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के लिए तत्पर हैं, मैं भी उनकी सेवा के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करना चाहता हूँ।' 'माँ सुमित्रा गद्गद् हो गई। उसने लक्ष्मण को हृदय से लगा लिया और बोली, 'बेटा, तुमने ऐसा कहकर माँ और कुल का गौरव बढ़ा दिया है। जो भाई, भाई के काम आ गया, वही वास्तव में भाई होता है। आने वाले समय में लोग जितने आदर से राम का नाम लेंगे उससे कहीं अधिक सम्मान से तुम्हारा भी नाम लेंगे।"
समय गवाह है कि लक्ष्मण भी राम के समान आदरणीय हो गए। राम तो संभवत: पिता के वचनों का पालन करने को मज़बूर रहे होंगे, पर लक्ष्मण और भरत तो ऐसा करने के लिए बिल्कुल भी विवश नहीं थे। पर यही तो पारिवारिक भावना है और ये ही तो सामाजिक चरित्र और मूल्य हैं। सच्चाई तो यह है कि इन्हीं मूल्यों से भारतीय संस्कृति का निर्माण हुआ है। यह संस्कृति जिसके भी घर में है, वही भारतीय है। यदि ऐसा नहीं है तो आप आधे भारतीय और आधे परदेसी हैं। हर व्यक्ति अपना-अपना कर्त्तव्य समझे।
परिवार में पिता अपने और पुत्र अपने कर्त्तव्य समझें। सास अगर अधिकार रखती है तो वह अपने कर्तव्य भी समझे, बह भी अपने कर्तव्य निभाएँ। भाईभाई अपने कर्तव्य जानें तो देवर-भाभी भी अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें। परिवार तो यज्ञ के समान है जिसमें सभी सदस्य यदि अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए आहुति देते रहते हैं तो ही परिवार संयुक्त रह सकता है। परिवार को संयुक्त रखना परिवार में जन्म लेने वाले का पहला कर्त्तव्य और धर्म है। अलग-अलग रहने वाले का तो नमक भी महँगा पड़ता है। एक साथ रहने वालों में अगर चार हैं तो चौधरी' और पांच हैं तो पंच कहलाते हैं। यदि चार भाई साथ रहते हों और उनमें से किसी एक की किस्मत बिगड़ जाए और उसे हर ओर से घाटा उठाना पड़े तो अन्य तीनों भाई मिलकर उसके कष्टों का निवारण कर देंगे जब कि अकेले रहने वाले को विपत्ति के समय में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ेगा। जो भाई भाई का नहीं हो सकता वह मित्र का भी नहीं हो सकता। जो भाई मित्र का नहीं हो सकता, वह समाज का भी नहीं हो सकता। यदि तुम किसी का साथ नहीं दे सकते तो तुम्हारा साथ कौन देगा?
वाह! ज़िन्दगी
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