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________________ 'मुआ' ही कहा जाएगा। लेकिन प्रेम के ढाई अक्षरों' को पढ़ने वाला विरला ही होता है। मेरे देखे, प्रेम ही विश्व की सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है। प्रेम से ही जीवन की यात्रा शुरू होती है। जन्म से लेकर मरण तक व्यक्ति केवल प्रेम को ही जीना चाहता है। माँ का वात्सल्य प्रेम का ही रूप है, भाई-बहिन का स्नेह प्रेम का ही रूप है, पति-पत्नी का सम्बन्ध प्रेम का ही प्रतिरूप है। चाहे मैत्री भावना हो या करुणा का रूप हो या ईश्वर की प्रार्थना और भक्ति हो, हक़ीकत यही है कि व्यक्ति किसी-न-किसी प्रकार प्रेम को ही जीना चाहता है। प्रेम ही व्यक्ति का मार्ग है और प्रेम ही उसकी मंज़िल है। धरती पर प्रेम न हो तो यहाँ चार-दिन जीना भी मुश्किल हो जाएगा। जीवन में प्रेम होने पर मनुष्य सौ-सौ मुसीबतों का सामना भी धैर्यपूर्वक कर लेता है। प्रेम का अपना स्वाद है, अपनी सुगंध है, और अपना आनन्द है। प्रेम तो हिमालय की तरह उन्नत, सागर की भाँति अथाह और आकाश के समान अनंत है। जिस जीवन में प्रेम नहीं, वह जीवन अपाहिज़ के समान है और जहाँ प्रेम के गुलाब खिलते हैं, वहाँ जीवन अमृत के समान है। प्रेम वास्तव में वह तत्त्व है जिसे हर हाल में जिया जाना चाहिए। यदि महावीर की अहिंसा को सकारात्मक अर्थ में देखें तो पाएंगे कि वह प्रेम है। राम की मर्यादा प्रेम का सकारात्मक पहलू है। कृष्ण की भक्ति का रास्ता भी प्रेम की पगडंडी से ही जाता है। व्यक्तिगत जीवन में मनुष्य को प्रेम ही माधुर्य देता है, जीवन की नीरसता को प्रेम ही भरता है। अगर जीवन में रिक्तता है तो वहाँ अवश्य ही प्रेम की कमी होगी। रुग्ण से रुग्ण और अवसादग्रस्त व्यक्ति को प्रेम के दो मीठे बोल मिल जाएँ तो उसके हृदय को सुकून मिलना शुरू हो जाता है। परिवार में त्याग, आत्मीयता और भाईचारा प्रेम से ही आते हैं। बिना प्रेम के आप मकान तो बना सकते हैं लेकिन वह घर तब ही बनता है जब उस मकान में प्रेम की खुशबू खिलती है। परिवार का प्राण है प्रेम। समाज की ताकत है प्रेम । धर्म की धुरी है प्रेम। समाज में सामाजिक जीवन और सामाजिक संगठन के लिए हम सभी प्रेम की दहलीज़ पर अपने कदम बढ़ाएँ। क्या आप ऐसे समाज की कल्पना ३० वाह ! ज़िन्दगी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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