Book Title: Adhyatma Prakaran
Author(s): Hukammuni, Hirachand Vajechand
Publisher: Hirachand Vajechand
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R ముందు తల వంచుకుంటుంది. అందుకు A REPOROSCORPOSESCORGARC अध्यात्मप्रकरण S SONGS 1 संग्रह esearcinoscope OCTODDODowancyvaenoscovernooreogayed amonoreserrowesomeoparoroscope Overse Reaper Prog.centroducerare, per esemper श्री हुकममुनीजी महाराजकृत केटलाक ग्रंथोनो संग्रह करीने जिनधर्मि सज्जनोने सारु कानी धावाधी 'शा. हीराचंद वजेचंदे पावी प्रसिद्ध करचो. Vijayadainery 36MOOVotercalcarcotaaratalootroloolcowaloosaralcoccalOOOOOCOCOCOOowaloowatcoicalcoloorcocoolelwaloadcort HENDRASOSCORPOROSCOPRODIGORCHIRGAGOICDROICE phata अमदावादमा मामानी हवेली मध्ये अमदाबाद युनाइटेड प्रिंटिंग बने जनरल एजन्ति कंपनी "लिमिटेर"मा प्रेसमा रणछोडलाल गंगाराम छाप्यो, . . ypperen गुरु . संवत् १९३६ सने १८८०. VOD er Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. हाल थोडा वरसथी जिन धर्मनां पुस्तको उपाववा संबंधी तजवीज थवालागी जोवामां आवे. प्रथमतो ज्यारे तिर्थकर विचरता हता ने केवली समुदाय साधुना विहार चालु हता,त्यारे तमाम प्रकारनी देशना माहोमेथी देवामां आवती हती;छेवट बेला तिर्थकर श्री महाविर स्वामीना निर्वाण पछी केटलाक वरस सधी पुस्तको थयां जणातां नथी. ज्यारे माणसनी बुद्धिमंद थती चाली, अने ते समयना श्राचार्योना विचारमा श्राव्यु के पुस्तको वगर पागल उपर धर्मनी वातनो आधार रहेशे नहीं, ते उपरथी पुस्तको लखवानं चाल्यु. अने ते ताड पत्र त्रादि वस्तु उपर घणी ज महेनतथी लखवामां आवतां;तेम टकवामां पण ते पुस्तको घणा कालसुधी चालतां;तेमांना कोई पुस्तको अद्यापिसुधी पण हशे. हाल केटलाक वरसोथी गपवानी कला प्रसिद्ध थएली,पण तेनों लाभ लेवामां जिन धर्मवाला एकदम पागल पडेला जोवामां आवता नथी. तेन कारण के तेन धर्म पुस्तको अत्यंत मानमां गणे,अने ते पुस्तको ज्यांहां त्यांहां जेवी तेवी जगा मां अथडाय तथा बीजी केटलीक पाशातना लागे तेथी ज्ञाननी विराधना थाय अने ज्ञानावर्णी कर्म बंधाय एवा हेतथी पुस्तको छपावता नोहोता.पण घणा लाभमां Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोमी खोट गणवामां श्रावती नथी. तेम समजी श्रा पुस्तक में पाब्युंजे, एटले धर्म पुस्तकथी धर्मनो बोध थवाथी सुलभ बोधीजीवने अति गुण प्रगट थशे,ते काइ नछो लाभ नथी, एम माहारी अल्पबुद्धि प्रमाणे हूं समजुएं धर्म वस्त समजवी बहू कठपने; तेम. ते वस्तु समजावनारा पण विरला छे. आ पुस्तकमा समावेला केटलाक ग्रंथो महारा वांचवामां आवेला ते. उपरथी महारां समजवामां आव्यं के,श्रा ग्रंथो आत्मार्थी पुरुषोने. बह गुणकारी तथा ते उपायतो तेमां घणाने बहू लाभ थाय. केमके श्रा ग्रंथोमां व्यवहार तथा निश्चय बन्ने बताचीने आत्म धर्म दरशाव्यु.प्रथम व्यवहारनी पुष्टी करीछे अने बेवट धर्म शुं ते बताव्यु. कर्ता पुरुष विद्यमान होवाथी तेमना मोहोथी केटलोक काल धर्म सांनलवामां आव्यु. तेमनुं ज्ञान अगाध जोइने श्रा पस्तक उपाववाने मने उत्कंठा थइ, तेथी तेमनी अाज्ञा लेइने आ पुस्तक में उपाठ्युंजे. कदापित्रा ग्रंथोमां कांइ अशुद्ध भासन थाय तो बहु श्रुत आत्मार्थि स्वउपयोगि गीतार्थ पासे सुधारी लेजो. तेमज गपतां कांइ भल चक थइ होय तो ते वांचनारा सजनो सुधारीने वांचजो अने मने क्षमा करजो एवी माहारी विनंती. सवत १९३६ ना फागण वदी १ हि. व. - Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. . STSES एष्ट. १ श्रीवास्तुकपुजा. एमांव्यवहार वास्तुकमिथ्यातरुपदूरकरी तेनुस्वरुप बताव्यं. ................................................ १ २ श्रीसम्यक्हार ग्रंथनी स्थुल अनुक्रमणिका. प्रथमद्वारमांव्यवहारनीपुष्टीकरीछे............... बीजाद्वारमा पांचमिथ्यातनुस्वरुपबताव्युंछे तेमां सातनिन्नवविगरेनुस्वरुप तथाजीवनीचउदखा पविगरेअनेकवार्तादर्शावीछे................. १३ त्रीजाद्वारमांसमकितनाअनेकनेदवताव्याछे....... ३६ चोथाद्वारमांदेवतत्वलखाव्योछेतेमांप्रतिमातथा पूजाविधीविगरेअनेकवार्तादर्शावीछे. ............ ६८ पांचमाद्वारमांगुरुतत्वलखाव्योछे तेमांसाधुनागु तथाप्राचारविगरेअनेकप्रकारबताव्याछे....... ९० छठाहारमांधर्मतत्वलखाव्यो तेमांजिवजिव नानेदतथातिर्थजात्राविगरेअनेकवस्तुबतावीछे. ११६ सातमाअधिकारमा एतत्वनीसदहणानुं फलतथा श्रातरौद्रविगरेध्यान-स्वरुपबताव्युंडे तथावैरा ग्यनुस्वरुपकपुंछे. .... .............. ........१३६ । .. . . . . . Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ श्रीज्ञानविलास. खटद्रव्यनीवार्ता तथादरेकद्रव्यने नय नक्षेपा पक्ष प्रमाणकारक सप्तनंगी चउनंगी विगरेलागक री विस्तारस्वरुपबताव्यु तथाखटदर्शननीचर चाविगरेअनेकरीतेकरीने द्रव्यर्नुस्वरुपग्लखा व्यूछे एनेविशेनवीतथाअभवी तथानवानवीनं स्वरुप तथानयनाठावीशनेददर्शाव्या.........१५१ ४ श्रीध्यानविलास. आग्रंथमांचारध्यान-स्वरुपबताव्युंछे तथापदस्त प्रमुखचारध्यान एटलेत्राठध्यान चारभावना विगरेदर्शाव्यांछे. ........... ५ श्रीअध्यात्मनुवी. उनुगाथायेकरीअध्यात्मस्वरुपदर्शाव्युंडे...........३०५ ६ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. द्रव्यभावनिश्चेव्यवहारथी तथानास्तिकनाविवाद मांजीवनस्थापन जीवनासाठस्वभाव तथानय नाअठावीशभेदविगरेवताव्युंडे.....................३१३ - ७श्रीरागमाला. रागनांपद ४७ छे............ ...........३४५ ८चारअनावप्रकरणलक्षण. अनावचारनुस्वरुपदर्शाव्युछे. .... ... ... .......३६५ -0 साला. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९ अमरतेजमुनिनीसझाय. तेमांकर्मनी विचित्रगतीबतावीछे ................३८१ १० तत्वसारोदारः । प्रथमरुपीतत्वनापांचनेद अजिवतत्ववताव्योछे तेमांजिवनानेदविगरे । दीव्यूंछे ................ ......३८७ बीजोत्राश्रवतत्वबताव्योछे तेमांमिथ्यात्व,अत्र तविगरेनेदबताव्याछे.......... .........३९५ त्रीजोपुन्यतथापापबेतत्वभेगाबताव्याछे .........४०८ चोथोवंधतत्ववताव्यो ......... ..........४१७ अरुपीतत्वनाचारभेद जिवतत्वतेमांजिवनाअनेकनेदतथातेने उपजवा नांठेकाणांतथाावखुविगरेघणीबाबतोबतावीछे४२२ संवरतत्वतेमांतेनाजदाजुदाबोलविगतसाथेवता व्याछेसंजमनानेदतथाबारभावनावणीविगत साथेदावीछे .......... ................४४६ निर्जरातत्वतेमांबाह्यतथाअभ्यंतरतपविगतवार । बताव्यातथाघणाप्रकारनातपनीरीतीवतावी५४३ मोक्षतत्व ........ ........५८७ ११ श्रीअनुभवप्रकाश. तेमांशुहस्वभावबताव्योछे ......................५९९ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ श्रीवात्मचिंतामणी. शुद्धताअशुद्धस्वरुपनी लखाणकरावीनेशुद्धस्व रुपयहार तथानयनाबावननेदकह्याछे...६१७ १३ श्रीचिदानंदबत्रीसी. रागनापदमांछे ............. ..........६९७ १४ श्रीसिद्धनापंदरभेदनीढालो. तेमांसिद्धनापंदरनेद विगतसाथेबतावी स्त्रिमोक्षे जवाविगरेचरचाबतावीछे ९मा पानानी १०मी लीटीमां 'फल'ने ठेकाणे 'कुल' वांचq. ४२२मा पानानी १५मी लीटीमा एजीव ने बदले अजिव' वांचq. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवास्तुकपुजा. श्रीगुरुभ्यो नमः श्री शांतीजीनेश्वर समरिये ॥ पंचमा चक्री जेह ॥ ती र्थकर सोलमा नमुं ॥शांतीकरण गुण गेह ॥ १ ॥ श्रीस्नात्र पुजा नली ॥ करुं स्तवना सार ॥ वास्तुक पुजा घरत णी ॥ करतां हरख पार ॥२॥ प्रथम घर प्रवेशमां ॥ पुजा भणावो उदार ॥ श्रवर वास्तुक दुर करो ॥ जे मी थ्या उपचार ॥ ३ ॥ पुजा पुजादीक प्रते ॥ जल कलसा सुखकार ॥ पांच जरी नवराविए ॥ श्रीजीन अंगे धार ॥४॥ फल फुल नैवेद तेम ॥ वास दीप धुप जेह ॥ प्रभु या गल ते धोइए ॥ शांती होए संत तेह ॥ ५ ॥ अथः ढाल १ ली श्री हिंत पद ध्याइए ॥ए देसी ॥ शांतीजीनेश्वर पुजतां ॥ होवे शांती अपाररे ॥ वास्तुक घर मांहे कीजीए ॥ ए पुजा मनुहाररे ॥ शांतीजीनेश्वर पुजी ॥ १ ॥ वास्तुक दोय प्रकारनं ॥ द्रव्य भाव ते जा गोरे ॥ द्रव्य वास्तुक दोय भेदथी । शुभ अशुभ कहा गोरे ॥शांती ० २॥ होमादीक घरमा करे ॥ ब्राह्मण भो जन जासरे ॥ कोला प्रमुख वीदारतो ॥ मनुष घात होय तासरे ॥ शांती० ३ ॥ श्रीफल प्रमुख होमता ॥ पंचेंद्री ठरावी तासरे ॥ ए त्रपमंगलीक जाणीए ॥ जीहां जीव Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवास्तुकपुजा. हंसानी रासरे ॥शांती०४॥ एह अशुन वास्तुक कही। होवे पापनी रासरे ॥ प्रा नव परनव दुःख लहे॥एम न करीए वासरे ॥शांती० ५॥ मंगलीकभणी कीजीए॥ वास्तुक घरनुं जहरे॥ सरव मंगलमे मंगल का।श्री जीन नाम छे एहरे ॥शांती०६॥ घर मधे पधरावीए॥ श्री जीन बींब सुखकाररे॥पीठ त्रण रची उपरे॥ था पना कीजे मनुहार॥शांती०७॥श्री शांतीजीन रायनी॥ करवी नगती उदाररे ॥ पंच पंच वस्तु मीलावीए॥ आगल धरो मनुहाररे॥शांती० ८॥ पंच सनाथीश्रा कीजीए ॥ कलस पंच ते नरीएरे॥ प्रतेके प्रतेके ते क रो॥ एम शांती गुण वरीएरे ॥शांती०९॥ अपमंगलीक होवे नही॥ माहामंगलीक ते कहीएरे॥ मुनी हुकम श्री शांतीजी ॥ रीदि सीदि सर्व लहीएरे ॥ शांती० १०॥ काव्यः श्री परम पुरषाय ॥ परमेश्वराय ॥ जन्म जरा मृत्यू नीवारणाय ॥ श्रीमतेजीनेंद्राय ॥ जलनीमे अजास्वाहाः अथः बीजी पुजा ॥हा॥ श्रीजीन थापन ती हां करे॥चमर छत्र संयुक्त ॥ ते पागल पुजा करो। जेम का छे सुत ॥१॥ पुजा करतां प्रभुतणी ॥ रिद्धि सिद्धि घर होय ॥ पुत्र परीवार वाधे घणो ॥ वास्तुक कीजे सोया॥२॥ ढाल २ जी॥ जेम जेम ए गिरि ने - Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवास्तुकपुजा. टीएरे ॥ तेम तेम पाप पलाय सलुणा ए देशी ॥ स्नात्र नावी प्रभु तणुरे || पुजा रचो मनुहार सलुणा ॥ श्रां ॥ गी रचो नव नव पेरेरे ॥ दीपक झाक झमाल सलुषा ॥ श्रीशांतीजीन पुजी एरे॥तेम तेम मंगलीक थाय सलुणा ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ गर्ज थकां मरगी हरेरे ॥ हेवो गुण छे जास सलुणा ॥ सर्व उपद्रव हरे सहीरे ॥ याधी व्याधी नही तास सलु ॥ श्री शांती ० २ ॥ द्रव्य वास्तुक पुजा वीशेरे ॥ पुजा भावो एह सलुषा ॥ जथा शक्ती तुमे वावरोरे ॥ स्वामीवछल गुण गेह सलु|| || श्रीशांती३ ॥ एम वास्तुक पुजा करोरे ॥ तजी वर पक्ष सलुणा ॥ अन्य मती कह्युं नवी करोरे ॥ समजी ज्ञान दक्ष सलु णा ॥ श्री शांती ०४॥ द्रव्य वास्तुक एम जाखीयुरे ॥ मा हामंगलीकनुं घर सलुषा । एणी वीधी वास्तुक कीजी एरे ॥ होवे वंछीत सर सलणा ॥ श्री शांती० ५॥ हवे भाव वास्तुक दाखवुंरे ॥ आगमने अनुसार सलुणा ॥ समजी लेजो प्राणीयारे ॥ ज्ञानी वचन सुखकार सलुणा ॥ श्री शांती ०६ ॥ नाव वास्तुक जे करेरे ॥ तेह लहे भव पार सलुणा ॥ संक्षेपे ते वरणबुंरे ॥ ते सुणजो अधीकार स लुणा ॥ श्री शांती० ७ ॥ नाव वास्तुक श्री शांतीजीरे ॥ करी पाम्या सीव वास सलुणा ॥ मुनी हुकम वास्तुक करेरे ॥ क्षय पद उल्लास सलुणा ॥ श्री शांती ० ८ ॥ ३ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवास्तुकपुजा. काव्य प्रथम प्रमाणे॥ पुजा बीजी संपूर्ण ॥ . · पुजा त्रिजी॥दुहा॥वास्तुक पुजाभावथीभावमांही तेसाते अधिकार ते वरण।समजी लेजोविचार॥१॥ ढाल ३जी॥ धनधन ते जग प्राणीश्रा मन मोहन मेरे। ए देशी॥ वास वसो स्वनावमा मन मोहन मेरे॥ तजी तुमे पर दुर॥ मन मोहन मेरे। काल अनादी अनंतनी॥ मन मोहन मेरो।मोहदशामां पुर॥ मन मोहन मेरे॥१॥ तेहथी भवभ्रमण कर्य।मन०॥चौगती संसारामनाला ख चोरासी योनी विशे ॥मन०॥नाव्यो दुःखनो पार॥ म०२॥असं व्यवहार नीगोदमे॥मन०॥ काल अनादी संतमन०॥ पुनरपी पुनरपी उपन्यो ॥मन०॥ जोगव तो दुःख अनंत मन:३॥ कोइक कर्म विवर थकी म न०॥ अकाम निर्जरा जाणमन०॥ व्यवहार रासीमां आवियोमन०॥थावरादी वखाणामन०४॥ बे ती चोरें द्रीमां नम्यो मन०॥ तेम असंज्ञी विचार मन०॥ज लचर थलचर खेचरा ॥मन०॥ उरपरीभुज परीधाम न०५॥ संज्ञी पंचेंद्रीने विषे॥मन०॥ नरक त्रीजंच धार ॥मन०॥ देव मनुष पण तेम थयो।मन०॥पण नही वा स्तु उदारमन०६॥जेह जेह वास्तु जीहां करयुमन०॥ ते ते पाप उपचार ॥मन०॥ जीवहंसाथी सुख नही॥ म नासमजो सवी संसारमन०७॥ते कारण होम यज्ञ - Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवास्तुकपुजा. तजो ॥ मन०॥ तजो ब्रह्मनोज मुल ॥ मन०॥ बीजे श्रंगे नाखीयुं ॥ मन० ॥ सातमी नरकनुं सुल|| मन०८ ॥ वास्तु करो तुमे ज्ञानमां ॥मन ॥ स्व स्वभाव धार ॥ मन० ॥ जन्म मरण जेहथी टले ॥ मन० ॥ पामे सुख उदार ॥ म न० ९ ॥ श्री शांती बींब पधरावी ॥ मन० ॥ वास्तुक करो उदार ||मन०|| मुनी हुकम ए वास्तुथी ॥ मन० ॥ होवे मंग लमाल||मन ० ॥ पुजा त्रीजी संपूर्ण काव्य प्रथम प्रमाणे पुजा चोथी ॥ दुहा ॥ एम जव जव हुं जम्यो ॥ श्र शुध वास्तुक कीध ॥ हवे सुध वास्तुक श्रादरुं ॥ सदगु रु वचनथी ली ॥१॥ ढाल ४ थी ॥ ए गिरीवर दर सन जेह ॥ ए देशी || सदगुरु मलीयारे ज्यारे ॥ पा म्यो वंछीत हूं व्यारे ॥ उपदेश सुण्यो जब जास ॥ पा म्यो हुं ज्ञान उलास ॥ सदगुरु मलीयारे ज्यारे ॥ पा म्यो वंछीत हूं त्यारे॥१॥ ए क ॥ जाण्यो जब शत्रु जेह ॥ राग द्वेष मोह तेह | अंतरमांथी ते खसीयुं ॥ तव वेरागे मन ते वसीयुं ॥सद ० २ ॥ समकीत तव तें पाम्यो ॥ मिथ्यात्व ते दुरे वाम्यो || गुणठाणुं चोथुं ते सार ॥ बीज चंद्रसम उदार ॥ सद० ३|| सुमती तव घ रमां श्रावी ॥ कुमती तव दुरेरे जावी ॥ तव दीपक थयो घरमांही ॥ दीठी वस्तु पोतानी त्यांही ॥ सद० ४ ॥ ज्ञा नादीक गुण ते दीठा ॥ मुज मन लागे ते मीठा ॥ श्र Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ श्रीवास्तुकपुजा. वरती नारी ते देखी ॥ ताकीदथी दूर उवेखी ॥ सद० ५ ॥ सुधर्म बुद्धी तव श्रावे ॥ चोकडी दोंय दूरे जावे ॥ पा पनो खजानो खुट्यो ॥ मोहनो परीबल लुट्यो ॥ सद० ६ ॥ प्रदेश संख्यनी रचना || निर्मल करवा थइ जच ना || संजम श्री वेगे आवी ॥ कारक समेत ते लावी ॥ सद० ७ ॥ गुणठाणुं सातमुं तेह ॥ फरसतां हूवो गुण गेह ॥ छठे सातमे रमता ॥ ही चोलाकारे करता ॥ सद० ८॥ प्रमत श्रप्रमत जाण ॥ सिद्धांतमांही वखाए ॥ एम वास्तुक ज्यारे कीधी ॥ सदगुरु वचनथी लीधी ॥ सद० .९ ॥ श्रपमंगलीक सरवे नाठां ॥ करमदल पण घाठां ॥ सरव मंगलिक मांही एह || दसवीकालक जाखे तेह ॥ सद० १० ॥ ए वास्तुक पुजा कीजे ॥ मनवंछीत फल तो लीजे ॥ मुनी कम वास्तुक कीधुं ॥ मनवंछीत कारज सीधुं॥सद०११॥काव्य प्रथम प्रमाणे पुजा चोथी संपूर्ण पूजा पांचमी ॥ दुहा॥ वास्तुकपुजा स्वग्रहे ॥ कर तां नवनीध थाय ॥ पर वास्तुक दूरे करो ॥ सहेज शी वपुर जाय ॥१॥ ढाल ५ मी ॥ सोना रुपाके सोगटे सांही खेलत बाजी ॥ए देशी | वास्तुकपुजा घरत णी।। स्वस्वरुपमां लीजे ॥ संख परदेशछे श्रातमा ॥ तिहां कने कीजे ॥ स्वघर तो तेने कह्यं ॥ खेत्रथी जाण ॥ द्र व्यथी चेतन जाखीयो । एम चीत्तमां त्राण ॥ गा० १ ॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवास्तुकपुना. कालथी अगरुलघु कह्यो॥ तुमे समजोनाइ ॥ छठाण वडीत्रा ताहां कने ॥ एम चीत्तमे लाइ ॥ नावथकी ते जाणीए ॥ज्ञानादीक गुण ॥ सदगुरु हेते नाखीश्रा॥ ए म वास्तुक सुण ॥ गा०२॥ वास्तुक पुजा तुमे करो॥ | श्री सांतनुं नाम॥ संतपणुं तुमे पांमशो॥ भाख्युं शास्त्र ते तामवास वसो तुमे ते विष॥जे गुणन गेह। अव्या बाध सुख तीहां कन।पामशो तुमे तेह॥३॥ अवेदी अ छेदी सदा॥ अभेदी कहीए॥अखेदी ए आत्मा।एम स मजी लहिए॥असंख्य प्रदेश ते देखता निर्मल ते ना से॥ सीखतणा ए साधरमी॥ अक्षय सुख वासे ॥४॥ सं नावे तीहांकने।नही रागने देशाए नाव चितमे धरोपे हेरो अक्षय वेश। बाहाज्य द्रष्टि मत दियो। दियो अंत रमांही ॥ तव पियो समता सुधा। संतरस ज्यांही॥५॥ सरव जीव ते सारीखा॥ सत्ता ए देखो॥ राग द्वेष की नसे करो|कोण परायो पेखो।ज्ञानादिक गुण अनंतनो॥ स्वामी ते कहीए॥ श्रातम सीड ते सारीखानेद तेहमां ना लहीए ॥६॥ विभाव सर्व दूरे करो॥ दूखदाइ जा पी॥ स्वभावमांही खेलीए॥शुद्ध नाव चीत आपी॥ ज्ञान दरसन चरण तआत्मने कहीए॥ अनेद ज्ञान ते आदरो।केवळतिहां लहिए॥७जथा खाएक जाणीए॥ चारित्र तेह॥ ते गण तिहां प्रगटे॥ अनंत विरज एह॥ - Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवास्तुकपुजा. |सलेशीकरण तिहां करे॥ प्रकृती बोतेर टाली॥ प्रकृती तेरने टालतोनिजगुण अजुआली||बंधन छेदी स रवथी।शीवपंथे चालो॥दोय नाग अवगाहना॥ ते वास मां मालो॥ एक समे थीती तेहनी॥ शीवपुर ते पोचो। वास्तुक पुजा तिहां करो। अक्षय पद राचो॥९॥ एम वा स्तुक जे करे॥ पछे वासमां वशीए॥ ते सुख पामे शास्व तां शीवरमणी रशीये॥ मुनी हुकम वास्तुकतणो॥ एम करे उमेद ॥ जीनवाणी रुदीए धरीटाली मननो खेद ॥१०॥काव्य प्रथम प्रमाणे पुजा पांचमी संपुर्ण ॥ ॥कलस॥ गायो गायो रे श्री सांतीजीनेश्वर गायो।सं तस्वरुप देखीअनोपमावास्तुकपुजामेलायोरोश्रीशांती जीनेश्वर गायो॥१॥एम समजी जे वास्तुक करशतस नव दुख ते जायो॥ शांतीजीनेश्वर शांतीकारण ॥ वास्तुक पुजाए गायोरे ॥ श्री शां०२॥ संवत भोगणी स सतावीस वरसे॥ फागणमास कहायो॥ सुद चोथने गुरुवारे॥ ए पुजा रचायोरे॥श्री शां०३॥श्रद्धावान सु श्रावक ॥ नेमाज्ञाती कहायो । मोदी गीरधरे पजा र चावी ॥ बहू द्रव्य खरचायोरे॥श्री शां० ४॥ गोधरपु रे श्री शांतीजीनेश्वर ॥ परसाद सुंदर सोहायो ॥ सं घ श्राग्रहथी रचना कीधी ॥ मुनी हुकम सुख पायोरे ॥श्री शां० ५॥ इतिश्री वास्तुक - - Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रोसम्यक्हार. श्रीगुरुभ्योनमः ॥हा॥ श्रीसंखेश्वरसाहेबा॥प्रणमिपासजिणंद॥ तेहत पसायथी॥ करूंशुद्धप्रबंध ॥१॥ सदगुरुनेचरणेनमी॥ समरीसरश्वतिसा|ग्रंथरचूंव्यवहारमा॥ नामेसम्यकहा र ॥२॥ नव्यजीवनाहितनणी॥काँग्रंथरसालात्रणतत्व अोलखावसुं|संक्षेपेसुखसार ॥३॥ मूढमतिसमझेनहि॥ तेमांनहिकोयदोषाकुगुरुत्रादिकनरमावियो।करेकर्मको पोष॥४॥ सुलनबोधिजीवह।तेसहहशेएहातेहसुखले शेतुरत।टालिकर्मनेतेह ॥५॥ संप्रतिजेहनुंफलछ।देवलो कनरलोकधार॥ अनुक्रमेफलतेलह॥ परमपरमोक्षसार ॥६॥करूंबालावोधमयासोरठनाषामोझार॥बालजीवने कारणे॥समझतांनहिवार ॥७॥ अत्रनाषालिख्यते ॥ हवेइहांसमकितनेवास्तत्रपतत्व श्रोलखावेछेपरंतुव्यवहारनियोलखाणविनासमकितनि मालमपडेनहिं तेवास्तेप्रथमव्यवहारनिोलखाणकरा वेछे तेश्रीजिनमार्गनेविषेतोस्यादवादमत्तछे इहांतोव्यव हारनोपृष्ठथायछे त्यारेवादिएतर्ककरीजे श्रीजिनराजनो मार्गतोएकांतछेनहि तुमेतोएकांतेव्यवहारनेपोषोछे थी | सुगडंगमधेतोकयूंछेजे॥एकांतेहोइमित्छाश्रो इतिवचना Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. त्॥तेनुंकेमतेनोउत्तरजेतेप्रश्नकर्य तेखरुंपणनिश्चेतोप्रणा मनीधाराएछेबाझ्यथकितोव्यवहारजोयामांत्रावेछे श्रीम हाविरस्वामीनेकेवलज्ञानउपन्युत्यारेतोएकलाहतात्यार पछी इंद्रादिकसुरमलीनेसमोवसरणादिकनिरचनाकरी त्यारेइंद्रभूतिप्रमुखेजाण्युकोइकइंद्रजालीयोभाव्योछेएवं जाणीनेवादकरवागयो नगवानेएहनासंदेहकाढ्याएणे चारित्रलीबूं तेसर्वव्यवहारहतोतोबनित्राव्यु एकलाहो ततोकुणजाणता तथावलिजेसाधुतथाथावकनो प्रावर्तन सर्वव्यवहारमेंदिसेछेकिमजेसाधू जेसाधुनामानोपेतवस्त्र पात्रराखेछे अनेसूधपरंपरागतप्राचारेवतेछे तेहनेसाधु करीनेवांदेतो समकितनिर्मलथाय जेतेहसाधुकरीजाणि नेसाधूनेव्यवहारेवांदेछेजिमश्रीप्रश्नचंदराजरूषिकाउस गकरीनेउनारशाहतादूर्ध्यानध्यातांथकां श्रेणिकराजाए तेहसाधूजाणिनेव्यवहारेवांद्याछे साधूकरीनवांद्यापणमि थ्यात्वकिधूनथि तेवास्तेजिनसासननेविषेचतुरविधसंघ निनक्तिबहूमानकरवू तेव्यवहारनेजोइनेकरवूजोव्यवहा रनेमानेनहितोतिर्थनोउछेदथाय॥ यदुक्तं॥श्रीआवशकनिषूक्ति॥चौमत्छसमयंचजा॥व्यव हारनयांणूंसारणिसवातंजहा।सामायरंजोगसूझईसवो वीसुधमणों॥१॥संविवहारोविबलि॥जिनशुद्धपीगीहिय।। सुवविहिए॥कोवईनसवां। वंदइयकयाइंछउमत्छ॥२॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. निथयव्यवहारनोवणियसिहसासणंजीणीदांणंए।गय रपरीवाश्रमीथसंकादउजेयया॥३॥ जईजीणमईयंपव जहंतो॥माववहारनयमयंमुयहाविवहारपरीवाए|तित्छू छेप्रोजउवसं॥४॥हवेचारगाथानोअर्थकाहएछियछउम थसमयंके० छदमस्थनोकाल॥चपुन्यजाके जिहांसुधीछे एटलेजिहांसुधि छदमस्थपणुंछे केवलज्ञांनउपन्यूनथि त्यांसूधि।व्यवहारनिया'सारणीसूवाके०॥सरवेकिरीया जेव्यवहारनयनंसारणीकहिछे श्रीतीर्थंकरदेवे ततहस मीयरंतोके०॥तेआचरतोथको अंगीकारकरतोथको जि वसिझिहके०॥सिधिथाए कर्मरहितथाए सवोविके०॥स वनव्यजीव विसूधमणोके ॥जेभव्यजिवकपटपणेरहित व्यवहारनयनिकिरीयाकरतोथकोकर्मरहितथाएएप्रथम गाथानोअर्थ॥१॥ एगाथामांहेविसूधमणोंएपदेकरीनेनि श्वेपणकयो हवेबिजीगाथामांहेनिश्चेथकिव्यवहारबलि ष्टछेतेदेखाडेछ।संव्यवहारोबीबलिके०॥समेक्यविवहार तेजेउनोउक्तं सूधव्यवहारछेतेबलिष्टछे तेसामाटेजे सम सुधंग्रीगहिअंसूपवहिएज्यंके०॥ एतएशुधश्राधाकर्मादि दोष दूष्टाहारामिदकगहियंके०॥पहवोसूरावहीयंके०॥ धिकरीने एटलेछदमस्थे पोतानाजांणपणा थि सूधमांनजाणिनेवोहरे अनेनिश्चेथकितोकेवलप्राधा कर्मादिकसहितत्राहारछे तोहिपणकांई नसपणोके०॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२. श्रीसम्यक् वार. ने कोईजतिप्रमाण करेपणनिषेधनकरे सर्वग्य के ० ॥ केवल ज्ञांनिपणच्यधाकरमादिक श्राहारछदमस्तेंसूधमांनजां णीनेंत्राण्योहोयते श्राहारकेवलिपण सूंनकरे वंदिकया थनउमत्छंके ० ॥ कदाचित् कोईदने चउमत्छंवंदिय के ० ॥ छदमस्तप्रतेवांदेकेवली एटले सिष्य ने केवलज्ञांन उपन्यूंछे अगूरुतोछदमस्तछे तोहिपए जिहांसुधि केवलज्ञांनउ न्युंजांण्यं नाथित्यांसूधिसिष्यनो व्यवहारवेदणादिकनोहो यतेजालवे एगाथामांहेनिश्वेथकीव्यवहारनयबलवान दे खाड्यो एबिजीगाथानोर्थ कह्यो॥२॥ हवेंत्रीजीगाथामां हेनिश्चेनयव्यवहारनय सहित जिनसासनतोहिपण एकन यत्यागकरतोमिथ्यात्वथाय तेकहेछे नथिव्यवहारनउवां पियमेहसास जिणंदां के ० ॥निश्चेव्यवहार सहितछे इ हके०॥इहलोकनेविषे जिणंदांांके ॥ जिनेद्रनूंसासनछे तेनिश्चेव्यवहार सहितछे॥एगयर परीइयो के ० ॥ एकत्वनय नोपरीत्यागकरेएटलोनिश्चेनयतथाव्यवहारनयएबेहूमधे थी एक नयनेमांनेते हतोमीत्छं मांकादियजेयेके । तेहन मि थ्यात्वथाये संख्यादिकउपजे तेपणइहांमिथ्यात्वजछे ए त्रीजी गाथानोर्थकह्यो । ३ । हवे चोथिगाथानोश्रर्थ कहियेछि ये जोव्यवहारनयनेत जे तोतिर्थनो उच्छेदथाये ॥ जीएंइजण मयं पवजह के ०|जोजिनमतनेविषेपवजयके । परवरजाश्रं गीकारकरवि व्यवहारनयमयंमुई हिके • तोव्यवहारनयना Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. मतनेमकसोमांव्यवहारपरीचाओके०जोव्यवहारनयनो परीत्यागकरसे अनेमांनसोनहितो तत्छत्छेप्रोजउवसं के०॥तिर्थनोउछेदथाए।अवसके।तेनिश्चेकरीनेजांणजो एचोथीगाथानोअर्थकह्यो॥४॥एविरीतव्यवहारछेतेबली ष्टछे वास्तव्यवहारनेविसेषेकरीनेदेषाडयोछेअनेनिश्छे तेतोकेवलगम्यछेव्यवहारछेतेप्रतक्षदीठामांबावेछेवास्ते व्यवहारनोउपदेशविशेषेदेतांकोईदोषणनहि। इतिउत्तर पर्णः॥ इतिथीसमेक्यद्वारग्रंथोमुनिश्रीहकमचंदजी विर चित्तेप्रथमोध्यायसमाप्तः ____ हवे व्यवहार जे धणी आदरे तेधपिप्रथममिथ्या तनोत्यागकरे॥शामाटेजे मिथ्यात्वथकि समाकित होय नहि मिथ्यात्वगये समकितथाय हवेइहां मिथ्यात्वनो सरुपसंक्षेपथकि देखाउछे ॥ मिथ्यातना पांचभेदछे । यदुक्तं ॥ अभिगहीय॥२॥मणनिगहीया॥२॥अनी निवेसिय ॥३॥ संसय ॥४॥ मणानोग ॥५॥ पण मित्छ बार १२॥अविराइ॥मण १॥करण॥५॥ नियमछजीयबहो ॥६॥एगाथा॥५२॥ चोथाकर्मग्रंथनी तेहनोअर्थ अनिग हिअके०॥ अभिगृहित्तमिथ्यात्व ॥१॥जेजीवगुरुकूदे वधर्मनेसत्यकरीनेग्रह्या तेमकेनहि तेहलोहवांणीयानो दृष्टांत एअनिग्रहीतमिथ्यावनोपेहेलोनेद॥१॥अननिय हीयके०॥अननिग्रहीतमिथ्यात्वजेकरे सर्वेदेवासर्वेगूरुस Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. त्यछे तथाखराखोटादेवगूरुनिखबरनथि तेहनेतेमिथ्या व एबिजो नेदमिथ्यात्वनो॥२॥अनिनिवेसियके०॥अनि निवेसीकमिथ्यात्वकाहिये अभिनिवेसीके०॥ खोटोहठक दाग्रहकहिये तेजीवएकवारअजाणतांजूटूंबोलेपछेतेहने थापवानेकाने घणाउपायकरे पछेजाणिनेखोटिजूक्तिए करीनेजूठंबोले तेअभिनिवेसिमिथ्यात्वकहिए तथापूर्वे श्रीमहाविरश्वामिनासासननेविषे जम्मालीप्रमूखनिनव नेत्रनिनिविसमिथ्यात्वकाहिए प्रथमतोअजाणतांजूठंबो ल्या पछेतोजांणीनेकदाग्रहनेवसेकरीनेपोतानवचनराख वानेकाजेजठंबोल्यातेनेअभिनिविसीमिथ्यातकहिएडहां आचोविसिमध्येहूंडाअवसरपणीनेजोरेकरीनेदसतोत्र, रांथयांछे वर्तमानघणाजीवबहूलकर्मीकृष्णपक्षादिसेछे सूकलपक्षीलघुकर्मी जिवथोडादिसेछे तेहथिइहांएकपू द्रलपरावर्तनमाहेमोक्षेजावूहोय तेशुक्लपक्षीजीवकहिए जेकृष्णपक्षीजिवहोय तेहनेमत्तकदाग्रहघणोहोय तथा शुक्लपक्षीजीवहोय तेमध्येपणनारेकर्मिजिवहोय तेहनेम तकदाग्रहघणोहोय हठवादघपोहोय जेश्रीमहाविरश्वा मिनासासनमध्ये सातनिनवथया तेश्रीठाएंगसूत्रना ७ मेठांणेकिधूंछे तेअलावोलखिएछे ॥ समणभगवउ महा विर सतथमी सतपवयणननंपनंता तंजहा जहाबहरी या॥॥जीवपयसिया॥२॥अवतवा॥३॥समछइया॥४॥दो - Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. करीयादातरासीया॥६॥अवठियाए॥७॥ एएसणंसत्त नंपवयण निहगाणं सत्तधम्माअरीयाहोत्छ तंजहाजमा लीजमाला॥सीतगूतोअसाढ॥३॥श्रासीमिति॥४॥गंगे य॥५॥छलूए॥६॥गूठामाहेले॥७॥एएसिएंसत्तन पवयण नीनगाणं सतउमत्तिनगरहोथासावथि॥१॥उसभरा२। सियबिया॥३॥महिल॥४॥ उलगातिरं॥५॥ पुरमंसरंजी ॥६॥दसपरनिनगाउपतिनगराइहवेएहनोअर्थलिखीए छीये श्रीमहाविरस्वामिनेकेवलज्ञांनउपन्यापछिचउदव रसथयापछीबहूमतमतिजमालीनांमानीनवथयो। बहूर तके०॥बहूसमयेकारजपूरंथाएबहूके०॥घणासमयकरीने कारजपूरुथायछे तेकिमतंजहा कुंभारमाटिलाविनेपांणी सुंभेजविनेपछेघडोकरे तेघडोज्यारेपूरोघडे तारेघडोक हिएएटलेघणेसमयेकार्यपुरंथायतेहनेविष। रतके०॥श्रा सकबहूसूसमीये।सूरतत्रासक्त॥इतिबहूरतअनसमयाप दलोमात्तमव्यधपदहलोपसमासएहवेनामे काढ्योजमा लिनांमानिनवथयो श्रीमहाविरस्वांमिजीतोकरेमांक रेजेकारजकरवामांडयूतेकारजकर नहि।एवचनउथापी नेपोतानो मतपरुपवालाग्यो श्रीसावथी नगरीमाहिथ यो इतिप्रथमनिन्हवथयो॥२॥बिजोनिनवजिवपरदेशिक मनिके०॥चरनप्रदेशीजीवनिप्ररुपणानोकरनारोतिषग प्तनांमा/श्रीनगवंतश्रीमहाविरस्वांमिनेकवलज्ञांनउप Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ श्री सम्यकद्वार. न्यापछि सोलेवरसेथयोनिनव॥२॥ श्रीमहाविरस्वांमिछ तांउत्सूत्रनिपरुपणाकरताहूवा श्रीमहाविरस्वामितो श्रसंख्यातपरदेशलोकाकास परदेशसमापत संपूर्णने जी वकछे तेतोछेला परदेशमांजीवमानेछे इतिद्वितीयनिन ॥२॥हवेत्रिजोनिवासादतिश्राचार्यतेनासिष्य श्री प्रवक्तनांमामतपरुपकथयो तेकेम श्रीमहावीर स्वामिनि रवांणथयापछि बसेनेचउदेवर सेथयो २१४॥ श्रीश्राचार्यपा सेघणासिष्यजोगवहेछे श्रीसिद्धांतनाजोगवे प्रकारेछे एकप्रगाढ बिजो नागाढ हवेते गाढजोग होयतेमध्ये थीकार निकलेतो तेजोगफरीवेहवोपडे तेजोगगाढ कहिए तेजोगमाहेकारणेनिकलेतो जेटलीच्अधुरोहोय तेटलोजोगवहिने पूर्णकरे तेजोगनागाढ कहिए ॥ तेसिष्ये गाढजोग वेहबामांड्यो तेहिजदिवसे कोई ककर्मनेउदयेकरीने आचारजकालकरीने सुधर्मदेव लोके नल निगुलमविमांने उपन्या ॥ पछे अवधिज्ञांने करीने जोयुं तारेएटलामांलामध्ये कोइजोगपुरोकरावें एहवो श्राचारनदिठोनहि तारेसाधुनि श्रनंकंपाएकरीने ते हिज पोतानासरीरमध्ये श्राविने देवतानिशक्ति एकरीने कोईजा नहि तेहिजरात्रे उठिनेवृत्तिकाल गृहणलेइने जोगक्रि याउदेस समउदेस अनुग्यांनीतकरावे अनेसाधनाव्यव हारश्रीचारने प्रवर्ते छे॥ गाथा॥ श्रालियविहार समिमूयो॥हू Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. तोगूतोबियोसमपदमे॥पढमपईमणूंरषेविरीयामोपाईवा यात्रो॥१॥इत्यादिकव्यवहारप्रवर्तताथकाजोगशिष्यनेसं पूर्णकराव्यो पछेतेदेवतासाधूखमाविनेठेकाणेगयो तेवा रैतहिज शिष्यनेशंकापडि जेवलिएमकोईकेकालकों होय अनेबीजोपणपोतानाशरीरमांहीपेठोहोय कोइदेव ताआविने तोकूणजांणेजेसाधूछेकेदेवताछे एवं विचारी कोइकोइनेवांदेनहि कोइजोवांदिएतोआपणनेदोषणला गे तेजोदेवताहोयतो अबत्तिअपच्छषांणीहोयतेहनेसाधू करीवांदिएतोमिथ्यात्वथाय अनेमृषावादपणलागे एट लावास्तेकोईसाधूमाहोमांहिवांदेनहि श्रीअषाढाचार्यना शिष्यअवत्कव्यनांमामत्तनिपरुपणाकरताथकाविचरे ह वेतेकालेगीतार्थ बहुश्रुतमहापुरुषहता तेहनेघणीचरचा करी जेएकाएदेवताहोए अनेसाधूनोवेषधरीतेसाधूनेश्रा चारे मुलगूणपंच महाव्रतना ७ श्राचारपालतो होय ते नेसाधूकरीनेवांदेतोमिथ्यात्वनथायअनेमृषावादपणनला गेजेजिनसासननेविषेतोबाझ्यथिव्यवहारबलिष्टछइत्या दिकवीजीपणघणीकक्तिएकरीसमजाव्योपणसमजेन हि तारेतेश्रषाढाचार्यनाशिष्यने संघबहारकरया तोएक दाग्रहमुंकेनहि एवाअवसरेथीराजगृहिनगरीमांहे श्री बलनद्रराजाराज्यकरछे सर्यवंशिनेजैनधर्मिछे तिहांते शिष्यश्राव्या त्यारे तेनेप्रतिबोधवानेकाजराजाएपकडी - Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्वार. मगाव्यातेनेमारवामांड्यातारेतेसाधुकेवालाग्या हेराजन तुश्रावकथइनेमने केम मारेछेतारेकेवालाग्याजे कुंणजांणे जेतमेसाधुछो केचोरछो केदेवताको अमेपण श्रावकछू के देवताछूते कुंणजांणे तारेतेप्रतिबोधपांम्या पछेथिवरसा धुनेपगे लाग्या पोतानोमतकदाग्रहमुक्यो आलोइने पछे शुधथया तृतीय अवतव्यनांमांश्रीश्राषाढाचार्य नाशि ष्यनोअधिकारपूर्णम् ॥ इतितृतीयनिनव ॥ ३ ॥ हवे चोथानिन्हवनो अधिकारकहछे ते श्रीमथ रांनगरीने विषेथयो श्रीमत् महावीरस्वामिना निर्वा एपछी बसेंने विसवर्षे श्रीश्रार्यमहागीरीना शिष्य को डननामा तेनाशिष्य श्वमित्रनामा एकज विद्यानं परवाद दसमूं पूरवनिपूणनांमा वस्तु तांथकां एवो श्रालावो श्राव्यो जेपडिपूंन्यसमयनोरायासवे ॥ २ ॥ विच्छिजस्सति एवंजाववमाणांति ॥ एवंप्रतिताए । समये सुवित्वव्यं॥एहनोप्रर्थः॥पडिपुन्यके० ॥ वर्त्तमानकालहोय एटलें वर्तमानकालसमयनाजेनारकिछेतेबिजेसमे ॥ वछेद के० ॥ विनाशथाएछे एटले प्रथमसमयेवसष्टजेनार किह ता तेहिजनारकि बिजासमय नेविषेबिजेसमेविसिष्टथाय तेनेतेसमजणपडिनहीं मिथ्यात्वनाउदद्यथाकिगुरुत्रादिकें घणीपरे समजाव्योतोएसमजेनहि तारेसंघबाहर काढ्यो तेनामतमांहीजे जीवपापकरेछे तेनाशपामेछे जेजीवपून्य १८ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. करेछेतेपणनाशपामेछेसमयेरतेअश्वमित्रविहारकरतोश्री राजग्रहीनगरीएश्राव्यो तिहांषडरस्याविद्वांनसांत्तकछे तेदरबारनोचाकरछे मांडविनोदांणीछे एहने प्रतिबोधवा नेकाजे पकडीने मारवालाग्यो तारेतेने कहेवालाग्यो जेहूंसाधूछू तमोश्रावकछो तो{नेकेममारोछो त्यारेदां णिबोल्योजसाधूहतातेतोनाशपाम्याहवेंतूंमनेकोणजाणे छे जेसाधूछोकेचोरछो तारेतेप्रतिबोधपांम्यो गूरुनेत्रावि नेपगेलाग्योखमाविनेशुद्धथयो एचोथोनिनवकह्यो॥४॥ हवेपांचमोनिनवकहियेछे द्विक्रियावादिगंगनामाप्राचार्य श्रीमहाविरस्वामिना निर्वाणथकिबसेंनेअठ्याविसवरसे श्रीत्राचार्यमहागिरीनाशिष्य श्रीधनुपरपत्यतेहनाशिष्य गंगनामाएकदाउष्टनदि तीरेपूर्वतटे श्रीधनगुप्तआचार्य चोमासुंरह्याछे पश्चिमतटनेविषे गंगनामाशिष्यचोमासं रह्याछे तिहांथकिशर्दरुतुयेश्रीगुरुनेवांदवात्रावतांमार्गने विषेनदिनतरतां माथेटालहतितेनपरेतडकोघणोलाग्यो अनेपगेनदिनूंपांणीटाढुघणुलाग्य तेमांमिथ्यात्वनोउद यथयो तारेमनमांहेचिंतववालाग्यो जेएकसमेश्रीसिद्धां तमाहेबेइकिरियानो उपयोगनिषेधकह्योछेतेखरूंछे जे हुंसाक्षात्एककालेबेहूकीरीयानो उपयोगअनुनवूर्छ श्रा तोनष्टवेदनाअनुनवर्छ पछीगुरुत्रागलचेष्टाकरी तारेगु रुकेहेवालाग्या जेएकसमये एकजक्रियानो उपयोग Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. होय एकसमेदोमुषेखातोहोय नेबोलतोहोय पगेहिंडतो होयएटलेक्रियातोएकसमेघणीकरतोथकोपणएकजकि यानोउपयोगहोय समयनोकालसुक्षमछे एमघणुका पणमान्यनहिं तारेंगरुयेसंघबाहरकाढ्यो पछेतेगंगशि प्यश्रीराजगृहिनगरीएश्राव्योतिहांमातंप्रस्तरप्रभावना मुंदेहेरुंछे तिहांमणिनागनांमेजक्षनदेहरुंछे तेपासेखोटि परुपणाकरतोदेखीनेतेजक्षकेहेवालाग्यो श्रीवमानस्वां मीयेएकसमेएकजक्रियानोउपयोगकह्योछेरेपापीष्टदुष्टतुं एकसमेबेक्रियानोउपयोगकेमकेहेछेएवाघणाककठणवच नेकरीनेकह्यु तेसांनलिनेमनमांनयपामतोथकोगुरुपासे श्राव्योमिथ्यात्वमूक्यूंगुरुनेखमाव्या इतिपांचमोनिनवक ह्यो॥५॥हवेछठोनिनवत्रिरासिकनोअधिकारकहेछे धीव ईमानस्वामिनानिर्वाणथकि पांचसेनेचमालीसवर्षेनि जकानगरीनेविषे बलश्रीनामाराजाराज्यकरेछे तिहांलो हपटसालनांमापरीव्राजक लोहपटबांध्युछे हस्त विषे जंबुवृक्षमुंडाळुराखेछे लोकपूछेतारेएमकहे जेमारापेटमां विद्यारहितेणेकरीनेफाटेछे वास्तेलोहपटबांध्यु नेकोइ प्रतीवादिजंबूद्विपमाहिदिठोनहिं तेहजणाववानेकाजेजंबू वृक्षमुंडालुंछेतेलेइनेफरुंछु तिहांतेकालेश्रीगुप्ताचार्यवि चरेछे तेहनाशिष्यरोहगुप्तनामागांमतरेछे तिहाथकीगु रुनेवांदवात्रावतांवाटे राजाचरचानकाजेपडहोवजडावे Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. छे कोइएपंडितहोयतेएपरीव्राजकनेसाथेचरचाकरे तिहां रोहगुप्तशिष्येझाल्यो पछेगुरुपासेश्राव्यो गुरुयेकांजे एसारुंकर्युनहि श्रापणेवादकरवानुशंकामछे नलुंहवेतो सारंथायतेमकरो पछेगुरुएज्ञानेकरीनेजाण्युजेतेहपासे नकुलनीविद्या॥॥ सरपनिविद्या ॥२॥ उंदरनिविद्या ॥३॥ मृगनिविद्या॥४॥ सुयरनिविद्या॥५॥ कागनिविद्या ॥६॥ पंखिनीविद्या॥७॥ एसातविद्याछे एविद्यानेघातनी करनारी बीजीसातविद्यागुरुएबापी मोरविद्या॥१॥न कुलनीविद्या॥२॥ बलाडीनीविद्या॥३॥ वाघनीविद्या॥४॥ सिंहनीविद्या॥५॥गुढनीविद्या॥६॥बाजपंखीनीविद्या।७। एसातगुरुएबापी ॥ वलिपाठमो पोतानोश्रोघोमंत्रीने गुरुए प्राप्यो बीजाउपद्रव्य निवारवानेकाजे हवेजेरो हगुप्तहता तेगूरुनेकहिने राजसनामांहिाव्या त्यारे पटसालकपरीव्राजके जाण्यंजे एजेनिछे एहप्रतेजोसं स्कृतभाषाबोलीशंतोतेबोलशेनहि तेवास्तेजैननाघरनी वातलहिनेवादकलं जेउथापिसकेनहि हवेपटसालबो ल्यो जेसंसारमधे बेपदार्थनिरासिछे एकपून्या॥१॥ अथ वापाप॥२॥ रात्रिदिवसा४॥ श्राकास॥५॥ धरती॥६॥ जीव॥१॥अजीव॥२॥इत्यादिकबबेनिराशिछे त्यारेरोहगू प्तबोल्यो जेसंसारमध्येरासित्रणनीछे कालत्रणछे अती त॥१॥ अनागत॥२॥ वर्तमान॥३॥ स्वर्ग॥१॥ मृत्य।२॥ . Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ श्रीसम्यकद्वार. पाताल॥३॥ जीव॥१॥अजीव॥२॥ नोजीव॥३॥ इत्यादि करासीत्रणनीछे त्यारेपटसालकहे जेनोजीवतेशुंकहीए त्यारेरोहगुप्तकहे॥जेनोजीवक०॥ गरोलीनीपूंछडीटुटी पड्यापछीहालेछे एजीवपणनकहिये अजीवपणनकही ए एनोजीवकहीए पछेसातविद्यामकी तेउपरतेणेपण सातविद्यामुकी विद्याघातीनेझीत्यो पछेतेनीपासेएकप दवीविद्याहती तेमुकीनेविद्यानेप्रसादे जयपताकाकरी ने गाजतेवाजते श्रीगुरुपासेश्राव्या सघलीवातकही गुरुएपूज्यु हेवत्छसारूंकयुजे वादनेजीत्यो पणजीवत्र जीवनेनोजिवकह्यो तेउत्सूत्रनाप्युं तेहजइनेराजसभा माहिखमावो पछेअहंकारनेविशे आत्मामांत्रनिनिवशि मिथ्यात्वनेवसेकरीनेगुरुए किधुंतेमांन्युनहि पछे राजस नामांगुरुसार्थवादकरतांहारयो पणमानेनहि तारेगुरुए कुंतित्रावडनेहाटेथकि नोजीव मगाव्यो पणाव्योनहि पछे गुरुएसंघबाहरकाढ्यो एणेवैशकमतपरुप्यो इति त्रीराशिकनामाछठोनिनवकह्यो ॥६॥ हवेसातमोनिनव गोष्टमालिनांमा तेहनोअधिकारकहेछे श्रीमहाविरस्वा मिनानिर्वाणथकि पांचनचोरासीवर्षे श्रीमालवदेशने विषे दशपूरकहेतांसंप्रतिहमणा मंदोसरनेविषेथयो। ते केम ॥ श्रीभार्यरक्षितप्राचार्य देशेउणादशपूरवधर श्रु तकेवलि जुगप्रधानछे सोमदेवब्राह्मणनोपूत्ररुद्रसोमा - Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. मातजेहनिपरमश्राविकाहोति तेमातापूत्रप्रते कहेहेपूत्र माहरोजोपुत्रहोयतो दृष्टिवादपूर्वनणिने आवेतो हूंराजी थाउ एवचनेकरीने तेतलीपूत्राचार्यपासेदिक्षालिधी श्रीवेरस्वामि पासेदेशेउणा दशपूरवनण्या तेश्रीत्रार्य रक्षितनाच्यारशिष्यमुख्यछेएकदूरबलिकापुफमित्रजुगत धान॥१॥बिजाश्राश्रावधयमांनामासाधु ॥२॥ त्रिजाश्री फालुरक्षित ॥३॥ चोथाश्रीगोष्टमालि ॥४॥ फालुरक्षित श्रीार्यरक्षितानालघूनाईछे अनेगोष्टमालीमामाछे सि दूरबलिकापूफ मित्रनामासाधूनवपूर्वसूधिनण्या दसमु पूर्वभणे पणविसरीजाय तारेशीआर्यरक्षिते जाण्युहवे आजथकिदिवशेदिवशे घटतिरबधिथशे तेवास्तेश्रीत्रा चारंगादिकसिधांतनाजेअनुजोगके० ॥ वाख्यान टिका निर्यक्तियादिकजे सिधांतथकिजुदिकरीने पूस्तकपदेल खि एटले जेटिकानियुक्तियादिकतेत्राचारंगादिकथकि वेहेलांलिख्यांछेत्राचारंगादिकतोनवसेंने एसिवर्षेलख्यां दिसेछे जेनिगम॥१॥सं ॥२॥व्यबहार॥॥रजूसूत्र॥४॥ शब्द॥५॥संनीरुढ॥६॥ एवंभूत॥७॥ एसातनुवाख्यान सूत्रमाहे विस्तारेहतुतेसूत्रमाहेगोपव्यु अनेनियुक्तिया दिकनेविषेविस्तारीने किधां तेसाक्षत्रणप्रकारे कहिछे तेएकप्रणीत॥१॥अतिप्रणीत ॥२॥प्रणीता ॥॥प्रणीत तेजनिखेपासमजे नहिअगीतारथ॥॥ अतिपरणीततेए Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. कनेसांनलिने एकांतद्वारे स्यादवादतुरत जाणेसमजे नहि जाणेजेहूंसमजणोछु तेनेलोकमांहेदाधारंगोकहछे तेनेपरणीतशिष्यकहिए॥७॥हवेजेपरणीता शिष्यतेनिश्चे व्यवहारउत्सर्ग अपवादमार्गसर्वसमज॥३॥ पणबुधि नाथोडापणामाटे कलिकालेविस्तारीनेवाख्यानकरीशके नहि तेवास्तसिधांतमांहेगापव्यापछे पार्यरक्षिते दूब लिकापूफमित्रने जोग्यउत्तमजुगप्रधानजांणिने श्राचा रजपदविथापिनेस्वर्गेपधारया पछेगोष्टमालीसांभलिखे दघणोपांम्योथको श्रीदसपूरनगरीनेविषे श्रीदूबलिका पूफमित्रथकिजूदेउपाश्रयेत्राविनेउतरेतिहांश्रीरधनामा साधनेपासे करमपरवादनामा आठमुंपूर्वसांनल्युंछे ते नेविषेकाछेजे आत्मानेविषेकर्म रह्यांछे जिमदूधमाहे पाणीनाखीए तेपाणीनेदूधएकमेकथायछे वलिलोहने अग्नीमांहेतपावीए तारेलोढुंलालचोलमयथैजायछे ते मत्रात्मानेकर्मएकमेकप्रणमेछे तेगोष्टमालिकहेवालाग्यो जेत्रात्मानेविषेकर्मछे तेकंचूकनेन्याएरह्यां जिमपूरुषजां मोपेरे तेमएहवेआकारे कर्मरह्यांछे तेवंदासाधूएकह्युजे एहवुसांनल्युंछे वलिप्रत्याख्यानपरवादनवमुपूर्वसांनल ताथकांपचखाणनोअधिकाराव्यो जेसाधूदिक्षालेतारो॥ करेमीभत्तेसमायं सावजजोगंपचखामी॥ जावजीवाए। तेवीहतीविरुणामणेणावायाएकाए।नकरेमी॥ इति - Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. . २५ पाठः।इहांजावजीवाएपदकेहवोनहि ॥एपदकेहतां ॥सा धूनेदोषलागेछ।जेजीवुत्यांसुधी॥सावज्यंजोगनुपछखांण साधूनेछ।मुवापछीपछखाणमोकलु।तारेत्रासंसाकेहतां॥ वंछानोदोषलागेछ। जेपरनवेजाइश।। तारेभोगविशतेवा स्तेजावजीवएवा पदेकेहवोनहि एवसांभलिने श्रीष साधूएमान्युनहि पछेत्राविनेश्रीदुबलिकाजिनेकांजेगो ष्टमालीएविपरुपणाकरेछे करमश्रासरीतथापचखाणा सरी तेसांनलिनेदुबलिकापुफमित्रे काजे गोष्टमालि उत्सूत्रनीपरुपणाकरेछे तेखोटुबोलेछे तारेसंघनेसंदे हपड्यो श्रीदुबलीकाचार्यकहेछेएखरुके गोष्टमालिक हेछेएखरुछे तारसंघेसासनदेवीनेसमरीने श्रीश्रीमंधर स्वामिपासेमोकली तेदेवित्यांजईने श्रीमधरस्वामिनेपू च्यूत्यारेश्रीमंधरस्वामिएकहयुंजेएगोष्टमाली सातमोनि नवछेतेउत्सूत्रनाखेछे श्रीदूबलिकापूफमित्रतोजुगप्रधा नछेसत्यवादिछे एवचनसांभलिने सासनदेवीएइहांत्रा वीनेकहथुपण नारेकरमीजीवहता तेकापणमान्युनहि जेएदेवीखोटुंबोलेछे श्रीमंधरस्वामीपासे जइशकेनहि अबंधकमतपरुपक गोष्टमालीसातमोनीनवसमाप्ता॥७॥ एसातनीनवकह्या तेमध्येबीजोनीनव तीक्षगूप्तनामा च रमप्रदेशजीवमानतो॥१॥ त्रीजोनीनव आषाडाचार्यनो शीष्य साधूछेकेदेवताछे एप्रवक्तव्यमत ॥२॥ चोथोनी Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. नवअश्वमीत्रनामा वर्तमानकालना नारकीदेवताउछेद पामेछे तेसमुछेदिकक्रिया।३वादिएगंगनामानीनवपांच मो एकसमेबेक्रियावादिताएच्यारेनीनवपाछावलापेहे लोनीनवनमाली बहूसतवादीघणेसमे कारजपूरुंथाय ॥हवेछठोनीनवरोहगुप्तनामा त्रीयराशीकमतवादी ॥२॥ सातमोनीनवगोष्टमाली प्रबंधककरमवादी॥३॥ए त्रणनीनववलानहि श्राठमोनीनवडीगंबरथयो सरवव स्तवादी तेश्रावशगनिरयुक्तिमध्येकाछे अनेबेतोश्रीम हावीरस्वामयिकी छसेनेनववरसेसेसमलथकी तेतोप्रसि दछे अनेबेतो श्रीमहावीरस्वामीथकांज निकल्याछे श्रीमहावीरस्वामी पछीथया कालानुनावकरीने त्यार पछी मतीकेवाणा ते प्रवचनप्रक्षामांहे दसमति कहीने बोलाव्याछे अनेश्रीश्रावसगनिरयुक्ति मध्येतो निन वकहीनेबोलाव्याछे जदपिनिनवनेमतीतेएकजछे पण निनवपदतेभारेछे अनेमतिपदहलवोछे जेागमधरकेव लज्ञांनी तथाचउदपरवधरादिकप्रतिशेग्यांनी आगम वालाहोयतेजाणे जेउत्सूत्रजाणीनेबोलेछे तेहनेनिनव कहीए अनेजेमरखपणाथीतथायथाछंदापणाथकि पोता नीमतिकलपनायेकरीने उत्सूत्रपरुपणाकरे तेहनेवस्तु गतनिनवकहिए जेसाक्षातसिद्धांतमध्ये अक्षरदेखे अने मानेनहि अनेवलिजीतमरजादाविना अनेसूधश्रीगण Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. २७ धरनोपरंपराविना नवीजपोतानीमति परुपणाये करीने परुपे जेजाणीनेपरुपेते निनवकहिए पणाजनागीता रथते पापथकिडरताथकाजाणेछेजे अमने तेवज्ञाननथि जेउत्सूत्रबोले जेजाणीने बोलेछेके अजाणेबोलेछेपण मतकदाग्रहमुकतानथि तारेमतीकहि बोलाव्या अने प्रवचनपरीक्षा धरमपरीक्षाछे नमजावूएअभिनीवेशि कमिथ्यात्व कहिए ॥ एत्रिजोभेदमिथ्यात्वनो कह्यो ॥३॥ हवेचोथोनेद मिथ्यात्वनोकहीएछे एसंसेके०॥मिथ्यात कहिए तेकमजेवासीरोटली खीचडी वाशीशीरो लाबसि ठोठडी कालपोतानीसूखडीलेवू के केरा इत्यादिकन बोलोलुंणपाड्यापछि त्रणदिवशउपरांतरहेतो बेरंद्री जीवसंख्यातउपजेनेमरे तेहमानेनहि तेतोजीवअप वेशनारुपमिथ्यात्वथाए अनेवलीएमजांणेजे एमांजीव हशेनहिहोय एवोसंदेहहोयतेनेसंसइकमिथ्यात्वथाए वलीउनुपाणीकरयापछी शीयालेच्यारपोहरपछि हमा लेपांचपोहरथकिकाचुपाणी थाए अनेवली काचुदाहिं काचीछासकाचुंदूधसंघातविदलभले ॥विदलतेमगचो लाझालरअडदचण्या इत्यादिककठोलजेटलुंधानहोयते विदलकहिएतेकाचीछासादिकमां भलतांअसंख्यातबरं द्विजीवउपजछे तेपणमानेनहि अथवासंदेहराखे तेने पर्ववतमिथ्यातलागे एअधिकारथीप्रवचनचुलणी तथा - Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. प्रवचनसारोबारादिकग्रंथोनविषेछे हवे कोईक कहेजे अमेतो ग्रंथमानतानथि कांएसिद्धांतमाहिहोयतोकहोते हनेकहिए जसिद्धांतमाहेघणेठेकाणेअक्षरदिसेछे पणजे हनेमिथ्यात्वनोउदयहोय तेसिद्धांतनेमानेनहि तोएपण नव्यजीवनाउपगारने अर्थे सिद्धांतनाअक्षर देखाडीयेछे जेत्रसजीवनी आठखाणश्रीदशवकालिकसूत्रमध्येकही छे यदुक्तंइंडया॥१॥पोइया॥२॥उटाउवा॥ ३ ॥रासिया ॥४॥संसमि॥५॥समुछमा॥६॥अजिया॥७॥वारया॥८॥ हवेएइंडियाइहजडजापक्षाताहकोकालादि एटलेएजीव इंडुजणेछेपछिसंपूरणशरीरपांषप्रमुखउपजेछे तेहजग र्भपंचेंद्रीजीव तेखीतथागरोलिजेजीवने इंडजकहिए ए प्रथमखाण ॥१॥ पोताजायते॥ इतिपोताजाके० ॥ जेगर्नजणेतारे ॥ पोता कहेता०॥ चामडीनी चादर पछेडीकहिए तेसहीतगर्भजणे तेने पोताजाकहिए हा थिप्रमुषएबिजीखाण॥२॥ नराउइयाके०॥ जराउवोष्टि ताजायते इतिजराउजांमनुष तथागायनेंसजाणवि ए त्रीजीखाणा॥रसीयाइतिरसजायतेनंतरज्यएहनोअर्थ रसियाके०॥ पाणीकहीए तेहथकीजेउपन्यु एटलेपाणी एरांध्यं धानजेटलुंहोय तथापाणीनोभाग जेहमांरह्यो होय तेसुखडीनीलीहोयसीरालाबसीतथापूरी तेमांहेपा पीनोनागरहे तेवासीथाय बीजेदीनेबेरंद्रीजीव असं Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. २९ ख्याताउपजे तथाउष्नकालतो दालप्रमुखतेहीजदीने वीणसेसुखडीतथारांध्युधानज्यारेविणसे वरण गंध रस फरसबदलाए त्यारेजीवउपज्यानुंसदहq त्यारेइहांकोइ ककहेशेजे घीपणखोलंदीसेछे तेमध्येतमजीवसदहोछो तेनेउत्तरदेवो जेघृतकाचूतावणर्नुहोय तरततावीमूक्युंहो य पछीएकवेदीनमेवीणसे तेघृतमध्येजीवक्यारेकसदही ए तेघृतअल्पजाणवू तिहांजघृतउष्णकयु अग्नीनेजोगे पछीतेघृतखोरुंदीसेतोएजीवनसदहीए तेहिजपुदगलनो स्वनावछ।भगवतीमां। पुदगलतिविहापनंता तंजहा।पयो गसा॥१॥विशेसा॥२॥मीश्रसा।३।इत्यादिकापयोगसाके० जीवप्रयोगके०॥पारजीवनिमतनोजीवनेवेपारेकरीने दगलनागंधादिकफरेतेप्रियोगसापुदगलकहीए जिमउ दारीकादिकव्यवहारतेनीपरे॥६॥हवेविशेसाकेास्वनावे जेपुदगलनागंधरसादिकफरेतेपणविशेसापूदगलकहीए पणतेमध्येजीवसदहतानथीतेघृतपाकीतावणीनूंछे तेघणे दिवसेखोरंथायछे एविसापूदगलसंनवेछे परंपराए पणएहसानल्यूंछे नगवतीप्रमूखसीद्धांतमांहे अक्षरप णदीसेछे एबीजोनेद॥२॥हवेमीश्रसाके०॥ जीवनेवेपारे पदगलनेस्वनावे वरणगंधादिकफिरे तेमीश्रसापूदगल कहीए जेममूबूकलेवरफूलेछे मोटुंवधेछे तेममीश्रसापू दगलकहीए एत्रीजोभेदपरीपूर्णम्॥३॥ रसियाएहपद | Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० श्री सम्यकद्वार. नीटीका मां कहयुंजे मालनालदधितिमनादिषु खाटवि त्तम्याकृतयोत्यतसूक्षाभतिति श्रालनालके ० ॥ कांजीक ही मारुत्राडमध्ये कांजीतेडदनांवडां श्रनेकाचंदधि नेलुकरयेथकेएबेविदलकहीए तेमध्ये बेरंद्रीजीवपडे ते के वापडे पेटमांहेसगबगीया एहवेत्राकारेश्रत्यंत सूक्ष्मजी व संख्याता उपजे इतिरसचोथीखा ॥ ४॥ संसेइमां सरवेदाजाता संखेदजामक्कणउकादय संखेद के ० ॥ परसे वोसरीरनापरवापरसंगे माकणतथाजुलीख तेरंद्रीजीव उपजे संसइमां एहपांचमीखा ॥ ५ ॥ समुर्छिमासमूर्छना जाता इतिसमूर्छिनजा सलनपीपालीकामक्षिकासालू रादय समूर्छिमके० ॥ पोतानीमेलेमाटीमांही तथाकादव माहेउपजे तेसमूर्छिमकहीए सलन के ० ॥ दीवामांहीपतं गीयापडेछे तेहने कहीए पिपलिका के ० ॥ कीडीप्रमूख मंखीकाके० ॥ मांखीप्रमूख सालुर के ० ॥ डेडकाप्रमुख त थासमूर्छिममनुष्यपंचंद्र तेहचौदठेका उपजेछे ते श्रीप नवणासूत्र नेचोथे उपांगेतेहनाप्रथमपदनेविषेकहयुंछे ॥ तं जहा॥श्रालापकश्चायसै॥कंतमणूसाहू विहापनंता ॥ तं जहा समुर्छिमामणुसाय ॥ गजवकंतियमणुसाया॥सेकंत समूर्छिम माणुस कहा जंते समूर्छिममणुसा ॥ समूर्च्छितिगोयमात्र | नोमणुसा॥खितेपणयालियाए ॥ जोय सत सहतेजु ॥ ढा |ईजेसुदास मूदेसू॥पनर सकमनोमी सु॥तिसाएकमनोमी Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धीसम्यकद्वार. - सु॥पनतंअंतरदिवएसु।।गभवकंतियसू॥ मणूसाणचेवा।उ चारेसूवा॥१॥ पासवणेसुवा॥२॥ खेलेसुवा॥३॥ सि घाणंएसुवा॥४॥ वंतसूवा॥६॥ पितेसुवा॥६॥ पुसएसु वा॥७॥ सोणियेसुवा॥८॥ शुकेसुवा॥९॥ शुकपुगलपरी साडेसुवा।१०।विगयकलेवरेसुवा।११। थिपुरीससंजोएसु वाशनगरनिधमणेसुवा।१३।सेवेसुचेव॥ अशुचेएसुधां गसुवा॥१४॥इत्छणसमार्छममणुसासमुछेति॥ अंगुलसत्र संखिजइनागमेताए।ऊगहणाय॥असणीमिछदधि।सवा हिपजताहिअपजतगायतो।मुहत्ताउयाचेवकालकरंति।से तंसमर्छिममणंसा।इतितहतिअप्रतिमनुष्यानभिधिशुराह सेकितमित्यादि।अत्रापिसमुर्छिममनुष्यममनुष्यविसयोन वचनबहुमांनंतासिष्याणांसाक्षातदगवतोतदमुक्तमिति॥ बहुमांनोत्यादनामतर्गातमालापकोपद्धतिकहिणंभंते। इत्यादिसुगमनवरसव॥सुचेवप्रसूईधांणसुवी॥अन्यायपि यांनकानिचिन्मनूष्य ॥ संसगावसादमुचिनूतिनिस्थांना नितोषासवेवितिउक्ता॥समूर्छिममनुष्याहवेजेचौदठेका ॥ समूर्छिममनूंष्यउपजेछ। तेहश्रीपनवणासुत्रनोपाठ तेनोअर्थलखिएछ।सेकतंके०॥ अथकंके०॥ शुतकंके०॥ तेहमनुष्यबेहूप्रकारेछे एकगर्भजमनुष्य॥१॥ बिजोस मुर्छिममनुष्य॥२॥ सेकंतं समुर्छिममनुंसाके०॥ अथस मुर्छिममनुष्यनु स्वरुपपूछेछ।केहेणंनंत्ते ॥ समुर्छिममनूं - Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. प्यकेहणंभंतके आहेभगवान्कुंणकुंएगठेकाणेतमेकांछे।ते तूंसांभळानंतोमणूंसषितेके०॥ मनूष्यक्षेत्रनेअंतेके ॥म ध्यपीस्तालिसलाखजोजनप्रमाणे मनुष्यक्षेत्रछे अढीद्वि पके०॥१॥जबूद्विपा२॥ धातकिखंड०॥ अाधोपुखरद्विप तेअढीद्विपमहिबेसमुद्र एकलवणसमूद्र॥ १॥ बिजोका लोदधि॥२॥ पनरसकमनोमीसुक०॥ पांचनरत॥ पांच एवर्त॥पांचमहाविदेह॥जंबूद्विपमधेत्रणखेत्रछेधातकिखं डमध्ये क्षेत्रछे पखरार्धमध्यपणछछे एवंपनरतिसएप्रक मनोमिएशुके॥त्रिसप्रक्रमभोमीजूगलियानाक्षेत्रजाण वां तेकयांजंबद्विपमध्यदक्षणदिसेएकहमंत बिजोहरिव र्ष त्रिजोदेवकरु उत्तरदिसेएत्रणनांनांम उत्तरकरु॥१॥ र्णकवास॥२॥ रमणीकवास॥३॥ एवंछक्षेत्रजंबूद्विपमध्ये धातकिखडेबार पूखराअर्धेबार एनाएछनामजाणवां ए वंत्रिसखेत्रजगलीयानांजांणवां छपनअंतरद्विवेसुके०॥ छपनअंतरद्विपतेकिया जंबधिपनेविषेलघहेमवंत पर्वतथ किलवणसमुद्रमध्ये पुरवनीदिसेबेदाढायोनिकलिछे एक दाढउपरसातक्षेत्रएवंपूबेदाढायोनां॥१४॥क्षेत्र एमपश्चि मदिसे बेदाढाना॥१४॥ क्षेत्रछे एवंहेमंतनीदाढाऊपरत्र ठाविसक्षेत्रथया इणिपेरेउत्तरदिसे सखरीपर्वतनाचारदा ढातेउपरअठाविसक्षेत्रजाणवां एवंछपनअंतरद्विपजाण वां गभीयके०॥ मोटामकतियेमणसांणचैवके॥ निश्वेक Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. ० रीनेजांणवा एटलेत्रिजंचपंचंद्रिनां छांणतथामुत्रादिकने विषे समूर्छिममनूष्यउपजेनहिं एटले गायना मूत्रनोचोवि सपोरनाकालकह्योछे त्यारपछिबेरंद्रियादिकजीवउपजेप एएस मुर्छिममनुंष्य उपजे नहिं एमनिश्वेजाणवं हवेगर्भज मनुष्य संबंधिचउदस्थानक देखाडेछे उचारेसुवाके०॥ मनु ष्यसंबंधिविष्टानेविषे समुर्छिममनुंष्यनपजे॥वाके । बिजेप णथानकेजाणवानेकाजे॥वाशब्द जाणवो॥१॥पासवणेसूवा के० ॥लघूनित्यनेविषे॥२॥ वतसूवा के ० ॥ वमनने विषे ॥ ३ ॥ पतेसूबा के || मुखे करीनेपीत नाखेछेतेने विषे ॥४॥ पूयेसूवा के०|परुकहिएजेलोहीपाचतेनेविषे॥५॥श्रोणियेसुवाके० । मनुष्य संबंधिरुधिरनेविषे॥ ६ ॥ शुके सूवाके ० ॥ जेमनुष्यने तिर्यचनेविषे॥७॥ शुकपूगले परी साडे सूया के ० ॥ तिर्यंचना पुदगलने विषेके । छांटा कहिए परीसाडेसूवाके ० ॥ जुदा जुदापडयातेने विषे॥८॥विगीयेक लेवरे सूवाके ० ॥ मनुष्य नेविगीयके०॥ जीवगयापछिकलेवर मुवूंतेशरीरने विषे ॥ ९ ॥ थिपूरी ससियोयेसूयाके ॥ स्त्रिपुरुषने संजोग ने विषे॥१०॥बलखानेविषे॥११॥श लेखमनेविषे ॥ १२ ॥ नग रनिधमणे सूवाके ० ॥ नगरनिखाल नेविषेजेमनुष्यसंबंधि लघुनित्यवडिनित्यएठवांणि प्रमुखवहेतुरहे तेहनेविषे समूर्छिमउपजे ॥ १३ ॥ सवेसुचेवप्रशुये सुधाणेसुयाके० ॥ सर्वसघलामनुष्यसंबंधी प्रशुचीथानकनेविषे एटलेमनु પ ३३ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. प्यनथूक.तथापरशेवोतथाएठवांणी अथवाअंनपाणीज मतांए;मुकेते अथवामुखेमुहपतिघणिबांधिराखे तेह मूहपतिथूकेकरीने नीजीजाए तेहनेविषे समूर्छिममनु ष्यअसंख्यातउपजे इत्यादिकसमर्छिमउपजवानाथान कघणांछे तेसतगुरुसेवनाथकि मालमपडे एचौदस्थान कियाजीय ॥१४॥ अगुलससंखिजेनागमतिये ऊगा हणायके०॥एकांगुलनोत्रसंख्यातमोनागमात्र ऊगह णायके०॥शरीरनूपरमाण एटलेएपदेकरीने असंख्यात जीवकहिए असंनियेके०॥असंनिया मिछुदाधियेके॥ मिथ्याविनहोए अप्रजाप्तोअंतोमहताये केहतां अंतर मुहूर्तनूंआउखूपूरकरीनेकालकरे चेयअपचेयथाए पूर्व नीपरेनवाऊपजे केटलाएक थानकनेविषे जिवसदहता नथि तेहनेजिवे शुयजीवसनारुपमिथ्यात्वथाए कोइक जिवसंदेहकरे जेएहमध्ये ऊपजताहशेकेनहि उपज्यानो संसय संसयककेातहनेसंसइकमिथ्यालकहिए एहस मर्छिममनुष्यनीखाणानन्हेदाजन्मयेषतिइतिउभ्हेद जापतंगखंजारीउपरेप्रवादिय उभेदके०॥ भोमिफोडीने बाहेरनिकले एटलेबेरंद्रिादिकत्रसजीवउपजेछे नोमि फोडिनेबाहेरप्रगटथाए तेहउभेदजानेदकहिए निमशु कातलावमध्ये जिवउपजे पछेबाहर निकलेछे तेपतंगखं जारी उपरप्लवादिकजिव विशेषजिवनानांमजाणवा - Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. जद्यपिएहसमूर्छिमनिजातछे तोएनोमिफोडिने बाहर निकले एनेदरहिनेजुदोनेदकरयो जेमरसजापणनेद जूदोकिधोछेतेमएपणभेदजाणवा एउनेदजजीवनी सात मीखांण ॥ ७ ॥उत्पादीइतिउत्पादजाउत्पादेनवाइतिउ त्पातिकादेवानारकिश्च उत्पातके०॥देवतानेउपजवानि समानुनाम उत्पातसनाकहिए त्यांदेवताआविने अंतर महर्तमांबत्रिसवर्षनोजुवान पूरुषउठीबेसे उत्पातसना मध्ये सज्यामांउपजे एटलावास्ते देवतानिउत्पातयोनि कहिये नारकिपणकंभिपाकमध्येवाविने अंतरमहर्तमां प्रगट थाए तेवास्तेनारकिपणउत्पातयोनि कहिए ए पाठमिउत्पातजाजीवनीखांणा८॥ अंड्या॥१॥पोयाए ॥२॥एहबेहखाणगर्नजपंचेंद्रियत्रिचनीजाणवि॥ २॥ जरागजाएहगर्नजमनुष्य तिर्जेचनिखाणजाणवि॥३॥ रसीयाइतिवासीवदलबोल्यादिकनेविषे पाणीनासंसर्ग नेविषेथकिबेरंद्रियाजिवनीखाण॥४॥संसेइमा॥१॥उ जीया।साइतिबेहविगलींद्रिनीखाण॥ ५॥समर्छिमएह बेरंद्रितेरंद्रियचउरंद्रिपंचंद्रि असनीयासमूर्छिम मनुष्य तिर्जेचनिखाण॥६ ॥उथाइयाएहदेषतानारकिनिखाण टाएहश्राठखापत्रसजीवनिजाणवि रसियाएहनेचाथि खाणनेविषे जेठेकाणेजेजीवरह्योछे तेठेकाणोजिवमानता नथितेहनेविषेजिवसनारुपमिथ्यात्वथाए जेहनेसंशयछे Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ श्रीसम्यकद्वार. तेहने संशइकमिथ्यात्व कहिए एहसंशइक मिथ्यात्वरुप चोथोनेद ॥४॥ अथप्रणाभोगरुप मिथ्यात्वनोपांचमोभेद कहिएछे जेणाभोगतेसमझणविनाप्रवर्ततुं तेजीवजी वादिकनुंस्वरुप जाणेनहि समझेपनहि संज्ञापणनहि एकंद्रियादिकपंचंद्रियपर्यंत नेणाभोगीक मिथ्यात्वकहि एएपांचमोभेद ॥५॥ एटलेपांचमिध्यात्वकह्या बारश्रवरत के ० ॥ बारश्रवरति ॥ १२ ॥ तेकेइबेमणा ॥ १॥करण ॥ १५ ॥ नीयमछजीववहोइके ० ॥ एकमननिप्रवरत॥१॥ पांचइंद्रिछ अवरत||६ ॥ छकायजाणवि॥ इतिगाथानोर्थसमाप्तः ॥ ॥ इतिमुनिश्री हुकमचंदजि विरचिते द्वीतियोध्याय परीपूर्णम् ॥ २ ॥ एवंमिथ्यात्वजांणिटालिने समकित निप्राप्तियाएते समकितना ३ नेदछे उपसम ॥१॥ क्षयउपसम ॥२॥ क्षायक ||३|| तेमद्धेप्रथमजेजिवसमकित पांमेते उपसमस कितपांमे तेनुंस्वरुपदेखाउछे श्रनादिकालनोजीवमि थ्यात्विद्वतो तेकाललब्धपांमिनेमार्गानुसारीथाए तिहां त्रणकर्णकरे जथाप्रवरतिक ॥१॥ पूर्वकर्ण ॥ २॥ श्रनी वर्तिक ॥३॥ प्रथमथकिजथाप्रवर्तिकर्णकरे तेनिविधि कहिएछें ॥ ज्ञानावर्णी ॥१॥ दर्शनावर्णी ॥२॥ वेदनि ॥३॥ अंतराय ॥ ४ ॥ एच्यारकर्मनित्रिसकोडाकोडीसागरोप मनिस्थितिछे तमद्धेथि २९ उगणत्रिसकोडाकोडिए Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. कपल्योपमनोअसंख्यातमोभागप्रदिक एटलिस्थितिख पावे तथामोहनिकर्मनिसितेरकोडाकोडीसागरोपमनि स्थितिछे तेमदेथिउगणोत्तेरकोडाकोडीसागरोपम तथा पल्योपमनोअसंख्यातमो नागअधिकएटलाखपावे त थानामकर्म ॥६॥ गोत्रकर्म ॥ एवेकर्मनिविसकोडाको डिसागरोपमनिस्थितिछेतेमद्देथकिश्रोगपीसकोड़ाकोडि सागरोपम तथापल्योपमनोत्रसंख्यातमोनागअधिक एटलिस्थितिखपावे सेषथाकतिएककोडाकोडीसागरो पममध्यथी एकपल्योपमनोअसंख्यातमोनागाछीएट लिस्थिति प्रायवर्जिनेसातकर्मनिराखे एहवाजउदासि प्रणाम संसारथिउदवेगतापामे संसारनेअनित्यजाण तोथको संसारथिमहाभयभ्रांतथातोथकोएमप्रणांमनि धारायेचडत्तोथको एकअंतरमहर्तमांहे सातकर्मनिउत् कृष्टिस्थितिजिमपूर्वेकहितिमखपावे तेनेजथाप्रवर्तिकर्ण कहिए तेजथाप्रवर्तिज्ञांनविनाघणाजिवकरेछे एकजीव अनंतिवारकरे अभव्यपणकरे माटेएकरणकिधांकांइसी धिथईनहिंहवेएकलैरहेतोअंतरमहूर्त्तरहेचडेतोअपूर्वकणे जाए पडेतोपाछोठेकांणेश्रावे मार्गनेदृष्टांते जेमत्रणपूर्ष नेलाथइनेमार्गेचाल्याजायछे श्रागजातांमहाअटविमां पोहोतात्यांभयघणोजाण्यो त्यारेएकजणोपाछोवल्यो ए कजणोत्यांउनोरह्योतेनेचोरेपकडयो एकजणोहिमतकरी Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. नेश्रागलगयोतेवंछितपूरेंगयो तेसूखपाम्यो एदृष्टांतेउ पनयजोडियेंछे त्रणजिवसंसारीसंसाररुपअटविमांभम तांयथाप्रवर्तिकर्णस्थानकेपोत्या तेमध्योथिएकाजवपाछो वल्यो तेहनेरागद्वेषचोरेपकडयो बिजोजिवत्यांरह्योतमि थ्यात्वकर्मनेउदयकरीने उत्सूत्रपरुपवालाग्यो अनिनि वेसिक मिथ्यात्वनाजोगथी कुदेवकुगुरुकुधर्मने अंगी कारकरीनेरह्यो मनथकिखाटुंजाणेपणकदाग्रहनालिधो तेमेलेनहि हवेत्रीजोजीवपूर्वकर्णकरीने समकितपांमे सुखिथाए इतिउपनयसंपू०॥ इतिप्रथमकर्णपूर्णः॥१॥ हवेबिजोत्रपूर्वकर्णनोस्वरुपदेखाडेछे ॥ अपूर्वके०॥ पूर्वे एवाभावकोइकालेश्राव्यानथि विसेषनिर्मलभावेहोय स्यामाटेजेजेजीवने समकितपामवहोय तेजिवनेएवाना वहोयतेप्रथमयथाप्रबर्तिकर्णथकि अपर्वकर्णसधिजातां रस्तामेत्रसंख्यातियोकष्टियोछेपरंतुकमपेडीटिकामधेत्रि सगवेखिछे तेकष्टियंके०॥पावडिर्यकहिए तेटलांअधवी सायनांठेकाणांछे इहांविचारघणोछे परंतुआग्रंथनेविसे विवहारनयनोपष्टताविशेषछे माटेइहांवातवर्णविनथीवि सेषजोविहोयतो श्रीकमपेडीनीटिकाथकिजोजो हवेजे यथाप्रवर्तिकर्णनेविषेजेसातकर्मनिस्थितिएककोडाकोड सागरोपम तेमधेएकपल्योपमनोअसंख्यातमोजागओ छिरहिहति तेमधेथकिएकमुहूर्तखपावे तारेअपूर्वकर्णथा - Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धीसम्यकहार. य तारेअपूर्वनामविर्यउदेरे पछेइहांथकिऽपूर्वनामामोघ रलेइनेअगाडिगंठीउपरजाए तिहांजईनेगांठीनेविदारे गंठिनेदतिहांनिती कर्णथाए तिहांपूर्वेरहेलाकर्मते मांथकि एकमहर्तस्थितिखपावे तिहांअनंतानुवंधि चो कडीतथामिथ्यात्वमोहनी एपांचप्रकृतिउदीयेाविरुंधे विपाकेतथापरदेसे अंतरमहर्त्तमात्रपंचप्रकृतिउपसमावे. तेमाटेएहने उपसमसमकितकहिये तेउपरद्रष्टांतदेखा डेछे जेमकोइखारीनोमिनादावानलनिपरेके० ॥ जेम कोईकदावानलबलतो २ श्रावे एमकरतांत्रागेखारीनो मिश्रावितेखारीनोमिनेविषेत्रखलाप्रमखकांईछनहिं जे तेनेबाले तेमइहांखारीभोमसमानसमकितनोमिकहिये अनेदावनलसमान मिथ्यात्वकहिये तेजेमदावानलनी अग्नीखारीनोमीएत्रावतारोकांणी॥श्रापसुंश्रापउपसमी तेमइहांमिथ्यात्वपणसमकितभोमिकायेप्रवेशकरीसकेन हिंतेपणापसूत्रापउपसमे एदृष्टांतजाणवो॥१॥एमजीव उपसमसमकितपामे तेउपसमसमाकितमांहे शुनप्रणा मेमिथ्यात्वमोहनीना त्रणपूंजकरे एकसूधपूंज॥१॥बीजो अर्धसुधपूंज॥२॥त्रीजोअशुधपूंज॥३॥उपसमसमकितने अंते शुधपूंजनोउदयथायतो क्षयोपसमसम्यक्तकहीएत्र धसुधपूंजनोउदयथायतो मीश्रगूणठाणूत्रीजूंजाणवू अ शुधपूंजनोउदयथायतो मिथ्यात्वकहीए जेमकोद्रवधां Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. | ननात्रणपूंजकरीए एकछोतरांकाढीनेपूंजकरे बीजोपूंज | खांडीनेएमनोएममूक्यो त्रीजोपूंजअशूधके०॥ कोदराव गखांडया श्रमजलनोदृष्टांत एकजलनिरमलकy बीजूं थोडुनिरमल त्रीजुदूर्गधव्यापी एदृष्टांतेशुधजलते सम कीतमोहनी अर्धशुधतेमीश्रमोहनी अशुधतेमिथ्यात्वमो हनीजाणवी हवेउपसमसमकीतश्रादि देइने समकीत नाघणानेदछे पणउपसमअधिकारसमाप्त॥१॥ हवेक्षयो पसमकहेछे तेक्षयोपसमविचित्रप्रकारर्नुछे तेकर्मनाक्षयो पसमनाघणानेदछे ज्ञानावर्णिकम॥२॥ दर्शनावर्णि॥२॥ मोहनी॥३॥ अंतराय॥४॥ एच्यारकर्मनोक्षयोपसमथाय छे पणइहांमोहनीकर्मनोअधिकारछे जेदर्शनमोहनीकर्म नाक्षयोपसमथकी जीवसमकीतपामे तेमाटेविचित्रपणुंछे बहुविधजनागमेके०॥ जिननाागमसिद्धांतनेविषे बह विधके०॥ घणाभेदकीधाछे एटलेचोथागुणठाणानुं सम कीतजुदूं अनेपांचमागुणठाणा,पण समकीतजूदूं तथा छठासातमागूणठाणानूं समकीतजूदूजाणवू जदपिसम कीतनी रुचीजोतांतोएकजनेदछे तोहेपणकर्ममोक्षउप समादिनेदेकरीने समकीतनाघणानेदथायछे तेकिया ए. कप्रकारेसमकीतते श्रीअरीहंतभगवाननावचनपररुची जेअरीहंतभगवंतेका तेसत्यछे एवंएकाश्चितते तत्वरु चीकहीए एचोथागूठाएगाथीमांडीने संग्रहनयनेमते ए Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. - कप्रकारेसमकीतकहीए हवेकेटलेप्रकारे समकीतकही | एतेकहेछे एकद्रव्यसमकीत॥१॥ बीजूंभावसमकीत॥२॥ जेद्रव्यसमकीत जेजीवादिनवपदार्थने सम्यक्प्रकारेजा पीजाणीनेसदहे तेद्रव्यसमकीतकहीए ॥यदूक्तं॥ जीवा इनवपयथे। जोजाणेइतसहोइसमतं भावेणसदहंतो॥ श्रायाणमाणेविसमतं॥१॥ जीवादिकनवतत्वनेजाणे तेने समकीतकहीए भावेणके०॥ नावेकरीनेसदहतोथकोजे जीव अयाणमाणेके०॥ नवतत्वनेनयनिक्षेपेकरीनेनजाण तो पणसमकीतछे एगाथाऽर्थः ॥ जेनावसमकीतते न वतत्वनानेद नयनिक्षेपेकरीने सम्यक्त्रकारेजाणीनेसद है। तेभावसमकीतकहीए॥२॥ वलिनिश्चेव्यवहारेकरीने बेप्रकारेसमकीतजाणवू तेजीवनूंज्ञान॥१॥दर्शन॥२॥ चा रित्र॥३॥तेमांशूभपरीणामतेनिश्चेसमकीतकहीएइत्यादि कसमकीतकेवलिगम्यजाणवू छदमस्थजाणीशनही रुपीपणामाटेहवेवव्वहारसमकितते संवेगादिकनाप्राचा रेकरीत्रोलखायतेवव्यहारसमकितकहियोतेनुस्वरुपत्रा गलकहिशुं॥२॥ वलीनिसर्गनेउपदेश एबेप्रकारेजाणवू तेहनीसर्गके०॥ स्वभावकहिये गुरुनाउपदेस विनाजे जीवपोतानीमेलेउपदेशपामतेनिसर्गसमकितकहियेते उपर मार्गनो दृष्टांतजाणवो जेमकोइक मारगभल्यो होय तेपोतानीमेलेजमार्गजाणे बिजोपूरुषकोइनाकीधा - - Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ थीसम्यकद्वार. थिमार्गजाणतेमइहांगुरुनाउपदेशविनासमकितपांमेतेने निसर्गसमकितकहिये बिजोगरुना उपदेशेसमकितपा मे तेनेउपदेशसमकितकहिये वलित्रणप्रकारेसमाकित कांछेएककारकसमकित ॥१॥ बिजुंरोचकसमकित॥२॥ त्रिजुंदिपकसमकित॥३॥ कारकसमकितसिद्धांतमांहिना वकह्योछे तेनावनेअनुसारेक्रियाकरे जेमसर्वप्राण॥१॥ सर्वभूत॥२॥सर्वजीवा।सर्वसत्वनहण|एटलेछकायनाजी वनेहणेनहिहणावेनहिहणतानेनलोजाणेनहि॥मनवचन कायायेकरीने एहवानवकोटिनापछखांणपालनारसाधूने कारकसमाकितहोयाजसुमतिपासाहितंमुंणातिइतिवचनात् ॥१॥ हवेबिजुरोचकसमकितते जिवादिपदार्थजाणीनेनि रापराधनिरपेक्षपणेसंकल्पीने त्रसादिक जिवनेहणेन हि जथाजोगचोथे पांचमेगंगठाणेरोचकसमीकतकहियेए बिजुसमकित॥२॥ हवे त्रिजुदीपकसमकित पोतेमिथ्या दृष्टिथकोपरजीवनजीवादिपदार्थ स्वरुप सिहांतनेअन सारेसमझाये समाकतादिगणपमाडे तेहनाप्रतिबोध्या मोक्षपणजाय तेवारेवादिबोल्यो जेनेदिपकसमकितते | नेशोगुणथाय तेनो उत्तरदेछे जेदिपकसमकितनोपणए टलोगणछे जेउत्कृष्टिपून्यप्रकृतिबांधेतोनवग्रेवीकसुधि नीबांधेशामाटेजेउत्सुत्रनिपरुपणानकरेपोतेमिथ्यादृष्टि होय पणपरनेमिथ्यात्वपमाडेनहि अनेनवनिनवादिक Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. पूर्वेएवि क्रियाअनुष्टानाकरूं करेतोपणकुलविषियोदेव ताथाय एउत्सुत्रनिपरुपणाकरीनेपोतानाश्रात्माने तथा परनाआत्माने दूरगतियेघाले एउत्सूत्रनी परुपणानो करनारो महापापीजाणवो तेनीअपेक्षाये दिपकसमकि तवालोघणोजरुडोजाणवो पोतेमिथ्यात्वथको परनमि थ्यात्वपमाडेनहि एतेजगणेकरीननवग्रविकेजाय ॥ य दुक्तं॥ जइलगमीत्छदिठि। गेविजाजावजंतीमो॥ कोसं पयमविअसदहंतो।सूत्रतमिछिदिधिो ॥१॥जद्यपिदाद शांगीसदहे ॥ एकपदमात्रनसदहेतोसुत्रमांमिथ्यादृष्ठि कह्यो॥ साधुमूलगुणेशुधहोयएटलेसाधुनीक्रियाशुद्धपा ले पणजोउत्सूत्रनिपरुपणानकरे तोनवग्रेविकेजाय ते श्रीनगवतिसूत्रमांकाछेप्रथमसतकेबिजेउदेसे॥जहा॥ अहंनंतोअहंजयभवियदवदेवाणी॥अविराहियसं जमा पाशविराहियसंजमाण॥३॥अविराहीयसंजमासंजमाणं ॥४॥विराहियसंजमासंजमाणं॥५॥असणीणादाधतावसा णं॥७॥कंदप्पीयागोटाचरगपरीवायगाणं॥९॥किलविसि याणं॥१०॥तिरीछीयाणं॥११॥प्राजिवीयाणं॥१२॥अनी योगीयाणं॥१३॥सलिंगाणंदसणवावरणगाणं॥१४॥ एए सिणंदेवलोगेसु।उववजमाणाणं॥ कसकहिउववाएगोय माप्रसंजणयभवियदवदेवाणं॥जहणणं॥नवणवासिसू वोकोसेणं॥उवरीमगेविजयेसू॥ अविराहियसंजमाणंजे Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ श्रीसम्यक्वार. दूणे॥ सुहमेकप्पेउको सेणं॥ सवध सिद्धेविमाणे॥ विराहि यसंजमाणंजह ० ॥भवन ० ॥ उको सेणं सोह मे कप्पे ॥ उकोसे पंचुएकप्पे॥विराहियसंजमासंजमाएं। जहण० ॥ भव णवासिसुउकोसेणं ॥ जाइसीयेसुत्रसणाणं ॥ जहणंभव ऐ०॥उको सेणं वाणवं तरेसुयव से सासवे ॥जह ० ॥भवणवा सिसुउकोसे॥वोच्छिमिताव साणं॥ जोइ सीये सुदपूया ॥ सोहमेकप्पे॥ चरगपरीवायगाणं || बेलेलोएकप्पे किबि सियाएणं ॥ लंतएकप्पे ॥ तेरीछियाएं ॥ सहसारे कप्पे ॥ जिया ॥ श्रचु एकप्पे ॥ श्रनीयोगीया ॥ चुकप्पे ॥ सलिंगिणंदंसणवाव गंगाएंणं ॥ उवरीमगे ॥ विजये सु॥ १ ॥ एहनोप्रर्थक हे छे लेशमात्र ॥ संजयके० ॥ चारत्रिप्रमाण कहितद्रव्यलिंगधारी॥नवियके ० ॥ देवगतिगमीनयोग्य द्रव्यदेव जेजीवमनुष्यनिगतिमाहिथकि कालकरीने दे वताथा ए॥ तेहनेद्रव्यदेव कहिए। एटले कोइ भव्यजीवचक्र | वर्तिप्रमुखनि पूजासतकार बहूमान साधूने करता देखिने तेबहूमानादिकनेकाजे ॥ मिथ्यादृष्टिचारीत्रलेई संपूर्णस माचारीने नुसारे क्रियापाले तेउत्कृष्टोनवग्रेविकसूद्धि जाए पणउत्सूत्रनिपरुपणान करेतोजाए एश्लोकनोना वार्थ जाणवो ॥ १॥ विराहियसंजमाणके ० ॥ प्रखंडचारी त्रनापालनारसाधू जघन्यसुधर्मदेवलोकेज ए उत्कृष्टो सर्वार्थसिधेजाये॥ २ ॥विराहिके०॥ विराधकचारीत्रनोध Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार.. २५ पीजघन्यनवनपति उत्कृष्टोसौधर्मदेवे॥३॥अविराहि यसंजमासंजमाणंकेगाखंडधावकनाव्रतपालिने जघ न्यसौधर्मदेवे उत्कृष्टोत्रचक । एकप्पेके०॥ बारमंदेव लोक॥४॥विराहियके०॥श्रावकव्रतधारीनेजघन्यनव नपति।उत्कृष्टोजोतषी॥५॥असणिके०॥ असंनियोचं द्रियकोइकत्रकांमनिर्जराएकरीने जघन्यभुवनपति।उत् कृष्टोव्यंतर'६॥धतावसणंके०॥ भुमीएपड्यांपांदडाना खानारतपश्चिजघन्यभुवनपति|उत्कृष्टोजोतषी ॥७॥ कंदपियाणंके०॥ कंदर्पके॥ परहास्येतहनेकरीनेनिर्ने। तेकंदर्पिककहिए ॥ एटलेजेव्यवहारथकिचारीत्रपाले ॥ पणपरनिहास्यमशकरीविषेशेकरे तेजघन्यभवनपति उ त्कृष्टोसौधर्मदेव॥८॥चरगपरीवयगाणंकेचरकत्रिदंडी परीवाजकके०कपिलशिष्याजघन्यभुवनपतिउतकृष्टोब्रह्म देवलोकपांचमातेत्रसजिवनिदयाविषेशेपालेछ।९।कविसि याणंके किल्विषंपापंउत्सूत्ररुपंजेषांतेकुलविषिका।एटले विवहारथकिचारित्रवंतज्ञानादिकना श्रावर्णवादनोबोल नारो॥यदूक्तं॥ नाणसकेवलिणं॥धम्मायरीयंससंघसा हणं॥ मायेवणवाए॥ किथिसीयंनावणंकुंणइ॥१॥जेज घन्यभवनपतिउत्कृष्टुंलंतकदेवलोक ॥१०॥ तिरीछि याणंके०॥ त्रिजंचगायनेंसप्रमुख देसविरतित्रादेदेइने अकांमनिर्जरानाधणिजघन्यभुवनपति उत्कृष्टोसहसा - - - Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्पकद्वार. राठमूंदेवलोक ॥११॥ अजिविया के ० ॥ पाखंडीवेष धारी॥ गोसालासिष्याणांमित्यने॥ कोइकगोसालीयाने पत्राजिवकारेछे तथापाखंडीवेषधारीने श्राजीवकाक हिये तेजघन्यभुवनपति उत्कृष्टुं च्युतबार मुंदेवलोक ॥ ॥ १२ ॥ नीयोगीयाके० ॥ श्रनीयोगकहिए ॥ विद्यामंत्रादीक ॥ यदूक्तं ॥ दूविहाषलुयनियों गे ॥ दवेनावेयहोइनायव्वो । दवंमिहोइजोगा ॥ विजामंतायभ्वमिति ॥ १ ॥ जोगचर्णादितंत्रविद्यामं ॥ विद्याक्षरानुयोग ॥ एटलेंविवहारथकिचारीत्रपा ले पणमंत्रतंत्रादिके प्रवर्ते ते भी योगीका कहिये तेजघ न्यनुवनपति । उत्कृष्टोबारमुदेवलोक । १ ३|सलिंगीणंदंसणं वावगाणके ० ॥ सलिंगीएके ॥ साधुनोवेषधरनारा ॥ दंस णवावणगाणंके० ॥ दर्शनसम्यक्तव्यापत्रं भ्रष्टं ॥ जेखांते दर्शनव्यापनासम्यक्तरहितातेजघन्यभुवनपति ॥ उत्कृ टुनवग्रे विकजाय ॥१४॥ एटलैंदिपकसम्यक्तनोएहगुण ॥ जेइंद्रियजघन्यसुखपांमे उत्सूत्रनिरुपणान करे तेमाटे एहदिपकसम्यक्तनोगुणछे एत्रिजुंसम्यक् ॥ ३॥ एटलेक्ष यउपसमनात्र्प्रनेकभेदकह्याहवेक्षायकसमकितनाभेद कहे छएटलेत्रनुतांनबंधियोक्रोध ॥ १ ॥ मान ॥ २ ॥ माया ॥ ३ ॥ लो॥४॥ मिथ्यात्वमोहनि ॥ ५॥ समकित मोहनि ॥६॥ मिश्रमोहनी॥७॥एसातेप्रकारतिक्षयकरी नेक्षपक श्रेणिमां ४६ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. डे त्यारेक्षायकशमकितकहिये पागलकदिकसातप्रकृति खपावे पेहेलांत्रावषुबांध्यंहोय पछिसातप्रकतिखपावते नेखंड श्रेणिक्षायककहिये एटलेउपशमत्तेसातप्रकृत्तिउप समावेतेनेउपसमकहिए ॥१॥ अनेक्षयोपशमतेजेसमकि तमोहनीरुपपूंजनोउदयथायसमाकत पामतेक्षयोपसमस मकितकहिए॥२॥ सातप्रकृतिखपावतेनेक्षायकसमकित कहिए॥॥एत्रणसमकितकयां वलिच्यारनेदेसमकित कहिए त्यारेसास्वादनसमकितमेलवीए तेजेमकोइकपु रुषखिरखांडनुभोजनकरीतुरतवमेतेधणिनेशोसवादत्रा वे तेमजिवपणउपसमसमकितथकि पडतोबीजगुणठाणे श्रावे तेहनेसास्वादनसमकितकहिए तेहनोकालउत्क टोपटाविलीनो जघन्यएकसमयनोजाणवो॥४॥ वली समकितपांचभेदेकहिये त्यारेवेदकसमकितमेलवीये तेवे दसमकितजेसमकितमोहनिक्षयकरवानोएकसमयबाकी रहेअने क्षायक समकित पांमवानो पेलोसमय तेवेदक समकितजाणवं ॥५॥ हवेएसमकित रेहेवानि स्थीति नोकालकहेछे उपसमसमकितनोअंतर्मुहूर्तकाल॥१॥सा स्वादननोछावलीकाल॥२॥वेदकनोएकसमयनोकाल ॥३॥क्षयोपसमनो छासठसागरोपम झाझेरानोकालाश क्षायकसमकीतनो एकसागरोपम झाझेरानोकाला॥ हवेसंसारनेविषे परिब्रह्मणकरतां एकजीवने एवाजेसम - Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यक्हार. कीतनाभेद. ते केटलीकवारावे ॥ उपशम ॥१॥ तथासा स्वादन ॥ २ ॥ एबेसमकित उत्कृष्टंच्यावेतो पांचवारश्रावे क्षायक॥१॥ तथावेदक॥२॥ एबेसंसारमाएकवार यावे ह वे एहनोविरह काल कहे छे॥ उपशम ॥१॥ ॥सास्वादन ॥ २ ॥ क्षायोपसम॥३॥एत्रणनोविरहकाल उत्कृष्टोअर्धपूद्गल परावर्तन होय जघन्यथीत्र्यंतर मूहूर्त जाणवं क्षायकतथावे द॥ २ ॥ एबेसमकीतनो विरहकालहोयनहि शामाटेजे वेदकसमकीतनीरहेवानीस्थिती एकसमानीछेत्र ने संसार मांनमतां एकजीवएकवार वेदकसमकीतपामे बीजीवार पामेनहत्यारे केनी साथे विरहकालमेलवीए। माटे एहनेवि रहकालहोयनहि तथाक्षायकसमकीत व्यापछीजाय नहि व्याविना विरहकालयायनहि एटलामाटेवे दकतथाक्षायक एबेनेविरहका लहोयनहि एटलेसमकीत ना स्वरुपनाने कीधा पण नव्यप्राणी जेनेजेवाप्रकार नोक्षयोपसमहोय प्रेटलेजेवोक्षयोपसमते भेदधिरजरापी ने अंगीकारकरवो हेजव्यप्राणियो पोतानीबुद्धि निरमल राखी शुद्ध उपियोगेकरीने समकीतनीरुचि श्राचारप्रमा णेपालवी हवेजेसमकीतछे तेबीजाजीवने श्रोलख्यामांके मत्रावे तेनुंस्वरुपकहेछे जेलींगलक्षण इत्यादिकजोया थकी मालमपडेते के छे सदहणाचा ॥४॥ लींग ॥ ३॥ वि नय०॥१०॥शुद्धी ॥३॥ दोष॥ ५ ॥ प्रजाविक॥८॥भूषण ॥५॥ ४८ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. | लक्षण॥५॥ जत्ना॥६॥ आगा॥६॥ नावना॥६॥ स्थान क॥६॥ एवंसडसठबोल समकीतनाराहवएनोऽर्थ संक्षेपे देखाउछे प्रथमच्यारसदहणाकहछे जीवादिकनवप दार्थनं जथारथपणे नयनिक्षेपादिकेकरीनेअर्थ सम्यक्प्र कारधारवू एवीजिवनेशुनप्रणति तेप्रथमसदहणाकही ॥१॥हवेज्ञान क्रियाशुधवितरागनाषितकरवानीखप विशेषेराखे कदापिकोईकालनेयोंगे तथाशरीरनायोग थकिकोइदोषणलागे तेनीवालोववानी खपकरे तेवा साधूनीनक्तिबहूमानकरवू तेबीजीसदहणा ॥२॥ उसन्ना ॥॥पासथा॥२॥कुशिलिया॥३॥कुलिंगीया॥४॥सेसदा ॥५॥एपांचनीसंगतीतजवि।एनस्वरुपागलकहीशंएत्रि जीसदहणा॥३॥कुदर्शनीयोगी सन्याशिप्रमुखनीसंगति तजवि एचोथिसदहणा॥४॥ हवेसमकितना त्रयलिंगकहेछे जे सिद्धांतादिकाज नागम तेसांनलवानोअनिलाख एप्रथमलिंग ॥१॥ स्त्रीजरतारनासुख देवतादिकनासुख तेनीरीतीएधर्मसां भलवानोराग एबीजोलिंग ॥२॥ देवगुरुनोविनयवियाव च॥बहूमानता ॥ालसमुकिनेविशेषेकरे एत्रिजोलिंग ॥३॥ जेमधुकरीने अग्नी- उनमानथायातेमएहत्रण लिंगेकरीनेअरुपिसमकितनमानथाय॥ हवेदशप्रकारेविनयकहेछ।यदुक्तं अरिहंतसिद्धचेइय॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यक् वार. ३॥ सुए॥४॥धम्मे ॥५॥ साहू ॥६॥वगोय॥ श्रायरी ॥७॥ उवझाय॥८॥पवयण॥९॥ दंसण॥१०॥विणउ ॥ १ ॥ श्ररीहंत तेवर्तमानकाले विचरतालेवेएट ले मातानिकुक्षे श्राविने अवतरचा त्यांथकिमोक्षजशे त्यांसुधिवर्तमानकाले वि चरताकहिए एधिकार भगवतिसूत्रता बारमासतक नानवमाउदे से पंचदेव ने अधिकार कह्योछे तंजथा। सेके णठेनंते ॥ एवंवुचतिदेवाधिदेवागोयमाजेइम ॥ श्ररीहंता भगवंता॥ऊपणणाणदंसणधराजिव सरवेदेशि ॥ सेकेणठे जीवदेवाधिदेवा एमांकह्युं जेहेनगवंतदेवाधिदेव ते केनेकहिए त्यारेभगवंतेकह्युं जेारीहंत भगवंतनेदेवाधि देवकहिए एटले हंतनदेवाधिदेव एकजकहिए जेम पुणो सोने पंचोतेर तेएकजकहिए तेमहिंपण जाण वं हवेदेवाधिदेवनिस्थितीपूछेछे ॥ तंजथा ॥ भवियदवदे वाणं॥ केवितियकालधीतिपन्नता । गोयमा ॥ जहणं ॥ तोमूहूत्तं॥उको सेां ॥ तिणिपलियोवमाईरे ॥ देवाणं॥ पुछागोयमा ॥ जहणं ॥ संतवासंसताए॥ उकोसेणं ॥ चउरासितिपुवसयसह साइं॥धर्मदेवा ॥ पुछागोयमा॥जह णे। श्रंतमूहूर्त्तो॥उको सेणंदे सुणापुव कोडिदेवाधिदेवाणं॥ पुछागोयमा जहां ॥ बावतरीवासाए ॥ उकोसेणंचउरा सितिपुवसय सहसाई ॥ नाव देवाण॥पुछागोयमाजहणेणं। दसविशसहसाए ॥ उकोसे तेतिसंसागरोपमइतिनवि Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. ५१ यदवतिके० ॥ जेमनुष्य ॥ तथातिर्जंचपंचंद्रिय ॥ एबेगति मांहिथ कि ॥जेदेवताथनारहोय तेनेद्रव्यदेवकहिए तेनि स्थितिजघन्य अंतरमूहूर्त उत्कृष्टितिनपल्योपमनी स्थिति एटलेमनुष्यतिर्जचनु तिनपल्योपमनुं श्रावखु त्यांसुद्धद्रव्यदेव कहिए नरदेवतेचक्रवर्ति कहिए तेत्रा वखापर्यंत नरदेव कहिए धर्मदेवतेसाधुकहिए तेजघन्य अंतरमूहूर्त ऊत्कृष्टो देशे उणुपर्व कोडनिस्थिति ज्यांथ किचारीत्रलिधुं त्यांथकिधर्मदेव कहिए देवाधिदेवारी हंतनगवंत कहिए तेहनिस्थितिजघन्य ७२ वर्षनि उत् कृष्टिचोरासिलाखपूर्वनि स्थिति एटलेावखा पर्यंत अरहंत गवंतकहिए त्यांसुधिपुजनिक कहिए। एटलेको इककेछेजे अरहंत भगवंतने केवलज्ञान उपजे तथाचा रीत्र लिधुंत्यारपछि पूजनिक कहिए || तेजुठु ॥ जेदिवशे मातानी कुक्षेश्रवतरचा उपन्या त्यांथकिपूजनिकरीहंत भगवंत विचरता कहिए वलिकोइवादीबोल्यो जेरीहंत भगवंत गृहस्थावस्ता नेविषे होय त्यारेसाधुनिग्रंथपंच महाव्रतनापालनारा वांदेनमस्कार करे के नकरे एवादि नुवचन एनोउत्तर ॥ जेवांदवूनमस्कार करवो तेनाप्रका rangoli बिजोनावथकि एबेप्रकारछे जेद्रव्यथ कीवांद ते पंचांग प्रणाम तथाद्वादशवर्यादिकवांदवुं । 91 जेनावथ किवांदवू तेमननाशूनप्रणामेकरीने तथानमोठा Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीसम्यकद्वार. रीहताणंइत्यादिकनोकारगणवेकरीनेवांदवंतभाववंदनक हिए तेज्यांसुधिरीहंतभगवंतग्रस्थावस्तामांहोयत्यांसु घिसाधुनगवंतनेवांदे जेमगुरुशिष्यने नमोलोएसवसाह णं इत्यादिकपदगणवेकरीने नगवंतनेवांदेछे पणखमा श्रमणद्वादशवादिकवंदणेकरीने द्रव्यवंदनथिनथिवां दतातथातेमजव्यवहारजाणवोनमोअरीहताणं एहपदे अतितअनागतवर्तमानकालनासर्वे अरीहंतनगवंतने स दासाधवांदेछे पणदिवसेमातानिकुक्षेत्राविनेरीहत्त नगवंतवतरया त्यांथकिचवनकल्याणकादिकेकरीने जनिकविशेषप्रकारे चोसठइंद्रमलिनेपूजछे तेकारणमा टेमातानीकुक्षेत्रवतरया एटलेमनुष्यपणामाटे श्रीअरी हंतनगवंतविचरताकहिए त्यांथिजथाजोगेविनयकरवो घंटे मोक्षनेऽर्थे ॥१॥ सिद्धकहेतां आठकर्मक्षयकरीने मोक्षेपोहोच्या॥ तेसिद्धकहिए ॥२॥ चेइय॥ श्रीअरहिंत भगवंतनिप्रतिमा ॥३॥ श्रूतकहेत। समायकादिकसिद्धां त। तेहनोविनयकरवो ॥४॥धर्मके०॥ चारीत्रधर्मक्षांता दिकजाणवू ॥५॥ तेधर्मनोअधि०॥२॥साधुवर्गपंचमहा व्रतनापालनार॥६॥आचार्यछत्रिसगुणेविराजमान॥७॥ उपाध्यायपचविसगुणेकरीनेसहित ॥८॥ प्रवचनके०॥ संघकहिए ॥९॥ दंसणके०॥ सम्यक्तकहिए ॥१०॥ एद शनोविनयकरवो। तेविनयपंचप्रकारेजांणवोनिक्ति॥१॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्पक्वार. ५३ बहुमान ॥२॥ गुणस्तुति ॥ ३ ॥ श्रवर्णवाद नोनाश ॥ ४ ॥ श्राशातनापरीहार ॥३॥ भक्तिते बाह्यद्रव्येकरीने ॥ तेध नखरचवेकरीने ॥ पतिके० ॥ सेवाकरेतेनक्तिरुपविनयक हिए || जेमउदायनादिके ॥ श्रीश्रहंत भगवंत नीवधाम पिनासाडिबारलाख सोनइयानुदानप्राप्यूतेनक्ति ॥१॥ बहुमानते हृदयनेविषेघणोप्रेम ॥ तेबहुमानकहिए ॥ २ ॥ गुणस्तुतितेछतागुणनुंप्रगटकरवूं ॥ जेम श्रीश्ररीहंतनाजे गुणहता ॥ पण श्रीहिंतनुं क्यां ठेकांणुं होए ॥ तेथी श्रीमहंत भगवंतनिप्रतिमा तथादेहरांकराविनेश्ररीहं तभगवंतनोगुण प्रगटकर वो ॥ श्रीश्ररीहंतनिप्रतिमादेखि नेबिजादेवनिमूर्तिझांखिदी सेछे॥ वलि साधूमहापूरुषएक लाजताहोए व्यारेकोइकजांणेजेएमहापूरुषछे श्रघणा कजीवतोजानहि घणाश्रावक श्रावीकासाथहोय त्यारे जाणेजे कोइकमोटा पूरुषछे एमश्रनेकप्रकारे गुणीनागुण प्रगट करवाएगुणस्तुतिरुपविनयजाणवोसहि ॥३॥ कोइ श्रावर्णवादेबोलतोहोयतोतेनुंनिवारणकरवुं तेावर्णवा दनोनाशरुपविनय॥४॥प्रसात नातेतांबूल मैथुनादिकवर्ज वुं ते सातनापरीहाररुपविनयकहिए ॥ ५ ॥ एरीहंता दिकदशनोपांचप्रकारेविनयकरवो ॥१०॥ हवेशुद्धिके०॥ सम्यक्तनित्रण्यशुद्धि || एकमननीशुद्धि |१| बीजीवचननीसद्धि ॥ २ ॥ त्रिजकायानीशुद्धि ॥३॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यक्वार. जेजिनतथाजिननासिद्धांतादिक विनाबिजुंसर्वेजुठु एवंम नमांचिंतववूं तेमनशुद्धि ॥ १ ॥ जे श्रीतिर्थंकर निनक्तिवि नयेथाए || बिजानिभक्तिएशुंथा एएवूंमुखे कहेवूं तेवचनशु द्वि ॥ २ ॥ जो छेद्योनेघोशरीरदूखपामे तोपणबिजादे वनेननमेते कायशुद्धि ॥ ३॥ ५४ पंचगयदोसके | सम्यकनांपांचशंकादिकदूष एएटालवां प्रभाव के प्राठप्रभावक पूरुषार्जन सासननादिपावना रजाणवा॥यदुक्तं॥पावयणी ॥१॥ धम्मकहि॥२॥ वाई॥ ३ ॥ ने मिति ॥४॥ तवसीय ॥५॥विद्या॥६॥सिद्वोयं॥७॥ कइ ॥ ८॥ ठेवप्रभावग्गभणीय ॥ १ ॥ त्रवचनि के ० ॥ वर्त्तमानकाले जे सिद्धांतादिकनो यथार्थऽर्थजाणवो ॥ तेप्रवचनी प्रथमत्र नावक॥ १॥ धर्मकथानंदिषेणनिपरे ॥ बिजोप्रभावक॥२॥ वादकरीने जथार्थपणे जीनसासनथाये ॥ तेवादित्रीजोप्र नावक॥३॥ जीनसासननेनिमितेनिमितकहे ॥ तेभद्रबाहू निपेरेनिमित्तकचोथोप्रभावक ॥ ४ ॥ क्षमासहिततपश्वीपं चमोप्रावक ॥ ५ ॥ विद्याके० ॥ मंत्र जोगेजिनसासनने दिपावे जेमवेरस्वामीछठाविद्या पूरुष प्रभावक॥ ६ ॥ सि के०॥ अंजनादिकप्रयोगेकरीन ॥ जिनसासनदिपावे ॥ कालकाचार्यनिपरे तेसिद्धपूरुषप्रभावक सात मा॥७॥ क इके ० ॥ कविश्वर जेनवनवाकाव्य करीराजादिकरीझवे घ मंदिपावेतेाठमाकविप्रभावक ॥८॥ एाठप्रनावकजा Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीसम्यकद्वार. गवाएमतिर्थजात्राकल्याणमहोत्वछ दिक्षामहोत्छवप्रमु खकरीनेजिनसासनदिपावे तेपणप्रनावककहिए नूषणके०॥सम्यक्तनां पांचनूषणजाणवांतेवंदनपचखाण प्रमुखजैनक्रियाविषेडाह्यापणुं। तथाकशलपणातेप्रथम नूषण।।१॥ बहुश्रुतगीतार्थादिकनुंसेवतेतीर्थसेवारुपबि जभूषण॥२॥ जेगुरुदेवानभक्तिकरतेनक्तिरुपत्रिजुभूषण ॥३॥ जेदेवतादिकनोचलाव्योचलेनहि एप्रचलरुपचो थंभूषण ॥४॥ तेथकिघणाजिवधर्मनिअनुमोदनाकरे ते प्रनावनारुपपांचमंजूषण ॥५॥ - लक्षणके०॥ सम्यक्तनां पांच लक्षण जेणेकसि म्यक्तोलखाय तेलक्षणकहिए जेमअग्नीलक्षण न्यायशास्त्रने मतेउष्नस्पर्शत्वं ॥ अग्नीत्वं धुम्रलिंगलं अग्नीनुं लक्षणते उष्णस्पर्श जाणवो नेअग्रिनुलींग ते धुघजाणवो तेमसम्यक्तनुं लक्षण तेसमसंवेगादि कपंचजाणवाने कहछे उपशमजे पोताना रीउपर पणप्रतिकुलपणुं चिंतवेनहि तेउपशमएबुंलक्षणकाहिए कोइकवादिकेहेछे श्रीनगवती सुत्रना सातमासतके ॥ नवमाउदेसानेविषेवारुणनामावर्णागनटु॥ श्रीचेडामहा राजनासेवककुणिकनिलडाइमध॥ श्राशरूंतेजावमीसी मीसीमांणेके०॥कोपकरीनेवेरीनेहण्योदिसछे।सम्यक्ह ष्टिश्रावकबारव्रतधारी छठरनेपारणेकरतांपण समरुप - Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. लक्षणतोजणातुंनथी जोअंतरंगउपशम होत तो पंचंद्रिय मनुष्यने हणतानाहि तेने सिद्धांतिक उत्तरदेछे जेतेंकहां तेसाचं पणसांनलजो वारुणनामावरणांगनटुत्राने तरंग उपशमनहोततो एक अवतारीपणे सौधर्मदेवलो केउपजतानहि जेपंचेंद्रियनो घातकरयोतेतो अनुता नवंद्धि क्रोधादिकपणेनथिकरघो जोश्रनुतानबंद्धिको धादिकपणे करचो होततो एकाश्रवतारीपणे सौधर्म देवलोके उपजतानहि एहकालेकरीने निश्चयां तरंगे उपसमरुपलक्षणछे जद्यपिसम्यक्तदृष्टि तथा मिथ्याद्रष्टी एबेजणा सरखीक्रियाकरेतोपण सम्यक्त द्रष्टी शुभफलपामे मिथ्याद्रष्टी अशुभफलपामे जु श्रीने एठेकाणे वरुणांगनटुश्रो मनुष्यनोघातकरीने ए कावतारी सौधर्मदेवलोकेप होतो तेहनोवयरी मनु यनोघातकरी नरकादिकने विषेपहोतो इहांपरिणामनो भेदजावो जेवो २ परिणामहोय तेवो २ कर्मनोबंधपडे एसम्यक्तनुंज अंतरंगउपशमरुपलक्षण जाणवुं ॥ १ ॥ हवेबी जुलक्षण संवेगरुप | संवेणं ० ॥ मोक्षनोश्रभिलाष इच्छा कही | संवेगत्वनाम किक्षाभिलाषत्वं ॥ मितिवचनात् ॥ वलिश्रीउतराध्ययन सूत्रना श्रीगणत्रीसमा अध्ययनने विषे प्रथमएहपुछ्युं ॥ संवेगेनंते ॥ जीवेकिंजईय इ संवेगेणं ॥ श्रणुत्तर ॥ धम्मस ॥ धंजणा यईअणुत्तराए ध ५६ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. momema म्मसधाये॥ संवेगहवामागत्छ ॥ इयनंताणं॥बंधिकोह मानमायालोभे॥ पवेईनवत्वकम्मनबंधई ॥ तपवइपंच णमिल्छत विसेहिकाउणंदसणाराहरो॥ नवेदसणविसु द्वाए॥अछेगइएतिणेवभवगाहणणं सिझ्झईबुझ्झई दं सणसोहिएअंविसुधाए तंचपुणो॥ नवगहणंनाईकम्में ॥१॥ संवेगेणंके०॥ संवेगमोक्षाभिलाषरुप॥ सम्यक्तनुं लक्षणते अंगीकारकरीनेजीवशं। किंजाइके०॥ सोग णप्रगटकरे॥एप्रश्न ॥ एनोउत्तरदेछे॥ संवेगेणंत्रणुत्तरं ॥धम्मसद्वंजणप्रइके० ॥जेनीउपमानहोय॥ अणुत्तरंए हविधर्मके० ॥श्रुतधर्मतथाचारीत्रधर्मनेविषे श्रधातेधर्म करवानेविषे अत्यंतअभिलाषउपजावे अणुतराएह ध म्मसधाए संवेगहवामांगछइके०॥उत्कृष्टि सतचारीत्र धर्मनासंवेगहवंके०॥सिघ्रागच्छतीके०॥ उत्कृष्टोसंवे गमोक्षाभिलाषप्रतेपामे त्यारेउत्कृष्टिदर्शननि आरा धनाकरे देवगुरुनीभक्तिअत्यंतकरे जेश्रीअरीहंतनगवं तनी वधामणीलाव्यो तेनेसाढिबारलाखसोनइयात्रा प्या श्रीअरीहंतजीननेवणदिठेएटलं धनखर्यु तोश्री अहिंतजिननेदिठेतोकेटलुकधन खर्युहशे जेमकोइक देशमुलकजमाडे तेमध्येशाकमांहि १०१ एकसोनेएक रुपीयानांमरचान खरचथाय तोत्यांसुखडीनोशोसुमार रह्यो तेमत्यांसाढिबारलाखसोनइया वधामणीश्रापीतो - Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसम्यक्हार. बीजाधनखरच्यानिसिवातकहेवी. श्रीउदायन प्रमुखेतो श्रीअरीहंतनगवतनीदेशना सांजलीने तत्कालचारीत्र लीधुं श्रीश्रेणीकश्रीकृष्नवासूदेव प्रमुख पोतानानोग कर्मनेउदये चारीत्रलेइनशक्या तोपणसंवेगगुण वधे थके चारीत्रना बहुमानताएकरीने कोईचारीत्रले तेनी घणीपेरे साज्यकरे इत्यादिकगुणावेथके अनुतान बंधिक्रोधमानमायालोननोक्षयकरे नवंचकमनबंधिके पापानुबंधिकर्मनवां नबांधे तपचइयंछणमिल्छ तविसो हिकाउणं दसणाराहएनवंतिके०॥ संवेगप्रतयउसंवे गनीमित्तिउ ॥ मिथ्यात्वनिशुद्धिकरीने दर्शननोबारा धकथाए ॥ दसण सोहिएयणंवसुथाई ॥ अछगइ एतेणेव ॥नवगाहणेणं॥ सीइझइबुझ्झइके०॥ दर्शननी शुद्धिकरीनेविशुधाएके०॥ अत्यंतनिर्मलपणे केटलाकते हजनवनेविषे सिद्धबुद्धथइनेमोक्षजाय॥ दंसणसोहिएय पा॥विशुधाएचपुणोनयमहणंनाइकमइए। दरशनशुद्धि करीने त्रिजोभवउलंघेनहिं॥ १॥ एहसम्यक्तनुंसवेंगरुप बिजुलक्षणजाणवू ॥२॥ त्रिजुलक्षणसम्यक्तननिरवेदप णु निर्वेदतेसंसारनेबंधिखांनारुपजाणे नीवेएणंनंतेजि वेकिंज़णजईनीवेएणंदिवमाणुं॥ सतेरीछिएसुकामेभोगे सनिवेयमागछइसव्वविस ॥ एसुविरजई ॥ सवविसए॥ सुविरजमाणे ॥ आरंनपरीचायकरेइ॥ श्रारंपरिचाय Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. । - करेमाणे ॥ संसारमगावुछुदइसिद्धेमगोपडीवनेपनवई॥ जिवनेनिर्वेदगणतेदेवादिकनोगनोत्यागकरीने संसार मार्गनाउदेवधकरीने सिद्धमार्गनेअंगीकारकरे एहसम्य कर्नुलक्षणत्रिजुंनिर्वेद ॥३॥ सम्यक्तनुंचोथुलक्षण अनुकं पाद्रव्यथकि आत्मानिपरनिएमच्यारभेदथाय तेकेम॥ श्रास्मानिद्रव्यश्रनुकंपा॥१॥पोतानाशात्मानिभावत्रनु कंपा ॥२॥ परात्मानिद्रव्यअनुकंपा॥३॥परात्मानि भावअनुकंपा॥४॥पोतानाश्रात्मानेक्रोधादिकेकरीने वि षयादिकनेप्रयोगकरीने पापघातेमरे तेद्रव्यअनकंपापो तानाश्रात्मानीनकरीपापोतानाप्रात्मानिद्रव्यहिंसाकरी वस्तुगततोक्रोधेकरीनेमरे तेणेपोतानाआत्मानिद्रव्यत्र नेभावअनुकंपानकरी केवल पोतानाशात्मानिद्रव्यभा ववेभेदहंसाकरी|जकोइकजीवव्रतपचखांणराखवानेकाजे श्रापघातकरीने मरेतो व्यवहारनयनेमते द्रव्यहंसापो तानाशात्मानिकहि निश्चेनयेतोपोतानाश्रात्मानिद्रव्य नावे अनुकंपाजकरी वलीकोइलोकविरुद्धकामकरे ए लोकनेविष अपजसनिंद्यादिक तथाताडनादिकपणपामे तेणेपोतानी द्रव्यअनुकंपानकरी जेनयपामिने लोक विरुधादिककामनकरे तेणेपोतानीद्रव्यअनुकंपाकरी ए द्रव्यअनुकंपानोप्रथमभेद॥१॥पोतानिनावअनुकंपति देवगुरुधर्मनिपरीक्षाकरीने साचोधर्मअंगीकारकरे खो Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. - टोधर्मछांडे जेमशुकदेवपरीव्राजक शुदर्शनादिकनिपेरे वलिपोतानाटत्तपचखांण श्रीअरिहंतनगवंतनित्राज्ञाए पाले तथाकष्टपडेपणमुकेनहिं तेनेपोताननिावअनुकंपा कहिये एबिजोभेद २ हवेपरजिवनीद्रव्यअनुकंपाकहे छे जेछकायनाजिवना बाह्यप्रांणउगारवा तेद्रव्यअनुकं पाकहीये॥३॥ साधुमहापुरुपछे तेतोपोतानाशात्मास रीखा छकायनाजीवनेजाणेछे तेनेउपगारवानिघणी जखपकरेछे तेनेद्रव्यपरदयाकहिये तथाभावपरदयाते जेपरजिवने समकितादिकधर्मपमाडिने मोक्षेपोचाटुंएवा जेअद्यविसाय तेनेभावअनुकंपाकहिय॥धाएचोथुअनुकंपा लक्षणजाणवु॥४ाहवेत्रास्तालक्षणपांचमुंजेवर्तमानकाले पंचांगीनाव सम्यक्तप्रकारेसदहे जेअरीहतभगवंतेनाव प्रकाश्यो तेसर्वप्रमाणछे एवमनवचनकायायकरीनेसदह तेहनेअनुसारेप्रवर्तवू एहपांचमुंलक्षण॥५॥ एटलेस मकितनापांचलक्षणकयां तथालिंगपणपूर्वेकह्यांछे सि दांतनुसांनलवू अतिशेरागेतेनेलिंगकहिए एलिंगलक्ष मनोनेदजाणवो ॥ छविहाजयणाके० ॥ अरीहंतभगवंतनी प्रतिमा मि थ्यात्वीएग्रही होय तेने वंदनादिकनकर एजतनाक हिए तेहनाछप्रकारछे तेकिया।वंदन॥१॥ नमण ॥२॥ दान ॥३॥अनुप्रदान॥४॥ालाप ॥५॥ संलाप ॥६॥ए - Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. नामेछजतनाजाणवि वंदनते बे हाथजोडवा तेवंदनक हिए ते न करवू ॥ १॥ नमणतेश्रन्यतिर्थादिकने ॥धर्म बुद्धिदेखिनेमस्तकननमावb॥ तेनमण ॥२॥दानतेनक्ति एकरीनेदानदेवूनही ॥३॥ वार२अन्यतीर्थादिकने धर्म बुद्धिसुपात्रजाणीनेदानदेवू तेअनुप्रदानकहिएते नकरवू ॥४॥ अनुकंपादिकनेहेतुयेदानदेवूनिषेधनथि ॥४॥ मि ध्यादृष्टिनेकारणविनाअणबोलावेबोलावq तेएकवारबो साववू तेआलापकहिए ॥५॥वार२बोलावतेसंलापक हिए ॥६॥ एछजतनाकहि ॥ . हवेछागारकहिएछे जेजेसम्यक्तमांहेछभागारे करीने सम्यक्तनागे नहि बाह्य मिथ्यात्वकरतांथकां भागेनहिते ॥ रायानियोगेणं ॥१॥ गणानियोगेणं ॥२॥ बलानियोगेणं ॥३॥ देवाभियोगणं ॥४॥ गुरु नीगहेणं ॥५॥ वीतीकंतारेणं॥६॥ राजानगरधणि ॥१॥ गणतेनात्यप्रमुखलोकसमुह ॥२॥ चोरादिकनोहठतेबल ॥३॥मिथ्यादृष्टिदेव इत्यादिकनोनिजागके०॥ तेने प्रयोगकरीनेमिथ्यात्वनोत्राचारकरेतोसम्यक्तभागेनहि मिथ्यादृष्टिमातापिताकुलाचार्यनेनिगहके०॥ परानवेक रीनेव्रत्तिके०॥ अजीवकाकंत्तारपटविरोगादिक॥ दूखेपि डाणोथकोमिथ्यावशेवे।गाथा॥॥आगमतु।। इतिश्राख्यो मिथ्यामितिविनेदक ॥१४॥ अनाचारसेवेपणमनथकि Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. नसेवे एछत्रागारेसम्यक्तनागेनहि नगरनेरखोपाकाजे कोटसरिखात्रागारछजाणवा ॥६॥ हवेसम्यक्तनिछभावनाकेछे मूलभूत ॥ १॥ द्वा रभूत ॥२॥ प्रतिष्टाभूत ॥३॥ निधिभूत ॥ ४ ॥ श्राहारभूत ॥५॥ भावभूत ॥ ६ ॥ चारीत्ररुपधर्म स्याके०॥ चारीत्रधर्मरुपक्षनमलतेसम्यक्तछे ॥१॥ धर्मरुपनगरनुवारणासरिसम्यक्तजाणवू ॥२॥ धर्मरु पमंदिरनुपायासरिखूतेसम्यक्तजाणतेप्रतिष्ठाभूत्ततृती य॥३॥ जेमचक्रवर्तिनानिधानमांहे सर्वेजातनारत्नछूटां होय तेसर्वैरत्ननिजात्तनिदानमांहेसमाय तेममूलगुण उत्तरगुणरुपछुटांरत्नसरिखागुण तेसम्यक्ततेनिदिस रीख़ुमननेविषनाववू ॥४॥ जेमसर्ववस्तुनो आधारप्र थविहोए तेमसर्वगुणनो आधारएकसम्यक्तछे श्राधा रभूत ॥५॥जेमअमृतादिकरसनोआधारतेकलसादिक नाजनहोय तेशुतशिलादिकनोरसतेसम्यक्तमा रहेएम एछनावनाएकरीनेनित्येसम्यक्तनिभावनाभावे ॥६॥ हवेत्रात्मानास्थानककहेछे प्रथमस्थानकजेआत्मा छे शरिरथकिभिन्नत्रसंख्यातप्रदेशिज्ञानदर्शनचारीत्रवि यमय ॥ श्राकारत्रनाकाररुपउपयोगमयएवोत्रात्मा प्रतेशरीरनिन एवाअनंतात्रात्मा व्यक्तिनेदेताजए सि दसंसारीरुपएकजात्मातकारणमाटे श्रीठांणांग॥ एगे Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. mamima श्रायाइतिवचनप्रमाणात्एप्रथमस्थानक॥१॥बिजुस्थान कनित्यके०॥ आत्मानित्यछ।। द्रव्यार्थिकनये ॥ अतित अनागत्त ॥ वर्तमानकालेअविनासीछे पर्यायार्थिकनये तोदेवतामनुष्यादिकपर्यायनो अनित्यपणेअनित्यछे बि जुंस्थानक॥२॥ त्रिजुंस्थानकएत्रात्माकर्ताछेस्वकृतकर्म पाके० ॥ पोतानासुखदुखरुपकर्मनोकर्ता एत्रात्माछे ॥३॥ तथापोतानाकरचाकर्मनोनोक्ताछेके० ॥ भोग वनारोपणएजश्रात्माछे॥४॥ पांचमुस्थानकमुक्तिछे ते पाठकर्मरहितथायजिवत्यारेमुक्तिकहिए।५॥बहूस्थानते मुक्तिनुसारतेज्ञानदर्शनचारित्रछे तेने अाधारेाठकर्म क्षयकरीनेमोक्षजाय॥६॥ एछस्थांनकमुक्तिनांजाणवां.. हवेसमकितनापांचअतिचारकहेछेसंखाके०॥संशयतेबेप्र कारे एकदेशशंका॥१॥बिजिसर्वशंका॥२॥जेदेशशंकाते श्रीअहिंतभगवंतनिप्रतिमा मोक्षनसाधनछेकेनथि ए देशशंकासर्वशंकाते श्रीवित्तरागनोधर्मखरोहशेकेखोटो हशे एसर्वशंका ॥१॥ कंक्षाके०॥ परमतनोअभिलाष कंक्षाकहिए वितिगच्छाके०॥ एकरुं तेत्रागलफलह शेकेनहिहोय अथवासाधुनुमलिनगात्रदेखिने दूगंच्छा करवि तेचिकच्छाकहिए अन्यंसंशाके०॥ मिथ्यात्विनिप्र संशाकरविनहि ॥४॥ संस्तवके०॥ मिथ्याविनोपरीचय करवोनहि ॥५॥ एपंचअतिचारसहितसम्यक्तजाणवं॥ - - Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. हवे समकितनी दशरुचीकहेछे ॥ त्यांपहेलीनिसर्गरु चिकेहेछे निश्चयव्यवहारनयेकरी जिवअजीवनवतत्वजा णी श्राश्रवत्यागेसंवरलहे वितरागेकह्याजेनाव॥६॥द्र व्यतेद्रव्यक्षेत्रकालनाभावशंजाणे नामादिच्यारनिक्षेपा जाणेसदहे आपणिबुद्धिशुसदहे वीतरागनिनापाभावत हतछे एवीसदहणा तेनिसर्गरुचिकहिये ॥१॥ हवेउपदे शरुचिकहछे जेएहिजनवतलछद्रव्यगुरुउपदेसशुंजाणी नेसदहे तेउपदेशरुचिकहिए॥२॥हवेआज्ञारुचिकहेछे रा गद्धेपमोह जेनागयाहोय अज्ञानमिट्युहोयअनेजे रीहंतदेवे आज्ञाकहितेमानेनेसदहे तेत्राज्ञारुचिकहिए ॥३॥ हवेसूत्ररुचिकहेछे जेसूत्रनानामनंदिसूत्राथिलखी एछेत्रहवात्तंसमासउ॥ दुविहंपन्नंत॥ तंजहा।। श्रावसयं च॥ श्रावसय॥ वयरीतंच॥ श्रावसयं॥ वयतिंदुविह॥ श्रावसयं॥ वइरीतं॥ श्रावस्सय॥ वयरितं ॥ दूविहंपन्नतं तंजहाकालीयं । उकालीय। सेउकालियाअणेगावहं॥ पणतंतं ॥ दसवेयालियं ॥ कप्पित्रा ॥ १ ॥ कप्पी यं ॥२॥ चूलकप्पसुयं ॥३॥ महाकप्पसूयं॥४॥ उवाइ यं ॥५॥ रायप्पसेणियं ॥६॥ जिवानिगमो॥७॥प नवणा॥८॥ महापन्नवणा ९॥ पमायपमायं ॥१०॥ नंदि ॥११॥ अनुयोगद्वाराइं॥१२॥देविंदत्छनो॥१३॥तंदुलवे यालीय॥१४॥चंदाविजयं॥१६॥सुयभति ॥१६॥ पोरास Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीसम्यकद्वार. - मंडलं॥१७॥मंडलप्पवेसो॥१८विद्याचरणविणछीत्रो ॥१९॥गणिविद्या॥२०॥झांणविभत्ति॥२१॥मरणविनती आयवीसोहि॥२३॥वियरायसुय।। २४ ॥सलेहणासुयं ॥२५॥ व्यवहारकप्पो॥२६॥चरणविसोहि॥२७॥त्रा उरपचखाणं ॥२८॥महापचखाणं॥२९॥एवमाइशेकिं तंकालिआतंजहा।उत्तरझयगाइं॥॥दस्याकल्पो॥२॥ व्यवहारो ॥३॥ नीसिह॥ ४ ॥महानीसिहं॥५॥इसिभा सियाइं ॥६॥जंबुद्विपपन्नति ॥७॥ दिवसागरपन्नति॥८॥ सरपन्नत्तीचंदपन्नत्त।९।खडीयावीमाणपवीनत्ती॥१०मह ल्लोयाविमाणपवीभत्ती॥११॥अंगचूलिया।१२।वंगचूलिया ॥१३॥व्यवहारचूलिया।१४ापरणोववाए।१५॥वरणोववा ए॥१६॥गरुलोववाए॥१७॥धरणोववाए॥१८॥समणो ववाए॥१९॥वलंधरोववाए॥२०॥देविंदोववाए॥२१॥ उठाणसूए॥२२॥समुठाणसूए॥२॥ नागपरीयावलित्रा ॥२४॥नीरयावली॥२५॥कप्पियात्रो ॥२६॥कप्पव डीसिया॥२७पूप्फियाओ।२८।पुप्फिचूलीया२९ वयेहिदेसाश्रो॥३०॥ एवमाइतत्छंअंगपवीवं दुवालसवीहं तंजहा आयारो॥१॥सुयगडो॥२॥ठाणं॥३॥समवाश्रो ॥४॥विवाहपन्नती॥५॥ नायाधम्मकहा॥६॥ उपासक दशाभो॥७॥अंतगडदशाबोटाअणुतरोववाईदशाश्रो ॥९॥वीवागसूय॥ १०॥पन्नावागरणाण।११शदीठीवात्रों - Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. उआईतथाठाणंगमध्ये चारसत्रनानामछे तथाजोगवि धिमध्ये पाठनामवधतानाजोगछे नंदीसूत्रेपणएवमाई एपाठथीउपदेशमाला प्रमखसवीतीर्थकर विराजमान थकाजेथया जेवसूदेवहंडप्रमख तेसर्वमानवायोग्य। ह मणांवर्तमानकाल॥४५॥आग्यमछे तेनानामकहेछे अगी यारअंगः।प्राचारंग॥ १॥सूयगडांग॥२॥ठाणंग॥३॥ सम्मवायांगानगवती॥५॥ज्ञाताधर्मकथा॥६॥उपा. सकदशा॥७॥अंतगडदशा॥८॥अनुतरोववाइदशा ॥९॥प्रनव्याकरण ॥१०॥विपाकसूत्र॥ ११ ॥एअगी यारअंगजाणवां बारमोअंगदृष्टिवाद जेमांहेचौदपूर्वहतां पणतेविछेदगयांछे बारउपांगनांनांम उववाई॥१॥राय पसेणिजिवानिगम॥३॥पन्नवणा॥४॥जंबूद्विवपन्नति ॥५॥चंदपन्नति॥६॥सूरपन्नति॥७॥कप्पिया॥८॥क प्पवडंसिया॥९॥पुफिया॥१०॥पुफचुलीया॥११॥वन्नि दशात्रो ॥१२॥ एउपांगजांणवां अथछछेदनांनामक हेछे व्यवहार॥३॥वृहत्कल्प॥२॥दससुतस्कंध॥ ३॥ नि शीथ॥४॥महानिशीत्छ॥ ५॥जितकल्प॥६॥अथदसप यनांनानाम चौसरण॥१॥संथारावयनो॥२॥तंडलवेयाली य॥३॥चंदाविजय॥४॥गणविजय॥५॥देविदत्छुओ॥६॥ विरको॥७॥गछाचार ॥८॥योतीकरंड॥९॥ च्यारमूल | सूत्रनांनाम अावस्यक॥१॥दशवैकालिक॥२॥उत्तराध्य Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. TIETNEPAL www यन॥३॥ओघनीयुक्ति॥४॥बेचुलीकासुत्रनंदि॥१॥अनुजोग द्वार॥२॥एआगमसर्वनाजोगछेअनेबीजानाजोगनीविधि नथीदिस्तीजेएवाजोगमध्ये श्राव्याछेतेमाटेाग्यमसूत्रनि युक्तिनाष्यचुरणीटिकाएपंचांगीनांवचनमानेागमसुणवा || भणवानिइछाहोयतेसूत्ररुचिजाणवि॥४॥इहांधीनगवति । नंदिसूत्रमधेगाथाछे जेसूतथोखलोपढिमोबियोनिजति मिसीत्रोतइयोयनीखसेसोएसविहिहोईअणुउगो॥१॥ तथाअनुयोगमध्ये नियूक्तोअनुगमकह्योछे॥ समवायां ग॥ सनियताए॥ इत्यादिकघणीसीखछ। तेमाटेपंचांगी नीश्रद्धाराखे तेनेभाराधनाछे। तेमाटेपंचांगीनिथद्वारा खवी हवेबिजरुचिकहेछे । जेजिवगुरुमुखे ॥ एक पदनो अर्थसुणी अनेकपदसदहे ते बिजरुचिजाणवी ॥५॥ हवेत्रनीगमरुचिकहेछे जेजीवगुरुमुखे सुत्र सिद्धांतअर्थशुंजाणे अनेअर्थविचारसुगवानी नणवानि जेनेघणीचाहनाहोय तेअभिगमरुचिजाणवी ॥६॥ हवे विस्ताररुचिकहछे छद्रव्यजाणेछद्रव्यनागुणपर्यायचारे प्रमाण॥ सर्वनयजाणे॥ एनयप्रमाणशंछद्रव्यसदहे ॥ तेविस्ताररुचिजाणवी॥७ाहवेक्रियारुचिकहेछे दर्शनज्ञा नचारीत्र तपविनयसुमतिगुप्ति ब्रह्मक्रीयासहित श्रा त्मधर्मशंजेनेरुचिघणीहोय ते क्रियासचिजाणवी॥॥हये संक्षेपरुचिकहछे अर्थमांज्ञानमांथोडोकहे घणोजाणेकम www जेजीव जेनेघणीचा जाणे श्रनेत्र Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीसम्यक्हार. तमांनपडे जिनमतमांप्रतित्तमाने तेसंक्षेपसचिजाणवी ॥९॥ हवेधर्मरुचिकहछे जेपंचास्तिकायनोस्वरुपजाणे श्रुत्तज्ञाननेस्वनावेअंतरंगसत्तासदहेतेधर्मरूचिजाणवी॥ १०॥ एदसरुचिकहि इत्यादिकसमकितनाघणाबोलछे माटेसडसठबोलेनियमरह्योनहिवलीसमकितनाबोलबी जाछेआगलकेटलाएककेवाश।इतिश्रीसमकितद्वारग्रंथौ मुनिश्रीहूकमचंदजिविरचित्तेतृतीयोध्यायपरीपूर्णम्॥३॥ एटलेत्रिजाअधिकारमा समकितनुंस्वरुपदेखाड्यु हवेचोथाअधिकारेदेवतत्वोलखावेछे शामाटेजेशुद्धदे व॥१॥ शुद्धगुरु॥२॥शुद्धधर्म॥३॥ एत्रणतलनीसदहणा होय तेनेसमकितकहिए माटेप्रथमदेवतत्वोलखावेछे देवतेत्ररीहंतनेकहिए एटलेअरीहंतके०॥ पाठकमरुप शत्रनेहण्यातेरीहंतकहियेत्यारेशिष्येप्रश्नकर्यु जेअरी नामशत्रुनेहणेतेनेअहितकोछो त्यारे राजाप्रमुखघणा लोकशत्रुनेहणेछेतेनेअरीहंतकहीएएवंप्रश्नकरयुंहेशिष्य प्रश्नतेभलंकरचुं परंतुतारीसरतस्वजातिविजातिमांपुगी नहि शामाटेजेतेशत्रुनेहणेछे तेकांइशत्रुनथीकेमजेशत्रुतो विजातीहोय पणस्वजातिहोयनहि माटेएतोमूर्खछे जेस्व जातिनोघातकरेछे अरीहंतप्रमात्माएविजातीनोघातक रयोछेत्यारेफरिशिष्यवलिबोल्योहेस्वामीस्वजातिविजा तिनीवेंहेचकरीपणअमेस्वजातिविजातिजाणतानथीमा - Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. टेत्रमाराउपरकृपाकरीस्वजातिविजाति-स्वरुपओलखा वोत्यारेगुरुत्रोलखावेछे नोशिष्यस्वजातिके॥जेपोतानि जातिके०॥ जेनेविषेसरखागुणछे सरखालक्षणछेसरखो स्वभावछेतेनेस्वजातिकहिए अनेविजातिके०॥द्रव्यपण बीजो गुणलक्षणस्वभावपणबीजो तेनेविजातिकहिए इहांस्वजातीविजातीनीचोनंगीलगावीनेदेखाउछे स्वजा तीनेहणेतेपहेलोभांगो॥१॥ स्वजातीविजातीनेहणे॥२॥ विजातीस्वजातीनेहणे॥३॥अनेविजातीविजातीनेहणे॥ एनोअर्थः।हवेस्वजातीस्वजातीनहणेके०॥जेममोटोम छनानामछनेगले तेमछमछजोतांतो ॥ स्वजातीछे पण शाथकिहणेछे जेक्षधावेदनिछे जेपदगलनाघरनीछे तेवि जातिनेऽर्थेस्वजातिनेहणेछे तेकेमजेकोइराजाबिजाराजा नंराज्यलेवाजाय त्यांहांतेराजानेहणे तेदेशनालोभे राजानेहणेछे तोजूत्रोएप्रतक्षमूर्खछे शामाटेजेदेश छेतेपदगलनाभोगमांत्रावेछे अनेकर्मपोतानभोगववांप डे अनेदेशतोविजातिछे अनेराजास्वजातिछे तेविजातिने ऽर्थेस्वजातिनोघातकरछेतेस्वजातिनावेनेदछेएकद्रव्यस्व जाति एकनावस्वजाति तेद्रव्यस्वजातिके०॥राजानेह | ण्यातेद्रव्यस्वजातिकहिए अनेराजानिघातकरयाथीला ग्यांजेकर्म तेथकिपोतानोत्रात्मासंसारनेविषेपरीब्रह्मण करशे तेमाटेएनेनावस्वजातिनोहण्योकहिए एपेहेलोनां Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० श्री सम्यकद्वार. गो ॥१॥ हवेस्वजातिविजातिनेहणे तेनोऽर्थकहेछे स्वजा तिके० ॥ पोतानोश्रात्मानंतगुणेकरीने सहितछे एजेट लाजीवछेते सर्वे स्वजातिछेशामाटे श्रीऊत्तराध्ययनमांकयूं छे जेछलक्षणसर्वजिवमांलाधे तेकिया ज्ञान ॥ १ ॥ दर्श न ॥२॥ चारीत्र ॥ ३ ॥ विर्य ॥ ४ ॥ सुख ॥ ५ ॥ उपीयो ग॥६॥एछलक्षणहोए तेनेजीवकहिए एटलेसंग्रहनयेस तागवेषतां सर्वेजिवसरखाछे तेठाणंगमांकह्यंछे एगेत्रा याजीवा एटलेसर्वेजिवने एकजगवेख्यो माटेसर्वेजीवस रखा छेमाटे सर्व जीवस्वजातिजाणवाहवेस्वजातिछेतेविजा तिनेहणे तें विजातिििकयो तेनूं स्वरूप देखाडेछेएटलेविजा तिके० ॥ बिजीजातछे तेनेविजातिकहिए तेपुद्गलास्ति काय ॥ १॥ धर्मास्तिकाय ॥२॥ धर्मास्तिकाय ॥३॥ श्रा कास्तिकाय ॥ ४ ॥ नेकाल ||५|| एपांचमां पुद्रलव र्जित्तचार तेतोहणातानथि नेपुद्गलविशेषण विश्रसा दिकपुदगल नेह एवानुंकामजरुरनथि एक मिश्रसापुदग लनेहणवातेनात्राठदछे तेकहछे उदारिकवर्गणा ॥ १ ॥वै कृत्यवर्गणा॥२॥ श्राहारकवर्गणा ॥ ३॥ तेजसवर्गणा ॥४॥ भाषावर्गणा ॥ ५॥ उस्वासवर्गा ॥ ६ ॥ मनोवर्ग णा॥७॥ कार्मणवर्गणा॥८॥ एआठवर्गणानांनामजाणवां बेपरमाणुंनेलाथाए त्यारे द्वणुकखंधथाए त्रपरमाणु भेलाथाए त्यारेतणुकखंधथाए एमत्रसंख्याते परमा Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. गुंए असंख्यात्तखंधथाय अनंतापरमाणुंये अनंतागुंखंध थायएसर्वजिवनेगृहेवायोग्यनथि अनेअभव्यथकिअनंत गुणाअधिकपरमाणुनेलाथाय त्यारे एकउदारिकनिवर्ग पालवायोग्यथाय॥ एटलेएकएकथिअनंतगंणिअधिक॥ एकथकि बिजीबिजीथकित्रिजीएमअनंक्रमेसातमाथकि आठमिवर्गणाकार्मणनांमेवर्गणाअनंतगुणीअधीकमल्या थीजिवनेग्रेहेवाजोगथाय उदारीक ॥१॥ वैक्रय ॥२॥ आहारक ॥३॥ तेजस ॥४॥ एचारवर्गणाबादरछे एमांपांचवर्ण ॥५॥ बेगंध२॥ पांचरस ॥३॥श्राठफर स ॥८॥ एविसगुणछे नाषा॥१॥ स्वास॥२॥मन॥३॥ कार्मण ॥४॥ एच्यारवर्गणासुक्षमछे एनेविषेसोलगुणछे केमकेफरसनाएनेच्यारहोयएटलामाटे तथाएकपरमा णुमांपांचगुणहोय॥वर्ण॥ १॥ एकगंध॥२॥ एकरस ॥३॥ बेफरस ॥४॥ एपुदगलना अनेकविचारछे ॥ एमांनो गुणात्मामांनथि एपुदगलमांजछे एटले आत्माथकीनिनगुणठरचाछे माटे एने विजातीकहिए एटलेवर्गणानोघात आत्माकरे एस्वजातीविजातीघात विजोनांगो॥ २॥ हवेत्रीजोभांगोवीजातीस्वजातीघात नामे विजातीकेाजेपदगलकहेताजेकर्मदलतेत्रात्मानी घातकरेछे तेनोविवरोकहछे जेत्रात्मानाबाठगणछे जे अनंतुज्ञान॥१॥अनंतुदर्शन॥२॥ अनंतोअव्याबाध॥३॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ श्रीसम्यक्हार. अनंतुचारीत्र॥४॥अटलअवगाहना॥ ५॥अरुपीगण ॥६॥अगुरुलघाणाअनंतुविय।।दाएकाठगुणहण्याएटले विजातीयेस्वजातीने हण्यो एत्रिजोनांगो॥३॥ हवेचोथो नांगोविजातीविजातीनेहणे एटलेजेमकोइकपथ्थरप्रम् खभिंतादिक उपरछेउपरथकी स्वनावेरडीपडयों निचेमा टिनांवासणप्रमूख पडयां हतां तेनीघातथई एटलेपथ्थर पणपूदगलछे माटीनानाजनपणपूदगलछे एटलेविजा तीविजातीनेहण्यो एचोथोनांगो॥ ४ ॥एचोनंगी कही हवेएच्यारनंगमाहेथी जेबिजोभांगोछे तेनांगोहोयते अरोहंतप्रमात्माकहिए इहां विचारघणोछे पणग्रंथगौर वथाय माटेलख्योनथि हवएवाजअरीहंतदेव जेअढारे दोषणेकरीरहीत तेनेजिनेश्वर देवकहिए तथाजिनचैत्या एंके०॥श्रीजिनराजरागद्वेषरहीतते जिनकहिए तत्स बंधिचैत्यानिके०॥ प्रतिमाश्रीवितरागदेवनीप्रतिमानेचै त्यकहिए तथानीग्रंथाके०॥ बाह्यअभ्यंतरगांठरहीतसा धकहिए तेनीथापनानेनिग्रंथकहिए थापनाचार्यनेपणनि ग्रंथकहिए तथासमायकादिकत्रागमतथा प्रादिशब्दथ की संघसाधर्मिकादिकनीभक्ति बहुमानकरवु इयूके०॥ एहजेकह्या अरहचैत्यादिकजेनेविषे शंकाक्षादिक रहित आठाचारतेसम्यक्तनुंसाधन जाणवू जेजिव भद्रिकादिकगणसहितरीहंतनगवंतनीप्रतिमानादर्शन Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. ७३ पुजाथकीसम्यक्तपामे तथासाधूनादर्शनादिकथकितथा तिर्थजात्रा श्रीतीर्थंकर भगवंतना पंचकल्याणकभूमि त थाश्रीसिद्धाचलगीरीनार प्रमूखमाहातीर्थनीजात्रा तथा साधर्मिकनीज क्तिदिक्षामहोछवादिक उपधानमालारो पणादिकजिननामहोछवदेखिने सम्यक्तपामे जेपाम्या होयते गुणनेवधारे सम्यक्तनिर्मलकरीने चारीत्रपांमीने यावत्मुक्तिपदपर्यंतसाधनथाय निसंकितके ॥ देशशं का॥१॥ सर्वशंका॥२॥देशशंका तेवितरागनामार्गनेविषे जेजिवादीककहेतां ० ॥ पदार्थ कह्यातेमध्ये एकदेशतेपाणी नेबिंदुए संध्यातादिजीवकह्या तथावासिधाननेविषे सं प्याताबेरंद्रिय कह्या तेशंकानहिहोयतथाजैना मार्गनामत नेविषे शंका सर्वशंकारहित निशंकितवेदाद्योके ० ॥ प्रथ मच्याचार॥१॥निकांक्षितके॥ जेान्यतिर्थीतेयोगीकाप डीनाधर्मनो श्रभिलाषतेरहित तेबीजोपचार ॥ २ ॥ दर्शनस्याके० ॥ धर्मनाफलनासंदेह तथा साधूनिदुगं छानिंद्याकरेतेरहित ॥ एत्रिजोत्राचार ॥ ३ ॥ श्रमुढ द्रष्टित्वं कुतिर्थिकना मंत्रचमत्कार देखीने ॥ तथा स्व दर्शननेविषे नयनिक्षेपादिक ॥ उत्सुर्गापवादादिकश्रगा धर्थदेखी मुझायनहि ए मुढदृष्टिचोथोत्राचार ॥४॥ ए चारश्राचारअंतरंग जाणवा जोनिशंकितादिकबाह्यक्रिया करे तो नुमानजाय ॥ ४ ॥ हवेच्यारच्याचारबाह्यवृत्ति ૧૦ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ श्रीसम्यक्हार. करे ॥तेकहेछे॥ जेगुणीतीर्थकरादिकतथासाधुसाधवित्र मुखचतुर्विधसंघनेगुणिकहिए तेनिप्रसंशाकरवी जेतिर्थ करभगवंतनिप्रतमाभरावितेगणिप्रसंशाकहिए जेश्रीती र्थकरदेवदेशांतरनेविषेहोयतेनीप्रतिमाथापिनेतेगुणप्रगट करवातेज्यांहांसुद्धिपोतानाश्रात्मानासम्यक्तादिकगुणद्धि पामेयावतचारित्रगुणअंगीकारकरेछेत्यांहांसुधिद्रव्यस्त वनीमुख्यताछेपछीचारित्रगणाराघवेकनिविनयवयाव चादिकेकरीनेगणनिप्रसंशाकरे एहप्रवृत्तिरुपपांचमोत्रा चारप्रधानछे ॥५॥ जेज्ञानदर्शनचारित्रनागुणसाध तोहोय तेनेसाज्यादिककरवेकरीनेस्थीरकरेश्रीकृश्नवासु देवश्रेणीकप्रमुखे चारीत्रनीसहायकरी एविउदघोषणा करावीसांनलीछे एप्रतिरुपछठोत्राचार॥६॥ वाछल्य ताके०॥ नक्तिरुपजाणवी बाह्यपतिरश्रीतीर्थकरनगवं तनितथासाधर्मनि यथास्थितपूजासेवादिककरवितेवाछ ल्यतारुपसातमोप्राचार॥७॥जिनसासननिउनतिकरे घ णाजिवजिनसासननिअनुमोदनाकरे तथाअमारनापड हवजडाविने जेमदिपावेतेसाधुहोय तेउत्कृष्टीतपस्यात थादेशनादिकनिकलायेकरीने अष्टमहाप्रनाबककह्याते नीपेरोजिनसासनदिपावे एप्रभावकनामाठमोत्राचार॥ ८॥ समकितनाएत्राचारकह्या अष्टोत्राठसंख्याये सम्य क्तनेनिर्मलके०॥ उजलूंकरवानेहेतेएकह्या एआठाचा - Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. . रथीउतराध्ययननाअठाविसमामोक्षमार्गाध्ययननेविषे॥ यदुक्तं॥निसंकियनिकंखिय निवितिगत्छा अमंणपाठ। १॥ एएकत्रिसमीगाथा उववुहके०॥ गुणवंतनीप्रसंशा करवी बिजोऽर्थतोलख्योछे थावकनेजिनपूजाके॥श्री वित्तरागनीपूजानोविषे तथासमायकनेविषे तथापोषधेपो सानेविषे एमाठाचारयथायोग्यके०॥ ज्यांहांजेवूघटे त्यांहांतेजोडवं तथामनवचनकायानायोगेकरीने श्रीवि तरागनिपूजादिकनेविषेजोडवा आदिशब्दथकिप्रणाति पात्तविरमणादिकबारव्रतनेविषे॥सकलके०॥सर्वेत्राचार जोडवा जिनपूजायांसम्यक्तनेविषे तथावारव्रतनेविषेपण यथायोग्यजोडवू एकवित्तरागनिपूजानोवषे निशांकता दिकाठश्राचारजोडवातेकेमः ॥ श्रीवितरागदेवमां॥ अनेश्रीवितरागनिप्रतमामां कशोअंतरनेदनथि ए बुशंकादिकरहित्तपणुहोय तेपूरुषश्रीवितरागदेवनिप्रत्त मानिपूजाकरेअहींशिष्यप्रश्नकस्युं जेवितरागतोअनंतगु | णनाधणीछे चोत्रिसतिशयेकरीनेविराजमान पांत्रिस वाणिगणनाधणिछे केवलज्ञानभास्कर इत्यादिकत्रने | कगणेकरीनेसहितछे श्रीवितरागनिप्रतिमामांतो ते मांनोएकेगणदिसतोनथि तोतमेकांजे श्रीवितरा गनिप्रतिमाने श्रीवितरागमांहिकशो अंतरनेदनथि तोइहांशंकामनमांऊपजे इहांशिष्यनेउत्तरदेछे जेहे A LANDunimilanAGARONManerumtamnaamamAHAANImaamaAMIRMIRamaacAMMAR mama - Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. - शिष्यतेसाचूंकहयुं तेंनलुप्रश्नपूछयु अभिप्रायजाण्या विनाशंकाउपजे तेमाटेतुंएवात्तना अभीप्रायमांसम ज्योनहि जेमेकांजेकशोत्तरभेदनथि तेनिप्राय सांनलाजेचोत्रिसअतिशयादिगुणतो॥ भावनिक्षेपामां होय तेजगुणप्रतिमामांहोयतो भावनिक्षेपोजकेहे त प्रतिमाकहेतनहि कशोअंतरभेदनथिएजेकहयुं तेजे कोईनव्यजिवभद्रिकसम्यक्तदृष्टिदेववृत्ती तथासाधुनिग्रं थहोय जेकातेजेपोतानघटमांउचित्त ॥ मन ॥ वचन ॥ कायानिशक्ति बालविय॥१॥ बालपंडितविर्य ॥२॥ पंडि तविर्यरुपशक्तितथातेविपुन्यप्रकृतिने अनुसारे विद्यमां न श्रीअरीहंतनगवंतनिप्रतिमानि शेवानक्तिविनयबहू मानकरे पुन्यानुबंधिपुन्यप्रकृतिबांधतेविजमहानिर्जराए करीने उत्कृष्ठपदेवततोजिव सिद्धिपामे त्यांश्रीवितरा गनिप्रतिमामां कशोअंतर भेदनथि एनिप्रायव चनकहपुंछे वलिजेसरखोगुणने सरखापणुनहि एयूँजो एकांतेकहेतोमिथ्यावथाय तेतोपूर्वेश्रीसुगडांगनिसाखे काजछे तोइहांकशंकहवानुकामरहघुनथि वलिजोतमे का जेअतिसयादिकगुणमाहेलोएके गुणदिसतोनथि ते वगरसमज्योबोल्यो श्रीतिर्थंकरभगवंतनिप्रतिमामांतो निर्विकारनेत्रप्रमख संस्थानादिकेशैलेसिमोक्षजावानिश वस्था तेनिमूद्रापरमउपसमरसनोश्राकार श्रीतिर्थंकरभ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ - श्रीसम्यक्हार. | गवंतनाशरीरनुसरखापणु तेहप्रतिमादेखिनेसाक्षातूनग वंतनेसंनारवानिशक्ति विषयकखायत्यागनापरीणामक राववानिकारणता तथाजातिस्मरणप्रमूखकेवलज्ञानपर्यं ततेउपजाववानिकारणताइत्यादिकअनेकगुणश्रीवितरा गनिप्रतिमामांहेसाक्षादिशेछेतोकेमकहेवायजेगणनथि ॥यदूक्तं॥प्रसमरसनिमग्नादृष्टीयूग्मप्रसन॥वदनकमलंक कामनिसंगशून्यंकरयूग्मपिधत्ये सस्त्रसंबंधिवंध्यतदास जगतिदेवो वितरागस्त्वमेव॥१॥प्रसमके०॥उपसमरस नेविषेनिमग्नके०॥ व्यापिरह्यांएहवां हेवितरागतारां नेत्ररुडां वलिप्रसनके ० ॥ निर्विकारीतारूं मखाकम ल ताहरो अंकके०॥ खोलोप्रेमदानेसंगरहितछे वलि तारुहाथजोडू शस्त्रसंबंधेशुन्यछे तत्तेहेतुमाटे तारि निर्विकारीप्रतिमात्राकारने हेतुएकरी के० ॥ तूंवित रागद्वेषरहितछं तेकारणमाटेश्रीवितरागनिप्रतिमाने कगुणेकरीनेसहितछे जेसम्यग्दृष्टिजिवहोय तेने तथा थोडानवमांमोक्षेजवू होय तेने अनेदबुद्धि श्रीतिर्थक रनिथाय तेत्राहायरुपकहिए एप्रथमत्राचारनिसंकित नो॥१॥ बिजोनिकंक्षितपरमतभिलाषरहितपूजामां इ त्यादिकाचार जिनपूजादिकबारव्रतमांजोडवाश्रदान के०॥श्रावकनेप्रथमके०॥मनुष्यप्रधानकारणतेजिननिपू जाछेते द्रव्यभावस्तवात्मिकंके॥द्रव्यस्तवनावरुपपूजा Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ श्रीसम्यक्हार. कहिएद्रव्यस्तवतेद्रव्यधनादिकेसंपदाएकरीने स्तवके० श्रीवितरागनाछतागुणप्रगटकरवा तेद्रव्यस्तवगृहस्थने दानपूजादी दिक्षामहोछवादीकसर्वद्रव्यस्तवकहिएश्रुत अध्यवसायेकरीने क्रियाअनुष्टानकरे तेनावस्तवकहिए वलीतेपूजाकेवीछे नवविधधनधान्यषितवस्तु इत्यादि कतेणेकरीने प्रार्तिके०॥वार्तध्यान।रौद्रकके०॥रौद्रध्यान हंसानुबंधी॥॥मोसानुबंधी॥२॥चोरानुबंधी॥३॥परी गृहरक्षानबंधी ॥४॥ इत्यादिकरौद्रध्यानरुपेजे याधीम ननीपीडा तेरुपबाह्यअभ्यंतररुपरोगंतके० ॥ हरतिते दूतएटलेपरीहरखु पार्तध्यानरौद्रध्यान रोगनीटालण हारीपूजाछ॥२५॥नेषजमिवके०॥ जम रोगने भेखज के०॥बहुविधउषधनिपेरे सतरभेदिपजातथा अष्टप्रका सदिष्टाके० ॥प्रकासिवीधिवत्के० ॥ विधिसहि तदशत्रिकादिकेकरीने प्रकाशिपरमेश्वरे अनंतेतीर्थकरे पूजाप्रकाशिछेत्राभरणोपमात्के०॥अलंकारनिउपमाछे वलीविधिसहितपूजाकरवीतेमांदशत्रिकनांनामक हेछ।तिनिनिसीहितिनितिनियपयाहिणा ॥२॥तिनिचे वयपणामा॥३॥तीविहापूयायतहा॥४॥अवथतियनावणंचे व॥५॥तिदिसिनिरखणाविरइ॥६॥तिविहंभुमिपमज्जणंचे व॥७ावन्नाइतिश्रीरामदातीयंच॥९॥तिविहंचपपीहाणं ॥३०॥ पूजायात्रानेविषे पेहेलीनिसिहिके०॥ देहराने - Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. बारणे घरनोवेपारत्यागकरीनेपेसे बीजीनिसिहिदेहरा नोवेपारकाजादिकनुकाढवुं तेनोनिषेध त्रिजीनीसीहीपू जानाव्यापार नोत्याग चैत्यवंदननी वेलाए ॥१॥ अंजली बंदोके०॥ हाथजोडवा॥ १ ॥ अर्धांगनमावतुं ॥ २ ॥ पंचांगी प्रणामप्रणामत्रिक॥३॥ त्रणप्रदक्षणा प्रभुनेजमणेपासेथी ॥२॥ पुष्पादिकने गपूजा ॥१॥ निवेदने अंगपूजा ॥२॥ चैत्यवंदनादिकभावपूजा ॥ ३ ॥ चोथोत्रिक ॥४॥ पींडस्थते छदमस्थावस्था॥१॥पदस्थते केवलीयवस्था ॥ २ ॥ रुपाति तते सिद्धावस्था ||३|| छदमस्थावस्थानात्रणभेद ॥ बाल च्अवस्था॥१॥राज्यत्रवस्था ॥ २ ॥ सामान्यचारीत्रश्रवस्था चवन कल्याणकमातानिकुक्षेत्रवतरे ॥ १ ॥ बिजुंजन्मक ल्याणक॥२॥त्रिजुंदिक्षाकल्याणक ॥ ३॥ चोथुंकेवलकल्या पाक ॥४॥ पांच मुनिर्वी एकल्यांणक ||५|| जेदिवशेमातानी कुक्षे स्वर्गादिकथाकचविनेश्रवतरचा तेजदिवशथकीवि शिष्टपूजनीकथया त्यांहांत्रणज्ञानसहितश्रवतरे ॥ त्यारे चोसठइंद्रमलीने श्रठाइ महोछवनं दिसरद्विपेजइने पूजा करे जन्मकल्याणकेतोविशिष्टपूजानो व्यवहारप्रवर्ते चो सठइंद्रमली ने मेरुपर्वते एकक्रोडने साठलाखकलसे ते बारजोजन बिस्तारे एकजोजननुंनालवु श्रढीसेंवार नीशेककरे इत्यादिककारणथकिविशिष्टपुजनिकथयाबा ह्यथकितोलौकिकप्रवर्ते अत्यंत निर्लेपचारीत्रनीप्रवृति ७९ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्वार. होय त्रिभुवनमांकोइतिर्थकरसरीखोनहोय ॥ जेलोगत माणं ॥ इत्यादिकस्तुतिलायकएहजपूरुषहोय एहपूर्षो तमनागुणकोणवर्णविशके तेकारणमाटेसंसारमांपूजनि कछे ॥ जेनिशेवानक्तिजन्माभिषेकादिके इंद्रादिककरे छे पोतानाआत्मानेउधरवानेवास्तेजाणवू तेजभावना ए सम्यग्दृष्टिजीवश्रीतिर्थकरनगवंतनी प्रतिमानोअनि षेककरतांबाल्यावस्थानावे घरेणुंपेहेरावतां राज्याव स्थानावे घरेणुंउतारतांचारीत्रावस्थाभावेछत्रचामरादि कअष्टमहाप्रतिहार्यनीअपेक्षाएकैवल्यावस्थाभावेपर्यंका सनकाउत्सर्गमुद्रानिपेक्षाए सिद्धावस्थानावे एपांचम त्रिक ॥५॥ श्रीतिर्थकरनगवंतनेदेहेरे जात्राएजायत्यारे उचुंनिचुंत्रि जोवूनहीं अथवा'ठेजिमणीडाभि दिशे जोवुनहि एकजवितरागउपरदृष्टिथाय त्रिदशानिरखण विरतिरुपछठंत्रिक ॥६॥प्रनुनेखमासणदेतांत्रपावार नोमिपूजवि ॥एसातमुंत्रिक ॥७॥ देववांदतांसूत्रनाक्ष रनुपालंबन ॥१॥ अर्थालंबन ॥२॥ वितरागनीप्रतिमा लंबन ॥३॥ वर्णादियालंबन ॥४॥ एत्राठमुंत्रिक ॥८॥ चैत्यवंदनकरतांयोगमुद्रा ॥१॥ उनारहिनेदेववांदतांजि नमुद्रा॥॥जयविरायअर्धकेहेत॥निलाडेदेशेहाथकरीने मुक्तासुक्तिमुद्रा॥ एनवमुंत्रिक ॥९॥ जावंतीचइयाइं॥१॥ जावंतिकेविसाह॥२॥जयविराय ॥३॥ एत्रणनेप्रणीधान - Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. कहिएएकाग्रहचित्तेप्रार्थनाकरप्रणिधानएदशमुत्रिका वलीबारअधिकारेदेववांदवातेकहेछे॥नमुं ॥ १ ॥ जेअइय ॥२॥रीहं॥३॥लोग॥४॥सव्व॥५॥पुखर ॥६॥तम॥७॥ सिद्धाजोदेवा॥९॥उग्जि॥१०॥ चतारि ॥११॥ वयावचगअधिकार ॥ १२॥ नमोथुणं॥इति प्रथमअधिकारेनावनिषपोवांद्यो॥१॥ जेइयासिद्धा विजे ॥२॥ श्ररीतचैयाणंत्रिजेएकजीननीस्थापना॥३॥ लोग्गस्सउज्जोयगरेचोथोनामजीन॥४ासव्वलोएअरीहं तचैयाण।पंचमेत्रिभूवननाचैत्यवांद्या॥५॥ पूखवरदीवढे। छठेविहेरमानजिनवांद्या ॥६॥ तमतिमीरपडलसातमे सूज्ञाननेवांद्या ॥७॥सिद्धाणंबुदाणंत्राठमेसिद्धनीस्तुति ॥८॥ जोदेवाणविदेवो।नवमेतिर्थद्विपमहावीरस्तुति॥९॥ उन्जितस्तुतिदशमे ॥१०॥ चत्तारीअठदशदोयवंदिया। श्रीअष्टापदनादेववांद्याअग्यारम॥११॥वयावचगराणास म्यकदृष्टिदेवतानेस्मर्णबारमेअधिकारे॥१२॥एबारअधि कारेदेववांदवााअरोहतभगवंतनीप्रतिमानाध्यानमुंआलं बनराखाएबारअधिकार ॥ परंपरागतचाल्याावे छे जेमश्रीप्राचारंगसिद्धांतपरंपरागतचाल्याआवेछे तेम नजाणवू श्रीहरिनद्रसुरिश्वरकृतनमोथुणानिटिकाललि तविस्तारनामे तेमध्येनवअधिकारकह्याछे जेइयानि नचैत्यानिप्रथासमाएकामगमादया सिद्वाएबिजोत्रधि - - - Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. कार॥२॥उजंतसियलसिहरे॥१०॥ चतारीअठदशदोष वंदिया॥१॥ एत्रणपरंपरागतजाणवि एटलेएबार धिकारकह्या . वली श्रीतिर्थकरभगवतनेदेहेरे चोरासीश्रासा सनाटालवि तेग्रंथांतरथकीजाणवू हवेमुलगनारेदश, प्रासातनाटालवि तेकहेछ।तंजथा|तंबोल॥१॥पांण॥२॥ नोयण॥३॥वाहणार्टमेहूणापाश्रुसुयण॥६॥निहुवणं।७। मुत्रु॥८॥ चार ॥९॥जुय ॥१०॥वज्जेजिनाहजगइए ॥६१ ॥ तंबोल पानसोपारी देहेरामध्ये खावुनहि ॥१॥ पाणीनपीवु ॥२॥ भोजननकर, ॥३॥ पगर खांपेरीनेदेहेरामध्येनजवू ॥४॥ देहेरामध्येमैथुननसेव, | ॥५॥ देहेरामांहेसूवूनहिं ॥६॥ देहेरामाहेथुकवू नहिं ॥७॥ देहेरामांहेलघुनितकरवूनहिं॥८॥ देहेरामाहेवडिनितकर वूनहिं॥९॥ देहेरामांहजुगढूंप्रमुखरमवूनहि॥३०॥ एदस जगनाथनीनित्यत्राशातनावर्जवी॥१॥ इत्यादिकपूजानि विधिकहिछे तेग्रंथांतरथकिजाणवि. वलिइहांशिष्यबोल्यो श्रीतिर्थंकरभगवंतनी प्रत माकेर्वश्राकारेछे ॥१॥ केनिप्रतमाप्रतिष्टीतवांदवि धू जविघटित ॥२॥ प्रतमापरीमाणकेटलंहोय ॥३॥ प्रतिमानाभरावनार देहेरानाकरनारकोणअधिकारीहो य एचारप्रश्न ॥४॥ हवेएचारनोउत्तरकहेछे प्रतिमा Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. बहश्राकारेहोयएकपद्मासन ॥१॥विजिकाउसगमद्रा ॥२॥ एबेहुआकारेजिननिप्रतिमाहोय एजश्राकारेश्रीती थंकरनगवंत सैलेसिकरणेकरीनेसकलजोगकैधिकरीने मोक्षपधारचा एजस्वरुपनध्यानमांध्यावानेकाजे भव्य जिवजिनप्रतिमानरावे एसम्यक्ाष्टिनीकर्णिछे वलिशि प्येपूछंजेडिगंबरनेगछेतो जिनप्रतिमालिंगसहितनग्नन रावेछ।॥१॥स्वेतंबरगछेतोवजकछछोटोकंदोरोप्राकाररुप प्रतिमानरावेछेतेकेम तेनोउत्तरजेनग्नरुपप्रतिमाकरेछेतेने पूछिए जेतीर्थकरचारीत्रलेइनेनग्नपणेविचरता तेनेनग्नप लोकदेखताजोनग्नपणेदेखेतो श्रीतिर्थकरअतिशयरहि तथाय जोनग्नरहितपणेलोकदेखेतोसातिसयतिर्थंकरजा पावा जेवूरुपलोकदेखे तेविजप्रतिमानराववीघटेछे ज्या रेसाक्षातिर्थंकरभगवंतहता त्यारेतोअपरलोकेनग्नदि ठानहोता तेहवेतोघरघरनेविषे नग्नपणेप्रतिमानराववा मांडवी अनेलोकोनेदेखाडवंरुप तेश्रीतिर्थकरनिस्तुतिरु पनासतुंनथी श्रीतिर्थकरनिफजेतिरुपतथाहांशिसरिखु नासेछे वलीकोइककहेवालाग्योजेप्रतिमामांहेसंपूर्णव यवोजोइए तेनेकहिएजेएकलिंगनुचिन्हकर्युस्टलेसंपूर्ण आव्यानहि बिजाघणाअवयवोछारेहेछेतेतोतिर्थकरन गवंतनिप्रतिमाकेहेवायछे तेथापनानिखेपोछे॥चतुर्थोमूढ दृष्टिलागंणप्रसंसनवरंयत्स्थीरीणंषष्टोवाछल्यनक्तिरुप - - - Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यद्वार. ता तेमांहेअवयवावेनहि जेकोइआत्माआर्थिडाह्यो होयतेविचारीजोजोइहांमतनुकामनथिजेप्रतिमावजकछो टासहितदेखेछे तेतोमाहाशिलवंतनचिन्हमहाप्रगटदिसे छे तेकारणमाटेजेववकछोटासहितजेप्रतिमा तेतोतिर्थक रनिस्तुतिरुपभासेजोकोइडाह्योहायतेइहांपणविचारीजो जो एतोप्रवचनपरिक्षानेअनुसारकातत्वतोकेवलिगम्य जाणवूएप्रश्ननोउत्तर॥१॥बिजप्रश्नजेकेनिप्रतिष्टित्तवांदवी पूजवीघटे तेनोउत्तरजेकोइजतिवेषधारीप्रतिमानरावे दे हेरुंकरावेप्रतिष्टाकरावे पोतानद्रव्यखरचिनेकरावे तेप्र तिमावांदविघटेनहि जेजतिनेविषेद्रव्यस्तवसर्वथानिषे धछे श्रीमहानिशिथसत्रमांहेविस्तारीनेकांछे तेमा टेनिषेधजद्यपिश्रीतिर्थकरनिप्रतिमा पूजनिकछे तोयप एगवेषधारीनिकरावी सप्तमस्त्वयमाचारो ष्टमप्रभाव नामय प्राचारथकिताअष्टौ सम्यक्तसेवनिर्मलाप्रतिमा निपूजादिकनिश्राज्ञा श्रीतिर्थकरनगवंतत्रापेतोबिजाप साधुजाणेजेसाधुनेपणद्रव्यस्तवनोजोगछे तेसाधूपणुं मुकीनेभ्रष्टथाय तेमाटेनिषेधकरयोछे गृहस्थनेसम्यक्तनु कारणछे बिजुस्वहस्तेप्रतिष्ठाकरीहोय तेप्रतिमानीत्रण नोकारगणीनेथापनेपूजादिकघटे तेकोइ ठेकाणेकरघु सभवेछे जेडिगंबरनीभराविप्रतिमा पणश्रीरुषभदेवादि कतिर्थकरनीथापनाछे तेकारणेसाधर्मिपणुछे एमसर्वथा Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. पणेनिषेध करतो श्री तिर्थकर भगवंतनी श्रासातनाथाय एकवेषधारी निजरावी प्रतिमाजेहोय तेतोसर्वथावांदवि पूजवी निषेधछे श्रीतिर्थकरभगवंतनी प्रतिमापूजनीक अन्यदर्शनी एगृहिहोय तेप्रतिमापण श्रीउपाशकदशां गादिकने विषेनिषेधकहिछे बीजासर्वतिर्थंकर भगवंतनी प्रतिमापूजनी ककहिए वलीकोइ कहेजे श्रावकनी प्रतिष्ठा करीकहिछे तेतोत्रणनोकारगणीने पूजेवांदें तेपणप्रतिष्टा कहिए कोइककारणेविशेषपणुंकरेछे तोपणइवरकालनी कहेवाय गुरूनेजोगेयावत्कालिकप्रतिष्ठाकरावे ॥ यदु क्तं ॥ जंकिचिनामतिथं संगेपयालेमाणशेलोए ॥ जाई जिनबिंबाई॥ताईसव्वाइंवंदांमि ॥१॥ इत्यादिककह्याथकी जाणवुं ॥ एबिजोप्रश्नउत्तर ॥ २ ॥ त्रिजुप्रश्न प्रतिमाके टलेप्रमाणेहोय॥तेनोउत्तर ॥ एकत्रांगुलथ किमांडिनेपांच सेंधनुषप्रमाणे॥प्रतिमाभरावे जेवीपोतानीशक्तिहोयतेवि ८५ रावे इहांपोतानीकारणशक्तिजाणवी एत्रिजुंप्रश्न॥३॥ हवेचोथुंप्रश्न ॥ ते कोणश्रधिकारी पूजवाने सार संभालकरवा नेते गृहस्तअधिकारीद्रव्यस्तवनाअधिकारीजाणवाएचो थोप्रश्न॥४॥