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________________ २३ पण्णवणा प्रति- परिचय क) पण्णवणा मूलपाठ (हस्तलिखित ) यह प्रति पूनमचन्दजी बुधमलजी दूघोड़िया 'छापर' के संग्रहालय की है। इसकी पत्र संख्या ३०२ है | इसकी लम्बाई १०१ इन्च व चौड़ाई ४ || इन्च है । लगभग प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३३ से ४१ अक्षर हैं। प्रति सुन्दरतम व शुद्ध है । यह प्रति लगभग १५ वीं शताब्दी की लिखी हुई है। प्रति के अन्त में केवल प्रस्थान ७७८७ लिखा हुआ है। (ख) पण्णवणा टम्बा (हस्तलिखित) यह प्रति जैन विश्वभारती हस्तलिखित ग्रंथालय, लाडनूं की है । इसमें मूल पाठ तथा स्तबक लिखा हुआ है । इसकी पत्र संख्या ४६५ है । इसकी लम्बाई 8 || इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है । प्रत्येक पत्र में भूल पाठ की पंक्तियां ७ व प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ३९ अक्षर हैं। प्रति अति सुन्दर लिखी हुई है। प्रति के अन्त में 'प्रत्यक्षरगणनया अनुष्ठपच्छंदः समानमिदं ग्रन्थाग्रं ७७८७ प्रमाणं' लिखा हुआ है। आगे स्तबककर के ६ श्लोक हैं संवत् १७७८ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिचौ रविवारे पंडित ईश्वरेण लिपी चक्रे श्री वेन्नातट नगर मध्ये..... श्री रस्तु कल्याणमस्तुः शुभं भूयास्लेषक पाठकयो: । । (ग) पण्णवणा त्रिपाठी (हस्तलिखित) मूलपाठ सहित वृत्ति यह प्रति हमारे संघीय हस्तलिखित ग्रंथ भंडार लाडनूं' की है। इसमें मध्य में नूल पाठ व ऊपर नीचे वृत्ति लिखी हुई है। इसकी पत्र संख्या ४४८ है इसकी लम्बाई ६ ||| इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है । प्रत्येक पत्र में मूल पाठ की पंक्तियां १ से १६ तक है । कुछ पत्रों में केवल वृत्ति ही है । प्रत्येक पंक्ति में ३७ से ४५ तक अक्षर हैं । ग्रंथाग्र मूल पाठ ७७८७ तथा वृत्ति का ग्रन्थाय १६००० । प्रति सुन्दर व शुद्ध है । लगभग १७ वीं शताब्दी की प्रति होनी चाहिए । (घ) पण्णवणा मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्दजी गणेशदासजी वर्धया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। इसकी पत्र संख्या १३८ है । इसकी लम्बाई १३|| इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। प्रत्येक पत्र में बीच में तथा हासिए के बाहर चित्र सा किया हुआ है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ के लगभग अक्षर हैं । प्रति सुन्दर तथा शुद्ध है । यह १६ वीं शताब्दी की लिखी हुई प्रतीत होती है । ग्रंथाग्रं ७७८७ के सिवाय अन्त में कुछ लिखा हुआ नहीं है । ( गव्) 'ग' संकेतित प्रति में लिखित वृत्ति के पाठान्तर (वृ) हस्तलिखित वृत्ति I यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गया सरदारशहर' की है। इसकी पत्र संख्या १५९ लिपि संवत् १५७७ । वैशाख शुक्ला १० । (मवृ) मलयगिरि वृत्ति -- प्रकाशक आगमोदय समिति (मवृपा ) मलयगिरि द्वारा गृहीत पाठान्तर ( हव) श्री हरिभद्र सूरि सूत्रित प्रदेश व्याख्या संकलितं प्रकाशक श्री ऋषभदेव केशरीमलजी रतलाम पूर्व भाग पर ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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