Book Title: Wah Zindagi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखी और सफल जीवन जीने कारास्ता वाह! ज़िन्दगी श्री चन्द्रप्रभ For Personal & Private Use Only . wwwjainelibrary.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अमोल जैन ग्रामालय. कवान स्वानी रोड, ....3...1.5.0..... बायल For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौजन्य-संविभाग श्री भंवरसिंह जी कोठारी की स्मृति में श्रीमती चम्पादेवी, प्रकाशचंद, कमलकुमार कोठारी जयपुर For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखी और सफल जीवन जीने का रास्ता वाह । जिन्दगी सफलता कोई मंज़िल नहीं, एक यात्रा है जिसकी पूर्णता के लिए सदा अपनी बुद्धि और बल का इस्तेमाल करते रहिए। श्री चन्द्रप्रभ For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाह ! ज़िन्दगी पूज्य श्री चन्द्रप्रभ के अमृत प्रवचन प्रस्तुति श्रीमती लता भंडारी 'मीरा' प्रकाशन-वर्ष : अक्टुबर 2005 प्रकाशक : जितयशा फाउंडेशन • बी-7, अनुकम्पा द्वितीय, एम.आई. रोड़, जयपुर (राज.) • संबोधि धाम, कायलाना रोड़, जोधपुर - 4 (राज.) प्रेरणा : गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी मुद्रक : भारत प्रेस, जोधपुर मूल्य : 20/ For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवेश ज़िंदगी हर कोई जीता है, कोई 'आह' के साथ तो कोई वाह' के साथ। 'वाह' में ही ज़िंदगी की ज़िंदादिली है, उसी में जीवन का अर्थ छिपा है। 'आह' भरी बोझिल, हताश जिंदगी का दामन थामने की बजाय, क्यों न 'वाह' की सफल सार्थक और आत्मविश्वास-भरी जिंदगी का लुफ्त उठाएँ। चिंतन और जीवन-दर्शन के हर क्षेत्र में अपनी गहरी पैठ रखने वाले पूज्य श्री चन्द्रप्रभ जी प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से इसी संदर्भ में हमारा प्रेरक और संजीदा मार्गदर्शन कर रहे हैं। यह पुस्तक सचमुच एक ऐसा नायाब तोहफ़ा है, जिसे आत्मसात कर आप अनायास कह उठेंगे - 'वाह ! जिंदगी।' तेजस्वी और शालीन व्यक्ति के धनी पूज्य श्री चन्द्रप्रभ जी ने अपनी सहज-सरल वाणी द्वारा सदैव मानवता का पथ प्रशस्त किया है। वे जहाँ भी जाते हैं, जनमानस को जब भी संबोधित करते हैं, उस शहर की आबोहवा उनके सुवास से महक उठती है। उनके शान्त, सौम्य जीवन की तरह उनके वचन और प्रवचन भी सहज-सटीक होते हैं। न कहीं जटिलता, न शब्दों का कोई आडम्बर । उनके शब्द भी उनके अन्तर-बोध का ही सुफल है। हर शब्द घट में घर कर जाने वाला होता है। सोच और जीवन-शैली को बेहतर बनाने की सीख देने वाले प्रभावी उद्बोधनों की श्रृंखला में ही प्रस्तुत है पूज्यश्री की यह अद्भुत अनमोल पुस्तक -वाह जिंदगी! प्रस्तुत पुस्तक में पूज्य श्री चन्द्रप्रभ ने जीवन को स्वर्ग का स्वरूप देने वाले आसान तरीक़ों की ओर संकेत किया है। वे कहते हैं कि जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिया विकसित हो जाए तो आह जिंदगी!' की पीड़ा भी वाह! जिंदगी' के सुख-संगीत में बदल सकती है। हम भी जीवन के प्रति सकारात्मक For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नज़रिया अपनाकर जीवन का सच्चा स्वाद और आध्यात्मिक आनन्द ले सकते हैं। ढाई आखर के जिस प्रेम की बात कभी कबीर ने कही थी, श्री चन्द्रप्रभ जी उसी प्रेम को चार कदम आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि प्रेम को केवल व्यक्ति विशेष तक ही सीमित न करें, उसे विस्तृत रूप दें। प्रेम का प्रारंभ तो मनुष्य से होता है, लेकिन जब उसका विस्तार पशु, पक्षी, फूल, पौधे, प्रकृति तक होता चला जाता है, तब वही प्रेम इबादत बन जाता है I श्री चन्द्रप्रभ परिवार को बच्चों की पहली पाठशाला मानते हैं और सामाजिक जीवन का पहला मंदिर। वे कहते हैं कि परिवार का माहौल जितना सुंदर होगा, नई कोंपलें उतनी ही सफल और मधुर होंगी। स्वयं के प्रबंधन की अनिवार्यता पर जोर देते हुए पूज्यश्री कहते हैं कि अगर किसी ने अपने जीवन की ऊँचाइयों को छुआ है तो अवश्य ही कोई-न-कोई तरीक़ा अथवा कोई-नकोई बुनियादी उसूल जरूर अपनाया है। आत्मविश्वास के साथ यदि बेहतर लक्ष्य के लिए बेहतर प्रयत्न किया जाए तो सफलता के हर सपने को निश्चय ही साकार किया जा सकता है । व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से लेकर पारिवारिक जीवन, कैरियरनिर्माण से लेकर कामयाबी हासिल करने तक की हर मंज़िल को रोशन करने वाले ये प्यारे उद्बोधन हमारे लिए पूज्य श्री के कृपापूर्ण मार्गदर्शन का परिणाम है । हर प्रवचन अपने आप में प्रकाश की किरण है। प्रेरणा व मार्गदर्शन के सूत्र खोजने वाली युवापीढ़ी के लिए यह पुस्तक एक श्रेष्ठ उपहार है । अपने उस परिचित से, जो उद्विग्न, मायूस अथवा हताश जीवन जी रहा है यह पुस्तक पढ़ने की प्रेरणा अवश्य दीजिए। विश्वास है इसे पढ़कर उसे सुखी और सफल जीवन जीने का कोई-न-कोई सुकून अवश्य प्राप्त होगा । लता भंडारी एवं सोहन शर्मा For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाह ! ज़िन्दगी घर को स्वर्ग कैसे बनाएँ ? " परिवार बच्चों की पहली पाठशाला है और सामाजिक जीवन का पहला मंदिर। परिवार का माहौल जितना सुन्दर होगा, नई कोंपलें उतनी ही सफल और मधुर होंगी।" ह र व्यक्ति का अपना एक घर, एक परिवार, एक समाज होता है । उसके जीवन का एक लक्ष्य होता है, परिश्रम होता है और उस परिश्रम का परिणाम भी होता है। खुशहाल परिवार और घर सभी को अच्छा लगता है। हर घर और परिवार का वातावरण ऐसा हो कि सुबह ईद का महोत्सव, दोपहर में होली का फाल्गुनी पर्व और ढलती सांझ में दीवाली का सुख - सुकून हो । जिस घर में सुबह से ईद के पर्व की तरह प्रेम, अभिवादन, प्रसन्नता का वातावरण होता है उस घर की सुबह स्वर्ग जैसी हुआ करती है जिस घर में दोपहर के समय सास-बहू, पिता-पुत्र, भाई-बहिन, देवरानीजेठानी एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, अपना प्रेम एक दूसरे को समर्पित करते हैं, ऐसा करना घर में होली को मनाने जैसा है। जहाँ साँझ ढलने पर, से बाहर गए लोग, अभिभावकगण हँसी-खुशी के साथ घर में प्रवेश करते हैं, और एक साथ हिलमिलकर, एक दूसरे को देखकर अपने जीवन में चमक, आभा, आनन्द लेते हैं तो वह साँझ और रात भी दीवाली की तरह सुखदायी हो जाती है । घर घर को स्वर्ग कैसे बनाएँ ? For Personal & Private Use Only १ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घर केवल ईंट, चूने और पत्थर का निर्माण नहीं होता बल्कि उसमें रहने वालों के आपसी प्रेम, आत्मीयता, मर्यादा और त्याग की भावना से घर का निर्माण होता है। प्रेम, त्याग और मर्यादा का नाम ही घर-परिवार है। स्वाभाविक है कि जिस मकान की चिनाई अच्छे तरीके से हुई है, वह इमारत खूबसूरत हुआ करती है। ऐसे ही जिस परिवार का निर्माण अच्छे माहौल और अच्छे संस्कारों के बीच हुआ है, वह परिवार समाज के बीच खूबसूरत मकान की तरह ही है। ___परिवार सामाजिक जीवन की रीढ़ की हड्डी है। सामाजिक जीवन का पहला मंदिर परिवार ही है। परिवार का निर्माण व्यक्तियों के समूह से होता है और समाज का निर्माण परिवारों के समूह से होता है। इसलिए तय है कि जैसे व्यक्तिहोंगे वैसा परिवार बनेगा, वैसा ही समाज बनेगा। जैसे समाज होंगे वैसा ही देश और विश्व बनेगा। विश्व और देश के बेहतरीन स्वरूप के लिए जरूरी है कि हममें से हर किसी के घर-परिवार का स्वरूप अच्छा हो, बेहतर हो, गरिमापूर्ण हो। विश्व का पहला विद्यालय व्यक्ति का अपना परिवार ही होता है। स्कूल में पुस्तकीय शिक्षा तो प्राप्त हो जाती है, लेकिन सुसंस्कारों की पाठशाला तो उसका अपना घर ही है। सामाजिक चरित्र के निर्माण के लिए, गरिमापूर्ण समाज के निर्माण के लिए, अहिंसक और व्यसनमुक्त समाज के निर्माण के लिए परिवार का अहिंसक, व्यसनमुक्त और गरिमापूर्ण होना आवश्यक है। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं और अगर हम रविवार से शुरू करें तो पहला दिन ही छुट्टी का हो गया और जो छुट्टी के दिन परिवार के सारे लोग घर के कामकाज करते हैं, दोनों समय साथ बैठकर भोजन करते हैं तो वह छुट्टी का दिन संयुक्त परिवार का आनन्द लेने के लिए, परिवार-निर्माण के लिए आधार बनता है। सोम से रवि तक सात दिन का सप्ताह होता है। यह तो एक सप्ताह के सात वार हो गए। मैं एक आठवाँ 'वार' भी बताता हूँ और वह वार है परिवार'। जहाँ घर के सारे सदस्य एक ही छत के नीचे मिल-जुल कर रहते हैं वहाँ परिवार होता है। जहाँ सातों दिन इकट्ठे होते हैं उसे सप्ताह कहते हैं। इस रहस्य से आप समझ सकते हैं कि आपकी एकता, सद्भावना और समरसता आपके परिवार वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का आधार बनती है। सात दिनों को एक कर दो तो वह सप्ताह बनता है और सप्ताहों को एक करो तो महीना और महीनों को संयोजित करो तो वर्ष निर्मित होता है। यही मेल-मिलाप परिवार के साथ भी लागू होता है। भाई-बहिन, सास-बहू, देवरानी-जेठानी जहाँ मिलते हैं, वह परिवार है। परिवारों की एकता समाज बनाती है। समाजों से ही धर्म, राष्ट्र और विश्व अपना अस्तित्व रखते हैं। अलग-अलग भागों में बँटा हुआ देश, अलग-अलग भागों में बँटा हुआ धर्म, अलग-अलग भागों में बँटा हुआ समाज और परिवार कुछ भी नहीं होता। न परिवार, न समाज, न धर्म और न देश। एक सूत्र में रहना ही परिवार को एक रखने का राजमंत्र है। एक-दूसरे के प्रति त्याग-परायणता रखने से ही किसी का भी घर एक रह सकता है। एक सूत्र में बँधे घर से बढ़कर कोई मंदिर या मकान नहीं होता और न स्वर्ग या मधुवन होता है। जहाँ घर के सभी सदस्य साथ रहते हैं और एक ही चूल्हे का भोजन करते हैं, यह उस घर का पुण्य है किन्तु जब एक ही माता-पिता की संतानें अलग-अलग घर बना लेती हैं और एक दूसरे का मुँह देखना भी पसन्द नहीं करती तो यही कारण उनके पारिवारिक पाप' का बीज बन जाता है। माता-पिता के रहते हुए अगर बेटे अलग हो जाएँ तो यह माँ-बाप के पाप का उदय है, और उनका साथ रहना दोनों के पुण्यों का उदय है। त्याग परिवार की एकसूत्रता का मूलमंत्र है। बचपन में आपने वह कहानी जरूर सुनी होगी जिसका शीर्षक था सूखी डाली'। वह कहानी यह थी कि एक परिवार जो प्राचीन परम्पराओं का संवाहक था, उसमें एक आधुनिक पढ़ी-लिखी लड़की बहू बनकर आती है। घर के संस्कार और वहाँ का वातावरण कुछ इस तरह का होता है कि बहू उसमें ढल नहीं पाती। वह अपने पति को समझा-बुझा कर अपना घर, अपना मकान अलग बनाने का निर्णय कर लेती है। जब वे दम्पति अपना सामान बाँधकर जाने के लिए तैयार होते हैं तो घर के बुजुर्ग दादाजी पूछते हैं, क्या बात है बेटा, कहीं बाहर जा रहे हो?' बहू आधुनिक थी, पर मर्यादित थी। उसे घर के पुराने सोफे, पुरानी टेबल, कुर्सियाँ, दीवारों का रंग-रोगन आदि पसन्द नहीं था। वह तो दादा के सामने कुछ न बोली, पर उसकी ननद ने कहा, 'भाभी अपना घर अलग बसा घर को स्वर्ग कैसे बनाएँ ? For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रही है।' दादाजी चौंक पड़े, 'अरे, ऐसी क्या बात हो गई? मेरे जीते जी घर का कोई सदस्य क्या अलग घर बसाएगा ? मेरे होते हुए इस वटवृक्ष की डाली क्या अलग हो जाएगी? आखिर क्या कारण है कि बहू को इस घर से अलग होने का सोचना पड़ा ?' ननद ने बताया कि भाभी को दीवारों का रंग, पुरानी शैली के सोफे, टेबल-कुर्सी आदि अच्छे नहीं लगते । दादा ने सोचा और तत्काल निर्णय लेते हुए अपने बेटे से कहा, 'बेटा, क्या तुम इतनी छोटी-सी बात के लिए वटवृक्ष से अलग हुई डाली बनना चाहते हो? उन्होंने अपने पुत्र के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, 'बेटा, मेरे पास इतना धन तो नहीं है कि मैं घर का पूरा परिवर्तन कर सकूँ फिर भी तुम यह चाबी लो और मेरे पास जो थोड़ा-सा सोना है उसे बेचकर जैसा बहूरानी को पसंद हो, वैसा घर में परिवर्तन कर लो पर कम-से-कम घर को तो टूटने मत दो।' घर का अभिभावक होने के कारण बुजुर्ग का यह दायित्व बनता है कि वह बड़े-से-बड़ा त्याग करके भी घर को हमेशा प्रेम, आत्मीयता, भाईचारा और सहभागिता से एक बनाए रखे। घर के बुर्जुगों के रहते हुए भी अगर घर टूट रहा है तो इसमें नई पीढ़ी से अधिक बुजुर्गवार दोषी हैं। पुरानी पीढ़ी को भी नई पीढ़ी के अनुरूप ढलना होगा और नई पीढ़ी को भी पुरानी पीढ़ी को समझते हुए घर के माहौल में समझौते के हालात बनाने होंगे। न तो हम पुरानी पीढ़ी को इन्कार करें और न ही नई पीढ़ी के प्रति ही अस्वीकार का भाव लेकर आएँ। एक-दूसरे के प्रति रहने वाले त्याग के भाव में ही परिवार की आत्मा समाई रहती है । 'रामायण त्याग का आदर्श हैं। मैं तो कहूँगा कि हर घर में 'रामायण' जरूर होनी चाहिए। गीता, आगम, पिटक, बाइबिल, कुरान आदि सब शास्त्रों का मूल्य रामायण के बाद है क्योंकि रामायण बताती है कि घर और परिवार को किस तरह से त्याग और आत्मीयता के धरातल पर रखा जा सकता है। रामायण हमारे लिए आदर्श है। मैं महज़ राम-राम रटने की प्रेरणा नहीं दूँगा। मैं राम से, रामायण से घर-परिवार में कुछ सीखने की प्रेरणा दूँगा । मैं भी राम और रामायण से सीखा है। रामायण इंसान के लिए पहली धार्मिक प्रेरणा है जब कि कुरआन और गीता दूसरी प्रेरणा, पिटक तीसरी प्रेरणा और वाह ! ज़िन्दगी ४ For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम चौथी प्रेरणा है। रामायण कुंजी है घर को स्वर्ग बनाने के लिए। हो सकता है कि रामायण में कुछ ऐसे पहलू भी हों जो हमें ठीक न लगे, पर दुनिया की कोई भी चीज आखिर हर दृष्टि से १००% सही या फिट हो भी तो नहीं सकती। हर युग की अपनी दृष्टि और मर्यादा होती है, पर रामायण में भी ९०% तथ्य ऐसे हैं जो हमारे युग को, हमारे जीवन और समाज को प्रकाश का पुंज प्रदान कर सकते हैं। उन्हीं से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि एक बेटा अपने पिता के वचनों का मान रखने के लिए वनवास तक ले लेता है। एक पत्नी अपने पति के पदचिह्नों का अनुसरण करती हुए वन-गमन करती है तो एक भाई अपने भाई का साथ देने के लिए वनवास स्वीकार कर लेता है। एक भाई राजमहल में रहकर भी भाई के दुःख का स्मरण कर राजमहल में भी वनवासी का जीवन व्यतीत करता है। यह सब पारिवारिक त्याग की पराकाष्ठा है। इससे बढ़कर दूसरा शास्त्र क्या होगा? शायद राजमहल में रहते हुए राम को इतना भ्रातृसुख नहीं मिलता जितना वन में रहते हुए उन्हें लक्ष्मण और भरत से मिला था। “राम और सीता को वनगमन करते हुए देख कर लक्ष्मण अपनी माँ सुमित्रा के पास जाते हैं और कहते हैं-'माँ, भाई राम और भाभी सीता वन की ओर जा रहे हैं। उनके जाने से पहले मैं भी तुमसे एक वरदान (आज्ञा) चाहता हूँ।' सुमित्रा ने कहा, 'बेटा, सौतेलेपन के कारण एक नारी ने, एक दीदी ने जो वरदान माँगा था उसका यह दुष्परिणाम हुआ कि राम जैसे पुत्र को वनवास झेलना पड़ रहा है और दशरथ जैसे पति की पत्नी होकर हमें वैधव्य का दाग लग गया है। बेटा, इस समय तुम मुझसे कौनसा वरदान मांगना चाहते हो? तुम्हें माँ से कोई वरदान चाहिए तो भी इस घटित घटना की वेला को गुजर जाने के बाद कुछ वरदान मांग लेना।' लक्ष्मण ने कहा, 'माँ, यह वरदान माँगने का समय आ चुका है। आपने एक मिनट की भी देर कर दी तो मैं जीवन में फिर कभी वह वरदान माँगने योग्य न रह जाआ।' व्यथित होकर सुमित्रा ने कहा, 'जब सारा घर ही उजड़ चुका है, तब तू भी अपना वरदान मांग ले। जब उजड़ना ही है तो यह भी उजड़ने में एक और निमित्त बन जाएगा।' तब लक्ष्मण ने कहा, 'माँ, बड़े भाई राम और भाभी सीता जिस वनगमन घर को स्वर्ग कैसे बनाएँ? For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के लिए तत्पर हैं, मैं भी उनकी सेवा के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करना चाहता हूँ।' 'माँ सुमित्रा गद्गद् हो गई। उसने लक्ष्मण को हृदय से लगा लिया और बोली, 'बेटा, तुमने ऐसा कहकर माँ और कुल का गौरव बढ़ा दिया है। जो भाई, भाई के काम आ गया, वही वास्तव में भाई होता है। आने वाले समय में लोग जितने आदर से राम का नाम लेंगे उससे कहीं अधिक सम्मान से तुम्हारा भी नाम लेंगे।" समय गवाह है कि लक्ष्मण भी राम के समान आदरणीय हो गए। राम तो संभवत: पिता के वचनों का पालन करने को मज़बूर रहे होंगे, पर लक्ष्मण और भरत तो ऐसा करने के लिए बिल्कुल भी विवश नहीं थे। पर यही तो पारिवारिक भावना है और ये ही तो सामाजिक चरित्र और मूल्य हैं। सच्चाई तो यह है कि इन्हीं मूल्यों से भारतीय संस्कृति का निर्माण हुआ है। यह संस्कृति जिसके भी घर में है, वही भारतीय है। यदि ऐसा नहीं है तो आप आधे भारतीय और आधे परदेसी हैं। हर व्यक्ति अपना-अपना कर्त्तव्य समझे। परिवार में पिता अपने और पुत्र अपने कर्त्तव्य समझें। सास अगर अधिकार रखती है तो वह अपने कर्तव्य भी समझे, बह भी अपने कर्तव्य निभाएँ। भाईभाई अपने कर्तव्य जानें तो देवर-भाभी भी अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें। परिवार तो यज्ञ के समान है जिसमें सभी सदस्य यदि अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए आहुति देते रहते हैं तो ही परिवार संयुक्त रह सकता है। परिवार को संयुक्त रखना परिवार में जन्म लेने वाले का पहला कर्त्तव्य और धर्म है। अलग-अलग रहने वाले का तो नमक भी महँगा पड़ता है। एक साथ रहने वालों में अगर चार हैं तो चौधरी' और पांच हैं तो पंच कहलाते हैं। यदि चार भाई साथ रहते हों और उनमें से किसी एक की किस्मत बिगड़ जाए और उसे हर ओर से घाटा उठाना पड़े तो अन्य तीनों भाई मिलकर उसके कष्टों का निवारण कर देंगे जब कि अकेले रहने वाले को विपत्ति के समय में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ेगा। जो भाई भाई का नहीं हो सकता वह मित्र का भी नहीं हो सकता। जो भाई मित्र का नहीं हो सकता, वह समाज का भी नहीं हो सकता। यदि तुम किसी का साथ नहीं दे सकते तो तुम्हारा साथ कौन देगा? वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगर आप पांच भाई हैं तो उनमें से तीन शहर में और दो गाँव में रह सकते हैं। यदि शहर में तीनों भाई अगर अलग-अलग रहते हों और प्रत्येक भाई ढाई हजार रुपये किराया देता है तो साढ़े सात हजार रुपये लग गए किन्तु अगर साथ में रहते तो चार हजार में ही अच्छा-सा मकान मिल जाता । इससे खर्चा भी कम होता और एक-दूसरे के साथ सहभागिता भी अधिक होती। आप जब बीमार हो जाओगे तो पड़ोसी नहीं अपितु आपका भाई ही काम आएगा। तुम अब हमारी बात सुनिए। जब हमारे पिता ने संन्यास लिया तो अपने बच्चों से (हम भाइयों से) कहा था, 'बच्चो', तुम्हें जैसा जीना हो वैसा जीना मैं कोई दखल नहीं दूंगा लेकिन जब तक हम संत माता-पिता जीवित रहें, लोग अलग-अलग मत होना। इसके अतिरिक्त जो तुम्हें करना हो, करते रहना ।' हमने भी अपने माता-पिता के साथ ही संन्यास अंगीकार किया था। आप अपनी पत्नी के साथ आठ घंटे बिताते हैं, बच्चों के साथ दो घंटे बिताते हैं, दुकान में बारह घंटे बिताते हैं, पर हम दोनों भाई चौबीस घंटे एक साथ रहकर बिताते हैं । हमें संन्यस्त हुए सताईस वर्ष हो गए हैं, पर हमें याद नहीं पड़ता कि इन सत्ताईस वर्षों में हमारे बीच कभी 'तू-तू-मैं-मैं' हुई हो । अरे, भाई-भाई लड़ने के लिए नहीं होते। हमारे माता-पिता ने हमें कोई लड़ने के लिए थोड़े ही पैदा किया है। जो उसने कहा वह मुझे मंजूर और जो मैंने कहा वह उसे मंजूर, भाई-भाई के बीच अखंड प्रेम को बनाये रखने का यही मूलमंत्र है । एक के कार्य में दूसरा हस्तक्षेप नहीं करता । तुमने अगर गलत किया है तो उसका परिणाम भी सामने आ जाएगा और अच्छा किया है तो उसका परिणाम भी छिपने वाला नहीं है। आवश्यकता पड़ने पर एक-दूसरे की सलाह ले लो । हम दोनों भाई तो तीन सौ पैंसठ दिन एक ही पात्र में एक साथ भोजन करते हैं। एक भाई रोटी चूरता है तो दूसरा भाई उसे आनन्दपूर्वक खाता है। भाई के हाथ से चूरी हुई रोटी का स्वाद ही अनेरा होता है। धर्म वह नहीं है जो शास्त्रोक्त है बल्कि धर्म तो वह है जिसे व्यावहारिक जीवन में धारण किया जा सके। पहले कर्तव्य तो माता-पिता के हैं अपनी संतानों के प्रति, दूसरे कर्तव्य संतानों के हैं अपने माता-पिता के प्रति । मैं 'घर को स्वर्ग कैसे बनाएँ ? For Personal & Private Use Only ७ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाहता हूँ कि आप लोगों का घर स्वर्ग का प्रतिनिधि घर बन जाए। मातापिता, बुजुर्ग सभी अपने-अपने दायित्व निभाएँ। न जाने कितनी आस, आरजू से घर में बच्चे का जन्म होता है, उसे मारे-पीटे नहीं, अपने टीटू के कान मरोड़े नहीं। वह आपका टीटू है, टटू नहीं। अपशब्दों का प्रयोग न करें। शराब, सिगरेट जैसे दुर्व्यसन न करें। ऐसा कुछ भी न करें और न कहें जिनसे बच्चों पर गलत संस्कार आएँ। बच्चों का जीवन आईने जैसा होता है। वह जो जैसा देखेगा, वैसा ही पुन: आपको दिखाएगा। बच्चे कैमरे की भाँति हर चीज को अपने अंदर उतार लेते हैं और समझ आने पर वापस उसे ही दिखा देते हैं एकदम चलचित्र की तरह! समाजका अध्यक्ष बन कर समाज का संचालन करना आसान हो सकता है लेकिन घर का अभिभावक होकर अपने घर के बच्चों का पालन-पोषण करना कठिन होता है। देश के प्रधानमंत्री के लिए शायद देश का संचालन करना सहज हो, पर अपने ही बेटे को सुसंस्कारित करना देश को संचालित करने से भी मुश्किल काम है। पिता इसीलिए तो आदरणीय होते हैं क्योंकि वे हमें अपने पाँवों पर खड़ा होना सिखाते हैं। केवल उपदेशक न बनो, कर्ता बनो। जो शिक्षाप्रद बातें आपने अपने बच्चों, नाती, पोतों से कही हैं उनके उदाहरण स्वयं बनो। जब बच्चे आपको वैसा ही करता हुआ देखेंगे तो वे स्वयं भी वैसा ही अनुकरण करेंगे। बच्चों के लिए सिर्फ पैसा ही खर्च न करें, उन पर अपने समय का भी निवेश करें। आप उन्हें ऐसे संस्कार दीजिए कि सभी उस पर गर्व कर सकें। हाँ, अगर आपको लगता है कि बच्चा भटक रहा है तो उसे लताड़ने का भी हक़ रखें। गलत कार्यों के लिए बच्चों को संरक्षण न दें। ___ “ऐसा हुआ कि एक अमीर व्यक्ति के घर पर आधी रात के समय पुलिस ने दस्तक दी। मकान-मालिक उठा और उसने घर के बाहर पुलिस को खड़ा देखा। वह चौंक गया कि उसके घर पर पुलिस का क्या काम? उसने दरवाजा खोला और पूछा, 'किसलिए आना हुआ?' पुलिस इंस्पेक्टर ने एक फोटो दिखाते हुए पूछा, 'क्या आप इसे जानते हैं?' मकान-मालिक ने कहा, 'यह तो मेरा ही बेटा है। क्यों, क्या हुआ?' इंस्पेक्टर ने बताया, 'आज आपका बेटा इंडिया गेट के पास कुछ लड़कियों से छेड़खानी करते हुए पाया गया, वाह ! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और उसने उनके साथ बद्तमीजी की। इसलिए हम उसे गिरफ्तार करने आए हैं। उसके साथ अन्य दो लड़के भी थे जिन्हें हम पकड़ चुके हैं और अब आपके बेटे की बारी है। पिता ने सब सुना, गहरी लम्बी साँस भरी और वह बेटे के कमरे में गया। उसने बेटे से पूछा, ‘सच-सच बताओ, क्या तुमने किन्हीं लड़कियों के साथ छेड़खानी की थी? बाहर पुलिस खड़ी है, सच-सच बता दो।' बेटे ने शर्म से गर्दन झुका दी। पिता ने फिर दोहराया, 'मैं पूछ रहा हूँ बेटा, क्या तुमने ऐसा किया?' बेटे ने कुछ ज़वाब न दिया। पिता समझ गया। वह बाहर आया और इंस्पेक्टर से बोला, 'मेरा बेटा कमरे में है। जाइए, उसे गिरफ्तार कर लीजिए।' बेटा गिरफ्तार हो गया। बेटे के मन में क्रोध भर गया कि यह कैसा पिता है जो मुझे बचाने के बजाए मुझे जेल भेज रहा है। इंस्पेक्टर के मन में भी विचार आ रहे थे कि यह अजीब आदमी है जो अपने ही पुत्र को गिरफ्तार करवा रहा है। लगता है, बाप-बेटे में अनबन है। लेकिन वह क्या करे ! ले चला वह अपने मुजरिम को कि तभी पिता ने आवाज लगाई, 'ठहरो। इंस्पेक्टर साहब आप जरा अंदर आइए।' अपनी अलमारी से उसने पांच हजार रुपये निकाले और इंस्पेक्टर को देते हुए कहा, 'ये रुपये मैं अपने बेटे को छुड़ाने के लिए नहीं, बल्कि इस बात के लिए दे रहा हूँ कि आज आप इसकी इतनी पिटाई करें कि आज के बाद यह फिर से किसी भी लड़की पर गलत नजर डालने का साहस न कर सके।" ___यह पता चलने पर कि बेटा बिगड़ रहा है, माता-पिता होने के नाते, घर का बुजुर्ग और अभिभावक होने के नाते आपका भी यह दायित्व है कि आप उसे पुन: सही रास्ते पर लाएँ। जैसे माता-पिता के दायित्व हैं बच्चों के प्रति, वैसे ही बच्चों के भी कुछ कर्त्तव्य हैं अपने माता-पिता के प्रति। माता-पिता तो किसी पवित्र मंदिर की तरह होते हैं जिनके चरणों में ही स्वर्ग होता है। जो अपने माता-पिता की उपेक्षा करते हैं, वे भूल जाते हैं कि उन पर माता-पिता का कितना ऋण है। इसलिए मैं कहा करता हूँ कि जो व्यक्ति आठ घंटे अपनी पत्नी के साथ बिताता है, वह घर को स्वर्गकैसे बनाएँ? For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतना नैतिक दायित्व जरूर रखे कि दो घण्टे अपने माता-पिता के साथ ज़रूर रहे और उनके साथ भी दो घंटे बिताए। पतियो, तुम यह जान लो कि तुम पर किसी भी पत्नी का ऋण नहीं होता और पत्नियो, तुम भी समझ लो कि तुम पर भी किसी पति का ऋण नहीं होता लेकिन हर पुरुष और महिला पर माता-पिता का ऋण ज़रूर होता है। माता-पिता ने हममें अपना भविष्य देखा है। उन्होंने हमारी रचना को सुन्दरतम बनाने का प्रयत्न किया है। क्या वह रचना इतनी निष्ठुर होगी कि रचनाकार को ही दुत्कार बैठे? जिसने हमें अपना भविष्य समझा, क्या हम उनका वर्तमान नहीं बनाएँगे? ओह, धरती पर तो एक ही ईश्वर है, और वह ईश्वर हमारे अपने माता-पिता हैं। जितना उन्होंने हमारे लिए किया, उसका २५% भाग भी आप उनके लिए कर दीजिए तो आप उनकी पुण्यवानी और आशीषों के उत्तराधिकारी हो जाएँगे। कैसी विचित्र बात है कि बचपन में हम अपने माता-पिता का बिछावन गीला करते थे और आज उनकी आँखों को गीला कर रहे हैं। याद करो जब तक तुम ठीक से चलने लायक न हुए, वे तुम्हारी अंगुली पकड़ कर तुम्हें चलाते रहे, अंगुली पकड़ कर तुम्हें स्कूल ले आप जाते रहे। वे हमारा सहारा बने हुए थे और आज जब वे अशक्त हैं तो तुम भी उन्हें अंगुली थामकर किसी मंदिर अथवा किसी तीर्थस्थान में जरूर ले जाओ। इसी बहाने शायद तुम्हारा थोड़ासा ऋण उतर जाए। ऐसा करना जहाँ आपके लिए सुखदाई होगा, वहीं आपको थोड़ा-सा उऋण भी करेगा। माँ, तूने तीर्थंकरों को जन्मा है। संसार तेरे ही, दम से बना है। तू मेरी पूजा है, मन्नत है मेरी। तेरे ही चरणों में जन्नत है मेरी॥ हे माँ, तुमने तीर्थंकरों को जन्म दिया है। देवराज भी तुम्हें प्रणाम करते हैं। तुम्हारे ही दम से संसार है। तू ही हमारी पूजा है, तू ही हमारी मनौती है। तेरे ही कदमों में हमारी ज़न्नत है। जो भी माता-पिता के प्रति अपने दायित्वों को, १० वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्तव्यों को निभाता है, उन्हें सुबह उठकर प्रणाम करता है, उनके साथ भोजन करता है, रात्रि में सोने से पूर्व उनकी चरण-सेवा करता है, उसका पुत्र होना भी धन्य है। ___ मैं, महिलाओं से कहना चाहूँगा कि वे अपने पति को उसके माँ-बाप से अलग न करें, अलग न होने दें। अगर वह अलग ही होना चाहे तो आप उन्हें समझाएँ कि वह माता-पिता से अलग न हो। हर महिला का कर्तव्य है कि अगर उसका पति श्रवणकुमार की भूमिका अदा करना चाहता है तो वह उसका अवश्य ही सहयोग करे। यदि आप श्रवणकुमार की माँ बनाना चाहती हैं, तो कृपया अपने पति को श्रवणकुमार बनने की प्रेरणा दें। उसे ऐसा करने का प्रोत्साहन दे। सभी, माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें। ___घर में सभी समान रूप से अपने-अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें,तभी घर स्वर्ग बन सकेगा। सास-बहू परस्पर न लड़ें। मैंने अभी कुछ दिन पहले एक बह से पूछा, 'आपको हाथ-खर्च कौन देता है? उसने बताया, 'सास देती है।' अच्छा हुआ, उस बहू ने सारी सासुओं की लाज रख ली।