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________________ श्रीसम्यक्हार. नसेवे एछत्रागारेसम्यक्तनागेनहि नगरनेरखोपाकाजे कोटसरिखात्रागारछजाणवा ॥६॥ हवेसम्यक्तनिछभावनाकेछे मूलभूत ॥ १॥ द्वा रभूत ॥२॥ प्रतिष्टाभूत ॥३॥ निधिभूत ॥ ४ ॥ श्राहारभूत ॥५॥ भावभूत ॥ ६ ॥ चारीत्ररुपधर्म स्याके०॥ चारीत्रधर्मरुपक्षनमलतेसम्यक्तछे ॥१॥ धर्मरुपनगरनुवारणासरिसम्यक्तजाणवू ॥२॥ धर्मरु पमंदिरनुपायासरिखूतेसम्यक्तजाणतेप्रतिष्ठाभूत्ततृती य॥३॥ जेमचक्रवर्तिनानिधानमांहे सर्वेजातनारत्नछूटां होय तेसर्वैरत्ननिजात्तनिदानमांहेसमाय तेममूलगुण उत्तरगुणरुपछुटांरत्नसरिखागुण तेसम्यक्ततेनिदिस रीख़ुमननेविषनाववू ॥४॥ जेमसर्ववस्तुनो आधारप्र थविहोए तेमसर्वगुणनो आधारएकसम्यक्तछे श्राधा रभूत ॥५॥जेमअमृतादिकरसनोआधारतेकलसादिक नाजनहोय तेशुतशिलादिकनोरसतेसम्यक्तमा रहेएम एछनावनाएकरीनेनित्येसम्यक्तनिभावनाभावे ॥६॥ हवेत्रात्मानास्थानककहेछे प्रथमस्थानकजेआत्मा छे शरिरथकिभिन्नत्रसंख्यातप्रदेशिज्ञानदर्शनचारीत्रवि यमय ॥ श्राकारत्रनाकाररुपउपयोगमयएवोत्रात्मा प्रतेशरीरनिन एवाअनंतात्रात्मा व्यक्तिनेदेताजए सि दसंसारीरुपएकजात्मातकारणमाटे श्रीठांणांग॥ एगे
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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