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________________ ३५४ श्रीरागमाला. ॥ टेक ॥ संदैनावसंदनावतेजालो र पितणारपी तबिचार ॥सपर परजा एसहि एजंगमनुहार ॥ १ ॥ बसेखप णेगविखीयेत्रो बक्तब्यप्रबक्तब्यधार॥ उनैयनेदला धैबै येह सैमता सुखकार ॥ २ ॥ तेहस्वरुपसप्तभंगीमांहि जात्रा बिचार ॥ मुनीहूकम एचिदानंदमयै गाइरागर्न । बाहार ॥३॥ इतिपद २३ संपुर्ण ॥ ॥ रागनीसुवा ॥ प्रथमगते श्रास्तीके हिए सर्वदरबमे धार ॥ श्रांकण दरवगुणपरजायमाहि श्रास्तीपणातेजा कैरदर में लहिए गुणपरजायैबखा ॥१॥ सदना पापणो गुणपरजायतेहोय ॥ श्रापच्यापणा दरबमै लाधे श्रास्तीपणोतिहांजोय ॥२॥ पीतपणोतेबस्तुनु हो सोइबस्तु धर्मं ॥ एकसमेतेसर बेनासे सोइग्यांनी मर्म ॥३॥बदमस्त नेतोश्रनुक्रमेनासे सरधाएकसमेयी येहोय॥ मुनीहूकमए प्रथमजांगो रागनीसुवामैजोजोय ॥ ४ ॥ इतिपद २४ संपूर्ण || राग श्री ॥ श्रपनारूपरचैके देखो नही परगुणस्वभावै॥श्रां कणी॥श्रापस्वरुपमैलार्धेनाही परदरबपरजाय ॥ गुणलक्ष पशुनावर्तेला तेथीनास्तिपणोथाय ॥१॥नास्तिस्वैनाव येापको श्रास्तिपणे ते जाणो दोउभेदयेजीवकाकहिये ॥२॥ बीजोभंगयेबखांणो नास्ति सदरबैबखां स्वभावने जाए॥ मुनिहूकमयेचिदानंदमेय श्रीरागवखांण
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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