सास-बह माँबेटी के समान होती हैं। सास हमेशा यही समझे कि बहू, बहू नहीं बल्कि बेटी है और बहू भी सास को माँ ही समझे। घर के सभी सदस्य अगर तरीके से जीना सीख लें तो दुनिया की कोई भी ताक़त घर को नहीं तोड़ सकती। बाप-बेटे अलग नहीं हो सकते। सास और बहू के बीच वैचारिक संतुलन नहीं बन पाने के कारण ही घर टूटा करते हैं। मैं सासुओं से कहना चाहूँगा कि आप अपनी बहुओं को इतना प्रेम, इतना स्नेह दें कि बहुएँ अपने पीहर का फोन नम्बर तक भूल जाएँ। कभी पीहर जाना भी पड़ जाए तो उसे सास रूपी मम्मी की याद आती रहे, और उसे वहाँ से जल्दी ही वापस आने की इच्छा हो। अभी तो हालत उलटी है। यदि बहू ससुराल में है तो वह हमेशा ऐसा अवसर तलाशंती रहती है कि उसे पीहर जाने का मौका मिले। कुछ भी नहीं तो वह अपने भाई को फोन पर कहेंगी, ‘बेटे का जन्म-दिन मना लो, ताकि मुझे पीहर आने का मौक़ा मिल जाए।' सासुओ, तुम अपनी बहुओं को इतना स्नेह दो कि वे पीहर जाने को इतनी बावली न हों। उनके माता-पिता ने अपनी लड़की को तुम्हारे घर भेज घर को स्वर्ग कैसे बनाएँ? For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिया है तो उन्हें प्रताड़ित मत करो। क्या आप बहू को अपने घर में लड़नेझगड़ने के लिए लाए हैं? वैसे भी आजकल तो लड़कियाँ कम हो गई हैं इसलिए लड़के मारे-मारे घूम रहे हैं। तुमने कितनों से सम्पर्क किया होगा, कितनों से कहा होगा तब वह बहू बन कर तुम्हारे घर में आई है और अब आप उससे संतुलन नहीं बिठा पा रहे हैं। सास और बहू का संबंध पवित्र संबंध है। इसी संबंध में घर को स्वर्ग बनाने की बुनियाद स्थित है। इसलिए कृपाकर आप एक दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण, समझौता भरा, विश्वासभरा व्यवहार करें। बहुएँ अपनी सास के सम्मान में कभी कमी न आने दें जब वे मर्यादा में रहेंगी तभी गृहलक्ष्मी और कुलवधु कहलाएँगी। सास बहू को इतनी स्वतंत्रता अवश्य दे कि वह भी अपने मन से कुछ कर सके। वह बात-बात में दखलअंदाजी न करे। तुलसीदास की चौथाई का एक सुन्दर पद है : सास-ससुर पद-पंकज पूजा। या सम नारि-धर्म नहीं दूजा॥ सास-ससुर माता-पिता ही होते हैं। ये ही वे सौभाग्यदाता हैं जो नारी को उसका पति प्रदान करते हैं। जिस घर में बहू को गृहलक्ष्मी मानकर इज्जत दी जाती है और सास-ससुर को माता-पिता मानकर सम्मान दिया जाता है, वह घर अनायास स्वर्ग ही होता है। जिस घर में सास-बहू आपस में तू-तू, मैं-मैं' करते रहते हैं, वह घर तिनकों की तरह कभी भी बिखर सकता है।' संबोधि धाम के अध्यक्ष पारसमलजी भंसाली बता रहे थे कि उनकी पत्नी और माँ के बीच संतुलन का एक सबसे बड़ा राज़ यह है कि अगर मेरी पत्नी को सब्जी भी बनानी है तो वह अपनी सास से पूछकर बनाती है और माँ की ख़ासियत यह है कि मेरी पत्नी जो करना चाहे, बनाना चाहे, उसमें सहज सहमति दे देती है। क्या आप समझे कि सास-बहू के बीच कैसा एडजेस्टमेंट होना चाहिए। बह सास से पूछकर करे और सास बह के कार्यकलापों में ज्यादा हस्तक्षेप न करे। सास कंट्रोल रखे, पर एक्स्ट्रा कंट्रोल भी नहीं। एक सास ने मुझे बताया कि बहू के साथ उसकी काफी कलह रहती है। कोई समाधान बताएँ। बहू भी साथ थी। मैंने बहू को दो नुस्खे दिये। पहला १२ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह कि सास के सामने मत बोलो और दूसरा यह कि वह जो कहे, कर दो। बस, हो गई शान्ति। आप भी इस नुस्खे को अपनाएँ और लाभ उठाएँ। पति-पत्नी के बीच भी संतुलन रखें। दोनों के बीच विश्वास और प्रेम की आत्मा कायम हो। जहाँ दोनों के बीच तू-तू, मैं-मैं चलती रहती है, वहाँ दोनों ही एक दूसरे से दुःखी रहते हैं। “एक पति संतासिंह अपनी पत्नी बंता से इतना अधिक परेशान था कि उसने अपने घर में लेट आना शुरू कर दिया। उसकी पत्नी ने उसे सबक सिखाने की सोची और वह काले कपड़े पहनकर तथा चुडैल का मेकअप कर घर के रास्ते में पड़ने वाले कब्रिस्तान के पास खड़ी हो गई। जैसे ही उधर से उसका पति आया तो उसने भयानक आवाज निकालते हुए कहा, कौन हो? कहाँ जा रहे हो? ठहर जाओ।' संतासिंह ने पूछा, 'कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ? बंता ने भयानक आवाज में कहा, 'क्या तुम्हें मुझसे डर नहीं लग रहा है? मैं चुडैल पति ने कहा, 'इसमें डरने जैसी क्या बात है? आपकी हमारी तो रिश्तेदारी चुडैल ने पूछा, 'कैसे?' संतासिंह ने जवाब दिया, 'दरअसल मेरी शादी आपकी ही बड़ी बहन से झगड़ोगे तो दोनों ही परेशान होओगे। प्रेम से रहोगे तो दोनों ही सुखी जीवन जी सकोगे। पति-पत्नी का संबंध तो एक पवित्र सम्बन्ध होता है। यह सम्बन्ध चार बातों पर ही जिया जा सकता है। १. ट्रस्ट, २. टाइम, ३. टॉकिंग और ४. टच यानी एक दूसरे पर भरोसा रखिए। एक दूसरे के लिए समय का भोग दीजिए। आपस में प्रेमपूर्वक बातचीत का सिलसिला जारी रखिए और एक दूसरे को सहयोग देते रहिए। यदि वह कोई संत ही होता तो आपसे शादी थोड़े ही करता। और हाँ, पत्नी की आवश्यकताओं और भावनाओं का आप भी ध्यान रखिए। स्त्री का मन कोमल होता है। उसके सिर में दर्द हो तो माथे को सहलाएँ। वह इतने से ही अभिभूत हो जाएगी। घर को स्वर्ग कैसे बनाएँ ? १३ For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टॉलस्टाय ने मरने से पहले कहा था कि मेरी पत्नी को तब तक ख़बर न दी जाए, जब तक मैं मर न जाऊँ। क्योंकि अगर वह मेरे सामने होगी, तो वह शांति से मुझे मरने भी न देगी। जिसने मुझे शांति से जीने न दिया, वह शांति से मुझे मरने कैसे देगी? यह झगड़ालू प्रकृति के दम्पति की कहानी है। वहीं मार्क ट्वेल ने पत्नी को श्रद्धाजंलि देते हुए लिखा है कि वह मेरे साथ जहाँ भी होती, मेरे लिए वहीं स्वर्ग होता। आप एक ऐसी महिला बनिये कि आपके पति भी आपके लिए यही नज़रिया बनाए कि तुम जहाँ हो, वहीं स्वर्ग है। ___अभी देवर-भाभी के संबंध बचे हैं, भाई-भाई के संबंध बचे हैं। ये सभी लोग मिलकर जब परिवार को संचालित करते हैं तो कोई प्रेम, कोई त्याग, कोई आत्मीयता, कोई सहभागिता का अवदान देता है तभी परिवार एकजुट रहकर आदर्श बनता है। क्या आपको भारतीय संस्कृति मर्यादा का स्मरण है ? जब सीता जी का अपहरण हो जाता है तो राम को वन में उनके आभूषण मिलते हैं। राम सीता का हार लक्ष्मण को दिखाकर पूछते हैं, क्या तुम इसे पहचानते हो?' लक्ष्मण कहते हैं, 'क्षमा करें भैया, मैं इसे नहीं पहचान पा रहा हूँ।' 'क्या यह सच है कि तुम नहीं पहचान रहे हो?' लक्ष्मण कहने लगे, भैया, मैंने तो जब भी देखा, भाभी के चरणों को ही देखा है। हाँ, आप भाभी के पैरों की पायल ले आएँ तो मैं पल भर में पहचान लूँगा। मैंने पांवों से ऊपर भाभी को नज़र उठाकर कभी नहीं देखा है।' कैसे बतलाऊँ क्षमा करो, भैया यह हार न देखा। मैंने जब भी देखा, भाभी के चरणों को ही देखा। वे लाल वरण, भाभी के चरण, मेरे तीर्थधाम कहलाए। श्री राम लखन ले व्याकुल मन, कुटिया में लौट जब आए॥ ये सब मर्यादाएँ हैं, जिनमें घर-परिवार के स्वर्ग का रहस्य छिपा है। मैं जो बातें कर रहा हूँ वे हम सब के लिए हैं। देवर-भाभी, भाभी-ननद, देवरानी-जेठूती-सबके बीच में प्रेमभरा, पारस्परिक सौहार्दपूर्ण व्यवहार हो। चार-दीवारों का मकान घर नहीं होता, पास्परिक प्रेम, त्याग और मर्यादा का नाम घर है। घर का निर्माण, परिवार का १४ वाह ! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आधार भावनाओं की ईंटों से होता है। भावना और कर्तव्य ये दो शक्तियाँ मिलकर ही घर को नन्दनवन बनाती हैं। घर में सुबह सदा जल्दी उठे। सूरज उगे उससे पहले जग जाएँ। घर को अवश्य सजायें-संवारें। पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उसकी ओर पर्याप्त ध्यान दें। यह नहीं कि डॉक्टर बुलाया, पत्नी को दिखाया और अपने कामधंधे पर रवाना हो गये। नहीं, उसे कुछ समय जरूर दें, भावनात्मक संबल प्रदान करें। शायद आपके धन से अधिक उसे आपके प्यार, आपके दिल और आपकी आत्मीयता की ज्यादा जरूरत है। ___सांझ को जब घर पहुँचो, तो अपनी जेब की तरह अपने दिमाग का कचरा जो आप दुकान या दफ्तर से लेकर आए हैं, उसे भी कचरे की पेटी में फेंक दें तब घर में प्रवेश करें। थोड़ा-सा चिड़चिड़ापन, कुछ-कुछ खीझ, थोड़ी-थोड़ी ईर्ष्या जो दुकान पर ग्राहकों से सिरपच्ची करते वक्त आपके दिमाग में घुस आई है और आप उसे अपने साथ ले आए हैं पहले उसी को कचरापेटी में फेंक दें, तब ही घर में जाएँ। नहीं तो इस कचरे को आप घरवालों पर डालेंगे और अशांति का वातावरण पैदा करेंगे। घरवाले आपकी प्रतीक्षा करते रहते हैं। आप एक अच्छे बेटे, अच्छे पति, अच्छे पिता बनकर घर जाएँ। घरवालों को आपकी बहुत जरूरत है। लेकिन वह जरूरत तब अच्छी बनेगी जब आप अच्छे इंसान बनकर घर पहुंचेंगे। __घर के सभी सदस्य सप्ताह में कम-से-कम एक दिन अवश्य ही साथ बैठकर भोजन करें। इससे आपस में प्रेम और आत्मीयता बढ़ेगी। परिवार से ही समाज का निर्माण होता है, समाजों से देश का निर्माण होता है। परिवार पहली सीढ़ी है, पहली नींव है। जब हर परिवार सुखी होगा तो पूरा नगर भी सुखी होगा। नगर की खुशहाली ईद की तरह होगी, होली-दिवाली की तरह होगी। आज के लिए बस इतना ही। मेरे प्रेमपूर्ण नमस्कार स्वीकार करें। ००० घर को स्वर्गकैसे बनाएँ? १५ For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाह ! ज़िन्दगी कैसे करें स्वयं का प्रबंधन? “औरों को अनुशासन में रखना किसी के लिए भी आसान हो सकता है, पर स्वयं को अनुशासन में रखना बहुत बड़ी चुनौती है।" नव-समाज के बीच जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर ऊँचा उठता जा रहा है, वैसे-वैसे उसके जीने का स्तर भी ऊँचा होता चला आ रहा है। शिक्षा के स्तर ने लोगों को अधिक सुखी, सफल और समृद्ध बनाया है। वर्तमान की सबसे बड़ी खोज तो यही है कि यदि व्यक्ति चाहे तो अपने नज़रिये में आमूलचूल परिवर्तन कर सकता है। किंवदंती है कि मनुष्य का स्वभाव श्मशान में जाकर भी नहीं बदलता। मौत ही कुछ करे तो ठीक अन्यथा...। नीम के पेड़ को चाहे दूध या घी से सींचा जाए पर उसकी कड़वाहट खत्म नहीं होती। वर्तमान समय में व्यक्ति और पदार्थ में जैसा चाहें वैसा परिवर्तन किया जा सकता है। यही कारण है कि मैं जो आपसे मुखातिब होरहा हूँ वह केवल इसीलिए कि सोच और नज़रिये में परिवर्तन लाकर जीने की शैली और स्तर को बेहतर बनाया जाए। विल्मा रोडॉल्फ जैसे लोग जीवन यदि में कुछ कर गुजरने का संकल्प और मानस बना लेते हैं तो विकलांगता और हर अभाव के बावजूद भी अपने जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को छू सकते हैं। विल्मा चार वर्ष की आयु में वाह! ज़िन्दगी १६ For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लकवाग्रस्त हो गई थी। उसके पाँव में ब्रेसेज लगे थे। वह बैसाखियों के सहारे चलती थी। उसे काला बुखार और निमोनिया भी हो गया था। नौ वर्ष की आयु में उसने संकल्प लिया कि वह ताउम्र बैसाखियों के सहारे नहीं चलेगी। भले ही उसे हजार बार क्यों न गिरना पड़े पर अब वह अपने पाँवों और हाथों के बल पर ही चलेगी। जिस दिन उसके मन में यह विचार उठा, उसी दिन उसने अपनी बैसाखियाँ फेंक दी। वह लड़खड़ाती हुई चलने लगी। तेरह वर्ष की आयु में उसने एक-एक सीढ़ी चढ़ना शुरू किया। आप सुनकर चकित रह जाएंगे कि १९६० के ओलम्पिक में उसने दौड़ में तीन स्वर्ण पदक प्राप्त किए। ___कोई अपने जीने के तौर-तरीकों में बेहतरीन नज़रिया और मज़बूत मानसिकता ले आए तो वह अपने जीवन में ऊँचाइयों को छू सकता है। व्यक्ति के जीवन की सफलता में जो सबसे बड़ी उपयोगी चीज है, वह है मैनेजमेंट, अर्थात प्रबंधन। व्यक्ति से लेकर व्यापार, विद्यार्जन से लेकर राजनीति, समाज से लेकर अन्तरराष्ट्रीय संस्थान-सबकी सफलता के पीछे प्रबन्धन-शैली ही आधार बनती है। आज एम.बी.ए. उत्तीर्ण करने वाले लोग भली-भाँति जानते हैं कि व्यावसायिक सफलता के लिए प्रबंधन कितना महत्त्वपूर्ण है। व्यावसायिक सफलता के लिए भले ही एम.बी.ए. हो जाना उचित हो लेकिन जीवन के प्रबंधन के लिए व्यवसाय का प्रबंधन मात्र एक चरणभर है। जीवन हर व्यवसाय से ऊपर है। हर मूल्य से ऊपर उसका मूल्य है। आज मैं आपको लाइफ़ मैनेजमेंट की बातें इसलिए कहूँगा कि वह मात्र व्यवसाय की नहीं बल्कि जीवन की सफलता से जुड़ी हुई हैं। स्वयं का प्रबंधन, स्वयं को व्यवस्थित करना जीवन की महान् साधना है। औरों को अनुशासन में रखना किसी के लिए भी आसान हो सकता है, पर स्वयं को अनुशासन में रखना, अनुशासन की सीख देने वाले आचार्य के लिए भी कठिन होता है। हर व्यक्ति दूसरों को तो व्यवस्थित देखना चाहता है पर मैं संकेत देना चाहूँगा कि व्यक्ति दूसरों का प्रबंधन करने से पहले स्वयं का प्रबंधन करे। औरों को व्यवस्थित करना प्रत्येक व्यक्ति की अपेक्षा और ख्वाहिश होती है, पर स्वयं को व्यवस्थित करना बहुत बड़ी चुनौती है। कैसे करें स्वयं का प्रबंधन ? For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यक्तिगत जीवन हो या पारिवारिक, सामाजिक जीवन हो या आध्यात्मिक, हरेक को सुव्यवस्थित जीवन जीना, उसके लिए अनिवार्य है। जहाँ लोग यह नहीं जानते कि सुबह कब उठना चाहिए, सांझ को कब सोना चाहिए, क्या और कैसे कब खाना चाहिए, कैसे चलना चाहिए, कब बोलना. चाहिए, कब चुप रहना चाहिए, किस तरह से अपने कार्यों को नियोजित किया जाना चाहिए वहाँ पर जरूरत है कि व्यक्ति अपना प्रबंधन स्वयं करे। अगर किसी ने अपने जीवन में ऊँचाइयों को छुआ है तो अवश्य ही उसने कोई-नकोई तरीका अथवा कोई-न-कोई बुनियादी उसूल जरूर अपनाया होगा। . ____ हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का प्रबंधन करने के लिए जरा अपने विचारों का प्रबंधन करे। जैसे विचार होते हैं, वैसी ही सोच बनती है; जैसी सोच होती है वैसी ही वाणी बनती है। वाणी व्यक्ति के व्यवहार का आधार होती है और व्यवहार आदतों का निर्माण करता है। जैसी आदतें होती हैं वैसा ही व्यक्ति का चरित्र बनता है। सामाजिक चरित्र के बेहतर निर्माण के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपनी आदतों को बेहतर बनाए। आदतों की बेहतरी के लिए व्यवहार और शैली को बेहतर बनाए। व्यवहार और कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने के लिए अपनी वाणी और शब्दों को बेहतर बनाओ। जैसे बीज होंगे, वैसे बरगद फलेंगे। जैसी जड़ होगी, वैसे ही ज़मीन से फूल खिलेंगे। जो अपने विचारों का प्रबंधन नहीं कर सकता, अपनी सोच को सुव्यवस्थित नहीं कर सकता, उसे चाहिए कि वह अपनी शिक्षा, अनुभव और ज्ञान का पुन: पुन: उपयोग करे और अपने सोच-विचार को बेहतर बनाने का प्रयास करे। हम प्रतिवर्ष यह कहानी सुनते हैं कि महावीर के समक्ष पहुँचकर राजा श्रेणिक पूछते हैं कि रास्ते में उन्होंने जिस राजर्षि के दर्शन किये थे उस क्षण में उनकी मृत्यु हो जाती तो उन्हें कौन-सी गति मिलेगी? धार्मिक समाज के लोग भली-भाँति जानते हैं कि तब महावीर ने कहा था, 'एक पांव पर खड़ा होकर तपस्या करने वाला व्यक्ति, जिस क्षण तुमने उसके दर्शन किए उस क्षण अगर उसकी मृत्यु हो जाती तो वह सातवीं नरक में जाता। जीवन का रहस्य समझ लीजिए कि मुक्ति के आधार, स्वर्ग-नरक के आधार कर्म और क्रिया में १८ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं बल्कि व्यक्ति के सोच और विचार में निहित हैं। जब गलत सोच में मृत्यु होती है तो नरक और स्वस्थ तथा बेहतर सोच में मृत्यु होने पर उसका परिणाम स्वर्ग है। व्यक्ति के विचार ही भविष्य की आधारशिला होते हैं। . धर्मस्थल पर जाने वाले व्यक्ति जितना समय पूजा-पाठ, सामायिकप्रार्थना में देते हैं उससे लाख गुना जरूरी है कि वे अपने विचारों को निश्छल, निष्पाप, उज्ज्वल और सरल बनाएँ। जब भी दिमाग पर ध्यान जाए तब एक बात ज़रूर अपनाते रहें। वह है पॉजीटिवनेस- अर्थात सकारात्मकता। सोच के सकारात्मक होने पर आँखें भी सकारात्मक ही देखेंगी और कानों में पड़ने वाले शब्दों का रूप भी सकारात्मक ही बनेगा। नकारात्मक सोच वाला बेहतर विचारों को सुनकर भी उसे काटना चाहेगा। एक व्यक्ति श्रोता' होता है, एक व्यक्ति सरोता' होता है। श्रोता होना सकारात्मकता है अर्थात जो सुनता है, ग्रहण करता है। नकारात्मक सोच के लोग सरोते की तरह होते हैं जिनका स्वभाव ही काटना' होता है।' विचार आधार है। प्रेम और शांति से जीने वाले व्यक्ति हर हालत में अपने विचारों के प्रति सकारात्मक ही हुआ करते हैं। विचारों को बेहतर बनाने का तरीका भी यही है कि जब भी आप किसी से मिलें, सम्मान के साथ मिलें। और तो और, परिवार के सदस्यों के साथ भी सम्मानपूर्वक बात करें, फिर चाहे वह बेटा हो या बहू, पत्नी हो या पुत्री। यहाँ तक कि आप अपने मातहत कर्मचारियों, नौकर-नौकरानियों से भी अदब से बात करें। इंसानियत के नाते उनके प्रति सम्मान का नज़रिया रखें। आपकी सोच और वैचारिकता खुद-बखुद सकारात्मक रहेगी। प्रेम और शांति आकाश में से टपकने वाले फूल नहीं हैं। वे तो आपकी सकारात्मकता की उपज हैं। मित्र ही नहीं बल्कि दुश्मन के प्रति भी सकारात्मक विचार रखें। पता नहीं, कब कौन-सा मित्र शत्रु और शत्रु मित्र बन जाए। इस दुनिया में कब कौन किस समय काम आ जाए, ऐसी स्थिति में हम किसी को अपना दुश्मन क्यों बनाएँ ? कल को ऐसा कोई काम अटक जाए कि हमें अपने दुश्मन की ही गरज़ करनी पड़जाए अत: यही बेहतर है कि हम शुरू से ही अपना व्यवहार बेहतर रखें। कैसे करें स्वयं का प्रबंधन? १९ For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'पोजेटिव' सोच का व्यक्ति अपने विपक्षी के गुणों से भी सीखने का प्रयत्न करेगा। अगर वह पोजेटिवनेस अर्थात सकारात्मकता का स्वाद चख लेता है तो वह खुद-ब-खुद श्रीकृष्ण हो जाता है। कृष्ण अगर नेगेटिवनेस का अनुगमन करते, तो वे भी कंस का चरित्र अपना बैठते । सारी खामी सोच की है, वैचारिकता और मानसिकता की है। सकारात्मक विचारधारा का व्यक्ति हर हाल में राम के चरित्र को अपने में जीने की चेष्टा करेगा, जब कि नकारात्मक विचारधारा खुद ही रावण की बहिन है । आप चाहे नायक हों या खलनायक यदि किसी में किसी तरह का गुण अथवा विशेषता है तो उसे भी अवश्य दाद दीजिए । रामायण का एक बहुत सुनहरा घटनाक्रम है । 'कहा जाता है कि 'जब राम और रावण के मध्य युद्ध होना तय हो गया तो राम की सेना के वानर समुद्र पर सेतु बनाने के लिए प्रयत्नशील हो गए। अभी तक यही कहा जा रहा था कि राम की वानर सेना के लोग रावण की सैन्यशक्ति की तुलना में कहीं खड़े ही नहीं हो पाते। लोगों को लगता था कि रावण ने तो महादेव को भी प्रसन्न कर रखा है, ब्रह्मा की ओर से उसे अमरत्व का वरदान मिला हुआ है, ब्रह्मा से उसे ब्रह्मास्त्र भी मिले हुए हैं, ऐसे महाबली को कौन परास्त कर सकता है? लेकिन जब अकेले हनुमान के द्वारा पूरी लंका को तहस-नहस कर दिया गया तो पूरी लंका हिल गई । जब एक वानर में इतनी ताक़त है तो बाकी के वानरों की ताक़त का अनुमान लगाना सहज नहीं है । तब तो हालत यह हो गई थी कि वानर कहलाने वाले वे लोग अपने हाथ में मोटे-मोटे पत्थर उठाकर उस पर 'राम' का नाम लिखकर समुद्र में फेंकने लगे और उस सागर में भी ऐसी ताकत नहीं रही कि वह उन पत्थरों को डुबा सके । - लंकावासियों ने यह देखा तो वे हिल गए । वे सोचने लगे कि इस वानर जाति का मुकाबला करना तो रावण जैसे पराक्रमी के लिए भी मशक्कत का काम हो जाएगा। रावण के पास यह बात पहुँची कि लंकावासी परेशान हो गए हैं। रावण की सभा के मंत्री और सभासद कहने लगे कि महाराज, पूरे देश में आपके प्रति अस्थिरता के भाव पनप रहे हैं, अविश्वास की लहर उठ रही है । अगर आपको जनता का विश्वास हासिल करना है तो आपको भी सागर के वाह ! ज़िन्दगी २० For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किनारे जाकर अपना नाम पत्थरों पर लिखकर उन्हें समुद्र में उतारना होगा। अगर आप पानी में पत्थर तिरा सके तो जनता का विश्वास जीतने में आप सफल हो जाएँगे।' रावण जानता था कि उसके पास ढेरों प्रकार की शक्तियाँ हैं लेकिन पत्थर को पानी में तैराने की कला और शक्ति उसके पास नहीं है पर अगर जनता में लंकाधिपति के प्रति विश्वास ही न रहेगा तो युद्ध में उसके साथ कौन लड़ेगा! सभासदों के दबाव में आकर रावण समुद्र के किनारे पहुँच गया और उसने घोषणा भी कर दी कि वह पत्थरों को पानी मे तैरा देगा। राक्षसों द्वारा वहाँ बड़े-बड़े पत्थर इकट्ठे कर दिये गये। सबके ऊपर 'रावण' लिख दिया गया। क्या आप जानते हैं कि वे पत्थर डूबे या तैरे? अगर डूब गए तो क्यों और तैरते रहे तो क्यों? अगर तैरते रहे तो आप राम के बजाय रावण का जाप क्यों नहीं करते?' अगर 'राम' नाम के पत्थर तैरते रहें तो जान लीजिए कि 'रावण' नाम के पत्थर भी तैरते रहे। केवल सकारात्मक विचारों के कारण। रावण ने पत्थर उठाए, कुछ सोचा और पानी में पत्थर उतार दिए। सारे पत्थर तैरने लगे। लंका में रावण की जय-जयकार हो गई कि दुनिया में केवल राम की ताक़त ही नहीं है बल्कि रावण की ताक़त भी ताकत है। रावण जब राजमहल में पहुँचा तो मंदोदरी ने कहा, 'मैं यह तो जानती हूँ कि आपमें बहुत शक्ति और ताकत है लेकिन यह बात समझ में नहीं आई कि आपके नाम में ऐसी कौनसी करामात है कि पत्थर भी तिर गये?क्योंकि जब मैंने सुना तो मैं भी समुद्र के किनारे गई। मैंने भी पत्थर पर 'रावण' लिखा था और जैसे ही उसे पानी में छोड़ा, पत्थर डूब गया आपने 'रावण' लिखवाया वह पत्थर कैसे तैर गया?' रावण ने कहा, प्रिये! अब तुमसे क्या छिपाना? हर पत्थर पर रावण लिखा गया तो मैं भी संदिग्ध था कि पत्थर तैरेगा या डूबेगा। मैंने पत्थर को हाथ में उठाया और मन-ही-मन उससे कहा, 'हे पत्थर, तुम्हें राम की सौगंध है अगर तुम डूब गए, तो ऐसा कहते हुए मैंने पत्थर पानी में छोड़ दिया और पत्थर तैर गया। पत्थर पर भले ही 'रावण' शब्द लिखा हो, कैसे करें स्वयं का प्रबंधन ? २१ For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर नीचे तो राम ही का नाम था। अरे, अगर पता चल जाए कि दुश्मन में भी खास रहस्य छिपा हुआ है तो तुम्हारी सकारात्मकता इसी में है कि तुम उस गुण को अपने जीवन में उतारो, तुम्हारी ताक़त और दस गुनी बढ़ जायेगी। लड़ने-झगड़ने से किसी की सफलता का प्रबंधन नहीं होता और न ही सामाजिक जीवन जीने के स्तर का प्रबंधन होता है। इसलिए अगर आपकी सोच और विचार ठीक व बेहतर हैं तो आपकी पूरी जिंदगी, हर व्यवहार और क्रिया बेहतर हो जाएगी। व्यक्ति की पतित होने वाली विचारदशा पतन करती है और उन्नत विचारदशा उत्थान करती है जो उसे स्वर्ग के पथ का अनुयायी बनाती है। विचारों का प्रबंधन करना सीखिए। नकारात्मकता को निकालिए, सकारात्मकता को अपने जीवन से जोड़िए। बात-बात में हस्तक्षेप न कीजिए, बात-बात में अनर्गल अपशब्दों का प्रयोग न कीजिए। लड़ना ही है तो शतरंज खेलिए। अरे, आपस में क्या झगड़ना? राजा-रानी प्यादों को लड़ाइए। विचार-प्रबंधन के लिए जरूरी है कि हम कल्पनाओं में न उलझें, बल्कि वर्तमान को उपयोगी बनाएँ, हम सत्य के दृष्टा बनें, सच्चाइयों का सामना करें, जो है उसे स्वीकार करें। अपने स्वभाव और सपनों को पहचानें। व्यक्ति अपने कार्यों का स्वयं उत्तरदायी है। घर को जोड़ने और तोड़ने के उत्तरदायी हम स्वयं हैं। जब सोचो तो अच्छा सोचो, जब देखो तो बेहतर ही देखो, अच्छा ही देखो। अपनी ओर से सदा दूसरों को सम्मान ही दो। अपमान का बुरा न मानो क्योंकि उसके पास देने के लिए यही था अत: उसने अपमान ही दिया। तुम्हारे पास सम्मान है अत: तुम सम्मान देकर अपना दर्जा ऊँचा उठाओ। फूलों की माला दूसरों को पहनाने के लिए होती है, औरों से पहनने के लिए नहीं होती। औरों से पहनकर वह लघुता रखो कि यह उसका बड़प्पन है जो मुझे माला पहना कर सम्मान दे रहा है। यह न सोचो कि आज तुम इतने बड़े हो गए कि तुम्हारा सम्मान किया जा रहा है। सम्मान पाने से अहंकार बढ़ता है सम्मान पाने की आकांक्षा से अहंकार का पोषण होता है। लघुता, ऋजुता, सरलता इसी में है कि आप औरों को सम्मान दें। २२ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयं का प्रबंधन करने के लिए हम अपनी जीवन शैली को व्यवस्थित. करें। कब उठना, कब सोना, कब खाना, कब न खाना, कैसे बोलना, क्या न बोलना, अपने से बड़ों के साथ कैसा व्यवहार करना और छोटों से कैसा बरताव करना—ये सब वे पहलू हैं जिनके प्रति जागरूकता बरती जाए, तो जीवन के व्यावहारिक पहलुओं के प्रति भी प्रबंधन का प्रभाव स्थापित किया सकता है । जीवन के रूपान्तरण के लिए यह एक बड़ी क्रांति होगी कि हम स्वयं को व्यवस्थित करने के लिए कृतसंकल्प हों। अगर आप रात में एक बजे सोते हैं और आठ बजे उठते हैं तो अपनी समूची दिनचर्या अव्यवस्थित कर लेते हैं। रात ग्यारह बजे खाना खाते हैं तो रुग्णता को निमंत्रण देते हैं। उससे गैस और पित्त का प्रकोप बढ़ेगा। रात में सोने से तीन घंटा पहले खाना खाइए । | मैं देखा करता हूँ कि लोग दिन भर कुछ न कुछ खाया ही करते हैं। कुछ नहीं तो पान - जर्दा ही चबाते रहते हैं । अरे, पशु भी खाते हैं पर हमारे जितना नहीं। वे खाते कम और जुगाली ज्यादा करते हैं और हम बस खाए ही चले जाते हैं । वे खाते भी हैं और पीते भी हैं, हम क्या खाते हैं और क्या पीते हैं, न कहूँ तो ही ठीक है । अरे, यह हमारा पेट है। यह नगर निगम की कचरा पेटी नहीं है कि इसमें कुछ भी डालते चले गए। समय निश्चित कीजिए कि सुबह इतने बजे उठेंगे और इस वक्त नाश्ता करेंगे। खाली पेट चाय भी न पीयें । हो सके तो गाय का दूध पीएँ । दूध घर की गाय का हो तो सर्वश्रेष्ठ ! पता नहीं, आज कल कैसा कैसा दूध मिलता है और हम पीये चले जाते हैं। - लोगों के घरों में चार कारें रखने को तो जगह है लेकिन एक गाय को रखने का स्थान नहीं है। हम सरकार को कोसते रहते हैं किन्तु स्वयं किसी एक गाय को भी संरक्षण नहीं दे सकते। घर में गाय को रखने की जगह न हो तो गौशाला से दूध ले आएँ, पर गाय का दूध अवश्य पीएँ । गाय का दूध पीयोगे तो बुद्धि बलिष्ठ रहेगी। दूध न भाए तो लौकी का सूप बनाकर ही पी लें। खाना समय पर खाइये। कहते हैं न कि जब घर से बाहर निकलो तो खा-पी कर निकलो अर्थात् समय पर भोजन लीजिए। नाखून काट कर रखें। अगर बढ़े हुए नाखूनों से खाना खाया तो बहुत से कीटाणुओं को शरीर में प्रवेश करने का मौका मिल जाएगा। हाथों को धोकर ही खाना खाएँ । भूख से आधी रोटी कम कैसे करें स्वयं का प्रबंधन ? - For Personal & Private Use Only २३ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खाएँ। इतना न खाएँ कि खाने के बाद किसी पाचक पदार्थ का प्रयोग करना पड़े। भोजन का भी आप प्रबंधन करें। एक सीमा तय करें - कब खाना, कितना खाना, कैसे खाना इत्यादि । सबसे अच्छा है सुबह दूध पीएँ और खाना खाकर घर से निकलें। दोपहर में एक गिलास फलों का रस लीजिए या फल खा लीजिए। फलों का रस स्वास्थ्य के लिए अच्छा टॉनिक है। शाम को हल्का भोजन लीजिए। शाम को अगर किसी भोज में जाना भी पड़े तो भी आप तो हल्का भोजन ही लें । गरिष्ठ भोजन शाम को लेना शरीर के लिए ज्यादती है। हाँ, इतना अवश्य ध्यान रखें रात को सोने से ३ घंटे पहले भोजन से अवश्य निपट जाना चाहिए ताकि पानी पूरी मात्रा में पिया जा सके। दिन-भर खाते-पीते न रहें । आहार- पानी IT भी आखिर एक सिस्टम होना चाहिए। वस्त्र भी हमेशा सलीके के पहनें। एक मिल के बाहर महिला कर्मचारियों के लिए चेतावनी टँगी थी- 'यदि आप ढीले कपड़े पहनती हैं तो यहाँ चालू मशीनों से दूर रहें और यदि चुस्त कपड़े पहनती हैं तो मिल के कर्मचारियों से दूर रहें।' आप जर्दा, तम्बाकू, सिगरेट और शराब से परहेज रखें। इनका उपयोग शरीर के साथ खिलवाड़ है। ये स्वास्थ्य के लिए शत्रु हैं। ये शरीर और मस्तिष्क सेल्स को दुष्प्रभावित करते हैं। इनके उपयोग से सभ्य समाज में आपकी 'इमेज' भी खराब होती है। और हाँ, हमेशा विनम्रता और मधुरता से बोलें। जिसके पास विनम्रता और मधुरता के दो गुण हैं, वह कभी विफल और दरिद्र नहीं हो सकता । सफलता के मायने ही हैं हर हाल में मधुरता, शांति, आनंद अर्थात् कुल मिलाकर जीवन को एक सिस्टम दीजिए। खाली दिमाग के नहीं बल्कि खुले दिमाग़ के आदमी बनिये । अच्छाई का सम्मान हो, अच्छाई को जीने का अन्तर्बोध हो । प्रबंधन के लिए समय का भी प्रबंधन करें । 