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________________ श्रीज्ञानविलास. २४७ तिसेदिसेएहके गुरुमुखथीधरोरेलोल॥हवे. १॥ लोका काशनाजेहप्रदेशके प्रदेशेप्रदेशेलहोरेलोल तिहांगोलो अकेकोजोयके तेहमांनीगोदलहोरेलोलाहवे०२॥गोला प्रत्येअसंख्यनीगोदके तेकायाकाहरेलोल अनंतजीव तपीएधारके एकशरीरलहिरेलोलाहवे०३॥ एमएकनी गोदेअनंताजीवके एवीअसंख्यछेरेलोल तेहनोगोलोए ककेहेवायके एहवाअसंख्यछेरेलोल॥हवे. ४॥ एमके कीनीगोदमांजोयके जीवअनंताकह्यारेलोल तेजीवएक तणाप्रदेशके असंख्यातावह्यारेलोलाहवे०५॥जीवतणे एकप्रदेशेजोयके कर्मअनंतरह्यारेलोल वर्गणात्राठेवलगी छेतामके प्रत्येकेप्रत्येकेकह्यांरेलोल हवे०६॥ अनंतप्र माणुवासाथके वर्गणातेकहिरेलोल जीवशंलागीछेनिर धारके पन्नवणामांलहिरेलोल ॥हवे० ७॥ हवेकहूाउ खानोविचारके नवितुमेचितधरोरेलोल मनुष्यपचंद्रीजे निरोगके तेहनुमानकरोरेलोल हवे०८॥ एकसासोस्वा समांसत्तरके नवझाझराकररेलोल मर्तएकमांहवलीजेह के साडत्रीसोतोतेरधरेरेलोल हवे. ९॥ एटलास्वासो स्वासकेहेवायके पुलकनवहवेकहूरेलोल पांसेटहजारने सतपांचके छत्रीसभवलहरेलोल॥हवे. १०॥ नीगोदना एकनव-मानके बसेछपनसहीरेलोल श्रावलीतणुंछेप्रमा णके नीगोदएभवेकहिरेलोलाहवे०११॥हवेजेनीगोदमार
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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