वली शिष्येप्रश्नकरधुं श्रीतिर्थकरनगवंतनी प्रतिमावांदवीपूजवीयोग्य । तेवेज श्राकारेप्रतिमाबोधना देवनीदिशेछे एकजनाइने फेरे करीने सर्वफेरजाणवो नाम नोमें श्रधानांजीनपूजायां समायकेचपोषधे जोजनिया Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. जथाजोग्यमाचारासकलाअपिदछे जेतेसोगतादिकनामे साततिर्थकरकहेछे बिजोपगलिंगादिकनो भेदघणोछेते माटेपूजवाजोग्यनहींजोसाक्षाततिर्थकरनगवंतनीप्रतिमा होय अनेअनदर्शनीयेगृहिहोयतोवांदवी पूजवीनिषेधछे एतोसाक्षातअनदर्शनीनीप्रतिमाछे नेदजांणवानेकाजेज नोईकरीछे जेमहिंदूमुसलमाननेोलखावानेकाजेडाबा जमणाजांमेबंधकरावछे तेमइहांपण नेदजांगवानेकाजे जनोइजाणवी तेमाटेजैननेबोधनीप्रतिमामानवनिहि. श्रीतिर्थकरनगवंतने देहेरेजात्रादिकजायत्यांपंच | अनिगमनसाचवे ॥ यदुक्तं ॥ सचितद्रव्यभषण स चितपणुझांणमणेगतं ॥ एकसाडिउतरासणं ॥ अंजली सिरी भिजिणदिठे॥१॥जेसचितवस्तुफूलफलादिकपाताने जोगववानेहोय तेनोत्यागकरवो जेसचितवस्तुनेअभय दानदेवानुहोयतथाप्रभुनीभाक्तनकाजलाव्याहोय तेनेत जवुनहिएप्रथमअभीगमन॥१॥अचितवस्तुभानर्णादिक सारवस्त्रादिकनेतजवूनहि ॥ एबिजोअभिगमन ॥२॥ मणे गतंके०॥मनमुंएकाग्रतापणुंक।एत्रिजोअभिगमन॥३॥ एगसाडिके०॥एकपटनिपछेडीनंउत्तरासनकरें एचोथोल भिगमन ॥४॥ अंजलिके०॥ वेहुहाथजोडिनेमाथेचडावे प्रभुजिनराजनीदेठथके एपांचमोअनीगमन ॥६॥एपांच अनिगमन सर्वनेसाधारणजाणवा हवेपंचराजानाअनि ASTHSAAPrabinatanATAL - Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीसम्यक्हार. - गमनकहेछे एकखडगतरवार॥१॥छत्र ॥२॥वाहनके०॥ पगनिपावडी ॥३॥ सनडंके०॥ माथानोमगट ॥४॥ चां मर॥५॥ एपंचचिन्हराजानांमुकिनेप्रनुपासेावे एअभि गमन॥५॥ साधुतथाश्रावकनेदिनप्रतेउत्कृष्टुसातवारचै त्यवंदनकरवूसम्यक्तनिर्मलनेकाजे तथापडिकमणे ॥१॥ चेइय ॥२॥ भोयण ॥३॥ चरीम ॥४॥ पडिकमण॥५॥सु यण ॥६॥ पडिबोहेचेइयवंदण साहूणसत्तवाराहोइअहो रत्त ॥१॥ प्रनातकालेविसाललोचनरुपचैत्यवंदनकरवू एप्रथम ॥१॥ चईयके०॥ श्रीतिर्थकरभगवंतनेदेहरेजइ नेनित्येचैत्यवंदनकर तेजोगवाईनहोयतोइशानखुणेश्री श्रीमंधरस्वामिनेसनमुखेचैत्यवंदनकरवू॥२॥नोयणके. पचखाणपारतिवेलाएचैत्यवंदनकरीने सझायकरीनेपच खाणपालवू पछेश्राहारलेवो ॥३॥ चरीमके०॥ श्राहा रखइनेपछेचैत्यवंदनकरीनेपाणीपीवू॥४पडिकमणके। संध्यायेपंडिकमणुंकर्ता तथानमोस्तुवईमांनाय एबेहुनुए कपडिकमणानुंचैत्यवंदनगणवू॥५॥ सुयणके०॥ पोरसी रात्रीनिवेलाए चउकसायकेहेवो एछठेचैत्यवंदन ॥६॥प डिबोहेके०॥ पाछलीरात्रीएजागीनेकुसुमिणनोकाउत्स र्गकरीनेचैत्यवंदनजगचिंतामणि-करवं ॥७॥ एहचैत्ववं दन साहूणके०॥ जतिनेसाधुनेअहोरात्रीमाहेकरवू जेस म्यक्दृष्टिजिवधावकजघन्यत्रणकालेपूजाकरेत्रणकालेचे Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. त्यवंदनकरे एकवारपडिकमणुकरे तेपंचाचार चैत्यवंदनक रे जेबेटंकपडिकमणुंकरे तेने सातवार चैत्यवंदनथायएट हस्थिनिविधि जेदेहरेचैत्यवंदनकरवूं तेपूरुषहोय तेप्रभु जिनेजमणिदिसेज मणिबाजुयेरहिने चैत्यवंदन करे स्त्री होयतेडाबिबाजुएर हिने चैत्यवंदनकरे श्रीतिर्थंकरनगवंत नोमहामोटोप्रसाद होयतो पोतानासाठहाथवेगलारहिने चैत्यवंदन करे जेसा ठहाथथकित्रोछोनवहाथथकिच्प्रधिकते सर्वमध्यमवग्रह मांहि जाणवूं नानुदेहरुंतथाघरनुंदेह रुंहोय त्यांनत्कृष्टाएक हाथ ॥ १ ॥ वेगलांजघन्य प्रर्द्धहा थवेगलांरहिनेचैत्यवंदनकरे ने खजमीवंसंदिठा विधिवत्प रमैश्वरे प्राज्ञोषधोपवासादे रासरणोपमात्युरएम नेक विधिसहित श्रीदेवाधिदेवनिपूजा श्रावकनेकहिछे तंजथा वरपुप्फ ॥१॥ गंध ॥२॥ रकय ॥ ३ ॥ पइवो ॥४॥ फुल || ५ || ध्रुव ॥ ६ ॥ निरपतेहै ॥७॥ नेवजबीहां ऐहिय जिपुया ठहामणिया ॥ १ ॥ वरकउत्तमजातिनाफूल जाइजुइप्रमुखनांफुल|१||गंध के ०||बरासकपूरप्रमुख॥२॥ श्रश्वयके०॥क्षतचोखा || ३ || पइवोके ०||दिवो ||४|| फलक के० ॥ नलिएर प्रमुख ॥ ५ ॥ श्रगरप्रमुखनोधूप॥६॥ निरप तिहके०॥ जलनाभरचाकरलसेकरीने पूजाकरे ॥७॥ नैव जविहांणेहियके ॥ नैवेद्यसुखडीप्रमुखे पूजाकरे॥८॥ जि पूजा ठहिनणीया एष्टप्रकारीपूजा जीनके ॥ श्री ૮૮ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. ८९ वितरागनीपूजाप्राठप्रकारे ज्ञानावर्णादिककर्मनेक्षयकर वाने काजे श्रावक एविभावनाकरे एमसत्तरनेदेसंजमच्या राघवानेऽर्थे सत्तरदिपूजा करे | तंजथा ॥ नवणं ॥ १ ॥ वि लेपणं ॥ २ ॥ चखुजुलंच ॥ ३ ॥ पूफारोह || || ४ || मालारोह णं॥५॥ वणयारोहणं॥६॥ चूंणारोहणं ॥ ७॥ जिणपूगवाएं पूरस्ताधजप्रगटनमित्याध्याहार्य ॥८॥ श्राहारणारोहणं ॥ ९॥ पूष्पगेहं ॥ १० ॥ पूष्फपगरो ॥ ११॥ श्रार्त्तिमंगलपइवो ॥ दिवो ॥ ३२ ॥ धुवरकेवानेवज्फलविहाणं॥ ढोवय॥१४॥ गीयं । १५|नटं।१६।वज।१७|पुयाभयाइमेसेनं । २३। प्रथमपू जानवणकज लेकरीनेानीषेककर वो |१ | विलवगमि के०।श्रंगनेविषेकेसरचंदने पूजा करे एबिजोनेद ॥२॥चखू जुत्र लंके ० । त्रिजीपूजाचक्षुनितथाश्रंग लूणा३ त्रिजाभेद | ३ | चोथोवासपूजा॥४॥ पूफारोह के ०॥ वर्णकहांके०॥ छूटां फुलनित्रारोहण के ० ॥ चढाववूंपूजवूं ॥५॥ मालारोह के फुलनीमालानीपूजा ॥६॥ वणियारोहण के ॥ वर्णके ० ॥ पंचवर्णच्यांगीनी पूजा ॥ ७॥ चूणा रोहांके || वरासादिकनि पूजा ॥ ८ ॥ जिणपूगवाएं। श्रीतीर्थंकर भगवंतनेत्रागल जनिपूजानवमि ॥ ९ ॥ प्रहारणीरोहणं के० ॥ श्राजर्णनीपू जामूगटप्रमुखनुंचडाववूं ॥ ३०॥ पूप्फगेहेके ०॥ फुलनुंघर ॥ ११ ॥ पूष्फ पगरोह के ० ॥ फुलनोप्रकार समूह जेम श्रीतीर्थंक रनासमोवसरणनेविषे॥ देवता पंचवर्णफुलनावर सातवर ર Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यक्वार. सावेतेमजइहांपंचवर्णफुलनावर्षात निपूजा ॥१२॥प्रार्त्तिमं गलपइवोके० ॥ प्रार्त्तिउतारविमंगल प्रदिपमंगलदिवो ॥ तथामंगलके ० ॥ ष्टमंगलीक निस्वस्तिके ॥ १ ॥ दर्पण ॥२॥ कुंभ ॥३॥ भद्रासन॥४॥ नंदावर्त्त ॥५॥श्रीवछ ॥६॥ व ईमान॥७॥ मछयूग्म॥८॥ एतेरमिपूजा ॥ ९२ ॥ धुवर केवा नेवजंफलंविहांणढोयांव्यके० ॥ श्रगर प्रमुख नोधूपनैवेद्य सुखडीप्रमुखनंचढाव | फलनालियेर प्रमूखनुंचडाववूं। ए चौदमीपूजा ॥१४॥ गितके० ॥ स्तवना ॥ १५॥ नटके ॥ नाट कपूजा १६ ॥ वजंके ०॥ वाजित्रपूजा ॥१७॥ पूयानेयाइने सत्तर॥ एसत्तरभेदिपूजाकरवी तेसत्तरभेदसंजमपालवा निभावनाकरवी इत्यादिकानेक प्रकारे सम्यग्दृष्टिश्राव कनुसम्यक्त निर्मलकरे एश्रावकने भेखजसरखी श्रीवितरा गनिपूजाकरवी एसम्यक्तनुंलक्षणव्यवहारनयनीपेक्षा ये जाणं साधुने श्रीतीर्थंकरदेव निश्राज्ञाएनित्ये दर्शन कर वंचैत्यवंदनकरखूं श्रद्धानाप्रथमपूजानेखज मिवसंदिठा एटले एविरीतेदेवतत्वनिपरीक्षाकरीने देवतत्वसदहे ॥ इति प्रथमतत्व॥१॥ इतिश्रीसम्यक्तद्वारग्रंथो मुनि श्री हूकमचंद जीविरचित्तेचतुर्थोध्यायपरीपूर्णम्॥४॥ हवेगूरुतत्वओलखावेछे गुरुके० ॥ साधु साधुछठे तथासात मेगुणठांणेहोय निश्चेतथाव्यवहारथ किहोय ते नेसाधुकरीसहहवू एछठे तथा सातमेगुणठाणेहोय तेसाधु ९० Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. तेस्वरुपदेखाउछे हवेछठंगुणठांणुप्रमतनामा तथासात मुगुणठाणु अप्रमतनामे एबेर्नुस्वरुपनेगुं देखाउछे जे प्रत्याखाननिचोकडीनोउदयटल्यो सर्वविरतिप्रगटि सं यमसाधनमाटेपुदगलिकलेवे अवलंबिपणग्रहे पणपुद गलनेनोगीपणेपुदगलीकग्रहनहीं स्वरुपरमणिश्रात्मध मथिरतारुप सर्वविनावपर अग्राहकतारुप एवोचारी त्रधर्मप्रगट्योछे तेसाधुउछरंगअपवादमार्गे पंचमहात्र तपाले त्यांद्रव्यनावपंचमहाव्रतसहित पांचसुमति तिन गुप्ति दशयतिधर्मनेपात्रथकानिरासीसएकात्मद्रव्यना रसिया एकआत्मानिर्मलकरवाना उद्यमिथकाविचरे ते पंचमहाव्रतपाले त्यांपेहेलमहाव्रत सवाप्रोपापाएवा याप्रोविरमण व्यवहारेछकायनाजिवनाद्रव्यप्राणारगाह नहींहणावेनहींहणतांअनुमोदेनहींमनवचनकायाएकरी नेनिग्रंथअनोनिश्चयथीज्ञानदर्शनचारीत्रसुखप्रमुखनाव प्राणपोतानापरना कर्मश्रावर्णपणेहणेनहिंहणावेनहिहण तांप्रमुखअनुमोदनहिं तथाबिजेमहाव्रतेसवाश्रोमुसावाया प्रोविरमणं॥द्रव्यतेक्रोधेमान॥ भयलोनेसूक्ष्मबादर॥ लोकिकतथालोकोत्तर जठुपोतेबोलेनहिं बोलावेनहिं बो लतांअनुमोदेनहिं मनवचनकायाएकरीनेनावथिसर्वद्रव्य पर्याय नयनिक्षपायथार्थजाणपणो सत्यनाषणरुपज्ञान यथाशक्तिसाधेज्ञानसत्यपणेपालेतथावितरागनाागमन E Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ श्रीसम्यक्हार. - |माणे ऽर्थनावेछे तेनिसझायकरतेतथापोताना ज्ञानदर्श नचारीत्रनिर्मलथाय तेभाषाबोले हवेत्रिजामहाव्रतेसवा श्रोअदत्तादाणाप्रोविरमणं जेद्रव्यतेत्रणतुबमात्रपणअण दिधोलेवेनहि लेवरावेनहिं लेतांप्रतेअनुमोदेनहिं जेले वेतेसर्वनेकहीकरीनेलवे एटलेमनवचनकाएकरीनेलोकि कचोरीजसंसारनिवर्जिवस्तचोरीलेवेनहिं अनेलोकोत्तर चोरीजेतिर्थकराणामे जेनलेवानकातेलेवे तेचोरीकरी नेभावथित्रात्मानिग्राहकताशक्ति तेस्वरुपगृहणकार्यनो कर्ताछे तेप्रभावसाहकताकरीरह्योछेएनिवारीस्वरुपग्राह कतापणेप्रणमावे तेअदत्तादानविरमणव्रत्तथयू तेश्रदत्ता दाननाच्यारनेदछे तिर्थकरप्रदत्तजेतिर्थकरनित्रणामांन लेवोकह्यो तेसर्वप्रभावतेलेवाछे बिजोगुरुदत्तजेगुरुप रंपराविनासुत्रनाऽर्थकहेवा त्रिजोस्वामित्रदत्त जेवस्तुनो जेधणिहोवे तेनीअणदिधिजेवस्तुलेवि चोथंप्रदत्ततेको ईजिवएमकतोनथी जेमाहाराप्राणहणो अनेपोतानि इंद्रिनास्वादमाटेपरजिवनाप्राणहणेतेजिवअदत्त तथान शस्तकामकरतांकोइजिवनाप्राणघातथाय तेथीभगवंते हिंशामांगणानथिविनयतथावियावचमांगण्युछेएद्रव्यना वदत्तादानत्रिविधिपणेतजोराचोथोमहाव्रतसबाओमि हुणाप्रोविरमणजेद्रव्यथि पांचइंद्रियना॥२३॥त्रेविसविष यसेवेनहिसेवरावनहिं मनवचनकायाएकरीने विषयनि - - Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. वांछानकरे नकरावेकर्त्तानेअनुमोदेनहि नेनावथिजेश्रा मद्रव्यात्मगणनोनोगीछे तेपरनावनोनोंगग्रह तेना | वमैथुनतेसर्वपरनावनोगिपणेनोगवेनहितेत्रात्मनिकक मकरवामाटेपरभावसाधनपणेगृहपणअनोगीअग्राहकप णेअरमणिकमाने जेत्रात्मानीभुलछे एमत्रात्मानंदतोथ कोजेमाहरोत्रात्मा चिदानंदनोनोगीतेपरनाव अनंतजी वेअनंतिवारतेलेइभोगव्यो तेमुनेगृहवोभागववोघटेनहिं एअनंतजीवे अनंतवारभोगविनेछांडयो एएठचलजलते हनेहननोगवं एमसर्वपरनावनोगीपणेतजी स्वभावभो तापणेरहेवु तेद्रव्यमैथुन तेकर्णिरुपतथारुपिषध मि ल्याजीवनेत्राणंदउपजे हवेक्षेत्रथीमैथनतेत्रणलोकनेवि षे इंद्रिनास्वादनिइछा नेकालथीमैथुन दिवसतथारात्री नावथी मैथुनरागीतथाद्वेषथी सरवथिशेववोनहिं ते नीवाडनवेपालविपेहेलीवाडेजेस्थानकेस्त्रिपशुपंडकरहेते स्थानके ब्रह्मचार्येसवंनहिं बिजीवाडे स्त्रीसाथेहांसितथा कामकथाकरवीनहिं ॥२॥त्रिजीवाडेजेपीठपाटलेस्त्रीबेठी होय तेपाटलेबेघडीलगाब्रह्मचारीपूरुषनेबेसवुनहिस्त्रिने तिनप्रहरलगीबेसवुनहिं॥३॥चोथिवाडेस्त्रिनारुपनीजरजो डिनेजोइरहेवूनहि ॥४॥ पांचमीवाडेज्यास्त्रीनरथारकांम भागभागवताहोयत्यांनंतनांतरेब्रह्मचार्यनेरातरहेवूनहिं तेशब्दकानेपडवादेवानहिं॥५॥छठीवाडेगृहस्थपणेजेनो Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीसम्यक्हार. गनोगव्यातेसंभारवानहिं॥६॥ सातमिवाडेसारोत्राहार जेथकीकामदीपेतेश्राहारकरवोनहिं ॥७॥ाठमीवाडेत्र तिमात्रायेाहारकरवानहि॥८॥नवमीवाडेशरीरशणगार लुगडानोतथाघरेणानोकरवोनहिं नानउगटणानकरवा एकलीस्त्रीसाथेमारगमांचालवूनहिं तथाना-बालकबा लिकाथीएकसज्याएसनहिं सातवर्षपछी ॥४॥हवेपांच मुंमहाव्रतसव्वाअोपरीगहात्रोविरमणाजेद्रव्यथीपरीग्रह सूक्ष्मबादरराखेनहि॥रखावेनहिं॥राखेतेनेअनुमोदेनहिं जेसंजमपालवामाटे सुखेसझायथायतेमाटेउपगरणचउ द॥१४॥राखेकारणेअधिकोजोइए तोगृहस्थनाथकावा वरे एथीवरकल्पिनोव्यवहारछे नेजिनकल्पिकोईउपगर नराखे अपवादेदशउपगरराखे बारकखायउदयट ल्या तेनेछठेगुणठांणेसाधूकहिए परणप्रमादसेवे ॥निंद्रा ॥१॥विकथा॥२॥आहार ॥३॥ अल्पविषय॥१॥अनादिक ॥२॥एअल्पसेवे॥अनाभोगजाणे॥भोगीपणेसेवेनहि।ए छठागणठाणानीस्थिति ॥६॥ जघन्यएकसमय उतकृष्टो अंतरमहर्त एगुणठांणेतिनचारीत्रछे समायक छेदोपस्था पनीयापरीहारविशुद्धएतीनचारीत्रछे तेनोस्वरुप परभाव त्यागेस्वरुप एकत्लतेचारीत्रकहिए तेमध्येजेतजवायोग्य नावतजेतेद्वेषविनाअनेरत्नत्रयीजेत्रात्माधर्म तेगृहेस्वध र्ममाटे पणलोकिकादिकइष्टतारागविना एवोसमपरी Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. - पामतेसमायककहिए तथाजेसमायकमध्येसंजना तिव्रो दयेजेश्राकरेअतिचारे अथवा१२ कखायनेउदयेसंजमप रीणामफरसे तेपूर्वपर्यायेछेदिने अभिनवपर्यायनिर्मल पर्यायनोअंगीकारकरवो तेछेदोपस्थापनिकहिए तेभरत ॥तथा ॥५॥एवरत॥ ५॥मध्ये प्रथम चर्मतिर्थकरना साधूजीनेहोय ॥ अथवातिर्थकरअथवा गणधरजी नाशिष्य नवपूर्वथिउपरांत श्रुतवंत ॥ मध्यमवयना॥ प्रथमसंघयणी अढारमासनोउग्रतपतपता अप्रमादिनि द्रारहितनवजणागछथकीबाहेरनीकलीनेतपकरेतेपरीहा रविशूद्धचारीत्रकहिये दसमेगुणठाणे शूलध्यानीसूक्ष्म लोननोउदयछे तेसूक्ष्मसंपरायचारीत्रकहिए तथासर्वथा कखायनोउदयनथितेयथाख्यातचारीत्रकहियेतेमधे११मे गुणठाणे उपसंतयथाख्यातछ॥१२॥१३॥१४॥ मेगुणठा णेक्षायकयथाख्यातछे हवेसातमुअप्रमतगुणठाणु लि खीएछेछठेगुणठाणेजेनावसाधुजीनाकह्यातेसर्वेहोय पण पांचप्रमादनहोय तेमाटेअप्रमादिकएछठेगुणठाणेवर्ततो साधुजिनसासननेकामेलब्धीफोरवेपणसातमेगुणठाणेव ततोसाधुलव्धीनफोरवे एहनिस्थितिजघन्यएकसमे उत् कृष्टेअंतरमहूर्तनिछे छठेतथासातमेगुणठाणेमलिनेदेशे उणापूर्वकोडिरहे श्रीनगवतिसूत्रे एबेगुणठाणानिदेशेउ णिपूर्वकोडिस्थितिजुदिरकहिछेतेव्यवहारनयछे समयत 3 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. थाबेसमयवचेगुणठाणूपलटे तेगवेख्योनथितेमाटेअंतर महर्तनिस्थितिकहि छठेसातमेगुणठाणे समायकतथाछे दोपस्थापन तथापरीहारविशुद्धचारीत्रछेतथासातमेगुण ठाणेसाधुजीलब्धीफोरवेनहिं अनेछठागुणठाणानासाधु जिनसासननेकाजेलध्वीफोरवेतेनुसाधुपणजायनहिं अने उसथ्थादिकपांचप्रकारसेवेतोसाधुपणुजाए केमतोकेश्री आचारंगादिकमध्येकाछे जेहेसाधतंपासथ्थादिकनोसं गकरीशनहिंएनिसाथेश्रेष्टाचारपएकरवोनहिं तथासंस र्गकरवोनहिं तथातेनिसाथेगोचरीतथाविहारपणकरवोन हिंएटलेसर्वथाप्रकारेएनिसंगतकरवीनहींतथासंबोधशि त्रिमधेत्रावशकनियुक्तीमधे उक्तंच॥उसथा ॥१॥ पासथा ॥२॥कुसेलिया॥३॥कुलिंगीया॥४॥सेसदा॥३॥जिनमार्गे अवंदणिजा॥१॥एटलेएगाथामधेजिनसासननेविषेवांदवा पूजवायोग्यनहिं तथाश्रीउपदेशमालानेविषेकाछेजेएह नेवांदेतोसमकितनोनाशथाय मिथ्यात्वलागे एटलेउस थ्थादिकपांचप्रकारनाहोयतेहनेसाधुकरीनेसदहवूनहिंत थावांदवापूजवानहित्यारोशष्यप्रश्नकरथु जेस्वामित्रम नेउसथ्थादिकपांचनेदजेकह्यातेत्रमेजाणतानथि तेश्रोल खावोतेोलखावेछेहवेप्रथमउसथ्थानोनेदकहेछेजेश्रीति बैंकरदेवे नवकल्पिवीहारकह्योछे तेआठमासनापाठवि हार चतुर्मासानोएकविहार एटलेत्रीसरात्रउपर एकत्रि Acterwasanawad Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. ९७ mammuaamaasee समिरात्ररहेतेनेउसथ्थोकहिए तेवारेवलिशिष्यबोल्योहे स्वामितमेतोत्रिसउपर एकत्रिसमिरातरहेतेनेउसत्छो कहिबोलावोछो त्यारेकदापिकोइग्लानतथा थीवरहोय तेवारे तेहथकि विहारकेमकरीनेथाय तेनोउत्तरदेछे हे शिष्यश्रीअरीहंतप्रमात्मासर्वज्ञहतातोनपरुपामां को इवातनोसंदेहरहेनहिं सर्वनोमार्गदेखाड्योछे एटलेजे ग्लांनतथाथिवरहोयनेविहारकरवानिसक्तिहोयनहीजद पि एकनगरमधेनवउपासराहोय तेमासे २ उपासरेउ पासरेफ।एटलेपेहलेउपासरउतर्याहोयत्यांहांमास॥१॥ मासकल्परहेउपरांतरहेनहि बिजेमासकल्पेबिजेउपाश्रे रहे एमअनुक्रमे श्राठमासकल्प अाठमाउपाकरे अनेनवमोकल्पचारमासनोनवमेउपाश्रेकरे ॥ एमनवक ल्पीविहारसदायेकरे पणकल्पलोपेनहिं तथाएटलीश क्तिजोनहोयजेगाममध्येफरवतेपणथायनहिंतोएकउपाश्रे नानवनागकल्पे एकेकेकल्पेएकेकोनागनोगवे एमनव भागनवकल्पकरीनेनोगवे जेमअरणकात्राचारजनोत्र धिकार संथारापयन्नामध्येकह्योछे तेमइहांजाणवं एटले कल्पलोपेनहि जेकल्पलोपेतेनेउसथोकहिए ॥एपेहेलो भेद॥१॥हवेबीजोपासथ्थानोनेददेखाडेछ।पासथ्थोके०॥ जेत्राचारेढीलोजेपांचसुमतित्रगुपति इत्यादिकने कप्रकारनोत्राचारछेतेथकीढलोचालेतेनेपासथ्थोकहिए - १७ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसम्पद्वार. केमाश्रीज्ञातासूत्रमध्ये बिजास्कंधनेविषे श्रीपार्श्वना थजीनीचेलीयोविषे हाथपादकुक्षादिकपखाल्या तेथकी पासथ्थिकहेवाणीअनेचारीत्रविराधीनेभुवनपतित्रादीग तिनेविषेगइ कालिदेविप्रमुखइंद्राणीयोथइ तथाश्रीमहा निशिथमध्येनागिलनेसोमिलनामाबेमित्रछे एकदिन मित्रेविचारकरयोजसंसारमहाअनित्यछे माटेापणेचा रीत्रअंगीकारकरीनेआपणाश्रात्मानुकल्याणकरीए एवं विचारीनेबेजणाघरथकिनिकल्या साधूनिघणीखपकरेप पसास्त्रप्रमाणेसाधूकोइहइएबेसेनहिं एमकरताएकसा धूनोसंघाडोमल्योतसाधूकेवाछे ॥ निरालंबी॥निरपरीगृ हिाविषयकखायेकरीनेरहित महासुमतानासमुद्र इत्या दिकगणेकरीनेसहित ॥ तेनीसंगतेकेटलाएकदिनरहिने तेनोप्राचारविचारसर्वजोयोतेवारेसोमिलरहिनेनागिल प्रत्येकहछे जेहेभाईपासाधूठीकछे अापणेएनीपासेचा रीत्रलइये तेवारेनागिलबोल्योजेएसाधुवांदवापूजवाजो ग्यनथी तोएनिपासेचारीत्रकमलेइये ॥ तेवारेसोमलबो ल्यो जेएवासाधूनीग्रंथछे एनेविषेएवडोबधोदोषणकेम काढोछोतेवारेनागिलबोल्यो।जेएनापंचेमहाव्रतभागेलां छेजेपेहेलवतहरीकायनासंगटाथिभाग्युतेनुकहयुंत्यारेना पाडी॥२॥ त्रिजुंउकयढाथकिराखनीचपटीलिधी॥३॥ चो | गृहस्थिनाघरनीखालमध्येजोयु॥४॥पांचमेवेमुहपतिरा matuan ia - Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. खेछे॥५॥विरीतेवृतपांचभाग्यांछे तेवारेसोमलेमांन्युन हि चारीत्रए साधूपासेलीधूं श्रनेनागीलनेसाधूनीजोग वाइमलीनहि अनेकालपोतानो नजिकाव्योजाणीने एकांतेजइनेसंथारोकरचोतेकालते समय नेविषे भगवंत श्रीमहाविर स्वामि गामाणुंगामविहारकर तांत्यांनजीकव नछेतेने विषेसमोसरचा तेवारेजगवंत साधूने कहे छे हेसाधु इहांवननेविषेनागिलनामा श्रावके संथारो करयोछे एनेचा रीत्रलेवुह तुपणसाधूनी जोगवाइमलीनहिं नेकालनजीक श्राव्योजाणीने संथारोकर चोछे माटेतमेजइनेनिजमणाक रावोपछिसाधूयेजइनेनिजमणाकराविते श्रावककालकरीने देवलोके गयो तोह वेडाह्याहोयतोविचारीजोजो जेएवासा धुनिग्रंथहता तेनेसूक्ष्मदोषणमाटेनिषेध्यााने श्रावकनो संथा रोजगवंते गणतिमांच्याण्योमाटेएवंविचारीने पासथ्या नोसंगकर वोनहिएबिजोनेद ॥२॥ हवेत्रिजो कुसेलियो कुसेलियोके ॥ सिलनामजे श्राचारकुकके ०॥ माठोहि णाचारी तेनेकुसिलकहिए एटलेभगवंतेपरुप्यो जेत्रा चार तेथकीवी प्रीततेने हिणाचारीकहिएएटले भगवानेजे साधुनोच्याचारपरुप्योछे जेसाधुगृहस्थिनि संगतिकरेन हिं तथामंत्रमंत्रजोतिष्यवैद्यकादिककरेनहि करेतेनेपा पश्रमणकरीने बोलाव्याछे गृहस्थियादिकनि संगतव र्जितोबिजुंतेशुंकहेवूं एटलेभगवंतेतोनापाडिछेने पोतेएवां ९९ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. कामकरेजायछे तेनेकुसेलियोकहिए एत्रिजोनेद ॥३॥ हवेचोथोनेदकुलींगीयानोकहेछे एटलेकुलिंगीयातेके०॥ भगवंतनोपरुप्योजेलिंगतेथकिविप्रीत तेनेकुलिंगीयाक हिए एटलेनगवंतेजेपरुप्यु जेनरंगेजानधोयेजा एवोपा ठछे अनेजेमिणगलिप्रमुखेजेकपडांरंगेछे तथामुखेमुहप तिबांधेछे तेमहाविपदिशेछे अनेजानवरकरतांपणअव लीरीतदीसेछे जेघोडातिर्जचपंचेद्रिछे तेनेखातांतोबरोच डेछेनेपछिउतरेछे अनेजेबिछेतेनेखातांउतरेछे पछिच डेछे एवित्रवलिचालछे तेनेकुलिंगीयाकहिएतेवारेवादि बोल्योजेएतोतमेद्वेषेकरीनेबोलोछोअनेएतोमुखेमुहपति बांधेछे तेवायुकायानहणाय तेवास्तेबांधिराखेछे तेनोउ त्तरजेतमेद्वेषथकिकाछोपणसाधनेरागद्वेषहोयनहींजद्यपि आजसरागसंजमछे वितरागसंजमजेनहि अनेसरागसं जमछे तेनेविषेप्रशस्थरागद्वेषथाय तेश्रावकनेतोषप्रश स्थरागद्वेषनिपालवणकिधिछे पणप्रशस्थनित्रालवण किधीनथी एवंश्रावकोनाप्रतिक्रमणमधेदिसेछे अनेसाधु तेअप्रमादिगुणस्थानकनेविषेतोरागद्वेषकरेनहीं अनेपर मादिगुणठाणेप्रशस्थरागद्वेषकरेतेइरीयावइ पडिकमेनि वारणथवानुछे तेश्रीनगवतीमध्येजोजोनेइहांतोजथार्थप रुपणाकरवि तेमांकांइरागद्वेषकारणनथिजेमश्रीज्ञाता जिमध्येनागिलाब्राह्मणीनि अपहेरणा उदघोषणाकरा Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्रार. १०१ वितेमां इरीयाईनिपालवणाविनहितो इहांतोएक साधुनेकडवुतुंबडुबोहराविनेमारयोहतो तेनोपणएटलो फजेतोकरचो तोत्रातोद्धिपणे संख्याताजिवने धर्मथ किभ्रष्टकरीनेमिथ्यात्वनेविषेपमाडेछेतेअनंतानवभ्रमणक रशे तेमाटेजेस्वरुपहोयएवूवर्णविएतो बिजालोककोइ कुमत्तमांपडेनहिं नेपड्याहोयतेपणसलनबोधिहोय ते संतसांभलीने पाछावले माटेजथारथपरुपणाकर्ता को इदोषणछेनहि जेदूर्लन बोधिहसे तेनेतोरागद्वेषजभा सशे हवेजेउघाडा मूखेबोलतां वायुकायाजिव हणायते कहेछे शामाटेजेवाय कायाजीवने श्राठफरसछे अनभा पावर्गणाना फरसच्यारछे माटेकांइच्यार फरसीयाथी पाठफरसीयो हणायनहिं किलामणाउपजेपण हाय नहि त्यारेवादिबोल्यो जेनगवतीमांकाछेजेउघाडेमोढे बोलेतेनेसावद्यभाषाकहिएतेनोउत्तरजेसमेक्यांकहीयेछे जेउघाडेमोढेबोलवूपणहणावानुकोछोतेखोटुंछतथाजेमुहप तिबांधिराखेछेतकियासूत्रमांकहछेश्रीश्राचारंगजीमधे तोकांछेजेहेसाधुबगासुत्रावेतथाछिंकआवेतोमोढाबाडो हाथदेजेतेलेखेपणमुहपतिबांधविसंभवतिनथीतथाश्रीविपा कसूत्रमधेश्रीपूज्यगौतमस्वामिमहाराजमृगालोढोनेजो वानेगयात्यांमृगावतीराणीएकह्युजेमुखेचोपडोबांधोतेवा रेजोमुखेमुहपतिबांधिहोततोशावास्तेकहेत त्यारेवादिबो | Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ श्रीसम्यक्हार. ल्यो दुर्गधावेतेवास्तेनाकेदेवावास्तेकहयुं त्यारेतेनोउ तरदेछे जेविपाकजिमधेतोनाकबोलतुंनथीमुखजबोलेछे तमेखोटिजुक्तिशावास्तेकरोछो कोइकहेशेजेफलाणानुम खतोगोलछेमोढुंतेहोठनेकहिए तेकपालसुधीकहिए तोहो ठनोश्राकारजोइएतोलांबोहोय पणगोलहोयनहि ज्यारे कपालसुधीले त्यारेमोढुंगोलबने॥ तेमाटेमुखेचोपडाका त्यारेनाकनेगुआव्यु॥ तथापरंपरापणएमजदीसे छेजेमुहपतिमुखाडिदेतेवारेनाकउपरचढावेएवंाजदि नसुधिदिसेछेतो खोटीकल्पना शावास्तकेरोछो॥ वली जे साधुनुलिंगछे तेजुदुछ। तेदेखाडिएछे ॥ एटलेजेश्रो घोवत्रीसांगलनोराख॥ तेमधेचोवीसांगलनीडांडी॥ दशांगलनीदशीश्रनेत्रष्टमंगलालेख्यो ॥ एवोबना तनोपाटो तेथकिगुंथी दशीतेप्रमाणेवस्त्रनोखंडते श्रीनि शिथनिभाष्यमद्धेकाछे तेउपरकांबलियू। तेउपरदोरो॥ दोरानात्रणांटाबांधवा एवोबत्रिसांगुलनोश्रोघोअने मुखप्रमाणेमुहपतिपोतानी एकवेतछांगुलप्रमाणेचोखू सरखी एविमूहपतितथाढिंचणप्रमाणेचोलपटो तेउप रसतरनोकंदोरो॥ तेउपरकपडो जेवोदातारेदीधोहोयते वो जेतेनेरंगवोनहिंतथाधोवोपणनहितेनाउपरडाभेखने कांबलि नेडानेहाथेडंडो तथाडाबाहाथझोलिराखवि इ त्यादिकमानपेतजोलिंग तेसाधु-कहिएतेथकिविप्रीततेक Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. १०३ लिंगीयाकहिएतेकुलिंगीयाजाणीने एथकिखेटेरेहबूकदा| पिकुलींगीयानेसाधुजाणीश्राहारपाणीप्रापेतो एकांतपा पकर्मबांधे एवं श्रीनगवतिना श्राठमासतकेकहयुंछे एत्र धिकारचोथोसमाप्त॥४॥हवेपांचमासेसदोदेखाडेछेएटले सेसदोके०॥जहांजेवाताहांतेवोथायके०॥साधुमलेतांहां साधुजेवोथाय नेपासथादीकमलेतांहातेवोथाय तथात्रा हाछंदोके०॥स्वइछाचारीजेभगवाननित्राज्ञाप्रमाणेनचा लेकेमजेभगवंतेकहमुजे साधुनिमिततथासाधविनिमितक रीविहितिके०॥उपाश्रेयतथाअाहारतथावस्त्रपात्र अथवा उपदेशीनेजेकाहोयतेसाधुनखपलागेनहि एविजेभगवं तनिधाज्ञालोपिने पोतानीइछाएचाले पोतानीइछाएउ पाश्रेयप्रमुखकराविनेभोगवे॥ तेस्वइछाचारीजाणीए इ त्यादिकअनेकनेदडाह्याहोयतेसमजे एपांचमोनेद॥५॥ एउसथ्थादिकपांचनेदजेकह्या तेवांदवापूजवायोग्यनहि तारेअजाणरहिनेवोल्यो जेरोजसाधुक्यांथकिलावियेत्र मनेतोधर्मशास्त्रनासंभलावनाराएजछे ॥ तेनोउत्तर॥ ए नुसंनलावेलुशास्त्रपणखपलागेनहिं अनेउसत्छादिकने वांदतांपूजतांमोक्षपणमलेनहिं जेमकोइकवालकनीमा तामरीगइ अगरपरदेशगइ नेबालकनेहीजडानेसूंपे ते हीजडानेधावणावे तेबालकजीवतोरहे कदापिनहिंपण बालकनिमातामलेतोजिवतोरहे केदुधादिकपायतो जि D - momoem - - - Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ श्रीसम्यक्हार. वतोरहे तेमइहांउपनयमेलवेछे जेबालकप्रायःसंसारी जीव अनेमातातेमइहांसुद्धसाधु त्यांहीजडोतेमइहाउस छादिकसाधु ॥ जेमदुध ॥ तेमइहांध॥ जेबालकनही जडानेधवरावेजीवतुंरहेनहिं तेमइहांउसत्छादिकपासेध मसानल्याथकिमुक्तिमलेनाहिं वलिजोतमेकहयंजे साधु निजोगवाइक्यांथकित्रमनेमलतेनोउत्तर॥ साधुनीजो गवाइचोथेरेपणघणिदुर्लनहतितेपासथ्थानाधिका रमधेनागिलनाअधिकारमांकहिछे त्यांहांथकिजाणजो तोजुवोतदाकालेपणसाधुनि जोगवाइघणीमुश्कलहति अनेश्रुसाधुपणतदाकालेघणादिसेछे तेमाटेरत्नसाटेकां कराखेडेबांधे तेनादामवटेनहींलोकोमांमूर्खकेहेवाय वा स्तेजोसाधूनीगुरुनिजोगवाइमलेतोवांदवूपूजवू निकर पोतानेघेरबेठांशास्त्रसिद्धांतनूं वांचवूनणवू धर्मध्यांनक रवूतेजश्रेयछे माटेसास्त्रनणवूअने उसछादिकपांचना मत्तनेदुरकरीनेसूसाधूनिसदहणाराखवि तेसूसाधूनूस्व रुपप्रथमपणकहयुंछे वलिसंक्षेपमात्रदखाडेछेएकविध संजमत्यागीके०॥ एकविधव्रत ॥ तेनूंलक्षणतेजअग्रा जम तेनोत्यागकह्योछे द्विविधबंधण रागअनेस्नेहनल क्षण ॥ द्वेषतेश्रप्रतिनंलक्षण ॥ तेवेवंधणथकिवेगलो छे त्रिविधडंडेणं॥ एटलेमनथकिडंडायनहि॥ वचनथकि डंडायनहीं ॥ कायाथकिडंडायनहिं॥त्रिविधगत्तेणंके०॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. १०५ SAMADRIDDHeameramarsanswapneesmiraniawwamroPHOOMARRIAAAAAAA मन ॥१॥ वचन ॥२॥ काया ॥३॥ एत्रणनेप्रशभमाठा वेपारथकिगोपवेछे तेमसलेणंके०॥ जेमतिरादिकनोघा तछातिनेविषेसाले तेमजअनाचारहइएसाले तेनेसल्या कहिये तेसल्यनात्रणप्रकार एकमायाके०॥ कपटरुपी योसल्य ॥१॥ नियांणसलके०॥ परनवनिइछावंछारुप ॥२॥अनेमिथ्यात्वसल्यअज्ञांनपणे॥३॥तेहंगारवेणंके०॥ गारवके०॥ अभिमान ॥ एटलेरिदिपामिने ॥ रिदिनों गारवकरवो॥ एरिदिगारव ॥१॥ रसगारवषटविधर सनंपामिनेअभिमानकरवोएरसगारव॥२॥ शातागारव मनवचनकायायेशातापामे ॥ तेमसंथारोसज्यासत्कार सन्मांनपामीनेशातानोगारवकरे॥ तेनेशातागर्वकहीए॥ ॥३॥ एटलेत्रण्यगर्वथकिविरम्याछे ॥ तेहविराणंके०॥ ज्ञाननिविराधनाके०॥ जेज्ञानीबेअक्षरवधताभण्योहोय तेनिभाशातनाक।तथाकोइनपतोहोयतेनेउवख॥तथा पोथिपांनतेनीअाशातनाकरीहोय ॥ तेनेज्ञानविराधना कहिये ॥१॥ तथादर्शनविराधनाके०॥ साधूसाधवीथा वकथाविका ॥ तथाजिनपडीमानाबावर्णवादादिकप्रका सेतेदर्शनविराधनाकहिए॥२॥ तथाचारीत्रविराधनाके०॥ जेचारीत्रलेइनेपालेनहि अथवाचारीत्रियानेशातनाक रे एनेचारीत्रविराधनाकहीए॥३॥ एत्रणथकिसदायवेग लोरहे।चउकसाएणंके॥जेचारकखायचारीत्रनीघातकर ranmaanwarRATHI ARoman ERIA % - - - Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. - वावालाछे अनेसाधुकेवाछ। एथकिसावचेतरहे एनाला मांत्राचेनहि एटलेतप्तप्रणामरहेतेनेक्रोधकहिए॥१॥ श्र हंकारीनेमानकहिए॥२॥ कपटिनेमायाकहिए॥३॥ मोर छातेलोभकाहिए ॥४॥ पंचहक्रियाएहके०॥ जेव्यापारए नापांचप्रकारजाणवा कायाथकिजेक्रियालागेजेचत्या दिक तेकायक्रिया१॥ दूप्रणिहितकायाक॥२॥ उप्रतका यकि॥३॥ मिथ्यादृष्ठितथाश्रव्रतसमोरदृष्टनि॥१॥ प्रमत संजतिनेबिजीक्रियालागेअनेअप्रमतसंजतिनेत्रिजीक्रिया लागे हवेविजीक्रियाकहेछे जेअधिक्रमणसहस्त्रजंत्रतंत्रा दिकथाकिलागे एअधिक्रमणकिक्रिया॥१॥अनेपाउसिया के ॥ जिवउपरतथाअजिवउपर द्वेषनाजेप्रणामतथा मछर्ता तेपाउसियाक्रियाकहिए॥३॥ परितावणीयाएके. आपणेतथापरनेताडनातर्जनादिककरीनदूखउपजावाते परितावणक्रिया॥४॥पणातिपातकिक्रीयाके आपणोतथा परनोघातकरवो एटलेस्वर्गादिकपामवानिमित्ये पर्वता दिकथकिपडिने आपणाश्रात्मानिघातकरवि तथाक्रोधा दिकेकरीनेपरजीवनेहणवा तेप्रणातिपातकिक्रिया॥५॥ एपांचक्रियाथकिबीहीतोरहे जेरखमनेक्रियालागे छहंजि वनिकायाणांके०॥ छकायजिवनीरक्षाकरे सातभयमन मांधारेनहि तेनानामकहेछेमालोकनयमनुष्यादिकथकि ॥१॥परलोकनयसिंहादिकथकि॥२॥ श्रानंदनयघनलो Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. १०७ नादिकथि॥३॥ अकस्मात्भय अंधकारादिक ॥४॥ या जीवकानयदूर्भक्षादिकाता मर्णनयमरवानो॥६॥ अपि तभयउपजवानो॥७॥ वलिसाधहोयतेबाठमदकरेनहि।। तेकिया। जातिमद॥१ कुलमद॥२॥रुपमद ॥३॥ श्रुतम द॥४॥ बलमद॥५॥ तपमद॥६॥ लानमद॥७॥ इश्वरम दा॥ वलिनवविधब्रह्मचर्यनोअधिकारागे पंचमहाव्र तनाअधिकारमांकह्योछे तथावलिदशविधयतिधर्मकोछे खंतिक्रोधादिकरहित॥३॥ मार्दवमाननोत्याग॥२॥श्रार्ज वमायानोत्याग॥३॥मक्तिनालोभनोत्याग॥४॥ तपतेवार भेदे॥५॥ संजमतेत्राश्रवनोरोध ॥६॥ सत्यतेमषानोत्या ग॥७॥ सौच्यतेनिलेपपणु॥८॥ अकंचनतेधननोत्याग॥ ९॥ ब्रह्मचर्यतदृढसंजम॥१०॥ नित्याराधे॥ अग्यार श्रावकनिप्रतिमाजाणे तथाबारसाधुनिप्रतिमातेनांनाम कहछे॥पेहेलीएकमासनि॥१॥वेमासनि॥२॥त्रणमासनि ॥३॥चारमासनि॥४॥ पांचमासनि ॥५॥ छमासनि॥६॥ सातमासनी॥७॥सातअहोरात्रिनि।।। वलिसातबहो रात्रिनि॥९||सातअहोरात्रीनि ॥१०॥ एकहोरात्रिनि॥ ११॥ एकरात्रिनि ॥१२॥इतिसाधुनीबारप्रतिमा हवेपे हेलिप्रतिमावहत्यारेएकदांतिंत्राहारनिएकदांतिपाणीनी एमसातमीप्रतिमाए सातदांतिश्राहारनीने सातदांति पाणीनीलहे अाठमीपडीमाउतानसेन अथवापासाभरक - - Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ श्रीसम्यक्हार. रे उपसर्गसहे ॥८॥ नवमेलकट वांकापडेलाकाष्टनिपरे ॥९॥दशमेगोदोहित्रासन अथवाविरासनक॥१०अग्या रेछठभक्तकरीपर्लबनोजअहोरात्रिलगेकरी काउसगकरे ॥११॥ बारमिअठमनतकरीएकरात्रिलगे मेषोन्मेषत्र होरात्रिनेत्ररहे॥१२॥ एसंक्षेपथकीलखीवलीविशेषेजोवू होयतो दशासूतस्कंधथकीजागवि साधूहोयतेसतरनेदे संजमनापालकहोय प्रथविकायसंजम ॥१॥अपकायसं जम॥२॥तेउकायसंजम॥३॥ वाउकायसंजम॥४॥वनस्प तिकायसंजम॥५॥बेरंद्रिसंजम ॥६॥ तेरंदिसंजम ॥७॥ चउरंद्रिसंजम॥॥पंचंद्रिसंजम॥९॥अजीवसंजम॥१०॥ पेहासंजम ॥११॥ उवेहासंजम ॥१२॥ पमजणासंजम ॥१३॥पारीठावणीयासंजम ॥१४॥ मनसंजम॥१५॥वच नसंजम॥१६॥कायसंजम॥१७॥एसतरभेदेछे वलीविश असमाधिस्थांनकसेवेनहि। तेकहीएछ। उतावलोचालेन हिं॥१॥अप्रमार्जितठामेबेसेनहि॥॥दुप्रमार्जितठामेबेसे नहिं ॥३॥धंधसालादिकनेविषेरहनाहं ॥४॥ अधिक श्रासनादिकनविषेरहेनहि ॥५॥ गुरुनोपराभवकरेनहि ॥६॥स्थावरउपघातकरेनहिं ॥७॥ नूतउपघातकरेनहिं ॥८॥खिणमात्रमाहेकोपेनहिं ॥९॥ कदापिकोपेतोघणो कालराखेनहिं ॥१०॥ पठेत्रवर्णवादबोलेनाहं ॥११॥ जुठोबालापेनहि ॥१२॥ समीयाअधिकर्णउदेरेनहि Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. १०९ ॥१३॥श्रकालसज्याकरेनहि॥१४॥ रजवाहाथपगरा खेनहि॥१५॥पोहोररात्रिपछताणीनेबोलेनहि॥१६॥माहो माहेकलहकरावेनहिं ॥ १७॥ माहोमाहेभेदपडावेनहिं ॥१८॥श्राथमतालगजमेनहिं॥१९॥ दोषटालियाहार लेवे॥२०॥ मुनिराजएविरीतेविचरेनिर्दोषपणे एथकिवी प्रितविचरेतेनेअसमाधिस्थांनसेव्युंकहिए हवेसबलक म२१तेकहेछ।हस्तकर्मकरे॥१॥मिथुनसेवे॥२॥रात्रिभो जनकरे॥३॥श्राधाकर्मिक॥॥राजपिंडले ॥५॥ क्रितले ॥६॥प्रामितउछीनो॥७अभ्याहृत ॥८॥ पाछेद्यले॥९॥ पछखांणभांने ॥१०॥गणथकिबिजेगछेजाय॥११॥मास माहेबेलेप॥१२॥मासमाहेमातृस्थांन॥१३॥ श्राकुदिहिं साकरो॥१४॥अाकुदिमृखाभांखे ॥१५॥ आकुदिचोरीकरे ॥१६॥त्राकुदिकंदमूलखाय॥१७॥फुलफलबहूबिजखाय ॥१८॥वर्शमाहेगदलेप॥१९॥वर्शमाहेमातृस्थांन ॥२०॥ सचितसंघटसहितहस्तनाजनाहारले॥२१॥हवेबावी सपरीसहकहेछेखुहानूख॥१॥पिवासातरस॥२॥ सितता ढनुंसेहवु॥३॥उश्नताप-सेहवें ॥४॥दसमछर॥५॥अचेल ॥६॥आरति॥७ास्त्री॥८॥ चरीयाविहार ॥९॥ निसीहीया ॥१०॥सज्जा॥११॥श्राक्रोश॥१२॥वध१३॥याचना॥१४॥ अलाभ॥१५॥रोग ॥१६॥णस्पर्श॥१७ामल॥१८॥स कार॥१९॥प्रज्ञा॥२०॥ज्ञान॥२२॥सम्यक्ति॥२२॥अथ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. सुगडंगाध्यायनसूतस्कंघ॥१६॥पुंडरीकाध्यायनश्राहार परीज्ञाक्रियास्थानप्रत्याख्यानक्रिया॥अनाचारसुता द्रकुमारनालंदीयाध्ययन ॥ धिसुतस्कंधे ॥ ७॥ एवंसु गडंगनाध्यायन ॥२३॥ देव ॥२४॥ तिर्थकर॥अथवाप क्षांतरे।भूवनपति।१०व्यंतर८ज्योतषी५ वैमानिक एवं ।२४।५हास्यत्यागआलोचिबोलोटालोभत्यागाक्रोधत्या ग॥२॥व्रतनावनाएवं॥१०॥धणिकह्या अवग्रहमागवो ॥१॥तृणादिकनोवग्रहमागे॥९॥श्रवग्रहनीमर्यादाकरी रह॥३॥गुरुनीअवग्रहमागिभातपाणिनोगव॥४॥साहमि कनावग्रहमागिरह॥५॥एवं॥१॥पनरेअतिसरसाहा रनलोविनुखानकरे॥२॥स्त्रिसहतवस्तीनरह॥३॥एक लिस्त्रीकनेस्थानकेनरह॥४॥स्त्रीनाअंगोपांगनजोवा॥५॥ एचारव्रतभावना ॥५॥ एवंविस एचोथोव्रतभावना एवं ॥२०॥रुडोपाडवोशब्दसांनालरागद्वेषनकरे॥१॥एवंरुप ॥२॥ गंध ॥३॥ रस ॥४॥ स्पर्शाश्रीरागद्वेषनकरे ॥५॥एपांचमेव्रतभावना॥६॥एवंमलि॥२५॥ नावना दश सुतस्कंध दशकालकल्पनाछ॥१०॥क्षहकाल॥५॥व्यवहा रसूत्रदशकाल॥१०॥एवंत्रिहूंसूत्र॥२६॥कालजाणवाथ श्रणगारगुण॥२णाकहछे।व्रत॥६॥पांचइंद्रिजितवि॥११॥ भावशूद्ध॥१२॥पडिलेहणाविशुद्ध॥१३॥क्षमा॥११॥ वैरा ग्या॥१५॥अकुसलमनवचनकायानोरंधवो॥१॥छकायनि - Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. १११ रक्षा॥२४॥सजमयोगयुक्त ॥२५॥शितादिकवेदनासहन ॥२६॥मरणांतनपसर्गसहन॥२७॥ इत्यादिकसाधुनाथ नंतगणछे थीउत्तराध्ययनथकिजोनोएटलेएवागणेकरी नेसहितहोयतेनेगुरुकहिनेसदह॥कदापिआकालतोदूष मछे माटेएवागुरुनिनोगवइमलविघणीमुश्कलछे पण कदापिाजनकालेपणमुलगुणेकरीनेसहितनोइएएटले शुद्धलिंगमामलेकोतेप्रमाणेहोय अनेपंचमहाव्रतमूल गणेकरीनेसहितहोय॥अनेउत्तरगणेशामान्यविसेषेहोय तेनकाइजोवानोविचारनहि सामाटेश्रीनगवतीजीमधेक हयुंछेजेपांचमेश्रारेबकुशचारीत्रीयाहोशोएटलेबकुशचारी के०॥ चारीत्रछेतेनिरमलछे पणउत्तरगुणमांदोषणला गे एटलेदोषरुपपडिजेनात तेथकिचारीत्ररुपवस्त्रकाबरूं थयूं एनेबकुशचारीत्रकहिए एटलामाटेश्राकालेमूलगुणे उत्तरगुणेकरीनेसहित एवूचारीत्रसंनवेनहितेमाटेमूलगु णेकरीसहितहोय वलिबतालिसदोषरहीतआहारलेतेने साधुकरसिदहवा॥तेबेतालिसदोषदेखाउछोएनिगाथा कहेछ।श्राहाकम्म।।१॥ देसिय॥२॥पुइकम्मेय॥३॥मिस जाए॥४॥ठवणा॥५॥पाहूडीयाए॥६॥पात्रोय॥७॥ किय॥८॥पांमीच्चे॥९॥ परीट्टियो॥१०॥अनिहडु ॥११॥ भिन्ने॥१२॥मालोहड॥१३॥ अछिज्जो॥१४॥अणसिठे ।।१५।अझोयर॥१६॥सोलसपिंडूग्गमेदोसा॥२॥धाइ॥३॥ - Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ११२ श्रीसम्यक्हार. दुई॥२॥निमित्तं॥३॥श्राजीव॥४॥वणिमगे॥५॥ तिगी छाया॥६॥ कोहे॥७॥माणे॥८॥माया॥९॥लोनेय॥१०॥ हवंतिदशएण॥शापुत्विपत्छासंथव॥११॥विझा॥२शासंते य॥१३॥वन्न॥१४॥जोगेय।१५॥उप्पायणाय॥१६॥दोसा सोलसयमलकम्मेयार६।४।संकिय॥१॥मखिय॥॥निखि त॥॥पिहीय॥४॥साहरीय॥५॥दायगु॥६॥मिस्से॥७॥ परीणय॥८॥लित॥९॥छडि॥१०॥एसणदोसादसहवंति ॥५॥संजोत्रणा॥१॥पमाणे॥२॥इगाल॥३॥ध्रुम॥४॥ कारणे॥५॥पढमावसहि बहिरंतरेवा सहेउदवसंजोगा ॥६॥ एनोर्थ सोलउड्गमदोषलीखीएछिए आधाक मौतेअतिथीनेर्थे मलथकीछकायनोश्रारंनकरीनिपायं आहारादिकतेत्राधाकर्मिदोषकहिए ॥१॥ उदेशिकतेमा गणहारावशेएमजाणीतेअर्थकिधुते॥उदेशिकदोषकहि ए॥२॥पूतिकर्मतेप्राधाकर्मनेकारणसहितकिधुं तेपूतिक मकहिए॥३॥ मिश्रजातितेकोइजतिनेअर्थे कोइपोताने अर्थेकिधुंतेमिश्रजातिदोषकहिए ॥४॥ स्थापनातेसाध नेर्थेइछाराखेतेस्थापनादोषकहिए॥५॥प्राहुातेसुख डीके०॥ जमणवार श्राघिपाछिकरे तेप्राभूतदाषकहिए ॥६॥प्राःकरणतसाधुनिमिते अंधारेकांइछांनुप्रगटकर वाने छिदरादिकेकरीप्रकाशकरे तेनेप्राडुःकरणदोषकहि ए॥७॥करणतेसाधुनीमितेवेचातुलेइथापे तकरणदोषक Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३ - श्रीसम्यकद्वार. हिए॥८॥प्रामित्यतेउछिनुसाधनेर्थेलेइआपेतेप्रामित्यदो षकहिए॥९॥परावर्त्ततेनखरसखरवस्तुकांइपालटीसाधुने आपीएते परावर्त्तदोषकहिए॥१०॥अभ्याहृततेअनेरांश्रां मपाडिघरथकिसांमुत्राणीश्रापे तेअभ्याहृतदोषकहिए ॥११॥ उद्भिनतेसाधुनीमितकमाडतथातालुउघाडीवापे तेउद्भिनदोषकहिए ॥१२॥ मालापहृतते उंचुनिचुंत्रिर्छ तेथकीलेइनेदेते मालापहतदोषकहिए॥१३॥ाछेदतेक मारादिकनुखूचावीलेइसाधुनेदिए तेत्राछेद्यदोषकहिए ॥१४॥अनिसृष्टवेहूं त्रिहूंनिवस्तुसाधारणमांहेएकदिए तेअनिसृष्टदोषकहिए॥१५॥ अध्यवपुरकते मूलाधणथ किअधिकुंनांखे अमारेसाधूजीआवनारछेतेनिमिततेअध्य वपूरक॥१६॥ एतादोषागृहस्थकरता हवेउत्पादनदोष साधुकरतानाकेहेछ॥१६॥ एशोलेदोषाहारना तेउत्पा | दनदोषकहिए साधुथकिउपजे धात्रितगृहस्थनाबालक रमाडीभापर्जिदानले तेधात्रिदोषकहिए ॥१॥ दूतिते गांमादिसंदेशाकह्यादानलेतेदूतिदोष ॥२॥ निमिततेज तिअतितअनागतकहिदांनले तेनिमितदोषकहिए ॥३॥ श्राजिवकातेजातिकुलादिककहिदांनलेते ॥ आजिवका दोषकहिए॥४॥वनिपकके०॥आहारनिमितब्राह्मणादिक नेघेरहंपणब्राह्मणादिकनोभक्तछंएवोथईले ॥ तेवनिपक दोषकहिए॥५॥चिकित्सातेवैद्यककहिलेतेचिकित्सादोषक Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ श्रीसम्पद्वार. - हिए॥६॥ क्रोधपिंडतेविद्यावंतनृपमंत्रादिकबलेदानले तेक्रोधपिंडदोषकहिए॥७॥मानपिंडतेगृहस्थनेअहंकार चडाविदानले तेमानपिंडदोषकहिए।मायापिंडतमा यायअनेकरुपकरीदांनले तेमायापिंडदोषकहिए ॥९॥ लोनपिंडतेसरसश्राहारनेर्थे सईधईफरईकेसरीयामो दकनेर्थे तेलोनपिंडदोषकाहिए॥१०॥ पूर्वपछासंस्त वतेपहेलु तथापछिगृहस्थीनीस्तुतिकरेतोपूर्वपछासंस्तव दोषकहिए ॥२॥विद्यापिंडतेदेवतानाराधनकरेकरावे श्राहारादिकने अर्थविद्यापिंडदोष ॥ एविदेविअदृष्टांतता होय ॥१॥ मंत्रपिंडतेश्रदृष्टांतकरणादिमंत्रसाधेसधावे आहारादिकनेऽर्थेमंत्रापिंडदोषकहिए ॥१३॥ चूर्णपिंडते अांखनुंअंजनादिकत्रापिदानलेतेचूर्णपिंडदोषकहिए॥१४ योगपिंडतेशोभाग्यदोनाग्यादिककरीदानलिए तेयोग पिंडदोषकहिए॥१५॥मूलकर्मतेगर्नउत्पातादिककरेकरा वेत्रनेदानलिएतेमूलकर्मकाहिए॥१६॥ एउत्पादनदोषक हिए।साधुथकिनिपजे। एसोलदोष एवंबत्रिस॥३२॥दो षसर्वमलिजाणवा हवेएखणादोषलिखीएछिए संकितते अाघाकर्मादिकदोषतणिशंकाए गृहणकरेतेसंकितदोषक हिए॥२॥ मखितदोषतेसचितप्रचितकरीखरडयोले तेम | खीतदोषकहिए॥२॥निक्षिप्तसचितपूढविकायादिकउपर मेलेलीवस्तुसाधुलेतेनेनिक्षिप्तदोषकहिए॥३॥पिहितदोष - Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. ११५ - - तेसचितेकरीढांकि अचितवस्तलिएदिए तेपिहितदोषक हिए॥४॥ संहततेमोटाभाजनथीनानाभाजने अथवाअस् जतेलिएदिए तेसंहतदोषकाहए॥५॥ दायकतेखंडणपि सणादिकछकायनिविराधनाकरतां तथाबालधवरावति उठी अथवागर्भवतिस्त्रीलिएदिएतेदायकदोषकहिए॥६॥ उन्मिथतेसचितफलादिकचितखांडादिक एकठांनेलि लिएदिए तेउन्मिश्रदोषकहिए ॥७॥ अपरीणततेकांड ककाचुकांइकपाकुदानलिएदिए तेत्रपरीणतकहिए॥८॥ लिप्ततेसचितेश्रथवामिश्रवस्तुभिनेहाथेतथालेपवालालि एदिए तेलिप्तदोष ॥९॥ छर्दिततेहातादिकछांडपडलिये दिये तेछर्दितदोषकहिये॥१०॥अखणादोषदशहोयसा धथितथाग्रहस्थिथीलागे॥ हवेपांचदोषमालानाकेहेछेसं जोजनातेखीरखांडघृतस्वादनेअर्थे एकठामेलिपोशाला माहिअथवाबाहिरतेसंजोजननादोषकहिए अप्रमाणते प्रमाणजेटलीले तेटलाथीअधिकले तेप्रमाणदोषक हिए ॥२॥ इंगालतेमनमांहेदातारनेप्रशस्तरागे जिम तोकरे तेइंगालदोषचारीत्रबालीलाहालाकरे॥३॥ धुरते सामान्यअन्नमाटेदातारनेनंदतोद्वेषेजिमतोकरे तेधुघदो षकहिए॥४॥कारणनेक्षुधावेदनिअहिआसनकेतांकारणे आहारकरें॥१॥ अथवाग्राचार्यादिकनवेयावचकरवानेका रणेश्राहाकरे ॥२॥ अथवाइर्यासुमतिपालवानेकारणेत्रा - Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ श्रीसम्पक्हार. हारकरे॥॥ अथवासंजमपालवानेअर्थाहारकरे ॥४॥ अथवाधर्मध्यानधारवानेकारणेाहारकरे॥६॥छकार पविनाबाहारकरतेसाकर्णदोषकहिए उपाश्रेयबारणे अ थवामांहीरसवधारवाहेतु एबेएकठांकरवां तेसंजनाजा पवा॥६॥ इत्यादिकएखणादोषनेटाले मूलगुणेकरीनेस हितहोयतेनेसाधुकरीनेसहहेतेबिजोतत्वको ॥ इतिश्री सम्यक्तद्वारग्रंथोमुनिश्रीहूकमचंदजी विरचित्तेपंचमोध्या यपरीपूर्णम् ॥५॥ पंचमाध्यायमांगुरुतत्वोलखाव्यो हवेछठात्र ध्यायमांधर्मतत्वोलखावेछे धर्मतत्वकेवोछे अतितकाले पणधर्मतत्वनेश्राराधीनेमुक्तिरुपणिलक्ष्मीनेवरया वर्तमा नकालेपणधर्मतत्वने अाराधीनघणा जीवमाक्तिरुपणील क्ष्मीनेवरेछे अनागतकालेवरशेतमाटेहेनव्यजीवोप्रथम जेसदगुरुदेखाड्यातवागुरुनिशेवाउपासनाकरो॥पछिते नीपासेथीधर्मतत्वसांनलो शामाटेसदगुरुविनाबिजागु रुधर्मतत्वनेयथार्थोलखाववासमर्थनथीं तेमाटेजेसदगु रुहोय अनेबहुश्रुतहोयतेनुंबहुमानभक्तिकरवी अनेधर्म तेनीपासेथीसांभलीनेओलखवो सहहीनेआराधवो श्रा राध्याथकिमुक्तिपणीलक्ष्मीमले तेमाटेहेनव्यजीवोध मतबनीखपविशेषेकरीनेकरजो तेधर्मनाबेनेद एकत्रण गारधर्म॥२॥बिजोत्रागारधर्म॥२॥णगारके०॥साधनो Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीसम्यकद्वार. ११७ धर्मतोपांचमाअधिकारमांकयोछे अनागारके०॥ श्रा वकनोधर्मतेकहेछ तेश्रावकनेदेशविरतिकहीए देशके०॥ थोड्छेव्रततेनेदेशविरतिकाहिए तेनाबारनेदछे तेनिश्चे नेव्यवहारथकीभोलखावेछेतेप्रथमप्रणातीपातव्रत॥१॥ प्रणातिपातके०॥जिवनीहंसानकरवि तेजीवनानेददेखा डेछे हवेजिवके०॥चेतानालक्षणेजिवात् एटलेचेतनाल क्षणछेतेनेजीवकहिए तेजीवनाबेभेदात्रस॥१॥थावर॥२॥ तेथावरनापांचभेदाटविकाय॥२॥अप्पकाय ॥२॥ तेउ काय॥वाउकाय॥४॥वनस्पतिकाय॥५॥हवेतेप्रथवीका यनाच्यारनेद सूक्ष्मष्टविकायप्रजाप्तो ॥१॥ अप्रजा तो॥२॥हवसूक्ष्मके॥जेनीकायाप्रतिसेनानीछेएटलेचर्म दृष्टियेगोचरावेनहीं एतेकेवलीगम्यछे तेनाप्राणप्रजा प्ति तथाशरीरबादरमांकहिशं हवेसुक्ष्मएथ्विकायनेत्र गलेश्याहोयाक्रिप्न॥॥निल॥२॥कापोत ॥३॥ एप्रमा सूक्ष्मप्रथ्विकायअप्रजाताजाणवा ॥ तेचौदराजलोक व्यापिछे हवेबादरएथ्विकायनाबेभेद॥एकप्रजाप्तो॥२॥ बिजोअप्रजाप्तो॥२॥हवेप्रजाप्तीतथाप्राण एनीअोलखा बतावेछ।फरसेंद्रि॥१॥रसेंद्रि॥२॥घ्राणेंद्रि॥३॥ चक्षु इंद्रि॥४॥श्रोतद्रि॥५॥मनबल॥६॥वचनबल॥७॥कायब ला॥श्वासोश्वास॥९॥श्रावख॥१०॥तथाप्रजाप्तीछा हारप्रजाप्ति॥॥शरीरप्रजाप्ति॥२॥इंद्रिप्रजाप्ति॥३॥ श्वा Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ श्रीसम्यक्हार. सोश्वासप्रजाप्तिाहानाषाप्रजाप्ति॥५॥मनप्रजाप्ति ॥६॥ एछप्रजाप्ति हवेष्टविकायनाजीवने एदशप्राणमांहेला चारप्राणहोयतेकहेछे फरसेंद्रि॥॥कायबल ॥२॥ श्वासो श्वास॥३॥श्रावखू॥४॥एच्यारप्राणहोयतथाछप्रजाप्तिमां हेलाच्यारप्रजाप्तिहोयतेकहेछे श्राहारप्रजाप्ति॥१॥शरी रप्रजाप्तिा२॥इंद्रिप्रजाप्ति॥३॥श्वासोश्वासप्रजाप्ति॥४॥ एच्यारमाहेथी त्रिजेजेइंद्रिप्रजाप्तिबांधे तेनेकर्णप्रजाप्ति कहिए एटलेकोइजीवकरणप्रजाप्तोमरेनहीं करणप्र जाप्तीबांध्यापछीमरे अनेजजीवनप्रजाप्तोमरे तेलब्ध प्रजाप्तोमरे एटलेप्टविकायनोजीवच्यारप्रजाप्तीथकीउ पीहोय त्यांसुधीअप्रजाप्तोकहिए अनेच्यारप्रजाप्तीपुरी बांधेएनेप्रजाप्तोकहिये॥ हवेबादरएथ्विकायनेच्यारले श्याहोय ऋष्न॥१॥नील॥२॥कापोत॥ ३॥तेजो॥४॥ तथाटविकायनेत्रणशरीरहोय॥ उदारीक॥१॥तेजस ॥२॥ कारमण ॥ ३ ॥ तथाप्टविकायनीअवगा हनात्रांगुलने असंख्यातमेनागेहोय ॥ तथाट थ्विकायतुं श्रावया॑ ॥ जघन्य अंतर्मुहूर्त ॥ उत्कृष्ट २२ हजारवर्षनु ॥ हवेअप्पकायनापणच्यारनेद सर्वएथ्वि कायनिपरे एटलोविशेष उत्कृष्टुंबावखु ७ हजारवर्षनं होय ॥२॥ हवेतेउकायप्रथ्विकायवत एटलोविशेषजेले श्यात्रहोय क्रश्न॥१॥नील॥२॥कापोत ॥३॥ तथात्राउ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसम्यक्हार. ११९ खुंउत्कृष्टुंत्रणअहोरात्रिनुहोय ॥३॥ हवेवाउकायपणप्ट थ्विकायनीपरेएटलोविशेषशरीरच्यारहोयउदारीक॥१॥ बैंक्रियाशतेजस॥३॥नेकारमण॥४॥तथालेश्यातेउकाय वत् नेत्रानखूउत्कृष्टुंत्रण३हजारवर्षमुं॥४॥ हवेवनस्पती कायनाबेनेदप्रत्येकनेसाधारण॥प्रत्यकनाबेनेदप्रजाप्तोने अप्रजाप्तोप्रत्येकवनस्पतीप्रथ्विकायवत्एटलोविशेषत्रा उखुउत्कृष्टुं॥१०॥हजारवर्षसाधारणवनस्पतीनाच्यार भेदसूक्ष्मनेबादरसूक्ष्मनिगोदकहिए तेनोविचारलेशमा बतावेछे एटलेचौदराजलोकछे तेलोकके|आकाशते श्राकाशएकांगुलनेअसंख्यातमेनागे अाकाशनाअसं ख्यातप्रदेशछेतेएककेत्राकाशप्रदेशेएककोगोलोछेतेएकेक गोलामांसंख्यातिनिगोदोछेएकेकनिगोदमेअनंताजीवछे तेकेटला||अतीतकालनागयासमयतथाअनागतकालना जेटलासमयतेथकि अनंतगुणाएकनिगोदमेजीवछेहवेतेनी गोदियाजीवनावखं॥एकश्वासोश्वासजुवानपूर्षनिरोगी कायानोधणीएकसासउंचोलेइनेनीचोमूकेएटलामांसाडा सत्तरनवकरेएटलेसत्तरवारजन्मीनेमरे अढारमिवारनो जन्मे वलिबिजेप्रकारेआउखु बसेनेछपनत्रावलिनोषुल कनवजाणवो तेमाहोमांहेनडानिडसंदखभोगविनेमरे छे तेदुखनिवेदनाकेटलिकछे सातमि तेत्रिससागरो पमनुंभाउखुंछेतेतेत्रिससागरोपमनाजेटलासमयएटलि - 3 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० श्रीसम्यक्हार. % 3D वारसातमिनर्केउपजे तेत्रिससागरोपमनंदूखएकठुकरी येएथकिअनंतगुणी वेदनाएकसमयेनिगोंदियोजिवनोग वेछेतेसुक्ष्मनीगोदनेव्यवहारराशिकहियेअव्यवहाररा शिकेाजेजिवबादरमांनथिभाव्योत्यांसुधीश्रव्यवहाररा शिनोजाणवोजेजिवबादरराशिमाएकवारआव्योतेनेव्यव हारराशियोकहिए तेवारेशिष्यबोल्यो हेस्वामिव्यवहार राशितथाश्रव्यवहारराशि-शंकारणछे तेनोउत्तरजेव्यव हारराशिमांश्रावेलोजिव तेफरीसूक्ष्मनिगोदमांजायतो जघन्यथकिअंतरमुहूर्तरहे उत्कृष्टोरहेतो अढिपुदगल परावर्त्तरहे तेउपरांतरहेनहिं ॥ अनेअव्यवहारराशि मांजेजिवसूक्ष्म निगोदमाथिनिकल्यानथि तेजिवअनंता पदगलपरावर्तनवहिजशे ॥ तोयपणनिकलशेनहि ते माटेव्यवहारराशिनेत्रव्यवहारराशिजदिकविपडे हवे जेटलाजिव इहांथकिमोक्षजाय एटलाजिवत्रव्यवहार राशिमाथि व्यवहारराशिमांत्रावे पणव्यवहारराशिघ टेवधेनहिं हवेसूक्षमनिगोंदनाप्रजाप्ता तथाअप्रजाप्ता तथाबादरनिगोदकंदमूलादिकतेनाप्रजाप्ता अनेअप्रजा प्ता सर्वप्टविकायवत् एटलोविशेष ॥ लेश्यात्रणहोय अनेवादरनिगोदाउखुंप्रतेकवनस्पतिवत् अनेबादर निगोदनिअवगाहनाएकशरीरेअनंताजिवहोयएटलेवन स्पतिर्नुस्वरुपका एटलेपांचथावरनाबाविशनेदकरीदे - Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. १२१ खाड्या॥१॥त्रसनाचारभेद ॥ बेरंद्रि॥१॥ तेरंद्रि॥२॥ चउरं द्वि ॥ ३ ॥ पंचंद्र || ४ || हवेबेरंद्रिनाबेनेद ॥ प्रजाप्तो॥१॥ त्र्य प्रजाप्तो॥२॥ अलशिया प्रमुख जिवतेने प्राण६ होय ॥ फरसें द्वि ॥ १॥ सेंद्रि॥२॥ वचनबल ॥ ३॥ कायबल ॥ ४॥ श्वासोश्वा स॥५॥प्रउखु६एछप्राणतथाप्रजातिपांचहोय॥ श्राहार शरीरइंद्री॥ स्वासोश्वासाने भाषाप्रजाति ॥ ६ ॥ तथाले श्यात्रणहोय॥ कृश्न॥१॥ नील॥२॥ कापोत्त॥३॥ तथाशरी रत्रणहोय उदारिक॥१॥ तेजस॥२॥ कारम॥॥३॥ श्रवगा हनाबारजोजन श्राउखुजघन्यतरमूहूर्त्त उत्कृष्टुबारव र्षनू ॥१॥ हवेतेरंद्रिनूंकि डिम कोडि प्रमुखबेरंद्रिवत एटलो विशेषजेसातप्राण एकत्रांपेंद्रिवधे तथाप्रवगाहनात्रणग उनि उखु उत्कृष्टुत्रो गणपचासादिवशनुं ॥२॥ तथाचउ रंद्रिबेरिद्रिवत् एटलोविशेषजे प्राणत्राठहोय प्रांणेंद्रने चक्षूइंद्रिवधे तथाश्रवगाहनाच्या रगउनि तथा श्राउखुछ मासनं ॥३॥ एत्रणने विगलेंद्रिकहिए एत्रणनाप्रजाप्तात्र प्रजाप्ता इनेछभेदथाय हवेपंचांद्रनाच्यारभेदनारकि॥ १ देवता॥२॥ तिर्यंच॥३॥ मनुष्य ॥ ४ ॥ तेनारकिनांनाम॥ घं मा ॥१॥ वंसा ॥२॥ सिला ॥ ३ ॥ श्रंजणाय ॥४॥ रिठा ॥५॥ मघा॥६॥ माघवति॥७॥ एसातनोप्रजाप्तेोश्रप्रजाप्तोथइ नेचउदभेदथाय हवेदेवतानाच्यारनेदजवनपति ॥ १॥व्यं तर॥२॥ जोतषि॥३॥ वैमानिक॥४॥ दसभवनपति पनर १६ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १२२ श्रीसम्यक्हार. परमाधांमि सोलव्यंतर दसतिर्यचनंबक दशजोतषि ते पांचचर पांचथर॥वैमानिकमेबारदेवलोकत्रणकुलविषि या नवलोकांतिक नववेक पांचअनुतरविमान एसर्व मलिनेच्यारनिकायनादेवनानवाणुंनेदथया तेनवाणुंप्र जाप्तानेनवाणुंअप्रजाप्ता सर्वथइनेएकसोनेठाणुंनेदथ याएदेवतातथानारकिनोनावार्थजिवाभिगमथकिजाणवो हवेतीर्यचनापांचनेदजलचर॥१॥ थलचर॥२॥खेच॥३॥ नरपरि॥४॥भुजपरि॥५॥एपांचगर्नजपांचसमर्छिमएदस नाप्रजाप्तानेअप्रजाप्तार्थईनेविसनेदथयाहवेमनूष्यनापां चनतना पांचएवर्तना पांचमहाविदेहनां एनरकर्मनो मिनापनरनेद हवेअकर्मनोमिनात्रिसनेदलिखीएछे पां चहेमंतक्षेत्रना पांचहरीवर्षक्षेत्रना पांचदेवकरुक्षेत्रना पांचउत्तरकरुक्षेत्रना पांचरमणीकवास पांचरणकवास एत्रिसत्रकर्मभोमिनामनुष्य छपनअंतरहिपनामनुष्य प नरकरमनोमि त्रिसप्रकर्मनोमिछपनअंतरद्विपएएकसो नेएकक्षेत्रनाप्रजाप्तानेअप्रजाप्ताएबसेनेबेनेदएकअसंनी याके०॥चउदस्थानकेउपजे एअप्रजाप्ताजमरे एत्रणसेने त्रणनेद बसेनेसाठपूर्वेकह्यातेमळीजीवनीत्रणगतिनाए पांचसेनेत्रेसठ॥५६३॥ सहभेदजीवनामनुष्यनेतीर्यचनो विचारपनवणाथकिविशेषजाणवो इहांतोग्रंथगोरवथाय तेमाटेनाममात्रलिख्याछे एजिवनस्वरुपअजिवनेश्रोल - Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. १२३ ख्याविनाजिवनस्वरुपबराबरजाणेनहिमाटेअजिवनस्वरु पसंक्षेपथकिदेखाडिएछिए हवेअजिवनाबेनेदएकरुपिए कअरुपितेअरुपिअजीवनाच्यारनेद धर्मास्तिकाय॥१॥ अधर्मास्तिकाय॥२॥त्राकाशास्तिकाय॥३॥काल॥४॥धर्मा स्तिकायखंधतेचउदराजलोकप्रमाण॥१॥देशतेकल्पनामा त्रा२॥धर्मास्तिकायनोप्रदेश॥धर्मास्तिकायखंध॥१॥ देश॥२॥प्रदेश।।।प्राकाशास्तिकायबंध॥१॥लोकालोक प्रमाणोरादेशा॥प्रदेश॥३॥लोकाकाशप्रमाणकालनोए कसमया॥एनोखंधदेशहोयनहिंशामाटेजेएकसमयथि विजोसमयमलतोनथी माटेकालनोएकजनेद।एदशभेद थया॥१०॥धर्मास्तिकायद्रव्यथकीनित्यछे॥२॥ धर्मास्ति कायक्षेत्रथकीचउदराजलोकप्रमाणे ॥२॥ धर्मास्तिकाय कालथकीअनादिअनंत॥॥धर्मास्तिकायनावथकी॥४॥ वर्ण गंध रस फरसनथि॥४॥धर्मास्तिकायगुणथकी। च लणसहायगण॥५॥अधर्मास्तिकाय॥ ॥द्रव्यथी॥२॥ खे थी॥३॥कालथीभावथीपुर्ववत्॥४॥ गुणथकीथिरसहाय गण॥५॥आकाशास्तिकायद्रव्यथकी॥१॥क्षेत्रथकीलोका लोकप्रमाण॥२॥कालथकी॥३॥नावथकी ॥४॥ गुणथकी श्रावगाहनागुण॥५॥कालद्रव्यथकी॥१॥क्षेत्रथीकालथी ॥२॥भावथ॥३॥गुणथकी॥४॥ नवापुराणावर्तनागण ॥५॥एअरुपिअजीवना२०भेदथया दश१० नेदपेहेलाक Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ श्रीसम्यक्हार. ह्याछे तेमली ३० भेदथाय हवेरुपित्रजिवनापांचसें नेत्रीशनेदकहेछे वर्णपांच॥५॥काला॥१॥निलो॥२॥ पी लो॥३॥रातो॥४॥ धोलो॥५॥गंध॥२॥ सुर्भिगंध ॥२॥ दु निगंध।।२॥ रस॥५॥खाटो॥१॥ खारो॥२॥ तिखो।।३।। तमतमो॥४॥मिठो।।५॥फरसा॥८.खरखलो।।।सुंवालो ॥२॥टाढो॥३॥उनो॥४॥नारे॥५॥हलो ॥६॥लुखो॥७॥ चोपड्यो।संस्थाना|एपचविशभेदाएकवर्णम॥२०॥ नेदलाधे।बेगंध॥२॥पांचरस॥५॥आठफरस ॥८॥ पांच संस्थान|एविशा२०एपांचवर्णना॥१०॥नेद॥एमपांचर सनापणशो॥१००नेद॥पांचसंस्थाननापण॥१०॥ने द अाठगंधाबेफरसाएदशनाबसेनोत्रिश॥२३०॥भेद थया एमरुपीजीवनापांचसेनेत्रीशनेदथया।। ५३० ॥ अपीजीवना॥३०॥नेदमाहेनेगाकरीये एटलेअजीव द्रव्यनापांचसेनेसाठनेद॥५६॥थयाएनोविस्तारजोवो होयतोश्रीपनवगाजीमध्येछ एविरीतेजीवत्रजीवर्नुस्वरु पजाणीने पछिधावकनांव्रतलेतेनेथावरजीवनांपछखांण तोछेनहिं अनेत्रसजीवनाअपराधिनीजयणाछे विणअप राधिरह्यातेमांत्रारंनेजयणा अणारंभिरह्यातेमांसउउप ग्रहितनिजयणा ॥ एटलेअणापराधिणारंभेअनेत्रण उपग्रहित ॥ एवाजिवनेहणवाना थावकने पचखांणछ।। तेपणछकोटीनापचखांणछे । एटलोमन ॥ १ ॥वचन Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्वार. १२५ ॥२॥ काया ॥३॥ थकीअनुमोदवानिजयपणाछे। माटे श्रावकनुव्रतछेकथोडं तेमाटे देशविरतिकहिए तेपेहेलु व्रततेप्रणातिपात जेपरजीवनेत्रापणा सरिखाजाणी सर्वजीवने रखवालेतेदया॥ एव्यवहारप्रणातिपातवि रमणजाणवो हवेनिश्चेदयाकहेछे जेश्रापणोजीवकर्मवशे दूखीथायछे तेत्रापणाजीवनेकर्मथीछोडाववो आत्मगुण रखवालवागुणविचारवोतेचारप्रकारेबंधहेतुपणाथीनिवा रे स्वरुपगुणनोप्रगटपणोकरवो प्रगटथयोगुणतेराखवो एमत्रात्मस्वरुपनेविषे विश्रामतेतत्वानुनवतेचारीत्रकहि ए तेनिश्चेदया एटलेज्ञानथीमिथ्यात्वनेखपावे आपणा जीवनेनिर्मलकरेछे तेनिश्चेदया तेजिवप्रणातिपातथकि विरम्योछे तेप्रणातिपातकह्यो हवेमुखावादकहेछे कुडो वचनबोलवो तेव्यवहारमुखावादविरमणकहिये हवेनि श्वेकहेछे जेपरवस्तुपूदगलादिकनेश्रापणीकहेवि तेमुखा वचनछेअनेजीवनेत्रजीवकहे अनेत्रजीवनेजीवकहेइत्या दिकत्रज्ञान तेभावमुखावादमेछेअथवासिद्धांतनोअर्थखो टोकहे तेमुखावादमेछे एमृखावादजेणेछांड्यो तेनिश्चम खावादथिविरम्यो एटलेबिजाअदत्तादानादिकजोनाजे तोचारीत्रभाजे पणज्ञानदर्सनचारीत्र अनेनिश्चे जेणेम खावादभांज्यो तेणेसमकितज्ञानचारीत्रभांज्यां तथापा गममांएमकह्योछेजेएकसाधुएचोथोवतभांज्यो अनेएक R Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ श्रीसम्यक्हार. साधुएविजोमुखावादनांज्यो एटलेइहांजेणेचोथोव्रतनां ज्यो तेत्रालोवणलियेशुद्धथाए पजेसिद्धांतादिकना मृखाउपदेशदेवेते पालोवणलिधेपणशुद्धहोवेनहि।हवे अदत्तादानकहेछे जेपारकीधनवस्तुछुपाविनेचोरीनेठगी नेलीयेतेचोरीछे एटलेत्रणदिठिपारकिवस्तुलेवेतेश्रदत्ता दानव्यवहारनयथीजाणवो निश्चेनयश्रदत्तादानकहेछे ते पांचइंद्रिनात्रेविसविषयनेपाठकर्मनिवर्गणा इत्यादिक परवस्तुतेत्रात्मानेअग्राहछेपरछे तेलेवानिवांछाकरे ते निश्चेनयत्रदत्तादानकहिए तथाकोइककहेशेजे विषयनि अनेकर्मनिवांछाकरेले तेवांछाकोगकरेछे तेनोउत्तरजेपू न्यनेभेलुलेवाजोग्यकहेछ तेजिवकरमनिवांछाकरेछे तेपू न्यनाबेतालिसनेदछे तेचारकर्मनिशनप्रकृतिछे एटले जेव्यवहारअदत्तादाननहिलेवो पणअंतरंगपुन्यादिकनि वांछाछे तेनेनिश्वेअदत्तादानलागेछे हवेमैथुनविरमणत्र तकहेछे तिहांजेकोइपूरुषपरस्त्रीनोपरीहारकरे तेमैथु नविरमण व्यवहारकह्यो तथास्त्रिपूरुषनोपरीहारकरे ते मैथुनविरमण व्यवहारकहिये इहांसाधूनेस्त्रिनोसर्वथा त्यागछे अनेगृहस्थनेहाथपरणिस्त्रिमोकलिछेअनेपरस्त्री नांपचखाणछे तेव्यवहार हवेनिश्चेकहेछे जेविषयानि लाखनोत्याग अनेममतातृष्नाएपरभावनेवरणादिक परद्रव्य स्वामित्वादिकतेनोभोगिपणो आत्मानास्व Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. १२७ गुण ज्ञानादिकनोनोगी तेपदगलखंधअनंताजीवनीएठ तमनेभोगववाघटेनही एरीतेत्यागतेनिश्चमैथुनविरमण कहिये जेणेबाह्यविषयछोड्योछे अनेअंतरंगलालचनहिं छूटितोतेनेमैथुननाकर्मलागे हवेपरीग्रहपरीमाणव्रतक हेछे परीग्रहधनधान्यदासदासि चौपदघरधरतिवस्त्रश्रा नर्णनोत्यागतेपग्रिहत्यागवतव्यवहारथीजाणवोएसाधु नेसर्वपरीग्रहनोत्यागछे श्रावकनेइछापरीमाणछे जेटली इच्छाहोयतेटलोमोकलोराखे बिजानीविरतिकरे एव्यव हारपांचमोतकह्यो निश्चेनावकर्मरागद्वेषत्रज्ञानद्रव्य कर्मज्ञानावरणीप्रमुख पाठकर्मशरीरइंद्रिनोपरीहारएट लेकर्मनेपरजाणिछोडवांतेनिश्चेपरीग्रहनोत्याग एटलेप रवस्तुनीमुरछाछोडवि तेणेपग्रिहणछांड्योछे एटलेप रीग्रहत्यागवतकह्यो एपांचव्रतकह्या छठोदिशिपरीमा णव्रतकहछे च्यारादिशि ॥उर्ध ॥अधो॥ एछदिशानाक्षे नोमांनकरीमोकलोराखे तेव्यवहारदिशिपरीमाणवत कहिये अनेगतिच्यारकर्मगुणजाणि तेथीउदाशपणो अ नेसिद्धावस्ताशंउपादेयपणो तेनिश्चेदिशिपरीमाणकहिए हवेनोगोपभोगपरीमाणवतकहेछे तेनोगकहेतां एकवा रभोगवियेउपभोगजेवारंवारनोगविये तेनोपरीमाणकरे तेव्यवहारभोगोपनोगव्रतकहिये अनेनिश्चेभोगोपनो गव्रतकहेछेजेव्यवहारनयेकर्मनोकर्तानभोक्तातेजीवछेनि Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यक्वार. श्वेनयेकर्म नोकर्ता कर्मछेएश्रात्माच्मनादिनोपरभावनोगी थयो त्यारेपरजावग्राहकथयोप्रभावरक्षकथयो एटलेा मानिज्ञायकता ॥ १॥ ग्राहकता॥२॥भोग्यता॥३॥रक्षकता ॥४॥बिगडेकतपणो बिगड्योतेथीपरभावकर्त्ताथयते ऐपर भावरंगीपणे प्राठकर्म नोकर्त्ताथयोछेपणसत्तायेतोस्वनावनो कर्त्ताछे पणउपगरणप्रवरा साथी स्वकार्य करीसकतोनथी विभावनेकरछे ने ज्ञानपऐजिवनोउपयोगनल्योछेपण न्यारोछे अनेजिवतोापणाज्ञानादिगुण नोकर्त्तानोकाछे एवापरीणामते स्वरुपानुंजाइरुप तेनिश्चेभोगोपभोगव तजावो ॥ हवेप्रनर्थदंडविरमणव्रतकछे अनर्थकामोज वनेपापप्रारंभेलगाववातेनर्थदंड त्यांहांजे पार के वास्तेत्रा ज्ञाप्रमुखदेवितेव्यवहारप्रनर्थदंड प्रजेशुभ शुनकर्म मिथ्यात्वत्र्त्रविरति कखायजोगशुंकर्म बंधायछेतेजिवाप पाकरीजाणे एनिश्चेच्प्रनर्थदंडजाणवो हवसमायककहेछे जेमनवचनकायानाप्रारंभथिटाले निरारंभपवर्तावे ते व्यवहारसमायकजाणवो ने जेजीवज्ञानदर्शनचारीत्रगु विचारे तेसर्वजिवसत्वगुणेएकसमानजाती सर्वसम तापरीणामतेनिश्चेसमतारूपसमायककहिए हवेदेशाव गाशिकव्रतकछे जेमनवचनकायानाजोग एकठाकरीए कथानकेबेसी धर्मध्यानकरवो तेव्यवहारदेसावगासिक कहिए अश्रुतज्ञानशुंछद्रव्यत्रो लखिने पांचद्रव्यत्या १२८ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसम्यकद्वार. १२९ गकरे अनेज्ञानवंतजिवनेध्यावेतेहमारमेपरभावमांवसेन हि तेनिश्चेदेशावगाशिकजाणवो हवेपोसहकहेछे जेच्या रपहोरअथवाआठपहोरसुधीसमतापरीणामनिरारंनसा बद्यछोडि शिझायध्यानमेप्रवर्ते तेव्यवहारपोसंहकहएि अनेआपणाजीवने ज्ञानध्यानशंपोषिनेपुष्टकरे तेनिश्चे पोसहकहिये निवनेश्रापणेस्वगुणेकरीपोषियेतेपोषहक हिये हवेअतिथिसंविभागवतकहछे जेपोसहनेपारणेच थवासदासाधुनेजिनधर्मिश्रावकेापणिशक्तिसारुदानदे वो तेव्यवहारअतिथिसंविनागकहिए अनेजिवनेत्रथ वासिष्यनेज्ञाननणवोनणाववों संनलाववोसांनलवोते निश्चेतिथिसंविनागकहिए एबारव्रतकह्यांः-हवेएवा जेबारव्रतधारीश्रावकछे तेकरणिशिकरे तेदेखाउछे श्रा वकपाछलीचारघडिरातलेइनठेत्रणमनोरथनेविचारे ते नांनामाश्रवथकिकेदहाडेमूकाइश॥१॥सर्वविरतिचारी केदहाडेअंगीकारकरिशं॥२॥समाधिसंथारोकेदिनआ वश॥३॥एवात्रणमनोरथश्रावकविचारेएनोविस्तारमनो रथनावनाथकिजाणवो तेवारपछि श्रावकप्रतिक्रमणकरे तेवारपछिउठिने श्रीजीनमंदिरदरशनकरवानेजाय तेपू बेकह्यूछे तेमजपंचअभिगमन तथादसत्रिकसाचवतोथ कोदर्सनकरेजोकदापिछतिजोगवईयेप्रमादनेवशेदर्शनक रवानजायतो एकछठनिघालोवणावे तथामनमांशंका १७ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० - - श्रीसम्यक्हार. राखिनेनजायतोपांचउपवासनिघालोवणावे एyपंच | महाकल्पभाष्यमध्येकाछे तेमाटेजिनराजनांदर्सनश्रव श्यमेवकरवां दर्सनकरयापछिगुरुनेवांदे वांदिने नम स्कारकरेपछिधर्मदेशनासानलेपछि सांनलिनेजिनमंदि रेजीनपूजाकरवाजाव तेपूजानिविधि श्राधविधिथकिजा पाजो त्यांहांसांजनाप्रतिक्रमणकरे इत्यादिकश्रावकनि विधि साध्यदिनकरथकिजोज्यो तथाश्रावकहोयतेपर्वति थियेपोसासमायकतपइत्यादिककरे तथाश्रावकहोयतेसा तेक्षेत्रेधनवावरेतेसातक्षेत्रनांनामकहेछ साधु ॥१॥ साध वि॥२॥श्रावक॥३॥श्राविका॥४॥देहरुं ॥५॥ जिनपडि माने॥६॥ज्ञान वा एसातक्षेत्रनोऽर्थसंक्षेपथकिदेखाडेछे हवेसाधुसाधविएबेनिएकतिछे माटेनेगोकहेछे साधने श्रावकहोयतेसातपिंडआपे अप्नके०॥श्राहार॥२॥ पा णके०॥पाणिारा स्वादमके०॥ मेवाप्रमुख ॥३॥ स्वादम के मुखवासा४ालेनके०॥वस्ति॥५॥सेनके०॥सिज्या पाटपाटलाप्रमुख॥६॥ वल्छके०॥वस्त्रपात्रप्रमुख ॥७॥ एसातपिंडसाधुसाघविनेदेवानिमित्तधनवावरे तथाश्राव कश्राविकाएबेक्षेत्रनाकाजेपणधनवावरे शिरिततेकहेछे जेश्रावकहोयतेशंघकाढे स्वामिवछलकरे तथास्वामि भइनीनक्तिबहुमानकरे त्यारेवादिबोल्योजेसंघकाढ्याथ किशुधर्मछे एतोहंशानांकामछे एनोउत्तर जेतेंकिधुंसंघ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. १३१ - काढेशंथायतेसंघ काढ्याथकि अनंताकर्मनि निकाश्चित गांठितोडे शामाटेजेतिर्थेजइनेवांदवानांमोटांफलकिधांछे केमकेशीनगवतिजीमांतिर्थकरनिवंदणाधिकारेत्यांहांज इनेवांदवानोमहालानकाधाछे।।तेवारेवादिबोल्योजएतो शास्वतातिर्थकरहता आतोप्रतिमाछेतेनुकेम एनोउत्तर जेप्रतिमानेजीनपडीमाकहिनेबोलाविछे॥ तेवारतमेकेहे शोजेएतोजिनपडिमाकहिछे पणजिनवरतोकह्यानथी ए मानेएमांतोफरकघणो तेनोउत्तर जेजगाएधुपनोअधि कारचाल्यो तेजगाएएवोपाठछे ॥दाहंधुवंजिनवराणांए वोपाठज्ञाताप्रमुखघणासूत्रमांछेएटलेइहांजिनपडिमाने जिनवरकहिनेबोलाव्याएटलेएपाठजोतांजिनवरमांनजि | नपडिमामांफरककाइदिसतोनथी माटेतिर्थेजइनेवांदवा नघणुंफलछे तथातमेकमुजेहंशानाकांमछे । तेनोउत्तरा। जेगाडांगडेरांइत्यादिकजोडवांजोडावांतकारणथकि तमेहंशामांगणोछो तेएमछेनहिं ।शामाटजेश्रीदसासुत स्कंधमां श्रेणीकराजाभगवांननेवांदवागयातेसमेबेसवा नेवास्तेरथमगाव्योछे ॥ तेरथनेधर्मरथकहिनेबोलाव्यो तेरथज्यांचालत्यांहांहंशाजथाय केमजेत्यांकाछेके बल धनेश्रारघोचतादोडावताथकागयातेजगाएहशाकेमनथा एपणइहांतोधर्मरथकह्योछे।। तथागाममध्येथीउकरडाक ढाव्या पाणीछंटाव्यांतथाचउरंगीशेनासजीनेगया तेखे Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. खेतोमहाआरंजनुकांमदिशेछे पणभगवंतेतोकांइपापक हयुछेनहिं भगवंतेतोएनुंफलमोक्षनुकहयुंछेतेमाटेधर्मकां मनेर्थेनिकल्या तेकांमनेविषेजेटलंकामथाय तेटलुंध मखातामांगणाय एमजोनगणीएतोसाधुनोविहारगोच रीअटकीजायतमाटेडाह्याहोयतविचारीजोज्यो तथाति फैजइनेवांदव॑तेनुकारणकेहेछेजेठेकाणतिर्थकरादिमोक्षेपो हतातेजआपणेपूजनिकछे शामाटेजेश्रीभगवतीजीमांउ दायनराजानेअधिकारेकहपुछे ॥ धनतेनगरधनतेगाम भागलइत्यादिकनेधनकहिबोलाव्याछेशामाटेजश्रीनग वांनविचरताहोयतेमाटे॥ एटलेज्यांतिर्थकरविचरताहोय तेनगरीयादिकनेपणधनकेहेवाणुं तोतेनगरीनेविषेतोको इजीवसलनबोधिहशे कोइदूलनबोधिहशे अथवापापि कोइकहशे कोइकधर्मिहशेअथवागामनीमांहेलीकोर को इपणशुधअशुधकोइकवस्तुहशे तेपणसर्वेनेधनकयुं तो जेजगाएतिर्थकर-निर्वाणकल्याणकथयु तोतेजगाएफर सनाकल्याणककेमनथाय वंदणनमणकीकर्मनिर्जरे डा ह्याहोयतेविचारीजोज्यो माटेसंघतिर्थजात्रानिमितश्राव कनेधनवावर ॥ तेनोविषेशअर्थसेजामाहात्मथकीजा जो तथास्वामिवछलनीमित्तेधनवावरे ॥ एटलेस्वामि के॥सर्खाधर्मनात्रोनेजमजमाडवूकशामाटेजेश्रीन गवतीजिमांसंखजीपुष्कलीजीनेअधिकारे पणस्वामिव Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यक् वार. १३३ छलनोच्अधिकारदिशेछे तथास्वामिनईनीनक्तिबहूमान करवुंएनोपणपाठश्रीभगवतीजी मांसनंतकुमारइंद्रनेत्रधि कारेजोज्यो ग्यारमातथाबारमाशतकमांश्रावक श्रावक नेवंदणनमस्कारकरे ॥ एवोपाठछे || तेमाटे श्रावकहोयते श्रावक श्राविकानाविषेवावरे हवेवली श्रावक पांचमाक्षेत्रे देहरुंकरावे तथाछठे क्षेत्रेजिन पडिमानुंभरावनुं ॥ तथादे हरानुंरंगाववुं ॥ तथाांगीरचाववी ॥ तथाठा इमहोछव करावे तेवारेवादिबोल्यो । जे देहरुंकरावे प्रतिमानरावे शुंथाय॥ तेनो उत्तर ॥ जे देहरुंकरावं ॥ त्रतिमाभराववि॥एका मश्रावकने श्रेयदिशेछेशामाटेजेदेहरुं ॥ तथाजिनप्रतिमा आज पांचमात्रारामांत्राधारभूतछे केमके केवलिनाता जविरहकालछेशुध च्यालंबनतोत्राज एछेतथा श्रीश्रनुयोग द्वारमापणकपुंछे जेभावनिक्षेपोनामथापनाद्रव्य विना थायनहिं तथाच्यार निक्षेपामां एकेनिक्षेपोउथापे ॥ तेने मिथ्यात्विकहिए ॥ तेवास्तेथापनानिक्षेपोश्रवश्यमानवो ॥ यदुक्तं ॥ नामजपाजणजणा॥ठवणज णा॥ज एपडिमात्रो ॥ दवजणाजणजिवा ॥ नावजपाजपसमोसा हुथा ॥ १ ॥ गाथामांपणथापनानिक्षेपामांतोजिनपडिमाजकहीछे ॥ अथवा जोगद्वारमध्ये त्र्यावशक नेत्र्यधिकारेशप्रकार नीथापना कहिछे तेतोसद बोधाने श्रसद्बोधकहिछे त थाएतागुरुनीथापना छे यातोतिर्थंकर निथापना नेवली Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यकद्धार. सदबोधछे तोएनेकरावतांनफोकेमनहोय ॥ डाह्याहोयए विचारीजोज्यो तथादेहरानोकरावनारोतथाप्रतिमानोन रावनारो बारमेदेवलोकेउपजे एqश्रीमहानिशिथजिमां काछेतेमाटेथावकहोयतेदेहरांकरावे प्रतिमाभरावेत्रां गीरचावे अठाइमहोछवादिककरे ॥ एवामारगेधनवावरे हवेसातमक्षेत्रज्ञान तेमारगेपणधनवावरे एटलेज्ञान लखावे तथाज्ञांनभणतोहोय तेनेसाज्यत्रापे तथाज्ञानि नांबहुमानकरावेशामाटेजेश्रुतज्ञांनछेतेमोटुंछे जदपिकेव लज्ञांनमोटुंछेपणस्वनुजायीछेअनेश्रुतज्ञांनछेतेस्वपरप रकाशदिसेछे माटेज्ञानिनावहमानकरवां केमजेश्रीनंदि सुत्रमांज्ञांनिनेसूर्यनीचंद्रमानीकल्पटक्षनीसंभुरमणसम द्रनिइत्यादिकघणीउपमानोछ।माटेज्ञांनीखेंबहूमानविशे षेकर, ज्ञांनभगतोहोयतेनीपणसाज्यकरवि। शामाटेजे ज्ञाननाभणनारापासेपइशोहोयनहिंअनेव्याकरणादिक नणवानेपइशोपणजोइयेपुस्तकपानुपणजोइयेमाटेएवात निसाज्यगृहस्थिश्रापेतारेभणाय त्यांवादिएतर्ककरी जे साधुतोसाज्यवंछेनहिं तमेकहोछोसाज्यापेतोजसाधुभ णे तेनुकेम तेनोउत्तरदेछे जेसाधुहोयतेसाज्यनवंछेपणते दहाडेतोसूत्रपाठउपाध्यायजीभणावता अनेअर्थश्राचा र्यापता अनेमारुतासंहतुंनहिं॥ जेजतुंतेनेनणावता॥ श्राजतेमानाआचार्यउपाध्याय कियातमारीसरतेश्रावेछे - - Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीसम्यकद्वार. | जेतेनिपासेजइनेनणे अथवाज्ञानप्राशरीसाज्यवंछेतोदो पणजणानुनथि शामाटेजेपोतानेशरीरसुखवंछतोनथी ए तोत्रात्माहेतेज्ञाननणे नेज्ञानकाजेसाज्यवंछेछे तथा श्रीपंचमहाकल्पनाष्यमध्येपणकपुंछे जेज्ञाननोसाधुन भ्यासकरतोहायतेठामनेविषे कदापियाहारनेविषेत्राधा कर्मादिदोषलागतोहायतोज्ञानअभ्यासकरवानेसाधुरहके नरहे त्यांकांछेजेज्ञाननोअभ्यासकरतांकदापित्राधाक मर्मादिदोषलागतेनोविचारकरेनहिं पणज्ञाननोअभ्यासक रवोशामाटेजेज्ञाननहोयतोदोषश्रदोषकोणजाणेमाटेज्ञा नमोटोपदार्थछे तेमाटेज्ञानने वास्तेसाज्यवंछतांदोषण जणातुनथी तथाजोशरीरादिकनेर्थेसाज्यवंछेतोदोषण लागे जोयामांतोहेवंावेछे पछिकवलीगम्य तथाजेगृह स्थिश्रावकहोय तेसुत्रसिद्धांतादिकलखिराखे शामाटेजे साधुसाधविश्राव्यागयानेवांचवानणवानेखपलागे तथा गाममांपणविजाश्रावकाने भणवागणवाखपलागे एसा तमुक्षेत्र एमश्रावकहोयते सातेक्षेत्रेधनवावरे वलि एनेअनुसारेबिजापणउचितथानकजोइनेवावरे एमश्राव कर्नुस्वरुपका तेश्रावकत्रणप्रकारनाछ। जघन्या॥१॥ म ध्यमा|उत्कृष्ट॥३॥तेजघन्यश्रावककेनेकहिएकेप्रनाते नोकारसिरात्रेविहारअनेबाविसअनक्षनोत्यागकरेतेने जघन्यथावककहिए॥१॥अनेबारव्रतश्रावकनांअंगीकार a mameran Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ श्रीसम्यक्हार. करयांहोय तेनेमध्यमश्रावककहिए॥२॥अनेबारव्रतउच रयांहोयत्रनेअग्यारपडिमावहिहोय तेनेउत्कृष्टोश्रावक कहिए॥३॥एविरीतेश्रावकनोधर्मतथासाधुनोसर्वविरतिपं चमहाव्रतधर्म एव॒श्रीवितरागप्रमात्माएपरुप्युं जेधर्मते नेधर्मकरीसदहे तेनेधर्मतत्वसदह्योकाहिए एटलेधर्मतत्व के०॥साधुश्रावकनुंजेधर्मतथाखटद्रव्यनवतवनयनखेपाप क्षप्रमाण स्यादवादखटकारकादिकसर्वसदहजो हेभव्य जीवोसमजमांआवेतोसमजवू कदापिसमझमांनआवेतो एमधार, जेमारीबुद्धिश्रोछीछे अनेकेवलीनुज्ञानअनंतूछे तेथिमारीसमजमांत्रावतुनथी पणजेागममांनावपरु प्या तेसर्वतेहेतछे एवोविचारराखवो पणपोतानिमतिक ल्पनाथी कशोनवोमार्गथापशोमां एविरीतेहेभव्यजीवो धर्मतत्वनेसद्दहजो ॥ इतिधर्मतत्वत्तीयः ॥ ॥ इतिश्रीसम्यक्तद्वारग्रंथोमुनीश्रीहूकमचंदजीविरचीत्ते षष्टमोअध्यायपूर्ण ॥६॥ ... एछठाअधिकारनेविषेधर्मतत्वोलखाव्यो हवेसा तमेअधिकारे,एतत्वनासदहणानुंफलदेखाउछे हेभव्यजी वोआर्यक्षेत्र मनुष्यनव देवगुरुनिजोगवाइतेपामविघणी दुर्लनछे अनंतापून्यनिराशिनाथोकडावध्यात्यारेतमपा म्याछो पामिनेजोपरमादकरशोतो फरीनेच्यारगति संसारनेविषे परीब्रह्मणकरशो फरीथिबाजोगवाईमल Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीसम्यकद्वार. १३७ क्षिणीदुर्लभछे तुंजेआसंसाररुपमोहजालमांYथाणोछु अनेपूत्रकलत्रधनधान्यादिकमाहरुमाहरुंकरछेतेतारीभूल छे तेकोइतारूंछेनहि केमजेमोहजालनेविषेगुंथायाथकि नर्कतिर्जचनांदूखभोगववांपडे तेनर्कस्वरुपलेशमात्रक हेछे तेनर्कनाक्षेत्रनोफरसकेवोछेतेकहछे जेवितरवारनि धार जविवरछिनीअणी जेविकटारीनीधार जेविनासो डतीणी जेविअस्त्रानिधारजवोनगरनोदाहजेवोगामनो दाहएवोतोउष्णफरसछे वलिजीहांगोखरुघणांतिवीत्र णिनांपथरायेलांपडयांछे तथाडानतिखिअणिनाउगेला नुवनछेवलिज्यांहांवेतरणीनामानदियोछेज्यांहांअसिपत्र रक्षनांवनछेज्यांहांघणाकुंनीपाकछेतेकुंनीपाकनोखरख रोफरसपूर्वेकडोतेवोजछेवलीजेंविपोषमाघनिमहाहिमा जलटाढ जेमहिमानाक्षेत्रनीटाढज्यांहांमाणसनामाणस शिजीजायछेतोढोरोनूंनेझाडनूंशंकहेवूएवाक्षेत्रफरसनादि कथीतेटाढअनंतगुणीवधतीछे एकुंभीपाकतेउपरथीचोखू पीछेअनेमांहेथकिकुडानाश्राकारेछे तेकुंभीपाकनेविषेना रकिश्राविउपजेतेप्रथमसमयनारकिनाांगुलनेसंख्या तमेनागेअवगाहनाहोयपछिएकत्रंतरमूहूर्त्तमांजेटलीना रकिनाशरीरनिअवगाहनाहोयएटलीबांधे तेवारेकुंनीपा कपेटेथकिपहोलीद्धोउर्द्धसंकिर्णएनोफरसमहातिखोने वलिटाढोतेथकिथइजेवेदनातेथीमहारीवपोकारेअनेमुखथी Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ श्रीसम्यक्हार. कहेजेमुनेइहांथकिकाढोकाढोतेवारेनर्कक्षेत्रनेविषेरवाजेप रमाधामि तेपनरजातनाछे तेनानामकहेछे अंब॥१॥अंब रिख॥२॥श्याम॥३॥सबल॥४॥रुद्र ॥५॥ महारुद्र ॥६॥ कालाजामहाकाल॥८॥असिपत्र॥९॥धनुष्य ॥१०॥कुंभ ॥११॥वालक॥१२॥वेत्रणी॥१३॥खरस्वर॥१४॥महाघोष ॥१५॥ एवाजेपनरजातनापरमाधामितेत्यांपासेहोयतेदो डिनेत्रावतेआवितेनारकिनेकहेजेमाहलिकोरतोहजीतने सुखछेअनेबाहेरतोमहादूखछेअनेकुंभीपाकनुमोढुंसांकडूंछे माटेतनेतोडितोडिनेकाढवोपडशे त्यारेतुनापाडिशपात्र मेतनेछोडिशंनहि वास्ततपेहेलांजमाहिरहेपणतेनारकि महादूखेपिड्योथकोदिनवचनकहिनेबोलेजेहूंमहादाखिछं महाराथीनरकनुदूखनोगवातुनथीमाटेमनेकांइकरतांइहां थकिकाढोहुंनानहिपाडूंतेवारपरमाधामिसाणशिथीतोडि तोडिनेकाढेत्यारेमहारीवपोकारेनेकहेजेमनेरेहेवाद्योपण तेकांइछोडेनहिंइत्यादिक वलीबाहेरनिकल्यापछिपणम हाछेदनभेदनताडनातर्जनादिकवेदनाघणिनोगवे ज्ञानि विनाआपणथीकहिजायनहिं तेनोविशेष अधिकार श्रीजी वानीगमतथापन्नवणाप्रमुखसूत्रथकिजाणजो एवानरका दिकनांमहादूखनोगवांपडे तेवास्तेहेभव्यजीवामोहजा लनेविषेमुझावूनहिं जेमोहनेविषमझाय तेनेएवांदूखभो गववांपडे ॥ जेमब्रह्मदत्रचक्रवर्तिमोहने विषेमझायो Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. १३९ अनेसाश्रुनो उपदेश नमान्यो व्यारेमरीने सातमी नर्केस सो लेमहेजव्यजिवो एवंजाणीने जोगवाइम लेथकेप्रमा ढ़करझोनहिं धर्मसाधनकरजो जेथकिदेवलोकनांसुख जोगवी परंपराएमोक्षनां सुखपणजोगवशो वलिजेपुत्र कलत्रधनधान्यादिकमाहारुमाहारुंकरोछो तेकांइछेनाहं तेतोसर्वस्वानांसगांछे तेनुंस्वरुपदेखाडेछे जेम श्रेणि कराजा कुणीकनों गुठो छमाससुधिमुखमधेराख्यो अ नेलोहिपरुचुइयां शामाटेजेमारोपुत्ररखेमरीजशे केरखे दुखीथशे एमजेमोहन वशथकिएविरीतेपुत्रने वास्ते पोते दुखजोगव्युं तोतेजपुत्रे पोताने काष्टपिंजरमांधाल्यो श्रनेनित्यप्रत्ये पांच हैं कोरडामरावे अनेजीवथिपणगया तोजोयुं पुत्रनुसगपण एकराज्यनेवास्तेपितानुंम्मृत्युकर्यु | महादूखदिधुं तोहेभव्य जीवोसंसारनेविषेपुत्रनुंसग पणनीत्यछे एसर्वस्वार्थनुंसगुछे तथाकलत्र के० ॥ जे स्त्रीतेनेतो माहारीकरीजाछे तेतोसंसारने विषेमहादू खदाइछे केमकेस्त्रिनामोहनामारचाथका नंदिखणेनि यांणुंकरयुं तोच्तेनर्कमलि तोजुवोस्त्रिनोमोहराख्योतो परनवेमहानर्कमलि नेत्रावविषे पणस्त्रिसुखदे महिं. जेमजसोधरने स्त्रिएझेरदेइनेमास्यो तेतोत्रधि कारसमरादित्यचरीत्र थकिजोजो तथापरदेशी राजाप्र मुखघणाजिवोस्त्रि एमारयाछे माटेहेनव्योस्त्रियोकोइनी Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० श्रीसम्यक्हार. सगीयोनथी एतोस्वार्थनिसगीछे एवंखोटुंसगपणतेनेवि षेतमेकेममुझाइरह्याछो एस्त्रितोत्राभवपणदुखदाई श्र नेपरनवपणदुखदाइछे स्त्रिनासगपणमांपणराचवूनहिं तथाजेसंसारनेविषेमाताछे तेपणस्वार्थनिसगीछे जमव्र ह्मदत्तनेचुलणीराणीएमारवानो उपायकरयो जुवोसगो दिकरोछे पणकांइदयात्राविनहिं तथाचेलणाराणीए कु पीकनेजनम्योतेजवखतेउकरडेनखाव्योतोजुवोमातानां सगपणपण संसारनेविषएवांछे इत्यादिअनेकदृष्टांतछे तेग्रंथोथकिजाणजो वलिसंसारनेविषेजेसगपणछेतेसग पणनोकांइनियमनथीजेएनएसजगपणरेहेशेजेपूत्रहोयते पत्रपणेएवोकांइनियमनथी जपूत्रहोयतेपीतापणेथाय श्र नेपूत्रहोयतेस्त्रिपणेथायकेमजेशुकराजानांमातापीतातेश्रो पाछलेनवपोतानीस्त्रिोहती तेनीकथाश्राद्धविधिमांछे तथाश्रीअंशकुमारनोजीव तथाश्रीऋषभदेवस्वामीनोजी व केटलाएकभवनेविषे स्त्रीभरतारनसगपणथयु केट लाएकभवनेविषेमित्रपणथyाभवनोविषेदादोनेपडपोत रोथया तथाजसोधरपोतानापत्रनोपूत्रथयो तथाजसोध रनिमाताहतीतेपानवनेविषस्त्रीथइइत्यादिकविचारतांस गपणनोनियमरहेतोनथीतथासिद्धांतमांपणकहयुछेजेएक एकजीवनेमाहोमांहे अनंतांसगपणथयां एवंजखोटुसग पणतेनविषकोणराचे केमजेकियोजीवत्रापणासगोछेत्रने Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. १४१ कियो जीवसगोनथी एटलुंविचारीने जोइएतो सर्वेजी बसाओ आपणांनंतांसगपणथयां माटेएमां मातापि ताकोनेकहीए तथाभ्रातकलत्रपुत्र कोनेकहीए जेसर्च जीवसाथे अनंतांसगपणथयां माटेएवांसगपणनेविषे सचीरहेनहि एवांसगपणकरतां नतोका लगयो पण कां श्रात्मानं कल्याणथयुंनहि जेदहाडे संसारथकी वैरा ग्यपामीने धर्मकरणिकरशो तेदिनश्रात्मानुकल्याणथशे वलिकायानुंस्वरुपदेखाडेछे हेनव्यजावो तमेशरीरनाव गंधफरस देखिने घणुंलोनाइरह्याछो जेरखेमारी कायामुकाये रखेदूखपामे रखेबिगडे एवंविचारोछोतेस खोटुंछे शामाटेजे हेदेवाणुप्रिय तमनेकायानास्वरुपनी खबरनथी एकायातोपुद्गलदलछे एकायानेविषैतोरुधि रछे तथामंसछे तथानेजछे तथानसजालछे विर्यछे पेसि छे लघुनित्यछे वडिनित्यछे एवाशरीरने विषेत मे शुंराचि रह्याछो एशरीरने पूर्वेएटलं पालोपोसोसाचवा पणते कांइरहेवानुंनथी शामाटेजेपुदगलनो स्वभावतो सडण पडणविद्वंसणछे तेमाटेएने विषेमुर्छा शावास्तेलाववी पडे तुतारास्वरुपनी गवेखपाकरेतोठीक माटेएहवीकायाउ पर मुर्छाराखवीनही केमकेकायाछे एतो सास्वती के थीरछे एनोतोधर्मज मलवाविखरवानोछे एटलेसं जोगेमले विजोगेजाय एवाशरीरउपर ममताराख Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ श्री सम्यक् द्वार. वीनही हवेावखानं नित्यपणुदेखाडेछे हे नव्यजीवो संसारने विषे जेावखंछे एतोत्रनित्यछे नेतुमेतोतृष्ना वणी लांबी खोछो जीवत्वनी घडीनीबखर छेन हि केमके श्रावतोथीर जेमडानबिंदू के० ॥ जेमडा भनीणीउपर पाणी नोबिंदू केटलीवारठरे तेमा वसुंपण धीर जारावं तथाजेमहार्थाीनो कानचपलछे तेमत्रावखुंपण प्रथीरछे तथाजेमपाणीनोपरपोटो जे मसंध्या नोरंग इत्यादिकश्रनेकद्रष्टांतेकरी ने श्रावखुतोश्र नित्यछेएवंत्रावरखूं नित्यछेतेने विषेतुं माहारुंमाहारुंकरी माचीरह्योछु श्रतिशयतृष्नानोवायोथको श्रनेकप्रारंभ करेछे अनेकालतोचानक श्रावीपुगशे पछिबांध्यांजेक ते हारे श्रावशे धनधान्यादिकमेलव्यं तेतोइहांरहे शे नोतोनोगदारी कोइकथशे अने नरकादिक दू खतोतारे जोगववiपडशे जेमसभोमनामाचक्रवर्तिछखंड नोतोभोगदारीहतो पणश्रतिशयतृष्नानोवायोथकोसमु द्रमध्ये बुडीमुत्र एराजपाटरिद्वितोइहांरहि नेपो तानेमरी ने नरकेजवुपड्युं तेमहेभव्यजीवो एश्राव खुं थिरजाणी ने मोहममतानिवारीनेधर्मसाधनकरो तेधर्म साधवानुंमूलतेसम कितछेते प्रथम कहयुछेत्र ने देवतत्व ॥ १॥ गुरुतत्व]॥२॥धर्मतत्व ॥ ३॥ एत्रणतत्वनेसह हे ते नेसम किती कहिएएटलेसम किताव्यं एसम कितनुंफलशुं समकितनुं Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. १४३ - फलवति व्रतिके०॥जेसर्वविरतिदेशविरतितेनेव्रतिफहिए अतिनुफलतसंवर॥ संवरके०॥श्रावतांकर्म-संधवा तेहने संवरकहिए ॥ तेसंवरनुफलतेतप ॥ तेतपनाबारनेद श्रणसणके०॥ नोकारसिथीमांडिनेछमासिपर्यंत तेत्र लसणतपकहिय॥१॥णोदरीके०॥ पुरुषनेबत्रीसकव लनुप्रमाणछे स्त्रीनेअठ्याविसकवलन प्रमाणछे ते मांथकिबेतथाच्यारकवलनुख्याउठे तेनेअगोदरीतपक हिय॥॥ अनेत्तिसंक्षेपके०॥ श्रागेटत्तिहोयतेमांसंको चषिके०॥ सांकडीकरवी तेनेत्तिसंक्षेपकाहये॥३॥स चाहोके ॥षटरसमाथि ॥१॥२॥४॥त्यागकरवा॥४ाकाय क्लेशके०॥ उश्नकालेतापनीत्रातापनालवि सिप्तकारसे सितनीश्राताषनालेवि॥५॥सलिनताके०॥अंगउपांग मुंसंकोच॥६॥एषटविधबाह्यतप॥६॥एथकिकायाबलवा निालोकमांतपसिजणाय।अनेकर्मबलवानीनजना॥हके पटविधअभ्यंत्तरतपकहेछ।प्रायछितके०॥लाग्यांजेपापले मेवारंवारतेसंभालिनेवालोवे॥१॥ अनेअरीहंतादिकमी विनयबहूमानकरवू॥२॥वियावचषुलकप्रमुखदसनोतथा बहूविधिके गाघणानो॥३॥सझायजेनणवूनणाववृतेनेस सायकहिये ॥४॥ ध्यांननस्वरुपलखीएछीए ॥ ध्यांमके०॥ धर्मध्यां ना हवेच्यारध्यांनकहिएछिए ॥ त्यांच्यारनेदध्यानना Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ श्रीसम्यक्हार. छ॥ श्रार्तध्यांन।।॥ रुद्रध्यांन॥२॥ धर्मध्यांन॥३॥ शुक्ल ध्यांन॥४॥ पेहेलाबेध्यानअशुनछे एपरीहरवां अने२शु द्वध्यान एकादरवां एकध्यानविषेअंतरमहूर्त चित्तनोउप योग तन्मयएकाग्रपणेथिररहेवो तेध्यानकहिए अनेके वलिनेध्याननोरोकवोतेजध्यानकहिए ॥यदुक्तं॥ अंतोम हुत्तोमित्तचितावस्थाणमेगवत्छु॥मित्छोमत्छांगझाणं..जो गनिरोहोजिणाणंतु॥१॥ हवेआर्तध्यानकहेछेमनमांकांइ कपीडाए आतथायजेश्राहाटदोहटप्रणाम तेत्रार्तध्यान कहिय॥१॥तेत्रारतध्याननापायाच्यारछे॥ पेहेलोइष्टवि योगा।इष्टके०॥षलभभाइमित्रसज्जनमातापितास्त्रिपुत्रध नप्रमखनोवियोग एकवार्तनुकरवं तेइष्टविजोगात ध्यानकहिय॥१॥बिजोअनिष्टसंजोगके०॥ अगमतिव स्तनंत्राविनेमलवंतनिचिंता आकेवारेटलेएवोजेएकत्वप रीणाम तेअनिष्टसंजोग॥२॥त्रिजोरोगचिंताबार्तध्यान के॥शरीरमांरोगउपन्यातनिचिंताकरे तेरोगचिंताआत ध्यान ॥३॥ चोथोश्रग्रशोचार्तध्यानते आवताकालनि चिंताकरविजेत्रावताकालमांत्रामकरिशंकामकरिशुंए अग्रशोचार्तध्यानकहिए ॥४॥हवेरुद्रध्यानकहछे रुद्र ध्याननापायाच्यारपेहेलोहिंसानुबंधिरुद्रध्यानके०॥ जिव हिंसाकरतोकरावतो अथवासंग्रामसंबंधिवातकरतोसांभ | लतो तेनीअनुमोदनाकरतो तेपेहेलुध्यान॥१॥बिजुमृषा - - Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सम्यकद्वार. नंबंधिरुद्रध्यान ॥ जेम्मृषाबोलिनेराजीथा ॥ तेबिजोपायो ॥२॥त्रिजुंचोरानुबंधिरुद्रध्यानके० ॥ चोरीठगाइकरवाना प्रणाम ॥ एत्रिजोनेद ॥३॥ चोथोपरीग्रहरक्षणानुबंधीरुद्र ध्यानके० ॥ नवविधपरीग्रहवधारवानाप्रणाम ॥ श्रथवा होयतेनेरखवालवानाप्रणाम ॥ एवोथोपायो ॥ ४ ॥ ए रुद्रध्याननोपेहेलोपायो छठागूपठाणासुधिछे ॥ एत्रा रुद्रध्यानबे अशुनमाठीगर्ती नाकर्णहारछेते छोडवा. १४५ हवेधर्मध्यानकछे धर्मतेव्यवहारक्रियारुपकारणते धर्म तथाश्रुतज्ञानतथाचारीत्र एउपादानपणेते साधन धर्म तथारत्नत्रयीनेदपणेते उपादानशुद्धव्यवहार एटलेउ तसर्गमार्गानुजायीपणेतेश्रपवादधर्म तथा च्यनेदरत्नत्रयी ते साधन एटलेशुद्धनिश्वेन येउत सर्गधर्मनुकारण धम्मो वच्छोसहावो जेवस्तुनोसत्तागत्तशुद्धपरीणामिक स्वगुण प्रवृत्तिकर्त्तादिक अनंतानंदरुपसिद्धावस्थायेरह्यो तेएवं भूत उतसर्गउपादानशुद्धधर्मनुभासनरमण एकाग्रतापणे चिंतनतन्मयनोउपयोग एकत्वनाचिंतवणोतेधर्मध्यानकहि ये धर्मध्याननापायाचारछे श्राज्ञाविचय ॥ १ ॥ अपायवि चय॥२॥विपाकविचय ॥३॥ संस्थानविच ॥४॥त्यांहांपेहे लोप्राज्ञाविचयकहेछे जेवितरागदेवनिश्राज्ञातेहेतकरी माने एटले भगवंते द्रव्यछनुस्वरुप तथासिद्धनूस्वरुपनि गोदनूस्वरुप स्यादवादनिश्वेव्यवहारसद्दहे तेनेविषेभास ૧૯ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ श्रीसम्यक्हार. नरमणकरे तेआज्ञाविचयधर्मध्याननकहिए ॥१॥ हवे विजोपायविचयधर्मध्यानकछे जेजीवमांत्रशुद्धपणुर हयुंछे जेत्रज्ञानरागद्वेषकखायाश्रवएमाहारानहिं हूंए थीन्यारोछु अनंतज्ञानदर्शनचारीत्रविर्यमांशुद्धबुद्धवना शिर्छ अजअनादिअनंत अक्षय अक्षर अनक्षर अचल अकल अमल अगम' अनमि अरुपी अकर्मा अब धक अनुदय अनुदिरक अजोगी अभोगी अरोगी अभे दिवेदि अछेदि अखेदि अकखायी असखायी अलेशि अशरीरी अनासीय प्रणाहारी अव्याबाध अनअवगा. हि अगुरुलघु परीणामि अणेंद्रि अप्राणि अजोन असं सारी अमर अपर अपरंपर अव्यापि अनाश्रित अकंप अविरुद्ध अनाव अलख अशोकी असंगी अलोक लो कालोकज्ञायक शुद्धचिदानंदमाहरोजीवछे एवोजेएकाग्र तारुपध्यानते अपायविचियधर्मध्यानजाणवो॥२॥ हवेवि पाकविचयधर्मध्यानकहेछे जेएवोजिवछे तोयपणकर्मव शेदखिछे जेज्ञानगुण ज्ञानावर्णिकर्मेदबाव्योछे एटलेत्रा ठकर्मेजिवना पाठगुणदबाव्याछे एटलेसंसारनमतां जे सुखदूखउपजेएसर्वकर्मनाकिधांछे एटलेइहांकर्मस्वरुप नंविचारवं ॥तेविपाकविचयधर्मध्यानकहिए ॥३॥ हवे चोथोपायोसंस्थानविचयधर्मध्यानकहेछे ॥ त्यांहांचौदरा जलोकछे तेमांउईश्रद्धोत्रिछोलोक तेउर्द्धलोकमांविमा Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसम्यक्हार. १४७ - निकदेवतावसेछे तेउपरसिद्धक्षेत्रछे एमलोकनमानछे ए || लोकछेतेसंस्थानछे आपणोजीवसर्वलोकसंसारमांभम तो जन्ममरणकरीफरस्योछे एवुजेलोकस्वरुप तथालो कनेविषेपंचास्तिकायनु अवस्थानतेनोविचार तेसंस्थान विचयधर्मध्यानकहिए ॥४॥ एधर्मध्याननाचारपायाक ह्या ॥४॥ तेध्यानसातमागुणठाणासुधीछे हवेशुक्लध्या नकहेछेशुक्लके० ॥ निर्मलसुद्धपरआलंबनविना आत्मा नास्वरुपनेतन्मयपणेधारे ॥ तेशूलध्याननापायाचारछे प्रथक्त्ववितर्क सप्रविच्यार ॥१॥ एकत्ववितर्क अप्रवि च्यार॥२॥सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपाति॥३॥उछिनक्रियानिट ति॥४॥तिहांपेहेलोप्रथक्त्ववितर्कसप्रविच्यारजीवथीअजी वजुदाकरवास्वनावविनावजूदाप्रथकपणेवेंचवास्वरुपर्ने विषेपण द्रव्यतथापर्यायनो प्रथकपणे ध्यानकरवो पर्या यतेगणमांसक्रमावेगूणतेप्रजायमांसक्रमणकरे एवीरीते स्वधर्मनेविषेधर्मातरनेदते प्रथक्त्वकहीएतेहनोवितर्कजे श्रतज्ञाने स्थितउपयोगते सप्रविच्यार तेसविकल्पउ पयोग एकचिंतव्यापछी बीजोचिंतववो तेविच्यारकहीए निर्मलविकल्प सहितपोतानीसत्तानेध्यावे एप्रथकवि तर्कसप्रविचार एप्रथमशुक्लध्यानजाणवू एपायोाठमा गणठाणाथीमांडीने अगियारमासुधीछे॥१॥ एकत्ववि तर्कप्रविचारकहेछे जेजीवआपणा गूणपर्यायनी एक man Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ श्रीसम्यक्हार. ताकरीध्यावे जीवनागुणपर्याय अनेजीवतएकजछे अने माहारोजीवसिद्धस्वरुपएकजछे एहध्यानतेएकत्वपणे स्वरुपतन्मयपणे आत्मधर्मअनंतानो एकत्वपणेध्यान प णवितर्कपणेकेहेतां श्रुतज्ञानावलंबीपणे अप्रविचारके हेतां विकल्परहित दर्शनज्ञाननोसमयांतरे कारणता विनाएरत्नत्रयीनो एकसमयीकारण कार्यतापणे जेध्या नविर्यउपयोगनीएकाग्रता एएकत्ववितर्कअप्रविचारजा पवो एपायोबारमेगूणठाणेध्यावे एबेपायामांश्रुतज्ञाना वलंबीपणोछे पणअवधिमनपर्यवज्ञाननाउपयोगेवर्ततो जीवकोइध्यानकरीसकेनहिं एबेज्ञानपरानुजायीछेतेमाटे एध्यानथीघनघातिचारकर्मखपावेनिर्मलकेवलज्ञानपामे पछितेरमेगुणठाणेध्यानतरीकापणेवर्तेछे पछितेरमाने अंतेअनेचउदमेगुणठाणेएबेपायाध्यावे त्यांहांत्रिजोसूक्ष्म क्रियाप्रतिपातिकहेछेतेसूक्ष्ममनवचनकायानाजोगरुंधे शैलेशीकरणकरीअजोगीथायतेजेत्रप्रतिपातिनिर्मलविर्य अचलतारुपप्रणामतेसूक्ष्मक्रिया अप्रतिपातिध्यानजाण वं इहांसत्तायेपंचाशीप्रकृतिहति तेमाहेबहोतरखपावे हवे चोथोउछिनक्रियानिवृत्तिकहछे जेजोगनोरुंधकिधापछिते | रप्रकृतिखपावेनेअकर्माथायसर्वकर्मथीरहितथाय॥तेसमु छिन्नक्रियानिटत्तीशुक्लध्यानकहियो।एध्यानचारेकह्यां॥४॥ एनेध्यानकहिए॥६॥काउत्सर्गके०॥ प्रात्माथकिकायाने Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - Tamanna श्रीसम्यक्हार. ११९ श्रोसराववि तेनेकाउत्सर्गकहिए॥६॥ एषटविधअभ्यंतर तप तेथकिकायापणबलवानिनजना तथालोकतपसिजा ण्यानिपणभजना पणकर्मबलवानि--एहवोजेबाझ्यत्र भ्यंतरथईनेबारनेदेजेतपतेतपतुंफलतेनिर्जरा ॥ नीर्जरा के॥प्रात्मानेसर्वकर्मथिमुकीनेलोकनेतेसिद्धक्षेत्रनेविषे सिद्धपणेजइनेवसq एनेमोक्षकहिये तेमाटेहेनव्यजीवो जुत्रोअनुक्रमेसमकितनुंफलमोक्षथायएqश्रीनगवतीजी मांपणकहयुंछे माटेसर्धाशुद्धराखजो सर्धाहशतोसर्वका मबनिभावशे ॥ इतिथीसम्यक्हारग्रंथोमुनिश्वर श्रीहूकमचंदजीविरचित्तेसप्तमोध्यायपरीपूर्ण ॥ ७॥ दुहा । सप्तद्वारेकरीवर्णव्यो ॥ पुरणहूओप्रमाण तेअनुक्रमेवर्णवू ॥ सुणजोचतुरसुणजाण ॥१॥ प्रथमव्य वहारपूष्टिकरयो। बिजोमिथ्यानिखेद ॥ त्रिजुसम्यक्व एर्णव्यं ॥ जिहांकह्योबहूनेद॥२॥ देवतत्वचोथोकह्यो।जि हांजिनपडिमाविचार ॥ तत्वकोगुरुपांचमो ॥ छठोध मतेधार ॥३॥ सातमोसाधारणकह्यो।बहूउपदेशविचार एमसप्तद्वारेकरी॥ रच्योग्रंथनिरधार ॥४॥ ग्रंथसंखपकेहे वाभणी॥हतोएहविचार ॥ कारणजोगेअधिकथयो। ते हकहअधिकार ॥५॥ उत्तमविजयशिष्यए॥जसविजयग पजांपातेिहतणाश्राग्रहथकि।। विशेषकह्योविनांग ॥६॥ शशिग्रहखगबांणमा(१९०५)॥ ज्येष्टत्रिजशुक्लपक्षावार Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसत्यनार भृगुवर्णय बजांणागामनव्यक्षः19 स्वयंधोकर्ष | यो मुनिहूकमजसनाम ॥भविकजीवनाहितभाणिमाल तांअविचलठाम ॥८॥ जबलगेरविसशिरहो। तबलम होएग्रंथ ॥नामेसम्यक्हारते ॥ पसरोपूहक्सिथ॥९॥ - SERIES SakasREAMSARGANISAMRskasies इतिश्रीसम्यक्हारग्रंथोमनिश्री हूकमचंदजीकृतसमाप्त. SOFTEAMERIKings S READERSINDIATIME -- - - Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. श्रीवीतरागदेव नमः ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ ॥ श्रथ श्रीज्ञानविलासग्रंथ लिख्यते ॥ १५१ CCX8L-33 - ॥ दुहा ॥ प्रणमुपासजिणंदनें ॥ जेहछेसुखदा तार ॥ वंछीतपुर दूखहरण || वंदुवारहजार ॥ १ ॥ समरुसरस्वतिभगवती ॥ जिनवरकंठेनेह ॥ पसरती नव्यजीवने ॥ श्रवणेसुखदाईतेह ॥ २ ॥ तेहतणीकृ पाथकी ॥ करुकवितासार ॥ वचनरसालतेहमांठवुं ॥ श्रो सालेजोविचार ॥३॥ धर्मश्रर्थिजेहजीवडा ॥ तेहनेसुखदा ईहोय ॥ मुजपणानुभवएहछे ॥ श्रात्मज्ञानेजोय ॥४॥ तेकारणरचनाकरुं ॥ बालबोधसुखकार ॥ भेदघणाइहां वर्णव्रं ॥ खटद्रव्यविचार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ॥ कपुरहोवेतिउ जलोरे ॥ एदेशी ॥ राजग्रही उद्यानमांरे॥ समोसरयजिन सयचोत्री सप्रति सयदिपतारे॥ विरजिनेश्वर रायसो॥जा ग्रीजिन वंदोनवियणएह ॥ जेहथीनवनोछेह सोमागी जिन चंदोभवियणएह ॥ १ ॥ साधुमांहेसिरोमणीरे ॥ ल तपोभंडार सत्ताविसरजितवतीहारे ॥ पुछेप्रश्नसार # सो० २॥ विनयसहित गौतमतीहारे ॥ मुछेद्रव्यविचा विजियादत पर प्रदेश सांगोतमउदार ॥ खो Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ श्रीज्ञानविलास. ॥ द्रव्यकहिजेजेहनेरे॥ नविबदलेत्रणकालावस्तुताजे हमारहिएहजद्रव्याचार॥सो०४॥ तेहद्रव्यसंक्षेपथी दोयभेदकहेवाय॥रुपीरुपीजाणीयेतेहनानेदखट थाय॥सो०५॥ उपजेविणसेतेसहीरे ॥ थिरताभाववखा ॥संक्षेपेएमसमजियेरे॥द्रव्यपणुतेजाण॥सो०६॥खटभे दहवेवर्णवुरे ॥ तेसुणजोधरिकान ॥मुनिहुकमजाणेद्रव्य जेरे॥ तेहलहेबहुमान॥सो०७॥ढालपहेलीसंपुर्ण ॥ ॥हा॥त्रपतत्वनासोधथी॥ व्यवहारसमकितजोय॥ तेथिमुक्तिलहेनहि ॥कारणमुक्तिनुहोय॥१॥ द्रव्यश्रन्या सकरवाथकी ॥ निश्वेसमकितजाण॥ नतराध्येननाखिय तेहभविमनाण॥२॥तेकारणनव्यप्राणिया॥ करोद्रव्य अभ्यास ॥ श्राभवपरनवसुखघणु ॥ पामोमुक्तिनिवा स ॥३॥ढाल ॥२॥ नदिजुमनाकेतीरउडेदोयपंखियांएदे शीनाखेविरजिणंदसूणोभव्यप्राणिया ॥ द्रव्यसमस्या विणनेहरह्याभवरणिया ॥ तेकारणतुमेएहसमजोचितध री॥द्रव्यतणोविचारअनुनवखरोकरी ॥१॥ प्रथमधर्म द्रव्यविजोधर्मकह्यो ॥ त्रिजोआकाशजाणचोथोकाल लह्यो । पुदगलद्रव्यतेजाणपांचमोभाखियो। छठोजिव तेजाणज्ञानियेदाखियो।२॥ भाख्याद्रव्यएछोय तमेचित मांधरो॥तहमांश्रास्तिकायपांचएकदरेकरोतेहतणोवि | चार आगेकेहेशंसही ॥कालतणोप्रभाव जाणोचितमांव Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - aamadaniodesLa2DDIRAL श्रीज्ञानक्लिास. १५३ ही॥३॥ गुणलक्षणने पक्षप्रमाणतेनापशुं॥नयनखेपा संजूत कहिनेदाखशुं॥ कारककेहेशु खटसप्तनंगीसही॥ चउभंगीतेमजाण अनेकनेदेग्रही ॥४॥ प्रत्येकेप्रत्येके तेह श्रागेतेभाखशुं॥ तेहमांअनुभवसार श्रात्मनोदाखशु ॥ मुनीहूकमनाखेएह अनुनवनित्यकरो॥ तजिपरमादने दूर शिवरमणीवरो॥५॥ ॥ ढालबीजीसंपूर्ण ॥ दुहा॥धर्मद्रव्यहवेवर्णवं ॥ जेहधुरेकेहेवाय ॥ श्रोतासु जोकानदेई ॥ भेदअनेकलेवाय ॥१॥ ढालत्रीजी राग बंगाली ॥ धर्मद्रव्यभाख्योछेजेह॥ गुणचारेकरीशोनेते ह॥नविसांनलो ॥ परजायच्यारेकह्यातेसार॥ अनुक्र मेनाखूविचार निवि० १॥ गुणत्रमूर्तिपेहेलोजेह ॥ तस बिचारभाखंगूणगेह॥ नवि०॥ वरणपांचदिशेनहितास। तेविनाकेशिमूर्तिनिआश ॥नवि०२॥ गंधरसफरसनहि जेह ॥ संस्थाननावदिशेनहितेह ॥नवि०॥ वर्णविनानवि रुपिहोय॥ संस्थानविनामूर्तिनविकोय ॥नवि०३॥प्रथ मगुणथयोएसिध॥ विजातणितुमेजांणोरीद्धानविन हिचेतनातेअचेतनजोय ॥ ज्ञानादिकरिडीनहिसोय ॥न वि०४॥प्रक्रियेगुणतिजोजांण ॥ व्यवहारनयेतेहवखारा अलवि०कोइकहकिरियातेनिषेद॥तोक्यमसाज्यकरेछेउ सेदानवि०५॥ लेहनकहियेसांनलवणासाज्यतमोतं सराजेसेंणाभविसाज्यतेस्वनाविकहोय। जलतार - - - Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ श्रीज्ञानविलास. एतेल दुबराजो ||वि० ६ ॥ स्वभाविककिरियानविकि ध॥ किरियातोविभाविकलिन्द्व ॥ नवि ० ॥ चोथो गुंकरेचा लतांसाहाय ॥ जडचेतनने एहिजन्याय॥नवि० ७॥ मींन ज्युंचानेजलमांहे ॥ पणनविचा लेवेलुत्र्त्रहे॥ नवि ०॥ मींन पेरेजडचेतनजाण ॥ जलपेरेधर्मास्तीमांन ॥ भवि० ८ ॥ एगुणचारे स्वनाविकजांण ॥ संखेपेएभाष्यंमांन॥भवि० ॥ हवेकहूपरजायच्यार ॥ पेहेलोखंधस्वरुपउदार ॥ भवि० ९॥ लोकाकाशप्रमाणे जेह ॥ खंध एकभाख्योछेतेह ॥भवि० उरधप्रधोत्रिछादिकजेह ॥ कल्पीतदेशकहावेतेह ॥ न वि०१० ॥ लोकाकाशनाजे परदेश | प्रदेशेप्रदेशेतेहनोप्रदे श ॥ भवि० ॥ प्रदेश केफरसछेसात ॥ श्रापत्रापणिलेोवि जात ॥ भवि ० ११॥ गुरुलघुचोथोपरजाय ॥ विस्तारपं न्नवणारथाय ॥ भवि०॥ हांनिवृद्धिगवेखी जेह ॥ गुरुलघु नाख्येोछेतेह ॥ नवि० १२ ॥ सुमतिग्रंथे भाख्युंतेह ॥ तेह मांहेनविकांइसंदेह ॥ नवि ॥ गुणपरजायएनाख्यासार ॥ मुनि हुकमे को विचार ॥वि०१३॥ ढालत्रिजि संपूर्ण ॥ ॥ दुहा ॥ धर्मद्रव्यएवर्णव्यो | हवे श्रधर्मास्तिकाय॥ श्रा काशकालद्रव्यनो ॥ केहेवामनउछाय ॥ १ ॥ ढालचोथी॥चे तनचेतोरेचेतना एदेशी ॥ धर्मद्रव्यरुपिछे॥ श्रचेतन केहेवायरे ॥ किरियापतेहमांनही॥ गुणत्रण एथायरे ॥ श्र धर्मद्रव्यरुपीछे ॥१॥ चोथो गुणहवे जाणजो । थिरता Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १५५ भावेसाररे।जिवपुद्गलनेतेदिए॥ विसांमोमनोहारत्र २॥ वाटेवेहेतापंथिया॥ग्रिष्मकालेजेहरे ॥ देखियक्ष उनारहे । तेमजडचेतननेएहरें ॥०३॥ परजायच्यार पूर्वपेरो॥ इहांतेपणकेहेवारे ॥आकाशद्रव्यहवसांनलो॥ गुणत्रणेएमलेवारे ॥१०४॥ चोथोगुणहवेतेहनो॥ श्रव गाहनातेआपेरे।जिवादिजेद्रव्यछे॥ श्राकाशउदरमाथा परोप० ५॥ निंतमांहिज्यमखीलीने॥ मारगापेसार रो॥ एमईहांमननावजो॥चोथोगुणउदाररे॥१०६॥ लो कालोकप्रमाणए। खंधजेहनोसाररे। लोकाकाशतेदेश छे॥ प्रदेशअनंताधाररे ॥१० ७॥ अगुरुलघुपुर्वपेरे॥ हवेकहुकालविचारो॥ गुणत्रणेपुर्वपेरे॥चोथोवरतनासा ररे॥ ८॥ नविवस्तुपुराणीकरे।। एहिजकालस्वभाव रो॥ गयोकालअनंतजे॥प्रथमप्रजायचितलावरो०९॥ अनागतअनंतछे॥ वरतमानसमयएकरे। अगरुलघुचो थोलह्यो॥ एहिवचनविवेकरे ॥१०१०॥ अरुपिएवरण व्याद्रव्यच्यारेउदाररे॥ हवेरुपिद्रव्यवर्णव ।। तेसणजो अधिकार॥०११॥ आगेआगेज्ञाननो। बहुविचारक हायरोमुनिहूकमकहेद्रव्यथी। शुकलध्यांनतेथायरोत्र. १२॥ ढालचोथीसंपूर्ण ॥ दुहा ॥ पुनलद्रव्यहवेवरण ॥ जेहरुपीकेवायसर बजगतनेबावरे ॥ कहअधिकारबनाय ॥१॥ ढाल ५मी - -- Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीज्ञानबिलास. - । देखोगतिदइवनिरे ॥एदेशी॥ पुद्गलद्रव्यहवेवर्णवुरे।। जे हरूपीकेहेवाय॥नेदघणातसनाखियारे॥ सास्त्रमाहिसो हायसोनागिजनसांनलोरे॥ पुद्गलत पोस्वनावअनुभ वचितधरोरे॥१॥ रक्तादिकतिहांवर्णछेरो। मधुरादिवलि रसासुरनिदुरभिगंधछेरे ॥ सीतादिकफरस ॥सो० २॥ परिमंडलादिकजांणियेरे॥ सस्थांनपांचेजास॥ मुर्तिपणुं तेथीथयुरे ॥ रुपिपणानोविलासासो० ३॥ जोगत्रणतेपु द्लछरे॥प्रांणप्रजातिधारालेश्यापणपद्गलकहिरे॥ सं ज्ञासोलनिहार ॥सो०४॥ तनतामनतावचनतारे । जड ताजडसंकेत॥संघणसंस्थांनजाणियेरे । तेसविपुद्गलखेत ॥सो०५॥ इंद्रिअणेंद्रिपणकहिरे॥ शुनाशुभतेजांण॥कि रियासर्वेपुद्गलदशारे॥ पुन्यपापवखांण ॥सो०६॥ वर्ग णाआठेजिवनेरे॥ वलगिछेवलिसोयातेपणपुद्गलजांणि येरे। करेगतागतजोय ॥सो०७॥ जिवविनापणअवरछेरे अजिवखंधअनेक ॥ द्विपरदेशियीलहिरे॥ अनंतप्रदेशी छेक ॥सो०८॥ इत्यादिकबहनदीरे ।। पुद्गलतणुपरिमां णासंखेपेइहांवर्णव्युरे।ग्रंथेबोहोलुवखांण सो०९॥गुण च्यारेहवेनाखियेरे। पुद्गलतणाप्रसिध॥ मुर्तिगुणपेहेलो कह्योरे ॥ संस्थांनतणिएरिद ॥सो०१०॥ अचेतनबिजो कह्योरे। त्रिजोकिरियाजाण॥प्रणामिकपणुछेसहिरेते हथिकिरियावखाण।। सो०११॥गुणचोथोहवेवर्णवरे॥ rwareMINSmal Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीझानविलास. १५७ सडणपडपचिदंश । मलणविखरणस्वभावछेरे॥ पडण मलाकंश सो०१२॥ परजायच्यारेतेहनारे ॥ सांभ लामोधरिचित॥खंधपरजायपेहेलोकह्योरे॥अनेकछेअनि वासो०१३॥ देशकांइकल्पवोरे ॥ खंधखंधप्रत्येजाम जेहचंतारिग्रहिएरे॥ तेहनोदेशवखाण ॥ सो०१४॥ प्रदे शतेहनाजाणिएरे। द्विपरदेशीथीजोय ! अनंतप्रदेशील गे।प्रदेशकेहणिसोय ॥सो०१५||चोथोपरमाणुकह्योरे॥ छटानेताहोय॥ तेताइहांग्रहणकरोरे। चोथोपरजायसो य॥ १६ सो०॥ अगुरुलघुसहितभाखवारे ॥ एच्यारेपर जाय॥शिष्यकहेस्वामीसुंणोरे॥ शंकामोहोटिथाय॥सो १७॥ पुर्वद्रव्यमांजुदोकटोरे ॥ अगुरुलघुपरजाया। श्रां मांपरजायगण्योनहिरे॥ चारमाहिसमाया।सो०१८॥ते कारणमुजनाखिएरे॥ कृषाकरीनेदेव।। गरुकहेतुंमेसांभ लोरे॥मोहदशादुरेखेवासो०१९॥ हांनिहद्दीतहमांनहि रे॥ पुर्वद्रव्यमांजाण॥ अपेक्षितद्रव्यथिरे ॥ करिएछिएते मान । सो०२०॥ तेकारणजदोलह्योरेतेहमानबिस माय॥हांनिदिएहमांसहिरो। गुणपरजायमांथाया|सो २१॥ कारणलेगोलह्योरे ॥ समजोशीष्यसुजाण। मुनि हकमपुङलदशारे ॥ तजतांकोडकल्याण ॥ सो०-२२॥ ढालपांचमिसंपूर्ण गाहामाप्रजिवांचेवरफच्या जडताजेहकहेवाय कठोर DANCE Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ श्रीज्ञानविलास. व्यहवेवर्णवु जेहछेचेतनराय॥१॥ विणातमजेहजेहक था निष्फलजाणोतेह श्रात्मकथाअनुनवसही आपेशि वपुरगेह॥२॥ तेकारणत्रातमकथा नाखुछुअभिराम मुझ मनउलटछेघणो पांमवावंछीतठांम॥३॥ तेकारणश्रोता तुमे सांनलोथईसावधान तनमनवचनएकाग्रहे गुरुवच नेधरिकान॥४॥श्रोतावक्तागुणलहे पांमेवंछीतधाम आ मद्रव्यचरचाथकी शुकलध्यांननुठाम ॥५॥ ढाल ६ठी॥ देशीमोतीडानी॥ छठोद्रव्यजिवतभास्यो चेतनालक्षणे करिनेदाख्यो साहेबाबातमसुखकारी मोहनाज्ञानिगुण घारी जिवनासमजोन।एश्रांकण॥अवेदिअछेदिनाख्यो अनोगिजोगिदाख्यो।सा०१॥ अवर्णगंधिकहिए अरसअफरशीलहिए अक्रोधिअमांनिजाण अमाइलो निवखांण सा०२॥ अरागिअद्वेषीजेह अकंचनिदिठोगु गगह अमोहिअद्रोहिकहिये अलेशीगुणताहरेवहिये ॥ सा०३॥ प्राणएकेदिसेनहिताहरे परजाप्तीएकनहिधारे अमुर्तिअरुपिकहिये अक्षयपदगुणताहरेलहियो।सा०४॥ अचलअविनाशीतुंहिस्वामि श्राद्यअंततुहिअनांमी अयो निअजन्मीकहिये अशरीरीत्रातमलहिये ।सा०५॥ अ जरांमरपदताहरेसोहे तेदेखिनविनांमनमोहे इत्यादिक तुजगुंणअनंत एकजिभेकेमनाखेसंत ॥सा०६॥ तोपण संखेपेइहांनाखु बालजिवनेहेतकरिदाख तेमाहिमुख्य - Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १५९ - गुणचार तेहकहसुंणोअधिकार ॥सा०७॥ प्रथमगुणज्ञा. नजजाणो अनंतुलोकालोकप्रमाणो सुरजपेरेकरेउद्योत जेहनिभाखिअनंतिजोत ॥सा० ८॥ विजोगुणतेदर्शन भाख्यो सामान्यउपयोगकहिनेदाख्यो समयअंतरउप योगकहावे विशेषज्ञानगुणतेथावे ॥सा० ९॥ तीजोगुण चारित्रकहिये ज्ञानदर्शनमाहिरहिये थिरतानावअनंतो जेह तेगणनाख्योचारित्रएह ॥सा० १०॥ विरजअनंतु सोहियेसार गणचोथोकह्योमनुहार इहांचरचाबोहोली जणाय तेतोत्रागलकेहेवायासा०११॥अव्याबाधपेहेलो परजाय बाधापिडातिहांनकेहेवाय रोगसोगतिहांनवि होय होयेतोविनावेजोय ॥सा०१२॥ अमुर्तिपरजायबि जोलहिये संस्थानतणोअनावकहिये वर्णादिदिशेनहि तास तिहांरुपिनिकेवित्रास ॥सा० १३॥ अणश्रवगा हत्रिजोकेहेवाय शिष्यकहेकेमहेवुथाय शिद्धनेपणअवगा हनाभाखी तुमेतोइहांतेनविदारखी।सा०१४॥ कहेगुरुसां ई अवगाहनविचारचितलाई जेहअवगाहनसी बनेकहिये तेतोपुदलनावथीलहिये ॥सा० १५॥ कहेशि ष्यतिहांपुगलनांहि केममनायकहोनेसांहि सांभलशिष्य तुंवातएह अवगाहननेदकहछुतेह ॥सा० १६॥ जिवत्र नंताछेसंसार अवगाहनप्रसंख्यतेधार जेहजिवरेहेतोनि गोदमांहि तवत्रवगाहनाछोटीतांहि सा०१७॥ पांम्यो ma - Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. - रूपपंचद्रीनुजारे तवअवगाहनामोटीधारे एमभवनवफ स्तांतेजाणो अवगाहनाफरतितेवखांणो ॥सा०१८॥ व लिश्रवगाहनासिद्धनेजेह सोपणएकनावनहितेह जघन्य आंगुलबत्रिशथिलहिये उतकष्टेधनुषत्रणसेकहियो।सा० १९॥ धनुषतेत्रीशउपरजाणो प्रांगुलबत्रिसप्रमाणो अ वगाहनामध्यनावेजेह असंख्यभेदकह्याछेतेह।सा०२०॥ जेहछंडयुसंसारमांहि शरिरप्रमाणेलहियेतांहि नागएक पोलारनोछंडी दोयभागअवगाहनमंडी ॥सा० २१॥ पु गलथिअवगाहनसिद्ध पणस्वनाविकनविकिध स्वना विकअवगाहनकहिये तोसरवनिएकजलहिये ॥सा०२२॥ एकभेदतोदीसेनहि तेथीत्रणअवगाहनसहि अगुरुलघु चोथोपरजाय एचारेपरजायथाय ।सा०२३॥गुणच्यारे द्रव्यनादाख्या. परजायचारेसाथेनाख्या खटद्रव्यनाते जाणो संक्षेपेइहांवखाणो ॥सा० २४॥ जिवस्वरुपएभा संयुसार जेहथकीलहियेनवपार मुनिहकमहवेत्रागेकेहे से साधरमिकपणुउल्लासे।सा०२५॥ ढालछठीसंपूर्ण।। दुहा॥खटद्रव्यएवर्णव्या वर्णव्योगुणपरजाय हवेसा धरमिकपणुंकह अन्योअन्यसोहाय॥१॥ ढालसातमी॥ तिरथनिाशातनानविकरिये। एदेशि।। साधरमिकपणुं द्रव्यनुएमभाख्य) सास्त्रेकहिनेदारघु समजुएचितमांस ख्युतमेसमजोएम साधरमिकपणुंद्रव्यनुएमनाख्यु॥॥ DECSTF OM Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीज्ञानविलास. १६१ अगुरुलघुपरजायएतुमेजाणो सरखोसहूद्रव्यमांत्राणों अरुपिगणवखाणो पांचद्रव्यमांएह ॥सा० २॥ एगुणन थिपुद्गलविषेएमजाणो अचेतनपांचनेमानो जीवमांएनवि | कहाणो एमजाणोवात ॥सा०३॥ किरियागुणछेदोयमां एमजाणो जिवपुद्गलमांहिवखाणो व्यवहारनयपरमाणो नहिचारमांसायासा४०॥चलणगुणधर्मास्तिमांएमलहि ये बिजापांचमांनविकहिये अधर्मथिरगुणवहिये नहि पांचमांसोय ॥सा०५॥ अवगाहनागुणाकाशमांतुमेधा रो तेपांचमांनविविचारो वर्तनागुणकालमांसारो नहि पांचमांकोय॥सा०६॥मलणविखरणगुणपुद्गलमांएभाख्यो | मुर्तिपणेपणदाख्यो जेहनिग्रंथेदिसेसाख्यो पांचद्रव्यमां नांहि॥सा०७॥ ज्ञानादिकगुणचारछेजेकहिये तेतोजीव जमांहिलहिये बिजेद्रव्येनवीकहिये तेतोचेतनसार|सा. ८॥अमुर्तिअचेतनअकिरिये परजायच्यारेभरिये त्रणेद्रव्य अनुसरीये प्रथमनाजाणासा०९॥त्रगुणेकरिकालद्रव्य छेसरखो जिवपरजायजुदानरखो सरवेनेगारह्यापरखो लोकाकाशमांही।सा०१०॥मुलगुणएकएकनोनविमलतो अन्योअन्यनविनलतो निजस्वभावनधरतो एहवोद्रव्य स्वभावासा०११॥साधर्मिछद्रव्यनुकहिनाख्यु मुनिहूक मेदाख्यु समजुयेचित्तमांराख्यु जेहनेवलभज्ञान सा. १२॥ ढालसातमीसंपूर्ण॥ RAMERImmaADMAATMus ' २१ - Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ थीज्ञानविलास. ॥दुहा॥ साधरमिकपणुंभारखीयुं द्रव्यछोयनुजांण हवे गुंणद्रव्यनावर्णवु श्रोतासुणोएकतांन ॥३॥ ढाल ८ मी एतिरथतारु ॥ एदेशि ॥ निश्चेनयनेमतेनाखू छद्रव्यप्र णांमिकदाखुरे एगुंगछेवारु वेहेवारनयेचारनेभाख्या जिवपुदगलकहिनेदाख्यारे एगुंणछेवारु ॥१॥ पांचद्रव्य अजिवकहावे एकचेतनातेजिवथावरे॥ए०॥ छयेद्रव्यमां पुद्गलरुपी बिजापांचेअरुपिरे॥ ए० २॥ छयेद्रव्यस्व प्रदेशिभाख्या निश्चेनयेएदाख्यारे॥ए॥ व्यवहारनयेपां चजलहिये कालप्रप्रदेशिकहियेरे ॥ ए०३॥ धर्मअधर्म असंख्यप्रदेशि आकाशअनंतप्रदेशिरे।ए०॥असंख्यप्रदे शीजीवकहावे पुद्गलपरमाणुावेरे ॥ ए० १॥ अनंत प्रदेशिखंधकहावे एहवाखंधनंताहोवेरे ॥ए०॥ तेपण सर्वेद्रव्यमांगणवा स्वप्रदेशीभणवारे॥ ए०५॥ धर्मअ धर्माकाशकेहेवे एकएकद्रव्यतेहोवेरे ॥ ए.॥ पुद् गलकालनेजिवकहिये तेहनाद्रव्यअनेकलहियेरे॥ए. ६॥ आकाशसर्वेद्रव्यनुनाजन तेमांहिवसेपांचमाहाज नरे॥ए०॥ एकखेत्रनेपांचछेखेत्री एकठावसेछेमित्रिरे॥ ए० ७॥ निश्चेनयेकरिनेजांणो छयेद्रव्यसक्रियमाणो रे॥ ए०॥ व्यवहारनयेचारअक्रिय जिवपुद्गलनाण्या सक्रियरे॥ए०८॥निश्चयनयेकरिनेजोतां छयद्रव्यनि त्यहोतांनए॥अथवाछयअनित्यकहिये एमनिश्चयनय Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १६३ थिलहियेरे ॥ ९०९ ॥ व्यवहारनयेकरिएमभाखुं चार द्रव्यनित्यदासुंरे ॥ए ॥ जीवपुद्गलत्रनित्यकहावे एमन यभेदसोहावेरे ॥९०१०॥ सर्वद्रव्यनुसार तेजांणो कारण एकजिववखांणोरे ॥९०॥ पांचद्रव्यमाकार नहि तेथी कारणीकह्यासहिरे ॥ ए० ११ ॥ कर्त्तीपणुएकजिवमांना ख्यु तेतोनिश्चयनयेदाख्युरे ॥ ० ॥ जिवपुद्गल दोहिकर ता व्यवहारनयेमनधरतारे ॥९०१२॥ सर्वव्यापिकाका शजांणो पांचद्रव्यलोकप्रमांणोरे ॥ ए० ॥ एछ्यद्रव्यए कठारेहेवे त्रापत्रापणीसत्तायेहोवेरे ॥९०१३ ॥ एगुणतो विचारवासरखा बहूश्रुतपासपरखारे ॥० ॥ मुनिहूकम कहे बहुश्रुतशेवो जेथीपांमोज्ञानगुणमेवोरे॥९०१४ ॥ ढाल श्राठमिसंपुर्ण. ॥दुह॥ स्यादवादहवेनाखीयें जिनसासननोमर्म पक्ष श्राठइहां वर्णव जेहथिजायदूकर्म ॥१ ढाल ९ मी ॥ धन धनसंप्रति साचोराजा || देशि ॥ द्रव्य सर्वमांपक्षभाख्या नित्यादिकजेहच्याठरे तेहस्वरुपसमजेकोइविरला जेहनि दुरमतिनाठरे स्यादवादजिनवांणिवखाणि श्रोतासमजों सुजाण ॥ एत्रांकणि॥ नित्यानित्यपक्षतेनाखुं खटद्रव्य मांसाररे प्रथमधर्मद्रव्यतेकहिये जेहना गाळेचाररे ॥ स्या • २॥ खंधपरजायपेहेलोकहिये तेसविनित्यकहायरे छेकत्रणे नित्यभाख्या धर्मविचारएमथायरे ॥ स्या ०३॥ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'श्रीज्ञानविलास. अधर्मद्रव्यनागुणचारए वलिएकपरजायरे बाकिरणे अनित्यनाख्या परजायएमसोहायरे ॥स्या० ४॥ पुर्वप्र माणेश्राकाशद्रव्यने कालमांनित्यगुणचाररे परजायचार अनित्यकहिये पुद्गलनित्यगुणचाररे ॥स्या०५॥ परजाय चारअनित्यभाख्या जिवनाजेहगुणचाररे त्रणपरजायस हितनित्यकहिये अगुरुलघुअनित्यविचाररोस्या०६॥एक अनेकपक्षहवेनाखु खटद्रव्यमांसोयरे धर्माधर्मद्रव्यनोखंध जेह एकएकतिहांहोयरोस्या० ७॥ लोकप्रमाणेखधतेभा ख्यो गुणपरजायप्रदेशअनेकरे लोकालोकप्रमाणेजाणो आकाशखंधछेएकरे ॥स्या० ८॥ गुणअनंतपरजायत्रनं ता प्रदेशअनंताजाणरे कालद्रव्यमांवर्तनालक्षण एक जछेगुणखाणरे॥ स्या० ९॥गुणपरजायनेसमयजेहवलि तेतोअनेककहायरे अतितअनागतकालनासमय तेतोत्र नंताथायरें ॥स्या० १०॥ तेमांहिवर्तमानकालनो समय एकजहोयरे पुद्गलद्रव्यनुएकपणुजेह नामथकिजेहजोय रे॥स्या० ११॥पुद्गलपरमाणुअनंता अनंतखंधकहायरे तेमाहिपुद्गलपणुएह एकजनियमथायस्या० १२॥गु परजायअनंतानाख्या एकपरमाणुमाहिरे स्यादवाद मंजरीयेजोजो विशेषविचारछेतांहिरे ॥ स्या०१३॥ जीव अनंताछजगमांहि असंख्यप्रदेशिसंतरे प्रत्येकेप्रत्यकेजि वनाजाणो गुणपणछेअनंतरे ॥स्या ०१४॥ परजायअनं - Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १६९ तावलिजाणो एवाबोलअनेकरे जिवपणतमांहिजोतां दिसे छेकांईएकस्या०१५॥एवांवचनसुणीनेबोल्योशिष्यविन यकरितांहिरे स्वामीतुमेजिवसरखोनाख्यो दिशेजुदो श्रांहिरोस्या० १६॥ एकाजवतोसिद्धपोहोचो पांम्योसुख अनंतरे एकजिवकर्मनेवशपडीयो नाव्योदूःखनोत्रंत रेस्या० १७॥ एमजोतांतेएकननासे जुदादिसेसर्वरे अममनमांशंकाएमोटि केमनाखोएकजद्रव्यस्या०१८ कृपाकरिगुरुउत्तरनाखे समझोचित्तमोझाररे जिवसर्व कर्मखपावी पांमछेनवनोपाररे ॥स्या० १८॥ निश्चयनये करिनेजोतां जिवसर्वेसिद्धथायरे सत्ताजोताएकजदिशे ते थिएककेहेवायरे ॥ स्या० २०॥ शिष्यकहेजोसत्ताएकछे तोअनविसिद्धथायरे पणअभविकोईमक्षेनजावे तोकेम एककेहेवायरे ॥ स्या० २१ ॥ शिष्यसंदेहनिवारवाकाजे कहिशुंतासस्वरुपरे मुनिहूकमकहेद्रव्यस्वनावनु आगे कहिशुरुपरे ॥ स्या० २२॥ ढालनवमीसंपूर्ण ॥ ॥दुहा॥एकानेकस्वरुपमां श्राव्योजिवविचार नव्यत्र नव्यनोभाखशुं स्वभावतेएकाकार ॥१॥ ढाल १० मी॥ नवितुंमेवंदोरेसुरीश्वरगछराया ॥एदेशी॥ भवितुमेसमजोरेजिवस्वरुपएसाचु भव्यभव्यएकजक हियेमतकोइजाणोकाचु भवितुमेसमजोरेजिवस्वरुपएसा च॥२॥जेहजिवनिगोदमांवशिया तेमवलिसिद्धनाजांणो Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ श्रीज्ञानविलास. तेसविएकस्वनावजकहिये नेदत्रणेवखाणो॥ नवि०२॥ नव्यत्रभव्यनेनवाभवि तेहतणोविचार कारणजोग्यसां | मग्रीपामी पलटेभव्यनिरधार ॥न० ३॥ सामग्रीअना| विकरिने भव्याभव्यतेजाणो पामिसांमग्रीजेहनविपलटे ते अनव्यकहांणो॥भ० ४॥ जिवसरवअसंख्यप्रदेशि लो काराप्रमाणो ओछोधिकोएकनहोवे एमस्वरुपतेजाणो॥ भवि० ५॥ ज्ञानादिकगुणचारेजाणो जिवसरवमांसरखा लक्षणस्वभावएमजकहिये ज्ञानिवचनेपरखा।भवि०६॥ कांइसीद्धमांकांइसंसारि तेहस्वरुपहवेनाखु आपआप णिविर्यशक्ति फोरवाविणतेदाखु ॥भवि० ७॥ पदरि हंतपाम्याजेहनर कर्मशत्रुहणिने शिष्यकहेइहांशंका मोटि कर्मपणानेभणीने ॥ भवि० ८॥अरिएहवाशब्दश नो हणतोअरिहंतकहिये त्रिजंचादिकपणजाणो वेहेर पोतानुलहिये ॥ नवि० ९॥राजारांकपणतेसर्वे वेहेर पोतानुसनारे आपापणाशत्रुहणेछे अरिहंतपदतेधा रे॥नवि० १०॥ एमजोतांसर्वेतदिसे अरिहंतपदतेसा चो तेहशब्दमांकमनदिशे केमखोटइहांराचो ॥भवि०॥ ११॥ कृपाकरिहवेगुरुजिबोल्या सांभलशिष्यसुजाण ते कह्यातेसरवेमुढ करेस्वजातिनिहांण भवि०१२ स्वजाति निघातकरचाथी अरिहंतपदनविथाय विजातिनोघातक | रवाथी अरिहंतपदकेहेवाय ॥भवि० १३॥ शिष्यकहेत्र 3 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १६७ मेनविजाणु स्वजातिविजातिविचार कृपाकरिने मनेस मजावो जेमजाणुनेदमनोहार ॥ भवि० १४ ॥ कृपाकरि गुरुजिहवे बोल्या सांभलभेदउदार मुनिहूकमकहेाग लकहिशुं स्वजातिविजातिविचार ॥ नवि ०१५॥ ढालद शमिसंपूर्ण ॥ ॥ दुहा ॥ नव्यभव्यस्वरुपमां विचरचासार रिहंतपद कारणे स्वजातिविजातिविचार ॥ १ ॥ ढाल ११ मी ॥ सिद्धाचलसिखरेदिवारे प्रादेश्वरश्रलबे लोछे ॥ एदेशी ॥ स्वजातिराखिथयानाथरे अरिहंतपद तुमेपूजोने ए प्रांकणी विजातिनेदेखाड्यो हाथरे श्र० स्वजातिविजातिजोगेरे • चौभंगिउठिरंगेरे ॥ श्र० १ ॥ स्वजातिविजातिलहिशंरे ० प्रथमतसस्वरुपकहिशुंरे अ० पछीचउगिनाखिशुंरे ० तसभेदविवरिनेदाखि शुंरे ॥ २॥ सरखेवइभवेजेतारे • स्वजातिकहिये तेतारे • ज्ञानादिकगुणेनरियारे • जीव सर्वे तेवरि यारे ॥ ०३॥ लक्षणस्वभावतेसरखारे • तेस्वजाति नरखारे • तेहथिविपरित जेहदेखोरे • विजातिपद तुमेखोरे ॥ ०४॥ जिवेजिवस्वजातिजाणोरे श्र० पांचद्र व्यविजातिमानोरे ग्र० तेहनिचउमंगिनाखुरे श्र० नामा दिककाहिने दाखुरे ॥ ०५ ॥ श्रापत्राणिजातमांवेहेररे • हणिने करताकेहेररे • तेप्रथमनंगतेजाणोरे श्र० ० ० Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ श्रीज्ञानविलास. स्वजातिस्वजातिवखाणोरे ॥०६॥ जेहपुद्गलद्रव्यनेह पतारे अ.स्वजातिरखोपुकरतारे अ.भंगबीजोतेहिजा णोरे अ. स्वजातिविजातिमानोरे॥०७॥ पुद्गलथिजि वहणायरे अ० जगतमांएमजपायरे अ.विजातिस्वजा तिजाणारे अ०नंगत्रिजोएहिमानोरे॥१०८॥ जडजड प्रतेहणतारे अ० माहोमांहेक्षयकारे अ. विजातिविजा तिमानोरे अ.नंगचोथोएवखाणोरे॥१०९॥ नंगचार माहितुमेजाणोरे अनंगत्रणेतुमेनवखाणोरे अभंग ए कजअरिहंतकहियेरे अबिजोनांगोतिहांलहियेरे॥ ॥१०॥ नामचारेइहांनाख्यारे अ० संक्षेपेकहिनेदाख्या रे अ० श्रागेविस्तारेकहिशंरे अ. नेदघणाइहांलहिशेरे ॥ अ०१३॥ भावार्थजेरुदयेधरशेरे अ० श्रोतातेसमकि तवरशेरे अमुनिहुकमज्ञानएसाचोरे अप्रत्यक्षहिरोजा चोरे॥०१२॥ढालअगित्रारमिसंपुर्ण॥ ॥दुहा ॥स्वजातिविजातिवर्णव्या वर्णव्यावलिचउन्नं ग वरणवकरुचउनंगनो रुदयधरिबहरंग ॥१॥ ढाल १२ मी॥ कोयलपरबतधुंधलोरेलाल ॥ एदेशि ॥ स्वजातिस्वजातिवरणवुरेलाल पेहेलोभांगोजहनविहाण येरे हणतांकर्मबंधहोयखरोरेलाल दुरगतिजावेतेहन विहणियेरे स्वजातिस्वजातिवर्णवुरेलाल ॥१॥ वाघमंजा रीदिपडारेलाल पन्नगादिकबहुजातिानवि०॥ सारंगम Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १६९ सादिहणेरेलाल मेंडकादिबहुजातानवि स्व०२॥विजा तिजाणेअज्ञानियारेलाल ज्ञानिजाणेस्वजात नविज्ञा निवचनथीपोलखोरेलाल जिवेजिवछेजात ॥नवि स्व. ३॥ जिवेजिवनेहणेरेलाल क्षुधावेदनिनेकाज नवि० स्व जातिस्वजातिशुहणेरेलाल तेनमेचउदराजनवि स्व. ४॥क्षुधावेदनिपुद्गलदशारेलाल तेतोविजातिहोय नवि० तेकारणजिवनेहणेरेलाल तेस्वजातिजोयानवि स्व०५॥ धनरमणिनिलालचेरेलाल प्रथविप्रमुखजाण नवि० रा ज्यलेवावलिअन्यतणुरलाल तेहथिएअनाणानवि स्व. ६॥अथवावेहेरपुर्वतणुरेलाल पुत्रपितानुसंभार नवि. अथवाअनागतकालनुरेलाल अगमबुद्धिविचार ॥ नवि स्व० ७ातेकारणजिवनेहरोरेलाल तेसुगोविचार नवि० धनतोछेजडदशारेलाल तेविजातिधार निवि स्व० ८॥ कृत्य अकृत्यनविगणेरेलाल रमणिरसविरुद्ध नवि० वि षयरसपुद्गलदशारेलाल साचिएहिजबुद्धानवि स्व० ९॥ प्रथविपणविजातछेरेलाल राज्यमिश्रनांगोमान नवि० प्रथविधनादिविजातछेरेलाल मनुष्यादिस्वजातिजापान वि स्व०१०॥राजाराजादिस्वजातछेरेलाल देशविजाति होय नवि० विजातीनेकारणेरेलाल स्वजातिनेहणेसोय ॥नवि स्व० ११॥ देशधनरमणिसहिरेलाल नोगविजा तितेजाण नवि जिवनाभोगमांतेनहिरेलाल पुद्गलनोग - - Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० . धीज्ञानविलास. इहांमांन ॥नवि स्व. १२॥ ज्ञानादिजेगुणछेरेलाल तेह नोनोगीजिव नवि० पुद्गलनोगजिवनविलहेरेलाल एम समजोसदिव निवि स्व० १३॥ इत्यादिकारणथकिरेला ल किधोजिवसंहार नवि०शत्रुनेमित्रगण्योरेलाल तेमुर खसिरदार ॥नवि स्व०१४॥ विजातिभोगनेकारणेरेला ल किधिस्वजातिनिहांण नवि० स्वजातितेमित्रदशारे लाल विजातितेशत्रुजाण ॥नवि स्व. १५॥ तेहनेअरिहं तक्यमकहियेरेलाल तेतोमित्रिहंत नवि० मरखमांहे शिरोमणिरेलाल जेणेहण्याछेजंत ॥नवि स्व० १६॥ स्वजातिस्वजातिनेहणेरेलाल एपेहेलोनांगोकिध नवि० अरिहंतपणुतेहमांनहिरेलाल पापतणिएरिद्धानवि स्व. १७॥ स्वजातिविजातिनाखशुरेलाल जेअरिहंतकेहेवाय नवि० मनिहकमबिजेनांगेरेलाल शेवतांशिवपुरजाय॥ नवि स्व. १८॥ ढालबारमीसंपूर्ण॥ ॥हा॥ स्वजातिस्वजातिवरणव्यो हवेकहबिजोग स्वजातिविजातिजाणाजो रुदयधरिबहरंग ॥१॥भावति र्थकरजेहुवा हुवावलिकेवलिजेह तेसविएनंगशेवतां पां म्यावंछितगह॥२॥तेहतणेचरणेनमी नाखुतेटत्तांत मुजम नमांईच्छाघणी पामवाभवनोअंत॥३॥निंद्राविकथापरिह रो परिहरोदुर्ध्यान मननेणएकतांनकरी श्रोतासुणोसाव धान॥४॥ आगेएहमारसघणो ज्ञानतणोविशाल अरिहं Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - श्रीज्ञानविलास. १७१ तपदजेहथिलहे अविचलसुखरशाल ॥५॥ ढाल १३ मी॥ करजोडीकहेकामनिललनां॥एदेशि॥ रिहंतपदनिजशक्तियललनां लालाहोहणिविजातिथाय एपदवारुरेललनां ॥ एत्रांकणि ॥ स्वजातिविजातिभाख शुललनां लालाहोभांगोबिजोकहेवाय एपदवारुरेलल. पद्गलसविविजातिछेललनां लालाहोतेहनानांगापाठ॥ एपद०॥ वर्गणातेसविजाणियेललनां लालाहोसंणोतेह नोठाठ ॥एपद० २॥ उदारिकवर्गणापेहेलिकहिललनां लालाहोबिजिवैक्रीयजाण ॥ एपद०॥ श्राहारकवर्गणा त्रिजिकहिललनां लालाहोचोथितेजसवखाणाएपद०३॥ नाषावर्गणापांचमिललनां लालाहोउसासछठिकहेवा य ॥ एपद०॥ मनोवर्गणासातमिललनां लालाहो पाठमिकारमणथाय॥एपदावर्गणाअाठेतेसहिललनां लालाहोहवेनाखुतसमान ॥एपद०॥ छुटाजेतापरमाणु पाललनां लालाहोतेनविवर्गणाजाण ॥ एपद०५॥ दो यपरमाणुनेलामलेललनां लालाहोद्वीपरदेशिकेहेवाय॥ एपद०॥ द्वणुकखंधतसनामछेललनां लालाहोएमअनुक्र मेथाय ॥एपद०६॥त्रणप्रदेशिजेहवेललनां लालाहो तणुकखंधकेहेवाय ॥एपद०॥ एमएकएकवधतथकेलल नां लालाहोआठलगतेकेहेवाय ॥एपद० ७॥ आपत्रा पणानांमथिललनां लालाहोसंज्ञातेहठराय एपद०॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ श्रीज्ञानविलास. नवपरमाणुजिहांमलेललनां लालाहोनवपरदेशिकेहेवा याएपद०८॥एकउंणेअसंख्यलगेललनां लालाहोसंख्या तिखंधतेथाय ॥एपद.॥ असंखप्रदेशिजेहोवेललनांला लाहोखंधअसंख्यातिसोहाय ॥एपद०९॥ अनंतप्रदेशि तेमजाणियेललनां लालाहोएमहोयखंधनुमान ॥एपद॥ एहवाखंधअनेकमलेललनां लालाहोवर्गणातेहिजजां ण एपद. १०॥ तेवर्गणाजिवनविलहेललनां लाला होतेतोसुक्षमकेहेवाय ॥एपद.॥ जिववर्गणाजेनहेललनां लालाहोजेबाधरपणुनिपाय ॥एपद० ११॥ जिवनवि जगतमाललनां लालाहोअनंतासविजांग एपदः॥ तेह थकिअनंतगुंगेललनां लालाहोतेहिवर्गणानुमान ॥एपद १२॥ शिदथिनागअनंतमेललनां लालाहोउदारिकव र्गणाहोय॥एपदः॥ जिवग्रहेतेहनेललनां लालाहोपेहेलि वर्गणाजोय॥एपद०१३॥ तेहथकिअनंतगुणिललनां ला लाहोविक्रियेवर्गणाहोय ॥एपद०॥ एमअनुक्रमेकरतांथ काललनांलालाहोआठमिअनंतगुणिजोयाएपद०१४॥ मनोवर्गणासातमिललनां लालाहोतेथिअनंतगुणीधार ॥एपद०॥ पाठमिकामणवर्गणाललनांलालाहोएवर्गणा नोविचार ॥एपद०१५॥बादरसुक्ष्मतहमाललनां लाला होचारचारतेजाण ॥एपद०॥प्रथमच्यारबादरकहिलल नां लालाहोबाकिच्यारसुक्ष्मवखांग ॥एपद०१६॥ बा Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १७३ दरमांगुणविशछेललनां लालाहोसुक्ष्ममांसालजाण ॥ए पद०॥ वर्णनेरसदोयनाललनां लालाहोभेदपांचपांचप्र माण ॥एपद. १७॥गंधदोयफरसाठछेललनां लाला होएविशगुणप्रमाण ॥एपद०॥ च्यारफरसउणेकरिलल ना लालाहोसुक्ष्मवर्गणाजाण॥एपद. १८॥ श्राठेवर्गणा नानाशथीललनां लालाहोसिद्धपददिसेसोय॥एपदाको एकोणवर्गणानाशथिललनां लालाहोअरिहंतपदतेहोय ॥एपद. १९॥ तेहस्वरुपागेसहिललना लालाहोकेहे तांतिसुखथाय॥एपद०॥मुनिहूकमकहेरंगशुललनांला लाहोअरिहंतपदतेलेवाय॥एपद०२०॥ढालतेरमिसंपूर्ण। ॥दुहा॥ वर्गणात्राठेवर्णवि तेहनेछोडेजेह अरीहंतपणुं तेनरलहे सुणोअधिकारगुणगेह ॥१॥ढाल १४मी॥ओल गडिअादनाथनिरे एदेशि॥ वर्गणाआठमिकहिरे कारम पनामेजहलाल तेहनाभेदाठेसहिरे तेसुणोगुणगेहला ल॥१॥अरिहंतपदएमजाणियरे एत्रांकणि॥ज्ञानावरणि प्रथमकहिरेदर्शनावरणिजाणोलाल वेदनिमोहनिआयुस हिरे नामगोत्रवखापोलाला०२॥अंत्रायकर्मतेआठमुरे एअाठेनेदधारोलाल तेमांहिचारनेहणेरे तेसुणोविचारोला ला०३॥प्रथमनादोयजाणियरे तेमवलिमोहनियंत्रा यलाल तेचारेनाक्षयथकिरे अरिहंतपदविपायलालाश्र० ॥४॥शिष्यकहेस्वामिकहोरे कृपाकरिनेदेवलाल कहो Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ श्रीज्ञानविलास. तेक्षयक्यमहोवेरे जेमसमजीयेततखेवलालाअ०५॥ पाकरिगुरुबोलियारेसांभलशिष्यसुजाणलाल|प्रश्नएतें सारोकरयोरे सांजलतासवखाणलाल॥१०॥श्रादिजि वत्रज्ञानछेरे मिथ्यातिसर्वेहोवेलाल काललब्धपामिक रिरे जबतेसमकितलेवेलाल॥१०७॥ तववादिएमउचरेरे खोटिकरोछोवातलाल जिवजगतमांदिसेनहिरे फोगटस खनीकरोघातलाल॥ १०८ ॥ पंचतत्वइहांमलिरे होवेम तिसारोलाल पृथ्विअप्पतेउसहिरे वायूत्राकाशधारोला ला०९॥पांचेतेमलवाथकिरे होवेरुपउदारोलाल तेमां जिवकिहांकनेरे पामकोणविचारोलाल ॥ अ० १०॥ पुन्यपापदिशेनहिरे नहिपरलोकधारीलाल देवनरकग तिनहिरे नहिमुक्तीमनोहारोलाल॥१०११॥ देवादिकत वकहोरे किहांछेतासविचारोलाल कर्त्ताकोगसष्टितणोरे फोगटनर्मधारोलाल ॥१० १२॥ वायुतत्वनेजिवकहोरे तेतोभुतछेचोथोलाल तेकारणभ्रमणातजिरे सुखनोगवो सोथोलाल ॥१०१३॥ पाम्यासुखसंसारमारे पंचइंद्रीना नोगलाल तेहनेकहेदरेकरोरे एतोमोटोछेरोगलाल॥ ॥१४॥ एमनास्तिकबोलीरह्योरे हवेजैनिउत्तरदेवेलाल॥ मुनिहूकमजिवसहिरे समजेतेसुखलेवेलाल॥०१५॥ ॥ढालचउदमिसंपुर्ण॥ ॥दुहा॥ नास्तिकवचनएवांसुणी चमक्याचितमोझार - Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. .. १७५ ज्ञानिशिशकंपाविने उत्तरदियेउदार॥२॥श्रोतासुणजोवा तए एकाग्रहकरिचित्त धर्मअर्थनेजाणवा चरचानिनलि रित॥२॥निंद्राप्रमाददूरकरी करोविनावनेदूर जिवस्वरु पनेधारवा थइजात्रोतमेसुर॥३॥ढाल१५मी॥इडरआंबा प्रांबलीरेएदेशिामाखेसदगुरुसांभलोरे जिवस्वरुपविचा र मोहदशादरेकरोरेजेहाथिबहुविकार॥१॥प्राणीतुमेसुणो जिवविचाराएत्रांकणी|बोलेछेतेकोणछेरे तेहिजचेतनराय तववलतुतेबोलीयोरे आकाशतत्वतेथाए॥प्रा०२॥शब्दक रणाकाशछेरे पणनविउचारणजोय घनशब्दथीसमझे नहिरे समझेउच्चारणथीसोयाप्रा०३॥तलमाहिजेमतेल छेरे कुसुममाहिजेमवास काष्टमांहेजेमवह्मीछेरे पाषाणमां धातुविलास॥प्रा०४॥तेमजीवजडमारह्योरे लोलिभुतए कमेक सुखदूखतेथीअनुनवेरे पणछेजुदोछेक॥प्रा०५॥त वकहजोजिवछेरे नाहानामोटाकम पृथ्वीत्रादिगतीविषेरे उच्चारणनहितेमाप्रा.६॥एथ्वीत्रादिगतिविषेरे रसइंद्रीन हिधार तेथीउच्चारणनहिरे हानीद्धिसार॥प्रा०ाजिव विनावधेनहिरे सुकुकाष्टजोय जिवहोयतपल्लवहोवेरे तेका रणजिवसोय ॥प्रा०८॥नाहानामोटागतिथकीरे विभावथ कीतेथाय बालजिवसमझेनहिरे ज्ञानिमनसोहाय॥प्रा०९ तृणमाहिजेमघृतछेरे पणनविसमझेबाल दूधमांहिघृत भाषतारे सर्वेनेरुचेनिहालाप्रा.१०॥तृणविनादुधक्यांहां - - - Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ श्रीज्ञानविलास. थकीरे दूधविनाघृतन होय तेकारणतृणमांरह्युंरे घृतस दातेजोय॥ प्रा० ११॥ श्रोघशक्तीथी जेमतृणमारे घृतरह्यु छेसार तेमनिगोदादिकजातीयेरे ॥ जिवपदार्थउदार ॥प्रा० १२॥ एकसुखि एकदूखिदिशेरे एकराज एकरांक ए कबेसेएकउपाडतोरे एकत्रागलदोडे त्रांक ॥ प्रा० १३॥ ते सविपुर्व जवकारे शुभाशुनतेजोय पंचभुतमांकरणिन हिरे तेहविचारीजोय॥ प्रा०२४॥ शुभाशुननेटालिनेरे निज स्वरुपथयो जेह शक्तितेव्यक्तिथईरे मुक्ती जाणोते ह ॥ प्रा० १५ तेहिजदेवनाषियारे तसत्राणाधारेजेह तेहनेगुरुजा येरे निग्रंथपदे तेह ॥ प्र०१६ ॥ माख्युतेहनुंधर्मकहोरे तत्वत्रणेएह व्यवहारथकी एदा खियारे निश्चयप्रातमजेह ॥ प्रा० १७॥ कर्त्ताए सृष्टीत णोरे दिशेनहिइहांकोय सासि यानावछेस हिरे श्रागमबुद्धी होय ॥ प्रा०२८ ॥ कर्त्ता पुग लधर्मनोरे पुद्गलकर्त्ताीजाण जिवधर्मनो जिवछेरे निश्व यज्ञानतेाण॥ प्रा०१९ ॥ कर्ताधर्मवादी कहेरे कर्त्तवी के मथाय जेजेपदारथनीपन्यारे कर्त्ता नीपाय ॥ प्रा० २॥त सउत्तरत्रागेसहीरे भाखीशुंसुखकार मुना हूकमते सुणतां रे मोहदशानीवार ॥ प्रा० २१ ॥ ढालपंदरमी संपुर्ण ॥ ॥दुहा॥ नास्तिकवादपुरोथयो हवे सुपोइश्वरमत कर्त्ता मानेसहि ज्ञाननसमजोसत॥१॥ तिखोथइतवबोलियो श्रमेकेमनाण वेदादिकब हुशास्त्रना चौदविद्यागुणजाए। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. 399 ॥२॥बालभाषातमेभाखता बालज्ञानीसोय अमेगिरवाण भाषाकहिये ज्ञानिसाचाजोय ॥३॥ रोसकरिनविबोलि || ये रोसेसमजनहोय समताराखिसुणतं अज्ञानभावतेजो य॥४॥ ॥ढालसोलमी॥ ताहरामेहेलउपरवरसेमेह झबुकेविजलिहोलालझबुकेविजलि ॥एदेशि॥ नाख्युनु मेएमअमेज्ञानिसहिहोलाल अमेज्ञानिसहि पणविचारि जुत्रोतुमेकांईचितथईहोलाल ॥तुमे॥ कर्त्तापणुदाखोछो। तुमेकांईअन्यनेहोलाल।