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________________ २०१४ (सन् १९५७) में प्रारम्भ हुआ। यह कार्य वि० सं० २०३७ (सन् १९८०) में सम्पन्न हुआ। इसका विवरण इस प्रकार है: .... दसवेआलियं उत्तरज्झयणाणि नंदी, अनुओगदाराई ओवाइय, रायपसेणियं ठाणं समवाओ सूयगडो नायाधम्मकहाओ आयारो, आयारचूला उवासगदसाओ, अंतगडदसामो अनुत्तरोववाइयदसाओ विपाक पण्हावागरणाई निरयावलियाओ भगवई पपणवणा दसाओ, पज्जोसवणाकप्पो कप्पो ववहारो जीवाजीवाभिगमे जंबूद्दीवपण्णत्ती निसीहज्झयणं चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती वि० सं० २०१४ वि० सं० २०१६ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१६ वि० सं० २०२० वि० सं० २०२२ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०२८ वि० सं० २०२८ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०३० वि० सं० २०३१ वि० सं० २०३२ वि० सं० २०३३ वि० सं० २०३३ वि० सं० २०३४ वि० सं० २०३५ वि० सं० २०३५ वि० सं० २०३७ सम्पादन का कार्य सरल नहीं है-यह उन्हें सुविदित है, जिन्होंने इस दिशा में कोई प्रयत्न किया है । दो-ढाई हजार वर्ष पुराने ग्रन्थों के सम्पादन का कार्य और भी जटिल है, जिनकी भाषा और भाव-धारा आज की भाषा और भाव-धारा से बहुत व्यवधान पा चुकी है। इतिहास की यह अपवाद-शून्य गति है कि जो विचार या आचार जिस आकार में आरब्ध होता है, वह उसी आकार में स्थिर नहीं रहता। या तो वह बड़ा हो जाता है या छोटा । यह ह्रास और विकास की कहानी ही परिवर्तन की कहानी है। और कोई भी आकार ऐसा नहीं है, जो कृत है और परिवर्तनशील नहीं है । परिवर्तनशील घटनाओं, तथ्यों, विचारों और आचारों के प्रति अपरिवर्तनशीलता का आग्रह मनुष्य को असत्य की ओर ले जाता है। सत्य का केन्द्र-बिन्दु यह है कि जो कृत है, वह सब परिवर्तनशील है । कृत या शाश्वत भी ऐसा क्या है जहां परिवर्तन का स्पर्श न हो। इस विश्व में जो है, वह वही है जिसकी सत्ता शाश्वत और परिवर्तन की धारा से सर्वथा विभक्त नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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