________________
श्रीरागमाला.
३४८
नीगावै ॥ ३॥ इतिपद संपुर्ण ॥
रागनीच्या सावरी ॥ सिद्धस्वैरुपप्रणमिजेभाइ ग्यानशू धारसपिजै ॥ त्रांकणी ॥ सिद्धावस्ता मसाजकारि धर्मा स्तिकायक हिजै ॥ स्थिरताभाव अनंतायाको उपयोग मैं पण लहिजै ॥ गाथा १ ॥ जिवपुद्गल स्थिरताभावै पुष्टहेतु एक हिए। असंख्यपरदेशएलोक प्रमाणो दुजोदरब एबहिए ॥ २ ॥श्रा साछोमश्रासावैरीगायो शुद्धस्वरुप मैं रहिए ॥ मुनीहूकम चि दानंदनजतां शिवरमणिसुखलहिए ॥ ३ ॥ इति पद ९ संपुर्ण ॥ रागनीविलावल ॥ जियालोकस्वरुपकुजाणो बगांह कस्वनावबखाणोत्रांकणी ॥ पुष्टहेतु सर्वदरबकु श्राका स्ति कायकांहांणो॥ श्रवगाहानासर्वकु देवै सोयेदोजातजाणो ॥१॥लोकालोकदोय कहिए वाकोस्वरुपहूंचाखु ॥ जिवा दीस्वरुप बसेजीहां सोइलोक कैहिद | खु॥२॥ संख्य परदे शकेनाखे अबका लोकबिचार ॥ अनंतपरदेशउनके जाखे पण हिदरबपरचार ॥ ३॥ श्रवगाहकशक्तीउनमै पणलेनेवालानाहि ॥ लोकालोकउन्नये मील के येस्वैरूप हैत्याहि ॥ ४ ॥ श्रनंत परदेशीदरवैयेतीजो श्राकास्तिकायते कहिये ॥ मुनिहूकमयेनाजनकाहाणी रागनीवीलावलल हिये ॥ ५॥ इतिपद १० संपुर्ण ॥
रागनीकुकब॥ चेर्तेन क्योतुनहिबीचारै पुद्गलदरवैकुधा यांकणी ॥ श्रतिशुक्ष्मैपरमाणुभाष्या नित्यैस्वभाविकजे