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________________ श्रीध्यानविलास. २८७ ये प्रमोद केहेतां महाहरखनुथानकपांमवुतेशाथकीजे गु णवंत ने देखीने अथवाज्ञानादीक गुणउपरघ पोरागरे हे हवे जेगुणवंतकेहेतां जेपोतानाधर्माचार्य अथवाबीजापणज्ञा नजोगीश्वर महामुनितेवानामेलापथी महाप्राणंद प्रगटे होमहारांधनभाएगजे श्राजमूनेमहाराधर्माचार्य प्रथ वाज्ञानी पुरुषोनोसमागमथयो श्राजम नेते मनादर्शनथयां होहुतेमनीशेवानक्तिकरीश महारांसर्वपापगयां श्राज महारे मोटोपुन्यनोउदयथयोवलीतेगुरुकेवाछे के अनंतगु एनाधणिछे मोक्षनासुखनादातारछे मोक्षमारगनुकार एजछे वली गुरुकेवाछे तत्वभोगीछे तत्ववीलासीछतत्वा श्रीयछेस्वपरनाजाणछे परभावत्यागीछे हेवाजेकोइमहा राजे धर्माचार्य साक्षातत्राकाले परमात्मारुप होएम नुंउपगारतापणुं जे ज्ञानजीव अजाणतेवाने बहू तथी उपदेशकरीनेधर्मपमाडे मार्गमालावीमोक्षपोचा डे दूरगतथी पडतावारे एवाजेगुरुजीनो माहामोटोउप गार एउपगार बिजाथकिनिपजे नहि हेवाउपगारीना गु एप्रोशींगथवानु कोइरितथीदिसतुनाथ कोटानकोटि वसुधि सर्वरितेकरिने शेवानक्ति प्रादेदेइनेकरे तोपण गुणोशींगणनथायमाटे हेवागुरुनोमनेसमागममल्यो छे धन्यछेमहारांभाएग धन्य जनोदहाडो धन्यघडीव न्यवेला अथवास्यादवादधर्मनोजोगमल्यो ज्यांत्रात्मस्व
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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