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युक्त्यनुशासन सकलार्थकी हानि ठहरती है-किसी भी पदार्थको तब
सत्ता अथवा व्यवस्था बन नही सकती। . ७ ६ पदार्थोंके सर्वथा नित्य मानने पर विकार नही बनता, विकारके न बननेसे कारक-व्यापार. कार्य, कार्ययुक्ति, बन्ध भोग और विमोक्ष कुछ भी नहीं बनते और इस
तरह अन्य शासन सब प्रकारसे दोषरूप ठहरता है। १० स्वभावसे विकारके माननपर क्रिया कारकके विभ्रमादि
रूप दोषापत्ति वादान्तरका प्रसंग और उसका न बन
सकना। .. ५१ अात्माके देहसे सर्वथा अभिन्न या भिन्नकी कल्पनाओमे
दोष देखकर जिन्होने आत्माको अज्ञेय माना है उनके
बन्ध और मोक्षकी कोई भी स्थिति नही बन सकती। १२ १२ बौद्धोका जो क्षणिकात्मवाद है उसका ज्ञापक कोई भी
दृष्ट या अदृष्ट हेतु नहीं बनता और सन्तानके सर्वथा
भिन्न होने पर वासना भी नहीं बन सकती। १३ सन्तान-भिन्न चित्तोमे कारण-कार्यभाव भी नहीं बन सकता। .
.. १४ १४ जो चित्तक्षण क्षण-विनश्वर निरन्वय माने गये है उन्हे किसके साथ समान कहकर कारण-कार्यभावकी कल्पना
की जा सकती है ? किसीके भी साथ वह नही बनती। १४ ५५ हेत्वपक्षी स्वभावके साथ समानरूप माननेपर भी
कारण-कार्यभाव घटित नही हो सकता, क्योकि कार्यचित्त सत् या असत् किसी भी रूपमे हेत्वपेक्ष नही बन
सकता। . १६ क्षणिकात्मवादमे सत् या असत्रूप कोई हेतु बनता ही
नहीं, वैसा माननेमे दोषापत्ति । नाश और उदयकी एकक्षणता भी सदोष है।