SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१ ६. वनस्पति सप्ततिका अथवा मुनिचन्द्र १२ वीं शताब्दी वनस्पति विचार ७. अवचूरी पद्मसूरि ८. बालावबोध धनविमल अनुमानित १७ वीं शताब्दी १. बालावबोध जीवविजय १७८४ १०. स्तबक परमानन्द १८७६ ११. पण्णवणानी जोड़ जयाचार्य १८७८ इनके अतिरिक्त प्रज्ञापना से संबद्ध कुछ लघुकाय ग्रन्थों का विवरण मिलता है। मुनि पुण्यविजयजी ने हर्ष कूलगणी द्वारा विरचित "बीजक" का उल्लेख किया है। मुनिपुण्यविजयजी द्वारा लिखित प्रज्ञापना की प्रस्तावना तथा "जिन रत्नकोश" में "पर्याय" का भी उल्लेख मिलता है। "जिनरत्नकोश" में 'प्रज्ञापना सूत्र सारोद्धार' का भी उल्लेख मिलता है। ____ आचार्य मलयगिरि ने अपनी विवति में णि और 'वृद्धव्याख्या' का उल्लेख किया है। चणि अभी अनुपलब्ध है। उपलब्ध व्याख्याओं में सबसे बड़ी व्याख्या आचार्य मलयगिरि की है। मौलिक और आधारभूत व्याख्या आचार्य हरिभद्रसूरि की है। जंबुद्दीवपण्णत्ती नाम-बोध प्रस्तुत आगम का नाम जंबुद्दीवपण्णत्ती (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) है। प्राप्ति का अर्थ है व्याकरण, उत्तर या निरूपण । इसमें जम्बूद्वीप का व्याकरण है इसलिए इसका नाम जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति है। स्थानांग में चार अंगबाह्य प्रज्ञप्तियों का उल्लेख है, १. चन्द्रप्रज्ञप्ति, २. सूरमज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ४. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ।' 'कसायपाहुड' में प्रज्ञप्तियों को 'दृष्टिवाद' के प्रथम भेद 'परिकम' के पांच अर्थाधिकार माना गया है----१. चन्द्रप्रज्ञप्ति, २. सूरप्रज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ४. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति। नंदी में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को कालिक आगम के वर्गीकरण में रखा गया है।" १. पण्णवणा सुतं, भाग २, प्रस्तावना पृ० १५८ २. वृत्ति प० २६६ -आह च चूणिकृत् । वृ०प० २७१ - आह च चूणिकृतोऽपि । वृ० प० २७२ - यत आह चूणिकृत् । वृ०प० २७७ -- आह च चूणिकृत् । व० ५० ५१७ -'प्रज्ञापनायाश्चूणौ। वृ०प०६००-तत्रैवं वृद्धव्याख्या। ३. ठाणं, ४११८६ ४. कसायपाहड़, प्रथम अधिकार —पेज्जदोसविहत्ती, पृ० १३७---- "परियम्मे पंच अस्थाहियारा-चंदपण्णत्ती सुरपण्णत्ती जंबुद्दीवपण्णत्ती दीवसायरपण्णत्ती वियाहपण्णत्ती चेदि।" ५. नन्वी, ७८ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy