात्य) प १६३४ ज ११२०, पच्चुप्पण्ण (प्रत्युत्पन्न) ज २१६०; ३।२६,३६,४७, २३,४८,२।११६,३१४७,७६,६५,१४६.१५०, ५६,१३३,१३८,१४५ ,५३,२२ १५६,१६१,१६४ ; ४१३७,५५,६२,८१,८६६८, पिच्चुवसम (प्रति ।-उप गम्) पच्चुवसमंति १०८,१७२.२१२,२१३,२३०.२३१,२३८% . ज ५७ ७१७८ २।१,१०११४२,१३।१४,१६ पच्चुवसमित्ता (प्रत्युपशम्य) ज ५७ पच्चत्युय (प्रत्यवस्तृत) ज ३३११७ पिच्चुवेक्ख (प्रति !- उप-!- ईक्ष) पच्चुवेक्खइ पिच्चप्पिण (प्रति अपय) पच्चप्पिण ज ३११८७ ज ३।३२,१७१,५७१ पच्चप्पिणंति ज ३१८, पच्चुवेक्खित्ता (प्रत्युप्रेक्ष्य) ज ३।१८७ १३,१६,२६,४२,५०,५६,६७,७५,१४८,१६६, पच्चोयड (दे०) ज ४।३,२५ १७४,१७६,१६८,२००,२१३,५१७०,७३ पच्चोरुभित्ता (प्रत्यवरुह्य) ज ४११३ पच्चप्पिणति ज ३।१६,५३,६२,७०,१४२, पिच्चोल्ह (प्रति अव- रुह ) पच्चोरहइ १६५,१८१,५०५ पच्चपिणह ज २१०५; ज ३१६,२०,३३,५४,६३,७१,१४३,१५१,१६६, ३७,१२,१५,४१,४६,५८,६६,७४,१३०,१४७, १८२,१८६,२०४,२१४,५।२१,४४ उ १.१६; १६८,१७३,१७५.१६१,१६६,२१२,५२६६ ३१५१ पच्चोरुहति ज ३१२१५,५१५,४५ ७२ उ १।१७,४११६:५११८ पच्चप्पिणामि पच्चोरुति ज ३१२८,४१ पच्चोरहेइ उ०१०६ पच्चप्पिणामोड १११२७ ज ३।१११:४।१८ पच्चप्पिणाहि ज ३.१८,३१,५२,६१.६६,७६, चोरुहिता (प्रत्यरुह्य) ज २१६५ उ १११६, ८३,९८,१२८,१४१,१५१,१५४,१६४,१७०, ३१५१,४११५ १८०,५१२८,६८ उ श११५ परमपिणिज्जइ पच्चोषक प्रति अब.क) पच्चोसक्कइ उ १११२८ पच्चप्पिणेमा ५ ३६११ ज: ३.१२,८८,१५५ पच्चीसक्कति मु २०१२ पच्चय (प्राय) ज ३११०६ पच्चोसक्कित्था ज ३८६,१०२,१५६,१६२ पच्चामित्त (प्रत्यात्रि) ज १२८ पच्चोसक्कित्ता (प्रत्यवकप्क्य) ज ३११२ पिच्चाया (प्रति जन) पच्चा तिब६४ पच्छभाग (पश्चाभाग) सू १०१४,५ पच्चायति ज २६४ पच्चाबाहिद उ ४३ पच्छा (पश्चात् ) प ३४११,२,३६८५,८८ सु १०१५ पच्चायात (प्रत्याजात) ज २११३३ उ ३७,५१,५३,५४,६१,१०७,११८,१३६; पच्चावड (प्रत्याक्त) ज ५१३२ ४॥२१ पच्चावरण्ह (प्रत्यापराण्ह) उ ३१५६,६४,६८,७१, पच्छाकड (पश्चात्कृत) सू ८.१ ७४,७४ पच्छिम (पश्चिम) ज २१५५,५७ से ५६.६४,१२६, पच्चद्वित्तए (प्रत्युत्थातुम् उ ३१५५ १५५,१५६; ३३१३५॥१ पिच्चुपणम (प्रति + उत्... णम्) पच्चण्णमइ पच्छिम्कंठभाओवगता (पश्चिमकण्ठभागोपगता) ज ५१२१,५८ सू४ पच्चुण्णमित्ता (प्रत्युसम्य) २१ पच्छिमदारिया (पश्चिमद्वारिका) सू १०११३१ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पच्छिमग-बज्जुवट्ठिय पच्छिमग (पश्चिमक) प १७७० १३६,१४२,१४५,१४८,१५१,१५४,१५७, पच्छिमड्ड (पश्चिमाध) प १६।३० १६०,१६४,१६७,१७०,१७३,१७६,१७६, पच्छिमद्ध (पश्चिमार्ध) प १६।३०,१७११६५ १८२,१८५,१८८,१६१,१६४,१६७,२००, पिच्छोल (प्र+क्षालय) पछोलेंति ज ५१५७ २०३,२०६,२०६,२१२,२१५,२१८,२२१,२२४, पच्छोववण्णग (पश्चादुपपन्नक) प १७१४,६,१६,१७ २२७,२३०,२३३,२३६,६७१,७२,७६,८३, पजंपिय (प्रजल्पित) उ ३।६८ ६७,६८,१०२,१११३१ से ३४,१८१६ से १२, पज्जत्त (पर्याप्त) प १४१७,२२.३१,४८१६०, १६ से २४,३१ से ३६,४०,४६ से ५१,५३. ११४६ से ५१,६०,६६,७५,७६,८१२।१६ से ५४,११३,२११४०,४२,४४,४५,२३११६६, ३६,४१ से ४३,४८ से ६३; ३१११२,४३ से १६६ से २०१२८११४२,३६।१२ ४६,५३ से ६०,६४ से ७१.७५ से ८४,८८ पज्जत्ति (पर्याप्ति) प २८४,२३।१९५,१६६, से ६५,११०,१७४,४१५५,७८,८७,६०,६१, १६६ से २०१२८११०६।१,२८।१४२ ६४,६७,१००,२३६,२४२,२४५,२४८,२५१, उ ३.१५,८४,१२१,१६२,४।२४ ।। २५४,२५७,२६०.२६३,२६६,२६६,२७२, पज्जव (पर्यव) १३।१२४,५११ से ७,६ से २०, २७५,२७८,२८१,२८४,२८७,२६०,२६३, २३,२४,२७ से ३४,३६ से ३८,४० से ४२, २६६,२६६।६।६८,१८११२२११६,१६,१८, ४४,४५,४८,४६,५२,५३,५५,५६,५८,५६, २३ से ३४,३६,४०,४१,४४,४८,५०,५३,५५; ६२,६३,६७,६८,७०,७१,७३,७४,७७,७८, २३।१६३,१६५ ८२,८३,८५,८८,८६,६२,६३,६६,६७,१०० पज्जत्तग (पर्याप्तक) प ११२०,२३,२५,२६,२८, से १०७,११० से ११२,११४,११५,११८, २६,४८ मे ५१,५३,१३१ से १३३,१३५, ११६,१२८ से १३०,१३३ १३७ से १३६, १३७,१३८,२१ से १६, ३४२ से ४६,५२ से . १४४,१४६,१४६,१५०,१५४,१५६,१६३, ६०,६३ से ७१,७४ से ८४,८७ से ८६,६१,६२, १६०,१६३,१६७,२००,२०३,२०५,२०७, ६४,६५.११०,१४३,१४६,१८३; ६७१,७२, २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३० से ८३,६७.१०२,११३,१११३६,४१:१५।४९; २३२,२३७,२३६.२४१,२४२,२४४,१०१५ २११५,१०,१३,२०,४१,५२ से ५५,७२; ज २।५१,५४,७१,१२१,१२६,१३०,१३८, ३४।१२; ३६१६२ १४०,१४६,१५४,१६०,१६३,७१२०६ पज्जत्तगणाम (पर्याप्तकनामन ) प २३१३८,१२० उ ३।४७ पज्जत्तभाव (पर्याप्तभाव) उ ३।१५,८४,१२१, पज्जवसाण (पर्यवसान) प ११४६६,६७,१४११८; १६२,४१२४ २८.१६,१७,६२,६३,३६.२० ज २१६४,५२५६; पज्जत्तय (पर्याप्तक) प ३७४,८७,८६,६०,६२, ७।२३,२५,२८,३०,४५ सू २१४,१६,१७, ६३,६५,१४६,१५२,१५५,१५८,१६१,१६४, २१,२४,२७,२।३,६।११०।१,१११२ से ६ १६७.१७०,१७३,१७४,१८३,४।३,६,६,१२, उ ३१४० १५,१:-,२१,२४,२७,३०,३३,३६,३६,४२, पज्जवसित (पर्यवसित) सू १११२ से ६ ४५,४८,५१,५४,५८,६१,६४,६७,६८,७१,७४, पज्जवसिय (पर्यवसित) प ११:३० ७५.८१,८४,१०३,१०६,१०६,११२,११५, पज्जुण्ण (प्रद्युम्न) प ५१० ११८,१२१,१२४,१२७,१३०,१३३,१३६, पज्जुवट्ठिय (प्रत्युपस्थित) ५ १६।५२ Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जुवास-पडिणिक्खम पिज्जुवास (परि+उप+आस्) पज्जुवासइ ५७ ज ३१३५,१०८ से १११,१७६४|४९%3 ज २१६०,६३,५१४८,५०,५८,६५ उ १११६; ५।४३,७१३३१२,१८४ उ ११२२,१४० ३३१३:४:१३:५११६ पज्जुवासंति ज ३।२०५, पडागाइपडागा (पताकातिपताका) ज ३१७,१८४; २०६:५४६ उ ५।३६ पज्जुवासामि उ १११७ ४१३० पज्जुवासिज्जा उ ५१३६ पज्जुवासीहामि पडागातिपडागा (पताकातिपताका) १३५६ उ ३।२६ पज्जुवासेज्ज ज २१६७ पडिसुया (प्रतिश्रुत्) ज २१६५ पज्जुवासणया (पर्युपासन) उ १।१७ पिडिकल्प (प्रति+कृप) पडिकप्पेइ ज ३११५, २१,३३ पडिकप्पेह ज ३।२१,३४,७७,६१, पज्जुवासणिज्ज (पर्युपासनीय) ज ७:१८५ सू १८।२३ १७३,१७५,१६६उ १११२३ पष्टिकंत (प्रतिक्रान्त) उ २११२३३१५०,१६१; पज्जुवासमाण (पर्युपासीन) ज १६ चं १० ५।२८,३६,४१ उ ११४,५२२ पिडिक्कम (प्रति+क्रम्) पडिक्कमेहि उ ३३११५ पज्झंझमाण (प्रमझमान) ज ५१३८ पडिगय (प्रतिगत) ज १४;३।१२५:५७४ च ६ पट्ट (पट्ट) ज ३१२४,३५,७७,१०७,११७,१२४; सू ११४ उ ११२,२४;३।७,२१,२५,४५,६२, ___४।१३ सू २०१७ उ १११३८ ६६,६६,७२,८१,१४३,१५६:४१५५१२० पट्टगार (पट्टकार) प १६७ पडिचर (प्रति+चर्) पडिचरइ सू १११८ पट्टण (पत्तन) प ११७४ ज २१२२,१३१, ३।१८, पडिचरंति सू १११८ पडिचरति सू१३।१२ ३१,३२,८१.१६७४२,१८०,१५५,२०६,२२१ । पिडिच्छ (प्रति--इष्) पडिच्छइ ज ३१४०,४८, उ३।१०१ ५७,६५,७३,१३४,१३६,१४६,१५१,१५२ पट्टणपति (पत्तनपति) ज ३१८१ पडिच्छति ज ५११५ पडिच्छंतु ज ३१२६,३६, पट्टिया (पट्टिका) ज ३७७,१०७,१२४ उ ११३८ । ४७,५६,६४,७२,१३३,१३८,१४५ उ ३१११२, पट्ठ (पृष्ट) ज २११५;३।१०६।११७ उ ११९७ ४१६ पडिच्छाहि ज ३७६,१२८,१५१ पछविय (प्रस्थापित) प २०३६ पडिच्छण्ण (प्रतिच्छन्न) ज २१८,६,१३ पछित (प्रस्थित) प १६:५२ पडिच्छमाण (प्रतीच्छत्) ज २।६५,३।१८,३१, पठिय (प्रस्थित) प १६५२ १८०,१८६,२०४ पड (पट) ज ३।६,८१,१२५,१२६,२२२ पडिच्छायण (प्रतिच्छादन) ज ४।१३ सू २०१७ पिड (पत्) पडइ उ ११५१ पडिच्छित्ता (प्रतीष्य) ज ३७६ उ १३३ पडमंडव (पटमण्डप) ज ३१८१ पडिच्छिय (प्रतीष्ट) उ ३११३८ पडल (पटल) ज २६१३१, ३३११,४१३,२५ पडिजागरमाण (प्रति जाग्रत् ) ज ३१२०,३३,८४, पडलग (पटलक) ज ५।५५ १८२,१६० उ११६५१०५ पडलहत्थग (पटलहस्तक) ज ३।११ पडसाडय (पटशाटक) ज २६६ पडिण (प्रतीचीन) सू १११६ पडह (पटह) ३३.२२ ज३।१२,७८,१८०,२०६ पडिणिकास (प्रति निकाश) ज ३२९५,१५६ पडाग (पताका) परा४१,४८ ज ११३७ २०१५, पिडिणिक्खम (प्रति+निर्+क्रम) पडिरिएक्समाइ ३१३,३१ ज ३१५,१२,१४,१७,२१,२८,३०,३४,४१,४३, पडागसंठिय (पताकासंस्थित) सू १०१४२ ४६,५१,५८,६०,६६,६८,७४,७७,८४,८५, पडागा (पताका) प ११५६,७१,१५१२६२१०२६, १३६,१३६,१४०,१४७,१४६,१६८,१७२, Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिणिक्खमित्ता-पडिवज्जितए ६६७ १७७,१८७,१८८,१६८,२१४,२१८,२१६, २२२,२२४; ५२३ पडिणिक्खमंति ज ३१८, १५३,५१७३ पडिणिक्खमें ति ज ३।१३ पडिणिक्खमित्ता (प्रतिनिऋम्य) ज ३१५ पडिणिक्खमेत्ता (प्रति निष्क्रम्य) ज ३११३ पडिमियत (प्रति नियत) ज ३८१ पडिणिन्वुड (प्रतिनिर्वृत) ज २०६८ पडिणीय (प्रत्यनीक) ज २२८ सू २०१६२ पडिदिसि (प्रति दिश्) सू २०१२ पडिदुवार (प्रतिद्वार) प २१३०,३१,४१ ज ३७, पिडिनिक्खम (प्रति- निर--क्रम्) पडिनिक्खमइ उ ११४२३१४६,४११२ पडिनिक्खमंति उ ११४५३११४५ पडिनिक्खमति उ ३।२६ पडि निक्खमह उ १११२१ परिनिक्खमित्ता (प्रतिनिष्क्रम्य) उ १५४२३।२६; ४।१२ पडिनिग्गच्छित्ता (प्रतिनिर्गत्य) उ १।१२४,५५१६ पिडिनियत्त (प्रति+नि+वत्) पडिनियत्तति प ३६१८८ पडिनियत्तित्ता (प्रतिनिवृत्य) प ३६१८८ पउिपाति (प्रतिपातिन् ) १ २३११३४,१३५,१३८, १४०,१४२,१४३,१५१ से १५५,१५७,१६०, १६१,१६४,१६६ से १६८,१७१ से १७३ पडिपाद (प्रतिपाद) ज ४।१३ पडिपुच्छण (प्रतिप्रच्छन) उ १११७ पडिपुच्छणिज्ज (प्रतिप्रच्छनीय) उ ३।११ पडिपुष्ण (प्रतिपूर्ण) प २११७४ ज २११५,७१, २५,३३११७,१६७।१२,२०६,२२३,२२५; ५५६,७।१७८ पडिपुण्णचंद (प्रतिपूर्णचन्द्र) प २१५४,६०,३६८१ ___ ज ११७ सू १।१४ पडिबंध (प्रतिबन्ध) ज २१६६ उ ३३१०३,११२, १३६,१४८,४३११ पडिबुद्ध (प्रतिबुद्ध) उ ११३३; २१८, ५॥१३ पडिबोहण (प्रतिबोधन) ज ५।२६ पडिमंजरी (प्रतिमंजरी) ज ७१२१३ पडिमोयण (प्रतिमोचन) ज २११२ पडिय (पतित) उ ३।१३१,१३४,४।६ पडियाइक्खिय (प्रत्याख्यात) ज ३१२२४ पिडियागच्छ (प्रति- आ-! गम) पडियागच्छद सू२२१ पडियागच्छिता (प्रत्यागत्य) सू २।१ पडिरह (प्रति रथ) उ ११२२,१४० पडिरूव (प्रतिरूप) प २१३० से ३२,३४,३५,३७, ३८,४१ से ४३,४५,४५.१,२,४६,४८ से ५२, ५८ से ६१,६३,६४ ज १८ से १०,२३,२४, २६:३१,३५,४२,५१,२।१२,१४,१५; ३३१. १६५४.१,३,४,१३,२५,२७ से ३०,३३,४६, १४६.१७८,२०३,५१३१,३३,३४,६२ सू १११ १८ाउ ५१४ से ६ पडिरूवग (प्रतिरूपक) ज ३।१६५,४।४,५,२६, २७,८६,११८,१४४,२४६,५२३०,३१,४६,६७ पडिरूवय (प्रतिरूपक) ज ३.१६५,२०४ से २०६, २१४,२१६:५।४१,४२,४४,४५ पडिरविय (प्रतिरूपित) ज ३११२० पिडिलाम (प्रति+ लाभय) पडिलाभेइ उ ३३१३४ पडिलाभत्ता (प्रतिलाभ्य) उ ३।१०१ पिडिलेह (प्रति + लिख्) पडिलेहेइ ज ३३२२४ पडिलेहित्ता (प्रतिलिख्य) ज ३।२२४ पडिलोम (प्रतिलोम) ज २१६,६७ पडिलोमच्छाया (प्रतिलोमच्छाया) सू ६।४ पडिवक्ख (प्रतिपक्ष) प ५।२२६ पिडिदज्ज (प्रति+पद्) पडिवज्जइ प ३६१९२ उ ३।१०४,५४२० पडिवज्जति सू ८१ पडिवज्जाहि उ ३१११५ पडिज्जिसु ज २१५१,५४,१२१ पडिवज्जिस्सइ जस१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, १६३;३।१३४ पडिवज्जित्तए (प्रतिप्रत्तुम् ) प २०११७,१८,३४ उ ३३१११ Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ पडिपज्जिता-पड पडिवज्जित्ता (प्रतिपद्य) ३.४५,१०४,१४३;५२० पिडिसुण (प्रति+श्रु) पडिमुणति ज ५१७३ पडिवडितसम्मद्दिछि (प्रतिपतितसम् दृष्टि) पडिसुइ ज ३११६,५३.६२,७०,७७,८४, प ३।१८३ १००,१४२,१६५,१८१,५३२३,६६ उ ११५५; पडिवण (प्रतिपन्न) १३६१६२ ज ३।१४,२६, ३.१४० पडिसुणति ज ३१८,१३,१०७,११३ ३०,३६,४३,४७,५१,५६,६०,६४,६८,७२, १८६,१६२ उ ११४५ पडिसुणेमि उ ११८३ ११३,१३०,१३६,१३८,१४०,१४५,१४६, पटिमणेत्ता (प्रतिश्रुत्य) ज ३१८ उ ११४५ १७२ सू ८१ उ ३१६६,७६ परिसेविय (प्रतिसेवित) ज २१७१ परिवति (प्रतिपत्ति) चंद सू १७३३,१।८।१,२, पिडिसेह (प्रतिषेध) १६७४ से ७८,८०,११०%; ३,१०२० से २३,२५,२६,२।१ से ३,३२१:४।२, २०१२५ ३:५११६३१७१८।१,६११ से ३,१०११, पडिसेह (प्रति सेध) पडिसेहेइ ज ३१११० १३१:१७१११८११,१६०१,२०११,२ उ १११६ पडिसेहेति ज ३११०८ पश्विया (प्रतिपत्) ज २११३८ पडिसेहित्तए (प्रतिपेद्धभ्) ज ३।११५,१२४,१२५ पहिवा (प्रतिपत्) ज ७११२५ पटिसेहिता (प्रनिपिः ) उ ११११६ पहिवाइ (प्रतिपातिन् ) प ३३६११,३३३३५ पडिसेहिय (प्रनिषिद्ध) ज ३१६५,१०६,१११,१५६ पडिवाति (प्रतिपातिन् ) प ११११४ उश२७ पहिवादिवस (प्रतिपदिवस) ज ७११६ सू १०८५ पडिसेटेयव (प्रतिपेशवा); पडिसेहेयध्व (प्रतिषेधव्य) प ६१९८१०१६ से : पडिवाराइ (प्रतिपत्रात्रि) ज ७।११६ पडिस्सुइ (प्रतिश्रुति) ज २१५६,६० परिवाराति (प्रतिपात्रि) सू १०1८७ पडिहण (प्रति --हन्) पडिहमति सू ५१ पडिवालेमाण (प्रतिपालयत्) उ १११३३ पडिहत (प्रतिहत) प २६४१२,३ ज ४१२५ पिडिविसज्ज (प्रति वि+सजय्) पडिविसज्जइ पडिहता (प्रतिहता) सू ९१४ उ३।१०४ पडिविसज्जेइ ज ३६,२,७,४०, पदिय (प्रतिहत) चं २ मू ११६:५१ ४८,५७,६५,७३,१२७,१३४,१३६,१४६,१५२, पडीण (प्रतीचीन) प २।१०,५० से ६२ ज १११८, १७१,१८६,२१६ उ ११०६:३११३७ २०,२४,३११:४।१,३,८६,८८,६८,१०३,१०८, पडिविसज्जिय (प्रतिविजित) ज ३११७१ १४१,१६२,१६७,१६६,१७८,१८५,१८७, उ १३३,११० १६१,२००,२०३,२४५,२५१;७१०१ पडिनिसज्जेत्ता (प्रतिविसयं) ज ३१६ सु १११६२११ परिसंवेमाण (प्रतिसंक्षिपमाण) ज ५१४४ पडीणउदीण (प्रतीचीनोदीचीन) सूसा पिदिसंवेद (प्रति संवेद) पडिसंवेदेति पडोणवाय (प्रतीचीनवात) प ११२६ प १५॥३८ पडीणा (प्रतीची) ज ११८,२०,२३,२५, पडिसत्तु (प्रनिशत्रु) ज ३११३५१ २८,३२,४८,३।१४।१,३,५५,६२,८१,८६,८८, पिडिसाहर (प्रति+संह) पडिसाहरइ ज ५१६७ १८,१०३,१०८,१७२,२०५.२१४,२४६, पहिसाहरंति ज ३।१२५ पडिसाहरति २५२.२६२,३६८ प ३६१८५ पडु (पटु ) प २।३०,३१,४१,४६ ज ११४५,३१८२, पडिसाहरित्ता (प्रतिमहत्य) प ३६१८५ ज ३११२५ १८५,१८७,२८६,२१८,५१,१६७१५ पडिसाहरेमाण (प्रतिसंहरत्) ज ५१४४ . ५८,१८४ सू १८१२३:१६७१६३२३,२६ Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडुच्च-पणिवय पडुच्च (प्रतीग) प १७४।२।७६।६३,८।४,६, पण (पञ्चन्) सू १०१५७ ८,१०,१११४६,५३,५.१,१७,५६१४१५ पणगजीव (पनकजीव) ५ ३६१६२ १८.१,२१६५२३१६३,१७६२८१६,६,२० पणगमत्तिया (पन कमृत्तिका) ५ ११६ २६,३१,५२.५५.९ से १०१ ज ४१५४ पिणच्च (प्र- नृत्) पणच्चति जे ५१५७ पणट्ठ (प्रनष्ट) प११४८१३६ पडताच्च (पती मा प११॥३३,११।३३३१ पणतालीस (पञ्चचत्वारिंशत) पश८४ पडप्रपण ( पन) प १२२१२,३२,३८ सू १६०२० ज'३६,५२ १२७ पणतीस (पञ्चत्रिंशत्) सू १।२० पडप्प भाव (मला पन्नभाव) प२८/१८ से १०१ पणतीसतिभाग (पत्रिशतभाग) प २३१८६,८८, पडुप्पण्मानयण ( पनवचन) ५ १११८६ ६५ से १८:११८,१५१ पपया (प्रतिथन) ज ५१२५ पणपण्ण (दे० पञ्चपञ्चाशत् ) प ४१२८ ज ४११७२ पडोयार (प्रावतार) ५ ३०।२५,२६ ज १७,२१, सु १२१७ २२,२६,२७,२६,३३,४६,५०,२।७,१४,१५, पणय (दे०) प ११४६,१४८११,११६५ ज २११३३ २०,५२,५६,५८,१२२,१२३,१२७,१२८,१३१, पणय (प्रणत) ज ३८१,१०६ १३२,१३३,१३,१४७,१४८,१५०,१५१, पणयबहुल ('पन"बहुल) ज २।१३२ १५.६,११७.१५६,१६४:४१५६,८२,६६ से पणयाल (पञ्चचत्वारिंशत् ) ज ७१३४ सु ११२१ १०१,१०६.१७०,१७१ पणयालीस (पञ्चचत्वारिंशत्) ज ११६ मू ४१३ पडोल (पटोल) प १।३१२,११४०।१,११४८।४८ उ २८ पढम (प्रथम) १५१०३,१०६,१०७.१०६,११०, पणव (प्रणव) ज ३।१२,७८,१८०,२०६५१५ ११३,११४,११६,११६,१२०.१२२,१२३; पणवण्ण (पञ्चपञ्चाशत् ) ज ४१५५ २।३१,६८०११;१०।१४।१ से ३,१२११२, पणण्णिय (पणपनिक) प २१४१ १६,३१,३२:२३३,४१,३६८५,८७,६२ पणवन्निय (पणपन्निक) प|४७१ ज २१५५,५६,६३,६४,१३८,१५५ से १५५%; पणवीस (पञ्चविंशति) प २२२ ज १२३ ३१३०,१३५,२१७, ४११४२६३,१५३,१५४, सू११२१ १८०; १८,२०,२३,२६,२८,६७,१०१,१०६, पणवीसतिविध (पञ्चविंशतिविध) सू ६४ १५६,१६०,१६४ च ३३ सू १७,१३,१४, पणाम (प्रणाम) ज ३१५,६,१२,८८ १६,२१,२४,२७, २१३,६१८६११०।६३, पिणाव (प्र- नामय्) पणावेइ उ ११११६ ६७,७७,१७,१३८,१३६,१४३,१४४,१४८, पणावेहि उ ११११५ १५०,१५:११२.३,१२,१६,२०,२४, पणावेत्ता (प्रणाम्य) उ १२११५ १३३१,७६,०; १४॥३,७ उ १६ से ८,६३, । पणासित (प्रणाशित) सू २०१७ १४२,१४३,१८८११,३,१४,१५,२२,३१३, पणिधाय (प्रणिधान) प १७१११ सू ६३१ १६.२०५०,१ ३,२७५॥३,४४ पणिय (पगिन) ज २१२३ पढनणरीसर (प्रथम नरेश्वर) ज ३।१२६।३ पणिवस्य (प्रणिपतित) ज ३।१२५ पहमला (प्रथम) T21४८५१ पणिवय (प्रणि पत) पणिवयामि ज ३।२४।१, पदमया (प्रथम) १२११:४१८०,५१५८ १३११ १. पनक: प्रतलः कदमः-टीका Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० पणिहार-मत्तिय पण्णास (पञ्चाशत) प २१ ज ११२३ र १२१३, ८ उ ५.१३ पण्य (प्रस्नन) ३ ३९८ पितणतण (प्र+तनतनाय)नणतणाइस्सइ ज २११४१,१४५ तणतणानि ज ३१११५; ५७ पणिहाय (प्रणिधाय) प १७।१०६ से १११ ज ४१५४,८०, ७२७,३० सु१।१४,२४ पणुवीस (पञ्चविंशति) प ४१२७३ उ ३७ पणुवीसइम (पंचविंशतितम) प १०.१४१३ पण्णट्ठ (प्रणष्ट) ज ३१३ पण्ण (पञ्चषष्टि) ज ७१६५,६६ पण्णट्टि (पञ्चपप्टि) ज ४११६५ मु १०।१५२ पण्णत्त (प्रज्ञप्त) प १११ ज १७ सू१।१४ उ ११४ पण्णत्तर (पञ्चसप्तति) ज ४१४५ पण्णत्तरि (१ञ्चसप्तति) ज ४.१४२ पण्णत्ति (प्रज्ञरित) सू २०१६।१ उ ३।१६० पण्णर (पञ्चदशन्) प १०।१४१४,५ पण्णरस (पञ्चदशन्) १ १७४ ज ११२३ सू १५१३ पण्णरसइ (पञ्चदशन्) सू १६।२२।१६ पण्णरसति (पञ्चदशन्) सु २०६३ पष्णरसम (पञ्चदश) ज ७।६७ सू १०१७७; १२१६१३।१,१०६; १४१३,७:१६।२२, २०१३ पण्णरसविह (पञ्चदशविध) प ११८८१६११,२, पतणतणाइत्ता (प्रतनतनाट ) २११४१ पतर (प्रतर) प १२११२,१६ १. पतव (प्र तर) पतवनि ५५७ पिताव (प्र- तापम् ) पताओंति सूहा? पतिट्ठिय (प्रतिष्ठित) प १४३ पतिसम (प्रतिराम) ज ३।६२,११६ पत्त (प्राप्त) ५ २१६४।२०६।१८१७२२३१३ - से २३,३६१६४१ ज २१८५२:३६,४३, १२२,१२६,१३३, ४153 ,९८,१०१, १२२,१५०,१६१; ४१२५,२३,२८,३१,३६, पण्णरसी (पञ्चदशी) सू १०१६०;१३।११४।३,७ पण्णरसीदिवस (पञ्चदशीदिवस) ज ७११६ सू १०८५ पण्णरसोराइ (पञ्चदशीरात्रि) ज७११६ पण्णरसीराति (पञ्चदशीरात्रि) सु १०।८७ पिण्णव (प्र+ ज्ञापय) पण्णवेइ ज ७१२१४ उ १२६८ पण्णवेहिति सू १६।२२।३ पण्णवणा (प्रज्ञापना) ५ १११४२,४,४६,१३८%; २८1९८ से १०१ उ ३३१०६ पण्णवणी (प्रज्ञापनी) प ११।४ से १०,२६ से २६, ३७।१,८७ पण वित्तए (प्रज्ञप्तुम् ) उ ३.१०६ पण्णवीस (पञ्चविंशति) प २७।४ पण्णा (दे०) ५२।४०।३ ज ५१४६ पिण्णा (प्र + ज्ञा) पण्णायए ज ७११६९ पण्णावग (प्रज्ञापक) ज ३।६५,१५६ पत्त (पत्र) ११३५,३६,४७१,१६४८१६,१६,२६, ३६,४५,४७,४६,५१,६३ ज २१८,६,१२,१५, ६८,१४५,१४६ ; ३।११३,३।१२,८८,६८, १०६,४३,२५,५५,५८, ७/१७८ उ ३५०, ५१,५५ पत्त (प्राप्त, पात्र) उ १११२८ पत्तउर (पत्तूर) प १।३७१३ पत्तकयवर (पत्रकचार) ज २१३६ पत्तच्छष्ण (पत्राच्छन्न) ज २११२ पत्तळ (दे०) ज ५१५ पत्तपुड (पत्रपुट) ज ४।१०७ पत्तल (पत्रल) ज २११५,३११०६७/१७८ १११ पत्त (वासा) (पत्रवर्पा) ज ५१५७ पत्तविच्छय (पत्रवृश्चिकः) प ११५१ पत्तामोड (पत्रामोट) उ ३१५१ पत्तासव (पत्रासब) प १७।१३४ पताहार (पकाहार) प ११५० उ ३१५० पत्तिय (पत्रित) उ ३३४६ Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्तिय-पभंकरा ९७१ /पत्तिय (प्रति !-इ) पत्तिएज्जा प २०१७, १८०,१८२,५१२४,१२५,१३१,१६१,१७७, १८,३४ पचिवामि ३ ३३१०३ १७६,१६३,२१६,२१८,१०१२,४,५,१८,१६, पत्तेय (प्रत्ये) : १८८161,४७,४६,६०,२१४८%, २१ से २३,२५,२६,१२।३०,५३,५७; ६।१८।४।१०।१४,१६३१५ ज ११४६; १७१११४।१।२२।५८,७६:२८१५,५१ ज २१६५ ३।२०६:४१५,२७,११०,११४,११६,११८, ४।१४३ सू १९०२६ १२२,१२५,१२८,१३६, ५१ से ३,५,७,३१, पदेसघण (प्रदेशघन) प २१६४१५ ४२,५६ उ १११२१,१२२,१२६ पदेसठ्ठता (प्रदेशार्थ) प ३.११६ से १२०,१२२ पत्तेयजिय (प्रत्ये। जीव) प १२४८६ पदेसठ्ठया (प्रदेशार्थ)प ३।११५,११६,१२०,१२२, पत्तेयजीविय (प्रत्येकजीवित) ५११३५,३६ १७६ से १८२,५१५,७,१०,१४,१६,१८,२०,३० पत्तेयबुद्ध सिद्ध (प्रत्येकबुद्धसिद्ध) ॥ १।१२ ३२,३४,३७,४१,४५,४६,५३,५६,५६,६३,७१, पत्तयसरीर (प्रत्येक शरीर) ११२३२,३३,४७; ७४,८३,८६,६३,६७,१०१,१०४,१०७,१११, ४७।२,३,३७२ से ७४,५१,८४ से ८७,६५, ११६,१२६,१३१,१३४,१४५,१६६,१७२, १८३,१८१४४,५२ १७४,१७७,१८१,१८४,१८७,१६०,२०३, पत्यसरीरणाम (प्रायकवारीरनामन् ) प २३:३८, २०७,२११,२२४,२२८,२३२,२३४,२३७, २३६१०१३,४,५.२६,२७,१७११४४,१४६; पत्थ (थ्य) ज ४।३,२५ २१११०४ पत्थड (प्रस्तट) प २।१,४,१०,१३,४८,६० से ६२ पदेसणामणिहत्ताउय (प्रदेशनामनिधत्तायुष्क) ज४१४६ प६.११८ पदेसणामनिहत्ताउय (प्रदेशनामनिधत्तायुष्क) पत्थाइत्तए (प्रस्थातुम् ) उ ३३५ ५६.११६,१२२ पत्थाण (प्रस्थान) उ ३१५१,५३.५५ पिधार (प्र-धु) पधारेइ ज ५७२,७३ पस्थिज्जमाण (प्रायमान) ज २१६:३।१८६,२०४ पधारेति प २२।४ पस्थिय (प्रार्थित) ३१२६,४७,५६,८७,१२२, पपोत (प्रधौत) ज ३।१०६ १२३,१३३,१४५,१८८,५१२२ उ १११५,५१, पन्नरस (पञ्चदशन् ) प १८४ ५४,६५,७६,७६,६६,१०५,३१२६,४८,५०, पन्नरसविह (पञ्चदशविध) प १४१२,१६:३६ ५५,१८,१०६.११८,१३१:५।३६,३७ पप्प (प्राप्य) प १६१४६ १७/११५ से १२२, पस्थिय (प्रस्थित) उ ३१५१,५३,५५ १४८,१५४,२३३१३ से २३,२८।१०५% पत्थिव (पार्थिव) ज १३ ३४।१६ पद (पद) ५१११०१७,१२१३२१८१२; पप्पडमोदय (पर्पटमोदक) प १७४१३५ २८1१४५,३६७२ ज ३:३२ सू १०।६३ से ७४ पप्पडमोयय (पर्पटमोदक) ज २०१७ पदाहिण (प्रदक्षिण) सू १६।२२।१०,११,१६२३ पफ्फुल (प्रफुल्ल) ज ४१३,२५ ‘पदीस ( दश) पदीसई प ११४८.१० से पन्भट्ठ (प्रभ्रष्ट) ज ३११२,८८,५७,५८ १७,१६ से २३ पदीसए प १४४८।११ से १३ पब्भार (प्रागभार) प२।१ ज ३१८५,१०९ प्रदीसति प ११४८१२५ से २६ पदीसती उश२७,१४०,५१५ प ११४८।१८,२४ पभंकर (प्रभङ्कर) सू २०१८,२०८७ पदेस (प्रदेश) प ११३,४२१६४।१,११,३११२४, पभंकरा (प्रभङ्करा) ज ४।२०२,७११८३ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७२ पभजण-पम्हगंध सू १८२१,२४,२०१६ पमज्जित्ता (प्रमृज्य) ज ३।१२ पभंजण (प्रभञ्जन) प २१४०१७ पमत्त (प्रमत्त) प १७६३३२१७२ ज २६ पणिय (प्रभणित) उ ३९८ पमत्तसंजत (प्रमत्तगयन):६१६८ पमत्तसंजय (प्रमत्तमयत) प ६१९८१७२५२२१६१ पभव (प्रभव) प १११३०१२ पमद्द (प्रमदं) ज ७११२६ १०७५ उ १११३६ पिभव (प्रभू) भवति ११३०११ पमद्दण (प्रमर्दन) ज ५१५ पभा (प्रभा) प २१३०,३१,४०।१०,२१४१,४६ पमाण (प्रमाण) प ११०१।९।१२।१२,८; ज ३१३५,२११:४१२२,३४,६०,२७२,५।१८, १५.१०,२३,२१।११,२१८४,८६,८७,६० से ६३;३०।२५,२६:३३।१३,३६।५६,६६,७०, पभाव (प्रभाव) ज ३१६५,१५६,२२१ ७४ ज ११३२,३५,४१:२१४,६१,१५,१३३, पभावई (प्रभावती) उ १६३३ १३८,१४१ से १४५,३११०६,११७,१३८, पभावणा (प्रभावना) प ११०१।१४ १६७।३;४११,६,२५,६४,७०,७६,८६,६०, पभास (प्रभास) ज ४१२७२९६.१२ से १४ १०६.१२३,१३३,१३६,१४०१२,१३४ से १६०, पिभास (प्र-भाष) पभासइ ज ४१२११ १६२ से १६५,१७४,१७५,१६४,२०२,२२२११, पभास (प्र+भास्) पभासंति ज ७१ २३५,२३६,२४६,२७.०,२५.१,५४४६,४६; पभासिसु ज ७१ सू १९१६ पभासिस्नति ७।३५,१६८१२,१७८ १।२७, २१३४16 ज ७१ सू १९६१ पभासे ति ज ७५१,५८ उ १।१३८,३१११ सू. १९६१ पभासेंसू सू १६।१ पमासेति मू १९०१ पमाणभूय (प्रमाणभूत) उ ३३११ पभासंत (प्रभासमान) सू१६।१२ पमाणमित्त (प्रमाणाव) ३१६५,११५,११६, पभासतित्य (प्रभासतीर्थ) ज ३१४३,४४,४६ १५६।३८ पभासतित्थाधिपति (प्रभासतीर्थाधिपति) ज ३४६ पमाणमेत्त (प्रमाणमात्र) ज ११४०,२११३३,१३४, पभासतित्थाहिवइ (प्रभासतीर्थाधिपनि) ज ३१४७ १४१ से १४५:३११,८८,६२,११६,११६, पभासतित्थकुमार (प्रभासतीर्थकुमार) ज ३१४७ से १२२,१२४,४।१०,213,५८,६७ ४६,५१ पमाणसंवच्छर (प्रमाण-पत्रार) ज ७।१०३,१११ पभासेमाण (प्रभासमान) प २१३० से ३३,३५,३६, १०१२५,१२८ ४१,४८ से ५२,५८ पमुइय (प्रमुदिन) २६४१, ११२६,२१६५:३११, पभिद (प्रभति) ज २।१४६,३१८६.१७८,१८६, १२,२८,४१,४६,५८,६६,७४,१४७,१६८, १८८,१८६,२००,२१०,२१६,२१६,२२१ २१२,२१३ २ ११ उ ३।१०१,५१०,१७,१६,३६ पमुह (प्रमुख) ज ७।१७८ २०१८,२०/८१५ पभिति (प्रभूति) ज ३३१० सू १६२।२५ पमोय (प्रमोद) ज ३१२१२,२१३,२१६ पभु (प्रभु) ज ५५,४६,७।१८३,१८४,१८५ पम्ह (१क्ष्मन्) ॥ २॥४६,४१२०९,२१०,२१२ सू१५ से २३ उ ५।३२ २१२११ पभूय (प्रभूत) ज ३१८१,१०३,१६७।१४; ५१७ पम्ह (पदग) ज १५,२५१ पिमज्ज (प्र+मज) पमज्जइ ज ३११२,२०,३३, पम्हकूड (पक्ष्मकूट) ज ४।१८४ से १८७,२१० ५४,६३,७१,८८,१३७,१४३,१६६ पम्हगंध (पद्मगंध) ज २२५०,१:४:४११०६,२०५ Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पम्हगावई-परक्कम ६७३ पम्हगावई (पक्षमावती)ज ४१२१२,२१२।१ पम्हल (क्ष्मल) ज ३१६,२११,२१२:१५८ पम्हलेस (पदमलेशस) १७१६८ पम्हलेसट्ठाण (पद् लेन्यास्थान) १७.१४६ पम्हलेसा (पद्मश्रा) : १७:१२१ पम्हलेस्स (पद्मले ), ३६६१३।२०:१६६४६; १७३५,५६,६४,६६ से ६८,७१.७३,७६ से ८१,८३,८४,११२,१६७,१८१७३:२८११२३ पम्हलेस्सट्ठाण (पद्मलेश्यास्थान) १७.१४६ पम्हलेस्सा (दमा ) प१६।४६,१७।३५,३६, ५४,११७,११८,१२१,२२५,१२७,१२६,१३४, १३७,१४४,१५३ से १५५ पम्हलेस्सापरिणाम (पदमप्यारिणाम) १३१६ पम्हावई (पक्षमावती) ज ४२०२१२,२१२ पय (पद) प १।१०११३,२२१४५; २३।१४६; २८।१।२,२८११२३,३६१६६,७२ ज ३१६,१२, ८८,१५५,१६७७,२१,५८,७११५६ से १६७ उ ३।१०१,१३४ पयंग (पतङ्ग) प १:५११ पयग (पतग, पदक) ज २०४१,२१४७११ पयडि (प्रकृति) ५ २३।१।१ पयणु (प्रानु) ज २१६ पयत (पतग,पदग) ८ २२४१३ पयत (प्रत) ३.१२८८11८ पयत्त (प्रवृत्त) ज ५।२४,५७ पययपद (पलगपति,पदगपनि ) प ६४७३ पयर (प्रसर) प ११४८।६० : १२१८,२७,३६,३७ पयरग (प्रत ) ३.१०६१३८,६७ पयरय (प्रतरक) प ११७५ पपराभेद (प्रारद) प१११७५,७६ पयराभेय (प्रारद) ११५७३ पयला (प्रचला) प२३।१४ पयलाइय (दे०) व १९७६ पयलापयला (च पच५ २३।१४ पर्यालय (प्रचलित प्रगनित) ३६, ५३२१ पयल्ल (प्रकल्प) मू २०१८,२०१८४५ पया (प्रजा) ज २१६४,३११८५,२०६ पिया (प्र-जन ) पाएज्जा उ ३११०१ पामि उ१७८३१६८ पयाहिइ उ ३।१३६ पयात (प्रयात) ज ३११४,१५,३१,४३,४४,५१, ५२,६०,६१,६१,६६,१३०,१३१,१३६, १३७,१४०,१४१,१४६,१५०,१७३ पयाय (प्रगत) ज ३१३०,१४६,१६७,१७२ फ्याय (प्रजात) उ ११५३ ; ३३१३४ पयायमाण (प्रजनयत्) उ ३।१२६ पयार (प्रचार) ज २।१३१ पयालवण' (प्रालवन) ज २६ पयावइ (प्रजापति) ज ७।१३०,१८६३ पयावइदेवया (प्रजापतिदेवता) मू१०८३ पयाहिण (प्रदक्षिण) ज ११६; २१६०; ३१५, ५१५, ४४,४६ उ १।१६,२१, ३१११३; ४।१३ पयाहिणावत्त (प्रदक्षिणावर्त) ज २।१५; ७।५५ पयोहर (पयोधर) ज २११५ पर (पर) प १११०११४, २०६३,३१३६,६८०१२; १४१३;२२१४ से ६:२३११३ से २३ सु ११६; ६६१:१३३१२, १४ मे १७ पर (पर) प ११८१ परंगण्य (पर्यङ्गत्) उ ३।१३० परंपर (परम्पर) प २०१६ से ८ ज ७१४२ परंपरगत (परम्परगत) प २६४।२१ परंपरसिद्ध (परम्परसिद्ध) प १।११,१३,१६।३५, परंपरा (परम्परा) उ श१११,११२ परंपराघाय (परम्पराघात) प ३६१६४,७८ परंपरोगाढ (परम्पर वगाढ) प १११६३ परंपरोबवण्णग (परम्परोपपन्नक) प १५:४६; ३४१२ परक्कम (पराक्रम) प २३११६,२० ज २१५१,५४, १२१,१२६,१३०,१३८,१४०.१४६,१५४, १. पिकालवण इति कल्पनापि जाते। Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७४ परक्कममाण-परिग्गहिय १६०,१६३,३१३,७७,१०६,१११,१२६,१२६, १८८,७११७८ सू २०११ परावत्तेत्ता (परावृत्य) ज ३१२८ परकाममाण (पराक्रममाण) उ ३११३० पिरिकह (परि कथम्) परिकहेइ उ ११२०:४।१४ परधर (परगृह) उ ५१४३ परिकति उ ३११३५ परिकहेमो उ ३११०२ परट्ठाण (परस्थान) प ६।६३,१५।१२१,३६१२०, परिकहेह उ११४२ २४,२७,४७ परिकण (परिकथन ) उ ५।१३ परपरिवाय (परपरिवाद) प २२२२० परिकहेउं (परिकार तुम) २१६४।१७ परपुछ (परपुष्ट) प १७११२३ परिकिष्ण (परिकीर्ण) उ ३३१४१,४३१२,१३ परभवियाउय (परभविकायुक) प ६।१११,११४ ।। परिक्खित्त (परिक्षिप्त) ज ३१२२,२४,३०,३६,७६, से ११६ ७८,१७८, ४१११०,११६,११८,५१२८,४४ परम (परम) प २१२० से २७; २३।१६६ ज २।४, उ १११६:५१७ ६६,७१,१३३, ३३,५,६,८,१५,१६,३१,५३, परिवखेव (परिक्षेप) प २१५०,५६,६४, ३६८१ ६२,७०,७७,८१,८२,८४,६१,१००,११४, १४२,१६५,१७३,१८१.१८६,१९६,२१३, ज १७,१०,१२,१४,२०,२३,३५,४८,५१; २।६,४।१,२१,२५,३१४०,४१,४५,४८,५३ ५२१,२७ उश२१,४२,३१५१,५६,१३०, से ५५,५७,६२,६७,६८,७५,७६.८०,८१,८४, १३१,१३४,१४४ परमत्य (परमार्थ) ५११०१।१३ ८६,६२,६३,६६,६८,१०८,११०,११४,११८, १४३,१६५,२१३,२२६,२४१,२४२,७१७,१४ परमाणु (परमाणु) प १०११४११ ज २।६।३ से १६,३१,३३,६६,७३ से ७८,१०,६३,६४, परमाणुपोगग्ल (परमाणुपुद्गल) प ११४; ३।१७६, १८ से १००,२०७१।१४,१६,१७,१६,२१, १८२,५११२५,१२७ से १२६,१७३,१७४,१८६, २४,२६,२७,२१३;३।१,४४,७,६:११०११३२; १६०,२०२,२१०,२११,२२६; १०१६;१६।३४, १५॥२ से ४,१८१६१६१,४,५११,७,१०,१४, ३६,४३,३०१२६,२८ १८,२०,३०.३१,३४,३५,३७ परलोय (परलोक) ज २१७० परिगय (परिगत) ज ३।३०,११७:४।२७,५।२८ परवस (परवश) उ ३३१२६ परसु (परशु) उ ११२३,८८,८६,६१ परिगर (परिकर) ज ३१२४६३,३१,३७१,४५१, परस्सर (पराशर) प ११६६,१११२१ ज २।१३६ । परस्सरी (पराशरी) प १११२३ १३१३३ परहुय (परभृत) ज ३।२४ परिगायमाण (परिगागन ) ज ५१५,७ से १२,१७ पराघायणाम (पराघातनामन्) प २३।३८,५३,११० उ ३१११४ पिराजय (परा : जि) पराजिणिस्सइ उ १११५ परिग्गह (परिग्रह) प २२।१५,१६ ज २०४६ परामुठ्ठ (परामृष्ट) ज ३।७६,८०,११६,११८ परिग्गहसण्णा (परिग्रहसंज्ञा) प ८।१,२,४ से ११ पिरामुस (परा+मृश) परामुसइ ज ३११२,२३, परिग्गहिय (परिगृहीत) ५ ४।२१६ से २२१,२३१ ३७,४५,७८,८८,६४,११६,११७,११६,१३१, से २३३ ज २।१५६,३१५,६,८,१२,१६,२६, १३५ उ १२२ ३६,४७,५३,५६,६२,६४,७०,७२,७७,८४,८८, परामुसित्ता (परामृश्य) ज ३।१२ उ ११२२ ६०,१००,११४,१२६,१२७,१३३,१३८,१४२, पिरावत (परा+वृत्) परावत्तेइ ज ३१२८,४१, १४५,१५१,१५७.१६५,१७८,१८१,१८६, Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिग्गहिया-परियच्छिय ६७५ २०५,२०६,२०६,५१५,२१,४६,५८ उ ११३६, परिणित्वा (परि+नि |-वा) परिणिव्वंति ४५,५५,५८,६४,८०,८३,६६,१०७,१०८, ज ११२२,५०,२१५८,१२३,१२८,४११०१ ११६,११८,१२२:३।१०६,१३८,१४८,४।१५; परिणिताइप ३६८८ परिणिवायंति १६.११० परिणिव्वाति प ३६१६२ परिग्गहिया (पारिग्रहिकी) प १७११,२२,२३, परिणिवाहिति ज २।१५१,१५७ २५,२२१६०,६२,६७,७०,७६,६२,१०१ परिणिव्वाण (परिनिर्वाण) ज २१११६ परिघट्ट (परिवृष्ट) ज ४।१२८:५१४३ ।। परिणिव्वुड (परिनिर्वृत ) ज २१६८;३।२२५ परिछण्ण (परिच्छन्न) ज २०१२ परिणिव्वुय (परिनिर्वृत) ज २१८५,६० परिजाण (परि-+ज्ञा) परिजाणइ उ ११३८; परितंत (परितान्त) उ ११५५,७७ ३१५८ पनिजाणाइ उ १११०० परिजाणेति परित्त (परीत) १६४८।२० से २६,३४ से ३७, उ ३।११८ ४३,५२,५६ ; ३३११२,१०६,१८१०२.१०६; परिज्जय (दे०) सू २०१२ मू १३१२,१४।४,८ परिणत (परिणत)१४ से ६,११४८५६ परित्तमिस्सिया (परीतमिश्रिता) ११११३६ पिरिणम मरि-णम् ) पिणमति २८।२४ परित्तास (परित्रास) ज २१७० से २६,३६,४२,४५,४६,७१,७४,१०५:३४।२०, परिधान रियाद) परिधाति ज ५१५७ २२ से २४ ज ७१११२।१,३,५ १०११२६१, परिनिव्वा (परि+निवा) परिनिवाहिद ३,५ परिणमति प १६।४६,१७।११५ से १२२, उ ५॥४३ १३६,१४८ से १५२,१५४,१५५ परिनिव्वुड (परिनिर्वृत) ज २१८८,८६ परिपीलइत्ता (परिपीड्य) प २८१२०,३२,६६ परिणममाण (परिणमल ) ज ३।२१,३४,५५,६४, परिपीलिय (परिपीडित) ज २११३३ ५२,८५,११२,१३८,१४४.१६८,१८३,१६१ परिपुछणा (परिप्रच्छन) ज ७११७८ उ ११६० परिभट्ठ (परिभ्रष्ट) ज २११३३ परिणय (परिणत) प १४,६ से १ ज २।१६५१५ परिभाएत्ता (परिभाज्य) ज २०६४ उ ३।३८,४०,१२७,१२८; ५।४३ परिभाएमाण (परिभाजपत्) उ १४३४,४६,७४ परिणयन्द (रिणन्तब्य) ज २११३३ परिभाग (परिभाग) सू १०११७३ परिणाम (परिणाम) + १५११५१३।१:१७.११४११, परिभंजेमाण (परिभुजान) उ ११३४,४६,७४ १३९; २३३१३ से २३,१६५,१६६ मे २०१ परिभुज्जमाण (रिभुजामान) ज ४११०७ २८.११ ज २।१६,१३१, ३।२२३,७।१३६.१, परिभोगत्त (परिभोगत्व) ज २१२४,३४,३५,३७; ७।२०२,२०४,२०७ परिणाम (परि-नमय) परिणामें ति । १७.२ परिमंडल (परिमण्डल) प ११४ रो६१०।१५ से २८१२१,३३,६७ २४,२६ से ३०; ११:२५:१३।२४ ज ५१५,७, परिणामणया (परिणामन) ५ ३४.१ से ३ २२ से २४ परिणामिय (f णामित) २३३१३ से २३ परिमंडिय (परिमण्डित) ज ११३७, ३११,३५, परिणामेमाण (रिणमयत ) उ ११४१,४३ १०६,११७.११८,१७८:५२४३,७।१७८ परिणाह (परिणाह) ज ४११०२ परिमाण (परिमाण) ज २१६४।१६८,२४३ परिणिट्ठिय (परिनिष्ठित) ज ३।३५ परियच्छिय (परिकक्षित) ज ५१४३ २११ Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७६ परिषण-परिवुडि परियण (परिजन) ज ३।१८५ सू १६४२२११८ रिवद्भिज्जति प ५११६१ परियर (रि ! चर) गरिमारइ च ३३१ परिषड्ढमाण (रिवधान) १२७२ ज ४१३६, सू १७१ ४३,३२,७८,९५,१०३,१७८ उ ३१४६ परियाइत्ता (यादाय) १६।२० परिवडिट (परिवद्धि) ज११३८,१४०.१४६, परियाइयणया (पदिान) ३४।१ से ३ १५४.१६०.१६१ परियाग ( य) २११२, ३३१४,८३,१२०, परिवढेमाण (पबिधमान) ज २।१६८,१४०, १५०,१६१; ४।२४; ५१२८,३६,४१,४३ १४६.१५८.१६६ १६३ परियागय (पांगत) १६६५५ परिचय बनपन्विति ५१५७ परियाण (गरि- ज्ञा) परिणइ उ ३।१०८ परिवस (... ग) परिवगइ प २।३८ पिरियादि (गरि : आ. दा) परियादियंति ज ११४५.४७:३।१२१४१५१.५४.६०.६१,' ज ३११६२ ६४८०८६.६७.१०२ १०७.१६१,१६६, परियादित्ता (पदा) ज ३६१६२ १८६.१३३.१६६,१६६.२०३,२०८,२१०, परियाय (पर्याय) ज २८३,८४,४१२७२ उ २।२२, २६१.२६४.२६६,२६७,२७०,२७२.२७३, ३।१६६ परियायतकरभूमि (पीयान्तकरभूमि) ज २१८४ २७६; २१३ उ ३१२८ परिवमई उ ३।१५८%; ४७ परिवति । १२० मे २७,३० से ३६. परियायसंगइय (व साङ्गतिक) ३ ३।५५ ४१ मे ४३.४८,४६,५१ से६४ ज ११२४,२६, परियारणया (परिचारण) प ३४१ से ३ परियारणा (परिचारणा) १ ३४१२, ३४।१ से ३, ३१:३११०३,४११०२ परिवसति प २१३२,३३, १७,१८ ३५.३६.३६,४४,५१,५३ से ५५,५७ से ५६ परियारणिढि (परिचारणद्धि) सू १८.२३ परिवगह ज ३।१२७ परिवसामो ज ३११२६१४ परियारिड्ढि (परिचारद्धि) ज ७।१८५ परिवसण (परिवमन) ज २०१६ परिमारिय (रिवारित) प २।३१ १. परिवह (रि चर) परिवहइ उ १५० परियारेमाण (परिचार पत्) सू २०१२ परिवहति ज १७८: सु ११४ परिवहति परियाल (रिवार) ज २११३३;५।२२,२६ शु १८६१६ गरि हामि उ १६७५ उ १६१९,६३,९७,६८,१०५ से १०७ परिवाडी (सिटी) ६१५१५५,२३.१०८ परियाव (परि-तापय्) परिवेंति प ३६।६२ परिवायणी (रिवाउनी) ३३१ परियावण्य (पर्यापन्न) ६१७।१३३ परिवार (परिवर) ज २।६३,९४,५५६ परियावण्णग (पपिन्नक) प २१३.६,६,१२,१५ ७।१८८.१.१७०.१८३ सू १८१४,२१.२३; परिरय (परिरय) ज४।१४२१२,१५६।१,२३४, १६२२३१.६२ उ १११६; ४१५.१३ २४०७.१६,१६,७५,७८ सू ११२७,१८१६ से परिवारणारिवारणा) ज ४१४०११ १३, १९०८।१,११११,१५१,२११२ परिवारिय (रिकारित) २३०,४१ परिलित (परिलीयमान) ज २१२ परिविक्षस (- वि.! ध्वंस) परिविद्धसेज्जा परिली (दे०) १११३७१५ ।। परिवदिय (परिवन्दित) चं शर परिविद्धंसइत्ता (परिविध्यस्य) ५२८।२०,३२ परिवज्जिय (परिवजित) उ ४६ परिवड (पवित)ज ५१४४ उ ४१११,१३ “परिवड्ढ़ (परि + वृध्) परिवति परिवुड्ढि (रिद्धि ) । ५।१३२,१६१,१७६, Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिवेढिय-पलिओवम ९७७ . १६५,२१६,१११७२,१३३१७; १५।३४,७५ ज ४११०३,१७८ परिवेढिय (परिवेष्टित) १५१५१ ज २११३३ परिष्वायग (परिमाजक), २०१६१ ज ३११०६ परिसडिय (परिशटित) ज ३।१३३ उ ३१५० परिसप्प (परिसर्प) प ११६१.६७७६,६७१, २१।११,१४,५३,६० परिसा (परिपत्) ५ २।३० से ३३,३५,४१,४३, ४८ से ५१ ज ११४,४५२१६४,६०४।१६ ५११६,३६,४६ से ५१.५६, ७१५५,५८ चं ६ सू ११४,१८१२३:१६।२३,२६ उ ११२,१६, २०,२१६; ३१५,१२.२४,२८,८६,१५५,१५६; ४१४,१०,१४,१४,२६,३७ परिसाड (परिशाट) १८४ परिसाउ (रि-शाट्य) रिसा.ति ज ३.१६२; ५१५,७ परिसाडइत्ता (परिशाट्य) प २८१२०,३२,६६ परिसाडेत्ता (परिशाट्य) ज ३:१६२५१५ परिहत्य (दे०) ज ४१३,२५ परिहव (परि-भूरिहवेति सू स२ परिहा (परिखा) : २१३०,३१,४१ ज ३.३२ परिहा (परि--हा) परिहायति सू १६।२२।१४ परिहाण (परिधान) प २।४० परिहाणि (परिहाणि) प २१६४ ज २।५१,५४, १२१,१२६,१३०, ४११०३,१४३ सू १६०२२।१६,२० परिहायमाण (परिहीयमाण) श६४ ज २१५१, ५४,१२१,१२६,१३०,४।१०३,१४३,२००, २१०,२१३ उ ३।४७ परिहारविसुद्धिय (मरिहारविशुद्धिक) च १।१२४, परिहिय (परिहित) प २१३१,४१,४६ ज ३१२६, ३६.४७,५६,६४,७२,८५,११३,१३३,१३८, १४५ उ ११६ परिहोण (परिहीण) १६४।६३६।९२ ज ५।२२,२६ से २८ सू १६८१, २०१६।४ परीसह (परीषह) ज २६४ परुप्पर (परस्पर) ज ४११८० परूढ (प्ररूढ) ज २१६,१३३,१४५,१४६ प रूव (प्र- रूपय) परूवेइ ज ७१२१४ उ १९८ पख्वण (प्ररूपण) ज २।६ परेंत (दे० पर्यन्त) ज ३।१२६ परोक्खवयण (परोक्षवचन) प ११०८६,८७ परोप्पर (परस्पर) १२२१५१,७३.७४ ज ११४६ पिलंघ (प्र - लङ्घ) पलंघेज्ज प ३६१६१ पलंडु (कन्द) (पलाण्डुकन्द) प ११४८१४३ पलंब (प्रलम्ब) प १३०,३१,४१,४६ ज २११५; ३१७८,५१८,७११७८ सु २०१८ पलंबमाण (प्रलम्बमान) ज ३१६,६,२२२:५।२१, पलवमाण (प्रलपत्) उ ३।१३० पलास (पनाश) प ११३५।१ ज ४।२२५११ पलिओवम (पल्योपम) प १।२४,४१३०,३४,३६, ४०,४२,४३,४५,४६,४८,४६,५१,५२,५४, १०४,१०६,११०,११२,१२४,१४६,१५१, १५५,१५७.१५८,१६०,१६२,१६४,१६५, १६७,१७१,१७३,१७७,१७६,१८०,१५२, १८३.१८५,१८६,१८८,१८६,१६१,१६२, १६४,१६५,१६७,१६८,२००,२०१,२०३, २०४,२०६,२०७,२०६,२१०,२१२,२१३, २१५,२१६,२१८,२१६,२२१,२२२,२२४, २२५.२२७.२२८,२३०,२३१,२३३,२३४, २३६,६१४३,१२।२४,१८।४,६,१०,१२,६०, ७० से ७२,२०१६३:२३१६१,६४,६६.६८,७३, ७५ से ७७,७६,८१,८३ से ८६,८८ से १०, ६२,६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११७,११८,१३४,१३५,१३८,१४०,१४२. परिहारविसुद्धियचरितपरिणाम (परिहारविशुद्धिकचरित्रारिणाम) प १३।१२ परिहावेतच (लरिहारयितव्य) सू८।१ परिहित (परिहित) सू२०। Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७८ पलिभाग-पविज्जुयाइत्ता १४३,१५१ से १५३,१५५ से १५७,१६०, ४०,५५ पवत्तति प १६१४३ १६१,१६४,१६६ से १६६,१७१ से १७३ पवत्त (प्रवृत्त) ज ३।११५,१२३ ज ११२४,३१,४५ से ४७, २१५,६,४४,५२, पत्ति (प्रवनिन्) प १६६५१ ५६,५६,१५६,१६१, ३.१६७,२२६;४।२२, पवत्ति (प्रवृत्ति) ज ४१२३,३८,६५,७३,६०,६१ ३४,५४,६०,६१,६४,८०.८५,८६,६७,१०२, पवयण (प्रवचन) प १।१०१५५,११ सू २०१६।४ १४२,१६१,१६६,१६७१३,१७७,१८६,१६६, पवर (प्रवर) | २३०,३१,४१,४६ ज ३७,६, २०८,२६१,२६६,२७०,२७२,७१८७ से १६६ १२,१५,१७,२१,२२,२४,२६,३१.३२,३४ मू ६।१८११८१२५ से ३६ उ ३.१६,८५, से ३६,३६,४७,५६,६४,७२,७७,७८,८१, १२४,४।२५ ८५.८८,६१,१०८ से १११.११३,१३३,१३८, पलिभाग (प्रतिभाग) प १२।२७,३६,३७,१५३५० १४५,१६७।५,१७३,१७५, १७७,१७८,१६६, ज २६५ २२२, ५३५,७,४६,५८ सू २०७२ ११७, पलिभागभाव (प्रतिभागभाव) प १७१५०,१५२ १६,२२,२४,१२३,१४०।४।१२,१३,१५; पलिमंथ (परिमन्थ') प ११४५११ ५११८ पलिय (पलित) ज २११५,१३३ पवह (प्रवह) ज ४।३६,४३,७२,७८,६०,६५, पलियंक (पर्यङ्क) ज ११८,४८,४।५५,६२,६८, १७४,१८३,२६२, ६।१८ १६७,१६६,७१३३१२ पवा (प्रपा) ज २१६५,५१५७3 ३१३६ पलुम (पलुआ) प १४४८१६ सन की जाति का एक पवाइत (प्रवादित) प २१३१,४६ पौधा पल्ल (पल्य) ज २६ पवाइय (प्रवादित) प २१३०,३१,४१ ज ११४५, पल्लग (पल्यक) प ३३।२० ज ४१५७ ३.१२,७८,५२,१८०,१८५,१८७,२०६,२१८; पल्लल (पल्वल) २१४,१३,१६ से १६,२८ ५।१,५१६७१५५,५८,१८४ सू १८६१३, पल्हत्थ (पर्यस्त) ज ३३१०५ १६।२३.२६ पल्हत्थमुह (पर्यस्तमुख) उ १११५, ३१६८ पवात (प्रपात) उ ५५ पल्हव (पल्हव) प ११८६ पवादित (प्रवादित) ज ३.२०६ पल्हविया (पल्हविका) ज ३।११।१ पवाय (प्रभात) ज २।३८,३१८८४२३,३८,४२. पल्हायणिज्ज (प्रह्न दनीय) १७११३४ ज २।१८, ६५.६७,६८,७१,७३,६० से १४ १८५ पवायबहुल (प्रपातबहुल) ज १११८ पवंच (प्रपञ्च) प २१६४ पवाल (प्रवालय ११२०१२,११३५,३६:११४८।१५, पवग (प्लवक) ज २१३२ २५,६३; २१३१ ज २१२४,६४,६६,१३१,१४४, पिवड (प्र-+पन्) पवडइ ज ४।२३ से २५,३८ १४५,१४६,३।३५,११७,१६७।८ से ४०,६५ से ६७,७३ से ७५९९० से १२ पवालंकुर (प्रवालाकुर) प १७.१२६ पवडेज्ज उ ३१५५ पवालि (प्रवालिन) ज ७।११३ सू १०११२६।३ पवडणया (प्रपतन) प १६:५३ पविचरिय (प्रविचरित) ज ४१३ पवण (पवन) प २।३०।१ ज ३।३५ १०६; २५ पिविज्जुय (प्र- विद्युत्) पविजुयाइस्सइ पिवत्त ( प्रयतंय्) पवत्तड १६८,१६५३६ ज ११४१ से १४५ पविजुयायंलि ज ३।११५ १. वनस्पतिकोश में हरिमन्थ शब्द मिलना है। पविजुयाइत्ता (प्रविद्युत्य) ज २११४१ Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पविज्जुयायित्ता-पसत्य पविज्जुयायित्ता ( प्र विद्युत्य ) ज ३।११५ पविट्ठ ( प्रविष्ट ) प १५११११, १५१३६, ४०.४२ ज ३।१०५,१७८.२२३७।१७८ पविट्ठित्ता ( प्रविश्य) सू १०।१३६,१३।५,६ / पवित्थर ( प्र + वि - स्तु ) पवित्थरइ ज ३७६, ११६,११८ पविभत ( प्रविभक्त) ज १११८, २०, ४८, ४११६७. २१५ पविभत्ति (प्रविभक्ति) सू १५/३७ पवियरय ( प्रविचरित) ज ४१३, २५ पवियारण ( प्रविचारण) प १|१|७ पविरल ( प्रविरल ) ज २।१३३,५१७ ( पविस ( प्र + विश् ) पविसंति ज ३।१८३ परिसंत ( प्रविशत् ) चं ४२ से १८१२; १६२२४ परिमाण ( प्रविशत् ) ज ३१२०३७।१३,१६,२३ से २५, २८ से ३०,७२,७८, ८४ सू ११२, १४, १६,१८,१६,२१.२४, २७:२१३ ६ १ १३/६ से १०,१४ से १६ √ पवच्च ( प्र | वच् ) पवुच्चइ सू ५।१ पवूढ ( प्रव्यूढ ) ज ३६७, १६१,४१२३, ३५, ३८,४२, ६५,७१,७३,७७,६०,६१,६४,१७४, १८३, १९५,२६२ पस ( प्रवेश ) ज १११६,३८,३०१२,४१,४६,५८, ६६,७४,७७, १०६, १४७, १६८,२१२,२१३; ४१०, ११५, १२१,२१७ उ५१४३ पव्व (पर्व) प ११४८|४७ ११।२५ ज ७ १०६ से ११० सू १०।१२७:१२।१६, १७, १३ । १,२ पवत्त ( प्रवजितम् ) प २०१७,१८ उ ३१५०; ५३२ rease ( प्रव्रजित ) ज २२६५.६७,८५,८७ उ २६; ३११३,२१,५०,५५, ५८,६०,७६,७७,७९, ११३, ११८, ५३८ पव्वंस (दे० ) उ ५ २५ गिशिर ऋतु par (पर्वक ) प १०३३३१,११४१,१।४८।४६ ज २११४४ से १४६; ३।३१ √ पव्वज्ज] ( प्र + व्रज्) पज्जहि उ५।४३ पव्वज्जा ( प्रव्रज्या ) उ ३११६६ पव्वत (पर्वत) २३२,३६,५०,५११७११११ ज ११४६; ३ । २२४ सू ५।१; १६ २६ पव्वतराय ( पर्वतराज ) सू १६ २३ पति ( पर्वतेन्द्र ) सू ५। १ पव्यय ( पर्वक ) प ११४२११ पव्यय (पर्वत) प ३३, ३५, ४३, ४४; १६।३०; १७/१०६ ज १/१६,१९,२०,२३ से २५,२८, ३२, ३३,४६।१,४७,४८,५१, २१३१, ६०, ११७, ११८,११६,१३१,१३३,३।१,६१,८१,१३०, १३१,१३५ से १३७, २२४,४१२३, ३८,४८, ५७,५८,६०,६५,७१,७३, ८४, ६०, ६१,६४, १०३,१०६, ११०,१११,११३,११४,१४२, १६०,१६२,१६३,१६७,१६८, १७२,१७२, १७५,१७६,२००,२०५ से २०६,२१२ से २१६,२२०,२२१, २२५,२२६,२३४, २३५, २३७,२३९ से २४१, २५३, २५४, २५७, २५६, २६० से २६२, ५/४४,४७, ४८, ४९, ५५; ६।६।१; ६१०,१६,२३, २४,७१८ से १३,३१,३३,५५, ५८,६७ से ७२,९१,९२,१७१ ४१४, ७, ७ १; ८११८५ उ ३३५५,५५,६ √ पव्वय ( प्र + व्रज् ) पव्वयाइ उ ३।११२ पव्वयामि उ ३।१३;४।१४ पब्वयाहि उ ३।१०७ पoar (पर्वतक ) ज १११३ पत्रबहुल (पर्वतबहुल ) ज १०१८ पव्वयराय ( पर्वतराज ) ज ७।५५ सू ५।१७ १ पव्वयसमिया (पर्वतस मिका) ज ११२३, २५, २८ पत्रयाउय ( एर्वायुष्) ज ५।१६ राहु ( पर्व राहु ) सू २०१३ पसंत (प्रशान्त ) ज २१६८५/७०२६ दिल ( प्रशिथिल ) प २४६ & पसण्णा (प्रसन्ना ) उ १।३४,४६,७४ पत्त (प्रसक्त) ज ५१२६ पत्थ ( प्रशस्त ) प १७ १३३,१३४,१३८, २३५६, १०६,११६, ३४।१३ ज ११३७ २ १५; ३/३, ६ Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० १८,३५,९३,१०९, १८०,२२२, २२३,७११७८ पसय (दे० ) प ११६४ ज २१३५ पसर ( प्र + सु ) पसरइ उ ३५१ सरई ११०१७ पसरिता (मुख्य) उ ३१५१ पसव (प्र+सू) पसति ज २०४९ / पसार ( प्रसारय् ) पसारे उ३।१२ पसासेमाण (प्रशासवत्) ज ३१२५२१११ पसिण ( प्रश्न) ज ७।२१४४३२९ परिय (प्रमुख) ज ३३५ पसु (पशु) प ११:४३३६,४८,५० पसूय ( प्रसूत) ज ३११०६ उ ३।४८, ५०, ५५ फ्लेटो (श्रेणी) ज ५३२ पसेणइ ( प्रसेनजित् ) ज २२५६,६२ पलेणी (प्रणी) ज ३११२,१२,२८,२९,४१,४२, ४९, ५०, ५८,५६,६६,६७, ७४, ७५, १४७, १४८, १६८, १६६१७८, १०६१८८२०६,२१०, २१६,२१६,२२१ यह (पथ) ज २९१८४,१८८२१२.