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विषय-सूची १७ पदार्थको प्रलय-स्वभावरूप आकस्मिक माननेपर कृत
कमके व्यर्थ नाशका तथा अकृतकमके फलभोगका प्रसंग
आएगा, कर्म भी अविचारित ठहरेगा, न कोई मार्ग युक्त रहेगा और न कोई ववक ही कहा जा सकेगा। १७ १८ क्षणिक एकचित्त-सस्थित बध-मोक्षकी व्यवस्था भी तत्र ।
नही बन सकेगी। .. १६ पूर्वोत्तर चित्तोमे एकत्वका आरोप करनेवाली सवृत्ति
यदि मृषा-स्वभावा है तो वह उक्त व्यवस्था करनेमे असमर्थ है और गौण-विधिरूपा है तो मुख्यके बिना गौणविधि बनती नहीं। अतः वीर-शासनकी दृष्टिसे भिन्न
बौद्ध-दृष्टि विभ्रान्तदृष्टि है। २० क्षण-क्षणमे पदार्थोंको निरन्वय-विनाशवान माननेपर
मातृघाती, स्वपति, स्वस्त्री, दिये हुए धनादिकको वापिसी, अधिगतकी स्मृति, "क्त्वा' प्रत्ययका अर्थ, कुल और
जाति, इनमे से किसीकी भी व्यवस्था नहीं बनती। १६ २१ शास्ता और शिष्यादिकी भी तब कोई विधि-व्यवस्था । नही बनती।
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२१ २२ यदि मातृघातीसे शिष्यादि-पर्यन्त इस सब विधि-व्यव
स्थाको विकल्पबुद्धि कहा जाय और सारी विकल्पबुद्धिको मिथ्या माना जाय तो यह सब व्यवस्था मी मिथ्या ठरतीहै। इसके सिवाय जो लोग अतत्त्व-तत्त्वके विकल्पमोहमे डूबे हुए है उन बौद्धोके यहां निर्विकल्प-बुद्धि बनती कौनसी है ? कोई भी नहीं। और विकल्पका आश्रय
लेनेसे सब कुछ मिथ्या ठहरता है। .. २१ २३ विज्ञानमात्र तत्त्वकी हेतुसे सिद्धि नही बनती। साध्य
साधन-बुद्धिको ही यदि विज्ञानमात्रता माना जाय तो उस बुद्धिके अनर्थिका और अर्थवती ऐसे दो विकल्प