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________________ श्रीसम्यक्हार. mamima श्रायाइतिवचनप्रमाणात्एप्रथमस्थानक॥१॥बिजुस्थान कनित्यके०॥ आत्मानित्यछ।। द्रव्यार्थिकनये ॥ अतित अनागत्त ॥ वर्तमानकालेअविनासीछे पर्यायार्थिकनये तोदेवतामनुष्यादिकपर्यायनो अनित्यपणेअनित्यछे बि जुंस्थानक॥२॥ त्रिजुंस्थानकएत्रात्माकर्ताछेस्वकृतकर्म पाके० ॥ पोतानासुखदुखरुपकर्मनोकर्ता एत्रात्माछे ॥३॥ तथापोतानाकरचाकर्मनोनोक्ताछेके० ॥ भोग वनारोपणएजश्रात्माछे॥४॥ पांचमुस्थानकमुक्तिछे ते पाठकर्मरहितथायजिवत्यारेमुक्तिकहिए।५॥बहूस्थानते मुक्तिनुसारतेज्ञानदर्शनचारित्रछे तेने अाधारेाठकर्म क्षयकरीनेमोक्षजाय॥६॥ एछस्थांनकमुक्तिनांजाणवां.. हवेसमकितनापांचअतिचारकहेछेसंखाके०॥संशयतेबेप्र कारे एकदेशशंका॥१॥बिजिसर्वशंका॥२॥जेदेशशंकाते श्रीअहिंतभगवंतनिप्रतिमा मोक्षनसाधनछेकेनथि ए देशशंकासर्वशंकाते श्रीवित्तरागनोधर्मखरोहशेकेखोटो हशे एसर्वशंका ॥१॥ कंक्षाके०॥ परमतनोअभिलाष कंक्षाकहिए वितिगच्छाके०॥ एकरुं तेत्रागलफलह शेकेनहिहोय अथवासाधुनुमलिनगात्रदेखिने दूगंच्छा करवि तेचिकच्छाकहिए अन्यंसंशाके०॥ मिथ्यात्विनिप्र संशाकरविनहि ॥४॥ संस्तवके०॥ मिथ्याविनोपरीचय करवोनहि ॥५॥ एपंचअतिचारसहितसम्यक्तजाणवं॥ - -
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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