२१३५।७२, ७३ १६।२२।१५ ३ १६८ पहंकरा (भरा) ज ४२०२१२ पहकर (दे०) ज २०१२६५:२०१७,२१,१७७ पहगर (दे० ) ज ३१२२,३६,७८ पहत ( प्रहत ) ज २।१३१ पहरण (प्रहरण) ज ३१३१,३५,७७, १०७,१२४, १६७१९, १७८४११३७ उ ११३८ पहरणरयण (प्रहरणरत्न) ४३१३५ पहराया (भाराशिका प्रहारातिगा ) प १२८ पहव (प्रभव) प ११।३० पहसिया (प्रहसित ) प २२४६ ११४२,४४, २२१७११७६ सू १८३८ पहा (प्रभा ) प २०३१ ज ११२४ , पहाण (प्रधान) ज २।१५,६४,१३३३३३,३२, ११७१.१३८, १७५३ ७ १७५ पहार (प्रहार) ३|१०६ २०१३१,१३४ सय उन्भूय V पहार ( प्र + धारय् ) पहारेत्थ ज २६; ३, १८३१८८ पहारेमाण ( प्रधारयत् ) प ३४१२४ पहाविय ( प्रधावित) ज २०६५ पहिय ( प्रथित) ज ३१७,१८,२१,११,१३,१७७. १८० पहीण (प्रहीण ) ज २२८८३२२५ यह (प्रभु) ज ७११६१२ पाई (पाची ) प १२४४१ मरकतपत्री पाइक्क (दे०) ज २२६५ पाईण (प्राचीन ) प २०१०,५० से ५२.५४ से ६२ ज १२०,२१ से २५,२८,३२,४८३११, १२६।४४।१, ३,५५,६२,६१,८६,८८,६८, १०२. १०६,१४१,१६२.१२७.१२.१७२, १७८१८५,१८,१११, २००.२०३२०५ २१५,२४५, २४१, २५१,२६२, ६८, १३१०१. १०२८११ पाईप डिणायता (प्राचीनापाचीनायता ) सू १।१६६ २।११०३१४२, १४७, १२/३० पापडीणायता (प्राची- पाप चीनायता ) प २५० से ६२ १२० पाण पडणाया (प्राचीनापाचीनायता ) ज ११२०; ३११,४१,२,८६,८०,१८,१०० पाणवाय (प्राचीनवात) प ११२१ पाउण ( प्र + आप ) पाउण उ ३११४:५३६ पाउणति प ३६९२ पाउस ५१४३ पाणिता ( प्राप्य ) प १६१२२२२२५ २।१२:३।१४४।२४ : ५१२ पाउपाय (प्रभात) ३१६६३१४८ ५०५५,६३,६७,७०.७२,१०६,११८ √ पाउब्भव ( प्रादुन् । भू ) पाउदभभतिज ५।२७ ५।२२,२६१।१२१ उभाउ ३।२६ पाउन्भविवा ज ३३१०४ पाउभविस्य ज २।१४१ से १४५ पाउन्भवमाण ( प्रादुर्भवत् ) ज ५२८ पाय (प्रादुर्भुत) ३११०५.११३.१२५: Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाउभवित्ता-पादुम्भ ९८१ ५१७४ सू ११४ उ १।२४,३४,४०,४३,७४; ३३५७,६२,६५,६९,७२,७५,८१,१४३,१५६ पाउभवितए (प्रादुर्भवितुम्) ३११३ पाउया (पादु) ज ३१६,१७५; श२१ पाउस (प्रावृष) ज७१२६ १२११४ उ ५२५ पाओ (प्रारम्) - १ पाओवगध (प्रोपगा) उ ।११ पाओसिया (प्रादोपिकी) २२१४६,५६ पागड (प्रट) ज ३१३ च ११३ पागडभाव (कटभाव) ज २१६८ पागडिय (प्रकटित) २१४८,४६ पागढि (प्रापिन् ) ज ५॥५,४६ पागत (कृत) सू १६२२१३ पागलग (पा शासन) । २।५० ज ५११८ पागार कार) प२३०,३१,४१ ज ३११; ४।११४,११६, ७।१३३१२ पागारच्छाया (प्राकारच्छाया) सू ६१४ पाभारसंठिय (का संस्थिः ) सू १०।४३ पाड (पालय) पाडेइ उ ३१५१ पाडेंति ज ५११६ पाडण (वन) उ११५१,८६ पाडल (माटल) ज ३।१२,८८,५१५८ पाहता(टला)६ १३७५ पापुडाटलिपुट) ज ४।१०७ पाधिएकक (प्रक) ३१११८,४१२२ पउिसए ( विनुम) उ ११५१,७६.७७ पाडियंतिथ (प्रात्यधिक) ज २५७ पाउिवया (हिप) सू २०६३ पाडिहारिय (पानिहारिक) । ३६।६१ पाडेता (पातयित्वा) ज ५११६ उ ३१५१ पाढा (ठा) १९८८१४, १७।१३१ पा (प्राण) पश६४, ३६।६२,७७ ज २।१३१, ३११०८ से १११, २१२ पाण (प्राण, न) ज २१४११,२ पाण (पान) उ ३५०, ५५,१०१,११०,११४,१३४; पाणक्खय (प्राणक्षय) ज २।४३ पाणत (प्राणत) ११११३५ पाणम (प्र-+अन्) याणमंति ॥ ७१ से ४,६ पाणय (प्राणत) १२१४६,५८,५९,५९।२,६३; ३।१८३, ४१२५८ से २६०।६।३६,५६,६६; ७.१७:१५1८८,२११७०२८1८४;३३।१६; ३४११६,१८ ज ५१४६ उ २१२२ पाणय (पानक) उ ३।११४:४।२१ पाणयग (प्राणतज) ज ५१४६ पाणयव.सय (प्राणतावतंसक) प २५८ पाणाइवातकिरिया (प्राणातिपातक्रिया) प २२.१ पाणाइवाय (प्राणातिपात) प २२१६ से ११,२१ से २३ पाणाइवायकिरिया (प्राणातिपातक्रिया) प २२१६, ४६,४७,५०,५२,५७,५६ पाणाइवायविरत (प्राणातिपातविरत) प २२१८३, ___ ८४,६१ से १४,६६ पाणाइवायरमण (प्राणातिशतविरमण) प२२२७७ से ७६ पाणातिवालकिरिया (प्राणातितक्रिया) प २२१६ पाणि (प्राणिन ) ज ३.१७८ पाणि (पाणि) ज ५१५ उ ११११ से १३,३०,३२; २१७,४१८,५।१२,२५ पाणिग्गहण (पाणिग्रहण) उश१३ पाणिय (पानीय) उ ३।१३० पाणियग (पानीयक) ज २११३१ पाणिलेहा (पाणिरेखा) ज ११५ पाणी (पाणि) प ११४०।४ पात (प्रातस्) सू १०१५,१३६ पाती (पात्री) ज ३१११,५१५ पाद (पाद) १७.१११ ज ४११३ पादपीढ (पादपीठ) ज ३११७८ उ११११५ पादीणपडीणायया (प्राचीनााचीनायता) ज १११८ पाभ (पा-दुर् : भू) दुष्यति १३४।१६,२१ Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ पादो-पास पादो (प्रातस) सू २१ पारगामि (पारगामिन् ) ज ३७० पादोसिया (प्रादोषिकी) प २२॥१,४,५६ पारणग (पारणक) उ ३१५१,५३,५४ पामोक्ख (प्रमुख,प्रमुख्य) ज ११२६; २१७४,७७; पारस (नारस) प २८६ ४११३७ उ ५११०,१७,१६। पारसी (पारसी) ज ३३१०२ पाय (पाद) ज ३११२५,१२६,२२०,२२४:५१५,७।। पारिणामिया (पारिणामिकी) उ ११४१,४३ सू २०१६१६ उ १.११,१३,३० से ३२,७१, पारिप्पन (पारिप्लक) ५११७६ १४:४।८.२१:५।१२ पारियावणिया (पारितापनिकी) प २२११,५,५०, पाय (प्रातस्) सू १०।१३६ । ५२,५६ पायचारविहार (पादचारविहार) ज २१३३ पारेत्ता (पारयित्वा) ज ३१२८ पायच्छित (प्रायश्चित्त) ज ३७७,८१,८२,८५, पारेवत (पारापत) ११६५५, १७१३२ १२५,१२६ सू २०१७ उ १११६,७०,१२१ पारेवय (पारापत) ६११५९ ज ३३५ ३।११०,११५,५११७ पारेवयगोवा (पारापतग्रीवा), १७।१२४ पायत्त (पादात) ज ३।१७८ पाल (पालय) पानयाहि ज ३।१८५ पालेंति पायताणीय (पादातानीक,पादात्यनीक) ज ३११७८ ज १२२,५०,५८,१२३,१२८:४११०१ पायत्ताणीयाहिवई (पादातानीकाधिपति, पाले हिति ज २११४८ पादात्यनीकाधिपति)ज २२,२३,२६,४८ पालइत्ता (पालयित्वा) ज १८८ से ५२,५३ पालंब (प्रालम्ब) ज ३१६,६,२२२:५।२१ पायत्तिय (पादातिक) उ १११३८ पालक्का (पालका) प ११४४११ पायददरय (पाददर्द रक) ज ५१५७ पालण (पालन) ज ३१८५,२०६ पायपीढ (पादपीठ) ज ३१६५२१ उ १५११५ पालय (पालक) ज ५।२८,२६,४६३ पायमूल (पादमूल) उ ३।१२५ पालियायकुसुम (पारिजातकुमुम) १७१२६ पायरास (प्रातराश) उ १११०,१२६,१३३ पालेत्ता (पालयित्वा) ज १।२२ पायव (पादप) ज २।६५,७१, ३।१०४,१०५ पालेमाण (पालयत् ) ए २१३०,३१,४१,४६ उ १११,६१,३१५६,६४,६६,६८,७१,७४,७६ ज श४५,३।१८५,२०६,२२१:५११६ पायवंदय (पादवन्दक) उ १७०४।११ उ १६५,६६,७१,६४,१११,११२,५।१० पायविहारचार (पादविहारचार) उ ३।२६ पाव (प्र+आप) पाये प २१६४।१५ पायसीस (पादशीर्ष) ज ४११३ पाव (पाप) म १११०११२,१११८६ पायहंस (पादहंस) प १७६ पास्यण (प्रवचन) उ ३३१०३,१३६,४।१४।५।२० पायाल (पाताल) ५२११,४,१०,१३ पाववल्ली (पावकवल्ली) ८ ११४०१२ पायावच्च (प्राजापत्य) ज ७/१२२१२ सू १०१८४१२ पावा (पावा) प ११६३३५ पायीण (प्राचीन) ज २१५३ कपास (दश) पासइ ११७१०८ से ११०, पायोवगय (प्रायोपगत) ज ३१२२४ ३०१२८ ज २१७१,६०,६३,३३५,१५,२६,३१, पार (पारय) पारेइ ज ३१२८,४१,४६,५८,६६, ३६,४४,४७,५२,५.६,६१,१०६,११६.१३१, ७४,१३६,१४७,१८७ १३७,१४१.१७३,५१३,२१,२८,६३ उ १११६; पारगत (पारगत) प २१६४१२१ ३।७,४११३,५१२२ पासउ ज २१ मंति Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पास- पिंगायण प २।६४।१३; १५/४६ से ४६, ३३२ से १३, १५ से १५; ३४ । ६ से ६,११,१२ ज ३।१०५, ११३ ११३६ पासति १५/३७, ४१, ४४, ४५, १७ १०६ से १११,२३।१४;३०/२५ से २८ ३६३८०, ८१ पास ज ३।१२४ वासिज्जा उ १११५ पासिहित ज २।१४६ पासिहिसि उ ११२२ पासेइ उ १।५७ पासेज्जा उ ११२१ पास (पास) १८६ पास (पा) ज २०१५; ३१३२, ४। १४२,२०२,२१२ ५।१७,४३,४६,६०,६६, ७ ३१,३३ सू ४/३,४; २०१२ उ ३।१२,१४,२१,२८,२६,४६,५१,७६; ४१०, ११,१३,१५,१६,२०,२८ पाश (पाश) ज ३|१०६ पडबहुल (पाण्डवल ) ज १११८ पासंदधम्म (पापण्डधमं ) ज २२१२६ पासंग (पाशक ) ज ७११७८ पासग्गाह (पाशग्राह) ज ३।१७८ पाणया (दर्शन, पश्यत्ता) प ११७,३०१, ५, ८, १० पासत्यविहारि (मास्थविहारिन् ) उ ३११२० पासमण (पश्यत् ) ज २२७१ पासवण (प्रस्रवण ) १८४ पासाईय ( प्रासादीय, प्रासादिक ) प २२३१,४८,५६, ६३ ११२३,४१, २०१५, ४१३, ६, १३, २५, २६, ३३,४६, १४६६ ५६२उ ५१६ पासाण ( पाषाण ) ज ३११०६,४३,२५,७११३८ पासाद (प्रसाद) २२६५ पासादच्छाया (प्रासादच्छाया ) सू ३४ पासादसंठित ( प्रासादसंस्थित) सू ४२ पासादीय (प्रासादीय, प्रासादिक ) प २०३०,४१,४६, ६४ ज ११८, ३१२।१२.१४,४।२७ १११ उ ५१४,५ पासा ( प्रासाद) ज ११४२, ४३ २२०, ६५, ३।३२, ८२,१८७,२१८,२१६, ४३, ४९, ५०, ५३, ५६, १०६,११२,११६,११६, १२०, १४७, १५५, १५६, २२१ से २२४,२२६,२३५,२३७,२३८, २४०, ६८३ २४३,५११६, २५ उ ११४६, ६४; २६; ५१३, २०,२७,३१ पासायवडेंसय ( प्रासादावतंसक ) ज ४११०२,११६, २२१,२२२,२२३११,२२४।१ पासि (पाव) ज १२३,२५,२८,३२,३१७६; ४११,४३,६२,७२,७८,८६,६५,६६, १०३,१७८, १८३,२००,२०१,५१४६,६०,६६ पासि (द्रष्टुम् ) प ११४८५७ पासिकाम ( द्रष्टुकाम ) प २३|१४ पासित्ता ( दृष्ट्वा ) १२३।१४ ज २६० उ १।१६; ३।१०१, ४११३:५।१३ पासित्ताणं ( दृष्ट्वा ) उ १४३३२२८ पासियस्व ( द्रष्टव्य ) प २३|१४ पासेत्ता ( दृष्ट्वा ) उ ११५७ पाहाण ( पाषाण' ) ज ५ १६ पाहुड (प्राभृत) ज ३२८१ चं ३२, ३, ५१४ सू १७; ६२४,२५,१०११७३ पाहुडस्थ ( प्राभृतस्थ ) सू २०१६ पाहुडपाहुड (प्राभृतप्राभूत) चं ५।४ सु ११६ पाहुणिय ( प्राधुनिक) ज ७ १८६१ सू २०१८ पाय ( प्राभृत) १५० पि (अपि) उ३।३० पिs (स्तु) उ ११६१; ५।४३ fusदेवया (देवता) सू १०१८३ पिड ( पितृ) ज ७ १३०, १८६४ उ ११५२,५४, ७६,७९,३१५१,५६ fusसेकण्ड (कृष्ण) उ ११७ पिंगल ( पिङ्गल) ज ३१६, १६७४,२२२ पिंगलक्ख (पिंगलाक्ष ) ज ७ १७८ पिंगलक्खग ( पिंगलाक्षक) ज २।१२ पिंगलग ( विगलक ) ज ३।१६७ पिगलय ( पिंगलक ) ज ३३१६७|१,१७८ सू २०१२, ८, २०१८१४ पिंगायण (गायन) ज ७११३२ । ३ सू १० १०८ १. दे १।२६२ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ पिंडय-गीइदाण पिंडय (पिण्डक) ज ६६६१ पिड़वाय (पिण्डपात) उ ५।४३ पिडित (ण्डित) घ २०६४।१५,१६ पिडिम (पिण्डिम) ज २११२५५ पिक्क (पत्र) प १७:१३३ पिखुर (दे०) ज ३१८१ पिच्छय (च्छिक) उ ११५६,६३,८४ पिच्छि (पिच्छिन्) ज ३११७८ पिट्ट (दे०) उ ३.११४ पिट्ठओ (पृष्ठतम्) ज ३।१०,११,८६,८७,१७६; पिढओउदग्गा (पृष्ठत उदग्रा) सू ६४ पिटठंत (पृष्ठान्त) उ ३१३ पिट्ठर (पृष्ठान्तर) उ २०१६; ५५ पिट्ठीय (पृष्ठ) उ ३१११४ पिदिठकरंडक (पृष्ठकरण्डक) ज २०१६ पिटिठकरंडग (पृष्ठकरंडक) ज २०४८,१५६ पिट्टिकरंडुक (पृष्ठकरण्डक) ज २१५२,१६१ पिट्टिकरंडुय (पृष्ठकरण्डक) ज २१५६ पिडग (गिटक) सू१६२२१४,५,६ पिडय (निटक) सू१६।२२।४,५ पिणद्ध (पिणद्ध) ज ३।६,७७,१०७.१२४,२२२ उ ११३८ पिणद्ध (नि- नह) पिणद्धति ज ३।२११ पिणद्धाव (पि+नाहय,पि+नि+धाय्) पिणद्धावेइ ज ५१५८ पिणद्धावित्ता (पिनाह्यगिनिधाप्य) ज ५१५८ पिणवेत्ता (दिनह्य) ज ३।२११ पितिपिंड (पितृपिण्ड) ज २१३० पित्त (पित्त) प ११८४ पित्तिय (पैत्तिक) उ ३।३५,११२,१२८ पिप्परि (पिपाली) प ११३६।२ पिप्पलिचषण (विष्पलिचूर्ण) प १११७६,१७.१३१ पिप्पलिया (पिलिका) प ११३७।२ पिप्पली (हिणली) ५१७।१३१ पिप्पलीमूलय (पिप्पलीमूलक) १७१३१ पिप्पीलिया (विप्पीलिका) १५० पिय (प्रिय) १२१४१, २८1१०५ ज २१६४,३१५, ६०,१५७,१८५,२०६ ; ५१५८ उ ११४१,४४; ३।१२८,५।२२ इपिय (पा) पियंति उ ३।६८ पिय (पित) उ १७२,८८,६२,४१२८ पियंगाल (दे०) १।५१ पियंगु (प्रियङ्गु) ५२।४०१६ पियट्ठया (प्रियार्थ) ज ३१५,११५,१२५ पियतर (प्रियतर) ज २१८,४।१०७ पियतरिया (प्रियतरका) प १७११२६ से १२८, १३३ से १३५ ज २०१७ पियदसण (प्रियदर्शन) ज ३।६,१७,२१,२८,३४, ४१,४६,१३६,१७७,२२२ सू २०१४ उ ५।५,२२ पियर (पित) ५ ११।१३,१८ पियस्सरता (प्रियस्वरता) प २३।१६ पिया (पितृ) ज २२२७ पिया (प्रिया) ज २।६६ उ ४८,६ पियाल (प्रियाल) ज १३५१२ पिरिली (पिरिली) ज ३।३१ पिलग (पिलक) ज २११३७ पिलुक्खरुक्ख (प्लक्षरूक्ष) ११३६१२ पिल्लण (प्रेरण) ज ३।१०६ पिव (इव) ज ३१२२ उ ११३८,३।५० पिवासा (पिपासा) उ ३.११४,११५,११६,१२८ पिसाय (पिशाच)११३२, २१४१ से ४३,४५ ४६६८५ पिसायइंद (पिश चेन्द्र) ५२१४२ से ४४ पिसायराय (पिशाचराज) प २१४२ से ४४ पिसुय (पिशुक) प १५० ज २१४० पिधान (विधान) ज ५१५६ पिहुजण (पृथक् जन) प ६४२६ पिहुल (पृथुल) ज २११५, ७३१,३३ सू ४।३,४, पोइगम (प्रीतिगम) ज ५।४६।३,७।१७८ पीइदाण (प्रीतिदान) ज ३।६,२६,२७,३६,४०, Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीइमण-पूच्छा ४७,४८,५६,५७,६४,६५,७२,७३,१३३,१३४, ३६८१ ज १७ सू १११४ १३८,१३६,१४५,१४६ पुक्खरद्ध (पुष्करार्ध) प १५२५५:१७११६५ पीइमण (प्रीतिमनस्) ज ३१५,६,८,१५,१६,३१,५३, सू१६२०२,५ ६२,७०,७७,८४,६१,१००,११४,१४२,१६५, पुक्खरवर (पुष्करवर)सू १९१२ से १६:२११३,२८ १७३,१८१.१८६,१९६,२१३,५।२१,२७ पुक्खरवरदीवड्ढ (पुष्करवरद्वीपार्ध) ५ १६।३० उ ११२१,४२,३।१३६ म १६०२१ पीइवद्धण (प्रीतिवर्धन) ज ७.११४।१ पुक्खरवरोद (पुष्करबरोद) सू १६०२८ से ३१ पीढ (पीठ) १३६६१ उ ३१३६ पुक्खरसारिया (पुष्करसारिका) प १६८ पीढग्गाह (पीठग्राह) ज ३.१७८ पुषखरिणी (पुष्करिणी) प २।४,१३,१६ से १६, पीढमद्द (पीठमद) ज ३१९,७७ २८,१११७७;२११८७ ज १।१३,३३,२११२; पीण (प्रीणय ) पीणेति ज ५१५७ ४।१४०,१५४,२२१ से २२४,२३५,२४३ पीण (पीन) ज २०१५ पुवखरोद (पुष्करोद) ज ५।५५ सू १६।२८ से ३१ पीणणिज्ज (प्रीणनीय) १ १७११३४ पुक्खल (पुष्कल) ज ४११६६ पीणित (प्रीणित) सू १२।२६ पीतय (पीतक) सू २०१२ पुक्खलकूड (पुष्कलकूट) ज ४११६८ पीति (प्रीति) उ १११११,११२ पुक्खलचक्कट्टिविजय (पुष्कलचक्रवति विजय) ज४।१६४,१६५ पीतिदाण (प्रीतिदान) ज ३।१५० पुक्खल विजय (पुष्कलविजय) ज ४११६७ पोतिवद्धण (प्रीति वर्धन) सू १०।१२४११ पीय (पीत) ज ३१२४,३१ पुक्खलसंवट्टय (पुष्कलसंवर्तक) ज २।१४१,१४२ पीयकणवीरय (पीतकरवीर) प १७११२७ पुक्खलावइचक्कवट्टीविजय (पुष्कलावतीचक्रवर्ति पीयबंधुजीवय (पीतबन्धुजीवक) ५ १७११२७ विजय) ज ४।२०० पीयासोग (पीताशोक) र १७११२७ पुखलाई (पुष्कलावती) ज ४१६६ पीलु (पीलु) 4 ११३५११ पुक्खलावईकूड (पुष्कलावतीकूट) ज ४११६६ पीवर (पीपर) ज २१५७.१०८ पुग्गल (पुद्गल) ५ २८॥३५ पीसिज्जमाण (विष्यमाण) ज ४११०७ पुच्छ (प्रच्छ) पुच्छड चं ११४ उ २०१२ पोहगपाय ('पोहग'पान) उ ३।१३० पुच्छिज्जति सू १०।६२ पूच्छित्सामि उ १११७,३२६ पुंख (पुख) ज ३।२४ पुंज (पुञ्ज) प २।३०,३१,४१ ज २।१०:३७,८८ पुच्छणी (प्रच्छनी) ५१११३७।१ ४।१६६:५७ पुच्छा (पृच्छा) प २१४४,४१५० से ५४,५४ से ६४, पुंडरीका (पुण्डरीका) ज ५१११११ ६६,६७,६६,७०,७१,७३,७४,७६,७७,८०,८१ पुंडरोगिणी (पुण्डरीकिणी) ज ४०२००११ से ८७.८६,६०,६२ से ६४,६६,६७,६६,१००, पंडरीय (पुण्डरीक) ५ २१४८ ज ३।१०:४१४६,२७४ १०२.१०३,१०५ से ११२,११४ से १३०, पुक्कार (पुक्का रय) पुक्कारेंति ज ५१५७ १३२ से १३६,१४१ से १४८,१५० से १५७, पुक्खर (पुष्कर) ५ १५६५५३१ ज २१६८ १५६ से १६४,१६६,१६७,१६६,१७०,१७२, सू १६२१३१ १७३,१७५ से १८२,१८४ से २०६,२०८, पुक्खरकणिया (पुष्करकणिका) परा३०,३१,४१, २०६,२११,२१२,२१४ से २६३,२९५,२६६, Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुच्छिज्ज-युद्धविच्काइय .६६६१,१५१,१५१३६ से ४०,४५,२०१३६; २२१५६२३।१३ से २३:२८।११,१२,५७,५८ ज०१८,२०,२३,४८3३३३५,४१,५५,६२, ८१,८६,६८,१०८,१७२, ६।१,३,७१४०,५०, २९८५१३,१५,१६,५५.५८,६२,६७,७०, ७३,८८,६६,१३०,१३३,१३५,१३७,१३६, १४२,१४४,१४६,१४६,१५३,१५६,१५६, १६२,१६५,१६८,१७१,१७३,१७६,१८०,१८३, १८६,१८६,१६२,१६६,१६६,२०२,२०६, २१०,२१३,२१७,२२०,२२३,२२७,२२६, २३३,२३६,२३८,६१२४ से २६,२८ से ४२, ७४,७६,७७,११०,११२,६४२२;१०१७ से १३, २२ से २४;१२।२४,३३,१४।१५,१५१४ से ६, ६,१०,४२,५७,८१,८२,८५,८६,६२,६३; १६.४,६ से ८,१७:१४,१७,२८,२६,३३,४१ से ५५,६५,१०२,१०४,१३१ से १३४,१५८, १६२,१६४,१८१२६,६२,११२,११८,१२१, १२३,१२४,१२७:१६।२,३,५,२०१४.७,१६, ३०,३५,४१ से ४४,४६ से ४८,५३,५४; २११३७,६७, २२१६८,६६,६५,६८२३६४८ से ५०,६५,६६ से ७६,८१,८३ से ८६,८८ से ९०,६५,९८,६६,१०१ से १०४,१०६,१११ से ११८,१२८,१२६,१३१ से १३३,१५४,१७३; २४।६,८,२६।६,१०,२८७६ से ६७,६६, १०६,११०,१२६,१४५,२६१८,११,२०,२१; ३०।१२,१८,२०,२२,३१।२,३,६,३२१३,४,६, ३३१७ में ६,२० से २६,२८,२६,३२,३३,३६, ३४।७ से ६,११,३५।३.११,१६,२२,३६१३४, ५०,५१.५५ से ५७ ज ४।२०४,२१०,२५८, २५६७।६३.७४,७७,८३,८४,१०८,१४२ से १४४ सू ९३१०।१५१,१८११० से १३,३५, ३६:१९३५,८,११,१५,१६,२१,३१,३५,३८ उ २०१३;३१८,२१,२६,६४,१५६,१६६ ; ४।५; ५१२३ पुच्छिज्ज (प्रच्छ) पुच्छिज्जइ प ३।१२१ पुच्छिज्जति प १११८२,८३,८५,१७।३०; २११६१,२८।११५,११७ पुच्छिज्जति प२८॥१४५ पुठ्ठ (स्पृष्ट) ५ २६४११०,११,१११६१,६२, पुड (पुट) ज ५११४,१७ उ १५५,५७,६१,६२, ८०,८२,८६,८७,३।११४ पुढवि (पृथ्वी) प ११२०११,११४८३८११५३, २।१,२० से २७,३० से ३७,४१ से ४३,४६, ४८ से ५१,६३,६४,३१११ से २३,१८३:४।४ से २४,६१० से १६,४५,५१,७३ से ७८,८०; ८०१,२,६।८८,६१,६२,१००,१०६:१०१ से ३,११।२६ से २८,१५॥५५२,१६१२६; १७१३३१८११०७.११६.२०१६ से १०,३८ से ४२,४६,५६,२११५२,५६,६६,८५,८७, ६०:२२२२४; २८१२३,३०१२५ से २८, ३३१३ से ८,१६,१७ ज २।१६,१७,६८; ३१२२४; ४।२५४,७११२१४,२११,२१२ सू१०।१२६१४ पढधिकाइय (पृथ्वीकायिक) प १४१५,१६, २१ से ३,३१२,५० से ५२,५४,६० से ६३,६५ ७१ से ७४,७६,८४ से ८७,८६,६५,१५६ से १५८.१८३,४१५६ से ६४,६८,५१३,६,१०, ५२,५३,५५,५६,५८,५६,६२,६३,६।१६.५३, ६२,८२,८३,८६,८६,१०२,१०३,११५; ७।४;८१३;६।४,१६:१२१२०,२१,२३,२५,२६, १३.१६,१५१२० से २८,५३,५४,७२ से ७४, ७६.१३७;१६।१२,१७१६५.१०२,२०१२४; २।३७, २८१२८,२६।२० ज २०७२ सू २१ पुढधिकाइयत्त (पृथ्वीका कत्व) प १५।६६,३६।२२ ज ७१२१२ पुढविक्काइय (पृथ्वीकाक) प १२।३,२४; १५१५७,८५,१६।४१७।१८ से २२,४०,६०, ८७,६४,६५,६७,१०२,१८१२६,३२.३८,४०, पुढविकाय (पृथती माय) सू ११ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुढविक्काइयत्त-पुष्फबद्दलय १८७ ४२,५०।१६।२:२०६१३,२२,२४ से २६,२८, १४२ च ५१ सू १।६।११०२१ ३२,३५, २११३ से ५,२३,४०,७६,८० पुण्णा (पूर्णा) सू १०१६० २२॥३१,७३,२४१६:२८१२६.३० ३३ से ३६, पुण्णाग (पुन्नाग) ११॥३५१३ ज ३।१२,८८,५८ ३८,६६२६८ से १०,२०:३०।८,६,१८,१६ पुण्णिमा (पूर्णिमा) ज ७:१२५,१२७११,१३७ से ३११३,३४।३;३५१६.२०,३६१६,२५.२६, १४५,१५४,१५५,१६७।१ सु १०१६ से १७, १६ से २२,२६ पुढविक्काइयत्त (पृथ्वीकाविकत्व) प १५३१४१; पुण्णिमासी (पौर्णमासी) ज ७४१३८,१४१ च ५१ ३६१२६ सू१०७,८,१८,२०,२२,१२६२,१३६ से पुढविसिलापट्टक (पृथ्वीशिलापट्टक) उ ५।८ । १५६,१३।१ से ३,६ पूढविसिलापट्टग (पृथ्वीशिलापट्टक) ज ३।२२३ पुत (पुत) उ ४६ पुढविसिलापट्टय (पृथ्वीशिलापट्टक) उ ११ पुत्त (पुत्र) ज २१२७,६४,६६,१३३ उ ११०,१३, पुढविसिलावट्टय (पृथ्वीशिलापट्टक) ज १११३ १५,२१ से २३,३१,४३,९७,७२,७४,८२,८७, पुढवी (पृथ्वी) सू २।१,६१३,१८११ उ ११२६,२७, ६५,१०६,११०,११३,११४,१४६२१६,६,१८, १४०,१४१ २२,३१४८,५०,५५,११४ पुण (पुनर्) प६१८०।१ सू ११२० उ ११७ पुत्तंजीवय (पुत्रजीवक) प ११३५१२ पुणं (पुनर्) उ ३।१०२ पुत्तत्त (पुत्रत्व) उ ५३०,४३ पुणब्भव (पुनर्भव) प २०६४ पुष्फ (पुष्प) प १३५,३६:१।४८।१७,२७,४०,४१, पुणरवि (पुनरपि) प ३६१६४ ज २१६,३१८१; ४७,६३,२।३०,३१,४०।१०,४१,१५।२ ज २१८ ७११८,१२१ सू२।१ से १०,१२,१५ से १८,६५,१४५,१४६ ; ३।७, पुणव्वसु (पुनर्वसु) ज ७/१२८,१२६१३४ से ११,१२,२१,३४,७८,८५,८८,१०६,१८०, १३६,१४०,१४६,१६१ सू१०२ से ६.१३, २०६४।१६६,५७,२२,२६,४८,४६,५५% २४,४०,६२,६८,७५,८३,१०५,१२०,१३१ ७।३१,३३,३५,५५,११२१३,४ सू ४।३,४,६, से १३३,१५५,१६१,१११२ से ४ ७,६१०२०,१२६६३,४;१६।२२।२,१५; पुणो (पुनर्) ज ३।१०६ सू १६।२२ उ ३१६८ १६।२३,२०1८।६ उ ११३५,३१५०,५१,५३, ११०,११४:५६ पुण्ण (पूर्ण) प १४०१६ ज २१६०,१०३,१०६, पुष्फ (पुष्प) पुप्फति ज ३११०४,१०५ १०८,१७८,३१६,२२२, ४।३,२५,१७२११ १४६७४१७८ पुष्फकेतु (पुष्पकेतु) सू २०१८ पुण्ण (पुण) प ११०१२ ज ३१११७१५५,४६ पुष्फचंगरी (पुष्प 'चंगेरी') ३३१२५ ज ३।११; पुण्णकलस (पुर्णकलश) प २।३० ज २४३ ५७,५५ पुण्णचंद (पूर्णचन्द्र ) ज ३।३,११७ पुष्फचूला (पुष्पचूला) उ ४।२०,२२,२८ पुण्ण (भद्द) (पूर्णभद्र) उ ३१२११ पुप्फलिया (पुप्पलिका) उ ११५४।१ से ३, पुण्णभद्द (पूर्णभद्र) ए २१४५.४५।१ ज ४११६२११, २७,५१ १६५ उ १६.१६,१४४; २।१४,१६:३।१५६, पुष्फछज्जिया (पुष्पछादिका) ज ५१७ १५८,१६० से १६५.१६९.१७१,५१८ पुप्फपटलहत्थगय (हस्तगतपुष्पपटल) ज ३।११ पुषणभद्दकूड (पूर्णभद्रकूट) ज ११३४,४६:४।१६५ पुष्फपडलग (पुष्पपटलक) ज ५७ पुण्णमासी (पौर्णमासी पूर्णमासी) ज ७११२।२, पुष्फबद्दलय (पुष्पवादलक) ज २७ Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४।१ ८१ ६८८ पुष्फमाला-पुरिस पुष्फमाला (पुष्पमाला) ज ५१।१ ज १११६,१८,२०,२३,२४,३५,४१,४६,४८, पुप्फय (पुष्पक) ज ५१४६।३ ५१,३११,१४,१५,२२,२६,५१,५२,१६१,४११, पुप्फ (वासा) (पुष्पवर्षा) ज ५१५७ १८,२६,३५,४५,५५,५७,६२,७१,८१,८४,८६, पुष्फविटिय (पुष्पवृन्तक) प ११५० ६०,१०३,१०६,१०८,१२६,१५१११,१५३, युएफाराम (पुष्पाराम) उ ३।४८ से ५०,५५ १६२,१६७,१६६.१७२,१७८,१८१,१८२, पुप्फारुहा (पुष्पारोहण पुष्पारोपण) ज ३११२,८८ १८४,१८५,१६०,१६१,१६३,१६४,१६६, पुरफासव (पुष्पासव) प १७६१३४ १६७,१९६ से २०३.२०५,२०६,२०८,२०६, पुप्फाहार (पुष्पाहार) उ ३५० २१३,२१५,२१६,२२८,२३३,२३५,२३८, पुफिय (पुष्पित) उ ३१४६ २४३,२४५,२६२,२६५,२६६,२७१,२७२, पुफिया (पुष्पिका) उ ११५:३११ से ३,१६,२०, २७४,२७७,५८.१०,३६,४७,६।१६ से २४; २२,२३,८७,८८,१५३,१५४,१६६,१६७,१७०; ७.१७८ सू२।१८।१:१३।१२,१५,१५।८ से १३:१८११४ से १७, २०१२ उ ३१५१ पुप्फुत्तर (पुष्पोत्तर) प १७११३५ पुरस्थिमपच्चत्थिम (पौरस्त्यपाश्चाल) सू २१ पुरफुत्तरा (पुष्पोत्तरा) ज २११७ शक्कर की जाति पुष्फोदय (पुष्पोदक) ज ३१६,२२२% पुरस्थिमलवणसमुह (पौरस्त्यलवणसमुद्र) ज ४।२६८ पुष्फोवयार (पुष्षोपचार) ज ७१३३११ पुरथिमिल्ल (पौरस्तर) प १६१३४ ज ११२०,२३, पुष्फोवयारसंठिय (पुष्पोपचारसंस्थित) सू १०११३० ४८,२।११७,३।२६.६५,६७,६६,१३५,१५१, पुम (पुंस्) प १११५ से १०,२४,२६ से २८ १५६.१७०,२०४,२१४,४।१,२३.५५,६२,८१, पुमवयण (पुंस्वचन) प ११।२६,८६ ८६,९८.१०८,१४३.१४७,१५६.१७२,२२६, पुर (पुर) ज २१६४ २२७,२३७,२३८,२६२,५।१४,४४,७११७८ पुरओ (पुरतस्) ज ३।१२,८८,१७८,१७६,२०२, सू २।११०।१४७:१३।१३ २१७,४।५,२७,१२२,१२४,१२७,५१३१,४३, पुरवर (पुवर) ज ३१३२.३५,२२१ ४४,४६,५७,५८,६०,६६ उ ३१५०,११२:४११६ पुरा (पुरा) ॥ १।१३,३०,३३,३७,४१२ पुरओउदग्गा (पूरत उदगा) सू६।४ पुराण (पुराण) ज ३।१६७ पुरंदर (पुरन्दर) प २१५० ज ५:१८ परिभकंठमाओवगता (पूर्वकण्ठगापमता) सूहा४ पुरक्खड (पुरस्कृत) स ८१ पुरिमड्ढ (पूर्वाद्धं) प १६।३० पुरजण (पुरजन) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६, पुरिमाल (पुरिमताल) ज २७१ ७४,१४७,१६८,२१२,२१३ पुरिमद्ध (पूर्वाद्ध ) प १६:३०;१७।१६५ पुरतो (पुरतम्) सू २।२ पुरिस (पुरुष) पश६०,६६,७५,७६,८१,८४; पुरत्याभिमुह (पौरस्त्याभिमुख) ज ३१६,१२,२८, २१६४११६,३।१८३,६७६;१६४८,५२,५४; ४१,४६,५८,६६,७४,१४७,१८८,२०४,२१६ १७.१०८,१०६,१११ ज ३१७,८,१५,१६,२१, २२२,५।२१,४१,४७,६० उ१।४१,३१६१ ३१,३४,३५,७,८१,१२५,१६७६४,१७३, पुरस्थाभिमुहि (पौरस्त्याभिमुखिन् ) ज ४।२३,३५, १७६,१७८,१८३,१६६,२००,२१२,२१३ चं ४। २ ८।२,२०७ उ १११७,१८,४४, पुरस्थिम (पौरस्त्य,पूर्व) प ३१ से ३७,१७६,१७८ ४५,१२३,१३१,३११०,१११।४।१६ से १८; Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसकर-पुव्ववेयाली ५१५,१५ से १८ पुरिसकार (पुरुषकार) गु २०६।३ पुरिसक्कार (पुरुपकार) ५ २३११६,२० ज २०५१, ५४,१२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४, १६०,२६३,३।१२६,१८८,७१७८ म २०११ पुरिसच्छाया (पुरुपच्छाया) ज २२,२५ मु २।३ पुरिसजुग (युरुपयुग) ज २८४ परिसवरगंधहस्थि (पुरुषवरगन्ध हस्तिन ) ज १२१ पुरिसवरपुंडरीय (पुरुष रपुण्डरीक) ज ५१२१ । परिसलिगसिद्ध (पुरुषङ्गिनिद्ध) ५१११२ पुरिसवेद ( पुरुषवेद) प १८१६१,२३३१४२,१८७; २८।१४० परिसवेदग (पुरुषवेदक) प ३३९७:१३।१४,१८,१६ पुरिसवेय (पुरुषवेद) प २३:१६,७४,८४,१४४ पुरिसबेयग (पुरुषवेदक) T१३।१५ पुरिसवेयपरिणाम (पुरुषवेदपरिणाम) प १३.१३ पुरिससीह (पुरुषसिंह) ज ५।२१ पुरिसादाणीय (पुरुषादानीय) उ ३।१२,२६,७६ ४।१०,११,१३,१४,१६ परिसोत्तम (पुरुषोत्तम) ज ५२१ पुरोष (पुनीप) उ ३३१३०,१३१,१३४ पुरेक्खड़ (पुरस्कृत) प १५८३ से ८५,८७,८६ से १०१,१०३ से १०६,१०८ से ११०,११२ से १२३,१२५ से १३२,१६५ से १४३,३६८ से पुव (पूर्व) प १६।२१:३६१६२ ज २१४,१६१; ३११८५,२०६,२२१,४।१३५,२३८७१३८, २१२ च ११३ सू ३।१:८।११८।१,२१ उ ११६६,१०६,११०,११३,११४ पुत्वंग (पूर्वाङ्ग) ज २४,७११७१ सु८११; १०१८६१ पुचंभाग (पूर्वभाग) गु १०१४,५ पुवकोडाकोडि (पूर्वकोटिकोटि) ज ३११८५,२०६ पव्वकोडि (पूर्वकोटि) प ४११७७,१०६,११३.११५, ११६,११८,११६,१२१,१३१,१३३,१३७,१३६, १४०,१४२,१४६.१४८:१८।४,६०,८१,८४, ८६.६६:२३७८,७६,१४७,१५८,१६२,१६५, १६६ ज २।१२३,१५१:३।१८५,२०६४।१०१ पुब्बग (पूर्वक) ११।४६ पुचितिय (पूरचिन्तित) उ ३१७६ पुषण्णस्थ (पूर्वन्यस्त) ज ५१४२ पुवण्ह (पूर्वह्नि) ज २०७१,८८ पुव्वदारिया (पूर्वद्वारिका) सू१०।१३१ पुब्बपडिवण्ण (पूर्वप्रतिपन्न) उ ३.८१,८२ पुब्बपोट्ठवया (पूर्वप्रीष्ठादा) मू १०।६४ पुब्बफग्गुणी (पूर्वफल्गुनी) ज ७१२८,१२६,१३६ पुदभद्दवया (पूर्वभाद्रपदा) ज ७।१२८, १२६,१३६, १३६,१४२ सू १०१६ पुत्वभव (पूर्वभव) उ ३१६,२१,२६,१४६,१५६, १६६,१७१४।५,२८ पुब्वभाव (पूर्व भाव) प २८१६८ से १०१ पुब्दरहतगुणसेढीय (पूर्वरचितगुणश्रेणिक) प ३६।६२ पुस्थरत (पूर्वर.) उ ११५१,६५,७६,३१४८,५०, ५५,५७.६६,७२,७५,७६,६८,१०६,१३१ पुववण्णिय (पूर्ववणित) ज २।५२,१६१,३११७१; ४।६६,१०१,१०६,१६०,२३७,२४३,५६,७; ७।३५,१६७ पुनविदेह (पूर्वविदेह) प १६।३०१७३१६१ __ज २१६, ४।६६,६६,२१३,२६३११ पुन्ववेयाली (पूर्व 'वेयाली') प १६१४५ पुरेडिय (पुरस्कृतक) प १५३५८१२ पुरोहियरयण (राहिसार) ज ३३१७८,१८६, १८८,२०६,२१०,२१६,२१६,२२० पुरोहियरयणत (पुरोहितल) २०५८ पुलग (दुलक) ११५८ ज १५:१५ पुलय (पुलक) : १।२०।४ ज ३.३५ पुलाकिमिया (दे०) प १४६ पुलिद (जिन्द) ११८६ पलिदी (हिन्दी) ज ३३१११२ पुलिण (पुलिन) ज ४।१३ । २०१७ पुलिय (पुलित) ज ३।१७८,७।१७८ Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० पुवसंगइय-पेच्छाघरमंडव पुब्वसंगइय (पूर्वसांगतिक) उ ३१५५ ६०,६१,११३,११६; २११४४ से ४७,४७११, पुश्वसयसहस्स (पूर्वशतसहस्र) ज २१६४,८७,८८; २,६.२११६८,२४।१४,१५, २५२,४,२७१२,६; ३।१८५,२२५ २८।२७,७३ से ७६,१२१,१२४,१२७ से पृन्दाण पूवी (पूर्वानुपूर्वी) उ ११२,१७,३।२६,६६, १३२,१३६,१४३,१४५.;३६११७,३४ १३२,१४६,१५६; ४।११,५१३६ पुहत्तय (पार्थक्त्विक) घ १११८५ पुवा (पूर्व) सू १०१५,१२०,१११३;१२२२३ पुहवी (पृथ्वी) ज ३१३,३५, ५११०११ पुवापोट्ठवता (पूर्वप्रौष्ठपदा) सू १०॥५६ पूअफलीवण (पम्फलीवन) ज २६ पुवापोवया (पूर्वग्रीष्ठपदा) सू १०१४,५,६,२१, पूइ (पोई) प ११३५४३ २३,३१,८२,६६,१३१,१३२ पूइत्त (पुतित्व) ज २१६ पुवाफग्गुणी (पूर्व फल्गुनी) ज ७.१४०,१४८, पूइय (पूर्जित) ज ३।८१५१५ १५१,१६३ सु १०।२ से ६,१५,२३,४४,६२, पूजित (पूजित)उ ३१४८,५० ७०,७५,८३,१०६,१२०,१३१ से १३३,१५२; पूय (पूर्व) प १८४;२२० से २७ ज ३१२० १२।२३ उ ११५६,६१,६२८४,८६,८७ पुटवाभद्दक्या (पूर्व भद्र'दा) ज ७१४६,१५७ पूयथय (दे०) १११६५ सू१०।२,३,५,७५,१३१,१३३ पूयणवत्तिय (पूजनप्रत्यय) ज ५१२७ पुव्वामेव (पूर्व मेव) प ३६६२ उ ४।२१ पूणिज्ज (पूजनीय) सू १८१२३ पुवावर (पूर्वापर) ज १।२६,४१२१,१४२,२५६; पूयफली (पूगफली) ५ ११४३।२ ६।१०.११,१४,१५,१८ से २२,२६,७१४,६३, पूया (पूजा) उ ३१५१ ८७,११०,१८३ कपूर (पूरय्) पूरयंते ज ३१३१ पूरेड प ३६१८५ ज ७।११२१५ पुरेति ज ५११३ पूरेति पुत्वासाढा (पूर्वाषाढा) ज ७।१२८,१३६,१४०, मु १०1१२६५ १४६,१६७ सू १०।२ से ६,१६,२३,५३,६२, पूरग (पूरक) ज ३१८८ ७४,८३,११८,१३१ से १३५ पूरयंत (पूरयत्) ज २१६५,३१३१ पुटिव (पूर्वम् ) उ ३१११८ पूरिम (परिम,पूर्य) ज ३।२११ पुबिल्ल (पूर्वीय) ज ५।४१ पूरेत (रयत) ज ३१३०,४३,५१,६०,६८,१३०, पुयोववण्णग (पूर्वोपपन्नक) ६१७४४,६,१६,१७ १३८ से १४०,१४६,७११७८ पुस (पुष्प) ज ७।१२६।१ पूरेता (पूरयित्वा) ज ५।१३ पुस्स (पुष्य) ज ११३६,१४०,१४६,१६१,१६२ पूस (पुरुष) ज७।१२८.१३०,१८६।३ यु १०१४; सु १०।२,३,५,६,१३,२४,४१,६२,६८,६६, १२११६ से २३,२६ ७५,८३,१०६,१२०,१३१ से १३३,१५६; पूसफली (पुरुफली) ५११४०११ १११६१६।२२।१७ पूसमाणय (पुष्यमाणव) ज ३११८५ पुस्सदेवया (पुष्यदेवता) सू १०८३ पूसमाणव (पुष्यमाणव) २१६४,५३२ पुस्सफल (पुष्यफल) प १।४८४८ पेच्छणिज्ज (प्रेक्षणी) ज २०१५ पुस्सायण (पुप्यायण) ज ७/१३२१२ सू १०११८ पेच्छा (प्रेक्षा) ज २१२०,३२ पुहत्त (पृथक्त्व) प ७१३,६ से १११८१,८३,८४, पेच्छाघरसंठित (प्रेक्षागृहसं स्थित) मु४१२ १२।६१५।६,१८१४,१६,२४,३१,३६,४९,५४, पेच्छाघरमंडव (प्रेक्षागृहमण्डप) ज ३।१६३; Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेच्छिज्जमाह-पोलिंदो ९६१ ४।१२३,१२४;५।३३ १६:३३,३४,१७।२,२५, २१:१।१,६५,६६; पेच्छिज्जमाण (प्रेक्ष्यमान) ज २१६५:३।१८६,२०४ २३।१३ से २३:२८।२०,२२ से २४,३२,३४, पेज्ज (प्रेम) प १११३४।१।२२।२० ३६,३६ से ४२,४४,४५,४८,६६,६८ से ७१. पेज्जणिस्सिया (प्रयोनिधिता) १११३४ १०५,३४११११,३४१६.१६,२०,३६।५६,६१, पेढ (पीठ) ज ४११४३,२०८; ५१३ ६२,६६.७०,७३,७४,७६,७७.७६ से ८१; पेम्म (मेमन्) ज २१२७ ज १६, ३१६२,५२१,७,७।२११ सू ५।१; पेरंत (पर्यन्त) ज ११६ ; ३११२६।४।४।१४३, ७१,६१,२०१२ २४५,२४६,२५१७१७८ पोग्गलगति (पूद्गन्दगति) प १६१३८,४३ पेलव (पे१५) ज ३१२११:५।५८ पोग्गल स्थिकाय (पुद्गलास्तिका) ५३१११४ पेस (प्रेः) ज २२६ ११५,१२०,१२२ पेस (प्र. इ) पेसिज्ज इ उ ११२८ पेसेइ पोग्गलपरियट (पुदगल परिवर्त) प १८१३,२७,४५, उ १।११० पेसेमि उ १।१०६ पेसेमो ५६,६४.७७,८३,६०,१०८ उ ११२७ पसेह उ १११०७ पेमेहि उ ११११५ पोच्चइ (दे०) उ ३.१३० पेसल (पेशल) प १७११३४ पोट्ट (दे०) २४३ पेसित्तए (पितुम्) १।१०७ पोलिया (पोट्टालिका) ज ५११६ पेसिय (प्रेपित) उ १३११६,१२७ पोवई (प्रौष्ठादी) ज ७४१३६,१४२,१४८,१५१, १५५ पेसुग्ण (पशुन्य) प २२१२० पोवती (प्रौष्ठपदी) सू १०७,६,२१,२३,२६ / पेह (प्र- ईक्ष् ) पेहति प १५५० पोट्टक्य (प्रौष्ठपद) मू १०१५,१२०,१५३ पेहमाण (प्रेक्षमाण ) प १५:५० पोडइल (पोटगल) प ११४२११ तल तृण पेहुणमिजिया (पेहुण' मजिका) १७.१२८ पोतिया (दे०) ११५११ पोंडरीय (पौण्डरीक) प ११४६,७६ ज ४।३,२५ पोत्तिय (पौत्रिक) उ ३१५० पोंडरीयदल (पौण्डरीकदल) प १७।१२८ पोत्थगग्गाह (पुस्तकग्राह) ज ३।१७८ पोक्ख (प्र-+उक्ष) पोखेद उ ३५१ पोत्थयरयण (पुस्तकरत्न) ज ४।१४० पोक्खरस्थिभय (पुष्करास्थिभार) ज ४७ पोत्थार (पुस्तकार) प ११६७ पोक्खरपत्त (पुस्करपत्र) ज ३।१०६ पोरग (पोर) ११४४।१ इक्षु पोक्खरवर (पुष्करवर) सू१९६१५३१,२ पोराण (पुराण) प २८१२०,२६,३२,६६ पोक्खरवरदीव (पुष्करवरद्वीप) सू १६११५ ज १११३,३०,३३,३६,४२ पोक्खल (पुष्कर) प ११४६ पोरिसिच्छाया (ौरुषीच्छाया)म् ११६। ३१ से ३ पोक्खलस्थिभय (पुष्करास्थिभाग) प ११४६ पोरिसी (पौरुषी) ज ७११५६ से १६७ मु १०।६४ पोक्खलावतीचक्करदिविजय से ७४ (पुष्कलावतीचक्रवति विजय) ज ४११६७ पोरिसीच्छाया (पौरुषीच्छाया) चं २३ पोग्गल (पदगल) १९८४:३।११२,१२४,१७५, पोरेवच्च (पौरपत्र पौरोवत्य) प २।३० से ३३, १७६,१८० से १८२,५३१४०,१४३,१४५, ३५,४१,४८ से ५१ ज १।४५; ३।१८५.२०६. १४७.१५०.१५४.२३३,२३४,२३६ से २३६, २२१,५।१६ उ ५।१० २४१,२४२,६२६१५१४० से ४७.४६: पोलिंदी (पोलिन्दी) ५ १६८ Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६२ पोस-फासचरिम पोस (पौष) ज २१६७१०४ सु १०१२४ फलंगरगाह (फलकग्राह) ज ३११७८ उ ३.४० फलय (फलक) ज ४१२६ उ १।१३८ पोसह (पौषध) ज २११३५ फल (वासा) (फलवर्षा) ज ५१५७ पोसहधर (पौषधगृह) ज ३१३२ फलविटिय (फलवृन्तक) प १५० पोसहसाला (पौषधशाला) जे ३१८ से २१,३१, फलहसेज्जा (फलकशमा) उ ५१४३ ३३,३४,५२ से ५४५८,६१,६३,६६,६६,७०, फलासव (फलासब)६ १७११३४ ७१,७४,८४,८५,१३७,१३६.१४१ से १४३, फलाहार (फलाहार) उ ३५० १४७,१६४ से १६८,१८० से १८३,१६०, फलिय (फलित) उ ३६४६ १६६ उ ५१३५ फलिहकूड (स्फटिककूट) घ २।५१,५६ पोसहिय (पौषधिक) ज ३।२०,३३,३५,५४,६३, 'फलिहामय (स्फटिकमय) मु १८१८ ७१,८४,१३७,१४३,१६७,१८२ फाणिय (फाणित)।१५।११२,१५१५० पोसहोववास (पौषधोपवास) २०११७,१८,३४, फालिय (स्फटिक) ज ४१३,२५ पोसी (पौषी) ज ७१३७,१४०,१४६,१४६,१५५, फालियामय (स्फटिकमय) प २१४८ ज ७।१७६, नु १०।७,१३,२२,२३,२६ १७८ पोहत (पृथक्त्व) प १५.१।१,१५.१८ से १०,२३, फास (स्पर्श) प ११४ से ६२।२० से २७,३०,३१, ३०.१४०,२४६ ४१,४८,४६३।१८२,५१५,७,१०,१२,१४,१६, पोहत्तिय (पार्थक्त्विक) प २२।२५,२८,२३१८,१२ १८,२०,२४,२८,३०,३२,३४,३७ ३६,४१,४५, ५३,५६,५६,६१,६३,६८,७१,७४,७६,७८, ८३,८६,८६,६१,६३,६७,१०१,१०४,१०७, फग्गुण (फाल्गुन) ज १७१,७१०४ सू१०।१२४ १०६,१११,११५,११६,१२६,१३१,१३४, १३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७,१५०, फग्गुणी (फल्गुनी) ज ७११३७,१४०,१४६,१५३, १५२,१५४,१६३,१६६,१६६,१७२,१७४, १५५,१०११२०;१२२३ नु १०७,१५,२३, १७७,१८१,१८४,१८७,१६०,१६३,१६७, २५,२६,१२०,१५३,१५८,१२।२३ । २००,२०७,२११,२१४,२१८,२२६,२२४, फणस (पनस) ५२३६११:१६।५५;१७।१३२ २२८,२३०,२३२,२३४,२३७,२३६,२४२, फणिज्जय (फणिज्झक) १ १४४१३ मरुआ २४४;१०।५३११,१११५६; १५१३८,७७,८१, फरिस (स) ज ३१८२,१८७,२११,२१८,५१५८ ८२,१७११३२ से १३४,२३।१३ से २३,१०६, गू २०१७ उ ५।२५ २८१६,१०,२०,३२,५५,५६,६६,३४१२; फरुस (रुप) ज २१३१,१३३ ३६१८०,८१ ज १११३:२१७,१८,६८,१४२; फल (फल)११३५,३६,१६४८।६,१८,२८,६३; ३।१३८,४।२७,४६,८२,५।३२:७।२०६ २३.१३ से २३ ज १११३,३०,३३,३६,२८, सू २०१७,८,२०१८,४ ६,१२,१६,१७,१८,७१,१४५,१४६, ३।११७, फासओ (स्पर्श तम्) प १२५ से १११६०; २२१:४।२;७३११२६३,४ रु १०।१२०, २८१०,२०,२६,५६ १२६॥३,४ उ १५३४,६८,६६३५०,५३,९८, फासचरिम (स्पर्शचरम) प १०५२,५३ १०१,१३१,५१६ फलग (फलक) ५ ३६।६१ ज ३।३१ उ ३१३६ १३० १११६७ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फासणाम-बंधणविमोयणगति ६६३ फासणाम (स्पर्शनामन्) प २३।३८,५० फुसमाण (स्पृशत्) प १३।२३ फासतो (स्पर्शनस् ) प २६ से २८१३२,६६ फुसगणगति (स्पृशद्गति) प १६१३८,३६ फासपज्जव (स्पर्शपयंव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, फुसित्ता (स्पृष्ट्वा ) प १५३५१,१६।३९,३६७६,८१ १३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३; ज ३२१३१ ७/२०६ फुसिय (स्पृष्ट) ज ५७ फासपरिणाम (सार्शपरिणाम) ५१३१२१,२६ फेण (फेन) ज ३१३५:४:१२५,५२६२,७१७८ फासपरियार (म्पर्शपरिचार) ५ ३४।२१ फेणमालिनी (फेनमालिनी) ज ४१२१२ फासपरियारग (स्पर्शपरिचारक) ५ ३४।२८,२१,२५ फासपरियारणा (स्पन्चिारणा) १३४।१७,२१ फासमंत (स्पर्शवत) १११५२,५६,२८।५,६,५१, बउल (बकुल) प११३५१ बउस (बकुश) प ११८६ फासविण्णाणावरण (स्पर्श विज्ञानावरण) प २३३१३ बंध (बन्ध) १३.११२,१३१२२११,२,१४११८।१: फासादेस (स्पर्शादेश) प १२०,२३,२६,२६,४८ २६।१२ ज २११३३ फासावरण (सावरण) प २३।१३ बंध (वन्ध) बंधइग २३॥३,१६८२४।१३ से फासिदिय (मर्श न्द्रिय) ५ १५१,६,७,१० से १८, १५ ३१५५ बंधति १९.१८२२२२२,२३, २० से २७,३०,३१.३५,४२,५८ से ६४,६६,७०, ८६,६०२३१५,७,१३४,१३५,१३७ से १४०, ७३,७४,८०,८५,१३३,२८/४२,४५,४६,७१ १४२,१४३,१४६,१४७,१५१ से १५८,१६० से १६२,१६४,१६६,१६७,१६६,१७१ से फासिदियत्त (स्पर्श न्द्रियत्व) १२८१२४,२६,३४१२० १७४,१७६,१७७,१८१,१८५,१८६,१६०% फासिदियपरिणाम (स्पर्शेन्द्रियपरिणाम) ५१३१४ २४१४,५,१० से १२,१५:२६१४.६ ज ५११३ फासु (प्रासु) उ ३।३६ बंधति प २२२२१,८३,८६,८७:२३।१।१, फासुय (प्रासुक,स्पर्शक) उ ३।११४ २३६४,६,१६४ से १६६,१६ से २०१:२४१२, फासुयविहार (प्रासुकनिहार) उ ३१३०,३६ ३,१०,१५:२६।२,३,८ बधिसु प १४११७ फासेंदिय (स्पर्शेन्द्रिय) ११५।१६,२८,३१ से ३३, बंधिस्संति प १४:१८ बंधेसु प १४११८ ६४ से ६७,७६,१३४:२८१३६ बंधेसि उ ३७९ फुट्ट (दे०) ज २१३३ बंधग (बन्धक) प ३।१७४;२२१२२,२३,८४,९०; फुट्ट ( फुट) फुट्टउ उ ५१७२ फुट्टिहि ज ५७३ २३१६३, २४१४ से ८,१० से १३;२६।४ से फुट्टमाण (फुटत् ) ज ३१८२,१८७,२१८ ६,८ से १०:२७१५ फुड (स्पृष्ट) ५१५१५३ से ५७,३६।५६,६०,६६ बंधण (वन्धन) प २१६४१२२,१६१५५,३६।८।१, से ६८.७०,७१,७४,७५,८१ च ११३ ८३३१,६४११ ज २२२७,२६,८६,८६,१३३; फुडित्ता (स्फुटित्वा) प १११७८ ३।२२५ उ ११६६,६८,७२,८८,९२ फुडिय (फुटित) प २११३३ फुल्ल (फुल्ल) ज ३।१८८ बंधणछेदणगति (बन्धनछेदन गति) प १६.१७,२३ फुल्लावलि (फुल बलि) ज ५१३२ बंधणपरिणाम (बन्धनपरिणाम) प १३१२१,२२ -फुस (स्पृश् ) फुसइ ज ३।१३१ फुसई प रा६४११ बंधनविमोयणगति (बंधन विमोचन मति) फुसति ५ ११।७२ सु ५।१ फुसंतुज ३१११२ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ बंधमाण (बनत् ) प २२१२६, २७:२४१२ से ४, ६ से १५:२५/२, ४, ५ बंधय (बन्धक) प ११११६२,२२१२१८३,८६,८७) २३।१।१,२३।१६१ से १९३, २४१२, ३, ७, ८, १०,१२:२६ । २ से ४, ६, ८ से १० बंधिता (द्रव) ज ५।१३ उ ३।५५ बंधुजter (धुजीवक) १ ११३८ । १ ज २११०, ३।३५ बंधे काम (काम) उ१।७३ बंधेत्ता ( बद्ध्वा ) ज ५।१६ उ ३२७६ बंभ (ब्रह्मन्) प २१५४; १५८८ ज ७ १२२।१ यू १०२८४।१ बंभचेर (ब्रह्मचर्य ) ज ७११६६ गु १८१३ बंभचेरवास (ब्रह्मचर्यवास ) उ५।४३ (ह्मण्यक) उ ३१२८,३८,४०, ४२ बंभयारि (ब्रह्मचारिन्) ज ३१२०,३३,५४,६३,७१, ८४, १३७, १४३, १६७,१८२ बंभोग (ब्रह्मलोक ) २२४६, ५४,५५,६०,७११२; ३३११६; ३४।१६ बंभल (ब्रह्मलोक ) १।१३५, २२४६, ५४ से ५७, ६३,३।३३,१८३,४१२४३ से २४५,६/३१,४६, ६५, २०१६१,२१।७० २८१७६; ३४११८ उ २।२२५१२८ बंभलोग (ब्रह्मलोकज) ज ५।४६ लोडस (ब्रह्मलोकावतंसक ) प २१५४ बंभी (ब्राह्मी) १६८ ज २७५ बकुल ( बकुल ) ज ३।१२,८८५५६ बग (क) १७६ बज्झ ( बंध) बज्झति उ ३११४२ बत्तीस (द्वात् ) २२२२३३११२६; ५३५ बत्तीस ( द्वात्रिंशन् ) ज ३११८६, २०४ बत्तीसह (द्वात्रिंशत्वध ) ज ५।५७ ३।१५६ बत्तीस (द्वात्रिंशत् ) ज ७।१३१।१ बत्तीसजणवय सहसराय ( द्वात्रिंशद्जनपदसहस्रराजन् ) ३।१२६।२ बंगालविसिठ्या बत्तीसमंगलसिसिर (द्वात्रिंशदङ्गलोच्छ्रित शिरस्क ) ज ३|१०६ बत्तीसविह (द्वात्रिंशत्वध) ज ३।१५६ बदर ( बदरा ) प १1३७/२ कपास का पौधा बद्ध (बद्ध ) प १५५८।२२०१३६२३|१३ से २३ ज ३०२४,३५,७७,८२, १०७.१२४, १७८, १८६, १८७,२०४,२१४,२१८,२२१४१३.२५ उ १।१३८ बद्धग (दे० ) ज ७!१७८ एक आभूषण बल्लग (दे० ) प १२८ से १३,१६,२०,२१,२३, २४,२७,२८,३१ से ३३,१५८३ से ५६,८६ से ६३,६५ से ६७,६६ से १०६,१०८ से १२३, १२५ से १३२,१३५,१३६ से १४१,१४३ वलय (दे० ) प १२४७,८,१२,२०६१५६४ बबरी ( बर्बरी) ज ३|११|१ बर (वर) प १८६३८१ म्ह (ब्रह्मन्) ज ७।१३०,१७६,१८६।३ बम्हदेव ( ब्रह्मदेवता ) १०२७८ बरग (दे०) ज ३।११६ शालि विशेष बहिण (बहिन ) प १७६ बल (बल) प २०११११२३३१६,२० ज २१५१,५४, ६४,७१.१२१,१२६,१३०,१३८, १४०, १४६, १५४,१६०,१६३३१३,१२,३१,७७, ७८,८१, १०१.१०३,१०,११७.१२६, १२६, १५१, १८०,१८८, २०६४/२३६; ; ५१५, २२, २६,७१७८ २०११,७,६१३, ५३ ११६६, ६६११५.११६,३१२१,१७१ बलकर ( बनकर ) ज ३११३८ बलकूड (बलकूट ) ४४२३६, २३६ बलदेव ( प ११७४,६१६।२६ ज २।१२५, ५११० से १२.३० १५३७१२०० बलवत्त (देव) २०१५५ बलव (बलवत्) ज ५१२७११२२ १ १०८४१ बलवंग (वल क) उ १५ बलवसिया (वलविशिष्टता ) प २३।२१ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलविहीणया-बहुबीया ९६५ बलविहीणया (वलविहीनता) प २३.२२ ६१,६३,६४,३।१८३६।२६११२२२,१७ बलाग (बलाक) ज ३।३५ १३६,२२२१०१,३६८२ ज ११४५; बलागा (बलाका) प १७६ २१११,१२,५८,६५,८३,८८,६०,१२३, बलावलोय (बलावलोक) ज ३१८१ १२८१३३,१३४,१४५,१४८,१५१,१५७; बलाहगा (बलाहका) ज ५।६३१ ३१६,११.२४,३२।१,८१,८७,१०३,१०४ बलाहया (बलाहका) ज ४।२१०.२३८ १०५,११७,१७८,१८५,१८६.१८८,२०४, बलि (बलि) प २१३१,३३,४०७ ज २११३, २०६.२१६,२१६.२२१,२२२.२२५,४१२,३, ११६; ५।५१ उ ३१५१,५६,६४ २५,२८ से ३०,३४,६०,१४०,१५६,२४८, बलिकम्म (बलिकर्मन्) ज ३१५८,६६,७४,७७,८२, २५०,२५१,२५२,५३१.५,१६,४३,४६,४७, ८५,१२५,१२६,१४७ सू २०१७ २१११६, ६७,७/११२१,२,७१६८,१८५,१६७,२१३, ७०,१२१ : ३।११०,५३१७ २१४ चं २।४ सू १२६१४,२६११०।१२६।१, बलिपेढ़ (बलिपीठ) ज ४।१४० २,१४।१ से ८:१८२३; १९१६, २०१७ बलिमोडय (दे०) प ११४८:४७ उ१।१६,४१,४३,५१,५२.७६.७७,६३,९८; बव (वब) ज ७१२३ मे १२५ २।१०,१२,३।११,१४.२८,५५,८३,१०१,१०६, बहल (बहल) ज ३११०६ १०६,११४,११५,११६,१२०.१३० से १३२, बहलतर (बहलतर) प ११४८१३० से ३३ १३४,१५०,१६१,१६६४।२४:५७.१० बहलिय (बहलीक) ११८६ बहुआउपज्जव (वह वायुःपर्यव) ज १।२२,२७,५० बहली (बहली) ज ३१११ बहुउच्चत्तपज्जव (बहुच्चत्वपर्यव) ज ११२२,२७,५० बहव (बहु) ज १।१३,३१,२७,१०,२०,६५,१०१, बहुम (बहुक) प २।४६,५०,५२,५३,५५,६३ १०२,१०४,१०६,११४ से ११६,१२०,३।१०, बहुजण (बहुजन) ज ३।१०३ ८६,१०३,१७८,१८५,२०६,२१०,४१२२,८३, बहुणाय (बहुज्ञात) उ ३३१०१ ६७,११३,१३७,१६६,२०३,२६६,२७६,५।२६, बहुतराग (बहुत रक) प १७।१०८ से १११ ७२ से ३४ म् १८।२३ उ ३१४८ से ५०,५५, बहुतराय (बहुतरक) प १७.२,२५ ६२,१२३ , ५।१७ बहुपडिपुण्ण (बहुप्रतिपूर्ण) ज २१८८, ३१२२५ बहस्सइ (बृहस्पति) सु २०१८,२०।८।४ उ १३४,४०,४३,५३,७४,७८,२।१२:५।२८, बहस्सइदेवया (बृहस्पतिदेवता) १०८३ ३६,४१ बहस्सति (बृहस्पति) प २।४८ बहुपदिय (बहुपठित) उ ३३१०१ बहस्सतिमहग्गह (बृहस्पतिमहाग्रह) सू १०।१२६ बहुपरियार (बहुपरिचार) उ ३१६६,१५६५१२६ बहिं (बहिर) प २।४८ बहुपरिवार (बहुपरिवार) उ ३.१३२ बहिता (बहिस्तात्,बहिम्) सू १६१२२।२७ बहुपुत्तिय (बहुपुत्रिक) उ ३६०,१२० बहिया (बहि-तात,बहिस्) ज ११३ २१७१७।५८ वहुपुत्तिया (बहुपुत्रिका) उ ३१२११,६०,६२,६४, सू १।२६।१.३,१९४२२२१ उ २२; ३१२६, १२०,१२५,४१५ ४६,४८.५०.५५,१४५, ५१५,३३ बहुप्पयार (बहुप्रकार) ज २।१३१ बहु (बहु) प १।४८॥५४, २१२० से २७,३० से ३५, बहुबीयग (बहुबीजक) प ११३४,३६ ३७ से ३६,४१ से ४३,४६,४८ से ५५,५८ से बहुबीया (बहुबीजक) प १३६ Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ बहुमप्रदेसभाग (बहुमध्यदेशभाग ) ज १1३७ ; ४१३५ १६ १६ बहुमदेसभा (बहुमध्यदेशभाग ) ज १११०,१६, ४०,४२,४३,३१,६७,१६१,१६३,१६४, १६७; ४३,६,६,१२,३१, ३३, ४१, ४७,४६,५७,५६, ६४,६८,७०,७६,८४,८८.६३,६८, ११२, ११८, ११६,१३,१४१, १४३, १४५ से १४७, १५६, १६८,१७७,२०७,२०८,२१३,२१८,२२१,२४२, बाणउय (द्वानवति) ज ११४८ २४८, २५०,२५२,२६६,२७२५।१३ बहुमय ( बहुमत ) उ ३११२८ बहु ( बहुक) १४७३, ११४८ ५४ ३३८ से १२०० १२२ से १२४, १७४, १७६ से १५२,६११२३; ८/५.७,६,११,६।१२,१६,२५१०१३ से ५,२६ से २६,११/७६,६०,१५।१३, १६.२६,२८,३१, ३३,६४,१७।५६ से ६६,७१ से ७६.७८ से ८३,१०६, १०७, १४४ से १४६; २०/६४; २१।१०४,१०५, २८१४१, ४४, ७०, ३४।२५; ३६।३५ से ४१, ४८, ४१ सु १८२३७ बहुल (बहुल ) प २०४१ ज २।१२,६४,६५,७१, ८८,१३३,१३४,१३८ ४ २७७ ७ १२६ बहुलक्ख ( बहुलपक्ष ) ज ७।११५, १२५ सू २०१३ बहुत (बहुत) प १११२४ aar (बहुवचन) प ११८६ बहुविह ( बहुविध ) प २।६४।१७ १७ १३६ ज ३१६,२२२ बहुसंघण ( बहुसंहनन ) ज ११२२,२७,५० बहुसंठाण ( बहुसंस्थान ) ज ११२२,२७,५० बहुतच्च (बहुत्त्र) ज ७११२२ ।