Book Title: Wah Zindagi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 92
________________ करने वाले, चातुर्मास के दरम्यान तीन-तीन दिन का 'तेला' करने वाले हजारोंलाखों लोग उपलब्ध हो जाएँगे। आप वर्तमान पीढ़ी पर गौरव करना सीखें। वर्तमान पीढ़ी को प्रोत्साहन न दिये जाने के कारण, उसे लगातार दुत्कारे के कारण ही वर्तमान पीढ़ी धर्म से दूर होती जा रही है लेकिन वह धार्मिकता से दूर नहीं हुई है। उसे लगता है कि दादी मंदिर में दो घंटे बिताती है पर घर में बहुत कंजूसी से जीती है। उसे लगता है मम्मी धार्मिक स्थानों पर जाकर तो एक घंटे तक प्रार्थना, सामायिक आदि करती है पर घर में आते ही होहल्ला शुरू कर देती है। उसे लगता है कि धर्म जीवन में आ नहीं रहा है। बच्चे को लगता है चित्त में समता रखना ज्यादा ठीक है बजाय कुछ बोलने या न बोलने के । आज गली-गली में मंदिर बन रहे हैं या मंदिर हैं। क्या आप उसे मामूली बात समझते हैं? यह मनुष्य की धार्मिकता है। जब तक भीतर में धार्मिक भावना नहीं होगी, मानवीय मूल्य न होंगे तब तक व्यक्ति जेब से पैसा निकालना पसंद नहीं करता। जब आप कहते हैं कि पूरी दुनिया स्वार्थी है तब भी कोई व्यक्ति यदि पैसा निकालकर दे रहा है तो जान लीजिए कि उसके मन में कोईन - कोई भावना जरूर है । यहाँ भीलवाड़ा में सत्संग का आयोजन चल रहा है और रोज पाँच-से-दस हजार लोग हमें सुनने आ रहे हैं। यहाँ पर कोई प्रभावना, न लड्डू की, न नारियल की, न धन की, न प्रसादी की हो रही है फिर भी लोग आते हैं और प्रेम से सुनते हैं और चले जाते हैं। यह वर्तमान पीढ़ी की धार्मिकता है। फ़र्क केवल इतना सा है कि किसी बात को जब तक तार्किकता के साथ सिद्ध नहीं किया जाएगा, कोई भी व्यक्ति धर्म की किसी भी परम्परा को मानने वाला नहीं होगा। आने वाली पीढ़ी का धर्म बिल्कुल नया होगा । उसके लिए धर्म का स्वरूप पूरी तरह से व्यावहारिक होगा। वह केवल पंथ, परम्पराओं के दुराग्रह का धर्म नहीं जिएगा। वह पूछना चाहेगा कि यह जो किया जा रहा है इसका तर्क क्या है? तुम कहोगे, ‘रात को मत खाओ ।' मान कि तुमने कहा, लेकिन यह नई पीढ़ी ऐसे नहीं मानने वाली । जब तक उसकी आवश्यकता, मानवसमाज के कल्याण के लिए उसका हेतु समझ में नहीं आएगा तब तक व्यक्ति उन बातों को नहीं जी पाएगा। लोग हमारी बातों को क्यों सुनते हैं ? क्योंकि ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी Jain Education International For Personal & Private Use Only ८५ www.jainelibrary.org

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