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________________ - श्रीअध्यात्मछनुबि. ३०९ ॥५३॥ प्रात्मभावन्यारोकरि देखोपद्गलभाव कालना दिनोलग्यो शत्रुरुपस्वभाव॥५॥तेहिजपुद्गलजातनि व गणादिशेत्राठ वलगीत्रात्मस्वरुपने तेथिशक्तिनाठ ॥ ५५॥ तेमाहिपाठमिजाणिए कार्मणवर्गणाजेह चेत नवशथयोतेहने कर्मकहिजेएह ॥५६॥ तेमाहिराजा एकछे मोहनिकर्मसरदार मोहरुपएभर्ममां नोल व्योसविसंसार ॥ ५७॥ कइंकशुनकइंकशुन एम करतांगयोएकाल पणधर्मपाम्योनहि मिथ्यामोहकि चाल ॥३८॥ शुनाशुनपुद्गलदशा वेदनिकर्मविचार श्रा स्मघातिएकह्या निश्चेतेनिरधार ॥ ५९॥ शुभाशुनक मंगती निगमव्यवहारचाल तेकारणदूरेकरी निजस्वमा वनिहाल॥६०॥ एमपुद्गलदशात्यागसें प्रगटेत्रातमरुप नेदज्ञानविचारीए शुद्धव्यवहारस्वरुप॥६१॥शुध्यात्मत्र नुभवदशा सेहेजस्वभावनिहाल वितरागताप्रगटे एप नुभवकिचाल ॥३२॥च्यारनयकुछंडके त्रनयकुग्रहे तो सिद्धताहोवेतुरत एवंभूतेकेहे ॥ ६३ ॥ पक्षप्रमाणादिक ग्रहि स्यादवादसंयुक्त अनुभवत्रात्मकोकरो एहिवाग मयुक्त॥६॥गुणपरजायसंजुक्तते द्रव्यतणोविचार ग परजायसंक्रमणथि निन्ननिन्नमतिधार॥६५॥ भिन्न निन्नविचारतां गुणठाणदशमुधार शुक्लध्याननोतेकह्यो प्रथमपायोउदार ॥६६॥ एहिनेदज्ञानछे एहिशुधव्यव
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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