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________________ श्रीध्यानविलास. २७७ चयधर्मध्यानकहिए ॥१॥ हवबीजापायो अपायवीचयक हिएछीए॥ अनेकसंसारीजिवकर्मनेवशपड्या संसारमा हेदखीथायछे शाथकिके अज्ञांन राग देश कखाय श्रा श्रव तेनेवशपड्यातेदुखीयाछे पणहेचेतनतुंतोहवे जांण पुरुषथयो एवस्तुतेपरजांणी माटेएवस्तुताहारीनहि तुं तोचेतनछे नेएजडछे हवेतारंशुंछे नेतुकेवोछे तेकहिए छिए अनंतुज्ञान अनंतदर्शन अनंतुंचारीत्र अनंतवीर्य मयतुंछे वलितुंशुद्धछे बुद्धछे अविनाशीछेत्रजछे अनादि छे अनंतछे अक्षयछे अक्षरछे अनक्षरछे अचलछे प्रक लछे अमरछे अगम्यछे अनामीछे अकर्माछे प्रबंधकछे अनदयछे अनदिरकछे अजोगीछे अनोगीछे अरोगिछे अभेदीछे अवेदीछे अछेदीछे अखेदीछे अकखाइछे अस खाइछे अलेशि अशरीरी अनाहारिछे अव्याबाधछे श्र नवगाहिछे अगुरु लघुछे परिणामिछे अतेंद्रिछे अप्रां पिछे अयोनीछे असंसारीछे अमलछे अपरंपरछे अ व्यापीछे अनास्त्रीतछे अकंपछे अवीरुधछे अनाश्रवछे अलखछे अशोकिछे असंगीछे अनाकारछे अमुर्तिछे लो कालोकज्ञायकछे एवोसुद्धचिदानंदमाहारोत्रात्माछे श्रे वजेकाग्रतारुप तन्मयपणेरमण तेनेध्यानकहि श्रे अपायवीचयधर्मध्यांननोबीजोपायोजाणवो॥२॥ हवेवीपाकविचय त्रिजोपायोकहियेछीये हेवोत्रापणो - -
SR No.022174
Book TitleAdhyatma Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukammuni, Hirachand Vajechand
PublisherHirachand Vajechand
Publication Year1880
Total Pages738
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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