तुमे॥तोतुमरह्याअनाण विचारो मननेहोलाल।वि०१॥ज्ञानअनाणतसहाथरघुतेजाणियहो लालार०॥ तोतुमेज्ञानिकेमकहोतेमांणियेहोलाल ॥०॥ कर्तासृष्टीनोजेह ईश्वरतुमेभाखियोहोलालाई०॥तोपुन्य पापफलकेम ईहांतुंमेदाखियोहोलालाईहां०२॥शुनाशु भजेकरणिपोतानिनोगवेहोलाल।पोता०॥ईश्वरकापणुं ईहांनविजोगवेहोलालाईहां०॥ ईश्वरक पणुंहोवेतोक रणिसहिहोलाल ॥तो०॥ फलनवित्रापेकोई विचारोचि तग्रहिहोलाल ॥वि० ३॥ सुखदुखदेवुतेसविक धिरा होलाल ॥क०॥ तोकर्णिनुशंकामकष्टफोगटथयुहोलाल। क०॥रागद्देशनहिहोयईश्वरतेनेकहियेहोलाल ई०॥सं नाविहोयजेहपरमपदतेलहियेहोलाल ॥प०४॥ एक नेत्रापेसुखबीजानेदुखघणुहोलाल ॥बिजा०॥ एविकर पिनहोयईश्वरनिसास्त्रभ[होलाल ॥ई॥तेथिक नहि Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ श्रीज्ञानविलास. तुमेजाणोसहिहोलाल ॥तुमे०॥ वलिविचारोजेहपदारथ छेसहिहोलालप० ५॥जिवादिकछेजेहकहोकोणेकरचा होलाल।क०॥कर्ताथाशेतासतोपूर्वेनविठरचाहोलाल॥ पू०॥ कृत्रिमजिवस्वरुपकेनाशथाशेखरोहोलाल ॥ना॥ ईश्वरसमरणतेहसविफोगटठरयोहोलाल सवि०६॥ श्रृष्टिनोहतितवईहांनाखोशुंहतुहोलाल भा० सप्तपदा र्थनवद्रव्यकहेन्यायकन्तुहोलाल क० तेनवितुतोइहां लाव्याकिहांथकीहोलाल ला० अवरनथांनककोईकेला व्यातिहांथकिहोलाल आला. ७॥ त्रिमवस्तुजेहतेहवि एसेसहिहोलाल ते घटपटादिजेहपदार्थनासेवहिहोला ल प.पृथ्वीनभादिकजेहपदार्थअक्षयसहिहोलाल प०॥ माटेक नहिकोईतुमसमजोवहिहोलाल ॥तु० ८॥क सर्वनोईश्वरतोएहनोजोईयेहोलाल ए. परंपराए मजोताथागनलहियेहोलाल था० तेथिक नहिजगतमां कोईछेहोलाल ज० स्वनाविकपदार्थश्रृष्टिएहछेहोलाल ॥श्रृ० ९॥ करणिजेहविपोतेकरशेतेहवुहोलाल क. पाम शेफलइहांतेहएमतेध्याववुहोलाल एम० थाशेकरणिथि रहिततवपदआपणोहोलाल त लेशेनिरविकल्पएमशा स्त्रेभणोहोलालाए०१०॥ मुक्तिकहियेतेहस्वरुपनेसहिहो लाल स्व० तवबोल्योतिहांवेदांतवादिवहिहोलाल वे०॥ मुनिहूकमकहेतेहस्वरुपागेनाखशुहोलाल स्व. वेदां Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - श्रीज्ञानविलास. १७९ तनोविवादकहिनेदाखशुहोलाल ॥क० ११॥ ढालसो लमी संपुर्ण॥ ॥दुहा॥ तवहसिबोल्योसहि वेदांतवादीजेह अमेना ख्यतेसत्यछे एमांनहिसंदेह॥१॥कत्तीकोइदोसेनहि वस्तु स्वनाविकएह सर्वजगतमांएकछे ब्रह्मस्वरुपीतेह ॥२॥ | क्रियाकष्टफोगटकरे तिरथजात्रातेम नक्तीजुक्तीतेजाणि ये फोगटव्रतनेनेम॥३॥पथरापाणिपुजतां पांमेकेमभव पार आत्मदमनजेकरे सुखकेमपामेधार ॥क्षा एकजब्रह्म मांरमे जेछेचिदानंद मुक्तिदातातेहछे पामियेतेथीआणंद | ॥५॥वलतुसद्गुरुएमकहे सांनलनाईवात एकांतवचनन बोलिये तेथिधर्मनीघात॥६॥धर्मवस्तुचाहोसहि तोसम जोस्यादवाद मतवादनेछोडिद्यो समजोज्ञानउलाद॥७॥ ॥ढाल१७मी॥ तुमहममेरेएकठा मनमोहनमेरे ॥ एदे शी॥ ब्रह्मज्ञानिसांनलो म० धर्मस्वरूपउदार म० सर्व जगतमांब्रह्मकह्यो म० एतुममतविचारााम०१॥एवचने जडपणलयों म० समजोतासविचार म० ननमांहिबह जातछे म० पदार्थसातउदाराम०२॥द्रव्यनवतेजाणीये म० तेनविब्रह्मकहेवाय म० ब्रह्मएकछेत्रात्मा म० चि दानंदसुखदायाम०॥तेसवितुमेब्रह्मकह्यो म० मिथ्याव चनतेथाय म० भेदवेहेंचीजुदाकरोम० श्रात्मएकलेवाय म०४ामनादिजेतत्वछे म० तेतोजडकेहेवाय म० तेश्रा - - - - - Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. त्मनाक्यमकहो म संजोगेमेलापथायाम०५॥अरुपिजे आत्मा म त्यांविनावनहोय म० ज्ञानानंदितेकह्यो म० अमुर्तिपदजोय॥म०६॥मुक्तीपणूतुमेकहो म० लोकमांहि समाय म. सर्वज्ञगुणथयोनहि म० विभावदशानविजा याम०७॥विनावदशाजिहारहि म० त्यांमुक्तिनविहोय म. मनशंमक्तिमानिलहो म० अंधगजजेमजोयाम०८॥ मुक्तिस्थानकजाणोनहि म० तोमुक्तीक्यांथीथाय म. प्रात्मद्रव्यसमजेनहि म० नहिगुणपर्जाय॥म०९॥नयाय कशास्त्रथि म०जोजोतासविचार मन्द्रव्यगुणतिहांकह्या म नवचोविशधार॥म०१०॥इत्यादिकबहूवातछे म० ब हुश्रूतपासेधार म० क्रियाप्रमुखउथापता म० नविकरो मनशविचारम०११॥नोजनपणनविएकथि म० कारण विनानविथाय म० अग्निपाणीप्रमखमले म० तवरोटिनि पाय॥म१२॥तेमइहांपणधारिये म० तपक्रियासुखकार म० कारणथीकारजहोवे म० एश्रद्धामनोहार॥म०१३॥ केहेस्योत्रात्मानकामछे म क्रियाकामनकोय म० अग्नि विनारोटिनहि म० क्रियाविनामक्तिजोय ॥म०१४॥म क्तिस्थानकजाणोनहि म० तोकिहांजावुथाय म० लोक माहेसमावतांम० गतागतिकहेवाय॥म०१५॥स्थलब्रह्म छपवाथकी म. किंचितावेहाथ म स्वरुपजथारथजा शिये म करियेज्ञानिनासाथ॥ म०॥१६॥निश्चयथकी .. ..AJKT a manandmanus Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. ब्रह्म ध्याइये म० वेहेवारे क्रिया सार म० नित्या दिक बहू नेदछे म० ते समजो विचार ॥ म०१७॥ जथाजोग्यजेजाणवु म० तेहिजसत्यनां म० स्यादवाद तेजाणिये म० तिहांनविरहेनांण ॥ म ० १८ ॥ अथवा ब्रह्मब्रह्मकरे म० तेथिकारजनहोय म० मुख्योपुरुषध्या वतो म० चीत्तमांघेवरजोय ॥ म ० १९ ॥ मुखथकिपणभा खतो म॰ जमश्युंघेबरथाय म० तेहथिभुखनागेनहि म० जोजनथिभुखजाय ॥ म ० २० ॥ तेमत्रह्मस्वरुपभजे म० क्रियाविनानविधाय म० अथवातुच्छनोजनकरे म० ते थिकौवतनश्राय ॥ म० २१ ॥ मनशुश्रेष्ठमानेसहि म० प्राक्रमनश्रावेतास म० तेमएकवेदांतथाकि म ० नकरवि मुक्तिनि ॥ २२॥ नक्तिक्रियाबेहूमिले म० त्रिजु अध्यात्मसार म० त्रणमलेकारजहोवे म० एहिजशुद्ध विचार ॥ म ०२३॥ नयायकतवबोलियो म० श्रमघरद्रव्य स्वरुप म० प्रत्यक्ष परोक्षनेजाणता म० एत्रमज्ञानत्रनुप ॥म• २४॥ तसउत्तरवलियागले म केहेशसदगुरुसा र म ० मुनिकमज्ञानेरमे म० पामेपदमनोहार ॥ म ० ॥ २५ ॥ ढालसतरमिसंपूर्ण ॥ O १८१ ॥हा॥ नयायकतवबोलियो साचिछेमुजवाग्य न्याय मारगछेखरो एसमजुनोलाग ॥१॥न्यायविनास्वरुपनहि बांधेकोईजाल तेकारणम्यायजवडो एहिजमोटुंज्ञान॥२॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ श्रीज्ञानविलास. अनुमानउपमानवलि एमअनेकविचार एसविन्यायमां रह्या बिजामतमांनविधार ॥३॥ पदार्थजांणुमे छणना मुझघरमांहि प्रत्यक्षज्ञानप्रमेका मोहोटुएविणनांहि ॥ ४॥ वलतुसदगुरुएमकहे तुझमतछेअनाण द्रव्यस्वरुप छणेघणो पणतुजनाव्युनाण ॥५॥ तेस्वरुपनाखुहवे सांनलजोधरीकान रागद्वेशनेदरकरि रुदियेत्रांणोसान ॥६॥ ढाल १८ मी॥ एकदिनगंगाकेबिचेसुणसाथबहो राएदेशिकहेसदगुरुसांनलो तुमेज्ञानिबातां द्रव्यस्व रुपनेछणतां होतवचननिघातां॥१॥पदार्थतमेनाखिया साततेजाणो भाखुतासविचारए तुमेचित्तमांत्रांणो द्रव्य गणनेकर्मए सामान्यविशेषतेधारो समवायनेअभावजे सप्तपदार्थविचारो ॥३॥ द्रव्यकह्यानवजातना प्रथविपां णिअग्नितेह वायुअाकाशकालदशिजे आत्ममनगुणगेह ॥४॥गुणचोविसहवेनाखिये तेसुणजोसुखकार रुपरस गंधफरसए संख्याप्रमाणधार ॥५॥प्रथकत्वसंयोगवि भागए प्रत्वाप्रत्वगुणसार गुरुत्वद्रव्यत्वस्नेहए शब्दबु दिनिरधार ६॥ सुखदुखइच्छाद्वेषए प्रयत्नधर्मअधर्म जेह संस्कारतेमजाणिये एचोविसर्गुणतेह ॥७॥ कर्मपां चतेजाणिये उतपेक्षणपेक्षणसार आकुंचनपरसारण ग मनानिएहविचार ॥८॥ परमपरमविविध सामान्यक हिजे नित्यद्रव्यएकविशेषछे समवायसत्वएकलिज॥९॥ - Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १८३ अनावचारप्रकारनो प्रागनावप्रवंशानावो अत्वंतिकानं न्योअन्य एअभावसुणावो ॥१०॥ सातपदारथतुमेकह्या तिहांबहूछेविचार द्रव्यविनागुणक्यांरहे जुदोकेमपरका र॥११॥कर्मद्रव्यविणकोणेकरु सामान्यविषेशकिहांल हिजे समवायपणुजुदूनहि एमविचारग्रहिजे ॥१२॥ जि हांवस्तुनोनाशछे तिहांअभावलहिये तेनेपदारथकेमक हो सुधुमनसदहिये ॥१३॥ ईत्यादिकबहुविचारथी श्र ज्ञानिनाख्या पुनरपिकारणसांभलो तुमेशास्त्रेदाख्या ॥१४॥ प्रत्यक्ष अनुमानउपमानथि विवादजकरवो इंद्रि यप्रत्यक्षज्ञाननो हठवादजधरवो ॥२५॥इंद्रिथकिप्रत्यक्ष थये ज्ञानजकहोछो तेतोअनुमानजाणिये उपमानवहोछो ॥२६॥ मननिवाततोनविलहे तेमदुरनिकहिये भुतनवि पवर्तमाननी तेज्ञानिकेमकहिये ॥१७॥ मंत्रादिकसाधन थकि देवसाधजेहोवे मनचिंतविवातजे उत्तरतेकेहेवे॥१८॥ अथवालोकिकमांलयो नगवंततेजाणे मननितननितेह ने एमचित्तमेत्रांणे॥१९॥इंद्रियेप्रत्यक्षथि ज्ञानिकेमक हिये बालगोपालनेहोवे विशेषशुलहिये ॥२०॥ तेथित्र ज्ञानिकह्या शास्त्रेएतमने भुतनविष्यवर्तमाननि वातजा पोनहींमनम॥२१॥जेजाणेनुतभविष्यना वर्तमाननाभाव रुपिअरुपिपदार्थ तेज्ञानिध्याव॥२२॥द्रव्यगुणपरजायए स्वरुपजेनाखे सत्यासतपक्षेकरिजेवरणविदाख॥२३॥श्रा Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. स्तिनास्तिप्रमुखलहि सत्तातेप्रकासे स्यादवादएमनाख तां तिहांदुरमतिनासे ॥ २४ ॥ इत्यादिकब हुजा ने ज्ञानि कहिजे तेथिउपरांठाजेरह्या ते ज्ञानिवहिजे ॥ २५ ॥ ज्ञान अज्ञानतेमसहि एमनिरणेकरिजे ज्ञानिदुरेतजो ज्ञानि संगवरिजे ॥ २६ ॥ सेवाकिजेज्ञानिनि ज्ञानप्रापेलहिजे मु निहूकमज्ञानिप्रते परमानंदहिजे ॥ २७ ॥ ढाल अढार मिसंपूर्ण ॥ || दुहा || वादिसर्व पापणु धरमस्वरूपजणावे जै नितसउत्तरकरि सुधुतेमनावे ॥ १ ॥ तर्कवादबहुविधथि खटदर्शन ना होय बहुविधवादतेथीकरि जिनदर्शनथाप्यं जोय॥ २ ॥ दर्शनशक्तिनिजश्रात्मनि निश्चेथिवरतां देव गुरुधर्मत्रापछे एमस्वरुपधरतां ॥३॥ सातप्रक्रतिनाशथि दर्शन मलहिये गियारप्रक्रतिनाशथि श्राधधर्मकहि ये॥४॥ प्रक्रतिपंदरनाक्षयथकि मुनिगुणधारो मोहनिक मनानाशथि वितरागसुखकारो ॥ ५ ॥ कर्मचारदुरेथए रिहंतपद कहिये एविधसिखसमजिकरि बिजोभंगलहिये ॥६॥त्रिजोभंगहवेनाखशुं विजातिस्वजातिजेह ज्ञानप्र माददुरेकरि सांजलजोगुण गेह ॥ ७॥ ॥ ढाल १९ मी ॥ अजित जिनेश्वरचरणनि सेवा ॥ देशि ॥ त्रिजोभंगहवेसां जलोए विजातिस्वजातिदाखु गुणघातिश्रात्मतणोए ते हनोजयचितराखु ॥ १ ॥ नवितुमेजाणिरेएहने दुरकरिजे १८४ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १८५ ॥ एत्रांकणि|गुणअनंताश्रात्मतणाए तेहमांश्राठछेमुख्य नाखुतेतुमेसांनलोए तजवाथिलेशोसुखानवि०२॥ज्ञान दर्शननेअव्याबाध चोथुचारित्रजाणो अटलअवगाहनत्र रुपिगुण अगुरुलघुचीत्तत्राणोभवी०३॥लब्धीपांचेवलि जेदाखी दानलाभनेनोग उपनोगविरजअनंतु अाठमागु गतेजोगाभवि०४॥ एत्राठेगुणपाठेकरमे छायाछेतेभाखु नामलहिनेतेकहुछु श्रागममांहिजेदाखु॥नवि०५॥ज्ञाना वरणिकर्मेज्ञानना गुणअनंताढांका दर्शनावरणिकरमे दाब्या दर्शनगुणथयारांका॥भ०६॥अव्याबाधगुणत्रिजो श्रात्मनो वेदनिकरमेढंकाणो थिरतागुणचोथोत्रात्मनो चारित्रगुणछेराणोनिवि०७॥मोहनिकरमेतेगुणहणियो तेथिसंजतिनाख्यो समकितगणपणतेणेहणियो तेथि मिथ्यात्विदाख्यो।भवि०८॥अटलअवगाहनगुणपांचमो आयुकरमथिलंकाणो अरुपिगुणछठोप्रात्मनो नामकरम थिजाएगोनिवि०९॥ अगुरुलघुगुणसातमोकहिये गोत्रक रमथितेह लब्धीगुणमंत्रायकरमेए एमत्राठेगुणजेह ॥भ वि०१०॥ गुणाठेस्वभाविकहिये अात्मस्वनावरहिया तेहगणनेहणताजाणो पुद्गलवर्गणाकहिया|भवि०११॥पु दलतेविजातिथइने हणतोस्वजातिनेजेह तेथिविजाति स्वजातिनांगो त्रिजोनास्योतेहनिवि०१२॥चोथोनांगो विजातिविजाति हणतानेकहिजे भोमिनाजनकोइपड्यु २४ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. छे उर्धथिनाललहिजे ॥भवि०१३॥ एचउभंगमांहिजेबि जो स्वजातिविजातिजाणो तेभंगशेवेजेजेचेतन तेअरिहं तकहाणोनवि०१४॥तेअरिशब्देशत्रविजाति हणतांत्र रिहंतकहिये त्रिजंचादिकहणवाथि अरिहंतपदनविल हिये।भ०१५॥ प्रथमत्रिजोनेवलिचोथो एभंगदूरेकिजे हरखधरिविजोनंगहणतां अरिहंतपदतेलिजे ॥ भवि० १६॥ कारणमलेपलटणस्वनावे भव्यहोयतेपलटे लहि सामग्रीगुरुत्रादिककेरी काललब्धतेवरटे ॥नवि०१७॥ पलटणस्वभावथिसिद्धपणुए नव्यजिवनेनास्यु ज्यारेत्या रेकारणपामिने अात्मगुणतराख्यंनिवि०१८॥ नवस्थि तिपरिपाकथयाथि पांचेकारणमलशे निमितकारणशद्धगु रुमलवाथि मोक्षसुखतवरशोभवि०१९॥तेकारणगुरुशुद्ध जोइने तेहनिशेवाकिजे ज्ञानगुणश्रद्धासहितनरियो म ख्यगुणएहलिजे भवि०२२॥ कारणबेजिनवरेभाख्यां मुक्तिकेरांजाणो उपादाननिमिततेलहिये उपादानात्म गुणराणोभवि०२१॥ निमितकारणबहुविधनाख्य तेह मांमुख्यतेजाणो सदगुरुविणतरेनहिकोई पुष्टालंबन चित्तत्राणोभवि०२३॥कारणनेदएमसमजीने शुद्धशुद्ध ग्रहिजे मुनिहूकमएकारणमलतां सेहेजेशिवपदलिजा नवि०२४॥ढालश्रोगणिसमिसंपूर्ण ॥हा॥कारणसामग्रीमले पलटेनहिनिरधार तेश्रन - Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १८७ व्यस्वभावछे एनाख्याोविचार ॥१॥तेकारणएअनवि जिवनमोक्षजाय सत्तास्वरुपजोजोइये तोसरखागुणकेहे वाय॥२॥प्रत्येकेप्रत्येकेजिवना गुणअनंताजाण गुण स्वभावनेजोवतां एकजपणुचित्तत्राण ॥३॥ कोइसुखीको इदुखी पणतेनोवेदकएक एमएकमांअनेकछे अनेकमाए कछेक ॥४॥ज्ञाननदर्शनादिक गुणअनंताजेह तेमाहेएक पणलहो चेतनरायगुणगेह॥५॥अगरुलघुपरमुखजे पर जायकहियेअनंत तेमांहिपणएकछे चेतनमाहागणवंत॥ छ॥ चेतनएकमांहिरह्या गुणपरजायअनंत गुणपरजाय मांएकछे चेतनपणुतेसंत:७॥एकअनेकपक्षवर्णव्योहवेक हुसत्यासत नावधरिनेसांभलो श्रोतागणलहत ॥ ॥ढाल॥२० मी॥ नरखीनरखीतुजविंबनाएदेशी॥स त्यत्रसत्यपक्षजे नाण्याशास्त्रेसार ज्ञानीतेखरा॥ एत्रांक णि॥ समजेतेनरधन्यछे भाखुतासविचार |ज्ञानि० १॥ द्रव्यखटापापणा स्वद्रव्यखेत्रसार ज्ञानिकालना वतेमजाणिये चारेथिसत्यउदारराज्ञानि०२॥द्रव्यद्रव्यत्र तेकह विवरितासविचार ज्ञानि० द्रव्यखेत्रकालभावए प्रत्येकेप्रत्येकेधार ॥ज्ञानि० ३॥ प्रथमधर्मद्रव्यकह्यो ते हमांनाखुएचार ज्ञानि० स्वद्रव्यनोमुलगुंणएहछे चल णसाहेसत्यउदा॥ज्ञानि०४॥खेत्रसंख्यप्रदेशथि सत्य धर्मास्तीकाय ज्ञानि• अगुरुलघुस्वकालछे स्वधर्मेसत्य Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ श्रीज्ञानविलास. थाय ॥ज्ञानि०५॥ स्वस्वनावापणा गुणपरजायेअनं त ज्ञानि० धर्मद्रव्यमांएचारकह्या सत्यधर्मएसंत ॥ज्ञानि ६॥अधर्मास्तीत्राकाशास्ती कालपुद्गलजिव ज्ञानि०एपां चेअपरसहि धर्मद्रव्यप्रसत्यइवाज्ञानि०७॥ अधर्मास्ति कायद्रव्यमा स्वद्रव्यथिरसहायगुण ज्ञानि० असंख्यप्रदे | शेस्वक्षेत्रछे हवेभाखुकालगुण।ज्ञानि०८॥गुरुलघुपर जायजे स्वकालकेहेवाय ज्ञानि गुणपरजायअनंतजे स्व स्वनावतेथाय ॥ज्ञानि० ९॥धर्मअकाशकालजे पद्गलने वलिजिव ज्ञानि० एपांचेतेमांनहि असत्यधर्मसदिव॥ ज्ञानि०१०॥आकाशास्तिकायद्रव्यजे अवकाशगुणस्वद्र व्यज्ञानि०अनंतप्रदेशस्वखेत्रछे अवकाशापेसर्व ॥ज्ञा नि०१३॥अगुरुलघुपरजायजे स्वकालसत्यतेथाय ज्ञा नि०अनंतगुणपरजायजे स्वस्वनावेसत्यकेहेवाय॥ज्ञानि० |१२॥धर्मअधर्मकालजे जीवपद्गलवलितेम ज्ञानि०एपांचे असत्यनाखिया अाकाशद्रव्यमांएमाज्ञानि०१३ ॥कालद्र व्यहवेनाखशुंस्वद्रव्यवर्तनासार ज्ञानिक खेत्रसमयएक छे तेद्रव्यउपचार॥ज्ञानि० १४॥स्वकालत्रगुरुलघुकह्यो स्वस्वभावहवेथाय ज्ञानि-गणपर्जायथिभाखिये एचारे सत्यकेहेवाय॥ज्ञानि०१५॥धर्मधर्माकाशए पुद्गलजि वसत्य ज्ञानिन्द्रव्यादिकमलेनहि कालनावनेखेताज्ञा नि०१६॥पुद्गलद्रव्यजेपांचमो स्वगुणभाखुतास ज्ञानि. Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. पडणगलणस्वनावछे स्वगुणएसत्यजास।ज्ञानि०१७॥ स्वखेत्रपरमाणुकह्यो एकएवाअनंत ज्ञानि० गुरुल घुपरजायछे प्रदेशप्रदेशसंत ॥ ज्ञानि ० १८॥ स्वस्व जावजेत्रापणो गुणपरजायकेवाय ज्ञानि० एचारेसत्य जाणिये स्वद्रव्यतेथाय ॥ज्ञानी०१९॥ धर्मअधर्भश्राकाश जे जिवनकालकेहेवाय ज्ञानी. एपांचेएमांनहि तेथिल सत्यएथाय ॥ज्ञानी० २०॥जिवास्तिकायस्वरुपजे भाखु तासविचार ज्ञानी. एकएवाद्रव्यअनंतए प्रत्येकेप्रत्यके धार ॥ज्ञानी०२१॥ जिवास्तीस्वद्रव्यनो गुणज्ञानादिक सार ज्ञानी० चेतनालक्षपजाणिये स्वद्रव्यसत्यविचार ॥ ज्ञानी. २२ ॥ असंख्यप्रदेशिजिवछे स्वखेत्रएहविचार ज्ञानी० स्वकालेहांनिद्धिकहि तेअगुरुलघुधार॥ज्ञानी २३॥ गुणपर्यायत्रनंतछे तेहिजस्वस्वभाव ज्ञानी• छद मस्तपूर्णजाणेनहि जाणेकेलिभाव ॥ज्ञानि० २४॥ स्व द्रव्यखेत्रकालथीनावमलीथयाचार ज्ञानि स्वस्वद्रव्येए सत्यछे एमागममांविचार ॥ज्ञानि०२५॥ धर्माधर्मश्रा कास्ति कालपुद्गलजेह ज्ञानि०एपांचेंनाजाणिये जिवमां असत्यएह॥ज्ञानि॥द्रव्यखेत्रकालनावजे स्वस्वद्रव्येस त्य ज्ञानि० परद्रव्येअसत्यछे पांचेनारत ज्ञानि०२७॥ द्रव्यखेत्रकालभावए प्रत्येकेप्रत्येकेनिन्न ज्ञानि० एकनो बिजामालाधेनहि जुदाजुदाछेचिन्न ॥ज्ञानि २८॥ तेथिए -- Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० श्रीज्ञानविलास. - स्वद्रव्यादिके चारेसत्यकेहेवाय ज्ञानि० अपरद्रव्यनाद्र व्यादिक तेहमांअसत्यतेथाया।ज्ञानि०२९॥ गुणपर्जायवं ततेद्रव्यछे खेत्राधारतेथाथ ज्ञानि उत्पातवयनिवर्तना तेहिजकालकेहेवाय ॥ज्ञानि० ३०॥विशेषगुणपरणतिए पर्जायविशेषप्रमख ज्ञानि० तेहनेस्वनावकिजिये एसम ज्याहोयसुख ॥ज्ञानि ३१॥ इमछद्रव्यतेजाणिये आपत्रा पणागुणेसार ज्ञानि सत्यगुणतेहथिकह्यो एजिनवचनवि चार ॥ज्ञानि० ३२॥ परद्रव्यादिकचारजे तेहमांअसत्यते थाय ज्ञानि० सत्यासत्यपक्षए बहुश्रुतथिसमजाय॥ज्ञानिक ३३॥ तेमाटेज्ञानिगुरु शेवोधरिबहुमान ज्ञानि० मुनिह कमगुरुसेवतां पामेवंछितस्थान ॥ज्ञानि०॥३४॥ ढाल विसमिसंपूर्ण. ॥ ॥दुहा।व्यक्तवश्रव्यक्तववर्णवु जेनानेदअनंत एहअर्थ समजाथकीसेहेजेथायसंत॥१॥ढाल२१मी।मुर्तिहोप्रभुमुर्ति अजितजिणंदाएदेशिाव्यक्तवहोजिनव्यक्तवनअव्यक्त प क्षहोजिनपक्षतेहवेभाखिशुजिव्यक्तवहोजिनव्यक्तवकेहेतां जेह वचनहोजिनवचनगोचरदाखिशंजि॥१॥अव्यक्तवहो | जिनश्रव्यक्तवकेहेतांजेह॥ वचनहोजिनवचनमांधावेनहि जी एमहोजिनएमएसकेत खटहोजिनखटद्रव्यमांजाणो, सहिजि॥२॥द्रव्यहाोजनद्रव्यद्रव्यप्रतेसार गुणहोजिन गुणअनंतानाखियाजि॥ परजायहोजिनपरजायअनंता Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीज्ञानविलास. १९१ तास एमहोजिनएमप्रत्येकेदाखियाजि॥३॥वचनशंहोजि नवचनशुंकेहेवाजोगानहिहोजिननहितेअव्यक्तवकह्या जि तेहिहोजिनतेहिनाखुविचार समजुहोजिनसमजुविचा|| रिलद्याजि॥४॥केवलीहोजिनकेवलज्ञानिजेह भगवंतहो जिनभगवंतदीठाभावसविजि तेहनेहोजिनतेहनेअनंत मेनाग व्यक्तवहोजिनव्यक्तववचनेहवीजि॥५॥तेहनेहो जिनतेहनेअनंतमभाग गणधरेहोजिनगणधरसुत्रमांगंथि याजि तेहथिहोजिनतेहथित्रसंख्यातमेनाग हमणांहोजि नहमणां श्रागमइहारह्याजी॥६॥ तेहथीहोजिनतेहथीद्र व्यमांसार खटमांहोजिनखटमांप्रत्येकेरकह्याजि गुणहो जिनगणअनंताजेह पर्जायहोजिनपर्जायअनंताएमकह्या जी॥७॥ तेमांहोजिनतेमांदीशद्विपक्ष व्यक्तवहोजिनव्य क्तवत्रव्यक्तवजाणीयेजी एमहोजिनएमपक्षतेश्राठ ना ख्याहोजिननाख्याएचित्तत्राणीयेजी॥८॥ समजोहोजि नसमजोएहविचार ॥ पांमेहोजिनपमितेस्वलक्ष्मीवरेजी स्यादहोजीनस्यादवादकेहेवाय भाख्युहोजिनभाख्युए तिर्थकरेजी॥९॥माटेहोजिनमाटेसमजोएह तेहनेहोजिन तेहनेसंदेहहोवेनहिजी जथाहोजिनजथाजोगजेह जाणे होजीनजाणेतेवस्तुसहिजी॥१०॥कोइहोजिनकोइनाखे अज्ञान हानीहोजिनहानीनाकेहेवेसहिजि नानेहोजिन नानेठेकाणेरेहा ॥ एमहोजिनएमस्यादवादकरेकेईजी - - - Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ श्रीज्ञानविलास. ॥११॥एमहोजिनएमभाखेछेजेह तेहनोहोजिनतेहनोमत दूरेकरोजी सुधुहोजिनसुधुवचनप्रमाण एमहोजिनएम स्यादवादवरोजी ॥१२॥ जाणोहोजिनजाणोबहुश्रुतजेह तेहनेहोजिनतेहतणेचरणरहोजि मुनिहोजिनमुनिहुकम शुद्धज्ञान स्यादहोजिनस्यादवादगुणेगहगहोजि॥ १३॥ ढाल २१ मी संपूर्ण ॥दुहा॥ पक्षानुवर्णव्या भाखूएतसनाम नित्यनि त्यतेजाणीये एकअनेकतेताम ॥१॥ सत्यप्रसत्यतेनाखि या व्यक्तवअव्यक्तवविचार पक्षपाठेतेजाणिये स्याद वादसूखकार॥२॥ एजाणीसुखीयाथया श्रागेअनंतासंत वलीएजेजाणशे तेलेशेनवत्रंत ॥३॥ मूरखएसमजेनहि जेहनिबुद्धिजड अल्पशास्त्रिसमजेनहि जेहनेकर्मनाभ ड॥४॥ अल्पबुद्धिपणजेहनी सहहणाराखेतास अल्प कालतेशिवलहे ॥ करीकरमनोनास ॥ ५॥ अल्प संसारीजेहोवे होवेशुक्लपक्ष एसद्दहणातेग्रहे जेहनिबु द्विछेदक्ष ॥६॥ बोहोलसंसारीजीवडा क्रश्नपक्षिजेह ते हनेश्रद्धाहोवेनही अथवाअनविएह॥७॥ वांचेनणेशास्त्र सही उपदेशदियेसुखकार पणहदियेश्रद्धानही एअज्ञा नत्राचार॥॥कारणस्यादवादमां समजवाकरोखप ज्ञा निगुरुसेवाकरी पालसकरोअलप॥९॥ ढाल२२मी॥श्रा जसफलदिनउग्योहोश्रीसमेतशिखरगेरीनेटिया एदेशी Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. १९३ श्राजप्राणीतुमेधारोहो स्वस्वनाववस्तुस्वरुपनो कांइम लीयोसदगुरुजोग पुन्यउदयएमोटोहोपंचांद्रपणुंपाम्यास ही मानवजनमसंजोग॥३॥ाजप्राणितुमेधारोहो॥स्व भावहवेजेभाखहोनाख्याजेश्रीजीनवरे सामान्यनेविशेष प्रकार तेहनानेदएकविसहोनामादिकलहिनेकहू तमसु जोतासविचार॥आज०२॥ आस्तिनेनास्तिहो२ नी त्यस्वभावएजाणिये ३ अनित्य ४ एकस्वनाव ५ अने कस्वभावहो६ नेदस्वनाव७ अनेदए८ नव्यस्वनावते लाव९॥श्राज०३॥अभव्यस्वभावहो१० परमस्वभाव गीयारमो११ एसामान्यस्वभाव हवेकांइकहछुहोविशेष स्वभावजेकह्या एसमजवानोदावापाज०४॥चेतनस्वभा वहोअचेतनएहस्वभावछे२ त्रिजोमर्तिस्वनाव३अमुर्ति स्वनावहो४एकप्रदेशस्वनावजाणिये५अनेकप्रदेशस्वभा वहाभाज०५।शुद्धस्वनावहो७विनावस्वनावतेत्राठमोट अशुद्धस्वभावतेधार९उपचरितर होस्वनावदसमोजाणी| ये१०विशेषस्वनावविचार ॥त्राज०६॥ सामान्यस्वनाव होस्वरुपसंक्षेपेतेदाखवु सामान्यउपयोगिजेह दर्शनगुण थिहोदेखीयेसर्वद्रव्यमां सामान्यकशोगुणगेहाआज०७१ विशेषस्वनावहोसंक्षेपस्वरुपतेहनुकह नहिसर्वद्रव्यमांही कोईद्रव्यमांतेछेहोकोईद्रव्यमांछेनहि ज्ञानउपीयोगेजा णताही ॥श्राज. ८॥ सामान्यमांहेथीहोपंचस्वनावव - - - Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. खाणशु पूरवग्रंथअनुमान कोईकेहेशेतुमेहोसर्वनोअर्थ | नवीकह्यो तेहनूशंअनुमान ॥श्राज ९॥ बिजाग्रंथमांहोस र्वस्वभावअमेदाखीया तेथीईहांनाख्यानांहि पंचस्वभा वहोतेहवेइहांवर्ण जेवानाख्याज्ञानीतांहि ॥श्राज०१०॥ भेदस्वनावहोस्वकारजकरे गुणपर्जायपरवर्तनजास अभेदस्वभावहोस्वस्थांनपणेरहे मुलस्वरुपएखास ॥ आज० ११॥ पलटणस्वनावहोनव्यस्वनावकह्यो ल हिसगुरुसंयोग धर्माराधेहोकाललब्धेसही लहनि जगुणनोग॥श्राज० १२॥ अन्नव्यस्वभावहोचोथोहवेए दाखीये अपलटणएहस्वनाव कालसामग्रोपांमीहोसुगु रुसंजोगने नपलटेअनव्यस्वभाव ॥आज०१३॥ द्रव्य द्रव्यनाहोसर्वधर्मतेप्रते विशेषधर्मअनुजोय जेजेप्रण मेहोतेतेप्रमेयस्वनावछे एपंचस्वनावतेहोय ॥आज०॥ १४॥ सर्ववस्तुमाहोपंचस्वभावतेजाणिये द्रव्यनोमुलस्व नाव मनीहकमहोसदगुरुसेवनथीलहे जेहनोमोहअभा वाज. १५॥ ढालबावीसमीसंपूर्ण ॥ दुहास्वनावपांचेएकह्या खटद्रव्यमांसार तेमाटेसा मान्यकह्या समजील्योविचार ॥॥हवेचउनंगीवर्णवु ख टद्रव्यमांजेह नित्यानित्यजपक्षथी प्रगटथइतेह॥२॥च उनंगीबहविधछे भाखशंतासविचार सजथईश्रोतासांभ लो तजीत्रालपंपाल ॥३॥ बालसनिंद्रादूरकरो तजोवि - - - Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. कथाविचार मोहद्रष्टिदरेकरी सावधानसुखकार ॥४॥ए मांज्ञानअगाधछे थईजावोसावचेत मनवचकायाथिरक री श्रवणकरोचित्तहेत ॥५॥ ढाल २३ मी॥देशिचंदरी यानी॥ हवेचउनंगीवर्णवुरे लहीभागमअनुमान जेहमां भेदछेघणारे तेसमजवानुतान त्रुटक० तेहसमजवानुता | नतेजाणो अनादिअनंतनंगचीत्तमांत्राणो पेहेलोभंगतेह कहीजे बिजोअनादिसंतलहीजे ॥१॥ सुणोनवीज नएह ॥एश्रांकणी ॥ सादिसंतहजाणीयेरे त्रिजोभंगए खास सादीअनंतचोथोकटोरे एचउभंगीउलास त्रुटक० एचउभंगीउलासेदाखी खटद्रव्यमांहेतेभाखी परथमजी वद्रव्यमांकहीशु ज्ञानादिकगणसाथेलहीशु ॥सुंणो०२॥ जिवमांज्ञानादिकगुणरे अनादिअनंतछेतेह नित्यस्वभावे जाणीयेरे एप्रथमगुणगेह त्रु० एप्रथमगुणगेहतेसाचो जेवोहीरोदीसेजाचो बिजोगुणहवेनाखुजह जीवकरमस बंधछेतेह ॥सुंणो० ३॥जीवकरमसबंधछेरे कालअनादि नोतास ज्यारेत्यारेछुटशेरे मोक्षपुरीनीश्राश त्रु०मोक्षपुरी नीत्राशतेजाणो तेहथीसंतपदकहांणो अनादिसंतएबी जोभंग एनंगेमुजलाग्योरंग सं०४॥देवमनुषत्रीजंचत गारे नवतसादीसंत जन्मादीकतेत्रादछेरे नाशथयेथा यत्रंत ७० नाशथयेथायअंततेजेह सादीसंतत्रीजोगुण गेह नंगनाख्योएजगनाथ जेहचलावेछेशिवसाथ। संगो Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ श्रीज्ञानविलास. ॥जेजीवमोक्षगयारे कर्मखपावीथयासीद्ध फरीपालाश्रा वेनहिरे पाम्याश्रनंतीदि० पाम्याअनंतीरीद्वतेसारम तीदानतेप्रायविचार फरीनावेतेअंतकहीजे सादीनत भंगचोथोलहीजे ॥सुंणो ६॥ जीवमांहेचउनंगीकहीरे ह वेकहुधर्मास्तीकाय गुणच्यारेखंधपजवारे अनादीनं तथाय त्रुटक० अनादीनंतथायतेजाणो बीजोनंगईहां नकहांणो त्रणपर्जायईहांतेलहीये सादीसंतभंगएकही ये ॥सुंणो० ७॥ देशप्रदेशत्रगुरुलघुरे सादीसंतसंजुक्त आदअंततेहनाहोवेरे तेथीत्रीजोभंगयत त्रटक० तेथीत्री जोनंगयुक्ततेजांणो चोथोनंगसीद्वजीवथीवखांणो धर्मप्र देशतेसंगेजेह सादीअनंतनंगकहीयेतेह ॥सु०८॥एमत्र धर्मास्तीकायमारे चउनंगीकेहेवाय त्राकास्तीकायमांना खशुरे गुणच्यारेतेथाय त्रु० गुणच्यारेतेथायतेजांणो खं धनादीअनंतवखाणो बीजोनंगएहमांनही एहवातक इछुसही॥सुणो०९॥ सादीसंतहवेनाखशुरे नांगोत्रीजो सार देशप्रदेशत्रगुरुलघुरे आदितएहवीचार त्रुटक श्रादिश्रतवीचारतेसार अभवीजीवसाथैतेधार चोथो नंगएमतेसही अपेक्षीतपणाथीलही सुं० १०॥ काल द्रव्यमांगुणच्यारछेरे अनादीअनंत पर्जायमांअतितकाल छरे तेहीअनादीसंत त्रु० तेहीअनादीसंततेजांणो वर्तमा नकालसादीसंतांणो अनागतकालतेचोथोकहीये सा umsamine H Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९७ श्रीज्ञानविलास. दीअनंतभंगतेलहीये॥सु०११॥कालनुस्वरुपउपचारथी रे नहीवस्तुस्वरुप वीवाहपनत्तीयेभाखीयुरे जोजोतेहत्र नुप त्रु० जोजोतेहअनुपतेसही एमवलीबहूग्रंथेवही ह वेनाखुपुद्गलजेह चउभंगीयेलहीयेतेह ॥ सु०१२ ॥ पुद्ग लद्रव्यहवेजांणजोरे च्यारगुणेकरीसार तेहअनादीनं तछेरे प्रथमभंगनिहाल ७० प्रथमनंगनीहालतसा रो बीजोभंगइहांनवीधारो पर्जायच्यारेभाख्याजेह खं धदेशप्रदेशतेह ॥सु०१३ ॥ परमाणुतेजाणीयेरे तेमश्र गुरुलघुपरजाय सादीसंततेजाणीयेरे त्रीजोनंगतेथाय त्रुत्रीजोभंगथायतेजांण कोइकेहशेपरमाणुकेमण तेहनेकहीयेसांनलनाइ मलवावीखरवानीशक्तीछेतांही सुणो०१४॥वर्णगंधरसफरसनोरे परावरतनछेधर्म खंध मलेनेवीखरेरे एपद्लनोमर्म ७० एपुद्गलनोमर्मतेजाणो चोथोभंगएहमांनवीणो अपेक्षीतपणेतेकहीये बीजो चोथोनंगतेलहीयो।सणो०१५॥ कर्मतजीमोगयारे एह अनादीसंत तेजीववीणतेपुद्गलारे भांगोसादीअनंत त्रुट क० नांगोसादीअनंततेजांणो मुनीहूकसांमान्यवखांणो वीशेषपणेतेागेकहीशु नेदघणातीहांकणेलहीश ॥स पो०१६॥ ढालत्रेवीसमीसंपुर्ण॥ दुहाजिीवद्रव्यमांनाखशुं चउनंगीएह द्रव्यखेत्रका खनावथी जेछगुणगेह॥१॥ जीवद्रव्यमांगुणच्यार अना Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ श्रीज्ञानविलास. दीनंत जीवनेकर्मसंजोगए तेनादी संत ॥ २ ॥ कर्म कोई कालेछुटशे तेकार जाणो नरकत्रिजंचादीनव सादीसंत वखाणे॥३॥जीव ने सीधपणुत्रगटे करीकर्मनो नाश तेदीन भंगचोथोहोवे सादीनंतखास ॥ ४ ॥ हवेचउनंगीद्रव्यथी खेत्रकालनेभाव तेसाथे मेदाखशुं समजल्यो सुखलाव ॥५॥ढाल २४ मी॥ मेंदी रंगलाग्यो। देश ॥ जीवद्रव्यमांजा येरे द्रव्यखेत्रकालभाव श्रुतशुंरंगलाग्योरे रंगलाग्योरे चोलमजिठ श्रु० ॥एआंकण ॥ ज्ञानादी कगुणजीवनारे द्र व्यथकीची तलाव श्रु०॥ श्रनादी अनंत एथयोरे स्वखेत्रजी वप्रदेश श्रु॰ प्रसंख्याताजा णीयेरे उदवर्तनापणे खास श्रु० |२|सादीसंतनांगोजाणीयेरे जंगत्री जो केहेवाय श्रु० प्रथ वात्र्वगाहनथकीरे छतीपणुतीहांथाय श्रु० |३|एमजोतांए जाणीयेरेश्रनादीअनंतभंग श्रु० स्वकालागुरुलघुरे तेगु थीजोतारंग भु०|४| पणञ्प्रनादी अनंतछेरे अथवाबीजेप्र कार श्रु० गरुलघुगुणजाणीयेरे उपजवोवीणसवोसार श्रु०॥५ ॥ ते जोतांसादी संतछेरे अथवावर प्रकार श्रु० स्व नावगुणपजवजेरे श्रनादीनंतवीचार श्रु० ॥६॥ अगुरु लघुपजयजेरे सादीसंत के हेवाय श्रु० हवेकहू जीवद्र व्यमारे सुणतांतेसुखथाय श्रु ॥७॥ धर्मास्तीकायद्रव्य मांरे द्रव्यथीस्वद्रव्यजाण श्रु०चलणसहायगुणजेरे ना दीनं प्रमाण ०||८|| स्वखेत्रथी जाणीयेरे श्रसंख्यात Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. - - प्रदेश श्रु० लोकप्रमाणेतेहछेरे जाणोश्रागमरेहेश श्रु. | ॥९॥अवगाहनपणेजाणीयेरे सादीसंतकेहेवाय श्रु० स्व कालेकरीतेकहोरे अनादीनंतथाय श्रु०॥१०॥गुरुल घगुणजाणीयेरे अनादीअनंतछेएह श्रु-उत्पातवयतेजाणी येरे सादीसंतछेतेह श्रु०॥११॥स्वनावगुणचारछेरे अगु रुलघुतेमजाण श्रु. अनादीअनंततेनाखीयेरे सुधुएमची तत्राण श्रु०॥राखंधदेशप्रदेशएरे तेमअवगाहनमान श्रु०सादीसंतएजाणीयेरे धर्मद्रव्यनुज्ञान श्रु०॥१३॥एम अधर्मास्तीजाणीयरे सरखानावसोहाय श्रु० हवेत्राका स्तीकायमारे स्वद्रव्येगुणकेहेवाय श्रु०॥१४॥द्रव्यथीद्रव्य नेअवगाहनारे अनादीअनंतकेहेवाय सु० हवेस्वक्षेत्रमा खशुरे अनंतप्रदेशीथाय श्रु॥१५॥लोकालोकप्रमाणछे रेअनादीअनंतएह ७० अवगाहनापणेजाणीयेरे सादी संतभाख्योतेह श्रु॥१६॥स्वकालनेगुरुलघुरे गुणए नादीअनंत श्रु० उपजेवीणसेतेमसहिरे तेकारणसादी संत श्रु॥१७॥स्वभावथीगुणचारएरे तेमवलीएकजखंध श्रुअगुरुलघुतेमजाणीयेरे अनादीअनंतसंध त्रु०॥१८॥ देशप्रदेशजाणीयेरे तेछेसादीसंत श्रु० तेत्राकाशदोयमे दीरे भाखुतेसुणजोखंत श्रु॥१९॥ लोकाकाशतएकछेरे लोकाकाशनोखंध श्रु० तेतोसादीसंतछेरे हवेबीजोभाखु खंध ॥७०२०॥अलोकाकाशतेजाणीयेरे खंधअलोकनो Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० श्रीज्ञानविलास. एह श्रु० सादीनंसभांगेकह्योरे श्रागमवचनछेतेह ॥ श्रु० ॥२१॥कालद्रव्यहवेनाखगुंरे द्रव्यथीद्रव्यछे एक श्रु० न वापुरानावर्तनारे गुणछे तेहनोनेक ॥ श्र० २२॥ तेोश्रना दिनंतछेरे स्वक्षेत्रसमयविचार श्रु० सादीसंततेजाणि येरे वर्तमानसमय एकधार ॥ श्र० २३|| स्वकालप्रनादी संतरे वर्तमानसादीसंत श्रु० श्रनागतकालतेजाणिये रे जेछेसादोअनंत ॥श्रु० २४ ॥ पुद्गलद्रव्यहवे भाखशुरे द्र व्यथीद्रव्यपणुंएह श्रु०पुरणगलणधर्मछेरे श्रनादीनंत जेह ॥ श्र० २५॥क्षेत्र माणुंतेहनोरे सादीसंतकेहेवाय श्रु० कालथी गुणगुरुलघुरे अनादी अनंततेथाय श्रु०॥ २६ ॥ उपजवोनेविणसवोरे तेसादीसंतकहाय श्रु० स्वभावगु एच्यारछेरे अनादीनं तथाय श्रु०॥२७॥ वर्णादी कजेप ज्जवारे च्यारेसादीसंत श्रु० मुनीहुकमहवेागलेरे सुप जोभवीधरीखंत श्रु०॥२८॥ढाल २४ मी संपूर्ण ॥ ॥ दूहा ॥ द्रव्यक्षेत्रका ननावनी साथेचोनंगीएह ना खीछोएद्रव्यमां श्रनादीप्रमुखतेह ॥२॥ हवेनाखूखटद्र व्यनो अन्योत्रन्यसंबंध चोनंगीतिहांजोडशुं ते सुणजोसं घ॥२॥ सूक्ष्मवातइहाघणी नवीसमजायेजास तोबहुश्रु तचरणेजइ जाणवाक रोश्रभ्यास॥३॥ मानपणुइहांछोडी देइ छोडीद्योनिजमत विनयक रोबहूसूतनो तो जाणोएस त॥४॥ अल्पभूतजाण्याथकी गर्व करे जोकोय ते भूतपामे Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २०१ नही मूरखकहियेसोय॥५॥ कारणपरमादतजी करोश्रू तश्रभ्यास ज्ञानीगुरुनेगोतीने समकितसहितगुणजास ॥६॥ ॥ढाल२५मी॥ क्युंजाणुक्युबनीश्रावही एदेशी॥ हवेप्रथमइहांजोडीये श्राकाशद्रव्यथीसारहोभवीक अ लोकश्राकाशमांनहीं अवरपंचद्रव्यविचारहोभविक॥१॥ हवेप्रथमइहांजोडीए॥लोकाकाशमांनाखियेखटद्रव्यनो वासहोनवीक प्रत्येकेप्रत्येकेचउनंगी लागतेभाखतास होभवीकाह०२॥धर्मधर्मद्रव्यजे संबंधअनादिअनंतहो भवीकलोकाकाशप्रदेशमा प्रदेशेप्रदेशसंतहोनवीकाह० ॥धर्मधर्मद्रव्यना प्रदेशरह्याछेतासहोनवीक तेपण कदापीवीछडेनही तेणेघनादीनंतजासहोभवीकाह ४॥आकाशखेत्रजेलोकछे तीहांस।जीवकहायहोनवीक तेतोअनादीनंतछे एतोपेहेलोनांगोथायहोनवीकाह. याअथवासंसारीजीवजेह द्रव्यकर्मसहीतजेहहोभवीक ते मवलीलोकप्रदेशथी सादीसंतसंबंधतेहहोभवीक ॥ ह. ६॥लोकाकाशसंबंधने पद्लअनादीअनंतहोभवीक श्रा काशप्रदेशेजेरह्या पुद्गलद्रव्यगुणवंतहोभवीक ॥ह०७॥ द्वीपरदेशीप्रमुखसही खंधसरवेएजाणहोभवीक तेमप्र माणुसंबंधए सादीसंतचीत्तत्राणहोभवीक ॥ह० ८॥ श्रा काशद्रव्यजमनाखीयो तेमधर्मास्तीकायहोनवीक तेनो संबंधपणएमछे एमअधास्तीकायहोनवीक ॥ह०९॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ श्रीज्ञानविलास. एसर्वेसरखेभावेकह्या संबंधद्रव्यनाजासहोनवीक सर खभावेवीचारीने गुणग्रहणकरजोतासहोभवीक ह॥ १०॥ हवेभाखुजीवद्रव्यने पुद्गलसाथेसंबंधजेहहोभवीक अभवीजीवनेजाणीये अनादीअनंततेहहोभवीकाह०११॥ जेषनवीजीवडा नवीपांमेपदनीरवाणहोभवीक तेथीकर्म क्षयतेहनेनही सदापुद्गलसंगजाणहोभवीक ॥ह० १२॥ हवेजेनव्यजीवछे नाखुछतासवीचारहोभवीक लाग्यांक मतेछूटशे तेथीअनादीसंतधारहोभवीक ॥ह० १३॥ हवे नीश्वेनयेकरी नाखुद्रव्यविचारहोनवीक खटद्रव्यस्वनावे प्रणमे तेणेप्रणामीकसुखकारहोनवीक ॥ह०१४॥ तेथी परणामीकपणुसदा सास्वतोएछेनावहोभवीक तेथी अनादीअनंतछे एमसुधुचीतलावहोनवीक ह. १५॥ह वेजीवपुद्गलवीशे बेहुमलतांसंबंधथायहोभवीक तेथीपर णामीकपणुका परपरणामीककेहेवायहोभवीकाह०१६॥ परपरणामीकपणुजाणीये अनव्यजीववीचारहोभवीक त्र नादीनंतएहछे हवेकहुभव्यजीवनोसारहोभवीक।ह. १७॥अनादीसंतएहछे कारणनाखुतासहोभवीक जीवपु दलमलवातणो श्रादिनहिछेजासहोभविकाह०१८॥को ईकालेतेछुटशे तेथीएहसंतकेहेवायहोभवीक जीवपद्गलमां जाणीये एमभंगतेथायहोभवीक ॥ह०१९॥ पुद्गलपरमा णपणे सत्ताअनादीनंतहोभवीक जेमलवोनेवीखरवो तेतो Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. भाख्योसादीसंतहोभवीक॥ह० २०॥एमचउभंगीवर्णवी | खटद्रव्यमांसारहोनवीक मुनीहूकमश्रागेनलु कहिशुनय नोविचारहोनवीक ॥हवे०२१॥ ढाल २५ मी संपूर्ण। ॥दुहा॥ चउभंगीएवर्णवी खटद्रव्यमांसार थोतालेजो समजीने जीवपुदलविचार॥१॥जीवपुद्गलमलवाथकी स क्रीयकेहेवाय तेहपुद्गलरहीतथयो तवप्रक्रीयथाय ॥२॥ तेमाटेएपुद्गल सदासक्रीयजाण तेविचारागेभावशं न यपदमांचित्तत्राण॥३॥ नयतणोविचारबह जाणवदुरधर जेह कर्मक्षयउपसमजेहने तेसमजेगुणगेह ॥शा सदगुरु संगेतेलहे विनयकरीबहमान अल्पबोधथीविस्तरे तेल बिंदुसमान॥५॥ अवनीतनेआवेनही नयतणुएज्ञान भावे तोपणजाणीये अवलुछेतसज्ञान॥६॥वहामेहजपेरेजाणीये फलदायकनहितास पदपदसंकटतेलहे खोटीपडेजसभा स ॥७॥ भद्रबाहूतणीपरे फलदायकहोयसार तेकारणवि नयकरो जैननुमुलउदार ॥८॥हवेश्रोतासावधानथई सां भलजोएकचित्त मनवचनकायाथीरकरी ज्ञानीनीएरीता। ॥ढाल२६मी॥देशीएकवीसानी॥एकअनेकपक्षथीरे निश्चे व्यवहारज्ञानेकरी॥नयोनाखेरे निश्चेव्यवहारतेचीतधरी सर्वद्रव्यमारे अनेकस्वनावरह्याखरा तेएकवचनथीरेनवी जायकह्यापरा॥त्रुटकातणेमाहोमांहिसंखप एमकहिनेना खीये मुलनयनानेदबेछे तेकहीनेदाखीये एकनयदव्यार्थ - Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २०४ क बीजी परजायनयकही श्रन्योन्यवीचारजुदा भाख शुंहवेते सही ॥ १॥ द्रव्यार्थकनारे नेदहवइहांनाखशुं द्र व्यपणाथीरे तेतोकहीने दाखशुं परजायार्थकरे परजायग्र हाथीकहू उत्पातनेरेवयपरजायतीहांयहू॥ त्रुटक॥ परजाय श्रणलेवेकरी द्रव्यतीहांतेलीजीये सत्ताने ग्रहेवाथकीद्रव्यार्थ कतेकीजीये ते द्रव्यार्थ कनयतणो भेदनाखुछुहवे दशभेदते | जाणीये सत्यभाषणते कहे ॥ २ ॥ नीत्यद्रव्यार्थकरे प्रथमभेद एभाखीयो अगुरुलघुगुणरे खेत्र अपेक्षावीणदाखीयो ए कद्रव्यार्थ करे मुलगुणनेग्रहे पिंडपणेरे उत्पातवयतेनवील हे || ज्ञानादीगुणसरखे जीवसरवनेसरखा तेमपुद्ग खादी कद्रव्यमाहेगुणसरवेनरखा तेकारणएएमजाणी ए कद्रव्यार्थिकनये हवेत्रीजोभेदभाखु सास्त्रेजेमतेकहे ॥३॥ सत्यद्रव्यार्थिकरे स्वद्रव्यग्रहसही जेमसत्यलक्षणरे द्र व्यमांहिभाख्यावही व्यक्तवछे रेद्रव्यार्थिकचोथोभेदए वचन थीरे केहेवानोनखेदए| त्रुटका के हेवानोनखेदएही द्रव्यगु परजायते सर्वद्रव्यसहीतभाखीये वचनेग्रहेवाजोगए शुद्धद्रव्यार्थिकए भेदपांचमोभाखीये कर्मउपाधी सही तलेतां क्रोधादीक एदाखीये ॥४॥ उत्पातनयेरे॥वयसापेक्ष तेजाणीये शुद्धद्रव्यार्थ करे छठोनेदचीतप्राणीये कोई द्रव्यरे नामलहीनेभाखीये तेमांहीरे उपजवुवीणसबुदाखी ये त्रुटक॥ प्रथमद्रव्यार्थकनये मुलसत्ताएकजागीये सर्व Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २०५ सत्तासरखेभावे तेथीचीतएमश्राणीय॥शुद्धद्रव्यार्थकग्रही जीवसर्वनादाखीये पाठप्रदेशनीमलाछेतेथीत्रशुद्धएना खिये ॥५॥ द्रव्यार्थकरे सत्ताभेदएनवमो स्वद्रव्यरेजीव तेसंख्यनो प्रदेशसंख्यरेतेसर्वेसरखाकह्यातेकारणरे सत्ताद्रव्यार्थकएलह्यात्रुटक ॥ द्रव्यार्थक भेदएहि परम भावग्राहिककह्यो॥ गुणगणीस्वभावतेहि सर्वनोतेएकक ह्यो ज्ञानरुपजेमश्रात्माए सर्वद्रव्यतेमभाखीये द्रव्यार्थ कदशभेद एमकहिनेदाखियो॥६॥परजायार्थकरे नयस्वरु पतभाखिये परजायनयनारे खटभेदतेदाखिये तेहमांहिरे द्रव्यपरजायएमकह्यो भव्यपणोरोसिद्धपणोतेएमलयो त्रुटकाव्यंजनपरजायद्रव्यना स्वस्वपरदेशमारहेगुणपर्जा यएकथीये अनेकतापणुलहे जैनधर्मेएमभाख्यु द्रव्यधर्म जेआपणो चलणसहायगुणतेथी जिवपुद्गलमांथापणो॥७॥ गुणव्यंजनरे परजायएचोथोकह्यो एकगुणनारे नेदघणा इहांलहो स्वनावपरजायरे अगुरुलघुतेजाणीये एपांच मोरे परजायतेहवखांणीयात्रुटक० ॥ पर्जायतेहवखांणी ये जेसर्वद्रव्यमांनाखीया एपांचेपर्जायजाणो ज्ञानीवचने दाखीया छठोपर्जायजांणीये वीनावनामेतेकह्यो जीव पुद्गलमांहीलाधेश्वरमांहीतेनवीलह्यो।टाइहांजीवमारे नरनरकादीगतीकही नानाप्रकारनारे नवकरतांतेलही तेहवीभावरे परजायतेहनेनाखीये कर्मपरजायरेतेमकही - Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ श्रीज्ञानविलास. नेदाखीयोत्रुटक०॥तेमकहीनेभाखीयेए हवेपुद्गलमांकहू द्वीपरदेशथीमांडीने एअनंतपरदेशीलह खंधतणुतेमलवु कहीये वीनावपर्जायतेजांणीये परावर्तनसमयसमये ते हचीतएमांणीये ॥९॥ पाठंतरेरेछपरजायतेनाखशु शा स्त्रमारेकह्याछेतेदाखशुं अनादीरे नीत्यपरजायपेहेलोक ह्यो मेरुपरमुखरे श्रोतातुमेसमजिलयो॥त्रुटक०॥श्रोता तुमेसमजजोजे सादीनीत्यपरजायए सिहमांहीएहलाधे एमबीजोनेदथायए अनीत्यपरजायएते॥समयसमयभाखी ये छद्रव्यमांहीतेहलाधे उपजेविणसेदाखीये॥१०॥अशु दरेअनीत्यपर्जायचोथोकह्यो जन्ममरणथीरे एपरजायस त्यथयो हवेउपाधीरेपरजायपांचमोनाखीये कर्मसंबंध | थीरे शुभाशुभथीदाखीये॥त्रुटक०॥ शुभाशुभथीदाखीयेए परजायशुद्धछठोसही मुलपरजायसर्वद्रव्यना एकसरखा तेकहि पलटेनहितेमुलपरजाय स्वभावपरजायजाणीये पलटेतेहीकर्मपरजाय मुनीहुकमचीत्तत्राणीये ॥ ११ ॥ ढाल २६ मी संपुर्ण ॥ ॥दुहा॥ परजायनयएवरणवी खटभेदउदार खटखट दोयप्रकारना नाख्योतासविचार ॥१॥तेमद्रव्यार्थकव व्यो दसभेदथीजाण आगममांवीस्तारघणो इहांसंक्षेप प्रमाण ॥२॥हवेसातेनयवरणवु तेसुणजोअधिकार नाम प्रथमइहांदाखशं आगेनेदविचार॥३॥ निगमनयपेहेलो Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीज्ञानविलास. २०७ | कह्यो बीजोसंग्रहजाण त्रीजोव्यवहारजांणीये बहूवीद || चीत्तआंण॥४॥रजुसुत्रचोथोकटोशब्दनयसुखकार संनी रुढछठोकह्यो एवंभुतनीरधार।५।नामकह्यांएसातनां हवे कहुतासविचार भेदघणाइहादास्वशुखटद्रव्यमांसार॥६॥ ॥ढाल २७मी। जीरेमाहारेजाग्योकुंवरजाम ए देशी॥ जीरेमाहारेहवेकहनयविचार प्रत्येके प्रत्येकेनाखियेजी रेजी जीरेमाहारेसातेनयनीमांहे प्रथमनीगमनयदाखिये जीरेजी॥१॥ जीरेमाहारेनीगमकेहेतांजेह नहीछेतसए कगमोजीरेजी जीरेमाहारेअनेकविधतेगणाय जीहांती होतेएमसमोजीरेजी॥२॥ जीरेमाहारेअंशगुणथीतेह उ पन्योतेहनेग्रहजीरेजी जीरेमाहारेवस्तुपणुंमानेतेह एम नीगमनयलहेजीरेजी ॥३॥ जीरेमाहारेत्रनाखूद्रष्टांत तेहतुमेचीतमांधरोजीरेजी जीरेमाहारेजेमकोइमनुष्य म नमांहेविचारकरचोजीरेजी ॥४॥ जीरेमाहारेपालीलेवा काज तेवनमांहीसंचरयोजीरेजी जीरेमाहारेकाष्टलेवाने हेत पंथमांहीवहेखरोजीरेजी ॥५॥ जीरेमाहारेपंथेमलि योएक सामोमाणसजाणियेजीरेजी जीरेमाहारेतेणेपछी रेवात कीहांजावोछोएमनाणियेजीरेजी॥६॥ जीरेमाहा रेपुछ्यानोउत्तर तेणेसमेकांइतेकहेजीरेजीजीरेमाहारेपा लीलेवाकाजवनमांजावंवहेजीरेजी॥७॥जीरेमाहारेकरयो। इहारेविचार मोहोटोएकमनमांखरोजीरेजी जीरेमाहारे Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. पालीवनमरिकाम वणघडेतेवचन ठरयोजीरेजी ॥८॥ जीरे माहारेकाष्टपणकाप्युनांही दीठावीणएवचनकह्युंजीरे जी जीरेमाहारे तोमनचिंतवीवात तेनेतेव स्तुलपुंजीरेजी ॥९॥ जीरेमाहारेतेमजजीवस्वरुप श्रंशथकीते ग्रहणकरी जीरेजी जीरेमाहारेमांनेसिद्धसमान अथवाते सिद्धनापे खरीजीरेजी॥१०॥ जीरेमाहारेतेनीगमनारेनेद कह्यात्र तेजाणियेजीरेजी जीरेमाहारेतितश्रारोपणएह वर्त मानकालचितत्राणियेजीरेजी ॥११॥ जीरेमाहारेएप्रथ मभेद बीजोभाखंछुहवेजीरेजी जीरेमाहारेश्रनागत श्रारो पणजेह वर्तमानमांहेते ठवेजीरेजी ॥१२॥ जीरेमाहारेवर्त माननीगम नेदत्रण जाणियेजीरेजी जीरेमाहारेतेहत लोरेविचार नाखुंतेचितश्राणियेजीरेजी॥१३॥ जीरेमाहा रेतितनीगमजेह आरोपणविधिकहूजीरेजी जीरेमा हारे श्रीवीरनिर्वाण श्राजदीवालीएमलहूजी रेजी॥२४॥ जीरेमाहारे प्रतितकालनीवात वर्तमानमांएलहीजीरेजी जीरे माहारेएच्यतितनीगम प्रथमभेदतेएमकहीजीरेजी ॥१५॥ जीरेमाहारेश्रनागतनीगम नेदतासएभाखगुंजी रेजी जीरेमाहारेपद्मनानजिनवर दीक्षाज्ञानतेदाखगुंजी रेजी ॥ १६ ॥ जीरेमाहारेसतोककालनीवात वर्तमानतेक हीजीरेजी जीरेमाहारेनीगमनयएमथाय त्रणेभेदेतेलही जीरेजी ॥१७॥ जीरेमाहारेहवेकडूसंग्रहनय सत्ताग्राहेते २०८ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीज्ञानविलास. २०९ सहीजीरेजी जीरेमाहारेकारणसमजोतास एकनामेसर, वेग्रहीजीरेजी॥१८॥ जीरेमाहारेद्रव्यकहियेएक एमकेहे तांगुणपरजायसहीजीरेजीजीरेमाहारेसर्वपरिवारसमेत तेनयग्रहेछेवहीजीरेजी॥१९॥ जीरेमाहारेइहांभाएकद्र ष्ठांत तेतमेसुणजोचितदइजीरेजी जीरेमाहारेकारणना तास मनुष्यकोइपरभातलहीजीरेजी॥२०॥ जीरेमाहा रेबेठोघरनेबहार दातणवेलातेसहिजीरेजी जीरेमाहारे श्रापणाचाकरपास दातणमागेतेवहिजीरेजी ॥२१॥ जी रेमाहारेतवतेनोकरजाण जलरुमालसाथेसहिजीरेजी जीरेमाहारेदांतघसणनेकाज तेत्रावेदातणलहिजीरेजी ॥२२॥ जीरेमारेमाग्युहतुतवएक पणसवेसंग्रहथकीजीरे जी जीरेमारेतेमद्रव्यमांएह गुणपरजायावेनकोजीरें जी ॥२३॥ जीरेमारेसंग्रहनयनातेह नेददोयतेदाखीया जीरेजी जीरेमारेसामान्यसंग्रहजेह द्रव्यकहीनेभाखीया जीरेज॥२४॥जीरमारेजीवनेत्रजीव भेदजदातेनवीथया जीरेजी जीरेमारेनेदबीजोहवेजास विशेषसंग्रहकह्याजीरे जी॥२॥जीरेमाविशेषताएमथाय जीवद्रव्यतेकह्याजी रेजी जीरेमारेअजीवद्रव्यदूरतेह एमसंग्रहनयेलह्याजी रेजी ॥२६॥ जीरेमारेएसंग्रहनयजाण हवेव्यवहारनय भाखशुंजीरेजी जीरेमारेमुनीहुकमकहेएम शास्त्रीएदा खशुंजीरेजी॥२७॥ढालसतावीसमीसंपूर्ण ma Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. दुहा॥हवेव्यवहारनयवर्णवु जेहनाभेदअनेक तेसांभ लजोचितधरी भाखुछुकइंछेक ॥ढाल २८ मी॥ सुतसी दारथनुपनोरे ।एदेशि ॥ नयव्यवहारहवेतुणोरे जेहना दोयप्रकार एककल्पव्यवहारछेरे बीजोज्ञानाचार॥१॥न वियणसांनलो एहअनुनवउदाररे अमृतरसखाएत्रां कणी॥कल्पव्यवहारजेजांणियरे जिनआज्ञायविहार ते थीबाहेरकष्टजेरे फोगटएनिरधाररे॥भवि०२॥वेहेवारके हेतांबाह्यजेरे स्वरुपदेखीनेरेनेद वेहेंचेतेव्यवहारछेरेजे मांबोहोलोखेदरे ॥भवि० ३॥ दिसतागुणनेमानतोरे अंतरस्थानप्रमाण बाहेरदृष्टीनयछेरे अंतरदृष्टीनवखां परे॥न०॥जेकारणनीगमसंग्रहरे ज्ञानरुपध्यांनतेनांही तेहपरणांमवीनाअंशथीरे अथवासत्ताग्राहीछेतांहीरे ॥ नवि०५॥ तेमइहांकारणमुख्यतारे मनुषपणुएरेसार जीवनिअवस्थातीहांकनेरे अनेकनातविचाररे॥नवि. ६॥नीगमसंग्रहनयथकीरे जीवसत्ताएकरुप व्यवहारन यथीअनेकछेरे भाखभेदअनपरे ॥नवि० ७॥दोयभेदती हांजिवनारे संसारिनेरेसिद्ध सिद्धनानेदपणअनेकछेरे पन्नवणाएरिद ॥नवि० ८॥ संसारीदोयनेदथिरे अजो गीसजोगीरेजाण सजोगीदोयजातनारे केवलिछदम स्थवखाणरेनवि० ९॥ छदमस्थदोयभेदेकह्यारे खीण मोहिनपसंतमोहि उपसंतमोहदोयजातनोरे सुक्ष्मकखा Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २११ इसोइरे ॥नवि० १०॥ बीजोबादरकखाइछेरे तेहनापण भेददोय एकअवेदिजाणियरे श्रेणिप्रतिपनसोयरे ॥न वि. ११ ॥श्रेणिप्रतिपनदोयजातनारे ाठमेगुणठाणे जाण श्रेणिरहितबिजाकह्यारे तेहनादायभेदवखाणरे ॥ नवि० १२॥ अप्रमादिपरमादिजाणियेरे प्रमादिनादोय नेद सर्वविरतिदेशविरतिएरे दोयनेदनाखउमेदरे॥न वि०१३शविरतिप्रगामित्रविरतिरे दोयभेदेअविरतिरेजा ण एकविरतिसमकितिरे विजोमिथ्यात्वीअनांगरेभ वि० १४॥मिथ्यात्विदोयभेदथिरे एकनव्यविजोत्रभव्य ग्रंथिभेदपेहेलोकह्योरे अग्रंथिभेदइव्यरे॥भवि० १५॥ जेजिवजेहवोदेखियेरे तेहवोभाखियेतेह एमतव्यवहार नयनोरे अंतरउपयोगनएहरे॥भवि० १६॥ एमजपुर लद्रव्यमारे भेदघणाकेहेवाय इहांसंखेपेदाखशेरे व्यवहा रनयेतेथाय।भवि०१७ पद्गलद्रव्यदोजातनोरे परमाणु बिजोरेखंध खंधनाभेदपणदोयछेरे एकजिवसाथसंधरो॥ भवि०१८॥बिजोजिवरहितकह्यारे तेहनानेदअनेक जिव सहितखंधनारे भेददायकह्यानेकरोभवि०१९।एकसुक्ष्म बादरबिजोरे इंहांवर्गणानोविचार तेपुर्वेभाखीगयारे श्र रिहंतपदेतेधारभवि०२०॥एमअनेकभेदजांणियेरे व्य | वहारेवेहेचाय खटभेदइहांदाखशुरे तेसुंगजोसुखदायरे॥ | भवि०२ ॥सुहव्यवहारपेहेलोकटोरे सुणजोतासविचार Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ थीज्ञानविलास. ज्ञानदर्शनचारित्ररे निश्चयनयथिएकधार।भवि.२२।एक रुपछेतेसहिरे तेहनाकरवारेभेद शिष्यादिकसमजाववारे एव्यवहारउमेदरे ॥नवि०२३॥ अशुद्धव्यवहारबीजोक ह्योरे अज्ञानिकहेवोरेजिव रागद्वेषलागिरह्यारे एहअश दनहिंशिवरे ॥नवि०२४॥ त्रिजोशुभव्यवहारछेरे पुन्य करणिछेरेजास तपनेमनेकष्टजेरे व्यवहारचारित्रतासरे ॥नवि०२५॥ अशभव्यवहारचोथोकह्योरे अशनकर्म करेजेह पापकर्मथिपाछोनहिरे जिवहंशानोनेहरे ॥ न वि०॥२६॥ पांचमोउपचरितजाणियेरे वस्तुधर्मनहिजा स उपचारथापितेहनेरे वस्तुकरिमानियेतासरे ॥भवि० ॥२७॥ अणउपचरितव्यवहारछेरे शरिरादिकपरजाण शरिरजिवजुदापणुरे प्रणामिकभावेएकठाणरे ॥ भवि० ॥२८॥ एमव्यवहारनयजाणियेरे बहुश्रूतचरणथिसार मुनिहकमगुरुज्ञानथिरे होवेभवनोपाररे ॥भवि०२९॥ ॥ढालअठाविशमिसंपूर्ण॥ ॥दुहा। चोथीनयहवेभाखीये रजुसूत्रगुणजास अती तअनागतकालनी अपेक्षानकरेतास ॥१॥ वर्तमानकाल ग्रहे वस्तुनोजेगुण जेजेगुणप्रणमे तेतेमानेसुण ॥२॥ पामग्राहीजाणिये एनयनोविचार द्रष्टांतएकइहांदाखशु समजील्योसुखकार ॥३॥ग्रहस्थावासेजेवसे अंतरंगसा धुपरमाण तेनेसाधुमानेते एनयनुएकाम ॥४॥ परणांम Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २१३ चपलछेतेहना विषयादिकसंजोग अनीलाखीते सर्व नो ल्योनहिकोइरोग ॥ ५ ॥ प्रविरती एजीवछे तेहेने मानेसाध इत्यादिकविचारबहु समकितिमनबाध ॥ ६ ॥ दोयनेदरजुसूत्रता सूक्ष्मबादरजाण सूक्ष्मइहांवखाणिये प्रथमभेदचित्तत्र्याए। ॥७॥ वस्तु सर्वसदायते वर्तमानकाले जेह समयमात्र तेग्रहे देखाडुगुणतेह ॥ ८ ॥ तितकाले जीवए हूतो ज्ञानीजा श्रनागतका लेतेवली अज्ञानथा शेचित्तत्र्त्राण ॥९॥ वर्तमानकालेज्ञानिछे ज्ञानिनाखेतास | भूतभविष्यकालनी अपेक्षानहिजास ॥१०॥ एकजवर्त मानकालनो समयग्रहेएक देखेतेवाभाखतो सूक्ष्मरजु सूत्रनेक ॥११॥ बादरथुलपरणामने ग्रहेतेरजुसूत्र एम जीनतेजालिये रजुसूत्रनयहुत ॥१२॥ ढाल २९ मी ॥ क्रीडाकरीघरश्राविया ॥ एदोश | शब्दनयहवेभाखशु जे हनागुणनेकरे केहेतांपारावेनहि समकीतगुणनीटे करे शब्दनयहवेभाखशु ॥१॥ वस्तु सर्वगुणेभरी अथवा निर्गुणजेहरे नामलहि बोलाविये भाषावर्गणाथी तेहरे ॥शब्द ०२॥ वचनगोचर जेहोवे तेशब्दनयजाणोरे रुपि द्रव्यवचनशुं ग्रह्योनजायेताणोरे ॥ शब्द ० ३ ॥ पणवचनशुं जाखिये तेथीशब्दनयथायरे शब्दनार्थजेहवा वस्तुमां गुणतेपायरे ॥शब्द ०४॥ घटपटजेमतेशब्दथी तेवोर्थती हांहोयरे तेकारणएनयनो विषयतेवाजोयरे ॥ शब्द ० ५ ॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ श्रीज्ञानविलास. अथवाव्याकर्णादिक विनतीसमासरे तेप्रतेअव्ययधा तुसही तेसवीशब्दमांखासशब्द०६॥नामादिकनखपा सही एनयमांकहेवायरे तेसवीभागेनाखशु नखेपअधि कारेथायरे ॥शब्द० ७॥ छठीनयहवेभाखिये संभीरुढसु खकाररे गुणघणावस्तुतणा प्रगटेतेहविचाररे ॥शब्द०॥ ८॥ अल्पगुणबाकीरह्या प्रगटशेतेखासरे तेहनेवस्तुमा नतो एअनिप्रायछेजासरे ॥शब्द० ९॥ नामादिकवाचक अर्थ प्रगटरुपधर्मजेहरे तेपरजायनेवस्तुकहि बोलावेछे एहरे ॥शब्द०१०॥ अर्थपर्जायप्रगट्याविना पर्जायपण नमानेरे प्रगटपर्जायनेमानता एककरीनेजाणेरे॥शब्द. ११॥जेमजीवचेतना आत्मशब्दएहरे नामार्थधर्मप्रगटहू वातेमांगणेगुणगहरोश०१२॥एमपदार्थतणो एकअर्थकरे तेहरे एछठीनयजाणिये अंशत्रोछीछेएहरे॥श०१३॥तेर मागणठाणेइंहां केवलिभगवंतजाणोरे सिद्धकहितेबोलता नेदकोइचितनप्राणो॥श०१४॥देशउंणानेपूर्णकहे एविष यछेजासरे एवंभुतहवेभाखशुं सातमीनयछेखासरे श०१५ गुणेजेसंपुर्ण वस्तुजेदेखायरे क्रियाकरेतेश्रापणि तेवस्तुठ रायरेश०१६॥वस्तुनावचनपर्जायजे तथावस्तुधर्मजेह रे सर्वप्रगटपरवर्तता तेहनेवस्तुकहेतेहश०१७॥जेजिव कर्मक्षयकरि मोक्षेपोहोतासाररे तेहनोसिद्धकसहि एवं भतेएहविचारश०१८॥इहांद्रष्टांतएकभाखीये तेसमज Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % श्रीज्ञानविलास. जोसाररे कुंनशब्दतसकिजिये सुणोतासविचार॥श० १९॥स्त्रिमस्तकथापियो जलभरीयोसुखकाररे जलधार पक्रियाकरे श्रावतोकुंनतेधार॥श०२०॥एमसंपूर्णमान तो एवंभुततेजाणोरे एमसातेनयभाखीया सुदाचित्तमां प्राणोरे॥श०२१॥पुनर्पिसातेनय द्रष्टांतकरिनाखुरे मुनि हूकमश्रागेसहि अनुजोगद्दारथिदाखुरे॥श०२२॥ढाल श्रोगणत्रिसमिसंपुर्ण॥ ॥दुहा॥जेमकोइपुरुषप्रते पुछेत्रवरतेसोय कहोभाइतुमे कीहांवसो वलतुकहतेजोय॥१॥लोकमांहेहूंवसु निगम अशुद्धतेएह वलतपुछेलोकए त्रणनेदछेतेह॥२॥ उर्धने त्रिलोकयो अधोलोकतेमजाण तेहेमांतुमेकिहारहो ते भाखोसुवीनाण॥३॥ त्रिछालोकेहुरहू शुद्धनिगमएवाक्य वलतुपुछेत्रिछाविषे॥द्विपअसंख्यसाक्याहातेमसमुद्र संख्यछे वसोकोणद्विपमाहि तेवारेवलतुकहे जंबुद्विपेतांही ॥५॥शुद्धांतरनीगमतणु जाणोतमेविचार हवेवलतुतेणेपु छियु तेभाखुउदार॥६॥जंबुद्विपमांखेत्रघणा कोणखेत्रेतुम वास तवअतिशुद्धबोलियो नरतखेत्रेखास॥७॥वलतुपुछेभर तना खंडछकेहेवाय तेमांहेतमेकिहांवसो तवनाखेसुखदाय ॥८॥मध्यखंडेश्रमोवसु दक्षणदिशामांजेह तवतेपुछेदेशबहू कोणदेशमांकेह॥९॥तवकहेमगधदेशमां तवपछेतेगाम तव कहराजग्रहिविषे पाडोघरतेठांम ॥१०॥ इत्यादिकबहपू P - Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ श्रीज्ञानविलास. छिय तिहांलगेनीगमकेहेवाय हवेअवरनयवर्णवु तेसण जोसखदाय॥११॥ढाल३०मीरामचंद्रकेबागमांत्रांबोमो रीरह्योरी एदेशी।पुछेनरवलीतेह घरमांजीवघणोरीवल तबोलेतेह संग्रहनयनणोरी॥१॥नयनयप्रतेसार उत्तरप्र त्यत्तरकहोरी समजिलेजोविचार संक्षेपेतेहवहोरी॥२॥त वउत्तरदेतेह श्रासनमाहेरहोरी वलतपछेतेह तमेकिहां वसोरी॥३॥हवेवोल्योव्यवहार शरिरमांहेवसोरी रजसत्र नाखेएम निजउपयोगरसोरी ॥४॥शब्दनयबोल्योताम स्वभावमाहेरहोरि परनावकिधोत्याग श्रद्धाशद्धग्रहोरि॥ नियसंनिरुढतांम कहनिजगुणमांवसोरि ज्ञानादिकग णमांहे एवंभुतकहोरि॥६॥भाख्योजेमद्रष्टांत सर्ववस्तुमां हेकहोरि पुछेकोइकएम एकप्रदेशलहोरि ॥७॥ खेत्रकरि अंगिकार कहोखेत्रएकोणतणोरि निगमभाखेएम षटद्र व्यपणोरि ॥८॥ कारणसुजोतास अाकाशप्रदेशल हेरि एकेषटद्रव्यहोय तवसंग्रहकहेरि ॥९॥ अप्रदेशी छेकाल तेतिहांनविमलेरी सर्वलोकमांहेजाण एकसमय लहरि॥१०॥तथिजुदोनहित्राकाश कालविनापंचग्रहोरी तवबोलेव्यवहार मुख्यद्रव्यलहोर॥११॥ रजुसुत्रनाखे एम उपयोगजासदियोरी तवतेद्रव्यकहाय दूजोनाहि कहोरी॥१२॥बोलेशब्दनयसार नामजासलहोरि तेद्रव्य नोप्रदेश वलतिसंभिरुढकहोरि ॥१३॥ एकत्राकाशप्रदेश Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २१७ तेमध्यप्रदेशरहोरी नाखुतासविचार प्रदेशधर्मनोएकक होरी ॥ १४॥ अधर्मद्रव्यनोएक जिवनाअसंख्यरहेरी पुद्गलअनंतप्रदेश परमाणुछुटापणकहेरी॥१५॥ भाखए वनुततांम प्रदेशतनोकहेरी गुणक्रियासहितजास तेस मयेरेलहेरि॥१६॥ एमएसातेनय खेत्रप्रदेशेकहेरी दाखु जिवमांहवेतेह सातेनयवहे॥१७॥भाखेनिगमनयताम गुणपरजायधरेरी तेहनजिवकहेवाय शरिरसहितवरेरी ॥१८॥ तेनयजोतांएम पद्लद्रव्यग्रहेरी धर्मास्तीकाया दिकएम जिवमाहेलहे। ॥ १९॥ संग्रहनयतवबोल अ संख्यप्रेदशकहेरि जिवतेहकहेवाय ॥ आकाशविणसर्व ग्रहरी ॥ २० ॥ बोलेतवव्यवहार ॥ नयतेहकहेरी वि षयलहिकरेकांम ॥ विचारतेजिवसहेरी ॥ २१॥ ते थिधर्मास्तीकाय ॥ अधर्माकाशटलोरी ॥ अवरपुद् लपणजाय पणइंद्रिमांनवरोरी ॥२२॥ कारणवीषेएजेह जीवीजुदाकहेरी पणइहांनेलाधार तेजीवमांहेगहेरी ॥२३॥ रजुसुत्रभाखेजेह उपयोगीतेजीवकहरी मिथ्या विनेपणहोय तेथिमिथ्यात्वग्रहेरी ॥२४॥ इंद्रियादिविष यतास मनसुद्धाटलोरि ज्ञानअज्ञानएकनाव तेथिमिथ्या त्वमलोरि॥२५॥शब्दनयविचार तेवारेबोल्योखरोरि ना मथापनाद्रव्य नावसाथेचारवरोरि॥२६॥ वेहनयनिमां हे गुणनिरगुणलहोरि नेदजुदोनविथाय तवसंनिरुढक - २८ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ श्रीज्ञानविलास. होरि ॥ २७॥ ज्ञानादिकगुणजेह तेहनेजिवकहेरि तेनयने अनुसार साधना सर्वग्रहेरि ॥ २८ ॥ मतिश्रुतज्ञान इत्या दिकसर्वग्रहेरि साधकप्रवस्थाएह तेजिवमांहेलहेरि ॥२९॥ तेवारेएवंभूत नयवोल्योवहेरि जिवकहियेछियेता स अनंतज्ञानग्रहेरि ॥ ३०॥ दर्शनचारित्र्नंत सत्ताशुद्ध मात्र कहेरि एनयेजिव जाण सिद्धगुणग्रहेरी ॥ ३१ ॥ जिव स्वरुपसार सातेन ये कहोरी मुनिहूकमसुखकार सम जागुणलहोरी ॥३२॥ढाल ३० मिसंपुर्ण ॥ ॥हा॥ धर्मधर्मसविजगकरे अनेधर्मन जाणेजास ए कांतवादेखेंचता लहिमिथ्यात्वनिवास ॥१॥ श्रथवामतपक्ष मांपड्या नविजाणेते मर्म श्रापमत खेंच्याकरे नविजाणे वेधर्म॥२॥धर्मजाणवाकारणे नाखुतासविचार नयसाते भगवंते कहि ते समजो सुखकार ॥ ३॥ सातेनयेतेहोवे धर्म नाजुदाभेद ते समजवाकारणे टालीमननोखे ॥ ४ ॥ एकां तपक्षनेत्रा पमत वलीकुगुरुनोसंग श्रालसप्रमादतेमतजी करो सुगुरुरंग ॥५॥ हवेसातेनयेकरी भाखुंधर्मसुखका र मनवचकायाथीरकरी सांभलोतासविचार ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ३१ मी ॥ हमलीलालरंगावूवरनांमोलियां ॥ ए देशी हवेसावेनयेधर्म सांभलो जेनाख्युंछेवीतरागरे तेह तूमेचीतमांधरो तेसमजवानोछेलागरे ॥१॥ हवेसातेनयेध सांभलो एत्रांकणी ॥ प्रथमनीगमनयक हे धर्म सर्वेमांसा Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीज्ञानविलास. २१९ ररे धर्मइच्छेछेसर्वेते तेकारणधर्मविचाररे॥हवे०२॥अंश रुपधर्मजे अथवानामधर्मवलीजेहरे तेनयेतेग्रहणकरयं हवेसंग्रहभाखेगुणगेहरे ॥हवे०॥ जेहवडेरेश्रादरयुं तेह धर्मसुखकाररे अनाचारतेणेत्यागियो पणमिथ्यात्वरह्यो धाररे॥हवे. ४॥ कुलाचारनेधर्मकहे तेथीत्रज्ञानपणुंके हेवायरे व्यवहारनयतवबोलियो जेसुखकारणथायरे ॥ हवे. ५॥ हवेतेहनेधर्मतेदाखवे पून्यकारणने तेहरे पुन्यनेधर्ममानतो श्राश्रवग्रहेछेएहरे ॥ हवे. ६ ॥ रजुसुत्रतवबोलियो उपयोगसहिततेधर्मरे वेरागसहि तपरणांमने धर्मनाविजेतेएमरे ॥ हवे० ७॥ जथाप्रट तीकर्णना परणामप्रमुखतेलिधारे सर्वेतेधर्ममांगणे ते तोमिथ्यात्वनावमांपणकीधारे॥हवे०८॥ तवबोल्योशब्द सही धर्मतेसमकितकहीयेरे धर्मनमुलसमकितका ते मार्गसुद्धोलहियेरे हवे०९॥ तवसंभीरुढउचरे जेहजिव अजिवरे नवतत्वखटद्रव्यते तेओलखियेसदीवरे॥हवे. १०॥ जिवसत्तानध्याइये करीअजिवनोत्यागरे ज्ञानदर्श नचारित्र शुद्धनिश्चयनयनोरागरे॥हवे०११॥ वधताव धतापरणांमजे क्षपक श्रेणीआरोहेरे कर्मक्षयनेकारणे ए साधनधर्मसोहेरें॥हवे०१२॥ मुलस्वनावजेजिवनो धर्म स्वनावपणतेहरे संभिरुढएधर्मछे तुमेसमजिल्योगुणगे हरे॥हवे०१३॥ हवेएवं तनयथि धर्मतेशुद्धकेहेवायरे सं Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० श्रीज्ञानविलास. पुर्णनयमानतो तेवातचित्तसोहायरे ॥हवे० १४॥ कार जजेचेतनतणु मुक्तिरुपसुखकाररे सिद्धखेत्रमाहिरहे ते हिजधर्मविचाररे॥हवे. १५॥ एसातेनयेकरि नाख्यध मस्वरुपरे समकितमिथ्यात्वजोइने तुमेग्रहणकरजोअन परे॥हवे०१६॥नयच्यारेमिथ्यातमां मलतिकाहजिनरा जरे तेउपदेशदूरेकरि मनथिकरोतेताजरे॥ हवे ०१७॥ पांचमीनयथिचितधरोत्रणेनयसखकाररे समकितसहि ततेजाणिये धर्मखरोतेविचाररे॥हवे०१८॥ एमजाणिच उत्यागीये त्रणादरियेउदाररे श्रात्मअर्थीजिवने उप देशनाख्योमनुहारहवे०१९॥हवेसिदस्वरुपने नयसा तेकरुवखाणरे प्रथमनयेजिवसवी सिद्धपणेतेजाणरे ॥ हवे०२०॥ रुचिकप्रदेशआठजिवना निर्मलसिद्धसमान रे तेथिसर्वेजिवसिधछे हवेसंग्रहनयविज्ञान॥हवे०२१॥ सत्तासर्वेजिवनि सिद्धसमानछेएहरे तेणेपरजायनयेकरि कर्मअवस्थाटालिजेहरे॥हवे०२२॥ द्रव्यार्थनयेग्रहि अ वस्थाभाखीएहरे तवत्रीजोनयबोलियो विद्याप्रमुखसिद्ध गुणगेहरे ॥ हवे० २३॥ रजुसुत्रनयउचरे ओलखिसत्ता साररे सिद्धसमानात्मनी उपयोगध्यांनविचाररे॥ह वे०२४॥ तेहसमेतेजिवने सिद्धकहियेछेसुखकाररे एणे समकितसिद्धसमगणु हवेपंचमीनयमनुहारहवे०२५॥ शुक्लध्यानशुद्धतिहां प्रणामजेहनाहोयरे नामसहितनखे Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २२१ पते सिद्धस्वरुपतीहांजोयरे ॥हवे०२६॥ छठोतवकहेकेव लि ज्ञानदर्शनप्रमुखसाररे गुणवंततेसिद्धकह्या तेरमेच उदमविचाररे॥हवे० २७॥ एवंनुततवउचरे कर्मसर्वेनो नासरे लोकचंतेबिराजमान लह्योमुक्तीमांवासरे।हवे. २०॥ अष्टगुणसंपनजे तेहि जसिद्धभगवंतरे सातेनयेसि ददाखवा पणसमजेकोइगणवंतहवे. २९॥ नयवीचा रएकह्यो आगेप्रमाणकेहेवासेरे मुनीहूकमसुखतेघणु ज्ञा नमांचीत्ततेवासरे।हवे०३०॥ढाल एकत्रीसमी संपुर्ण॥ ॥दुहा॥ सातेनयएवर्णवी द्रव्यादिकमांहिं समजुजीव तोसुखलहे मुरखनेमननांहि ॥१॥ एसातेनयकही तेमाहे थीएक जोकोईवचनउथापशे तेजाणोअविवेक ॥२॥ एसा तेमाहिथकि जाणवाजोगछेच्यार श्रादरवाजोगत्रणछे ए लेजोविचार॥३॥थांनकथांनकप्रत्येघणा जदाजदाविचार श्रादरवाजोगएकथी सातलगेछेधार॥४॥तेमाटएकांतनहि नयतणोविचार ज्यांहांजेवुकारजहोवे त्यांहांतेवुचित्तधार ॥५॥नयविचारतेसत्यछे सातेनयमनुहार तेमाटेतुमेश्राद रो एकांतपक्षनिवार ॥६॥ पणप्रमाणविनानहि नयतणो समुदाय तेमाटेप्रमाणकहू समजुमनसुखथाय ॥७॥ ढाल ३२ मी॥ झुमखडुझुमीरारे॥एदोश॥ प्रमाणनय तुमेसांनलोरे जिनसासननुसार ज्ञानगुणेरमो॥ एत्रांक पी॥दोयप्रकारेप्रमाणकपुरे तेसुणजोविचार ज्ञानगुणेर Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ श्रीज्ञानविलास. ० मो॥१॥ प्रत्यक्षप्रमाणपेहेलुकरे बीजुपरोक्षतेधार॥ज्ञा न० प्रत्यक्षप्रमाणतेनाखशुरे प्रथमर्थविचार ॥ ज्ञान ० २|| जेजेचेतनश्रापणेरे उपयोगथी सुखकार ज्ञान० स र्वद्रव्यनेजाणतोरे गुणप्रजायउदार ॥ ज्ञान० ३॥ कर्मख पाविकेवलियारे तेज्ञानप्रत्यक्ष ज्ञान० खटद्रव्यतेजा तारे रुपिश्ररुपिदक्ष ॥ ज्ञान ० ४ ॥ मुर्तिमुर्तितेहने रे जाणपणामांसार ज्ञान • सर्वप्रतक्षतेजाणियेरे एखपक रोउदार ॥ ज्ञान० ५ ॥ देशप्रत्यक्षहवेनाखशुरे जेहनाने दछेदोय ज्ञान • मनपर्जवज्ञानजेरे श्रवधीबीजुजोय ॥ज्ञा न० ६ ॥ ऋढीहीपनिमांहिएरे संन्नीपंचंद्रीजेह ज्ञान० ते हजीवतातिहारे मनोभावजाऐएह ॥ज्ञान • ७॥ रुपि द्रव्यनेजेलहेरे पुद्गलजेहकेहेवाय ज्ञान • परमाणुतेजाण तारे तेथीदेश प्रत्यक्षथाय ॥ ज्ञान ० ८॥ छदमस्थजेनावछे रे तिहांमतीश्रुतज्ञान ज्ञान • परोक्षप्रमाणतेहने कहीयेरे सर्वथकिएजाण ॥ज्ञान ० ९ ॥ मतिश्रुतज्ञानथीरे जेजेजा ऐनाव ज्ञान • तेह परोक्षप्रमाणनारे त्रणनेदकहाव ॥ ज्ञा न० १०॥ श्रागमप्रमाणप्रथमकह्युंरे बीजुत्रनुमानजा ज्ञान० त्री जुत्रोपमाजाणियेरे कहूप्रथमनुवखाण ॥ ज्ञान० ११॥ श्रागमकेहेतांशास्त्रजेरे तेमांनाख्योविचार ज्ञान० तेहस्वरुपत्रापणेरे जाणीयेसर्वउदार ॥ ज्ञान० १२॥ देवलोकनेनरकनीरे मनुपत्रीजंचतेसार ज्ञान० नी Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २२३ गोदस्वरुपतजाणियेरे द्वीपसमद्रउदार ॥ज्ञान० १३॥ खटद्रव्यतेजाणियेरे जडचेतनवीभाग ज्ञान० रुपिअरु पितेसविरे सिद्धांतथीजाण्यानोलाग ज्ञान० १४॥ अन मानप्रमाणजेरे देखीकोईसेनाण ॥ज्ञान० देखीधुमाडो कोईघरथकिरे वह्मीतेचित्तआण ॥ज्ञान० १५॥ ओपमा नप्रमाणजेरेद्रष्टांतथीथायतेह ज्ञान मुखगोलछेसहीरे ई दु¥नमसमजेहे ॥ज्ञान०१६॥ एमपरोक्षप्रमाणनारे अ वरनेदअनेक ज्ञान शास्त्रथीतमेजाजोरे एहवचनवि वेक ॥ज्ञान० १७॥ प्रमाणतेनयभाखीयेरे नयनखेपाहो य ज्ञान माटेागेनिक्षेपातणोरे कहीशविचारजोय ॥ ज्ञान० १८॥ मनीहूकमगुणतेसहीरे निक्षेपचउविचार ज्ञान तेशीवलायकजाणियेरे जेहनेअनुभवउदार ॥ज्ञा न० १९॥ ढाल ३२ मी संपूर्ण ॥ ॥दुहा॥हवेनखेपावर्णवं शब्दथकीकेवाय तेकारणश ब्दनयमांचारनखेपाथाय॥१॥निगमसंग्रहादिकनय प्रत्ये केप्रत्येकेजाण चारचारनखेपछे एहसमुचीतप्राण ॥२॥ अथवाअनुजोगद्दारमा नखेपतणुनहिमान अनेकनखेपा वर्णवे समजुनेएज्ञान ॥३॥ विशेषशक्तिज्ञाननी तेहनेदा खुएह जेहनीशक्तिकमहोवे चउनखेपगुणगेह॥४॥ चतुः नखेपवीणवस्तुनहि एशास्त्रेविचार तेकारणनखेपातुमे | धारोशुद्धविचार॥५॥ढालतेत्रीसमी॥ सहीमोरीचालोसु Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. गुरुजीनेवंदीये ॥एदेशी॥भवीतुमनखेपारेवीधीसांनलो जेहनानेदअनेकहो ज्ञानितुमे तेहमांचारमुख्यकह्या ते सूणजोविवेकहो॥ज्ञानितमे०१भवीतुमेनखेपाविधिसांन लो।नामनखेपनेथापना त्रीजोद्रव्यकेहेवायहो।ज्ञा०॥भा वनखेपोचोथोलह्यो एचारनखेपाथायहो ॥ज्ञा०२नवी॥ गाथा। पर्यायाणनीधेय। ठियमणछत्तथय। निरविखं जायथीयंचनामजावदव्यचयेण॥॥तथाथापनालक्षण॥ जंपुणतयथसुन्नतय॥भिप्पाएणतारिसागा।कीरद्रवनि रागारं॥ इत्तरमीयरंचठाणा ॥२॥ द्रव्यलक्षणं। दव्वएदू वएदोव॥पवोविगारोगुणाणं॥सदावोदवनवनावस्स। भुयनावंचजंजोगां ॥३॥ अथवायच्चकारणंदृद्रव्यं ॥ भु तस्सनावीनोवा ॥ भावस्सहिकारणंतूयलोकेतद्रव्यं । ईत्यादिनावलक्षणं ॥ हरीनद्रपज्यभावोविवक्षीत ॥ कि यानुभतियुक्तो॥हिवेसांमाख्यात॥सर्वज्ञेरिद्वाहीवहिता ददिक्रियानुनावात् ॥ स्वस्वद्रव्यथी नखेपाचारतेथायहो।ज्ञा०॥अवरपक्षमा हीनवीलहो नीजवस्तुमांकहेवायहो।ज्ञा०३॥ कोईभाखे उपचारथी नपाएजाणहो।ज्ञा०॥ तेहनेकीजीये पतु हवेकहतासवीनाणहो॥ज्ञा०४॥परद्रव्यमांजोथापीये न खेपातेजाणहोज्ञा०॥ तेउपचारथकीहोवे भीनस्वरुपची ताणहो।ज्ञा०५॥ पणतेनीजस्वनावमां नामादिकएचा Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २२५ । - रहो।ज्ञा॥स्वस्वरुपमांदाखता नहीईहांउपचारहो।ज्ञा० ६॥श्रीजीननद्रगणीनाखीयो तेहनेएहविचारहो।ज्ञा०॥ शंखाकखातेथीदुरकरो धारोसद्धमनहारहो ॥ज्ञा० ७॥ ॥उक्तंचाईहानावाच्चीयवत्छनयत्छसुनेहीकिचसेसेहिं॥ नामदयोविभावतेविहूबछुपज्जाया ॥ इतियद्यस्मात्ते पिनामादयो ॥वस्तुनापर्यायाधर्मास्तबाघविशेष्टेइंद्रवस्तु न्यच्चरीतेनामादयौपीनावविशेषएव ॥ पुनर्पिकांछे भावनीखेपानेअंते तदेवंनिन्नवस्तुषाविशे षतश्चित्यमांना|नामादिनाप्रधानेतर॥ नावोदर्शितसामा न्यतः॥पुनःश्चित्यमांनानांसर्ववस्तुष।प्रत्येकांचतुर्णामप्य मीषा।सद्भावप्राप्यते॥एवेतिदर्शयन्नह॥ अहवावत्छनिहा [नामंठवणायाजोतयागारो॥ कारणयासेदव्यंकज्जाव नभप्नयंतोवो।गाथा॥१॥ एमअनेकशास्त्रेकरी पुरवाचारजएहहो ॥ज्ञा ॥तेहनां वचनतेएमछे धारोतुमेगुणगेहहो ॥ज्ञा०८॥एकवस्तुमा रेजांणीये नखेपाचारेतेहहो ।ज्ञा०॥ तेथीनीजनजद्रव्य मां नखेपाभाखोएहहो ॥ज्ञा०९॥ एकद्रव्यथीनीनभाख तां नखेपानोहोयनाशहो ॥ ज्ञा० ॥ भीननीननखेपारहे जुदेजुदेद्रव्येवासहो ॥ज्ञा०१०॥ कारणएकद्रव्यमान खेपामांनजोचारहो।ज्ञा०॥ नयअथवानखेपजे एकद्रव्ये चीतधारहो ॥ज्ञा० ११॥ भीनद्रव्येमानवाथकी लागत २५ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ श्रीज्ञानविलास. समिथ्या हो ॥ज्ञा० ॥ पूर्वग्रंथमांतो एमछे धारोसुद्धीवा तहो ॥ ज्ञा० १२ ॥ ॥ उक्तंचपूज्ये ॥ एवंवयंतीनया मिछानानिवेस त्रोपरो प्पर इतीवचनात् ॥ पुनरपीबीजे प्रकारथी स्वपरजायभाख्यातासहो॥ज्ञा०॥ तेथीपरमारेनवीमले नयनखेपनीरासहो ॥ज्ञा • १३॥ ते कारणसरधाकरो स्ववस्तुनाछेपरजायहो ॥ज्ञा ॥ नामा दिकतेजाणिये तेथपरमांनकेहेवायहो ॥ज्ञा ०१४॥ ॥ उक्तंच ॥ जेनामाइभेप्रसहथ ॥ बुद्धिपरीणामनावत्रो निययं ॥ जंवथथीलोए ॥ चउपज्जायंजयं सव्वं ॥ १ ॥ स्वस्वरुपमांजाणीये नामादिकए चारहो॥ज्ञा ० ॥भीनक ल्पनानवीकरो सुद्धार्थ धारहो ॥ ज्ञ०१५ || एहनखेपा नोजालीये वीस्तारजेछेतांहीहो ॥ज्ञा ॥ श्रवरग्रंथेसंखेप छे जोजोमनउछांहीहो ॥ ज्ञा० १६ ॥ सिद्धांतअधीकारीपु ज्यए श्रीजीननद्रगणीधारहो ॥ ज्ञा० ॥ तेपुज्यनांवचनए हछे ग्रंथरच्योमनुहारहो॥ज्ञा ० १७॥ विशेश्यावशक तेजा णीये तेमांजोजो नावही ||ज्ञा ॥ मुनीहूकम सुखसंपदा लेवानोछेदावहो ॥ज्ञा • १८ ॥ ढाल ३३ मी संपुर्ण ॥ ॥ दुहा ॥ स्वद्रव्येएवर्णव्या नखेपातेचार स्वपरजायते जाणीये उत्तमएश्राचार ॥ १ ॥ श्रभिन्नधर्मछेएहनु तेना ख्युं सुखकार चिन्नद्रव्ये हवेभाखशुं नखेपातणोवीचार ॥ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २२७ २॥निन्नभिन्नद्रव्येमली नखेपातेथाय तेहीजभिन्न धर्मछे उपचारेकेहेवाय॥॥ तेहतगोवीस्तारकरी देखाडीशंएह अनुनवीतेरसलहे समजीगुणनोगेह॥४॥रहश्यसवोतए हना समजेज्ञानीसार मुरखअर्थपामेनही तेममतपक्षी धार॥५॥ तेकारणथोतातुमे तजीमतपक्षदूर एहअर्थत मेधारजो ज्ञानरसनरपुर ॥६॥ ढाल ३४ मी ॥ जीहोकंवरबेठोगोखड।एदशी॥जीहोनिन्नद्रव्यमांजाणी ये जोहोनिन्नधर्मतेह जीहोनखेपाचारलहो जीहोअथवा अनेकहोयजेह॥१॥नवीकजिनसमजोनखेपवीचार॥ ए आंकणी ॥ जिहोनामनखेपपेहेलोकहू जिहोसुणजोता सवीचार जिहोवस्तुगुणाकारथी जिहोनामधरेउ दार॥ भ०२॥ जिहोद्रष्टांतथीतेजाणीये जिहोजेमको इलठीरेभंग जिहोकटकोएकतासग्रही जिहोजीवकहे तसरंग ॥भवी०३॥ जिहोअथवाबीजेद्रष्टांतथी जिहो मांचानिजिविरेजेह जिहोतेहेनेपणकिजिये जिहोनामन खेपोतेहान०४॥जिहोकोईकहेतेमांजिवनहि जिहोतेकेम मान्योरेजाय जिहोउत्तरतेहनेदिजिये जिहोसमजील्योसु खदाय भ० ॥ जिहोकश्नरंगेदोरडी जिहोकृश्नपक्षे देख जिहोअहिबुद्धियेतेहनेहणे जिहोअहिपापतसलेख भ०६॥ जिहोजेमएपातकलागियु जिहोनामनखेपथि धार जिहोतेमसर्वमांजाणिय।जिहोनामनखेपसुखकार - Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ श्रीज्ञानबिलास. ॥ ०७ ॥ जिहोना मतपवासिद्धये जिहोइत्यादिकबहूबोल जिहोनाम सत्यतेजाखियु जिहो सुत्र मांहिते खोलन ०८॥ जिहोथापनानखेपोनाखशुं ॥ जिहोकि हिमांकि हिनो श्राकार जिहोदेखिने ते हनेकहे जिहोतेहिवस्तु सुखकार ॥न ०९॥ जिहोकाष्टपाषाण नीसहि ॥ जिहोमूर्तिबहूप्रकार जिहोहेज्ञेपरमुखजाणिये ॥ जिहोत्राकारथिबोलविचार ॥०१॥ जिहोश्रथवाचित्रामणसहि ॥ जिहोत्राकारथि नामठराय ॥ जिहोतेमप्रतिमाजिनराजनि जिहोरीहंत सिद्धनिकेहे वाय॥न ०११॥ जिहो हवे द्रव्यनखेपनो जिहो भाखुकांइविचार जिहोजेहद्रव्यमांनामहोवे जिहोथाप नात्रा कारधार॥ ० १२ ॥ जिहोगुणाने लक्षणहोवे जि होत्रात्मउपयोगनाहि जिहोतेहने द्रव्यतेजाणिये जिहोन खेपोत्रिजोज्यांही॥न०१ ३ ॥ जिहो ज्ञानिजेजिवछे जिहो निजउपयोगविणतेह जिहोते हनेद्रव्यतेनाखियो जिहो अनुजोगद्वारे एह ॥ भ०१४ ॥ जिहोपदक्षरनेमातरा जिहो सुत्र सिद्धांतरेवांच जिहोपुछेश्रथवाश्रर्थ करे जिहोभिन्न उप योगेतांच ॥ ज०१५॥ जिहोगुरुमुखतेसह हे जिहोसताश्रो लखेरेनाहि जिहोतेथिद्रव्यनखेपछे ॥ जिहोपुन्यबंधनेते म्यांहि ॥ १६ ॥ जिहोमुक्षकारनविनाखियु जिहोजो जोसुत्रविचार जिहोकष्टक्रियातेबहूकरे जिहोतपकरेरेउ दार ||२०१७ |जिहो जिवाजिव सत्तातणु ॥ जिहोत्रोल Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. | खाणजेहनेनाहि जिहोभगवतिसुत्रेतेभाखिया जिहोव रतिअपचखाणिताहि ॥भ० १८॥ जिहोबाह्यक्रियादिक करी जिहोसाधुपणमानजेह। जिहोलोकमांपणकेवरावता जिहोसाधुपणुगुणगेह ॥न०१९॥ जिहोतेहमृषावादीना खीया जिहोउत्तराध्यनमोझार जिहोज्ञानिनेमनिकह्या जि होकष्टादिकथिअज्ञानिधारान०२०॥ ॥उक्तंच॥ नमुणीरनवासेणं ॥ इतिवचनात् ॥ नाणेण यमुणीहोइ॥ इतिवचनात्।। जिहोकोइगणताणुजोगथि ॥ जिहोकोइककल्पविचार जिहोचरणसित्रिकरणसीत्रीना॥ जिहोकोइकथानजोग धारभ०२१॥ जिहोएमअनेकप्रकारथी जिहोजाणीदेउप देश॥ जिहोनाखेअमेज्ञानिछिय।जिहोपणअज्ञाननिवेश ॥भ०२२॥जिहोद्रव्यगुणपरजायने जिहोजाणेजेसुखकार जिहोज्ञानितेहनेनाखीया जिहोउत्तराध्यनमोझाराभ०२३॥ उक्तंच॥ श्रीउत्तराध्येनमोक्षमार्गअध्ययनमांएयंपंच विहणानांदवाणयगुणाणय॥ पज्जवांणयसव्वेसिंनाणं सम्वसि॥ नांणंनांणीहिदंसियं ॥१॥ जीहोनवतत्वोलख्याथकी जीहोश्रद्धाजोथिरथाय जी होसमकीततोकहियेतेहने जीहानहितोमिथ्यावीकेहेवाय न.२४॥जीहोसमकीतवीणज्ञाननहि जीहोज्ञानवीना चर्णनहोय जाहातेकारणश्रधाशुद्धधरो जीहोदेखीउत्त - Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २३० राध्येन सोय ॥२५॥ ॥ उतंच ॥ नाणं दंसणनांनांविनान हुंतीचरणगुंणा ॥ जीहोत्राकाले बहूप्राडंबरी जीहो किरियाकष्टदेखाड जी होज्ञानहिपतेनरा जीहोते हनोसंगदूरछांड न० २६ ॥ जीहोबाहाजकरणीतो नवी जीहोकरेछेनीर्धार जीहोते उपरराचवुनहि जीहोते तोठगधार ॥ • २७॥ जीहोत्रा त्मस्वरुपोलख्याविना जीहोसामायकादिकवत जी होपच्छखांणपडीकमणाजाणिये जीहोद्रव्यनखेपेसत ॥ न० २४ ॥ जीहोपुन्याश्रवतेजाणिये जीहोसंवरतिहांनहि लेश जीहोश्रात्मसामायकनाखिउ जीहोभगवतिसूत्रे वि शेष॥न ० २९॥ जीहोजीवस्वरुपजाण्याविना जीहोत पसं जमधारेजेह जीहोपुन्यप्रक्रतीबांधेसहि जीहोदेवलोकन वतेह न० ३०॥ ॥उक्तंच॥ जगवती॥ श्रायापलुसांमाईयं॥ पुवतवेणंदे वादेवलोयेउवजंती॥ पुवसंजमेणं देवादेवलोयेउवजंती ॥ नोचेवायभाववत्तवयाए । जीहोज्ञाहिजेनरा जीहोक्रीयालोपरितेह जीहोग छनीलाजेसिद्धांतते जीहोनणेवाचेछेजे ह॥ ज० ३१ ॥ जी होव्रतपच्छखांणपालतो जीहोद्रव्यनखेपेतेह जीहोत्रनु जोगद्वारमां जीहोसूत्रे नाख्युछेएह ॥ भ० ३२॥ ॥ उतंच ॥ ईमेसमणगुणमुक्कयोगी॥छ कायनिरणुकंपा Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. हयाईवदूद्वामा॥गयाइवनिरंकुसा॥घठामठातुप्पोठापंडु रयाउरणाजिणाणं॥प्राणाएसछंदा॥विहरिउणउभोका लाश्रावस्सगस्सउवछंतितोलोगुतरियंदव्यावसयं॥ ॥जीहोजोतीषजुवेवैदककाजीहोपापश्रमणकह्यातेह॥ जीहोत्राचारजउवझायते॥जीहोखोटारुपियासमएह॥भ० ३३॥ जीहोघणाभवतेनटकशे॥ जीहोअवंदनीककराते हाजीहोश्रनाथीअध्येनथीजाणजोजीहोउत्तराध्येनेएह ॥भवी०३४॥जीहोसुत्रअर्थजेजेकरे॥ जीहोगुरुगमजोयो रेनांही॥जीहोनयनखेपजाण्याविना॥ जाहोपरमाणसत भंगीतांही।भवी ० ३५ ॥ जीहोनिश्चैथीनिजआत्मनु जी होनोलखाणथईरेनही जीहोनीयुक्तिप्रमूखजाण्याविना जीहोउपदेशदेवेतांही॥नवी०३६॥जीहोत्रापेतेसंसारमा जीहोडब्याछेनिरधार जीहोतेहनीपासेजेबेसता जीहो सांनलेशास्त्रविचार॥भवी० ३७॥ जीहोतेहनेसाथेलेइ ने जीहोडुबेछेकांइतेह जीहोदसमेअंगेतेमका जीहोत्र नुजोगद्वारेएह ॥नवी०३८॥जीहोतेमभगवतीअंगमां जी होसुतऋथोपरमुक्ष जीहोएमअनेकशास्त्रथकी जीहोजोई लेजोतुमेदक्षाभवी०॥जीहोएबोलजेजाण्याविना जीहो मरखावादिकह्यातेह जीहोतेकारणबहुश्रुतनी जीहोशेवा करोगुणगेह॥भवी०४०॥जीहोतेकारणउपदेशजे जीहो सुणजोतुमेनवीजन जीहोबहुश्रुतपासेरंगथी जीहोछोडी Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ श्रीज्ञानविलास. द्योसंगअन्यानवी०४१॥जीहोबहुश्रुतनेसोलउपमा जी होउत्तराध्येनमोझार जीहोमेरुप्रमुखतिहांकही जीहोबह श्रुतमोटोधार ॥ नवी०४२॥जीहोद्रव्यनषेपोएनाखीयो जीहोजाख्यात्रणवलीएह जीहोभावनखेपोहवेदाखशु जी होसांभलजोगुणगेह॥भवी०४३॥ जीहोमनीहूकमएभा खीयो जीहोबहुशास्त्रअनुसार जीहोनावधरीजेश्रादरे जीहोतेलहेभवनोपार॥नवी०४४॥ढालचोत्रीसमीसंपूर्ण॥ ॥दुहा॥नामथापनाद्रव्यए त्रणेनिक्षेपाजाण नावविना अशुद्धछे कह्याश्रीजीननाण॥१॥तेकारणतुमेनावए नि क्षेपोसुखकार श्रादरोनवीबहूमानथी जेहथीभवनोपार ॥२॥लक्षणगुणेसहीतजे नामत्राकारजसदेख वस्तुतेभाव निक्षेपछे अनुजोगद्वारेपेख॥३॥ दानशीयलनेतपए किरी याज्ञानतेजाण नावविनानीष्फलसही तेकारणनावची तत्राण ॥४॥ केटलाकएमनाखेसही द्रढकरीमनपरी णाम तेहनेनावजजाणीये एवभाखेछेताम ॥५॥ एप वचनअसत्यछे सुणोतासविचार सुखअर्थीजेजीवडाम नथीरकरेनिरधार ॥६॥ मंत्रजंत्रजापादीके मिथ्यात्वी पणतेह मनथीरतेहराखता नवीगणीयेनावएह ॥७॥ सूत्रसाखवीतरागनी श्राज्ञायसुखकार ॥ हेज्ञेउपादीये एमअनेकविचार ॥८॥ अजीवाश्रवबंधए तेहनेक रोरेत्याग जीवस्वगुणसंवरसही नीर्जरामोक्षेराग॥९॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २३३ - - एउपादेयजाणिये एमजनावकेहेवाय तेविनासर्वद्रव्य छे समज्यातेसुखथाय ॥१०॥ रुपिद्रव्यतेगुणछे अरु पिगुणतेभाव मनवचकायलेस्यादिक तेद्रव्यनिक्षेपेचित्त लाव ॥१॥ ज्ञानदर्शनचारित्रए विर्जध्यानप्रमुख जीव गुणसर्वस्वभावछे एभावनिक्षेपेसुख ॥१२॥ नामथापना द्रव्यशुं भावसहितएचार भाख्यावहूविचारथी समजीले जोउदार ॥१३॥ ढाल ३५मी॥ वीनवुपारसपदाटलीयो नीजमदाएदोश। द्रव्यखटमांहि निक्षेपाचारतांहि वर्णवू तेसुखकाररे तुमेलालसुरंगा निक्षेपातणोविचाररे तुम लालसुरंगा ॥एत्रांकणी॥ प्रत्येकेप्रत्येकेतेह द्रव्यद्रव्ये जेह नाखुकईतासविचाररे तुमेलालसुरंगा निक्षेपातणो विचाररे तुमेलालसुरंगा॥१॥ जीवद्रव्यविषे निक्षेपाचार कसे नाखुकइंतासस्वरुपरे तु० न० जीवएवुनामधार अ नेकथांनकउदार नाखुद्रष्टांतअनुपरे॥तु० न० २॥मांचा निवांणमांहि जीवकहेछेतांहि तेनांमनखपोथायरे तु न० जीवतणीरेएक मुर्तिथापियेटेक तेथापनाकेहेवायरे॥तु० न०३॥द्रव्यनखेपोभाखु उपयोगरहितदाखु तेजीवद्रव्य केहेवायरे तु० न० एकंद्रीथीलहि पंचंद्रीपरजंतकही द्र व्यनखेपोतेथायरे ॥तु० न० ४॥ उपयोगसहितजारे चेत नस्वगुणधारे परभावदूरेजायरे तु० न० सेहेजस्वभावखे ले निजगुणज्ञाननेले तेनावनखेपोकेहेवायरे ॥तु० न० 30 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. ५॥ धर्मास्तीकायजाणो द्रव्यमांहितेत्राणो नखेपाकहि येतेचाररे तु० न० धर्मकहिनेभाखे नामलहिकोईदाखे ते नामनखेपोधाररे तु० न०६॥ वस्तुकोईथापिएह धर्मद्र व्यनामतेह तेथापनानखेपोजाणरे तु० न० जीवपुद्गलने जेह चालतांसाजदेनहितेह तेसमेद्रव्यचित्तत्राणरे ॥तु. न० ७॥ साज्यकरेछेज्यारे द्रव्यचालेछेत्यारे तेनावनखे पोकेहेवायरें तु० न० हवेअधर्मास्तीजेह द्रव्यनाखुछतेह नखेपोतेचित्तलायरे ॥तु० न० ८॥ कोईकनामलहि अध मद्रव्यकहि तेनामनखेपोजाणरे तु० न० मर्तिप्रमुखकोई वस्तथापियेसोई तेअधर्मथापनाप्राणरे ॥तु० न० ९॥द्र व्यनखेपजेह थीरसायनांहितेह जीवपुद्गलनेधाररे तु० न० थीरनावकरेसाज जीवपुद्गलनेकाज तेनावनखेपोउ दाररे॥तु० न० १०॥आकाशएवनाम भाखेकोईद्रव्यने ताम तेनांमनखेपोधाररे तु० न० कोईद्रव्यथापि प्राका शएवनामापी तेबीजोनिक्षेपोउदाररे॥तु० न० ११॥ श्राकाशद्रव्येएह द्रव्यनिक्षेपोतेह अपप्रवगाहनकहेवा यरे तु० न० अवगाहनात्रापेज्यारे द्रव्यत्रततेत्यारे भा वनिक्षेपोथायरे ॥तु० न०१२॥ कालएवनामकोई बोला वेद्रव्यजोई निक्षेपोपेहेलोकेहेवायरे तु० न० कोईद्रव्य देखी थापनाकालनीलेखी थापनानिक्षेपोतेथायरे॥त. म. १शावर्तनानहिज्यारे द्रव्यनिक्षेपोत्यारे उपचारीका Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २३६ लकेवायरे तु० न० वर्तनावर्तेज्यारे नावनिक्षेपोत्यारे कालद्रव्यमांथायरे ॥तु० न०१४॥ पुद्गलद्रव्येजेह निक्षे पाच्यारतेह नाखुछुतासविचार तु० न० पुद्गलनामएछ कोईद्रव्यमांकहेव नामनिक्षेपोतेधाररे॥१० न०१५॥व स्तुकोईदेखी थापनापुद्गललेखी थापनानिक्षेपोतेजाण तु० न०॥मलणविखरणगुन ज्यारेतेहोवेसुन त्रिजोनि क्षेपोचित्तणरे ॥तु० न० १६॥ मलणादिकज्यारेगुणव तेछेत्यारे भावनिक्षेपोधाररे ॥ तु० न० ॥ खटद्रव्यएह च्यारेनिक्षेपतेह लेजोएमविचाररे ॥तु० न०१७॥साधु पदमांहि नखेपाचारताहि भाखछुतासविचाररे तु० न० साधुएवुनाम नाखेकोइद्रव्यनुताम मुर्तिसाधुनिसुखकाररे ॥तुलन०१८॥थापनानखेपोदाखो हवेतेद्रव्यनाखो विण उपयोगेकेहेवायरे तन पंचमाहाव्रतपाले क्रियाकष्ट धारे दोषटालिगोचरीजायरोतु न०१९॥ ज्ञानध्यांनजे ह मोक्षकारणतेह तेउपयोगनविहोयरे तुन उपयोग विनाकरतो आश्रवभाववरतो एद्रव्यनक्षेपोसोयरे ॥तु. न०२०॥ नावसाधुतनाख गुणकहिनेदाखु चोथोनक्षेपो तेधाररे तु न० संवरकरणीकरतो भावमोक्षनोवरतो अं तरगतीउदाररातु न०२१॥ संवरभावएक जुदोनहिने क श्राश्रववेहेवारएककेहेवायरे तु० न० मुनीहुकमनाखे अंतरभावज्ञानराखे लहिमुक्तिसुखदायरे ॥तु० न० ॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ श्रीज्ञानविलास. २२॥ ढाल ३५ मीसंपूर्ण ॥ ॥दुहा॥ अहंतादिकपदविषे भाखुनखेपासार प्रत्ये केप्रत्येकवर्णव तेसुजोअधिकार॥१॥पणतेसवीनखेपए निन्नपदेकेहेवाय कारजएथीनविहोवे समजील्योसुख दाय ॥२॥अनिन्ननखेपोश्रादरो जेथीकारजसिध पूर्वा चारजनाखिया प्रात्मतणीएरोह॥३॥ विशेश्यावशकग्रंथ मां तेमवलिमाहानाष्य इत्यादिकबहुशास्त्रमा जोइलेजो उलास ॥४॥ तवकोइकेहेशेएसो भिन्नतमेकेमदाखो लोकभरमावाकारणे फोगटशानेनाखो॥५॥ उतरतेनेत्रा पुहवे सुणोसंतसुखकार हालनेपंडितेरच्या निननखेपवि चार ॥६॥ तेकारणहूनाखुछु भिननखेपविचार पणकार जछेअभिनमां निश्चेथिनिरधार ॥७॥ ढाल ३६ मि। रागसिंदूडों ॥ चित्रोडिराजारे ॥ एदेशि ॥ अरिहंतए वुनामरे कोइजिवनुतामरे थापनाअरिहंतनिमुर्तिलिजि येरे द्रव्यअरिहंतरे जिहांलगेसंतरे छदमस्थकालत्यां किजियेरे॥१॥ केवलज्ञानधारिरे दर्शनपदअजुवालीरे समोसरणेनावअरिहंतजाणियेरे सिद्धएवनामरे कोइजि वनुतामरे अथवा विद्यादिकथिजाणियेरे ॥२॥ प्रतिमागु णगेहरे सिद्धजिननितेहरे थापनानखेपोतेचित्तत्राणियेरे द्रव्यसिद्धजाणोरे तेरमगुणठाणोरे तेमचउदमामांकिजि येरे ॥३॥ सिदखेत्रेवसियारे श्रात्मगुणरसियारे भावन Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. खेपोसिद्धनोतेलह्योरे कोइनामेज्ञानरे कोइजिवनुतामरे नामनखेपोतेत्यांजा लियेरे ॥४॥ शास्त्र जेलखीयांरे अक्षरप रमुख लखियारे अथवा मुर्त्तिज्ञाननिकहिरे द्रव्यनखे पोनाखुरे विणउपयोगेदाखुरे सीद्धांतभणेवली तेसहिरे ॥५॥ अथवात्र्यन्यमतिनारे शास्त्रसर्वरितीनांरे वैदकजोती शप्रमुखएमलहोरे ॥ नवतत्वजाणेरे पटद्रव्यपरमाणेरे नाव नखे पोतेनेभाषियेरे ॥६॥ नामतपकहियेरे एवुनाम कोइनुलहीयेरे प्रथमनखे पोएसीपेरेजाणीयेरे तपविधि जेहरे लखिपुस्तकमांतेहरे थापनातपतेनेदाखियेरे ॥७॥ | मासखमणादिजाणरे दशपच्छखारे पुन्यकारणतेनेलि जियेरे धर्मनहितेहरे श्राश्रवगुणएहरे द्रव्यनखपोतेने किजियेरे ||८|| परवस्तुजाणिरे त्यागनावचीतच्चाणीरे निजस्वभावेतेहनरर मेरे नावतेजाणारे नखे पोचितत्रा णोरे नखेपाचारेतपमांहिलीजीयेरे ॥ ९ ॥ संवरादी करे वस्तुतमठीकरे तीहांतीहांनखे पाए पीपेरेवर णवोरे प्र थमनत्रणएहरे नयचारमांगुणगेहरे चोथोनखपत्रिणन यमांहेजाणीयेरे॥१०॥ नामथापनाजेहरे द्रव्यनखेपोतेहरे कारणभाख्यांभावनखपनारे मुख्यनावतेजालोरे निमी तत्रवरत्रांणोरे माहाभाष्ये एणीपेरेनाखीउरे ॥११॥ २३७ ॥ उक्तंचनाष्ये ॥ श्रहवानामठवएगा || दव्वाइनावमंग लाइपाए॥ नावमंगल परीणाम॥निमित्तउभावाश्रो॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ श्रीज्ञानविलास. त्रणनखेपापाखरे नावनखेपोदाखेरे कारजसिद्धिएए कलोकरेरे अथवाएदोयरे द्रव्यनावतेजोयरे बेनखेपा उपकारीकह्यारे ॥१२॥ नामादीकवीनारे नावनीक्षेपेकी नारे कारजकारिमाहानाष्येकह्यारे तेमाटेएमजाणारे नावनखेपोलेजोताणीरे एहथीकारजसीडीहोशेखरीरे१३ उक्तंच॥वथसरुवनाम।तप्पवयहेत्रोप्रोसधम्मव्वव त्छुनाणाभिहाणाहोज्जानावोविवज्जासो ॥१॥ वत्छसल खणंसंववहारोहसदाभो ॥ अनिहाणाहीणाअोबुद्धिस होकिरियाय॥२॥ नामथापनाजाणारे उपगारचीतत्रांणोरे कारणनिमीत एहनेधारीयेरे मोक्षानीलाखीरे मोहदशादूरनांखीरे जे साधवावंछेतेहनेहवेकहूरे ॥१४॥ संवरनीर्जराजेहरे वंद ननमनतेहरे नावनखेपेसवी सुखपामीयेरे कोइभाखेरे अरीहंतगुणदाखेरे भावनखेपेएहसुखपांमशेरे॥१५॥एम नहीछेएहरे भाखसमजोतेहरे भावअरीहंतथीपणअवर तरेनहीरे जोएहथीतरतारे संसारीगुणवरतारे तोसर्वेसं सारीमोक्षमांहीवशेरे॥१६॥ पोतपोतानोजाणोरे नावन खेपोचीतआंणोरे तेहथीजीवसर्वेमुक्तीलहेरे एमजाणी शुद्धरे आदरोभलीबद्धरे भावनखेपोत्राराधनकरोरे॥१७ नीक्षेपाएमाख्यारे वीवरीनेदाख्यारे समजुनउपगारघ पोथशेरे मुनीहकमतेभावरे रमेनीजगुणदावेरे सेहेजे Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २३९ शीवशुखतेहथीपामशेरे ॥१८॥ ढाल ३६ मी संपुर्ण ॥दुहानीक्षेपाएवर्णव्या जेहनागुणअगाध ज्ञानीजन समजेसही सुखज्ञानपाराध॥१॥हवेस्यादवादवर्णवु स तनंगीसुखकार अस्तीनास्तीपरमुखए सुद्धस्वरुपवी चार ॥२॥नावएकठणबहू सुक्ष्मज्ञानछेएह गुरुगमथी जेधारशे तेसमजशेगुणगेह॥३॥ बहुश्रुतगुरुजोइने श्र धासुद्धनरीयो ज्ञानउजागरतादशा जेहगुणनोदरीयो ॥४॥ तेवागुरुनेशेवजो समजजोअर्थवीचार तोतुमने सुलभथशे ज्ञानतपोउपगार ॥५॥ ॥ढाल३७मी॥एणेअवसरतिहांडुमरे ए देशी॥ स्यादवा दहवेनाखशुरे समजीलेजोएहरे सुगुणनर सत्यासत्यप क्षथीहोलाल सप्तनंगीइहांदाखियेरे खटद्रव्यमांधाररे सुगुणनर समजेज्ञानगुणथीहोलाल॥१॥ नामप्रथमएभा खशंरे स्यात्त्रस्तीसुखकाररे सु० स्यात्नास्तीबीजो भंगछेहोलाल अस्तीनास्तीत्रीजोकटोरे चोथोप्रवक्तव्य धाररे सु० एहीजमुलअंगछेहोलाल ॥२॥ अस्तीत्रव क्तव्यपांचमोरे नास्तीप्रवक्तव्यछठोधाररे सु० अस्ती नास्तीनेगोलहेहोलाल जुगपतप्रवक्तव्यकटोरे सा तमोनंगउदाररे सु० अर्थएनोहवेकहेहोलाल॥३॥ स्या त्रस्तीकेहेतांथकारे अनेकांतपणुंसर्वएहरे सु० अपे क्षालीयोजीवद्रव्यमांहोलाल आपणाद्रव्यक्षेत्रथकीरे का Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. लअनेवलीभावरे सु.गुणपरजायस्वजीवमांहोलाल॥४ाए मसर्वद्रव्यमारे स्वगुणपर्जायरे सु० अस्तीनांगोपेहेलो थयोहोलाल स्यात्नास्तीबीजोकह्योरे भांगातणोविचा ररे सु० तेहअर्थहवेलहोहोलाला॥५॥ जीवद्रव्यमांपांच नारे द्रव्यक्षेत्रनेकालरे सुनावसहितचारजाणियेहोला ल तेजीवमांलाधेनहीरे तेथीनास्तीनांगोथायरे सु० एम सर्वद्रव्यमांत्रांणियहोलाला॥६॥ स्वद्रव्येवस्तीकहीरे प रद्रव्येनास्तीभावरे सु० गुणपर्जायपणएमलहोहोलाल स्वगुणपर्जायस्वद्रव्यमारे अस्तीभावकहेवायरे सु० पर गुणादिनास्तीपणोकह्योहोलाल॥७॥ हवेत्रीजानंगनीरे अस्तीनास्तीविचाररे सु० स्यातपदेएजोडियेहोलाल जेसमेअस्तीतेसमेरे नास्तीपणुंतिहांदेखरे सु० स्यातव चनेत्रसतमोडियेहोलाल ॥८॥ शुद्वस्वगुणेअस्तिरे तेणे समेपरगुणजाणरे सु० नास्तिपणुंतिहांकयुंहोलाल एक समेतेकेमनाखियेरे दोयभंगभेलाथायरे सुतेकारणभंग त्रीजोलहोहोलाल॥९॥ हवेअस्तानास्तीदोउरे एकसमे नेगांहोयरे सुतोस्वस्तिकेहेतांथकांहोलाल असंख्या तसमयहोवेरे तवनास्तीनकेहेवायो।सु०॥मरखावादलागे तिहांहोलाल ॥१०॥परनावेनास्तीनाखीयरे स्वअस्तीन केहेवायरे॥सु०॥ इहांअसत्यावखरुहोलाल बेहवचन बोलवारे एकसमेनहोयरे ॥सु०॥ एहवीचारमनधरोहो - Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञान विलास. लाल॥११॥ एकप्रक्षरउचारणेरे असंख्यात समयथायरे सु०तेथीचोथोनांगो कह्योहोलाल वक्तव्य जाणियेरे व चना गोचरएहरे सु० जीहांउचारणनवीलह्योहोलाल ॥ १२ ॥ शीष्यक हस्वामीकहारे वक्तव्य केहनाथायरे सु० दोयनोनेगोभाखियोहोलाल गुरुकहेतुमेसांनलोरे श्र स्तीनावे वक्तव्यरे सु० वचन उचारणनविदाखियोहोला ल ॥ १३॥ तेथस्तीप्रवक्तव्यछेरे तेमनास्तीप जाण रे सु० पांचमोछठोएमजाणियेहोलाल जुगपतपण वक्त व्यछेरे सातमोभांगोजेहरे सु० एमसप्तभंगीचित्तच्ाणिये होलाल॥१४॥ शिष्यकहेस्वामीकहोरे वक्तव्यनावछेए हरे सु॰उच्चारए|केमकीजियेहोलाल गुरुकहेस्यात्पदल होरे उच्चारणसुखेथायरे सु० एमसमोनावलिजियेहोलाल १५॥ सर्वे पदमांस्यात् जोडियेरे तोलागेनहिमृषावादरे सु० सत्उच्चारणएहछे होलाल जेमएस्तीनास्तीविषेरे नां गासातेदाखरे सु०तेमबीजामांकेहेछे होलाल॥१६॥ नित्य २४१ नित्य मांजाणियेरे एकत्रनेकमांसाररे सु० सतत्र सतपण तेमकह्याहोलाल नेदप्रभेदमांनाखियेरे नव्यानव्यमां धाररे सु० गुणपजीयपर मुखेलह्याहोला ला॥१७॥ एमने कप्रकारमारे सप्तभंगीकेहे वायरे सु० सर्वेथानकेला गेखरी होलाल जेकारणएमजाणियेरे सिद्धमांनयनहोयरे सु०स तभंगीतीहांठरीहालाल॥१८॥ सप्तभंगीएसिद्धमांरे लागे ३१ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ थीज्ञानविलास. छेसुखकाररे सु० तेकारणएसमजीयेहोलाल मुनीहूकम गुरुसेवीनेरे श्राराधोतुमेज्ञानरे सु० तेथीशीवसुखलीजि येहोलाल ॥१९॥ ढाल ३७ मी संपूर्ण॥ ॥दुहा॥ सत्ताअोलखवाकारणे नाखुत्रिनंगीसार सम जीलेजोप्राणिया एछेज्ञानउदार ॥१॥बाधकसाधकनेसि दए मिथ्याद्रष्टीजेह तेहनेबाधकभावछे एमांनहिसंदेह। २॥ समकीतगुणठांणाथकी अजोगीपरजंत साधकनाव तेजाणिये समजीलेजोसंत॥३॥सकलकर्मनोक्षयकरीत्र नंतचतुष्टीपाय मोक्षपुरीमांजेवश्या तेहिसिद्धकेहेवाय॥४॥ गपज्ञातानेज्ञेय एत्रिभंगीहोय गुणतेचेतनजाणिये ज्ञा ताजीवतेसोय ॥५॥ज्ञेयतेसर्वद्रव्यछे एमत्रिनंगीहोय ध्याताध्ययनेध्याननी अवरत्रीनंगीजोय॥६॥ध्याताचेतन जाणिये ध्येयात्मस्वरुप ध्यानीतेनोजीवछे एमसमजो अनुप ॥७॥ त्रणप्रकारेातमा कर्मबंधचेतन कर्मफलते चेतना त्रीजोज्ञानचेतन ॥८॥ पुन्यपापकरणीजेह शुना शनविचार कर्मबंधचेतनजाणिये प्रथमनंगविचार ॥९॥ क्रतपुर्वजेकर्मछे तेहनोउदयहोय शुनाशुनजेनोगवे क र्मफलचेतनसोय ॥१०॥ मतीश्रुतअवधीजेह मनपर्नव सुखकार केवलज्ञानेजरमे तेज्ञानचेतनधार ॥११॥ अ थवात्रिभंगीओरछे बहीरातमछेजेह अंतरातमपरमा स्मा एसमजोगुणगेह ॥१२॥ जेअज्ञानीजीवडा शरी - Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. - रादिकवलिजेह तेपरवस्तुप्रापणी मानेबहीरातमएह ॥१३॥ देहसहितपणचेतना॥निनमानेछेतेह। नीचे सत्तागुणए सिद्धसमानछेएह ॥१४॥ एटलेप्रापणाजी वने॥ सिद्धसमानकरीध्याय तेहीजअंतरातमा नीश्चे कर्मखेथाय ॥१५॥ केवलज्ञानदर्शनवली पाम्याअरीहं तसिद्ध तेहिजपरमातमकह्या पांम्याअनंतीरिद ॥१६॥ इत्यादिकत्रिनंगीबहू जोजोसास्त्रवीचार इहांतोसंखेपेक ह्यो ग्रंथगोरवधार॥१७॥ हवेएकएकद्रव्यमां भाखुगुण वीचार तेसमजजोप्राणीया जेथीनवनोपार ॥२८॥ ॥ढाल ३८ मी॥ नथडीतेमांहेलुमोती ॥एदेशी गुण हवेभाखीशु सामान्यविशेषदाखीशुंरे प्राणीतुमेगुणएची तमांधारो दशगुणसामान्य सोलविशेषमान्य॥२॥ प्रा णीतुमेगुणएचीतमांधारो प्रथमसामान्यकहिशु अर्थश्रा गेलहिशेरे ॥प्रा०॥अस्तीत्वपेहेलोकहिजे वस्तुपणबी जेलहिजेरे ॥प्रा०२॥ द्रव्यत्वत्रीजोनाख्यो प्रमेयखचो थोदाख्यो।प्रा०॥अगुरुलघुरेतेमजाणो सत्वत्वचीत्तमां प्रांणोरे ॥प्रा०३॥ चेतनत्वएमकहिजे अचेतनत्वप्राठमो लहिजेरे॥प्रा०॥ मुर्तीत्वनवमाप्रकाशो अमर्तिदशमो खाशोरे॥प्रा०४॥ विशेषगुणहवेनाखु नामलहिनेदाखुरे ॥प्रा० ॥ज्ञान १ दर्शन २ चरण ३ जेह विर्य ४ माखुगु पगेहरे ॥ प्रा०५॥ स्पर्श ५ नेवलीरस ६ गंध ७ व - Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ श्रीज्ञानविलास. रण ८ तेमअवशरे॥प्रा०॥ गती ९ थीती१० तुमेजाणो अवगाहनापणचितांणोरे ॥प्रा०६॥ वरतना १२ गुण तेकहिये चेतनपणू १३ पणलहियेरे ॥प्रा०॥अचेतन९४ गुणतेह मुर्तीपणुपणएहरे१५ ॥प्रा० ७॥ तेमप्रमूर्तिक हांणो१६ एसोलेविशेषवखाणोरे ॥प्रा०॥ सामान्यविशे षगुणएह लक्षणपणकहियेतेहरे ॥प्रा० ८॥ अस्तीका यपेहेलोजेह हवेअर्थकहछूतेहरे ॥प्रा०॥ खटद्रव्यएपोते गुणपरजायतेहूतेरे॥प्रा० ९॥ प्रदेशेकरिअस्तीजाणो ए मपांचद्रव्यकहांणोरे॥प्रा०॥ कालस्तीनकहिजे धर्म अधर्मश्राकाशलीजेरे॥प्रा० १०॥ जिवअसंख्यप्रदेश ए द्रव्यनाकहेशरे॥प्रा०॥ खंधकेकोजाणो पुद्गलमांहवेके हेवाणोरे॥प्रा० ११॥खंधहोवानीशक्तीअनंत तेणेपंचद्र व्यएसंतरे ॥प्रा०॥पणकालनोसमयएक केणथमिल्योन हिछेकरे ॥ प्रा० १२॥ एकविणशेरेबीजोथाय तेनेकाल अस्तीनकेहेवायरे ॥प्रा०॥ एपांचेद्रव्यप्रस्तीकाय एप्र थमगुणचितलायरे॥प्रा०१३॥ हवेवस्तुपणुभाखीजे ख टद्रव्यमांहेदाखीजेरे॥प्रा०॥ एकाकाशप्रदेश धर्मअधर्म नोएकत्रदेशरे ॥प्रा० १४॥जिवअनंताअनंत प्रदेशरह्या छेसंतरे॥प्रा०॥ पुद्गलपरमाणुाजाणो अनंततीहांकेहेवा गोरे॥प्रा०१५॥त्रापापणीसत्तालीधांजेह रह्याछेद्रव्य नेगाएहरे प्रा०कोइकोइमामलीनजावे एमवस्तुगुणचित Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २४५ श्रावेरे॥प्रा०१६हवेद्रव्यत्वगूणकहीजे खटद्रव्यमाहिलही जेरे प्रा०श्रापापणी क्रियाजेह सर्वद्रव्यकरेछेतेहरे॥प्रा. १७॥ धर्मास्तीकायापणो चलणगुणस्वप्रदेशेजाणो रेप्रान्तेसदाकालपुद्गलने जीवनेचालवारुपकरनेरोप्रा० तिहांकोइएमभासे सिद्धक्षेत्रलोकांतवासेरे प्रा० धर्मा स्तीकायछेतांहि सिद्धजीवचलावेनाहिरे ॥प्रा.१९॥ ते नोउतरएम सिद्धजिवत्रक्रियनेमरे प्रा० तेथीचालेनहि एह पणतेक्षेत्रेबीजाछेतेहरे॥प्रा० २०॥ सुक्ष्मनीगोदी जिव पुद्गलपणतिहांसदीवरे प्रा० तेहनेचलावेछेतेह तेथी द्रव्यत्वगुणएहरे ॥प्रा०२१॥ अधर्मास्तीकायद्रव्यजेह जिवपुद्गल नेथीरसाह्यतेहरे प्रा० एक्रियारेतेहमांजाणो श्राकाशद्रव्यचिताणोरे ॥प्रा० २२॥ सर्वद्रव्यनेजेह अवगाहनत्रापेछेतेहरे प्रा० इहांकोइपुछशेएम अलोका काशमांकेमरे ॥प्रा०२३॥ बिजोद्रव्यतिहांनहि अवगाह नकेनेत्रापेतांहिरे प्रा उतरतेहनेएमदीजे अलोकाकाशे एमकिजेरे ॥प्रा०२४॥ अवगाहनशक्तिछेतेने द्रव्यविना अापेकेनेरे प्रा० पुगलनेमलवुविखरवु तेरुपक्रियानुकरवु रे॥प्रा०२५॥ कालद्रव्यापणिजाणो वर्तानक्रियाकेहे वाणारे प्रा० ज्ञानलक्षणजिवनेकहिये उपयोगक्रियाति हांलहियेरे ॥प्रा० २६॥पोतेपोतानेद्रव्ये परणामीपणुते सर्वेरे प्रा० स्वसत्तानीकिरिया छद्रव्यकरेछेगुणवरियारे Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ श्रीज्ञानविलास. | प्रा० २७॥ हवेप्रमेयत्वकहिजे गुणचोथोएमलहिजेरे प्रा० मुनिहूकमगुणखास जाणेतेनोशिवपुरवासरे॥प्रा. २८ढाल३८मिसंपुर्ण॥ ॥दुहा॥ हवेप्रमेयत्वपणुकहू तेसुणजोसुखकार जि वस्वरुपनेजाएगवा एहउतमत्राचार ॥१॥ केवलीयेज्ञाने करी खटद्रव्यदिठाजेह प्रत्येकेप्रत्येकेप्रमेयत्वपण तेजा पोगुणगेह ॥२॥ खटद्रव्यनानामए कहिनेदानुसार ध मैत्रधर्मश्राकाशए एकएकद्रव्यधार ॥३॥ हवेजिवस्वरु पनु भाखुतासविचार अनंतातेजाणीये संक्षेपेसंख्याधार ४॥संन्नीपंचंद्रिमनुषजे संख्यातानाख्याएह असंख्याता असंन्नीछे नारकिअसंख्याताजेह ॥५॥ देवपणअसंख्य छे तिर्यचपंचंद्रिजेण असंख्यातातेनाखीया बेरंद्रिप्रसं ख्यकेण ॥६॥ असंख्यातातेरंद्रिछे चौरंद्रिअसंख्याताजे ह प्रथविकायसंख्यछे अपकायसंख्यातातेह ॥७॥ संख्यतेउकायजाणिये वायुकायत्रसंख्याताधार प्रत्येकव नस्पतिजाणीये जिवअसंख्याताधार ॥ ८॥ तेथिसि दजिवअनंतछे बादरनिगोदजह तेथी जिवनंतछे एमस मजोगुणगेह ॥९॥ सुक्षमनिगोदजाणिये जिवनंताधा र इहांनिगोदतणोकह संक्षेपेविचार ॥१०॥ढाल३९मि॥ जिनजीविसमोजिनपासके अाशमुजपरवेरेलोलाएदेशि हवेजेहनिगोदनानावके प्राणितमेसांनलोरेलोल सुक्ष्मज - Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २४७ तिसेदिसेएहके गुरुमुखथीधरोरेलोल॥हवे. १॥ लोका काशनाजेहप्रदेशके प्रदेशेप्रदेशेलहोरेलोल तिहांगोलो अकेकोजोयके तेहमांनीगोदलहोरेलोलाहवे०२॥गोला प्रत्येअसंख्यनीगोदके तेकायाकाहरेलोल अनंतजीव तपीएधारके एकशरीरलहिरेलोलाहवे०३॥ एमएकनी गोदेअनंताजीवके एवीअसंख्यछेरेलोल तेहनोगोलोए ककेहेवायके एहवाअसंख्यछेरेलोल॥हवे. ४॥ एमके कीनीगोदमांजोयके जीवअनंताकह्यारेलोल तेजीवएक तणाप्रदेशके असंख्यातावह्यारेलोलाहवे०५॥जीवतणे एकप्रदेशेजोयके कर्मअनंतरह्यारेलोल वर्गणात्राठेवलगी छेतामके प्रत्येकेप्रत्येकेकह्यांरेलोल हवे०६॥ अनंतप्र माणुवासाथके वर्गणातेकहिरेलोल जीवशंलागीछेनिर धारके पन्नवणामांलहिरेलोल ॥हवे० ७॥ हवेकहूाउ खानोविचारके नवितुमेचितधरोरेलोल मनुष्यपचंद्रीजे निरोगके तेहनुमानकरोरेलोल हवे०८॥ एकसासोस्वा समांसत्तरके नवझाझराकररेलोल मर्तएकमांहवलीजेह के साडत्रीसोतोतेरधरेरेलोल हवे. ९॥ एटलास्वासो स्वासकेहेवायके पुलकनवहवेकहूरेलोल पांसेटहजारने सतपांचके छत्रीसभवलहरेलोल॥हवे. १०॥ नीगोदना एकनव-मानके बसेछपनसहीरेलोल श्रावलीतणुंछेप्रमा णके नीगोदएभवेकहिरेलोलाहवे०११॥हवेजेनीगोदमार Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. ह्याजीवके तेहर्नुस्वरुपसुणोरेलोलपांम्यात्रसपणूंनहितेह के केवारतेनणोरेलोलाहवे०१२॥तेमनहिपामेश्रावतेका लके एमज्ञानीकहीरेलोल उपजेवीणसेत्यांनात्यांहीके श्र नादीअनंतलहिरेलोलाहवे. १३॥ तेनीगोदनाभेदछेदो यके विचारतससुणोरेलोल व्यवहारनीगोदपेहेलोनेदके बीजोत्रव्यवहारभणोरेलोल हवे०१४॥ हवेजेजीवबाद रगतीमांहिके एकांद्रिपणुलहेरेलोल जावतत्रसपणानोठां मके तेव्यवहारीकहेरेलोलाहवे०१५॥पाछोनीगोदगतीमां जायके कर्मउदयेकरीरेलोल तेजीवव्यवहारराशीकेहेवाय के बीजोभेदकहवलीरेलोल॥हवे०१६॥नथीनिकल्योनीगो दींजेहके निकलशेनहिकदारेलोल तेश्रव्यवहारराशी जाणके एमलहोमुदारेलोलहवे. १७॥ नीगोदमांदोय जातनाजीवके भव्यत्रनव्यकह्यारेलोल नवनभानुंकेव लीचरित्रके विचारतिहांलयारेलोल॥हवे. १८॥ मनुष्य पणेथीजेटलाजिवके कर्मखपविकरिरेलोल जेटलाजिव मोक्षजायके एकसमेवलीरेसोलहवे०१९॥ तेटलाजीव तेणेसमयके सुक्ष्मनीगोदथकीरेलोल अव्यवहारराशी महिथीश्रावके व्यवहारीनकीरेलोल ॥हवे. २०॥ को इसमेओछानिकलेभव्यके ॥बाकीअनव्यजाणियेरेलोल व्यवहारराशिवधेघटेनहिके एविचारचितआणीयेरेलोल ॥हवे० २१॥ लोकमांहिअसंख्यकेहेवायके गोळानीगोद Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २४९ नारेलोल तेछदीशीनोलेवेळेआहारके पुद्गलसोदनारेलो लाहवे०२२॥ जेरह्यालोकनेतेजाणके चर्मप्रदेशेसहि रेलोल तेगोलानाजिवनेश्राहारके त्रणदिशीनोकहिरेलो लाहवे०२३॥फरशापुद्गलनोलेवेाहारके एमतमेचितध रोरेलोल हवेएसुक्ष्मनीगोदमांजाणके वनस्पतिखरोरे लोल हवे०२४॥ एकसाधारणवनस्पतितेहके सुक्ष्मनी गोदतेकहेरेलोल अवरथावरदिसेछेचारके तेहनासुक्ष्मव हेरेलोल॥हवे. २५॥ एथविपरमुखचारेजाणके पण त्येककहिरेलोल साधारणपणुवनस्पतिमांहिके बिजेनव लहीरेलोल ॥हबे० २६॥ एसर्वेनोलोकमांहिस्वस्थानके नेलारहेछेसहिरेलोल काजलकुपिपेरेतेहकेतेजीवसंख्या लहिरेलोल॥हवे० २७॥ तिहांदूखघणुतुधारके अवक्त व्यभावकहूरेलोल केहेतांतेहेनोनावेपारके शास्त्रेबहुलहू रेलोलहवे०२८॥एहनीगोदतणोविचारके नाख्योसंक्षेप थीरेलोल मुनीहूकमज्ञानगुणजासके संगेसुमतासखीरे लोलहवे०२९॥ ढाल३९मीसंपुर्ण ॥दुहा॥एमप्रणमतेद्रव्यए जिवसहितजाणो श्रापाप पास्वनावभांप्रमेयपणोकहांणो ॥१॥ हवेसत्यपणुकहू गुणपांचमोसार खटद्रव्यमांनाखशं उपजेविणसेधार ॥२॥थिरताभावपणतेरहे तेहिजसतकेहेवाय तत्वार्थमां तेका तेहचितमालाय॥३॥हवेथोडाकविस्तारीशु नेदए | ૩ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० श्रीज्ञानविलास. -- हनाधार समजुजिवतोसुखलहे जेहनेज्ञांननोप्यार ॥४॥ ॥ढाल४०मि॥ सुनंदाकंतनेवंदिरे ॥ एदेशि॥धर्मास्ती कायनाजाणोरे असंख्यप्रदेशकहांगोरे एकप्रदेशमांचित आणो॥॥सलुणासत्पणोएधारोरे।एआंकणी॥अगुरुल घुअसंख्यातोनाख्योरे बिजेप्रदेशेअनंतोदाख्योरे तिने प्रदेशेसंख्यातोश्राख्यो।स०२॥असंख्यप्रदेशएमकहियेरे प्रदेशेप्रदेशेलहियेरे अगुरुलघुपरजायसहिये ॥स० ३॥ घटतोवधतोरह्योछेएहरे अगुरुलघुपरजायजेहरे तेथिच लनाख्योछेतेहास०४॥जेप्रदेशेअसंख्यातोहोयरेतेणेप्र देशेअनंतोजोयरे अनंताठामेअसंख्यातोसोय ॥स०५॥ एमलोकप्रमाणेजाणोरे असंख्यातप्रदेशप्रमाणोरे सम कालेजगुरुलघुत्राणो ॥स०६॥ परजायतणुएभाखुरे परावर्तनधर्मदाखुरे प्रदेशप्रदेशमांआखु ॥स० ७॥ अनंतफिटिअसंख्यातथायरे उत्पतिप्रसंख्यकेहेवायरे नाशअनंततणोलेवाय ॥स० ८॥ध्रुवपणुनीश्चलहोवेरे त्रणनंगतेएमलेवेरे उत्पातवयध्रुवकेहेवास०९॥जेमएध मद्रव्यमांनाख्योरे तेमअधर्ममांदाख्योरे असंख्यप्रदेश मांत्राख्यो।स०१०|आकाशद्रव्यएमकहीयेरे अनंतप्रदे शतेलहियेरे अगुरुलघएमवहिये ॥ स०११॥ जिवद्रव्य अनंताजाणारे प्रत्येकेप्रत्येकेवखाणोरे एकजिवनाचित प्रांणो ॥स०१२॥ प्रदेशप्रसंख्यातानाख्यारे एकजिव - - Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २५१ नाकहिनेदाख्यारे एमअनंतजिवनाराख्या ॥ स०१३॥ उपजवुविणसवुतेमांरे ध्रुवपणुछेजेमारे एमत्रिनंगीछेएह मांस०१४॥पुद्गलप्रमाणुजांणोरे समेसमेएहवखांणारे त्रिभंगीएमकहांणो स०१५॥वर्तमानसमयेनाशरे तेतो अतितकालनोथाशरे अनागतसमयावेजाश ॥ स० १६॥एमउपजवोविणसवोजाणोरे कालपणोध्रवप्रमाणो रेएमगुरुलघुकहांणो।स०१७॥एथुलपणामांनाख्योरे उत्पातवयध्रुश्राख्योरे हवेवस्तुपणेकांइदाख्यो।स०१८॥व स्तुगतेमुलएभाख्यरे गयेपलटवेज्ञानदाख्युरे एमभासन चितमांराख्यु॥स०१९॥पुर्वपर्जायभासनजेहरे सिद्धमा पणकहियेतेहरे उत्पातवयध्रुवएह ॥स०२०॥ धर्मास्ती कायमांजाणारे प्रदेशेप्रदेशेवखाणारे पुद्गलजिवखेत्रगत श्रांणो ।स०२१॥अशंख्याताप्रथमसमयेकहियेरे चल णसाह्यपणोतेलहियेरे बीजेसमये अनंतासहिये ॥ स० २२॥तेहनेचलणसाह्यकरतारे असंख्यातानोवयवरतारे अनंतानोचलणसाह्यधरता ॥स०२३॥ एमउत्पातनेबय जाणोरे ध्रुपणेद्रव्यवखाणारे एमसमयेसमयेकहांणो॥ स०२४॥ एमसर्वद्रव्यमांधारोरे पंचास्तीकायनीहारारे एककालछेउपचारोस०२५॥तेकालउपचारेलहीयेरे ए मांवस्तुपणुनकहियेरे नावसवीउपचारेवहिये ।स०२६॥ एमसत्वपणोएजाणारे गुणपांचमोवखांणोरे मुनीहूकम D Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ धीज्ञानविलास. वचनप्रमाणो॥स०२७॥ ढाल ४० मी सपुर्ण॥ दुहा॥ जोअगुरुलघुतणो नेदजुदोनथाय तोपरदेश माहोमांही नेदकेमकेहेवाय ॥१॥ तेणेगुरुलघुसमां भेदजतेहकेहेवायजेटलोजेटलोजांणीये उत्पातवयरुपथा य॥२॥सत्यपणेएकद्रव्यछे जेहनानेदनहोय जीहांसत्व पणोजुदोपडे तीहांद्रव्यदोजोय॥३॥ एमएसत्यपणो जो जोवीचारीसार हवेगुणछठोवर्णवू अगुरुलघवीचार॥४॥ ढाल ४१ मी॥प्रीतमजीरंगरसेरमिये ॥एदेशि ॥ गुण अगुरुलघुनाख्यो छठोपर्जायथीराख्योहांनीवरधीथकी दाख्यो॥१॥सनेहीसमजोसुखकारीएत्रांकणी॥खटप्रकारे तेसार वरधीपणुप्रथमधार नाख्यशास्त्रेउदार ॥स० २॥ अनंतभागवरधीकहिये असंख्यातनागकहिये संख्याता भागवरधीसहीये।।स०॥संख्यातगुणीवरधीजाणो असं ख्यातगुणीवखाणो अनंतगुणीतेपरमाणोस. ४॥ एख टवरधीकही हवेखटहानीलही सुजोतुमेचितदेई ॥स. ॥॥ अनंतभागहांनीजाणो असंख्यातनागवखाणो सं ख्यातभागप्रमाणो स०६॥संख्यातगुणीहांनीकही अ संख्यातगुणीलही तेमअनंतगुणीसही स० ७॥ एमख टगुणीहांनीजाणो बेहुथईभेदएमत्राणो द्वादशनेदव खाणो ॥स०८॥ हांनीतेतोवयकहीये वरधीतताउपजवुल हिये एमगुरुलघुवहिये ॥स. ९॥ नहिलघुननहिगुरु Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २५३ । - गुरुलघुतेनामधरु सर्वस्वनावमांतेहसरु ॥स० १०॥ सर्वद्रव्यमांतेलाधे अगुरुलघुसर्वसाधे आवर्णतणोनहि छेबाधे ॥स. ११॥पंचमभंगतेनायूंश्रीमुखथीकांईतेदा रु तेगूणतोचीतमांराख्यू ॥स०१२॥आतममध्येगूणसा रो अगूरुलघुएगुणधारो सर्वप्रदेशेविचारो।स०१३॥खा यकभावेएजाणो श्रावर्णरहितकहाणो सामान्यगणपरी मागोस० १४॥ सर्वसामान्यएनेकहिये अधिकोश्रोछो नवीलहिये छठोगणनाखोसहिये ॥स० १५॥ खटगुण नाख्याएह खटद्रव्यमांलाधेजह तेथीसामान्यकहियेतेह सं० १५॥ बाकीचाररह्याजेह अर्थनवीनाखुतेह समजी | लेजोगुणगेह स. १७॥ स्वस्वद्रव्यअपेक्षाय सामान्य पणतेमथाय तेथीसामान्यकेहेवाय स. १८॥ अपरद्रव्य मांनहिजेह सरखानावनहितह तेथीअर्थनांख्योंनाहएह ॥स० १९॥ हवेगुणतणीनाखु भावनारीतइहांदाख शुद्ध अर्थइहांश्राखु ॥स० २०॥खटद्रव्यमांहिधारो सरखाग पजेमांनालो तेसामान्यगुणविचारो॥स०२२॥एकद्रव्य मांजेगुणदेखो बीजाद्रव्यमांतनवीपेखो विशेषगुणतेमां लेखो।स. २॥ कोईकोईद्रव्यमांहिजाणो कोईद्रव्यमां नकहाणो तेगुणएमचीतमांत्राणो स० २३॥ साधारण असाधारणतेकहिजे एमगुणसर्वेग्रहीजे एरीतेगुणनेसमज लीजे स० २४॥ एछद्रव्यमांसार गुणअनंतासुखकार प - Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ श्रीज्ञानविलास. र्जायअनंतातीहांधारास. २॥स्वनावअनंताजेनाख्या सदाप्रसास्वतादाख्या सिद्धांतमांहितेत्राख्या।स०२६॥ परुप्याकेवलनाणी तेसर्वेसमजोचित्तत्राणी जेमछेतेमसद हणात्राणी ॥स.२७॥ जथार्थउपयोगश्रतनाणी जथा र्थपदार्थजाणी ज्ञानादिकेचित्तत्राणी ॥स. २८॥निश्चज्ञा नएकहिये मोक्षकारणसाचुलहिये ईहांसंदेहकोईनवीव हिये ।स०२९॥मुनिहूकमेभाख्युसार जाणेजेकोई नर नार तेलहेनवनोपार ॥स०३०॥ ढाल ४१ मी संपूर्ण ॥ ॥दुहा॥सामान्यगुणतेवरणव्या खटप्रकारेधार चार गुणजेबाकीरह्या नकह्योअर्थविचार ॥१॥ स्वस्वद्रव्यस्व रुपथी सामान्यगुणकहाय परद्रव्यपेक्षाथको विषेशग पतेथाय॥२॥ तेकारणइहांनविकर्यो अर्थएहनोधार अप रकारणपणजाणिये पुर्वग्रंथेनहिविचार॥३॥तेकारणअर्थ नविकह्यो जोजोग्रंथेविचार अवरग्रंथबहुछे अर्थतणोवि स्तार ॥४॥ विशेषगुणहवेवर्णवू षोडसनाप्याजेह चेतन विशेखटगुणछे सुणील्योगुणगेह ॥५॥ ज्ञानदर्शनचारि त्रवीर्जचेतनत्वधार अमूर्तीवछठोकह्यो एखटगुणउदा र ॥६॥ पुद्गलमांहेखटगुणछे वरणगंधनेरस फरसनेचे तनपणुं मूर्तीपणुंअवश्य॥७॥धर्मद्रव्यमांत्रणगुण अचेत नअमूर्तीजोय चलणसाह्यगुणजाणिये नास्यूत्रधर्मास्ती सोय॥८॥ अचेतनअमूर्तीथीरसाह्य आकाशमांपणएधार Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DonataHIRISHumanAMASTER a s श्रीज्ञानविलास. २५५ अवगाहनत्रीजोलीजिये कालेवरतनासार॥९॥ दोयगुण पुरवतणा अकेकोफरतोजोय एमएचारद्रव्यमां गुणत्रणे | सोय॥१०॥ एमविशेषगुणजाणिये शास्त्रेबहूविचार सा| मान्यविशेषगुणजाणता होयात्मतणोनिर्धार॥११॥ह वेकारकतेवर्णवं श्रोतासुणोएकचीत पालसनिंद्रादुरत जी विषयकषायत्रनीत॥१२॥ ॥ढाल ४२ मी॥ रिषभ जीणंदशंप्रीतडीएदेशी॥हवेकारकखटवर्णवू जेसर्वेहोपदा र्थमांहोयके नांमतेहनांहवेदाखवू तेसुणतांहोवंछीतजोयके ॥१॥ हवेकारकखटवर्णq।एत्रांकणीकर्ताकारणजाणिये कार्जहोकाइसंप्रदानके अप्रदानकांइचितधरो अधीकर गहोखटनाषावीधानकाहवे०२॥प्रथमद्रष्टांतकहुं तुमेधार जोहोकांइचतुरविचारके घटउपरतेनाखशं खटचक्रहोसम जोसूखकारके ॥हवे० ३॥ घटकर्ताकुंभकारछे चक्रवती काहोपिंडकारणजाणके घटकरवोतेकारजसही परजाय पलटणहोसंप्रदानचीताणके ॥हवे०४॥ यतीकापिंडजे ह, तेहनाशादिहोपरजायनोनाशके घटपरजायनेध्याव तो उपादानहोकरेतिहांवासके।हवे०५॥संपूर्णघटनिपजे आधारपणेहो तेअधीकरणधारके एमखटकारककीजीये हवेनाखुहो चेतनमांहीनीरधारके ॥ हवे०६॥ चेतन अनादीकालनो अवलीपरणतीहोप्रणम्योछेजहके बाध कनावग्रहीरह्यो खटचक्रहीतुमेजाणोतेहके हवे० ७॥ - - Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ श्रीज्ञानविलास. क"थयोविभावनो रागादीहोत्रावरणजेहके द्रव्यक मनोक"थयो नावकर्मनोहोपगकतीएहके हवे०८॥ मीथ्यावरतकखायजे जोगाश्रवहो प्राणघातादी जाणके तेइहांकारणजाणिये नावकर्मर्नुहोकरवूकारज प्राणके ॥हवे. ९॥ द्रव्यकर्मनोलानजे अशूद्वतायेहोसं प्रदानकेहेवायके स्वपरनोरोधकहोवे क्षयउपसमहोहांनी छेतेथायक।हवे०१०॥अथवापरअनूजाइये परवरतवुहो अप्रदाननिवासके अशूद्धभावनाप्रमूखजे कर्मशक्तिहोरा खवानीनाशके।हवे० ११॥ एमअाधारतेजाणिये अशूद्ध होखटचक्रविचारके बाधकभावतेनाखियो हवेनाखूही साधकसूखकारके॥हवे०१२॥ श्रात्मप्रणतीश्रादरी पल टावेहोकारकचक्रतेहके साधकात्मधर्मतणो वरतावेहो संव्यंगुणगेहकहिवे १३॥ सम्यकगूणठाणाथकी जीवल हेहोअजोगीठाके तिहांलगेसाधकजाणिये पछीपामे होतेजिवनिरवाणक|हवे०१४॥कर्तात्रात्मद्रव्यए शहा महोप्रगटकरवाकाजके तेहिजकारजजाणिये तेनिमिते होकरेकारणसाजके ॥हवे. १५॥ स्वस्वभावरुपजे रम पताहोकरेतेहनीमांहीके तेपरणतीअादरे एक्रियाहोभा खीछेताहिके हवे० १६॥ स्वरमणादिकजोक्रया तेकर वीहोअधुरोछेज्यांहिके पुर्णनेकरवीनवीकही भाख्युंछेहो माहानाप्यताहिके हवे. १७॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २५७ ॥ उक्तंचनाष्ये ॥ तस्माक्षुध्यध्याविसित्तं कार्य॥ अप्पात्म कारणमेव्यंती ॥ हवे कारण चोथुकहू संप्रदानहोनीज प्रातमसारके ज्ञान दर्शनचरणतला पर्जायदानहोत्रातमनेधारके ॥ हवे ० ॥ १८॥ प्रातमजनपिजे तेरीते होप्रगटकरवाकाजके तेमत्रा तमधर्मादरे दानदाता हो ग्राहकप्रभेदराज के॥ हवे ०१९॥ ॥उक्तंच॥देउसजस्सतसंपयाण॥मिहतं पीकारणंत स्सहे तदछित्ता उनकीरइतंवीणाजंसो ॥ हवेउपादांनसांनलो कारकहोपांचमोछेजेह के श्रातम गुणपरतीपणे ज्ञानदर्शनहोचारित्रतेह के ॥ हवे ०२०॥ तत्वरमणनीराधारता तत्वरुचीहोतत्वरमणादिकजेह के हंसकनीराबाधता जथार्थ होनासन गुणगेह के ॥ हवे ० ॥ २१॥ परनावदुरेत्यागतो जोगीहो परनावनातेह के स्व स्वरुपभोगता नीजवीरज हो फोरवे गुणगेह के ॥ हवे ०२२॥ | श्रातमसिद्धिरुपजे उतकृष्टोहोकारजनोकारणएहके प्रात मशक्तिप्रगटहोवे स्वच्प्रनुजाई होजाणो गुणगेहके ॥ हं ०२३॥ ॥उक्तंच॥ साधकत्तमंकारणंकरएं। हवेच्अधीकरणजाणिये स्वपर्यायनोहोत्राधारछे एहके व्यापव्याप्तसंबंधछे श्रातमनोहोपजयथीछे तेहके ॥ हवे ० २४ ॥ स्थानकातमा पर्जायने होरेहेवानुठामके खट कारक एनाखिया संक्षेपेहोदाख्याछेएम के हवे ०२५॥तेम 33 Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ थीज्ञानविलास. वलीसिद्धमांजाणिये खटकारकहोआतममांहितेहके कर्ता दिबातमजाणिये विशेष्यावश्यहोकभाख्युछेजेहकोह०२६। उक्तंच॥ कारणव्याख्यातावशरे॥ छवीहकत्ताइकरण कम्म॥ चततोयसंपयाणा॥ वयाणतहसंनिहापाइ॥ इति गाथायंतथाच॥ कारणषोढायथाकारणतहावा॥बरातत्छ सततोत्ति॥ कारणकत्तावनपसायगतमं॥करणंनिउप्पि डदंडा॥॥१ ईत्यादिकबहुवारता नाखीछेहाग्रंथांतरेमनुहारके मुनी हुकमबहुश्रुतथी पामशोहोज्ञानगुणअपारकहवे०२७॥ ढाल ४२ मी संपूर्ण॥ ॥दुहा॥नीश्चयव्यवहारएवर्णव्यो ज्ञानस्वरुपसुखकार तेकारणव्यवहारए ज्ञानउत्तमत्राधार ॥१॥ ज्ञानव्यवहा रेकरी सुद्धउपयोगथाय नेदज्ञानतेहनेकह्यो असुबउ पीयोगजाय ॥२॥मिथ्यावरततेहथीटलेटलेकखायने जोग एहीजाश्रवनाहेतुछे एहीजमोटोरोग ॥३॥तेटले व्यवहारज्ञानथी शुकलध्यांनपणहोय प्रथक्तवीतर्कए जांणीये प्रथमपायोसोय ॥४॥ कारणएज्ञानते व्यव हारनयेसार सुद्धचारीत्रपणहोवे अभेदज्ञानपणधार॥५॥ एमजाणीहृदयेधरो निश्चयव्यवहारसार व्यवहारकारण निश्चेनुनिश्चयमुक्तिप्राधार ॥६॥ हवेकिंचितचारीत्रनु नि श्वेनेव्यवहार स्वरुपइहांतेभाखशुं श्रागमनेअनुसार॥७॥ Sto - Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीज्ञानविलास. २५९ ढाल ४३ मीनुलोमननमरातुंक्यांनम्यो।एदेशी॥ चारीत्रवीधीतेसांनलो नीश्चयव्यवहारदोयभेद भागमत्र नुसारेदाखशुं मतकोइधरज्योखेद ॥१॥चारीत्रवीधीतसां भलो एश्रांकणी॥प्रणातीपातादीत्यागजेव्यवहारचारीत्र एह सुखअर्थीजेप्राणीया आदरेछेतेह ॥चा०२॥अभवी पणादरे प्राथवभावतेजाण मोक्षहेततेनवीकडो ज्ञान वीनाचीतश्रांण ॥चा०॥ नीश्वेचारीत्रहवेभाखशुं थीरता परीणामछेजेह श्रात्मस्वरुपएकत्वपणे रमणकरोगुणगे ह॥चा०४॥ मोक्षहेतुजाणीकरी उद्यमकरोअभीराम जो उद्यमएहवोनवीहोवे तोश्रद्वाराखोएहठाम ॥चा०५॥ ए हीजसमकीतशुद्धछे तेवीनाज्ञाननेध्यान कीरीयापरमुख निष्फलकही माटेथद्वाराखोसुजाण ॥चा०६॥ उक्तंचगाथा।जसकइतंकीरेइ॥अहवानसकेइतिहयस दहइ ॥ सदहमाणोजीवो॥ पावेप्रयतमरंठांणं॥१॥ एमश्रद्दाशुदराखजो ज्ञानश्रद्धाछेएक अनुजोगद्वार मांभाखीयु जोइलेजोजिनेक॥चा०७॥ ॥उक्तंचगाथा ॥ नायम्मीगिएहिसव्यो । अगिणिह सव्वेयइछे । अछमीडाजइवमेवइ ॥ यजोसोगउवसोसो नउनाम ॥१॥ रुडीपेरेमहाव्रतधरे कखायनोकरेजेत्याग तोपणमुक्ति नवीलहे समकीतविनानहिलाग॥चा०८॥ dawo Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० श्रीज्ञानविलास. उक्तंच॥ वीरयासावज्जाउ॥ कसायहिणामहव्वयध रा॥ विसमदिठिविहणा॥ कयाविमुषंनपावंति॥१॥ समकितविनामुक्तिनहि समकितज्ञाननीमांहे नयन खेपप्रमाणेकरी जाणोआत्मउछांहे ॥ चा०९॥ स्याद | वादतेजाणतो जाणेपक्षजत्राठ मोक्षकर्मअवस्थासहिप रनावजायनाठाचा०१०॥एटलुजाणेतेसमकीतीनास्यशा स्त्रमोझार तेवीणसमकीतवेगलु समजजोसुखकाराचा.११॥ ॥ उक्तंच ॥नयभंगपमाणेही॥जोअप्पासायवायनावे एंजाइमोक्षस्वरुवं॥समदिठीयोसोनेउ॥ ज्ञानदर्शनचारीत्रय त्रणेएकजजाण एकज्ञानमांत्रणछे सुधुकरजेवखाण ॥चा०१२॥ जिवादिकखटद्रव्यजे तेना गणपरजाय तेजाणवाथीज्ञानिकह्यो सरधाथीसमकीत थाय ॥चा. १३॥ जाणिछद्रव्यमांचेतना एकग्रहिछंडेरे पांच एहिचारीत्रजाणिये एमांनहिखलखांच ॥चा०१४॥ स्वगणमांतेथीररहे निश्चयचारीत्रसोय बिजोव्यवहारचा रित्रछे तेतोत्रायवहोय ॥चा० १५॥ ॥ उक्तंच गाथा ॥ निठियमग्गोमुखो ॥ ववहारोपुनका गोवुत्तो ॥ पढमोसंबररुवो ॥ पासवहेउतउवाउ॥७॥ रत्नत्रयीएजाणीये मोक्षसाधनएसार रत्नत्रयीगुणचे तना एमकरजोविचार चा०॥ १६॥ ॥ उक्तंच गाथा॥ अहमीकोषलुसुद्धो ॥ निम्मउनाणदं Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २६१ सणसमगो॥तम्मिठिउतचितो॥ सच्चेएएषसंनेमी॥४॥ गाथा॥ निरंजगनिकलत्रयलदेव॥ प्राणाइाणंत चेयण ॥लखणसिद्धसमपरमप्पासिवसंत॥५॥ श्रापगोत्रातमाधारजो एहिजपरमातमदेव कर्मवशेए इहांपड्यो एसंसारीरेहेव ॥चा०१७॥ जबकर्मथीजदोंप डे तोपरमातमएह शरीरमांरह्योपणदेवछे माटेध्यावो गुणगेह ॥चा० १८॥ ॥उक्तंच गाथा॥ एहिजपासोपरमप्पा ॥ कमविशे सइजाउ ॥ जप्पाइयमदेवजु ।सोपरमप्पाजावहताये अपोअप्पा॥ आपणोत्रातमाध्यावजो तरणतारणछेझाहाज प्रातम ध्यानेत्रातमा पांमेशिवपुरराज ॥चा० १९॥ एमज्ञानद र्शनचारीत्रजे रत्नत्रयीसुखकार तेहिजगुणतेत्रातमा भाख्योएहविचार ॥चा०२०॥ सर्वनुसारजेज्ञानछे अपर गुणअनेक तेसविज्ञानमाहिरह्या एमजाणजोनेक ॥चा. २१॥तेकारणज्ञानगुण आराधोनविसार एहथकिमुक्ति लहो शंकानकरशोलगार ॥ चा० २२॥ नव्यजिवनेका रणे बांध्योज्ञानविलास बालाबोधएकरचो समजिलेजो उलास ॥चा०२३॥ बहसिद्धांतबहूग्रंथनि बहुप्रकरण निसाख्य तेसाथेरचनाकरी समजवाकरोनिलाख॥चा. २४॥ एहग्रंथहजाणिने सदहशेजेह रमणकरशेनिज Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ श्रीज्ञानविलास. रुपमा मुक्तिलेशेतेह ॥चा०२५॥ एहग्रंथपुरणथयो जे मांज्ञानछेसार मुनिहूकमजेआराधशे तेलेशेभवपारचा. २६॥ढाल ४३ मि संपूर्ण . कलस॥ गायोगायोरेमेंतोज्ञानसूधारसगायो खट द्रव्यनोवर्णनकरतां ज्ञानअनुनवपायोरे ॥तो० १॥ध मधर्माकाशतेजाणो कालपद्गलनगरायो एपांचे जीवजापीने चीतमांपणनवीलायोरे मेतो०२॥ सर्वर समांहीउत्तमरसए अमृतरसकहायो शूडचीदानंदधर्म प्रगट्यो तेहीजज्ञानकहायोरे ॥मेतो. ३॥ सर्वद्रव्यमांप्र गटएछे सतधर्मकहायो ज्ञानसुधारसउत्तमजाणी एहध मचीतलायोरे॥मेंतो०४॥ एवोधर्मदिशेनहीबीजो शिवप दएमांठरायो ज्ञानविनाधर्मनविहोवे एवोनिश्चेकरायो | रे॥मेंतो०५॥ द्रव्यगणपर्जानीरचना नेदज्ञानठरायो शु व्यवहारनयथीजाणो एहस्वरुपभरायोरे मेतो०६॥ मोहनीकर्मनाशएहथी तेथीव्यवहारनयध्यायो निश्चेनय पणनाख्योछेएहमां अनेदज्ञानतेपायो।।मेतो०७॥ खट द्रव्यनाभेदतेभाख्या गुणपर्जायसुगायो साधर्मीकपणूंते दाख्यू पक्षपाठेतेलायोरे ॥मेतो. ८॥ चोभंगीबहुजात नीनाखी तेमस्वनावकहायो नयनंगबहरीतेदाख्या ते | मनिक्षेपापठायोरे मेतो. ९॥ तेमवलीप्रमाणतेनाख्या सप्तभंगीचीतलायो त्रीभंगीपणतिहांदाखी गुणलक्षण -- - maram Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञानविलास. २६३ कहायोरे ॥ मेतो. १० ॥ कारकखटपणतेनाख्या निश्वे व्यवहारतेध्यायो एमज्ञानस्वरुपमांरमियो अनुभवत्रा त्मपायोरे॥मेंतो०११॥ चारित्रबेजातनुंभाख्युं तेमसमकि तसुहायो श्रन्यदर्शननीचरचादाखी तेपणइहांकहायोरे ॥ मेंतो० १२॥ एसर्वेनुंसारतेजाणो ज्ञानस्वरुपसवायो नि श्वस्वरुपश्रात्मनुंनाख्युं तेलेजो सुखदायोरे ॥ मेंतो ० १३ ॥ सर्वशास्त्रनुसार जाणो ज्ञानस्वरुप सुखदायो तेविनास विधर्मनहोवे संशयकोइनलायारे ॥ मेंतो ० १४ ॥ नगरन सोनेजेममेदनीवीण तेमजीवविनाकायो शरीरनशोभेजे मनाकविण तेमधर्मकहायो || तो० १५ ॥ मुनीहुकमए ज्ञानरसगायो उलटांगनमायो दीनदीनानंदहोयत्र धीकेरो अनुभव सहजसवायारे ॥ मेंतो ० १ ॥ ॥कलस २ जो ॥ त्रीजगभासन ॥ एदेशि ॥ द्रव्यगुणप जयनासन च्यात्मगुणते अनुभव्यो सर्वग्रंथमांसारएछे वरबीजो कोई नवीहवी व्रक्षमांहिजेमकल्पव्रक्ष रत्नमांचिं तामणीलह्यो वेलमांहे जिमचित्रावेली धातुमांसोवकह्यो | ॥१॥ पर्वतमांहे मेरुपर्वत रसमांजलरसजाणिये धर्ममांजेम दयाधर्म वाक्यमांसत्यवखाणी ये सर्वग्रंथमांएहग्रंथ सहूथी मोटोजाणिये एवोग्रंथवरकोईनही जेमांत्रात्मस्वरुपव खाणिये ॥२॥ अवरग्रंथ नेकछेपण एजेवोकोछेनहि जे मशंभूरमणसमुद्रसरिखो श्रवरसमुद्रनहीसही एहग्रंथ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ श्रीज्ञानविलास. वांचतांकांई सेहेजेसमकीतउपने ज्ञानस्वरुपतेशुदहोवे थी रतानावावीबने ॥३॥ तेहनेमुक्तिसुखसेहेजे प्राप्तहोवे छेसही जन्मजरामर्णनासे एवोअवरग्रंथकोनहि देवलो कनरलोकजेने थीरतापदजेहनेनहि जेहनेरमणएग्रंथमां हीथीरतायेमक्तिछेसही॥४॥तेमाटेएग्रंथ नवीजन हाथथी नमुकशोरातदीनअभ्यासएहनो करतांनवीचकशो एहश्र र्थअगाधछेकांई तेथीमरखनवीलहे अथवामतिपक्षीजेनर एथीअलगातेरह॥५॥ज्ञानीपुरुषहजाणे तेतोएमांनित्यर मे आत्मअर्थीजेहप्राणी कालतेएहमांगमे कारणभव्यजी वतुमे एअभ्यासनचूकशोरातदीनरमणकरतां कर्मसवीते मुकशो॥५॥जिहांलगेसुरगीरंदएहि तिहांलगएहग्रंथरहो रविससी जिहांलगेमंडल वसुधामांविस्तारलहो तेलबिंदु जेमजलमां विस्तरेबहूपेरेसहि तेमएग्रंथमुखमुखहोवे ज्ञा नितणेतेचितवहि॥णाहूकममुनिनोजेहमाने तेहज्ञानपांमे खरो निमितकारणपुष्टएछे एहथीमननवदुरकरो मुक्ति दाताएहसाचो ज्ञानधोरंधरवली एवामनिनाहकममानो एहिजशिवशंदरीमलि॥८॥ विक्रमादित्यसंवछरेंए एप्रबं धरच्योखरो प्रोगणिशसतपचिसमांहि कारतगमासेचि तधरो शुकलपक्षअष्टमिये वारभ्रगुछेसहि तेदीनएपुर्ण किधो त्रामोदनयरमाहेरहि॥९॥चतुरमासुइहांकिधुं संघ आग्रहघणोकरयो श्रावकथोताबहुशुंदर द्रव्यांणुजोगेचि - - Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीज्ञान विलास. २६५ तधरचो अनुभवज्ञानमांहिरशिया तेहनेवास्ते रच्यो ते कारण अनुभवज्ञान एहि दाख्योत्रमृतरससच्यों ॥१०॥ मुनिहू कमउपगारबुद्धे संघहेते एकरयो वरनेपणउपगा रंथाशे जेनर एहृदएधरचो अर्थ एहनो बहुश्रुतपासे धारतां सविमुखसंपजे होनिसएग्रंथमांरमतां शिववधुथिकरें मजे ॥ ११ ॥ ४९१२ इतिश्रीज्ञांनविलासग्रंथ प्राकृतबंध ढाल ॥ ४३ ॥ कलश ॥ २ ॥ मुनीश्री हू कम मुनिजिकृत संपुर्ण ॥ ३४ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ श्रीध्यानविलास. andininanimomdaanaamanand श्रीगुरुभ्योनमः ॥हा॥ धुरनमुपरमात्मा चिदानंदनगवंत तासपसा यरचनाकलं देखीरीझेसंत ॥१॥ मूक्तिमारगनेसाधवा क हूध्यानविचार शुभाशुभनेत्याग, श्रादरवूशूद्धअनुसार ॥२॥ मूक्तिमार्गसाधनतणा मार्गदिशेअनेक पणमूक्ति छेध्यानमां नाखूछूतेछेक ॥३॥ तपजपक्रियाअनेकविध व्यवहारेकेहेवाय पणमक्तितेहमानही पुन्यप्रतीथाय ॥४॥ मुक्तिरहिएकध्यानमा ज्ञानेकरोतेशूद्र मूर्खअर्थपां मेनही पामेपंडितबुद्ध ॥५॥ तेकारणइहांनाखणू ध्यानत गोविचार नेदघणाइहांदाखशू शास्त्रतणेअनूसार ॥६॥ ध्यानविलासतेजाणिये नामग्रंथएह ज्ञानीजनसूखीहो शे वांचीगणनोगेह ॥७॥ अत्रभाषालिख्यते हवेध्यानतेशानेकहीए जेचेतननाचपलपणानेथीरकर वु चेतननाअद्यविसायथीरभावराखीनेध्यावृतेनेध्यानयो गीकह्यो तेनात्रणप्रकारछे एकनावना॥१॥ अनुपेक्षा॥२ चितध्यान ॥३॥ एत्रणप्रकारेध्यानकरीनेचित्तनेथीरकरवु तेनेध्यानकहीए हवेअंतरमहुरतएकाग्रहचितनोउपयोग थीररहेवोतेनेध्यानकहीए एटलेएकअर्थनेविशेजविचार करवोतीहांघणार्थ पडखेथीसंक्रमणथाय तीहांस्थीर Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. २६७ पणेरेहेवु तथातीहांध्यानदिर्घपणेध्याननीपरंपरा थए जजायछे तीहांकोइअंतरमहरतनोनीयमछेनही एटले छद्मस्थनेएवीरीतेध्यानप्रवर्ते अनेकेवलीनेजोगनुरोकवू तेजध्यानकहीये ॥ । ॥उक्तंच॥ अंतोमुहुत्तमित्तं चित्तावस्या मेगवत्छुमि छो मत्छाएंजोगनीरोहोजिणाणंतु ॥१॥ हवेतेध्याननाचारनेदछे प्रार्तध्यान ॥ १॥ रुद्रध्यान॥ २॥धर्मध्यान॥३॥शलध्यान॥४॥ तेमध्यप्रथमनाबेध्या नतंत्रशनछे तेथकीप्रशनकर्मबंधाय अशुनगतीप्राप्तथा यबाकिबेध्यानरह्यांतेमुक्तिनांकारणवाच्यछे एउत्तमजिव नेजप्राप्तथाय हवेतीहांप्रथमजेत्रातध्यानछेतेनुस्वरुपकहि येछिये तेनाचारपायाछे प्रथमईष्टविजोगनोविचारकरवो केरखेमनेतेवस्तु नोवीजोगथायएटले ईष्टकेहेतांजेवलभ पोतानामननेगमेएवापदार्थमल्या तेमांमगनथइनेरेहेते कीयाकीया जेमातापीतानाई मीत्र पुत्र कलत्र धन धान्य सजनकुटंबमेढीमेहेलवाडी पारामप्रमुखनो रखेमनेवी जोगथायएमकरतां कदीविजोगथयोतोमाहाचिंतामांपडे मोटोशोककरे माहावीलापकरे तेत्रनीलाखरुप एकत्व पणेंजेपरिणामते इष्टवीजोगवार्तध्यांननो पेहेलोपायो कहिए ॥ १॥ हवे बीजो अनिष्टसंयोगकेहेतां जेत्र निष्टवस्तुनी प्राप्तीथइएटलमनने नगमेतेवा शब्दादि Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ श्रीध्यानविलास. कपदार्थनुमलवुथयुछे तेनोविजोगथवानोचिंतवे एटलेश्र नीष्टजेभुंडांदुखनांकारण जेत्राशत्रुनहींथी क्यारेजाय अथवाभादरिद्र अवस्थामाहारीकाहारेजशे अथवाश्रा कुमाणसनोसमागमथयो तेकेमटले अथवाएथकी श्राप णोछुटकोक्यारेथशे ईत्यादिकवीचारवु ते अनिषसंयो गबीजोपायोकहिये. . हवेत्रीजोपायोरोगचिंताबार्तध्यानकेहेतांशरीरनेवी शे वायु गरमी पीत ज्वर इत्यादीकउपने थकेदूखघणु करे घणी चिंतामांप्रवर्ते एनाोशडउपचार करवानी चिंतामांरहे तेरोगचिंता आर्तध्यानतिजोपायोकहीए ए ध्यांननेविशे पराए त्रणलेस्याहोत्र क्रश्नलेस्या ॥१॥ निललेस्या॥२॥ कापोतलेस्या एत्रणलेस्या संनवेछे हवे चोथो पायो अग्रशोचकेहेतां जे मन मांआ गलनाकालनो शोचकरे जेएणेवरसे एकामकरीशु अथवाश्रावतेवर्षे भावीरीतेकामकरीशु एमचीतवे तथा दान शियल तपनुफलमागें जेमांएणेनवातप प्रमुख कीधा तेनुमनेअमुकफलहोजो एटलेहूंावतेनवे इंद्र तथा देव तथा चक्रवर्ती तथा वासुदेव बलदेव शेठसा हकार पुत्र कलत्र धन धानादीक हरकोइमागे एभाग लनानवनीवंच्छा एटलेअग्रशोचनापरीगामउपजे अ थवानीत्राणानुकरवं तेपण एअग्रशोचमधेछ। wa - - - Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. ॥ उक्तंच॥ निदानचिंतनंपाप ॥ एटलेए प्रार्त्तध्यांननोचो थोपायो प्रशोचनामांकह्यो ॥ २६९ हवेएध्यांनतुलक्षणकहीछीए एजेार्त्तध्यान छेतेने विशे तीशे संक्लिष्टनावनथी एटले क्रूर प्रणाम दुरजय तीव्रनलाधे इहांएकर्मनीप्रणती एवीजदीशेछे हवेइहां शुंलक्षणलाधेछे तेकहीएछीए हाहा हूंशुकरीश इत्यादी कप्राकंदकरे उंचेश्वरकरनिरुदनकरे घणासचिकरे नाम देइनेरुवेप्रथवानामदेइ देवने पर चारीने कहे जेतेंमाहारुत्रा शुंकरधुं वलीछाती मस्तकताडनातरजनाकरे केशमाथा नतोडे इत्यादीक सर्वे लक्षणत्रार्त्तध्यांननांछे अथवा मेमांदाछीए हवे मेशुंकरीए इत्यादी कपोतानाश्रात्मा नीनिंद्याकरे इत्यादीक लक्षणएसर्वेप्रार्तध्यांननांजाणवां श्रथवासाधुथइने दूर्जननीरीतराखे तेनांलक्षणकहिएछीए अरेनाइो मेशुंपालीए श्राजपांचमोत्रारो दूश्मका लछे नेमुक्तिमार्गतोमाहामोटोचे पणत्राकाले पालवुघणु कठणछे पडतेकाले कोइकजेवलोलाधे वलीपोतेपमीदी छे नेवीषयमांलेली नछे व्रत नेम तप जप थकीउपरांठा धर्ममार्गथकी चुक्या जिनवाणीने गोपवे एटले जथार्थउ पदेशकरेनही अनेलोकोपासेजाचनाश्रोकरताफरे तेध णीश्रार्तध्यांनमांजप्रवर्ते तेनेदूरिजनकहिए ॥ उक्तंच ॥ प्रसक्तचैतदुर्जना ||एध्यांनछठागुणठाणासुधीहोय तेमा Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० श्रीध्यानविलास. || टे जे श्रात्मार्थीमुनीश्वरहोय तेनेएपर्मादनुस्वरुपजाणीने अवश्यतजqअनेएध्यांनवालानीगतीपराए त्रीजंचसुधी होय एवजाणीने अवश्य छांडवं ॥ ॥हवेरुद्रध्यानकहियेछिय॥ रुद्रकेहेतां महाकठोर नि र्दय दुष्टपरणाममांप्रवर्ते एवजेमाठ चिंतवणहोय तेने रुद्रकहिये तेरुद्रध्याननाचारपायाकह्याछे हिंसानुबंधार मृखानुबंधी२ चोरानुबंधी ३ परीग्रहरक्षणानुबंधी ४ एच्यारपायानांनामजाणवां हवहिंसानुबंधी रुद्रध्यानक हीयेछिये जेजिवहिंसाकरवानुचिंतवे अथवाजिवहिंसाकर तांहरखसंतोषपांमे तथाहिंसाकरतांदेखिनेखुशीयाय तथा ज्यांहांसंग्रामनी वारतात्रोथतीहोय अथवाएवांशास्त्रवां चवानोघणोउमेदराखे अथवा वेवासुरविरपुरुषोनांघणां वखाणकरे अथवा एवातनीअनुमोदनाकरे एसबै हिंसा नुबंधीरुद्रध्यान पेहेलोपायोजाणवो १ हवेमखानुबंधी केहेतां जेजुठुबोले मनमांहरखपांमे जेहूकेवजुठुबोल्योछु नेमाराजठानीकोइनेखबरपडतीनथी अथवा भावीरीतेज़ ठुबोलीनेअमुकने समजाविशुं अथवा परनीचाडिकरे त्र थवा अंन्योअंन्यखोटाविवादचलावे अथवा मिथ्यात्वनां वचन उच्चारणकरे अथवा कपटसहितवीचारकरे एसर्वे मुखानुबंधी रुद्रध्याननोबिजोपायोजाणवो २ हवतिजो चोरानबंधीकेहेतां जेचोरीकरवी अथवा ठगाइकरवीत्र - - - Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास २७१ थवा गांठछोडीलेवी इत्यादिककारजकरी मनमांखुशिथ वु अथवाइत्यादिककामकरवानुमनमांचिंतववु अथवा म नमांएवीमोटाइनो हरखचिंतववो जेहकेवोजोरावरछु जेडंपारकोमालखाउछु मुजसरीखो कोणछे एवापरीणा मते चोरानबंधीरुद्रध्याननोतिजोपायोजाणवो॥३॥ हवेपरीग्रहरक्षणकहेतां। नवप्रकारनोजेपरीग्रह धन धान पुत्र कलत्र जानवर वाहन जमी जग्या परमुखव धारवानीघणीइच्छारेहेते पग्रिहने मेलववानीइच्छाए अनेक पापारंभकरे अथवा परीग्रह घणोमल्योहोयतो अनीमानेकरी मगनथाय वलीते परीग्रहभोमीमध्येडा टे अथवा बीजेकहींअनेकथानकेतेनेगोपवे वलीमनमांशं कारहेके रखेकोइएमाहारुमुकेलुदीठुतोनथीअथवाएपरी ग्रह साचववावास्ते चाकर नफर शिरबंधीराखे इत्या दिक माहामाठापरीणामप्रवर्ते एपरीग्रहरक्षण रुद्रध्या नचोथोपायोजाणवो॥४॥एरुद्रध्यानना चारपाया एवीरी तेकरवे कराववेअथवा तेनीअनुमोदना एनेविशेथीरपरि णाम तेनेरुद्रध्यानजाणवू तेमहादूखनुकारणछे नेमहात्र शुभछे एध्यान पांचमागुणठाणासुधीहोय अथवाकोइक जीवनेछठागुणठाणासुधीपणहोय एवुकेटलाएकाचार जनोमतछे हवेएध्यानवालानेलेस्या॥त्रणहोय क्रश्न लेस्या॥१॥ नीललेस्या॥२॥ कापोतलेस्या॥३॥ एत्रणप Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ . श्रीध्यानविलास. राएसंनवेछे एलेस्यावालानाप्रणामतीसंक्लिष्टहोय के हेतांमहाकुरदूष्टपरणामी होय एकर्मनीप्रक्रती एमज पायछे एलेस्याघणादोषनुकारसछे नानाप्रकारनाजीव नेमरणनेदोषेकरीहिंसादिकनी प्रवरतीएकरी पापेकरीने खुशबस्तीपणुनिर्दयपणुहोय पश्चातापहोयनहि परनाथ पवादथयाथीराजीपणुमाने माहाविषयनेविशे प्रवरतनप णुधारे एलक्षणसर्वे रुद्रध्याननाजाणवां एध्यानवांलानी गतीपराए नर्कनीहोय माटेएनेअवश्यछांडq एटले एत्रा तध्यान तथा रुद्रध्यानबंनेशनछे नेबनेमाहानबलांछे अनेजेमजेमएनोपरीचयविशेषेराखेतेमतेम एनोरसमा हाकडवोथाय अनेएनोवीपाक माहाकटुकप्रगटे माटेजे आत्मार्थीमुनिश्वर अथवा सर्वेभव्यजीवोनेकहूछुके एथ किसदाएवेगलुरेहे, एध्यान नकर, अनेजेथकित्रात्मा निर्मलथाय नेपोतानुमुलस्वरुपप्रगटे एव॒ध्यानकर सं पुर्णनिर्मलध्याननावे तोपणद्रव्य क्षेत्र काल नाव जो इनेशुभनावनानाववी पणआत्मानिर्मलकरवानीरुचीहो यतो पोतानीसत्तानेआलंबनलेइनेध्यानकरवु नेतेथकी निरपेक्षपणेप्रवर्तवं तेशनलेस्यानलक्षणछ।। ॥हवेधर्मध्यानकहियेछिये ॥ धर्मव्यवहारक्रियारुपतेनि मितकारण एवाहारनुछे पणधर्मजे श्रुतज्ञान तथाचारीत्र धर्म तेउपादानकारणछेतेनुसाधन धर्मतथारत्नत्रयी नेद Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास २७३ AND पणेउपादानधर्मछे तेनेशुद्धव्यवहार उत्सर्गानुजायीछे अथवा अपवादधर्म तथाऽनेदरत्नत्रयी तेध्यानशुद्धकहि ए निश्चयनयेतेउत्सर्गधर्मछे जेवस्तुनुसत्तागत शुद्धपर णाम स्वगुणप्रवरतीकरतादिक अनंतानंदरुप सिद्धा | वस्थाएरह्योते एवंभुत उतसर्ग उपादान शुद्धधर्मछे तेधर्मनुनाषणरमण एक थिरतापणे चेतनतन्मयप गानोउपयोग एकलनुचिंतवतु ते धर्मध्यान कहिये हवेते धर्मध्यान एवुजाणीने पछी चार नावनाने ध्याइये ज्ञानभावना॥॥दर्शननावना॥२॥चारीत्रनावना ॥३॥ वैरागभावना॥४॥ हवेएचारनांलक्षणकहिएछिए ज्ञान भावनाथकीनिश्चलपणुथाय एटलेपरवस्तु साचीनासे नहि पोतानास्वभावमां स्थिरतापणुावे नेदर्शनभाव नाथकीमुझायनहि एटले मंतर तंतर देवदेवीना चम कार परमुखदेखीसाचुमानेनहि जाणेकेएसर्वपरनावळे कृत्रिमवस्तुछे तेसर्वेअसतछे नेत्रकात्रेमवस्तुजे प्रात्म स्वरुपप्रमुख सर्वे सत छे चारीत्रभावनाथकि पुर्वकृत कर्म नीर्जरे नवांकर्म नउपारजे वैराग्य भावना थकी स्त्री श्रादीनोसंग तथापुद्गलीकनोसंग एटले एपरवस्तुनो संगसुखेतजqथाय संशयमात्रतेनेनहाय एचारेनावनान फलअनुक्रमेकहीनेदेखाड्यु हवेएविरीतनीजेनावनाना वे अथवाएवीनावनामांजेनुचितथीरथयुहोयतेधणीध्या - - 34 Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ श्रीध्यानविलास. - नकरवामांथीरपणुपामे माटतेवाप्रागीजेछेतेध्यानकरवा नेयोग्यछे बीजाबाकीरह्यातेध्याननेअयोग्यछे शामाटेके मनछेतेअतिशेचंचलछे तेचपलतानेलीधेकरीनेजितायन ही शत्रुनुशैन्यलाखोहोयतोतेनेजीतवाने पुरुषसमर्थथाय छे पणतेवोपुरुषमननोनिग्रहकरवासमर्थनथइशके शामा टेकेमनतोपवननांगोडेहाथमांत्रावेनहि तेथीमनजीतबुंध णुकदुर्धरछे एवातमांकांइसंशयनहि पात्रात्मार्थी एतो अवश्यएवाचपलमननपणजीतकुंजोइए तेशीरीतेजीताय तेनीरंतरएनोअभ्यासराखे शब्दादिककोइनोकानेनपडे एवीवस्तीमांएकांतध्यानकरे नेवैरागेकरीनेमनवशकरे ए मकरतां करतांमनवश्यथाय अनजेधणीनमनवश्यनथी थयु तेपुरुषकइंध्यानकरवासमर्थनथाय अनेजेवारेध्यान दशानावेतेवारेमुक्तिक्यांछे एतोध्यानेकरीनेछे माटेम ननेवश्यकरवानोउद्यमकरतांथकां अभ्यासेकरीनेध्यान दशापामवीसुलनथाशे जेजेपदार्थ देखवामांत्रावे तेते सर्वे बाहाजपदार्थकहीए तेनोविश्वासनराखे तेतृश्ना सरवनीछोडे तेधणीअभ्यासकरवाजोगछे तेशुद्धनाववा लाने वस्तीकेवीजोइए तेकहिएछिए के वस्तीकेहेतां उ पासरानेविशे स्त्रीनोरेहेवासनजोइए पशुकहेतां ढोरन जोइए कलावकेहेतां नपुशकनजोइए बीजामाठात्राचा रनाकोइनजोइए एवीवस्तीनेविशेमुनीनरेहेबुंध्यानवेला | Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यान विलास. २७५ ए विशेषेकरीने एवीवस्तीजोइए एवुत्रागममां परमा माएकाछे हवेजेनुचितथीरबेठेलुछे मनवचनकायाना जोगवश्यछे तेवाश्रातमानाधणीने गाममांरह्यातोपणठी कजछे वनमांरह्यातोपणठीकजछे एटलेतेनेकांइ वननोने घरनों बाहाध एके नोछेनही तेवामुनीश्वरनेतो ज्यांपोता नाचित्तनेसमाधांनरहे नेपोताना उपयोगथीनचूके तेवेठे काणेरेहेतुं नेध्यानकरवुं जेजेस्थानकनेविशेजोगथीर रहे छे तेजकालपणरुडोजावो एटलेोदिवश रात्रिपोहोर म हुरत घडी पल जेध्यानमांजाय तेवेलाधनकरीनेमानवा नीछे तेनेकांइ कशवेलानुनिमछेनहि वलीमुनीने जेव स्थाए केहेतांजे शोचाशोचपणुक विचारवानुंछेनहि तेमा सर्वस्थानकनेविशे शुभाशुभकांईजोवुंनहि ज्यांषोताना ध्याननी व्याघातथायतेतजवाजोग बाकी सर्वथांनकने विशे जेमुनीश्वथीरचित्तवालाछेते बेठां अथवा सुतां ध्या नकरे जेद्रव्यक्षेत्रकाल भावना श्रवस्थाननेविशेरह्याजे मुनीने कशी वातनो नियमछेनहि जेनित्यपणेजोगने विशेथीर रह्यावा त्या रेतेने करणीशीरही केवांचनापुछना परीटना अनुपेक्षा चार || ४ || धर्मनांच्या लंबन छेत्रने तेवापुरुषने अवश्य जकरणीछे वीखरीवस्तुनुं जेने श्रालंबन होयतेप्राणी कठगमांकठण थांनकहोय त्यांप एचडे तेमतेवात्रालंबन वालाप्राणी ध्यानरुपीमेडी Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ श्रीध्यानविलास. - रुडीरीतेचडे शामाटेकेत्रालंबनग्रहवाना श्रादरथकीप्रग टथयो गुणते थकीवीघनमात्रनोक्षयथयो तेनाजोगथ कीकरीनेध्यानरुपीयापर्वतउपर सुखे सुखे चडतां जोगि श्वरनकोइरीतनुभ्रष्टपणुनथाय अनेकेवलीपरमात्मानेतो जोगनोरोधकरवो तेजध्यानकाछे जिनमतनुंतोएजप्र माणछे अने अनदर्शनवालातो जेनेजेनीनजरमांआवे तेमसमाधानकरेछे तेउपरकांइपरतीतथायनहि एवीरी तेध्यांननुस्वरुपजाणीनेत्रोलखे तेध्यानकरवायोग्यहोय तेधर्मध्यानना॥४॥ चारपायाछे अाज्ञावीचय॥१॥पाय वीचय॥२॥वीपाकवीचय॥३॥संस्थानवीचय ॥४॥ तेमध्ये प्रथमत्राज्ञावीचयकहिएछीए जे वितरागदेवनी अाज्ञा तेहेतकरिमाने सद्दहे एटलेभगवंते खटद्रव्यनु स्वरु पदेखाड्युं तेसातेनयेकरीचारप्रमाणेकरीचारनीक्षेपेकरी इत्यादीकजेनाख्युछे तेमध्येपांचद्रव्यजिवजाणीनेतज वाकह्याछे एकआत्मद्रव्य शुद्धादरवाजोगछे तेत्रात्म स्वरुपनेओलखाणनेवास्ते स्यादवादस्वरुप नित्यानित्य पक्ष नीश्चय व्यवहार प्रमुखेकरितेनुस्वरुपविचारे वि चारीने निसंदेह पोतानास्वरुपन ध्यानकरे एपरमा त्मानीत्राज्ञा प्रमाणे जथार्थ उपयोग भासनथएथके तेहनेहरखउपजे ते उपयोगमध्यनिरधार भासनथयुते नुरमणकरवु तेअनुभवीने एकतन्मयथायते आज्ञावि Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. २७७ चयधर्मध्यानकहिए ॥१॥ हवबीजापायो अपायवीचयक हिएछीए॥ अनेकसंसारीजिवकर्मनेवशपड्या संसारमा हेदखीथायछे शाथकिके अज्ञांन राग देश कखाय श्रा श्रव तेनेवशपड्यातेदुखीयाछे पणहेचेतनतुंतोहवे जांण पुरुषथयो एवस्तुतेपरजांणी माटेएवस्तुताहारीनहि तुं तोचेतनछे नेएजडछे हवेतारंशुंछे नेतुकेवोछे तेकहिए छिए अनंतुज्ञान अनंतदर्शन अनंतुंचारीत्र अनंतवीर्य मयतुंछे वलितुंशुद्धछे बुद्धछे अविनाशीछेत्रजछे अनादि छे अनंतछे अक्षयछे अक्षरछे अनक्षरछे अचलछे प्रक लछे अमरछे अगम्यछे अनामीछे अकर्माछे प्रबंधकछे अनदयछे अनदिरकछे अजोगीछे अनोगीछे अरोगिछे अभेदीछे अवेदीछे अछेदीछे अखेदीछे अकखाइछे अस खाइछे अलेशि अशरीरी अनाहारिछे अव्याबाधछे श्र नवगाहिछे अगुरु लघुछे परिणामिछे अतेंद्रिछे अप्रां पिछे अयोनीछे असंसारीछे अमलछे अपरंपरछे अ व्यापीछे अनास्त्रीतछे अकंपछे अवीरुधछे अनाश्रवछे अलखछे अशोकिछे असंगीछे अनाकारछे अमुर्तिछे लो कालोकज्ञायकछे एवोसुद्धचिदानंदमाहारोत्रात्माछे श्रे वजेकाग्रतारुप तन्मयपणेरमण तेनेध्यानकहि श्रे अपायवीचयधर्मध्यांननोबीजोपायोजाणवो॥२॥ हवेवीपाकविचय त्रिजोपायोकहियेछीये हेवोत्रापणो - - Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. आत्मावितरागपरमात्मासरीखो सिद्धनोसाधर्मिछे ने प्रासंसारमांकमखुत्योछे तेस्वरुपविचारतांएमनासनथयु जेपरायोसंगकिधो तेमांराचीमाचीरह्यो तेथिकर्मनेशप ड्योदूखीथाउछुतेकर्मनोविचारकरेजेकारणज्ञानगुणतज्ञा नावरणीकर्मेदाब्योछेजावतविर्यगुणतरायकर्मेदाब्योछे एमाठकर्मथीजीवनाआठगुणदबाणाछेतेथीआसंसारने विषे जीवनेजन्म मरणअनंताकरवांपडेछे नेसुखदूख पो तेपोतानाकिधेलाकर्मनांछेतेसुखउपरराचवुनहि एशुभक मनाउदयथकीछे दूख उपन्येशोचकरवोनहि एअशुभकर्म नाउदयथीछे एवंने पुद्गलीकभावछे हेमांत्रात्मीकनावछेन हि वलीएकर्मनस्वरुपविचार तेकहियेछिये प्रक्रतीबंध १ थितिबंध २ रसबंध ३ प्रदेशबंध ४ एच्यारबंधना थानकविचारवां तथाउदय उदीरणासत्तातेनास्वरुपनचिंत वनकरर्बु तेएकाग्रतापरणामेवरते तेविपाकविचयधर्मध्या ननोत्रिजोपायोजाणवो ३ हवेसंस्थानविचय चोथोपायो कहियेछिये त्यांउत्पात वय ध्रु काल नावादीविचारे पर जायलक्षणेकरी जुदाजुदानेदे नामथापना द्रव्यभाव नेदेकरीने चउदराजलोककेवोछे उंचपणे चउदराजछे तेमध्येसातराजनीचोछे तेनेअधोलोककहिये अनेविचा ले अढारसेंजोजन मनुष्यलोकछे तेनेतरीछोलोककहिये तेरपरे कइंकउणोसातराज उर्धलोकछे तेमध्येदेवता Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. २७९ विमानिक तेउपर सिद्धशल्या सिद्धक्षेत्र सिद्धजिववर्तेछे एमलोकनुमानछे एलोकसंस्थाननुचिंतन विशेषेछे शा माटेके अनंताकालमांत्रापणेजिवे संसारमांभमतां सर्व लोकमां जन्मरणकरी फरशोछे हेवोजेलोकस्वरुप तथा लोकनविशे पंचास्तीकायनअवस्थान तथा प्रणमन द्र व्यगुणपरजायनुअवस्थान त्यांपोतानाकर्मनो कर्त्ताभो का प्रात्माछे पणतेश्रात्माकेवोछे अरुपि अविनासी उ पयोगलक्षणेकरीयुक्त एवोमारोत्रात्माछेएवीरीते एका ग्रतापणे विचारवं तन्मयपणे प्रणमवु तेध्यानते संस्था नविचय धर्मध्याननो चोथोपायोजाणवो॥४॥ हवेसंक्षेपथ की धर्मध्याननुलक्षणकहियेछिये हवेकर्मजनितसमुद्रव खाणीएछिये एटलेकौकरी प्राप्तथयोएवोजसमद्रजन्म जरा मरण रुपजलेकरीसंपुर्णभरेलोछे नेमोहरुप मोटा भमरापडीरह्याछे नेकांमरुपवडवानलनामाअग्नी रही छेअनेकखायरुपीयाचारपतालकलसाछे तेमधे श्राशारु पीयो मोटोवायुतेणेकरीनेभरेलोछे माठावीकल्परुपीत्रा जेकलोल मोटाउछलीरह्याछे अवोमाहामोहरुपनधतन यसमुद्रकह्योछे हवेमनमाहे वीश्रांतकेहेतां हरखशोकनुथा वुतेरुपणीवेलतेमांहेपड्यो तेनेनिकलवुघणुकठपजागवू वलीत्या जाचनारुपशेवालनोसमुहघणोछे अनेदुखेकरी नेपर्णथायवेवोजेविषयसुखतेसमुद्रनोमध्यनागछे अज्ञां Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. नरुपीवादलांनोअंधकारघणोव्यापिरह्योछे श्रापदारुप णी वीजलीपडवानोभयघणोछे कदाग्रहरूप पवनद्भुत वाइरह्योछे वत्यां विवीधजातीनारोग तेनोजेसंबंधते रुपीया मच्छ कच्छादीक जलजीवघपाउच्छलीरह्याछे वलव्यांजे समुद्रमा पर्बतछेतेकहीछी चंचलतारुप सुनपणारुप गर्वपणारुप जेजे दोषतेतेपर्वतमोटा जीहां श्रेवोभवसमुद्रतेनेविचारखं हवेतेवोजेनवसमुद्र तेनेतरीने पारपामवानोउपायकहिछी ज्यांसमकीतरुप दृढबं धनबांधेल ढारहजार शिलंग तेरुपीयांपाटीयां ज्यां जडेलांछे त्यांज्ञानरुपीया नीर्यामक झाझनाचला वनाराछे संवररुपीकीचकेहेतां तेलेकरीनेपाटीयांना त्रा श्रवरुपछीद्र नेपूरचांछे जेहेनोमनोगुप्तीरूप गुप्तसुकान तेणेसमुचाले श्राचाररूपमंडपेकरीदीपतुं नेउत्सर्गने पवाद बे मार्गछे जेहेनें हेपुंजे वाहाण तेनेवीशे सुननूं सेन्य चडयुंते कोण जेशुद्ध धवसाय रुपीया घणा बलवंत हेवा शुनटछे वली तेवाहाणनो कुवो जलाजो ग रुप थंजछे तेथंनउपर थापेलो एवो जे शड वहा णनेचलावेएवो वेगेभवसमुद्रने पारपमाडे एवोउजलनी र्मल अध्यात्मरुपीयाशड ज्यांचडावलोळे हवेएशडरुप अध्यात्मथ की प्रगटथयोजे तपरुपीयोजेपवन अनुकुलवा तोथको चालवानेवेगेकरीने संवेगरुप तेणेकरीनेचालतु २८० Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. २८१ थकुवहाण वेरागमारगमांहे हेवुजेचारीत्ररुपीउझाहाज महावेगेकरीनेचाल्युजायछे तेनीमांहेलीकोरे महामुनी राजबेठाछे महारीधीनाधणीछे तेमनी नित्यादीकजे भ लीभावनाओ तेरुपणी पेटीपोतानी तेमध्येज्ञानरुपीयां र ननरेलांछे तेपोतानीपासराखेलीछे हेवीरीते जे मुनीश्वर प्रवरतेछे तेंधणी निर्विघ्नपणे मुक्तिरुपीया नगरनुराज सुखे सुखेपामे हवे वीरीते मोक्षरुपनगरे जातांथकां एक संसारनीमांहेलीकोरे मोटोएकपल्लीपतीछे तेनुनाम मोह राजाकेहेवायछे तेसर्वक्रोधादीकनील तेनोएराजाछे ते माहाजोरावरछे ईंद्र चंद्रनागेंद्र तेपणएनेजीतवासमर थनथी एवोजोरावर तेनेखबरपडी जेाचारित्ररुपीया झाहाजमां ज्ञानरुपियाध्यानथीनरेला मुनीमाहेबेठेला तेमोक्षनगरेजायछे तेवीखबर सांगलीघणीक उदाशथ यो विचारवालाग्यो के प्रापणासंसाररुपीयानाटकनोउ छेदथायछे अनेापणीरिद्धिनोनाशथायछे एमघणोक शोकातुरथइनेबेठो चिंतारुपीयाकोठारमांपठो त्यांएवो विचार उत्पन्नथयोजे कंगालथइनेबेशीर हेतो कइंकामबन शेनही माटेउद्यमकरुनेंजइनेयुद्धकरीनें एरिद्धिछेतेब धी एलेsaj ने एजीवने लेइावीनेपाछोसंसारमांक बजकरुं एमविचारी पोतानोदुरध्याननामाझाहाझनोजे टंडेल तेनेतेडावी ने कह्युंके आपणुं दुरबुद्धीनामावाहाण ३६ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ थीध्यानविलास. संग्रामनेविशेबेशीनेलेइजवानूछे तेतईयारकरोबीजांदुष्टा चारप्रमुख झाहाजछेतेसर्वेतइयारकरो त्यारपछी पोता नाजेयोद्धा राग देश प्रमुखनेकझुके आपापणीसेना लेइने तइयारथात्रो त्यारेतेसर्वेपोतपोतानाशुनट सेना श्रोसजकरी वाहाणमांवेठा भवसमद्रमांतेवाहाणचलवी ने लडाइउपरपोहोच्या तेवासमानविशे धर्मराजानासु नटो चारित्ररुपीअाझाहाजनेवीशेथीरता रुपीत्रामंडप नेविशेबेठाहता तेणेमोहराजानुसैन्यत्रावतुंदीठं देखीनेतु रतउठीसजथइने रणमंडपनुमाएत्रावताहूवा तत्वचिं ताप्रमुखजेवाहाण तेलेइनेसर्वेसजथया पछीमोहराजा साथे मांहोमांहे युद्धकरवालाग्या त्यारेसम्यकदर्शनप्र धाने मिथ्यात्वप्रधानने अंतदशाएपोहोचाड्यो केवोमा हाजोरावरहतो मोहराजानोमोटोशुभट माहावीखमका मनोकरनारो तेवाप्रधानने शेजमाएकलीलाएकनिह ण्यो हवेजेमोहराजानोजेरणस्थंभतेनेजइनेरोकीलीधो हे वोजेउपसमनामाशुनट तेणेकषायादिकचोरटाअोसर्वनेव श्यकस्या नेशीयलसुभटे कंद्रपचोरनेजीत्यो अनेवैरागसु नटे हास्यादिकखटनेजीत्या हवेश्रुतज्ञानजोगादिक सुभ टतेणेनिंद्रादिकसुभटोने हण्या धर्मध्यान शुक्लध्यान बे सुनटे आर्त रुद्र एबेसुभटोनेहण्या इंद्रीनीग्रहसुनटे अ संजमचोरनेहण्यो क्षयउपसमयोद्धे दर्शनावरणीचोरोने Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. २८३ हण्या वलीअशातारुपसैन्य मोहराजानु घणुहतु तेसर्वे पुन्यउदययोद्वाना प्राक्रमथकीनाढू हवेजेद्रव्यस्वरुपहा थीउपरबेठो रागरूप सिंहेकरीनेसहित हेवोजेमोहराजा पोतानारागकेसरी पुत्रनेलइने लडाइउपरपंडे श्राव्यो त्यारे धर्मराजा श्रद्धारुप श्रष्टापद वाहन उपर बेशीने साथेज्ञानरुपपत्र भारंडपक्षीरुपलइने पोतेचड्योत्यांमो हराजानेहण्यो त्यांसर्वमोहराजाना सैन्यनोक्षयकरी नी कंदनकरयुं तेवारतेमुनीराजमाहाआणंदने प्राप्तथया ध मराजानापसायथकी पोतानुइछीतकाजथयुं तेवारतेसा धुमाहा व्यवहारीयाथया चारेदेशनो वेपारकरवालाग्या तमनेकोइरीतनो हवेनयरह्योनहि एवीरीतेपोतानामन नीमाहेलीकोरेनेसैन्यनुस्वरुपविचारवुइहांबाहारनोको इचोरनथी तेमराजाएकोइनथी पोतानास्वरुपनीमांहेलि कोरेविचारीनेजुवेतोनासनथाय केमकेस्वरूपानुजायीपणे प्रवर्तेतो धर्मराजानापक्षनीझीतसमजवी नेपरानुजायी पणेप्रवर्तेतो मोहराजानापक्षनीझीतजाणवी एमपोता नेअंतरमांबन्नेस्वरुपविचारवानांछे परअनुजायीए प्रवर्त वतेबंधछे स्वअनुजायीएप्रवर्तवुतथि मुक्तिछे माटेमुक्तिने बंध सर्वेपोतानाअंतरमांहेछे एवीरितेधर्मध्यांनमांपेसवा नएलक्षणथकीपामे एवाबिजाएपण अागमनेविशे पदा र्थनासमुहकहेलाछे तेपोतानेविचारीलेवा जेमुनीइंद्रीयो Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. ने तथामननेझीतिनेनिर्विकारबुद्धिवालोथाय तेधर्मध्यां नध्यावावालोछे अनेतेहनेजधर्मध्यानध्याताकहिए वलि संतदंतपणतेनेजकहिए ज्ञाननुलक्षणएमजछे थिरभावे रहेतेनेसर्वघटे संतोषीथइनेत्रात्मामांथीरभावग्रहे तेन रिज्ञावंतकहिए तेनेजध्यांनीकहिए एधर्मध्याननुलक्षण का एधर्मध्यांनछठागुणठाणाथी तेाठमागुणठाणासु धीहोय वलिकेटलाकआचारजकेहेछेकेचोथागुणठाणा थितेत्राठमागुणठाणासुधीहोय केटलाकाचारजकेहे छेकेचोथागुणठाणाथीते सातमागुणठाणासुधीहोय पछी तत्वतोकेवलीगम्यछे पणचोथेगुणठाणेजोधर्मध्यान न होयतोसमकतिरहेनहि माटेएमसमज्यामांत्रावेछेकेचोथे गुणठाणेथीजधर्मध्यानछे तेसातमागुणठापासूधीछे ने आठमे गुणठाणेतो शक्लध्यानावे एवुभासनमांत्रावे छे पछीतोकेवलीजाणेतेखरूंछे एटलेएधर्मध्यानका हवे एठेकाणेबीजापण चारध्यानकहेलाछे तेकहिएछिये पद स्थ॥१॥पिंडस्था॥२॥रुपस्थ॥३॥रुपातीत॥४॥ हवेएपद स्थध्यानकेहेतांजे अरिहंतादीक पांचपदतेनाजेगुणतेवि चारी पोतानात्रात्मसरुपमांमेलवीलेवा तेगुणसर्वपाता नाअात्मामालाधे तेगुणनुध्यांनकरवं शामाटेके अरि हंतादिकपदमां नेमारात्रात्मामां कश्योभेदछेनहिमाटे तेनुध्यानकरवु तेनेपदस्थध्यानकहिए हवेबीजुपिंडस्थ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. २८५ ध्यानकहिएछीए पिंडकेहेतांजे शरीरनी मांहलीकोरे असंख्यात परदेशे नीर्मलापण त्रात्मा अनंतगुणे करी व्यापेलोएवोमांहेरह्योछे ते सिद्धपरमात्मा सरखो जछे इत्यादिकविचारखुं प्रथवासिद्धनीबरोबर गुणने मेलववा एपिंड स्थध्यानकहिए हवेरुपस्थध्यानकहिएछि ए रूपकेहेतांजे शरिरादिकमाहेरह्योछे एवोमाहारोचे तनपण पोतेतोस्वभावेरुपीछे अनंतगुणीछे वलीरुप शब्दवोजे केहेतां वस्तुनुजेमुलस्वरुप सत्ताएछेएवं तेने पणरुपी कहिए हवेएव श्रात्मस्वरूपतेने अवलंबीनेध्या नकरवुं एटलेयात्मानुरुप एकत्वतापणे एवंजेध्धानकरवुं | एटले मुलस्वरुपमांजरमणतारहे एटलेपरभावनुत्यागीप णुं स्वनावनुंजोगीपणुं एवीरीते एकत्वतापणे तन्मयपणे जेरमवुतेत्र णेध्यानधर्मध्यानमांगवेख्यांछे एमुक्तिदातारन थी मुक्ति नाकारणीक एछेएधर्मध्यानपराएदेवलोकनीगती श्रापे हवेजेचोथुध्यान रुपातीतनामेच्छे तेशुकलध्याननाघ रनुछे पणइहांसमुदाएभेगुश्राव्यंछे तेथीधर्मध्यानमलतुं कहियेछिये पणएध्याननेगुकलध्यानभेगुंसमजवं हवेते रुपातितध्यानकहियेद्धिये रूपातितकहेत्तांजे रुपथकि तित एटले पुद्गलादिकरूपथकिरहितपणुं स्वस्वनावी कच्यात्मा कर्मरूपरजेकरीनेरहित निर्मलसंकल्प वि कल्परहित नेद् एकशुद्धसत्तारुप निर्मलचिदानंद त Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ 'श्रीध्यानविलास. त्वामृत प्रसंग अखंड अनंतगुण परजायरुप श्रात्म स्वरुपन्ध्यान तेरुपातितध्यानजाणवू इहांमार्गणा ग पठाणां नयप्रमाणपक्ष मतीत्रादिकज्ञान क्षयउपसमभा व एसर्वेछांडवाजोगथया तेएठकाणे खपमांत्रावेनहि ईहांतोगुणर्नुक"जेध्यानते लेवाजोग सिद्धपरमात्माना मुलगुण तेरुपत्रात्मस्वरुपनेध्यावे ईहांपरपक्षकशोयन लाधे मुक्तिपामवानुंकारण एजध्यानछे माटेजेQमुक्तिमां स्वरुपछे तेवुजात्मानुस्वरुपध्यावq एटलेएरुपातीत ध्यानजाणवु हवे एधर्म ध्याननी भावनाओ च्यारछे तेकहिएछिए मैत्रिभावना १ प्रमोद नावना २ मध्य स्थानावना ३ करुणानावना ४ हवेतेमध्ये प्रथममैत्रि नावनाकहिएछिए मैत्रिकहेतांसर्वजीवसाथेमित्राइपणा नानावनी चिंतवणाकरवी जेमपोतानामित्रनुनलुचाहेछे अनेतेनेरुडुकरवानेतेनेखुशबस्तीघणारेहेछे तेमसर्वेजी वनुकल्याणथवानीचाहनाकरवी कोइजीवन-डुचिंतव नहि एसर्वजीवनुहितथायहेवीचिंतवनाकरवि एटलेसर्व जीवउपरहेतबुद्धि जेसजीवसुखीथाय सर्वेजीवनुकल्या एथाय नेमुक्तेजाय अथवासजीवधर्मपांमेतोसारूं एम सर्वेजीवनामित्रभावेकरीने कल्याएनुचिंतववु पणकोइनु अकल्याण चिंतववुनहि एवि रितनीचिंतवणाहोयतेवारे मैत्रिनावनाजाणवी १ हेवेबिजीप्रमोदभावनाकहियोछि Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. २८७ ये प्रमोद केहेतां महाहरखनुथानकपांमवुतेशाथकीजे गु णवंत ने देखीने अथवाज्ञानादीक गुणउपरघ पोरागरे हे हवे जेगुणवंतकेहेतां जेपोतानाधर्माचार्य अथवाबीजापणज्ञा नजोगीश्वर महामुनितेवानामेलापथी महाप्राणंद प्रगटे होमहारांधनभाएगजे श्राजमूनेमहाराधर्माचार्य प्रथ वाज्ञानी पुरुषोनोसमागमथयो श्राजम नेते मनादर्शनथयां होहुतेमनीशेवानक्तिकरीश महारांसर्वपापगयां श्राज महारे मोटोपुन्यनोउदयथयोवलीतेगुरुकेवाछे के अनंतगु एनाधणिछे मोक्षनासुखनादातारछे मोक्षमारगनुकार एजछे वली गुरुकेवाछे तत्वभोगीछे तत्ववीलासीछतत्वा श्रीयछेस्वपरनाजाणछे परभावत्यागीछे हेवाजेकोइमहा राजे धर्माचार्य साक्षातत्राकाले परमात्मारुप होएम नुंउपगारतापणुं जे ज्ञानजीव अजाणतेवाने बहू तथी उपदेशकरीनेधर्मपमाडे मार्गमालावीमोक्षपोचा डे दूरगतथी पडतावारे एवाजेगुरुजीनो माहामोटोउप गार एउपगार बिजाथकिनिपजे नहि हेवाउपगारीना गु एप्रोशींगथवानु कोइरितथीदिसतुनाथ कोटानकोटि वसुधि सर्वरितेकरिने शेवानक्ति प्रादेदेइनेकरे तोपण गुणोशींगणनथायमाटे हेवागुरुनोमनेसमागममल्यो छे धन्यछेमहारांभाएग धन्य जनोदहाडो धन्यघडीव न्यवेला अथवास्यादवादधर्मनोजोगमल्यो ज्यांत्रात्मस्व Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ श्रीध्यानविलास. रुपनीचरचा वारताथइरहिछे हेवोसमागमज्यांमले त्यां पणघणो आणंदमाने, एमगुरुवादीकनामलवाथकी एवं मनमांविचारेजे श्राजमनेचिंतामणीरत्नकोटाकोटिमल्यां श्राजमहारामनना मनोरथसर्वेफल्या एवो घणो श्राणं द पांमतो वलीमनमां एवविचारेजे आवांकारणमज ने मलेलांछे तेनोविरहेपडेनहि मारेअहोनिश एवाकार नोसमागमरहेतोघणसारु एमत्रानंदमय चिंतवतोवर्ते तेनेप्रमोदभावनाकहिये २ हवेत्रिजीमध्यस्थभावनाकहि येछियेएटलेमध्यस्थकेहतांसमपरीणाम एटलेधर्मवंतपुरु ष अथवाज्ञानिपुरुषअथवासरखीसरधावालाएवाजीवोने देखीनेतेउपररागउपजेतथामिथ्यादृष्टी कुमार्गीहिंसकपु रुषो तेउपरपण तेवाप्रोतमनाधणीने तेवादेखीने दयाउप जे पणतेनाउपर देशनउपजे हेवोमननीमांहेलीकोरेवि चारथायजेएबिचाराअज्ञानछे तोहएनेउपदेशदेइने हेत युक्तियेकरीने एनेहूमार्गमालावं एधर्मपामेतो घणुसा रु हूतेनेमार्गमालावीशकतो बहूजसारुथाय नहितोएब चारा अनाथजिव नर्कादिकचारगतिमांरखडशे एवीरी तेविचारी तेनेउपदेशप्रमुखदेवो एमउपदेशदेतां कदा पिमार्गमां नावेतो पण एजीवउपर देशकरवोनहि एमचीतव के एबचाराअजाणछे नेसंसारबोहोलोबा कीजणायछे माठाकर्मनाउदये करीने धर्मपामीसकतान Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. २८९ थी एमसमपरिणामराखवा एवीरीतनीचींतवणा तेनेम ध्यस्थ नावनाकहिये॥३॥ हवेचोथीकरुणा भावनाकहिये छिये करुणाकहेतांदया सर्वजीवउपरराखवी सर्वेजीवत्रा पणा सरखाजाणवा पणकोइजीवनेहणवानहि तथाकोइ जीवदुखीहोयतो तेनाउपरपएकरुणाकरवी तेजीवनदुख टालवानीजोपोतामांसामरथीहोयतोतेनुदुखटालवू पण बीजाजिवनेबाधापीडानथायतो तथाधर्महीणहोयतोतेनी पणकरुणाकरवी जेहोआबचाराधर्म पाम्यानहि एसं सारमारखडशे नेमहादुखीथशे ईत्यादिकचीतवना तेने करुणानावनाकहिये एटलेएचारेभावना धर्मध्याननाघ रनीकहितेजाणवी. - हवेशलध्यांनकहियेछैये शुक्लकेहेतां निर्मलशुद्धपर श्रालंबन विनाअात्मस्वरुपने अोलखीने तन्मयपणे ध्यावे एवंध्यांन तेशलध्यानकहिये शामाटेजे स्यांतयां तहोय पोतानाआत्मस्वरुपने वीशेरमे तेजशुक्लध्यांनजो गछे केमकेसिद्धनोंपणएजस्वनावछे तोसाधकनोपणस्व नावएजजोइये बिजेस्वनावएवस्तूमलेनहि हवेतेशक्ल ध्याननाचारपायाछे तेकहियेछइये प्रथक्त्ववित्तर्कसप्र विचार॥१॥ एकत्ववित्तप्रविचार॥२॥ सुक्ष्मक्रीयात्र प्रतिपाति ॥३॥ उछिन्नक्रियानीति ॥४॥ एचारनेदमां हे प्रथमप्रथत्त्ववित्तर्कसप्रविचारकहियेछइये पणत्यां - ३७ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. - प्रथमनाजे बेपायाछे तेत्रप्रमतनावे ध्यानथाय अनेपा छलनाबेपाया केवलिनेध्यावानाछे अनेएध्यांननाविश्रा मनेविशे अनित्यादिनावनानोत्यागनथाय भ्रमणारहित पणेतेनावनाछे तेध्याननाप्राणजाणवा हवेएध्याननेवि शेलेस्यात्रणहोय प्रथमतेजु बिजिपद्म त्रिजिशक्ललेस्या एध्यांननेविशेवर्ततोजिव नेदनोनजनारथायतेनुचिन्हए छेजेश्रागमनीसर्धाकरे एध्यानथकिउतमधर्मप्रगटे एथ किस्वर्गनासुखनिप्राप्तीथाय मोटुपुन्यानुबंधीपुन्यउपार्जे पणएथकिमुक्तिनथाय हवेमुकिथवारुपशुक्लध्यान तेक हियेछइये त्यांप्रथमसमपरिणामथायेकपटरहितपणे जि वनेमुक्तपणुधारणकर्ता शुक्लध्याननेध्यावे छदमस्थपणे अात्मामांमनधरिनेरहे त्यारेरागद्वेशनेजिते तेधणीनिमु क्तिथाय हवेतेपायानोविचारकहियेछइये हवेप्रथक्त्ववित्त सप्रविचारनाम पेहेलोपायोकहियेछइये एटलेजिवथी अजिवजुदोकरवास्वनावथीविनावजुदोकरवोप्रथक्तकेहे तांभिन्नभिन्नजुदा-हेचीनाखवा स्वरुपनेविशेतथाद्रव्यत थापर्जायनेविशेप्रथक्तप्रथक्तपणेध्यानकरवुपर्जायतेगुणने विशेसंक्रमणकरवागणनपर्जायनेविशेसंक्रमणकरवाएवि रितेस्वधर्मनेविशे धर्मातरनेदतेप्रथक्त्वकहिये तेहनोजे वितर्ककेहेतां श्रुतज्ञानादिकउपयोग एटलेत्यांनानाप्र कारनानयनिखेपाप्रमुखलागेकरिविचारवुएटलेएविचार Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. २९१ रुपश्रुतज्ञानध्यावथयु त्यांअर्थअक्षरजोगइत्यादिकनोजे विचारतेनुमाहामाहेसंक्रमणकरवु अथवाभिन्नजुदूकरवु अथवाछद्रव्यविनागुणपर्याय तेमांजेनिगतिकेहतारमण तथइछे एविरितेप्रथक्तप्रथक्तनोखोनोखो सप्रविचार केहेतांत्रात्मद्रव्य निन्नकाहाडि परद्रव्यपांचअप्रविचा रजाणिदूरकरे तेसविकल्पएटलेपोतानोउपयोग एटले एकविचारयापछिबिजोविचारथायेएविरितेप्रथक्तकेहतांजे निर्मल नेवितर्ककेहेतांजेविचार स्वपरनोजेकरवो एविरि तेएकाग्रतापणे जध्यान तेप्रथक्त्ववित्तर्कसप्रविचारनामे शक्लध्याननोपेहेलोपायोजाणवो हेविरीतेपातानासत्तास्व रुपमांध्यावेप्रनावनोत्यागकरेएपक्षसर्वेशद्धवेहेवारनयनो छे ज्ञानथाकिभेदज्ञानकहिये ध्यानथकिशूलध्याननोपेहेलो पायोकहिये एपायावालोस्वर्गगतिपामे एपायोाठमाथी तेश्रगिवारमागुणठाणासुधिहोय एपायावालानेत्रणेजोग उतकृष्टानुसाधनथाय एप्रथमपायोजाणवो हवेबिजोपायो एकवितर्कप्रविचारकेहेतां ते ठेकाणेपोहोच्योथको जिवजेवरजे पांचेद्रव्यधर्मास्तीकायादिक तेनागणपर्या यतकांइइहांध्यानमांत्रावनहि तथाअनंताजिवरह्या तेनो पणविचारलावेनहि त्यांएकपोताना आत्मानागुणपर्या यसाहित एकलपणेध्यावे एटलेत्रात्मद्रव्यज्ञानादिकगण पर्याय एसर्वेमलिने एकात्माथायछे माटेमाहारोत्रा C o mmamere Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ धीध्यानविलास. - | त्मागुणपयायेकरिने एकरुपछे जेमसिद्धपरमात्मानुरुप छे तदवत्माहारुस्वरुपछे हेवुध्यानतएकत्वपणेस्वरुप त न्मयपणेत्रात्मधर्मअनंतानोएकत्रपणेध्यानछेपणइहांवित ककेहेतांश्रुतज्ञानावलंबिपणेत्रनेत्रप्रविचारकेहेतांविकल्प रहितदर्शनज्ञाननोसमयांतरेकारणताविनारत्नत्रयीनुएक समयीकारणकार्यता पणेजेध्याननेवि उपयोगनिशक्तिछे तेथीएकाग्रतापणे शामाटेजेएस्थानकनेविशे त्रणेजोगशु दहोय अनेवित्तर्ककेहेतां विचारतेपणथोडोहोय एटलेम ननुचंचलपणूथोडुहोय जेमसमुद्रपवनरहितथीरथाए ते ममनथीरथाय एटलेहियांविचारछे पणसूक्ष्मछे एटलेए ध्यानअवधीज्ञानमनपर्जवज्ञाननोउपयोगदेतां एध्यानब निशकेनहि शामाटेकेअवधिमनपर्जवज्ञानछे तेपरानुजा यीछे हेनोविषयरुपिद्रव्यनेजाणवानोछेत्रनेत्राध्यानछेतेस्व अनजायीछेअनेहेनोविषयअरुपिद्रव्यनेजागवानोछेमाटे एबेनोउपयोगअन्योअन्यप्रतिपक्षीछे तेमाटेएध्यानतेश्रु तज्ञानवडेजनिपजे एध्यानथकीनिर्मलकेवलज्ञानपामे प णएध्यानथकिमुक्तिकोइपामेनहि शामाटेकेएपणजोगा दिकग्राहिकछे तेकारणमाटेएविरितएकाग्रहपणे. एध्या ननेविषेप्रवर्ते तेनेएकत्सवितर्काप्रविचार नामबिजोपा योजाणवोनेथीरपरिणामीएध्यानछे दीपकजेमपवनरहि तथीरशिखारेहेतेमसंकल्पविकल्परहितमनएध्यानमारहे Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. . २९३ एध्यानपर्यायरुपछे बारमागपठाणानाअंत्यसुधीएध्यान छे हवेसक्ष्माक्रियाअप्रतिपाति त्रिजोपायोकहियेछिये एट लेबिजापायानाअंतेकेवलज्ञानपामि तेरमागुणठाणामांव ते त्यांतोध्यानात्रीकपणहोंय तेवारपछितेरमानेअंते चउ दमेजतांत्रीजोपायो शुक्लध्याननोभावे एककायजोगबा धरथकिरुंधेलोछे तथामनजोगवचनजोग समस्तरुंधेला छे तथाकेटलाकत्राचारजकेहेछे के बाधरजरोकेलाछे एवि रीतेबाधरजोगरोकिने तथावचनकायानासुक्ष्मजोगपण रोकीने अजोगीथयो त्यांअप्रतिपातिनिर्मलविरज अच लतारुपपरीणाम तेसुक्ष्मक्रियाअप्रतिपातिध्यानजाणवं इहांसत्तायेपंच्यासिप्रक्रतिहती तेमध्येबोतेरप्रक्रतिखपा वानी नेवाकिनीतेररहिएतिजोपायोजाणवो हवेचोथोउ छिन्नक्रियानिवृत्ति नामेकहियेछिये जेजोगकायानोसुक्ष्म रह्योहतोतेपणरोक्योएटलेसर्वेजोगसंध्यानेसर्वेक्रियानोइ हांउछेदथइगयो अनेइहाशैलेशिकर्णकरे एटलेशैलकेहे तांजेवोपर्वत जेमकोइपवनथकीकंपेनहि तेमप्रजोगीम नीश्वर शैलेशिकणेपोचाथका निश्कंपपणेरहे तेरप्रक्रति जे रहिहूती तेनोपणत्यांक्षयकरीने अकर्माथाय सर्वक्रि यारहितथइने स्वस्वरुपप्रगटकरे एध्याननुनामसमुछिन्न क्रिया शुलध्यानबिजुपणनामछे हवेएध्याननोचोथोपायो. ध्यातांथकां शरीरअवगाहनात्रावखुसर्वथकीअलगोथइ 3 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - २९४ . श्रीध्यानविलास. नेमोक्षमांजाय एटलएशुक्लध्याननोचोथोपायोकह्यो हवेए शक्लध्यानना च्यारपायानुफलकहियेछिये तेप्रथमनाजे बेपायाछे तेध्यावावालोदेवलोकजायनेउपरनाबेपायामां पेहेलोजेपायोछेतेमांमरणछेनहि अनेचोथापायावालोमो क्षेजाय नेत्रिजानेमरणछेनहि पणचोथेपायेथइनेसिद्धीवरे एकइंपाछापडवानाछेनहि माटेएबन्नेपायावश्यमोक्षग तिजछे हवेएशक्लध्यानवालो जथार्थपदार्थदेखे आश्रवनो नाशदेखे नेसंसारस्वरुप एनवनीपरंपरानुकारणदेखे अं न्यपदार्थसर्वश्रात्माथ कविपरितपणेजाणे एशलध्यानना विसामामां एविरीतेजाणेदेखे तथाशुक्लध्याननात्रणेपाया मांधर्म उतकृष्टिशक्ललेस्याजाणवि नेचोथोपायोजेछ तेतो लेस्यायेकरीनेरहितकह्योछे एटलेतेनेवीशेलेस्याहोयनहि नेशुक्लध्यानवालानाजोगपणसर्वेशुद्धहोय हवेएशुक्लध्यान नुलक्षणकहियेछिये अहिंसकहोय मोहरहितहोयविवेकि होय त्यागबुद्धिहोय वलीप्रबंधथयो तेमाटेउपसर्गपरीस हथीकंपेनहि नीरनयपणेवर्ते सुक्ष्मअर्थनेविशेपणमझाय नही नीशंकपणेरहे मोहमायानालक्षणथक तथासर्वसं जोगथकिजुदोरहे एसर्वविवेकनांलक्षजाणवां देहतथा उपगर्णनित्यागबुद्धिये असंगअनुष्टानेवर्ते एटलेउपसर्ग अनुष्टानरुपलक्षणेकरीवर्ते हेवीरीतेजेमुनी एलक्षणध्या नादीकनेवीशेप्रवर्ते तेज्ञानीपणुपामे एरीतेध्याननोजेत्र Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीध्यानविलास. २९५ नुक्रमनेशुधरीतेजाणीने एजपरमात्मानित्राज्ञाछे हेवीरीतेते श्राज्ञानोअभ्यासकरशे तेसंपूर्णअध्यात्मज्ञानीथशे ह| वेएध्याननो महिमाकहियेछिये केज्यांएवंपरिपक्कउत्क ष्ट ध्यानपामेथके ईंद्रचंद्रनागिंद्रनीपदवी तेमुनिश्वर त रखलाबरोबरगणेछे शामाटेकेत्रात्माने प्रकाशसुखसुखे करे एवज्ञानप्रगटे नेवलिभवनोनाशकरेएQतेमाटे एज ध्याननेशेवो अनेजेकामातुरिहोय तेपणकामदशानेको डेशामाटकेजडस्वनावजाणिने विषयसुखनोत्यागकरेप परागदशा छांडवितोघणीदूकरछे अनेजेध्यानवंतमुनि श्वरछे तेतोपरमात्मारुपजसाक्षातदर्सेछे तेध्यानमांतृप्ति पामिने फरीनेतेरागादिकनवंछे अनेबिजाजेजिवोरह्या तेनेरात्रीसर्व निंद्रामांजायछे अनेध्यांनदशावालानेरा त्रितो अोछवमोछवएसर्वे सरखात्रानंदमांजजायछे अ नेजसंसारिजीवविषयमालब्धथका जेवेलाएजागेछे तेवेला ध्यांनिपुर्षोनेसयनकरवानुछे जेमत्रवडकुवानुपाणि जेमडो | होलायेलुबगडेलहोय तेमध्यानविनानुमनएवूजाणवू श्र नेजेसर्वथकिसिद्धफलनीइच्छाराखेतो त्यांतोध्यानरुपी याघटमां मनरुपीउजलभरे तोतनर्मिलथाय जेमहवड कूवानुजल घटमांभयुनिर्मलथाय तदवत्जाणवू सर्वक्री यानुफलतेध्यानथीजछे अनेध्यानतेपरमर्थनूकारणछे कदापि कोइनुमनवीषयकखायनेविशेपरवर्ततुहोय तोय %3 - Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास.. पणध्यानवंत चेतननेकर्मबंधायनहि वलिप्रतिशेअनिष्ट | विषयपणहोय नेघणेप्रकारेतेउदयनाकष्टमांपडयोथकोपण निश्चलपणुनछंडे तेत्रात्मानेविशेलीनकहिये हवेप्रगटदी ठुमोक्षसुखरुपजेसूरज एवुएध्यानएटले मोक्षसुखथकिप ध्यानमोटछे वलिजेशास्त्रनाविचारथकिजे नास्तिकना वअतिशेहण्योनथि एटलेनास्तिकभावरहितज्ञानमोटुछे ज्यांस्वर्गनुतेजचंद्रमाग्रहनक्षत्र तारातेमनातेजनेविशोदप कनतेजअल्पछे तेमध्यानेकरिनेभेदापोछे जेनोअज्ञानरुपि योअंधकार तेत्राणिनेमाहात्रानंदरूप आत्मानुतेजतेपण आत्मामांहेसोभीरघुछे वलिप्राणिनेघणाकालनो जेसम तारतीरुपणीस्त्रीसाथे विजोगहतो ते एकक्षणेकमांही स्त्रीनोविजोगभाग्यो नेसंजोगथयो एवोध्यानरुपियापर ममित्र अमारेपरमहेतुछे नेअमनेपरमवाहालोछे एम ध्यानिपुरुषकेहेछे अनेसंसारमांकृत्रिममीत्रथकिशुथायह वेध्याननुघरवखाणीयेछैए एटलेध्यानरुपीयुघरकेवछे के ज्यांहाकामरुपियोतापतोछेजनहि नेशीयलरूपशितलसु गंधेनरेलि एवितोबेठकोछे ज्यांवलिमोटीसमतारुपणि यो तलाइयोकेहेतांगादीतकिया ज्यांतेबेठोछे एटले ध्यानमंदीरमां श्रात्माएविरीतेबेठोथको सुखपामेछे वलि शीयलरुपसिंहासन ज्यांइंद्रिदमनरुपजलभरेलांछे स मतारुपीयापोलीयाखडाछे ध्यानघरमांहेपोतानी स्म Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. २९७ तीनामास्त्रीयेतेड्योथको श्रात्मापरुणापेरेपुजातोथको ए बुध्यानकहिये एटलेग्रात्मानेविशे नेपरमात्मानेविशे जेनंतर हतोते अंतर जाग्यो ने एस्थानकनेविशेपंडीतलो कोनाविवाद झघडाघणाहता तेध्यानरुपिया संधीपाले सर्वनाविवादझघडातोडीनाखिनेसिघ्रपणे परमात्माने ने श्रात्माने नेदपणेकरिदिधा हवे अमृतरस देखाडियेछ इये एटले जाणलोक मृतरस घणेकठेका ऐमानेछे ने ज्ञानीलोकतो एकध्यांननोविशेजमानेछे तेकहिये छैये ॥उक्तच श्लोकः॥ क्वामृतंविषनृतेफणिलोके॥कक्षयिएय पिविधौत्रिदिवेवा॥ क्वाप्सरोरतीमतांत्रिदशानां ॥ध्यानमेवत दिदंबुधसेव्यं ॥१॥ गौस्तनेषुनसिक्तासुसुधायां ॥ नापिना पिवनिताधरबिंबे॥ तेरसंकंचुकमपिवेत्ति ॥ मनस्याध्यानसं नवभ्रतोप्रथनेयः ॥ २॥ ॥प्रर्थः॥ हवेजेनागलोकछे त्यांमृतक्यांथकिहोय ए तोबचाराविषमांरंगाइगयेलाछे अथवा कोइकहेशेचंद्रमा मांश्रमृतछे तोतेपणवातनासनथतिनथी शामाटेकेदिनदि नप्रतेक्षिणथतोजायछे तो मृतरसज्यांहोय त्यांक्षिणप शुकेमलाधे कदापिकोइ केहेशेके देवलोकनेविशेश्रमृतछे तेपणकां संभवतुनथी शामाटेके देवलोकनादेवपण प छरायोना रंगमांरंगाएलाछे माटेत्यांपणामृतरसनथि माटेएकध्यानमांजश्रमृतरसबे तेकारणमाहेपंडीतो ए ३८ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ श्रीध्यानविलास. ध्याननुजवनकरो एपेहेलाश्लोकनोअर्थ हवेबिजाश्लोक नोअर्थकहियेछइये हवेअहियांकेटलाकजिव गायनास्त नकेहेतां दुधमांअमृतमानेछे केटलाएकसाकरमांमानेछे तेमांतोरसछेजनहि केटलाकस्त्रीनाअधरनेविशे अमृतर समानेछे पणतेरसतोकोइस्थानकेछेजनहि एअमृतरसछे एतोत्रपूर्वछे तेकोइपंडीतपुरुषजाणे अनेएरसतोध्यां नथकिजप्रगटथाय एबिजाथकिनहोय एवोजेअमृतर सतेनोस्वाद ध्यानिपुरुषचाखे तेसंतोषनुसुख तेनेजछे एटलेएबिजाश्लोकनोअर्थकह्यो एविरितेजेनुप्रवर्तनहोय अनेजेएशुक्लध्यानध्यावे तेधणीमुक्तिनांसुखपामे एटलेए शुक्लध्यानका तथाएच्यारध्यानकह्यां एच्यारध्यानमध्ये थी प्रथमजेबेध्यानार्तध्यान तथारुद्रध्यानछे तेअवश्य छांडवाजोगछे अनेधर्मध्यानजेछे तेआदरवाजोंगळे पण एथकी मुक्तिपरावर्तनथी पगस्वर्गनासुखमले अनशु क्लध्यानछे तेमध्येबेपायाछे तेतोस्वर्गनासुखनादातारछे तेकोइकजिवाश्रीनेछे पणघणाजिवनेतोएमुक्तिनुजका रणछेशामाटेजेपेहेलोपायोाठमाथी तेदसमागुणठाणा सुधीछे एटलेएत्रणगुणठाणानेविशे तोकइंमरणछेनहिं इ हांजेस्वर्गादिकगतिकेहेविते उपरनागुणठाणाने अथवा निचलागुणठाणाने श्राधीनेकेहेवानुछे शामाटेकेजे मृत्यु पामवुहोयतापाछापडे नेछठेसातमेश्राविने मृत्युपामे Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. श्रथवाचडेतो गार्मे गुण ठाणेजइनेमरे तोसर्वारथसि बेजायत्र्थवाच्यमित्रारमेनजजायनेपाधरोबारमेजायतो केवलज्ञानउपारजी तघडकेवलिथइ चडदमानेांका लकरिमोक्षजाय पणशुक्लध्याननापेहेलापायामांतो कई जिवकालधर्मपामेनाह इहांकोइ केहेशेके जोकालगतिन थिपामतातो स्वर्गगतिकेहेवानीशीजरुरछे तेनोउत्तर केए ध्याने वर्तेछेजेयात्मा तेनोउपयोग सर्वकर्मनाशकरवाजेवो नथी एटले जेट लिए नाउपयोगनिरमणतानोसुमारजोइने स्वर्गगतिकहियेछिये पाइहांमरणपामेनहिज हवेबिजा पायानेजे स्वर्गगतिकहि तेनोविचारकहूछु जेएपणकोइ कजिवाश्रीछे पणकांइ सर्वजिवच्या श्रीनथी शामाटेजेउ पसमश्रेणीजे जीवश्रादरेतेजिव मिश्रा गुण ठाणेप्राव्यो थको मर्णपामेतो सर्वारथमिदेजाय नेपाछोपडेतोदशमेगु ठाणेजाय तेनितोकइंग तिके हे वानिजरुर छेनहिशामाटे जेएमकरतांफरिथीचडेतो मोक्षपणजाय अथवाछठेसात मे गुणठाणेजतोरेहेतो स्वर्गेपणजाय तेथीपणघपोनिचोउ तरिजायतो नकीढ़ीकगतिनेविशेपजाय माटेपडतानो तोकइंनियमछेनहि हवेजेजिवउपसम श्रेणिएनचडेनेक्षपक श्रेणीएचडे तेजिवदशमागुणठाणानेते मोहनिकर्मनो क्षयकरे इहांसुधीपेहेलो पायोजाणवो हवेत्यांथकिदशमा नोउठ्यो बारमेगुणठाणेजाय पणते गिरमे सर्वथान २९९ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. - जजाय त्यांतोउपसमश्रेणीवालोहोयतेजजाय हवेजेबा रमेगुणठाणेगएलोजिव क्षपक श्रेणिवालोत्यांशुक्लध्यान नो बिजोपायोध्याय तेएपायानाध्याननेविशेवर्ततेथके त्र णकर्मनोनाशकरे ज्ञानावरणी ॥१॥ दर्शनावरणी ॥२॥ अंतराय ॥३॥अनेएकमोहनिकर्मनोनाशप्रथम दशमेग पठाणेकरेलोहतो एटलेएचारकर्मनोक्षयथयो तेकर्मनेघा तीकर्मकहिये एटलेघातीकेहेतां श्रात्मानागुणनिघातकर ताछे तेकहियेछिये ज्ञानावरणिकर्मछे तेज्ञानगुणनेहणेछे दर्शनावरणिकर्मछेते दर्शनगणनेहणेछे मोहनिकर्मछेते चारीत्रधर्मतथासमकीतधर्म बन्नेनोनाशकर्ताछे तथाविर जगणअंतरायकर्मेदाब्योछे एटलेएच्यारेकर्मात्माना जेच्यारेगुणमोटाछे तेनेएहणताछे माटेएनेघातिकर्मक हिये नेबाकीनाजेच्यारकर्मछे तेआत्मानागुणनेहणतान थीतेतोशुनाशुनफलनादेखाडनाराछे माटेएवाजेच्यार घातिकर्म एबिजापायानाध्यानथकीहणाय तेधणीकवल ज्ञानपांमे पणइहांमुक्तिपांमेनहि शामाटेकेबारमुतेरमुगु पठाणुपणअमरजछे पणमुक्तिनुकारणतादृश्यछे हवेत्रि जोपायोछेतेपणजोगीपणानेत्रापे पणमुक्तिनथायपण एमक्तिनकारणछे पणप्रक्रतिबोतेरसत्ताएबाकिछे तेखपा वे आत्मानेहलकोकरे अनेचोथोपायोध्यातांथकां सर्वक मनोनाशकरे एपायानेअंतेमुक्तिपांमे एटलेएध्यानमोक्ष Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. - नजकारणछे एजमक्तिरुपजाणव मक्तिरुपियामालिया। उपरजावु तेनेएशध्यानरूपाणिनिसरणीजोइये तेशुक्ल ध्यानरुपणिनिसरणीने च्यारपगथियांछे तेपगथीयेपग थीयेचडीने चोथापगथीयानेअंते मुक्तिरुपियामेहेलमांज वाय इहांकोइएच्यारेपगथियांविना बिजांपगथियांमक्ति जवानांकेहेछे अथवापोतेपणचडवाचाहछे अथवाबिजाने पणएवांपगथीयांबतावेछे तेसर्वेमिथ्याछे तेमार्गप्रज्ञानि नोजाणवो एबचाराउलटासंसारमा च्यारगतिरखडव धारेछे जन्ममरणनाफेरातेनाटलेनहि तेधणीमोक्षकोइ कालेजायनहि जेदहाडेआशुक्लध्यानरुपणीनिसरणीयेच डशे तेदहाडेजमुक्तिनित्राशाराखवितोइहांकोइकेहेशेके धर्मध्यानपणविणखपनुथयु तेनोउतरकेधर्मध्यानछे तेशु ध्याननुकारणछे माटेतेप्रकारगनथायमुक्तितोज्ञानध्या नवडेजछे माटेज्ञानध्यानविनाअपरजेरा तेअकारणछेह वेजेध्यानकह्यांतेसर्वेनुसार संक्षेपथीदेखाडुछु परभावनो त्यागकरवो मननिचलाचलसर्वटालवित्रनेस्वनावमाथी रथइजवु एटलेसर्वेध्यानथइचुक्यां इहांजमुक्तिथइचुकी तेनेइहांजिवतांपणमुक्तिछे नेमुवापछीपणमोक्षजाय ॥हा॥एहग्रंथपुरणहुवो बहुशास्त्रअनुमान ध्याननेद | एमनाखिया तेहसुजोज्ञान॥१॥धार्तरुद्रध्यानए पाया श्राठझुंजोय तजवानाख्याज्ञानिये तेनाख्याएसोया॥२॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. धर्मध्यानच्यारभेदथी जाख्योतासविचार पदस्थपिंडस्थए मजाणिये रुपस्थकह्योनिर्धार ॥३॥ भावनाच्यारकहितेह नी नाखीग्रंथमोझार लक्षणादिस्वरुपते ज्ञानिमनसुख सार॥४॥शुक्रुध्यानते मनाखीयु पायाच्यारसमेत तेमरुपा तितनाखियु मुक्तिनुखे ॥ ५ ॥ इत्यादिकबहूवारता ना विग्रंथमोझार वांचीश्रादपांमशे पंडितजननिरधार ॥६॥ एहग्रंथनातांथकां टुटेकर्मनीजाल पांमेसुखतेसा स्वतां मुक्तितणांतत्काल ॥ ७॥ एहग्रंथरुदयेधरि ध्यानं करेवलिजेह तेजवाट विनवभमे पांमेशिववधुगेह ॥८॥ धुपेरेविचलरहो एहग्रंथसुखकार प्रर्कतेज जेमविस्तरे तेमविस्तरोउदार ॥९॥ पंडीतने मुखमुखव से आत्मार्थिते मजोय एग्रंथसमवरजो नविदि सेपणकोय ॥ १०॥ मुक्ति दायक ग्रंथछे एहिजमुक्तिस्वरुप समजेज्ञानीहोयते भाख्यात्मस्वरुप ॥ ११ ॥ एग्रंथरुपछेत्रक्षन लो पत्रस मतारुप कुशमतेहनांजाणिये नरसरगस्वरुप ॥ १ ॥ फलए नुप्रविचलछे सुखपणत्रविचलएह थितिपत्रविचलन लि शिववधुने गेह ॥ १३ ॥ जिनवरमुनितणो हूकमजेमाथे चडाय पामेसुखतेसास्वतां वेगेपोचेध्याय॥१४॥ खगणी सतसंवछरे उपरबाविसजाण वैशाखशुदिपंचमिदिन वा रगुरुप्रमाण ॥ १५ ॥ श्रामोदगामेएरच्यो निजश्रानंदप्र माण संघतत्रानंदघणो ध्यान र सेगुणखा ॥ १६ ॥ ए ३०२ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीध्यानविलास. ३०३ ग्रंथपुरणथयो पुरणआत्मीकसुख मुनिहूकमकहेएहध्याव शे तेनेनहिभवदुख॥१७॥ भवदुखसेहेजेमटे ध्यानरसेसु खकार किरियाकष्टनजोइए एफोगटालपंपाल॥१८॥ खटपटसविरेकरो थीरकरोनिजचीत आत्मगुणप्रगट होशे प्रगटेबोहोलुवित॥१९॥ एग्रंथजेवांचेभणे तेथायसं तरूप रागद्वेषतेहनाटले होयात्मस्वरुप ॥२०॥ मुनिहू कमकहेश्रात्मीक जेहनेप्रगटीचाल शिववहूनांसुखभोग वे होवेमंगलमाला॥२१॥ 80299208928 इतिश्रीध्यानविलासग्रंथ॥ ॥मुनीश्रीहूकममुनिकृतसमाप्त॥ . . . . - Page #312 --------------------------------------------------------------------------  Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअध्यात्मछनुवि. श्रीगुरुभ्योनमः ॥दुहा॥प्रमिभगवतिभारति जेछेजगताधार तेह तणिकृपाथकी कहआत्मविचार ॥१॥ ज्ञानविनाव्यवहा रजे तेतोबालकचार बालधुलिलिलासमो नास्योएश्रा चार ॥२॥ अध्यात्मगुणजिहांकने भावचारित्रजाप दर्शनज्ञानपणछेसहि एवं ग्रंथेविनाण ॥३॥ मिथ्याह ष्टिजीवडा करेबाहाजव्यवहार अंतरभावनेदेनहि केमल हेनवपार ॥४॥ जेमभाजनएकवासियुं हिंगलखणकेसंग सुगंधतेग्रहेनहि उलटोग्रहेकुरंग ॥५॥ मिथ्यादृष्टिटालेन हि करेसमकितकिबात पुर्वदोषटालेनहि केमहोयतेसु जात॥६॥बाह्यद्रष्टिछंड्याविना अंतरद्रष्टिनहोय परमा मपदक्थुमले हृदयविचारिजोय ॥७॥ तेमाटेभविजीवडा छंमोबाहेरद्रष्ट परमात्मगतिचाहिये तोकरोअंतरद्रष्टा८॥ अंतरद्रष्टिगुणविना कोईनहोवेशुद्ध बाह्यद्रष्टियखेलता र हे नवधमणनिबुद्ध॥९॥बाह्यव्रतनात्यागसें निर्मलहुवो नकोय अनविपणतेहिजकरे दिलशविचारिजोय ॥१०॥ अहिजेमकंचकतजे पणनिरविषनविथाय तेमज्ञानविना 36 Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ श्रीश्रध्यात्मछनुवि. जिवडा चारगतिकहेंवाय॥११॥ एमसुणिकोइबोलशे ल हिश्रध्यात्मलेश कहेग्रात्म प्रबंधछे शाने करो उदेश ॥ १२॥ एपणनापासत्यछे चाले ज्ञानचाल प्रबंधक हि व्रत मां काढेप्रमादेकाल ॥ १३॥ श्रध्यात्म पोकारतां तजेनहिंप रावतेत बंधमांप फेरनहिलबलाव ॥१४॥ श्रथवात्रा मित्रात्मकरे छंमेन शुद्धाचार कहोनिर्जरातेकेमहोवे तेतोथिरसंसार॥१५॥ त्रणशुद्धिकाहिशास्त्रमां विषय १ श्रा स्म २ तत्व ३ दोमेतोधर्मछेनहि एवं समजोसत्व ॥१६॥ तत्वएकशुधिथी पामेपदनिरवाण सद्गुरुसिखतोएमदि ये समजोचतुरसुजाण ॥ १७ ॥ विषयशुद्धिकरवाथकि कारकबहुनाहोय भवभ्रमणएथिवधे बोहोलसंसारिते जोय ॥१८॥मोक्षमार्ग जातांथकां श्राडोहोवे पाहाड खसाव्यो | खसेनहि जेह नोउंडोगाहाड ॥ १९ ॥ श्रात्मशुद्धि बिजीकहूं ते सुणजोधीकार समजीने दूर किजिये ज्ञानिवचनानुसा र ॥२०॥ श्रात्मात्मजेकरे करेनज्ञानविचार संसारमांव लग्योरहे एमुरखत्राचार ॥ २१ ॥ शत्रु मित्रमनचिंतवे करे तेहराविरुध रागद्वेषवलगीरह्यो एमांजेहनिछेमंदबुध ॥ २२ ॥ पुत्रकलत्रप्रेममां लुब्धाणाश्रहनिश कोइशिखाम देजलि तोकरेखोटीरीस ॥२३॥ लुब्ध्योपरीग्रहभावमांइ त्यादिकबहूनेद एहनिसाधकरतोरहे मट्योनमनकोखद ॥२४॥ साधुभयोतोक्याहून श्राव्योनहिसंभाव समतावि Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअध्यात्मछनकि नासुखनविलहे फोगटकष्टकहावा२५॥लोचकरोभोमिसु वो अम्वाणेपगचाल निस्टहिपणेचालतो सुजतोश्राहार निहाल ॥२६॥ इत्यादिकबहकष्टकरे जाणेशिध्योकाज मुरखमनसमजेनहि उलटीखोईलाज ॥२७॥ सदगुरु शिखसुणेनहि चलवेमाकम्माल किरियाकष्टसेंजगठगे मानपुजाव्यवहार॥२८॥ व्यवहारकिरीयाजेकहि दोय गुणस्थानेधार तेतोपरमादनावमां तेप्रथमविचार॥२९॥ अप्रमतभावजीहांकने तेतोज्ञानिकोहोय तेमाटेकारज सिद्धि प्रात्मत्रात्मकरेनाहोय ॥३०॥ बिजीशुद्धिएवेभहि संसारवधावणहार तेमाटेछंडोएहने ज्ञानिवचनअनुसार ॥३१॥त्रिजिशुदिहवेनाखशुंजेछेमुक्तिदातार नावधरीने सांनले जेथिभवनोपार ॥३२॥ रत्नत्रयीबाराधवा करो सद्गुरुशेव तेविनाएनविमले टालिदुरपुर्वटेव ॥३३॥ ज्ञानदर्शनचारित्रते रत्नत्रयीकहेवाय तेसाधनकरवान णिप्रथममनवशलाय॥३४॥मनवशकरयाविना कारजसि दिनाहोय वचनकायजोगते भिन्नपदार्थहोय॥३५॥वचन जोगमुखथीकहे मनमांश्रोरविचार एतोकपटाईठरी दंभ प्रकृतिधार॥३६॥दनसहितजेजेकरे तपजपकीरीत्राने कतेहनेनिष्फलकहि सिद्धांतमांहेटेक।३७कायाथकीक्रीया करे वंदननमनविवेक तपजपकरेबहुविधथी मनवशनहि नेका३८ामनवशकरयाविना कर्मनछुटेकोई उलटोकर्मबंध - - Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ श्रीअध्यात्मछनुवि. होय प्रसनचंद्ररखिजोय॥३९॥तेकारणमनवशकरी सु गोज्ञानविचार ईद्रिपणवशतेहनि भाखंछउंनिरधार॥ ४०॥ज्ञानशुद्धीप्रथमकरो जेहथीदर्शनहोय चरणनास्यूं तेहने ज्ञानिवचनतेसोय॥४१॥ज्ञानकडंत्रणनेदसे बाल अनुनवजोय मगननावत्रिजुंकयुं समजीलेजोसोया४२॥ बालज्ञानमिथ्यामति शास्त्रअंन्यहोय अथवात्रणअनुजो गएम संदेहमांकरशोकोय ॥४३॥ आत्मविनाजेजेकथा वखाणचरचाविचार तेसविबालज्ञानछे मिथ्यामतित्राचा र॥४४॥ अनुभवात्मस्वरुपनो करताविघटेकर्म भवभ्र मगतथिमटेटलेभानादिनोनम॥४५॥स्वस्वनावमांतेरमे तजेअनादिनिचाल पुद्गलनावइच्छेनहि जाणिदुरश्रवा ल॥४६॥परभावपुद्गललगे वलग्योमिथ्यासंग तेथित्रात मजुजुवो करेज्ञानशुरंग ॥४७॥ पूरवकर्मबंधनो संतोषग्र ह्योहोय छतिप्रजायप्रगटहोय उदेभावकुजोय॥४८॥उदे कर्मजेत्रावियां नोगवतेनिशंक नवंकर्मबांधेनहि तेमांन विहोवेरंग॥४९॥ निजस्वनावमांसदारहे तजिरागनेदेश पुर्वकर्मनेखरेवे एसिद्धांतनोरेश ॥५०॥ जाणेएपुद्गलदशा मलेविखरेएह जीवअनंतनिएहछे केमकरीग्रहियेतेहा५१॥ आत्मस्वरुपअगाधछे अलखस्वरुपिकेहेवाय ज्ञानिविणु जाणेनहि एमविचारमनथाय ॥५२॥ भेदज्ञानथिभाविये जडचेतनदोफार लक्षणगुणथीजाणिये निन्नभिन्नविचार Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीअध्यात्मछनुबि. ३०९ ॥५३॥ प्रात्मभावन्यारोकरि देखोपद्गलभाव कालना दिनोलग्यो शत्रुरुपस्वभाव॥५॥तेहिजपुद्गलजातनि व गणादिशेत्राठ वलगीत्रात्मस्वरुपने तेथिशक्तिनाठ ॥ ५५॥ तेमाहिपाठमिजाणिए कार्मणवर्गणाजेह चेत नवशथयोतेहने कर्मकहिजेएह ॥५६॥ तेमाहिराजा एकछे मोहनिकर्मसरदार मोहरुपएभर्ममां नोल व्योसविसंसार ॥ ५७॥ कइंकशुनकइंकशुन एम करतांगयोएकाल पणधर्मपाम्योनहि मिथ्यामोहकि चाल ॥३८॥ शुनाशुनपुद्गलदशा वेदनिकर्मविचार श्रा स्मघातिएकह्या निश्चेतेनिरधार ॥ ५९॥ शुभाशुनक मंगती निगमव्यवहारचाल तेकारणदूरेकरी निजस्वमा वनिहाल॥६०॥ एमपुद्गलदशात्यागसें प्रगटेत्रातमरुप नेदज्ञानविचारीए शुद्धव्यवहारस्वरुप॥६१॥शुध्यात्मत्र नुभवदशा सेहेजस्वभावनिहाल वितरागताप्रगटे एप नुभवकिचाल ॥३२॥च्यारनयकुछंडके त्रनयकुग्रहे तो सिद्धताहोवेतुरत एवंभूतेकेहे ॥ ६३ ॥ पक्षप्रमाणादिक ग्रहि स्यादवादसंयुक्त अनुभवत्रात्मकोकरो एहिवाग मयुक्त॥६॥गुणपरजायसंजुक्तते द्रव्यतणोविचार ग परजायसंक्रमणथि निन्ननिन्नमतिधार॥६५॥ भिन्न निन्नविचारतां गुणठाणदशमुधार शुक्लध्याननोतेकह्यो प्रथमपायोउदार ॥६६॥ एहिनेदज्ञानछे एहिशुधव्यव Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० श्रीश्रध्यात्मछमुवि. हार एहिअनुभवकिजीये अध्यात्मसुखकार ॥६७॥ए ध्यातांमिथ्याटले टलेसबअज्ञान व्यवहारपणसविट ल्यो एभाख्यंअनुनवज्ञान ॥६८॥ एहअनुभवकिजीये श्रात्मकरोअनुप लोहफीटीकंचनहोवे ज्युरसवेधकस्वरु पा।६९॥तेकारणविनावने तजीकरजोध्यान निजस्वरुपत्र गटहोशे एहिजअनुभवज्ञान ॥७०॥ जिहांलगेपरनाव नो त्यागनहोवेचित त्यांलगेथिरसंसारछे साचिजाणोरी ता॥७१॥तेकारणपरनावतजी करोमनइंद्रिवश अात्मना वमाथिरहोवो पिवोअनुभवरस ॥७२॥ बिजोनेदएकह्यो हवेकहुत्रिजोविचार थोतासुणजोथिरथइ मगननावश्र धिकार ॥७३॥ पुद्गलसेन्यारोप्रभूमेरो ज्ञानवानसुखकार निरंजननिराकारए नहिलेपलगार ॥७४॥ पुद्गलनावव नासिए हुंअवनासिधार पुद्गलखेलअनादिनो एहजाल श्राचार॥७॥कालअनादिनमतेथके जन्ममरणजंजाल लखचोरासिजोनिनम्यो खेल्योनवनवाख्याल ॥७॥ एरुपतोहूंनहि हूंतोइनशुनिन्न ज्ञानरुपएआपणो तेथि होवेलिन॥७७॥ एमस्वरुपविचारीने थानोपरशुउदास उदाशिनतातबग्रहि किधोघरमांवास।।७८॥नेदज्ञानतोत जदियो जाणिमिथ्याभाव धर्मक्षमादिकनीमीट्यो प्रगट्यो सेहेजस्वनाव॥७९॥नयभेदपणमिटगयो मिटगयोपक्षप्र माण स्यादवादपणमटगयो एप्रगट्युंनाणारागुणपर - Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअध्यात्मछनुवि. ३११ जायनिनिन्नता रत्नत्रियवलिनिन्न नेदभावसबमटगयो एकलनावथयोलिन ॥८१॥ शत्रुनावयाकोनहि नहि रागोरवेप ॥ पुत्रपिताविचारनहि मगननावपरवेश ॥ ८२ ॥ द्रष्टिगोचरजेहोवे ज्यांदेखत्यांरुप मुर्तिभाव तेलहो तेतोरुपिस्वरुप ॥८३॥ तेरुपपुद्गल अनुप एनेमारेशीसगाइ एतोछेभवकूप॥८४॥ असंख्यप रदेशिहूंसदा अक्षयरुपकहेवाउ अमुर्तिगुणमाहरो एहि चितमालाउ॥८५॥ ज्ञानदर्शनचर्णनो साचोदिसुंपुज सु खअनंतुमाहरु प्रतक्षदेखिहूंज ॥८६॥ सर्वपरभावने टालिने निजघेररहमगन रहमगन सुमताशुसगाइकरा तरत लिधुलगन॥८७॥कालअनादिनिविशरि भुल्योचेतनराय ममतामांललचाइरह्यो तेथीएदुखियोकेहेवाय ॥ ८८॥ हवेतेमुजसांभरि मलियोतेहनोसंग ममताकूमतानाठ गइ दुनोवाध्योरंग ॥८९॥ज्ञानअनंततेमाहरु हूंछउज्ञा नस्वरुप एदशाछेमाह्यरी जाणोभेदअनुप॥९०॥ वाको सखजेप्रगट्यो लोकमांहिनसमाय जाणनवालोजाणे सहि केणिहोठनत्राय॥९१॥अखंडरुपहेमाहेरो अविना शिअकलंक नीरविकल्पएरुपमां कोणहोवेएरंका॥९२॥ नेदनावसबमटगयो टल्योमनकोखेद आत्मनावेथिरह वो प्रगटहूवोअवेद ॥९३॥ नीजअनुनवथीएकहि अध्या त्मछनुजाण मुनिहूकमएनिजउल्लासथि उत्तमप्रगट्युए - - Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ श्रीअध्यात्मछमुकि. नाण ॥९या प्रोगणिसेंसंवछरे श्रोगपत्रिशत्रशाडमास शकलपक्षअष्टमिगुरु रहिसुरतचोमास ॥९५॥ मुनिहूक मरचनाकरी अननवज्ञानसंजोग जेनणेनेादर तसजा यभवरोग ॥१६॥ - NGREPEACOCrsityanasana poemarthDPURESTROMIREON A ECA - ॥ इतिश्रीअध्यात्मछनुविसमाप्त.॥ A mmOHAMMAR Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रोमिथ्यात्वविध्वंसन. श्रीगुरुभ्योनमः ॥दुहो॥ वंदूसिद्धस्वरुपने नीजानंदवीलाश प्रापस्व रुपीआपमां वधेगुणकीराश॥१॥ संसारनेवीशे सर्वेजीवसिद्धसरखाछे असंख्यातप्रदेशे करीनिर्मलछे एवीसत्तानाधणीछे परंतुपोतानीसत्तानेदे खीशकतानथी शामाटेकेमिथ्यात्वेकरीने प्रात्माछवराइ गयोछे तेथीकरीनेस्वस्वभावनेछोडीने परनावमारमेछे शिष्यवाक्य-स्वामीमिथ्यात्वतेशानेकोहोछो नेमिथ्यात्व शाथकीजाय गुरुवाक्य-हेभद्र मिथ्यात्वनोविस्तारघणोछे परंतुकिंचितकहीदेखाडुछ तेमिथ्यात्वनाबेनेदछे तेनोवि वरोकरतांकेटलाएकबीजापणभेदकेहेवाशे हवेतेमिथ्या स्वनाबेनेदकरीयेलीयेतेनानाम द्रव्यमिथ्यात्व॥१॥ भाव मिथ्यात्व द्रव्यमिथ्यात्वनाबेनेद एकवेहेवारमिथ्यात्व १बीजोनिश्चयमिथ्यात्व२ हवेतेमिथ्यात्वनोस्वरुप संक्षे पथीदेखाडीयेछीये एटलेमिथ्याकेहेतांजुठीवस्तुनेसाची करीनेमाने तथासाचीवस्तुनेजुठीकरीनेमानेतेनेमिथ्या वकहिये तेमधेलोकीकदेवकेहेताहरिहरादीकतेनेदेवक रीनेमाने अथवापोतानीमतलबेतेनीबाधाश्राखडीराखे तथालोकिकगुरुकहेतांब्राह्मणजोगी सन्याशीप्रमुखनेगु Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ३१४ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. रुकरीजाणे तेनाचमत्कारदेखीनेतेनेमाने.२ लोकिकधर्म जेसदावरतदेवूतथाहोलीनुख्यारेहेवू इत्यादिकमिथ्यात्व नापर्वतथावरतकरे तेनेलोकिकधर्मकहिए. ३ लोकोत्तर देवजे रिखवादीकजतीर्थकर तेनाजेतीर्थपरतमातेनेपोता नासंसारहेतुएमानवा बाधाआखडीराखवीते लोकोतरदे वगतमिथ्यात्वकहिये ४. तथालोकोत्तरगुरुमिथ्यात्वके हेतांजे साधुमुनिराजनीशेवाभक्ति श्राहारपांणी प्रमुख नीससुरखाराखे मनमांएवुविचारेके महाराजवचनाशि दिकेहेतोश्रापणुसारथाय तथामंत्रजंत्रप्रमुखनी आ शाएकरे ५ तथालोकोतरधर्मकेहेतांश्रीपाळने नवश्रांबी सनीओलीथकीसारुथयु तथागुणमंजरीवरदतने पांच मकरवाथकीसारुथयु इत्यादिकबहूजणनेतपजप धर्मक रणीथकीसारुथयु तोश्रापणेपण अमुकोतपप्रमुखकरवा थकीसारुथाय ६ एमिथ्यात्व तेमधेत्रलोकीकमिथ्या ततथात्रलोकोतरमिथ्यातले एमिथ्याततेवेहेवारथकी तथाद्रव्यमिथ्यातनाघरना तथाद्रव्यमिथ्यातनाघरनो नीश्चेमिथ्याततेनादशभेद देवमिथ्यातकेहेतां जेदेववी तरागजेनोरागद्देशगयो सर्वकर्मथकीरहितथया स्वरुपर मणीलोकालोकनास्कर एवाजेअरिहंतपरमात्मा तेनेदेव करीनजाणे एप्रथममिथ्यात्व.१ तथाजेदेवपणुनथीपाम्या रागद्वेश वीषयकषायनाभरेला एवाजेहरीहरादिकतेने Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. देवकरीनेमानेतेबीजुमिथ्यात्व. २ तथाजेसाधु श्रात्मरम पीकस्वरुपानुजायी परभावत्यागी स्वनावनोगी मंदकषा इकरुणासागर ज्ञानउपयोगी एवाजेमुनिराजतेनेसाधुक रीनमाने एत्रीजुमिथ्यात्व.३जेत्रसाधुरागद्वेशवीषयकषा यनाभरेला अात्मस्वरुपनाअजाण शुभाशुभकर्णीनारागी जम्भावमारचापचारेहे तेनेसाधुकरीनेमाने एचोथुमिथ्या त्व.४धर्मजेवस्तुनोस्वभाव तथाजिवदया स्वपरनोजडचेतन नोविनाग इत्यादिकजकेवलीभाख्यो धर्मतेनेत्रधर्ममाने ए पांचमुमिथ्यात्वजेअधर्मजीवदयाप्रमुखनही तथावस्तुस्व रुपजाएयाविना क्रीयाकष्टतपजप प्रमुखनेधर्ममानेतेछ ठमिथ्याव. ६ जेजिवस्वरुपचेतनालक्षण चारसंज्ञास हिततथाएकंद्रीयीते पंचंद्रीपर्यंत अनेकथांनकउपजवानां तथावीणसवानांशास्त्रादीकनजाणे नेइत्यादिकस्वरुपने जीवनमाने एसातमुमिथ्यात्व. ७ जेषजीवपदार्थजम्ने तेनेवणसमजणथी केटलाएकठांमनेविशेजीवकरीनेमाने ने तेश्राठमुमिथ्यात्व. ८ मुक्तिकेहेतां सरवजम्भागनोत्या गीसर्वकर्मरहीत शुद्धस्वरुपजेवुसत्ताएहतुतेवुजनीर्मलप्र गटथयु नेलोकनेतेसिद्धस्वरुपथइनेवीराजमानथया ते नेमुक्तिनमाने तेनवमुमिथ्याल. ९ जेमुक्तिकेहेता जेसं सारना वश्भवथकीछुट्यानथी चाकरठाकरपणुज्याराने जन्ममर्णजेनांगयांनथी एवाजे वकुंठ गौलोक यावत Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मिथ्यात्वविध्वंसन.. जोतपरजंतने जे मुक्तिमानेबे दशमुमिध्यात्व. १० तेदश मिथ्यात्वपांचप्रकारेकरीने मानवामांत्रावे जेपुर्वे दशक ह्यांतेमांहेलाजेबोल जेकुगुरुनाला वेला तेप्रतेबांमेनहि सुगुरुमलेसमजावे तोयपणहठवादबोमेनहि तेनेभिय हितमिथ्यात्वपेहेलुकहीए. १ हवेतेमध्ये केटला एकजीवएमजाणेजे सुगुरुके हेबे ते पण ठीकजबे तथा पुर्वेकुगुरुएसमजावेलुबे तेपणठीकजबे या पणेएकुटमांपेसवुनहि प्रापणेतो सर्वे मानवाजोगबे एवुजे विचारंबे तेने सुगुरुकुगुरुनीपरीक्षानथइ तथासत्यासत्य वचननीपरीक्षानथइ तेने एकेवातनोनीरधारपणनथयोतेने मन दुध थवाबाश बन्ने एके पामेजाय तेने अनाश्रमीग्र ही मिथ्यात्व कहीए. २ जे पुर्वेसुगुरु बताव्या एवाजेदशबोलतेसारीरीतेसम जेलोते को इकर्मना उदय कित्रणस्मृतिथिवचननी कल्युं प बीपोतेसमजो के श्रावचन तो हुं बोलतां बोल्यो परंतु बोल्यो तेवचन पाछुनफरे एवधारीने खोटीयुक्तिनकरी तेवचनने साबितकरे तथा कोइवात उपरममतथतांतधर्मने खोटुकरवा चाहे धर्मनेतोवाचाहे एसर्वेजाणीने करवुर ह्यंश्रथ वा कल्प व्यवहारनीमरजादावास्ते श्रात्मस्वरूप जाणतोथको शु द्धमार्गन खबरवालोजीवजमनीपुष्टिकरे एटलेशुनाशुन क्रियानीपुष्टिकरे तेनेजमनीपुष्टिकरीकहिए शामाटेकेकि ३१६ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. ३१७ - - यात्यांकर्ममाटेएसर्वेजमनुपोषणथयु शामाटेकेइहांकर्मनवधारवथायबे एविरीतेजाणीने एवाकांममांप्रवर्तेतेने | अनीनिवेशिकमिथ्यात्वकाहिए. ३. एजपुर्वेदशबोलकह्या इत्यादिकबोलोनेविषे शंकापसे जेकोणेजिवदीठो तथामुक्तिपरीहंतएकोणेदीठाने इत्या दिकसर्वेपरम्पराथीकेहेतापाव्या तेमानीएबिए शंजाणी एकेएवस्तुसाचीकेजुठी अनेशास्त्रनोकांइनरोंसोपमेन हि केमकेजेमत्रास्वामीनारायणकालनजरेथयोतेमांमहादु खमहाकष्टेकरीघणोद्रव्य राजातथाब्राह्मणने खवरावीने पोतानोधर्मचलाव्योतेसर्वेश्रापणेप्रत्यक्षनजरेदीठेलु ते नेलोकएनामतवालानगवांनकरीनेमाने तथाकुबेरनक्त हालवर्तमानबेठोजले तेनेपणतेनामतवालानगवांनकेहे वानीइच्छाराखेडे तेजाणीएडीएके चारेदहामेएनेमुवाप बीनगवानठरावशे तेनांकर्तव्यसर्व प्रापणेप्रत्यक्षनजरे देखीए गए एमत्रागलनाकोश्ढोंगीथी श्राधर्मचलाव्यो होयतोकेमखबरपमे अनेशास्त्रउपरजोजोवाजइएतो हा लजेउपरनाकह्या तेधर्मवालाएशास्त्रनवांबांधेलां तेध पीएपणघणीजुक्तिअनेहलाहलखोटीवारताठमांहेलीको रेनाखी तेधणीनाविद्यमानना देखबावालानहिहोयत्यारे केटलालोकोएवुजाणशेके अहोभगवानेत्रावांआवांकाम करेला नेतेप्रत्यक्षपणे आपणेजोइएगएके खोटांशास्त्र - Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. ३१८ बनाव्यांबे एमागलना एतेवांशास्त्रबनाव्यांहोयतोतेनो शोनरोंसोरहे एममनमांशंकाकं खाजेनेरे हे तीहोय तेने संशयीक मिथ्यात्वकहीए. ४ शीष्यवाक्यः स्वामीतमेशंशयीकमिथ्यात्वकह्यं ते ठीकप प्रत्यक्ष त्रालोकोनांजे शास्त्रत्रनेत्रालोकोनाभगवान श्राप ऐदेखियेबीये तेमजत्राधर्मसामानेनासनथाय सत्धर्म शाथकीजासनथाय एतोकांइइहां बेसतुनथीपीतमेजोराव रथीमनावोतोमोटाबो को जो श्राव्युके एटली वस्तु पुर्वे बने maheवाढोंगीपुरुषे पोतानेपुजावावास्तेअथवा पोता नीपंडीताइदेखावावास्ते उभुकरघुबे जेमच्यामाकोरनी मुर्तीगुगलीलोकोद्वार कांथ कीचोरीनेला व्याडे नेते नुम्कनामापुराणांमोदनादीनानाथनामेब्राह्मणेबनाव्यु छे तेधणीमाकोरनुमेहेरु तथागामनांकाहामप्रमुख सर्वे सोनानांकह्यांबे ते दीनानाथनटनेमुवाने वरसदृश ने श्राश रेथवान्श्राव्यां तेधणीएएवांगप्पांप्रत्यक्षमारे लांबे तेमबी जाशास्त्रवाला पण गप्पांमारचांहोयतो शीमालुमपमे माटे ठेकाणेतो शंकामोहोटीजरेहे तेवातमांसंदेह नही गुरुवाक्य:- हेजद्रएवतिने माहामोटशिंका उत्पन्नथइ तोता हारोसमकीतादीक गुण क्यांरह्यो प्रत्यक्षनास्तीकपणु ना सनथायडेमाटे एवीशंकानजाइये हवेहूंतने एशंकानो उत्तरत्रापु तेतुंथीरचीत करीनेसांजल नेतारामननीशंका Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. ३१९ कंखाहोय अथवा उत्तरमांशंका उत्पन्नथाय तेपुबीने निश्चलथा जेतने सर्वथकी धर्मनीशंकापडीतथाशास्त्रनी पणशंकापमी माटेतनेशास्त्र नोउत्तरतो हालत्रमथकीदे वायनहि परंतुन्यायवादेकरीने जेउत्तरतनेच्यापीये तेतुं धार प्रतक्षपणेजीवबे तेखरोकेनहि वादीयुक्त. जीवकांइ दीसतोनथी गुरुवाक्यः - जीववीनाबोलवुचालवु ते कोण करेने वादीयुक्तः बोलवानुस्वरुपतेश्राकाशमारहबे नेचालवतेज मनोस्वभावबे गुरुवाक्य- केजे बोलवानुस्वरु पतेश्राकाशनेविशेकहधुं तेश्राकाशनेविशेतशब्दनोगुण बेपणअक्षरादीक उच्चार नथी तथाचालवानोगुण जेतेंपु गलनोस्वभावकोते तोसुक्ष्मपुद्गलमांगे परंतुबाहादरजे थुलपुद्गल तेमांकांइचालवानोस्वभाव प्रत्यक्षपणेदीसतो नथी तेमांप्रत्यक्षचालवानोस्वजावहोयतो घटपटादीक चाल्यांजोइये एमाटेएचेतननोज गुणइहांलेवो वादीयु क्त- केजो चेतन मांहे होय तेथकी चालतुहोयतो तमाराकेहे थकीवनस्पतीमांजीवळे तोतेपणचालीजोइये गुरुवाक्यवनस्पतीनेविशे इंद्रीएकजबे तेथीए चालीश के नहि वादी युक. केएकंद्रीजेकायाबे तेथीचालीनशकेतो बीजीचारई श्रीमांत चालवानो स्वभावबेजनहि तोजीवनुचालवुशा नुरहधुं माटे मेकहीयेबीए के चालवतेजममांज बेजेमघमी त्राल प्रत्यक्षजडबेते एनीमेले चाल्याकरेबे तेमएकायाप Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ३२० श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. ण पदलचाले इंहांकांजीवनुकारणनही गुरुवाक्यजेकांश्चमीयालचाले तेजीवनीबनावेलीकलतेउपरथी चाले तेपणजीवनेत्राठेनेत्राठेदहामेसनाललेवीपमेने कं चीफेबेचक्करप्रमुख लुच्चीपुंजीपागंचढावे त्यारेचाले पणकांइतेनीमेलेचालतीनथी तथातेंजेकयुंकेचार इंद्रीबी जीमांचालवानोगुणनेनहि तेखरुले परंतुबीजीइंद्रीन श्राव्या विनाफरशइंद्रीथकीचलायनहि केनीगो केजेदूधने तेमां थीकोइघीकाहामवाचाहाशे तोपणसर्वथानीकलीशकेन ही पणजोपशाभारमेलवणपतो पीघीनीकलतेमए कंद्रीमांबीजीद्रीनीप्राप्तीथायतोज चालवानीगतीभावे पणतेविना चालवानीगतीभावेनही. वादीयुक्तः-जेमबी जीइंद्रीनामलवाथकितमेचालवुकडं तेवारेएवुभासनथा यजेकेइंद्रीनमांजचालवानोगुणरह्योडे पणकांजीवपणुतो दीसतुनथी. गुरुवाक्यः--जीवपणाविनाइंद्रीनबांधवकोणकरे मा टेजद्रीनबांधेबेतेजजीव वादीयुक्तः-जेतमेइंद्रीउनाबां धनारानेजीवठरावोगे तेतोकसंनवतोनथी जेत्रसरेणु प्रमुखउमीउमीनेघरप्रमुख अवावरजगानेविशेप तेर जपागस्थुलथायने तेमांतोकोजीवसास्त्रवालाकेहेतानथी तोएइंद्रीएककोणेबांधी माटेजम्नोकर्ताजमजे गुरुवाक्यः तेत्रसरेणुप्रमुखजेखंध तेसरवेष्टथवीकाय तथावनस्प - Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. ३२१ तीकायनातेप्रथमजीवनाबांधेला एकंद्रीनीकायनापद् लने जीववीनावनस्पतीकायप्रमुखथायनही. वादीयुक्तःवनस्पतीप्रमुखनुजेथावुने तेमाटीपांणीनाजोगथीउत्पत्ती थायने एमांकजीवनुकारणदीसतुनथी. गुरुवाक्यः-जी वविनाउगेनही केजुवोप्रत्यक्षजेकरंजाम तेजेनामांहेजी वहोयतेपाणीनाजोगीनवपल्लवथाय परंतुतेजवक्षनीमा लोजीवरहीतथश्होय तेनेकोश्पल्लवावेनहि माटेजीव तेसत्य वादीयुक्तः-केतेमालीनापुद्गलघणाखरीगयाहशे तेथीतेनेपल्लवआवतुनथी जेमद्धपुरुषने गेकरांनथाय तेमएनेपण पल्लवनथीत्रावतु. गुरुवाक्यः--तेहीजटद्धपु रुषवीर्यहिणथयो तेनेगेकरांनथाय परंतुआहारतोतेपुरु पकरे तेम एमालीप्रमुखनेविशेपल्लवतोनाभावे परंतुपाणी तोखेंच्युजोइए तोतारीवातखरीथाय परंतुपाणीनोरसखें चवानीएनीशकीनथी. शक्तीतोजीवहोयत्यारेजपामीए. वादीयुक्त-जोपाएगीनोरसखंचवाथकीजीवमानोतो मृती कानाहाथीप्रमुख अनेकजनावरावे तेनेजेटलुपाणी मुकीयेतेटलुपीधेजाय माटेतेनेपणजीवमान्योजोश्ये गु रुवाक्य--एतोपांणीपीए तेममुतरतुजायजे तेनीका मांकांरेहेतुनथी माटेएजमरुपज वादीयुक्त-कायामां जेरसनो संग्रहतेने तमेजीवमानोगे तेतोजठराग्नी | नुजोरहोय तेरसपाचनघणुकरे जेनेजठराग्नीनुजोरम Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. - दहोय तेरसपाचनत्रोछुकरे माटेरसनाग्रहणग्रहणथ कीजीवनोनिर्णयनथायशामाटेके पांचभुतमलीनेएकथुल बंधायचे तेपांचेभुतपोतपोतानाकामकरेने तेमांकांजीव पणुनमनाय गुरुवाक्य-जोपांचभुतपोतपोतानुकामकरे ने तोपृथ्वीश्रादीक चारथावरनेविशे वायुतत्वशुकामकरे जे वायुतत्वहांकांइकामकरतोदिशतोनथ। शामाटेके यू थ्वीआदिकथावरनेविशे एकएकतत्वनीमुख्यताले एटले पृथ्वीकायनेविशे पृथ्वीतत्वनीमुख्यता अपकायनेविशे जलतत्वनीमुख्यता अग्नीकायनेविशेअग्नीतत्वनी म ख्यताले वायुकायनेविशे वायुतत्वनिमुख्यता अनेवनस्प तीकायनेविशे पृथ्वीतत्वनिमुख्यता एपांचथावरमधेत्र ग्नीकायनेविशे अग्नीतत्वतथाएथ्वीतत्व बेनीमुख्यतादी शेछे तथावनस्पतीकायनेविशे चारतत्वनीमुख्यतादीशे बे पृथ्वीतत्वतथाजलतत्व तथाअग्नतित्वतथापाकाश तत्वएचारतत्वनीमुख्यताजोयामांबावे तथाबेरंद्रीयादी कजेत्रसजीवरह्या तेनेविशेपांचेभुतमालुमपमे परंतुए पांचे भुतकांजीवनथी नेएपांचेभुतजीवीनारसपाचन करवासमर्थनहि तथाचालवापणसमर्थनहि तथा क्षरउच्चारणकरवाकांइसमर्थनहि एकारणसर्वे जीवहो यत्यारेजबने वादीयुक्त-चालवुहालवुसवायुतत्वनापरी बलथकीथाय ज्यांसुधीवायुतत्वहोय तांहांसुधीएरसपा - Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. ३२३ चनादोकसर्वेकारजकरे नेवायुतत्वगयाथी एसर्वेतत्वजु ठापळे तेप्रत्यक्षजोयामांबावे इहांकोइजीवस्वरुपदीस तुनथी. गुरुवाक्य-तुवायुतत्वनेजीवसरखोमाने एतारी मोटीभुलने केमकेअक्षरउच्चारणकरवानीशक्ति वायुनी होयनहि तथाशुभाशुभवेदवु तेपणवायुतत्वजाणेनहि के मकवायुतत्वथकीस्वासोस्वासलेवाय परंतुनाशुभमां एजम शुंसमजे तमेतमारामनमांविचारिजुवो वादीयुक्त शुनाशुभनुजाणवावालुतोमन अथवानवाविचारउठा बवावालएमन पणकांइजिवतोदीशतोनथी. गुरुवाक्यः-एजजीवगयापजे कलेवरपमेलुतेकेम कइंशुनाशुनवेदतुनथी इंद्रीनतोपांचेसाबुत एकवायुत त्वमहिथीगयोडे परंतुतेनेपरिकांइशुभाशुनकारणबेनहि. वादीयुक्तः--मननोनाशथइगयो माटेकोणवेदे. गुरुवाक्यः वायुतत्वगयो पणमनतोतमाराकिधाथीगयुनथी. वादी युक्तः--मनतेवायुकेनहि.जगत्रमांमनपवनकेहेवाय मा टेमनतोवायुनेगुजगयु. गुरुवत्क्यः --जोमनथकिशुनाश भवेदे तोटथ्वीश्रादीकथावरनेविशे वेद्युजोइए परंतुष्ट थ्वी.वनस्पती इत्यादिकजेछ तेकइंशुनाशुननेवेदतानथी तोशंएनेतमएकभुतमानोबोके पांचनुतमांनोगे कदापित मेकेहेशोके पृथ्वीत्रादीकनेएकएकनुतमानीए गए तोच नस्पतीकायभुतमांजेनहि. वादीयुक्तः-वनस्पतिएथ्वीत - Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. | त्वमांगणीएनए. गुरुवाक्यः-प्रथ्वीतत्वतोएरसशाथकि पाचनकर तोप्रत्यक्षइहांअग्नीतत्वदीशे तथातेनांपान प्रमखनेमरदीएतोरसनिकले तोजलतत्वपणदीशे त थाखालीप्रमुख एनेविशेमारीएतो माहेलीकोरेसमायने तोआकाशतत्वपणदीशे एचारतत्ववनस्पतीनविशेदी ठामांआवेछेनेवायुतत्वदीठामांश्रावतोनथीअनरसनपाच नवायुतत्वविनाइहांथायने तोइहांजीवखरोकेनहि अनेजो जीवनमानोतो पांचभुतइहांमेलवीत्रापो पांचभुतविनापु तलुबंधायनहि एवितारीबोली. वादीयुक्तः--तमाराशा स्त्रमांश्वासोश्वास पर्याप्तीतथा श्वासोश्वास प्राणकडो ने तेवायुतत्वजछे. गुरुवाक्तः-तुशास्त्रतोप्रथममानतोन थी तथापरोक्षवस्तुपणमानतोनथी अनेहवेतनेउत्तरदेवा नीजगोनमलीत्यारेतशास्त्रदेखाम्बामांडयं तोएमपरोक्ष नेबाने त्यारेजिवजकबुलकरनी अनेशास्त्रमांपणजीव कहेलो एमशास्त्रथीपुशतो अमारेजवाबदेवानघणस ल्लनज माटेजीवतेसत्यने खोटीकल्पनाशानेकरे वा दीयुक्तः-एमजोतांतो जीवभासनथायडे परंतुजीवतेके वोहशे अनेजविकांइदीठामांआवतोनथी तेथीमनमांशं कारहखरी माटेअमनेजीवनस्वरुप बराबरगलेउतारो तोत्रमारीशंकामटे. गुरुवाक्यः-जीवकेवोहशे तेजीव तोअरुपी तेकइंदेखायनही. परंतुएनांलक्षणस्वनावक - Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. ३२५ रीने जाणवामांत्रावे तेजीवनेविशेआठसांमांन्य लक्षणबे तेनानामक ही एबीए अस्तीत्व १ वस्तुस्त्व २ द्रव्यत्व ३ प्रमेयत्व ४ गुरुलघुत्व ५ परदेशत्व ६ चेतनत्व ७ मुरतीत्व ८ एप्राठजीवनासामांन्यगुणवे तथाबविशे गुणबे तेनांनांम ज्ञान १ दर्शन २ चारीत्र ३ वीर्य ४ चेतनत्व ५ मुरतीत्व ६ हवेतेनोर्थसंक्षेपथी देखामीए बीए जीवद्रव्यनागुण द्रव्यनेवलगीनेरह्याबे तेनोकोइ कालेनाशनथाय तेनेत्र्त्रस्तास्वभावकहीए. वादी युक्तः जीवद्रव्वतेशं एटलेजीवके हेतांशुं द्रव्यकेहेतांशुं नेगुणके तांशुंनी मने समजपमीनथी तेमनेप्रथमसमजण पामीनेपबीागलचालो गुरुवाक्य:-- जिवतोजेपुर्वेकह्यते चेतनालक्षणे करीने सहितहोयते नेजिवकहिये खंधजे एकत्राखोहोयकोइ कालेखंमननथाय तेनेद्रव्यकहिए नेगुणजेद्रव्यनेल खावेतेने गुणकहिये जेम पटते नवा पेहेरवाखपलागेतेथ कीलखीएकेएपटबे तथाघटबेतेजलनरवा खपलागे ते गुणवमेकरीने घटलखाय एटलेएकद्रव्यनोगुणबी जाद्रव्यमांमलेनहि जेमघट वाखपनलागे पटबेतेजल नरवाखपनलागे एटलेते पोते पोतानोगुण पोतानाद्रव्य नेमलीनेरह्योबे तेथकीद्रव्यनीलखाणथायबे हवेतेद्रव्य प्रकारनाबे तेनानाम धर्मास्तीकाय १ धर्मास्तीकाय Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ me ३२६ श्रीमिथ्यालविध्वंसन. २ श्राकाशास्तीकाय३ पुद्गलास्तीकाय? जिवास्तीकाय ५ काल ६ एगद्रव्यतेमध्येधर्मास्तीकाय १ अधर्मास्ती काय २ अाकाशास्तीकाय२ काल४ एच्यारद्रव्यएकएक जळे अनेजियद्रव्यएकएवात्रनेता नेपुद्गलद्रव्यपरमाणु रुपअनंता तथाद्वीपरदेशीनीत्रादेदेइने अनंतपरदेशी खंधएवाद्रव्यउपचारेकरीनेअनंताने हवेजोजवस्वरुप तेकहिएबिए एटलेएकजिवनात्रसंख्यातापरदेश अनं तागण नेअनंतापरजाय तेस्वरुपसर्वे प्रमाणनयथी जाणवामांबावे तेप्रमाणनयनाबेनेदबे एकप्रत्यक्षप्रमाण बिजोपरोक्षप्रमाण प्रत्यक्षप्रमाणनाबेनेद केवलज्ञांनस प्रत्यक्षप्रमाणने एप्रथमनेद १ अवधीज्ञांनमनपरज वज्ञांनएदेशप्रत्यक्षप्रमाण २ हवेपरोक्षप्रमाणकेहेतांम तीश्रुतज्ञांनतेपरोक्षप्रमाणने तेनाबेनेद एकद्रव्यार्थक १ बिजोपर्यायार्थक २ तेद्रव्यार्थकना १० नेदतथापर जायार्थकनाउनेदडे तथा एद्रव्यार्थक तथापर्यायार्थक एबेनअमलीने सातनयपणथायजे तेनानाम निगम १ संग्रह २ व्यवहार ३ रजुसुत्र ४ शब्द ५ संनीरुढ ६ए वंभूत७तथा व्यवहारनयनापक्षथकीउपचारेत्रणउपनय पणथाय तेनानाम सद्भुतव्यवहार १ असद्भुतव्यव हार २ सद्भुतासद्भुतव्यवहार ३ तेनुस्वरुप पागल कहिशुं हवेद्रव्यार्थकनादशनेददेखामिएबिए हवेशुद्धद्र Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. | व्यार्थककेहेतां कर्मउपाधीरहितसत्तास्वरुपजोइएतोसर्वे संसारीजिवसिद्धरुप एतेशद्धात्माज केहेवायनित्य द्रव्यार्थककेहेतां उत्पातवयनेनविचारीएतोशुद्धद्रव्यसत्ता नेविषे जोतांतेनित्यजे २ तथाअतिशुद्धद्रव्यार्थककेहेतां नेदकल्पनानीअपेक्षानकरवि जेथीगणपरजायरुपद्रव्यनु इहांअनिन्नपणुथयु ३ कर्मउपाधिसापेक्ष स्वरुपनुविचा खुतेशुद्धद्रव्यार्थककहिए जेमक्रोधित्रात्मा इत्यादिक नामधरावेते?उत्पातवयनीअपेक्षासहितस्वरुपनुजोत्तेज शुद्धद्रव्यार्थक जेमएकसमयमांउत्पातवय ध्रुअात्माछे५भे दकल्पनानीअपेक्षालेइने स्वरुपनुजोवु तेअशुद्धद्रव्यार्थ कछेजेमात्मानाज्ञानदर्शनादिक गुणछेएबोलवु ६ अ न्वयद्रव्यार्थककेहेतां गुणपरजायस्वभाविकद्रव्य ७ स्वद्रव्यादिग्राहिकद्रव्यार्थक जेमस्वद्रव्यादिचतुष्टीकर पेक्षाद्रव्यास्ती ८ परद्रव्यादीग्राहकद्रव्यार्थक जथापर द्रव्यचतुष्टियअपेक्षाएद्रव्यनास्ती ९ परमनावग्राहिक द्रव्यार्थकजथाज्ञानस्वरुपत्रात्मा एटलेअनेकस्वभावचेत ननाछेतेमध्येज्ञांनमुख्यपणेछे शामाटेकेतेस्वपरप्रकाशी कछेतेवास्ते १० एटलेद्रव्यार्थकनादशनेदकह्या. हवेपर्यायार्थकना छभेदकहिएछिए अनादिनित्यप रजायकहेतां पुद्गलपरजायनित्यछे. १ सादिनित्यपरजा यकेहेतांसिद्धपरजायनित्यछे. २ शुद्धपरजायकेहेतां स Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. त्तानीगुणताए उत्पातवयनुग्रहणस्वनावतेसदाअनित्यछे एमसमयसमयेपरजायविणशे. ३ सत्तासापेक्षनावअनि त्यत्रशुद्धपरजायार्थककहिए. ४ हवेकर्मउपाधीनीरपे क्षस्वनावअनित्यशुद्ध परजायार्थककहिए जेमसिद्धना परजायतादृशरुपअथवा संसारीनापरजाअशुद्धजकहि ए. ५ कर्मउपाधीसापेक्षस्वभाव अनित्यत्रशुद्धपरजाया र्थककहिए जेमसंसारीजीवनीउत्पत्तिमरणखरुछे.६ एट लेपरजायार्थकनाछनेदकह्या. हवेसातनयनानाममात्रसंक्षेपेदेखाडीएछीए निगमनयत्र तितअनागतादिक अारोपणनेमानेछे १ संग्रहनयछेते परस्परविरोधीछे २ व्यबहारनयदेखताभेदनेवेंहेचेछे ३ रजुसुत्रवर्तमानग्राहीछे ४ शब्दनयशब्दादिकग्राहीछे ५ संभीरुढदेशउणानेवस्तुमानेछे ६ एवंभुतसंपुर्णनेमा नेछे.हवेउपनयनाभेददेखाडीएछिए शुद्धसद्भुतव्यवहार केहेतांशुद्धगुणगुणीना तथाशुद्धपरजायनाकेहेवा एपेहे लोभेद १ अशुद्धसद्भुतव्यवहार अशुद्धगुण अशुद्ध गुणीना अशुद्धपरजायनानेदकेहेवाते बीजोनेद २ स्व जातीसद्गुतव्यवहारकेहेतांबहुपरदेशनुकेहेवुर विजाति सद्भुतव्यवहारयथामुरतीमान ज्ञान दर्शन तथाद्रव्य तथाश्रात्माकेहवो २ स्वजातिविजाति सद्भुतव्यवहार | एटलेजीवजीवज्ञाननु कथननेगुकरवु जेमअमुकपुरु Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. ३२९ षज्ञानीछे३ हवेसद्भुतव्यवहारनात्रणभेदस्वजातिउप चरितअसदभतव्यवहारकेहेतां पुत्रकलत्रइत्यादिक ए मारुछे १ विजातिउपचरितप्रसदभतव्यवहारकेहेतां व स्त्रश्रानर्णप्रमुखमाहारुछे २ स्वजातिविजातिउपचरित असदभतव्यवहार एटलेदेशनगरराज्य माहारुले ३ हवे जेपत्रप्रमखपोतानाकहे तेजिवेजिवस्वजातिछे नेतेनजेश रीरप्रमुखतेविजातिछे परंतुजिवत्राशरीनेस्वजातिकहिए पणजिवकोइकोइनोछेनहि पणउपचारेकरिनेपोतानोमा नेछे एपेहेलाभेदनोअर्थथयो हवेविजातिकेहेतांजेवस्त्रत्रा भर्णतेनेविशेकांइजीवछेनहि माटेएअपरजाति तेनेविजा तिकहिएतेपणवस्तुनानोगदारीअनेकथइगया तेपणकां इपोतानीछेनहि परंतुउपचारेकरीनेपोतानीमानीछे एबी जानोअर्थ तथास्वजातिविजातिकेहेतां जेदेशनगरप्रमुख नेविशेजीवछे तेस्वजातिछे नेदेशादिकरिदिछेतेविजाति छे एटलेएबेमलीनेस्वजातिविजातित्रीजोनेदथयो तेपण कांइआपणुछेनहि आपणाथकीतोनिन्नछे परंतउपनये करीने आपणुमाने एत्रीजाभेदनोअर्थ एटलेनयअधी कारपरोथयो एविरीतेविचारेतोजीवनु स्वरुपहाथआवेपणकाइरुपीन थिकेदेखामवामांश्रावे माटेएनाजेकोइअस्तीत्वादिकग पतेथकी वस्तुहाथमांत्रावे तेअस्तीत्वस्वनावप्रथमकह्यो ४२ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. | हवेतेनासातगुणबाकीरह्या तेनुस्वरुपकहूतशांभल बी जोस्वनाववस्तुत्व एवेनामेएटलेवस्तुनो जैस्वनावतेफी टीनेबीजीवस्तुनथाय एटलेघटफीटोनेपटनथाय नेपट फीटीनेघटनथाय जदपिसामान्यविशेषवस्तुनो स्वनाव दिसे जेमएकजिवमुक्तिनेविशे प्राप्तथयो ने एकजीव | संसारमांछे अथवाजेमएकघटनेविशे घीनरायतेघीनो घटकेहेवाय एकघटअसुचीप्रमुखनो तेअसुचीनोकेहेवाय एमसामान्यविशेषजणाय परंतुवस्तुधर्मपोतानु छोडीने बीजुधर्मनाभादरे एबीजोगुणद्रव्यस्वनावकेहेतांनिजनि जपोतपोतानापरदेशनासमदायेकरि अखंमवर्ततोस्व भाव एटलेजीवसंख्यातपरदेशी द्रव्यछेधर्मास्तीकाय तथाअधर्मास्तीकाय असंख्यातपरदेशीद्रव्यछे श्राका शअनंतपरदेशिद्रव्य एचारेअखंड व्यछे एचारेद्रव्य कोइकालेखमीतथायनहि एद्रव्यत्वस्वभावकहिये शीष्य वाक्य-स्वामिपूर्वेबद्रव्यकह्याछेने इहांचारद्रव्यकेमबता व्या गुरुवाक्य--जोपुद्गलद्रव्यपरमाणुने कहियेछीयेतो परदेशादिकलाधतानथि अनेजोखंधनेद्रव्यकहियेछीये तोएस्वनाविकद्रव्यछेनहिएविभाविकद्रव्यमाटेएनाद्र व्यनाविचारनीचरचाघणीतेहांजोकरवा बेशियेतोग्रंथ गोरवथइजाय माटेएद्रव्याहांगणाव्योनहि तथाकाल द्रव्य तेउपचारे एकांइवस्तुकशीछेनहि माटेएपणहां Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. ३३१ गएयोनथी तेमाटेचारद्रव्यप्रखंमीतछे एनेविशेद्रव्यत्व स्वभावरह्योछे एनेविशेसद्रव्यपणानुलक्षण तादृश्यरु पदीसे पोतानागुणपरजायनेविशे व्यापीरह्योउत्पातव यध्वसंयुक्ततेनेद्रव्यकहिये एटलेएद्रव्यनुलक्षणकाए त्रीजोगुण. ३ प्रमेयत्वकेहेतां जेस्वपरनीवेहेचणतेनजे प्रमाणतेनेप्रमेयत्वकहिये तथापोतपोतानास्वभावनेवि शेप्रणमवुपरनावनोत्यागकरवो तेनेप्रगम्यत्वकहिये ए चोथोगुण. ४ अगुरुलघुत्वकेहतां सुक्ष्मभाववचनगो चरनहिप्रतक्षनहि भागमप्रमाणछेते पन्नवगाथकीजा णजी ५ प्रदेशत्वकेहेतांसुक्ष्मजेनावपरमात्मानाखीतत त्वनुजे हेतुपणुतेहनेनहोयते आज्ञासिद्धकरवु केमकेद्र व्यअन्यथानहोय प्रदेशस्वभावकेहेतांखेत्रनोअविभागते नेप्रदेशत्वकहिये. ६ चेतनत्वकेहेतांचेतनपणु एटलेचेतन नुअनुभव यदुक्तं--श्लोक। चैतन्यमनुभुतिस्यात् सक्रिया रुपमेवच क्रियामनोवचःकायेष्व चिंतावर्ततेध्रुवं. ७ एट लेचेतनत्वपणुकां. ७ अमुर्तीत्वएटलेरुपादिकेकरीर हीत. ८ एत्राठगुणेकरिनेसहीततेनेजीवकहिये इत्यादी कबीजापणजीवनी अोलखाणनास्वभावादीकछे तेत्राग लप्रसंगेत्रावशे त्यां केटलाएककेहेवाशे एटलेएवीरीते जीवनस्वरूपोलखव शंकाकंखाहोयतकाढीनांखवि. तथाजशास्त्रनीशंका तेपण समजवुके सर्व Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ श्रीमिथ्यालविध्वंसन. ज्ञनां वचन अने छद्मस्थनां वचन कांइ छांनां रेहेनहि एटलेसर्वज्ञनांवचनने आत्मस्वरुपनी रमणता तथाजिवादिकनवतत्व खटद्रव्य तेपक्षप्रमाणादिकेकरी नेजाणवा तथा जेनयनिक्षेपाप्रमाणप्रमुखे नेद-हेचवा तेनयशुद्धव्यवहार कह्योछे शामाटेजेविकल्पेकरीने एस र्वनंगजालथायछे मुलॅस्वभावेजोतांतो कांइतेस्यादवाद पक्षनीखपछेनहि इहांतोत्रनेदज्ञानमुख्यपणेखपलागेछे शिष्यवाक्य-स्वामीस्यादवादनी खपनथी त्यारेतोएकांत वचनथइजाय-गुरुवाक्य-जेस्यादवादवर्णववु तेजव्यव हारछे-तथाखटदर्शनसमुचयग्रंथनीटीकामांएमजकाछे ॥उक्तंच॥वादइतिविकल्पातमाटेएकत्रात्मस्वरुपनुरमण तथाअात्मानीवारतातेजसत्यछे-शिष्यवाक्य-त्यारेएटला बधानेदकरवानशंकारण-गुरुवाक्य-जेएभेदादिकवेंहेच वाथकीसामानेघणोखुलासोथाय एटलावास्तेकरीनेने दनुवेंहेचवुथायछे माटेएवांशास्त्रजेछ तेसर्वेजाणवां-शि प्यवाक्य-स्वामिजेगणतांणुजोगप्रमुखशास्त्रछे तेशाका रणेकह्यांहशे-गुरुवाक्य-जेगणताणुजोगछे तेजाणवारु पछे तथाधर्मकथानजोगछे तेपणजाणवारुपछे अनेजेचर णकरणानुजोगछे-- तेएकादरवाजोगछे शिष्यवाक्य स्वानिएतोपुद्गलनीकरणीछे तेनेादरवानु शुंकारण गुरुवाक्य-जोएचरणकरणानुजोग नहिआदरेतोसासन Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. नीलखाणरेहेशनहि अनेन्लखाणनहिरेहेतो सासननो उछेदथइजशे एटलावास्तेएचरणकरणानजोगबांधेलोछे गाथा॥जइजिपनइयंपवजहंतो ॥ माववहारनयमयं मयह ॥ विवहारपरीवाये॥तिथुछेनजउवशं ॥१॥ इत्यादिकवचन नद्रबाहूस्वामिनांपणछे माटेएसास ननी-लखाण तथासासननेराखवामाटे एअनुजोगछे हवेपांचमुअणानोगमिथ्यात्वकहियेछिये एटलेपणा नोगकेहेतांप्रजाणपण एटलेतेनेधर्मनीतथा वस्तुनीक शिमालमनथि तेनेत्रणाभोगमिथ्यात्वकहिये ५ एटले द्रव्यमिथ्यात्वना घरनुएनिश्चयमिथ्यात्वथयु शिष्यवा क्यः- स्वामिव्यवहारमिथ्यात्वना छनेदकह्या तथानि श्चयमिथ्यात्वनापंदरनेदकह्यातमांफेरशोछे. गुरुवाक्यः--वेहेवारमिथ्यात्वनाउनेदकह्या तेकरणी रुपलोकनाजोवामांत्रावे माटेएनेवहेवारकहीए अनेनी श्वयमिथ्यात्वना १५भेदतेमनमांधारवासमजवानाने ए बाहाजलोकनाजोयामांथोमात्रावे माटेएनोनिश्चयमिथ्या त्वका एटलेद्रव्यमिथ्यात्वनुस्वरुपका हवेभावमिथ्या वनस्वरुपकहियेछिये एटलेभावकहेतां श्रात्मानोस्वना व जेधर्मधर्मकरे नेपरनावमारमे तेनेनावमिथ्यात्वकहि ये. शिष्यवाक्यः-स्वामित्रमनेखुलासोकरीने समजपा मो संक्षेपथकिमारीनजरपोहोचेनहि. गुरुवाक्यः-जे Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. परजावतां जेजमनीदृशातेने परभाव कहीए एटलेजम नाजेजेकामबे तेनेधर्मकरीनेमानेछे केहेतांजेमनवचनका याथकिजेकर णीकरवी सर्वे श्रवछे तेनेसंवरकरीमा नेकेहेतांजे जमनीक्रीयानाबेभेदछे शुभतथा शुन एटले संसारादिककरणी ते शुभकरणी तथाशुनाश्रनेकभेद छे एकंद्रीयादीकनीदया तेनुपालणपोषण एसर्वेपापान बंधीयापुन्यनेविशेछे जथाजोगतरतमजोगछे तथाजेबि जीशु करणी शंघ तीर्थजातराप्रमुख करवांकराववां ते पण सर्वेशुन कर पीछे तथाज सवजेजी उपाध्यायसम कितना सडसटबोलनीसकायनेविशेएक जेाठप्रभाविक साधु होयतो तीर्थजातराप्रमूख वालाछेकप्रजाविकछे ए टले एकइंत्राठप्रजाविकमांछेनहि तथातेने समकितनो पणनेमछेनहि तथाकरणीपणशुभनीजछे पछीतत्वतो केवलीगम्य तथाजे वरतनेमप्रमूखते पण शुनकर पीछे परंतु देशविरती सर्वविरती छठासातमागुण ठाणानाजावत अगियारमा सुधीनाबे तथातपबे तेसर्व पुन्यानुबंधी पुन्यमांपणछे तथानिरजरामांपाछे ते नोविवरोकहियेछिये एटले पांचमाछठा गुणठाणा सुधी प रमादभावछे तीहांसुधीक्रियाश्राचारपणछे सातमेगुणठा प्रमादिछे तेमांकांइक्रियाश्राचारछेनहि तेछठासातमा सुधीजेने श्रात्मउपयोगछे तेनेनीरजरापछे तथाशुभाश्रव ३३४ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ma श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. ३३५ पणछे अनेजेनेत्रात्मउपयोगनथी तेनेएकलोशुभाश्रवछे अनेजेसातमा उपरत्रगियारमासुधी श्रात्मउपयोगविना होयनहि तेनेतोनिर्जराहोय तथापुन्यानुबंधीपुन्यहोय ए बनेवानांलाधे माटेएमविचारीजोव एत्राश्रवनेधर्मकरी माने तेनेभावमिथ्यात्वलागे माटेजेधर्मने धर्मकरीजाणे अने आश्रवने श्राश्रवकरी जाणे एवाजीवतो जेवलाछे अनेशुनाथवनेधर्मकरीमानवावाला जीवघणादिसेछे ते नेभावमिथ्यात्वकहिए तथाअनादि मिथ्यात्वादिकनेद गुणस्थानककरमारोहनीटीकाथकीजाणजो तेकारणमा टेएजेद्रव्यभाव मिथ्यात्वगयाविना सम्भावथायनहि ने सम्भावथयाविना श्रद्धास्थिरथायनहि श्रद्धाविनासम कितहोयनहि समकितविनातपजपकिरीयानएयुकशेयले खामांगणायनहि अनेज्ञानविनातो धर्मतथामुक्तिछेजन हि शामाटेके आत्मस्वरुपनाउपयोगविनातो समकित केहेवातुनथी उपयोगछे तेतोज्ञानमांछे तेकारणमाटेज्ञा ननीखपकरवी शामाटेकेज्ञानछे तेहिजसमकिततथाचा रीत्रतथामुक्तिकहिए तेश्रीजसविजेजीउपाध्याये सवा सोगाथानातवनमांकाछे जेज्ञाननोतिक्षणउपयोग तेने चारीत्रकहिए तेमाटेज्ञानछे तेहिजचारीत्र तेहिजमुक्तिले उक्तंचसवैयो एकतिसा॥कोइक्रुरकष्टसहै तपसोशरी रदहै धुम्रपानकरै अधोमुखव्हेकेझुलेहैः केइमहाव्रत ram Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ - - श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. गहै क्रिया मगनरहै वहेमुनिनारमें पयारकेसेपूलेहै इत्यादिक जीवनकौसर्वथामगतिनांहि फिरेजगमांहि ज्यों वयारकेबघुलेहै जिनकेहियेमेंज्ञान तिन्हहिकोनिरवान करमकेकरतारनरममभुलेहै.१ तेकारणमाटेज्ञानछे एहि जमख्यछे माटेज्ञानवमेकरिनेसर्वद्रव्यनुजाणपणकरिने पांचद्रव्य हे जाणिनेछांडवा एकचेतनाज्ञानरूपउपादेजा णिनेत्रादरखो तेथकीजात्मानिःकर्मथाय माटेत्रात्मान नासनकरिनेमाहेव्यापकपणकरवु नेरमणकरवं त्यांहां नेदपण नलाववं एटलेआत्मातेजपरमात्माछे एविरिते तद्रुपस्वसत्तागवेखिनेशक्ति नावेगुणछे तेव्यक्तिभावमार मणकरे तेनेजिवनमुक्तकहिए तेनोत्रात्माकर्मरुपरजथकि निर्मलथाय तेनाप्रसंख्यातापरदेशनिर्मलकरिने सिद्धक्षे त्रमांजइनेसिद्धपणेरहे तेनेफरीथीजन्ममरणकरवानपडे अनंताकालसदाएसुखमारहे तेविनाकोइमुक्तिचाहेछे जे केटलाएकतोएमजाणेछेके तपथकिमुक्तिलेइशु केटलाए कजाणेछेकेक्रियाथकिमुक्तिलेइशु केटलाएकजाणेछेकेप्र नुपुजवाथकिमुक्तिलेइशु पणतेवातमिथ्याछे इहांकोइ केहेशे के प्रभुपुजवामां मुक्तिठामठामकहिछे नेतमेना केमकहोछो तेनोउत्तर के मक्तितोत्रात्म स्वरुपमांछे तथाजसविजेजि कृत सामित्रणसें गाथानातवनमा वा दीनुएवुवचन के अमेप्रभुपासे मुक्तिमागीलेइशु ते - Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. नाउत्तरमांएवुकहयुछेजे कोणमुलेकरिने प्रभुपासथीम क्तिवेचाथीलशो एटलेबोधबीजकांइदिधुश्रावतुंनथी त थाश्रीहरिनद्रसुरिजिकृत खटदर्शनसमचय ग्रंथनेविशे एकमुछेके रागद्वेषनातजवाथकि तथाज्ञानदर्शनचारि नाअाराधनथकिमक्तिमले ॥उक्तंच॥ जिनेंद्रोदेवतातत्र॥ रागद्वेषविवर्जितः॥ हत मोहमहामल्लाकेवलज्ञानदर्शनः॥४७॥सुरासुरेंद्रसंपूज्यः॥ सदनतार्थप्रकाशकःकृष्ण कर्मक्षयंकृत्वा॥संप्राप्तःपरमंप दं॥४८॥जीवा १ जीवौ २ तथापुण्यापाप ४ माधव ५ संवरौ६॥बंधो ७विनिर्जराट मोक्षौ९॥नवतत्वानितन्म ते॥४९॥ तत्रज्ञानादिधर्मेभ्यो। निन्नानिनोविवर्तिमान।। शुभाशुनकर्मकर्ता॥ भोक्ताकर्मफलस्यच ॥५०॥ चैतन्य लक्षणोजीवों ॥यश्चैतद्विपरीतवान्॥अजीवः२ ससमा ख्यातः।पुण्यं ३ सत्कर्मपुद्गलाः॥५१॥पापं४ तद्विपरतिं तु॥मिथ्यात्वाद्यास्तुहेतवः॥ यस्तैबंधःसविज्ञेय। आश्रवो सौ५जिनशासन॥५२॥संवरहस्तन्निरोधस्तु।।बंधोजी वस्यकर्मणअन्योन्यानुगमात्माच॥यःसंबंधोद्वयोरपि । ५३॥बदस्यकर्मणःसाढो।यस्तुसानिर्जरामताटाप्रात्यंति कोवियोगस्तु॥देहादेर्मोक्ष उच्यते॥५४॥एतानिनवतत्वा निायःश्रदत्तेस्थिराशयासम्यक्तज्ञानयोगेन।। तस्यचारि योग्यता॥५॥तथाभब्यत्वपाकेनायस्यैतत्रितयंनवेत् - maal ४3 Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यालविध्वंसन. सम्यगज्ञानक्रियायोमा ज्जायतेमोक्षभाजन॥५६॥ प्रत्य क्षंचपरोक्षंचादेप्रमाणेतथामतअनंतधर्मकंवस्तु॥प्रमाण विषयास्त्विहा५७॥ अपरोक्षतयाऽर्थस्याग्राहकंज्ञानमीह सं प्रत्यक्षमितरंज्ञेयं ॥ परोक्षग्रहणेक्षया॥५८॥ एटलेजीनसासननमुलका एटलेजैननादेव केवाछे जीनेंद्रो केहेतांजीननामसामानकेवली तेमांहेइंद्रसमा नएवातीर्थकरपरमात्माते देवछे तेरागद्वेषे करीनेवर्जि तछे महामोहमलकेतां मोहराजानेहणीनेकेवलज्ञान केवलदर्शनपाम्याछे माटेमोहतथारागद्वेशने जीतेतेनि मक्तिथायपण ते विनाकांइमक्तिहोयनहि तथासरासुर इंद्रेपुजीततेशामाटेके सदभुतार्थ केहेतांजथारथपरुपक छे तथाकृतकर्मकेहेतां पुर्वेशनाशुभकर्मकरेलां तेनोक्षय करिनेसंप्राप्त केहेतांपाम्याछे परमपदकेहेतांमुक्तिप्र तेएटले करयांकर्मभोगव्या विनाछुटेनहि अनेशुभाशु कर्म क्षयकरयाविना मुक्तेजायनहीं माटे कोइनाथी कोश्नी मुक्ति थती नथी तथा मुक्तितोज्ञानने विशे ले तत्रज्ञानादिधर्मेभ्यो केहतांज्ञानदर्शन चारित्र प्रादे धर्मका तेधर्म निन्नानिन्नकेहेतां नेदतथाअभेदएट लेजीवादीनवतत्खनुवर्णववुतेनेदधर्मकहिये तथाश्रात्मद्र व्यनुजेगुणपरजायसहितकेहेवु तेअभेदधर्मकहिये तथा क्वलाश्लोकोमा एनवतत्वनोविवरोजे तेनवेतत्वजीनसा Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसम. .maAR'SMos । - . सननेमतेकह्यांने एटलेनवतत्वनीसङकरे तेनेसमकीती कहिये तेमद्धपांचतत्वतजवांकह्यांबे अजीव. १ पुन्य.२ पाप.४ आश्रव. ४ बंध.५ कोइकेहेशेकेपुन्यनेतजकु केम कोहोतेनेकहिये अमेकेहेतानथीतेउपरलखेला श्लोकने विशेजपुन्यनेपुद्गलकहिनबोलाव्यूछे. ॥उक्तंचापुण्यसत्कर्मपुद्गलाइतिवचनात् एटलेपुन्यते सतकेहेतांशुभकर्मनापुद्गल पुद्गलतज्याविनातोमुक्तिथाय जनहि शामाटेकेएहिजउपरकहला श्लोकनेविशेकहयुंडे उक्तंच.॥आत्यंतिकोवियोगस्तु॥देहादेमोक्षउच्यते॥श्लो क ५४ मो टीकाः।तथेत्युपदर्शने ॥ परिपक्वनव्यत्वेनतद भावात्॥अवस्यकमोक्षगंतव्येन॥पुंसस्त्रियोवाज्ञानदर्शन चारित्रत्रयंसपमानमोक्षनाजनं।मुक्तिथियंभुक्तसम्यगि तिसम्यक्तज्ञानमागमा ऽबबोधःक्रियाचरणकरणचरणा त्मिकातासांयोगसंबंधजकेवलज्ञानदर्शनचारित्रं वामो क्षहेतुकिंतुसमुदितंत्रयं ॥ एटलेएचोपनमाश्लोकनीटीका बेतेनेविशेपुरुषादी वेदनेविशेमुक्तिनीनापामीने तथाच रणसितरी करणसीतरीथकीपण केवलज्ञानकेवलदर्शन निनापामीले माटेपरमेश्वर पुजवामांतो मुक्तिक्यांथकी जहोय मुगतितोज्ञानदर्शनचारित्रनेविशे कहिले तेटीका थकीजाणजो इहांकोइकेहशेकेचारित्रतो पंचमहाव्रतादी कबहेवारजकेनहि तथाएपुन्यबंधाएखसकेनहितेनोउत्तर Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. - एउपरनाश्लोकनोविशेपंचावनमाश्लोकबेतेनेविशेजएनव तत्वनीसङकरतेनेसमकीतिकहिये तेहिजसम्यक्तज्ञानते नेजोगेरमणतातेनेचारीत्रकांडे नेसाध्यसाधन जोगजे व्यवहारचारीत्र तेनुप्रयोजन तथाफल आकाशनाकु शमवत कांडे तेश्लोकनीटिकाथकिजाणजो जेसमकित ज्ञांनचारित्रतेजमोक्ष शामाटेकेसम्यक्तज्ञानक्रियायोगा केहेतांतत्वनीजे सरधाकेहेतां जेद्रव्यगुणपरजाय ज्ञा नादि रत्नत्रयीनुसतनासन प्रत्यक्षपरोक्षवस्तुनुविचार तेने ज्ञानकहिए नेसतवस्तुनीसरधाकरवी तेनेसम्यक्त कहिए एटलेसरधातेसमकितजाणवु तेज्ञानविचारवुते क्रिया एटलेसम्यक्तज्ञानक्रिया योगाजायतेमोक्ष नाजन एटलेएसमकितज्ञानक्रियाहोय तेमोक्षनुनाजन थाय तथाप्रत्यक्षंच परोक्षच देपरमाणेतथामते तेप्रमाणनुस्व रुपटिकाथकिजागजो तथाअनंतधर्मकंवस्तुप्रमाणविषय स्त्विह५७ यस्यटिकायेनकारणेन यदूत्पादव्ययध्रौव्या त्मकं तत्सत्सत्वरुप मिष्यतेतेनकारणेन अनंतधर्मात्मकं वस्तुप्रमाणगोचर सर्ववस्तुषु उत्पत्यादित्रय युक्तास्यैवा अनंतधर्मतातेनैवपुनरनंत धर्मात्मकत्व मुक्तंनपोनरुक्त्यं ५७ एटिकानेविषेउतपादव्यय ध्रुव्यात्मीकं तेसततेने सतस्वरुपकहिए तेनीजेनेगले तेनेअनंतधर्म आत्मिक वस्तुप्रमाणजाणीने सर्वेवस्तुनुउत्पादादिक त्रिययुक्त Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - श्रीमिथ्यालविध्वंसन. ३४१ शेवतेनेथनंतधर्मश्रात्मककहिए तेनीजमुक्तिकहिएतेवि मामुक्तिनहि एजिनसासननुसारजे माटेएअात्मस्वरुप नेविशे भेदअनेदज्ञाननविचारव एटलेशव्यवहारतेने दज्ञान नेशुद्धनिश्चयकेहेतां अनेदज्ञान हवेनेदज्ञान केहेतांजेज्ञानदर्शन चारीत्रात्मानाघरन एमजेबोल कुतेव्यवहारथयोएजेध्यानतेनेभेदभावरह्यो पोतेनेपोता नागुणमांजुदापणुरा आत्माएकहतोतेना त्रणने दथयाएटले व्यवहारनयकह्यो जोत्रभेदज्ञानविचारीने जोश्ये त्यारेतोत्रात्माएकजदेखायने एकजजाणिएनिएते नेजविशेरमणकरिए इहांज्ञानादीकगुणजुदानथी आत्मा तेज्ञानादिकगुण तथाज्ञानादिकगुणतेत्रात्मा जथाद्रष्टांते सुवर्णनुनारेपणु स्निग्धपणु पिलाशपणु तेकांसुव थकिनोखुनथी तेजसुवर्ण एविरीते अात्मस्वरुप निसरधाकरवी तेनेसमकितदर्शनकहिए तेजाणवुतेने ज्ञानकहिए एनेजविशेथीरथश्नेरमणकरवू तेनेचारित्रक हिए एजस्वरुपनेउपयोगदेइने जुवेतोसिद्धपरमात्मारु पज एविरीतेजध्यान करतांमुक्तिथाय पणवीजिरीतेसर्व थामुक्तिथायनहि. उक्तंच दहाः--एकदेखीयेजानिय॥रमिरहियेएकठौर॥ समल विमलनविचारीये। यहसिद्धिनहिऔर.१ सवैया. एकतिसा। जाकेपदसोहतसुलन अनंतज्ञान - Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ श्रीमिथ्यात्वविध्वंसन. - | विमलविकासवंत ज्योतीलहलहीहौ।यद्यपित्रिविधरुपय वीहार तथापि एकतानतजैयों नियतअंगकहीहै।सोहै जीवकैसीहू जुगतीकेसदीवताके ध्यानकरिबेको मेरीम नसाउमहीहै । जातेश्रवीचलरिद्विहो तुअोरनांतिसिद्ध नांहिनाहिनाहिया धोखो नाहीसहीहै. ॥१॥ - अर्थ हवेएस्वरुपनोअनुभवथीररेहेवोदूर्लन परं तुज्ञातापुरुषले तेमनोरथतोकरे तेप्रमाणेअनुनवकरे ते नुकारजसिद्धथायतकहीएलिए जाकेपदकेहेतां जेपोताना पदनेविषेत्रनंतज्ञानस्वरुप स्वलक्षणकेहेतां वस्तुनुलक्षण एहिज तथाविमलवीकाशवंतजोतीकेहेतां आपणोतथा परनोस्वरुपजाणवो तेहीजजोती जेनेविषेदीपमांनथश्र ही तथावव्यहारमा यदपीकेहेतांजे त्रिविधरुपने बही रत्रात्मा अंतरत्रात्मा तथापरमात्मा एवीरीतेत्रिविधरु प तथापिकेहेतांतोहेपण नियतअंगकेहेतां निश्चेनयनि अपेक्षायेतो एकतातजेनही तेथीएकरुपजकह्यो तेतोएको पदार्थएकजीवकह्यो हवेकेशेहजुक्तिकरकेहेतां तेजुक्तिश्रा गेकहियेव्येि तेसदीवकेहेतां नीरंतरमारामननीउमेदथ इरहीने वलीजाहीकेध्यांनतेअपनीरिदिकेहेतां ज्ञानदर्श नचारीत्ररुप अविचलथाय एवीरीतेकरीनेसिद्धथाय पण बीजीकोइरीतेकरीनेसिद्धथायनहि एबुत्रणवारकाछे ए अतिठोकीने निश्चेवचनकाने वलिकाछेके एवातमेधो | । - - Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रीमिथ्यात्वविथ्यमन. खोनहि एटलेएवातजुठीनथी एटलेएवातसत्यछे माटेहे भव्यजीवो जोतमारेत्रात्मानेसुखवांछोतोभेदज्ञानविचा हो नेविनावनोत्यागकरो स्वनावनोध्यानकरो पछीत्रने दज्ञाने करीनेध्यानकरो एटलेश्रात्माएजपरमात्माथशे तेथकिसर्वकर्मनोनाशथाशे तेथकिअनंतीरिद्विसत्ताएछे तेप्रगटथशे जन्मजरामर्णनाफेराटलशे अक्षयअव्यावा धसुखनोविभागीथइने शीवपुरमांजरेहेशे माटेएहिज अभ्यासकरो एहिजअमारोउपदेशछे तथासर्वज्ञानीपु रुषोनोएहिजउपदेशछे. ॥दुहा॥ एहग्रंथपूरणहुवो पूर्णहुश्अबत्राश श्रोतासूण जोकांनदेश् ग्रंथगुणकीराश ॥१॥मिथ्याविध्वंसननामए भाख्युतेसुखकार तेहमांहिजेनावने सुणल्योतासविचार ॥२॥बहुभेदामिथ्यात्वना तेमजीवस्वरुप द्रव्यगुणपरजाय नो भाख्योरुपअनुप॥३॥नयभेदबहुभाखीया तेमअध्या त्मवात बहुग्रंथनीसाख्यथी कीधीएहनीख्याता|ग्रंथग समद्रछे फीलेमहिमतीवंत पापमेलसबधोयके होवेउ तमसंत॥५॥ रयणचिंतामणसारीखो ग्रंथरच्योगुणनाण |पंडीतजनतोसुखलहे वांचतांप्रगटेनाण॥६॥मुरखजनस मजेनहि तामेनहिमुजदोष क्षयउपशमतीनकुनहि तामे किनपररोष॥७॥ जाकोअनुभवथीरहे श्रात्मअनुभवलक्ष ताकुतोबहुगुणकरे जाकोउपयोगदक्ष ॥८॥ वसुधामेवि PRESED Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमिय्यात्वविध्वंसन. . . स्तरो जीउंजलमांहीतेल मुखमुखएहीप्रगटहोवो प्रेय गुणकीरेल ॥९॥ अक्षयथीतीमेरुतणी तेमएग्रंथनीवास | रवीशशीपेरेअवीचलरहो उत्तममुखमेवास ॥१०॥ संवत 'गणीशनगणीशमां सुंदरपासोमास कृश्नपक्षतिथिसप्त मीपुरणथयोउलास ॥११॥ शितलकारीसोमवार श्रामो दगाममोजार वांचजोभणजोनविजना तेलेशेभवपार ॥ १२॥एग्रंथरुदियेधरी ध्यानकरशेजेह मुनिहुकमसुखसं पदा पामशेशिववधुगेह. इतिश्रीमिथ्यात्वविध्वंसननामा " ग्रंथसंपुर्ण. HILDRAMA Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. - श्रीगुरुभ्योनमः उसकानामदर्वबिलासः॥याग्रंथमैरागवालाकुतोराग हैरकविजनाकैलीया नरपंमितजनाकैलियादर्बाणुजोग 'मै चिदानंदलीयाअनलोकों स्वरुपहेसोग्यातापरसांका बीचारबाजोगहै ।प्रथमरागभैरव।। चिदानंदनजोरेभा चिदा०॥आंकणीःसहेजस्वनावमेंसदाजोरहेवे रागभैरव मेगावे वोहीपरीब्रह्मवोहिपरमेश्वैर वोहिचिदानंदका हावरेभाचिदा०॥उनकिकिरपाबमेयेहोवै मेरीश्च्गप री रागमालामेंकरतहू नहिकोश्वात अधुरीरेभाइ ॥चि दा०॥दरवाणुपरजायलहिने येसबरागमेगाउ मुनिहूक मचिदानंदमुरति शुद्धस्वरुपमेंपाउ॥इतिप्रथमपदसंपुर्ण। रागनिनैरवी॥ चेतनदरवजाणेरी दरवगुणपरजाय उनकु लक्ष्णैतेसमझेरी ॥ नएनिषपतत्वैकुजाणे नेदसंक्त करेरी॥१॥श्रीजीनवैरनेऐसानाख्या परजायनेएग्रहेरी॥ सुद्धसमकीतउनसेहोवै याबीनचितठरेरी॥श्री.चारअनु जोग्यमेएकनारुया दरबाणुजोगकहेरी।मुनीहूकमएनीश्ये अनुजोग रागनीभैर्वीबोहोरी।श्री.श्तीदुतीयेपदसंपुर्ण। . रागनीविनास॥ जीवादीवस्तुदरवकुभावस्वैरुपीतेक हियेरे नीदरवैदरवप्रैतेकैतेजाणोबिरोधअपनेमेनालहियेरे - Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. ॥जी.१॥ जथारथस्वरुपहैयाका व्यापव्यापकेकहियेरे ल ब्बणयेहैवस्तुस्वरुपका सचाचीतमेलहीये।जी.राजीवद रवअनंतानाष्य कारजनेदेजाणोरे ॥ भावनेदेतोएकज कहिये खेत्रकालनावबखाएयोरे॥जी.३॥ समुदायएउन कामाख्या दरबादीचतुष्टीलहिये।मुनीहकमचिदानंदन जतांरागनीबीभासएकहियरोजी.॥इतित्रीतीयेसंपूर्णः॥ रागनीललत॥दरवप्रैतसमझेनेजीयाप्रदेशप्रदेशेजांणो। स्वैस्वैकारजकारनउनका साम्रथरुपबखाणो। दरब.१॥ अनंताअविनागपरजायका तीनकेसमदायरुप॥ताकोग एक हैहैग्यानि याकोसमजोसवैरुप॥दरब.२॥ कारजका रणभिन्नति तिहांसाम्रथरुपलहिए। गुणपरजायनिन्न भिन्यैये गुणपणअनंताकहिये ॥दरब.३॥ गुणगुणपरतै परजाय अबीनागरुपलहिए॥अनंतापणसरखामाख्या वरजायभास्तीरुपकहियो।दरब.४॥ प्रतिके२बस्तुअनंती तेथिअनंतगुणजाणो ॥ मुनिहूकमसामथपरजायरागनि ललतागवाणोदरब.५॥ इतीचतुर्थयसंपुर्ण रागनिपटमंजणी ॥ उठतेरोरुपदेखोचीदानंदराया दर्वकेलक्षणजाणो तीनुकानेदकाहाया॥ उतपातबौद्रुव जुक्तसंतलबगाहाया॥॥दरवास्तिकपरथमनेयनाख्यौ परजायेनयैदूजो।उभयैनयपिण्याविलंबनजाणै उनसै | मोहोधुजो॥२॥ गुणपरजायसहिततेदर्वे जाणगबक्तासा manasi Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. - चो॥ मुनीहुकमयेपटमंजरी रागनिगायराचो ॥ ३ ॥ इतिपदपंचमोसंपुर्ण॥ रागनीषट ॥ परजायनयबिचारतचेतन संतधर्मसोक हिये।पर अर्थक्रीयाकरेजोदर्वे परजायअपीण्यालाहिये रे॥१॥परःआपापणीसक्तीसारु धर्मअपीष्याकहियेरे। धर्मअधर्मआकाशजाणो पुद्गलजीतेलहियेरे॥२॥ बठोका लदरवतेनाख्यो श्रापआपकेलष्यालहिये।मुनीहूकमये दरबस्वभाव रागनिषटयेकहियेरे॥३॥तिपदण्ठोसंपुर्ण रागमालकोसाहेजीयानेदग्यानयहैकीजै पंचास्तीका यचितलीजात्रांकणी॥ठादरबैकालसोभाख्या उनकुत्रा स्तिनेकीजै॥अप्रदेशीसैदांतेजाणो उपचारदरबतोलजै ॥॥तेकारणेअस्तीकायनेनाषी बस्तुबिनाकाहाकीजै॥ नास्तीपणोदरबकोदेखिउपचारैनैपतिज॥२॥रागमालको समाहिगायो कालतणोअनावै ॥ मुनिहकमपंचास्तीका यको आगैनाखुस्वैभावै॥३॥ तिपद ७ संपुर्ण। रागनीटोमी।समेजोरेहूग्यानद्रव्यकु खटदरैबकौबिचा र॥श्रांकणी॥प्रथमद्रव्यधर्मास्तीनाख्यो लोकप्रमाण अखंझ॥ एकद्रव्यउनकोएजाणो जिवपुद्गलकुआणंद॥ ॥गाथा१॥ जेजेगतिप्रणमता पुष्टहेतुएजाणो॥असंख्य परदेशलोकप्रमाणे एहिदबखाणो॥२॥जबजिवमुर्तजा वै तिहांकांमनावै। मुनीहुकमयेशुद्धस्वरुप नेटोमीराग Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. ३४८ नीगावै ॥ ३॥ इतिपद संपुर्ण ॥ रागनीच्या सावरी ॥ सिद्धस्वैरुपप्रणमिजेभाइ ग्यानशू धारसपिजै ॥ त्रांकणी ॥ सिद्धावस्ता मसाजकारि धर्मा स्तिकायक हिजै ॥ स्थिरताभाव अनंतायाको उपयोग मैं पण लहिजै ॥ गाथा १ ॥ जिवपुद्गल स्थिरताभावै पुष्टहेतु एक हिए। असंख्यपरदेशएलोक प्रमाणो दुजोदरब एबहिए ॥ २ ॥श्रा साछोमश्रासावैरीगायो शुद्धस्वरुप मैं रहिए ॥ मुनीहूकम चि दानंदनजतां शिवरमणिसुखलहिए ॥ ३ ॥ इति पद ९ संपुर्ण ॥ रागनीविलावल ॥ जियालोकस्वरुपकुजाणो बगांह कस्वनावबखाणोत्रांकणी ॥ पुष्टहेतु सर्वदरबकु श्राका स्ति कायकांहांणो॥ श्रवगाहानासर्वकु देवै सोयेदोजातजाणो ॥१॥लोकालोकदोय कहिए वाकोस्वरुपहूंचाखु ॥ जिवा दीस्वरुप बसेजीहां सोइलोक कैहिद | खु॥२॥ संख्य परदे शकेनाखे अबका लोकबिचार ॥ अनंतपरदेशउनके जाखे पण हिदरबपरचार ॥ ३॥ श्रवगाहकशक्तीउनमै पणलेनेवालानाहि ॥ लोकालोकउन्नये मील के येस्वैरूप हैत्याहि ॥ ४ ॥ श्रनंत परदेशीदरवैयेतीजो श्राकास्तिकायते कहिये ॥ मुनिहूकमयेनाजनकाहाणी रागनीवीलावलल हिये ॥ ५॥ इतिपद १० संपुर्ण ॥ रागनीकुकब॥ चेर्तेन क्योतुनहिबीचारै पुद्गलदरवैकुधा यांकणी ॥ श्रतिशुक्ष्मैपरमाणुभाष्या नित्यैस्वभाविकजे Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. ३४९ ह॥बरणगंदरस एक एकभाख्या दोय फेर सैकहियैतेह ॥ १ ॥ से पंचगुएहि जीन में सोईपरमाणुजाण ॥ कारणकारज मीलकेनं न मे पुरणगलनचिता ॥ २ ॥ पुद्गलदरवैया कौकहिये चोथोरूपीमांन ॥ मुनिकमयेरागनी कुकब पुद्गलवखा ॥ गाथा३ ॥ इतिपद ११ संपुर्ण ॥ रागनिगुणकली ॥ जीयापुद्गलस्वरुपतेयेह लोकमे ताते ह॥ घकपंदतेजांए। अनंताते हवखाणा ॥ गाथा १ ॥ तकबंदप कहिये संख्यातीकदलहिये ॥ श्रसं ख्यातीकपणभाख्या नंताकतीहांदाख्या ॥२॥ येसर बेसबदजाणो येकयेव्याचैनंतबैखांणो ॥ येक प्राकाशपरदे शैकहिये अनंताषंद तेलहिये ॥३॥ येमपंचैपरकारथीना ख्या चेतनचितमैराख्या ॥ मुनिहूकमक हैते त्यागो गुन कलीकुगांणैलाग्यो ॥४॥ ईतिपद १२ संपुर्ण ॥ रागहींमोल॥ श्ररेजीयाजाणतुस हैज सुभावकु चेतनाल क्ष्णैसहैतदाख्यो॥चेतनादोयपरकारकीजाणी ग्यानदर शैनउपयोग में प्राणीयै ॥ अनंतपरजायपरणामिकदरव ये उनकेदोयप्रकारेबेखांणीयै॥१॥ करत्वादि लंबा है जीव कापरजावैते अशुद्धजानो॥ शुद्धस्वभावमैंर मैज बचिदघन शुद्धपरजायकुतेर्हेमानो ॥२॥ उपीयोगवंततेचेतनाजानी ये बीन्यउपयोगजे मैजानो मुनीडूकमरागहिंमोगावाथकी शुद्धउपयोगथीशीव सुखबस्वांनो ॥ इतिपद १३ संपूर्ण ॥ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. रागसारंग॥ पंचास्तीकायकेमानमे नीजरूपपीछाना तांनमै|अरुपीचिदानंदस्वामी जीवएकबखांनमे पं०१॥ ओरचारौधास्तीकायये अजीवदरबतेजाणीय।वापरा वर्तननीमीतै कालदर्बबखांणीयै॥पं० २॥ प्रवांप्रबवेके कारणमाटे टोदवचितआंणीयै येदर्वनेपरदेशनही ते थीत्रास्तीकायनजाणीये ॥पं० ३॥ व्यवहारनयनपीक्ष्या यदे समीयेखेत्रदाखीयै। आदितपरीदपरीमाणे समी येत्रावैलीबखांणीये ॥६०४॥ तेमाटेनास्तीकानहि श्रास्तिकायपंचधारीयो।मुनिहूकमकहैागलकहै| राग नीसारंगबिचारीयेईतिपद १४ संपूर्ण ॥ रागनीगोम॥ अपनारुपजबहमनीरख्या पंचास्तिका यमाहितेपरख्यापिाकणी॥ जीवस्वरुपअसंखपरदेशी लोकपरमाणेपरदेशतेधारो।तैमजधर्मअधर्मकहिये प्रतेके प्रतेकैपरदेशबिचारो॥१॥ लोकअलोकमलीनेकहिये श्रा कास्तिकायएककाहाणो॥प्रदेशअनंतायनाकहिये चोथो पुद्गलदरबचितप्राणो॥२॥ येकअनेकप्रमाणुरुपये खंधहे तुजुगतथीकाहाणो॥तेथीदर्बयेहैनेकहिये त्रास्तिकायत गोमाणो॥३॥ येमआस्तिकायपांचैजाणी तेमैंजीवास्ति आपणोधावो।पोरास्तिकायचारतजीनै मुनिहूकमराग नीगोमगावो ॥४॥ ईतिपद १५ संपूर्ण ॥ रागनीशुद्धसारा।चेतनअपनोधर्मसमारो सामा विशेषनि Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. हारोत्रांकणी॥येधर्मपंचास्तिकायमै प्रथमसांनकाहाणो। स्वनावलक्षणउनकेनाखे प्रतेकेप्रतेकजाणो ॥१॥दर्ब गणपरजायव्यापक परणामीकलक्ष्णस्वभावो येकपणु नेनित्यप्रतीहा अबिअवरहितपदध्यावो ॥२॥ करीयार हितसरबगतजाणो एसांमानधर्मकाहाणोपंचास्तिकाय माहितेकहीयै सदास्वभावचितप्राणो॥३॥ वशेषधर्मह वेतेकेरोत्रागेत्रमेतेकहिशुं ॥ मुनिहूकमशुद्धसारंगावतां चितहरखीशुं ॥४॥ ईतिपद १६ संपूर्ण॥ रागनीमालसीरी॥ अपनाधर्मधावोआतम बसेसनाव चितनावो।आंकणी॥वेसेसधर्मपंचास्तीकायमे द्रव्यगण परजायजाणोब्यापकत्वैस्वरुपतेकहिये गरुगमथीचित प्राणो॥१॥परमाणीकलक्ष्णस्वनावजे एमअनेकचितधा रोएकअनेकनेनित्ययअनित्यए नीरअविएवस्वैवियेव बिचारो॥२॥संक्रीयेपदएहमैजाणो देशगतसर्वगतपरवेस ॥बसेषपदारथगुणपरवरती कारणपणहोयबीशेष॥३॥न हिसामानबसेषबि बिशेषसामानविनताही॥दोयघरमस दारेहेजीहां आस्तीकायकहियेत्यांही॥४॥मुनीहकमयेह धर्म स्यादबादस्वरुपारागनीमालसीरीयेगाइचिदानंद अनुप॥५॥ इतिपद १७ संपूर्ण. रागनीमुलताइ॥चेतनसामानस्वभावसमजा पोरसम जासैकौनमजा॥त्रांकणी॥मुलसामानस्वनावकहियै खट - Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ श्रीरागमाला. भेदउनकालीयात्रास्तीत्वैनेवस्तुवैजेह दरबत्वैतीजाकी या॥१॥ परमेवैनेसतत्वैये अगरलघुबटाथया।येसामान सुभावकेनेदहै खटबिधएरचनाकह्या ॥२॥ सामान्नतेसर्व दरबमेलाधे सरखाधर्महोयखरा ॥ मुनीहुकमअर्थश्रागै रागनीमुलताइबरा ॥३॥इतिपद १८ संपुर्ण. रागमलार॥ प्रातमत्रास्तीस्वनावभाखी सुधैधर्मतेदा खे॥त्रांकणी॥बसेसधर्मकेश्राधारभुतजो सोहीअास्तीत्वैक हिये।गुणपरजायधरियाकु वस्तुवस्वैभावलहिये॥१॥अर्थ क्रीयाकरेसोदर्ब अथवाउतपातवैयजाणो।उतपतीपरजा यपुत्रपीताजीम प्राविरनावबखाणो॥२॥प्रैसवैसमलक्षण बिरजभुत परजायतीरोभावकहिये।भावरुपसक्तीआराधे दरवत्वचोथोलहिये॥३॥सपरवविक्ष्यांग्यानप्रमाण नीति प्रमाणतेकहियो।स्वगुणमेप्रणमेजोचेतनसुधपरमेवैलहि य॥४॥उतपातवैयदूर्वेजुक्त तेहनेसत्वैतेजाण।हाणबद्धीख टगुणीजीहाबै अगरुलघुबखाणो॥५॥ एसामानस्वनाव खटनो अर्थसंखेपेनाख्यो।मुनीहुकमयेरागमलारे नीज स्वरुपुकहिनेदाख्यो॥६॥ इतिपद १९ संपुर्ण. . ॥रागनीमलार ॥ सामानसुनावकेउत्तरभाखु प्रास्ति स्वनावकेजाणोत्रिनंतनेदयाकेभाखे पणत्रियदंशबखा पो॥१॥सामानसुनावकेउत्तरनाखु श्रास्तिनास्तीनीतसु नावअनितएकसुनावै अनेकभेदाभेदकाहिए॥२॥नव्य Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. श्रनव्यैतेलावो बकैतव्यैप्रबकतव्यैजाणोपरमस्वभाव तेरमोलहिए उतरसामानैबखाणो॥३॥ उतरसामानैसर्व दरवैमें सरखेभावैलाधे।मुनीहुकमएमलाररागनी गाता मनुमोवाधे॥४॥इतिपद२०संपुर्ण॥ - ॥रागनोदेशी॥ आस्तितास्वैनावमें दरबादिचतुष्टि जाण ॥त्रांकणी॥ व्यापव्यापकैसंबंधथी सत्यथित्राप्रण मंतामनहेतुअंतरंगनो प्रणमतागुणगृहेहंत॥१॥सुधब स्तुस्वैनावनो शुधप्रणतिजाणाास्तिसुभावनेनाखियो चिदानंदबैखाण ॥ २॥ श्रात्मस्वरुपआस्तिमये भाखो शुधरुप॥मुनीहूकमदेशिरागनी गावस्तुअनुप ॥३॥ इतिपद २१ संपुर्ण॥ . ॥रागगुजरी। नास्तिपणोविचारोदरवैमैसोय सरवब स्तुमैगवेखिजोय॥त्रांकणी॥जीहांश्रास्तितीहांनास्तीहोय जीहांनास्तितिहांधास्तीजोया। दरवादिकचतुष्टिधार श्रा पापणीलहोबिचार ॥१॥दरबादिकचतुष्टिजेह स्वैग्रहै आस्तीपदतेह॥परदरबादिकचेतनमेनहि जेग्रहातेनास्ती सहि ॥२॥ ग्यांनदरशनादिजेगुण दरबखेत्रकालभावथी सुण॥धास्तीनावचेतनमैलयो परचारेनास्तीमैकयो ॥३॥ ऐमस्वरुपसजेजेआप तेहिजसादबादनेयथाप॥मुनीहूक मएधर्मअनुसार गुजरी रागनी.मनुहार॥४॥पद२२संपुर्ण। ॥ रागनीबाहार ॥ नमरतुकरतजाणपणाकीबात ૪૫ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ श्रीरागमाला. ॥ टेक ॥ संदैनावसंदनावतेजालो र पितणारपी तबिचार ॥सपर परजा एसहि एजंगमनुहार ॥ १ ॥ बसेखप णेगविखीयेत्रो बक्तब्यप्रबक्तब्यधार॥ उनैयनेदला धैबै येह सैमता सुखकार ॥ २ ॥ तेहस्वरुपसप्तभंगीमांहि जात्रा बिचार ॥ मुनीहूकम एचिदानंदमयै गाइरागर्न । बाहार ॥३॥ इतिपद २३ संपुर्ण ॥ ॥ रागनीसुवा ॥ प्रथमगते श्रास्तीके हिए सर्वदरबमे धार ॥ श्रांकण दरवगुणपरजायमाहि श्रास्तीपणातेजा कैरदर में लहिए गुणपरजायैबखा ॥१॥ सदना पापणो गुणपरजायतेहोय ॥ श्रापच्यापणा दरबमै लाधे श्रास्तीपणोतिहांजोय ॥२॥ पीतपणोतेबस्तुनु हो सोइबस्तु धर्मं ॥ एकसमेतेसर बेनासे सोइग्यांनी मर्म ॥३॥बदमस्त नेतोश्रनुक्रमेनासे सरधाएकसमेयी येहोय॥ मुनीहूकमए प्रथमजांगो रागनीसुवामैजोजोय ॥ ४ ॥ इतिपद २४ संपूर्ण || राग श्री ॥ श्रपनारूपरचैके देखो नही परगुणस्वभावै॥श्रां कणी॥श्रापस्वरुपमैलार्धेनाही परदरबपरजाय ॥ गुणलक्ष पशुनावर्तेला तेथीनास्तिपणोथाय ॥१॥नास्तिस्वैनाव येापको श्रास्तिपणे ते जाणो दोउभेदयेजीवकाकहिये ॥२॥ बीजोभंगयेबखांणो नास्ति सदरबैबखां स्वभावने जाए॥ मुनिहूकमयेचिदानंदमेय श्रीरागवखांण Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. ३९५ ॥३॥ इतिपद २५ संपूर्ण. रागनीधनासरी॥क्यांक हूचिदानंदघनकी मुखशुंकहीन जाय॥प्रांकणी॥स्वपरपरजायदोउलाथै सदभावासदना व॥संत्वासंत्वपणेयेकहिये अर्पित अर्पितलाव ॥१॥ ये मनेकगतिहांलाधै दोदोभंगते काहिये ॥ संकेत सबदनो रहावेइहां तेथीश्रास्तिनास्तिनलहिये॥२॥तेथीप्रर्वेक्तव्य येनाख्यो त्रीजोभांगोयेलहिये।।गुणपरजाययेत्रात्मदरब ना अनंतभेदते कहिये ॥ ३॥ तेथी एकसंमनक हैवाये श्रात्म स्वभावयेमधावो ॥मुनीहूकमयेरागनीधनासरी शुद्धस्वरु पगावो ॥४॥ इतिपद २६ संपूर्ण. रागनीकाफी॥अपनारूपनिहाराजबहमने अपनारुप निहारा ॥ प्रांकणी ॥ स्वपरजायन्त्रास्तिकहीयै सोतोसंतका हावै॥ नास्तिपणोबैपर परजायै सोतोस्त्वैयावै ॥ १ ॥ दोउ भावयेकसमीये चैतनमांइलहीये॥ तेथीभांगोएचोथोभा खो मीश्रभावते कहीये॥ २ ॥ एमस्वरुपत्रातमकेरो समजे तेग्यानीजाणो ॥ मुनी हूकमतेबिन श्रगन्यानी रागनीकाफी काहाणी ॥३॥ इतिपद २७ संपूर्ण. सुगराइरागनी ॥ श्रातमात्रापसरुपजाने बचनगोचरन हीठा ॥ त्रांकणी ॥ स्वैपरजायदेशथी सदना वैजाणो ॥ श्रन परजायबशेषथी नर्पित सतत्राणो ॥१॥ एकसमे जुग पतयाको संत्वासंत्वतेसाचो ॥ जाणपपोइहांतो कहिये मुख Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ श्रीरागमाला. बचननहिजाच॥२॥ जाणापणाथीभास्तीपणोए एकचने प्रवक्तब्यैजाणो॥ तेथीभांगोपांचमोकहिये श्रास्तिश्रवक्त ब्यबखांणो॥३॥ सरवैदरवमेभंगये जेमजीवमैनाखो। जाणपणोसाचो रागनीसगराइदाखो॥४॥ई तिपद २८ संपूर्ण. रागनीपर्ज॥अपनेरुपमैनांगोछंठो नास्तिअवैवव्यै जाण। परस्वभावअपनेरुपजे नास्तिभावैचीतठाण ॥१॥ अनजुगपतइहांकनैभाखु त्रास्तिनास्तिश्रवक्तव्यैसोय। येकदेशेस्वैपरजायै अर्पितभावैजोय ॥२॥ अनयेकदेश परजाय अपअर्पितनावबरीय। सदनावसदनावै स त्यसत्यकरीयै ॥३॥ एसर्वेप्रवक्तव्यैजाणो नांगोसात मोकहीयस्यादत्रास्तिस्यादनास्ति स्यादप्रवक्तब्यैलही य॥४॥ येसप्तभंगीबीशेषाविशेषै यह स्वैरुपकाहाणो॥भि नस्वरुपसप्तनंगीकेरो रतनाकरअवतार्कायजाणो ॥५॥ येसप्तभंगीसर्वदरवमै नित्यादिकनिबखांणो॥ मनीहकम स्यादबाद ये रागनीपर्जलखाणो॥६॥ ईतिपद२९संपूर्ण. होजीयास्यादबादबीचार॥टेक॥ सप्तभंगीममुखपणेये भंगतीनबीचार। स्यादवास्तिस्यादनास्ति स्यादअवक्त व्यधार ॥१॥ आस्तिपणेबास्तिधर्म नास्तिपणेनास्ति धर्म॥जुगपदेउभीयेधर्मछै येस्यादवादमरम॥२॥ सामान | विशेषधर्ममेलाधे गुणपरजायमैजाण ॥ प्रतेकेप्रतकेसप्त Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. भंगीजाणो नित्यादीकबखाण ॥३॥ स्यातपदग्रीहीनैकहै ता दोशेण नेत्रायेकायमस्वरुपस्यादबादनो साचीग्या नेनीटेक॥॥येजाणोतेनेसरबेजाणो बीजातोविदाअभ्या| स॥मुनीहूकमचिदानंदमये रागनीमारेवेणप्रकास ॥५॥ इतिपद३०संपुर्ण॥ रागनीगोमी।स्वजातीमैत्रास्तिनास्तिपणो तीहांकहिने दाख॥त्रांकणीजीवेजीसजातीनाखां पंचवीजातीकहीये ॥ स्वैजोवत्रास्तिपणे परजीवनास्तीलहिये॥१॥ग्यानै ग्यानास्तिनाव दरसनादीनास्तीभावै॥स्वेगीनानते आस्तीनाव परगीनानतेनास्तीगावै ॥२॥त्रास्तिपणोते नास्तिनेहोवै नास्तिपणोतेपास्तीनैथावै॥आपणोगुणते परमेंनजावै परापणमेनाश्रावै ॥३॥ स्वजातीधर्ममायै रहवै परजीवनीनवीहोवै ॥ एमगुणपरजायादिसरबमै आस्तिनास्तिजोवै॥४॥आस्तिनास्तीसरुपयेजाणो स जातीमैनाखु मुनीहुकमयेनीजसुभावमै रागनीगोमीयै दाखो॥५॥इतिपद ३१ संपुर्ण. रागनीपुरबी॥ चेतननित्यसुभावसमजोनेनाइ चेतनः दोयफ्रकारनित्यसुभावै समजोएहबिचार॥ नचुतीनीत्यै तांजाणो परंमपरनित्यताधारी॥१॥सर्वदरवैमेएहैस्वैनाव अ तेहैनादोयैप्रकारौ। उर्धताप्रचियैप्रथमनाखो त्रिजक चीसारै ॥ २॥ येदरबसभावैनीतै उतपातवैयैदुजोनिते॥ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ३५८ श्रीरागमालः येमअनेकस्वैभावबंदरवमें समजलोहोनीत॥३॥ नित्यत्र नित्यैसुनावएमजे सर्वदरवमाहिामुनीहुकमतेसाचोग्या नी रागनीपुरबीगा॥४॥ इतिपद ३२ संपुर्ण॥ . रागनीऐमैनानित्यस्वैनावधीबीधध्यावा दूजयेप्रकारै रोत्रांकणी।कुटस्तंनेपरणीमीकयहैसरुपहुदाखु॥परदेसै येकुटस्तकहिये गुणमेप्रणामिकराखु १ चेतनप्रदेशनित्य कुटस्तै इनुपरावैरतनैनाहि॥परावैरैतनतोगुणपरजायमै सोपरणामीकनीत्यताकाहाइ २ एनेदतोसरवैदरवैमें स मजैतैनेजणायो।मुनीहुकमयेरागनीऐमन गाताहरखन रायो ३ इतिपद ३३ संपुर्ण॥ रागनीगयानाट॥ परजायधर्मकनिन्नभिन्नकर आपो आपसमारो॥ त्रांकणी॥शेकारीलंक्षजेहमै तेहनेदक हिजोदरवैदरवैप्रतीप्रदेशे गुणैमैपणकहिजे १ उपादान कारजकारण प्रणामीकपरैजाय।ब्यापकेपरजायउतपात कहिय गुणतेदरबत्वैथायै २ शैमीयेरैउतपातबेर्य सर्वद रवैमेलहिये ॥ गतिथतीअवगाहवरतना मलैबियरणैक हिये ३ चेतननोउपीयोगगुण बस्तुवनावीककहिये।।उ तपातवैयेयेसरबेमेलागै गुणादिकमैकहिये ४ कारणका रजपोतानोकरतां एमग्यानतेलहिये॥मुनीहुकमप्रथम व्याख्या परजायैरागनीनटमैकहिए५इतिपद३४संपूर्ण। ॥रागनीबमहंस॥तुमतोशुधधर्मश्राराधो चिदानंदकु Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीरागमाला. साधोही ॥टेक॥ निजदरबपरणामिकभाख्यो सोहिधर्म | वाधो॥१॥तुम॥पुर्वपरयनायवैकरीनै नवेपरजायउतपादो। दरबपणोदरवपणैकहियै येहिग्यांनिनादो॥२॥तुम।। पर जायव्याख्याधितियेभाखी ग्यांनिमनत्राणंदो।मुनीहूक मबम्हंसरागनी समजेएहमुणंदो॥३॥इतिपदा३५संपूर्ण॥ ॥रागकालंगमा चेतनस्वैकारजकारण परणामिक प्रावति।गुणादिपणेएमजजाणो प्रगतिस्वभावधरतीचे. २॥ अतितअनागतपरजाय अनंतातेकहिये ॥ वर्तमा नपरजायएकले एममुधर्मतेलहिए ॥चे०२॥ वर्तमानपर जायअतितमैप्रणमै अनागताअनीतहोवै॥कनागतबा कीजे निकटहोताजुवै ॥०३॥ एमउतपातनेवैये द्रव्य स्वैगुणकहियै॥मुनीहकमतिजोपरजाय रागनीकालमैग हियै ॥चेत०४॥ इतिपद३६संपुर्ण॥ ॥रागभरवीसिध॥ होनवीयाकालकुसमको पंचास्ति कायमैसमाय ॥त्रांकण॥ केताकपंमितएमबदै कालपरै प्रणतिठराया।येबचैननहिगणधरमिलतो कालतोद्रवपर जाय हो०॥ स्वैधरमदरवनोजे प्रणतिवस्तुरुपातेमा टेकालनेदतेजाणो एसरधाश्रनुप॥ हो०२ ॥ अथवाका लभिन्नद्रवैकहिए तोकालतेकारणरुप ॥अतीतश्रनागतव र्तमानप्रणेत तेताजिवादिधरमस्वरुप ॥हो०३॥ तेमाटे कालभिन्ननजाणो सर्वदरवनोपरजाये।उतपातवर्यैरुपये Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. || तेतोपरजायकाहायै ॥ हो०४॥प्रैजायव्याख्यातिजि माहि एजाणजोस्वैरुप॥ मुनीहूकमएसीधीभरवी परजाय व्याख्याअनुप ।।इतिपद३७संपुर्ण॥ ॥रागनीटोमिमियाकी ॥ सफलदिनाज केवैलग्यां नमेगाउ॥त्रांकणी॥गेहेबस्तुनोस्वैरुपजाणे तेहिकेवल ग्यानामतीयादिकथीवोगेजाणै प्रतक्षैपरोक्षेपरमाण॥स फ०१॥ घटपटादिरुपनप्रणमै तेसमघटग्यान॥समीयत्रं तरघटबीणसै तवकेवलग्यनान ॥ सफ०२॥ घटबणसे ग्याननबिनसै केवलनोथायउतपात इहांगनपरजायउ तपातसफ०३॥प्रथमसमेयैधरमास्तिकायजे संख्याता परमाणुनैसाज ॥ धितियेसैमैत्रसंख्यातानै पुर्वसंखीयैवै यैनोकाज ॥सफ०४॥असंखतीअनंताकहिए एमउतपा तवैयैवखाण ॥ एमचलेणसकारीनाख्यो दुवैताद्वैतेजा णासफ०५॥ एमसर्बदरवगुणमैजाणो चतुर्थिव्याख्याथा यामुनीहूकमएजाणेकेवली रागनीमियाटोमीकाहाय॥ सफ०६॥इतिपद३८वासंपुर्ण॥ ॥रागनीबिलावैल लिया। चेतननेदएपांचमोजाणो आस्तिनास्तिपरणामी श्रास्तिस्वैनावस्वधर्मनो उतपात वैयेएपरणाम॥गा.१॥नास्तिसुनावपरदरवैनो तेमैउतपात वैयनाहि॥ परवैरतैनधर्मनहिउनको दरवत्वैधर्म ताही ॥गा.२॥ास्तीधर्ममेसर्वेलाधे समगोगुरुगमलहमुनी Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. ३६१ हुकमबलहारीगुरुनी अली बिलावलरागनी कहि ॥ इति पद३९ संपुर्ण ॥ रागनीवीलावलसुवा ॥ चेतनगरुलघुपरजायतेजाणो ॥चेतन०॥ हांणव्रधिखटगुणभाखी सरवैदर वैमे प्रणमै ॥ हाणीतेतोवयैकाहावे व्रधिउतपाततेरमै ॥ चेत० ॥ १ ॥ व्रधिवै यैहाणीउतपात गरुलघुदरवैतेजाणो ॥ सरवैदरवैमेइम जकहिये येमपरजायबखाणो ॥ चेत०२ ॥ श्रलोकमेपणा गुरुलघु है नीचसेनावेलहीयै ॥ मुनीहूक मयेछटी व्याख्या सुवावीलावलकहिये ॥ इतिपद ४० संपुर्ण ॥ रागनीसारंग ॥ बंद्राबनीः त्रास्तिपरजायसांम्रैथरुपये येमचीत में समीयै॥ त्रांकणी ॥ सरवैदरवैनोप्रास्तीस्वना वै अनंतगुणोतेलहियै ॥बशेषरुपते सांचैथपणो है सांम्रथप्रै जायतेकहियै॥१॥ त्रैवर्तिरुपतेनमीतनेदछै तेथीउतपातवै यैलहिये ॥ पूर्बवशेषपरजायनेवैयै श्रभिनवैबशेषतेकहियै ॥२॥सः इमपरजायनोप्रेणमवनाखं दुवैतेबशेषपरजायै ॥ मुनि हूकते रागनिनाखि बंद्राबनसारगथाये॥ ३ ॥ इतिपद ४१ संपुर्ण ॥ रागनीपिलु | चेतननिजशुभावकुजाणे नित्यानित्यका हाणारे प्रांक ॥ नित्यैस्वभावजाहानहिलाधे जाहाका रजनविहोवैरे॥कारणपणोपपतिहान दिसे कारियेशिधिनै जोवैरे ॥०१॥ नित्यैपणानोजाहांनावछे गायकश ४६. Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ श्रीरम्गमाला. क्तिथाकिरे। अरथक्रियातेनरकरै गरुगमथिबुधपाकिरे ॥