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________________ वाह ! ज़िन्दगी आइए, प्रेम की दहलीज़ पर "बिना प्रेम के आप मकान तो बना सकते हैं पर वह घर तब ही बनता है, जब उस मकान में प्रेम की खुशबू खिलती है। " आज की बात कबीर की पंक्तियों से शुरू करूँगा पोथी पढ़ि - पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय | ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ॥ हम सभी को कबीर का यह दोहा तो याद है, लेकिन सोचता हूँ कि कबीर को न जाने किन विसंगतियों का सामना करना पड़ा होगा कि उन्होंने इतनी कठोर बात कही। केवल पुस्तकों को पढ़कर पंडित हो जाने वाले व्यक्तियों के लिए यह जरूरी नहीं है कि वे जीवन के भी पंडित हों । पुस्तकों को पढ़कर पंडित होने वाले कोरे तर्क-वितर्क, वाद-विवाद और शास्त्रार्थ भर करते रहते जबकि जीवन के धरातल पर पंडित और प्रज्ञावान वह होता है जिसने अपने जीवन में प्रेम और शांति के पवित्र पाठों को पढ़ा है । पुस्तकों को पढ़-पढ़कर पंडित होने वालों को एक तरह से गाली ही दी जा रही है, 'पोथी पढ़ि - पढ़ि जग मुआ ।' यह सारा जगत् किताबों को पढ़पढ़कर पागल हो गया है लेकिन जब तक वह अपने हृदय में उन्हें नहीं उतारेगा तो तब तक हृदय के अनन्त प्रेम को वह उपलब्ध नहीं हो सकेगा और उसे आइए, प्रेम की दहलीज पर Jain Education International For Personal & Private Use Only २९ www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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