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________________ श्री आत्मचिंतामणी. एकत्रात्मशक्तिखपलागेबे माटे सखाइजकहिये वली लेसीबे एटलेलेश्या कहेतां क्रश्नलेश्या१ निललेश्या २ कापोत लेश्या३ तेजुलेश्या ४ पद्मलेश्या५ शुक्ललेश्या ६ एछयेलेश्याथकीरहित माटे लेसी कहिये तथा श कतां उदारीक १ विक्रिय २ श्राहारक३ तेजस४ कारमण ५ एपांचेशरीरेकरीनेरहित माटे शरीरीकहि येतथाप्रणाहारीकतां कवलहारकहेतां जेकोलियोवा लीने मुखमांधरे १ रोमाहारकहेतां रोमरोमथकीप्रण मे २ नाहारकहेतां गर्भावासप्रमुखजाणवानुं इत्यादि काहारेकरीनेरहित तेनेत्रपाहारीकहिये तथा श्रव्या बाधकहेतां जेबाधापीमारहित तथा णत्रवगाहकहेतां जेवगाहनाजेशरीरनीसंसारमांनोखीनोखीने ते संक्षेप थीकहियेछिये प्रथवी श्रादिकचार थावरनीत्रांगलने सं ख्यातमेभागेछे वनस्पतिनीहजार जोजननीबे बेरंद्रोनी बारजोजननी तेरंद्री नीत्रणगाउनी चौरंद्री नीचारगाउनी त्रिजंचपंचंद्रांनी प्रगलनो संख्यातमोभाग उतकष्टीह जारजोजननी नारकीनीपांच सेंधनुपनी देवतानीसातहा थनी मनुष्यनीत्रणगाउनी एवीचारपनवणासुत्रथ कीजो इलेजइत्यादिकश्रवगाहनायेकरीरहित तेनेनिरश्रवगा हनाकहियेहियां कोइकहे शेकेसिद्धनविगाहनाजघन्य बत्रिशत्रांगलनीउतकष्टी त्रण सेंतेत्रिशधनुपनेवत्रिशत्रां ६८८
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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