०२॥ शरबशुभावपरजायधारो आधारभुतनिजेषेत्र लहियेरे॥मुनिहकमरागनिविलु येअधकारागैकहियैरे ॥चे०३॥ इतिपद ४२ संपुर्ण रागबरवा।सुनजियारेतेरेशुनावैकुलके बसमसतसुभा वतेजाणोरे आपापणाषेत्रप्रदेशै आधारभुतबखांणोरे सुन०॥१॥सामान्यैनावैयेकसुनावछै बशेषभावअनेकसु भावीयेतोपरैवरणतिमैरमबो हवैकहूदरवैसुनाव॥२॥ श्रास्तित्वादिशर्बसुनावते गुणपरजायेकहियेरे॥शयेक परदेशेनाख्या आपत्रापणोयेत्रनेदकहियेरे ॥३॥ शर्ब परदेशतेभिन्नननाख्या पंमिरुपतेलहिये।परदेशप्रतेनं तरनविहोवे दरबेयेकस्वभावकहियेरे॥४॥ येमशरैबसुनु वपरजायनेदे दरबमैअनेकतेलाधैरे। मुनिहूकमरागनि बरवो स्वभावजाणेगुणबाधेरे॥५॥इतिपद४३संपुर्ण। रागनीजजोटी॥नेदग्यानएचिदानंदको मेउनकुपीगणु ॥श्रांकणी॥त्रापापणोकारजनेदये सभावैनेदएकहिये। अगरुलघुपरजायनेदतेम भेदसनावतेलहिये ॥१॥जी मरअवस्तापलटे नेदस्वैनावतीहाजाणो॥अभेदसुभाव ग्रहणकरीने भेदस्वैभावजोनैबखांणो ॥२॥ तोगुणगणी सुनावनेमांही शंकरेबदोषेणैलाग|गुणपरजायनैकारण कारज लक्ष्क्षणलक्ष्क्षनागै ॥३॥ तेकारैणयेनेदग्यानछै - - Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीरागमाला. ३६३ सुधपरणेतीयैग्रहीये ॥ मुनुहुकमयेकारणअभेदनो राग नीमोटीलहीये ॥४॥ इतिपद४४संपुर्ण॥ रागनीजंगला॥ अपनारुपप्रणामीकजोइ अतीअनंद मैपाया ॥ उत्रोतरपरजायफ्रेणैमन नीजस्वभावमैआया। गाथा॥नीजस्वरुपमैदोयनावबैव्यैअभंव्यैसुभावै ता कोबीचारवेवरीदाखु समजुचितमधावै ॥२॥ उपयोग थीरकरीनेधारो बीचारआगेकहीशु।मनीहूकमयेरागनी जंगलो शुद्धउपीयोगेलही|॥३॥इतीपद ४५ संपूर्ण. रागनीस्यामकलांण॥ भव्यसभावैतेजाणो टेक॥शद्ध स्वैरुपवखाणु नावधरमतोजीवस्वैरुपनो तीहांनवांन धर्मकहीये॥गुणपरजायपरावरतनजे तथाास्तिखलही यो॥१॥नावनवोउतपैनथायजे नवीनपरजायमैपरवरते॥पू रबन्नावतेनाशकरीने नवैस्वैभावयेमपलटै॥२॥पलटणैश नातेभव्यकहीजै तहेमैभवानधरमदानामुनीहूकतेाग लकहीशं रागनीस्यामकल्याणाख॥इतीपद४६संपूर्ण. रागनीत्रैमनकल्याणाभव्यतधर्मबैनव्यैशुभावमै ग्या नीतेहबखाणे ॥त्रांकणी॥ गणपरजायेजेवस्तुनां तेहिनवै नधर्मकहीजे। नवंथवंसमअइपंथाने उत्तरभेदलहीजे ॥ १॥ परवरैतैनमैवक्तिरुप जेवरतीनुशास्तिनावै॥रुपंत रेजेप्रणमेवं तेभवैनधरमकाहावे ॥२॥ दुग्धनोदाधिपणो | थावु बीकारअंतरेप्रणमवाग्यानमहीजेमगीनेतेफरतो ते Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ श्रीरागमाला. मग्याननुप्रणमैव ॥३॥ वर्धिहाणीस्वनावै कारजकारण लहीये॥श्रावीरनावंतीरोनावकीये येमनवांनधर्मलहीये ॥४॥ इनोत्ररथगुरुगमतीलीजो हवेकहास्तिभाव॥ मु नीहूकमयभव्येसुनावमै मनकल्याणरागनीगाव॥५॥ ईतिपद ४७ संपूर्ण. Solaoisolastooloodleoicolcolosodiosciaolodings Someopagaeases ॥इतिश्रीरागमालासंपूर्णः॥ စစ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारभाव प्रकरएालक्षएा. ३६५ श्री गुरुभ्यो नमः प्रणमुसुधानंदने नाखभावतेचार श्रवलाईने प्रण म्या सवलाप्रणमे सुखकार ॥ १ ॥ हवेजेचार नाव अन्यमतविशेषक दर्शनवाला एकह्या वे ते पूर्वे जैन पंमितो पण केटलाएकविचारनेविशेग्रहण करचाबे तेचारप्रनावनुस्वरुपकिंचित्मात्रहुंकहुछु तेचा रानावनानाम प्रागभाव १ परध्वंशभाव २ प्रत्यंता नाव ३ अन्योन्यभाव ४ हवें भाव केहेतांशुं जेनहि बेवस्तु तेनेावकहिएबैए परंतुचेतनस्वरुप साथे चारे नावनोविचारकरवाथिघणो फायदोबे तेमाटेएनुस्वरुप किंचित्मात्र इंहांदेखाडुछु हवेपरागभाव केहेतां पूर्वेजे भावनोच्यभावहतो तेभाव प्रगटथाए तेनेप्रागभावकहि ए हवेपूर्वेकह्या भावनोभावहतो शुभाव प्रगटथयो तेने प्रागभावकहिये तेनोविचारकहुछु त्रासंसारनिमां हिंलिकोरे भावरुपवस्तुबे प्रकारनिबे एकशुद्धभाव १ बी जो शुद्धभाव २ हवेते शुद्धभावना श्रनेकभेद द्धभावनोतोएकजभेदबे एटलेशुद्धभाव केहेतांशुद्धचिदानं द संकल्पविकल्परहित समपरिणामीनिजानंदउपयो नेशु Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ चारप्रभावप्रकरणलक्षण. ग सस्वरुपमाथीरतापणु तेनेशुद्धभावकहिये हवेजेशु दभावने तेनाअनेकनेदतेकहियेइए प्रथमसमपरिणा मजेकह्यो तेनाबेनेदएकतोशुद्धपरणतिरुपसमपरिणाम तेतोसर्वथीजीवनेकल्याणकारिने अनेशुद्धपरणतिसाथेजे समपरिणाम तेनाअनेकनेदले तेमधेजेथोणिप्रतिपन्नछे तेसविकल्पपरिणामछे शामाटेजे एठेकाणेस्वपरनोविचा र अथवागुणपरजायनोविचार एसर्वेविकल्पसहितछे प रंतुघणोजभागएनोनिर्मलछे अनेथोमोजनागमलिनप णुछे एकसमकितिथिमामीनेसातमागुणठाणासुधी जेस मभावथायछे तेद्रव्यगुणपरजायनुस्वरुपजाणि सस्वरु पनेोलखी परनावनोत्यागकरिने समपरिणामेरमेछे तेमधेपोतपोतानागुणठाणानिहदे जेसमपरिणामछेतेस्व नाविकछे अनेतेउपरांत जेटलुंरमणतथासमभाव एट लोआरोपितउपचारिछे अहिंयांनिर्मलपणुकथंचिततेम धेपणतरतमजोगरह्योछेतेविनासमभावछे तेएकएविजात नोपणछे केद्रव्यगुणपरजायनानेदजाणिनेपणस्वभावप्र गट्योनथि अनेसस्वरुपयूँग्रहणनथि अनेसमभावथाय छतेमलिनछे तेमिथ्याद्रष्टिछे वलिएकएविजातनोपणस मनावछेजे स्वस्वरुपतोजाणतानथि तथाद्रव्यगुणपरजा यनपणजाणपणुंनथि अनेमटकवेरागादिकपामिने संसा रथकिविरक्तनावरेहेछे तेसर्वेपणमलिनछे मिथ्याद्रष्टिछे Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारप्रभावप्रकरणलक्षण. तेनोत्रात्माशेपण निर्मलथयोनथि तथाएकएवि जात नोपणसमनावछे संसारछोमी अथवानछोमी कर्तरिभा वमारच्यापच्याछे कर्तरिकेहेतांजेकर्म जेजेदर्शनवाला पोतपोतानाक्रीयाकर्म वेहेवारमार्गनाबांधेलांतेनेधर्ममा नेछे तेनेकर्तरीकर्मकहिए ।उक्तंच॥ विहितकर्मजन्योधर्म निषिधकर्मजनोस्त्वधर्म॥ एटलेविहितकर्मकेहेतांजेकर्म नुकरवु एटलेक्रियाप्रमुखकरवाथिधर्ममानेछे एपणए कलोकमांधर्मछे पणतेकंधर्मनथि शामाटेजेनिषेधकर्म केहेतांजक्रियापरमखनोनाशकरिनेस्वनावमांजेरमवंतेस तधर्मछे तथाएqधीविशेष्यावशकमां नयअधिकारेनिग मनयारोपितकहिछे तेमधेकारणनेविशेकारजनुआरोप q एटलेकारणजेबाह्यवेहेवारनी जेजेकरणिपरमुखछे ते नेधर्ममानेछ तेकरतानेधर्मिकेहेछे तेकंधर्मिथयोनहि अ नेकरणितेकंईधर्मथायनहीं ॥उक्तंच॥ बाह्यक्रियायाधर्म त्वः धर्मकारणस्यधर्मत्वेनकथनं ॥ एवनयचक्रमांपणक पुंछे इहांकोईकहशेके जावकारणमांतोकंईआरोपनथि तेनोउत्तरजे नावकारणनेवितो अापत्रापणाकारजनो स्वनावछे त्यांहांकईकर्तरिनथि अनेनिगमनयछे तेकंई नावमांनथिएतोद्रव्यनयछे अहिंयांपणाकरतमन्नावनि वातछे अकरतमनीवातहोततोस्वनावग्रहणथाय तथाचे तनमात्रवरणवीतेतोचेतनानावेनेदछे एटलेशुद्धचेतना Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ चारप्रभावप्रकरणलक्षण. तथात्रशुद्धचेतना२ श्रशुद्धचेतना केहेतांनर नरकादिक चा रेगतिनिवात जाणे द्विपसमुद्रादेदेईने सर्वपरभावनि वातजाणेतेनेत्रशुद्धचेतना कहिए तेमद्वेजेस्वस्वरुपनागुण परजायादिकजाणे ते शुद्धचेतनाछे पण माहाशुनछे जे पोतानास्वस्वरुपनेजाणे अने शुद्धस्वनावनेविषे रमणता तेनेविषेथिरपरिणाम एवुजेजाणपणुछेतेने शुद्ध चेतन कहि ए तेजधर्मकहिए धर्मकेळे विविन्न के हेतां कोईकालेपोतानास्वस्वरूपथिएधर्मजुदुनहिपमे एएकत्रा त्मस्वरुपनिवृत्तिमात्र एनेजकहिएछे ॥ उक्तंच | चेतन मात्रवृत्तिधर्मविछिन्न ॥एवीरितेपरभावमांजेरमणता ने धर्मनुमानवुं एवुंपण एकस्वभावेछे इत्यादिकत्रशुद्धपरण तिरुपशुभाशुभ कारजकारणना समभावचेतननवलगे लाछे तेसर्वेपरभावनाघरनासमभावछे पणशुद्धपरति रुपसमभावनथयोतेथिएसमभावनेपुद्गलिकरीद्ध मांगल्यो छे तेपरभावनोनाशथाय तारेशुद्धरूपनिप्राप्तिथाय तें शुद्ध स्वरुपनेविशेतो उपादानकारणकारज समएसमएनंतु नीपजीरह्युंछे एभावजेने प्रगटथयो तेने परागभावकहिये शामांटेजे पुर्वेएवी सुधस्वभावनिप्राप्तिनहि तीतेप्राप्तिथ‍ एटले पुर्वेशुद्धस्वस्वरुपनोभावज हतोएट लेपरागभावक हिये तथासमकितनिश्रादेदेईजेजेन वागुणप्रगटथायते सर्वे नेपरागभावकहिए ॥ उक्तं च ॥ अनादि सांत प्रागभाव इ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारप्रभावप्रकरणलक्षण. तिवचनात ॥ एटलेपुर्वनाभावनोनाशथयोतेनेप्रागभाव कहिए॥इतिप्रथम ॥१॥ हवेवीजोपरध्वंशाभावकेहेतांजेकारजनिउत्पत्तिथयाप हेलां अथवाथयापछि ध्वंशकेहेतांनाशकरवोतने परध्वंशा नावकाहिए एटलेापणोआत्माअनादिकालनो संसार नेविषेरख अनेअनंतगुणनोधणिछे तेकंइखपत्राव्यून हि अनेरखम्वूप तेनुकारणएजेमोहादिकशत्रएउत्प तिथयापेहेलां एटलेसमकितपाम्यांपहेलांथियात्मानागु पनोनाशकरतारह्या एटलेगुणप्रगटथावादिधोनहि श्र नेपरभावमारमान्या परपोतानुकरिमान्युशुभाशुभनेधर्म करिमान्युअज्ञाननेज्ञानजाण्युज्ञाननेअज्ञानजाण्युवस्तुध मनेअधर्मजाए\शुद्धपरणतिनेअशुद्धपरणतिजाणिशुद्ध परणतिनेशुद्धपरणतिजाणिवारोपिताउपचरितअसदभूत तेनेधर्मकरिमान्युंजणारोपितत्रणउपचरितसदभूततेने अधर्मजाएयु एसर्वेसमकितपाम्यापेहेलांनांलक्षणशामा टेजेकेटलाएकतोआजिविकानेअर्थेकरताफरे केटलाएक पुजावामनावानेअर्थे केटलाएकपोताना मतादिकनिखेंचे करिने तेसर्वेमिथ्यात्वि तथासमकितपामिनेवम्युं तेंपण मोहादिशत्रूनमावेडे शामाटेकेसमकितपामिने बेअक्षरनुं जाणपणुंथयुं अथवाबाझ्यथकी करणिश्रादिकसारिकरेते वारेमिथ्यात्वरुपभतएनाहृदेमांपेसे तेवारेमतफरिजाए Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारश्रभावप्रकरणलक्षण. ३७० | नेगुरुत्रादिकनेमानेनहिने स्वमतिकल्पना एधर्म उपदेश करेजथारोहगुप्तनिन्नव एटले पनि शास्त्रसिद्धांतमानेनहि पोतानिमतिकल्पना एकरि एनुजुगती एकरिने समजावे तेमध्ये साधु ने उपदेशकरवानोअधिकार अथवासुत्रभण वानोअधिकार जेमवेहेवार सुत्रमांकह्योबे तेत लेतेत लेव र्षेथाए तेविनाकरतेपणसुनाउथापकबे तथासावकथइ नेजेउपदेशकरतेपण सुत्रसिद्धांतनातथागुरुनापण उथाप कबे तथा भगवाननिश्राज्ञानापण उथापकडे एसंपूर्ण सर्वे प्रकारेथिनिन्नवजवेप्रनेजमालिप्रमुखजेोनिन्नवथयाततोदे शथकिबे अनेग्रहस्थथइने देशना देते सर्वधकिनिन्नववे शा माटेजेश्रीविरपरमात्मा एतोग्रहस्थिने श्रोताकह्याबे रथ निप्राप्तिगुरुने प्रश्नपुब्वाथिकहिबे पणवांचवाभणवालो कोने संभलावाते कि कहिनथि एत्रधिकारश्रीभगवती जीथिजाणजो तथाश्रीप्रश्नव्याकरणने विशेसंवरद्वारे ग्रहस्थितथादेवताने सांभलवानोअधिकारकोवे पणकं इसभाभेगीकरविदेशनात्रदेवि तेत्रधिकारतोसाधुनोक ह्योबे तथा श्रीनिसिथसुत्रनेविशे जे साधुग्रहस्थिनेक्षणावे तथाग्रहस्थीने नएयोवखाणे तोतेनुं चार महिनानुं चारित्र जाय तथाग्रहस्थी जोभएयोवखाणे तोतेने चारमहिनाना चोवियाराउपवासनं श्रावणावे इत्यादिकघणां शा स्वनेविशे ग्रहस्थीनिदेशना श्रथवाग्रहस्थीनं भणवानुंन Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारप्रभावप्रकरणलक्षण. ३७१ खेदकर्य तेकारणजेकरे तेनेनिनवजकहिये तेधणीनं तानवरखमे तथाएनिदेशनाना सांभलनारपण अनंता नवरखझे एश्रीविरपरमात्मानाखेल्ने तेसर्वेशास्त्रमा एपणएनेमोहादिकशत्रुए एनाधर्मनोनाशकर्यो हवेजेमो हादिकशत्रु समकितपाम्यापनि जेशुद्धपरणतिनो अंशत्र गटथयोहतो तेनोनाशकरे तेनोविचारकिंचिमात्रदेखाई उं एनानिमित्तकारणतो पांचइंद्रिनेमन अनेउपादान कारण रागद्वेशप्रणति तेमध्येरागनाबेभेद एकशुभरा गछे १ बिजोत्रशुनराग२ शुनरागनाबेनेदबे एकप्रश स्थराग १ बिजोत्रप्रशस्थराग २ तेमध्येसमकिता दिक पामवानोजेराग तेपणस्वप्रणति तथापिपामवा नोरागडे अथवापाम्या तेगुणसाचववानोरागडे अथवा प्रात्माना केवलादिकगुण प्रगटकरवानोराग अथवा मारात्रात्मानी मुगतिथायइत्यादिक सर्वेरागते स्वप्र गतिलिआने माटेहेनेपरशस्थकहिये अनेरागतेकर्मबं धहेतुबे माटेएनेशुभरागकहिये तथाअपरस्थशुभराग तेज्यांआत्मस्वरुपनिरमागतानथि अनेदेवगरुधर्मउपरि एरागराखे अनेगरुआदिकनि नगतिनेविशेलेहेलिन रहे तेधणिनेअपरसस्तशुनरागडे शामाटेजेस्वपरणति रहित परसस्तपणुंनथि तथाअशुनरागतेनाबेनेद ए कपरसस्त ॥१॥ बीजोअपरस्त ॥२॥तेमध्येपरसस्तजेध Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ चारप्रभावप्रकरणलक्षण. - मएवोशब्दनामग्रहणकरिने जेकरीआकष्टतपः जपकरे एसर्वत्रशुन हांकोईकेशेजेधर्मनांएवांकारणतेनेतमो अशुनकेमकोहोछो तेनोउत्तरकेएसर्वेकारणविखक्रिया॥ २॥गरलकीरिआ॥॥अनुष्टानअन्योअन्यकरीत्रा॥३॥ एत्रणक्रियानेविशेथायछे अनेएत्रणक्रियानेअशुनजछेए क्रियानेकोईशुनलखतानथि एनोविशेषविचारशास्त्रथकि जाणजो तथाप्रशस्तत्रशुनरागतेवणसमजणे अथवा उपियोगरहित परजीवनेबचाववा अथवादानादिकदेवु अथवासंसारनासकारणएसर्वेअप्रशस्त अशुभरागछे माहाविरस्वामिएगोसालानेबचाव्यो तदवतसमजिले जो हवेजेटेरस तेपणबेप्रकारनो एकस्वप्रणतिथकि कर्मादिकभिन्नद्रव्यनेकाहामवानो विचारएकएवो पणदे शछे एसर्वेधर्मदेश एकप्रकारनोके हेवाय विजिजेश्रध र्मदेशतेसंसारादिसर्वे कारणमांसमजवो एवाजेकारणम लवाथि जेपोतानिशद्धप्रणतिनोअंशप्रगटथयो तेधर्मथ किभ्रष्टकरिनेसंसारमारोले एटले एप्रात्मगुणनोनाशकरे तेमोहादिशत्रुअात्मगुणनोपरध्वंसनावछे तेजआत्मापोते परध्वंशस्वनावजाणेजेआमोहादिकशत्रुकरता माटेहूंए नोजनाशकरं तेशावळ्थाय तेनोहेतुबतावुछु केसदगुरु बहुश्रुतनिस्प्रहिभाव स्वस्वनावनाभोगि परस्वभावना त्यागी तेवागुरुनिहुंशेवाभक्तीकरूं तेमनेशरणेजईनेरहु - Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारभावप्रकरणलक्षण. ३७३ एटलेएवामोहोटापुरुषवलावूलिधेथके मारिरिद्धीनो नाशमोहादिकचोरकारशकेनहि माटेहंएवासदगुरुना धिनथईनेरहुं पुष्टत्रालंबनएवगरबीजोकोईनहिहवेउपा दानकारणनेविशे स्वप्रणतिप्रनावमांजावानदेउ तेथिर नावथाउ शुनाशुनकारणकारजथकिमाहारात्रात्माने उगारुं अनेशुद्धभावनेविशेमाहारात्रात्मानेजोडुं तोएमो हादिकशत्रुभोनोनाशथायएरितेपूर्वेपणजेसिद्धिवरयाएध णिएनावथिजसिद्धिवरया वर्तमानकालेपणजेनिसिद्धि थाय तेपणएजभावथिथायछे अनागतकालेपणकारज सिद्धिएभावथीजथाशे एविनाबीजाप्रकारथीकारजसिद्धि बेनहि एवातनिसंदेह एटलेअात्माप्रभावमारमतोहतो तेवारेस्वस्वनावनोध्वंशभावहतो तेजश्रात्मास्वस्वभाव मांप्रणम्यो तेवारेसर्वप्रनावनोध्वंशथयोहवकोईवस्तुनोए नेध्वंशकरवोनथिएटलेएसत्यपरध्वंशानावकहिदेखाम्यो एटलेएबीजोभावकह्यो. हवेत्रिजोअत्यंतानावकहेतांअत्यंत प्रभावछे तेक हिएबिये तेआत्मानविशेपरभावनोअनावछे शुद्धनिश्चे नयेकरिनेजोईयेतो कर्तरीपणछे नहि अनेशुनाशुनपण छेनहि एमुलवस्तुधर्ममां अत्यंतकहेतांघणोघणोकरीने एधर्मात्मानविशेछेजनहि एटलेएत्रिजोत्रभावकह्यो. हवेचोथोअन्योअन्यअनावकहेतांजे प्रगटपणघटनेवि - Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ चारअनावप्रकरणलक्षण. - शेपटनोप्रभावछेनेपटनेविशेघटनोअनावछे तेमचेतनने विशेपरधर्मनोअनावछे नेपरधर्मनेविशेचेतननो अभा वछे तेकिंचित्विवरीनेकहूंउंअहियांपरथमबद्रव्यतेनां नामाधर्मास्तिकाय॥3॥अधर्मास्तिकाय॥२॥ आकाशा स्तिकाय ॥३॥ पुद्गलास्तिकाय ॥४॥जीवास्तिकाय॥५॥ ॥काल॥६॥ एछएद्रव्यजेछेतेएकएकद्रव्यनेविशेअन्यो न्यत्रभावछे एटलेधर्मास्तिकायनाद्रव्य॥१॥खेतर ॥२॥ काल॥३॥नाव॥४॥तथागुणपरजायादि तेजीवनविशेएनो अभाव एमजीवनाद्रव्यखेतर काल नावगुणपरजाया दिनोधर्मास्तिकायनेविशेअनावछे एमअन्यद्रव्यजेचा ररह्यातेजीवनीसाथेच्यारेजोमीलेवा तेपणएकएकनेत्र न्योअन्यअनावजछे तथास्वजातिश्राशरिने जीवएकहे वाअनंता तेस्वजातिकहेवाय शामाटेजेसरखोद्रव्यसर खागुण सरखापरजायादिकलाधे तेनेस्वजातिकहिये परंतुत्रापणाात्माथकीतो सजीवभीन्न तेमाटेश्राप पाज्ञानादिकगुणापणाअगुरुलघुत्रादिकपरजाय एथ कितनागुणपरजायपणभिन्न माटे आपणाचेतननेविशे अन्यजेबीजाजिवअनंतारह्या तेनाद्रव्यनोपणापणेवि शेअनावजछे तेमएनागुणनोपणआपणेविशेअनावज छ तेमएनापरजायादिकनोपणापणे विशेअनावजछे एमअन्योन्यअनावधर्मप्रवरतेछे. Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारप्रभावप्रकरणलक्षण. ३७९ तथाजेमजीवनविषे अजीवनोअनाव तथाजेमत्र जीवनेविशेजीवनोअनाव तथाधर्मनेविशे अधर्मनोभा व तथाअधर्मनेविशेधर्मनोअनाव तथासंवरनेविशेत्राथ वनोअनाव तथााश्रवनेविशेसंवरनोअनाव तथानिर्ज रानेविशेबंधनोअनाव तथाबंधनेविशेनिर्जरानोअनाव नेपून्यनेविशेधर्मनोअभाव अहिंयांकोईप्रश्नकरशे जे दानादिककारण तेनेशुधर्ममांगणिएके पुन्यमांगणिए तेनोउत्तर जेदानशीलतप ३ तेत्रणेपुन्यमांगणाय तेम ध्येकेटलाएकदानपुन्यमांगण्याने केटलाएकपापमांजग एयाले शामाटजेदानपांचप्रकारनांकह्यांबेअनयदान॥१॥ सुपात्रदान॥२॥ अनुकंपादान॥३॥कीर्तिदान॥४॥ नचित्त दान॥५॥ एपांचदानमध्योकिर्तिदान तथाउचित्तदान एबे तोपुन्यहेतुजनहि अनेअनुकंपादानबेकिंचित्भागपा पानबंधिपुन्यनोहेतु अनेअनयदानस्वगुणरखोपुकरतां धर्मनु अनेपरप्राणनुरखोपुकरतांपापानबंधीपुन्यहेतुकिं चीतभागने अनेपरगुणनुरखोपुकरतांपुन्यहेतुछे ज्ञाना दिकगुणहेतुनुकरेतो नहितोपापहेतुमांजाय हवेजेसुपात्र दानछेतेतोएकसाधुमुनिराजनेछे तेविनाबिजाकोईनेसुपा त्रकह्यानथि अहिंयांकोईकेशेकेसाधुनेअनावश्रावकनेप जमाम्वा तेनोउत्तर जेसाधुविनासुपात्रथायनहि अने पुन्यबंधनाथानक ॥९॥ नवकह्यांछे तेश्रीसुगमंगजीमध्ये Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ३७६ चारप्रभावप्रकरणलक्षण. छ तेतोसाधनेआश्रिनेकह्याछे तेनानाम। अनपुने ॥१॥ पानपुने॥२॥ वथपुन॥३॥ शेनपुने॥४॥ लेनपुन॥५॥ मन पुन॥६॥ वचन पुने॥७॥ कायपुने ॥८॥ नमस्कारपुने॥९॥ एनवप्रकारतेतोसाधुनेत्राश्रीकह्या तथाउपाश कदशांगमांसाधुविनाबीजानेवाप्युनहि हेवुआणंदजीबो ल्याछे अहियांकोईप्रश्नकरशेजे संखजीश्रादेदेईने ते नोउत्तर जेएजमतांकईकयुनथिस्वामिवब्लककै नथिपो सातिकह्यांतीहांतोएकमुजेत्रापणेएकठेकाणे एकठाज जमिए त्यांतोएकटजाणिरुपच्यारदोसदारमलिनेकरे ते मछे अहिंयांकोईकेशेजेस्वामिवछलहेनुनामतेशंबे तेनोउ तर जेसरखाधर्मनासाधुसाधुनीवित्रावचकरे तेनुनाम स्वामिवग्लछे अथवाश्रावककोईधर्मथीभ्रष्टथतोहोय अ थवाभाजीविकाएदुखियोतेनेस्थिरकरवो तेनुनामवछल ताकहिएअहिंयांकोईकेशेजे सातखेतरधनखरचqकाछे तेखलंडेपणकईश्रावकनेधनत्रापिदेवूएमतोकझं नथि त थापाकालनेविशे आजिविकारथि पेटभराघणालोको कमाईखायछे तथाकेटलाएकमवानांधन्यलावा मिष्टांन जोजनजमेछे धामधुमादिककरीतेने ठेखायजे तोएमवा नोकामेलोद्रव्यतेगमकादानकहिए तेमहाशुनद्रव्यछे तेतो नाटनोजकभ्रामणकुतराखोमाढोरपारे वाप्रमुख अपुनियाजीवछे तेखायछे पणउत्तमजीवनेतोएभक्षणकर - Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारप्रभावप्रकरणलक्षण. ३७७ - - वालायकनथी तथाहाथग्रहवालायकनथी अनेसाधूतथा श्रावकहेनामधराविनेहेवाप्रशूनमाठाद्रव्यने नोगवेछे नेतेधणीनधर्मवतावेजे तेधणीमहाहिणपुनीयानेबोहोलसं सारीसंनवे अनंतोकालसंसारमांरखमो अनेसातखे तरेजेवावर तेतोग्रहस्थिनेघेरनिरंतरवपरायछे अनेजे मानतमानिनेखरचवूतेकलपितद्रव्य तेअशुभजकहेवा य तेउत्तमजीवनेवापरवालायकनथि एसर्वपापहेतुजकहे वाय हवेजेसाधुनेदानदेवं तेशुनहेतुछे अहिंयांकोईकहशे जेनगवतिजिनेविशेएकांतनिरजराकहिछे अनेतमेशुन हेतकमकहोगे तेनोउत्तर तेनागाठाणानीहदप्रमाणेनि रजराकरे पणसर्वथीनिरजराएनेहोयनहि शामाटेकेने शुभश्रावखुलांबुबांधवानुकांडे माटेएनेघेरपुन्यबंधहेतुज तथाशियलवरतते जगतमांशोभालायक तथातप जेछेतेबाजतपशोनालायकछे नेअभ्यंतरतपकर्मनिरजरे तेपणसर्वेशुभहेतुछे अनेनावबेतेनाअनेकनेदछे तेमध्ये शुद्धनावतेमुक्तिदातारछे बाकी भावछेतेशुभाशुन हेतुबे ॥उक्तंच॥१॥ दानंदुर्गतिनाशाय॥शीलसोनाग्यकारणं॥ तपःकर्मविनाशायानावनानवनासिनि ॥२॥ तेमाटेधर्म त्यांपुन्यनहि नेपुन्यत्याधर्मनहि शामाटेजेबन्नेनाकारण | कारजभिन्नछे पुन्योतेकर्मबंधहेतुबे धर्मछेतेमुक्तिहेतुछे ४८ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ चारश्रभावप्रकरणलक्षण. हियांकोई पुन्यनेधर्ममानेबे तेधणीनेः श्रात्मस्वरुपस्व हजुपरभावनोत्यंताभावन गुणनोअत्यंत नावछे थीको एरीते स्वधर्मनेविशे परधर्मनेपरधर्मने विशेस्व धर्मनन्योन्यत्र नावछे एअन्योन्यानावचोथोभे दसमजवो एात्मस्वरुप नेविशेत्र णेभावपरध्वंशादिकां गीकारकरो तोप्रथमनोप्रागभावप्रगटथयो नेपा गभाव प्रगटथएजश्रात्मानीसिद्धिथाय एटलेशुद्धभावते जप्रागभाव े. इति सुधोत्र्त्रर्थ जावो ॥ ॥ दूहा नावचारवेर्णव्या प्रागभावादिजेह ॥ बालजिव नेकारणे तत्वप्राप्तितेह॥१ ॥ श्रात्मस्वभावशुद्धजे काल अनादिलाध्यो॥तेथिच्प्रभावचारे हुता वलिपरणतिसाध्यो ॥ २ ॥ हवेंशुद्धस्वभाव ज्ञानद्रष्टिए जाग्यो। च्यारे स्वभावह वेसाधिया शुद्धस्वरुप में लाग्यो ॥ ३ ॥ एरीतेसमजीकरी नि जस्वनावमांरेशे ॥ श्रवला तेसवलाकरी निजस्वरुपमांलेशे ॥४॥ श्रनुभव ज्ञानथीएरच्यो चनावप्रकरए॥ शुद्धस्व रुपनिखोजथी शुधोत्र्यनुभवव ॥ ५ ॥ एरिते श्रनुभवसहि त वांचशेभ शेजेह ॥ कारज तेनुसिद्धहोशे तेमांनहि संदेह ॥ ६॥गणि सेंबतरी समे संवबरे श्रवधार ॥ श्रावणउत्तममा सए शुकलद्वादशिसार ॥७॥ नोमिपतिवारजलो सुर तशेहेर मोजार॥श्रोता उत्तमजोगथी चोमासुरह्या उदार ॥ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - चारप्रभावप्रकरणलक्षण. ३७९ ८॥सेहजअनुभवरमतांथकां एअनुभवचित्तायो।तेतुरत || प्रगटकरयो नव्यजीवहितलायो॥९॥ हूकमजेमुनिवरत पोमाथेचमावीसार॥शास्त्रअनुसारेनाखियो अध्यातम गुणउदार ॥१०॥शुद्धस्वरुपपरकाशियो कीधोत्रशुद्धनो नाशापरप्रणतिपरभावनो अहिंयांनहिरेहेवास॥१॥ शुद्ध भावशुद्धनेदथी शुद्धप्रणतिविशाल|अभावच्यारेत्यांहांत्र गट्या उत्तमलक्षणनिहाल ॥१२॥ एप्रबंधएरचनासवि जाणेनावबहूश्रुताअल्पबुद्धिसमजेनहि गुरुगमथिरुकंत ॥१॥तेमाटेबहूश्रुतजोई निस्तहिनिजानंद॥शेवाकरजो तेहनि नेदपांमशोआणंद ॥१४॥ आणंदरुपएकातमा बाकीसर्वसत्यातध्यानेमक्तिलहे भागेपाम्याअनंत ॥ १५॥ वलिअनंतापांमशे पांमे वर्तमान॥ नीश्चितउपादा नशुद्धग्रहि एनाखुशुधमान ॥१६॥ मुनिहूकमरचनाकरि स्वअनुभवधारि॥परअनुभवलगोटल्यो शुद्धनावनिहा लि॥१७॥धोतापणतेवातियां अनुनवगुणनारशिया॥शु बनावनालालचुतेमुजपासवशिया॥१८॥पुद्गलनाभिखारि जेह तेनुनहिअहिंयांकामातेअहिंयांत्रावेनहि तेचउगति नटकणठाम ॥१९॥ रागदेशरहितए कीधोग्रंथवीनाण ॥ नावेकरिजेवांचशे सांनलताप्रगटेनाण ॥२०॥ बहसुतत कवादसहित स्वपरस्वरुपनेजाणे॥ नीस्प्रहिभावसदार Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारश्रभावप्रकरणखक्षण. ३८० हे तेपासभेदठांणे॥२१॥ न्यायविनासमजेनहि शुद्धाशुद्ध स्वरुप | माटेगुरुगमकहि लेविशुद्ध नुप॥ २२ ॥ उपदे शहृदयेधरि जेकरशेश्रभ्यास ॥ मुनी हुकमतेपामशे शीवसुं दरीघरवास ||२३|| Doe oooooooooooooooVEVO. ॥ इतिचउन्नाव प्रकरण संपूर्ण॥ YOGYOUDYYYYOYOG Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૩૮૧ श्रीअमरतेजमुनिनीसझाय NAR 3 श्रीगुरुभ्योनमः ॥ढाल ॥त्रिजुमहाव्रतसांभलो।एदेशी॥श्रीसंखेश्वरपा सजी॥प्रणमीतेहनापाय॥ केशंगतीकर्मतणीदरधरजेधे तराय॥१॥रेनव्यप्राणीसांनलो।करमनीगतीजेहाभोग व्यावणछुटेनहि ॥ज्ञानीभाखेबेतेह ॥रेभ०२॥त्रांकणी॥ नवसातमेजथया॥ अमरतेजराजंद ॥ वैताढपरवतेंशो नतुं । विद्याधरनीरंदरेभ०॥३॥ बहरीधीयेदिपतो ॥ भुजासेनबलजास ॥ जशश्रीनार्याजेहनी ॥ रुपगुणेजे खासारभ०४॥ जिनधर्मरुचीसदा॥नहिअन्यायनोलेश॥ दोगंधीकपरेसुखते ॥ भोगवतांतेविशेष गरेन०५॥ एवे समेएकराजीयो॥ वसुपालतेसार॥ भार्याधनश्रीतेहनी॥ रुपकलाएउदार ॥रेभ०६॥ वरमुखथीरुपसांनली ॥का मिथयोनरराय॥कामेबुदिहोयनहि। निरलजतेहकहाय॥ रेभ०७॥श्रागेस्वरुपजेहू। तेसुणजोसहूकोय॥मुनीहूक मकहेकामथी॥ जेकदीयनहोय ॥रेन.८॥ढाल संपूर्ण॥ ॥ढाल२॥मायामोसनकीजएदेशी॥हवेत्रमरतेजनररा याजेहनूमनडुकामवायाधनश्रीलेवानेजायाहोलालका मीकांईनविचारे॥१॥श्रांकणी॥ हयगयपायकतेलेतो॥ - Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ३८२ श्रीश्रमरतेजमुनीनीसझाय. वेमानरचीतेकेतो॥ चाल्योपंथेहवेवेतो होलालाका. | ॥२॥ बलहथुकितेलेवे। निजथानकावेहेवे॥ जशश्रीश्रा गलतेकेवेहोलालाका०३॥हवेजशश्रीमनचिंतामारेशो कलहिएकते॥ दूखदाईहोशेअंते होलालाका०४॥ हवे पियुनेसमझावे ॥बहूउपदेशएणीपेरेलावे॥जेमपियुनेद नपावे ॥होलालका॥ परनारीनेपापेनरीयो॥ जईनर कमांहितेगरीयो लोहपुत्रीरदयेनरीयो॥होलालाका ॥६॥तेकारणतमेनवकरजोपरनारीसंगपरीहरजो॥ जो सुरगतिजावानेसरजोहोलाल।का०७॥पुरवस्नेहनररा य॥ वेणमान्युप्रीयानुसाय ॥ तेनारीमुकीचितलाय हो लालाका०८॥ खटदनसुधीतेराखी॥ पछेमुकीतेहनीरपा खिादूखसहेतीतेदाखि होलालाका०९॥ मुनीहूकमनी वाणी॥ सांभलताहेजभराणी ॥ श्रागेरसखाणीकहाणी होलालाकामिकांईनविचारे॥१०॥ढालरसंपुर्ण ॥अथढालत्रीजी॥वविचारजो॥ एदेशी॥ पाब्लथी हवेजेथयुरे॥तेसुणजोअधीकार॥ वसुपालराजातिहारे ॥ नारीविजोगविचाररे॥भविजीनसांभलो॥कर्मतणागति जेहरे॥मोहनोत्रांमलो ॥ आंकणी ॥जोरजबशनविच लेरे॥ तेहथीथयोनीराश॥ प्रीतिघणीप्रेमदाथकिरे। खेण खेणमुकेनीसासरोन कर. मो०२॥ नारीविजोगदूखे करीरे॥ पांम्योरेमरतुकराय॥ तेपापप्रतिभाकरुंरे॥ला Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रमरतेजमुनीनीसझाय. ३८३ | ग्युविद्याधररायरे॥भक० मो० ॥ धनश्रीहवेजेग रे। तेहनेकुंणआधार॥ पीयुपणपरलोकगयोरे॥ तेहथई नीरधाररे॥भ० क० मो०४॥ तेहपापजसश्रीने॥लाग्यं तेनीरधार॥ अंत्रायकर्मतेबांधीयुरो॥ दंपतियेअविचाररे॥ भ० क० मो० ५॥ तेहकर्मफलागलेरे ॥नावीशुअधि कारातेकारणभव्यप्राणीयातनोतुंमेपरनार।भक० मो०६॥ मुनीसंजोगदंपती॥ पाम्याप्रतिबोध॥ राजदे इनीजपुत्रने। करेत्रातमनीशोधरे॥भ० क० मो० ७॥ चारीत्रलहीप्रमादथीरे ॥ पाम्योउपसमगणठांण॥ लोभ उदेयेपाछोपन्योरे। रह्योचारीत्रगुणठांणरे ॥भक०मो० ८॥ तपजपकरीयाबहुकरीरे॥ज्ञानश्राराधीरेसार॥ अंत्ये सलेखणाकरीरे॥ पालोहिअतिचार॥न० क. मो०९॥ श्रायुषपुरुकरीत्यांथकिरे। देवलोकबारमेजाय॥आयुसा गरबावीसनुरे। सुखभोगवेचीतलायरे॥भक मो०१०॥ मुनीहकमकहेागले॥ जेहथयोटतंत॥ जथारथना हवेरे। सांभलजोधरीखंतरे॥भविजीनसांभलो॥ कर्मत पीगतजेहरे॥ मोहनोश्रांमलो॥११॥इतिढाल३ समाप्तः॥ ॥अथढालचोथी॥ कुंवरगनारोंनजरेदेखतां॥ एदशी॥ अमरतेजजीवचवीरे॥ नवमभवसुखकाररे॥प्रारजक्षेत्रे श्रावककुलेरे॥ अवतारलह्योउदार॥ कर्मतणीगतिसांभ लोरे॥श्रांकणी ॥१॥पंचवरसनोजबहवोरे॥पीतापोतो - Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८१ श्रीअमरतेजमुनीनीसझाय. कालरे॥रीद्धीसर्वेचुथाइगरे॥ एहीजगतिनीचालरो क. ॥२॥ मायेउछेरीमोटोकरयोरे॥ परणाव्योतेबालरे॥ पुत्र परीवारतेहनेहूवारे॥ ज्ञानअभ्याससुखकाररे॥ क० ३॥ धनउपार्जनकारणे॥चाल्योदेशांतरविचाररे॥ पूर्वअभ्या सतेहनेरे॥ चारित्राप्युउदार॥ क. ४॥ मोहतोमीश्रा तमजोमीरे॥ ज्ञानचरणनेसाथरे॥ कायामायासर्वेपरीहरी रे॥ जेहनेत्रातमरिदिआथरे ॥क०५॥ प्रातमज्ञानेजर म्योरो। तेहनेवरकोणसुखमातरे। पुद्गलसंगरुचेनहीरे॥ जेहनेबेशीवरमणीनीखांतरे ॥क० ६॥ अवनाशीसुखेत्रा तमारे॥ सदाभावेमुनीराय अंतरातमखेलतांरे॥ध्या नपरमातमलायरे ॥क० ७॥ नवकलपीविहारनारे॥ क रतांसदानीर्वाहरे॥ भव्यजीवप्रतिबोधतारे॥ बहुदेवतस साहरे॥क०८॥ एमविचरतांत्रावियारे॥ एकपुरेउदार। मुनीहूकमकहेसांभलोरे॥ जेहथीहोयेभवपाररे ॥क०९॥ ॥ इतिढाल ४ संपूर्ण॥ ॥अथढाल ५ मी॥ लीलावंतकुंवरभलोरे ॥एदेशी॥ देवलोकबारमेथीचवि ॥ जसश्रीजीवतेजाणरेभवि॥ श्रा वितेकुलेउपनी ॥भाख्युतेसुणोवांणरेनवि॥ कर्मनछूट्यो प्राणीयो॥श्रांकणी ॥१॥ श्रावककुलेउपनी॥लघुवेथीस रधासाररभवि॥ श्रावककुलेतेदापरणाविपीतायउदारे नवि ॥क० २॥ खटवरसजेहवेथयां। वीधवाथश्तेहवा Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअमरतेजमुनीनीसझाय. ३८५ लरेभवि ॥ पूरवकरमउदेथकि ॥ इहांनहिबीजोउपचाररे भवि।क. ३॥ सरधाथीमनथिरकरुं॥पालेसीयलउदा ररेनवि॥ तपजपक्रयाबउकरे ॥ज्ञानअभ्यासतेसाररेभ विक० ॥ एहवेतेमुनीवरा॥ प्रणमेहरखेप्रतीचंगरभ वि॥ ज्ञानअभ्यासकरवाभणी॥ रुदीयेवाध्योजसरंगरेभ वि।क० ५॥ मनिवरपणतेउपरे॥करीक्रीपादीयोज्ञानरे भवि॥पणपरमादगुणठाणथ॥ सरागथयोतेजाजरेभवि॥ क०६॥ सासनदेवतेमीकह्यो। पूज्योज्ञानविचाररभवि॥ प्रेमसरागकेमावडयोनहि। फरजनथीनिरधाररभवि॥ क०७॥ज्ञानिनेपूबिनाविया।कह्योपूर्वसर्वव्रतंतरेनवि॥पूर्व स्नेहतवजाणीयो।सरागथयोअतिखंतरभविक० ८॥ नीवीचरताबिजेगया ॥सरागनगयोतेधाररभवि।कालदो षणतजाणीयोवकुसारित्रविचाररेभवि॥क०९॥वंदन पूजनबाईने॥दर्शननोघणोउमेदरेभवि॥ मुनीहूकमकहे तेअंतरायथी।पाम्या अतिखेदरेनवि॥ करमनछुटेप्राणी यो ॥ ढाल ५ संपूर्ण ॥ ॥ढाल ६॥ कपुरहोवेअतीउजलोएदेशी॥ सनालो कतमेसांनलोकर्मतणुएफल॥ पूर्वेअंतरायबांधीयोरे॥ तेहतणुएबल॥नवियणकरमनकरशोकोइ॥करमेंछुटेको यरेनवियण॥क०॥ आंकणी ॥३॥ सुखसर्वेश्रलगारयां रे॥पूर्वनवनोजेह॥श्रानवतोअंतरायथी।दर्शननपांमेते - - - ४५ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ श्रीअमरतेजमुनीनीसझाय. | हरेभवि ॥ २॥ ज्ञानीमुखथीतेलहपुरे ॥श्रागेंमलशेए ह देवलोकनरलोकनादोयभवकह्याजेहरेभवियण ॥ क. तीर्थकरपदवीलहोमहावीदेहमोकार ॥चक्रव तिपद्दीकहीदोयपहीतससाररेभवियणक० ४॥तांहां पटराणीतेहोशेएवांज्ञानीनांवेण ॥धर्मथकीअंतरायजा से।।तेसुणजोसहुवांणरेनवीयण ॥क० ५॥ कर्मखपावी केवललहीरोपामशेसीवसुखसार॥अमरतेजमुनीरायनो ॥एगायोअधीकाररेनवियपाक०.६॥ किंचीतकर्मथीदु खएरोनोगवीयुतेजोयातेकारणभव्यप्रांणीयोरे।नवीकर जोअंतरायकोयरेभवीयणक०७॥सवंतप्रोगणसिदसजेठ मारोवदछठीशुक्रवार॥विद्याधरमुनिगाश्योरे।मोरबीगाम मोकाररेनवीयणाकरमतणी० ॥मुनीवरनागुणगावतां ॥शुलनबोधीहोयजीव ॥मुनीहुकमकहेशीवलहरे सुख भोगवेसदीवरेभवियण।कर्मनकरशोकोय॥ गाथा० ९॥ ढाल ६ सपूर्ण ॥ इतिश्रीअमरतेजमुनिनीसझायसंपूर्ण - - Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारो द्वार श्रीगुरुभ्यो नमः ३८७ ॥दुहा॥ श्रवनाशीकलंकतुं नीरंजननीराकार ॥ हूं बंदु तेश्रात्मा नीज नवउदार ॥ १ ॥ तत्वतत्वग्रहणकरी ठकुंवचनमनोहार ॥ श्रोतासुणजोकांनदेश जेथीभवनोपा र ॥२॥ तत्वसारोद्वारए ग्रंथज्ञानउद्योत ॥ जपतांगपतां नीपजे नीजात्मगुणश्वेत ॥३॥ S हवेनापालखीयेछीये - हवेजगत्रनेविशे अनेकपदार थळे ते सर्वेनुसार वीचारीने काढीये त्यारेतत्ववेछे जीवत त्व. १ जीवतत्व. २ एबेजतत्वछे एबेवीनाबीज कोई पदारथदीसतोनथी. शिष्यवाक्य - स्वामीपुर्वेत्रमतत्वसा ततथानवसांभल्यांछे तेनुंकेम. गुरुवाक्य - हे भद्र एबेतत्व नासातपणथाय तथानवपणथाय तेकल्पनाबे परंतुतने नेदकरीनेदेखाडुंतेसांनल हवेजीवद्रव्यनाचारतत्वछे. जीवतत्व १ संवरतत्व २ नीरजरातत्व ३ मोक्षतत्व४ तथा जीवतत्वना पांचतत्वछे जीवतत्व १ पुन्यतत्वर पापतत्व३ श्राश्रवतत्व ४ बंधतत्व एटलेएजीव प्रजीवम लीनेनवतत्वथया तथापुन्यपापनगणी येतोसाततत्वथाय. शिष्य - स्वामीपुन्यपापगणीये तेशावास्तेंनेनागणीये तेशावास्ते एतत्वछेकेनथी ते समजावो. Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. गुरु-जेपुन्यपापबेतत्वछे एत्राश्रवछे त्यारेएबेतत्व जुदागणीयेतो श्रावशेनेकहीये जे पुन्यपापनांदलि यांबावेजे तेनेजआश्रवकहिये एटलेसातजतत्वछे तथा जेश्रावेछेतेनेत्राश्रवगणीनेनेदपामीये त्यारेउदेश्रावेलां जेदलीयां तेभोगवीनेखेरवीये तेनेपुन्यपापकहिये एटले तेथीनवेतत्वथाय. शिष्य-स्वामीएनवेतत्वनोवीवरोकरीनेबतावो. गरु-प्रथमत्रजीवतत्वनीअोलखांणकरावंछं अजीव तेकेहेनेकहियेकेजेनेविशेचेतनारुपलक्षणनथी तेजीव नाजघन्यथकीपांचनेद नेउतकृष्टा ५६० नेद तेप्रथ मजघन्यनापांचभेदोलखावीयेछोये तेनीवीगतः-धर्मा स्तीकाय १ अधर्मास्तीकाय २ श्राकास्तीकाय३ काल ४ पुद्गलास्तीकाय ५ हवेधर्मास्तीकायतेशुकहिये-धर्मा स्तीकायएकद्रव्यछे तेअरुपीने चउदराजलोकनाप्रमा णेएद्रव्यएकडे जेटलालोकाकाशनाप्रदेश तेटलाप्रदेश छेपणनीराकारछे श्राकारेकरीरहीतछे तेमांकशीकीरीया नों गणनथी पणजीव पद्दलचालेछे तेनेसाहाजापेछे. शिष्य-स्वामीजो एनामांक्रीयानीतो चालतांने सा हाज्यकेमापेले. गरुवाक्य-हेभद्रसाहाज्यापवी तेस्वभावीक श्र नेक्रीया तेवीनावीकछे तेवीभावदीशाएनेविशेनथी ते - - - - - Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SHARE तत्वसारोवार ३८९ पोतपोतानास्वनावमांसदायरहेछे जेमजलनोस्वनावडे तेतरवानोछे तथातेलनोस्वनावदुबामवानोछे एतस्वना वीककेहेवाय वीभावीकनहीं वीभावीकतेकेनुनाम केजेम अग्नीछे तेकाष्टादीकनासंजोगथकी साहामीवस्तुनोना शकरे तेविभाविककहीये.. शिष्य-स्वामीअग्नीमांतोदाहकस्वभावछे एनेविभा विककेमकोहोछो. गुरु-दाहकस्वनावछेतेकाष्टादिकवस्तुजोगछे तेनेबा ले परंतुपथ्थरनेकंबालवानोस्वनावछेनहीं. पणविभाव नाजोरथीपथ्थरनेपणबाले तथापांणीछेतेअग्नीनुशस्त्रछे शामाटेकेपाणीथकि अग्नीनोनाशथाय परंतुविनावना जोरथीअग्नीपाणीनेपणबाले एटलेविभावतेशं. जेपोता थकीबीजाअपरनुनलq बेमलीनेजेकारजकर तेनुनाम विभावकहीयेअविभावतेनेजक्रियाकहीये एटलेतेविभा वदशातेधर्मास्तीकायमांनथी.शामाटेजेएकथीबीजामलेन ही. एटलावास्तेअमेक्रियानीनापामी तथाजेचेतननेचा लतांसाहाज्यापछे तेशादृष्टांतेकेजम मांबलांजलनेवि शेचाल्यांजायछे तेजलनासाहाज्यथकिचाले तेमजमचे तनधर्मास्तीकायनीसाहाज्यथकीचाले.१तथाअधर्मास्ती कायबीजोद्रव्यतेपणरुपीछे तेनेविशेत्राकारनथी तथा क्रीयापणनथी तेजडचेतननेथीररेहेवंहोय तेनेसाहाज्य - Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९० . तवसारोदार. श्रापेछे शेद्रष्टांतकेजेमकोइपुरुषपंथेचाल्योजायछे अनेते धरतीएवीजे ज्यांहांजाहाडमाझुनहीं. अनेग्रिष्मरुतुबे एटले जेठमहीनानादाहामाने अनेलुउपणघणीवायछे तापपणघणोआकरोछे तेवीवखततेचालतापुरुषने मार गमांचालतांकोइकमामआव्युं तेकामकेवूछेके महाविस्ता रवंतजेनीगयाछे एकामदेखीनेतेपंथीलुउतथातापमांथी हीमयात्रावतोथकोतेकामहेठलबसेकेनबसेअपीतुंबेसे.एका मनीसाहाज्यथकतिपंथीबेठो तेमजीवजीवनेथीररेहेवू तेअधर्मास्तीकायनीसाहाज्यथकीरेहे. २ हवेत्रीजोत्रा कास्तीकायद्रव्यएकलोकालोकप्रमाणेछे तेपणश्ररुपीछे तेनेविशेपणकशोत्राकारनथीतथाक्रीयापणकशीछेनहींप रंतुजम्चेतननेअवकाशापेशेद्रष्टांतकेजेमकाइएचुनेकरी नेइटोचणीहोय पीतेभीतमांमागकश्योएहोयनहीं एवी साफकरेलीतोपण तेनेविशेखीलीमारीएतोमांहीपसे त थाजेमकाटनामोनप्रमूखनेविशे जेटलीखीलीमारीयेते टलीमांहेसमाय परंतुतेकाटनुमंगलुतेखीलीनाभागनुंव धारथतुंनथी तेजेमएकाटतथाभीतनोस्वन्नाव तेजेमखी लीनेमारगापेतेम आकाशद्रव्य जीवपुद्गलनेमारगत्रा पे. ३ हवेचोथोद्रव्यजेकाल. शिष्य--स्वामीपुर्वेधर्मास्तीकाय प्रमुखद्रव्यनास्ती कायकह्यो नेकालद्रव्यनेत्रास्तिकायकमनकह्यो एकलो Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. कारनकहिनेबोलाव्यो तेनुशुंकार. गुरु- हेदेवांप्रीय धर्मास्तिकाय प्रमुखजेद्रव्यछे तेव हूपरदेशीछे शामाटेकेधर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायतथा जीवास्तीकाय एत्रणद्रव्यशंख्यात परदेशी तथात्राका स्तिकायनंत परदेशीछे नेपुद्गलास्तिकायनाखंधानं ताछेतेको द्वीपरदेशीछे कोइत्रणपरदेशीछे जावतसंख्या तपरदेशीबे तथाश्रसंख्यातप्रदेशी तथाअनंतप्रदेशीछे त थामनंतापरमाणुजुदाछे तेमांपणखंधमलवानीशक्तीर हीछेमाटेने च्यास्तिकाय कह्योने कालद्रव्यनेविशेएकस मयथीबीजेसमयमलेनही. माटेतेने त्रास्तिकायकह्योनही. शिष्य - स्वामीएकस मेथी बीजे समेमलेनहीं त्यारे ने द्रव्य के मकहोछो. गुरु-- हेनद्र सर्वेशा स्त्रने विशे पंचास्तीकायनीवाख्या द्रव्यवनीवाख्यावे पणबठोद्रव्यजेका लते कांइपदार्थ नथीपण सर्वद्रव्यनेन वानुंज नुकरे एटलामाटेतेने द्रव्यकह्यो परंतुप्रथमसमयनोनाशथाय नेबीजोसमयावे माटे कालद्रव्य उपचारेकरीनेद्रव्यकहीयेछीये ते द्रव्यत्ररुपी छे श्राकारपणकश्योएछेनहि क्रीयापणबेनहि नवीवस्तु जुनीक एवं परावर्तन धर्म ४ हवेपुद्गलास्तीकाय तेने विशेरुपीपलुबे प्राकारपणछे तथाक्रीयापछे मलावी खरणस्वनाववे५ एटलेए जीवनापांचेभेद तेमधे चारभेद ३९१ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९२ तत्वसारोद्वार. रुपी एकरुपी एसर्वेमलीने पांचनी प्रोलखाणकरा वीएस वेहेवारनयनापक्षछे हवेजे ५६० नेद एनाकही शुं शुद्ध वेवारनयनापक्षबे शामटेके कल्पनाकरीनेभे दउठाववा तेनुनामशुद्ध कहिये नेवे हेच ते वेहेवारए टले शुद्ध वेहेवारथयो. शिष्य एवाशुद्धभेदवे हें चवामीशीजरुरबे एवाकल्पी तभेदकरवानेवस्तुता कंइजुदीपमतीनथी ते तोते पांचमां नेपांचमांबे तोशावास्ते कल्पी तनेद करोबो. गुरु- हेभद्र एतें कह्यंतेखरु परंतुबालजीवने नेदवेंहें च्याविनासमजणावेनहि तेवास्तेएनेदवे हेंच वाप जेमकोइ पुरुषपोतानाघरना माणसने केहे जेदातणलाव तेवारेतेपुरुपडाह्योसम जुहोयतो दात पांणीनोलोटो रु माल तमाकु प्रमुखजेघस्तोहोयते सर्वेलावे एटलेतेजाणे के धुए जोशे पण समज होय अथवा बालकछोकरु होय तोतेनेजेटली वस्तुकहिये तेटलीलावे माटेतेनेसर्वे वीवरीनेकहयुंजोइये तेमजसमजुपुरुषहोयते संखेपेथी कीधाथकी समजे एवावीस्तार बुधीवालाजीवथोमाहोय नेथोडी बुधीवालाजविघणाहोय तेने विस्तारकरिनेसम जावियत्यारेसमजे तेमाटेभेदविवनिकहियेछीये हवेध मस्तीकायना श्राठदबे तेनोखंधलोकाकाश प्रमाणेए कजबे १ धर्मास्तीकायना देशजे धोलोकउर्धलोक B Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "तत्वसारोबार ३९३ त्रीगेलोक इत्यादीकजेकल्पीये तेदेशकेहेवाय २ तेनाप रदेशसंख्यात जेटलालोकाकाशनाप्रदेश तेटलाए नाजे ३ तेद्रव्यथकीएकजद्रव्यछे ४ खेत्रथकीलोकाकाश प्रमाणेछे ५ तेकालथकीअनादीअनंतछे एटलेत्रादीनं त्यनथी ६ नावथकीवरण गंध रस फरश तथा स्वस्था ननथी ७ गणथकीजीवपुद्गलनेचालतां साहाज्यआपे ८ तेमजअधरमास्तीकायनेविशेजाणवा परंतुएटलोवि शेप केधर्मास्तीकायचालतानेसाहाज्यआपे तेनहिनेथी ररेहेतेनेसाहाज्यकरेतेगणपाठमोलेवो २ श्राकास्तीका यनेविशे खंबजेछेते लोकालोकप्रमाणे १ देशतेचउदरा जलोकप्रमाणे तेनेदेशकहिये कदापीअोगेअधिकोकल पिये तोपणतेनेदेशकहिये २ परदेशअनंता ३ द्रव्य थकीएकद्रव्यले ४ खेतरथकीलोकालोकप्रमाणे ५ का ल ६ तथानावथकिपुर्ववत ७ गुणथकीअवगाहनागुण जम्मचेतननेमार्गापे ८-३ चोथोकालद्रव्यना ६ नेदते मधेकालद्रव्यविशेखंधदेश जनहिं शामाटेजेश्रतोपदा र्थबेसदायएकसमेलाधे द्रव्यथकीकालद्रव्यएक२खेत्र थकीश्रढीहीपप्रमाणे३काल४तथानावथकीपूर्ववत ५गुण थकीनवापुरानावर्तनालक्षण एकालद्रव्यउपचारथकी एटलेअजीवरुपीद्रव्यनाचारनेदधर्मास्तीकायादेदश ने कह्यातेसर्वेश्ररुपी तेज्ञानीनादीठामांबावे परंतुचर्म ५० Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९४ तत्वसारोबार. . . . द्रष्टीवालाथी देखायनहिं एमसदहव हवेरुपीद्रव्यकहि येगये पुद्गलद्रव्यजेरुपीतेनानेदकहियेगये वरण ५ रा तो १ पीलो २ लीलो ३ धोलो ४ कालो ५ गंध रस रनीतथादुरनी रस ५ कम्वो कशायलो खाटो तीखो मधुरो फरस ८ टाहामो १ उनो २ लुखो ३ चोपमो ४ नारे५ हलवोद बरहट७ शुकोमला स्वस्थान५ लांबु १ गोल२ त्रीखुण३ चोखुण४ वलीयानेत्राकारे५ हवेपां चवरणना १००भेदथायतेकहियेगये प्रथमजेरातोवरण तेनेविशे सुरभीतथादूरभीवेगंधहोय रसपांचेलीधे फ रसाठेलाधे स्वस्थानपांचेलाधे तेनास्वामीकहियेगये रातेवरणेकुसुमगुलाब तथाकमलप्रमुखले तेनेविशगंधशु रभी फरससकोमलहलकोतथा शीतलने तथास्नीग्ध पणुबे स्वस्थानगोलडे रसमधुरो एमएकएकवरणमा गंधप्रमुख ज्यांहांजथाजोगजोश्ये तेवागणीलेवा एटले एरातावरणनेविशे विशभेदथया तेमलीलावरणनाविश पीलावरणनाविश शामवरणनाविश धोलावरपनाविश एटलेएपांचवरणनामलीने १०० थया एटलेएएकवरण मां बीजोवरणनहिंावे केमकेतेनोतेप्रतिपक्षी माटेवर णनानगणीये त्यारेएकएकवरणे विसविसावीरहे तेम जरसनापणगणवा. परंतुज्यांमधुर अथवाहरेककोइरस होयत्यांबिजाप्रतिपक्षीचाररसनाहोय तेवारेएकरसमां - Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ३९९ हेविसनेदलाधे तेन विगत-वरण ५ गंध २ फरस ८ स्वस्थान ५ एटलेविशथया एमपांचरसनाथइनेसोथाय तेमजस्वस्थाननाविशेषण २० भेदलाधेतेनीविगतउप रप्रमाणेपांचस्वस्थाननाथइने सोभेदथयातेमजगंधनेवि शेतेवीसभेदला तेनिविगत वरण ५ रस ५ फरस ८ स्वस्थान ५ ए २३ सुरजीगंधनाने २३ दूरभीगंधनाम लिने ४६ थाय हवेफरसनाप्रथम ७ फरसनेविशेप्रतिप श्रीउनफरसनहोय बाकीना ६ एफरसलाधेवरा५ रस ५ गंध २ स्वस्थान ५ एटलेतेविसथया एएकफरसनाते विसतेमाठेफरसनेतेविसतेविस गणतां १८४ नेदथया एटलेवराना १०० रसना १०० स्वस्थानना १०० गं धना ४६ नेफरसना १८४ सर्वेमलीने ५३० थयाएट लेरुपिजिवद्रव्यना ५३० नेदथयात्रनेत्ररुपिद्रव्यना ३० भेद एटले सर्वेच्य जिवमलिने ५६० भेदथयाएसर्वे शुद्धव्यवहारनयनापक्षछे एटले जिवतत्वको हवेत्रा श्रवतत्वलखावियेबिये एटले श्राश्रवकहेतांजेकर्मनुंत्रा वथाय तेनेाश्रबकहिये नेते श्राश्रवशाथ कीच्यावेछे ते नोहेतुको तेनुंकारण देखामियेबिये हवे श्राश्र वनेत्राववाने मुल हेतुच्यारछे उत्तर हेतु ५७ बेतेमुलहेतु नानाममिथ्यात १ व्रत २ कषाय ३ जोग ४ तेमांमि थ्यातना ५ भेदतेमांपहेलु भीग्रहिमिध्यात तेकेहेने Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९६ तत्वसारोहार. | कहिए जेपुरवेत्रज्ञानपणानेविशे कोइअज्ञानिनिसंगेश थवाअज्ञानिगुरुनाउपदेशथकीजेसांजल्युंछे अनेजेवस्तु ग्रहणकरीने तेछोडेनहि कदापिकोइसुगुरुमले नेघ णिरीतेकरीनेसमजावेतोएपणपोतानीहठछोफेनहि लोह | वाणियानिपेठे अहियांलोहवाणिआनोद्रष्टांतलखीयेलीये. - वसंतपुरनगरीनेविशे धनदत १ धनसार २ धनवल भ ३ वसहिग४ एवेनामेचारवाणीयावसे तेधारेनेदोस दारीनोहकघणोपरंतुचारेनीरधनछे एकसमेचारेनेगा थविचारकरयोकेआपणीपासेधननथी धनविनामानपा मियेनहि नेसुखपणहोयनहि माटेपरदेशधनकमावाज इयएमविचारीनेचारेजणपरदेशगया आगलजताएकदी वशनासमाजोगे एक अटवीमांजतां रस्तोमुल्यानेउनां | गर्ममारगेजायबे नेत्रागलजताएक लोढानीखाणावी तेवारेचारेजणेविचारकरयोकेलोढल्यो श्रापणनेखरची मांखपलागशे एमविचारीचारेजणेलो→लिधं त्यांथकी श्रागलचाल्या त्यांकलाश्नीखाणावी तेवारेमाहोमांहे कहेवालाग्याके कलाइल्यो लोनुपम्युमुको तेवारेत्रणज णेलोढुंपन्युमुकोकलाइबांधी पणचोथोजेवसुहिणतेणेक लाइनलाधी त्यारेत्रणेजणाकहेवालाग्याके तुंकलाइले एटलेश्रापणेजइये तोपरणतेबोल्योनहि एमघणीवारक यंत्यारेतेबोल्यो केतमारीरीतजोक्नेहुँतोनेचकथयोछुत्या Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. ३९७ रेत्रणेजणेपुछ्युकेतुं शामाटेएवडंबोले तेबोल्यो केतमेद गाखोरश्रादमीने तेकहेतारीसाथे शोदगोकरयो तेणे कांकेतमेलोढानासगानथया तेनेत्यांथीलावीने अधव चनाखीदीधुं तोतमेतेनानलानथयातो बिजानाशुनलाथ शो तेवरेते कहेकेएमांकांइजिवनथि केदगोकरयो एम घणीरीतेकाकेतुंकलाइबांध पणकोइनोसमजाव्योसम ज्योनहि त्यांथकागलचाल्या एटलेत्रांबानीखाणा वी त्यांपणतेसमज्योनहि पुरवनीपेरेलोढेराखीरह्यो ने त्रांबुलीधूनहि तेमजागलजतांरुपानि तथासोनानी तथासोलेजातना रत्ननीखाणावी त्यांपणएणेकोऽनुक झुमान्युनहि त्यारेसोलमीजमणीरत्ननीखाणछे त्यांबे शीनेधनसारप्रमुखक[जे श्रमारेहवेत्रागलकमावाजवू नथि कमकेजेजोइयेतेधन इहांमल्यं माटेअमेपाछाघर जइशं वास्तेसमजिनेमणीरत्नले नेलोनाखीदेएटले श्रापणेघेरजश्येतोसरवेसुखीयाथश्ये परंततेवसुहीणेको इनुकयुंमान्युनहीं उलटाअवगुणबोल्याकरयो वलीतेम णेकहयुके घेरगयापीतुंमागीशतो श्रमथीपाशेनहीं. इत्यादिकघणतिरेहसमजाव्यो पणतेसमज्योनहीं. पछी चारजणघेराव्या तेमांत्रजणे मणीरत्नवेचीने करो मोसोनश्यानो वीवसायकरवामांम्यो. पालखी, मेना, घोमा, गामी, चाकर वीगेरे मोटीठकरातकरीनेबेठा ने - Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८ , तबसारोदार. वसुहिणतोहता तेवानतेवारह्या तेवारेगामनालोकतेनेपु छजेतमेचारेमित्रसाथेगयाहता - कंइनलाव्योतेशु त्यारेमोघमउत्तरापेके एत्रणदगाखो रछे कुटीलमाणसछे विश्वासकरवाजोगनथी एवोउत्तर करे तेथीगाममांएवीवारताप्रसिद्धथइके केटलाककेहे के एनोनागत्रणेजणेश्राप्योनहीं केटलाककेहे के एजकमा योहतो तेत्रणेजणेमलीनेवसुहीणपामीलीधुं एममुखम खनोखीनोखीवारताप्रवर्ते त्यारेगामनाबेमाह्यासमजुह ता तेणेवसुहीणना सगावाहालानेठपकोदीधोजे तमजे वासगाने तेबचारागरीवर्नुपेलारजणखाइगया तेनीत मेमदतकरतानथी एठीकनहीं सारासगाशाकामना ते चारतेसगावाहालावोल्याजे शेठजीतमेत्रमनेठपकोत्रा प्योतेठीक पणत्रमनेकह्यावगरशीमालमपडे त्यारेतेम कहयंके एगरीबशंकहेवात्रावे तमारेबोलावीनेपुछyजो इये तेवारतेसगावाहालाजेगाथइने वसुहिणनेबोलावीने पुछवालाग्याके ताहारेशीहकीगतथइ तेणेजबापदीधोके एलुच्या,दगाखार.एवाश्रादमीनीवातकरवामांकांइमालन थीसगाएकहपुंकेलुच्याप्रमुखजेवाहशे तेवानेअमेपोहोंची शुं पणतुंमनेवातकहे पणतेवातकेहेनहिः घणोत्राग्रह करीनेतेनीपासेवातकेहेवडाधी: वारेमाहेथीसारएवो निकल्योके एणेजेपुर्वेलोढुंफाल्युंहतुं तेछोडघुनहीं अनेपे Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. . -- ३९९ लानए जेसारवस्तुदीठीतेलीधी. असारदीठीतेनाखीदी धी. एसांभलीनेजेसगामल्याहता तेबोल्याकेभाइतारा कर्मनोवांकडे एमनोवांकनथी विनाहकनाहक एमनोवां कशावास्तेकाहाडे जेतेलोढुंगालीनेहठनमुकीतोतुंदुखी योथयो एमणेतोतनेघपुंसमजाव्यो पणतेनामान्य एमां एमनोकांश्वांकनथी एटलेजेमते लोहवाणियोदुखियोथ यो तेमप्रथमश्रज्ञानपणामांजेवस्तुमाली तेकोइसुगुरुम लेथीनागेडतो तेचारगतीसंसारमा अनंताकालरखडेते नेअभीग्रहीमिथ्यात्वकाहिये. बिजुश्रणाभिग्रहिमिथ्यात कहतांतेनेविशेहठवादनहि तेमसरधापणस्थिरनहि सर्वेनेदेवजारो कोणसरागीने कोणवितरागी तथाकोणदेविदेवला तथासर्वेनेगुरुजाणे कोणनिग्रंथनेकोणसग्रंथ कोणत्रारंभी, कोणणारंनी एसर्वेनेवांदेपुजेपणएनेविशे सारानरतानिखबरनहि गु णअवगुणनीपरिक्षानहि मुक्तिदायकसुगुरुतेनेपणमर खागणे सत्रारंनिकुगुरुकुगतिनादातार तेनेपणसरखा जाणे एटलेतेनेविशेजाणपएंकजुएनहियजमोटुंत्रज्ञानए बिजोभेदमिथ्यातनोजाणवो२ त्रिजोनिनवेशिमिथ्या त्व तेनेविशेजाणिनेखोटीहठकरवी केमकेकांइप्रथमश्र ज्ञानपणामां मरखावचननिकलीगयु पछीसमज्यामां श्राव्युके श्रापणेवचनबोल्यातमिथ्या परंतुश्रापणेबी Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. - ल्यातेकांइपाछंफरेनहि एमविचारीनेवचनउपर अनेकहे तजक्तिलगाविनेतेनेसाकरे कोनीपेठेकेजेमआगछसमा चारियोवाला नोखीनोखीसमाचारियो वांधीनेबेठाले अ नेशास्त्रमांप्रतक्ष अक्षरदेखेनेमानतानथी अनेपोताना गवनीसमाचारीनोमुमतमुकतानथि अनेमुखथकीएकुंके हे के एककानोमात्रउथापशे तोअनंतसंसारीथशे नेका मपत्यारेएकेमानेनहिं पोतानीमतलबमांत्रावतेमानेने पोतपोतानाघरडापागलमरगयाहोय तेनेआडाधरके तेथकीतमेकांइविशेषजांणोओएमकरधुहशेतेसमजीनेज करयंहशे तथासिद्धांतनेविशेश्रारंनपरीग्रहजेमोगेथाय तेमधर्मकह्योने पणाकालेतोजेम प्रारंनपरीग्रह वधा रेतेमधर्ममानेछे वलीमुखथकीएकेहेछेके कानोमात्र उथापवाथी जमालीपरमुखसातनीन्नवथया एमकहिनेदे खाडे अनेपोतेसाबथांसत्रउथापे पोतेमनमांनविचारेके प्रापणेमोहोटानीन्नवगये तथापरमात्माना मार्गनेविशे तो समकीत १ ज्ञान २ चारित्र ३ एवस्तुप्रोत्रात्मस्व रुपमां श्रनेत्रात्मस्वरुपथीप्रगटथायतोजतेनीमुक्तीथा यशामाटेकेकेवलज्ञान तथामुक्तिएसर्वेशकलध्यानमा तथासमकितप्रमुखएसर्वे अात्मस्वभावमांछे एवुसर्वसि द्धांतमांदिशेळे परंतएवापाठकोसिद्धांतमांजोवामां श्रा वतानथि जेफलाणातिर्थगयाथकीमक्तिथाय तथाफला Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४०१ |णितिथीनोउपवासकरवो तेथकीमुक्तिथाय तथातेतपनु उजमणुकर, तथागुरुनानवअंगपुजवां तथापोथीपुजवि तथावासनखाववा तथाजोगउपधानवहेवां तथातेनिवि धिकराववी तेनारुपैयागरुनेदेवाश्त्यादिक हालमांएवहे वारघणोदिसेछे नेसुत्रमापाठनथि तेनीपरुपणाकरवी ने जेसुत्रनेविशेत्रात्मस्वरुपीज मक्तिकहितेनपरुपे तेने अभिनिवेशी मिथ्यात्वकहिये कमतेजाणीनसिद्धांतनी रीतेपरुपतानथि पोतानीमतलबर्नुपरुपेले तेनेअनीनिवे शीमिथ्यात्वकहिये ३ चोथुसंशयकमिथ्यात्व कहेतांजेकेव लीपरमात्मानावचननविशे शंकाउत्पन्नथाय जेमन्छी बुद्धिनाधणीजेबालजिवछे तेणेप्रथमअज्ञानी तथाकुगरु नावचनथीसांनलेलीवातोतथाशास्त्र पछीसुगुरुतेनेबतावेछे केनाइनएतोत्राथवनांतथाश्रारंननां कामतमेकरोछोते थकीतमारेसंसारवधशे माटेतमेसंवरनिरजरानुकामकरो नेउपाधिबेतेटालो जेमतमाराात्मानुंकारजसिद्धथाय तेवारेतेनामनमांशंकापके आवचनसाचुकेपुर्वे सांभ ल्युंतेवचनसाचुएमशंकारहे पणशास्त्रजोस्ने निश्चेनकरे तेनेसंशयकमिथ्यालकहिये पांचमणानोगमिथ्यात्वकेहेतां अजाणपणुंजेनेधर्मक मनीकशी अोलखाणनथी संसारमारच्योपच्योरेहेछे अात्मस्वरुपजाएयुनहोय त्यांहांसुधीअजाणकहिये शा - ANISAKSararam - - - - ५१ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ तलसारोद्वार. माटेके सिद्धांतमांएवं कहाछेके अभेगयाजिवाजीवाइत्या दीकपाठमाटे जीवजीवनीश्रादेदेश्नेस्वरुपजाणेप | बे जीवस्वरुपनेसदहे अजीवसत्तानेदूरकरे इत्यादीका त्मस्वरुपनुजाणपणुछेतेने जाणकहियेएवीनानाबीजाजे रह्या तेनेत्रणानोगमिथ्यात्वकहिये ५ एमिथ्यात्वनोअ धिकारकटोतेचोथाकर्म ग्रंयथकीजाणजो एमिथ्यात्व ज्यांहांसुधीगयंनथी त्यांहांसुधीकोजीवसमकीतपामे नहिं एमिथ्यात्वनाकारणथीअनंतांनवांकर्मउपारजेने श्रा स्मानेनारेकरे एथकीआत्माअनंताकाल संसारमांपरीब झणकरे एटलेआधवनोप्रथमहेतु कह्यो मुल १ उत्तर ५ हवे बीजोहेतुअवरतले तेना १२ नेद तेनीवीगत प्र थ्वीकाय १ अपकाय २ तेउकाय ३ वायुकाय ४ वन स्पतीकाय ५ त्रसकाय ६ फरसेंद्री७रसेंद्री ८ घ्राणेंद्री ९ चक्षइंद्री१० श्रोतेंद्री११ मन १२ एबारनेजेणेसंवरयां नथीनेनेमकरयोनीतेधणिने एबारेकारणथकी अनंता कर्मनुंआवqथायछे केमकेजमघरनविशे बारगंडातेछी मांपुरनहि त्यांसुधिचोरचखारसर्वेत्रावे नेतेघरमांकां मालजणशरहेनहि तेमहांआत्मारुपीजेघर तेनेज्ञानद रसनरूपीधननेवारत्रवरतरुपीयांबिमां तेमध्येरागद्वेषरु पियाचोरनुआवथाय ज्ञानदर्शनरुपिधन तेचोरीजाय | पणएबारलिंडांछेतेपुरेतोसुखेरहेवाय एत्रायवनोबिजोहे - - Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. ४०३ तुकडो मुल २ उत्तर १७ हवेत्रिजोहेतुकषाय १ बिजो नोकषाय २ हवेतेकषायनाचारभेदछे क्रोध १ मान २ माया ३ लोभ ४ तेएकएकनाचारचारभेदछे तेमध्यपहे लोअनंतानुबंधियोक्रोध केवोछेकेजेमपथ्थरनीसल्याफा टिपमी तेफरीथीनेगीनथाय तेमअनंतानुबंधियाक्रोधवा लोजिव श्रावखापरजतक्रोधेधमधामोरहे १ तथाअनंता नुबंधियोमानकेवोछेकजेवापथ्थरथंन अनेकउपायकरिये तोपणनमेनहि कडकाकडकाथायपणतेनमेनहि तेमअनं तानुबंधियामानवालाजिव राज,पाट,देश,धन,सर्वेखुटे अनेकलोकसमजावेपणकोश्नेनमुपासुश्रापेनहि २ अनं तानुबंधिमायाकेविके जेवांवांसनांमुरामांबिनबिनथइजा यपणपांशराथायनहि तेमअनंतानुबंधिमायावालाजिव जिवेत्यांसुधिकपटतजेनहि ३ तथाअनंतानुबंधिलोनके वोछेकेजेवाकरमजनारंगनुलुगडु बालिनेराखकरीयेतोप पलालरहेपणरंगबोमेनहि तेमअनंतानुबंधिलोभवालो जिव जिवतपरजंतलोननतजे ४ तथाबिजिचोकमीअप्र तियाखानीयाकषायनीकहियेछिये. अप्रत्याखानक्रिोधकेवोछेके कोइकालीभोमीकानेविशे फाटपडे तेबारमहिनेवरसादपांणीनवांथाय नेघणांढो रढांकणउपरफरेतेथीगुंदाइनेएकयायतेमएक्रोधवालाजी वनेबारमहिनेक्रोधउतरे.१तथाअप्रतीखानीमानकेवोके Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ तबसारोदार. - जेवोअस्तीनोथांनो घणीमेहेनते घणेकष्टेकरीने कोईक बालवासमर्थथाय तेमएमानवालानेकोइकघणीतरेहथी समजावतांमानछोडे. २ अप्रतीखांनीमायाकेवीछेके जे वांघेटानांशींगडांपांशराकरवां तेकोईपुरुषकलावालाहो य नेघणीकतरेहथी मेहेनतकरेत्यारेपांसरांथाय तेमएमा यावालानेकोइ बहरीतथीसमजावेतोमायातजे. ३ अप्र तीखांनीलोनकवोछेके अज्ञानीलोकनानोइकुवाछे तेम धेघरनीअशुची अपवीत्रएठवाम प्रमुखमांहजायछे तेस दायकोहीगएलरेहेले तेनोमाघजेवस्तरनेलागतोतेधोबी थीपणजायनहीं कोइखरोकरबीमलेतोएमाघनेकाहामेते मतेलोनवालाने कोइखरीमेहेनतकनितेनेसमजावताते लोनछोमे तेविनाकांइछोमेनहि. ४ हवेत्रीजीचोकडीप्रती खानीकषाय तेमधेप्रत्याखांननोक्रोधकेवोछे केजेवीवेलु नेविशेबेनागकरीये तेकंश्येएनीमेलेनेगाथायनहिं. परंतु बेरुतुगएथके त्रीजीरुतुश्रावेत्यारे तेवारेसांमोपवनआवे तेरेतउमीनेखामपुरे तेवारेतेरेतीएकमेकथाय तेमएक्रोध वालापुरुपनेकोइसमजावेतोमुकीदे जावतचारमासउपर रहेनहि १ तथाप्रत्याखानीमानकेवोछेके जेवोलाकमानो थांनोकोइपुरुष तेलतापीमेहनतकरे तोथोडीमेहेनतथी वलेतेमतेमांनवालाजीवने कोइसारीरीतेसमजावीने केहे तोमानमुकीदे अथवाकेटलेदाहाडे स्वभावेपणमुकीदे.२ - Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४०५ तथाप्रतीखांनीमायाकेवीछे केजेवीगउमुत्रीका जेमवांकी वांकीमुतरतीचा लेतेने कोइपुरुषकालीनेउनी राखेतोवांका इनरहे तेमतेमायावालाजीवने केटलीतरेहसमजावीने केहेतो तेपुरुषकपटबोडीदे. ३ तथाप्रत्याखांनीलोन के हे वोबे जेवुंगाडीनुरंजणतेनोडाघजेवस्त्र ने लाग्योहोय तोधो बीनेत्यांहांगयेथकेडाघजाय तेमतेलोभवालाजीवनेकांइ थोडी मेहेनतकरीने समजावेतोलोनतजे. ४ तथाचोथी चोकडीसंजलनीकहियेछिये तेमधेप्रथमसंजलनोक्रोधके वोहोय जेमपांणीमांत्रागललीटातांणताजइये नेपाछल लीटीमलतीजाय तेमएसंजलवालाक्रोधनाजीवने क्रोध नोधमधमाटथाय पणतुरततेक्रोधउत्तरीजाय तेनोपंदर दाहाड नोनियम एनियमचारेकशायनापराएसमजवा १ तथासंजलनोमानकेहेवोहोय जेवानेतरनोथंन जेमवा लीयेतेमवले तेमतेमांनी पुरुषतेमांनश्रावेनेतुरतवलीजा य. २ संजलनीमायाकेवीछेके जेमवेलाउगेबे तेवांकावां काचालेछे परंतु एकबेडोफालीने तांणीये एटलेपांशरोतीर याय तेमतेमायावालाजीयमनमांकपटकरे पणक्षणएक मांकाहाडीनांखे. ३ संजलनोलोनकेवोछेके जेवोहलदी नोरंगतडकोलागेने उडीजाय तेमतेलोनवालाजीवनेलो मनोउदयथाय परंतुक्षिणएकमांवलीजाय. ४ एटलेएक षायनीचारेचोकडीना सोलनेदसहित कहिनेदेखाड्या Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ तत्वसारोदार. हवेनोकखायनुस्वरुपकहियबिए एनाकखायनानवभेदले. शिष्य-स्वामिनोकखायएवोशब्दशाथकीमकवोपमयो गुरु-हेनद्र एनेविशे कषायपणनथि परंतुएथकिकषा यउत्पनथायमाटेएनेकषायतोनाकहेवाय तेथीनोकखाय कह्यापरंतुएकखायनहि पणकखायनानाइछे हवेप्रथम हास्य, एनामेनोकषाय एटलेहांशीएवुतोविनोदनाम परंतुहांशीथ किविखवादथाय एमसरवेनेदमां समजि जावू १ रतकहतांशातामांनवि तेथकिपणसामानेअथवा पोतानेद्वेषादिकारणउत्पन्नथाय २ अरतएटलेशाता तेथकीप्रतक्षद्वेषभावदिसे ३ भय एटलेभयथकीपणद्वे पादिकारण उत्पन्नथायजे ४ सोगतेथकिपणद्वेषउत्पन्न थाय ५ दुगंगतेथकीपणद्वेषथाय ६ पुरुषवेदएतोमहावि खवादनुंकारणदिसले ७ स्त्रिवेद ८ तथानपुशकवेद ९ एत्रणवेदनाउदयथकीप्रतक्षकंकासभाषणथायछे एटले नवनोकषायकह्या एटले कखायतथानोकखायमलीने २५ नेदथयाएकषायनाकारणथकी अनेताकर्मश्रावछे जायछे एटलेकखायकह्यो मुल ३ उत्तर ४२ हवेजोगनुं स्वरुपकहियेबिये तेनात्रणनेदछे मनजोग १ वचनजो ग २ कायजोग ३ तेमध्येमनजोगनाचारनेद सतमन जोग १ सतासतमनजोग २ असतमनजोग ३ असता सतमनजोग४ तथावचननापणचारनद सतवचनजोग - Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४०७ - १ सतासतवचनजोग २ असतवचनजोग ३ असतासत वचनजोग ४ तथाकायजोगनासातनेद उदारीककाय जोग १ उदारीकमिश्रकायजोग २ विक्रियकायजोग ३ विक्रियमिश्रकायजोग ४ आहारककायजोग ५ श्राहार कमिश्रकायजोग ६ तेजसकारमणकायजोग ७ एटले एजोगनापंदरनेदकह्या एजोगथकीपणअनंताकर्मश्रावे जेएटलेमुलहेतु ४ अनेउत्तरहेतु ५७ एलवांकर्मश्राववा नांकारणकह्या एटलेहेतुकहेताएकर्मश्राववानावालेशरी दलाल एमांहेलोएकहोयत्यांमधिकर्मश्रावे जेएचारनो नाशकरतेनिपासेकर्मनाश्रावे कोनीपेठेकेएकसरोवरछे तेसरोवरनीचारेदशथकी पाणिग्रावे तेमांपुर्वनीदशेपां चगडनालांडे अनेदक्षणनीदशेवारगमनालांने तथापश्ची मनिदशे २५ गमनालांछेनेउतरनीदिशे १५ गडनालां बे एटलेपणीभाववानाहेतुएगडनालांछेएगानालांछेतो पाणीप्राविशके जोगमनाला बंधकरियेतोपाणी श्रावि शकेनहीं तेमहांएकजीवारुपसरोवर तेनेविशेषांचगड नालांतोमिथ्यातनांजाणवांवारगडनालांअवतनांजाणवां पचीसगडनालांकषायनांजाणवांतथापंदरगडनालांजोग नांकह्यांचे एसर्वेमलीने सतावनगडनालांने एसतावनेग मनालेथइने कर्मरूपियांपाणीचाल्यांश्रावेछे तेथिजीवरुपि यासरोवरनेस्फाटिकरत्नरुपजेतलियुं तेदेखातुंनथि.अ - Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ . तसारोद्वार. | नेज्यांहांसुधाएगडनालाबंधनथाय त्यांहांसुधीकर्मरुपीयु पाणी श्राववंबंधकेमथाय अपितुनजथायएटलेजे श्रावे छेकमतेहनेजश्राश्रवकहिये २ हवेतेहिजाश्रवनेविशे श्राव्यांएवांजेकर्मतेनाबेभेद एकशुभअनेबीजोअशुनहवे जेशुभतेथकीशुशंकारजथाय तेकहियेछइये शरीरसारु बंधायरुपसारुहोय २ घाटसारोहोय ३ इंद्रियोपांचेपर वमीहोय ४ गतीसारीदेवतानी तथामनुष्यनीउत्तमपामे ५धनपामे पुत्रपरिवारपामे राज्यधानीपामे इंद्रनीपही पामे तिर्थकरगोत्रबांधे इत्यादीकजेजेकारजरुडु तेसर्वे नेशुनप्रकतीकहिये तेनेपुननोउदय जाणवो तेथकिउप राठुजेटलुंविपरितने तेसर्वेश्रशुनजाणवू तेनेपापनोउदय कहिये एटलेकर्मनुआववं तेनेत्राश्रवकहिये अनेजेवारे तेकर्मउदेश्राव्यां तेनेपुन्यपापकहिये एटलेएसर्वेपुद्गल दल तेत्रात्मानीघातकर्ताछे एथकिकांइआत्मानंकल्यां पथायनहिं. शिष्य--हेनगवानतमेपुन्यपाप वेहूसरखागणीनीखेदी नाख्यां नेएबेमांफरकघणोछे शामाटेकेपुन्यनाउदेथकीउ तमगतीनेपामे देवगुरुधरमनीसंगतीथाय तीरथजात्राव तनियमकरे बेरुपैयासारमार्गेवावरे तेथकीसासनदीपेते नेतमेपापनीसाथेकमगणोछो. गुरु-हेभद्रतेपुन्यनेअधिकजाएयु नेपापनेन्युनजाणेछे Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४०९ तेतुं सुखदूख श्राश्रीने समजे परंतु जेटलंसुखनुंकार छे ते पण ते दूखनुंकारणथाय श्रथवादुखनुंकार णतेतेसुख कारणथाय परंतु एवने पुद्गलछे एकांत्रात्मीक गुणनथी शामाटेजेमोटामोटाराजा तथाशेठसाहूकार तथाजावत नवग्रीवेकनादेवसुधी एसर्वनेत्र्यंते चारेगती संसारमा रखम्वानुंथायबे तेमधेजेसमकीतीजीवछे जावतपांच नु तरवीमानना देवसुधी तेचारगतिमांरखडेनहीं शामाटेके ते एवंजांछे के सुख सर्वेपुद्गलीकडे संजोगे मल्युंबे वीजो गेजशे मावीणाशीकसुखनीमोरबा कोणराखे तेपोताना श्रात्मीक सुखमांमगनबे तेनेकोनीश्राशानथी एकफक तश्रात्मीकधर्मनीरमणताकररीनेरेहेबे तेनेचारगतिमांर खडवुंन होय श्रनेजेपुद्गलीकसुखनानोगीछे तेचारगति मांरखडे. शिप - हे भगवानतमेकह्युंके श्रात्मीक सुखनानोगीछे तेसाचुपणसुखपाम्या तेपुन्यथीखराकेनहीं माटेपुन्यने पापनीबराबर केमगणाय. गुरु--भद्रपुन्यथीपाम्याते ठीक पणते कंश्पुन्यमांरच्या पच्या नथी तथापुन्यचाहिने करवागयानथी केमकेजेमडां गरनोवावनारोपरालवास्तेवावतोनथी तेमसमकीतीजी वजेजेकामकरे तेश्रात्मानाधरमवास्तेकरे पणकंश्पुन्यवा स्तेकरेनहिं कदापितदभवमोक्षेनजानुंहोयतो शुजगती પર Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० तलसारोद्वार. बांधे परंतुतेशुननाउदयमांसमकीतीराचेनहि तथाजेदे वगुरुधर्मनीसामग्रीमेलये एQजेतेका पणतेकंइएवोनि यमनथीके देवगुरुधर्मनीसामग्रीपुन्यथीजमले. शामाटे केदेवगरुनीसामग्रीमलवीतेनाघणाप्रकारछे जेपापनेऊ देथीदृढप्रहारीचोर प्रतक्षचारहत्याकरीनेजातांजगुरुनेम ल्या नेगरुनीपासेधर्मपामीचारीत्रलीधं लेश्नेछमासस धीमहापरीसहसहीने केवलज्ञानउपारजीनेमोक्षेगया त थादूरगंधाश्रावतीचोवीसीमां पद्मनाभतीर्थकरपासेदी क्षालेश्नेसिद्धिवरशे तेनोपणपापनोउदयजोयामांआवेने तथाश्रीनगवतीजीमां अरजुनमालीदीनएकप्रते छपुरु पनेएकस्त्री एमसातमाणसदीनदीनप्रते मारवावालोतेप पभगवाननीपासे दीक्षालेंइनेमुक्षेगयो इत्यादिकबहूज पानोविचारशास्त्रामांने तोएथीकांइएवोनियमनाथयोके पुन्यथकीजदेवगुरुनीसामग्रीमले तथाकाके तीरथजा त्राव्रतनियमकरे तेपणपुन्यहोयतोथाय तेवातपणमि थ्यातछे शामाटेकेस्थावरतीरथनीजात्राएजवंआवतेकां इधरममांनथी केमकेतेनेकोइगुणठाणानोअपेक्षालागेनही. शिष्य-स्वामीचोथागुणठागानीएकरणीछे अनेतमोप सम्यक्तद्वारग्रंथमां तथामंदीरस्वामीनीढालोप्रमुख घ णाशास्त्रोमांलावेलाछो नेतमेइहांनाकेमकोहोगे. गुरु-हेमानुनाव अमेजेसम्यकद्वारप्रमुखने विशेला crania Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. १११ व्याबिये तेनुकारणसांभल एकतोकलपवेहेवार आका लनाघणालोकोनुमानेलुं माटेतथाबीजुंकारणके टुंडीया लोकोबीलकुलप्रतमाउठावीनेबेठाछे तेत्रापणापक्षनेमा नदेखाडवावास्ते तथात्रीजुंकारणएके सासनसारुदीसे एटलामाटेत्रमेलावेलाछीये हवेअमेजेचोथागुणठाणानी करणीनीनाकही तेनुकारणसांनल जेलोकोनेसुरीश्रान देवनो तथाध्रपतीप्रमुखनोअधिकारदेखाडीयेछीये परंतु तेकरणीमांविचारघणोछे शाभाटेकेवजेदेवताप्रमुखघणा देवेपुजादेवपणेउपन्यातेवखतकरीछे पणतेनेनगवानेस मीतीकह्यानथी तेतोमिथ्यावीछे अनेतेदेवनवाउपने एटलासर्वेपुजाकरेएवुसुत्रजोतांमालुमपमेने परंतुकंइस मकीतीमिथ्यात्वीनो नियमरह्योनथी तेमकंइफरीथीपुजा करवानोअधिकारकोइने नहि. तथाजतेंवरतनियमनक ह्यं तेकांइपन्यथकीजथाय एवंसंभवतुंनथी. शामाटेकेनंदी खणने मामानीसातकन्याकोइएनाइछियो तेवारेजपा पातलेवानेपाहामउपरचम्योहतोपरंतुगुरुएजंपापातकर वानहिदीधो. नेधर्मपमाडीनेचारीत्रदीधुं तथाश्रीअंशक मारनोजीवएनवथीनवमेनवे ननांमीका एवेनामेगाथाप तीनीदीकरीहती. तेमहादुखीखावापीवानुउभारेहेवानुंठे काणुनोहोतुं तेपणडुंगरउपरजंपापातकरवानेगइहती. | त्यांहांगुरुमल्याने तेधरमपामीनेपछखांणबहूकरयां इ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ तत्वसारोद्वार. त्यादिकघणाजीवपापना उदेथकीपणवरतनेमपांमेलाबे माटेतेपणइहांपुन्यनाउदयनोनियम नथी. तथातें जेकयुंके बेरुपैयाखरचेवावरेछे तेपणख रचेवावरेतेसाचुंछे परंतुपर मात्मा साधुनादानविना बीजेमार्गेपइशोखरचे तेनेकंड धर्मकयुंनथी तेकरतांत्रा कालनेविशेजेकांइखरचेछे ते श्रीमाननालीधाथकाघणाखरचेछे अनेजेनीमांना दिकथकी खरचेतेने प्रश्नव्याकरणसुत्रमांमंदबुद्धियाकह्या बे जावतनरकगामीसुधी पण ह्याबेमा टेपुन्यथ की कंड सु कीतनीपजतुंनथी. शीष्यवाक्य - स्वामीपुन्यथकी सुक्रीतननीपजे एमके मकेवायशामाटेकेतिर्थंकरनामकर्मतोपुन्यथकीज बंधायबे गुरुवाक्य - हे देवाप्रीय एटलाएटलादृष्टांते में तनेसम जाव्यो पणतुंसमज्योनहिं हजीतारीदृष्टीपुन्यर्मा वध तिरेहेछेछानेपुन्यतेतोजमछे तेजमहोयतेजमनी दृष्टीराखे माटेएजमदृष्टीकाहामीनांख के जेमताराश्रात्मानुकल्यांण थाय प्रनेतुंजांणतोहशेके तीर्थंकर गोत्र पुन्यथकी बंधाय छे पण ठेकाणानेविशेतो करोमोनीकमाणीखाइने को मीनीकमाणीहाथमांच्यावेळे तेनुंकारणकहुं तेहवेतुंसांभ ल तीर्थंकर गोत्र बांधवानां कारणवसकह्यांबे तेमध्येथीए कथवा बेथवात्रण प्रथवाजावतविसश्राराधे तेधणी मोक्षेतदनवेजाय ज्यारेसरागनावमांपमीजाय व्यारेती Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४१३ थंकरगोत्रबांधे जोसरागभावेनप्रणमेतो तदनवमोक्षेजा तो अनेअनंतासुखनोगवतो तेमकीनेवेनवनाजन्ममर्ण श्रादेदेश्नेअनंतादुखभोगववानोसंसारवधारयोतमांएणे शुंवधारेनफोकाहाम्यो हवेजेतीर्थकरगोत्र बांधवानांस्थां नकविसछे तेतुंसांनल तेमांकयुस्थानकपुन्यदायकछे ए तोसर्वेस्थानकधर्मदायकछे पणपोतानीनुलेपुन्यदायक थयुं हवेतेथानकनांनामकहियेछीये अरीहंत १ सिद्धर प्रवचन ३ गुरु ४ थीवर ५ बहुश्रुत ६ तप ७ श्रात्मा मुंवबलपणुं ८ ज्ञानभणवू ९ दर्शन १० विनय ११ श्रावशक १२ चारित्र १३ उपसमचारित्र १४ सर्वे तीचारटालवा १५ वीयावछ १६ समाधीवंतरहेQ १७ गुरुनुकारजकरq१८ अपुर्वज्ञाननणq९९ प्रवचनपरना वनाकरवी २० एविसेस्थानकज्ञाताजीमांकह्यांचे तथाहा लनापरवरतनमांतो थानकबीजीरीतेछे तेलखीयेगये अरिहंत १ सिद्ध २ प्रवचन ३ श्राचारज ४ थीवर ५ उपाध्याय ६ साधु ७ ज्ञान ८ दर्शन ९ वीनय१० चा रित्र ११ ब्रह्मचर्य १२ क्रीया १३ तप १४ गोयमश १५ जीणाणं १६ चारित्र १७ नांणश १८ सुअस १९ तीथयस २० एजेविसथानकडे तेसर्वेनीशेवानक्तीपुजा बहमानजेकरवं तेसर्वेनीरजरामांछे केमकेएविसबोलचा रप्रकारमांधावीगयाछे तेचारनांनाम ज्ञान.१ दर्शन २ . UN - Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ४१४ तत्वसारोद्वार. || चारित्र ३ वीर्य ४ प्रवचन १ ज्ञान २ सुअस ३ नाण स १ एचारतोज्ञाननाभेदले १ दर्शनएबीजोभेद २ अरी हंत १ सिद्ध २ आचारज ३ उपाध्याय ४ थीवर५ सा धु ६ वीनय ७ चारीत्र ८ ब्रह्मचरज ९ क्रीया १० गो यमा ११ जीणेश १२ चारित्र १३ तीर्थ १४ एचउद बोलतोचारित्रपदमांछे तेमध्येजीणेशबोलछे तेकेटलाए कमीतज्ञानमध्येगणेछे केटलाकचारित्रमांकहेछेतत्वज्ञा नीगम्यछे ३ तपएचोथोनेदबे एटलेएचारेनेदमांविसे थानकसमाश्गयांनेएचारने नगवंतेमोक्षनामार्गजकह्या छे तेकांइत्राश्रवथायनहि. एतोनिर्जराहतुछे माटेतीर्थक रनामकर्मबांधवंतेत्राश्रवछे तेएवांथानकशेवीने जेधणी प्रायवउपार्जे तेधणीएरत्ननाखीदेइनेकोमीबांधी शामा टेजेमहानीर्जरानांकारणहतां तेनेछोमीनेसरागनावमांपे ठो तेथीतेणेएतीर्थकरनामकर्मरुप प्राथवउपार्जीतदभव नीमुक्तिगमावी अनेजन्ममरणवधारयो तेमाटेअमेकहि येछियेकेपुन्यमांकांइमालनथी अनेजेपुन्यपाप तेबेत्रा ठकर्मनीप्रकृतीने तेमां १२० एकसोनेवीसप्रकृतीने तेमां पुन्यनी ४२ अनेपापनी८२ तेमध्येप्रथमपुन्यनीप्रकृती | कहियरिये. शातावेदनी १ उंचगोत्र २ मनुषनीगती ३ मनुषनीभानपुरवी ४ देवतानीगती ५ देवतानीभानपु ॥ रखी ६ पंचेंद्रीनीजात ७ उदारीकशरीर ८ वीक्रीयारी Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. FANARDAMOD र ९ श्राहारकशरीर १० तेजशशरीर ११ कारमणश रीर १२ उदारीकअंगोपांग १३ वीक्रीयभंगोपांग १४ श्राहारक अंगोपांग १५ वजररीखवनाराचसंघेण १६ स मचोरसस्वस्थान १७ शुनवरण १८ शुनगंध १९ शुभ रस २० शुनफरस २१ अगुरुलघुनामकर्म २२ पराघा तनामकर्म २३ उस्वासनामकर्म २४ अातापनामकर्म २५ उद्योतनामकर्म २६ शुनवीहायोगती २७ नीरमा णनामकर्म २८ देवतानुावखु २९ मनुषyावखु ३० त्रीजंचनुश्रावखु३१ तीर्थकरनामकर्म३२ त्रसपणुं३३ बा धरपणुं ३४ परजाप्तापणुं ३५प्रत्येकपणुं ३७ शुभनाम कर्म ३८ शुभंगनामकर्म ३९ सुस्वरनामकर्म ४० आदि नामकर्म ४१ जसनामकर्म ४२ एपन्यनाभेदकह्या.. - हवेपापनाभेदलखीयेछिये. मतीज्ञानावरणी १ श्रुत ज्ञानावरणी २ अवधीज्ञानावरणी ३ मनपरजवज्ञाना वरणी ४ केवलज्ञानावरणी ५ दानाअंतराय ६ लाना अंतराय७ नोगाअंतराय ८ उपभोगाअंतराय९ वीरज अंतराय १० चक्षुदर्शनावरणी ११ अचक्षुदर्शनावरणी १२ अवधीदर्शनावरणी १३ केवलदर्शनावरणी १४ निं द्रा १५ निंद्रानिंद्रा १६ प्रचला १७ प्रचलाप्रचला १८ थीगदी १९ अशातावेदनी २० नीचगोत्र २१ मिथ्याल २२ नरकनीगती २३ नरकनीभानपुरवी २४ नरकनुं । - Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T ११६ तत्वसारोद्वार. श्रावखु२५कषाय२५पुर्वेकह्यातेसमजजो५०त्रीजंचनांग | ती५१त्रीजंचनीभानपुरवी५२एकंद्रीनीजात५३बेरंद्रीनी जात५४ तेरंद्रीनीजात५५ चनरंद्रीनीजात५६ अशुभवि हायोगती ५७ उपघातनामकर्म ५८ अशुनवरण ५९ अशुनगंध ६० अशुभरस ६१ अशुभफरस ६२ रीखव नाराचसंघेण ६३ नाराचसंघेण ६४ अर्धनाराब ६५ के लीकासंघेण६६ बेवटुंसंघेण ६७ नीगरोधस्वस्थान६८ ६८ सादीस्वस्थान ६९ वामनस्वस्थान ७० कुबजस्व स्थान ७१ कुडकस्वस्थान ७२ थावरनामकर्म ७३ सु क्ष्मनामकर्म ७४ अप्रजाप्तोनामकर्म ७५ साधारणनाम कर्म ७६ अक्षरनामकर्म ८८ अशुभनामकर्म ७८ दुरना ग्यनामकर्म ७९ दुस्वरनामकर्म ८० अनादीनामकर्म ८१ अजसनामकर्म ८२ इतिपापतत्वनाभेदएटलेएबम लीने १२४ थया तेमध्येवरणादिक ४ पुन्यतथापापबेमां गणायने माटे १२०प्रकृतीथइ तेमध्येतीर्थकरगोत्रपणना मकर्ममांश्रावीगयुं अनेअहिंततोकर्महणे तेनेअहिंत कह्यापणकांइकर्मबांधे तेनेरीहंतकह्यानथीअनेएकर्म मुंज्यांहांश्रावव॑तेनेश्राश्रवकहीयेशुनकर्मआवतेनेशुभश्रा श्रवकहिये तथाअशुनकर्मश्रावतेनेशनआश्रवकहिये एटलेएबंनेाश्रवजछे माटेतिर्थकरनामकर्मबांधवं ते पणाश्रवमा अनेआश्रवडे तेसदायतजवाजोग एट Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. ४१७ लामाटेएपुन्यपापबनेनिखेद्यां माटेसमजुपुरुषनेपुन्यपाप एकेवग्वाजोगनथी शादृष्टांतकेजेमएकलीममानविशे लिं बोलीनोकलियोछे तेकडवोअनेलिंवोलीनोरसकांशमि ठाशसहित परंतुबेमांदुर्गध माटेसमजुपुरुष खातान थितेमपुन्यअथवापाप एवंनेाश्रवज तेज्ञानिपुरुषने आदरवाजोगनहोय एटलेपुन्यपापर्नुस्वरुपककहयुं हवे बंधतत्वलखावियेबिये तेनाचारनेदबे प्रकृतिबंध १ थितिबंध २ रसबंध ३ प्रदेशबंध ४ तेनेलामवानेदृष्टां तेकहियोछिये परदेशतेलोटनेठेकाणे रसतेघीनेठेका गेछे प्रकृतितेखांडतथागोलनेठेकाणेछे स्थितिछेतेते निमरजादाछे मरजादाकहेतां आलाडुआटलाकालसु धिरहेशे हवेगोलनोलाडुहोयतोवायहरताहोय खांडतथा साकरनोलाडुहोयतोगरमिहरताहोय तेमअहियांजेवि जेविप्रकृतिनोबंधतेवितेवि शुनाशुभप्रकृति उदयश्रावेत थाजेरसछेतेनुकारण एवं केरसवधतोहोयतो लाम्वोन भावे तेनाचारभेदले एकठाणियो १ बेठाणियो २ त्रण ठाणियो ३ चारठाणियो ४ हवेठाणकहेतांशुंकहियेके जेमजलिमडानोरसछे तेस्वभावतोकम्बोज पणतेरस पांचशेरलेइनेउकालिये तेचारशेररहे त्यारेउतारीयेत्या रेतेनीकडवाशघणिवधे तेजरसत्रणशेर रहत्यारेउतारीये तोकडवाशअत्यंतवधतीजाय नेशेरबेरहत्यारे उतारीये - - 43 Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ तत्वसारोद्वार. त्यारेतेथिपणघणिवधे तथाशेरएकरहेनेउतारीयेत्यारेक डवाशघणिवधीजायतेरसनीपासेपणजवायनहि तेमत्र हियांएकठाणियारसनांजकर्मछेतेनुतोडसुलभपडे अने जेबेठाणियारसनांकर्मछे तेतोडवांदूर्लभपडे तेथकीपण त्रपठाणियारसनांजेकर्म तेदवांअतिदुर्लभपडे तेथकी चउठाणियारसनांजेकर्म तेबेदवांमहा दूर्लनथइपडे अहियारसपलीछेदादिकविचार एकठाणियाथीचउठा पियासुधिअनंताभेदछे तेनोविस्तारकर्मग्रंथनीटिकाथकी जाजोहवेजेलाडवामांलोटएकशेरछेअनेघीअडधोपाशे र तेलाडवानेभागतांकांइवारलागेनहि लाडवोबांधतां वेराइजाय तेमकेटलाएककर्मतोआवेने तेमजायछेतथा जेलाडवामांपाशेरघोडे तेलाडवोवलेपरंतु हाथअराडतां जनागे तेमकेटलाएककर्मसहेजस्वनावथीअथवासहेज कष्टथकीक्षयथाय तथाजेलाडवामांबडधोशेरपीछे तेने हाथेकरिनेज्यारेनागियत्यारेभागे तेमएवांजेकर्मछेतेबा हाजतपादिककष्टथकी अथवाअल्पज्ञानध्यानथकीक्षय थायतथाजेलाडवामांशेरपोणोघी तेलाडवोनागतांक ठणपडे तेमतेवांजेकर्मछेतेसरवथाज्ञांनध्यानविना अथ वागेनोगव्याविनाजायनहिं तथाजेलाडवामांशेरेशेर घीपमेलुछे तेलाडवोभागवोतोबहूजकठणथइपफे तेमते वीजातनांजेकर्मतेने खरिशुकलध्यानरुपणी अगनिलागे Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४१९ तोजबले अथवागेनोगतेदहामेजजाय. - शिष्य-स्वामीतमेपुर्वेकहयुंहतुं केतपजपक्रियात्राव मांछेत्रोहांडेरीयाघीना लाडुनादृष्टांतमांकर्मनेनीरज रादेखडावीतेनुंकेम. " गुरु-हेनद्रअमेजेनीरजराकहि तेनुकारणसांभल के त्यांअल्पज्ञानध्यानकहयुं तेतोपात्मउपयोगहोयतेने होय अनेज्यांहांत्रात्मअपियोग तेनांसर्वेकारजनीरज रामांकह्यांने तेअपेक्षाएकाछे बीजेप्रकारेवलीजेसर्वेजी वपूर्वकृतकर्मपोतेभोगवीने खेरवे ने अकामनीरजरावा ला अज्ञानपणे तपकष्टकरिनेपुर्वकर्मने देनेनवांकर्मबां धे तेश्रीभगवतोजीमांकयुंछे माटेएअपेक्षालेइनेकहयुंछे परंतुकंइादरवाजोगनथी पुर्वेजेआश्रवमांकहyो तेस त्यो हवेजेकर्मबांधवं तेनीवर्गणाकेटलीथायछे अनेके टलांकर्मभेगांथयेथीलेवाजोगथायछे तेनोविचारकहिये गये तेनीविगतः-वर्गणाओबाठछे तेनांनाम उदारिक १ विक्रीय २ आहारक ३ तेजस ४ नाण्या ५ स्वासो स्वास ६ मन ७ कारमण ८ हवेतेवरगणानुं मानकहि येछिये जेटलाछुटाप्रमाणुाछे तेअनंताने तेगणवानहिं जेबेप्रमाणुत्राभेलाथायतेने द्वीपरदेशीखंधकहिये जेना त्रणपरमाणुत्रा भेलाथायतेने तणुकखंधकहिये एमएक वधतेप्रमाणए संज्ञापणते प्रमाणेनामनीकहेवी जेवारे Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० तत्वसारोबार. नवप्रमाणुवानेगाथाये संखातप्रदेशीखंधकहिये तेजाव तअठांjांक उपराउपरिचडे तेनुनामसीहरपलीकाके हेवाय एटलाप्रमाणुाभेगाथाय तेनेसंख्यातप्रदेशीखं धकहिये एटलेजघन्यसंख्यातीखंध नवप्रदेशीजाणवो उतकष्टोसंख्यातीखंध सीहरपलीकाप्रदेशीखंधजाणवो मध्यस्थसंख्यातीखंध तेनासंख्यातीनेदजाणवा जेउतक ष्टोसंख्यातीखंधछेतेमाहे एकप्रमाणुशोबीजोनलेतेवारे असंख्यातीखंधकहिये तेजावतअनंतामांएकउंणोहोय त्यांहांसुधीप्रसंख्यातप्रदेशीखंधकहिये एटलेअसंख्यात प्रदेशीखंध मध्यस्थनाअसंख्यातानेदतथाअसंख्याता नानवनेदपणकरेला तेश्रीविशेषावश्यकग्रंथथकीजोजो तथातेमाहे एकप्रदेशभलेथके अनंतप्रदेशीखंधकहिये ते अनंतप्रदेशी खंधना जघन्यथकी उतकष्टासुधी जाताना वजेरह्यामध्यस्थ तेनाअनंतानेदबे तथा नव नेदपणअनंतानाकरेलाछे तेपणविशेषावश्यकथकी जाणजो तथासंसारनीमांहेलीकोरे अनवीजीवअनंताडे तेचोथेअनंते तेथकीअनंतगुणाप्रदेशमलीने खंधबंधा णो तेखंधअनंतप्रदेशी मध्यस्थमांगणाय एवोजेखंधतो यपण जीवनेलेवाजोगनथाय शामाटेकेप्रतीशे शुक्ष्मछे माटेजीवग्रहीशकेनहिं तेज्यारेवादरनी वर्गणामांहोय त्यारेउदारिकवर्गणामां लेवाजोगथाय एटलेएखंधपण Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४२१ उदारिकवर्गणानोजाणवो तेथकीनंतगुणप्रदेशमली ने जेखंधथाय तेवक्रीच्खनेलेवाजोगथाय शामाटेकेउदा रिक करतांविकीनी वरगणासुक्ष्म २ तेथकीनंतगु एपीच्छाहारकनीवर्गणा एमत्रनुक्रमे एकएकथकी नंत गुणीकरतां सातमीमनोवर्गणा अनंतगुणीथइजाय तेम नोवर्गाकरतां अनंतगुणीकारमणवर्गणा त्राठमीबे हवेतेवर्गणामां चारवर्गणासुक्ष्मबे नेचारवर्गणाबाद रबे तेमांप्रथमबादरनीवर्गणानांनाम गणावियेछोये उ दारीक १ वीकी २ श्राहारक ३ तेजश४ सुक्ष्मनांना म भाषा १ स्वासोश्वास २ मन ३ कार्मण ४ हवेते बादर शुक्ष्मनो फेरछे तेज लावियेछिये एटलेबादरवर्ग णामांविस २० गुणछे सुक्ष्मवर्गणामां १६ गुणहो य बादरना २० गुणते वरण ५ गंध २ रस ५ फरस८ ए २० विस सुक्ष्मना १६ गुणते वरण ५ गंधर रस५ फरस ४ एसोल एविरीतेजे वर्गणात्रो कर्मनीत्रावी जी वनेमलेबे तेनोबंधपमेतेने बंधतत्वकहिये तेनोविस्तारवि चार कंमपेमीग्रंथनी टीकाथकीजांणजो एटले एसर्वे जी वतत्वछे शामाटेके प्रजीवना पांचभेदपुर्वेकरचावे तेमध्ये पुद्गलास्तीकायरुपी द्रव्यएककह्योछे नेबाकीनाचाररु पीजीव ने कंइनम्तानथी नेएकपुद्गलद्रव्यजीवनेनमे छे त्यारेतेपुद्गलने जीवनेत्रावीने मलवं तेने श्राश्रवकह्यो. Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ तत्वसारोबार. | तेमांशुभपुद्गलावेतेने शुनप्राश्रवकहिये तेनेलोकमां प्र सिद्धपणेपुन्यएव॒नाम अशुनावे तेनेअशुभश्राश्रवक हिये तेलोकमांप्रसिद्धपापण्वनामछे तेजीवसातेकर्मने बंधावयूँ तेनेबंधकहिये तेजेकमनोबंधजीवसाथेथवो ते निस्थीतिनुं मानकहियेछीये ज्ञानावरणीनी त्रीसकोमा कोमीसागरोपमनी स्थीतीछेतथामोहनीकर्मनी सीतेरको माकोमसागरोपमनी स्थीतिछे तथादर्शनावरणी तथावे दनीनित्रीशकोमाकोडसागरोपमनीस्थीति तथाअायु कर्मनीतेत्रीस सागरोपमनीस्थीति तथातेत्रीसलाख तेत्रीसहजारत्रणसेनेतेत्रीस एटलापुरव तथातेवीसलाख करोडअने बावनहजारकरोड वरसनिस्थीति उतकष्टीने अनेनामकर्म तथागोत्रकर्म एबेनिविसकोमाकोडीसागरो पमनीस्थीति तथाअंतरायकर्मनीत्रीसकोडाकोमसागरो पमनीस्थीतिले इत्यादिकजीवद्रव्यनोविचार नगवतीप्र मुखनेविशेथकीजाणजोएटलेएजीवनापांच्तत्वकह्या हवे जीवतत्वनोविचारकहियेगये जीवकेहेतांजेहेनाविशेचेत नारुपलक्षण तेनांबलक्षण तेनांनाम ज्ञान१ दर्शन२ चारित्रविर्य तप५उपयोग६ एलक्षणसहितसर्वेजी वळे कोणसिद्धअथवासंसारी एटलेजीवनीसत्ताजोतासि दतथासंसारी एकजरुपले. तोयपणअशुद्ध वेहेवारनयनो | पक्षलेइनेजीवना नेदकहूर्छ तेजीवना ५६३ नेदजे ते | Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोहार. ४२३ चारगतिनामलीने प्रथमत्रीजंचनीगतिना ४८ नेदछे. नरकनीगतिना १४ भेद देवतानीगतिना १९८ नेदछे मनुष्यनीगतिना ३०३ नेद एसर्वेमलीने ५६३ नेदथ या तेप्रथमत्रीजंचनीगतिना ४८ नेढ़ विवरिने कहियेबी ये प्रथ्वी काय सुक्ष्मनेबादर एटले सुक्ष्म केहेतां चरमचक्षु एदीठामांनाावे एतोज्ञानीनादीठामांत्रावे पणएसुक्ष्म चउदराजलोकमां व्यापीनेरह्याछे तेजेमप्रथ्वीकायना सुक्ष्म ह्या तेमपांचेस्थावरनासमजजो बादर प्रथ्वीका यजे श्राधरती तथापाहाडपरवत सोनुं रुपु प्रमुखतेस बादरप्रथ्वी कहिये सुक्ष्मबादरवे प्रथ्वीना प्रजाप्ता नेप्रजातागणीये एटले चारनेदथया शिष्यवःक्यः प्रजाप्ता प्रजाप्ता एटलेशुं. गुरुवाक्य:-- हेनद्रजीवमा प्रजाती तथाप्राणनेधारणकरे तेनानामनोविवरासहि तकहूं सांभल प्रथमप्रजातीनांनाम श्राहार प्रजाप्ती १. सरीरप्रजाप्तो २ इंद्रीप्रजाती ३ सास स्वास प्रजाती ४ भापात्रजाप्ती ५ मनप्रजाप्ती ६ एछप्रजा ती हवेतेनो श्रर्थश्राहारप्रजाती केहेताजेगतिने विशे थीचवीनेाव्य तेजसमेपोतपोतानी गतिमांजइनेउप जे कदापिवक्रगतिहोयतो बेएसमे तथात्रणसमे तथा चोथेसमेजइने उपजे तेनुंकारणश्राकाशनी श्रेणीनाविना गर्नुछे तेबहू सुतना मुखथकधारीलेजो हवे ज्यां सुधीरस्ता Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ तत्वसारोहार. मां त्यांसुधी श्राहारपामेनहिं जेवा रेपोतपोतानीगति मांजइने उपजे तेजसमेत्राहारले. १ तेश्राहारलेइने श रीरपणेप्रणमावे एटलेइहांएक अंतरमहूर्ते शरीरप्रजा तीबीजीथाय एमजसमेसमेश्राहारकरीने शरीरनीपुष्टी करतां इंद्रीप्रगटकरे त्यांहांपण एकमहूर्तथाय तेने इंद्रीप्रजातीकहीए३ पछीअंतरमहूर्ते स्वासोस्वासप्रजा तीबंधाय एटलेस्वास उंचोलेइनीचोमुकवो तेनेस्वासो स्वासप्रजातीकहीए ४ त्यारपछीअंतरमहूर्ते भाषाप्रजा तीथाय एटले भाषानुं उचारणथाय५ त्यारपतीअंतरमहू तें मनप्राप्तीथाय एटलेमनथकी विचारखं तेनेमनप्रजा तीकहीए६ एछए प्रजाप्तीमलीने एकअंतरमहूर्त कहीए. शिष्यवाक्यः -- केछ एमांंतरमहूर्त २ नोत्रांत रोकह्यो ने छनुं मलीने पण अंतरमहूर्त कह्यं तेनुंशुंकार ए. गुरुवाक्यः--मर्दूतएवोशब्दबेघडीनोछे तेमांथकीउणुं तेनेयंतर महूर्त कहीए जयणाथकी नवसमानाकालने प अंतरमहूर्त कहीए उत्कृष्टुबेधडी समेउणुं तेनेपणअंतर महूर्त कहीए एटलेमध्यंतरमहूर्तना श्रसंख्यातानेदबे तेमाटे पेहेलांतर महूर्त जे प्रजातीनाबांधवाना एकएक जेह्या ते सर्वे जघन्यथ की तथामध्यस्थलीजीए तथाप छाडीबएमलीने एकजेकते उत्कृष्ट कहीए. हवेएप्रजा ती जेनेजेटलीछे तेकहीएछीए एकंद्रीकेहेतां पांचेथावर Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. ४२५ ने प्रथमनीचारप्रजाप्तीहोय बेरंद्रीतथातेरंद्री तथाचोरं द्री तथाप्रसेनीयापंचंद्री एटलानेपांचप्रजाप्तीहोय तथा सेनीत्राचंद्रीने छप्रजाप्तीहोय-हवेप्राणदसनांनामःश्रो तइंद्रीः१ चक्षुइंद्रीः२ घ्राणइंद्रीः३ रसइंद्रीः? फरसइंद्रीः ५ मनबलः६ वचनबलः७ कायबलः८ स्वासोवासः९ श्रावखुः१० शिष्यवाक्यः--स्वासोस्वास प्रजाप्तीमांगएयोहतो ने प्राणमांकमगणोछो. गुरुवाक्यः-तिहांस्वासोस्वास प्रजाप्तीबांधवा श्राशरे गणीहती अनेश्हांनोगववा श्रासरितकहिछे जेमकोइपु रुष भावीरीतेकरी लाखरुपैयाकमाणो नेतेधणीएत्रावी रीतेकरी लाखरुपैयानोगव्या तेजेमकमाव्यानो नेभोग व्यानोजेनफेर तेमश्हांप्रजाप्तीप्राणनो फेरसमजवो ए कंद्रीनाचारप्राण फरसइंद्रीः१ कायबलः२ स्वासोस्वा सः३ श्रावखः४ वेरंद्रीनेबप्राण फरसइंद्री१ रसइंद्रीः२ वचनबलः३ कायबलः४ स्वासोस्वासः५ श्रावखुः६ ते रंद्रीनेसातप्राणः फरसइंद्रीः१ रसइंद्रीः२ घांणइंद्री३व चनबल? कायबलः५ स्वासोवासः६ नेत्रावखुः७ चो रंद्रीनेआठप्राण फरसइंद्री रसइंद्री२ घ्राणइंद्री३ चक्षु इंद्री वचनबल५कायबल६ स्वासोस्वास७ नेआवख ८ समपंचद्रीनेनवप्राण फरसइंद्री रसइंद्री२ घ्राण % D - ५४ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ तत्वसाराहार. द्री३ चक्षुइंद्रीट श्रोतइंद्री५ वचनबल६ कायबल७ स्वा सोस्वास८ श्रावखु९ सेनीश्रापंचद्रीनेदसप्राण ५इंद्री मनबल६ वचनबल७ कायबलट स्वासोस्वास९ नेत्रा वखु. हवेजेत्रप्रजाप्ता तेनाबेभेद करणअप्रजाप्ता लब्धिप्रजाप्ता२ एटलेकरणप्रजाप्तोकेहेतां ज्यांसु धीतीजीइंद्री प्रजाप्तीपुरीनथइहोय त्यांसुधीकरणअप्र जाप्तीकहीए नेजेनेइंद्रीप्रजाप्तीपुरीथइ तेनेकरणप्रजा प्तीकहीए अनेलब्धिप्रजाप्तोकेहेतां चारतथापांचतथा छ जेनेजेटली प्रजाप्तीलाधी तेनेतेटलीमांअधुरीहोय तेनेलब्धिप्रजातोकहीए अनेगतीनी मरजादप्रमाणे जेनेजेटलीहती तेटलीप्रजाप्तीपुरीथइ तेनेलब्धिप्रजा तोकहीए जेकरणप्रजाप्तोकह्यो तेजीवइंद्रीप्रजाप्ती बां ध्यावगर कोइजिवमरेजनही जेजीवमरे तेकरणप्रजाप्ती पुरीकरयापछी जेअप्रजाप्तोमरे तेलब्धिप्रजाप्तोकेहे तां चारवालाने चारमांथीउणी तथापांचवालाने पांचथ कीउणी तथाछवालाने छथकीउणीहोय नेजेमरेतेनेल ब्धिअप्रजाप्तोकहीए तथाज्यांसुधीजेने जेटलीप्रजाप्तीने तेबांधीनथीरह्यो त्यांसुधीपणतेने अप्रजाप्तोकहीए जेने जेटलीप्रजाप्तीछे तेटलीबांधीरह्यो तेनेप्रजाप्तोकहीए. शिष्यवाक्यः-केस्वामीमने पूर्वएकवचनमा शंकारही ने केतमोएवीगलेंद्रिनेविषे वचनवलका तेबेरंद्रितथा Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४२७ तेरंद्रिनेविषेकांशब्दपणुजणातुंनथी. गुरुवाक्यः-हेनद्र बेरंद्रितथा तेरंद्रिमांवचनवलक हा तेसत्य परंतुतनेसांनल्यामांनाावे तेथीतनेशंका पडी परंतुजेनेरसइंद्रिथइ तेनेवचनबलहोयज तथातने प्रत्यक्षप्रमाणथीवता,छुके शंखला जलो एल प्रमुखए जीवसर्वेबेरंद्रि तथा कीमी मंकोमी कानखजुरा प्रमुख एजीवतेरंद्रि तथा नमरा नमरी वींग प्रमुखजीवचो रंद्रितेमध्ये नमरा नमरीतोप्रत्यक्षबोले तेसंनलायने बेरंद्रितथातेरंदिनीशक्तिनापानीमंद तेथीसांनलवामां नहिनावे शेद्रष्टांतेके जेमकोगर्ननेविषेत्रावीनेनपन्योजे जीव तेजन्मश्रवस्थापेहेलां तेनेवचनबलनीशक्तितोज न्मीनेतरतबोले जोपुर्वशक्तिनहोततो अहिंत्रांपाधरी शक्तिश्रावतनहि अनेतेनेवचनबलगर्नमांआव्यो त्यांए कअंतर मुहूर्तमांबंधाणुंडे परंतुनवमहीनासुधी उचारण नीशक्तिनाभावी तेमहांबेरंद्रिादिकजीवने वचनबल नीशक्तिले परंतुउचारणकरवारुपशक्तिनथी हवेजेप्रथ्वि कायनाजेसुक्ष्म तथाबादर तथाप्रजाप्ता तथाअप्रजाप्ता ४ तथाअपकायकेहतांपाणी तेनाबादर ५ तथासुक्ष्म ६ बादरकेहेतां नदी तलाव प्रमुख सुक्ष्मतेचौदराजलोक व्यापीत्रजाप्ता ७ अप्रजाप्ता ८ तथातेउकायकेहेतांजे निकायतेनाबादर ९ तथासुक्ष्म १० बादरअग्निजेकाष्टा Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ तत्वसारोद्वार. दिकनीअढीहीपनेविषेसुक्ष्म अग्निकायकेहेतां चौदराज लोकव्यापीप्रजाप्ता ११ अप्रजाप्ता १२ वायुकायकेहेतां जेवायरोवायछेतेवादर १३ तथासुक्ष्म १४ प्रजाप्ता १५ अप्रजाप्ता १६ तथावनस्पतिकायतेनाबेनेदप्रतेक १ सा धारण २ प्रतेककेहेताएकशरीरेएकजीवहोय तेनेप्रतेक कहिए एटलेत्रांबा लोंबडा प्रमुखझाडवेलगुच्छाप्रमुख नेविषेथडनो तथाडाला तथात्वचा तथापानफलफुलएक एकोजीवहोयतेमध्ये फुलनीजेटलीपांखडी तेटलाजीव गणवा तेनोविस्तारपनवणासुत्रथीजाणजो तेप्रतेकवन स्पतिनाप्रजाप्ता १७ अप्रजाप्ता १८ • हवेसाधारणवनस्पतिना बेनेद बादरतथासुक्ष्मबाद रजे बत्रीशअनंतकाय एटलेजेमकंदप्रमुखसर्वे जाणवा तेमांएकशरिरेअनंताजीव रह्याते दृष्टीगोचर दीठामां आवेमाटेतेनेबादरकहिये तेनुनाम बादरनीगोदपणकहि ये तेनाप्रजाप्ता १९ ने अप्रजाप्ता २० हवेंसुक्ष्मसाधा रणवनस्पतीनो विचार कहियेबिये तेनुनामसुक्ष्मनीगो दपणकहिये तेचौदराजलोकमां व्यापीने रहेलतेनंसरु पकींचीतमात्र कहियेछीये एकागलनेमानत्राकाशनं ग्रहणकरिये तेटलात्राकाशना असंख्यातानागकरिये तेमांहेला एकनागनविशे असंख्याता आकाशप्रदेशछे तेमांहेलो एकाकाशप्रदेशे एकगोलोंछे एकगालामांस Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४२९ संख्यातीनीगोद एकनीगोदमां अनंताजीवछे तेजीव नांमानकेटलांडे केअतीतकालनासमयगयाअनागतका लनाजेटलासमयावशे तेथकीअनंतगणाजीव एकनी गोदमांजेएटलेअतीतअनागतकालनासमयनोकांइपार पामीयेनहिं तेपणअनंताछे तेथकीपणअनंताजीवएकनी गोदमांछे तेकोकाले तेनीगोदनापारपामिये नहिं. शिष्यवाक्य-केस्वामीतेनीगोदखालीकेमनथायसदायका लमोक्षनोमार्गतो चालतो माटेएनीगोदकोश्कालेपण खालीथइगजोश्ये कांश्नवाजीवतोउत्पन्नथताजनथी अनेजेजीवमाहेथीगया तेपाछात्रावतानथी तोघणाजी वछेतेघणेकाले खालीथो जेमएकबाजरीनोकोठारनरे लो तेमधेनविबाजरी नरखूनहि अनेशांणेथीकाडवामां डीशुतो तेकोठारखालीथशेकेनहि अपीतुथायज अथवा मोटुंएकसरोवरपाणीएनरेलु अनेनवीआवकआववानुं बंधक!नेने तेमाथीमाणस तथाजानवरेपीवामांम्युं तेखा लीथायकेनहिं अपीतुखालीथायज तेमएनीगोदनाजीव घणेकाले खुट्याजोइये. गुरुवाक्य-हेनद्रजेअनागतकालनासमयतेथकी तथा अतीतकालना समथकीअनंतघणाजीवएकनीगोदमां एटलेसमेसमे अकेकोजाय तोपणखालीनथाय तथा बे तथा त्रण तथासंख्याताकेके समेमुगतीजाय तोपणए - Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. नीगोदखालीथायनहि अनेकेकेसमेराशबंधी अकेको तोमोक्षजायनहिं केमकेवचेवेहकालपडे अथवाएकस मे एकसोनेश्राठमोक्षजाय एथकीअधीकतोमाक्षेजवानो अधिकार जनहि अनेएटलामोक्षजायतो छमाससुधी कोइमोक्षजायनहि एवोत्रेहकालकह्याने तेथीएकनीगोदप एखालीथायनही तथाजेकोठारतथासरोवरचंद्रष्टांतदी) तेइहांजुक्तनथी इहांहुंद्रष्टांतदेउतेसांभल जेमसमुद्रनुपा णी दनप्रतेलाखोकरोडो माणसजानवर नरेढोलेवावरे तोहेपणसमुद्रपाणी कोइदीनोछंथवार्नुछे ? तेमएनी गोदनाजीवपण कोइदीनओछाथवानाछेनही एवाएकनी गोदमां एटलाजीवनेकेखुटेनही तोएवीसंख्यातीनीगो दो एकगोलामांछे एवागोलाचौदराजना जेटलाप्राका शप्रदेश तेटलाएगोलाले तोएजीवथालु केदहाडेखाली थायहवेजेएनिगोदनाजिवने अत्यंतमाहेमांहसंकमाशथी महाकष्टनोगवताथकामरें एकश्वासउंचोलेइनेनिचोम केएटलामांसतरवारजन्मिनेमरे अमारमिवारनोजन्मेए टले २५६ श्रावलीनुएyावखुछेएमजन्ममरणनांमहा दुखतेभोगवेछे तेदूखनुमानसंक्षेपथकीकहियेंछिये. "जेसातमीनर्कनेविशे महादुखछे तेमांपणअपेठाणना मांवचलोनरकावासोछे तेनुदूखअत्यंतश्राकरु काछे त्यांबावखुतेत्रीशसागरोपमनुछे तेतेत्रिशसागरोपमना Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४३१ जेटलासमयथाय एटलाफेरातेत्रिशसागरोपमनेआव खेसातमिनरनेकविशेएकजिवउपजे तेनदुःखसर्वेभेगुक रियेतेथकिअनंतघण्दूखएकसमे निगोदना जिवनेछे त्यादिक विस्तारसर्वेपनवणा तथानगवतिथकिजाण जो.एटलेएसाधारण वनस्पतिनाबेभेद सुक्षम १९ बादर २० प्रजाप्ता २१ नेत्रप्रजाप्ता २२ एटलेएएकं दिनाबाविशनेदथया हवेविगलंद्रिना ६ भेददेखाउछे बेरंद्रि १ तेरंद्रि २ चौरंद्रि ३ एत्रणेनाप्रजाप्तानेप्रपत्र जाप्ताएटलेए छ नेदथया एटलेएकंद्रिसुधां २८ भेद थयाहवेत्रिनंचपंचंद्रिना विशभेदकहियेबिये तेमध्येप्रथ मबभेद २ गरभज १ समुरछंम २ तेमध्येगरभजना पांचनेद जलचर १ थलचर २ खेचर ३ उरपरी ४ भुजपरी ५ जलचरकहतांमछकछादिक थलचरकहेतां पारवंतथासमली परमुख उरपरीकहेतांसरपपरमखभु जपरीकहेतां नोलियापरमुख एपांचेनाप्रजाप्ता तथा अप्रजाप्ता एदशनेदगरनजनाकह्या गरभजकहेतांमा तापितानाजोगथिपेदाथाय तेनेगरभज कहियेतेथकिवि परितमातापितानाजोगविनामाटीपाणिप्रमुखथकि उत्प नथायतेने समुरछंमकहिये तेसमुरळमनापणदशनदजे मगरनजनाकह्या तेमजागवाएटलेत्रिजंचपंचद्रिनाविश नेदथया पुर्वनामांहेघालिये एटले ४८ भेदथयाएटले Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोहार. त्रिचनीएकगतिकहेवाणि हवेनारकीना १४ नेदतेक हियेछिये तेनारकीनानाम घमा १ वैशा २ सेला ३ अंजना ४ रीठा ५ मघा ६ माघवति ७ एसातनरकना प्रजाप्तातथाअप्रजाप्तामलिने १४ नेदथया नरकत्रिज चबनेगतिमलिने ६२ भेदयया हवेदेवताना १९८ नेद कहियेछिये तेनांनामभुवनपति १ व्यंतर २ ज्योतसी ३ वैमानिक ४ तेमध्येप्रथमभुवनपतिनांनाम कहियेबिये असुरकुमार १ नागकुमार २ सोवनकुमार ३ अग्नि कुमार ४ देवकुमार ५ उदधीकुमार ६ दिशाकुमार ७ वायुकुमार ८ विद्युतकुमार ९ स्तनितकुमार १० तथा परमाधामी १५ शिष्यवाक्य-स्वामिएपरमाधामी देवनीचारजातिमां करजातिनाछे. गुरुवाक्य-भुवनपतिनिदशनिकायमांहेली प्रथमज असुरकुमारनीकायनाछे हवेएनुवनपतिना २५ नेदथ याहवेव्यंतरतथा वाणव्यंतरनासोलनेदकहियेछियेतेनां नाम अणपंनि १ पणपंनि २ रखिवाद ३ नुतवाद ? कंदनिकाय ५ कोहंडनी ६ महाकंडनी ७ पनवति ८ जक्ष ९ पिसाच १० भुत ११ राखस १२ किन्नर १३ | किमपुरुष १४ गंधर्व १५ शाम १६ एशोलेव्यंतरनी कायहवत्रिजंचजंबकदेवनादश १० भेदकहियेबियेतेनां - Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. नाम अजंबक १ वथजंबक २ वेणबक ३ विशिया जंबक ४ फरजंबक५अव्याप्तजंबक ६ विभुतिजंबक७. । एटलेएत्रीजंचजंबकनां दशनामकह्यां एनेदवंतरनी कायमांहेजाणवा एटलेभुवनपती तथाव्यंतरमलीनेएका वन ५१ नेदथया हवेजोतिषनादानेदकहिएछिए चंद्र मा १ सुरज २ ग्रह ३ नक्षत्र ४ तारा५ एपांचढीही पमाहेछे तेचलछे नेअढीद्वीपबहारलातेपांचस्थिर एट लेजोतिषबएमलीने दशनेदथया एटलेनुवनपतीतथावं तर तथाजोतसीमलीने ६१ एकसठनेदथया हवेकल्प वासीतथाकल्पातीतएबेना ३८ नेदकाहिएछीए तेमध्ये कल्पवासीदेवना ३ नेदबे कुलविखीत्रा १ देवलोकर नेलोकांतिक ३ एत्रणभेदतेमध्ये प्रथमकुलविखियाक हियेछिये प्रथमत्रणपल्योपमनात्रावखानो सुधर्मकल्प निनिचेरहे १ बिजोत्रणसागरोपमनाश्रावखानोधणी त्रिजादेवलोकनीनिचेरहेजे २ तथात्रिजोतेरसागरोपम नाश्रावखानोधणी छठाकल्पनीनिचेरहेछे ३ एटलेकुल विखियाकह्या हवेबारदेवलोकनांनाम कहियेछिये सुधर्म देवलोक १ इशानदेवलोक २ सनतकुमारदेवलोक ३ माहेंद्रदेवलोक४ ब्रह्मदेवलोक९ ललितंगदेवलोक६ म हाशकरदेवलोक७ सहेसारदेवलोक ८ अनंतदेवलोक९ प्राणांतदेवलोक१० श्रारणदेवलोक ११ अचुतदेवलोक ५५ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ तत्वसारोद्वार. | २२ एटलएदेवलोकनांनामकह्यांहवेनवलोकांतिकनांना मसारस्वतर माइच२ वनहि३ वरुणा ४ गदतोआख५ तरुशियाश्रद अवियाबाह७ अगिवाट रिठाय९ एटले लोकांतिककह्या एटलेकुलविखिया३ देवलोक१२लोकां तिक९ एत्रणमलिनेचोविशनेदथया. शिष्यवाक्य-नगवानकुलविखियातेरॉकहिये. गुरुवाक्य-हेभद्रजेममनुषलोकनेविशे चंमालनंगिया प्रमुखजातिछे तेमदेवलोकनेविशेकुलविखियानीजातिछे जेकोअहियांचारित्रधर्मथकितथाात्मधर्मथकिभ्रष्टथइ नेपोतानो मतचलावेतथापुजावानेअर्थेकष्टक्रियाघणतिप जपविशेखकरेमतजुदोपाडेतेधणीकष्टथकिपुन्यउपारजिने कुलविखियोदेवथायपरंतुअात्मधर्मनोघातक माटेनिचोदे वताथायजेमजमालिकुलविखियोथयोतेमजाणवू तथाजे लोकांतिकडे तेपांचमादेवलोकनेविशे नवक्रश्नराजिछेते नेविशेकनराजिप्रतेविमानछे तेनवेविमानने विशेजेजे उत्पन्नथयातेदेवनेलोकांतिकदेवकहियेतेसर्वेभविहोयहवे कल्पातिततेनाबेनेद निवेकतथाअनुतरविमान तेमध्ये प्रथमनिवेककहियछिये सुदर्शन सुप्रतिबंध२ मनोरमा ३ सर्वतोनद्र ४ विशाल ५ सुमस६ सुमनस७ प्रतिकर ८ श्रादित९ एनवेगरिवेकनांनामकह्यां. हवेअनुतरवीमाननांनामकहिएबिए विजय विजीत Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४३५ २ जयंत ३ पराजीत ४ सर्वार्थसिद्ध ५ एटलेए सर्वे मलीने कल्पातितनाचौदनेदययातथाकल्पवासीना २४ दसर्वेमलीने विमानीकना ३८ नेदथया पूर्वंलीत्र ऐनी कायनादेवना ६१ नेदमांहेनाखीए तेवारेचारेनीकायम ली नवाणुंनेदथया ९९ तेनवाणुप्रजाप्तानेनवाणुं प्रजा प्ता १९८ नंददेवगतिनाथया पूर्वनीवेगतिना ६२ नेद मांहेंघालीए एटलेत्रागतिनामलीने २६० नेदथयाह वेमनुष्यनीगतिना भेदकहिए बिए तेमनुष्यने उपजवानां १०१ एकसोएकक्षेत्रबे तेनात्रणभेद कर्मभुमीनां १५क्षेत्र कर्मभूमीनां३० क्षेत्र अंतरद्विपनां५६ क्षेत्र हवेजक भुमीतेशुंकहीए केज्यासी मसीकसी३ एनोवेहे वारछे एटले सीकेहेतां जेसहस्रादिकनुंबांधवं मसीके हतांजे कागल प्रमुख नुंलखवं कसी केहेतांखेतीकर्म इत्या दिकज्यां संसारवैवारप्रवर्ते तेनेकर्मभुमीकहीए ज्यांए पुर्वेकह्यो तेवेहेवार होय तेने कर्मभुमीकहीए. शिष्यवाक्यः -- स्वामीत्र्तरद्विपमां वेहेवारतोनथी तो एपत्रकर्मभुमीमां केमनगणाय छासीए कर्मभुमी क ही होततोशुंह के हांजुदापाम्या. गुरुवाक्यः -- हेनद्रत्रापीसतालीसक्षेत्र पृथ्वीउपरछेने एछपनक्षेत्र जेबे ते समुद्रमां धरने माटेने अंतरद्विपकही एछीए तेनोविवरोसंक्षेपथकी श्रागलकही शुं. Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ तत्वसारोद्वार. हवेपंदर१५कर्मभुमीनांनाम पांचनरत पांचअश्वरत पांचमाहावीदेह एटलेाजंबुद्धिपनेविशे एकनरतक्षेत्र एकत्रश्रवरतछेएकमाहावीदेहछे एत्रणक्षेत्रबुद्विपमा एमधातकीखंमना पूर्वमांत्रणक्षेत्रबेतथापश्चिमधातकीखं मेंपण त्रणक्षेत्रछे तेमजपुखरार्धनापुर्वमां त्रणक्षेत्रछे त थापश्चिममांपण त्रणक्षेत्रबे. शिष्यवाक्यः-स्वामी पुखरवरद्विपनकह्यो नेपुखरार्ध केमकह्यो तेनुशुंकारणछे. गुरुवाक्यः-जेएपुखरवरद्विप सोललाखजोजननो पो होलोछेतेनामध्यनागनेविशवलिश्राकारमानखेतरनामा परवत १७०० जोजनउंचोएवोपम्यो तेथीत्रमधोद्विप बहाररह्यो नेत्रमधोद्विपमाहेरह्यो तेथीपुखराधकहवा पोएटलेमनुषलोकनेरहेवाना अढीद्विप जंबुद्विप १ धा तकीखंझ २ पुखरार्धतेसमधो एटलेएमानुखेतरपर बतेसिमा मनुषनीजन्ममरणनीथइचुकी तेथकिबहारम नुषनुजन्ममरणनहोय हवेअकर्मभुमिना खेतरनांनाम हेमवंत ५ हरिवर्ष ५ देवकुरु ५ उतरकुरु ५ रमणि कवास ५ अरणकवास ५ एत्रिशखेतरतेमध्येबुद्धिपमां बखेतर एखेतरप्रककालाधे धातकीखंमनापूर्वपश्चिमथ इनेवबेखेतर एटले १२ खेतरलाधे पुखराअर्धनापुर्वप श्चिमथइनेबबखेतरएटले१२ खेतरलाधेएमढीद्विपना Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. ४३७ थइने ३० खेतरलाधे एटलार्मभुमिनाकह्या हवेनं तरद्विपना ५६ क्षेत्रवतावियेछिये जेबुद्विपनोलघुहिम वंतपर्वतनरतक्षेत्रनि सिमाएछे तेनीबेदाढानपूर्वदेशमां ग अनेवेदाढाउपश्चिमदेशमांगइ तेमअइवरतक्षेत्रनि सिमानोसखरीनामापर्वत तेनीपणबेदहाढोपुर्वेग तथा बेदाहाढोपश्चिमेग तेबन्नेपर्वतसोसोजोजनउंचाछे हे मवंतपर्वतनी इशानकोणनी दाढाउपरेतेजक्तीना कोट थकी३००जोजनजइए त्यारेपेहेलोद्विप एकरुकनामा श्रावे तेसमद्रथकीअधर तेदाढाउपरछे तेद्विपत्रणसेंजो जन लांबोपोहोलो तेद्विपनीजक्तीथकी श्रागल४०० जोजनजइए त्यांबीजोद्विप हेकरणनामाप्रावे तेद्विपचा रसेंजोजन लांबोपोहोलो तेनीपेलीकोरनी जक्तीथ की५००जोजनजइए त्यारेत्रीजोद्विप अादरसमखनामा श्रावे ते५००जोजन लांबोपोहोलोछे तेनीपेहेलीकोरनी जक्तीथकी छसेंजोजन६००जइए त्यारेचोथाद्विप हेकर नामात्रावे तेछसें६००जोजन लांबोपोहोलोछे तेनीपे हेलीकोरनीजक्तीथी सातसें ७००जोजनजइए त्यारेपां चमोद्विप असवकरणनामेश्रावे एद्विप७००जोजन लां बोपोहोलो तेनीपेलीकोरनीजक्तीथी ८००जोजनजइए त्यारेबछोद्विप उलकमखनामाअावे तेत्राठसें८००जोज न लांबोपोहोलोछे तेनीपेलीकोरनीजक्तीथी ९००जोज - MA Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ तत्वसारोद्वार. नजइए त्यारेसातमोद्विप घणदंतनामेश्रावे ते९००जोज न लांबोपोहोलो तेसर्वेनीपरघी त्रणगुणीजाजेरीजाण वी जेमतेइशानकोणनी दाढाउपरसातद्विपकह्या तेमहेम वंतपर्वतनी अग्नीकोण नीदाढाउपरे सातद्विपजाणवा ते नांनामअभासी गजकरणरमेढमुख३ गजमुख४सीह करण५ मेघमुखलुसटदंत७ एसातेद्विपनोविचार बा कीपूर्ववतजाणवो तथाहेमवंतपर्वतनीपश्चिम दिशानासम द्रमांहे नैरुतकोणनीदाढाउपरे जेसातद्विपछे तेनांनामक हीएछीए वैखाणी गौकरण२ गोमुखइसीहमुख४ श्र करण५वीदुतमुखकरण नीगुढदंत७ बाकीसर्वपुर्ववत त थातेहीज हेमवंतपर्वतनीदाढा पश्चिनासमुद्रेवाव्यकुणे तेउपरसातद्विपळे तेनांनामलागुलीकी सकुलीकरण२ गोमुख ३वाधरमुख४ करणपरवारण५ वीदुदंतसुधदं त७ एसातद्विप हेमवंतपर्वतनी पश्चिमदिशानी वाव्य कोणनीदाढाउपरे एटलेहेमवंतपर्वतनी चारदाढाउपरे सर्वेमलीने२८द्विपथाय तेमसखरीपर्वतनी पूर्वपश्चिमनी चारदाढाउपरे एनेएजनामना२८द्विपके एटलेएबमलीने उपनद्विपथया तेनेअंतरद्विपकहीए एटलेएसर्वेमलीने म नुषनेउपजवानां १०१क्षेत्रथयां नेएकसोनेएकक्षेत्रनाम नुषनागर्नजनाबेभेद प्रजाप्ताअप्रजाप्ता एटले२०२ने दथया तथा१०१असेनियामनुष अप्रजाप्ताजमरे माटेते Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. - नोएकजनेदलाधे एटले३०३भेद मनुषनाथया ने२६० पुर्वेत्रगतीकहीतेना एचारगतीमलीने सर्वेनेद५६३थ या एटलेएअशुद्धव्यवहारथकी जीवनानेददेखाड्या ह वेजीवत्वपणानो नावदेखाउछे एटलेजीवत्वते चेतनाल क्षणकहीए एटलेचारसंज्ञा सजीवनेविशेलाधेतेनांना म पाहारसंज्ञा नयसंज्ञा २ मीथुनसंज्ञा३ परिग्रहसं ज्ञा४एचारसंज्ञाथकि रहितकोश्संसारी जीवहोयनहि शिष्यवाक्यः--हेप्रभुएकंद्रीनेविसंज्ञाचारक्यांदीसेजे. गुरुवाक्य-हेनद्र उपयोग देनजवेतो एकंद्रीमांप पचारेसंज्ञालाधे जेमवनस्पती तेपांणीमुलथकी लेइने सीखाएपोहोचामे तोएप्रत्यक्षत्राहारलीधोकेनहि तथा नयसंज्ञालजालुफामनेविशेछेकेको पुरुषहाथअरामेतेसं कोचाइनेनमीजायतथामीथुनसंज्ञाखजुरपिरमुखनेविशेने जेनरनोगेरचढेत्यारेखजुरीफलेत्यांसुधीखजुरीफलेनहित थापरीग्रसंज्ञाजेकाकमीप्रमखनावेलापोतानाफलनेपोतेढां कीनेरहे तथारातापुवामीयानांमुलग्यांधरतीमांनीधानहो यत्यांवींटाइनेरहे तेमएकंद्रोनेविशे पांचथावरने एचार संज्ञाहायज बादरद्रष्टी गोचरकोइकनावे शाथकीकेए थावर तेनुकरतव पोतानीज्ञानबुद्धीथकी समज्यामांत्रा वेपणएचारसंज्ञाविना कोइसंसारीजीवनहि. शिष्यवाक्य-स्वामीसीदने विशे एचारसंज्ञापामी Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० तखसारोहार. येकेनही. गुरुवाक्य--सीदनेविशे एसंज्ञानहोय शामाटेकेसीद्ध बेते अात्मस्वरुपीछे संज्ञानेतेपुद्गलीकडे. शिष्यवाक्य-भगवतीजीमां चारसंज्ञानात्मीककहीने नेतमे पुद्गलीककेमकोहोछो. गुरुवाक्य--जेत्रात्मीकसंज्ञाकहिछे तेवेहेवारवचनशा माटेके तेठेकाणेत्रात्माने कर्मसहितमान्यो माटेएठेका णेआत्मीककहि पणत्रात्मीकोनहि. शिष्यवाक्य--स्वामी कोइठेकाणेपद्गलीककहिजे. गुरुवाक्य--केएहीजनगवतीजीनेविशे तथापनवणाप्र मुखघणाशास्त्रमा संज्ञाने पुद्गलोककहिछे तथासंज्ञा श्रो १६ कहिले तेमध्येक्रोधादीक संज्ञामांगणमाटेस र्वेपुद्गलीकछे एटलेसंज्ञासंसारीजीवनेहोयसीद्धपरमात्मा नेनहोय एटलेएवीसंज्ञासहितहोय तेनेजीवजाणवो ह वेतेसंसारी जीवश्राव लखीयेछीये प्रथ्वीकायर्नु २२००० बावीसहजारवर्षमुंश्राव अपकाय-७००० सातहजारवर्षमुंभावखुं तेउकायत्रणअहोरातरीनुं वा युकाय- ३००० त्रणहजारवर्षमुंाव वनस्पतीकाय नुं १०००० दसहजारवर्षावखं थावरपांचेाव जाणवू हवेतरसनुआवकहियेछीये बेरंद्री→ १२ वर्ष || नुं आवखंतेरेंद्री ४९ दीवसनुंचोरेंद्रीतुं ६ महीनानु - - Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार तथात्रीजंचपंचंद्रीजलचरनुं पुरवकोडनुजाण, खेचरपं खीनोपल्योपमनो असंख्यातोनागजाणवो तथाथलचर त्रिजंचनुत्रणपल्योपमनुश्रावसुजाणवू तथाउरपरीसर्पनुं पुर्वकोडनुजाणवू भुजपरीसर्पनुकोडपुर्वनुजाणवू सर्वेर्नु जघन्य अंतरमहूर्तजाणवू. हवेजलचरछमुरबमनुपुर्वको डनुआवद्म थलचरसमुरछंमनु ८४००० चोराशिहजा रवर्षनु खेचरसमुरछंमनु ७२००० बहोतेरहजारवर्षनु उरपरीसमुरब्रमनु ५३००० तेपनहजारवर्षनु भुजपरी समुरछंमनु ४२००० बेतालीसहजारवर्षनुजाणवु हवे सातनर्कनुभावखुंकहियेछिये. पहेलीनर्कनु एकसागरो पमनुश्रावसुंजाणवू नेबिजिनकेत्रणसागरोपमनुश्राव जाणवु त्रिजिनर्केसातसागरोपमनुआवखंजाणवू चोथी नर्केदशसागरोपमनुश्रावखुजाणवू नेपांचमीन सतर १७ सागरोपमनुश्रावखुजाणवू छठीनर्केबावीशसागरो पमनुआवजाणवू सातमीन ३३ तेत्रिशसागरोपम नुआवजाणवू पहेलीनर्के जघन्य १०००० दशहजार वर्षनुभावपहेलीनु जेउतकष्ट तेबिजीनुजघन्य एमजा वतबठीनुउतकष्ट तेसातमीनुजघन्य तथासातमीनर्केश्र पेठाणनर्कावाशे जघन्य तथा उतकष्ट ३३ सागरोपम नु तथाहवेभुवनपतिनुआवखंकहियेबिये. असुरकुमार नीनिकायमां दक्षणदिशाना चमरीइंद्रनु एकसागरोप Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ तत्वसारोदार. - - मनु आवखं तेनिदेवीनुसाडीत्रणपलोपमनुश्रावखं उतर दिशानाबलीइंद्रनु एकसागरोपमझाजेरुश्राव तेनिदे विनुसामीचारपल्योपमनुआवखुं तथानागकुमार प्रमुख नवेनीकायनीदक्षणणिनु १॥ दोढपल्योपमनु श्रावखं तथाउतरदिशानानवनिकायनु बेपल्योपममाठेरुश्राव तेबेश्रेणिनादेवंगनानु श्रावखं तेनीनिकायनादेवथीअरच नुश्रावटुंजाणवू तथासर्वभुवनपतिनुजघन्यथी १०००० दशहजारवर्षनुावखुंजाणवू हवेव्यतरनीनिकायनुउतक ष्टएकपल्योपमनुश्रावसुंजाणवूने जघन्य १०००० दश हजारवर्षनुश्रावटुंजाणव॑तेनिदेवीनुरधापल्योपमनुजा एवं चंद्रमानुएकपल्योपमने १००००० एकलाखवर्षनु श्राव सुरजनुएकएकपल्योपमने१००० एकहजारवर्ष नुश्रावग्रहनुएकपल्योपमनु नक्षेत्रनु ०॥ अडधापल्यो पमन तारान । पापल्योपमनुआवखं तेनिदेवीयोनसर्व सर्वनादेवथकी ॥अडधजघन्यथकीसर्वेने पल्योपमनो आठमोभाग हवेविमानिकनुश्राव कहियेछिये सुधर्म देवलोकेजघन्य १. एकपल्योपम उतकष्ट बेसागरोपमनु श्रावखं तेनिदेवीनुसातपल्योपमनु श्रावखं त्यां अपरग्र हितादेवीनछे तेनु ५० पचाशपल्योपमनु आवखं तथा इशानदेवलोके बेसागरोपम झाझरानुतथानिदेवानु९ नवपल्योपमनु त्यांअपरग्रहितादेवीन तेनु५५ पंचावन Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. पल्योपमनश्रावसुंबे सनतकुमारदेवलोके सातसागरोप मनुप्रावखं देवंगनाहवेहियांथ की छेनहि जघन्य श्राव खनिचला देवलोके उत्कष्ट होयते उपले देवलोके जाणवुं एटलेग्रहियांचे सागरोपमनुश्रावसुंछ तेमसर्वेदेवलोकेस मजवुं चोथेदेवलोकेसातसागरोपमझाझेरानु श्रावखुंजा एवं पांचमेदेवलोकेदशसागरोपमनु यावखुजाणवुं बठे देवलोके चौदसागरोपमनु श्रावखुंजाणवं सातमेदेवलो के सत्तर सागरोपमनुत्रावखुंजाणवुं श्रामेदेवलोके ढा रसागरोपमनु नवमे १९ सागरोपमनुश्रावसुं दशमे २० सागरोपमनुश्रावखं श्रगियारमे २१ सागरोपम नुत्रावखु बारमेदेवलोके २२ सागरोपमनुत्रावसुं हवे नवग्रहिवेकेप्रथम नर्कमध्ये हेठेनीग्रहिवेकनु २३ तेविश सागरोपमा बिजि २ ग्रिवेके २४ चोवीशसा गरोपमनुप्रावखं ३ त्रिजिग्रहिवेकन २५ पचीससाग रोपमनुप्रावखं हवेमध्यनर्कनापहेलीग्राहिवेकनु २६ सा गरोपमाव बिजिग्रहिवेकनु २७ सतावीशसागरो पमनुप्रावखं त्रीजीवेकनुं ठावीससागरोपमनुच्या वसुं हवेउपरलीनरकना पहेलीयैवेकनु २९ सागरोप मनुश्रावखं बिजियैवेकनु ३० सागरोपमनुश्रावखं त्रिजियैवेकतु ३१ एकत्रीससागरोपमनुत्राव खुहवेपा चच्चनुतरविमाननुच्खावखुंकहियेबिये तेमध्ये चार तर ४४३ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. विमाननुत्रावखंजघन्यथी ३१ एकत्रिशसागरापमनुउ तकष्टु ३३ तेत्रिशसागरोपमनुप्रावखंडे तथासरवार्धसि धविमानेजघन्य तथाउतकष्टु ३३ तेत्रिशसागरोपमनु श्रावखुजाणवं एटलेएदेवनुत्राव खुंकयुं. ४४४ हवेमनुष्यनुत्राव खुंकहियेछीये देवकुरु तथाउत्तरकुरु नाजुगलीयानुंत्र्यावखु ३त्रणपल्योंपम हढीवर्ष तथा रमणीकवासना जुगलीयानु २ बेपल्योपमनुं श्रावखुबे हेमवंत तथा रणकवास खेतरनाजुगलीश्रानुं १ एकप ल्योपमाखु तरद्वीपनाजुगलीच्यानुंपल्योपमनात्र संख्यातानागनुंबे हवे कर्मभुमीनामनुष्यनुं श्रावखु एकको पूर्वनुंबे माहावीदेहखेतर मांजाणवं तथापांचमेश्रारंभ रतऐरवरतखेतरने विशे ११० एकसोनेदसवर सनुत्रा वखु जाणं तथा बठे श्रारे २० वरसनुं श्रावखु जावं तथा सेनीयामनुष्यनुं अंतरमहूरतनुं श्राव खुजाणवं गरजजतथा प्रसेनीयामनुष्यनुं जघन्य थकी अंतरमहुर्तनुं प्रावखंजाएवं एटले मनुष्यनुंत्र्यावखुंक ह्युं तथा सर्वजीवनुंश्राव खुंकहथं शुद्धनिश्चयनये विचा रीने जोइयेतो चेतनजेवासिद्धपरमात्मातेवोजचेतनबे चे तनसत्तानेविशे जमसत्ताजुदीछे माटे चेतनचेतनना रुपमांजळे. शिष्यवाक्य - हे भगवान चेतनपोतानाज रुपमांबेतो Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४४५ चारगतीसंसारमा परीभ्रमणकर जन्ममरणनांदुखसे हेवांतेवं केमथाय. गरुवाक्य-हेमानभावजेधणीयपोतानाचेतननी भलेज डनेपोतानो मान्योछे त्यांसुधीदूखीछे पणपोते पोताना स्वरुपनेविशे भासनकरेपीव्यापकपणकरे पछीरमण करेतोतेनेकांइये दुखहोयनहीअत्रद्रष्टांतजेमकोइपुरुषमा हाडाह्यो विचीक्षणनेने तेजपुरुषेमदीरापानकरयुं तेनाके फथी गफलतीथयो तेवारेते असुचीजग्यानेविशेपडेअने पवीत्रापणंमाने रस्तामांपमेने घरमानेपरंत तेजीवनो जेवारेकेफउतरे तेवारेतेअसुचीनेसचीमाने रस्तानेर स्तामानेपोतेपोताना घरमांजइनेबेसे प्रथमकेफमांश चीने शुखमानीनेपड्योहतो तेभ्रमणाबधीए मटीजाय तेमाचेतन अज्ञाननाजोरथकी मिथ्यारूपधमजालमां पन्योछे तेधणीसर्वपद्गलन करतवतेनेआत्माजाणे तेथ कीकरिनेचारगतीसंसारमांरखम्वानथाय जन्ममरणादि कदुखसहेजेवारे ज्ञाननासनथाय तेवारेजडनंकरतव स खोटंजाणे पोतेमांहीप्रवेशकरेनही तथाबीजेद्रष्टांतेजे मफटकरत्ननो एकथन तेथंभनेएकदीशायेलालपत्रबां धीयेएकदिशेशांमबांधीयजेवारेलालपत्रबांध्याहोय तेवा रेफटकलालदीशे शांमफटकवांध्युहोयतेवारे फटकश्या मदीशे अपीतुंफटकतो शामेनथीनेलालेनथी फटकतो - Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४६ तत्वसारोदार. | निर्मलस्वनावेज तेमाआत्माराग द्वेषरुपजेलाल श्यामरुपपत्रछे तेथीलोकमांसारोनबलोकेहेवायचे पण आत्मामुलस्वनावे जोइयेत्यारे तेनेकांरागद्वेष नही रागद्वेषतोजड अात्मातोनीराकार नीरंजन आत्मा नेविशेतो ज्ञान दर्शन चारित्र राजेएवीरीते जेत्रात्माने ओलखीनेजेरमणकरे नेजेशक्तिभावेसत्तानेविशे अनंती रिद्वीरही तेव्यक्तिभावकेहेतांसर्व प्रगटकरे तेनुंकल्या णथायएटलेएजीवतत्वकटो-१हवेसंवरतत्वकहीयेछियेए टलेसंवरकेहेतां श्रावताकर्मनेरोकवां तेनेसंवरकहिये ते संवरनात्रणभेदछे मनसंवर१ वचनसंवर२ कायसंवर३ कायसंवरकेहतांजथको आथवावेएवांकामकायाएक रीनेकरे तथावचनसंवरकेहतां जेबोलवाथकी श्राव श्रावतेवू वचननबोले तथामनसंवरकेहेतां जेमनथकीत्रा श्रवत्रावे एवूमननरमाडे एसंवरतेसर्वे वेहेवारबेनिश्चय थकीत्रात्मा पोतानास्वरुपमारहेतेने संवरकहिये. शिष्यवाक्य-स्वामीअमेतोपुर्वे संवरना ५७ बोलसां नल्याछे तेतमेकंइकह्यानही अनेतमेतोआत्मानो संवर कह्योतेतो अमेपुर्वेसांनलेलुनथी. गुरुवाक्य-हेनद्रसतावनबोलजेते संवरनासांनल्या ने तेमधेकेटलाएकबोलतोवेहेवार कोश्कबोलनीश्चय तेमधे जेवेहेवारसंवरछे तेथकीकोजीवनी मुक्तिथा Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. यनहीएतोअंतेपण श्राश्रवजथाय अनेजेनिश्चयसंवर छेतेथकीज धर्मथायअनेमकेपण तेथीजजाय. शिष्यवाक्यः-स्वामी तेनोएटलोबधोफेरकेम तेनीस मजपामो. गुरुवाक्यः-हेनद्रएसतावनबोलनीतिने तेहुंतनेकहुं तेतुंसांनल प्रथमसतावननाम तेकहिएछीए इर्यासु मती १ नाषासुमतीर एखणासुमती३ श्रादाननीखपणा सुमती ४ परीठावणीयासुमती मनगुप्तीध्वचनगुप्ती ७ कायगुप्ती ८ क्षुधापरिसह ९ त्रिषापरिसह १० शितप रिसह ११ नश्नपरिसह १२ डंसपरिसह १३ अचेलप रिसह १४ अरतिपरिसह १५ स्त्रीपरिसह १६ विहार परिसह १७ नीखेदपरिसह १८ सज्यापरिसह १९आ क्रोसपरिसह २० वधपरिसह २१ जाचनापरिसह २२ अलानपरिसह २३ रोगपरिसह २४ त्रणफासपरिसह २५ मलपरिसह २६ सतकारपरिसह २७परिज्ञापरि सह २८ अज्ञानपरिसह २९ समकीतपरिसह ३०क्षमा ३१ मार्दव ३२ आर्जव ३३ मुत्ती ३४ तप ३५संजम ३६ सत्य ३७ सोच ३८ अकंचन ३९ ब्रह्मचर्य ४० अनित्यनावना ४१ अशरणनावना ४२संसारनावना ४३ एकत्वनावना ४४ अन्यत्वनावना ४५ अशुचीभा वना ४६ आथवनावना ४७ संवरनावना ४८नीर्जरा - Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ तत्वसारोद्वार. भावना ४९ लोकभावना ५० बोधदूर्लभ भावना५१ ध भावना ५२ सामायकचारीत्र ५३ बेदोपस्थापनीय चारीत्र ५४ परीहारवीशुद्धचारीत्र ५५ सुक्ष्मसंपरा यचारीत्र ५६ जथाखायकचारीत्र ५७ एसतावन बोलसं वरनाबे तेमध्येघणाबोलवे हे वारदी से छे केमके प्रथमजपां चजेसुमतीले तेश्रात्मग्राहीनथी शामाटेजेप्रथमइरीश्रासु मतीजे साधुने धुंसराप्रमाणे केहेतां सामान्त्रणहाथद्रष्टीरा खीनेचालवं तेपरजीवनीदयात्रा श्रीनेछे तथापोतानाप डवात्राखडवा श्राश्रीनेछे तेवीसुमतीज्ञानविना घणा जीवपाले तथाभाषासुमतीजेछे तेवचनथकी कोइजी वने बाधापीडाथाय एवंवचननबोलवं तेपणपरजीवच्या श्रीनेबे तथापोतानुमानराखवाश्रा श्रीनेछे तथात्रीजी एखासुमतीछे तेपण एकंद्रियादिक जीवनेर खोपा श्रीने शामाटेजेगोचरीनाजे दोषटालवा तेमुख्य तापणे पकाय तथा निकाय तथावनस्पतिका य प्रमुखजीवनुंरखोपुढे तथाचोथोत्रादानसुमती तेजण शनावलेवी मेलवी ते पुंजीप्रमार्जिनेलेवी तथामुकवीतेप परजीवनीदयात्रासरीने तथापांचमीपरीठावणीच् सुमती के हेतां जेाहारपाणीवस्त्रपात्र लघुनीतवडीनीतप्र मुखजेजेपरठवं ते सर्वे जग्यापुजीपरमार्जिनेपरठववुं तेप परजीवनीदयात्रासरीने तथामनगुप्तीकेहेतां मनने Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४४९ - आर्तरुद्रध्यानमांजावानदेवं जातांनेरोकवू तथावचन गुप्तीजे वचनविनाकारणेउचारणनकर अनेजेउचारण तेपणकोजीवनेबाधापीडाथाय एवंनकरवं तथाकायगु प्तीकेहेतां जेकायाएकरीने जेजीवनीहिंसाप्रमुखनिपजे तेकामनकरवां एटलेएपंचसुमती तथात्रणगुप्तीएपाठ प्रवचनमांतोकहेवाय तेजमालीप्रमखघणा जिवेपाली पर्णकांइतेजिवनीकारजसिद्धिथइनहि अनेनगवानेएने निन्नवमांगण्या तेप्रतक्ष सिद्धांतबोलेछे माटेएनेतेव्यव हारजजाणवो एनेविशे कांइत्रात्मानीकारज सीदिदि सतीनथी. शिष्यवाक्यः-स्वामीजोएनेविशे आत्मानीकारजसि दिनथीतोसिद्धांतनेविशेठेकाणेठेकाणेअष्टप्रवचनमातानी वारताकमलाव्या. नेएवादेखीनेतेनेसाधूजाणे तेनेमि थ्यात्वलागे. गुरुवाक्यः-हेभद्र एकल्पव्यवहारछे एथकीबाल जिवधर्मपामे नेसाधूनागणबाहाजथकी देखीनेसाधु माने माटेएनेकां मिथ्यात्वलागेनहि एटलेसाधुधा वकनीनलखाणपणएथकीथाय तथासाधुनोव्यवहारघ गोसारोदिसे तथापरजिवनीदयापणरहे तेकारणमाटे सिद्धांतमांएवारतालावेलाछे तेकरतांसिद्धांतनीमांहेली कोरेव्यवहारनीपुष्टिघणीकछे शामाटेकेत्यांत्रणनयनीवा ५७ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तलसारोद्वार. - रतारहीछे. निगम १ संग्रह २ व्यवहार ३ चारनय नीवारता सिद्धांतमाथीकहाडीनारखीछे तेअधिकारसम्य कद्वारग्रंथथकी जाणजो पणतेअष्टप्रवचनमातानेविशे श्रात्मस्वरुपनीरमणतानथी अनेज्यांत्रात्मस्वरुपनीरम पतानहित्यांकांइधर्मनहि अनेजात्रात्मस्वरुपनीरमणता विनाअष्टप्रवचनमातामां धर्महोततो जमालीप्रमुखने निन्नवनकहेता माटेत्रात्मस्वरूपनी रमणताथकीधर्मत थामक्तिछे पणतेविनानथी. हवे बाविसपरीसहनी समजपाडु तेसांनल प्रथ मजेक्षुधापरीसह कहेतांजे क्षुधा वेदवीएथकिकांना स्मानुकल्याण नासणथतुनथी शामाटेजे त्रिजंचपंचं द्रि घोडा ढोरां प्रमुखबहू क्षुधावेठेने पणकांइतेनुका रजथतुनथी नेक्षुधावेठ्याथी कारजथायतो तेजजिवन कारजथाय तथातृपापरीसहकहेतांजे जलनीपियास नोगववीतेनेविशे कांइआत्मकारजनथि शामाटेकेजो एथकीकारजथायतो बपैत्राप्रमुखजानवर मोक्षेगया जोइये तथाउष्णपरीसह कहेतांजेतापसेहेवोतेथकीपण कांइमुक्तिथायनहि केमकेबलदघोडारोझ खच्चरप्रमुख जनावरसदाय तडकेजरहे पणएतापथकीपणकांइते निसिद्धिथइनहि तथासीतपरीसहकहेतांजटाहाडसेहेवी तेपण सर्वपंखीतथाढोरतथानिलप्रमुखघणामनुष्यतेप Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. एसितसहेछेपणतेनुकांश कारजसिद्धिथतुनथी तोबिजा नुक्यांथकीथाय तथामसपरीसहकहताजे मंस,मछर,चां चड, मांकण, इत्यादिक परीसहसेहेवोतेपरीसहथकी कारजसिधिहोयतो सर्वजानवरतथापंखीने विशेषथकी थायजे नेमनुष्यनेसामान्यप्रकारेने एपरीसहथकीजोमु क्तिथतीहोयतोप्रथम जानवरादिकनी सिद्धिथवीजोइए पछीमनुष्यनी सिद्धिथायपरंतुसतास्वरुपलख्याविना कोइदिनमुक्किथवानीनथी तथाअचेलपरीसह कहेतांब स्त्रादिकनराखवू तेनाबेनेद डिगंबरनेमतेबिलकुलनरा खश्वेतांबरनापक्षना बेनेद सिद्धांतनोतथाभावशकनो सिद्धांतनापक्षथकीजोतां कोश्कसाधुवस्त्रराखे तथाप्रश्न व्याकरणसूत्रनेमते बधाएराखेएवंनासेले परंतु बिजा सुत्रना मतथकी भासणनथी थतु तथा श्राचारंगजि वालाएवंकहछेके कोइसाधूथीसीतपरीसहनखमायतो एकतथाबेतयात्रणपोंडीराखे पछीसीतकालगयाथीन सरावेअथवाकोइनसरावे तथाकल्पमुत्रनीटिकाप्रमुख नेविशेश्रार्जरक्षितनामाजुगप्रधाने पोतानापितासोमल नामाब्राह्मणनेदिक्षादिधी तेवारतेनेसर्वधर्मसाचनास्य पणचलोटो कहाड्योनहोतो शाथीके लज्जापरीसह न जिताणो तेथकीतोयपणश्री आर्जरक्षितजुगप्रधाने बहुमहेनते जुक्तियेकरीनेकढाव्यो तोतेजोतांवस्त्रनाषण - Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ तत्वसारोहार. थतुंनथी श्रावशक नेमते हाथवे नोकटको बेकुणीवचेदाबी नेचाले इत्यादिकविचारछे एसर्वेने चेलकजकहिये. ते चेलक परीसहथकी मुक्तीथाय तेपाकांइसनवतुं नथी शामाटेजेजानवर मात्रतोस अचेलकबे तथाम नुष्यनेविशे वाघरीप्रमुखघणालोको तुछवस्त्रनाधारीछे तेमनांच्यंगपणपुरां ढंकातांनथी तोतेनीमुक्ती प्रथमथवी जोइयेपणतेकांइथतीनथी मुक्तीतोपोतानाश्रात्मस्वरुप थकीछे तथाप्ररतीपरि सहकेहेतां शाताएटलेशरीरा दीकने अथवामननेमान अपमान प्रमुख प्रादेदेइने शा ताउत्पन्नथाय एशातापरिसह सेहे वोते ठीकछे समभावे रेहेवायतो श्रात्मीककारजछे जोश्रात्माप्रोल खेता नही तो पणवेहेवारछे केमके एवाघणाजीव मानापमानस मनावेगलेछे तेजोगीवेरागी तथाच्छीसमजवालाजीव तेपणसर्वे समभावेरेहेछे परंतु मांकांइकारजसीडीथायन ही जोश्रात्मस्वरुप नेोलखनितेने पुद्गलीकभावजाणीने समजाव रेहेतो तेनुंकारजसीडीथाय तथास्त्री परिसह के हे तांस्त्रीयादीकनाप्रावनावदेखीने मनचपलथायते परिसह सेहे वो परंतु ते परिसह सेहे वाथकीतोकारजनीसीद्धीनहि शामाटेके खाखीसन्याशी परमहंस पर मुखघणा जोग नेसाचवेवे तथाघोडापरमुखजानवरपणपरवशरह्याथकी पाले तथाकेटलाक मनुष्यनेश्रणमलते सचवायचे तथा Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - तत्वसारोद्वार. १५३ मलतेपणघणाधर्मवाला साचवेडेपणतेनुकांइ कारजसी द्वीथायनहि. . शिष्यवाक्य-केस्वामीतेतोजैन-धर्मपाम्यावगरमोक्षे जतानथीपणजैननुधर्मपामेतेमोक्षजायकेनहि. गुरुवाक्य-केजैननाधर्मनोने अन्यमतनाएधर्ममांशो फेरछेएवरततो सर्वेनेसरव॒पालवानुंछे माटेएवरतश्राश रिने काइजैनमांने अन्यधर्ममांकशोफेरनहि परंतु ननोएफेरछेकेजे खटद्रव्यनीओलखाण तेमध्येथीपांचद्र व्यनोत्याग एकात्मधर्मनुश्रादरवु तेनागुणप्रजाय स हितओलखाण करवीतेनेभेदज्ञानकहिये तेजअनेदज्ञा नपणेथाय तोमुक्तेजायमाटेज्ञानमांज मुगतीरहिछेतथा विहारपरिसह केहेतांजेचालवं तेनोश्रमतथागामगाम जायगानवीगोतवी तथाश्राहारपांणीसा वीहारमांउत्प नथायतेपरिसह शेहेवाथाकीकोइकहेशेके मुक्तीथायते वातपणसंभवेनहि शामाटेजेश्राजीवीकाथकीलोकोघणा गामोगामफरेछे नेपरिसहसेहेछे तथाश्रन्यमतीनानेख धारीपणसर्वे एमजपरिसहसेहेछे तथाघोडाप्रमुखवीहा रनापरिसहसेहेछे पणतेनुकांइकारजसीडीथतुनथी तथा नीखेदपरिसहकेहेतांजे लोकोमुंअपमानकरे नेपरिसहसे हेवोतेथकीपणको केहेशेकेश्रात्माकर्मरहितथाय तेवात संभवेनहिसामाटेजेघणानीक्षुलोकोघरघरभटकेछेनेतेलो Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तलसाराद्वार. कोतेनेघणुनी,छेतथास्वाननेघरघरथीमारीनेलोकोकाढी मुकेछे तोएपरिसहथकीकारजसीडीथाततोएटलानेथवी जोइये परंतुकारजसीदीतोएकात्मज्ञाननेविशेछे तथा सज्यापरिसहकेहेतांभुमीतथापाटप्रमुखनी जोगवाइसा रीमलीअथवानबलीमलीतोतेपरिसहसेहेवो तेपरिसहथ कीपणकांइकारजथतुदीसेनहिकेमकेजेघणालोकोवीसम जग्यानेविशेपणरेहेछेतथाजनावरपणविसमजग्यानेविशे बेसेसुवेछेतेथी कांइतेनुंकारजथायनहि तथाप्राक्रोसपरि सहकेतांकोइत्राक्रोसकरिवचनकहे अथवामरमनांवच नकेहेतेपरिसहसेहेवोतेनोविचार पुर्वेनखेदपरिसहमांक ह्योछेतेथकीजाणजो तथावधपरिसहकेहेतां कांइताडेछेदे भेदेतेपरिसहसेहेवो परंतुकांइतेपरिसहथकीपणकारज सीद्धियायनहि शामाटेजे त्रिजंचनीगतिनेविषेएकएक नाछेदननेदनघणाकरेछे तथामनष्यपणतेजीवोनेछेदन नेदनकरेछे तथामनुष्यमनुष्यनेपणछेदनभेदनकरेजें त थावाघरीथोरीप्रमखनीचजातिनेतामनातरजनाघणीथा यछे तथाउंचलोकोमांपणथाय तेप्रत्यक्षजोवामांश्रावे पणकांइतेनीकारजसीद्विथतीनथी.. शिष्यवाक्यः-स्वामी तेलोकछेदननेदनखमे तेनेकां इसमताप्रणामनथी नेसाधुलोकोतो समताथकीपरिसह सेहेतेमाटे तेलोकोकारजसीदिनथाय नेसाधुलोकोनुं - - Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. - - कारजसीद्धिथाय. गुरुवाक्यः-हेनद्र समताकांइएकप्रकारनीनथी शामा टेजे कारणकारणजक्तसमताने एकतोसमताकेतां सामोपु रुषवोल्यो तेनासामनबोले तेवारेपोतानामनमांविचारे के बंन्नेसरखाबनशुं माटेपोतानीमोटमराखवानेनबोले तेपणसमताकहिए तथाबीजोभेदसामोपुरुपबोल्यो तेपो तानीसमजमांजनहि केवलमुर्खपणेजेकहे तेनीहातेपण समताकेहेवाय तथात्रीजेनेदे राजाप्रमुखनासामुंवोलवा नीपोतानीप्राप्तिनथी त्यांपणसमताराखवीपमे नाराखे तोउलटुंविशेषपेदाथाय तेनेपणसमताकहिए तथाचोथो भेदसामानाबोल्याप्रमुखपेटमांराखे मुखथकीकेहेनहि लोकमांघणासमतावानजणाय परंतुजेवारेपोतानोत्रव सरावे त्यारेतेएवेरले तेपणएकसमता तथापांघमोभे दजेज्ञानमांसमजेनहि अनेमटकवेरागथकी पापनोभय राखीनेसमताराखें तेपणएकसमताइत्यादिक बहुप्रका रसमतानाछे पणतेथकीकांइकारजसरेनहिजेवारेआत्म स्वरुपनी अोलखाणथइहोय नेपुद्गलनाबंधउदेउदीरणा नानावसमजतोहोय पछीअात्माथकी एवोविचारथायके एश्रात्मानाबांधेलां कर्मपनाउदेश्राव्यांछे तेनोगव्या विनाछुटेनहि नेसामापुरुषने एवोजकर्मनोउदेछेके उल टाकर्मचीकणाबांधे एमपुद्गलनुस्वरुपविचारतारागद्वेष Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ तखसारोहार. - नउठे तेवारेश्रात्मस्वरुपमास्थीरथायतेनेसमभावकहिए नेतेनुनामसमतातेथकी अनंताकर्मनिर्जरे माटेएसमताते समतामांगणाय बाकीसमतान्तेवस्तुताएजोतांसमता जछे तेमाटेवधपरिसहथकीकांइमुक्तिनहि मुक्तितोपोता नास्वरुपरमणमां तथाजाचनापरिसहकेहेतांजेघरघर निक्षामागवी तेएकमोटोपरिसह तेपरीसहनसहन करवू परंतुतेथकी कांइकारजसरेनहि केमकेघणाभि क्षुलोको तथासारामाणस श्राजिविकाथी हिणथये थकेलज्जामुकी नीक्षावर्तीकरे तथाअनदर्शणनानेख धारीपणसर्वेजाचनावर्तीएज आजिविकाछे तेथकीपण कारजसीद्विथायनहि अनेजोकामथतहोयतोते पहेलुंथ कुंजाइए तथाअलाभपरीसह कहतांजाचनाकरतापगव स्तुपाम्यानहि तेनेलानपरीसहकहिये तेपरीसहपण सर्वेजाचकलोको तथाभिक्षुलोकोसर्वेश्रणमलवाथीसंतो षकरीनेबेसेडे तथाघ्रहस्तीपगएकएकनेघेर वस्तुजाचवा जायनेनमलेतोसंतोषराखे तथाजनावरपण घासदाणो मलेतोनलेनमलेतोसंतोषराखीनेबेसे एमसर्वेजिवनी एजनितीछे कदापीकोइजिवउत्पातीयाहोय तेहायवरा यकरपणतेकांइपरीसहथकीकारज सीखियायनहि तथा रोगपरिसहकेहेतां शरीरमांरोगावी उत्पन्नथएथके प रिसहसेहे परंततेपरिसहसर्वेजीवसेहे कोणमनुष्य वा Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. कोणजानवर तथा सम्वे समसाधुने पणकरवांकह्यांबे साधुकरे नेते दुखनोनिरवाह समताराखीने करवो ते सर्वे निर्वाहकरे को उत्पातीनहोय तेहायवरायकरेपरं तुरोगनुच्चावखुत्र्यावीरह्यावगर रोगजायनहि माटेएप रीसह सहेवाथ की कांइमुक्तिकहेवायनहितथात एफासपरी सहकहेतां मानप्रमुखघासना संथारानाफरसकठणछे तेमुनी निर्वाहसमताथी करे परंतु ते परीसह सेहेवाथ की मुकि मलेते तो नवेनहि शामाटेजेकोलीभिलप्रमुख घासमां जपज्वारह्याबे तथाजानवरपणघासमां बेसेउठेबे तथा खेतीवाला लोकशियालो श्रावेथके परालनाढगलामांज बेशीर माटेएप सहतोपराए घणा जिवनासहेवामां श्रावेछे पते कोइनुकारजथयुं एवुकोइनासांजल्यामां श्राव्यंनथी तथामलपरी सहकहेतांजे शरीरेमेंलतथापर सेवोवलेतेपरीसह सहवो तोतेपरीसहबंधिवान लोकोरा जद्वारेछे जेने केदथनृत्यांथी मांडिने ज्यांसुधिकेदमां रहेत्यांसुधिहजामततथा नाहाबुंतथालुगमांधावां एसर्वे बंधछेतोते लोकोने एपरीसहबराबरनोदिसेछे माटेजीए परीसहथकीकारजसिद्धीथाय तोतेलोकोनीथविजोइये परंतु श्रात्मस्वरुप लख्याविना कारज सिद्धिबेनहि तथा सत्कारपरी सहकहेतां सनमानपामवाथकी मनमांत्रनि माननकरेतेपरीसहपणकपटी तथालोभिपुरुषनलिरीते મા . ४५७ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. सहेतथागफलत मनुष्यपणस हे तथाजनावरमात्र नेपण एपरसिह माटेमानपामवाथकी श्रभिमाननथयुं तेथकी कांविनाशी सुखम लेन हि अविनाशी सुखतोश्रात्मानिर्म लथयेमले तथापरिज्ञापरीसह कहेतांजेज्ञाननु विशेष पणेजाथाय तेनोमदनकरवो एपरीसह जोनस हेतो के वलनपामे परंतुधर्मथकी भ्रष्टनथायसमकिततेनुंजायन हि कदापिते की प्रतिशेमदथइजायतो प्राकरुकर्मउपा रजे परंतु समकित जाय जेममहारुसमहातुस नामामु निपुर्वेज्ञाननोमदघणोकरचो तेथकीयानवनेविशेतेज्ञान त्रावरणउदेश्राव्यं तेथिश्रगियारश्रंगन एयाहतातेनु लिगया परंतु समकित तथाचारित्रकांइगयुंनहि नेएजन वनेविशेछे तेकर्मनाउदेनोक्षयकरीने केवलज्ञानपामिने मोक्षेगया तेमएज्ञाननामदकरवाथी ज्ञाननुत्रावरएवं धायमाटेज्ञाननो मदनकरवो तेज्ञाननावेनेदछे व्यवहार ज्ञानतथानिश्चयज्ञान व्यवहारज्ञानते वैदक जोतिष रा ज्यनीति शृंगारशास्त्र कलाशास्त्र अन्यमतिनांशास्त्र एस व्यवहारछे तथाजैनशास्त्र नाचारभेदबे ४ तेमध्येगण ताणुजोगकहेतांजेद्विपदेवलोक प्रमुखजे लांबा पहोला परद्विप श्रादेदेइनेमानबांधवं ते सर्वेगणताणुजोगकहिये तथाधर्मकथानुजोगकहेतां जेनेविशेधर्म करवाथकीपा म्यातेनिकथानकहेवि तेधर्मकथानुजोग तथाचरणकरणा ४५८ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४५९ - नजोगकहेतां जेचरणशितरीना ७० बोलपंचमहाव्रत आदेदेइनेतथाकरणशितरीना७०वोलपलेहपप्रमुखआ देदेइनेएनोजेविचारएजचरणशितरीकरणशितरीनंजेकहे qसांनलवंतेने चरणकरणामुंजोगकहिये तेत्रणेजोगव्य वहार त्रणेपुन्यप्रकृतिनाहेतुने तथाचोथोद्रव्यागुंजोगके हेतां जेद्रव्यगुणनेपरजायनोविचार नयनीक्षेपासहित स्यादवादजाणवू तेकेहेसांनलवू तेनेशुद्धव्यवहारकहि ये पणश्रात्मानोउपियोगमाहेरमतोहोयतो नहितो पूर्व नाव्यवहारमांगणीये अनेतेजद्रव्यगुणपरजाय अभेदप ऐग्रहिनेरमणताकरे तेनेनिश्चयज्ञानकहिये माटेएज्ञान जेनिश्चय ज्ञाननोसमजुतेनेमदावेनहि कदापिकोइक मनाउदेथकीमदावेतो संनालीलेवो तेघणीनात्रात्म नीसिद्धिथाय तेनिःसंदेहजाणवू तथासमकितपरिसह केहेतांजे समकितमांमुझावुनहि शामाटेजेसमकितने ते अभ्यंतरात्मानीरमणतामां नेकदापिसमजवामांबरा बरनआवे तोपणसदहणापाकीराखवी पणमुझावुनहि एटलेसमकितकेहतांश्रद्धा-नामछे तेव्यवहारश्रद्धादेवग रुधर्मनेकहिये परंतुनिश्चयश्रद्धातो खटद्रव्य नक्तत्व न यनिक्षेपाप्रमुखेकरिने श्रात्मउपियोगसहित जेजाणप गुंतेनेनिश्चयश्रद्धाकहिए अथवातेनुजाणपणुं तेनेनहोय तो नवतत्व खटद्रव्यनावेकरीने सदहवाएटलेएबावीशे - - - - Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तबसारोदार. |परिसहकह्या. शिष्यवाक्यः-हेभगवंत तमेकेटलाएकपरिसहनी मां हेलीकोरे अन्यमतिनो तथाग्रहस्थिनो तथानिक्षुनो तथा जानवरनोद्रष्टांतदेइने तेपरिसहमेंमुक्तिनीनापाडी परंतु तेजीवतोश्रज्ञान तेअज्ञानपणेजेकर तेनीमुक्तिशानीहो य तथापरिसहपरवशपणेसहे तेनीमुक्तिशानीहोयपणजे पोतानेवशपणे संसारनांसूखछोमीनेसाधपणंलीधं ने जाणीनेपरिसहसहे तेनीमुक्तिकेमनहोय एअमारामनमां मोटीशंकाछे. गुरुवाक्यः--तेजेका केसंसारमुकिनेनिकल्या तेनेप रिसहथीमुक्तिजोइये तेबातएमनथी जोपरिसहथकीमु क्तिहोय अनेसंसारमुकवाथकीमुक्तिहोयतोजमालीए रा जधानीबोडीनेदिक्षालीधी अनेपरिसहपण जावजीवसु धीमनुष्यना तथादेवना तथात्रिजंचनाउंचनातेसह्या परं तुअनंतसंसारीथया पणमुक्तिथइनहि. शिष्यवाक्यः-स्वामीएतो वचननाउथापकथया माटे संसाररखमया परंतुापणेतोकोइहमणांउथापकतोछेज नहि माटेतेनोपरिसहधर्ममांकेमनगवेख्यो. - गुरुवाक्यः-हेनद्र तरणानाचोरने शुलीनोहकमथाय त्यारेजकरोमोधननोचोर तेनेसोदमदेवाय तोतेनोदंडतो हवेकांइसंभवतोनथी शाथीके तरणासाटेशुलीथइ नेशु Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. लीथीअधीकदंडतोबीजोकाइसंभवतोनथी तेमइहांजमा लीतोएकमात्रानोचोर केमकेनगवानकहयंकेकरेमाणेक संएटलेकरवामांम्युं तेनेकरघुकहिये नेजमाली-केहेएने के करुमाणेकरु एटलेकामपूरुथइरहे त्यारेकरयुंकहियेए टलुएकमात्रावचनफेरव्यु तेथकीनंतोसंसार वधीगयो तोअहियांतोहालनासमाने विशेतोसर्वसुत्र उथाप्यांडे केमकेमोढेथकीतो एवंकहेछेकेकानोमात्र उथापवोनहि एनोविस्तारसिद्धांतसारोद्वारथकीजाणजो हालनेसमे अहिंजपरवरतन तेघणुकावश्यकनीटिकाथकीजे परं तुसुत्रनेमलतुकोइकवचनबे तेसमजुहोयते विचारीजो जोप्रत्यक्षसुत्रने उथापीनेत्रावसकनीटिका मानीएछिए तथाहालनातवनसजायमानिनेपण सुत्रनेउथापीनाखि एबिए तेनेहवेशोडंडठरे अनंतोसंसारतो जमालिनेक ह्योनेअहियांतोकांकउथापवानुं लख्युरहेतुनथी माटेते पुरुषमांतेज्ञानिपणुशुंजाएयु माटेएपणपरीसहसहेतेसर्वे अजाणजछेजेमअन्यदर्शननानेखधारीपरीसहसहेतेम एपणसहेछेए२२ बाविशपरीसह तेशाता अशाताना पक्षमांछे माटेएबाविशपरीसह सहेवाथकी कांइमुक्ति थायनहि नेतेनेकांइसंवरकहवायनहि शामाटेजेबाहाज द्रष्टिव्यवहारवाला तेनेसंवरमानेपरंतु निश्चयथकीवि चारीजोतांत्राथवजछे ज्यांत्रात्मस्वरुपनी रमणतातेने Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ४६२ तत्वसारोद्वार. निश्चयसंवरकहिये एटले जेणेत्रात्मानीरमणताहोयनेप रीसहसहेतेथकीमुक्तिथश्तोएकाइ परीसहनाजोरथीम क्तिपांम्योनहिएतोज्ञाननाजोरथकीमक्तिपांम्यो अहियां कोइविरस्वामीनोद्रष्टांतदेशे जेवणापरीसहसह्या तेनुकेम तेनोउत्तरजेएमनेकर्मउदेघणांहतां तोघणापरीसहथया परंतुतेथकी केवलज्ञानतोपांम्यानथी तेतोशुकलध्यान नोबिजोपायो एकत्वभावज्ञानविचारतां केवलज्ञानपा म्यामाटेअहियांपरीसहनुपरीबल जाणवूनहि जोपरीस हथकीकेवलज्ञानहोयतो धनोकाकंडीतथा मेघकुमारप्र मुखघणासाधुयेपरीसहसह्या पणकांश्केवलज्ञानपाम्यान हि तथाश्रीमल्लिनाथस्वामी दिक्षालेश्ने तरतकेवलज्ञान पाम्यात्यांकांइपरीसहथयोनथी माटेमक्तितोज्ञानध्यानमा बेतकांशबीजवस्तुमांडेनहि एवातमांसंदेहराखवोनहि. हवेदशविधजतीधर्मकहियेबिये तेमध्येप्रथम क्षमाध मक्षमाकहेतांसमपरीणाम एटलेजडनुधर्मतेउपररागद्वेष नराखे आत्मस्वरुपमारमे तेनेक्षमाधर्मतत्रात्मीककहि येतेविनानीजेसमताछे तेपूर्वेकहिबाविशपरीसहनाअधि कारनेविशेतेप्रमाणेजाणवी. हवेबीजुंमार्दवधर्मकेहेतां मदअहंकारनोत्याग तेपणपु र्वेकहेलुंजछे तोपणहांजरादेखाडीएछीएके आठप्रका रनोमद तेमध्येप्रथमकुलमदकेहेतां जेपोतानोपक्षतेएवं - - Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६३ तबसारोद्वार. विचारेके अमेावाकुलनाछीये तेनेमदकहिये परंतुतेम दनकरे तेथीकांइत्रात्मानोधर्मप्रगटनथाय शामाटेकेएने विशेकांइआत्मरमणताछेनहि एतोलोकमांनिरमानीपुरु षकेहवाय कदापिजोत्रात्मस्वरुपनीरमणताहोयतो एवं विचारेके तारुकुलएकेडेनहि अनेकुलतेचारगतिनेविषे लाधे अनेतेचारगतिमां तुंएकेकुलमांउपन्याविनारह्योन थी माटेइहांकीयुंकुलतारुगणीये एमांकोइतारुकुलनथी एमाएकात्मीकधर्मतेतारुडे तेतुंसांनल एटलेतेनेनंचनी चमध्यमकोइविचारवानोतेधणीनेनरह्योतेनेकुलमदतज्यो कहियेतेनेधर्मकहियेतथावीजोजातिमदकेहेतां मातानोप क्ष एटलेमातानुकुल तेपोतानीजातकेहेवाय तेनोविचार पणसर्वेकुलनीपरेजाणवो तथात्रीजोमदइश्वरकहिए तेइ श्वरमदकेहेतां ठकराइनोमद त्यांपणजेएवंविचारेजे श्रा राज्यरीडीतेछे नेनथी एविचारीनेमदनकरे एकांइधर्म मांनथी एपणसंसारव्यवहारमांछे हवेजेपुरुषएवंविचारे जेनंतोकालथयां संसारमांनटकतोराजा इश्वरप्रमुख थयोतथातेत्रोनोदासपणथयोमाटेएईश्वरपांतेतूनहीएतो || पन्यनीप्रकृतिनाजोरथीपाम्योछेनेतेपुन्यतेजडनेतुंतोचे तनछे तेएजडनीठकराइथी तारीकांइकारजसिद्धिथइन हि ज्यारेतुंतारीत्रात्मशक्तियेकरीने मुक्तिनोठाकोर थ श एठकराइतनेसुखदाइथशे माटेआठकराइमांशुतुराचे । Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ तत्वसाराहार. छे एवीरीतेजेविचारे तेनेधर्ममांगणीये तथाचोथोबलम द एटलेशरीरतुंबलप्राक्रम तेथीघणाजीवअनिमानमां छाक्यारहेछेनेअमोजेवोकोइबलीयोछेनहिएवोमदनकरवो भलानलीएथ्विछे एकएकनाथीवलीयाहोय एमविचा रीनेजेमदनकरे तेपणव्यवहार हवेजेधणीएवोविचारक रे जेअहोचेतनतुं अनंतशक्तिनोधणीथइने जम्नीतुच्छ शक्तिमांशुराचेछे तुतारीशक्तिप्रगटकर केजेमतुंअक्षय सुखपामतोतारीशक्तिकेटलीनेएकसमेचौदराज्यचाल्यो जाय एवीअत्यंतशक्तिछे तेशस्तितारीतुंप्रगटकर नेकर्म रुपशत्रुनेजित नेजडरुपबंधीखानाथीछुटतोतारीशक्ति लोकमांवखाणवाजोगथाय नेतुंलोकनेपुजवासेववालाय कथाय एमविचारीने जेनेमाननोत्यागथयो तेनेधर्ममां गणीये पांचमोधनमदधनपामीनेमदनकरवो केमकेअथी रपदार्थछे माटेमदकरवोनहि एवोजेविचारतेव्यवहारहवे जेधणीपोताना आत्माथकीविचारकरे अहोचेतनश्रातो जडनोखजानोछे सातधातु नवरत्न तेसर्वेष्टविकायद लछे तेकांत्रात्मीकवस्तुनथी तेनुपामवं तेपूर्वनापुन्यना जोगथकीपामे नेानवनेविशे जेनोलानाअंतराय तथा जोगाअंतराय प्रमुखनोजेनेक्षयउपसमथयोहोय तेध णीनेमले नेतेधणीभोगवे परंतुहेचेतन एकांइत्रात्माना नोगमांश्रावनहि एतोजमनानोगमांश्रावेछे श्रात्मातो Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्ससारोदार. - ज्ञानदर्शनचारीत्रनोनोक्ताछे माटेएवंधनधान्यादिकपा मिने मुरबानराखवी तथामदपणनकरवो तेनेधर्मकहिये तथारुपमदरुपकहेतां जेशरीरनोवरणसारोहोयघाटसा रोहोय तेनोकांमदनकरवो केमकेएतोदेवोगतिछे ए कोइनेवशनथी एमजाणीनेमदनकरवो तेव्यवहारहवेजे अात्मस्वरुपथीविचारेजेहेचेतन अनंताकालेअनंतांशरी रतेबांध्यांतेनेस्वरुपवानतथा करुपवानसुघाटवावेघाटते मांकयारुपघाटने वखाणेछेनेतेनोमदकरेने नेकीयारुप घाटनेतनखेदेछे पणविचारहेचेतन एशनाशुनपुन्यपाप निप्रक्रतिछे तेसर्वेनामकर्मनोभेद माटेकोइएशुनवर्ण शुभगंध शुभरस शुनफरस बधुतेपुर्वेउपारजेलु तेधणी अहियांसारुवर्ण गंध, रस,फरस, पाम्योजेनेपुर्वेश्रशुन वर्ण, रस,गंध,फरस, उपारजेलातेअशुनपाम्योपरंतुए कांइआत्मानाघरनीरीदिनथी एतोजमनीरीद्वितोएपण एशुनाशुभरहेवानुनथि एतोअंतेवणसीजवानुने माटेएव स्तुउपरराचqमाचवूनहि एकात्मीकस्वरुपनेविशेराच Qमाचवू तथासातमोज्ञानमद तेनकरवोतेनोअधिकारपूर्वे परीसहनाविचारमांकीधेलोछे तथापाठमोतपमदतपनो मदनकरवो तेनोविचारपागल कहेवाशेएटले एअाठम देकरीनेरहितनेमार्दवधर्मकहिये २ तथात्रिजोत्रार्जव धर्मकहेतांजेसरलतापणुएटलेकपटनहि करवूजोसंसारा Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - aurammam ४६६ तत्वसारोद्वार. दिकनेविशे कपटकरेतोअनंताकर्मउपारजे तोजेधणीध मिपुरुषकहेवाय तेनेदंननहिराखवो एटलेदंनसहितपु रुष-करेलुजेधर्मलेखेत्रावनहि दंनसमानजगतमांवि जुपापनथी सर्वधर्मनोनाशकरताएदंभ माटेदभनराखे तेनेत्रार्जवधर्मकाहिये ३ हवेचोथोमुत्तिधर्मकहेतांनिर्लो नपणुएटलेश्राहारपाणीवस्त्रपात्रप्रमुखनो लोभनहिरा खेअनेलोनराखेतोसाधुगणरहेनहि एसर्वेव्यवहारपरंतु प्रात्माथकीएवोविचारउठेजे अहोचेतनतारे शुनाशुभ कारजनकरवू शामाटेकेसर्वेपुद्गलीकवस्तुले एमविचारीने शुभकारजनोनिखेदकरे एटलेपुन्यनाकाम करेनहि पु न्यनिवेछापणकरेनहि जेधणीपुन्यनीवंछाकरे तेनेसाधु पणुलीधुपणएसंसारीजछे तेवारेकोइकहशेजे साधुथइने पन्यनीवंछाकोणकरेछे तेनेकहियेजे तिर्थजात्रावरतनेम तथाबाह्यतपतथाव्यवहारचारित्र तथाव्यवहाराक्रिया त्यादिकनेविशे जेरच्यापच्यारहे तेसर्वेपुन्यनाइछकडे नेतेनेआश्रवीकहिये. शिष्यवाक्य-स्वामीजे परीग्रहप्रमुखराखेतेकरतांतो एसाधुसारा. गुरुवाक्य--परीग्रहराखेतेनेसाधुकहे तेनेमिथ्यातला गेशामाटेकवितरागनामारगमांतोनिग्रंथ प्रवचनकहेवा यछे अनेजेस्थानकेनिग्रंथपणुनथी त्यांसाधुपणुपणनथी| - Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aadead तत्वसारोद्वार. तेनेकोइसाधुकहेशे अथवासाधुजाणीने वस्त्रपात्रआहा रपाणिन्सडवासडअथवारोगीप्रमुखजाणिने जेएनित्र नुकंपापणकरशे तेअनंतानवरखमशे तेश्रावश्यकनिर्जुग तीप्रमुखघणा सुत्रमा तेजोइलेजोमाटेएअसंजतीनन्छ देवुनहि अनेजेनिग्रंथथइने साधुनामधरावे नेत्रात्म स्वरुपनेन्लखतानथीत्रनेव्यवहारमारच्यापच्यारहने लोकोने देवलोकादिकरिदिदेखाडीने बालजिवोनेव्य वहारमांनाखेछे तेपोतेपणअज्ञानिने नेतेनेपणअज्ञानप्र वरतावेजे पोतानोपणसंसारवधारेछे नेसामानोपणसंसा रवधरावीश्राप तेपुन्यनीवंछाकरवीनहि एटलेव्यवहा रनिपणपुष्टिकरवीनहि एकात्मधर्मनीपुष्टि करवीजेथ कीवात्माकर्मथकीछुटेतेवाशुद्धव्यवहारनी तथानिश्चय निपरुपणाकरीसामानेसमजाववोपणअशुद्धव्यवहारतथा कल्पव्यवहारमांसामानेनाखवोनहि शामाटेजेशद्धव्य वहारतोअनादिकालनोचेतनकरतोजआवेडे एटलेपुन्य पापनीकरणासदायचेतनने तेथिकांइआत्मानुकारजथा यनहि तथाकल्पव्यवहारनेविशेविखवाद घणोरह्यो शा माटेजेबहुजनक्रतग्रंथटिकाप्रमुखघणा तेनुमतुएकनुम लतुआवेनहि तथासिद्धांतनोपणएकरीतनो बांधोदिस तोनथीतेपणअनेकरीतो जुदीजुदीदिसेछे तथााजने काले तवनसझायरास चरित्रप्रमुखघणानोखानोखाज Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ तत्वसारोद्वार. पनाकरेला तेथिकरीने प्राजना लोको एकल्पव्यवहार का महाकर्मउपारजेबे लोकनेविशेधरमीनाम धरावेवेने पोतपोतानामतनोममतकदाग्रहबोमतानथिते थिपोते पण नंताकर्मउपारजे बेने सामाने पण नंताकर्मबं धनोकारणी कथा माटेकल्पव्यवहार तथा अशुद्दव्यव हारनेविशेपरवरतवुनहि फक्त एक रागद्वेषप्रमुख मंद थइजायत्रनेत्रात्मस्वरुपनी उलखाणथती जायएव उपदे शकरवो तेथी श्रोतानुंपणकल्याणथाय नेव्यक्तानेपणश्र म लेखेच्यावेतेम पोतानेपण शुद्धव्यवहार तथानिश्चयमां रमणकर तेथीपोतेपुन्यनोग्राहिनथाय फकत एकपोता नीश्रात्मानी मुक्तिरुपकारजनोकरताथाय एविरीतेसम जिने जे चालबुंतेने चोथुमुत्तिधर्मकहिये. ४ हवे पांचमुतपधर्म केहेतांजेतपकरवाते बेप्रकारेबेतेनो वीचारा गळनीर्जरातत्वमां कही शुं५ हवेछठो संजमध र्मसंजम केहेतांच्यातमाने संवरभावमांराखवो एटलेट थ्वी काय प्रमुखजीव जीवन जे संजमकेहेतां हणवान हीतथाजु बोलवुनही तथाचोरी करवीनही तथामैथुन से वपुंनही तथापरीग्रह राखवोनही तथा पांचईंद्री ने संवरवी तथाचारेकखायनेटाळवं तथात्रणदंड थीवीरमवुंइत्यादीक संजमनासतरसतर प्रकारघ प्रकारे थाय छेपरंतु सरवे वेहेवारनयमांबे शामाटेजे एकामतोच्प्रभवीतथा गनानी Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. पणकरेछेमाटेएसंजमथी अात्मानुसारनथी हजेत्रात्मा नुसाररुपसंजमछे तेकहीयेलीये जेत्रात्माना गुणनहण वाशामाटेजे एगुणनीमुख्यतानहोय त्यांसुधी मुक्तिनी श्राशानहीथायकदापीकोइकेहेशेके श्रात्मानागुणनेकोण हणेतेनेकहीएकेजेपरसावमां धर्ममानीनेबेठा तेत्रात्मा नागुणनाहणता तेपरनावकेहेतांपरजे जडतेनाकरतव नेधर्मजाणेछे तोजडतोजडनाधर्मनो करतापण काइ श्रातमीकधर्मनो करतानथी एटलेजेटलाबाह्य वेहेवा रपुन्यपापनीकरणीतथा वेहेवारसंवरतथा वेहेवारनीर्ज राएसर्वेजडनी करणीछेतेजडनीकरणी ज्यांसुधीमाहेरहे त्यांसुधीवात्मानं रमगसुखेथायनही अनेत्रात्मरमण थयावगरधर्मकोश्दीनथायनही तेमाटेनीजस्वरुपनीरम णताकरवीने श्रीभगवतीजीमां॥श्रायासंजमे॥एवोपाठ माटेत्रात्माछे तेजसंजमछे तथासतधरम सातमुंसतकहे तांजेजुठनबोलते जठप्रकारेकरीने बोलायक्रोध मान२ माया३ लोभ४ हास्यएनय६ एकप्रकारेकरीनेजे मृखावचनकेहवं तेनोत्यागते वेहेवारसतथy हवेनी श्वयत्रोळखावीयेये नीचेसत्तनाबेभेद आज्ञासत १ वस्तुसत २ प्रथमत्राज्ञा सतकहीयेगये अाज्ञाकेहेतां जेश्रीवीतरागपरमात्माए अाज्ञाफरमावी तेप्रमाणेपरुप गाकरवीतेप्रमाणेजवचननउचारणकरतेवीनाजेकरेतेने Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. प्राज्ञाअसतकहीयेतेशीरीतेकेजेपरमात्माएहंसामांधर्मक ह्योनथी त्यांकोश्हींसामांधर्मठरावे तेनेत्राज्ञाअसत्यक हीये तेशीरीतेतेकहीयेबीये ____श्रीनंदीसुत्रमाएबुकमुछेकेदसपुरवधरनाभाखेलां तथाबांधेलांजशास्त्रतेनेसुत्रकहीयेतेथीओछाज्ञानवाळाये बांधेलांशास्त्रअथवातेमनुवचनतेसिद्धांतनेमळतुंहोयतोमा नवंअनेसिद्धांतनुंवचनजेउथापेतेअनंतसंसारीथायएवंत्यां काछे परंतुदसपुरवश्रिोछानणेलानुजेवचनतथाबांधे लांजेशास्त्र तेनेग्रंथकहेवाय तेहइयेबेसेतोमनाय नहश्ये बेसेतोनमनाय हांकेटलाएककहेछे जेपंचांगीप्रमाणकर वी तथाकेटलाएककहेछे केपांचगाथानुंतवनसझायहोय तेपणपरमाणकरवूएबुंजेकहेछे तेधणीयेमीथ्यातपरवरता| व्यं नेत्रज्ञाननोवधारोकरयोशामाटेजे सिद्धांतनावचनथ कीउपरांठो मारगजेप्रकरण प्रमुखवाळाएबांध्योतमारग नेमानतांथकां शुद्धमारगसंवरनो तेछूटीगयोधाश्रवनो वधारोथयो नेआज्ञापरमात्मानीरहीनही तेनूकारणक हीयेछीये केपरमात्माये श्रीनगवतीजीतथाउवाइप्रमुख नेविशे एवंकाछे।।असहजइादेवा।इत्यादीकपाठघणाले तेत्यांजोजो एटलेअसहजइश्रादेवाकहेता कोइदेवतानी साहजधावकनवंछे तथाप्रावताभवना सुखनीचाहनान वंछे तेश्रीठाणांगजीप्रमुखथीजाणजोतोश्हांतोनवोनवन - Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार ४७१ मागप्रतक्षदीसेछे नेधावकप्रतीकमणादिकने विशेदेव नीसाहाजमागे तथासाधुपणमागे तथासाधदेवीदेव लांनाभागळहाथजोडीविनयसहितवांदपूजवूकरेछेने सुत्रेतोश्रावकनेपणनापामीले तोसाधुनेतोहाशानीहोयत्र नेसाधुतेपंचपरमेष्टीमांपरमेश्वरले तेपदपोतानुंखोइनेदेवी देवलांनोदासथायछेअनेसुत्रकारेतोभगवानकहीनेबोला व्याछे तथासुत्रमांसाधुने ग्रहस्तीनीसंगतकरवानीसाफ मनेने अनेहांतोसाधुग्रस्तीसाथे रच्यापच्याथइबेरहेछे अनेपोतानीमतलबनी वारतात्रोपरुपाय तथाप्रकरण प्रमुखजे मानवांतेनेपूछीये जेकरताधणीकेटला पूरवन णेलाहता तेवारेकहेशेजे पूरवतो कांइभएयानहाता ते वारेकहिये केतमेशाथकीएनुवचनमानोगे तेवारेमहा कोपकरीनेबोले नेएकुंकहेकेशुतमजेटलुएनहोताभएया कोइशास्त्रमांएबुंदिठेलुंहत्यारे लावेलाहशे एवोउतर प्रापिनेप्रत्यक्षासुत्रना तथापुर्वधरनाकरेलाग्रंथनावच नउथापेत्रनेत्रंधकुवारुप जेवचनतेमणेकीहो तेकोश्क शास्त्रोदिठहशेएवावचननो पारकेमपामिये प्रत्यक्षसिद्धां तप्रमुखनेविशे देखियेडिये तेखोटुकरीनेाजनापंम्तिो असंजती महाआरंभपरीग्रहना नरेलास्त्री-नालोलपी तेवानाकरेलातवन सजायप्रमुखकरेला तेमानवामांकेम आवेतेजेमानेतेनेभाज्ञा असत्यथाय कदापीकोइकहशे Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ तत्वसारोद्वार. केएसंजतीवरतवालानथी एटलेअवरतीछे तोएपणस तपरुपकने एवुकहेछेतेमहामरखावादि शामाटेजेपोतेकु मार्गेचालेनेसामानेसुमार्गवतावे एवाततोभाषणमांत्रावे नहित्रनेतेधणीसुमार्गबतावेतो तेनेधनमलेक्यांथकीत्रने ज्यांधन-उपारजवूडेत्यांमरखावादतोप्रत्यक्ष अनेपरमा |त्मानुएजवचनछेजेनिग्रंथविनाबिजानुवचनअनर्थकारीहो य. उक्तंचः-श्रीज्ञातातथा भगवतीप्रमुख बहूसुत्रनेविशे जेपाठछेतेलखीयेगयो।समणसभगवहोमाहावीरस अंते एधमंसोचा निसमंहठतुठाए समणनगवंमाहावीरं ती खुतोभायाहणं पयाहणंकरीएकरीए वंदीअनमंसीअएवं वीबासीसदहामीणंभंते नीगंथंपावीएणं सदहेमाणपती अमाणे रोएमाणेफासेमाणे अभुठीओनीणंनंते नीगंथं पावीएण एवंमएभंतेप्रवीतहमएइछींप्रमेयं पडीइछीधं मयंइछीअंपडीइयमयं संसात्रोअनथमुवात्रो॥इत्यादि कपाठ घणासुत्रनेविशेछे माटेनीग्रंथनुवचनसदहवं ते नोर्थहवेसमणोजगवंतकेहेतां श्रमणनगवंतश्री माहा वीरस्वामीनीपासे जेजेपुरुषेधर्मसांभल्यो तेतेपुरुषनेहर खसंतोषघणोउपन्यो रुदेनेविषेआणंदघणोथयो तेणेउ ठीनेनगवंतने त्रणप्रदक्षणादेने वांदीनमस्कारकरीने विनयसहितबेहाथजोडीने एqकेहेकेसदहं भगवंत एट लेनगवंतपदागल एपदमांसाठेकाणेजोडवो हवेसद Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार हं केहेतांजेमनेसरधाबेठी एकनीग्रंथनावचनउपरे तेनी ग्रंथनावचननीप्रतीजछे तेजवचनमनेरुच्युं तेजवचनहूंका याएकरीनेफरसुं एजनीग्रंथनांवचनकरवानेवास्ते उभो थयोछु तेनीग्रंथप्रवचननिश्चेछे एकोकालेजुठुनाथाय ए वचननंतइष्टकेहेतांवल्लभछे एहीजवचनवारंवारंहूंएनेइ छंछु एहीजवचनइछुपडीर्छ अवरजेनीग्रंथविनानांजेवच नते अनर्थमुलछे तेहूंनसदहूंजावतहूंएनेइछुपमीछुनही इत्यादीकपाठेशाधु अथवाश्रावकनाअधीकारछे त्यांए लाव्याछे माटेत्यांतोनीग्रंथवीनानुवचनखपलाग्युनही अनेअनर्थनमलका अनेतमेतेनेसत्यपरुपकबतावोछो तेतमनेमोटंत्रज्ञानदिसेछे शामाटेजेभगवाननी अाज्ञाथ कीउपराष्टुंडे अनेजेप्रमाणेनगवाननीअाज्ञाछे तेप्रमाणे वचनबोले तेनेआज्ञासत्यकहीये वस्तूसत्यकेहेतां जेद्र व्यगूणनेपरजाय जेजेनाछेतेतेमांकहे तेनेवस्तूसत्य कहिये तेनात्रणनेदछे द्रव्य १ गुण २ परजाय ३ हवे द्रव्यकेहेतांजेत्रात्मद्रव्य अरुपीनिराकार तेनेकोइरुपी अथवामुरतिमाने तेनेवस्तुत्रसत्यथाय तथाश्रात्मानागु एजेज्ञान दर्शन चारीत्रप्रमुखछे तेथकीउपरांठापुन्य श्राश्रवथकीउत्पन्नथया लायकी चतुराइ प्रमुख तथाव्य वहारसंवरक्रिया तपप्रमुखतथातेथकीउपरांठापापआश्र वनागुणतेजात्मानाकरीनेमाने तेनेवस्तुअसत्यकहिये Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ - तसारोद्वार. - केमकेतेजडनागुणात्मामांछेनहीनेपुन्यपापाश्रवएतो जडनेत्रात्माचेतनछे माटेबेउनागुण भीन्ननीनजुदाजु दाछेएवीरीतेमाने तेनेवस्तुसत्यकेहेवायतथा श्रात्मानाप रजायजेखटगुणनी हानीव्रद्धीतथा अणअवगाहअव्या बाधादेदेईनेअनंतापरजायछे तेथकीउपरांठाजेवरणगं धरसफरसस्वस्थानजे श्रात्मानापरजायमांगणे अथवा नरनरकादीकगतीजेपरजायमांगणे तेपणवस्तुअसत्य ... शिष्यवाक्यः-स्वामीनरनरकादीक गतीतोसरवे परजायमांगणे तमेअसत्यधर्ममांकेमकही. . गुरुवाक्यः-हेभद्रजे नरनरकादीकगती तेजीवना परजायमांगणीयेगये एतेकर्मपरजायाश्रीनेछेनेकर्मप रजायने तेजडछे माटेएअसत्यजछे स्वनावपरजायजेग गवातेसत्यजेएटले सत्यधर्मकयुं७ हवेत्राठमुसोचधर्मक हीयेछीये एटलेसोचकेहेतांजेपवीत्रपणु तेपवीत्रपणुकेट लाएकएम केहेछेजेजलतथा माटीतथादरनतथाश्रग्नी प्रमुखथीपवीत्रथाय एवंकेहेतेअज्ञानीछे शामाटेकांज लप्रमुखथी पवीत्रथायनही एतोशरीरनेबाह्यथकीपवी प्रकरतेपण अणसमजुनेमते पणसमजुनेमते थायनही त्वांकोइकहेशेके बहाजथकीपवीत्र केमनथाय तेतोधोवा प्रमुखथकीथायछे तेनेकहीयेके जोएनाथकीपवीत्र थतुहो यतोकोई पुरुषनुमोहोढुं एठुछेतेपुरुषनेमाटी प्रमुखमोढा Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तबसारोबार. मांघसावीने पाणीनासोबसे कोगलाकरावीये पीतेधणी नामोढानोकोगलो बीजापाणीनाभाजनमां नंखावीयेते पांणीवीजा भाजननुकोईपीये तेवारेकहेकेनपीयेएवुवोले त्यारेकहीयेकेशंशुद्धथयुं तेएटलाएटलापाणीना कोगळा कराव्यातथामाटीप्रमुखेकरीनेघसाव्युं तोयपणतेनामोढा नो कोगलोएठोनोएठोरह्यो त्यारेतमाराजशास्त्रनेवीषे पांचप्रकारनो सोचकह्यो. एकतोसत्यबोलतेनेपवीत्रकह्योबे तथासर्वजीवनी दयापालेतेनेपवित्रकह्योछे तथापांचइंद्रीने जेपोतानेवश राखेतेनेपवित्रकह्योछे तथाक्षमासहीततपकरे तेनेपवित्र कह्योछेनेपांचमुजलपवित्रकह्युबमाटेजलथकीकांऽपवित्र थायनहीतथाचारएसत्यवचनप्रमुखकह्यांतेपणवहेवारप वित्रछे एकांनिश्चेपवित्रकेहेवायनही तथाकोइकेहेशेके भगवाननूनामलेइये एटलेमुखपवित्रथाय तथामनमांनग वाननुस्मरणकरीये एटलेमनपवित्रथाय तथाकायायक रीनेनगवाननीशेवानकिकरीये एटलेकायापवित्रथाय तेपणवहेवारछे तेकांइनिश्चेनथी एधणीनेकांइपवित्रकहे वायनही हवेपवित्रपणानीभोलखाण करावीयेठीये जे कायाथकीपवित्रकोनेकहीये जेशुभाशुनप्राश्रवनुंकामक रेनही तेनेकायापवित्रकहीये तथावचनथकीपोतानाश्र वलागेअथवा कोइजीवनेबाधापीमाउपजे एवंवचननबो - - Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. ले तथामनपवित्रकेहेता जेमननेविशेआहटदूहटध्यांनध्या यनही सदायएकात्मस्वरुपनोउपयोग तथाद्रव्यगुण प्रजायनीरमणता परनावत्यागी स्वनावभोगीएवीरीते जेमननेविशे ध्यानप्रवरतेतेनेनिश्चेसोचकहीये एटलेसो चधर्मदेखाम्युं हवेनवमुंअकंचनधर्मकेहेतां जेसोनू१ रुप २ तथात्रांबु ३ तथाकला तथाजसत ५ तथासीसुं ५ तथालो ७ तथामाणेक ८ तथाहीरा ९ तथापान १० मणी ११ तथापुखराज १२ तथालसणीया १३ तथामोती १४ तथापरवालू १५ परमुख अनेकवस्तुतेप रीग्रहकहीये तेवस्तुनोजेनेत्यागतेनेअकंचनधर्मकहीयेते सर्वेवेहेवारने निश्चेयकीकोश्वस्तुपर स्नेहनहीराखे स चीत अचीत मीश्रपदार्थ तेसचीतकेहेतांनरनारीउपरस्ने हनहीराखवो अचीतकेहेतां धनधान्यपात्रप्रमुखवस्तुउ परस्नेहनराखे मीश्रकेहेतां गामनगरनपर स्नेहनराख वोएटलेस्नेहलता तेअभ्यंतर तेस्नेहलतानो जेनेक्ष यउपसमथाय तेनेरागद्वेशनोक्षयउपसमथयोकहीये नेजे नेक्षयथाय तेनेरागद्देशनोक्षयथयोकहीये एमजेनोरागडे शगयो तेनेअभ्यंतरअकंचनीकहीये तेनेनीग्रंथपणक हीये एटलेअकंचनधर्मनवमंका हवेदसमंब्रह्मचर्यधर्म कहीयेगयेतेनानवप्रकार तेनीवीगत मन १ वचन २ काया ३ हवेमनथकीपोतेमैथुनशेवेनही तथासेवावेपणन - - - Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार.. ४७७ हीतथासेवतानेनलोजाणेनही तथावचनथकीमैथूनसेवेन ही सेवरावेनही सेवतानेनलोजाणेनही तथाकायाथकी मैथुनसेवेनही तथाकोइपासेसेवरावेनही तथाकोइसेवतो होयतेनेनलोजाणेनही एमएनवप्रकारेब्रह्मचर्यपालेतथा बीजेप्रकारेपणनवनेदछे तथानववामसहीतपणपालवं ते ने ब्रह्मचर्यव्रतकहीये एटलेदसवीधजतीधर्म पणकहयं हवेबारभावनानो अर्थलखीयेगये एटलेनावनाछे ते नावरुपजछे शामाटेकेएनेविशे कशीवेहेवारथकीवस्तुक रवानीनथी एसर्वेत्रात्मथकीविचारवानूछे तेत्रात्मानेघj हीतकारीछे हवेप्रथम नावनाअनीत्यएवेनामे तेनोर्थ कहीयेलीये. हवेजेपुरुषत्रात्मार्थीहोय तेनोएवोनावात्माथकीउ ठेतेवारे एवंस्वरुपविचारेकेअहो संसारअनित्यने एमां कांइपदार्थरहेवानुनथि जेवोमाननीषणी उपरपाणिनो बिंदुवोकेटलीवारटके तेवोअथिरसंसारजाणवो तथाजे वोइंद्रधनुषचोमासामा आकाशेथायने तेनोरंगकेटली वारटकवानो तेवोत्रासंसारअनित्यजाणवो एटलेत्रास र्वेजेसंजोगसंसारनेविशेमल्योछे तेकांइरहेवानोनथित थाकरतव्यवस्तुजेटलीछे एटलीसर्वविनाशीकडे जेमवि जलिनोझब्कारथइने नाशथाय तेमएवस्तुसर्वनोनाशथ वानो जेमइंद्रजालथकी कांकरानोरुपिन्करे परंतुएरु REDA Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ तबसारोद्वार. पिकांइकामलागेनहि तेमत्रासंसारनुसुख एकांकराना रुपिशाबराबर एकांसदारहेनहि अथबाजेमस्वप्नाने विशेशुनवाअशुनदेखे परंतुहियांकांइशुन अथवा शुजनथि एतोजाग्योनथीत्यांसुधिएवं जाग्योएटलेकां इछेनहि एटलेतेस्वप्नानिवातउपरथी मनमांकांहरखशो कथायनहि तेमसंसारनासुखदुखउपरथी हरखशोककर वोनहि एपणअनित्यपदार्थ तथाजोबनपणअनित्यछेए पणच्यारदहाडानोचटकोकहेवाय जेमठार एटलेझाक लनोतरेएथ्विउपर केटलीवाररहे सुरजनउग्योत्यांस धितेमएजोबनपणत्यांसुधिरहेवान एपणझाझादिवशट केनहि तथाकोइरांकमाणससाथस्नेहकरयो तेरांकवचा रोआपणुशंकारजकरवानोहतो तेमएजोबनथकीपणकां इसारुकारजनिपजेनहि माटेहेचेतनतुं ताहाराबात्मामां रमणताकर शामाटेकेएअनित्यपदार्थ एजोवनतपामिने मदनकरवो तथाधनसंपदाराज्यरिद्धि एसर्वेपणकारमा छे एतोजेवोएकसमुद्रनोकलोलचमेनेक्षयथाय तेमएधन ठकराइआवेनेजायजेमचारुदततथावनपालप्रमुखनाद्रष्टां तजोजोजेएकभवमांकेटलीवारपाम्यानेक्षयथयोएवोएब नित्यपदार्थछे.एकोई नेत्यांस्थीरथईनेरहीनथीजेवोसंध्या नोरंगतेसरखोएकपामेत्यारेबनेपरंतुएजरंगसंध्यानोक्षण एकमांक्षयर्थईनेअंधारूघोरथाय तेमएधनसंपदाक्षणएक - - Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार मांवीणसीपणजाय एनोकांइनरुसोथायनहीजुत्रोमुजजे वोराजातनेपणअंतेभीखमागवीपडी अनसलीयेअपाणा तोएरीदीतोएबी तथाआजकोई शरीरनुरुप रंगघाटघ जोसुंदरसारोदीसे परंतुएनेपणकांवोणसतां वारलागे नहीं केमकेजडनोस्वनावसडणपडणवीध्वंषणछे माटेए वाशरीरउपरमुरछानराखवी जोसनंतकुमारनामांचक्र व्रतीतेनुरुप सक्रीइंद्रेपण वखाण्युनेदेवता जोवाआव्या तेसमेखेळनरीकाया हतीतोपणदेखीने भेचकथईगयाते हीजजेवखत सणगारकरी सनामांबेठोतेवारेते रुपनर हजुतेदेवतानाकेहेणयकी तंबोलथुकीजोयुं नेमाहेजीवडा दीठातेजवखत तेचक्रवरती अनीतसंसारजाणीदीक्षाले ईचालीनीकल्यो अथवाजेमकरितधर राजासुरजनुंग्र हणदेखीनेसंसारनेअनीत्यजाएयो तथाजेमकरकंडुराजा बळदनेजरायेपीडयोदेखीनेकाया परमुखसर्वेअनीत्यजा पोतेमएसर्वेनीत्यपदार्थउपरहेचेतन तारेकदीमुरछान राखवी तथामनुष्यनु आवखुपणअथीर जेवोपाणीनो परपोटो क्षणएकमांनाशपामे तेममनुष- श्रावखुपणस मजवुजेवोहाथीनो कानचपळतेवू अथीरावखुजाणवू व ळीवीचारीजोके अहोसंसारनेवाशे तीरथंकरकेवलीगण धरचक्रवरती वासुदेवबलदेव ईंद्रदेवतावादीदेईने मोटा मोटाप्राक्रमीपुरुष तेपणकोईइहां अमरथईने रह्यानही Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० तत्वसारोद्वार | एसर्वेनांआवखां श्रावीगयां एवुश्रावखुअनीत्य जाणीने तथाधनजोबन कायापुत्रपरीवारसर्वसंजोगतथाकरतम वस्तुएसर्वेअनीत्यजे माटेतेउपरेममतानकरवीएकनीत्यप दार्थपोतानोत्रात्मा अवनासज्ञिानदर्शनचारीत्रनो पुंज तेनुअहोनीश स्मरणकरवूएथकीअवीचलसुखमले ज न्ममरणनाफेराटले एवीरीतपेहेली नावनाचेतनभावे.१ ' हवेबीजीशरणनावनाकहियेगये एटलेशरणकेहे तांकोइशरणेराखवासमर्थनथी त्यांत्रात्मानेएवीरीते भा बनानाववीजोइये आप्रवतोअस्थीर जेमहथेलीमांज लकेटलीवाररहे तेमएडावपणमाळीवाररहेनहि नेस मेसमेंावखंघटतुंजायछे डाह्योपुरुषहोय तेविचारीनेजु वे जेजेटलावर्षगयां एटलांतोमवां एटले मुवांकेहेतांजे फरीपागंनाावे तेनेमुवांकहिये तेजुन्जेबालअवस्थाने विषेजेवरणादिकहतुं तेतरुणावस्थामांनथी तथाजबा लअवस्थानानावहता तेतरुणअवस्थामांनथी तथाजेत रुणअवस्थामांवरगादिकहता तेसुद्धअवस्थामांनथी त रुणश्रवस्थानाभाव तेपणद्धअवस्थामांनथी तोजेश्रा गलगइ अवस्थानाजेनाव तेसर्वेमरीगयां एकाइहवपा छांबावेनहि अनेजेराआवटुंबाकी तेपणसमेसमेघटतुं जायछे माटेहेचेतनतुंचेत केमकेकोइपुरुषजोदशगाउगा मतरेजायछे तोपणसाथेसंबलराखेछे तोतारेतोलांबीवा Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HAMARIND तत्वसारोद्वार | टेजावूछेअनेबीजीजग्यामांतेसंबलमलवानुनथी. शिष्यवाक्यः-स्वामीतमेतोत्राश्रवग्रहणकरोगे जेसंब ललवुततोपुन्यप्राश्रवडे. गरुवाक्यः-हेनद्र अमेत्राश्रवनथीकेहेताने पुन्यरुपमा तुबंधावतानथी परंतुअमेजेकहयुं जेसंबलबांध तेज्ञानद र्शनचारीत्रनुंभाराधनकर तेरीद्धितनेश्रागलचालशे श्र नेएजसुखदाताछे जोश्रावग्रहणकरवा केहेताहोततो पूर्वेएवं नकेहेता केवीजीजग्योयेनातुनहिमले तेनातुंतोदे वतामांतथात्रीजंचमांपण. शिष्यवाक्यः-केजतमेदेवतात्रीजंचनेविषे पुन्यकार णदेखाम्युतोशुंत्यांज्ञानदर्शन चारीत्रनाराधननथी. गुरुवाक्यः-देवतानेविषेतो समकितसुधीछेअधीका राधननहि तथात्रीजंचनेविषेदेशवरतीपणाना अगीत्रा रव्रताराध्यानोअधिकार परंतुहालकालमांतो कोइए कअक्षरनोपणाराधकदेखातोनथी कदापिकोइकहेशेके अढीद्वीपबहारहशे तेवाततोसर्वथाखोटी अढीद्वीपबहा रचारीत्रधर्मछेनहि कदापिकोइकेहेशेके तिर्थकरकेवली विचरे त्यांहतोतेवातनीअमथीनातोकहेवातीनथी परंतु डाह्यापुरुषने विचारवाजेवीवातछे केमकेजोएकखेतरमा सोकलशीदाणानिपजें तोजोडेलाखेतरवालाने पाशेरप पानिपल्याजोइये परंतजोमेलाखेतरमांतो एकदाणोनिय DIRAJMRIDAAMALANKAARADASHAINEERINARUIAAAAAAAAAAmumanasama Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ तत्वसारोद्वार. जतोदीठोनहि माटेडाह्याहोय तेविचारीजोजो एटलेते स्थानकनेविषेकांइज्ञान दर्शन चारीत्र एत्रणपदनारा धननथी अनेसर्वव्रतीचारीत्रधर्मतोमनुष्यनविशेछे बीजी जग्योएछनहि तेमाटेअमोएकहपुंके बीजीजग्योएनहि माटेएसंबलइहांजमलशे माटेजेमभाथुवंधाय तेमबांधी लेजो तूंपरमादकरीशतो श्रावखूतोसमेसमेचाल्युंजायछे अनेकालतोकोइनेछोमनारोनी जेमबकरांनेवाघपकमी नेलेइजाय नेबकरुबांगरडापाडतुंजरहे तेमहांकालले इजशे तेवखततजथीकांसधावानुनथी अनेकोइएवोजो रावरनथीके तनेकालपासेथीछोमावे एकशरणफकतपो तानाश्रात्मानुछे. , शिष्यवाक्य-शरणतोत्रमोये च्यारसांनल्यां तेमध्ये अात्मानुशरणसांभल्युनथी. गुरुवाक्य-च्यारशरणांतेसांनल्यां तेतुंसांभलजेप्रथ मत्ररीहंतनुशरणकहियेबिये तेरीहंततोशुद्धद्रव्यार्थ कनयेजोतांतो श्रात्माएजअरीहंतछे कदापिकाइकहशे केअरीहंततोजेकेवलिथयातेनेकहिये तेनेकहेवुके तेंकहि एवातठिकले परंतुएवंभुतनयेकेवलि अहंत तेशरण करवाजोगछे परंतुतेकांहियां श्रामोप्रावीनेहाथापे नहि नेजन्मजरामरणना फेराटलमहि एतोश्रापणोज पात्माअात्मस्वरुपनेविशेजरमशे अनेपोतानाकर्मरुपश - Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. नोक्षयकरशेते वारे पोतेज केवलज्ञान पामिनेारीहतथशे माटेएात्मानं समरणबेते सत्यछे नेजेकेवलीश्रहंतवि चरताछेते नुशरण तेव्यवहारछे तथाबिजुसिद्धनुशरणते पणठिकजछे व्यवहारळेशामाटेकेतेमने फरिथीजन्मले वोनथीतारे एहियांत्राविने श्रापणनेशीरीतेतारशेतथा मेशरिनी गोमेएवाबोल श्रापणामांनथी जेभगवाननीय कललीलाछे तेएमनी इच्छाथशेत्यारे ताणीलेशे तेतोरीत जैन तथा कोइ कहेशेके तनांनतारी प्राणं एपाठडे तेनुकेमतेने कहिये के एपाठछे ते उपमावात पणकांतार वासमर्थनथी तथाशास्त्रे एवंपण कहधुंबे जेरीहंतभव्य जिवनेतारवा समर्थनथी मार्गदेखाडवाना कुशलबेतोरी हंत समर्थनहि तो सिद्धतोसमर्थशेनाहोय एजपरंतुसिद्धप दतुत्रात्माने समज श्रतिशुद्धद्रव्यार्थकनयेकरीने मुलस त्तास्वरुपत्रावरणना प्रभावथीजाइशतो तारोमात्मासि इपरमात्मावे तोतेजशरणथकीताहारु कल्याणथशे तथा त्रिजुसाधुनुंजेशरण तेसाधुजैनशुद्धमार्गना चालवावा लाएटलेत्राचारज उपाध्याय सर्वेसाधुमां श्राव्यातेशुद्ध मार्ग वाला तेनुशरणजे करीये तेपणपुर्ववतव्यवहारछेअ हियांको कहेशेकेएतो उपदेशनादातारछे तेसमकित ज्ञानचारित्रपमा तेनेव्यवहार केमकह्यो तेने कहियेकेस मकितज्ञानचारीत्रपमाडे तेकांइबहारथी श्रावतुंनथीने तो ४८३ Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ - तलसारोहार. . श्रात्मामांथीप्रगटथायछे परंतुएवाउपदेशनादातारशुद्ध मार्गनादेखामनारामाटे तेनोउपगारघणोमोहोटोछेकदा पिसंख्याताभवसुधी तेनीशेवाभक्तिकरीये तोएपणगण शीगणनथइये परंतुउपदेशतोतेसर्वेनेदे पणतेनिमीत कारणरुपछेपणउपादान कारणरुपगुरुतोत्रात्मा जोपो तेसवलोप्रणमे तथाधर्मनोखपीहोय तेनेउपदेशगुणला गेपणजेकांइमिथ्यातनानरेला बोहोलसंसारी तथाक्र श्नपक्षीयातेवाजिवोनेकांइउपदेश लागेनहि जेमजमा लीनेनगवंततथागौतमप्रमुख साधुपणघणासमजावना रामल्यातोपगतेकांइसमज्योनहि तोउपदेशनादेनारनुंशु वलेतथाअनदरशनीप्रमुख घणाजिवनगवंतपासेत्रावि नेप्रश्नपुछ्यांने प्रश्ननाउत्तरनगवंतेदिधा पणकांइतेणे मान्यानहि तोलगवंतथकीतेतरयानहि तेअधिकारथी भगवतीथकीजाणजो माटेपोतानोत्रात्मा सवलोप्रणमे नेपोतानुंधर्मप्रगटकरवाचाहे तेधणीधर्मपांमे आत्मातेज साधुछेतेनगवतीजिमांकाछेमाटेतेनुजसमर्णकर. । हवेचोथुजेकेवळी नाखीतधर्मनुशरणकहेतांजे केवळीए जाख्यंजे देशवरती १ सर्ववरती २ तथाबीजेप्रकारेप एबेनेदकह्याछे श्रुतधर्म तथाचारीत्रधर्म तेजशरणकर बुंतेवेहेवारछे माटेकेवळीएनाख्युंएवंजेधर्मजेवस्तुनोस्व साम्तेनुजशरणकरवू तेनिश्चेछेएटलेवीतराग भाखीतजे - - - Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. धर्म तेश्रात्मस्वरुपनी रमणतापरभावनो त्यागतेहीजश रणते सत्यछे एटलेच्या संसारनी मांहेलीकोरे पोतानाज्ञान ध्यानविनाकोइराखवासमर्थनथीएटलेजन्मजरामरणना फेराबीजाथकीटलेनही जेमश्रीगौतमस्वामी भगवान श्री वीर स्वामी नाम तथाशेवाभक्ति होनिशकरताहता नेजेवारेभगवान श्रीमहावीरनुंनीरवाणथयुं ते वारस्वपरनी रमणताथइनेजगवंतथकी. पोतानोमा पोते जुदो दीठो तेवारेरागद्वेश मुकीने स्वसत्तामप्रवेशथयो एटले शुकल ध्यानपत्राव्यं तेथीकेवलज्ञान पांम्याने मोक्षपणगया नेजोभगवान वीरस्वामी २ करताहोततोत्रणकालमांप ४८५ मुक्तिधातनही माटेशरणतेपोतानाच्ात्मानुं तेहीजस व्यबे बाकी सर्वे व्यवहारछे तेमाटेहेचेतनपोतानाज्ञानद नचारित्रनी रमणताकरवी तेथकी संसारनोपारपामी श जातुनही करे तोयासंसारमां तने कोइराखवासम र्थनथी नेतुं जेासंसारनी मोहजालमांगुथाणोछेते मो हजालमीथ्याखोटोबे एसर्वेालपंपाल फोकटनोवे यासं सारनीमाया सर्वे जुठी जाणवी तेच्यमे संक्षेपथीकही येछी ये मातातभापिता तथास्त्री तथापत्र तथानाइ तथाभावमस गांव हालांकुटंबपरीवार एसर्वे स्वार्थनुंसगुछे एमांकोइता रुनथी नेरोगादिकावीने उपनेथ के श्रथवा श्रावसुंत्रा वेथ केते को इसगांवाहालां छोडाववानेसमर्थनथी रोगको Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ तत्वसारोबार. इथीलेवायनही तथाकालथकीपणराखवाकोइसमर्थनथी अनेवेदनापोतेभोगवे नेमारुमारकरतोजाय तेवारेनरका दीकगतीनांमहादुःखभोगववांपडे अनेजेपापकरीनपैसों जेकमाणातेकेमलाहोयतेनोगवे माटेपापजेबांध्यहोयते नोगवqपडे एसज्जननीपणकारमीसगाइछे एकांइत्रा श्रापणादूःखनोविनागीनथाय. . तथापीजोने प्रत्यक्षपणेजे दुवारकांजेवीनगरीक्रश्न जेवोवासुदेव वलनद्रजेवोवलदेव अनेनगवान नेमना थजेवातीरथंकर तेनेमाथेधणीतोयपण जेवखतधीपा यनदेवेदुवारकांनोदाहकर्योतेवारे कोईथीरखाणुनही अ नेसर्वेनगरीनोक्षयथइगयो अनक्रश्नबलभद्र बेनाइमा तापीतानेलेइनीकलवामांड्युतोयपणलेश्नीकलायनहीते एणएनगरीनेगाक्षयथइगयांतो कोनुशरणकरकेजोवासु देवबलदेव सरखामहाजोखा तेथकीपणपोतानां मावीत्र नेरखाणांनही नेमहाकंगालभीक्षवंतवंन्नेनाइचालीनिक ल्या उपनकुलकोमजादवनापरीवारनोधणी तेनेपणए वस्थाथइ तेसर्वपोतानांकतकर्मपोताननडेछे जुम्केको नुशरणइहांखपलाग्युनहि अनेतमजेटलंतोतेचारशरण करवामांसमजताहशे शामाटेकेज्यांश्रीनगवाननेमनाथ स्वामीनोविहारघणाफेराथयोछे तथातक्षेत्रेसाधुसाधवी नोविहारपणघणोछे माटेतेणेशुअरीहंतादिकशरणनहि - Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. ४८७ करचांहोय परंतुकोस्थीरखांणांनहितथारोहिणी देवकी प्रमुखेतोतिर्थंकरगोत्रबांधेलांछे तोतेनेशंसमजनहिपडी होय परंतुपोतानांबांधेलांजेकर्मतेपोतेजनोगये एकोइथ कीदूरथायनहि एQजाणीने आत्मधर्मनीखपकरवी तथा नवनंदपामलीपुरमांथया तेनेनवडुंगरीनधननीसमुद्रमां करावी तेधनत्यारा नेपोतानेकालखाइगयो माटेधना 'दिकवस्तुकोशरणभुतथायनहि तथासंनोमनामात्राठ मोचक्रवर्तिछखंडनोनोक्ता जेनीपासेपचीशहजार देवता शेवामाहता तोयपणसर्वेसेनापरिवारसहित समुद्रमां डुब्यो पणकोइराखीशक्युनहि आवावीरा त्यारे देवपणनाशीगया माटेनासंसारएवोशरणरहितछे माटे तेसंसारनेविषे मुरछाराखवीनहि शामाटेकेजन्मजराम रणसदायवांसलागीरहेलांछे तेकोइनेगमतांनथी तोत नेकेमोमीदेशे तेमाटेतुंतारास्वनाविक धर्मनेविषेस्थिर थापरभावदुरकर जेमतारात्रात्मानुंकारजसरे एजएक शरणभूत बीजोकोसंसारमां शरणराखनारनथी २ हवेत्रीजीसंसारभावनाकहियेछिये एटलेसंसारनंरुप केवूछे तेसर्वेविचार्युजोइये प्रत्यक्षएबधीवस्तुकारमीदी सेकेजुन आसंसारनेविषेत्रापणोजेचेतन अनंतोकालथ यांपरिभ्रमणकरेतेसर्वकर्मनेवशरह्योथकोएटलेकर्मकेवां जोरावरछेके नलाभलामुनीनेपण अगीबारमेगुणठाणे - Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार - थीपागंनाखीत्रापे नेनितनवासंसारमांरुपग्रहणकरावे छे एटलेविविधप्रकार-नाहकजीवपासेकरावे माटेश्रा वोमनुष्यनोभव सुगुरुनीजोगवाइपामीने जोकांइधर्मनी समजतनेपडीहोय अमेजोधर्मनोखपहोय अनेअनेकवि धनाटकसंसारमांकरयां तेथकीथाक्योहोयतोतुंत्रात्मस्व रुपनीखपकरहवेतेपुर्वेनाटककर्यु तेनवनोसंक्षेपदेखाडिये छियेप्रथमतोश्रव्यवहारराशी नीगोदमांहतोतेकोइअकाम निर्जरानाजोरथीव्यवहारराशीमांत्राव्योतोयपणअनंती वारसुक्ष्मनीगोदमांगयोतथाबादरनीगोदमांपण अनंती वारगयोतेमजप्रत्येकनीगतीनेविशेपण एथ्विकायसूक्ष्म तथाबादर अपकायसुक्ष्मतथाबादर इत्यादिकचारगती नेविशे अनंताकालथंयांतूंनटकेछे एवीगतीकोइनथीकेतं तेगतीनेविशेनगयो तथाएवोवरणगंधरस फरसरुपश ब्द स्वस्थानतुंनपाम्यों एवुकोइदिसतुनथी सर्वेपुदगल ने तथाचौदराजलोकनेविशे एवो कोइआकाशप्रदेशनथीजे तुफलाणात्राकाशप्रदेशे ज न्मतथामरण कर्याविनाबाकीरह्यो तेमाटेअनंताअनंता पुदगलपरावरतनथया शुभाशुभागेभोगवतां तथा न्ममरणादिक दूःखसेहेतांथकांगयां तोएपणतनेहजूकां संसारनोनयलागतोनथी तोएजोतांत्रोचेतन तारु घणुकठोरपणु अनेकोणएसंसारमांसुखीयोथयोजेणेएसं Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तखसारोद्वार. सारछोड्योतेसुखीआथया जुनथावचापुत्रमहारिदिनो धणीबत्रिशस्त्र जेनेछे नेभगवाननेमनाथस्वामिनी दे शनासांभलीनेसंसारखोटोजाएयो नेसंसारथकीविरक्त नावथयो तेसंसारगेडीचारित्रलिधुंपोतानाआत्मानुशुक लध्यानधाइने केवलज्ञानपामिने मोक्षगयातसुखीयाथ यातथाअनाथीमुनीसंसारथकीरोगनुकारण पामिनेविर कथयात्यारपीणिकराजामल्या तेवारेघणुकसंसारर्नु सुखापवानदेखामधुतोयपण तेपासमांपड्यानहिनेसा मुश्रेणीकराजानेसमकितपमाडयुं तेधणीसुखीयाथयाव लीएसंसारनेविशेजे सगांवहालां तेनोपणनेमनथीजे एनएजसगपपरहे एकएकजिवसायेअनंतांसगपणथयां तेसिद्धांतमांकहजुने तयाविवरासहितजोवुहोयतोनुवन नानकवलीनाचरीत्रमांजोजो तथाजसोधरतथाजसोध रनीमातातथाजसोधरनीस्त्री तथाजसोधरनागेकरानांस गपणअन्योअन्यथयां तेजसोधरनाचरीत्रथकी जाणजो तथाधीरिखनदेवस्वामीने श्रीभांसकुमारनां नवभवनां सगपणजुदीजुदीरितथीथयां तेसर्वेधीरिखनदेवस्वामी नाचरीत्रथकीजापजो इत्यादिकघणाशास्त्रनविशे घणा जिवोनाअधिकारमांसगपणनोनेम रहेतोनथी बहाविप रीतसगपणथायछे तेमाटेएवाप्रसारसंसारनस्वरुपवि | चारीनेजेमएसंसारथकीछुटवानो विचारकरवो तेसंसार Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. थकीछुटवामां एकज्ञानदरशनचारित्रएजसुकारीबे तेपो तानाश्रात्मामांजळे तेने प्रगटकखं तेशाथ कीथायकेजोसु गुरुस्वपरसमयनाजाण श्रात्मज्ञानीएवापुरुषनी शेवा करीनेतेनीपासे अध्यात्मग्रंथ तथाद्रव्यानुंजोगनाग्रंथसां भलतेसांनलवाथकीतमने ज्ञानप्रगटशेनेज्ञानथकीविज्ञा नप्रगटशे जावतमुक्तिमलशे संसार नोबेह श्रावशे सर्व कर्म नोनाशथशे अनंत सुखनाविभागीथशो एविरीते संसार भावनाभाववीएत्रिजिनावना. हवेचोथी भावनाए कल्व केहेतां एकाकिपणेछे एटले संसारने विषेपर्वेकह्या जेनवांतरगतिश्रादिकनेविषेकर्या पणत्यांएकाकीत्यांको जीवनो सहचारीहतानहि जीवए कलोसुखदुखसर्वजवनेविषे भोगवेछे तेमाटेहेचेतनानं तोकालएव एकाकीपणेथयो तोयपणहजीतुंममताबांम तोनथी हजीतुंजाछेके सर्वसंसारमांवस्तुबे तेमारीजबे एटलेधनधान पुत्र कलत्र सज्जन संबंधीतुंमारुमारुकरीर ह्या पण कोइतारुनथी तारोतोतुहेचेतन एकजबे ने जो प्रत्यक्षपणे एसर्वसंसारीमल्या तेसर्वैस्वार्थीयाछे स्वा र्थपुरोधाय त्यांसुधीए सर्वेसगांजाणवां स्वार्थपुरोनहिथा यतो एजदुश्मनजाणवा श्रनेतहारुहियांकोणछे तुज • मोत्यारेपणएकलोहतो तेवारेंकांइसगांवहालां तथाधन माल साथेलेइनेच्याव्योन होतो तथाजइशतेवारेकांइसाथे ४९० Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ तत्वसारोद्वार. लेइनेजवानोनथी तेसर्वेसगांव हालांघनमाल हियांप ड्युं रहे। ने तारेएकलानेजवानुंबे माटेखोटीममताशावा स्तेकरेबे तेकरतां प्रत्यक्षविचारीनेजो जेमोटामोटाचक्रव तीतेपणबोमीने गया एटलेब्रह्मदत्तनामा चक्रवर्तीबखंमना राज्यनोनोक्ता चौदरत्ननवनिधान चोसटहजारअंतेउ रेइइत्यादिकसर्वचक्रवर्तीनीरिद्धिनेविशे प्रत्यंतमुरछीतह तोनेचित्रमुनिये घणो उपदेशकर चोहतो एपणतेोमान्युं नहिउलटोतेने संसारमां नाखवानोउद्यमकरयो पाते तोयात्मज्ञानीपुरुष ते संसारने प्रत्यक्षजुठोजा ऐ बेतेसंसा रमांकेमपत्रनेब्रह्मदत्तने उपदेशन लाग्यो वारेमुनीवि हारकरीनेगया नेते ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती संसारनासुखनो प्रत्यंतरागीते जनवमां त्रांधलोथयो नेतेमरीने सातमी नर्केगयोपणकोइरीद्विपरीवारको साथेग योनहितथाराव णलंकाधिपतित्रणखंडनुराजजेनेघेर महाश्रभिमान नोभरेल एवोजेको पुरुष तेपणांतेरणसंग्रामनेविशेम राणोनेमरीने नर्केगयोपणएरीद्धिपरीवारकशएखपला ग्यंनहि माटेएवोसंसारच्यस्थिरछे नेत्रापणकोइनथी प्राप पोतो एक चेतनबे बाकी सर्वे स्वार्थनुंबे जेम एकत्रक्षउपरसां जपडे हजारो जनावरभेगांथाय प्रथवाकेटला एकमांहेमा लाकरीनेरहेताहोय पणजेवारेएवक्षनेमाथे श्रापदात्रा वीनेप एटले दवलागे श्रथवाको कापवाश्रावे ते वारेसर्वे Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. । | जानवरमुकीनेनासीजाय एमजासंसारनेविशे जिवने स्वार्थहोय त्यांसुधिसबैसगंछे पणापदात्रावीपतेवा रेकोइनलुनथाय तथाभावावीरहे तेवारेकोइराखे नहि माटेापणेएकलाआव्यानेएकलाजवं तेसंसार उपरखोटीममताशावास्तेकरवी जेमनमीराजापोतनाश रीरनेदाहज्वररोगउपन्यो तेवारेस्त्रीनबावनाचंदनवस तितेचमानोखमखडाटघणोथतो शामाटेके एकहजाररा णीहती तेसर्वेघसतीतेपरधाननाकहेणथी अकेकीचुमीरा खीतेथीराजानेसुखउपज्यु पछीपरधाननाकहणथीराजा नेमालमथयुकराणीए अकेकीचमीराखीने तेथीखलभरा टनथीमाटेएकाकीमां सुखवरतीछे एमविचारीमनसाथेए वोनिश्चयकरयोकेजोमने रोगमटेतोहंएकाकीविचरुते मजप्रनातेरोगमटयोनेचारीत्रलेइ एकाकीचालीनिक ल्यो सर्वपरिवारफिकोथइने उभोरह्यो तेवारेगाममांथी निकल्यापछी शकरीइंद्रत्रणवार नोखांनोखांरुपकरीने नमिराजानीपरीक्षाकरी पणसंसारसामनमिराजरुषि येजोयूनहि तथावनमांश्रीरिखवदेवस्वामिना मंदिरनेवि शेचारद्वारेथइने चारप्रत्येकबोधपेठा तेमध्येकरकंडुराज रखीसरपासेसोनानोखरपो खाजखणवानेराखेलोनेत्यां बिजाप्रत्येकबोधेकयुंके साधुनेकंचनशं तेवारेत्रिजाप्र त्येकबोधेविजाप्रत्येकबोधनकहपुंके तुंतारास्वनावमाए Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. ४९३ - - - काग्रपणुमकिने बिजामांकमनलेछे तेवारेचोथाप्रत्येक बोधेत्रिजाप्रत्येकबोधनेकहां तुंबलीए नामांकेमपेसेनेतुं तारास्वभावमांरम्य तेवारचारप्रत्यकबोध एकत्वनावमां रमणकरवालाग्या तेथीकेवलज्ञानपाम्या तेअधिकारप्र त्येकबोधनाचरीत्रप्रमुखघरोठेकारोछे. . एमएकत्वनावनात्मस्वरुपविचारवू इंहांगुणपरजाय पणजुदानपाम्वा गुणपरजायने तेंद्रव्यमांजछेनेगुण परजायद्रव्यविनाशानाहोय अनेगणपरजायविनाद्रव्य पणनहोय तेद्रष्टांतकरीने लखावीयेछीये जेघटनेघटनो। गुणजलधारणपणुं तेकांजुदूनथीज्यांघटछे त्यांजलधार एकरशेज ज्यांजलधारणत्यांघटछेज माटेएद्रव्यनेद्रव्य नोगुणतेभेगोज त्यांघटनेघटनापरजायजेरक्ततत्वादी कतेपणकांइजुदानथी ज्यांघटछेत्यांवरणछे नेवरणछेत्यां। घटने तेमजद्रव्यनेविशे द्रव्यनोपरजायजुदानथीएटले आत्मातेद्रव्यज्ञानादिक तेगण तेकांशात्माथकीज्ञाना दिकगुणजुदानथी नेजोज्ञानादिकगुणजुदा कहियेतोत्रा स्माशांनेकहिये माटेात्माएज्ञानादिकगुण नेज्ञानादिक गुणतेत्रात्मा तथाआत्मानेआत्मानागुणपरजायजुदान थी माटेगुणपरजायसहितात्माजेमपटनेपटनुश्वेतप णुतथाप्राधाराआधेपणुतेकांइजुदुनथी एवणमलिनेएक वस्तुथाय कदापीत्रणमाथीएकेनहोयतो एवस्तुपणनहो - - -- - Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. यत्रहियांउपनयजोडियेछिये जेमपटतेआत्मानेठामेने आधाराधेपणुते ज्ञानादिकगणनेठामे नेश्वेतादिकतेप रजायनेठामे तेजेमत्रणमलीनेएकएक वस्त्रथयं तेमत्र हियांपणगुणपरजायसहितआत्माथाय एवीरीतेंविचार एकत्वनावनोकरवो तेकेवलज्ञानदातार शामाटेकेए शुक्लध्याननाबिजापायानुलक्षण एटलेशुक्लध्याननेप हेलेपायेतोनेदज्ञानतथानेदाभेदज्ञानछे तेथकीएकलामो हनी कर्मनानाशथाय पणकेवलज्ञाननपामे नेशकल ध्याननोबिजोजेपायो एकलभाव नेअनेदज्ञान तेथ की त्रकर्मनोनाशथाय ज्ञानावरणीदर्शनावरणीअंत रायएत्रणकर्मनो क्षयथयाथीकेवलज्ञान केवलदर्शनप्र गटे एवोएकत्वनावनानविशेमालरह्यो माटेएकत्वनाव नासदायनिरंतरनाववी एनावनाभावतांथकांनंताक मनिर्जरेअनेमुक्तिद्वंकडीश्रावे एवातमांशंकाराखवीनहि एचोथीभावनाकहि हवेपांचमीनावनाकहियेडिये. तेअनित्यनावनाले एटलेअनित्यकेहेतां सगांवाहालां सज्जननोजेस्नेहतेसर्वेअनित्य अनेएस्नेहनाराखवाथ कीजीवभवसमद्रनेविषेडबेबे अनेअनंताजन्ममरणकरेछे अनेअनंतदुखभोगवे एमविचारीने सगांवहालांसज्ज नउपरथीस्नेहनावतजवो केमकेएममतारुपमाकणी स वेनेखागइछे नेआपणनेपणअनंतोकालथयारोलेछेमा - - Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. टेएममताडाकणीनेघेरथकीकहामवी अनेजेसज्जनसंबं धीमल्यांछे तेस्वार्थनांसगांने पणतारुएमांकोजेनहि तुं पणएमांकोइनोनथी सर्वेसंजोगेमली विजोगेजाशे जे मपंथीजननोमेलोकेहतां जेमकोकधर्मसलानेविषे रस्ते जतांरात्रत्यारवां बीजांपणदेशदेशनांपंथीभावीनेउतयाँ छे तेनीसाथेप्रीतिबंधाणी तेप्रनातनोकालथयो त्यारे सर्वेसर्वेनेमार्गेचालीनिकल्यां हवेएप्रीतिनोनिरवाहक्यां करशे तेमत्राजीवश्हांथकी परलोकगयेथके एसगांवहा लांनोस्नेहनोनिरवाहक्यांकरशे माटेसर्वेअनित्यपदार्थ छे अथवाजेमतिर्थनेविशे शंघप्रमुखमलेछे पछीतेमांकेट लाएकजीवपुन्यउपारजे नेकेटलाएकजीवपापनपारजे ए मनफोटोटोलेश्नसहूसहूनेमार्गेपाछाजायतेमश्रामनुष्य नवसपिनतिर्थ तेनेविषेाजीवरुपिनसंघमल्योछे तेमां कोइकजीवतोवस्तुधर्मपामीनेज्ञानध्यानकरे करीनेसर्व कर्मखपावीनेमोक्षजाय अथवाकोइकजीव पुन्यउपार्जिने देवादिकशुनगतीमांजाय अथवाकोइकजीवपापउपार्जि नेनर्कादिकगतिमांजाय पणको स्थिरनावतो अहियार हेवानोछेजनहि अनेजेसज्जनसंबंधी जोस्वार्थतेनोपुरोन थायतो तुरतछेहदाखे जेमपरदेशीराजाने सुरीकंतारा पीएझेरदेइनेमारीनांख्यो तेअधिकाररायपसेणीथीजो जोतथाब्रह्मदत्तचक्रव्रतीनीमाताचुलणीजेस्वार्थपोतानोन Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ तत्वसारोद्वार. सरतोदीठो त्यारेलाखनामेहेलकरावीने दीकरावहनेमां हेलीकोरसुवाम्यां नेतेमेहेलसलगावीदीधो पगतेब्रह्म दत्तनंबावखंहतं तोसलंगमांथइने जीवतोनिकल्यो परं तुमातानोस्नेहपणएटलोजछे माटेसंसारअनित्य तथा जुवो श्रेणीकराजापोतानोपुत्रकोणीकनोअंगुठो छमासस धीमोहोडामांराखीने लोहीपरुचुस्यं अनेकोणीकनीमा ताचेलणाने एपुत्रजीवतोराखवोजनहिहतो पणश्रेणीके जोरावरे तेपुत्रनेउछेरयो तेजपुत्रेपितानेकष्टपंजरमांघा ल्यो नेदीनप्रतेपांचसेंपांचसेंकोरडामारे जुवोएसंसारसगपणएqअनित्यछे एसर्वेस्वार्थ-सगुं तथामरुदेवामा ताजेवारे रीखवदेवस्वामी दिक्षालेइने चालीनिकल्या त्यांथीमांडीनेएकहजारवर्षसुधी मारोरीखव २ करीने अांखेत्रांधलांथयां तेसर्वेस्नेहनांफलजाणवां जेवारेनग वंतकेवलज्ञानपाम्या तेवारेभरतवांदवागयो तेवारेमा तानेपणसाथेतेमीगया तेहाथीनीखंधेबेठाथकाजनगवंत नीरिदिसंपदादेखीने स्नेहटीगयो विचार्यु जेहूंरीखवरी खवकरतां आंधलीथइनेरीखवतो आटलीरिदिनोगवे छे नेमातानेसंभारतोनथी तोकेनोरखवनेकेनीमातासह सहनावात्मानुसरीखछेएमअनित्यभावनानावतांथकांचं तघडकेवलीथइनेमोक्षगयां तेफलतेअनित्यभावनानुतथा श्रीगौतमस्वामीत्रीशवर्षसुधी माहावीरस्वामीनीसेवा Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ४९७ - मांरद्या अनेनगवानउपर घणोस्नेहरह्यो तेथीकरीनेके वलज्ञानपाम्यानहि तथाक्षपक श्रेणीपात्रावीनहि जेवा रेनगवाननिरवाणथया तेवारेएवीभावनाथइजे केनावि रनेकेनाकुविर विरनात्रात्मानुंकारजकरीनेगया अनेतुं फोगटविरविरपोकारेछे तेमांतारुशुंवल्यं तुताराआत्मा नंकारजकर एमअनित्यनावनानावतांथका केवलज्ञान पाम्या एमबीजानेपणअनित्यनावनाभाववी तेथकीत्रा मानकारजथाय एटलेएपांचमीभावनाकहि. हवेछठीभावनाअसुची नामेकहियेबिये एटलेअसुचीके हेतांअपवित्रवस्तुनेविचारवी एटलेतेअपवित्रपणुंशाथकी पामे तेकहियेछिये जेजीवमोहनेवशपडयोथकोकर्मबांधे तेथकीमनवशपणनरहे अनेमनवशनरहेतेवारेमनजोगथ किकर्मघणांबांधे तथामनवशनहोयतोइंद्रितपणजोरघणं दाखवे अनेइंद्रिनापरिबलथीकरीनजिवप्रमादमांप मे प्रमादमांपडयो एटलेतेनेज्ञानध्यानतोहोयजनहि तेनेतो इंद्रितनापोषणनोजविचारअहोनिशरहे तेथीजिवअनंतां कर्मअशुनउपारजे अथवाकदापिकोइशुभउपारजे परंतु अंतेएकर्मबंधकहिये तेकर्मनाजोरथीकरीने जिवनरका दिकगतिनेविषेजइनेउपजे तोत्यांतोरुधीरमांसनोकरद मथइनेरह्योछे नेसदायछेदनभेदन त्यांअसुचीनुशंकेहे q अथवामनुष्यअथवात्रिजंचनीगतिनेविशेश्रावे तोत्यां - Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९८ तत्वसारोदार. पणगर्नवासनेविषेतो असुचीनोजभंमारछे तेगनवास मांउपजवानी तथाउपजवानाथानकनीवारता संक्षेपथ किदेखामियछिये जिवगर्भनेविशेकेटलादिवसरहे तथा केटलीरात्ररहे तथाकेटलामहरतरहे तथाकेटलाश्वासो श्वासरहे तथाजिवशोआहारले एटलांवानांगर्भनांकहि शं. हवेजेगर्न नेविशेजिवबसेनेसामीसित्तोतेर अहोरात्रर है एटलोगर्नस्थितिनोकालपरायचे तेमांकोइनेगर्नोडे थइजाय तेसर्वेकर्मनोव्याघातजाणवो तथाजिवगर्भनेवि शे आठहजारत्रणसेनेपचवीसमहूर्तरहे व्याघातथकीन छोअधिकोजाणवो तथाचौदलाखदशहजारबसेनेपचवी स एटलाश्वासोश्वासगर्भनेविशेलेवे. हवेग वासे जिवनेउपजवानुथानकदेखाउछे तेस्त्री निनाभिनेहेठेबेनाडीछे तेबेहनाडीफुलनेआकारेले तेनी निचेयोनिछे तेमध्येजिवनेउपजवानूठेकाणुछे तेजेमकम लउंधुंकरीनेराखियेतेत्राकारेछे तेनीनिचे जेवीत्रांबानी मांजरतेवेत्राकारमांसनीपेसी तेजेवारेस्त्रीनरतकालहो यतेवारतेमांसनीमांजरफुटे तेमांहेथकीरक्तवहे जिवनी उतपत्तिविशेजेअधोमुखफुलनेआकारे योनिने त्यांपुरुष मुंविर्यसंप्राप्तथायतेकालयोनीमिश्रीतहोयतेवारेजिवउप जवाजोगथाय तेविर्यप्राप्तथयाथकी बारमहर्तसधिजि | वनुंउपजqथाय तेवारपछीतेविर्यनाशपामे अहियांकेट Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. लाएकजिवपणनाशपामे शामाटेकेजोजिवत्यांउपजेतो. एकपणउपजे तथावेपणउपजे तथात्रणपणउपजे तथा उतकष्टानवलाखउपजे तेनुआवखंजघन्यथकीअंतरमहू उतकष्टुक्रोडपुरवनुं तेजिवजेउपजे तेनापितानीसं ख्याकहियेछिये एकहोयअथवावेहोय अथवानवसेंपिता होय हवेगर्ननाजिवनेउपजवानूठेकाणुकहियेडिये स्त्री निजमणीकुखेपुत्रहोय डानीकुखेदिकरीहोय एबेकुख नामध्यभागनेविशे नपुषकहोय हवेतेगर्भनीस्थीतिकाहि येछिये मनुष्यगर्नमारहतोबारवर्षरहे एथीअधिकुनरहे कदापिकोइअधिकुरहेतो छोडहोयपणजिवनहोयकदापि नवोजिवतेछोममांआवीनेउपजे तोगेडपलवथायत्रिच गर्भमांरहेतोउतकष्टो पाठवर्षरहे हवेगननेत्रहारनीवि धिकहियेछिये जेजेगननेविशेउपजे तेप्रथमसमेत्रहार लेतेश्रहारशंकरे मातानुरुधिरपितानविर्यतेपरतेअहारक रेतोअपवित्रसुची दूगंछनीएवोत्रहारकरेछे तेवारपी तेनुंजशरीरबांधे जावतछएप्रजापतीपुरीकरे एमकरतां सातदिवशथायत्यारे पाणीनापरपोटाजेवोथाय तेवार पगमनुष्यपणुबांधे तेवारपछीत्रांबानीगोटीसरखोबंधा यतेवारपछीप्रथममहिनोपुरोथये एगर्नएककरखणेउणो एकपलनोथाय सोलमासानुएककरखणकहिये चारकर खणएकपलकहिये तथाबिमहिनेतेपेसीकठपथाय ते - Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तत्वसारोद्वार. यारपी त्रिजेमासेमातानेडोलाउपजे गर्भसारोहोयतो सारासाराअनिलाखथाय अथवागर्ननोजिवमाठोहोय तोमाठामाठाअभिलाखथाय तथाचोथेमासेमातानाअंग नोवधारोथाय तथापांचमेमासेपांचअंगथाय हाथ २ त थापग २ तथामस्तक १ एपांचगंगथाय बठेमासेरुधी रनोसंग्रहथाय तथासातमेमासेसातसेंनाडीबंधाय तथा पांचसेपेसीबंधाय तथानवधमणीलामीथाय तथानवाएं लाखरोमरायप्रगटे तथारोमहारग्रहथाय अनेसमेस मेप्रणमे वलीवीजाकेसदाढीमुछविनानाकह्या सर्वशरोरे मलीने साडीत्रणकोमीरोमरायहोय अाठमेमासेसर्वश्रं गोपंगसंपूर्णहोय हवेजेजीवगर्जनेविषे जेउपन्यो तेनेल घुनित्य वमीनित्य सलेखम बलखा प्रमुखकांश्नहोय एटले तेजीवगर्भमांरह्योथको श्राहारकरे तेत्राहारइंद्रि नीपष्टीकरे हाम तथामेज तथाकेसप्रमुखनीद्धिकरे हवे जेगर्नमारह्योथकोत्राहारकरे तेसर्वशरीरेकरे अनेसर्वश रीरेप्रणमावे अनेवारंवारआहारकरे नेसर्वशरीरेउवा सनीश्वासले तेपणवारंवारले तेत्राहारक्यांथकाले मा तानीनाभीनी नेपुत्रनीनानीनीरसहरणीजेनामीछे तेमा तासाथेसलग्नजछे तेपुत्रनाजीवनेसपष्ट तेकारणमाटे आहारकरे तेथीत्राहारप्रणमे तथाएकबीजीनामीपुत्रना शरीरसुसलग्नपणे तेमातानाशरीरनेस्पष्टछे तेकारण Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. थकी शरीरपुष्टथाय तेथकीघणीपुष्टीथाय तथाव्यवहार नयनेमतेतो जीवसमयसमयआहारले तथामाताश्रा हारलेतो गर्ननोजीवपणाहारले हवेतेगर्भमांमातानां अंगकेटलां तथापीतानांअंगकेटलां तेकहियेखिये पीता नां ३ अंग अस्ती १ अस्तीमांहेलीमीजो २ केशरोम प्रमख ३ तथामातानांअंग ३ मांस 'लोही २ अनेक पालनोमांहेलोभेजो ३ हवेजीवकदापिगनमाथीजचवे तोनरकादिक चारेगतिमांजइउपजे हवेतेगर्भमांरह्योथ कोजीवमाताजोसुवेतो पोतेसुवे माताजागेतो पोतेजागे मातासुखणीएसुखीयोमातादूखणीएदूखीयो एवीरीतेग मारह्योथको जीवअसुचीअपवित्रमांदूखपरवशपणानुं जोगवतोथकोरहे एटलेएस्थानक महामलमुत्र नरेलु तेमांवसवूपमे एवीरीतेनवमहीनागर्ननेविशेरहे हवेजेपु मातानारुधीरनुंबलथोडुंहोय पीतानावीर्यमुंबलघणुंहो यतो गर्नपुरुषवेदेथाय जोमातानारुधीरतुंबलघणुंहोय नेपीतानावियतुंबलथोडुहोयतो स्त्रीवेदबंधाय जोरुधी र तथाविर्यमुंबलसमनागहोय तोनपुशकवेदबांधे तेमां कोइजन्मकालनेविषे मस्तकेकरीत्रावे कोश्नपहेलांप गावे अथवाकोइतरीगेश्रावेसर्वेपुन्यपापनांफलछे एस जोपोतानीपुर्वनी अवस्थाजोसनारे तोकोनीदुगंच्छ नानकरे केमकेएगर्नवासनरकनीकुंनीपाकसरखोछे अ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ तत्वसारोद्वार. | नेतेकोइजीव पुर्वअवस्थाभुलीनेजुवानीनामदमांगक्याथ काअसुचीनीदुगंच्छनाघणीकरे तेत्रज्ञान अथवाशरी रनेविषेजेछे तेकहियछिये. अराडपांसलीन परीष्टकंडकनामे संधीनीछेतथाबार पांसली-कंडक बेपासानीने चारप्रांगुलप्रमाणेग्रिवाछे चारपलनीजीभछेवेपलनांनेत्रने चारपलोनुमस्तकछेसा तत्रांगलनीजिव्हानाठपलनुरदयछेपचीसपलनुकालजु बेबेअंतसकह्यांछे तेमध्ये १ सुक्ष्मने१ स्थुल स्थुलनेवमी नितनुंस्थानककहियेनेसुक्ष्मनेलघुनितनुंस्थानककहियेव लीतेशरीरमांबेप्रणमवानांवेस्थानकडे एकदक्षणतथाएक वाम दक्षणनेपासे प्रणमेतोदूखनुकारण वामपासेप्रणमे तोसुखनुकारण एकसोनेसाठसंधीछे एकसोनेसितोतेर मरमनांथानक तेठेकाणेलागतोमरे त्रणसेंहामनीमाला छेनवसेनामीछे सातसेंसीराछे पांचसेंमांसनीपेसीछेनव धमगीनाडी नवाएलाखरोमरायछे मस्तकदाढीमुछ विनासर्वमलोसर्वशरीरनीसामीत्रणक्रोडरोमराय एक सोनेसाठनाडीनाभिथकी उंचीचालेछे तेमस्तकनाबंध नीतेनेरसहरणीकहिये मस्तकेरसपोचामे एरसहरणी नामीनोजेटलोउपघातथाय एटलीरोगनीप्राप्तीगणवी अांख्यतथानाकतथाकानतथाजिन एनाबलनेहणेरोग थायपिमाकरे एसर्वेउर्धनामीनांफलजाणवां तथावलीएक Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ५०३ सोनेसाठनाडीनाभिथकीजे उठीतेधोगामनीकहेतांनि चीचालीतेपगनेत लियेबंधाणी ते नाडीनेउपघातथायतो एटल रोगप्रगटथाय नेत्रनोतथाजंघानो तथामस्तकनो तथात्रादोशीशी जावतत्र्धथाय त्यांसुधीपणएरोगएना जाणवा तथा एकसोनेसाठनामीनानिथकी जेउपडीतेत तुंगतीचाली तेहाथनांत्रांगलांसुधीपहोची तेनीउप घातेकरीजेरोगथाय तेकहिये बिये बेपासेवेदनाथाय तथा पेटनीवेदनातथामुखनीवेदना एसर्वेएनीर सहरणीनाघा तथक उपजे तथाएकसोनेसाठनाडीनानिथकीजेउपनी अधोगामनीकहेतां गुजस्थानकसुधीपहाची तेनेउपघात थकीजेरोगउपजे तेकहियेबिये लघुनितवडीनिततथावा युतथाकरमियाप्रवर्ते अथवा लघुनितवमीनितनुं थंबुंधा यतथावायुरुंधाय तथाहरसविकारपांडुरोग इत्यादिकक थोलारोगएर सहरणीनाघातथकीथायते तथापंचविशना डीनानिथकीउपनी तेसलेखमनेउधरवावालीबे उपघात थीस लेखमथाय तथापचविशनाडीपितनीधर नारीबेउप घातथकीपितनोरोगथाय तथादशनाडी विरजनीधरना रीछे इत्यादिकपुरुषने सात सेंनामीतेनी रसहरणीजेना मीतेने उपघात होयतो सदायशरीरने सुखर हे नेतेरस हरणीनाडीने कांइउपघातथयो होयतोतेते प्रकारनोरोग थायतथा त्रिशनाडीछी होयएटले छसेंनेशीतेर होयस्त्री Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. नेजाणवी नपुशकनेछसेंनेएशीनाडीहोय. हवेशरीरमां धातुप्रमखनंप्रमाणछे तेकहीएलीये शरी रमध्येरुधीरनोएकहामोहोयनेमांसनोत्रमधोहामोहोयत्र नेमाथानोभेजोएकपायोहोय लघुनितएकहाडोहोयवडी नीतएकपाथोहोय पीतनोएककलवहोय कफनोएककल वहोय संलेखमनोएककलवहोय वीर्यनोअडधकलबहो य एप्रमाणेबरावरशरीरमांसर्वेवस्तुरेहे त्यांसुधीशरीर मारोगादीकनथाय अधिकनन्यथाय तेवारेरोगनीउप्तत्ति थाय तथापुरुषनेपांचकोठाशरीरमांहोय स्त्रीनेकोठा होय एटलेएककोठोगरभधरवानोअधिकहोय पुरुशने नवद्वारसदायवेहेछे स्त्रीनेबारहारवहछे तेनांनाम कान २ चक्षु २ वमोनित १ नासीका २ मुख १ लघुनीत १ एपुरुषनेनवद्वारजाणवा स्त्रीनेएथकी त्रणहारअधिकते नांनाम स्तन २ प्रसवयोनी एत्रणअधिकहोय एरीते बारद्वारस्त्रीनेवेहे सदायपुरुषस्त्रीनेवह्यांजकरे तथाजे पुरुषनेपांचसेंपेसीमांसनीकही तेमध्येथीत्रीसन्छीस्त्री नेहोयतथानपुशकनेवीसगणीहोय एटलेमनुशनाशरीर नेविषेमांसमेलादीकजेनरेलुंछे तेमहाअपवित्रछे केम के मांहेपरुछे लघुनीतवमीनीतप्रमुखभर्युछे माहादूर्ग छानुस्थानकोमाटेएQअशुचिनुस्थानकाशरीरेअपवित्र नोकोथलो तेतुजाणतोनथी अनेजवानीनामदमांछाक्यो - Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तबसारोहार. थकोचंदनअत्तरकुसम चुरणप्रमुखेपोतानाशरीरनेविलेप नप्रमुखसुगंधेनरचोरहेछे नेलोकोनीदुर्गछनाघणीकरे तेतनेत्रागलकरमघणांनोगववांपडशे माटेपुरवनाजेक हेलाबोलगरनतथाशरीरप्रमुखनातेसंनारीने दूर्गछना कोइनीकरवीनही अनेत्रात्मासाथेएवोविचारकरवो हेचे तनएपुदगलनोस्वभावसडणपमणवीदवंसने एनावर पनेरसफरसनेपलटवानोस्वनावरह्योछे एनापरजायनी एजस्थीतिछमाटेतुपुदगलनाधरममांप्रवेशकरीशनही राआत्मीकधर्मनेविषेप्रवेशकरताराधर्मनेविषेकत्रि अपवित्र नही तुंतोसदायपवित्र माटेपोतानुज्ञानदर्शन चारित्रनाउपयोगनेमकवूनहीएवीठीप्रसुचीनावनाभावे. हवे सातमी श्राश्रवनावना कहीयेगये हवेतेश्रा श्रवकेवोछे के श्राथवरुपीएकसरोवर एटलकाया रुपसरोवरजाणवू तेमध्येइंद्रीतथामनरुप मछकछरमी रह्याने तथाविषयनाकलोलत्यांघणाथइरह्या पापरुपि युपाणीभरेलु तेकायारुपत्राथवसरोवरछे तेनेपांचगड नालांजेतेपांचगडनालानांनाम जिवहिंसा १ जुठुबोलवू २ चोरी ३ मैथुन ४ परीग्रह ५ हवेतेमध्ये प्रथमजजिव हिंसाजेत्रसतथास्थावरजिवनी हिंसाधर्मनिमितेअथवा संसारनिमिते करवीतेनेहिंसासर्वकहिये अहियांकोइक हेशेकेधर्मनिमिते कांइहिंसाथायतेकांइपापमां गणीनथी - Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०६ तत्वसारोहार. तेने कहिये के प्रश्नव्याकरणसुत्रनेविशे धर्मनिमितजेहिं साकरेतेनेमहामंदबुद्धियाने महादृष्टप्रणामी कह्याछेतथाद शविकालिकसुत्रनेविशे जैणाए धर्म कह्योछे इत्यादिकसर्वें सुत्रने विशे जैणाविनाधर्मथायनहि श्रनेजेधमाधम करी नेधर्मधर्मपोकारे 'नेजिवहिंसाकरेबे तेजिवशास्त्रजोतां महामाठीगतीनाछे नेबहोलसंसारीदिठामांत्रावेछेत्र नेच्अनंतो संसार तेरखमशे एवांपरमात्मानां वचनछेतथा जेधनना लोभिथकाजेपुजाप्रतिष्टा सनात्रवरत पचखाए करावेछेतथातेनोउपदेशकरे ते सर्वेपत्थरनीनावसरखा जाणवातेमांतेवुडबे ने बजानेबोलेछे एवचाराप्रज्ञान जिवपेटनरवावास्ते धर्मतथापापनीतथा आश्रवसंवरनी कशीलखाणराखतानथी अनेकदापिकाइये बेशास्त्रवां चलांबतोतने पोताना स्वार्थश्रागल कांइ सुजप तीनथीते थीपोते पणवुमेने श्रागलनाने पणबुडा मेत्रे एवं श्री परमात्मानं वचनबेमाटेज्यांज्यांजिवनीहिंसात्यांत्यां सर्वेठेका लेप्राश्रव जकहिये.शामाटेकेनगवंतेश्रवरत बारकह्यांछेते मांछएका यनुंत्र्यवरत हंश्याजछे त्यांकांइ एवं नथी कह्युं के धर्म कार रोहं साकरते पापमांनगणवीजे कोइजाणीने सोमलखाशेतेनेप झेरचडशेने जाणेखा शेतेने पणझेर चडशे माटेसंसार थवाधर्मप्रर्थेजेधणीहिंसाकर शेतेने महात्र्यांकरां कर्मबं धाशेजावतन र्कादिकगतिने विशेजशे एकोइ जिवेकह्युंनथी Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ women तत्वसारोद्वार.. | केतुमनेमारीनेतारुसंसारनुकारजसाध्य अथवाधर्मनुंकार | जसाध्यएवुतोकोऽकहेतुनथीसजिवजिवQवंछेछेमाटेहेचे तनसर्वथाप्रकारेत्रसअथवाथावरजिवनी हिंसानहिकरवी तेहिंसानहिकरेतेधणीश्रात्मानोसुखीथशेनेजेहिंसाकरशेते नोश्रात्मादूरखीथशेजेमात्रासदूखीथयोतेमविजापणदुखी थशेएवातविपाकथकीजाणजो तथाबिजोत्राश्रवजेमर खानबोलq केटलाएकएईंकरके धर्मअर्थेजठबोलीयेते मुंपापनथी तेपणवचनमिथ्या परमात्मानामार्गनेविशे जथार्थवचनबोलवू हवेतेनावनेविशेशुविचारअहोचेत नत्राजमनाजेटलांकर्तव्यछे एसर्वसत्यछे जडथकीजे जेकारजनिपजे तेनेतुंपोतानुकरीनेजाणेछे अथवा तेमांतुं लानखोटमानेछे एसबैमिथ्याने शामाटेके पुद्गलनाकर्तव्यमांकोइकालेआत्मानेनफोहोयजनहि ए श्रात्मानेतोअवगुणकरताछे तथात्रीजोत्राश्रवजेचोरीए टलेपरवस्तुजेतेनास्वामिनादीधाविनाजेलेवी तेसर्वेचोरी ने माटेतेआत्मानेकांइखपमांत्रावतीनथी धनधान्यादिक जेचोरीनेतुंभेगुंकरीश तेश्रहियांपम्युंरहेशे अनेकर्मबांधी शतेतारेभोगवqपडशेतथाचोथोआश्रवजेब्रह्मचर्यएटले | स्त्रीआदिक-सेवनतेविटंबनाछे नेस्त्रीनीसंगतथकीअनंता जीवश्रागडुबेलाछे माटेतेनेस्त्रथिकी सदायअलगुंरहे तथापांचमोश्राश्रवजे महाश्रारंजेपरग्रह तेपापyमुल । Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ज तथासर्वश्राश्रवनमुल तथासर्वदुखनोदातार एवोजे प्रारंभपरीग्रहथकीसदायअलगुरहवं अंतेपगतेप्रारंन परीग्रहापणीहारेश्रावनहि एथकीआपणेअनंतानवर खम्वूपमे माटेएपांचेत्रावतेथकीसदायवेगलोरहे नहि तोएजतनेसंसारमांअनंतानव जन्ममरणकरावशे तथा बीजेप्रकारेअढारपापस्थानक तेपणआश्रवजछे तेथकी पणसदायवेगलुरहेवू तेनांनाम हंसादिक ५ पूर्वेकह्यां तेतथाक्रोधछठो एटलेक्रोधछे तेपणाश्रवरुपज जे वखतजिवक्रोधनेविशे श्रावीजायजे तेवखतकांइकृत्या कृत्यविचारतोनथी तथामान तेपणजीवअभिमाननो लीधोथको नकरवानांकारजकरे तथामायाकपटनो नरेलोजीवशंनकरे तेसर्वकारजसेवे तेनोकोइविश्वास पणनकरे तथालोनतेतोसर्वथक महानिष्टछे लोनीमा णसनेकोइसरॉवहालुं हेतुकोइहोयनहि अनेनकरवानां कारज तेसर्वेएलोनीमाणसकरे पोतेदुखीथाय नेबीजा नेपणदूखीकरे तथासगतेस्नेहनोलीधोथको कोइवचन बोलवानोपणविचारनहोय तथाकोकामकरवानो पण विचारनहोय कोइनीलाजशरमपणनरहे एरागसोनानी बेमीसरखोछेतथाद्वेषतेद्वेषनाभरयोथकोपोतानुंकारजपण बगाडे नेसामानुंकारजपणवगामे केवोकेलोढानीबेडीजे वो तथाकलेशजेसामासाथउभोकरवो अनेसंतापथीच Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तखसारोदार. - डीएकछेटेखसेनहि पोतेकलेशमानरयारहे नेसामानेक लेशउपजावे तथाअभ्याख्यानएटले पराइखोटीवातो जाणीअजाणीकरवी तथाखोटांपालकोइनेमाथेदेवां. हवेपरिसुनकेहेतां पराइचामीनखावी अथवाकोश्हेतु जाणिनेमर्मनीवात आपणनेकहीहोय तेप्रसिद्धकरवीत थाकोइनीमर्मनीवातजाण्यामांश्रावीहोयतो फजेतोकर वो तथापरीपरीवादकेहेतां परनावरणवादबोलवाको इनागुणग्रहणकरवामां समजेनही ज्यांत्यांसर्वनाव गुणग्रहणकरवामांसमजे पंदरमपापस्थानरत अरत एटलेसुखावेथके सातावेदवी एटलेपोतानासुखमांम गनथगयो पारकुंदुखजाणेनही दुखावेथकेहायवरा यघणोकरे संतोशराखेनही तथासत्तरमुं मायामोसकेहे तांजेकपटसहित जुठुबोलवूजेमत्रागेतो विषहतुंअनेव लीतेनेवधार्यु एटलेतेनाझेरनुशंकेहेवू तेमपेहेलुंजुठंबोल qतेतोमाहापापछे नेवलीदंनसहितबोलq एटलेतेनापा पमांशुंकेहेवू तथाअढारमुंमीथ्यावसल्यएअढारपापस्था नथकी हेचेतनसदायवेगलोरहे एथकीजसर्वपापनीकि यालागे नेपापनीबासीएप्रकृतिनाउपररंजननाकरवा वालाएअढारपापस्थानकजछे मेएअढारपापस्थानक ज्यांसुधीमांथीगयांनथी त्यांसुधीजीवनसंसारथीरना | वजने त्यांसुधीसंसारघट्योनथी एवातनिश्चेजले तथाते - Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. - अढारपापस्थानमां सत्तरपापस्थानथोडासंसारनाधणी छे अनेएकमीथ्यातपापस्थानकअनंतसंसारनोधमा टेएवंजाणीनेहेचेतनएथकीतुंसदायअलगोरेहे तथापांच द्रीनाथाश्रवडे तेपणतजवाकेश्रोतइंद्रीना ३ वीषयते पणतजवां जोनहीतजितोएथकीजडनपोषणथशे नेत्रा स्माघातथशे तेमपांचइंद्रीनाविषयसमजवातेश्रोतइंद्री नापरवशपणाथी मरगनोजीवथाय तथाचक्षुइंद्रीनापर वशपणाथकीपतंगीवानाप्राणजाय तथारसइंद्रीनापरव शपणाथीमांछलांनाप्राणजाय तथाघ्राणइंद्रीनापरवश पणाथीभमरानोजीवजाय तथाफरसइंद्रानाविषयथकी गजनोनाशथायछे तथाएपांचद्रीमध्येअकेकीइंद्रीजेनी वशनथी तेनाजीवजाय तोजेनीपांचेइंद्रीमोकलीहोय तेतोसुखक्यांथकीदेखे माटेहेचेतनएपांचेइंद्रीरुपजेसंसा रनादूततेनेछुटामुकीशतोएतनेसुखकेमाववादेशे नेतने संसारमारोलवशेमाटे तुएपांचेदूतनेपकमीनेकेदकर एट लेतुंसुखीयोथइशइत्यादीक जेजेकारणथकीत्राथवनुआ वqथायजे तेतेकारणनेतुबंधकरजेमतारोत्रात्मानारेनथा य अनेजोतुंबाश्रवनेबंधनहीकरतोताराश्रात्मानेतरवानी विखतकोइकालेनथीमाटेाश्रवबंधकरीएवीनावनानाववी तथाआठमीनेसंवरनावना एटलेपुर्वेसातमीश्राव नावनानविषेजेअधिकारकह्यो तेनेरुंधवानोविचारतेनेसं Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. वरकहिये तथामनवचनकायानाजोग संवरबातेसर्वेव्य वहारसंवरछे तथाजेपरनावनोत्यागनेस्वनावनेविषेरम करवंएटलेज्ञानदर्शनचारीत्रमा रमणकरवं तेनेसंवरक हिये॥ तथानवमीनिरजराभावना एटलेधर्मध्यानशुक्ल ध्यानध्यावं तथागुरुपासेलागेलादोषनुं प्राश्चितलेवुत थाविनेवियावचगुरुवादिकनीकरवी इत्यादिकनावना भाववीतेनेनिरजरातत्वकाहियदशमीलोकस्वरुपनावना लोककहेतांचौदराजलोक तेनोश्राकारकहियेछिये पुरुष अाकारकहतांपुरुषबेपगपहोलाकरीने उनोरहेहाथबेके मेश्रापेतेवाश्राकारेलोक तथाविजेप्रकारे वलोणात्राका रकाहिये तेकहेतांजेमस्त्रीवलोवानेउभिरहे अनेमाखणउ परलाववाझडकालेछे तेवखतजेवोएनोत्राकारहोय ते आकारेलोकछे तथात्रिजेप्रकारेएकसरावलू निचेउंधुवा लीएतेउपरसरावलानूसंपटकरीने उपरमुकीयेपणनिचे नंकाइकमोटमकीएने उपरनांबेसरखांनेनाहानांमकीएते प्राकारेलोकछे तेलोकनात्रणनेदछे उर्धतथाअधोतथा तरिबोलोकजे तेंजेपुरुषाकारनेविशे जेनानिनीजग्याथ कीनिचुतेनेअधोलोककहिये तेसातराजथी कांस्कझाझुळे तथासातराजमाठेरोनानिथकीउपरनाभाग तेनेउरध लोककहिये तथाजेनानिनीजग्यानोनागछे तेनेत्रिछो | लोककहिये हवेतेत्रणेलोकनुं किंचीतस्वरुपदेखामियेछि Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ तत्वसारोदार. येजेंअघोलोकनेविशे सातएथ्वीछे तेमध्यपहेलीप्टथ्वीर तनप्रभाएवेनामेछे तेनोएकलाखने एसीहजारजोजननो पिंमतेमेरुपर्वतनासंभतलाएथ्बीनाभागथकीगणवोहवे जएकलाखएसीहजारजोजननोपंड तेमध्यएकहजार जोजननिचेमुकीये नेएकहजारजोजनउपरमुकीये तेना मध्यमांएकलाखनेअठोतेरहजार जोजननोपंझरह्योतमां हेतेरनागकरीये तेमांतेरनर्कनापाथमाछे तेनावचलायां तरागीयाररह्या तेमध्येदशांतरामां भुवनपतिनीद शनिकायोजेनेएकांतरुखाली तथाहजारजोजनजेउप रनुरद्यं तेमध्येसोजोजनउपरमुकीए तथासोजोजनहेठ लमुकीएमध्येआठसेजोजनरत्युं तेमध्येबाठव्यंतरनीनि कायोजे तथाउपरनासोजोजननेदशजोजनउपरमुकीएत थादशजोजननिचेमुकीए मध्यनाएसीजोजनमांत्राठजा तनावाणव्यंतरनोरेहेवासबेतेनुवनपतितथाव्यंतरनेरत्न मयजग्यानछे हवेजेनकरत्नप्रनातेनात्रनागकरीए ते मध्यप्रथमनोनागरत्ननो तेरत्ननानागनीमांहेलीकोर सोलकंमरत्ननासोलजातना बीजाभागोमांरलनाना गनथी तथातेरपाथडेथइनेत्रीसलाखनर्कावासछे तेनर्क एथ्विमेनिचेत्रणवलयिांछे एकघनोदधी १ घनवा २ त नवा ३ एत्रणवलीयांनेश्राधारेकरीनेएएथ्विरही तेनी निचेएकराजआकाशछे त्यांगयेथकेवीजीनएथ्विआवे Rom Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. - तेनेविशेअगीयारपाथडाछेतेप्टथ्विकांकरासरखीजाणवी त्यांथकी एकराजगयेथकेत्रीजीएथ्विवालुकप्रभाएवेनामे श्रावतेनेविशेनवपाथडाने तेप्टथ्विवेलसरखीछेत्यांथकीए कराजचोथीष्टचिपंकप्रनाएवनामेत्रावेत्यांसातपाथमा तेएथ्विपंककेहेतांकादवजेवीछे त्यांथकीएकराज पांचमी एथ्विधुमप्रनाएवेनामेावे त्यांपांचपाथडाछे नेधुंवा मासरखीएथ्विछे त्यांयकीएकराजछठीवितमप्रभाना मेश्रावे तमकेहेतांअंधकाररुपडे त्यांत्रणपाथडाछे त्यां थकीएकराजकाफेरी सातमीएथ्वितमतमाएवेनामेआवे त्यांअंधकारअत्यंतघणोजतदरुपछे त्यांएकजपाथडोछे तेमध्येपांचनरकावासछे तेनांनामकहियछिये काल १ माहाकाल २ रोलुं ३ माहारोढुं ४ अपेठा ५ कालादी कचारपाथमाचारदसीनेविषेने तेत्रसंख्याताजोजननाने नेत्रपेठापनामेनरकावासमध्यनोएकलाखजोजनलांबो पोहोलो तेनीवेदनाघणीभाकरीछे त्यांथकीएकराजग येथकेअलोकश्रावे हवेतेसातेएथ्वी-पोहोलपणुं कहीये छीये पेहेलीएथ्वीएकराजलांबीपोहोलीछे बीजीनरकट थ्वीबेराजलांबीपोहोली त्रीजीनरक पृथ्वीत्रणराजलां पोहोलीतेमएकएकराजवधतेवधतेछठ्ठीराजतेथकीसा तमीनरकप्रथ्वीसातराजलांबीपोहोलीडे हवेतेसातेनरक नीवेदनानुस्वरुपकहीयेछीये प्रथमनीत्रणनरकनेविषेपर Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. - माधामीकृतवेदनाछे तथाखेत्रवेदनापण तथाचोथी पांचमीबेनरकनेविषे माहोमांहेवीक्रीयकरीने लढीमरे एकएकनेवेदनाकरछे तथाखेत्रवेदनापगडे तथाछठीसा तमीवेनरकनेविषे खेत्रवेदनाएकलीज परंतपेहेलीन रकनेविषेत्रनंतीवेदनाछे तेथकोबीजीनरकनेविषेअनंत गुणीवेदनाछे एमअनुक्रमेएकएकथकीअनंतगणीवधती वेदनाजावतछठीकरतांसातमीनरकप्टथ्वीनेविषेअनंतग णीवेदनाछे तथातेसातेनरकमांहमाहाअंधकारछे त्यांको इचंद्रमासूरजप्रमुखअजवालुंकरतानही. - शिष्यवाक्य-ज्यारेसातेनरकटथ्वीमांअंधारुकात्यारे भुवनपतीव्यतरमांपणअंधारुने? ___ गुरुवाक्य-भुवनपतीव्यतरनेविषेरेहेवानाजेरेहेवासते सर्वेरतनमयछेतेथीमाहाउद्योतकारीत्यांकांइअंधकारछे नहीअनेतेनारेहेवासनाजेभवन तेजवद्वीपजेवडाछे जाव तअढीद्वीपजेवमातथाव्यतरनाभुवनतेभरतक्षेत्रजेवमाछे जावतजंबुद्दीपजेवडा तेमाहाउद्योतमयछे घठारामठा राममाहातेजनोपुंजमुकेइत्यादिक एनोविस्तारजीवा निगमथकीजाणजो. .. शिष्यवाक्यः-केस्वामि आंतरेत्रांतरेभुवनपतिनेविशे महाउद्योतमहासुखडे तोनर्कनापाथडानेविशे अंधारु नेमहादूरखतेशं तेपणटवितोरत्ननी अथवासोलकंझर Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबारः - | त्ननापूर्वेतमेकह्याजले. . गुरुवाक्यः--हेभद्रजेदेवनाजेरहेवासनाजेउद्योत तथा सुखतेसर्वेपुन्यनाजोरथीभोगवे तथानकवालानेअंधकार तथादूरखतेसर्वेपापनाजोस्थीछे जेमकोइएकघरनेविशेहे ठेउपरतेनाउपरएमअनेकलोकवसेजे तेसर्वेनेसुखदुखतो पोतानापुन्यपापनाउदेप्रमाणेमलेछे तथाजग्यानीजेशो नातेपणपुन्यपापप्रमाणे तथातेंजेका जेरत्ननीएथ्वि तथारलनाकंडतेनुएमछेके ज्यांनरियानोरेवासछे त्यां तोउपरखरप्टथ्विसमज्यामांबावेछे माटेत्यांउद्योतनथी तेनोविस्तारपनवणा तथाजीवाभिगमथकीजाणजो हये त्रिछालोकनो अधिकारकहियेछिये त्यांप्रथमजंबुद्वीपए कलाखजोजनलांबोपहोलोछे नेसर्वेद्वीपसमदएनेवींटी नेरह्याछे तेनामध्यभागनेविशेमेरुपर्वत तेएकलाखजो जननोउंचोछे दशहजारजोजनलांबोपहोलो तेनीपूर्व पश्चिमेमहाविदेहनीसोलसोलवजे बेमलोनेवत्रीशवजे. ने देवकुरुउत्तरकुरुत्रादेदेइने छक्षेत्रजुगलीयानां तथा नरतत्रइरवरतक्षेत्र तेकर्मभुमिनांछे तेसःउत्तरदक्षिणे नेसर्वेक्षेत्रथकीमेरुउत्तरदिशामांछे तथाछपनअंतरही पछे तेसद्वीपोनेफरतीजगति तथाजंबूद्वीपनेजगतिनो कोटडे तेनेचारदरवाजाछे तथाउत्तरकुरुनेविशे सुदर्शन नामाबुव्रक्ष इत्यादिकविचार सर्वजंबुद्वीपपनतीथकी Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. जाणवो तेनेफरतोलवणसमुद्रजाणवो तेबेलाखजोजन नोजाणवो तेमांपतालकलसाने तेमध्येथकीपाणीउछ लेने तेनीभरतीन्टथायजे तेनंपाणीखारुले तेनेपणफ रतीजगतिछे तेनीपरधीसोललाखजोजनमाठेरीछे तेनी फरतोधातकीखंडछे तेनेविशेजंबुद्वीपकरतां बमणांक्षेत्र तथाबमणीरीतसर्वेजाणवी एटलोविशेष जेत्यांनाबेएमेरु चोरासीहजारजोजनउंचाने तथाबेश्खुकालपर्वतछे तथा धावडीनुव्रक्षछेतथाफरतीजगतिवाकीसबैजंबुद्दीपनीरीते जाणवू.तेहीपचारलाखजोजनपोहोलोछेतेनीपरधीएकता लीसलाखजोजनझाझेरीछेतेनेफरतोकालोदधीनामेसम द्र तेनुपाणीकालेवरणेछे नेपाणीसरखुपाणीमीठुछेतेने पणफरतीजगतीछे पाठलाखजोजनपोहोलोछे तेनीपर धीएका)लाखजोजनझाझेरीछे तेनेफरतोपुखरवरनामा द्वीपछे तेनामध्यभागनेविषे मानखोतरपर्वतवलीयाकारे पड्योडे तेनीमांहेलीकोरेअनधोजेद्वीप तमध्येसर्वधातकी खंडनीपेरेसमजीलें परंतूखेतरधातकीखंडनाकरतांएब मणोमोटो एअढीद्वीपनीमांहेलीकोरेमनष्यनोरेहेवास ने तथामनष्यनुजन्ममरणपणएअढीद्वीपनीमांहलकोरे तथातीर्थकरकेवलीगणधरत्राचारजउपाध्यायसाधूतध मदेवतातथादेवाधीदेवतेअढीद्वीपनीमांहेलीकोरेजबेतथा अढद्विीपनीबाहारनीकोरेदेवतात्रीचनोरेहेवासछे तेए - Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ५१७ कएकद्वीपथ की समुद्र बमणोएमत्रनुक्रमे श्रसंख्याता द्वीपस मुद्रमुकताथ काछेल्लो संभुरमणनामाद्दीपत्रावे ते पाराज पोहोलोवे तेथकीसंभुरमणनामासमुद्रबमणोपोहोलोछेए टलेऋडधाराजमांछे तथा ढीद्वीपनेविषे जेचंद्रमा सुर्यग्र हनक्षेत्र तारासदायफय करे बेते थी दिवसरात्र नुमानबंधाय वे तेथीसमयखेतरकहीयेछीये तथाढीद्वीपबाहारजेचंद्र मासुरजग्रहक्षत्रतारांबे सर्वस्थीरनावडे ज्यां सुरजछेत्यांस दायदिवसरेहेबे चंद्रमात्यां सदायरा रहेने तथाचंद्रमा सुरजनुंपचासहजारजोजननुंत्र्यांत रुरेहेवे एटले श्रेणीबंध रेहेवे एम संख्याता द्वीपसमुद्रनुंजाणवुं. शिष्यवाक्य - स्वामीतेश्रसंख्याताकेटलाहशे. गुरुवाक्य - प्रढीसागरोपमनाजेटलासमयतेटला एंडी पसमुद्रवेतेनोविस्तारत्रधिकार जिवा निगमथ की जाणजो एटलेतरिछालोकनोअधिकारको हवेउरधलोकनोक हियेबिये त्यांपहेलुदेवलोक सुधर्मनामाने त्यांबत्रीशला खवेमानबे सर्वेरतनमयछे तेथकीउत्तरनीदशे बरोबरइ शानदेवलोकछे तेनेविशेत्र ठाविशलाखवे मानछे तेनाई द्रनुनामदेवलोकनेनामे समजिलेवुं सर्वे ने विशे ते बे देवलोक लगडीनेत्राकारेछे तेनाउपरेसनंतकुमारनामा देवलोक दक्षणदिशा तेनेविशेबारलाख विमानबे तेनेविशेदेवं गनानुंउपज होयनहि तथाागलनादेवलोकमांपाउ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... तत्वसारोद्वार. - पजवानंनथी तेथकीउत्तरदक्षणनेविशे महेंद्रनामादेवलो कछेतेनेविशे आठलाखविमानछे तेनाउपरचोथ पांचम ब्रह्मदेवलोकछे तेनेविशेआठलाखविमानछे तेनाउपर पांचमब्रह्मदेवलोकछे तेनेविशेचारलाखाविमानछे तथा कृष्नराजित्यांछे तेनेविशेनवलोकांतीकदेवनांनवविमान बेजेतिर्थकरनीदिक्षानेसमे उपदेशकरवात्रावेछे तेदेवो नोरहेवाशत्यांचे तेदेवलोकपांचराजलांबूपहोलुछे तेनाउ परबठुललीतंगनामादेवलाकछे तेनेविशे पचाशहजार विमानछे तेनाउपरसातममहाशकरनामादेवलोक तेने विशेचालीसहजारविमानछे तेनाउपराठमुसेसारना मादेवलोक तेनेविशेछहजारविमान तेनाउपरअनंत नामानवमुदेवलोक तेथकीउत्तरदसीदसमप्रणांतनामा देवलोकछे तेवेदेवलोकमलीने चारसेविमानछे तेबनेदेव लोकमलीनेप्रणांतनामा एक इंद्रछे तेउपरारनामा देवलोकदक्षणदिशामांने तेथकीउत्तरदिशानेविशे अच्यु तनामाबारमदेवलोकछे तेबेदेवलोकमलीने त्रणसेंविमा नछे तेबेदेवलोकमलीने अच्युतनामाएकइंद्रछेएबारदेव लोकनेकल्पकहिये तेउपरनानेकल्पातीतकहिये तेनो विचारकहियद्रिये तेवारदेवलोकउपर नवग्रोवेकछे ते नाप्रथमत्रणग्रीवेक पहेल बिज त्रिजु एत्रणमलीने एकप्रथमतर्क कहिये तेपहेलातर्कनांएकसोअगीयारवे - Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. मानले.तथाविजातर्कनांएकसोनेसातविमानछे तथात्रि जातर्कनांसोविमान तेत्रणेतर्कमलीने नवग्रीवेककहिये तेनवग्रीवेकमलीने ३१८ विमान तेउपरपांचअनुतर विमानछे तेनांनाम विजय विजयंत जयंत अपराजित सर्वार्थसिद्ध तेमध्यविजयादिक चारविमान चारदिशाने विशेछे अनेपांचमुसर्वार्थसिधनामा विमानलाखजोजन लांबुपहोलु मध्यभागमांछे तेविमाननीधजाथकीबारजो जनउपरसिद्धसलाछे तेमध्यमां आठजोजनजामीछेछेडे माखोनीपांखजेवीपातली तेसिसलाउपरएकजोजन नाविशनागमकीने चोवीशमाभागनेविशे सिद्धपरमा त्माले तेत्रलोकनेअमीनरेद्याचे प्रात्मस्वरुपीछे अनंतसु खमय जन्मजरामरणनाफेराटल्या ज्ञानरुपजोतमय निरंजननिराकार अलखअजरपरमात्मा एवासिधनग वंतत्यांवसेछे तथापहेलाबिजादेवलोकनादेवता मनुष्य त्रिजंचप्रथवीपाणी वनस्पतिमांउपजे तथाआठमादेव लोकनादेव मनुष्यत्रिजंचमांउपजे अनेत्रिजंचनाजिव ' आठमादेवलोकसुधीजाय तेउपरनादेव मनुष्यगतीमां आवे तथाश्रावकतथाआजिवाकामतिना बारमादेवलो कसुधीजाय तथाव्यवहारसाधुनवग्रोवेकसुधीजाय. शिष्यवाक्य-व्यवहारसाधुशामाटेकह्या. गुरुवाक्य--जेनेत्रात्मस्वरुपनी ग्लखाणनथीअनेव्य Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. वहारथकीतपक्रिया कष्टचारीत्रपालेछे तेजिवनेहजसधी समकितपणप्रगटयनथीनेमिथ्याद्रष्टीतेकोइभवीछेअने कोइअभवीछे तेसर्वेएवाव्यवहारकष्टथकी नवग्रीवेक सुधीजायपण कांइतेनाआत्मानंकल्याणथायनहि तेजि वतोत्रनंतोकालसंसारमारखडवाना जाणवा माटेतेने व्यवहारचारित्रीयाकहिये तथानिश्चेचारित्रीया पांच नुतरविमानतथासिधपणजाय हवेतेचउदराजलोकउंच पणे तेमध्येएकराजलांबापहोलापणे चउदेराजसुधीते नेत्रशनाडीकहिये परंतुसिधसलाएगएथके पिस्तालीस लाखजोजनलांबीपहोलीछे एजबसनाडीनविशेजत्रस जिवडे बाकीस।लोकनविशे पांचथावरभरेलाछे तेमाटे हेचेतनएजलोकनेविशे कोआकाशपरदेश तेंजन्ममर करयाविनागेन्यानथी. शिष्यवाक्य-सर्वलोककहेतां सिद्धपणभेगााव्यातो शंसिधनानेगाविजाजिवडे. गुरुवाक्य-सिधनाभेगापांचेस्थावरसुक्ष्मतथाबादरवा यकायत्यांचे तेमध्येचारस्थावरतोअसंख्याता अनेसक्ष्म वनस्पतितेनीगोदकहिये तेजिवअनंताछे. शिष्यवाक्य--तेजीवसिद्धक्षेत्रमारह्याने तेनेकांइसिद्ध नासखनोभागआवतोहशे अथवाकांशसिद्धनाजीवनेए बाधापीडाकरताहशे. Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ५२१ गुरुवाक्य-सिद्धनासुखनोनागएनेत्रावेनही तेमकाइ एसिद्धनाजीवनेबाधापीडाकरेनही जथाद्रष्टांत जेमचंद्र मानुअजवालु तेजवालानुसुखकांइबेत्रांखेअंधछेतेने होयनही तेमतेअंधकांश्चंद्रमानाअजवालानेबाधापीमा करीशकतोनथी तेमतेजीवरह्या तेत्रापापणाकरमने वशदूखपीडामांरेहेले तेअंधरुपजाणवा तेनेसिद्धनासुख नोनागकयांथकीहोय तथासिद्धजीवनीराकारपोताना स्वरुपरमणीछे तेनेएबाधापीमाकरवासमर्थकेमथाय ते अजवालारुपले हेचेतनएवोजेकोइलोक तेनेविशेतुंअनंत कालपरीब्रह्मणाकरे तोहवेतुंएबुंलोक-स्वरुपजाणीनेह जुतुंएलोकथीअलगोथवाकेमइच्छतोनथीजोतुसमज्योहो यतोएलोकथीउदाशथइने पोतानास्वपरुनीलखाणकर एजतनेश्रेयकारीले एथीजतारीमुक्तीचे एवीरीतेलोकस्व रुपनावनानाववी. हवेत्रगीयारमी बोधदुर्लभभावना कहतांबोधबीजन पांमवू तेघणमुश्कलतेकांइसर्वगतीनेविशे पांमबुंथतुन थीतेठेकाणांबतावीयेछीये जेपांचस्थावरसुक्ष्मबादरनेवि तोअव्यक्तवपणुंछे तथाविगलेंद्रीनेविशेपणअव्यक्तव जेवज जेनेविषेमनतथाश्रोतइंद्रीजनही तोधर्म-सां भलवुअनेविचारवंशाथकीकरे तथात्रीजंचपंचंद्रीनेविषेछ मुममांतोधर्मजनही तथागर्नजनेशास्त्रवालालखेळके Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ तत्वसारोबार. | समकीतमुलअगीया रव्रतहोय तेहशतारेकेहेताहो परं तुहालनासमानेविषेतोकांइदीठामांश्रावतु नथी ऋोतेजी वनेतोबेदननेदन मारकुट भुखतरश ताहामतमको एमदू खसहेतांजदीनजायछे तथानारकीनेविषेतोगुरुनीजोग वाइजनही तोएजीवधर्मशानुपामे तथाएजीवछेदननेद ननांमाहात्राकरांदूख वेठनाथकांविचरेछे समयमात्रनुंसु खतो नही तोधर्मशाथकीपामे तथादेवगतोनेविपेपणचा रीत्रधर्मनीशास्त्रपणनापाडे तथाश्रुतधर्महशेपणकोइदे वनेहशे परंतुघणादेवतापोतानाविषयसुखमांजभवहारी जाय तथाजेअकर्मभुमीतथाअंतरद्वीपनामनुषनेतोधर्म जनही तथाजेकर्मभुमीनाक्षेत्र एकसोसीतेरविजयते अकेकीविजयमा बत्रीसवत्रीसहजारदेशने तेमध्येएकत्री सहजारनवसेंसामीचवोत्तेरदेशतोत्रनारजने तेमांकोइजी वधर्मपामे नाकेहेवायनही परंतुबोहोलताएतोनाजपामे तथाजेसामीपचविस देशआरजछे तेमांपणवाघरीनील कोली प्रमुखजीवनारजघणावसे अनेत्रारजजीवतो घणाथोमाने तेनेपणसुगुरुनीजोगवाघणीमूश्केल शा माटेकेएथ्वीउपरपाखंडधर्मघणुप्रवर्तेछअनेजीनधर्मथोडूं प्रवर्ते तेजीनधर्मनेविषे पणपाखंडीभेखधारीघणादीसे बेजेश्रारंभपरीग्रहमांडुब्यापम्याने अनेजेवीतरागनाखी तवस्तुधर्मनीनलखाणकरावनाराएवाजे सुगुरुततोकाई - - Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. कदीसेछे अंहीयांकोइककेहेशेकेएकवीसहजारवरससुधी नगवान-धर्म चालशे तेत्रमथकीचालशेएवंकहेशे तेमा हामीथ्यात्वा नेनगवाननामारगनाचोरछे शामाटेजेन गवानेश्रारंभपरीग्रहवालानेसाधुकह्यानथी तोतेथकीध मशानुरेहे धर्मतोसाधुमुनीराजयकोजरेहेो. ... शिष्यवाक्य-स्वामीतमेप्रथमजे क्रियाव्यवहारपाले त्रारंनपरीग्रहथकीवेगलारहे तेनेतोतमेसाधुपणानीना पाडीहतीतोहवे कयासाधमनीराजथकीधर्मरहेशे. गुरुवाक्य-हेभद्रअमेजेनापामी तेज्ञानहिणजेखोटोकि याआडंबरकरीनेचाले तेनीअमनापाडीहती तेश्रीसुम तीग्रंथनेविशे सिधसेनदेवाकरएवंकहीगया तथाश्रीन गवतीजिनेविशे शुधर्मास्वामीएमकहीगयाछे कहयुंछेजे गितार्थहोयतेनेसाधुकहिये अथवातेगितार्थनाकहणप्रमा विचरतेनेसाधकहिये तेविनानाजेटलाविचरे तेधणी कष्टक्रियातपलुखाशपणुराखेडे तोयपणतेनेसाधुकहियेन हिएश्रीविरनामुखनावचनछे तेवारेकोइकहेशेजेाजने कालेबेअक्षरनाजाणपंमितपणधरावता एवानेखधारीफ पछे तेनेसाधुकहियेकेनाकहिये तेनोउत्तरजेएवाबेअक्षर नाजाणथइने जेआरंनपरीग्रहथकीअलगानथया तेने महामिथ्यात्वीक़हिये नेमहाअज्ञानीकहिये तेनुनण्यसर्व धुलमांगयुं तेकांइलेखेआव्युनहि तेश्रीउतराधेनजिना - Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ तत्वसारोद्वार. अगीयारमावहथतनामाअध्ययननेविशेएवंकाछे तथा श्रीआचारंगजिमां तेनीसाथेजावतठलेजवासुधीनीना पामीले तथाश्रीश्रावशकनीरजुक्तिनेविशे श्रीनद्रबाइसा मिएएवंकहयुंछे केजेएनेवांदेतेअनंतानव संसारमारख डेतथाधीनगवतीजिना अाठमासतकनेविशे एनेजेआ हारपाणीवापेतेअनंतानवरखडे तेमजश्रावकनाप्रतीक मणानेविशेएनेत्राहारपाणीआपे तेनीवालोयणगुरुपा सेमागीछे एमजावतघणाशास्त्रनेविशेएनेनिशेध्याउमाटे एनेसाधुनकहिये तथाप्रत्यक्षपणेसमजोके जेपुरुषपोते कुवोजाणे तेधणीकांइचालतोकुवामांपडीजाय जनजा तेपडे जाणेतेपमेनहि तेमजेपुरुषनेज्ञाननुजाणपणुंहो यतोतेपुरुषवरतनेकेमशेवे माटेएशेववावालापुरुषपा सेज्ञानछे तेपणअज्ञानतेवाजेनेखधारीपाखंमीतेनाना ख्याधर्ममार्गउपरचालतेनेपणकांइधर्मपाम्योकाहियेनहि तेअधिकार श्रीमहानिसीथसूत्रने चोथेअध्ययने नागील सोमलनोअधिकारछे तेजोजोमाटेसुगुरुविनाधर्महोयन हितेसुगुरु तेबहुश्रुतज्ञानीपुरुष श्रारंभपरीग्रहथकीवेग लाहोयतेनेगुसुरुकहिये तेसुगुरुसदायकालसर्वेक्षेत्रेना होयएतोकोकक्षेत्रकोइक अवसरेमले तेचोथेआरपण कोश्कअवसरेमलता तेअधिकारमहानिसीथसुत्रथकी जाणजो एवाकदापीकोइअवसरे सुगुरुमलवुथायतो Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. त्यांतरकाठीयात्रावीनेनमे तेथकीगरुदरशनकरीशकेन हि तोवाणीसांभलवीतोक्यांथकीकदापीकोइजिवजबरो थइने तेरकाठीत्राने दुरकरीनेगुरुपासेजायतोपरगशण गारादिकरसकथानालोलपीथका धर्मपामीशकेनहि अ थवाकेटलाकजिवबेठाथकाउंघे अथवाकेटलाकजिवक थामांचारप्रकारनीवारतालेइबसे तेथकीधर्मसांनलेजन हि एमकरतांएसर्वकारणने दूरकरीनेधर्मसांनलवावेसे तोपुर्वेकुगुरुस्वदर्शनना अथवाअनदर्शनना तेणेजेभर मावेलाबेतथीतेनेसुगुरुनुवचनरुचेनहिजथाद्रष्टांते एकन गरनेविशे राजामहानक्तिवान अनमीतनावचननोलो लपीअनेस्वभावेनद्रीकहतोतेजेजेपंडीतलोकत्रावे तेने बडेआडंबरथीहाथीउपर बेसाडीनेघेरतेडीलावतेनेपांच रात्रीराखीशेवानक्तिकरीधर्मतेनीपासेसांभलीने तेनेपांच रुपैयानोमालदेइने भलीरीतेविदायकरीत्रावे एमजेजे पंडितश्रावतेनेएमकरे तेमाएकब्राह्मणपंमितआव्योतेस्व नावेकपटीने तेमनमांएवुविचारताहूवोजेश्राराजाबहूभ क्तिवाननेबहूदानेश्वरीने तोएराजामहारेवशरहेतोघणु सारुतोहूंजोएनेविलोमुकीनेघेरजइशतोएराजानद्रीकडे तेबिजानेवशथशेएमविचारीत्यांथकीजायनहि एमकरतां केटलांकवर्षवहिगयां तेवारेमनमांविचार्यकेत्रापणेग्रह स्तीठरचातेघेरगयाविनातोचालेनहि माटेहवेघेरतोजवं Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ तत्वसारोदार. पणराजाअापणेवशरहेएवंकरीनेज एवंविचारीराजापा सेत्राज्ञामागीतेवारेराजाएकहपुंकेसुखेथकीपधारो हूंतम नेशक्तिसारुविदायगिरीकलं तेवारेब्राह्मणेएवातकबलक रीराजायेविदायगिरीकरी तेवारतेपंडितराजाप्रतेकहतो हवोजेतुंबणोनीकडे अनेघणोदानेश्वरी पणतनेह जु पंमितनीपरीक्षानथी पणहंतनेशास्त्रमांकोइकरीतनाअर्थ छेतेदेखाइपणताहारापेटमारहेतो कोइपासेकहतोतेदेखा डवाजेवनथी तेवारराजाबोल्योजेश्रावडीबधीसर्वराजनी वारतामाहारापेटमारहे तोशास्त्रनीवारताहूंकोइनेकम कहीशमाटेमनेक्रपाकरीनेदेखामोतेवारपंडितनामुकरग योकेएवाततनेकहेवायनहिअनेतजथकी जिरवायपणनहि एमकहीनेराजानेघणोमोहचडाव्यो तेवारेराजाघणोत्रा ग्रहकरीनेवलग्योतेवारेतेपंमिते घणोबंदोबस्त करीनेरा जानेगीतानोपाठदेखाड्यो तेमध्येएकशब्द तोअर्थपर्वेजे थतोहतोत्रनेशब्दनोअर्थपणएजहतो तेकहीनेदेखाड्यो नेपछीकहयुंकेयाअर्थतोत्रमारेसर्वलोकनेसमजाववानो ने पणपंमितलोकनासमज्यामांएशब्दनोअर्थएवोछेकेसी केबेठीदेवीचणाचावेएवोअर्थपंडितोनाजाणवामांछेबिजा नाजाएयामांनथीने पंडितबिजानेजणावतापणनथी प पतारीघणीभक्तिजाणीनेमेंतनेएअर्थकह्योछे पणतंकोइ नीपासेकहीशनहिअनेएशब्दनोएजअर्थकरतेनेपंमितजा Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ५२७ - | पजेबिजानेपमितजाणीशनहि. - तेपंडीतएवंसलघालीने पोताने घेरगयो त्यारपछीजेजे पंमीतत्रावतेनेराजाबहामबरथालावीने तेगीतानापा ठनाशब्दनोअर्थकरावे तेएनेपूर्वेपेलोपंमीतसलघालीने गयो तेअर्थतोकोइथकोथाय नही त्यारेतेपंडीतोनेनीनरं बीअपमानकरीनेकाढे तेवातदेशमांप्रसिद्धथइजेराजापर्षे पंडीतोमुंबहुमानपुजाकरता नेहमणांतोसर्वपंमोतोनेनीभ रंतेवातकाश्मीरमांएकपंनीतसर्वोपरीशास्त्रनाजायसर स्वतीनोउपाशक तेणेसांनलीनेएवोविचारथयोजे हंजइ नेराजानेठेकाणेपाडं तेवारेरातनेसमेसरस्वतीएावीने तेपंडीतनेएकुंकयुंजे एनेआगलपंमीतसलदेइगयोडे ते शब्दनाअर्थमांतेवातकंश्नहीतोते शब्दनोअर्थतक्यांथकी करीश केसीकेबेठीदेवीचरणाचावे माटेतपणजइनेअपमा नपामांश तेवारेतेपंडीतेदेवीनेकहयं एजकारण केबीजू बेतेवारेदेवीएकाएजकारणछे तेवारेपंडीतेकहयंकहवेमे वातजागी तोठेकापाडीनेत्रावीश तेवारेतेपमीततेन गरेआव्यो तेपंमीतबडोनामीचोदेशचावोछे तेथीराजाब मेश्रामबरेकरीनेलाठ्यो नेतेगीतांनोपाठपाछोमोहोडात्रा गलधर्योतेवारेमलअर्थहतोतेकर्योतेवारराजाबोल्याकेबी जोकाइअर्थएनोहशतवारेपंडीतवोल्योहा तेवारे मीतेए वीरीतेसातश्राठअर्थएशब्दनाकरचातोपणराजानमनकां wwwADANMounMAHINImuna Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ तत्वसारोद्वार. इयुंनही तेवारे पंडीत बोल्योके एशब्दनाश्रनेकार्थबे पणएनोमलार्थ एकछे तेतो मे पंडीत लोककोइनेदेखाड तानथी तेवारेराजाघणोत्राय हे करीनेवलग्योजेएअर्थतो मनेजरुरदेखाडवोपडशे चालो हूं एकांतत्रावं तेवारेपंमीत एकांतजइ कोइ केहेवुनही एवो बंदोबस्त करीनेत्र्र्थकर्यो जे सींकेत्रेठोदेवीचणाचावे तेवारेराजाबहूखुशीथयो नेकेहेवालाग्यो जेपुर्वेफलाणास्वामी श्राव्याहता तेऐए कहतो के ताजएत्रकर्यो तेवारे पंडीतेकहघुंजण जएत्रर्थ जाणतानथी एतोपुरोपंडीत होयतेजाणे तेवार पछीपंडीतमनमांविचारवालाग्योजे एमुरखोश्राराजाने सलघालीगयो तेश्रर्थपंगीतक्यांथकीलावे माटेएनोसल काहाडवोएमविचारीराजानेव्याकरण पंचकाव्य सिद्धांत कौमोदी सुधीभाव्यं पछीगीतानापाठनोराजापासेार्थ करावा मांड्यो वारेमुलशब्दनोर्थहतोतेावे पणपे लोकल्पीतश्रर्थहतोतेच्यवेनही ते वारे पंडीते कहयुंके हे राजा तुकाचोबे तेथी एअर्थतने मांहेसुजतोनथी तेवारेराजाबोल्यो जेहूं काचो छुते तमेको होबोते सत्यवे पतोहूंकडूंतेज थशेएममांहो मांहेविवादंघणोथयो तेवारेपंडीतबोल्यो जेए जे अर्थसत्यवे तोतेंाटलाबधापंडीतोपमानकेमकर्यु तेवारेराजाबोल्योजे स्वामीतेमुरखोमने सलघालीगयोते गुंजाएं ने हवेतोतमेमने विद्यारुपािंख्योदधितिथीहवे Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. मनेसर्वजथार्थनाषणथy हवेकांइहंठगाउनहि तेद्रष्टां तेजेएवाकुगुरुना जेनरमावेलांजेजिवछे तेनेसुगुरुनांव चननजरुचे जेमजेधणीनेज्वरश्रावतोहोयतेनेअन्ननीरुची नाथायतेमकुगुरुनासंगतीलोकोनेधर्मउपररुचीहोयनहिए। मकरतांकोइ गुरुनोनरमावेलोनहोयतो तेपोतेापमाह्यो होय तेपोतानामाहापणागलसुगुरुनांवचनहइयेधरेनहि अथवाको जिवअज्ञानीहोयतोतेनेस्वनावेजरुचीआवेनहि अथवाको जिवनामनमाथीशंकाकंखामटेनहिएटलाबधा एकारणज्यारेमटेअनेपगसगुरुवचनसांनतोतेनेधर्मनी प्राप्तियाय तेमांपणकेटलाकजिवसांनलीनेहइएधरेनहि तेनेपणकांगणथायनहि तेाजनाकालनेविशे केटला कजिवएवाजनजरेत्रावेछे अथवाकेटलाकजिवतोकुलाचा रजाणीनेधर्मप्रमुखसांभलवकरेछे तथाकेटलाकजिवत्र निमाननालीधाथकाचर्चावारताशिखेडे पणपोतेपोताना स्वरूपनी नलखाणकरतोनथी अथवाकेटलाकजिवद्वीप समुद्र तथाकिरियाप्राचारनीवारताजाणीने भण्याकहे वरावेछे तथाकोसमजुकहेवडावेने परंतुनिश्चैथीकहेतां तेपणअज्ञानिजछे तेनेकांइधर्मपाम्योकहियेनहि जेधणी पोतानाात्मानुवस्तुधर्मजथार्थसत्तागतेछे तेवूजाणीनेते नेसदहेतेमांजभाषणरमणकरे तेनेबोधपाम्योकहिये ते तोतेवाज्यारेसदगुरुमले नेतेनीवाकरेतोमले कोइजि Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३० तत्वसारोहार. | वनेसदगुरुवनापोतानास्वनावथकीमले शामाटेकेसम कितबेप्रकारनुकाछे एकगुरुउपदेशथकी तथाबीजुनी श्रगकहेतांस्वभावथकीमले माटेएबोधपांमवो जगत्रमां घणोदुर्लनछे अनेत्रामनुष्यभवमांज विशेषेकरीनेछे ए वीजेनावनाभावे तेनेबोधदुर्लनभावनाकहिये. हवेवारमीधर्मनावनाकहियेछिये एटलेधर्मकहेतांवथ सहावोधम्मोएटलेवस्तुनोस्वनावतेधर्मतेपोतेपोतानीवस्तु नोस्वभावतेपोतानधर्मकहियेकदापिकोइपरवस्तुनास्वभाव मांपोतानुंधर्मजाणे तेमुर्खाइडे केमकेपरवस्तुनास्वनाव मांपरनूजधर्मरांडे तेमअहिंयांसमजवुके आत्मानुधर्मते आत्मामांजरपुडे नेपुद्गलनुधर्मतेपुद्गलमांजरहयुंछे तेको इपुद्गलनास्वनावथकी साधीने पोतानुंधर्मकरवाचाहेछे तेभुलले एटलेपुद्गलथकी साधीनेपोतानुधर्मतेशुंकरेचे ते देखाडियेछिये दया दान पुजावत नेम तप सामायक पोसो प्रतिक्रमण इत्यादिकजेपुद्गलथकीसाधीनेपोतानं धर्ममानेछे तेभुलछे. शिष्यवाक्यः-दयादानादिकपुद्गलथकी साधीनेकेमक होछो तेशंशात्माथकीनहि. . गुरुवाक्यः-हेभद्रएआत्माथकीन हिज एपुद्गलथकीस धाय तेदेखाडियेछिये जेछकायनीदयापालवी तेपदलने रोकीनेपलायतोतेपुद्गलनोस्वनावथयो तथादानदेवं तेदे - Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३१ तत्वसारोद्वार. बुंतेपुद्गल नेदेवावालोतेपणपुद्गलछे एसर्वकायाथकीज थायतथापुजाजेकरवीतेपणकायाथकीथाय तेमवरतनेम तपप्रमुखसर्वेकायाथकी निपजेबे तेकांइश्रात्माथकी नि पजतुनथी. शिष्यवाक्य-- कायाथकीनिपजेवेपणकांइश्रात्मानाउप योगविनानिपजेबे. गुरुवाक्य-- जेतेंत्रात्मानोउपयोगमान्यो तेतारीमोटी भुल्यछेशामाटेजेहियांतोमननाप्रणामभेगानलीनेका रजकरेबे. शिष्यवाक्य - मननीने श्रात्मानीजुदीकेमखबरपमेशुंजा पीयेकेएम नाप्रणामछे केप्रात्मानोउपयोगछेत्र मे बेउने एकजजाणीएबीए. गुरुवाक्य- श्रहोजद्रह जिसुधीतने मनश्रात्मानी जुदीख बरपमीनथी तोतुं घर्मनीवारताशानी बेबे नेतुं धर्मसुंपाम्यो जेजमचेतननोविभागथयोनहित्यां सुधिसमकित क्यांछे नेसमतिविनाधर्म नाहोय नेधर्मविनामुक्तिज्ञानीमले माटेतुं पहेलीजडचेतननाविभागनी समजकर. शिष्यवाक्य -- स्वामीक्रपाकरीने मनेनेदज्ञान देखाडोजे थी आत्मानुं नेमननुस्वरुपजुदुजुदुनाएणु. गुरुवाक्य - हेदेवाणुप्रियनिंद्रावकथा प्रमादतजिनेए काग्रह चित्तथइनेतुसांजल जे श्रात्माछेते उपयोगग्राहीजे Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ तत्वसारोद्वार. नेमन तेप्रणामग्राही शास्त्रमांएवं कॉछेके क्रियाएक मप्रणामबंध अनेउपयोगेधर्म एटलेक्रियाछेतेकर्मनीखेंच नारी अनेप्रणामछेतेकर्मनोबंधपामताडे माटेएबेउतज वाजोगछे नेएक उपयोगछे तेथकीधर्मनिपजेतेउपयोगजे छेतेस्वरुपनविशे जेरमणताकरवी तेनेउपयोगकहिये नेजेपरनावमांपेसवु तेनेप्रणामकहिये एवीरीतेउपयोग नीनेप्रणामनीवेंचणजाणवी. हवेजेपुद्गलनोस्वभावतेपुद्गलनुधर्मकर्ताछे तेथकीकांइ आत्मानुधर्मथायनहि शामाटेकेपुर्वेजेदयाप्रमुखभेदक ह्यातेसर्वेपुद्गलथकीथाय त्यारेतेपुद्गलीकधर्मकहिये अने सर्वेधर्मवालापोतपोतानीपुष्टिकरेछे तेमनिश्चमांएजमज मनीपुष्टिकरेले जेएपुरवलानेदकह्या तेथकीशुयायतेशुभ कर्मउपारजे तोशुभकर्मतेपणजडछे अनेत्रशुभकर्मतेपण जमछेतोएजडेजडनावशनोवधारोकरयो पणकांइआ मगुणनोवधारोएथकीथायनहि आत्मगुणनोवधारोतो पोतानाउपयोगमारह्याथकीजथायपणपुद्गलनाकामोमां श्रात्मानोउपयोगहोयनहितेनेधर्मीकेमकहिये. शिष्यवाक्य-जोपुद्गलनाकामोमांत्रात्मानाउपयोगनी तमेनापाडोछोपणतेरमागुणठाणासुधीपुद्गलनांकामोतो तेजिवकरछेतोतेजिवतोकांअधर्मीनहि. गुरुवाक्य-जेधर्मिपुरुषपुद्गलनाकामोकरेने तेमांपोता - Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. | नोउपयोगनथी शाद्रष्टांतेकेजेम कोइपुरुषनेराजाएमार वाकहाड्योतेपुरुषनेलाम्बोखावात्रापेने तेनेकांइलाम वोखातांलाडवामांएनचित तेनंचिततोलाडवामांनथी शामाटेकेतेनेतोमारवानोमहोटोनयछे तेमजेज्ञानीपुरुष छेतेपुद्गलनांकामोकरे पणतेजेमपेलोपुरुषलाडवोखाय तेवोरीतेकरेले पेटमांसमजेकेएकाइमहारुनथी पणपुद्गल नुधर्मउदेश्राव्युतेरोक्युरहेनहि तेभोगवीनेखेरवेपणपोते भेगोभलेनहि पोतेपोतानात्रात्मानाउपयोगमांजरहे जे मकोइस्त्रीनेपरायागेकरानेधवराववाने महिनोठरावीने लाव्याछे पणतेनाचितनोआणंदपोतानाछोकरानेधवडा ववामां अनेपानोपणपोतानाछोकरानेदेखीनेावेनेते छोकरानेजेधवमावे तेमनमांविचारेजेपेलानोमहीनोखाइ येछीये तेधवराव्यावगरचालेनहि परंतुतमांकांइचितनो आणंदपणनावे तेमकांइपानोपणनावे तेमअहियांज्ञानी पुरुषनेसमजवोकेपुद्गलनाकामामां नेगोनाभले हवेजेपु द्वलोकधर्मनाप्रणामउठावीने आत्मीकधर्मनोउपयोगक रवो तेज्ञानदर्शनचारीत्ररत्नत्रीयनुसाधq अनेतेनास्वरु | पनेविशे रमतेनेधर्मनावनाकहिये तेमांजेव्यवहारधर्म नीभावनानाववी तेथकीशुनाश्रवनउपारजव॒थायतेथ कीआत्माशुनकर्मबांधे अात्मानारेथायपणकांइत्रात्मा नकारजसिधथायनहि अनेनिश्चेस्वरुपनीजेभावनाभाव m Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. वीतेथकीनावसंवरथाय अनेत्रात्मानेनवांकर्मावतारो केअतेनात्मानंकारजसिद्धथाय एवातमांसंदेहराखवो नहिएटलेनावनानबारेकहि. हवेपांचचारीत्रकहियछिये प्रथमसमायकचारीकहेतां जस्वसमाधिएटलेआत्मस्वरुपने विशेरमणता तेनेस्वस माधीकहिये. शिष्यवाक्य--समाधीतोघणीकरीतथीजोगनुसाधनथा यत्यारेसमाधीतोथायने अनेतमेतोत्रात्मानीरमणतानेस माधीकहोगे. गुरुवाक्य-जेजोगसाधनथकीसमाधीचडावे अनेखट चक्रनुसाधनकरेने अनेरुचककुंनकप्रमुखसाधीतथासुर स्वासरंधीनेसमाधीचढाववो तेनेहठसमाधीकहिये तेमां मेहेनतएककरोमरुपैयानीछे अनेप्राप्तीएककोडीनीछेक दापिकोइकहेशेकेतमेनथीमानता तेथीएकहोगे तेनेक हियेकेभाइअमारेतोएवातनोरागद्वेषछेजनहि अनेअमा रेमतेपणअमेकहेतानथी उमियास्वामीकतगुणस्थानक करमारोहग्रंथछे तेनीटिकानेविशेएनोविस्तारघणो ते जोशोतोतमनेसमजपडशे माटेसहेजसमाधीनूसाधनक रसहेजबोत्रात्मानुस्वरुपजछे तेनीजेस्वभावरमणता थायतेनेसहेजसमाधीकहिये एवाजेसमाधीवंततेनेसामा यककहिये तेसमायकनाबभेद सर्वविरतीसमायकतेसा Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोहार. धुतसदायएवीसमाधीमांजरमणताकरे नेदेशविरतीसमा यककहेतांश्रावकतेनेसमाधीमांनिरंतररहीनाशके शामा टेकेगृहस्थीतेथीनिरंतररमणताथायनहि तथागणठाएप पपांचमंतथीतेप्रमाणेसमाधीहोय तेनेसमायकचारीत्रक हिये. तथाबिजुदोपस्थापननामाचारीत्रकहियेछियेजेपू र्वेकहीजेसमाधीतेथकीभ्रष्टथाय शाथीकपुर्व ऋतकर्मना जोरथकीप्रणामनीधाराफरे तेथीकरीनेत्राश्रवनावमांजि वजायतेवारेसमाधीगणनरहे त्यारेसमायकचारीत्रपण नारयुं तेपाछोपोतानात्रात्मानोउपयोगदेइनेपुर्वकृतक मैनेछेदीने पागेचारीत्रस्थापनकरेएटलेज्ञानदर्शननविषे अखंमरमणकरतेने दोस्थापनचारीत्रकहिये. हवेत्रीजुंपरिहारविशुद्धचारित्रकहियेछिये एटलेअशु धनोपरिहार तेनोत्रात्माविशुद्धथाय एटलेअशुद्धजेराग द्वेषनाप्रणामनेघटाडq उपाधीनेघटाडवू अनेपोतानास्व रुपननिर्मलपणुंकर, तेनिर्मलशाथकीथाय केभेदज्ञान प्रथमप्रगटे त्यारेत्रात्मानिर्मलथाय एटलेभेदज्ञानतेशं कहिये जडचेतननीवेहेचणतेनेनेदज्ञानकहिये तेसंक्षेपथ कीदेखाडियेछिये जेरुपीसाकाररागद्वेष क्रोधमानमाया लोनकामविकारइत्यादिक जेवस्तु तेसर्वेजडनाघरनी छे तथाज्ञानदर्शनचारित्रविरजादिदेइनेजेवस्तुछे तेस चेतननाघरनीछे एमसमजीनेजडनीवस्तुनेदूरकरे ने Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवसारोद्वार. श्रात्मानीवस्तुपोतानीजाणीने तेनेविषेरमणताकरे एट लेजडनोपरिहारआत्मानुविशुद्धतापणुं तेनुनामपरिहार विशुद्धचारित्रकहिये तथाचो, सुक्ष्मसंपरायचारित्रतेश्रे णीगते एटलेजेजीवश्रेणीत्रारोहे तेश्रेणीबेप्रकारनीछे एकउपसमश्रेणी बीजीक्षपकश्रेणी उपसमश्रेणीनोकर नारोजीवपागपडे अनेक्षपकणीनोकरनारो जीवपागे नापडे शादष्टांतेकेजेमचुलानी तथाबीजिजग्योयेअग्नि तेअग्निनेएकपुरुषतो राखप्रमुखनाखानेदावे तेकोइना जोवामांनाावे केअहिंयांअग्निएवीकरे अनेएकपुरुष पाणीनांखीनेतेअग्निनोक्षयकरे तेबेमांकोनीअग्निप्रगटथा य केजेधणीयेपाणीनांखीनेअग्निनोक्षयकरयोछे तेनेकांइ अग्निप्रगटथवानीछेनहि अनेजेधणीये राखनांखीनेदा बीछे तेनेएअग्नितोप्रगटथाशेज तेद्रष्टांतेहिंयांबेघेणीनुं स्वरूपजाणवू जेजिवआठमुंअपूर्व करणनामागुणठाणे जाय त्यांथीश्रेणीबंधाय ज्यांसुधीसातमागुणठाणामांहो य त्यांसुधीकांइश्रेणीप्राप्तिथायनहि हवेजेत्राठमानेविशे श्रेणीछे तेश्रेणीकहेतांमुक्तिपुरनेविषे जवानोरस्तोते त्यां थीबेरस्ता एकजमणो अनेएकमाबो तेजमणेरस्तेचडे तोतेधणीतेनगरेपहोचे तथामाबेरस्तेचडे तेरस्तोतारान नो तेकेटलीकनायसुधीचा पगागलतोमार्ग नहि | तेवारेपाछुफरीनेमुलठेकाणेश्रावकुंपडे एटलेअहिंयांजेज Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. मणोरस्तोतेक्षपकरेणीकहिये डावोरस्तोतेउपसमवेणी कहिये जेधणीउपसमश्रेणीयेचडेतेधणी कखायतथामि थ्यातनेदाबतोचाल्योजाय नेजेक्षपक श्रेणीयेचडे तेमि थ्यातप्रमखनोक्षयकरतोचाल्योजायतेक्षयनोकरनारोजा वतकेवलपामीमोक्षजाय अनेजदाबतोचाल्योजाय तेत्र गीयारमागणठाणासुधीजाय पणागलरस्ताछे नहि माटेतेनेपाछंफरवंप अथवाजोश्रावखंगावीरांहोयतो कालप्राप्तथाय हवेजेपाछोवले तेशाद्रष्टांतकेजमकोइपं खीनेपगेदोरीबांधीनेउराडेछे तेपंखीजेटलीदोरीहोय ए टलीभायउडे पणतेथकीत्रागलजवायनहि अनेतेदोरी वालोदोरीखेंचे एटलेठेकाणेत्राववंपो तेमउपसमश्रेणी वालानेमोहनीकर्मनोनाशथयोनथी एतोउपसमावेलीछे तेप्रकृतिपाछीप्रगटथइने तेजिवनेअगियारमेगुणठाणेथी पाछोखेंचेएमजाणवं हवेतेवेश्रेणीनेविषेसुक्ष्मसंपरायचा रित्रले तेनुंस्वरुपकिंचितदेखामियछिये हवेतेत्राठमेगण ठाणेगयोथकोप्रथमहाशरतरतभयशोक दूगंछा एख टकनेखपावे तथाउपसमावे तेवारपछीनवमेगुणठाणेसं जलनो क्रोध मान माया पुरुषवेद स्त्रीवेद नपुशकवेद खपावे तथाउपसमावे तेवारेदशमेगुणठाणेएकसंजलनो लोनरहे पणतेलोनधन्यधान्यादिक जम्बस्तुनोनहोय अत्यंतसुक्ष्मपोतानास्वरुपप्राप्तनोहोय तथाअगियारमे Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३८ तत्वसारोद्वार. गणठाणे तेलोनउपसमीगयोहोय अथवापोतानास्वरुप नीप्राप्तिथवानोविचारमनमाथाय जेमारात्रात्मानीमुक्ति करुएवोलोनथायतोपागेअगियारमेथीपडीनेदशमेआवे शीष्यवाक्यः-स्वामीएकोइपरभावमांतोपेठोनथी. पोतानाशात्मानीमुक्तिताकतांउलटोपागेपड्योएशं... . गुरुवाक्यः-हेनद्रइहां आत्मानीमुक्ती वीचारीते साचीवात पगएननामपणलोनकेहेवायअनेलोन ते जडअनेजडते श्रात्मानागुणनोघातकरताडे माटेएट लोएलोन समजुनेनजोइये. शीष्यवाक्यः--स्वामी आत्मानीमुक्तीत्यां नवीचारतो त्यांशुवीचारताहशे.. गुरुवाक्यः-हेदेवांणुप्रियत्यांपोतानीपरलीकशीखबर नथीत्यांतोद्रव्यगुणपरजायभीन्नभीन्ननोखाकरेतथागुणछे तेपरजायमांसंक्रमावे अथवाद्रव्यमांसंक्रमावे अथवा गुणपरजायबनेद्रव्यमांसंक्रमावे एवीरीतेत्यांभेदज्ञानत थाभेदानेदज्ञालो तेपोतानास्वरुप रमणजछे तेनेसुक्षम संप्रायचारीत्रकहीए हवेपांचमंजथा क्षायकचारीत्रकही एबीय॥ एटलेजथाक्षायककहतांजथारथक्षयकोजे जेणे मोहनीकरमनो एटलेपुरवेसक्षम संपरायचारीत्रनेवीशे दसमेगुणठाणेसुक्षमनो जेलोभरह्योहतो तेलोभनोक्ष पकरयोएटलेसंपुरणमोहनीकर्मनोक्षयथयो तेवारेतेजिव % e Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तलसारोद्वार. । क्षीणमोहीथयो हवेतेजिवनामननाप्रणामनोकलोलच नहिशामाटेजमदिरारुपमोहनीनोजेकेफहतो तेकेफना जोरथीअनेकतुरंगउठताहता तेमोहनीकर्मनोक्षयथयोए टलेघेलगमाहेथीगइ तेवारतेनोप्रात्माथीरनावथयोजम सरोवरजपाणीवायुबंधथयेथके थीरनावरहेतेमएत्रात्मा नोउपयोगथीरभावथयोएटलेजथार्थचात्रिथयुं एटलेक्षा यककहतांमोहनीनोक्षयकहिये थीरनावकहतांचारीत्रक हिये तेजथार्थकहेता जेवुसत्तागतनेविशेवस्तुपणेहतुते जप्रगटपणेथy तेवारतेनेएकत्वनावथयो जमजलनीजे सितलताअनेजलरसनोस्वाद अनेजलएत्रणेएकजछेर सस्वादनेसितलतापणुतेकांइजलथकीजदूनथी तेमजगु परजायसहिततेजद्रव्य कदापीकोइअहियांकहेशेके पाणीतोउनुपणहोय तेनेकहियेकेविभावथकीपाणीमांउ ष्णतापेसेले पणस्वभावथकीनथी जेअग्नीनाजोगथी पाणीउष्णथाय पणअग्निथकीअलगकरीये अनेघमीवे थायएटलेसितपणुथाय तेमप्रापणोत्रात्माकखायादिक नाजोगथकी कामी क्रोधी मानी लोजी अनेकनामधरा वेळेपणतेमोहनीकर्मनोनाशथयो तेवारेस्वनाविकनीरवि कल्पनिरउपाधीथीरप्रणामेजहोय एवंएनेदज्ञानत्यांप्र गटेस्यांकांत्रात्माने श्रात्मानागुणपरजायजुदानथीए टलेध्याताधेयध्यान एकत्वपभजे एटलेधेपदार्थपरमा Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४० तत्वसारोद्वार. - स्मातेपोतानोत्रात्मातेजजाणवो अनध्यातापणपोतेजछे अनेध्यानतेपोतानोउपयोग एमत्रणेएकरुपजत्यांध्या नतेनेजथार्थकहिये एटलेजथाक्षायकचारीत्रका कोइ अहियांकहेशेकेतमेव्यवहारनोभागअहियांलाव्यानहि. नरकुंएकनीश्चयपक्षनुजतमेपोषणकर्यु तेनोउत्तरजे अ मेकांइअमाराघरनीरीतर्नुकयुनथीजेपरमात्मायेनाख्ते अमेकहपुंछे तेश्रीभगवतीजीनेविषे कालेसवीपुत्रत्रण गारनेथीवरमनीये बेनाप्रश्ननेविषे समायकतेत्रात्मानेक हथुछेत्रनेसंवरपणात्मानेजकहयुंछेतेअधिकारवीस्तार थीत्यांजोजो एटलेतमनेसमजपडशे एवीरीतेसंवरनास तावनबोलकह्या तेमांकेटलाकबोलतो नीश्चत्रात्मस्वरु पीछे तेतोसदायत्रात्मानेसेववालायकछे अनेएसेवतांथ कांनवकरमपेसेनहीएवातनीःसंदेहअनेजेजेबोलवहेवा रना तेबालजीवनेवखाणवालायकछे पणएथकीत्राव तांकमरोकायनही अनेत्रात्मानकारजपणतेथीथायनही एकहेवामात्रसंवरछे अहीयांकोइकहेशेजे तमेावीरीते वेहेवारनेमुलथी उखेडीनेकाहाडीनाखोबो तोतमेएकांत वादीदीसोगे अनेनगवंतेतोएकांतवादीनेमीथ्यात्वीकह्या ने तेनोउत्तरजेप्रमेएकांतवादीछीयेनही अमारवेहेवारप क्षघणोवलन नेमानवाजोगळे पणजेशुद्धव्यवहारछे ते तोत्रमारेश्रादरवाजजोगछे अनेजेअशनव्यवहार अने Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. ५४१ शुनव्यवहार तथाकल्पव्यवहार तेनेकोइादरवानीश्र मनमतलबनथी शामाटेकेपरमात्माएसंवरनीकरणीकर वीकही पणाश्रवनीकरणीकहीहोयतोदेखाडो एटले शुभाशुभव्यवहारछे तेतोपाथवछे अनेकल्पव्यवहारछे तेतोसर्वसर्वनापक्षनाग्लखाणकरवाने वास्तेबांध्याछे ते प्रत्यक्षबएदर्शनननानाखानोखातथाजिनमांपणश्वेतंबर मीगंबरनाजुदाजुदाछे श्वेतंबरनेविशेपणगबगछनानोखा नोखा तेव्यवहारथकीतोकांइफलमालमपडतंनथी फो गटकायकलेश जेमसंसारनेविशे नातनातनानोखाव्य वहारबांधलाछे जेमुसलमाननेविशेमरेत्यारेरुवेकुटेनहि तेमजअंग्रेजलोकनेविशे पणरोवूकुटवूनथी तथाहिंदुलो कनेविशेरुवेकुटे तथातेनाशोगपाले तेदेशदेशनेविशेनो खीरीतजे मारवाडनेविशेहिंदूलोकोरुवेने पणकोइकुटतुंन थी तेमजपूर्वउत्तरमांजाणवू तथादक्षिणदेशनेविशेरुवेछे पणकोइकुटतुंनथी नेहाथघसे अनेगुजरातनेविशेरुवेने अनेछातीमाथांकुटेछेएवादेशदेशनाव्यवहारछेपरंतुमवेलां तोपागंावतांनथी तथाजवाबपणकोइदेतांनथी तोजेन थीरोतोतेनीपणएजरीतछे अनेरुवेकुटेछे तेनीपणएजरी तले माटेएकल्पव्यवहारनीएवीरीतीजाणवी जोएमुवेलां पाछांत्रावेतोत्रानेकल्पव्यवहारनाकष्टनुंफलमलेसर्वमती कल्पनाकल्पव्यवहारदिसेछेमाटेएवूपरमात्मानुवचननथि - Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ तत्वसारोद्वार. केएवाफोगटीयाव्यवहारकरवापरमात्मानुवचनतोएछेके अपरमादिनावेविचरवू अनेकल्पव्यवहारनीक्रियापरमा दगणठाणामांछेपरमादतोतजवाकह्याछेमाटेज्यांत्रात्मस्व रुपनीरमणताबेत्यांधर्मकहयुंजेएटलेवस्तुनास्वनावनुनाम धर्म पणकांइकिरियानुनामधर्मनथी तथाकिरियातोनव तत्वनेविशे श्राश्रबमांगणावीछे तथाठाणंगजीमांपचीसे किरियाआश्रवकहिले तेमजसमवायंगप्रमुखनविशेपण कहयुंछे तथासुंगडंगजीनेविषेतेरकिरियाछे तेपणाश्र वमांकहीछे एमजेटलीजेटलीकिरियाछे तेनेतोपरमात्मा येतजवीजकहिले पगादरवा-कहिये कहयुंहोयतोदे खामो तथाजसवीजेजी उपाध्यायेकिरियानफांसीरुपेक हेलीछे तथासर्वसुत्रनीटीकानेविशे तथाप्रकरणप्रकरण नीटीकानविशेकिरियानेकलापकहिनेबोलावी माटेजेश्रा त्मज्ञानछे तेसत्यछे तेजगवतिप्रमुखसुत्र तथासुमतिप्रम खग्रंथनेजुवो अनेउपियोगमाहेलगावो अनेसुगुरुनांपा सांशेवोतोसमज्यामांश्रावे तोअहिंयांकहेशोके बीजाशंब हुश्रुतनथी तेनोउत्तरसमतिग्रंथनेविषे एवंकहयुबेके जे घणुशास्त्रजाणे अनेघjसमजेत्रनेघणाशिष्यघणोपरवा रवधारे तथाघणाश्रावक श्राविकानी परखदामेलवीनेउ पदेशदे अनेत्रात्मस्वरुपनो उपियोगनथी तोतेघणोसं साररखडशे अनेजिनसासननोवेरीजाणवो माटेजेनेत्रा Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ५४३ त्मउपियोग नहि तेनुंनएयुंपणकांइलेखामांनहि तेमाटेश्रा त्मज्ञानी बहुश्रुत होय तेनांपासांसेवा एटलेसमज्यामांच्या वशे तथानंदघनजी पण एमकहिगयाबे के श्रात्मज्ञानी होय तेनेसाधुकहिये बीजानेतोद्रव्यलगीजाणवा इत्या दिक घशास्त्राणांपंडितनांवचन जोशोतो तमनेस मजपमशे एमपरीक्षाकरिने श्रात्मारुपसंवरतत्वनेच्यादर वो पुद्गलीकभावरुप श्राश्रवछे तेनेत्यागकरवो तेनात्रा त्मानुंकारजथशे एटले संवरतत्व कह्यो. हवेनिरजरातत्वकाहि पछिये एटलेनिरजराकहेतांजे श्रात्माथकीकर्मनेखरववां तेनाबेभेदबे एकबहाज एकत्र भ्यंतर तेबहाजथकीकर्मनेखेरववानीनजनाबे ने अभ्यं तरथकी कर्मनिश्वेजखरे हवेतेबहाज अभ्यंतरतपनांनाम लखावी बिये णसणतप १ प्रणोदरीतप २ वरती संक्षेप ३ रसचाहू ४ कायक्लेश ५ सलीनता ६ एब बहाजतपकहिये हवेभ्यंतरतपकहियेछिये प्रायश्चीत १ विनय २ वयावच ३ सजाय ४ ध्यान ५ काउसग६ एवाभ्यंतर तपकहिये हवेप्रथमत्रणसणतपकहियेबिये तेणसणतपबे प्रकार नाबे एकथोडाकालनोबिजोजाव जिवनो॥ थोमाकालनोछे तेनानेकदबे उपवास बठ ठमजावतमासीतप तेनेविशेकेटलाकनांनामकहिये छिये रत्नावलीतपतेनीविगत प्रथमएकउपवासकरे पबी Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. पारणुपयेबेउपवास पगेपारणु पीत्रणउपवासपबीत्रा ठछठपगएकउपवासथीमांमीनसोलउपवाससुधीचडे प गचोत्रीसछठकरे पाछासोलउपवासथी एकउपवाससु धीउतरेपाछाआठबठकरे पछीअठमथीएकउपवाससुधी उतरेएटले एकपरवामीथाय तेएकवरसत्रणमासबावीस दिवशेएकपरवाडीपुरीथाय एवीचारपरवामीकरवीतेबि जिपरवामीयेत्यांविगेनावावरे त्रिजिपरवामीयेपात्रनेलेप लागेएवीवस्तुनावावरे चोथीपरवामीयेांवेलकरे एवी रीतेएरत्नावलीतप पांचवरसएकमासनेअठावीसदिवशे एतपपुरोथाय तेएकपरवाडीयेअठासीपारणांबावे एम चारपरवामीयेथइनेत्रणसेनेबावनपारणांबावे तेनोजंत्र. रत्नावलीतपोदीन ३० पायांना दीनवाला ____एवं मास५टीन२२ एक परवाडीना थाय शरा २/२/२/२ दोकनकावती तप कदीये छीये तेपुरवेजेरत्नावतीतप तेजप्रमा करवानो फकत फरक राटखोके जेआठपाठ उठकह्यादेतेामक स्वा.अनेचोत्रीसमकह्याते तेअतुमकरवा.तेनीएक परवाडीये यरस एक मास ५ पांच अने. दिवस १२ बार चार परवाडीये थइने वरस पांच मास एनव दीन अराड तेनोजंत्र Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. २५॥ amerama लल्याकनकावजीतपोरीन.४३४ पायगोनादीनदइएवं लालसा मास१७दीन१२एकपरवाडीना चार परवाडी वरस नवमासनपराउदीन. MoreonaKATRINAasar 1 THEIRRsammeORMONESSORaw a ar w हंय लघुसिंहकीगततपकहियेलीय.प्रथम एकअपपास पारएंकरी|| नबेअपधासंपछीएकअपयासपछीत्ररग अपवासपछी बेअपवासपछी चारपछीत्रणपछी पांचपछीचारपछीछपछीपांचपछीमालपद्धीलय-1 बी-आठ पछीसातपछीनवपद्धीपाठपबीनवपचीसातपछीपाठपद्धी !! छपछीसातपद्धीपांचपछीछपद्धीचारपछीपांचपछीत्रण पछीचारप छीबेपद्धीत्रपछीएक पछी ये पक्षी एकत्तेनोखंत्र. न्यायालयाजवाजनिकाली लघुसिंहकोडीन तपादान १५४ पारयानादीन ३३ एक परवाडी चार रवाडीये धड्ने बें वरस एक भास ने बेदीन गल्लिा हवेद्धसिंहकीडीत तपकहीयेलीय.प्रथमएकउपवासपलीबेडप वासपछीराकपछीत्रापलीबेपछीचारपखीत्रगपतीपांचपछीचार पछीछपछीपांचपछीसातपछीछ पद्धीआरपछीसातपद्धीनवपछी आठपछीदसपद्धीनवपछीअगीयारपछीदसपछीबारपछीअगीया रफ्छीतेपछीबारपछीउदपछीतेरपछीपंदर पछीचऊदपछीसो लपतीपंदरपद्धीसोलपछीचऊदपद्धीपदरपछीतेरपछीचरद पछी बारपछी तेरपछीअंगीयारपछीबारपछीदसपछीअगीयारपछीन वपछीदसपछीपाठपछीनवपछीसातपश्चीपाठपछीद्धपछीसात पद्धीपांचपबीछपछीचारपछीपांचपछीत्रणपछीचारपछीबेप खीत्रणपतीएक पछीबेपछीएकतेनोजंत्र. HEMORNIVERYONEDRIBR-RHamaramaMININERBONDMINISTRAMANRELan Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. - - - - - - नियमनकामना HAM सिंह क्रीडीत तपोदीन पायानादान होडबुरसअने अ-- राड दिवस एक यरवाडीना. चार परवाडीये थइने वरसेमासबंदीवस १२ बार ना - हवेमुक्तावली तप कहीये बीये प्रथम एकउपवास पनीबेउपवासपदीराकपडीत्रणपगएकपनीचारपतीएकपड़ीपांचएम अनुक्रमेसो लसुधीचडवा.पालाराक पीसोलपनीएकपनीपंदरएमअनुक्रमे एक सधी उतरवा. तेनोजंत्र. - मुक्तावलीतपदीन ३०१, पारगो दीन६९ सय मलीने यरस पदीय स२. चार परवाडी थईने वरस चार दीन.६. - - एकनकायसीआइने मुक्तावलीसुधीचारे परवाडीनां पारगांनीरीत रत्नावली प्रमाण जारगयी.. हये राणरत्नाकर संवर तपकहीयेडीये. प्रथममासे एकएक उपवा सर्नु पारएं करयुं बीजे मासे वबेउपवासन पारए कर बीजे मासेत्रणत्रण उपवासन पारएंकरघु एमजावतसोलमेमासेसौलसोलउपवास नपाररएंकरघु अनेते विषेत्रातापना परमुखलेवीते अधिकारभगष तोजीना बीजा सतकथीजाजो. हवेकोटीकतपकहीयेबीये.प्रथमएकउपवासकरवोपनीवेकरवाए मजावतसोलसुधीचडअने सोलथीया एकसुधीरतखंगमरानीप एगचार परवाडी करखी-पारणानीरीतपुरवनीपरेजागावीतेनोजंत्र. लिललाजजनतालाबजाजका कोटीकतपदीन २७२ पायगा३२सरवमलीनदसमास चारदीन चार पखाडी थइने त्रायरसचार मास दीन सोज. नललानालाहाहालशहा - as - Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. - - हवेखुडपडीमा तप कहीयेलीये. प्रथमएक उपवासकरयोयलीबे राशनापनीत्रगपडीचारपतीपांचपनीत्रपडीचारपठीपांच ३४/५/१२/ पडीराकपनीब.पडीपांचपलीराकबेत्राचार पगेबे निपोशत्रणचारपांचएक परीचारपांचएकबेत्रा.रानीएक ४५२२ २/ परवाडीये.तपदीन७५पारगांदीन२५चारपरवाडीथइने वरसएकनेमासएकदीन१० रातपपुरोथाय पारणांपुरषयत. हो महाभद्रपडीमाकहीयेहीयेतेप्रथमपांचउपवासकरवापढील पाहाजहारा पठीसात पठीआरपछीनवपछीसातआठनवपांचछप जिकिर छीनथपलीपांचएमअनुक्रमेउपवासकरवातेनोजक विकिपराममहाभद्रपडीमानातपोदीन१७५पारणांदीन२५ होला जिसरबमजीनेमासछअनेदीनवीसएकपरवाडीयेजाए। योचारपरवाडीयेथइनेवरसबेमासबेदीन२०थायएटजेएतप्पुरण थाय.