'टाइम मैनेजमेंट' 'लाइफ़ मैनेजमेंट' के लिए जरूरी है। समय तो सबका सूत्रधार है। समय से ही २४ For Personal & Private Use Only वाह ! ज़िन्दगी Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमारा जीवन बना है । समय है तो ही जीवन है। अगर समय ही न हो तो जीवन है। बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता । देवता अगर रूठ जाएँ तो उन्हें मना सकते हैं पर समय रूठ गया तो उसे लौटाकर वापस नहीं ला सकते। इसलिए समय का प्रबंधन कीजिए। जीवन बहुत मूल्यवान है लेकिन समय के प्रबंधन के साथ। अगर आप समय का अपव्यय करते हैं तो मान लीजिए कि यह जीवन का अपव्यय है । प्रत्येक कार्य के लिए समय का समुचित विभाजन कीजिए। स्वयं को व्यस्त रखिए। खाली दिमाग़ नहीं रखें। बेकार बैठा हुआ व्यक्ति शैतान का घर होता है । अपने समय को व्यवस्थित कीजिए । हर नया दिन ईश्वर की ओर से मिलने वाला एक उपहार है । आप हर दिन को सार्थक कीजिए । जीवन की सार्थकता प्रत्येक दिन को सार्थक करने में है। मृत्यु जब आएगी तब आएगी, लेकिन जब तक जीयो, हर दिन सार्थक करते हुए जीओ । निरर्थक रूप से सौ साल जीने से बेहतर है कि सिंह जैसे चार ही दिन जिया जाए । मरना कोई नहीं चाहता, लेकिन हम जीवन का मूल्यांकन नहीं करते कि हमने अब तक जो जीवन जीया, उसमें क्या खोया और क्या पाया? हम सभी सोचें कि मरने से पहले कुछ होकर मरें तो जीना सार्थक है अन्यथा व्यर्थ का जीवन तो जीवित लाश को ढोने की तरह है । हमारे लिए एक-एक दिन मूल्यवान और सार्थक होना चाहिए । जीवन में एक वर्ष की क्या कीमत है, यह उस विद्यार्थी से पूछो जो परीक्षा में फेल हो गया है। एक माह की कीमत उस महिला से पूछो जिसके आठ माह का बच्चा अपरिपक्व पैदा हुआ है। वह बताएगी कि एक माह और गर्भ रह जाता तो पूर्ण विकसित बच्चा पैदा होता और वह मंदबुद्धि नहीं होता । एक दिन का मूल्य दैनिक वेतनभोगी श्रमिक से पूछो कि जिस दिन वह काम न करे उस दिन सांझ को घर में चूल्हा ही न जले। एक घंटे की कीमत किसी सिकंदर से पूछो जिसने मरने के पूर्व कहा था कि मुझे जीवन में एक घंटे की मोहलत मिल जाए तो मैं आधा साम्राज्य दे दूँगा । एक मिनिट की कीमत उस व्यक्ति से पूछिए जो वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ध्वस्त होने के ठीक एक मिनिट पहले बाहर निकल आया। जीवन में एक सैकेण्ड की कीमत क्या होती है, यह उस ओलम्पिक खिलाड़ी से पूछिए जो मात्र एक सैकेण्ड पीछे रह जाने के कारण कैसे करें स्वयं का प्रबंधन ? २५ For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्णपदक न पा सका । प्रतिक्षण बेशकीमती है, उसे व्यर्थ न गवाएँ । बातों में ऐसा रस लेते हैं कि उन्हें समय का भान ही नहीं रहता । ऐसा हुआ कि एक प्रोफेसर किसी के घर गया। वहाँ बातों में वह भूल ही गया कि अपने घर भी जाना है। रात के दो बज गए। तब उनका नौकर ढूँढते ढूँढते वहाँ पहुँचा और बोला 'मालिक, अब घर चलिए । रात के दो बज रहे हैं।' प्रोफेसर का माथा ठनका। वह बोला, 'तो क्या मैं अपने घर में नहीं हूँ ? अरे, मुझे तो इतनी देर से ही लग रहा था कि वह व्यक्ति जो मुझसे बातें किये ही जा रहा है, मेरा दिमाग़ खा रहा है वह जाता ही नहीं है। यदि वह जाए तो मैं सोऊँ ।' यह हमारी स्थिति है । अपने समय का ध्यान रखिए। कहीं पर जाना हो तो समय निश्चित कर लीजिए कि आपको वहाँ अमुक समय तक पहुँच जाना है। लेट-लतीफी न कीजिए। देर से पहुँचने वालों का यही इम्प्रेशन पड़ता है कि वह अपने जीवन और समय के प्रति जागरूक नहीं है। आप अपने समय को ऐसा नियोजित करें कि यथासमय सब कुछ सम्पादित हो सके। यूं तो हमें विदेशियों के कार्यकलापों, खान-पान, रहन-सहन की नकल करने का बहुत शौक है, पर हमारे मन में कभी उनकी समय की पाबन्दी का अनुसरण करने का ख्याल क्यों नहीं आता? वहाँ की कुछ अच्छी चीजों को भी आयात करो। अपनी अच्छी चीजों को तो हम निर्यात करते जा रहे हैं किंतु हम वहाँ की अच्छी बातों का भी आयात करें | वह अच्छी बात है उनके समय की पाबंदी । समय की पाबन्दगी, टाइम पंच्युअलिटी, जीवन के प्रबंधन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। इसके अतिरिक्त स्वावलम्बी जीवन जीएं। जो स्वावलम्बी जीवन जीते हैं, वे अधिक स्वस्थ रहते हैं और उनका घर सुव्यवस्थित रहता है। छोटे-छोटे कार्य अपने आप करें, किसी पर निर्भर न रहें। आप अपना खाना खुद लेकर खा सकते हैं। घर के कार्यों में भी आप अपनी पत्नी को सहयोग दे सकते हैं। बच्चों को पढ़ाएँ, उनके साथ खेलें । भोजन किये हुए अपने बर्तन अपने हाथ से साफ करें। हम एक दूसरे के लिए सहयोगी बन सकें, इसीलिए स्वावलम्बन को अपने जीवन के साथ जोड़ें। अपना काम खुद वाह ! ज़िन्दगी २६ For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करीने से करने में विश्वास रखें। अपना हर कार्य सलीके से करें, वस्तुएँ यथास्थान रखें। कार्य नहीं करोगे तो कोई उलाहना तो नहीं है, पर उल्टासीधा करोगे तो मुश्किलें खड़ी हो जाएँगी। अरे, जो चलेगा ही नहीं वह गिरगा कैसे? जो चलेगा वह गिरेगा भी। मैं बोलूँगा तो गलती होगी। बोलूँगा ही नहीं, तो गलती क्या होगी? पर गलती करने वाला इतनी जागरूकताअवश्य रखे कि आज गलती हो गई तो क्या, कल गलती नहीं करूँगा। ___“ अपने कार्यों को इतने सुव्यवस्थित ढंग से सम्पादित कीजिए कि वे कार्य स्वत: ही प्रार्थना बन जाएँ। आपके कार्य करने का तरीका आपकी पहचान बन जाए। आने वाला कल ऐसा हो जो आपसे प्रेरणा ले सके। हर कार्य को सिस्टमेटिक ढंग से डेवलप करें। घर में ऐसी व्यवस्था दें कि आपका बच्चा सही तरीके से कार्य करना सीखे । आपकी व्यवस्था ही आपके लिए सुविधाजनक और लाभदायक होगी। अगर आप अपने कपड़े सलीके से समेटकर रखते हैं तो आपको उनमें सिलवट नहीं मिलेगी। पेन, डायरी सही जगह पर रखेंगे तो अंधेरे में भी ढूँढ सकेंगे। अन्यथा पूरे घर में ढूँढते फिरोगे और उन्हें खोज न पाओगे। अगर सुई भी हो तो वह भी ठीक जगह पर रखी जानी चाहिए। दिन भर में क्या-क्या कार्य करना है, सुबह उठकर ही उसकी योजना बना लीजिए। जब सुबह चाय-नाश्ता कर रहे हों तो पास में एक लेटर-पैड और पैन रख लीजिए और लिखते जाइए कि दिन भर में क्या-क्या काम करने हैं? बिना व्यवस्था के सोचेंगे तो करने के तीन काम भी याद नहीं आएँगे, लेकिन जब लिखने बैठेंगे तो सत्रह काम लिख पाएँगे।अब यह तय कीजिए कि किन कामों को कब करना है, किन कार्यों को पहले करना है ? अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित क्रम प्रदान करें ताकि सभी काम सुचारु रूप से सम्पन्न हो सकें। कोई भी काम कल पर न टालें और आज का काम आज ही पूरा करें। योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाला व्यक्ति अपने हर कार्य पूरे कर लेता है। याद रखें कि आगे के लिए कार्य टालते रहने से वह कार्य भारभूत हो जाएगा। रात को सोने से पहले आज का जितना काम निपट सकता है, जरूर निपटा लें। ध्यान रखें कैसे करें स्वयं का प्रबंधन ? For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कि किसी काम को छोटा न समझें। हमारी छोटी सोच के कारण काम छोटे या बड़े हो जाते हैं। अच्छी सोच होने पर छोटे-से-छोटे काम को बेहतर ढंग से किया जा सकता है। दूसरों पर निर्भर रहने से अच्छा है कि साफ-सफाई का हम खुद ही कर लें। स्वच्छता ही स्वर्ग की जननी होती है। अरे, झाड़ू भ भी लगाओ तो इतने प्रेमपूर्ण तरीके से कि झाड़ू लगाना भी प्रार्थना बन जाए। उस वक्त यदि देवता भी वहाँ से निकलें तो वे भी ठिठक जाएँ कि रज का एक कण भी नहीं है, कहीं मकड़ी का जाला भी नहीं है । इतनी सफाई कि उनका भी शाबासी देने का मन हो जाए। जो व्यक्ति झाडू भी सलीके से लगाता है, वह अपने जीवन के हर कार्य का समुचित प्रबंधन करने में सफल होता है। समय को, अपनी कार्यशैली को, विचारशैली को बेहतर बनाइए । उसे प्रबंधन दीजिए। एक एम. बी. ए. अपने arat भी कीजिए। उसे सही मैनजमेंट दीजिए। जिसमें जो कमी हो, उसे ठीक कर लें। अगर कमी नहीं है तो बहुत ही अच्छा है क्योंकि आप बहुत ढंग जीते हैं। यदि सलीके की जरूरत है तो सलीका अपना लें। सलीके की बात अच्छी होती है, सलीके का वचन अच्छा होता है। हर चीज के पीछे एक प्रबंधन, एक तरक़ीब, एक मनोवैज्ञानिकता, बेहतर सोच और नज़रिया जरूर होना चाहिए । अपनी ओर से आप सभी को इतना ही प्रेमपूर्वक निवेदन है। नमस्कार । २८ For Personal & Private Use Only 000 वाह ! ज़िन्दगी Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाह ! ज़िन्दगी आइए, प्रेम की दहलीज़ पर "बिना प्रेम के आप मकान तो बना सकते हैं पर वह घर तब ही बनता है, जब उस मकान में प्रेम की खुशबू खिलती है। " आज की बात कबीर की पंक्तियों से शुरू करूँगा पोथी पढ़ि - पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय | ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ॥ हम सभी को कबीर का यह दोहा तो याद है, लेकिन सोचता हूँ कि कबीर को न जाने किन विसंगतियों का सामना करना पड़ा होगा कि उन्होंने इतनी कठोर बात कही। केवल पुस्तकों को पढ़कर पंडित हो जाने वाले व्यक्तियों के लिए यह जरूरी नहीं है कि वे जीवन के भी पंडित हों । पुस्तकों को पढ़कर पंडित होने वाले कोरे तर्क-वितर्क, वाद-विवाद और शास्त्रार्थ भर करते रहते जबकि जीवन के धरातल पर पंडित और प्रज्ञावान वह होता है जिसने अपने जीवन में प्रेम और शांति के पवित्र पाठों को पढ़ा है । पुस्तकों को पढ़-पढ़कर पंडित होने वालों को एक तरह से गाली ही दी जा रही है, 'पोथी पढ़ि - पढ़ि जग मुआ ।' यह सारा जगत् किताबों को पढ़पढ़कर पागल हो गया है लेकिन जब तक वह अपने हृदय में उन्हें नहीं उतारेगा तो तब तक हृदय के अनन्त प्रेम को वह उपलब्ध नहीं हो सकेगा और उसे आइए, प्रेम की दहलीज पर For Personal & Private Use Only २९ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'मुआ' ही कहा जाएगा। लेकिन प्रेम के ढाई अक्षरों' को पढ़ने वाला विरला ही होता है। मेरे देखे, प्रेम ही विश्व की सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है। प्रेम से ही जीवन की यात्रा शुरू होती है। जन्म से लेकर मरण तक व्यक्ति केवल प्रेम को ही जीना चाहता है। माँ का वात्सल्य प्रेम का ही रूप है, भाई-बहिन का स्नेह प्रेम का ही रूप है, पति-पत्नी का सम्बन्ध प्रेम का ही प्रतिरूप है। चाहे मैत्री भावना हो या करुणा का रूप हो या ईश्वर की प्रार्थना और भक्ति हो, हक़ीकत यही है कि व्यक्ति किसी-न-किसी प्रकार प्रेम को ही जीना चाहता है। प्रेम ही व्यक्ति का मार्ग है और प्रेम ही उसकी मंज़िल है। धरती पर प्रेम न हो तो यहाँ चार-दिन जीना भी मुश्किल हो जाएगा। जीवन में प्रेम होने पर मनुष्य सौ-सौ मुसीबतों का सामना भी धैर्यपूर्वक कर लेता है। प्रेम का अपना स्वाद है, अपनी सुगंध है, और अपना आनन्द है। प्रेम तो हिमालय की तरह उन्नत, सागर की भाँति अथाह और आकाश के समान अनंत है। जिस जीवन में प्रेम नहीं, वह जीवन अपाहिज़ के समान है और जहाँ प्रेम के गुलाब खिलते हैं, वहाँ जीवन अमृत के समान है। प्रेम वास्तव में वह तत्त्व है जिसे हर हाल में जिया जाना चाहिए। यदि महावीर की अहिंसा को सकारात्मक अर्थ में देखें तो पाएंगे कि वह प्रेम है। राम की मर्यादा प्रेम का सकारात्मक पहलू है। कृष्ण की भक्ति का रास्ता भी प्रेम की पगडंडी से ही जाता है। व्यक्तिगत जीवन में मनुष्य को प्रेम ही माधुर्य देता है, जीवन की नीरसता को प्रेम ही भरता है। अगर जीवन में रिक्तता है तो वहाँ अवश्य ही प्रेम की कमी होगी। रुग्ण से रुग्ण और अवसादग्रस्त व्यक्ति को प्रेम के दो मीठे बोल मिल जाएँ तो उसके हृदय को सुकून मिलना शुरू हो जाता है। परिवार में त्याग, आत्मीयता और भाईचारा प्रेम से ही आते हैं। बिना प्रेम के आप मकान तो बना सकते हैं लेकिन वह घर तब ही बनता है जब उस मकान में प्रेम की खुशबू खिलती है। परिवार का प्राण है प्रेम। समाज की ताकत है प्रेम । धर्म की धुरी है प्रेम। समाज में सामाजिक जीवन और सामाजिक संगठन के लिए हम सभी प्रेम की दहलीज़ पर अपने कदम बढ़ाएँ। क्या आप ऐसे समाज की कल्पना ३० वाह ! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर सकते हैं जिसमें सौ लोग हों पर उनमें किंचिन्मात्र भी प्रेम न हो? उन दो भाइयों का क्या साथ रहना जिसमें वैर-विरोध का परदा पड़ चुका हो और अगर भाई अलग-अलग देशों या शहरों में रहते हों पर उनमें प्रेम है तो दूरी, दूरी नहीं लगती, वे दूरियाँ भी करीबी का आधार बन जाती हैं। पूरे विश्व के लिए अकेला समाधान प्रेम है। रूंस भारत से दूर है फिर भी दिलों के नज़दीक है और पाकिस्तान भारत से लगा हुआ है पर दूरियाँ बहुत ज्यादा हैं। आतंकवाद, उग्रवाद, हिंसा और प्रतिहिंसा की ज्वाला को बुझाने के लिए प्रेम ही एकमात्र सीधा-सरल उपाय है। महावीर के समय में अहिंसा ही एकमात्र समाधान थी क्योंकि तब पशुओं की बलि दी जाती थी। राम के समय में मर्यादा का मूल्य हुआ। मैं अपने समस्त संदेशों को एक ही शब्द में पिरोऊँगा कि हम प्रेम के साथ अपना जीवन जीएँ। प्रेम से स्वर्ग का रास्ता खुलता है। हकीकत तो यह है कि प्रेम के मार्ग से ही परमात्मा की झलक मिलती है। जिस प्रार्थना में प्रेम न हो वह केवल शब्द-जाल है। जिस पूजा में प्रेम न हो वह केवल चंदन का घिसना है। यदि नमाज और इबादत में प्रेम और भक्ति का समर्पण न हो वह इबादत उठकबैठक भर है। परमात्मा के द्वार पर पहुँचने के लिए अन्तत: हर किसी व्यक्ति कोप्रेम की दहलीज़ पर आना ही होगा। प्रेम ही प्रसाद है, प्रेम ही प्रणाम है और प्रेम ही आशीर्वाद है। मेरे अमृत प्रेम में प्रसाद, प्रणाम और आशीर्वाद तीनों छिपे हैं। ये सब चीजें प्रेम के ही विस्तृत रूप हैं। ___जो परमात्मा की ओर अपने कदम बढ़ाता है, मेरे देखे वह प्रेम ही है। आखिर जब भगवान की स्तुति के लिए योगी योग करते हैं, भक्त पूजा और अर्चना करते हैं, ऋषि-मुनि उनका ध्यान धरते हए भी सीमा नहीं पाते लेकिन वही परम पिता परमेश्वर लोगों के प्रेम से पूरित हो जाने पर स्वयं उनकी दहलीज़ पर चले आते हैं। रसखान ने कहा है शेष गणेश दिनेश महेश सुरेश हुं जाहि निरन्तर ध्यावें। जाहि अनादि अनंत अखंड अछेद, अभेद, सुवेद बतावें। नारद से शुक व्यास रटैं, पचि हारे तउ पुनि पार न पावें। ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पे नाच नचावें॥ आइए, प्रेम की दहलीज पर ३१ For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिस भगवान को पाने के लिए शेष, गणेश, महेश, दिनेश, रात-दिन अनुष्ठान, पूजा-अर्चना करते रहते हैं, उन्हीं भगवान को अहीर की छोहरियाँ, छछिया भर छाछ के लिए नाचने पर मजबूर कर देती हैं। प्रेम का जादू ही ऐसा है। उसका तो खेल ही प्रेम का खेल है। जहाँ मामला प्रेम का आ जाए उसमें केवल लैला-मजनूं, हीर-रांझा की विरह-व्यथा ही नहीं छिपी है बल्कि प्रेम में राधा-कृष्ण का आनन्द भी छिपा हुआ है। प्रेम में कृष्ण और सुदामा के सत्तू भी छिपे हैं। प्रेम में नेम और राजुल की वैराग्य-कथा भी है। प्रेम के हजार रूप होते हैं और अन्तत: व्यक्ति को प्रेम की शरण में आना ही पड़ता है। विरागी वही बना हुआ घूमता है जिसने अभी तक प्रेम का सच्चा रस, सच्चे प्रेम का सुख और सच्चा आनंद नहीं चखा। पुत्र से, पत्नी से जुड़ा हुआ प्रेम सामान्य कोटि का प्रेम है। यही प्रेम जब माँ से जुड़ता है तो वह प्रेम का पवित्र रूप हो जाता है। माँ से हटकर जब यह गुरु से जुड़ जाता है तो प्रेम का उच्च रूप प्रकट होता है। लेकिन जब यह प्रेम परमात्मा से जुड़ जाता है तो वह प्रेम प्रेम नहीं रहता बल्कि वह तो किसी मीरा के पैरों की पाजेब बन जाता है। वह प्रेम सामान्य प्रेम नहीं रहता-पग धुंघरू बांध मीरा नाचीरे।' तब कोई मीरा वृन्दावन की कुंज-गलियों में पांव में धुंघरू बाँध कर नृत्य करने लगती है उसके नाम पर ! 'मैं तो मेरे नारायण की आप ही हो गई दासीरे। लोग कहे मीरा भई रे बावरी न्यात कहें कुलनासीरे पग धुंघरू बांध मीरा नाचीरे।' जगभले ही उसे कुलनाशी कहे या समाज अपनी जाति से उसे बाहर निकाल दे लेकिन जिसके हृदय में परम पिता परमात्मा के प्रति प्रेम की हिलोर उठ चुकी है, ऐसी मीरा दुनिया की परवाह नहीं करती। प्रेमदीवानी हो जाने पर तो राजुल, नेमि के पथ का अनुसरण कर लेती है तो कोई मीरा कृष्ण-कृष्ण रटते वृन्दावन की गलियों की खाक छानती फिरती है। सौभाग्य कहाँ सहगमन करूँ, अनुगमन करूँ ऐसा वर दो। जो हाथ, हाथ में नहीं दिया, वो हाथ शीश पर तो धर दो। राजुल व्यथित हो उठती है कि यदि आपने अपना हाथ मेरे हाथ में नह। दिया तो कम से कम माथे पर ही उसे रख दो। कौन समझेगा प्रेम की आत्मा ३२ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को? कौन समझेगा प्रेम की पुकार को? हर आदमी प्रेम का नाम सुनते ही घबरा जाता है, भयभीत हो जाता है। लोगों को लगता है कि प्रेम तो समाज में निंदा का कारण है लेकिन जान लीजिए कि जब तक हृदय में प्रेम की वीणा की झंकार नहीं होती तब तक जीवन में रिक्तता और अभाव का आलम ही बना रहता है, प्रेम ही शांति है, प्रेम ही पवित्रता और खुशबू है। अरे, प्रेम से बढ़कर पुण्य क्या? प्रेम से बढ़कर धर्म भी क्या? प्रेम ही ज्ञान है। कबीर कहते हैं जिसने प्रेम को जान लिया वही ज्ञानी है। बाकी सब तो किताबें पढ़-पढ़कर पंडित हो गए हैं। जिसने प्रेम की गहराई को जीया, वही ज्ञानवान कहला सकता है। जिसकी दृष्टि प्रेमपूर्ण है, वही धार्मिक है। अहिंसा को भी कैसे जीओगे, प्रेम के बिना? माना कि अहिंसा के नाम पर मैंने आपको कष्ट नहीं पहुँचाया लेकिन इतने मात्र से.जीवन की खुशी नहीं मिलती। चांटा न मारना अहिंसा हो सकता है लेकिन स्नेह से माथा चूमना अहिंसा का विस्तार और प्रेम की प्रगाढ़ता का ही परिणाम है। यह अहिंसा को जीने का आधार है। जिसने प्रेम को समझा, उसने जीवन जीने का मार्ग पा लिया। प्रेम आत्मा को पाने का, परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग बन सकता है। प्रेम तो समर्पण का, स्वयं को मिटाने का रास्ता है। प्रेम संबंध मात्र नहीं है बल्कि उससे भी ऊपर है क्योंकि संबंधों में तो राग और विराग होता है जबकि प्रेम है परम वीतराग जिसमें अपने प्रिय के लिए कुछ भी किया जा सकता है। सूफी संतों से पूछो, वे बताएँगे तुम्हें कि प्रेम क्या है? प्रेम कुर्बानी है, प्रेम मार्ग है, प्रेम परमात्मा है। "ऐसा हुआ कि जो उद्धव हमेशा ही ज्ञान और वैराग्य की बातें किया करता था, वह मन में सोचा करता था कि इस कृष्ण को न जाने कैसा पागलपन सवार है कि जो कहलाते तो हैं विष्णु के अवतार लेकिन हमेशा घिरे रहते हैं गोपियों से। अनासक्त योगी कहलाने वाले की यह अनासक्ति समझ में नहीं आती। एक बार उद्धव कृष्ण से बातें कर रहे थे कि अचानक कृष्ण पेट पकड़कर कहने लगे, 'उद्धव, मेरे पेट में दर्द हो रहा है। जाओ, किसी वैद्यराज को बुला लाओ।' उद्धव वैद्यराज को बुला लाए। वैद्य ने नब्ज़-नाड़ी देखकर कहा, 'महाराज, आपका यह पेट का भयंकर शूल किसी साधारण औषधि से मिटने आइए,प्रेम की दहलीज पर For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाला नहीं है। इसके लिए आपको कोई तंत्र-मंत्र-टोटका करना होगा, तभी आप इस दर्द से छुटकारा पा सकेंगे।' 'टोटका?' कृष्ण ने पूछा, 'कैसाटोटका?' वैद्यराज ने बताया कि, 'महाराज आप की पटरानी या रानियाँ अपने पाँव की धूल दे दें और उस धूल को पानी में घोलकर यदि आप पी लें तो आपके पेट का दर्द ठीक हो जाएगा।' कृष्ण ने उद्धव से कहा, 'तू तो मेरा मित्र है और तू ही मुझे पेट के दर्द से बचा सकता है। जा, रनिवास में जा और मेरी पटरानियों और रानियों के पाँवों की धूल ले आ।' उद्धव महल में जाकर सत्यभामा, रूक्मिणी आदि रानियों को कृष्ण की हकीकत सुनाता है। तेजमिज़ाज़ी सत्यभामा एकदम आग-बबूला हो जाती है। 'उद्धव, तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है ? हम कृष्ण की पत्नियाँ अपने पाँव की धूल अपने पति को पिलाएँ? तुम क्यों हमें पाप में धकेल रहे हो? आज तो तू (उद्धव ने यह बात कही है, आज के बाद फिर ऐसी बात न उठाना, वरना तुझे हम सीधा कर देंगी।' उद्धव तो सर पर पाँव रखकर भागा और सीधा कृष्ण के पास पहुँचा और कहा 'हे कृष्ण, तुम्हारी रानियाँ तो यह काम नहीं करने वाली हैं।' कृष्ण ने कहा, 'दर्द के मारे मेरा दम निकला जा रहा है, कुछ तो प्रबंध करो।' उद्धव बोला, 'मैं तो आपकी सब रानियों के पास जाकर आ गया हूँ। कोई भी रानी आपके लिए पाँव की धूल देने को तैयार नहीं है।' तब श्री कृष्ण ने कहा, 'उद्धव, तुम कहते हो न कि मैं गोपी-गोपिकाओं के बीच पड़ा रहता हूँ। तुम अब वृन्दावन जाओ वहाँ शायद कोई गोपी तुम्हें अपने पाँवों की धूल दे दे। उद्धव मथुरा-वृन्दावन पहुँचते हैं। उन्हें देखते ही गोपिकाएँ चारों ओर से उन्हें घेर लेती हैं और उत्सुकता से पूछती हैं, 'हे उद्धव,तुम हमारे कान्हा का क्या संदेशा लेकर आए हो?' ऊधौ ने कहा, 'क्या बताऊँ ? कहते हुए भी लाज आती है। क्या करूँ,कृष्ण ने काम ही ऐसा सौंपा है कि अगर तुम लोग वह काम कर दो तो तुम्हें सातवें नरक में जाना पड़ेगा।' गोपियाँ बोली, 'ऊधौ, तृ नरक की चिंता छोड़ और यह बता कि कौनसा संदेशा लेकर आया है ?' तब ऊधौ ने कृष्ण के पेट-दर्द की बात बताकर किसी एक गोपिका के पाँवों की ३४ वाह ! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धूल मांगी और कहा, 'यह धूल अगर पानी में घोलकर कृष्ण को पिला दी जाय तो उनका पेट दर्द जाता रहेगा।' गोपियों ने कहा, 'बस इतनी सी बात! और उसे कहने में तूने इतना संकोच किया? अरे लाओ, तुम अपना अंगोछा नीचे रख दो। एक-दो गोपिका तो क्या पूरे वृन्दावन की गोपिकाएँ तुम्हारे अंगोछे पर धूल छिटकने को तैयार हैं।' हर गोपिका ऊधौ के अंगोछे पर आती चली गई और मिट्टी के कण उस पर झरते गए। ____ऊधौ ने कहा, 'अरे गोपिकाओ, तुम यह क्या कर रही हो? इससे तो तुम्हें सातवें नरक में जाना पड़ेगा।' गोपिकाओं ने कहा, 'अपने भगवान के लिए सातवीं नरक तो क्या, सात जन्म भी अगर नरक में बिताने पड़ें तब भी ये गोपिकाएँ पीछे नहीं हटेंगी। भगवान ने माँगा है, यह तुम क्या जानो कि उन्होंने चरण की धूल मांगकर हम से क्या चीज मांग ली है? तुम नहीं समझते इसीलिए उन्हें माखनचोर' कहा करते हो। हक़ीकत यह है कि जिसके भाग्य सँवारने होते हैं, उसी की दहलीज़ पर पहुँचकर भगवान माखन चुराया करते हैं। जिस पर भगवान की कृपा होती है वे उसी की मटकी फोड़ते हैं। तुम्हें लगता है कि वे मटकी फोड़ते है किन्तु नहीं, वे तो उसके पापों की मटकी फोड़ते हैं। जिस पर उनका रहम होता है, उन्हीं के पापों की मटकी वे फोड़ते हैं।" यह प्रेम का मार्ग है, केवल समझने वाले ही इसे समझ सकते हैं। सूफी संत तो प्रेम को ही अपनी सम्पूर्ण साधना का मंत्र मानते हैं। वे खुद को मजनूं और भगवान को लैला मानते हैं। मुझे तो हीर-रांझा, लैला-मजनूं, शीरीफरहाद की कहानियाँ बहुत प्रतीकात्मक लगती हैं क्योंकि उनमें एक ओर हम, दूसरी ओर भगवान होते हैं। उसके लिए बड़ी गहन प्यास होती है कि उसे पाने के लिए भगवान खुद मजनूं बन जाते हैं। एक बार यूनान के बादशाह ने मजनूँ से कहा, 'तू दिन-रात लैला-लैला पुकारता रहता है, आखिर तेरी लैला में ऐसा क्या है? मेरे पास तो हजारों रूपसियाँ हैं, तुम मेरे महल में आ जाना तुम्हें लैला दे दूंगा।' दूसरे दिन वह महल में पहुंच गया। बादशाह ने सोचा, 'लगता है यह मेरी बातों में आ गया है। इसे लैला से कोई लेना-देना नहीं है।' उसने कई लड़कियों को खड़ा कर दिया और कहा, इनमें से जो तुझे पसंद आए, पसंद कर ले। मैं उससे तेरा आइए, प्रेम की दहलीज पर ३५ For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निकाह करवा दूंगा।' मजनूं हरेक के पास जाता है, उन्हें गौर से देखता है और आगे बढ़ जाता है। एक से बढ़कर एक खूबसूरत! कहते हैं लैला बहुत सुन्दर भी न थी। मजनूं ने कहा, 'इनमें मेरी लैला कहाँ है?' बादशाह ने कहा, 'यहाँ इतनी खूबसूरत परियाँ हैं, आखिर तेरी लैला में ऐसा क्या है जो इनमें नहीं है? 'मजनूंने कहा, मेरी लैला में क्या है यह आप तभी समझेंगे जब आप मजनूं की आंखों से उसे देखेंगे। ___ हर धार्मिक व्यक्ति सुन ले कि मेरे भगवान को तुम तभी देख पाओगे जब तुम्हारा हृदय प्रेम से पूरित होगा, परमात्मा का प्यासा होगा। स्वयं समझते पंख, गगन के मौन अधर की भाषा, तृषित न केवल कंठ, नीर भी है उतना ही प्यासा। केवल तुम ही नहीं, वह भी तुम्हें पाने के लिए प्यासा है। माटी की सौंधी महक ही पुकार से भरी हुई नहीं है, बल्कि बादल में भरा हुआ जल भी पुकार से भरा है। ऊपर वाला नीचे आना चाहता है पर तब जब नीचे वाला अपने को ऊपर उठाने के लिए तत्पर हो। प्रेम से जीओ भाई ! प्रेम के रास्ते से ही जीवन सुखमय होगा। प्रेम के रास्ते से ही घर, परिवार और समाज सुखी होगा। प्रेम के रास्ते से ही परमात्मा के नूर की झलक मिलेगी। लोग तो प्रेम को बहुत साधारण सी चीज समझते हैं लेकिन मैं प्रेम के असाधारण रूप की चर्चा कर रहा हूँ। मेरे देखे मनुष्य के आध्यात्मिक विकास के दो मार्ग हैं-एक ध्यान, दूसरा प्रेम। ध्यान अपने आप के लिए है और प्रेम इस जगत् के साथ जीने के लिए है। अगर आप पूर्णत: विरक्त और वैराग्यवासित हो चुके हैं तो आपके लिए परमात्मा का द्वार ही भला है। यदि ऐसा नहीं है तो मैं कहूँगा कि आप सारे जगत् के साथ प्रेम और प्यार की डोर बाँधे । ध्यान रहे कि आप प्रेम को गोपनीय न रखें। यह तो पवित्र मार्ग है। अगर इसे गोपनीय रखेंगे तो यह प्रेम की प्रवंचना हो जाएगी। ___“जापान में एक ज्ञानध्यान-साधिका हुई है-'ईशून। वह जब विद्यालय में पच्चीस तीस विद्यार्थियों के साथ ध्यान करने की कला सीख रही थी तो उनमें से एक विद्यार्थी का ईशनू से प्रेम हो गया। वह ईशून से मिलना चाहता ३६ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ था इसलिए उसने एक पत्र लिखा कि, 'ईशून, मैं तुमसे प्यार करता हूँ और एकांत में तुमसे मिलने का समय चाहता हूँ।' कहते हैं कि दूसरे दिन जब ध्यान . की कक्षा पूर्ण हो गई तब ईशून क्लास में खड़ी होकर बोली, 'कल मेरे पास एक ख़त आया है, जिसमें मुझसे मिलने का वक्त माँगा गया है। मैं जानना चाहती हूँ कि यह ख़त मुझे किसने लिखा है ? पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया, क्योंकि कोई भी लड़काखड़ा नहीं हुआ। क्लास में कोई खड़ाभी कैसे होता? तब ईशून ने कहा, 'अगर वह लड़का सचमुच मुझसे प्रेम करता है तो सबके सामने आकर वह मुझे बाँहों में ले ले और अपने गले से लगाए। अगर ऐसा है तब तो वह मुझसे वाकई प्रेम करता है और यदि ऐसा नहीं करता है तो उसमें मुझसे प्रेम करने का साहस नहीं है। यह विद्यार्थी जीवन में गलत राह पर जाने का मार्ग है। अगर तुम प्रेम करते हो तो छिपकर मत करो क्योंकि तब वह प्रेम पाप बन जाता है। इसी प्रेम को सार्वजनिक कर दिया जाए तो वह प्रेम पुण्य बन सकता है।' प्रेम को केवल व्यक्ति-विशेष तक ही सीमित मत करो। प्रेम तो बहुत विशाल है, 'वसुधैव कुटुम्बकम्' । तब प्रेम को एक दायरे में क्यों सीमित करते हो? मदर टेरेसा जैसे लोग प्रेम के पवित्र रूप को जिया करते थे, जहाँ उनके लिए प्रेम का अर्थ प्रार्थना, प्रार्थना का अर्थ सेवा, और सेवा का अर्थ परमात्मा होता था। प्रेम का प्रारम्भ तो मनुष्य से होता है लेकिन जब उसका विस्तार पशु, पक्षी, फूल, पौधे, प्रकृति तक होता है तब यह इबादत हो जाता है और जब उस प्रेम का जुड़ाव परमात्मा से हो जाता है तो वह भक्ति का स्वरूप बन जाता है। हम प्रेम को विस्तृत रूप दें। आप सभी मेरे प्रेम के पात्र हैं। कोई भी व्यक्ति-विशेष ही मेरे लिए प्रेम का हक़दार नहीं है। सभी मेरे प्रेम के पात्र हैं। जिनसे भी प्रेम करो,उन्हें निभाओ। ऐसे पंछी मत बनो जो सरोवर के किनारे जाए और अपना दाना-पानी चुगकर उड़ जाए। अरे, ऐसी मछली बनोजो उस सरोवर से एकाकार हो जाए। प्रेम के रिश्ते बनाने और बिगाड़ने के लिए नहीं होते। माना कि जहाँ चार बर्तन होते हैं वे खनकते भी हैं लेकिन प्रेम को जीने वाला आवाज़ नहीं होने देता। वह तो आइए, प्रेम की दहलीज पर ३७ For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्त आने पर त्याग कर देता है लेकिन परिवार में टूटन नहीं होने देता। कल्पना करें ऐसे बांध की जिसमें दरार पड़ चुकी हो। आपका परिवार, आपका समाज एक बांध है। अगर उसमें दरार आ जाए तो? यह टूटन है, टकराहट है। हम अपने समाज और परिवार के बीच दरारें न पड़ने दें। बड़ा वह नहीं है जो आयु में बड़ा है बल्कि बड़ा वह है जो बिखराव की स्थिति आने पर त्याग कर सके । जिंदगी तो चार दिन की है। इसे प्यार से जिओ, वरना जिंदगी बोझ बन जाएगी | आपके जो भी रिश्ते हैं- पति-पत्नी, भाई-बहन, पितापुत्र, माता-पुत्री, पुत्र-पुत्री जो भी रिश्ते हैं उन्हें प्रेम से जिओ । रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय । टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाय ॥ - प्रेम का धागा बहुत महीन होता है लेकिन होता बहुत मज़बूत है । फिर भी अगर वह टूट गया तो चाहे जितनी मरहम-पट्टी करो, जुड़ तो सकता है लेकिन उसमें गांठ भी पड़ जाती है । उस समय रिश्तों में वह मधुरता नहीं रह जाती, खटास आ जाती है। मेरे लिये तो प्रेम ही चंदन है, वासक्षेप है, प्रणाम है और आशीर्वाद भी है । जहाँ प्रेम हो, वहाँ सब चीजें माफ होती हैं और जहाँ प्रेम न हो वहाँ थोड़ी-सी भी अमर्यादा हो जाए, तो वह भी अक्षम्य अपराध हो जाता है। 