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________________ २६८ श्रीध्यानविलास. कपदार्थनुमलवुथयुछे तेनोविजोगथवानोचिंतवे एटलेश्र नीष्टजेभुंडांदुखनांकारण जेत्राशत्रुनहींथी क्यारेजाय अथवाभादरिद्र अवस्थामाहारीकाहारेजशे अथवाश्रा कुमाणसनोसमागमथयो तेकेमटले अथवाएथकी श्राप णोछुटकोक्यारेथशे ईत्यादिकवीचारवु ते अनिषसंयो गबीजोपायोकहिये. . हवेत्रीजोपायोरोगचिंताबार्तध्यानकेहेतांशरीरनेवी शे वायु गरमी पीत ज्वर इत्यादीकउपने थकेदूखघणु करे घणी चिंतामांप्रवर्ते एनाोशडउपचार करवानी चिंतामांरहे तेरोगचिंता आर्तध्यानतिजोपायोकहीए ए ध्यांननेविशे पराए त्रणलेस्याहोत्र क्रश्नलेस्या ॥१॥ निललेस्या॥२॥ कापोतलेस्या एत्रणलेस्या संनवेछे हवे चोथो पायो अग्रशोचकेहेतां जे मन मांआ गलनाकालनो शोचकरे जेएणेवरसे एकामकरीशु अथवाश्रावतेवर्षे भावीरीतेकामकरीशु एमचीतवे तथा दान शियल तपनुफलमागें जेमांएणेनवातप प्रमुख कीधा तेनुमनेअमुकफलहोजो एटलेहूंावतेनवे इंद्र तथा देव तथा चक्रवर्ती तथा वासुदेव बलदेव शेठसा हकार पुत्र कलत्र धन धानादीक हरकोइमागे एभाग लनानवनीवंच्छा एटलेअग्रशोचनापरीगामउपजे अ थवानीत्राणानुकरवं तेपण एअग्रशोचमधेछ। wa - - -
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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