पारगानीरीतपुरखवत. शशा हवेअतिभद्रपडीमाकहीयेखीये प्रथमएक ४ दिन उपवासकरयोपछीबेपछीत्रणपछीचारपछीपांच पासपीछपछीसातपछीचारपछीपांचपछीपली सातपछीएकवेत्रगपछीसातपछी एकवेत्रणाचा शिरपांचछ पद्धीत्रण एमअनुक्रमेउपवासकरवान तिभद्रपडीमातपोदीन १९६ पारणांदीनहसखेमलीने आठमहीनाने पांचदिवसएकपरवाडीनाजाएगवा चारपरवाडीयोथइनेवरसबेमास आठदीनर०वीसेएतपपुरोधाय-पारगांपुरववत. हवे अतिशुद्ध पडीमाकहीयेलीये. प्रथमएकउपयासकरवो पछी पछीत्रणपछीचार पछी पांच परीछ पछीसात पछी उपछीनव पछी पांचपछीछ पछीसात आठनयरकबेत्राचारः पछीनय पछीएक पछीबेत्रण चार पांच छ सात आठ पछी - AIMInt - - - - Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) तत्वसारोद्दार: चार पांच छ सात आठ नव एकबे भाग. राम अनुक्रमे उपवास करवा साधना जंत्रमां बताव्याप्रमाणे विशुधपडी मा तपदीन ४०५पारपांदीन ११ सत्य मजीने वरस ए कमास चारदीन ६ एकप्रथाडी थाय चारपरवाडीये मलीने वरस पांच मासचारदीन चोबीस एनप 'पराथाय. पारणां पूर्वे क ह्याप्रमाणे. भीमा कहीयेद्रीये. प्रथम एक उपवासपछीचे एकह पीएपछी चार पछीषां चपछी २३.४५८पनीमा तपती आठ पतीन बपती २ ३ ४ ५ ६ ७ ६/७ दलपतीन्गीयार पठीत सातत्र्या निवसन्प्रगीयार एकबेत्राचा पांच पतीच्यगीयार पछीएकबे 7 १० ३ ४ ५ १२ १४/५ 1213 ३४५ के 5 ल の है ३ २ १०/१५१ मे ९ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ १ / १ २ 2 १/२/३/४/५ ६७ 6 ४ ८ ३ ६७ प् च ६४/५ 19 १०/११/९ २ ३४५६७ 10 G ९ १० १ ४ 2/679 एमबनक से उपवास जैत्रमा बताव्याप्रमाणेकरवा-अतिमहा ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० १११ सुथपडीमा ना तप दीन ७२६ पार ८ ९ १० ११ १/२ ३ ४ ५ दीन १२१ सरवमजीनेवरस बेमास चारदीन ७ प्रथमपरवाडी याय. चार परवाड़ी धइनेवर सनवमास चारनेदीयस रातपपुरथाय. पारणांपूव प्रमाणे. व्यथकरघाती तपलरखीये लीये. प्रथम वर मोठकरबा. पारणे बेस कर. एम आहे बरु सजंग करवा आंतरार होत गाएं नमोनोस गएधुं नोकार वाली २० बीस गएणवी. ARME Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ततसारोदार. ५४५ बारवर्षनोसलेखणातपकहियज्यितेप्रथमचारवर्षसधी विगेनोत्यागकरवो बिजाचारवर्षनेविशे उपवासश्रादेदे इनेविचित्रप्रकारनोअठमसुधीतपकरवो तेवारपछीएक वर्षएकांतरेउपवासकरवा नेपारणेत्रांबेलकर तेपीमा स ६ अठमठमनोतपकरचो तेवारपनमास ६ अठम उपरनोविकटनक्ततपकरवो तेवारपछीवर्षएकआंबेलनों तपकरवो तेवारपबीवपएकत्रांबेलआदिदेइने मासखम संधीशक्तिसारुतपकरवो एवीरीतनीबारवर्षनोसलेख पातपजाणवो तथाजवमधपडीमाएकमासनातफ्लेनी विगतजेप्रथमशुक्लपक्षनेपम्वेथकीमांडवो तेप्रथमतपेदां तीएकाहारनीतथा दांतीएकपाणीनी बिजेदिनेदांतीब बेश्राहारपाणीनीएमजावतपनेमनेदिने पंदरदांतीयाहाँ रअनेदरदांतीपाणीनी पाछक्रश्नपक्षमापडवेनेदिनेचंउद दांतीत्राहारनी तथाचउदपाणीनी एमजावतळगणत्रीश मेदिवशेएकदांतीआहारनी तथाएकपाणीनीत्रिशमेदिव शेउपवासंकरवो तेनुनामजवमधपणीमाकहिये तथा जरमधपीमाएंकमासनीहोय तेपणप्रथमशक्लपक्षनीय कमथीमाम्बी तेंप्रथमदिवशेदांतीपदराहारनी तथादा तीपंदरपाणीनी बिजेदिनेचउददातीबाहारनीनेचउददा तीपाणीनी एमजावतपम दिवशेएकदांतोत्राहारनी नेएकदांतीपाणीनीतथावदने प्रथमनादिवशेएकदांतीना । .. .. . . Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार हारनी तथाएकपाणीनीवदरबेदांतीयाहारनी नेबेदांती पाणीनी एमजावतअमावास्यायपंदरदांतीआहारअने पंदरदांतीपाणीनी तेनेवजरमधपडीमाकहिये इत्यादि कतपसिद्धांतनेविशेबीजापणकह्याने तथाहालमांनवाक ल्पीततपघणाथायजेएसर्वेनेइतरकहेतां थोडाकालनोत्र सपतपकहिये तथाजावजिवअणसणतप तेनाबेभेद एकपादोउपगमणत्रणसण अनेएकमतपचखांणअणस पहवेपादोउपगमणअणसणनाबेभेद एकसीहअग्नीप्रमु खनोउपसर्गथाय तोपणत्यांथीडगेनहि बिजाएवाउपस गवनाजमटक्षनीडालकापेलीपडीहोय तेमहालेचालेन ही नतपचखांणअणसपनाबेनेद एकसीहादीकउपसर्ग उपनाथकानतपचखाणकरे बीजोनातपाणीविनाउपस र्गेपचखेएबेनेद एटलेश्रणसणतपकह्यो हवेत्रणोदरीत पकहीयेगये तेनावेनेद एकद्रव्यप्रणोदरीएकभावत्रणो दरी द्रव्यप्रणोदरीनाबेनेद एकउपगरणअणोदरीबीजी भातपाणीनीअगोदरी उपगरणप्रणोदरीनाबेभेद एक पातरुकाष्टअथवामाटीनुराखवू तेपात्रणोदरीकहीयेह वेभातपाणीनी अणोदरीनाअनेकनेदपाठकवलाहार नाकरे तेनेअल्पाहारीकहीये कवलकेहेतांकुकडानाई डाप्रमाणेकोलीहोय बारकवलजे आहारकरे तेने अड़धा अणोदरीकहीये तथाचोवीसकोलीया आहार Ramaya Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. - करे तेने चोथानागनी अणोदरीकहीये एमजावत एकत्रीसकवलनाबाहारकरे तेने पणअणोंदरी कहीये शामाटेकेबत्रीसकवलनुपुरुषने आहारनुप्रमाणतेथीए कत्रीसवालोश्रणोदरीमांछे तेथीस्त्रीनेत्रठावीसकवलनु परीमाणछे तेनेसतावीससुधीश्रणोदरीकहीयेतेथीजावत अाठकवलथीतेएकत्रीसकवलसुधी अणोदरीनो तपकही ये अनेबत्रीसकवलपुरालेतेने परमाणुंप्रेतहारकही ये अथवातेमाथीकांइएकशीख अथवाएकग्रासउणोलेते नेपणपरमाणुप्रेतकहीये पणएकशीखेउपोरहे त्यांसुधी तेसाधुपेटनरोनाकहीये एटलेनातपाणीनीश्रणोदरीक हीतथाद्रव्यप्रणोदरीकही. हवेभावत्रणोदरीकहियेछिये तेनाअनेकभेद अल्प क्रोध अल्पमान अल्पमाया अल्पलोन अल्पज्ञान अल्पबोलवू अल्पकलहइत्यादिक एभावअगोदरीकहि ये एटलेषणोदरीतपकह्यो हवेत्रीजोवतीसंक्षेपतपकहि येबिये जेगोचरीनाअनेकनेदछे द्रव्यथकीत्रनिग्रहकरे क्षेत्रथकी कालथकी नावथकी अभिग्रहकरे एटनेद्रव्य थकी जेफलांणोद्रव्यमलशेतोलेइशं तथाक्षेत्रथकी जेआ गाममां अथवाफलाणांगाममां अथवाफलाणीपोलमां अथवाफलाणामेहेलामांमलशेतोलेशं कालथकीअनि ग्रहफलाणीवेलायमलशेतोजलेइशंभावथकीत्रनिग्रहजे Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । - - ५४८ तत्वसारोद्वारा स्त्रिअथवापुरुषवाकंचारीकाप्रमुख भावीरीतेश्रापतोले । इशुं अथवानाजनमाहेथीउपाडेलुंहशेलेजलेशुं अथवा नाजनमाथीबीजाभाजनमांघालेलंहतोजलेइशं अथः । वात्रापणेकाजेउपाडीने बीजानाजनमांघाल्यहोतालेइ शुं अथवाअनेरेनाजनेघालेलीवस्तु भाषणेकाजेउपाने लोहशेतेलेइशु अथवाअनेरानेपीरसेलुंहोतेत्रापशेतोले इशु अथवावस्त्रनेविसे ढोकलां ढोकसी खाखरा प्रमुख मोकलाकरेलाहशे अनेतेमाथीलेइमाजममाघालताह शे तेआपशेतोलेइशु अथवाकोइनेत्यांथीलावेलु तेश्राप शेतोलेइशं अथवाकोइनानाणामांपीरस्युंछे तेनेवधारेष ड्युं तेत्रापशेतोलेइशुं अथवातेपाछुलेइने बीजाठामने विशेघाल्युंडे तेत्रापशेतोलेशं अथवानिंदानेस्तुतिभेली थायतेवुजेरसवतित्रनेपाणीखारुएवोजोगमलतोलेइशं उशरीयुकेहताएनेपीरस्युतेलेगुं अथवानिंदनीकाहार लेइशं अथवालोकमेवखाणवाजेबो प्रीयकारीमोदकपर मुखाहारतेमालशे तोलेइशु अथवाकटुकाहारपरंतु गुणकारीतेमालशेतोलेशं इत्यादीकाहारनोतरेतरे हनोअनीग्रह करे तथाहवेदातारनोअनीग्रहकहीयेलीये खरमेहाथेदेतोलेइशं अयवाअणखरमेहायेदेशेतोलेशं अथवाजेद्रव्येहाथखरड्यो तेद्रव्यापतोलेश्शुअथ वावस्त्रादीकनेकप्रकारना अहीयांअनीग्रहकेहेवा अथ । - - Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ५४९ वाकोइथी क्षुधावेदनी नखमाती होय तोशीत उष्ण जेवोमल शे एवोलेइशु अथवागोचरीएमौन पोक्चिरशुं अथवा पोतानीद्रष्टी दीठो ग्राहारदातारत्रापशेतोलेइशं प्रथ वाच्यपदी ठो च्यापतोलेइगुं अथवादाता रेजेाहारनंपु छ्यं तेजच्याहारच्या पोतोलेइगु अथवानीक्षा जेवोमल शेतेको लेइशुं अथवाघंन स्तवनाकरीश्रापशे तोलेइ शुं अथवा ज्ञातघरनीभीक्षालेइगुं अथवाग्रहस्तीएमो हो प्रागलला की ते मुक्यु तेजलेश्शुं थवामान सहीत जेना हारग्रहणकरवाजोग ते त्र्याहार मलशेतोले इशुंथवाशुद्ध निर्दोषमलशे तोल शुश्रथवादांतीनी संख्या येच्याहारलेइ शुं इत्यादीकव्रती संपतप्रनाभेदजाणवाएटलेव्रतीसंखे पतपकह्यो हबेरसचाडुचोथोतपतेनाश्रनेकनेदछे एटले प्रमुखझरतेथके एवीवगेनो त्यागकरे रसकेहेतांत्र डद चएया वाल इत्यादीक नोश्राहारलेशं श्रथवात्रांबे लकरीशुं अथवा सामणमा हेलाशीत नीक लेते नेजवाव शुं अथवाहींग परमुखे वघारेलुंहशे तोते श्राहारनहीक रीये अथवा जुनुधानखांणपरमुखतेन श्राहारकरीशुं प्रथ स्वातत्राहारकेहेतां उखलारवलीज लोह शेतेलेइशुत्र थवापतत्राहारकहेतांटाढोपरमुख श्राहारलेइशु अथवालु स्वोश्राहारलेइशुं तेसर्वेरसनोत्यागतेने रसचाहूत प कह्यो हवे कायशतपकहीयेछीये तेनानेकभेदछे काउसग Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. करीनेउभरेहे, अथवाकाउसगकरीनेउनारहीनेहालवं नही अथवाउकमासनेबेसवुअथवाबारपडीमापरमुख साधूनीवेहेवी अथवावीरासनेबेसवं अथवापलांठीवा लीनेबेस, अथवावकरशीयालनीपेरेबेसवू अथवादांडा नीपेरेसुवं अथवाताहामतापबेनीअातापनालेवी अथवा वस्त्रउपगरणनराखवू अथवाशरीरेखाजनखणवी मुखनुं थुकपरठवूनही गलेउतारीजवंशरीरजेसुसुरखारोमके शनखपरमुखनसमारवा अथवाशणगारनकरवो एकाय कलेशतपकह्यो हवेप्रतीसलीनतातपकहीयेछीये तेनाचा रनेदछे इंद्रीप्रतीसलीनता १ कखायप्रतीसलीनता २ जोगप्रतीसलीनता ३ वीवक्तप्रतीसलीनता ४ हवेइंद्री प्रतीसलीनतानापांचभेद श्रोतइंद्रीकहेतां काननावीशय नेविषेपरवरतवं तेनेसूधकुंएटलेरुडामाठाशब्दकाननेविषे श्रावीपड्यातेउपररागद्वेशनकरवोतेनेश्रोतइंद्रीसलीनता कहीयेअथवाचक्षुइंद्रीसलीनताकेहेतांजेरुपरुडांमाठांदेख वांतेनेविषेचक्षुर्नुपरवरतरुंध, एटलेनेत्रनोविशयजेपं चवरणनारुपनविषेछे तेरुपनेविषेरागद्वेशनाकरवोहवेग्रा हणइंद्रीसलीनताकहीयेलीये एटलेनासीकातेनेगंधनेवी षेपरवतर्बु तेथकीरुंधqएटले सुरभीगंधदुरभीगंधनासी कानेश्रावीप्राप्तथाय तेनोद्वेशनकरवो हवेरसइंद्रीसलीन ताकहीयेछीयेएटलेजीभनोस्वनावतेरसनेग्रहणकरवानो Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तत्वसारोद्वार. | तेनेविषेपरवर्तवं तेनेरुंधqएटले पांचप्रकारनारसनी ग्रहणकरताजीभ तेजेजेरसावीनेप्राप्तथाय तेशुन अथवाशुनहोय तोपणदेशरागनकरवो हवेफरसइंद्री सलीनताकहीयेलीये एशरीरनेफरसनेविषे परवर्तवानो स्वनावछे तेनेरुंधवातेाठप्रकारनाफरसतेनेविशेतेश रीरनोविषयछेतेफरसाठेप्रकारनारुडाअथवामाठात्रा वीप्राप्तयायतनविषेरागद्देशनाकरवोएटलेइंद्रीसलीनता तपकह्यो हवेकसायपडीसलीनतातपकहीयेगये तेनाचा रप्रकार क्रोधजेरीसनाउदयेकरीउपजतेनेरुंधqअथवा क्रोधावीनेप्राप्तथयोछे तेनेनिइफलकरवो सामानावच नादीकहोयतेसहीजवां अथवामानजेउदयश्रावतानेरुंध q अथवाजेउदयभावीप्राप्तथयो एवोजेअनिमानतेनेनि इफलकरवो तथामायाकेहेतांकपटतेनेउदयश्रावतानेरुंध वु अथवाभावीप्राप्तथाय तेनेनिफश्लकर तथालोभकेहे ताइगवंबा रुपतेउदेश्रावतांनेरुंधवं अथवालोननोनदे श्रावीप्राप्तथाय तेनेनिइफलकरचुएटलेकसायप्रतीसली नतातपकह्यो हवेजोगप्रतीसलीनतातपकहीयेलीयेतेना त्रणभेदले एकमननोजवेपार जेपरजुजवो तेनेबहूप्रकारे करीनेपणसंवरवो तथाबीजोवचनसलीनताकेतां जेत्र नेकप्रकारनांवचनपर जुजवांतेनेसंवर तथात्रीजोंकाय जोगकहेतांजेकायानोवेपार आश्रवथकीरोकवो हवेम Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - MENT IT'.. ... . .. ५५२ ... तत्वसारोवार ननोजेवेपारतेनुसंवर, एटलेमाठुजेमनतेनेरुंध नला मननीउदारणाकरवी तेनेमनप्रतीसालीनताकहिये तथा वचनजोगनावेपारनुसंधq एटलेमाठांजेवचनतन रंध 'नलांजेवचनतेनीउदारणाकरवी एटलेवचनजोगनीप्र तीसलीनताकहिये हवेजकायजोग एटलेकायानोवेपार संवरवोएटले समाधीसहीतवर्तवं एटलेहाथ अपग काचबानीगोडेगोठवीराखे इंद्रीयोपांचेगोपीराखवीश रीरनाअंगोपांगतेनेकायजोगप्रतीसलीनताकहिये एट लजोगसलीनताको हवे विवक्तसालीनताकहियेछियेए टलेउपाधीये स्त्री पशु नपुषक प्रमुखनहाय तेउपा | शरेरहे तथापाटबाजोठपाटलाप्रमुख तेपणस्त्रीयादि कनहोयनेशेववं भोगवधू वलीउत्तमवनवामीतथाउदान अथवामोटाटक्षनीहठे तथादेवकुलनेविशे तथाधणाज । बेसताउठताहोय तेवीसनानविशे तथापाणीभरताहो 'यतथापीताहोयत्यांतथाघणाकिरीयाणालेवेकरथताहोय त्यास्त्रीमनुषनीपणहोय तथागायझेशनपशकएथकीरही तएवीजेवस्तीहोय एवाउपाशराविशे पराशुप्तएटरले अंचीतनिरदोशत्यापाटपाटलाबाजोठ तथाठीगणमु कवानुपाटीयु तथासंथारोमानप्रमुखंघासनो अथवाउद ननोइत्यादिकवस्तीपासेमागीलेइनेविचरे तेनेप्रतीसली नताकहिये एटलेएछएबहाजतपकह्या एटलेएबहाजत . . . Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तखसारोबार. पथकीकर्मनोनाशयायनहि कोइकहेशेनाशनथायत्यारे शास्त्रवालेशावास्तेकह्या तेनोउत्तरजेशास्त्रवालेकह्यातेने व्यवहारचलववो अनेपोतानादर्शननीनोखीनलखाणक राववो प्रथमतोएजकारण बोजुएकेएवातपथकी सासन नोशोभाषणावधेसासनसारुलागे त्रिजुएकेतेधणीनीवा हाजयकोइंद्रीयोबिजाविकारमांनपेसे इत्यादिक कारण जाणवांपरंतुएसेविशे कांइत्रात्मउपयोग एवोशब्दतोछे जनहि अनेचारीत्रनामत्रात्मानं तोवस्तुचारीत्रतो तेवस्तुतोएमांनाहि पातोएकक्रियारुपछे तोक्रियानेवि शेतोकोइनुमनस्थीररहेनेकोइनुनारहे जोस्थीररहेतोएप रमादगुगठाणानीक्रिया कांअपरमादीनावतोएमांछे नहि अनेत्रपरमादीनावनेविशेतो क्रियाहोयजनहिते विचारीजुवो हवेजेएवीक्रियाकरेतेथकीकांइमुक्तितोमलेन हिकेमकेमुक्तिनुप्रथमकारण नेदज्ञान तेचोथागुणठाणा थीमांडीनेत्राठमागुणठाणासुधीचाले तथानवमुदसमुगु पठाणुजे त्यांनेदाभेदज्ञान नेबारमेगुणठाणेअभेदज्ञान छेएटलांगुणठाणांकहेतां अाठमागुणठाणाथीबारमागुण ठाणासुधीवचन-उचारणपणछेनहि तथामनद्रव्यगुणप रजायत्रात्मउपयोगनानेगुजरहे तेविनाजोबिजिजगाये जायतोतेगुणठाणारहेनहि पागेबठेसातमगुणठाणेजाय जावतमिथ्यातमांपणजाय तथाअवधीज्ञानी मनपरजव Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ तत्वसारोहार. ज्ञानी कोइसाधुहोय ते साधुपणश्रवधीमनपरजवज्ञाननो उपयोगदेतां एगुणठाणापांमेनहि तेगुणठांणाश्रुतज्ञान अवलंबीछे ते बारमे गुणठाणे नेदज्ञानबे त्यांघातीकर्म नोक्षयकरीनेते रमेगण ठाणे केवलज्ञानपामे तेतोबहारनी क्रियातथाबहारनातपमांकांइछेनहि तेवारेकोइक हे शेके प्राजकां ते वस्तुनहि माटेबहाजक्रियानेतप तेजप्रधान छेतेने कहिये के बहाजक्रियाने बहाजतपप्रधानछे तेठीकछे पणतमेत्रात्मधर्मनाद्वेशीमाटेतमने हजुसमकित गुणठा पत्राव्यंनथी माटेत मे खुशीपमेते मकरो पण एकबुंबे के जे लाकडाना पुतलाने वरबनावीने जानलेइनेजाय तेने कोइकन्यापरावेनहि ने एजानैया लाजखोइ ने घेरा वेतेमतमेपणत्रात्मज्ञानहि एबहाजक्रियानात्रा मंबरीमाटे अनंतोसंसाररखम्शो नेतमा उपदेशनासांचलवा वालातेपणानं तो संसाररखम्शे तेवारेतेबोल्याजेतमेब कठोरवचन बोलोछो ने मेतो बहू पंमितनांवच नकह्यां छेते उपरचालीयेीये माटेमेशामाटेरखमीये तेनोउत्तर जेतमेपंडितो नाक हे उपरथी चालोछो तेकांइपंमितात्म ज्ञानीनांएवांवचननाहोय शामाटेकेसमकितवमाश्राश्रव मांनाखवाछे नेत्र्याश्रवनावधारोकर वो एवचनपंडितनांक हेवायनहि पंडितहोयतेतोश्रात्मानुस्वरुपग्रहीने संवरना वनीपरुपणाकरे तेनेपंडितकहिये तेत्रधिकारघसाशास्त्र Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोहार. मांबे शास्त्रांनाम मेपुर्वेलीधलांछे तेथकीजाणजो. त्यारेते बोल्याने ते शास्त्रनाबांधनारपंडीतखरा नेबी जाशास्त्राबांध नारा पंडीततेशं खोटा ते नोउत्तर जेतेंकहां तेपंडीतखोटा तो प्रतक्षखोटाजछे शामाटेकेप्राचारदी नकर ग्रंथविशे एवं कांछेके ग्रहस्तीनाछोकराने परणा ववाने साधुजाय एवांवचननाकेनाराने पंडीत केमकहीये प्रत्यक्षतेमणेपोतानी नेपोतानापरीवारनीत्राजीवीकाबां धीछे तथाजेतपमां उजमणांकरवानाग्रंथबांध्या तोते नेपुछीयेके पुर्वेकह्यात पसुत्रमांछे तेनांतोउजमणांकांइ छेनही नेत जेन वातपउत्पन्नकर्या तेतपत्रमांतोछेन ही नेतेनांउजमणांत बांध्यां तेतमारीत्राजीवीका चला ववासारुबांध्यां केशावास्तेबांध्यां तथाश्रावकनेउपधान कहोगे नेतेनांएवांप्रकरणपणवतावोबोजे श्रावकनो नोकारपणउपधानवह्यावगरखप लागेनही तेतमेकयास त्रमांथी लावीनेदेखाडोबो जेउपाशकदशांगनेविशे त्राणं दजीश्रादि दसश्रावक नोअधिकारछे तेतुरतधर्मसांन ळी समकीत मुळबारव्रतउच ने गियारपडीमाश्राव कनीवहीपण उपधानवह्यांतोदीसतांनथी एमजेजे सुत्रमां श्रावकनोअधिकारहोय त्यांजोजोतथातमेकहोछोके सा घुनेजोगवह्याविना सुत्रवंचायनहि तोभगवती जिनेविशे खंधकतापसतुरतदिक्षा लेने द्वादशांगीनण्याइत्यादि ५५५ Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. - कजेटलासुत्रमांश्रावकनाअधिकारने तेसर्वेदिक्षानलेइने कोइअगीयारअंगनएया कोइद्वादशनंगीभएपा तथाअनु तरउवाइनेविशे धनाकाकंडीएनवमहीनाचारोत्रपाल्यते मध्येमासएकतोसंथारानोगयो अाठमासचारीत्ररातेमां अगीयारअंगनण्यातोतेणेजोगकयेदहाडेवद्या एफनग वतीजिनाजोगमां बमहीनाजोश्ये तोमांडलीयातयात्रा चारीतथादशअंगना जोगवहेतांएनेकेटलांवरसजोश्येते विचारीनेजवाबदेजो एटलेएग्रंथनाबांधनाराये पोतानी श्राजिवीकाबांधी पणकांइधर्ममार्गबांध्योनथी तथाश्रा धविधीप्रमुखग्रंथोनेविशे वडीनीतलघुनीत दातणनाहा वाखावा प्रमुखनात्राचारबांध्या तेनेतेशुधर्मकहिये केते नेतेशुपापकहिये एवाग्रंथनाबांधनारानेकहोपंमितशीरी तेकहिये नेतेनेपंडितकहेतेनेपणअज्ञानीकहिये. शिष्यवाक्य-स्वामिसुत्रनेविशेपणतमेपूर्वेकह्यातेतपक हेलाछे तेधर्ममांखराकेनहि. गुरुवाक्य-हेभद्रएतोत्यांजबहाजतपकह्याछे बहाज कहतांबहारथीकायानेतपावे तेनेबहाजतपकहिये अभ्यं तरतपतेकर्मनेवाले तेनेकहिये माटेबहाजछेएव्यवहार माटेत्यांजधर्ममांगवख्यानथी. शिशवाक्यः-धर्ममांगवेख्यानथी तोइहांकेहेवानीजस रशीहती. P hilim . Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. गुरुवाक्यः-नगवानेतोसातेनयबताव्याछे परंतधर्म तोत्रणनयमांजबताव्योछे तथासुत्रकारेजेतपबाहाजनुं मानवधार्यछे तेसुत्रकारनावचनमांतो घणीवातोनीशंका जछे प्रथमतोजसवीजेजीउपाध्याय नवाणुबोलतोत्रण मलता काहाडीजमुकेलाछे तथासिद्धांतनामालीक जी ननद्रगणीखमाश्रमण दसपुरवधरहता तेनेतथासीधसे नदेवाकरने जेचरचाअोथइ तेचरचामांपण जिनभद्रगणी खमाश्रमणना उत्तरमांकशुंठेकाणुदीसतुंनथी तेशिवाय पणघणाबोल सिद्धांतनाग्रणमलता कल्पीतनाशणथा यछे परंतुत्रापणेसिद्धांतनोत्राधार तेथीतेआधारउपर चालवामुंडे वादीउत्तर तमनेसिद्धांतकल्पीतभाषणथयां तोतमेशावास्तेखोटुंजाणीनेमानोछो तेनोउत्तर सरवसू तोकांइखोटांनाषणथतांनथी अनेजेजेबोलखोटानाष थायछे तेत्रमेसदहतानथी अमारेकांइताहारीपठेहठ वादळेनही जेप्रमाराघरडाकहीगयातेखरूं एवगधापुंछ तोतमनेसोंप्यु. शिशवाक्यः-स्वामीबाहाजतपतोव्यवहारमांगयो ए मांतोकांश्वात्मानुकारजथवानछेनही माटेत्रमउपरक पाकरीने अभ्यंतरतपोलखावो तेममेकरीये जेमत्र मारापात्मानुंकारजसिद्धथाय. गुरुवाक्यः--अभ्यतरतपनाछन्नेदतेकहीयेछीयेप्राची . . . meaharaPa Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तलसारोदार. त १ वीनय २ वीयावच ३ सजाय ४ ध्यान ५. काउ सग६ एमध्ये प्रथमप्राश्चितनादसनेदले तेकहीयेलीये जेपोतानेलागुजेपाप तेगुरुपासेत्रावीनेबालोववंकहेतां केहेवू तेथकीशुद्धथाय तथापडकमवूतथामीछामीदूकमंदे qतथाबालोववुनेमीछामीदूकडंदेवू बेएकरवांतथात्रशुद्ध नावमुंटालवू तेणेशुद्धथायअथवातपनुदेवुतेथीशुद्धथायत थाचारीत्रनीप्रजायर्नुछेदq तेथीशुद्धथायतथाफरीथकीचा रीत्रदेवुतेथीशुद्धथाय जेथकीतीचारलागतेथकीवेगला राखे एदसप्रकारेगुरुपासेप्राश्चितले गुरुजेवूपापदेखते वीपालोयणआपे पणद्रव्यक्षेत्रकालनावजोइनेआपे ए टलेवालोयणापवानामुखत्यारगुरु माटेगुरुनीनजर पोचेतेवीआलोयणापे एटलेप्राश्चिततपकह्यों हवेबी जोवीनयतपकहीयेछीये तेनासातभेद ज्ञाननोवीनय १ दरसननोवीनय २ चारीत्रनोवीनय ३ मननोवीनय ४ वचननोवीनय ५ कायानोविनय ६ लोकविनय ७ तेम ध्येज्ञाननोविनयपांचप्रकारनोछे मतीज्ञाननोविनयकर वो तेमतीज्ञाननागुणवरणवकरवा १ श्रुतज्ञाननोविनय करवातेश्रुतज्ञाननागुणग्रामकरवा २ अवधीज्ञानजेमर जादाप्रमाणेरुपीद्रव्यनुदेखवू तेनागुणग्रामकरवा ३ म नपरजवज्ञानजेअढीद्वीपसंज्ञी पंचद्रीनामननानाजा तेनोविनयकरवो एटलेतेनागुणग्रामकरवा४केवलज्ञा Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. D - नजेरुपीरुपीलोकालोकसर्वनानावजाणेदेखतेसर्वनोवि नयकरवातेतेनागुणग्रामकरवा एटलेज्ञाननोविनयकह्यो हवेदरसननोविनयकहीयेगये एटलेदरसनकेहेतां सम कीततेनाबेनेद एकससुरखा केहेतांजेगुरुनीसेवाभक्ती करवी नेबीजोनेदजेासातनाटालवी हवेजेगुरुनीसेवा जक्तीकरवी तेनाअनेकभेदकह्याछे तेकहीयेलीये गरुत्रा वेथकेसर्वठामनेविषेउभूथवू सर्वथाबेसीरेहेवूनहीगूरुज्यां बेसवानीअथवासुवानीमरजीकरे त्यांतुरतासनलेइने जqअनेत्रासननांखीआपq गुरुनेत्रासनापर्बु गुरुनेस नमानदेवु एटलेस्तवनाकरवी गुरुनेवस्त्रादीकनीनीमंत्र णाकरवी गुरुनेद्वादसवांदणेवांदवा गुरुपासेहाथजोडीने आगलउभुरहेगुरुत्राक्ताहोयतोसामुजवू श्रावीनेरह्या होयतेनीशेवानक्तीकरवी गुरुविहारकरताहोयतोपोचाम वाजवं आहारप्रमुखनविषेतेडवाजवू एटलेएससुरखावि नयको हवेत्रासातनाविनयकहीयेलीये तेना १५ भेद कह्या अरोहंतपरमात्मानीत्राशातनाटालवी परीहंतनुं परुपेलुजेधर्मतेनीवाशातनाटालवीएटलेधर्मतेवस्तुस्वभा विकस्यादवादसहीततेनेधर्मरीहंतनाखेलुकहीयेतथा प्राचारजनीअाशातनाटालवीतेत्राचारजछत्रीसेगुणेकरी सहीत पंचंद्रीनीबेगाथाथकीजापजो उपाध्यायनीवाशा तनाटालवी तेपचीसेगुणेकरीबिराजमान तेनेउपाध्याय - - Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० तत्वसारोद्वार. कहीये. थीवरनीप्राशातनाटालवी तेथीवरत्र पत्रकारना श्रुतथीवरबहुश्रुतनीश्राशातनाटालवी वीसवरसउपरां तचारित्रनीपरजायथइहोयतेने कहिये तथासाठवरसउप रांतसाधुहोय तेनेवयथीवरकहिये हवेकुलनीप्राशातना टालवी एटलेचंद्रादिककुल सिद्धांतमांचालेलांछे तेनी प्राशातनाटालवी गणकेहेतांगछ नीशातनाटालवी ते गछ श्रीसद्धांतमांकह्या छेतेनी संघनीप्राशातनाटालवी संघकेतांजे साधुसमुदाय क्रियापक्षीक्रियानोरागीकर नारो तेनीप्राशातनाटालवी सजोगीएटलेसरखीसमा चारीनासाधुहोय तेनीश्राशातनाटालवी मतीज्ञानश्रुत ज्ञान अवधिज्ञानमनपरजवज्ञान अनेकेवलज्ञान एपांच ज्ञाननाशातनाटालवी एपंदरभेदनी भक्तिबहूमानक रवां एवंत्रीसद ए पंदरे गुण नागुणनी वरणवता करीनेवार दिपावj एटलेएपीस्तालीसभेदथया एत्रा शातनाटालवारुपवीनयतथादरशनवीनय कह्यो. हवेचारित्रविनयकही येछीये तेनापांचप्रकार सामाय कचारित्रशुद्ध उपयोगेश्रादर १ छेदोउपस्थापन रुडीरी तेपालबुं२ परिहारविशुद्धचारित्र रुडीरीतेपालबुंतेविन य३ सुक्ष्मसंप्रायचारित्रपालबुं४ जथाक्षायकचारित्रपा लबुं५ एपांचनुंस्वरुप पुर्वेसंवरद्वारमांकह्यंबे एटलेचारि विनयको हवेमनविनयलखियेबिये तेनाबेनेद एक Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. प्रशस्थमनविनय१ अनेएकप्रशस्थमनविनय२ हवे अप्रशस्थमनकेतां मननाअभिप्रायजेमाठा कायकादि क्रियानाविचारउठे तेपोतानेपणदुखदाइ नेपरनेपणदु खदाइ एवंमाठुमनप्रवरते तेनेअप्रशस्थमनविनयकहि ये तेथकीउपरांठुने स्वगुणपरजायनीरमणता पोताना स्वरुपतुंध्यावं आत्मानेउधरवानोविचार तेनेप्रशस्थम नविनयकहिये एटलेमनविनयकह्यो हवेवचनविनयक हियेबिये तेवचननापणबेनेद एकअप्रशस्थवचन अने बीजप्रशस्थवचन अप्रशस्थवचनकेहेतां जेवचनमाठांनी कले एकंद्रियादिकजीवनेउपद्रवथाय पोतानेकायकादि कक्रियालागे सामानेनेपोतानेबेउने उपद्रवनंजेकारणथ यूं आश्रवत्रावतेवूवचनजेबोलवं तेनेअप्रशस्थवचनवि नयकहिये हवेप्रशस्थवचनविनयकहियेछिये प्रशस्थके हेतांभलुंजेवचनबोलवू जेकोइजीवनेबाधापीमानथाय पोतानेपणनवांकर्मनावे जुनांकमननिरजरQथाय पर नेतथापोतानेसुखदाइएवंजे अध्यात्मस्वरुप तथाद्रव्य गुणपरजायनीचरचा तेनेप्रशस्थवचनविनयकहिये एट लेवचनविनयकह्यो हवेकायविनयकहियेछिये तेनाबेन कार एकअप्रशस्थकायविनय अनेबीजोप्रशस्थकायवि नय हवेत्रप्रशस्थकायविनयकेहेतां विनाउपयोगेकाया नेप्रवरताववी तेनासातनेद उपयोगविनाजेजावंप्रथ ७१ Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. वाश्रावकरे अथवाउभुरेहेवूअथवाबेसवं अथवासुइरेहे बुंअथवाखाडप्रमुखकुदीनेजावू तथापांचइंद्रीनप्रवरताव बुं तेनेत्रप्रशस्थकायविनयकहिये हवेप्रशस्थकायविन यएटले पुर्वअप्रशस्थकह्या तेथकीउपरांठानलाजे श्रा पासहितउपयोगसहितप्रवरतवं तेनेप्रशस्थकायविनय कहिये एटलेएकायविनयकह्यो हवेलोकविनयकहियेछि ये एटलेलोकसंबंधीउपचारतेनेविनयकहिये तेनासातभे दछेतेकहियेछिये गरुनासमीपनेविशेसदायप्रवरतवं १ अथवापारकागुरुनानिप्रायेवरत तेज्ञानादिकलेवाने अर्थ२ नातपाणीबाणीदेवू३ एनीएवीबुधीथायजेहुंएने नणावं त्यारपगविनयकरवो ४ आर्तउपनेतेनाबार्तनी चिंताकरवी.५ देशकालनूजाणथा६ सर्वअर्थप्रयोजन नेविशेसावधानरेहेवू तेथकीउपरांठुनाथq७ तेनेलोकउ पचारविनयकहिये एटलेएविनयतपकह्यो.. हवेवयावच्छतपकहीयेलीये तेनादसप्रकारछेप्राचारज एटलेपंचाचारनेपाल नारतेनीवयावच्छकरवी १ उपाध्या यजीद्वादसत्रंगीनाजाण तेनीवयावच्छकरवीर साधुनी वयावच्छकरवी३नवदिक्षितशीष्यनीवयावच्छकरवीरो गीनीवयावच्छकरवी ५ तपसीनीवयावच्छकरवी६ थीवर नीवयावच्चकरवी ७ साधर्मीकपोतानीसरखीसमाचारी नासाधुहोयतेनीवयावच्छकरवीटकुलनीजेचंद्रादीकतेनी - Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. Manoran - क्यावच्छकरवीर गणएटलेगछनीवयावच्छकरवी०ए टलेवयावच्छतपकह्यो ३ हवेसजायतपचोथोकहीयेछीये तेनापांचनेदछे गुरुवादिकपासवाचनाएटलेनणवं प्र भनीशंकाउपजेतेपुछीनेनिश्चयकरवो २ पुर्वेभएयाहोय तेसंनारीवालवू ३ शास्त्रशब्दनाअर्थएकएकनीअपक्षा येविचारीजोवा ४ अनेधर्मकथाकेहेतांधर्मनीच वार्ताक रवी ५ एटलेएसजायतपकह्यो ४ हवेध्यांनतपकहीयेंगे ये तेनाचारभेद धार्तध्यान १ रुद्रध्यान २ धर्मध्यान३ शक्लध्यान ४ हवेत्रातध्याननाचारपाया आर्तकेहेतां मननिजेचिंता तेनेार्तध्यानकहीये मननेनगमतेवाश ब्दरुपरसगंधफरसादिक जेजेपदार्थमल्यांतेनोएवोविचा रकरेजेाक्यारेअहींत्रांथकीटले तेनावीजोगनूजेचीतव बुं तेनेअनीष्टसंजोगनामेपायोकहीये १ हवेइष्टविजोग नामेबीजोपायो एटलेनलाशब्दरुपरसगंधफरसपुत्रक लत्रसगांसंबंधीपोतानामननेगमेतेवांमलेलां तेनोविचा रजेएनोविजोगनथायअथवानथीमल्यां तेनेमलवानोवि चारइत्यादिकजेविचारतेनेबीजोपायोकहीयेरहवेत्रीजोरो गातसपायो रोगादिकउपनेतेनीचिंताकरेजे क्यारेमट शेक्यारेजशे अथवानवोरोगनथायतेनोविचारकरवो ए. त्रीजोपायो ३ हवेचोथोपायो अगामीककालनीचिंताजे कालापणेमककरीशं अथवाभावतीसालश्रमककरी - BUTTACTOASTEM Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. शुं अथवाभासालापणेठीकहतु हवेआवतीसालेरॉयशे इत्यादिकचिंतवq तेनेअगामीककालनीताकहीये एट लेआर्तध्याननाचारपायाकह्या हवेते प्रार्तध्याननांचा रलक्षणकहीयेलीये कंडणयिाकहेतां मोटेशब्देकरीरुदन विलापकरे १ सोयणीयाकेहेतांसोचनादिनपणुहोय २ तपणीयाकेहेतांत्रांख्यमांथोत्रांसुझरे ३ वलवणीयाकेहे तां मुखथकीएवोशब्दकरकेहेदेव हेप्रभुहवेकेमथशेएचा रेत्रातध्याननालक्षणकयां हवेरुद्रध्यानकहीयेछीये रु द्रकेहेतांमाहााकरादुष्टपरणाम तेनाचारपाया हंशानं बंधी एटलेजीवहंसाचिंतववी मनथकश्रिारंभसमारंन फोजनगरगामलुटवांनागवां मेहेलमंदीरकराववां लेंप वांथेपवां एसर्वनेहंशानुबंधीरुद्रध्यानकहीये १ बीजोपा योमरखानुबंधीरुद्रध्यान एटलेमनमांएवाविचारकरेजेफ लाणानेावीरीतेसमजावीशं अमुकनेश्रामकहीनेसम जावीशं इत्यादिकम नथकीमरखाबोलवानोविचारकरे ते नेमरखानुबंधीरुद्रध्यानकहीये २ हवेचोरा-बंधीरुद्रध्या नमनथकीचोरीकरयानोविचारकरवो अथवाकोइपासेचो रीकराववानोविचारकरवो अथवाचोरनेसबुरापवानो विचारकरे एप्सर्वेचोरानुबंधीरुद्रध्यानकाहिये३ चोथोपा योपरिग्रहरक्षानुबंधीरुद्रध्यान जेपरिग्रहमेलववानोवि चार तथामलोपरिग्रहतेनेरखोपुकरवानोविचार तेसारु Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. - शीरबंदीप्रमुखराखवी अथवापरिग्रहनाक्षयकारीपुरुषो नेहणवा बंदोखानेनांखवानखाववाइत्यादिकजेम नथीवि चारे तेनेपरिग्रहरक्षानुबंधीरुद्रध्यानकहिये? एरुद्रध्या नकयुं हवेरुद्रध्याननांचारलक्षणकहियेलिये उष्णदोश बंधीकहेतां प्रायेहंशामरखाअदत मीथनपरिग्रहनेविशे प्रवरतवू शेषहूदोषायकेहेतां जेहंशाप्रमुख नेविशेबहू प्रवरतवु२ अणादोशेकेहेतां अज्ञानथकीहंशादिकनेवि शेप्रवरतनेधर्ममानवू३ अामरणांतदोशकेहेतां जेमर णांतलगेकोइपापनोपश्चातापनकरे एटलेएरुद्रध्याननां चारलक्षणकयां. हवे धर्मध्यान कहिये बिये एटलेधर्मकेहेतां जे वस्तुधर्मनुपामवं आत्माथकी कर्मनुनीरजरवं तेनेध मकहियेतेनाचारनेदबे आज्ञावीचयधर्मध्यानकेतां जे परमात्मानीशीअाज्ञाछेतेविचार परमात्मानीएवीत्रा ज्ञाछेके ज्यांजीवनीहंशात्यांधर्मछेनही जेअज्ञानीदयापा लेतेपणकांइधर्ममांछेनही धर्मतोज्ञाननेविशेरह्योछे ज्ञा नतेत्रात्मानेविशेरा त्यारेत्रात्मानोजेस्वभावतेजधर्म इ त्यादिकपरमात्मानी आज्ञानुस्वरुपविचारवंतेपेहेलोपा यो हवेबीजोपायोअपायवीचीय अपायकेहेतांत्रात्माते नोजेक्चिार जेत्रात्माकेवाछे केजेवोफटकरत्ननिर्मलछे तेवोत्रात्मानिर्मल नेजेाकर्मरुपमेलनेतेपुद्गलने तेहेचे - Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ तत्वसारोद्वार. तनतुनहितुतोएकस्वरुपी अनेकछेतेतोपुद्गल तुतोहेचे तनअव्याबाधछे एटलेत नेकशीबाधापीडाउनहि बाधा पीमाजेछतेपुद्गलनेतेतुनही तुअनंतज्ञानमय जेप्रज्ञा नतेपुद्गलछे तुअनंतदरशनमय अदरशनतेपुद्गल तअनंतचारित्रमय अचारित्रतेपुद्गल तेतुअनंतवीरज मय अशक्तीवानतेपुद्गल तुअरागीबेनेरागतेजडछे तु अद्वेशीछे वेशतेपुद्गल तुप्रक्रियछेतुअमानीछे तुअमाइ अलोनीअवेदीअछेदीअभेदीअकंचनीअवरणीतुअरस अगंधअफरसतुअप्राणीछेतेअजोनीअजरअमर इत्यादि कआस्मानास्वरूपनाअनंतगुणछेत्रसामोप्रतीपक्षीजेज डतेनाअनंताजेदोशतेविचारवातेनेअपायवीचयधर्मध्यानक हिये.हवेवीपाकवीचयधर्मध्यानकेहेतांजेवीचीत्रप्रकारनां शुनाशुनकर्मनाजेउदेभोगववा तेनुंजेस्वरुपवीचारवंएट लेबाठकर्मनीएकसोठावनप्रक्रती तेनोबंधउदयनदीर णानेसत्तातेनास्वरुपनोजे विचारतथाएकसोचोवीसप्रक तीपुन्यपापनीतेनोविचारते सर्वेपद्लनोनागजाणीने डवानोविचारतेथकी आत्मानेगेडाववातेविचार तेसर्वेवि पाकवीचयधर्मध्यांनकहीये हवेचोथस्वस्थानवीचयधर्म ध्यानकेहेतां चौदराजलोकतथाउर्धधो त्रीछोलोकनो विचारतेसर्वेस्थानके हेचेतनतुंजन्ममरणकरीचक्यो पण कांइताराजवनोअंतश्राव्योनही माटेतुंतारास्वरुपनील - Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. - खाणकरके ताराजन्ममरणमटेइत्यादिकजविचारतेनेस्व स्थानवीचयधर्मध्यानकहीये हवेतेधर्मध्यांननांचारलक्ष णकहीयेछीये एकतोनगवंतनीयाज्ञानीरुचीहोय १ वि नाउपदेशेपोतानास्वभावथकीजरुचीप्रगटथायनेसमकी तपामे २ गुरुउपदेशथकीरुचीप्रगटे ३ अनेशास्त्रनाथ र्थविचारवानीरुची ४ एचारलक्षणकयां हवेचारधर्मध्यां ननांत्रालंबनकहीयेलीये गुरुसमीपेवाचनालेवी १ गुरु पासेपार्छगणीवालवू २ गुरुपासेशब्दअर्थ-मेलवq ३गु रूपासेधर्मकथानुकेहेवु ४ एचारधर्मध्याननाअलंबनजा गवां हवेधर्मध्यांननिर्णयकरवारुपविचारणातेनाचारभेद कहीयेबीये प्रणातीपातादीकाधवद्वारनउपज तेना जेउपायविचारीनेदुरकरवा १ श्रासंसारनेविपेजेशुना शुनकारणमेलववां तेनोविचारकरीतेपणदूरकरवा २ अनंतीसंसारनीजसमताजेश्रेणी तेनाअनंतपणानंचीत व, ३ वस्तुनापरणामक्षणक्षणपरावर्तनथायडे एटलेष जायर्नुपलटवुसमेसमेछेज तेनुस्वरुपविचार ४ एटले धर्मध्यांननीचारअनुपेक्षाकही तेधर्मध्यांनकह्यो.. हवेशुक्लध्यानकहीयेगयेशुक्लकेहेतांनिर्मलसुद्धात्मानुजे ध्यान तेनेशुक्लध्यानकहीये तेनापायाचारप्रथक्तवितर्क एकस्ववितर्क२ सुक्ष्मकीरीयाप्रतीपाती३ उनकीरीया नीटत्ति ४ हवेप्रथकवितर्ककेहेतां प्रथक्तप्रथक्तजुदा - - Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. जुदाद्रव्यगुणत्रजायनावितर्क के हेतां विचारखुंते पेहेलोपा योगे तेसक्षेपमात्रद्रव्यगुणप्रजायनोविचारकही ये बीये हवेद्रव्यते कोनेकहीये जेनुरुपत्र णकालमांबद्लायनही एटले भविष्य वर्तमान एत्रणकालकहीये अनेगुण प्रजायनुं परावर्तनपधाय उत्पातवयभ्रुएत्रणलक्षणेक रीने सहीतहीयतेने द्रव्य कहीये उत्पातनेवयएप्रजाय नेविषेहोय ने ध्रुवता पणुतेद्रव्य होय नेगुणप्रजायते द्रव्यनेविशेला एटलेद्रव्यवेतेप्रजायनीगोडे कोइकाले पलटेनही तेनेद्रव्यकही येते स्वभावीकद्रव्य जेमजीवने विषेज्ञानादिकजे गुणतथाव्याबाधादिकप्रजायरह्याबे तथापुद्गल नेविशेवर णादिकजेपरजाय तथामलवावीखर वादिकगुणरह्याछे जेमस्रतीकाद्रव्यनेविशे जेश्राधारा श्राधेमुखगुण तथारक्तादिकपरजायरह्यावे तेमपटद्र व्यनेविशे तंतुपरजायकहिये एटलेपटनाश्रवयवती पे क्षायेकरिनेपरजायके हेवाय इहांकोइ केहेशेकेत मे पेक्षा येद्रव्यपरजायकोहोछो पणकांइस्वभावीकपणेनहीतेने कहिये जेपुद्गलस्कंधमांहेद्रव्यपरजायतेपेक्षायेजथाय शामाटेजे पुद्गलना स्कंधनुजे मलवुं त्यारेएकस्कंधद्रव्यथा य नेपाछावली वेराइपणजाय नेस्वभावीकद्रव्यहो यतेवेरायनही द्रव्य एकनाथायनही माटेइहांत्रपे क्षीतद्रव्य के वाय कदापीकोइ केहेशे के व्यारेपरमाणुद्र ५६८ Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. %3 व्यशामाटेनथीकहेता तेनोउत्तर परमाणुनेद्रव्यकहियेतो तेनेविशेप्रदेशबीजानथी एपोतेजप्रदेशअनेपोतेजद्रव्य थाय तथाबीजुकारणएजेद्रव्यथीद्रव्यमलेनहीअनेपरमा एतोबीजाद्रव्यमांमलीजाय माटेसुमतीतत्वार्थप्रमुखने विशेतोएबुंकांछेके द्रव्यद्रव्यमलवुहोयनही अनेइहां तोअनंताद्रव्यनंमलवंथायअनेअनंतद्रव्यमलीनेएकपिंक जेवारेथाय तेवारेश्रात्मापणअनंतामलीने एकपंडथवो जोइये तोएतोमहामोटुंदोषणावे केमकेअनंताअात्मा नोएकात्माथाय तेवारेवेदांतवादीनोपक्षसाबीतथाय. शिष्यवाक्यः-अनंतजीवनोपिंडएकनीगोदछेकेनहि! : गुरुवाक्यः--अनंताजीवनीएकनीगोदतेखरु पणएके काजीवनेबबेकायातोपोतपोतानीनोखीछे माटेकांइएक पिंथयोनथी एतोजेमएककोठीमांबाजरीनरीये तेबाज रीनादाणाघणाछे पणसर्वजुदाजुदाछे तेमअहिंयांकोठी रुपउदारीकनीगोदपिंडछे अनेदाणारुपजीवछे अनेपुद्ग लद्रव्यनेजेमलवं तेनेकांइभाजनबीनथी नाजनपोते जछे नेद्रव्यपोतेछे माटेतेबनीनात्रावे अनेजेपद्लनीयं पेक्षायेद्रव्यपरजायकह्या तेमांकांश्दोषणनथी शामाटेजे विशेषवस्तुनोअपेक्षायेकरीनेजेव्यवहारबंधाय शामाटे केसमवायकारणप्रमुखेकरीने द्रव्यनुलक्षणमनायने तेने पणअपेक्षाअवश्यजाणवीगुणपरजायश्व्यद्रव्यंइतितत्वा Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० तत्वसारोद्वार. र्थे हवेस्वनावीककहेतांद्रव्यनावी एटलेद्रव्यतेगुणकहि ये एटलेजीवनोउपयोगगुण पुद्गलनोग्रहणगुण धर्मास्ती कायनोगतिहीत्वगुण अधर्मास्तीकायनोस्थितित्वगुण श्रा कास्तीकायनोअवगाहनाहीत्वगुण हवेकर्मनावीतेद्रव्य नाजेपरजायकहिये एटलेजीवनेनरनरकादिक परजाय पद्लनेवरणगंधादिकनंपरावर्तवू तेपरजायकहिये तेद्र व्यादिकनांत्रणलक्षण निन्न १ अनिन्न २ निन्नाभिन्न ३ हवेजेनिनकेहेतांपरदेशनाप्रवीभागथीत्रीवीधछे ए उपचारेजाणवूएटलेलक्षणादिकथीअभिन्न अनेएकएक मांत्रणत्रणभेदावे तेथीत्रणलक्षणबांध्यां तथात्रणलक्ष उत्पातवयनेध्रुवरुपडे एवोपदार्थएकजएजिनवचननुप्रमा णजे एटलेएद्रव्यगुणपरजायनुनिन्नपणुं खुलासेदेखामी येछीये एकमणीरत्ननीमाला तेमालानंजेकोइतेजरक्त त्वादिपणुं तेथीमालाअलगी तथातमणीरत्नथकीपण अलगी तेमजएद्रव्यशक्तिगुणपरजाय व्यक्तवीत्रल गाछे तथापिएत्रणेएकप्रदेशसंबंधेवलग्या जेमणीरत्न छे तेपरजायजाणवा तेरक्तत्वादिकतेजतगुणजाणवा ने मालातेद्रव्यकहिये एमद्रष्टांतेत्रहियांसमजवं श्रात्माते द्रव्यज्ञानादिकतेगुण अव्याबाधादिकतेपरजाय तेशक्ति तथागुणनीव्यक्तवताकरिये तेवारतेद्रव्यथकीभिन्नछे त | थापिमुलस्वरुपेजोतांएकप्रदेशसंबंधेवलगीरह्यातेमश्र Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. ५७१ - संख्यातप्रदेशेपणजाणवा एटलेएपरोक्षवस्तु तथाघटा दिनोद्रष्टांतदेइनेप्रत्यक्षदेखामियेछिये. हवेजेघटादीकद्रव्य प्रत्यक्षप्रमाणेसामान्यविशेशरुप तेनुअनुभवीयेलीये तेसामान्यउपयोगजोता मृतिकादी सामान्य नासे अनेविशेशउपयोगेघटादीविशेशनासे एटलेसामान्यमांतेद्रव्यरुपजाणवूअनविशेशतगुणप्रजा यरुपजाणवू हवेसामान्यनेद्रव्यकह्यो तेसामान्यबेप्रका रनो तेदेखामीयेलीये उर्धतासामान्यअनेत्रीयगसामा न्यतेमध्येउर्धतासामान्य तेद्रव्यनीशक्तिकहीयेतथापेहे लाअथवापबीजेगणनविशेशमुंजेकरवु तेसर्वमाहेएकरु पशक्तिरेहे जेमकंचननेकुंडलादिकसर्वघाटनविशेपोतेरेहे| एटलेपोतानीशक्तिसरखीराखे एटलेकंचननाअनेकघाट | निपजे वलीतेघाटभागीनेबीजाघाटबनेएटलेजेमतेघाट | मुंफरवुयायछे तेमकंइकंचन फरवुयाय नही तेकंचनना | पिंडनुकुशलतापणानुकारणकेटलुकेप्रजायमांहेसेहेचारी पणेरेहे अनेजोएकंडलादिकप्रजायनेविशे जोअनुगत कुंमलादिद्रव्यपणुं नमानीयेतेवारेसर्वेविषेशरुपथाय अ नेविशेशरुपथतांक्षणेकवादी बोधनोमतावे अथवासर्व द्रव्यमांहेएकजद्रव्यश्रावे तेमाटेकुंडलादीद्रव्य तेमांसा मान्यपणेसुवर्णादीद्रव्य अनुभववामांबावेछे तेप्राप्तउ र्धतासामान्यमानवा एटलेकुंडलादीद्रव्य थोडाप्रजा - Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ तत्वसारोद्वार. यनेव्यापीछे अनेकंचनादीद्रव्यघणाप्रजायव्यापीछेए नरनरकादीद्रव्यतुंपणविशेशपणेसमजवं एसर्वेनीगमन यनोमतछे अनेशुद्धसंग्रहनयनेमतेतोएकजद्रव्यत्रावे ते वारेअद्वैतवादीनोमतावे ज्यारे जीन्नद्रव्यमानीन्नपरदे शीकहीये अनविशेशमांद्रव्यनीशकिएकरुपएकाकारछे तेनेत्रीजगसामान्यक हीये तेदेखाडीयेगये जेमतेकुंडल द्रव्यपोतानुकुंडलताद्रव्यपणुंराखेछे हवेत्रहीयांकोइएवं केहशेके कुंडलादीकनुनीन्नव्यक्तवताकरी तेकुंडलादीए कसामान्यमांछे तेमसोवर्णपिंडादीकनुकुशलतातेपणसा मान्यतोत्रीजगसामान्यने उरधतासामान्यमांशोफरक तेनेकहीयेजे कांइसर्वथकीनेदहोय नही देशथकीभेदहोय एटलामाटेज्यांदेश नेदजोयामांबावे अनेद्रव्यप्रजायनी एकाकारप्रतीतउपजे तेनेत्रीजगसामान्यकहीयेनेज्यां कालभेदजोयामांत्रावेत्रावताकालनीपरतीतउपजे तेनेउ र्धतासामान्यकहीये अहीयांकोइमतवालाडीगंबरादिक एवंबोलेछेजे खटद्रव्यनीमांहेलीकारे एककालद्रव्यना प्रजायकेहेवा तेउर्धतापरचीयेलीये अनेकालविनापांच द्रव्यनेपोतपोतानाअवयवनीसंघातेमलीरह्यातेनेत्रीजग परचीये एतेनेमतेत्रीजगपरचीयेनोत्राधार कुंडलादि कत्रीजगसामान्यथाय तेवारेपरमाणुरुपअपरचीयेप्रजा यनोत्राधारनीन्नद्रव्यजोइयेपरंतुत्रीजगपरचीयेनोविचा Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ womemasotaramansamanarama तत्वसारोदार. ५७३ रबहखुलासेथी डोगंबराएसारीदेवश्रागमनामाग्रंथने विशेछे हवेउर्धतासामान्यशक्तिना बेनेददेखामियेछिये सर्वेद्रव्यपोतपोतानागुणपरजायनीशक्तिमात्रजोइये ते नेत्रोघशक्तिकहिये अनेजेकारजनिपजवानेतरतथायते बुंदेखिये तेकारजनीअपेक्षालेइनेजोतांतेनेसमुचीतशक्ति कहिये एटलेसमुचीतकेहेतां वेहेवारजोगछे इहांद्रष्टां तदेखामियेछिये पत्थरनेविशे धातुरहेली एवीजेकांक रियोतेने विशेकंचनकहियेते केहेवायनही शामाटेके एवातलोकनीरुचीमांत्रावे नही शामाटेकेलोककेहेशेके पत्थरमांकंचनक्यांथकीत्राव्यं पणजोद्रष्टीदेइनेजोइयेतो एपथरमांहेनुतोकांकरीमांपणकंचनश्राव्युंपणतेनेोघश क्तिकहिये अनेजेकांकरीमांकंचनकहिये एसर्वेनेरुचीमां श्रावे कांकरीउकलेनेतरतकंचननीकले माटेतेनेसमची तशक्तिकहिये तथाबीजेद्रष्टांतेजेमघासनेविशेषीकहिये तेश्रोघशक्तिछे एघासगायप्रमुखचरेछे तेथीदूधदेछेतेदू धमांघीनीशक्तिश्रावी तेघासनाप्रनावथकी एमअनुमा नथीद्रष्टांतदेनेजोइयेतो समज्यामांबावेपण तेकेहेवाय नही शामाटेकेलोकनेरुचीनाावे अनेदूधमांजेपीकही येतेसर्वलोकनीरुचीमांत्रावे तेसमचीतशक्तिकहीये एट लेनीकटजेकारजावेथके तेनाकारणनेसमुचीतशक्तिक हीये अनेपरंपराकारणकेहेतां घणुदूरकारगरयुं माटेते Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ तत्वसारोबार. नेघशक्तिकहीयेतेबेनुअन्नकारणताअनेप्रयोजनताएबे बीजांनामपणतेजाणवं एआत्मद्रव्यमाटेएबेशक्तिखो लावीयेलीये जेमजेनव्यप्राणीजीवनेपूर्वे अनंतापुद्गलप रावरतनवीत्यांतेदाहाडेपणयपणेसामान्यधर्मनीशक्ति हती अनेजोर्वेनहोती तोछेलेपुद्गलपरावरतेशक्तिक्यां थीभावे बतीप्रजायविनासामर्थप्रजायथायनही माटेएप वनीअवस्थातेनेनघशक्तिकहीयेनेबेलापुद्गलपरावरते धर्मनीसमुचीतशक्तिकहीये एटलेागलनाजेपुद्गलपरा वरतनविशे जीवनेवालअवस्थाकेहेवायछे अनेोलुपुद्गल परावर्तनबाकीरह्यं त्यांथीतेमोक्षजायत्यांसुधीजोवनप्रव स्थाकहीये एविचारहरीभद्रसुरीकृतजोगनीवीशीविशेक ह्योछे एमएकएककारजनेविशे उघसमुचीतरुपअनेकश क्तिएकद्रव्यनीपामीये तेसर्वेव्यवहारनयकरीतछेएटले व्यवहारनयेकारणकारजनेद नानाप्रकारनामनाय प पनिश्चनयथीतोद्रव्यनांकारजकारणअनेक परंतुशक्ति स्वनावजोतां एकरुपजहृदयमांनाषणथाय अनेजोए मनाहोयतो स्वभावनोनेदपके स्वनावनोनेदपम्योत्यारे द्रव्यनोनेदपडेमाटेदेशकालादिकनीअपेक्षायेकरीनेएका नेककारणस्वभावमांनतांकांइदोशनथी केमकेकालंतरनी अपेक्षायेजे एटलेजेकारणमाटेस्वभावनुं अंतरनुतपणुंडे जतेणेकरीनेकांइतेनुनीफलपणुनहोय त्यांशुद्धनिश्चयन । Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ५७५ यनेमते तोकारणकारजमीथ्याबे एटलेकारजकारणकल्प नावे कल्पनाये करीनेरहीत जे द्रव्यतेनेकहीये तेशुद्धथीर तारुपबे तेनेद्रव्यजाणवोएमएशक्तिरुप द्रव्यकेहेतांस त्तानीशक्तिग्रहणकरीनेकह्यो. हवेव्यक्तीरुपकहियेछिये एटलेव्यक्तीकहेतांजे प्रगटप पेजेगुणपरजायथया ते प्रत्येदेखाडीयेछिये तेगुणपरजा यव्यक्तीपणे बहूभेदेएटले अनेकप्रकारनाछे पोतपोता नीजातीस्वभाव स्वभावीककर्म नाव कल्पनाकृतपत्रा पणावस्तुस्वभावमावर्तेछे वलीकोइकशास्त्रवाला तथा मिगंबर वाला ते शक्तीरूपगुणमानेछे केमके ते एक हेछेके द्रव्यपरजायनुंकारणतेद्रव्यजछे तेमगुणपरजायनुंकार गुणछे ते द्रव्यपरजाय द्रव्यच्यनथानाव जेमनरनकी दिगती अथवा जेमद्विपरदेशत्रणपरदेशी प्रादिकजे खंध तेनोगुणपरजायगुणनो अन्यथाभावछे अथवाजेममती श्रुतादिविशेशश्रथवा नावस्तस्यादवादविशेश केवल ज्ञानछेएमद्रव्यगुणनी जातीसास्वतीछे नेपरजांयथी सास्वतीछे एमएमनाकहवामांत्रावे एवाततेकांइभाषण मांबराबरवतीनथी एपणएककल्पनापोतानीछे थ वातेवशास्त्रोनीछे तथापी जुगतीएमलेनहि शामा टेकेसु मतीग्रंथनेविशे गुणपरजायनेजुदो कह्योनथी तेप्रत्यक्षए ग्रंथमांजोयामांत्रावेले उक्तंचसुमतीग्रंथें- परीगमणप Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७६ तत्वसारोद्वार. ज्जान अणेगकरणेगुणतीतुल्लठाःतहविणगुन्तीभणइः पनवप्रदेशणाजला.१ जेमकर्मनावीपणानंपरजायनंलक्षणछे तेमअनेकरीते करतेपणसर्वेपरजायनांलक्षणछे पणद्रव्यतोएकजनेत्र नेज्ञानदर्शनादिकजेनेदकर तेपरजायज पणगुणना कहिये शामाटेकेपरमात्मानीदेशनानेविशेतोद्रव्यपरजा यनीदेशनाछे पणद्रव्यगुणनीदेशनानथी एगाथानोएज अर्थछे त्यारेकोइतर्ककरशेकेगुणजे तेपरजायथीजुदानथी एवंज्यारेतमेकहशोतोद्रव्यगुणपरजाय एत्रणनामशावा स्तेकहोछो तेनोउत्तरजेएतोवविक्षाले तेतोनेदनयनीक ल्पनातेथकीकहेवायडे पंरतुघीने घीनीधाराएकाइनोखी नथीबोलवामांघीनेघीनीधाराबोलायखरुपणएकजतेमज स्वभावीनेकर्मनावीकहिने गुणपरजायनिन्ननिन्नसमजा ववामांत्रावेपरंतमुलस्वनावेतोएकजने अनेएभेदसर्वेउप चरीतने तेमाटेतेनेशक्तिकेमकहियेपरमार्थजोतांजुदाप पादिसतुंनथी शामाटेकेउपचरीतस्त्रीकांइहावनावकरेन हितेमउपचरीतेगणशक्तीपणनधरे तेमाटेजेगणपरजा यथी भिन्नमानेछे तेनेदोषणदेखाडियेछिये केजोद्रव्यपर जायथकीगुणएवोपदार्थजुदोहोततो त्रिजिनयपणकही जोश्येपणसुत्रनेविशेतोबेजनयकहिले द्रव्यार्थअनेपरजा यार्थ जोगुणपदार्थ नोखाहोततोगुणार्थनयजरुरकेहेता Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ५७७ - % 3A-Oman तेउक्तंचसुमतीग्रंथे. दोउणणयानगवयादवठ्ठीय पजवठीयाणीययो॥ जइपुणगुणोवीहूणो गुणठीयणश्रो विजुजंतो ॥१॥ जंचपुणनगवयातेसुतेसुमुतेसुगोयमाइ णं ॥ पजवशणाणीययावागरीयातेणंपजाया. ॥२॥ ____रुपादीकनेगुणकहीये तेसुत्रेकंइकधुनथी शास्त्रमा तोएवाशब्दके वनपजवा गंधपजवा रसपजवा खास पजवा इत्यादीकपरजायशब्द बोलाव्याछे अनेजेएक गुणोकाळो जावतअनंतगुणोकाळो इत्यादीकजेठांमठांम शब्दछेतेतो गणीतशास्त्रनाछे एटलेएपरजायनीसामा न्यवीशेशनीगणतरीत्राशरी पणतेवचनकांइ गुणास्ती कनेप्रवीखयेवांचीनथी उक्तंचसुमतीग्रंथमध्ये.॥२॥ गु णसदमंतरेणावितणुपजवविशेषशंखाण ॥ सीझइणवरं संख्याण सथद्धमोणयगुणोती॥१॥ जंपइजंपंतीअत्थीस मये एगगुणोदशगुणोअनंतगुणोरुवाइपरीणामानणइत महाविशेषो ॥२॥ जहदशसुदशगुणंमीय एगंमीदशतणं शमंतवेव ॥ अहीयंमीविगुणसदेतहेवयेयंपीदठवं ॥३॥ एमगणपरजायथी परमार्थद्रष्टीनिन्न नथीतोतेद्रव्यनी पेरेशक्तीरुप गुणकेमकेहेवाय परजायनादळनेगुणनी शक्तीरुपकोहोछो तेनेवीशेमोहोटुंदोषणावे तेनेदोष पदेखाडीयछीये केजो गुणपरजायनुदळकहीये तोउपा दानकारणपणतेजथाय त्यारेद्रव्यशानेकहीशं नेद्रव्यन m a rriaACODAIKYRIORomanianROO G OSHABANAIDUALSADHAN Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ तत्वसारोबार. कामज्यारेगुणेकर्यु त्यारेद्रव्यनुं कारणशुरमुत्रने गुणनेप परजायएबेपदार्थ ज्यारेकहीशुंत्यारे त्रोजोपदार्थनठोते वारेकेहेशोकेअमेकहीयेगयेकेद्रव्य परजायनेगुणपरजाय नं कारजभिन्नछे तेमाटेद्रव्यगुणरुपकारगजुदुकलपीयेते नोउत्तरकेएवातकांइसंनवतीनथीशामाटेकेकारजमाटेका रणशब्दनोप्रवेश तेणेएकारणनेदकारजनो पणनेद थायअनेकारजभेदथयो तेवारेतो प्रवेशपणथाय तेनेका रणभेदथाय एअन्योन्याश्रीयनामेदोषणउपजे तेमाटे गुणपरजायजेकहीये तेगुणपरणमवानो हेतुभेदकलप नारुपतेथीजकेवळसंभवे पणपरमार्थनहीं अनेजेद्रव्यगु पपरजाय एत्रणनामजेकहीये तेपणभेदउपचारनयेकरी नेसमजवाएवरीिते द्रव्यएकगुणपरजायअनेक परंतु मांहमांहपरस्पर भेदवीचारवो एमज श्राधाराधेयप्रमुख भावेकेहेतांस्वनाव तेहीजमनमाहीवीचारवो. हवेतेहिजस्वरुपविवरीने देखाडियेछिये घटादिकजे द्रव्यतेत्राधाररुपदिसेछे जेमाटेएघटरुपादिकतेथकीज णायने एटलेगुणपरजायरुपरसादिक प्राधियपणेद्रव्य उपररह्याछेएमआधाराधीयनावएवीरीतेद्रव्ययीगुणपर जायनेनेद तथारुपादिकगुणपरजाय एकइंद्रिगोचरक हेतांवीषयछे एटलेजेमरुपचक्षुइंद्रिजजाणे अनेरसजी भइंद्रिजाणेइत्यादि अनेघटादिद्रव्यने तेबेइंद्रिगोचरछे Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. ५७९ एटलेचक्षुइंद्रिथकीदिठामांश्रावे अनेस्पर्शइंद्रिथकीपणज णाय एटलेएनोविशेएबेइंद्रिनोविषय तथान्यायकमत नाअनसारथी विचारीनेजोइयेतो त्रिजिइंद्रिनोपणविष यडे एटलेघांणइंद्रियेकरीने पणद्रव्यप्रत्यक्ष गंधवति एथ्विइतिवचनात् इत्यादिकविचारतांज्ञाननेविशेधांतप 'थायतेमाटेएकअनेकइंद्रिग्राह्यपणेद्रव्यथकीगुणपरजा यनेनेदजाणवो गुणपरजायनेमांहोमांहेनेदतेस्वनावि कपणकहिये कर्मनाविपणकहिये एबेकल्पनाथकीजाण वा तथासंज्ञाकेहेतांनामतेथकीपण भेदद्रव्यनाम गुणना म प्रजायनाम एसंख्यागणनादिकभेदतो द्रव्यजोइये तोछछे अनेगुणअनेकडे प्रजायपणअनेकले एमनेद ज्ञाननुविचारवं एटलेद्रव्यथकीगुणप्रजायनोखाकरवा कोइठेकाणेगणथीप्रजायनोखाकरवा कोइठेकाणेप्रजा द्रव्यमांसमाववा कोइठेकाणेप्रजाय गुणमांसमाबवा को इठेकाणे गुणप्रजायएबद्रव्यमांसमाववा एवीरीतेध्यांन करतेनेशुक्लध्याननो पेहेलोपायोकहीये पणएटलो वीशेशछेके श्राद्रव्यनावीचारनेवीशे अन्यमतनीअपेक्षा श्रोतथाअन्यशास्त्रनी अपेक्षाननांखड़िते त्यांध्यांनमांन होय ध्याननेवीशेतो स्वत्रात्मद्रव्यगुण प्रजायनोजवी चारहोयएटले प्रथमपायोशुक्लध्याननोकह्यो. हवेबीजोपायोएकत्ववितर्ककहियेगये एकत्वकहेतां । Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. जेगुणप्रजायसहीतद्रव्य एनेएकत्वकहीये तेनोजेविचार तेनेव तर्ककहीये हवेपुर्वेजेभेदप्रथक्त प्रथक्त जुदाकरीने विचार्यैहतु तेतोव्यवहारनयनोपक्ष नेतेदसमागुणठा णासुधीहोय नेत्राजेपायोते तो शुद्वनिश्चयनयनुस्वरुप वे नेवारमेगुणठाणेला एपायाथकीघातीकर्मनोक्षय करीनेकेवलज्ञान पामे एसर्वापायानेविशेछे ज्ञानदरश नचारीत्रसहीतात्मा एकछे तेत्रहीयांज्ञानादिकगुणप्र जायन्त्रात्माथ की जुदोवीवरवोहोयनही हीयांतो फक्तए कत्वस्वरुपनोविचारछे हीयांसंक्षेपथकीनेदज्ञानक हीयेठीये हवेजेअनेदपक्षनेत्रनुसरीने जेद्रव्यादिकनोगु णप्रजायनोजोएकांतनेदजनाखीयेतो बीजाद्रव्यनीपेरे स्वद्रव्यनेविशेपण गुणगुणी नाव नोउछेदथइजाय केम केजीवद्रव्यनागुण ज्ञानदरशनचारित्रइत्यादिकछे तथा पुद्गलद्रव्यनामल एवीखरणादिक गुणतेपोतपोतानागु पोतपोतानाद्रव्यने ग्रही नेरेहेवेने जेवारेनेदमानीये तेवारेपोतानाद्रव्यनोनेमरेहेनही जेमजीवद्रव्यनागुणं पुद्गलद्रव्यथी जुदाबे तेमतेपोतानाद्रव्यथकीपणजुदाप डीजायते वारे एवोनीयम नरह्यो के जेज्ञानादीक गुणतेनो गुणीजीवद्रव्य नेमलावीखरणगुणनो गुणीपुद्गलद्र व्यएवोव्यवहारनरहे माटेद्रव्यगुण प्रजायन्त्रभेदपणेज संभवे वळीतेनेदपणा उपरजुक्तिकरीने देखाडियेबिये ५८० Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ - तखसाराहार. || केद्रव्यनेविशेगणप्रजायनोअभेदजसंबंध नेजोद्रव्यने विशेगणप्रजायनोसमवायनमानीये तोसंबंधभिन्नकल्पि ये तेवारेअन्यत्रवस्थादोषणथाय जेमाटेगुणगुणीथीत्र लगोसमवायसंबंधकह्यो तोतेउपरद्रष्टांतकहियेछिये प टनेपटर्नुउजलतापणुंतेकंजुदुनहि पटतेद्रव्यछे अनेउ जलतापणुं तेगुणप्रजायादिक माटेएकत्वजछे अनेक दापिगुणप्रजायनोसमवायद्रव्यमांनहिमानो तोतेगुण प्रजायनेकोबीजोसमवायपणजोश्ये तोतेउजलतापट द्रव्यनेनथीवलगीतोएनोसमवायकोणद्रव्यसाथेने तेतो कांइबीजाद्रव्यसाथेदीसतुनथी माटेगुणप्रजायतेपोता नाद्रव्यमांछे तेकांइजदानथी अनेकदापीअन्यद्रव्यनीसा थेसमवायमेलववाजइयेतो वलीअन्यअन्यनेमेलवाय ए मकरतांकंइएकठेकाणेस्थीरबेसेनही अनेजोसमवायन स्वरुपसंबंधभिन्नपणेमानेतोगुणगुणनस्वरुपसंबंध निन्नमानतांशुबगडेछेजेफोकटनवोसंबंधउनोकरवोनवी कल्पनाकरवीएमांशुहाथमांबावेछे तथाजोअभेदनहीमा नोतोतमनेमोटुंबाधकश्रावशे तेपुर्वेसोनुहतुंतेजकुंमलथयु छेतथाजेपुर्वमृतीकाहती तेजकोठलाप्रमुखाकारबंधा णोछेअथवाजेघटप्रथमरक्तवरणहतोतेजशामथयोएबुंस लोकनेअनुभवशुद्धवेहेवारनघटे जोअनेदस्वनावद्रव्या दीकत्रणेनेनहोयतोबीजुबाधकपणदेखाडीयेछीयेकेखंधक । Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. - - हीये तथाअवयवनेदेशकहीयेएमअवयवनोजोभेदमानी येतो वमणोनारखंधमांथयोजोइये शामाटेकेएकखंधनो नारबीजोअवयवनोनार एमबमणोभारभेदमानतांथयो जोश्ये जेमकेएकलाइतेशेरनोछे तेलाइतेद्रव्य अनेए नोजेवातपीतहरवादीकगुण तथाश्वेतादीकप्रजायएम ज्यारेलाडुथकीगुणप्रजायजदामानीये त्यारेशेरनारतो लाडुनोहतो तथागुणनोपणपाशेरनारजोइये तथाप्रजा यनोपणशेरभारजोइये तेवारशेरनोलाइतेत्रणशेरजोइये तेतोवातसंनवेनहीत्यारेएगुणप्रजायतेद्रव्य एमसमज बुंपणजुदुनसमजवू अथवानवान्यायकएमकेहे केअवयव नाभारथकी अवयवीनोभारअत्यंतप्रोगजे तेनेमतेहीपर देशादीकखंधमांहेकंइएउतकष्टोनारनथयोजोइये पणते मीथ्याछे शामाटजेद्वीपरदेशीखंधएकलापरमाणुनीत्रपे क्षायेअवयवी अनेपरमाणुतेअवयवछे त्यारेपरमाणुक रतांद्वीपरदेशीमांनोभारजोश्ये नेएकपरमाणुपरदेशक रतांद्वीपरदेशीखधबमणो तेव्छोकेमथवानो अथवाएक परमाणुंमांहे उत्कष्टुभारेपणुमानीयेतो रुपादीकविशेषप पप्रणम्याजोइयतो द्वीपरदेशीमांहकेमनमान्याजोइये ए माटेअनेदनयनांबंधमानीयेतो परदेशनोभार तेहजखंध नाभारपणेप्रणमे जेमतंतुरुपपटरुपपणेप्रणमे जेमएकशे रतंतुनोपटवणे तेपटपणएकशेरनोथाय तेवारेगुरुपणानो - Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. दोषनलागे त्यांकोइकेहेशेके तमेएकजद्रव्यएकत्वपणे मानोछो अनेनेदमानतानथी तोकोइमेलातप्रमुखआवा सछे तेनेविशेकाष्टपत्थरलोढुं माटीचुनोइत्यादिकनाप्रजा यमलीनेएकनवनघरथाय तेनेएकद्रव्यकोहोछोएकघर इत्यादीकलोकवेहेवारमाटे एकद्रव्यकांइमनायनही शा माटेकेएकद्रव्यमां द्रव्यगुणप्रजायनोअभेदहोयतो कही येपणत्रहीयांतोद्रव्यघणा माटेएकद्रव्यनमनाय पाषा ण काष्टइत्यादीक द्रव्यनोखानोखा माटेनमनाय जेए कजद्रव्यहोय तेनागूणप्रजायतेअभेदमांगणाय जेघटने घटनोजलधारणगण रक्ततत्वादीकप्रजायतेनेदछेते कांघटथकीजुदानथी तेमजात्मद्रव्यतेजश्रात्मगुणतेज श्रात्मप्रजायएवोव्यवहारअनादिसिद्ध जेजिवद्रव्यत्र जिवद्रव्यइत्यादिकजेव्यवस्थासहितजेव्यवहारथायछेते गुणप्रजायनाअनेदथीनिपजे ज्ञानादिकगुणप्रजायथीत्र भिन्नद्रव्यतेजिवधर्म मलणविखरणादिकगणप्रजायथी अभिनतेअजिवद्रव्य नहितोद्रव्यसामान्यथीविशेशसं ज्ञाथाय तेमाटेसामान्यकांइरहेनहि अनेद्रव्यगुणएवोश ब्दपणरहेनहि अनेजेद्रव्यगुणप्रजाय एत्रणनामछे एत्र नामस्वजातीछे अनेएकत्वपणेप्रणमेछे तेमाटेएत्रणेनेए कजप्रकारेकहिये तेमप्रात्मगुणप्रजायनेएमजाणवू श्र नेजोद्रव्यगुणप्रजायने अनेदतापणुनथी तोकारणका Camarap annamraamanand SUPREMAINSOMNIAPP NEVER Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮૪ तत्वसारोबार. - रजनेपणअनेदतापणनाहोय त्यारेमृतिकादिकारणथी घटादिककारजकमनिपजे कारजमाटेकारजनीशक्तिहो यतोजकारजनिपजे तेविनासर्वथाकारजनिपजेनहि कार णमाहेअउतीवस्तु नीषणतीननिपजे जेमससानसिंघना थायशामाटेकेससानेविशे सिंघपणानीशक्तिरहीनथीत्र थवाबिजेद्रप्टांतेएजघटवेलुकानोकांनबनावेपणवेलुकामां घटपणानीशक्तिनथी एशक्तितोमृतिकामांजछे माटे स तामांजे शक्तिहोय तेजगुणप्रजायमांव्यक्तीपणेप्रगट थाय वास्तेजेकारजमाटे कारणनीसत्तामानिये त्यारेत्र नेदपणुंसहेजजावे अहियांकोइकहेशेजेकारजउपन्या पहेलांजोसत्तायेकारजकारणनेविशे राडे तोप्रथमजका रजकेमनथीदेखातु तेनोउत्तर कारजनथीउपन्युत्यांसुधी कारणमांहेकारजनीशक्तिद्रव्यरुपे तेरोभावनी तेणेक रीनेकारजजणातुनथी पणसामग्रीमलेत्यारेगुणप्रजाय नीव्यक्तिथीत्राविरनावथाय तेणेकरीकारजदिसेछेए टलेतेरोनावतथाआवीरनावएबे दरशनादरशनजणाव वारुपकारजनापरजायविशेकजाणवा तेणेकरीावीरना वनेसत्यअसत्यविकल्पदोषणनहोय शामाटेकेअनुनवने अनुसारेपरजायविकल्प अहियांन्यायकमतवालाएQ कहेछेके अतितकालविशे जेघटादिकता तेनुंजेमज्ञा नहोयतेपणअन्तु तेमघटादिककारजन्ताजमृतिका Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮૬ - तलसारोद्वार. दिदलथकीसामग्रीमलेनिपजशेएअछतानुज्ञानहोयतोत्र बतानी उत्पतीकेमनहोय एटलेघटनुकारणदंडादिकत्रमे कहियेछिये त्यांलाघवपणु तमारेमतेघटानीव्यक्तिनुंदै डादिककारणकहेQत्यांगोरवहोय बिजुअनीव्यक्तीनुका रणचक्षुप्रमुखले पणदंडादिकनथी तेमाटेनेदपक्षजद्रव्य घटानीव्यक्तनुंकारणदंडाभावपणजेघट चक्षुनावेगोरव नथी एमजेबोलतांदोषलागे अबतानीउत्पतीएवुकहेते पणमिथ्यावारताने अनेभुतकालनेविशे पणघटादिक पदार्थपछतानथी परजायार्थथीनथी पणद्रव्यार्थथीनि त्यजने अनेनिशटघटपणमृतिकारुपले तेतोसर्वथाप्रस त्यमार्ग तेनभकुशमवतथाय जेएqबोलेछेकेसर्वथाश्रछ तापदार्थ-सर्वज्ञानमांहेभाषणछे एवंकहतेनेमोटोदोष श्रावे तेदेखामियेबिये केजोज्ञाननेस्वनावेजअन्तोत्रर्थ अतीतघटप्रमुखनोनासे एव॒मानीयेतोसर्वसंसारज्ञानना कारज एटलेबहाजश्राकार अनादिविद्यावासनाए अब्तानास जेमस्वप्नमांहेअन्तापदार्थभासे एमबहा जआकाररहीतशुद्धज्ञान तेबोधनेजहोय एटलेजेपुर्वेक ह्यांएवांवचनजेबोलवाथकी एजोगाचारनामात्रिजोबोध तेनोपक्षयाय तेमाटेअबतार्नुज्ञाननहोय तोकोइकहेशेके तमनेकेमजाणवामांश्राव्यु केअतीतकालेघटहतो तेनोउ तरजेतीतघटहमणांपणजाणीयेडियेशामाटेजेद्रव्यथीन - D - ७४ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૮૬ तत्वसारोबार. ताप्रतीतघटनेविशेवर्तमान गयाकालरुपनजायथी हम पांपणतीतघटजाएयोजायछे अथवानीगमनयनेमते प्रतीतकालनेविशे वर्तमानतानोबारोपकरीयेछिये तेस र्वथाश्रछतीवस्तु-ज्ञाननथाय एटलेधर्मजेतीतगयाका लनेविशेजेअब्तेकालेघटनहितो अभावकालेभासे प्रथ वाधर्मअतीतघटअछतेकालेनासेजे एमतुजनेचीतमाहेशं मासेछे तेसर्वेअतीतअनागतवर्तमानकालेनिर्भपणेनासे बे एद्रष्टांतजोतांतोससासिंघपणजाण्युंजायएमनथीशा माटेकेपछताअर्थनोबोधनहोय निश्चएकारणकारजनो अनेदछेजतेद्रष्टांतेकरीने द्रव्यगुणप्रजायनोपणअनेदछे ज्ञानादिकगुणप्रजायेकरीने आत्मापणअनेदबे एवीरीते एकत्वनावथाय परंतुसमासेवातावीतेथीबेयेनयनास्वा मीदेखाडियेछिये एटलेभेदनयनोस्वामी तेन्यायकत्रने अभेदनयनोस्वामी तेसंखअनेजिनमतवालानेदतथा भेदवेहुनयनास्वामी एटलेएकेनयनापक्षपातीनथास्या दवादपक्षनाअधिकारीछे उक्तंच अन्योअन्यपक्षप्रतिप क्षभावात् व्यथापरमसरिणःप्रवादः नयानशेषानविशे षमीथःनपक्षपातीसमयस्तथानेः १ यएवदोषाकिलनित्य वादे विनासीवादेविशमस्तएव परस्परसीषुकंटकेषु जय त्यधृष्यंजिनसासनंते.२॥ माटेजिनस्यादवादपक्षीछे हवे एवोजेएकत्वभावतेशलध्याननोबिजोपायो बारमेगणठा - Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRE - - तत्वसारोदार. ५८७ होय एटलेएकत्ववीतर्कबिजोपायोकह्यो तथासक्ष्मकि याप्रतिपातीत्रिजोपायो तथाउछीनक्रियातिचोथोपायो एकेवलपाम्यापबीमोक्षजवानाअवसरनाछे एटलेएध्यां नतपकह्यो ५ हवेकायोतसर्गछठोतपकहियेछिये एटलेकायाप्रमुखस रावतेनेकायोतसर्गकहियेएटलेउपाधीनुनसरावqतथाक खायरॉन्सरावq तथादूरध्याननसरावद् तथाकायार्नु उसरावq अनेत्रात्मस्वरुपनेविशेस्मव॒ तेनेकायोतसर्ग तपकहिये एछप्रकारेअभ्यंतरकहेतां श्रात्मानीमांहेली कोरेरह्यांजेकर्मतेनेबालवानेसमर्थ तेनेअभ्यंतरतपकहि येएटलेलोकएनेतपस्वीनाजाणेपण समजुहोयतेतोएनेत पस्वीजाणेअनेकर्मथीगेमाववासमर्थएहिजतपछे माटेत पतोएनेकहिये एटलेनिर्जरानुस्वरुपकह्यु ८ हवेमोक्षतत्वकहियेछिये एटलेमोक्षकहेतांजेकर्मथकी जिवनेमुकाव. शिष्यवाक्य-स्वामीतमजेनिर्जराकही तेकर्मथकीनिर्ज रतेमुकावQजकाहतुं अनेअहीवलीमोक्षतत्वजुदोक होगतमांशुनिन्नपणुछे. गुरुवाक्य-हेभद्रनिर्जरातेदेशथकीकर्म-छांमछे अने सर्वथकीकर्म-मुकावq तेनेमुक्तिकहिये अनेनिर्जरातोनि गोदियाजिवनेपण अनेमुक्तितोगर्नजपचंद्रीमनुष्यचा । - Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮૮ तत्वसारोबार. ॥ रीत्रीयानेचौदमेगुणठाणे. शिष्यवाक्य-स्वामीतमेनिर्जरानाबारनेदकह्या तेमां कयाभेदनेविशे निगोदीयानेनिर्जराबेजेतमोबतावोछो. गुरुवाक्य-निर्जरानाबेनेद एकसकामनिर्जराविजि अकामनिर्जरातेत्रकामनिर्जरानोभेदनिगोदीयाथीमांझी नेमनुष्यसुधीछे एटलेअकामकहेतांजेनेज्ञानदर्शनचारी त्रनीलखाणनथी पणदननेदनादिकदुखसहीनेजेकर्म नछुटवू तेनेकामनिर्जराकहिये जेममनष्यतथात्रिजच पंचंद्रघणांकठोरकर्मकरीनेनफँजाय त्यांनर्कनाछेदनभे दनखमीनेकर्मनिर्जरे तथामनुष्यत्रिजंचसमकितविनाना जिवतपक्रियाकष्टप्रमुखसहीने शुभकर्मबांधीनेदेवतामां जायतेदेवतासंबंधीयासुखनोगवीनेकर्मछुटे तेबन्ने नेत्र काभनिर्जराकहिये तथाजेजिवसमकितादिगुणपाम्योत्र नेज्ञानदर्शनचारीत्रनाबलथकी कर्मनिर्जरतेनेसकामनि जशकहिये तेविचारश्रीभगवतीजिनेविशे बालमरणत थापंम्तिमरणनाअधिकारथकीसमजजो हवेजेसर्वकर्मथ कीरहीतथाय तेनेमुक्तिकहिये एटलेजिवनाअसंख्यातप्र देशनेअकके प्रदेशेअनंतांकमवलग्यांछे तेथकीछुटेतेने मुक्तिकहिये. शिष्यवाक्य-स्वामी जिवतोएकद्रव्यप्रखंमने तोप्रदे शेप्रदेशेमांहीनेदीनेपेसीगयाकेशीरीते एकर्मवलग्यां. Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोहार. गुरुवाक्य-हेनद्रजिवतेत्रखंडछे तेजिवथकीजिवना प्रदेशनोखानपके परंतुएप्रदेशनात्राकारनंफरवूछे तेथी प्रदेशसकेकानीश्रेणपणबंधायतथालोकाकाशनेपुरवोहों यत्यारेजेटलाप्राकाशप्रदेशलोकाकाशनाबे तेटलेप्रदेशे श्रात्मानोअकेकप्रदेशवहेंचीपाय माटेएप्रदेशात्मा नाएवीरीतेनिननिन्नथाय पणद्रव्यथकोजुदोनपडे हवे एजेकर्सवलग्यांने चेतननेतेखीरनीररुपवलगीरह्यांछते थाजेमकंचनप्रमखधातुने अग्निमांघालेथीअग्निनेधात एकमेकथइरहेछ तेमात्मासाथेकर्मवलगीरह्यांछेतेकर्म सर्वछुटेतेनेमुक्तिकहिये तेसिद्धनापंदरनेदछे. शिष्यवाक्य-स्वामीमुक्तिनाअधिकारनेविशेसिद्धनुशं कांमछे. ‘गुरुवाक्य-मुक्तिकहियेअथवासिद्धकहिये एबन्नेएक जनाम अनेमुक्तिकहेवानुकारणकेटलुके अहियांकर्म थकीमुकावंतेनुनाममुक्ति तोजेकर्मथकीमुकाणोएजजिव सिद्धपहियांकाइबिजोअर्थछेजनहि. शिष्यवाक्य--स्वामीसिद्धतोलोकनेअंतहोय. गुरुवाक्य-सिद्धतोकर्मथकीमुकाणोएजसिद्ध पणतेने रहेवानुथानकलोकनेते पणत्यांकांइबधाननेसिद्धसम जवानहि त्यांतोसिद्धजिवपणने अनेसंसारीजिवपणछे माटेहीकर्मथकीमुकाणो तेनेसिद्धकहिये हवेतेनापंदर - Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | तत्वसारोबार. नेदतेदेखाडीयोछये तिर्थकरसिद्ध १ तिर्थकरविनाना सिद्ध २ तिर्थसिद्ध ३ अतीर्थसिद्ध ४ ग्रहस्तीलिंगेसि द ५ अन्यलिंगसिद्ध६ स्वलिंगसिद्ध ७ स्त्रीलिंगेसिद्ध नपुशकलिंगेसिद्ध ९ पुरुषलिंगेसिद्ध १० प्रत्येकबोध सिद्ध ११ स्वयंबोधसिद्ध १२ बुधबोधीसिद्ध १३ एक सिह १४ अनेकसिद्ध १५ हवेतिर्थकरसिद्धतेमहावीर स्वामीप्रमुखजतिर्थकरमोक्षगया तेनेतिर्थकरसिद्धकहि ये १ तिर्थकरविनानासिद्ध एटलेजेगौतमादिगणधरसि ध्यातेनेअजनसिद्धकहिये २ तिर्थसिद्धएटलेजेनगवाननं तिर्थप्रवर्त्यापीजे एटलेजेरिखवदेवस्वामीयेप्रथमतिर्थ प्रवर्ताव्युं त्यारपछीजेमोक्षगया तेनेतिर्थसिद्धकहिये एट लेतिर्थकहतां जेसाधूसाधवीश्रावकश्रावीका एच्यारप्र कारनंतिर्थकहियेएसाधप्रमखनेजंगमतिर्थनेभगवानएम नेजतिर्थकह्यांछे तेतिर्थथाप्यापहलाजेमोक्षेगयातेनेप्रती र्थसिद्धकहिये तेमरुदेव्यामाताप्रमुखएचोथोनेद ४ ग्रह स्तीलिंगेकहेतांसंसारपणामांरह्योथको कर्मखपावीमोक्ष जायतेनेग्रहस्तीलिंगेसिद्धकहिये. शिष्यवाक्य-स्वामी चारत्रिविनातोमुक्तिनीनापाडो गे तोग्रहस्तीपणामांकममोक्षगया. गरुवाक्य-चारीत्रविनामुक्तिहोयनहि पणचारीत्रनाबे प्रकारनेएकनिश्चेबिजोव्यवहारजेव्यवहारचारीत्रछेतेसंसा Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोदार. रनोत्यागकरवोतथापंचमहाव्रतउचरवांइत्यादिकसर्वेएव्य वहारचारीत्रछे तेनेविषकांइमुक्तिछनहि तेतोप्रभवीप पादरे अनेमक्तितोनिश्चेचारीत्रमा तेनिश्चेचारीत्र तेआत्मरमण नेविषेरा तेज्ञानध्यानथीकरीनेहेठलना गुणठांणानेछांमतोजायत्रनेउपरनागुणठांणानेश्रादरतो जायएमअनुक्रमेचउदमेगुणठाणेथइनेमोक्षेपणजायएस आत्मानीरमणताज्ञानध्यानरूपउपयोगतेमांछे एकाइ बहारनाव्यवहारचारीत्रमांमुक्तिनथी माटेग्रहस्तीनेना वचारीत्रावेतोमोक्षजाय. शिष्यवाक्यः--कोइग्रहस्तीमोक्षगयाकेएकहेणीजछे. गरुवाक्यः-मोक्षगयाछेकेणीखोटीहोयनही प्रत्यक्ष मरुदेव्याग्रहस्तावासेजमोक्षेगयांछे एणेक्यांसाधुपणुं लीधंछे एटलेग्रहस्तीलोंगसिद्ध ५ अन्यलींगेसिदएटले जैनसासननालींगधारणविना अन्यदर्शनीनानेखवाला मोक्षजाय तेनेअन्यलींगेसिडकहीये. शिष्यवाक्यः--स्वामीजैनसासनविना बीजानेतोमुक्ति छेनही अन्यदर्शननेविषे परीव्राजकनीपांचमादेवलोक सधीनीगतीने अनेश्राजीवीकामतीनेबारमादेवलोकस धीनीगतीछे बीजासर्वनीतेथीनीचिगतीछे अनेबारमादे वलोकउपरतो एकजैनदर्शनवालानीजगतीछे अनेतमे | तोहीअन्यदर्शननीमुक्तिकोहोछो तेनुंकेम. - - Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९२ तत्वसारोबार. गुरुवाक्यः--हेनतेंजेप्रश्नकयुतेठीक परातारीनजर बराबरपोहोचीनही शामाटेकेतेनातेजधर्ममारच्यापच्या रहे तेनीएटलासुधीगतीछे अनेजेनेअंतरमांजैननावत्रा वे तेनीकांइएगतीनथी. शिष्यवाक्यः--स्वामीजोजैननावावेतोएकायनोक टोकेमकरेअनेकायनीहंशातोगइजनथीतोसाधपएंक्यां थकीत्राव्यु. गुरुवाक्यः-उकायनोकुटोवेहेवारथकीनमट्यो तेदेखी नेतुंस्वरुपहंशानेपापमानेछे तेकांज्ञानीपुरुषखातरमांग पतानथी शामाटेकेमुक्तिनुकारणतेतोज्ञानतथास्वभावने विषेछे अनेस्वरुपदयाजेछ तेतोत्रज्ञाननेविषेतथापरना वनेविषछे. शिष्यवाक्यः-जोपरनावनेविषे तथात्रज्ञाननेविषेछे तोमहाव्रतउचरवानुशुंकारणले. गुरुवाक्यः-जेजीवसमकीतपामीने सातमेगुणठाणेग यात्रनेव्यवहारचारीत्रले तेनेएगुणकरताछे शाद्रष्टांतेके जेमकोइपुरुषजमवाबेठो अनेसर्वजातनीरसोइनाणामां श्रावीछे अनेतेरसोइजमतानीवखतमा जोप्रथाणुश्रावे तोवेकवलवधतानावे पणरसोइनाणामांपीरशीनथीत्र नेत्रथाएकलुंनाणामांबावे तेथीकांइभुखभागेनहीमा टेसमजुनेपणजीवदयाप्रमुखरुडीरीतेपालवी एजीवदया - - - Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. - - ज्ञाननेबहुगुणकर्ता जेमकोइवरपरणवानेजाय अने पोशाकसारोनहोयतो लोकमांकशोनापामेतथापोताना मनथी पणबहूखोटुंलागे अनेपोशाकप्रमुखसामग्रीसा राहोयतो पोतानामनथीपणसारुलागे अनेलोकमांपण सारुदीसे जदपीकन्यातोवरनेवरवानी कंइपोशाकनेव रवानीनथी तेमअहीयांपणजीवदयाछे तेपोशाकतथा थाणारूपसमजवू माटेसमजुनेएगणकर्ताले अनेअन्यली गवालाजेमोक्षजाय तेकंजैनदर्शननाशास्त्रनाभोमीया | नथी तेतोएकज्ञाननापरीबलथकी आत्मस्वरुपनीरमण ताकरीनेकर्मखपावेछे जोएमनाहायतोअनारजलोकत्र नारजनामुलकमारह्याथकाअनंतामोक्षेगया तेशाथकी मोक्षगया त्यांकांजैननोउपदेशछेनही परंतुएकज्ञानना परीबलथकी आत्मस्वरुपनीअोलखाणथइ तेथीस्वरुप रमणीथइनेकर्मखपावेनेमोक्षजाय तेत्रागेअनंतागयाहम णांजायछे अनेागेअनंताजशे एवातमांशंकाराखवीन ही स्वलींगतथाअन्यलींगनेविषेमुक्ति तथाधर्मपेटुनथीध मतथामक्तितोएकात्मस्वरुपमांछे एटलेअन्यलींगेसि हकह्या ६ हवेस्वलींगसिद्ध एटलेजैनदर्सननोलींगए टलेसाधुवेशेसिद्धवरचाते७ पुरुषलींगेसिद्धतेपुरुषलींगे सिध्यातेगौतमादीकप्रमुख८ स्त्रीलींगेसिद्धतचंदनबाला प्रमुख९नपुशकलींगेसिद्ध तेजातेनपुशकधर्मनपामेकृत्री - - - Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोबार. - - 3 - मनपुशकसिद्ध१० बुधबोधीसिद्धकेहेतांजेगुरुनाउपदेश थकीप्रतीबोधपामीनेजेसिध्याते११ प्रत्येकबोधकेहेतांजे प्रतीकारणएटले कांइकारणदेखीनेप्रतीबोधपाम्या जेम करकंडरीखवनेजराकुलजाणानेप्रतीबोधपाम्यातथानमि राजाएकचमीथकी प्रतीबोधपाम्या इत्यादिकप्रतीबोधपा म्यातेनेप्रत्येकबोधकहीये१२ हवेस्वयंबोधकेहेतांजेस्वयं मेवपोतानीमेळे प्रतिबोधपामी चारीत्रलेइमोक्षगयातेने स्वयंबोधसिद्धकहीये. शिष्यवाक्यः स्वामीप्रत्येकबोधमांनेस्वयंबोधमांशोफेर गुरुवाक्यः-प्रत्येकबोधपरकारणवडे प्रतीबोधपांमछे अनेस्वयंबोधतेनेपरपोतानोनियमनथी शामाटेकेमरघा पुत्रसाधुनेदेखीनेजातीस्मर्णपामीप्रतिबोधपांम्या तेमज भ्रगुप्रोहिततथाभ्रगुप्रोहितनापुत्र श्रादेदेश्ने जिव ते मध्येबेनेजातीस्मर्णचारएकएकनाकारणथी तथाअनाथी मुनीरोगाकुल थकी तथाकपीलकेवलीनिक्षानाकारण थीइत्यादिकस्वयंबोधनोकेइएकप्रकारनोनियमनथीतया पिप्रत्येकबोधअनेस्वयंबोध एनोअनभावएकसरखोछेप रंतुशास्त्रकारनेदजुदोलख्यो तेश्रीपंन्नवणासुत्रनीटिका नेविषेएवंका केस्वयंबोधपोतानेज्ञानजाणपणुहोयतो पोतेपोतानीमेलेविचरे कोइनानेगोनविचरे कदापिपोता नेजाणपणुप्रोछुहोयतो कोइसाधुनासंघामामां नेगोरही - - - Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वसारोद्वार. ५९५ नेक्रियाश्राचारशिखेपछीपोतानीखुशीहोयतो नेगोविचरे याजुदो विचरे अहियांकदापीकोइकहेशके स्वयंबोधने चेलाचेलीपरवारनहोय तेकहेवावालाप्रज्ञानिछे शामा टेकेकपीलकेवलीयेसातसेंभिलोनेदिक्षाापीछेइत्यादिक शास्त्रमांजुवेतो चेलाचेलीपरवारकह्याछे तथाभगवती जिनेविषएवुकांछेकस्वयंबोधना साधुतथासाधवीतथा श्रावकतथाधावीका इत्यादिकपाठपणासुत्रमांछेपणजे नेअज्ञानरुपीयांपडलाडांफरयांहोय तेधणीनादेखे ते मांकांइशास्त्रनोदोषनाजाणवो एटलेस्वयंबोधनोश्रधि कारकह्यो १३ तथाएकसिद्धतेमहावीरस्वामीप्रमुख१४ अनेकसिद्धतेरीखवदेवप्रमुख १५ एमपंदरेनेदेकर्मथकी मकाइनेसिद्धिपदनेवरचा तेनेमक्तितत्वकहिये एटलेएन वतत्वसंक्षेपथीदेखाड्यां तेनवतत्वनुसारतत्वएकछेतेसर्वे मांहेत्रात्मतत्वएजसारडे अनेबीजोजेअजिवतत्वतेगेम वाजोगछे एमएवेतत्वनस्वरूपलखीने हे ज्ञ उपादे एत्रणस्वरुपमाहे हे तेछांडवाजोगवस्तुनेगंडवी ज्ञे कहेतां जाणवाजोगवस्तुनेजाणवी उपादे कहेतांश्रादरवाजोग वस्तुनेश्रादरवी एटलेजिवाजिवपदार्थजाणवानेतेजाणी नेअजिवपदार्थनोत्यागकरवो अनेजिवपदार्थप्रात्मस्वरुप तेनुश्रादरवू एवीरीतेतत्वनोसारजाणी रागद्वेषविखयक | खायत्यागीनेपोतानास्वरुपनविषे थिरभावेरमणताक - Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९६ तत्वसारोद्वार. रवी एटले सर्वधर्मं तथासर्वशास्त्रनुसार एहिजबे. ॥ दुहा ॥ ग्रंथपुरणनयो पुरणजयोत्राणंद ॥ गुण निधीगुणागलो प्रगट्योचिदानंद ॥ १ ॥ चितघनत्रा नंदनो भाख्यो हविचार ॥ तत्ववेतेमांनाखीया जडचेत नएधार ॥ २ ॥ नातत्व नवकह्या विवरीनेविचार ॥ त त्व एक मांकह्यो उध्वीतभावउदार ॥३॥ रत्नागरसमए हछे ॥ भरीयोगहेरगंजीर बहूवस्तुबहूपदतणो वहोरीन रीयोनिर॥४॥कल्पवृक्षसमजाणजो वंबीत पुरणहार ॥ सर्व ग्रंथसीरताजए उत्तम हविचार॥५॥ एहग्रंथजेवांचशे न एशेजेमहाभाग॥ श्रात्मानिर्मलते हो तुम साथेजाग ॥६॥ श्रनुभवएहमांदाखीयो त्रात्मकेरोसार व्यक्ता पुरुष तेपिये अथवा श्रोतासार॥ ७॥ श्रनुभवजगचिंतामणी त्र नुभववंबीत पुर॥श्रनुभवथी कर्मसवीटले थायेते शुरविर ॥ ८ ॥ गुणनंतनुभवतणा कहतांनावेपार॥ एहथीशि वसंपतिमले एहिजसुखदातार ॥९॥ समकित पण अनुभव विषे चारीत्रपण ॥नुभवथी केवललहे एमांनहिसं देह ॥ १०॥एमनंता गुणकह्या अनुभवज्ञाननासार ॥ ज्ञा तालेजोपरखीने एहग्रंथनेधार ॥११॥ श्रनुभवविणजेजेक था ग्रंथप्रकरण होय ॥ । तेतेस हूनिष्फलकह्या हंसविणकाया जो ॥१२॥ तजेकबुद्धिहथी भजे सबुद्धिसार ॥ पढतांए ग्रंथ भेदज्ञानमनोहार ॥ १३ ॥ ते मत्रभेदज्ञानबे नयनि Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्ससारोद्वार. श्चयव्यवहारात्मज्ञानीसुखलहे पामेनवनोपार.१४॥ कल्पव्यवहारउदीयो उछेद्योपरनाव॥ वादवीवादएमां नहीं नहीपरगुणगाव॥१५॥ गायोगुणएकातमा भाव अध्यात्मसाथ॥ तेमद्रव्याणुजोगसही जेहछेनीजाथ॥ १६॥सत्तास्वरुपवर्णनकह्यो शक्तिव्यक्तितेमजाण।इत्या दिबहूभेदथी गुणपर्जायचित्तत्राण॥१७॥सुलनबोधीजी वहशे तेसदहशेएह ॥ अल्पकालेतेशीवलहे तेमांनहीसं देह ॥१८॥ बाहेरज्ञानीबापडा तेत्रज्ञानीकेहेवाय।। तेने रुचीनवीहोवे देखतांमतीमझाय ॥१९॥ अन्ननीरुचीनवी होवे जीयुज्वरकेजोर॥त्युकर्मकेउदे ग्रंथनरुचेनोर ॥२० ॥ जावेजबज्वरतेहने अन्नपररुचीथाय ॥ त्यंमीथ्यात उदेमटे ग्रंथएचित्तसुहाय ॥२१॥ समकीतस्वरुपनेपा मवा पामवानीजस्वभाव ॥ तोएग्रंथनेत्रादरो जमदरम तीदुरजाय ॥२२॥ पक्षीजेएग्रंथना ताकोस्थीरविश्राम॥ वेगेतेनरपामो शिवरमणीनोठाम ॥२३॥ उपरांठाएj | थथी रह्याजेनरतेह ॥ तेसंसारमांनटको बोहोलसंसा रीएह ॥२४॥ कामकुंभकल्पवेल तेमपारसपाशाणावं गतपुरणअनेकछे एकनवजाण ॥२५॥ अंतेपरनक्दु खदीये धनथीसुगतीनहोय॥ दूखदाइसंसारमा धनक मुछेसोय ॥२६॥ इहाग्रंथथीसंपजे श्रानवपरभवसुख ॥ अधिपतितीनलोकको सेहेजेथायेमुख ॥२७॥ ग्रंथएहग Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९८ तत्वसारोद्वार. णज्ञानले करेघटउद्योत ॥ स्वपरवस्तुप्रकाशनो जेनी नंतीजोत ॥२८॥ तेकारणनव्यप्राणिया करजोज्ञान भ्यास ॥ एग्रंथाधारजो तेथीसुखनीराश ॥२९॥श्रोता व्यक्तासुखलहे प्रगटेत्रात्मरुप ॥ सेहेजेशिवरमणीवरे तेमुंदेभवकुप॥३०॥ एग्रंथविचलरहो जेमरह्याशिव। सुरगीरीपरतेमरहों ननपेरेसदीव ॥३१॥ एग्रंथविस्त "रोसही भुलोकमाएह ॥ मुखमुखएहीजग्रंथने विख्यात होजोतेह ॥३२॥ सवंतत्रोगणीप्रोगणीसमे श्रावणदूजो मास ॥ क्रश्नपक्षसप्तमीसही पुरणथश्वाश॥३३॥ भ्रगु वारेभाखीयो सासंघउमेद रीझ्यांदलतेसर्वनां टल्या सर्वनोखेद ॥३४॥ मुनीहुकममोटेमने रच्योग्रंथविशाल तापमटायोतनको प्रगटयोअनुनवलाल ॥३५॥ अमृत रसपीयोभलो ज्ञानसुधारसत्राज॥ दुखदोहगदुरेगया सरयोगात्मकाज॥३६॥ धन्यदाहाडोतेाजनो सफल घडीतेत्राज ॥ वंीतकाजपुरुथयुं पाम्योअनुनवराज॥ ॥३७॥ बहूशास्त्रनीशाखथी बहूग्रंथनाभाव ॥ मुनीहुक मएभाखीयो पाम्योत्रात्मलाव ॥३८॥ bodhdA ashioeios t ch Boshoo * ॥इतिश्रीतत्वसारोद्वारग्रंथसंपूर्ण PARTY SEXgood Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - अनुभवप्रकाश ग्रंथ. श्रीगुरुभ्योनमः अंतरअनुनवकेप्रकाशताजेअनुनवतेनोवोधथाय एवो श्राग्रंथछेएटले आग्रंथनेविशेअनुनवनोविचारकहूर्छ शामाटेजे मुक्तिमार्गसाधननाअनेकमार्गछे पणअनुन वविनाकोइजीवनीमुक्तीथायनही मुख्यराजमार्गतोए जछे बीजाजेमार्गछेतेसर्वेछिंडियोछे तेपणबिडियोअनु भवनीहदसुधीतोपोचतीजनथी तोबागलशांनीजचाले अनेअनुनवतेकेवोंछे साक्षातरत्नचिंतामणीजेवो जेम रत्नचिंतामणीमनोवंबितपुरे तेपणएकनवनुनेवणासीक सुखनोदातारछे अनेअनुनवतेतो अविनासीसुखनो दातार शामाटेजेानवनेविषेतो श्रात्मअनुभवकरवा थी संतोषरुपीजसुखउत्पन्नथाय तेमुखथकीतोकेहेवाय नहि जेनेकेवलीतथाअननवीजाणे केमकेएसखनेपडखे कोइबीजासुखनीउपमादेवाजोगनहि तोप्रत्यक्षजोतां अनुभव ततोचिंतामणीरत्न अनेपरनवेसर्वकर्मथकीम कावीने शुद्धस्वरुपनिरंजननीराकारथइ पोतानाशुद्धस्व नावनेथीरतापणुपामीने सिद्धक्षेत्रमांबिराजमानथको अनंतोकालरहे एटलेएनेजनमजरामरणनांदुखटलेमाटे अनभवएजचिंतामणीरत्नएजसत्यछेपेलुंचिंतामणीरत्न - - Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. बेतेतोपुदगलोकछे तेतोजीवनेघणो कालरखडावनारले अनेत्रातोमोक्षदातार अहीयांकोइकेशेजेचंतामणिरत्न नववधारनार तोएनीउपमाकेमदोधी..... तेनोउत्तरजे संसारनीमांहेलीकोरएथीबीजीवस्तुउत्तम जोवामांत्रावतीनथी माटेएनीउपमादीधी माटेउपमाते कंइबराबरगणवीनही हवेजेअनुभव तेमहाअमृतरस जेएटलेअमृतकेहेतांशु केजेनेखाधेफरीथी मरवूनपडेते नेअमृतकहीये अहीयांअजाणलोक घणीजगायेबत लावेछेपणतसरवेअसतछे केमकेइंद्रादीक सर्वेनेज़नमम रणरह्यांचे माटेत्यांकडअमृतरस नहि अमृतरसतो एकअनुभवज्ञानमांजने जेनेपीधेथकी जनमवुमरवुपमेन. हि इत्यादिकघणीउपमाजेसारमांसारहोय तेअनुभवज्ञा नमांजलागुपडेले पणबीजानेसारी उपमालागुपम्तीनथी शामाटेजेमक्तिसाधननेविष तप जप क्रिया कष्टपूजा शेवादानादिक एसर्वेमिथ्याभाव एथकीपणमुक्तित्रण कालमांथायनहि मुक्तिनोमार्गतो एअनुनवज्ञानजले ए टलेअनुनवछेते शुद्धस्वरुपनांपगथीयांचे अनेशुद्धस्वरुप तेमुक्तीनोदरवाजो तेकारणमाटेधर्मअर्थीजीवोनेआत्म अनुनवरुपपगथीये पगथीयेचडवुतोकोश्वखतेशुदस्वरु परुपदरवाजामांपेसाशे तोमुक्तिनां सुखपणपामशो अने एअनुभवविना बीजेप्राडेअवलेपगथीयेचमशो तोधर्मको - Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. ६०१ - । इदिनपामवानानथी मुक्तिनांसुखतमनेमलशेनहि चारग तीसंसारमारखडशो माटेत्रात्मअनुभव करोतमारुक ल्याणथायएहमारो हेतुउपदेश इतिपीठिका - हवेअनुनवपदार्थडे एटलेअनुनवकेतां जेवीचार ण तेनेअनुभवकहिये तेनाबेभेद एकशुद्धः १ बी जोत्रशुद्ध २ हवेजे अशुद्धअनुभव तेनाबेनेदले एकशुन १ बीजोअशुभ २ तेमध्येअशुभनाबेभेदछे एकक्रत्रिमर एकसेजथी हवेजेत्रिमअशुभअनुनवबे तेसंसारनीमां मांहेलीकोरे अशुभकतवनोजेटलोविचार तथाकेटलाक मांधर्मतथापून्यकहेछे जीवादिकएसांप्रमुखसर्वनावरह्या डे तथारागद्वेशमोहविषय कखायादिक उत्पन्नकरवांतेने लोकीकनेविषेधर्मतथापुंन्यकेटलाएककाममांमानेछे ए सर्वेक्रत्रिमअशुभअननवजाणवो हवेजेसेहेजअशुनअनु भवतेनोविचारकहुंछं एटलेजीवमात्रअनादिकालना ज्ञानी अने मिथ्या १ अत्त २ कखाय ३ जोग ४ प्र मुखनेविषेकारणविनारमणताकरीरह्योछे तवसंगक्रि यारुप तेअनंताकर्मनवांशनबांधे एजवीचारणाते नेस्वभाविकशुनअनुनवकहीये एबीजोभेद २ हवेजेशु भऋत्रिमअनुनव तेनोवीचारकहुंछु एटलेशुनकेहेतांजेरु मापुदगलनुमेलवयूँ अशुभकेहेतांजे माठापुदगलनुमेल व_माठापुदगलतेपापरुपरुडापुदगलतेपुन्यरुप हवेत्रहीं - Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. यांशुभजेक्रत्रिम तेपुन्यरुपछेतेत्रहींयां शुविचारकरेतेकहु छु हशा मृखा अदत मैथुन ने परिग्रह इत्यादिकतजवा नोजेविचार तेनेविषेएकाग्रचीत्ततलालीनपणुंतेनेअनुभव कहियेतेऋत्रिमअननवथयो पणकंश्स्वनावथकीक्षयउप समनावावेनही तोएथीकंइत्रात्मानुं कल्याणथयुनहि विशेशपुन्यबंधपणथायनहि एसामान्यप्रकारेशुभकत्रिम अनुभवकहियेछीये पणएथीकंइआगल कारजसिदिनथी हवेजेागलकतम स्वनाविकजेशुन अनुन्नवतेना नेकभेदछे कोश्कतोवेहेवारसमकीतनोवीचारकरे कोइदे शवीर्ती कोकसर्ववीपणानोविचारकरे पणतेशुद्धनथी शामाटेजेतेतेथानकनी प्रक्रतीयोनोनाशथयोनथी माटेते अशुद्धज. शिष्यवाक्यः-स्वामी एनेस्वनाविकतोकहोछो अने अशकेमकहोछो तेनोउत्तरजेस्वभाविककहियेछियेतेन कारणसांनल-जेएनेस्वनावेजसंसारउपरथीरागादिकमं दपडयो अनेनवनयथीकरिनेउद्वेगपएंछे तेथीस्वभा वेजशुभरमणतारहेछेतेमध्येकोइकजिवजथाप्रवर्तिकरणे गयो अनेकोइकनगयो एमाटेएनेस्वनाविकशुनकहिये पणशुद्धतोएनाथीवणुंदुरछे अनेएशुनअनुनवथीपुन्यकि चितसारउपार्जेमाटेएनेस्वभाविकशुनअनुनवकहिये ह वेजेशुद्धअनुनवनुस्वरुपकहुळुके एश्रोताजनो एकाग्रचि Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. ६०३ तथइनेधारजो एथीतमारात्मानुकल्याणथशे हवेशुद्ध अनुनवतेविचित्रप्रकारनोने परंतुसमुदायतेनावेनेद २ एकक्रतमअशुद्धअनुनव १ बीजोक्रत्रिमशुद्धअनुभव हवे जेत्रिमशुद्धअनवने तेत्रात्मानेदेवतत्वकरीविचारे अ थवाद्रव्यगणप्रजायनोविचारकरे अथवाज्ञानदर्शनचारी त्रनोविचारकरे तेनेक्रत्रिमशुद्धअनुनवकहिये. शिष्यवाक्यः-स्वामिएतोप्रथम अशुदवालाने घेरवि चारहतोज तोअहिंयांविशेषगुंथयु नेशुद्धशाथकिकहोगे ॥ तेनोउत्तर ॥ हवेगुरुजीमाहाराज शिष्यनेसमजावे देवाणुंप्रियत्यांतो सम्यकगुणप्रगटथयो माटेएनेशुद्धक हियेबियेएटलेजेनेसम्यकगुणप्रगट्यो तेनेज्ञानीकहिये जेनेसम्यक गुणनप्रगटयोतेनेअज्ञानीकहिये अज्ञानतेत्र शुद्धनेज्ञानतेशुद्ध तेमाटेतेनेशुद्धअनुभवकहियेछिये. शिष्यवाक्यः--स्वामिसम्यकनावतेशं.॥तेनोउत्तर॥जे सम्यककहतांजनप्रकारेत्रात्मस्वरुपनजाणवतेनेसम्य कनावकाहिये हवेतेसम्यकनावनंजेप्रगटवू तेनाबेभेदछे एकव्यवहारथकी , बीजानिश्चयकी त्यांव्यवहारथकी जेदेवअरिहंत १ गुरुसुसाधुनिग्रंथशुद्धपरुपक शुद्ध नावमारमणतावाला २ धर्मजेकेवलीनाखीत खट द्रव्य पंचास्तिकाय तेमध्येथीएकात्मद्रव्यजिकास्ति | काय तेश्रादरवाजोगछे बाकीधर्मास्ति १ अधर्मास्ति Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. २ आकास्ति ३ एत्रणद्रव्यजाणवाजोगळे पद्लास्ति कछांडवाजोगएत्रणेतत्व ३ साचाकरिनेजाणे तेनेसदहे तेनेव्यवहारसमकितकहिये एव्यवहारसमकित एकेका जीवनेअनंतीवारआवे पणएथकीकांइजीवनकल्याणथा यनहि नेजन्ममरणनाफेराटलेनहि माटेएव्यवहारसम कितपणजाणवाजोग. हवेनिश्चेसम्यकनावकहछु जेनिश्चेकहेतांत्रावीवस्तु पाछीनफरे तेनेनिश्चकहिये अहियांकोइकहेशेजेनिश्चेस मकिततोत्राव्युपाछुजायछे ॥ तेनोउत्तर ॥जएनीसत्ताये कंशमिथ्यातफरीवल्युनथी जेमकोइबीजनेघणुमतिकानुं दलचमीजाय त्यारेबिजजणायनहि पणजेवारेतेमृति कानुंदलधोवाइजाय तेवारेएजबोजउगीनेमोटुझामथाय तेमअहियांजेगंठीनेदकरेलोडे तेगांठयफरीथी रागद्वेष नींबंधातीनथीअनेजेप्रदेशेजेमिथ्यातफरीवल्युतेमिथ्यात ज्यारेत्यारेपणनाशपांमे शामाटेजेअर्धपुद्गलपरावर्तनउ परतोरहेवानूनहि अनेपूर्वेजेबीजवावेलुछे समकितरु पतेसमकितरुपबिजनेकरणपणकरवानथी अनेगंठीभेद पणकरवानथी तुरतएतक्षथइनेमोक्षरुपीयाफलनीप्राप्ती थाय माटेएसत्तायेसमकितीछे माटेविकमीततेथीकंइसम | कितगयुनहि एमसमजवुकेनिश्चैवस्तुपाम्या तेजाय नहि हवेजेनिश्चेजेसम्यकनावतेनुंपामवंतेनाबेनेदछेएक - Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. - - तोसम्यकज्ञानबिजुसम्यकदर्शन २ तेबंनेवानांक्षयउप समभावमारह्यांछेअनेक्षयउपसमभावतेतोस्वनावीकडे तेखेउपसमचारकर्मनोथाय ज्ञानावरणी १ दर्शनावर णी२ मोहनी३ अंतराय४ एच्यारक्षयउपसमीककर्मछे बाकीच्यारकर्मरह्यांतेतोउदिकनावे अनेतेभवपर्यंत पणगाठाणानीरीतमांनथी अनेत्राजेच्यारकर्म तेउ दिकनावतोज पणगुणस्थानकनी हदप्रमाणेक्षयउप समथतोजाय तेमध्येचोथेगुणठाणेदर्शनासरीउपसम तथाक्षयउपसमतथाक्षायकत्रणेभावलाधे तथानाठमेनव मेदशमेगुणठाणेचारीत्रत्रासरीउपसमनाव तथाक्षायक भावबेलाधेबेतथाअगियारमेगुणठागेचारीत्राशरीएक लोउपसमनावजलाधेछे उपरांतक्षायकभावलाधेछेतथा ज्ञानतथापांचलब्धीनेविषे चोथागणठाणाथीमांमीनेबा रमागणठाणासुधी क्षयउपसमलाधेछे उपरांतत्राएक नावने माटेअहियांप्रथमगुण-कर्ताविशेशेकरीने क्षयउ पसमजले तेमाटेप्रथमजजेज्ञाननोस्वनाविकक्षयउपसम भावथायतोपोतानाअात्मस्वरुपनेजाणे अनेपरभावनो त्यागकरे एभावपुर्वेनोतोतेनावअहियांप्रगटकरे तेदर्श ननपणअपुर्वकारणकहिये एजजेवारेपोतानास्वरुपनंज थार्थजाणपणुअंशेथायतेवारे समकितदर्शनपणप्राप्तिथा यएटलेहियां मिथ्यातमोहीनीतथाचारीत्रमोहीनीनो Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०६ अनुनवप्रकाश. infotainment क्षयउपसमथाय. हवेतेजेज्ञानावरणीकर्मनाक्षयउपसमका तेनावि चित्रप्रकारचे परंतुबेभेदअवश्यसमजवाजोइये एकक्षय उपसमत्रज्ञाननेनजेबीजोक्षयोपसमज्ञाननेनजेछे जे क्षयउपसमअज्ञाननेभजेछे तेनाअनेकनेदछे तेना समुदायेत्रणभेदकरियेछिये मतीअज्ञान १ श्रुतत्रज्ञानर विभगत्रज्ञान ३ तेमध्येनीगोदथीतेपांचथावरसुधी तेने विषेबेत्रज्ञानछे मतीअज्ञाननेश्रुतत्रज्ञान तेनाअनंता प्रजाय अवक्तव्यनावेछतीप्रजायेछे अनेतेद्रव्यनुसाय थपणुतथाक्वचित्प्रजायहजुसारथपणुव्यक्तवनावेबादर थावरमांजणायछे पणसुक्ष्मनेविषेतोकेवलअव्यक्तव्यना वजभासनथायछे अनेजेबनेअज्ञानकह्यांतेतोबादरमा त थासुक्ष्ममांप्रवक्तव्यभावेजभासनथायछे तथा बेरंद्री तेरे द्री चोरंद्री एत्रणनेज वीग्लेंद्रीकहियछिये तेनेविषेवक्त व्यपणुछे शामाटेके सुखदुःखनेवेदेछे तेनेविषेपणमती ज्ञाननेसुतअज्ञाननो क्षयउपसमछे इहांकोइकेहेशेजेम तीअज्ञाननेसुतत्रज्ञानपणसिद्धांतमांकह्यांछे तेनोउत्त रकेएवातसिद्धांतमांकहिछेतेसत्यछे शामाटेकेएकउपज तीवखत अप्रजाप्तअवस्थामांलाधे शोमाटेकेजेकोइक जीव सास्वादनगणठाणेरह्योथकोमरणपामे अनेवी ग्लेंद्रीमांउपजे तेजीवनेउपजतीवखतलाधे पणकांइ Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. ६०७ सर्वजीवाशरीनेकांनथी माटेएगतीश्राशरीनेतो मती अज्ञाननेसूतअज्ञानएबेनो क्षयउपसमलाधेछे तथा सेनियापंचद्रीनेमतीत्रज्ञाननेसूतत्रज्ञान एबेनोजक्षय उपसमलाधेछे तथासेनियापंचंद्रोनेत्रणक्षयउपसमलाधे मतीअज्ञानश्रूतत्रज्ञानने विभंगप्रज्ञान तेमध्येविनंग अज्ञानछे तेनारकीनेतथादेवनेनवत्रत्येछे अनेत्रीजंचत थामनुषपंचंद्रीएबेनेगुणप्रत्येछे तेपणत्रणेत्रज्ञानना नंतानेद इहांकोइकेहेशेके अवधीनाअसंख्याता तथा मतीश्रूतनासंख्यातानेदः तेनोउत्तरकेसंख्यातातथा संख्याताभेदकह्यातेतोउपजवात्राशरी पणएज्ञाननावि षनाअनंताभेदछेएअज्ञाननाक्षयउपसमनोसंक्षेपेविचारक ह्यो हवज्ञाननाक्षयउपसमनोविचारकहछं पणतेज्ञाननोवि चारतोविस्तारेने तेकेहेतांतोग्रंथगोरवथइजायनअहीयां तोत्रनुनबनोविचार केहेवोछेमाटेअनुभवजेटलोसंक्षेपेक हिश हवेजेअननवकरवातेतोसस्वरुपनो करवो फायदो तोतेमांजछेपरस्वरुपनाअनुभवमांकंइ फायदोनही हवे त्यांस्वस्वरुपर्नु जांणवं तेपरस्वरुपनुजाण्याविनास्वस्व रुपनोलखायनही अहीयांकोइकेहेशेजे परस्वरुपनुजा णवानुशंकामछे एकत्रात्मानोअनुभव करीयेतेनेकहीयेके नाइतारुबोलवूकाची समजनुथायछे शामाटेजेश्रात्माछे तेतोत्ररुपीछे अनरुपीनेविषेदबाणोडे हवेतुंरुपानेशी Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुभवप्रकाश. रीतेजाणीश नेतेनो अनुभवशीरीतेकरीश माटेद्रव्यनांल क्षणओलखवांजोइये लक्षणवडेकरीनेस।जुदाप पछी तेमांहीथीआपणोद्रव्यछे तेत्रापणेग्रहीलइयेनेबाकीनाद्र व्यछेतेनेपड्यामकीये अनेत्रापणेापणा आत्मानोपने अनुभवकरीये तेमाटेप्रथमसर्वद्रव्यने जाणवाजोइयेने तेनालक्षणगणप्रजाय सर्वेजाणवाजोइये त्यारेसतत्र नुभवथाय तेमाटेप्रथमद्रव्यनांनामकहुछ धर्मास्तीकाय १ अधर्मास्तीकाय २ श्राकास्तीकाय ३ पुद्गलास्तीका य ४ जिवास्तीकाय ५ नेच्छोकालद्रव्य ६ हवेते लक्ष उत्पातवयनJळे तेउपजनेवणसवं तेप्रजायनयनी अपेक्षाये अनेध्रुवतापणुतेद्रव्यार्थकनयनीअपेक्षायेजेए जेकंइउत्पातनेवयसंजुक्तएसतलक्षणद्रव्यनांबे. हवेतेप्रजायनोजेसमुदायतेनेगुणकहियेबिये एटले एकएकद्रव्यमांअनंतागुणरह्याने ने एकएकगुणमांअनंता प्रजायरह्याने इत्यादिकअनेकविचारपणगुणप्रजायवंत तेद्रव्य हवेजेअर्थक्रियाकरे तेनेद्रव्यकह्याछे त्यांतोपोत पोतानोअर्थसाधतेनेद्रव्यकहिये तेमधेधर्मास्तिकाय चल साह्यनेअधर्मास्तिकायथीर साह्यकरे आकाशवगाह नापापे अनेकालवर्तनापणुकरे एसर्वेआपापणीक्रीया करछेत्रनेपुदगलास्तिक तेपणमलवूनेवीखरवंपुरणथवं नेवेराइज एपणपोतपोतानीशक्तीये पोतपोतानीअर्थ - - Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. क्रीयाकरे पणापणो जेचेतनएज महाअज्ञानमांपड्यो थकोपोतानी अर्थक्रीयाछोडीने परक्रियाकरे एमोटंदःख थायशामाटेके तुंतोचेतनालक्षणने तेतुतारोधर्मछोडीने परधर्मेकेमपेसेछे पणतुंशुंकरे तनेअनादिकालनुअज्ञान संगीछे एकंइनवूनथी तेश्रवक्तव्यनावमांपणतनेहतुं तेव तव्यनावमांपणतेत्रज्ञानरयुं तेथीपरनोकीधोसंग तेवा रेतनेमोहेआपुत्रंग तेवारतेनेविशेषेवाध्योरंग तेवारेथयो स्वधर्मनोनंग हवेतोतनेसदगुरुयेघणी कृपाकरीनेधर्म मार्गदेखाड्यो अनेसर्वेअननवकरवालायककरयो माटे तुंत्रात्मअनुनवकर आत्मस्वरुपकेवुछेकेशुद्धद्रव्यार्थकन येजोइये तोशुद्धचिदानंदमयमुर्ति परमानंदमयसाक्षात तुंपरमात्मा एनिश्चेनयनुवचन शामाटेकेंअहींयांअनु भवकरवोरहेनहि केमकेउच्चारणकरबंधथयुं तेवारेगुण गुणन्नेिदपणकरीशकायनहि तेवारेएकजाणवामात्रअनु नवरह्यो एनयतोपूर्णनघरेछे अनेआपणेतोअधरानि ये केमकेसिद्धथयानथी साधक अवस्थाले माटेआपणने तोव्यवहारनयप्रधानछे केमकेजअनुनवकरवो तेगण गुणीनानेदकरवापडे गुणप्रजायनोविचारकरवोपमेतेस व्यवहारनयेथायछमाटेअधुरानव्यवहारनयबलवानछे अंतेतोएव्यवहारनयमिथ्याछे हवेजेअनुनवकरवातेप्रजा यनेविषेकरवानोडे हवेतेप्रजायत्रात्माने विषेकेटलाकसा २७ Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१०.. अनुनवप्रकाश. मान्यथकीकेटलाकविशेषथकातेकिंचितनामथकीजणा बुंछ मलसामान्यस्वभावना ६ भेद अस्तित्व १ वस्तु त्व २ द्रव्यत्व ३ प्रमेयत्व ४ सतत्व ५ अगुरुलघुत्व ६ एव्येमलसामान्यस्वनावकह्यातेमध्येास्तिसामान्य स्वनावनाउत्तरसामान्यस्वनाव१३तेरकह्याने तेनांनाम अस्तिस्वभाव १ नास्तिस्वनाव २ नित्यस्वनाव ३ अ नित्यस्वभाव ४ एकस्वभाव ५ अनेकस्वनाव ६ नेद स्वभाव ७ अनेदस्वनाव८ भव्यस्वनाव९ अभव्यस्व भाव १० वक्तव्यस्वभाव ११ अवक्तव्यस्वनाव १२प रमस्वनाव१३ इतिउत्तरसामान्यस्वभाव हवेविशेषस्व भावकहंछं विशेषकहेतांकोइद्रव्यमांलाधे नेकोइद्रव्यमां नलाधे तेना२५ भेद परिणामिकता १ कर्तता २ ज्ञा यकता ३ ग्राहकता ४ नोक्तृता ५रक्षणता ६ व्याप्या व्यापकता ७ आधाराधेयता ८ जन्यजनकता ९ अ गुरुलघुता १० विभुतकारणता ११ कारकता१२ प्रभु ता १३ नावुकता १४ अभावुकता १५ स्वकार्यता १६ सप्रदेशता१७ गतिस्वभावता१८स्थितिस्वभावता १९ अवगाहकस्वभावता २० अखंमता २१ अचलता २२ असंगता २३ प्रक्रियता २४ सक्रियता २५ एप चीसेविशेषस्वनावजागवा हवेसामान्यप्रजायते६ छ तेंद्रव्यप्रजायजाणवा तेद्रव्यव्यंजनप्रजाय १ गुणप्रजा - Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. - य २ गूणव्यंजनप्रजाय ३ स्वभावप्रजाय ४ अगुरुल घुप्रजाय ५ विनावप्रजाय ६ एउसामान्यप्रजायकहिये तथाअगियारसामान्यस्वभावकह्याछे तथाविशेषस्वना वकह्याने तथादशसामान्यलक्षणकह्यांतयासोलविशेष लक्षणकह्यांछ इत्यादिकद्रव्यप्रजायेसमजवावास्तेअने कभेदकह्यातेअनुनवमांविचारकरतांसर्वेकत्रिमअनुभव थाय पणस्वनाविकअनुभवएमनथीत्रनेत्रिमानुनवनी हद चोथागुणठाणाथीमांडीनेसातमागुणठाणासुधीनी अनेस्वनाविकअनुभवले तेत्राठमाथीतेदशमागुणठाणा सुधीनी नेआठमागुणठाणाथीहे ठलवालानेकिंचितभा गजेतेपणचोथाथीतेसातमासुधीनेतरतमजोगजाणवो ए टलेएशूद्धक्रत्रिमअनुभवकह्यो. हवेशुद्धअक्रत्रिमअनुनवतेस्वनावीककहिये तेअनुनवनी वार्ताकहेवानेतोहूंसमर्थनथी परंतुकिंचित्नागद्रष्टांतेस मजवामारीशक्तिप्रमाणेकहूर्छ तेस्वभावीकअनुनवतो क्यारेप्रगटे ज्यारेविनावीकअनुभवनोनाशथाय त्यारे स्वभाविकअनुभवप्रगटे शेद्रष्टांतेजेमकोइनाजनमांदूर्ग धवस्तुभरीनेभाजनमांदुर्गधनीवासनाबेठीने तेदुर्गंधनी वासनागयाविनाएनाजननेसुगंधवासीयेतोसुगंधवासी तथायनहि माटेअहियांत्रात्माने विभावनोसंगनछुटेत्यां सुधीस्वनाविकअनुनवकेमकरीनेथाय अहियांकोइकहे Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ६१२ अनुनवप्रकाश. शेकेविनावनोनाशथशे त्यारेतोएवितरागथशे त्यारेपनी हेनेशेनोअनुनवकरवोले तेनोउत्तर जेनेज्ञानावर्णीनोक्ष यउपसमथयोछे अनेज्ञानभावप्रगट्योछे तेपुरुषनेजेट लोजेटलोविभावनाअंशनोनाशथाय तेटलोतेटलोस्व नावीकअनुनवप्रगटे नेसंपुर्णविनावनोनाशथाय तोजा वारुपअनुनवप्रगटे करवारुपअनुभवत्यांनहि हवेजे अंशेप्रगटे तेनेविवरोकरीनेदेखाडुछु तेप्रथमदृष्टांतकड्छु तेसमजजो केजेमसुरज तेसंपुर्णवादलायेकरीनेघरी लीधोत्रनेएनातापतडकानोनाशथइगयो अनेत्रजवालु पणन्छुथइगयुं अंधकारविशेषेवाप्योछे तेमध्येथीएकवा दलखसेतेटलोअजवासवधे अनेअंधकारनोनाशथायतेम अहियांजीवद्रव्यनेअनादिकालनो मिथ्यालीअज्ञानरुप वादलांफरीवल्यांहतां तेमध्येथी कोइकजिवकाललब्ध पामीसदगुरुनासमागमथी कोइनेस्वस्वभावथीत्रणकर्ण करीने समकितरुपरीद्विपाम्यो त्यांमिथ्याततथाअनंतु बंधीचोकडीनोक्षयउपसमादिथयो त्यारेएप्रक्रतियोनाप्र देशहता तेत्रात्मानाप्रदेशथकीअलगाटल्या त्यारेआ त्मानाप्रदेशनोजवासजेटलोखलोथयो एटलीस्वभा वीकरमणताथाय एटलेजेअंशेखुल्योएटलोस्वनावीक नुभवज्ञाननोथयो एमसातमागुणठाणासुधीलश्ये शामा टेजेअहियांसुधी मोहनूंजोरघणुछे त्यांसुधीअंशेविनाव Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. | नोनाशथायजत्रनेसेणीगतेमोह-जोरनरमपमोगयुत्यारे | विभावरहो तेजावतदशमानेअंते विभावनोनेमोहनोसर्वे नोनाशथायछे त्यांशुद्धस्वनाविक अनुभवकरवामांश्रावेछे पणपहियांक्रत्रिमनथी जेश्राअथवाद्रव्यगुणप्रजाय । त्यादिकनोविचारअहियांकरवोनथी अनेस्वभावीकगुण गुणीभेदअथवागुणप्रजायभेद अथवासंकरमरणएपोता नेस्वभावेजविचारमांचाल्योभावे पणपोतेजाणेनहि के हुंआविचारमांछु एवोतदरुपएकाकारपणेप्रणमेलोएजे अनुनवतेनेस्वनाविकअनुभवकहिये तेनाबेप्रकारछे एक समल १ बिजोविमल २ एटलेजेक्षपकसेणीवालानोजे अनुनवले तेनिर्मल अनेउपसमसेणीवालानोजेअनुभ वछतेसमलजे शामाटेजेउपसमसेणीवालोएसबैमोहनी कर्मनीप्रक्रतियोनेउपसमावताकहेतांदाबतोजायडे तेध णीअगीयारमेगणठाणेजाय एउपसमवितरागकहेवाय पणश्रात्मप्रदेशथी मोहनीकर्मनोनाशथयोनहि अनेपो तानी विभावदशाजेशुद्धप्रणती तेनोपणनाशथयोनहि सत्तायेएसर्वेरवांछे माटेजेस्थानकविषेएधणीनोकाला वीपहोंच्योतोएचोथेगुणठाणेजाय एटलेगियारमानोउ ठ्योचोथेगएराठाणेश्रावे त्यारेमोहनीकर्मनीप्रक्रती७सा तप्रक्रती विनाबधीप्रक्रतीयोनो उदेथइजाय पणएका वतारीने सर्वार्थसिद्धेजाय अनेजनोएगुणठाणेकालनजि Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ अनुनवप्रकाश. - कनहिहोयतोप्रक्रतीउदेशथइनेपाछोपडे तोतेजिवजावत निगोदसधीपणजाय कोश्कजिवतद्भवमोक्षे पणजाय कोकजिवउपसमसपीकरताएकनवमांबवारकरअनेत्रा खीनवस्थितिमांपांचवारकरे माटेएस्वनाविकअनुनवए उपसमसेणीवालानोसमलकहेतांमलसहीत. हबेजेवीमलस्वनाविक अनुभवछेतेतो मोहनीकर्मनोना शकरतोचाल्योभावेछे तेदसमानेअंते संपूर्णमोहनीकर्म नोनाशकरेअहीयां अशुद्धपरणतीनो तथाविनावनोपण नाशथयोतेवारे शुद्धस्वनावजेवोसत्तायेहतो एवोजजाण पणारुपअनुभवथाय एटलेएवारमगूगठाणे क्षायकभाव नोवीतरागथयोअहीयांगूणगुणीनेदहतोतेगयोनेएकना वथश्नेप्रणम्योअहिंशद्धनीश्चनयजाणवारुपअनुभवथयो एटलेएअनुनवडे तेमनोवांग्तिदातारछे अनेहवेजन्मम रणकरवोपमेनही माटएवाएवाअनुभवनीखपकरोएनव्य जीवोशामाटेजे एशुद्धस्वनावरुपीश्रादरवाजामांपेठो ए एकक्षणनीअंदर केवलज्ञानपांमीनेमोक्षजायकोइकनेत्रा वखवधारेहायतो श्रावखुनोगवीने मोक्षजायपणफरीथी तोहवेकोइनेजन्ममरणकरवूनथी एसदायेसीद्धमांबीरा जमानअनंतुसुख भोगवतांविचारशेतमाटेएनव्यजीवोशु द्वस्वभावनोअनुभवकरो एजहमारोहेतुउपदेशछे. ॥हा॥ शुद्धस्वभावएवर्णव्यो शुदअनुनवजोगअशु Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुनवप्रकाश. ६१५ द्वस्वनावदुरेटले टल्योमोहनीरोग॥१॥शुद्धअनुनवप्रत्य क्षले शुद्धज्ञानएजाणो ॥ शुद्धस्वरुपनुदेखवू नीश्चेचितज प्राणो ॥२॥ एअनुनवमुजचीतवश्यो जेममधुकरनकम ल॥ एथीसवीसुखपामीये होयश्रात्मनीरमल ॥३॥ निर धननेमनदेवधि जेमवलनलागे । तेमज्ञानीनेअननव शुद्धचित्तलागे ॥४॥ एनावमेवर्णव्यो स्वपरहेतकारी ॥ ताराचंद्रनीजाचना तेमेदीलधारी॥५॥ एहग्रंथरचनाक री बहून्यायसाथे ॥ हेतुजुक्तीपणघणी नीजरिखिहा थे ॥६॥ ज्ञानीकुंएग्रंथने अनुनवीकुंरसलीन ॥ ग्रंथहाथ शुंछोडेनही अमरीतघटघटपीन ॥७॥ अज्ञानीसमजेन ही एहशब्दविचार ॥ तेमांमुजकोइदोशनही क्षयउपस मविचार॥८॥ संवत १९३३शमें प्रथमजेष्टक्रश्नपक्ष ॥ च तुर्थीगुरुवार एपूरणथयोदक्ष ॥९॥ हूकममुनीनोमानजो बहूश्रुतनीस्त्रहीजोइ ॥ तेपासेग्रंथदेखजो अर्थपांमशो सोई॥१०॥ एहअर्थपाम्याथकी पामशोअनुनवसार ॥ मुनीहूकमतेप्राप्ती सीववधुघरधार ॥११॥ सीववधुसेंसु खभोगवो जोकरोअनुभवएहा हूकममुनीनोमाथेलइ पां मोरिद्वितह ॥१२॥ मुनीहूकमअनुभवग्रहे सुधानंदस्व रुप ॥ शुद्दथीरताप्रगटसे पामेशीवस्वरुप ॥१३॥ __॥इतिअनुभवप्रकाशग्रंथसंपुर्णः॥ Page #628 --------------------------------------------------------------------------  Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१७ अथश्रीअात्मचिंतामणी. । - श्रीगुरुभ्योनमः ॥दोहा॥ हूंवंदुनीजात्मा पुर्णानंदस्वामी ॥ अनुनवजोगेतेग्रहो निजअंतरजामी ॥१॥ अत्रनाषालिख्यते ॥ हवेएत्रात्मचिंतामणीनामाग्रंथ केवोकेसाक्षातमुक्तिनोमार्गएजने अनेएनेजमुक्तिकही येछीये एटलेजनेत्रात्मज्ञानप्रगटथयंछे एनोरसजेणेजा एयोछे तेनेमाहासंतोषरुपीमाटुंसुखप्राप्तथयु एवापुरुषो कंज्ञराजानेपणलेखामांगणतानीपणहवेएआत्मशास्त्रनो जेरसतेनोद्रष्टांतकहीसमजावूछु एटलेजस्त्रीनाअधरबिंब || नोजेरसतेनोजेस्वादजवानपुरुषनेसुखप्रगटथायतेरसतो बिंदूमात्रपणनथी एवोत्रात्रात्मज्ञानरुपीशास्त्रनोजस्वा दतेतोसमुद्ररुपछे हवेजेप्राणअिध्यात्मशास्त्रनेविषे अथ वानिश्चेनीवातीनेविषेनथीसमजतां तेमांपरावर्तननथी नेपंडीताइनोगर्वधरेछे जेमपंडीतछीये तेपुरुषकवुकरे केजेमकोइपांगलोपुरुषकल्परक्षतुं फललेवानेहाथउंचो करतेनेकल्पक्षनफलहाथमांत्रावे श्रपीतुनजावे तेम एपंमीताइनोअनिमानफोगटराखेछे हवेएत्रात्मज्ञानछे तेतोकर्मरुपीयावननेबालीनेचुनोकरे नेतुरतसिद्धिपदा - पापमाळRNE - Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ श्रीआत्मचिंतामणी. पे एटलेवेदतथाविजाशास्त्र अध्यात्मशास्त्रविनानां तेतो बधोयेत्रात्मानेक्लेशकरवानो नेत्रात्मज्ञानविनाजेटलांशा स्त्रमणोवांचो अथवातेनुजाणपणुंकरो तेसर्वफोकजेम विधवास्त्रीनुतरुणपणुंफोकछेतेमजुटुंजाणबुजेणेत्रात्मज्ञा ननांशास्त्रजोयांअनेतेनुजाणपणुंययुतेनुंसर्वलेखेछेत्रनेज्ञा ननोरसतोत्रात्मज्ञानीजपामे एटलेथोडूपणभणतरनणी नेएकत्रात्मानूंजाणपणूकरेतेलेखेछे तेविनाअनेकशास्त्र नोअभ्यासकरेतेथीकंइएने ज्ञाननारसनीप्राप्तीनथाय जे मखरउपरबावनाचंदनभy तेथीकंइएखरनेबावनाचंदन नोस्वादनथी एतोभारवहीजाणेछे एनोरसस्वादतोजेभा ग्यवानपूरुषहोयतेनोगवेछे माटेत्रात्मज्ञाननोअभ्यास करवो बीजोसर्वश्रालपंपालखटपटोतेटालवो जेथकी श्रापणांजन्ममरणनछूटे तेकामनत्रादरवू हवेत्राजग्रंथ करीयेगये तेबालजीवनाहीतनेअर्थेकरीयेलीयेएटलेत्रा त्मज्ञानरहीत तेनेबालकहीये तेनाउपकारनेअकरुडूं तथाजोगेश्वरपूरुष तथात्रात्मज्ञानीपुरुषोनेवाग्रंथघणो प्रितिनूकारणथाशे केमकेएनेविषअनूभवज्ञाननोरसतेने स्वादेकरीमाहाप्रितिनूस्थानकथशे जेमभोगीपूरुषोनेस्त्री नांगीतवल्लभछे अथवाजेमसंगीतबंधनाटकवल्लन तेम आग्रंथवल्लभलागे हवेएग्रंथजजाणपूरुषोडे तेनेवल्लन छे एटलेलोभीनरने जेमचीतामणीरत्नपारसपाषाणका Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअात्मचिंतामणी. - मकुंभसोवर्णफूरसाप्रमूख जेमतेनेवल्लभछे अनेतेमांतागू णएवडोछेनही तेतोपुद्गलीकवस्तू एकभवनोसखाइछे वलीकंइएथकीजन्मजरामरण ना फेराटले नहीव्याधीश रीरनीमटेनहि अनेपरभवमाठीगतीप्रापे श्रनेत्राजेग्रंथ तेतोआभवने विषेतोसंतोषसुखमोटुंबापे नेसंतोषसुख | मांसर्वेसुखसमाइगयां एनामहोडाागलइंद्रचंद्रनागेंद्र कोइगपतीनानथी. ॥उक्तंचगाथा॥ इंद्रचंद्रपदरोगजा पो॥ जेणेनिजशुद्धसत्ताधनपगंणो॥ ननापेननचो रे॥ कोणजगदीनको जगजोरे ॥१॥ एवंएग्रंथyमहा मजाणीने एग्रंथनोअभ्यासकरवो. हवेग्रंथनोप्रारंनकरीयेबिये अहोभव्यजिवो सर्व कारजगेमीने एकात्मज्ञाननेविषेउद्यमकरो एत्रात्म ज्ञानछे तेत्रात्मीकसखनदातारछे नेबिजांकारण तेप द्गलीकसुखनादातारछे तेथकीकांइमुक्तिथायनहि नेत्राथ कोजन्ममरणनाफेराटले अनेवितरागनामार्गनेविषेख टद्रव्यभाखेलाछे तेमध्येपांचद्रव्यछांडवा एकात्मद्रव्य श्रादरवाजोगकह्यो तोअहियां बिजुबहार-जाणपणछेत्र थवाादरव एसर्वेपद्गलीकनावने माटेएअवश्यछांडवा जोगले अहियांकोइकहेशेके पगथीयेपगथीयेचडायकाइ एकेहारेमे मीउपरजवायनहि माटेशुनाशुनकारजनेविषे उद्यमराखवो तथाद्विपसमुद्रदेवलोकादिकजाणपणुभ - Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० श्रीअात्मचिंतामणी. गवंतेशावास्तेका माटतेजाणेतेनेपंडितकहिये तेनेज्ञानी पणकहिये तेनोउत्तर. हवेजेपावडीयेपावडीयेतमचडवुकडं तेखलं पणमक्ति नांपावमियांतोज्ञानध्यांन अनेशनाशनपावमियांतेतो पद्गलीकने नेपावनियेचमतांउतरतांतो अनंतोकालागे पणवहिगयो तेथकीकांइत्रापात्रात्मानुकल्याणथयुन हिनेहजिएनाएजपावडियानेझालीनेबेशीरहीशंत्यारेआ पणीमक्तिकेदाहाडोथवानी अनेएवांजेपावडियांनेविषेरा गराखीरह्याने तेजिवनेमुक्तिघणीदूरभाषणथायछे अने जेनेपावडियांचडवानीखपहोय नेमालउपरजहोयतेध णीतोपावडियोछोमतोजाय नेउपरलेपावनियेचडतोजा यतेधणीतोमालउपरसुखसुखेपोचे पणप्रथमपगथियेज अटकीनेबेठो अनेमहोमेथिएवंकहशेजेभाइपगथियेपग थियेचडाशे नेउपरनेपगथियेतोचडतोछेनहि तेकांइमेडी उपरजायनहि तेमअहियांजेजन्मपरजंतथकीजशुनाश नपगथियझालीनेबेठोतेमुवासुधीधर्मने पगथियेचडतोछे नहि अनेमहोमेथीकहेछेके पगथियपगथियेचमाशतेध णीनिकांइमक्तिथायनहि एतोएकवचनबोलवानंठपक उयुंछे एधामधुमनोरागीशुभाशुभमारच्योपथ्योबालजि वनेरिझवे पणएथीकांइपोतानाश्रात्मानुकल्याणथायन हि माटेहेभव्यजिवोएपगथीयुअनादिकालनुंझालेलुंएथ Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअात्मचिंतामणी. ६२१ कीअनंताजन्ममरणकरयां एथकीसंसारनो पारश्राव्यो नहिमाटेजोआत्मानहेतवंडोतो एपगथियानेबोडो नेज्ञा नध्यांनरुपीयेपगथियेचडो समभावरूपदोरडझालो अ धवशायरुपवेगेकरीने चम्बामांझो तोमोक्षरुपिमेडीमां जइनेबेसाय तथाएजाएगपणुछे तेमांकाइनिश्चेछेनहिए तोव्यवहारथकीजाणवानुंछे तेमांकांत्रात्मानंकल्याणछे नहि एजाणवाथकीमुक्तिपांमिये एवाअक्षरतोकांइशा स्त्रमांदिसतानथी तथाएवस्तुकोइध्यानमालावेलानथीए मकरतांकदापिस्वस्थानविचयधर्मध्यांनमांगणीये तोतेप णपद्गीकसुखनोदातारछे तेथकीकांइमुक्तिथायनहिएसर्वे व्यवहारअनजोगमांगणेलाछेनिश्चेअनजोगतोएकद्रव्या जोगछे तेमध्यपणपांचद्रव्यनेछोडीएकत्रात्मद्रव्यनेत्रा दरवोतेथकीजमक्तिथाय माटेप्रथमश्रात्मस्वरुपनीमल खाणकरवी नेपबीतेस्वरुपनेविषचिंतवनाकरवीतेन्नाम श्रात्मचिंतामणीकहिये तेनेध्यांनपणकहिये तेनेज्ञानपण कहिये तेथकीत्रात्मानिशाकर्मीथाय माटेत्रात्मानुध्यांन छेएमोटुंस्वरुपछे. ॥उक्तंच ॥श्रात्मध्यानफलंध्यान।मात्मज्ञानंचमुक्तिद। श्रात्मज्ञानायतन्नित्यं॥ यत्नःकार्योमहात्मना॥१॥ ..., अर्थ-हवेत्रात्मध्यांनतेत्रात्मानंध्यांनतेनुंफलपणतध्यां नजछेनेत्रात्मज्ञाननहोयत्यारेमुक्तिश्रापे माटेज्ञानएजज । SAM RALAJISWOKARMIST Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ श्रीवात्मचिंतामणी. गतमांमहोटुबे तेमाटेमहोटापुरुषोपंडितज्ञानीहोय तेने | तोत्रात्मज्ञाननोजउद्यमकरवो एजजुक्त. ॥श्लोक।ज्ञातेह्यात्मनिनोभूयो।ज्ञातव्यमवशिष्यते॥ अज्ञानंपुनरेतस्मिन् ॥ ज्ञानमन्यन्निरर्थकं ॥२॥ अर्थ--जेणेपोतानोत्रात्माजाएयो नेपोतानास्वरुपनी। लखाणथइ तेधणीनेबिजुकांइजाणवानीफरीथीजरुर जनहि एगोजाणेसवेजाणेइतिवचनात्'माटेजेणेएकआ स्माजाएयोतेणेसर्वेजाण्यंछे अनेजेनेपोतानाशात्माजा णपणुनथीथयु नेबिजाअनेकशास्त्रनीरीत्योजाणेछे तेसर्वे निष्फल फोगटकायक्लेशकरे एमांकांइएनात्रात्माने गुणथयोनहि माटेजेत्रात्मातहिजपरमात्माबे अहियां बिजोकोइपरमात्माछेनहि एनजध्यांनकरवं एथीजम क्तिथाय. . ॥उक्तंचगाथा।एहिजअप्पासोपरमप्पाकमविशेषइजायो जप्पा॥इसमेदेवजुसोपरमप्पाजावहूतुभेप्रपोअप्पा॥१॥ अर्थ-अहोभव्यजिवोतमोसमजो तमनेमाहाहेतका रीछे एहिजअप्पासोपरमप्पाकहेतांत्रापणोत्रात्माजेत्रा शरीरनेविषेरह्योछे तेहिजसाक्षातपरमात्मा निश्चेथकी शुद्धपरीब्रह्मएनेजजाणवो एपुर्वअनादिकर्मनासंजोगथ कीशुभाशुभक्रियानेविषे पडयोथकोजन्ममरणकरेषण एशरीरमारह्योजेचेतनएहिजदेवछे नेएहिजपरमेश्वरछे Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६२३ माटेशुनाशुनक्रियानोत्यागकरीने पोतानात्रात्मानुध्यां नकरो नेतमेनुजसम करो साक्षाततर तारणञाज एपो तपोतानोश्रात्माजबे माटेएवं पोतानाश्रात्मानुंस्वरुपतेनी जुलेपरनीजेशेवाच्यादरोबगे नेपरनीश्राशाराखोबो नेजा लोबोकेको इक श्रमनेतारशे एतमारुमोटु ज्ञानपपुछेए ज्ञानभावबोडीने पोतानास्वरुपनुंध्यांनकरो एथीतमारु कारजथशे अनेकारजजे सर्वेरह चुं तेज्ञाननेविषेछे नेज्ञान छेतेश्रात्माने माटेपोतानाश्रात्मानुज स्मर्णकर वुं. || श्लोक ॥ नवानामपितत्वानां ॥ज्ञानमात्मप्रसिद्धये ॥ येनाज़िवादयोभावाः ॥ स्वभेदप्रतियोगिनः ॥ नवानामपीतत्वानां कहेतांजेएनव तत्वकह्यांबेतेनांना मजीवतत्व १ जीवतत्व २ पुन्यतत्व ३ पापतत्व ४ श्राश्रवतत्व ५ संवरतत्व ६ नीरजरातत्व ७ बंधतत्व८ मोक्षतत्व ९ एनवतत्वछे तेमध्ये एकजीवतत्व तेतत्वबे बाकी सर्वत्र्तत्वछे केमकेसंवरनरिजरा नेमोक्षएतोत्रा स्मानागुण जीवपुन्यपापश्राश्रबंध एं सर्वे जीवबेते श्रात्माना जाएगवामांत्रावे ज्ञानमात्माप्रसीद्धए केहेतांजे ज्ञानरुपत्रात्मा तेजमोटोछे तेवीनासर्वेकाचुछे शामाटेके जीवादी नावजे सर्वेरह्या सर्वे श्रात्मज्ञानमांसमाय छेत्रात्मज्ञाननेवीषेजे दरवाजोगहोयतेादरे छांडवा जोग होय तेछांडेने जाणवाजोग होयतेजाणे. Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ श्री आत्मचिंतामणी. ॥ उक्तंचगाथा ॥ नयनंगपमाणेहि ॥ जोप्पासा वाजावे ॥ जाणईमोषस्वरुवं ॥ समदिठीयोसोने॥२॥ अर्थ- नयनं गपमाणेही केहेतांनयेकरीने नांगेकरीनेत्र माणेकरीने जे पाशाश्रवा नाव ऐकेहेतां जेत्रापणा श्रात्माने एटलेन येकरीने जाणवो तथासतनंगीचोभंगी प्रादेदेइनांगेकरीने जावो अथवा प्रत्यक्षादिकप्रमाणेक रिनेजावोइत्यादिकस्यादवादमार्गेकरीने जेनेश्रात्मानं जाणपणुथयुंबे तथा मोक्षनुंस्वरुप जेणेजाएयुंबेतेने समद्रष्टि कहिये ते समकित ज्ञानपणकहिये तेनीजमुक्तिथायपण तेविनाजे क्रियाश्राचारउतकष्टापाले छजिवनीदयापाले तेथीकाइतेनात्रात्मानुंकल्याणयाय नहि. ॥ उक्तंचगाथा ॥ विरयासावजान ॥ कषायहिणाम हव्व यधरावि॥समदिठिविणा ॥ कयाविमुषंन पार्वति॥१॥ अर्थ - विरया सावजानकेहतां जेजिवविरमासावदथकी कहेतांजे प्रणातिपात जिवहिंशानोत्यागकरो तथा सर्वथ किमृखावादनोत्याग करोतथा सर्वथ की च्चदतादाननोत्या गक तथा सर्वथ की स्त्रीयादिकनोत्यागकरो तथासर्व थकी परीग्रह नोत्यागकरो एटलेएपांचे श्राश्रवनोत्याग करो तथा पांचइंद्रियोवशकरी तथामनादिकगुप्तित्रैणेपा लेएकायाथकी तथावचनथकी तथामनथकी सर्वसावद कर्मनोत्यागकरो कपायहिणामाहावियधाराविकहेतांक Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६२५ षायकहेतां जेोधं मान माया लोन रागद्वेषइत्यादि ककषायनोनाशथयो जोश्रामांसमपरिणामश्रावेश्रथवा कोइकपंचमहाव्रतधारणकरी जनकल्पीतुलव्रतपाले थ वाशुधर्मास्वामीसरखुचारीत्रपाले तोपणशुंकांइए जिवनी मुक्तिथाय पीतुको कालेनजथाय शामाटेकेएजिवनी समद्रष्टिथइनहि एटलेसमद्रष्टिकहेतांजे परनावउपररा नथीतेमद्वेषेनथी नेपोतानास्वरुपनेविषेथिरभावेरह्या छेएवोनावमांहिप्राप्तथयोनहि तेथीमुक्तिनपांमे केमकेमु क्तितोत्रात्मदशामांछे तेनावने प्राव्योनहि नेपरभाव मांहेथीगयोनहि तेथी जिवनुंकल्या एकांइथायनहिएचा रगतिसंसारमांपरीभ्रमणकरेजपणकारजसिद्धिथायनहि ॥ श्लोक ॥ श्रुतो ह्यात्मपराभेदो ॥ नुभूतः संस्तुतोपिच ॥ निसर्गादुपदेशाद्वा ॥ वेत्तिनेदंतुकश्चन ॥ ४ ॥ हवेकारजसिद्धिथावानुंकारण कहीयेबीये के जेने स्वके हे तांपोतानाश्रात्मस्वरुप त्रनेपरकेहेतां जेपुद्गलादीकपांच द्रव्यतेबंनेनो जेनेनेदपडलोबे नेभेदस्वरुपजेनासम ज्यामांत्राव्यं नेपरजेपुद्गलादीक पांचद्रव्यनेनोखापामी पोतानात्रात्मस्वरुपनोअनुभव करे एनेजविषेरम करेए कोइकजीवने पोताने सहेज स्वनावेप्रगटथाय कोइकजी वनेगुरुना उपदेशथकीथाय एवीरीतेभेदजाणीश्रात्माने जुदोकरीने नवकरे नेवारे एकत्ववीतर्क बीजोपायोत्रा ૭૯ Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ६२६ श्रीआत्मचिंतामणी. तथाय कोइकजगायेप्रथक्तवीतर्कप्रगटथाय तेपायाने विषेत्रात्मज्ञानहीतकारीथाय अन्यथाजेवांचवांभणवां जाणवां तेसर्वेफोगटजाणवां तेमीथ्यादृष्टिरुपरह्योतेनेवि टंबनारुपीकष्टछे त्यांतोएकजात्मस्वभावपणेरह्योरेत्यां तोत्रात्मज्ञानदर्शनचारित्ररुपका तेकांइत्रात्माथकी जुदूजाणवूनही तेतोलोलीभुतथइनेरेहेलुंछे तेउपरद्रष्टां तकहीयेछोये जेमरत्ननीमालानरलनीकांती एवेयेनीश क्तिकंइजुदीनथी तेमएज्ञानदर्शनचारित्रतेलक्षणकंइत्रा माथकीजुदूजाणवूनही अात्मात्रनेत्रात्मानुलक्षणज्ञाना दीकजेनेदकेहेवोते व्यवहारनये.एछठीविनतिनेन्याये करीमानीयेपणनिश्चेथीतोइहांकशोयेनेदनथी एउपरह ष्टांतकहीयेगये जेमघटअनेघटनुंजेरुपादिकजेवर्ण तेघट थकीनिन्नमानीयेतेकल्पना पणकंइघटनेघटनरुपजद नथी घटविनावर्णशानेआधारेरा अनेघटपणरुपादीवि नादृष्टीगोचरमांशानोभावे एभिन्नमानवोतेव्यवहारनय नीकल्पनाछे निश्चेथीतोएकजछे तेमात्मानेात्मानाग गादीकतेपणकाजदानथी परमार्थविचारीनेजोश्यतोएक जबे एवोजेशुधनयेकरीत्रात्मस्वरुपछे तेनिश्चेकरीनेअनु नववामांबावे एटलेरमणकरवामांत्रावेछे अनेव्यवहा रनयेकरीपरजेकायादिकद्रव्यत्रोलखायछे तेगंडवाजो गजाणवामांत्रावे एवीरीतेनयपक्षपणविचारीजोवोतथा Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६२७ वस्तुतानोभावजोतांतोगुणने गुणीनुप्रभेदस्वरुप क्षेत्र ने जो नेदस्वरुपमानीये तोविरोधावे केमकेमृतीका नेम्मृतीका मघटादीथवानोगुण थवामलवावी खरवा नोगुणजुदो मानी येतोमृतीकाविना मलेविखरे कोण तथाघटादीरुप शानांथाय माटेइहांभिन्नमानत मोदोपणवे तेमजा त्मानेात्मानागुणते कांइजुदाबेजनही अनेजोजुदामान वाजइये तेवारेज्ञानादीक गुणजुदो नेत्रात्मा जुदो एमथायते वारेज्ञानविनातोश्रात्मा बेजनही तेवारेजडथाय छेतथाज्ञा नादीकगुणते श्रात्मावनाशा नेत्राधारेरेहे तेवारेएत्रात्मा तथाज्ञानादीक गुण सर्वनिश्फलबे एकल्पनाससासिंगवत् ठरीमाटेहीयांमोटोविरोधावे तेकारणमात्रात्माने श्रात्मानागुणएकत्वना वे संलग्न रह्याबे ने चेतनएवोजे शब्दतेसामान्यपदबे शामा टेकेएम सर्वात्मानुएकठाप थयुं निश्वे थी तो कर्मजनीत्य जेवस्तु तेनेदनेपामे तेविटंब नारुपछे पलतेपोतानुंस्वरुपतजीने जुदान जाणवानेव्य वहारनयवालोएम जुदामा ने कही येछीये तेजीवनासमु दायनोतरेहतरेहथी भेदकल्पेएकंद्रीयादिकगतीश्राश्रीत थाकषायादिक श्राश्रीतथा गुणस्थानादीका श्रीतथावय श्राश्रीतथावर्णादिकाश्री अनेकप्रकारेनेदकल्पना करे मांहोमांहेविचीत्रपणंजणावेछे एसववेहेवारनयजाणवो अनेएवार्तानिश्चयनयनीसमजवालो जीवतोमानतोनथी Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्मचिंतामणी. तेनासमजवामांतोएबुछेके जेजेजीवनीअवस्थाप्राप्तथाय छे शून वा अशुन तेतोनामकर्म नी प्रकृतिनास्वनावथ कीछे अथवा अन्यकर्मसातमाहेली हरकोइनीप्रकृतिना स्वभावथीथायछे पण कांइते अात्मानास्वभावथी थतं नथी अात्मातोनिर्विकल्पीछे अरुपीछे एनेविषेतो एक जाणवानोजस्वभावछे बीजीरीते कोइस्वभावलाधतोन थी अनेजेजन्मजरादिक प्रणतीजेछेतेतोसर्वकर्मनेवशछ तेकंत्रात्मामांनही आत्मातोअविकारीछे अनेकर्मना स्वनावतेकंत्रात्मानास्वभावमांसंनवतानथी अहीयां तोकेवलएकस्वस्वनावलाधे अनेजन्मजरादिकएतोक मप्रकृतीजछे नेकर्मजनतिजभावतेत्रात्मानविषारोपे छे तेनेज्ञानथकीभ्रष्टजाणवा तेचारेगतीसंसाररुपसमुद्र महानयंकरतेमध्येनमशे एटलेजेउपाधीनानेदथकीप्रग ट्योजेनेदतेतोमरखप्राणीहोयतेमांने जमफटकरत्ननी मांहेलीकोरेअनेकपदार्थभाषणथाय तेनेफटककरीमानेते मुरखजाणवो पणतेएमनथीसमजतोकेफटकजुदुछेत्रने तेपदार्थजुदाबेएवीजेनीसरतनपोचीतेअज्ञानकहीयेतेमत्र हीयांआत्मानेविषे पणकतकर्मभेदएमानछे पणएमनथी जाणतोकेएतोजडनुंकामुळे एवूनसमजेतेनेअज्ञानीकहीये अनेपोतानाजे व्यवहारनापक्षथकी कर्मजीनतजेउपाधी तेनथी एवंमानेतेत्रात्मविरुपवादीजाणवो केएकक्षेत्रमा Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअात्मचिंतामणी. ६२९ हेरह्योछे एवीजेत्रात्माअनेकर्मतोयपणएसंजोगपामतोन थी जेमएकघटनीमांहेलीकोर पुंगीफलतथाअन्यबीजुदा णाप्रमुखअनेकवस्तूनरीहोयतोयेपणतेवस्तुपुंगीफलफी टीनेदाणोनथायअथवादाणाफीटी पुंगीफलनथायतेमश्र हीयांएवोजेत्रात्मातेपोतानाजे कोइगुणज्ञानादीकअथवा भलोपोतानो जेकंइस्तीलप्रमुख स्वनावतेकंडोमीने कर्मजनीतथायनहीएवोशुद्धस्वभावीश्रात्माताछेजमधर्मा स्तीकायलोकनेविषेप्रदेशप्रदेशव्यापीरह्योछे अनेबीजा पणद्रव्यव्यापीनेरवाछे पणकंइधर्मास्तीकायपणुफीटी नेअधर्मास्तीकायपणुंथायनहीएमसर्वेद्रव्यमांसमजवूसौ सौनास्वनावमांजरहे. हवेइहांजेजाणवामांफरकबेतेकहियेछिये जेमकोइपुरु षने अांखनुतेजमंदहोय अथवालीलांपीलांकमलांखे श्रावतांहोय अथवाघरणहेलोहोय तेधणीचंद्रमाबेदे खेपणचंद्रमातोश्राकाशमाएकजने अहीयांकंइचंद्रमानी भुलनथी अहीयांतोएनादेखवामांजफरकछे तेमहीयां पणजेजीवज्ञाननथीपाम्या तेजीवात्मानीअनेकअव स्थामाने.. .. शिष्यवाक्यः-स्वामीत्रनेकशास्त्रवांचेचे जुवेछेधर्मउप देशकर पंडीतनामधरावे तेज्ञानकेमनपाम्याकहीये ते नोउत्तरकेजेनेनिश्चवस्तुनीसमजपडीनथीत्रात्मस्वरुप Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअात्मचिंतामणी. लख्यंनथीतेविना शास्त्रचाहतेवांवांचोउपदेशकरोपणते नेज्ञानीकहेवायनहि. हवेएवानिश्चेनीवातनाजाणपणाविनानाजेप्राणरिह्या तेनेउनमादनानरेलाजांणवा तेममतवडेकरीनेत्रात्माने अनेकप्रकारेमाने पणजेमअनवयथी एकस्वरुपत्रास्ती पणानेअनुनवियेडिये एटलेसर्वेत्रात्मानुसरखापणुवि दमाननाषणपणे तेमाटेआत्माएकजकहिये अहियां कांइदोषछेनहि जेव्यवहारनयथी सत्यअसत्यरुपजेचा डियो तेनेगोपविये एटलेतेनीगवेखणाकरवीनहि अहि यांतोएकशुद्धनयरुपियो जेमित्र तेतोएकत्वपणेरत्नत्री यदेखामे तेअंगीकारकरिये तथानरनर्कादिकजेगतीरु पप्रजायेकरिने जेउपजqवणसवूछे तेजुदु माटेतेप्रजाये करीने सदायेअनवययेजशुद्धछे एटलेएपर्जायादिकमां फरवाथकीकांत्रात्मस्ववरुपपोतानातत्वभावएकत्वपणा प्रतेगंडतोनथीतेउपरद्रष्टांतकहियेबिये जथाकहेतांजेम सोवर्णस्वरुपएक हवेतेसोवर्णना उतपातवेनेवीषेत्रने कघाटपरवतेचे कुंडळकंठी बाजुवेढइत्यादीक पर्यायनुप रवर्तनपएंबेपण कंइसोवरणपणानुं पलटणनथीएघाट नेवीभन्निनावछे तेमात्माएकजछे अनेनरनरकादीक गतीतेभिन्ननाव पणत्रात्मानोस्वनावतो एकजरुपछेत्र नेजेगतीत्रादीक पर्जायतेतोकरमना पर्जायछे पणशुद्ध Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्मचिंतामणी. ६३१ स्वरुपसाक्षातनिश्चयनयेआत्मपर्जायनेविषे कर्मक्रिया स्वभावछेनहि एटलेत्रात्मानेविषे एकर्मपर्याय नहि आत्मातोश्रजस्वनाविकछे अथवाजेकर्मनाजेप्रमाणुवाते कांइसर्गादिकसुखरुपनाविकनथी एतोशुनाशुनपरवर्त ननेविषेले कदापीकोकप्रमाणुवाउज्वल शुभनाजोग थीसर्गादिकसुखअथवा धनपुत्रकलत्रादिक सुखनेदेखी नेकोइएशुनपुद्गलने सारामानेछे तेमोटुअज्ञानपणुतेनु केमकेएप्रमाणुनुपरवर्तनतो नवेतत्वमारडुंछे अत्रद्रष्टांत कहियेछिये केजेमकोइकशुनद्रव्यरुमोरंगलेइनेचित्रामण कोइयेकालु तेनिंतनागनेविषेशोने पणकाइनिंतनारते नउपाडे एपणएककारमीशोनारुपछे तेनेसत्यकरीनेमा नीये माटेकांइएभिंतनुंकामचित्रामणकरेनहि एपणप्रपंच जाणवा अथवाजेमस्वप्नामांहेदिठु जेराज्यअथवाधनइ त्यादिकवस्तपणतेजाग्यापछी देखायनहि नेखपमांश्रावे नहि तेमश्राव्यवहारमार्गनाअनुसारनविषे स्पष्टपणेदी ठामांबावेळेधनपुत्रकलत्रादिकपणतनिश्चयथीज्ञानद्रष्टीवि चारीनेजोश्येतो एवस्तुयेजुदी नेत्रआत्मायेजुदोडे अथवा जन्मांतरपरियंतरहेवानो काइनेमछेनहि एपणअथीरप दार्थछे तथाकदापीसर्गादिकसुखशास्त्रथकोस्पष्टजणाय छेपणपुनरपीजन्मथयो त्यांतोतेकांइसुखजणातुंनथी ने सांजरतुपणनथी माटेएसर्वखोटीकल्पनाछे शामाटेकेए Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ श्रीआत्माचेंतामणी. कारणकेवडे केजेमग्रिष्मरितुनेविषे मध्यानसमेमरघत नाकहेता खारनीनोमिनेविषे जेमखारझगेछे तेदीठा मांएवंावेकेजाणेसर्वपाणीपाणीनरमुळे तेप्रमाणेासं जोगथीउपनीजेस्पष्टविकार एसंसर्गजेमल्यो तेसर्वेनो अंतनाशज एवस्तुसाचीनथी माटेव्यवहारनाकर्तव्य मांकशोयेसाचोपदार्थभाषणथतोनथी तथाजेमगंधर्वना नगरवडेश्राकाशघणोशोभायमानदिसे पणतेक्षणेकमांस ठेकाणेथइजाय त्यारेश्राकाशहतोएवोथइरहे तेमश्रा व्यवहारनयनाबलथकी सर्गादिकसंजोगमले तेनोविला सपणकदापीपांमे तोपणशुएस्वप्नापरायछे तेकारणमाटे एकजजेशद्धनयेकरीनेग्रोलोजे एकत्वभावएटले एकत्व पणेकरीनेजात्मानेविषेज पांमवंथायने अनेएवस्तुबी जेकांइसंपुर्णमलतीनथी बीजेजेरहितेअंशग्राहिनेसर्वेक रजकरेछे जेमकोइपुरुषएकतांदूलनोदाणोलेइने एवुक हेकमारीपासेपणतांदुलके पणतेतांदुलथीकोइसामानेप णजमाडीशकेनहि अनेपोतानापणभुखभागेनहि तेमए अंशेग्राहिने कल्पनाजेकरवी तेथीकांइकारजसिद्धीथाय नहि जेनेसंपुर्णआत्मस्वरुपर्नुजाणपणुययुं तेपुर्णवादीक हेवाय तेनेकांइअंशकल्पनामांरुचीयावतीनथी तथासु त्रमध्येपणएगायाएवोपाठछे तोतेनोपणप्राशयएहिज कह्यो तेकारणमाटे प्रत्यक्षएकजोतीरुप झलझलाटमां Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६३३ नएकात्मस्वरुप तेजसस्यबे एमशुद्धनयवालापण के हे ताहूवा नेजे परपंचनोसंचेकरीने जे संकलेश करवो तेत सर्वे दुखनुजकारणबे एटलेज्यांमाहामायारुप मोटोफंद रह्योत्यांमारुतारु कल्पनाघणीरही त्यांकंइकारजसिद्धि नही प्रगटसिद्धिपोतानात्रात्मस्वरुपमा जँहुँपोतेजा त्माहुंहूं पोतेजभगवानछु एवीरीतेप्रसन्नथवं एवीररतेशुद्ध रुपपोतानो प्रकाशकर वो एनिश्वयनयवाळानो एजमत वे नेव्यवहारनयवालोछे तेनोमततोफोगटकल्पनारूप जोवामांत्र्यावेळे तेकहीयेछीये केशरीरने नेश्रात्माने एकत्व पफुंकरीनेमाने अथवा कोइकप्रकारे श्रात्मानरुपीपफुंक रीनेमानेबे शामाटेजेशरीरादीकनी याधीव्याधीनाका रणनेमेलवीने हे सर्ववेहेवारनयनीघे लछाबे निश्चेन यवालोतोएवस्तुने कबुलनथीकरतो जेकारणमाटेसा क्षात्ररुपीत्रात्मपदार्थछे प्रसंख्यातप्रदेशेनीरमल तोते ने शेकरीने पण रुपीपांकेमपामीये पीतुनजपामीये जेमको इग्नीने केहेशे केशतिलथइ तोतेवातकेममनाय अग्नीशीतलको इकालेथायजनही एतोत्रग्नीनाजीवग यापछीजेदलप्रथ्वी कायनाभागनुंरह्यं तेशीतलडे पणते नेएटलीसरतनपोची तेथीतेणे अग्नीशीतलकही अथवा कोइ केशे के घृतउष्णयुंठे पण मनथीजाणतोके घृततो शीतलज वेतोरनीनोसंजोगमलवाथकी अग्नीनाप्रदेश ८० Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअात्मचिंतामणी. घृतमांपेठातेउष्णले पणएकक्षणेकअंतरे अग्नीनाप्रदेश वलीजायतेवारे घृतशीतलजलाधे तेमापुदगलजेरु पीपदार्थतेनासंजोगमां श्रावीनेशरिजेबांध्यं तेनेत्रात्मा ठरावेछे अनेतेत्रात्मानेरुपीकेहछे तमोटीतेजीवनेभ्रमणा जपेठेली एमसमजवू शामाटेजेरुप रसगंधस्पर्श स्व स्थानइत्यादीक वस्तुएआत्मानाघरमांनथी बाहारनंजे करवंकरावअथवाशब्दादीकजेउचारणकरवुएवंदेखीनेते नेरुपीपणंमानेछे पणतेकांत्रात्मानीवस्तुनथी श्रात्मातो केवो केतेकांइनजरेदेखवामांश्रावतोनथी मनथकीपण कांइग्रहणथतोनथी वचनथकपिण अगोचररुपछे अनेए आत्माबीजीवस्तुने प्रकाशकरीशकेनही एतोपोताना स्वरुपमांजप्रकाशकरेछे तेवोत्रात्मस्वरुप तेनेरुपीकेमक रीनेकेहेवाय एसाक्षातत्रात्मस्वरुप चीदानंदमयसत्यस्व स्वरुपबेतेनुस्वरुपवीचारीनेजोश्येत्यारेसुक्षममांसुक्षमछेने उतकष्टामांउतकष्टोपणछेएवीअन्यदर्शननेवीषेपणपुछा थयेलीछेकेशंशात्मामुर्तीपणानेफरसेकेनफरसतेनाएअन मतीवालायेएवोन्तरत्रापेलोकेशरीरनेवीषेइंद्रीयोछेतेमो टीछेइंद्रीयोथकीमनघणुंमोटुमनथकीबुद्दीघणीमोटीने द्विथकप्रिआत्माघणोमाटो.