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श्रीवास्तुकपुजा.
हंसानी रासरे ॥शांती०४॥ एह अशुन वास्तुक कही। होवे पापनी रासरे ॥ प्रा नव परनव दुःख लहे॥एम न करीए वासरे ॥शांती० ५॥ मंगलीकभणी कीजीए॥ वास्तुक घरनुं जहरे॥ सरव मंगलमे मंगल का।श्री जीन नाम छे एहरे ॥शांती०६॥ घर मधे पधरावीए॥ श्री जीन बींब सुखकाररे॥पीठ त्रण रची उपरे॥ था पना कीजे मनुहार॥शांती०७॥श्री शांतीजीन रायनी॥ करवी नगती उदाररे ॥ पंच पंच वस्तु मीलावीए॥ आगल धरो मनुहाररे॥शांती० ८॥ पंच सनाथीश्रा कीजीए ॥ कलस पंच ते नरीएरे॥ प्रतेके प्रतेके ते क रो॥ एम शांती गुण वरीएरे ॥शांती०९॥ अपमंगलीक होवे नही॥ माहामंगलीक ते कहीएरे॥ मुनी हुकम श्री शांतीजी ॥ रीदि सीदि सर्व लहीएरे ॥ शांती० १०॥
काव्यः श्री परम पुरषाय ॥ परमेश्वराय ॥ जन्म जरा मृत्यू नीवारणाय ॥ श्रीमतेजीनेंद्राय ॥ जलनीमे अजास्वाहाः
अथः बीजी पुजा ॥हा॥ श्रीजीन थापन ती हां करे॥चमर छत्र संयुक्त ॥ ते पागल पुजा करो। जेम का छे सुत ॥१॥ पुजा करतां प्रभुतणी ॥ रिद्धि सिद्धि घर होय ॥ पुत्र परीवार वाधे घणो ॥ वास्तुक कीजे सोया॥२॥ ढाल २ जी॥ जेम जेम ए गिरि ने
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