१ मू १०२८४।१ बहुसम ( बहुसम ) प २४८ से ५१,६३,३३३६; १७ १०७,१०६,१११ ज १११३,२१,२५,२६, २८,२६,३२,३३,३६,३७,३६,४०, ४२, ४६; २७,१०,३८, ५२,५६,५७, १२२, १२७, १४७, १५०,१५६,१५६,१६१,१६४ ३३८१,१९२ १९३,१६६,१९७; ४२, ३, ५, ६, ११, १२, १६, ३२,४६,४७,४६,५०,५६,५८,५६,६३,६६,७०, ८२,८७,८८, १००, १०४, १०६, १११, ११२, बहुमज्भदेस भाग - बारवती ११७,११८, १३१,१६६,१७०,१७६,२३४, २४० से २४२, २४७, २४८, २५०, ५१३२, ३५ २/१; १३,१८११, २०१७ बहुस्सु ( बहुश्रुत ) उ ३।६६,१५६; ५१२६ बाउच्चा ( वाकुची ) प १३७१२ बाण (बाण) प ११३८।२ वाण का फल बाणउति ( द्वानवति) सु १।१६ १६ १६।१५।१ बाणकुसुम (वाणकुसुम ) प १७ १२४ बाताल ( द्विचत्वारिंशत् ) गु १३११ बातालीस ( द्विचत्वारिंशत् ) १६ | १२१।२ बादर (बादर ) प २११,२,४,५.७, ८, १०, ११,१३, १४३ / ७२ से ६५,१११, १८३ ४ ६२ से ६४, ६६,७०,७६,७७,८५ ८७,६२ से ६४,६१८३, १०२; ११ । ६४; १८/४१ से ४४, ४६, ४७, ४६, ५०, ५४.११७; २१ ४, ५, २५.४०, ४१५०; २८१४,१५,६०,६१ सू २०११ बादरआउवकाइ (बादरअप्कायिक ) प १।२१,२३ बादरकाय (बादरकाय ) प १।२०१२ बादरणाम (बादरनामन् ) प २३१३८, ११६ बादरतेकाइय (बादरतेजस्कायिक ) प १।२४,२६ बादरवणस्स इकाइय (बादरवनस्पतिकायिक) प १३०,३२,३३,४७, ४८ बादरवाजाइय (बादरवायुकायिक) प १२७, २६ बादरसंपराय (बादरसं पराय ) प १।११४ बायर (वादर ) प ६ १०२,११।६५,६६।१; १८१५२; २१।२३,२४,२६,२७ ज ७१४३ बायरसंपराय (बादरसम्पराय ) प ११११२:२३।१६२ बायाल (द्विशत् ) ज ४१५६, १०८ सू ३११ बयालीस (द्विचत्वरिंशत् ) प २६४ ज २६ सू ३११ उ ५ ६ बयालीसहि (द्विचत्वारिंशत्वध ) प २३।३८ () १०।१४।३ बारबई ( द्वारवती ) उ५०४, ५, ६, ११, १६, ३०, ३३ बारवती (द्वारवती ) प ११६३१३ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारस-बिइय बारस (द्वादशन् ) प ११७४ ज ११८ सू ३११ २४८,२५७,२५८,२५६,५१३५७७.६६,९० उ ५२४५ १७७।१,२,३ सू ११२६,२७:१८११,६ से १३ बारस (द्वादश) ज ७३११४।२ र १०1१२४१२ बाहा (बाहु) ज ११२३,४८,२११५,३।६६ से १०१, बारसग (द्वादशक) प २३२६८,१४०,१८३,१८४ ४।१,२६,५५,६२,८१,८६,६८,११५,१७२; बारसम (द्वादश) प १०११४.२ मू १०७७; ५।१४,१७,७१३१,३३,१६८११,१७८ सू ४।३, १२।१७,१३८ ४,६,७ उ ३३५० बाहाओ (बाहुतस्) सू४१३,४,६,७ बारसविह (द्वादशविध) प१:१३५, २११५५ बाहि (बहिस्) प २२० से २७,३० से ३६,४१ बारसाह (द्वादशाह) उ ११६३, ३३१२६ से ४३,३३२७ से २६ ज १२१२,३१,४।४६, बारसी (द्वादशी) ज७१२५ ११४,२३४,२४०,७१३१,३३,१६८।१सू ४१३, बाल (बाल) ज २१६५,३१२४,७।१७८ ४,६,७:१६।२२११५,१६ बालग (बालक) ज ११३७ बालचंद (बालचन्द्र) उ ३।२४ बाहिर (बाह्य) १ ११४८१४५; १।१०११६; बालदिवागर (वालदिवाकर) प १७४१२६ १५।५५३३।११ ज २२१२,४७.२१:५।३६% बालभाव (बालभाव) उ ३।१२७,१२८, ५१४३ ७।१० से १३.१६,१८.१६,२२,२५.२७ से बालब (बालक) ज २११३८,७।१२३ से १२६ ३०,३५,५५,५८,६६ से ७२,७५,७७,७८,८१, बालिदगोव (बालेन्द्रगोप) प १७:१२६ से ८४,६६,१२६।१,१७५ सु ११११,१२,१४, बालुया (वालुका) ज ४.१३ १६,१७,२१,२२.२४,२७ से ३१,२३३१२, बावट्ठ (द्वाषष्टि) ज ४१४७ ४।६; ६१,६१,२,१०७५;१३।१३ से १६; बावछि (द्विषष्टि) प २१४६७ सू १०।१३७ १६॥२२११२; १६२३,२६,२०१७ बावण्ण (द्विपञ्चाशत् ) ज १।१७ सू १।२१ बाहिरओ (बाह्यतस ) ज ३१२४११,१३१११; बावत्तर (द्वासप्तति) ज ४११० ७।१२६ बावत्तरि (द्वासप्तति) ५।३० ज २०६४ सू २।३; बाहिरपुक्खरद्ध (बाह्यपुष्करार्द्ध) सू १९१६ १६११:२११३ बाहिरय (बाहिरक, वाह्यक) । १।७५.८०,८१ बावीस (द्वाविंशति) प ४.१६ ज २१८१ च १४ ज ७५,१७,६४,७६,८८ २ १।१२ बाहिरिया (बाहिरिका) ज ३१५,७,१२,१७,२१, बावीसइम (द्वाविंशतितम) प १०३१४१५ २८,३४,४१,४६,५८,६६.७४,७७,१३५,१४७, बावीसग (द्वाविंशतितम) प १०।१४।४ १५१,१७७,१८४,१८८,२१६:४।१६;७।३१, बासीत (द्वयशीति) सु१।१२ ३३ सू ४३,४,६,७ उ १११६,४१,४२,१२४, ४.१२,५।१६ बाहल्ल (वाहल्य) प १७४;२।२१ से २७,३० से ३६,४१ से ४३,४६,४८,६४,१५,११,१५७, बाहिरिल्ल (बाह्य) प २१११० सू१८७ २२.३०,२११८४,८६,८७,६० से ६३,३६.५६, बाहु (बाहु) ज ३।१२७,५१५ ६६.७०,७४ ज ११४३:२।१४१ से १४५; वि (द्वितीय) प १०।१४।४ से ६ सू॥२६ ४६,७,१२,१४,१५,२४,३६,६६,७४,६१, बि (द्वि) ज ४।६३,६५१४ सू १२६ ११४,११८,१२३,१२४,१२६ से १२८,१३२, बिइंदिय (द्वीन्द्रिय) प १७।६६ १३६,१४०,१४३,१४५,१४७.२१७,२४५, बिइय (द्वितीय) प २१३१,३६।८५ ज ३१३; सू १६ Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ बिइया-वेइंदिय ७१०७ उ २१२२,३१६४ बीयय (वीजक) प १३८१ बिजौरानीवु बिइया (द्विनीया) ज ७४११७,१२५ सू १०११४८, बीयरुइ (दीजरुचि) १ १११०१११,७ १५० बीयरुह (जीजरुह) प १।४८१३ बिइयादिवस (द्विनी दिवस) ज ७११६ बीय (वासा) (बीज र्षा) ज ५१५७ विदु (विन्दु) प ११०१७,१२६,२१२४ बीविटिय (वीजतन्तक) प ११५० ___ ज ३।१०६;७१३३।२ बीयाहार (वीजाहार) 3 ३५० बिंब (विम्ब) प २१३१,३२ बुक्कार (दे०) वुक्का ति ज ५।५७ बिबफल (बिम्बफल) प २।३१ ज ३१३५ बुज्झ (बुध) बुज्झइ प ३६८८ बुज्झति बिहणिज्ज (बंदणीय) ज २०१८ ६.११० ज ११२२,५०, २०५८,१२३,१२८% बिगुण (द्विगुण) ज २।४ । ४११०१ युज्झति प ३६१६१ बिडाल (विडाल) प ११६६ ज २६३६ बुज्झिहिइ उ १११४१,३८६,५१४३ बितिय (द्वितीय) १११४२,८८,१२११२,३८% बुझिहिति ज २१५१,१५७ बुज्झज्जा २२१३३,४१,३६१८७ ज ३१६५, ४११४२२३ प २०।१७,१८,२६,३४ सू १०७२,७७,८५,८७,१३।१,८,१४१३,७ बुज्झित्ता (बुवा) उ ५१४३ उ १२६३ बुद्ध (बुद्ध) प २६४।२१ ज २१८८,८६,३३२२५; बितियादिवस (द्वितीनदिवस) मू १०८५ ५।५,२१,४६,५८ बितियाराति (द्वितीयरात्रि) सू १०१८७ बुद्धंत (बुध्नान्स) सू २०१२ बिब्बोयण (दे०) ज ४।१३ बुद्धबोहिय (बुद्धबोधित) प १३१०५,१०७,१०८, बिभेलय (विभीनक) पश३५२ १२० बिराल (विंडल) ज २११३६ बुद्धबोहियसिद्ध (बुद्ध बोधितसिद्ध ) प १११२ बिल (विल) प २१४,१३,१६ से १६,२८ बुद्धि (बुद्धि) ज ३१३,३२,४१२६६।१३ ४।२।१ ज २१३४,१४६ बुध (बुध) सू २०१६ बिलतिया (क्लिपडितका) प २४,१३,१६ से। ‘बुय (ब्रू) वुयापि प ११।११,१६ १६,२८ ज ४१६०,११३ बुयमाण (ब्रुवाण) प १११११.१६ चिलवासि (विलवासिन्) ज २१३३ उ ३.५० बुह (बुध) प २१४८ सू २०।८।४ बिल्ल (बिल्ब) प ११३६११,१६५५१७१३२ ब (ब) वेमि सू १०।१७३ उ १६१४२२।१४; गु१०।१२० ३।१६२४४ बिल्लाराम (दे०) उ ३।४८,५५ बूर (दे०) २०१७ बिल्ली (चिल्ली) प ११३७१२ एकसण, वथुया बे (द्वि) प १२।३७ सू १३१६ बिल्ली (विल्पी) प११४४।१ बेइंदिय (द्वीन्द्रिय) प ११४६; २।१६:३७,४० से बीभच्छ (शीभत्स) उ ३।१३० ४२,४५,४६,१४४,१४५,१८३,४।६५ से १५ बीय (बीज) ११४५।२,११४८।१६,२६,५१,६३ ; ५१३,१६,२०,६७,६८,७०,७१,७३,७४,७८% ३६१६४ ज२।१०,१३३,३२१६७।३ उ ३१५१, ६।२०,५४,६४,७१,८३,८६,१०२.१०४,११५; ९।४,२२,१११४५:१२।२७,१३।१७.१५।३० से बीय (द्वितीय) प १२।१२ भु १०७७ ३३,७५,८०,८६,१३७:१६।६,१३,१७१८०,६२, Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेइंदियत्त-भंत ९९९ १०३,१८१५,२१,१६।३;२०१८,२३,२८,३२, ४७:२११६,२८,४२,८६.८८,२२१३१:२३१८६, १५१,१५५ से १५७,१६३,१६,१६७.१७५ २८१३७ से ४०,४२,१००,१०३.११६,१२५, १३६,२६१११ से १३,२१,३०११० से १२, २०,२१:३१॥३:३६१३६,६२ बेइंदियत्त (द्वीन्द्रित्व) प १५१९७,१४२ बॅटट्ठाइ (वृन्तस्थायिन् ) ज ५७ बॅदिय (द्वीन्द्रिय) प १११४,४६,३१४२,४५,४६, १४६,५१५७,६।७१ बेतेयालसतविह (द्वित्रिचत्वारिंशत्शत विध) प १७:१३६ बेयाहिय (दव्याहिक) ज २१४३ बेहिय (दू याहिक) ज २६ बोंडइ (दे०) प ११३७११ बौदि (दे०) प २१३०,३१,४१,४६,६४।२,३ ज ५११८ बोद्धव्व (बोद्धव्य) प १०।१४।२,३४११०२ ज ४।१५६६१,१६२।१,२०४:१,२१०।१; ७।११७।२,१२०।१,१३२।१,१६७।१, १७७३१,२,१८६।४ १०८६,८८,२०1८1८ उ १११७, ३।२।१,४१२६१ बोधव (बोद्धव्य) प १।२०।४,३३३१,३५।२, ३६१२,३७४३,४२१२,४३१२,४८१८,४०, ११८१।१; २१६४।६,७,६१८०१२,१०५३।१; ११३७।२,१७१।१२८।१११ २०१८1७ बोर (बदर) प १६१५५,१७:१३२ बोल (दे०) प २४१ ज २१४२,६५,३।२२,३६, ७८,६३,६६,१०६,१६३,१८०५।२६,७१५५, १७८ सू १६२३ उ १११३८ बोहग (बोधक) ज ५१५,४६ बोहय (बोधक) ज ३।१८८,५।२१ बोहि (बोधि) प २०११७,१८,२६,३४ बोहिदय (बोधिदय) ज ५१२१ बोहिय (बोधित) ज २६१५३१३ भइज्ज (भज) भइज्जति प २०७४ भइन्जति प २२४७३ भइत्ता (भक्त्वा ) सू१।१० से १२ भइत्त (भक्त) प २०६४।१६ भंग (भङ्ग) प ११४८1१० से २०१०१६ से १; १४।२१६१६१०,१५,२१:२२।२५,८४,८६; २४१५,८,१२,२६।४,६,६,१०,२८६११८ भंगुर (भङगुर) ज २१५ भंगी (भृङ्गी) १४८१५,१७।१३१ भंगी (भनी) प १९३५ भंगीरय (भृङ्गिरजम् ) प १७।१३१ भंड (भाण्ड) ज ३।७२,१५०,४।१०७.१४० सू २०१४ उ ११६३,१०५,१०६,११६:३१५०, ५५,६३,७०,७३,१२८ भंडग (भाण्डक) उ ३१५०,५५ भंडवेयालिय (भाण्डवैचारिक) प १११६ भंडार (भाण्डकार) प १९७ भंडी (भण्डी) प १३७।५ शिरीष का पेड़ भंत (भदन्त) प ११७४,८४,२११ से ३६,४१ से ४३,४६,४८ से ६४३।३८ से १२०,१२२ से १२४,१७४,१७६ से १८३,४।१ से ४६,५२, ५६ से ५८,६५,७२,७६,८८,६५,६८,१०१, १०४,११३,१३१,१४०,१४६,१५८,१६५, १६८ से १७१,१७४,१७७,१७८,१८०,१८१, १०३,२०७,२१०,२१३,२६४,२९७५१ से ७,६ से १२,१४,१६ से १८,२०,२३,२४,२७ से ३४,३६,३७,४०,४१,४४,४५.४८,४६,५२, ५३,५५,५६,५८,५६.६२,६३,६७,६८,७०,७१, ७७,७८,८२,८३,८५,८६,८८,८६,६२,६३, ६६,६७,१००,१०१.१०३,१०४,१०६,१०७, ११०,१११,११४,११५,११८,११६,१२३ से १२६,१३१,१३४,१३६,१३८,१४०,१४३, १४५,१४७,१५०,१५३,१५४,१५६,१५७, १६२,१६३,१६५,१६६,१६८,१६६,१७१, Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ००० भंत १७३,१८०,१६२,१६६,१६६,२०२,२०३, २१०,२१७,२२७,२२६,२३१,२३३,२३६, २३८,२४१,६।१ से २३,२७,४३ से ४५,४७ से ५५,५७,५८,६० से ६४,६७,६८,७०,७५, ७८,८० से ५२,८७,६०,६३,६४,६६,६६, १०१,१०३,१०५,११०,११४ से ११६,११८ से १२१,१२३,७४१ से ४,६ से ३०,८११ से ११,६११ से ४,६ से १६,१६ से २१,२५,२६; १०१ से १३,१५ से २४,२६ से ५३,१११ से ४४,४६ से ४८,६१ से ७३,७६ से ६०%; १२।१ से ५,७ से १३,१५,१६,२०,२१, २३,२७,३१ से ३३,१३३१ से ३१; १४.१ से ३,५,७,६,११ से १५,१७,१५१ से ३,७,८,११ से २८,३० से ३३,३६ से ४१,४३ से ५४.५६ से ७४,७६ से ८०,८३,८४,८६, ६१,६४ से ६७,१००,१०३ से १०६,१०६, ११४,११५,११७,११८ से १२०,१२३,१२६, १२६.१३२ से १३५,१४०,१४१, १६:१ से ३,१० से १३,१५,१७,१६ से २१,१७।१ से ६.८ से १६,१६ से २१,२४,२८,२६,३३,३६ से ४०,५१,५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८७, १० से १२,६४,६५,६९ से १०४,१०६ से ११६.११८ से १२०,१२२ से १३०,१३५ से १३७,१३६ से १५२,१५४ से १५७,१५६ से १६१,१६६,१६७,१६६ से १७२,१८१ से १०,१२ से ३७,३६,४१ से ४७,४६ से ५१, ५४ से ८२,८४ से ६०,६३ से १११,११३, ११४,११६ से १२०,१२२,१२३,१२५ से १२७,१६।१,२०११ से ३,६,७,६ से १५,१७ से २५,२७ से २६.३२ से ३४,३८ से ४०, ४५.४६ से ५१,६१ से ६४, २१११ से १५, १६ से २५,२८ से ३२,३६,३८,४० से ४२,४८,४६,५६ से ६६.६८ से ८१, ५३ से ६६,६८ मे १०१,१०३ से १०५; २२११ से १६,२१ से २३,२६,२७,२६,३०, ३२ से ५०,५२ से ६६,७६ से ७६,८१ से ८४,८६,८७,८६ से १४,६७ से ६६,१०१, २३.१ से ७,९,११,१३ से ४८,५७ से ६२, ८१,६०,१३४,१३५,१३७ से १४०,१५४, १५५,१५७,१६०,१६१,१६४,१६७,१७१, १७६,१७७,१६१ से १६६,१६८ से २०१; २४.१ से ५,८,११,१२,१४:२५।१,२, ४,५,२६।१ से ४,८,६,२७१ से ३,६; २८११,३ से ५,११ से १६,२१ से २५,२८ से ३१,३३ से ४२,४४,४५,४८ से ५०, ५१,५७ से ६०,६२ से ६५,६७ से ७१, १८,१०२,१०४,१०६ से १०८,१११ से १२०,१२२,१२३,१२५,१२७,१२८,१३२; २६१ से ३,५ से ७,६,१०,१२,१३,१६ से १६,३०१ से ३,५ से ११ १३,१५ से १७, १६,२१.२५ से २८, ३१११,३२११,२,४३३३१ से ३,५,६,१२ से १८,२०,२२,३५।१,२,४ से १३.१६ से १८,२०,२३,३६.१ से २२,३० से ४६,५३,५४,५८ से ६७,७०,७१,७३ से ८८,६२,६४ ज १७,१५ से १८,२० से २३, २६,२७,२६,३३ से ३५,४१,४५ से ५१:२१, ४,७,१४,१५,१७,४३,५२,५६,५७,५८,१२२, १२३,१२७,१२८,१३१ से १३७,१३६,१४७, १४८,१२०,१५१,१५६,१५७,१६१,१६४; ३३१,९८,४।१,२२,३४,४४,४५,४८,५१,५२, ५४.५५,५६.५७,६०,६२,७६ से ८२,८४ से ८६,९६ से १८,१०० से १०३,१०६ से ११०, ११३,११४,१४१,१४३.१५६ से १६७,१६६ से १७८,१८० से १८२,१८४,१८५,१८७, १८८,१६० से १६४,१६६,१६७,१६६ से २०३,२०५ से २०६,२११ से २१५,२२५, २२६,२३४,२३६,२३७,२३६ से २४१,२४४, २४५,२४६,२५१ से २५५,२५७,२६० से २७७,६।१,२,४,७ से २६७१ से४८,५०, ५२ से ७३,७६.७८ से १०७,१११ से १४५, १४७ से १५१,१५४ से १६७,१६६ से १७८, १८० से १८५,१८७,१६७ से १६६,२०१ से Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतसंभंत-भद्द २१३ उ ११४,६,८,२१,२४,२५,१४१,१४३; भट्टिदारय (भर्तदारक) ५ १११५,२० २।१,३,१३,१५,३।१,३,८,१६,१८,२०२३, भट्ठरय (भ्रष्ट रजस्) ज ५१७ २६,३० से ३२,३५ से ४१,४४,८६,८८,६३, भट्ठि (दे०) ज २६१३१ ६४,१२३ से १२५,१५२,१५४.१६४,१६५, भड (भट) ज ३१७,२१,२२,३६,७८,१७७ १६७,४१,३,१४,२६,५१,३,२०,२२,२३, भडग (भटक) प १६ ३२,४०,४३ भिण (भण्) भणइ उ ३१६६ भणंति प १७८९ भंतसंभंत (भ्रान्तसम्भ्रान्त) ज ५।५७ मणित (भणित) प ११४८१६,४७,श६३।६, २१४०%; मंभा (दे०) ज ३१३१ ३॥१८२, ५१२४४;६।५६,६६,८३,८६,६२, भंभाभूय (भंभाभूत)ज २१३१,१३६ १००१५५५, २१७७ सू १०.१४८, २०१७ मक्खेय (भक्ष्य) उ ३३३७ से ४२ मणितम्व (भणितव्य) सू ८१११०१४८,१५०%; मग (भग) ज ७।१३०,१३३,१८६।४ सू १०६३५ १५ भगंदर (भगंदर) ज २१४३ मणिय (भणित) प ११४८१५२:२।२७१३,४७; भगदेवया (भगदेवता) सू १०८३ ६४।४६.८,५१५२,११५८०१२।१३,१५, भगव (भगवत्) प ११॥३,३६८१ ज ११५,६; २१,१५।१८,३०,१४०,१६३१८,१७७,६७; २१६८,७०,७२,९०,६३,६५,६६,१०१ से । २०१२६,३५,२११७६,६४:२२।५४:२३११००, १०३,११३,११४; ५५३,५,७ से १४,२१,२२, १०८,१५६,१७६,१८१,१८५,१६०२४१८,६; २६,४४,४६,५८.६०,६२,६४,६७ से ७०,७२ २९१५,३६।२०,२४,४६ ज २०४१३,२११५; से ७४७।२१४ च १० सू ११५ २०६६ ३।१०६,१३८,१६७।३,४,४१२०० चं ४।३ उ १२,४ से ८,१६,१७,१६ से २६,१४२, सू१८१३,१०।१५०,१६।२२।१,२। १४३;२।१ से ३,१० से १२,१४,१५,२१,३३१ भिण्ण (भण्) भण्णइ प ५२२६ ज ७।१४६ से ३,७,८,१६,२०,२२,२३,२६,८७,५८,६०, भण्णति प ५।२०५ भण्णाति प ५।२०५,२११; ६३,१५३,१५४,१५६,१६१,१६६,१६७,१७०%; ३६६८ ४।१ से ३,२७; ५।१ से ३,४४ भत (भक्त) ज २२६५,७१,८८,३२२५ उ २।१२; भगवंत (भगवत् ) प २।६४ ज २१६६.७१,८३ ३.१४,१२०,१५०,१६१,१६६५२८,३६,४१, ५१.२१ उ १.१७ भत्तपाण (भक्तपान) ज ३१०३,२२४ भगवती (भगवती) सू २०६१ भगसंठिय (भगसंस्थित) सू १०३५ भत्तसाला (भक्तशाला) ज ३1३२ भत्ति (भक्ति) ज ३।१६७/६ भगिणी (भगिनी) ज २।२७,६६ भत्तिचित्त (भक्तिचित्र) प २।४८ ज ११३७, भग्ग (भग्न) ५११४८१० से २६ उ ३६१३१,१३४ भग्गवेस (भार्ग वेश) ज ७१३२।२ सू १०११०० २।१०१,३।३६,१२,५६.८८,१०६,११७, भज्जमाण (भज्यमान) प ११४८।३८ १४५,२२२,४१२७,४६५१६,२८,३२,३४, मज्जा (भार्या) ज २१२७,६६ उ १११२,१४५; ५६ सू१८१८१६२२।१,२ २१५,१७ भत्तिय' (दे०) प १।४२११ भज्जिय (भजित) उ ११३४,४६,७४ भद्द (भद्र) प २१३१ ज २१६४८१:३१३,१२,५६, भट्टित्त (भर्तृत्व) प २१३०,३१,४१,४६ ज ११४५; ८८,११७,१३८,१८५,२०६४।४६,५।२८; ३।१८५,२०६,२२१; ५।१६ उ ५।१० १. वनस्पति कोष में भूतीक शब्द मिलता है। Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००२ ७ ११८ उ २२; ३९६ से १८,१००,१०१ १०६ से ११२ भग (भद्रक) ज २।१६ भद्दमुत्था ( भद्रमुस्ता ) ज १२४८२६ भय (भक ) ३।१०९३५४४०, ४१ भवत (भाद्रपद) सू १०।१२४ भद्दवय (भाद्रपद) ज ७ १०४, ११३११,११४ सू १०/१२६ उ ३१४० भालवण (भद्रशालवन) ज ४९४, २१४, २१५, २१६,२२०,२२१,२२५,२२६,२३४,२६२ भद्दसेण (भद्रसेन ) ज ५१५२ भद्दा (भद्रा ) ज ५। १०३१५१६८७ ११८ सू१०/२, ६० भद्दासण ( भद्रासन ) ज ३१३,५६,१७८४२८, ११२:५।३६,४२ महिलपुर (महिलपुर ) प ११९३३ भ्रमंत ( भ्रमत् भ्रत्) ज ४३, २५ ममर ( अमर ) प ११५१: १७।१२३ भमरावली (अमरावती) प १७१२३ भमास (दे० ) प ११४१११, ११४८।४६ [भ] (भय) प १।१।१:२१२० से २७:११।३४।१ २३/३६,७७, १४५ ज २०६६,७०३१९२, १११. ११६,१२१।१,१२५,१२७ उ ११८६३।११२, २।१२:३३२४ १५६;४।११ भयंकर ( भयङ्कर ) ज २१३१ भग (भृतक ) ज २२६ भषणा (भजन) प ११४८५० भयणस्सिया (भयनिचिता) प ११३४ भयमेश्व ( भयभैरव) ज २०६४ भयव ( भगवत् ) प ११११२ ज २१६०,५१३, १४, १६.१७,२१.१६ भवसण्णा (भयसंज्ञा ) प ६११.२,४,५,७,६,११ भर () भरे ३५१ भरणी ( भरणी) ज ७१११३१.१२८, १२९, १३४१२, १३५१२,१३६,१४०, १४४, १४६, १५६, १७५ १०११ से ६,११,२३,२५,६२,६६, भहग-भव ७५,८३,१००, १२०,१३१ से १३४; १८१७ भरह ( भारत ) प १८८; १६।३०१७ १६० ज ११८ से २०,२३,४६,४७,५१२०७ से १५.२१ से ४५,५०,५२,५६,५७,५८,६०, १२२, १२३, १२०, १२५,१३१,१३२.१३३,१३८, १४१ से १४७, १५०, १५६. १५७,१५९, १६१, १६४, ३१ से १३,१४,१७,१२ से २२, २५ से ३४, ३६ से ४२, ४४ से ५०, ५२ से ५६, ६१ से ६७, ६६,७७, ८३, ८४, ६० से ६४,६६, ६६,१००,१०१.१०२,१०६ से १०६,११५ से १२६,१३१ से १३५।१,१३७,१३८, १३६,१४१ से १४८, १५० से १५४,१५७, १५८. १६०. १६३ से १७०, १७३.१७५, १७७.१७८ १७६, १८१ से १९२, १९०, ११९,२०१,२०२,२०४ से २२६,४१,४८,५३.१०२,१७२,१७४, १७७, २७७ ५:५५ ६७,६,१२,१६ भरहकूड ( भरतकूट ) ज ४४४,४८ भरवास ( भरतवर्ष) ज २१५४।३५ भरवास पढमवति (भरतवर्ष प्रथमपति ) ३।१२६२ भराहिव ( भरत घि) ३१८,८१,१३,१२१११, १३५।२,१६७११४,१८०,२२१ भरिय (भृत) ज २२६६३११७८ भरिली ( भरिली) प १०५१ भरा (भरु) प १२८ भरेता (भूत्वा उ ३१५१ भल्लाय ( भल्लात ) प १।३५।२ भल्ली (भल्ली ) प १२४०१४ भव (भव ) प २०६४१५१ ३ १ २ १०१५३०१: १८११२, १८१६५ २३।१३ से २३ ज ३१२४, १३१ भव भवत्) उ ३२४३ भव (भू) अवद ज ११४७ २६ ११३ उ १।२० भवउ ज २१६४, १५७ भवंति १४१ से ५१,६०,८०,०१,५०४२.१६।१५) २११८४; २३।१५२, ३६।२०,८२,६३ Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "भवंत-भाणितव्व ज ४१५१।१ सू ३११ उ १११४१, ३।५० भवति १४५ २८.३२.११ २२४७३ १५५८१ ३६।१।१ ज १।२६ ११३ भवतु ज २१६४ भवह उ ११४२ भविस्सइ अ १४७, १२७२|७१,१३१ १६४१.५०४३ भरिति ण २।१३३ भवे प १४५३० से ३८ २६ सू १९११११, ५१३, १५११,४, १६।२२।१३,१५,२११४,५ भवेज्जा ३८१ भवंत ( भवत् ) ज ३।२४/१,२,१३१।१,२ भवक्खय ( भवक्षय ) प २२६४।१० उ ३१८, १२५, १५२४।२६ ५।३०,४३ भवचरिम ( भवचरम ) प १०३६,३७ अवण (भवन) ए २१,४,१०,१३, ३० से ४०, ४०१३, ४,२१४२,४३,१११२५ ज ११३१,५१; २४१५,२०,६१,१२०,३३,२५,२६,३२१२, ३८,३६,४६,४७,५१,५२,१०३, १४०, १४१, १८३,१८६, २०४,४६, १०, ११,३३,४१,७०, १०,१३,१४७, १५२, १५५,१७४१०२,२३८, २४३५/१५ से ७,१७,४४,६७,७० उ १।३३ भवणपति ( भवनपति ) ज ३३१८६,२०४ भवणपत्थड (भवन प्रस्तट ) प २११ भवणवद्द ( भवनपति ) प १६।२९, २०१५४ ज २०६५० २६१०० से १०२,१०४,१०६,११०,११३ से ११६, १२०, ४२४८, २५०, २५१, ५२४७,५९, ६७,७२ से ७४ भवणवति ( भवनपति ) प ६।१०६, ३४।१६,१५ वणवासि (भगवान्) प ११३०,१३१:२४३०, ३०११,२३२:३।२६,१३३,१८३४।३१ से ३३,६१६५१७५१,७४,७६,७७,८१,०३ २०६१:२१।५५,६१,७० २।१४ ५५२ सू २०७ भवणवासिणी ( भवनवासिनी ) प ३।१३४,१०३: ४१३४ से ३६, १७।५१,७५,७६,८२, ८३ भवणावास भवनवास २०२० ३६ भवत्थवलि (नवस्थकेवलिन् ) ११८/६६, १०१ भवपारणिज्ज (भवधारणीय) व १५१८. १६ २११५८,५६,६१,६२,६५ से ६७,७०,७१ भवपच्चय (नवत्यधिक ) प ३३|१ भवसिद्धिय (भवसिद्धिक) प३।११३,१८३ 1 १८।१२२,२८।१११,११२ भवित्ता ( भूत्वा ) प २०१७ २२६५ उ ३११३ ४११४;५।३२ भविष (भविक ) प १।१।२२८ १०६।१ भविय ( भव्य ) ज ५५८२२४३, ४४ भवोवग्गह (भवोपग्रह ) प ३६३८३३१ भवोचवायगति (भवोपघातयति) १६०२४, ३१, ३२ भव्व ( भव्य ) प १६।५५: १७ १३२ कमरख, करेला भव्वपुरा ( भव्यपुरा ) ज ३।१६७/७ भसोल (दे०) ज ५५७ भाइ (भागिनेय) ०३ ३१२० भाइयत्व ( भेतव्य ) ज ५३५,७ से १०,१२,१३,४६ भाइल्लय (दे०) ज २२६ भाग (भाग) प २०१०,११:२३ १६०,१६४, १६७,. १७५२८४०, ४३,६९ २०६४ चं ५.१ नू ११६,२४.२६, २७.२९.३० २१.१.३२३ ४:४, ५, ७, १०, ६१.९१३: १०१२, १३२,१३५, १३८ से १४२.१४४ से १६३:११।२ से ६ १२१२,३.६ से ९.१२.१२.११ से २५, २० १३११.३,४.७ से १२.१४ से १७१४/३,७: १५२ से २०,२२ से २९.३१,३२,२४१०११ १०,२५,२६,१६२२।११, २०१३ भागसप ( भागशत ) ज ७१८१,८४,१८,१६,१०० भागसहस्स (भागसहस्र) ७८१,६५,९६ भाणित ( भणित) २१३२,४०, ४२,५०; ३।१८२४।६८, ५१२२.३९,४३,६१,७६.६६, १०,११७,१२२.१५२,२०६,२२६.२४४; ६२४६, ५६,६६, ८१, ८३,८६,८६,६२,६५, १००.१०२.१०३ १०७ १०८ १०११४:१६ २० १।१४,२२,२५ Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००४ भाणिय-भावेमाण ५१२४ भाणिय (भणित) ज ३१२४,१३१ भायण (भाजन) ज ३।३२ उ ११४६ भाणियव्य (भणितव्य) प १४३,४५,४७,६२; भारंडपक्खि (भारण्डपक्षिन) प १७८ ५।६१,११७,१२०,२०५,६६६१,१२३,६३४; भारग्गस (भाराग्रशस्) ज २११०६,११० १०१२८११:४१,४६,८३,८५,१२१८ से १३. भारद्दाय (भारद्वाज) ज ७.१३२२ सू १०।१०३ १५ से १७,२१,२५,१५।३०,५६,६२,८४, भारह (भारत) ज २३४,३५,२।१३।१३५२२ १०२,१०३,१२१,१३४,१३८,१४०।१६।१८, सू११८,१६,४१३ उ १२६,३२१२५,१५७; २१,३२,१७७,२८,२६,३३,३५,६५,७०,७७, ८६,६७,१०२,१०३,१०५,१४६,१४८,१६५, भारहग (भारतक) ज ४१२५० १६७,२०१२५,२६,२११३५,४३,७७,८०,९४; भारहय (भारतक) सू ११६ २२२०,२५,२८,३३,३५,४१,४५,५४,५८, मारियत्त (भार्यत्व) उ ३११२८ ५३,८४,८६२३३१००,१०८,१५२,१५६, भारिया (भार्या) ज २१६३ सू २०१७ उ ३६७, १६०,१६४,१६७,१७५,१७६,१६०,१६१; ११२,१२८,४१८ भाव (भाव) प १३१२,१०१॥३,४,६,२१६४।१३; ५,२८।१०,२५,५६,८७,१०२,१४५:२६।१५, १११३३।१ ज २२६६,७१ उ ३१४३,४४ ३४।२१,३६।२०,२४,२६ से ३०,३२,३४,४६, भावओ (भावनस्) प १११४८,५२,५३,५५; ४७,६५ ज १५१६,२३,२६,४४,४६,२१७, २८।५,६,६,५१,५२,५५,३५४४,५ ज २१६६ ७२,६३,३।१२६,१५५,१७१४१३,४,२५,३१, भावकेउ (भावकेतु) ज ७१८६ भावकेतु (भावकेतु) उ २०१८,२०1८18 ३६,४१,५२,५७,७०,७६,८२,८४,६०,६३, भावचरिम (भादचरम) प १०।४४,४५५३११ १०६,११०,११२,११६,११८,१२८,१६५, १७५,१७७,१८४,१६३,१६६,२०१,२०२, भावणा (भावना) ज २१७१ २०४,२०८,२१२,२१५,२१७,२२० से भावणागम' (भावनागम) ज २१७२ २२२,२२६,२३७,२४०,२४८,२४६.२६२, भावतो (भावतस्) प ११:५७,५६ २६५,२७१,५३,७,१३,३२,४६,५५,५६६५; भावरुई (भावरुचि) प ११०१११८ ६१३;७।१८६ सू ४।६१८११,१५१११; भावसच्च (भावसत्य) ज १११३३ २०१६ उ १११४७,१४८;२।२२:४१२८; भाविअप्प (भावितात्मन् ) प १५१४३ ५।१७,२५ भाविदिय (भावेन्द्रिय) प १५४५८१२,१५७६,१३३ भाणी (दे०) प ११४६,११४८१६२ से १३५,१४०,१४१,१४३ भाय (भाज) भाएंति ज ५।५७ मावित्ता (भावयित्वा) उ ३।१६१ भाय (भाग) ज ११८,४८,३११,१३५४१,४१, भाविय (भावित) प १७1८८ २३,३८,५५,६२,६५,८१,८६,९१,९८,१०३, भावियप्प (भावितात्मन्) प ३६७६ ज ७/१२२१२ १०८,११०,१४१,१६७,१७८,२००,२०५,२०७, सू१०।८४१२ २१२,२१४,२४०,७७,९,१०,१२,१३,१५, भावेमाण (भावयत्) ज १५,२१७१,८३ उ ११२, १६,१८ से २५,३१,३३,५४,६५,६६.६८,६६, ३;२११०३३१४,२६,८३,६६,१३२,१४४,१५०% ७१,७२,७६,१३४,१७७३१,२ उ १६६६,६४ ४१२४; ५२६,२८,३२,३६,४३ भाय (भ्रातृ) ज २।२७.६६ उ ११९५ १. आयारचला पञ्चदशाध्ययनानुसारी Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावेयम्व-मुज्जो १००५ भावेयव (भावयितव्य) प २२।४५ भिगार (भृङ्गार) प११।२५ ज ३१३,११,१७८%, भास (भाष) भासइ ज ७२१४ उ ११८ ५१६,४३,५५ भासंति प ११०४३ से ४६ भासती भिगारग (भृङ्गारक) ज २११२ प१११३०११,२ भासिति प १९८ भिडिमाल (भिण्डिमाल, भिन्दिपाल) भास (भस्मन्) म २०१८,२०।८।८ ज ३।३१,१७९ भिक्खायरिया (भिक्षाचर्या) उ ३३१००,१३३ भासंत (भाषमाण) ५ १११८६ भासग (भापक) प ३३११२,१०८१११३८ से ४१% भिज्जमाण (भिद्यमान) प ११७९ १८ गा २ भिण्ण (भिन्न) प ११७२ सू २०१२ भासज्जात (भाषाजात) ५११६४२ भित्तिकडग (भित्तिकटक) ज ३१७ भासज्जाय (भाषाजात) प ११३८८,८६ भित्तुं (भेत्तुम्) ज २१६११ भासत्त (भाषात्व) १ १११४७,७० से ७२,८० से । भिभिसमाण (बाभाष्यमाण) ज ४।२७।५।२८ मिस (विस) प ११४६,११४८१४२ ज २०१७; भासमणपज्जति (भाषामनःपर्याप्ति) उ ३।१५,८४ ४१३,२५ १२१:४१२४ भिसंत (दे० भासमान) ज ३११७८७।१७९ भिसकंद (विषकंद) प १७।१३५ भासमाण (भाषमाण) प ११1८६ भिसमाण (दे०) ज ४।२७,५१२८ भासय (भाषक) प १८।१०४ भासरासि (भस्मराशि) प २१५०,५६,६० सू २०१८ भीत (भीत) प २०२० से २७ भीम (भीम) प २०२० से २७,४५,४५११ भासरासिप्पा (भस्मराशिप्रभ) प २१५४,५८ उ१११३६ भासरासिवण्णाभ (भस्मराशिवर्णाभ) सू २०१२ भीय (भीत) ज २१६०,३।१११,१२५ उ १८६; भासा (भाषा) प १३१५,१६८;२।३१; __ ३११२,४।१६ १०५३।१:१०१ से १०,२६ से ३०,३०११, मंज (भज) भंजइज ३.३ भंजए ज ४।१७७ २,१११३१ से ३७,३७।१,२,१११४३ से ४६, भुंजाहि उ ३११०७ ८२,८३,८७,८६,२८।१४२,१४४,१४५ भुंजमाण (भुजान) प २।३० से ३२,४१,४६ ज ३७७.१०६ ज ११३३,४५:२।६१,१२०, ३१८२,१७१, भासाचरिम (भाषाचरम) प १०३८,३६ १८५,१८७,२०६,२१८४११३,५५१,१६; भासारिय (भाषायं) प १६२,६८ ७।५५,५८,१८४,१५५ सू १८।२२,२३, भासासमिय (भापासमित) ज २१६८ उ ३६६ १६२६ उ ३१६०,६८,१०१,१०६,१२६ से भासुर (भानुर) प २१३०,३१,४१,४६ ज ५७.१८ १३१,१३४,५२२५ भिउडि (भृकुटि) ज ३१२६,३६,४७,१३३ vमुंजाव (भोजय) भुजावेइ उ ३१११४ उ ११२२,११५,११७,१४० भुकंड (दे०) भुकडे ति ज ३१२११ भिंग (भृङ्ग) ५ १७४१२४ भुक्खा (दे० बुभुक्षा) उ ११३५ से ३७,४० भिगनिभा (भृङ्गनिभा) ज ४२२३३१ भुजंग (भुजङ्ग) ज २११५ भिगपत्त (भृङ्गपत्र) प १७।१२४ भुज्जो (भूयस्) १६.४६,१७११५ से १२२, भिगप्पा (भृङ्गप्रभा) ज ४११५५।२ १५४,२८।२४ से २६,३६,४२,४५,४६,७१, भिगा (भृङ्गा) ज ४११५५।२,२२३११ ७४,३४१२०,२२ से २४ ज ३।१२६७।२१४ Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुत्त (भुक्त) ज २१७१३१८२ सू २०१७ उ ४११६ भुत्तभोइ (भुक्तभोगिन् ) उ ३.१०७,१३६ भुमगा (भू) ज २।१५ भुयग (भुजग) प २२४६ चं ११२ भुयगवड़ (भुजगपति) प २१४१ भयपरिसप्प (भजपरिसप) १६७,७६,४११४० से १४८,६७१.७५ २०१४,१६,३५,४६,६० भुयमोयग (भुजमोचक) १ १२००३ भुयय (भुजग) प २११४७.१ भुयस्वख (भूतवृक्ष) प ११४३।२ भुया (भुजा) प २१३०,३१,४१,४६ ज २१,५८, उ ३६२ भुस (बुश) ५ १६४२११ भू (भू) मू २।१ भूत (भूत) प॥६४ सू१९३८ भूतिकम्म (भूतिकमन्) ज ५११६ भूतोद (भूतोद) सू १६३८ भूमि (भूमि) प ११७४ ज १।२६ भूमिगय (भूमिगत) ज ३।१०५ भूमिचवेडा (भूमिचपेटा) ज ५१७ भूमितल (भूमितल) ज ५१५ भूमिभाग (भूमिभाग) प २।४८ से ५१,६३; १७११०७,१०६,१११ ज १३१३,२१,२५,२६, २८,२६,३२,३३,३६,२७,३६,४०,४२,४६; २१७,१०,३८,५.२,५६,५७,१२२,१२७,१४१, १४.७,१५०,१५६,१५६,१६१,१६४ ; ३१८१, १६२,१६३,१६६,१६७,४१२,३,८,९,११,१२, १६,३२,४६,४७,४६,५०,५६.५८,५६,६३,६६, ७०,८२,८७,८८,९३,१००,१०४,१०६,१११, ११२,११७,११८,११६,१२२,१२३,१३१, १६६,१७०,१७६,२१७,२३४,२४० से २४२, २४७,२४८,२५०,५१३२,३३,३५,७३३ सू २।१६।३।१८।१:२०१७ भूमिया (भूमिका) ज ३१३२ भूमी (भूमि) ज ११२।१३२,१४२,१४३,४।११६ भूय (भूत) प १११३२,२१४१,४५,६४,१५१५५:३; ३६.६२,७७ उ २।१०,३१,१३१,३११,६,२२, ३६,७८,८०,८१,६२,६३,६५,६६,११६,१२१, १५१,१५६,१०,१६३,१८०,२२२७४२१२ उ ११३८,३१४३.४४,४६,५१४ भूय (भूयर) ज ३१ भूयग्गह (भूतग्रह) ज २१४३ भूयणय (भूतृणक) प ११४४१३ भूयस्थ (भूतार्थ) प ११०१२ भूयवाइय (भूतादिक) १ २१४१,२।४७११ भूया (भूता) र ४४६,११ से १६,१८ से २४ भूयाणंद (भूतानंद) प २१३४,३६,४०।७ भूसण (भूपण) प २३०,३१,४१ ज ३८१,१८८; ७१७८ भूसणधर (भूपरणधर) ज ३।६,२२१,५।२१ भूसिय (भूषित) ज ३१३०,३५,१७८ भे (भोस् ) उ ३।३८,४०,४२,४४ भेद (भेद) प १४८१३८,६८३;११।७४,७६ से ७८%3; १५१५३,२१११६,४०,४३,४४,५२,५५,७६,७७, ६४,२२२०३३१११ भेदल (भेदक) ज ३११०६ भेदपरिणाम (भेदपरिणाम) प १३३२१,२५ भेय (भेद) प १११७२,७३,७५,१६।३२,२११७७ उ ११३१ भेयघाय (भेदघात) चं ४।१,३ सू श८।१,३, २२ भेयपरिणाम (भदपरिणाम) प १३१२५ भेरि (भरि) ज ३।१२,७८,१८०,२०० भेरी (भरी) उ१५ से १७ भेरुतालवण (भेरुतालवन) ज २१६ भेसज्ज (भैषज्य) उ ३३१०१ भेसण (भीषण) ज २।१३३ भो (भोस्) ज २१६५,६७,१०१,१०५,१०७,१०६, १११,११४:३।७,१२,२६,३६,४७,४६,५२, ५६,६१,६६,८३,६१,६६,११३,११५,१२२, १२४,१२७,१२८,१३३,१४१,१४७,१५१, १५४,१६८,१७०,१७५,१८०,१६६,२०७, Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोग-मंजसा १००७ : २१२:५१३,१४,२२,२६,५४,६८,६६,७२ २२१,२२२:५११८,२१ उ २१७,१२३,१३१:४।१६:५।१५,१८ मउय (मृदुक) प २४ से ६३.१८२,५।५७,२०६; भोग (भोग) प १६५ ज २१६५;३1३ भू १८१२२, १५।१५,१६,२७,२८,३२,३३,२८१२६,३२,६६ २३:१६।२६ उ ११२७,६३,१४०:३६८,१०१, ज२।१५३१३५५,७,१७८ १०६,१०७,१२६ से १३११३४,१३६ मउल (मुकुट) प २१४१ भोगकरा (भोगङ्करा) ज ४।१०६,५५११ मउल (मुकुल) ज २।१५,३३१७८,७१७८ भोगतराय (भोगान्तराय) प २३।२३ मउलि (मुकुलिन्) प ११६६.७१ भोगस्थिय (भोगाथिक) ज ३११८५ मउलि (मौलि) प २१३०,३१,४१,४६' भोगभोग (भोपभोग) ५ २।३०,३१,४१,४६ मउलिय (मुकुलित) ज ३१६; ५।२१ ज २६१,१२०:३११७१,१८५,२०६५.१,१६; मंकुणहत्थि (मत्कुणहस्तिन् ) प १६५ ७।५५,५८,१८४,१८५ मंख (मङ्ख) ज २१६४,३३१८५ भोगमालिणी (भोगमालिनी) ज ४।१६४:५११११ मंगल (मंगल) ज २१६७,३१६,१२,१८,७७,८२, भोगवइया (भोग तिका) प ११९८ ८५,८८,६३,१२५,१२६,१८०,२२२:५१५,४६ भोगवई (भोवती) ज ४।१०६:५।।१७।१२१ सू१८१२३,२०1७ उ १२१७,१६७०.१२१, सू १०१६१ ३१११०:५।१७,३६ भोगविस (भोगविष) प १७० मंगलग (मंगलक) ज ३११७८,४।१५८,५१५८ भोच्चा (भुक्त्वा) सू १०।१२० उ ५११६ भोत्तूण (भुक्त्वा ) प २१६४।१६ मंगलावई (मंगलावती) ज ४।१६१,२०२।२,२०३ भोम (भौम) ज ७४१२२१३ गु १०१८४१३ मंगलावईफूड (मंगलावतीकूट) ज ४।२०४११ भोमेज्ज (भौमेय) प २।४१,४३ ज ३१२०६; मंगलावत्त (मंगलावर्त) ज ४।१६३.१६५ मंगलावत्तकूड (मङ्गलावतंकूट) ज ४११६२ भोमेज्जग (भौमयक) परा४१,४३,४६ मंगल्ल (गांगल्य) ज २६४,३१८५,१८५,२०६; भोमेज्जा (भौमेयक) प २२४१,४२ ५।५८ उ ११४१,४४ भोयण (भोजन) पश६४।१६ ज २०१८ च ५।३ मंगुस (दे०) ११७६ सू ११९१३१०।१२०,२०१७ उ ३१११०,११४ मंच (मऊ) सू १२२६ भोयण जाय (भोजनजात) ज २११८ मंचाइमंच (ञ्चातिमञ्च) ज ३७,१८४ भोयणभंडर (भाजनमण्डप) ज ३१२८,४१,४६, मंचातिमंच (मञ्चातिमञ्च) सू ११२६ ५८,६६,७४,१३६१४७,१४६,१८७,२१८ मंजरिका (मञ्जरिका) ज ५१७२,७३ मंजिठ्ठावण्णाभ (मञ्जिष्ठावर्णाभ) सू २०१२ मइ (मति) ज ३।३२ मंजु (मञ्जु) ज २१६५; ३.१८६,२०४ मइअण्णाणि (मत्य ज्ञानिन् ) प ३।१०२,१०३; मंजुघोसा (मंजुघोषा) ज १५२,५३ १८८३२८।१३७ मंजुपाउयार (मजुपादुकाकार) प ११६७ मइल (दे० गलिन) ज २।१३१ उ ३३१३० मंजुल (मजुल) उ ३।१८ मउड (मुकुट) प २१३०,४८ से ५०,५.१८ मंजुस्सर (मंजुम्वर) ज ५।५२,५३ ज ३।३,६,६,१८,२६,३१,४७,६३,१८०,२११, मंजूसा (मञ्जूषा) ज ३।१६७,४१२००।१ Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००८ मंडण-मगदंतिया मंडण (मण्डन) ज ३११०६ मंद (मन्द) ज २१६५:५१३८,५७,७१५८ सू २१३; मंडल (मण्डल) ज ३।३०,३५,६५,६६,१०६,१५६, १८१८ १६०२७।२,१०,१३,१६,१६ से ३१,३५,५५, मंदकुमारय (मन्दकुमारक) प १११११ से १५ ५६,७२,७५,७८ से ८४,६५,६६,९८,६६, मंदकुमारिया (मन्दकुमारिका) प ११।११ से १५ १००,१०४,१२६१ च ११,३१२९ ११६३१मंदगइ (मन्दगति) चं ४२ सू शका२ १७।२,१३११,१२,१४,१८ से २५,२७,२११ ।। मंदर (मन्दर) ५२१३२,३३,३५,३६,४३,४४,५०, से ३,३१२,४१४,७,६६।१६।२१०७५, ५११५॥५५१३:१६६३० ज १११६,२६,४६,५१; १३८ से १५१,१७३।१२।३०:१३१४,५,१३; २६८,३२,४१६४,१०३,१०६,१०८,११४, १५।२ से ४,१४ से ३६,१६।२२११० से १२, १४३,१६०.१६२,१६३,२०३,२०५,२०८, १६०२३ २०६,२१२ से २१६,२१६ से २२२,२२५, मंडलगइ (मण्डलगति) प २।४८ २३३ से २३५.२३७ से २४१,२५३.२५४, मंडलम्ग (मण्डलान) ज ३३५ २५७,२५६,२६०।१,२६१,२६२,५०४७ से ५०, मंडलपति (मण्डलपति) ज ३।८१ ५.३;६।१०,२३,२४,७३८ से १३,३१,३३,६७ मंडलरोग (मण्डल रोग) ज २०४३ से ७२,६१,६२,१६८।१,१७१ सू ४।४,७; मंडलवत (मण्डलवत्) सू ११२५ से ३१ ५११७१८११,१८१५ उ ११०,२६.६६ मंडलसंठिति (मण्डलसंस्थिति) सू ११२५ मंदरकूड (मन्दरकूट) ज ४१२३६,६१११ मंडलि (मण्डलिन् ) प १७१ मंदरचूलिया (मन्दरचूलिका) ज ४।२४१,२४२, मंडलिय (माण्डलिक) प १।७४,२०११ २४३,२४५,२४६,२५१,२५२ मंडलियत्त (मण्डलिकत्व) प २०५७ मंदरपब्वय (मन्दरपर्वत) प १६।३० सू ४।४,७ मंडलियराय (माण्डलिकराज) ज ३१२२५ मंदलेस (मन्दलेश्य) सू १९२२१३०,१९२६ मंडलियावाय (मण्डलिकावात) प १२६ मंदायवलेस (मन्दातपलेश्य) ज ७५८ सू १६।२६ मंडव (मण्डप) ज ३१८१५१३५ मंदिर (मन्दिर) सू ७१ मंडवग (मण्डपक) ज १११३,२३१२ मंस (मांस) प ११४८/४६२।२० से २७ मंडव्वायण (माण्डव्यायन) ज ७।१३२।३ सू१०।१२० उ११३४,४०,४३ से ४६,४८, मू १०।१०७ ४६,५१,५४,७४,७६,७६ मंडित (मण्डित) प २१३१ ज ३।१८४ मंसकच्छभ (मांसकच्छप) प ११५७ मंडिय (मण्डित) प २।३१ ज ३१७,१८,३१,१८०; मंसल (मांसल) ज २११५;७।१७८ ५।२१,३८ मंसाहार (मांसाहार) ज २११३५ से १३७ मंडुक्को (मण्डूकी) प ११४४२ मंसु (श्मश्रु) ज २११३३ मंडूकपुत्त (मण्डूकपुत्र) सू १२।२६ मक्कार (माकार) ज रा६१ मंड्य (मण्डूक) प १६॥४४ मगइत (दे०) उ १११३८ मंडूयगति (मण्डूकगति) ५ १६:३८,४४ मगइय (दे०) ज ३।३१ मंत (मन्त्र) ज ३.११५,१२४,१२५ उ ३३११,१०१ मगत (दे०) उ १११३८ मंति (मन्त्रिन ) ज ३६,७७,२२२ मगवंतिया (मदयंतिका) प ११३८।२ ज २११० मंथ (मन्थ) प ३६१८५ मेंहदी Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मगर-मज्झिमउवरिम १००६ मगर (कर) ११५५,५६,२।३० ज ११३७; २११०१,४१२४,२७,३६,६६,६१,५५३२ सु २००२ मगरंडग (रकराण्डका) ज ५।३२ मगरज्मय (मकरध्वज) ज २०१५ मारमुहविउट्टसंठाणसंठिय (मकरमुखनिवृतसंस्थान गरिधत) ज ४१२४,७४ मगसिरी (मार्गगिरी) सू१०१७,१२ मगसीसावलिसंटिय (मगशीविनिमंस्थित) सू१०३८ मगह (मगध) प १६३।१ मगूस (दे०) प ११७८ मग्ग (मार्ग) ज १६४:३१२२,३६,६३,६६,१०६, १६३,१७५,१८० मगओ (दे० पृष्ठत ) ज ५१४३ मगण (गर्गण) ज ३१२२३ सग्गदय (मार्गदय) ज ५।२१ मग्गदेसिय (मार्गदेशिक) ज ५१५,४६ मम्गमाण (मार्ग:त्) उ ३११३० मगरिमच्छ (मकरीपत्स्य) प ११५६ मांगसिर (मार्गशी) ज ७।१०४,१४५,१४६ सू १०।१२४ उ ३१४० मग्गसिर (मृगशिरस) ज ७१४०,१४५,१४६ मग्गसिरी (मागं शिरी) ज ७।१३७,१४०,१४५, १४६,१५२,१५५ सू१०१७,१२,२३,२५,२६ मग्गिज्ज (मार्गय) मज्जिद ५ १२।३२ मघमत (दे० प्रसरत् ) ॥ २॥३०,३१.४१ ज ३७, ८८,५७ २०१७ मघव (मघवन् ) प २१५० ज ५११८ मघा (मघा) ज ७१२८,१२६,१३६,१४० सू १०१५,६२ मच्छ (मराय) प ११५५.५६:६।८०।२ ज २१५, १३४,३१७८४१३,२५,२८५४३२,५८ सू २०१२ मच्छंडग (मत्स्याण्डवः) ५।३२ मच्छडिया (मत्सण्डिका) ५ १७४१३५२११७ मच्छाहार (मत्स्याहार) ज २।१३५ से १३७ मच्छिय (मक्षिका) प १५०१ मच्छियपत्त (मक्षिकापत्र) प २१६४ मज्जण (मज्जन) ज ३१९,२२२ मज्जणघर (मज्जनगह) ज ३।६,१७,२१,२८,३१, ३४,४१,४६,५८,६६,७४,७७,५५,१३६,१४७, १५३,१६८,१७७,१८७,१८८,२०१,२१८, २१९,२२२ उ १।१२४;५१६ मज्जणय (मज्जनक) उ १६७ मज्जणविहि (मज्जन विधि) ज ३१९,२२२ मज्जाया (मर्यादा) ज २११३३ मज्जार (मार्जार) प१४४।१ चित्रक मिज्जाव (मज्जय ) मज्जावेंति ज ५११४ मज्जावेत्ता (मज्जयित्वा) ज ५११४ मज्जिय (ज्जित) ज ३२६,२२२ मज्झ (मध्य) प ११४८१६३, २०२१ से २७,२७।३, २०३० से ३६,३८,४१ से ४३,४६,५० से ५६, ६४,१११६६,६७,२८1१६,१७,६२,६३ ज १८,३५,४६,४७१,५१,३१६,१७,२१, २४१३,३४,३७११,४५११,१०६,१३११३,१७७, १८५,२०६,२२२,२२४,२२५,४।१३,४५, ११०,११४,१२३,१४२।१,२,१५५,१५६.१, २१३,२२२,२४२,२६०११,५३१४,१५,१७,३३, ३८,७४५,२२२११ सू १२।३०,२०१७ मझमज्झ (मध्यमध्य) ज २१६५,६०,३११४, १७२,१८३,१८४,१८५,२०४,२२४;॥४४ सू २०१२ उ १२१६,६७,११०,१२५,१२६, १३२,१३३,३।२६,१११,१४१,४।१३,१५, १८५१६ मज्झंतिय (मध्यान्तिक) ज ७.३६,३७,३८ मज्झगय (मध्यगत) ज ७१२१४ मज्झयार (दे० मध्य) ज ७।३२११ मज्झिम (मध्यम) प २०६४।७:२३३१६५ ज २१५५, ५६,१५५,१५.६४/१६,२१,५।१३,१६,३६ सू २१३ उ ३.१००,१३३ मज्झिमउवरिम (मध्यम उपरितन ) प २८६२ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मझिमउवरिमगेवेज्जग-मणि मज्झिमउवरिमगेवेज्जग (मध्यमउपस्तिन देयक) १७६११२,११३,२०१८,३२,४७,२६२ प११३७,४।२८२ से २८४,७१२५ ३०१२ मज्झिमग (मध्यमक) प २०६१ मणपज्जवणाणारिय (मन:पर्यवज्ञानार्य) ५ १६६ मज्झिमगेवेज्ज (मध्यमवेयक) प ६१४० मणपज्जवणाणि (मन.पर्यवज्ञानिन ) प ३१०१, मज्झिमगेवेज्जग (मध्यमवेयक) प २।६१,६२, १०३,५३११७:१८।८१२८४१३६,३०११६,१७ ३५१८३;६१५६३३३१६ मणपज्जवनाण (मनःपर्यवज्ञान) प २०१३३ मज्झिममज्झिम (मध्यमाध्यम) प १८१६१ मणपज्जवनाणपरिणाम (मन पर्यज्ञानपरिणाम) मज्झिममज्झिमगेवेज्जग (मध्यपमध्यमवेयक) १३ प १११३७,४१२७६ से २८१,७१२४ मणपरियारग (मन:परिचारक) प ३४११८,२४,२५ मज्झिमय (मध्यमक) १ २०६२।१ मणपरियारणा (मनःपरिचारणा) प ३४११७,१८, मज्झिमहेट्ठिम (मध्यमाधस्तन) प२८१६०० २४ मज्झिमहेटिठमगेवेज्जय (मामाधस्तनप्रवेषक) मणभक्खण (मनोभक्षण) प २८.१०५ प१:१३७,४१२७६ से २७८;७।२३ मणभक्खत्त (मनोभक्षत्व) प २१०५ मझिमिल्ल (मध्यम) ज ४।२५३,२५५,२५८ मणभक्खि (मनोभक्षिन) प२८११२,२८।१०४, मज्झिय (मध्यक) ज २०१५ मझिल्ल (मध्यम) ज ३।१ मणसमिय (मनःसमित) ज १६८ मट्टिया (मृत्तिका) ज ३१२०६:५१५५,५६ मणसाइय (मनःस्वादित) ज ३।११३ मठ्ठ (मृष्ट) प २।३०,३१,४१,४६,५६,६३,६४ मणसीकत (मनीकृत) प २८।१०५ ज ११८,२३,३१,२।१५,४११२८:५॥४३ मणसीकय (मनीकृत) प ३४।१६,२१ से २४ सू २००७ मणसीकरेमाण (मनीकुर्वत्) ज ३१५४,६३,७१, मट्ठमगर (मृष्टमकर) प १२५६ १११,११३,१३७,१४३,१६७ मडंब (मडम्ब) प १७४ ज २।२२,१३१,३११८, मणहर (मनोहर) ज २१२,६५,३११३८,१८६, ३१,८१,१६७।२,१८०,१८५,२०६,२२१ २०४:४।१०७५1५,२८,३८,७/१७८ उ ३।१०१ मणाभिराम (मनोभिराम) ज ३।१०६ मण (मनस्) प २२१४:२३११५,१६, ३४१११२, मणाम (दे० 'मन' आप) ५२८1१०५ ज २१६४; ३४१२४ ज २१६४,७१,३।३,३५,१०५,१०६% ३११८५,२०६५।५८ उ ११४१,४४,३।१२८; ४११०७,१४६,५।३८,७२,७३ सू २०१७ ५१२२ उ ११५,३५,४१ से ४४,७१,३।१८ मणामतर (मन:आपतर) ज २१८,४।१०७ मणगुत्त (मनोगुप्त) ज २०६८ उ ३९E मणामतरिय ('मन' आपतरक) प १७११२६ से मणजोग (मनोयोग) प ३६।८६,८८,८६,६२ १२८,१३३ से १३५ ज २।१७ मणजोगपरिणाम (मनोयोगपरिणाम) प १३७ मणामत्त ('मन' आपल) प २८१२६,३४१२० मणजोगि (मनोयोगिन् ) ३९६:१३.१४,१६ मणि (गणि) प ११२०१२,२।३१।४१,४८,१५।११२, १८१५६,२८११३८ १५।५० ज १११३,२१,२६,३३,४६:२।७,२४, मणपज्जत्ति (मनःपर्याप्ति) प २८।१४२,१४४,१४५ ५७,६४,६६,१२२,१२७,१४७,१५०,१५६, मण (पज्जवणाण) (गन:पर्यवज्ञान) प २६:१७ १६४,३।१,६,२०,२४,३०,३३,३५,५४,५६, मणपज्जवणाण (मनःपर्यवज्ञान) प ५१२४,११५, १. भिक्षुशब्दानुशासन पास१६ अरुभनश्चक्षु.. Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणिकंचण-मणुस्सलोय ६३,७१,८१,८४,६५,१०६,११७,१३७,१४३, १४५.१५६,१६७८.१२,१७८,१८२,१६२, २२२:४१३.१६,२५.४६,६३,८२,११४:५:१६, ३२.३८ सू२०१७,१८ मणिकंचण (मणिकाञ्चन) ज ४।२६६१ मणिदत्त (मणिदत्त) उ ५१२४,२६ मणिपेढिया (मणिपीठिका) ज ११४३,४४,४।१२, १३,३३,१२३,१२४,१२६.१२७,१३२,१३३, १३६,१३६,१४५,१४६,१४७,२१८,२१६% मणिमय (मणिय) प २१४८ ज ११४३,३।२०६; ४१५,७,१२,१३,२६,२७.४६,११४,१२३, १२४;५।३५.५५ मणिरयण (मणिरत्न ज ३१६,१२,२४,३०,८८, ६२,६३,११६.१२१,१७८,२२०,२२२,४।१६, ४६,६७, ५।२८,५८,७१७८ मणिरयणक (मणिरत्नक) ज ११३७,३।६३ मणिरयणत्त (मणिरत्तत्य) प २०१६० मणिवइया (मणिमती) उ ३३१५०,१५८ मणिवई (मणिमती) उ ३।१६६ मणिवर (मणिवर) ज ३१६२,११६ मणिसिलागा (मणिशलाका) प १७:१३४ मणुई (मनुजी) ज २११५ मणु ण (मनोज्ञ) प २३।१५,३०२८।१०५; ३४.१३,२१ ज २१६४, ३।१८५,२००; ४।१०७; ५५३८.५८ सू २०१७ उ ११४१,४४, ३११२८,५१२२ मणण्णतर (मनोज्ञतर) ज २११८४११०७ मणुण्णतरिय (मनोज्ञतरक) प१७११२६ से १२८, १३३ से १३५ ज २१७ मणुण्णत्त (मनोज्ञत्व) १ ३४।२० मणुणस्सरता (मनोज्ञस्वरता) प २३।१६ मणुय (मनुज) प ६१८०२,६८१;२०१५३, २३।३६,८३.११३,१४६,१७२,२८!१४४, १४५:३१।६।१,३२।६।१ ज ११२२,२७,५०; २२१४,१६,१६,२१ से २६,२८ से ३७,४१ से ४६,५६,५८,६४,१२३,१२८,१३३,१३४, १३५,१४६,१४८,१५१,१५७,१५६,४१८५, १०१,१७१ उ १२१४,१५,२१,३१६८,१०१, १३१,५१२३,३१ मणुयअसणिआउय (मनुजासंज्ञयायुषक) प २०६४ मणुयगति (मनुजगति) प ६३,८ मणुयगतिय (मनुजगतिक) प १३.१६ मणुयगामि (मनुजगामिन् ) जे १२२,५०:२।१२३, १२८,१४८,१५१,१५७,४।१०१ मणुयगतिपरिणाम (मनुजगतिपरिणाम) प १३१३ मणुयरयण (मनुजरत्न) ज ३१२२० मणुयलोग (मनुजलोक) सू १६।२१।८ मणुयलोय (मनुजलोक) सू १९१२२३१,३ से है मणुयदइ (मनुजपति) ज ३१३ मणुयाउय (मनुजायुष्क) प २०१६३,२३।१८,१५८ मणुस्स (मनुप्य) प११५२,८२ से ८५.१२६; २।२६,३।२५,३८,३६,१२६,१८३,४१५८ से १६४,५३३,२३,२४,१००,१०१,१०३,१०४, १०६,१०७,११०,१११,११४,११५.११८ से १२०,६१२३,२४,४६,५५,६५,६६,७०,७२, ७६.८१,८२,८४,९०,६२,६४,९६,६७,६९ से १०४,१०८,११०,११३,११६,७१४८1८,६; 810 से १०,१६,१७,२२,२३,१११२१,२२, २४,२६,१२१५,३२,१३।१६:१।१२२; १७१४५,४६.१२६.१६४,१७१:१६।४,२१७, ४८,२२१३६२३.१६४,१६८; २६६१५; ३४॥३,३६।१।१,३६.४१,५२ ज २१६,७,५०, ५३,१६२,१६४,३१६८,१७८,२२१ सू २।३; १६।२२।१३,२०१२ उ १११२१,१२२,१२६, १३३,१३६,१३७,१४० मणुस्सखित्त (मनुष्यक्षेत्र) ५११७४ मणुस्सखेत्त (मनुष्यक्षेत्र) प १३८४,२१७,२६ सू१६॥२२॥२१ मणुस्सगामि (मनुष्पगामिन् ) ज २१५८ मणुस्सरुहिर (मनुष्यरुधिर) प १७११२६ मणुस्सलोय (मनुष्यलोक) सू २०१२ Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१२ मस्साउय-मत्थय मणुस्साउय (मनुष्याप्क) प २३३१४७,१६२,१६५, मणोणुकूल (गनोनुकूल) मु २०१७ १७० मणोमाणसिय (मनोमानसिक) उ १५१३ मणुस्सी (मानुषी) प ३।३६,१३०,१८३।११।२३; मणोरम (मनोम) प ३४११६,२१,२२ १७.४८,१६०; २३।१६४,१६८,२०१ ज २७ ज ४२६०१,५३४६।३,७१७८ ५११ मणस (मनुष्य) प६८४,८७,१५१३५,४४,४५, उ ५।२८ ४७ मे ५०८७,६१,९८,१०३ से १०६,११५, मणोरह (मनोरथ) ज ३८८,२२१ १२११२३,१२६,१३८,१६१८,१५,२५,२८, मणोहरमाला (मनोरथमाला) ज २१६५,३११८६, १७।२४,२५,३०,३३,३५.४७,७०,६७,१०४, २०४ १५७,१५६ से १६३,१६६,१६७.१७०,१७२; मगोसिला (मन शिला) पश२०१२ ज ३।१११३ १८१४,१०,२०१४,१३ १८,२५,३०,३२.३५, मणोहर (मनोहर) प ३४११६,२१ ज २११२; ३६,४८, २१११६,२०,३६,५४,६०,६६,७२, ७११७१ सू१०८६१ ७७,८२,८६,२२॥३१,४५,७५,७६८०,८३ से मिण (मन्) मण्णामि प १११ मण्णे १२१५; ८५,८८,६०,६६,१००।२३।१०,१२,७६, ३९८ १६६,२००,२४१३,८,१०,१२,२५।४,५, मति (मति) प १३।१० ज ३११ २६॥३,४,६,८,१०,२७।२,३,२८१२,४६ से मतिअण्णाण (मत्यज्ञान) प ५१५,७,१०,१२,१४, ५१.६७ से ६६,७१,१०३,११६ से १२१, १६,१८,२०,५६,६३,२६४२,६,६,१२,१७,१६ १२४,१२८,१३०,१३६ से १३८,१४१ से से २१ १४३,२६।२२,३०।१४,२४,३११४,३२१४; मतिअण्णाणपरिणाम (मत्यज्ञानपरिणाम) १३.१० ३३११,१३,२१,२६,३३,३६,३४१६;३५१४, मतिअण्णाणि (मत्यज्ञानिन्) प ३.१०३:५१८०,६६, २१,३६७,१०,११,१३ से १५,१७,२६,३०, ११७:१३३१४,१६,१७:१८८३ ३१,३३,३४,५८,७२,८०,८१ ज ४।१०२, मतिणाण (मतिज्ञान) प २६६ ७.२० से २५,७६,८२ सू २१३ मत्त (मत्त) ज २।१२ मणूसखेत्त (मनुप्यक्षेत्र) प २११६२,६३ मत्त (अमत्र) म् २०१४ उ १६३,१०५,१०६ मणूसत्त (मनुष्यत्व) प १५।१८,१०४,११०,११५, मत्तंग (मत्ताङ्ग) ज २।१३ १२६,१३०,३६।२२,२६३०,३१,३३,३४ मत्तजला (मत्तजला) ज ४।२०२ मणूसाउय (मनुष्पायुष्क) प २३७६ मत्तियावई (मत्तिकावती) प १६३।४ मणसी (मनुष्यणी) २७१५८,१५६,१६१ ले मत्थगसूल (मस्तकशूल) ज २०४३ । १६४,१८१४,१०,२०११३:२३।१६६,२०१ मत्थय (पस्तक) ज ३१५,६,८,१२,१६,२६,३६, मणोगम (मनोगम) ज ७१७८ ४७,५३,५६,६२,६४,७०,७७,८१,६२,८४, मणोगय (मनोगत) ज ३।