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विषय-सूची
अतद्व्युदासाभिनिवेशवादके रूपमे आश्रित किया जाय तब भी ( बौद्धांके मतमे) पराभ्युयेतार्थके विरोधवादका प्रसग आता है ।
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७७ बौद्धोके अनात्मा ( अवास्तविक ) साधनके द्वारा उसी प्रकार के अनात्मसाध्यकी जो गति - जानकारी है उसकी सर्वथा अयुक्ति है - वह बनती ही नही ।
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७८ यदि वस्तु मे अनात्मसाधनके द्वारा अनात्मसाध्यकी गतिकी युक्तिसे पक्षकी सिद्धि मानी जाय तो अवस्तुमे साधन - साध्य की युक्ति से प्रतिपक्ष - द्वैतकी - भी सिद्धि ठहरती है ।
७६ यदि साधनके बिना स्वतः ही सवेदनाद्वैतरूप साध्यकी सिद्धि मानी जाय तो वह युक्त नही - तब पुरुषाद्वेतकी भी सिद्धिका प्रसंग आता है।
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८० इस प्रकार जिन वैतसिडकोने कुसृतिका प्रणयन किया है उन वीरशासनकी दृष्टिसे प्रमूढ एवं निर्भेदके भयसे अनभिज्ञ जनाने परघातक कुल्हाडेको अपने ही मस्तकपर मारा है ||
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८१ वीरशासनानुसार अभाव भी वस्तुधर्म होता है। यदि वह अभाव धर्मका न होकर धर्मीका हो तो वह भावकी तरह भावान्तर होता है । और इस सबका कारण यह है कि अभावको प्रमाण से जाना जाता है, व्यपदिष्ट किया जाता है और वस्तु व्यस्था के रूपमे निर्दिष्ट किया जाता है। जो अभाव ( सर्वशून्यता ) वस्तुव्यवस्थाका नही है वह अमेय ही है- किसी भी प्रमाणके गोचर नही है ।
८२ विशेष और सामान्यको लिये हुए जो भेद हैं उनके विधि और प्रतिषेध दोनोका विधायक वाक्य होता है । वीरके
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