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________________ ३०६ श्रीश्रध्यात्मछनुवि. जिवडा चारगतिकहेंवाय॥११॥ एमसुणिकोइबोलशे ल हिश्रध्यात्मलेश कहेग्रात्म प्रबंधछे शाने करो उदेश ॥ १२॥ एपणनापासत्यछे चाले ज्ञानचाल प्रबंधक हि व्रत मां काढेप्रमादेकाल ॥ १३॥ श्रध्यात्म पोकारतां तजेनहिंप रावतेत बंधमांप फेरनहिलबलाव ॥१४॥ श्रथवात्रा मित्रात्मकरे छंमेन शुद्धाचार कहोनिर्जरातेकेमहोवे तेतोथिरसंसार॥१५॥ त्रणशुद्धिकाहिशास्त्रमां विषय १ श्रा स्म २ तत्व ३ दोमेतोधर्मछेनहि एवं समजोसत्व ॥१६॥ तत्वएकशुधिथी पामेपदनिरवाण सद्गुरुसिखतोएमदि ये समजोचतुरसुजाण ॥ १७ ॥ विषयशुद्धिकरवाथकि कारकबहुनाहोय भवभ्रमणएथिवधे बोहोलसंसारिते जोय ॥१८॥मोक्षमार्ग जातांथकां श्राडोहोवे पाहाड खसाव्यो | खसेनहि जेह नोउंडोगाहाड ॥ १९ ॥ श्रात्मशुद्धि बिजीकहूं ते सुणजोधीकार समजीने दूर किजिये ज्ञानिवचनानुसा र ॥२०॥ श्रात्मात्मजेकरे करेनज्ञानविचार संसारमांव लग्योरहे एमुरखत्राचार ॥ २१ ॥ शत्रु मित्रमनचिंतवे करे तेहराविरुध रागद्वेषवलगीरह्यो एमांजेहनिछेमंदबुध ॥ २२ ॥ पुत्रकलत्रप्रेममां लुब्धाणाश्रहनिश कोइशिखाम देजलि तोकरेखोटीरीस ॥२३॥ लुब्ध्योपरीग्रहभावमांइ त्यादिकबहूनेद एहनिसाधकरतोरहे मट्योनमनकोखद ॥२४॥ साधुभयोतोक्याहून श्राव्योनहिसंभाव समतावि
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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