२६,३६,४७,५६,१२२, ८८,६०,१००,११४,१२६,१३३,१३८,१४२, १२३,१३३,१४५,१८८५२२ उ १।१५,५१, १४५,१५१,१५७,१६५,१८१,१८७,१८६, ५४,६५,७६,७६,६६,१०५:३३२६,४८,५०, २०५,२०६,२०६,२१८,५१५,२१,४६,५८ ५५,६८,१०६,११८,१३१,५१३६,३७ उ ११३६,४५,५.५,५८,८०,८३,६६.१०७, मणोगुलिया (मनोगुलिका) ज ४१२६ १०८,११६,११८,१२२,३११०६,१३८,४११५; मणोज्ज (मनोज्ञ) प ११३८.१ ज २०१० ५.१७ Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मदणसलागा-महंत मदणसलागा (देनशलाका) प १७६ मदणसाला (मदन शाला) उ ५१५५ मद्दम (दे०) १ ११३७६४ मद्दव (मार्दव) ज २०१६,७१ मदुग (मद्गुक) ज २।१३७ मधु (मधु) प १७४१३४ ज २।१०६,११० मधुर (मधुर) ज ३।१८६,२०४ मिन्न (मन्) मन्ने ज ३।१०५ मम्म (मर्मन) उ १६६ मम्मण (मन्मन) उ ३६८ मय (पद) च ११ मयकिच्च (मृतकृत्य) उ ११६२ मयणिज्ज (मदनीय) प १७:१३४ ज २०१८ मयूर (भयर) प १७६ ज २११५ उ ५।५५ मरगय (मरकत) ११२०१३ ज ३११०६ मरण (मरण) प १४११२१६४;२१६४१६,२२; ३६।१।१,३६१८३१२,६४।१ ज २७०,८८, ८६,१०३,१०४,३१२२५ सू २०६६ उ ३३११२,१५६;४।१६ मरीइ (मरीचि) ज ११३७ मरीइया (मरीचिका) ज १३२ मरुदेव (मरुदेव) ज २१५६.६२ मरदेवा (मरुदेवा) ज २६३ मरुय (मरुक) प १८६ मरुयग (रुबक) प ११४४।३ मरुआ मरयरायवसभरुप्प (मरुद राजवृपभकल्प) ज ३११८,६३,१८० मरुयापुड (मरुबकपुट) ज ४११०७ मलय (मलय) प ११८६,१।६३१३ ज ११२६,३।२) २११:५१५५ उ १११०,२६.६६५११ मलयगिरि (लागिरि) ज ३१२४ मलिण (मलिन) ज २११३३ भलिय (मदित) ज ३१२२१ उ ११३५,३१५०, ११०,११३:४२० मल्ल (माल) ५२१३०,३१,४१,४६ ज २११२०: ३१६,११,१२,२१,३४,५५५,५७ उ ११३५; ३१५०,११० मल्ल (मल्ल) ज २१३२,३७८,८५,८८,१८०, २०६,२११,२२१,५।२२,२६ मल्लई (मल्लवि) उ ११२७ से १३०,१३२ मल्लदाम (माल्यदामन ) प २१३०,३१,४१ ज ३७,६,१२,१८,२८,३०,३५,४१,४६,५८) ६६,७४,७७,७८,८८,६३,११७.११६,१४७, १६८,१७८,१८०,२१२,२१३,२२२ मल्ल (वासा) (माल्यवर्षा) ज १५७ मल्लि (मल्लि) ज ३।१०६ मल्लिया (मालिका) ५ ११३८२ ज २।१०; ३.१२,८८,१७८,५१५,५८,७४१७८ महिलयापुड (पल्लिकापुट) ज ४।१०७ मविज्जमाण (माप्यमान) प ११४८।५६ मवेज्जमाण (माप्यमान) प ११४८।५८ मसग (मशक) प ११५११ ज ६४० उ ३१२८ मसारगल्ल (दे०) प ११२०१३ ज ३।१०६५ मसि (मसि, मपि) ज २१२३ मसूर (मसूर) ११४५।१,१७६१५१३,२१; २११२३,८० ज २।३७ मह (महत) प २१३०,३१,४१,४६,६२,२३११९३ ३६.८१ ज १।१२,१४,३७,४०,४२,४३; २३१,३।२४,१६१,१६३,१६४,१६७,४१३, ६,६,१२,१३,२४,२५,३१,३३,३६ से ४१,४७, ४६,५६,६६ से ६८,७०,७४,७५,७६,८८,६३, १५६,२१६,२१८,२२१,२३५,२४३,२५०; ५।५,,३५ से ३८,५४,६७,७१५० मह (स्थ) पहिति ज ५११६ महेइ उ ३१५१ महाल (महाश्व) ३१७६ महइ (महती) प २१२७ ज १११०; २१११४,११५; महइमहालिय (महती हत) ११२०:४।१४ महंत हा प २३।१३३१६,२६, ३२ ११०,२६.६६; १११ Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१४ महंत तर ( महत्तर ) ज ४८०, १०२ महग्गय ( महाग्रह ) ज ७।११३ महाह ( महाग्रह ) ज ७३१, १०४,१७० सू १०११३०; १६१५,८ १११३,१५१३, १६, २११४, ७, १६२२१६, १३, २०१८ उ ३२५, ८४ से ८६ महग्गहत्त ( महाग्रहत्व ) उ ३१८३ महग्घ ( महार्घ ) ३८५, २०७, २०८, २२२; ५५५४ सू २०१७ उ १।१६,४२, ३१२६, १४१, ४।१२ महज्जुइ ( महाद्युति) ज ११२४, ३१: ३ ११५, १२४, १२५,२२६; ४।१६५६५११८ महज्जुइय ( महाद्युतिक ) प २०४६ महज्जुतीय (महाद्युतिक ) प २२३०, ४१३६।८१ महढिय (महद्धिक ) प २१४६ महड्ढीय (महद्धिक) ज ४।१७७ महण ( मथन ) ज ३।२२१ महत (महत्) सू १८।२३ महति ( महती ) ज ३१३१ महतिमहालय (महती महत् ) प २२६३ महत्तरंग ( महत्तरक) उ १११६ महत्तरगत ( महत्त रकत्व ) प २१३०,३१,४१,४६ ज ३११८५,२०६,२२१५।१६ उ ५ १० महत्तरिया ( महत्तरिका ) ज ४।१८६५।१ से ३, ५ से १०,१२ से १७ उ ३६० ४/५ महत्थ ( महार्थ ) ज ३।२०७, २०६५/५४,५५ महदंडय ( महादण्डक ) प ३।११२ महद्दह (महाद्रह ) ज ५।५५; ६।१७ महत्था ( महाप्रस्थान ) उ ३२५५ महत्व ( महात्मन् ) ज ३ ७७, १०६ महम्बल ( महाबल ) प २।३०,३१,३६।८१ उ ५३२५ महया (महत्) ज ११२६,४५,२२१२,६५,३२,१२, २२,३६,७८,८२,८८,८६,६३,६६, १०२, १०६, १५५,१५६,१८०, १८५, १८७,२१२, २१३, २१४,२१८; ४।२३,३८,६५,७३,९०,६१,१७७; महंत तर महाण ५१२२,२६,५६,५७,५८,७२,७३,७।५५,५८, १७८१८४ सू १६/२३,२६ उ १।१०,२३, २६,६०,६२,६५,६८,६६,७२,८५,८७,९१ से ६३,१३८, १३६, ५८, ११,१६,२०,२७ महरिह ( महार्ह ) ज ३१६,८१,११७, २०७, २०८, २२२; ५।५४ महव्वय ( महाव्रत ) ज २१७२ महा ( मघा ) ज ७ १४७, १५०, १६२,१६३ १० ११ से ४,६,१४,२३,६६,७०,७५,८३.१२०,१३१ से १३३ महाओहस्सर ( महौघस्वर ) ज ५।५१ महाकंदिय ( महाऋन्दित ) प २१४१,४२,४७१ महाकण्ह ( महाकृष्ण ) उ १७ महाकच्छ ( महाकच्छ) ज ४११८२ से १८५ महाकच्छकूड ( महाकच्छकूट ) ज ४।१८६ महाकम्मतराग ( महाकमंत रक ) प १७१४, १६ महाकाय ( महाकाय ) प २१४१,४५, ४५१२ महाकाल ( महाकाल ) प २२२७, ४४, ४५, ४५११, २/४६, ४७ ज ३।१६७११,८,१७८ २०१८, २०१८/५ उ ११७ महाघोस ( महाघोष ) प २२४०१७ ज ५१४८, ४६ महाचाव (महाचाप) ३१२४१४, ३७२, ४५१२, १३१।४ महाजस ( महायशस् ) स १७।१;२०११, २ महाजाइ ( महाजाति) १|३८|३२|१० महाजुतिय ( महाद्युतिक ) प १७।१२० १,२ महाजुतीय (महाद्युतिक ) प २१३४ महाजुद्ध ( महायुद्ध ) ज २१४२ महाण (महानदी) ज १११६,१८,२०,४८,२११३३; १३४,३८१,१४,१५,१८,५१,५२, ७६.७८,८१, ६७ से १०१,१११,११३, १२८, १४६ से १५१, १६१,१६४,१७०,४।२३, २४, २५,३५,३६,३८ से ४०, ४२,५७,६५ से ६७,७१,७३,७४,७७, ७८,६४,६० से १२, १४, १५, ११०, १४१, १४३, १६७, १६६, १७४, १७७,१७८, १८१,१८३ से १८५,१८७, १८६, ११०, २००, २०१,२०२, Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाणक्खत्त-महावीर २०६,२०८,२१२,२१५.२३२,२६२,५१५५; महाभीम (महाभीम) प २१४५,२।४१ ६।१ से २२ उ ११६७,३१५१,५६,५८ महामंडलिय (महामण्डलिक) प१७४ महाणखत्त (महानक्षत्र) सू १०२५,४३,१०८ महामति (महामन्त्रिम्) ज ३१९,७७,२२२ महाणदी (महानदी) ज ४।१६५,२६८ महामहिम (महामहिमन्) ज २१११७,११८, महाणिरय (महानिरय) प २।२७ ३।१२,१३,१४,२८,३०,४१,४२,४६ से ५१, महाणिहि (महानिधि) ज ३।१७८,१८३,२२०, ५८ से ६०,६६ से ६८,७४ से ७६ १३६,१३६, २२१ १४७ से १५१,१६८,१६६,१७०,५७४ महाणुभाग (गहानुभाग) प १३०,३१,४१,४६, महामेह (महामेघ) ज २।१०,१४१,१४२,१४५, ३६.८१ ज १।२४,३१,३१११५,१२४,१२५, ३।६,१७,२१,३१,३४,३५,१७७,२२२ उ ३३४६ २२६, ४१६०।५।१८ सू १७११, २०११,२ महायस (महायशस्) प २१३०,३१,४१.४६; महाणुभाव (महानुभाव) सू १७१:२०६१,२ ३६८१ ज ११२४,३१,३१११५,१२४,१२५, महातव (महातपस्) ज ११५ २२६,५१८ महादंडय (महादण्डक) प ३.१८३ महारह (महारथ) ज ३१३५ महाद्दुम (महाद्रुम) ज ५।५१ महाराय (महाराज) ३१२०७,२०८,२२५ उ ३१५१, महाधणु (महाधनुष) उ ५१२।१ महानिहि (महानिधि) ज ३३१६७११,१० महारायवास (महाराजवास) ज २१६४ महानील (महानील) प २।३१ से ३३ महारुधिरपडण (हारुधिरपतन) ज २२४२ महापउम (लहापा ) ज ३।१६७।१,६,१७८ महारोरुय (महारोरुक) प २७ उ २१२,२० महालय (महत, महालय) प २१२७,६३ महापउमद्दह (महापद्मद्रह) ज ४।६४,६५,७३,८६ ज।११४,११५:५१४३ महापउमा (महापद्मा) उ २६१६,२० महावच्छ (महावत्स) ज ४२०२११,२०३ महापम्ह (महापक्षा) ४।२१२,२१२।१ महावप्प (महावप्र) ज ४।२१२,२१२।३ महापह (महापथ) ज ३११८५ २१२,२१३; ५७२, महाविजय (महाविजय) ज २०१७ ७३ उ १६८ महावित्त (महावृत्त) ज ५।५८ महापाताल (महापातान) प २१६१ महाविदेह (कहाविदेह) प १७४,८८,२१७ महापुंडरीय (महापुण्डरीक) ज ४१२६८ ज ४८६,९८ से १०३,१०८,१६२,१६७, महापुंडरीयहत्वगय (हस्तगतमहापुंडरीक) ज ३११० १६६,१७२ से १७४,१७८.१८१,१८२,१८४, महापुरा (महापुरा) ज ४।२१२।२ १८५,१८७,१८८,१६०,१६१,१६३,१६४, महापुरिस (महापुरुप) परा४५,२१४५२ १६६,१६७,१६६,२०० से २०३,२०५,२०६, महापुरिसपडण (महापुरुषपतन) ज २१४२ २१३,२६२, ६१६,१४,२२ उ ११४१,१४७, महापोंडरीय (महापौण्डरीक) प ११४६ ज ४१३,२५ २११३,२२,३।१८,२१,८६,१५२.१६५,१६६; महाफल (महाफल) उ ११७ ४।२६,२८,५४३ महाबल (महाबल) प २६३१,४१,४६ ज ११२४, महाविमाण (महाविमान) प २०६४ ३१,३७७,१०६,११५,१२४,१२५,१२६, महावीर (महावीर) प१:१११ : १५,६,७१२१४ २२६५।१८ सु१७११,२०११.२ उ २६ चं १० सू ११५ १६२४८,१६,१७,१६ ५।१३,२५ से २६,१४२,१४३,२११ से ३,१० से १२,१४, Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१६ ईमहावेदणतराग-महेसर १५,२१,३११ से ३,७,८,१२,१९.२०,२२, महिंदज्झय (महेन्द्रध्वज) ज ४११२८,१३३,१३६; २३.२६,८७,८८,६१,६३,१५३,१५४,१६६, ५।४३,४४,४६,५०,५२,५३ उ ३।७ १६७,१७०४१ से ३,२७,५११ से ३,४४ महिड्ढीय (महद्धिक) परा३०,३४.३५ से ३७, महावेदणतराग (महावेदनतरक) प १७६,२७ ३६,४१,४६,४६,५०,५८ महासंगाम (महासंग्राम) ज २।४२ महित्ता (मथित्वा) ज ५:१६ महासत्थपडण (महाशस्त्रपतन) ज २१४२ महित्य (दे०) प ११३७६४ महासमुह (महासमुद्र) ज ३२२,३६,७८,६३,६६, महिमा (महिमन) ५ २१६१,६०,११६,५३,७,२२, १०६,१६३,१८० ४६,७४ ज २।३१,६०,११६,५३,७,२२,४६, महासरीर (महाशरीर) प १७.२,२५ महासुक्क (महाशुक्र) प २१४६,५६,५७, ३१३५, महिय (महित) प २३०,३१,४१ ज ११३७,३७, १८३ ; ४।२४६ से २५१,६।३३,५६, ७।१४; । १०८ से १११ २११७०; २८।८१, ३३।१६३४११६,१८ महिय (मथित) उ ११२२,१४० उ २।२२ मह्यिा (महिका) प ११२३ महासुक्कग (महाशुक्रज) ज ५।४६ महिला (महिला) ज ११५,६४; ३११३८,१६७४ महासुक्कवडेंसय (महाशुक्रावतंसक) प २१५६ महिलिया (महिलिका) ज३।१२६।३ महासुमिण (महास्वप्न) उ१४० ४३ महिवड (महीपति) ज ३।११७ महासेणकण्ह (महासेनकृष्ण) उ ११७ महिस (हिष) प ११६४; २।४६,१११२१ महासेत (महाश्वेत) प २१४७१३ ज ३।२४,१०३ महासोक्ख (महासौख्य) प १३०,३१,४१,४६; महिती (महिषी) प १०२३ ज २।३४,७।१६८१२ ३६८१ ज १।२४.३१, ३।११५,१२४,१२५, महु (मधु) ज ७।१७८ उ १३४,४६,७४; ३।५१ २२६; ५११८ सू १७।१,२०११ महु (मधुः) प ११४८३ महाहिमवंत (महाहिमवत् ) प १६३३० ज ४१५४, महुयरी (मधुकरी) ज २०१२ १५,६१ से ६३,७६ से ८१,२६८ महुर (मधुर) प ११४ से ६ ५,७,२०५; महिड्ढिय (महद्धिक) परा३१,३७,३६.४२,४३, १११५८,१३१२८२३६४६,१०८, २८।२६, ४८,५०,५२; १७८४ से ८७,८६, ३६१८१ ३२,६६ ज २।१२,१५.६५,१४५,४।३,२५; ज ११२४,३१,४५,४७,५१,३१११५,१२४, ५२८,७१७८१४१,४४,३१६८ १२५,२२६; ४१२२,३४,५१,५४,६०,६१,६४, महुरतण (धुरतृण) प ११४२।२ ८०,८४,८५,६७,१०२,१०७,११३,१५६, महुरयर (मधुरतर) ज ५१२२ से २४ १६१,१६५,१६६,१७७,१८०,१८४,१८६, महुररस (मधुर रस) प ११४८१४ १९६,१६८,२०३,२११,२६१,२६४,२६६, महुरा (मथुरा) प ११६३५ २७२,५१८,७१८१,२१३ सू १७।१; मसिंगी (मधुशृङ्गी) प १४८३ १८।१६,२०११,२ महुस्सर (मधुस्वर) प ५१५२ महिंद (महेन्द्र) ज १२६,३१२ उ ११०,२६,६६; महेत्ता (मथित्वा) उ ३१५१ महेसर (महेश्वर) प २।४७।२ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महोरग-मायणि १०१७ महोरग (पहोरग) प ११६८,७५,१३२, २१४५ ज ३३११५.१२४,१२५ माणकसाई (मानकपायिन्) प ३१६८:२८।१३३ महोरगच्छाया (महोरगच्छाया) घ १६१४७ माणकलाय (मानकपाय) प १४।१ मा (मा) उ ११४१३।१०३,११२ ; ४।११ भाणकतायपरिणाम (मानकषायपरिणाम) प १३१५ माइ (मात) उ ११४८, २२,४१२८; ५।४३ माणसायि (पानकपायिन्) प ३९८ माइमिच्छद्दिदिठ (मायिथ्यावृष्टि) ११५१४६; माणणिस्तिया (माननिश्रिता) ११११३४ १७२२; ३४६१२; ३५।२३ मामूरण (मानभजन') ज ५१५८ माइमिच्छहिटिउवद गहरा भाणवग (माणवक) ज २०१२०,३११६७११,६, (मायिमिथ्यादष्ट्युपपन्नक) प १७.२७,२६ ३३१७८,४।१३५ सू २०१८ माइमिच्छद्दिट्ठीउववष्णग माणवय (मानवक) ज ४११३३७१८५ (मागिमिथ्यादृष्ट युपपन्नक) प १७१२७ सू १८१२३, २०१८४ माइय (मात्रिक) ज २११५ माणस (मानस) ३५.११२,३५१६,७ ज ५१२६ माईवाह (मातवाह) प ११४६ माणसंजलणा (भानसंज्वलना) प २३१७० माउय (मातक) ज ५६ से १२,१७,४६,७२,७३ मागसपणा (भानसंज्ञा) प८१,२ माउलिंग (पातुनिङ्ग) प ११३६११ माण सभुग्धाय (भान समुद्घात) प ३६४४२,४६, ४८ से ५२ मालिगाराम (मातुलिगाराम) उ ३४८,५५ माणि (मानिन्) ज ४११७२।१ सू २०१२ माउलिंगी (मातुलिङ्गी) प ११३७१ माउलुंग (मालुलिङ्ग) ५१६१५५१७।१३२ माणिक्क (माणिक्य) ज ३।१०६ माणिभद्द (माणिभद्र) प २।४५,२१४५१ ज ११३; मागह (मागध) ज ५१५५;६।१२ से १४ ७।२१४ चं ७,६ सू ११२,४ उ ३।२।१,३।१६६ मागहकुमार (मागधकुमार) ज ३।१६१ माणिभड्कड (माणिभद्र कूट) ज १२३४,४६ मागहतित्य (मागधतीर्थ ) ज ३११४,१५,१८,२२, माणस (मानुष) प २०६४।१४ ज २।१५,६७, २६:५५५ ३१६२,११६,४११७७ सू १९२२।२२०१२ मागहतित्थकुमार (गवतीर्थकुमार) ३।२०, माणुसमेत मानुषक्षेत्र) - १६।२१।१,२,१६०२६ २६,२७,२८.३० मागहतित्थाधिपति (मारघतीर्थाधिपति) १२५. माणुग (मानुष) १९२२५२७,२६ SAVध (मानुपलोकः) सु १६२११६,२०१२ मागहतित्याहिवाई (मागधतीर्थाधिपति) ३१२६ माघी (माघी) ज ७१४० मासुत्तर (बानुषोत्तर) अ ७।५५,५८ सु १६३१६ माडंबिय (माउम्बिक) प १६४१ ज २२५,३६, ___मास्लग (मनुष्य) उ ३।१३७ १०,७७,८६,१७८,१८६,१२८,२०६,२१०, माणुसब (मनुष्य) ज ३८२,१८७,२१८, २२१:४११७७ २८ २०१७ उ १।११,३४,५२२५ २१६,२१६,२२१,२२२१६२३१११, माता (जात्रा) प १६४ १०१,५११० माढरी (नाठरी) प ११४८।४ माय (मा) माजा परा६४।१६ माढी (माठी) ज ३।३१ भायंजन (पाताञ्जन ज ४।२०२ माण (मान) प ११४३४११:१४१४,६,८,१०१४; मायापायिन) १३१६८,१८१६५ मायण (भादनि) उपा२१ २२।२०,२३१६,३५,१८४ ज २११६,६६,१३३; ३१६५,१३८,१५६,१६७१३,२२१ सू१२।१७।१ १.० ४।१०६ Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१८ माया ( माया ) प ११।३४। १ १४१४, ६, ८, १० से १४;२२।१०:२३।६,३५,१८४ ज २।१६,६६, १३३ ७ ३।३४ माया (मा) २२७,६६,५५,७ से १०,१२, १४,१७,४६.६७ उ १।१४८ माया (मात्रा) ज ४३६, ४३,७२, ७८, ६५, १०३, १४३.१७५,२००, २१३ मायाकसाई (मायाकपायिन् ) २८१३३ मायाका ( मायारूपाय ) १४८१ माया कसा परिणाम ( मायाकपायपरिणाम ) १३१५ मायानिसिया ( मायानिचिता) ११३४ मायामोस ( मायामुपा) २२२०,८० मायामसविर ( मायामुपाविरत ) प २२६५,९६ मायावतिया ( मायाप्रत्यया ) प १७।११,२२,२३, २५, २२/६०,६३,६८,७१,६३,६६,१०१ मायासंजलन (माया) २३७१ मावासणा ( मायासंज्ञा ) प ८१,२ मायासमुग्धात (मावासमुद्घास ) प ३६४६ मायासमुग्धाय ( मायासमुद्घात ) प ३६१४२,४८ ख ५१ मारणंतियसमुग्धाय ( मारण न्तिकममुद्धात ) १५४४३ २१८४ से १३२६११,४,७,२७, २६,३५ से ४१,४६,५३ से ५८,६६ मार (मार ) ज ५१३२ मार ( मारय्) भारि १२८९ मारिवल (मारिबद्दल ) १२१८ मात्य (मारुत) ज ५५ मारे काम ( मारयितुकाम) उ १४७३ माल (मालक) प ११३७।५ नीम माल (माला ) प २१५० ज ५११८ मालव ( मालव) व शब् मालवंत ( माल्यवत् ) ४११००१४२०३, १४३, १६२१२,१६३ से १६७,१६९.१७२ से १७४, २०३,२०७,२०,२१०,२१५,२६२ मालवंतकूड ( माल्यवस्कूट) ४।१६३ माया- माह मालवंत माल्यवत् ज ४।२६२ मालवंतपरिया ( माल्र्या) १६३० ज ४१२७२ माला ( माला ) प २।३०,३१,४१,४६ ज ३१६,२०, ३३,४७,५४,६३,७१,८४,११३,१३७, १४३, १६७,१६२,१८६,२०४,२२२ मालागार (मालाकार) ज ५०७ मालि (मालिन् ) प १४७१ सांप विशेष मालिया (मालिका) ७१७८ माय ( मालुक ) प १०३५११ माया ( मालुका) प १४४००५, १५० मास (मास) प ४११०१,१०३६३५,१३ से १६, ३५,३५,४४; १८१२३ २३६६,७०,१६५, १०४ ज २१४,६४,६१,८२,८८३।११९: ७११४१२, ११४१२६, १२७,१३६१,१५६ से १६७५३ १९६१: ०१ १०१६३ से ७४,१२४; १२३ से ६,१० से १२.१५; १३१३,१४,१७१५।१४ से २०६२०८३ उ ११३६, ४०, ४३, ५३, ७४, ७८, ३०४० मास ( माष ) प १/४५ १ ज २१३७६३।११६ उ ३१३६.४० मासक्षमण (माक्षपण) उ२०१० २०१४,८३ ४।२४ : ५१२८,३६.४३ मासचुण्ण ( माषचूर्ण) प ११७६ मासद्ध ( मासार्थ) उ २१०६३।१४ ६३ ४२४ ५१२८,३२,४३ मासपण्णी (मापपर्णी ) प ११४८१५ मासपुरी ( मासपुरी ) प १११२३४५ मासल ( मांराल ) प १७।१३४ मासंग (मास 'सिंगा ) प ११७८ उडद की फली मासवल्ली (मापवल्ली ) प १४०१४ मासि (मासिक) ज ३२२५ मासिया ( मासिकी उ२।१२:३४५० १६१,१६९. १२८,४३ माह (माघ) २२८८७ १०४ १०।१२४ उ ३३४० Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहण-मिसिमिसेत १०१६ माहण (माहन) उ ३।२८,२६,४५,४७,४८,५०, ६६,७२ से ७४,६४,६५,६७ से ६६.१०१ ५५,५८,६०,७५,७६.७६ मिच्छादसणसल्ल (मिलादर्शन शल्य) प २२।२०,२५ माहणकुल (माहनकुल) उ ३३१२५ मिच्छादसणसल्लविरय (मिध्यादर्शनशल्यविरत) माहणरिसी (मानषि) उ३१५१ से ५७,६२,८२ प २२।८६,८७,८६,६०,६७ से १६ माहणी (माहनी) उ ३।१२६ से १३१,१३४ से मिच्छादसणसल्लवेरमण (मिथ्यादर्शनशल्यविरमण) १४४,१४७,१४८ प २१०८१,८२ माहिद (माहेन्द्र ) प १११३५२१४६,५३,५४,६३; मिच्छादंसणि (मिथ्यादर्शनिन ) प २२१६५ ३।३२,१८३,४१२४० से २४२,६१३०,५६.६५, मिच्छादिट्ठि (निश्यादृष्टि) प २३:१६५ १५।८८२१८७०,२८७८,३४।१६,१: मिज्जमाण (मीयभान) सू १२।२ ज ५१४६७१२२।१ सू १०1८४१ उ २।२२ मित (मित) उ १४१,४४ माहिदग (माहेन्द्रक) ५ २१५३; ७१११,३३।१६ मित्त (मित्र) ज २।२६,३१८७,७।१२२२१, माहिंदवडेंसय (माहेन्द्रावतंसक) प २०५३ १३०.१८६.४ सू १०१८४१ उ ३१३८,५०, माही (माघी) ज ७.१३७,१४६,१५३,१५४ ११०,१११:४।१६,१८ सू १०७.१४,२३,२५,२६ मित्तदेवया (मित्रदेवत।) सू १०३ माहेसरी (माहेश्वरी) प १६८ मिय (मृग) प ११६४१११४ ज २।३५ उ ५१५ मिउ (मृदु) ज २११६,३।११७७।१७८ मिय (मित) ज २०१५ मिजा (मज्जा) प ११४८१४५,४६ मियंक (मृगाङ्क) म २०१४ भिग (मृग) प २१४६ सू १०।१२० मियगंध (मृगगन्ध) ज २१५०,१६४,४११०६,२०५ मिगसिरा (मृगशिरा) ज ७।१३६,१६०,१६१ मियलुद्ध (मृगलुब्ध) उ ३१५० सू १०१२ से ५.१२,२३,३८ मियवालंकी (मृगवालुकी) पश४८।४; १७:१३० मिगसीसावलि (मृगशीर्षावलि) ज ७१३३११ पियवालुंकीफल (मृगवालुकीफल) प १७।१३० मिच्छत्त (मिथ्यात्व) प २३१३ उ ३।४७ मिरिय (परिच) प १७।१३१ मिच्छत्तवेदणिज्ज (मिथ्यात्ववेदनीय) प २३११६८, मिरियचुण्ण (मरिचचूर्ण) प १११७६; १७।१३१ १८२ मियसिर (मृगशीर्ष) ज ७।१२८ मिच्छतवेयणिज्ज (मिथ्यात्ववेदनीय) १२३११७. मिरीइ (रीचि) ज ३१११७ ३३,६६,१३८,१५७,१६१,१६६ मिरीचि (मरीचि) सू २११ मिच्छत्ताभिगमि (मिथ्यात्वाभिगमन ) प३४११४ मिरीया (मरीचि) सू २१ मिच्छद्दिछि (मिथ्यादृष्टि) प १७४,८४; मिलक्ख (म्लेच्छ) प १८८,८१ ज ३१७७,१०६ ३११००,१८३ : ६।६७,१३।१४,१६,१७; मिलाइता (भिलित्वा) ज ५।६४ १७।११,२३,२५; १८७७; १९१से ५ मिलाय (मिलय) भिलाइ उ १११२५ मिलायंति २१४७२२३।१६६,२००,२८।१२६ ज ३१११ मिच्छादसणपरिणाम (मिथादर्शनपरिणाम) मिलायित्ता (मिलित्वा) ज ३११११ १३.११ मिलिय (मिलित) ५१६१५२२१८४ मिच्छादसणवत्तिया (मिथ्यादर्शन प्रत्यया) मिसिसित (दे०) ज ३११०६,५१२१ ५ १७११,२२,२३,२५, २२१६०,६५,६६, मिसिमिसेंत (दे०) ज ३१६,२४,२२२:५।२८ Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२० मिसमिसेमाण (दे० ) ज ३२६,३६,४७,१०७, १०६,१३३ उ १।२२,५७,८२,११५,१४० मिस्स (मिश्र) प ११४७२ मिस्केसी (मिश्रकेशी ) ज ५१११११ मिस्साकूर ( मिथिाकूर) सू १०/२० महिला (मिथिला) १ १।९३।३ ज ११२,३, ७।२१४ चं ६ से ८ सू १।१ से ३ उ ३१७१ मिहूण (मिथुन) ज २११२१४१३,२५ उ ५।५ मीसग ( मिश्रक ) प ३२२६१ मोसजोणि ( मिश्रयोति ) प ६।१६ मोसजोणिय ( मिश्रयोनिक ) प ६।१६ मोस ( मिश्रक) ज २।६५,६६ मीसाहार ( मिश्राहार) प २८।१,२ मीसिया ( मिश्रित ) प ९११३ से १७ मुइंग ( मृदंग ) प २१३०,३१,४१,४६, ३३।२४ ज ११४५३११२,२८,४१,४६,५८,६६,७४, ७८,८२, १४७, १६८, १८०, १८५, १८७, २०६, २१२,२१३,२१८, ५११, ५, १६७ ५५,५८, १८४ सू १८।२३; १६१२३,२६ इंगपुर (मृदंगपुष्कर ) ज २११२७ √ मंच (मुच्) मोच्छिहिति ज २११३१ पाउयार (पादुकाकार ) प १६७ मुंड (मुण्ड ) प २०१७,१८ २१६४,६७,८५,८७ उ ३।१३,१०६ से १०८,११२,११८,१३६, १३८, १३६४।१४,१२,५१३२ भाव (मुण्डभाव ) उ५।४३ मुंडि ( मुण्डिन् ) ज ३११७८ मुक्क (मुक्त) प २१३०,३१,४१ ज २११०,१५; ३७,८८,४।१६६१५७ मुक्केलम (दे० ) प १२८ से १३,१६,२०,२१, २३,२४,२७,२८,३१ से ३३ मुक्केलय (दे० ) प १२७ से १०,१६,२०,२४, २७, २८,३६ मुसुंद (मुकुन्द ) ३३१ मुग्ग (मुद्रा) प ११४५।१ ज २१३७३।११६ मुग्गचष्ण ( मुद्गचूर्ण) प १११७६ मिसि मिसेमाण- मुद्दा सुगपण्णी ( मुद्गपर्णी ) प ११४८५ मुसिंगा (मुद्ग 'सिंगा' ) प ११७८ मूंग की फली मुग्गसूव ( मुद्गसूप) सू १०।१२० √ मुच्च (मुच्) मुच्चइ प ३६८८ मुच्चति प ६३११० १२२,५०,२१५८, १२३, १२८; ४११०१ उ ३।१४२ मुच्चति प ३६।९१ मुच्चि हिइ उ १।१४१, ३०४६,५१४३ मुच्चिहिति २।१५१ मुच्चेज्जा प २०१८ मुच्छिय ( मूच्छित ) ज ५।२६ उ ११४७३।११४, ११५,११६ मुट्ठि ( मुष्टि) ज २१४१ से १४५;३।११५, ११६,१२२,१२४ मुट्ठिय (मौष्टिक, मुष्टिक ) ज २१३२, ५, ५ मुगाल ( मृणाल ) प ११४६, ११४८१४२२२६४ ३११०६ ४१३, २५ मुणालिया (मृणालिका) २३१ मुणेयश्व ( ज्ञातय ) प १३८ ३ २ ४०६,११; १५११४३ ज ४।१४२१३,७११३४१४ सू १६२२ ११,२२ मुक्त (मुक्त) ६८६ ३७६, ११६, ११७, २२५; ५१५,२१,४६ मुक्त (मूत्र) उ ३।१३०.१३१,१३४ मुक्तजाल (मुक्तजाल) ज ३११७७ मुत्तमाण (मुत्रयत् ) उ ३।१३०,१३१,१३४ मुसा ( मुक्ता ) ज ४।२७ मुत्ताजाल (मुक्ताजाल ) ज ३१३०,४७,२२२ मुक्तादास ( मुक्तादामन् ) ज ५३८ मुक्तालय (मुक्तालय ) प २१६४ मुक्तावलि (मुक्तावलि) ज ३।२११,४१२३,३८, ६५,७३,६०,६१ मुक्ति (मुक्ति) प २१६४ ज २०७१ मुत्तियाजालय (मौक्तिकजालक) ज ३।१०६ मुत्तिसुह ( मुक्तिसुख ) प २२६४११५ मुत्तोली (दे० ) ज ३११०६ मुद्दा (मुद्रा) प २१३१ Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुद्दिया- मेंढमुह मुद्दिया ( मृद्वीका ) प १३४०१४ मुद्दिया ( मुद्रिका ) ज ३१६,२११,२२२ मुद्दियासारय ( मृदवसारक ) प १७/१३४ मुद्ध ( मुर्धन् ) ज ५१२१,५८,६४, ७२ ७३ ७ १७८ मुद्धत ( मूर्द्धान्त) सु २०१२ मुख्य (दे० ) प १२५८ मुद्धाय ( मूर्द्धगत) ज ३१६२,११६ मुम्मुर (मुर्मुर ) प ११२६ मुम्मुरभूय ( मुर्मुरभूत) ज २११३२,१४१ मुय (मुच्) मुति २०१२ मुयंत ( मुञ्चत् ) ज २१२ मुरव (मुरज ) ज ३११२,७८, १८०,२०६ मुरुड ( मुरुण्ड ) प ११८६ मुरुंडी (मुरुण्डी) ज ३।११।२ मुसल ( मुसल ) प २/३०,३१,४१ ज २२६, १४१, १४५; ३।३,२०,३३.५४,६३,७१८४, ११५, ११६,१२२,१२४, १३७, १४३, १६७, १८२; ७१७८ मुसावाय (मृषावाद ) प २२/१२,१३,८० मुसावायविरय ( मुषाव: दविरत ) प २२८५ मुसुंढी (दे० ) प ११४८।१३ २१३०,३१,४१ मुह (मुख) ज २७१, १३३,३।१०५, १०६, १६७१११४।२३,३६,३८,३९,४३,६५,६६, ७२,७३,७८, ६०, ६१.९५, १८३. २६२; ७/१७८ उ ३१५५,५६,६३,६४,६७,६८,७०,७१,७३, ७४,७६, ४२१ महफुल्लय ( मुख फुल्लक) ज ७।१३३।२ मुहफुल्लसंठिया ( मुख फुल्ल' संस्थित) सू १०२४७ महभंडग ( मुखभाण्डक ) ज ३२१७८ मुहमंगलिय ( मुखमाङ्गलिक ) ज २२६४, ३३१८५ मुहमंड ( मुखमण्डप) ज ४११२२ मुहुत्त ( मुहूर्त ) ६१ से ४, ६ से १०,१७,१८,२२ से ३०,४५,७१३,३ से ६,२३६३, १२७,१३१, १८८ ज २२४१२,३. २०६६, १३४,३३२१२, २०६७/२० से ३०, ३६ से ३८,७६ से ८२, ५,६६,६८ से १००, १२२,१२६,१२७, १३४।१,२,३,१३५।१ से ४ च ३११:४११; ५२ सू१।७।१, ११६।१,११६१२, ११०, १३.१४, १६६ से १८.२१,२२,२४,२७,२१३, ३१२,४१८, ६; ६ १ ८ १ १ ६२,१०१२ से ५,८४,१३३,१३४, १५२ से १६५,११।२ से ६; १२१२ से ६, १२,१३,१६ से २८, १३१.३, १४१३७ १५२ से ४, ८, ९, ११, १२,३७,१७११३ ११२४, ४७, ६०,६२ १०२१ महत्तगइ ( मुहूर्त गति) चं ४।३ मुहुत्तग्ग ( मुहूर्ता) चं ५१ सू १६१; १०१२ १२/२ से मूल (मूल) प ११३५, ३६, ११४८११०, २०, ३०, ३४, ५.१ ज ११८,३५,५१, २२६, ३१२२२०, ४१७, १५, ४३,४५,७२,७८, ६०, ६५, ११०,११४; १२०, १४२।१,१४६,१५६।१,१७४,२१३,२४२; ५१६७७१३६,३८, १२४११, १२८, १२६, १३२/४, १३६,१४०, १४६, १५२, १६६, १६७, १७५सू १०१२ से ६, १८, २३, ५२,६२,७३ से ७५,८३,११७,१२०,१३१ से १३३; १२।२७; १८१७३५०, ५१,५३ मूलग (मूलक ) प ११४४१२, ११४५१२ ज ३१११६ मूलग्ग (मूलाग्र ) प १२४८१६३ मूलपासावडेंस ( मुप्रासादावतंसक) ज ४।१२० मूलय (मूलक ) प १।४८।२ मूलाग (मूलक) उ १९२ मूलापण ( मूलकपर्ण) सु १०।१२० मूलावीय (मुलन वीज) ज २१३७ मूलाहार (मूलाहार ) उ ३१५० मुसग ( मूषक ) प १९७८ मूसा ( मूषक ) प ११७६ मेइणी ( मेदिनी) ज २११५ मेहणीय (मेदिनीक) ज ३११८,३१,१८० (क) १०।१२० मेढा नगी लता मुह (मेंढमुख ) प ११८६ Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२२ मेघ-या मेहा (मेघा) ज ३३ मेहाणीय (मेघानीक) ज ३।११५,१२४,१२५ मेहावि (मेधाविन्) ज ३।१०६ मेहुण (मथन) २८१६,१७,८० मेहुणवक्तिय (मशनर) ज ७११८५ १८।२३, २४;२०१६ मेहुणसण्णा (मथुनसंज्ञा) प ८११ से ५,७ से १,११ मोढ (दे०) ३ ११८६ मोक्ख (मोक्ष) ज २।७१ मोगली (गली) एक जंगली पेड । १४०।५ मोग्गर (मुद्गर) ११३८१२; २१४१ ज २।१० मोग्गलयण (मौद्गलायन) ज ७।१३२२१ सू १०१६२ मोत्ति (मौक्तिक) ज ३११६७।८ मोत्तिय (मौक्तिक) २४६ ज २।२४,६४,६६) मेघ (मेघ) ज ३।२२४ मेघमालिनी (मेघमालिनी) ज ४१२३८ मेघस्सर (मेघस्वर) ज ५१५२ मेच्छ (म्लेच्छ) प २१६४१७ मेच्छजाइ (म्लेच्छजाति) ज ३१८१ मेढी (मेढी) उ ३।११ मेढीभूय (मेढीभूत) उ ३१११ मेत्त (मात्र) प ११४८६०,११७४,८४; १२११२, २४,३८,१५१०,२३,२११८४,८६,८७,६० से ६३,३३३१३,३६।५६,६६,७०,७४ ज २।१३४ उ ३।८३,१२०,१२१,१२७,१२८,१६१; ४१२४;५१२३ मेद (मेदस्) प २।२० से २७ मेधावि (मेधाविन्) ज ५१५ मेय (मेद) १८६ मेरग (मैरेय) उ ११३४,४९,७४ मेरय (मैरेय) प १७:१३४ मेरा (मर्यादा) ज ३१२६,३६,४७,७६,१३२,१३३, १३८,१५१,१८८ सू २०१६।४ मेराग (मर्यादाक) ज ३।१२८,१५१,१७०,१८५, २०६,२२१ उ ५.१० मेरु (मेरु) ज ४१२६०।१७।३२११,७१५५ सू ५।१; ७।१:१६२२११०,११,१६१२३ मेरुतालवण (मेरुतालवन) ज राह मेलिमिद (दे०) ५११७० मेसर (दे०) प १७९ मेह (मेघ) ज २१३१, ३१७.६३,१०६,१२५, १७,१६३,५१२२ से २४ उ ११ मेहंकरा (मेघकरा) ज ४।२३७,५०६१ मेहकुमार (मेषकुमार) उ २११११,११२ मेहमालिणी (मेघमालिनी) ज ५१६१ मेहमुह (मेघमुख) २ १८६ ज ३१११ से ११५ १२४ से १२६ मेहबई (मेघवती) ज ४२३८; ५।६।१ मेहवण्ण (मेघवर्ण) उ ५१२४,२६ मोद्दाल (दे०) ज २१८ मोयई (मोची) १३५१ हिलमोचिका साग मोयग (मोचक) ज ५।२१ मोरगीवा (मयू रग्रीवा) प १७६१३४ मोसभासग (मपाभाषक) प ११०१० मोसमण (मृपामनम् ) प १६:१,७ मोसमणजोग (मृपामनोयोग) प ३६१८६ मोसवइजोग (मपावाक्योग) ५ ३६.६० मोसा (मृपा) ११११२ से १०२६ से २६,३२, ३४,४२,४३,४५,४६,८२,८४,८५,८७ से ८६ मोह (मोह) प २३११६१ ज २१२३३ मोह (माहय् ) मोह ति ज ११३ मोहणिज्ज (मोहनीय) प २२१२८,२३११,१२, १७,३२,१६२, २४।१३:२६।१२, २७१६ मोहरिय (मौखरिक) ज ३११७८ य (च) ५१।१० ज १७ सू १७ उ १७, ३।२।१४।२। १ २।१ या (च) उ ३१२११ Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याण-रत्या १०२३ याण (ज्ञा) याणंति प १५।४६,४८,४६% रठ्ठ (राष्ट्र) उ ११६६,६४,६६ ३४.११.१२ याणति प २३११३ याणामो रट्ठकूड (राष्ट्र कूट) उ ३३१२८ से १३१.१३३, उ १।३६ १३६,१३८ से १४०,१४७,१४६ याव (यावत्) प ११२०,२३,२६,२६,३६.३७,३६ रणभूमि (रणभूमि) उ १११३५ से ४७,११४८७.१० से ३७,४१,४३,१४४८ से रतण (रत्न) ५२१४८ ५१,५६,६०.६० से६६,७०,७१,७५,७६,७८, रतणप्पभा (रत्नप्रभा) प २१४८,४६३३१८३; रतणम्पमा रत्नप्रभा) ६६.६७ ६।६११०१२,३ रतणबडेंसय (ग्लावतंसक) १२१५१ रतणामय (रत्नमक) २०४६ रई (रति) १४१ ज ५१२६ रति (रति) २३६३६,७६,१४४ रइकरग (रतिकर क) ज ५१४८,४६ रतिणाम (रतिनामन्) प २३१६४ रइकरगपन्वय (रनिकर कपर्वत) उ ५१४४ रतिपसत्त (रतिप्रसक्त) सू २०१७ रइत (रचित) ए ३६१६२ रत्त (रक्त) प २१३१,२१४०।१० ज ३७,२४,२५, रइत्त (रतिद) ज ३१३५ १८४,१८८७१७८ सू १३.१,२०१३,७ रइय (रचित) १ २।३०,३१,४१ ज ११३७,२१५, उ१९७२,७३,८७,८८,६२ ३१६,६,१८,२४,३५,६३,१०६,११७,१७८, रत्त (रात्र) ज २६.१,२।१४१ से १४५,३३११५, १८०,२२१,२२२,५१४३०१५५ ११६,१२१,१२२,१२४ रइय (रतिक) प २१४८ रत्तंसुय (रक्तांशुक) ज ४११३ सू २०१७ रइय (रतिद) ज २११५ रत्तकंबलसिला (रक्तकम्बल शिला) ज ४१२४४, रइयामय (रजत मय) ज ४११३ २५२ रउस्सल (रजस्वल) ज २।१३१ रएत्ता (रचयित्वा) उ१।१३७, ३१५१ रत्तकणवीरय (रक्तकरवीरक) प १७१२६ रंग (रङ्ग) ज ३।१६७१६ रत्तचंदण (रक्तचन्दन) प २१३०,३१,४१ रक्खस (राक्षस) ५ १५१३२, २१४१,४५ ज ७१२२ रत्तबंधुजीवय (रक्तवन्धुजीवक) प१७११२६ रत्तरयण (रक्तरत्न) ज २१२४,६४,६६,३।१६७ रक्खा (रक्षा) ज ५११६ रत्तवई (रक्तवती) ज ४१२७४।६।१६ रज्ज (राज्य) ज २१६४;३१२,१७५,१८८ उश६६. रत्तवईकूड (रक्तवतीकुट) ज ४।२७५ १४,६६,१०३,१०६,११०,११३,११४,१२१, रत्तसिला (रक्तशिला) ज ४१२४४,२५१ १२२,१२६,५९,११ रत्ता (रक्ता) ज ४१२७४; ६.१६ रिज्ज (रञ्ज) रज्जति सु १३३१ रत्ताकूड (रत्ताकूट) ज ४।२७५ रज्जधुरा (राजधूर्) उ १।३१ रत्ताभ (रक्ताभ) प २१४६ रज्जवास (राज वास) ज २१८७ रत्तासोग (रक्ताशोक) ११७६१२६ रज्जसिरि (राज्यश्री) उ ११६५,६६,७१,६४,९८, रत्ति (त्रि) ज ३१६५,१५६ ६९,१११,११२ रस्तुप्पल (रक्तोत्पल) प १७:१२६ ज २।१५; रज्जु (रज्जु) ज ३३१०६७।१७८ ७११७८ रज्जुच्छाया (रज्जुच्छाया) गू६१४ रत्था (रथ्या) ज ३७ सू १०८४१३ Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२४ रम-रयणी रिम (रम् ) रमंति ज १११३,३०,३३,३७ ; ४१२ ११२,१२३,१३१ रमंत (रममाण) ज ३।१७८ रयणकरंड (रस्नकरण्ड) ज ३१११ रमण (रमण) ज ३।१३८ रयणकरंग (रकार गडक) ज ५१५५ उ ३।१२८ रमणिज्ज (रमणी) प २।३१,४८ से ५१.६३ रयकुन्छिधारिय (त्निकुक्षिधान्बिा ) ज ५।५,४६ १७४१०७,१०६ १११ ज १११३.२१,२५,२६, रयणचित्त (मानचित्र) ज ३४५६,१४५ २८,२६,३२,३३.३६.३७,३६.४०,४२,४६) रयप्पभा (नप्रभा) ए ११५३; २।१२०,२१, २।७,१०,१५,३८,५२,५६,५७,१२२,१२७, ३० से ४६,४१ से ४३,४६,५०,५१,६३; १४७,१५०,१५६,१५६,१६१,१६४,३१६,८१, ३.११.२१,४१८ से;६।१०,४५,५.१,७३, १६२,१६३,१६६,१६७,२२२,४१२,३,८,९,११, ८८,६१,१०६:१०।१ से ३,२८,३०,१६१२६; १२.१६,३२,४६,४६,४०,४६,५०,५६,५८,५६, २०१६,६,२८.३६.४६,५०,५९,२११५२,५६, ६३,६९,७०,८२,८७,६८,१००,१०४,१०६, ६६३०।२५ से २८:३३१३,१६ र २११; १११,११२,११७,११८,१३१.१६६,१७०, ६।३,१८१ १७६,२०२३१,२३४,२४० से २४२,२४७, रयणप्यमा पुरविणेरइय (रत्नाभा प्रथित्रीनरक) २४८,२५०,२६७, ५१३२,३५,७१७८ मू२।१६।३,१८१ रयणर. य (बावतंसः) २१५६ रम्म (रम्य) ज २१०,१२, ३१८१; ४।२०२१ रयण (वासा) (रत्नवर्ण) ज ५१५७ उ ३।४६;५.६ रयणमय (रनमा) ! २।३०,३१,४१ से ४३, रम्मग (रम्बक) ज ४।१०२,२०२ ४६,५० से ५२,५.८ से ६०,६३ ज २९१०, रम्मगकूड (रम्यककूट) ज ४१२६३।१,२६६११ ३१,३५,४०,४६।१,२१११४,११५,३१६६, रम्मगवास (रम्पकवर्ष) प ११८७:१६।३० १००,१०१ ; ४१२८,३०,४१,४५,५७,६२,७४, ज ४१०२,१६२,२६६ से २६८,६१६,२१ ७६,१०३,११४,१३६,१७८,२१२,२१७,२७६; रम्मय (रम्यक) प १७११६४ ज ४।२०२।१,२६५ ५.३७ से २६७ रयणसंचया (रत्नांचया) ज ४१२०२।२ रम्मयवास (रम्यकवर्ष) ज २६ रयणाली (रत्नावली) ज ३१२११ रय (रजस्) ज ३।२२३, ५७ राण (नि) १७५२१६४७,८,२११६६.६७, रिय (रच्य) रएइ उ १११३७,३१५१ रएंति ७०,७१३४ ज २११३३ याट जोह - ३१११४ रयाण (रनि), ११४,६११ रयण (रत्न) प १११२,११३,४८, २१३०,३१,४१, राषिकर (रजनिकर) ज ३।१०६ गु १६१२२११२, ४८,१११२५; १५३५५१२,२०१११ ज ६४, ६६, ३।६,१२,१८,२४,३०,३१,३२॥१,३५, रवणिलेत (रजक्षेत्र) ज ७४२७,३० ५६.६४,७६,७७,८१,११७,१२५ से १२८, रयजिगर (जनिकर) ज ३।११७ १३८,१४५,१५.१,१५२,१६७४१,५,१२,१४, रणिपुहतिय (थिक्त्यिक) प १७५ ३।१६८,१७५,१७८,१८०,१८४,१६२,२११, रणिय (रनिः ) ४।१० २२१,२२२४१४६,१३७; ५।५,७,१३,१६, रणियर (रजनिवार) ज २११५,३१११७ ३८,५८,७११७८ सू १८/८२०१७ उ१११११, रयणी (ररिन) १६,१२८,१३३,१४८ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणी-रहवर १०२५ रयणी (रजनी) ज २१२८,१३३,३११८५,७१२० ७.११२१४,२०६ सू१०११२६।४;२०१७ सू१०।८८३ उ ३३४८,५०,५५,६३,६७,७०, उ १२५ ७३,१०६,११८ रसओ (रसतग) प १५ से १२८।२६,३२,६६ रयणुच्चय (रलोचय) सू श१ रसचरिम (रराचरम) प १०५०,५१ रयणोच्चय (रत्नोच्चय) ज ४।२६०११ रसणाम (सना मन्) प २३३३८,४६ रयत्ताण (रजस्त्राण) ज ४।१३ सू २०१७ रसतो ( सतस्) प १६,८,६१११५८,२८।८,२०, रयमत्त (रतमत्त) ज २।१२ रयय (रजत) ज ३।१०३,४१२५,१२५,१४६; रसदेवी (रसदेवी) उ ४२११ १६२।१,२३८,२५.५:५१५,६२,७१७८ रसपज्जव (रसपर्यव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, रययकूड (रजतकूट) ज ४।१६४,२३६ १३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ रययखंड (रजलखण्ड) ११७४ रसपरिणाम (रसपरिणा) प १३।२१,२८ रययवालुया (रजतवालुका) ज ४१३ रसभेय ( द) प ११४८१५ रययामय (रजतमय) ज ११२३।१२,८८,४३, रसमंत (समवत्) प १११५२,५७,२८१५,५१ १३,२५,६४,८८,२०३:५११८७४१७८ रसमेह (रमध) ज २१४५ रसविण्णाणावरण (सज्ञान व गा) १२३।१३ रव (रक) २।३०,६१,४१,४६ ज ११४५, २०६५ रसादेस (सादेश) प ११२०,२३,२६,२६,४८ ३१२२,३६,७८,८३,६३,६६,१६३,१८०,१५३, रसावरण (२सावरण) ५ २३.१३ १८५,१८७,२०४,२०६,२१३,२१६,५१,५, रसिदिघत (सेन्द्रियत्व) प ३४१२० ६,२२,२६,४४,४६,४७,५६,६७,७१५५,५८, रसिय (: सित) ज ३।३५:५।२२ से २४,२६ १७८,१८४ सू १८.२३; १९४२३,२६ रसोदय (सोदक) १ ११२३ उ १२१२१,१२२,१२५,१२६,१३३,१३४,१३८% रस्सि (नि) ज ३१३,१८८ ३११११:४११८:५1१६ रह (रथ) ज ११२६,२।१२,३३,६५,१३४;३।३, रवभूय (रवभूत) ज ३११०६ १५,१७,२१ से २३,२८,३१,३६,३७,४१,४५, रवि (रवि) ज २११५३१३,३०७/१२७।१,१६७ ४६,७७,७८,६१,६८,१०६,१३१,१३५,१७३, सू१०७७,१६।८।२२२।३ १७५,१७७ से १७६,१६६,२२१:५१५७ रविकिरण (रविकिरण) ज २०१५ उ १.१४,१५,२१,२२,१२१,१२६,१३३,१३६ रस (रस) प ११४ से ६३।१८२,५५,७,१०,१२, से १३८,४११५;५१८ १४,१६,१८,२०,२४,२८,३०,३२,३४, ३७.३६, रहवक्कवाल (रथचक्रवाल) प ३६।८१ ज १७ ४१,४५,५३,५६,५६,६१,६३,६८,७१,७४, ११६२१६८१७१.७०, सू ११४ ७६,७८.८३,८६,८६,६१,६३,६७,१०१,१०४, रहन्छाया (स्थच्छ।या) १६५४७ १०७.१०६,१११,११५,११६,१२६,१३८, रहनेउरचकवाल (स्थनूपुरचक्रवाल) ज ११२६ १५०,१५२,१५४,१६०,२०५,२०७,२११. रहपह (रथाथ) ज २११३४ २१४,२२८,२४२,२४४;१०॥५३११:११:५७, रहमुसल (रथमुसल) उ १:१४,१५,२१,२२,२५, ५८,१५॥३८,१७११४।१,२३११५,१६,१९, २६,१३६,१३७,१४० २०,१०८:२८१२०,३२.६६,३६१८०,८१ रहरेणु (रथरेणु) ज २१६ ज २।१८,४५,१४२,३८२,१८७,२१८% रहवर (रथवर) ज २११५,३।२२.३६,४४ Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२६ रहसि र-रायहंस रहसिर (रशिरस्) ज ३।१३१,१३५ रहस्स (रहस्य ) उ ३।११ रहस्सियग (राहसिक) उ११४६ रहस्सियय (राहसिक) उ ११४४ रहस्सीकर (रहस्यीकृ) रहस्सीकरेसि उ ११३६ रहिय (रहित) ए३२१६।१,३५३१२ ज २११५, १३३ सु २०६६ रहोकम्म (रहःकर्मन्) ज २१७१ राई (रात्रि) ज २११५,३।११७,७१२६ से ३०, १२०,१२१ च ५२ सू १९३२।१,३, १६.११.१ राइ (राजन) उ ५.१० राइंदिय (रात्रिदिव) प ६३०; १८।३३,५१; २३११६२ ज २१४६,५२,५६,१५६.१६१ ७.२७,३०,१५८,१६१से १६७ सू ११११, १४,२२ से २४,२७, २॥३,६।१८।१ १०।१६६ से १६६१२२ से ६,१३,१५; १५:३२,३४,३७ उ १५३,७८ राइदियग्ग (रात्रिंदिवान) सू ११११,१२।२ से ६, से २६,३१ से ३४,३६ से ४२,४४ से ५०,५२ से ५.६,६१ मे ६७,६६ से ७४,७६,८३,८८, ६० से ६४,९६,६६ से १०१,१०६ से १०६, ११५ से १२०,१२१११,१२२ से १२५; १२६६१,१२७,१२८,१३१ से १३४,१३५११, १३७ से १३६,१४१,१४३,१४५ से १४७. १५० से १५४,१५७ से १६०,१६३ से १६७, १७०,१७३,१७५.१७७,१८१ से १८३,१८५ से १६२,१६८,१६६,२०१,२०२,२०४ से २१२,२१४,२१५,२१८,२१६,२२१ से २२३; ४।१७७,१८१,२००:५१५,७ चं ८ सू ११३,४ उ ११० से १२,१४,१५,२१,२२,२५,२६,२६ से ३२,३४,३६ से ४४,४६,४९,५७,५८,६१, ६२,६५,६६,६८ से ७४,८२,८३,८६ से १६, १८ से ११६,१२१,१२७,१२६ से १४५; २।४,५,१६,१७,३१४,१५ से १८,२१,२४,८६, १५५,१६८,४१४,६:५६,११ से १३,२५,३० रायकुल (राजकुल) उ १११११,११२:५१४३ रायगिह (राजगह) प १६३।१ उ १६१,२,२८,२६, ९३,३३४,२१,२४,८६,१५५,१६८,४४,६,७, राइण्ण (राजन्य) प ११९५ ज १६५ राईसर (राजेश्वर) ज ३१६,७७,८६,१७८,१८६, १८८,२०६,२१०,२१६,२१६,२२१,२२२ उ ३।११,१०१:५।१०,१७,३६ । राग (सग) प २१४१,१७१११६; २३१६ ज २१२६, ३७,३५,१८४,१८८ ९ १३१२ राति (रात्रि) सू १६१३,१४,१६,२१,२२,२४,२७, २१३; ३१२,४।८,६६।१८।१६।२; १०५, ८८३ रातिदिय (रात्रिदिव) १४।७२,७४,७६,७८,९८, १००,६।११,२६,३१ से ३४,१८१२२ रातोतिहि (रात्रितिथि) मू १०।८६,६१ राम (राम) १६३६ रामकण्ह (गमकृष्ण) उ ११७ राय (राजन) प १६।४१ ज ११३,२६,२।१६,२५, ६३:३।२ से ७,६ से १३,१५,१७ से २४,२६ रायग्गल (राजार्गल) र २०१८,२०1८६ रायत (राजत) ज ३।११७ रायतेय (राजतेजस्) ज ३.१८,६३,१८०,१८७ रायधम्म (राजधर्म) ज २११२६,१५८ रायपवर (राजप्रवर) ज ३१६५,६६,१५६ रायप्पसेणइज्ज (राजप्रतीय) ज ४।११५,५५३२ रायबहुल (राजबहुल) ज ११८ रायमग (राजमार्ग) ज २६५ रायलच्छी (राजलक्ष्मी) ज ३१११७ रायवण्णय (राजवर्णक) ज १२२६;३३३ रायवर (राजवर) ज ३९२,३६,६३,६६,१०६, १६३,१७५,१७८,१८०,१८८,२१६,२२४ रायवल्ली (राजवल्ली)११४८१४ रायसरिस (राजसदृश) उ १११३८ रायहंस (राजहंस)पश७६ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यहाणी -कहिर रायहाणी (राजधानी) प ११७४ ज १११६,४५, ४६,५१ ; २।२२,६५; ३।१, २, ७, ८, १४, १७२. १७३, १८०,१५२ से १८५, १६१, १६२,२०४, २०८,२०६,२१२,२२०, २२१,२२४, ४५२, ५३,६०,८४,६६,१०६,११४ से ११७,१५६, १६०,१६३ से १६५, १७४, १७५, १७७१८०, १८१,१६२,२००,२०२,२०४, २०६, २०७, २०८,२१०,२१२,२२६ से २३३,२३७ से २३६, २६३, २६६, २६६२७२,२७५ ५१५०; ६।१६,७११८४,१८५ उ ३।१०१ रायाभिसेय (राज्याभिषेक) ज २२८५ ३३१८८, २०६,२१२,२१४ उ १२६५,६८,७२ रायारिह ( राजार्ह ) ज ३३८१ राग ( रालक) प ११४५।२ ज २।३७३।११६ दक्षिण भारत के जंगलों में मिलने वाला एक सदावहार पेड़ / राव (रावय्) रावेंति ज ५।५७ रावत (रावयत् ) ज ३११७८ रासि (राशि) प २२६४११६; १२ ३२ १७११२६ राहु ( राहु ) प २४८ सू २०१२, ८, २०१८१४ राहुम्म ( राहुकर्म ) सू २०१२ राहुदेव ( राहुदेव) सू २०/२ राहुविमाण (राहुविमान ) सू १६ । २२ १७ ; २०१२ रिध्वे (ऋजुर्वेद) उ३१२८ रिक्ख (ऋक्ष ) ज ३६, १७,२१,३४, १७७,२२२ सू १५/३७; १९ २२ २६ रिगिसिगि (दे० ) ज ३।३१ वाद्य विशेष रिट्ठ ( रिष्ट) ज ३१६२५।५,७, २१ रिट्ठपुर (रिष्टपुरा ) ज ४१२०० | १ रिट्ठा (रिटा ) ज ४२००११ रिट्ठामय ( रिष्टमय ) ज ४।७, २६ रिद्ध (ऋद्ध ) ज ११२, २६:३१ चं ६ सु ११ उ १११, ६, २८, ३३१५७५।२४ रिसह ( कृाभ ) ज ७३१२२।३ सु १०८४१३ रुइल ( रुचिर ) प २०४८ ज २११५३।३५४(४६; १०२७ ७१७८ रुंद (दे० ) ज ७ ३२ १ रुक्ख ( रूक्ष ) प १।३३।१,११३४,३६,४७११; १७ १११ ज २१२०,३१,१३१,१४४ से १४६; ३१३२,१०६,१२६ उ ५ ।५ raiहालय ( रूक्षगेहालय ) ज २१९, २१ रुक्खमूल (रुक्षमूल ) प ११४८६१ ज २८, ६ बहुल ( रूक्षबहुल) ज १११८ रुक्मूलिय ( रूक्ष मूलिक) उ३।५० रुट्ठ (रुप्ट) ज ३।२६,३६,४७,१०७, १०६,१३३ उ १२२,१४० रुद्द (रुद्र) ज ७ १३०,१८६।३ रुदेवया ( रुद्रदेवता ) सु १०/८३ रूप्प (रूप्य ) प १ २०११ ज ३११६७८ उ ३ ॥४० रूप्पकला ( रूप्यकला ) ज ४ २६८,२६६।१,२७२; ६/२० रुपपट्ट (रूप्यपट्ट) ज ४।२६, २७० रुपमणिमय (रूप्यमणिमय ) ज ५।५५ रुष्पमय (रूप्यमय ) ज ४।२६ ; ५३५५ रुप्पामय (रूप्यमय ) ज ३।२०६४।२७० रुप्पि ( रुक्मिन् ) प १६३० ज ४।२६५,२६८, २६६ १,२७०,२७१ सू २०१८, २०१८१३ रुपिणी ( रुक्मिणी) उ ५ १० रूप्पोभास (रूप्यावभास) सू २०१८ रुग ( रुचक ) प २ ३१ ज ११२३,२११५३।३२; ४११,६२,८६,२३८५८ से १७ सू१६।३५ कूड ( रुचककूट) ज ४९६, २३६ रुगवर ( रुचकवर ) सू १९१३५ रुयगवरोद ( रुचकवरोद ) सू १९१३५ रुययवरोभास ( रुचकवरावभास) सू १६।३५ रुयय ( रुचक ) प १ २०१३ सू १९३२ से ३४ रुरु ( रुरु) प १२४८२ ज १३७, २३५, १०१; ४१२७५२८ रुहिर ( रुधिर ) प २२० से २७ ज ३।३१ १४४ से ४६ Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२८ रुहि रकम-रोहियंसा रुहिरकद्दम (रुधिरकर्दम) उ ११३६ रेवयग (रेवतक) उ ५१६ रुहिरबिंदु (रुधिर विन्दु) ज ७:१३३१२ रोइंदग (ोविन्दक) ज ५१५७ रुहिरबिंदुसंठिय (रुधिरबिन्दुसंस्थित) सू १०।३६ रोग (रो:) ज २१४३,१३१ उ १३५,११२ रूत (रूत) ज ४।१३ सू २०१७ रोगबहुल ( बहुल) ज १११८ रूयंता (रूपांशा) ज ५११३ रोज्झ (दे०) प१६६४ रूयगावई (रूपकावती) ज ५११३ रोद्द (रौद्र) ज ७।१२२।१,१२६ १०१८४।१ ख्या (रूपा) ज ५।१३ रोग (रोमन्) १११८६ ज २१५,१३३ रूव (रूप) ११॥२५,३३।१:१२।३२,१५।३७, रोमक (रोम) ज ३१८१ ४१:२२।१७,८०; २३।१५,१६,१६,२०, रोमकूद (रोगका) ज २२१ ३४।१,२,३४।२० से २२ ज २।१५,१३३; रोमग ( क) र ११८६ ३१३,६,७६,८२,१०३,१०६,११६,११७,११६, रोमराइ (रोमराजि) ज २११५ १३८,१७८,१८६,१८७,२०४,२१८,२२२; रोय (रुच) रोएइ १११०११२ रोएज्जा ४।२७,४६,५१२८,४१,४३,५७,६८,७० २०११७१८,२४ सेयर : १।१०११५ सू २०१७ उ ३।१२७,५१२५ रोय (रोचय) रोएमि उ ३३१०३ रूवग (रूपक) ज ४१२७,५२८,७११७८ रोय (रोग) उ ३।१२८ रूवपरियारग (रूपपरिचारक) प ३४५१८,२२,२५ रोयणागिरि (ोवनगिरि) : ४३२२५३१,२३३ रूवपरियारणा (रूपपरिचारणा) ५३४११७,२२ रोयमाण (रुदत) उ १९२३११३० रूवविसिठ्या (रूपविशिष्टता) प २३१२१ रोख्य (रोहक,नैः) २२७ रूवविहीणया (रूपविहीनता) प२३१२२ रोबाव (रोय) शेवग्वेइ उ ३१४८ रोजावित्तए (योगनितुम्) उ ३१४८ रूबसच्च (रूपसत्य) ११.३३ रोवाविय (रोहित) उ ३१५०,५५ रूवि (रूपिन ) प ११२.४,६ ; ५:१२३.१२५,१४४ रोह (रुह) रोहति ज ३७६,११६ सू १३११७ रोहिणिय (रोहिणीक): १५० रूवी (रूपिका) पश३७४१ सफेद आक का वृक्ष रूसमाण (रुष्यत्) उ ३।१३० रोहिणी (रोहिणी) ज ७११३।१,१२८,१२६, रेणु (रेणु) ज २१६,६५,१३१:५७ १३४१३,१३५३,१३६,१४०,१४५,१४६,१६० रेणु बहुल (रेणुवहुल) ज २।१३२ सू १०.२ ६.१२,२३,३७,६२.६७,७५,८३, रेणया (रेणकः) पश४८.५ रेणका, संभाल के बीज १०२,१२०,१३१ से १३३ रेरिज्जमाण (र: राज्यमान) उ ३।४६ रोहियंस (रोहितांज) १६८२१ एक प्रकार का रेवई (रेवती) ज ७१११३११,१२८,१२६,१३६, तण १४०,१४३,१४६,१५८ सू १०.१ उ ५।१२, रोहियं तकूड (रोहिताशकूट) ज ४१४४ रोहियं सदीर (रोहितांशही ) अ ४१४१ रेवतय (रैक्तक) उ ५।५ रोहियं सप्पयायकुंड (रोहितांशाप्रपात कुण्ड) रेवती (रेवती) सू १०।२ से ६,१०,२२,२३,३३, ज ४।४० से ४२ ६१,६५,७५,८३,९८,१२०,१३१ से १३३; रोहियंसा (रोहितांशा) ४।३८ मे ४०,४२,४३, १२।२२ ५७,१८२,२७०६।२० Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६।२० रोहियकूड-लयाबहुल १०२६ रोहियकूड (रोहितकूट) ज ४७९ लक्खणसंवच्छर (लक्षणसंवत्सर) ज ७१०३,११२ रोहियदीव (रोहितद्वी7) ज ४१६८,६६ सू १०११२५,१२६ रोहियप्पवायकुंड (रोहितप्रातकुंड) ज ४१६७,६८, । लक्खणसहस्सधारक (लक्षणसहस्रधारक) ज ३।१२६।१ रोहियमच्छ (रोहितमत्स्य) ? ११५६ लक्खारस (नाक्षारस) प १७११२६ रोहिया (रोहिता) ज ४१६५ से ६७,७१,७२,२६८; लख (लक्ष) ज ३।३१ लच्छिकड़ (लक्ष्मीकूट) ज ४।२७५ रोहीडय (रोहितक) उ ५।२४ से २६ लच्छिमई (लक्ष्मीमती) जह? लच्छी (लक्ष्मी ) ज ३११८,६३,१८० उ ४१२११ लज्जिय (लज्जित) ज २१६० उ०५८,८३ लउड (लकुट) ज ३१११ लठ्ठ (लष्ट) ज ११३७,२।१५, ३१६,३५,११७, लउय (नकुच) प ११३६।३ २२२,४।१२८,२४३,७११७८ लउल (लकुट) ज ३११७८ लउस (लकुश) प ८६ लठ्ठदंत (लष्टदंत) १८६ लउसिया (कुशिकी) ज ३११११२ लठ्ठि (यष्टि) ज २०१५ लेख (लख) ज २१६४,३।१८५ लग्गिाह (यष्टिग्राह) ज ३११७८ लंघण (लङ्घन) ज ३३१०६,१७८; १५,७१७८ ।। लडह (दे०) ज २०१५ लंतग (लान्तक) २१४६.५५,६३, ६।३२,५६, लव्ह (श्लक्षण) ५२१३०,३१,४१,४६,५६.६३,६४ ६५:७।१३,१५३८८,२११७०३३।१६,३४।१६, ज १८,२३,३१,४११ १८ ज ५४६ लता (लता) प ११३३१ लंतगवडेंसय (लान्तकावतंसक) २५५ लद्ध (लब्ध) ज ३१२६,३६,४७,१०३,११७,१२२, लंतय (लान्तक) र १११३५२२५५,५६, ३।३४, १२६,१३३,१८५,२०६ उ १११७.५७,८२,६६, १८३; ४१२४६ से २४८; २०१६१; २८१८० १०७,१२७,३।१३,२६,३८,८५,१२२.