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था इसलिए उसने एक पत्र लिखा कि, 'ईशून, मैं तुमसे प्यार करता हूँ और एकांत में तुमसे मिलने का समय चाहता हूँ।' कहते हैं कि दूसरे दिन जब ध्यान . की कक्षा पूर्ण हो गई तब ईशून क्लास में खड़ी होकर बोली, 'कल मेरे पास एक ख़त आया है, जिसमें मुझसे मिलने का वक्त माँगा गया है। मैं जानना चाहती हूँ कि यह ख़त मुझे किसने लिखा है ? पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया, क्योंकि कोई भी लड़काखड़ा नहीं हुआ। क्लास में कोई खड़ाभी कैसे होता?
तब ईशून ने कहा, 'अगर वह लड़का सचमुच मुझसे प्रेम करता है तो सबके सामने आकर वह मुझे बाँहों में ले ले और अपने गले से लगाए। अगर ऐसा है तब तो वह मुझसे वाकई प्रेम करता है और यदि ऐसा नहीं करता है तो उसमें मुझसे प्रेम करने का साहस नहीं है। यह विद्यार्थी जीवन में गलत राह पर जाने का मार्ग है। अगर तुम प्रेम करते हो तो छिपकर मत करो क्योंकि तब वह प्रेम पाप बन जाता है। इसी प्रेम को सार्वजनिक कर दिया जाए तो वह प्रेम पुण्य बन सकता है।'
प्रेम को केवल व्यक्ति-विशेष तक ही सीमित मत करो। प्रेम तो बहुत विशाल है, 'वसुधैव कुटुम्बकम्' । तब प्रेम को एक दायरे में क्यों सीमित करते हो? मदर टेरेसा जैसे लोग प्रेम के पवित्र रूप को जिया करते थे, जहाँ उनके लिए प्रेम का अर्थ प्रार्थना, प्रार्थना का अर्थ सेवा, और सेवा का अर्थ परमात्मा होता था। प्रेम का प्रारम्भ तो मनुष्य से होता है लेकिन जब उसका विस्तार पशु, पक्षी, फूल, पौधे, प्रकृति तक होता है तब यह इबादत हो जाता है और जब उस प्रेम का जुड़ाव परमात्मा से हो जाता है तो वह भक्ति का स्वरूप बन जाता है। हम प्रेम को विस्तृत रूप दें।
आप सभी मेरे प्रेम के पात्र हैं। कोई भी व्यक्ति-विशेष ही मेरे लिए प्रेम का हक़दार नहीं है। सभी मेरे प्रेम के पात्र हैं। जिनसे भी प्रेम करो,उन्हें निभाओ। ऐसे पंछी मत बनो जो सरोवर के किनारे जाए और अपना दाना-पानी चुगकर उड़ जाए। अरे, ऐसी मछली बनोजो उस सरोवर से एकाकार हो जाए। प्रेम के रिश्ते बनाने और बिगाड़ने के लिए नहीं होते। माना कि जहाँ चार बर्तन होते हैं वे खनकते भी हैं लेकिन प्रेम को जीने वाला आवाज़ नहीं होने देता। वह तो
आइए, प्रेम की दहलीज पर
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