1 निभाएँ, जिनसे भी आपके सम्बन्ध बने हैं, उन्हें निभाएँ | संबंध बनाने आसान होते हैं पर उनको निभाना कठिन होता है। समय आने पर ही संबंधों की परख होती है। अयोध्या में जिस समय मंदिर-मस्जिद का झगड़ा चल रहा था, हम लोग ऐसे मुहल्ले में घिर गए जहाँ केवल मुस्लिम बस्ती थी । लेकिन वे लोग जानते थे कि हमारी दृष्टि धर्म के प्रति विराट् है, उदार है। उन लोगों ने हमसे कहा, ‘महाराज, आप बिल्कुल भी फिक्र न करें। जब तक मुहल्ले में एक भी मुसलमान जीवित रहेगा, आप पर तनिक भी आँच नहीं आयेगी । ' हम लोग वहीं रहे। ऐसे तनावपूर्ण माहौल में एक साधिका कमलाजी हमारे लिए आहार लेकर आई। हम चौंक गये क्योंकि कर्फ्यू लगा हुआ था। किसी को बाहर दिखते ही गोली मारने के आदेश थे । हमने पूछा, 'वे यहाँ तक कैसे वाह ! ज़िन्दगी ३८ For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहुँचीं? उन्होंने बताया कि वे पुलिस को यह बताकर आई हैं कि उनके भाई अस्पताल में हैं और उन्हें खाना पहुँचाना है। कमला जी ने हमें आहार दिया। बीच-बीच में अपनी कमर भी दबा रहीं थीं। मैंने पूछा, 'क्या हुआ? कहने लगी, 'कुछ नहीं। बार-बार पूछने पर बताया कि रास्ते में पुलिस ने पांच-सात बेंत मारे थे। मेरा हृदय सजल हो उठा। उस महिला ने सेवा के नाम पर दंड भी झेल लिया था। इसे कहते हैं सच्चा प्रेम, सच्ची श्रद्धा। ____ आप अपने प्रेम को विराट रूप दीजिए। सबको सम्मान दीजिए। अपने कर्मचारियों का भी सम्मान करें। आपकी पत्नी भी उतनी ही सम्मान की पात्र है जितने कि आप उसके द्वारा। अगर आप किसी बगीचे में हों तो फूल को भी सम्मान व प्यार से निहारें। कुदरत के इस नायाब तोहफ़े को भी आप सम्मानित दृष्टि से देखें। अपने जीवन से हिंसा का बहिष्कार करें। मन, वचन और काया से हिंसा न करें। स्मरण रखें कि आप किसी के गाल पर चांटा नहीं मारेंगे, न ही कटु वाणी का प्रयोग करेंगे। न आप किसी के दिल को चोट पहुंचाएं और न ही किसी के प्रति दुर्विचार रखकर उसके आभामंडल को दूषित करें। हिंसा नहीं, अहिंसा हो। प्रेम को जीने के लिए कभी किसी की हिंसा न हो। हिंसा के द्वार-दरवाजे बहुत खुल चुके हैं। अब आप उन पर प्रेम का ताला डाल दीजिए ताकि प्रेम के द्वार खुल जाएँ। जब हमें सुई चुभाई जाती है तो कितनी पीड़ा होती है। जरा सोचिए, उन पशुओं के बारे में जिनकी गर्दन रेत दी जाती है , तथा लोग किसी पक्षी को तीर मार कर जमीन पर गिरा देते हैं। मानव इन निरीह पशु-पक्षियों की मूक वेदना को समझने में क्यों असमर्थ है ? अरे, पक्षियों को मार-गिराने के बजाय उनकी उन्मुक्त उड़ान का आनंद लो। मछलियों को पानी से बाहर निकालकर तड़पाने के बजाय उनके तैरने की खुशी में शामिल हो जाओ। किसी तितली की चटनी बनाने की बजाय उसके खूबसूरत रंगीन पंखों का सौंदर्य आत्मसात् करो। किसी अंडे को फोड़ने के बजाय, उसमें से निकलने वाले जीवन को अभय जीवन प्रदान करो। वक्त आने पर भूखों को अपना हिस्सा भी जरूर प्रदान करते रहो। आइए, प्रेम की दहलीज पर ३९ For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप परिवार में भी सहभागिता निभाएँ। आप चार बहुएँ हैं तो ऐसा न करें कि आज एक ने काम किया, कल दूसरी ने, परसों तीसरी और फिर चौथी ने। न-न, ऐसा न करें। सब साथ मिलकर काम करें ताकि एक पर बोझा न पड़े। अब तो लोग पैसे का बँटवारा कर लेते हैं और महिलाएं काम का बँटवारा कर लेती हैं। सभी अपनी सहभागिता निभाएँ। साथ में काम करने से हर कार्य हल्का हो जाएगा। प्रेम को जीने के लिए वक्त-बेवक्त दूसरों के काम भी आओ। बेवक्त में जो काम आता है, वही हमारा अपना होता है। प्रेम की कसौटी इसी बात में है कि बेवक्त में व्यक्ति दूसरों के काम आए। जब हमारे घर में खुशियाँ होती हैं तब तो सभी अपने हैं लेकिन जब फाकाकशी का आलम हो तो जो साथ निभाए, वही हमारा अपना है। बाकी सब तो सपना है। ___ “अपनी बात समाप्त करूँ उससे पूर्व अतीत की एक घटना का जिक्र करूँगा। घटना यह है कि एक संत आहारचर्या के लिए निकले। धूप में चलतेचलते थक गए तो विश्राम करने के लिए एक चौकी पर बैठ गए। वह घर किसी वेश्या (गणिका)का था। गणिका ने ऊपर से झाँका तो देखा कि जो व्यक्ति चौकी पर विराजमान है, उसका मुख चमक रहा है और वह बहुत सभ्य और सौम्य लग रहा है। वह उतर कर नीचे आई और संत से अनुरोध किया, आप बाहर क्यों बैठे हैं? भीतर आ जाइए।' चूंकि संत थका हुआ था अत: वह घर के भीतर आ गया। गणिका ने पुन: अनुरोध किया कि, आप भोजन कर लें।' संत तो आहार-चर्या के लिए ही निकला था तो आहार भी कर लिया। गणिका ने कहा, 'महाराज, आप धूप में कहाँ जाएँगे? यहीं आराम कर लीजिए।' संत वहीं ठहर गया और उसने आराम कर लिया। लेटते ही उसे नींद आ गई। गणिका उसके रूप पर, उसके तेज पर इतनी अधिक मोहित हो गई कि उसने संकल्प कर लिया कि इसी व्यक्ति को वह अपना पति और प्रेमी बनाएगी। संध्या-समय जब संत रवाना होने को हुआ तब गणिका ने अपने मन की बात और अपने सारे भाव व्यक्त कर दिए और कहा, 'अब मैं आपके बिना जीवित नहीं रह सकती। मैं आपके लिए ही जीऊँगी और आपके लिए ही मरूँगी।' संत ने कहा, 'जब तुमने अपने आपको मुझे समर्पित कर दिया है तो मैं भी तुम्हें स्वीकार करता हूँ लेकिन आज नहीं। मैं तुम्हें तब स्वीकार करूँगा जब मेरे ४० वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलावा तुम्हारा कोई न होगा।' यह कहते हुए संत वहाँ से निकल गया। गणिका ने अपने घर के दरवाजे औरों के लिए बंद कर दिये क्योंकि संत ने कहा था कि जब तुम्हारा कोई न होगा तब मैं तुम्हारा बनूँगा। ग्राहक रोज आते, पर कोई भी गणिका के पास न पहुँच पाता। गणिका पहले से ही देह-व्यापार करती रही थी सो उसे संक्रामक रोग हो गया। वह कोढ़ से पीड़ित हो गई। गणिका की देह गलने लगी। उसके शरीर से दुर्गंध उठने लगी। खून, मवाद, पानी उसके शरीर से रिसने लगा। राजा तक यह खबर पहुंची तो राजा ने उसे नगर से निकलवा दिया। अकेली, नगर के बाहर वृक्ष के नीचे बैठी हुई भगवान से प्रार्थना करने लगी, ‘भगवन, तू किसी को चाहे जैसा जन्म देना पर किसी को तू मेरे जैसी नारी मत बनाना। मैंने अपनी जिंदगी में केवल पाप ही बटोरे हैं और उन पापों का जो परिणाम आज मुझे भुगतने को मिल रहा है, वह किसी को न देना। हे प्रभु, मैं तो एक गरीब घर में पैदा हुई थी और मुझे अपनी रोजी-रोटी के लिए शरीर को बेचना पड़ा था, लेकिन वे लोग जो मेरे यहाँ आए थे, वे कौन से मज़बूर थे?' वह रोती जाती थी और भगवान से प्रार्थना करती जाती थी। तभी उस अंधियारी रात में उसने पाया कि किसी व्यक्ति ने उसके कंधे पर हाथ रखा है। वह चौंकी, ऊपर देखा तो पाया कि वह व्यक्ति वही संत है। गणिका फूट-फूट कर रोने लगी और कहती रही, मेरे प्रभु, इतने वर्षों तक मैंने तुम्हारी प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा की, पर तुम न आए। अब तो मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है जो मैं तुम्हें दे सकूँ । मेरे शरीर से खून मवाद, पीप, पानी रिस रहा है। अब मैं तुम्हें कुछ भी देने में समर्थ नहीं हूँ। संत ने कहा, 'मैंने कहा था न, जब कोई तुम्हारा न होगा तब मैं तुम्हारा बनूँगा। आज तुम अपनी काया मुझे सौंप दो ताकि मैं उसे ठीक कर सकूँ।' इतना कहकर संत ने उस गणिका के घावों को धोया, अपने संत-जीवन की पवित्र चदरिया से मवाद और खून को पौंछा। संत की पवित्रता और अर्जित पुण्यों के प्रभाव से, मात्र चदरिया से उसको पौंछने से उसके घाव ठीक होने लगे। एक माह की सेवा करने से वह गणिका पूरी तरह स्वस्थ हो गई। कल तक की गणिका को संत ने जीवन के ऐसे संदेश आइए, प्रेम की दहलीज पर ४१ For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिए कि एक माह बाद वह गणिका श्राविका बन गई। संत उस श्राविका को लेकर भगवान के पास पहुँचा और कहा, 'भंते, मैं लगातार जिस साधना में रत रहा, आज उस साधना का पुण्य पीड़ित महिला के बेवक्त काम आया। यह कभी गणिका थी लेकिन अब वह श्राविका बन चुकी है। यह पवित्र भावों से भर चुकी है, भंते, आप इस महिला पर कृपा करें और इसे संन्यास प्रदान करें, इसकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करें।" - गणिका साध्वी बन गई। इसे कहते हैं प्रेम के पवित्र मार्ग को जीना। प्रेम को समझकर ही जीवन को समझा जा सकता है। प्रेम को जी कर ही जीवन के मर्म को जिया जा सकता है। प्रेम का रास्ता ही जीवन में मेघदूत का अमर काव्य रचता है और सीता वनवास के कष्ट को स्वीकार कर लेती है। सोचिए, अगर धरती पर प्रेम न होता तो क्या सीता, सीता होती? क्या गीता, गीता लगती? सचमुच, प्रेम ही वह डोर है जिस पर बादल भी झूमते हैं और बिजलियाँ भी नाचती हैं। चाहे बरसे जेठ अंगारे, या पतझर हर फूल उतारे। अगर हवा में प्यार घुला है, हर मौसम सुख का मौसम है॥ कितनी भी कम्बख़्त रात हो, दीपक सुबह बुला लाता है। एक कली की अंगड़ाई से सारा बाग महक जाता है। कंकड़-काँटों भरी डगर हो, या प्याले में भरा ज़हर हो। पीड़ा जिसकी पटरानी है, उसको हर मुश्किल मरहम है॥ भीतर से रंग जाय न जब तक ४२ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवारा मिट्टी की चोली। पिचकारी है तब तक गाली होली है बेशर्म ठिठोली। काबा जाओ, काशी जाओ, गंगा में डुबकियाँ लगाओ। दिल का देवालय गंदा है तो फंदा सारा धरम-करम है। रंग-रोगन कर देने भर से नया न होता भवन पुराना। सिर्फ गरीबी का मज़ाक है साड़ी में पैबन्द लगाना। गली-गली में दिया जलाओ, बंजर-बंजर फसल लगाओ, नफ़रत जब तक राज कर रही सबका सब सरगम मातम है। जिसके पास शब्द हैं जितने उतना उससे अर्थ दूर है। पर चूंघट का नहीं, रूप तो आत्मा का जलता कपूर है। नारों से मत अधिक पुकारो। साड़ी कुर्ते ही नसँवारो. उसको दो आवाज कि जिसका दर्द दिया, आँसू शबनम है। दुनिया क्या है, एक बहम है, शबनम में मोती होने का, और जिन्दगानी है जैसे पीतल पर पानी सोने का। आइए, प्रेम की दहलीज पर ४३ For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में किन्तु प्यार यदि साथ सफ़र में तो सचमुच इस मृत्यु - नगर शाम सुबह की एक कसम है। मरण मनुज का नया जनम है। अगर हवा में प्यार घुला है, हर मौसम सुख का मौसम है मरण मनुज का नया जनम है। प्रेम की दुनिया में मृत्यु, मृत्यु नहीं है बल्कि मरण भी एक नया जन्म है । हवा में प्रेम हो, तो हवा, हवा नहीं, सुख और आनंद देने वाला मौसम है। प्रेम की शक्ति हृदय में हो, तो मुश्किल भी मरहम और आँसू शबनम बन जाते हैं। मन में अगर नफ़रत है तो जीवन का कोई भी सरगम भयंकर मातम ही बन जाता है। हम आएँ प्रेम की दहलीज़ पर । सबको अपने प्रेम का पात्र बनाएँ, सबके प्रेम के पात्र बनें। जीवन को जीएँ प्रेम से । सचमुच, जीवन जीने का रंग ही अनेरा हो जाएगा। जीवन की रिक्तता और निराशाएँ स्वत: मिट जाएँगी । जीवन प्रभु का प्रसाद और पुरस्कार हो जाएगा । अपनी ओर से सबके लिए अमृत प्रेम समर्पित है। ४४ For Personal & Private Use Only ००० वाह ! ज़िन्दगी Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाह ! ज़िन्दगी बेहतरजीवन काबेहतरनज़रिया “अच्छा नज़रिया जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। अगर आपके पास यह पूंजी है तो निश्चय ही आप पूंजीपति हैं।" अपने जीवन में किसी भी सफलता को अर्जित करने के लिए पांच बुनियादी बातें हैं“१. सकारात्मक सोच (Positive thinking) २. बेहतर नज़रिया (Positive attitude) ३. आत्म-विश्वास (Self-confidence) ४. कार्य-योजना (Work-Planning) ५. कठिन परिश्रम (Hard Working) ये पाँच बातें सफलता के शिखर को छूने के लिए आधारभूत मापदंड हैं। कामयाबी पाने के लिए इन पाँच बातों को मूल महामंत्र की तरह स्वीकार करें। स्वस्थ और सकारात्मक सोचस्वस्थ शरीर, प्रसन्न मन और मधुर जीवन जीने का मूलमंत्र है। यह मंत्र आज तक निष्फल नहीं हुआ है। मेरी शांति, संतुष्टि और तृप्ति का राज़ मेरी सकारात्मक सोच ही है। सकारात्मक सोच ही जीवन का सबसे बड़ा पुनीत धर्म है और नकारात्मक सोच ही जीवन का सबसे बेहतर जीवन का बेहतर नजरिया ४५ For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बड़ा विधर्म है । सकारात्मक सोच से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है और नकारात्मक सोच से बढ़कर कोई पाप नहीं है । जिस व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक सोच का मंत्र लगातार गुंजित रहता है, उसके साथ हमेशा स्वर्ग का सुख बना रहता है । सकारात्मक सोच और बेहतर नज़रिया जिसने भी अपना लिया, वह हर हाल में सत्य और शांति का अनुयायी बना रहता है । सकारात्मक सोच और बेहतर नज़रिया एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सकारात्मक सोच विपरीत वातावरण में भी अपने अन्तर्मन की शांति और सौम्यता बनाए रखने के लिए कारगर है। बेहतर नज़रिया संसार के अच्छे और बुरे दोनों ही हालात में अच्छाई को तलाशने के लिए कारगर होता है। आत्मविश्वास जीवन की दहलीज़ पर अपनी इच्छा-शक्ति और संकल्प-शक्ति को प्रगाढ़ करने के लिए अचूक साधन है । कार्य-योजना किसी भी सफलता की नींव है और कठिन परिश्रम के बल पर तक़दीर और तदबीर दोनों को एक ही मंच पर खड़ा किया जा सकता है। जिस मकान की नींव जितनी मज़बूत होगी, उस नींव पर उतनी ही मज़बूत और खूबसूरत इमारत को खड़ा किया जा सकता है। दुनिया का एक मशहूर टॉवर है कैलगेरी टॉवर जो कि १९० फुट ऊंचा है। इसका कुल वज़न ग्यारह हजार टन है और आश्चर्य यह है कि इस भवन का साठ प्रतिशत भाग ज़मीन में है और चालीस प्रतिशत भाग बाहर है । वृक्ष जितना आकाश की ओर बढ़ता है, उससे कहीं अधिक उसकी जड़ें ज़मीन के भीतर जाकर वृक्ष को मज़बूत आधार प्रदान करती हैं। जिसने अपने जीवन में सकारात्मक सोच और बेहतर नज़रिया अपना कर जीवन को मज़बूती प्रदान की है, वह हर हालत में स्वयं को सफल और सार्थक बनाने में सफल हो जाता है। यही कारण है कि मैं सदा प्रत्येक व्यक्ति के लिए सकारात्मक सोच और बेहतर नज़रिये को जीवन में पहला स्थान प्रदान करता हूँ। इन्हीं से जीवन में शांति, सफलता और मिठास का आनंद उपलब्ध होता है । -- सकारात्मक सोच यदि नीला आकाश है तो बेहतर नज़रिया उस आकाश उगने वाला सूरज है। जिसने सकारात्मक सोच को अपनाया और बेहतर वाह ! ज़िन्दगी ४६ For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नज़रिये की कला हासिल कर ली, उसने धरती पर देवत्व पा लिया। सकारात्मक नज़रिया तो जीवन की एक अनोखी पूजा है। सकारात्मक नज़रिया ही जीवन को सकारात्मक और सार्थक परिणाम दे पाएगा। जीवन को बाँस बनाना है या बाँसुरी, सब कुछ जीवन के प्रति रहने वाले नज़रिये पर ही आधारित है। बाँस का उपयोग लोग केवल अंतिम संस्कार के समय करते हैं जबकि जीवन अंतिम संस्कार के लिए नहीं है। जीवन को बाँसुरी का रूप दीजिए और उसके बेहतर परिणाम निकालिए। सवालनहानि का है, न लाभ का।सवाल है दोनों स्थितियों के प्रति रहने वाले नकारात्मक और सकारात्मक नज़रिये का। नकारात्मक नज़रिये के लोग जहाँ लाभ में खुशियों का आनंद नहीं ले पाएँगे, वहीं सकारात्मक नजरिये के लोग हानि में भी अपनी मन की स्थिति को ठीक रख लेंगे। वे अपनी गलती को सुधारने की सोचेंगे और वापस उत्साह और ऊर्जा के साथ काम में लग जाएँगे। हम अगर एक बार यह फैसला कर लें कि मैं जीवन के प्रति हर हालत में सकारात्मक रहूँगा, तो हमारा यह फैसला ही हमें जीवन के प्रति उत्साह-भाव से भर देगा। आखिर सब कुछ फैसले पर ही तो निर्भर है। अगर मेरा यह फैसला है कि मैं हर हाल में खुश रहूँगा, तो निश्चित ही खुश ही रहूँगा। मैं मानता हूँ कि कोई हमें गाली दे सकता है, हमारे साथ बदतमीजी कर सकता है, पर अगर हमारा फैसला खुशी का है, तो हम गाली पर ध्यान नहीं देंगे। ___ कहते हैं : एक एस.पी. पर किसी ने गुस्से में थूक दिया। हैड कांस्टेबल ने यह देखते ही रिवाल्वर निकाल लिया। वह थूकने वाले पर गोली चलाए, उससे पहले ही एस.पी. ने उसे रोक दिया और रिवाल्वर वापस पर्स में डालने का संकेत किया। एस.पी. ने रूमाल निकाला और थूक पोंछकर रूमाल फेंक दिया। लोग यह देखकर विस्मित हो उठे। एस.पी. ने कहा, 'जो काम रूमाल से निपट सकता है, उसके लिए रिवाल्वर निकालने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। यह है सकारात्मक दृष्टिकोण। मैं शांत और प्रसन्न रहूँगा-आपके इस फैसले के कारण ही आप ऐसा व्यवहार कर सकेंगे। अच्छा नज़रिया तो किसी जादुई छड़ी की तरह है जिसका बेहतर जीवन का बेहतर नज़रिया ४७ For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप अपने व्यावहारिक जीवन में उपयोग करते रहिए और उसके चमत्कार देखते रहिए। सफलता की बुनियाद है सकारात्मक नज़रिया। सार्थकता की नींव है सकारात्मक नज़रिया। समृद्धि की कुंजी है सकारात्मक नज़रिया। सुखशांति की आत्मा है सकारात्मक नज़रिया। स्वर्ग और आनन्द का रास्ता है सकारात्मक नज़रिया। नज़रिये की कला को ठीक से न अपनाने के कारण ही परिवारों में दरारें पड़ती हैं, समाजों के टुकड़े हो जाते हैं, धर्म और पंथ आपस में टकराते हैं, देश के विभाजन हो जाते हैं। सत्य तो सारी दुनिया का एक ही है, ईश्वर तो सारे जहाँ का एक ही है, उस तक पहुँचने के रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं। जो लोग सत्य को महत्त्व देते हैं, वे पंथों के दुराग्रह में नहीं उलझते। जो पंथों को महत्त्व देते हैं वे सत्य के सूरज से वंचित रह जाते हैं। आज प्रतिबिंबों की लड़ाइयाँ ज्यादा हैं, सत्य की लड़ाई कम है। सूरज को अगर कटोरों में पानी भरकर देखा जाए तो सूरज के अनेक प्रतिबिम्ब नज़र आएँगे। अगर पाँच कटोरों में पानी है तो सूरज के पाँच प्रतिबिम्ब बन जाएँगे लेकिन पाँच प्रतिबिम्ब होने से सूरज कभी भी पाँच रूपों में नहीं बँट सकता। दीयों में फ़र्क होने से ज्योति में कोई फर्क नहीं हुआ करता। जो लोग दियों को लेकर अपने-अपने पंथ के दुराग्रह पाल लेते हैं, वे धर्म के वास्तविक मूल्य, वास्तविक सत्य और वास्तविक परिणामों से वंचित रह जाते हैं। बेहतर नज़रिये का अर्थ ही यही हुआ कि व्यक्ति के सामने पांच कटोरों में सूरज का प्रतिबिंब दिखाई देता है लेकिन फिर भी वह जानता है कि बिम्ब और प्रतिबिम्ब में क्या भेद है? कटोरे सूर्य-चन्द्र को जानने के माध्यम तो हो सकते हैं, पर सम्पूर्ण सूर्य या चंद्र नहीं हो सकते। ___ घटिया नज़रिये के कारण ही परिवार और समाज में द्वंद्व होता है। छोटी सोच छोटे नज़रिये का कारण है। हीन और क्षुद्र दृष्टि का परिणाम है यह। जो भाई-भाई आपस में लड़ते हैं, यह उनकी घटिया सोच और घटिया नज़रिये का परिणाम है। समाज में जो टुकड़े हो जाते हैं, उनके लिए या तो उनका मार्गदर्शन करनेवाला छोटी सोच का आदमी है या फिर उनका अनुसरण करनेवाला हल्के नज़रिये का मालिक है। संतजन समाज को तोड़ते नहीं हैं ४८ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और जो संत समाज को तोड़ डाले, वे संत नहीं, असंत हैं। धर्म का पहला उद्देश्य ही टूटे हुए दिलों को आपस में जोड़ना है और धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले संत अगर समाज के मध्य खड़े होकर समाज को प्रेम का चिराग नहीं दे पाते हैं तो मैं कहूँगा कि वे अपना नज़रिया दुरुस्त करें। समाज के मध्य खड़े होकर समाज का मार्गदर्शन करने से पहले व्यक्ति का दृष्टिकोण साफ-सुथरा, सौहार्दपूर्ण होना ज़रूरी है। मैंने देखा कि एक नगर में जहाँ एक परम्परा के अनुयायियों में विभाजन हुआ, एक समुदाय अलग, दूसरा समुदाय अलग। दोनों एक ही आचार्य के शिष्य थे मगर हमें उस नगर में यह देखकर आश्चर्य हुआ कि एक समुदाय के संत उस नगर में आ जाएँ तो दूसरे समुदाय के लोग उस संत को आहार भी नहीं देते, बल्कि वे दरवाजे तक बंद कर लेते। अरे, जिस गृहस्थ की देहलीज़ पर अतिथि के पहुँचने मात्र से वह गृहस्थ धन्य हो जाता है वहाँ अगर कोई संत पहुँच जाए और तुम उसके लिए दरवाजे बंद कर लो तो मैं कहना चाहूँगा कि यह हमारी बदकिस्मती है। यह हमारा घटिया नज़रिया है। अच्छा नज़रिया होने पर तो हम अपने दुश्मन के आतिथ्य-सत्कार के लिए भी दरवाजा खोल देते हैं। नज़र-नज़र का ही फर्क है। अगर कोई बढ़ई बगीचे में पहुँचेगा तो पेड़ की लकड़ी की क्वालिटी को ही देखेगा। अन्तर्मन में शत्रुता के भाव लिए उस बगिया में पहुंचने वाला व्यक्ति कोई-न-कोई काँटा ही ढूंढता फिरेगा। जबकि प्रेम की सौगात अपने हृदय में भरकर रखने वाला व्यक्ति वहाँ के गुलाबों से मिलना चाहेगा। वह सुवास और सौन्दर्य का आनन्द लेगा। ___ एक चर्चित उदाहरण है। एक गिलास में आधा पानी भरा है और आधी गिलास खाली है । एक व्यक्ति कहेगा आधा गिलास खाली है', दूसरा कहता है आधा गिलास भरा है। गिलास तो आधा ही रहता है। एक कहता है, 'क्या दूध पिलाया? आधा गिलास दूध पिलाया था। आधा गिलास दूध देकर उसने हमें बेइजत कर दिया।' दूसरा कहता है, 'अरे वाह! वह कितना भला मानुष है जिसने हमें दूध पिलाया। हालांकि मैं तो दूध पीने का आदी नहीं था। बेहतर जीवन का बेहतर नज़रिया For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसने अच्छा किया जो पहले ही दूध थोड़ा कम कर दिया, नहीं तो दूध कम करने की तकलीफ और उठानी पड़ती।' ___ आधे खाली गिलास पर जोर देना नकारात्मकता है, वहीं आधे भरे गिलास पर गौर करना जीवन की सकारात्मकता है। ___ जीवन के हर पहलू के प्रति वैसा ही रवैया अपनाएँ जैसा कि आधा गिलास के प्रति अपनाते हैं। यदि खालीपन पर गौर करते रहेंगे, तो ध्यान रखिए दुनिया में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है कि जिसमें कमी न हो । यदि भरेपन पर गौर करेंगे तो दुनिया में ऐसा कोई आदमी, प्राणी या वस्तु नहीं है जिसमें कोईन-कोई विशेषता न हो। अपने नज़रिए को ठीक कीजिए, सदा पोजेटीवरखिए, आप हर कदम पर प्लस में रहेंगे। सास अगर बहू को किसी कारणवश डाँट देती है तो बहू यह न सोचे कि मेरी गलती पर तो सास ने डाँट दिया मगर यही गलती उनसे हो जाती तो उन्हें कौन डाँटता? बल्कि वह यह सोचें कि सास तो घर की बड़ी महिला है उन्होंने यदि डाँट भी दिया तो क्या हुआ ! अगर वे न कहेंगी तो और कौन कहेगा? नज़रिये में होने वाला यह सकारात्मक बर्ताव आपके चित्त की तथा अन्तरहृदय की स्थिति को ठीक रखने में सफल हो जाएगा। घटिया नज़रिया रखने पर पति के घर में आते ही सिर फुटव्वल शुरू हो जाएगी और छ: महीने बाद एक ही पिता का रहने वाला खून, पाँच भाइयों का एक ही खून तब पिता के सामने ही बँट जाएगा। कोई कहीं रहेगा और दूसरा कहीं और ! बुजुर्गों को घर के लिए भारभूत न समझें। बुजुर्ग तो वे रोशनदान होते हैं जो हर हालत में घर की व्यवस्थाओं और मर्यादाओं का ख्याल रखते हैं। वे तो घर-आँगन में लगे उस पेड़ की तरह होते हैं जो फल न भी दे, तब भी छाया तो अवश्य देते हैं। उनकी बात का बुरा न मानें । वे जैसे भी हैं, उन्हें निभाने का गौरव अवश्य लीजिए। उनकी दुआएँ आपकी सात पीढ़ी के काम आएगी। ___ छोटों से अगर गलती हो जाए तो उन पर इतनी जल्दी तैश न खायें। बच्चे हैं, बच्चों से गलती नहीं होगी तो भला किससे होगी? बच्चे तो गलतियाँ करते ही रहते हैं। बड़े डाँट दें तो लघुता रखो और छोटों से गलती हो जाए तो वाह! ज़िन्दगी ५० For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बड़प्पन रखो। पहले जन्म लेने से कोई बड़ा और बाद में जन्म लेने से कोई छोटा नहीं होता। जो छोटी नज़र रखता है, वह छोटा होता है और जो बड़ा नज़रिया रखता है, वही बड़ा होता है। यह तो नज़रिये का फ़र्क है कि कौन व्यक्ति किस बात को किस एंगल से लेता है? अपनी मानसिकता को, अपने नज़रिये को यदि आप हर हाल में श्रेष्ठ, हर हाल में पॉज़ेटिव बनाकर रखते हैं, तो आप सामान्य से सामान्य काम के भी असामान्य और ऊँचे परिणाम पा सकते हैं। इस तरह का ऊँचा नज़रिया होना क्या अपने आपमें जीवन की सबसे बड़ी पूंजी नहीं है? ऐसा हुआ एक बार मैं किसी निर्माणाधीन भवन के पास से गुजर रहा था। मैंने यूँ ही वहाँ के लोगों से बातचीत शुरू कर दी। मैंने देखा कि एक व्यक्ति मिट्टी खोद रहा था। मैंने उससे पूछा, 'कहो भाई, क्या कर रहे हो?' वह बोला, 'क्या करें साब, भाग फूटे हैं, मिट्टी खोद रहे हैं और जैसे-तैसे दालरोटी की व्यवस्था कर रहे हैं।' वहीं दूसरे आदमी से आगे बढ़कर पूछा, 'कहो भाईजान, क्या कर रहे हो?' वह बोला, 'सा'ब, मकान बन रहा है, उसकी चारदीवारी बना रहा हूँ।' दो कदम आगे बढ़कर एक और से पूछा, भाई, यहाँ क्या बन रहा है?' ‘एक खूबसूरत इमारत बना रहे हैं।' उसने जवाब दिया। क्या आप समझ सकते हैं कि एक ही मकान के बाहर काम करने वाले तीन किस्म के लोग हैं? जिसका जैसा नज़रिया और स्तर, उसके जीवन में वैसा ही परिणाम। जो अपने को भाग-फूटा समझ रहा है वह जिंदगी भर मज़दूरी करके ही पेट भरेगा। जो सोचता है कि ईंट-चूना सजा रहा हूँ, वह कारीगर ही बना रहेगा। जिसकी नज़र में यह उदात्त भाव है कि वह एक खूबसूरत इमारत बना रहा है, निश्चित ही वह इंजीनियर, आर्कीटेक्ट या खूबसूरत कल्पनाओं का अदाकार रहा होगा। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। मेरे देखे, बेहतर नज़रिया जीवन के हर क्षेत्र का मूलमंत्र है। अपनी दृष्टि को, अपने नज़रिये को सकारात्मक बनाया जाए। बिना बेहतर नजरिये के तुम अच्छे बेहतर जीवन का बेहतर नज़रिया For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माँ-बाप नहीं हो सकते। बिना बेहतर नज़रिये के कोई गुरु अच्छा गुरु नहीं हो सकता। अगर नज़रिया ठीक नहीं है तो कोई भी दुकानदार ठीक से दुकान नहीं चला पाएगा। नज़रिया ठीक न होने पर कोई भी कर्मचारी ठीक से काम नहीं करेगा। बेहतर नज़रिया रखनेवाला व्यक्ति कर्मयोग करता है, मेहनत करता है इस भाव के साथ कि कर्म करना मेरा कार्य है और फल देना परमात्मा का अधिकार है। बेहतर नज़रिया रखने वाला दुकानदार अपने ग्राहकों से बहुत तमीज़ से बात करता है। अपने कर्मचारी को भी बेहतर नज़रिया अपनाने के गुर सिखाइए तो उनका आपके प्रति व्यवहार, उनका रहन-सहन, रीति-रिवाज़, तौर-तरीके बदल जाएँगे। ___शुरूआत स्वयं से करें। दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलें। खुद को बदले बगैर दूसरों को बदला भी नहीं जा सकता। आप अपने पिता को नहीं बदल सकते। अपनी पत्नी और भाई को नहीं बदल सकते। यहाँ तक कि अपनी बहिन और बच्चों को भी नहीं बदल पाते। कोई और बदले या न बदले, आप अपने आपको बदल लें। आपका नज़रिया बदला कि दुनिया बदली। एक पति-पत्नी के बीच झगड़ा होता था। उसने पत्नी को बदलने की, सुधारने की बहुत कोशिश की, पर वह सफल न हो पाया। एक दिन उसने इस बिन्दु पर सोचा। उसने अन्तत: खुद को ही बदल लेने का संकल्प कर लिया। बस, बात बन गई। झगड़े खत्म हो गए। तुमने अपने आपको सुधार लिया, अपने आपको बदल लिया, तो पत्नी तो अपने आप ही बदल गई। बेहतर जीवन के लिए नज़रिये का बेहतर होना बहुत ज़रूरी है और बेहतर नज़रिये के लिए खुद को ही बदलने का, सुधारने का संकल्प लेना पहली आवश्यकता है। जीवन को बदलने के लिए एक ही गुरुमंत्र की जरूरत है : बेहतर नज़रिया, सकारात्मक और सार्थक नज़रिया। बेहतर नज़रिये का पहला लाभ यह होता है : हमारी कार्य-क्षमता में वृद्धि होती है। दूसरा लाभ होता है : मिल-जुलकर काम करने की उत्सुकता हमारे भीतर पनपने लगती है। तीसरा लाभ : हमारे रिश्तों में मधुरता आने लगती है। चौथा लाभ : तनाव से बचने का मौका मिलता है। पाँचवा लाभ : ५२ वाह ! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यक्तित्व निर्माण में मदद मिलती है। छठा लाभ : हमारा कैरियर अपने आप अच्छा बनने लगता है । सातवाँ लाभ : अच्छे नज़रिये वाले की भाषा भी शालीन, मधुर और विनम्र हुआ करती है। वहीं अगर नज़रिया छोटा है, हीन है तो पहला नुकसान यह है कि व्यक्ति निराशा, तनाव, अवसाद और घुटन में जीता है। दूसरा नुकसान यह है कि उसके भीतर कार्य करने की उत्सुकता, उ र्जा और उमंग नहीं रहती । वह हमेशा छोटी-छोटी बातें सोचता रहता है । वह यह नहीं सोचता कि दूध शुद्ध दूँ, बल्कि वह यह सोचता है कि दूध में पानी कैसे मिलाऊँ? घटिया नज़रिये वाला सोचता है कि मिर्ची में दूसरा पाउडर कैसे मिलाऊँ, चाय की पत्ती में लकड़ी का बुरादा - रंग मिलाकर कैसे घोटूं ? नज़रिया हल्का है, छोटा है, खोटा है, घटिया है इसलिए व्यक्ति के सारे कार्यकलाप भी घटिया स्तर के होते हैं। तीसरी हानि यह है कि वह लक्ष्यहीन ज़िन्दगी जीता है। जीवन में मिलने वाली विफलता और असम्मान के पीछे एक कारण हमारी छोटी सोच, छोटी दृष्टि ही है । अपनी सोच को, अपनी मानसिकता को विराट और उदार, मैत्रीपूर्ण और क्षमापूर्ण बनाकर देखिए, लोग आपको दिल में बैठाकर रखेंगे । - छोटी और स्वार्थी सोच होने के कारण ही इस देश का स्तर गिरा है । उसके नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है। भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी बढ़ी है । दहेजप्रथा को बढ़ावा मिला है। शराब पीने जैसी मनोवृत्ति का बेतहाशा विस्तार हुआ है। घर टूटे हैं, परिवार टूटे हैं। आपसी प्रेम और शांति में कटौती हुई है। आदमी खुदगर्ज़ हुआ है। अच्छा नज़रिया लेकर चलने वाले नैतिकता से, ईमानदारी से, प्रामाणिकता से अपना जीवनयापन करते हैं और वैसा ही उनका नज़रिया बनने लगता है। जैसा वातावरण होगा, वैसा ही नज़रिया बनेगा । जैसा घर का माहौल होगा, वैसा ही बच्चा बनता चला जाएगा। अपने घर का माहौल देखिए। आप जो किताबें पढ़ते हैं, उनका स्तर समझिए। आप जो टी.