१४७. उ २१२२ १६०४।११,२५,५११५,२३,३१,३८,४२ लंबिय (लम्बित) ज ७१७८ लट्ठ (लब्धार्थ) सू २०१७ लंबूसग (लम्सा ) ज ५१३८,६७ लद्धि (लब्धि) प ११४६:१५१५८1१,१५१६२ लंभ (लभ) लभंनिज ३१३५ लिब्भ (लभ) लभइ ज ७१४३ लंभणमच्छ (लम्भनम स्य) प ११५६ लिभ (लम्) लभइ ज ७।१५१ लभति गु १०।५ लक्ख (लक्ष) १८११ ज ३।१०३ लभज्जा प २०१७,१८,२२२५,२८,२९,३४, लक्खण (लक्षण) २४८५५,२६४११२ ३८,३६,४१ से ४३,४५,४६ से ५२,५४,५५, ज २११४,१५,१६,३१३,३५,७७,१०६,१३८, १६७।१२,७११७८ च २।४ सू ११६:४१६॥२, लय (लता) ७१७८ ४,६ उ ११३४ लया (लता) प ११३६ ज २।११,६७,१३१,१४४ लक्खणधर (लक्षणधर) ज २१५ मे १४६,३।१०६ उ ११२३,५१५ लक्खणधारि (लक्षणधारिन् ) ज २११५ लयाबहुल (लताबहुल) ज १११८ Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लयावण्ण-लूहेता लयावण्ण (लतावर्ग) ज २६११ लाउयवण्णाभ (अलाबुकवर्णाभ) सू २०१२ लिल (लल,लड्) ललंति ज १११३,३०,३२, २७ लाघव (लाधव) ज २७१ ललंत (ललत्) ज ३११७८,७११७८ लाढ (लाढ) प ११६३३५ ललाड (ललाट) ज ७११७८ लाभ (ला) ज ३११७८,७।१७८ ललित (ललित) ज ३१९,२२ लाभंतराय (लाभान्तराय) प २३१२३ ललिय (ललित) ज ३१६,१७८,२२२,७११७८ लाभत्थिय (लाभार्थिक) ज ३।१८५ ललियबाहा ('ललितबाहु) ज २११५ लाभविसिठ्ठया (लाभविशिष्टता) प २३१२१ लव (लव) २२४१२,२१६६७७११२१५ सू ८।१; लाभविहीणया (लाभविहीनता) प २३।२२ १०।१२६५ लायण्णत्त (लावण्यत्व) प ३४१२० लिव (लप) लवति सू २०११ लाला (लाल!) ज ७१७८ लबंगरुक्ख (लवङ्गरूक्ष) प ११४३३२ लालाविस (लालाविष) प ११७० लवण (लवण) प १५२५५१ ज ६११,२,४,७४, लावग (लाक्क) प १७६ ३२।१,६३,८७ मू ८.१,१६३२,३,५, लावणग (लावणिक) म १९४२२१२३ १६३२२।२३ लावण्ण (लावध) प २३११६,२० ज २१५, लवणजल (लवणजल) सू १९।५।३ श६८,७० उ ३३१२७ लवणतोय (लवणतोय) सू १६१५१२:१६४२२१२४ लास (लासय) लासेंति ज ५१५७ लवणसमह (लवणसमुद्र) ५ १५१५५ १६॥३० लासग (लासक) ज २१३२ ज १११६,१८,२०,२३,३५.४८,४६, ३.१,२२, लासिया (लासिका,ल्हासिका) ज ३११११२ २८,३६,४१,४४,४६ ; ४११,३५,३७,४२,४५, लिक्खा (लिक्षा) ज २१६,४० ५५,६२,७१.७७,८१.८६,६०,६४,६८,२००, लित्त (लिप्त) प २१२० से २७ २०१,२६२,२६५,२७१,२७४,६३,५,१६ से लिवि (लिपि) प ११६८ २६,७।३१,३३,८७ सू श२२,४१४,७, ८.१; लिहिय (लिखित) ज ७/१७८ १६१३ से ६ लीला (लीला) ज ५१३,२८ लवणोदधि (लवणोदधि) सू १९५१ लुक्ख (रूक्ष) प १४ से ६; १५,७,१२६,१५२, लवणोदय (लवणोदक) प ११२३ १५४,२११,२१८,२२१,२२६,२४४,११५६ लह (लघु) ज ३२३५,४८,४६७।१७८ से ६१:१३।२२।२,१३१२२,२६,१७११३८%; लहुपरक्कम (लघुपराक्रम) ज ५१४८,४६ २३।५०; २८१६ से ११,२०,३२,५५ से ५७,६६ लहुभूय (लघुभूत) ज २२७० लुक्खत्तण (रूक्षत्व) प १३१२२११ लहुय (लघुक) प ११४ से ६,३११८२; ५१५,७, लुक्खया (रूक्षता) प १३।२२११ ज २११३१ २०६१५३१५ से १७,२८,३२,३३,२८।२६, लुद्धग (लुब्धक) उ ३६८ लूह (मृज्,रूक्षय्) लू हेइ ज ५१५८ लूहेति लहुयत्त (लघुकत्व) ५ १५१४४,४५ ज ३१२११ लाइय (दे०) प २।३०,३१,४१ ज ११३७,३।७,१८४ लूहिय (मृष्ट,रूक्षित) ज ३।६,२२२ लाउय (अलाबुक) ज ३१११६ लहेत्ता (मृष्ट्वा,मार्जयित्वा, रूक्षयित्वा) ज ३१२११; १. टीका में 'ललिनो बाहु' है। Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेक्ख-लोभसमुग्धात १०३१ लेक्ख (लेख्य) १६८ ५८ से ६१.६३,१०।२,३,५,१२१७,१०,२०; लेच्छइ (लिच्छवि,च्छवि) उ १११२७ से १३०, १५६११२,१५१४३,४५,५६:१६१३४,१८१३, २६,२७,३७,३८, ३६७६,८१,८५ ज २।६५, लेछु (लेष्टु) ज २१७०,७१, ३।३५,६५ ७१;३।३५,६५,१५६,१६७,४१२६०।१ लेप्पार (लेप्यकार) प १६७ सू १६२२ लेस (लिश) लेभेलिप ३६१६२ लोगंत (लोकान्त) ५२२६४२१११३०,२११८४,८६, लेसणया (श्लेषण) ५ १६१५३ ८६ ज ७।१,६८,१६८।१,१७२ लेसा (लेश्या) १११५१३०,३१,४६,३३११ लोगणाली (लोकनाली, लोकनाडी) प ३३११८ १७।४३ से ४५,४७,६६,६७,११४,१४७,१५६ लोगणाह (लोकनाथ) ज ५१५,२१,४६ से १५८,१६१,१७२ च २२ ज ३१६५,१५६, लोगपईव (गोकप्रदीर) ज ५२१ २२३,७।३८,५८ स् ११६।२,१७११६।१ से लोगपज्जोयगर (लोकप्रद्योतकर) ज ५१२१ ३,१६३२६,२०१२,३ लोगपाल (लोकपाल) प २१३० से ३३,३५,४६ से लेसागति (लेश्यागति) ५ १६।३८ ५१ ज ६०,११८,११६:५।१६,५०,५६ लेसापडियाय (लेश्याप्रतिघात) ज ७१३८ लोगमज्झ (लोकमध्य) ज ४२६० लेसापरिणाम (लेश्यापरिणाम) प १३१२ लोगमज्यावसाणिय (लोकमध्यावसानिक) ज ५१५७ लेसाहिताव (लेश्याभिताप) ज ७१३८ लोगसष्णा (लोकसंज्ञा)प ८.१,२ लेसुद्देस (लेसोद्देश) सू ६२ लोगहिय (लोकहित) ज ५२२१ लेस्सा (लेश्या) २६४१;१६१५.०,१७११११,१७१७, लोगागास (लोकाकाश) प ११४८१५८% २०१० १७,१८,३०,३६ से ४१,८८,६७,११४,१२६, लोगाधिवति (लोकाधिपति) प २५०,५१ १३६,१३७,१४७,१५६,१५७,१५६,१६० से लोगालोग (लोकालोक) प १०१५ १६३,१८५१११२८।१०६१ लोगाहिवइ (लोकाधिपति) ज २१६१५१८,४८ लोगुत्तम (लोकोत्तम) ज ५॥५.२१,४६ लेस्सागति (लेश्यागति) व १६।४६ लेस्साणुवायगति (लेमानुपातगति) प १६:३८,५० लोण (लवण) प ११२०११ लेस्सापरिणाम (लेश्यापरिणाम) प १३६,१४,१६, लोद्ध (लोध्र) प ११३६१३ १८ से २० लोभ (लोभ) प १११३४।११४।४,६,८,१० से लेह (लेख) ज २६४ उ ११११५.११६ १५,१७, २२।२०,२३३६,३५,१८४ ज २११६, लेहठ (रेखास्थ) ज ७१५८,१६१,१६४,१६७ १३३ उ ३१३४ __ सू १०१६५,६८,७१,७४ लोभकसाई (लोभकषागिन) 4 ३११८१३।१४; लोअण (लोचन) ज २२१५ १८६६,२८१३३ लोइय (लौकिक) ज ७११४ सू१०।१२४ लोभकसाय (लोभकषाय) ५ १४१,२,३६१४६ उ ११६२ लोभकसायपरिणाम (लोभकषायपरिणाम) प १३१५ लोउत्तरिय (लोकोत्तरिक) ज ७.११४ सू १०११२४ लोभणिस्सिया (लोभनिश्रिता) प १११३४ लोक (लोक) ज ३११०६,१६७ लोभसंजलणा (लोभसंज्वलना) २३७२,१४० लोग (लोक) प ११४८१६०:२११०,१६,३०,३२. लोभसण्णा (लोभसंज्ञा) प ८१,२ ३४,३५,३७,३६,४१ से ४३,४८,५० से ५२, लोभसमुग्धात (लोभसमुद्घात) प ३६१४७ Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३२ लोभसमुग्घाय-वइर(वासा) लोभसमुग्धाय (लोमस मुद्यात) प ३६.४२,४४ से लोहित (लोहित) प ५१२०५ सू २०१२ लोहितक्ख (लोहिताक्ष) ज७।१८६१ सू २०१८ लोम (लोमन) १ २०२० से २७ ज ३१३,१०६; लोहिय (लोहित) प ११४ से ६५1५,७,१११५३; ७.१७८ १७.१२६; २३।१०३:२८।३२,६६ ज ४।२६ लोमपक्खि (जोमपक्षिन् ) प ११७७,७६ सू २०१२ लोमहत्थ (लामहस्त) ज ३८८ लोहियक्ख (लोहिताक्ष) ११२०१३,२१३१,३२ लोमहत्यम (लोमहस्तक) ज ३.१२ ज ४११०६,५।५ सू २०१८।१ लोमहत्यगपटलहत्यगय (हस्तगत लोमहातकपटत) लोहियक्खकूड (लोहिताक्षकूट) ज ४।१०५ ज ३।११ लोहियक्खमणि (लोहिताक्षमणि) प १७:१२६ लोमाहार (लोमाहार) प २८।१।२,२८१४०,६६, लोहियक्खमय (लोहिताक्षम4) ज ४१२६ १०२,१०३ लोहियक्खामय (लोहिताक्षमय) ज ३।३० लोमाहारत्त (लोमाहारत्व) प २८16०,६६ लोहियपत्त (लोहितपत्र) प १३५१ लोय (लोक) १४४८१५८,५६,२१ से ३१,४६, लोहियमत्तिया (लोहितमृत्तिका) प ११६ ४६;३३।१३ सू २।१।१६।१,२१ उ ३६१३ लोहियसुत्तय (लोहितसूत्रक) प १७।११६ लोय (लोच) ज २१६५, ३१२२४ उ ३३११३ ल्हसणकंद (लगुनकन्द) प ११४८१४३ लोयंत (लोकान्त) प २६४११०,११६७२ सू २०१० ल्हसिय (तहासिक,लासिक) प ११८६ १८।६ लोयग्ग (लोकाग्र) प श६४,२१६४।३ लोयग्गथूमिया (लोकास्तूपिक:) प २६४ व (वा) प ११०१।६ ज ३१११३ – २११ सू १६ लोयग्गपडि बुज्झणा (लोक अप्रतिबोधना) ५ २०६४ वई (वाच) प १६६१,७:२३।१५,१६ ज २१६८ लोयण (कोन) ज ७:१७८ वइउल (दे० व्याल) प १७१ लोयणाभि (लोकनाभि) सू ५१ वइगुत्त (वारगुप्त) ज २१६८ लोयमज्झ (ोकमध्य) सू ५११ वइजोग (वाम्योग) प २का१३८,३६।८६,८८,६०, लोयाणों (दे०) प ११४८१६ ६२ लोल (लोल) ज २०१२ वइजोगपरिणाम (वाम्भोगपरिणाम) प १३१७ लोह (लोभ) ज २१६६ वइजोगि (सम्बोगिन) प ३९६:१३।१४,१८१५६; लोह (लोह) ज ३।३,३५,१६७८ २८।१३८ लोहकडाह (लोहाटाह) उ ३१५०,५५ वइत्ता (वदित्वा) ज २३ लोहकसाइ (लोभकपायिन) प ३९८ वइयरिय (व्यतिचरित) सु २०१२ लोहदंडग (लोहृदण्डक) ज ३.१०६ वइयोगि (वाग्योगिन्) प १३३१७ लोहबद्ध (नोहवर्ध) ज ३।३:: वहर (वन) ५ ११२०६१ ; २३३० ज ३।१२,१८, लोहयक्खमय (लोहिताक्षम।) ज ४।१३ २४,३५,८८,१०६,१८४,२१६४१३,२५,४६, लोहि (लोह) प ११४८।१ सफेद सुहागा ६७,२३८,२५४,५।५,१३,२८,५८,७११७८ लोहिच्च (लौहित्य) ज ७१३३।२ वइरउसह (वज्रऋषभ) ज ३१३ लोहिच्चायण (लोहित्यामग) सू१०।१०४ वइरकूड (वज्रकूट) ज ४।२३६ १. लोचनी-बड़ी गोरखमुण्डी। बइर (वासा) ( व र्षा ) ज ५१५७ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वइरवेड्या वग्ग वइरवेडया (वज्रवेदिका) ज १।३७ ४ १२७५।२८ वइरसारमइया (वज्रसारमतिका) ज ३८८ वइरसेणा ( वज्रसेना ) ज ४।२३८ वइराड (वैराट ) प १६३१४ वइरामय ( वज्रमय ) ज १७,८,११,२४; २११२० ३।३०,४१३,७,१३,१५,२४ से २६, २९, ३१, ३६,६६,६८,७४,६१,६३,१२८, १४६ ६ ५ ३८, ४३, ७ १७८,१८५ सू १८/२३ वइरोयणराय ( वैरोचनराज ) प २२३३ ज २।११३ वरोर्याणिव (वैरोचनेन्द्र ) प २।३३ ज २।११३ वह रोभणाराय ( वज्रऋषभनाराच ) प २३/४५, ४ ज २४६ समय ( वाक्समित ) ज २२६८ इसाह (वैशाख) ज ३।२४७ १०४, १४६, १५५ सु १०११२४ उ ११२२,१४०, ३१४० बसाही ( वैशाखी) ज ७ । १३७ सू १० ७,१७,२३, २६ इस्सदेव (वैश्वदेव) उ ३।५१,५६,६४ (वाच् ) प ११५, ८, २१ से २६ वंक (व) ज २।१३३ गति (गति, वक्रगति ) प १६१३८, ५३ बंग (वज) प ११६३|१ ज २।१५ वंजण ( व्यञ्जन ) ज २११४ सू २०१७ वंजणोग्गह (व्यञ्जनावग्रह ) प १५५८२ १५।६८,६६, ७१ से ७३,७५ वंजुल ( वञ्जुलक ) प १७६ वा (वन्ध्या) उ ३६७,१३१ वंत (वान्त ) प १८४ २०१२ / बंद (वन्द ) वंदइ ज ११६ : २२६० ५।२१,६५ उ १११६; ३२८१४।१३; ५१२० वंदति उ ४ १६,५/३६ वंदामि प १|१|१ ज ५।२१ सू २०१६१६ उ ११७ दिज्जा उ ५।३६ वंदीहामि उ ३१२६ वंदेज्ज ज २२६७ बंद (बृन्द ) ज ३१२२,३६,७८ उ १११६ वंदण ( वन्दन) उ १११७ १०३३ वंदणकलस (वन्दनकलश) ज ३२७,८७,५।५५ वंद कल सहत्य ( हस्तगतवन्दनकलश) ज ३।११ वंदणवत्तिय ( वन्दनप्रत्यय) ज ५१२७ बंदणिज्ज ( वन्दनीय ) सू १८१२३ दिऊण ( वन्दित्वा ) चं ११४ वंदित्ता ( वन्दित्वा ) ज १।६ उ १।१६; ३८१; ४११४;५।२० वंदिया ( वन्दिका ) उ ४।११ बंस (वंश) १ ११४१२ बांस वंस (वंश) प ११।७५ ज २।१२४, १५२३/३१, १०६ उ५१४३ समूल (वंशमूल ) प ११४८८ वंसी (वंशी ) प १४७ वंसीपत्त (वंशीपत्र ) प २६ समुह (वंशी मुख ) प १४६ वक्कंत (अवक्रान्त ) प १२४८१५३ ज २२८५ वक्कंति (अवक्रान्ति) प१ । ११४ / वक्कम (अव + क्रम् ) वक्कमइ प ११४८१५१ वक्कमंत १२०, २३, २६,२६,४८,६१२६ वक्कमति सु १६।२२।१६ are ( वल्कल ) उ ३।५१।१ arcarfi ( वल्कवासिन् ) उ ३३५० ara ( वक्षस् ) ज २११५ खार ( वक्षस्कार ) प २३११५५५ । २ ज ४।२१२; ६१० वक्खारकूड ( वक्षस्कारकूट ) ज ४।२०२६।११ वक्खारपव्वय (वक्षस्कारपर्वत) ज ४१६४, १०३ से १०८,१४३,१६२,१६३,१६६,१६७,१६६, १७२ से १७४, १७६,१७८ से १८१,१८४, १८५.१६०,१६१, १६६, १६७, १६६,२००, २०२ से २०५,२०८ से २१२,२१५, २६२; ५१५५६।१० वग ( क ) प ११।२१ ज २।१३६ वगी ( वृकी ) प ११।२३ वर (वर्ग) २६४११५, १६, १२११०,३२,३६, ३७ उ १५ से ८ २ १३ १, २, ४ ११, ३, ५ १, Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्ग-वट्टमाण ११७ १२६१६:३२,१७१५८२०५६ से ५८; विग्ग (कल्प) वग्गति ज ५१५५ २२१२५,२३।१६१,१६७; २४।१३, २५।३; वग्गण (वल्गन) ज ३।१७८ २६।४२८११२,१२३,१२६,१२७,१२६, वग्गणा (वर्गणा) प १११७२१७१११४११,१४२ १३२,१३३,१३७ से १४१,१४३ ज २१७०, वग्गमूल (वर्गमूल) ॥ १२॥१२,१६,२७,३१,३२,३८ १३१,३।६,४।१७७,२१०,२४०,२४८,५।१३, वग्गु (वल्गु) प २६४।१५ ज २१६४,३११८५, ४६,५११ २०६४१२१२,४१२१२।३ : ५।५८ वज्ज (वाद्य) ज ५२५७ वग्गु (वाच) उ ११४१,४४ वज्जकंदय (बज्रकंदक) व १७११३० वग्गुरा (वागुरा) उ ५।१७ वज्जण (वर्जन) प ११०११३ वग्गुलि (वल्गुलि ) प १७८ वज्जणिज्ज (वर्जनीय) ज २११४६ वग्ध (व्याघ्र) ११६६:१११२१ ज २१३६,१३६ वज्जपाणि (बज्रपाणि) १२५० ज ५।१८,४६,६६ वग्घमुह (माघ्रमुख) प ११८६ वज्जमाण (वाद्यमान) उ १११३८ वग्धारिम (दे०) ज ३1८८ बज्जरिसभणाराय (वज्रऋषभनाराच) ज ११५; वग्धारिय (दे०) प २१३०,३१,४६ ज २१७,८८, २१४६ वज्जरिसहणाराय (वजऋषभनाराच) ज २।१६,८६ वग्धावच्च (व्याघ्रापत्य) ज ७/१३२१४ सु १०।११६ बरिसनाराय (बज्रऋषभनाराच) सु ११५ वग्घी (व्याघ्री) प १११२३ वज्जसंठिय (बज्रसंस्थित) प १११३० विच्च (वच्) वच्चंति ज ७।१३५२,३ वज्जसूलपाणि (वज्रशूलपाणि) ज ५।५७ विच्च (वज्) वच्चइ सू १६ बज्जिऊण (वर्जयित्वा) प १२७।३ वच्छ (वक्षम् ) प १३०,३१,४१,४६ ज ३1३,६, वज्जित्ता (बर्जयित्वा) प २१२२,३२,३४ ज ४।१३४ १,१८,१३,१८०,२२१,२२२:५।२१ ।। वज्जिय (वर्जित) प १०।१४।६ ज ५।५२ सू २०१७ बच्छ (वत्स) प ११६३१४ ज ४/२०१,२०२।१,२४८ वज्जेता (वर्जस्त्विा ) प२।२१,२३ से २७,३०, वच्छगावई (वत्सकावती) ज ४।२०२।१ ३१,३३,३५,३६,४१ से ४३,४६ वच्छमित्ता (वत्समित्रा) ज ४।२०४,२३८,५६ वज्झ (वा) ज ३६२,११६ वच्छल (वत्सल) प ३११२५; १।५,४६ वज्झार (वर्धकार) प ११६७ वच्छल्ल (वात्सल्प) प १।१०१।१४ वज्झियायण (ध्यान) ज ७१३२।४ सू १०१११८ वच्छाणी (वत्सादनी) प ११४०।४ सू १०११२० विट्ट (वृत्) वट्ट ति उ ३।३३ वट्टति प १६१२२ गजपीपल, गुडूची वट्ट (वृत्त) १११४ से ६,११६३।१२।२० से २७, वच्छावई (वत्सावती) ज ४२०२ ३० से ३६,४१ से ४३,१०।१५,२६,३६१५१ वज्ज (वन)५११४८७ वनकंद, कोकिलाक्षवृक्ष, ज १७,३१:२११५:३७,८८,११७,४१३,२५, तालमखाना ६७,११४,१२८,२३४,२४०,२४१:५।५,४३; । बज्ज (वर्जय) बज्जेज्ज प १०११४।४ ७।३१,३३,१६७,१७८ सू१।१४:४१३ से ७; बज्ज (वज्र) ज २०१५ १०७४,१६८२,६,६,१२,१६,२८,३२,३६ वज्ज (वयं ) प २१४०।५,२१५२,६१४६,५६,६६, बट्टग (वर्तक) प११७६ ज ५।१६ ८६,६४,६५,१०२,१०४,१०१३६,१११४१,८०, वट्टगमंस (वर्नकमांस)-१०१२० कमलकंद ८४१२१३,१३।२२।२,१५४९८,११५,१२१, वट्टमाण (वर्तमान) १ २१३१ ज २१७१३।१३८, Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वट्टवेयड्ड-वणस्सई ५१५७ वट्टवेयड्ढ (वृत्तवैताद य) प १६।३० ज ४४२, ५७,५८,६०,७१,७७,८४,२६६,२७२, ५९५५; ६।१० बट्टि (वर्ति) प ११४७।२ वट्टिय (वर्तित) ज २११५,७१७८ वट्टिया (वर्तिका) प ११४७१२ वड (क्ट) ५ ११३६११ उ ३७१ वड (दे०) प ११५६ मत्स्य विशेष वडगर (दे०) प ११५६ मत्स्य विशेष वडभी (वडभी) ज ३।११।१ डिसग (अवतंसक) प २१५४,५८ वडिय (पतित) ज ३।१२५,१२६ वडेंस (अवतंस) ज ४।२२५,२३२,२६०११ व.सग (अवतंसक) प २।५०,५२,५५ से ५६ ज ११४३,३।१७८,१८३;४१५०,१०६,११२, ११६,१५५,१५६,२३७,२३८,२४०,२४३ बडेंसगधर (अवतंसकधर) ज ७१२१३ वडेंसय (अवतंसक) प २५० से ५३,५६ ज ११४२:३११८६,४१४६,५६,१०२,११६, १२०,१४७,२२१ से २२४,२३७,५१,६,१८, ७१८४,१८५ विड्ड (वृध्) वड्डति सू १६१२२।१६,२० वडते म् १९।२२।१४ वड्डिजति प १७६, बड्ढेत्ता (वर्धयित्वा) उ ३१५१ वड्ढोवुड्ढि (वृद्ध यपवृद्धि) च ३३१ सू ११७१, ११०,१४,१३१ वण (वन) ज ४१२००,२०१,२१२,२१४,२१५, २३४,२३६,२३७,२४०,२४१,२४४,२४५, २४६,२५१,२५२,५१५५,५७, ७.११४ वणप्फइ (वनस्पति) प १८।१४,१०५,११०,१२०; २०१२२ बणप्फइकाइय (वनस्पतिकायिक) ५६।१६,८३; १२।२६:१३,१६,१५२६,५३,५५,७४;१४०; १६१४१७९६२,६६,१०२,१८।३८,१६२, २०११३,२६,४६,२११३,२७,७६,८५,२२।२४; २८१३६,१२३,२६१०,२०,३०१९३६।१३ से १६,३४,३८ वणप्फइकाइयत्त (वनस्पतिकायिकत्व) ५ १५९६ वणप्फतिकाइय (वनस्पतिकायिक) १६१२; १७/४० वणमाला (वनमाला) प ३०,३१,४१,४६ ज ११३८,४।१०,१२१,१४७,२१७, १८ वणयर (वनचर) ३११६१ वणराइ (वन राजि) प १७:१२४ ज २०१२ वणलय (वनलता) प २३६१ वणलया (वनलता) ज ११३७,२६१०१,४।२७; ५२८ वणविरोह (वनविरोध) ज ७।११४१२ वणविरोहि (वनविरोधिन् ) सू १०।१२४१२ वणसंड (वनषण्ड) ज श१२ से १४,२३,२५,२८, ३२,३५,४।१,३,२५,३१,३६,४३,४५.५७,६२, ६८,७२,७६,७८,८६६०,६३,६५,१०३,११०, ११६,११८,१४१,१४३,१५२ १५३,१५४, १५६,१७४,१७६,१७८,१८३,२००,२१२, २१३,२१५,२२१,२३४,२४०,२४१,२४२, २४५;७१२१३ उ ५८ वणस्सइ (वनस्पति) प६१०४,१७६३३ १८१५७,६२,२०१२८ बिड्ढ (वर्धय) वड्ढे इ उ ३।५१ वड्ढे सि उ ३.७६ बड्ढइरयण (वर्द्धकिरत्न) ज ३११८,१६,३१,५२, ५३,६१,६२,६६,७०,६६,१००,१४१,१४२, १६४,१६५,१७८,१८०,१८१,१८६,१८८, २०६,२१०,२१६,२१६,२२० वढइरयणत्त (वर्द्धकिरत्नत्व) प २०१५८ वड्ढमाणय (वर्धमानक) प ३३१३५ वड्ढावय (वर्धापक) उ ३३११ बढियय (वधितक) उ ३३८ Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वणस्स इकाइय-वग्णिय वणस्सइकाइय (वनस्पति कापि) प १।१५,३०; १३५,१६६,२६६,२७२,५॥३२,५८,७१७८ २११३ से १५,३१६,५० से ५२,५८,६० से ६३' वण्णओ (वर्णतस) ८ ११५ से ६१११५४,२८७, ६६,७१ से ७४,८०८१,८४ से ८७,६३,६५. २०,२६,५३ १६८ से १७०,१८३,४८८,६० से ६४;५६३, वण्णम (दे०वर्णक) उ ३।११४ १७,१८,६६,६।५३,८६,१०२,११५,६।२१ वण्णग (वर्णक) ज ११३२,३६,२०,३३,५४,६३, १५.८५,१२१.१३७,१८१२७,३५,४०,४३, ७१,८४,१३७,१४३,१६७,१८२,१६३,१६७, ४४,५२,२०1८,२११५,४१,२२।३१,३६६३३ २२२,४।१,११७,५११३७।५५ ज २।१३१.१४४ वण्णचरिम (वर्णचरम) प १०।४६,४७ बणस्सइकाइयत्त (वनस्पतिकायिकत्व) ज ७२१२ वण्णणाम (वर्णनामन्) प २३२३८,४७,१०१ से वणस्सति (वनस्पति) प६।१०२,६।४ १०६,१०६ वणस्सतिकाइय (वनस्पतिकारिक) प ३३५०,५१, वण्णतो (वर्णतस) प ११८,६,२८१३२,६६ ६०,६३,६५,१८३,४।८६,५३१८,६१६३,८३; वपणनाम (वर्णना मन्) प २३११०१ १५७६, २४१६,३०।१६ वण्णपज्जव (वर्णपर्यव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, वणिज (वणिज) ज ७/१२३ से १२५ करण नाम १३०.१४०,१४६,१५४,१६०,१६३,७२०६ बणिय (वणिज्) ज २।२३ वण्णपरिणाम (वर्णरिणाम) प १३१२१,२६ वणीमगबहुल (वनीपकबहुल) ज १११८ वण्णमंत (वर्णवत्) प १११५२,५३,२८१५,६,५१, विण्ण (वर्णय) वण्णइस्सामि प १।१।३ वण्ण (वर्ण) प ११४ से २० से २७.३०,३१, वण्णय (वर्णक) प २३२,४२,४३ ज ११२,३,१२, ४०,४०1९२१४१,४८,४६,६४,३।१८२,५२५, १६,२३,२५,२८,३१,३५,३८, ११,८३; ७,१०,१२,१४,१६.१८,२०,२४.२५,२८,३०, ४।३,२५,३१,३६,४०,४७.५७,६७,७६,११०, ३२,३४,३७ से ३६,४१,४५,४६,५३,५६,५६, ११२,११५ से १२०,१२६,१२८,१३५,१३६, ६१,६३,६८,७१,७४.७६,७८,८३,८६,८६,६१, १४१ से १४४,१४७ से १४६,१५३ से १५६, ६३,६७,१०१,१०४,१०७,१०६,१११,११५, १७८,१८३,२००,२०१,२१३,२१५,२१६, ११६,१२६,१३१,१३४,१३६,१३८,१४०, २२१,२३४,२४०,२४५,२४६,२४८,५३, १४३,१४५,१४७,१५.०,१५२,१५४,१६३, २६ से ३३,३५ से ३७ च ६,७,८ सू १।२,३ १६६,१६६,१७२,१७४,१७७,१८१,१५४, उ १५१, ३।६१,४।१०।५।१४ १८७,१६०,१६३,१९७,२००,२०३,२०७, वण्णय (दे०वर्ण इ.) उ ३।११४ २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३०, वण (वासा) (वर्णवर्षा) ज ५१५७ २३२,२३४,२३७,२३६,२४२,२४४; वण्णादेस (वर्णादेश) पश२०,२३,२६,२६,४८ १०१५३.१,१११५३:१७।१११,१७१७,१७,१८% ११४११,१२३ से १२६,१३२ से १३४; वण्णाभ (वर्णाभ) १ २०२० से २५,५०,५६,६० २३।१०८,१६०,२८६,७,२०,२६,३२,५२, ज ४।२२,३४,६०,६४,८४,११३,२६६,२७२ ५३,६६, ३०१२५,२६:३६८०,८१ ज १११३, वण्णावास (वर्णमास) ज ११११,४६,३।१६५, २६; २७,१८,१३३,१४२, ३।३,११,१२,८८, १६७:४१४,७,१५,२६,८४,१४६ ; ५।१३ २११४१२२,३४,३६,६०,८२.८४,८६,६४, वणिय (वर्णित) प ११११३१६१२१ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहिदसा-वय १०३७ २५. वहिदसा (वृष्णिदशा) उ ११५,६:५११ से ३ वदित्ता (उदित्वा) ज ३।१२५ वित्त (वर्तय) बत्तइस्सामि प ३।१८३ वर्तेति बद्ध (वर्ध) ज ३।३५ प ३६१६२ वद्धमाण (वर्धमान) प २।३० ज ३३२ वत्तमंडल (वृत्तमण्डल) ज ३११७८ बद्धमाणग (वधानक) ज २१६४,३।३,१२,१७८%; वत्तव्व (वक्त०) ज ४।२६६७।१४१ से १४५, ४।२८,५:३२, ७।१३३१२ २०८,२०१६ १५० से १५२,१५४,१८६ सू१०।२० से २२ वद्धमाणगसंठिय (बद्ध मानकरा स्थित) सू १०१४१ वद्धमाणय (वर्धमानक) ज ३।१८५ बत्तन्वया (वक्तव्यता) प २।४०,४४,५११५२, वहाव (वर्धय्) बद्धावेइ ज ३।५,२६,३६,४७, २०५,२४४१११८०१५।१८ ज ३११५०. ५६,६४,७२,९०,१३३,१४५,१५१,१५७ १६१,२७७,४१५३,६४,७५,७६,८३,८६,६०, उ १।११० वद्धाति ज ३।११४,१२६,१३८, ६२,१०६,११५,१२६,२००,२०५,२०७,२२८, २०५,२०६ उ १११२२५४१७ वद्धावेहि २४०,२४६,२६२,२६८,२७७,७११०२ उ १११०७ वस्थ (वस्त्र) प २१३०,६१,४१,४६ से ५४; बद्धावेत्ता (व त्वा) ज ३१५ उ १५१०७ १५५५१२, १७११६ ज ३१६,११,१२,२६, वध (वध) उ ३१४८,५० ३६,४७,५६,६४,३२,७८,८१,८५,११३,१३३, वप्प (वत्र) ज ४१३,२५,२१२,२१२।३,२५१ १३८,१४५,१६७।६,१८०,२९१ सू २०१७, वरपगावई (वप्रकावती) ज ४।२१२।३ उश१६,३५:३१५१,५३,६३,६७,७०, बप्पावई (वप्रावती) ज ४।२११ वष्पिण (दे०), २१४,१३,१६ से १६,२८ वत्थधर (वस्त्रधर) ज २१६१५१४८ वमण (वमन) उ ३।१०१ वत्थव्व (वास्तव्य) ज ५१ से ३,५ से ७ वममाण (वमत् ) उ ३३१३० वत्थारुहण (वस्मारोहण, वस्त्रारोपण) ज ३।१२,८८ बमिय (वमित,वान्त) उ ३।१३०,१३१,१३४ वस्थि (वस्ति) ज २१५, ३१११७ वम्म वमन्) ज ३३१ वत्थिकम्म (वस्तिकर्मन) उ ३११०१ वम्मिय (अमित) ३७७,१०७,१२४ उ १११३८ वस्थिपुडग (दे०) उ ११४४ से ४६ । बय (पच्) बुच्चइ च २११ वोच्छं प २१६४११८ वस्थिभाग (वस्तिभाग) ज ३१११६ वत्थु (वस्तु) १४१५ ज ३१३२७।१०१,१०२ बिय (द्) यएज्जा ज ७।३१ सू १०११० श्यंति सू १०।१:१५॥१,३७ ज श६५१,६४ वयह उ ३.१०३;४११४ व मि वत्थुपरिच्छा (वस्तुपरीक्षा) ज ३।३२ उ १७६ कामो सू ११२०-यासी जशक्षा वत्थुप्पएस (वस्तृप्रदेश) ज ३।३२ २१६४,६०,६५,६७,१०१,१०५,१०७,१०६, वस्थुल (वास्तुक) प १।३७।२,३८।२,४४०१ १११,११४,३१५,७,१२,१८,२१,२६,२८,३१ ज २०१० से ३४,३६,४१,४७,४६,५२,५६,५८,६१,६४, विद (वद) वदा र ३१७७ वदंति सू २०१२ ६६.६६,७२ ७४,७६.७७,५३,६०,६१,६६, वदह ज ३।११३:५७२११२४ बदामो १०५,१०७,११३ से ११५,१२४,१२५,१२७, मू५११ वदिस्थति ज २११४६ वदेज्जा १२८,१३३,१३८,१४१,१४५,११,१५४, सू ६३१२ १५७.१६४,१६८,१७०,१७३,१७५,१८०,१८५, Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३८ १८८,१६१,१६६,२०६;५३३, ५, १४, २१, २२,२६ २८,४६,५४,६६,७२ चं १० सू १५ उ ११४; ३।२६४|१४; ५/१५ वयाहि ज ५।२२ उ १११०७ वय (स) ज २।३१ वय (व्रत) प २०१७, १८,३४ उ ३१४८, ५०, ५५ वयं (स्व) ज २१२६ वयगुत्त ( बचोगुप्त ) उ ३६६ वयण ( वचन ) प ११ ८६ ज २।१३३३३३, ८, १३,१६,२४,३२१२,५३,६२,७०,७७,८४, १००,१३१,१४२,१६५, १८१,१६२,२१३: aण ( वदन) ज २।१५,१६,३६,५।२१ उ १११५,३५,३३६० वयणमाला ( वदनमाला ) ज २१६५३ । १८६, २०४ वयमाण ( चदत् ) प १११२६,८७ वर ( वर ) प २४०1८,२४६; ३६१८३१२ ज १११६,३७,३८, २२१५,२०,६५,७१, ८५, ६५,६६, १००, १२०, ३१३,६,७,१२,१८,२२, २४,२८,३१,३२,३५,४१,४६, ५२, ५८,६१, ६६,६६,७४,७६,७७, ७८,८२,८८, ६३, १०७, १०६,१२४, १२५, १२८,१३१,१३७,१३८, १४१, १४७, १५१, १५२,१६३,१६४,१६८; १७५, १७८, १८३, १८६, १८७, २०६,२१०, २१३,२१८,२२१,२२३ ; ४११०,११५, २१७; ५१७,२१,४३,५६,५८७११७८ सु १६।११।१ उ १११, ४१, ४६,६४,६१,१२१, १३८:२६; ३।५६,६४,६६,६८,७६, ८१ ५१५, १३, १६, २०,२५,२७,३१ वर (बरक) प १३४५।२ तृण धान्य, चीनाधान ( वर ( वरय् ) वरति सू १६२२ १६ वरयंति चं २२ ११६१२ वरयति सू ७।१ वरणगणिहस ( वरकनकनिकष ) प १७ १२७ वरग ( वरक) ज २।३७ तृणधान्य वरम (वरक) उ४|६ वरगंध ( वरगन्ध ) प २ ३०, ३१,४१ वरगंधघर ( वरगन्धधर ) तू १७/१ वरगंधित' ( वरगन्धिक) सू २०/७ वरगय (वरगत) ज ३१६,१२,१८,२८,४१,४६, ५८,६६,७४,७८,८२,९३, १३६, १४७, १८०, वरदत्त (वरदत्त) उ५१२१, २२, २४, ३१, ४०, ४१, ४३ वरदाम (वरदामन् ) ज ३१३०,३१,३३,३६,३६,४१; ६।१२ से १४ ५।१५,२३,२६,२७,६६,७३११३३,४५,१०८ वरदामतित्थकुमार (वरदामतीर्थ कुमार ) ज ३।३३, वय-वरुण १८७,१८८,२१२,२१३,२१८,२१६,२२२; ५:४७, ६० वरपग (वरचम्पक) ज ३१३ राजचंपक वरण (वरण ) प १६३१४ ३६ से ४१,४३ वरदामतित्थाधिपति (वरदामतीर्थधिपति) ज ३१३८ बरसण्णा (वरसन्ना ) प १७११३४ वरपुरिसवसण ( वरपुरुषवसन ) प १७।१२७ वरबोंदिधर (वर' बोंदि धर ) सू १७|१:२०११ वरमल्लधर ( वरमाल्यधर) सू १७/१,२०११,२ वरवत्थधर (वरवस्त्रधर ) सू १७/१; २०११, २ वरवारुणी ( वरवारुणी ) प१७/१३४ वरसीधु (वरसीधु) प १७ १३४ वराडा ( वराटक ) प १४६ वराभरणधर ( वराभरणधर ) सू १७११ वराभरणधारि ( वराभरणधारित्) सू २०११, २ वराह (वराह ) प १६४२।४६ उ २१३५ वराहमंस ( वराहमांस ) सू १०।१२० वाराहीकंद वराहरुधिर ( वराहरुधिर ) प १७।१२६ वरिट्ठ (वरिष्ठ) ज ३३८१,५३२१ वरिस (वर्ष) ज ३।१७५ वरिसारत ( वर्षरात्र ) सू १२/१४ ३ ५।२५ बट्ट (वरुड ) प १६७ पिच्छिकार, बेंत का काम करने वाला वरुण (वरुण) प १५ ।५५११ ज ७ १३०, १८६३ उ ३१५४ १. अतोऽनेकस्वरात् इति इक प्रत्ययः । Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरुण - वहिय वरुण (काइय ) ( वरुणकायिक ) ज ११३१ वरुण देवया ( वरुणदेवता ) सु १०८ १ वरुणवर ( वरुणवर ) सू १६।३१ वरुणोद ( वरुणोद) सू १६/३१ वरेल्लग (दे० ) प १८७६ वलभीघर ( वलभीगृह) ज २१२० वलभीसंठित ( वलभीसंस्थित) ४१२ वलय ( वलय ) प ११३३११, ११४३ ज ३६,२२२ वलयाकार संठाणसंठिया ( वलयाकार थान मंस्थित) ज ४।२३४, २४०, २४१ वलयागार ( वलयाकार ) सू १६२, ६, ६, १२,१६, २८,३२,३६ वलवा (वडवा ) प १११२३ वलि (वलि) ज २९१५, १३३ उ १।३४, ४०, ४३, ४६,४८,४६,५१,५४,७४,७६,७६ ववहारसच्च (व्यवहारसत्य ) प ११०३३ वस ( वस् ) सइज ३।१२२ साहि ७७,८४,६१,१००, ११४, १४२, १६५, १६७।१४,१७३,१८१,१८६,१६६,२१३ ५१२१,२७,४१ उ ११२१,४२, ३३३,१३६ वसंत (बसन्त) प ७।१४४।२ सू १२११४ उ ५ १२५ वसंतमास ( वसन्तास ) सू १०।१२४/२ वसंतलय (वामन्तीलता) ज ५१३२ सट्ट (वसा) उ १५२,७७ सण ( मन ) प २२४०११०,११ ज ३१७, १८४ उ ३११३० वसणभूय (व्यसनभूत) ज २०४३ भमंस (वृषभमांस) सु १०।१२० वसभवाहण (वृषभवाह्न) प २१५१ ज २२६१; ५२४८ वलय ( वलित) ज २।१५; ३११०६५।५ वल्लभ ( वल्लभ ) ज १।२६ बल्लि (वी) ज २११३१,१४४ से १४६,३३२ उ ५१५ सू १८/१४ वल्ली (वल्ली ) ११३३ १ ११४०,११४८१६१ वल्लीबहुल (वल्लीबहुल ) ज १११८ aate (व्यपगत ) प १।१।१२।२० से २७ बसहि ( वसति) ज २०१६,३।१८,३१,१४० उ १।११०,१२६, १३३,३३३६ वसा (सा) व २२० से २७१५३११२, १५१५० सिकूड (वाशिष्ठकूट) ज ४।२०४११ ज ११२४; २११५, २३, २५, २६, २८, ३० से ३२, ३६, ४०, ४२,४३,७०,३१२०,३३,५४,६३,७१, ८४,१३७, १४३, १६७,१८२ ववरोव (वि- अप + रोपय् ) बरोवेइ प २२|६ वसुदेवधा ( वसुदेवता ) सू २०1८० वसु ( वसु ) ज ७ । १३०, १८६।३ वसुंधरा ( वसुन्धरा ) ज वसुहर ( सुधर ) ज ३११२६।१ वसुहा ( वसुधा ) ज ३११८,३१,१८० वह (वधू) बहंति ज ७।१६८।२ वह (वध) उ १।१३६; ३।४८,५० उ १।२२ ववरोविय (व्यपरोपित) उ ११२५, २६ ववसाय (व्यवसाय) ज ४। १४० १ ववसायसभा (व्यवसायसभा ) ४।१४० हार (वहार ) प ११।३३।१:१६।४६ उ ३|११ वह (व्यथ) उ५१२।१ वह (वह) उ५।२।१ ar ( वधक) ज २२८ ज ३११८५ बहस (वृहस्पति) ७१३७१०९/३ वस (क्श) ज ३।५, ६, ८, १५, १६,३१,५३,६२,७०, बहिय ( व्यथित) ज ३।१११,१२४ १०३६ वसभाणुजात (वृषभानुजात ) सू १२/२६ वसमाण ( वसत् ) प ३११८,३१,१८० उ ११११०, १२६,१३३ सह (वृषभ) ज २९१७ १७८ चं ११४ वसहरूवधारि (वृषभरूपधारिन् ) ज ७ १७८ Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४० वा-वाणमंतरी वा (वा) ११११८७ ज २१३९ सू१।१४ उ ११२७; वाउभक्खि (वायुभक्षिन्) उ ३.५० ३।१०१ वाउल (व्याकुल) ज २११३१ वा (वा) वाहिति ज रा१३१ वाकरेमाण (व्यागणत्) ज १७८ वाइ (वादिन्) ज १८० वागरा (वि+आ-कृ) वागरेहिति उ ३१२६ बागरेहिती उ ३।२६ वाइंगण (दे० वातिकुण) प १।३७११ बैंगन का गाछ वागरण (व्याकरण) ज ७२१४ सू३ उ १६१७, वाइंगणिकुसुम ('वाइंगणि'कुसुम) प १७१२५ ३२६ वाइत (वादित) प २।३०,३१,४६ बागल (वाल्कल) उ ३१५१,५३,५५,६३,६६,७०, वाइय (वादित) प २१४१ वाइय (वाद्य) ज ११४५,२१६५,३८२,१५५, बागली (दे०) प १४०२ बागुची, एक औषधि १८६,१८७,२०४,२०६,२१८,५११,१६,७१५५, वाघाइय (व्याघातिक) ज ७१८२ ५८,१८४ सू १८१२३;१९२३,२६ वाघात (व्याघात) प ११७४; २११६५ वाइय (वातिक) उ ३३११२,१२८ वाघातिम ('व्याधातिम,व्याघातिन् ) सू १८२० वाउ (वायु) प६८६,१०४,११५६।४१३।१६, वाघाय (व्याध.त) प २१७२८।३१ उ ११६५,६६ १७१४०,६६, २०१८,२३,२८,५७; २११८५; वाण (वाण) प ११३७६४ २२।२४ ज २१६३११७८,४१४६५१४३,५२; वाणपत्थ (दानप्रस्थ) उ ३१५० ७१२२११,१३०,१८६१४ सू १०१८४११ वाणमंतर (वानव्यन्तर) ११२१३०,१३१:२।४१, वाउकाइय (वायुकायिक) ११५:२।१० से १२; ४३; ३।२७,१३५,१८३;४।१६५ से १६७%, ३।५,५० से ५२,५७,६० से ६३,६८,७१ से ५१३,२५,१२१,६।२५,५६,६५,८५,६३,१०६, ७४,७६,८४ से ८७,६२,६५,१६५ से १६७, १११,११७,७१५,६११,१८,२४;१२२६,३६; १८३,४७६,८०,८२,८३,८५ से ८७,५१३, १३।२०१५॥३५,४५,८७,६६,१०४,१०७, १५,१६,६।१६,६२,६२,१०२ १११,१२४;१६१६,१६,१७।२६,३०,३२,३४, ५२,७७,८१,८३,६८,१०५,१६।४।२०।१३, वाउकाय (वायुकाय) सू २०११ १६,२५,३०,३५,३७,४८,५४,६१,२११५५,६१, वाउकुमार (वायकुमार) प १११३१,२।४०१, ७७,६०,२२।३१,३६,७५,८८,१००,२४१८; ६,११:५१३;६।१८ ज २।१०७.१०८ २८1७२,११७,११६; २६।१५,२२,३११४; वाउक्क लिया (बातोत्कलिका) प श२६ ३२॥५३३३१४,२२,३०,३४,३७, ३४।४,१०, वाउक्काइय (वायुकायिक) प १।२७; २।११; १६,१८३५१५,२१:३६।२५,४१.७२ १२॥३,४,२३; १५२६,८५,१३७,१६१५,१२; ज १११३,३०,३३,३६ ; २।६४,६५,६६,१०० १७।६१,१०३,१८।२६,३४,३८,४०.४२,५२; से १०२,१०४,१०६,११०,११३ से ११६, २०१३१,४५,२११२६,४०,५०,५७,६४,२२।३१; १२०,४१२,२४८,२५० से २५२, ५।४७, ३४१३; ३६१६,३८,५६,७२.७५ ५३,५६,६७,७२ से ७४ सू २०१७ वाउकाइयत्त (वायुकायिकत्व) ज ७।२१२ वाणमंतरत्त (बानव्यन्तरत्व) ३६।२२,२६ वाउक्काय (आयुकाय) ज २११०७,१०८ बाणमंतरी (वानव्यन्तरी) प ३३१३६,१८३, वाउन्भाम (वातोद्भाम) प ११२६ १. भावादिमः इति सूत्रेण इमः , Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाणारसी वास ४।१६८ से १७०; १७१५२, ८२, ८३; २०१३ वाणारसी (सी) प ११६३ । १ ३ २७ से २६४६,४८,५०,५१, ६५, ६६, ६६, १००,१११ वाणिज्ज (वाणिज्य) ज २१२३ वातिय (कार्तिक) उ ३।३५ वायाध ( व्यावाध) ज २१३६,४१ वाम ( कम ) ज २१११३ ३१६ १२, २४/४, ३७२, ४५१२,८८,११७,१३११४; ५।२१.५८ उ १।११५, ११६; ३६२ दामण ( वामन ) प १५१३५; २३।४६ वामणी ( वागनी) ज ३१११११ वामभुयंत (समभुजान्त) सू २०१२ वामेय ( मे ) प २१३१ वाय (वान) १२४ ज २१६.१०,१३१,१३३; ३१११,२४१३,३७।१,४५१,११७,१३१३, २११; ४ । १६६ ; ५१३८, ५८ (वाय ( वाचय् ) बाएंति ज ५।५७ वायंत (वाद) ज ३।१७८ वायकरण (वःतकरक) ज ३१११;५।५५ वायमंडलिया ( वातमण्डलिका ) प ११२६ वायस (वास) प १७६ वायुदेवा (वायुदेवता ) सू १०१८३ वारि (रि) ज ३।२०६; ५/५६ वारिसेणा (दारिषेणा ) ज ४।२१०; ५।६।१ वारुण (वरुण) ज ७११२२२१०२८४।२ वारुणी ( वारुणी ) ज ५।११।१ वारुणोदय ( वारुणोदक) ११।२३ वाल ( व्याल) ज ३२२२ उ३।१२८ वाल (बल) ज ७११७८ वालग (व्यास) ज ११३७ २/४१,१०१३३३२०; ४१२७५१२८ वालग्ग (वालाग्र ) ज २२६७३१७८ वालग्गपोइया (दे० ) ज २१२० वालग्गपोतियासंठित ('वालाग्रपोतिका' संस्थित) यू ४१२,३ वालपुच्छ ( व्यालपुच्छ) ज ७ १७८ वालिघाण ( बालधान) ज ७ १७८ वालिहर ( वालिधर ) ज ७ १७८ वाली (पाली) ज ३१३० वाक (बालुक ) प ११४८१४८ कविष्य की छाल वालुपा (वालुकाप्रभा ) प ११५३; २११,२०, २३;३११३,२१,२२,१८३४।१० से १२; ६।१२,७५,७६६१०११, २०१६, ३६; २११६७; ३३१५ १०४१ वालुया (बालुका) प ११२० ११२१४८ ज ३११११, ११३; ४ १३, २५,४६ सू २०१७ उ ३१५१,५६ वावण्ण (व्यापन्न) ११०१।१३ वावण्णम ( व्यापन्नक) प २०१६१ वावहारिय ( व्यावहारिक ) ज २२६ वादिय ( व्यापित ) ज ३१७६ ११६ वावी ( वापी) प २४,१३,१६ से १६, २८, ११।७७ ज १।३३; २।१२,१५,४१६०, ११३; ७११३३।१ वास ( वर्ष ) प १४६, २११, ४११, ३, ४,६, २५, २७, २८,३०,३१,३३,३४, ३६, ३७, ३६, ४०, ४२, ४३,४५,४६, ४८, ४६, ५१ ५२, ५४,५६,५८, ६२,६४,६५,६७,६६,७१,७६, ८१, ८५,८७, ८८, ६०, ६४, १२५, १२७, १३४, १३६, १४३, १४५, १५२, १५४, १६५, १६७, १६८, १७०, १७१,१७३, १७४, १७६, १७७, १७६, १८०, १८२,१८३,१८५, १८६,१८८६/३७ से ४१; १६।३०; १८/२,६,६,१२,२०,२१,२८,३२, ३४,३५,४७,५०,५२,२०१६३, २३।६० से ६४, ६६.६८,६६,७३ से ७८,८१,८३,८५ से ६०, ६२, ६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११६ से ११८, १२७,१३०, १३१,१३३, १४७, १५८, १६६,१७६, १७७, १८२,१८३, १८७, २८१२५, ७४ से ८७, १७ ज ११८ से २३, ३४,३५,४७ से ५१,२१,४,६ से १५, २१ से ४५,५०,५२,५६ से ५८,६५,७१,८८,६०, १२२,१२३,१२६ से १२८,१३० से १३४, Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४२ बास-विउल १३८ से १५०,१५४,१५६,१५७,१५६,१६१, वासहरकूड (वर्षधरकट) ज ६.११ १६४।३।१,३,२६,३२,३६,४७,५६,६४,७२, वासहरपव्वय (वर्षधर पर्वत) प २१:१६६३० ७७,७६,१०३,१०६,११३,१२४,१२६,१३३, ज ११८,४८,५१:३११३१,४३१.२,४४,४५. १३५।२,१४५,१६७.१७५,१८५,१८८,२०६, ४८,५४,५५,६१ से ३,७६ से ८१.८६,८७, २२१,२२५,२२६;४।१,३५,४२,५५,५६,६१, १६ से १८,१०२,१०३,१०८,११०.१४३, ६२,७१,७७,८१ से २३,८५.८६,६४,६८, १६२,१६६,१७३ मे १७६.१७८,१८०.१८४, ६६ से १०३,१०८,१६२,१६७७,१६६ १७२ १६०,२०० से २०६,२०८,०६२६२ से २६४ से १७४,१७८,१८१,१८२,१८५,१८७,१६३. २६८ से २७०,२७३ से २७६५।१४.१५; १६४,१६६,१६६ से २०३,२०५,२०६,२१३, ६.१०,१८ २६२,२६५,२६६,२७१ से २७३,२७७, वासावास (वर्षावास) ज७० ५१५५,६४६।१,६१६,१२,१३,१४,१६, ७१५६ वासिङ (वषितुम ) ज ३।११५ से १५६,१८७ से १६० मू ४.३;६।११०।६३ वासिकी (वाषिकी) सु १२।१८ से २३ से ६६८1१:१८।२५ से ३०,२०१७ उ १६, वासिट्ठ (वाशिष्ठ) ज ७।१३२। सू१०।१५ १४१,१४७ , २०१२,१३,२२, ३३१४,१६,१८, वासित्ता (वर्षयित्वा) ब ७ २१,८३,८६,१०४,११८,१२५,१५०,१५२, वासी (वामी) ज २१७० १५७,१६१,१६५,१६६४।२४,२६,२८ वासुदेव (नासुदेव) प १,४,६१,६।२६२०११ ५।२४,२८,३६,४१,४३ ज २।१२५ १५३,७।२०० उ ५।६.१५,१७ से वास (वर्ष) वर्षा ज ३१११५,११६५७; १६ ७११२।३,४ सू १०११२६३,४ वासुदेवत्त (वासुदेवत्व), २००५६ विास (वृष ) वासंति ज ३।१८४,५१७,५७ वाहण (वाहन) ज २१६४,३।१७,२१,३१,३२, वासति सू १०।१२६३ वासह ज ३११२४ ८१,१०३,१०६,१७७:५१८,२२,२६ बासिस्सइ ज २॥१४१ से १४५ वासिहिति उ १६६,६४,६६,११५,११६ वाहि (व्याधि) ज २६१५,१३१,१३३ ज २०१३१ वाहिनी (वाहिनी) उ ३३११०,४।१६,१८ वासंतिय (वासन्तिक) ज २०१० वि (अपि) प १३५ ज १११६ सू ११६ उ ११७ वासंतिलता (वासन्तीलता) प ११३६१ विइक्कंत (तित्रान्त) ज २१७१,१३८,१४० वासंती (वासन्ती) प ११३८१२ ज २०१५ विउक्कम (वि । उन् !- क्रम) विउक्कमति वासघर (वामगृह) ज ३१३२ सू २०१७ उ ११३३; प ६१२६ विउ (वि : वृत) उहि उ ३३११५ वासपुड (वासपुट) ज ४।१०७ दिउट्ट (निवृत्त) ज ८:३६,६६,६१ वासमाण (वर्षत) ज ३।११६ विउल (बिल) परा३०,३१,४१ ज ११५; वासयंत (वासयत्) ज २१६५ २०६४,६५.६१.१२०.३।३.६७.१०३ १८५, वासरेणु (बासरेणु) ज २६५ २०६:५२६,५४७१७८१३१७.६३; वासहर (वर्षधर) प १५१५५।२ ज २१६५,३।१३१: २१११,३।७,५०,५५,६११८.१०१.१०६ ४११०३,१०८,११०,१४३,१६२,१६७,१८१. १०७.११०.१२९,१३१,१३४,१३६,१४६; १८२,१८४,१६०,२००६.१०.१८ ४११६ २०२८ Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विउलमइ-विग्गह १०४३ विउलमइ (विपुलमति) ज १८० विउ (वि - कृ) विउव्य इ ज ५१४१,४६,६०, ६६३।१२ विउब्बति प ३४.१६ २१ से २३ ज २११०२,१०६,१०८,३१११५,१६२,१६४, १६५,१६७,१९८५१५५,५७ विउवह ज २११०१,१०५:१३ विउब्वाहि ज ५१२८ विउब्वेह ज ३३१६१ विउव्वणगिडिढपत्त (विकिद्धिप्राप्त) सू१३:१७ विउवणया (विकरण) उ ३४१ से ३ विउदणा (विकारणा) उ ३१७ विउव्वमाण (विकुर्बाण) सू २०१२ विउवित्तए (किर्तम) ज ७१८३ मू १८।२१ विउव्वित्ता (दिकृत्य) प ३४।१६,२१ से २३ १२३ विउविय (विकृत) प २१४१ विउब्वेत्ता (विकृत्य) ज ३।१६१ विउसमण (व्यवशमन) सू २०१७ विझगिरि (विन्ध्यगिरि) उ ३३१२५ विंट (वृन्त) प ११४८१४६ विहणिज्ज (बृहणीय) प १७४१३४ /विकंप (वि-+कम्प ) त्रिकंपइ च ३।२ सू १७२ विकंपइत्ता (विकम्प्य) सू१२४ विकंपमाण (विकम्पमान) सू ११२४ विकप्प (विकल्प) ज ३१३२ विकप्पिय (विकलित) ज ३११०९ विकल (विकल) ज २११३३ विकिण्ठ (विकीर्ण) ज ७।१७८ विकिय पूय (विकृत भूत) ज ५१५७ रिगर (निकिरणकर) ज ३।२२३ विकिरिज्जमाण (विकीर्यमाण) ज ४११०७ विकुस (विकुरा) ज २१८,६ विक्कत (विक्रांत) ज ३।१०३ विक्कम (का) ज ३।३:७११७८ च १११ विक्खंभ (विष्कम्म) प १७४, २१५०,५६,६४; २१८४,८६,८७,६० से ६३,३६.५६,६६, ७०,७४,८१ ज १७ से १०,१२,१४,१६,१८, २०,२३ से २५,२८,३२,३५,३७,३८,४०,४२, ४३,४८,५१,२१६,१४१ से १४५,३३६५,९६, १५६,१६०.१६७:४११.३,६,७,९,१०,१२,१४, २४,२५,३१,३२,३६,३६ से ४१,४३,४५,४७, ४८,५६,५२ से ५५,५७,५६,६२,६४,६६ से ६६,७२,७४,७५,७६,७८,८०,८१,८४ से ६६, ८८,८६,६१ से १३,६५,६६,६८,१०२,१०३, १०८,११०,११४ से ११६,११८ से १२७, १३२,१३६,१४०,१४३,१४५ से १४७,१५४ से १५६,१६२,१६५,१६७११,१६६,१७२ १७४,१७६,१७८,१८३,२००,२०१,२०५, २१३,२१५ से २१६.२२१,२२६,२३४,२४० से २४२,२४५,२४८; १६५७७,१४ से १६, ६६,७३ से ७८,६०,६३,६४,१७७,२०७ चं ३१२ मू १७२१।१४,२६,२७,१८१६ से १३; १९६४,७,१०,१४,१८,२०,२१५१,३०, ३१,३४,३५,३७ विक्खंभसइ (विष्कम्भः ) १२११२,१६,२७, विक्खय (विक्षत) ज २११३३ विवखुर (दे०) प ७१७८ विग (वृक) ज २१३६ विगत (विगत) प १८४ विगतजोइ (विगतज्योतिस्) म १४११०,१५१८ से विगय (विकृत) ज २११३३ विगयमिस्सिया (विगतमिश्रिता) प १११३६ विलिदिय (निकलेन्द्रिय) ११८३ से ८५; १५५१०३, २०१३५:२२।८२:२८११११,१२७, १३८,३११६।१,३४११४;३५।११२,३५१७; ३६।५६ विगलेदिय (विकलेन्द्रिय) प १११८२ विगोवइत्ता (विगोप्य) ज २६४ विगह (विग्रह) । ३६१६०,६७ से ६६,७१,७५ ज़ ५॥४४ उ ३३६१ Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४४ विनारि-विज्जुष्पभह विचारि (विवारिन) म १६१ विचित्त (विचित्र) ५२।३०,३१,४१,४६ ज २०१२; ३।६१०६,२२२,७१७८ ३ २०१७ उ २११० ३.१४,८३,१०२,१३५,१४२,४१२४,५।२८, विचित्तकूड (विचित्रकूट) उ ६।१० विचित्तपक्ख (विचित्रपक्ष) प ११५१ विचित्ता (विचित्रा) ज ५११ विच्छड्डयित्ता (विच्छद्य) ज २१६४ विच्छड्डिय (विदित) ज ३११०३ विच्छिण्ण (विस्तीर्ण) : २१५१,५२,५४,५६,६० ज ११८.१८,२०,२३,२५,३२,३५,४८,५१, २११५,३११,१८,३१,३५,५२,६१,६६,१०३, १०६,१३१,१३७,१३८।१,१४१ १६४,१८०; ४।१,३,४५,५५,६२,८६,८८,६८,१०३.१०८, ११०,११४,१४१,१५६.१६२.१६७.१६६, १७२,१७८,१८५,१८७,१६१.२००,२०३, २०५,२१३,२१५,२४२,२४५,२४६,२५१, २५२,२६२,२६८,२३,२८,४६;७.१७७।१,२ उ ३१३७ विच्छिण्णतर (विस्तीर्णतर) ज ४११०२ विच्छिप्पमाण (विस्पृश्यमान') २१६५; ३।१८६,२०४ विच्छुत (वृश्चिक) प १३५१ विच्छुयअल (वृश्चिक ल) ज ७१३३।३ विच्छ्यनंगोलसंठिय (वृश्चिक लांगूलनास्थित) सू १०१५२ विडि (द्विजटिन्) सू२०१८,२०१८) विजय (विजय) प १११३८,२११,४८.६३ ; ४१२६४ से २६६,६१४२,५६७२६ १५१५५१२,१५८६,६२,१००,१०५,१०८, १०६,११३,११४,११६,१२०,१२१,१२३, १२५,१२६,१३१,१३६; २८९६ ज १११५, १६,४६,५१,११७:३३५,१८,२४१४,२६, ३१,३५,३७१२,३६,४५१२.४७.५२,५६.६१, ६४,६६,७२,८१,९०,११४ से ११६,१२२, १२४,१२६,१३११४,१३३.१३५,१३७,१३८ १४१,१४५,१५१,१५७,१६४,१३२,१७८, १८०,२०५,२०६,२०८,२०६; १४६५२, १०३,१६२,१६७ से १७,१८१ मे १८४, १८७ से १९१,१६३,१९६.१६७,१६६ २०३,२०६,२१२,२६२।४३,५५,५३,५८ ६.६. १ १:४,१२२१२ च ५१४११०१८४ २,१२४११ उ ११०७.११०,११६,११८, १२२,१३०,५१७ विजय (दिचय) १९ विजयखंधावार स्वा३।१७२ विजयडूस ( ४८५ विजयपुरा ( 1) १२ विजयवेजइया (विजयी ) १२,२८, ४१,४६,५५.६६,७८,४७,१६८ विजया (विजया) ४२१८,२१२१४५१८।१; ७१२०१२,१२६ विजह (वि : हा) विहति सू १५३८ विज्ज (विद्) विज ३११२१११ विज्जल (दे०, वि ): ३८ विज्जा (विद्या) ३१६०१ विज्जाहर (विद्याधर) १६१.२११६३ ज ३.१३७ रो १३६,२०:४/७ २ ।२८ ३ ५१५ ज्जिाहरसेढी विद्या मोज ११२५ से २८% ४११७२:६।१५ विज्जु (विधु) १९६६१,२१४०।६,११ ____ ज ४।२१०१? सू०१ विज्जुकुमार (विध कु. :) ११३१; १३; ६.१८ विज्नुकुमारिका ) विन्दुः (न्यूयत) विज्छप्पन (६.बुर से २१० विजुप्पम शुभ १२१० विजुप्पभदह (विद्युमन ल ४६६४ १. हे०४।२५.७ Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विज्जुपविद्ध हि (वि) ज ४।२१५ रज्जुप्पहार (युत्प्रभवक्षस्कार ) ज ४।२०५ विज्ह (विमुख ) प १८६ विषेश (वि) ज २१३१,४ । २११ ; शर दिज्जु ( () विज्जुयाति ज ५७ विज्gare (विद्युत्यत्वा ) ज ५७ विज्झडिय (३०, मिश्रित ) ज २।१३३ विज्झिडियमच्छ (सिडिय मत्स्य ) प १।५६ विद्धि (विष्टि ) ५११२३ से १२५ fastu (f) ७२१७८ विडिय (२० प ) २४६ ४१४६ विमिंदर (६०, पिटपान्तर ) ज २०१६ दिड्डा (त्रीडा) ११५८,८३ विण (निप्ट) ज २११०३.१०४ विर्णामि (निमि) ३११३७,१३८,१३६ विजय (विनय ) प १११०१।१० ज ११६, २२६०, ६०,१३३, ३१८,१३,१९५३,६२७०,७७,८४, १००,१४२.१४७,१६५, १८१,१८६,१९२ २०५,२०६२१३५११५,२३,५८,६६,७३ यू २०१६ उ १११६,४५,५५,५६.६७ ८०,०३,१०८.११६,१२०,३११२० विणास (नाम) प १७४ विभासण (विजन ३८८१०९५७ विनियमं (विच्छा) ३११०६ विणित (त्) ११३७३।१२, ६८४१५८ वणी (वणी) वि२०४६ वर्णेति उ ११३४ निमि १।७४ विणीला ( विनीतः) ज ३११८२ विणीय (त्रित) उ५१४०, ४१ footer (२/१६,६५,३११२७,८, १४,८७,८५,१०६,१७२, १७३, १८०, १८३ से ܬܘ &o3 ex Po,> ?, ?, . ܔܔ २१२२२०२६१२४११०० विore (विशक) २०१२७, १२७३५४४३ √ विष्णव (वि + ज्ञपय् ) विष्णवे उ ११०१ बिष्णवणा (विज्ञान) उ ३३१०६ विगविज्जना (विज्ञप्यमान ) उ१।१०२ विवि (विज्ञपयितुम् ) उ १६६ विve (विष्णु) ज ७।१३०,१८६१३ faughar (foदेवता ) सू १०१७९ वितत (वि) ज ५३२, ५७ तिपक्खि (तितपक्षिन् ) प १७७,८१ वित्त ( वितृप्त ) सू २०१८,२०1८1८ वितत्य ( वित्रस्त ) सू २०१८, २०१८ तिथि ( वितरित) ज २१६ वितिमिर (वितिभिः ) प २/६३३६६३,९४ वितिरितराग (वितिमिरतरक) ५१७ १०८, ११० वित्त (वित्त) ज ३११०३, ५५८ वित्त (वेव) ज ३ | १०६ विति (वृत्ति) ज १११३.३०,३३,३६,२११३४; ४२ वित्थड (विस्तृत) ज ३।११७,७१३०,३१,३३ मु ४५३, ४, ६, ७,१६/२२११५ वित्थय (विस्तृत) ज ३१३२,१०६ विस्थर ( विस्तर) ज २।१३४ fararves (विताररुचि ) प १।१०१।१,६ वित्थिष्ण (ती) प २२५०,४६,५८ ज ११२४, २८ ३१२१,५१४ विदिशा (विदिशा ) ज ४११०६,१५५,२०४,२१०, २१२.२३५.२३७५।१२ विदिसि (विदिश् ) प ३६।७०,७२ ज ५।१२ विसिवाय (विदित) ५१।२६ विदेह (देह) प ११६३३,६४१११।१२६, १३३ विदेहजंबू (विदेहजम्बू) ज ४११५७।१ विदुम (वि) ज ३।३५ वि (विद्ध) ज ३।२५ (ध्वंस) १०४५ : विद्धरोहित सरदर १११७२२८१४०,४३,६६ २११५१ Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४६ विद्वंसइत्ता ( विध्वस्व ) प २८|६६ विद्वंसण ( विध्वंसन) उ ११५१,५२,७६,७७ विद्वेत्ति (रिध्वंसितुम् ) उ११५१, ५२.७६, ७७ विद्धि ( वृद्धि) ज ७११८६१३ सू १५१८ विष्पण (महाण ) ४३६१६२ free हित्ता ( विप्रहाय ) प ३६।६२ विपचिण (विप्रतिपन्न) उ३२४७ विधाउ (विधा ) प २४७२ विधुय (विधुत ) ज २३१०:४।१६६ विपुल ( विपुल ) ज २२६६; ३३८८, १०६ विपुलतर ( विपुलतर) ज ४।१०२ विप्पजद ( विप्रहीण ) उ ११२०, ६१ / विप्पजह (विप्र हा) विप्पजहति प ३६६२ विभु ( विभु ) ज ५१५, ४६ fareyes ( विमुक्त ) प २१६४११, ६, १६:२५; ३६/८३१२ ज ३११२,८८,६२,११६; ५७, ५८ ३।१५६ विपरिणामइता (परिणम् ) २८१२०,३२,६६ विमान (प्रलयत् ) उ ३११३० विपति (विप्रोषित) सू २०१७ विषय (विज) उ ३३१३१,१३४ विबुद्ध (विबुद्ध) ज ३०३ विलोम (३०) सू २०१७ उपधान विभल (विह्वल) २०१३३ विभंग अण्णाणपरिणाम ( विभंग ज्ञानपरिणाम ) प १३।१० विभंगणाण ( विभङ्गज्ञान ) प ५१५७२६ २,६, १७,१६,३०१६ विभंगणाणि ( विभंगज्ञानिन् ) १ ३१०२,१०३; ५६६,१०७ १३ १४, १७, १८१८४; २८११३७, ३०।