SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीअध्यात्मछनुवि. श्रीगुरुभ्योनमः ॥दुहा॥प्रमिभगवतिभारति जेछेजगताधार तेह तणिकृपाथकी कहआत्मविचार ॥१॥ ज्ञानविनाव्यवहा रजे तेतोबालकचार बालधुलिलिलासमो नास्योएश्रा चार ॥२॥ अध्यात्मगुणजिहांकने भावचारित्रजाप दर्शनज्ञानपणछेसहि एवं ग्रंथेविनाण ॥३॥ मिथ्याह ष्टिजीवडा करेबाहाजव्यवहार अंतरभावनेदेनहि केमल हेनवपार ॥४॥ जेमभाजनएकवासियुं हिंगलखणकेसंग सुगंधतेग्रहेनहि उलटोग्रहेकुरंग ॥५॥ मिथ्यादृष्टिटालेन हि करेसमकितकिबात पुर्वदोषटालेनहि केमहोयतेसु जात॥६॥बाह्यद्रष्टिछंड्याविना अंतरद्रष्टिनहोय परमा मपदक्थुमले हृदयविचारिजोय ॥७॥ तेमाटेभविजीवडा छंमोबाहेरद्रष्ट परमात्मगतिचाहिये तोकरोअंतरद्रष्टा८॥ अंतरद्रष्टिगुणविना कोईनहोवेशुद्ध बाह्यद्रष्टियखेलता र हे नवधमणनिबुद्ध॥९॥बाह्यव्रतनात्यागसें निर्मलहुवो नकोय अनविपणतेहिजकरे दिलशविचारिजोय ॥१०॥ अहिजेमकंचकतजे पणनिरविषनविथाय तेमज्ञानविना 36
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy