________________
wwwmarrrrrrrrrrrr
marn.
युक्त्यनुशासन विकासका परम सहायक है।' और उनके शासनकी महानताके विषयमे बतलाया है कि 'वह दया (अहिसा), दम(संयम) त्याग (परिग्रह-त्यजन) और समाधि (प्रशस्तध्यान) की निष्ठा-तत्परताको लिये हुए है, नयों तथा प्रमाणोंके द्वारा वस्तुतत्त्वको बिल्कुल स्पष्ट-सुनिश्चित करनेवाला है और (अनेकान्तवादसे भिन्न) दूसरे सभी प्रवादोंके द्वारा अबाध्य है-कोई भी उसके विषयको खण्डित अथवा दूषित करनेमे समर्थ नही है। यही सब उसकी विशेषता है और इसी लिये वह अद्वितीय है।'
अगली कारिकाओंमे सूत्ररूपसे वर्णित इस वीरशासनके महत्वको और उसके द्वारा वीरजिनेन्द्रकी महानताको स्पष्ट करके बतलाया गया है-खास तौरसे यह प्रदर्शित किया गया है कि वीरजिन-द्वारा इस शा सनमे वर्णित वस्तुतत्त्व कैसे नय-प्रमाणके द्वारा निर्बाध सिद्ध होता है
और दूसरे सर्वथैकान्त-शासनोंमे निर्दिष्ट हुआ वस्तुतत्त्व किस प्रकारसे प्रमाणबाधित तथा अपने अस्तित्वको सिद्ध करने में असमर्थ पाया जाता है । सारा विषय विज्ञ पाठकोके लिये बड़ा ही रोचक है और वीरजिनेन्द्रकी कीर्तिको दिग्दिगन्त-व्यापिनी बनानेवाला है। इसमें प्रधान-प्रधान दर्शनों और उनके अवान्तर कितने ही वादोंका सूत्र अथवा सकेतादिकके रूपमे बहुत कुछ निर्देश और विवेक आगया है। यह विषय ३६वी कारिका तक चलता रहा है। श्रीविद्यानन्दाचार्यने इस कारिकाकी टीकाके अन्तमे वहाँ तकके वर्णित विषयकी संक्षेपमें सूचना करते हुए लिखा है
स्तोत्रे युक्त्यनुशासने जिनपतेर्वीरस्य निःशेषतः सम्प्राप्तस्य विशुद्धि-शक्ति-पदवीं काष्ठां परामाश्रिताम् । निर्णीतं मतमद्वितीयममलं संक्षेपतोऽपाकृतं तबाह्य वितथं मतं च सकलं सद्धीधनैर्बुध्यताम् ।।