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जो उसकी स्थिति है, वह अतीत से कहीं बेहतर है।
जिस अतीत को हम केवल गरिमा और महिमा बखानने के लिए आधार और आदर्श मानते हैं, मैं कहना चाहूँगा कि अतीत में गौरव अवश्य रहे होंगे, मानवजाति के लिए मील के पत्थर भी स्थापित किये गये होंगे, दीपशिखाएँ भी जलाई गई होंगी लेकिन वर्तमान ने अतीत से जो कुछ सीखकर अपने लिए नये आदर्श और नये यथार्थ स्थापित किये हैं, हमारे लिए वे ज्यादा कारगर हैं।
इसलिए वर्तमान आपके लिए सुखदायी है और हम इस पर गौरव करना सीखें। हम केवल अतीत पर ही नहीं बल्कि वर्तमान पीढ़ी पर भी गौरव कायम करें। आज की पीढ़ी बहुत धार्मिक है। कोई यह कहने का पाप न करे कि वर्तमान पीढ़ी धर्मसे हट चुकी है। वर्तमान युवा पीढ़ी पुरानी पीढ़ी के दकियानूसी विचारों को, बातों को स्वीकार नहीं करती। वह जीवन के साथ वास्तविक मूल्यों को जीना चाहती है, इसलिए आपको विरोधाभास लगता है। जितना दान आज हो रहा है उतना पिछले पाँच हजार वर्षों में भी नहीं हुआ होगा। जितने अस्पताल और विद्यालयों का निर्माण आज हो रहा है, उतने कभी अतीत में नहीं बनाए गए थे। अतीत में किसी नगर में दो पाँच नगर-सेठ हआ करते थे, जो कहीं धर्मशाला, कहीं कुंआ या इसी तरह के दो-चार नेक काम आमजन के कल्याणार्थ कर देते थे। पर आज हर नगर में ऐसे सैंकड़ों नगरसेठ वैसा ही कल्याणकारी काम करते नज़र आ जाएँगे। ___जिस महिला के पास पहले दस-बीस रुपये महीना भी हाथ-खर्च नहीं हुआ करता था, आज हर महिला के पास दो-पाँच-दस हजार हाथ-खर्च का आराम से मिल सकता है। आज नारी बहुत आजाद हुई है, उसका बहुत विकास हुआ है। मानव-समाज का भी बहुत विकास हुआ है। शिक्षा, विज्ञान, सुख-साधन-समृद्धि ने इसमें मदद की है। जितना तप आज की पीढ़ी कर रही है उतनी तपस्या मेरी समझ में आज तक कभी नहीं हुई होगी। आज एक माह के उपवास और तपश्चर्या करमा लोग बाएं हाथ का खेल समझते हैं। पहले तो कोई ऋषि, मुनि, तपस्वी ही एक-एक महीने का उपवास किया करते थे किन्तु आज तो नवरात्रि के नौ दिनों तक अखंड निराहार, निर्जल उपवास करने वाले हजारों हजार लोग मिल जाएँगे। पर्युषण पर्व पर आठ-आठ दिन के उपवास
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वाह! ज़िन्दगी
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