वी. देखते हैं, वह भी आपके नज़रिये को प्रभावित करता है । व्यापार में जो व्यवहार करते हैं, जिस बेहतर जीवन का बेहतर नज़रिया For Personal & Private Use Only ५३ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषा और बोली का उपयोग करते हैं, उसके स्तर को समझिए क्योंकि वे भी आपके नज़रिये के ही स्तर को दरशाते हैं। अगर कोई बच्चा गाली देता है तो मान लीजिए कि परिवार में कोई बड़ा व्यक्ति ज़रूर गाली देता होगा। अगर आपका बच्चा गुस्सा कर रहा है तो आप यह मानकर चलें कि माँ-बाप में से कोई-न-कोई ज़रूर गुस्सा कर रहा है। अगर आप गुस्सा कर रहे हैं तो बच्चों कोशांति से जीने को कहने के लिए आपका हक नहीं बनता। जहाँ लोग कुत्तेबिल्लियों की तरह लड़ते-झगड़ते हैं, जरा बताइये कि वहाँ संतान अच्छी कैसे बन पाएगी? ___ आप बताएं कि क्या आप कभी गाली देते हैं? आप कहेंगे कभी-कभी'। ईमानदारी से बताएँ तो पता चलेगा कि आप रोज़ ही गाली निकालते होंगे। कोई भी आदमी तभी तक शांत रहता है, जब तक उसे अशांत होने का मौका नहीं मिलता। कोई भी व्यक्ति तब तक ईमानदार रहता है, जब तक उसे बेईमान होने का निमित्त नहीं मिलता। निमित्त मिल जाने पर भी जो व्यक्ति ईमानदार रह सके, वास्तव में वही ईमानदार है। सच्चाई तो यही है कि जैसा घर का माहौल होता है, वैसा ही व्यक्ति का निर्माण होता है। देवता कोई आकाश से नहीं उतरते और भूत कोई पाताल से नहीं आते। समाज और घर-परिवार का जैसा वातावरण होता है, मनुष्य वैसा ही बनता है। मैंने एक प्यारी बच्ची शालिनी से पूछा, 'बेटी, तुम इतनी शालीनता से, इतने अदब से, इतनी विनम्रता से कैसे पेश आती हो?' उसने कहा, 'इसमें नई बात क्या है? हमारे घर में सभी लोग इसी तरह व्यवहार करते हैं।' जहाँ घर के सभी लोग एक-दूसरे से इतनी शालीनता से पेश आएँगे तो बच्चों में भी वे ही संस्कार आएँगे। जो आप करेंगे, बच्चे भी वही करेंगे। बच्चे तो आपके जीवन के आईने होते हैं। जैसे आप होंगे, वे वापस वैसा ही आपको दिखाएँगे। अगर आपको किसी प्रकार का व्यसन या लत है तो बच्चे भी चोरीछिपे उसे अपनाएँगे और आने वाले कल में खुल्लम-खुल्ला वह सब करेंगे जो आप आज कर रहे हैं। आज बच्चों में भी दुर्व्यसन आए हैं, आज जो वे आपके ५४ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहे हुए का अतिक्रमण करने का साहस करते हैं, देखिए इन सबकी शुरुआत के कारण आप स्वयं ही तो नहीं हैं? इसलिए भावी पीढ़ी के निर्माण के लिए, एक सफल और समृद्ध देश व समाज के निर्माण के लिए ज़रूरी है कि अभिभावक अपने घर का वातावरण ठीक करें। व्यक्ति के गार्जियन ही उसके पहले गुरुजन होते हैं। गार्जियन गुरु का काम भी करें। कहीं ऐसा न हो कि पोता अपने दादा की अंगुली पकड़ते हुए भी शर्माए। अगर हममें गलत आदत या व्यवहार हैं तो उसे आज ही घर से बाहर निकालने का संकल्प कर लें। मैं चाहता हूँ कि मेरा घर अच्छा हो, मेरे पड़ौसी का घर अच्छा हो, मेरे पूरे समाज और देश का माहौल अच्छा हो। ऐसा करने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने घर के माहौल को ठीक करें। अच्छे माहौल में बच्चा तो क्या, आपका कर्मचारी भी अच्छा काम करेगा और बुरे माहौल में कर्मचारी का भी मन नहीं लगेगा। उसमें कार्यक्षमता होते हुए भी वह अच्छा कार्य नहीं कर पाएगा। चाहे आपके घर का बच्चा हो या कर्मचारी, घर के माहौल का उस पर सबसे पहले प्रभाव पड़ता है। ‘एक न्यायाधीश ने चोर को छ: साल की सजा सुनाई। चोर ने कहा, 'ठहरो, मैं इस सजा को अकेले नहीं भोगूंगा। मेरा बाप भी इस सजा को भोगेगा।' जज ने कहा, 'चोरी तुमने की, बाप सजा क्यों भोगेगा?' चोर ने कहा, 'इसलिए, क्योंकि वह जानता था कि मैं चोरी कर रहा हूँ और उसने मुझे कभी चोरी करने से नहीं रोका। जितना गुनाहगार मैं हूँ, मेरा पिता भी उतना ही गुनाहगार है।' अगर पुत्र बिगड़ रहा है तो इस कारण कि माता-पिता उस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। आप अपने बच्चे को चाहे जितना प्यार करें पर जरूरत पड़ने पर उसे समझाएँ, डाँटे और कभी एकाध चपत लगाने से भी न चूकें। ___जब किसी लड़के ने किसी लड़की के साथ छेड़छाड़ की, तो पुलिस उसे पकड़ने आ गई। लड़के के पिता को जब इस बात का पता चला तो उसने पुलिस को यह कहते हुए ५०००/- की रिश्वत दी कि उसके बेटे की ऐसी पिटाई की जाए कि वह भविष्य में फिर किसी के साथ ऐसा काम न करे। बेहतर जीवन का बेहतर नज़रिया For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह है सुधारने की प्रक्रिया वहीं यदि पिता पुत्र को पैसा देकर छुड़ा लाता, तो वह होती बेटे को बिगाड़ने की प्रक्रिया। अच्छे घर, अच्छे नज़रिये के निर्माण के लिए वातावरण का अच्छा होना ज़रूरी है। नज़रिया अच्छा होने पर आपके कर्मचारी भी बेहतर काम करेंगे अन्यथा विशिष्ट योग्यता होने के बावजूद घटिया नज़रिये के कारण उनकी कार्य-क्षमता प्रभावित होगी। मेरा अनुरोध है कि अगर आपके हाथ में है तो आप अपने आस-पास के माहौल को बेहतर बनाने के लिए तत्पर हो जाइए। आपकी शिक्षा कैसी है. इसका भी नजरिये पर बहत प्रभाव पड़ता है। आज की शिक्षा केवल रोजी-रोटी कमाना सिखाती है। मैं देश के कर्णधारों और शिक्षाविदों से कहना चाहूँगा कि शिक्षा ऐसी हो जो सिर्फ रोजी-रोटी कमाना ही नहीं बल्कि जीने की कला और जीवन-मूल्यों को भी सिखाए। जिस विद्यालय में जीवन के संस्कार दिये जा सकें, वे ही वास्तविक विद्यालय हैं। आजकल की इंग्लिश पब्लिक स्कूलों की भीड़ में हमारे संस्कार भी कहीं गुम होकर रह गए हैं। हम नहीं देखते कि वहाँ बच्चों को कैसे संस्कार दिये जा रहे हैं? विद्यालय इसलिए नहीं हैं कि वहाँ बच्चे केवल पुस्तकें पढ़ना ही सीखें। विद्यालय तो ज्ञान व संस्कार का वह झरना होता है जिसमें हर विद्यार्थी को स्नान करते रहना चाहिए। जो शिक्षा व्यक्ति का चरित्र-निर्माण न कर पाए, वह शिक्षा, शिक्षा नहीं, शिक्षा की तकनीक भर है। मात्र तकनीकी शिक्षा। ___अपने बच्चों को आदर्श विद्या मंदिर जैसे किसी विद्यालय में पढ़ाएँ। कम-से-कम पाँचवी तक तो वहीं पढ़ाएँ , फिर उन्हें किसी और स्तरीय विद्यालय में पढ़ा लें। जीवन में जितना ज़रूरी विद्यार्जन है, उतना ही ज़रूरी है : संस्कार । सुबह कब उठना चाहिए, सुबह उठकर क्या करना चाहिए, माता-पिता को प्रणाम करना, बड़ों का आदर-अदब करना, बड़ों से कैसा व्यवहार करना, अपने सहपाठियों के साथ कैसा मैत्रीपूर्ण व्यवहार करना, किस अदब के कपड़े पहनना आदि बहुत सी बातें ऐसी हैं, जिनके संस्कार घर और स्कूल में ही दिए जा सकते हैं। यदि हम शुरू में ही इस बात के प्रति सावचेत न हुए तो संतान गई काम से। ५६ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज तो बच्चा ए फॉर एटम, बी फॉर बॉम्ब सीख रहा है। बचपन से ही जब बच्चों को हिंसा और विध्वंसमूलक शब्दों से ज्ञान की शुरुआत कराई जाती है, तब सोचिए कि वह इंसान अपने जीवन में सृजनात्मक शिक्षा को भला कैसे आत्मसात् कर पाएगा? बेहतर होगा जब हम किसी विद्यालय में अपने बच्चे को दाखिल कराएँ तो पता कर लें कि वहाँ के संस्कारों का स्तर क्या है ? फिर तो जैसे-जैसे अनुभव प्रगाढ़ होते हैं मनुष्य का नज़रिया भी वैसा ही बनता जाता है। जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों से जीवन का निर्माण होता है। सही अर्थ में शिक्षित वह है तो अच्छे और बुरे में चुनाव करना जानता हो, जो हालातों का सही ढंग से सामना करने में समर्थ हो और जो अपनी काबिलियत और बुद्धि का निरन्तर सार्थक उपयोग करता हो। नज़रिये के निर्माण में एक और बिन्दु है जिसका सीधा प्रभाव पड़ता है वह है जिंदगी में लगने वाली ठोकरें । ठोकर अपने आप में एक परिपक्व अनुभव है। ठोकर कोई यों ही नहीं लग जाती। हर ठोकर आदमी को सम्हलने की प्रेरणा है। ठोकर कुदरत के घर से दी जाने वाली सिखावन है। जो ठोकर खाकर न सम्हले, वह बुद्ध ही होता है। जो दूसरों को ठोकर खाए देखकर अपने जीवन के लिए प्रेरणा ले लेता है, बुद्धत्व का प्रकाश उसी के द्वार पर उतरता है। इसे यों समझें। दो भाई हैं, एक ही पिता की संतान लेकिन एक भाई शराबी है और दूसरा भाई सभ्य और भली ज़िन्दगी जी रहा है। लोगों ने शराबी से पूछा, 'तुम शराब पीते हो, पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करते हो, बच्चों के साथ मारपीट करते हो, पत्नी की कमाई भी शराब में उड़ा देते हो, आखिर ऐसा क्यों करते हो?' उसने कहा, 'क्यों न करूँ ? मेरा बाप भी यही सब करता था, उसी से तो मैंने यह सब सीखा है।' लोगों ने उसके भले सजन-सम्पन्न भाई से भी पूछा, 'तुम्हारा बाप तो शराबी था। वह पैसे-पैसे को तरसता था, पत्नी, बच्चों से दुर्व्यवहार करता था, पर तुम तो बहुत इज़त की ज़िन्दगी जी रहे हो। प्रसन्न रहते हो, सम्पन्न हो, आखिर क्या बात है?' उसने कहा, 'जो बेहतर जीवन का बेहतर नज़रिया For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुछ भी आप कह रहे हैं वह सब सच है । मैंने बचपन में जब-जब भी पिता के इस रूप को देखा तब-तब मेरे भीतर यह प्रेरणा जगने लगी कि शराब के कारण पिताजी ने घर को तहस-नहस कर दिया, मेरी देवी जैसी माँ के साथ दुर्व्यवहार किया लेकिन जब मैं बड़ा होऊँगा तब कभी शराब नहीं पीऊँगा, अपनी पत्नी से उपेक्षा और अपमानजनक व्यवहार नहीं करूँगा और न ही बच्चों से मारपीट करूँगा। बचपन के वे कटु अनुभव ही मेरी अच्छाई का मूल कारण है । एक ही घर में पैदा होने वाले दो बच्चों में एक बिगड़ैल निकल जाता है और एक सुधर जाता है। एक का नजरिया घटिया और दूसरे का बढ़िया हो ता है। जो ज़िन्दगी से कुछ सीखना चाहता है, वह अपने आपको वैसा ही ATIT लेता है और जो अपने आपको बनाना नहीं चाहता, उसे कोई भी गीता और रामायण भी श्रेष्ठ नहीं बना सकतीं। जिंदगी के अनुभव ही जीवन का पहला शास्त्र है, उनसे समझें और सीखें। आप अपने बच्चों का उनके बचपन से ही अच्छा नज़रिया बनाने के प्रति जागरूक हो जाइए। बच्चों की जरूरतों के अतिरिक्त उनसे पूछिए कि 'उनके मन की कैसी स्थिति है, उनके मन में कैसे विचार उठते हैं, आज सपने में उन्होंने क्या देखा? उन्हें अच्छी कहानियाँ सुनाइए और उनके नज़रिये को ऊँचा उठाने का प्रयास कीजिए । भीतर अगर कोई बीज पनप रहे हैं और यदि उनमें कैक्टस या काँटे हैं तो उन्हें पहले से उखाड़ कर फेंकने का प्रयास करेंगे तो जीवन का उद्यान सौम्य, सुंदर और मधुर होगा । अपने नज़रिये को बेहतर, सकारात्मक, पोजेटिव बनाने के लिए कुछ और कीमिया सूत्र ले लें। पहला गुर है : बेहतर नज़रिया बनाने के लिए औरों की अच्छाइयों को तलाशें, अपनी सोच को बदलें और अच्छाइयाँ देखने की ही मानसिकता पैदा करें। अच्छाई देखना चाहोगे तो हर किसी में अच्छाई मिल जाएगी और बुराई देखोगे तो अच्छाई में भी बुराई ढूँढ ही लोगे । अच्छाई को तलाशने का अर्थ ही यह है कि हम अपनी ग़लतियों को नज़र अंदाज़ कर दें। जो गलतियों को नज़रअंदाज करने का जज्बा रखता है, वही अपने नज़रिये को बेहतर बनाने में सक्षम होता है। हरेक में कोई-न-कोई गुण होता है। बंद ५८ For Personal & Private Use Only वाह ! ज़िन्दगी Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घड़ी में भी दो वक्त तो ऐसे आते हैं जब वह सही समय दिखाती है। अगर हम किसी एक गलत बात पर अपना ध्यान केन्द्रित कर बैठे तो निन्यानवे अच्छाइयों से वंचित रह सकते हैं। दूसरा अनुरोध है : सबको प्रेम दीजिये, सबको सम्मान की नज़रों से देखिए। पत्नी हो या बच्चे, माता-पिता हों या कर्मचारी, पड़ौसी हों या रिश्तेदार, सभी का समान रूप से सम्मान कीजिए। मैं तो कहूँगा कि अगर हमारे घर दुश्मन भी आ जाए तो उसे भी सम्मान दीजिए। याद कीजिए जब राम के सामने रावण और मेघनाथ का शव लाया जाता है तब क्या होता है? विभीषण सहित सभी लंकावासी सोच रहे होते हैं कि रावण ने राम की पत्नी सीता का हरण किया था अत: निश्चित ही अब यह राम रावण और मेघनाथ के शव के टुकड़े-टुकड़े करके गिद्धों और कुत्तों को खिलाएगा। पर नहीं, जबरावण और मेघनाथ का शव आता है तोराम तत्काल उनके सम्मान में खड़े हो जाते हैं और अपने कंधे पर रखे हुए उत्तरीय को उतारकर आदरपूर्वक उस शूरवीर योद्धा को समर्पित कर देते हैं। अरे राम के भीतर राम को देखा तो कौनसी बड़ी बात हो गई? जो रावण में भी राम को देख सके उसी का नज़रिया बेहतर कहलाता है। संत में तो संत दिख जाएगा लेकिन असंत में भी संत देखने का नज़रिया अपने भीतर विकसित करो-यही तो अच्छा नज़रिया अपनाने का मूल सूत्र है। ___तीसरा अनुरोध है : अपने हर दिन का प्रारम्भ आप ज्ञान की किसी अच्छी बात से करें। अपनी एक पुस्तक है ‘क्या करें कामयाबी के लिए? उसमें ३६५ सूत्र दिये गए हैं। प्रतिदिन एक सूत्र पढ़ा जाए। जिस माह, जिस दिन जो तारीख़ है उसका पन्ना खोलें। उसमें एक बात कही गई है। उसे पुन: पुन: पढ़ें, दिमाग में उतारें और दिन का प्रारम्भ करें। ज्ञानपूर्वक अपने दिन की शुरूआत करने वाला व्यक्ति पूरे दिन ध्यान पूर्वक, होशपूर्वक जीता है। नज़रिया अच्छा और बेहतर बन सके, इसके लिए चौथा सूत्र है : सदा सौम्य रहें। चेहरे पर सदा मुस्कान रखें। शुरूआत में भले ही यह मुस्कान कृत्रिम लगे, पर बाद में वही, ज्यों-ज्यों मुस्कराने का संस्कार भीतर उतरता आत्मविश्वास जगाएँ, असंभव का 'अ' हटाएँ For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाएगा, वह स्वत: हमारा स्वभाव और प्रकृति बनता जाएगा। अपने हर दिन की शुरूआत मुस्कान से करें। मेरी यह सतत प्रेरणा रही है कि सुबह जैसे ही आँख खुले, एक मिनट तक मुस्कुराया करें। शरीर की ताज़गी और मन की तंदुरूस्ती के लिए यह सबसे अच्छा टॉनिक है। मुस्कुराइये, अभी भी, कभी भी । मुस्कान तो सर्दी में खिलने वाली उस धूप की तरह है जो हर हाल में अच्छी ही लगती है। अंतिम अनुरोध : हर सुबह पन्द्रह मिनट योग और प्राणायाम करें । लगभग आधे घंटा ध्यान अवश्य करें। अपनी आती-जाती सांसों पर ध्यान करें। सांसों के आवागमन को देखने का आनंद लें। अंतरमन में यह भाव रखें कि मैं ध्यान धर रहा हूं अर्थात स्वयं को शांतिमय और आनंदमय बना रहा हूँ। जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखें और सकारात्मक भाव लिये हुए ध्यान योग में अधिष्ठित हों। नज़रिये को अच्छा बनाने के ये कुछ सूत्र हुए। अच्छा नज़रिया, अच्छी सोच, आत्म-विश्वास, कार्य-योजना और कठिन परिश्रम ये ही तो सफल जीवन के आधार हैं। अगर आप सफल जीवन की चाहना रखते हैं तो अभी इसी क्षण अपनी सोच और दृष्टि को, वाणी और व्यवहार को बेहतर और सकारात्मक बनाने का फैसला कर लीजिए। आपका यह फैसला ही आपके भविष्य को तय करेगा। ००० ६० वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाह ! ज़िन्दगी आत्मविश्वास जगाएँ, असंभव का 'अ' हटाएँ "संघर्ष के मैदान में जीतता वही है जिसके भीतर जीतने का जज़्बा है। आप जीतने का विश्वास जगाएँ, आपके भीतर सिकंदर की छवि स्वत: उभरने लग जाएगी।" पनी बात का प्रारम्भ ऐसी घटना से करूँगा जिस पर विचार करने से हमारा सोया हुआ आत्म-विश्वास फिर से जाग्रत और सक्रिय हो सकता है। “सूमो पहलवानों के इतिहास में ओनामी नामक एक प्रसिद्ध पहलवान हुआ है। वह इतना सबल था कि अगर वह हाथी को पकड़ लेता तो हाथी का उसके चंगुल से छूटना मुश्किल था। जिसके शरीर में इतना बल था फिर भी न जाने वह कैसे और क्यों मानसिक कमजोरी का शिकार हो गया और उसका मनोबल टूट गया। परिणामत: जिसके नाम से देश के पहलवान थर्रा उठते थे, वह अब अपने ही शिष्यों से परास्त हो जाता था। उसने अनेक प्रयास किए किन्तु अपने मनोबल को वह फिर से प्राप्त न कर सका। आखिर में परेशान होकर वह अपने ध्यान-गुरु के पास गया और उन्हें अपनी समस्या कह सुनाई। आत्मविश्वास जगाएँ, असंभव का 'अ' हटाएँ For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्यान-अध्यापक हाकूजू ने उसकी सारी मनोदशा समझी और कहा, 'ओनामी, तुम्हारी समस्या केवल बच्चों का खेल है। तुम अगर चाहो तो आज की रात में ही अपने मनोबल को पुनः पा सकते हो। मुझे तो तुम्हारे भीतर एक महान् सागर और सागर में एक महा तरंग उठती हुई दिखाई दे रही है। मुझे लगता है कि तुम्हारे भीतर इतना सामर्थ्य है कि देश तो क्या, पूरा विश्व ही इस सामर्थ्य के सम्मुख नतमस्तक हो सकता है। तुम मेरे साथ मेरे श्राइन (ध्यानकक्ष) में चलो। मैं आज की रात तुम्हें ऐसा ध्यान करवाता हूं ताकि तुम अपने खोये मनोबल को प्राप्त कर सको ।' ध्यान - कक्ष में पहुँचकर हाकूजू ने ओनामी से कहा, 'तुम ध्यान करो और ध्यान भी केवल सागर की तरंगों का । अपने भीतर देखते चले जाओ कि सागर की तरंग उठ रही है। उस तरंग के साथ तुम इतने एकलय हो जाओ कि वह तरंग बढ़ते-बढ़ते महातरंग हो जाए। तुम सागर की महातरंग हो और उसी रूप में स्वयं को देखने की कोशिश करो।' कहते हैं कि ओनामी ध्यान करने बैठा लेकिन रात के तीन पहर बीत जाने के बाद भी न तो उसका ध्यान में मन लगा और न ही आँखों के आगे कोई सागर उमड़ा और न ही उसकी मानसिकता में सागर की कोई तरंग लहराई । चौथै पहर में अचानक उसने पाया कि उसके भीतर सागर की लहर उठ रही है । उसने अपनी एकाग्रता को उस तरंग पर स्थित किया। तरंग उठती रही और उसी तरंग ने महातरंग का रूप ले लिया । ओनामी ने पाया कि वह महातरंग उस तक या उसके मनोमस्तिष्क तक ही सीमित न रहकर उसके बाहर भी आती जा रही है। महातरंग की चपेट में वह ध्यान कक्ष भी आ चुका है। उसने देखा कि पूरा मठ, पूरा आश्रम, गाँव, नगर, पूरा देश और पूरा विश्व ही महातरंग की चपेट में आता जा रहा है। उस महातरंग के घेरे में बड़े-बड़े दानव, बड़े-बड़े जहाज, बड़े से बड़े सूमो पहलवान आते चले आ रहे हैं और धराशायी हो रहे हैं । तभी हाकूजू उस श्राइन में प्रविष्ट हुए और उन्होंने देखा कि ओनामी के चेहरे पर अद्भुत चमक और आभा है। उन्होंने जान लिया कि यह आभा ओनामी के आत्म-विश्वास की है । हाकूजू ने उसके सिर पर हाथ रखा, पीठ वाह ! ज़िन्दगी ६२ For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थपथपाई और कहा, 'अब तुम खड़े हो जाओ। तुम्हारे चेहरे पर आई हुई चमक को देखकर कहा जा सकता है कि तुमने उस महातरंग का अनुभव कर लिया है।' ओनामी गुरु का आशीर्वाद लेकर आश्रम से चल पड़ा और कहते हैं कि जब तक वह जिया, उसकी तुलना में कोई भी उसकी टक्कर का पहलवान न हो पाया। ओनामी प्रतीक है। यह मेरा और आपका प्रतीक है। वह हर व्यक्ति का प्रतीक है जो शरीर से तो सबल है लेकिन मन से निर्बल हो चुका है। 'निर्बल का बल राम होता है' पर राम का बल व्यक्ति का मनोबल होता है। जिसका मन मज़बूत, उसका पूरा जीवन मज़बूत और जिसका मन कमज़ोर उसका जीवन कमज़ोर। 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' जो मन से हार गया वह निश्चय ही हार गया और जिसे यकीन है कि वह हर हाल में जीतेगा उसे जीतने से कोई रोक नहीं सकता। लेकिन जिसके मन में यह भय समा गया कि कहीं वह असफल हो गया तो? 'तो' का संदेह उसे अवश्य ही असफल कर देगा। जिसके भीतर आत्मविश्वास जाग्रत हो गया है, वह निश्चित ही सफल होगा। आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, वह अवश्यमेव सफल होगा। जीतने वाला कोई आसमान से नहीं टपकता और हारने वाला किसी पाताल से नहीं निकलता। मनुष्य का मन ही उसे विजय दिलाता हैं और यही मन उसे हार दिलाता है। हारा हुआ मन हार का कारण है और जीता हुआ मन जीत का आधार है। हरेक को चाहिए कि वह अपनी मानसिक शक्तियों को पहचाने। हमारे भीतर ऐसी मानसिक और आत्मिक शक्तियाँ हैं जिनके बलबूते पर हम जो चाहें, वह कर सकते हैं। आल्प्स की पहाड़ियों से गुजरने वाले नेपोलियन को जब बुढ़िया से यह सुनने को मिला कि, 'जाने कितने सेनानायक आए और चले गए, पर आल्प्स की इन पहाड़ियों को वे पार न कर सके। इसलिए तुम अपने विश्व-विजय के ख्वाब को छोड़कर अपने वतन लौट जाओ।' नेपोलियन बोला, 'माँ, अगर तुम बूढ़ी न होती तो मैं हाथ पकड़कर तुम्हें रास्ते से हटा देता। तू मेरी माँ के समान है, इसलिए मैं तेरी इज्जत करता हूँ और बता देना चाहता हूँ कि नेपोलियन के शब्दकोश में असंभव' नाम का शब्द ही नहीं है।' आत्मविश्वास जगाएँ, असंभव का 'अ' हटाएँ ६३ For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई व्यक्ति अपने जीवन में कामयाबी की ऊँचाइयों को हासिल करना चाहता है तो वह 'असंभव' शब्द में से 'अ' को हटा दे। दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं है, जिसे वह करना चाहे और कर न पाए। तब उस बुढ़िया ने कहा था, 'नेपोलियन, तुम्हारे भीतर जो साहस और आत्म-विश्वास के शब्द उमड़ रहे हैं, वे अवश्य ही तुम्हें जीवन में सफलता दिलाएंगे। इन पहाड़ियों को पार करने के लिए कई सेनानायक आए पर जो आत्म-विश्वास तुम्हारे भीतर है, वह किसी में न था।' इतिहास गवाह है कि नेपोलियन ने आल्प्स की दुर्गम पहाड़ियों को पार कर अपने विश्व - विजय के सपने का मार्ग प्रशस्त किया । आत्म-विश्वास व्यक्ति को विजय दिलाता है। जो हारे वे केवल इसलिए कि जीतने के प्रति वे पूरी तरह कृतसंकल्प नहीं थे। जो जीते हैं वे इसलिए कि जीतने की बुनियादी मानसिकता अपने भीतर लेकर चलते रहे। मैं चाहता हूँ कि हर आदमी अपने मनोबल को जाग्रत करे। कुश्ती लड़ने वाले दो पहलवान सबलता की दृष्टि से एक जैसे ही होते हैं, दोनों की ताक़त भी एक जैसी ही होती है । दारासिंह और किंग कांग ने जब कुश्ती लड़ी थी तो किंग कांग दारासिंह से दुगुना वजनी और ताक़तवर था लेकिन फिर भी वह मात खा गया। इसका क्या कारण था? कुश्ती लड़ने वाले दोनों लोग सबल होते हैं, रेस में दौड़ने वा धावक सबल होते हैं, क्रिकेट में बॉलिंग और बैटिंग करने वाले दोनों सबल होते हैं, पर जीतता वह है जिसके भीतर जीतने का विश्वास है । - जिनके मन में कमज़ोरियाँ आ चुकी हैं, उनसे मैं कहना चाहूँगा कि अगर आप अपनी मानसिकता को बदल लें तो अपनी जिंदगी की नई शुरूआत कर सकते हैं। अस्सी वर्ष की उम्र में व्यक्ति बूढ़ा नहीं हो जाता। जिसके मन में तनाव, अवसाद और निराशा आ चुके हैं, वह बचपन में ही पचपन का हो गया, ऐसा जानें। शरीर से बुढ़ापा नहीं आता । मन बूढ़ा तो आदमी बूढ़ा, जिसका मन जवान है, वही युवा है। नाव उसकी ही पार लगती है जिसमें नाव को पार लगाने की दृढ़ मानसिकता है। मन डूबा तो नाव डूबी, मन तिर रहा है तो नाव को तिरना ही पड़ेगा। तूफान लकड़ी की नौका को तो तोड़ सकता है, पर इन्सान के मनोबल को नहीं । आज की समस्या साम्प्रदायिक, सामाजिकता, गरीबी और बेरोज़गारी वाह ! ज़िन्दगी ६४ For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की कम है। आज की सबसे बड़ी समस्या व्यक्ति की मानसिकता की है। मन में ही सारी समस्याएँ घिरी हुई हैं। निराशा, तनाव, घुटन, अवसाद के भाव जब-जब पैदा हो जाते हैं तब तब ओनामी जैसा सबल-समर्थ पहलवान भी ऐसी पतली हालत में आ जाता है कि वह अपने ही चेलों से मात खा जाता है। मन की धाराएँ मजबूत हो जाएँ तो सभी कार्य सरलता से सम्पन्न हो जाते हैं। अंधेरों को कोसने का काम बहुत हो गया। अब तो आप मोमबत्तियाँ जलाइये, आत्मशक्ति की मोमबत्तियाँ, मनोबल की मोमबत्तियाँ। ___एक खरगोश की कहानी बताती है कि वह जानते हुए भी कि हर रोज एक जानवर शेर को भेंट किया जाता है और आज उसकी बारी है। फिर भी उसने तय कर लिया कि वह शेर का भोजन नहीं बनेगा। खरगोश शेर के पास पहुँचा और बोला, 'महाराज, माफ करें। मुझे आने में बहुत देर हो गई। शेर भूख के कारण बिलबिला रहा था। वह क्रोधित भी था। जब उसने देखा कि रोज तो बड़े-बड़े जानवर आते हैं और आज यह अदना- साखरगोश और वह भी इतनी देर से आया है। तभी खरगोश बोला, 'महाराज, मैं तो बहुत जल्दी रवाना हो गया था। मुझे पता था कि शेर अंकल को बहुत तेज भूख लग रही होगी, लेकिन जब मैं बीच जंगल में पहुँचा तो सुना कि कुएँ में से तेज दहाड़ की आवाज आ रही है। मैंने उसमें झाँककर देखा तो पाया कि उसमें एक और शेर बैठा है। मैंने उससे पूछा 'तुम यहाँ क्या कर रहे हो?' उसने कहा, 'मैं यहाँ रहता हूँ कुँए की गुफा में, और इस जंगल का राजा भी मैं हूँ। तुम्हें जल्दी से इस कुएं में कूद जाना चाहिए ताकि मैं तुम्हारा आहार ले सकूँ।' खरगोश ने कहना जारी रखा, 'महाराज, मैं बड़ी मुश्किल से उससे पीछा छुड़ाकर आया हूँ। मैं तो यह सोच रहा हूँ महाराज कि मैं तो छोटा-सा जंतु था, जैसे-तैसे निकलकर आ गया। कल से फिर कोई जानवर आएगा आपके आहार के लिए। कहीं ऐसा न हो कि वह बीच में ही उसे झपट ले जाए।' ___ यह बात सुनते ही शेर और क्रोधित हो गया। 'अरे, जंगल का राजा तो मैं . हूँ। मेरे रहते दूसरा जंगल का राजा कैसे बन सकता है?' शेर ने तमतमाते हुए कहा। महाराज, यह तो आप जानें। मैं भलाशेर से कैसे मुकाबला कर सकता हूँ? अगर, आप कहें तो मैं आपको कुँआ, ज़रूर दिखा सकता हूँ, खरगोश ने आत्मविश्वास जगाएँ, असंभव का 'अ' हटाएँ ६५ For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उकसाते हुए विनम्रता से कहा। शेर उतावला हो गया और क्रोध में उसका विवेक नष्ट हो गया। वह चल पड़ा खरगोश के साथ कुँए की ओर। कुँए के पास आकर पूछा, 'कहाँ है वह शेर?' खरगोश ने कहा, 'कुँए में झाँककर देखिए।' शेर ने कुँए में झाँका तो वहाँ सचमुच ही एक शेर दिखाई दे रहा था। बावला शेर जोर से दहाड़ा, अंदर से दूनी ध्वनि से दहाड़ वापस आई। क्रोधी क्रोधी को देखकर अपने पंजे गाड़ देना चाहता है। शेर ने आव देखा न ताव, एक ही छलांग में कुँए के अंदर जा पहुँचा। शेर कुँए में गिर पड़ा। खरगोश बाहर बैठा तालियाँ बजा रहा था। कहते हैं कि जंगल के सारे जानवर इकट्ठे हुए और खरगोश से पूछा, 'क्या बात है? दोपहर बीतने को आ गई है और तुम अभी तक शेर के पास नहीं पहुँचे? अब वह बहुत क्रोधित होगा और कल बहुत सारे जानवरों का शिकार कर डालेगा।' खरगोश अपने सभी मित्र जानवरों को कुँए के पास ले गया और बोला, 'जरा इसमें झाँककर तो देखो।' कुँए के पानी में एक लाश तैर रही थी। वह लाश एक सबल, समर्थ, सशक्त, बलवान शेर की थी जिसे कोई परास्त नहीं कर सकता था। मनुष्य अपने मनोबल का प्रयोग कर जीवन की हर समस्या का समाधान कर सकता है। महावीर हों या बुद्ध, राम हों या रहीम, कृष्ण हों या कबीरचाहे जैसे अवतार पुरुष क्यों न रहे हों अथवा शेक्सपीयर हो या मैक्समूलर, नोबल हो या नेल्सन, गांधी हो या गोर्बाचोब, कौन व्यक्ति ऐसा है जिसने बिना मनोबल और आत्म-विश्वास के जीवन में कामयाबी पाई हो। टाटा, बिरला या अंबानी हों, विद्यार्थी हों या व्यापारी, कर्मचारी होंया अधिकारी, राजनीतिज्ञ हों या खिलाड़ी, हर किसी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने का मूल आधार व्यक्ति का अपना मनोबल है। मनोबल को ही दूसरे शब्दों में आत्म-विश्वास कहा जाता है। आत्म-विश्वास हमारे जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है। यह मानसिक शक्ति भी है और आध्यात्मिक शक्ति भी। आत्म-विश्वास ही प्रगति की सीढ़ी है। कामयाबी की मंजिलों तक ले जाने वाला भी आत्म-विश्वास ही है। अगर हम चाहें तो अपने आत्म-विश्वास को, हिम्मत और साहस को मजबूत रखकर वाह! ज़िन्दगी ६६ For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मौत को भी शिकस्त दे सकते हैं। ____ मैंने सुना है कि एक ट्रक में दूध के केन रखे हुए थे। दूध मालिक ने दो केन खोलकर उनके फैट की जांच की तो पाया कि ठीक है। लेकिन तभी कहीं से उछलते हुए दो मेंढक आए और एक-एक केन में गिर पड़े। मालिक देख न पाया और उसने ढक्कन लगा दिए। एक मेंढ़क ने सोचा, 'अरे, ढक्कन तो बंद हो गया, अब मैं बाहर कैसे निकलूँ?' वह इधर से उधर आया गया पर बाहर निकलने का रास्ता न मिला। वह उदास होने लगा कि 'हे भगवान, अब मैं कैसे बाहर निकलूँ? हे भगवान, मुझे बचाओ। धीरे-धीरे उसे लगा कि अब तो वह मरेगा ही क्योंकि वह पानी में तैर सकता है पर दूध में नहीं। मेंढ़क डूबता चला गया और अन्तत: मर ही गया। उधर दूसरे मेंढ़क की भी यही स्थिति थी, पर उसने हार न मानी। वह लगातार दूध में उछल-कूद करता रहा। इधर से उधर पाँव चलाता रहा, दूध में धीरे-धीरे क्रीम ऊपर आने लगा। क्रीम की ढेरी बन गई और मेंढक उस पर जा बैठा। ट्रक जब अपने गंतव्य पर पहुँचा तो केनों के ढक्कन खोले गये। एक केन में से मरा हुआ मेंढक निकला और दूसरे केन में गिरा हुआ मेंढक छलांग लगाकर बाहर निकल गया। अगर हममें हिम्मत है तो बेड़ा पार है और अगर हिम्मत ही टूट गई, आम-विश्वास ही डगमगा गया तो असमय ही मृत्यु हो सकती है। सफलता के रास्तों पर चलने के बावजूद असफलता मिलना तय है। लोग आठ-आठ उपवास करते हैं। आखिर, किसके बल पर? हिम्मत के बल पर। तन के बल पर क्या आठ दिन भूखा रहा जा सकता है? एक महीने का उपवास करना तो प्रकृति के नियम के बिल्कुल विपरीत है फिर भी आप लोग किस ताकत के बल पर एक महीने का उपवास कर लेते हैं ? मैं कहूँगा, अपने मनोबल के सहारे।' इसलिए कहा करता हूँ-'निर्बल का बल राम है तो राम का बल मनोबल।' आत्म-विश्वास ही राम की शक्ति है। राम में इतनी ताक़त न थी कि वे रावण को हरा सकें। बंदरों के बल पर क्या रावण से टक्कर ली जा सकती थी? देवताओं को पसीना आ जाता था दैत्यों से लड़ने में। रावण तो इंद्र जैसों को आत्मविश्वास जगाएँ, असंभव का 'अ' हटाएँ For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बगल में दबा लेता था । दैत्यों के सामने तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी कमज़ोर पड़ जाते हैं। ऐसे दैत्यों को परास्त करना हँसी-खेल नहीं है। राम ने ईश्वरीय शक्ति के बल पर कम, किन्तु अपने आत्म-विश्वास के बल पर ही रावण पर विजय प्राप्त की थी। जो भी अपने जीवन में सफल और कामयाब हुआ है, निश्चित ही उसने अपने जीवन के साथ कुछ बुनियादी बातें जोड़ी होंगी। यह न समझें कि प्रारब्ध ही जीवन का परिणाम देता है । मैं ऐसे प्रारब्ध में विश्वास रखता हूँ जिसे हासिल कराने के लिए व्यक्ति पुरुषार्थ करे । जब तक तदबीर नहीं होगी, तक़दीर क्या परिणाम देगी ? कीड़ी को कण के लिए और हाथी को मण के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। शेर अगर गुफा बैठे-बैठे सोचे कि शिकार आ जाएगा तो सावधान ! शिकार तो नहीं आएगा बल्कि कोई तेज-तर्रार खरगोश वहाँ पहुँच जाएगा जो उसकी मौत का कारण बन जाए । व्यक्ति अपने आत्म-विश्वास को जाग्रत करके अपने जीवन में नई दिशाएँ पा सकता है। मैं आपके ही नगर (भीलवाड़ा) के एक व्यक्ति का नाम लेना चाहूँगा, इसलिए कि आप सभी को उससे प्रेरणा मिल सके। वह व्यक्ति है संगम ग्रुप के मालिक सोनीजी । मुझे बताया गया कि संगम ग्रुप का मालिक एक दिन ऐसी स्थिति में था कि वह जिस मकान में रहता था, उसका २५ रु. महीना किराया देना उसके लिए बहुत बड़ी बात होती थी । लेकिन वही व्यक्ति आज सम्पन्नता की ऊँचाइयों को छू रहा है। आखिर वे क्या कारण होंगे जिनसे व्यक्ति ऊँचाइयों को हासिल करता है? कोलम्बस जो भारत की खोज के लिए निकला था, सात समुद्र पार करते-करते अमेरिका पहुँच गया। यह बात अलग है कि वह निकला तो था भारत की खोज के लिए, पर पहुँच गया अमेरिका । पर वह क्या ताक़त थी जिसके बल पर सात महासागरों को पार करके वह अनुसंधान करना चाहता था । वह आत्म-विश्वास है उसका कि जाऊँगा और ऐसे देश की खोज करके आऊँगा। पीयरे ने उत्तरी ध्रुव की खोज की थी इसी आत्म-विश्वास के बल पर। एडीसन जिसने बल्ब का आविष्कार किया और संसार को रोशनी से भर दिया, प्रारम्भ में वह हजारों बार असफल होता रहा । आशा, विश्वास और वाह ! ज़िन्दगी ६८ For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्साह से भरे लोग तारों के रहस्य को भी खोज निकालते हैं, वहीं निराशावादी लोग एक नया दरवाजा भी नहीं खोल पाते । हर सफलता के पीछे असफलता की कहानी छिपी होती है। जो असफल होकर मनोबल गिरा देता है, वह फिर अगला क़दम नहीं उठा पाता । अरे, जिंदगी तो एक जुआ है, जिसमें आदमी को तब तक चैन से नहीं बैठना चाहिए जब तक वह अपने लक्ष्य को हासिल न कर ले। आत्म-विश्वास से ही व्यक्ति को लक्ष्य निर्धारण की क्षमता उपलब्ध होती है। आत्म-विश्वास से ही किसी बिंदु पर निर्णय लेने की ताक़त उपलब्ध होती है । जिन्हें स्वयं पर विश्वास नहीं होता, वे ही दूसरों के भरोसे चलते हैं। उन्हें दूसरों के सहारे पर चलने के लिए मज़बूर होना पड़ता है। जिसका अपने आप पर यकीन होता है, वह अपनी अन्तर् आत्मा की आवाज़ को ईश्वर की प्रेरणा मानता है । 