१६ विभंगनाण (विभंगज्ञान ) प ३०|२ १/४२/२ विभंगु (दे०) v विभज (वि- 1 - भज् ) विभज्जइज २१५५ विभजिस्सइ ज २११५५ विभत्त ( विभक्त) ज २११५,१३३ विभयमाण (विभजमान, विभजत् ) ज १११६,४७; ४१४२,७१,७७,६४, १६८, १८३,१८६, ११५. २६२ सू १६/१६ विभाग ( विभाग ) ज ३३२ विभावणा (विभावना) १२८१२ / विभास (वि + भाष्) विभासिज्जा ज ५।५५ विभासेज्जा ज ५१५७ विद्वंसता- विमाण विभावि (विभापितव्य ) ज ५।४०,५७ विभूइ ( विभूति) ज ३।१२,७८, १८०, ५१२२,२६ विभूति ( विभूति) ज ३।२०६ विभूसा ( विभूषा ) ज ३ १२,७८, १८०,२०६; ५१२२,२६ विभूतिय ( विभूषित) ज २१६६, १००, ३१६, ३५, ७८,१०६,२११,२२२, ५११४, ४१, ४३, ५८ ७ १७८ ११७०३३।११०,४।१८५ १७ विभेल ( विभेल) उ३।१२५, १३२,१३३,१४१,१४५ विमण (विमनम् ) ज २६०,१०३,१०६, १०८ उ ११३५ विमय (दे० ) प १।४१।२ विमल ( विमल ) प २३१,६४ ज ११३७ २११५; ३२,१२,१८,७७,८१,८८, १०७,११७, १२४, १५१,१७८, २२२, ४१३,२५, १२५, २०४/१९ ५१५,४११३,५८,६२,७१७८ सू २० दाद उ १११३८ विमलवाहण (विमलवाहन ) ज २१५६,६१ विमाण ( विमान ) ६ २११,४,१०,१३,४८ से ५२, ५६२, २५ से ६३,७१२६; ११२५, २१/६२, ६३, ३३,१६,१७ व २।१२०६३।३,११७; ४।११५,५१३,५,१८,२२,२५,२६,२८,३०,३२, ४१, ४३ से ४५,४६, ५०, ५२, ५३, ७२१७८१, १७६,१८४ से १६६ ६।१,१८।२२ से २४; २०१२ से ४ उ ३६, ७, १४, २५,८३,९०, १२०, १५६,१६१,१६६,१७१ : ४५, २४, २८, ५१२८, ४१ Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विमाणकारि-विव १०४७ विमाणकारि (विमानकारिन) ज ५।४८ से ५०,५३ विरल्लिय (तत') प १५१५१ विमाणास (विमानवास) ज ३.११७ विरव (वि+रचय) विरवेइ उ ११४६ विमाणावलिया (विधानावलिका) प २११,४,१०,१३ बिरवेत्ता (विरच्य) उ २४६ विमाणावात (विभागास) प २१४८ से ६३ विरसमेह (विरसमेघ) ज २१३१ ज ५।१८,१६,२४,४८ विरह (विरह) उ १६५,६६,१०५ विमाणोववण्णग (विमानोपपन्नक) सू१९४२३,२६ विरहित (विरहित) प६५ से ७,४३ सू १६४२५ विमक्क (विमत) प २६४११०,१६,२२, ३६१६४।१ विरहिय (विरहित) १६.१ मे ४,८ से २३,२७, विमोक्खण (विमोक्षण) ज २७१ ४४,४५ ज २१४०,७१५७,६० सू १०७७ वियछउम (विवृत्तछद्मन्) ज ५१२१ विराइय (विराजित) प २।३०,३१,४१,४६ दियड (विकट) प ६१२० से २३ ज २०१५ च ११३ ज २११५:३१११७,७१७८ सू २०१८,२०१८ विराग (विराग) सू१३१२ वियडजोणिय (निकटयोनिक) पहा२५ विरायंत (विराजमान,विराजत्) ज ३१६,५१२१ वियडावइ (विकटानातिन् ) ज ४।७७,८४,२६६ विराल (विडाल) प १११२१ वियडावति (टापातिन् । १६।३० विराली (विडाली) प १११२३ वियस्थि (वितस्ति) प ११७५ विराय (वि-गवय) विरावेहिंति ज ११३१ वियस्थिपुत्तिय (तस्तिपृथक्त्विक) प १७५ विराहणी (विशाधनी) प ११०३ इवियर ( विन) बियरह ज ३१८८ विराहय (विराधक) प ११८६ वियरग (दे०) ज ५११३ विराहिय (विराधित) उ ३.१४,२१,८३ वियरिय (चिरिन) ज १२ दिराहियसंजम (विराधितसंगम) प २०६१ वियल (किल) प २४१७ विराहियसंजमासंजम (विरावितसंयमासंयम) वियसंत (विकारात्प रा४१ प२०६१ विसिय (कि.मिन) ६।३१,४८ ज ३।६; चिरिच (वि-1-भज) चिरिचइ उ १६४ 61८६; ५२१ विरिचित्ता (विभज.) उ११६६,६४ जिया (1 ) विमाणाहि ॥ ११४८।३८,३६ विरिय (वीर्य) प २३११६,२० ज ३११०७,११४ वियाणंत (विमानत) १ २१६४।१७ विरेयण (विरेचन) उ ३३१०१ चियाणय (जिन्ना) ३।३२,७७,१०६ विलंब (विलम्ब) प २१४०१६ वियाणित्ता (ज्ञा.) उ ५१३७ विलवमाण (विरूपत्) उश६२,३११३० दियाणिय (विज्ञ त) ज ३१८७ विलास (गिलास) ज २१५,३।१३८ र २०१७ वियालय (जिमाल) ज ७११८६११ सू २०८१ विलिय (वीडित) ज २१६० उ ११५८,८३ विरइय (रिचित) ज ३३,६,२२२ विलिहिज्जमाण (विलिख्यमान) प २१५० विरज्ज (दि: ज्) बिरज्जति सू १३।१ विरत (पिरत) : २६।१० पिरति (निरनि) २००४१ विलेवण (विलेपन) ज ३१६,२०,३३,५४,६३,७१, विरत (विरत.) म १३११:२०१३ ८४,१३७,१४३,१६७,१८२,२२२ बिरय (रज- २०१८,२०१८१७ पिन (इ) श३८,६८ उश२३,३।१२८ विरयाविरति (विरताविरति) ६ २०१४२ १. हे० ४।१३७ Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४८ विवंचि (विपञ्ची) ज ३१३१ विवज्जिय (विवर्जित) उ ३१३६ विवडिय ( पतित ) ज ३ १०८ से १११ सु १०११२६/२ विघढ (त्रि- वृध्) विवड्ढति ज ३२६५, १५६ विसमबहुल (विषमबहुल ) १११५ विवड्ढत ( विवर्धमान ) प ११४८५२ विवरण ( विवर्ण) उ १।१५,३१८ विवत्थ ( विवस्त्र ) सू २०१८ विवर (विवर) ज २२६५५१५ विवरीत (विपरीत) मु २०६२ विवरीय (विपरीत) ज ३।११७११ विवाग ( विपाक ) प २३|१३ से २३ विवाह (विवाह) सू २०१७ विवि (विविध) प २४१, ४८ ज ३।२४,११७, १६७/१२; ४।२७,४६,५३८, ६७ ७/१७८ म १८१८ उ ३।३५,११२,१२८ विस (विष) उ ११८६,६० विधि (सन्धि ) भू २०/८५ विसंधिकप (सन्धिकल्प ) मु २०१६ विसज्जिय ( विसर्जित) ज ३१८१ विसयमाण (वित्) ज २११५; ३५,६,८,१५, १६,३१,५२,६२,७०,७७,८४,६१,१००, ११४, १४२,१६५,१७३, १८१,१८६,१६६,२१३, ५।२१,२७,४१३ ११२१,४२, ३।१३६ विसम (विष) प १३२२२; १६१५२,३६८२११ ज २/३८, १३६,१३३,३७६,८८, १०६,१२८, १५१,१७०६७।११२/३ सू १०११२६/३ उ ३३५५ विसमकोणसंठित (विषमचतुष्कोणसं स्थित ) सु ११२५४१२ विसमचउरंसठाणसंठित (विषमचतुरस्रसंस्थान संस्थित) १२५ विसमचउरंससंठित (विषमचतुरस्रसंस्थित) सू ४१२ विसमचक वालठाण संठित (विषमचक्रवालसंस्थान संस्थित) सू १६६ विसमचक्क बालसंठित ( विषमचक्रवालसंस्थित ) विवंचि विसुद्धतर सू १/२५४१२, १६१३,६,१३,१७,२६,३३,३६ विसमचारि (विषमचारिन् ) ज ७१११२।२ विसमाउय (विषमायुष्क ) प १७|१३ विसमेह ( विषमेघ) ज २११३१ सिमोववण्णग (विषनोपपन्नक) प १७|१३ विसय (विषय) प २४८, ११६२१११५ १११, १५१४०,४१,३३११।१ ज २।४३।१०४, १०५, १०७, ११४,१२६।४; ५१४६७ १९७८ १८११ विसय ( विशद ) ज २४,६५,१२६ विसयवासि ( विषयवासिन् ) ज ३।२४/२,३२६, ३६,४७,५६,६४,७२, १३११२,१३३.१३८, १४५ fantryaat (विषयानुपूर्वी) ज ७५० विसह (विषय) ज २२६८ विसहरण (विषहरण ) ज ३।६५, १५६ विसाएमाण (विस्वादयत् ) उ ११३४,४६,७४ विसायणिज्ज (विस्वादनी) जे २११८ विसारय ( विशारद) ज ३१७७, १०६ उ १।३१ विसाल (विशाल) २२४७२ ज २२१५; ३११७८; ४११५७२७ १७८ सू २०१६, २०६८ विसाहा (विशाखा ) ज ७११२८, १२९, १३४१३, १३५३३,१३६,१४०, १४९, १६५, १६६ सु १०१२ से ६,१७,२३,०६,६२,७२,७३,७५, ८३, ११४,१२०,१३१ से १३३१२/२१ विसाही ( वैशाखी) ज ७७१४० विसिट्ठ (विशिष्ट) प २४०७ ११३७ २ १५, २०,३१६,३५,१०६, ११७ २२१,२२२,५८४३; ७१७८ विसितर (विशिष्टतर) सू २०१७ विमुज्झमाण (विशुध्यमान) १०११३,१२८ २३।२००,२०१ ज ३।२२३ बिसुद्ध (वि) ज २१८, ६,३३,१०६५।५८ उ ५१४३ विसुद्धतर ( विशुद्धतर ) ज २०७१ २६३; १७/१३८३६/६३,६४ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसुद्धतराग-वीइक्कत १०४६ विसुद्धतराग (विशुद्धतरक) ११७।१०८ से १११ विसुद्धलेस्सतराग (विशुद्धलेश्यातरक) १ १७१७ विसुद्धवष्णतरग (विशुद्ध र्णतरक) प १७१६,१७ विसेस (विशेष) प ११११४२१६४११८,१२६३१ १५।२६,३०; १७१३०,१४६ ज २१३,३० ३३,३६,२।४५,१४५,३१३२,४१२,२५ सू २।२,४१४,७; १५५ से ७:१९८२२११३ विसेसाहिय (विशेषाधिक) पश६४,३११ से ६, २४ से ३२,३७ से १२०,१२२ से १२५,१२७, १४१ से १४३,१५६ से १७०,१७४ से १८३, ६।१२३,८५,७,६,११६१२,१६,२५,१०१३ से ५,२६ से २६११७६,६०,१५।१३,१६, । २६ से २८,३१,३३,१५।५८/१,१५।६४; १७१५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८३,१४४ से १४६; २०६४, २११०४,१०५; २२११०१२८।४१,४४,७०:३४।२५,३६६३५ से ४१,४८,४६,५१,८१ ज १७,२०,४१४५, ५७,६२,६८,११०,१४३,२१३,२३४,२४१; ७१४,१६,७३ से ७५.६३,१६७,२०७।। मु१६१४,२७,१८३७:१६६१० विसोह (वि-!-शोधय) विसाहेहर३।११५ विस्स (विश्व) ज ७।१३०, ८।४ विस्संभर (विश्वम्भर) ५१७६ विस्तदेवया (विश्वदेवता) १..३ विस्सुत (विश्रुत) ज ३।३५ विस्सुथ (विश्रुत) ज ३१७७,१०६,१२६,१६७ दिहंगु (दे०) प ११४८९४६ विहग (हिग) ११३७, २१६८,१०१,४।२७; २८ विहाफइ (बृहस्पति) ज ७१०४ विहर (वि-ह) विहरइ प १५० से ५३ ज१५,४५,२।७० ६१,३१२,२०,२३,३३, ८२,८४,१५३,१७१,१८२,१८६,२१८,२१६, २२४; ४११५६,१६ उ ११२,२७,३१६, ४।११:५१६ विहरति प १२० से २७,३० से ३७,३६ से ४२,४६,४८ से ५२,५४,५५,५७ से ५६ ज १११३,३०,३३,२।८३,१२०,४।२, ११३; ५११,३,८ से १३,६८, ७५६,५६ सू १९२४ उ ३.५०, ५१२६ विहरति प २।३२,३३,३५,३६,४३ से ४५,४८,५१ ५३ से ५६ ज २१७२; ३।१२६; १८ से १३ सु २०१७ विहरसि उ ३८१ विहरामि उ ११७१, ३१३६ विहराहि ज ३३१८५,२०६ विहरिस्संति ज ११३४,१४६ विहरेज्जा सू २०१७ उ ५१३६ विहरमाण (विहरत्) ज २१७१ उ ११२,२० विहरित्तए (विहर्तम) ज ७।१८४,१८५ सु १८।२२ उ ११६५,३१५० विहरिय (विहत) उ ३१५५ विहव (विभव) ज २४३ विहाड (वि-घटय) विहाडेइ ज ३३९०.१५७ विहाडेहि ज ३।८३,१५४ बिहाडिय (विघटित) ज ३।६० विहाडेता (विघटा) ज ३१८३ विहाण (विधान) पश२०१२,११२०,२३.२६,२६, ४८,६८ विहाणमग्गण (विधानमाण) ५२८१६,६,५२,५५ विहायगति (बिहायोगति) ५१६१७,३८,५५ विहायगतिणाम (विहानगतिमान) प २३।३८, ५.६,११६,११७,११६,१२८,१३२ विहार (बिहार) ज २१७१ विहि (विधि) प २१४५; २१।११ ज ३१२४२, म १९४२२ विहिण्णु (विधिज्ञ) ज ३१३२ विहूण (विहीन) प १०।१४१५ ज ४१६४,८६,१३६, २०८ दिहूसण (विभूषण) ज ४।१४०।१ वीइ (वीचि) ज ३।१५१ वीइक्कंत (व्यतिक्रान्त) ज २१५१,५४,७१,८८, ८६,१२१,१२६,१३०,१४६,१५४,१६०,१६३; ३२२२५ उ ११५३,७८,३११२६ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीइभय-वच्छ वीइभय (बीतिभय) पशE३४ बीरियंतराइय (वीर्यान्तरायिक) प २३६५६ वीइय (बीजित) ज ३।६,२२२ बीरियंतराय (धीर्यान्तराय) प २३।२३ बीइवइत्ता (व्यतिब्रज।) ज१११६,४६,४१५२ वीवाह (विवाह) ज २।१३० उ५१४१ वीस (चित्र) प २१२० से २७ वीईवयमाण (व्यतित्रजत) ज २१६०३१२६,३६, वीस (विशति) प२।२४ ज ११२३ मू ७१ ४७,५६ ६४,७२,१३३,१४५,५१४४,४७,६७ उ ५।२८ वोचि (वीचि) ज २१५:३१८१ वीस (विशतितम) १०.१४१४ वीणग्गाह (वीणानाह) ज ३११.७५ वीसइ (विंगति) ज ३।१०६ च ६५ सू ११६१५ बीतराग (जीनाम) प१:१०७ से ११०,११५, वीसइअंगुलवाहाक (विशव्यंगुलबाहुक) ज ३।१०६ ११७ से १२३ वीपति (विशति) प २३७५ योत्तरागसंजय (वीरागत) ११७४२५ वीसतिम (विंशतितम) सू १२:१७ वोतसोग (वीतशोक) २०१८ वीसधा (विशतिधा) सू १२२३० वोतिमिर (वितिभिर) । २०६३ बीससा (सिमा) १६.५५; २३३१३ से २३ वोतिययभाण (व्यतित्) ज ३।११३; ५१४४ चीससेण (विश्वसेन) ज ७१२२२२ सू १०१८४२ 1वीतीवय (वि:-अति-व्रज्) वीतिकथति वीसहा (विशतिधा) सू १०११४२,१४७ भू २००२ वीसायणिज्ज (विस्वादनी) प १७।१३४ वीसुत (विश्रुत) ज ३।३५,११६ वीतीवतित्ता (अतिव्रज:) प २१६३ वीहि (बीहि) प ११४५।१ ज २।३७ वीयणी (बीजनी) ज ३१३ विच्च (वच ) बुच्चइ प ५१७,३४,१०१,११६,१६९; वीयराग (नराग) प ११००,१०४ से १०७, ११॥३,४१,१७१२,१३,२०,२७,११६,११६, १०६ से १११,११५,११६.११८,१२१ से १२३ १५२,१५५,२०१३६ ज ११४५,४७, २।४।१; वीयराय (बीतराग) प ११०२ से १०४,११६, ३।१,६८,२२६४।२२,३४,५१,५४,६०,६१, ११७,११६,१२०.१२२ ८०,८५,८६,६७,१०२,१०७,११३,१५६,१६१, वीयसोय (तांक) ज ४२१२,२१२१२ १६६,१७७,२०८,२११,२६१,२६४,२७०, सू२०६७ २७३,२७६,७१६६,१८५,२०६,२१३,२२६ वीर (धीर) ३१९,१०३,१०८ से १११,२२२ उ ३।३८ दुच्चंति प २२१४५,३०११७ बुच्चति चं११ उश२२,१४०,21५,१० प ५३,५,७,१०,१२,१४,१६,१८,२०,२४, वीरंगय (बीगङ्गद) उ ५।२५,२७ से ३० २८,३०,३२,३७,४१,४५,४६,५३,५६,५६, वीरकण्ह (हर कृष्ण) उ ५.१० ६३,६८,७१,७४,७२,८३,८६,८६,६३,६७, वीरण (वीरण) प १४४११ १०४,१०,१११,११५,१२७,१२६,१३१, वीरवर (वीरवार) सू २०६।६ १३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७, वीरसेण (ओरसेन) उ ५.१० १५०,१५४,१५७,१६३,१६६,२०३,२४२; वीरिय (वीर्य), २३।६ ज २५१,५४,७१,१२१, १०॥३:१११३,३६,४१,१५१४५,४८,९८; १२६,१३०,१३८,१४०,१४६.१५४,१६०, १७१२,४,६,६,११,१६,१७,२०,१०७,१०६, १६३,३।३,१२६,१८८७१७८ २०११, १११,११६,११६.१५०,१५५, २०।३६,५१, २०६३,५ २२१८,४५, २३।१६०; २६.१७,१६ से २१ ; Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुट्टि-वेद ३०११६,१६,२१,२३,२६,२८,३४११२, १६, १८:३५११८, २०, २३, ३६१२८, ८१,६४ बुट्ठि ( वृष्टि) ज ३१११७ वृड्ढकुमारी ( वृद्धकुमारी) उ ४१६ वृड्ढय ( वृद्धक) ज २१६५ बुड्ढा (वृद्धा ) उ४ वुद्धि ( वृद्धि ) प ३३।१०१ ज ७११,१०,१३,१६, १६,६६,७२,७५,७८ चं २०४ १२६१४, १ २७; १३।१७ (उक्त ) ३१८, १३, १६, २६, ४२, ५०, ५३, ५६, ६२,६८,७०,७५,७७,८४,१००, १२५, १२६, १४२.१४८, १६५,१६६,१८१,१८६,१६२; ५१५,२२,२६,७० च २१४,५, ५१२ सू ११६१४, ११६१३ उ ११४०, ४५, ५५,५८,८०, ८२,१०८३७८,८२,११३४१२० वेअ (त्रि + इ) वेअति सू ६।१ वेगा ( वेदिका) ज ४१२८ वेइया ( वेदिका ) प २१:२१।६० ज २१२०; ४१३, २५,३६,५७,६३,११०,१४८, १५६, २२१.२४५ afa ( ) प २४६ dafaan (वैयिक ) प १२१, २, ४, ५, ८, १४, १८, २४,२८,३३,३६,१६१५, २११, ८३, १०४, १०५,२३।४२,६०,६२,१४६,१७३,३६ । १११, ३६।३२ ज २८० ५१४०, ५६७१५५,५८ १६२३२६ वेउव्वियमीससरीर (वेक्रियमिश्रशरीर ) प १६ | १, ३,७,१० उव्वयमोसासरीर ( क्रिमिश्रकशरीर ) १६ ११, १२, १५; ३६१८७ asarसमुग्धाय ( कि समुद्घात ) प ३६ १,४ से ७,२८,३५ से ३८, ४०, ४९, ५३ से ५८,७० ७३ ज ३।११५,१६२,२०८,५५,७, २६, ५५ वेव्वितरीर ( क्रियशरीर ) प १२ १२,१६; १६।१, ३, ७, १२, १५, २१३४६ से ६५,६८ से ७१,७७,८१,६६,६८,१०१,१०४, १०५; १०५१ ३६३८७ defornar ( पिशरीरक ) प १२/३६ daforate ( वैकि शरीरक) प १२८, २१.३१ यसरि (यशरीरिन् ) प २८।१४१ वेंट ( वृन्त ) प १/४८४५ टबद्ध ( वृत्तबद्ध ) प १२४८ ४० वेग ( वेग ) प २१२१ से २७,३० ज २।१६ वेगच्छिग (वैकक्षिक) ज ७ १७८ वेच्च (दे०, व्युत, व्यूत) ज ४११३ वेजयंत ( वैजयन्त ) प ११३८ २/६३४१२६४ से २६६६/४२,५६,७१२६, १५६६,६२,१००, १०५, १०८, १०६, ११३, ११४, ११६, १२०, १२१,१२३,१२५,१२६,१३१,१३६,२८/६६ ज १११५ बेजयंती ( वैजयन्ती ) प २।४८ ज ३१३१,१७८; ४१४६, २१२५८११,५१४३ ७ १२०१२. १८६ घेझ ( वेध्य ) ज ३।३२ ड्ड (दे० व्रीडित) ज २६० ढ (वेष्ट ) ज २३१३६ ढ (वेष्ट्) वेढेइ उ १४६ aar (वेष्टक ) ज २११३६ वेढल (दे० ) प ११५८ वेदिम (वेष्टिम) ज ३।१११ वेदिय (वेष्टित ) ज ३१३२ वेढेत्ता (वेष्टित्ला ) उ ११४६ dusar (वैनयिकी, वैण किया) प १६८ उ ११४१, ४३ वेदा ( वेणुदा)ि प २३७,३६,४०७ वेणुदेव ( वेणुदेव ) प २३७, ३८४०१६ ज ४।२०८ जात ( वेणुकानुजात) भू १२ २६ वेत्त ( वेत्र ) प १।४१।१,१११७५ ज २२६७ वेद (वेदय्) वेदे प २३|१|१६ २५/४ वेदेति प१७।२०२३।११२५ ४, ५, २७/२, ३, ३५/२, ३,५,७,६,११,१३,१४,१७ से २०,२२,२३ वेदेति प २३६, १०, १२ से २३:२५२: २७१२, ५,६ Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५२ वेद-वेयणा वेद (वेद) पश१६,३।११।१८११ ८,१०,११,१४,१५, २५४१,२,४,२६.१,३,४, २८.१०६।१ उ ३।४८,५० ८,६; २७।१.२,६; २८१,७४,१०१.१०२, वेदग (वेदक) प ११९४११:२५२७।३ १०५.१०६,१०६,१११,११५ से ११७,१२२, वेदणा (वेदना) प २।२३,२६,१७११७.२०,२७, १२७,१३२,२६।१५,२२,३०।१४,२४; २६,३२,३३,२२१५,३५३१११,३५.१ से ७,६, ३११५,६११३२।५३३१३०,३४,३७; ११ से १४,१६ से २०,२२,२३ ज २।१३१ ३४।४,५,११ से १४,३५६३,५,७,६,१११५, वेदणासभुग्घाय (बेदनासघात ) ५ ३६।१,२,४ २३; ३६१७ से १,११ से १३,१५,२०, से ८,१२,१८ से २०,३२,३६ से ४१,४६,५३ . . २६,२७,३०,३२ से ३४,४१,४३ से ४५,४७, से ५६,६५ ५०,६५,६६,१२,७३ ज ११९०,९५,६६, वेदणिज्ज (वेदनीय) प २३११,१२:२४११२:२५१५: १००,१०१,१०२.१०४,१०६,११०,११३ से २६.६.११:२७५,३६६८२,६२ ११६,१२०,४१२४८,२५० से २५.२,५।१६, वेदपरिणाम (वेदपरिणाम ). १३।२,१४,१५,१८, २६,२८,४७,६७,७२,७३.७४ वेमाणियत्त (वैमानिकत्व) प ३६.१८,२०,२२,२४, वेदय (वेदक) ! २२ २६,२७,३० से ३४,४६,४७ वेदि (देदि) उ ३५१,५६,६४,६८,७१,७४,७६ वेमायत्त ( वित्रत्व) प २८।३६,४२,४५,४६,७१ वेदिया (वेदिका) ज १।१४ बेमाया (विमाना) प ७/४; १३।२२।१२८१३८ वेदमाण (दद त्) प २६१२ से ४,८,६,१२,२७२, वय (विद्) वइसु प १४।१८ वइस्सति प १४११८ वेएइ प २३।१५,१६,१८ से २० वेमापिणी वानिकी) प३।१४०४।२१० से वेएंति ५१४११८ २१२; १७५५,८०,८२,८३, २०१३ बेय (वेत्र) ५११४२।१ वेय (वेद) १४।१८।१ वेमाणिय (वैमानि), १११३०,१३४,१३८; वेधग (वेदक) प २७५ २४६ से १३:१३६,४।२०७ से २०६; वेयड्ढ (बंता) ११५ से २०,२३ से २५, ५॥३,२६,१२२:६।४६.५६,६६,८५,८६,६२, २८,३२,३३,४६।१,४७,४८% २११३३ ; ३३१, ६५.१०६,१११.११७,११६,१२१,७७; ६१.१३७.२२०७४।१६७ से १६९,१७२।१, ८।३६।११,१८,२४,१०३२ से ५३,१११४६, ८०,८१,८४,१२२६.३६, १३१२०,१४१२,३, यड्डकड (वैताड्ट ) ज ११३४,४६,६।११ ५,७,६,११ से १५,१८,१५१३५,४६,५६ से वेयगिरि (वता गिरि) ज २१३१,३१२२० ६३.६५ से ६७,७५,८२,१३४; १६।६,१६, उ५।१० २०,२१.२६१७२७,२८,३०,३४,३५,५४,७६ वेयडढगिरिकुमार (वैतादयगिरिकुमार) ज ११४७; से ८१,८३,८६ ६१.६६.१०५; १९६४; ३१६३ से ६६,६८,७२ २०६१,४,५,१३,१६.२५,३०,३५,३३,५४,५६; वेयड्ढपध्वय (ताड़यविन) ज ११३४,३५,४१, २११५५,६२,७१, २२११ १३,१५,१७,१६, ३१६०,६१,१३६,१३७,४१३५,३७,१६७,१७४ २०,२६,२७ ३५,३५,३७.३६.४१,४२,४४, देयणा (वेदना) प ११११७:२।२० से २२,२४,२५, ४७,५३ से ५८.६६,७५.७६,७६,८२,८८, २०३५८,१०,२०२६।१। १ २।४३ ६०,१००; २३१२,४ से ७,१०,११,२४११,३, उ११६०,६२,८५,८७ Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेयणासमुग्धाय-स १०५३ वेयणासमुग्धाय (वेदनासमुद्घात) प ३६१३५,३७, बेसासिय (श्वासिक) उ ३।१२८ वेहल्ल (मेल) ९५ से १६,१०२ से ११७, वेयणिज्ज (वेदनी) प २२१२८२३१२६२४११०, ११६,११५.१२८ राया श्रमिक का एक पुत्र । ११,२५॥३,४,२६८; ३६८२ ज ३।२२५ बेहास (भास में ३।१३१,१३२:५१६४ वेयय (वेद) प२५१४ १९७ वेयवेयय (वेदवेदक) प ११११६ बेहातवाडच्या मिहा स्वाहा ।) सू ६४ वेर (वै) ज २४२,१३३ वोका दि० प ११८६ वेरमण (विरण) प २०११७,१८,३४ वोच्छ ( अच्छ.जि ७१३५१ वेराण बंध (वैर नुबन्ध) ज २०४२ सू १६१३१ बोच्छिद (F: : अ- छिद) बोच्छिजिस्सइ वेराणुमय (वैरानुगय) ज २१२८ वेरिय (वैगिक) ज २०२८ ज २२१२६.१५८ वेरुलिय (वैडय) प ११२०१४ ज ११३७,३११२, वोच्छिण्ण (न्य च्छिग सू ८१३ ३१३४ ८८,६२,११६,१६७१२,१७८; ४।२४२, वोच्छिा मोह नच्छिन्नदोहद) ११५०,७५ २६४:५५,१५८,31१3८ बोयडाड (व्यवच्छेद की। ए १७१३४ योज्य ( मािति ३४ वेरुलिया (यकट) ४७९ योज्य (उह्य) ज ३१२१११५८ वेरुलियमणि (वैडमणि) प १७।११६,१४८ वोडाप (दे०) प ११४४११ वेरुलियमय (वैड्यंत) ज ३३१२,८८,४१७,२६, वोयड (व्य.वृत) ५ १११३७।२ ओलीण (') गु २०१६।४ १६२,२४२,२६४,५१५८ बोरछकाय (जस्यष्टकाय) ज २१६७ वेलंबग (विडम्बक) ज २।३२ वैसाह (वैशाख) ज ७११०४ वेलंबय (विडम्बक) ज २६३२ व्व (इ.) प११०१७; २१४८ ज २११५; वेला (ला) प २११ 3 ३१११० ३२४३,३७११,४५१,१३१।३ उ १३५ वेलु (वेणु) प ११४११२ वेलुय (वेणुक) प ११४८१६१ वेस (वय) प२०४१ ज २।१५, ३११३८,१५८ स (ब) प २१३०,३१,४१४६,५०,५८ ज १११६; सू २० २११२०३१२.१७८ १०७४ उ ३२६, वेसमण (वंशाण ज ३१८,२१,९३,१८०; ४११७॥१५३६८ से ७१७११२सार भाग) T१४८१४९; २३०,३१.३२,४१,४६,५६, सू १०८४१२ ३६१५४ ६३,६६ ज १८,१६,२३,२६.३१,३५२१६४, देसमण भाइय) (वंशः णकाधिक) ज ११३१ ७५,७२,५७ से २२,१६,१७,१८,२१,२८, वेसमणकर ( वै ट ) ज ११३४,४६,४।४४, ३०,३५,४१,४६,५८,६६,४४,७६,८१,१०१, ११६ से ११८,१२८,१४७,१५१,१६७,१६८, वेशाणिय (वैवाणिक) प १८६ १८०,२१२,२१३.२२०; ४३.१३.२१,२५, वेसाली (वैशाली) उ १.१०५ से १०७,११०,१११, . ३६,४०,८१,५०,५१,५९,२,१२,११४, ११५.११६,१२६,१३०,१३२ Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सअंतर-मुखेज्ज ११६,१३५,१४७,१५५,१५६,२२१ से २२४, संकाइबग (दे०) उ ३१५१ २५६,२७७,५११,२१,३२.४१,४३,५०,५८% संकास (संकाश) ५ ११४८1५६ ज २१७८३११ ६११०,११,१४,१५,१८,१६,२१,२२,२६; संकिलिट्ठ (संक्लिष्ट) १७.११४११,१३८; ७१४,४६,६३,६६,८७,६०,११०,११४,१३२, २३।१६५ १६७,१८३,१६४ सू १८।२१, २०१२,७ संकिलिस्समाण (मक्लिदयमान) १ ११११३,१२८ उ११२६,४४ से ४६,६३,१०५,१०६,११५, संकिलेसब हुल (संक्लेशबहुल) ज १२१८ ११६ ११६,१३८,१४८; ४।५,५१२८ संकुचियपसारिय (संकुचितप्रसारित) ज ५१५७ सअंतर (मान्तर) प६।११ संकुड (दे० संकुच) सू १६।२२१५ सई (सकृत) सू १।१२,१४ संकुडिय (दे० संकुचित) ज २११३३ सइंदिय (सेन्द्रिय) १३१४० से ४३,४६,१८११३, संकुय (संकुच) ज ७।३१,३३ सु ४१३,४,६,७ संकुल (संकुल) ज २१६५७३।१७,२१,१७७,५२२५ संख (शंख) प १२४६ : २।३१,१७:१२८ ज २११५, सइय (शतिक) ज ४११६२,१६८,२०४,२१०, २४,६४,६८,६६,३३,१२,७८,१६७१,१०, २३६,२६६,२७५ १७८.१८०,२०६४।८५,१२५.२१२,२१२११; सउण (शकुन) ज २।१२,४१३,२५ ५१६२,७१७८ मू २०१८,२०१८।२ सउणस्य (शकुनरुत) ज २०६४ संखणग (शंखनक) प ११४६ सउणि (शकुनि) ज २।१६७११२३ से १२५, संखणाम (शङ्खनाभ) सू २०१८ १३३।१ संखदल (शङ्ख दल) प २०६४ सउणिपलीणगसंठिय (शकुनिप्रलीन कसं स्थित) संखघमा (शंखध्मायक) उ ३।५० सू१०।२६ संखमाल (शङ्खमाल) ज २१८ संकड (संकट) ज ३।२११ संखयण्णाभ (शङ्खवर्णाभ) सु २०१८ संकप्प (संकल्प) ज ३१२६,३६,४७,५६,१०५, संखसणाम (शंखसनामन्) ज ७।१८६।२ १२२,१२३,१३३,१४५,१८८ ४११४०११; संखायण (शंखायन) ज ७१३२।१ म १०६३ ५२२ उ १.१५,३५,४१ से ४४,५१,५४,६५, संखार (शंखकार) प ११६७ ७१,७६,७६,६६.१०५; ३।२६,४८,५०,५५, संखावत्त (शंखावर्त ) प ६२६ ६८,१०६,११८,१३१,५१३६,३७ संखिज्ज (मंख्येय) ज ३।१६२,५१५ संकम (संक्रम) ११०३० ज ३९ से १०१,१६१ मंखिन्न (संक्षिप्त ज११.३५.५१:४।४५.११०. मु१६२२।१२ ११४,१५६,२१३,२४२ संकम (1--क्रम) सकमति सू २१२ संखित्तविउलतेयलेस्स (संक्षिप्त विपुलतेजोलेश्य) सं.मण (संक्रमण) गु १६१२२।१२ ज १५ उ १३ संकममाण (मंक्रामत्) ज ७१०,१३,१६,१६,२२, संखिय (शांखिक) ज २०६४, ३१३१,१८५ २५,२७,३०,६६,७२,७५,७८,८१,८४ संखेज्ज (संख्येय) प १११३,२०,२३,२६,२६,४०, सू १।१४,१६,१७,२१,२४,२७,२।२,३,६११ ४८,११४८।८,४०,५७,३११८०,५।२,३.५,१२६, संकला (शंखना) ज ३१३ १२७,१४२,१४३;६३५ से ४१,६०,६१,६४, संकाय (दे०) ३१५१,५३,५५,५६,६३,६४,६७,६८, ६६,६८,१०११६,१८ से २७,२६,१११५०, ७१,७३,७४,७६ ७२।१२।३२,३३,३६:१५१८३,८४,८७,८६, Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संखेज्जइभाग-संघयणपज्जव १०५५ ६.१,६३ से ६६,१०३,१०४,११०,११२,१२२, संखेवरुचि (संक्षेपरुचि) प १११०११११ १२३,१३० से १३२,१३५ से १३७,१३६ संखोहबहुल (मक्ष भवहुल) ज १११८ १४२,१४३,१८११५,२० से २३,२८,३२ से संग (राङ्ग) ज २०७० ३५,४७,५.० से ५२;३३।११,१५,३६१८,१४, संगइय (साङ्गतिक) ज २६ १७ से २०,२२,२३,२५,३३,४४,७०,७२,७४ संगंय (मग्रन्थ) ज २।६६ २॥४,५८,१५७,५७११६६३०,३१ संगत (मङ्गत) सू २०१७ संखेज्जइभाग (संख्येयभार) प|४३२११६५ से संचय (मङ्गा)ज २।१४,१५३।१०६,१३८ ७०,३६७२ ७.१७८ संखेज्जगुण (संख्येयगुण) प ३३४ २५,३७,३६,४३, संगह (मंग्रह) प १६१४६ ४४,४६,५३ से ५८,६०,६४ से ७१,८८ से संगहणिगाहा (मंग्रहणीगाथा) प २४.७:२११४७ ६५,६३,६६,१०६,११०,१२८ से १४०,१४४ संगहणी (संग्रहणी) १११७६१६।१,७११६७ से १५५,१७१ से १७४,१७,१७६ से १८३; गु १६६१ उ ३।१७१, ४।२८,५४५ ५१५,१०,२०,३२,१२६,१३४,१५१:६११२३; संगहणीगाहा (संग्रहणीगाथा) प १०५३ ८.५,७,६,११,१०।२६,२७,१५११३,३१; संगहिय (गहीत) ज ३१३५ १७॥५६,६३,६४,६६ से १८,७१ से ७३,७६, संगाम (संग्राम) ज ३।६२.११६ उ ।१४,१५, ७८,८० से ८३,२१।१०५,२८७,५३; २१,२२,२५,२६,१२६,१३७,१४० ३४।२५:३६।३५ से ४१,४० से ५१ ज ७११६७ सगामेमाण (सङ्ग्रामात्) उ श२२,२५,२६,१४० म् १८१३७ संगल्लि (दे०) ज ३।१७६ सिंगोव ( गुपसंगांवेंति ज २१४६,५६ संसेज्जजीविय (संख्येयजीवित) प ११४८१४१ संगवेस्संति ज २१५६ संखेज्जतिभाग (मंख्येयभाग) प १२।१६,१५१४१ संगोविज्जमाण (मंगोप्यमान) ३४६ संखेज्जपएसिय (संख्येयप्रदेशिक) प ५।१३४,१६२, संगोवेत्ता (संगोप्य) ज २१४६ १६३,१८१,१६६,१६७,२१७,२१८,१०११४, संगोवेमाण (मनीपयत) उ ११५७,५८,८२,८३ १७,२६,२६ संघ (सइ) प|३०,३१,४१ ज ११३१ ११२१ संखेज्जपदेसिय (संख्येयप्रदेशिक) प ३११७६; उ ५५ ५।१२७,१३३,१८०.१८१,१०।१८,२१,२६ संघट्ट (मं. घट ) गंध ति ५३६१६२ संखेज्जभाग (संख्येयभाग) प ५१५,१०,२०,३०, संघट्टा (संघद्रा) प ११४०।३ इरा नाम की लाा ३२,१२६,१३४ संघबाहिर (संघबाह्य) २०१६।४ संखेज्जवासाउग (गरुयेयवर्याक) प ६७१ संघयण (गहनन) प२३०,६१,४१,४६२३।६८, संखेज्जवासाउय (संख्येयवक) प६७१,७२. १०५,१०७,१६० न १,११६,४६,२८,८६, ७६,६७,६८,११३,११,२१५.३,५४,७२ १२३,१२६,१२८,१४८,१५१,१५७,४११०१, संखेज्जसमयद्वितीय (संख्येयसमयस्थिलिक) १७१ ११५ प३।१८१,५।१४८ संघयणणाम (पहननामन ) प २२३८,४५६४ संखेज्जसमयठितीय (संख्ये समयस्थितिक) -गे ६७,६६,१०० । प ३११८१ संघयणपज्जव (संहनगपर्यय) १,१४,१२१. संखेव (संक्षेप) प १।१०१।१ १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५६ संघरिलसमुट्ठिय ( संघर्ष समुत्थित ) प १२६ संघाइम ( संघातिम) ज ३१२११ संघाड (संघाट ) प ११४८६२ संघाय (संघाटक ) उ ३३१००,१३३ / संघात ( सं ! - घातय् ) संघातेंति सू १।१८ संघाय (धात) प ११४७।२, ३ ज ७ १७८ / संघाय ( सं घाय् ) संघाएंति प ३६।६२ संचय (मंत्र) ज २११६; ३११६७११४ संचाय (क) संचाए उ ११५२३।१०६ २०।१७.१८,३४ संचाएमि !. उ १६५३।१३१ संचाएमा उ १९६६ संचाहि उ ३।१३० संचारिम (मंत्रा) ३।११७ v संचिट्ठ ( सं ! ष्ठा) चिट्ठइ उ ११३८, ३३५६ विषि १८:३७६ संचि ( सञ्चित ) प २३।१३ से २३ ज ३।२२१ संछष्ण ( संछन्न) ज ४१३, २५ संजत (संत) ३|१०५; ६।६७, १८, २१।७२; ३२।६।१ संजता संजत (संयतासंयत ) प ६ ९८ २१ ७२; ३२/१,३ संजता संजय ( संपतासंयत ) प ३२|४ संजम (संयम ) प १|११७ ज ११५२२८३३।३२११ उ ११२, ३, ३२६,३१,६६, १३२ ५।२६ संजय (यव) प ३२१११,१०५६ ६८ १७ २५, ३०,३३; १८ १११, १८१८६२१।७२; २६११०६।१, २८११२८ ३२।१ से ४,६६१ संजया संजय ( संयतासंयत ) प ३।१०५; ६१६७; १७।२३,२५,३०,१८१६१,२१।७२:२२।६२; २८११३०३२।१,२,६ संजण ( पंज्वलन ) प १४ ७ २३ ३५ संजणा ( संज्वलना) प २३|१८४ संजा (जत) व ३।१११,१२५ ११८६ संजाय उहहत ( संजातकौतूहल ) ज ११६ संजाय संसय ( संजात संशय ) ज ११६ संघ रिसस मुट्ठिय-संठित संजायसढ (मंजातश्रद्ध) ज १६ संजुत्त (संयुक्त) प १५ ५७ संजोग (संप्रग) प २१।१।१ ज ५।५७७ । १३४१२,३ संजोय ( संयोग ) प ११८४; १६२१५ संजोयणाहिकरणिया (संयोजनाधिकरणिकी) प २२/३ संझन्भराग ( सन्ध्याराग ) प १७ १२६ संझा ( सन्ध्या ) प २।४०।११ संठाण ( संस्थान ) प ११४ से ६, ४७।१२१२० से २७,३०,३१,४१,४८ से ५०,५४,५८ से ६०, ६४,६४११,४,५,६,१०।१५ से २४,२६ से ३०,१५/१३१,१५।२ से ६,१८,१६,२१,२६, ३०,३५,२१।१।१,२१।२१ से ३७.५६ से ६२, ७३,७८ से ८०, १४; २३ । १००, १६०, ३०१२५, २६; ३३।१११,३३१२१ से २३,३६१८१ ज ११५, ७, ८, १८, २०,२३,३५,५१,२११६,२०,४७, ८६,१२३,१२८,१४८, १५१,१५७, ३१३,६५, १५६,४११,३६,४५, ५५, ५७,६२,६६,७४,८४, ८६,६१,६७,६८,१०१, १०२, १०३, १०८, ११०, १६७,१७८, २१३, २४२, २४५ ७ ३१,३२/१, ३३,३५,५५,१२७११, १२६११,१३३३३.१६७११; १६८२,१७६ चं ३१२ सू ११७/२,१११४; १०१६ १३।१७ १८१८ उ ११३ संठाणओ ( संस्थान तत् ) प १५ से ६ संठाणतो ( संस्थागतस् ) प ११७ से 8 संठाणणाम ( संस्थाननामन् ) प २३३८, ४६ संठाणपज्जव ( संस्थानपर्यव) ज २२५१,५४, १२१, १२६,१३०,१३८, १४०, १४६, १५४,१६०,१६३ संoाणपरिणाम ( संस्थानः रिणाम ) प १३ २१,२४ संठाणा (दे०) सू १०१६,६२,६७,६८,७५,८३, १०३,१२०,१३१ से १३३१२/२० मृगशिरा नक्षत्र संठि ( संस्थिति) ज ७।३१,३३,३५ चं २ १३ १, ५।१११६११,१।७११, ११६३१ संठित (संस्थित) प २२० से २७,३०,३१,४१,.. Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संठिति-संपण्ण १०५७ संथरिता (संस्तृत्य, संस्तीय) ज ३१२० संथरेता (संस्तृत्य, संस्तीर्य) ज ३।१११ संथव (संस्तव) प ११०२३ संथार (संस्तार) ज ३।११३ संयारग (संस्तारक) ज ३११११ संथारय (संस्तारक) ज ३।१११ सिंथुण (सं+स्तु) संथगइ ज ५१५८ संथुणित्ता (संस्तुत्य) ज ५१५८ संथुय (संस्तुत) ज २१६६ संथुव्वमाण (संस्तूयमान) ज ३११८,६३,१८० संदमाणिया (स्यन्दमानिका) ज २।१२,३३ संधि (सन्धि) ५२४८३६ ज २६१५,१३३,४।१३, ४८ से ५०,५४,५६,६०,६४ सू११२५३१२, ४.२ से ४,६,७,६,३३,३६,१०।२७ से ३१, ३३,३४ से ४४,४६ से ५४:१८।८।१६।२,३, ६.६,१२,१३,१६,१७,२२१२,१५ संठिति (संस्थिति) ज २१४६ सू १।१५,१६,१७, २५;४१ से ४,६,७,६६.१११ २ १३३१७ संठिय (मंस्थित) प २१४८,६४, १५२ से ६.१८, १६,२१,२६,३०,३५, २१०२१ से ३७,५६ से ६२.७३,७८ से ८१,८३३३।१६ से २६; ३६।८१ ज १५,७,८,१८,२०,२३,३५,३७, ४८,५१, २।१५,१६,२०.४७,८६,३।६,६४, ६५,१३३,१३५,१५८,१५६,१६७.२२२,४१, २३,३८,३६,४५,५५,५७.६२,६५,६६,७३७४, ८६,६०,६१,६७,६८,१०३,१०८,११०,१२८; १६७१११.१६६,१७८,२१३,२४२,२४५, ५१४३,७१३१ से ३३,३५,५५,१३३,१६७, १७६,१७८ सू११५.१४,४१६ उ ११३ संड (षण्ड) ज ३१११७,१८८ संडिल्ल (शाण्डिल्य) प ११६३।३ संणय (सन्नत) ज ३११०६ संत (सत्) १११४७१३ ज २१६४,६९ सू २०१२ संत (शान्त) ज २६८ संत (श्रान्त) उ १३५२,७७ संतइभाव (संततिभाव) १८१४,६ संततिभाव (सन्ततिभाव) प ८८,१० संतप्प (सं:-तप) संतप्पंति सू ।१ संतपमाण (पंतप्यमान) सू !१ संतय (सन्तत) प ७१ संतर (सान्तर) प ६४७ से ५८,१११७०,७१ संताणय (सन्तानक) सु २०१८ संताव (मं : तापय् ) संत.वेति सू ।१ संतिकर (शान्निकर) ज ३८८ सिंथर (मं स्न) संथरइ ज ३१२०,३३,५४,६३, ७१,६४,१३७,१४३,१६६ संथति ज ३।१११ संधिकम्म (सन्धिकर्मन) ज ३१३५ संधिवाल (सन्धिपाल) ज ३१६,७७,२२२ उ श६२ सिंधुक्क (सं+-धुक्ष्) संधुक्के इ उ ३३५१ संधुक्केत्ता (संधुक्ष्य) उ ३५१ सिंधुक्ख (सं+ धुक्ष्) संधुक्खंति ज ५११६ संधुक्खित्ता (संधुदय) ज ५१६ संनिक्खित्त (सन्निक्षिप्त) ज ११४० संनिचित (सन्निचित) उ ५१५ संनिवडिय (संनिपतित) उ १२३,६१ संनिविट्ठ (संनिविष्ट) ज ४२७, १४ संनिसण्ण (संनिषण्ण) उ ३६१ संपउत्त (संप्रयुक्त) ज ३1३५,८२,१०३,१७८, १८७,२१८ संपक्खालग (सम्प्रक्षालक) उ ३१५० संपग्गहिय (सम्प्रगृहीत) ज ३१३५,१७८ संपठित (सम्प्रस्थित) प १६।२२ संपटिठय (सम्प्रस्थित) ज ३३१७८,१७६,२०२, २१७,५४४३ संपणदित्त (संप्रणदित) प १३०,४१ संपण दिय (संप्रणदित) प १३१ संपणादित (संप्रणादित) ज ११३१ संवण (संपन्न) उ ११२३।१५६:५२२६ Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५९ संपत्त-संलाव संपत्त (सम्प्राप्त) ज २१ सू २१३ उ ११४ से संपुष्णदोहल (सम्पूर्णदोहद) उ ११५०.७५ ८,६३,६३,१४२,१४३, ११ से ३,१४,१५, सिंह (सं+प्र-1ईक्ष ) संपेहेइ ज ३१२६,३६,४७ २१:३।१ से ३,२०,२३,२६,८८,१२६,१५३, उश१७, ३१२६ संपेहेति ज ३।१८८ १५४,१६६,१६७,१७०,४१ से ३,२७,५११, संपेहेमि उ १७६ संपेहेत्ता (सम्प्रेक्ष्य) ज ३२६ उ १११७:३१२६ संपत्ति (सम्प्राप्ति) उ १२४१,४३,४४ संब (शम्ब) उ ५:१० संपत्थिय (सम्प्रस्थित) उ ३१६३,६७,७०,७३ संबंधि (सम्बन्धिन) ज ३।१८७ उ ३१५०,११०, संपन्न (सम्पन्न) ज २०१६ १११;४।१६,१८ सिंपमज्ज (सं+-प्र--मृज) संपमज्जेज्जा ज ५५, संबद्ध (संबद्ध) ज २२० से २७ ७५ से ७६ संबद्धलेसाग (संबद्ध लेश्याक) सू १६।१११२ संपया (संपदा) ज २।७४ । संबररुहिर (शम्बररुधिर), १७१२६ संपराइयबंधग (साम्परायिकबन्धक) प २३१६३ संबाह (सम्बाध) ज २१२२:३।१८,३१,१८०,२२१ संपराइयबंधय (साम्परायिक बन्धक) प २३६१७६ संपराय (सम्पराघ) ज ३।१०३ संबुद्ध (सम्बुद्ध) उ ३१४५ संपरिक्खित्त (सम्परिक्षिप्त) ज १७,६,२३,२५, संमंत (सम्भ्रान्त) उ ११३७ २८,३२,३५,४११,३,६,१४,२५,३१,३६,४३, संभम (सम्भ्रम) ज ३।२०६५।२२,२६ ४५,५७,६२,६८,७२,७६,७८,८६,६०,६५, संभव (सम्भव) ज ७.११४ १०३,१४१,१४३,१४८,१४६,१५२,१७४, संभिन्न (सम्भिन्न ) प ३३.१८ १७६,१७८,१८३,२००,२१३,२१५,२३४, संभिय (श्लेष्मिक) उ ३१३५ २४०,२४१,२४२,२४५,५।३८ सू ३।१:१६२, संभूयग (सम्भूतक) उ ३९८ १२,२८,३२,३६ उ ५१८ संभोग (सम्भोग) उ १२२७,१४० संपरिवुड (सम्परिवत) ज २१८८,६०३१६,१४, संमज्जग (सम्मज्जक) उ ३१५० १८,२२,३०,३१,३६,४३,५१,६०,६८,७७, संमज्जण (सम्मार्जन) उ३१५१,५६,७१,७६ ७८,९३,१३०,१३६,१४०,१४६,१७२,१८०, राजिया सम्मानित) ज २६५ : 3310.१८४: १८६,२०४,२१४,२२१,२२२,२२४; ५।१,५, ५।५७ २२,४६,४७,५६,६७ उ ११२,१६,६२,६३,६७, संमठ (सम्मृष्ट) ज २१६; ३७,५१५७ ६८,१०५ से १०७.१२१,१२२,१२६ से १२८, संमुच्छ (+ मुर्छ, ) समुच्छंति सू ६।१ संमुच्छति १३३, ३११११; ४११८५१६ गु२०११ संपलग्ग (सम्प्रलग्न) ज ३।१०७,१०६ उ १११३८ समुच्छित्ता (सम्मूर्छ य) सु २०६१ संपलियंक (संपर्यडू) ज २८८ संमुच्छिय (सम्मूच्छित ) सू ६१ संपाविउकाम (सम्प्राप्तुकाम) जे ५।२१ सम्माण (स गानय्) सम्माण इ उ १।१०६; संपिडिय (सम्पिण्डित) प १६४१५ ज १२ ३१११० सम्माणति उ ५१३६ सम्मामि संपिणद्ध (संमिनद्ध) ज २११३३,३।२४ उ १११७ संपुच्छण (सम्प्रच्छन) ज ५१५ संलवमाण (संलगत् ) उ ११४७ संपुण्ण (सम्पूर्ण) ज ३१२२१ उ ११३४ संलाव (संलाप) ज २११५:३।१३८ सू २०१७ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संलेहणा-सवकरप्पभा संलेहणा (संलेखना ) ज ३।२२४ उ २११२:३।१४, ८३, १२०, १५०, १६१, १६६५१२८,४३ संवच्छर ( संवत्सर ) प ४१६५, ६७ २३।७४, १८७ ज २४,६६,६६,७१२०, २५, २६,३७,१०३, १०४,११२/२,३,११३,११४,१२६ चं २१३५३ सू १।६।३; १६, १३, १४,१६, १७,२१,२४,२७,२१३ ; ६ | १ ; ६११; १०।१२४ से १२७,१२६१२,३,१३०,१३८ से १६१, ११।१ से ६; १२1१ से ६,१० से १३,१६ से २८,३०; १३२,२०१३ ३ ३ १२६,१३४ संवच्छरण (संवत्सरण) सू ११६१३ संच्छरय (सांवत्सरिक ज २२४३।२१२,२१३, २१६,७१११०,१२७ सु १०/१२२,१२३ (विकीर्ण ) प २०४१ ज ११३१ संविगण ( संविकीर्ण ) प २०३०, ३१ सविषद्ध (भविन ) ज ३१३१ संवुक्क (दे० ) प ११४६ संवुड (संवृत ) प ६२० से २३ सू २०१७ संजोग (संवृत योनिक ) प ६ । २५ संबुडवियड (संवृतविवृत ) प ६।२० से २३ संवुडवियडजोणिय (संवृतविवृतयोनिक ) प ह २५ संकल्प (संवर्तकल्प) उ ११३६ संग (संवर्तक) ज २११३१ संगवाय ( संवर्तकवात ) प ११२६ ज ५।५ √संवड्ढ (सं+वृध्) संवड्ढे इ उ ११५८ संवढे मि सकथा (कथा ) उ ३।५१११ उ १८३ संवढे हि उ १।५७ संवढमाण ( संवर्धमान ) उ ११५४ संवदिज्जमाण (संवध्यमान) उ ३ | ४६ संवत्त (संवृत्त) ज ३|१०६ संवद्धिय (संवद्धित ) ज ३१३५ संवर (शंकर) प ९६४ मृग की जाति संबर (संबर) प १।१०१।२ संवाह ( संवाह ) प १।७४ ज २।२२ संfafe संवृत्त (संवृत्त) ज ४११३ संवय (वृत्त) ज ३।२२२ संसयकरणी (संशयकरणी ) प ११।३७।२ संसत्त (संसक्त) उ ३११२० संसत्तविहारि ( मंसक्तविहारिन् ) उ३।१२० संसार (संसार) प २२६४,६४।१ ज २७० उ ३।११२ संसार अपरित (संसारापरीत) प १८१०६,१११ संसारत्य ( संसारस्य ) प ३११८३ संसारपरित (संसारपरीत ) प १८२१०६, १०८ संसारपारगामि (संसारपारगामिन् ) ज २७० संसारसमावण्ण (संसारसमापन्नक ) प ११०,१४, १५,४१ से ५२,१३८ संसारसमावण्णग (संसारसमापन्नक) प ११ ३९; २२८ संसिय (संश्रित) ज ३३८१ उ ३३५५ संहित ( संहित ) प १२४७३ संहिय ( संहित ) ज २११५ १०५६ सकसाई ( सकषायिन् ) प ३६८, १८३; १८२६४; २८।१३२ सकहा (दे० ) ज २।११३ सकाइ ( सकायिक ) प ३।५० से ५३,६०१८ २५; ३०,३१ सकिरिय (सक्रिय) प २२७,८ सकोरंट ( सकोरण्ट ) ज ३१६,१८,७७, ७८, १३, १८०,२२२ सक्क ( शक्य ) प ११४८१५७ ज २२६ १ सक्क (श) प २५०, ५१ ज ११३१; २२८६,६०, ६३,६५,६७,६६,१०१, १०३, १०५, १०७, १०६, १११,११३,११८, ३१११५, १२४, १२५; ४।१७२, २२२,२२३ १,२३५, २४०,२४३; ५।१८,२० से २३,२७ से २६,३६,४१,४३, ४५ से ५०,६१,६२,६५ से ६६,७२,७३ उ ३।१२३, १५० सक्करप्पभा (शर्कराप्रभा ) प १५३, २११,२०,२२; ३।१२,२२,२३,१८३,४७, ८, ६, ६ ११, ७४, ७५:१०११; २०१५१, ५४:२११६७ ; ३३१४, १६ Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सक्करप्पभापुढविणेरइय-सट्ठाण सक्करप्पभापुढविणेरइय (शर्कराप्रभापृथिवीनरयिक) सचित्तजोणिय (सचित्तयोनिक) प६।१६ प २०१५२,५५ सचित्ताहार (सचित्ताहार) प २८.१,२ सक्करा (शर्करा) प११२०११७१३५ समच (सत्य) प १११०१११० उ १।२४ ज २१७,६८,४।२५४ सश्चमासग (सत्यभाषक) प ११६० सक्कार (सत्कार)ज २।२५; ३।२१७ उ ११६२; सच्चमण (सत्यमनम् ) प १६।१ से ३,७,८,१०, ५१७ ११,१५,१८ से २१ सिक्कार (सत्कारय् ) सक्कारेइ ज ३१६,२७,४०, सच्चमणजोग (सामनोयोग) प ३६८६ ४८,५३,५७,६५,७३,६१,१२७,१३४,१३६, सञ्चवइजोग (सत्यवाक्योग) प ३६१६० १४६,१५१,१५२,१८६,२१६ उ १:१०६ सच्चा (सत्य) प १११२,३,३२,३३,४२ से ४६,६२, ३।११० सक्कारेंति उ ५३६ सक्कारेज्ज ८४,८५,८८,८९ ज २१६७ सक्कारेमिउ ११७ सच्चामोस (सत्यामृषा) प १११२,३,३५,३६,४२, सक्कारणिज्ज (सत्कारणीय) सू १८।२३ ४३,४५,४६,८२,८४,८५,८८,८६ सक्कारवत्तिय (सत्कारप्रत्यय) ज ५१२७ सच्चामोसमासग (सत्यामृपाभाषक) प ११।९० सक्कारिय (सलारित) ज ३८१ सच्चामोसमण (सत्वामृषापना) प१६६१,७ सक्कारेत्ता (सत्कार्य ) ज ३।६ उ ३३५० सच्चामोसमणजोग (सत्यामृषामनोरोग) प ३६८९ सक्कुलिकण्ण (शप्कुलिकर्ण) प ११८६ सच्चामोसवइजोग (सत्यामृपावायोग) प ३६१६० सक्कोत (सक्रोश) जे २३,३५ सच्चित्त (सचित्त) प २८।१।१ सखिखिणी (सकिंकिणी) ज ३१२६,३०,३६,४७, सच्छंद (स्वच्छन्द) प २।४१ ५६,६४,७२,११३,१३३,१३८,१४५,१७८ सच्छंदमइ (स्वच्छन्दमति) उ ३१११६४१२२ सग (स्वक) ५ २१६२,६३, ३३११६,१७ सच्छीर (सक्षीर) प १४८।३६ ज २११२०,३१८१,८६,१०२,१५६,१६२ सजोगि (सयोगिन् ) प ३१६६,१८३१८५५ सग (शक) प १८६ सगंय (सग्रन्थ) ज २१६६ २८१३८,३६१६२ सगड (शकट) ज २११२,३३,७१, ७३१ सजोगिकेवलि (सयोगिकेदलिन् ) प १३१०८,१०६, सगडवूह (गकटव्यूह) उ ११३७ १२१,१२२ सगडुद्धिसंठिय (सकट 'उद्धि' संस्थित) सू १०३७ सजोगिभवत्थकेवलि (सोगिभरस्थकेबलिन) सगडुद्धी (शकट 'उद्धि') ज ७१३३.१ प १८।१०१,१०२ सगडुद्धीमुहसंठिय (शकट 'उद्धि' मुखसंस्थित) सज्ज (सज्ज) ज ३।१७८ सज्जाय (सर्जक) ५ ११४८१४६ पीत शालवृक्ष सगडद्धीसंठिय (शकट'उद्धि' संस्थित) ज ७१३२११ सज्जाव (सञ्जय) समावेति उ १११३५ सगल (शकल) प २४७१२; २।३१ ज ७११७५ सज्जावेत्ता (सञ्जयित्वा) उ११३५ सू.१,१३१३ सज्झाय (स्वाध्याय) उ ३३१ सगोत (सगोत्र) सू १०1१२ से ११६ सट्ठ (षष्ठ) ज ३११७८ मु१६२१ सचित्त (सचित्त) ५ १३ से १७ ज २०६६ सट्ठाण (स्वस्थान) म ११,२,४,५,७,८,१०,११, सचित्तकम्म (सचित्तकर्मन्) मू २०१७ उ २८ १३,१४,१६ से ३१,४६, ५॥३५,४२,४६,५४, सचित्तजोणि (सचित्तयोनि) प६१६ ५७,६०,६४,६६,७५,७६,६०,६४,६८,१०८, Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सद्विग-सग्णिसीय १०६१ ११२,११६,१२२,१५१,१६४,१६७,१६१, सण्णवणा (संज्ञपना) उ ३।१०९ १६४,१६८,२०१,२०४,२०८,२१२,२१५: इसण्णवित्तए (संज्ञपयितुम् ) उ ३.१०६ २१६,२२२,२२५,२४३,२४४,६१६३; सण्णा (संज्ञा) प ११११४८।१३ ज १२१३३ १५.१०२.१२१,१२२,१२७,३६।२०,२४,२६, सण्णासण्णि (संज्ञामंजिन) प ३११६।१ २७.४७ सिण्णाह (मंनाहय्) सणाहेह ज ३।१५,२१ सछि (पष्टि) प १३३ ज ११२६ उ २०१२ ३१,३४,७७,६१,१७३,१७५,१६६ उ १११२३; सठिग (पष्टिक) ज ३१११६ ५२१८ सटिठभाग (पष्टिभाग) ज ७१२१,२२,२५ मू ११० सण्णि (संजिन) प १४१७,३११२,११२,१११११ सट्ठिभाय (पष्टिभाग) ज ७।२४ से २०१८।१।२,१८।११६२३।१७६,१७७, सट्ठिय (पष्टिक) गु १२१८ १६५,१६६.१६६ से २०१:२८.१०६६१, सिड (शट) सइइ उ ११५१ २८१११५,११६,३१११ से ३,५,६,६११; सड्ढई (धाद्ध किन्) उ ३३५० ३६१६२ सण (शण,सण) प ११३७६४,११४५।२ ज २।३७; सण्णिकास (सन्निकाश) ज ३१२२३,४१८५ ३.७६,११६ सण्णिक्खित्त (संनिक्षिप्त) ज ७/१८५ सणंकुमार (सनत्कुमार) प १११३५,२१४६,५२ से सण्णिचिय (सन्निचित) ज २६ ५८.६३, ३।३१,१८३, ४१२३७ से २३६% सणिणाद (संनिनाद) ज ३।३०,३१,४३,५१,६०, ६।२६,५६,६५ ८५.११२,७।१०।१५।८८, ६८,७८,१३०,१३६,१४०,१४६ १३८,२१४७०,६१,२८७७,३३।१६,३४११६, सणिणाय (सन्निनाद) ज ३।१२,१४,१७२,१८०, १८२१२ २०६,२२४;५।२२,२६,७११२७।१ सर्णकुमारग (सनत्कुमारज) ६१६५ ज ५१४६ सण्णिम (सन्निभ) ज ३।३,१७,१८,३१,८१,६१, सणंकुमारवडेंसय (सनत्कुम्हारावतंसक) प २२५२ ६३,१७७,१८०,१८३,२०१,२१४ समाफद (सनख द) प ११६२,६६ सण्णिभूय (सं शिभूत) ५१५।४८;१७१६,३५११८ सणिक्रमण (सनिष्क्रमण) ज ४।२७७ सपिणवाइय (सन्निपातिक) उ ३.११२,१२८ समिक्खिर जनिक्षिप्त) ज ७१८५ सू १८।२३ सण्णिवात (सन्निपात) सू १०१२६ सनियरसंबछर (मनैश्चरसंवत्सर) ज ७४१३३ सपिणवाय (सन्निपात) चं ५.१ सू१६१ सणिच्दरि (शनरचारिन् ) ज १५०,१६४; सणिविट्ठ (सन्निविष्ट) ज ११३७,३१६६ से ४।१०६,२०५ १०१,१६३,४१६,३३,१२०,१४७,२१६,२४२, ५।३,२८,३३ समिच्छर (शनैश्चर) परा४८ ज ७१८६।१ सण्णिवेस (सन्निवेश) प १६१२२ ज २१२२ मु १०१३०, २०१८।१ ३१३२,१८५,२०६ उ ३११०१,१२५,१३२, सणिच्छरसंवच्छर (शनैश्चरसंवत्सर) ज ७।१०३, १३३,१४१,१४५,५३६ ११३ सु १०।१२५.१३० सण्णिवेसमारी (सन्निवेशमारी) ज२४३ सणिय (सनस) ज ३१२२४ सण्णिसम्ण (सन्निषण्ण) ज ३।६,२०४; ५।२१, सपणज्रिउं (सन्नद्ध) ज ३११२३ ४१,४७,६० सपण मला) ३.१०७.१२४ उ १११३८ सिण्णिसीय (सं! नि पद) सणितीयह सम्मय (सन्नत) ज ७।१७८ ज ३११२ Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६२ सण्णिसीयित्ता-सत्तर सण्णिसीयित्ता (संनिषद्य) ज ३.१२ सणिहिय (सन्निहित) प २१४७१२ सण्ह (श्लक्ष्ण) प १११८,१९,२।३०,३१,४१,४८, ४६,५६,६३,६४ ज ११८,२३,३१,३५,५१; ३।१२,८८,१६४,४१२४,२५,२६.४६,६७, ८८,११०,१७८,२१३, ४११०,५१५८ सोहमच्छ (श्लक्ष्णमत्स्य) प ११५६ सण्हसण्हिय (श्लक्षणश्लक्षिणक) ज २२६ सत (सत्) सू १३।२ सत (शत) प २१४१ से ४३,४६,४८ से ५२,५८ से ६४,४११८६,१८८६१३४,३६,६७, १८:१९,२४,४६,५४,६०,६१,११६,२०१३; २११६७,६८; २३१६३,६८,६६,७३,७५ से ७७,८१,८३,८५,८७,६०,६२,९६,६७,११२, ११४,११६,१२७,१६४,१६६:३६.१७,३४, ४१ सू श१५ से २०,२४,२१३:३।१६।१ ६१३;१०११२७,१६५,१२।२ से ६,१२,१३, ३०१३।१ से ३,१४१७:१५२ से ४,१७ से १९,२२,२५ से २६,३१,३२,३४ से ३७, १८११,४ से ६,१७,२०७१६६१,४,५।३.१६७, ८,१०, ११,२,४,१६१८ से २०,२११४; १९४२२१३२ सतक्कतु (शतक्रतु) प २१५० सतक्खुत्तो (शतकृत्वस्) सू० १२।१२ सतत (सतत) प ७१ सतपोरग (शतपोरक) १ ११४११ सतभिसत (शतभिषग) सू १०।६४ सतभिसय (शतभिषग्) सू २०१२ से ६.६,२१,२३, ३०,५८,७५,८१,६५,१२०,१३१ से १३५; १२१२५ सतरा (सप्तति) मू १६।१११ सतवच्छ (शतवत्स) प ११७६ सतवत्त (शतपत्र) प ११४८१४४ सतवाइया (शतपादिका) प १५० सतसहस्स (शतसहस्र) प १२०,४६,५०,७५,७६, ८१२।२० से २७.२७४२,२६ से ३३,३६ से ३९४०१२,२०४१ से ४३,४८ से ५३,५४, ५६१,२६६३,६४,४११७१,१७३,१७७,१७६; ६।४१,२१।६३,६६,७० सू १५१२:१८१२५; १६१२१,३१६८।१,३,१६।२१११,८, १९४२२१६ सतहा (सप्तधा) ज ५।७२,७३ सता (सदा) सू १६११ सतीणा (दे०) प ११४५।१ सतेरा (शतेगा) ज ५११२ मन (मान सत्त (सप्तन्) प१४६ ज ११२० चं ३।३ सू १७ उ ३३१०१ सत्त (सत्त्व) प १६४; ३६।६२,७७ ज २११३२; ३१३,७।२१२ उ ११३;३१५१ सत्तंग (सप्ताङ्ग) उ ३१५१ सत्तग (सप्तक) ज ७१३०२ सत्तछि (सप्तषष्टि) सू १०२ सत्तद्विधा (सप्तषष्टिधा) मू १०।१५२ से १६०, १६२,१६३,१११२ से६१२१७,८,१६ से २८ सत्तट्टिहा (सप्तपष्टिधा) म ११०२ सत्तणउत्ति (सप्तनवति) मू १८१ सत्तत्तरि (सप्तसप्तति) ज ३।२२५ सत्ततीस (सप्तत्रिंशत्) ज ४१५५ सत्तत्तीस (सप्तत्रिंशत् ) ज ४.१४२।२ सत्तघणु (सप्तधनुष्) उ ५।२।१ सत्तपएसिय (सप्तप्रदेशिक) प १०।१२ सत्तपदेस (सप्तप्रदेशिक) प १०।१४१५ सत्तभाग (सप्तभाग) प २३१६१,६४,६८,७३,७५ से ७७,८१,८३ से ८५,८६,६०,६२,६६, १०१,१११ से ११४,११७,१२१,१२२,१३०, १३४,१३५,१४०,१४२,१४३,१५२,१५३, १५५,१६०,१६४,१६७,१७१ से १७३ सत्तम (सप्तम) ५६१८०१२,१०११४१३,३६०८५, ८६ ज ७६७ सू १०७७१२१६,१३।१० उ २१२२ सत्तमी (सप्तमी) ज ७।१२५ सत्तर (सप्तदशन् ) प १०११४१४ से ६ ज ७।२०२ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरस-सहाव सत्तरस (सप्तदशन् ) प ४१६ ज ३१७६ सू ८१ सत्तरसविह (सप्तदशविध) '१६॥