Book Title: Wah Zindagi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 105
________________ शादी करनी पड़ी हो। उस प्यारी - सी महिला ने जवाब दिया, 'प्रभु, सच्चाई तो तो यह है कि मैंने प्रेम-विवाह किया है ।' मुझे जरा आश्चर्य हुआ । इतनी सुंदर महिला और एक नीग्रो टाइप लड़के से लव-मैरिज ! उसने कहना जारी रखा, 'मैं कॉलेज में पढ़ती थी । वहाँ कई लड़कों से मेरी दोस्ती थी लेकिन मैंने पाया कि अन्तत: यही एक ऐसा युवक मिला जिसकी प्रकृति, जिसका स्वभाव, मुझे इतना सुंदर लगा कि मैंने उससे शादी कर ली । ' मैं महिला को साधुवाद दिया जिसने सूरत नहीं बल्कि सीरत को पहचाना। शाम के समय उसका पति भी आया जो कि एक डॉक्टर है। मैंने उससे भी वही सवाल किया कि तुम इतने काले हो, नाक भी कुछ अजीब-सी है। क्या आपको इतनी सुंदर पत्नी के मिलने पर आपको अपने मन में गिल्टी फील नहीं होती?' उसने कहा, 'महाराजजी, जब मैं छोटा था तो गली-मोहल्ले के लोग मुझे 'कालू- कालू' कह कर पुकारते थे । लड़के मेरे साथ बैठना पसंद भी नहीं करते थे। अपने साथ खेल भी नहीं खिलाते थे। उस समय जरूर मेरे मन में बहुत गिल्टी फील होती थी । बचपन के उन दिनों में ही मैंने संकल्प ले लिया था कि प्रकृति के घर से मैं भले ही बदसूरत बनाया गया होऊँ, लेकिन आज के बाद मैं इतना सुंदर बनूँगा, अपने हृदय को अपनी आत्मा को इतना ऊँचा उठाऊँ गा कि आने वाला कल, मुझ पर गौरव कर सके । मेरा नाम सम्मान के साथ पुकार सके। आज पूरे नगर में मेरा नाम है । मैं ऐसे केस आराम से निपटा देता हूँ जो दूसरे डॉक्टर के लिए मुश्किल होते हैं। सच तो यह है कि मेरे स्वभाव और प्रकृति के कारण ही लोग आज मुझे इतना सम्मान देते हैं । जिस बहिन ने यह प्रश्न पूछा है, उसे यही घटना कहते हुए प्रेम और आदर से मैं यही कहना चाहूँगा कि आप अपने हृदय को इतना सुंदर बनाएँ, अपने जीवन को इतना ऊँचा उठाएँ, अपनी दृष्टि को इतने आत्म-विश्वास से भर जाने दें कि आपकी हिचक, आपकी हीनता की भावना आपसे दूर हो और ऐसा करने के लिए कल से आप एक प्रयोग जरूर करें। वह प्रयोग यह है कि आप पूरे मनोयोग से मुस्कुराइए। आपकी मुस्कुराहट आपके अंगअंग से फूट पड़े। सुबह का यह विटामिन आपको पूरे दिन प्रसन्नता से भरा ९८ Jain Education International For Personal & Private Use Only वाह ! ज़िन्दगी www.jainelibrary.org

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