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________________ सअंतर-मुखेज्ज ११६,१३५,१४७,१५५,१५६,२२१ से २२४, संकाइबग (दे०) उ ३१५१ २५६,२७७,५११,२१,३२.४१,४३,५०,५८% संकास (संकाश) ५ ११४८1५६ ज २१७८३११ ६११०,११,१४,१५,१८,१६,२१,२२,२६; संकिलिट्ठ (संक्लिष्ट) १७.११४११,१३८; ७१४,४६,६३,६६,८७,६०,११०,११४,१३२, २३।१६५ १६७,१८३,१६४ सू १८।२१, २०१२,७ संकिलिस्समाण (मक्लिदयमान) १ ११११३,१२८ उ११२६,४४ से ४६,६३,१०५,१०६,११५, संकिलेसब हुल (संक्लेशबहुल) ज १२१८ ११६ ११६,१३८,१४८; ४।५,५१२८ संकुचियपसारिय (संकुचितप्रसारित) ज ५१५७ सअंतर (मान्तर) प६।११ संकुड (दे० संकुच) सू १६।२२१५ सई (सकृत) सू १।१२,१४ संकुडिय (दे० संकुचित) ज २११३३ सइंदिय (सेन्द्रिय) १३१४० से ४३,४६,१८११३, संकुय (संकुच) ज ७।३१,३३ सु ४१३,४,६,७ संकुल (संकुल) ज २१६५७३।१७,२१,१७७,५२२५ संख (शंख) प १२४६ : २।३१,१७:१२८ ज २११५, सइय (शतिक) ज ४११६२,१६८,२०४,२१०, २४,६४,६८,६६,३३,१२,७८,१६७१,१०, २३६,२६६,२७५ १७८.१८०,२०६४।८५,१२५.२१२,२१२११; सउण (शकुन) ज २।१२,४१३,२५ ५१६२,७१७८ मू २०१८,२०१८।२ सउणस्य (शकुनरुत) ज २०६४ संखणग (शंखनक) प ११४६ सउणि (शकुनि) ज २।१६७११२३ से १२५, संखणाम (शङ्खनाभ) सू २०१८ १३३।१ संखदल (शङ्ख दल) प २०६४ सउणिपलीणगसंठिय (शकुनिप्रलीन कसं स्थित) संखघमा (शंखध्मायक) उ ३।५० सू१०।२६ संखमाल (शङ्खमाल) ज २१८ संकड (संकट) ज ३।२११ संखयण्णाभ (शङ्खवर्णाभ) सु २०१८ संकप्प (संकल्प) ज ३१२६,३६,४७,५६,१०५, संखसणाम (शंखसनामन्) ज ७।१८६।२ १२२,१२३,१३३,१४५,१८८ ४११४०११; संखायण (शंखायन) ज ७१३२।१ म १०६३ ५२२ उ १.१५,३५,४१ से ४४,५१,५४,६५, संखार (शंखकार) प ११६७ ७१,७६,७६,६६.१०५; ३।२६,४८,५०,५५, संखावत्त (शंखावर्त ) प ६२६ ६८,१०६,११८,१३१,५१३६,३७ संखिज्ज (मंख्येय) ज ३।१६२,५१५ संकम (संक्रम) ११०३० ज ३९ से १०१,१६१ मंखिन्न (संक्षिप्त ज११.३५.५१:४।४५.११०. मु१६२२।१२ ११४,१५६,२१३,२४२ संकम (1--क्रम) सकमति सू २१२ संखित्तविउलतेयलेस्स (संक्षिप्त विपुलतेजोलेश्य) सं.मण (संक्रमण) गु १६१२२।१२ ज १५ उ १३ संकममाण (मंक्रामत्) ज ७१०,१३,१६,१६,२२, संखिय (शांखिक) ज २०६४, ३१३१,१८५ २५,२७,३०,६६,७२,७५,७८,८१,८४ संखेज्ज (संख्येय) प १११३,२०,२३,२६,२६,४०, सू १।१४,१६,१७,२१,२४,२७,२।२,३,६११ ४८,११४८।८,४०,५७,३११८०,५।२,३.५,१२६, संकला (शंखना) ज ३१३ १२७,१४२,१४३;६३५ से ४१,६०,६१,६४, संकाय (दे०) ३१५१,५३,५५,५६,६३,६४,६७,६८, ६६,६८,१०११६,१८ से २७,२६,१११५०, ७१,७३,७४,७६ ७२।१२।३२,३३,३६:१५१८३,८४,८७,८६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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