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युक्त्यनुशासन
जयघोष करते हुए उनके सूक्तिसमूहको - सुन्दर प्रौढ युक्तियोको लिये हुए प्रवचनको - वादीरूपी हाथियोको वशमे करनेके लिये 'वजाकुश' बतलाया है और साथ ही यह लिखा है कि उनके प्रभाव से यह सम्पूर्ण पृथ्वी एक वार दुर्वादुकोकी वार्तासे भी विहीन होगई थी— उनकी कोई बात भी नहीं करता था ।'
(१३) श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं १०८ मे भद्रमूर्तिसमन्तभद्रको जिनशासनका प्रणेता ( प्रधान नेता ) बतलाते हुए यह भी प्रकट किया है कि 'उनके वचनरूपी वजके कठोरपातसे प्रतिवादीरूप पर्वत चूर चूर हो गये थे - कोई भी प्रतिवादी उनके सामने नही ठहरता था ।'
(१४) तिरुमकूडलु नरसीपुरके शिलालेख नं० १०५ मे समन्तभद्रके एक वादका उल्लेख करते हुए लिखा है कि 'जिन्होने बाराएसी (बनारस) के राजाके सामने विद्वेषियोको अनेकान्तशासन से द्वेष रखनेवाले सर्वथा एकान्तवादियोको - पराजित कर दिया था, वे समन्तभद्र मुनीश्वर किसके स्तुतिपात्र नही है ?सभीके द्वारा भले प्रकार स्तुति किये जानेके योग्य है ।'
(१५) समन्तभद्रके गमकत्व और वाग्मित्व- जैसे गुणोका विशेष परिचय उनके देवागमादि ग्रन्थोका अवलोकन करनेसे भले प्रकार अनुभवमे लाया जा सकता है तथा उन उल्लेख - वाक्योपर से भी कुछ जाना जा सकता है जो समन्तभद्र - वाणीका कीर्तन अथवा उसका महत्त्व ख्यापन करनेके लिये लिखे गये है । ऐसे उल्लेखवाक्य अष्टसहस्री आदि ग्रन्थोमे बहुत पाये जाते है । कवि नागराजका 'समन्तभद्र भारती स्तोत्र' तो इसी विषयको लिये हुए है और वह 'सत्साधु - स्मरण - मंगलपाठ' मे वीर सेवामन्दिरसे सानुवाद प्रकाशित हो चुका है। यहा दो तीन उल्लेखोका और