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________________ हीनता, हीन-भावना और हीन विचार? जब अर्जुन ने कृष्ण रूप सारथी से कहा कि इस महायुद्ध में वह गांडीव धनुष नहीं उठा सकता। अपने ही बन्धुबांधवों के खिलाफ शस्त्र उठाने में उसके हाथ काँप रहे हैं तब कृष्ण ने अर्जुन को निरंतर एक ही प्रेरणा दी कि 'तुम अपने हीन-भावों को निकाल फेंको, हृदय की तुच्छ दुर्बलता का त्याग करो। हे पार्थ! तुम्हें यह नपुंसकता शोभा नहीं देती। आओ, मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम अपना गांडीव उठाओ, तुम हर डगर पर ईश्वर को अपने साथ पाओगे।' जिस बहन ने यह प्रश्न पूछा है, उससे मैं कहना चाहूँगा कि आप ईश्वरीय सम्पदा और प्रकृति के घर से मिलने वाली सम्पदाओं को समझने की कोशिश करें। आपका आत्मविश्वास आप में लौट आएगा। तुम्हारी हिचक मन की कमज़ोरी है जिसके कारण तुम हमेशा संकोचशील बनी रहती हो। आदमी के भीतर हीनभावना निर्धनता के कारण या जाति के कारण या आत्म-निर्भरता न होने से भी निर्मित होती है। अगर आप गरीब घर में पैदा हुए हैं तो यह कोई पाप नहीं है, गलत काम नहीं है। गरीबी से अगर कुंठित हो गये तो जीवन में कुछ भी नहीं कर पाओगे। हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री गरीब घरों में पैदा हुए। वर्तमान राष्ट्रपति डॉ. अबुल कलाम भी निर्धन परिवार की पैदाइश हैं। अपने बचपन में वे इमली के बीजों को एकत्रित करके बेचते और पाठ्य-पुस्तकें खरीद कर पढ़ते थे। गरीब घर में पैदा होना गलत नहीं है जबकि अपने मन को गरीब कर लेना अवश्य गलत है। शरीर से विकलांग होना गलत नहीं है पर अपनी मानसिकता को विकलांग कर लेना निश्चित ही गलत है। मानसिकता के विकलांग होते ही हीन विचार, हीन भावना बननी शुरू हो जाती है। वहीं अगर आपने कुछ कर गुजरने का संकल्प बना लिया तो आपकी हिचक हमेशा के लिए हट जाएगी। अमरीकी राष्ट्रपति लिंकन भी गरीब घर में पैदा हुए थे। दुनिया में किसी की भी सात पीढ़ियाँ अमीर नहीं रहा करतीं। हरेक की जिंदगी में कभी अमीरी आती है तो कभी गरीबी। हीन भावना स्वयं के द्वारा स्वयं को दिया गया सबसे बड़ा अभिशाप है। यह कुठाराघात है और अपने ही पाँव पर अपने ही हाथों से मारी गई कुल्हाड़ी। वाह ! ज़िन्दगी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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