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________________ श्रीज्ञानविलास. २१३ चपलछेतेहना विषयादिकसंजोग अनीलाखीते सर्व नो ल्योनहिकोइरोग ॥ ५ ॥ प्रविरती एजीवछे तेहेने मानेसाध इत्यादिकविचारबहु समकितिमनबाध ॥ ६ ॥ दोयनेदरजुसूत्रता सूक्ष्मबादरजाण सूक्ष्मइहांवखाणिये प्रथमभेदचित्तत्र्याए। ॥७॥ वस्तु सर्वसदायते वर्तमानकाले जेह समयमात्र तेग्रहे देखाडुगुणतेह ॥ ८ ॥ तितकाले जीवए हूतो ज्ञानीजा श्रनागतका लेतेवली अज्ञानथा शेचित्तत्र्त्राण ॥९॥ वर्तमानकालेज्ञानिछे ज्ञानिनाखेतास | भूतभविष्यकालनी अपेक्षानहिजास ॥१०॥ एकजवर्त मानकालनो समयग्रहेएक देखेतेवाभाखतो सूक्ष्मरजु सूत्रनेक ॥११॥ बादरथुलपरणामने ग्रहेतेरजुसूत्र एम जीनतेजालिये रजुसूत्रनयहुत ॥१२॥ ढाल २९ मी ॥ क्रीडाकरीघरश्राविया ॥ एदोश | शब्दनयहवेभाखशु जे हनागुणनेकरे केहेतांपारावेनहि समकीतगुणनीटे करे शब्दनयहवेभाखशु ॥१॥ वस्तु सर्वगुणेभरी अथवा निर्गुणजेहरे नामलहि बोलाविये भाषावर्गणाथी तेहरे ॥शब्द ०२॥ वचनगोचर जेहोवे तेशब्दनयजाणोरे रुपि द्रव्यवचनशुं ग्रह्योनजायेताणोरे ॥ शब्द ० ३ ॥ पणवचनशुं जाखिये तेथीशब्दनयथायरे शब्दनार्थजेहवा वस्तुमां गुणतेपायरे ॥शब्द ०४॥ घटपटजेमतेशब्दथी तेवोर्थती हांहोयरे तेकारणएनयनो विषयतेवाजोयरे ॥ शब्द ० ५ ॥
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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