1 9 - जिसके पास आत्म-विश्वास है, वही परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होता है। अन्यथा छोटी-सी समस्या आने पर 'हे भगवान्, हे भगवान्, रामजी, हे भोलेनाथजी, हे हनुमानजी न जाने कितने-कितने संकट मोचकों को वह याद कर लेता है। अरे, भगवान ने तुम्हें बुद्धि दी है, दो-दो हाथ दिए हैं, तुम्हें कार्य करने की क्षमता दी है, समस्याओं का सामना करने के लिए बौद्धिक प्रतिभा दी है। तुम दूसरों के सामने नाक रगड़ने और गिड़गिड़ाने के बजाय स्वयं की मानसिक शक्तियों पर विश्वास रखते हुए उनका उपयोग करो । ईश्वर के प्रति तो केवल कृतज्ञता रहे कि प्रभु तूने मुझे बहुत कुछ दिया है। उसकी कृपा तो देखो कि एक पेट को भरने के लिए दो हाथ दिए हैं। प्रकृति की व्यवस्था तो देखो कि अगर एक असफल हो जाए तो दूसरा उसकी मदद कर सके। यह सब मानसिकता पर निर्भर है। एक आदमी तभी तक उदास रहता है जब तक उसके पास खाने को रोटी न हो, पहनने को वस्त्र न हों, लेकिन जब उसकी निगाह पड़ोस में झोंपड़पट्टी की ओर जाती है तो उसे ईश्वर का कृतज्ञ हो जाना चाहिए कि उसने पड़ौसी को झोपड़-पट्टी दी और उसे पक्का मकान दिया है। हो सकता है कि तुम अपने पांव में जूते न देखकर उदासीन हो जाते होगे पर यदि तुम रास्ते से गुजरते हुए किसी अपाहिज, विकलांग को देख लोगे आत्मविश्वास जगाएँ, असंभव का 'अ' हटाएँ - For Personal & Private Use Only ६९ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो तुम्हारा आत्म-विश्वास लौट आएगा। अरे, उसके पास तो पाँव भी नहीं हैं, जबकि मेरे पास पाँव तो हैं। जूते न हुए तो क्या हुआ, पाँव तो हैं अभी तक। हम अपने मन को और उसकी मानसिक शक्ति को पहचानें। आत्मविश्वास जाग्रत करके अपने मन की धाराओं को दुरुस्त कीजिए। प्रत्येक कार्य को उत्साहपूर्वक सम्पन्न कीजिए। किसी भी कार्य को टूटे हुए मन से, बोझिल मन से मत कीजिए। हर कार्य को उत्साह, उमंग और ऊर्जा से सम्पन्न कीजिए। यह उत्साह भरा रहे कि भाग्य साथ दे या न दे लेकिन जब तक आपके अंदर ताकत है, उस अंतिम क्षण तक मेहनत करते रहें। आपके मन की बेहतर दशा कार्य को बेहतर बनाती है। आप आईने में अपना उदास चेहरा देखकर आईना ही बदल देते हो पर आईनों को बदलने से कुछ न होगा। आपको अपना चेहरा ही बदलना होगा। थोड़ी खुशी, थोड़ा विश्वास जगाना होगा। अपने मन को प्रसन्नता, उत्साह, उमंग से भरा हुआ बना लो तो यही समझ लो कि आईना अपने आप बदल गया। ____ उत्साह के साथ प्रत्येक काम कीजिए। व्यापारी हैं तो उत्साह से व्यापार कीजिए। धर्म-आराधना, तपस्या भी उत्साह के साथ कीजिए। अगर विद्यार्थी हैं तो उत्साहपूर्वक विद्यार्जन कीजिए। ताश के पत्ते जेब में रखने के लिए नहीं होते। उन्हें खेलिये भी। आप पाएंगे कि जो सफलता अभी तक आपके इर्दगिर्द घूमती थी, वह अब चौगुनी आनी शुरू हो गई है। जिंदगी में किसी भी काम को छोटा न समझें। कोई भी काम छोटा नहीं होता। अगर झाडू-पौंछा भी करो तो भी इतनी सफाई से करो कि अगर कहीं वहाँ पर भगवान भी आ जाएँ तो उन्हें भी आपके घर में रहने की इच्छा हो जाए। काम को छोटा-बड़ा समझने के कारण ही हमारे देश में इतनी बेरोजगारी है। काम तो बस काम है। उत्साहपूर्वक किया गया कार्य व्यक्ति की सफलता का द्वार बन जाता है। बोझिल मन से किया गया काम ही बंधन की बेड़ी बना करता है। ___ मन की दशा को अगर ठीक कर लिया जाए तो आप उत्साहपूर्वक, आत्म-विश्वास से लबरेज होकर करने पर छोटे से छोटे काम भी बड़े-से-बड़े परिणाम देने में समर्थ हो जाएँगे। आप उत्साहपूर्वक काम करने की कोशिश करें इसलिए मैं कहा करता हूँ कि जब भी आप सुबह उठे, जी भरकर मुस्कराएँ, वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंग-अंग से मुस्कराएँ। क्यों? ऐसा क्यों? अगर आप अपने भीतर प्रसन्नता संचारित करेंगे तो आप में उत्साह जाग्रत होगा। बुझे हुए मन से दिन का प्रारम्भ करने से सारे दिन उदासी ही छाई रहती है। बुखार आ जाने पर भी तबीयत में उत्साह भरा रहे तो आप पाएँगे कि तत्काल ही आपकी मनोदशा बेहतर हो गई एक प्रयोग करते हैं। माना कि किसी ने आपका अपमान कर दिया या आपको कटु वचन कह दिये। उस वक्त आप बिना कोई प्रतिक्रिया प्रकट किये धैर्यपूर्वक उसकी बात को सुन लीजिएगा और तत्काल अपने भीतर अपनी अन्तर्दृष्टि लेते हुए अपने तन-मन में उत्साह और ताज़गी का संचार कर लें और ताज़गी से भर जाएँ। आप पाएँगे कि आपकी बुद्धि बेहतर हो गई है। आप उस अपमान का जवाब भी सम्मान से देंगे। मैं ऐसे प्रयोग करता रहता हूँ इसलिए किसी की भी अपमानजनक टिप्पणी सुनकर मुझे गुस्सा नहीं आता, बुरा नहीं लगता। एक बात और, आत्म-विश्वास को पाने के लिए उस ईश्वर पर विश्वास अवश्य रखें जिसने आपको जीवन दिया है। मेरी दृढ़ आस्था है कि जो ईश्वर पर विश्वास करता है, वह हर विपरीत परिस्थिति का सामना करने में समर्थ होता है। निन्यानवें द्वार बंद हो जाने पर भी वह एक द्वार तुम्हारे लिए ज़रूर खोल देगा। आप निराश न हों। और कल की नसोचें। यह तो वही सोचेगा जो आनेवाला कल हमें देगा। अगर हम कल की सोचेंगे तो होगा भी क्या, अगर उसके दरवाजे पर हमारे लिए आनेवाला कल लिखा ही न हो। ___सारे कार्यविश्वासपूर्वक करें। असफलता मिले तो धैर्य न खोएँ।आत्मविश्वास सफलता के द्वार खोलता है। धैर्यवान व्यक्ति बार-बार असफल होने के बावजूद अंतत: सफलता का हक़दार बनता है। मृत्यु से घबराएं नहीं क्योंकि जिंदगी में मौत दो बार नहीं आया करती। वक्त से पहले मौत आती ही नहीं है और आने के बाद वह वापस नहीं जाती। जब प्रकृति की इतनी पुख्ता व्यवस्थाएँ हैं हमारे जीवन के लिए तो फिर मन को बोझिल क्यों किया जाए? निराश क्यों हुआ जाए? अपने मनोबल को क्यों तोड़ा जाए? अपने नज़रिये को ऊंचा ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी ७१ For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उठाएँ, लक्ष्य को बेहतर बनाएँ, कठोर श्रम करें। जिस क्षेत्र में आप प्रवेश करेंगे, वहाँ आपको सफलता अवश्य मिलेगी । दृढ़ इच्छा शक्ति रखकर ही बाधाओं पर विजय पाई जा सकती है । सकारात्मक सोच हमारे भीतर आशा का संचार करती है। जो भी कार्य करना हो उसका लक्ष्य निर्धारित कर लीजिए। इसके अनुरूप योजना बनाइए और प्रसन्नता, उत्साह एवं आत्मबल से आगे बढ़िए। दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़िए, सफलता जरूर मिलेगी। बदलें जीवन - धारा । सही सोच हो, सही दृष्टि हो, सही हो कर्म हमारा । बदलें जीवन - धारा । । बेहतर लक्ष्य बनायें अपना, ऊँचाई छू लें | भले न पहुँचें आसमान तक, मगर शिखर को छू लें। शांति और विश्वास लिए हम, दूर करें अंधियारा ॥ बदलें जीवन - धारा ॥ - मन की शक्ति रखें सुरक्षित, ऐसे स्वप्न सजायें । प्रगति के जो दीप जलाएँ, वही दृष्टि अपनायें । बेहतर रखें नज़रिया अपना, बेहतर क़दम हमारा ॥ बदलें जीवन - धारा ॥ मेहनत को हम दीप बनाएँ, लगन को समझें ज्योति । पत्थर में से हीरा जन्मे, और सागर में मोती । बाधाओं से डरना कैसा, मिलता स्वयं किनारा ॥ बदलें जीवन - धारा ॥ कर्म स्वयं ही बने प्रार्थना, बल हो नैतिकता का । सबसे प्रेम, सभी की सेवा, धर्म हो मानवता का । 'चन्द्र' धरा को स्वर्ग बनाएँ, घर-घर हो उजियारा ॥ बदलें जीवन - धारा ॥ जीवन की धारा को बदलें । ओनामी का उदाहरण याद करें। क्षमता तो आप सब में है, आवश्यकता है केवल आत्मविश्वास को आत्मसात् करने ७२ वाह ! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की। 'यू आर ए ग्रेट वेव्ज़।' तुम एक महातरंग हो, सागर की, सफलता की महातरंग। खुद को पहचानो, खुद की पहचान करो। खुद को समझो, खुद को समझाओ। तुम में अनन्त संभावनाएँ हैं। विश्वासपूर्वक क़दम उठाओ। पहली बार में नहीं तो दूसरी बार में, दूसरी बार में नहीं तो तीसरी बार में सफलता के एवरेस्ट पर पहुँच ही जाओगे, वैसे ही जैसे कभी हिलेरी पहुंचा, तेनजिंग पहुंचा। ००० ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी ७३ For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाह ! ज़िन्दगी ऐसे मिटेगी, देश की गरीबी "गरीबी अभिशाप है। आप अभिशप्त जीवन जीने को क्यों मजबूर हैं? ऊँचे लक्ष्य बनाइये और उम्दा मेहनत कीजिए। आज नहीं तो कल, मेहनत अवश्य रंग लाएगी।" जिज्ञासा-समाधान पहला प्रश्न है : देश की गरीबी धर्म-नीति के द्वारा कैसे दूर हो सकती है? (पं. प्रमोदराय आचार्य) भारतीय संस्कृति ने मानवीय जीवन की सफलता और समृद्धि के लिए चार तरह के पुरुषार्थ करने पर जोर दिया है-(१) धर्म, (२) अर्थ (३) काम और (४) मोक्ष। जीवन की सम्पूर्णता के लिए ये चार पुरुषार्थ आधारभूत स्तंभ हैं जिन पर भारतीय संस्कृति केन्द्रित है। न केवल देश के लिए बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए गरीबी अभिशाप है। हमारे देश की संस्कृति ने अर्थ के लिए पुरुषार्थ की प्रेरणा देते हुए इस बात पर सबसे अधिक जोर दिया है कि प्रत्येक नागरिक अधिसंपन्न हो। मैं अपनी ओर से अपरिग्रह का समर्थन अवश्य करूँगा, लेकिन मैं ऐसे अपरिग्रह पर विश्वास रखता हूँ जिसे सम्पन्नता की मौलिक समझ के साथ स्वीकार किया जाये। गरीब व्यक्ति के लिए संतोष या अपरिग्रह ७४ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धारण करना किसी मज़बूरी का परिणाम हो सकता है, पर उसकी समझ का परिणाम वह तभी निकल पाएगा जब पहले वह सम्पन्न हो और तब त्याग के मार्ग को अपनाये। ___ गरीब के लिए संतोष खतरनाक है और अमीर के लिए संतोष उसके जीवन की शांति और सम्पूर्णता के लिए सहयोगी है। गरीब आदमी अगर संतोष धारण कर लेगा तो अपने जीवन की ऊँचाइयों को छूने से वंचित रह जाएगा। अमीर आदमी अगर व्यर्थ की लालसाओं में पड़कर जीवन के अंतिम चरण तक भी पैसा ही पैसा करता रहा तो यह भी उसके लिए हानिकारक हो जाएगा। जो मार्ग गरीब के लिए हानिकारक है, वही मार्ग अमीर के लिए फायदेमंद है। जो मार्ग अमीर के लिए हानिकारक है, वही मार्ग गरीब के लिए फायदेमंद हो जाता है। धरती पर रहने वाले हर व्यक्ति को अर्थ के लिए प्रयास और पुरुषार्थ अवश्य करने चाहिए। गरीबी काम की नहीं है। हरेक को सम्पन्न होना ही चाहिए। अगर प्रश्नकर्ता का अभिप्राय धर्म-नीति से गरीबी को दूर करना हो तो मैं कह देना चाहूँगा कि अकेले धर्म-नीति से गरीबी को दूर नहीं किया जा सकता। धर्म एक पुरुषार्थ है लेकिन एकमात्र पुरुषार्थ नहीं है। धर्मनीति के द्वारा अर्थ-पुरुषार्थ पर अंकुश तो लगाया जा सकता है, पर अर्थ-पुरुषार्थ के लिए एकमात्र धर्म-नीति ही काम नहीं आ सकती। दुनिया की गरीबी को मिटाने के लिए कभी मार्क्स और लेनिन जैसे लोगों ने साम्यवाद की स्थापना की थी जिसका दृष्टिकोण यह था कि गरीब और अमीर एक समान रहें और समाज में समानताआजाए। लेकिन उनका यह दृष्टिकोण असफल हो गया है। साम्यवाद के जनक माने जाने वाले देश के टुकड़े हो चुके हैं। अर्थ के आधार पर देश का स्वरूप बनाना चाहा, लेकिन देश विभाजित हो गया। इसलिए केवल धर्म ही नहीं बल्कि अर्थ भी, और अर्थ ही नहीं, धर्म भी समानान्तर रूप से कार्य करें। धर्मपूर्वक अर्थ कमाया जाए और अर्थ अर्जित करते हुए भी व्यक्ति धर्म का पवित्र विवेकरखे। प्रकृति के द्वारा हरेक को खंडप्रस्थ दिया जाता है जिसकी चुनौती यही है कि इस खंडप्रस्थ को इन्द्रप्रथ में कैसे तब्दील किया जाए। देश की गरीबी को दूर करने के लिए बुनियादी जरूरत तो यह है कि ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी ७५ For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रामीण और आदिवासी जनता को शिक्षित किया जाए। जैसे-जैसे इस देश में पिछले पचास वर्षों में शिक्षा का विकास हुआ है, वैसे-वैसे गरीबी कम-कमकम हुई है। कोई आज की दशा पर संतोष करे या न करे लेकिन जिसने भी चालीस साल पहले की ज़िंदगी देखी हो, वह भली-भाँति जानता है कि उसके लिए पाँच रुपये का खर्च करना कठिन होता था लेकिन आज व्यक्ति पांच सौ रुपये आसानी से खर्च कर देता है। उसकी क्रयशक्ति बढ़ गई है। देश की अर्थव्यवस्थाएँ बदली हैं, उसके तौर-तरीके बदले हैं और विकास के चहुंमुखी द्वार खुले हैं। माना कि गरीबी आज भी है पर पहले की तुलना में कम है। पहले मिट्टी की कच्ची सड़कें होती थीं। अगर कोई भीलवाड़ा के राजमार्ग से गुजरेगा तो वह पाएगा कि यहाँ के राजमार्ग अब पगडंडियाँ नहीं रहे। वे विशाल राजमार्ग बन चुके हैं। पहले झोंपड़पट्टी में रहने के लिए हर आदमी मज़बूर था लेकिन अब तीस प्रतिशत जनता बमुश्किल झोपड़पट्टी में रहती होगी। गाँव-गाँव में पक्के मकान बन गए हैं और संचार-क्रांति हुई है। गाँव-गाँव में फोन और मोबाइल पहुँच चुके हैं। रेडियो, ट्रांजिस्टर तो पुराने युग की बात हो गई है। अब तो दूरदर्शन ने अपनी पहुँच बना ली है और ई-मेल और इंटरनेट का युग आ गया है। गाँव-गाँव में विद्यालय हैं और महाविद्यालय, तकनीकी संस्थान तक खुल रहे हैं। शासन और प्रशासन भी जागरूक हैं। ____ जब तक ग्रामीण जनता शिक्षित न होगी और जागरूक होकर अपने पिछड़ेपन का त्याग नहीं करेगी तब तक गरीबी दूर न हो सकेगी। मैं कहना चाहूँगा कि प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों को श्रेष्ठ शिक्षा दें। लड़के-लड़की में भेद न करके लड़कियों को भी समानता का अधिकार दें। उन्हें उच्च शिक्षा दिलायें। जिन लड़कियों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है, वे अवसर मिलने पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर सकी हैं। यद्यपि यह संख्या न्यून है फिर भी लड़कियों ने अपनी योग्यता से लड़कों को पीछे छोड़ दिया है। पिछले पच्चीस सौ वर्षों से यदि नारी जाति को शिक्षित करने के प्रयास किये जाते तो यह देश आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुका होता। अभी तक तो केवल पुरुषों की ही भागीदारी रही है लेकिन पिछले वर्षों से नारी जाति भी आर्थिक समृद्धि में सहयोगी के रूप में उभरी है। हर माता-पिता अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाए ताकि पुरुष जाति वाह! ज़िन्दगी ७६ For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब नारी का और अधिक दमन न कर सके। ___ मैं चाहता हूँ कि आदिवासी, जन-जाति और ग्रामीण जनता को शिक्षित करने पर सर्वाधिक ध्यान दिया जाए। दूसरी बात कहूँगा कि न केवल शिक्षित किया जाय बल्कि उसे हुनर भी सिखाए जाएँ। ऐसी हस्त-कला, शिल्प या लोक-कला जरूर सिखाई जाए कि वह अपनी जीविका खुद चला सके। हरेक के लिए संभव नहीं है कि वह सरकारी नौकरी पाने में सफल हो जाए और न ही सरकार इतने अवसर उपलब्ध करा सकती है कि सभी को नौकरी मिल जाए। इसलिए शिक्षा रोजगार-मूलक होनी चाहिए। हाथ का हुनर सिखाया जाए। केवल कम्प्यूटर चलाना ही न सिखाया जाए बल्कि उसे कैसे ठीक किया जा सकता है, यह भी सीखें। कारपेन्टरी सीखें, हरेक को शिक्षा के साथ कोई-नकोई हुनर अवश्य आना ही चाहिए। सीखें और सिखाएँ भी। गरीबी दूर करने का तीसरा उपाय है कठिन परिश्रम । यह हमारी बदकिस्मती है कि हम बच्चों को पढ़ने की प्रेरणा तो देते हैं लेकिन मेहनत करने की प्रेरणा देने में असफल रहते हैं। जो लोग अपने बच्चों को मेहनत करना नहीं सिखा पाते, वे उनके पाँवों को कमज़ोर कर देते हैं। बड़े होने पर ऐसे बच्चे परिश्रम नहीं कर पाते। उनकी संघर्ष-क्षमता कम हो जाती है। परिणामस्वरूप उन्हें असफलताओं का सामना करना पड़ता है। अगर आप लड़की हैं तो माँ के काम में सहयोग करें, पुत्र हैं तो अपने कपड़े खुद धोयें। शिक्षा केवल यह नहीं सिखाती कि आप चौबीस घंटे पढ़ाई करते रहें बल्कि वह तो यह सिखाती है कि आप अपने कार्य करने में स्वयं समर्थ बनें। ____ जब आप दुकान जाएँ तो अपने पुत्र से भी कहें कि वह दुकान में आए। उससे कहें कि जब वह स्कूल से लौट आए तो शाम के समय दो घण्टे दुकान पर आकर बैठे। ऐसा करने से बच्चा आपके व्यापार से वाकिफ़ होगा। बच्चों को अपना काम खुद करना सिखाएँ। उन्हें ऐसा पौधा न बनाएँ कि जिनमें पानी दिया जाए तो ही वह पल्लवित हो। उसे तो जंगल का ऐसा पौधा बनाएँ जिसे कोई पानी देने वाला न पहुंचे तब भी वह कुदरत से अपने पानी की व्यवस्था खुद कर ले। देश की गरीबी केवल बातें कर लेने से दूर न होगी। बच्चे को आम खाने ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी ७७ For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की इच्छा हो रही है तो उसे छीलना, काटना सिखायें। वह खुद भी सुधार कर खाएगा और आपको भी खिलाएगा अन्यथा जीवन भर आपको बच्चे की गुलामी करनी पड़ेगी। बच्चे को समर्थ बनाएँ, मेहनती बनाएँ। कंधे-कंधे मिले हुए हैं, कदम-कदम के साथ हैं, पेट करोड़ों भरने हैं, पर उनसे दुगुने हाथ हैं। ऊँचे लक्ष्य बनाओ, ऊँचे सपने देखो और सपनों को पूरा करने के लिए कठोर परिश्रम करो। जिंदगी में कोई सफलता मुफ्त में नहीं मिलती। चंदा भले ही मिल जाए, पर धंधा नहीं मिल सकता। धंधा करने के लिए तो परिश्रम करना ही होगा। बिना मेहनत के देश की गरीबी तो क्या, घर की गरीबी भी दूर नहोगी। मैंने सुना है : एक रेस्टॉरेन्ट में एक व्यक्ति पहुँचा। वहाँ के मैनेजर ने पूछा 'तुम कौन सा भोजन करना चाहोगे, शाकाहारी या मांसाहारी?' उसने सोचा 'रोज तो शाकाहारी भोजन करता हूँ, आज मांसाहारी भोजन ही कर लूँ।' उसे एक टिकिट दिया गया और कहा, 'आप ऊपर चले जाइए।' अर पहुँचा तो हॉल में एक आदमी और मिल गया। उसने पूछा, 'आप खाना खाने तो आए हैं, पर बैठकर खाना पसंद करेंगे या खड़े-खड़े?' उसने सोचा, घर में तो रोज बैठकर ही खाता हूँ आज बुफे का मज़ा भी ले लूँ,खड़े होकर ही खा लेता है।' उस व्यक्ति ने उसे एक पर्ची और दे दी और कहा, 'आप दाहिने हाथ वाले रूम में चले जाइए। वहाँ खड़े-खड़े खाने की व्यवस्था है। जब वह उस रूम में पहुँचा तो एक आदमी इधर भी मिल गया। उसने पूछा, 'साब नगद देकर खाएँगे या उधार रखकर।' आदमी ने सोचा, नकद देकर तो रोज ही खाता हूँ। आज उधार वालों में खा लेता हूँ। उस बंदे ने एक पर्ची और थमाई और कहा, भाई। यह जो सामने वाला गेट है, उसमें से अंदर चले जाओ।' गेट पार कर जब वहाँ पहुंचा तो देखा कि वहाँ तो सीढ़ियाँ हैं। उन सीढ़ियों से उतर कर नीचे पहुँचा तो उसने पाया कि वह तो सड़क पर पहुंच चुका है। ___मुफ़्त का खाना चाहोगे तो ऐसा ही होगा। दुनिया में किसी को भी मुफ्त में कुछ नहीं मिलता है। व्यक्ति को कठिन परिश्रम करने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। चौथी बात कहूँगा कि प्रशासन लघु उद्योगों, घरेलू उद्योगों को ७८ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विकसित करने के लिए अधिक से अधिक प्रोत्साहन दे। लघु एवं घरेलू उद्योगों को करमुक्त किया जाए। उनके लिए ऋण भी प्रदान करे और कम ब्याज पर ऋण दे। ये छोटे उद्योग व्यक्ति को आत्म-निर्भर बनाएँगे। सरकार बड़े उद्योगों के लिए तो ऋण प्रदान करती है, ज़मीन देती है। आदमी फिर उन कम्पनियों में नौकरी करने के लिए मजबूर हो गया न? माना कि एक कम्पनी के बनाने से दो हजार लोगों को रोजगार मिलता है, लेकिन जिस दिन वह कम्पनी बंद हो जाए तो दो हजार लोगों के परिवार बदहाल स्थिति में आ जाएँगे। ऐसी स्थिति में यह ज़रूरी है कि लोगों को प्रोत्साहन दिया जाए। अगर दो हजार लोगों को ऋण दिया गया और उनमें से दो सौ लोग असफल भी हो गए तो अठारह सौ लोग अपने पाँवों पर खड़े हो ही जाएँगे। अगर आप चाहते हैं कि धर्म-नीति द्वारा देश की गरीबी कैसे दूर की जाए? तो मैं आपको बताना चाहूँगा कि धर्म-नीति यह प्रेरणा देती है कि वह एक संविभाग अवश्य करे। महावीर और गांधी ने अपरिग्रह का सिद्धांत दिया था। व्यक्ति परिग्रह न करे, उससे दूर रहे। जहाँ तक मैं देखता हूँ महावीर का यह सिद्धान्त समाज पर पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया। इसी सिद्धान्त से प्रेरणा लेकर मार्क्स और लेनिन जैसे लोगों ने साम्यवाद की स्थापना की थी। फिर भी जो आदमी अमीर है, वह अमीर है और जो गरीब है, वह गरीब है। इसलिए मैं कहना चाहूँगा कि मानवता को सहयोग देने के लिए एक हिस्सा जरूर निकालें। हर व्यक्ति पर समाज का और मानवता का ऋण है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि अपनी आय का ढाई प्रतिशत ज़रूर अलग निकाल दें। हर व्यक्ति जाने-अनजाने कुछ कमाई ऐसी ज़रूर ही करता है जो नैतिकता और ईमानदारी से नहीं होती है। इस रूप में वह मानवता का शोषण ही करता है। हम पर इस शोषण का पाप न चढ़े, इसके लिए एक संविभागअवश्य निकालिए। ___ अपने प्रारब्ध और पुरुषार्थ से हम जितना अर्जित करते हैं, उसका एक हिस्सा माता-पिता को, एक हिस्सा पत्नी और बच्चों के लिए, एक हिस्सा स्वयं के लिए और एक हिस्सा परोपकार, सेवाकार्य के लिए खर्च करें। अगर गरीबी हटाना है, अहिंसा और मैत्री धर्म को जीना है तो हर समृद्ध व्यक्ति एक गरीब आदमी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गोद ले। किसी को देना नहीं ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है बल्कि अपने हाथ से खर्च करना है। अगर आर्थिक रूप से आप अधिक सक्षम नहीं हैं तो आप अपनी जिस कला में, फन में माहिर हैं या शिक्षा में रुचि रखते हैं तो किसी एक को एक वर्ष में अपने फन से शिक्षित अवश्य कराएँ। बच्चों को, बड़ों को जिसको भी सिखा सकते है, आप ज़रूर सिखायें। जब आप किसी को सिखाते हैं तो अनायास ही आप उसके गुरु हो जाते हैं। पारस्परिक सौजन्य से भी हम गरीबी को दूर कर सकते हैं। अपंग, विकलांग और दृष्टिहीन भी कुछ-न-कुछ करने में समर्थ हैं। एक प्यारी-सी घटना है। ____एक पोस्टमैन किसी एक घर के दरवाजे पर दस्तक देता है और कहता है, 'बेबी, तुम्हारे नाम की चिट्ठी आई है, उसे ले लो। बेबी ने कहा, 'आई।' तीन-चार मिनट तक कोई न आया तो डाकिया फिर चिल्लाया, 'अरे भाई, मकान में कोई है क्या, अपनी चिट्ठी ले लो।' आवाज सुनकर लड़की को लगा कि ज़रूर यह कोई नया डाकिया आया है जिसे कुछ पता नहीं है। उसने कहा, 'डाकिया साहब, दरवाजे के नीचे से अंदर चिट्ठी डाल दीजिए, मैं आ रही हूँ।' डाकिये ने कहा, 'नहीं, मैं खड़ा हूँ, रजिस्टर्ड चिट्ठी है, साइन करवा के वापस ले जाना है।' वह बच्ची तेजी से चलकर आई फिर भी सात मिनिट तो लग ही गए। उसने धीरे से दरवाजा खोला। डाकिया अभी तक तो उस पर झल्लाया हुआ था लेकिन जैसे ही दरवाजा खुला, वह चौंक गया। उसने देखा कि एक अपाहिज़ कन्या जिसके दोनों पाँव ही नहीं थे, सामने खड़ी थी। डाकिया कुछ न बोला। वह चुपचाप पत्र देकर और उसके साइन लेकर चला गया। हफ़्ते, दो हफ्ते में जब कभी उस लड़की के लिए डाक आती, वह डाकिया आता, चिट्ठी के लिए एक आवाज़ देता और जब तक वह बच्ची न आती तब तक खड़ा रहता। एक दिन बच्ची ने देखा, बहुत तेज धूप पड़ रही है और डाकिया नंगे पाँव आरहा है। उसने महसूस किया कि डाकिये के पास जूते या चप्पल पहनने को नहीं हैं। दीपावली नजदीक आ रही थी। उसने सोचा कि इस दीपावली पर डाकिये को क्या इनाम दूं, क्योंकि कुछ इनाम तो जरूर देना ही है। वह सोचती रही। एक दिन डाकिया जब उसकी चिट्ठी डालकर चला गया तो वह धीरे-धीरे सीढ़ियों से उतर कर नीचे आई और जहाँ मिट्टी पर ८० वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डाकिये के पाँव के निशान बने थे, उन पर कागज़ रखकर उन पाँवों का चित्र उतार लिया। अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते लाने का आग्रह किया। उसने मिट्टी की गुल्लक में जमा किये पैसे देकर बाई से जूते मँगवा लिये। दीपावली के अगले दिन जब डाकिया आया तो उसने गली के सब लोगों से तो इनाम माँगा और सोचा कि अब इस बिटिया से तो क्या इनाम लेना? पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ। उसने दरवाजा खटखटाया, 'अरे, बिटिया, मैं आ गया हूँ।' 'कौन?' 'वही तुम्हारा डाकिया। बालिका बाहर आई और उसके हाथ में एक गिफ्ट पैक था। उसने डाकिये से कहा, 'अंकल, मैं भी आपको दीपावली पर एक भेंट देना चाहती हूँ।' डाकिये ने आश्चर्य से कहा, 'तुम, अरे तुम तो मेरे लिए बेटी के बराबर हो, तुमसे मैं गिफ्ट कैसे लूँ?' 'नहीं, डाकिया अंकल, आप मेरी इस गिफ्ट के लिए मना नहीं करें। 