३८ सत्तरि (सप्तति) प २।५३ ज ५४६ सू १६।१४ सत्तविह (सप्त विध) प १११६,५३,१६।२६,३२, २।२१ से २३,८३,८४,८६,८७,६०; २४।२ से ८.१० से १३:२५१४,५,२६२ से ६,८ से १०;२७२,३,३६।७ सत्तसठ्ठ (सप्तपष्टि) ज ४१६८ सत्तसठ्ठि (सप्तपप्टि) सू १०।२२ सत्तसिक्खावइय (सप्तशिक्षावतिक) उ ३।७६ सत्तहत्तरि (सप्लसप्तति) ज २१४१२ सत्तहा (सप्तधा) ७६५,६८,६६,७१,७२,७४, ७५,७७.७८,५१७२.७३ सत्ताणउइ (सप्तनवनि) २४६ सत्ताणउत (सप्तनवति) प २१४८ सत्ताणउय (सप्तन वति) ज ७१८ सू ११२७ सत्तातीस (सप्तत्रिंशत् ) प ४.२७६ सत्तालीस (सप्तचत्वारिंशत् ) म १०११५१ सत्तावण्ण (सप्तपञ्चाशत् ) ज ४१६२;७।२१; म २१३ उ ११३ सत्तावीस (सप्तविंशति) प ४।२७६ ज १७ सू १६१० सत्तावीसतिविह (सप्तविशतिविध) प १७१३६ ससासीय (सप्ताशीति) ज ७७७ सति (शतिः) प २१४१ ज ३।३५,१७८ सत्तिषण (सप्तरण) प ११३६।३ उ ३१६४ सत्तिवण्णवडेंसय (सप्तपर्णावतंसक) प २।५०,५२ सत्तिवण्णवण (सप्तपर्णवन) ज २१६;४१११६ सत्तु (शत्रु) ज ३१३,३५,८८,१०६,१७५,२२१ सत्तुस्सेह (सप्तोत्सेध) ज ११५ सू ११५ सस्थ (शस्त्र) ज २१६।१,३।२०,३३,५४,६३,७१, ७७,८४.१०६,११५,१२४,१२५,१३७.१४३, १६७,१८२ उ ३२३८,४० सत्थ (शास्त्र) उ ३३२८ सस्थवाह (मार्थवाः १६१४१ ज १२५:३१६, १०,७७,८६,१७८,१८६.१८८,१८६,२०६, २१०,२१६,२१६,२२१,२२२ उ ११६२; ३१११,९६,६८,१००,१०१,१०६ से ११२; ११०,१७,१६,३६ सत्यवाही (सार्थवाही) उ ३६८,१०१ से १०५, १०७,१०८,११० से ११३ सत्थीमुहसंठित (स्वस्तिमुखसंस्थित) सू ४।३,४,६,७ सदा (सदा) प १३०,३१,४१ सदेवीय (सदेवीक) प २०११२,३४।१५,१६ सद्द (शब्द) प २।३०,३१,४१,१५१३६,३६,४०; १६.४६,२३११५,१६,१६,२०,३०,३१, ३४।११२,३४१२३ ज १११३,२६,३१,२१७, १२.६५,३१६,१२,१४,१८,३० से ३२,४३, ५१,६०,६८,७७,७८,८२,८८,८६,६३,१३०, १३६ १४०,१४६,१५५,१५६,१७२,१७८,१८०, १८५,१८७,२०६,२१२,२१३,२१८,२२२; ४।३,२५,८२,५।२२,२६,३८,५७,५८,७२,७३, ७११७८ सू २०१७ उ १६० से ६२,८५ से ८७: श१६,१७,२०,२५,२७ सपरिणाम (शब्दपरिणाम) प १३१२१,३१ सहपरियारग (शब्दपरिचारक) ५३४११८,२३,२५ सहपरियारणा (शब्दपरिचारणा) प ३४१७,२३ सहव्वया (सद्व्य ता) ज ३।३ सिद्दह (श्रत् +धा) सहइ ५ १११०१।४,१२ सद्दहाइ प ११०१।३ सद्दहामि उ ३११०३; ४।१४५:२० सद्दहेज्जा प २०११७,१८,३४ सद्दहणा (श्रद्धान) ५०१०१११३ सिद्दाव (शब्दय) सद्दाविस्तंति ज २११४६ सद्दावेइ ज २१६७,१८५,१०७,१११:३७, १२.१५,१८,२१,२८,३१,३४.४१,४६,५२, ५८,६१,६६,६६,७४,७६,७७,८३,६१,६६, १७०,१७३,१७५,१८०,१८३,१८८,१६१, १६६,२०७,२१२,५२२,२८,५४,६१,६८,६६, ७२,१२८,१४१,१४७,१५१,१५४,१६४,१६८ १।१७,३१९१४।१६५।१५ पहाति .३३१०५.१०७,११३,५१३,१४ महामि उपल Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६४ सद्दावइ-समकम्म सहावइ (शब्दापातिन्) ज ४१४२,५७,५८,६०,७१ सद्दावति (शब्दापातिन) प १६३० सहाविता (शब्दयित्वा) ज ११४६ सहावेत्ता (शब्दयित्वा) ज २१९७१।१७:३१७ ४११६:५११५ सदुण्णइय (शब्दोन्नतिक) ज २११२,४१३,२५ सद्ध (श्राद्ध) ज २१३० सद्धा (श्रद्धा) सू २००६।३ सद्धि (सार्धम् ) प ३४११६,२१ से २४ ज २१६५, ५८,६०,३१९,२२,३६,७७,७८,१८६,२०४, २२२,२२४;५१,५,४१,४४,४६,४७,५६, ६७,१३४,७११३५,१८४ सु १०।२ उ ११२ ३३९८,४११८,५।१६ उ १२२,३।६८,४११८; ५१६ सन्नद्ध (सन्नद्ध) ज ३७७ सन्निकास (सन्निकाश) ज ३१२४ सन्निभ (सन्निभ) प २१३१ सन्निवाइय (सानिपातिक) उ ३.३५ सन्निहिय (सन्निहित) प २।४६,४७ सपक्ख (स्वपक्ष) उ १२२,१४० सपक्खि (स्वपक्षिन् ) उ ११४६ सपक्खि (सपक्षम् ) १ २।५२ से ५६,६१,१६।३० सपज्जवसिय (सपर्यवसित) ११८१३,२५,५५, ५६,६३,६४,६७,६८,७६,७७,७६,८३,८६, ६०,१०५,१११,१२२,१२६ सपडिदिसि (सप्रतिदिश्) प २१५२ से ५६,६१ १६।३० उ १५२२,४६,१४० सपरिनिव्वाण (सपरिनिर्वाण) ज ४।२७७ सपरियार (सपरिचार) ३४११५.१६ सपरिवार (सपरिवार) प २१३२,३३,३५,४३, ४८ से ५१ ज ११४४,४५२१६०;४१५०,५६, १०२,११२,१३५,१४७,१५५,२२१,२२२, २२३३१,२२४११:५१,१६,४१,५०.५८ सपुव्वावर (सपूर्वापर) ज ४१२१,२५६ सू ३३१; १०१२७,१८६१,२१ सप्प (सर्प) ज ७१३०,१८६।३ सप्पदेवया (सर्पदेवता) सू १०१८३ सप्पभ (सप्रभ) प २१३१,४१,४६,५६,६३,६६ ज ११८,२३,५।३२ सप्पसुयंधा (सर्पसुगन्धा) प १।४८३ धवलवा सप्पह (सप्रभ) ५ २।३० ज ११२१ सप्पुरिस (सत्पुरुष) प २।४५,४५।२ सरफाय (दे०) प १४८।५० सबर (शबर) ५११८६ सबरी (शबरी) ज ३।१११२ सभितर (साभ्यन्तर) ज ३१७,१८४ सभा (सभा) ज २१६५,१२०,४१२०,१२१,१२६, १३१,१४०,५३५,७,१८,२२,२३,५०,७१८४, १८५ सू १८१२२,२३ उ ३१६,३६,६०,१५६, १६६४१५:५।१५,१६ सभाव (स्वभाव) ज २११५ सभावणग (सभावनाक) ज २१७२ सम (सम) १ ११४८१० से १६:१३१२२११,२, १७१।१२११०२:२२१६६,७०,२३५१६७; २६।६,६; ३६१८२।१ ज २१७१,३।३५,१३८, १५१,१७०,२११:४१३.२५,५७.६७,१८०; १८३;५।१८,४३,७।३७,३८,१३५।१,४,१६८, १७८ समइक्कंत (समतिकान्त) ५ १३१ समइच्छमाण (समतिकामत्) ज २१६५,३।१८६, २०४ समंतओ (समन्ततस्) ज २१६५ समंता (समन्तात्) प १७१०६ से १११ ज १७, ६,२३,३२,३५२।१३१,४।३,६,१४,२०,२१, २५,३१,४५,४७,५७,६८,७६,८६,१०३,१०७, १३१,१४३,१४८,१४६,१५२,२११,२१३, २१५,२३४,२४० से २४२,२४५, ५४५,७,३८, ५७,७।५८ सू ३११ उ ५८ समकम्म (समकर्मन्) प १७१३,४,१५,१६ Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समकिरिय-समय मू२०१७ समकिरिय (समक्रिय) प १७११११,१७।१०,११,२१ १३८,१४०,१४६,१५४,१५६,१६०,१६३; समक्खेत (समक्षेत्र) सू१०१४,५ ५।५८७१०१,१०२,१२६,२१४ चं १० समग (समक) ५१६३५२ ज ११२३,२५,३२, सू १५,८११:२०१७ उ ११२,४ से ८,१६, ३१७८,७।११२।२ सू १०।१२६६१,२ १७.१६ से २६,१४२,१४३ ; २११ से ३.१०, समग्ग (समग्र) ज ३१२२१,४१३५,३७,४२,७१, १२,१४,१५,२१३११ से ३,७,८,१२,१६,२०, ७७,६०,६४,१७४,१८३,२६२,६।१६ से २२; २२,२३,२६,३८,४०,४४,८७,८८,६१,६३, १५३,१५४,१६६ १६७,१७० ४.१ से ३,२७, समचउक्कोणसंठित (समचतुष्कोणसंस्थित) ५१ से ३,३७,४४ सृ ११२५,४२ समणी (श्रमणी) ज ७।२१४ उ ३.१०२,११५, समचउरंस (समचतुरस्र) प २।३०:१५:१६,३५; ११७,११८,४१२२ २११२६,३१,३२,३६,६१,७३,२३१४६ समणुगम्ममाण (समनुगम्यमान) ज २१६४ ज ११५, २।१६,४७,८६, ७१६७ उ १३ समणोवासम (श्रमणोपासक) ज २१७६ उ ३१८३ समणोवासय (श्रमणोपासक) उ १२०:५॥३४ समचउरंससंठाणसंठिय (समचतुरस्रसंस्थानसंस्थित) समणोवासिया (श्रमणोपासिका)ज २२७७ उ ११२०% सू १५,२५ ३।१०५,१०६,१४४ समचउरंससंठित (समचतुरस्रसंस्थित) सू ४०२ समण्णागय (समन्वागत) ज ५१५ उ ११६३ १०७४ समतल (समतल) ज ३३६५,१५६ समचक्कवालसंठित (समचक्रवालसंस्थित) समतिक्कंत (समतिक्रान्त) प २०६७ सू ११२५,४१२,१६१३,१३,१७,१९,२३ समत्त (समस्त) घ २१६४।१५ ज ३११७५ उ ३१६१ समजस (समयशस्) प २१६० समत्त (समाप्त) ज ३११६७,४१२००,५०५८; समजोगि (समयोगिन् ) ज ५१५८ ७/१०१,१०२ सू १३।१०,१३,१४ से १६ समजुतीय (समद्युतिक) १ २१६० उ ११४८,३१६१ समठ्ठ (समर्थ) प ११।११ से २०; १५।४४; समत्थ (समर्थ) ज ३।१०६:५५ सू २०१७ १७११,३,५.८,१०,१२,१४,१५,२४,१२३ से समपज्जवसिय (समपर्यवसित) सू १२११० से १२ १२८,१३० से १३२,१३४,१३५,२०१२,३.१४ सिमप्प (मं+अर्पय) ममप्पेइ ज ३११३८:४।३५, से १७.१६ से २५,२७ से ३०,३३,३४,४० ३७,४२,७१,७७,६०,१७४,१८३,१८६,२६२; से ४८,५२,५३,५६,६०,२२१७६,८०,८२,६२, ६।२१ से २४ समति ज ३।६७,१६१ ६४,६५,३०१२५,३६८०,८१,८३,८८,६२ ६.१६,२५,२६,४।६४ सू१०१५ समप्पेति ज २०१७,१८,२१ से २३,२५,२८,३० से ३३, सू १०५ ३० से ४०,४२,४३,४११०७,७११८४ समबल (समबल) प २१६०,६३ सू १८०२२ समभिरुढ (समभिरूढ) प १६:४६ ज ३.१०६ समण (श्रमण) प १३,६,६,१२,१५,२० से २७,६० समभिलोएमाण (समभिलोकमान) ५१७१०६ से से ६३,३।३६;१५४३,४५,३६७६,८१ १११ ज ११५,६:२११६,१६ से २१,२३,२५,२६, सिमभिलोय (सं+अभि+लोक) २८,३० से ३३,३६,३६ से ४३,४८,४६,५१, समभिलोएज्जा प १७।१०७,१०६,१११ ५४,५६,६८,७२,७४,८२,१२१,१२६,१३०, समय (समय) प १३१३,१०३,१०६.१०७,१०६, Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय-समासतो ११०,११३,११४,११६,११६,१२०,१२२, १२३,२१६४।५।६।११,६५१ से १८,२० से ४५,६० से ६४,६७,६८,१०।३०११,२, १०७०,७१,१२२४,३३,१५१५८११,१६।३४, ३७,१८१५६,६०,६२,६३,६७,८०,८१,८४, ८७,८६,६५,६८,१०२.१०४, २०।१।१,२०१६ से १३; २२१५४,५६.५८,५६,७६:२३।६३, १६३,३०।२५,२६,३६.८५,८७,६२ ज ११२, ४,५,१४,१४,७१,८८,८६६१,१३१,१३४, १३८,१४१,३११०३,५१,६,८,९ से १३,१८, ४८,५० से ५२७।५७,६०,११२।१ च ६१६, १०१।१,४,५,६११:८1१६१२,१०११५२ से १६११११२ से ६,१६ से २८,३०; १३.१,२७१७११,१६।२५, २०१३,५,७ उ ११ से ३,६,१६,२८,५१,६५,७६,१४४; २१४,१७,३१४ से ६,६,१२,२१,२४,२५,२७, ४८,५०,५५ से ५७,६४,६८,७१,७४,७६,८६, ६०,६५,६८,६६,१०६,१३१,१३२,१५५ से १५७.१५६,१६८,१६६४१४ से ६,१०,५१४, १४,२१,२४,२६,३६,४०,४१ समय (समक) ज १।१४ । समयक्खेत्त (समयक्षेत्र) सू १६२०,२१ समयखेत (समयक्षेत्र) प २११८६ समर (समर) ज ३।३,३५.१०३ समवण्ण (समवर्ण) प १७४५,६,१७ समवेदण (समवेदन) १७११११,१७१८,६,१६,२० समसरीर (समशीर) प १७:१,२,२८,२६ समसोक्ख (समसौख्य) १६०,६३ समा (समा) जरा७ से १५,२१ से ४५,५० से ५६,८८,१२१ से १३३,१३८ से १४०,१४७ से १५०,१५२ से १६४,३११३५६१,४।१८०, १८३,७३७ सू ६।४।१८।२,३ समाउय (सम्मानुष्य) प १७११११,१७।१२,१३ समागम (सागः:) ज २४, समाण (सत् ) प १५१५१,५२,१७।११६ 2. २८.१०५,३४११६,२१ से २४,३६१६२,७७ ज २०६० से ६२,७१,१४२ से १४५,३३,., १३,१४,१६,२२,२५,२६,३०,३६,३८,४२, ४३,४६,५०,५१,५३,५९,६०,६२,६७,६८, ७०,७५,७७,८०,८२,८४,८६,६७,१००, १११,११८,१२५,१२६,१३२.१३६,१४२, १४८,१४६,१५६,१६१,१६५,१६६,१७८, १५१,१८६,१९२,२०२,२०८,२१२ से २१४, २१७,२१६,४।२३,२५,३५,३७,३८,४२,६५, ७१,७३,७७,६०,६१,६४,१७४,१८३,१८६, १६५,२६२:५११५,२२,२४,२६,२६,४३.७० सू ६।१ उ १११७,२३ से २६,३७,४०,४५, ५२,५५ से ५८,६०,६२,७४,७७,८० से ५३, ८५,६० से १३,६६,१०७.१०८,११०,११८, १२७, ३.१३,१५,२६,५०,५५,७८,८२,८४, १०६,१०८,११२,१२१,१४७,१६०,१६२; ४|११,२०,५।१५,१७,३८ समाण (समान) ज ३।११७ सू २०१७ उ ३।१२८ सिमाण (सं--आप्) समाणे इ ज ७१०४ सू १०।१३० समातिम् १०११२६ समाणीत (समानीत) उ ३१४८,५० समाणु भाव (समानुभाव) २१६०,६३ ज २११३१; ४१५६ सिमादह (मं+आ-!-धा) समादहे उ ३१५१ समादीय (समादिक) सू १२।१० से १२ समायरित्तए (समाचरितुम् ) उ ३।१०२ समारंभ (समारम्भ) उ १।२७,१४० समारूढ (समारूढ) ज ३११२१ समालभ (सं+आ--लम्) समालभइ उ३।११४ समावण्णग (समापन्नक) ज ७१५५,५८ समास (समास) प ३३८,३६ ज ७.१०१,१०२ सू १६।२।१ समासओ (समासतस्) प ११४८१५४:११४८ ... ज २१६६ समासतो (समासतस्) प ११४,२०,२३,२६,२६, Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समासाद-समुष्पण १०६७ समन्याय समु५५ समुद्घात) प १।११७२।१,२,४,५,७,८, १०,११,१३,१४,१६ से २०,२२ से ३१,४६; ३६।१,४ से ७,४७,५३ से ५८,८२,८३,८३११ २,३६६८६,८८ समुज्जाय (समुद्रात) ज १८८,८६,३१२२५ समुट्ठ (सं+उत् । ष्ठा) समुछेति प ११७४ समुत्त (समुक्त) ज ३।६,१७,२१,३४,१७७,२२२ समुत्तिण्ण (समुत्तीर्ण) ज ३।८१ समुदय (समुदय) ज २१४,६,३१३,१२,३१,७८, १८०,२०६:५२२,२६,३८,६७ उ ११६२ ४६ से ५१,५३,६०,६६,७५,७६,८१,८६, १३१ से १३३,१३५,१३७,१३८ सिमासाद (सं+आ+सादय्) समासादेति सू ११८ समासादेत्ता (समासाद्य) सू१५१८ से १३ समासादेमाण (समासादयत् ) सू २१३ सिमासास (सं+आ+श्वासय्) __ समासासेइ उ ११४१ समासासेता (समाश्वास्य) उ ११४१ समाय (समाहत) ज ५१५ समाहार (समाहार) १७.१,२,१४,२४,२५,२८, २६ समाहारा (समाहारा) ज ५।६।१७।१२०१२ सू१०1८८२ समाहि (समाधि) उ ३.१५०,१६१,५।२८,३६,४१ समाहिय (समाहित) ज ५१५८ समिइ (समिति) प १११०१११० ज २१४,६:३१२२१ उ १६३ समिडिढय (सद्धिक) प २१६०,६३ समित (समित) मू ६१ समिद्ध (समृद्ध)ज १२,२६, २११२,३।१,८१, १६७१४,१७५ चं ६ सू ११ उ १३१,६,२८%; ३६१५७; ५१६,२४ समिरीय (समरीचिक) प २३०,३१,४१.४६,५६, ६३,६६ ज ११८,२३,३१ समिहा (समिध्) ज ५.१६ ।। समिहाकट्ठ (समिकाष्ठ) उ ३५१ समीकर (समी+कृ) समीकरहिंति ज २११३१ समीकरण (समीकरण) ज ३१८८ समीकरणया (समीकरण) प ३६१८२११ समुइय (समुदित) ज २।१४५,१४६ समुक्खित्त (समुत्क्षिप्त) उ १११३८ समुग्गपक्खि (समुद्गपक्षिन्) प १७७,८० समुग्गय (समुद्गत) प ३६१८१ समुग्गयभूय (समुद्गतभूत) ज ३११२१ समुग्धात (समुद्धात) प २१२१ समुदाण (समुदान) उ ३३१००,१३३ समुदीरेमाण (समुदीरयत्) प ३४१२३ समुद्द (समुद्र) प १३८४; २॥१,४७,१३,१६ से १६, २८,२६; १५१५५,२१८७,६०,६१:३३१० से १२,१५ से १७:३६.८१ ज १७,४६,४८; २११०,६७,६८,३।१,३६,४१५२,५१४४.५५; ६।१,२,४,७१४,६३,८७ सू १११४,१६,१७, १६ से २२,२४,२७,२६३,३११,४१४,७,६।१; ८।१:१०।१३२,१६०१ से ३,५,६ से १२; १९२२।२६:१६।२८,२६ से ३२,३५,३६,३० उ १११३८ समुद्दय (समुद्रक) प १७५,८०,८१ समुद्दलिक्खा (समुद्रलिक्षा) प ११४६ समुद्दवायस (समुद्रवास) प १७८ समुद्दविजय (समुद्रविजय) उ ५॥१०,१७,१६ सिमुप्पज्ज (सं+उत् + पद्) समुपज्जइ प २८/७५,१०५:३४११९,२१ से २४ ज २।२७; २६,५६:४११७७,१८१ समुप्पज्जति ज ५१ उ १११११ समुप्पज्जति प २८१४,२५,२७,२६, ३८,४७,५०,७३,७४,६७,३४।२३ समुप्पज्जित्था ज २१५६,६३,१२४,१२५; ३१२,४,२६,३६,४७,५६,१२२,१३३,१४५, १८५५२२ समुपज्जिस्सइ ज २१५६ समुप्पज्जिस्सं तिज २११५,२१,५३ समुप्पण्ण (समुत्पन्न) ज ३।१२३,२१६ Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६८ समुप्पन्न ( समुत्पन्न ) ज २२७१, ८५ ३५ उ १।१११, ११२ समुत्पन्न होउहल्ल (समुत्पन्न कौतुहल ) ज १६ उ ११११,११२ समुत्पन्नसंसय (समुत्पन्नसंशव) ज १६ समुत्पन्नसड्ढ (समुत्पन्नश्रद्ध) ज १।६ समुब्भव ( समुद्भव) ज ५१५, ४६ समुल्ललिय (समुल्लालित) उ ११३८ समुल्लावग (समुल्लापक) उ३१६८ समुल्लावय (समुल्लापक) उ३२६८ समुवगूढ (समुपगूढ ) ज ४ ६१,२७३ समुसासणिस्तास ( समुच्छ्वासनिःश्वास ) प १७ १, २,२८,२६ समुल्लासणीसास (समुच्छ्वासनिःश्वास ) प १७३२ समूहिय ( समुच्छ्रित) ज ३।१७८५।४३ समोगाढ (समवगाढ) प २६४|१० सू १६।२६ समोच्हण ( सभवच्छन्न) ज ३११२१ समोप्पा ( समर्पणा ) ज ३१११७ समोर ( सं + अ + तृ) समोवरंति ज ७६७ सजवण्णग ( समोपपन्नक) ५१७।१३ समोढ (समत) ज ११४ चं ६ सू ११४ उ ३५,१२,२१,२४,२८,२६,८६,१५६, ४/४ ; ५१३७ / समोसर (+) समोसरइ ज ५।५० समोसरांति ज ५/४६ समोसरण (समवसरण ) ज ५१५३३३।२१;४।१० समोरिय (सव मृत) ज ५४ उ १११६२/६३ ३।१५५,१६८ ; ५।१४ समोहणित्ता (समवहृत्य ) प ३६१५६,६६,७०,७३, ७४ ज ३१११५ समोहण (अ - हन् ) समोहणंति प ३६१५३ ज ३।११५,१६२,२०८५१५,७ समोहति प ३६८२ समोहत ( ) प ३।१७४ समोह (समवहत ) प ३ | १७४१५१४३; २१८४ समुप्पन्न सम्मामिच्छत्तवेय णिज्ज से ९३; ३६।३५ से ४१, ४८ से ५२,५६,६५, ६६,७०,७३,७४,७६ सम्म (सम्यक् ) सु १०११२६१४ सम्म (सम्यक् ) ज २१६७ ३३१८५, १८६, २०६; ७११२१३,४ सम्मट्ठरत्थंतरावणवीहिय (मृष्टरध्यान्न रापणवीथिक ) ज ५१५७ सम्मत ( सम्मत ) प ११।३३।१ सम्मत सच्च ( सम्मत सत्य ) प १११३३ सम्मत्त (सम्यक्त्व ) प १११५, ११०१ ६, ७, १३ ३।१११, १८|१|१२०/३९; २३ १७४; ३४।१।२ ज २।१३३ उ ३/४७,८३ सम्मत्तवेदणिज्ज ( सम्यक्त्ववेदनीय ) प २३३१८१ सम्मत्तवणिज्ज ( सम्यक्त्ववेदनीय ) प २३|१७,३३, ६५, १३७ सम्मत्ताभिगम (सम्यक्त्वाभिगमिन् ) प ३४।१४ सम्म सण परिणाम ( सम्यक दर्शनपरिणाम ) १३।११ सम्मद्दिट्ठि (सम्यक दृष्टि ) प ३११००६।६७,६८; १३ १४,१७,१७।११,२३, २५, १८७६; १६ १ से ५२१।७२; २३१२००, २०१,२८।१२५,१३५ सम्मय ( सम्पत) उ ३११२८ सम्मा (सम्यक् ) प १३।११ सम्माण (मं - मानय् ) सम्माणेइ ज ३१६, २७, ४०, ४८,५७,६५,७३,६१,१२७, १३३,१३६, १४६, १५२,१८६,२१६ सम्माणेज्ज ज २२६७ सम्माणणिज्ज ( सम्माननीय ) सू १८१२३ सम्मानवत्तिय ( सम्मानप्रत्यय) ज ५१२७ सम्माणियदोहद ( समानीत दोहद ) उ ११५०,७५ सम्माता ( सम्मान्य) ज ३१६ उ ३१५० सम्म मिच्छत (सम्यक्मथ्या व ) प २३|१७४ सम्मामिच्छतवेदणिज्ज ( सम्यक मिध्यात्ववेदनीय ) प २३१६७,१८१ सम्मामिचत्तवेयज्जि (राम्यक मिध्यात्ववेदती प ) प २३/१७,३३,१३६ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मामिच्छत्ताभिगमि-सय णिज्ज सम्मामिच्छत्ताभिगम ( सम्यकत्वाभिगमिन् ) प ३४।१४ सम्मामिच्छद्दिट्ठि ( सम्बमिथ्यादृष्टि ) प ६।६७ १३।१४, १७, १७।११,२३, २५१८७८ १६/१ से ५ २१।७२ २ ८ ११२७, १३८ सम्मामिच्छादंसणपरिणाम (राम्यकुमिथ्यादर्शनपरिणाम ) प १३।११ सम्मामिच्छादिठि (सम मिध्यादृष्टि ) प ३।१०० समुच्छ ( + मुच्छ्रं ) सम्मुच्छंति प १३८४ समुच्छति प ११:४ सम्मुच्छिम ( संमूच्छिम् ) प १४१ से ५१,६०,६६, ७५,७६,८१ से ८४; ३ । १८३४।१०७ से १०६,११६ से ११८, १२५ से १२७,१३४ से १३६,१४३ से १४५,१५२ से १५४,१६१; ६।२१,२३,६५,७१,७२,७४,८४,६४,६७, १००, १०२,१०८६१६.१६,२२:१६/२८, १७१४२, ४६,६३ से ६५,६७,८६; २१३६, १०, १२, १३, १५ से १६.३०,३३,३५,३७,४३ से ४७; २११४७१२,२११४८, ५३, ५४,७२ सम्मुति ( सन्मति ) ज २५६,६० सय (शत ) प २/४१ से ४३,४६,५५, ५८, ५६ २, ६२११, २१६३, २१६४१६, १२३६, ३७, १८१३१, ३६,६०,११३,२११६५; २२।४५, २३।७४, ८६, ८८,८६,६५,६८,६६,१०१ से १०४,१११, ११३,११७,११८,१३०,१३१,१६४,१८३, १८७ ज १७,६,१०,१८,२०,२३,२६,३७,३८,४०, ४८ २१४१३.१६,४८,५२,६४,७५,७७७८, ८०,८६,१२८, १४८, १४७, १६१,३१,१८.३१, ३५,६३,६५,६६ से १०१,१०४,१०५, १०६, १२६, १५.१३८, १८०, १६३,२०६,२१०, २१६,२२१.२२२, ४१६,१०,१२.१३,२३,२५, ३२,४६,५५,५७,६२,६५,६७,७२,७३,७५, ७६,८१,८६,६०,६१,६३,६५,६८,१०३, ११०, १२०,१४१,१४२३१, २, १४३, १४७, १५४,१६३ से १६५,१६७,१६६,१७८,१६३,२००,२०५ से २०७,२१३ से २१६,२२१,२२६,२३४,२४०, १०६६ २४१,२४५, २४८, ५१३,४,२८,३३,५२, ५३, ५८, ६१७,६१११,१४,१४; ७।१।१, ७१२ से ४,१०, १२,१४ से २५,२७,३०,३२,३४,५४,६२ से ६४,६७ से ८१, ८४, ८६,८७,८८, ६१ से २६,६८ से १०२, ११०,१२७,१३१११,१७१ से १७४, १६०,२०१ से २०७१/८/२११० से १२, १४,१६ से २४, २६ से ३१,२११, ३, ४१४,५, ७, ८, १०६ १८११:१०११३८ से १५१, १६२ से १६४,१६६ से १६६,१२।२, ५, १३।४; १४ । ३; १८ ११,१३,३०,१६१५२, १६८११,२,१६४२११५,१६१२१६,६३ ११२; ३।५५,६२,५१२८, ४१ सय (स्वक) ज ३१७७, ८४, १०२, १५३, १६२, १७८, १८३.१८६, २२४ ५१,६,८,१०,१३, २२.२६,४३,५६ उ ११३३,४२,४४,१०८, १२१,१२२, १२६; ३।११, ४३, ५३, १४८ : ४।१५ सय (शी, स्वप् ) संयंति ज १११३, ३०, ३३; २७; ४१२,८७,२१५,२४७६८ सयं (स्वयं) प १११०१३३; २३।१३ से २३ सू १६।११।३ सयंजय ( शतञ्जय ) ज ७।११७ २ १०८६१२ सपन (स्वयंप्रभ) ज ४।२६० १ सू ५।१,२०१८, २०१८/६ सबुद्ध (स्वयंबुद्ध ) प ११०५, १०६,११८, ११६ सयंबुद्धसिद्ध (बुद्धगड ) १११२ सयंभुरमण (स्वयंभूरमण ) प २२८७, ६०.६१ रमण (स्वयम्भू ) प १५१५५,५५१२ मु १६३८ सयंसंबुद्ध (स्वयं) ५।२१ सक्का ( शतक्रतु) ज ५२८ सयग्धी (दे० ) प २३०,३१,४१ सयज्जल ( शतज्वल) ज ४।२१०११ ; सयण ( शयन ) प ११।२५ ज ३३१०३ सू २०१४,७ उ ३५०, ११०,१११,४।१६,१६ सण ( स्वजन ) ज २२६६ सयणिज्ज ( शयनीय ) ज ४।१३,३३,७६,६३,१३५, Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७० सयधणु-सरिस १३६,१४०,१४७,१५३,५।१७ सू २०१७ उ १६४६,५।१३,२५,३१ सयधणु (शतधनुष्) उ ५२।१ सयपत्त (शतपत्र) प १२४६ ज ४१३,२५ सयपत्तहत्थगय (हस्तगतशतपत्र) ज ३३१० सयपाग (शतपाक) ज ५।१४ सयपुष्फा (शतपुष्पा) प ११४४१३ सौंफ सयभिसया (शतभिषग्) ज ७११३।१,१२८; १३४१२:१३५२.१३६.१३६,१४२,१४६,१५७ सयमेव (रव मेव) प १११०११३ ज २१६५; ३३१०२,१६२,२२४ सू १३।५,६,१२,१३,१७ उ १२६५,६६,७१,८८,६४,३८१,८२,११३; ४४२० सयरिसह (शतवृषभ) सू १०।०४।३ सयरी (शतावरी) प ११३६१२ सयल (सकल) ज ३।३१ सू१६।२११६ सयवत्त (शतपत्र) प २१३१,४८ ज ४।४६ सयवसह (शतवृषभ) ज ७/१२२६३ सयसहस्स (शतसहस्र) प १५२३,२६,२६,४८,४६, ५१,६०,६६,८४,२।२२,२५,२१२७१४,२३०, ३३ से ३५,४०।३,४,२१४६,४६,१५१४१; ३६.८१ ज १७,२१४,१८,६४,८७.८८% ३।१७८,१८५,२०६,२२१,२२५,४।२५६,२६२, ५५१८,२४,२५,२८,४४,४८,४६२,६८।१, २० से २६,७।१।१,७१४ से १६,७३,७४, ७८,६३,६४,६८ से १००,१८७,२०७ सू १।१४,२१,२७,२१३,३।१६।१८।१; १०.१६५,१७३;१२।६।१८।२७;१६।११, १६४,८,११,१४,१५१४,१८,२०,२१११,५ उ ३।१६ सयसाहस्सिय (शतसाहसिक) सु १६२६ सयसाहस्सी (शतसाहस्री) ज ४।२१,६८,७९५८ सया (मदा) ज ७/१२६,१७० १०७५,७७, १३६,१७३, १६।१,११,२१,२०१२ मयावरण (सदावरण) ज ३११०६ मसहरी सर (शर) प ११४१११ ज ३।२४।१,२,३१२५,२६, ३१,३५,३८,३६,४६,४७,१३१११,२,१३२, १३३,१३५,१७८ उ १११३८ सर (सरस्) १ २।४,१३,१६ से १६,२८; १११७७ सर (स्वर) ज २।१२,१३३, ३१३,४१३,२५,५१२८% ७.१७८ सरंत (दे०) १७६ सरग (शरक) ज ५११६ उ ३१५६ सरड (सरट) प १७६ सरण (शरण) ज ३११२५,१२६,५२२१ सरणदय (शरणदय) ज ५१२१ सरणागय (शरणागत) ज ३१८१ उ १११२८ सरद (शरद्) सू १२।१४ सरपंतिया (सर:पंक्तिका) प २१४,१३,१६ से १६, २८,१११७७ सरभ (शरभ) प ११६४ ज ११३७,२६३५,१०१; ४१२७,२८ सरय (शरक) उ ३१५१ सरय (शरद्) उ ५१२५ सरल (सरल) प ११४३३१,११४७११ सरलवण (सरलवन) ज २१९ सरस (सरस) प २३०,३१,४१ ज १९५,९६,६६, १००:३।७,६,१२,८२,८८,१८४,२११,२२२; ५१४,१५,५५,५८ सरसर (मरःसरस्) ज ३।१०२,१५६,१६२ सरसरपंतिया (सर.सरपंक्तिका) ५२१४,१३,१६ से १६,२८,१११७७ सराग (सराग) प १११००,१०१,१११ से ११४; १७.३३ सरागसंजय (स रागसंयत) प १७१२५ सरासण (गरासन) ज ३१७७.१०७,१२४ उ ११३८ सरि (सदक) ज ३११६७।१३ उ ३।१७१:४१२८ सरिच्छ (सदग) ज ३।१८,५२,६१,६६,१३१, १३६,१३७,१४१,१६४,१८० सरिस (सदृश) प ११४८।३८, २।३१ से ३३ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरिसव-सविलेवण १०७१ ज ११४१,४६,२।१५,१६,३।३,३५,७६,११६, सरीरसंघातणाम (शरीरसंधारनामन्), २३१४४ १३५,१८८४१५२,१०६,१६३,१७२,१७४, सरीरसंघायणाम (शरीरगंघातनाम्न) २३१३८, १७७,२००,२०४,२१०,२१२,२२६७३१७८ मु १०११६२,१६।३१,३५,३८ उ १३१४८; । सरुव (स्वरूप) ज ५१४३ २०२२ सललिय (सलभित) चं ११ सरिसय (सदशक) ज ११४६ सलाइया (शलाकिका) ज ५१५ सरिसव (सर्षप) प ११४४१२,४५१२.११४७।२ सलामा (शलाका) ज ३.११७:५१५ ज २१३७ उ ३१३७,३८ सलिगसिद्ध (स्वलिङ्गसिद्ध) प १।१२ सरिसवय (मदृशवयम्) उ ३।३८ सलिगि (स्वलिङ्गिन) प २०१६१ सरिसवय (सर्वपक) उ ३१३८ सलिल (सलिल) ज ३७६,१०६:४१३,२५,६४ . सू३५१ सरिसवसमुग्ग (सर्षपसमुद्ग) ज ५१५५ सलिलबिल (सलिलबिल) ज २।१३१ सरिसवा (सदृश्वयम्) उ ३१३८,४०,४२ सलिला (सलिला) ज ३७६,११६४।३५,३७,४२. सरीणामय (सदग्नामक) ज ११४६ सरीर (शरीर) प १११३५,११४७।२,३,११४८१५३, ७१,७७,६०,६४,१७४,१८३,२६२,६१६३१, ६।१६ से २६ ५७; १११३०,३०१२,१२११:१४१५;१५११०,२३; सलिलावई (सलिलावती) ज ४।२१२,४।२१२।१ १६।२३।१७।१।१,२१।१११२११३८,४० से। सलील (सलील) ज २११५ ४२,४८,५३,५६,६१,६३ से ६६,६८ से ७१, सलेस (सलेश्य) प १८१६८:२८१२२,१२३ ७४,८४ से ६३,२८१११२,६८ से १०१। सलेस्स (सलेश्य) प ३१६६.१७।२८,५६ १०६६१,३६.५६,६६,७०,७४ ज २१४५,४७, सल्ल (दे०) प ११७६ ६०,३।८२,८५.१०६.१३८ सू २०१७ सल्लई (सल्लकी) प ११३५।१,११३७११ उ १११६,३५,४२,३।८,२६,३५,१२७,१४१; सहलगत्तण (शल्पकर्तन) ज ५१५८ ४।१२,१८ सवंतीकरण (सवर्णीकरण) उ ११४६ सरीरंगोवंगणाम (शरीराङ्गोपाङ्गनामन्) सवण (श्रवण) ज २११५,३३२२५, ७।११३११, ५ २३१३८,४२,६२ १२८.१३०,१३६,१३८,१४१,१४६.१५६ सरीरग (शरीक) ज १९६,१००,१०३,१०४, १०७,१०८ मु १०१ से ६,८,२०,२३,२८,५६,६३,७५, ७६,६३.१२०,१२,१३० से १३५; १५९ सरोरणाम (शरीरनामन् ) प २३।३८,४१,८६ से सवणता (थत्रण)२०२८ ६३,१४६,१७३,१७४ सरीरस्थ (शरीरस्थ) प ३६८५ सवथा (थयण) प २०११७,१८,२२,२५,२६, सरीरपज्जत्ति (शरीरपाप्ति) प २८।१४२,१४३ ३४,४५ उ १५१७.३६,४०,४२,४३ उ ३.१५,८४ सदहावित (शपथशास्ति) उ २५७,८२ सरीरबंधणणाम (शरीरबन्धननामन्) ५ २३।३८, सवालुइल्ल (सवालुक) ज ३११०६ ४३,६२ सविणय (सविय) ज ३१८१ सरीरबाओसिया (शरीरबाकु शिका) उ ४१२१,२२, सवियु (मवित ) ज ७१३०,१८६ २८ सवियादेवया (सवितृदेवता) सू१०८३ सरीरय (शरीरक) १२१२ से ५:२१।१,२११६२ सपिलेवण (सविलेपन) । ३६१८१ Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७२ सविसय-ससि सविसय (स्वविषय) प १११६७,६८,२८८१७,१८, ज ४।१०७:५३५,७ सू १६०२,१२,२६,२८ ६३,६४ ज ७४६ सव्वत्थ (सर्वत्र) प २१३२:२११३५,४२,२२।२५; सविसेस (सविशेष) ज २१६:४११५६७७,६६, ३६।४७ ज ३।१०६४।५७,१८३;७।३७,१९७ ६० सू १८१६ से १३ सू१८३७ उ १२२ सवेद (सवेद) २८११४० सव्वदरिसि (सर्वदशिन्) ज २७१५२१ सवेदग (भवेदक) प ३९७ सव्वपाणभूतजीवसत्तसुहावहा (सर्वप्राणभूतजीवसवेदय (गवेदक) १८१५६ सत्त्वसुखावहा) प २६४ सधेयग (सवेदक) प ३६७ सम्वप्पभा (सर्वप्रभा) ज ५११११ सव्य (सर्व), ११२ ज १७ चं ११२ सू १।१०।। सव्वबल (सर्वबल) ज ३।१२,७८,१८०,२०६; उ१९७० ५१२२,२६ सव्वओ (मर्वता) प १७११०६ से १११,२८।११, सध्वम्भंतराय (सर्वाभ्यंतरक) सू १११४ २८।२१,६७ ज १७,६,२३,३५४१३,२१०, सव्वभाव (सर्वभाव) ज २१७१ २१४,२४१,२४२ मु ३११ उ ५८ सव्वरयण (सर्वरत्न) ज ३.१६७,१७८ सत्वोभद्द (सर्वतोभद्र) ज ३.३२,५।४६६३ सव्वसिग्धगइ (सर्वशीघ्रगति) ज ७।१८० सध्वंग (मङ्गि)ज१५ उ ११२३,६१ सवसिग्घगइतराय (सर्वशीघ्रगतितरक) ज ७।१८० सवकज्जवड्ढाक्य (सर्वकार्यवर्धापक) उ ३।११ सव्वसिद्धा (सर्वसिद्धा) ज ७।१२१ १०६१ सव्व सामसमिद्ध (सकामसमृद्ध) ज ७११७६१ सम्वहेट्ठिम (सर्वाधस्तन) सू ६३ मु १०।८६१ सध्याउय (सर्वायुष्क) ज २१८८३।२२५ सव्वकालतित्त (सर्वकालतृप्त) प २१६४।२० सव्वामयणासिणी (सर्वामयनाशिनी) ज ३११३८ सव्वक्खरसंनिवाइ (सर्वाक्षरसन्निपातिन्) ज २१७८ सविदिय (सन्द्रिय) ज २०१८ सव्वक्खरसंनिवाति (सर्वाक्षरसन्निपातिन्) ज ११५ सव्वखुड्डाय (सर्वक्षुद्रक) सू १११४ सम्वोउय (सर्वर्तुक) ज २११२३१३०,३५,२२१:५१५ उ ५११६ सम्वग्ग (सर्वाग्र) ज ४।६,१४,१४६,२५६;७१६८, १६६,२०१,२०३,२०५,२०७ ।। सम्वोहि (सर्वावधि) प ३३।३१ से ३३ सध्वज्जुणसुव्वणमती (सार्जुनस्वर्णमयी) प २१६४ । ससंभम (ससम्भ्रम) ज ३१६:५।२१ राव (सर्वार्थ) ज ७।१२२ सू १०१८४।३ ससक्कर (सशर्कर) ज ३।१०६ सव्वट्ठसिद्ध (सर्वार्थकसिद्ध) ५६।११० ससग (शशक) प १.६६ ज २११३६ सव्वाद्ध (सर्वार्थ सिद्ध) प १११३८, २१६३; ससबिंदु (शश बिन्दु) प १४०।५ ६२६,६२,२०।६१२११७७ उ ५१४१ ससय (शशक) प ११२१ सव्वळसिद्ध ग (सर्वार्थसिद्धक) प ४।२६७ से ससरीरि (सशरीरिन्) प २८।१४१ २६६,६:४३, ७:३०;१५।६०,६३,१०१,१०६, ससरुहिर (शशरुधिर) प १७११२६ १०८,११४,११५,११७,१२०,१२१,१२३, ससि (शशिन्) ५ २१३१ ज २११५, ३१६,१७,२१, १२५,१२८,१२६,१३२,१३६,१४३,२०.४६% २८,३४,४१,४६,६३,१०६,१३६.१५७,१६३, २८१६७ १६७।१२.१७७,२२२,७।११२७१६८.१ सवण्णु (मत्रज्ञ) ज २०७१,५१२१ सू १०1७७,१२६।२१९।८।२,१६।२२।३,२३, मन्बतो (सर्वतस् ) प २१६४।१३:२८१२१,३३,६७, २६.२६,३१,२०१४ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ससिया सहस्सार ससिया (शिका) प ११।२३ सस ( दास्य ) ( १०।१२९०४ सस्तिरीय ( सश्रीक) व २२३०,३१,४१,४८,४६, ५६,६३,६४ ज ११३१ २२६४, ३६, ३५,११७, १८५.२०६, २२२, ४/२७, ४९, ५१२८,५८ १२४१, ४४ सह (गज़ ) प २३।१५६.१६०,१६४,१७५ २०५०, ११४; ४।१०६, २०५७।१३५४ उ ३३३८ V सह (सह ) महइ ज २२६७ सहगत (सहगत ) प २२११७ सहमय (सहगत ) प २२८० सहजायय ( सहजातक) उ३१३८ सहकीय (क) उ सहरिस ( सहर्ष ) ज ३१८१ सहयय (सबधितक) २३२३८ महसम्म (स्वयंस्मृति ) प १।१०१२ सहस (सहस्र ) प २१२१ से २७.३० से ३६,४०१५, ४१ से ४३,४६, ४६ से ५२, ५५ से ५७,५६, ५६१.३२६६,६४,४१,३,४,६,२५,२७,२८, ३०,२१,३३,३४, ३५, ३७, ३६, ४०, ४२,४३, ४५,४६,४८,४९,२१,१२,५४,५६,५८,६२,६४, ६५,६७,६१,७१,७९,०१,८५,८७,८८,२०,९४, १२५, १२७,१३४,१३६, १४३, १४५, १५२, १५४,१६५, १६७,१६८, १७०, १७४, १७६, १००,१६२,१०१, १०५६/४०; १२६; १८१२, ६,९,१२,१०.२०,२८,३२,२४,३५,४७,५०, ५२,८५ २०१६३,२१।३८,४१,४३,४५, ४७११, २:२१०६५,६७,८७६२३६० से ६२,६४,६६, ७८,०१,८४,१०.१११.१३२,१४७.१६७ से १६१,१७१ से १७२, १७५ से १७७,१०२ २८१२५.४०,४३,६६,७४ से ८७,६७३६६८, १११०११,१११६,१७,२०,२३,४६,४८ २४४१३,२४६,१६,५२,५६,६५,७१७७ से ८२, ८८१२६.१३०,१३४,१३८, १४०, १४९, १५४, १५१.१६१२।१४,१८,२२,२०,३१,३६,४२, २०७३ ५१.५१,६०,६८,१३,६९,१०६,११७.१२०, १२२,१२६।३:३०१३०,१३६.१४०, १४५, १४६,१६३.१७२, १७५, १०, १८५, १०६. १८८, १८१, २०१, २१०, २१४, २१५, २१९, २२१:२२४४।१,२७,३५,३७,४२,४५, ५२, ५५.५७,६२,६४,७१७७,८१,८६,८८,६०,६१, १४,६८.१०३,१०८, ११०,११४,११६.१५१३१. १६५,१६७, १६६,१७४, १७५, १८३,२००, २०५,२१३,२१५,२३४, २४०, २५७ से २५६, २६२५२८,३२,४३,४८,४९११,५०,५२३१. ५३,५५,५६,६३८ । १.१२ से २६,७११,७८ से २५,३१,३३,३४,५४,६७ से २४,१५,१६, १२७,१७०, १७८११२,१०३१५८१८१, २०७ ११४,२० से २२,२६,२७१२०१,२,३११३ ४३ से ५,१० ६१ ६१ १०२ १०११३५, १६४; १२२ से ७,६१८११,४,२०,२१,२६,२८, २६११।१।१,१२६४, ५१३,७,६१३,१०,१११, ३,४:१६ १४, १५२१,३,४,१९४१०.१६. १६२११२, ४, ५, ७, १६१२२२८,३२,१६३० उ १।१४, १५,२१,२२,२५,२६,१२१,१२६, १३२,१३३,१२६,१३७, १४०, १४७, ३७, ६१, ११०,१११.४।१६, १८:५११७,२७ सहस्रसक्छ ( सहस्राक्ष ) प २५० ज ६ सहगल (सहस्राशस् ) प १२०,२३,२६,२६, ४८ सहस्रप (सहस्रपत्र) १२४६ ३८६४१३ २२,२५,३०,३४.५।५५ सहस्त्रपतत्यय ( हस्तत्तसहस्रपत्र ) ज ३१० सहस्रपान ( सहस्रपाक ) ज ५११४ सहस्रस्ति (सहस्ररशिंग ) ३२४८, १०,५५,६३, ६७,७०,७१,१०६,११८ सहस्वस (सहस्रपत्र ) प १२४८४४ सहस्सार (सहस्रार ) प १।१३५२०४६,४७.५८ ५११६३३०३६१८३४२५२ से २५४ ६१३४, ५६, ६५, ८६,६२,१०६; १५८८ २०१५१, ६१:२१।७०, ११:२८१६२: ३४११६.१८ Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७४ सहस्साग-साडय ज ५।४६२ उ २०२२ २५५,२५७,२५८,२६०.२६१,२६३,२६४, सहस्सारग (सहस्रारक) प ६११२७।१५; २६६,२६,२६६,२७०,२७२,२७३,२७५, ३३।१६ २७६,२७८,२७६,२८१.२८२.२८४,२८५. सहस्सारथडेंसय (सहस्रारावतंसक) प १५७ २८७,२८८,२६०.६६१,६३२६४, १६, ताहि (सखि) ज २१२६,६६ २६७,२६६; १८१२,१६,१६,२४,२८,३१, सहित (ति) सू १६।२२।२५ ३६,४२,४४,४६,४६४६,६१,६६७४, राहिय (सहित) १ २६२१ ज २११५; ३।३१,६५, ७६,७६,८४,८५,९.१२.१९९२३१६० से १५६७११८६२ २०८,२०।८।२ ६६,६८,६६,७३८,८१, ६०,६२, तहोयर (सहोदर) उ ११६५ ६५ मे १६.१०१ १.४.१११ से ११४, खाइ (स्वाति) ज७१२८,१३४।२,१३५२,१३६, ११६ से ११८, १ ६ मे १३१,१३३ से १४०,१४६,१६५,१७५ १३५.१३८,१४०,१४२.१४३ १५१.१५३,१५५ साइम (वाद्य) उ ३.५०,५५,१०१,११०,१३४; से ११०, १६०,१६४.१६६ १६८,१७१ से साइयार (मातिचार) प ११२६ १७३.१७५ से १०१,८ ८ ,,१८०, साइरेग (सातिरेक) प १८१७६२३१६५ ज ११३५, १३० जरा! ,११,१२,१५४, १६०,१६३ सू२:११ १२६,१४०; ४०,११:२।१२८,१४८,४।६,१४२३,३१,३८, ३११५०,१६४,२०६ : ४० ४१,६५.६८,७३,६०,६१,११६,११६,१२२, १३६,१४६,१४७,२१६,२४२,७१२५,१६६, : स्मगार (गकार प:४१२६११६५,१६६ से २०७ सू८११;१८१३० २०१:२६।११:६४१५६२८ साउफल (स्वादुफल) ज २।१२ रागारपति कार वॉशन) ३०.१५ से १८, साएय (सात) प ११९३२ सागर (मागर) प २१६८।३,७६,७६,८१,१०५, सागारशारणला (स करवर्ग):३०१२७ ११६,१२६१४,१२८,१५१,१७०,१८५,१८८, सागारपाल (सः :रवीन) प ३०११,२,५,६, २०६,२२१,४१६२११,२३६:५१३२.५८ ज २६८,३३,७६,७६,८१.१०५,११६, सागाराणागारो उर (मामा सामोपत) १२६।४,१२८,१५१.१७०,१८५.१८८,२०६, २२१ ; ४११६२११,२३८५।३२,५८ सू १६१६१ मारोवस : स): ३।१०६.१७४; उ २०१२;५१० १३४REE९१६२१:३६।१२ सागरकड मानरमाट) ज1१६४ शामाकोषागाक... ग): २६१,२,५.६, सागरचित (सावित्री २३८ सागरचितकड (साम चिकट) ज ४२३६ मोनिकायमान बार सागरोवर (भागसेपर) ८११,३,४,६,७,६,१०, १२,१३,१५,१६,१८,१६,२१,२२,२४,२५,२७, साग (माटया) १०. १२५ ३१,३३,३७.६६.१०७,२०६,२१३.२१५, भाड मारा : १५२६७७ २२५,२२७,२३७.२३६,२४०,२४२,२४३, २४५,२४६,२४८ २४६.२५१.२५२.२५४ाथ ट न : Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सात-सारइयबलाहक १०७५ सात (सात) प ३५३१११,२,३५१८,६ सातावेदग (सातवेदक) ॥ ३३१७४ तातावेदणिज्ज (सातवेदनीय) प २३११५,२६, १४६,१५६ साताव्यणिज्ज (सातवेदनीर) प २३।१५,३०,६३, सातासात (मातासात) प ३५.८,९ सालासोक्ख (मातगोरु) सु २०१७ साति (गादि) प २३।४६ साति (स्वाति) सू १०१२ से ६,१७,२३,४८,६२, ७२,७५.८३.११३,१३१ से १३४१८७ साहिरेग (सातिरेक) प ४१३१,३३,३७,३६,१६८, २००,२०४,२०६,२२५,२२७,२२८,२३०, २३१२२३,२३४,२३६,२४०,२४२,७२,६, ११:१५६४११८११६,१६,३१,३६,४६,५४, ६१.७६,८५,८७,११३,११६:२११३८,४१, ६३,६६८७:२८१२५,७६,७८,३६।६८ सू२३६।३; १२०१५ सादि (सादि) प १५१३५ सादि (रवाति) सू १०।१२० सादिय (सादिक) प २०६४ सादीय (सादिक) प १८१७:१७,२६,५८,५६,६३, ६.७५ से ७७,७६,८२,८३,८८,६०,६२, १००.१०५,११२,११५,११८,१२१,१२४,१२७ साध (साध) साधेति सू१०११२० साधेति १०।१२० साभादिय (नामाविक) ज ३।२०६;५५६ साम (वा) प ११३७।४ राग (साग) उ १।३१ सामंत मन्त) उ १।३,३३२६ सामग या ) प ११४५।२ सामण गामान्य) सू १०७७ साहय श्रमण्य) उ २११२,३३१४,२१,१२०, १५०.१६१४।२४।५।२८,३६,४१,४३ सायण्णओपिणिवाइय (मामान्यतोविनिपातिक) सामण्णपरियाय (श्रामण्यपर्या) ज २१८८ ३२२५ सामल (शामल) ज ३११०६ सामलता (श्यामःलता) प ११३६१ सामलया (शामालता) ज २११ सामली (शाल्मली) ज ४१२०८ सामा (श्यामा) प२४०।६१०.१२४ सामाइय (सामयिक) प १११४.१२५ उ २११०, १२:३३१४,१५०,१६१,५२८,३६४१ सामाइयचरित्तपरिणाम ( सामिपरिणाम) प १३३१२ सामाण (समान) १ २१४६,४७,४००२ सामाणिय (साम निक) १३० मे ३३.३५; ४०॥५,४१,४३.४८ से १६ १४३१०; ४।१७,११३.१५० १५८ !?",६,१६,३६,४२ ४४,४५,४६,४६।२५०, १,५२२१,५३,५६, ६५,६७,७१५६,५६.१८५ : १८१२२; १९२४, २७ उ ३६,२५,६०,१०,१५६,१६६५ सामि (स्वामिन) ११४६८,१६,४३.६२,७०,७७, ८४,१००,१२६॥२,६४२,१६५,१८१,११२, ५।५५,५७:५८ च ६ ४ उ ११९,३६,४० ४२,४५,६९.१०३,१०,१०८,२१०११२, ११४,११६,१२८,१३६ .१. ११.२८, ८६१५५.१६८,४१४ सामित्त (स्वमित्व) २१३०,३१,४१,४६ ज १।४५,३।१८५,२०६,२२१:५११६ उ ५११० सामिय (बाक) ज३८१ सामुदानिय (नामुदानि १५७१७ सायं (सायं) सू २११ १२ १३६ सायावेदणिज्ज (रातवेदनीय) : २६११ सायावेयणिज्ज (जावेदनी ) प २३११४१ सार (मार) प ११७६ ज ११२६; २१६४,६६; ३।२,३,२४,३५ च ११३ उ ११०,२६,६६; ५११ सायर (सागर) मू १६।२२।२४ मारइयबलाहक (शारदिलाहक) प १७११२८ Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७६ सारंग (सारङ्ग) प १०५१ ज ३१३ सारकल्ला (सारण ) प १०४३।१ सारक्छ (र) सारखनिज २०४९, ५२, ५६ सारक्रिति ज २।१५६,१६१ सारवखमाण (संत) उ १५७,५०.८२, ८३ सारक्रिजमान (२०४२ सारविखत्ता ( संरक्ष्य ) ज २२४६ सारय ( शारद) ज ३।११७ सारस (सारस) १७६ २०१२ ५१५. सारहि (सारवि) ज ३०२५, १७८ सावि ( साध्य ) प २०६४।१० सारीर (शरीर ) प ३५१११३५१६,७ सारीरमानस (शारीरमानस ) प ३५६.७ साल (शाल ) प ११३५ १,११४३११, ११४८।१४,२४ २०/२०१८ सालवण ( सालम्बन) ज २९९ से १०१ सालभंजिया (सामना) सालवण ( शागवन ) ज २६ साला (दे० ) प १३५,३६,११४८।३३,३७ सालि (शालि ) प १२४५।१ ज २३३७३।११६६ ४११३७ १७८ सालिंगण (मन) यू २०१७ सालिपिट्टति (लिपि) १७१२८ सालिस च्छियामच्छ ( शालिसाक्षिकामत्स्य ) प १।५६ साय ( रासक) तू २०१७ १०३७५०३.२० १४३२१२० सामण ( श्रण) अ २१३६७।१०४.११४१२६ सू१०।१२४,१२६ ३४० साहरिज्जमाण (संहिता) व ४।१०७ हरितात्य ११५ सावइज्ज ( स्वापते ) ज २१२४,६४ साहस्तिय (सिक) तू १६।२३,२६ उ ३ ६१ 4 सावगम्भ (थादकधर्म) २४४५,७९, १०३. १०४६ साहस्ती २०३०३३,३५,४१,४२. ४० से ५६ ११४५ २९७४ से ७७.१०: ३।२२१४११७,१६,२०,११२,११२.१२६. १५०,१५११२.१५६:५१,५,६,१६,३६,४०, ४४४६४६५३,५६,६५.६७७५५, रावतेय (स्वपतेय) सावत्थी ( वस्ती) साक्य ( श्वापद) ज २१३६ सायय ( धावक ) अ ७२१४ साय (स्वाद) ११ सारंग-साहारणसरीर साविट्ठी (थाविष्ठी) ज ७१३७.१३८.१४१, १४७, १५०,१५४ १०७, ८, २०, २३, २५, २६ साविया (भाविका) ज ७२१४ सावंत (धावयत् ज ३११७८ सास (वास) २०४३ सास ( मस्य, शा ) ज ७ । ११२१४ साग (सत्यक, शस्यक ) प ११२०/२ सास (चाक) ज ३३३५ तासन (शासन) ज ३८१,१५१११२९ सासत ( शाश्वत) ३६ ९४ सास) २१६४,२३६४१२०, २२; ३६।६३. ६४,६४११ ज ११११,४७, ३।२२६; ४१२२,३४,५४,६४, १०२, १०७.११३.१५९. १६१७२०८ से २१० सिसमुहृत्य हस्तगत रागरागरा ज ३।११ सात ( शासत् ) ३।१७८ साह (साम) सा३१५१ साहट्टु (पहल) ज ३।१२३१।२२ (साहर (ह) स२६५३२६,३६६ २०६९ १६३५ ३२६ से ११,२१ ४७,१३३५।२१,५८ साहरति ज २६६; ५११५,७०,६८, ११० स ज २६५,६७, १०६५।१४,८९ साहूगहि ज २६६ १०५ १०५१०११४ से १७२१.२३ उ ३४९.१२,२५,६० १५६, १६९, ४१५: ५।१० ताहारण (सत्वार) ४६५४५४६० महारणशरीर (साधा १३२.४० Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणसरीरणाम-सिझणया १०७७ २७४।६।१६ सिंधुआवत्तणकूड (सिंधुआवर्तनकूट) ज ४।३७ सिंधुकुंड (सिन्धुकुण्ड) ज ११५१,४११७४,१७५ सिंधुकूड (सिन्धुकूट) ज ४।४४ सिंधुगम (सिन्धुगम) ज ३।६४,१५१ सिंधुदेवी (सिन्धुदेवी) ज ३।५१,५२,२४,५६,५७, ५८ साहारणसरीरणाम (साधारणशरीरनामन्) प२३१३८,१२१ साहाविय (स्वाभाविक) ज ५१५५ साहि (कथय) साज्जिः प१७।१२६ साहिज्जति प १७४१२६ साहिज्जति प १७११२६ साहिय (साधिक) प ४।२४० ज २१६६३७९, ११६,११८,७११६४ साहीय (साधिक) प २१६४१८ साहु (साधु) चं ११२ साहेत्ता (साधला ) ३१५१ सिउंढि (दे०) प ११४८।१ सिंग (पृङ्ग) ज ३।१०६५/६३७१७८ सिंगरंग (शृंगाग्र) ज ३।२४ सिंगबेर (शृंगबर) प ११४८।२; १७६१३१ सिंगबेरचुण्य (शृंगवेरचूर्ण) प १११७६ १७.१३१ सिंगभूत (शृंगभूत) ज ३३१८६ सिंगभूय (शृंगभूत) ज ३१२१७ सिंगमाल (शृंगमाल) ज २१८ सिंगार (शृंगार) प ३४।१६,२१ ज २११५ सू२०१७ सिंगारागार (शृंगारागार) ज ३११३८ सिगिरिड (गिरीट) १५१११ सिंघाडग (शृंगाटक) प १४८।६ ज २१६५; ३॥१८५,२१२,२१३,५७२,७३ उ श६८ सिंघाडय (दे०) २०१२ राहु का नाम सिंघाण (सिंघाण किंधाण) प ११८४ सिंदुवार (सिन्दुवार) प १३४,११३८।१ ज २।१०३१३५ सिंदुवारवरमल्लदाम (मिन्दुवारवरात्यदामन्) प १७:१२८ सिंदूर (सि दूर) ३१३५ सिंधु (सिन्धु) ज१८.२०,४८,२।१३१,१३६, १३४,३११,५१,५२. ५ ०७६,२८.९६६ १११,११३,१२८,४१३७.१६८,१०४ सिंधुदीप (सिन्धुद्वीप) ज ४।३७ सिंधुप्पवायकुंड (सिन्धुप्रपातकुण्ड) ज ४।३७ सिंधुसागरंत (सिन्धुसागरान्त) ज ३।८१ सिंधुसोवीर (सिन्धुसौवीर) प ११६३।४ सिभिय (ग्लैष्मिक) उ ३।११२,१२८ लिहल (सिंहल) प ११८६ सिंहलय (सिंहलक) ज ३८१ सिंहली (सिंहली) ज ३१११११ सिंहासण (सिंहासन) ज ११४४ सिक्खा (शिक्षः) प १११४६ उ श२० सिक्खिय (शिक्षित) ज ३११७८७१७८ भू २०१६॥३,५ सिग्घ (शीघ्र) ज ६०,३१२६,३६,४७,५६,६४, ७२,१०६,११३,१३३,१३८,१४५५१५,२८, ४४,४७,६७ म २३,१५१.३७; ११८ सिग्घगइ (शीघ्रगति) ज ७।१८० चं २।४४।२ सू १६।४,१८२ सिग्घमामि (शीघ्रगामिन्) ज ३।३५,१०० शिग्धया (शीघ्रता) ज ३.१०६ इसिस (सिध्) शिज्झइ प ३६५ सिभई १२।६७४२,३ सिझन प ६१५७,६७,११० जे ११२२,५०,२१५८,१२३.१२८,१४८; ४११०१,१७३ मिति प ३६३६२ सिज्मदिइ उ१५१४१:२१२०,३।१८।२६; १४३ सिमित ज २११५१,१५७ २२:४२ जाए २०१८ या किनार Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७८ सिणेहभाव-सिरिकंदलग सिणेहभाव (स्नेहभाव) ज २११४३ लित (सित) १२१३१ सित्त (लिस्ट) ज२१६५,३७,११६,५१५७ सिद्ध (सिद्ध) प ११११,१११३:२१६४,२१६४१२ से ४,६ से १२,१४,१६,१८,२० से २२:३१३७ से ३६.१८३,५॥३,६।४४,४६.५७,५६,६७,६६; १११३६,१२१७,१०,२०:१६।२५,३०,३२,३३, ३५.३७:१८१७:१६५२१२१८,२८११०७,११०, २१,११४.१२०,१२१,१२४.१२५.१३१, १३८,१३९.१८१,३११६,३२।६३६४६३,६४ ज२।१,२१८२,८८,८९,३२२५,४।१६२१, १७२५१,२०४।१,२१०३१,२६३११,२६६।१; ५।५७।११७ चं १२ नियहि (सिद्धावां कन्) ११८१६८,१०० सिद्धति (सिद्ध) ५६५ हित्य (सिद्धार्थ) उ ५।२६,२८ लिय (सहायक) ज ३१२०६५।५५,५६ सिबिया (शिबिका) ज २।१०१,१०२ सिब्भ (श्लेष्मन्) ज २११३३ सिय (स्यात) ५ ११४८,५१५,१०,२०.३०.३२, १०२,१२६.१३१,१३२,१३४,१६०,१७७, १६३,२१४,२२८,६११५,११६:१०१७ से १३,१७,१६,२०,३१,३२,३४,३६,३८,४०, ४२,४४,४६,४८,५०,५२,१११२,३,१२।६, २४,३२,३३,१५१५३,५४,६१,१२२,१२३; १७।१४,६५,१०२ से १०४,११६,१५०,१५२; २१४९५,९८ से १००:२२१२६,२९,३०,३२, ३३,३८ से ४०,४२,५० से ५२,६७ से ६६, ७१,७४,९१,६३,९७,६६२८१३१,१०६, १११,११५,११७,१२०,१२२.१२५.१२८, १२६:१३२,१४३,३६।१४,१७,१६,२२,२३, २५,२७,३३,३४,६२,६३,७७ ज ७/२०८,२०६ सिया (स्पात्) ज ५७ सियाल (शृगाल) प ११६६१११२१ ज २१३६, द्विपिया ( मियिका) प१७११३५ निर ) ११७ सू १७८६१ सिद्धायन (सिन्दा तनफट) ज १५३४ से ३६, ४१,४८४,४५,४८.७६.६६,१०५,१०६, १३६.१६६.१६६ १८६.१६५.१९८२१०, २११,२३५.२३७,२४२,२६३ तिहासिक ज ४१४७.१६३,१५० २१६,२१७:२२०,२३५.२३७.२४२ सिद्धाययण (मिद्धा तनकट) में ४।२१२,२७५ सिद्धालय (सिद्धा ) प २१६४ सिद्धि (सिदि) प २१५४,३६।८२ सिद्धिगइ (सिलिन) श२१ सिप्प (शिल्प) ल २१६४;३:१६७१७,५१५,७ शिकारियािर्म) प ११६२,६७ सिपिया (सिलिक) ६१।४२ लिप्पिसंदुर (सिंपुट) ११४६ सियाली (शृगाली) ८१११२३ सिर (शिरस) ज २११३३,१८०,२२१ सिरय (शिरस्क), २।४६ ज २।१५।६,१८, ९३,१८०,२२२ सिरसावत्त (शिरसावर्त) ज ३१५.६,८,१२,१६, २६,३६,४७,५३,५६.६२.६४,७०,७२,७४, ७७,८४,८८,९०,१००,११४,१२६,१३३, १३८,१४२,१४५.१५१,१५७,२६५,१८१, १८६,२०५,२०६,२०६,५१५,२१,४६,५८ उ ११३६,४५,५५,५८,८०,८३.६६,१०७, १०८,११६,११८,१२२:३।१०६,१३८,४११५; ५।१७ सिरसिज (शिरसिज) ज ३११३८ सिरि (श्री) ज २।८,९,१५, ४१२।१,४।१७ से २०, २२,५१११११,५॥३८७।२१३ सिरिकता (श्रीकान्ता) ज ४११५५२,२२४१ लिरिकंदलग (श्रीशन्दलक) ११६३ Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिकूड-मीमाविक्वंभ सिरिकूट (श्रीकट ) ज ४/४४ तिरिघर (श्रीह) ज ३।२२० सिरिचंदा (श्रीचन्द्रा) ज१५५,२२४१ सिरिजिलया (धीन या ज४१२२४.१ सिरियाम (श्रीदन) १६७ शिरिदेसि (धौलवीर उ ४.२४ शिरिदेवी (थीबी) उ ४१५ सिरिनिलया (श्री नया) ज ४१५५१२ तिरिमहिया (श्रीता ) ४११५५।२,२२४११ सिरिवडिरय ( वतसक) ४५ लिरिद य (मग उ४:२४ सिरिबस्छ (श्री स.) ज ३१३, २६,११६,१७८; ४॥२८ लिरियच्छ श्रीस:) 11४६।३ सिरिसंवा श्री गु!) ११२०१४ मू १०८८१ सिरिहिरिधिविजय (श्रीही तिकीति सिस्सिणीभिक्खा (शिष्याभिक्षा) उ ४।१६ सिहंडि (विखण्डन ) ज ३११७८ सिहर (शिखर) प २४८ ज ११३७, ३१२४; ४१४६५१४३ उ ५५ सिहरतल (शिखरतन) ज ११३२,३३,४१२४१ सिहरि ( ख ) प २११:१६।३० ज ३११८६, २१७:४।२७१,२७३,२७४,२७७ सिकिड (शिखरिकूट) ज ४।२७५ सिहरिसंठाणसंठिय (चिखरि संस्थान रिया) ज ४१२७६ सिहि (शिखिन) जे २०१३७ सीउण्ह (शीतोष्ण) ज २१३३,३११३८ सीओदयवायकुंड (पीतादापातकुण्ड) ज ४१६२ सीओ (शीतादा) ज ४१९३,६४ सीओदाकूड (शीतांदाकूट) ज ८१६६ सीत (गीत) प ११५,७ से ६५७,२११,२१२, २१४,२१५,२१८,२२० से २२६६।१ से ११; २८।१०५३४११६३५।११ तीतजोणिय शांतनिक) ६।१२ तोतल (शीन) २०१२ सोवा (सीता) २१६४ सू २३ किरीस ( १६६ तिरीब 24t सिलागि २ १ २२८,६४, सातोदय (सीतादया) । १२३ सोलन ३१,२६८०११० सीतोदा (सीतादा) ज ४१६१,६२,६५,५१०११, २१२२१५,२२६ रा २३१६।२२ सातोपामुह सिंडीतापामुखममण्ड) ज ४२१२ सोसजोगिय (मीण नि:) : १२ सिव २०,२१४१ १६८।१२, सीतोलप (शीतोष्ण) प ६१११३५१ से ३ २०६५ २१,५८११४१. १०१२८१ सोय (सीधु) उ ११३८,४६,७४ १४१४४३।११,१५१ खीभर (शीर) ६G सिसिर ११.१ १०१२८१ सीकर (लोक) २५६,६० सदेवधर (पीकर) १९६० सिस्सि .१६ तिमि .. .. Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८० सीय-सुइभूय सोहकण (सिंहकर्ण) प १८६ सोहकण्णी (सिंहकर्णी ) प ११४८।१ सीहगइ (शीघ्रगति) ज ७४१६८२ सोहघोस (सिंहघोष) ज २१६ सीहणाद (सिंहनाद) सू १६।२३ सीहणाय (सिंहनाद) ज ३१२२,३१,३६,७८,६३, ६६,१०६,१६३,१८०,५२,५७,७१५५,१७८ सीय (गीत) प१४ से ६५१५,१२६,१५४, २१०,२१३ से २१५,२१७ से २१६,२२१; १११५६,६०१७।