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________________ अगर आप पांच भाई हैं तो उनमें से तीन शहर में और दो गाँव में रह सकते हैं। यदि शहर में तीनों भाई अगर अलग-अलग रहते हों और प्रत्येक भाई ढाई हजार रुपये किराया देता है तो साढ़े सात हजार रुपये लग गए किन्तु अगर साथ में रहते तो चार हजार में ही अच्छा-सा मकान मिल जाता । इससे खर्चा भी कम होता और एक-दूसरे के साथ सहभागिता भी अधिक होती। आप जब बीमार हो जाओगे तो पड़ोसी नहीं अपितु आपका भाई ही काम आएगा। तुम अब हमारी बात सुनिए। जब हमारे पिता ने संन्यास लिया तो अपने बच्चों से (हम भाइयों से) कहा था, 'बच्चो', तुम्हें जैसा जीना हो वैसा जीना मैं कोई दखल नहीं दूंगा लेकिन जब तक हम संत माता-पिता जीवित रहें, लोग अलग-अलग मत होना। इसके अतिरिक्त जो तुम्हें करना हो, करते रहना ।' हमने भी अपने माता-पिता के साथ ही संन्यास अंगीकार किया था। आप अपनी पत्नी के साथ आठ घंटे बिताते हैं, बच्चों के साथ दो घंटे बिताते हैं, दुकान में बारह घंटे बिताते हैं, पर हम दोनों भाई चौबीस घंटे एक साथ रहकर बिताते हैं । हमें संन्यस्त हुए सताईस वर्ष हो गए हैं, पर हमें याद नहीं पड़ता कि इन सत्ताईस वर्षों में हमारे बीच कभी 'तू-तू-मैं-मैं' हुई हो । अरे, भाई-भाई लड़ने के लिए नहीं होते। हमारे माता-पिता ने हमें कोई लड़ने के लिए थोड़े ही पैदा किया है। जो उसने कहा वह मुझे मंजूर और जो मैंने कहा वह उसे मंजूर, भाई-भाई के बीच अखंड प्रेम को बनाये रखने का यही मूलमंत्र है । एक के कार्य में दूसरा हस्तक्षेप नहीं करता । तुमने अगर गलत किया है तो उसका परिणाम भी सामने आ जाएगा और अच्छा किया है तो उसका परिणाम भी छिपने वाला नहीं है। आवश्यकता पड़ने पर एक-दूसरे की सलाह ले लो । हम दोनों भाई तो तीन सौ पैंसठ दिन एक ही पात्र में एक साथ भोजन करते हैं। एक भाई रोटी चूरता है तो दूसरा भाई उसे आनन्दपूर्वक खाता है। भाई के हाथ से चूरी हुई रोटी का स्वाद ही अनेरा होता है। धर्म वह नहीं है जो शास्त्रोक्त है बल्कि धर्म तो वह है जिसे व्यावहारिक जीवन में धारण किया जा सके। पहले कर्तव्य तो माता-पिता के हैं अपनी संतानों के प्रति, दूसरे कर्तव्य संतानों के हैं अपने माता-पिता के प्रति । मैं 'घर को स्वर्ग कैसे बनाएँ ? Jain Education International For Personal & Private Use Only ७ www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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