'ठीक है' कहते हुए डाकिये ने पैकैट ले लिया। अंकल इस पैकेट को यहाँ नहीं बल्कि घर ले जाकर खोलना। लड़की ने कहा। घर पहुँचकर डाकिये ने यह सोचते हुए कि मुझे प्यार करने वाली उस विकलांग बच्ची ने आखिर क्या दिया है, वह पैकेट खोलने लगा। पैकेट के खुलते ही वह विस्मित रह गया क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते भेंट किये गये थे। वह खुद को रोक न पाया, सीधा पोस्ट ऑफिस पहुँचा और पोस्ट मास्टर से फ़रियाद की कि तुरंत उसका ट्रांसफर कर दिया जाए। पोस्टमास्टर ने कहा, 'अचानक क्या हो गया? तुम्हारे प्रति किसी की शिकायत नहीं, हम भी तुम्हारे काम से संतुष्ट हैं, फिर क्यों तुम्हारा ट्रांसफर किया जाए ?' पोस्टमेन ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और कहा, 'आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा। उस अपाहिज़ बच्ची ने तो मेरे नंगे पाँवों को जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा?' देश की गरीबी को दूर करने का एक उपाय और है : देश में शराब के ऊपर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाए। जब तक देश में शराबरहेगी, कोई आबाद न हो सकेगा। भाग्य से अगर आबाद हो भी गए तो यह शराब हमें बर्बाद कर देगी। जिस घर में व्यक्ति शराब पीता है वह व्यक्ति तो खोखला होता ही है ऐसे मिटेगी, देश की गरीबी For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ ही साथ घर को भी खोखला कर देता है। शायद तालाब में डूबकर मरने वालों की संख्या कम होगी पर शराब की प्याली में डूबकर मरने वालों की संख्या अधिक होगी। मजदूर मेहनत करके पैसा कमाना तो चाहता है, लेकिन शराब से दूर न रह पाने के कारण वहीं का वहीं रह जाता है। वह बच्चों को पढ़ा नहीं पाता, बच्चे दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाते हैं, पत्नी चौकाबर्तन करके जो कुछ कमाती है, उसे भी वह हड़प लेता है। शराब ने लोगों के नजरिये को बदल दिया है। आज का युवा मौजमस्ती के लिए शराब पीने लगा है। धीरे-धीरे वह मस्ती व्यसन में बदल जाती है और शराब व्यक्ति को पीने लगती है। उसे शराब ही ईश्वर नजर आती है। मैं सरकारों को सलाह देना चाहूँगा कि देश के जितने भी ट्रस्ट हैं, उनकी पूंजी या आय का पच्चीस प्रतिशत हिस्सा मानव-सेवा के कार्यों के लिए अनिवार्यत: खर्च किया जाए, ऐसा अधिनियम बना दें। उन संतों और महंतों से भी, जिन्हें धन-सम्पत्ति रखने की छूट है, अनुरोध करूँगा कि वे अपने जीवन में त्याग की यशोगाथा को जोड़ते हुए मानवता की सेवा के लिए धन अर्पित करें। बैंकों में तो उनके करोड़ों रुपये जमा हैं लेकिन वे किस काम के, अगर उनका मानवता के लिए उपयोग न हो सके? अगर उनके पैसे किसी सद्गृहस्थ के पास अथवा स्वयं के पास रह कर भी किसी के शुभ कार्य के लिए नहीं हैं तो उनके उन पैसों का क्या उपयोग? दोनों ही स्थितियों में धन बेकार हो गया। फिर क्यों न उसका सदुपयोग कर लें। कोई अस्पताल, कोई विद्यालय या ऐसी कोई परोपकारी संस्था का निर्माण करवाएँ जो भले ही तुम्हारे नाम से हो तो भी उनसे कल्याण-कार्य तो हो ही जाएगा। किसी ऐसे बैंक की स्थापना की जाए जिसमें धार्मिक ट्रस्टों का पैसा जमा हो और उसमें से निर्धन व जरूरतमंद को आत्म-निर्भर बनाने के लिए पैसा दिया जा सके। हर समाज अपनी-अपनी बैंक स्थापित कर ले और अपने समाज के कल्याण व उत्थान के लिए काम करे। जब हम सामूहिक प्रयास करते हैं तो देश व समाज की विपन्नता दूर होगी और हम एक सुख-सम्पन्न देश व समाज की रचना कर सकेंगे। दूसरा प्रश्न है : इस अध्यात्म-प्रधान देश में नित्यप्रति उपदेश और पूजाअर्चना होते रहते हैं। भागवत, रामायण और गुरुग्रंथ साहब का वाचन भी ८२ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होता आ रहा है, पर इसके बावजूद दिनों-दिन आम जन-मानस का नैतिक पतन बढ़ता जा रहा है। कहते हैं कि धर्म की हानि होने पर महापुरुष का जन्म होता है, तो क्या अभी जो हिंसा का तांडव नृत्य हो रहा है, क्या यह कम है? क्या इसके और अधिक बढ़ने ही पर महापुरुष अवतार लेंगे? (बाबूलाल पानगड़िया) अगर धर्मशास्त्र यह व्यवस्था देते हों कि जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का पल्लवन होता है तब-तब भगवान धर्म की संस्थापना के लिए अवतार लिया करते हैं। यदि यह बात सच है तो मैं कहना चाहूँगा कि हमारे लिए वर्तमान संतोषप्रद है क्योंकि अभी भगवान ने अवतार नहीं लिया है। इसलिए कहा जा सकता है कि मनुष्य अभी नैतिक रूप से उतना पतित नहीं हुआ है जितनी कि ईश्वर अपने अवतार के लिए कल्पना करते हैं। इसलिए हमारा वर्तमान हमारे लिए संतोषप्रद है। ऐसा नहीं है कि पतन के दरवाजे आज ही खुले हों। सच्चाई तो यह है कि धरती पर कभी ऐसा वक्त रहा ही नहीं है जब मनुष्य के द्वारा अपनी नैतिकताओं का अतिक्रमण नहीं हुआ हो। वर्तमान तो अतीत का परिष्कार है, पुनर्संस्करण है। मनुष्य वे गलतियाँ नहीं दोहराता जो उसने अतीत में की हों। इसलिए जो वर्तमान हमें उपलब्ध है, वह बीते हुए कल का एक नया और सुधरा हुआ रूप है। मनुष्य की यह पुरानी आदत है कि वह अतीत को हमेशा गरिमापूर्ण मानता आया है और वर्तमान की हमेशा उपेक्षा करता रहा है। आखिर मनुष्य के काम तो वही आएँगे जो आज हमारे पास उपलब्ध हैं। ऐसा नहीं है कि लोग आज ही शराब पीते हों, आज ही भ्रष्टाचार करते हों, बलात्कार करते हों। अतीत में भी ऐसा होता आया है। मुझे तो लगता है अतीत आज से भी बदतर था कि समाज में नारी को हाट-बाजार में खड़ी करके सरेआम बेच दिया जाता था। इन्सान को गुलाम बनाकर ताज़िंदगी उसके साथ पशुवत् व्यवहार किया जाता था। इतना ही नहीं, एक-एक व्यक्ति के दस-बीस पत्नियाँ होती थीं। नारी का भरी सभा के बीच चीर-हरण भी होता था। आप इसे प्रतीक मानें। महाभारत, रामायण, भागवत, गुरु-ग्रंथ में आये प्रसंग और दृष्टांत भी तो प्रतीक ही हैं। उस वक्त ही जब राजसभा में चीर-हरण हो सकता था तो आम व्यक्ति की हालत क्या रही होगी? वर्तमान अपने पर गौरव करे कि आज ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी ८३ For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो उसकी स्थिति है, वह अतीत से कहीं बेहतर है। जिस अतीत को हम केवल गरिमा और महिमा बखानने के लिए आधार और आदर्श मानते हैं, मैं कहना चाहूँगा कि अतीत में गौरव अवश्य रहे होंगे, मानवजाति के लिए मील के पत्थर भी स्थापित किये गये होंगे, दीपशिखाएँ भी जलाई गई होंगी लेकिन वर्तमान ने अतीत से जो कुछ सीखकर अपने लिए नये आदर्श और नये यथार्थ स्थापित किये हैं, हमारे लिए वे ज्यादा कारगर हैं। इसलिए वर्तमान आपके लिए सुखदायी है और हम इस पर गौरव करना सीखें। हम केवल अतीत पर ही नहीं बल्कि वर्तमान पीढ़ी पर भी गौरव कायम करें। आज की पीढ़ी बहुत धार्मिक है। कोई यह कहने का पाप न करे कि वर्तमान पीढ़ी धर्मसे हट चुकी है। वर्तमान युवा पीढ़ी पुरानी पीढ़ी के दकियानूसी विचारों को, बातों को स्वीकार नहीं करती। वह जीवन के साथ वास्तविक मूल्यों को जीना चाहती है, इसलिए आपको विरोधाभास लगता है। जितना दान आज हो रहा है उतना पिछले पाँच हजार वर्षों में भी नहीं हुआ होगा। जितने अस्पताल और विद्यालयों का निर्माण आज हो रहा है, उतने कभी अतीत में नहीं बनाए गए थे। अतीत में किसी नगर में दो पाँच नगर-सेठ हआ करते थे, जो कहीं धर्मशाला, कहीं कुंआ या इसी तरह के दो-चार नेक काम आमजन के कल्याणार्थ कर देते थे। पर आज हर नगर में ऐसे सैंकड़ों नगरसेठ वैसा ही कल्याणकारी काम करते नज़र आ जाएँगे। ___जिस महिला के पास पहले दस-बीस रुपये महीना भी हाथ-खर्च नहीं हुआ करता था, आज हर महिला के पास दो-पाँच-दस हजार हाथ-खर्च का आराम से मिल सकता है। आज नारी बहुत आजाद हुई है, उसका बहुत विकास हुआ है। मानव-समाज का भी बहुत विकास हुआ है। शिक्षा, विज्ञान, सुख-साधन-समृद्धि ने इसमें मदद की है। जितना तप आज की पीढ़ी कर रही है उतनी तपस्या मेरी समझ में आज तक कभी नहीं हुई होगी। आज एक माह के उपवास और तपश्चर्या करमा लोग बाएं हाथ का खेल समझते हैं। पहले तो कोई ऋषि, मुनि, तपस्वी ही एक-एक महीने का उपवास किया करते थे किन्तु आज तो नवरात्रि के नौ दिनों तक अखंड निराहार, निर्जल उपवास करने वाले हजारों हजार लोग मिल जाएँगे। पर्युषण पर्व पर आठ-आठ दिन के उपवास ८४ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करने वाले, चातुर्मास के दरम्यान तीन-तीन दिन का 'तेला' करने वाले हजारोंलाखों लोग उपलब्ध हो जाएँगे। आप वर्तमान पीढ़ी पर गौरव करना सीखें। वर्तमान पीढ़ी को प्रोत्साहन न दिये जाने के कारण, उसे लगातार दुत्कारे के कारण ही वर्तमान पीढ़ी धर्म से दूर होती जा रही है लेकिन वह धार्मिकता से दूर नहीं हुई है। उसे लगता है कि दादी मंदिर में दो घंटे बिताती है पर घर में बहुत कंजूसी से जीती है। उसे लगता है मम्मी धार्मिक स्थानों पर जाकर तो एक घंटे तक प्रार्थना, सामायिक आदि करती है पर घर में आते ही होहल्ला शुरू कर देती है। उसे लगता है कि धर्म जीवन में आ नहीं रहा है। बच्चे को लगता है चित्त में समता रखना ज्यादा ठीक है बजाय कुछ बोलने या न बोलने के । आज गली-गली में मंदिर बन रहे हैं या मंदिर हैं। क्या आप उसे मामूली बात समझते हैं? यह मनुष्य की धार्मिकता है। जब तक भीतर में धार्मिक भावना नहीं होगी, मानवीय मूल्य न होंगे तब तक व्यक्ति जेब से पैसा निकालना पसंद नहीं करता। जब आप कहते हैं कि पूरी दुनिया स्वार्थी है तब भी कोई व्यक्ति यदि पैसा निकालकर दे रहा है तो जान लीजिए कि उसके मन में कोईन - कोई भावना जरूर है । यहाँ भीलवाड़ा में सत्संग का आयोजन चल रहा है और रोज पाँच-से-दस हजार लोग हमें सुनने आ रहे हैं। यहाँ पर कोई प्रभावना, न लड्डू की, न नारियल की, न धन की, न प्रसादी की हो रही है फिर भी लोग आते हैं और प्रेम से सुनते हैं और चले जाते हैं। यह वर्तमान पीढ़ी की धार्मिकता है। फ़र्क केवल इतना सा है कि किसी बात को जब तक तार्किकता के साथ सिद्ध नहीं किया जाएगा, कोई भी व्यक्ति धर्म की किसी भी परम्परा को मानने वाला नहीं होगा। आने वाली पीढ़ी का धर्म बिल्कुल नया होगा । उसके लिए धर्म का स्वरूप पूरी तरह से व्यावहारिक होगा। वह केवल पंथ, परम्पराओं के दुराग्रह का धर्म नहीं जिएगा। वह पूछना चाहेगा कि यह जो किया जा रहा है इसका तर्क क्या है? तुम कहोगे, ‘रात को मत खाओ ।' मान कि तुमने कहा, लेकिन यह नई पीढ़ी ऐसे नहीं मानने वाली । जब तक उसकी आवश्यकता, मानवसमाज के कल्याण के लिए उसका हेतु समझ में नहीं आएगा तब तक व्यक्ति उन बातों को नहीं जी पाएगा। लोग हमारी बातों को क्यों सुनते हैं ? क्योंकि ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी For Personal & Private Use Only ८५ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमारे पास धर्म है, पंथ नहीं? हमारे पास जीवन की शैली है, रोजमर्रा का ढर्रा नहीं। लोग जीने की कला चाहते हैं। धर्म की वे ही बुनियादी बातें समाज को दी जानी चाहिए जो जीवन जीने की कला से जुड़ी हैं। हर पंथ, परम्परा, धर्म, जाति, कौम के लोग यहाँ बैठे हैं। यह केवल समन्वय ही नहीं है अपितु यह मानव-समाज के द्वारा नैतिकता के प्रति, अपनी धार्मिकता के प्रति आस्था भी है। आप यह प्रश्न उठाते हैं कि धर्म की हानि होने पर महापुरुष अवतार लेते हैं तो मैं गौरवपूर्वक यह बात कहूँगा कि हमारा वर्तमान अतीत से अधिक श्रेष्ठ है। अगर ऐसा न होता तो भगवान अभी तक अवतार ले चुके होते। हम प्रसन्न रहें कि हम ऐसे युग में पैदा हुए हैं जहाँ अभी ईश्वर के अवतार की जरूरत नहीं है। ___मैं मानता हूँ कि नैतिक पतन हुए हैं। हम सभी के जीवन में नैतिक मूल्यों में कमी आई है, गिरावट आई है। हमारी न्याय-प्रणाली और न्याय होने की लंबित प्रक्रिया ने इस देश में नैतिक मूल्यों को कम किया है। जिस नैतिकता के लिए न्याय-प्रणाली स्थापित की गई है वह बहुत दूर और पीछे छूट गई है। व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाता है पर न्याय नहीं मिल पाता। इसने हमारे नैतिक मूल्यों पर प्रश्न-चिह्न लगाया कि व्यक्ति आखिर क्या करे? फिर व्यक्ति गुंडागर्दी का, आतंक का उपयोग करता है। वोटों की राजनीति के कारण भी हमारे देश में बहुत अधिक नैतिक पतन हुआ है। तुमने काम किया या नहीं किया, यह पूछने के जमाने चले गए, अब तो वोटों के लिए कुछ खास हथकंडे अपना लो, तुम जीतकर आ जाओगे। अब जो चुनाव जीतता है, उसके प्रति यह विश्वास करना मुश्किल है कि वह लोकतंत्र की व्यवस्था है या उसके चुनावी प्रबंधन(!) का परिणाम है। चुनाव में अगर उसने पाँच लाख खर्च किये हैं तो जब तक पाँच करोड़ घर में न आ जायें, वह चुप बैठने वाला नहीं है। ___भोग-विलास की तृष्णा मनुष्य के भीतर इतनी बढ़ी है कि जिसके कारण हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख-साधन पाना चाहता है। मैं इसका विरोध नहीं करूँगा। हर व्यक्ति को समृद्ध होना चाहिए। इस देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को भी अर्थ-समृद्धि उपलब्ध हो। समृद्ध व्यक्ति कम पाप करता है जबकि गरीब अधिक पाप करने पर उतारू होता है। असमर्थ क्या करेगा? वैसे भी हम वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूरी दुनिया को नहीं सुधार सकते हैं लेकिन एक-एक व्यक्ति स्वयं सुधर जाए तो पूरी दुनिया अपने आप सुधर जाएगी। मेरा तो मानना है कि एक जलते हुए चिराग के पास और दस चिरागआजाएँ ओर वे ज्योतिर्मान हो जाएँ तो सौभाग्य है। दुनियाँ के सारे बुझे हुए चिरागों को जलाना किसी एक व्यक्ति के वश में नहीं है। _ नैतिक मूल्य हमें अपने साथ जोड़ने चाहिए। मैं यह सलाह तो नहीं दूंगा कि आप किसी को रिश्वत न दें, पर यह नियम तो ले ही सकते हैं कि हम किसी से रिश्वत नहीं लेंगे। काम तो निकालना है न, व्यक्ति को प्रेक्टिकल होना चाहिए। केवल आदर्श की बात नहीं कही जानी चाहिए। यथार्थ भी जीवन का एक सत्य है और सत्य यही है कि देना पड़ेगा तो दे देंगे पर लेंगे नहीं। इस नियम को लेने से देश में आ रही नैतिक गिरावट थम जाएगी। ऐसी प्रार्थना क्यों करें कि भगवान अवतार लें। हाँ, ऐसी प्रार्थना करो कि हे भगवान, हमें सद्बुद्धि दो कि हमारी ओर से कभी धर्म की हानि न हो । हे प्रभु! मुझे उन बातों को स्वीकार करने का धैर्य दो जिन्हें मैं बदल नहीं सकता। उन बातों को बदलने की हिम्मत दो जिन्हें मैं बदल सकता हूँ और इन दोनों के अन्तर को समझने की बुद्धि दो। कुछ नियम अपनाएँ तो धर्म की हानि नहीं होगी और ईश्वर को अवतार लेने के लिए कष्ट भी नहीं उठाना पड़ेगा - 'मैं छल-प्रपंच नहीं करूँगा, कोई करे तो करे पर मैं नहीं करूंगा।' 'मैं सादगी से जिऊँगा।' 'मैं अपने घर के विवाह-समारोह आदि सादगी से करूँगा। सत्संग के आयोजन भी सादगी से सम्पन्न करूँगा। हम समझते हैं कि सारे लोग चोर हैं पर क्या हम यह मानते हैं कि आप खुद ईमानदार हैं। इसे यों समझिए- एक पत्नी ने पति से कहा, 'क्या आप बताएँगे कि यह सारा जमाना चार सौ बीस क्यों हो गया है और सभी छल-कपट क्यों करते रहते हैं।' पति ने कहा- भागवान, अब इतना क्यों चिल्ला रही है। आखिर बता तो सही किं बात क्या है? पत्नी ने कहा- क्या बताऊँ,आज सुबह दूधवाला ऐसे मिटेगी, देश की गरीबी ८७ For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुझे खोटी चवन्नी दे गया। पति ने कहा-“एक चवन्नी के लिए अपना दिमागे क्यों खराब कर रही है? ठीक है, वह भूल से दे गया होगा। अब इतना चिल्लाने के बजाय वह चवन्नी मुझे दे दे। मैं तुम्हें दूसरी दे दूंगा।' पत्नी ने जवाब दिया'वह चवन्नी? अरे दस बजे सब्जी वाला आया था वह तो मैंने उसे दे दी। हम अपनी आन्तरिक स्थिति को पहचानें और जानें कि कहाँ क्या खोट है? उसे सुधारें। अगला प्रश्न है : भगवन्, आप जागरण की बात करते हैं, जबकि हम संसारियों को सोना ही अच्छा लगता है। तो फिर जीवन जागता अच्छा है या सोया हुआ? ___ मैं जानता हूँ कि आपको सोना अच्छा लगता है। हक़ीकत यह है कि धरती पर तीन तरह की प्रवृत्ति के लोग होते हैं-मूर्च्छित, स्वप्निल, और जाग्रत। मूर्च्छित अवस्था में रहने वाले लोग अज्ञान के कारण हैं। अज्ञान और मूर्छा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अज्ञान से मूर्छा का और मूर्छा से अज्ञान का जन्म होता है। किसी भी व्यक्ति को सोना इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि वह मूर्च्छित है। कोई भी धर्म के किनारे आकर भी स्वयं को धर्म से न जोड़ पाए तो जान लें कि वह मूर्च्छित है और कोई भी बात उसके दिमाग में प्रविष्ट नहीं हो पा रही है। ऐसी प्रकृति के लोग जिस कान सुनते हैं उसी से बाहर निकाल देते हैं। कुछ स्वप्निल प्रकृति के लोग होते हैं जिनके एक कान में कुछ घुसता तो है और वह कुछ देर तक अंदर भी रहता है, किन्तु दूसरे कान से वह बाहर निकल जाता है। कुछ ऐसी जाग्रत-चेतना के लोग भी होते हैं जिनके कान से सीधा अंदर चला जाता है। वे ग्रहण करने के भाव से बैठे हैं। इसीलिये सीधा अंदर चला जाता है। मूर्छाग्रस्त लोगों के लिए ही हमारे जीवन के जागरण के संदेश हैं। पाएगा तो व्यक्ति स्वयं। मैं तो रोज-ब-रोज दो चार चुल्लू पानी ले आता हूँ, सोये हुए व्यक्ति पर छींटा डालता हूँ। कुछ लोग उन छींटों को पाकर जग जाते हैं, वे खड़े होकर अपने रास्ते चल देते हैं। कुछ लोग अंगड़ाइयाँ लेते हैं और वापस सो जाते हैं। पर कुछ मूर्च्छित प्रकृति के ऐसे लोग भी होते हैं जिन पर बाल्टी भी गिरा दो, तो भी वे कुंभकर्ण की तरह सोये ही रहते हैं, ८८ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्योंकि उनको सोना ही अच्छा लगता है। कभी दुर्योधन ने कहा था-'जानामि धर्मम् न च मे प्रवृत्तिः, जानामि अधर्मम् न च मे निवृत्ति: अर्थात् यद्यपि मैं धर्म को जानता हूँ फिर भी धर्म में प्रवृत्त नहीं हो पाता। मैं अधर्म को भी जानता हूँ फिर भी उससे निवृत्त नहीं हो पाता।' क्यों? मूर्छा है। एक धृतराष्ट्र भीतर बैठा हुआ है। मूर्छा का अंधापन, अज्ञान का अंधापन मनुष्य पर हावी है इसलिए सही बात उसके दिमाग में उतर नहीं पाती। अगर किसी पर शनि हावी हो तो चाहे जितना कहो कि शनि महाराज की माला जपो, पर वह नहीं जपता क्योंकि शनि महाराज उसे ऐसा करने ही नहीं देते। ययाति जैसे लोग हजार वर्ष का जीवन जीकर भी, एक हजार रानियों का उपभोग करके भी, एक हजार महलों में रहकर भी, एक हजार संतानों को जन्म देकर भी मुक्त नहीं हो सकते। और ययाति का बेटा पुरु अपने पिता की तृष्णा को समझ-समझ कर ही मुक्त हो जाता है। नौ बार तक वही छोटा बेटा अपनी आहुति देता रहा। आखिर दसवीं बार जब मौत आई तो उसी छोटे बेटे ने कहा, 'अंतिम बार मरने से पहले मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ।' यह प्रश्न पिता से नहीं एक मूर्च्छित व्यक्ति से था, एक तृष्णाग्रस्त, भोग-विलासिता में जकड़े हुए व्यक्ति से किया जाने वाला प्रश्न था। उसने कहा, 'बाबा, सच-सच बताओ कि हजार वर्ष जीकर, अनेक भोगोपभोग करके भी क्या आपका मन तृप्त हुआ है?' पिता ने कहा, 'बेटा तुमसे क्या झूठ बोलना! तुम तो मेरे लिए मरने को तैयार हो। सच्चाई यही है कि जो तृष्णा, जो विलासिता की भावना, जो मूर्छा आज से हजार वर्ष पहले थी, वही आज भी है।' आज भी उसे वही अच्छा लग रहा है जैसे संसारी लोगों को सोना अच्छा लगता है। बेटे ने कहा, 'मृत्यु, मेरे पिता नहीं जानते कि अब तक उनके लिए कुर्बानी देने वाला कौन व्यक्ति रहा, लेकिन मौत तुम तो जानती हो कि वह व्यक्ति मैं ही हूँ जिसने अब तक दस बार अपने पिता के लिए जीवन दिया। हर बार मरते वक्त मेरे मन में यह जिज्ञासा और यह प्यास रहती थी कि मेरे पिता ने तो कितनी ही राजरानियों का भोग किया किन्तु मैं तो एक का भी नहीं कर पाया। फिर मेरा इस जीवन को पाने का क्या अर्थ हुआ? हर बार मैं अपने प्रश्न को अधूरा लिये ही चला गया लेकिन मृत्यु, आज तृप्त होकर ऐसे मिटेगी, देश की गरीबी ८९ For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम्हारे साथ चल रहा हूँ। क्योंकि मुझे आत्म-ज्ञान हो गया है कि मेरे पिता एक हजार वर्ष की जिंदगी में तृप्त न हो पाए तो यह पुरु सौ साल की जिंदगी जीकर कैसे तृप्त हो जाएगा ?' कहते हैं कि यह बात सुनकर ययाति की आँखें खुल गईं और एक मूर्च्छाग्रस्त व्यक्ति जागृति की अवस्था में आ गया। आज मैं भी आप लोगों से कह देना चाहूँगा कि अस्सी साल के होकर भी अगर आप तृप्त न हो सके तो मैं कौनसा तृप्त हो जाऊँगा? इसलिए आज जो भी है, जैसा भी है, मैं तृप्त हूँ । मन तो है । शरीर बूढ़ा हो जाता है, पर किसी का मन बूढ़ा होता है क्या ? इसलिए मस्त रहना सीखो। हर हाल में खुशहाल । / कुछ लोग सपनों में पड़े रहते हैं, विचारों में खोये रहते हैं । वे दिन-रात सपने देखा करते हैं। दिन में सपने देखते हैं कि यह करना है, वह करना है, रात में सपना देखते हैं कि वे टाटा, बिड़ला, अंबानी हो गये हैं। तभी पत्नी जगा देती है तो पता चलता है कि वे वहीं बिस्तर पर पड़े हैं। आँख तो किसी-किसी खुलती है। जैसे कोई प्याऊ पर पानी पीता है बूक लगाकर तो आधा भीतर जाता है आधा बाहर ही छिटक जाता है । जो आधा भीतर गया वह कुछ न कुछ काम कर ही जाता है। मुझे पता है कि जो आधा भीतर गया है, वह कुछ न कुछ काम जरूर करेगा। यदि आप हक़ीकत से परिचित हों तो आप जान जाएँगे कि जीवन-मूल्यों को प्राप्त करने के लिए जाग्रत अवस्था में चेतना की जो आध्यात्मिक दशा उपलब्ध होती है, वह सुषुप्त अवस्था में नहीं हो सकती । लोग सपने देखते हैं। सपने सभी को आते हैं। दिन में शेखचिल्ली के सपने आते हैं, रात में घरवाले सपने आते हैं। एक बार तीन दोस्त घूमने निकले। बगीचे में पहुँचकर उन्होंने अपने लिए नाश्ता-खाना बनाया। खीर बनाई, अन्य दूसरे व्यंजन भी बनाएं, खाए-पिए और सांझ उसी बगीचे में ठहराए गये। खीर बहुत बन गई थी सो खाने के बाद भी बच गई। अब उसे कौन पीए? विचार किया, 'रख देते हैं, चाँदनी रात है, खराब नहीं होगी, कल पी लेंगे।' पर सुबह पिएगा कौन? तो निर्णय हुआ कि सबसे अच्छा सपना देखेगा, उसे ही खीर मिलेगी । अब रात में तीनों सो गए। खीर का कटोरा ढका रखा था। सुबह उठे तो आपस में कहा कि वाह ! ज़िन्दगी ९० For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपना सुनाओ।' एक ने कहा, 'क्या बताऊँ, रात को सपने में महादेवजी आए थे। वे मुझे कैलास पर्वत पर लेकर गए। पार्वती माँ ने मुझे गोद में बिठाकर कहा, 'बेटा बहुत बड़ा हो गया है अत: यह खीर का कटोरा तुझे ही पिलाऊँगी।' अब उस खीर पर मेरा अधिकार होता है क्योंकि माँ पार्वती का आदेश हो चुका है। — दूसरे ने कहा, 'तेरा सपना तो कुछ भी नहीं है, मेरा सपना सुन। रात को रामजी आए थे। उन्होंने कहा, 'मैं तो चौदह वर्ष के लिए वनवास जा रहा हूँ। तुझे अयोध्या की राजगद्दी सौंप जाता हैं। उन्होंने मेरा राजतिलक किया और कहा, 'सबसे पहले खीर ही पीना। तो अब इस खीर पर तो मेरा अधिकार है।' दोनों व्यक्ति आगे बढ़ने लगे तो कटोरे की ओर देखकर तीसरे ने कहा, 'ठहरो भाई, मेरा सपना भी तो सुन लो। दोनों ने पूछा, 'बताओ, तुम्हारे सपने में क्या हुआ?' उसने कहा, 'रात मेरे सपने में हनुमानजी आए थे। मैं तो आराम से सोया था कि उन्होंने तीन-चार सोटे लगा दिए और बोले, 'खड़ा हो।' मैं तो डर रहा था तो जोर से बोले, 'खड़ा हो।' वे बोले, 'कटोराखोल।' मैंने कटोरा खोल दिया तो बोले, 'पी। ‘पी लिया सा'ब। ‘क्या कहता है, दोनों ने एक साथ कहा। ‘सपना तो आप दोनों का ही अच्छा था' तीसरा बोला, पर क्या करूँ, हनुमानजी आए थे!' पाता वही है जो जाग्रत होता है, खोता वही है जो सोया रह जाता है। अब आप खुद निर्णय कर लें कि सोया हुआ जीवन अच्छा है कि जागता हुआ। खीर का कटोरा पीना है तो जागना ही होगा। जिंदगी में खीर के कटोरे की अगर चिंता नहीं है तो सोये रहो, खोये रहो, डूबे रहो। मूर्छाग्रस्त व्यक्ति तो वैसे भी सोया हुआ ही रहता है। जागे तभी सवेरा। जो जब जग जाता है, तभी जीवन में सूर्योदय हो जाता है। __ आप जो पूछते हैं कि जीवन जागता हुआ अच्छा होता है या सोया हुआ? तो मैं कहना चाहूँगा कि जागना ही अच्छा है लेकिन जो रिश्वतखोर हैं, जो चोरी करते हैं, छल-प्रपंच करते हैं, व्यभिचार करते हैं उनका सोना ही अच्छा है। नैतिक और ईमानदार लोगों का जागना अच्छा है जबकि बेईमान, अनैतिक लोगों का हमेशा सो जाना ही अच्छा है। भगवान करे, ऐसे लोग सदा सोए रहें या सदा के लिए सो जाएँ। जाग्रत तो वे लोग रहें जोधार्मिक हैं, नैतिक ऐसे मिटेगी, देश की गरीबी For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैं जिनसे विश्व को अपेक्षा है, जो प्रेम, शांति और खुशहाली को फैलाने में सहयोगी हों। आज के समाज का यह बहुत बड़ा दायित्व है कि वह प्रेम और शांति के संदेशों को जगत् में विस्तीर्ण करे। यदि आप अपनी चारदीवारी तक सीमित रह गए तो मैं बेहिचक कहँगा कि आने वाला समय इतना खतरनाक होगा जो आपको नहीं बचा पाएगा। कोई घातक विस्फोट हो, उससे पहले अहिंसा, शांति, प्रेम, करुणा में आस्था रखने वाले हर धर्म और पंथ, संत और ग्रंथ को पूरे विश्व में फैला देना चाहिए। हिन्दू, जैन, बौद्ध धर्म के मानवीय मूल्यों को साम्प्रदायिकता के शिकंजे से बाहर निकालकर पूरे विश्व तक फैल जाने दो ताकि वह विश्व-प्रेम और शांति के झरनों को अपने देश और समाज के लिए कुछ सुकून उपलब्ध करा सकें। बैलगाड़ी की चाल से आप कब तक चलते रहेंगे? जब सारा विश्व हवाई-जहाज से भी अधिक तीव्र गति से चल रहा हो तो तुम बैलगाड़ी से कहाँ तक पहुँच पाओगे? ___महापुरुषों ने धर्म का जन्म, धार्मिक मूल्यों का जन्म गिने-चुने लोगों के लिए नहीं किया है बल्कि पूरे संसार के कल्याण के लिए किया है। धर्म और पंथ को विराट् होना चाहिए। नजरिया, सोच ज्यों-ज्यों विराट् होंगे, त्यों-त्यों आप अपने आपको विराट् करते चले जाएँगे। प्रबुद्ध और उपशांत होकर हर व्यक्ति अपना यह कर्तव्य निभाए। चौथा प्रश्न है : बच्चों को सुधारने के लिए क्या किया जाना चाहिए? (ज्योत्सना जांगिड़) बच्चे तो भगवान के अवतार होते हैं। उनमें तो भगवान् का शिशु-रूप छिपा होता है। जैसा आप अपने घर का माहौल रखेंगे, बच्चा वैसा ही सीखता जाएगा। ईश्वर जब किसी बच्चे को भेजता है तो अच्छा बनाकर ही भेजता है। फ़र्क केवल इस बात का है कि आपके घर के माहौल से वैसे ही बच्चे का निर्माण हो जाता है। बच्चे तो पानी की बूंद की तरह हैं। जैसा पात्र मिलेगा, वैसा ही बनेंगे। बरसात का पानी सर्प के मुँह में जाएगा, तो जहर बनेगा और सीप के मुँह में जाएगा तो मोती बनेगा। पानी के लिए जैसा पात्र, वैसा परिणाम। घर का माहौल भी पात्र की तरह है। बच्चा अच्छा हो, इसके लिए जरूरी है कि आपके वाह! ज़िन्दगी ९२ For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घर का माहौल अच्छा हो, नेक हो, प्रेमपूर्ण हो। बच्चों को संस्कार देना है तो पहला काम उन्हें स्वावलम्बी और अनुशासनप्रिय बनाने का करें। ‘कान खोलकर सुन ले, चुल्लू भर पानी में डूब मर, दफा हो जा मेरी आँखों से, नालायक कहीं का', इस तरह की कर्कश भाषा न बोलें। बच्चा तुतलाए तो उसे चिढ़ाएँ नहीं। भाषा को सुधारने की प्रेरणा दें। आजकल शादी-ब्याह की पत्रिका में एक लाइन जरूर छपी मिलती है-'मेले चाचूकी सादी पेजलूल आना।' भले ही लोग इसे मज़ाक में लिखते हों, पर यह स्वस्थ परम्परा नहीं है। कोई तुतलाता बोलता है, तो बड़े कहते हैं, 'बोल जूता।' बच्चा बोलता है 'तूता'। बड़े कहते है 'बोल रोटी' । वह बोलता है लोती'। तभी आप टिप्पणी करते हैं, यह तोतू है, छोटू नहीं। क्यों भई तोतू? तुतलाना बच्चे की कमज़ोरी भी है और मज़बूरी भी पर अपने बारे में तोतू सुनना बच्चे की मानसिकता को दुष्प्रभावित करता है। अगर आपका बेटा टॉप नहीं कर रहा है तो उसका कान न मरोड़ें। अपनी महत्वाकांक्षा की हम्माली करने का जिम्मा उस पर मत डालिये क्योंकि आप भी टॉप पर नहीं आए थे। जो आप न कर सके उसकी आकांक्षा बच्चे से पूर्ण कराने की अपेक्षा न रखिये। अपने घर में स्वस्थ वातावरण रखिये। अगर आप शोरगुल करते हैं या चिल्लाते हैं तो बच्चा भी आपको देखकर ही ऐसा कर रहा है। कहीं-न-कहीं से तो यह भाव उसके भीतर आया ही है। फिर भी उसे कुछ सिखाना ही है तो उसे मारो-पीटो मत। पिटकर आज तक कोई बच्चा नहीं सुधरा है। आप उसे प्यार से समझाएँ। प्यार से बढ़कर कोई,अमानत नहीं होती, प्यार से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती, प्यार से बढ़कर संस्कार देने का कोई स्वरूप नहीं होता। काणे को काणा कहें तो उसे बुरा लगता है। घमंडी को घमंडी कहने से, क्रोधी को क्रोधी कहने से बुरा लगता है। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे पहले आदर्श प्रस्तुत करें। बच्चे तो गीली मिट्टी के समान हैं। उन्हें आकार प्रदान करना तो आपके हाथ में है। आपमें अगर दुर्व्यसन हैं तो बच्चे निर्व्यसनी कैसे रह पाएँगे? आप उन्हें उनके उत्तरदायित्व का अहसास कराइए, उन्हें सही मार्गदर्शन दीजिए। उनकी प्रतिभा को पहचानकर उसके विकास में सहायक बनिए। उन्हें समझ विकसित ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करने का मौका दीजिए। बच्चों को सुधारने के लिए सही दिशा-निर्देश दीजिए। उन्हें अच्छी-अच्छी उपदेशप्रद कहानियाँ सुनाएँ। बच्चों के प्रति लापरवाही होने के कारण बच्चे बिगड़ते हैं। बच्चों को बेजा लाड़-प्यार देने के कारण भी बच्चे बिगड़ते हैं। हम खुद बिगड़े हुए होते हैं, इसलिए बच्चे बिगड़ते हैं। सच्चाई तो यह है कि पहले माँ-बाप बिगड़ते हैं, फिर बच्चे बिगड़ते हैं। जॉर्ज वाशिंगटन की माँ ने, बेटे के द्वारा झूठ बोले जाने पर कहा कि 'झूठे की माँ कहलाने की बजाय मैं पुत्रहीन कहलाना ज्यादा पसंद करूँगी।' जहाँ ऐसी सजगता है, वहीं संस्कार रहते हैं। हमारी स्थिति यह है कि आपके बच्चे ने पड़ौसी के बगीचे से फल-फूल तोड़े। पड़ोसिन शिकायत करने को आई तो आपने कहा, 'मेरा बेटा ऐसा कर ही नहीं सकता। जरूर कोई भूल हुई है।' भीतर बैठे बेटे को प्रोत्साहन मिला। उसे लगा कि गलती कर भी दूंगा तो कोई बात नहीं। डाँट नहीं पड़ेगी। ऐसी स्थिति में आपका कर्त्तव्य होता है कि आप अपने बच्चे के अभद्र व्यवहार पर अंकुश लगाएँ। ___बच्चा बिस्तर पर पेशाब करे, तो तिल-गुड़ खिलाएँ। पेशाब करवाकर फिर सुलाएँ। आदत छूट जाएगी। बच्चों में बाजारू खाना खाने की आदत न पड़े, इसके लिए उन्हें स्कूल जाते समय साथ में टिफिन दें और टिफिन में वही खाना डालें जो उनकी मनपसंद का हो। ___पढ़ाई से बच्चों का मन न उचटे, इसके लिए जरूरी है कि आप उन्हें मातृभाषा में शिक्षा दिलाएँ, उनके रुचिकर विषय भी दिलाएँ। अश्लील साहित्य, भड़कीले टी.