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आधार भावनाओं की ईंटों से होता है। भावना और कर्तव्य ये दो शक्तियाँ मिलकर ही घर को नन्दनवन बनाती हैं।
घर में सुबह सदा जल्दी उठे। सूरज उगे उससे पहले जग जाएँ। घर को अवश्य सजायें-संवारें। पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उसकी ओर पर्याप्त ध्यान दें। यह नहीं कि डॉक्टर बुलाया, पत्नी को दिखाया और अपने कामधंधे पर रवाना हो गये। नहीं, उसे कुछ समय जरूर दें, भावनात्मक संबल प्रदान करें। शायद आपके धन से अधिक उसे आपके प्यार, आपके दिल और आपकी आत्मीयता की ज्यादा जरूरत है। ___सांझ को जब घर पहुँचो, तो अपनी जेब की तरह अपने दिमाग का कचरा जो आप दुकान या दफ्तर से लेकर आए हैं, उसे भी कचरे की पेटी में फेंक दें तब घर में प्रवेश करें। थोड़ा-सा चिड़चिड़ापन, कुछ-कुछ खीझ, थोड़ी-थोड़ी ईर्ष्या जो दुकान पर ग्राहकों से सिरपच्ची करते वक्त आपके दिमाग में घुस आई है और आप उसे अपने साथ ले आए हैं पहले उसी को कचरापेटी में फेंक दें, तब ही घर में जाएँ। नहीं तो इस कचरे को आप घरवालों पर डालेंगे
और अशांति का वातावरण पैदा करेंगे। घरवाले आपकी प्रतीक्षा करते रहते हैं। आप एक अच्छे बेटे, अच्छे पति, अच्छे पिता बनकर घर जाएँ। घरवालों को आपकी बहुत जरूरत है। लेकिन वह जरूरत तब अच्छी बनेगी जब आप अच्छे इंसान बनकर घर पहुंचेंगे। __घर के सभी सदस्य सप्ताह में कम-से-कम एक दिन अवश्य ही साथ बैठकर भोजन करें। इससे आपस में प्रेम और आत्मीयता बढ़ेगी। परिवार से ही समाज का निर्माण होता है, समाजों से देश का निर्माण होता है। परिवार पहली सीढ़ी है, पहली नींव है। जब हर परिवार सुखी होगा तो पूरा नगर भी सुखी होगा। नगर की खुशहाली ईद की तरह होगी, होली-दिवाली की तरह होगी। आज के लिए बस इतना ही। मेरे प्रेमपूर्ण नमस्कार स्वीकार करें।
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घर को स्वर्गकैसे बनाएँ?
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