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श्री श्रात्मचिंतामणी.
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ज्ञानभावप्रमुखत्रशुद्धतागइछे माटेशुद्ध कहिये त थाबुधकहिये एटलेबुध केहेतांजेक्षायकनावे ज्ञानदर्शन प्रगटेलुंछे तथाश्रवनासिकहिये एटले अवनासिकेहेतां हूवेकोइकाले सिद्धक्षेत्रथकिनाज्ञथवानोछेनहि कहि ये श्रजकेहेतांजे हवेकोइकाले जन्म लेवोबेनहि नेत्यांप एकांइजन्मलीधोबेनहि जेवाश्रहिंथीसंख्यात प्रदेशनि र्मलथइनेगया तेवाजत्यांप्रगटपणेस्थिरनावेरह्याबे त थानादिबे एटलेाद्यजेनीबेजनहि तथासिद्धनंतवे ए टले एकएवानंता तथा अक्षयछे एटलेको इकालेसि द्दपणानोक्षयथवानोछेजनहि तथाक्षरछे एटलेकोइका लेसिद्धपणामांथीखरवानाबेनहि तथाको प्रदेश पणख रोपडेनहि तथा कोइगुणपर्याय पखरेनहि माटे क्षरक हिये तथाच्यत्रक्षरबे एटले अकारादिकप्रक्षर तेमांएरु पत्रावेनहि एटले अक्षरादिकथकिरहितबे त्यांकोइ कहेशे के सिद्धथवामुक्ति जेके शो तेताक्षरसहितबे नेतमे
णक्षर के मकहोछो तेनोउत्तर जेसिद्धश्रथवामुक्तिइत्या दिकक हिने बोलावयुं तोहियांसंसारीने उचार करवा नीसंज्ञा पणत्यांनं तोरुपबंधायनहि नेत्यांकांइनामा दिकबेनहि माटेएत्रणक्षरजकहिये तथा कलबे ए टलेएकोइनाकळवामांत्रावेनहि एकज्ञानिजएनेजाणे बी जानाजाणवामांनच्यावे तथा चलबे एटलेएकप्रदेशश्रा