वी. चैनल और अव्यावहारिक फैशन से बच्चों को बचाएँ। अंकुश रखें कि आपके बच्चे दुनिया की देखा-देखी ज्यादा तंग और भड़कीले वस्त्र न पहनें। ऐसे वस्त्र इंसान की यौन-भावनाओं को भड़काते हैं। गलत सोहबत और नशे से बच्चों को बचाएँ। ये जो कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मैंने कही हैं, इनकी अनुपालना के लिए ज़रूरी है कि कि बच्चों को सुधारने से पहले आप अपने आपको, घर के माहौल को सुधार लें। अच्छा बोलिए, अच्छा खाइये, अच्छा पहिनये। अच्छे लक्ष्य बनाइये और बच्चों को उनके जीवन के अच्छे लक्ष्य दीजिए। ताली हमेशा दो हाथों से बजेगी। थोड़ा उन्हें सुधारिए, वाह ! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोड़ा आप खुद सुधरिये। पूज्यश्री, मैं हीनभावना से ग्रस्त रही हूँ, मुझे हमेशा हिचक रहती है। अभी भी आत्म-विश्वास नहीं बन पा रहा है। आपको सुनने से मुझे राहत मिली है। शायद आपसे मेरा समाधान हो जाए। (शिल्पा अरोड़ा) · मनुष्य का जीवन प्रकृति से मिला हुआ अनुपम वरदान है। हरेक का जीवन प्रकृति के घर से इतना असाधारण होता है कि उसके सामने धरती की हर सम्पदा साधारण हो जाती है। यदि व्यक्ति अपने ही जीवन पर ध्यान दे तो उसे यह जानकर आश्चर्य होगा कि धरती का हर प्राणी, हर इन्सान सम्पन्न होकर पैदा होता है। यदि हम किसी को एक आँख देने को तैयार हो जाएँ तो इसके लिए एक लाख रुपए मिल सकते हैं। यदि दोनों देने को तैयार हों तो ग्यारह लाख भी मिल सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी एक किडनी देने को तैयार हो जाए तो इसके बदले उसे दस लाख मिल सकते हैं और दोनों किडनी देने पर तो बीस लाख भी मिल सकते हैं। प्रकृति के घर से मनुष्य को इतनी सम्पदाएँ मिली हुई रहती हैं कि अगर वह स्वयं का ही मूल्यांकन करे तो अन्तर्मन में पलने वाली हीनता की ग्रंथि तत्काल मिट सकती है। हीनता के भाव जीवन के समस्त मानसिक रोगों की जड़ हैं। हीनता के कारण विद्यार्थी विद्यार्जन नहीं कर पाता, व्यापारी अपने व्यापार में सफल नहीं हो पाता, गृहिणी मर्यादित और गरिमापूर्ण व्यवहार नहीं कर पाती। जब-जब मनुष्य अपनी योग्यताओंको आँकेगा, अपनी क्षमताओं को समझने की कोशिश करेगा तब-तब उसके भीतर से हीनता की ग्रंथि मिटेगी और आत्म-विश्वास जाग्रत होगा। जब कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यताओं को कम आंकता है या जीवन के प्रति गलत धारणाएँ बना लेता है तब ही उसके भीतर हीनता के भाव, हिचक, संकोच और नपुंसकता जन्म लेती है। जो अपने आप पर विश्वास रखता है, वही वास्तविक आस्तिक होता है। ___ गीता में भगवान कृष्ण ने निरंतर सात सौ छप्पन श्लोक कहते हुए अर्जुन के भीतर उत्पन्न हीनता की ग्रंथि को ही दूर करने का प्रयास किया था। क्या है ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी ९५ For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीनता, हीन-भावना और हीन विचार? जब अर्जुन ने कृष्ण रूप सारथी से कहा कि इस महायुद्ध में वह गांडीव धनुष नहीं उठा सकता। अपने ही बन्धुबांधवों के खिलाफ शस्त्र उठाने में उसके हाथ काँप रहे हैं तब कृष्ण ने अर्जुन को निरंतर एक ही प्रेरणा दी कि 'तुम अपने हीन-भावों को निकाल फेंको, हृदय की तुच्छ दुर्बलता का त्याग करो। हे पार्थ! तुम्हें यह नपुंसकता शोभा नहीं देती। आओ, मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम अपना गांडीव उठाओ, तुम हर डगर पर ईश्वर को अपने साथ पाओगे।' जिस बहन ने यह प्रश्न पूछा है, उससे मैं कहना चाहूँगा कि आप ईश्वरीय सम्पदा और प्रकृति के घर से मिलने वाली सम्पदाओं को समझने की कोशिश करें। आपका आत्मविश्वास आप में लौट आएगा। तुम्हारी हिचक मन की कमज़ोरी है जिसके कारण तुम हमेशा संकोचशील बनी रहती हो। आदमी के भीतर हीनभावना निर्धनता के कारण या जाति के कारण या आत्म-निर्भरता न होने से भी निर्मित होती है। अगर आप गरीब घर में पैदा हुए हैं तो यह कोई पाप नहीं है, गलत काम नहीं है। गरीबी से अगर कुंठित हो गये तो जीवन में कुछ भी नहीं कर पाओगे। हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री गरीब घरों में पैदा हुए। वर्तमान राष्ट्रपति डॉ. अबुल कलाम भी निर्धन परिवार की पैदाइश हैं। अपने बचपन में वे इमली के बीजों को एकत्रित करके बेचते और पाठ्य-पुस्तकें खरीद कर पढ़ते थे। गरीब घर में पैदा होना गलत नहीं है जबकि अपने मन को गरीब कर लेना अवश्य गलत है। शरीर से विकलांग होना गलत नहीं है पर अपनी मानसिकता को विकलांग कर लेना निश्चित ही गलत है। मानसिकता के विकलांग होते ही हीन विचार, हीन भावना बननी शुरू हो जाती है। वहीं अगर आपने कुछ कर गुजरने का संकल्प बना लिया तो आपकी हिचक हमेशा के लिए हट जाएगी। अमरीकी राष्ट्रपति लिंकन भी गरीब घर में पैदा हुए थे। दुनिया में किसी की भी सात पीढ़ियाँ अमीर नहीं रहा करतीं। हरेक की जिंदगी में कभी अमीरी आती है तो कभी गरीबी। हीन भावना स्वयं के द्वारा स्वयं को दिया गया सबसे बड़ा अभिशाप है। यह कुठाराघात है और अपने ही पाँव पर अपने ही हाथों से मारी गई कुल्हाड़ी। वाह ! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शारीरिक असुंदरता के कारण भी हीन-भावना न पनपने दें। यह शरीर तो प्रकृति-प्रदत्त है। काला-गोरा रंग हमारा परिणाम नहीं है। चमड़ी को देखकर जो व्यक्ति हीनभावना से ग्रस्त होता है, वह इन्सानियत की कद्र नहीं करता। वह चमार होकर केवल चमड़ी का ही मूल्यांकन करता रहता है। आप अपने असौन्दर्य के कारण अपने भीतर हीन-भावनाओं को स्थान मत दीजिए। जीवन में वह सुंदर नहीं है जो बाह्य शारीरिक रूप से सुन्दर है बल्कि सुंदर वह है जो सुंदर विचारों के साथ सुंदर कार्य करता है। जीवन को सुन्दर रंग देना आपके हाथ में नहीं है, लेकिन उसे ढंग देना आपके हाथ में है। ____ सुकरात बहुत ही बदसूरत थे। उनका चेहरा चेचक के दागों से भरा था, लेकिन अपने महान् विचारों के कारण आज भी उन्हें महान् दार्शनिक के रूप में याद किया जाता है। उनकी भगवान् से यही प्रार्थना थी कि हे प्रभु! तूने इस शरीर को भले ही बदसूरत बनाया हो लेकिन तू मुझे हमेशा वह सन्मति दिये रखना जिससे मैं अपने हृदय को सुंदर बना सकूँ'। हिन्दी के महान् कवि मलिक मोहम्मद जायसी एक आँख से ही देख सकते थे, लेकिन उनके काव्य ने सिद्ध कर दिया कि प्रकृति ने अगर कुछ असुंदर बना भी दिया तब भी इन्सान चाहे तो स्वयं को गरिमापूर्ण बना सकता है, सुंदर रचनाएँ कर सकता है। सूर जिनके भजन हम गाते-गुनगुनाते हैं, वे तो नेत्रहीन हीथे। नेत्रवाले तोभुला भी दिये जाते हैं लेकिन जब नेत्रहीन कुछ कर गुजरने का संकल्प अख्तियार कर ले तो वह भी आने वाले कल के लिए आदर्श बन सकता है। कृपया, हीन-विचारों से ग्रस्त न हों। हीनता और हीन-भावना हमारे अपने मन की कमजोरी के ही परिणाम हैं। आप अपने संकल्प से इस ग्रंथि पर विजय पा सकते हैं। एक सुंदर-सी घटना है हम किसी घर में मेहमान हुए। धीरे-धीरे वह परिवार हमारे करीब आता गया। एक दिन मैंने उस घर की महिला से पूछा, 'बहिन, एक बात बताओ। आप इतनी सुंदर हैं, पढ़ी-लिखी हैं, और आपके पति काले रंग के हैं, नाक भी जरा मोटा दिखाई देता है, चेचक के दाग भी हैं। आखिर आपने इन्हें पसंद कैसे किया होगा? क्या कारण है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि आपके माता-पिता ने लड़के को देखे बिना ही आपकी शादी तय कर दी हो और आपको मज़बूरी में ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी ९७ For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शादी करनी पड़ी हो। उस प्यारी - सी महिला ने जवाब दिया, 'प्रभु, सच्चाई तो तो यह है कि मैंने प्रेम-विवाह किया है ।' मुझे जरा आश्चर्य हुआ । इतनी सुंदर महिला और एक नीग्रो टाइप लड़के से लव-मैरिज ! उसने कहना जारी रखा, 'मैं कॉलेज में पढ़ती थी । वहाँ कई लड़कों से मेरी दोस्ती थी लेकिन मैंने पाया कि अन्तत: यही एक ऐसा युवक मिला जिसकी प्रकृति, जिसका स्वभाव, मुझे इतना सुंदर लगा कि मैंने उससे शादी कर ली । ' मैं महिला को साधुवाद दिया जिसने सूरत नहीं बल्कि सीरत को पहचाना। शाम के समय उसका पति भी आया जो कि एक डॉक्टर है। मैंने उससे भी वही सवाल किया कि तुम इतने काले हो, नाक भी कुछ अजीब-सी है। क्या आपको इतनी सुंदर पत्नी के मिलने पर आपको अपने मन में गिल्टी फील नहीं होती?' उसने कहा, 'महाराजजी, जब मैं छोटा था तो गली-मोहल्ले के लोग मुझे 'कालू- कालू' कह कर पुकारते थे । लड़के मेरे साथ बैठना पसंद भी नहीं करते थे। अपने साथ खेल भी नहीं खिलाते थे। उस समय जरूर मेरे मन में बहुत गिल्टी फील होती थी । बचपन के उन दिनों में ही मैंने संकल्प ले लिया था कि प्रकृति के घर से मैं भले ही बदसूरत बनाया गया होऊँ, लेकिन आज के बाद मैं इतना सुंदर बनूँगा, अपने हृदय को अपनी आत्मा को इतना ऊँचा उठाऊँ गा कि आने वाला कल, मुझ पर गौरव कर सके । मेरा नाम सम्मान के साथ पुकार सके। आज पूरे नगर में मेरा नाम है । मैं ऐसे केस आराम से निपटा देता हूँ जो दूसरे डॉक्टर के लिए मुश्किल होते हैं। सच तो यह है कि मेरे स्वभाव और प्रकृति के कारण ही लोग आज मुझे इतना सम्मान देते हैं । जिस बहिन ने यह प्रश्न पूछा है, उसे यही घटना कहते हुए प्रेम और आदर से मैं यही कहना चाहूँगा कि आप अपने हृदय को इतना सुंदर बनाएँ, अपने जीवन को इतना ऊँचा उठाएँ, अपनी दृष्टि को इतने आत्म-विश्वास से भर जाने दें कि आपकी हिचक, आपकी हीनता की भावना आपसे दूर हो और ऐसा करने के लिए कल से आप एक प्रयोग जरूर करें। वह प्रयोग यह है कि आप पूरे मनोयोग से मुस्कुराइए। आपकी मुस्कुराहट आपके अंगअंग से फूट पड़े। सुबह का यह विटामिन आपको पूरे दिन प्रसन्नता से भरा ९८ For Personal & Private Use Only वाह ! ज़िन्दगी Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुआ रखेगा। कभी कोई ऐसी छोटी-सी घटना भी घट जाती है जिसके कारण हम खुद को हीन महसूस करने लगते हैं। हम अपनी जिंदगी में नई फ़िजाएँ लेकर आएँ। केवल अपने मन को ठीक से समझ लें और आत्म-विश्वास को जाग्रत हो जाने दें। आप पाएंगे आपके मन की कुंठाएँ मिट चुकी हैं। धीरे-धीरे आपका कायाकल्प होने लगेगा। आप स्वयं को प्रकृति के सान्निध्य में ले जाएँ। सुबह आधे घंटा नंगे पाँव हरी घास पर, दूब पर मिलिट्री मैन की तरह चलें, टहलें, घुमें। 'सूर्यनमस्कार' की योग-विधि भी सम्पन्न कर लें। महीने दो महीने सुबह दूध के साथ दस कागजी बादाम भी खा सकते हैं। अच्छी किताबें पढ़ें। उन लोगों पर किताबें जिन्होंने अपने जीवन में ऊँचाइयों को छुआ है। इस संदर्भ में हमारी अपनी काफी किताबें हैं, उन्हें ले लें और उनका उपयोग करें। आपको चाहिए केवल पॉजिटिवनेस, अच्छी सोच, अच्छा दृष्टिकोण। प्रश्न है - पूर्व के प्रारब्ध और माता-पिता से मिले हुए कुबुद्धि आदि संस्कार क्या समाप्त हो सकते हैं? मानव-जीवन की सफलता और आध्यात्मिक उन्नति के लिए मार्गदर्शन कराएँ। (कैलाश अग्रवाल) किसी भी घर में बच्चे का जन्म लेना सौभाग्य की बात होती है, पर बच्चे का संस्कारयुक्त निर्माण करना किसी भी राष्ट्र के संचालन करने से भी कठिन होता है। शायद राष्ट्र का संचालन सरल होता होगा, लेकिन अपने घर में बच्चे को पाल-पोस कर उसे समाज के बीच इजत की जिंदगी जीने के लिए काबिल इन्सान बनाना कठिन होता है। नारी अर्थात् मातृसत्ता इसलिए महान् है क्योंकि वह अपने बच्चे को ऐसे संस्कार देकर समाज और देश के बीचजीने के काबिल बनाती है। ___एक तो पूर्व के प्रारब्ध से ही व्यक्ति अच्छी-बुरी बातें या अच्छे-बुरे संस्कार लेकर आता है और दूसरा उसके घर का माहौल और वातावरण उसे बनने या बिगड़ने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे समझें-एक गर्भवती महिला ने अपनी सखी से कहा, 'क्या बताऊँ? जैसे-जैसे मेरा गर्भ बढ़ रहा है, मुझे विचित्र विचित्र इच्छाएँ होने लगी हैं।' उसकी दूसरी सखी ने पूछा, 'ऐसी क्या ऐसे मिटेंगी, देश की गरीबी For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इच्छाएँ होने लगी हैं?' गर्भवती महिला ने कहा, 'कभी इच्छा होती है कि सिगरेट पीऊँ, कभी इच्छा होती है कि शराब पीऊँ। तब उसकी सहेली ने कहा, शर्त लगाले, तब तो तुझे लड़का ही होगा। मतलब?' 'मतलब यही कि ऐसे भाव, ऐसे विचार जिनके मन में आते हैं वे विचार पूर्व के प्रारब्ध से इंसान की जन्म लेने वाली संतान के संस्कारों के कारण उठा करते हैं। हम केवल माहौल को ही दोष न दें। पूछने वाले ने पहले ही समझ लिया है कि वह ऐसे संस्कार पूर्व के प्रारब्धसे लेकर आया होगा। फिर जैसा माहौल बनता है, घर में बच्चा भी वैसा ही बनता है। अगर माता-पिता अपने बच्चे को संस्कार-युक्त न बना पाएँ तो वे अक्षम्य हैं। उन्हें अपने दायित्व निभाने चाहिए, अपने कर्त्तव्य अवश्य निभाने चाहिए। अगर आप सिगरेट पीते हैं तो आज नहीं तो कल आपका बेटा सिगरेट अवश्य पीएगा, नहीं पीए तो वह अवश्य ही पूर्व के अच्छे प्रारब्ध को साथ लेकर आया है। अगर आप कैरम खेलेंगे तो बच्चा भी कैरम खेलेगा और ताश खेलेंगे तो बच्चा भी ताश ही खेलेगा। ऐसा हुआ___एक व्यक्ति रिटायर हो गया। पहले जमाने में लोग रिटायर होते तो बच्चों को, पोतों को प्यार बाँटते, कहानियाँ सुनाते, उन्हें अच्छे-अच्छे संस्कार देते। अब तो टी.वी. का जमाना है। वे बैठे रहते हैं दिनभर टी.वी. के सामने। खैर, उन्हें टी.वी. का शौक न था सो दिन भर ताश खेलते रहते। एक दिन उन्होंने अपने छोटे पोते से पूछा, 'बेटा, क्या तुम्हें गिनती आती है?' उसने कहा, 'हाँ, दादाजी आती है।' 'तो सुनाओ। उसने कहा, 'इक्का, दुग्गी, तिग्गी, चौका, पंजा, छक्का, सत्ता, अट्ठा, नहली, दहली, गुलाम, बेगम बादशाह। अगर घर में रात-दिन ताश चलेगी तो बच्चों में वैसे ही संस्कार आएँगे। घर के माहौल के लिए माता-पिता और अभिभावक नियंत्रण और लक्ष्मणरेखाएँ अवश्य रखें जिनसे आने वाला कल अच्छा हो सके। अगर बच्चा कुबुद्धि अल्पज्ञान, अध्यात्म-रहित, जीवन की मर्यादा और संस्कारों से वंचित है तो इसका कारण माता-पिता का बच्चे की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देना ही है। यह भी संभव है कि गलत सोहबत से, बुरे असर से वह न बच पाया होगा। वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन के बेहतर निर्माण और सफलता के लिए, आध्यात्मिक उन्नति के लिए आप कुसंगति से बचें। जीवन में इतना ही पर्याप्त नहीं है कि आप अच्छी सोहबत पाएँ बल्कि यह भी ज़रूरी है कि गलत संगत और गलत सोहबत से बचें। हो सकता है, आपके घर का माहौल अच्छा हो लेकिन मित्र-दोस्त अच्छे न हों। कौन व्यक्ति कैसा है, यह उसके दोस्तों की सोहबत से पता चल जाएगा। जैसा स्तर दोस्तों का होगा वैसा ही स्तर व्यक्ति का होगा। किसी मूर्ख को दोस्त बनाने की अपेक्षा बुद्धिमान दुश्मन कम खतरनाक होता है। मूर्ख व्यक्ति को, गलत संगत में पड़े व्यक्ति को दोस्त बनाने की बजाय अकेले रहना अच्छा है। तीन चीजें व्यक्ति को तकदीर से मिलती हैं १. अच्छी पत्नी २. अच्छी संतान और ३. अच्छा मित्र। ___घटिया सोच वाले लोगों से हमेशा दूर रहो। तुम्हारी जिंदगी में काँटे बोने वालों में हमेशा दूर रहो। समाज को ऐसे लोगों से बचाया जाए जिनकी सोच और नज़रिया घटिया है। अश्लील साहित्य मत पढ़ो। अपनी कुबुद्धि को दूर करने के लिए अश्लील साहित्य से बचो। अभद्र व्यवहार से बचो। दुर्व्यसनों से बचो। सिगरेट, गांजा, चरस, अफ़ीम, हेरोइन ये सब ऐसे दुर्व्यसन हैं जो व्यक्ति को आउट ऑफ कन्ट्रोल कर देते हैं। आज हमारे देश में सर्वाधिक नुकसान शराब से हुआ है। शराब व्यक्ति का विवेक समाप्त कर देती है। वह पत्नी के प्रति पत्नी का व्यवहार नहीं करवाती, बच्चों के प्रति बच्चों का व्यवहार नहीं रहने देती। नतीजतन इंसान, इंसान नहीं रहता। वह जानवर बन जाता है। जिस गांव में विद्यालय नहीं होगा, वहाँ पर भी शराब की दुकान जरूर मिल जाएगी। __ सिगरेट के विज्ञापनों में वैधानिक चेतावनी के रूप में पहली पंक्ति होती है, 'सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इससे कैंसर हो सकता है।' मुझे लगता है कि यह पढ़े-लिखे इन्सानों की कौम कितनी बुद्धू और बेवकूफ है और न जाने किस कुबुद्धि से जुड़ी है कि जो रोज पढ़ती है-कैंसर होने की सम्भावना-फिर भी रोज...। अनपढ़ और गंवार लोग बीड़ी पियें तो समझ में आता है लेकिन पढ़े-लिखे लोग शराब और सिगरेट में अपना जीवन होम देते ऐसे मिटेगी, देश की गरीबी १०१ For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैं तो उन्हें सलाह दूंगा कि वे फिर से विद्यालयों में जाएँ और लिखना-पढ़ना सीखें। वे उन विद्यालयों में जाएँ जहाँ जीवन के पाठ पढ़ाए जाते हों। शराब और सिगरेट आपको व आपके घर को खत्म कर रही है। आपके बच्चे को गलत संस्कार दे रही है। आजकल गुटखा खाने का फैशन चल पड़ा है। हमारे पास छ: आठ चार्टेड अकाउन्टेन्ट्स आये हुए थे। उनमें से एक को तलब आ गई। वह उठा, एक ओर गया, पाउच फाड़ा, गुटखा खाया और अपने साथियों को भी खिलाया। संयोग से वह खाली पाउच उड़कर मेरे पास आ गया। मैंने उसे उठाया। उस पर लिखा था-'वैधानिक चेतावनी-गुटखा खाने से कैंसर हो सकता है।' मैंने उस पाउच को उस सी.ए. बन्धु को दिखाया। वह उठा और एक ओर जाकर उसने सारा गुटखा थूक दिया। उसने अपने साथियों से भी ऐसा ही करने को कहा। उन्हें शायद सुधरना था इसीलिए वह खाली पाउच उड़कर मेरे पास आ गया। इसके बाद उन सभी ने संकल्प लिया कि अब वे गुटखा नहीं खाएँगे। गुटखा खाना अब उनके लिए विष्ठा खाने के बराबर होगा। ___अश्लील साहित्य, टी.वी. के अभद्र प्रोग्राम, घटिया फिल्में-इन सबसे बचें क्योंकि ये कुबुद्धि देते हैं। ऐसे कार्यक्रम, ऐसी फिल्में देखें जिन्हें सारा परिवार एक साथ बैठकर देख सके ।संभल सकें तो अभी संभलें। संभलने के लिए पहला काम यह करें कि जिन-जिन बातों से जीवन पर बुरा असर पड़ता है, उन-उन से बचें। अच्छी किताबें पढ़ें। अच्छे लोगों से दोस्ती करें। घटिया फिल्म, अश्लील कार्यक्रमों से स्वयं को बचायें। आज की अच्छी सोच, दृढ़ संकल्प जिंदगी भर के लिए निर्मल बुद्धि बना सकती है। अपशब्दों का प्रयोग न करें। शालीनता, प्रेम और मधुरता से बोलिये। जो अतीत का हुआ, वह तो गया, लेकिन आज के बाद अपनी कुबुद्धि और दुर्बुद्धि को हटाने के लिए अच्छा व्यवहार करेंगे और सभी को सम्मान देने का प्रयास करेंगे। ऐसा करना आपके लिए और सभी के लिए कल्याणकारी होगा। आप केवल पिता की नहीं, मित्र और शिक्षक की भूमिका भी निभाएँ । एक अच्छी संतान और एक अच्छे घर का निर्माण एक अच्छे समाज, अच्छे राष्ट्र और अच्छे विश्व के निर्माण की पहल है। १०२ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तिम प्रश्न : अनादि काल से साधु-संत विद्वान्-गुणीजन और धर्मगुरु मनुष्य को मनुष्य बनाने का सतत प्रयास करते आ रहे हैं। परन्तु हम उस काल से लेकर आज तक दृष्टि डालें तो पाएँगे कि सृष्टि में पाप, अनाचार, अनैतिकता, छल-प्रपंच आदि में बढ़ोतरी हुई है। इसके बावजूद साधुसंतों के पास क्या कोई ऐसी निरापद व्यवस्था है कि इस सृष्टि को पापकर्मों से मुक्त एक आदर्श नैतिक स्थान बना सकें या इस बढ़ते हए क्रम में कमी की जा सके? (श्री देवीशंकर दशोरा) ___प्रश्न का भाव यह है कि जाने कब से साधु-संत लोग दुनिया को सुधारने का प्रयत्न करते आ रहे हैं फिर भी दुनिया सुधर नहीं पाई। क्या कोई ऐसी व्यवस्था है जिससे समाज को बेहतर बनाया जा सके। मेरे प्रभु, सार रूप में इतना सा निवेदन करूँगा कि यह समाज, यह संसार साधु-संतजनों की वाणी की ऋणी है जो समाज व समग्र मानव-जाति के कल्याण के लिए अपने स्वार्थों का त्याग करके तत्पर बनी हुई हैं। जरा आप कल्पना कीजिए कि अगर दुनिया में संत-पुरुष न होते तो इस दुनिया का क्या हाल हुआ होता? जब इतने सारे त्याग और संतपुरुष मिलकर इस दुनिया के कल्याण के लिए प्रत्यनशील हैं तब भी अगर दुनिया सुधर न पाई, तो यदि ये संतजन न होते तो यह दुनिया चार दिन भी जीने के लायक नहीं रह पाती। आज जब सब लोग स्वार्थ से घिरे हुए हैं तब ये संतजन ही मनुष्य को मनुष्य के लिए कुछ करने की प्रेरणा दे जाते हैं। तब आदमी अपने स्वार्थों का त्याग करता है। मेरा विश्वास है कि वे व्यक्ति संतजनों के पास जाकर, सुधरते ही हैं जो स्वयं को सुधारने के लिए संकल्पशील होते हैं। हम तो प्राणिमात्र को प्रेम व शांति का वह संदेश देना चाहते हैं जिससे आपका, समाज का, घर का, देश का और सारे संसार का वातावरण अच्छा हो सके, बेहतर हो सके। हो सकता है कि हम सारी दुनिया को न सुधार पाएँ, न बदल पाएँ लेकिन अगर हजार लोग भी नेक रास्ते पर चलने लगे तो कम-से-कम कुछ तो तैयार हुआ ही। कुछ तो बदले। अमृत-बिन्दु जितनों को मिली, उतने तो धन्य हुए। ऐसा हुआ। एक व्यक्ति समुद्र के किनारे पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी १०३ For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हजारों मछलियाँ सागर की तरंगों से किनारे पर आ गिरी हैं। वे वहाँ तड़प रही हैं क्योंकि पानी उनसे दूर चला गया था। वह व्यक्ति वहाँ पहुँचा और एक-एक मछली को उठाकर पुन: पानी में डालने लगा। उसने सौ-दौ सौ मछलियाँ पानी में डाल ही दीं। तभी वहाँ से गुजर रहे दूसरे व्यक्ति ने कहा, 'तुम मछलियों को उठाकर पानी में डाल रहे हो। इससे क्या फर्क पड़ेगा? मछलियाँ तो दूरतट तक बिखरी हैं, लाखों मछलियाँ हैं। उस व्यक्ति ने कहा, 'भाई, मुझे भी पता है कि इतनी सब मछलियों को मैं पानी में नहीं डाल पाऊँगा, लेकिन जितनी मछलियों को डाल सकूँगा उतनी की तो जान बच जाएगी, उतनों का तो भला होगा।' जलता हुआ दीया अगर सौ और दीयों को जलाएगा तो पहले वाले दीये का तो कुछ नुकसान नहीं होगा। हाँ, सौ और दीपक जल जाएँ तो फायदा ज़रूर होगा। दुनिया जितनी सुधरे, उतना ही श्रेष्ठ। संतों के हम ऋणी हैं। संत कोई अलग जमात नहीं है। वह हमारे ही समाज की परिष्कृत, उन्नत पीढ़ी है। संत भी सामान्य इंसान ही होता है, पर वह सामान्य होकर भी असामान्य कार्य कर रहा होता है। संत का सम्मान वास्तव में उसके असामान्य अवदानों का ही सम्मान है। आपका तो कोई व्यापार भी है लेकिन लोगों का भला करना संतों का कोई धंधा या व्यापार नहीं है। वे स्वयं श्रेष्ठ जीवन जीते हैं और अपने आसपास आने वाले हर किसी व्यक्ति को श्रेष्ठ जीवन जीने का बोध देते हैं। वे तो उस कृषक की भाँति होते हैं जो उर्वर और पथरीली दोनों ही तरह की ज़मीन पर अपने बीज बोता है, हल चलाता है, निराई-सिंचाई करता है। कुछ बीज फलते हैं, तो कुछ निष्फल चले जाते हैं। जो फलते हैं, वे इतना आनन्द देते हैं कि निष्फल बीजों की कमी नहीं खटकती। दुनिया में काफी कुछ सुधार हुआ है। लोगों की दृष्टि काफी सकारात्मक हुई है। जो अभी भी संकुचित, छोटी और दुराग्रह-पूर्ण सोच रखते हैं, बहुत जल्दी ही इसमें भी परिवर्तन आएगा। संत हो चाहे न हो, इंसान स्वयं सजग हो रहा है। पीढ़ी ज्यों-ज्यों प्रबुद्ध हो रही है, त्यों-त्यों धार्मिक और आध्यात्मिक १०४ वाह! ज़िन्दगी For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल्यों की ओर आकर्षित हो रही है। भविष्य उज्ज्वल है। संतों को चाहिए कि अब वे पूरी मानवता के हो जाएँ। वे एक परम्परा के ही नहीं बल्कि सारी मानव-जाति के संत हो जाएँ। धरती पर यह उनका बड़ा उपकार होगा। सचमुच, कैनवास को आप जितना बड़ा रखेंगे, आप उतने ही विराट चित्र बना सकेंगे। छोटे कैनवास पर बड़े कार्यों की कल्पना ही नहीं की जा सकती। तुम जब तक छोटी सोच रखोगे, तुम निश्चित ही पिछड़े रहोगे। कुएँ के मेढ़कों को सागर दीजिए, सागर की विराटता दीजिए। साथ ही साथ लोकतंत्र की प्रबंधन-शैली में ही सुधार लाए जाने चाहिए। वोटों की राजनीति ने माहौल को विकृत किया है। आप अच्छे लोगों को, अच्छी प्रतिभाओं को आगे लाइये। हम अपने परिवार या समाज तक ही अपने को सीमित क्यों रखें? सारा विश्व आपका है। आप सारे विश्व के हो जाएँ। आप जहाँ भी हों, जहाँ भी रहें, आपकी खुशबू दूर-दराज तक फैलनी चाहिए। ऐसे जिओ, ऐसा कुछ करो। हक़ीकतों का सामना करो और निर्भयता से कठिनाइयों से पार लगो। जीवन एक तपस्या है और जो व्यक्ति इस तपस्या को उत्साह और ऊर्जा के साथ पूरी करता है, उसी का जीवन धन्य है, सफल है, सार्थक है, उत्सवपूर्ण है। __अपनी ओर से इतना ही निवेदन है। आपके लिए अमृत-प्रेम भी है, प्रणाम भी है और आशीष भी। सत्कार्य और सन्मार्ग-यही हो हमारा पंथ, हमारा धर्म, हमारा कर्म। सुखी रहिए, प्रतिपल आनंदित रहिए। ००० ऐसे मिटेगी, देश की गरीबी १०५ For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबोधि-धाम [धर्म और जीवन-दर्शन का व्यावहारिक स्वरूप] योगऔर साधना के क्षेत्र में संबोधि-धाम किसी पवित्र तीर्थ के समान है। धरती पर वेस्थान किसी श्रेष्ठ मन्दिर की तरह ही होते हैं, जहाँ मन की शान्ति और आध्यात्मिक सत्य की साधना होती है। संबोधि-धाम जोधपुर की कायलाना झील और अखयराज सरोवर के समीप पर्वतमालाओं की गोद में स्थित एक ऐसा साधना-केन्द्र है, जहाँ अब तक बीस हजार से अधिक लोगों ने सत्य, शान्ति और मुक्ति की साधना की है। हर व्यक्ति शान्त मन कास्वामी बने, बोधपूर्वक जीवन जिए और मुक्तिको आत्मसात् करे, संबोधिसाधना की सबके लिए यही पावन प्रेरणा है। __संबोधि-धाम में प्रति सप्ताह रविवार को नियमित ध्यानयोग सत्र आयोजित होते हैं और वर्ष में चार बार संबोधि-साधना के विशिष्ट शिविर आयोजित किए जाते हैं। संबोधि-साधना के द्वार प्राणीमात्र के लिए खुले हैं । यहाँ नजाति का भेद है और न पंथ का आग्रह । सर्व धर्मों का सम्मान और 'मानव स्वयं एक मन्दिर' की सद्भावना को लिए संबोधि-धाम जन-जन की सेवा के लिए समर्पित है। __ संबोधि-धाम का हरा-भरा वातावरण, यहाँ की शान्ति और नैसर्गिकता साधक को साधना की अनुकूलता प्रदान करती है। संबोधि-धाम के उन्नत शिखरों पर निर्मित ध्यान-मन्दिर और अष्टापद-मन्दिर हमें हिमालय और माउंट आबू का अहसास देते हैं। मन-मस्तिष्क के रोगोपचार के लिए यहाँ मनस् चिकित्सालय भी है, जिसमें जर्मनी और इंग्लैण्डसे आयातित पुष्प-अर्क' के द्वारा सफल उपचार होता है। साधकों के नियमित उपयोग के लिए यहाँ साहित्य केन्द्र, पुस्तकालय, आवास-कक्ष, भोजनशाला, पर्ण-कुटीर, एकान्त-कक्ष आदि उपलब्ध हैं। मन की शांति, स्वास्थ्य-लाभ एवं आध्यात्मिक साधना हेतु आप यहाँ सादर आमंत्रित हैं। श्री चन्द्रप्रभ ध्यान निलयम् संबोधि-धाम, कायलाना रोड, जोधपुर-4 (राज.) फोन : 2109812 For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखी और सफल होने का रास्ता “अपने भाग्यके विधाता आपस्वयं हैं।" प्रख्यात चिन्तक एवं महान् जीवन-द्रष्टापूज्य श्री चन्द्रप्रभ आपको सुखी और सफल होने के वे अद्भुत किन्तु आसान तरीके बता रहे हैं जिनसे आपका व्यक्तिगत जीवन ही नहीं, सम्पूर्ण घर-परिवार भी स्वर्ग की तरह आनंदित होसकता है। इस सरल और प्रभावी पुस्तक में दिए गए उनके उद्बोधन आपको आपके जीवन का असली विजेता बनाएँगे | आपकोवे परिणाम उपलब्ध होंगे जिन्हें पाकर आपकह उठेंगे-ज़िन्दगी ! एक अनमोल तोहफ़ा है। जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिया विकसित हो जाए तो 'आह ! ज़िन्दगी की पीड़ा भी वाह! ज़िन्दगी के सुख-संगीत में बदल सकती है। श्रीचन्द्रप्रभ आपको बताते हैं कि: / घरकोस्वर्गकैसे बनाया जाता है। / प्रेम की दहलीज़परकैसे चला जाए / / बेहतरजीवन के लिएनज़रियेकोबेहतरकैसे बनाएँ। /आत्मविश्वास जगाने के गुरक्या होसकते हैं। /सुख और सफलता की ऊंचाइयों को कैसे पायाजाए। / अपनी और देश कीसमस्याएँ कैसे सुलझाएँ / पुस्तक की मूल प्रेरणा है : सकारात्मक सोचिए, बेहतर नज़रिया रखिए, महान् लक्ष्य बनाइये, मज़बूत आत्मविश्वास जगाइये, कोमल व्यवहार और कड़ी मेहनत कीजिए। यही तय करते हैं आपकी जीत, आपकी सफलता। सफलता के लिए चाहिए बेहतरसोच, बेहतर कार्य-शैली. , For Personal & Private Use Only