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________________ श्री सम्यकद्वार. ५१ यदवतिके० ॥ जेमनुष्य ॥ तथातिर्जंचपंचंद्रिय ॥ एबेगति मांहिथ कि ॥जेदेवताथनारहोय तेनेद्रव्यदेवकहिए तेनि स्थितिजघन्य अंतरमूहूर्त उत्कृष्टितिनपल्योपमनी स्थिति एटलेमनुष्यतिर्जचनु तिनपल्योपमनुं श्रावखु त्यांसुद्धद्रव्यदेव कहिए नरदेवतेचक्रवर्ति कहिए तेत्रा वखापर्यंत नरदेव कहिए धर्मदेवतेसाधुकहिए तेजघन्य अंतरमूहूर्त ऊत्कृष्टो देशे उणुपर्व कोडनिस्थिति ज्यांथ किचारीत्रलिधुं त्यांथकिधर्मदेव कहिए देवाधिदेवारी हंतनगवंत कहिए तेहनिस्थितिजघन्य ७२ वर्षनि उत् कृष्टिचोरासिलाखपूर्वनि स्थिति एटलेावखा पर्यंत अरहंत गवंतकहिए त्यांसुधिपुजनिक कहिए। एटलेको इककेछेजे अरहंत भगवंतने केवलज्ञान उपजे तथाचा रीत्र लिधुंत्यारपछि पूजनिक कहिए || तेजुठु ॥ जेदिवशे मातानी कुक्षेश्रवतरचा उपन्या त्यांथकिपूजनिकरीहंत भगवंत विचरता कहिए वलिकोइवादीबोल्यो जेरीहंत भगवंत गृहस्थावस्ता नेविषे होय त्यारेसाधुनिग्रंथपंच महाव्रतनापालनारा वांदेनमस्कार करे के नकरे एवादि नुवचन एनोउत्तर ॥ जेवांदवूनमस्कार करवो तेनाप्रका rangoli बिजोनावथकि एबेप्रकारछे जेद्रव्यथ कीवांद ते पंचांग प्रणाम तथाद्वादशवर्यादिकवांदवुं । 91 जेनावथ किवांदवू तेमननाशूनप्रणामेकरीने तथानमोठा
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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