अहीयांएकखेदकरीनेउत्तरकेहे छेजेवीकललोकोकेहेतां जेप्रज्ञानलोकोत्रमूर्तीत्रात्माछे तेनेमुर्तीपणानी भ्रमणाराखीरह्याने तेथीजेज्ञानीपुरुषो - - Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - -- श्रीवात्मचिंतामणी. ६३५ छेतेनेएकमोटुअचंबाभूत मालुमपडे पालोकोनीशीमुर | खाइछेजेमाटेजीव प्रात्मानेमुर्तीनी मतीवेदनाप्रगटपणे छेएमजोमानीये तोपुदगलनेपणवेदनाथइजोइये पण हीयांतोजवेदनातेतोत्रात्माने अशद्धपणेशक्तीप्रणमेली तेनाअनुभवथकीथायछे कमजे ईद्रीद्वारेकरीनेजेत्रज्ञां नपणुंतेपोतानीमेलेज पोतेप्रणमेछे तेनापरभावथकीइष्ट पणंवाअनीष्टपणानो वीषेशर्सद्वारेकरोनेवेदनाप्रणमछे श्रहीयांएवेदनानोमालेकात्मउपयोगपणनथी पण इत्रहीयांपदगलदशा मालकनथीलहीयां एकत्रज्ञानद शाएटलेत्रात्मानो अवलोउपयोगमालकछे एटलेएवी पाककारपांमीनेत्रा वेदनाप्रणामनेभजेजे एटलोहीयां कल्पनाथकी श्रात्मानोभागमालुमपडेले तेमाटेत्रहीयां मुर्तीपणुजेमानवुते नीमीतमात्रथयु एटलेअनवीयकेहेतां सहचारपिणथयं केनीगोडेकेजम घटनेदंडवतदवतप पत्रहीयांकांइआत्मारूपीथायनहि केमकेत्रात्मातेतो ज्ञानमयचेतनारुपबोधछे अनेजेजीवकर्मनाश्रधीष्टितप पानेविषरक्तछे तेणेकरिनेतेजीवने तेकर्मफलनामावेद नाछेतेवीपदशिपाम्योछे तेकारणमाटेजेत्रात्माछे एतोत्र मुर्तिजबेचेतनपणाने कोइकालेओलंघेनही तेकारणमाटे जेआशरीरादकिजे पुदगलमुर्ती स्वभावीकछेतेनीसाथेर ह्योजेश्रात्माते काइमूर्तिथायनही शाकारणमाटेकेदेहनी - - Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६ श्रीआत्माचंतामणी. साथेत्रात्माकांइ एकलपणुपामतोनथी. एप्रकारेकर्मवर्गणानातथा मनोवर्गणाना तथावच नवर्गणानाजेत्रात्मानेसमिपेएपद्गलप्रवर्तेछे तेएकत्व संगतेप्रवर्तेने तेकीया तनधनादिकनाजेपुद्गलतेतोदूर जले तथामनवचननाजेपुद्गलतेपणत्रात्माथकी जुदाजमा नवा शामाटेजेपुगलनोगुणतो मुर्तिमानछे नेत्रात्मातो ज्ञानगुणवालोछे तेकारणमाटेपुद्गलथीत्रात्मद्रव्यसदाय जुदोज जेमधर्मास्तीकायनोगुणगतीहेतत्वछे तेमा मानोगुणज्ञानमय तेकारणमाटे धर्मास्तीकायथकीप पत्रात्माजुदोडे एवंजपरमेश्वरवचनछे तथाअधर्मा स्तीकायद्रव्यनोगुणते थोरसाहेकारीने तेगुणपणकांइ श्रात्मानोनथी आत्मातोज्ञानमयज तेकारणमाटेएत्र धर्मास्तीकायद्रव्यथकी आत्मद्रव्यभिन्नका एसर्व ज्ञयेकहयुंडे तथाअाकाशद्रव्यनोगुण अवगाहनाहेतत्वले तेथकीपणात्मगणजुदोजछे तेकारणमाटेत्राकाशद्रव्य थकीत्रात्मद्रव्यनिनकह्योछे एवांतिर्थकरनांवचनछे तेका रणमाटेत्रात्मातोज्ञानगुणेकरीनेज सिद्धछे तथाकालव रतनारुपछे तोतेथकीपणात्माजुदोजछे एवीरीतेपांचे अजिवद्रव्यथकी आत्मानुजुदापणुसाबुतठरयुं प्रगटएभे दकरीनेजुवेतोसमजपडे अनेदेशथकीजिवपणआत्मावं छेतेनंकारणकहियोनिये केमकेजेप्राणीने शुद्धस्वनावनी Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. प्राप्तीनथइ शुद्धज्ञानपणनजाएयुं ने शुद्धस्वरुपनीरमण तापणनच्छावी त्यारेतेशुद्धकार णथकी बेटे रह्योतेवारतेनुंस र्वच्यज्ञानदशारुपथयुं एटलेतेनुज्ञानपणमेलुरहयुं तेनात्र धवशायकरतकरावतमांरह्या तेनेबाहाजपुद्गलनुपरावर्त नरहयुं तेजिवने जिवजकाबे एवीरीतेशास्त्रमांछेजत्र नेसमजुपुरुषनेतो एवीरीतेजाणवानुंबे के इंद्रिबलसासो श्वासनेाउखु चारेछे तेनेद्रव्यप्राणकहिये तेतो आत्मा थकीजिन्नवे अनेजेपर्यायजेरह्या तेपणपुद्गलनेत्रा श्रीने रहेलाछे तेपणत्र्त्रात्मस्वरुपथकीतोजुदाजछे केमके आत्मा नेकांइएप्राणपर्यीयवमे कांइजिवबुंनथी शामाटेकेएप र्यायकेवाछेके कांइज्ञानरुपनथी तथाधिरजरुपनथीतथा नित्यसासवतानथी वलीथिरजावनथी एटलाकारथकी तोरहीत माटेने विपेशुंश्रात्मानेम लतापणुबे ने स्माजेसदीवजेथ की जिवेछे तेतोप्रक्रतीरुपजे पोतानीस क्तिसदायसदायसाश्वतीछे शक्तिवडेकरीने त्रात्मासदी वजिवेबे एशुद्धद्रव्यार्थ कनयनोपक्षजाणवो यहियांए कचरजकारीवारता कहियेबिये के होजेजिवना करीने जिवतोनथी नेत्राणविनाजिवजिवेछे तोए चंबा निजवारताने जेमचित्रकारीनुं चरीत्र सांभलिको नेहरखन वे पीतावेज तेमएवातशुद्धनयनीकोणनग्रहे सर्वेय हेबे वलितेश्रात्माकेवोछे केपुन्यरुपतेपणात्मानहित्र ६३\७ Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ श्रीवात्मचिंतामणी. नेपापरुपतेपणआत्मानहि पुन्यतथापापबेयेपुद्गलरुपले जेवालकालेजेशरीरतउपादांन नावेकरीनेकल्पे एटले जेमबाललिलाकहतां बालकछोकरांधुलनीक्रिडाकरेछे तेनेसत्यकरीमानेछे तेमएवालजिवज्ञानरहित पुन्यपाप नाकामनेत्रादरवं गंडसत्यकरीमाने पगपू कर्म नेपापछेतेश्रशुनकर्मछे त्यांकोइकहेशेकेपुन्यछेते अादरवाजोगजे पापबेतेछांडवाजोगळे तेनेशिक्षाकरे के शंकांइशुनकर्म तेथकीजिवशंसंसारमांपडे केनथीपड तोमाटेएथकीपणसंसारमा रखडवुजपडे एतोकेकेएक लोढानीबेडी नेएकसोनानीबेडीछे एबन्नबेडीयो बंधि खानांछे बन्नेयेपरवश नेबन्नेयेदूखदाइछे विचारीनेजो इयेतोफलनेदकांइजणातोनथी बन्नेवेदनीकर्मरुपबेएक सुखनुंफलछे नेएकदुखनुंफलछे एबन्नेनुफलप्रगटजोइये तोपुन्यपापमध्येकांइभेदछेनहि जेकारणमाटेपुन्यथकीसु खविलशे एपुन्यफलछे तेनांजेफलतेत्रागलदूखरुपप्रग टेत्यारेएमसमजवू केएपुन्यफलथकीपापप्राप्तथयुत्या रेएपुन्यतेपापमुंदातारठरघु नेएपापकर्मनोजेवारेउदेथ योतेवारेदुखनीप्राप्तिथाय माटेतेमांतोमरखहोय तेसाता करीमाने प्रणामथकीविचारीनेजोइयेतोमहातापकारीछे केमकेपंडितजनएकुंकहे जे संस्कारथकीउलटागुण नोवि रोधकरताएपुन्यछे अनेवलीतेपुन्यथकीनिपन्युजेसुखते Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्मचिंतामणी. सुखनेभोगवतां पापकरीनेदूखनेपांमे तेउतराधेनजि निकथानेविषेएवुकहयुंछे जेममोटोबोकडो तेनेखानपान सारीपेठेमलेतेथकी शरीरपुष्टथाय पोतेपणमनथीखुश थायपणघरेपरोणोत्रावे तेवखतएनोवधकरे तेवारेदुखी थाय तेमजएराजातथा इंद्रादिकतेनापणसुखमांशरीरपु स्थायछे तेबोकमावत्जाणवू प्रणामेजोतांएपन्य तेदुख नकारणज अथवाजेमजलो तेलोहिपितांथकांघणस खमांनेछे पणतेनेदोहिनेलोहिकाढीले तेवारेमहादूखनी प्राप्तिथायछे तेमएपुन्यनाउदेथकी पांम्योजेसुखतेनोग वतांघणीखुशीमाने पणतेसुखनोगवतांउपायुंजेपाप कर्म तेथीमहादुखनिप्राप्तिथाय माटेएपुन्यपापबन्नेत जवालायक ज्ञानिपुरुषतोएकेश्रादरवाजोगकहेतानथी श्रादरवाजोगतो एकात्मस्वरुपजछे अनेविषभोगनिज त्रष्णातेतोप्राणिने अंतेपणमाठिदशानेपमा जेमत्र ग्निनबलबलतुपाणिपिधे जलनीतृषाक्यांथकीरिपे तेम जेठेकाणेइंद्रियोनिउतकंठा घणिरहेतो एसदायमननेवि बलिरहेलोछे त्यांसुखक्यांथकीहोय तथाज्यांद्वेषघणो रहेतेवोथको घरमांसुखेबेठोहोय तोयपणतेसुखनाअनु भवनाकालनेविषे द्वेषरुपियातापेकरीनेमनदूखवेदे केम के एकखभाउपरथी बिजेखभेभारारोपणकरिये. तेविचारीनेजोतांकां नारउतोनहितेमज इंद्रीयोनाया Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० श्रीआत्मचिंतामणी. दथकीकांइ अात्मानेसुखप्रगटयुनहि अंतेदुखनुदूख रह्युएटलेसुखदुखने मोहएत्रणेगुणवर्तीरुपछे पणात्मा नेताविरोधीजछे पणपोतपोतानागुणमा गुणनीवृत्तीछेए टलेदुखरुपीजेवनतेनेतो अोलंघीशकेनहि अनेत्रासंसा रनुजेसुखअथवा दूखतेकोनाजेवूछेके जेममोहोटोनाग माहाक्रोधिहोयअनेतेणे पोतानीफणाटोप विस्तार्योहोय तेसरखोएसंसारनोविलासले माटेविवेकीपुरुषनेतोएमहा नयनोजहेतु एवीरीतेफलनीअपेक्षा वीचारीनेजोतांपु न्यपापनुएकलपणुंजठरेछेजेमुरखनमाने तेनेत्रज्ञानदशा ठरीतेघगोसंसारपरीब्रमणकरशेत्रने जेएवस्तुएवीरिते समजीनेअंगीकारकरे तेधणीनवसमद्रतरेएमांकांइसंदेह बेनहीएटलेपुन्यतथापापएवंनेएकदुखरुपजछेअनसदाय कालत्रात्माथकीनीन्नछेत्रनेत्रात्मगुणनाविरोधीछे मा टेअवश्येतजवाजोगशुद्धनीश्चयथकी विचारीनेजोतां शुद्धत्रात्मासदायसत्यरुपचिदानंदमयछे एतोचोथीद शाजावाजोगछे तेवंगरुपवित्र एवोत्राचरणवशिशशो ने जेमषाकाले मेघवरशीरह्यापछीजेमवादलांनोना शथायत्यारपबी सुरजनीजेशोनाकांतिदीसेतेमएआ स्मानीसोनादिसे जेमजगत्तनाजीवने इंद्रियोनुसुखवृत्ती नुनानाप्रकारनंथायनेसमान्यप्रकारेजेचिदानंदरुपछे तेतोसर्वदशामांहेसरखुसुखदेखेछे तेनेकांइवधतुन्छुछेज - Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्मचिंतामणी. ६४१.. नहीजेमतणखेकरीने अग्निदिपेनही अथवाएथकिकांई तापपणलागेनहि तेमजेअनुभवसहित श्रात्माछेतेनेपरा भवथकीकशुयेथतुनथी जेपरवशत्तायेजेम सुखरुपनोसा क्षिजेत्रात्मानथी तेनेअनीमानअहंकारपणनथी तेविना जसुखनुनाषगथायछे शामाटेकेविवेकदशा जेनेप्रगटप थइनेसुद्धभाषणथयु तेनेतोसर्वस्थानकनेविषेसुख जदिठामांत्रावेने तेकारणमाटेशुद्ध निश्चेनयथकिएकचि दानंदनावनो आत्मानोक्ताछे अशुद्धनिश्चयनयथकीक रयांजेकर्मशुनाशुन तेथकिउपन्युजेसुखदूरखतेनो भोक्ता श्रात्माने जेकर्मनाफलनोभोगदारिसर्गनिश्रादेदेइनेबेते व्यवहारथकिप्रवर्तनछे एसर्वेनिगमादिकनयनीअवस्था एविरितनीजनावनाबेशुद्धनावनोकरता जेत्रात्मातेतोश द्वनयथकिंजपामिये एसामर्थाइबिजीजगायेनथी जेसमे शुद्धपरिणामवते तेसमसामर्थ्यविरजनिवृत्तिने श्राश्रीने शुद्धनावनोकरताजएनयवालोमाने उपद्रव्यअंतराया दिकरहितसामर्थ्यपणुतेनेविषे दुष्टनावनोनाशथयेथके शुद्धस्वभावप्रगटकरवाने आत्माप्रवर्ते अनेज्यांरागदे षकलेषेकरिनेचितवाशेलुजेनं तजिवतोसंसारिजकहेवा यत्रनेजेरागद्वेषमोहथकीमुकाणाछे तेनोतोमोक्षजकहिये जेमननोपरिणामशंकलिष्ट रागद्वेषेवापेलो तेनेआत्मा नकहिये.आत्मानुरुपतोअन्यवडेनथीपोतानासत्वार्थपणे Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्मचिंतामणी. जत्रविकारीज हवेअहियांशब्दनयवालो सुतज्ञानना उपयोगवंतनेआत्माकहेछे एनयनोविचारछे माटेअहि यांन्यायग्रंथमहोटा तेथकिनयनोविचार थोमोककहि शं त्यांनयोबेछे एकद्रव्यार्थक बिजिपर्यायार्थक तेमध्ये द्रव्यार्थककोनेकहिये विजिनयतेनयथकीभिन्ननपडे एवो विषयजेनतेनेद्रव्यार्थककहिये तेनाचारनेदछे निगम संग्रह २ व्यवहार ३ रजुसुत्र ? एनेदबे तथापर्याया र्थकनात्रणभेदछे शब्द १ संभिरुढ २ एवंभुत ३ एभेद बे तथाविकल्पेकरीनेरजुसुत्रनयपण पर्यायार्थमांकह्योछे एविकल्परुपनयछे हवेनिगमनयनात्रणनेदछे अारोप अंश २ संकल्प ३ एभेदभाख्याने तथाहियांचोथो नेदउपचारपणको तेशंकेनथीएकगमोअभिप्रायकहे | एटले निगमनयकहेवाय अनेकत्राश्रियेछे तेनिगमना चारभेदले तेमध्येआरोपनिगमनाचारनेद द्रव्यारोप गुणारोप २ कालारोप ३ कारणादिआरोप ? त्यांग पादिकनेविषे द्रव्यपणुमानवं तेद्रव्यारोप जेमवर्तमा नापरिणाम तेपंचास्तीकायनेविषेप्रणमनधर्म तेहेनेका लद्रव्यकहिबोलवो एभिन्नद्रव्यरुपपंडछेनहि पणद्रव्य कहेवोतेारोपधर्मकहोबो अथवाद्रव्यनेविषे गुणनोआ रोपकरवो जेमज्ञानगुणछे इत्यादिकत्रात्मानागुणकहेवा तोएज्ञानतेजश्रात्माकह्यो इत्यादिकगुणनोआरोपको Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६४३ - वे २ तथाकालत्रारोप जेम श्रीविरनिरवांणथया घलोका लवित्योपच्यजदिवालीने विरनुंनिरवाणबे इत्यादिक वचनबोलवु एवर्तमानमांत्रतितनोत्रारोपकरयो अथवा श्राज श्रीपदमनाथप्रभुनुनिरवाणछे एवर्तमाननेविषे श्र नागत्यनुत्रारोपछे एमप्रतितनेविषेपणवेभेदथाय तथा अनागतनेविषेपण बेनेदथाय एविरितेकालारोपनेविषे भेद जाणवा ३ हवे कारणनेविषे कारजनोयारोपकरवो त्यांकारणरोपकहिये तेकारणनाचारभेदबे तेकहियेछिये उपादानकारण १ निमितकारण २ श्रसाधारणकारण ३ अपेक्षाकारण ४ एचारकारणबे तेमध्येजेउपादानका रणप्रथमकयुं श्रात्मानाज्ञानादिकगुणनुत्राराधन. स्व. नावग्राहि विभावत्यागि स्वसत्ताविलंबन इत्यादिक पोतानास्वनावनेविषे थीरभावेरमणताकरवी तेउपादा नकार कहिये १ हवेबीजुंनी मीतकारणतेनावेनेद शुद्ध १ शुद्ध२ जे गुरुशुद्ध मार्ग नादेखाडनारा श्रात्मस्वरुपनीत्रो लखाणकरावे परजावनोत्यागकरावे तेजगुरुमोक्षनादा तारकहिये परम उपगारीस्वपरनीोलखाणनाबताव नार तरणतारणझाहाज समान तेनीजेसेवाभक्तीकरवी शुनमीतकहिये तथा शुद्ध नीमीतजे बाह्यकष्टक्रिया तपादिककरे द्रव्यथं की साध्यसाधनसापेक्षछे तेबाह्य जीवनेधर्मनीमीतकारणछे तेनेव्यवहारथकीधर्म कहिये Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ श्रीआत्मचिंतामणी. पणकारणनेविषेकापणानोआरोपथयो२ एमअारोप नाअनेकप्रकारकह्याछे अंशनीगमतोव्यवहारादिककार पनेविषे सर्वठेकाणेव्यापीनेजरह्योछे तथासंकल्पनीग मनाबेनेद एचप्रमाणरुपजेवीर्ज चेतनानोनवोनवो क्षयउपसमथायतेलेवो अथवाकारजंतरेनवोनवोकारज नोउपयोगथायएवेनेदछे हवेजेअंशनीगमपुर्वेकह्यो ते नाबेनेदसंक्षेपथकीकहुंछु एकनिन्नास१बीजोअनिन्नास २ तेनिन्नासकेहेतांजे पुद्गलनास्कंधजुदाजुदाकलपायछे नेछेपणजूदाजूदा शामाटेकेएनामांमलवावीखरवानोध मरह्योछे तथाअभीनासकेहेतांजे आत्मानाप्रदेशतथाग पअनिन्नछे एकोइकालेजूदाथायनही तेमजधर्मास्तीका य तथाअधर्मास्तीकाय तथााकास्तीकायपणजाणवा एटलेनिगमनयकह्यो१ हवेसंग्रहनयकहियेठिये सामा न्यपणेमलद्रव्यव्याक जेनीतत्वादिकसत्तापणेरवाजेध म तेनेसंग्रहकरतेसंग्रहनयकहिये तेसंग्रहनयनाबेनेद छे सामान्यसंग्रह विषेशसंग्रह त्यांसामान्यसंग्रहनाबे भेदछे एकमुलसामान्यसंग्रह १ तथाउत्तरसामान्यसंग्र ह२ मुलसामान्यसंग्रहनाछभेदछे तेत्रागलअस्तीतत्वा दिस्वभावकहिगुंत्यांकेहेवाशे तथाउत्तरसामान्यननावे भेदछे एकजातीसामान्यबीजोसमुदायसामान्य जा तीसामान्यकेहेतां मनुषजातीतथात्रीजंचजातीतथादेव - - Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्माचंतामणी. ६४५ - | जाती एजातीसामान्यछे तथासमुदायसामान्य जेमत्रां बानासमहनेविषे अथवाांबानावननेविषे एटलेसर्वेत्रां बाग्रहणथयाएसमुदायवचन अथवामनुषसमुदायनेवि षे मनुषसर्वग्रहणथाय एसर्वेसमुदायसामान्यजाणवू ए टले एउत्तरसामान्यजेछे तेचक्षुदर्शनतथाचक्षुदर्शन ग्राहीछे अनेमुलसामान्यजेछ तेतोअवधीदर्शनजिय हेवाय शावास्तेकेइहांमुलवस्तुनुजाणवुछेतेप्रत्यक्षज्ञान दर्शनविनाग्रहपथायनहि अनेजेपरोक्षवालाजाणेछे ते सदगरुनाकेहेणथकीजजाणेछे अथवाबीजेप्रकारे एसंग्र हनयनाबेनेदछे सामान्यसंग्रह विषेशसंग्रह२ त्यांद्रव्य एवोशब्दकेहेवोतेसामान्यसंग्रहछे शामाटेकेद्रव्यकेहेतां छयेद्रव्यावीगया माटेएनेसामान्यसंग्रहकहिये तथा विषेशसंग्रहकेहेतां जीवद्रव्यत्रजीवद्रव्य एमजीवथीत्र जीवजूदापाडवा एमरुपीथीरुपीजूदापाम्वा एविषेश थयो एकएकद्रव्यनेबीजाद्रव्यथकीजूदोपाडीएकद्रव्यपो तानीजातीनोसंग्रहकरीबोले तेनेविषेशसंग्रहनयकहिये तथाएविषेशसंग्रहनयनोविस्तारघणोछे तथाविषेशावि शग्रंथनेविषे एसंग्रहनयनाचारनेदकह्याने तेगाथानो अभिप्रायसामान्यथकीदेखाटुंछु संग्रहणकेहेतां एकठो एकवचनमध्ये एकअध्यवसायउपयोगमांसमकालेग्रह वो सामान्यरुपपणेसर्ववस्तुनो आकरोमनग्रहणकरवो - Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ते संग्रहकहिये प्रथवा सर्वभेद सामान्यपणेग्रहिये जेणेते लेते संग्रहकहिये श्रथवा संग्रहीतपंडित समुदायप्रर्थग्रहेवायजे ऐवचनेते संग्रहे वचन कहिये तेनाचारभेद संग्रहीत संग्रह १पंडीतसंग्रह २ अनुगम संग्रह ३वीत्रेकसंग्रह ४ सामान्य पणेवे हेच वीना जे गृहणथाय एवोजेउपयोग थवावच न अथवा एव जेधर्म कोइवस्तुनेविषेते संगृहकहिये १ नेएकजातमाटेएकपणुमानीये एकमध्ये सर्वगृहणथायते पंडीत संग्रहकहिये जेमए गेायाए गेपुगला इत्यादिव स्तुतीने पणजातीएकडे माटेएकवचनमांगृहणथायछे तेने पंडीत संग्रह बीजो नेद कह्यो२तथा सर्ववक्तीजेनेकजी वरुप अनेवक्ताछेते सर्वमांपामिये तेने नुगतसंगृहकहि ये सतचीतमयात्मा एटले सर्व जीवतथासर्व प्रदेश त थासर्व गुणते जीवनाचेतनालक्षणकहिये एनेत्रनुगमसंगृ हकहिये ३ तथाजनेता के हेवेते थी इतरनो सर्व संगृहपणे ज्ञानथाय एवीत्रीकसंगृहकहिये जेमजीववेत्यारेजीवन हीहते जीव कहिये एटले कोइजीवबेएवंठ एवीत्रीकव चने श्रथवा उपयोगेजीवनों गृहणथायडे तेनेवीत्रीकसंगृह कहिये ४ अथवा बेनेद संगृह के वायबे एकतोमाहासत्ता रुप १ बीजोावंतर सत्तारुप२ एरीते संगृहनुंस्वरुपकह्युं एटलेत्र णभुवनमांएवीवस्तुको बेनही जेसंग्रहनयनागृ हणमात्रावेनही अर्थात सर्वैवस्तुसंग्रहनयनागृहण मांत्रा Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीत्रात्मचिंतामणी. ६४७ वे ॥उक्तंच॥ सदितीभणीएणजम्हा ॥ सव्वगणुपव्व त्तएबुद्धी॥ तोसव्वसंत्तमंतं॥ नबीतदंतरंकिचि॥१॥ इति संग्रहनयकह्यो२ हवेव्यवहारनयकहियेछिये जेपुर्वेसंग हनयेजेवस्तुग्रहणकरी तेनेनेदंतरकरीनेवेंहेंचवं तेनेव्य वहारनयकहिये जेमद्रव्यकह्योतेसामान्यकह्यो तेमध्येवें हैंचणकरिये त्यारेद्रव्यनाबेभेदथाय एकरुपीबीजोत्र रुपी२ अरुपीनावभेद एकचेतनबीजोत्रचेतन२ इत्या दिकजेभेदहेंचवा तेसर्वेव्यवहारनयनोपक्षजाणवो अथ वाव्यवहारकेहेतां प्रवर्तनतेनेव्यवहारनयकहियेडिये ते नाबेभेदछे शुद्धव्यवहार१अशुद्धव्यवहार२ तेशुद्धव्यव हारनाबेनेद वस्तुगतव्यवहारकेहेतां जेसर्वव्यनोस्व रुपरुपशुद्धप्रवर्तीहोय जेमधर्मास्तीकायनीचलणसहाय ता अधर्मास्तीकायनीस्थीरसहायता जीवनीज्ञायकता इत्यादिकवस्तुगतव्यवहारले तेनात्रणभेदछे द्रव्यव्यव हारगुणव्यवहार२ स्वनावव्यवहार३ बीजोसाधनव्य वहारनाबेनेद उत्सर्गसाधन अपवादसाधन २ जेउत्स गसाधनते द्रव्यनउत्सर्गनीपजाववामाटे रत्नत्रीयनी शुद्धताकरवी तेगुणस्थानेश्रेणीवारोहणरुपथावं हवेजेत्र शुद्धव्यवहारनाबेनेदजे क्षेत्रश्रवस्थाने अनेदरवाजेगु ||ज्ञानादिकनेदकेहेवा असदभुतव्यवहारकेहेतां अमुको क्रोधी मानी विषइइत्यादिक अथवादेवतामनुषइत्यादी - Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४८ श्रीश्रात्मचिंतामणी. - कअथवादेवतापणं तेहेतुपणेप्रणमे ग्राहाजेदेवगतीवींपा कीकर्मतेनेअहोरुपानावने पणजथार्थज्ञानविनानेदज्ञा नसुनजीवएककरीमानेने तेअशुद्धव्यवहारकहीये तेवली अशुद्धव्यवहारनाबेनेदएकसंकलेसीतअशुद्धव्यवहारजे शरीरमाहारुं हुंशरीरइत्यादिकअसदभुतव्यवहार तथा असंसलेषीतकेहेतां पुत्रधनादीएमाहारु एकेहेतेअसं सलेपीतएअशुद्धव्यवहारनाबभेद माहानाध्यमांकह्याछे हवेजेव्यवहारनाबेनेदमुलडे एकवेंचणरुपव्यवहार १ बीजोप्रवृत्तिव्यवहार तथाप्रवृत्ति एकवस्तुप्रवर्तन १ सा धनप्रत्ति २ लौकिकप्रत्ति हवेसाधनप्रत्तिनाबेनेद एकलोकोत्तरसाधनप्रवृत्ति जेअरीहंतनीयाज्ञायेशद्धसा धनमार्गेएहलोकसंसार पुद्गलभोगासंसाजसासंसादिर हीत जेरत्नत्रीयनीप्रणती परनावत्यागसहीतनेसाध नाप्रवृत्ति तथाजेस्यादवादविना मिथ्यानीमानसहितकु प्रवचनकसाधनाप्रवृत्तिक अथवालोकव्यवहारपरोवाये वचनेजेलोकनोस्वस्वदेशअनकुलप्रवर्ते तेलोकव्यवहार कहीये एटलेत्रापआपणेस्वार्थनोमार्गचलववोअथवात्रा पापणास्वार्थनो उपदेशतेमार्गमांजेप्रवर्तेअथवाप्रवर्ता वेतेसर्वेलोकव्यवहारनयनाभेदजाणवा तथाद्वादशानय चक्रमध्येएकएकनयनासोसोनेदकह्याबेतेशास्त्ररहस्यना जाणजीवहोय तेनेएग्रंथथकीजाणवा एविचारधारवाथी - Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्मचिंतामणी. ६४९ खुलासोघणोथशे एटलेएव्यवहारनयकह्यो ३ हवेरजु सुत्रनयकहीयेगये रजुसरलजेसुतकहेतांबोधते रजु सुत्रकहीये रजुशब्देअवक्रपणुंछे एटलेसमभावहोयते सुतहोयतेने रजुसुत्रकहीयेअथवा रजुवकपणवस्तु पदार्थनेसत्यकरीजाणे तेनेरजुसुत्रकहीये तेवस्तुनुवक्रप णुकेमजणायतेकहीयेछीये संप्रतेवर्तमानपणेउपन्योवर्त मानकालवस्तु तेरजुकहीये अनेजश्रतीतअनागततेर जुसुत्रनीअपक्षायेतोछे एटलेत्रतीततोवणशीगयोत्र नागततोश्राव्योनथी तेवारेअतीतअनागतएबेछे तेव स्तुले अनेजेवर्तमानपर्यायवरते तेवस्तुपणुंसत्यछे पूर्व कालपबातकाललेइवस्तुकहेवी तेनिगमनयेआरोपणरु पत्यांकोइपुछशेजे संसारीजीवकर्मसहितनेसिद्धसमान कहछे तेअनागतकालेसिद्वथाशे तेमाटेकहेछे तेनेतमेत्र नागतनेअवस्तुकेमकहोगे तेनोउत्तर. - हेनव्यएअनागतनावी माटेकहेतानथी एतोवर्तमान सर्वगणनीछतीपर्याय श्रात्मप्रदेशेने जोतीपर्यायन होयतोसामर्थ्यपर्यायक्यांथकीथाय माटेएवर्तमानमांव स्तुजपणश्रावरणेकरीने ढंकाइगयो तेथीप्रवर्तननथी तेमाटेतिरोभावपणामाटे संग्रहनयकहिये पणवस्तुमांते सर्वेसकलज्ञानादिकगुणछतांवर्तेछे तेमाटसिद्धकहियोग ये अनेजेवस्तुतेनामादिकपर्यायसहितजेवर्ते माटेनामा ८२ Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआत्मचिंतामणी. दिकनिक्षेपातेसर्वरजुसुत्रनाभेदछे एटलेनामादिकत्रणनि क्षेपाद्रव्य अनेभावएबेव्याख्याकारणकारज नावनीवहें चणकरतेमाटे पणवस्तुमांसहेजचारनिक्षेपातेभावधर्म जबे तथापोतपोतानुकारजकरताजछे एरजुसुत्र तथाबी जोथुलरजुसुत्रएक्षणवर्तमानकालनो एकसमयतेनेसुक्ष्म रजुसुत्रकहिये अनेबहूकालीरजुसुत्रएपणकालापेक्षाना वेछे तथाएनावनयेछे तथाएनेजोगाविलंबीपणेतेबहाज तेद्रव्यमध्येगणे एरजुसुत्रनयकह्यो ४ हवेशब्दनयन स्वरुपकहियेछिये संप्रतीकहेतांबोलावे तेनेशब्दकहिये अथवासपीयेबोलावियेवस्तुपणेतेशब्दकहिये तेशब्दते वाचअर्थहेनेग्रहेतेप्रधानपणे जेनयेतेपणशब्दकहिये जे मकरतकतेंजेको तेनोहेतुजेधर्मवस्तुमाहोय तेबोलावि येएटलेशब्दकारणतो वस्तुनुंधर्मथयुं जोजलाहरणध मछेतेनेघटकहियेछिये एमअहियांपणशब्देवाचअर्थग्रहे तेनयेपणशब्दकहेवाय जथाजेमरजुसुत्रनयने वर्तमान कालनधर्मइष्टछे तेमशब्दादिकनय तेपणवर्तमाननेजइ ष्ट जेकारणेपेटेपरथु पहोलो बुधन गोलसंकोचीतउद रकलीत युक्तजलाहरण क्रियानेसामर्थप्रसिदंघटरुप भावघटमांजघटेछे पणशेषनामथापनाद्रव्यरुपत्रणघट नयेघटनमानेघटशब्दनाअर्थनेतेसंकेतनेजघटकहेघटधा ततेचेष्टावाची तेकारणमाटे शब्दनयतेचेष्टाकरतानेजघ - Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीत्रात्मचिंतामणी. टकहे एटलेरजुसुत्रनयच्यारेनक्षेपासंजुक्तछे पणघटमा नेअनशब्दनय तेनावघटनेघटमाने एटलोविशेषपणो शब्दनाअर्थनीज्यांउत्पत्तिहोय तेनेतेवस्तुकहे एटलेरजु सुत्रनयेसामान्यघटगवेख्यो अनेशब्दनयेसदनावजेत्र स्तीधर्म असदनावजेनास्तीधर्म तेसंजुक्तवस्तुनेवस्तुपए कहे एटलेवस्तुनेशब्देबोलावतां सातभांगेबोलायवो एटलेएसप्तनंगीजेटला तेशब्दनयनाभेदजाणे तेसप्तभं गीनूस्वरुपबोधदीनकरथकीजाणवू एशब्दादिकनय व स्तुनापर्यायनेत्रवलंबीने वस्तुनाभावधर्मनो ग्राहकछे तेमाटेनावनिक्षेपेएनयमुख्यअनेधुरनीचारनयमांनामा दिकत्रनिक्षेपामुख्यछे एटलेएशब्दनयनस्वरुपकह्यं ५ हवेसंनीरुढनयनीव्याख्याकहियेछिये पुर्वेजेशब्दनयक ह्यातेनेमतेइंद्रशंकरपुरंदरइत्यादिसर्वेनामभेदछेएकपर्या यवंतनेदेखिइंद्रसर्वनामको उक्तंच विशेषावश्यके एक समिनपी॥इंद्रादिकेवस्तुनीत्राचित॥इदनसरकनपुरणंदी यो॥अरथाघटंतेतदधसेनसक्रादि।बहुपरजायमपी॥तद्ध वस्तुशब्दनयोमन्यते॥संभीरुढवस्तुनेवमस्यत॥इतिनयो रनेद॥ एकपर्यायप्रगटपणेशेषपर्यायने अणप्रगटवेतेट लांसर्वनामबोलावे पणसंभीरुढतेनबोलावे एटलोश ब्दनयतथा संभीरुढनयनोनेदछे तेमाटेहवेसंभीरुढनय कहेछे जेसंज्ञाघटकंभादिकामध्ये जेसंज्ञानोवाचअर्थदि Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअात्मचिंतामणी. - - re सेतेजसंज्ञाकहे संज्ञातरअर्थनेविषे प्रमुखछे तेसंभीरुढ नयकहिये जोएकसंज्ञामध्ये सर्वमंत्रमानियतोसर्वशं करथाय त्यारेपर्यायनोभेदपणोरहेनहि अनेजेप्रजात्रं तरहोवेतेतोनेदपणोजहोवे तेमाटेप्रजाअंतरनोनेदपणो जरह्यो तेमाटेलींगादीनेदनेसापेक्षपणे वस्तुनेभेदपणो जमानवो एसंभीरुढनयवखाएयो एनयपणभेदज्ञाननी मुख्यताछे एटलेसंभीरुढनयकह्यो ६ हवेएवंभुतनयक हियेब्येि एवंकहेतां जेमघट एशब्दचेष्टाव्यापी इत्यादि करुपशब्दनोअर्थकह्यो एरीतेजपरवर्ते तेघटादिकअर्थ तेएवंकहतांएमहिजवर्ते विदमानपणेजेशब्दनाअर्थनेला धिनेवते तेशब्दनोवाचनथी अनेशब्दार्थपणुजेमांनपांमि येतेवस्तुतेरुपनहि शब्दार्थमांहेथी एकपर्यायपणन्छो होवेतोएवंभुतनयतेनेकहे एमाटेशब्दनयथी तथासंनी रुढनयथीएवंनुतविषेशांतरले एएवंभतनयेस्त्रिनेमाथेच डयो पाणीप्राणवानीक्रियानोनिमितमार्गे श्रावतांपणेनी चेष्टाकरतोघटमाने पणघरनेखुणेरह्यो तेनेघटनमाने केमकेचेष्टानेत्रणकरवामाटे जेक्रियावंतथकोहोय तेनेव स्तुकहे बिजानेनकहे तेअर्थकह्यो जेलक्षणकह्यां तेरुपेवि शेषथीएजेचेष्टाघटशब्दवाचेप्रसिद्ध इयोसितस्त्रिनेमाथे पाणीलावतोतेघट तथास्थानकेरह्यो अथवात्रक्रिया | करतांनेतेएवंभुतनयघटनकहे एशब्देअर्थ तथाअर्थेश Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ब्दनेवापे अहियांतोरहस्यएजछे जेस्त्रिनेमाथेचम्योचे ष्टावंतअर्थतेघटशब्दबोलावे तेथकीअनथातेनेनबोलावे. जेमसामान्यकेवलीने संभीरुढनयेअरीहंतकहे जेज्ञाना दिकगुणसामान्यछे पणएवंभुतनयेसमोवसरणादि अ तिशयसंपदासहित केवलीइंद्रादिकपुजता युक्तनेजत्र रीहंतकहे वाचवाचकनीपुर्णतानेकहे एस्वरुपेएवंभुतनय जाणवो एसातेनयनाविशेषावश्यकनेअनुसारे भेदकह्या तेभेद।२छेतेनोवीवरोनिगमना १० संग्रहना १२ व्यव हारना १४ रजुसुत्रना ६ शब्दनयना ७ संनीरुढनय ना २ एवंभुतनयनो १ नेदएवंसर्वमलीने५२नेदकह्या वलीनयचक्रमध्ये सातसेंनेदपणकह्याने तेपणजाणवा तथाअठावीसभेदपणकेटलेकठेकाणेकहलाछेतथास्याद वादरत्नाकरमांनयनुस्वरुपकहथुछेतेरीतेहिंयांकहिनेदे खामियेछिये नयतेकहेतांसुतज्ञानरुपप्रमाणेपमाडे जेणे वीषयकीधोजेपदार्थनोअंशतेथीश्तरकहेतांबीजोत्रंशतेथी उदासिनपणे तेनेजपडीवजवावालानोअभिप्रायविशेषेते नयकहिये एटलेवस्तुनाशनेग्रहअनेबाकीपदार्थथीउ दासिनपणुंतेनयकहिये अनेएकशनेमुख्यपणेकरी बी जाशनेउथापे तेनेनियाभासकहिये तेनयनाबेनेदछे एकद्रव्यार्थक बीजोपर्यायार्थक त्यांद्रव्यार्थकनाचारभेद निगम १ संग्रह २ व्यवहार ३ रजुसुत्र ४ एचारनेद Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ श्रीश्रात्मचिंतामणी. | बे कोइकरजुसुत्रनयनेभावनयकरीगृहे तेनयेद्रव्यार्थक नात्रणनेदथाय. ... हवेनीगमनयनु स्वरुपकेहेजे धर्मनोप्रधानतथागुणप अथवाधर्मने प्रधांनअथवागुणपणे तेधर्मथीएबेनाप्र धानतथागुणपणे जेगवेख्योएटले धर्मनीप्रधानतातेवारे पर्यायनीप्रधानताथाय तथाधर्मनोप्रधानपणो तेवारेद्र व्यनोप्रधानपणो तथागुणपणं तथाधर्मनोप्रधानगणप पो तेजेद्रव्यपर्यायनोगुणप्रधानपणो एरीतेजेगवेखणा रुपज्ञाननोउपियोग तेनेनिगमनयजाणवो तेनाबोधनेनि गमबोधकहिये हवेएनाउदाहरणकरेछे सतकहेतांबतांप चेतनकहेतांजाणपणुं एवेधर्ममध्येएकधर्मनोपक्षमुख्य गणे बीजानेगुणपणेकरीनेगवखे एरीतेनिगमनयजाण वो अहिंयांचैतननामेव्यंजनप्रजाय तेप्रधानपणेगणे जे कारणेचैतनपणोविशेषगुण अनेसत्वनामाव्यंजनप्रजा यो तेसकलद्रव्यसाधारणछे तेमाटतेनेगुणपणेलेखवे ए प्रथमनिगमनेदकह्यो तथावलीवस्तुपर्यायचद्रव्यंएधर्म नोनिगमछे अहिंयांपर्यायएवंद्रव्यएमवस्तु अहिंयांद्र व्यनुप्रधानपणुंवस्तुपर्यायवंत अहिंयांवस्तु-गुणपणुंप र्यायमुख्यपणुं अहिंयांउनयेगोचरपणामाटेएनिगमबे नेदलक्षणमेकसुंबी विषयाशक्त इतितुंधर्मधर्मीनोरीति अहिंयांविषयाशक्तजेव्याख्या जेधर्मनीमुख्यतानाविषे Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६५५ कपणाथी सुखलक्षणधर्मनुं प्रधानतातेविशेषपणेकरीनेध धनेालंवने संगमठारे एटलेधर्मतथाधर्मीछे ने लंबेएबेगृहता संपुर्णवस्तुनुं गृहणथयुंतेवारेप्रज्ञाननेप्रमा एकह्यो त्यांउत्तरद्रव्यपर्याय बमी एबने प्रधान एत्र नुभवतोजे ज्ञानतेप्रमाणथाय हिंयांबेपक्षनेविषेगुण ताबीजानी मुख्यतालेइनेज्ञानथायछे तेमाटेनयेकही त थावली सुक्ष्मनिगोदीजिवसिद्धसमासत्तावंतछे थवात्र जोगीजनतेसंसारीएशनिगमबे. हवेनीगमाभाष्यकेहे वस्तुमांधनेकडे तेएकांते एकबीजाने सापेक्षपणेनमाने एकधर्मनेमानब जाध र्मनेनमानेतेनीगमाभाष्य कहीयेएदुरनयजाणवो जेकार ऐत्र्प्रन्यनयनेगवेखेनही ते सर्वेदुरनयजाएत्रो जेमच्ात्मा नेविषेसत्यतथाचैतन एबन्ने धर्मनीन्नछे तेरोचैतन्यपणुमाने सत्वपनमाने एनीगमनाप्यकहीये एटलेनीगमनयक ह्यो १ सामान्यमात्र समस्तविशेषरहीत सत्वद्रव्यत्वा दिक ग्रवानोबे स्वभावजेनो संकेहेतांपंड्यपणेंविशेष राशीने हे पणवक्तव्यपणे नग्रहेएसंग्रहकहीये एना वनाछेएटलेस्वजातीना दिठाजेइष्टार्थतेने निरोधेकरी नेविशेषधर्म ने एकरूपपणेजेग्रहेवो तेसंग्रहनयकहीये तेनाबेनेद एकपरसंग्रह बीजो परसंग्रह त्यांपरसंग्र हनोलखीयेछीये॥ असेषविशेषदासीनां भजमानंसु Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअात्मचिंतामणी. धद्रव्यं सनमात्रमभीमनमान्य परसंग्रह इति।समस्तवि शेषधर्मपणानेनजतो एटलेविशेषपणानेणग्रहेता शु द्वद्रव्य सत्तामात्रप्रतेमाने तेपरसंग्रहकहिये जथाद्रव्यए परसंगृह विश्वएकसत्यपणामाटेएमक तापणानोएक पणानोंज्ञानथायछेएटलेसर्वपदार्थनोएकएनेग्रहण अने जेसत्तानोअधेतश्रीकरेद्रव्यंतरभेदमानेसकलविशेषनेना केहतांजेगृहणकरे तेपरसंग्रहानाश्यकहिये एटलेअध्वी त्ववादीदर्शनजेवेदांतीतथाशंखदर्शन एवंने संग्रहानाश्य ने जेमाटेदीसतानेदधर्म तथाद्रव्यंतरनमाने तेमाटेसंग हानाश्यकहिये जिनतोविशेषसहीतसामान्यनगृहेतेमाटे संग्रहनयकहिये हवेअपरसंग्रहनस्वरुपकहियेबिये द्रव्य त्वादीन अंतरसामान्यनीमीत्वातवाननेदनेदेसुगजनीम लीकाम चलमवमानप्रसंगृह एटलेद्रव्यजेजिवअजि वादिकजेत्रावतरसामान्यनेमानतो अनजिवनविषेपरती जिवनोनेदव्य अनव्यसमकीतिमिथ्यात्वी नरनरकादि जेनेदतेनेगजमलीकाकेतां मस्ताइयेनगवेख्योतेअप्रसं गृहकहिये अनेद्रव्यनेसामान्यपणुंमाने पणस्वद्रव्यनेत्र णमीकतादिकधर्मनमाने तेअपरसंगहाभायकहिये एट लेएसंगृहनयनोस्वरुपकह्यो. २ हवेव्यवहारनयनुस्वरुपकहियेछिये जेसंग्रहनयग्रह्या सत्वादिकधर्मपदार्थ तेनेजेगुणभेदेवहेंचे भिन्नभिन्नगवेखे Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६५७ तथाजेपदार्थ तेनीजेगुगप्रवृत्ति तेनेमनुष्यपणेगवेखेंए व्यवहारनय कहिये जेमद्रव्य गाजिव १ पुद्गल धर्मा स्तो ३ अधर्मास्ती ४ अाकास्ती ५ काल ६ तथापर्या यबेप्रकारना कर्मभावी स्वभावी २ तथाद्रव्यबेप्रका रना एकरुपी बिजोरुपी तेअरुपीनाबेनेद एकचेतन बिजोअचेनत तेचेतननाबेभेद एकसिद्ध बिजासंसारी तेसंसारीनावेनेद एकअजोगी बिजासजोगी तेसजोगी नाबेनेद एकसजोगीकवलीतेरमागुणठाणाना बिजास जोगीसंसारी तेसजोगीसंसारीनाबेनेद एकक्षिणमोहि वारमागुणठाणाना बिजाउपसंतमोहि तेउपसंतमोहिना बेनेद एकअकखाइ बिजासकरखाइ अकखाइउपसंतमो हिअगियारमागुणठाणानाबिजासकखाइ तेसकखाइ नाबेभेद एकसुक्ष्मकखाइ तेदशमागुणठाणाना बिजाबा दरकखाइ तेबादरकखाइनाबेभेद अवेदीनेसवेदी अवेदी तेनवमागुणठाणानाबिजासवेदी तेसवेदीनाबेभेद एक श्रेणीप्रतिपन तेाठमागुणठाणानाबिजाश्रेणीरहित ते श्रेणीरहितनाबेनेद अप्रमादी तेसातमागुणठाणानाबी जाप्रमादीतेप्रमादीनाबेनेद सर्ववर्ति तेव्ठागुणठाणाना बिजादेशवर्ति तेदेशवर्तिनाबेभेद एकदेशवर्ति तेथावक तेपांचमागुणठाणानाबिजावर्ति तेत्रवर्तिनाबभेद एकस मकितीतेचोथागुणठाणानाबिजामिथ्यात्वीतेमिथ्यात्वीना Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआत्मचिंतामणी. बेनेदएकनव्य बिजाअनव्य तेनव्यनाबेभेद एकग्रंथीभे दी बिजाग्रंथीअनेदी इत्यादिकगतीप्रमुखचेतननाअनेक नेदथाय तथाअचेतनअरूपीनाच्यारनेद धर्मास्ती१अध स्तिी २ आकास्ती ३ काल ४ तेनापणखंधादिकनेदे अनेकनेदथाय तथारुपीद्रव्यकहेतां पुद्गल तेनाबेनेद खंधतथाप्रमाण तेनापणखंधादिकभेदकरतां अनेकनेद थाय इत्यादिककारजनेदे तेनेभेदमाने तेनेव्यवहारनय जाणवो.हवेकर्मनावीपर्यायनाबेनेदएकक्रियारूपबीजोया क्रियारूप एमवहेंचणसामर्थादिकगुणनेदेपमे तेसर्वव्यव हारनयजाणवो जेपर्मार्थविनाद्रव्यपर्यायनाविभागकरे तेव्यवहारभासजाणवो जेकल्पनायेकरीने नेदवाँचेतेद रनयजाणवो एच्यारवाकमतने व्यवहारनयदूरनयछे शामाटेजेच्यारवाकमतवालानु कहेवूएबुंजेके जिवतोलो कमांप्रत्यक्षद्रष्टीगोचरआवतोनथी तेमाटेजिवजगतमांडे नहि जेआजगतमांसर्वरुपमनुष्यादो तेसर्वपंचभुतनपु तलछे पणकाइजिवछेनहि एवीखोटीकल्पनाकरीनेलो कोनेकुमा पाडेछे पुन्यपापपरलोक सर्वउथापेछे माटेते मतवालाने व्यवहारनयदुरनयकहोये एटलेव्यवहारन यर्नुस्वरुपकडं. हवेरजुसुत्रादिकच्यारनयनुं स्वरुपकहियछिये प्रथमर मां सरलत्रतितअनागतने अणगवेखतावर्तमा - Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्माचंतामणी. नसमयवर्ततो जेपर्यायमात्रप्रधानपणेसुतकहेतांगवखे तेरजसत्रनयकहिये जेज्ञाननेउपयोगे वर्ततानेज्ञानीकहे दर्शननोउपयोगवर्तताने दर्शनीकहिये कखायनोउपयो गवर्तताजिवनेकखाइकहिये समतानेउपयोगेवर्ततानेस मायककहिये अहियांकोइपुछशेजे एमकरतारजुसुत्रत थाशब्दनयएबन्नेनयो एकथइजायछे तेनोउत्तरकहेछेजे विशेषावश्यकग्रंथमांकडंके कारणरजुसुत्र एटलेज्ञान नाकारणपणेवर्ततोरजसत्रग्रहेछे अनेज्यारेजाणपणारूप कारजपणेथाय त्यारेशब्दनयकहिये एफेरछे वर्तमान कालनेपणनग्रहे तेनेरजुसुत्रनासकहीये अनेबतानावत्र छताकहे अथवाविप्रीतकहे अथवाजिवनेअजिवकहे श्र जिवनेजिवकहे इत्यांगतकहेतांबोधदर्शननोएमतछे शा माटेजेछतोसदावर्ततोजिवपदार्थ तेनेपर्यायफ्लटणनी हारेद्रव्य-पलटणकरावेछे शामाटेकेसमेसमे पर्यायनो विनाशथायछे तेथानके तेदर्शनवालाद्रव्यनोविनाशमा नेछे तेकारणमाटे एदर्शनवालानेनिभानासजाणवाएट लेरजुसुत्रनयकह्यो.. हवेशब्दनयकहियछिये एकपर्यायनेप्रगटदिसवेअन्य जे तेशब्दवाचकपर्यायनेतिरोभावे अणप्रगटवेपणतेप र्यायनेग्रहे शब्दनयकहिये अथवाकालादिनेदेत्रएका ल वचनत्रण लिंगनभेदे शब्दनेभेदतेपडेतेनेदअर्थनेकहे - . Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. तेशब्दनयकहीये जलाहरणादि सामर्थ्यनेघटक हे ने कहेतां कुंभादिकवचन पर्यायजेटलाछे तेटलानोर्थवर्त तोनदिसेपणतेनामकहीबोलावे तेकारजसामर्थ्यवंतनेग्र हेतेशब्दनयकहीये पणमाटिनापिंडने घटनकहे संग्रहनी गमवालोकहे तेनयवाला सत्ताजोगतांश नाग्राहकडे तथातत्वार्थटिकामध्येशब्दवसथीर्थ पमीवजवतोशब्दे बोलातोहोयजेत्रर्थ तेवस्तुमांधर्मपणे प्रगटदिसेते नेतेव स्तुमाने एनयशब्दानुजाइयर्थे प्रणमतीजे वस्तुनेवस्तु कहेबे काललींगादिभेदेप्रर्थनाभेदबे तेनेदनेते धर्मवस्तु माने तेशब्दनयकहिये नेते अर्थविनातेवस्तुमध्येतेप णोवर्ततोदिसतोनथ। तेनेवस्तुपणेसामर्थ्य करे तेशब्दभा सकहिये एटलेशब्दनयकह्यो. ५ ६६० हवेसंजिरुढनयकहियेबिये एकपदार्थने अवलंबीनेजे टलासरखानाम तेपर्यायनामजेटलाहोय तेटलानीरू क्तिव्युत्पत्तिभिन्नहोयते प्रर्थने संकहेतांसम्यकप्रकारे चारो हतोएटलेएटला सर्वे अर्थसंजुक्तजेते संनिरुढनयकही ये जेमइंद्राद्रीधातुपरमेश्वरने अर्थबेते परमेश्वर्यवंत ने इंद्र कहि येतथाशकनकहेतांनवनवी संयुक्तनेशक्रकहिये पुरके द इतनेदलेके० विडारेतेपुरंदरसचीतेनोपती कहेतां स्वामीते सचिपतीकहिये एटला सर्वधर्मते इंद्र जे देव लोकनांधणीबे तेने एनामेबोलावेछे बिजांनामादिकइंद्र ने एनामनकहेए Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअात्मचिंतामणी. ६६१ - टलेजेटलापर्यायनामछे तेनाजेअर्थथाय तेसर्वेनेनिन्न भिन्नअर्थकहे पणकारजअर्थेनजाणे तेसंभिरुढाभासक हिये एटलेएसंनिरूढनयकह्यो. हवेएवंभतनयकहियछिये शब्दनीपतिनोनीमीतभूत जोक्रियाते विसिष्टसंजुक्तजेअर्थ तेनेवाच्यजधर्म तेने पोचतोजेएटलेतेकारणकारजधर्मसहित तेएवंभुतनयक हिये तथाइश्वरीप्रसहिततेइंद्र शकरुपसिंहासनेबेसे ते शक्रशचीनीसंगेबेठो तेसचीपतिएटलेजेशब्दना जेटला पर्यायनेसर्वतेमांपोहोचतानाव तेनामकहिनेबोलावे जे पर्यायपोहोचतानावने तेनामकहिनेबोलावेजेपर्यायपो होचतोनदिसे तेपर्यायनीनाकहे एकपर्यायउणासुधीसं नीरुढनयकहिये सकलवचनपर्यायनेपोहोचे तेवारेएवं भुतनयकहिये जेपदार्थनामनेदनोभेददेखीपदार्थनीनी नताकहे तेनयानासकहिये नामभेदनवस्तुतानीन्न हाथी घोमा हरणी जेमनिन्नछे एमभिन्नपणुमाने तेएवं भुतनयनोदुरनयकहिये घटीजेमपटनिन्न अर्थनिन्नमा टे तेमइंद्रपणाथीपुरंदरपणोनिनमाने तेदूरनयजाणवो एटलेघटथीजेमपटनिन्नर्थभिन्नमाटी पणकइइंद्रपागा थीपुरंदरपणोनिन्ननहि तेनेभिन्नमाने तेदूरनयजाणवो एटलेएवंभूतनयकह्यो ७ एटलेसातेनयनीव्याख्याकही अदधारणाकेहतां चारनयतेअविशुद्ध शामाटेजेपदार्थ Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रात्मचिंतामणी. जेद्रव्यसामान्यके हेवानोअधिकारीबे क्यांएक प्रार्थनयए नामछेत्र्र्थशब्दद्रव्यलेवो तथाशब्दादिकत्रणनयबे ते शुद्धनयबेजेकार ऐशब्दनार्थ नीएने मुख्यताबे धुरलाचा रनयभेदपणेवेहेचवानेव बेबे शब्दादिकनेदजेलींगादिके नेदवे हेचणेप्रभेदकहे प्रभिन्नवचनेभिनार्थकहिमाने संजीरुढनयभिन्नशब्देते वस्तुपर्यायमाने पणशब्दनाप र्यायमाने एवंभूतनयनिन्नगोचरपर्याय भिन्नभिन्नमाने घ टनेचेष्टा करतोघटक हे पाखुरोपम्योघटनकहे चीत्रामण करता उपियोग वंत ने चीत्रकार कहे तथासुताजमतानेचक्र कारनकहे ते उपियोग रहितबे तेमाटेएनयतोशब्द नेतथा प्रर्थनेनेदपणुंमानेवे तेश्रर्थशुन्यशब्दनेप्रमाणनथी श ब्दनेप्रधानरधद्रव्यने गोपणेवर्तताशब्दादिककह्याछे एसातनयनेविपेनिगमते सामान्यबे विशेषबेनयमानेबे ने संग्रह नयते सामान्यनेमानेछे व्यवहारनयतेविशेषनेमाने नेद्रव्यार्थाविलंबीबे नेरजुसुत्रविशेषग्राहकछे एचा रनयदुरलाद्रव्यार्थ कनयमांबे शब्दादिकत्रणनयप्रजा यार्थकनयमांबे विशेषालंबीभावबे तथाशब्दादिकनयते त्रणनिक्षेपाने वस्तुमानेबे ६६२ श्री विशेषावश्यकनी निक्षेपानो विचारसंक्षेपथकी लखीयेछिये भाष्यमध्येकयुंबे तेक हियेविये चत्वारोवथूपजवीया एवचनबे तेमाटेस्वपर्याय Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ permirmatmaramammmmmmmwainimum - - श्रीवात्माचंतामणी. कहिये शामाटेंजेवस्तुनासेहेजनाजेचारानिक्षेपाने तेवस्तु मांजछे तेवस्तुनास्वपर्याय तथाश्रीअनुजोगद्वारसुत्र मध्येका जेज्यांजेवस्तुनानिक्षेपाजेटलाजाणीये आप पीबुद्धिशक्तिज्यांसुधीपोचेत्यांसुधीतेटलाजनिक्षेपाकरीय कदाचितवधतानिक्षेपाभाषणमांनाआवेअथवाअापणीव द्विशकियटलीनफेलायतोयपणचारानिक्षेपाअवश्यकरवा. हवेतेचारनिक्षेपानांनामकहियेछिये नामनिक्षेपो १ स्थापनानिक्षेपो २ द्रव्यनिक्षेपो ३ भावनिक्षेपो ४ त्यां नामनिक्षेपानाबेभदबे एकसहेजनाम एकसंकेतीकनाम सहजनामतेचेतन जिव आत्माइत्यादिक एनामकोश्नां करलांजेनहि एनामज्यांजशे त्यांनेगुनेनेगुजबे एनाम नोनाशकदापीकालेंथवानोनथी माटेएसतनामछे बिजुसं केतिकनामते देवदतप्रमुख एटलेलोकनीबांधेलीसंज्ञाजे एनुनामदेवदत अथवाएननामधर्मचंद इत्यादिकएलो कसंज्ञायेनामपाडेलांने तेत्रसत्यकल्पनाशामाटेकतेना मप्रमाणेगुणहोय अथवानहोय वलीतेनामकांइआगल चालेनहि तेमाभवमांपणएनएनामरहे एवोनिश्चय नहि एबिजोनेद एटलेनामनिक्षेपोकह्यो. हवेथापनानिपोकहियछिये तेनाबेभेद एकसहज थापना १ बिजोषारोपीतथापना हवेसहेजथापनानाबे नेद एकसहेजस्वनावीकथापना १ एकसहेजविनावीक Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआत्मचिंतामणी. थापना हवेसहेजस्वभाविकथापनातेत्रात्मानाप्रसंख्या तप्रदेशरुपअवगाहनाथापना पुद्गलनोप्रमाणुरुपइत्यादि कस्वरुपअवगाहनाये सहिततेसहेजस्वनाविकथापना कहीये तेभांगोअनादीअनंतछे हवेबिजोभांगोजसहज विनावीकथापनाकहेतां आपापणाशरीरनीअवगाह नातेविनाविकथापना अहियांकोइकहेशेके शरीरविभा विक तेनेतमेसहेजपदकेममेलवोछो तेनोउत्तरजे एसहेज जेजिवनोस्वनावसंसारीपणेवते त्यांसुधीशरीरनोबांधना रोतेछे अंशग्राहीनेमेसहेजपदजोड्योछे एनिगमनय नोपक्ष पणरजुसुत्रनयेतो एवीनावीकथापनाकहेवाय अहियांसहेजपदलागथायनहि पणएशरीरथापनासादी संतनांगेले तेशरीर तेविनाविक नेमांहेचेतनरह्योतेस हेजस्वभावीकछे माटेएनेसहेजविनावीकभांगोकहियेते तुंकांइदोषणबेनहि. हवेजेश्रारोपितथापना तेचेतनरहितशरीरथकीभिन्न हरकोइवस्तुनेबिषे हरकोइनामनीथापनाकरवी तेथाप नाक्रतमकहेवाय एत्रारोपणथकीथायछे तेअसतकल्प नाछे पणबालजिवनेसमजाववारुपछे तेश्रीअनजोगदा रमांदशप्रकारनीथापनाकहीछे कष्टकर्मे चितकर्मे इत्या दिकछे तेमध्येपांचाकारसहितछे पांचत्राकाररहितछे श्राकारसहित तेकाष्टनोघोडो हाथीप्रमुख अनेकछे ते Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी Itemsareewalaam Parmer श्राकारसहितथापनाकहिये अथवाजेमअन्यलोकदेवदेवी नेकाष्टनांफलामके तेत्राकाररहितथापनाछे एसोरठदे शप्रसिद्धछे अथवाजेमसारंगरामजेने मोहो माथुकशुछे नहि गोललांबोत्रिखुणोजेवोमले तेवोथापेछे तेनुनाम आरोपजाथापनाकहिये एटलेबीजोथापनानिक्षेपोकह्यो. हवेद्रव्यनिक्षेपोकहियोछिये तेद्रव्यनिक्षेपानाबेभेद श्रा गमद्रव्यनिक्षेपो नोत्रागमद्रव्यनिक्षेपो भागमद्रव्यनिक्षे पोकेहेतांजेपुरुषनेस्वस्वरुपर्नुपरस्वरुपर्नुजाणपणुंछपणह मणांतेनोउपियोगनथी हवेनोआगमकेहेतां जेतेवस्तुमां गुणसर्वेछे पणहमणांतेवर्त्ततानथी तेनात्रणभेद जेपुर्वेश रीरहतुं पणहमणांमरणपाम्युं जेमश्रीरीखवदेवस्वामिनुं शरीरजेमजंबुद्वीपपन्नतिमांरुप लक्षण गुण वखाएया तेम आपणेकहियेछिये वलीभव्यशरीरकेहेतां हमणांतेगणम यनथी पणगुणमयेथाय जेमपद्मनाभतिर्थकर,शरीरव खाणीयेतदवत् तथाद्रव्यातिरक्तकेहेतां जेणेगुणवतै प गहमणांतेउपियोगवस्तुतानथी जेमरंमणीकेहेतां स्त्री महाचतुरविचिक्षण पोतानास्वामिसाथेक्रिडाकरवानीव खतेरमणिकेहेवाय तेवेसमेकोइकअपरचिताउत्पन्नथइ तेवारे रमणिपणानोउपियोगगयो तेबारतेद्रव्यमणिके हेवाय तदवतःअणउवियोगोदवो एटलएअनुजोगद्वार सुत्रनुवचन माटेउपियोगरहित तेनेद्रव्यनिक्षेपोकहिये Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्मचिंतामणी. एटलेद्रव्यनिक्षेपोकह्यो.३ हवेभावनिक्षेपोकहियेबिये तेभावनिक्षेपानाबेनेदछे ए कागमीक बिजोनोअागमीक हवेत्रागमीककहेतांजेश्रा गमशास्त्रनोजाण वलीतेनाजउपियोगमांप्रवर्तेछे १ हवे नोत्रागमीकनावनिक्षेपोकहेतां जेरुपेत्रात्मातदवतजत्रा मानेउपियोगेप्रवर्ते अथवाज्ञानितेज्ञाननेजउपियोगेष वर्तेछे दर्शनितेदर्शननेउपयोगप्रवर्तेछे एमजेजेगुणतेगुण उपियोगसहितप्रवर्तेतदरुपहोय तेनेभावनिक्षेपोकहिये एटलेअनुजोगद्वारमांकयुंडे उबीनगोनावो एटलेउपियो गतेजनावछे एटलेनावनिक्षेपोकह्यो.४ । एजेचारनिक्षेपाकह्या तेमध्येत्रणनिक्षेपाधुरनाजेतेका रणरुपले अनेनावनिक्षेपोतोकारजरुपछे एटलेकारजवि नाकारणनिष्फल जेमचक्रदंडदोरो कुंभकार माटिनापं डविनाघटथायनहि माटेएकारजविनानिज्फल जोमाटी नोपंडहोयतो एकारणखपलागे तेमनावनिक्षेपाविनाधु रनात्रणेनिक्षपानिष्फलछे अनेभावनिक्षेपोनिपजतांप्रथ मनात्रणेनिक्षेपाप्रमाण नहितरअप्रमाण धुरनात्रणे निक्षेपाद्रव्यनयमांछे एकभावनिक्षेपो तेनावनयमांछेमा टेनावनयत्रणनिपजतांद्रव्यादि प्रवर्तीतेनिष्फल तेश्री श्राचारंगजिनीटीकामध्येकाछे तेलोकविजयनामात्र ध्ययननीटीकामध्ये तेलखियेछिये. Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीअात्मचिंतामणी. फलमेवगुणफलगुण फलंचक्रियायानवती सम्यग्द निज्ञानचारित्रक्रियायास्त्वैकांन्तिकनाबाधसुखारपसि द्विगुणो।वाप्पतेएत्दूक्तंभवतीसम्यग्दर्शनादिकोवेक्रिया सिद्धिफलगुण॥नफलवन्यपरानुंसंसारीकसुखफलाभ्यास एबफलाध्यारोपानीफलेइत्यर्थ। एटलेज्ञानदर्शनचारीत्रनी प्रणमनविनाजेक्रियाकरवी तेसर्वेफोकबे अथवाजेथकीसंसारीसुखप्राप्तथाय एटले देवताइंद्रचक्रवर्ती वासुदेवराजाशेठसाहूकार पुत्रकल त्रादीसुखनिपजे एवीजेक्रियातेसर्वेनिष्फलछे एवीरीतेए पाठछे एटलेभावनिक्षेपानाकारणविनात्रणेनिक्षेपानिष्फ लछे एटलेसंक्षेपमात्रनिक्षेपानोविचारकह्यो माटेअहियां शब्दनयतेत्रणेनिक्षेपाने अवस्तुजमानेछे एकभावनिक्षे पानेजवस्तुमानेछे तिनहं सदनियाणं अनथुएअनुजोग द्वारनवचनछे तथाएकएकनयनासोसोनेदथाय एमसा तनयमलीनेसातसेंनयनानेदथायजे एअनुजोगद्दारथकी अधिकारकह्यो. हवेपुर्वकहेतां पुठलोनयतेनोविषयघणोजाणवो अने तेथीउपल्योनयतेपरीमीतविषयछे एटलेथोडोविषयछेस तामात्रनोग्राहकसंग्रहनय एटलेब्तीसत्तानेसंग्रहनयग्र हेत्रनेनिगमतेन्ताभाव अथवासंकल्पपणु अथवाअबता भावसर्वग्रह अथवासामान्यविशेषबन्नेग्रह एटलेएनयन Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ श्रीअात्मचिंतामणी. pars कोइप्रमाणनहि अनेव्यवहारनयशक्तिविशेषनेजग्रह तेमाटेसंग्रहनयथी व्यवहारनयनोविषयथोडो तथारज सूत्रनयवर्तमानविशेषधर्मनोग्राहकछे अनेव्यवहारतर कालीकविषयनोग्राहक तेमाटेव्यवहारबहूविषयत्रने व्यवहारथीरजुसुत्रअल्पविषयछे नेरजुसुत्रनयवर्तमान कालीशब्दनयकालादी वचनलिंगथीवहेंचतार्थनेग्रह अनेरजुसुत्रवचनलिंगने निन्नपाडतोनथी तेमाटेरजुसु नयीशब्दनयअल्पविषय अनेशब्दनयथीसर्वपर्या यनेएकग्रहे अनेसंभिरुढते जेधर्मवक्ततेवाचकपर्यायने ग्रहतेमाटे शब्दनयथी संभिरुढ नयनो अल्पविषयछे तथासंनिरुढ तेपर्यायनेबधोयेकालगवेखेडे अनेएवंभूत नयप्रतीसमीयक्रियानेदे भिनार्थपणेमानतोअल्पविषय बेतेमाटे एवंभुतअल्पविषइजाणवो एनयवचनछे तेपोता नानयनेस्वरुपेत्रस्तीपणुछे अनेपरनयस्वरुपेनास्तीप ने एमसर्वनयनीविधी प्रतीबंधेकरीने सप्तभंगीउपजेप गनयनी सप्तभंगीनउपजाववी एपुरवात्राचारजियोये निखेदिछे. तथारत्नाकरावतारीकायां विकलादेशस्वनावा दिन यसप्तभंगीवस्त्वंश मात्रपरुपकत्वात् सकलादेशस्वभा वार्नु प्रमाणसप्तनंगीसंपुर्ण वस्तुस्वरुप परुपकत्वात् एवचनछे. Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआत्मचिंतामणी. एटलेजथाजोग्यपणेएनयअधिकारकह्यो हवेपर्वउत्तर सामान्यसंग्रहनाछभेदकह्यानहोतातेकहियेछिये एटले एमलसामान्यनाउनेद तेसर्वद्रव्यमांव्यापिकपणेरवाछे तेनांनाम अस्तित्व १ वस्तुब २ द्रव्यत्व ३ परमेयत्व ४ सवं ५ अगुरुलघुवं ६ एवंमुलस्वभावसर्वद्रव्यम ध्येप्रणामिकपणेप्रणमेछे एधर्मनेकोइनोसाहायनथी ते केहतां सर्वद्रव्यनेविषेउत्तरसामान्यस्वनावनीतत्व अनि त्वादिक तथाविशेषस्वभावप्रणामिकत्वादिक तेनोत्रा धारभुतधर्म तेधर्मनेसामान्यस्वनावकहिये आस्तित्वरु पकहजे तिर्थंकरदेवे तथागणधरेजेगुणपर्यायाधारवंत तेवस्तुपणेकहिये अर्थजेद्रव्यतेनीजक्रियाजथाधर्मास्ति कायनीचलणसाहायक्रिया अधर्मास्तिकायनीस्थिरसा हायक्रिया अाकाशद्रव्यनीअवगाहनाक्रिया जिवनीउपि योगलक्षणक्रियापद्गलनीमलवाविखरवानीक्रियाएक्रिया नोकारीपणो अर्थक्रियाजेपर्यायनप्रत्ति तेअर्थक्रिया नोअधिकारीधर्म तेद्रव्यपणोकह्योछे तथावलीलक्षणांत्त रकहे उतपादपर्यायनोजनकप्रसवशक्तिभावीरनावल क्षणजेशक्ति तेनोवयभतपर्यायनोतीरोनावथयो अथ वाप्रभावथयो रुपजेशक्तिनोजेत्राधारभुतधर्मतेद्रव्यक हिये स्वतेपोतेत्रात्मपरजेपुद्गलादिक धर्मास्तिकायादिक अन्यतेनेजथार्थपणेजाणे तेनेज्ञानीकहिये तेज्ञाननापांच Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० . श्रीआत्मचिंतामणी. भेद तेज्ञानउपियोगमांत्रावे एवीजेशक्ति तेनेप्रणमीये पणंकहिये तेप्रणमीयेपणोसर्वव्यनोमलधर्म तेप्रमाणे मेव्यजेवस्ततेत्रणमीयपणोकहियतेसर्वद्रव्यपर्यायप्रणमी येछे अनेत्रात्मानोज्ञानगुणतेमांप्रमाणपणोप्रणमीयेपणो एवेधर्मछे पोतानोप्रमाणपणोपोतेजकरेछे दर्शनगुणनो प्रमाणज्ञानगुणकरेने एकारणेदर्शनगुणतेअविशेषछे सा व्येवछे जेसाव्यवहोय तेअविशेषजहोय जेविशेषतज्ञान जाणीये दर्शनगुणतेसामान्यद्रव्यनोग्राहकले पणप्रमा णनास्वव्येवह्या त्यांज्ञानजगृहछे तेनूकारणजेदर्शनउपि योगवक्तपंडतोनथी तेनेप्रमाणमांगवेख्योनथी. . हवेप्रमाणनानेदलखियेछिये मुलप्रमाणनाबेनेद प्र त्यक्ष १ परोक्ष २ स्पष्टं पत्यक्षं परोक्ष मन्यवत् इतिस्याद्वादरत्नाकरवा क्यात्.. एटलेउतपादकेहेतांउपजQवयकेहेतांविणसबुंध्रुकेहेतां नित्यपणो वस्तुमाएकसमेएत्रणेगुणसदायसाधेप्रणमेछे एवोजेप्रणमनतेसत्यपणोकहिये सत्यपणानोनावतेसत्य पणेकहिये. हवेखटगुणीहाणीटद्धिकहियेछिये अनंतनागहाणी १ असंख्यातभागहाणी२ संख्यातभागहाणी ३ संख्यात गुणीहाणी ४ असंख्यातगुणीहाणी ५ अनंतगुणीहा - Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्माचंतामणी. णी एप्रकारनीहाणी. हवेछप्रकारनीद्धिकहियेछिये अनंतनागरद्धि १ असंख्यातनागद्धि २ संख्यातनागद्धि ३ संख्या तगुणोद्धि ४ असंख्यातगुणीरद्धि ५ अनंतगुणीट द्धि ६ एटलेएहाणीद्धि सर्वद्रव्यनेसर्वप्रदेशेछे एनु नामश्रगुरुलघुस्वनावकहेवाय एअगुरुलघुपर्यायप्रणमे तेएकप्रदेशे वा अनेकप्रदेशकोइसमे अनंतनागहाणीप प्रणमे कोइसमेअनंतनागरद्धिपणेप्रणमेछे एवंबारे प्रकारप्रणमेछे तेअगुरुलघुपर्यायनीप्रणमनशक्ति तेज गुरुलघुवंकहिये एटलेगुरुलघुनोभावजाणवो तत्वार्थ नौटिकानेविषे पंचमेअध्याये अलोकाकाशनोअधिकारने त्यांकहयुंछे एब्येस्वभावसर्वद्रव्यनेविषप्रणमजे एछद्र व्यनोमलस्ववभाव छद्रव्यतोप्रदेशनुभिन्नपणुत्रगुरुल घुनेभेदपणेथायछे तेमाटेएमुलसामान्यस्वभावछे एद्र व्यादिकधर्मछे एनो प्रणमनतेप्रजास्तीधर्म तथासा मान्यस्वनाववस्तुमांअनंतारया तथाअनेकांतजयपता काग्रंथने विषे सामान्य स्वनाव तेरकह्याने तथा शा स्त्रने विषे विशेषस्वभावपणअनेक प्रकारना कह्याने अनेकग्रंथने विषेकह्याछे तथावारतीकसमुचयग्रंथश्रीह रीनद्रसुरीकतमांप्रमाणस्वनावकह्याछे जिवनेजाणवाप णानीशक्तिआपापपीतेज्ञानलक्षणजिवनकहिये एव 1. Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७२ श्रीश्रात्मचिंतामणी. चनउतराधेनजिमा तथाअवश्यकनीर्जुक्तिनेविषे जिवने ग्राहकशक्तिकहीछे एटलेकर्ता नोक्तापणपणजिवमांछे उक्तंच कसिएवनोक्ताइतिवचनात् लक्षणता १ व्यापक्ता २ आधाराधेयता ३ जिन्यजनकता ४ एत स्वार्थटीकामध्येकह्याछे तथाअगुरु १ लघुता २ विभुता ३ कारणता ४ कारजता ५ कारकता ६ एशक्तीयो नीव्याख्याविशेषावश्यकग्रंथमध्येछेनाउकतथाअनाउक शक्तिनाग्रंथ श्रीहरिभद्रसुरीक्रतभाउक प्रकरणएमध्ये एमकेटलोकशक्तियोजेनतरक अनेकांतजयपताका तथा सुमतिप्रमखग्रंथनेविषेछे तथाउर्धप्रचीयेशक्ति तरीज गप्रचीयेशक्ति२ घशक्ति ३ समचीतशक्ति ४ एस मतीग्रंथनेविषे इत्यादिकअनेकशक्ति तथाअनेकरुप जेत्रात्मानां तथाअनेकस्वभाव तथाअनेकलक्षण तथा अनेकगुणजेत्रात्मानाकह्याने तेग्रंथादिकशास्त्रजोयाथी समज्यामांत्रावे अथवाबहुश्रुतनीसेवाकरे तेनामुखथकी सांभलीनेसमज्यामांत्रावतेकारणमाटेजेनेत्रात्मस्वरुपस मजवानीखपहोय नेधर्मरुचीहोय तेग्रंथजोवानीखपकर जो नेबहूश्रुतनीशेवाकरजो एटलेजेज्ञानाउपियोगीहोय स्वस्वभावनीरमणतावालोहोय मंदकखाइहोय परभाव त्यागीहोय एवागुणवानगुरुहोय तेनीशेवाकरजो तोत मारुकारजथशे एटलेएनयअधिकारकडो एटलेअहि - Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्म चिंतामणी ६\७३ यांशब्दनयवालोसुतज्ञानवंत उपयोगीने श्रात्मामानेछे माटेहियांसमजवानुंए के शब्दादिकलणेनयमांधर्मर हयुंबे अनेत्यांतोप्रात्मानागुणजे मजेमप्रगटथाय तेमतेम उपरली नयावालो ते नेयात्मामाने माटेग्रात्मानोस्वस्वना वशुद्धउपयोगपणेग्रहणकरवो तेजधर्मबे एटलेहियां ज्ञानगुणविसीष्ट तेज्ञानस्वरुप समजवावास्ते हियां प्रमाणबतावीयेबिये तेप्रमाणनुस्वरुप कहियेछियेसकल न यनुंस्वरुप तथा सप्तनंगी नुंस्वरुप तथानिक्षेपानुंस्वरुपत थापक्षनुंस्वरुपइत्यादिक जेजे प्रकारशास्त्रमांकह्याछे तेते रुपने ग्रहतो सर्वधर्म नोजाण तेनेज्ञानकहिये तेज्ञानतंत्र माणकहिये ते प्रमाण नाकरताश्रात्मावे तेनेजपरमात्मा कहिये तेप्रत्यक्षादिप्रमाण तेचेतनस्वरुपमांप्रणमेलाछे प्रणामीतभवांनधर्मथी उत्पादवयपणे प्रणमवु तेमाटेत्र णामीकडे एद्रव्यस्वभावछे एटले श्रात्मापोतानास्वभाव मांजप्रणमे तेनेसहेजत्रात्माकहिये परनावमांप्रणमेतेने विभावीकच्यात्माकहिये. हवेसहेजत्र्त्रात्मातेपोतानास्वरुपरमण रुपीमुर्ति नि रंजन निराकार अनंतज्ञानादिकगुणमय सदायरमणता स्वउपयोगी एवीरीतेजेवर्ते तेनेजिवत्वमुक्तकहिये एटले तेजिवमोक्षेश्रवश्यजाय तेमुक्तिनुस्वरुप किंचीतलखिये बिये जेा चौदराजलोकबे तेनाउपरनोचौदमोराजलोक ૫ Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ श्रीश्रात्मचिंतामणी. तेनेछेडेसर्वार्थसिद्धनामाविमान तेविमाननीधजाथकीबा रजोजनउपरजश्ये त्यांसिद्धसलाफटकरत्नमयछे तेम ध्यत्राठजोजनजामीने उतरतीउतरतीमाखीनीपांख जेवीरहीछेजेवूमधाकोठनुत्राकारतेत्राकारे अथवाजे वोत्राठमनोचंद्रमातेसरखेत्राकारे उपरपीसतालीसला खजोजनलांबीपूर्वपश्चिमेछे दक्षिणउत्तरेपीस्तालीसला खजोजनथीत्रणगणीझाझेरीप्रधीपणे उपरनुंतलीयंघ jसरसमरमणिकछेजे,वाघचरमखीलेलुसरखंहोय ते सरखंछे अथवाजेवोजलनोनागउपरनोसरखोहोयत्रथ वाजेQमादलनुपडंसरखुंहोय अथवाकाचसरखोहोय ए वीरीतेउपरनोभागसमोरमणिकछे घणनिर्मल तेतलाथ कीएकजोजनउगदांगलनामापन एटलेउंचेत्रलोकछे तेजोजननातेविसनागनिचेनामकीये त्यारेचोवीसमोभा गउपरलोरह्यो तेचोवीसमानागध्ये सिद्धपरमात्मातेत्र लोकनेअडीनेरह्याछे शामाटेकेचोवीसमाभागे त्रणसेंते त्रीसधनुषनेबत्रीसांगलनोछे अनेपांचसेंधनषनीकाया वालाउभांउनांमोक्षजाय तेत्रिजाभागनीअवगाहनापो लारनानागनीघटे त्यारेबेनागनीअवगाहनाघनरुपरहे तेअवगाहनायेसिद्दीवरे त्यारेतेवेभागनीअवगाहनाना त्रणसेंतेत्रीसधनुषनेबत्रीसांगलरहे तेअवगाहनावा लोतेवीसनागउपरना आकाशप्रदेशनेचरणअवगाहना Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६७५ फरसे नेमस्त कनी अवगाहना उपरत्रलोक नेफर से एटले एचोवीस मोजाग सर्वे सिद्धक्षेत्रछे. तेनाशरीरनुमानकहियेछिये उतकष्टो हवेत्यांसिद्धीवरे पांच सेंधनुष नीकायानोमानवालासिद्धेजघन्यबेहाथनीका यानामानवालासिद्धे मध्यस्थश्रवगाहना बेहाथथीमांडी नेजावत पांच सेंधनुषथी उणी एकप्रदेशहोय त्यांसुधीमध्य स्थश्रवगाहनाकहिये ते श्रवगाहनावालासिद्धेतेने मध्यस्थ अवगाहना कहिये. हवे एसिद्धक्षेत्रमांकेवीरीतेश्रवगाहनायोरही ते कहि ये ये जेहियां भांथकांमोक्षगयो तेनीश्रवगाहनासि द्धमांपणउभीछे बेठांगयोतेनीबेठी सुतांगयोतेनीसुती | बेकोइचतोसुतो तथा कोइउंधोसुतो तथाकोइपाशानेरसु तो तेन वीजवगाहनाबे अथवा कोइविकटादिकास होय अथवाको इविप्रीतासनेहोय तेनीतेवीजवगा हनात्यांहोय अथवा कोइखोडो पांगलो कांइखोडवालो होयतोतेनी वीजप्रवगाहनाहोय ते सर्वेउपरत्रलोकने डीनेरहे उंचीनीची वगाहना ते निचलानागमांरहेप एउपरनानागमांनहोय हियांको प्रश्नकरशेकेज्यारे श्रवगाहनात मेमानोबो व्यारेरुपघाट सर्व साबुतथायछे ते नोउत्तरजे कांइपुद्गलत्यांछेनहि केरुपघाटथाय एतोएक श्रात्मानाप्रदेश निरावर्णीजे हिना शरीरनी अवगाहना Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीत्रात्मचिंतामणी. हती तेत्रात्मानाप्रदेश तेप्रमाणेविस्तारेहता पणत्राश रीरमध्ये एकनागनीपोलार तेपोलारनोनागघटाडीने घनपणेकरी तेनेअवगाहनाकहियेबिये पणअहियांकां रुपपणनहि एतोरुपी अमूर्तिजछे नेजोकदापीरुपक हियेतोमोटोविरोधावे शामाटेकखटद्रव्यमा एकरुपीप दार्थतोपुद्गल नेपुद्गलमांतोमलवाविखरवानोस्वभावर ह्योछे तेस्वनावपणपागेसिद्धनेविषे लेवोपडे त्यारेमली नेविखरवंशावेतथयं त्यारेसिद्धपणेथीपार्छसंसारमांत्रा वqथाय त्यारेसिद्धपणुनिष्फलथयु माटेएमोटोविरोध श्रावे अथवाज्यांरुपरहे त्यांवर्णादिकपर्यायपणहोयत्यारे तेपर्यायनीतोसमेसमेहाणीथइजोश्ये त्यारेतोसिद्धनीप एसमेसमेक्षिणताथाय एपणमोटोविरोधावे अहियां कोइप्रश्नकरशेजे सिद्धांतमाएका दवठीयाए सासी याए पजवठीयाए असासीयाए माटेपर्यायथकीक्षिण थाय तेपर्यायतोश्रसाश्वता तेमांकांइदोपणनहि तेनो उत्तरजे सिद्धपरमात्मानेपर्यायथकी असाश्वताकहेवा तेश्रपीक्षाथकीछे पणकांइस्वनावथकीछनहिअनेजोकदा पीस्वनावथकीकहियेतो महाविरोधावे शामाटजेसि बनाज्ञानदर्शनादिकजेपर्याय तेनोशुंकांनाशथाय अथ वाशंकांइन्छवतुथाय कदापीजोनाशकहियेतो श्रात्मभा वनोनाशथाय नेजडनावथइजाय त्यारेतोनास्तीकपण Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. यावे अथवा छुवतुकहियेतो शुएमने कर्मपागंवलग्यां केमकेवर्णविनातोज्ञानादिकगुण नावत्ताथायनहिक दापी हियां कोइतर्ककरशेके ज्ञानादिकतोगुणछे तेने तमेपर्याय मांकेमकहोछो तेनोउत्तर केसिद्धांत मांतोएने पर्यायकाबे ज्ञाननपजवाए दर्शनपजवाए इत्यादिक पाठवेमाटेज्ञानदर्शनादीकने पर्यायकहीने बोलाव्याछेत्र जेद्रव्यगुणपर्याय कहीयेछीये तेभेदज्ञाननीच्अपक्षा लेइने बालजीवने समजवावास्तेबे शामाटेकेसीद्धांतत थासुमतीप्रमुख ग्रंथनेविषे नयोबेकह्याबे द्रव्यार्थकतथा पर्यायार्थक पणकांइगुणार्थकनयकह्योनथी माटेपदार्थबे जछेएकद्रव्य नेबीजोपर्याय त्रिजोपदार्थवेनहि गुणपदा जोत्रिजोहोत तोगुणार्थक नयक तापणएगुण तेतोद्र व्यपर्यायनुं नलखाण करावारुपजुद कहियेबिये पणएनुज नामपर्यायछे माटेहियांज्ञानादिक जेपर्यायतेनीहानी वृद्धिथायनहि कदापी हियां कोइकहेशे के खटगुणी हा वृद्धिलागेबे तेनोउत्तरजे एपर पीक्षावडेबे शामाटे जे जेजेज्ञेपदार्थजाणवादे खवामांत्रावेवे तेज्ञेपदार्थनोनाश अथवा उत्पत्ती अथवाहानीवृद्धिधाय तेथीज्ञानादिकगु एनीहानीवृद्विनाशकहेवायवे तेपरच्यपीक्षायेंबे पणकांइ पोतानुज्ञानदर्शन छुवतुंथतुंनथी जेटलुंछेएटलुंनेएटलुं जरहे माटेजे पर्याय साश्वताकह्या तेपरीक्षायेजाण ६७७ Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७८ श्रीश्रात्मचिंतामणी. वाअनेएजेवर्णादिकपर्याय तेतोसडणपडणस्वभावनाध पीछे तोतेपर्यायकांइसिद्धनेविषेछेनहि तेतोसंसारीनेवि रह्याने माटेअहियांरुपीपणुमानतां महाविरोधावेत्र थवावलीबिजेप्रकारेपणविरोधावेछेतेसांभलोतेकहूंछं. हवेजेसिद्धछे तेअनादिअनंतनांगे एटलेएमसिद्धनी श्राद्यनथी केफलागेदहामेसिद्धथया तेमचंतपणनथी के अमुकेदहाडे सिद्धसंसारनेविषेत्रावशे माटेअनादिकेहेतां आगेअनंताअनंतपुद्गलपरावर्तनवहींगयां नेअकेकापुद्ग लपरावर्तनमांअनंता कालचक्रवहिगयां एमागलना कालनुकोइरीतनप्रमाणबंधायनहि नेएककालचक्रनाबे नेद अवसर्पणी १ उसर्पगी २ तेत्रकानेदेअकेकीचो वीशीगणाय तेएकचोवीशीनादशकोडाकोमसागरोपमव पंजायने तेमांपांचभरथ नेपांचभइरवर्ते एककोडाकोड सागरोपममांमक्तिकहिले पणपांचमहाविदेहमांतोसदा यकालनिरंतरमक्तिले अनेादशक्षेत्रथइनेतोएकमाहा विदेहनीविजयजेटलुंताछनहित्रनेत्यांमाहाविदेहमांतोस दायमक्तिचालती तोएवीरीतेमोक्षजातांत्रागेअनंतात्र नंतकालवहिगयोतेथीअनंताअनंतजिवमोक्षगया नेमोक्ष क्षेत्रतोएपिसतालिसलाखजोजनमा तेकेमकरीनेमाय ज्यांरुपकहिये त्यांतोपुद्गलादिकथयुंज त्यांतोसंकडाश थाय नेतेजिवमुक्तिमांमायनहि माटेएपणएकमोटोवि Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६७९ रोधावे माटेएअवगाहनाकहि तेअरुपि केहेवामात्र छे शामाटेकेएकअवगाहनाजोसाबुतरुपहोय त्यांबिजि अवगाहनापेशीशकेनहि अनेअहिंयांतोज्यांसिद्धपरमा स्मानी एकअवगाहनाने त्यांअनंतासिद्ध भगवाननी अवगाहना कोइाडी कोइउत्नी कोइबेठी कोइसुती इत्यादिकरुपेरहीछे तेश्राकाशवत् एकजाणपणारुपल क्षणतेचेतनागुण तेथीसिद्धनगवानकहेवायचे पणत्यां कांइरुपादिकपदार्थएमनेविषेबेनहि एतोअरुपिपदार्थछे हवेसिद्धनाजेगुणलक्षण तेकहियछिये एटलेसिद्धप रमात्माअरागीछे एटलेरागकेहेतांजे प्रेमदशातेथीरहि त तेनाबेनेद एकप्रशस्तराग १ बिजोअप्रशस्तराग २ प्रशस्तकेहतां जेदेवगुरुधर्मसंबंधीराग नेअप्रशस्तकेहे तां संसारादिकराग तेबंनेथकिरहित तथाअद्वेषीछे तेनापणबभेद प्रशस्त १ बिजोअप्रशस्त प्रशस्तकेहेतां देवगुरुधउपरखेदकरतोदेखी तेनाउपरद्वेषत्रावे अप्र शस्तकेहेतां पोतानासंसारादिक कारजपणामांखेदकर तोदेखी तेनानपरद्वेषावे एवाद्वेषथकिरहितछे अज्ञान पणाथकिरहित तथामोहदशाजेमारुमारुकरवं तेथकि रहित तथाअाश्रवपणाथकिरहित एटलेश्राश्रवकेहेतां जेनवांकर्मखेंचीने आत्मसत्तामांसंग्रहकरवो तेथकिरहि ततथाअनंतुज्ञानछे अहीयांकोइ प्रश्नकरशेकेज्ञानतोए - Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૮૦ श्रीआत्मचिंतामणी. कजछे नेतमअनंतुकेमकोहोछो तेनोउत्तर जेज्ञेपदार्थ नंतातेप्रतेजाणेने माटेअनंतज्ञानकहीये तथालोकप्रलो करुपीअरुपीसर्वपदार्थनेजाणे देखे तेत्रलोकपणअनं तोछेतथापुद्गलप्रमाणु तथापुद्गलीकखंधतेपणअनंताए वाअनंतपदार्थनेजाणे माटेअनंतज्ञानकहियछिये. शिष्यवाक्य--स्वामीएतोपरअपीक्षावडे करीनेअनंतु ज्ञानठरेछे पणस्वभावीकज्ञानतोठरतुंनथी जेमकोइएक चादरनेविषेरामुखवस्तु नोगांसडोबांधीलाव्यो तेराइ नादाणाअनेकछे तेथीएचादरपणअनेक ठरेछे पणचादर जोतांतोएकजछे जेममनुष्यएकज तेअनेकपदार्थनेजाएगे देखेछे तेथीतेमनुष्यनांकाश्मनपणअनेकनथयां नेत्रां ख्योपणअनेकनथइ तेमसिद्ध परमात्मानज्ञान तेएकजठ रेछे तेनोउतरजे श्रात्मानाअसंख्याताप्रदेशछे नेप्रदेशे प्रदेशेअनंतुज्ञान तेपरनुजाइपणेछे स्वअनुजाइपणे सर्वप्रदेशेजाणवूडे तेजागवानोस्वनावजोताएकजछेपण परीक्षावडेकरीने अनंतप्रकारनुजाणवुरहयुं तेथी अनंतुज्ञानकहिये तेसर्वउपमावाचछे माटेअनंतुज्ञानज कहे, एटलेसिहपरमात्माअनंतज्ञानी तथा सिद्धपरमा स्माअनंतदर्शनीछे एटलेअनंतपदार्थनेदेखवेकरीनेअनंत दर्शनीकहिये तेसर्वेपुर्ववतजाणवू अहियांकोइकहशेकेचो थुज्ञानजेमनपरजवतेनेदर्शनबेनहि तोकेवलज्ञाननेदर्श Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्मचिंतामणी नक्यांथकीथयं तेनोउत्तरजे मनपरजवज्ञानछे तेविशेष उपयोगी शामाटेकेएएकअवधीज्ञाननाभेद जेवधी ज्ञान तेसर्वेपुद्गलोकभावरुपीपदार्थसंपुर्णनेजाणेदेखेत्र लोकविशेलोकलोकजेवमांअसंख्याता खोमवांजाणेदेखे अनेमनपरजवज्ञानतो अढीद्विपप्रमाणे मनोवर्गणानापु गलद्रव्यनजाणे माटेअवधीज्ञानकरतां' मनपरजवज्ञान नोविषयअत्यंतअल्प अनेतेनेविशेपणरुपीपदार्थनजाण बुंदेखवूबनेएनेविषेपणरुपीपदार्थनुजाणवूडे तथाअवधी ज्ञानीपणमननापर्यायनेजाणेदेखेछे एअधिकारनगवती जिमां ज्यांबदेवताविमानीकेभगवानने मनथकीवांद्या पुज्याप्रश्नपुछयां नगवानेपणमनथकी उत्तरदीधा एवी रीतनो अधिकार तथाप्रत्यक्षपणेजेमनुष्यनीपासेदेवन श्राववंथायछे तेमनुष्यमनथकीदेवनेसमरेछे अथवामनथ कीकोइवातप तेनोउत्तरदेवआपछे माटेएमजाणवामां श्रावे के मनोवर्गणानाप्रदेशदेवनाजोयामांसारीरीतेत्रा वेछे एवातप्रत्यक्षमापणनाषणथाय तथासिधांतमांपण लेख तेथीएमजागीयछिये केअवधीज्ञानसर्वरुपीपदा र्थनोविषइछेतेमध्येथीमनोवर्गणानोअल्पविषयमनपरज वज्ञानथीनामसंज्ञाकहिने जुदोनेदपाम्योडे तेथीतेनेदर्श नगण्यूनीपतत्वतोज्ञानीगममाटेसिद्धपरमात्मानेजे अनंतदर्शन तेसामान्य उपयोगीछे अनेविशेषउपयोगी - Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૮૨ श्रीश्रात्मचिंतामणी. तोज्ञानछे एजिननद्रगणीक्षमाश्रमणनेमतेछे तथासिद्ध सेनदेवाकरनेमतेतोभिन्न उपयोगमान्योनथी त्यांतोएक समेबन्नेउपयोगकह्याछे तथासिद्धपरमात्मा अनंतचारी नाधणीछे एटलेचारीत्रकहेतां जेज्ञानदर्शननेविषेथीर भावतेनेचारीत्रकहिये अहियांव्यवहारचारीत्रगवेखवून हि व्यवहारचारीत्रतोपुद्गलीकनावछे एटलेव्यवहारक हेतांजेपंचमहाव्रतादिकबहाजथकी पालवूपलावतेसर्वे पुद्गलीकभावळे तेनेविषेकांइत्रात्मानुकल्याण नहि एप गलीकभावनोनाशथयेजमुक्तिमले माटेअहियांनिश्चय चारत्रिले तेनिश्चयचारीत्रतेआत्मानोथिरनावजाणवो तेजचारीत्रसिद्धपरमात्माने. वलीसिद्धभगवानने अनंतुविर्यकांछे विर्यकेहेतांजे श्रात्मानीशक्ति ज्ञानदर्शननेविषे स्थिरतापणेविस्तरेली जो अहिंयांपुद्गलविर्यजाणवूनहि एटलेपुद्गलीकविर्य थकिसिद्धनगवानरहित अनंतसुखमयकेहेतांजे ज्यां याधिकेहेतांजेमननी चिंता व्याधिकेहेतांजेशरीरनारो गादिक तथाक्षुधावेदनी तथासातनयप्रमुखअनेकरितनां संसारमांदुखछे तेदूखथकिरहितथयातेजसुख वलिसि बनगवानअनंततपनाधणी तेसदायकालज्ञानदर्शनमा रमणतारुप तथाअनंतउपियोगीछे एटलेज्ञानदर्शननो उपियोगअनंताजेपदार्थनेविषे प्रवृत्तिरह्योछे तथाशुद्ध Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्रात्मचिंतामणी. ६८३ ज्ञानभावप्रमुखत्रशुद्धतागइछे माटेशुद्ध कहिये त थाबुधकहिये एटलेबुध केहेतांजेक्षायकनावे ज्ञानदर्शन प्रगटेलुंछे तथाश्रवनासिकहिये एटले अवनासिकेहेतां हूवेकोइकाले सिद्धक्षेत्रथकिनाज्ञथवानोछेनहि कहि ये श्रजकेहेतांजे हवेकोइकाले जन्म लेवोबेनहि नेत्यांप एकांइजन्मलीधोबेनहि जेवाश्रहिंथीसंख्यात प्रदेशनि र्मलथइनेगया तेवाजत्यांप्रगटपणेस्थिरनावेरह्याबे त थानादिबे एटलेाद्यजेनीबेजनहि तथासिद्धनंतवे ए टले एकएवानंता तथा अक्षयछे एटलेको इकालेसि द्दपणानोक्षयथवानोछेजनहि तथाक्षरछे एटलेकोइका लेसिद्धपणामांथीखरवानाबेनहि तथाको प्रदेश पणख रोपडेनहि तथा कोइगुणपर्याय पखरेनहि माटे क्षरक हिये तथाच्यत्रक्षरबे एटले अकारादिकप्रक्षर तेमांएरु पत्रावेनहि एटले अक्षरादिकथकिरहितबे त्यांकोइ कहेशे के सिद्धथवामुक्ति जेके शो तेताक्षरसहितबे नेतमे णक्षर के मकहोछो तेनोउत्तर जेसिद्धश्रथवामुक्तिइत्या दिकक हिने बोलावयुं तोहियांसंसारीने उचार करवा नीसंज्ञा पणत्यांनं तोरुपबंधायनहि नेत्यांकांइनामा दिकबेनहि माटेएत्रणक्षरजकहिये तथा कलबे ए टलेएकोइनाकळवामांत्रावेनहि एकज्ञानिजएनेजाणे बी जानाजाणवामांनच्यावे तथा चलबे एटलेएकप्रदेशश्रा Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- श्रीश्रात्मचिंतामणी. काशनो श्राघोपागेनथायजे उर्धअधोत्रिछोबीजोप्रदेश एकफरशेनहि जेपोतानात्रात्मप्रदेशवमेउपजतीवखतजे फरशेलाछे तेनातेजरहेपणाघोपानोप्रदेशनफरशे मा टेअचलकहिये तथाअमरकहिये एटलेशुनाशुभकर्मथ किरहित एटलेपापपुन्यजेनेकरवुनथी तथाशुनाशुनप्र देशथकिरहितकेहेतांजे पापपुन्यादिकनीवर्गणाश्रोत्राठ जेत्रात्मानेवलगेलीहती तेवर्गणाथकिरहितथया एटले सर्वकर्मरुपमेलहतो तेथकिरहितथया माटेअमरकहिये तथाअगमकहिये एटलेजेसिद्धपरमात्मानास्वरुपनिगम बीजानेबेनहि एतोएकज्ञानिगमजवस्तुने अहिंयांकोइकहे शेके ज्ञानिगमवस्तुएकहोछो तोज्ञानिबीजानेजेरुप होय तेकहकेनहि जाणताहोयतोकेहेज तेनोउत्तरजेपुरुष जाणेछे तेनेकेटलीकवस्तुकहेवाजोगछे केटलीककेहवा जोगनथी तेनुकारणसांनलोके जेवस्तुनाहेतुजुक्तिद्रष्टां तसंसारीकवस्तुनेलागुथाय तेकीिधामांबावे पणजेवस्तु नेसंसारीकहेतुद्रष्टांतलागुनथाय तेकीधामांनावे जेम संसारनेविषेघृतखावानोअभ्याससर्वमाणसनेछे अनेजे माणसघृतखाय तेनास्वादनिपणमालुमछे पणकोइएस्वा दनुस्वरुपपुछेके घृतनोस्वादकेबोडे तेवारतेकेहेवानीसा मर्थीकोइनी नहि शामाटेजेएनोकोइहेतुद्रष्टांतएनास्वा दजेवोपडखेदेखाडवानेछेनहि तेरीतेज्ञानीपुरुषसिद्धना - Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६८५ - स्वरुपनेजाणेछे पणकांशक्तीनथी वलीकोइअहियांकहे शेकेअनुमानथकीसमजावे शामाटेकेउपमादेइनेकोश्व स्तुसमजावाजोगछेनहि तोठीकजछे पणअनुमानप्रमा णकपुंछे तेरीतेसमजावे तेनोउत्तर जेअनुमानप्रमाणप णवस्तुनाअनुसारविनाथतुनथी माटेजेवस्तुनोद्रष्टांतसं सारनीमांहेलीकोरेनहि तेनोअनुमानप्रमाणशांनोकरवो माटेसिद्धभगवान-स्वरुपअगम्यछे तथा सिद्धनगवानश्र नामि तेस्वरुपपुर्वेत्रावीगडे तथाश्ररुपीछे एटलेसिद्धप रमात्मानेविषेरुपकजुनहि एटलेरुपतेकहेतां जेवरण धोलो लिलो पिलो रातो शाम इत्यादिकवरणविनारु पशेर्नुथाय एरुपतोपुद्गलनेविषेजछे माटेसिद्धअरुपीकहि येतथासिद्धकर्मिछे अकर्मिकहेतां जेकर्मरहितएटले ज्ञानावर्णि १. दर्शनावर्णि २ वेदनी ३ मोहनी ४ श्रा युकर्म ५ नामकर्म ६ गोत्रकर्म ७ अंतरायकर्म ८ एत्रा ठकर्मथकीरहित तेनेअकर्मिकहिये तथाबिजेप्रकारेकर्म कहेतांजेकर, क्रिया प्राचार कष्ट प्रमुखकरतेनेकर्मक हिये तेकर्मथकोरहितथया माटेअकर्मिकहिये तेमाटेसि भगवानकर्मिछे. तथासिदभगवानबंधछे बंधनाबेनेद रागबंध १ देषबंध २ तथाबंधनाचारभेद प्रक्रतिबंध स्थीतिबंधर रसबंध ३ प्रदेशबंध तेनानेदअनेकछे इत्यादिकबंधथ Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्मचिंतामणी. कीरहितमाटेप्रबंधकहिये तथाअणउदयकहियेएटलेक मकांइछेनहि माटेउदयशानोहोय तेथीश्रणउदयकहिये तथाणउदारीककहिये एटलेकर्मविनाकांउदारणाक रवीहोयनहि तथाअजोगीकहिये एटलेमनजोग १ वच नजोग २ कायजोग ३ एत्रणेजोगना १५ भेदतेसर्वे जोगथकीरहित माटेअजोगीकहिये तथाअनोगीकहि येएटलेपांचइंद्रिना तेवीशविषय तेमाहेलोएकविषयत्यां बेनहि तथाइंद्रियोपणत्यांनहि तथामननोभोगपणछे नहितेथीरुपीपदार्थत्यांकोइनहि तेथीअनोगीकहियेत थाअरोगीकहिये रोगजेवातपितकफप्रमुखतेशरीरहोय तेनेथायत्यांतोकांइ शरीरछेनहि माटेअरोगीकहिये तथा अनेदीकहियेएटलेजेसंख्यातप्रदेशरुपत्रात्मानोजेघन तेनेकोइनालाप्रमुखेनेदेकहेतांविंधे एटलेछिद्रपाडवूठ स्थुतेकांइपडेनहि सदायभेदी तथाअछेदीकहेतांजे घनमाथीकोइकडकोजुदोपामबोचाहे तेकांइकोकालेप मेनहि तथाअवेदीकहेतांजे पुरुषवेद १ स्त्रिवेद २ नपु पकवेद३ तेत्रणेवेदेकरीनेरहीतछे तथाअखेदीकहेतांजेजे कारजकरतां थाकलागतेनेखेदकहिये तेमांहेलुत्यांकांइ कारजकरकरावग्नहितेथीअखेदीकहियेतथाप्रकरखाइ कहिये कखायकहेतांजेक्रोधादिक तेनाचारभेद क्रोधक हेतांजेतप्तपरिणाममानकहेतांजेअभिमान तेनेजगत्रमद - Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. - - - कहे तेनाबाठनेदले जातमद १ कुलमद २ बलमद३ रुपमद ४ धनमद ५ इश्वरीयमद६ ज्ञानमद ७ तप मद ८ इत्यादीकअनेकनेदएमदअहंकारना तथामाया कहेतांजेकपटस्वार्थकरे परअर्थेकरे तथास्वनावेपणक पटमांजरम्याकरे लोभकहेतांजेतृप्ना धननी राजनी पु बनीस्विनी जसकीर्तिनी अाभवनी परभवनी एसर्वेनेत जाकहिये एक्रोधादिकचारेनेकखायकहिये एवाचारक खायथकीरहित तेनेकखाइकहिये एटलेएसिद्धभगवा नखाइजछे तथासखाइकहतां जेसिदभगवान सखाइकहेता कोइनीसाहाजकरेनहि एटलेजेमुक्तिग यातेनीकोइजिवाशाराखे जेमहारुकारजकरे तेसर्वमि थ्यासिधनगवानश्रहियांआवेपणनहि नेकोइनुंकारज करेपणनहि त्यांबेठापणकोइनुंकारजकरेनहि एतोपोता नास्वभावमास्थीरभावेछे माटेएमनेसखाइकहिये अथ वाबिजोअर्थजेसखाइकहेतां एबिजाकोश्नीसाहाजेसि ध्धरह्यानथी अनेकोश्नीसाहाजथकी सिद्धथयानथी एतो पोतानीत्रात्मशक्तियेजसिध्धथयाछे नेपोतानीवात्मा क्तियेजस्थीरनावेसिध्धनेविषेरह्याछेअहियांकोइनीसाहा जखपलागतीनथीकोइनीसाहाजथकीपुर्वेसिध्धथयानथी हमणांपणकोश्नीसाहाजथकी कोइसिद्धथतानथी श्रावते कालेपणकोइनासाहजथकीसिद्धथवानानथी अहियांतो Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आत्मचिंतामणी. एकत्रात्मशक्तिखपलागेबे माटे सखाइजकहिये वली लेसीबे एटलेलेश्या कहेतां क्रश्नलेश्या१ निललेश्या २ कापोत लेश्या३ तेजुलेश्या ४ पद्मलेश्या५ शुक्ललेश्या ६ एछयेलेश्याथकीरहित माटे लेसी कहिये तथा श कतां उदारीक १ विक्रिय २ श्राहारक३ तेजस४ कारमण ५ एपांचेशरीरेकरीनेरहित माटे शरीरीकहि येतथाप्रणाहारीकतां कवलहारकहेतां जेकोलियोवा लीने मुखमांधरे १ रोमाहारकहेतां रोमरोमथकीप्रण मे २ नाहारकहेतां गर्भावासप्रमुखजाणवानुं इत्यादि काहारेकरीनेरहित तेनेत्रपाहारीकहिये तथा श्रव्या बाधकहेतां जेबाधापीमारहित तथा णत्रवगाहकहेतां जेवगाहनाजेशरीरनीसंसारमांनोखीनोखीने ते संक्षेप थीकहियेछिये प्रथवी श्रादिकचार थावरनीत्रांगलने सं ख्यातमेभागेछे वनस्पतिनीहजार जोजननीबे बेरंद्रोनी बारजोजननी तेरंद्री नीत्रणगाउनी चौरंद्री नीचारगाउनी त्रिजंचपंचंद्रांनी प्रगलनो संख्यातमोभाग उतकष्टीह जारजोजननी नारकीनीपांच सेंधनुपनी देवतानीसातहा थनी मनुष्यनीत्रणगाउनी एवीचारपनवणासुत्रथ कीजो इलेजइत्यादिकश्रवगाहनायेकरीरहित तेनेनिरश्रवगा हनाकहियेहियां कोइकहे शेकेसिद्धनविगाहनाजघन्य बत्रिशत्रांगलनीउतकष्टी त्रण सेंतेत्रिशधनुपनेवत्रिशत्रां ६८८ Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवात्मचिंतामणी - गलनी नेतमेअणअवगाहिकमकहोछो तेनोउत्तर जे त्यांकांइपुद्गलीकअवगाहनानहि नेत्यांजेछेतेनोत्रात्मी कश्रवगाहना तेएकअवगाहनात्यांअनंतीअवगाहना रहि माटेएअवगाहनातोकहेवामात्ररहीजे ने पुद्गलीका वगाहनामांएकमांबी जिसमायनहि अहियांकोइकहेशेजे मनुष्यतथाजनावरनाशरीरनेविषेकीडाप्रमुखपडछे माटे बिजिअवगाहना समायकेनहि तेनोउत्तर जेमनुष्यत थाजनावरनेविषकीडापडेछ तेतोअल्पशरीरीने नेरोंगा दिककारणेपमेछे माटेकांइमनष्यमांमनुष्यपमतांनथी ने जनावरजनावरमांपडतांनथीनेस्त्रिादिकगर्नधरे तेतो गर्ननोकोठोन्यारोजछे गर्भस्थीतिपुरीथये प्रसवथायमा टेएअवगाहनामांअवगाहनाकहेवायनहि माटेएतोस्थी तियानावछे माटेअहियापुद्गलीकनावमा बिजिअवगाह नासमातीनथ नेसिद्धनगवाननेतोएक सिद्धनीअवगाह नात्यांअनंतासिद्धनीअवगाहनारहीछे माटेएअवगाहना गणायनहि तेथीसिद्धनगवानअणअवगाहीछे तथावली अगुरुलघकहतां खटगुणीहाणधिअथवाहलवोनारे ए सर्वेव्यवहारनयकरीने सिद्धनगवाननेकहियछिये शामा टेकस्वअपीक्षायबेनहि परश्रपीक्षायेलाधेतेविचारसर्वस मतीग्रंथथकीजाणजो तथाअप्रणामीकहेता कोइगतिआ दिकविशेषणमवानोस्वनावनहि माटेअप्रणामीकहिये Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धीश्रात्मचिंतामणी. - तथाप्रतिंद्रियकहेतां श्रोतइंद्रि १ चक्षुइंद्रि २ घ्राणइंद्रि ३ रसइंद्रि ४ फरसद्रि ५ एइंद्रियोयेकरीनेरहिततेने अतिंद्रियकहिये तथाअप्राणीकहेतां पांचजेइंद्रिपर्वेकहीते मनोबल वचनबल२ कायबल३ स्वासोस्वासनेत्राव खं५एदशप्रापथकीरहिततेनेत्रप्राणीकहिये तथासिद्धन गवाननेनोप्रजाप्तीकहिये एटलेप्रजाप्तीकेहेतां श्राहार प्रजाप्तीशरीरप्रजाप्ती२ इंद्रीप्रजाप्ती३स्वासोस्वास प्रजाप्ती४ नाषाप्रजाप्ती५मनप्रजाप्ती एउप्रजाप्तीथ कीरहिततेनेनोप्रजाप्तीकहियेतथाअयोनीकेहतांमनुषत्री जंचनीयांबलीपत्रतथाकाचबादित्राकारेयोनी तथादेव तानारकीनीउतपातयोनी समुर्छमनीअनेकजातनीयोनी तेयोनीमांजनेप्राप्तनथीथावं तेनेअयोनीकहिये तथा संसारीकेहेतां संसारजेदेवतामनुष त्रीजंचनारकीएचा रगतीसंसारथकीरहित तेनेसंसारीकहिये तथाअपर केहेतांसंसारस्वरुपथकीनोखा तथाअपरंपारकेहतांजेनो पारनपामीये अव्यापीकेहेतां संसारादिकनेविषेव्यापे नहि अकंपकहेतांजेवायु प्रमुखेकंपेनहि अविरोधीकहेतां कोइजिवसाथेविरोधछेनहि अनाश्रवकहेतांजेशुभाशुन पुन्यपाप नहि अहिंशाप्रमुखपणाश्रवछेनहि तथा ढारेपापस्थानथकीरहीतथयाने तेथीअनाश्रवकहिये असं गीकहेता कोइपद्गलादिकनोसंगनहि अनाकारकहेतां - - - - mamme Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीत्रात्मचिंतामणी. - परीमंमलप्रमुखस्वस्थानएकेनहि इत्यादिकअनंतगुणे करीबिराजमानएवेलक्षणेसहित तेनेसिद्धपरमात्माकहि येहवेअहिंथकासिद्धजेथाय तेकेवीरीतेथाय जेचौदमागुण ठाणानेतेउन्निक्रियाप्रतिपातीध्यांनकरतोसश्लेसीक रणकरीनेसिदएटलेपुर्वेश्राठगुणत्रात्माना तेबाठकमें दाबेलाछे तेथकीछुटेतेनुनाममुक्तिकहिये तेत्राठगुणनां नामकहियेछिये ज्ञानगुणतेज्ञानावर्णिकर्मेदाब्यो १ द र्शनगुणतेदर्शनावर्णिकर्मेदाब्योछे २ अव्यावाधगुणतेवे दनीकर्मेदाब्योछे ३ नावचारीत्रक्षायकभावनुतेगुणमोह नीकर्मेदाब्योछे ४ श्रवनाशीगुणतेत्रायुकर्मेदाब्यो ५ अरुपीगपतेनामकर्मेदाब्योछे ६ अगरुलपगातेगोत्र कर्मेदाब्यो ७ विर्यादिकगुणतेअंतरायकर्मेदाब्योछे ८ तेत्राठकर्मेश्राठगणदाब्याने तेश्राठेकर्मनेद्रव्यकर्मकहि येतथारागद्वेषतेनावकर्मकहिये तेकर्मथकीछटेतेनेमुक्ति कहिये तेजिवकर्मथकीमुकाइनेसिद्धक्षेत्रमांसिद्धीवरे. शिष्यवाक्य-केस्वामी एजिवकर्मथकीमकाणोत्यारेके नाजोरथकीसिद्धसुधीजाय केमकेअहियांतोजिवनेगती। आदिकनेविषे भानपुरवीछे तेखेंचीजायने अनेअहियां || तोकोश्प्रेरकनहि नेप्रेरकविनासातराजउंचोकमकरीने || चडे तेनोउत्तर केपुर्वप्रयोगकहतां जेअनादीकालनो एजप्रयोगजवाआववानोबे तेथकीकरीनेजाय तथा बी Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्म चिंतामणी. जेप्रकारेगतोप्रणमनकहेतां जेतेगतीमांजळे जथाकुला लचक्रवत एटले कुंभारनोचाकरो प्रथमफेरवीनेपबीदंडप डतोमुके तोयपणतेचाकरोतेनीमेलफरयाजकरे तेमजिव संसारगतीत्र्यादिकथकी छुटाछे तोयपणगतीप्रणमननेली धेचाल्योजाय तथात्रिजेप्रकारेबंधन बेदकहेतांजेबंधनथ कीछेदाणो जेमएरंडानुंबीजएरंडानुंफलफाटेके एरंडानं बिजउंचचाले तेमहियां कर्मबंधथ की छुट्यो एव श्रात्मा उंचोचाल्योजाय तथाचोयेप्रकारे संगक्रियाकहेतां जे माग्निनोधुमामोछे ते वायुरहित सखाबंध उंचोचाल्योज जाय ते जिवनेनादिकालनी असंगक्रियाये उर्धगती जवलनबे तेथीउंचोचाल्योजाय एरीतेसिद्धगती मांजाय शिष्यवाक्य - स्वामीचौद मुगुणठापुत्रक्रियछे तोचौद मेगुठा थीएवी क्रिया के मकरे केसातराज उंचोजाय ते नोउत्तर जेसिद्धतोत्रक्रियजबे परंतु पुर्णप्रेरणायेजायबेजे मतुंबडे तेनीउपर बहूतिकाप्रमुखनो लेपदेइनेदृहाने तलीये नाखियेतो एलेपधोवाइजाय त्यारे तुंबडपाणीनीउ परजावे एतुंबडानो स्वभावले तेमात्मा कर्म नालेपथ की रही तथयो तेथीमुलस्वनावत्रात्मानोउर्धगती नोबेने जिवनेचालवानीशक्तिछेधर्मास्तीकायने साहाजकरवानी शक्तिवेतेथीजिवकर्मरहितथयो तोपण जिवसिद्धक्षेत्रमांर हे हियां कोइ कहेशे के प्रागल लोक मांए जिव केम चाल्यो ६९२ Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीवात्मचिंतामणी. नगयो तेनोउत्तर जेवलोकनेविषे धर्मास्तीकायबेनहि त्यारेत्यांचालताने साहाजकोणापे माटेप्रेरककोइनहि तेथीनगयो अथवाकोश्कशेके त्यारेनिचोकमनपड्यो तेनोउत्तर जेनारेहोयतेनिचंत्रावे नेएतोत्रात्माकर्मरुप नारथोरहितथयो एटलेहलकोथयो तेनिचोशाथकीत्रा वे अयवाकोइकहेशेके त्यांडामोजमणोत्रीछो प्राघोपा छोकमनजाय तेनोउत्तर जेएतोचेतनत्रकंपछे तेकांइवा युथकीहालेचालेनहि अथवाकोइप्रेरणाकरतापणनहि जोकर्महोततोप्रेरणाकरत अथवाचलछे एटलेपोताना श्राकाशप्रदेशजेफरसेला त्यांथकीचालीनेत्राघोपालो जायनहि शामाटेकेसिद्धभगवानक्रियछे माटेक्रियाव नाएबधुकारणवनेनहि नेत्रहियांतोक्रियानोनाशकरीने सिद्धीवरचाछे माटेएकामनबने अथवाकोश्कहेशेकेसिद्ध नेकर्मकेमनलागे तेनोउत्तर जेकर्मतोत्रज्ञानजोगथी लागे अनोसद्धभगवानतोत्रज्ञानजोगनाक्षयकरथोडे ते थीकरीनेकर्मकोइलागेनहि एटलेएजेसिद्धक्षेत्रतेनेविर्षे आत्मासिद्धपदनेपामे अनेएवाजसिद्धपरमात्मानागुणक ह्यातेवाजसर्वनात्रात्मानाछे तेत्रात्मीकगुणस्मर्णध्यान जेकरेतेपोतेसिद्धपरमात्माथायएवातमांसंदेहराखवानही • ॥दुहा। सुक्ष्मबोधविणजिवने नहिआत्मश्रनुनवाते कारणएवरणव्यो सुणीलेजोतमेभव्य॥॥श्रात्मचिंताव Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९४ श्रीश्रात्मचिंतामणी. : रणवी वरणव्यो सुक्ष्मबोध ॥ हेज्ञेने उपादेय एत्रणेनोक रीशोध ॥२॥शुभाशुभदशावरणवी त्यागविकहिनिरधार ॥ शुद्धभावतेादरो निजस्वरुप सुखकार ॥ ३॥ नेदज्ञानत्र हियांवरणव्यो जडचेतनविभाग ॥ गुणपर्यायतेमजाणि ये द्रव्यसंघातेजाग॥ ४॥ नयोसातवरणवी बहूग्रंथांनु सार॥दोयप्रकार एहमांकह्या समजोचतुरविचार ॥ ५ ॥ बावनभेदतेनाखीया सातेनयनाते ह ॥एम ने कनेदपक्ष थी वणव्यात्यां गुणगेह ॥ ६ ॥ लक्षण गुणस्वनावते प्रत्ये केप्रत्येकजोय॥साधारणरीतेवरणव्या समजिलेजोसोय ॥७॥निक्षेपाचारजाखिया ग्रंथथकीनिरधार ॥ श्रर्थतेसवी धारजो पंडितमुखनिरधार ॥८॥ स्वरुपकह्युंजेसिद्धनं नि चिन्नकरी सार ॥ बहू हेतु बहूजुगतथी भाख्युंह रख पार ॥ ९ ॥ इत्यादिकबहूवारता नाखीग्रंथमोझार ॥सुत्रग्रंथप्र करणथी एनारूयोअधिकार ॥ १० ॥ न्यायतर्क एमांघो समजुने सुखदाय॥भुख्यानेघेवरमले तेमएग्रंथचितलाय ||१||एग्रंथ जेरुदियेधरे तेनेसिद्धपदसार॥पांमवानहिते प्रांतरो नाखुंछुनिरधार ॥ १२ ॥ एग्रंथथी अलगोर हे तेनेजव स्थीतिदूर॥जन्ममरणते पामशे रहे संसारभर पुर । १ ३ ॥एह ग्रंथत्रविचल र होसुरगिरिसमते ह । ज्यांलगीरवीशशीरहेत्यां लगीगुणनोगे ह।१४। एहग्रंथ मुखमुखहोवो वसुधामांविस्ता राते जलबिंदु जे सविस्तरेनव्यजिव सुखकार | १५|गणी सवसं Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रात्मचिंतामणी. ६९५ वछरे तेविसकारतगमास ॥ शुत्रयोदशीजाणिये जोम वारसुखवास॥१६॥एहग्रंथपुरणहूवो संघने प्रतिश्रानंद ॥ मुजमनपत्राणंदघणो प्रगट्यो सुख नोकंद ॥ १७ ॥ मोदी कपुरमोटकु बहुश्रावकनोवास ॥ तेहता ग्रहकरीकिधु ग्रहियांचोमास॥ १८॥ श्रोताव्यक्ताबहुवसे श्रावकपुन्यप वित ॥ तेहत पेप्राग्रहेकरी किधोग्रंथ एनित ॥ १९ ॥ हूकम माथेचमावियो जिनवर केरोसार ॥ तेहनांवच नत्रनुसारथी जाख्यो हविचार॥२०॥हूकममुनीनोमानशे श्रादरशेए ग्रंथ ॥ सुखशाश्वतापामशे होशेशिववधुकंथ ॥ २१ ॥ ॥ इति श्रीछात्मचिंतामणी संपुर्ण ॥ Page #708 --------------------------------------------------------------------------  Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चिदानंद बत्रीशी. नाथकेसेपरघररमणसोहायो एचरिजमोयेश्रायो ॥नाथ० १॥ मिथ्याव्रतकपायेकरीने जोगशुद्धमि लायो।बंधउदेउदिरणाकरीने श्रद्धाशुद्धनपायोना.१॥ अवलीप्रणतीरागद्वेषनि वलीचरणमनलायो॥ तेथी परघररमणकरीने निजस्वरुपनपायो॥ना०२॥ बहुवि धमरणअनंतकरीने त्रसथावरभमायो॥ अबश्रद्धाभाग मसुलहीने हुकमनिजघरायो ।ना० ३॥ पदपेहेलुसंपू पणः॥१॥ नाथकेसेनिजघररमणसोहायो एअचरीज मनभायो॥नाथ ॥सदबुधमीत्रमल्योजबत्राईतेहनेस्वरु पसूणायो ॥ तववृतंतमूलथीतजाणी चीतचमत्कारपायो ॥ना० १॥ निंद्रापरमाददुरकरीने आपसुश्रापजगायो॥ निजज्ञानदशालीधीसंभारी तवमिथ्यातदुरेजायोना. २॥ोलीप्रणतिसोसवथईप्रणमी श्रद्धासेहेजसोहायो॥ तमहूकमशुंशीवसूखलहिये सेहेजेनिजघरपायो॥नाथ. पद२ संपूर्ण॥ तुहीहेतुहमारोअनूनव ॥चाल.॥ अवधू एहीज्ञानहमारो जासुअनुभवहेप्यारो ॥अबधु०॥ वस्तु गतेरह्योजेधर्म सोहीधर्महमारो॥ोरकाजगेडीकरीरे उनमेंखेलेप्यारो॥१० १॥ बहिरनंतरनेवलीपर्म आत्म परनितीतीन॥ देहादीककोभरमरह्योजीहां सोबहीरा ८८ Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९८ थीचिंदानंदवत्रीशी. तमदीनरे ॥१०२॥ अंतरात्मखेलेन्यारो ज्युंजलक मलद्रष्टांते ॥ मुनीहकमकहेनहीकर्मबंधन सोपरमात्म वतंतरे ॥१० ३॥ संपूर्ण ३॥ राग अाशावरी ॥ में तोमेरीरेनोजाईकुसमरुं ओरसूनहीमोयेकाज ॥ोरसू कछूगरजसरेनहीरे घरकेसाथेलाज॥अबधूोरकुकुणसं नारे १॥ मेरीभोजाईमेरीपासे सोतोरहीमुन॥ अहो निशस्मरणकरतीमोरी वाकुछो कुण ॥अब० २॥ नी जनानीकेरेपासेरेहेशुं करशुश्रात्मकाज ॥ मुनीहुकम कहेसांनलोरे जेशुंशीवपुरराजरे ॥पद ४ संपूर्ण ॥ ॥ पद ५ रागकल्याण ॥ चेतनक्युखेलेतुंपरमें जोखेले तोखेलघरमें ॥चेतन०॥ तुंजाणेपरबुजवूरे सोनहीतुज गणनाग ॥ परउपदेशपरजोगथीरे परग्रहणेतुंलागरे ॥चेतन० १॥ सकलमनोरथपूरवेरे चीदानंदमहाराज ॥ जेथीभवत्रमणमटेरे आपेशीवपूरराज ॥चेतन०२॥ ते माटेचेतनभजोरे काढीओरबलाय ॥ हूकमकहेतुमेखेलो सहीरे निजघेरसेहेजसमायरे॥चेतन०३॥पद ५ संपूर्ण॥ ॥ पद ६ रागप्रनाती॥ अहीनेदुधपावेजेमाणस दु विखवधारेरे ॥ तेनेतेखावेसहीरे उलटोगुणतेजारेरे चेतनक्यातुंपरसमजावे निजघरनहीतुंपावरे॥चेतन०१॥ परसमजावतापकुरखोवत निजचेतनापसंभारेरे ॥ आपसमजावतहोवेवर्षी जेहसुहोवेसुखकाररे॥ चेतन.. Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीचिंदानंदवत्रीशी. । २॥परमांपेसतसूखनहीपावत जेहथीबहुजंजाल ॥ श्रा पसंभालतदीसेवीरला मुनीहूकमकहेतेधार ॥चेतन० ३ संपूर्ण ॥ ॥ पद ७ रागवेलावल ॥क्यासुवेतुंजागबाव रा जमताक्थुकहावरे ॥ चेतनकहावतधरतउमेद तोसर द्वाशुद्धसोहावरे ॥क्या० १॥ पंचज्ञानखटद्रव्यकुजाणे गु णपर्यायेमनाणेरे ॥ स्यादवादद्रष्टिसुदेखत नयनिक्षेप प्रमाणेरे॥क्या०२॥ पक्षप्रमाणखटकारकउनमा एमत्र नेकनंगतुरंगरे॥मुनीहूकमकहेजेएजाणत सोहीसरहा सुरंगरे॥क्या०३॥ पद७ संपूर्ण ॥ .. ॥पद ८॥ रागविलास ॥ आजगतिसमोवसरणमां ॥राग॥ चेतनक्यातुंपरसनारे निजद्रव्यकंसनालो॥त्रां कणी॥ निजघरवहेसोसजातिजाणो अनंतगुणेतेनरीयो रे॥ स्यादवादद्रष्टितेजोतां संभुरमणतेदरीयोरें ॥ चेतन क्या० २॥ द्रव्यनावनिश्चेव्यवहारो एमअनेकभेदज्यां हुतरे ॥ मुनिहुकमकहजोएजाणत तेलहेपरमपदसंतरे॥ चेतन०३॥पदटसंपूर्ण॥ ॥ पद ए॥ रागनेरव ॥श्रा जतोबधाइ ॥ एचाल ॥ चेतनक्यातुंकरेपरप्राशा गेडीदे एहवीषासारे॥चे० ॥ परत्राशासें पुद्गलपेसत देखतलो कतमासा ॥निजधणीकानामनजाणत एहीबडाउदासा ॥ चे०१॥ विज़ातितुंक्यारेबिचारत एहीपुद्गलपासा ॥ निजस्वरुपरमताचेतनमां सेहेजेहोतखुलासा॥ चे०२॥ Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीचिंदानंदवत्रीशी. - -- निजधणीकेपासेरहीके नरसकहाकरनाबातां ॥ मनउ लासप्रगट्योजेअनुनव सोतोनहिरहेछाता ॥ चेतन०३ चिदानंदकीमोजमचीजब नरकाकुंनकरेअाशा ॥ मुनिहू कमकहेनिजघर आपहिचिदानंदकरतुहेवासा ॥४॥ पद९ संपूर्ण॥ ॥पद १०९॥रागप्रनाति ॥ चेतनक्या तूंपरमेंपेसे अल्पकालजाणतहेश्रापको ॥रसुखकंणले शे॥चे०१॥ जोचतेतोकरलेसजाइ प्राश्चितत्रालोयण पेली ॥ पछीसझायध्यानतेकरिये काउसगरसेसेहेली ॥ चे०२॥ जोचेतेतोएणीविधकरले नरसेनहिहेतजका ज॥ मूनिहूकमकहेतेजनपामत सेहेजेशिवसुखराजरे ॥ चे०३॥पद१०संपूर्ण॥पद ११॥दूहो॥ एहीगुरुएहीचेला एहीदेवनकादेव ॥ रकाजगेमीकरी कीजेउनकीसेव॥१ ॥ रागाशावरी ॥ अबधुक्यातुंअनुभवपुछे निजचिदा नंदनहिबके ॥ १०॥ चिदानंदकीबातनजाणत नरकीक रतहेत्राशा ॥ रतेरेकुंक्यावतलावं एहीबडाहेपासा॥ अ० १ ॥ निजघटमेंचिदानंददीसे सर्वगुणेतेनरीयो ॥ भेदज्ञानकीकरेविविक्षा सेहेजेनवजलतरीयो । अ०२॥ क्षयउपसमवडानहिजेहकं पणजोएहनेनजशे॥ मूनिहू कमकहेतेहनेरे सेहेजेनवजलतरशे॥१०॥पद११संपूर्ण ॥पद १२ मुंवादलसेसुरजकुंढंकत॥रागहरेइहां सबहिश्राहारकुंध्यावे सोनवपारनपावे ॥॥सबहिश्रा Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०१ श्रीचिंदानंदवत्रीशी. हारकिशातापुछे मोहेवसमनजेहनु।निजचिदानंदअंतर खेले तिहांश्राहारनचिनुंह०१॥ बाहाजाहारतेपुद्गल लेवे सोतोपुद्गल उपासी ॥ अंतराहारचेतनलेवे सजा यध्यानमनवाशी ॥१० २॥ याविधाहारविवीक्षाकरे जेलेशेएआहार ॥मुनिहुकमकहतेहनेरे सेजेनवजलपा र॥१०पद १२संपुर्ण॥ पद १३९॥ वादलसेंसुरजकुं ढंकत ज्युकर्मचेतनकुंरे॥तेमतरियाजोगकुंखंमत नरलो केध्यानमनकुंरे॥१॥रलोकनसेध्याननहोवे ध्यानएकांते कहियरे ॥ध्यानतणिजोकरेरोविवीक्षा तोभेगीमतकरस इयुरे ॥वा०२॥ कविपणएकांतरहिने करेकवितारुडी रे॥ मुनिहूकमकहेसुणोनाइसंतो एमतनहिछेकुंडीरे ॥ वा०३॥पद १३संपुर्ण॥ ॥पद १४९ ॥रागगोडी।चेत नक्यातुंमनदोडावे एसुदुरगतिपावे ॥०॥ एमनछेपु दलकाघरको सोहिबिजातीजाणोविजातीकोसंगकरण सु कालअनादिगमाणो ॥चे०१॥ तोपणतेरेकुंलाजन श्रावत हजिमननसमारो॥ अवसुंचुक्योफेरहिचेतन ज इसंसारभमारो॥ चे०२ ॥ तेमाटेमनवशकरराखो ज्यु शीवसुखफलचाखो॥ मुनिहूकमकहेसुणोभाइसंतो ए उपदेशमैदाखोचे०३॥पद १४संपुर्ण॥ ॥पद १५ ॥ ॥रागगोडिाचेतनक्यातुंमनदोडावे जेहसुंअप्पानपावे।। ॥चे॥ द्रव्यगुणपर्यायकुजाणत भेदाभेदसबंध ॥ नयन Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ श्रीचिंदानंदबत्रीशी. खेपप्रमाणतुंजाणत वलिस्यादवादसबंध ॥ चे० १ ॥ पक्षखटकारकादिकसोजाणे निजबुद्धिनेअनुसारे ॥०॥ पणध्यानकरिसकेनहिरे तोमनकेमनवारे॥चे०२॥ मनव शथीचिदानंदप्रगटे निजघट होयदिवो॥मुनिहकमकहे सुणोनाइसंतो एहिअमृतकरीपीवो॥चे०३॥१५संपुर्ण। ॥पद १६ मुं ॥रागकेरबो ॥ पीयाबिनकेसेरहमें अब लाएकलडीनार ॥ पियातुमजिसदिनगयाविदेसे फेरख बरनहिपाये॥पी०१॥ जुरतजुरतबहकालबितो धीरज नहिरतकोइ ॥ पी०२॥ सखिहमारीहांसिकरति पीउ तुमकेमनबोलाय ॥पी० ३॥ अबतुमनामसमरणहुवों मोये बतियाफीटफीटजाय ॥पी०४॥ सासरीयेमोये साजनकिधि पिउपणमनसुभुलाये ॥पी०५॥ कमकहधीरजराखे अबतेरेकूबोलाये ॥पी०६॥ संपूर्ण॥ ॥ पद १७ मं ॥ पोउसेमेंकेसेकरुंरे रघरमेंजेजाय ॥ एकलमी घरमरहति तरुणवस्थापाय ॥ पी० १॥ वे रीरेदेखीछीदरदेखे॥रखकुलमेंकलंकलगाय ॥पी० २ ॥ मोयेकंद्रपकामेपीमी ॥ बिनअग्नितनमेंदाह्य ॥पी०३॥ रुपरंगचतुराश्तेखोई ॥ नरसुंबातकेमथाय ॥पी०४॥ सुणोसखीएअरजहमारी॥जइमोयेपीउकुजनाय॥पी५०॥ मुनिहूकमसुंजाइकहूं।चेतनघरअगायापी०६॥संपुर्ण। पद १८ मुं॥ जोबनमातीरागजेजेवंती सुणएभमरवा Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चिदानंदबत्रीशी. ७०३ त ॥ कुंछेतेरीजात कुंतेरोमाततात तुनहिजा ऐसोहि रे ॥०१॥ तुतोबेठो पर घर में पररमणितेरेदल में | सोहि मानतसुखमनमें एसमजनतांहिरे सु ०२ ॥ तेरोबर हे सोदूजो बतेरीनारकबुजो ॥ मुनिहूक मकहे अब सुझो सोहिपुछुतोहिरे ॥ ०३॥ पद १८ संपुर्ण ॥ ॥ पद १९ ॥ रा गभुपालि ॥ नमरक हे सुणसखीहमारीबातरे तुमकहेघर दूजो सोतोकुनातरे ॥ सखीक हे सुणनमरएतोबिजिजा तरे ॥ भ०१ ॥ बेचिदानंदमइ तेरोरुपउरजातरे ॥ ना रीतेरिप्रतिव्रता सोतोजुवेवाटरे ॥ २ ॥ एतोनारिहे दुखदाई तेरी करेघातरे ॥ मुनिहूकमकहे अबजाणो ऐसी येवढातरे ॥ ०३॥ पद १९ संपुर्ण ॥ ॥ पद२० ॥ चेतन तुकांफरेभुला चेतन क्युंकातुं भरमाये ॥ तेरारुपजालह्या जोराये ॥चे०॥ तेरीगतजाणलइघट में जमियोहूंगतिप टमे ॥ चे० १ ॥ रागद्वेषबंधवहेतेरा एपरिवारनहिमेरा ॥चे॥तेरिसगसेंमेकहियो नानारूपगतिमें लहियो॥चे०२ नर्कादिक दुख में सहियो सोतोमेंजाणवलहियो ॥०॥ मुनिहूकमक हे सुनाइयो एहसुंत्र लगानितरहियो ॥चे० ३ पद २० संपुर्ण ॥ ॥ पद २१ मुं ॥ रागकाफि || मोहेनहिगमतएबात ॥ श्र बतोतुंमेरेपासनाविश श्राविशतोखाइशगाल ॥ मेरेकुं तेंदुखवहुदिनो मेरेकुलकुंन रोतेंबार ॥ मो० १ ॥ वहुग Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चिदानंदबत्रीशी. तिनवभ्रमणकरायो जन्ममर्णजंजाल ॥ कोमिनागमनं तबेकायो क्याकहुँवारंवार ॥ मो०२ ॥ श्रवमेतेरि संगक बहु नकरसुं जोहरीमोहेलाज ॥ मेरेघेरहेंरमणिसुंदर हु कमनें एहि सुख काज ॥ मो० ३ ॥ पद२१ संपुर्ण ॥ ॥ पद२२ मुं ॥ रागकाफि ॥ बनमर सोधेर आए॥ एहि बातहुइसब खोटि परघररह्याएभूलाये ॥ निजघरकितोखबर नहि लिनि रह्योमोयेकाये ॥ श्र० १ ॥ एत्तेदिन घर नाहि पीछानो परपोताकोठराये ॥ श्रवतोएहिबिधकरिने नि जघरजईखराये ॥ श्र० २ ॥ एसोबिचारकरतहेनमर दे खेजावनदाव ॥ मुनिहूकमचिदानंदमये विचारतसुखपा वे ॥ ०३॥ पद२२ ॥ संपूर्ण ॥ पद२३मुं रागमारुसरणा॥ चेतनचेतोरेएचाल भमरएमचेतोरेनिजघटमांकरबिचार ॥०॥ तववैराग्यतिहांप्रगट्यो मनसुथिरसंसार ॥ उ दासिनताघरहिपाचत तवथिरवरतिधार ॥न ०१ ॥ श्रो गणिसश्रोगणत्रिसगनोतर खपावत हेतेशिवार ॥ एक कोमाकोमसागररहियेहां सलतकर्मततकाल ॥ न०२ ॥ त्रागेकष्टिहे श्रसंख्याता चढतामुरतखपाये ॥ मुनिहूकम कहेचिदानंदमये पुर्वकर्णतेथाये ॥ ०३॥ पद२३ संपूर्ण ॥ ॥ पद २४ मुं रागमायसयणि ॥ चेतनएमचेतोरे श्राई मनउलास सखिइमबोलेरे ॥ सुणबेहेनिक हेसखिरे व धाईमोयेदेराये तुमपीउकुंमेंजाई बोलावुं सबंधसबहिए ७०४ Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीचिंदानंदबत्रीशी. सूणाये ॥स०१॥ सोयपणततकालसमजत उनकुंदूरनि वार ॥ उनपरिवारसबकुंघाये अबत्रावणकितईयार ॥ स०२॥इसबिदवातकहितबहरखित रोमरोमउलासाये। मुनिहूकमकहेतेदिपवधाई बोहोतमोजएधकाये ॥ स० ३॥पद२४ संपूर्ण ॥ पद २५९ रागनायका॥ अबभमर चेतनकुंरेधायो एत्रांकणि॥ अपुरवमोगरहस्तधरतहे ल इगंठीकुधाउं अपुरववीरजकरतउदेरी थतिमूर्तफेरघाउं ॥त्र. १॥ सप्तप्रक्रतितिहांउपसमाई त्रतियकरणतवजा य॥ असंखकष्टिकरितिहांत्रायो निजअंशस्वरुपदेखाये ॥०२॥तवसमकितप्रगट्यो उपसमथतिमुरतसोहाय।। मुनिहकमकहेनिजघरायो सुंदरिमोतिमेवधाय॥१०॥ ॥पद २५ मुं संपूर्ण ॥पद २६ मुं रागरेखतो ॥ सुंदरिकहेसुणपियाएसि क्याकरी हमकुंछोडदुररहेखबरनलहि ॥ श्रांकणि ॥पि याकहेसुणप्रीय खबरनपडी॥ नित्यनित्यनहिजाणि तिनसेंएठरी ॥सु०१॥ तुमसखीयेत्रायकह्यो तबहिस बलहि ॥ आस्तिनास्तिजाणिमोये स्वपरसहि॥सु०२॥ एमस्वरुपजाएयोजब उनकुंदुरकरि ॥ मुनिहूकमकहेना रि आयोघरवरी ॥सु०३॥पद २६९ संपुर्ण ॥पद२७मु रागनेरवि ॥ श्रांगणेकलपफलोरी जबमुखदेखोपीउके रो॥ दुगधादुरेगयोरी चेतनसुमतादोउखेले ॥बस्तुस्व - १४ Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ श्री चिदानंदबत्रीशी. भावलहोरि द्रव्यगुणपर्जायविचारत ॥ भेदाभेद किहोरी नुनवर सकुंए चाखत हैर मतसुमताघेरी ॥ मुनि हुकम कहे सहिएपाम्यो सहेजेसीवपुर शेरी ॥ ०३॥ पद २७ संपुर्ण ॥ ॥ पढ़ २८ मुं रागकानुडो ॥ साधुतुनामधरावेछे पंचं द्विमनवशनहितेरो ॥ विखयघेरोते देवेछे ॥ सा० ॥ श्रहो तुस्मरणकर विषेको साधुक्युंनामकहावेछे ॥ सा०१ ॥ ब्रह्मचारिथइनेतुंतो ब्रह्मचारिपायलगावे ॥ सा०॥यावि परीत दिसेछेखो जेहथिदुरगतिजावेछे ॥ सा०२ ॥ ते जाणिविखेदूरनिवारो साधुपणुजोचाहे ॥ मुनिहूकमक सुपोभाइसंतो एका ढेसुखसाहेबे ॥ सा०३॥पद२८मुं संपुर्ण ॥ ॥ पद २९ ॥ जबल गेमोहननिवारचोछे तबलगे संजम किरियाजुठी ॥ क्युं तुतन कुंत पावेछे ॥ ज० ॥ पुत्रकलत्रमनशुं संभालत सत्रुमित्रुचितलावेछे ॥ ज०१॥ जवल गेमन शुंमोहननिवार चोतो चारित्र शुधीनहिपावेछे ॥ मोहबेहूदुखदाइ चहूंगतिभ्रमणकरावेछे ज०२॥ ते माटेएमोहकुँनिवारो जेहथिसंजमखोवेछे ॥ मुनिहुकमक हेचिदानंदभजतां मोहते दूरेजावे ॥ ०३॥ पद२९ मुं संपुर्ण ॥ ॥ पद ३० मुं रागमलार ॥ एानुनवहेप्या रो प्रापेध्यानरसालोहे ॥ ए० ॥ निजघर खेलतचिदानंद महि पुद्गलखंधनजाचो ॥ नादरस एचारित्र्नंतो ए कपरदेशवाच ॥ ए ०१ ॥ नाणादिपरदेशनंतो लोका Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद.. ७०७ लोकप्रकाशो॥ ज्ञेयप्रमाणेज्ञानतेजाणो स्यादवादपक्ष थीबहुरासो॥ए०२॥नयनिक्षेपप्रमाणविचारत भेदाभेद तिहांआयो।मुनिहूकमकहे एध्यानछे शुकलध्याननोपायो ॥ ए०३ पद३०९ संपुर्ण ॥ ॥ पद ३१ मुं रागधनाश्री ॥ नटकतकुनफरेरे ॥ एदेशि ॥ सुणरेसैयांध्यानएछे साचो आपेशीवसुखजाचोरे ॥स०॥ एकत्ववित्रकबिजे पाये अभेदज्ञानतेसाचो ॥ करमचारएघातिहणिने नीज चतृष्टीपदमाचोरे ॥सु०१॥ बादरसुक्षमजोगकुरोकिने हू वाअजोगिताही॥ प्रक्रतिपंचासिसतानिहणिनेजिहांनहि छेबंधडाहिरे ।। सु०२ ॥ पंचलघुत्रक्षररेकारणकारजक रीलोकतेपेठो।मुनिहुकमकहेहेचिदानंदमय श्रापेथइने बेठोरे ॥सु०॥पद३१मुं संपुर्ण ॥ - ADGAOGADGADG TaaraaNCHI SHRISESEXE5656 ॥ इतिश्रीचिदानंदबत्रिसिसमाप्तः॥ - 10337363073390GESTER 5SSSSSSS we+:+2016+00+2016+0+0+6+:8 पदारागबेहाग॥ स्वभावपरपाटणमांहि वसेचिदानं दरायरे॥ आपत्रभ्यासेतिहांराजकरतां सेहेजस्वरुपीथा यशस्वभाव०१॥स्वरुपप्रकारतेहदिसे सेहेजानंददुवार।। उपियोगदरवानदिसेसुंदर नहिमोहनोपेसार॥२॥ संमे - - : - - Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०८ पद. कखाईसंदरजाणो गेरीगंनिरधार ॥ सेनपरायंत्रोलंगे नहि एसोगुणउद्दार॥३॥ शानिरनेपदएमतेपामि रम तोसमतासंग ॥ मुनिहूकमकहेचीदानंदमय दिनदिन धिकसोरंग॥४॥ पदलं संपूर्ण ॥ पद २॥ रागसोरठ॥ समनावमंदिरमांबेठो स्वभावमंडपसार ॥अनुनवमित्र तिहांमल्योछे सुधानंदविचार स०१॥ अशुद्धप्रणतिदु रनिवारी नहिसंकलेष्टलगार ॥ अध्यविसायशुद्धदिसे ए सेंनतणोपरिवार स०२॥ रीपुसेनतिहांनविपैसे एअनु भवनोपसाय ॥ मुनिहूकमसमताशुरमतां टालिपरउपा य स०॥पदरजूं संपूर्ण पद॥ रागकानडो॥ समता संगेरमणकरंता नाखीकुमतातोडी ॥ सुमतिसाथेसगा ईकीधी मोहरायेमदमोडि ॥ स. १॥ ज्ञानानंदामं तकीनो अनुभवसेनापतिसार ॥ दरशणादिकसरदारते मोटा फोजतणोनहिपारस०२॥हंदूररेह्यामोहथरथरकं पे रागद्वेषपरिवार ॥ अहियांजोरचालेनहिवाको करे नेकउपचार ॥स०३॥ श्रामंतसेनापतिएकामिजलस स्वा मिनुंराजसमालुं॥ हुंपणदोयनेवशथईवेठो ध्यानवामी मांमालुं ॥स०१॥ अबनयनहिमुजकिंचितमात्र सुधानंद रुपपायो ॥ मुनिहकमसुमताघेरायो जोतनगारोबजा यो ।स०५॥ पदइजु संपूर्ण॥ = Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथसिद्धनीटालो. GOver ॥ पंदरनेदेसिद्धथयातेनी॥ ढालपहली॥ पांडवपां चमोक्षेगया ॥ एदेशी॥विरजिनेश्वरउपदेशे सांनलजो चितलाइरे॥ समज्याथीसुखउपजे पन्नवणासुत्रमांहीरे ॥ १॥ विरजिनेश्वरउपदेशे। एत्रांकणी ॥ जिवसंसारी सिद्धिया टालीरागनेद्वेषरे ॥ श्राश्रवादिकारणतजी पामीगुरुउपदेशरे ॥ वि०२॥ मोहमच्छरदरेकरी चा रित्रपांचमुंपामेरे ॥ केवलपामीबजोगीथया सिलेसीक रणतेठामेरे ॥ वि० ३॥ ध्यानशुकलचउनेदथी पूर्णहो यतेठामेरे। एकसमेस्थितितेगया पूर्णसिद्धतेपामेरे ॥वि. ४॥ तेसिद्धबहूविधजाणीये पणपंचदशनेदभाखुरे ॥स्व रूपतेनुदाखशु नामकहिनेदारे ॥वि०५॥ तिर्थअतिर्थ तिर्थकरु अतिर्थकरस्वयंअंगबोधभाख्यारे ॥प्रत्येकबो धबुद्धबोहिकह्या त्रलिंगेसिद्धदाख्यारे ॥वि०६॥ स्व लिंगअणलिंगग्रहिलिंगे एकअनेकतेजाणोरे ॥ एपंदरे भेदनाखीया सिद्धतणाचित्तप्राणोरे ॥ वि०७॥ तेनंस्व रुपागेभाखशुं श्रोतासुणजोदश्कानरे॥ मुनिहूकमस्व रुपसिद्धनुं जाणताहोयबहूमानरे ॥वि० ८॥ढालपहेली संपूर्ण ॥ ढालबीजी॥ आजतोबधाइराजानाभीकेदरबा ररे ॥ एदेशी ॥ तिर्थसिद्धनेपजियेरे भावधरीनेसाचोरे Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० सिद्धनीढालो. | ॥तोसिद्धिपदपामीये जाणीहीरोजाचोरे ॥ तिर्थ० १॥ए प्रांकणी ॥ तिर्थचतुरविधसंगकह्योए थापनाकीधीसार रे ॥ तिर्थकरेउपदेशीनेए तेतिर्थसुखकाररे॥ति०२॥ संसारसागरअनित्यजाणी नित्यचेतनाधारोरे ॥ एति र्थजेनरसवे तेपामेनवपारोरे॥ति० ३॥ जीवाजीवपदा र्थजाणी शुद्धपरुपकदेखीरे ॥ परमगुरुनीसेवाकीजे त्यां सिद्धपदलेखीरे॥ति०४॥ वचनतेनुनिराधारछे अवर प्राशरोनलेवेरे ॥ज्ञानदर्शनचरणकेरो एकत्राशरोहोवे रे॥ति०५॥ स्वस्वनावेतेनररमता तजीपरभावनेदुर रे ॥ निजसत्ताएरिद्धिदेखी पाम्याआणंदपुररे ॥ ति०६ ॥ तेतिर्थसिद्धकोणछे गणधरप्रमुखजाणोरे ॥ साधुसाध वीश्रावकथावीका जेसिद्धांतेचित्तत्राणोरे ॥ ति० ७॥ तिर्थप्रवर्ततापहेला जेकोइमोक्षजायरे ॥ त्यांकोइतिर्थं करने वारेनकहेवायरे ॥ति० ८॥ मरुदेवाप्रमुखजेसि द्धा तेअतिर्थसिद्धकहियेरे॥ अथवासुवधीप्रमुखवारे ति र्थविछेदतेसहीयेरे ॥ति०९॥ आगलतिर्थप्रवर्तनपेला जे सिध्यातेजाणोरे। जातिस्मरणादिकरणपामी जेसिध्याते चीतआणोरे ॥ ति० १०॥ तेसर्वेनेअतिर्थकहिये सिध्या तेथीसिद्धरे॥ मनीहकमतेपदनेनमतां पामीयेअनभवरि द्धरे ॥ ति० ११॥ ढालबीजिसंपूर्ण ॥ ॥ ढालत्रीजी॥ रुडुनेरलीश्रामणसुरतगामजो॥ Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धनीढालो. ७११ ज्यांदी ठीरे में मुरत संभवतणीरे ॥ एदेशी ॥ तिर्थंकर हवेसिदनाखुविचार जो जेतिर्थंकरथइनेमोक्षेगया ॥ त्रण ज्ञानसंयुक्तगावे जो पूर्वगतीप्रमाणेज्ञानीकह्या ॥१॥ जन्मसमेहरी प्रमुख व कर्त्ताजो तेमदिक्षासमेपणतेजा णीये ॥ विणनमस्कारेल हे चारीत्रसारजो मनपरजवना एतेचीतत्राणीये ॥ २॥ लइदिक्षाप्रभु शिक्षानवी श्रापेजो केवलज्ञानउपन्यापाखीजाणीये ॥ केवलनाप्रगटेप्रभु नेज्यारेजो दरशणपणकेवलतारेचितप्राणीये ॥३॥ यावे इंद्रचोसठमीलेव्यारेजो ते मत्रसंख्यकोड देवनी कही॥समो सरणनीरचनानीश्रावखाणजो परखदाबारेमीले ते वेगेस ही ॥४॥ जन्मप्रति सेचारप्रभुने हूताजो तेमगीच्या रेहवे प्रभुनेया ॥ कर्मनाशाथी जाणोविचारजो तेमनगणीसे देवकरतका ॥५॥ एचोत्री से प्रतिसेवंतनगवंतजो तरप दीप्रापीनेशंघतेथपीयो ॥ द्रव्यखटमंत्रीपदी कहेवायजो उत्पातवय नेध्रुव भाखीश्रापीया ॥६॥ नीत्यत्र नीत्य ने एकत्र नेकतेजाणजो सतप्रसतनेव तावक्ततेकहो ॥ नेदप्रभेदने नव्यानव्यतेजोयजो आस्तीनास्तीप्रमुखशतजंगीलइ ॥७॥नयनिक्षेपनेपरमाणवलिदोयजो॥खटकारकनाख्या रेप्रभुमुखी ॥ चभंगी॥ त्रिनंगी सप्तनंगीजाणोजो एम बहु सभंगी समजोतमे सुखथी ॥८॥ प्रतेके प्रतेकेद्रव्यपरते तेहोवेजो स्यावादमतेनाख्योते श्रीजिनवरे॥इत्यादिकब Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ सिद्धनीढालो. हुनेदतणो विचारजो गरुगमथीते कारज सरे ॥ ९ ॥ पंचद्र व्यनेटाली शेवोक जो जे श्रात्मगुणज्ञानेनरो ॥ श्रविना शीघ्र कलंक जेहनुरुपजों एमनेकथलथीसत्तावरो १० इत्यादिकधर्मथापीपोंतासिद्धजो तेतिर्थंकर सिद्धरीतजा णीये। मुनिहू कमकंइपुजेतेनापायजो गुणनंता एमतेचि तमांत्राणी ॥ ११ ॥ इतीढालत्री जिसंपुर्ण ॥ ॥ ढाल ४ थी ॥ ढोलोते मुखनोमारु ॥ एदेशी ॥ श्रति थैंकरसिद्ध जेह केवली वरछेतेहरे ॥ श्रहंत सुखकारी आत्मघाती जेह कर्मचारह एयाबेते हरे॥री ०१॥ज्ञानगुण नेहणता ज्ञानावरणीने गणतारे ॥ श्ररी ॥ दर्शन गुणजे दावे दर्शन करवानेाबेरे ॥ १०२ ॥ तेदर्शनावरणीह पीयो गुणबीजोत्यांनपीयारे॥श्ररी बस्थीरता गुएातेजा णो ॥ समकीतादिकतेचीतत्राणोरे ॥२०३॥ तेहनेजे कोइरोके मोहमायामलधोकेरे ॥ ०॥ तेहने जे रोहणी यो जथाखायकचारीत्रनणीयारे ॥२०४॥ विर्यानंतु सार दानादिकलबधीधाररे ॥ १० ॥ अंतरायकरमते काढुं गुणचोथोते गुणबाधुरे ॥ श्र० ५ ॥ श्रास्तीस्वभाव तेश्राप पुरणथयोहवेजापरे ॥ ॥ वस्तुत्वतेपां म्या गु अनंतातेशीरनाम्यारे ॥ श्र० ६ ॥ अनंतचतुष्टपोता नी दरागद्वेपनेसोटानीरे ॥ य पछेत्र जोगीपद पायरे ॥ ०॥ पामीसुखीयातेथा ०७ ॥ प्रक्रतिबोंतेरहणीने Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धनढालो. ७१३ प्रकृतितेरजणीने ॥ ० ॥ सलेशीकरणतेकरता प्रकृ तितेरह तारे ॥ री०८ ॥ भागदोयतेमंडी पोलारनो नाग एकछंडीरे ॥ श्ररी ॥ घनलेइ सिद्धपोता ते क्षयपद्वी होतारे ॥ ०९ ॥ तिर्थकर सिद्धएह भेदचोथोजाणों तेहरे ॥ ० ॥ मुनि कम नीतपुजे नाव अंतरमांहिबुजेरे श्रहंत सुखकारी ॥ १० ॥ इतिढाल चोथी संपुर्ण ॥ ॥ ढाल ५ मी देशीधनराधोलानी ॥ स्वयंबुधमुनीव बुंरे जेपाम्यात्रा पेबोधश्रनुभवतेरसिया बोधलेइमुगते गयारे करीश्रात्मनोशोधश्रनुनवते रसिया ॥१॥ श्रीश्रोत्र गटयाजेहमुनीगुण पम्याश्रनुभवतेह ॥ मु० ॥ सेजस्वना वसुखकार ॥ अनुभव०॥ तेस्वयं बुधमुनीवरुरे विणका रणतेपाम्या ॥ अनुभव ० ॥ कारादीठावीस ते सेजे सेजस्व रुपतेनाम्या॥०२॥ जातीसमरणादिकपामी बोधबीज तेलेइ ॥ ० ॥ तेस्वयंबोधदोय भेदबेरे वीवरीनेते कहि ये ॥ ०३॥ तीर्थंकरजेजे हूया तेस्वयंगबुधजाणो ॥ ० ॥ पूर्वाभ्यासे बोधलेइने शीवपोताचीतत्राणो ॥ श्र० ४ ॥ वर स्वयं बुधबीजेनेदे विणतीर्थंकरकहिये ॥०॥ जेत्र तीबोधसेजथीपामी चारित्रगुणग्रहिये ॥ ०५ ॥ नहिउ पदेशकोइगुरुकेरो तेमनहिकारणकोय ॥ ० ॥ श्रापत्रा पणासेज स्वभावे बोधबीजतेहोय ॥ ०६ ॥ तेस्वयंबोध दोयप्रकारे नाखुतासविचार ॥०॥ जेने श्रुतपूर्वश्रभ्या ८० Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१४ सिद्धनीढालो. | सीत जोआंखेउपसमधार॥०७ातेमहानीपुणमहाबु द्विवंतो पुर्वनवअभ्यासी॥०॥ तेश्रुतनेपरभावे चारित्र गुणाहीवासी॥१०८॥ तेहनेलिंगदेवताप्रापे बोलता एएमदीसे ॥१०॥ अथवासुगुरुपासजइने वेषलेइमन हीसे ॥१०९॥ तेस्वयंबुद्धस्वइच्छाये एकाकीविचरता ॥१०॥जोसामर्थिहोयपोतानी तोगुणअनुनववरता ॥ अ०१०॥ जोसामर्थिनहोयएकाकी विचरवासमरथ ॥अातोकोइगुरुपासेगच्छमाही लहेसुत्रनेत्रथाअ०११॥ जोइसुगुरुतेगच्उमेरहेवे जेपूर्वसुतनाअभ्यासी॥॥मुनि हूकमएनिश्चेजाणो आगेनेदप्रकाशी अनुनवतेरसीया ॥१२॥तिढालपांचमीसंपर्ण॥ ॥ढाल ६ ठी॥देशीएकविसानी ॥ तेस्वयंबोधरे पूर्व सतअभ्यासीजे॥ तेगच्छमाहरेनहिकोइकालेरहवाशीजे गुरुपासेरेसुत्रत्रर्थधारेनहि ॥ स्ववीरजेरेपोतेविहारकरे सही ॥ टटक ॥ स्ववीरजेपोतेविहारकरतां श्रात्मनावेजे रहे ॥रागद्वेषमोहत्यागी निजस्वनावतेएमग्रहे ॥१॥ ते स्वयंबोधनारेचिन्हचारनाखुहवतमेशुणजोरेभावधरीने चीतसवे बोध॥१॥उपधी॥२॥सुतने॥३॥वलीलिंगय॥४॥ एचारेनेरेअर्थजथारथकहूंये।टुटक॥कहूविचारतेचउकेरो बोधस्वभावेल, कारणनेउपदेशपाखे स्वयंबोधतेएमग्रह ॥२॥ सुतपुर्वनवरे पुर्वधरतेहनेकह्या ॥ तिर्थकरनेरे Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धनाढालो. Awpara - - - अथवाअवरनेतेवह्यांगजघन्यथीअंगेरे ॥ अगीधारतेजा पीये।उतकृष्टेचउदपुर्वचीतत्राणीयो।टुटक॥ चउदपुर्वते चीताणी सुतअभ्यासतेकह्यो॥हवेउपधीविचारकहीशु पन्नवणावरतीयेलह्यो॥३॥ उपगरणबाररे स्वयंबोधेभा खीरा पात्रानारेसातकहिनेदाखीयाकलपकनारे त्रण उपगरणतेजाणीये गोमोपतीरे एवारेवरखाणीयोटिक। एबारेउपगरणभाख्या स्वयंबोधनेजापजोहवेलिंगपर माणनाखु पुर्वेकडंतेचीतप्राणजो॥४॥ एवरतीरेअनुसा रेजोताथकाजातीसमर्णरेगुणथकीएकहीशक्याविनारे स्वयंबोधहोवेनहि उत्तराधेनेरे अध्यनाठमेसही।टुटक। अध्ययनत्राठमे कपीलकवलीशविणजातीसमर्णलही बो धबिजतेसुखपाम्याचारित्ररंगग्रहि॥६॥अध्ययनविसमेरे उत्तराधेनमांकां मुनीनाथीरे जातीस्मर्णविणलघुका रणजेरे निजवेदनावपुतणी॥ तेथीपांम्यारेबोधबिजएची तनणी॥टुटका।बोधविजतेएमपाम्या कपीललानथकीव ली कारणनेजातीस्मर्ण दोयनिन्नतेएममली॥६॥ तेमठा एंगेरे स्वयंबोधभाख्यासहीनहिजातीस्मर्णरे एमत्र नेकशास्त्रवही ॥ एस्वयंबोधनारे भेदघणाशास्त्रलह्यात बाराधिरे जिवअनंतेसिबलह्या।टुटकाजिवअनंतासिद्ध पोता तेहनाचरणकमलनम् ॥ मुनीहूकमएकाग्रहचीते स्वयंवोधनावरमु ॥७॥ ॥ इतिढालहठीसंपुर्ण ॥ ढाल FORIRAMP - A TIALANCEm । - Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१६ सिद्धनढालो. ७मी ॥ हजियांमनीतोविभाडगीरीजइवंदीये ॥एदेशी॥ नवियांप्रत्येकबोधमुनीवंदियेजेसिध्याआगेअनेक।ज्ञानी मोराए नवीयांप्रत्येकबोधमुनिवंदिये ॥ एत्रांकणी ॥ प्रत्येकबोधमनीतेकह्या जेपामीकारणनेक। ज्ञानीमोराए ॥नवी०१॥ भवीयांस्वयंबोधप्रत्येकबोधमां फरकछेभा खुतेह ॥ज्ञा० नवीयां चारेप्रकारेतेकह्यो बोधउपधी सुतएह॥ज्ञानीमोराए न०२॥ नवी लिंगप्रवरतनचोथो कह्यो एचारेप्रकारेनिन ॥ ज्ञानीमोराए ॥ जेजेविशेषदो यमांही॥ भाख्यंछेवचनतेभिन्न ॥ ज्ञानीमोराए०३॥ नवीयांबाहाकारणकोइपामीने लहेप्रतीबोधसार ॥ज्ञानी मोराए ॥ रिषभजराकुलदेखीने करकंडपाम्योउदार ॥ ज्ञानी०४॥ चुडीथकीनमीराजियो इत्यादिकएचार ॥ज्ञानी०॥ आचोवीसीमांभाखिया जातीस्मर्णविचार ॥ज्ञानी०५॥ तेएकाकीयेविचरे निश्चैवनतेसार॥ज्ञानी०॥ बोधहोवेहवेतेहने जघन्यथीअंगअगियार ॥ ज्ञानी०६॥ उतकृष्टतेजाणिये दसपुर्वतेधारज्ञानी।पुर्वसुतनजनाक हि एभाख्योसुतविचार॥ज्ञानी०७॥ उपधीविचारहवेना खशुं तेसुणोधरीकान ॥ज्ञानी०॥ सातपात्रानाकह्या यो गीमोपतिमान ॥ज्ञानी०८॥ एनवउपगरणजाणिये हवे कहंलिंगविचार॥ज्ञानी०॥ लिंगापेदेवते अथवालिंग रहितहोयसार ॥ज्ञानी०९॥ स्वयंबोधप्रत्येकबोधमां ए Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धनीढालो. 19१७ - नाख्योनिन्नविचार ॥ ज्ञानी० ॥ प्रत्येकबोधमुनिराजने एचारप्रकारेधार ॥ज्ञानी०१०॥ वनविषएकमंदिरा ना भिसुतनुजाण ॥ज्ञानी०॥ चउमुखचउपरमेसरु चारदू वारवखाण ॥ज्ञानी०११॥ चउमुखथीचउप्राविया प्रत्ये कबोधमुनीराज ॥ज्ञानी०॥ देखीकंचनखरपाप्रते कार गलेश्येसाज ॥ज्ञानी०१२॥ एकत्वनावचारेथया स्वस्व रुपसुखकार ॥ज्ञानी०॥घातिकर्मनेतेहणी केवलनाणउ दार ॥ज्ञानी०१३॥ लइअजोगसिद्धिवरया तेचारेमुनी राज॥ज्ञानी०॥ मुनीहूकचरणतेहना शेवतांत्रात्मकाज ज्ञानीमोराए न०॥१४॥ इतिढालसातमीसंपुर्ण। ॥ ढाल ८ मी ॥ श्रावीरुडीभगतिमेंपहेलांनजाणी ॥ एदेशी॥ सुगुरुचरणशेवनथकीए बोधबिजपामी।बुध बोहितेहनेकह्या थयाशिवगामी।सु०१॥ एत्रांकणी ॥ गुरुउपदेशबहूविधकह्योने मुख्यपणेतेदोय॥वेरागसंसार नोकह्योए बिजोअध्यात्मजोय॥सु०२॥ संसारवेरागथी सुणीने मोहस्वरुपजाणोकालअनादिसंसारमाए जन्म मरणठाणो ॥सु०३॥ रागद्वेषएमोहछेने शुनाशुनकहिये तेसर्वनेदूरकरीने॥चारीत्रलेइये ॥सु०४॥ पंचमहाव्रतसु धांपाले निग्रंथपदकहिये ॥ पछेअध्यात्मसांनलीने त्रा त्मगुणवहिये ॥१०५॥ तेहनापणदोयनेदछे नाखुतेसु णो द्रव्याणुजोगप्रथमकह्योए पडेअध्यात्मनणो।सु०६॥ Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - HTRA ७१८ सिद्धनीढालो. खटद्रव्यनेजाणवाए गुणपर्यायसंजुक्त ॥ नयनिक्षेपप्रमा णग्रहिने स्यादवादसंयुक्त।सु०७॥पपंचद्रव्यनेतुमे पर जाणीछंमोएकद्रव्यतमेत्रादरोवली अात्मसुरढमंडो।सु०८। तेविनाअध्यात्मकरतो स्वरुपनवीबंधे॥ तेकारणभव्यप्रा णियाते प्रथमद्रव्यसंधे॥सु०९॥ पछेअध्यात्मध्याइयेरे एकत्वनावाव।केवललेइमुगतेगयाकांइ निजस्वरुपजो वे॥सु०१०॥गुरुतणाउपदेशथकीजे बोधबिजपाम्यागतेथी आत्मकारजकरीने शिवपुरजइठाम्या॥सु०११॥एभेदसात मोकह्यो सिद्धकेरोजाणो॥मुनीहूकमतेशेवताये अनंतसि द्धनाणो ॥सु०१२॥इतिढालआठमीसंपुर्ण॥ ॥ढाल ९ मी॥ मारुमनमोारेश्रीसिद्धाचलेरे एदेशी नेदहवेत्राठमोरेकहूकंइसिद्धनारे स्त्रीलींगरेजेह ॥ अने कतसिद्धिरे बोधपामीकरीरे॥पोंताशिवपुरगेह नेदहवे पाठमोरेकहंकंइसिद्धनोरे ॥१॥त्रांकणी॥ तेस्त्रीनारेनेद त्रणकह्यारे तेसुणजोअधिकार ॥ वेदप्रथमरेशरीराकार दुजोकह्योरे पथतिजोतेधार ॥भे०२॥ वेदतेकर्मबंधपूर्वत गोरे लिंगतेशरीरनोश्राकार ॥ पथतेवस्त्राभुषणादीवे शछेरे एकह्यात्रणप्रकार ॥भे० ३॥ वेशकरेकोइपुरुषना रीतणोरे नेतोहोयप्रमाणत्रणमांहीथीत्राकारसिद्ध रे एशुद्धचीतप्राण ॥ने ४॥ अहींकोइनाखेरेस्त्रीसी नही रे डिगंबरमतीजेह॥ स्त्रीअशुद्धरेकहीश्रीनगवंतेरे तेहथी Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धनीढालो. ७१९ - मुक्तीनतेह ॥भे० ५॥ ज्ञानदर्शनगुणचारीत्रनारे एहनेशु द्धनहोय॥ तेहथीमुक्तीएपामेनहीरे पामेशुद्धतेजोय ॥ने. ६॥ हवेगुरुउत्तरतेहनोनाखेसहीरे स्त्रीमुगतेरेजाय॥ली गप्रयोजनहींकंइछेनहीरे तेतोस्वनावरेथाय ॥ने० ७॥ज्ञानदर्शनचरणगुणतेहनोरे तेमवलीपुरुषनोजोय॥ तेहमांफरककाइहोवेनहीरे तेतोस्वनावीकसोय॥भे०८॥ समकीतशुद्धतेपामेसहीरे पछेसीद्धांतअनेक ॥ ब्रह्मचर्य तेपालेरेशाकरुरे तेमवलीतपविधनेक ॥ने० ९॥ संज मपालेसस्त्रप्रकारथीरे एमनिश्चेनेव्यवहार ॥ तोमुक्तिके मस्त्रीजायेनहिरे करोतमोमनशंविचार ॥भे०१०॥ तवडि गंबरमतवादीकहेरे स्त्रिनेजेफेर ॥ ज्ञानदर्शणशुद्धहोवे सहीरे पणशुद्धचारीत्रनमेल ॥भे०११॥ स्त्रिवस्त्रप्रमुखरा खतीरे तेतोपरिग्रहकहेवाय ॥ निग्रंथविनातोमुक्तिहोय नहिरें एतोत्रनिग्रंथथाय ॥भे०१२॥ वस्त्रविनास्त्रिशोभन हिरे होवेविक्रताचार ॥ पुरुषवस्त्रविनातेशोभतोरे उपस गनवीहोवेधार ॥२०१३॥ ज्यांपरीग्रहत्यांचारीत्रनहिरे इत्यादिकबोलोतेह ॥ मुनीहकमउत्तरहवेत्रागलेरे सांभ लजोगुणगेह ॥ने०१४॥ ढाल९मीसंपूर्ण॥ ॥ ढाल १० मी ॥ चोमासीपारणुावे ॥एदेशी॥ हवे उत्तरतेहनेदिजे न्यायजुगतीथीलीजे ॥ सुत्रशास्त्रथीकीजे तहजहृदयधरीजेरे॥ नेदत्राठमोमोक्षेकीजे हवेउत्तरतेह - Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धनीढालो. नेदिजेरे॥त्र्यांकणी॥ १ ॥जेवस्त्रपरीग्रहमानीजे मुक्तिनो न्यायनणीजे ॥ एवीदेशना केमसुणीजे एतोधर्मपोतानो खणीजेरे॥ हवेउत्तर २ ॥ भगवतिसारग्रंथनाखु तुमचा घरमांहितेदाखु ॥ वस्त्रराखवानीसाखु तेमाटेपरीग्रहन श्राखुरे ॥ हवे उत्तर ३ ॥ परीग्रहतेमुरछा कहिये साधसाध विनेतेनलहिये ॥ समनावसदातेवहिये शुद्धस्वभावमां रहियेरे ॥ भे० ४ ॥ वस्त्रादिकउपग्रहणजेह तेतोधर्मना भाख्याह || नहितोचमरीयादिकतेह परीग्रहथावे सुहरे ||०५|| तवमिगंबरमतिबोले रुदियेपोताने खोले॥कर्माकरुतेनतोले स्त्रिसातमीएनजोवेरे ॥ भे०६ ॥ जो सात मी नर्क नजावे तोमोक्षक्यांथीथावे ॥ विर्यशक्ति कहोकेमञ्प्रावे चक्रवर्तिते नहिंथावेरे ॥०७॥ वासुदेवब लदेवनथावे विद्याचारणपनिपावे ॥ झंघाचारणशक्ति नावे तोमोक्षेकेमजावे ॥ भे०८॥ हवेउत्तरएहनोदिजे आगलढाल मांकीजे ॥ रागद्वेषत्यांनवीलिजे संभावरहि समजिजेरे ॥ जे०९ ॥ मुनीहूकमउपगारबुद्धि भवीजिव नेकाजेशुद्धी ॥ परुपेविभावनेरुंधी पामेतेपदशुद्धीरे ॥१०॥ इतिढालदशमी संपुर्ण ॥ ७२० ॥ ढाल ११मी ॥ श्रादितवारे देवदर्शणकरिये रे ॥ एदेशी सुघुधारोएमजवीत मेदिलमांरे कहामीमिथ्यात दूर ॥ चित नहिमल मेरें ॥ग ०१ ांकणी ॥ सातमियेनवीजाये तेथीमु Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धनीढालो. ७२१ क्तिवारोरे॥ तोसुमीनमुगतेजाय गतिसातमीएधारोरे || ॥ सु०२ ॥ एवोनदिसेनेम सातमीजावेरे ॥ तेहिजमगते जाय एमनिश्चेनथावेरे ॥ सु०३ ॥ नहिसंग्रामादिकतेह पातिकमोटुंरे ॥ तेमांकृषीकर्मदेख इत्यादिकनहिखों,रे ॥सू०४॥ तेथीननजाय स्त्रितेजागोरे॥ पणतेमोक्षजाय, चितमांत्राणोरे ॥सु०॥ जोगतिथीलेइयेपरीमाण. तोत मेसुणजोरे । भुजपरीदुजीएजोय त्रिजियेपंखीनाजोरे ॥सु०६॥ चतुःपदचोथियेजाय उरपरीजाएगोरे ॥पांचमी नतेह एमचितआगोरे सु०७॥ एमअधोगतिनुमान भिन्नभिन्नकहियेरे ॥ उर्धगतियेक पाठमेसर्गलश्येरे ॥सु०८॥ अधोगतिनोनेम उर्धनलाधेरे ॥ ज्ञानादिकगु जेह मुक्तितेसाधेरे॥सु०९॥ चक्रीअरीबलजेह स्त्रिनवि थावरे॥ तेसुणजोअधिकार आगलकेहेवेरे ॥सु०१०॥ मुनीहकमभाखेएम दिलमांधरजोरे ॥ स्त्रिमुक्तेजाय शं कामतकरज्योरे ॥ सु०११॥ इतिढाल ११ मीसंपुर्ण ॥ ढाल१२मी। अजितजिनेश्वरचरणनिशेवा एदेशी॥ सुधीरेसरधाभवीतमेकरजो टालीमतपक्षदुर ॥ मुक्तित णुएकारणनाखु ज्ञानगुणतेभुर ॥ नवितमेसमजोरे एह वचनछेसाचु ॥१॥एआंकणी ॥ पद्विपामेतेत्यांजमुक्ति एवचनछेप्रमाण ॥ तोवासुदेवनेमहान चक्रिपणव खाण ॥न०२॥ बलदेवतोननजावे दोयगतीतसनाखी Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धनीढालो. चक्रीपणचारीत्रतो दोहगतितसनाखी ॥ ०३॥ तेथी पद्विमांसमपणुए दिसेनहिते कांइ ॥ मुक्तिकारणतोस हेज़ स्वनावे श्रात्मशक्तिमांइ ॥ ०४ ॥ थवागोमतसार ग्रं थे स्त्रिमुक्तियेजाय ॥ एकसमे चालीसनाखी तोकेमजुठुथाय ॥ ०५ ॥ अथवासिद्धपनरनेदे नाख्याश्रीजिनवरे ॥ तोच उदभेदनकहिये सत्यवचनतेठरे ॥ न०६ ॥ तेकार मतपक्ष बंडी सत्यवचनचितधारो ॥ स्त्रिमुक्तेजायते साचु एमनेकविचारो ॥न ०७॥ चेतनमांनवीलिंगपणु वेत्रवेदनोजाणो ॥ श्रवेदीचेतनकहेवाये तेथीमुक्तिव खाणो ॥ भ०८ ॥ श्ररुपी मुर्तिचेतन तेहनेननडेलिंग ॥ स्वस्वरुपरहेतातेहने ॥ पांमेशीवपुररंग ॥ ज०९ ॥ श्रा स्तीस्वनावग्रहिनेपोतानो कर्म सवीखपावे ॥ मुनी हुकमते सुखसाश्वता शिवरमणीघरपावे ॥ ०१०॥ इतिढाल १२ मी संपुर्ण ॥ ॥ ढाल १३ मी ॥ घरत्रांगण सुरतरुफलो ॥ एदेशी ॥ पुरुषवेदसिधीयाजी करीपुरुषाकार उदार ॥ तेपुरुषाकार द्विविधेजी नाखुतासविचार ॥१॥ नवमोभेद एसिद्धनोजी कह्योश्रीजिनराय॥एत्रांकणी ॥ द्रव्यभावदोयजाणियेजी निमितउपादान देख॥ कालप्रनादिनोविसरयोजी प्रगट्यो तेगुणख ॥ ०२ ॥ लीपरणती जेहनीजी परभावमांजा ||तपरणतीशोलीथइजी निजस्वनावेचितत्राण ॥ न ० ३ ॥ ७२२ Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धनीढालो. ज्ञानथकी शुद्ध नलखीजी भेदकीधादोय ॥ परवस्तुजेजेक हिजी टालणप्रगट्योरेसोय॥न ०४॥ ध्यानत्रनीलगावीने जी करीपरनोनाश ॥ स्वगुणस्वसत्ताग्रहिजी पोताशीव पुरवास ॥ ५ ॥ नपुंशकवेदेसहिजी सिध्याछेजेजीव ॥ जातीनपुशकनवीलहेजी लहेकृत्रिमशीव ॥ २०६ ॥ एक समेमेविसनोजी एहनोजाख्योनेम ॥ एनपुशकजाणिये जि सिध्याथी प्रेम ॥ ०७ ॥ स्वलिंगेजे सिधीयाजी ना खुतासविचार || जिनशासनअनुसारनोजी पामिलिंग उदार ॥ २०८ ॥ उघोमोपतितेग्रहेजी चरणराखण एधार लोचमुंडशीरकरेजी एजिनलिंगविचार ॥न ०९ ॥ एलिंग ग्रहे सिधियाजि तेस्वलिंगकहाय ॥ तेथीविपरीतजेरह्या जितेन्यलिंगथाय ॥ न०१० ॥ वरदर्शणमांसहिजि जोगी सन्यासीश्राद ॥ सर्वेदर्शणमांहिथीजि सर्वेने खयाद ॥न ०११॥ तेतेभेखेसिधियाजी ते न्यलिंगकहेवाय ॥ बारमोभेदए सिद्धनोजी मुनीहू कमजेथाय ॥ न ० १२ ॥ इति ढाल १३ मी संपूर्ण ॥. ॥ ढाल १४ मी ॥ पंचमीतपविधिसांनलो॥ एदेशी ॥ न पुशकलिंगे सिधिया गंगीलमुनीधाररे ॥ इत्यादिकबहू जालिये नपुंशक सिद्धविचाररे सिद्धपदनमोभावथी ॥१॥ ॥ एक । ॥ श्रन्यलिंगेसिद्धतेकह्या वक्रचुरीप्रमुखरे चारजनारजमांहिथी पाम्यानंतासुखरे ॥ सि० ७२३ Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ सिडनीढालो. ॥ २ ॥ हवेग्रस्थिलिंगेकहूं ॥ द्रव्यचारीत्रनपाम्यारे वेषनेखनवीत्र्यादरे ॥ नहि साधुपदनाम्यारे ॥ सि० ३ ॥ गृहवासवस्तथ के केवल लेइजे सिद्धरे ॥ तेग्रहस्थिसि नाखिया रीद्वनंतीलीधरे ॥ सि० ५ ॥ मरुदे वात्रमुखजाणिये ग्रहस्थिलिंगेसिडरे || स्वस्वनावमांजे रम्या तेपाम्यानंतीरिवरे ॥ सि० ५ ॥ एकसमेजेए कला मुक्तिसुखनेवरियारे ॥ गयसुकुमारप्रमुखसहि ए कसिद्धतेठरियारे ॥सि०६ ॥ अनेक सिद्धहवेवर एवं सु जोतासविचाररे ॥ एकसमयदोयतिनचार ठोतरसत धाररे ॥ सि०७ ॥ किंचितविवरोतसकहूं श्रोतासुणजोउदा ररे॥ प्रथमसमेतेजघन्यथी एकथीवत्रिसधाररे ॥ सि०८|| एउत्कृष्टेपदेकह्यो एमबिजेसमे विचाररे ॥ एकबेथवाधु तिरस जघन्य उत्कृष्टेधाररे ॥ सि०९ ॥ एमत्राठमेलगे जो सिद्धेए सिद्धरे तोत्रे कालावेसहि ॥ बंधमार्गमोक्षकधि रे ॥ सि० १०॥ एमसिद्ध नेकपेरे कहिशुंत्रागेतेजा "रे ॥ मुनि कम सिद्धना भेदघणावखाणोरे सिद्धपद नमोभावथी ॥ ११ ॥ इतिढाल १४ मी संपुर्ण ॥ ॥ ढाल १५ मी ॥ रागधनाश्री धनधनसिध्ध महारा जने जे सर्वकर्मनिवारीरे ॥ आत्मसत्ताप्रगटी हूानीज गुणधारीरे ॥ धनधनसिध्ध महाराजने ॥ एांकणी ॥ प्रथमसमयेएकजे सिध्याजघन्यथीजाणोरे॥ तेत्रिसलगी Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धनीढालो. तेनाखियुं उत्कृष्टेत्रमतालीसमानोरे ॥ ०२ ॥ एमद्वितीये त्रतियेसमे जावतसातमेकहियेरे ॥ एसंख्यायेजेसिध्धवरे पछेविरहेकाललहियेरे ॥ १०३ ॥ अथवानं गणपचासजे जघन्यथासमयेसिध्धेरे || उत्कृष्टेसायथजे एमखटसमय किजेरे ॥ ४॥ सिध्धते उपरहेकालजे निश्रेयीतेहोयरे अथवा एक सतजघन्यथी उत्कृष्टेबोतेरजोयरे ॥ ६०५ ॥ पंचसमेलगेजाणिये पछेविरहकालजालोरे ॥ जघन्यथी तोतेर एकसमे उत्कृष्टेचोरासीवखापोरे ॥ध ०६ ॥ चारसमे लगेजेसिध्वशे अथवा पंच्याशी जाणोरे॥ उत्कृष्टेछनुकह्या तेत्रणसमयेलगीवखाणोरे ॥ ६-७ ॥ अथवासतापुसिद्धे जघन्यथीएपदकहियेरे ॥ एकसतदोय उत्कृष्टथी एमदोय समेलगेलहियेरे ॥६-८ ॥ एपदसर्वेनाखिया जघन्यउत्कृ टुमानरे॥ विरहका लते पछेखरो एसिद्धतणीसानरोध०९ । जघन्यथी एक सोत्रणथी उत्कृष्टेएक सोप्रा ठरे ॥ तेतोएकज समेसिध्धिया जेहनांकर्मसवीनाठरे ॥ ध०१०॥ त्यांत्रहे कालजा लिये खटमासनोधारोरे ॥ए अनेक सिध्धवरणव्या संक्षेपेएह विचारोरे ॥ ०११॥ सिध्धस्वरुप भाखीयुं तमे धरजोचितमांप्राणीरे ॥ जेध्यावेतेहिजलहे एविजिननी वाणीरे ॥ १२ ॥ तेसिध्ध सहेजस्वनावमां निश्चयीनेद एकरे ॥ व्यवहारथी पंदरकह्या अथवानेद ने करे | ध०१३ | सदगुरुमुखथीधारजो जेज्ञानगुणनरियारे ॥ मुनीहूकम O १२५ Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 726 सिद्धनीढालो. . अनुनवी जेसहेजसुखनादरियारे॥ध०१४॥ इतिढाल 15 मी संपुर्ण // ॥कलश // एमसिध्धगुणनाषा सहेजउलाषा // पनर नेदएभाखिया संक्षेपतसवरणवकीधो सिध्धांतमाहेजेदा खिया ॥ग०१॥ व्यवहारनयथीएभेदछे पंचदशकह्यासही निश्चयीसहेजस्वभावरमता अात्मसिध्धहोवेवही।ग०२॥ श्रात्मस्वरुपमलिंगादिकजे कोइनेददिसेनहि। स्वनाव दशामांथिररहे सलेशिकरणेसिध्धकहि॥ग०३॥ एमसि ध्ध-स्वरुपध्यावे परभावीअलगोरहि॥ अरुपीअमुर्ति जेह पामेसुखअनंतवही|ग०४॥ संवतगणिसेसतावीशे अषाडक्रष्णपक्षसहि ॥अमावासदिनएकीधो वारइंदुए वहि ॥ग०५॥ संघसुंदरसुरतशेहरनो तसआग्रहेचोमासु रहि // एहस्वरुपरचनाकिधी संघनेअतित्राणंदलहि ॥ग०६॥शुध्धसमकिततेहपामे जेसरधाकरेएहनी मनि हूकमशुध्धचिदानंदमय सिध्धपद्वीतेहनी॥ग०७॥संपुर्ण॥ - 7 // एसिध्धनापदरभेदनी // ॥ढालोसंपुर्ण //