१३८, २८।२०,३२,६६, १०५,३५१२,३ ज २११३१,१३४ उ ३११२८ सोयउरय (दे०) प ११३७५३ सीयल (शीतल) ज २२०;४१३,२५ सीया (शिक्षिका) ज २११२,३३,६४,६५,१०३,१०४ उ ३.११०१११:४११६,१८ सीया (सीता) ज १।१६४१११०,१४१,१४३, १६२२१,१६७,१६६.१७२,१७४,१७७,१७८, १८०,१८१,१८३ से १८५,१८७,१८६ से १६१,१६३,१९६,१६७,१६६ से २०२,२१२, २१५,२२६,२२७,२३२,२३३,२६२,२६३११; ५.१०११६।२२,७।२२ सीयामहाणई (शीतामहानदी) ज ४२०० सीयामुहवण (शीतामुखवन) ज ४११६६ से २०२ सीयालोस (सप्तचत्वारिंशत) ज ७.२० मू ४।१० सीयोया (गीदा ) ज ४१२०६,२०७,२०८,२१२, २२८ सीयोयाग्रह (सीतादामुख) ज ४।२१२ सोल (शी १२०१७,१८,३४ ज ३1३; ५:५८ सीवली (श्रीपणी) प ११३५।३ सीस (सी) उर३।११४,४।२१ सीस.पहेलियंग (भीर्यनलिकाङ्ग) ज २।४ सीसपहेलिया (शीय प्रहेलिका) ज २१४ सू ८१ सीसय (सीरक) प १३२०११ सोसवा (शिवाका) प ११३५६३ सोदिया (शोमवेदना) ज २।४३ सोसाखंड (सीसखण्ड)११/७४ सीसिणिभिक्खा (शिष्याभिक्षा) उ ३।११२ सीह (सिंह) १९६६२१३०,४६,६८०११; १११२१ ज २११५,३६,१३६ उ ११३३,२१८ ५११३,१५ सीह (शोध) ज २१३६,१३६,३१२६,३६,४७,५६, ६४,७२,११३,१३३,१३८,१४५:५१५,४४,४७, ६७ सोहणिसाइ (सिहनिषादिन) ज ७।१३३३३ सीहणीसाइसंठिय (सिहनिपादिसंस्थित) सू १०१५४ सोहनाय (सिंहनाद) उ १११३८ सीहपुरा (सिंहपुरा) ज ४१२१२,२१२२ सोहमुह (सिंहमुख) प १८६ सीहरूवधारि (मिहरूपधारिन् ) ज ७११७८ सू१८।१४ से १७ सोहस्सर (सिंहस्वर) ज २०१६ सीहसीया (मिहस्रोता,शीघ्रस्रोता) ज ४।२१२ सीहासण (सिंहासन) ज ३१३,६,१२,२६,२८,३६, ४१,४७,४६,५८.६६,७४,१३३,१४५ १४७, १७८,१८८,१९७,२०४,२१४,२१६,२२२, ४१५०,५३,५६,११२,११६,१२३,१३५,१४७, १५५,२२३।१,२२४११,२४८,२५० से २५२; ५:१३,१४,१८,२१,३६,३६ से ४१,४७,५०, ५५,६० सू १८।२३ उ ११४९,३१६,२५,६०, ११,१३६,१५६:४१५ सीहासपहस्थगय (हस्ता तसिंहासन) ज ३।११ सोही (सिही) प १११२३ सु (सु) ज १११३,३७,२।६,१२,१५,३१६,१२,२८, ३५,४१,४६,५८,६६,७४,११७,११६,१३८, १७८,२२२,४।१३,१०२,१२८,१४६,१५७, १७८,१८०,१८१,१८२,२०२,२०४,२११; ५।५,७,६,५३,७:१२० सुइ (शुचि) ११५,३।६,२२२१२६:५२५७ सुइग (शुचिक) ज २६५,३।७ सुइभूय (शुचीभूत) ज ३.८२ उ ३१५१,५६ १. वनस्पति कोश में सिंहपर्णी शब्द मिलता है। Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुईभूय-मुजाय १०६१ सुईभूय (शुचीभूत) उ ४११६ सुउत्तार (सूत्तार) ज ४१३,२५ सुंकलितण (शकरीतण) ५११४२१२ सुंगा (शौङ्का') ज ७१३२॥३ सुंगायण (शौकायन) स १०।११४ सुंठ (शुण्ठी) प ११४२।२,११४८।४६ सुंदर (सुन्दर) ज २१५; ३३१३८,७।१७८ सुंदरी (सुन्दरी) ज २१५,७५ सुंब (सुम्ब) प१४१।१ संसुमार (झुंशुमार,शिशुमार) प ११५५,६० सुकच्छ (सुकच्छ) ज ४१७८,१८१ से १८३ सुकण्ह (सुकृष्ण) उ १७ सुकत (सुकृत) प २३१,४१ सुकय (सुकृत) ५ २१३१,४१ ज ११३७, ३।७,६, १८,२४,३५,६३,१०६,१७९,१८०,२२२; ७.१७८ सुकरण (सुकरण) ज ३१३५ सुकाल (सुकाल) १७,१४६,१४७,२३१८,१६ सुकाली (सुकाली) उ १११४५,१४६; २।१७,१८ सुकुमाल (सुकुमार) ज २१५, ३।३,६,१०६, २०६,२११,२२२ उ १६१४६ सुकुल (सुकुल) ज ३.१०६ सुकुसल (सूकुशल) ज ३१११६ सुक्क (शुक्र) १८४,१३५:२१४८,६३ सू२०१८, २०१८।४ उ ३।२।१,६।२५,८३,८६ सुक्क (मुका) १३१६ सुक्क (शुल्क) उ ३३१२८ सुकरु (शुष्क) उ ३।३५ से ३७,४०,४३ सुक्कपक्ख (शुक्ल क्ष) ज ७।११५,१२५ मू १६।२२।१८ सुक्कछिवाडिया (दे०) प १७।१२८ सुकलेस (शुक्ल लश्य) प १७१५८,१०४,१६८%) २३।२०० सुक्कलेसट्ठाण (शुक्रलेश्यास्थान) प १७६१४६ सुक्कलेसा (शुक्ल ने का) प १७१४७,१३६ १. शौङ्कायन गोत्रस्य संक्षिप्त रूपम् । सुक्कलेस्स (शुक्ललेश्य) प ३९६१३११८,२०, १७:३५,५६,५८,६३ से ६६,७१,७३,७६ से ८१,८३,८४,८६,८६,१०४,११३,१६७; १८७४,२३१२०१२८।१२३ सुक्कलेस्सट्ठाण (शुक्ललेश्यास्थान) प १७।१४६ सुक्कलेस्सा (शुक्ललेश्या) प १६।४६,५०, १७१३५, ३६,३८,४१,४३,५४,११४,११७ से १२२, १२६,१३५,१३७,१४० से १४५,१४७,१५३ से १६१ सुक्कलेस्सापरिणाम (शुवललेश्यापरिणाम) प १३१६ सुक्कडिसय (शुक्रावतंसक) उ ३१२५,५३ सुक्किल (शुक्ल) प २४ से ६५।५,७,२०५; ११३५३,५४,१३।२६:२३।४७,१०१,१०६ १०६; २०१६,७,२६,३२,५३,६६ ज १११३, २१७,१६४,३।२४,३१,४१२६,११४ सू २०१२ सुक्किलपत्त (शुक्लपत्र) १११५१ सुक्किलमत्तिया (शुक्लमृत्तिका) प ११६ सुक्किलसुत्तय (शुक्लसूत्रक) प १७११६ सुक्किलय (शुक्लक) प १७१२६ सू २०१२ सुक्किल्ल (शुक्ल) प २८1५२ सुग (शुक) प १७६ सुगइगामि (सुगतिगामिन्) प १७११३८ सुगंध (सुगन्ध) प २१३०,३१,४१ ज २।१५,६५; ३७,१२,८८,२११:५७,५५ सू २०१७ उ ३।१३१ सुगंधि (सुगन्धिन् ) ज २१२ सुगंधिय (सुगन्धिक) प ११४६ सुगपत्त (शुकपत्र) ज ३।१०६ सुगूढ (सुगूढ) ज २०१५ सुघोसा (सुधोषा) ज ५।२२,२३,२४,४६ सुचक्क (सुचक्र) ज ३।३५ सुचरिय (सुचरित) ज २१७१ सुचिषण (सुचीर्ण) ज १११३,३०,३३,३६४१२ सुजाणु (सुजानु) ज २११५ सुजाय (सुजात) ज २।१४,१५,३११०६४।३,२५, १५७,७११७८ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८.२ सुजाया-सूपुट सुजाया (सुजाता) ज ४११५७।२ सदसण (सुदर्शन) प १६४, ३।३०,४१४६, सुजोइय (सुयोजित) ज ७१७८ १४७,१५०,१५७,१५६,२०८,२६०११ सुज्ञ (दे०) ४१३,२५ ७१२१३ ज २१६४; ३३०४१४७,१५०, सुठ्ठिय (सुस्थित) ज ७।१७८ १५६,२०८,२६०११७२१३ सू५१ उ ४७ सुम (शृ) सुणंतु ज ३।२४.१,२,३११३१।१,२ सुणह प २१६४।१८ सुणेइ प ११३६ सुदंसणभद्दसालवण (दर्शनभद्रशालवन) ज ५१५५ सुति प १५१३६,४० सुदंसणा ( दर्शन:) ज ४११५७।१,२ सुजग (शुनक) प११६६ ज २१३६,१३६ सुदिट्ठ (दृष्ट) ११०११३ सुगक्खत्ता (मुनक्षत्रा) ज ७११२०११ मू १०८८११ सुदुल्लह (सुदलं न) ज ३।११७११ सुममिय (सुनत) ज ७।१७८ सुणय (शुनक) प १११२१ सुद्ध (शुद्ध) प १७.११४१,१७।११६ सू २०१७ सुणिम्मिय (सुनिमित) ज २।१५ सुद्धदंत (शुद्धदन्त) ५ ११८६ सुणिरिक्खण (सुनिरीक्षण) ज ७४१७८ सुद्धप्पावेस (शुद्ध प्रवेशद्वात्मवेश,शुद्धप्रावेश्य) सुणिया (शुनिका) प ११:२३ ज ३८५ सू२०१७ उ १११६ सुणिवेसिय (सुनिवेशित) ज २०१२ सुद्धवाय (अनात) ५११२६ सुण्हा (स्नुषा) ज २२२७,६६ सुद्धागणि (शुद्धाग्नि) प १।२६ सुत (णाण) (श्रुतज्ञान) ५ २६।१६ सुद्धोदय (शुद्धोदक) ६ ११२३ ज ३।६,२२२ सुतअण्णाण (श्रुताज्ञान) प ५७,१२,२०,५६; सुधम्म (धर्म) ज ४।१४०३१ २६१६,१२,१७,१६,२० सुतअण्णाणि (श्रुताज्ञानिन्) प ३।१०२,१०३; सुधम्मा (धर्या) ४.१३१ सू १८/२३ सुनिउण ( पुण) ५८०,११७:३०/२३ , सुतणाण (श्रुतज्ञान) प ५७,२०,२४,४१,४६,६७, सुपा ( ४३,५५ सू १०।१२४११ १११:२६११७,२१,३०६,११ सुतणाणि (श्रुतज्ञानिन्) ५३।१०१,१०३; ५१४३, सुबइ यतिष्ठ. . .१५६.?? ८०,६५.११३,२८४१३६ सुपा दिसतष्ठिा) २११४,४।१४६; सुतिक्षण (सुतीक्ष्ण) ज २१६११ १४६ सुतोवउत्त (श्रुतोपयुक्त) १ २३।१६५,१६६ से २०१ सु स ) १२८ सुत्त (सूत्र) प १५१०११६,२११३५ सुत्त (सुप्त) ज ३।१७४ सुपरपात ( सालः) ज १११३,३०,३३,३६; सुत्त (श्रुत) प १:१०१६ ४॥२ सुत (रुइ) (सूत्ररुचि) प ११०१११ सुपरिनिठ्यि ( निप्ठित) उ ३१२५ सुत्तग (नुत्रक) ज ३१३६,१०६ सुपरइय (प्रजित) उ ३।८०,८१ सुत्तत्तय (सूत्रत्र) प ४१५५ सपसत्य (प्रशस्त) ज ३।११७ सुत्तरुइ (मूत्ररुचि) पश१०१६ सुपिकताछोयरस (पक सोदर) प १७११३४ सुत्तत्रेयालिय (शुक्रवत्रारिक) प १६६ सपोप ( १९२११ १०१८४३ सुत्तीनई (शुक्तिाती प११९३४ Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुप्पइण्णा-मुरभि १०८३ सुप्पइण्णा (सुप्रकीर्णा) ज ५१ सुमिणपाठग (स्वप्नपाठक) उ ११३३ सुप्पबुद्धा (यूप्रवुद्धा) ज ४१५७११;५६१ सुमेहा (सुमेघा) ज४।२३८,६१ सुप्पभा (सुप्रभा) ज ७११७८ सुय (श्रुत) प ११११२,३,१५१०११६:१३।१० सुप्पमाण (नुप्रमाण) ज २०१५ चं १३ सुप्पमाणतर (प्रमाणतर) ज ४११०२ सुय (शुक) प १७।१२४ सुफुल्ल (फुल्ल) ज ३३१०० सुय (शुक) १ ११४२११ बालतण सुबद्ध (गुबद्ध) ज ११५, ७।१७८ सुयअण्णाण (श्रुत!ज्ञान) प ५१५,१०,१४,१६,१८, सुबहु (सुवहु) उ ३१५०,५५ ६३:२६।२,६,२१, ३०१२,६,६,११,१६,२१ सुभि (१) प १३।२७,३१; २३।१०६ सुयअण्णाणपरिणाम (श्रुताज्ञानपरिणाम) प १३३१० सुभिगंध (सुगन्ध) प ११४ से ६५५,७,२०५; सयअण्णाणि (श्रुताज्ञानिन्) प ५१६५,६६१३।१४, ११।५६,१७।१३७,२८।२६,३२,६६ १६,१७,१८।८३२८।१३७,३०११६ सुभ (शुभ) प २८११०५ ज १११३,३०,३३,३६; सुयक्खंध (श्रुतस्कन्ध) उ ५१४५ ३१२२३,४।२ सुयणाण (श्रुतज्ञान) प १२१०१८,५५,७८,६३; सिभ (शुभ) सोभंति सू१६।११ सोभिमुसु १६५ १७.११२,११३, २०१७,१८,३४,२६२,६, सोभिस्संति सू १९१ सोभेति ।। १६१ १२:३०१२,२१ सीभेनु सू १९११ सोभेस्संति सू १६॥३८ सुयमाणारिय (श्रुतज्ञानार्य) प ११६६ सुभंकर (शुभंकर) ज ३1८८ सुयणाणि (श्रुतज्ञानिन् ) प ३३१०१,१०३; १३।१४, सुभग (शुभग) ॥ १।४८१४४,११५० ज ४।३,२५; १७; १८।८० ; ३०११६,२३ ५६८,७१७८ सू २००४ सुयतोंड (शुकतोण्ड) ज ३३५ सुभगणाम (शुभगनामन्) प २३।३८,१२४ सुयनाणपरिणाम (श्रुतज्ञानपरिणाम) प १३16 सुभयत्त (शुभ त्व) प ३४१२० सुयधम्म (श्रुतधर्म) ५ १।१०१।१२ सुभगा (सुभगा) प १४४०१२ ज ४११६४,५३१११ सभणाम (शुमनामन्) प २३११६,३८,१२३ स्यपुच्छ (शुकपिच्छ) प १७।१२४ सुभद्द (अभद्र) उ १२ सुयाह (शुकमुख) ज ३।१८८ सुभद्दा (सुभद्रा) ज २१७७,३११३८,४१५७२ सुविट (शुभवृन्त) प ११५० उ ३६७,९८,१०१ से १२०,१४९२२ सुधिसिठ्ठया (श्रुतविशिष्टता) ज २३१२१ सुभय (शुभग) प ११४६ सविहीणया (श्रुतविहीनता) ज २३१२२ सुभय (शुभक) उ ५१५ सुयात (सुजात) ज ३११०६ सुभा (शुभा) ज ४।२०२२ सुर (सुर) ५ २०६४।१५, ३११६१ ज ३।११७ सुभोगा (मुभोगा) ज ४११६४५.११ सुरइय (सुरचित) प २१४१ सुमणवाम (रामनोदामन्) ज ३।२११,५२५५,५८ सुरट्ठ (सौराष्ट्र ) प ११६३।३ सुमणसा (गुमनस्) प ११४०१३ मालतीपुष्पलता सुरत्त (सुरक्त) ज ७१७८ सुमणा (गमनन्) ज ४११५७१२,२०३ सुरप्पिय (मुरप्रिय) उ ५७,८ सुमहग्ध (मभहाध्य) ज ३१६,२२२ सरभि (सुरभि) प २।३१,४१,२३।४८ ज २।१२, सुमहुर (धुर) उ ३१६८ १६,३७,६,३०,८,१०६,२०६,२११,५१५, सुमिण (स्वप्न) उ १८३३,२१८,५११३,२५,३१ ७,१४,२१,५६,५८,७१७८ उ३११३१ Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५४ मुरम्म-सुसाहय सुरम्म (सुरम्य) ज २११२,४।१३ सू २०१७ सवण्णजहिया (सुवर्णयथिका) ५१७११२७ सुरवर (सुरवर) ज ५७ पीलीजूही सुरवरिंद (सुरवरेन्द्र) ज ३।१०६ सुवण्णमय (स्वर्णमय) ज ४१२६,५३५५. सुरहि (सुरभि) प २३० ज ३।६,१२,३५,८८, सुवग्ण (वासा) (मुवर्ण वर्षा ) ज ५।५७ २२१,२२२ सुवर्णमिप्पि' (गुवर्णशुक्ति) प १७१२७ सुरा (सरा) उ ११३४,४६,७४ सुण्णिद (सपणे द्र) २१३८ सुरादेवी (सुरादेवी) ज ४।४४,२७५,५।१०।१ सुवप्प (गुरप्र) ज ४।२१२,२१२२३ उ४१२।१ सुवयण (सुवचन) उ १।१७ सुरिंद (गुरेन्द्र) प २५० ज २६१, ३।३५:५।१८, सुविण (स्वप्न) उ ११३३५१२५ २१,४८,५२ सविभत्त (मविभक्त) ज ११३७, २।१४,१५, ३।३ सुरूया (सरूपा) ज ५:१३ सू २०१७ सुरूव (गुरूप) प २।३०,३१,४१,४५,४५११,४८ सुविरइय (सविरचित) ज २११५, ३१२४,४।१३ ज ३।१०६,१३८,४१२६ सू२०१४ उ ११२, सू २०१७ १३,३१,५३,७८,६५,५२५,२२ सुव्वत (मुद्रत) सू २०१८ सुलद्ध (सुलब्ध) उ १।३४;३।६८,१०१,१३१ सुब्वय (सूबत) सू २०१८।८ सुलस (मुलस) ज ४१६४,२०७ सुन्वया (मुक्ता) उ ३१६६,१००,१०६ से १०८, सुलित्त (मलिप्त) उ ३११३०,१३१,१३४ १११ से ११३,११५,११६,११५.१३२,१३३, सुवरगु (सुवल्गु) उ ४१२१२,२१२।३ १३६,१४१ से १४३,१४५,१४६,१४८,१५० सुवच्छ (मुवत्स) प २।४७।२ ज ४।२०२।१ सुसंगोविय (सुसङ्गोपित) उ ३।१२८ सुवच्छा (सुयत्सा) ज ४।२०४,२३८:५।६।१ सुसंठिय (मुसंस्थित) ज ७१७८ सवण्ण (मपर्ण) प २१३०११,४०1१,८,१०:५१३ ससंपरिहिय (संपरिहित) उ ३.१२८ ज ३।२४।१,२,१३०१,२ सुसंवुय (मुगवृत) ज ३६,२२२ सुक्ष्ण (सवर्ण) प १२०११ ज २।२४,६४,६६; सुसज्ज (सज्ज) ज ५४३ ३।६,२०,३३,५४,६३,७१,८४,९५,१०६, सुसद्द (शब्द) ज ७१७८ ११७,१३७,१४३,१५६,१६७/८,१८२,१८४, सुसमण (नशमन) ज २१५३,१६२ २२२:४१३,२५,२६,५१३८,५२,५५,६७,६८ सुसमदुस्समा (मुपमदुप्पा ) ज २।२,३,६,७,५४,५६ उ ३।४० सुसमससमा (गुषमापना) ज २२,३,६,७,५२ सुवण्णकुमार (भुषणकुमार) ५ १११३१,२।३७ से १६१,१६३,१६४,४।१०६ ४०,४१४६६१८ सुसमा (मुषमा) जरा२,३,६,५१,५२,१६०,१६१ सुवण्णकुमारराय (सुपर्णकुमारराज) प २।३७ से ४१८३ ३६ सुसमाहिय (मसमाहित) ज ३१३५ सुवण्णकुमारिद (सुपर्णकुमारेन्द्र) प २१३७,३६ सुसवण (सुश्रवण) ज २११५ सुवण्णकुमारी (मार्णकुमारी) प ४।५२ सुसारखिय (सुसंरक्षित) उ ३.१२८ सुवष्णकूड (मृवर्ण कूट) ज ४।२७५ सुसाहय (समहन] ज२१५ सुवष्णकूला (सुवर्णकला) ज ४१२७२,२७४,२७५; । ६२० १ हे० २११३८ सिणि (शुक्ति) Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुसिद्धि-सूर सुसिणिद्ध (मस्निग्ध ) ज२।१५ सुसिलिट्ठ (सुदिलष्ट) ज ११३७, ३६, १२, १७८, २२२४।१२८५॥४३७३१७८ सुसीमा (सीमा) ज४।२०२२ सुसीस ( सुशिष्य ) ज ३११०९ सुम (सूक्ष्म) २३, ६, ६, १२, १५,३१,३।१२, ६१ से ७१, ५५ से ६५,१११,१८३, ४।५६ से ६१,६८,७५,८२, ८३,६१,६१८३,१०२; १५/४३,४५,१८।११२, ३७ से ३६,११६; २११४,५, २३ से २७, ४०, ४१, ५०, २३।१२१; ३६ ७६,८१,१२ चं १३ ज २२६,७ १७८ सुहुमआउक्काइय ( सूक्ष्मकालिक ) ६१२१,२२ सुहुमणाम (सूक्ष्मनामन् ) प २३३८, ११८, १२० सुस्मा ( शुश्रूषमाण ) ज ११६ : २ ६० ; ३।२०५, सुहुमतेउक्काइय ( सूक्ष्मतैजस्कायिक ) प ११२४,२५ सुप्रवणस्सकाइ (सूक्ष्म वनस्पतिकायिक) सुसेण (सुषेण ) ज ३।७६ ७७,७८, ८०,८२ से ६१, १०६ से १११,१२८,१५१ से १५७,१७०,१७१ सुसर ( सुस्वर ) ज २।१५,५१५२,५३ २०६५/५८ उ १।१६ प ११३०,३१ सुह (सुख) प २२४८, २१६४११५,१६,२०,३५।१२, ३५/१०, ११:३६/१४/१ ज २११२,२०,७१; ३।६,८१,१६,१००,१०१,११७११, १२१,२२२; ४१२७,४८,१७७; ५/२६,२८ सू १६२२११३ उ १११०,१२६,१३३ सुह ( शुभ ) प २१४६ ज २।१२,२०:३६ सुहंसुह ( सुखं सुख) ज २११४६; ३११२१,१२७, २२४५।६७ उ ११२,५०,७५ सुहणामा ( शुभनामा ) ज ७।१२१ १०/६१ सुहता ( सुखता ) प २३।१५ सुहत ( सुखत्य) २८१२४, २६ सुहत्थि ( सुहस्तिन् ) ज ४१२२५।१,२२८ सुहास ( सुख पर्श, शुभल्पशं ) ज ५२८ सुहम्मा ( सुधर्मा ) ज २।१२०६४।१२०, १२१,१२६, १३८५११६,२२,२३, ५० ७ १८४, १८५ सू १८:२२, २३३६,६०,१५६,१६९; ४।५५११५.१६ सुहया ( सुखतः ) प २३/३० सुहलेसा (शुभवेश्या) ज ७५८ सुहस्सा (शुभ) सू १६४२२३० सुहा वह ( सुखावह ) ज ४२१२ सुहासण ( सुखासन ) ज ३।२८, ४१, ४९, ५८,६६, ७४, १३९,१४७. १८७,२१८ सुहि (सुखिन् ) प २६४१२० ; ३६।६४।१ ज २२६ सुहिरण्णयाकुसुम (सुहिरण्यका कुसुम ) १७।१२७ १०८५ सुहुमवाउक्काइय ( सूक्ष्मवायुकाधिक ) प ११२७,२८ सुहमसंपराय ( सूक्ष्मतराय) प १११२,११३, १२४, १२८; २३॥१९१ सुहमसंपरायचरित परिणाम (सूक्ष्म पराधचरित्रपरिणाम ) प १३।१२ सुहोतार ( सुखावतार ) ज ४१३, २५ सुहोदय (सुखोदक, शुभोदक) ज ३३९ २२२ सुहोवभोग (सुखोपभोग) ज २।१४५, १४६ सूइ (शुचि) ज ४२६ सूईमुह ( सूचीमुख ) प १४६ सुई (सूची) १५/२६; २१२५ सूणा ( मुना ) उ ११४४, ४५ सुमाल ( सुकुमार ) ज ३।२११५१५६७ १७८ १।११ से १३,३० से ३२,५३,७८,६५, १४५,२५,७,१६,३६७; ४१८५११२ सुमाला ( सुकुमारा) ज ३।२२१५१५८ सूर्य ( प ) ज ३१७८, १८६, १८८, २०६,२१०, २१६,२१६,२२१ सूर्यालि (दे० ) प १८९ सूर (यूर ) प १।१३३; २१२० से २७,४८; १५५५।३ ज १।२४; २६८ ३।३५, १५, ११७,१५६, १६७।१२,१८८, २०७,२१२; ५१५६७३१०२, १३५११, ४, १७७२,१७८१, १८०,१८१ १०३, १२३, १३४,१४३ से १४७, १५० से १६१,१६६ से १६६,१७२, Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८६ सूर-सेणावइ १५२,१६,२१४६,१६॥२२२३,२६,२०१७ उ ५१४१ सुरियगत (सूर्यगत) सू १११६ सूरियपडिहि (सूर्यप्रतिधि) र ६१३ सूरियाभ (मुभ) ज ५१५५ उ ३१७,६० से १२, १५६,५।२३ सूरियाभगम (मभिगम) ज १४० सूरियावत्त (रुधित) ज ४१२६०१२ सू ५१ सूरियावरण (सुर्याण) ज ४।२६०।२ ५१ सूरुग्गरण (मुरोद गामः) ज २११३४ सूरोद (युरोद) : १६६३५ सूल (शूल) ज ३१,१७८ सूलपाणि (सूलपाणि) प २१५१ ज २१६१५३४८, १७३;१११२ से ६१२२१६ से २८,१५३१,५, ७,११,१२,१३,१५,१८,२१,२४,२७,३०,३३, ३६,१८११,१८,१६,३४,३७,१६।११, १६२२१४,१०,१५,२१,२३,२४,२७ से ३०, ३२:१६६३५,२०१२,३,५,६ उ २।१२ ३१२११,२१,४८,५५,६३,६७,७०,७३,१०६, ११८ सूर (शूर) ज ३१०३, ४१६४ सूरकंत (मूरकान्त) र १।२०१४ सुरकंतमणिणिस्सिय (तुरकान्तमणिनिथिन) प११२६ सूरणकंद (पूरणकन्द, शूरणकंद) प ११४८७ सूरत्थमण (नुरारतमयन) ज २११३४ सूरपण्णत्ति (गुरप्रज्ञप्ति) ज ७।१०१ सूरपब्दय (सूरपर्वत) ज ४।२१२ सूरप्पभा (सूरप्रभा) सू १८१२४ सूरमंडल (सूरमण्डल) ज ७१२ से १६,१७७ सुरलेस्सा (सूरलेश) सू १६१३,४ सुरक्डंस (मूरावतंसक) सू १८१२४ सूरवर (सुरबार) सू १९३३५ सूरवरोभास (सूरव रावभास) सू १६६३५,३६ सूरवल्ली (रवल्ली) प १४०।३ सुरविमरण (गरविमान) प ४११८३ मे १८८ ज७।१७३,१७४,१७६,१८६,१६० सू १८१, ८,१०,१४,२९,३० सूरसेण (शूरसेन) प ११६३१५ सूरादेवीकूड (सूरादेवीकूट) ज ४१४४ सूराभिमुह (मुराभिमुख) उ ३१५० सूरिय (सूर्य) प २१४८ से ५१,६३ ज २१३१ ७१.१३,२० से ३१,३५ से ३६,५४,५८,६६, १०१,१५६ से १६८,१८०,१८१.१६७ चं २।२,५ सू ११६२,५,११११,१२,१४,१६ मे २४,२७,२११ से ३,३।१,२,४११,२,४,७,६, १०:५।१६।१७११, ८।१६।१ से ३,१०।६३ मे ७४,१३२,१३४,१७१:१५।१३ ; १७।१; १८१२,३,१८,१६,३७१६१,५२,१६११, सूसर (सुस्र ) ज २६१६,५१२२,२६ सूसरणाम (सुम्बरनामन्) २३१३८,१२५ सूसरणिम्घोष (सुस्वरनिर्घोप) ज २०१६ सूसरा (सुस्वरा) उ ३।७,६१ से (दे०) प ११० उ १११५, ३१३३ सेउ (सेतु) ज २०१२ सेज्जंस (श्रेयांस) ज २१७६ सु १०।२४११ सेज्जभंड (शय्याभाण्ड) उ ३।५१।१ सेज्जा (शया) प ३६१६१ उ ३३३६,४१२१ सेठ्ठि (धष्ठिन) ११६६४१ ज २२५, ३।६,१०, ७३,८६,१७८,१८६,१८८,२०६,२१०,२१६, २१६,२२१,२२२ उ श६२३१११,१३,१०१ सेडिय (दे०) प १४२११ सेडी (६०) प लोमपक्षी विशेष सेडि (अंगिरा३११२१८,१२,१६,२७,३१, ३०,३६ से ३८,२१६३ ज २११३३,२२०; ४।१७२,२००,५१३२६।६।१,१५ सेणगपट्ठसंठित (सेनकपृष्ठसंस्थित) मू४६३ सेणा (सेना) ज ३.१५.१७,२१,३१,३४,७७,७८, ८ ८,१०६,१५६,१७३,१७५,१७७,१८०, १६६ उ १११२३,१२७,१२८:५।१८ सेणावइ (सेनापति) प १६.४१ ज २११५,३१६, Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेणावइरयण-सेस १०८७ १०,७६ से ७८,८० से ६१,१०६ मे १११, १२८ १२८,१२६.१५१ से १५७,१७०,१७८,१८६, सेयणगसंठित (सेचनकर्म स्थित) गु ४।३ १५८,२०६,२१०,२१६.२१६.२२१,२२२ सेयणय (सेचनक) उ १६६ से १६,१०३,१११, उ ११६२,३।११,१००५१० सेणावइयण (सेना विर) ३५१७८,१८६, सेयता (श्वेततः) सू ४१ १८८,२०६,२१०,२१६२२०.२२६५।१६। सेयबंधुजीवय (श्वेत बन्धुजीवक) प १७।१२८ सेणारयणत (ना ) ५ २०१५८ सेयमाल (श्वेतमाल) ज २१८ सेणादच्च (। त्य) : २।३०,३१,४१,४६ सेयविया (श्वेतविका) प ११६३१६ १४: ; ३1१८५,२०६२२१५११८५०१० सेया (श्वेततः) चं ६ भू ११६११ सेणि (श्रेणि) :- ३.१२,१३,२८,२९,४१,४२,४६, सेयाल (एतकाल) प २८१२२,३४,३६,६८ ५.०,५८,५६,६६,६७,४,७५,१४७,१४८, सेयासोय (श्वेताशोक) प १७१२८ १६८,१६६,१७८,१८६,१८८,२०३.२१६, सेरियय (मैरे क) प ११३८११ २१६,२२१ सेरिया (सेरिका) ज २११०ः४।१६६ सेषिय (णि) ११०,१२,२६१ ३२,३४, सेरुतालवण (सेहतालवन) ज २१६ ३६ ४४,४३ से ४६,५७,५८,६१,३२,६५, सेल (शैल) प २११:१११२५ ६६,६८,७२ ७३,८२,८३,८६ से ६२,६५, सेलसिहर (शैव शिखर) ज २१८८ १६.१०३,१०६ से ११४,१४५,२६५,१७,२२, सेलु (शेलु) प ११३५११ ३१४,२१,२४,८६,१५५,१६८,४६४ सेलेसि (शैलेशी) प ३६१९२ सेण्ण (संख्य) ज ३।१५.२१,३१,३४,७७,७८,६१, सेलेसिपडिवण्णग (शैलेशीप्रतिपन्नक) प १११३६%3 ६५,१५६,१७३,१८५,१६६ २२१८ सेण्हा (श्लदण) १३५।३ सेल्लार (दे० कुन्तकार) प ११६७ भाला बनाने सेत (श्वेत): २४७१३,२१६४ ज ३११२,८८ वाला सेत (थे ) १०१८४४१ सेवणा (सेवना) ५१५१०१११३ सेक्सप्प ( प) १२० सेवाल (शवाल) प १३८१२,११४६,११४८११, सेय (श्वे) १४६१।१६,३८, ३.१८,३१. १६२ ज २०१० ३५,६३,१८२ ; ४१०.८१,११५,१२१ १२५. सेवालभक्खि (शवालभक्षिन) उ ३५० सेस (शेष) ५१।१०११११२१३२,३४,३६ से ४०, ५१ से ५४,५८,६०,६२,३।१८२,५१६४, सेवा ). १६४ १५२,१५४,२०५,२४४,६८१,८३,८४; सेय (य ): ३ १३:३८१ १२२११ १०।१४।६,१२१३८,१३।१५ से १८:१५।१८, उ ११. १४,६६.८६७६,६,१७,११६) १६,३४,७५,८२१७४२३,२५,२७,२६,३४, ३४८,५०,५५.१०६,११८ ३५,२०१८,५६,६०; २२१४५,५५,८०; सेयंकर ( २०१८,२०१८ २३१५६,१५६,१५६,१६३,१६१,१६३,१६६; सेयंस ( 1) ज ७:१४१ २४/८,६; २५।४:२८।२६,३८,८६,७४,१०१, सेपदणीर (बेशकीर १२८ १२३,१४५, ३०।१४:३२६।१:३४१२२ से मेया (सेचनक) १६६.१०२ से ११६.१२७; २४;३५१॥२,३६।३३,६७ से ६६,७१,७३ Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८८ ज ११४६ : २१५२, ८८, १६१ ३११५०, १५३, १५७,१६१,१८३; ४१३७,४१,५३,७०,९३, १०६,१४१,१४७,१५३,१५५,१५६,१६५, १७२,१७७, १८४, १८५,१६७ से १६१,२०३; ५१८,५१७११३५३१ सू ८ । १ ९ ३; १०१२५, १५२ से १६१,११।२ से ६:१२११६ से २८; १८१२४; १६।२२।२२१२४६ २६,२२; ३१७,४१२२,२८,५११६,४५ सेस (शेषक) २३।११० सेवई ( शेपनती) ज ५ ६ १ सेसि ( दोषित) ज ७।१४६ सेह (दे० ) प १।७९ सोइंदिय ( श्रोत्रेन्द्रिय) प १५१, २, ७, ८, ११ से १८, ४०; १५।५८ से ६७,६६,७०, १३३,१३४; २६/७१ उ ३।३३ सोइंदियत्त (श्रोत्रेन्द्रियत्व ) प २६१-४३४/२० सोइंदियपरिणाम ( श्रोत्रेन्द्रियपरिणाम ) प १३१४ सोंड (शौण्ड ) ज ७ १७८ सोंडमगर ( शौण्डमकर ) प ११५६ सोंडा ( शुण्डा) उ ११६७ सोक्ख ( सौख्य ) प २।६४।१४,१८.२२ सोक्खुपाय ( सौख्योत्पाद) सू २०१६/६ सोग (शांक) २३।३६,७७.१४५ ज २।१५,७०; ३।१०५ सोगंधिय ( सौगन्धिक) २ ११२०१४, ११४८६२४४ ज ३।१०; ४३३,२५; ५।५ सोच्चा ( श्रुत्वा ) ज ३१६ उ १।२१:३।१३; ४।१४:५१२० सोणि ( श्रोणि) ज २१५ सोणिय ( शोणित ) प १८४ ज ३३६ उ ११५६, ६१,६२,८४,८६ ८७ सोणीक ( श्रोणिक) ज ३ । १०६ १ सोत ( श्रोत्र ) प १५ ७७ सोत्तिय ( शौनिक ) प ११४६ सोत्तिय ( सौत्रिक ) प १६६ सेसय सोमणस्सिय सोत्थिय ( स्वस्तिक ) प २६४ ज २।१५;३३, ३२,१७८४१२८५३२ २०१८, २०१६१६ सोत्थियसाय (स्वस्तिकशाक ) प ११४४२ सोदामिणी ( सौदामिनी) ज ५११२ / सोभ (शुभ) सोभति ज ७१ सोभते ज २ १५; _३।२४।३,३७११,४५३१,१३११३ सोभि ज ७१ सोभितिज ७ । १ सू १६।१ सोर्भेति सू १६।१ सोनु सु १६ १ सोभंत ( शोभमान) ज २११५. सोभग्ग (सौभाग्य) ज ५३६८,७० सोभण ( शोभन ) ज ३।२०६ सोभमाण ( शोभमान) ज ३।२४।३,३७११,४५१, १०६,१३११३ सोभयंत ( शोभमान) ज ७ १७८ सोभा (शोभा) ज ७१ सोभावंत ( शोभयमान) ज ३११७८ सोभिय ( शोभित ) ज ३।३५,२२१७।१७८ सोमेंत ( शोभमान) ज ३।१७८ सोम (सोम) ज ४ २०३७ १३०, १८६१२ सू २०१८, २०१८१२ उ ३१५१,१५१,१५२ सोम (सौम्य ) ज २।१५ सू २०१४ उ ५ ५,२२ सोमंगलक (सौमङ्गलक ) प ११४६ सोम (काइय) (सोकायिक) ज १।३१ सोमणस ( सौमनस) ज ४।२०३, २०४११,२०५, २०८, २१५५४६१३,५५ ७१११७ २ सू १०८६।२ सोमणसवक्वार ( सौमनसदक्षस्कार ) ज ४।२०५ सोमणसवण ( सौमनसवन) ज ४।२१४,२४०, २४१,२४३ सोमणसा (सौमनस्या) ज ४ । १५७।१; ७११२०११ सू १०१६८११ सोमणस्य (सौमन स्थित, सोमनस्थिक) ज ३।५, ६, ८, १५, १६,३१,५३,६२,७०,७७,८४,६१, १०७,११४,१४२, १६५,१७३, १८१,१८, १९६,२१३४ २०३५ २१,२७ उ ११२१, ४२; ३।१२६ Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमदंसण-हंभो १०८६ सोवस्थिय (सौवस्तिक) ज ४।२१०११,५३२ सू २०१८,२०१८६ सोवाण (सोपान) ज ३११६५,२०४ से २०६, २१४ से २१६:४१४,५,२६,२७,८६,११८, १२८,१४४,२४६:५१३०,४१,४२ सोस (शोष) ज २१४३ सोहंत (शोभमान) प २१ सोहग (सौभाग्य) प ३४१२० ज २१६५;३।१८६, सोमदंसण (सौम्यदर्शन) ज २१६८ सोमदेवया (सोमदेवता) सू१०१८३ सोमया (सोमता) ज ३३ सोमरूव (सौम्य रूप) उ ५२२ सोमा (सोमा) उ ३.१२६ से १३१,१३४ से १४४, १४७,१४८,१५० सोमाण (सोवान) ज ५१४१,४२,४४,४५ सोमिल (सोमिल) उ ३।२८ से ३२,३५ से ४५, ४७,४८,५० से ६५,६७ से ८३ सोय (श्रोतस) ज २११३४ सोय (शोक) उ ११२३,९१,९३ सोयमाण (शोचत) ७११६२ सोयविष्णाणावरण (अंत्रविज्ञानावरण) य २३।१३ सोयामणी (सौदामिनी) ज ३१३५ सोयावरण (श्रोत्रावर.पा) प २३११३ सोरिक (सौरिक) प ११६३।२ सोल (पोडश) प १०११४।४ से ६ ज ४.१४२ सोल (षोडशन् ) सू १९३१६ सोलस (पोडशन्) प २।२५ ज १७ मू १११४ उ ३३१२,१२६,५१० सोलसअंगुलजंघाक (पोडशांगुलजङ्घाक) ___ ज ३११०६ सोलसग (षोडशक) प २१२७११,२ सोलसम (घोडश) सू १२११७ मोलसमंडलचारि (पोडशमण्डलचारिन्) सू १३१५ सोलसविह (षोडशविध) प ११।८६,२३।३५ सोला (षोडशन्) सू १९१६ सोल्ल (दे० चक्य) उ ११३४,४०,४६,७४ सोल्लिय (दे० पक्व) उ ३१५० सोवक्कमाउय (सोगमायुष्क) १६११५,११६ सोचिय (सोपचित) ज २१७१ सोवच्छिय (सौवस्तिक) प ११५० मोवणिय (सौवणिक) ज ३११३५,२०६:४११३; सोहम्म (सौधर्म) प १११३५, २६४६ से ५२,५८, ६३,३।२६,१८३,४।२१३ से २२४;६।५६,६५, ८५,६५,१११:१०१२,३,१५१८७;२०१६१; २११६१,७०,६०,२८७५,३०।२६,३४११६, १८ ज ५।१८,२४,२५,४४ उ २।१२,२२, ३।६०,१२०,१५६,१६१:४१५,२४,२८,५१४१ सोहम्मकाप (सौधर्मकल्प) प६।२७ सोहम्मकल्पवइ (सौधर्मकल्पपति) ज ५।२६ सोहम्मकप्पवासि (सौधर्मकल्पवासिन) ज १९० ५।१६,२६,४३ सोहम्मग (सौधर्मज) प २१५०,५१,७८,१५१६, १०८,११२,१२५,२०।४६,३३११६,२४ ज १४६ सोहम्मगकप्पवासि (सौधर्मककल्पवासिन) ५ २१५० सोहम्मवडेंसय (सौधर्मावतंसक) प २१५६ सोहम्मव.सय (सौधर्मावतंसक) प २१५०,५४ ज ५१८ सोहा (शोभा) ज ३१६,२२२ सोहिय (शोभित) ज २२१२ हंत (हन्त) ज २२२४.२७,२६,३४ से ३७,४१,६४, ६६४१२७३,५४६८ से ७०७३६,३७,१०१ हंता (हन्त) ५ ११११,१५१४३:१७।१६६,२०११०, २२,२८३ उ ५५३२ हंदि (दे०) ज ३।२४।११,३१११,५।२७,७२,७३ हंभो (दे०) उ१।११५,११६, ३१५८,६०,३६,७६ Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६० हंस ( हंस ) प ११२० १४, ७९ ज २११२, १५ उ५१५ हंसगम्भ ( हंसगर्भ ) ज ५५ हंसण ( हंसलक्षण ) जराEE हंसस्सर ( हंसस्वर ) ज २।१६; ५/५२ हक्कार ( हाकार ) ज २१६० √ हक्कार ( आ + कारय् ) हक्कारेंति ज५।५७ हट्ठ ( हृप्ट ) ज २४, १४६, ३।५, ६, ८, १३, १५, १६, २६,३१,४२, ५०, ५२, ५३, ५६,६१,६२,६७, ६६,७०,७५,८४,६१,१००, ११४, १३७, १४१, १४२,१४८,१५०,१६५.१६६,१७३, १८१, १८६,१६२,१६६,२०८, २१३५१५, १५, २१, २३, २७ से २६,४१,५५,५७,७० १ २१, ४२,४५,१०८,३।१३,१०१, १०३, ११३,१३४, १३६,१४७,१६०, ४।११,१४, २०:५।१५,३८ हडप्पाह ( 'हडप्प' ग्राह) ज ३ । १७८ हढ ( हठ ) प १४६, ११४८१६, ११६२ हणमाण (घ्नत्) ३११३० हणुगा (हनुका) ज२११५ हत्थ (हस्त ) प २३०, ३१, ४१, ४१ ज २२६५ ; ३१६,२४१४,३७१२, ४५१२, १०६, १३११४, १८६, २०४५।२१३७ १२८,१२६११,१३३।२,१३६, १४०,१४,१६४ सू १०१२ से ६,१६,२३, ४६,६२,७१,७५,८३,१११,१२०,१३१,१३२, १५६; १२१२४ उ ११८८८६ ३१५१,५६,६८; ४।२१ से २३ हत्थग ( हस्तक ) ज ४ ३०५१५ हत्थाय ( हस्तगत ) ज ३३६,२१,३४, ८५ से ८७ ५८ से ११,५७ हस्थसंठिय] ( हस्तसंस्थित ) सू १०/४६ हरिथ ( हस्तिन ) प १२६५१११२१ ज २।३५, ६५,३३३१,६८,१६७,१७८ ; ५५७ उ १३१२१, १३१५/१८ हस्थिबंध ( हरितस्कन्ध ) ज ३१८,७८, १३, १८०, २१२,२१३ हत्यिणपुर ( हस्तिनापुर ) उ३।१७१ हरियणाउर ( हस्तिनापुर ) उ३।७१ हंस-हरिकं तदीव हत्थिणिया ( हस्तिनिका ) प १११२३ हत्थितावस ( हस्तितापस ) ३३१५० हत्थमुह ( हस्तिमुख ) प १८६ हत्थिरयण ( हस्तिरल) ज ३१५, १७,२०,३१,३३, ५४,६३,७१,७७, ६१, १२, १४३, १५१,१६६. १७३, १७५, १७७,१७८, १८२,१८३,१८६, १६६, २०२, २०४, २१४, २१७, २२० उ १।१२३० १३१ हत्थिरयणत्त (हरितरत्नल ) प २०१५.६ हरिथसोंड ( हस्तिशीण्ड ) प ११५० हृदमाण ( हदमान ) उ३।१३० हम्ममाण ( हन्यमान) उ १११३० हम्मिय (हम्यं ) ज २२० हम्मियतलसंटित (हयंतलसंस्थित) सु४१२ हय ( हय ) प २(३०, ४१ ज २२६५, ३१३, १५, १७, २१,२२,३१,३४,३६,७७, ७८,६१,१०८ से १११,१७३, १७५, १७७,१८५, १८७, १६६, २०६,२१८१।१२३, १३८५११,७,१८ हय ( हत ) ज २१६० से ६२: ३।२२१७ १८४ उ ११२२, १४०, ३११२३,१२६ कण्ण ( हा कर्ण ) प १८६ यच्छाया ( यच्छाया ) प १६१४७ हयपोसण ( हयपोषण ) ज ३१३ ह्यरूवधारि (हयरूपधारिन्) ज ७ १७८ हयलाला (लाला) ज ३१२११;५/५८ यति (पति) ज ३।१२६१२ हयहेसिया ( यहेसिन ) ज ३१३१; ५।५७; ७ । १७८ हर (ह) हरेज्जा ज २६ हरओ ( हरतस् ) ज ४३१४० हरडय ( हरीतक ) प १।३५।२ हरतणय ( हरतनु ) प ११२३, १४८१६ हरि ( हरित् ) ज ३।३५,४१८४,६०,६।२१ सू २०१८, २०१८१४ हरिकंत (हरिकान्त ) प २२४०६ हरिकंतदीव ( हरिकान्नगी।) ज ४।७६ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरिकंतप्पवाय कुंड - हालिद्दय हरित वायकुंड (हरिकान्तापातकुण्ड ) ज ४।७५, हलीमुह (हलीमुख) ज ३ | ३५ हलीसागर (हलीसागर ) प १०५० ७६,७७ √ हव (भू) हवइ प २४७ २३६४६४ हरिकंता (हरिकान्ता ) ज ४।७३ से ७५,७७,७८, ८४,६०,२६२,२६८,६३२१ हरिकताकूड (हरिकान्ता कूट) ज ४७६ हरिकूड ( हरिकूट ) ज ४।६६,२१०।१ हरिगमसि (हरिर्नंगमेपिन् ) ज ५१२२,२३,४ε हरितग ( हरितक ) प १४४|१ ज ७।१३२१४,१७७१३ सू १६२२६ हति प ११३८१३, ११४८ ५८ ५६ ज ७ १७८ १,२ चं ३१३ सु १।७।३; १२।७१,१६३१।१, १६२२८,२१ हवति प १।३७ ३ ३५ | १११ ; ३६।६४ हवेज्ज प २२६४१४ हवेज्जा ५२१६४११६ हरिता (हरितक) ज २।१४४,१४५ हरिमेला (हरिमेला) ज ३११७८७ १७८ हरिय (हरित ) प १।२४।१ ज ३१२४ उ ३३५१,५३ हरियग (हरितक) उ ३०४६ हरिया (हरितक ) प १।३३११, ११४४ ज २ १४५, १४६ हरियाल (हरिताल ) प १।२०१२१७११२७ ज ३१११ हरियाल गुलिया ( हरितालगुलिका ) प १७।१२७ हरियालभेद ( हरितालभेद ) प १७।१२७ हरियालिया (हरितालिका) ज ५।१३ हरिवास (हरिवर्ष ) प १८७१६।३०१७ १६४ ज २६,४१६२,७७,८१ से ८६,१०२,२६५; ६६,२१ हरिवासकूड (हरिकूट ) ज ४७६, ६६ हरिस (हर्प ) प २२० से २७ ज ३३५,६,८,१५, १२,३१,५३,६२,७०,७७,८४,६१,१००,११४, १४२,१६५, १७३, १८१, १८६, १६६, २१३, ५२१ २७,४१३ १।२१,४२,७१, ७२३ । १३१; ५।२२ हरिसह (हरिसह ) २२४० १७ ज ४११६२१, १६५, २१० हरि सहकूड ( हरिसहकूट) ज ४ १६५, २३६ हलउलेमाण (दे०) ३।११४ हलधरवसण ( हलधरसन ) प १७१२४ हलिपत्त (हरिद्रापत्र ) प १ ५१ हलिहा ( हरिद्रा ) प ११४८/२ हलिद्दी (हरिद्रा ) ज ३१११६ हलिमच्छ ( हलिमत्स्य ) प ११५६ हल्व (अर्वाच् ) प ३६।८१ ११२२,७०,८०, १०७, १०८,११५ से ११७,११६,१२७,१२८ ( हव्य ) ज २६, २४,३४,३५,३७,३।१०७, ११४७/२० से २५,७६,८२, २०२,२०४, २०६ सू २३; २०१७ ह १०६१ V हस (हस् ) हसति ज २१७ हसंत ( हसत् ) ज ३।१७८ हसमाण ( हसत् ) उ ३११३० हसित ( हसित) सू २०७ हसिय ( हसित ) प २१४१ ज २१५,३११३८ हस ( ह्रस्व ) प २६४|४; १३१२३ हस्ततर (हस्त्रतर ) ज ४|५४ हाण (मल्लिप्राण) ज ३।१०६ हायमाणय ( हीयमानक) प ३३१३५ हार ( हार ) १ २ ३०,३१,४१,४६,६४ ज ३६, ६, १८,२६,३५,६३,१८०,२११,२२२, ४/२३, ३८, ६५.७३, ६०, ६१; ५।२१,३८,६७ १६,१०२ से ११७,११६ हारितग ( हारितक) ज ३।११६ हारोस (दे० हारोष ) प ११८६ हालाहल ( हालाहल ) प १।५० हालिद्द ( हारिद्र ) प १२४ से ६३५१५, ७, २०५; ११ ५३; २३११०२,२८/२६,३२,६६ ज ४२६ सू २०१२ हालिगुलिया (हारिद्रगुलिका ) प १७।१२७ हालिद्दमत्तिया ( हारिद्रमृत्तिका ) प १११६ हालय (हारिद्रक ) प १७ १२६ Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६२ हालिद्दवण्णाभ-हु हालिद्दवण्णाभ (हारिद्रवर्णाभ) सू २०१२ हालिद्दसुत्तय (हारिद्रसूत्रक) प १७६११६ हालिद्दा (हरिद्रा) ११७१२७ हालिद्दाभेद (हरिद्राभेद) १ १७:१२७ हास (हास) प २४१,२१४७१३,१११३४।१% २३१३६,७६,१४४ ज २१६६,७० हासकारग (हासकारक) ज ३।१७८ हासणिस्सिया (हासनिधिता) प ११३४ हासरइ (हास रति) ५ २१४७३ हासा (हासा) ज ५।११११ हाहाभूय (हाहाभूत) ज २।१३१.१३६ हिगुरुक्ख (हिंगुरूक्ष) प ११४३१२ हिंगुलय (हिंगुलक) प ११२०१२ ज ३।११ हिंगुलुग (हिंगुलुक) ज ३३५ हिट्टिम (अधस्तन) प २०२७।१ हिट्ठ (अधम्) प १२४ से २७ रू १८.२,३, १६२२०१७ हिट्ठि (अधम्) ज ७.१६८०१ हिट्ठिल (अधस्तन) ज ७।१७५ हिट्ठिलग (अधस्तन) ज ७।१७५ हिल्लि (अधस्तन) सू १८७ हितकर (हितकर) ज ३१८८ हिदय (हृदय) ज ३।१३८ हिमय (हिमक) प ११२३ हिमवंत (हिमवत्) ज ११२६,३१२,३५,४।१७७ उ१।१०,२६,६६५१११ हिमवयकूड (हिमपत्कूट) ज ४।२३६ हिमसीतल (हिमशीतल) सू २०१२ हिय (हित) ज २१६४,७१,३१८८,५।२६ हिथईसर (हृदयेश्वर) ज ३६१२६३ हियकर (हितकर) ज ३।१६७ हियकारग (हितकारक) ज ५१५,४६ हियय (हृदय) ज ३१५,६,८,१५,१६,३१,३५, ५३,६२,७०,७७,८४,०१,१००,११४,१४२, १६५,१७३,११,१८५.१८६,१८६,१६६, २१३:५।२१,२७,४१,५८ गु २०१६।१ उ १।२१,४२,३।१३१ यियगणिज्ज (हृद गमनीय) ज २१६४;३।१८५, २०६५१५८ हिययपल्हायणिज्ज (हृदयप्रह्लादनीय) ज २।६४ ३.१८५,२०६:५११८ हिययमाला (हृदयमाला) ज २६५,३११८६,२०४ हिययसूल (हृदयशूल) ज २१४३ हिरण्ण (हिरण्य) ज १२४,६४,६६,४१२७३ ५।६८ से ७० हिरण्णवय (हैरण्यवत) प १८७ हिरण्णवास (हिरण्यवास) अ ३।१८४,५१५७ हिरण्णविहि (हिरण्यविधि) ज ५१५७ हिरि ('ह्री) ज ४१६४५११११ उ ४१११ हिरिकूड (ह्रीकूट) ज ४७६ हिरिसिरिधीकित्तिधारक (ह्वीश्रीधीकीतिधारक) ज ३११२६।१ हिरिसिरिपरिवज्जिय (ह्रीश्रीपरिजित) ज ३।२६, ३६,४७,१०७,११४,१२२,१२४,१३३ हिलियमाण (अभिलीयमान) ज ३।१०६ हिल्लिय (दे०) प ११५० हीण (हीन) २१६४।४५।५,१०,२०,३०,३२, १०२.१२६,१३१,१३२,१३४,१६०,१७७, १६३,२१४२२८ होणपुण्णचाउद्दस (हीनपुण चातुर्दश) ज ३।२६, ३६,४७,१०७,११४,१२२,१२४,१३३ हीणपुण्णचाउद्दसिय (हीनपु:चातुर्द शिक) उ १८६, हीणस्सरता (हीनस्वरता) ॥ २६॥२० होनस्सर (हीनरवर) ज २१३३ हीर (हीर) प १४४८।२० से २६ हीरमाण (ह्रियमाण) ज ७।३१,३३ सू ४१४,७ केहील (हेलय) हीति उ ३.११७ होलिज्जमाण (हेल्यमान) उ ३१११८ हु (भू) हुति ज १११७,४।१४२।१७।१३४।१,४; १७२। १ ४१३ मु ११८१३,१६।२२।४,५,१५, Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुंड-होरभा १०६३ २०,२३,२७,३१ हुंड (हुण्ड) प १५।१८,३०,३५,२११२५ से ३३, ३५ से ३७,५८,५६, २३।४६ हुंबउट (दे०) उ ३१५० हुडुक्क (हुडुक्क) ज ३।२०६ । हुण (हु) हुणड उ ३.५१ हुत (हुत) उ ३।४८,५० हुतवह (हुतवह) ज ३।१०६ हुयवह (हुतवह) ज २१३१ हुहुय (हुहुक) ज २१४ हुहुयंग (हुहुकाङ्ग) ज २१४ हूण (हूण) प ११८६ हेउ (हेतु) प १११०१।५ उ ३६ हेट्ठ (अधम् ) प २।२१ से २३,३० से ३६,४१ से ४३,४६,१२१३२३६१६१ ज ३११८३, ४११३४ हेट्ठा (अधस्) सू १२।३०; १७।१२०१६ हेट्ठिम (अधस्तन) १ २१६२।१; ३३१६ हेटिठमउरिम (अधस्तन उपरितन) प २८1८६ हेटिठमउवरिमगेवेज्जग (अधस्तन उपरितनग्नवयक) प १११३७,४१२७३ से २७५, ७।२२ हेमिग (अधस्तन) ज ७:१३६।१ हेटिठमगेवेज्ज (अधस्तनग्न वेय) प ६३६ हेटिठमगेवेज्जग (अधस्तन वेयक) ५ रा६० से ६२,३।१८३,६५६ हेछिममज्झिम (अधस्तनमध्यम) प ४१२७१; २८1८८ हेठिममज्झिमगेवेज्जग (अधस्तनमध्यम वेय.) ___ ११३७ ; ४१२७०,२७२,७१ हेटिठमहेमि (अधस्तनाधल्तन) प ८१२६८,२६६ हेटिठमहेटिठमगज्जग (अधस्तनाधस्तन बरक) प ११३७,४।२६७,७१२०,२८८७ हेटिठल्ल (अधस्तन) प १६६३४२११९०:३३।१६, १७ ज २११३, ४१२५३,२५४,२५७,७१७४, २५५ सू १८१ हेतु (हेतु) ३०।२५,२६ सू १११४,१६,२१,२४, २७,२।३,४१४,७, ६११ हेम (हेम) प २१५० ज ४१६१:५११८ हेमंत (हमन्त) ज २०७०,८८,७४१६० रा १६३ सू ८।११०१६७ से ७०,१२११४ उ १२५ हेमंती (हेमन्ती) सू १२।२४ से २८ हेमंतीय (हैभन्तीक) स १२१८ हेमजाल (हेमजाल) ज ३१४७ हेमव (हेगवन्) ७.११४११ सू१०।१२४१२ हेमवय (हैमवत) ११८७, १६।३०।१७।१६३ ज ३११७५,४१,४२,५३,५५,५६,५७.६१,६२, ७१,७६,१०२,२३८,२७१६९,२० हेमवयकूड (मतकूट) ४१४८,७६ हेमाभ (हेमाम) उ १।२६,१४० हेरगणवय (हरण्यवत) १६३० ४११०२, २६४।१,२६८,२७१ से २७४,६१६,२० हेरण्णवयकूड (हैरण्य-कूट) ज ४२६६,२७५ हो (भू) हाइ ११४८१५२,१८१ से १०,१२ से ३७,३६,४१ से १.१,५४ से ५६,६१६०, ६२ से ११४,११६,११७,११६,१२०.१२२, १२३,१२५ से १२७११६७।४,८,३१६, ११६४।१४२१२७११२११,१८२१२, १५११२,१७७।१,२ सु १६।२२६६,७,१७,२८, २६;२०१८1८ उ ४।०१ हाई १ १५१०११८ २।२७१ होउ उ ११६३राह हानि ११४७२,११४८१४७,४६,१।७५७, ६१।१२।२७१३,२१४०१८ से ११ २०६४।६; २।२५ ज १११६:४११५.११२,७४११३।१, १७२१ सू१०।१२।२,५,२०८।३,२०१६ उ रा२२ होज । २१०।२८१०६ होज्जा ११६.१०,११,१३,१५,९१,१७११२२२१२३ २४१४,५,८,११,१२,२५१५२६।४,६,६,१०, २७३ हादिप ११४३१२,१।४।२६,५०; २१४०।१,२१६४।६,१०११४१११२।२२११ १८।१०२,१८१५६ ४ ७1१1१७२११, सुहा२११६ हान्था १२:२१६६ चं६ गू११ उ १।१२।४।६।६४।८।४ होतए (तिम्) 3 ८२२ । होत्तिय (हानिक ५११४२११३ ३१५०... होमाण (भवत्) ५ १७१११२,११३ होरंभा (होरम्भा) ज ३।३१ Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुध्दि पत्र १४२ १५४ 9 १७४ १६६ १७६ १८० अशुद्ध पण्णवणा संठाओ कोलोभामा परमममुह अभिः गब्भक्कं० बण्णादि देवेहतो सोतोसिणा पडूच्च परिमंडलस्य ओसपप्पि पडुप्पणं वाणमंतरणं एणणं पुविक्क० पुच्छए बधेलग० जस्सस्थि बा ०सरीकाय ०मीससरीर० आहाग. मीसारीर० पुरिस होज्चा ur . x x ० ० ० 91 Wo ० ० ० ० ० ० or or ० ० ० / १८२ संठाणओ कालोभासा परमभसुह आभि० गब्भवक्कं० वण्णादि ० देवेहितो सीतोसिणा पडुच्च परिमंडलस्स ओसप्पि पडुप्पण वाणमंतराणं एणठेणं पुढविक्क० দ্যায় बधेल्लग जस्सत्थि वा सरीरकाय० ० मीसासरीर० आहारग० मीसासरीर० पुरिसे होज्जा २२६ Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१ २३२ २४३ २५ε २५६ २८१ २८५ २८६ २६२ २६७ ३२४ ३४१ २४१ ३४२ ३४३ ३५६ ३५१ ३६६ ३६६ ३७६ ३७८ ३८० ३८० ३८० ३८५ ३६५ ३१६ ४०५ ४१२ ४१३ ४१४ ४१५ ४१६ ४१८ ४२० पा० ४ पं० २० १७ २ ३ १५. १३ २३ २४ १३ on or a १ १२ १६ २ १० १२ १६ २० ६ १५ १६ २० २४ १० १७ अंतिम X W & ~ A 2 x m १४ १८ २८ २ २२ १७ १५ भवेतारुवे पडरिय० इत्थवेदे तिरिक्ख० गव्भक्क ० छह जाव पण्णत्ते व ०सागरोव० सागारोव सरीरा सरीर० ० समुग्धया • उवण्णगा जंबुद्दीव ०पगोरे महावीरस ०कुठे ० कुठे मत्तंगाणाणं मणम० वोवाह ना इणट्टे अज्झावसत्ता ० दुसमणाम अभिरमाणा ० निग्घोषणा ० मिसिमिस खिष्पमेव महाहिमं खियमेव ० इंदणी० अणुप्पबाए अटटारस भवेताख्वे पोंडरीय० इथिवेदे तिविखजोणिय० गभवक्क० छवि० जहा X य ० सागरोवम० ० सागारोव० सारीरा सारीर० १०१५ समुग्धाया ० उबवण्णगा म्हगोरे महावीरस्स ० कूडे ० कूटे मत्तंगाणामं मणाम० वीवाह वा इणट्ठे अझावसिता ०दूस माणामं अभिरममाणा ०निग्पोसणा मिसिमिसे खिप्पामेव महामहिमं खिप्पाभेव ० इंदणील० अणुपवाए अटकारस Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ل ४२२ ४२२ ا २१ वासिणी पीइदाणं उस्सुक्क ار ا वासिण्णो पीइदिणं उस्स पुरंत पवयभि० णेयववो हरि० पुरेत س بل अन्तिम پر ४३६ पा०४ (म) ४४२ पा०२ पव्वयाभि० यम्बो हिरि० (म) अस्थमंतमेत्त (शा व पा) जं० संपट्ठियं तए णं सद्दावेत्ता ०पीठं फलिहा धूव० मपंद्वियं तणं २ सदधावेत्ता ४४५ ४४५ ४४५ ४६० ४६३ ४६३ ४६६ ४६८ ०पीढ़ धणु फहिलह धव० धण जंव विहफइ पणत्ताओ जंबू विहप्फई पण्णत्ताओ ५७० सुरपण्णत्ति जोयय० मुहुता oXWWW जोयण मुहुत्ता वावट्ठि समुद वराभरण विताए ०धूम बावट्टि ससुदं वराभण० विताए धुम० उवंगा मवंतीकरणेणं सवण्णीकरण (क) ०वंक० पुडिबुद्धा पाबयणं पारिया पा० ५ ७२३ ७३४ ७८० ७८१ १८४ सवण्णीकरण सवंतीकरणेणं (ग) ०वकं पडिबद्धा पावयणं परिया Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दकोश कमांक स्थल अशुद्ध अंगपरियारिया * अगरुयलहुयपज्जव अट्ठावग्ण * अपज्जुवासणया अप अओज्झ (अंगप्रतिचारिका) अगच्छमाण ज २१६३ (अष्टपञ्चाशत् ) अधम्मस्थिकाय (अपर्युपासन) अप्पा (अल्पा) अप्पिण (आ+स्फोट्य) अिभंग अभंतरपुक्खरद्ध अब्भुक्ख ॥ अष्फोड अउज्झ (अंगपरिचारिका) अगक्छमाण ज २११६३ (अष्टपञ्चाशत) अधमथिकाय (अपर्युपासना) अप्प (अल्प) जवासा अप्पिण (आ+स्फोट्य) अभंग अब्भतरपुरक्खरद्ध अब्भुक्ख अब्भुट्ठ अभिणंद अभिवुड्ढ (आकाश थिग्गल) (आरारकशरीरक) (इच्छामनस) (निर्झरबहुल) (उत्तमपुरु) उत्पन्न (उपदर्शयितुभ) (ओधमेघ) ओलंग कक्खंत्तर (कछभी) अन्भुटु १७. १८, १६. २०. आगासथिग्गल आहारगसरीरय ভূমিকা उज्झरबहुल उत्तमपुरिस अभिणंद अभिवुड्ढ (आकाश थिग्गल') (आहारकशरीरक) (इच्छामनस्) (उज्झरबहुल) (उत्तमपुरुष) उप्पन्न (उपदर्शयितुम्) (ओघमेघ) ओलंब कक्खंतर (कच्छपी) उवदंसित्तए ओघमेघ २४. २६. २७. कच्छभी Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६८ २८. कलंबुया कल (कल) (कदम्बक) कहिचि कहिय कालहेसि (कालहेसिन्) (कौंम्भिक) (कलम) (कलम्बुका) कहिंचि कहिय ३१. कुंभिक्क Mr mmmmm mr mr r m कुमुदा गरह गवेस गा गाह गिण्ह गुणड्ढ़ चउपएसिय (कौम्भिक) (कुमुदा) गिरह ‘गवेस केगा गाह गिह गुणड्ढ -गेवेज्ज (चतुःप्रदेशिक) चिय चिय चिर इचि चित (क्षुल्लहिमवत्) छज्ज (छायाच्छाया) छिद (छिन्नस्रोतस) छेद गेवज्ज चातु प्रदेशिक चय चय चर ४३ ४४. XK चुल्लहिमवंत चित (चुल्लहिमवत्) छज्ज (छायाछाया) छिद (छिन्नस्रोतस) छायाछाया छिन्नसोय छेद ८ XCCCCC जटियायलय छेय (दे० जटिकायिलक) जा जाणियत्व जोयणसत्तपुहत्तिय (निवऱ्या) (निवृत्त) णिन्वाण (नरयिकासंजयायुष) (त्रपुसीमिजिका) ५६. ६०. णिवुड्ढत्ता णिवत्त (दे० जटिकायलक) जा जाणियव्व जोयणसतपुहत्तिय (निवृध्य) (निवृत्त) णिव्वाय (नेरयिकासंज्ञयायुष्क) (त्रपुसीमज्जिका) नीती जेरइयअसण्णिआउय तउसी मिजिया Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६६ ६५. तिंडव (त्वष्टदेवता) (त्वष्ट) ६७. ६८. तंडव तदेवया (त्वष्ट्रदेवता) तठ्ठ (त्वष्ट्र) तित्तीस (प्रयस्त्रिशत्) ज० ४११८ तिरिक्खजोणियअसण्णिआउय (तिर्यगयोनिकासंज्ञयायुष) तिरियाज्य (तिर्यगायुष) दलयित्ता (दत्वा) दाऊण (दत्वा ) ६६. ७०. (तिर्यग्योनिकासंज्ञयायुप्क) (तिर्यगायुष्क) (दत्त्वा ) (दत्त्वा ) दु? ७३. ७४, ७५. दुरभि दुहट्ट देवअसण्णिाज्य पंचसतर पच्चोसक्कित्ता पडि सेहित्तए ७८. ८०. u r 9 9 9 9 9 9 9 9 9 90155555550 0 0 0 0 0 0 0 0 ८ पल्हायणिज्ज (दुरभि) (दुधाट्ट) (देवासंघ्यायुष्) पञ्जसप्तति प्रत्यवकष्क्य प्रतिषेध्दु (पद्म) २५१ परिणित्वा परियाण परिवय परिहा (प्रहृलदनीय) पिट्ठीय पुक्खलाई (पुष्पपटलक) पुस्वरत्त पूजित 'पेहण' मञ्जिका प्रौष्टपदी प्रोष्ठपदी प १३.१ से ३१ प१४१४७ ज० ३३६५५६ (भवोवपघातगति) प३२१२,........१०८ ज ५७ iਚਰਚn tia} (दुर्घट्ट) (देवासंघ्यायुष्क) पञ्चसप्तति प्रत्यवष्वक्य प्रतिषेद्धम् (पद्म) ४।२५१ परिणिव्वा परियाण पिरिचय अपरिहा (प्रहृलादनीय) पिट्टि पुक्खलावई (पुष्पपटलक) पुत्ररत्त पूजित पेहुणमज्जिका प्रोष्ठपदी प्रोष्ठपदी प १३।१ से १३,२१ से ३१ प०११४८४१ ज० ३१३,६,५५५ (भवोक्पपातगति) प ३३१२,१०८ जा५७ पुप्फपडलग पूइय पेहुणमिजिया पोट्ठवई पोवती १५. भणित भत्तिचित्त भवोववायगति भासम भूमिचवेउ मंहलवता ६७. Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०० १०१. १०२. १०३. १०४. १०५. माणवग मालवंतपरियाय मेहुणसण्णा रयण (वासा) रयणिय रिसह लोम ० १०७. १०८. वरदामतित्थाधिपति ० (माणवक) (माल्यवत्पर्याय) मथुन संज्ञा (रत्नवर्षा) (रन्निक) (वृपभ) (लोमन) वरगंधघर (वरदामतीर्थधिपति) वालिघाण कपिथ्य (संवृत्त) सगोत सत्तण उत्ति सम्माणियदोहद सय (सिलीन्ध्र) (सुदर्लभ) स्यपुच्छ सुसमससमा बालुंक संवत्त ११०. १११. ११२. ११३. ११४. ११५. ११६. ११७. ११८. ११६. (मानवक) (माल्यवत्पर्याय) मैथुन संज्ञा (रत्नवर्षा) (रलिक) (वृषभ) (लोमन्) वरगंधधर (वरदामतीर्थाधिपति) वालिधाम कपित्थ (संवर्त) सगोत्त सत्तणउति सम्माणियदोहल सिय (सिलीन्ध्र) (सुदुर्लभ) सुयपुच्छ सुसमसुसमा अट्टरूसग (अटरूषक) प२३७४४ एरावा (ऐरावत) प ११३७६४ प११४८1५० सिलिंध सुदुल्लह १२१ केहण णल (नड) १० ११४१।१ पोवलइ (दे०)" १९४८१३ वेणु (वेणु) प १४१४६ Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Fon Private & Personal use only