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________________ श्रीसम्यकद्वार. - शिष्यतेसाचूंकहयुं तेंनलुप्रश्नपूछयु अभिप्रायजाण्या विनाशंकाउपजे तेमाटेतुंएवात्तना अभीप्रायमांसम ज्योनहि जेमेकांजेकशोत्तरभेदनथि तेनिप्राय सांनलाजेचोत्रिसअतिशयादिगुणतो॥ भावनिक्षेपामां होय तेजगुणप्रतिमामांहोयतो भावनिक्षेपोजकेहे त प्रतिमाकहेतनहि कशोअंतरभेदनथिएजेकहयुं तेजे कोईनव्यजिवभद्रिकसम्यक्तदृष्टिदेववृत्ती तथासाधुनिग्रं थहोय जेकातेजेपोतानघटमांउचित्त ॥ मन ॥ वचन ॥ कायानिशक्ति बालविय॥१॥ बालपंडितविर्य ॥२॥ पंडि तविर्यरुपशक्तितथातेविपुन्यप्रकृतिने अनुसारे विद्यमां न श्रीअरीहंतनगवंतनिप्रतिमानि शेवानक्तिविनयबहू मानकरे पुन्यानुबंधिपुन्यप्रकृतिबांधतेविजमहानिर्जराए करीने उत्कृष्ठपदेवततोजिव सिद्धिपामे त्यांश्रीवितरा गनिप्रतिमामां कशोअंतर भेदनथि एनिप्रायव चनकहपुंछे वलिजेसरखोगुणने सरखापणुनहि एयूँजो एकांतेकहेतोमिथ्यावथाय तेतोपूर्वेश्रीसुगडांगनिसाखे काजछे तोइहांकशंकहवानुकामरहघुनथि वलिजोतमे का जेअतिसयादिकगुणमाहेलोएके गुणदिसतोनथि ते वगरसमज्योबोल्यो श्रीतिर्थंकरभगवंतनिप्रतिमामांतो निर्विकारनेत्रप्रमख संस्थानादिकेशैलेसिमोक्षजावानिश वस्था तेनिमूद्रापरमउपसमरसनोश्राकार श्रीतिर्थंकरभ
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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