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________________ श्रीज्ञानविलास. स्तिनास्तिप्रमुखलहि सत्तातेप्रकासे स्यादवादएमनाख तां तिहांदुरमतिनासे ॥ २४ ॥ इत्यादिकब हुजा ने ज्ञानि कहिजे तेथिउपरांठाजेरह्या ते ज्ञानिवहिजे ॥ २५ ॥ ज्ञान अज्ञानतेमसहि एमनिरणेकरिजे ज्ञानिदुरेतजो ज्ञानि संगवरिजे ॥ २६ ॥ सेवाकिजेज्ञानिनि ज्ञानप्रापेलहिजे मु निहूकमज्ञानिप्रते परमानंदहिजे ॥ २७ ॥ ढाल अढार मिसंपूर्ण ॥ || दुहा || वादिसर्व पापणु धरमस्वरूपजणावे जै नितसउत्तरकरि सुधुतेमनावे ॥ १ ॥ तर्कवादबहुविधथि खटदर्शन ना होय बहुविधवादतेथीकरि जिनदर्शनथाप्यं जोय॥ २ ॥ दर्शनशक्तिनिजश्रात्मनि निश्चेथिवरतां देव गुरुधर्मत्रापछे एमस्वरुपधरतां ॥३॥ सातप्रक्रतिनाशथि दर्शन मलहिये गियारप्रक्रतिनाशथि श्राधधर्मकहि ये॥४॥ प्रक्रतिपंदरनाक्षयथकि मुनिगुणधारो मोहनिक मनानाशथि वितरागसुखकारो ॥ ५ ॥ कर्मचारदुरेथए रिहंतपद कहिये एविधसिखसमजिकरि बिजोभंगलहिये ॥६॥त्रिजोभंगहवेनाखशुं विजातिस्वजातिजेह ज्ञानप्र माददुरेकरि सांजलजोगुण गेह ॥ ७॥ ॥ ढाल १९ मी ॥ अजित जिनेश्वरचरणनि सेवा ॥ देशि ॥ त्रिजोभंगहवेसां जलोए विजातिस्वजातिदाखु गुणघातिश्रात्मतणोए ते हनोजयचितराखु ॥ १ ॥ नवितुमेजाणिरेएहने दुरकरिजे १८४
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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