SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीरागमाला. ३४९ ह॥बरणगंदरस एक एकभाख्या दोय फेर सैकहियैतेह ॥ १ ॥ से पंचगुएहि जीन में सोईपरमाणुजाण ॥ कारणकारज मीलकेनं न मे पुरणगलनचिता ॥ २ ॥ पुद्गलदरवैया कौकहिये चोथोरूपीमांन ॥ मुनिकमयेरागनी कुकब पुद्गलवखा ॥ गाथा३ ॥ इतिपद ११ संपुर्ण ॥ रागनिगुणकली ॥ जीयापुद्गलस्वरुपतेयेह लोकमे ताते ह॥ घकपंदतेजांए। अनंताते हवखाणा ॥ गाथा १ ॥ तकबंदप कहिये संख्यातीकदलहिये ॥ श्रसं ख्यातीकपणभाख्या नंताकतीहांदाख्या ॥२॥ येसर बेसबदजाणो येकयेव्याचैनंतबैखांणो ॥ येक प्राकाशपरदे शैकहिये अनंताषंद तेलहिये ॥३॥ येमपंचैपरकारथीना ख्या चेतनचितमैराख्या ॥ मुनिहूकमक हैते त्यागो गुन कलीकुगांणैलाग्यो ॥४॥ ईतिपद १२ संपुर्ण ॥ रागहींमोल॥ श्ररेजीयाजाणतुस हैज सुभावकु चेतनाल क्ष्णैसहैतदाख्यो॥चेतनादोयपरकारकीजाणी ग्यानदर शैनउपयोग में प्राणीयै ॥ अनंतपरजायपरणामिकदरव ये उनकेदोयप्रकारेबेखांणीयै॥१॥ करत्वादि लंबा है जीव कापरजावैते अशुद्धजानो॥ शुद्धस्वभावमैंर मैज बचिदघन शुद्धपरजायकुतेर्हेमानो ॥२॥ उपीयोगवंततेचेतनाजानी ये बीन्यउपयोगजे मैजानो मुनीडूकमरागहिंमोगावाथकी शुद्धउपयोगथीशीव सुखबस्वांनो ॥ इतिपद १३ संपूर्ण ॥
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy